लेखक- मधु शर्मा कटिहा
‘‘साहब कितने खुश हैं आप के साथ. यहां आ गए तो… दुखी हो जाएंगे. मेम साब आप चलिए न नीचे… मैं नहीं करूंगी आज यहां की सफाई,’’ वान्या का हाथ पकड़ खींचते हुए प्रेमा कातर स्वर में बोली.
‘‘नहीं जाऊंगी मैं यहां से… बताओ मुझे कि यहां आ कर क्यों दुखी हो जाएंगे साहब.’’
‘‘सुरभि मेम साब ने मुझे आप को बताने से मना किया था, लेकिन अब आप ही मेरी मालकिन हो. जैसा आप कहोगी मैं करूंगी. ऐसा करते हैं इस छोटे कमरे से निकल कर बाहर वाले बड़े कमरे में चलते हैं.’’
बड़े कमरे में आ कर वान्या पलंग पर बैठ गई. प्रेमा ने दरवाजे को चिटकनी लगा
कर बंद कर दिया और वान्या के पास आ कर धीमी आवाज में कहना शुरू किया, ‘‘मेम साब, यह कमरा आर्यन साहब के बड़े भाई का है. उन दोनों की उम्र में 3 साल का फर्क था, लेकिन प्यार वे पिता की तरह करते थे आर्यन साहब को. आप को पता होगा कि साहब के मांपिताजी को गुजरे कई साल हो चुके हैं. बड़े भाई ने अपने पिता का धंधा अच्छी तरह संभाल लिया था.
‘‘एक बार जब बड़े साहब काम के सिलसिले में देश से बाहर गए तो वहां अंग्रेज लड़की से प्यार कर बैठे. शादी भी कर ली थी दोनों ने. अंग्रेज मैडम डाक्टरी की पढ़ाई कर रहीं थी, इसलिए साहब के साथ यहां नहीं आई थीं. साहब वहां आतेजाते रहते थे. एक साल बाद उन का बेटा भी हो गया. बड़े साहब बच्चे को यहां ले आए थे. यह बात आज से कोई ढाईतीन साल पहले की है. उस टाइम आर्यन साहब पढ़ाई कर रहे थे और मुंबई में रह रहे थे. जब पिछले साल अंग्रेज मैडम की पढ़ाई पूरी हुई तो बड़े साहब उन को हमेशा के लिए लाने विदेश गए थे. वहां… बहुत बुरा हुआ मेम साब.’’ प्रेमा अपने सूट के दुपट्टे से आंसू पोंछ रही थी. वान्या की प्रश्नभरी आंखें प्रेमा की ओर देख रही थी.
‘‘मेम साब, बर्फ पर मौजमस्ती करते हुए अचानक साहब तेजी से फिसल गए और वे लड़खड़ा कर गिरे तो अंग्रेज मैडम भी गिरी, क्योंकि दोनों एकदूसरे का हाथ पकडे़ थे. लुढ़कतेलुढ़कते दोनों नीचे तक आ गए और जब तक लोग अस्पताल ले जाते, बहुत देर हो चुकी थी. साथसाथ हाथ पकड़े हुए चले गए दोनों इस दुनिया से. उन का बेटा कृष अब सुरभि दीदी के पास रहता है.’’
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वान्या दिल थाम कर सब सुन रही थी. रुंधे गले से प्रेमा का बोलना जारी था. ‘‘मेम साब, इस दुर्घटना के बाद जब सुरभि दीदी यहां आईं थीं तो कृष आर्यन साहब को देख कर लिपट गया और पापा, पापा कह कर बुलाने लगा, क्योंकि बड़े साहब और छोटे साहब की शक्ल बहुत मिलती थी. ये देखो…’’ प्रेमा ने प्यानों पर ढका कपड़ा उठा दिया. प्यानों की सतह पर एक पोस्टर के आकार वाली फोटो चिपकी थी, जिस में आर्यन और बड़ा भाई एकदूसरे के गले में हाथ डाले हंसते हुए दिख रहे थे. दोनों का चेहरा एकदूसरे से इतना मिल रहा था कि किसी को भी जुड़वां होने का भ्रम हो जाए.
‘‘मेम साब, अभी आप कह रही थीं न कि मोबाइल के टाइम में भी ऐसे फोटो? ये बड़े साहब ने पोस्टर बनवाने के लिए रखे हुए थे. बहुत शौक था बड़ेबड़े फोटो से उन्हें घर सजाने का.’’ प्रेमा आज जैसे एकएक बात बता देना चाहती थी वान्या को.
‘‘ओह, अच्छा एक बात बताओ, कृष ने आर्यन से अपनी मम्मी के बारे में कुछ नहीं पूछा?’’ वान्या व्यथित हो कर बोली.
‘‘नहीं, अपनी मां के साथ तो वह तब तक ही रहा जब 2 महीने का था. बताया था न मैं ने कि बड़े साहब ले आए थे उस को यहां. कभीकभी साहब के साथ जाता था तभी मिलता था उन से. वैसे भी वे 6 महीने की ट्रेनिंग पर थीं और कहती थीं कि अभी बच्चा मुझे मम्मी न कहे सब के सामने. कृष कोई दीदीवीदी समझता होगा शायद उन को.’’
वान्या सब सुन कर गहरी सोच में डूब
गई. कुछ देर तक शांत रहने के बाद प्रेमा फिर बोली, ‘‘मेम साब, जब आप का रिश्ता पक्का नहीं हुआ था और साहब आप से मिल कर
आए थे तो आप की फोटो साहब ने मुझे और मेरे पति को दिखाई थी. हमें उन्होंने आप के बारे में बताते हुए कहा था कि इन का चेहरा जितना भोलाभाला लग रहा है, बातों से भी उतनी मासूम हैं. वैसे स्कूल में टीचर हैं, समझदार हैं, मेरे पास रुपएपैसे की तो कोई कमी नहीं है. मुझे जरूरत है तो उस की जो मेरा साथ दे, मेरे अकेलेपन को दूर कर दे, जिस के सामने अपना दर्द बयां कर सकूं. मैं ने इन को तुम्हारी मेम साब बनाने का फैसला कर लिया है…’’
वान्या प्रेमा के शब्दों में अभी भी खोई हुई थी. प्रेमा ने कहा, ‘‘मेम साब अब नीचे चलते हैं’’ कहते ही वह गुमसुम सी सीढि़यां उतरने लगी.
प्रेमा के वापस चले जाने के बाद वह आर्यन के साथ लंच कर आराम करने बैडरूम
में आ गई. वान्या को प्यार से अपनी ओर खींचते हुए आर्यन बोला, ‘‘रात में बहुत नींद आ रही थी, अब नहीं सोने दूंगा.’’
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‘‘लेकिन एक शर्त है मेरी,’’ वान्या आर्यन के सीने पर सिर रख कर बोली.
‘‘कहो न, कोई भी शर्त मानूंगा तुम्हारी,’’ वान्या के चेहरे से अपना चेहरा सटा आर्यन बोल सका.
‘‘कोरोना के हालात ठीक होने के बाद हम दीदी के पास चलेंगे और अपने बेटे कृष को हमेशा के लिए अपने साथ ले आएंगे.’’
आर्यन की सांस जैसे वहीं थम गई. ‘‘प्रेमा ने बताया न,’’ भर्राए गले से वह इतना ही बोल सका.
वान्या मुसकरा कर ‘हां’ में सिर हिला दिया.
आर्यन ने वान्या को अपने सीने से लगाए खामोश हो कर भी बहुत कुछ कह रहा था. वान्या को प्रेम में डूबे युगल की मूर्ति आज बेहद खूबसूरत लग रही थी. मन ?ही मन वह कह उठी, ‘बेकार नहीं, मनहूस नहीं… ये घर बहुत हसीन है.