नई रोशनी की एक किरण- भाग 3: सबा की जिंदगी क्यों गुनाह बनकर रह गई थी

दोनों जब तक जवाब देते, सबा उठ कर सामने आ गई और उस ने बहुत नरम और सही अंगरेजी में कहा, ‘‘सर, आप सरकारी नौकर हैं. जांच और पूछताछ करना आप का फर्ज है. आप तरीके से पूछें फिर भी आप को तसल्ली न हो तो आप लिखित में नोटिस दें, हम उस का जवाब देंगे. आप की पहली इन्क्वायरी का संतोषप्रद जवाब दिया जा चुका है. आप को जो भी मालूमात चाहिए, मुझ से पूछिए क्योंकि लेजर मैं मेंटेन करती हूं पर पूछताछ में अपने लहजे और भाषा पर कंट्रोल रखिएगा क्योंकि हम भी आप की तरह संभ्रांत नागरिक हैं.’’

इतनी सटीक और परफैक्ट अंगरेजी में जवाब सुन अफसर के रवैए में एकदम फर्क आ गया. काफी देर जांच चलती रही, सबा ने बड़े आत्मविश्वास से हर शंका का बड़े सही ढंग से समाधान किया क्योंकि पिछले 4 दिनों में वह हर बात को अच्छी तरह से समझ चुकी थी. सेल्सटैक्स अफसर कोई घपला न निकाल सका, इसलिए अपने साथियों के साथ वापस चला गया, पर धमकी देते गया कि उस की खास नजर इस स्टोर पर रहेगी. अकसर परेशान करने को नोटिस आते रहे जिन्हें सबा ने बड़ी सावधानी से संभाल लिया.

घर पहुंच कर नईम खुशी से पागल हो रहा था, अम्मी और बहनों को सबा की काबिलीयत विस्तार से जताते हुए बोला, ‘‘सबा का पढ़ालिखा होना, उस की गहरी जानकारी और अंगरेजी बोलना सारी मुसीबतों से टक्कर लेने में कामयाब रहे. पहले यही अफसर मुझ से ढंग से बात नहीं करता था. मेरा अंगरेजी मेें ज्यादा दखल न होने से और विषय की पकड़ कमजोर होने से मुझ पर हावी हो रहा था. अपनी जानकारी से सबा ने ऐसा मुंहतोड़ जवाब दिया है कि अब बेवजह मुझे परेशान न करेगा. मैं ने फैसला कर लिया है कि सबा हफ्ते में 2 बार आ कर हिसाबकिताब चैक करेगी ताकि आइंदा ऐसा कोई मसला न खड़ा हो.’’

एक अरसे के बाद अम्मी ने प्यार से सबा को गले लगाया. बहनें भी प्यार से लिपट गईं. सबा को लगा उस की मुश्किलों का खत्म होने का वक्त आ गया है. उन्हें हंसता देख कर नईम बोला, ‘‘अम्मी, मैं ने शादी के वक्त शर्त रखी थी कि लड़की पढ़ीलिखी होनी चाहिए तो आप सब खूब नाराज हो रहे थे पर उस वक्त पढ़ीलिखी बीवी की ख्वाहिश इसलिए थी कि मैं कम पढ़ालिखा था. उस कमी को मैं अपनी पढ़ीलिखी बीवी से पूरी करना चाहता था और मैं गर्व से अपने दोस्तों से कह सकूं कि मेरी बीवी एमएससी है.

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‘‘यह हकीकत तो अब खुली है कि इल्म सिर्फ दिखाने या नाज करने के लिए नहीं होता. इस मुश्किल घड़ी में जब मैं बेहद निराश और डिप्रैस्ड था, उस वक्त सबा ने अपनी तालीम, समझदारी व जानकारी से मामला संभाला. आज मैं अपनी ख्वाहिश की जिंदगी और कारोबार में इल्म की अहमियत को समझ गया हूं. इल्म कोई शोपीस नहीं है बल्कि हर समस्या, हर मुश्किल से जूझने का सफल हथियार है.’’

सबा ने खुशी से चमकती आंखों से नईम को शुक्रिया कहा.

सबा के स्टोर में मदद करने से एक एहसान के बोझ से दबी अम्मी उस से कुछ हद तक नरम हो गईं पर दिल में जमी ईर्ष्या और कम होने के एहसास की धूल अभी भी अपनी जगह पर थी. बहनें भी रूखीरूखी सी मिलतीं. सबा सोचने लगी, उस से कहीं गलती हो रही है. एकाएक उस के दिमाग में धमाका हुआ. उसे एहसास हुआ, कोताही उस की तरफ से भी हो रही है. अभी लोहा गरम है, बस एक वार की जरूरत है. वह पढ़ीलिखी है यह एहसास उस पर भी तो हावी रहा था. अनजाने में वह उन से दूर होती गई.

अगर वे लोग अपनी जहालत और नासमझी से उसे अपना नहीं रहे थे तो उस ने भी कहां आगे बढ़ कर कोशिश की. वह तो समझदार थी. उसे ही उन लोगों का  साथ निभाना था. उस ने अपनी बेहतरी को एक खोल की तरह अपने ऊपर चढ़ा लिया था. अब उसे इस खोल को तोड़ कर उन लोगों के लेवल पर उतर कर उन के दिलों में धीरेधीरे जगह बनानी होगी. यही तो उस की कसौटी है कि उसे अपनी तालीम को इस तरह इस्तेमाल करना है कि वे सब दिल से उस के चाहने वाले हो जाएं. उन की नफरत मुहब्बत में बदल जाए. पहल उसे ही करनी होगी. अपने गंभीर और आर्टिस्टिक मिजाज को छोड़ कर अपने घमंड के पीछे डाल कर उसे यह रिश्तों की जंग जीतनी होगी.

दूसरे दिन सबा ने गहरे रंग का रेशमी सूट पहना. झिलमिल करता दुपट्टा ओढ़ नीचे आ गई. उस की सास तख्त पर बैठी सिर में तेल डाल रही थीं. वह उन के करीब जा कर बैठ गई. उन्होंने मुसकरा कर उस के खूबसूरत जोड़े को देखा, उस ने उन के हाथ से कंघा ले कर कंघी करते हुए कहा, ‘‘अम्मी, अगर नासमझी में मुझ से कोई भूल हुई है तो माफ करें, अपनेआप को मैं आप की ख्वाहिश के मुताबिक बदल लूंगी.’’

अम्मी हैरान सी उसे देख रही थीं. आज इस चमकीले सूट में वह उन्हें बड़ी अपनी सी लग रही थी. वह उस के संजीदा व्यवहार से बदगुमान हो गई थीं. उन्हें लगा था कि तालीमयाफ्ता, होशियार बहू उन से उन का बेटा छीन लेगी, क्योंकि नईम वैसे भी उसे खूब चाहता था. कहीं बहू बेटे पर हावी न हो जाए, इसलिए उन्होंने उस के नुक्स निकाल कर उस की अहमियत कम करना शुरू कर दिया. बेटियों ने भी साथ दिया क्योंकि सबा ने भी अपने आसपास एक नफरत की दीवार खड़ी कर दी थी.

आज वही दीवार, अपनेपन और मुहब्बत की गरमी से पिघल रही थी. उस ने अम्मी की चोटी गूंथते हुए कहा, ‘‘अम्मी, आप मुझे रिश्तों का मान दीजिए, मुझे अपनी बेटी समझें, मुझे भी रिश्ते निभाने आते हैं. मैं आप के बेटे को कभी आप से दूर नहीं करूंगी बल्कि मैं भी आप की बन जाऊंगी. मैं मुहब्बत की प्यासी हूं. रमशा और छोटी मेरी बहनें हैं. आप उन्हीं की तरह मुझे अपनी बेटी समझें. तालीम और काबिलीयत ऐसी चीज नहीं है जो दिलों के ताल्लुक और मुहब्बत में सेंध लगाए.’’

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अम्मी को लग रहा था जैसे उन के कानों में मीठा रस टपक रहा है. वे ठगी सी काबिल बहू की बातें सुन रही थीं जो सीधे उन के दिल में उतर रही थीं. उसी ने उन के बेटे को कितनी बड़ी मुश्किल से निकाला है पर जरा सा गुरूर नहीं है. सबा ने रमशा और छोटी को दुलारते हुए कहा, ‘‘आप इन के लिए परेशान न हों, मैं इन दोनों को भी जमाने के साथ चलना सिखाऊंगी. मेरी कुछ, बहुत अच्छे घरों में पहचान है. वहां इन दोनों के लिए रिश्ते भी देखूंगी,’’ यह बात सुन कर दोनों ननदों की आंखों में नई जिंदगी के ख्वाब तैरने लगे.

शाम को नईम जब स्टोर से आया तो घर में खाने की खुशगवार खुशबू के साथ प्यार की महक भी थी. सब ने हंसतेमुसकराते खाना खाया. सबा की एक छोटी सी पहल ने सारा माहौल खुशियों से भर दिया. उस ने अपनी समझदारी से अपना अहं छोड़ कर अपना घर बचा लिया, क्योंकि कुछ पाने के लिए झुकना जरूरी है. उसे यह बात समझ में आ गई कि नीचे झुकने से कद छोटा नहीं होता बल्कि ऊंचा हो जाता है. उन सब में इल्म की कमी से एक एहसासेकमतरी था, उसे छिपाने के लिए वे सबा में कमियां ढूंढ़ते थे. आज उस ने उन के साथ कदम से कदम मिला कर उन के खयालात बदल दिए.

दरअसल, एक रंग पर दूसरा रंग मुश्किल से चढ़ता है. नया रंग चढ़ाने को पुराने रंग को धीरेधीरे हलका करना पड़ता है. दूसरी शाम नईम की पसंद के मुताबिक तैयार हो कर वह उस के दोस्त के यहां खुशीखुशी मिलने जा रही थी. यह नई जिंदगी का खुशगवार आगाज था जिस का उजाला उस के ख्वाबों में नए रंग भरने वाला था.

फूल सी दोस्ती- भाग 2: क्यों विराट की गर्लफ्रैंड उसका मजाक बनाती थी

और फिर मंजरी के ‘‘ओह…नौटी गर्ल’’ कहते ही दोनों हंस पड़े. ‘‘आप से एक बात पूछूं?… पुरानी हिंदी फिल्मों में हीरो हमेशा हीरोइन के पीछे भागता दिखाई देता था. क्या सच में ऐसा तब भी होता था? आजकल की लड़कियां तो अपने पीछे भगाभगा कर थका ही देती हैं. अब मुझे ही देख लीजिए,’’ कह विराट ने अपना निचला होंठ बाहर निकालते हुए मंजरी की ओर इस तरह देखा कि उस की मासूमियत पर स्नेह बरस पड़ा मंजरी के मन में.

‘‘विराट, यह जमाने पर नहीं व्यक्ति पर निर्भर करता है. मैं ने तो किसी को अपने पीछे भागने का मौका ही नहीं दिया कभी. शिशिर के लिए प्यार महसूस करते ही बिना समय गंवाए उसे बता दिया था मैं ने तो. जब मिलती थी तब भी पटरपटर बोलती रहती थी. वैसे शिशिर क्या मैं तो किसी के सामने छिपा ही नहीं सकती अपनी फीलिंग्स. चाहे फिर वे मेरे बच्चे हों या दोस्त,’’ थोड़ा भावुक हो कर मंजरी बोली. ‘‘वही तो, मैं भी नहीं रह सका चुप. अपरोक्ष रूप से ही सही बता ही दिया रिया को कि कितना बेताब हूं उस के लिए मैं. अब मैं भी तो सुनना चाहता हूं कि मेरे लिए वह क्या महसूस करती है?’’ बेचैन सा होता हुआ वह बोला.

‘‘मैं ने बहुत कुछ सीखा है अपने बड़बोले स्वभाव से. मैं तुम्हें बता दूंगी कि रिया से कैसे उस के दिल की बात उगलवानी है तुम्हें… ठीक?’’ ‘‘डील?’’

‘‘डील.’’ और दोनों ने हंसते हुए एकदूसरे से हाथ मिलाया. मोबाइल नंबरों के आदानप्रदान के बाद मंजरी घर की ओर चल पड़ी.

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विराट दिल्ली में स्थित एक इंटरनैशनल कंपनी में वाइस प्रैसिडैंट था. उस के मातापिता मुंबई में रहते थे. यों तो विराट बहुत बातूनी था, पर कम ही लोग उस के दिल को छू पाते थे. मंजरी के अपनेपन और दोस्ताना व्यवहार ने विराट के दिल में जगह बना ली और दोनों के बीच फोन और व्हाट्सऐप के द्वारा बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. कुछ ही दिनों में वे इतना घुलमिल गए कि अपनी रोज की बातें शेयर करने लगे. विराट जब भी मंजरी से मिलता, अपने मन में हलचल मचा रहे कई सवाल पूछ डालता. मंजरी भी आराम से उस के सवालों का जवाब देती. जब कभी वह मंजरी से अपने और रिया के संबंधों को ले कर कोई सवाल करता तो मंजरी की प्रेम के विषय में इतनी गहरी समझ देख कर हैरान रह जाता.

वह जान गया था कि 60 की उम्र के आसपास पहुंच कर भी प्यार जैसे शब्द बेमानी नहीं होते. यह अलग बात है कि उस सोच में एक परिपक्वता आ जाती है. मंजरी से मिला स्नेह और मार्गदर्शन जहां विराट को बेहद सुखद अनुभूति देता, वहीं मंजरी भी विराट के उत्साह से प्रभावित हो कर एक नई शक्ति महसूस करती. धीरेधीरे वे दोनों एक अनाम से रिश्ते में बंध गए थे. लगभग एक महीने की बिजनैस टूअर से शिशिर जब घर लौटे तो मंजरी बदलीबदली सी लगी. पहले की तुलना में वह काफी खुश दिख रही थी. लाल कैप्री के साथ क्रीम कलर का लंबा सा कुरता पहन, अपनी फैवरिट परफ्यूम लगाए घर में फुदकती हुई वह 25 साल पुरानी मंजरी लग रही थी.

शिशिर सूटकेस रखने जब अपने कमरे में पहुंचा तो बैड पर अधलेटा विराट मंजरी के लैपटौप पर कुछ करने में व्यस्त था. इस से पहले कि उन की कुछ बात होती, मंजरी सब के लिए कौफी ले कर आ गई और विराट का अपने दोस्त के रूप में शिशिर से परिचय करवा दिया.

‘‘मंजरीजी मेरी हमउम्र न सही, पर यह रिश्ता मुझे भी दोस्ती जैसा ही लगता है. आप को ऐतराज न हो तो मैं भी इन्हें अपनी दोस्त कह कर बुला सकता हूं?’’ विराट ने शिशिर से बड़ी आत्मीयता से पूछा. ‘‘सिर्फ दोस्त कह कर बुलाओगे? अरे भई, दोस्त समझो इन्हें. लगता है तुम में इन्हें एक ऐसा साथी मिल गया कि हमारी मैडम किट्टी और पड़ोस की सहेलियों से मिलने तक नहीं जा पातीं. अब बाहर जाया करूंगा तो मंजरी की चिंता नहीं होगी मुझे. वैलडन यंग मैन,’’ शिशिर ने विराट की पीठ थपथपा दी.

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कौफी की चुसकियों के साथ तीनों की बातचीत का शोर घर में सुनाई देने लगा. रिया को ले कर विराट का उतावलापन देख मंजरी कभीकभी खूब हंसती. विराट चाहता था कि रिया जल्द से जल्द उसे अपने मन की बात कह दे और यह रिश्ता किसी मंजिल तक पहुंच जाए. मंजरी ने विराट को रिया के सामने थोड़ा सीमित रहने का सुझाव दिया, ताकि रिया स्वयं को टटोलना शुरू करे. मंजरी की बात मान विराट ने अब बारबार रिया को फोन और मैसेज करना बंद कर दिया. व्हाट्सऐप और फेसबुक पर भी वह सोचसमझ कर स्टेटस डालने लगा. अपने मन की बात मन ही में रखने से विराट को थोड़ी मुश्किल जरूर हुई, पर इस का परिणाम वैसा ही निकला जैसा वह चाहता था.

उस दिन कौफी शौप में विराट जानबूझ कर रिया को औफिस की बोझिल बातें सुनाने लगा. कुछ देर चुपचाप सुनने के बाद बोर होते हुए रिया बोली, ‘‘बस करो न अब… प्लीज, हमेशा की तरह अपने शौक, अपने बचपन और कालेज की शैतानियों की बात करो न.’’ ‘‘क्यों?’’ अनजान बनते हुए विराट ने पूछा.

‘‘क्यों क्या? अच्छा लगता है तुम्हारे बारे में जानना.’’ ‘‘रियली… पर कुछ तो वजह होगी इस की?’’ विराट को मंजिल करीब लग रही थी.

‘‘विराट… बड़े खराब हो तुम…’’ ‘‘अरे, मुझ पर गुस्सा? ‘लव यू’ तुम से नहीं बोला जा रहा और नाराजगी मुझ पर.’’

‘‘सब बातें कहने की नहीं होतीं. क्या मैं ने कभी तुम्हें प्यार कबूलने को कहा? तुम्हारे स्टेटस से आइडिया लगा लिया न? और तुम हो कि…’’ ‘‘पर तुम तो स्टेटस भी हमेशा अपने मम्मीपप्पा की नन्ही सी गुडि़या बन कर डालती हो, एकदम बच्चों की तरह. कभी इशारा भी दिया कि मैं पसंद हूं तुम्हें?’’

वेटिंग रूम- भाग 5: सिद्धार्थ और जानकी की छोटी सी मुलाकात के बाद क्या नया मोड़ आया?

Writer- जागृति भागवत 

कालेज देखने के बाद प्रधानाचार्य ने जानकी से अगले दिन से लैक्चर्स लेने को कहा. जानकी कालेज से बाहर निकली तो क्या देखा, सामने सिद्धार्थ खड़ा था. उसे पहचानने में जानकी को कुछ क्षण लगे, क्योंकि सिद्धार्थ का हुलिया बिलकुल बदला हुआ था. फटी जीन्स, फंकी टीशर्ट की जगह शर्टपैंट पहने था, बेढंगे बाल आज अच्छे कढ़े हुए थे और वह स्केचपैन जैसी दाढ़ी तो गायब ही थी. जानकी उसे देख कर आश्चर्य से चिल्ला पड़ी, ‘‘आप…यहां?’’ सिद्धार्थ के चेहरे की खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी, मुसकराते हुए बोला, ‘‘हां, आप ने बताया था न कि आज आप  पुणे आने वाली हैं, तो मैं ने सोचा कि आप को सरप्राइज दिया जाए. यह भी सोचा, पता नहीं आप यहां किसी को जानती होंगी या नहीं, पता नहीं आप के साथ कोई आया होगा या नहीं, आप काफी परेशान होतीं, इसलिए मैं आ गया.’’ जानकी ने भरपूर अचरज से पूछा, ‘‘लेकिन आज की तारीख आप को कैसे पता चली?’’

‘‘अब वह सब छोडि़ए, पहले यह बताइए कि आप अकेली ही आई हैं, कोई जानपहचान का है क्या यहां, रहने के बारे में क्या सोचा है,’’ सिद्धार्थ ने उस के सवाल को टालते हुए कई सारे सवाल उस के सामने रख दिए. जानकी हंस पड़ी, बोली, ‘‘अरे सांस तो ले लो जरा, मैं सब बताती हूं. मैं अकेली ही आई हूं, यहां आप के सिवा किसी को नहीं जानती और अभी स्टेशन के पास एक होटल में रुकी हूं. रहने की व्यवस्था अभी नहीं हुई है.’’

‘‘आप मेरे साथ चलें,’’ कहता हुआ सिद्धार्थ उसे काले रंग की कार की तरफ ले गया और पूछा, ‘‘आप ने ब्रेकफास्ट किया है या नहीं?’’

‘‘हां, सुबह चाय के साथ थोड़े स्नैक्स लिए थे,’’ जानकी ने थोड़े संकोच के साथ जवाब दिया.

‘‘बस, इतना ही, अब तो 2 बज चुके हैं,’’ कार का गेट खोलते हुए सिद्धार्थ बोला. जानकी कार में बैठने के लिए हिचकिचा रही थी. सिद्धार्थ को उस की हिचकिचाहट को समझने में देर नहीं लगी. वह बोला, ‘‘आय कैन अंडरस्टैंड जानकीजी. आप मुझे जानती ही कितना हैं जो मेरे साथ चलने को तैयार हो जाएं. मैं ने ऐक्साइटमैंट मेंयह सब सोचा ही नहीं.’’

‘‘कैसा ऐक्साइटमैंट?’’

सिद्धार्थ जबान पर काबू न रख पाया और बोल पड़ा, ‘‘आप के आने का ऐक्साइटमैंट.’’ जानकी थोड़ी असहज हो गई और सिद्धार्थ को भी अपनी गलती तुरंत समझ आ गई. बात को बदलते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं सोच रहा था आप लंच कर लेते तो…’’ जानकी कार में बैठते हुए सिद्धार्थ के लहजे में बोली, ‘‘तो चलें सिद्धार्थजी?’’ दोनों एक होटल में गए, साथ में खाना खाया. सिद्धार्थ ने जानकी से कालेज के बारे में काफी पूछताछ कर डाली.

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जानकी ने भी पूछ लिया, ‘‘आप इतने बदल कैसे गए?’’

इस पर सिद्धार्थ बोला, ‘‘डोंट टेक इट अदरवाइज, लेकिन उस रात जब आप से मुलाकात हुई और जो बातें हुईं, उस का मेरे जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ा. मैं ने कहा था न कि आप मेरे लिए प्रेरणास्रोत हैं और वही हुआ, मैं समझ गया कि मेरे पास क्या है और मुझे कितना खुश होना चाहिए. मैं ने अब पापा के साथ औफिस जाना भी शुरू कर दिया है ऐंड आय एम रियली एंजौइंग इट और हां, अब मैं ने डैड को पापा कहना भी शुरू कर दिया है. ऐक्चुअली, आप को बताऊं, मौम और पापा बहुत सरप्राइज्ड हैं इस बदलाव से. मौम ने मुझ से पूछा भी था लेकिन मेरी समझ में नहीं आया कि क्या बताऊं. एनी वे, अब आप ने रहने के बारे में क्या सोचा है?’’ इस सवाल से जानकी मानो आसमान में उड़तेउड़ते अचानक जमीन पर आ गिरी हो. चेहरे पर उदासी लिए बोली, ‘‘पता नहीं, यहां पर तो किराए के लिए डिपौजिट भी देना पड़ता है और मैं वह अफोर्ड नहीं कर सकती.’’

‘‘अगर आप बुरा न मानें तो एक रिक्वैस्ट कर सकता हूं?’’

‘‘कहिए.’’

‘‘मैं यह कह रहा था कि जब तक आप के रहने का इंतजाम नहीं हो जाता, तब तक आप मेरे घर पर रह सकती हैं.’’ जानकी के चेहरे के बदले भाव देख कर सिद्धार्थ ने तुरंत बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘वहां मेरी मौम भी हैं. एक आउटहाउस अलग से है, वहां आप को कोई परेशानी नहीं होगी.’’ जानकी को यह सब बहुत अटपटा लग रहा था. उसे लगा कि थोड़ी सी पहचान में कोई आदमी क्यों किसी की इतनी मदद करेगा. पहली छवि के आधार पर सिद्धार्थ पर भरोसा करना कोई समझदारी नहीं थी. जो कुछ यह बोल रहा है, न जाने उस में कितना सच है. जरा देर की पहचान है इस से. इस के साथ जा कर मैं कहीं किसी मुसीबत में न फंस जाऊं. अनजान शहर है, अनजान लोग. कैसे किसी पर भरोसा कर लूं?

‘‘आप क्या सोचने लगीं? जानकीजी?’’

सिद्धार्थ की आवाज से जानकी विचारों की उधेड़बुन से बाहर आई और बोली, ‘‘देखिए सिद्धार्थजी, आप ने मेरे लिए इतना सोचा, इस के लिए मैं आप की बहुत शुक्रगुजार हूं, लेकिन आप के घर मैं नहीं चल सकती. आप अपना नंबर दे दीजिए, यदि कोई जरूरत पड़ी तो मैं आप को फोन जरूर करूंगी.’’ सिद्धार्थ जानकी की बात को समझ रहा था, इसलिए उस ने कोई जबरदस्ती नहीं की. बस, इतना कहा, ‘‘मैं अपना नंबर तो आप को दे देता हूं, अगर आप का भी नंबर मिल जाए तो…’’

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जानकी बोली, ‘‘अभी तक तो मुझे मोबाइल की जरूरत नहीं पड़ी है, सौरी.’’

सिद्धार्थ बोला, ‘‘मैं आप को होटल तक छोड़ सकता हूं?’’

‘‘ओ श्योर,’’ जानकी ने मिजाज बदलते हुए कहा.

जरूरी हैं दूरियां पास आने के लिए- भाग 2: क्यों मिशिका को भूलना चाहता था विहान

लेखिका- डा. मंजरी अमित चतुर्वेदी

डिनर करने के बाद, जल्द ही फिर मिलने को कह कर विहान वापस चला गया. उस रात वह विहान से कोई सवाल नहीं कर सकी थी, जितना विहान पूछता रहा, वह उतना ही जवाब देती गई. वह खोई रही, विहान को इतने दिनों बाद अपने करीब पा कर, जैसे जी उठी थी वह उस रात.

विहान एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में मुंबई आया था. 15 दिन बीत चुके थे, इन 15 दिनों में विहान और मिशी 2 ही बार मिले.

विहान का काम पूरा हो चुका था, एक दिन बाद उस को निकलना था. मिशी विहान को ले कर बहुत परेशान थी. आखिर उस ने निर्णय लिया कि विहान के जाने के पहले वह उस से बात करेगी, पूछेगी उस की बेरुखी का कारण. मिशी अभी इसी उधेड़बुन में थी, तभी मोबाइल बज उठा. विहान की कौल थी.

‘‘हैलो, मिशी औफिस के बाद तैयार रहना, बाहर चलना है, तुम्हें किसी से मिलवाना है.’’

‘‘किस से मिलवाना है, विहान?’’

‘‘शाम होने तो दो, पता चल जाएगा.’’

‘‘बताओ तो?’’

‘‘समझ लो, मेरी गर्लफ्रैंड है.’’

इतना सुनते ही मिशी चुप हो गई. 6 बजे विहान ने उसे पिक किया. मिशी बहुत उदास थी, दिल में हजारों सवाल उमड़ रहे थे. वह कहना चाहती थी कि विहान, तुम्हारी शादी पूजा दी से होने वाली है, यह क्या तमाशा है. पर नहीं कह सकी, चुपचाप बैठी रही.

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‘‘पूछोगी नहीं, कौन है? विहान ने कहा.

‘‘पूछ कर क्या करना है? मिल ही लूंगी कुछ देर में,’’ मिशी ने धीरे से कहा.

थोड़ी देर बाद वे समुद्र किनारे पहुंचे. विहान ने मिशी को एक जगह इंतजार करने को कहा, ‘‘तुम यहां रुको, मैं उस को ले कर आता हूं.’’

आसमान ?िलमिलाते तारों की सुंदर बूटियों से सजा था. समुद्र की लहरें प्रकृति का मनभावन संगीत फिजाओं में घोल रही थीं. हवा मंथर गति से बह रही थी. फिर भी मिशिका का मन उदासी के भंवर में फंसा जा रहा था.

‘विहान मुझ से दूर हो जाएगा, मेरा विहान’ सोचतेसोचते उस की उंगलिया खुदबखुद रेत पर विहान का नाम उकेरने लगीं.

‘‘विहान… मेरा नाम इस से पहले इतना अच्छा कभी नहीं लगा,’’ विहान पीछे से खड़ेखड़े ही बोला.

मिशी ने हड़बड़ाहट में नाम पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कहां है… कब आए तुम, कहां है वह?’’

मिशी की आंखें उस लड़की को  ढूंढ़ रही थीं जिस से मिलवाने विहान उसे  वहां ले कर आया था.

‘‘नाराज हो कर चली गई,’’ मिशी के पास बैठते हुए विहान ने कहा.

‘‘नाराज हो गई, पर क्यों?’’ मिशी ने पूछा.

‘‘अरे वाह, मैं जिसे प्रपोज करने वाला हूं, वह लड़की यदि देखे कि मेरे बचपन की दोस्त रेत पर इस कदर प्यार से उस के बौयफ्रैंड का नाम लिख रही है, तो गुस्सा नहीं आएगा उसे,’’ विहान ने नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘मैं ने कब लिखा तुम्हारा नाम,’’ मिशी सकपका कर बोली.

‘‘जो अभी अपनेआप रेत पर उभर आया था, उस नाम की बात कर रहा हूं.’’

उस ने नजरें झका लीं, उस की चोरी जो पकड़ी गई थी. फिर भी मिशी बोली, ‘‘मैं ने… मैं ने तो कोई नाम नहीं लिखा.’’

‘‘अच्छा बाबा, नहीं लिखा,’’ विहान ने  मुसकरा कर कहा.

मिशी समझ ही नहीं पा रही थी कि यह हो क्या रहा है.

‘‘और वह लड़की जिस से मिलवाने तुम मुझे यहां ले कर आए थे? सच बताओ न विहान.’’

‘‘कोई लड़कीवड़की नहीं है, मैं अभी जिस के करीब बैठा हूं, बस, वही है,’’ उस ने मिशी की आंखों में देखते हुए कहा.

नजरें  मिलते ही मिशी नजरें चुराने लगी.

‘‘मिशी, मत छिपाओ, आज कह दो जो भी दिल में हो,’’ विहान बोला.

मिशी की जबान खामोश थी पर आंखों में विहान के लिए प्यार साफ नजर आ रहा था, जिसे विहान ने पहले ही महसूस कर लिया था. पर वह मिशी से जानना चाहता था.

मिशी कुछ देर चुप रही, दूर समंदर में उठती लहरों के ज्वार को देखती रही. ऐसा  ही भावनाओं का ज्वार अभी उस के दिल में मचल रहा था. फिर उस ने हिम्मत बटोर कर बोलने की कोशिश की, पर उस की आंखों में जज्बातों का समंदर तैर गया, कुछ रुक कर वह बोली, ‘‘कहां चले गए थे विहान, मैं… मैं… तुम को कितना मिस कर रही थी,’’ इतना कह कर वह फिर शून्य में देखने लगी.

‘‘मिशी, आज भी चुप रहोगी? बह जाने दो अपने जज्बातों को, जो भी दिल में है कहो. तुम नहीं जानतीं मैं ने इस दिन का कितना इंतजार किया है. मिशी बताओ, प्यार करती हो मुझ से?’’

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मिशी विहान की तरफ मुड़ी. उस के मन की भावनाएं उस की आंखों में साफ नजर आ रही थीं. होंठ कंपकंपा रहे थे. ‘‘विहान, तुम जब नहीं थे, तब जाना कि मेरे जीवन में तुम क्या हो, तुम्हारे बिना जीना सिर्फ सांस लेना भर है. तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि मैं किस दौर से गुजरी हूं. मेरी उदासी का थोड़ा भी खयाल नहीं आया तुम को,’’ कहतेकहते मिशी रो पड़ी.

विहान ने उस के आंसू पोंछे और  मुसकराने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘मिशी, तुम ने तो सिर्फ 10 महीने इंतजार किया, मैं ने वर्षों किया है. जिस तड़प से तुम कुछ दिन गुजरीं, वह मैं ने आज तक सही है. मिशी तुम मेरे लिए तब से खास हो जब मैं प्यार का मतलब भी नहीं समझता था. बचपन में खेलने के बाद जब तुम्हारे घर जाने का समय आता था तब अकसर तुम्हारी चप्पल कहीं खो जाती थी, तुम देर तक ढूंढ़ने के बाद मुझ से ही शिकायत करतीं और हम दोनों मिल कर अपने साथियों पर ही बरस पड़ते. पर मिशी वह मैं ही होता था, हर बार जो तुम्हें रोकने के लिए यह सब करता था. तुम कभी जान ही नहीं पाईं,’’ कहतेकहते विहान यादों में खो गया.

मेरा पति सिर्फ मेरा है- भाग 2: अनुषा ने अपने पति को टीना के चंगुल से कैसे निकाला?

बहू कभीकभी हमें जिंदगी में समझौते करने पड़ते हैं. 1-2 बार भुवन ने जौब छोड़ने की भी कोशिश की, मगर उस ने आत्महत्या की धमकी दे डाली. भुवन के प्रति आकर्षित है, इसलिए उसे अपने औफिस से निकलने भी नहीं देती.’’

तभी ससुर भी उसे समझाने आ गए. बोले, ‘‘सच कहूं बहू तो उस ने काफी कुछ किया है हमारे लिए. मेरे हार्ट की सर्जरी कराने में भी पानी की तरह पैसे बहाए. इन सब के बदले भुवन का थोड़ा वक्त ही तो लेती है. सुबह भुवन 1 घंटा जल्दी चला जाता है ताकि उस के साथ समय बिता सके और रात में थोड़ा रुक जाता है. बस, इतनी ही डिमांड है उस की.’’

‘‘यदि टीना को भुवन इतना ही पसंद था तो उसी से शादी क्यों नहीं करा दी आप लोगों ने? मेरी जिंदगी क्यों खराब की?’’

‘‘बेटी टीना शादीशुदा है. उस की शादी भुवन से नहीं हो सकती.’’

शादी के दूसरे दिन ही अपनी जिंदगी में आए इस कड़वे अध्याय को पढ़ कर

अनुषा विचलित हो गई थी. सोचा मां को हर बात बता दे और सबकुछ छोड़ कर मायके चली जाए. मगर फिर मां की कही बातें याद आ गईं कि हमेशा धैर्य बनाए रखना.

आधे घंटे में भुवन लौट आया. खापी कर और बरतन निबटा कर जब अनुषा अपने कमरे में पहुंची तो देखा भुवन टीना से बातें कर रहा है. अनुषा को देखते ही उस ने फोन काट दिया और अनुषा को बांहों में भरने लगा. अनुषा छिटक कर अलग हो गई और उलाहनेभरे स्वर में बोली, ‘‘मेरी सौतन से बातें कर रहे थे?’’

भुवन हंस पड़ा, ‘‘अरे यार सौतन नहीं है वह. बस मुझ पर मरती है और मैं भी उस के साथ थोड़ाबहुत हुकअप कर लेता हूं. बस और क्या. खूबसूरत है साथ चलती है तो अपना भी स्टैंडर्ड बढ़ जाता है,’’ बेशर्मी से बोलते हुए भुवन सहसा ही सीरियस हो गया, ‘‘देखो अनुषा, जीवनसाथी तो तुम ही हो मेरी. मेरे जीवन का हर रास्ता लौट कर तुम्हारे पास ही आएगा.’’

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‘‘वह तो ठीक है भुवन मगर ऐसा कब तक चलेगा? इस टीना को तुम में इतनी दिलचस्पी क्यों है? कहीं न कहीं तुम भी उसे भाव देते होगे तभी तो उसे आगे बढ़ने का मौका मिलता है.’’

‘‘देखो यार, मेरा तो एक ही फंडा है, थोड़ी खुशी मुझे मिल जाती है और थोड़ी उसे. इस में गलत क्या है औफिस में मेरी पोजीशन बढ़ाती है और मैं उसे थोड़ा प्यार दे देता हूं. बस, इस से ज्यादा और कुछ नहीं. दिल में तो केवल तुम ही हो न…’’ कह कर भुवन ने लाइट बंद कर दी और न चाहते हुए भी अनुषा को समर्पण करना पड़ा.

समय इसी तरह निकलने लगा. लगभग रोजाना ही टीना घर आ धमकती. वह

जब भी आती भुवन के साथ फ्लर्ट करती, अदाएं बिखेरती और अनुषा पर व्यंग्य कसती.

एक दिन भुवन के बालों को अपनी उंगलियों में घुमाते हुए शोख आवाज में बोली, ‘‘एक राज बताऊं अनुषा, तुम्हारे काम आएगा?’’

अनुषा ने कोई जवाब नहीं दिया.

मगर टीना ने बोलना जारी रखा, ‘‘पता है, भुवन कब खुद पर काबू नहीं रख पाता.’’

‘‘कब?’’ भुवन ने टोका तो हंसते हुए टीना बोली, ‘‘जब कोई लड़की हलके गुलाबी रंग की नाइटी पहन कर उस के करीब जाए. फिर तो भुवन का खुद पर वश नहीं चलता.’’

सुन कर भुवन सकपका गया और टीना हंसती हुई बोली, ‘‘वैसे अनुषा, एक बात और बताऊं,’’ भुवन के बिलकुल करीब पहुंचते हुए टीना ने कहा तो अनुषा का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा.

अनुषा को और भी ज्यादा जलाती हुई टीना बोलने लगी,’’ काली टीशर्ट और ग्रे जींस में तुम्हारा पति इतना हैंडसम लगता है कि दुनिया का कोई भी पुरुष तुम्हारे पति के आगे पानी भरे.’’

अनुषा ने कोई जवाब नहीं दिया, मगर टीना ने अपने फ्लर्टी अंदाज में बोलना जारी रखा, ‘‘जानते हो भुवन, तुम्हारी कौन सी अदा और कौन सी चीज मुझे अपनी तरफ खींचती है?’’

अनुषा का गुस्सा देख भुवन टीना के पास से उठ कर दूर खड़ा हो गया तो नजाकत के साथ उस के करीब से गुजरती हुई टीना बोली, ‘‘यह तुम्हारी सब जान कर भी अनजान बने रहने की अदा. तोबा दिल का सुकून छिन जाता है जब तुम्हारी निगाहों में अपनी मुहब्बत देखती हूं. चलो अब चलती हूं मैं वरना कोई गुस्ताखी न हो जाए मुझ से…’’

इस तरह की बेशर्मियां टीना अकसर करती.

हनीमून पर जाने से 2 दिन पहले की बात है. उस दिन रविवार था. भुवन सुबह से ही अपने कंप्यूटर पर कुछ काम कर रहा था. अनुषा दोपहर के खाने की तैयारियों में लगी थी. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो अनुषा ने जा कर दरवाजा खोला. सामने टीना खड़ी थी. खुले बाल, स्लीवलैस बौडीहगिंग टौप और जींस के साथ डार्क रैड लिपस्टिक में उसे देख कर अनुषा का चेहरा बन गया.

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टीना नकली हंसी बिखेरती अंदर घुस

आई और पूछा, ‘‘नई दुलहन आप के श्रीमानजी कहां हैं?’’

‘‘वे अपने कमरे में काम कर रहे हैं.’’

‘‘ओके मैं मिल कर आती हूं,’’ अनुषा के इस कथन पर टीना ठहाके मार कर हंसती हुई बोली, ‘‘आंटी, सुना आप ने? आप की बहू तो मुझ से औपचारिकताएं निभा रही है. उसे पता ही नहीं कि मैं इस घर में किसी भी कमरे में किसी भी समय जा सकती हूं,’’ कहते हुए वह भुवन के कमरे की तरफ बढ़ गई.

अनुषा ने सवालिया नजरों से सास की तरफ देखा तो सास ने नजरें नीची कर लीं. टीना ने भुवन के कमरे में जा कर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. करीब 1 घंटे बाद उस ने दरवाजा खोला. उतनी देर अनुषा के सीने में आग जलती रही. उसी समय उस ने हनीमून के टिकट फाड़ डाले. रात तक अपना कमरा बंद कर रोती रही.

सास ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘देख बहू, पुरुषों द्वारा 2 स्त्रियों के साथ संबंध बना कर रखना कोई नई बात तो है नहीं. सदियों से ऐसी बातें चली आ रही हैं. यहां तक कि देवीदेवता भी इस से अछूते नहीं. कृष्ण का ही उदाहरण ले, जिन की 16 हजार रानियां थीं. रानी रुक्मिणी के साथसाथ राधा से भी उन के संबंध थे. पांडु और राजा दशरथ की भी 3-3 पत्नियां थीं तो इंद्र ने भी अहिल्या के साथ…’’

‘‘मांजी आप प्लीज अपनी दलीलें मुझे मत दीजिए. मुझे मेरे दर्द के साथ अकेला रहने दीजिए. एक बात बताइए मांजी, आप को इस में कुछ गलत नहीं लग रहा? अगर ऐसा है और यह घर टूटता है तो आप इस का इलजाम मुझ पर मत लगाइएगा.’’

इंतजार- भाग 2: क्यों सोमा ने अकेलापन का सहारा लिया?

सुपरवाइजर बहुत कड़क था. वह एक मिनट भी चैन की सांस नहीं लेने देता. किसी को भी आपस में बात करते या हंसीमजाक करते देखता, तो उसे नौकरी से निकालने की धमकी दिया करता.

कारखाने का बड़ा उबाऊ वातावरण था. औसत दरजे का कमरा, उस में  10-12 औरतआदमी, चारों और कमीजों का ढेर और धीमाधीमा चलता पंखा. नए कपड़ों की गरमी में लगातार काम में जुटे रह कर वह थक जाती और ऊब भी जाती.

थकीमांदी जब वह घर लौटती तो एक कोठरी में बाबू की गालीगलौज और नशे में अम्मा के साथ लड़ाई व मारपीट से दोचार होना पड़ता. लड़ाई?ागड़े के बाद उसे सोता सम?ा दोनों अपने शरीर की भूख मिटाते. उसे घिन आती और वह आंखों में ही रात काट देती.

सवेरे पड़ोस का रमेश उसे लाइन मारते हुए कहता, ‘अरे सोमा, एक मौका तो दे मु?ो, तु?ो रानी बना कर रखूंगा.’

वह आंखें तरेर कर उस की ओर देखती और नाली पर थूक देती.

विमला काकी व्यंग्य से मुसकरा कर कहती, ‘कल तुम्हारे बाबू बहुत चिल्ला रहे थे, क्या अम्मा ने रोटी नहीं बनाईर् थी?’

वह इस नाटकीय जीवन से छुटकारा चाहती थी. उस ने नौकरी के साथसाथ बीए की प्राइवेट परीक्षा पास कर ली थी.

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जब वह बीए पास हो गई तो उस की तरक्की हो गई. आंखों ही आंखों में वहां काम करने वाले महेंद्र से उस की दोस्ती हो गई. वह अम्मा से छिपा कर उस के लिए टिफिन में रोटी ले आती. दोनों साथसाथ चाय पीते, लंच भी साथ खाते. कारखाने के सुपरवाइजर दिलीप ने बहुत हाथपैर पटके कि तुम्हें निकलवा दूंगा, यहां काम करने आती हो या इश्क फरमाने. लेकिन, जब आपस में मन मिल जाए तो फिर क्या?

‘महेंद्र एक बात सम?ा लो, तुम से दोस्ती जरूर की है लेकिन मु?ा से दूरी बना कर रहना. मु?ा पर अपना हक मत सम?ाना, नहीं तो एक पल में मेरीतेरी दोस्ती टूट जाएगी.’

‘देख सोमा, तेरी साफगोई ही तो मु?ो बहुत पसंद है. जरा देर नहीं लगी और सूरज को हमेशा के लिए छोड़ कर आ गई.’

इस तरह आपस में बातें करतेकरते दोनों अपने दुख बांटने लगे.

‘महेंद्र, तुम शादी क्यों नहीं कर लेते?’

‘जब से लक्ष्मी मु?ो छोड़ कर चली गई, मेरी बदनामी हो गई. मेरे जैसे आदमी को भला कौन अपनी लड़की देगा.’

‘वह छोड़ कर क्यों चली गई?’

‘उस का शादी से पहले किसी के साथ चक्कर था. अपनी अम्मा की जबरदस्ती के चलते उस ने मु?ा से शादी तो कर ली लेकिन महीनेभर में ही सबकुछ लेदे कर भाग गई. उस का अपना अतीत उस की आंखों के सामने घूम गया था.

अब महेंद्र के प्रति उस का लगाव अधिक हो गया था.

एक दिन उस को बुखार था, इसलिए वह काम पर नहीं गई थी. वह घर में अकेली थी. तभी गंगाराम (बाबू के दोस्त) ने कुंडी खटखटाई, ‘एक कटोरी चीनी दे दो बिटिया.’

वह चीनी लेने के लिए पीछे मुड़ी ही थी कि उस ने उस को अपनी बांहों में जकड़ लिया था. लेकिन वह घबराई नहीं, बल्कि उस की बांहों में अपने दांत गड़ा दिए. वह बिलबिला पड़ा था. उस ने जोर की लात मारी और पकड़ ढीली पड़ते ही वह बाहर निकल कर चिल्लाने लगी. शोर सुनते ही लोग इकट्ठे होने लगे.

लेकिन उस बेशर्म गंगाराम ने जब कहा कि तेरे बाबू ने मु?ा से पैसे ले कर तु?ो मेरे हाथ बेच दिया है. अब तु?ो मेरे साथ चलना होगा.

‘थू है ऐसे बाप पर, हट जा यहां से, नहीं तो इतना मारूंगी कि तेरा नशा काफूर हो जाएगा,’ वह क्रोध में तमतमा कर बोली, ‘मैं आज से यहां नहीं रहूंगी.’

आसपास जमा भीड़ बाबू के नाम पर थूक रही थी. लड़ाई की खबर मिलते ही अम्मा भी भागती हुई आ गई थी. वह उसे सम?ाने की कोशिश करती रही लेकिन उस ने तो कसम खा ली थी कि वह इस कोठरी के अंदर पैर कभी नहीं रखेगी.

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उसी समय महेंद्र उस का हालचाल पूछने आ गया था. सारी बातें सुन कर बोला, ‘तुम मेरी कोठरी में रहने लगो, मैं अपने दोस्त के साथ रहने लगूंगा.’

अम्मा की गालियों की बौछार के साथसाथ रोनाचिल्लाना, इन सब के बीच वह उस नर्क को छोड़ कर महेंद्र की कोठरी में आ कर रहने लगी थी. अम्मा ने चीखचीख कर उस दिन उस से रिश्ता तोड़ लिया था.

महेंद्र के साथ जाता देख अम्मा उग्र हो कर बोल रही थी, ‘जा रह, उस के साथ, देखना महीनापंद्रह दिन में तु?ा से मन भर जाएगा. बस, तु?ो घर से बाहर कर देगा.’

महेंद्र को सोमा काफी दिनों से जानती थी. उस ने उस की आंखों में अपने लिए सच्चा प्यार देखा था. उस की निगाहों में, बातों में वासना की ?ालक नहीं थी.

कारखाने में वह अब सुपरवाइजर बन गई थी. उस के मालिक उस के काम से बहुत खुश थे.

कोरोना लव- भाग 1: शादी के बाद अमन और रचना के रिश्ते में क्या बदलाव आया?

अमन घर में पैर रखने ही जा रहा था कि रचना चीख पड़ी, ‘‘बाहर…बाहर जूता खोलो. अभी मैं ने पूरे घर में झाड़ूपोंछा लगाया है और तुम हो कि जूता पहन कर अंदर घुसे आ रहे हो.’’

‘‘अरे, तो क्या हो गया? रोज तो आता हूं,’’ झल्लाते हुए अमन जूता बाहर ही खोल कर जैसे ही अंदर आने लगा रचना ने फिर उसे टोका, ‘‘नहीं, बैठना नहीं, जाओ पहले बाथरूम और अच्छे से हाथमुंहपैर सब धो कर आओ. और हां, अपना मोबाइल भी सैनिटाइज करना मत भूलना. वरना यहांवहां कहीं भी रख दोगे और फिर पूरे घर में इन्फैक्शन फैलाओगे.’’

रचना की बात पर अमन ने उसे घूर कर देखा. ‘क्या है, घूर तो ऐसे रहे हैं जैसे खा ही जाएंगे. एक तो इस कोरोना की वजह से बाई नहीं आ रही है. सोसाइटी वालों की तरफ से सख्त मनाही है और ऊपर से इन की नवाबी देखो. जैसे मैं इन के बाप की नौकर हूं. यह नहीं होता जरा कि काम में मेरी थोड़ी हैल्प कर दें. नहीं, उलटे काम को और बड़ा कर रख देते हैं. कहीं जूता खोल कर रख देंगे, कहीं भीगा तौलिया फेंक आएंगे. कितनी बार कहा, हाथ धो कर फ्रिज या किचन का कोई सामान छुआ करो. लेकिन नहीं, समझ ही नहीं आता इन्हें. बेवकूफ कहीं के,’ अपने मन में ही भुनभुनाई रचना.

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‘‘हूं, बड़ी आई साफसफाई पर  लैक्चर देने वाली. समझती क्या है अपनेआप को? जैसे इस घर की मालकिन यही हो. हां, करूंगा, जैसा मेरा मन होगा करूंगा,’’ अमन भन्नाता हुआ अपने कमरे में घुस गया और दरवाजा बंद कर लिया.

‘‘वैसे, गलती इन मर्दों की भी नहीं है. गलती है उन मांओं की जो बेटियों को तो सारी शिक्षा, संस्कार दे डालती हैं, पर अपने बेटों को कुछ नहीं सिखातीं, क्योंकि उन्हें तो कोई जरूरत ही नहीं है न सीखने की. बीवी तो मिल ही जाएगी बना कर खिलाने वाली,’’ अमन को भुनभुनाते देख वह चुप नहीं रह पाई और बोल दिया जो मन में आया.

बहुत गुस्सा आ रहा था उसे आज. कहा था अमन से, लौकडाउन की वजह से बाई कुछ दिन काम पर नहीं आएगी, तो वह उस की मदद कर दिया करे काम में, क्योंकि उसे और भी काम होते हैं. ऊपर से अभी औफिस का काम भी उसे घर से करना पड़ रहा है, तो समय नहीं मिल पाता है. लेकिन अमन ने ‘तुम्हारा काम है तुम जानो, मुझ से नहीं होगा’ कह कर बात वहीं खत्म कर दी. तो गुस्सा तो आएगा ही न? क्या वह अकेली रहती है इस घर में जो सारे कामों की जिम्मेदारी उस की ही है? आखिर वह भी तो नौकरी करती है बाहर जा कर. यह बात अमन क्यों नहीं समझता.

खाना खाते समय भी दोनों में घर के काम को ले कर बहस शुरू हो गई. रचना ने सिर्फ इतना कहा कि घर के कुछ सामान लाने थे. अगर वह ले आता तो अच्छा होता. वह गई थी दुकान राशन का सामान लाने, पर वहां बड़ी लंबी लाइन लगी थी इसलिए वापस चली आई.

‘‘तो वापस क्यों आ गईं? क्या जरा देर खड़ी रह कर सामान खरीद नहीं सकती थीं जो बारबार मुझे फोन कर के परेशान कर रही थीं? एक तो मुझे इस लौकडाउन में भी बैंक जाना पड़ रहा है, ऊपर से तुम चाहती हो कि मैं घर के कामों में भी तुम्हारी मदद कर दूं? नहीं हो सकता है,’’ चिढ़ते हुए अमन बोला.

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‘‘हां, पता है मुझे, तुम से तो कोई उम्मीद लगाना ही बेकार है. क्या करती मैं, धूप में खड़ीखड़ी पकती रहती? फोन इसलिए कर रही थी कि तुम औफिस से आते हुए घर के सामान लेते आना? लेकिन नहीं, तुम तो फोन भी नहीं उठा रहे थे मेरा. वैसे, एक बात बताओ, अभी तो बैंक में पब्लिक डीलिंग हो नहीं रही है, फिर करते क्या हो जो मेरा एक फोन नहीं उठा सकते या घर का कोई सामान खरीद कर नहीं ला सकते? बोलो न? घरबाहर के सारे कामों की जिम्मेदारी मेरी ही है क्या? तुम्हें कोई मतलब नहीं?’’

‘‘पब्लिक डीलिंग नहीं होती है तो क्या बैंक में काम नहीं होते हैं? और ज्यादा सवाल मत करो मुझ से. जो करना है, जैसे करना है, समझो खुद, समझी? खुद तो आराम से ‘वर्क फ्रौम होम’ कर रही हो. जब मरजी होती है, आराम कर लेती हो, दोस्तों से बातें कर लेती हो और दिखा रही हो कि कितना काम करती हो.’’

ये घर बहुत हसीन है- भाग 3: उस फोन कॉल ने आन्या के मन को क्यों अशांत कर दिया

लेखक- मधु शर्मा कटिहा

‘‘देखो वह सामने सीढ़ीदार खेत, पहाड़ों पर जगह कम होने के कारण बनाए जाते हैं ऐसे खेत… और दूर वहां रंगीन सा गलीचा दिख रहा है? फूलों की खेती होती है उधर.’’

कुछ देर बाद हलका कोहरा छाने लगा. आर्यन ने बताया कि ये सांवली घटाएं हैं जो अकसर शाम को आकाश के एक छोर से दूसरे तक कपड़े के थान सी तन जाती है. कभी बरसती हैं तो कभी सुबह सूरज के आते ही अपने को लपेट अगले दिन आने के लिए वापस चली जाती हैं.

सूरज ढलने के साथ अंधेरा होने लगा तो दोनों नीचे आ गए. घर सुंदर बल्बों और झूमरों से जगमग कर रहा था. वान्या का अंगअंग भी आर्यन के प्रेम की रोशनी से झिलमिला रहा था. सुबह वाली बात मन में अंधेरे में कहीं गुम सी हो गई थी.

प्रेमा के खाना बना कर जाने के बाद आर्यन वान्या को डायनिंग रूम के पास बने एक कमरे में ले गया. कमरे की अलमारी से महंगी क्रौकरी, चांदी के चम्मच, नाइफ और फोर्क आदि वान्या को बेहद आकर्षित कर रहे थे, लेकिन थकान से शरीर अधमरा हो रहा था. कमरे में बिछे गद्देदार सिल्वर ग्रे काउच पर वह गोलाकार मुलायम कुशन के सहारे कमर टिका कर बैठ गई. आर्यन ने कांच के 2 गिलास लिए और पास रखे रैफ्रीजरेटर से ऐप्पल जूस निकाल कर गिलासों में उड़ेल दिया. वान्या ने गिलास थामा तो पैंदे पर बाहर की ओर क्रिस्टल से बने गुलाबी कमल के फूल की सुंदरता में खो गई.

‘‘फूल तो ये हैं… कितने खूबसूरत,’’ कहते हुए आर्यन ने अपने ठंडे जूस में डूबे अधरों से वान्या के होंठों को छू लिया. वान्या मदहोश हो खिलखिला उठी.

‘‘जूस में भी नशा होता क्या? मैं अपने बस में कैसे रहूं?’’ वान्या के कान में फुसफुसाया.

‘‘नशा तो तुम्हारी आंखों में है.’’ कांपते लबों से इतना ही कह पाई वान्या और आंखें मूंद लीं.

सहसा आर्यन का फोन बज उठा. आर्यन सब भूल जूस का गिलास टेबल पर रख बच्चे से बातें करने लगा.

रात को अकेले बिस्तर पर लेटी हुई वान्या विचित्र मनोस्थिति से गुजर रही थी.

‘कभी लगता है आर्यन जैसा प्यार करने वाला न जाने कैसे मिल गया? लेकिन अगले ही पल स्वयं को छला हुआ महसूस करती हूं. सिर से पांव तक प्रेम में डूबा आर्यन एक फोन के आते ही सबकुछ बिसरा देता है? क्या है यह सब?’ आर्यन की पदचाप सुन वान्या आंखें मूंद कर सोने का अभिनय करते हुए चुपचाप लेटी रही. आर्यन ने लाइट औफ की और वान्या से लिपट कर सो गया.

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अगले दिन भी वान्या अनमनी सी थी. तबीयत भी ठीक नहीं लग रही थी उसे अपनी. सारा दिन बिस्तर पर लेटी रही. आर्यन बिजनैस का काम निबटाते हुए बीचबीच में हाल पूछता रहा. वान्या के घर से फोन आया. अपने मम्मीपापा को उस ने अपने विषय में कुछ नहीं बताया, लेकिन उन की स्नेह भरी आवाज सुन वह और भी बेचैन हो उठी.

रात को आर्यन खाने की 2 प्लेटें लगा कर उस के पास बैठ गया. टीवी औन किया तो पता लगा कि अगले दिन ‘जनता कर्फ्यू’ की घोषणा हो गई है.

‘‘अब क्या होगा? लगता है पापा का कहा सच होने वाला है. वे आज ही फोन पर कह रहे थे कि लौकडाउन कभी भी हो सकता है.’’ वान्या उसांस लेते हुए बोली.

आर्यन ने उस के दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए, ‘‘घबराओ मत तुम्हें कोई काम नहीं करना पड़ेगा. प्रेमा कहीं दूर थोड़ी ही रहती है कि लौकडाउन में आएगी नहीं. तुम क्यों उदास हो रही हो? लौकडाउन हो भी गया तो हम दोनों साथसाथ रहेंगे सारा दिन… मस्ती होगी हमारी तो.’’

वान्या को अब कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. पानी पी कर सोने चली गई. मन की उलझन बढ़ती ही जा रही थी. ‘पहले क्या मैं कम परेशान थी कि यह जनता कर्फ्यू, लौकडाउन हुआ तो अपने घर भी नहीं जा सकूंगी मैं. आर्यन से फोन के बारे में कुछ पूछूंगी और उस ने कह दिया कि हां, मेरी पहले भी शादी हो चुकी है. तुम्हें रहना है तो रहो, नहीं तो जाओ. जो जी में आए करो तो क्या करूंगी? यहां इतने बड़े घर में कैसी पराई सी हो गई हूं. आर्यन का प्रेम सच है या ढोंग? अजीब से सवाल बिजली से कौंध रहे थे वान्या के मनमस्तिष्क में.’

अपने आप में डूबी वान्या सोच रही थी कि इस विषय में कहीं से कुछ पता लगे तो उसे चैन मिल आए. ‘कल प्रेमा से सफाई करवाने के बहाने पूरे घर की छानबीन करूंगी, शायद कोई सुराग हाथ लग जाए,’ सोच उसे थोड़ा चैन मिला तो नींद आ गई.

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द चिकन स्टोरी- भाग 1: क्या उपहार ने नयना के लिए पिता का अपमान किया?

लेखक- अरशद हाशमी

‘‘अरे यार, यह उपकार तो बड़ा छिपारुस्तम निकला, पूरी यूनिवर्सिटी में टौप मार दिया,’’ इकबाल ने अपनी आंखें बड़ी करते हुए कहा.

‘‘हमें तो लग रहा था वंदना या रुचि ही क्लास में टौप करेंगी. इस ने तो क्लास ही नहीं, पूरी यूनिवर्सिटी को पछाड़ दिया,’’ विनोद ने अपनी राय दी.

‘‘तुम्हारा तो वह सब से अच्छा दोस्त है, वह टौप और तुम मुश्किल से बस, पास हुए हो,’’ अजहर ने मेरी तरफ देखते हुए यह कहा तो सब हंसने लगे और मैं खिसिया कर रह गया.

दोस्त अगर फेल हो जाए तो दुख होता है, लेकिन अगर दोस्त टौप कर जाए, तो ज्यादा दुख होता है. यह डायलौग भले ही अभिनेता व निर्माता आमिर खान की फिल्म ‘थ्री ईडियट्स’ में आया हो लेकिन अपना हाल भी कुछ ऐसा ही था.

उपकार बहुत कम बोलने वाला लड़का था और क्लास में उस की बातचीत ज्यादातर मु?ा से ही होती थी.  अपनी क्लास में वंदना, रुचि, नेहा, जेबा और निधि जैसी एक से बढ़ कर एक इंटैलिजैंट लड़कियां थीं तो शंकर और अतीक भी किसी से कम नहीं थे. फिर भी उपकार इन सब को पीछे छोड़ कर न सिर्फ क्लास, बल्कि पूरी यूनिवर्सिटी में टौप आया था.

‘‘बधाई हो भाई, अब चुपचाप पार्टी दे दो,’’ अगले दिन मैं ने उपकार को देखा तो उस को गले लगा लिया और आगे कहा, ‘‘तुम ने मेरा नाम रोशन कर दिया.’’ मैं ने बनावट के साथ कहा तो सब हंसने लगे.

उपकार से मेरी दोस्ती कालेज के पहले ही दिन हो गई थी. मेरी तरह वह भी कम बोलने वाला था. इस के अलावा उस का घर मेरे घर के पास ही था. हम दोनों रोजाना कालेज साथ ही जाते थे. उपकार की माताजी का देहांत कई बरस पहले हो गया था. उस के पिताजी सरकारी औफिसर थे, सेवानिवृत्ति के बाद वे गांव में रह रहे थे. शहर में उन का एक घर था जहां उपकार अकेला रहता था.

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‘‘यार, कुछ टिप्स हमें भी दे दो,’’ एक दिन कालेज जाते समय मैं ने उपकार से कहा और ठहाका लगते हुए आगे बोला, ‘‘क्लास में सब हमें देख कर हंसते हैं कि एक ऊपर से टौपर है और एक नीचे से.’’

‘‘अरे, मैं कुछ अनोखा थोड़ी पढ़ता हूं. मैं भी वही सब पढ़ता हूं जो सब पढ़ते हैं,’’ उपकार ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘अरे यार, मैं तुम्हारी टौप पोजीशन नहीं छीन लूंगा. मेरा लैवल मैं जानता हूं और तुम भी,’’ मैं ने जोर से हंसते हुए कहा. मैं मन ही मन सम?ा रहा था, यह अपना सीक्रेट नहीं बताना चाहता.

‘‘अच्छा, तुम खुद आ कर देख लेना. आज शाम को घर आ जाओ साथ मिल कर पढ़ते हैं,’’ उस ने मु?ो अपने घर आने की दावत दी तो मैं तुरंत तैयार हो गया.

शाम को मैं उस के घर पहुंचा. वह मेज पर किताबें फैलाए बैठा था और बड़े से रजिस्टर में कुछ लिख रहा था.

‘‘आओ बैठो. देखो, मैं कैसे प्रैक्टिस करता हूं. मैं हर सवाल को 5-7 बार अच्छी तरह पढ़ लेता हूं और फिर उस को लिख कर देखता हूं. इस से मेरी प्रैक्टिस अच्छी रहती है और लिखने की वजह से मु?ो जवाब भी अच्छे से याद रहता है,’’ उपकार ने मु?ो सम?ाते हुए कहा.

‘‘बस,’’  मु?ो तो तरीका कुछ खास नहीं लगा.

‘‘चलो अच्छा, हम दोनों यह सवाल साथसाथ पढ़ते हैं, फिर इस का जवाब लिख कर देखेंगे,’’ उपकार ने मु?ो कैमिस्ट्री का एक सवाल देते हुए कहा.

मैं ने सवाल एक बार पढ़ा. दूसरी बार पढ़ने पर मु?ो तो लगा कि मु?ो सब याद हो गया लेकिन उपकार ने सवाल को 4-5 बार पढ़ा. फिर हम ने अपनेअपने रजिस्टर पर उस का जवाब लिखा और एकदूसरे के जवाब की जांच की. वाकई में उपकार ने पूरा जवाब एकदम सही लिखा था जबकि मैं ने कई चीजें छोड़ दी थीं.

‘‘देखा तुम ने. बारबार पढ़ने और लिखने से मेरी अच्छी प्रैक्टिस हो जाती है,’’ उपकार ने कहा.

मु?ो उस की बात सम?ा में आ गई. फिर तो मैं रोज ही उस के घर जाने लगा और हम साथसाथ ही पढ़ाई करते.

‘‘सुनो, तुम्हारे घर कभी चिकन नहीं बनता क्या?’’ उस दिन उपकार ने पढ़ाई करतेकरते अचानक मु?ा से पूछा.

‘‘बनता है. क्यों?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अरे, तो कभी ला कर खिला न,’’ उस ने बोला तो मेरे हाथ से रजिस्टर गिरतेगिरते बचा.

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‘‘मजाक कर रहे हो न?’’ मैं ने संभल कर मुसकराते हुए पूछा.

‘‘इस में मजाक जैसा क्या है. किसी दिन ले कर आओ, तो साथ खाते हैं,’’ उपकार ने बड़े इत्मीनान से जवाब दिया.

‘‘अच्छा, तुम चाहते हो कि मैं एक उच्च कोटि के ब्राह्मण के घर चिकन ले कर आऊं ताकि तुम्हारे पिताजी मेरा कचूमर बना दें,’’ मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘और तुम यह नौनवेज कब से खाने लगे?’’ मैं ने जानना चाहा.

‘‘मैं तो स्कूलटाइम से ही खाता आ रहा हूं,’’ उपकार ने जवाब दिया.

‘‘और क्या, तुम्हारे पिताजी को पता है तुम्हारी इस उपलब्धि के बारे में,’’ मैं ने उस पर व्यंग्य कसा.

‘‘अरे, पिताजी यहां रहते कहां हैं. महीने में एकदो बार आते हैं. उन को पता कैसे चलेगा. और मैं कौन सा रोजरोज खाता हूं,’’ अपने रजिस्टर में लिखतेलिखते उपकार बोला.

‘‘नहीं भाई, नहीं. मैं यह रिस्क नहीं ले सकता. अगर अंकलजी को पता चल गया, मैं यहां चिकन लाया था, तो मेरा यहां आना तो बंद हो ही जाएगा, मेरे बापू मेरी धुलाई करेंगे सो अलग,’’ मैं ने हाथ खड़े कर दिए.

‘‘अरे, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा, यार. मैं हर बार किसी होटल पर ही खाता हूं, लेकिन घर के चिकन की बात ही कुछ और होगी. तू, बस, अगली बार ले कर आ.’’

वह किसी भी तरह मान ही नहीं रहा था. अब मैं भी था तो एक टीनेजर ही, आ गया उस की बातों में परिणाम की चिंता किए बगैर.

कुछ दिनों बाद घर पर चिकन बना, तो मैं ने थोड़ा सा चिकन एक डब्बे में डाला और शाम को पहुंच गया उपकार के घर. मेरे हाथ में डब्बा देख कर वह सम?ा गया कि उस में क्या है. खुशी से उस की आंखें चमक उठीं.

‘‘यार, खुश कर दिया तू ने तो. आज तो मजा आ जाएगा. पढ़ाई कर के खाते हैं.’’ उपकार की बातों से उस की खुशी छलक रही थी.

दोनों बैठे पढ़ रहे थे कि अचानक गांव से उपकार के पिताजी आ गए. उन को देखते ही मेरी घिग्गी बंध गई, आंखों के सामने अंधेरा छा गया और जबान तालू से जा चिपकी. एक क्षण के लिए तो उपकार भी घबरा गया लेकिन फिर सामान्य सा बन कर बैठा रहा. घबराहट के मारे मैं अंकलजी को नमस्ते भी नहीं कर पाया.

‘‘कैसे हो बेटा, पढ़ाई हो रही है. बहुत अच्छे,’’ अंकलजी ने मु?ा से कहा, तो मेरी हालत और खराब हो गई.

उपकार ने मु?ो सामान्य रहने का इशारा किया.

‘‘मैं जरा पाठक साहब से मिल कर आता हूं,’’ अंकलजी ने उपकार से कहा और कपड़े बदलने अंदर कमरे में चले गए. मैं ने जल्दी से चिकन का डब्बा टेबल के नीचे छिपा दिया..

मेरा पति सिर्फ मेरा है- भाग 3: अनुषा ने अपने पति को टीना के चंगुल से कैसे निकाला?

रोती हुई अनुषा बाथरूम में जा कर मुंह धोने लगी तो सास ने दबी आवाज में कहा, ‘‘मैं समझती हूं तुम्हारा दर्द. देखो मैं एक बाबा को जानती हूं. बहुत पहुंचे हुए हैं. वे भभूत दे देंगे या कोई उपाय बता देंगे. सब ठीक हो जाएगा. तुम चलो कल मेरे साथ.’’

अनुषा को बाबाओं और पंडितों पर कोई विश्वास नहीं था. मगर सास समझाबुझा कर जबरन उसे बाबा के पास ले गई. शहर से दूर वीराने में उस बाबा का आश्रम काफी लंबाचौड़ा था. आंगन में भक्तों की भीड़ लगी थी. बाबा की आंखें अनुषा को नशीली लग रही थीं. उस पर बारबार बाबा का भक्तों पर झाड़ू फिराना फिर अजीब सी आवाजें निकालना… अनुषा को बहुत कोफ्त हो रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि टीना को उस की जिंदगी से दूर करने में भला बाबा की क्या भूमिका हो सकती है? इस के लिए तो उसे ही कुछ सोचना होगा. वह चुपचाप बैठ कर आगे का प्लान दिमाग में बनाने लगी.

कुछ समय में उस का नंबर आ गया. बाबा ने वासनाभरी नजरों से उस की तरफ देखा और फिर उस के हाथों को पकड़ कर पास बैठने का इशारा किया. अनुषा को यह छुअन बहुत घिनौनी लगी. वह मुंह बना कर बैठी रही. सास ने समस्या बताई. बाबा ने झाड़ू से उस की समस्या झाड़ देने का उपक्रम किया.

फिर बाबा ने उपाय बताते हुए कहा, ‘‘बच्ची, तुम्हें 18 दिन केवल एक वक्त खा कर रहना होगा और वह भी नमकीन नहीं बल्कि केवल मीठा. इस के साथ ही 18 दिन का गुप्त अनुष्ठान भी चलेगा. काली बाड़ी के पास वाले मंदिर में रोजाना 11 बजे मैं एक पूजा करवाऊंगा. इस में करीब क्व90 हजार का खर्च आएगा.’’

‘‘जी बाबाजी जैसा आप कहें,’’ सास ने हाथ जोड़ कर कहा.

अनुषा उस वक्त तो चुप रही, मगर घर आते ही बिफर पड़ी, ‘‘मांजी, मुझे ऐसे उलजलूल उपायों पर विश्वास नहीं. मैं कुछ नहीं करने वाली. अब मैं अपने कमरे में जा रही हूं ताकि कोई बेहतर उपाय ढूंढ़ सकूं.’’

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अनुषा का गुस्सा देख कर सास चुप रह गई. इधर अनुषा देर रात तक सोचती रही. वह इतनी जल्दी अपनी परिस्थितियों से हार मानने को तैयार नहीं थी. काफी सोचविचार करने पर उसे रास्ता नजर आ ही गया.

अनुषा ने पहले टीना के बारे में अच्छी तरह खोजखबर ली ताकि उस की कमजोर नस पकड़ सके. सारी जानकारी एकत्र की. जल्द ही उसे पता लग गया कि टीना का पति रैडीमेड कपड़ों का व्यापारी है और पास की मार्केट में उस की काफी बड़ी शौप भी है. बस फिर क्या था अनुषा ने अपनी योजना के हिसाब से चलना शुरू कर दिया.

सब से पहले एक ड्रैस खरीदने के बहाने वह उस दुकान में गई. दुकान का मालिक यानी टीना का पति विराज करीब 40 साल का एक सीधासाधा सा आदमी था. सिर पर बाल काफी कम थे. वैसे पर्सनैलिटी अच्छी थी. अनुषा ने बातों ही बातों में बता दिया कि वह भी विराज के शहर की है. फिर क्या था विराज उस पर अधिक ध्यान देने लगा.

अनुषा ने एक महंगा सूट खरीदा और घर चली आई. 2-3 दिन बाद वह फिर उसी दुकान में पहुंची और कुछ कपड़े लिए. विराज ने उस के लिए स्पैशल चाय मंगवाई तो अनुषा भी बैठ कर उस से ढेर सारी बातें करने लगी. धीरेधीरे उस ने यह भी बता दिया कि उस का पति भुवन टीना के औफिस में काम करता है. विराज टीना और भुवन के रिश्ते के बारे में पहले से जानता था. इसलिए अनुषा से और भी ज्यादा जुड़ाव महसूस करने लगा.

अनुषा अब अकसर विराज की शौप पर जाने लगी और उस से देर तक बातें

करती. जल्द ही विराज से उस की दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि विराज ने उसे घर आने को भी आमंत्रित कर दिया.

अगले ही दिन अनुषा टीना की गैरमौजूदगी में विराज और टीना के घर पहुंच गई. विराज ने उस की काफी आवभगत की और दोनों ने दोस्त की तरह साथ समय व्यतीत किया. चलते समय अनुषा ने जानबूझ कर टीना के बैड पर कोने में अपना हेयर पिन रख दिया. रात में जब टीना ने वह हेयर पिन देखा तो बौखला गई और विराज से सवाल करने लगी. विराज ने किसी तरह बात को टाल दिया.

मगर 2 दिन बाद ही अनुषा फिर विराज के घर पहुंच गई. इस बार वह बाथरूम में अपना दुपट्टा लटका आई थी.

टीना ने जब लेडीज दुपट्टा बाथरूम में देखा तो आपे से बाहर हो गई और विराज पर उंगली उठाने लगी, ‘‘वह दुपट्टा किस का है विराज, बताओ किस के साथ रंगरलियां मना रहे थे तुम?’’

‘‘पागल मत बनो टीना. मैं तुम्हारी तरह किसी के साथ रंगरलियां नहीं मनाता,’’ विराज का गुस्सा भी फूट पड़ा.

‘‘तुम्हारी तरह? क्या कहना चाहते हो तुम? भूलो मत मेरे पिता के पैसों पर पल रहे हो. मुझे धोखा देने की बात सोचना भी मत.’’

‘‘देखा टीना मैं मानता हूं एक महिला से मेरी दोस्ती हुई है. अनुषा नाम है उस का. मगर वह घर पर सिर्फ चाय पीने आई थी. यकीन मानो हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है जिसे तुम रंगरलियां मनाना कह सको.’’

अब टीना थोड़ी सावधान हो गई थी. उसे महसूस होने लगा था कि बदला लेने के लिए अनुषा उस के पति पर डोरे डाल रही है. टीना ने अब भुवन के घर आनाजाना कम कर दिया मगर उस के साथ वक्त बिताना नहीं छोड़ा.

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इधर अनुषा फिर से विराज के घर पहुंची. इस बार वह विराज के लिए खूबसूरत सा गिफ्ट ले कर आई थी. यह एक खूबसूरत कविताओं का संग्रह था. विराज को कविताओं का बहुत शौक था. 2-3 घंटे दोनों कविताओं पर चर्चा करते रहे. इस बीच योजनानुसार अनुषा ने अपनी इस्तेमाल की हुई एक सैनिटरी नैपकिन टीना के बाथरूम की डस्टबिन में डाल दी. फिर विराज से इजाजत ले कर घर लौट आई.

अनुषा को अंदेशा हो गया था कि आज रात या कल सुबह टीना कोई न कोई ड्रामा जरूर करेगी. हुआ भी यही. सुबहसुबह टीना अनुषा के घर आ धमकी.

वह बाहर से ही चिल्लाती आ रही थी, ‘‘मेरे पति पर डोरे डाले तो अच्छा नहीं होगा अनुषा. मेरा पति सिर्फ मेरा है.’’

हंसती हुई अनुषा किचन से बाहर निकली और बोल पड़ी, ‘‘मान लो मैं तुम्हारे पति पर डोरे डाल रही हूं… बताओ क्या करोगी तुम? मेरे पति पर डोरे डालोगी? वह तो तुम पहले ही कर चुकी हो. आगे बताओ और क्या करोगी?’’

अनुषा का सवाल सुन कर वह बिफर पड़ी. चीखती हुई बोली, ‘‘खबरदार अनुषा जो पति की तरफ आंख उठा कर भी मत देखा. वरना तुम्हारे पति को नौकरी से निकाल दूंगी.’’

‘‘तो निकाल दो न टीना. मैं भी यही चाहती हूं कि वह तुम्हारे चंगुल से आजाद हो जाए. हंसी आती है तुम पर… मेरे पति के साथ गलत रिश्ता रखने में तुम्हें कोई दिक्कत नहीं. मगर तुम्हारे पति की ओर कोई देख भी ले तो तुम्हें समस्या हो जाती है. कैसी औरत हो तुम जो औरत का दर्द ही नहीं समझ सकती? दर्द तुम नहीं सह सकती वह दूसरों को क्यों देती हो?’’

दूर खड़ा भुवन दोनों की बातें सुन रहा था. उस की आंखें खुल गई थीं. मन ही मन अनुषा

की तारीफ कर रहा था कि कितनी सचाई से उस ने गलत के खिलाफ आवाज उठाई थी.

अब तक टीना भी सब के आगे अपना मजाक बनता देख संभल चुकी थी. अनुषा की बातों का असर हुआ था या फिर खुद पर जब बीती तो उस जलन के एहसास ने टीना को सोचने पर विवश कर दिया. उस के पास कोई जवाब नहीं था.

घर लौटते समय वह फैसला कर चुकी

थी कि आज के बाद भुवन पर अपना कोई हक नहीं रखेगी.

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