लेखक- नीरज कुमार मिश्रा
मुखियाजी को घोड़े पालने का बहुत शौक था. बताते हैं कि यह शौक उन्हें विरासत में मिला हुआ था. आज भी मुखियाजी के पास 5 घोड़े थे, जिन की देखभाल का काम उन्होंने चंद्रिका नाम के एक 35 साला शख्स को दे रखा था.
मुखियाजी की उम्र तकरीबन 50-55 साल के बीच थी, फिर भी उन पर बढ़ती उम्र का कोई असर नहीं पता चलता था. रोज सुबहशाम दूध पीते और लंबी सैर को जाते. अपनी जवानी के दिनों में मुखियाजी ने आसपास के इलाकों में खूब दंगल जीते थे.
पीठ पीछे कोई मुखियाजी को कुछ भी कहे, लेकिन उन के सामने सभी नतमस्तक नजर आते थे.
मुखियाजी और उन की पत्नी की जिंदगी में एक बहुत भारी कमी थी कि उन के कोई औलाद नहीं थी. कई बार घरेलू नुसखों से इलाज करने की कोशिश भी की गई, पर कुछ नतीजा नहीं निकला. मुखियाइन की गोद हरी नहीं हो सकी और दोनों थकहार कर हाथ पर हाथ धर कर बैठ गए.
मुखियाजी को अपनी वंशबेल सूखने की कतई परवाह नहीं थी. उन्हें तो अपनी जिंदगी में सभी इंद्रियों से सुख उठाना अच्छी तरह आता था.
मुखियाजी कुलमिला कर 3 भाई थे, मुखियाजी से छोटा वाला संजय और सब से छोटा विनय, दोनों भाई मुखियाजी के रसूख तले दबे हुए रहते थे. किसी की भी उन के सामने जबान खोलने की हिम्मत नहीं थी.
पिछले कुछ दिनों से मुखियाजी के मन में उन के किसी चमचे ने समाजसेवा करने का शौक लगा दिया था, तभी तो मुखियाजी हर किसी से यही कहते कि बड़े घर से तो हर कोई रिश्ता जोड़ना चाहता है, पर वे तो संजय और विनय की शादी किसी गरीब घर की लड़की से ही करेंगे.
हां… पर लड़की खूबसूरत और सुशील होनी चाहिए, समाजसेवा भी होगी और किसी गरीब का भला भी हो जाएगा.
आसपास के गांव में कम पैसे वाले ठाकुर भी रहते थे. उन में से बहुत से लोग मुखियाजी के यहां अपनी लड़कियों का रिश्ता ले कर पहुंचे. मुखियाजी ने लड़कियों के फोटो रखवा लिए और बाद में बात करने को कहा.
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कुछ दिन बाद मुखियाजी ने उन सारे फोटो में से 2 खूबसूरत लड़कियों को पसंद किया. हैरानी की बात यह थी कि मुखियाजी ने जो 2 लड़कियां पसंद की थीं, वे भरेपूरे बदन की थीं.
मुखियाजी ने उन दोनों के पिताजी को बुलावा भेजा और हर किसी से अकेले में बात की, ‘‘देखिए, हम अपने भाई संजय के लिए एक लड़की ढूंढ़ रहे हैं… पर हमारी 2 शर्तें हैं…
‘‘पहली शर्त तो यह कि फोटो देख कर लड़की की होशियारी का परिचय नहीं मिलता, इसलिए हम लड़की से मिलना चाहेंगे… और दूसरी शर्त क्या होगी, यह हम आप को रिश्ता तय होने के बाद बताएंगे.’’
दूसरी शर्त वाली बात से लड़की का पिता थोड़ा घबराया, तो मुखियाजी ने उस से कहा कि ऐसी कोई शर्त नहीं होगी, जिसे वे पूरा न कर सकें. उन की इस
बात पर लड़की के बाप को कोई एतराज नहीं हुआ.
उन लोगों ने घर जा कर अपनी बेटियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया कि मुखियाजी के सभी सवालों का जवाब सही से देना और सासससुर की बात मानना एक अच्छी बहू के गुण होते हैं.
मुखियाजी को आखिरकार सीमा नाम की एक लड़की पसंद आ गई.
‘‘देखो सीमा, संजय को हम ने ही पालपोस कर बड़ा किया है, इसलिए वह हमारी हर बात मानता है. यही उम्मीद हम तुम से भी करते हैं… मानोगी न हमारी बात?’’ सीमा की पीठ पर हाथ फिराते हुए मुखियाजी ने कहा.
सीमा ने सिर्फ हां में सिर हिला दिया.
मुखियाजी ने सीमा के बाप मोती सिंह को बुलाया और कहा कि उन की लड़की उन्हें पसंद आ गई है. कोई अच्छा दिन देख कर वे सीमा और संजय की शादी कर दें.
फिर मुखियाजी ने सीमा के बाप मोती सिंह को अपनी दूसरी शर्त के बारे में बताया, ‘‘हमारी दूसरी शर्त यह है कि तुम हमें अपनी लड़की दे रहे हो, इसलिए हमारा भी फर्ज है कि हम तुम्हें अपनी तरफ से कुछ भेंट दें,’’ यह कह कर मुखियाजी ने 50,000 रुपए मोती सिंह को पकड़ा दिए.
मोती सिंह उन की दरियादिली पर खुश हो गया. उस ने मुखियाजी के सामने हाथ जोड़ लिए.
संजय और सीमा की शादी धूमधाम से हो गई थी, पर मुखियाजी का सख्त आदेश था कि अभी संजय और सीमा की सुहागरात का सही समय नहीं है, इसलिए संजय को अलग कमरे में सोना पड़ेगा.
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मुखियाजी अपने दोनों भाइयों के गांवों में रहने के सख्त खिलाफ थे. उन का साफ कहना था कि अगर तुम लोग गांव में रुक गए, तो यहां के गंवार लड़कों के साथ तुम लोग भी नहर पर बैठ कर चिलम पीया करोगे, आवारागर्दी करोगे और यह बात उन्हें मंजूर नहीं, इसलिए मेहमानों के जाते ही संजय और विनय
को शहर चलता कर दिया गया.
बेचारा संजय अभी अपनी पत्नी के साथ सैक्ससुख भी नहीं ले पाया था और उस से अलग हो जाना पड़ा.
सीमा ने संजय से न जाने की फरियाद भी की, पर मुखियाजी का आदेश संजय के लिए पत्थर की लकीर था, इसलिए वह कुछ न बोल सका.
इसी तरह संजय को गए हुए पूरे 6 महीने हो गए थे, सीमा ने एक मर्द के शरीर का सुख अभी तक नहीं जाना था. वह अकसर सोचती कि ऐसी शादी से क्या फायदा कि दिनभर घर का काम करो और रात में बिस्तर पर अकेले करवटें बदलो…
बाहर बारिश हो रही थी. सीमा अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी कि उसे अपने पैरों पर किसी के गरम हाथ की छुअन महसूस हुई. वे हाथ उस की जांघों तक पहुंच गए थे, कोई उस के सीने पर अपने हाथों का दबाव डाल रहा था. सीमा की सांसें गरम हो गई थीं. उसे बहुत अच्छा लग रहा था.
सीमा को लगा कि उस का पति संजय ही वापस आ गया है. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं और मजा लेना शुरू कर दिया. उस आदमी ने सीमा के सारे कपड़े हटा दिए और उस पर छा गया.
सीमा को आज पहली बार मर्द की मर्दानगी का मजा मिला था. थोड़ी ही देर बाद वह आदमी सीमा से अलग हो गया.
सीमा ने उस की तरफ देख कर प्यारमनुहार करना चाहा और अपनी आंखें खोलीं… पर यह क्या, ये तो संजय नहीं था, बल्कि मुखियाजी थे…
बिस्तर में बिना कपड़ों के सीमा भला मुखियाजी का सामना कैसे करती. उस ने तुरंत ही चादर से अपने शरीर को ढकने की नाकाम कोशिश की और बोली, ‘‘यह क्या किया मुखियाजी आप ने…’’
‘‘एक बात अच्छी तरह सम?ा ले सीमा… तु?ो अब मु?ो ही अपना पति सम?ाना होगा, क्योंकि संजय का सारा खर्चा मैं उठाता आया हूं. मेरे सामने वह चूं तक नहीं करेगा. मैं उस के माल का मजा उड़ा सकूं, इसीलिए उसे मैं ने शहर भेज दिया है…
‘‘और वैसे भी हम ने तेरे बाप को हमारी हर बात मानने के लिए पैसे दिए हैं,’’ मुखियाजी नशे में बोल रहे थे.
सीमा ऐसा सुन कर सन्न रह गई थी, पर मन ही मन उस ने अपनेआप को सम?ा लिया था, क्योंकि उसे मुखियाजी के रूप में उस के जिस्म को सुख पहुंचाने वाला मर्द जो मिल गया था.
फिर क्या था, मुखियाजी तकरीबन रोज ही सीमा के कमरे में आ जाते और दोनों सैक्स का जम कर मजा उठाते.
मुखियाजी के चेहरे की लाली बढ़ गई थी. नई जवान लड़की के जिस्म का रस पी कर जैसे उन की जवानी ही वापस आ गई थी.
कभीकभी जब मुखियाजी अपनी पत्नी के पास ही सो जाते, तो सीमा को जैसे सौतिया डाह सताने लगता. उसे अकेले नींद न आती, इसलिए कभी वह चूडि़यां खनकाती, तो कभी अपनी पायलें बजाते हुए मुखियाजी के कमरे के सामने से निकलती. हार कर मुखियाजी को उठ कर आना पड़ता और सीमा के जिस्म की आग को बु?ाना पड़ता.
इस दौरान शहर से संजय वापस आया, तो मुखियाजी की त्योरियां चढ़ने लगीं और उन्होंने उसे किसी बहाने यहांवहां दौड़ा दिया, ताकि वह सीमा के साथ न रह पाए.
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फिर एक दिन उसे पैसा वसूली के लिए दूसरे गांव भेज दिया और जब वह वापस आया, तब तक शहर से उस के ठेकेदार का बुलावा आ चुका था. बेचारा संजय अपनी पत्नी के प्यार को तरसता रह गया.
कुछ समय बीता तो मुखियाजी अपने छोटे भाई विनय की शादी के बारे में सोचने लगे. उन्होंने शहर से विनय को भी बुलवा लिया था और बहू ढूंढ़ने लगे.
जल्दी ही उन्हें मुनासिब बहू मिल भी गई, जिस का पिता गरीब था और पहले की तरह ही उसे पूरे 50,000 रुपए देते हुए मुखियाजी ने लड़की के बाप से कहा कि बस अपनी लड़की से इतना कह दो कि विनय को पढ़ानेलिखाने में हम ने बहुत खर्चा किया है. हम ही उस के मांबाप हैं, इसलिए हमारी बात मान कर रहेगी तो सुखी रहेगी.
शादी के बाद सीमा को घर में मेहमानों के होने के चलते मुखियाजी से मिलने में बहुत परेशानी हो रही थी. ऐसे में उसे अपने पति संजय का साथ और सुख मिला.
संजय भी बिस्तर पर ठीक ही था, पर मुखियाजी की ताकत के आगे वह फीका ही लगा था, इसीलिए सीमा मन ही मन सभी मेहमानों के जाने का इंतजार करने लगी, ताकि वह फिर से मुखियाजी के साथ रात गुजार सके.
सारे मेहमान चले गए थे. संजय और विनय को आज ही शहर जाना पड़ गया था.
अगले दिन से सीमा ने ध्यान दिया कि मुखियाजी उस के बजाय नई बहू रानी की ज्यादा मानमनुहार करते हैं. उन की आंखें रानी के कपड़ों के अंदर घुस कर कुछ तौलने की कोशिश करती रहती हैं. सीमा मुखियाजी की असलियत सम?ा गई थी.