Serial Story: काले घोड़े की नाल- भाग 1

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

मुखियाजी को घोड़े पालने का बहुत शौक था. बताते हैं कि यह शौक उन्हें विरासत में मिला हुआ था. आज भी मुखियाजी के पास 5 घोड़े थे, जिन की देखभाल का काम उन्होंने चंद्रिका नाम के एक  35 साला शख्स को दे रखा था.

मुखियाजी की उम्र तकरीबन 50-55 साल के बीच थी, फिर भी उन पर बढ़ती उम्र का कोई असर नहीं पता चलता था. रोज सुबहशाम दूध पीते और लंबी सैर को जाते. अपनी जवानी के दिनों में मुखियाजी ने आसपास के इलाकों में खूब दंगल जीते थे.

पीठ पीछे कोई मुखियाजी को कुछ भी कहे, लेकिन उन के सामने सभी नतमस्तक नजर आते थे.

मुखियाजी और उन की पत्नी की जिंदगी में एक बहुत भारी कमी थी कि उन के कोई औलाद नहीं थी. कई बार घरेलू नुसखों से इलाज करने की कोशिश भी की गई, पर कुछ नतीजा नहीं निकला. मुखियाइन की गोद हरी नहीं हो सकी और दोनों थकहार कर हाथ पर हाथ धर कर बैठ गए.

मुखियाजी को अपनी वंशबेल सूखने की कतई परवाह नहीं थी. उन्हें तो अपनी जिंदगी में सभी इंद्रियों से सुख उठाना अच्छी तरह आता था.

मुखियाजी कुलमिला कर 3 भाई थे, मुखियाजी से छोटा वाला संजय और सब से छोटा विनय, दोनों भाई मुखियाजी के रसूख तले दबे हुए रहते थे. किसी की भी उन के सामने जबान खोलने की हिम्मत नहीं थी.

पिछले कुछ दिनों से मुखियाजी के मन में उन के किसी चमचे ने समाजसेवा करने का शौक लगा दिया था, तभी तो मुखियाजी हर किसी से यही कहते कि बड़े घर से तो हर कोई रिश्ता जोड़ना चाहता है, पर वे तो संजय और विनय की शादी किसी गरीब घर की लड़की से ही करेंगे.

हां… पर लड़की खूबसूरत और सुशील होनी चाहिए, समाजसेवा भी होगी और किसी गरीब का भला भी हो जाएगा.

आसपास के गांव में कम पैसे वाले ठाकुर भी रहते थे. उन में से बहुत से लोग मुखियाजी के यहां अपनी लड़कियों का रिश्ता ले कर पहुंचे. मुखियाजी ने लड़कियों के फोटो रखवा लिए और बाद में बात करने को कहा.

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कुछ दिन बाद मुखियाजी ने उन सारे फोटो में से 2 खूबसूरत लड़कियों को पसंद किया. हैरानी की बात यह थी कि मुखियाजी ने जो 2 लड़कियां पसंद की थीं, वे भरेपूरे बदन की थीं.

मुखियाजी ने उन दोनों के पिताजी को बुलावा भेजा और हर किसी से अकेले में बात की, ‘‘देखिए, हम अपने भाई संजय के लिए एक लड़की ढूंढ़ रहे हैं… पर हमारी 2 शर्तें हैं…

‘‘पहली शर्त तो यह कि फोटो देख कर लड़की की होशियारी का परिचय नहीं मिलता, इसलिए हम लड़की से मिलना चाहेंगे… और दूसरी शर्त क्या होगी, यह हम आप को रिश्ता तय होने के बाद बताएंगे.’’

दूसरी शर्त वाली बात से लड़की का पिता थोड़ा घबराया, तो मुखियाजी ने उस से कहा कि ऐसी कोई शर्त नहीं होगी, जिसे वे पूरा न कर सकें. उन की इस

बात पर लड़की के बाप को कोई एतराज नहीं हुआ.

उन लोगों ने घर जा कर अपनी बेटियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया कि मुखियाजी के सभी सवालों का जवाब सही से देना और सासससुर की बात मानना एक अच्छी बहू के गुण होते हैं.

मुखियाजी को आखिरकार सीमा नाम की एक लड़की पसंद आ गई.

‘‘देखो सीमा, संजय को हम ने ही पालपोस कर बड़ा किया है, इसलिए वह हमारी हर बात मानता है. यही उम्मीद हम तुम से भी करते हैं… मानोगी न हमारी बात?’’ सीमा की पीठ पर हाथ फिराते हुए मुखियाजी ने कहा.

सीमा ने सिर्फ हां में सिर हिला दिया.

मुखियाजी ने सीमा के बाप मोती सिंह को बुलाया और कहा कि उन की लड़की उन्हें पसंद आ गई है. कोई अच्छा दिन देख कर वे सीमा और संजय की शादी कर दें.

फिर मुखियाजी ने सीमा के बाप मोती सिंह को अपनी दूसरी शर्त के बारे में बताया, ‘‘हमारी दूसरी शर्त यह है कि तुम हमें अपनी लड़की दे रहे हो, इसलिए हमारा भी फर्ज है कि हम तुम्हें अपनी तरफ से कुछ भेंट दें,’’ यह कह कर मुखियाजी ने 50,000 रुपए मोती सिंह को पकड़ा दिए.

मोती सिंह उन की दरियादिली पर खुश हो गया. उस ने मुखियाजी के सामने हाथ जोड़ लिए.

संजय और सीमा की शादी धूमधाम से हो गई थी, पर मुखियाजी का सख्त आदेश था कि अभी संजय और सीमा की सुहागरात का सही समय नहीं है, इसलिए संजय को अलग कमरे में  सोना पड़ेगा.

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मुखियाजी अपने दोनों भाइयों के गांवों में रहने के सख्त खिलाफ थे. उन का साफ कहना था कि अगर तुम लोग गांव में रुक गए, तो यहां के गंवार लड़कों के साथ तुम लोग भी नहर पर बैठ कर चिलम पीया करोगे, आवारागर्दी करोगे और यह बात उन्हें मंजूर नहीं, इसलिए मेहमानों के जाते ही संजय और विनय

को शहर चलता कर दिया गया.

बेचारा संजय अभी अपनी पत्नी के साथ सैक्ससुख भी नहीं ले पाया था और उस से अलग हो जाना पड़ा.

सीमा ने संजय से न जाने की फरियाद भी की, पर मुखियाजी का आदेश संजय के लिए पत्थर की लकीर था, इसलिए वह कुछ न बोल सका.

इसी तरह संजय को गए हुए पूरे  6 महीने हो गए थे, सीमा ने एक मर्द के शरीर का सुख अभी तक नहीं जाना था. वह अकसर सोचती कि ऐसी शादी से क्या फायदा कि दिनभर घर का काम करो और रात में बिस्तर पर अकेले करवटें बदलो…

बाहर बारिश हो रही थी. सीमा अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी कि उसे अपने पैरों पर किसी के गरम हाथ की छुअन महसूस हुई. वे हाथ उस की जांघों तक पहुंच गए थे, कोई उस के सीने पर अपने हाथों का दबाव डाल रहा था. सीमा की सांसें गरम हो गई थीं. उसे बहुत अच्छा लग रहा था.

सीमा को लगा कि उस का पति संजय ही वापस आ गया है. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं और मजा लेना शुरू कर दिया. उस आदमी ने सीमा के सारे कपड़े हटा दिए और उस पर  छा गया.

सीमा को आज पहली बार मर्द की मर्दानगी का मजा मिला था. थोड़ी ही देर बाद वह आदमी सीमा से अलग हो गया.

सीमा ने उस की तरफ देख कर प्यारमनुहार करना चाहा और अपनी आंखें खोलीं… पर यह क्या, ये तो संजय नहीं था, बल्कि मुखियाजी थे…

बिस्तर में बिना कपड़ों के सीमा भला मुखियाजी का सामना कैसे करती. उस ने तुरंत ही चादर से अपने शरीर को ढकने की नाकाम कोशिश की और बोली, ‘‘यह क्या किया मुखियाजी आप ने…’’

‘‘एक बात अच्छी तरह सम?ा ले सीमा… तु?ो अब मु?ो ही अपना पति सम?ाना होगा, क्योंकि संजय का सारा खर्चा मैं उठाता आया हूं. मेरे सामने वह चूं तक नहीं करेगा. मैं उस के माल का मजा उड़ा सकूं, इसीलिए उसे मैं ने शहर भेज दिया है…

‘‘और वैसे भी हम ने तेरे बाप को हमारी हर बात मानने के लिए पैसे दिए हैं,’’ मुखियाजी नशे में बोल रहे थे.

सीमा ऐसा सुन कर सन्न रह गई थी, पर मन ही मन उस ने अपनेआप को सम?ा लिया था, क्योंकि उसे मुखियाजी के रूप में उस के जिस्म को सुख पहुंचाने वाला मर्द जो मिल गया था.

फिर क्या था, मुखियाजी तकरीबन रोज ही सीमा के कमरे में आ जाते और दोनों सैक्स का जम कर मजा उठाते.

मुखियाजी के चेहरे की लाली बढ़ गई थी. नई जवान लड़की के जिस्म का रस पी कर जैसे उन की जवानी ही वापस आ गई थी.

कभीकभी जब मुखियाजी अपनी पत्नी के पास ही सो जाते, तो सीमा को जैसे सौतिया डाह सताने लगता. उसे अकेले नींद न आती, इसलिए कभी वह चूडि़यां खनकाती, तो कभी अपनी पायलें बजाते हुए मुखियाजी के कमरे के सामने से निकलती. हार कर मुखियाजी को उठ कर आना पड़ता और सीमा के जिस्म की आग को बु?ाना पड़ता.

इस दौरान शहर से संजय वापस आया, तो मुखियाजी की त्योरियां चढ़ने लगीं और उन्होंने उसे किसी बहाने यहांवहां दौड़ा दिया, ताकि वह सीमा के साथ न रह पाए.

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फिर एक दिन उसे पैसा वसूली के लिए दूसरे गांव भेज दिया और जब वह वापस आया, तब तक शहर से उस के ठेकेदार का बुलावा आ चुका था. बेचारा संजय अपनी पत्नी के प्यार को तरसता रह गया.

कुछ समय बीता तो मुखियाजी अपने छोटे भाई विनय की शादी के बारे में सोचने लगे. उन्होंने शहर से विनय को भी बुलवा लिया था और बहू ढूंढ़ने लगे.

जल्दी ही उन्हें मुनासिब बहू मिल भी गई, जिस का पिता गरीब था और पहले की तरह ही उसे पूरे 50,000 रुपए देते हुए मुखियाजी ने लड़की के बाप से कहा कि बस अपनी लड़की से इतना कह दो कि विनय को पढ़ानेलिखाने में हम ने बहुत खर्चा किया है. हम ही उस के मांबाप हैं, इसलिए हमारी बात मान कर रहेगी तो सुखी रहेगी.

शादी के बाद सीमा को घर में मेहमानों के होने के चलते मुखियाजी से मिलने में बहुत परेशानी हो रही थी. ऐसे में उसे अपने पति संजय का साथ और सुख मिला.

संजय भी बिस्तर पर ठीक ही था, पर मुखियाजी की ताकत के आगे वह फीका ही लगा था, इसीलिए सीमा मन ही मन सभी मेहमानों के जाने का इंतजार करने लगी, ताकि वह फिर से मुखियाजी के साथ रात गुजार सके.

सारे मेहमान चले गए थे. संजय और विनय को आज ही शहर जाना पड़  गया था.

अगले दिन से सीमा ने ध्यान दिया कि मुखियाजी उस के बजाय नई बहू रानी की ज्यादा मानमनुहार करते हैं. उन की आंखें रानी के कपड़ों के अंदर घुस कर कुछ तौलने की कोशिश करती रहती हैं. सीमा मुखियाजी की असलियत सम?ा गई थी.

Mother’s Day Special: मां हूं न- भाग 3

‘‘अरे पगली, तुम मांबेटी न होती तो शायद मैं इस जिंदगी को इस तरह न जी पाता. इस जिंदगी पर सीनियर सिटिजन का ठप्पा लगाए निराशावादी जीवन जी रहा होता. तुम लोगों को मैं ने नहीं गढ़ा है, बल्कि तुम लोगों ने मुझे गढ़ा है. तुम्हारे कौशल का नटखट मेरी आंखों में बस गया है बेटा.’’

आरती ने तृप्ति की लंबी सांस ली. वह पिता जैसा प्यार देने वाले ससुर थे, उन्हीं के सहारे वह जी रही थी. अगर उन का सहारा न होता तो मांबेटी मांबाप के यहां आश्रित बन कर बेचारी की तरह जी रही होतीं. इन्हीं की वजह से आज वे सिर ऊंचा कर के जी रही थीं वरना नदी के टापू की तरह कणकण बिखर गई होतीं.

उगते सूरज की किरणों के बीच आराधना बालकनी में खड़ी हो कर कौफी पीती. विश्वंभर प्रसाद मौर्निंग वाक से वापस आते तो आराधना दरवाजा खोल कर उन के सीने से लग जाती, ‘‘गुड मौर्निंग दादू.’’

विश्वंभर प्रसाद दोनों हाथों से आराधना को गोद में उठा लेते. 80 साल के होने के बावजूद उन में अभी जवानों वाली ताकत थी. आराधना झटपट गोद से उतर कर सख्त लहजे में कहती, ‘‘दादादी, बिहैव योर एज.’’

‘‘अभी तो मैं जवान हूं. कालेज के दिनों में क्रिकेट खेलता था, मेरा हाइयेस्ट सिक्सर्स का रेकार्ड है.’’

ऐसा ही लगभग रोज होता था. सुबह जल्दी उठ कर विश्वंभर प्रसाद मौर्निंग वाक के लिए निकल जाते थे. पौने 7 बजे के फोन की घंटी बजती, जिस का मतलब था वह 10 मिनट के अंदर आने वाले हैं. आरती कहती, ‘‘अरू, जल्दी कर दादाजी के आने का समय हो गया है. जूस तैयार कर के टेबल पर प्लेट लगा.’’

आराधना जल्दी से कौफी खत्म कर के फ्रिज से संतरा, मौसमी या अनार निकाल कर जूस निकालने की तैयारी करने लगती. दूसरी ओर आरती किचन में नाश्ते की तैयारी करती. इस के बाद डोरबेल बजती तो आराधना दरवाजा खोल कर दादाजी के गले लग जाती. उस दिन किचन में नाश्ते की तैयारी कर रही आरती चिल्लाई, ‘‘आराधना जल्दी जूस निकाल कर मेज पर प्लेट लगा, 8 बज गए दादाजी आते ही होंगे. लेकिन आज उन का फोन तो आया ही नहीं.’’

आराधना जूस के गिलास मेज पर रख कर प्लेट लगाने लगी. अंदर से आरती ने कहा, ‘‘आज उठने में मुझे थोड़ी देर हो गई. लेकिन पापाजी की टाइमिंग परफेक्ट है, वह आते ही होंगे.’’

8 से सवा 8 बज गए. न फोन आया न डोरबेल बजी. आराधना चिढ़ कर बोली, ‘‘मम्मी, दादाजी तो दिनप्रतिदिन बच्चे होते जा रहे हैं. खेलने लगते हैं तो समय का ध्यान ही नहीं रहता. आज आते हैं तो बताती हूं.’’

साढ़े 8 बज गए. दरवाजा खोले मांबेटी एकदूसरे का मुंह ताक रही थीं. मौर्निंग वाक करने वालों की तरह घड़ी का कांटा भाग रहा था. कांटा पौने 9 पर पहुंचा तो आराधना ने दादाजी के मोबाइल पर फोन किया. घंटी बजती रही, पर फोन नहीं उठा. आराधना के लिए यह हैरानी की बात थी. आरती ने उस के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘कोई पुराना दोस्त मिल गया होगा फारेनवारेन का. बहुत दिनों बाद मिला होगा इसलिए बातों में लग गए होंगे.’’

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‘‘आप भी क्या बात करती हैं मम्मी. एक घंटा होने को आ रहा है. नो वे…दादाजी इतने लापरवाह नहीं हैं. कम से कम फोन तो उठाते या खुद फोन करते.’’

आराधना बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि उस का फोन बजा. नंबर देख कर बोली, ‘‘ये लो आ गया दादाजी का फोन.’’

फोन रिसीव कर के आराधना धमकाते हुए बोली, ‘‘यह क्या…इतनी देर…मेरे का क्या…’’

‘‘एक मिनट मैडम, यह फोन आप के फैमिली मेंबर का है?’’

‘‘जी, यह फोन मेरे ग्रांडफादर का है. आप के पास कैसे आया?’’

‘‘मैडम, मुझे तो यह सड़क पर पड़ा मिला है.’’

हैरानपरेशान आरती बगल में खड़ी थी. उस ने पूछा, ‘‘अरू, कौन बात कर रहा है? पापा का फोन उसे कहां मिला, वह कहां हैं?’’

‘‘फोन ढूंढ रहे होंगे. एक तो गंवा दिया.’’

दूसरी ओर से अधीरता से कहा गया, ‘‘हैलो…हैलो मैडम.’’

‘‘जी सौरी भाईसाहब, वह क्या है कि मेरे ग्रांडफादर वाक पर गए थे. उन का फोन गिर गया होगा. आप कहां हैं? मैं लेने…’’

‘‘आप मेरी बात सुनेंगी या खुद ही बकबक करती रहेंगी.’’ फोन करने वाले ने तीखे लहजे में कहा, ‘‘यह फोन आप के ग्रांडफादर का है न, उन का एक्सीडेंट हो चुका है. मैं यह फोन पुलिस वाले को दे रहा हूं.’’

पुलिस वाले ने बताया कि यह फोन जिस का भी है, उन का एक्सीडेंट हो चुका है. आप जल्दी आ जाइए.

फोन कटते ही आराधना ने मां का हाथ पकड़ा और गेट की ओर भागी, ‘‘मम्मी, जल्दी चलो, दादाजी का एक्सीडेंट हो गया है.’’

एक जगह भीड़ देख कर आराधना रुक गई. आंसू पोंछते हुए भर्राई आवाज में बोली, ‘‘प्लीज मम्मी, मैं वहां नहीं जा सकती. दादाजी को उस हालत में नहीं देख सकती.’’

‘‘कलेजा कड़ा कर अरू, रोने के लिए अभी समय पड़ा है. अब जो कुछ भी करना है, हम दोनों को ही करना है.’’

आराधना का हाथ थामे आरती भीड़ के बीच पहुंची तो सड़क पर खून से लथपथ पड़ी देह आराधना के प्यारे दादाजी विश्वंभर प्रसाद की थी. आराधना के मुंह से निकली चीख वहां खड़े लोगों के कलेजे को बेध गई. वह लाश पर गिरती, उस के पहले ही क्लब के विश्वंभर प्रसाद के साथियों ने उसे संभाल लिया.

आरती बारबार बेहोश हुए जा रही थी. अगलबगल की इमारतें जैसे उस के ऊपर टूट पड़ी हों और वह उस के मलबे से निकलने की कोशिश कर रही हो, इस तरह हांफ रही थी. उस में यह पूछने की भी हिम्मत नहीं थी कि यह सब कैसे हुआ. वहीं थोड़ी दूरी पर 2 कारें आपस में टकराई खड़ी थीं. कांप रहे 2 लड़कों को इंसपेक्टर डांट रहा था.

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बाद के दिन इस तरह धुंध भरे रहे, जैसे पहाड़ी इलाके में कोहरा छाया हो. आरती की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. सूरज उगता, कब रक्तबिंदु बन कर डूब जाता, पता ही न चलता. विश्वंभर प्रसाद का अंतिम संस्कार, शांतिपाठ सब हो गया था. चाहे बेटा समझो या पोती, जो कुछ भी थी, अरू ही थी.

यह सब जो हुआ था, बाद में पता चला कि 17 साल के निनाद को कार चलाने का चस्का लग चुका था. मांबाप घर में नहीं थे, इसलिए मौका पा कर दोस्त के साथ कार ले कर निकल पड़ा था. तेज ड्राइविंग का मजा लेने के लिए वह तेज गति से कार चला रहा था.

सुबह का समय था, सड़क खाली थी इसलिए वह लापरवाह भी था. अचानक सामने से कुत्ता आ गया. उस ने एकदम से ब्रेक लगाई, सड़क के किनारेकिनारे विश्वंभर प्रसाद आ रहे थे, निनाद स्टीयरिंग पर काबू नहीं रख पाया और…

यह जान कर आराधना का खून खौल उठा था. अपने मजे के लिए निनाद ने उस के दादाजी की जान ले ली थी. उस की आंखों के आगे से दादाजी की खून से लथपथ देह हट ही नहीं रही थी. उस की दुनिया जिस दादाजी के नाम के मजबूत स्तंभ पर टिकी थी, वह स्तंभ एकदम से टूट गया था, जिस से उस की हंसतीखेलती दुनिया उजड़ गई थी.

आरती जानती थी कि अगर वह टूट गई तो आराधना को संभालना मुश्किल हो जाएगा. सुबोध जब उसे छोड़ कर गया था, उस की गृहस्थी के रथ का दूसरा पहिया ससुर विश्वंभर प्रसाद बन गए थे, जिस से जीवन की गाड़ी अच्छे से चल पड़ी थी. लेकिन उन के अचानक इस तरह चले जाने से अब आराधना के जीवन की डोर उस के हाथों में थी.

‘‘मम्मी, मैं प्रैस जा रही हूं. आप भी चलेंगी?’’

‘‘क्यों?’’ आरती ने पूछा.

‘‘मैं मीडिया के जरिए सब को यह बताना चाहती हूं कि एक गैरजिम्मेदार जिस लड़के की वजह से मेरा घर बरबाद हो गया, मेरे सिर का साया उठ गया, उसे थाने से ही जमानत मिल गई. इस का मतलब मेरे दादाजी के जीवन की कीमत कुछ नहीं थी. मैं उस के घर जाना चाहती हूं, उस के मांबाप से लड़ना चाहती हूं कि कैसा है उन का पुत्ररत्न? मैं उसे छोड़ूंगी नहीं, हाईकोर्ट जाऊंगी. आखिर मांबाप ने उसे कार दी ही क्यों?’’

‘‘कल मैं उस के घर गई थी अरू, उस की मां मिली थी.’’ आरती ने धीरे से कहा.

‘‘व्हाट?’’

‘‘तुम्हारी तरह मैं भी उस की मां से लड़ना चाहती थी, पर…’’

‘‘पर क्या?’’

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‘‘मैं ने उस की मां को देखा. एक ही बेटा है, जो जवानी की दहलीज पर खड़ा है. नादान और गैरजिम्मेदार है, लेकिन वही उन का सहारा है. उसी पर उन की सारी उम्मीदें टिकी हैं. सर्वस्व लुट जाने का दुख मैं जानती हूं बेटा.

इस समय उस के मांबाप कितना दुखी, परेशान और डरे हुए हैं, यह मैं देख आई हूं. ऐसे में आग में घी डालने वाले शब्दों से उन के मन को और दुखी करना या उन्हें परेशान करने से क्या होगा अरू. मैं ने उन्हें माफ कर दिया बेटा. निनाद को भी माफ कर दिया.’’

‘‘मेरे दादाजी के हत्यारे को आप ने माफ कर दिया मम्मी?’’

‘‘क्या करूं बेटा, मां हूं न.’’ कह कर आरती अंदर चली गई.

आराधना को एक बार फिर महाभारत की द्रौपदी की याद आ गई.

Mother’s Day Special: मोह का बंधन- भाग 3

रोज की मालिश और दवा ने कमाल दिखाया तो 2 दिन में ही उन के पैर में आराम आ गया. अगले दिन वे सब घूमने निकल पड़े. बच्चों ने उन्हें एक शानदार मौल में घुमाया, कुछ शापिंग हुई और फिर सब ने चाट का आनंद लिया. बीना ने बहुत समय के बाद इतना सैरसपाटा किया था. उन का मन खुश हो उठा.

अगले दिन सुशांत ने मां को बताया कि इस रविवार को वह अपनी तरक्की होने की खुशी में दोस्तों कोपार्टी दे रहा है और पार्टी घर में ही रखी गई है तो बीना सोच में पड़ गईं कि उन सब अनजान चेहरों के बीच वह तो अलगथलग ही पड़ जाएंगी.

तभी सुशांत बोल पड़ा, ‘‘मां, उस दिन आप को हमारे साथ अपने वित्तीय अनुभव शेयर करने होंगे. उन से हमें भविष्य की योजना बनाने के लिए सही दिशा मिलेगी.’’

सुशांत की इस पेशकश ने बीना की उलझन को पल में सुलझा दिया पर साथ ही उन्हें हैरानी भरे एक नए मंजर में छोड़ दिया. वह तो उन दोनों से एक दूरी बनाए रखने की निरंतर कोशिश कर रही थीं पर उन्होंने उसे दूर होने कहां दिया था. क्या उन्हें अपनी जिंदगी में सचमुच मां की जरूरत थी या फिर यह एक दिखावा भर था? बारबार ऐसे खयाल उन के जेहन में आ रहे थे पर वे किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही थीं.

रविवार की सुबह सुशांत ने पूछ लिया कि मां, आप की टाक का विषय क्या रहेगा?

‘‘अब यह तो शाम को ही पता चलेगा. सब्र करो, सब्र का फल मीठा होता है, क्यों मांजी?’’ अमृता ने चुटकी ली तो तीनों हंस पड़े.

बीना ने तैयारी तो की थी पर वह असमंजस में थीं कि क्या इतनी बड़ीबड़ी कंपनियों में काम करने वाले लोगों के लिए उस की बातों का कुछ महत्त्व होगा.

शाम हुई तो एकएक कर मेहमानों का आना शुरू हो गया. अमृता और सुशांत गर्व से सब से मां का परिचय कराते जा रहे थे. थोड़ी देर बाद सुशांत ने सब का ध्यान आकर्षित किया, ‘‘दोस्तो, पार्टी है तो मौजमस्ती तो होगी ही पर साथ ही एक्सपर्ट एडवाइज भी हो जाए तो क्या बात है. तो मिलिए, आज की हमारी वित्तीय एक्सपर्ट श्रीमती बीना वर्मा से.’’

तालियों की गड़गड़ाहट के बीच बीना सामने आईं और उन्होंने ‘सुरक्षित वित्तीय निवेश’ के तरीकों पर प्रकाश डाला. सभी ने बहुत ध्यान से उन की बातें सुनीं और प्रशंसा की. थोड़ी देर में डिनर खत्म हो गया. सब ने सुशांत को फिर से बधाई दी और पार्टी संपन्न हो गई.

आज की शाम बीना को जो सम्मान मिला था उतना सम्मान तो उन्हें अपने आफिस में भी कभी नहीं मिला था जहां के लोगों को वह हमेशा अपना समझती थीं.

वह अभी इसी ऊहापोह में थीं कि सुशांत और अमृता आ गए. अमृता ने पूछा, ‘‘मांजी, पार्टी कैसी रही? हमें तो आप की टाक ने बहुत प्रभावित किया पर आज आप बहुत थक गई होंगी. चलिए, अब आराम कीजिए.’’

सुशांत ने उसी समय 2 लैपटाप दिखाते हुए कहा, ‘‘देखिए मां, प्रशांत भैया ने हमारे लिए क्या भेजा है? बिलकुल लेटेस्ट टेक्नोलाजी का लैपटाप. यह मेरी तरक्की का उन की ओर से गिफ्ट है.’’

‘‘चलो, यह तो बहुत अच्छा हुआ,’’ बीना बोलीं, ‘‘अब तुम दोनों घर पर अपने पर्सनल लैपटाप पर काम कर सक ोगे.’’

‘‘मांजी, यह दूसरा वाला तो आप के लिए है,’’ अमृता ने कहा, ‘‘भैयाजी ने खास आप के लिए भेजा है ताकि दूर रह कर भी आप हमसब के पास रह सकें. कल मैं आप को इस पर बातें करना सिखाऊंगी. सच, बड़ा मजा आएगा.’’

बीना भौचक्की रह गईं. क्या प्रशांत उन के बारे में इतना सोचता है? वह तो अब तक यही सोचती थीं कि परदेस में उसे मां की याद कहां आती होगी पर उन की सोच शायद गलत थी.

अगले दिन सुशांत ने उन्हें अपने लैपटाप पर प्रशांत और जूही द्वारा उन के लिए भेजे गए संदेश दिखाए. उन्हें पढ़ कर बीना की आंखें नम हो उठीं. इतना प्यार भरा था उन शब्दों में कि उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ.

प्रशांत ने उन से अपने लिए एक ईमेल अकाउंट खोलने के लिए बहुत बार कहा था पर उन्होंने कभी ध्यान ही नहीं दिया. आज पता चला कि प्रशांत उन की कितनी कमी महसूस करता है. आज बीना का दिल एक अजीब सी खुशी महसूस कर रहा था.

अगला दिन पैकिंग करने में बीता. बीना सोचती रहीं कि 15 दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला. शाम हुई तो सुशांत और अमृता फिर से दोहराने लगे, ‘‘मां, अब भी समय है, टिकट कैंसिल करा देते हैं. कुछ दिन और आप हमारे साथ रह जाओ. अभी तो जी भर के बातें भी नहीं हो पाई हैं.’’

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‘‘बेटा, आनाजाना तो लगा ही रहेगा. फिर अब तो यह लैपटाप आ गया है न. इस से चैट करूंगी तुम सब से,’’ बीना ने मजाक के लहजे में कहा और अमृता को पास बुलाया फिर एक सुंदर सा हार उसे भेंट में दिया. उन्हें तो गहनों का कोई मोह रह नहीं गया था इसलिए वह चाहती थीं कि उन की चीजें बच्चों के काम आ जाएं. गहनों के लिए बहुएं आपस में लड़ें या उन में मनमुटाव हो, ऐसी स्थिति से वह बचना चाहती थीं और यही सोच कर हार बंगलौर ले आई थीं.

हार देख कर अमृता मुसकराने लगी तो बीना ने यह सोचा कि कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की कि शायद पुराने डिजाइन के बारे में वह उन से शिकायत नहीं करना चाहती होगी.

तभी सुशांत मां के हाथ में एक चाबी थमाते हुए बोला, ‘‘ठीक है, मांजी, आप इस हार को भी नए लौकर में रख दीजिएगा.’’

बीना हैरानी से बेटे की ओर देखने लगीं तो सुशांत ने बताया कि अमृता के कहने पर ही उस ने मोहननगर में आप के नाम से एक लौकर खुलवाया था. अमृता ने शादी में मिले सभी जेवर व नकदी, यह कहते हुए उस में रख दिए थे कि ये सब निशांत की शादी में काम आएंगे. आज उपहार- स्वरूप उन दोनों ने मां को उसी की चाबी भेंट की थी.

इतना जानना था कि बीना सोफे पर गिर सी गई. वह तो सदा इसी बात से आशंकित रहीं कि बच्चों का प्यारमनुहार शायद स्वार्थ से प्रेरित एक दिखावा था. अनेक अवसर आए जब उन का जी चाहा था कि बच्चों को गले से लगा लें पर अपने दिल की आवाज को दबाए रखा क्योंकि वह मोह के बंधन से आजाद रहना चाहती थीं. ऐसे मोह का परिणाम दुखद ही होगा, यही उन का विश्वास था पर आज उन्हें एहसास हुआ कि मोह के बंधन में न बंधने के चक्कर में वह तो बच्चों से स्नेह करना ही भूल गईं और इस सब में उन के बच्चे उन से कहीं आगे निकल गए. अलगथलग रहने के प्रण ने उन्हें पल भर भी बच्चों के साथ का सच्चा आनंद नहीं उठाने दिया था पर अब उन की आंखें खुल गई थीं.

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तभी सुशांत ने मां को हिलाते हुए पूछा, ‘‘मां, कहां खो गई थीं आप?’’

बीना ने बेटे को गले लगाते हुए कहा, ‘‘बेटा, सोच रही थी कि तेरी बात मान ही लूं.’’

सुनते ही सुशांत और अमृता के चेहरों पर खुशी की लहर दौड़ गई. अमृता ने फौरन कहा, ‘‘चलो, मांजी, फिर कुछ दिन तो मैं इस हार को जरूर पहन पाऊंगी,’’ यह सुन कर सब हंस पड़े. बीना ने खुशीखुशी बहू को अपना हार पहना दिया.

आज उन के चेहरे पर संतुष्टि की नई दमक थी. बच्चों के प्यार ने उन्हें रोक जो लिया था क्योंकि उन के मोह में पड़ने को उस का मन ललक उठा था. आखिर मोह को बंधन मानने के बंधन से उन्हें मुक्ति जो मिल गई थी.

Serial Story: जुर्म सामने आ ही गया- भाग 1

मेरी तैनाती एक ऐसे कस्बे में थी, जो अब बहुत बड़ा शहर बन चुका है. थाने में रिपोर्ट आई कि एक जवान आदमी की लाश खेत में पड़ी है. उस का बाप और बड़ा भाई 2 आदमियों को साथ ले कर थाने आए थे. उन्होंने मृतक का नाम कादिर बताया. रिपोर्ट लिखवा कर मैं घटनास्थल के लिए चल दिया. कस्बा जहां खत्म होता था, वहां से खेत शुरू हो जाते थे. मार्च का आखिरी सप्ताह था. खेतों में फसल ख

लाश मेंड़ से 7-8 कदम फसल के अंदर पड़ी थी. मेंड़ के पास बहुत सारी फसल टूटी पड़ी थी. इस से साफ लगता था कि वहां 2 या 2 से अधिक आदमियों की लड़ाई हुई थी. वहां से खेत के अंदर 2-4 कदम तक फसल टूटी हुई थी. इस का मतलब था कि लाश को थोड़ी दूर घसीट कर ले जाया गया था. लोगों के वहां जाने से पैरों के निशान मिट गए थे. मेंड़ पर भी कोई निशान नहीं था.

मृतक कादिर की उम्र करीब 28 साल थी. पता चला वह जिले के शहर में एक सरकारी दफ्तर में काम करता था. शहर कस्बे से 21 मील दूर था. मृतक 5 दिनों की छुट्टी पर आया हुआ था. मैं ने लाश उलटपलट कर देखी, कपड़े हटा कर शरीर को देखा, लेकिन कहीं भी कोई चोट का निशान नहीं था.

उस के गले में एक गज की रस्सी पड़ी थी, जिस में एक हलकी सी गांठ बंधी थी. अनुमानत: रस्सी उस के गले में डाल कर पीछे की ओर खींचा गया था. मृतक मर गया तो हत्यारे रस्सी गले में ही छोड़ भागे थे. इस में कोई शक नहीं था कि यह हत्या का मामला था.

मैं ने उस की जेब की तलाशी ली तो उस में करीब 100 रुपए निकले. साथ ही एक फोटो भी जिस में उस लड़के के साथ एक सुंदर सी लड़की का फोटो था. मृतक की एक अंगुली में सोने की अंगूठी और हाथ में घड़ी थी. मैं ने उस के पिता से पूछा तो उस ने बताया कि यह लड़की इस की पत्नी है.

फोटो मृतक की अपनी पत्नी से प्रेम की निशानी थी. इसीलिए वह उस का फोटो अपने बटुए में रखे घूम रहा था. बटुए में पैसे, अंगुली में सोने की अंगूठी और कलाई में घड़ी. ये इस बात का सबूत था कि हत्या लूट के लिए नहीं की गई थी और यह काम रहजनों का भी नहीं था. रहजन कैसे लूटते हैं और जरूरत होने पर कैसे हत्या करते हैं, मैं अच्छी तरह जानता था.

मैं ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और मृतक के मोहल्ले में चला गया. वहां मुझे एक सरकारी रिटायर्ड कर्मचारी के घर बिठाया गया. घर के रखरखाव से पता लगता था कि वह किसी अच्छे शिक्षित व्यक्ति का घर है.

मैं ने उस घर में मौजूद लोगों से वे सब बातें पूछीं जो जरूरी होती हैं. मैं ने उन से कहा, ‘‘क्या आप मेरी मदद करेंगे? मरने वाले के घर वालों का व्यवहार कैसा है, इन की किसी के साथ कोई दुश्मनी है या नहीं, आप मुझे सब कुछ बता दें.’’

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‘‘जी हां, मैं इसी मोहल्ले का रहने वाला हूं. मैं मृतक कादिर को उस के पिता को, उस के भाई को और उस के घर की औरतों को जानता हूं. पूरा परिवार शरीफ है. कादिर भी शरीफ था. उस के घर की औरतें भी बेहद शरीफ हैं.’’

‘‘मृतक की किसी से दुश्मनी थी?’’

‘‘जहां तक मुझे पता है उस की किसी से दुश्मनी नहीं थी. लेकिन अगर उस के दफ्तर में किसी से दुश्मनी हो तो मैं कह नहीं सकता.’’

मैं ने कहा, ‘‘अगर ऐसा होता तो उसकी हत्या उसी शहर में होती, यहां नहीं.’’

‘‘मैं तो जो जानता हूं, आप को बता रहा हूं. यह देखना आप का काम है. एक मामूली सी दुश्मनी तो है लेकिन उस में हत्या नहीं हो सकती. दरअसल, कादिर की पत्नी एक साल से अपने घर बैठी है. ये लोग उसे बुलाते भी नहीं और तलाक भी नहीं देते.’’ ‘‘इस का कारण क्या था?’’

उस ने कहा, ‘‘जहां तक मुझे पता है, कादिर की मां बहुत सख्त है. बहू से हमेशा लड़ती रहती थी. ये लोग कहते हैं कि लड़की ठीक नहीं थी और उन लोगों का कहना है कि लड़की और कादिर में बहुत प्रेम था, जो उस की मां को पसंद नहीं था.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘कादिर के बटुए से जो लड़की का फोटो निकला है, उस से तो यही लगता है कि कादिर को लड़की से बहुत प्यार था. आप बताइए, लड़की का चालचलन कैसा था?’’

‘‘मैं क्या बता सकता हूं,’’ उस ने कहा, ‘‘आप खुद तफ्तीश कर लीजिए. सुनीसुनाई बात तो मैं आप को बता सकता हूं. मैं ने सुना है कि लड़की एक महीने से घर से गायब है.’’

‘‘गायब है? लेकिन मेरे पास उस के गुम होने की रिपोर्ट नहीं आई.’’

‘‘हो सकता है, बात गलत हो. मैं ने कहा न कि मैं सुनीसुनाई बात कह रहा हूं. जब से वह घर बैठी है, तब से तरहतरह की बातें सुनने को मिलने लगीं. सुना है, लड़की को रात में कहीं आतेजाते देखा गया है.’’

उस की सुनीसुनाई बात पर मैं यकीन नहीं कर सकता था, लेकिन एकदो इशारे मिल गए थे, जिन पर मुझे काम करना था. मैं ने मृतक के पिता को बुलाया. मैं ने उस से पहला सवाल यही किया कि क्या आप की किसी से दुश्मनी थी?

उस ने रोते हुए जवाब दिया, ‘‘हमारी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है, साहब.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘देखो, मुझे तुम्हारे बेटे के हत्यारे को पकड़ना है, इसलिए जो बात भी मैं पूछूं, उस का ठीकठीक जवाब देना, कोई बात छिपाना नहीं. यह बताओ, क्या लड़के की ससुराल वालों से तुम्हारा झगड़ा चल रहा है?’’

‘‘उन की बेटी मेरे बेटे के साथ नहीं रह सकी. शादी के 6 महीने तक वह हमारे घर रही, फिर अपने घर चली गई और उस के बाद वापस नहीं आई.’’

‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं कि लड़की को घर बिठाने में किस की गलती है, मुझे केवल इतना बता दो कि क्या लड़की वालों से तुम्हारी दुश्मनी इतनी बढ़ गई कि उन्होंने तुम्हारे बेटे की हत्या कर दी?’’

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उस ने कहा, ‘‘मेरे जवान बेटे की हत्या हो गई है. मैं तो हर किसी को दोषी बता दूंगा. शुरू में तो उस के सालों पर शक था, लेकिन बाद में मैं ने बहुत सोचा कि अगर उन्हें हत्या ही करनी होती तो काफी दिन पहले कर चुके होते, क्योंकि बहू को मायके में एक साल हो गया.’’

‘‘उन के पास कारण तो है, आप उन की बेटी को तलाक देना नहीं चाहते. उन की बेटी जवान है, सुंदर है. हो सकता है, उन्होंने सोचा हो कि लड़के को रास्ते से हटा दें, उस के बाद अपनी बेटी की शादी कर देंगे.’’

‘‘कौन सी बेटी की शादी करेंगे?’’ उस ने कहा, ‘‘वह तो एक महीने से लापता है.’’

‘‘आप को पूरा यकीन है?’’

‘‘सारे मोहल्ले की औरतें कहती हैं, पहले वह आतीजाती दिखाई दे जाती थी, लेकिन अब बिलकुल नहीं दिखती.’’

Serial Story: जुर्म सामने आ ही गया- भाग 5

मैं उसे कमरे में छोड़ कर सलीम को हवालत के एक खाली कमरे में ले गया और उस से पूछा, ‘‘तेरे यार ने सब कुछ बक दिया है. तू तो गुरु आदमी है, तूने यह क्या गलती की, इतने कच्चे आदमी के साथ जा कर उस का काम तमाम कर दिया.’’

पलभर रुक कर मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम ने हमारी बहुत मदद की है. मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं. अगर तुम ने सच नहीं बोला तो थाने में तुम्हारा पूरा रिकौर्ड मौजूद है. मैं उसे अदालत में पेश कर दूंगा और तुम सीधे फांसी चढ़ जाओगे.’’

उस ने कहा, ‘‘मुझे सरकारी गवाह बना लो.’’

‘‘अरे तुम बयान तो दो, यह मेरे ऊपर छोड़ दो. देखो मैं क्या करता हूं.’’

मैं ने उस से कई तरह की बातें कर के उस का बयान ले लिया. उसे संक्षेप में सुनाता हूं.

आबिद और सलीम की दोस्ती थी. सलीम पक्का बदमाश था और आबिद तो बदमाशी में मुंह मारता ही था. उसे घर से पैसे मिल जाया करते थे. वह घर में पैसों की चोरी भी कर लिया करता था. सलीम और दूसरे दोस्तों ने आबिद को जुए का चस्का भी लगा दिया था.

आबिद की बहन ससुराल से आ कर घर बैठ गई थी. उस की सास उस के साथ जो सलूक करती थी, वह घर आ कर सुनाती थी. सुन कर आबिद को गुस्सा आता था. उस ने सलीम से कहा कि वह बदला लेना चाहता है. सलीम उसे रोकता था. कुछ दिन बाद आबिद की बहन घर से गायब हो गई. घर वालों ने इस बात को छिपा कर रखा. लेकिन धीरेधीरे सब को पता लग गया.

आबिद अपने आप को बहुत बड़ा बदमाश समझता था. उसे यह वहम था कि सारा कस्बा उस से डरता है. एक दिन उस की किसी से लड़ाई हो गई तो उस ने उसे ताना दिया, ‘‘जा पहले अपनी बहन को तो ढूंढ, जो तुम्हारे मुंह पर थूक कर अपने यार के साथ चली गई.’’

आबिद को अपनी बहन की बजाय कादिर पर गुस्सा आया. अगर उस की बहन को कादिर अपने घर रहने देता तो वह घर से क्यों भागती. उसे इस बात पर भी गुस्सा था कि कादिर उस की बहन को तलाक नहीं दे रहा था.

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उन्हीं दिलों सलीम को कुछ पैसे की जरूरत पड़ गई. आबिद ने उस के आगे अपने घर का रोना रोया और कादिर की हत्या करने का इरादा जाहिर किया. उस ने सलीम से कहा कि वह उस की मदद करे. सलीम को पैसों की जरूरत थी. उस ने कहा कि अगर उसे एक हजार रुपए मिल जाएं तो उस की जरूरत पूरी हो सकती है.

आबिद ने उस से कहा, ‘‘मैं तुम्हें अभी तो एक हजार नहीं दे सकता. 2-3 दिन में 5 सौ रुपए दे सकता हूं. बाकी बाद में दे दूंगा. तुम कादिर की हत्या करने में मेरी मदद करो. यह रकम तुम से वापस भी नहीं लूंगा.’’

उस जमाने के एक हजार आज के 50 हजार के बराबर होते थे. सलीम तुरंत तैयार हो गया. वे दोनों कादिर की हत्या करने की योजना बनाने लगे. वे चाहते थे कि काम भी हो जाए और उन का नाम भी न आए. दोनों इस काम के लिए शहर गए, जिस से कि कादिर की हत्या वहां की जा सके. सलीम ने यह काम अपने ऊपर ले लिया कि वह शहर जा कर कादिर से उस का पता ले लेगा और फिर आसानी से उस की हत्या उस के घर में ही कर दी जाएगी.

संयोग से कादिर छुट्टी ले कर घर आया और उसे आबिद ने देख लिया. आबिद ने देखा कि कादिर जलील के घर खेतों से हो कर जाता है. हत्या की रात आबिद ने कादिर को जलील के घर जाते देख लिया, उस ने सलीम को बताया और उसे 3 सौ रुपए भी दे दिए. सलीम अपने घर से रस्सी ले आया और दोनों कादिर के रास्ते में घात लगा कर बैठ गए.

कादिर वापस आया तो दोनों धीरेधीरे उस के पीछे चलने लगे, जिस से कि कादिर को शक न हो और वह उन्हें पहचान न सके.

कादिर ने अंधेरे के कारण उन्हें नहीं पहचाना. वह अभी कुछ ही दूर गया होगा कि आबिद ने उसे पीछे से जकड़ लिया और सलीम ने पीछे से उस के गले में रस्सी डाल कर एक गांठ लगा दी. आबिद ने कादिर को छोड़ कर रस्सी का एक सिरा पकड़ लिया. दूसरा सिरा सलीम ने पकड़ा और दोनों ने रस्सी को अपनीअपनी ओर खींचा. कादिर गिरा तो दोनों उसे खींच कर खेतों के अंदर ले गए. सलीम ने उस के दिल और कलाई पर हाथ रख कर देखा, वह मर चुका था.

मैं ने यह बयान आबिद को बताया और उसे चकमा दिया कि मौके का कोई गवाह नहीं है, इसलिए वह बच जाएगा. उस ने भी अपना बयान दे दिया. मैं ने दोनों के बयान जुडीशियल मैजिस्ट्रैट के सामने करा कर दोनों को जुडीशियल लौकअप में भेज दिया.

मैं ने मुकदमा बहुत मेहनत से तैयार किया. कोई भी खाना खाली नहीं छोड़ा. दोनों अभियुक्तों को मृत्युदंड मिला. सैशन में अपील की गई तो वह भी निरस्त हो गई. रहम की अपील भी. दोनों को फांसी दे दी गई.

Serial Story: जुर्म सामने आ ही गया- भाग 2

मैं ने पूछा, ‘‘लड़की के कितने भाई हैं, उस के पिता का आचरण कैसा है?’’

‘‘पैसे के मामले में तो खुशहाल हैं, पिता होशियार आदमी है. काफी असर रखता है. 3 बेटे हैं, 2 बड़े बेटे तो ठीक हैं, लेकिन छोटा ठीक नहीं है. उस की उम्र 16-17 साल है, वह बदमाश लड़कों में बैठता है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘एक बात बताओ, लड़की को कौन तलाक नहीं देना चाहता था, आप, लड़का या उस की मां?’’

‘‘मेरा बेटा कादिर,’’ वह दहाड़ें मार कर रोने लगा, ‘‘वह तो अपनी पत्नी को अपने साथ रखना चाहता था और मैं भी यही चाहता था. लेकिन मेरी पत्नी बहुत खराब है. उस ने कह दिया था कि तलाक देनी ही है. बहुत जिद्दी और झगड़ालू औरत है. मेरे काबू में नहीं है. मैं ने दोनों बेटों से कह दिया था कि इस औरत के साथ रहना है तो आंख और कान बंद कर के रहना.’’

‘‘क्या कादिर के ससुराल वालों को पता था कि कादिर लड़की को रखना चाहता है?’’

उस ने कहा, ‘‘यह बात तो कादिर ही बता सकता था. मुझे तो इतना पता है कि वे लोग तलाक के लिए कहते रहे और मेरी पत्नी जवाब देती रही.’’

‘‘क्या लड़की अब कुछ खराब हो गई थी?’’

‘‘बातें कुछ ऐसी ही सुनी हैं.’’ मृतक के पिता ने कहा, ‘‘यह भी सुना है कि उसे रात को कहीं आतेजाते देखा गया था.’’

‘‘क्या तुम्हें पता है कि वह किस के पास जाती थी?’’

‘‘यह तो पता नहीं किस के पास जाती है लेकिन अब पता करूंगा.’’ उस ने जवाब दिया.

इस बातचीत के बाद मैं ने मृतक के पिता को भेज दिया और लड़की के पिता को बुलाया. उस के आते ही मैं ने उस से सवाल किया कि लड़की कहां है. वह चुप रहा. मैं ने फिर पूछा तो वह इधरउधर देखने लगा. जब मैं ने उसे थानेदार वाले अंदाज में डांट कर पूछा तो वह बोल पड़ा, ‘‘वह तो यहा नहीं है.’’

‘‘मुझ से इज्जत कराना चाहते हो तो सचसच बताओ, वह कहां गई है और किस तरह गई है?’’

‘‘बस जी…’’ उस के कहने के अंदाज से लग रहा था कि वह सब कुछ बताना नहीं चाह रहा था. उस ने कहा, ‘‘एक रात वह सोई थी और सुबह को देखा तो गायब थी. उस की अटैची भी नहीं थी. कुछ जेवर, कीमती सामान, अच्छे कपडे़ और 2 जोड़ी सैंडिल ले गई.’’

‘‘क्या आप जाहिल आदमी हैं, थाने में रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई?’’ ‘‘नहीं…बिलकुल साफ मामला था. अटैची, कपड़े, जेवर, जूते ले जाने का अर्थ था कि वह अपनी मरजी से गई थी. अगर कोई जबरदस्ती ले जाता तो यह सब कुछ न ले जाती. रिपोर्ट अपनी इज्जत के लिए नहीं लिखवाई.’’

‘‘कहीं तलाश किया था? उस की ससुराल जा कर पता करते.’’ मैं ने कहा.

‘‘ससुराल से क्यों पूछते, उन से तो उस की बोलचाल भी बंद थी.’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘आप की बेटी रातों को किस से मिलती थी,’’ मैं ने पूछा, ‘‘आप को पता तो होगा?’’

‘‘नहीं सर, ऐसा नहीं है. यह उसे बदनाम करने के लिए उस की सास द्वारा उड़ाई हुई बात है. इस से वह यह साबित करना चाहती है कि उस का चालचलन खराब था इसलिए उस के बेटे ने उसे घर से निकाल दिया.’’

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उस से मैं ने बहुत बातें पूछीं लेकिन कोई काम की बात पता नहीं लगी. मैं ने लड़की की मां को बुला कर पूछा कि लड़की कहां है तो उस ने भी वही जवाब दिया जो उस के पिता ने दिया था.

पोस्टमार्टम के बाद लाश घर आ गई. मरने का कारण सांस का रुकना लिखा था. सांस रस्सी से रोकी गई थी. मरने का समय रात के 10, साढ़े 10 बजे का लिखा था. मैं ने मुखबिरों का जाल बिछा दिया था. वे अपनी रिपोर्ट ले कर आ रहे थे. कोई कुछ और कोई कुछ बता रहा था, लेकिन एक आदमी ने जो खबर दी, उस से मेरी कुछ हिम्मत बढ़ी.

उस ने बताया कि एक आदमी जो उसी कस्बे में रहता है, मृतक का मित्र था, कस्बे में मनिहार की सब से बड़ी दुकान उसी की थी. वह जवान और सुंदर था. 2 मुखबिरों ने बताया कि उस लड़की को रात के समय उस के घर से निकलते देखा है. उन दोनों मुखबिरों में से एक ने बताया कि एक बार शाम के बाद एक गली में दोनों को खड़े देखा था. जब मैं उधर से गुजरा तो मुझे देख कर वह लड़की तेजी से अपने घर की ओर चली गई.

मैं ने अगले दिन थाने में कई लोगों को बुलवाया, जिन में मृतक की मां और मृतक का वह मित्र भी था. मैं ने उसे अलग बुला कर पूछा कि क्या मृतक की पत्नी तुम से मिलने आती थी?

उस ने कहा, ‘‘जी, मेरे पास आ कर वह क्या करती, मैं तो उसे अपनी बहन मानता था. हां, वह 2-3 बार मेरे पास आई और कहने लगी कि वह अपने पति के घर जाना चाहती है. यह बात आप कादिर को कह दें. आप यकीन करें, मेरी और मृतक की दोस्ती दिल की गहराइयों में उतरी हुई थी. लड़की को जो लोग बदनाम करते हैं, वह सब बकवास है. वह बेचारी तो अपने पति के पास जाने के लिए तड़पती थी.’’

वह इस तरह की बातें करता रहा और अपने मित्र को याद कर के रोता रहा. उस ने बहुत सी बातें कीं लेकिन एक बात का जवाब वह ठीक से नहीं दे सका. मैं ने उस से पूछा था कि लड़की कहां गायब हुई है?

उस ने कहा, ‘‘उस के लापता हो जाने से मैं उसे खराब नहीं कहूंगा. वह इतनी नीच नहीं है कि जिस पति के साथ रहना चाहती थी, उसे धोखा दे. अगर वह जिंदा है तो जरूर वापस आएगी.’’

‘‘क्या बात करते हो,’’ मैं ने कहा, ‘‘वह तो घर से बहुत सामान ले कर गई है. कैसे वापस आएगी?’’

‘‘मुझे उस पर पूरा भरोसा है, वह जरूर आएगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘ये बातें कह कर मुझे शक में डाल रहे हो. साफ कहूं तो मुझे लगता है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रहे हो.’’

‘‘सर, मैं आप को यह बताने वाला था कि कादिर के साले मेरे पास भी आते थे. उन से दोस्ती तो नहीं थी, लेकिन दूर से दुआसलाम थी. फिर अचानक ऐसा न जाने क्या हुआ कि जो भाई भी मिलता, वह कादिर को गालियां देता. वे कहते थे कि हम पूरे खानदान को बरबाद कर देंगे. छोटा भाई तो यहां तक कहता था कि कादिर और उस की मां अब 2-3 दिन के मेहमान हैं. मैं हैरान था कि ये लोग अब ऐसी बातें क्यों कह रहे हैं, जबकि इन की बहन को ससुराल से गए एक साल हो गया है. 2-3 दिन बाद पता लगा कि उन की बहन घर से भाग गई है.’’

‘‘सुना है, कादिर के छोटे साले का गुंडों से याराना है और वह अपने आप को बहुत बड़ा बदमाश समझता है.’’

‘‘आप ने ठीक सुना है, वह बहुत छिछोरा लड़का है.’’

इस आदमी से मुझे बहुत काम की बातें पता चलीं. मैं ने उसे जाने दिया.

मुझे बताया गया कि कादिर की पत्नी की 2 सहेलियां और उन के पिता आए हैं. मैं ने उन्हें बुलाया और उन के पिताओं से कहा कि आप निश्चिंत रहें, ये मेरी बहनों के बराबर हैं. मैं केवल इन से कादिर की पत्नी के बारे में पूछूंगा.

मैं ने एक लड़की को बुलाया और उस से कुछ सवाल किए. फिर दूसरी को बुला कर कुछ सवाल पूछे. दोनों ने एक ही बात बताई. उन्होंने बताया कि वह लड़की बहुत हिम्मत वाली और चरित्रवान थी और अपने पति के अलावा किसी और का नाम नहीं लेती थी.

उन लड़कियों को भेजने के बाद मैं ने कादिर के बड़े साले को बुलाया. मैं ने उस से कहा, ‘‘अपना इकबाली बयान दे दो और मुझ से फायदा हासिल कर लो. मैं तुम्हें बरी भी करवा सकता हूं. मेरी तुम्हारी कोई दुश्मनी नहीं और जो मारा गया वह मेरा रिश्तेदार नहीं लगता था.’’

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उस ने घबरा कर कहा, ‘‘हम ने कोई हत्या नहीं की है. अगर हमें हत्या करनी होती तो उसी दिन कर देते, जिस दिन उस ने हमारी बहन को ले जाने से मना कर दिया था.’’

दूसरे नंबर के भाई ने भी यही बयान दिया. तीसरे नंबर का भाई मेरे कमरे में ऐसे झूमता हुआ आया, जैसे कोई माना हुआ गुंडा हो. मैं ने उसे कुरसी पर बिठा कर कहा, ‘‘तुम्हें देख कर मैं बहुत खुश हुआ. सुना है, तुम्हारी इस शहर में बहुत इज्जत है और दबदबा भी. लोग तुम से डरते हैं.’’

उस ने झूम कर कहा, ‘‘किसी की हिम्मत नहीं जो मेरे सामने बोल सके.’’

Serial Story: जुर्म सामने आ ही गया- भाग 3

मैं ने उस के अंदर इतनी हवा भरी कि वह गुब्बारे की तरह फूलता चला गया. उस का नाम आबिद था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘एक बात बताओ, तुम्हारी बहन कहां चली गई?’’

उस ने कहा, ‘‘अगर उस का पता लग जाता तो क्या वह आदमी और मेरी बहन जिंदा रहते?’’ ‘‘तुम्हारी यह बात सुन कर मुझे बहुत खुशी हुई,’’ मैं ने उस से इस तरह बात की जैसे मैं थानेदार नहीं उस का दोस्त हूं. मैं ने आगे कहा, ‘‘तुम्हारे जैसे भाई अपनी इज्जत के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं करते. पर एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि तुम्हारे जीजा को किस ने मारा?’’

‘‘यह तो मैं भी नहीं बता सकता. वैसे एक बात है, ऐसे आदमी का अंत ऐसा ही होना चाहिए था. किसी की बहनबेटी का घर उजाड़ देना ठीक नहीं है. पुलिस और कानून के पास इस की भले ही कोई सजा न हो, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि ऐसे आदमी का कुछ न किया जा सके.’’

‘‘तुम ने उस की मां को क्यों माफ कर दिया, उसे भी उड़ा देना चाहिए था. असली कुसूरवार तो वही है.’’ मैं ने कहा.

‘‘अब उसी की बारी है,’’ उस ने ऐसे कहा जैसे नशे में हो.

‘‘बरी कराना मेरा काम है,’’ मैं ने उस के कंधे पर हाथ रख कर दोस्तों की तरह कहा.

वह अपना हाथ बढ़ा कर मेरा हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘वादा रहा.’’

‘‘तुम वास्तव में शेर हो, अब देखना कादिर की हत्या से मैं तुम्हें कैसे बरी कराता हूं. एक दिन की भी सजा नहीं होने दूंगा. मैं भी 2 बहनों का भाई हूं. तुम ने मेरा दिल खुश कर दिया.’’

फिर मैं ने उस की ओर झुक कर उस के कान में कहा, ‘‘वैसे तुम अकेले थे या…’’

‘‘नहीं,’’ उस के मुंह से एकदम निकल गया, ‘‘मैं अकेला नहीं था.’’

यह कह कर वह एकदम चौंक पड़ा, जैसे नींद से जाग गया हो. वह घबरा गया. उस ने दाएंबाएं देख कर मेरी ओर देखा. उस के चेहरे का रंग पीला पड़ गया था. फिर आहिस्ताआहिस्ता उस के मुंह से आवाजें निकलने लगीं, ‘‘मैं ने उस की हत्या नहीं की…नहीं जी…आप यकीन करें, खुदा कसम मैं ने किसी की हत्या नहीं की.’’

मैं चुपचाप उस के मुंह की ओर देख रहा था. उस के मुंह से ऐसे शब्द निकल रहे थे, जिस का कोई अर्थ नहीं था.

थानेदार के सामने अपराध स्वीकार करने की कोई वैल्यू नहीं होती. क्योंकि बाद में लोग मजिस्ट्रैट के सामने अपने बयान से पलट जाते हैं. केस के लिए सुबूत और गवाहों की जरूरत होती है.

‘‘तुम बोलबोल कर थक गए हो,’’ मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम इकबाली बयान दे दो. मैं तुम्हें साफ बचा लूंगा.’’

‘‘मैं ने कहा न,’’ बड़ी मुश्किल से उस के मुंह से शब्द निकले, ‘‘आप मेरे ऊपर विश्वास करें, मैं ने कोई हत्या नहीं की.’’

‘‘तुम ने नहीं की तो तुम्हारे किसी दोस्त ने की होगी. तुम ने तो केवल उस के हाथ पकड़े होगे, गले में रस्सी तो तुम्हारे दोस्त ने डाली होगी. तुम उस का नाम बता दो, मैं तुम्हें सरकारी गवाह बना दूंगा और तुम छूट जाओगे.’’

वह अपने आप को निर्दोष बताने में लगा रहा. मैं ने उसे चेतावनी दी कि अगर उस ने अपराध स्वीकार नहीं किया तो फिर मैं बहुत बुरा सलूक करूंगा.

मैं ने एक कांस्टेबल को बुला कर कहा कि उसे हवालात में बंद कर दे. वह हवालात में जाने को तैयार नहीं था. मेरे कमरे में कूदकूद कर अपने आप को छुड़ा रहा था. कांस्टेबल उसे घसीट कर हवालात में ले गया.

थाने में जितने लोग थे, मैं ने उन्हें जाने के लिए कह दिया. मैं ने एक कांस्टेबल और एएसआई को यह पता करने के लिए लगा दिया कि आबिद के कौनकौन दोस्त हैं. मैं ने उन से कहा कि मैं घर जा रहा हूं और रात को 11 बजे आ कर आबिद से पूछताछ करूंगा.

मैं घर चला गया. अभी बैठा ही था कि एक कांस्टेबल ने आ कर बताया कि वह लड़की अपने घर आ गई है और सीधी मृतक के घर गई है. वहां जा कर उस ने रोनापीटना शुरू कर दिया है. उस ने जाते ही अपनी सास को गालियां देनी शुरू कर दीं. औरतों ने उसे पकड़ लिया.

मैं ने कांस्टेबल से कहा कि तुम लड़की के बाप के पास जाओ और उसे कहो कि लड़की को तुरंत थाने में पेश करे. मैं खाना खा कर थाने पहुंच कर उस लड़की की प्रतीक्षा करने लगा.

कुछ देर बाद लड़की मेरे कमरे में लाई गई. उस ने अपने मुंह पर हाथ मारमार कर चेहरा लाल कर लिया था. बालों को नोचा था, इसलिए बाल बिखरे हुए थे. आंखें लाल हो रही थीं, मैं ने उस के बाप और भाई को बाहर भेज दिया. मैं ने उसे कुरसी पर बिठा कर पानी पिलाया और उस के पति के मरने का अफसोस जताया. मैं ने उसे हर तरह से सांत्वना दी.

‘‘न थाने से डरो न मुझ से.’’ मैं ने कहा, ‘‘समझो, तुम मेरी छोटी बहन हो. मैं तुम से केवल यह पता करना चाहता हूं कि तुम्हारे पति की हत्या किस ने की है.’’

‘‘उस की मां ने…’’ उस ने मेरी ओर देखते हुए कहा.

यह पहली वह थोड़ा पानी पी कर बोली, ‘‘उस चुड़ैल ने अपने ही बेटे को खा लिया है.’’

मैं ने उसे बोलने दिया ताकि उस के दिल का बोझ हलका हो जाए.

उस ने आगे कहा, ‘‘मैं तो कहती हूं, मेरे पति की मेरे बाप और मेरे भाइयों ने भी हत्या की है. मैं उन से कहती थी कि जिस तरह से कादिर का बड़ा भाई अपने घर से अलग हो कर उसी हवेली में रह रहा है, उसी तरह कादिर को भी मैं अलग कर लूंगी. लेकिन मेरा बाप और भाई कहते थे कि कादिर पर यकीन मत करो, वह अपनी मां जैसा है. वह एक कहता है तो तुम 10 सुनाओ. आप नहीं जानते कादिर को. वह मुझ से कितना प्यार करता था.’’ इतना कह कर वह इतना रोई कि मुझे भी हिला दिया.

कुछ देर बाद जब उस ने रोना बंद किया तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘यह बताओ, तुम चली कहां गई थी?’’

‘‘अपने पति के पास गई थी.’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘क्या?’’

इस के बाद उस ने जो बयान दिया, वह अपने शब्दों में सुनाता हूं.

उस लड़की का नाम खदीजा था. उस के मांबाप ने उसे घर बिठा लिया था. कादिर खदीजा को तलाक नहीं देना चाहता था और न ही वह तलाक लेना चाहती थी. कादिर की मां उसे तंग करने के लिए तलाक नहीं दिलवाना चाहती थी. लेकिन कादिर और उस की पत्नी खदीजा की सोच कुछ और थी. वे एकदूसरे से अलग हो कर तड़प रहे थे.

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कुछ महीने बाद कादिर ने अपने दोस्त जलील से बात की. जलील ने अपनी पत्नी की मदद से दोनों को मिलवाने का प्रबंध कर दिया. जलील की पत्नी ने खदीजा से जा कर कहा कि कादिर उस से मिलना चाहता है. वह उस के घर आ गई. उस ने एक कमरे में दोनों को मिलवा दिया.

कादिर बात थी, जो उस के मुंह से निकली थी. वह चुपचाप बैठी फटीफटी आंखों से मुझे देख रही थी.

जिस शहर में काम करता था, वह उन के कस्बे से 20-22 किलोमीटर दूर था. रविवार की छुट्टी हुआ करती थी. कादिर हर शनिवार की शाम को घर आ जाता था और वहां से जलील के घर चला जाता, जहां खदीजा से उस की मुलाकात हो जाती थी. जलील की पत्नी ने खदीजा से गहरी दोस्ती कर ली थी. खदीजा के मातापिता जलील की पत्नी पर विश्वास करते थे. वह हर शनिवार को आ कर उन से कह कर खदीजा को ले जाया करती थी.

Serial Story: जुर्म सामने आ ही गया- भाग 4

जलील और उस की पत्नी ने खदीजा के मिलने का प्रबंध तो कर दिया था, लेकिन इस में खतरा यह था कि कभी न कभी यह राज खुल सकता था. इसलिए वह उन्हें एक सप्ताह छोड़ कर मिलवाती थी.

एक दिन कादिर ने यह फैसला किया कि खदीजा अपना घर छोड़ कर हमेशा के लिए आ जाए और कादिर उसे अपने सा िशहर ले जा कर रख ले. वे दोनों फिर कभी इधर नहीं आएंगे. और अगर उन के मातापिता को पता लग गया तो वह इस शर्त पर वापस आएंगे कि आपसी झगड़े खत्म करो और हमें चैन से रहने दो.

एक रात कादिर शहर से आया. उस के घर वालों को पता नहीं था. खदीजा ने दिन के समय अपने वे कपड़े और जेवर जो उस ने अपने साथ ले जाने थे, चोरीचोरी एक अटैची में डाल लिए. रात को जब सब सोए हुए थे, वह चुपके से घर से निकल गई. कादिर और जलील खेत में खड़े थे. वे दोनों जलील के घर गए और सुबहसुबह कादिर और उस की पत्नी शहर जाने वाली बस में सवार हो कर शहर चले गए. वहां कादिर ने एक मकान किराए पर लिया हुआ था. वहां दोनों चैन से रहने लगे.

कादिर ने किसी वजह से दफ्तर से 4-5 दिन की छुट्टी ले ली थी. उस के घर का कोई काम था. वह खदीजा को शहर में अकेला छोड़ आया था और उस ने अपने 2 मित्रों से घर की देखभाल के लिए कह दिया था. खदीजा ने मुझे बताया कि कादिर ने तय किया था कि वह एक महीने बाद अपने मातापिता को बता देगा कि खदीजा उस के पास है और वह कभी वापस नहीं आएगा.

‘‘क्या तुम कादिर की हत्या की बात सुन कर आई हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां जी,’’ उस ने कहा, ‘‘जलील भाईजान ने अपने एक आदमी को यह कह कर कादिर के दफ्तर भेजा था कि वह कादिर के दोस्त को कह दे कि उस की हत्या हो गई है. उस दोस्त ने घर आ कर मुझे बताया और उसी ने मुझे बस में बिठाया था. अगर किसी को शक है कि मैं झूठ बोल रही हूं तो आप किसी को मेरे साथ भेज दें, मैं उसे वह मकान दिखाऊंगी जिस में हम दोनों रहते थे. कादिर के और मेरे कपड़े व जेवर अभी भी उस मकान में पड़े हैं. चलिए, मैं चल कर दिखाती हूं.’’

यह लड़की जिसे मैं कुछ और समझ रहा था, मेरी नजरों में बहुत ऊंचे कैरेक्टर की हो गई. मैं ने एक कांस्टेबल को जलील को लाने के लिए भेज दिया.

मैं ने खदीजा से पूछा, ‘‘तुम्हारा शक किस पर है? ऐसा तो नहीं कि तुम्हारे भाइयों को तुम्हारे जाने का पता लग गया हो और उन्होंने इस में अपनी बेइज्जती समझी हो.’’

‘‘मैं क्या बताऊं, यह हो तो सकता है लेकिन इस के लिए पहले वे मेरे पास आते और पूरी बात पता करते, मुझ से घर चलने के लिए कहते.’’

मैं ने उसे यह नहीं बताया कि उस का छोटा भाई हवालात में बंद है. मैं ने खदीजा से और कुछ नहीं पूछा और उस के बाप को बुला कर खदीजा को उस के हवाले कर दिया. मैं ने उस से कह दिया कि यह अपने पति के घर गई थी, लोगों से कह दो कि इसे बदनाम न करें.

जलील मेरे पास आया और मैं ने उस से पूछा कि तुम ने खदीजा के बारे में क्यों नहीं बताया? क्या तुम नहीं जानते कि तफ्तीश के दौरान कोई भी बात पुलिस से नहीं छिपाना चाहिए?

उस ने कहा, ‘‘मैं जानता था या नहीं, मैं ने यह बात छिपाई. आप जो भी चाहें मेरे खिलाफ कानूनी काररवाई कर सकते हैं. मैं ने अपना फर्ज पूरा किया है, आप अपना फर्ज पूरा करें.’’

मुझे उम्मीद थी कि वह डर जाएगा, लेकिन वह तो बहुत निडर निकला. मैं ने उस से पूछा कि उस ने कौन सा फर्ज पूरा किया है.

वह बोला, ‘‘दोस्ती का फर्ज पूरा किया है. मुझे कादिर ने कुछ भी बताने से मना कर दिया था. खदीजा ने भी मना कर रखा था. खदीजा मेरी बहन लगती है, उस से किया हुआ वादा मैं नहीं तोड़ सकता था. मैं ने आप की नजरों में अपराध किया है, आप जो चाहे, मुझे सजा दे सकते हैं.’’

वैसे उस ने कोई अपराध नहीं किया था, क्योंकि खदीजा के गुम होने की मेरे पास कोई रिपोर्ट नहीं आई थी. इसलिए अगर उस ने कोई बात छिपाई तो वह कानून की नजरों में अपराध नहीं थी. मैं तो उस से खदीजा के बयान की पुष्टि चाहता था.

जलील ने कहा, ‘‘मैं आप को एक बात बताता हूं. जिस समय कादिर की हत्या हुई थी, उस से आधे घंटे पहले एक आदमी ने खदीजा के भाई को एक आदमी के साथ खेत की मेंड़ पर बैठे देखा था. उन दोनों की उस आदमी के साथ दुआसलाम भी हुई थी. कादिर उस रास्ते से मेरे घर आया करता था. गलियों से आने में रास्ता लंबा पड़ता है. आप चाहें तो उस आदमी को बुला सकते हैं.

‘‘जो आदमी आबिद के साथ बैठा था, मैं उसे जानता हूं. वह एक बार का सजायाफ्ता सलीम था. उस ने किसी को चाकू मारा था. वह तो बच गया लेकिन चाकू मारने वाले को दफा 307 में 3 साल की सजा हुई थी.’’

मैं ने एक कांस्टेबल को सलीम को बुलाने के लिए भेजा.

मैं ने आबिद को हवालात से निकलवा कर अपने कमरे में बुलाया. उसे बिठा कर मैं ने कहा, ‘‘हां भई आबिद, कुछ सोचा? अपराध स्वीकार कर लो, फायदे में रहोगे.’’

उस ने मना कर दिया और छोड़ने के लिए मिन्नतें करने लगा.

मैं ने उस से कहा, ‘‘अच्छा यह तो बताओ, सलीम के साथ खेत में बैठे तुम क्या बातें कर रहे थे?’’

उस ने कहा, ‘‘कब?’’

‘‘अपने जीजा की हत्या करने से आधे घंटा पहले.’’

‘‘यूं ही बातें कर रहे थे.’’

‘‘इतनी ठंडी रात में तुम्हें बात करने के लिए वही जगह मिली थी. लोग घरों में दरवाजेखिड़की बंद कर के लिहाफ में लेटे हुए थे. तुम दोनों को गरमी लग रही थी. सलीम से क्या बातें हुई थीं, सोच लो अगर झूठ बोलोगे तो मैं सलीम से पूछ लूंगा. फिर तुम्हारा झूठ खुल जाएगा.’’

‘‘सच्ची बात है जी, मैं अपनी बहन और जीजा के बारे में बात कर रहा था. उस ने हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी थी. सलीम मेरे जीजा और उस की मां को गालियां दे रहा था.’’

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‘‘फिर कादिर आ गया और तुम्हारी बातें रुक गईं.’’

‘‘कादिर नहीं आया था जी,’’ उस ने कहा.

मैं ने उस के मुंह पर जोरदार थप्पड़ मारा. वह रोने लगा. मैं उस से पूछता रहा, वह झूठ बोलता रहा. मैं हर झूठ पर उसे थप्पड़ मार रहा. मैं ने उस से कहा कि पिटाई के और भी बहुत से तरीके हैं मेरे पास. अगर वह पिटाई से मर भी गया तो उस की लाश गायब कर दी जाएगी.

एक कांस्टेबल ने आ कर बताया, ‘‘सलीम आ गया है.’’

मैं ने उसे अंदर बुलाया और आबिद से पूछा, ‘‘यही था न उस वक्त तुम्हारे साथ?’’

उस ने हां कर दी.

Serial Story- अपनी ही चाल में फंस गया अकबर: भाग 1

प्रस्तुति: कलीम उल्लाह

-ए. सलीम वसला

अकबर ने बीटेक (कंप्यूटर साइंस) करने के बाद सोचा था कि उसे जल्दी ही कोई न कोई प्राइवेट जौब मिल जाएगी और उस के परिवार की स्थिति सुधर जाएगी. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. 10 महीने तक कई औफिसों में इंटरव्यू देने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली. ऊपर से घर की जमापूंजी भी खर्च हो गई.

अकबर के परिवार में उस की मां के अलावा 2 छोटे भाई जावेद और नवेद थे, जिन की उम्र 16 और 12 बरस थी. वे भी सरकारी स्कूल में पढ़ रहे थे. घर का खर्च चलाने के लिए अब मां को अपने जेवर बेचने पड़ रहे थे. ऐसी स्थिति में अकबर समझ गया कि अब उसे कुछ न कुछ जल्दी ही करना पड़ेगा, वरना परिवार के भूखों मरने की नौबत आ जाएगी.

अकबर अपने ही विचारों में डूबा सड़कें नाप रहा था, तभी किसी ने उस का नाम ले कर पुकारा. उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो चौंक पड़ा, ‘‘अरे इकबाल, तुम!’’ दोनों गर्मजोशी से गले मिले.

इकबाल हाईस्कूल में उस का मित्र बना था और 12वीं कक्षा तक साथ था. उसे पढ़नेलिखने में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. मगर अकबर को अपने पिता के कारण बीटेक में दाखिला लेना पड़ा. मगर जब अकबर बीटेक के तीसरे साल में था, तभी उस के पिता की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई.

अकबर के पिता एक प्राइवेट औफिस में एकाउंटेंट थे. उन के मरने के बाद जो पैसा मिला, वह अकबर की पढ़ाई में लग गया था.

12वीं कक्षा पास करने के बाद इकबाल कहां चला गया, उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं हो पाई. और आज 5 साल बाद इकबाल उस के सामने था.

अकबर के बदन पर जहां मामूली कपड़े थे, वहीं इकबाल ने बढि़या सूट पहन रखा था. उस के रंगढंग बदल गए थे. दोनों एक होटल में बैठ कर बातें करने लगे, एकदूसरे को अपनेअपने बारे में बताने लगे.

अकबर ने कहा, ‘‘बीटेक करने के बाद मैं एक औफिस से दूसरे औफिस में धक्के खा रहा हूं. यही नहीं, मेरी मां की तबीयत खराब रहती है, उन्हें शुगर की बीमारी है. मां ने एक कंपनी में 2 लाख रुपए फिक्स करा दिए थे और 4 साल बाद 4 लाख रुपए मिलने थे.

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‘‘लेकिन वह कंपनी साल भर बाद ही लोगों से करोड़ों रुपए ले कर चंपत हो गई. इस घटना ने मुझे बड़ा विद्रोही बना दिया है. घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चल रहा है. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं?’’

‘‘मैं ने भी तेरी तरह बहुत धक्के खाए हैं. कुछ नहीं मिलता इन नौकरियों में. बस, घर की दालरोटी चल सकती है.’’ इकबाल के स्वर में कठोरता शामिल हो गई थी, ‘‘अगर तुम शान से जिंदगी बिताना चाहते हो तो कल शाम को मुझ से मिलो.’’

फिर उस ने अखबार के एक टुकड़े पर कोई पता लिख कर दे दिया.

अकबर ने वह पर्ची ले कर अपनी जेब में रख ली. इकबाल आगे बोला, ‘‘मेरे पास एक औफर है. अगर मंजूर हो तो वहीं बता देना और अगर न हो तो तुम अपने रास्ते मैं अपने रास्ते.’’ उस के बाद अकबर और इकबाल अपनेअपने घरों की ओर चल पड़े.

अगले दिन इतवार था. अकबर को कहीं इंटरव्यू नहीं देना था इसलिए उस ने इकबाल को आजमाने का फैसला किया और उस के बताए हुए पते पर जा पहुंचा. मकान का गेट इकबाल ने ही खोला और उसे अंदर ले गया. चाय तैयार थी.

चाय का कप अकबर को देने के बाद इकबाल ने अपनी बात शुरू की, ‘‘देखो अकबर, मैं जानता हूं कि तुम एक शरीफ आदमी हो मगर अब शराफत का जमाना नहीं रहा. मैं ने भी बहुत धक्के खाए हैं तुम्हारी तरह.

‘‘शायद जिंदगी भर धक्के ही खाता रहता, अगर मुझे नासिर भाई न मिलते. क्या शानदार दिमाग है उन के पास. यकीन करो, मैं उन के साथ रह कर हर महीने एक लाख रुपए कमाता हूं और कभीकभी उस से भी ज्यादा.’’

इकबाल की बात सुन कर अकबर हैरान रह गया, ‘‘एक लाख…वह कैसे?’’

‘‘हम बड़े काम में हाथ डालते हैं. गाडि़यां, बाइक्स छीनते हैं. बड़ीबड़ी दुकानों में डकैती डालते हैं. बंगलों के अंदर घुस जाते हैं. एक महीने में 2-3 वारदातें भी कर लीं तो एक लाख आसानी से बन जाता है,’’ इकबाल बोला.

अकबर सन्न रह गया. वह जानता था कि बेरोजगारी के इस दौर में अपना हक छीनना ही पड़ता है, मगर इकबाल तो उस से भी ऊपर की चीज था. वह बोला, ‘‘मगर यार, इस में तो बहुत खतरा है. पकड़े जाने का और जान जाने का भी.’’

‘‘मेरी जान, खतरे के बगैर कोई खेल नहीं खेला जाता. वैसे हमारी तरह के लोग इसलिए पकड़े जाते हैं कि पुलिस को मुखबिरी हो जाती है या कोई साथी गद्दारी कर जाता है. लेकिन यहां अपने साथ ऐसा कुछ नहीं होता है. क्योंकि नासिर भाई पुलिस में हैं. वे सब संभाल लेते हैं.

‘‘पहले हम सिर्फ 2 लोग थे मगर अब हर वारदात में एक ऐसा बंदा जरूर रखते हैं जो अपने काम में पारंगत हो. जैसे पिछली बार हमारे साथ तिजोरियों का लौक तोड़ने वाला एक माहिर आदमी था,’’ इकबाल ने कहा.

‘‘तो ऐसा एक बंदा स्थायी रूप से क्यों नहीं रख लेते,’’ अकबर ने सुझाव दिया.

‘‘नहीं, हम ऐसा नहीं करते. हमारे ग्रुप की परंपरा है कि एक बंदा सिर्फ एक वारदात में साथ देता है. इस बार खेल बड़ा है, इसलिए भरोसे के आदमी की जरूरत है. हमें कंप्ूयटर का एक माहिर आदमी चाहिए.

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‘‘तुम ने कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया है. अगर तुम हमारे साथ मिल जाओ तो हमारा काम बड़ी आसानी से हो सकता है. 3-4 करोड़ का खेल है. अगर कामयाब रहे तो 50 लाख तेरे, 50 लाख मेरे और बाकी नासिर

भाई के. अगर मंजूर है तो बताओ.’’ इकबाल बोला.

50 लाख की बात सुन कर अकबर की आंखें फैल गईं. अगर उसे कोई छोटीमोटी नौकरी मिल भी गई तो गुजारा भर ही हो पाएगा. और कहां 50 लाख, वह कुछ सोचता हुआ बोला, ‘‘मुझे कुछ वक्त दो.’’

‘‘हां, अभी काफी वक्त है. यह काम एक महीने बाद करना है और ये पैसे रख लो.’’ इकबाल ने 10-15 हजार रुपए निकाल कर अकबर की जेब में ठूंस दिए. फिर वह अकबर से बोला, ‘‘पैसों की परेशानी से दूर रह और अपना पहनावा ठीक कर. लेकिन बात बाहर न जाने पाए.’’

अकबर उस के स्वर में छिपी धमकी को समझ गया था. उस ने ‘हां’ में सिर हिलाया. कुछ देर बाद वह ढेरों सोचों को दिमाग में समेटे अपने घर की ओर चल पड़ा.

घर पहुंच कर अकबर ने एक फैसला कर लिया था. अकबर ने मां को कुछ पैसे देते हुए कहा कि उस ने पार्टटाइम जौब जौइन कर ली है. उस के दिए पैसों से घर के हालात में सुधार हुए. मां के चेहरे पर छाए उदासी के बादल छंटने लगे. 3 दिन तक सोचविचार करने के बाद अकबर ने इकबाल के औफर पर हामी भर दी. इकबाल खुश हो गया.

मगर इकबाल का औफर इतना आसान नहीं था. फिर भी भूखों मरने से तो अच्छा ही था. वह इकबाल का साथ दे और अपने हालात को सुधारे.

Serial Story- अपनी ही चाल में फंस गया अकबर: भाग 2

प्रस्तुति: कलीम उल्लाह

-ए. सलीम वसला

अगले दिन सबइंसपेक्टर नासिर अकबर से मिलने उसी घर में आया. वह आम पुलिस वालों की तरह हट्टाकट्टा था और उस के माथे पर जख्म का निशान था. नासिर के मिजाज में एक अजीब सी सख्ती थी, मगर बात करने का अंदाज नरम था. उस की बातें सुन कर अकबर के अंदर समाया भय लगभग खत्म हो गया था.

नासिर ने पूरी प्लानिंग इकबाल के सामने रखते हुए कहा, ‘‘शहर के मेनरोड पर प्राइवेट बैंक की मेन ब्रांच है. यह ब्रांच इसलिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि यहां 3 शुगर मिल्स की पेमेंट जमा होती है. गन्ने के सीजन में यहां हर माह 3 से 5 करोड़ रुपए जमा होते हैं.

रकम के हिसाब से यहां सिक्योरिटी भी काफी सख्त है. शहर की एक एजेंसी उस बैंक को सिक्योरिटी उपलब्ध करा रही है. बैंक में 3 सिक्योरिटी गार्ड हैं, 2 बाहर और एक अंदर. उन पर काबू पाना मुश्किल नहीं है.

असल समस्या है उस एजेंसी के सिक्योरिटी कैमरे और अलार्म सिस्टम. उन्होंने बैंक के एक कमरे को विधिवत अपना सिक्योरिटी रूम बना रखा है, जहां एजेंसी की एक कर्मचारी लड़की काम करती है. मैं ने उसे खरीद लिया है,’’ नासिर ने गर्व के साथ कहा और आवाज दी, ‘‘शीजा.’’

थोड़ी ही देर बाद कमरे में एक मौडर्न लड़की दाखिल हुई. उस ने जींस पर एक हलकी सी शर्ट पहन रखी थी, जिस में उस के शरीर की कयामत बड़ी मुश्किल से कैद नजर आती थी. अकबर ने चौंक कर देखा. शीजा ने मुसकराते हुए इकबाल और अकबर से हाथ मिलाया.

जब शीजा अपनी कुरसी पर बैठ गई तो अकबर ने पूछा, ‘‘नासिर भाई, मेरा एक सवाल है. जब आप के पास शीजा मौजूद है तो फिर मुझे साथ मिलाने की क्या जरूरत थी? काम तो मेरा भी वही है जो शीजा करेगी.’’

अकबर की बात सुन कर नासिर मुसकरा दिया और बोला, ‘‘यार, तुम्हें हमारे ग्रुप की परंपरा तो बताई होगी इकबाल ने. हमारे साथ हर बार अपने काम का माहिर एक बंदा जरूर रहता है और रही शीजा की बात तो वह सिर्फ तुम्हारी मदद करेगी, असल काम तो तुम्हीं करोगे यानी पूरे सिक्योरिटी सिस्टम को नाकारा बनाओगे.

‘‘अगर शीजा यह काम करती है तो जाहिर है कि पुलिस वाले सब से पहले उसी पर हाथ डालेंगे. घटना के बाद इसे कहां हमारे साथ फरार होना है. तुम लोग रिकौर्डिंग गायब करोगे और सिक्योरिटी सिस्टम को नाकारा बनाओगे. बाकी सिक्योरिटी गार्ड्स के लिए मेरे पास एक प्लान है.’’

तभी इकबाल बोल पड़ा, ‘‘मगर भाई, हम नकाब पहन कर जाएंगे तो फिर सिक्योरिटी कैमरों की क्या समस्या?’’

‘‘यार इकबाल, तुम्हें याद नहीं कि पिछली वारदात में तुम्हारा नकाब एक आदमी ने खींच लिया था. इस के अलावा 2-3 वारदातों के दौरान सिक्योरिटी कैमरों में हमारी चालढाल भी रिकौर्ड हुई. इसलिए यह काम करना पड़ेगा. शीजा, तुम बताओ तुम्हारी सिक्योरिटी एजेंसी अपने गार्ड्स को कितनी तनख्वाह देती है?’’ सबइंसपेक्टर नासिर ने इकबाल की वो बात याद दिलाने के बाद शीजा से पूछा.

‘‘ज्यादा से ज्यादा 20-22 हजार.’’ वह मुंह बना कर बोली.

‘‘…इस का मतलब है कि उन्हें आसानी से खरीदा जा सकता है,’’ नासिर ने कहा.

‘‘बिलकुल, बाहर वाले दोनों गार्ड्स खरीदे जा सकते हैं, क्योंकि वे उस नौकरी से तंग हैं. हां, अंदर वाला गार्ड ईमानदार बंदा है, उसे खरीदना मुश्किल है,’’ शीजा के पास पूरी जानकारी थी.

‘‘उस पर हम लोग काबू पा लेंगे,’’ इकबाल बोला.

यह मीटिंग लगभग एक घंटा चली. उन्होंने अपनी योजना के हर पहलू पर ध्यान दिया. उस के बाद वे इस वादे के साथ अपनेअपने घरों की ओर चल दिए कि वे इस प्लान की पूरी तरह रिहर्सल करेंगे. फिर अगले 20 दिन अकबर, इकबाल, शीजा और नासिर उस घर में इकट्ठे हो कर रोजाना एक घंटा अपने काम में लगे रहते.

इस दौरान नासिर ने बैंक के बाहर वाले दोनों गार्डों को अपने साथ मिला लिया था. वह एक चालाक पुलिस वाला था और अपना हर काम बखूबी निकालना जानता था. ठीक एक महीने बाद आखिर वह दिन आ पहुंचा, जिस की तैयारी हो रही थी.

सर्दियों का सूरज अपनी नर्म धूप लिए चमक रहा था. प्राइवेट बैंक की उस मेन ब्रांच में लंच का समय हो गया था लेकिन आज दोनों गार्ड्स गेट पर नहीं थे. थोड़ी देर पहले एक गार्ड खाना लेने के लिए चला गया था जबकि दूसरा गार्ड वाशरूम में था.

ठीक उसी समय एक सुजुकी कार बैंक के गेट पर आ कर रुकी. उस में सवार तीनों लोगों ने अपने चेहरों पर नकाब चढ़ा रखी थी और उन के हाथों में आधुनिक हथियार थे. वे दौड़ते हुए आगे बढ़े.

बैंक के अंदर घुसते ही उन्होंने गेट बंद कर लिया. अंदर मौजूद सिक्योरिटी गार्ड्स ने जब उन्हें रोकने की कोशिश की तो नासिर द्वारा चलाई गई गोली उस की गरदन में सुराख कर गई. नासिर मैनेजर के औफिस की ओर बढ़ा जबकि इकबाल कैशियर के काउंटर की तरफ बढ़ गया था.

अकबर दौड़ता हुआ कंप्यूटर रूम की ओर बढ़ा. वहां शीजा के साथ एक अन्य आदमी बैठा था. उस ने उस के सिर पर पिस्तौल के दस्ते का वार कर के उसे बेहोश कर दिया. कुछ देर बाद अकबर और शीजा ने सभी सिक्योरिटी कैमरों और अलार्म को निष्क्रिय कर दिया और उन की रिकौर्डिंग नष्ट कर दी.

इस के बाद अकबर ने शीजा के सिर पर पिस्तौल के दस्ते का वार कर के उसे भी बेहोश कर दिया. ठीक 10 मिनट बाद जब तीनों लोग सफलतापूर्वक डकैती डाल कर बाहर निकले तो नासिर के शिकंजे में मैनेजर की गरदन थी जबकि अकबर और इकबाल ने नोटों से भरे बैग उठा रखे थे. नासिर की पिस्टल की नाल मैनेजर की कनपटी से लगी हुई थी.

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बाहर के सिक्योरिटी गार्डों ने उन्हें देखते ही अपनी बंदूकें फेंक दीं. अगर वे गोली चलाते तो मैनेजर की जान जा सकती थी. तीनों लोग हवाई फायर करते हुए बाहर निकले.

मैनेजर को गाड़ी में बिठा कर इकबाल ने गाड़ी आगे बढ़ा दी फिर

2-3 किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद उन्होंने एक सुनसान जगह पर मैनेजर को गाड़ी से धक्का दे कर गिरा दिया और आगे बढ़ चले.

गाड़ी चोरी की थी, जो उन लोगों ने शहर से बाहर पहुंच कर एक जंगल में खड़ी कर दी. फिर आगे का रास्ता तीनों ने अलगअलग तय किया. नोटों के दोनों बैग नासिर अपने साथ ले गया था.

बैंक में पड़ी डकैती का मामला 3 हफ्तों बाद ठंडा पड़ गया. डकैतों के चेहरे पर नकाब होने के कारण कोई भी आदमी उन्हें नहीं पहचान पाया. इस के अलावा डकैतों ने ऐसा कोई सबूत घटनास्थल पर नहीं छोड़ा था कि उन का सुराग लगाया जा सकता.

वैसे जांच करने वाले पुलिस इंसपेक्टर ने बाहर के दोनों सिक्योरिटी गार्डों पर शक जाहिर किया था, मगर वह उन से कुछ उगलवा नहीं सका.

ठीक एक महीने बाद जाड़े की शुरुआत हो गई थी. ऐसी ही एक शाम  को अकबर उस किराए के मकान में अपना हिस्सा लेने के लिए पहुंचा, जो नासिर और इकबाल का अड्डा था. यह कार्यक्रम भी पहले से तय था.

दोनों लोग कमरे में मौजूद थे. उन्होंने अकबर का स्वागत बड़ी गर्मजोशी से किया. वे खूब खापी कर बैंक डकैती की कामयाबी का जश्न मना रहे थे.

उन्होंने अकबर से भी शराब पीने को कहा, लेकिन उस ने इनकार कर दिया. थोड़ी देर बाद नासिर ने इकबाल से कहा, ‘‘अकबर को जल्दी घर जाना होगा. जाओ, अंदर से बैग उठा लाओ.’’

इकबाल बैग उठा लाया. तब नासिर ने कहा, ‘‘कुल 2 करोड़ 75 लाख हाथ में आए हैं. दोनों गार्ड्स के हिस्से के 5-5 लाख उन्हें पहुंचा दिए गए हैं.

25 लाख शीजा के और 50 लाख तुम्हारे हैं. बाकी मेरा और इकबाल का हिसाब है.’’

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तभी अचानक अकबर की नजर अपने पीछे खड़े इकबाल पर पड़ गई, जिस ने पिस्टल निकाल कर अकबर की ओर तान दिया. यह देख कर अकबर का कलेजा मुंह को आ गया. वह हैरत से बोला, ‘‘यह क्या कर रहे हो इकबाल भाई. नासिर साहब, यह सब क्या है?’’

नासिर और इकबाल मुसकरा उठे.

‘‘हमारे गु्रप की परंपरा है कि हम हर वारदात में अपना साथी बदल देते हैं. तिजोरियों के माहिर की लाश समुद्र में डुबो दी थी. उस से पहले एक अन्य घटना में गाडि़यों का सामान चुराने वाला हमारे साथ था. उस की लाश इसी मकान के आंगन में दफन है.

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