लेखक- विजय माथुर/कैलाश चंदेल
गुरुवार 7 नवंबर, 2019. थी. दोपहर ढल रही थी. शहरों की पौश कालोनियों में आमतौर पर मामूली आवाजाही को छोड़ दें तो ज्यादातर सन्नाटा ही रहता है. भरतपुर शहर के जयपुर-आगरा हाइवे पर स्थित सूर्या सिटी कालोनी की स्थिति भी ऐसी ही थी. कालोनी में खामोशी तो नहीं थी, लेकिन कोई खास हलचल भी नहीं थी.
ढलती शाम में क्रीम कलर की एक कार दरख्तों से घिरी एक दोमंजिला कोठी के सामने आ कर रुकी. कार से 2 महिलाएं उतरीं. उन में से एक करीब 28-29 साल की खूबसूरत, आकर्षक युवती थी. जो नजर का चश्मा लगाए हुए थी. इस युवती का नाम डा. सीमा गुप्ता था. सीमा शहर की प्रख्यात स्त्री रोग विशेषज्ञ थी. दूसरी अधकटे सफेद बालों वाली बुजुर्ग महिला थी, जो डा. सीमा की सास सुरेखा गुप्ता थी. दोनों के चेहरे बुरी तरह तमतमाए हुए थे.
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सीमा कंधे पर बैग लटकाए हुए थी. उस के हाथ में सौफ्ट ड्रिंक की बोतल थी. दोनों महिलाओं ने पलभर के लिए इमारत की दीवार पर लगे स्पा सेंटर के बोर्ड को देख कर धीमे स्वर में बात की. फिर तेजी से कोठी के खुले गेट को लांघते हुए अंदर दाखिल हुईं.
घरों में ऐहतियाती तौर पर मेन गेट बंद ही रहते हैं, जो डोरबैल बजाने पर ही खुलते हैं. लेकिन जिस तरह दोनों महिलाएं धड़धड़ाते हुए अंदर दाखिल हुईं, उस से लगता था कि इत्तफाकन मेन गेट खुला रहा होगा. दोनों महिलाओं के भीतर दाखिल होने के चंद मिनटों बाद अंदर शोरशराबा सुनाई देने लगा.
मकान स्पा सेंटर चलाने वाली दीपा गुर्जर का था. इस मकान में वह अपने 6 वर्षीय बेटे शौर्य के साथ रह रही थी. दोनों महिलाओं के अंदर जाने के थोड़ी देर बाद अंदर आवाजें तेज हो गईं. लग रहा था जैसे किसी बात को ले कर दोनों पक्षों की जुबानी तकरार ने हाथापाई का रूप ले लिया हो और नौबत मारपीट पर आ गई हो.
झगड़े की आवाजें आसपास के मकानों तक सुनाई दे रही थीं. उठापटक की आवाजें तेज हुईं तो आसपास के लोग भी माजरा जानने के लिए घरों से बाहर निकल कर कोठी के बाहर जमा होने लगे. कुछ ही देर में घर के भीतर से बच्चे की चीखपुकार सुनाई देने लगी. लग रहा था जैसे बालक शौर्य के साथ भी मारपीट की जा रही हो.
इस से पहले कि लोग बीचबचाव के लिए घर में दाखिल होने की कोशिश करते, सीमा और सुरेखा चीखते हुए बाहर निकलीं. बला की फुरती से मेनगेट की कुंडी बाहर से बंद करते हुए सीमा जोर से चिल्लाई, ‘‘अब भुगत अपनी करनी का अंजाम.’’
कोठी के बाहर जमा हुए लोग डा. सीमा से कुछ जानने की कोशिश करते या उस की धमकी का मतलब समझ पाते, अचानक मकान के भीतर से शोले भड़कते दिखाई दिए. इस के साथ ही दीपा की चीखपुकार और बच्चे की दर्दनाक चीखों ने लोगों को दहला दिया. लग रहा था डा. सीमा के पास कोई ज्वलनशील पदार्थ था, जिसे भीतर फेंकने और आग लगाने के बाद वह बाहर निकली थी.
डा. सीमा की हैवानियत
मकान से आग की लपटें उठीं तो लोगों को सीमा की धमकी का मतलब समझने में देर नहीं लगी. उस ने जो किया, उस के नतीजे के रूप में हैवानियत का खौफनाक मंजर सामने नजर आ रहा था. एक तरफ मासूम बच्चे की हौलनाक चीखें लोगों के कलेजे को दहला रही थीं, दूसरी तरफ सीमा और उस की सास पैशाचिक अट्टहास करते हुए भीड़ को चुनौती दे रही थीं, ‘हम ने लगाई है आग…किसी में दम है तो बचा लो इन्हें.’
लोग धिक्कारते हुए उन पर टूटते तब तक उन का ध्यान दीपा के भाई अनुज ने भटका दिया. रोताबिलखता अनुज धधकते घर में घुसने की कोशिश कर रहा था.
भीड़ में मौजूद किसी शख्स ने फायर ब्रिगेड को सूचना दे दी थी. नतीजतन घंटियों के शोर के साथ धड़धड़ाती हुई दमकल की 3 गाडि़यां वहां पहुंच गईं. लेकिन जब तक फायर ब्रिगेड के दस्ते ने आग पर काबू पाया, तब तक सब राख हो चुका था.
इस घटना की सूचना मिलने पर आईजी (जोन) लक्ष्मण गौड़, एसपी हैदर अली जैदी, एएसपी मूल सिंह राणा और सीओ हवासिंह घूमरिया पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. लेकिन आग से घिरे मकान को देख कर कुछ भी करना संभव नहीं था.
जब सीमा के पति डा. सुदीप गुप्ता को इस वारदात की खबर मिली, तब वह आरबीएम अस्पताल में थे. डा. सुदीप आंधीतूफान की रफ्तार से मौके पर पहुंचे तो इस तरह पगलाए हुए थे कि धधकती आग में कूदने पर उतारू हो गए. लेकिन पुलिस की मजबूत गिरफ्त ने उन्हें कामयाब नहीं होने दिया. अंतत: बिलखते हुए डा. सुदीप गुप्ता वहीं पसर गए और घुटनों में मुंह छिपा कर फूटफूट कर रोने लगे. डा. सीमा गुप्ता और उस की सास सुरेखा गुप्ता को पुलिस ने मौकाएवारदात पर ही गिरफ्तार कर लिया. साथ ही डा. गुप्ता को भी हिरासत में ले लिया.
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रोंगटे खड़े कर देने वाली इस खौफनाक घटना ने पूरे शहर को दहला दिया था. मांबेटे को जिंदा जलाने की खबर पूरे शहर में फैल गई. जिस ने भी सुना, देखने के लिए दौड़ा चला आया. बहरहाल, तमाम कोशिशों के बावजूद आग पूरी तरह नहीं बुझ पाई.
मकान के अधिकांश हिस्सों में प्लास्टिक का फरनीचर लगा होने के कारण दूसरे दिन भी आग पूरी तरह नहीं बुझी. अगले दिन जब पुलिस जांच के लिए पहुंची तब भी मकान का एक हिस्सा जल रहा था. पुलिस ने एक बार फिर फायर ब्रिगेड बुला कर आग को ठंडा कराने की कोशिश की.
छानबीन और मौके से सबूत जुटाने के लिए पुलिस की क्राइम टीम के साथ फोरैंसिक टीम भी पहुंच गई थी. फोरैंसिक टीम की जांच में चौंकाने वाले रहस्य उजागर हुए. जांच में पता चला कि मौत से पहले मां और बेटे ने करीब आधे घंटे तक पूरी जद्दोजहद के साथ जिंदगी के लिए जंग लड़ी थी. आग की बढ़ती लपटों को देख कर दीपा ने संभवत: बेटे शौर्य को वाश बेसिन में बिठा कर शावर चला दिया था और खुद उस के पाइप को हटा कर नीचे बैठ गई थी.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में प्रथमदृष्टया मौत का कारण आग के साथ दम घुटना माना गया. फोरैंसिक टीम ने डा. सीमा और सुरेखा गुप्ता के हाथों की जांच की तो उन के हाथों पर स्पिरिट के अंश पाए गए. पुलिस द्वारा खंगाले गए सीसीटीवी फुटेज और कालोनी के चौकीदार से की गई पूछताछ में पता चला कि सीमा और सुरेखा ने इस से पहले 2 चक्कर लगाए थे. लेकिन दीपा के घर पर नहीं मिलने से दोनों वापस लौट गई थीं.
सीसीटीवी कैमरे की फुटेज से पता चला कि लगभग ढाई बजे डा. सुदीप भी दीपा के घर पहुंचे थे और लौट आए थे. जबकि सीमा और उस की सास को आखिरी बार करीब 5 बजे दीपा के मकान में दाखिल होते देखा गया था. सीसीटीवी फुटेज के हिसाब से दोनों के बीच करीब एक घंटा विवाद हुआ था.
सासबहू को 6 बजे दीपा के मकान से बाहर निकलते देखा गया. डा. सीमा ने जिस गेट की बाहर से कुंडी लगाई थी, वह दूसरे दिन भी जस का तस मिला. दरवाजा एक चौखट जलने से खुला था. पुलिस ने यहीं से मृत दीपा और शौर्य के शव निकाले. दोनों के शव रसोईघर में पाए गए. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने दोनों शव परिजनों को सौंप दिए.
डा. सुदीप और डा. सीमा का अपना अस्पताल था
भरतपुर शहर के काली बगीची में रहने वाले डा. सुदीप गुप्ता राजकीय आरबीएम अस्पताल में सीनियर फिजिशियन के पद पर तैनात थे. उन के परिवार में पत्नी डा. सीमा के अलावा उन की मां सुरेखा गुप्ता थीं. इसी इलाके में डा. गुप्ता का श्री राम गुप्ता अस्पताल के नाम से निजी क्लिनिक भी था.
उन की पत्नी सीमा इसी क्लिनिक में डाक्टर थी. सब कुछ मजे में चल रहा था, लेकिन डा. गुप्ता के सुखी दांपत्य के तिनके उड़ने की शुरुआत करीब 3 साल पहले तब हुई, जब दीपा गुर्जर नाम की युवती को श्री राम अस्पताल में बतौर रिसैप्शनिस्ट रखा गया.
दीपा गुर्जर सुंदर और स्मार्ट युवती थी. उस ने कंप्यूटर कोर्स कर रखा था. उस की बातचीत के व्यावसायिक लहजे ने डा. सीमा को सब से ज्यादा प्रभावित किया. डा. सीमा अस्पताल प्रबंधन की खुद मुख्तार थी. इसलिए किसी को नौकरी पर रखने या न रखने के मामले में वह पति डा. सुदीप गुप्ता से सलाहमशविरा करना जरूरी नहीं समझती थी.
जीवनयापन के लिए आर्थिक संकट से गुजर रही दीपा के प्रति डा. सीमा के मन में सौफ्ट कौर्नर बन गया था. दीपा न केवल विवाहित थी, बल्कि 3 वर्षीय बेटे की मां भी थी. दीपा के बताए अनुसार, उस का पति से अलगाव चल रहा था और बात तलाक तक पहुंच गई थी. ऐसे में नौकरी उस की तात्कालिक जरूरत थी.
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डा. सीमा का मानना था कि अपनी नौकरी बचाए रखने के लिए दीपा ज्यादा मुस्तैदी से काम करेगी. साथ ही डा. सीमा की एक सोच यह भी थी कि रिसैप्शन पर सुंदर स्त्रियां लुभावने व्यावसायिक पैकेज की तरह साबित होती हैं.