हैवानियत की हद : भाग 1

लेखक- विजय माथुर/कैलाश चंदेल 

गुरुवार 7 नवंबर, 2019. थी. दोपहर ढल रही थी. शहरों की पौश कालोनियों में आमतौर पर मामूली आवाजाही को छोड़ दें तो ज्यादातर सन्नाटा ही रहता है. भरतपुर शहर के जयपुर-आगरा हाइवे पर स्थित सूर्या सिटी कालोनी की स्थिति भी ऐसी ही थी. कालोनी में खामोशी तो नहीं थी, लेकिन कोई खास हलचल भी नहीं थी.

ढलती शाम में क्रीम कलर की एक कार दरख्तों से घिरी एक दोमंजिला कोठी के सामने आ कर रुकी. कार से 2 महिलाएं उतरीं. उन में से एक करीब 28-29 साल की खूबसूरत, आकर्षक युवती थी. जो नजर का चश्मा लगाए हुए थी. इस युवती का नाम डा. सीमा गुप्ता था. सीमा शहर की प्रख्यात स्त्री रोग विशेषज्ञ थी. दूसरी अधकटे सफेद बालों वाली बुजुर्ग महिला थी, जो डा. सीमा की सास सुरेखा गुप्ता थी. दोनों के चेहरे बुरी तरह तमतमाए हुए थे.

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सीमा कंधे पर बैग लटकाए हुए थी. उस के हाथ में सौफ्ट ड्रिंक की बोतल थी. दोनों महिलाओं ने पलभर के लिए इमारत की दीवार पर लगे स्पा सेंटर के बोर्ड को देख कर धीमे स्वर में बात की. फिर तेजी से कोठी के खुले गेट को लांघते हुए अंदर दाखिल हुईं.

घरों में ऐहतियाती तौर पर मेन गेट बंद ही रहते हैं, जो डोरबैल बजाने पर ही खुलते हैं. लेकिन जिस तरह दोनों महिलाएं धड़धड़ाते हुए अंदर दाखिल हुईं, उस से लगता था कि इत्तफाकन मेन गेट खुला रहा होगा. दोनों महिलाओं के भीतर दाखिल होने के चंद मिनटों बाद अंदर शोरशराबा सुनाई देने लगा.

मकान स्पा सेंटर चलाने वाली दीपा गुर्जर का था. इस मकान में वह अपने 6 वर्षीय बेटे शौर्य के साथ रह रही थी. दोनों महिलाओं के अंदर जाने के थोड़ी देर बाद  अंदर आवाजें तेज हो गईं. लग रहा था जैसे किसी बात को ले कर दोनों पक्षों की जुबानी तकरार ने हाथापाई का रूप ले लिया हो और नौबत मारपीट पर आ गई हो.

झगड़े की आवाजें आसपास के मकानों तक सुनाई दे रही थीं. उठापटक की आवाजें तेज हुईं तो आसपास के लोग भी माजरा जानने के लिए घरों से बाहर निकल कर कोठी के बाहर जमा होने लगे. कुछ ही देर में घर के भीतर से बच्चे की चीखपुकार सुनाई देने लगी. लग रहा था जैसे बालक शौर्य के साथ भी मारपीट की जा रही हो.

इस से पहले कि लोग बीचबचाव के लिए घर में दाखिल होने की कोशिश करते, सीमा और सुरेखा चीखते हुए बाहर निकलीं. बला की फुरती से मेनगेट की कुंडी बाहर से बंद करते हुए सीमा जोर से चिल्लाई, ‘‘अब भुगत अपनी करनी का अंजाम.’’

कोठी के बाहर जमा हुए लोग डा. सीमा से कुछ जानने की कोशिश करते या उस की धमकी का मतलब समझ पाते, अचानक मकान के भीतर से शोले भड़कते दिखाई दिए. इस के साथ ही दीपा की चीखपुकार और बच्चे की दर्दनाक चीखों ने लोगों को दहला दिया. लग रहा था डा. सीमा के पास कोई ज्वलनशील पदार्थ था, जिसे भीतर फेंकने और आग लगाने के बाद वह बाहर निकली थी.

डा. सीमा की हैवानियत

मकान से आग की लपटें उठीं तो लोगों को सीमा की धमकी का मतलब समझने में देर नहीं लगी. उस ने जो किया, उस के नतीजे के रूप में हैवानियत का खौफनाक मंजर सामने नजर आ रहा था. एक तरफ मासूम बच्चे की हौलनाक चीखें लोगों के कलेजे को दहला रही थीं, दूसरी तरफ सीमा और उस की सास पैशाचिक अट्टहास करते हुए भीड़ को चुनौती दे रही थीं, ‘हम ने लगाई है आग…किसी में दम है तो बचा लो इन्हें.’

लोग धिक्कारते हुए उन पर टूटते तब तक उन का ध्यान दीपा के भाई अनुज ने भटका दिया. रोताबिलखता अनुज धधकते घर में घुसने की कोशिश कर रहा था.

भीड़ में मौजूद किसी शख्स ने फायर ब्रिगेड को सूचना दे दी थी. नतीजतन घंटियों के शोर के साथ धड़धड़ाती हुई दमकल की 3 गाडि़यां वहां पहुंच गईं. लेकिन जब तक फायर ब्रिगेड के दस्ते ने आग पर काबू पाया, तब तक सब राख हो चुका था.

इस घटना की सूचना मिलने पर आईजी (जोन) लक्ष्मण गौड़, एसपी हैदर अली जैदी, एएसपी मूल सिंह राणा और सीओ हवासिंह घूमरिया पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. लेकिन आग से घिरे मकान को देख कर कुछ भी करना संभव नहीं था.

जब सीमा के पति डा. सुदीप गुप्ता को इस वारदात की खबर मिली, तब वह आरबीएम अस्पताल में थे. डा. सुदीप आंधीतूफान की रफ्तार से मौके पर पहुंचे तो इस तरह पगलाए हुए थे कि धधकती आग में कूदने पर उतारू हो गए. लेकिन पुलिस की मजबूत गिरफ्त ने उन्हें कामयाब नहीं होने दिया. अंतत: बिलखते हुए डा. सुदीप गुप्ता वहीं पसर गए और घुटनों में मुंह छिपा कर फूटफूट कर रोने लगे. डा. सीमा गुप्ता और उस की सास सुरेखा गुप्ता को पुलिस ने मौकाएवारदात पर ही गिरफ्तार कर लिया. साथ ही डा. गुप्ता को भी हिरासत में ले लिया.

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रोंगटे खड़े कर देने वाली इस खौफनाक घटना ने पूरे शहर को दहला दिया था. मांबेटे को जिंदा जलाने की खबर पूरे शहर में फैल गई. जिस ने भी सुना, देखने के लिए दौड़ा चला आया. बहरहाल, तमाम कोशिशों के बावजूद आग पूरी तरह नहीं बुझ पाई.

मकान के अधिकांश हिस्सों में प्लास्टिक का फरनीचर लगा होने के कारण दूसरे दिन भी आग पूरी तरह नहीं बुझी. अगले दिन जब पुलिस जांच के लिए पहुंची तब भी मकान का एक हिस्सा जल रहा था. पुलिस ने एक बार फिर फायर ब्रिगेड बुला कर आग को ठंडा कराने की कोशिश की.

छानबीन और मौके से सबूत जुटाने के लिए पुलिस की क्राइम टीम के साथ फोरैंसिक टीम भी पहुंच गई थी. फोरैंसिक टीम की जांच में चौंकाने वाले रहस्य उजागर हुए. जांच में पता चला कि मौत से पहले मां और बेटे ने करीब आधे घंटे तक पूरी जद्दोजहद के साथ जिंदगी के लिए जंग लड़ी थी. आग की बढ़ती लपटों को देख कर दीपा ने संभवत: बेटे शौर्य को वाश बेसिन में बिठा कर शावर चला दिया था और खुद उस के पाइप को हटा कर नीचे बैठ गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में प्रथमदृष्टया मौत का कारण आग के साथ दम घुटना माना गया. फोरैंसिक टीम ने डा. सीमा और सुरेखा गुप्ता के हाथों की जांच की तो उन के हाथों पर स्पिरिट के अंश पाए गए. पुलिस द्वारा खंगाले गए सीसीटीवी फुटेज और कालोनी के चौकीदार से की गई पूछताछ में पता चला कि सीमा और सुरेखा ने इस से पहले 2 चक्कर लगाए थे. लेकिन दीपा के घर पर नहीं मिलने से दोनों वापस लौट गई थीं.

सीसीटीवी कैमरे की फुटेज से पता चला कि लगभग ढाई बजे डा. सुदीप भी दीपा के घर पहुंचे थे और लौट आए थे. जबकि सीमा और उस की सास को आखिरी बार करीब 5 बजे दीपा के मकान में दाखिल होते देखा गया था. सीसीटीवी फुटेज के हिसाब से दोनों के बीच करीब एक घंटा विवाद हुआ था.

सासबहू को 6 बजे दीपा के मकान से बाहर निकलते देखा गया. डा. सीमा ने जिस गेट की बाहर से कुंडी लगाई थी, वह दूसरे दिन भी जस का तस मिला. दरवाजा एक चौखट जलने से खुला था. पुलिस ने यहीं से मृत दीपा और शौर्य के शव निकाले. दोनों के शव रसोईघर में पाए गए. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने दोनों शव परिजनों को सौंप दिए.

डा. सुदीप और डा. सीमा का अपना अस्पताल था

भरतपुर शहर के काली बगीची में रहने वाले डा. सुदीप गुप्ता राजकीय आरबीएम अस्पताल में सीनियर फिजिशियन के पद पर तैनात थे. उन के परिवार में पत्नी डा. सीमा के अलावा उन की मां सुरेखा गुप्ता थीं. इसी इलाके में डा. गुप्ता का श्री राम गुप्ता अस्पताल के नाम से निजी क्लिनिक भी था.

उन की पत्नी सीमा इसी क्लिनिक में डाक्टर थी. सब कुछ मजे में चल रहा था, लेकिन डा. गुप्ता के सुखी दांपत्य के तिनके उड़ने की शुरुआत करीब 3 साल पहले तब हुई, जब दीपा गुर्जर नाम की युवती को श्री राम अस्पताल में बतौर रिसैप्शनिस्ट रखा गया.

दीपा गुर्जर सुंदर और स्मार्ट युवती थी. उस ने कंप्यूटर कोर्स कर रखा था. उस की बातचीत के व्यावसायिक लहजे ने डा. सीमा को सब से ज्यादा प्रभावित किया. डा. सीमा अस्पताल प्रबंधन की खुद मुख्तार थी. इसलिए किसी को नौकरी पर रखने या न रखने के मामले में वह पति डा. सुदीप गुप्ता से सलाहमशविरा करना जरूरी नहीं समझती थी.

जीवनयापन के लिए आर्थिक संकट से गुजर रही दीपा के प्रति डा. सीमा के मन में सौफ्ट कौर्नर बन गया था. दीपा न केवल विवाहित थी, बल्कि 3 वर्षीय बेटे की मां भी थी. दीपा के बताए अनुसार, उस का पति से अलगाव चल रहा था और बात तलाक तक पहुंच गई थी. ऐसे में नौकरी उस की तात्कालिक जरूरत थी.

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डा. सीमा का मानना था कि अपनी नौकरी बचाए रखने के लिए दीपा ज्यादा मुस्तैदी से काम करेगी. साथ ही डा. सीमा की एक सोच यह भी थी कि रिसैप्शन पर सुंदर स्त्रियां लुभावने व्यावसायिक पैकेज की तरह साबित होती हैं.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

दूल्हेभाई का रंगीन ख्वाब

अपनों के खून से रंगे हाथ

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में लगभग तीन साल पूर्व घटित हत्या के एक मामले का खुलासा जुलाई 2020 में हुआ. अर्थात् 3 वर्ष बाद ही सही मामले का खुलासा हुआ है. इस मामले में चौंकाने वाली बात यह कि रायपुर पुलिस ने मृतक के बेटे को गिरफ्तार किया है. मामला राजधानी रायपुर के डीडी नगर थाना क्षेत्र का है.

अक्सर देखा गया गया है कि जो हत्या होती है, अपराध होते हैं. उनमें आसपास के लोगों का ही हाथ होता है. यहां अपने ही निकटतम जनों के खून से सने हाथों के संदर्भ में कहा जा सकता है कि मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई यही है कि जहां वह अपनों के बीच प्रेम, सद्भावना और विश्वास पाता है. आस्था और प्रेम प्राप्त करता है वहीं जब रिश्तो के धागे टूटने लगते हैं तो बात हत्या और अन्य तरह के अपराधों तक पहुंच जाती है. आज हत्या के इस पहलू पर हम इस विशेष लेख में आपसे रूबरू हो रहे हैं.

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आइए! देखते हैं अपनों ही के हाथों से कैसे-कैसे अपराध घटित हो जाते हैं-

पहली घटना- यगढ़ जिला के खरसिया  थाना अंतर्गत एक लोमहर्षक हत्या हुई एक पुत्र ने मां की हत्या कर दी. कारण यह था कि मां ने उसे शराब पीने के लिए पैसा देने से अंततः इंकार कर दिया था. कलयुगी पुत्र ने मां की हत्या कर दी.

दूसरी  घटना- छत्तीसगढ़ के  जिला मुंगेली में एक भाई ने अपने ही बड़े भाई की हत्या कर दी. मामला जमीन जायदाद के मसले को लेकर घटित हुआ था.

तीसरी घटना- कोरबा जिला के पसान थाना अंतर्गत एक गांव में बुजुर्ग शख्स ने अपनी पत्नी को सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि वह उसके कहे मुताबिक भोजन नहीं बना रही थी.

ऐसे ही अनेक घटनाएं हमारे आसपास आए दिन घटित होती रहती है. इन्हें देखकर हम अनदेखा कर देते हैं जबकि सच्चाई यह है कि यह समाज का एक ऐसा पहलू है जिसका निरंतर समाजशास्त्रीय अध्ययन चलता रहता है. यह समाज की एक बड़ी विकृति है, जिसे दुरुस्त करना भी समाज का ही दायित्व है.

पिता की  हत्या,  राज दफन

दरअसल 11 जनवरी 2017 को राजधानी रायपुर के ग्राम सरोना में सीताराम ध्रुव सर में चोट लगने की वजह से गंभीर रूप से घायल हो गया था.  स्वाभाविक रूप से उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया वहीं 24 जनवरी 2017 को इलाज के दरमियान सीताराम की मौत हो गई थी. इस मामले में डीडी नगर पुलिस ने मर्ग कायम कर जांच शुरू की थी. सीताराम ग्राम खपरापोल, जिला महासमुंद का रहवासी था.

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सीताराम के सर पर मिले चोट के निशान और शुरुआती पूछताछ में हत्या की आशंका मानते हुए पुलिस जाँच कर रही थी. इस दौरान साढ़े तीन साल में पुलिस मृतक के परिजनों से कई बार पूछताछ करती  रही  थी. लेकिन कामयाबी अब जाकर जुलाई 2020 में  मिली. पुलिस जांच के दरमियान सूक्ष्म रूप से  मृतक के बेटे पंकज ध्रुव की गतिविधियों पर लगातार नजर बनाए हुए थी. पुलिस को जब यह पूरी तरह से यकीन हो गया कि सीताराम का हत्यारा उसका बेटा पंकज ही है, तो पुलिस अधिकारियों ने कड़ाई से पूछताछ की. और जैसा कि होता है, अंततः पूछताछ में पंकज टूट गया उसने अपने पिता की हत्या करना कबूल कर लिया.

पंकज ने आंसू बहाते हुए बताया कि वह पिता  से बहुत सारे रुपए चाहता था मगर पिता उसे नालायक समझकर टालते रहते थे. उसने सोचा क्यों नहीं पिता को मारकर सारी संपत्ति का मालिक बन जाए.

दूल्हेभाई का रंगीन ख्वाब : भाग 3

कुछ दिन बाद फातिमा वापस घर चली गई. हालांकि घर इतनी दूर भी नहीं था कि आनाजाना न हो सके. इस घटना के बाद फातिमा अकसर किसी बहाने से बहन के घर आनेजाने लगी. इसी बीच डेढ़ साल बाद समरीन गर्भवती हुई तो फातिमा एक बार फिर बहन की तीमारदारी के लिए महीने भर उस के घर आ कर रही. इस दौरान फिर से दोनों के बीच नाजायज रिश्तों  का अध्याय लिखा जाने लिखा.

साली को घरवाली बनाने की थी योजना

समरीन ने छोटे बेटे तैमूर को जन्म  दिया. लेकिन तब तक आसिफ और फातिमा के बीच नाजायज रिश्ते की भनक न तो समरीन को लगी थी न ही फातिमा के परिवार वालों को. लेकिन फातिमा के शरीर की गंध पाने के बाद आसिफ को अपनी पत्नी समरीन से लगाव कम होने लगा था.

अचानक आसिफ के मन में फातिमा को अपना बनाने की लालसा तेज होने लगी. उस ने सोचा कि अगर समरीन मर जाए तो वह अपने बच्चों की देखभाल के लिए ससुराल वालों को मौसी को उन की मां बनाने के लिए तैयार कर सकता है. लेकिल सवाल था कि हट्टीकट्टी और जवान समरीन मरेगी कैसे.

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आसिफ के मन में उसी समय यह खयाल आया कि क्यों न समरीन को किसी ऐसे तरीके से मार दिया जाए कि उस की मौत सब को स्वाभाविक लगे. बस ये खयाल मन में आते ही उस के दिमाग में साजिश के कीडे़ रेंगने लगे. आसिफ का एक दोस्त था रविंद्र जो गोविंद टाउन, बेहटा हाजीपुर में रहता था और वहीं पर जनकल्याण क्लीनिक चलाता था.

वैसे तो रविंद्र झोलाछाप डाक्टर था, लेकिन आसिफ के साथ खानेपीने के कारण उस की दोस्ती हो गई थी. आसिफ अपने बच्चोें को उसी से दवा वगैरह दिलवाता था. उस ने अपने मन की बात एक दिन रविंद्र को बताई. उस ने कहा कि इलाज के बहाने वह समरीन को ऐसा इंजेक्शन लगा दे कि उस की मौत हो जाए.

रविंद्र इस काम के लिए राजी तो हो गया लेकिन उस ने इस काम के लिए पैसे मांगे. आसिफ ने कह दिया कि वह काम कर दे, इस के बदले वह उसे मोटी रकम देगा. लिहाजा डा. रविंद्र ने उसे एक ऐसी दवा दे दी जिस को खाने के बाद समरीन पर रिएक्शन होना था. लेकिन संयोग से उस दवा को खाने के बाद जो थोड़ाबहुत असर हुआ, उसे समरीन ने घरेलू उपचार कर के ठीक कर लिया.

पहली साजिश फेल हो गई तो डा. रविंद्र ने कहा, ‘‘चलो तुम्हें एक और डाक्टर संदीप से मिलाता हूं, जो  लोनी मे श्री साईं क्लीनिक चलाते हैं.’’

रविंद्र ने संदीप से आसिफ की मुलाकात कराई और उस का मकसद बताया. आसिफ का काम करने के लिए संदीप ने पैसे की मांग की तो आसिफ ने दोनों को 30 हजार रुपए दे दिए.

डा. संदीप ने एक दिन बुखार के इलाज के बहाने आसिफ के साथ उस के घर जा कर समरीन को एक जहरीला इंजेक्शन भी दिया, लेकिन कई दिन इंतजार के बाद भी समरीन की मौत नहीं हुई तो आसिफ निराश हो गया.

इस दौरान संदीप और रविंद्र आसिफ से मिले पैसे से मौजमस्ती करने के लिए मंसूरी चले गए. जब वापस लौटे तो उन्हें पता चला कि इंजेक्शन से भी समरीन की मृत्यु नहीं हुई है. इसलिए आसिफ उन से पैसे वापस मांगने लगा.

तब संदीप ने कहा कि वह एक आदमी के जरिए इस काम को सफाई से करवा सकता है लेकिन इस काम में थोड़ी ज्यादा रकम लगेगी. आसिफ इस के लिए भी तैयार हो गया.

लेकिन इस दौरान आसिफ की साली फातिमा का उस के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया समरीन ने देखा की फातिमा उसे छोड़ कर अपने जीजा के आसपास कुछ ज्यादा मंडराती है, तो उसे शक हुआ. उस ने दोनों के ऊपर निगाहें रखनी शुरू कर दीं. शक यकीन में तब बदल गया, जब एक दिन फातिमा चाय देने के बहाने नीचे वर्कशाप में आसिफ के पास पहुंची और आसिफ ने लपक कर उसे अपनी बांहों में भर लिया.

संयोग से शक की पुष्टि के लिए समरीन पीछे से आ गई और सबकुछ अपनी आंखों से देख लिया. उस दिन खूब हंगामा हुआ. उस दिन समरीन ने छोटी बहन को खूब डांटा और आसिफ से उस की जम कर लड़ाई हुई.

समरीन ने अपने मातापिता को तो बहन के बारे में कुछ नहीं बताया, लेकिन परिवार वालों पर जोर देना शुरू कर दिया कि वह जल्द से जल्द  फातिमा के लिए अच्छा सा लड़का देख कर उस का निकाह कर दें. परिवार वालों ने उस के लिए लड़का देख लिया और 7 मार्च, 2020 निकाह की तारीख तय कर दी.

इस बीच फातिमा के निकाह को ले कर समरीन और आसिफ में अकसर झगड़ा होने लगा. आसिफ समरीन से कहता था कि 2 बहनें एक साथ एक ही पति की बेगम बन कर भी तो रह सकती हैं. पता नहीं जिस से फातिमा की शादी हो वो लोग कैसे हों, उसे सुख दे सकें या नहीं. बस इसी बात पर दोनों में झगड़ा इस कदर बढ़ता कि मारपीट तक हो जाती.

दोनों के बीच मारपीट की बात समरीन के मातापिता तक पहुंची, लेकिन समरीन ने उन्हें कभी हकीकत का पता नहीं लगने दिया. जब आसिफ ने देखा कि समरीन उस के और फातिमा के रास्ते का कांटा बन चुकी है तो उस ने आखिरकार उस की हत्या के लिए आखिरी साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया. आसिफ ने डा. संदीप से कहा कि अब वह जल्द  से जल्द समरीन की हत्या वाला काम करवा दे.

बदमाश सुनील शर्मा से किया संपर्क

इस के बाद संदीप आसिफ को अपने साले के साले के साले सुनील शर्मा निवासी भीमपुर, थाना बहजोई, जिला मुरादाबाद के पास ले गया, जो इन दिनों लोनी की पुश्ता कालोनी में रहता था. आसिफ को जब पता चला कि सुनील शर्मा आपराधिक प्रवृत्ति का व्यक्ति है और पहले उत्तराखंड जेल में भी रह चुका है तो उसे यकीन हो गया कि यह आदमी उस का काम कर देगा.

आसिफ ने सुनील से 2 लाख रुपए मे समरीन की हत्या का सौदा पक्का कर लिया, जिस में से लगभग 90 हजार रुपए आसिफ ने सुनील को 2-3 बार में दे दिए. लेकिन जैसेजैसे फातिमा की शादी नजदीक आ रही थी, वैसेवैसे आसिफ को समरीन की हत्या की जल्दी होने लगी थी.

9 जनवरी, 2020 को आसिफ ने सुनील से बेहटा हाजीपुर में उत्तरांचल सोसाइटी के पास मुलाकात की और बताया कि 11-12 जनवरी की रात को उसे यह काम पूरा करना है. उस ने सुनील को पूरा प्लान भी समझा दिया. इस काम में सुनील ने अपने 2 अपराधी दोस्तों को भी शामिल कर लिया था.

प्लान के मुताबिक 11 जनवरी, 2020 की रात सुनील अपने दोनों साथियों के साथ मेवाती चौक पर आसिफ के घर के बाहर पहुंचा. योजना के मुताबिक आसिफ दरवाजा खोल कर काम कर रहा था. उस ने नीचे वाले कमरे में सुनील व उस के दोनों साथियों को बैठा दिया और खुद सोने के लिए ऊपर चला गया.

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आधे घंटे में खाना खाने के बाद उस ने अपने साले और बेटे, जो मोबाइल पर गेम खेल रहे थे, से मोबाइल ले कर बंद कर दिए और जल्दी से सोने को कहा, ताकि सुबह जल्दी उठा जा सके. उस ने जीने की तरफ आने वाले गेट की कुंडी नहीं लगाई थी ताकि सुनील व उस के साथी आसानी से दरवाजा खोल कर ऊपर आ सकें.

आसिफ हत्या में खुद भी रहा शामिल

प्लान के मुताबिक रात 1 से 3 बजे के बीच में सुनील अपने दोनों साथियों के साथ उस कमरे में आया, जहां आासिफ व उस की बीवी सो रहे थे. आसिफ ने उन तीनों के साथ मिल कर पहले अपनी पत्नी समरीन की गला घोंट कर हत्या करवा दी. फिर अपने हाथपैर बंधवा कर ऊपरी मंजिल पर ले जाने के लिए कहा. ताकि ऊपर सो रहे साले व लड़के को लगे कि वास्तव में बदमाशों द्वारा इस घटना को अंजाम दिया गया है.

हत्या हो जाने के बाद आसिफ ने बदमाशों से कहा कि 23 हजार रुपए और लगभग 70 से 75 हजार रुपए का हार अलमारी में रखा है, जिसे तुम अपने शेष एक लाख रुपए के रूप में ले लो.

वारदात के दौरान उस ने अपने हाथ थोड़ा ढीले बंधवाए ताकि उन के जाने के कुछ देर बाद वह हाथ खोल कर शोर मचा सके.

किसी को शक न हो इसलिए उस ने ही बदमाशों को ऊपर के कमरे में सब को बंद कर के कुंडी बाहर से बंद करने और जाते समय मकान के मुख्यद्वार को बाहर से बंद करने का आइडिया दिया था.

आसिफ से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी शाम झोलाछाप डाक्टर रविंद्र और संदीप को भी समरीन की हत्या की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

आसिफ ने जो प्लान तैयार किया था, उस में उस ने एक गलती कर दी थी. उसेये ध्यान ही नहीं रहा कि जब पूरे घर में घुसने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है तो बिना जबरदस्ती किए बदमाश घर के अंदर दाखिल कैसे हो गए. इस बात का वह क्या जवाब देगा. बस यहीं से पुलिस को उस पर शक होना शुरू हो गया.

गिरफ्तार किए गए मुख्य आरोपी आसिफ और उस के दोनों सहयोगियों रविंद्र और संदीप को आवश्यक पूछताछ के बाद जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया.

बाकी 3 फरार आरोपियों में से सुनील शर्मा को पुलिस ने 17 जनवरी, 2020 को लोनी क्षेत्र से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सुनील ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया. उस के दोनों साथियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीमें लगातार छापेमारी कर रही हैं.

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मात्र 72 घंटे में ब्लाइंड मर्डर व डकैती केस को सुलझाने के लिए एसएसपी गाजियाबाद कलानिधि नैथानी ने विवेचक और लोनी बौर्डर थाने की पुलिस टीम को 20 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की है.

कथा पुलिस जांच व अभियुक्तों से हुई पूछताछ पर आधारित. फातिमा परिवर्तित नाम है.

दूल्हेभाई का रंगीन ख्वाब : भाग 2

आसिफ ने ग्राउंड फ्लोर पर अपनी वर्कशौप और गोदाम बनाया जबकि पहले दूसरे व तीसरे फ्लोर पर वह खुद रहने लगा. परिवार तेजी से बढ़ रहा था. डेढ़ साल पहले समरीन ने एक और बेटे को जन्म दिया. मेहमानों का भी घर में आवागमन रहता था, इसलिए आसिफ ने तीसरे फ्लोर को आनेजाने वालों के ठहरने और बच्चों की पढ़ाईलिखाई के लिए रखा हुआ था.

आसिफ का इकलौता साला जुनैद अपने जीजा के पास रह कर काम सीख रहा था. हालांकि आसिफ की ससुराल उस के घर से 2 किलोमीटर की दूरी पर थी, इसलिए जुनैद कभी अपने घर चला जाता था तो कभी अपनी बहन के घर पर ही रुक जाता था.

आसिफ और उस की ससुराल वाले एकदृसरे के यहां रोज आतेजाते थे और एकदृसरे की कुशलक्षेम लेते रहते थे. लोनी में आने के बाद समरीन को यह फायदा हो गया था कि वह अपने परिवार के आ गई थी. हर दुखसुख में मातापिता और भाईबहन उस के साथ खड़े नजदीक थे.

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आसिफ की जिंदगी मजे में गुजर रही थी कि अचानक 11 जनवरी की रात जब बदमाशों ने उस के घर में घुस कर लूटपाट की तो इस हादसे में बीवी समरीन की मौत के बाद उस की दुनिया ही उजड़ गई.

विवेचना अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने आसिफ से पूछताछ के बाद जब उस के परिवार की पूरी कुंडली खंगाली तो उन्होंने अपना ध्यान घटनाक्रम की कडि़यों को जोड़ने पर केंद्रित कर दिया.

दरअसल राजेंद्र पाल ने कई बार घटनास्थल का निरीक्षण किया तो पाया कि 50 गज के तीनमंजिला मकान में एंट्री का एक ही रास्ता है, जो भूतल पर बने मुख्यद्वार के रूप में है. इसी फ्लोर पर आसिफ की वर्कशाप है. आसिफ का मकान चारों तरफ से ऊपर व नीचे से पूर्णत: बंद था, कहीं से भी घर में प्रवेश करने का कोई और रास्ता नहीं था.

बाहरी व्यक्ति का आने व जाने का अन्य कोई रास्ता नहीं था. मकान में बाहरी बदमाशों के घुसने के लिए कोई दरवाजा खिड़की या लौक टूटा नहीं नहीं मिला. मतलब कि दरवाजे से फ्रैंडली एंट्री हुई थी.

सीसीटीवी की फुटेज से यह बात तो साफ हो गई कि वारदात को अंजाम देने के लिए घर में 3 बदमाश घुसे थे. आसिफ ने भी अपने बयान में यह बात कही थी कि वारदात में शामिल बदमाशों की संख्या 3 से 4 थी, लेकिन उस ने देखा 3 को ही था.

बस इतना समझना बाकी था कि बदमाशों को घर में आने के लिए घर के ही किसी व्यक्ति ने दरवाजा खोला था या परिवार के लोग गलती से दरवाजा बंद करना भूल गए थे. हालांकि आसिफ ने पुलिस को दिए बयान में कहा था कि घर के मुख्यद्वार को अंदर से उसी ने बंद किया था. दूसरी अहम गुत्थी यह थी कि सीसीटीवी कैमरे में आसिफ के घर की तरफ आने वाले लोग 9 बजे के करीब आए थे और रात को पौने 4 बजे वापस जाते दिखे थे.

पीड़ितों के मुताबिक वारदात करने का वक्त 1 से 3 बजे के बीच का था. अब सवाल यह था कि वारदात को अंजाम देने वाले बदमाश करीब 4-5 घंटे तक कहां छिपे रहे. अगर वे घर के बाहर होते तो सीसीटीवी कैमरे में या लोगों की नजर में जरूर आते. अगर वे घर के अंदर आ कर छिप गए थे तो परिवार में किसी को इस की भनक क्यों नहीं लगी.

13 जनवरी को लोनी बौर्डर थाने के प्रभारी निरीक्षक शैलेंद्र प्रताप सिंह छुट्टी से वापस लौट आए. उन्हें थाना क्षेत्र में हुई इस वारदात की सूचना मिली तो उन्होंने जांच अधिकारी एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को बुला कर मामले की विस्तार से जानकारी ली. जब राजेंद्र पाल सिंह ने एसएचओ को अपने शक के बारे में बताया तो उन्होंने आसिफ को हिरासत में ले कर पूछताछ करने के लिए कहा.

आसिफ से की पूछताछ

अपने सीनियर अधिकारी की हरी झंडी मिलते ही राजेंद्र पाल सिंह ने पूछताछ के बहाने आसिफ को थाने बुला लिया. इस दौरान उन्हें मुखबिरों की मदद से एक बात पता चल चुकी थी कि आसिफ रंगीनमिजाज है. अपनी पत्नी से उस का अकसर झगड़ा होता था. दोनों के बीच विवाद का कारण कोई महिला थी.

हालांकि जांच अधिकारी ने समरीन के पिता तनसीन को बुला कर इस जानकारी की पुष्टि करनी चाही, लेकिन वे कोई ठोस जानकारी नहीं दे सके. उन्होंने इतना जरूर बताया था कि आसिफ और समरीन में पिछले कुछ महीनों से अकसर झगड़ा और मारपीट होती थी. लेकिन वे बेटी के घर में ज्यादा दखल देना नहीं चाहते थे, क्योंकि यह तो घरघर में होता है.

उन्होंने कालोनी में 3 मकान छोड़ कर एक घर के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की उस रात की फुटेज निकलवा ली थी, जिस से पता चला कि 11 जनवरी की रात 9 बजे 3 लोग आसिफ के मकान तक गए थे. वही लोग 12 जनवरी की सुबह करीब 3.35 बजे मकान से निकल कर गली से बाहर जाते हुए दिखे.

पुलिस ने आसपड़ोस में रहने वाले लोगों से पूछा कि क्या उस रात किसी के घर कोई मेहमान तो नहीं आए थे. पता चला कि आसपड़ोस के किसी भी मकान में उस रात कोई अतिथि नहीं आया था.

चूंकि आसिफ का मकान गली के अंतिम सिरे पर था और गली आगे से बंद भी थी, इसीलिए जांच अधिकारी को शक हुआ कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इस परिवार का ही कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो और उस ने ही बदमाशों के लिए दरवाजे खोले हों.

आसपड़ोस के लोगों ने पूछताछ में इस बात की पुष्टि जरूर कर दी थी कि उन्होंने उस रात करीब 9 बजे गली में 3 अनजान लोगों को जाते देखा था. लेकिन वे लोग किस के यहां जा रहे हैं, इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया था.

कुछ लोगों ने साढ़े 8 बजे के करीब आसिफ को अपने घर के मुख्यद्वार के बरामदे में बैठ कर काम करते हुए देखा था. ये सारी बातें इस बात की तरफ इशारा कर रही थीं कि हो न हो घर का कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो. चूंकि आसिफ की पत्नी समरीन की हत्या हो चुकी थी, इसलिए उस पर शक करने का कोई औचित्य नहीं था.

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अब 2 ही पुरुष सदस्य थे, जिन पर शक किया जा सकता था. एक था आसिफ का साला जुनैद और दूसरा खुद आसिफ. चूंकि जुनैद अभी 15 साल का किशोर था और दीनदुनिया से वाकिफ नहीं था, इसलिए जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह की नजरें आसिफ पर आ कर ठहर गईं. उन्होंने आसिफ को पूछताछ के बहाने थाने बुलवा लिया.

टूट गया आसिफ

आसिफ से गहनता से पूछताछ शुरू हो गई. जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने पहले तो उस से इधरउधर की पूछताछ शुरू की. लेकिन फिर उन्होंने आसिफ से सीधा सपाट सवाल किया, ‘‘देखो आसिफ, हमें सब पता चल गया है कि तुम ने अपनी बीवी को खुद मरवाया है. अब सीधे तरीके से यह बता दो कि वो लड़की कौन है, जिस के लिए तुम ने अपनी पत्नी की हत्या करवाई? हमें यह भी पता है कि बदमाशों को तुम ने ही बुलाया था.’’

राजेंद्र पाल सिंह ने तीर तो अंधेरे में मारा था, लेकिन लगा एकदम निशाने पर. इस तरह के सवाल की आसिफ को उम्मीद नहीं थी वह घबरा गया. जांच अधिकारी ने उसे और ज्यादा डरा दिया.

‘‘देखो, अगर सच बता दोगे तो हम तुम्हें बचा भी सकते हैं, लेकिन सच नहीं बताया तो…’’

आसिफ की घबराहट चरम पर पहुंच गई. अप्रत्याशित रूप से वह जांच अधिकारी सिंह के पांवों में गिर गया, ‘‘सर, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. मैं अपनी साली से शादी करना चाहता था, इसलिए पत्नी को मरवा दिया. मुझे माफ कर दीजिए सर, सारी जिंदगी आप की गुलामी करूंगा. किसी तरह बचा लीजिए.’’

एसएचओ शैलेन्द्र प्रताप सिंह को उम्मीद नहीं थी कि पुलिस द्वारा तुक्के में कही गई बात का ऐसा असर होगा कि आसिफ इतनी जल्दी गुनाह कबूल कर लेगा. उस ने एक बार अपना गुनाह कबूला तो फिर पुलिस को पूरे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.

थोड़ी सी हिचकिचाहट और टालमटोल के बाद आसिफ ने बताया कि लगभग 3 साल से उस का अपनी साली के साथ अफेयर चल रहा था. एक बार उस की पत्नी बीमार हो गई थी, उसे अस्पताल में भरती करना पड़ा. समरीन की मां शमशीदा अस्पताल में बेटी की तीमारदारी के लिए रुक गई थीं, जबकि छोटी बेटी फातिमा को उन्होंने बच्चों की देखभाल के लिए आसिफ के घर भेज दिया था.

वैसे तो तनसीन की तीनों ही बेटियां सुंदर थीं, लेकिन जवानी की दहलीज पर खड़ी सब से छोटी बेटी फातिमा बला की खूबसूरत थी. उसे देख कर आसिफ सोचता था कि अगर उस की शादी फातिमा से हुई होती तो कितना अच्छा होता. फातिमा को वह प्यार भरी नजरों से देखता था. लेकिन जब अपनी बहन की बीमारी और उस के अस्पनताल में होने के कारण फातिमा को जीजा के घर आ कर रहना पड़ा तो मानो आसिफ की हसरतों को बल मिल गया.

न जाने कैसे एक दिन फातिमा जब वाशरूम में नहा रही थी तो जल्दबाजी में आसिफ बाथरूम में घुस गया. उस दिन पहली बार आसिफ ने अपनी हसीन साली का संगमरमर में तराशा हुआ बदन देखा तो उस पर मदहोशी छा गई. रिश्ते की मर्यादा भूल कर उस ने फातिमा को वहीं पर अपनी बांहों में भर लिया.

फातिमा जीजा की बांहों में कसमसाई, विरोध किया लेकिन आसिफ पर हवस का भूत सवार था. थोड़ा विरोध करने के बाद फातिमा भी जीजा की बांहों में समा गई. फातिमा के शरीर को पहली बार किसी मर्द के स्पर्श का अहसास मिला था.

वह पहली बार हुआ एक हादसा था. लेकिन इस के बाद फातिमा और आसिफ के बीच इस नाजायज रिश्ते की कहानी हर रोज लिखी जाने लगी.

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चंद रोज बाद समरीन अस्पताल से ठीक हो कर वापस घर आ गई. कुछ दिन तीमारदारी के बहाने फातिमा बहन के घर पर ही रही. आसिफ को जब भी मौका मिलता, वह उसे अपनी बांहों में ले कर अपनी भूख मिटा लेता. फातिमा को भी अब जीजा आसिफ का इस तरह उस के शरीर को मसलना अच्छा लगने लगा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

दूल्हेभाई का रंगीन ख्वाब : भाग 1

दिल्ली की सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में लोनी बौर्डर थाना एकदम दिल्ली की सीमा से सटा है. यूपी और दिल्ली की सीमा से सटा होने के कारण लोनी बौर्डर थाने की पुलिस अपराधियों पर नजर रखने के लिए 24 घंटे सतर्क रहती है. आमतौर पर इस थाने के इंचार्ज भी रातरात भर जाग कर क्षेत्र में गश्त करते रहते हैं.

11 और 12 जनवरी, 2020 की रात को लोनी बौर्डर थाने के एसएचओ इंसपेक्टर शैलेंद्र प्रताप सिंह अदालत में एक जरूरी एविडेंस के लिए शहर से बाहर गए हुए थे. थाने के एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह थानाप्रभारी की जिम्मेदारी उठा रहे थे.

रात के करीब 4 बजे का वक्त था जब राजेंद्र पाल सिंह सरकारी जीप में अपने हमराहियों के साथ पूरे क्षेत्र में गश्त कर के थाने की तरफ लौट रहे थे कि उन्हें पुलिस नियंत्रण कक्ष से वायरलैस पर सूचना मिली कि 3-4 बदमाशों ने बेहटा हाजीपुर में मेवाती चौक पर रहने वाले कारोबारी आसिफ अली सिद्दीकी के घर में घुस कर डाका डाला है और लूटपाट का विरोध करने पर व्यापारी की पत्नी समरीन का गला दबा दिया है.

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वायरलैस से मिली सूचना इतनी ही थी, लेकिन इतनी गंभीर थी कि राजेंद्र पाल सिंह ने थाने न जा कर घटनास्थल पर पहुंचने को प्राथमिकता दी. वहां से मेवाती चौक की दूरी करीब 4 किलोमीटर थी, वहां तक पहुंचने में उन्हें महज 10 मिनट का वक्त लगा.

मेवाती चौक पर आसिफ अली सिद्दीकी का घर मुख्य सड़क पर ही था. वहां आसपड़ोस के काफी लोगों की भीड़ घर के बाहर जमा थी. घर में रोनेपीटने की आवाजें आ रही थीं.

वहां पहुंचने पर पता चला कि आसिफ अली सिद्दीकी कुछ लोगों के साथ अपनी पत्नी समरीन को जीटीबी अस्पताल ले गया है, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया है. वारदात के बारे में ज्यादा जानकारी तो कोई नहीं दे सका, लेकिन यह जरूर पता चल गया कि पुलिस नियंत्रण कक्ष को वारदात की सूचना पड़ोस में रहने वाले रईसुद्दीन ने दी थी.

रईसुद्दीन ने एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को बताया कि रात करीब पौने 4 बजे आसिफ ने अपनी छत पर चढ़ कर ‘‘बचाओ… बचाओ.. डकैत.. डकैत’’ कह कर चिल्लाना शुरू किया था. जिस के बाद आसपड़ोस में रहने वाले वहां एकत्र हो गए थे. पड़ोसियों ने आसिफ के घर के मुख्यद्वार के बाहर से लगी कुंडी खोली थी, जिसे बदमाश भागते समय बाहर से लगा गए थे.

चूंकि समरीन की हत्या आपराधिक वारदात के दौरान हुई थी, इसलिए उस का पोस्टमार्टम कराने की काररवाई पुलिस को ही करनी थी. इसलिए राजेंद्र पाल सिंह ने अपने सहयोगी एसआई विपिन कुमार को स्टाफ के साथ जीटीबी अस्पताल रवाना कर दिया. विपिन कुमार ने जीटीबी अस्पताल पहुंच कर इमरजेंसी में मौजूद डाक्टरों से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि समरीन को जब लाया गया था, उस से पहले ही उस की मृत्यु हो चुकी थी.

विपिन कुमार ने डाक्टरों से बातचीत कर उन के बयान दर्ज किए और शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लिखापढ़ी की औपचारिकताओं को पूरी करने में सुबह के करीब 6 बज चुके थे. आसिफ का रोरो कर बुरा हाल था. विपिन कुमार ने आसिफ को ढांढस बंधाया और उसे अपने साथ ले कर उस के घर मेवाती चौक पहुंच गए.

इस दौरान एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह ने घटना की सूचना से लोनी के सीओ राजकुमार पांडे, एसपी (देहात) नीरज जादौन और एसएसपी कलानिधि नैथानी को अवगत करा दिया था. एसएसपी कलानिधि नैथानी ने एक दिन पहले ही गाजियाबाद में एसएसपी का पद संभाला था. उन के आते ही जिले में गंभीर अपराध की ये पहली घटना थी.

सूचना मिलते ही पुलिस अधिकारी कुछ ही देर बाद घटनास्थल पर पहुंच गए. सीओ राजकुमार पांडे ने डौग स्क्वायड की टीम के साथ फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और क्राइम टीम को भी मौके पर बुला लिया था. इन सभी टीमों ने घटनास्थल पर पहुंच कर अपना अपना काम शुरू कर दिया.

यह सब काररवाई चल ही रही थी कि एसआई विपिन कुमार आसिफ को ले कर उस के घर पहुंच गए. इस के बाद आसिफ से पूछताछ का सिलसिला शुरू हुआ. उस ने अपने साथ हुई घटना का ब्यौरा देना शुरू कर दिया.

आसिफ ने सुनाया वाकया

आसिफ ने बताया कि शनिवार रात को वह मकान की पहली मंजिल पर अपनी पत्नी समरीन (32) व 2 बच्चों के साथ सो रहा था. रात करीब एक बजे कमरे में आहट हुई. वह उठा तो सामने मुंह पर कपड़ा बांधे 2 बदमाश खड़े थे. जब तक वह कुछ समझ पाता, बदमाशों ने उस पर तमंचा तान दिया और शोर मचाने पर गोली मारने की धमकी दी.

इस बीच एक बदमाश ने साथ में सो रहे डेढ़ वर्षीय बेटे तैमूर और पत्नी की गरदन पर छुरा रख दिया. इस के बाद बदमाशों ने उस के और पत्नी के हाथ बांध दिए. बदमाशों ने उन से मारपीट करते हुए पूछा कि 5 लाख रुपए कहां हैं.

‘‘कैसे रुपए, कौन से रुपए…’’ उस ने बदमाशों से पूछा.

उस ने बदमाशों को बता दिया कि वह छोटा सा कारोबार करता है, उस के घर में इतनी बड़ी रकम कहां से आएगी. जब आसिफ ने रुपए न होने की बात कही तो एक बदमाश ने धमकी दी कि तुम्हारी गरदन काट देंगे.

यह सुन कर उस की पत्नी समरीन की चीख निकल गई. इस से घबराए एक बदमाश ने रजाई से समरीन का मुंह दबा दिया. इस के बाद एक बदमाश ने अलमारियों की चाबी ले कर अंदर रखे एक लाख 30 हजार रुपए कैश व करीब 70 हजार रुपए के गहने निकाल लिए. आसिफ ने यह भी बताया कि ये गहने उस ने अपनी साली की शादी में देने के लिए बनवाए थे, जिस की मार्च में शादी है.

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आसिफ ने बताया कि इस बीच एक बदमाश बाहर गया और जीने पर खड़े अपने साथी से बात करने लगा, जीने पर खड़ा बदमाश अंदर नहीं आना चाह रहा था. घर से बाहर गए बदमाश ने उस से कहा कि 5 लाख रुपए नहीं मिल रहे, इस पर बाहर खड़े बदमाश ने कहा कि 5 लाख रुपए घर में ही हैं. ऊपर वाले कमरे में जा कर देखो.

आसिफ ने बताया कि गहने व कैश निकालने के बाद एक बदमाश आसिफ को गनपौइंट पर मकान की तीसरी मंजिल पर ले गया, जबकि दूसरा बदमाश समरीन का मुंह रजाई से दबाए वहीं खड़ा रहा. तीसरी मंजिल पर उन का साला जुनैद (15 साल), बेटी उजमा (12 साल) और बेटा आतिफ (9 साल) सो रहे थे. वहां पहुंच कर बदमाशों ने जुनैद को उठाया और उस के हाथ पैर बांध दिए. उन्होंने जुनैद से 5 लाख रुपए के बारे में पूछा और मारपीट की.

इस बीच पहली मंजिल पर समरीन का मुंह दबाने वाला बदमाश उस के डेढ़ साल के बेटे तैमूर को ऊपर ले कर आया और उस की गरदन पर छुरा रख कर 5 लाख रुपए मांगे. आसिफ का कहना था कि यह देख वह रोते हुए बदमाशों के पैरों मे गिर पड़ा और उसे छोड़ने के लिए कहा.

इस पर बदमाशों ने बच्चे को छोड़ दिया और उन सभी को कमरे में बंद कर के धमकी दी कि यदि आधे घंटे से पहले कमरे से बाहर निकले तो सभी को मार डालेंगे. इस के बाद वे फरार हो गए. जाने से पहले वे घर के मुख्यद्वार की कुंडी भी बाहर से लगा गए.

बदमाशों के जाने के बाद मचाया शोर

आसिफ के साले का कहना था कि डर की वजह से वे लोग 20 मिनट तक चुप रहे. इस के बाद आसिफ ने किसी तरह हाथ की रस्सी खोली और खिड़की के पास जा कर पड़ोसी राशिद को आवाज लगाई. पड़ोसियों ने पहले मुख्यद्वार की कुंडी खोली फिर मकान के भीतर आ कर कमरे को बाहर से खोला.

वह वहां से पहली मंजिल पर पत्नी को देखने गया तो वह बेहोश मिली. पड़ोसियों की मदद से वह पत्नी को अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

आसिफ के मुंह से पूरी वारदात की कहानी सुनने के बाद एसएसपी ने एसपी (देहात) को इस वारदात का जल्द से जल्द  खुलासा करने की हिदायत दी.

जिस के बाद सीओ राजकुमार पांडे के निर्देश पर लोनी बौर्डर थाने में 12 जनवरी की सुबह धारा 452/394/302/34/120बी/ भादंवि के तहत मुकदमा पंजीकृत करा लिया गया. इस केस की जांच का काम एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को सौंपा गया.

घटना का खुलासा करने के लिए सीओ राजकुमार पांडे ने राजेंद्र पाल सिंह के अधीन एक विशेष टीम का गठन भी कर दिया, जिस में एसआई विपिन कुमार, हैड कांस्टेबल मनोज कुमार, कांस्टेबल विपिन कुमार, मनोज और दीपक को शामिल किया गया.

उसी दोपहर पुलिस ने समरीन के शव का पोस्टमार्टम करवा कर शव उस के परिजनों के सुपुर्द कर दिया. परिजनों ने उसी शाम गमगीन महौल में समरीन के शव को सुपुर्दे खाक कर दिया.

आसिफ अली सिद्दीकी मूलरूप से मेरठ के जानी कलां गांव का रहने वाला है. उस के पिता अफसर अली गांव में खेतीबाड़ी का काम करते हैं. अफसर अली की 6 संतानों में 5 लड़के और एक लड़की है. आसिफ (43) भाइयों में तीसरे नंबर पर है. सभी भाईबहनों की शादी हो चुकी है.

आसिफ अली ने युवावस्था में बैटरी की प्लेट बनाने का काम सीखा था. सन 2006 में उस की शादी जानी कलां के रहने वाले तनसीन की बेटी समरीन से हुई थी, जिस से उस के 3 बच्चे हुए, 2 बेटे और एक बेटी. बड़ा बेटा आतिफ (9) साल का है जबकि सब से छोटा तैमूर अभी डेढ़ साल का है. बेटी उजमा तीनों बच्चों में सब से बड़ी है.

तनसीन अली बेटी समरीन की शादी से कई साल पहले गांव छोड़ कर लोनी के बेहटा की उत्तरांचल विहार कालोनी में आ बसे थे. उन्होंने छोटा सा प्लौट खरीद कर अपना घर बना लिया था.

तनसीन फैक्ट्रियों से माल खरीद कर किराने की दुकानों पर सप्लाई करते थे, जिस से उन के परिवार की गुजरबसर ठीकठाक हो रही थी. बेटी समरीन के निकाह में भी उन्होंने अच्छा पैसा खर्च किया था. शादी के बाद समरीन गांव में पति आसिफ के साथ हंसीखुशी जीवन बिता रही थी.

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आसिफ भी खूबसूरत पत्नी को बेइंतहा प्यार करता था. वक्त तेजी से गुजर रहा था. समरीन एक के बाद 2 बच्चों की मां बन गई. पहले उजमा का जन्म हुआ फिर आतिफ पैदा हुआ. 2 बच्चे हो गए तो घर के खर्च भी बढ़ गए, लेकिन कमाई कम थी. इसलिए आसिफ ने गांव छोड़ कर शहर में बसने का फैसला किया.

आसिफ ने लोनी में बढ़ाया अपना धंधा

सन 2014 में सासससुर की सलाह पर आसिफ लोनी के बेहटा आ कर किराए के मकान में रहने लगा. यहीं पर उस ने अपना बैटरी की प्लेट बनाने का कारोबार बढ़ाना शुरू किया. एक साल के भीतर ही उस ने अपने पिता और ससुर की मदद से मेवाती चौक के पास 50 गज का एक प्लौट ले कर उस में तीनमंजिला मकान बना लिया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

भाजपा महामंत्री : भाग 3 – पति के निशाने पर नेता/पत्नी

जिस दिन से बंटी गुर्जर ने मुनेश गोदारा को देखा था उसी दिन से उस की खूबसूरती पर मर मिटा था. बंटी गुर्जर के दिल में उस के लिए एक साफ्ट कार्नर बन गया था. जबकि इस के विपरीत मुनेश उस का दिल से सम्मान करती थी क्योंकि उसी की बदौलत उसे राजनीति में बड़ा कद और पद मिला था.

उस के इसी सम्मान को वह अपने लिए प्यार समझने की भूल कर बैठा था. बंटी को मुनेश से जब भी बात करने की तलब होती थी, वह कर लेता था.

पार्टी में धीरेधीरे ये बात फैल गई थी कि नेताजी बंटी गुर्जर और जिलाध्यक्ष मुनेश गोदारा के बीच मोहब्बत की मीठी आंच पर प्यार की खिचड़ी पक रही है. उन के बीच में ईलूईलू चल रहा है. मुनेश अभी भी इस बात से अंजान थी कि नेताजी के मन में उसे ले कर क्या खिचड़ी पक रही है. फिजाओं में तैरती हुई मोहब्बत का यह पैगाम मुनेश के शौहर सुनील गोदारा तक जब पहुंचा तो वह आगबबूला हो गया था.

पहली बात तो यह थी कि उसे बीवी का राजनीति में जाना गवारा नहीं था. दूसरे जब उस ने सुना कि उस का अफेयर किसी नेता के साथ चल रहा है तो उस के तनबदन में आग लग गई.

बीवी को उस ने समझाया था कि वह अपना ध्यान घरगृहस्थी और बच्चों के बीच में लगाए. ये राजनीति की दुनिया शरीफों के लिए नहीं है, उस का चक्कर छोड़ दे.

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राजनीति के जिस मुकाम तक मुनेश पहुंच चुकी थी वहां से वापस लौटना शायद उस के लिए उतना आसान नहीं था जितना आसान उस का पति समझता था. सालों का लंबा सफर तय कर के वह जिलाध्यक्ष से प्रदेश महिला मोर्चा की महामंत्री बन चुकी थी. यही नहीं, वह एक स्टार प्रचारक के रूप में विख्यात हो चुकी थी. दिल्ली विधानसभा के चुनाव में मुनेश ने कई प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया था. अपनी असीम महत्त्वाकांक्षा की वजह से ही वह राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के निकट तक पहुंच चुकी थी. इसी के बाद उसे भाजपा किसान मोर्चा का प्रदेश महामंत्री बना दिया गया था.

राजनीति की ऊंचाई पर पहुंची मुनेश ने पति से दो टूक कह दिया था कि राजनीति से वापस लौटना उस के लिए आसान नहीं होगा. वह सियासत में रह कर ही अपना घरसंसार और बच्चों की देखभाल अच्छी तरह से कर सकती है. लेकिन राजनीति से अलग होने के लिए उस पर दबाव न डाले.

दोनों के बीच में यहीं से विवाद की नींव पड़ी थी. सुनील गोदारा एक सैनिक था. उस के रगों में भी एक आर्मी पिता का खून दौड़ रहा था. भला वो बीवी के इंकार को कैसे सहन कर सकता था. उस ने बीवी को समझाया कि अभी भी समय है, कुछ नहीं बिगड़ा है, वापस घर लौट आओ. सब कुछ ठीक हो जाएगा. मुनेश ने साफ मना कर दिया कि वह सियासत के बिना नहीं रह सकती.

इस दौरान मुनेश ने अपने नाम पर भिवानी के बाढड़ा इलाके में 2 फ्लैट खरीदे थे. पति को इस की जानकारी दे दी थी. पतिपत्नी के बीच बंटी गुर्जर के प्रेमसंबंधों को ले कर तूफान खड़ा हो चुका था. मुनेश ने पति को सफाई भी दी थी कि उन के बीच ऐसा कोई नाजायज रिश्ता नहीं है जिस से समाज में उन की हंसाई हो. उन के बीच के रिश्ते गंगा जल की तरह पवित्र हैं लेकिन सुनील इस बात को मानने के लिए कतई तैयार नहीं था कि बीवी जो कह रही है वो सच है. उस के मन में दोनों के बीच अनैतिक संबंधों को ले कर शक का बीज अंकुरित हो चुका था.

मुनेश और सुनील के शांत और सुखद जीवन में बंटी को ले कर तूफान आ चुका था. बातबात पर पतिपत्नी दोनों के बीच तूतू, मैंमैं होती रहती थी. स्वर्ग जैसा घर नरक का अखाड़ा बन चुका था. इस बीच मुनेश ने समझदारी का परिचय दिया.

उस ने ससुर की सहमति पर चरखी दादरी वाला घर छोड़ दिया और परिवार सहित गुरुग्राम में स्पेस सोसाइटी के सैक्टर-93 में फ्लैट ले कर किराए पर रहने लगी. सासससुर चरखी दादरी में ही रहते थे. उन का जब बच्चों से मिलने का मन होता था, वे बच्चों के पास सेक्टर-93 आ जाते थे और उन से मिल कर वापस चरखी दादरी चले जाते थे.

बात सन 2018 की है. सुनील गोदारा रिटायर हो कर घर आ गया था. रिटायर के बाद खाली बचे समय में उस ने एक सुरक्षा एजेंसी में गार्ड की नौकरी जौइन कर ली थी ताकि उस का समय अच्छे से बीते और 2 पैसों के लिए मोहताज न रहे. वैसे भी पतिपत्नी के बीच सालों से अनबन चलती चली आ रही थी.

उन के बीच मतभेद पराकाष्ठा पर थे. दोनों के प्यार के बीच नफरत ने जगह ले ली थी. ऐसे में उन के बीच एक और सर्पकाल कुंडली मार कर बैठ गया था जिस की आग में सुनील भड़क उठा था.

दरअसल, मुनेश अपने नाम से भिवानी में लिए गए दोनों फ्लैट को बेच कर एक क्रेटा कार खरीदना चाहती थी, जिस से वह पार्टियों में शिरकत कर सके. हालांकि पति सुनील के पास उस की अपनी खुद की एसेंट कार थी लेकिन खराब रिश्तों के कारण मुनेश पति की कार में न तो बैठती थी और न ही उस कार को ले कर कहीं जाती थी.

भिवानी के बाढड़ा वाले फ्लैट बेचने को ले कर दोनों के बीच झगड़े होने लगे. पति सुनील कीमती फ्लैट बेचने को तैयार नहीं था जबकि मुनेश अपनी ही जिद पर अड़ी हुई थी कि वो फ्लैट बेच कर क्रेटा कार खरीदेगी तो खरीदेगी. उसे कार खरीदने से कोई नहीं रोक सकता.

मुनेश की इस जिद ने सुनील के गुस्से को और भड़का दिया. उस ने भी बीवी से कह दिया कि देखता हूं तुम कैसे फ्लैट बेचती हो. इस बात को ले कर घर में पतिपत्नी के बीच महासंग्राम छिड़ गया था.

सुनील की जिंदगी कड़वाहट से भर गई थी. एक तो बीवी के अफेयर को ले कर वह पहले से परेशान था. दूसरे करोड़ों रुपए के फ्लैट बीवी औनेपौने दामों में बेचने जा रही थी. बीवी की करतूतों से सुनील बुरी तरह से आजिज आ चुका था. जिंदगी को थोड़ा सूकून देने के लिए उस ने शराब को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया था. वह शराब पीने लगा था.

इसी शराब के नशे में धुत हो कर 8 फरवरी, 2020 की रात 9 बजे के करीब सुनील घर लौटा तो कमरे में पत्नी को न पा कर उस ने दोनों बेटियों से उस के बारे में पूछा. बड़ी बेटी प्रीति ने पापा से कहा, ‘‘मां रसोई में खाना पका रही हैं.’’ बेटी का जवाब सुन कर सुनील लड़खड़ाता हुआ किचन की ओर हो लिया.

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उस समय मुनेश वीडियो कौल पर अपनी छोटी बहन मनीषा से हंसहंस कर बातें कर रही थी. सुनील समझा कि वह अपने प्रेमी बंटी गुर्जर से हंसहंस कर बातें कर रही है. फिर क्या था? सुनील शक की आग में धधक उठा.

उस ने आपा खो दिया और ईर्ष्या की आग में जलते हुए अपनी सर्विस रिवाल्वर से 2 गोलियां मुनेश के पेट और सीने में दाग दीं. गोली लगते ही मुनेश फोन को हाथ में पकड़े हुए फर्श पर जा गिरी और बहन से आखिरी बार कहा, ‘‘बहन…तेरे जीजा ने गोली मार दी है.’’ उस के बाद मुनेश का गरम जिस्म आहिस्ताआहिस्ता ठंडा पड़ने लगा. उस के प्राण पखेरू उड़ चुके थे.

सुनील पुलिस से बचने के लिए अपनी एसेंट कार में सवार हो कर अपने एक दोस्त के घर जा कर छिप गया था. अगली सुबह 9 फरवरी को जब मुनेश गोदारा हत्याकांड ने तूल पकड़ा तो सुनील वहां से भी कार ले कर फरार हो गया था और कई दिनों तक यहांवहां छिपता रहा. आखिरकार 7 दिनों की लुकाछिपी के बाद यानी 15 फरवरी, 2020 को पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया.

बहरहाल, गिरफ्तारी के बाद सुनील गोदारा ने बीवी की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. सुनील की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रिवौल्वर भी बरामद कर लिया गया. बीवी की हत्या कर उस ने रिवौल्वर अपनी कार में छिपा कर रखी थी. उसे बीवी की हत्या का जरा भी अफसोस नहीं था.

उस ने पुलिस को दिए अपने बयान में कहा था, ‘‘बीवी का अफेयर बंटी गुर्जर के साथ चल रहा था. मैं ने उसे समझाने की बारबार कोशिश भी की थी लेकिन वह नहीं मानी तो मजबूर हो कर मुझे यह कदम उठाना पड़ा. मुझे बीवी की हत्या का कोई अफसोस नहीं है.’’

कथा लिखे जाने तक पुलिस फरार चल रहे आरोपी बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी. मृतका के ससुर चंद्रभान ने बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु के खिलाफ इस लिए मुकदमा दर्ज कराया था कि इन्हीं दोनों की वजह से उन की होनहार बहू असमय काल के गाल में जा समाई थी. तीनों आरोपी सुनील गोदारा, बंटी गुर्जर और अनु गुर्जर जेल की सलाखों के पीछे सजा काट रहे थे.   द्य

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधार

भाजपा महामंत्री : भाग 2 – पति के निशाने पर नेता/पत्नी

पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दी. मृतका के ससुर चंद्रभान गोदारा ने बहू की हत्या के लिए अपने बेटे सुनील गोदारा और भाजपा नेता बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु गुर्जर के खिलाफ लिखित शिकायत थानेदार संजय कुमार को दी.

उन की तहरीर पर पुलिस ने तीनों आरोपियों सुनील गोदारा, बंटी गुर्जर और अनु गुर्जर के खिलाफ  भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा पंजीकृत कर के उन की तलाश शुरू कर दी. ये बात 8 फरवरी, 2020 की है.

अगले दिन आरोपियों को गिरफ्तार करने की मांग करते हुए भाजपा कार्यकर्ताओं ने सड़क जाम कर दी थी. वह पुलिस के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे. मामला तूल पकड़ने लगा था. पुलिस बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु को गिरफ्तार करने उस के घर कादरपुर गई तो दोनों पतिपत्नी मौके से फरार थे. आरोपियों को पकड़ना पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई थी.

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जांचपड़ताल में पुलिस को इतना पता चला था कि सुनील गोदारा और उस की बीवी मुनेश गोदारा के बीच रिश्ते काफी समय से खराब चल रहे थे. पत्नी मुनेश के भाजपा नेता बंटी गुर्जर से मधुर संबंध थे. यह बात बंटी गुर्जर की बीवी अनु को भी पता थी. लेकिन पति सुनील ये बात पसंद नहीं करता था. इसी बात को ले कर पतिपत्नी के बीच आए दिन विवाद होता रहता था. ये बात किसी से छिपी नहीं थी.

पुलिस यह मान कर चल रही थी कि मुनेश की हत्या प्रेम संबंधों की वजह से हुई है. मुनेश की कालडिटेल्स में बंटी के साथ लंबीलंबी बातचीत करना पाया गया था. यही हत्या की मूल वजह मान कर पुलिस ने अपनी जांच की दिशा आगे बढ़ाई.

आरोपी सुनील गोदारा को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस उस के संभावित ठिकानों पर दबिश दे रही थी लेकिन वह पुलिस की पकड़ से बहुत दूर था. ऐसा नहीं था कि पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी हुई थी. उसे पकड़ने के लिए पुलिस ने मुखबिरों का जाल भी बिछा रखा था. सुनील की खोजबीन में मुखबिर जुट गए थे.

बात 15 फरवरी, 2020 की है. दोपहर का वक्त था. थानेदार संजय कुमार थाने में मौजूद थे. तभी एक चौंका देने वाली खबर उन के खास मुखबिर ने दी. उस ने बताया कि मुनेश का हत्यारा सुनील गोदारा हयातपुर चौक पर घूमता हुआ देखा गया है. जल्दी करें तो पकड़ा जा सकता है. फिर क्या था? संजय कुमार मुखबिर की सूचना पर उस के द्वारा बताई गई जगह पर आवश्यक पुलिस बल के साथ पहुंच गए.

उन्होंने चौक को चारों ओर से घेर लिया ताकि आरोपी मौके से भाग न सके. सभी पुलिस वाले सादा पोशाक में थे, ताकि आरोपी उन्हें आसानी से पहचान न सके और हुआ भी यही. सुनील गोदारा गिरफ्तार कर लिया गया. उसे पुलिस थाना सेक्टर-10 ए पूछताछ के लिए ले कर आई.

हत्यारे पति सुनील गोदारा के गिरफ्तार होने की सूचना थानेदार संजय कुमार ने पुलिस अधिकारियों को दे दी. तब एसीपी (सिटी) राजिंदर सिंह सूचना पा कर थाना सेक्टर- 10ए पूछताछ के लिए पहुंच चुके थे. उन्होंने सुनील से पूछताछ करनी शुरू की तो उस ने बिना हीलाहवाली के अपना जुर्म कबूल कर किया कि उसी ने बीवी की हत्या की थी.

हत्या की वजह उस ने बीवी का नैतिक पतन बताई थी. उस ने उन्हें बताया कि उस के लाख मना करने के बाद भी वह अपने आशिक से नैनमटक्का करने से बाज नहीं आ रही थी. जिस के कारण परिवार टूट रहा था, इस के बाद उस ने घटना की पूरी कहानी पुलिस को बता दी.

पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया. वहां से जेल भेज दिया गया. सुनील के अलावा दोनों आरोपी बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु अभी भी पुलिस की पकड़ से दूर थे. मुनेश गोदारा हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

35 वर्षीय मुनेश गोदारा मूल रूप से  हरियाणा की रहने वाली थी. उस के घर में मांबाप और 4 भाई बहनें थीं. सब से बड़ा भाई सुनील कुमार जाखड़, उस के बाद खुद मुनेश, उस से छोटा विमलेश और छोटी बहन मनीषा थी. बचपन से ही मुनेश कुशाग्र और प्रखर बुद्धि की थी. पढ़नेलिखने से ले कर बातचीत के कौशल तक सब कुछ अलग था. जिस काम को करने की एक बार वह ठान लेती थी अपनी हिम्मत और साहस के बदौलत उसे कर के ही दम लेती थी.

समय के साथ जवान हुई मुनेश की शादी साल 2001 में चरखी दादरी (हरियाणा) के चंपापुरी में रहने वाले पूर्व फौजी चंद्रभान गोदारा के इकलौते बेटे सुनील गोदारा से हुई थी.

चंद्रभान की इलाके में बड़ी पहचान थी. नियम और उसूल के पक्के चंद्रभान ने सालों तक आर्मी में नौकरी करते हुए शराब को पीना तो दूर की बात, कभी हाथ तक नहीं लगाया था. न ही ऐसे लोगों को वह पसंद करते थे.

वह इकलौते बेटे सुनील को भी अपनी तरह देखना चाहते थे. उन्होंने बेटे को अच्छी तालीम दिलाई और सीख भी दी कि जीवन में आगे बढ़ना है तो कभी शराब मत पीना. अपने को उस का गुलाम कभी मत बनने देना. यदि एक शराब ने अपना गुलाम बना लिया तो जीवन भर उस की गुलामी करते रहोगे. पिता की नसीहत को गांठ बांध कर सुनील ने अपने दिमाग में बैठा ली थी.

तब सुनील आर्मी में जाने की तैयारी कर रहा था. उसी दौरान बहू के रूप में मुनेश गोदारा परिवार में साक्षात लक्ष्मी बन कर आई थी. बीवी के आने के बाद सुनील के बंद भाग्य के दरवाजे खुल गए थे. उस की आर्मी की नौकरी पक्की हो गई थी. ससुर चंद्रभान बहू मुनेश को साक्षात लक्ष्मी मानते थे. उस के शुभ कदमों से घर में खुशियों ने अपने पांव पसार दिए थे.

इसीलिए चंद्रभान उसे बहू कम बेटी ज्यादा मानते थे. रही बात सुनील की, तो वह परिवार से मिलने बीचबीच में घर आता रहता था. इस बीच मुनेश ने 2 बेटियों प्रीति और मोंटी को जन्म दिया. बाद के दिनों में चंद्रभान गोदारा रिटायर हो कर घर आ गए.

आर्मी से रिटायर चंद्रभान गोदारा का घरसंसार बड़े हंसीखुशी से चल रहा था. पैसों की घर में कोई कमी नहीं थी. बेटा कमा रहा था, ससुर की अच्छीखासी पेंशन थी और क्या चाहिए था. प्रीति और मोंटी बड़ी हो रही थीं. बेटियां बड़ी और समझदार हुईं तो मुनेश गृहस्थ आश्रम से बाहर निकल कर समाज के लिए कुछ करने के लिए लालायित होने लगी थी.

मुनेश की सहेली अनु गुर्जर भारतीय जनता पार्टी में काफी दिनों से जुड़ी हुई थी. उस के पति बंटी गुर्जर भाजपा के पुराने सिपाही थे. सहेली को देख कर ही मुनेश के मन में खयाल आया था कि वह भी राजनीति में कदम रखे और गरीबबेसहारों के लिए एक मजबूत कदम बने. उन की बुलंद आवाज बने.

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लेकिन यह मुनेश के लिए आसान नहीं था. वह यही सोच रही थी कि पता नहीं पति इस के लिए तैयार होंगे या नहीं. उन का साथ मिलेगा या नहीं. पति की मरजी के बिना राजनीति में कदम रखा तो घर में तूफान खड़ा हो सकता है. क्या करे? किस से सलाह मशविरा ले? उसी समय उस के मन में एक विचार कौंधा और उस की आंखों के सामने ससुर का चेहरा तैरने लगा. उसे विश्वास था कि ससुरजी उस की बातों को कभी नहीं टाल सकते. वह जरूर उस की भावनाओं को समझेंगे.

एक दिन समय और अवसर देख कर मुनेश ने ससुरजी के सामने अपने मन के भाव प्रकट कर दिए. उस ने कहा कि उस की इच्छा है वह राजनीति में जाना चाहती है. इस के लिए आप की इजाजत और आशीर्वाद दोनों की जरूरत है. अगर आप इजाजत दें तो मैं अपने कदम आगे बढ़ाऊं.

ससुर चंद्रभान बहू की बात सुन कर असमंजस में पड़ गए. उन्होंने बहू की बातों पर विचार किया. काफी सोचने और समझने के बाद उन्होंने बहू को राजनीति में जाने की हरी झंडी दिखा दी. ससुर की ओर से मिली हरी झंडी से मुनेश के हौसले बुलंद हुए और उस ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. ये सब उस की सहेली अनु और उस के पति बंटी गुर्जर के द्वारा संभव हुआ था. इसलिए वह दोनों की अहसानमंद थी. ये बात साल 2013 की है.

यहीं से मुनेश गोदारा के बुरे दिन शुरू हो गए. जिस के चलते उस के जीवन में उठापटक होने लगी. मुनेश ने कभी सोचा नहीं था कि जिस राजनीति की चकाचौंध में उस के पांव बढ़ते जा रहे हैं, इसी राजनीति के कारण एक दिन उस का हंसताखेलता घर तिनकातिनका बिखर जाएगा और उस की सांसों की डोर उस के जिस्म से जुदा हो जाएगी.

अपनी मेहनत और लगन की बदौलत मुनेश गोदारा ने कम समय में राजनीति के महारथियों के बीच अच्छीखासी जगह बना ली थी. जल्द ही उसे चरखी दादरी की जिलाध्यक्ष बना दिया गया. ये सब बंटी गुर्जर की मेहरबानियों की बदौलत संभव हुआ था. बंटी गुर्जर पार्टी का बड़ा नेता माना जाता था. पार्टी में उस की ऊंची पकड़ थी. बड़ेबड़े नेताओं से अच्छे संबंध थे.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

भाजपा महामंत्री : भाग 1 – पति के निशाने पर नेता/पत्नी

हरियाणा प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा की प्रदेश महामंत्री 35 वर्षीय मुनेश गोदारा उभरती हुई एक राजनेत्री थी. इतने बड़े पद पर रहते हुए भी वह अपना काम स्वयं करने में यकीन रखती थी. चाहे वह घरेलू काम हो अथवा रसोई के, जब तक वह खुद से नहीं करती थी उसे चैन नहीं आता और बच्चे भी अधीर रहते थे.

गुरुग्राम (हरियाणा) के सेक्टर-10ए, स्पेस सोसाइटी के 8वीं मंजिल पर रहने वाली मुनेश गोदारा कुछ ही देर पहले बड़े भाई सुनील कुमार जाखड़ के घर से हो कर आई थी. दरअसल, छोटे भाई के बेटे की तबीयत खराब थी, उसे ही देखने मुनेश अकेली मायके आई थी. उस के मायके वाले सेक्टर-83 में रहते थे जो कि उस के फ्लैट से थोड़ी दूरी पर स्थित था.

उस समय रात के लगभग 8 बज रहे थे. रात गहराती चली गई तो बड़े भाई सुनील जाखड़ ने मुनेश से कहा भी था कि आज रात वह वहीं रुक जाए और सुबह होते ही वह उसे घर पहुंचा देंगे. लेकिन मुनेश वहां रुकने के लिए तैयार नहीं हुई थी.

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उस ने बड़े भाई से कहा, ‘‘भैया, भतीजे को देखने आई थी, सो देख लिया. तुम तो मेरी दोनों बेटियों की आदत को जानते ही हो, घर नहीं पहुंची तो दोनों सिर पर पहाड़ उठा कर तांडव करने लगेंगी और बगैर कुछ खाएपीए भूखे ही सो जाएंगी. इसलिए मुझे जाना ही पड़ेगा.

फिर कल सुबह मोंटी के दाखिला के लिए आर्मी स्कूल जाना होगा. तुम तो जानते हो भैया, आर्मी स्कूल है, वहां का नियमकानून बहुत सख्त होता है. जरा सी लापरवाही हुई तो बेटी का दाखिला होने से रुक भी सकता है और फिर भैया, आप ही बताओ किस लड़की को अपना मायका प्यारा नहीं होता.

अपना मायका सभी लड़कियों को प्यारा होता है. उन का बस चले तो जीवन भर यहीं रुक जाएं. इसलिए आज मत रोको. लेकिन मैं जल्दी ही आऊंगी तुम से मिलने, समझे.’’

बहन की शरारत भरी बातों को सुन कर सुनील खिलखिला कर हंस पड़े तो मुनेश से भी अपनी हंसी नहीं रोकी जा सकी. वह भी ठहाका मार कर हंसने लगी. फिर वहां से उठी और निजी वाहन से सेक्टर-93 स्थित अपने घर लौट आई. मायके से घर पहुंचने में मुश्किल से 20 मिनट का समय लगा था.

उस समय रात के 9 बज रहे थे. मुनेश की दोनों बेटियां अपने कमरे में बैठी पढ़ रही थीं. फटाफट कपड़े बदल कर मुनेश सीधे रसोई में जा पहुंची और खाना पकाने में जुट गई थी. वह जान रही थी कि बेटियों के पेट में चूहों ने अपना करतब दिखाना शुरू कर दिया होगा. जरा सी और देर हुई तो उन दोनों से भूख सहन नहीं होगी.

उस समय तक उस का पति सुनील गोदारा अपनी ड्यूटी से लौटा नहीं था. वह एक सुरक्षा एजेंसी में गार्ड की नौकरी करता था. यहां एक बात साफ कर देना चाहता हूं मुनेश के पति और उस के भाई दोनों का ही नाम सुनील था. फर्क सिर्फ इतना कि मुनेश के पति के नाम के आगे गोदारा लगा हुआ था जबकि भाई के नाम के आगे जाखड़ था.

मुनेश ने रोटियां बना ली थीं. गैस के दूसरे चूल्हे पर कड़ाही चढ़ा सब्जी के लिए तड़का लगाने जा रही थी. तभी उस के फोन की घंटी बजी. मुनेश ने स्क्रीन पर नजर डाली तो वह वीडियो काल थी. उस की छोटी बहन मनीषा ने काल की थी. मुनेश गैस बंद कर बहन से बात करने में मशगूल हो गई थी. उसी समय पति सुनील गोदारा ड्यूटी से घर लौट आया.

करीब 16 साल सेना में नौकरी करने के बाद वह वहां से रिटायर हो गया था. रिटायर होने के बाद से वह सुरक्षा एजेंसी में गार्ड की नौकरी कर रहा था. खैर, कमरे में घुसते ही सुनील गोदारा ने बेटियों से उन की मां के बारे में पूछा तो बड़ी बेटी प्रीति ने बता दिया मां रसोई में है, खाना पका रही है.

बेटी का जवाब सुन कर सुनील जिस हालत में था, उसी हालत में रसोई की ओर बढ़ गया. सुनील का मजबूत जिस्म हवा में लहरा रहा था. उस के पांव यहांवहां पड़ रहे थे. उस ने रोज की तरह उस दिन भी जम कर शराब पी रखी थी.

सुनील किचन के दरवाजे के पास पहुंचा तो देखा कि पत्नी दरवाजे की ओर अपनी पीठ कर के फोन पर किसी से हंसहंस कर बातें करने में व्यस्त थी. उसे पति के आने का आभास भी नहीं हुआ. ये देख कर सुनील का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

सुनील ने बीवी को एक भद्दी सी गाली दी. गाली की आवाज कान के पर्दों से टकराते ही मुनेश बुरी तरह से चौंक गई. उस के हाथ से फोन गिरतेगिरते बचा. फिर उस ने पलट कर देखा सामने पति सुनील खड़ा था. उस ने रोजाना की तरह आज भी जम कर शराब पी रखी थी. उस के पैर डगमगा रहे थे.

मुनेश कुछ कहती इस के पहले ही सुनील उस पर चीखा, ‘‘हरामजादी, कुतिया… हजार बार मैं ने तुझे मना किया था कि तू अपनी आदत सुधार ले. उस कमीने से अपने रिश्ते तोड़ ले और अपनी घरगृहस्थी और बच्चों को संभालने में लग, लेकिन तू है कि तेरी मोटी बुद्धि में मेरी कोई बात आसानी से घुसती ही नहीं.

लाख समझाता हूं, तेरे भेजे में घुसता ही नहीं. तेरे कारण मैं ने जिंदगी नर्क बना ली है. तुझ से मैं तंग आ चुका हूं. रोजरोज की किचकिच से आज मैं किस्सा ही मिटा देता हूं. कहते ही नशे में चूर सुनील गोदारा ने होलेस्टर से अपनी सर्विस रिवाल्वर निकाली और 2 गोलियां बीवी के पेट और सीने में दाग दीं.

गोली लगते ही मुनेश हाथ में फोन लिए फर्श पर धड़ाम से गिर गई और उस के मुंह से आखिरी शब्द निकला, ‘‘बहन… तेरे जीजा सुनील ने गोली मार दी है.’’ इतना कहते ही मुनेश की सांसें थम गईं.

गोली की आवाज सुनते ही प्रीति और मोंटी दौड़ीभागी रसोई में पहुंची तो देखा मां चित अवस्था में फर्श पर पड़ी अपने ही खून में सनी दम तोड़ चुकी हैं. उस के पापा सुनील गोदारा वहां नहीं थे. दोनों को समझते देर न लगी कि पापा ने मम्मी की गोली मार कर हत्या कर दी और फरार हो गए. प्रीति और मोंटी को कुछ सूझ नहीं रहा था कि ऐसे में वे क्या करें? मां की लाश के पास दोनों खड़ी जोरजोर से चीखचिल्ला रही थीं.

अचानक गोदारा के घर से रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी वहां जमा हो गए थे. हंसमुख मुनेश की हत्या की खबर सुन कर सभी हतप्रभ रह गए थे. इधर तब तक मनीषा ने बहन की हत्या की खबर बड़े भाई सुनील कुमार जाखड़ को दे दी थी. बहन की हत्या की खबर सुनते ही उन्हें जैसे काठ मार गया हो, ऐसे हो गए थे. सुनील आननफानन में अपने निजी वाहन से मुनेश के घर सेक्टर-93, स्पेस सोसाइटी पहुंच गए. इस बीच प्रीति अपने बाबा चंद्रभान गोदारा को मां की हत्या की खबर फोन से दे चुकी थी. वो चरखी दादरी में दादी के साथ रहते थे. बहू की हत्या की खबर सुनते ही पिता की बूढ़ी आंखे पथरा सी गईं. उन के पांव लड़खड़ा से गए और वो बिस्तर पर जा गिरे. उन्हें बेटे की घिनौनी करतूत पर घिन आ रही थी.

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खैर, होनी को कौन टाल सकता है, जो होना है वो तो हो कर रहता है. बहू की हत्या की जानकारी होते ही ससुर चंद्रभान गोदारा आननफानन में सेक्टर-93 पहुंचे. अब तक यह खबर जंगल में आग की तरह समूचे गुरुग्राम में फैल चुकी थी. मुनेश कोई छोटीमोटी हस्ती नहीं थी.

वह भाजपा किसान मोर्चा की प्रदेश महामंत्री थी. हरियाणा राज्य में तेजी से उभरती हुई राजनेत्री थी. राजनीति में उस ने अपना अच्छा मुकाम बना लिया था. बड़ेबड़े नेताओं से उस के अच्छे संबंध थे. इन्हीं के बल पर वह मजलूमों और गरीबों के हक की लड़ाई लड़ती थी.

प्रदेश महामंत्री मुनेश गोदारा की हत्या की खबर मिलते ही सेक्टर-93 में धीरेधीरे भाजपा कार्यकर्ताओं और उस के शुभचिंतकों का जमावड़ा होने लगा था. ससुर चंद्रभान ने थाना सेक्टर-10 ए के थानेदार संजय कुमार को फोन कर के घटना की जानकारी दी. घटना की सूचना मिलते ही थानेदार संजय कुमार आननफानन में फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उस समय रात के 11 बज रहे थे.

मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए थानेदार संजय ने घटना की सूचना कमिश्नर मोहम्मद आकिल, डीसीपी (ईस्ट) चंद्र मोहन, डीसीपी (वेस्ट) सुमेर सिंह और एसीपी (सिटी) राजिंदर सिंह को दे दी थी. इधर भाजपा कार्यकर्ता हत्यारे पति सुनील गोदारा को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे.

घटना की सूचना मिलते ही पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए थे. मौके पर नारेबाजी कर रहे भाजपा कार्यकर्ताओं को उन्होंने समझाबुझा कर शांत किया और उन्हें भरोसा दिया कि जल्द से जल्द हत्यारा पकड़ लिया जाएगा. कानून को अपना काम करने दें. पुलिस अधिकारियों के आश्वासन के बाद वे शांत हुए.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. लाश चित अवस्था में थी. मृतका के हाथ में मोबाइल फोन था. पुलिस ने सब से पहले मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया. फिर किचन की तलाशी ली. तलाशी के दौरान मौके से कारतूस के 2 खोखे बरामद हुए.

पुलिस ने मृतका मुनेश की दोनों बेटियों प्रीति और मोंटी से हत्या के बारे में पूछताछ की. दोनों ने पिता के ऊपर आरोप लगाते हुए मां को गोली मारने की बात कही थी. मतलब साफ था कि पति सुनील गोदारा ने ही मुनेश की गोली मार कर हत्या की थी. घटना को अंजाम देने के बाद वह मौके से अपनी एसेंट कार में बैठ कर फरार हुआ था.

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जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

भाजपा महामंत्री : पति के निशाने पर नेता/पत्नी

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