झूठ बोले कौआ काटे : एक अदद घर की तलाश

प्रेम नेगी काफी चिंतित था. शहर में नौकरी तो मिल गई, मगर मकान नहीं मिल रहा था. कई जगह भटकता रहा. उसे कभी मकान पसंद आता, तो किराया ज्यादा लगता. कहीं किराया ठीक लगता, तो बस्ती और माहौल पसंद नहीं पड़ता था. कहीं किराया और मकान दोनों पसंद पड़ते, तो वह अपने कार्यस्थल से काफी दूर लगता. क्या किया जाए, समझ नहीं आ रहा था. आखिर कब तक होटल में रहता. उसे वह काफी महंगा पड़ रहा था.

यों ही एक महीना बीतने पर उस की चिंता और ज्यादा बढ़ गई. एक दोपहर लंच के समय उस ने अपने सीनियर सहकर्मचारियों से अपनी परेशानी कह दी. उस की परेशानी सुन कर वे हंस पड़े.

“बेचारा आशियाना ढूंढ़ रहा है,” एक बुजुर्ग बोल पड़े.

आखिर क्लर्क के ओहदे पर कार्यरत एक शख्स उस की मदद में आया. ओम तिवारी नाम था उस का. लंबा कद. घुंघराले बाल. मितभाषी. वह पिछले 6 साल से यहां कार्यरत था.

“शाम को मेरे साथ चलना,” वह बोला.

उस शाम ओम तिवारी उसे अपनी बाइक पर बिठा कर निकल पडा.  20 मिनट राइड करने के बाद दोनों एक भीड़भाड़ गली से गुजर कर संकरी गली में आए, जिस के दोनों ओर कचोरी, समोसे और गोलगप्पे लिए ठेले वाले खड़े थे और युवक, युवतियां और बच्चे खड़ेखड़े खाने में व्यस्त थे.

कुछ पल के बाद वे एक खुले से मैदान में आए, जहां कुछ मकान दिखाई पड़े. ट्रैफिक के शोरगुल से दूर वहां शांति थी. कुछ मकान को पार करते हुए वे एक डुप्लैक्स के सामने आ कर रुके. बरांडे का गेट खोल कर अंदर प्रवेश किया.

डोर बेल बजाते ही दरवाजा खुला और एक अधेड़ उम्र के आदमी ने उन्हें देखते ही स्वागत किया, “अरे ओम, तुम यहां…”

“चाचाजी, ये मेरे दोस्त हैं प्रेम नेगी,” उस ने तुरंत काम की बात कर डाली, “ये हाल ही में दफ्तर में कैशियर के ओहदे पर नियुक्त हुए हैं. इन्हें किराए पर मकान चाहिए. और मुझे याद आया कि आप का मकान खाली है,“ फिर प्रेम नेगी की तरफ मुड़ कर वह बोला, “ये मेरे चाचाजी हैं, कमल शर्मा. हाल ही में हाईकोर्ट में क्लर्क के ओहदे से रिटायर हुए हैं.“

चाचा कमल शर्मा ने उस छोरे को सिर से पांव तक निरखा और फिर अपने भतीजे की ओर देख कर बोला, “ठीक है, मगर एक शर्त है. आप शादीशुदा हैं तो ही मैं अपना मकान किराए पर दूंगा. वरना मेरा तजरबा है कि कई कुंवारे छोरे यहां बाजारू लड़कियों को लाना शुरू कर देते हैं.“

“लेकिन, मैं तो शादीशुदा हूं,” प्रेम नेगी तुरंत बोल पड़ा और फिर अपने दोस्त ओम तिवारी की तरफ देख कर बोला, “मैं मकान मिलते ही अपनी घरवाली को ले आऊंगा.”

“ठीक है, आइए और मकान देख लीजिए.”

मकान मालिक कमल शर्मा ने उठ कर उन्हें अपने साथ ले कर बगल में जो खाली मकान था, वह दिखा दिया. मकान में 2 कमरे, रसोई और आगे आलीशान बरांडा था. कमरों में अटैच टौयलेट बाथरूम भी थे. उसे मकान पसंद आया.

“किराया 5,000 रुपए प्रति माह,” मकान मालिक कमल शर्मा ने प्रेम नेगी को किराया बता दिया.

फिर चाचा ने अपने भतीजे की तरफ देख कर कहा, “वैसे तो 6 महीने का किराया एडवांस लेने का दस्तूर है, लेकिन क्योंकि तुम्हें मेरा भतीजा ले कर आया है, मैं तुम से सिर्फ 3 महीने का एडवांस लूंगा. बोलो, है मंजूर?”

“मंजूर है,“ प्रेम नेगी खुशी से बोल पडा.

वह अगले ही दिन किराए के मकान में रहने आ गया. उसे मकान तो मिल गया, लेकिन झूठ बोल कर. वह शादीशुदा नहीं था. मकान मालिक से उस ने झूठ बोला था. यहां तक कि ओम तिवारी भी समझ रहा था कि वह शादीशुदा था.

2 सप्ताह यों ही बीत गए, फिर एक रोज मकान मालिक कमल शर्मा ने उस से पूछ ही लिया, “कब ला रहे हो अपनी बीवी को?”

यह सुन कर वह चौंक गया. दिनरात उपाय सोचने लगा. क्या किया जाए? बीवी को कहां से लाए?

एक दोपहर लंच के समय वह खाना खा कर अपनी केबिन में आराम से कुरसी पर आंखें मूंदे बैठा था कि उसे एक लड़की की आवाज सुनाई पड़ी.

“क्या आप ही प्रेम नेगी हैं?” अपनी आंखें खोलते ही वह हैरान रह गया.

एक अत्यंत खूबसूरत लंबे कद वाली, गोल चेहरे पर बड़ी आंखें और कमर तक झुके हुए लंबे बाल, गुलाबी सलवार और हलके हरे कमीज पर सफेद दुपट्टा ओढ़े हुए लड़की उस के सामने थी.

“जी,” वह बोल पड़ा, “कहिए, क्या काम है?”

“मैं रितू कश्यप हूं. 2 दिन पहले ही औडिट सैक्शन में कंप्यूटर औपरेटर की हैसियत से ज्वौइन किया है. मैं ने सुना है कि आप ने हाल ही में अपने लिए मकान ढूंढ़ा है. क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं मकान ढूंढ़ने में?”

“जी,” वह एकदम से हड़बड़ा गया, ”आ… आप को मकान चाहिए?” इतना कह कर वह गहरी सोच में डूब गया.

उस के भीतर से आवाज आने लगी. यही मौका है, हां कर दे. इसे ही अपने साथ कमरे में रख ले झूठमूठ अपनी पत्नी बना कर. मगर क्या वह इस के लिए राजी होगी?

“शाम को दफ्तर से छूटते ही मुझे मिलना. मैं जरूर आप की मदद कर दूंगा,” उस ने लड़की को आश्वस्त करते हुए कहा.

शाम को दफ्तर से छूटते ही वह रितू को औटोरिकशा में अंबेडकर पार्क ले आया. दोनों एक बेंच पर बैठे. उस ने थोड़ी देर सोचा. बात कहां से शुरू की जाए. फिर वह बोला, “देखिए रितूजी, मैं आप से झूठ नहीं बोलूंगा. सच ही कहूंगा. मैं ने किराए का मकान झूठ बोल कर लिया है. सरासर झूठ…”

“कैसा झूठ…?“ रितू ने पूछा.

“यही कि मैं शादीशूदा हूं. वैसे, मैं अभी कुंवारा हूं.”

“लेकिन, इस से मुझे क्या…?” रितू ने पूछ लिया.

“यदि तुम्हें मेरे मकान का एक कमरा चाहिए, तो तुम्हें मेरी पत्नी बन कर रहना पड़ेगा, वरना मुझे भी वो मकान खाली करना पड़ेगा.”

“पत्नी बन कर…” वह आश्चर्यचकित रह गई. फिर लड़के को घूरती रही. दिखने में तो अच्छा है. भला भी लगता है. वह सोचने लगी. फिर कालेज में तो बहुत नाटक किए हैं. कई स्मार्ट लडकों को अपने पीछे लट्टू बना कर घुमाया है. एक और नाटक सही. देखते हैं कि कहां तक सफलता हासिल होती है.

“मंजूर है,” वह आत्मविश्वास के साथ बोली.

“क्या…?” वह हक्काबक्का सा रह गया. उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि कोई लड़की इतनी जल्दी इतना बड़ा निर्णय ले सकती है.

“क्या तुम भी मेरे साथ झूठ बोल कर रहोगी?”

“बिलकुल,” वह बोली, ”चलिए, मकान दिखाइए.”

“देखिए रितूजी, ये झूठ सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगा. हमारा मकान मालिक और दफ्तर का कोई भी इस राज को जान न पाए, ध्यान रहे… ये सिर्फ नाटक है,” उस ने चेतावनी दे कर कहा.

“आप बेफिक्र रहिए. चलिए, मकान देखते हैं.“

अगले दिन सवेरेसवेरे रितू अपना सूटकेस ले कर प्रेम के घर चली आई. उस ने मकान के कमरों का निरीक्षण किया. दोनों कमरे अलगअलग थे और दोनों में अटैच बाथरूम और टौयलेट देख कर वह हंस पड़ी.

“वाह, कमरे तो बिलकुल अलग हैं. हम दोनों आराम से अलगअलग रह सकते हैं.”

प्रेम ने मकान मालिक को बुला कर रितू का परिचय अपनी बीवी के तौर पर करवा दिया.

“रितू को यहां एक स्कूल में टीचर की नौकरी मिली है. उस का समय भी दफ्तर की तरह ही 11बजे से 5 बजे है. हम दोनों साथ ही काम पर जाएंगे और लौटेंगे.”

“ठीक ही हुआ. तुम जल्दी ही अपनी बीवी को ले आए,” मकान मालिक ने भी खुश होते हुए कहा.

और फिर नाटक शुरू हो गया.

प्रेम और रितू एकसाथ मकान में रहने लगे, मियांबीवी की तरह. दोनों का प्रवेश द्वार एक ही था, लेकिन बरांडा पार करते हुए दोनों अलगअलग कमरे में दाखिल हो जाते. दोनों साथसाथ दफ्तर जाते और छूटने के बाद बाजार में घूम कर रैस्टोरैंट में शाम का खाना खा कर ही घर लौटते. एकाध महीने बाद ही प्रेम अपने गांव से बाइक भी ले आया. फिर दोनों हमेशा बाइक पर एकसाथ नजर आने लगे. दफ्तर में किसी को जरा सा भी शक नहीं हुआ. यहां तक कि ओम तिवारी को भी नहीं.

दिन तो व्यस्तता में गुजर जाता, लेकिन रात को दोनों अलगअलग कमरे में बिस्तर में लेटे सोचने लगते. प्रेम सोचता, “क्या अजीब परिस्थिति है? कुंवारा होते हुए भी शादीशुदा होने का नाटक करना पड़ रहा है, वह भी एक खूबसूरत लड़की के साथ.”

रितू कभीकभार रात में कुछ आहट सुनते ही जाग उठती. कहीं वह बंदा मेरे कमरे में आने की कोशिश तो नहीं कर रहा? क्या भरोसा? मौका मिलते ही पतिपत्नी के नाटक को सही बना दे. वाह रितू, तू ने भी बड़ी हिम्मत की है. मर्द के साथ रात बिता रही है. यदि कोई अनहोनी हो गई तो…?

व्यस्त दुनिया में कोई क्या कर रहा है, कैसे जी रहा है, यह सोचने की किसी को तनिक भी फुरसत नहीं होती. लेकिन जहां किसी लड़केलड़की के संदिग्ध संबंधों की बात आती है, वहां झूठ ज्यादा देर तक छुपा नहीं रहता और सच सिर चढ़ कर बोलता है. भूख, बीमारी, गरीबी व गंदगी सहन करने वाला समाज यदि कोई अनैतिक संबंधों के बारे में पता चल जाए तो फिर उसे कतई सहन नहीं कर सकता. फिर यदि कुंवारे लड़कालड़की हों, तो फिर बात ही क्या है?

दफ्तर में ओम तिवारी को भी भनक लग गई.

“रितू को नकली बीवी बना कर बड़े मजे लूट रहे हो यार… कभीकभार हमें भी मौका दे दिया करो. आखिर मकान तो हम ने ही दिलवाया है. खाली भी करवा सकते हैं. समझे?“

यह सुन कर प्रेम नेगी के पांव तले जमीन सरक गई.

शाम को उस ने रितू से कहा, “हमारा झूठ पकड़ा गया है. ओम तिवारी को इस का पता चल गया है. वह हमारे मकान मालिक को जरूर बता देगा.”

रितू के चेहरे पर भी चिंता की रेखाएं उभर आईं.

उस रात प्रेम नेगी को नींद नहीं आई. उसे यकीन हो गया कि उस का झूठ अब ज्यादा चलने वाला नहीं था. फिर उसे डर था कि उस की इस मजबूरी का फायदा उठाते हुए कहीं ओम तिवारी उस के घर आ कर रितू के साथ जबरदस्ती न करने लगे. उस की नीयत ठीक नहीं थी. उसे रात भयानक लगने लगी थी. उस ने तय कर लिया कि सवेरे सबकुछ मकान मालिक को सहीसही बता देगा. उस ने अपने सेलफोन की घड़ी में देखा तो रात के साढ़े बारह बज चुके थे, तभी किसी ने उस का दरवाजा खटखटाया.

“नेगी… दरवाजा खोलो. मैं हूं शर्मा… मकान मालिक.”

“इतनी रात… मकान मालिक,“ वह हड़बड़ा गया.

कुछ पल वह सोचता रहा कि दरवाजा खोले या नहीं. खटखटाहट दोबारा हुई.

बिस्तर से उठ कर उस ने दरवाजा खोला.

“नेगीजी… बड़े मजे लूट रहे हो यार,” ओम तिवारी ने कुछ बहक कर कहा. उस ने शराब पी रखी थी और मकान मालिक कमल शर्मा मुसकरा रहा था. वह बोला, “आज की रात ओम यहीं सोएगा, तुम्हारे साथ.”

फिर वे दोनों बेझिझक अंदर घुस आए. ओम तिवारी के हाथ में शराब की बोतल थी और वह नशे में था. मकान मालिक कमल शर्मा के मुंह से भी बदबू आ रही थी. मेज पर बोतल रख कर ओम तिवारी सोफे पर बैठ गया और बहकी हुई आवाज में बोला, “कहां है तुम्हारी नकली बीवी? महबूबा… आज तो हमें उस से ही मिलना है.”

“ तिवारीजी….देखिए रितू बीमार है और अपने कमरे में सो रही है,” वह गिड़गिड़ाने लगा.

फिर उस ने मकान मालिक कमल शर्मा के सामने अत्यंत दीन हो कर कहा, “माफ कीजिए. मैं ने झूठ बोला था. रितू मेरी बीवी नहीं, बल्कि मेरे ही दफ्तर में कार्यरत है. उसे भी मकान की जरूरत थी, इसलिए मैं उसे यहां ले आया. गलती मेरी है. मैं ने झूठ बोला था. आप कहें तो हम कल ही मकान खाली कर देंगे.”

“छोड़ यार… मकान खाली करने को कौन कहता है?” ओम तिवारी नशे में बोल पड़ा, “मुझे तो सिर्फ रितू चाहिए. तुम अकेलेअकेले मजे लूटते हो. आज हमें भी उस का स्वाद चखने दो.”

ओम तिवारी लड़खड़ाता हुआ अंदर के किवाड़ की तरफ आगे बढ़ा, जहां पर रितू सोई हुई थी. उस ने जोर से धक्का दे कर दरवाजा खोलने की कोशिश की.

“दरवाजा खोल जानेमन, हम भी प्रेम के जिगरी दोस्त हैं.”

“नहीं तिवारी, तुम ऐसा नहीं कर सकते,” चीख कर प्रेम उस की ओर लपका और उसे धक्का दे कर दरवाजे से दूर धकेल दिया. मकान मालिक कमल शर्मा ने तभी उस की तरफ लपक कर उसे अपने दोनों हाथों से जकड़ लिया, फिर वहीं पर दोनों के बीच हाथापाई शुरू हो गई.

प्रेम नेगी ने मकान मालिक कमल शर्मा को 2-3  घूंसे जड़ दिए. उधर ओम तिवारी ने जोर से दरवाजे पर लात मारी और दरवाजा खुल गया. कमरे में अंधेरा था. ओम तिवारी ने प्रवेश किया.

“ओह,” अंदर घुसते ही वह जोर से चीखा, जैसे उस पर किसी ने करारा वार किया हो. कमल शर्मा की गिरफ्त से छूटने की कोशिश करते हुए प्रेम चिल्लाया, “रितू, यहां से भाग निकल.” तभी कमरे में लाइट जली और हाथ में टूटा हूआ गुलदस्ता लिए रितू कमरे से बाहर आई.

“छोड़ दे बदमाश, वरना इसी गुलदस्ते से तेरा भी सिर फोड़ दूंगी.”

मकान मालिक कमल शर्मा की तरफ आंखें तरेर कर रितू ने  देखा. कमल शर्मा ने सहम कर देखा, कमरे में ओम तिवारी बेहोश पड़ा हुआ है. उस ने झट से प्रेम को छोड़ दिया.

“रितू, तुम ठीक तो हो,” प्रेम उस की ओर दौड़ आया.

तभी वहां आंगन में पुलिस की जीप आ कर रुकी और तुरंत 2 पुलिस वाले और एक महिला अफसर अंदर आ पहुंचे.

“रितू कश्यप आप हैं?” महिला अफसर ने रितू की तरफ देख कर पूछा.

“ जी मैडम, ये मेरे मकान मालिक हैं- कमल शर्मा और वो जो कमरे में शराब के नशे में धुत्त पड़ा है, वो ओम तिवारी मेरे ही दफ्तर में काम करता है. इन दोनों ने हमारे घर में घुस कर मेरे पति को पीटा और मुझ पर बलात्कार करने की कोशिश की. इन्हें गिरफ्तार कीजिए. कल सुबह हम दोनों थाने आ कर रिपोर्ट लिखवा देंगे.“

“मैं… मैं बेकुसूर हूं,”  बोलतेबोलते मकान मालिक कमल शर्मा की घिग्घी बंध गई. 2 पुलिस वाले बेहोश ओम तिवारी को उठा कर ले गए और महिला अफसर ने मकान मालिक कमल शर्मा को धक्का दे कर कमरे से बाहर धकेल किया.

पुलिस की जीप के जाते ही प्रेम और रितू ने एकदूसरे की ओर बड़े प्यार से देखा.

“रितू… ये पुलिस, तुम ने बुलाई थी?” वह आश्चर्यचकित हो उठा.

“बिलकुल…” रितू ने कहा, “खतरा भांप कर मैं ने ही महिला सुरक्षा हेल्पलाइन पर अपने मोबाइल से फोन कर दिया था.”

“तुम सचमुच बहादुर हो,” कह कर प्रेम ने उस का हाथ चूम लिया.

“तुम भी तो बड़े प्यारे हो, जो मेरी खातिर अपनी जान जोखिम में डाल उन बदमाशों से भिड़ गए,” रितू ने भी प्रेम के गालों पर हलकी सी चुम्मी ले ली.

“मगर, तुम ने झूठ क्यों बोला?” प्रेम ने मुसकरा कर पूछा, “हम पतिपत्नी तो हैं नहीं, फिर कल थाने में रिपोर्ट कैसे लिखवाएंगे?”

“कोई बात नहीं,” रितू खुशी से बोल पड़ी, “कल सुबह 11 बजे हम शादी पंजीकरण के लिए अदालत जाएंगे, फिर कानूनी तौर पर पतिपत्नी बन कर पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखवाएंगे. आखिर कब तक झूठ बोलते रहेंगे? वह कहावत है न, झूठ बोले कौआ काटे. बोलो है मंजूर?”

“मंजूर है, मंजूर… बीवीजी,” प्रेम ने उसे आलिंगन में जकड़ लिया.

तारे जमीन पे: बचपन की टीस

कालोनी के पार्क से ‘चौक्का’, ‘छक्का’ का शोर गूंजने लगा था. पार्क में अभी धूप पूरी तरह नहीं उतरी थी कि कालोनी के उत्साही किशोर खिलाड़ी नवीन, रजत, सौरभ, रौबिन, अनुराग, शेखर, विलास और सुहास अन्य सभी मित्रों के साथ मैदान में आ जमा हुए. परीक्षा नजदीक थी, पर इन क्रिकेट के दीवानों के सिर पर तो क्रिकेट का जादू सवार था. ऐसे में मम्मीपापा की नसीहतें सूखे पत्तों की तरह हवा में उड़ जाती थीं. कहां रोमांचक खेल कहां नीरस पढ़ाई.

सौरभ अपनी मम्मी की नजरों से बच कर घर से जैसे ही निकला, मम्मी दूध वाले की आवाज सुन कर बाहर आ गईं. सौरभ को चुपके से निकलते देख क्रोधित हो उठीं. फिर तो उसे मम्मी की इतनी फटकार सुननी पड़ी कि रोंआसा हो उठा.  मित्र मंडली में पहुंचते ही सौरभ बोला, ‘‘मम्मीपापा तो हमें कुछ समझते ही नहीं. हमारी पसंदनापसंद से उन्हें कुछ लेनादेना ही नहीं.’’

शेखर भी हाथ नचाते हुए बोला, ‘‘सचिन व गावस्कर के मम्मीपापा का उन के साथ ऐसा व्यवहार रहता तो वे क्रिकेट के सम्राट न बन पाते.’’  नवीन भी बड़े आक्रोश में था. उस के पापा ने तो रात को ही उस का बैट कहीं छिपा दिया था. फिर भी उस के कदम रुके नहीं. सीधे पार्क में पहुंच गया.

दूसरे दिन शनिवार का अवकाश था. आसपास के फ्लैटों में बड़ी रौनक थी. कहीं लजीज नाश्ते की फरमाइश हो रही थी तो कहीं बाहर लंच पर जाने का प्रोग्राम बन रहा था, पर इन सिरफिरे किशोरों पर तो सिर्फ क्रिकेट का भूत सवार था.

पार्क के दूसरी ओर राहुलजी का बंगला दिखाई दे रहा था. वहां की दास्तान और अलग थी. राहुलजी का इकलौता बेटा राजेश भी पार्क में खे रहे बच्चों की ही उम्र का था पर उस की मम्मी रीमा किसी जेलर से कम नहीं थीं. राजेश की दशा भी किसी कैदी सी थी. कड़े अनुशासन में उस की दिनचर्या में सिर्फ पढ़ाई करना ही शामिल था. मौजमस्ती, खेलकूद का उस में कोई स्थान न था. राहुल व रीमा के विचार से चौक्के व छक्के लगाने वाले बच्चे बहुत ही गैरजिम्मेदार एवं बिगड़े होते हैं. वे अपने बेटे राजेश को इन लड़कों से दूर रखते थे. रास्ते में आतेजाते जब कभी राहुल दंपती का सामना इन बच्चों से हो जाता, तो दोनों बड़ी बेरुखी से मुंह फेर कर निकल जाते. बच्चे भी उन्हें देख कर सहम जाते थे.

आज अवकाश के दिन भी राजेश सवेरे से ही किताबी कीड़ा बना था. बच्चों की उत्साह भरी किलकारियां उस के भी कानों तक पहुंच रही थीं. उस का मन मचल उठता पर मम्मी की कड़ी पाबंदी के कारण मन मसोस कर रह जाता. जितना पढ़ाई में मन लगाने की कोशिश करता मन उतना ही पंछी बन खेल के मैदान में उड़ने लगता.

राजेश इसी उधेड़बुन में बैठा था कि तभी अजीब सी गंध महसूस होने लगी. उस के पापा तो बहुत सवेरे ही जरूरी काम से शहर से बाहर गए थे. मम्मी भी किट्टी पार्टी में चली गई थीं. अवसर पा कर रसोइया रामू तथा शंकर भी 1 घंटे की छुट्टी ले कर किसी नेता के दर्शन करने चले गए थे. धीरेधीरे गंध राजेश के दिमाग पर छाने लगी. घरेलू बातों से वह बिलकुल अनजान था. पढ़ाईलिखाई के अलावा मम्मीपापा ने उसे कुछ बताया ही न था.

स्वादिष्ठ लंच व डिनर खाने की मेज पर हो जाता. बाहर जाना होता तो कार दरवाजे पर आ खड़ी होती. अब क्या करे? घबराहट के मारे वह थरथर कांपने लगा. बेहोशी सी आने लगी. सहायता के लिए किसे पुकारे? सामने बच्चे खेल रहे थे पर उन्हें किस मुंह से पुकारे? मम्मी तो उन्हें बिगड़े लड़कों के खिताब से कई बार विभूषित कर चुकी थीं. न जाने कैसे उस के मुंह से नवीन… नवीन… सौरभ… सौरभ… की आवाजें निकलने लगीं.

बच्चों के कानों में जब राजेश की आवाज टकराई तो वे आश्चर्य में डूब गए. खेल वहीं रुक गया. उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था पर रजत ने देखा राजेश सहायता के लिए हाथ से इशारा कर रहा था. फिर क्या था, बैटबौल छोड़ कर सारे बच्चे बंगले की ओर दौड़ पड़े.

राजेश बेहोश हो चुका था. नवीन व सौरभ उसे उठा कर खुले स्थान में ले आए. तब तक रजत, शेखर, सुहास ने घर के सारे दरवाजे, खिड़कियां खोल कर गैस सिलैंडर की नोब बंद कर दी. दरअसल, रसोइया जाने की जल्दी में गैस बंद करना भूल गया था. सौरभ ने तुरंत ऐंबुलैंस के लिए फोन कर दिया.

उसी समय राजेश की मम्मी रीना भी किट्टी पार्टी से लौट आईं. सारी बात जान कर वे बच्चों के सामने ही रो पड़ीं. आज इन बच्चों के कारण एक बड़ी दुर्घटना घटने से टल गई थी. 2 दिन में जब राजेश सामान्य हो गया तो सभी बच्चे उस से मिलने आए. तब राहुलजी ने बारीबारी से सभी बच्चों को गले से लगा लिया. अब वे जान चुके थे कि पढ़ाईलिखाई के साथसाथ खेलकूद भी जरूरी है. इस से सूझबूझ व आपसी सहयोग व मित्रता की भावनाएं पनपती हैं.

अगली शाम को जब क्रिकेट टीम कालोनी के पार्क में इकट्ठी हुई तो अधिक चौक्के व छक्के राजेश ने ही लगाए. सामने खड़ी उस की मम्मी मंदमंद मुसकरा रही थीं. उन्हें मुसकराते देख कर बच्चों को लगा जैसे तपिश भरी शाम के बाद हलकीहलकी बरसात हो रही हो.

क्या वही प्यार था : दीदी बाबा का प्यार क्या रंग लाया

दादी और बाबा के कमरे से फिर जोरजोर से लड़ने की आवाजें आने लगी थीं. अम्मा ने मुझे इशारा किया, मैं समझ गई कि मुझे दादीबाबा के कमरे में जा कर उन्हें लड़ने से मना करना है. मैं ने दरवाजे पर खड़े हो कर इतना ही कहा कि दादी, चुप हो जाइए, अम्मा के पास नीचे गुप्ता आंटी बैठी हैं. अभी मेरी बात पूरी भी नहीं हुई कि दादी भड़क गईं.

‘‘हांहां, मुझे ही कह तू भी, इसे कोई कुछ नहीं कहता. जो आता है मुझे ही चुप होने को कहता है.’’

दादी की आवाज और तेज हो गई थी और बदले में बाबा उन से भी जोर से बोलने लगे थे. इन दोनों से कुछ भी कहना बेकार था. मैं उन के कमरे का दरवाजा बंद कर के लौट आई.

दादीबाबा की ऐसी लड़ाई आज पहली बार नहीं हो रही थी. मैं ने जब से होश संभाला है तब से ही इन दोनों को इसी तरह लड़ते और गालीगलौज करते देखा है. इस तरह की तूतू मैंमैं इन दोनों की दिनचर्या का हिस्सा है. हर बार दोनों के लड़ने का कारण रहता है दादी का ताश और चौपड़ खेलना. हमारी कालोनी के लोग ही नहीं बल्कि दूसरे महल्लों के सेवानिवृत्त लोग, किशोर लड़के दादी के साथ ताश खेलने आते हैं. ताश खेलना दादी का जनून था. दादी खाना, नहाना छोड़ सकती थीं, मगर ताश खेलना नहीं.

दादी के साथ कोई बड़ा ही खेलने वाला हो, यह जरूरी नहीं. वे तो छोटे बच्चे के साथ भी बड़े आनंद के साथ ताश खेल लेती थीं. 1-2 घंटे नहीं बल्कि पूरेपूरे दिन. भरी दोपहरी हो, ठंडी रातें हों, दादी कभी भी ताश खेलने के लिए मना नहीं कर सकतीं. बाबा लड़ते समय दादी को जी भर कर गालियां देते परंतु दादी उन्हें सुनतीं और कोई प्रतिक्रिया दिए बगैर उसी तरह ताश में मगन रहतीं. कई बार बहुत अधिक गुस्सा आने पर बाबा, दादी के 1-2 छड़ी भी टिका देते. दादी बाबा से न नाराज होतीं न रोतीं. बस, 1-2 गालियां बाबा को सुनातीं और अपने ताश या चौपड़ में मस्त हो जातीं.

एक खास बात थी, वह यह कि दोनों अकसर लड़ते तो थे मगर एकदूसरे से अलग नहीं होना चाहते थे. जब दोनों की लड़ाई हद से बढ़ जाती और दोनों ही चुप न होते तो दोनों को चुप कराने के लिए अम्मा इसी बात को हथियार बनातीं. वे इतना ही कहतीं, ‘‘आप दोनों में से किसी एक को देवरजी के पास भेजूंगी,’’ दोनों चुप हो जाते और तब दादी, बाबा से कहतीं, ‘‘करमजले, तू कहीं रहने लायक नहीं है और न मुझे कहीं रहने लायक छोड़ेगा,’’ और दोनों थोड़ी देर के लिए शांत हो जाते.

खैर, गुप्ता आंटी तो चली गई थीं मगर अम्मा को आज जरा ज्यादा ही गुस्सा आ गया था. सो, अम्मा ने दोनों से कहा, ‘‘बस, मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती. अभी देवरजी को चिट्ठी लिखती हूं कि किसी एक को आ कर ले जाएं.’’

अम्मा का कहना था कि बाबा हाथ जोड़ कर हर बार की तरह गुहार करने लगे, ‘‘अरी बेटी, तू बिलकुल सच्ची है, तू हमें ऊपर बनी टपरी में डाल दे, हम वहीं रह लेंगे पर हमें अलगअलग न कर. अरी बेटी, आज के बाद मैं अपना मुंह सी लूंगा.’’

अभी बात चल ही रही थी कि संयोग से चाचा आ गए. चायनाश्ते के बाद अम्मा ने चाचा से कहा, ‘‘सुमेर, दोनों में से किसी एक को अपने साथ ले कर जाना. जब देखो दोनों लड़ते रहते हैं. न आएगए की शर्म न बच्चों का लिहाज.’’

चाचा लड़ने का कारण तो जानते ही थे इसलिए दादी को समझाते हुए बोले, ‘‘मां, जब पिताजी को तुम्हारा ताश और चौपड़ खेलना अच्छा नहीं लगता तो क्यों खेलती हैं, बंद कर दें. ताश खेलना छोड़ दें. पता नहीं इस ताश और चौपड़ के कारण तुम ने पिताजी की कितनी बेंत खाई होंगी.

‘‘भाभी ठीक कहती हैं. मां, तुम चलो मेरे साथ. मेरे पास ज्यादा बड़ा मकान नहीं है, पिताजी के लिए दिक्कत हो जाएगी. मां, तुम तो बच्चों के कमरे में मजे से रहना.’’

आज दादी भी गुस्से में थीं, एकदम बोलीं, ‘‘हां बेटा, ठीक है. मैं भी अब तंग आ गई हूं. कुछ दिन तो चैन से कटेंगे.’’

दादी ने अपना बोरियाबिस्तर बांध कर तैयारी कर ली. अपनी चौपड़ और ताश उठा लिए और जाने के लिए तैयार हो गईं.

यह बात बाबा को पता चली तो बाबा ने वही बातें कहनी शुरू कर दीं जो दादी से अलग होने पर अम्मा से किया करते थे, ‘‘अरी बेटी, मैं मर कर नरक में जाऊं जो तू मेरी आवाज फिर सुने.’’

अम्मा के कोई जवाब न देने पर वे दादी के सामने ही गिड़गिड़ाने लगे, ‘‘सुमेर की मां, आप मुझे जीतेजी क्यों मार रही हो. आप के बिना यह लाचार बुड्ढा कैसे जिएगा.’’

इतना सुनते ही दादी का मन पिघल गया और वे धीरे से बोलीं, ‘‘अच्छा, नहीं जाती,’’ दादी ने चाचा से कह दिया, ‘‘तेरे पिताजी ठीक ही तो कह रहे हैं न, मैं नहीं जाऊंगी,’’ और दादी ने अपना बंधा सामान, अपना बक्सा, ताश, चौपड़ सब कुछ उठा कर खुद ही अंदर रख दिया.

चाचा को उसी दिन लौटना था अत: वे चले गए. शाम को मैं चाय ले कर बाबा के पास गई तो बाबा ने कहा, ‘‘सिम्मी बच्ची, पहले अपनी दादी को दे,’’ और फिर खुद ही बोले, ‘‘सुमेर की मां, सिम्मी चाय लाई है, चाय पी लो.’’

दादी भी वाणी में मिठास घोल कर बड़े स्नेह से बोलीं, ‘‘अजी आप पियो, मेरे लिए और ले आएगी.’’

एक बात और बड़ी मजेदार थी, जब अलग होने की बात होती तो तूतड़ाक से बात करने वाले मेरे बाबा और दादी आपआप कर के बात करते थे जो हमारे लिए मनोरंजन का साधन बन जाती थी. लेकिन ऐसे क्षण कभीकभी ही आते थे, और दादीबाबा कभीकभी ही बिना लड़ेझगड़े साथ बैठते थे. आज भी ऐसा ही हुआ था. ये आपआप और धीमा स्वर थोड़ी ही देर चला क्योंकि पड़ोस के मेजर अंकल दादी के साथ ताश खेलने आ गए थे.

बाबा की तबीयत खराब हुए कई दिन हो गए थे. दादी को विशेष मतलब नहीं था उन की तबीयत से. एक दिन बाबा की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब हो गई. बाबा कहने लगे, ‘‘आज मैं नहीं बचूंगा. अपनी दादी से कहो, मेरे पास आ कर बैठे, मेरा जी बहुत घबरा रहा है.’’

दादी की ताश की महफिल जमी हुई थी. हम उन्हें बुलाने गए मगर दादी ने हांहूं, अच्छा आ रही हूं, कह कर टाल दिया. वह तो अम्मा डांटडपट कर दादी को ले आईं. दादी बेमन से आई थीं बाबा के पास.

दादी बाबा के पास आईं तो बाबा ने बस इतना ही कहा था, ‘‘सुमेर की मां, तू आ गई, मैं तो चला,’’ और दादी का जवाब सुने बिना ही बाबा हमेशा के लिए चल बसे.

तेरहवीं के बाद सब रिश्तेदार चले गए. शाम को दादी अपने कमरे में गईं. वे बिलकुल गुमसुम हो गई थीं हालांकि बाबा की मृत्यु होने पर न वे रोई थीं न ही चिल्लाई थीं. दादी ने खाना छोड़ दिया, वे किसी से बात नहीं करती थीं. ताश, चौपड़ को उन्होंने हाथ नहीं लगाया. जब कोई ताश खेलने आता तो दादी अंदर से मना करवा देतीं कि उन की तबीयत ठीक नहीं है. अम्मा या पापा दादी से बात करने का प्रयास करते तो दादी एक ही जवाब देतीं, ‘‘मेरा जी अच्छा नहीं है.’’

एक दिन अम्मा, दादी के पास गईं और बोलीं, ‘‘मांजी, कमरे से बाहर आओ, चलो ताश खेलते हैं, आप ने तो बात भी करना छोड़ दिया. दिनभर इस कमरे में पता नहीं क्या करती हो. चलो, आओ, लौबी में ताश खेलेंगे.’’

दादी के चिरपरिचित जवाब में अम्मा ने फिर कहा, ‘‘मांजी, ऐसी क्या नफरत हो गई आप को ताश से. इस ताश के पीछे आप ने सारी उम्र पिताजी की गालियां और बेंत खाए. जब पिताजी मना किया करते थे तो आप खेलने से रुकती नहीं थीं और अब वे मना करने के लिए नहीं हैं तो 3 महीने से आप ने ताश छुए भी नहीं. देखो, आप की चौपड़ पर कितनी धूल जम गई है.’’

अब दादी बोलीं, ‘‘परसों होंगे 3 महीने. मेरा उन के बिना जी नहीं लगता. सुमेर के पिताजी, मुझे भी अपने पास बुला लो. मुझे नहीं जीना अब.’’

दादी की मनोकामना पूरी हुई. बाबा के मरने के ठीक 3 महीने बाद उसी तिथि को दादी ने प्राण त्याग दिए. यानी दादी अपने कमरे में जो गईं तो 3 महीने बाद मर कर ही बाहर आईं.

दादीबाबा को हम ने कभी प्रेम से बैठ कर बातें करते नहीं देखा था, लेकिन दादी बाबा की मौत का गम नहीं सह पाईं और बाबा के पीछेपीछे ही चली गईं. उन के ताश, चौपड़ वैसे के वैसे ही रखे हुए हैं.

गोल्डन वुमन: फैशन मौडल कैसे बनी दुल्हन

दिल्ली के होटल ताज के बाहर काले रंग की एक चमचमाती कार आ कर रुकती है. लेटैस्ट मौडल की इस कार का दरवाजा खुलता है और उस में से हाई हील्स और स्टाइलिश पार्टीवियर ड्रैस में साधना बाहर निकलती है. उस के बालों में गोल्डन कलरिंग की हुई है. डायमंड जड़े सुनहरे पर्स और गौगल्स को संभालती साधना होटल के अंदर प्रवेश करती है.

रिसैप्शन एरिया में ही उस की सहेली निभा उस का इंतजार कर रही थी. साधना को गौर से देखते हुए उस ने कहा,”हाय साधना, न्यू हेयरस्टाइल. नाइस यार… तेरी तो ड्रैस भी नायाब है.”

“अरे निभा, तुझे याद नहीं पिछली दफा जब पार्टी के बाद मैं तन्वी के साथ बाजार गई थी, वहीं यह ड्रैस मुझे पसंद आ गई थी. जानती है इस के किनारों पर गोल्ड का काम है. इस ड्रैस के फ्रंट पर भी सीक्वैंस, स्टोंस, बीड्स और गोल्ड का काम किया हुआ है.”

“गौर्जियस यार. वैसे भी यू आर अ गोल्डन वूमन. गोल्ड बहुत पसंद हैं न तुझे. तेरी ज्यादातर ड्रैस में गोल्ड का काम जरूर होता है. वैसे कितने की है यह ड्रैस ?”

“ज्यादा की नहीं है यार. बस यही कोई ₹1 लाख की है. बट आई मस्ट से, इट्स वैरी कंफरटेबल. फील ही नहीं हो रहा कि कुछ पहना भी है,” कह कर साधना हंस पड़ी, फिर निभा की तरफ देखती हुई बोली,” वैसे तुम्हारी ड्रैस भी बहुत प्रिटी है यार.”इसी तरह बातें करतीं एकदूसरे का हाथ थामे दोनों आगे बढ़ गईं.

साधना अपनी 20-25 क्लोज फ्रैंड्स के साथ शाम तक शानदार पार्टी का मजा लेती रही. पार्टी साधना की तरफ से ही थी. दरअसल, साधना ने अपने बेटे अभिनव की 10वीं में बेहतरीन प्रदर्शन की खुशी में अपनी सहेलियों को दावत दी थी. दावत भी ऐसीवैसी नहीं थी. इस दावत में सर्व किए गए 1-1 प्लेट की कीमत हजारों रूपए थी.

सलाहकारों और सहयोगियों का हुजूम हमेशा उस के साथ चलता था. इधर कुछ दिनों से सुधाकर कुछ परेशान रहने लगा था. साधना समझती थी कि इस की वजह कारोबार में आ रही समस्याएं होंगी. सुधाकर कभी भी साधना से अपनी बिजनैस संबंधित समस्याएं शेयर नहीं करता था और साधना कभी उस के काम में कोई दखल देती भी नहीं थी.

साधना ने सुधाकर से लव मैरिज की थी. दरअसल, साधना एक मौडल थी और राजस्थानी परिवार से जुड़ी थी. वहीँ सुधाकर भी मूल रूप से राजस्थानी ही था. दोनों के ही परिवार वाले अब दिल्ली में बसे हुए थे. साधना का फैशन सैंस और स्टाइलिश लुक सुधाकर के मन में समा गया था.

एक फैशन शो ईवेंट के दौरान उस ने साधना से अपने दिल की बात पूरे राजस्थानी अंदाज में कही और वहीं दोनों ने एकदूसरे को जीवनसाथी के रूप में चुन लिया.

वैसे सुधाकर के घर वालों ने साधना को सहजता से स्वीकार नहीं किया क्योंकि वे एक मौडल को बहू बनाने के पक्ष में नहीं थे. मगर जब उन्होंने करीब से उस के मृदुल स्वभाव और परिपक्व सोच को परखा तो तुरंत तैयार हो गए.

दोनों अपनी गृहस्थी में बहुत खुश थे. साधना के 2 बच्चे थे. पहला बेटा अभिनव था जो 10वीं पास कर चुका था जबकि बेटी अभी छोटी थी.

साधना अपने पैशन को जिंदा रखना चाहती थी मगर शादी के बाद अपनी जिम्मेदारियां देखते हुए उस ने फैशन मौडल के बजाय फैशन इंफ्लुऐंसर और फैशन मोटीवेटर के रूप में घर से ही काम करना शुरू किया था.

पार्टी खत्म कर साधना ने अपनी सभी सहेलियों से विदा ली और अपने शानदार बंगले में कदम रखा तो यह देख कर दंग रह गई की ड्राइंगरूम में बहुत से लोग मौजूद हैं. पति सामने मुंह लटकाए एक अपराधी की तरह खड़े हैं. घर के सभी नौकरचाकर भी एक कोने में दुबके हुए हुए हैं.

घबराते हुए साधना अंदर दाखिल हुई और पति के पास जाती हुई बोली,”क्या हुआ सुधाकर और ये लोग कौन हैं? ”

सुधाकर टूट गया और साधना के कंधे पर सिर रख कर रोता हुआ बोला,”सब खत्म हो गया साधना. हम कंगाल हो गए. ये बैंक वाले हैं और अपनी लोन की रकम उगाहने के लिए आए हैं. ये हमारे मकान और गाड़ियों पर कब्जा लेने के लिए खड़े हैं.”

साधना सन्न रह गई मगर पति को दिलासा देती हुई बोली,”परेशान मत हो सुधाकर, सब ठीक हो जाएगा.”

“मैं भी अब तक यही तो सोचता रहा कि सब ठीक हो जाएगा. एक के बाद एक बिजनैस डूबते रहे मगर मैं लोन लेले कर नए सपने बुनता रहा. तुम्हें भी कभी एहसास नहीं होने दिया कि आजकल हमारी कंपनियां नफा देने के बजाय नुकसान दे रही हैं. मेरे बैंक लोन इतने ज्यादा बढ़ गए हैं कि अब मैं सब कुछ गंवा देने की हालत में पहुंच गया हूं. बस मुझे एक साइन करना है और फिर यह बंगलागाड़ी, यह शानोशौकत सबकुछ खत्म हो जाएगा.”

“तो क्या हुआ सुधाकर, अब हम एक सामान्य जीवन जी लेंगे. सालों शानोशौकत का अनुभव किया है तो कुछ समय साधारण जीवन का भी अनुभव होना चाहिए न और कौन जाने तुम बहुत जल्द ही सब कुछ वापस खड़ा कर लोगे. मुझे पूरा विश्वास है तुम पर. कर दो साइन सुधाकर ज्यादा मत सोचो.”

मनमसोस कर सुधाकर ने सबकुछ बैंक वालों को सौंप दिया और इस तरह एक झटके में अरबपति दंपत्ति का परिवार साधारण मध्यवर्गीय परिवार में तबदील हो गया. सुधाकर और साधना ने तो फिर भी परिस्थितियों से समझौता कर लिया मगर असल मुसीबत बच्चों की थी जिन्होंने बचपन से एक लग्जीरियस लाइफ जी थी और अब अचानक आए इस बदलाव से वे हतप्रभ थे.

बेटी पायल तो इस छोटे से नए घर में आ कर फफकफफक कर रो पड़ी थी. बेटा अभिनव भी समान्य नहीं रह पाया. वह अपने दोस्तों से कतराने लगा क्योंकि वे लोग उस से हजारों सवाल करने लगे थे. साधना खुद भी अंदर से बहुत परेशान थी मगर उसे पति और बच्चों को इस सदमे से उबारना था. साधना ने पहले अपने मन को समझाया और फिर शांत मन से बच्चों को समझाने में जुट गई.

बेटी को अपने पास बैठा कर साधना ने पूछा,”आप क्यों रो रहे हो?”

“मम्मा हम गरीब हो गए. अब हमें बहुत कठिन दिन गुजारने होंगे न. हम अपने मन का कुछ नहीं कर पाएंगे…”

“ऐसा क्यों कह रही हो मेरी बच्ची? अमीरीगरीबी तो जिंदगी में लगी ही रहती है. यह जिंदगी का एक हिस्सा है, एक फेज की तरह है बिलकुल वैसे ही जैसे रोज सुबह होती है, शाम होती है फिर रात हो जाती है. अगला दिन आता है और फिर से सुबह हो जाती है. यह सब तो चलता रहता है. अब देखो न, कभी ठंड, कभी गरमी और कभी बारिश. मौसम बदलते रहते हैं न. जानते हो गरमी के बाद बारिश न आए तो फसलें सूख जाएंगी और हमें खाने की चीजें नहीं मिलेंगी. इसी तरह जिंदगी भी रंग बदलती है.”

“पर मम्मा, यह फेज अच्छा नहीं है न?”

“किस ने कहा बेटे? हर फेज अच्छा होता है. हमें कुछ सिखा कर जाता है. कोशिश करो तो जिंदगी के इस फेज से बहुत कुछ सीख सकते हो.”

“देखो बेटे, जीवन में कठिनाइयां आती हैं तभी इंसान उस से लड़ना सीखता है, मजबूत बनता है. जो लोग हमेशा अमीरी में जीते हैं उन के अंदर कठिन परिस्थितियों से निबटने की ताकत नहीं आ पाती. अमीर बच्चों को सब कुछ आसानी से मिल जाता है. इसलिए उन के अंदर प्रतिस्पर्धा की भावना नहीं आती. मगर साधारण लोग सबकुछ अपनी मेहनत के बल पर हासिल करते हैं. इसी में असली खुशी है.”

पायल मां को देखती रही. वह कोशिश कर रही थी कि मां के तर्कों को मान ले मगर बच्ची के मन अंदर कुछ टूट गया था. अभिनव भी काफी गुमसुम रहने लगा था.

वक्त इसी तरह गुजरता रहा. बच्चे अभी भी इस नई जिंदगी में सामान्य नहीं थे.

एक दिन बेटा जब स्कूल से वापस लौटा तो साधना हैरान रह गई. उस के कपड़े कई जगह से फटे हुए थे. बाल बिखरे थे और कई जगह चोट भी लगी थी. उस के साथ आए लड़के ने बताया कि स्कूल में दूसरे लड़कों से मारपीट की वजह से यह हालत हुई है. उस लड़के के जाने के बाद साधना ने जल्दीजल्दी पहले तो बेटे को नहलाया और फिर उस की मरहमपट्टी की. सिर पर ठंडे पानी की फुहारें पड़ीं तो अभिनव थोड़ा सामान्य हुआ.

अब बेटे को पास बैठा कर और उस की आंखों में देखते हुए साधना ने पूछा,”यह सब क्या है अवि? अपने दोस्तों से लड़ने की वजह क्या थी? ऐसा क्या हो गया जो तुम ने मारपीट की?”

अभिनव अचानक रोता हुआ उस की गोद में सिर रख कर लेट गया और बोला,”मां, स्कूल का एक लड़का पापा को कंगाल और दिवालिया कह रहा था. उस ने मुझे कंगला का बेटा कहा. इसी बात पर मुझे गुस्सा आ गया. मैं सह नहीं सका और उस पर टूट पड़ा.”

“बेटे, ऐसा क्या गलत कह दिया था उस ने? और यदि गलत कहा भी तो तुम्हें क्या फर्क पड़ता है जबकि बात ही गलत है? देखो बेटा, तुम्हारे पापा दिवालिया हुए थे. उन की संपत्ति जब्त कर ली गई थी. इस की खबर न्यूज चैनल और अखबारों में भी आई थी. ऐसे में संभव है कि उस लड़के के घर में भी इस बात पर चर्चा हुई होगी. वह लड़का किसी बात पर तुम से नाराज होगा इसलिए उस ने तुम्हें उकसाने के लिए इस बात को गलत तरीके से कहा और तुम सचमुच भड़क उठे.

 

“पर मौम, वह सब के सामने ऐसी बातें कर रहा था तो मैं भला क्या करता? चुपचाप आगे बढ़ जाता?”

“या तो चुपचाप आगे बढ़ जाते या फिर मुसकरा कर कहते कि डोंट वरी हम फिर से पहले जैसे बन जाएंगे,” साधना ने समझाया.

सुन कर अभिनव को हंसी आ गई. वह मां के हाथ चूमता हुआ बोला,”मौम यू आर ग्रेट. कहां से लाते हो आप इतना पैशेंस?”

साधना ने हंस कर कहा,” यह पैशेंस अब तुम्हें भी अपने अंदर पैदा करना है बेटे. तभी तुम जिंदगी की हर जंग जीत सकोगे.”

“ओके मौम मैं ऐसा कर के दिखाऊंगा.”

बेटे का माथा प्यार से सहलाते हुए साधना एक खुशनुमा भविष्य की उम्मीद में खो गई.

2-3 साल इसी तरह बीत गए. साधना अपने बच्चों को कम में जीने का प्रशिक्षण देती रहती. जब बेटा दोस्तों को पार्टी देने की बात कर रूपए मांगता तो वह अपने दोस्तों को घर पर बुला लेने की बात करती और अपने हाथों का बना खाना खिलाती. जब वह जिम जौइन करने की बात करता तो साधना उसे घर पर ही योगा और व्यायाम कर के फिट रहने के उपाय समझाती. उसे बेवजह के स्कूल टूअर या फंक्शन में शामिल होने के बजाय उस समय का उपयोग पढ़ाई करने और भविष्य संवारने में लगाने को कहती. वह अपनी बिटिया को भी पैसे बरबाद करने के बजाय बचत करने के तरीके समझाती.

उस दिन साधना की बेटी पायल का बर्थडे था. साधना के कहने पर पायल इस बार अपनी बर्थडे पार्टी साधारण तरीके से मनाने की बात तो मान गई मगर एक खूबसूरत नई ड्रैस के लिए अड़ गई. साधना ने उस का मन रखने के लिए ड्रैस खरीद दी. 3-4 दिन बाद ही पायल फिर से एक नई ड्रैस के लिए मिन्नतें करने लगी.

“मगर क्यों? अभी तो लाई थी मैं नई ड्रैस,” साधना ने पूछा तो वह बोली,”मम्मा, मेरी बैस्ट फ्रैंड का बर्थडे है. उस के बर्थडे पर मैं अपनी बर्थडे वाली ड्रैस रिपीट कैसे करूं? इस के अलावा कोई नई ड्रैस है भी नहीं मेरे पास.”

“ओके बेटा. परेशान न हो. आप शाम को स्कूल से आओगे तब तक आप की नई ड्रैस आ चुकी होगी.”

“थैंक यू मम्मा,” कह कर पायल हंसतीमुसकराती चली गई.

पायल के जाने के बाद साधना सोचने लगी कि बेटी के लिए एक नई पार्टीवियर ड्रैस का इंतजाम कैसे किया जाए. तभी उस के दिमाग में एक आईडिया आया. उस ने बेटी की एक पुरानी ड्रैस निकाली और उस पर अपने फैशन डिजाइनर दिमाग का इस्तेमाल करते हुए सितारे, स्टोंस, बीड्स और नेट आदि का काम कर और स्टाइलिश कटिंग दे कर उस ड्रैस को एक खूबसूरत पार्टीवियर ड्रैस बना दिया. शाम को जब पायल लौटी और मम्मी के हाथों में प्यारी सी ड्रैस देखी तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा.

रात में जब साधना ने सुधाकर को सारी बात बताई तो साधना का हाथ पकड़ कर वह बोला,”मैं हमेशा कहता था न यू आर अ गोल्डन वूमन. आज तुम ने यह साबित कर दिया. तुम्हारे गोल्डन कलर्ड हेयर, गोल्डन ड्रैस, गोल्डन ऐक्सेसरीज ही तुम्हें गोल्डन नहीं बनाते बल्कि तुम्हारा दिल भी गोल्डन है. सच सोने का दिल रखती हो तुम. मेरी जिंदगी में इतनी तकलीफें आईं मगर तुम ने अपनी समझदारी और धैर्य से न केवल मुझे हिम्मत दी बल्कि बच्चों को भी हर हाल में खुश हो कर जीना सिखा दिया. थैंक्स साधना.”

साधना ने मुसकराते हुए कहा,”मैं तुम्हारी जीवनसाथी हूं. सुख हो या दुख हो, सम्पन्नता हो या परेशानी, मुझे तुम्हारे साथ हौसला बन कर चलना है. मैं न खुद टूटूंगी और न तुम्हें टूटने दूंगी.”

सुधाकर के चेहरे पर मुसकान और आंखों में प्यार झलक उठा था.

प्रेम का मूल : लता को चोरी क्यों करनी पड़ी

लता ने कभी सोचा नहीं था कि उसे टूट कर चाहने वाला यशवंत उसे मुसीबत के समय इस कदर धोखा भी दे सकता है. प्यार की हद तक चाहने का दावा करने वाले यशवंत का प्यार तो केवल लता की मतवाली जवानी से हवस मिटाने तक ही सिमटा रह गया था.

लता कभी अस्पताल के कमरे की छत पर टंगे मकड़जाले से लिपटे खड़खड़ाते पंखे को देख रही थी, तो कभी बैड के पास टूटे स्टूल पर चिंतित बैठे अपने पति छगन को.

डाक्टर ने बताया कि इस हादसे की वजह से उस की एक टांग टूट गई है और रीढ़ की हड्डी पर भी मामूली चोट आई है, जो समय के साथसाथ ठीक हो जाएगी.

लता की दाईं टांग पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था और कमर पर चौड़ी बैल्ट बंधी थी. दर्द से उस का रोमरोम सिहर रहा था. आंखें पछतावे के आंसू बहा रही थीं. उस ने दोनों हाथों से छगन के दाएं हाथ को पकड़ा और होंठों से एक गहरा चुम्मा जड़ दिया. छगन की आंखें भी भीग गईं. उस ने दूसरे लोगों की परवाह न करते हुए लता के माथे को चूम लिया.

लता के सूखे होंठों पर बस एक कोरी मुसकान उभर गई. छत के एक किनारे पर मकड़जाले में फंसे किसी पतंगे को देख कर उसे भी अपना अतीत याद आने लगा. उस ने छगन का हाथ पकड़ कर धीरेधीरे आंखें मूंदनी शुरू कर दीं. लता को यशवंत की वह पहली मुलाकात याद आने लगी, जब वह उस के चंगुल में फंस गई थी.

छगन को लगा कि लता को नींद आ गई है, तो उस ने चुपके से उस के हाथों से अपना हाथ हटाया और उस के पैर की उंगलियों पर भिनभिनाती मक्खियों को हटाने लगा.

लता शहर से गांव जाने वाले रास्ते पर बने वेटिंग रूम में बैठी थी. उस के पास 2 भारी बैग थे, जिस में महीनेभर का राशन और दूसरा जरूरी सामान था.

सूरज आकाश के बीचोंबीच आ कर शरीर को झुलसा रहा था. वह सोचने लगी कि कुछ देर बाद छगन भी दोपहर का खाना खाने के लिए घर आने वाला होगा. उसे घर पर न पा कर वह परेशान हो जाएगा.

छगन निकट ही जल महकमे में चपरासी था. लता छगन को बता कर शहर आई थी. उस ने ब्लाउज के अंदर हाथ ठूंस कर अपना मोबाइल निकाला और छगन को हालात के बारे में बता दिया.

लता अभी मोबाइल बंद कर ही रही थी कि उस के निकट एक मोटरसाइकिल सवार आ कर रुक गया. वह तिरछी निगाहों से लता को देख रहा था. लता कभी सड़क के दूसरे छोर को देख रही थी, तो कभी अपने दोनों बैगों को. वह चुपकेचुपके उस नौजवान को भी तिरछी निगाहों से देख रही थी.

काफी देर तक जब दोनों में बातचीत नहीं हुई, तो मोटरसाइकिल सवार ने पूछा, ‘‘क्या आप को नारायणकोटी गांव जाना है?’’

काफी देर तक जब लता ने कोई जवाब नहीं दिया तो, उस नौजवान ने अनमने भाव से कहा, ‘‘असल में, मैं इस गांव के लिए नया हूं. वहां मेरे रिश्तेदार रहते हैं, मुझे उन के घर जाना है. चूंकि मैं वहां पहली बार जा रहा हूं, इसलिए मुझे उन के घर के बारे में जानकारी नहीं है.

‘‘बाकी अगर आप की कुछ बोलने की इच्छा नहीं है, तो कोई बात नहीं. केवल उन के घर के बारे में ही बता दीजिए,’’ कह कर उस नौजवान ने मोबाइल निकाल कर एक पते के बारे में लता से पूछा.

यह घर तो लता के ठीक सामने वालों का था. बारबार समझाने के बाद भी जब नौजवान के पल्ले कुछ नहीं पड़ा, तो वह झंझला गई.

‘‘अगर आप को कोई तकलीफ न हो, और आप को भी नारायकणकोटी गांव जाना है, तो बुरा न मानें मेरे साथ चलिए. आप जल्दी भी पहुंच जाएंगी और मुझे पता ढूंढ़ने में दिक्कत भी नहीं आएगी. बाकी आप की इच्छा,’’ कह कर वह नौजवान मोटरसाइकिल पर किक मारने लगा.

वह नौजवान यही कोई 24 साल का रहा होगा. लंबा, छरहरा और गठीला बदन. बाल घुंघराले थे. बात करने के सलीके से ऐसा लग रहा था कि वह ठीकठाक पढ़ालिखा भी है. चेहरे पर मासूमियत टपक रही थी.

कुछ सोच कर लता ने अपने दोनों बैग संभाले और किसी तरह वह मोटरसाइकिल पर बैठ गई. कुछ देर की खामोशी के बाद दोनों में औपचारिक बातें शुरू हुईं, जिस का सार यह था कि उस नौजवान का नाम यशवंत है, जो एक प्राइवेट फर्म में मैनेजर है. कुछ दिन की छुट्टियां बिताने के लिए वह इस गांव में जा रहा था.

अपने घर के निकट आते ही लता ने यशवंत को रुकने का इशारा किया. मोटरसाइकिल से उतर कर यशवंत ने लता के बैग उतारे और उस के घर के अहाते में रख दिए.

यशवंत का शुक्रिया अदा करते हुए लता ने उसे सामने वाले घर की ओर बढ़ने के लिए इशारा किया.

लता ने छगन को खाना खिलाया, जो भोजन कर के दोबारा अपनी ड्यूटी पर लौट गया.

कुछ देर के बाद लता कपड़े धो कर सुखाने के लिए छत पर गई. उस ने देखा कि सामने वाली छत पर यशवंत फोन पर किसी से बतिया रहा था.

लता को छत पर आता देख यशवंत ने तत्काल फोन पर बात करना बंद कर दिया और मुसकराते हुए लता की ओर देखने लगा.

जवाब में लता भी अपना निचला होंठ काट कर मुसकराने लगी. दोनों में कुछ बातें हुईं.

लता अब यशवंत के बारे में ही सोचने लगी थी. चंद दिनों में ही वे दोनों एकदूसरे के इश्क में पड़ गए. घंटों मोबाइल पर दोनों की चैटिंग होने लगी, यहां तक कि वीडियो काल के जरीए दोनों एकदूसरे के बेहद करीब आ गए.

एक दिन दोपहर को छगन के ड्यूटी पर जाने के बाद लता ने यशवंत को घर आने का न्योता दे दिया. गरमी के मारे बुरा हाल था. लोग अमूमन घर में ही पंखे या कूलर की हवा ले रहे थे.

यशवंत ने तिरछी निगाहों से रास्ते के दोनों किनारों पर देखा, कोई भी नहीं था. उस ने दबे पैर लता के घर का दरवाजा खोला और अंदर आ कर कुंडी चढ़ा दी.

लता इस पल का कई दिन से इंतजार कर रही थी. उस ने गुलाबी रंग का पटियाला सूट पहना था. अभीअभी वह नहा कर बाहर आई थी. बाल खुशबूदार तेल से महक रहे थे.

यशवंत लता के बेहद करीब आ गया. इतना कि दोनों की सांसें एकदूसरे की सांसों से टकराने लगीं.

यशवंत ने लता को अपनी बांहों में ले लिया. एक आह के साथ लता यशवंत के चौड़े सीने से सट गई. दोनों की सांसें अब धौंकनी की तरह चल रही थीं.

यशवंत ने लता को उठा कर खाट पर पटक दिया और कुछ देर के लिए 2 जिस्म एक हो गए. सांसों ने रफ्तार पकड़ ली. कुछ देर बाद वे दोनों निढाल हो कर एकदूसरे की बांहों में सुस्ताने लगे.

‘‘बाबू, अब तुम्हारे बिना रहा नहीं जाता. छगन की कमाई से घर नहीं चलता. शादी के बाद से आज तक ढंग का सूट तक नहीं दिला पाया. कहीं घुमाने के लिए भी नहीं ले जाता. इस गंवार के साथ और नहीं रहा जाता,’’ कह कर लता यशवंत के सीने पर फैले बालों के साथ खेलने लगी.

‘‘पगली, अभी थोड़ा और समय दे दे. हम हमेशा के लिए इस गांव से दूर चले जाएंगे. मैं ने घर में बात कर ली है. हम दोनों मंदिर में शादी कर लेंगे और मेरी कंपनी में तुम्हारे लिए एक बेहतर नौकरी भी है. इस घर में तुम्हारा रहना मुझे अच्छा नहीं लग रहा है. हम जल्दी यहां से निकल जाएंगे,’’ कह कर यशवंत लता के गालों को चूमने लगा.

इस के बाद बातों का सिलसिला कुछ देर तक चला. यशवंत कपड़े पहन कर बाहर निकल गया. लता को कई सालों बाद ऐसा प्यार मिला था. यशवंत के साथ कितना खुश रहेगी वह. दोनों ड्यूटी के बाद सैरसपाटे को निकलेंगे. बढि़या होटल में खाना खाएंगे. प्यार में अंधी हो चुकी लता को अब उसे टूट कर चाहने वाले छगन में कई बुराइयां दिखाई देने लगीं.

यशवंत 15 दिन गांव में रहा. इस दौरान उन दोनों के बीच कई बार जिस्मानी रिश्ता भी बना. एक दिन यशवंत लता से जल्दी शादी करने का वादा कर के वापस चला गया. उस के जाते ही लता का दिल घर के किसी भी काम में नहीं लग रहा था. छगन से भी वह कई बार बिना वजह ही बातबात पर झगड़ने लगी थी.

समय मिलते ही आएदिन यशवंत और लता घंटों फोन पर चिपके रहते थे. हवस में पागल हो चुकी लता को यशवंत कई बार शहर के होटलों में मिलने लगा था और वह लता के लिए खूबसूरत सूटसलवार और सिंगार का दूसरा सामान भी ले आता था. लता काफी खुश थी.

काफी समय गुजरने के बाद भी जब यशवंत शादी के नाम पर केवल बहाने बनाने लगा, तो लता को कुछ शक होने लगा. जब लता उस से शादी की बात करती, तो वह कहता कि अभी पैसे जोड़ रहा है. शहर में एक बढि़या सा घर भी तो बनाना है.

जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा, तो एक दिन उस ने यशवंत से झूठ कहा कि वह उस के बच्चे की मां बनने वाली है. पहले तो यशवंत झल्ला गया, फिर उस ने बच्चा गिराने की सलाह दी, जिसे लता ने मानने से मना कर दिया.

अब लता को भी लगने लगा था कि यशवंत ने उसे बेवकूफ बना दिया है. थकहार कर उस ने यशवंत को डराने के मकसद से कड़े शब्दों में कहा कि अगर वह उस से शादी नहीं करेगा, तो वह पुलिस में उस की शिकायत दर्ज करेगी.

पुलिस का नाम सुन कर पहले तो यशवंत डर गया. फिर उस ने हालात संभालते हुए कहा कि वह लता को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता है. अगर उसे थोड़ा भी शक है, तो कल वह उस से मिलने शहर आ जाए. फिर वहीं से कहीं दूर भाग कर साथ रहेंगे.

यशवंत ने लता को समझाया कि अगर घर में कुछ गहने या पैसे हैं, तो वे भी उठा कर अपने साथ ले आए, भविष्य में न जाने कैसे बुरे हालात बन जाएं, इसलिए गहने और पैसे उन के सुखद भविष्य के कुछ काम तो आएंगे.

लता अपने मांबाप के दिए कुछ गहने और छगन की जेब से चुरा कर जमा किए गए 20,000 रुपए एक बैग में रख कर शहर आ गई.

शहर में पहले से ही यशवंत लता का इंतजार कर रहा था. लता के आते ही उस ने उसे मोटरसाइकिल पर बिठाया और हाईवे से आगे बढ़ने लगा. लता उस से सट कर बैठ गई. आखिरकार उसे उस का अनमोल प्यार जो मिल गया था.

यशवंत की मोटरसाइकिल तेज रफ्तार से शहर से दूसरे रास्ते पर बढ़ने लगी. ओवर स्पीड की वजह से सामने से तेज रफ्तार से आ रहे एक ट्रक से बचने के चक्कर में मोटरसाइकिल सड़क के किनारे बनी रेलिंग से जा टकराई. टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि देखते ही देखते मोटरसाइकिल के परखच्चे उड़ गए.

यशवंत मोटरसाइकिल से छिटक कर खेतों में गिर गया. उस के एक पैर में चोट आ गई थी. लता निढाल हो कर सड़क के दूसरे किनारे पड़ी थी. उस के माथे, पैरों और नथुनों से खून फूट पड़ा था.

लता को उसी हालत में छोड़ कर सड़क किनारे गिरे लता के बैग को उठा कर यशवंत लड़खड़ाते कदमों से खेतों को पार करते हुए भाग चुका था.

इस भयंकर हादसे के बाद वहां पर लोग जमा होने लगे और लता को उठा कर नजदीक के एक अस्पताल में दाखिल कर के उस के पति को बता दिया था.

लता की सोच भंग हुई. उस के जेहन में बारबार धोखेबाज यशवंत का चेहरा घूम रहा था. उस की मुट्ठियां भिंचने लगी थीं. आंखों में गुस्से का लावा जमने लगा था. वह उठने की भरसक कोशिश करने लगी, लेकिन उठ नहीं  पाई.

छगन ने लता के होंठों से जूस का गिलास लगा दिया और बोला, ‘‘अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो मेरा क्या होता, मैं किस के सहारे जीता, किस के लिए नौकरी करता. मैं ने पाईपाई जोड़ कर तुम्हारे लिए सोने की नथ बनवाने को दी थी… तुम्हें नथ बहुत पसंद है न…’’ कहतेकहते उस की आंखों से आंसू निकल आए.

लता के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे. वह यशवंत की हवस और छगन के प्यार को तोल रही थी. उस ने इधरउधर देखा. आसपास न तो उस का मोबाइल नजर आ रहा था और न ही उस का कीमती बैग.

पूछने पर पता चला कि कुछ स्थानीय लोगों ने लता को अस्पताल पहुंचा कर उस के पति को बुलाया था. मतलब, यशवंत ने उसे धोखे में रखा. उस के गहने और पैसे यशवंत ले गया.

लता उसी हालत में अपने पति छगन से लिपट गई और फूटफूट कर रोने लगी. उसे अपने किए पर पछतावा था, जिस का प्रायश्चित्त भी तो करना था. ठीक होने के बाद वह भगोड़े यशवंत से तो निबटेगी ही.

‘‘मुझे माफ कर देना,’’ कह कर लता रोने लगी. आज लता को पता चल चुका था कि गरीबी के दौर में भी उस के हर नखरे उठाने के बाद भी खुश रहने वाला छगन असलियत में कितना महान है. पत्नी का असल हमदर्द उस का पति ही होता है. उसे अपने गंदे शरीर से घिन सी आने लगी थी.

लता समझ चुकी थी कि प्रेम का मूल हवस नहीं है, बल्कि साथी के प्रति समर्पण, विश्वास और अपनों की खुशी है.

प्यार की पहली किस्त : अरबपति रहमान की कहानी

बेगम रहमान से सायरा ने झिझकते हुए कहा, ‘‘मम्मी, मैं एक बड़ी परेशानी में पड़ गई हूं.’’

उन्होंने टीवी पर से नजरें हटाए बगैर पूछा, ‘‘क्या किसी बड़ी रकम की जरूरत पड़ गई है?’’

‘‘नहीं मम्मी, मेरे पास पैसे हैं.’’

‘‘तो फिर इस बार भी इम्तिहान में खराब नंबर आए होंगे और अगली क्लास में जाने में दिक्कत आ रही होगी…’’ बेगम रहमान की निगाहें अब भी टीवी सीरियल पर लगी थीं.

‘‘नहीं मम्मी, ऐसा कुछ भी नहीं है. आप ध्यान दें, तो मैं कुछ बताऊं भी.’’

बेगम रहमान ने टीवी बंद किया और बेटी की तरफ घूम गईं, ‘‘हां, अब बताए मेरी बेटी कि ऐसी कौन सी मुसीबत आ पड़ी है, जो मम्मी की याद आ गई.’’

‘‘मम्मी, दरअसल…’’ सायरा की जबान लड़खड़ा रही थी और फिर उस ने जल्दी से अपनी बात पूरी की, ‘‘मैं पेट से हूं.’’

यह सुन कर बेगम रहमान का हंसता हुआ चेहरा गुस्से से लाल हो गया, ‘‘तुम से कितनी बार कहा है कि एहतियात बरता करो, लेकिन तुम निरी बेवकूफ की बेवकूफ रही.’’

बेगम रहमान को इस बात का सदमा कतई नहीं था कि उन की कुंआरी बेटी पेट से हो गई है. उन्हें तो इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि उस ने एहतियात क्यों नहीं बरती.

‘‘मम्मी, मैं हर बार बहुत एहतियात बरतती थी, पर इस बार पहाड़ पर पिकनिक मनाने गए थे, वहीं चूक हो गई.’’

‘‘कितने दिन का है?’’ बेगम रहमान ने पूछा.

‘‘चौथा महीना है,’’ सायरा ने सिर झांका कर कहा.

‘‘और तुम अभी तक सो रही थी,’’ बेगम रहमान को फिर गुस्सा आ गया.

‘‘दरअसल, कैसर नवाब ने कहा था कि हम लोग शादी कर लेंगे और इस बच्चे को पालेंगे, लेकिन मम्मी, वह गजाला है न… वह बड़ी बदचलन है. कैसर नवाब पर हमेशा डोरे डालती थी. अब वे उस के चक्कर में पड़ गए और हम से दूर हो गए.’’

रहमान साहब शहर के एक नामीगिरामी अरबपति थे. कपड़े की कई मिलें थीं, सियासत में भी खासी रुचि रखते थे. सुबह से शाम तक बिजनेस मीटिंग या सियासी जलसों में मसरूफ रहते थे.

बेगम रहमान भी अपनी किटी पार्टी और लेडीज क्लब में मशगूल रहती थीं. एकलौती बेटी सायरा के पास मां की ममता और बाप के प्यार के अलावा दुनिया की हर चीज मौजूद थी, यारदोस्त, डांसपार्टी वगैरह यही सब उस की पसंद थी.

हाई सोसायटी में किरदार के अलावा हर चीज पर ध्यान दिया जाता है. सायरा ने भी दौलत की तरह अपने हुस्न और जवानी को दिल खोल कर लुटाया था, लेकिन उस में अभी इतनी गैरत बाकी थी कि वह बिनब्याही मां बन कर किसी बच्चे को पालने की हिम्मत नहीं कर सकती थी.

‘‘तुम ने मुसीबत में फंसा दिया बेटी. अब सिवा इस बात के कोई चारा नहीं है कि तुम्हारा निकाह जल्द से जल्द किसी और से कर दिया जाए. अपने बराबर वाला तो कोई कबूल करेगा नहीं. अब कोई शरीफजादा ही तलाश करना पड़ेगा,’’ कहते हुए बेगम रहमान फिक्रमंद हो गईं.

एक महीने के अंदर ही बेगम रहमान ने रहमान साहब के भतीजे सुलतान मियां से सायरा का निकाह कर दिया.

सुलतान कोआपरेटिव बैंक में मैनेजर था. नौजवान खूबसूरत सुलतान के घर जब बेगम रहमान सायरा के रिश्ते की बात करने गईं, तो सुलतान की मां आब्दा बीबी को बड़ी हैरत हुई थी.

बेगम रहमान 5 साल पहले सुलतान के अब्बा की मौत पर आई थीं. उस के बाद वे अब आईं, तो आब्दा बीबी सोचने लगीं कि आज तो सब खैरियत है, फिर ये कैसे आ गईं.

जब बेगम रहमान ने बगैर कोई भूमिका बनाए सायरा के रिश्ते के लिए सुलतान का हाथ मांगा तो उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं आया था.

कहां सायरा एक अरबपति की बेटी और कहां सुलतान एक मामूली बैंक मैनेजर, जिस के बैंक का सालाना टर्नओवर भी रहमान साहब की 2 मिलों के बराबर नहीं था.

सुलतान की मां ने बड़ी मुश्किल से कहा था, ‘‘भाभी, मैं जरा सुलतान से बात कर लूं.’’

‘‘आब्दा बीबी, इस में सुलतान से बात करने की क्या जरूरत है. आखिर वह रहमान साहब का सगा भतीजा है. क्या उस पर उन का इतना भी हक नहीं है कि सायरा के लिए उसे मांग सकें?’’ बेगम रहमान ने दोटूक शब्दों में खुद ही रिश्ता दिया और खुद ही मंजूर कर लिया था.

चंद दिनों के बाद एक आलीशान होटल में सायरा का निकाह सुलतान मियां से हो गया. रहमान साहब ने उन के हनीमून के लिए स्विट्जरलैंड के एक बेहतरीन होटल में इंतजाम करा दिया था. सायरा को जिंदगी का यह नया ढर्रा भी बहुत पसंद आया.

हनीमून से लौट कर कुछ दिन रहमान साहब की कोठी में गुजारने के बाद जब सुलतान ने दुलहन को अपने घर ले जाने की बात कही तो सायरा के साथ बेगम रहमान के माथे पर भी बल पड़ गए.

‘‘तुम कहां रखोगे मेरी बेटी सायरा को?’’ बेगम रहमान ने बड़े मजाकिया अंदाज में पूछा.

‘‘वहीं जहां मैं और मेरी अम्मी रहती हैं,’’ सुलतान ने बड़ी सादगी से जवाब दिया.

‘‘बेटे, तुम्हारे घर से बड़ा तो सायरा का बाथरूम है. वह उस घर में कैसे रह सकेगी,’’ बेगम रहमान ने फिर एक दलील दी.

सुलतान को अब यह एहसास होने लगा था कि यह सारी कहानी घरजंवाई बनाने की है.

‘‘यह सबकुछ तो आप को पहले सोचना चाहिए था,’’ सुलतान ने कहा.

इस से पहले कि सायरा कोई जवाब देती, बेगम रहमान को याद आ गया कि यह निकाह तो एक भूल को छिपाने के लिए हुआ है. मियांबीवी में अभी से अगर तकरार शुरू हो गई, तो पेट में पलने वाले बच्चे का क्या होगा.

उन्होंने अपने मूड को खुशगवार बनाते हुए कहा, ‘‘अच्छा बेटा, ले जाओ. लेकिन सायरा को जल्दीजल्दी ले आया करना. तुम को तो पता है कि सायरा के बगैर हम लोग एक पल भी नहीं रह सकते.’’

सुलतान और उस की मां की खुशहाल जिंदगी में आग लगाने के लिए सायरा सुलतान के घर आ गई.

2 दिनों में ही हालात इतने खराब हो गए कि सायरा अपने घर वापस आ गई. मियांबीवी की तनातनी नफरत में बदल गई और बात तलाक तक पहुंच गई, लेकिन मसला था मेहर की रकम का, जो सुलतान मियां अदा नहीं कर सकते थे.

10 लाख रुपए मेहर बांधा गया था. आखिर अरबपति की बेटी थी. उस के जिस्म को कानूनी तौर पर छूने की कीमत 10 लाख रुपए से कम क्या होती.

एक दिन मियांबीवी की इस लड़ाई को एक बेरहम ट्रक ने हमेशा के लिए खत्म कर दिया.

हुआ यों कि सुलतान मियां शाम को बैंक से अपने स्कूटर से वापस आ रहे थे, न जाने किस सोच में थे कि सामने से आते हुए ट्रक की चपेट में आ गए और बेजान लाश में तबदील हो गए.

सायरा बेगम अपने पुराने दोस्तों के साथ एक बड़े होटल में गपें लगाने में मशगूल थीं, तभी बीमा कंपनी के एक एजेंट ने उन्हें एक लिफाफे के साथ

10 लाख रुपए का चैक देते हुए कहा, ‘‘मैडम, ऐसा बहुत कम होता है कि कोई पहली किस्त जमा करने के बाद ही हादसे का शिकार हो जाए.

‘‘सुलतान साहब ने अपनी तनख्वाह में से 10 लाख रुपए की पौलिसी की पहली किस्त भरी थी और आप को नौमिनी करते समय यह लिफाफा भी दिया था. शायद वह यही सोचते हुए जा रहे थे कि महीने के बाकी दिन कैसे गुजरेंगे और ट्रक से टकरा गए.’’

सायरा ने पूरी बात सुनने के बाद एजेंट का शुक्रिया अदा किया और होटल से बाहर आ कर अपनी कार में बैठ कर लिफाफा खोला. यह सुलतान का पहला और आखिरी खत था. लिखा था :

तुम ने मुझे तोहफे में 4 महीने का बच्चा दिया था, मैं तुम्हें मेहर के 10 लाख रुपए दे रहा हूं. तुम्हारी मजबूरी सुलतान. सायरा ने खत को लिफाफे में रखा और ससुराल की तरफ गाड़ी को घुमा लिया.

वह होटल आई थी अरबपति रहमान की बेटी बन कर, अब वापस जा रही थी एक खुद्दार बैंक मैनेजर की बेवा बन कर.

सबको साथ चाहिए: क्या सही था माधुरी का फैसला

सुधीर के औफिस के एक सहकर्मी रवि के विवाह की 25वीं वर्षगांठ थी. उस ने एक होटल में भव्य पार्टी का आयोजन किया था तथा बड़े आग्रह से सभी को सपरिवार आमंत्रित किया था. सुधीर भी अपनी पत्नी माधुरी और बच्चों के साथ ठीक समय पर पार्टी में पहुंच गए. सुधीर और माधुरी ने मेजबान दंपती को बधाई और उपहार दिया. रविजी ने अपनी पत्नी विमला से माधुरी का और उन के चारों बच्चों का परिचय करवाया, ‘‘विमला, इन से मिलो. ये हैं सुधीरजी, इन की पत्नी माधुरी और चारों बच्चे सुकेश, मधुर, प्रिया और स्नेहा.’’  ‘‘नमस्ते,’’ कह कर विमला आश्चर्य से चारों को देखने लगी. आजकल तो हम दो हमारे दो का जमाना है. भला, आज के दौर में 4-4 बच्चे कौन करता है? माधुरी विमला के चेहरे से उन के मन के भावों को समझ गई पर क्या कहती.

तभी प्रिया ने सुकेश की बांह पकड़ी और मचल कर बोली, ‘‘भैया, मुझे पानीपूरी खानी है. भूख लगी है. चलो न.’’

‘‘नहीं भैया, कुछ और खाते हैं, यह चटोरी तो हमेशा पहले पानीपूरी खिलाने ही ले जाती है. वहां दहीबड़े का स्टौल है. पहले उधर चलो,’’ स्नेहा और मधुर ने जिद की.

‘‘भई, पहले तो वहीं चला जाएगा जहां हमारी गुडि़या रानी कह रही है. उस के बाद ही किसी दूसरे स्टौल पर चलेंगे,’’ कह कर सुकेश प्रिया का हाथ थाम कर पानीपूरी के स्टौल की तरफ बढ़ गया. मधुर और स्नेहा भी पीछेपीछे बढ़ गए.

‘‘यह अच्छा है, छोटी होने के कारण हमेशा इसी के हिसाब से चलते हैं भैया,’’ मधुर ने कहा तो स्नेहा मुसकरा दी. चाहे ऊपर से कुछ भी कह लें पर अंदर से सभी प्रिया को बेहद प्यार करते थे और सुकेश की बहुत इज्जत करते थे. क्यों न हो वह चारों में सब से बड़ा जो था. चारों जहां भी जाते एकसाथ जाते. मजाल है कि स्नेहा या मधुर अपनी मरजी से अलग कहीं चले जाएं. थोड़ी ही देर में चारों अलगअलग स्टौल पर जा कर खानेपीने की चीजों का आनंद लेने लगे और मस्ती करने लगे.

सुधीर और माधुरी भी अपनेअपने परिचितों से बात करने लगे. किसी काम से माधुरी महिलाओं के एक समूह के पास से गुजरी तो उस के कानों में विमला की आवाज सुनाई दी. वह किसी से कह रही थी, ‘‘पता है, सुधीरजी और माधुरीजी के 4 बच्चे हैं. मुझे तो जान कर बड़ा आश्चर्य हुआ. आजकल के जमाने में तो लोग 2 बच्चे बड़ी मुश्किल से पाल सकते हैं तो इन्होंने 4 कैसे कर लिए.’’

‘‘और नहीं तो क्या, मैं भी आज ही उन लोगों से मिली तो मुझे भी आश्चर्य हुआ. भई, मैं तो 2 बच्चे पालने में ही पस्त हो गई. उन की जरूरतें, पढ़ाई- लिखाई सबकुछ. पता नहीं माधुरीजी 4 बच्चों की परवरिश किस तरह से मैनेज कर पाती होंगी?’’ दूसरी महिला ने जवाब दिया.

माधुरी चुपचाप वहां से आगे बढ़ गई. यह तो उन्हें हर जगह सुनने को मिलता कि उन के 4 बच्चे हैं. यह जान कर हर कोई आश्चर्य प्रकट करता है. अब वह उन्हें क्या बताए? घर आ कर चारों बच्चे सोने चले गए. सुधीर भी जल्दी ही नींद के आगोश में समा गए. मगर माधुरी की आंखों में नींद नहीं थी. वह तो 6 साल पहले के उस दिन को याद कर रही थी जब माधुरी के लिए सुधीर का रिश्ता आया था. हां, 6 साल ही तो हुए हैं माधुरी और सुधीर की शादी को. 6 साल पहले वह दौर कितना कठिन था. माधुरी को बड़ी घबराहट हो रही थी. पिछले कई दिनों से वह अपने निर्णय को ले कर असमंजस की स्थिति में जी रही थी.

माधुरी का निर्णय अर्थात विवाह का निर्णय. अपने विवाह को ले कर ही वह ऊहापोह में पड़ी हुई थी. घबरा रही थी. क्या होगा? नए घर में सब उसे स्वीकारेंगे या नहीं.

विवाह को ले कर हर लड़की के मन में न जाने कितनी तरह की चिंताएं और घबराहट होती है. स्वाभाविक भी है, जन्म के चिरपरिचित परिवेश और लोगों के बीच से अचानक ही वह सर्वथा अपरिचित परिवेश और लोगों के बीच एक नई ही जमीन पर रोप दी जाती है. अब इस नई जमीन की मिट्टी से परिचय बढ़ा कर इस से अपने रिश्ते को प्रगाढ़ कर यहां अपनी जड़ें जमा कर फलनाफूलना मानो नाजुक सी बेल को अचानक ही रेतीली कठोर भूमि पर उगा दिया जाए.

लेकिन माधुरी की घबराहट अन्य लड़कियों से अलग थी. नई जमीन पर रोपे जाने का अनुभव वह पहले भी देख चुकी थी. उस जमीन पर अपनी जड़ें जमा कर खूब पल्लवित हो कर नाजुक बेल से एक परिपक्व लताकुंज में परिवर्तित भी हो चुकी थी, लेकिन अचानक ही एक आंधी ने उसे वहां से उखाड़ दिया और उस की जड़ों को क्षतविक्षत कर के उस की जमीन ही उस से छीन ली.

2 वर्ष पहले मात्र 43 वर्ष की आयु में ही माधुरी के पति की हृदयगति रुक जाने से आकस्मिक मृत्यु हो गई. कौन सोच सकता था कि रात में पत्नी और बच्चों के साथ खुल कर हंसीमजाक कर के सोने वाला व्यक्ति फिर कभी उठ ही नहीं पाएगा. इतना खुशमिजाज, जिंदादिल इंसान था प्रशांत कि सब के दिलों को मोह लेता था, लेकिन क्या पता था कि उस का खुद का ही दिल इतनी कम उम्र में उस का साथ छोड़ देगा.

माधुरी तो बुरी तरह टूट गई थी. 18 सालों का साथ था उन का. 2 प्यारे बच्चे हैं, प्रशांत की निशानी, प्रिया और मधुर. मधुर तो तब मात्र 16 साल का हुआ ही था और प्रिया अपने पिता की अत्यंत लाडली बस 12 साल की ही थी. सब से बुरा हाल तो प्रिया का ही हुआ था.

एक खुशहाल परिवार एक ही झटके में तहसनहस हो गया. महीनों लगे थे माधुरी को इस सदमे से बाहर आ कर संभलने में. उम्र ही क्या थी उस की. मात्र 37 साल. वह तो उस के मातापिता ने अपना कलेजा मजबूत कर के उसे सांत्वना दे कर इतने बड़े दुख से उबरने में उस की मदद की. प्रिया और मधुर के कुम्हलाए चेहरे देख कर माधुरी ने सोचा था कि अब ये दोनों ही उस का जीवन हैं. अब इन के लिए उसे मजबूत छत बनानी है.

साल भर में ही वह काफी कुछ स्थिर हो गई थी. जीवन आगे बढ़ रहा था. मधुर मैडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था. प्रिया भी पढ़ने में तेज थी. स्कूल में अव्वल आती, लेकिन माधुरी की सूनी मांग और माथा देख कर उस की मां के कलेजे में मरोड़ उठती, इतना लंबा जीवन अकेले वह कैसे काट पाएगी?

‘अकेली कहां हूं मां, आप दोनों हो, बच्चे हैं,’ माधुरी जवाब देती.

‘हम कहां सारी उम्र तुम्हारा साथ दे पाएंगे बेटा. बेटी शादी कर के अपने घर चली जाएगी और मधुर पढ़ाई और फिर नौकरी के सिलसिले में न जाने कौन से शहर में रहेगा. फिर उस की भी अपनी दुनिया बस जाएगी. तब तुम्हें किसी के साथ की सब से ज्यादा जरूरत पड़ेगी. यह बात तो मैं अपने अनुभव से कह रही हूं. अपने निजी सुखदुख बांटनेसमझने वाला एक हमउम्र साथी तो सब को चाहिए होता है, बेटी,’ मां उदास आवाज में कहतीं.  माधुरी उस से भी गहरी उदास आवाज में कहती, ‘मेरी जिंदगी में वह साथ लिखा ही नहीं है, मां.’

माधुरी का जवाब सुन कर मां सोच में पड़ जातीं. माधुरी को तो पता ही नहीं था कि उस के मातापिता इस उम्र में उस की शादी फिर से करवाने की सोच रहे हैं. 3 महीने पहले ही उन्हें सुधीर के बारे में पता चला था. सुधीर की उम्र 45 वर्ष थी. 2 वर्ष पूर्व ही ब्रेन ट्यूमर की वजह से उन की पत्नी की मृत्यु हो गई थी. 2 बच्चे 19 वर्ष का बेटा और 15 वर्ष की बेटी है. घर में सुधीर की वृद्ध मां भी है. नौकरचाकरों की मदद से पिछले 2 वर्षों से वह 68 साल की उम्र में जैसेतैसे बेटे की गृहस्थी चला रही थीं.

माधुरी की मां ने सुधीर की मां को माधुरी के बारे में बता कर विवाह का प्रस्ताव रखा. सुधीर की मां ने सहर्ष उसे स्वीकार कर लिया. वयस्क होती बेटी को मां की जरूरत का हवाला दे कर और अपने बुढ़ापे का खयाल करने को उन्होंने सुधीर को विवाह के लिए मना लिया.

‘मैं बूढ़ी आखिर कब तक तेरी गृहस्थी की गाड़ी खींच पाऊंगी. और फिर कुछ सालों बाद तेरे बच्चों का ब्याह होगा. कौन करेगा वह सब भागदौड़ और उन के जाने के बाद तेरा ध्यान रखने को और सुखदुख बांटने को भी तो कोई चाहिए न. अपनी मां की इस बात पर सुधीर निरुत्तर हो गए और वही सब बातें दोहरा कर माधुरी की मां ने जैसेतैसे उसे विवाह के लिए तैयार करवा लिया.

‘बेटी अकेलापन बांटने कोई नहीं आता. यह मत सोच कि लोग क्या कहेंगे? लोग तो अच्छेबुरे समय में बस बोलने आते हैं. साथ देने के लिए आगे कोई नहीं आता. अपना बोझ आदमी को खुद ही ढोना पड़ता है. सुधीर अच्छा इंसान है. वह भी अपने जीवन में एक त्रासदी सह चुका है. मुझे पूरा विश्वास है कि वह तेरा दुख समझ कर तुझे संभाल लेगा. तुम दोनों एकदूसरे का सहारा बन सकोगे.’

माधुरी ने भी मां के तर्कों के आगे निरुत्तर हो कर पुनर्विवाह के लिए मौन स्वीकृति दे दी. वैसे भी वह अब अपनी वजह से मांपिताजी को और अधिक दुख नहीं देना चाहती थी.

लेकिन तब से वह मन ही मन ऊहापोह में जी रही थी. सवाल उस के या सुधीर के आपस में सामंजस्य निभाने का नहीं था. सवाल उन 4 वयस्क होते बच्चों के आपस में तालमेल बिठाने का है. वे आपस में एकदूसरे को अपने परिवार का अंश मान कर एक घर में मिलजुल कर रह पाएंगे? सुधीर और माधुरी को अपना मान पाएंगे?

यही सारे सवाल कई दिनों से माधुरी के मन में चौबीसों घंटे उमड़तेघुमड़ते रहते. जैसेजैसे विवाह के लिए नियत दिन पास आता जा रहा था ये सवाल उस के मन में विकराल रूप धारण करते जा रहे थे.

माधुरी अभी इन सवालों में उलझी बैठी थी कि मां ने उस के कमरे में आ कर सुधीर की मां के आने की खबर दी. माधुरी पलंग से उठ कर बाहर जाने के लिए खड़ी ही हुई थी कि सुधीर की मां स्वयं ही उस के कमरे में चली आईं. उन के साथ 14-15 साल की एक प्यारी सी लड़की भी थी. माधुरी को समझते देर नहीं लगी कि यह सुधीर की बेटी स्नेहा है. माधुरी ने उठ कर सुधीर की मां को प्रणाम किया. उन्होंने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा और कहा, ‘मैं समझती हूं माधुरी बेटा, इस समय तुम्हारी मनोस्थिति कैसी होगी? मन में अनेक सवाल घुमड़ रहे होंगे. स्वाभाविक भी है.

‘मैं बस इतना ही कहना चाहूंगी कि अपने मन से सारे संशय दूर कर के नए विश्वास और पूर्ण सहजता से नए जीवन में प्रवेश करो. हम सब अपनीअपनी जगह परिस्थिति और नियति के हाथों मजबूर हो कर अधूरे रह गए हैं. अब हमें एकदसूरे को पूरा कर के एक संपूर्ण परिवार का गठन करना है. इस के लिए हम सब को ही प्रयत्न करना है. मेरा विश्वास है कि इस में हम सफल जरूर होंगे. आज मैं अपनी ओर से पहली कड़ी जोड़ने आई हूं. एक बेटी को उस की मां से मिलाने लाई हूं. आओ स्नेहा, मिलो अपनी मां से,’ कह कर उन्होंने स्नेहा का हाथ माधुरी के हाथ में दे दिया.

स्नेहा सकुचा कर सहमी हुई सी माधुरी की बगल में बैठ गई तो माधुरी ने खींच कर उसे गले से लगा लिया. मां के स्नेह को तरस रही स्नेहा ने माधुरी के सीने में मुंह छिपा लिया. दोनों के प्रेम की ऊष्मा ने संशय और सवालों को बहुत कुछ धोपोंछ दिया.

‘बस, अब आगे की कडि़यां हम मां- बेटी मिल कर जोड़ लेंगी,’ सुधीर की मां ने कहा तो पहली बार माधुरी को लगा कि उस के मन पर पड़े हुए बोझ को मांजी ने कितनी आसानी से उतार दिया.

जल्द ही एक सादे समारोह में माधुरी और सुधीर का विवाह हो गया. माधुरी के मन का बचाखुचा भय और संशय तब पूरी तरह से दूर हो गया, जब सुधीर से मिलने वाले पितृवत स्नेह की छत्रछाया में उस ने प्रिया को प्रशांत के जाने के बाद पहली बार खुल कर हंसते देखा. अपने बच्चों को ले कर माधुरी थोड़ी असहज रहती, मगर सुधीर ने पहले दिन से ही मधुर और प्रिया के साथ एकदम सहज पितृवत व स्नेहपूर्ण व्यवहार किया. सुधीर बहुत परिपक्व और सुलझे हुए इंसान थे और मांजी भी. घर में उन दोनों ने इतना सहज और अनौपचारिक अपनेपन का वातावरण बनाए रखा कि माधुरी को लगा ही नहीं कि वह बाहर से आई है. सुधीर का बेटा सुकेश और मधुर भी जल्दी ही आपस में घुलमिल गए. कुछ ही महीनों में माधुरी को लगने लगा कि जैसे यह उस का जन्मजन्मांतर का परिवार है.

माधुरी के मातापिता भी उसे अपने नए परिवार में खुशी से रचाबसा देख कर संतुष्ट थे. दिन पंख लगा कर उड़ते गए. सुधीर का साथ पा कर माधुरी के मन की मुरझाई लताफिर हरी हो गई. ऐसा नहीं कि माधुरी को प्रशांत की और सुधीर को अपनी पत्नी की याद नहीं आती थी, लेकिन उन दोनों की याद को वे लोग सुखद रूप में लेते थे. उस दुख को उन्होंने वर्तमान पर कभी हावी नहीं होने दिया. उन की याद में रोने के बजाय वे उन के साथ बिताए सुखद पलों को एकदूसरे के साथ बांटते थे.  सोचतेसोचते माधुरी गहरी नींद में खो गई. इस घटना के 10-12 दिन बाद ही सुधीर ने माधुरी को बताया कि रविजी और उन की पत्नी उन के घर आने के इच्छुक हैं. माधुरी उन के आने के पीछे की मंशा समझ गई. उस ने सुधीर से कह दिया कि वे उन्हें रात के खाने पर सपरिवार निमंत्रित कर लें. 2 दिन बाद ही रविजी अपनी पत्नी और दोनों बच्चों को ले कर डिनर के लिए आ गए. विमला माधुरी की हैल्प करवाने के बहाने किचन में आ गई और माधुरी से बातें करने लगी. माधुरी ने स्नेहा से कहा कि प्रिया को बोल दे, डायनिंग टेबल पर प्लेट्स लगा कर रख देगी.

‘‘उसे आज बहुत सारा होमवर्क मिला है मां. उसे पढ़ने दीजिए. मैं आप की हैल्प करवा देती हूं,’’ स्नेहा ने जवाब दिया.

‘‘पर बेटा, तुम्हारे तो टैस्ट चल रहे हैं. तुम जा कर पढ़ाई करो. मैं मैनेज कर लूंगी,’’ माधुरी ने स्नेहा से कहा.

‘‘कोई बात नहीं मां. कल अंगरेजी का टैस्ट है और मुझे सब आता है,’’ स्नेहा प्लेट पोंछ कर टेबल पर सजाने लगी. तभी सुकेश और मधुर बाजार से आइसक्रीम और सलाद के लिए गाजर और खीरे वगैरह ले आए. सुकेश ने तुरंत आइसक्रीम फ्रीजर में रखी और मां से बोला, ‘‘मां, और कुछ काम है क्या?’’

‘‘नहीं, बेटा. अब तुम आनंद और अमृता को अपने रूम में ले जाओ. वे लोग बाहर अकेले बोर हो रहे हैं,’’ माधुरी ने कहा तो सुकेश बाहर चला गया.

‘‘ठीक है मां, कुछ काम पड़े तो बुला लेना,’’ स्नेहा भी अपना काम खत्म कर के चली गई. अब किचन में सिर्फ मधुरी और विमला ही रह गईं. अब विमला ज्यादा देर तक अपनी उत्सुकता को रोक नहीं पाई और उस ने माधुरी से सवाल किया, ‘‘हम तो 2 ही बच्चों को बड़ी मुश्किल से संभाल पा रहे हैं. आप ने 4-4 बच्चों को कैसे संभाला होगा? चारों में अंतर भी ज्यादा नहीं लगता. स्नेहा और मधुर तो बिलकुल एक ही उम्र के लगते हैं.’’  माधुरी इस सवाल के लिए तैयार ही थी. वह अत्यंत सहज स्वर में बोली, ‘‘हां, स्नेहा और मधुर की उम्र में बस 8 महीनों का ही फर्क है.’’

‘‘क्या?’’ विमला बुरी तरह से चौंक गई, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

तब माधुरी ने बड़ी सहजता से मुसकराते हुए संक्षेप में अपनी और सुधीर की कहानी सुना दी.  अब तो विमला के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा.

‘‘तब भी आप के चारों बच्चों में इतना प्यार है जबकि वे आपस में सगे भी नहीं हैं. मेरे तो दोनों बच्चे सगे भाईबहन होने के बाद भी आपस में इतना झगड़ते हैं कि बस पूछो मत. एक मिनट भी नहीं पटती है उन में. मैं तो इतनी तंग आ गई हूं कि लगता है इन्हें पैदा ही क्यों किया? लेकिन आप के चारों बच्चों में तो बहुत प्यार और सौहार्द दिखता है. चारों आपस में एकदूसरे पर और आप पर तो मानो जान छिड़कते हैं,’’ विमला बोली.

तभी सुधीर की मां किचन में आईं और विमला से बोलीं, ‘‘बात सगेसौतेले की नहीं, प्यार होता है आपसी सामंजस्य से. दरअसल, हम सब अपने जीवन में कुछ अपनों को खोने का दर्द झेल चुके हैं इसलिए हम सभी अपनों की कीमत समझते हैं. इस दर्द और समझ ने ही मेरे परिवार को प्यार से एकसाथ बांध कर रखा है. चारों बच्चे अपनी मां या पिता को खोने के बाद अकेलेपन का दंश झेल चुके थे, इसलिए जब चारों मिले तो उन्होंने जाना कि घर में जितने ज्यादा भाईबहन हों उतना ही मजा आता है. यही राज है हमारे परिवार की खुशियों का. हम दिल से मानते हैं कि सब को साथ चाहिए.’’

विमला उन की बातें सुन कर मुग्ध हो गई, ‘‘सचमुच मांजी, आप के परिवार के विचार और सौहार्द तो अनुकरणीय हैं.’

समय बीतता गया. सुकेश पढ़लिख कर इंजीनियर बना तो मधुर डाक्टर बन गया. मधुर ने एमडी किया और सुकेश ने बैंगलुरु से एमटेक. प्रिया और स्नेहा ने भी अपनेअपने पसंदीदा क्षेत्र में कैरियर बना लिया और फिर उन चारों के विवाह, फिर नातीपातों का जन्म, नामकरण मुंडन आदि की भागदौड़ में बरसों बीत गए. फिर एकएक कर सब पखेरू अपनेअपने नीड़ों में बस गए. सुकेश और प्रिया दोनों इंगलैंड चले गए. जहां दोनों भाईबहन पासपास ही रहते थे. मधुर बेंगलुरु में सैटल हो गया और स्नेहा मुंबई में. मांजी और माधुरी के मातापिता का निधन हो गया.

अब इतने बड़े घर में सुधीर और माधुरी अकेले रह गए. जब बच्चे और नातीपोते आते तो घर भर जाता. कभी ये लोग बारीबारी से सारे बच्चों के पास रह आते, लेकिन अधिकांश समय दोनों अपने घर में ही रहते. अपनी दिनचर्या को उन्होंने इस तरह से ढाला कि सुबह की चाय बगीचे की ताजी हवा में साथ बैठ कर पीते, साथ बागबानी करते. साथसाथ घर के सारे काम करने में दिन कब गुजर जाता, पता ही नहीं चलता. दोनों पल भर कभी एकदूसरे से अलग नहीं रह पाते. अब जा कर माधुरी और सुधीर को एहसास होता कि अगर उन्होंने उस समय अपने मातापिता की बात न मान कर विवाह नहीं किया होता तो आज जीवन की इस संध्याबेला में दोनों इतने माधुर्यपूर्ण साथ से वंचित हो कर बिलकुल अकेले रह जाते. जीवन की सुबह मातापिता की छत्रछाया में गुजर जाती है, दोपहर भागदौड़ में बीत जाती है मगर संध्याबेला की इस घड़ी में जब जीवन में अचानक ठहराव आ जाता है तब किसी के साथ की सब से अधिक आवश्यकता होती है. सुधीर के कंधे पर सिर टिकाए हुए माधुरी यही सोच रही थी. सचमुच, बिना साथी के जीवन अत्यंत कठिन और दुखदायक है. साथ सब को चाहिए.

पहचान: मां की मौत के बाद क्या था अजीम का हाल

बाढ़ राहत शिविर के बाहर सांप सी लहराती लंबी लाइन के आखिरी छोर पर खड़ी वह बारबार लाइन से बाहर झांक कर पहले नंबर पर खड़े उस व्यक्ति को देख लेती थी कि कब वह जंग जीत कर लाइन से बाहर निकले और उसे एक कदम आगे आने का मौका मिले.

असम के गोलाघाट में धनसिरी नदी का उफान ताडंव करता सबकुछ लील गया है. तिनकातिनका जुटाए सामान के साथ पसीनों की लंबी फेहरिस्त बह गई है. बह गए हैं झोंपड़े और उन के साथ खड़ेभर होने तक की जमीन भी. ऐसे हालात में राबिया के भाई 8 साल के अजीम के टूटेफूटे मिट्टी के खिलौनों की क्या बिसात थी.

खिलौनों को झोंपड़ी में भर आए बाढ़ के पानी से बचाने के लिए अजीम ने न जाने क्याक्या जुगतें की, और जब झोंपड़ी ही जड़ से उखड़ गई तब उसे जिंदगी की असली लड़ाई का पता मालूम हुआ.

राबिया ने 20 साल की उम्र तक क्याक्या न देखा. वह शरणार्थी शिविर के बाहर लाइन में खड़ीखड़ी अपनी जिंदगी के पिछले सालों के ब्योरे में कहीं गुम सी हो गई थी.

राबिया अपनी मां और छोटे भाई अजीम को पास ही शरणार्थी शिविर में छोड़ यहां सरकारी राहत कैंप में खाना व कपड़ा लेने के लिए खड़ी है. परिवार के सदस्यों के हिसाब से कंबल, चादर, ब्रैड, बिस्कुट आदि दिए जा रहे थे.

2 साल का ही तो था अजीम जब उस के अब्बा की मौत हो गई थी. उन्होंने कितनी लड़ाइयां देखीं, लड़ीं, कब से वे भी शांति से दो वक्त की रोटी को दरबदर होते रहे. एक टुकड़ा जमीन में चार सांसें जैसे सब पर भारी थीं. कौन सी राजनीति, कैसेकैसे नेता, कितने छल, कितने ही झूठ, सूखी जमीन तो कभी बाढ़ में बहती जिंदगियां. कहां जाएं वे अब? कैसे जिएं? लाखों जानेअनजाने लोगों की भीड़ में तो बस वही चेहरा पहचाना लगता है जो जरा सी संवेदना और इंसानियत दिखा दे.

पैदा होने के बाद से ही देख रही थी राबिया एक अंतहीन जिहाद. क्यों? क्यों इतना फसाद था, इतनी बगावत और शोर था?

अब्बा के पास एक छोटी सी जमीन थी. धान की रोपाई, कटाई और फसल होने के बाद 2 मुट्ठी अनाज के दाने घर तक लाने के लिए उन्हें कितने ही पापड़ बेलने पड़ते. और फिर भूख और अनाज के बीच अम्मी की ढेरों जुगतें, ताकि नई फसल होने तक भूख का निवाला खुद ही न बन जाएं वे.

इस संघर्ष में भी अम्मी व अब्बा को कभी किसी से शिकायत नहीं रही. न तो सरकार से, न ग्राम पंचायती व्यवस्था से और न जमाने से. जैसा कि अकसर सोनेहीरों में खेलने वाले लोगों को रहती है. शिकायत भी क्या करें? मुसलिम होने की वजह से हर वक्त वे इस कैफियत में ही पड़े रहते कि कहीं वे बंगलादेशी घुसपैठिए न करार दे दिए जाएं. अब्बा न चाहते हुए भी इस खूनी आग की लपटों में घिर गए.

वह 2012 के जुलाई माह का एक दिन था. अब्बा अपने खेत गए हुए थे. खेत हो या घर, हमेशा कई मुद्दे सवाल बन कर उन के सिर पर सवार रहते. ‘कौन हो?’ ‘क्या हो?’ ‘कहां से हो?’ ‘क्यों हो?’ ‘कब से हो?’ ‘कब तक हो?’

इतने सारे सवालों के चक्रव्यूह में घिरे अब्बा तब भी अमन की दुआ मांगते रहते. बोडो, असमिया लोगों की आपत्ति थी कि असम में कोई बाहरी व्यक्ति न रहे. उन का आंतरिक मसला जो भी हो लेकिन आम लोग जिंदगी के लिए जिंदगी की जंग में झोंके जा चुके थे.अब्बा खेत से न लौटे. बस, तब से भूख ने मौत के खौफ की शक्ल ले ली थी. भूख, भय, जमीन से बेदखल हो जाने का संकट, रोजीरोटी की समस्या, बच्चों की बीमारी, देशनिकाला, अंतहीन अंधेरा. घर में ही अब्बा से या कभी किसी पहचान वाले से राबिया ने थोड़ाबहुत पढ़ा था.

पागलों की तरह अम्मी को कागज का एक टुकड़ा ढूंढ़ते देखती. कभी संदूकों में, कभी बिस्तर के नीचे, कभी अब्बा के सामान में. वह सुबूत जो सिद्ध कर दे कि उन के पूर्वज 1972 के पहले से ही असम में हैं. नहीं मिल पाया कोई सुबूत. बस, जो था वह वक्त के पंजर में दफन था. अब्बा के जाने के बाद अम्मी जैसे पथरा गईर् थीं. आखिरकार 14 साल की राबिया को मां और भाई के लिए काम की खोज में जाना ही पड़ा.

कभी कहीं मकान, कभी दुकान में जब जहां काम मिलता, वह करती. बेटी की तकलीफों ने अम्मी को फिर से जिंदा होने को मजबूर कर दिया. इधरउधर काम कर के किसी तरह वे बच्चों को संभालती रहीं.

जिंदगी जैसी भी हो, चलने लगी थी. लेकिन आएदिन असमिया और अन्य लोगों के बीच पहचान व स्थायित्व का विवाद बढ़ता ही रहा. प्राकृतिक आपदा असम जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए नई बात नहीं थी, तो बाढ़ भी जैसे उनकी जिंदगी की लड़ाई का एक जरूरी हिस्सा ही था. राबिया अब तक लाइन के पहले नंबर पर पहुंच गई थी.

सामने टेबल बिछा कर कुरसी पर जो बाबू बैठे थे, राबिया उन्हें ही देख रही थी.

‘‘कार्ड निकालो जो एनआरसी पहचान के लिए दिए गए हैं.’’

‘‘कौन सा?’’ राबिया घबरा गई थी.

बाबू ने थोड़ा झल्लाते हुए कहा, ‘‘एनआरसी यानी नैशनल रजिस्टर औफ सिटिजन्स का पहचानपत्र, वह दिखाओ, वरना सामान अभी नहीं दिया जा सकेगा. जिन का नाम है, पहले उन्हें मिलेगा.’’

‘‘जी, दूसरी अर्जी दाखिल की हुई है, पर अभी बहुतों का नाम शामिल नहीं है. मेहरबानी कर के सामान दे दीजिए. मैं कई घंटे से लाइन में लगी हूं. उधर अम्मी और छोटा भाई इंतजार में होंगे.’’

मिलने, न मिलने की दुविधा में पड़ी लड़की को देख मुहरवाले कार्डधारी पीछे से चिल्लाने लगे और किसी डकैत पर टूट पड़ने जैसा राबिया पर पिल पड़ते हुए उसे धकिया कर निकालने की कोशिश में जुट गए. राबिया के लिए जैसे ‘करो या मरो’ की बात हो गई थी. 2 जिंदगियां उस की राह देख रही थीं. ऐसे में राबिया समझ चुकी थी कि कई कानूनी बातें लोगों के लिए होते हुए भी लोगों के लिए ही तकलीफदेह हो जाती हैं.

बाबू के पीछे खड़े 27-28 साल के हट्टेकट्टे असमिया नौजवान नीरद ने राबिया को मुश्किल में देख उस से कहा, ‘‘आप इधर अंदर आइए. आप बड़े बाबू से बात कर लीजिए, शायद कुछ हो सके.’’

राबिया भीड़ के पंजों से छूट कर अंदर आ गई थी. लोग खासे चिढ़े थे. कुछ तो अश्लील फब्तियां कसने से भी बाज नहीं आ रहे थे. राबिया दरवाजे के अंदर आ कर उसी कोने में दुबक कर खड़ी हो गई.

नीरद पास आया और एक मददगार की हैसियत से उस ने उस पर नजर डाली. दुबलीपतली, गोरी, सुंदर, कजरारी आंखों वाली राबिया मायूसी और चिंता से डूबी जा रही थी. उस ने हया छोड़ मिन्नतभरी नजरों से नीरद को देखा.

नीरद ने आहिस्ते से कहा, ‘‘सामान की जिम्मेदारी मेरी ही है, मैं राहत कार्य निबटा कर शाम को शिविर आ कर तुम्हें सामान दे जाऊंगा. तुम अपना नाम बता दो.’’

राबिया ने नाम तो बता दिया लेकिन खुद की इस जिल्लत के लिए खुद को ही मन ही मन कोसती रही.

नीरद भोलाभाला, धानी रंग का असमिया युवक था. वह गुवाहाटी में आपदा नियंत्रण और सहायता विभाग में सरकारी नौकर था. नौकरी, पैसा, नियम, रजिस्टर, सरकारी सुबूतों के बीच भी उस का अपना एक मानवीय तंत्र हमेशा काम करता था. और इसलिए ही वह मुश्किल में पड़े लोगों को अपनी तरफ से वह अतिरिक्त मदद कर देता जो कायदेकानूनों के आड़े आने से अटक जाते थे.

उस ने राबिया से कहा, ‘‘अभी मैं तुम्हें यहां से सामान दे दूं तो नैशनल रजिस्टर में नाम दर्ज का अलग ही बखेड़ा खड़ा होगा. तुम्हारे परिवार का नाम छूटा है इस पहचान रजिस्टर में.’’

‘‘क्या करें, हम भी उन 40 लाख समय के मारों में शामिल हैं, जिन के सरकारी रजिस्टर में नागरिक की हैसियत से नाम दर्ज नहीं हैं. अब्बा नहीं हैं. जिंदगी जीने के लाले पड़े हुए हैं. नाम दर्ज करवाने के झमेले कैसे उठाएं?’’

‘‘ठीक है, तुम लोग पास ही के सरकारी स्कूल में बने शरणार्थी शिविरों में रह रहे हो न. मैं काम खत्म कर के 6 बजे तक सामान सहित वहां पहुंच जाऊंगा. तुम फिक्र न करो, मैं जरूर आऊंगा?’’

शिविर में आ कर राबिया की आंखें घड़ी पर और दिल दरवाजे पर अटका रहा. 2 कंबल, चादर और खानेपीने के सामान के साथ नीरद राबिया के पास पहुंच चुका था.

अम्मी तो धन्यवाद करते बिछबिछ जाती थीं. राबिया ने बस एक बार नीरद की आंखों में देखा. नीरद ने भी नजरें मिलाईं. क्या कुछ अनकहा सा एकदूसरे के दिल में समाया, यह तो वही जानें, बस, इतना ही कह सकते हैं कि धनसिरी की इस बाढ़ ने भविष्य के गर्भ में एक अपठित महाकाव्य का बीज ला कर रोप दिया था.

शरणार्थी शिविर में रोज का खाना तो दिया जाता था लेकिन नैशनल रजिस्टर औफ सिटिजन्स में जिन का नाम नहीं था, बिना किसी तकरार के वे भेदभाव के शिकार तो थे ही, इस मामले में आवाज उठाने की गुंजाइश भी नहीं थी क्योंकि स्थानीय लोगों की मानसिकता के अनुरूप ही था यह सबकुछ.

बात जब गलतसही की होती है, तब यह सुविधाअसुविधा और इंसानियत पर भी रहनी चाहिए. लेकिन सच यह है कि लोगों की तकलीफों को करीब से देखने के लिए हमेशा एक अतिरिक्त आंख चाहिए होती है.

बेबसी, अफरातफरी, इतिहास की खूनी यादें, बदले की झुलसाती आग, अपनेपरायों का तिकड़मी खेल और भविष्य की भूखी चिंता. राबिया के पास इंतजार के सिवा और कुछ न था.

नीरद जबजब आ जाता, राबिया, अजीम और उन की अम्मी की सांसें बड़ी तसल्ली से चलने लगतीं, वरना वही खौफ, वही बेचैनी.

राबिया नीरद से काफीकुछ कहना चाहती, लेकिन मौन रह जाती. हां, जितना वह मौन रहती उस का अंतर मुखर हो जाता. वह रातरातभर करवटें लेती. भीड़ और चीखपुकार के बीच भी मन के अंदर एक खाली जगह पैदा हो गई थी उस के. राबि?या के मन की उस खाली जगह में एक हरा घास का मैदान होता, शाम की सुहानी हवा और पेड़ के नीचे बैठा नीरद. नीरद की गोद में सिर रखी हुई राबिया. नीरद कुछ दूर पर बहती धनसिरी को देखता हुआ राबिया को न जाने प्रेम की कितनी ही बातें बता रहा है. वह नदी, हां, धनसिरी ही है. लेकिन कोई शोर नहीं, बदला नहीं, लड़ाई और भेदभाव नहीं. सब को पोषित करने वाली अपनी धनसिरी. अपनी माटी, अपना नीरद.

आज शाम को किराए के अपने मकान में लौटते वक्त आदतानुसार नीरद आया. नीरद के यहां आते अब महीनेभर से ऊपर होने को था.

राबिया एक  कागज का टुकड़ा झट से नीरद को पकड़ा उस की नजरों से ओझल हो गई.

अपनी साइकिल पर बैठे नीरद ने कागज के टुकड़े को खोला. असमिया में लिखा था, ‘‘मैं असम की लड़की, तुम असम के लड़के. हम दोनों को ही जब अपनी माटी से इतना प्यार है तो मैं क्या तुम से अलग हूं? अगर नहीं, तो एक बार मुझ से बात करो.’’

नीरद के दिल में कुछ अजीब सा हुआ. थोड़ा सा पहचाना, थोड़ा अनजाना. उस ने कागज के पीछे लिखा, ‘‘मैं तुम्हारी अम्मी से कल बात करूंगा?’’ राबिया को चिट्ठी पकड़ा कर वह निकल गया.

चिट्ठी का लिखा मजमून पढ़ राबिया के पांवों तले जमीन खिसक गई. ‘‘पता नहीं ऐसा क्यों लिखा उस ने? कहीं शादीशुदा तो नहीं? मैं मुसलिम, कहीं इस वजह से वह गुस्सा तो नहीं हो गया? क्या मैं ने खुद को असमिया कहा तो बुरा मान गया वह? फिर जो भी थोड़ाबहुत सहारा था, छिन गया तो?’’

राबिया का दिल बुरी तरह बैठ गया. बारबार खुद को लानत भेज कर भी जब उस के दिल पर ठंडक नहीं पड़ी तो अम्मी के पास पहुंची. उन्हें भरसक मनाने का प्रयास किया कि वे तीनों यहां से चल दें. जो भी हो वह नीरद को अम्मी से बात करने से रोकना चाहती थी.

अम्मी बेटी की खुद्दारी भी समझती थीं और दुनियाजहान में अपने हालात भी, कहा, ‘‘बेटी, बाढ़ से सारे रास्ते कटे पड़े हैं. कोई ठौर नहीं, खाना नहीं, फिर जिल्लत जितनी यहां है, उस से कई गुना बाहर होगी. जान के लाले भी पड़ सकते हैं. नन्हे अजीम को खतरा हो सकता है. तू चिंता न कर, मैं सब संभाल लूंगी.’’

शाम को कुछ रसद के साथ नीरद हाजिर हुआ और सामान राबिया को पकड़ा कर अम्मी के पास जा बैठा. अम्मी का हाथ अपने हाथों में ले कर उस ने कहा, ‘‘राबिया की वजह से आप से और अजीम से जुड़ा. अब मैं सचमुच यह चाहता हूं कि आप तीनों मेरे साथ गुवाहाटी चलें. जब मेरा यहां का काम खत्म हो जाए तब मैं आप सब से हमेशा के लिए बिछुड़ना नहीं चाहता. गुवाहाटी में मैं राबिया को एक एनजीओ संस्था में नौकरी दिलवा दूंगा. अजीम का दाखिला भी स्कूल में हो जाएगा. आप सिलाई वगैरह का कोई काम देख लेना. और रहने की चिंता बिलकुल न करिए. वहां हमारा अपना घर है. आप को किसी चीज की कोई चिंता न होने दूंगा.’’

राबिया की तो जैसे रुकी हुई सांस अचानक चल पड़ी थी. बारिश में लथपथ हवा जैसे वसंत की मीठी बयार बन गई थी. अम्मी ने नीरद के गालों को अपनी हथेलियों में भर कर कहा, ‘‘बेटा, जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे. अब तुम्हें हम सब अपना ही नहीं, बल्कि जिगर का टुकड़ा भी मानते हैं.’’

अजीम यहां से जाने की बात सुन नीरद की पीठ पर लद कर नीरद को दुलारने लगा. नीरद ने राबिया की ओर देखा. राबिया मारे खुशी के बाहर दौड़ गई. वह अपनी खुशी की इस इंतहा को सब पर जाहिर कर शर्मसार नहीं होना चाहती थी जैसे.

महीनेभर बाद वे गुवाहाटी आ गए थे. नीरद के दोमंजिला मकान से लगी खाली जगह में एक छोटा सा आउटहाउस किस्म का था, शायद माली आदि के लिए. छत पर ऐसबेस्टस था. लेकिन छोटा सा 2 कमरे वाला हवादार मकान था. बरामदे के एक छोर पर रसोई के लिए जगह घेर दी गई थी. वहां खिड़की थी तो रोशनी की भी सहूलियत थी. पीछे छोटा सा स्नानघर आदि था. एक अदद सूखी जमीन पैर रखने को, एक छत सिर ढांपने को, बेटी राबिया की एनजीओ में नौकरी, अजीम का सरकारी स्कूल में दाखिला और खुद अम्मी का एक टेलर की दुकान पर सिलाई का काम कर लेना- इस से ज्यादा उन्हें चाहिए भी क्या था.

पर बात यह भी थी कि उन के लिए इतना पाना ही काफी नहीं रहा. नैशनल रजिस्टर औफ सिटिजन्स का सवाल तलवार बन कर सिर पर टंगा था. अगर जी लेना इतना आसान होता तो लोग पीढ़ी दर पीढ़ी एक आशियाने की तलाश में दरबदर क्यों होते? क्यों लोग अपनी कमाई हुई रोटी पर भी अपना हक जताने के लिए सदियों तक लड़ाई में हिस्सेदार होते? नहीं था इतना भी आसान जीना.

अभी 3-4 दिन हुए थे कि नीरद की मां आ पहुंची उन से मिलने. राबिया की मां ने सोचा था कि वे खुद ही उन से मिलने जाएंगी, लेकिन नीरद ने मना कर दिया था. जब तक वे दुआसलाम कर के उन के बैठने के लिए कुरसी लातीं, नीरद की मां ने तोप के गोले की तरह सवाल दागने शुरू किए.

‘‘नीरद ढंग से बताता कुछ नहीं, आप लोग हैं कौन? धर्मजात क्या है आप की? आप की बेटी रोज कहां जाती है? नीरद ने किराया कुछ बताया भी है या नहीं? हम ने यह घर माली के लिए बनवाया था. अब जब तक आप लोग हो, मेरा बगीचा फिर से सही कर देना. वैसे, हो कब तक आप लोग?’’

अम्मी ने हाथ जोड़ दिए, कहा, ‘‘दीदी, नीरद बड़ा अच्छा बच्चा है. बाढ़ में हमारा घरबार सब डूब गया. समय थोड़ा सही हो जाए, चले जाएंगे.’’

सिर से पांव तक राबिया की अम्मी को नीरद की मां ने निहारा और कहा, ‘‘घरवालों के सीने में मूंग दल कर बाहर वालों पर रहमकरम कर रहा है, अच्छा बच्चा तो होगा ही.’’

नीरद की मां का इस तरह बोल कर निकल जाना अम्मी को काफी मायूस कर गया. अब चोरों की तरह अपनी ही नजरों से खुद को छिपाना भारी हो गया था. हमेशा बस यही डर कि किसी को पता न लग जाए कि वे सरकारी लिस्ट के बाहर के लोग हैं. जाने कितनी पुश्तों से इस माटी में रचेबसे अब अचानक खुद को घुसपैठिए सा महसूस करने लगे हैं. जैसे धरती पर बोझ. जैसे चोरी की जिंदगी छिपाए नहीं छिप रही.

भरोसा उन्हें इस अनजान धरती पर भले ही नीरद का था, लेकिन काम के सिलसिले में वह भी तो अकसर शहर से बाहर ही रहता. इस घटना को अभी 4-5 दिन बीते होंगे. नीरद अभी भी शहर से बाहर ही था और दूसरे दिन आने वाला था. राबिया ने शाम को अपनी रसोई की खिड़की से एक साया सा देखा. वह साया एक पल को खिड़की के सामने रुक कर तुरंत हट गया.

उस रात थोड़ा डर कर भी वह शांत रह गई, किसी से कुछ नहीं कहा. नीरद दूसरे दिन घर वापस आया और उन से मिला भी, लेकिन बात आईगईर् हो गई. नीरद 3 दिनों बाद फिर शहर से बाहर गया. शाम को रसोई की खिड़की के बाहर राबिया ने फिर एक आकृति देखी. एक पल रुक कर वह आकृति सामने से हट गई. राबिया दौड़ कर बाहर गई. कोई नहीं था. राबिया पसोपेश में थी. अम्मी खामख्वाह परेशान हो जाएंगी. यह सोच कर वह बात को दबा गई.

हां, राबिया को इन सब से छुट्टी नहीं मिली. खिड़की, एक आकृति, इन सब का डर और फिर बाहर झपटना और कुछ न देख पाना. राबिया मानसिक रूप से लगातार टूट रही थी.

अगले हफ्ते नीरद वापस आया तो उसे सारी बातें बताने की सोच कर भी वह डर कर पहले चुप रह गई.

दरअसल, राबिया का डर लाजिमी था. एक तो नीरद ने उन दोनों के आपसी रिश्ते पर अब तक बात नहीं की थी, दूसरे, अम्मी और अजीम की जिंदगी राबिया की किसी गलती की वजह से अधर में न लटक जाए. दरअसल, राबिया तो अब तक नीरद की चुप्पी देख खुद के एहसासों को भी खत्म कर लेने का जिगर पैदा कर चुकी थी.

खिड़की पर रोजरोज किसी का दिखना कोई छोड़ा जाने वाला मसला नहीं लगा राबिया को और उस ने हिम्मत कर ही ली कि नीरद को सारी बातें बताई जाएं.

नीरद समझदार था. उसे अंदेशा हुआ कि हो न हो कोई राबिया के लिए ही आता हो. गिद्दों की नजर पड़ने में देर ही कहां लगती है. एक परिवार को वह खुद के भरोसे उन की जमीन से उखाड़ लाया है. क्या वह राबिया के लिए कोई जिम्मेदारी महसूस करता है? क्या यह सिर्फ जिम्मेदारी ही है?

अजीम बाहर खेल रहा था, और अम्मी टेलर की दुकान से अभी तक नहीं लौटी थीं. नीरद को यह सही वक्त लगा. उस ने राबिया से कहा, ‘‘राबिया, मैं तुम से एक बात पूछना चाहता हूं.’’

राबिया की धड़कनें धनसिरी के उफानों से भी तेज चलने लगीं. आशानिराशा के बीच डोलती उस की आंखों की पुतलियां भरसक स्थिर होने की कोशिश में लगीं नीरद की आंखों से जा टकराईं.

नीरद ने कहा, ‘‘राबिया, तुम्हारा नाम मुझे लंबा लगता है, मैं तुम्हें ‘राबी’ कह कर बुलाना चाहता हूं. इजाजत है?’’

‘‘है, है, सबकुछ के लिए इजाजत है.’’

राबिया का दिल खुशी के मारे मन ही मन बल्लियों उछल पड़ा. मगर शर्मीली राबिया बर्फ की मूरत बनी एक ही जगह शांत खड़ी रही और जमीन की ओर देखती स्वीकृति में बस सिर ही हिला सकी.

नीरद ने धीरे से पूछा, ‘‘तुम्हारी पसंद में कोई लड़का है जिस से तुम शादी कर सको? मुझे बता दो, यहां मैं ही तुम सब का अपना हूं?’’

‘इस की बातें किसी पराए की तरह चुभती हैं. कभी इस ने मेरे मन को टटोलने की कोशिश नहीं की. जबकि मैं न जाने इसे कब से अपना सबकुछ…’ राबिया आक्रोश पर काबू नहीं रख सकी और नीरद के सामने अपनेआप को जैसे पूरा खोल कर रख दिया अचानक, ‘‘चूल्हे में जाए

तुम्हारा अपनापन. आठों पहर दिल में कुढ़ती हूं, आंखों का पानी अब तेजाब बन गया है. अब सब्र नहीं मुझ में.’’

नीरद नजदीक आ कर उस की दोनों बांहें पकड़ उस की आंखों की गहरी झील में उतरता रहा. कितनी सीपियां यहां मोती छिपाए पड़ी हैं. वह कितना बेवकूफ था जो झिझकता ही रह गया.

राबिया प्रेम समर्पण और लज्जा से थरथरा उठी. धीरेधीरे वह नीरद के बलिष्ठ बाजुओं के घेरे में खुद को समर्पित कर उस के सीने से जा लगी.

नीरद ने उस पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए पूछा, ‘‘शादी करोगी मुझ से?’’

‘‘पर कैसे? तुम कर पाओगे? मेरा तो कोई नहीं, लेकिन तुम्हारा परिवार और समाज?’’

‘‘तुम प्यार करती हो न मुझ से?’’

‘‘क्या अब और भी कुछ कहना पड़ेगा मुझे?’’

‘‘फिर तुम मेरी हो चुकी, राबी. कोईर् इस सच को अब झुठला नहीं सकता.’’

नीरद के मन की हूर अब नीरद के लिए सच बन कर जमीन पर उतर चुकी थी. लेकिन इस सच को परिवार और समाज की जड़बुद्धि को कुबूल करवाना कोई हंसीखेल नहीं था.

असम के ग्रामीण इलाकों में बाढ़ का प्रकोप कुछ कम हुआ तो एनआरसी यानी नैशनल रजिस्टर औफ सिटीजन्स का प्रकरण फिर शुरू हुआ.

राबिया का परिवार अपना घरबार, जमीन खो कर जड़ से कट चुका था. अभी के हालात में दो जून की रोटी और अमन से जीने की हसरत इतनी माने रखती थी कि अम्मी और राबिया फिर से उसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहती थीं.

इधर, नीरद चाहता था कि एनआरसी की दूसरी लिस्ट में उन का नाम आ जाए. अभी नीरद इसी मामले में बात कर अपने घर की सीढि़यों से ऊपर चढ़ा ही था, और बाहर तक उसे छोड़ने आई राबिया अपने घर की तरफ मुड़ी ही थी, कि शाम के धुंधलके वाले सन्नाटे में कोई राबिया का मुंह झटके से अपने हाथों में दबा, तेजी से पीछे जंगल की ओर घसीट ले गया. वह इतनी फुरती में था कि राबिया को संभलने का मौका न मिला.

राबिया के घर के पीछे घनी अंधेरी झाडि़यों में ले जा कर उस ने राबिया को जमीन पर पटक दिया और उस के सीने पर बैठ गया. उस के चेहरे के पास अपना चेहरा ले जा कर अपना मोबाइल औन कर के उस ने अपना चेहरा दिखाया और शैतानी स्वर में पूछा, ‘‘पहचाना?’’

राबिया घृणा और भय से सिहर उठी. उस ने अपना चेहरा राबिया के चेहरे के और करीब ला कर फुसफुसा कर कहा, ‘‘जो सोचा भी नहीं जा सकता वह कभीकभी हो जाता है. अब तुम्हारे सामने 3 विकल्प हैं. पहला, तुम रोज रात को इसी जगह मेरी हसरतें पूरी करो चाहे नीरद से रिश्ता रखो. दूसरा, अपने परिवार को ले कर चुपचाप यहां से चली जाओ, किसी से बिना कुछ कहे, नीरद से भी नहीं. अंतिम विकल्प, मुझ से बगावत करो, इसी घर में रहो, नीरद को फांसो और अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहो.

‘‘वैसे, अंजाम भी सुन ही लो. 3 जिंदगियां खतरे में होंगी. नीरद, अजीम और तुम्हारी अम्मी की. हां, तुम्हें आंच नहीं आने दूंगा जानेमन. तुम तो मेरी हसरतों की आग में घी का काम करोगी.’’

सन्नाटे पर चोट सी पड़ती उस की खूंखार आवाज से बर्फ सी ठंडी पड़ चुकी राबिया दहल गई थी. उस के शरीर को अश्लील तरीके से छूता हुआ वह परे हट बैठा और अपनी कठोर हथेली में उस के गालों को भींच कर बोला, ‘‘देखा, मैं कितना शानदार इंसान हूं. मैं तुम्हें आसानी से हासिल कर सकता था, लेकिन मैं चाहता हूं तुम खुद को खुद ही मुझे सौंपो. जैसे सौंपोगी नीरद को. उफ, वह क्या मंजर होगा. तुम मेरी आगोश में होगी- और वह पल, नीरद के साथ धोखा… कयामत आएगी उस पर.

‘‘लगेहाथ यह भी बता दूं, नीरद की शादी तय हो गई है, खानदानी लड़की से, सरकारी लिस्ट वाली.’’

राबिया बेहोशी सी हालत में घर पहुंची तो यथासंभव खुद को संभाले रही और नीरद के साथ बाहर चले जाने का बहाना बना दिया. लड़की जात ही ऐसी होती है, ड्रामेबाज. कभी मां से, कभी प्रेमी, पति, भाई या पिता से झूठ बोलती ही रहती है. अपना दर्द छिपाती है, डर छिपाती है ताकि अपने निश्चित रहें, शांत और खुश रहें.

सुबह हुई तो राबिया को फिर शाम का डर सताने लगा. इतने में नीरद आ गया. उस का व्यवहार उखड़ा सा था. आते ही वह कह पड़ा, चलो, अब और नहीं रुकूंगा. रजिस्ट्री मैरिज के लिए आज ही आवेदन दे दूंगा.’’

राबिया सकते में थी. ‘‘इतनी जल्दी? सब मानेंगे कैसे?’’ फिर रजिस्ट्री होगी कैसे? वह तो सब की नजर में घुसपैठिया है.

कागज का टुकड़ा जाने कब कहां किस बाढ़ में बह गया. वे तो बेगाने ही हो गए. नीरद ने अम्मी के पांव छू लिए. कहा, ‘‘अम्मी, आप बस आशीर्वाद दे दो, बाकी मैं संभाल लूंगा. रात को घर में मां और भाई ने खूब हंगामा किया.

‘‘मां ने मेरी शादी एक नामी खानदानी परिवार में तय कर रखी है. मोटी रकम देंगे वे. मुझे कल रात यह बात पता चली. मेरे पिता की मृत्यु के बाद से मैं ही घर की जिम्मेदारी उठा रहा हूं. पिता की पैंशन से मां मनमाना खर्च करती हैं और 32 साल के मेरे निकम्मे बड़े भाई को दे देती हैं. बड़ा भाई पहली शादी से तलाक ले कर आवारागर्दी करता है. पार्टी से जुड़ा है और पार्टी फंड के नाम पर उगाही कर के जेब गरम करता है. अब इन दोनों का मेरी निजी जिंदगी में दखल मैं कतई बरदाश्त नहीं करूंगा.’’

राबिया के दिल में तूफान उठा. वह अपने साथ हुए उस भयानक हादसे को जेहन में रोक कर न रख सकी. आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा, ‘‘नीरद,’’ कहते हुए उस की हिचकियां बंध गईं. अम्मी अजीम को ले कर बाहर चली गईं.

नीरद पास आ गया था. उस की आंखों में बेइंतहा प्रेम और हाथों में अगाध विश्वास का स्पर्श था. उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ है, राबी? बताओ मुझे. शायद कहीं मेरा अंदेशा तो सही नहीं? तुम ही बताओ राबी?’’

‘‘तुम्हारा बड़ा भाई,’’ सिर झुकाए हुए आंसुओं की धार में राबिया के सारे मलाल बाहर निकल आए. नीरद को गुस्से में होश न रहा, चिल्ला कर पूछा, ‘‘क्या कर दिया कमजर्फ ने?’’

राबिया सकते में आ गई. नीरद के हाथ पकड़ कर विनती के स्वर में कहा, ‘‘कुछ कर नहीं पाया, मगर जंगल में खींच कर ले गया था मुझे.’’ बाकी बातें सुनते ही नीरद आपे से बाहर हो गया, कहा, ‘‘चलो थाने, रिपोर्ट लिखाएंगे.’’

‘‘आप के परिवार की इज्जत?’’

‘‘तुम्हारे दुख से बड़ी नहीं. क्या तुम ने उस का चेहरा देखा था? उस ने जैसा तुम्हें धमकाया था, वैसा वाकई कर दिखाया?’’

‘‘साफसाफ देखा मैं ने उसे. वह खुद चाहता था कि मैं उसे पहचानूं, खौफ खाऊं.’’

नीरद उन तीनों को ले कर थाने तो गया लेकिन वहां उन की नागरिकता के प्रश्न पर उन्हें जलील ही होना पड़ा. पुलिस वालों ने कहा, ‘‘तब तो पहले एनआरसी में नाम दर्ज करवाओ, फिर यहां आओ. जब हमारे यहां के नागरिक हो ही नहीं, तो हमें क्या वास्ता?’’

न्याय, अन्याय और सुखदुख की मीमांसा अब इंसानियत के हाथों में नहीं थी. बाध्य हो कर नीरद ने अपने कद्दावर दोस्त माणिक का सहारा लिया. वह एक सामाजिक संस्था का मुखिया था और समाज व राजनीतिक जीवन में उस की गहरी पैठ थी.

उस ने उन लोगों को शरण भी दी और देखभाल का जिम्मा भी लिया. नीरद भी कुछ दिन माणिक के घर से औफिस आनाजाना करता रहा.

इस बीच, नीरद ने अपने बड़े भाई की हरकतों का उस की ही पार्टी के राज्य हाईकमान से शिकायत की और उसे काबू में रखने का इशारा करते हुए उन की पार्टी की बदनामी का जिक्र किया. हाईकमान को बात समझ आ गई. उसी शाम जब वह फिर राबिया को तहसनहस करने के मंसूबे बांध उस के खाली घर के पास बिना कुछ जाने मंडरा रहा था. पार्र्टी हाईकमान के गुर्गों ने राबिया के घर के पीछे की झाडि़यों में ले जा कर उस की सारी हसरतें पूरी कर दीं. साथ ही, हाईकमान का आदेश भी सुना दिया, ‘पार्टी बदनाम हुई तो वह जिंदा नहीं बचेगा.’

इधर, यह कहानी यहां रुक तो गई, लेकिन नीरद की जिंदगी की नई कहानी कैसे शुरू हो? रजिस्ट्री तो तब होगी जब राबिया खुद को असम की लड़की साबित कर पाएगी.

पर क्या नीरद का प्रेम इन बातों का मुहताज है? जब उस ने धर्मजाति नहीं देखी तो अब नागरिकता पर अपने प्रेम की बलि चढ़ा दे?

प्रेम तो मासूम तितली सा नादान, दूसरों के दर्द, दूसरों की खुशी का वाहक  है जैसे परागकणों को तितलियां ले जाती हैं एक से दूसरे फूलों में.

नीरद ने अपना तबादला दिसपुर कर देने की अर्जी लगाई. भले ही वहां काम ज्यादा हो, लेकिन राबिया को नजदीक पाने के लिए वह कुछ ज्यादा भी मेहनत कर लेगा.

सच कहते हैं, भला मानुष कभी अकेला नहीं पड़ता. चार दुश्मन अगर उस के हों भी, सौ दोस्त भी उस के हर सुखदुख में साथ होते हैं. नीरद भी ऐसा ही था. ज्यादातर वह लोगों से मदद लेता कम था, देता अधिक था. औफिस के सारे स्टाफ वाले उस की अच्छाई के कायल थे. इसलिए कानून भले ही अड़ंगा था, मगर इंसानों ने इंसानियत का तकाजा अपने कंधों पर संभाल लिया था. नीरद और राबिया के प्यार की मासूमियत को सभी दिल से महसूस कर रहे थे और औफिस में फाइलें आगे बढ़ाते हुए उस के दिसपुर स्थानांतरण की राह प्रशस्त कर दी थी.

दिसपुर पहुंच कर नीरद और नीरद की राबी ने गुवाहाटी और दिसपुर के कुछ लोगों के सामने एकदूसरे को अपना बना लिया.

देश अभी भी बड़ी अफरातफरी में था. इंसानों पर जाति, धर्म और नागरिकता के टैग लगाने की बड़ी रेलमपेल लगी थी. इधर, नीरद और राबी ने दुनिया की रीत पर लिख दी अपने प्यार की पहचान. इंसान की सब से बड़ी पहचान राबी और उस के परिवार को मिल गई थी.

प्यार दोबारा भी होता : संजना ने राजीव को देखकर क्या महसूस किया

सागरशांत गहरी सोच में डूबा नजर आता. मगर आज किसी ने कंकड़ फेंक लहरों को हिला दिया था. ध्यान भंग था सागर का. कुछ ऐसा ही राजीव के साथ भी हो रहा था. हां, उस का दिल भी सागर की तरह था और इस दिल में सिर्फ एक मूर्ति बसी थी. किसी अन्य का खयाल दूरदूर तक न था. सिर्फ वह और संजना. दुनिया में रहते हुए भी दुनिया से बेखबर. वह बेहद प्यार करता था अपनी पत्नी को. संजना को देख कर उसे लगा था कि एक वही है जिसे वह ताउम्र प्यार कर सकता है.

कहने को तो अरेंज्ड मैरिज थी पर लगता जैसे कई जन्मों से एकदूसरे को जानते हैं. संजना को देख कर ही राजीव का दिल धड़का. दिल

भी अजीब है. हर चीज का संकेत पहले ही दे देता है.

3 साल शादी को हो गए थे. कोई संतान नहीं हुई. फिर भी उसे कोई गम नहीं था. उस के लिए संजना ही संपूर्ण थी. कितने शहर दोनों घूमे. संजना के बगैर राजीव को अपना वजूद ही नजर नहीं आता. संजना के गर्भवती होने पर कितना खुश था वह… जैसे उस का संसार पूर्ण होने वाला है. मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था. बेटी को जन्म देते समय अधिक रक्तस्राव के कारण संजना का निधन हो गया. उस की मौत ने उसे अंदर तक हिला दिया. घर की हर वस्तु पर

संजना की परछाईं नजर आती. परछाईं तो उस की स्वयं की बेटी थी. जब भी वह बेटी का चेहरा देखता दिल काबू में न रहता. दम घुटने लगा उस का. वह नहीं रह पाया. न ही बेटी को देख मोह हुआ. उस की मां ने कितना सम झाया पर वह नहीं माना. उस ने अपना ट्रांसफर बैंगलुरु से मुंबई करवा लिया.

मांपिताजी पोती के आने से खुश थे. जब भी वह बैंगलुरु जाता 1 दिन से अधिक न रुक पाता. उस शहर, उस घर में उस का दम घुटता. उसे लगता अगर वह यहां और रहा तो पागल हो जाएगा.

मुंबई में किराए पर फ्लैट ले कर अकेले रहने लगा. अब उस का दिल सूख चुका था. मौसम बदले, महीने बदले, वह यंत्रवत अपना कार्य करता. पर आज इस दिल में हलचल मची थी.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’’ वह बुदबुदाने लगा.

दिल एक बार ही धड़कता है जो उस का धड़क चुका. फिर आज क्यों? क्यों ऐसी बेचैनी? क्या वह किसी के प्रति आकर्षित हो रहा है? नहीं, यह संजना के प्रति अन्याय होगा. पर दिल नहीं सुन रहा था. उस ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि कभी वह ऐसा महसूस करेगा. क्यों वह बेचैन हो रहा है? क्यों उसे चिंता हो रही है? एक पड़ोसी की दूसरे पड़ोसी की चिंता हो सकती है, यह स्वाभाविक है. इस से अधिक और कुछ नहीं. कुछ पलों के लिए  झटकता पर फिर उस का चेहरा सामने आने लगता.

6 महीने पहले राजीव के पड़ोस में एक औरत रहने आई थी. लड़की नहीं कह सकते,

क्योंकि 30 के ऊपर की लग रही थी. एक फ्लोर में 2 ही फ्लैट थे. घर में नैटवर्क सही न होने के कारण वह बाहर फोन से बातें कर रहा था. पड़ोस में वह औरत अपने सामान को ठीक से रखवा रही थी. हलकी सी नजर राजीव ने डाली थी उस पर इस के अलावा कुछ नहीं.

औफिस जातेआते प्राय: रोज ही टकरा जाते. लिफ्ट में अकेले साथ

जाते हुए कभीकभी राजीव को कुछ महसूस होता. यों तो हजारों के साथ लिफ्ट में आताजाता पर इस के होने से कुछ आकर्षण महसूस करता. शायद अकेले होने के कारण या फिर शरीर की अपनी जरूरत होने के कारण.

एक दिन लिफ्ट से निकलते वक्त उस औरत का पांव मुड़ गया. वह गिरने ही वाली थी कि राजीव ने उसे पकड़ लिया. बांह पकड़ उसे लिफ्ट के बाहर रखी कुरसी पर बैठा दिया.

‘‘क्या हुआ?’’ पूछते हुए उस ने पांव को हाथ लगा कर देखना चाहा पर उस औरत ने  झटके से पांव खींच लिया.

‘‘नहीं, ठीक है… थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा,’’ कहते हुए उस ने पांव को आगेपीछे किया.

‘‘कुछ मदद चाहिए?’’ राजीव ने पूछा.

‘‘नहीं, धन्यवाद. संभाल लूंगी.’’

राजीव भी औफिस के लिए निकल गया. मगर उस की बांह पकड़ना… किसी के इतने करीब आना… उस का दिल धड़का गया.

2-3 दिन वह लंगड़ा कर ही चलती रही थी. अब हलकी सी मुसकराहट का आदानप्रदान होने लगा. कभीकभी 1-2 बातें भी होने लगीं. उस की मुसकराहट अब राजीव के दिल में जगह बनाने लगी थी.

2-3 दिन से वह दिखाई नहीं दे रही थी. यही बेचैनी उस के दिल में तूफान मचा रही थी. वह अपने ही घर में चहलकदमी करने लगा. कभी दरवाजा खोलता, तो कभी बंद करता. पता नहीं कौन है? क्या करती है? कुछ भी जानकारी नहीं थी. नजर आता तो सिर्फ उस का चेहरा.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने दरवाजा खोला तो सामने कामवाली थी.

‘‘साहब, जरा मेम साहब को देखो न… बहुत बीमार हैं,’’ वह हड़बड़ाते हुए बोली.

राजीव घबराते हुए उस के पास पहुंचा. माथे पर हाथ रखा तो तप रहा था.

‘‘किसी को दिखाया?’’ चिंतित स्वर में राजीव ने पूछा.

उस ने हलके से न में सिर हिला दिया.

राजीव ने डाक्टर को फोन कर बुलाया और फिर उस के माथे पर पानी की पट्टियां लगाता रहा. कामवाली भी जा चुकी थी. डाक्टर ने आ कर दवा लिखी. दवा खाने से उस का बुखार कम होने लगा.

दूसरे दिन थोड़ा स्वस्थ देख राजीव ने पूछा, ‘‘आप के घर से किसी को बुलाना है तो कह दीजिए मैं कौल कर देता हूं?’’

उस ने न में हलके से सिर हिलाया.

‘‘कोई रिश्तेदार है यहां पर?’’

उस ने फिर न में सिर हिलाया.

उस के खानेपीने की, दवा देने की जिम्मेदारी राजीव ने खुद पर ले ली. वह काफी सकुचा रही थी पर स्वस्थ न होने के कारण कुछ बोल नहीं पाई.

2-3 दिन बाद स्वस्थ होने पर वह आभार प्रकट करने लगी, ‘‘माफ कीजिए, मेरे कारण आप को बहुत कष्ट हुआ.’’

‘‘माफी किस बात की? पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है. आइए बैठिए,’’ अंदर आने का इशारा करते हुए राजीव बोला.

‘‘नहीं, आज नहीं. फिर कभी. अभी औफिस जाना है,’’ कह वह औफिस के लिए निकलने लगी.

‘‘रुकिए मैं भी आ रहा हूं,’’ कहते हुए राजीव ने भी अपना बैग उठा लिया.

वह मुसकराते हुए लिफ्ट का बटन दबाने लगी.

अब अकसर दोनों आतेजाते बातें करने लगे. कभीकभी डिनर भी साथ कर लेते. दोनों में दोस्ती हो गई. पर अभी भी वे एकदूसरे के निजी जीवन से अनजान थे.

घर से बाहर दूरदूर तक पहाड़ दिखाई देते थे. हरियाली भी खूब थी.

राजीव के दोस्त प्राय: कहते कि तुम कितनी अच्छी जगह रहते हो. पर राजीव को कभी महसूस ही नहीं होता था. उसे हरियाली कभी दिखाई ही नहीं दी. दिल सूना होने से सब सूना और बेजान ही दिखाई देता है. अब कुछ महीनों से यह हरियाली की  झलक दिखाई दे रही थी. बारिश ने आ कर और अधिक हराभरा कर दिया था.

एक शाम दोनों डिनर पर गए.

‘‘मैं अभी तक आप का नाम ही नहीं जान पाया,’’ कुरसी पर बैठते हुए राजीव ने कहा.

‘‘रोशनी,’’ मुसकराते हुए वह बोली.

‘‘अच्छा तो इसीलिए यह रैस्टोरैंट जगमगा रहा है,’’ जाने कितने महीनों बाद राजीव ने चुहलबाजी की थी.

‘‘जगमगाहट देख कर पेट नहीं भरेगा. कुछ और्डर कीजिए,’’ रोशनी मुसकराते हुए बोली.

राजीव ने खाने का और्डर किया.

‘‘मैं आप के बारे में कुछ नहीं जानता. मगर आप बताना चाहें तो मैं सुनना चाहूंगा,’’ राजीव खाना खाते हुए बोला.

रोशनी नजरें नीचे कर  झेंपने लगी.

‘‘ठीक है आप न बताना चाहें तो कोई बात नहीं.’’

‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं. इतनी दोस्ती तो है कि मैं बता सकूं. बाहर बताती हूं,’’ नजरें अभी भी उस की  झुकी हुई थीं.

खाना खाने के बाद दोनों बाहर टहलने लगे. टहलतेटहलते स्वयं को संभाल रोशनी कहने लगी, ‘‘मैं एमबीए करने लगी. वह भी मु झ से प्यार करता था. हम दोनों लिवइन में रहने लगे. मेरे परिवार वालों ने बहुत सम झाया, डांटा भी पर मैं उस के बिना नहीं रह सकती थी. मम्मीपापा ने कहा शादी कर के साथ रहो. पर मैं नहीं मानी. मु झे लगता था जब प्यार करते हैं तो शादी जैसा बंधन क्यों और फिर उस वक्त हम शादी कर भी नहीं सकते थे. गुस्से में आ कर मेरे परिवार वालों ने रिश्ता तोड़ लिया. मु झे जौब मिल गई थी. उसे भी जौब मिल गई पर दूसरे शहर में.हम लोग कोशिश कर रहे थे कि एक ही शहर में मिल जाए.

‘‘तब तक कभी वह आ जाता, कभी मैं चली जाती. 1 साल बाद वह प्राय: आने में आनाकानी करने लगा. मैं ही कभीकभी चली जाती. वह प्राय: उखड़ाउखड़ा रहता. बहुत

जोर देने पर उस ने कहा कि अब उसे किसी और से प्यार हो गया है. क्या ऐसा हो सकता है?

प्यार तो एक बार ही होता है न? दिल एक बार ही धड़कता है न?’’ कहते हुए वह फफक पड़ी.

राजीव ने उसे बांह से पकड़ बैंच पर बैठाया.

‘‘नहीं, आप बताइए प्यार दोबारा हो सकता है?’’ उस ने रोते हुए जिज्ञासा भरी नजरों से राजीव की तरफ देखा.

राजीव की नजरें  झुक गईं.

‘‘मतलब? तब पहले वाला प्यार नहीं था. सिर्फ लगाव था?’’ राजीव को  झुकी नजरें देख रोशनी बोली.

‘‘नहीं वह भी प्यार था पर…’’

‘‘पर… बदल गया?’’

‘‘बदला नहीं हो सकता है फिर से…’’

बात बीच में छोड़ राजीव खामोश हो गया.

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं? साफसाफ कहिए,’’ रोशनी के आंसू सूख चुके थे.

‘‘मैं भी यही सम झता था,’’ गहरी सांस छोड़ते हुए राजीव बोला, ‘‘प्यार एक बार ही होता है… दिल एक बार ही धड़कता है. मैं अपनी पत्नी को बेहद चाहता था पर बेटी होने के दौरान उस की मृत्यु हो गई. ऐसा लगता था उस के अलावा मेरा दिल अब किसी के लिए नहीं धड़केगा पर जब…’’ कहतेकहते अचानक चुप

हो गया.

‘‘पर जब क्या?’’ जिज्ञासाभरी नजरों से रोशनी ने राजीव की तरफ देखा.

राजीव ने नजरें घुमा लीं.

‘‘क्या कोई और मिल गई?’’ बड़ीबड़ी आंखों से घूरते हुए वह बोली.

राजीव ने एक गहरी नजर रोशनी पर डाली और फिर कहा, ‘‘चलो, चलते हैं.’’

‘‘नहीं पहले बात खत्म करो,’’ कह रोशनी ने राजीव का हाथ कस कर पकड़ लिया.

‘‘चलो चलते हैं.’’

‘‘नहीं पहले बताओ.’’

‘‘क्या बताऊं. हां… होने लगा प्यार तुम से,’’ राजीव ने उत्तेजित हो कर कहा. आंसू निकल आए थे उस की आंखों से.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’’ रोशनी के हाथ ढीले पड़ गए.

‘‘यह जरूरी नहीं कि जो मैं महसूस करता हूं तुम भी करो. इस सब से हमारी दोस्ती पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा,’’ कहते हुए उस ने गाड़ी स्टार्ट की.

दूसरे दिन दोनों ने औपचारिक बातें कीं. स्वयं को संयत कर लिया था दोनों ने.

2 दिन के दौरे पर रोशनी दूसरे शहर गई थी.

मां की तबीयत खराब होने की खबर सुन राजीव भी बैंगलुरु चला गया. इस बार अपनी बेटी को देख वह मुसकरा उठा. जाने क्यों विरक्ति नहीं लग रही थी. दिल बहुत शांत था. संजना की यादें सता नहीं रही थीं, बल्कि यह एहसास दिला रही थीं कि उस ने जितना भी जीवन जीया प्यार से जीया. संजना वजूद नहीं एक हिस्सा लग रही थी, जिसे वह हमेशा बना कर रखेगा.

मां भी राजीव को देख आश्चर्यचकित थीं. उन्हें लगा जैसे पहले वाला राजीव उन्हें वापस मिल गया है. बेटे को प्रसन्न व शांत देख वे जल्द ही स्वस्थ हो गईं. पहली बार वह अपनी बेटी को बाहर घुमाने ले गया. जैसे बेटी से परिचय ही अभी हुआ हो. वहीं स्कूल में दाखिला भी करा दिया. 1 सप्ताह वहां रह वह मुंबई लौट आया.

सुबह जब राजीव नहा रहा था तब बारबार दरवाजे की घंटी बज रही थी.

‘‘कौन है जो इतनी बेचैनी से घंटी बजाए जा रहा है?’’ बाथ गाउन पहने वह बाहर निकला.

दरवाजा खोलते ही रोशनी तेजी से अंदर आ कर चीखने लगी, ‘‘कहां गए थे आप? बता कर भी नहीं गए? फोन नंबर भी नहीं दिया… आप को पता है मेरी क्या हालत हुई? मैं सोचसोच कर मरे जा रही थी… कहीं आप भी मु झे छोड़ कर तो नहीं चले गए? यों तो कहते हो प्यार करने लगा और ऐसे कोई परवाह ही नहीं,’’ और कहतेकहते वह रो पड़ी.

मुसकराते हुए राजीव ने रोशनी को बांहों में ले लिया. अब रोशनी को भी एहसास हो चुका था कि प्यार दोबारा भी होता है. ‘‘इस बार अपनी बेटी को देख वह मुसकरा उठा.

जाने क्यों विरक्ति नहीं लग रही थी. दिल बहुत शांत लग रहा था…’’

पाक मुहब्बत : इश्क का मुश्किल इम्तिहान

अहसान और परवीन की मुहब्बत इतनी पाक थी कि उन दोनों ने तकरीबन 7 साल साथसाथ गुजारे थे. वे दोनों एकदूसरे को दिल की गहराइयों से चाहते थे, पर उन्होंने मन ही मन ठान लिया था कि जब तक उन का निकाह नहीं होता, तब तक वे एकदूसरे के जिस्म को नहीं छुएंगे.

उस समय अहसान की उम्र महज 17 साल थी. तब वह अपनी चाची के घर उन के साथ रह रहा था, चाची उस पर अपनी जान छिड़कती थीं.

परवीन भी अकसर अहसान की चाची के घर आतीजाती रहती थी. परवीन और कोई नहीं, बल्कि अहसान की चाची की छोटी बहन थी, जो महज 16 साल की एक खूबसूरत लड़की थी. उस की नीली आंखें ऐसी लगती थीं, मानो कोई अंगरेज हो. गोरा बदन, बड़ीबड़ी आंखें, सुनहरे बाल उस की खूबसूरती में चार चांद लगाते थे.

एक दिन अहसान अपनी चाची से बातें कर रहा था कि तभी वहां परवीन भी आ गई.

चाची अचानक से बोलीं, ‘‘अहसान, तुझे परवीन कैसी लगती है?’’

अहसान ने कहा, ‘‘बहुत अच्छी.’’

चाची बोलीं, ‘‘मै चाहती हूं कि तेरी शादी परवीन से हो जाए.’’

अहसान ने शरमाते हुए कहा, ‘‘मुझे इस में कोई एतराज नहीं है चाची.’’

इतना सुन कर पास बैठी परवीन भी शरमा गई और तिरछी निगाहों से अहसान को देखते हुए अपने प्यार का इजहार करने लगी.

अहसान की चाची ने परवीन से पूछा, ‘‘क्यों परवीन, क्या तू चाहती है कि तेरी शादी अहसान से हो जाए?’’

परवीन शरमाते हुए बोली, ‘‘बाजी, आप की जो मरजी, भला मुझे क्या एतराज होगा.’’

उस दिन से परवीन और अहसान एकदूसरे को दिल की गहराइयों से चाहने लगे और अपनी शादी के सपने संजोने लगे. दोनों अकसर अकेले घूमने जाने लगे, जिस पर चाची को कोई एतराज नहीं था. फिर वे दोनों बालिग हो गए.

अब परवीन पर शादी करने का दबाव बढ़ने लगा था, जबकि अहसान अभी भी पढ़ाई में उलझ हुआ था. वह बीकौम कर रहा था.

जब परवीन को इस बात का पता चला कि उस के लिए रिश्ता ढूंढ़ा जा रहा है, तो उस ने अपनी बड़ी बहन से अपने दिल की बात कहते हुए कहा, ‘‘आप तो कह रही थीं कि मेरी शादी अहसान से कराओगी, फिर क्यों मेरे लिए रिश्ता ढूंढ़ा जा रहा है?’’

परवीन की बाजी बोलीं, ‘‘अहसान से तेरी शादी कैसे हो सकती है… अभी वह पढ़ रहा है. कुछ कमाता है नहीं, कैसे तेरे खर्चे उठाएगा?’’

परवीन ने कहा, ‘‘कुछ भी करो, पर मेरी शादी अहसान से करा दो. मैं उस के सिवा किसी और से शादी नहीं करूंगी. मैं ने उसे अपना सबकुछ मान लिया है. अब इस दिल में उस के सिवा किसी और का खयाल करना भी मेरे लिए बड़ा मुश्किल है.’’

अगले दिन परवीन ने सारी बात अहसान को बता दी और बोली, ‘‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. तुम कुछ भी करो, क्योंकि मैं किसी गैर से शादी नहीं कर सकती.’’

अहसान बोला, ‘‘तुम फिक्र मत करो. मैं चाची से बात करता हूं. वे मेरी बात जरूर मानेंगी और मुझे कुछ काम करने का थोड़ा समय भी दे देंगी. मैं अपने पैरों पर खड़ा हो कर तुम से शादी कर लूंगा.’’

अहसान ने अगले ही दिन चाची से कहा, ‘‘चाची, आप ने मेरी शादी की बात परवीन से की थी. मैं उसे दिलोजान से चाहता हूं. मैं उस के बगैर नहीं रह सकता.’’

चाची बोलीं, ‘‘प्यार से पेट नहीं भरता, बल्कि जिंदगी जीने के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है. जब पेट की भूख बढ़ती है, तो प्यार का सारा भूत उतर जाता है.’’

अहसान बोला, ‘‘मैं मेहनतमजदूरी कर के उस का पेट भरूंगा. उसे किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा.’’

चाची ने कहा, ‘‘मेहनतमजदूरी कर के एक वक्त का खाना खा सकते हो, अच्छी जिंदगी नहीं गुजार सकते. जिंदगी जीने के लिए पैसा चाहिए और मेरे अम्मीअब्बा कभी भी एक बेरोजगार से परवीन की शादी करने को कभी तैयार नहीं होंगे.’’

अहसान गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘आप कोशिश तो करो. मुझे कुछ समय दे दो. प्लीज, मेरी खाली झाली में मेरा प्यार परवीन डाल दो.’’

चाची बोलीं, ‘‘बहुत मुश्किल है. पहले तुम कामयाब हो जाओ, उस के बाद परवीन से शादी करने का खयाल करना.’’

‘‘ठीक है चाची, मैं अगले 2 साल के अंदर एक कामयाब इनसान बन कर ही आऊंगा. मैं कल ही काम की तलाश में मुंबई जाता हूं,’’ अहसान बोला.

अगले ही दिन अहसान 2 साल का समय ले कर मुंबई चला गया और वहां उस ने अपनी जानपहचान के लोगों से काम की बात की, तो उसे एक बेकरी में हिसाबकिताब का काम मिल गया और 4,000 रुपए महीने की नौकरी पर उस ने वहां काम करना शुरू कर दिया.

6 महीने की कड़ी मेहनत के बाद अहसान ने 20,000 रुपए जोड़ लिए और अपनी चाची से फोन कर के सब बता दिया.

चाची बोलीं, ‘‘बहुत अच्छा है, पर 4,000 रुपए महीना कमाने से घर नहीं चलेगा. मेरे घर वाले इतना कम कमाने वाले से शादी नहीं करेंगे.’’

अहसान बोला, ‘‘अभी मेरे वादे के डेढ़ साल बाकी हैं. मैं इन डेढ़ साल के अंदर अच्छा पैसा कमाने वाला बन कर दिखाऊंगा.’’

चाची ने कहा, ‘‘ठीक है, पहले कामयाब बनो, तब बात करना. उस से पहले तुम मुझ से परवीन के बारे में कोई बात नहीं करोगे.’’

अहसान बोला, ‘‘ठीक है, चाची.’’

समय गुजरता गया. अहसान मेहनत और लगन से काम करता रहा. उसे काम करतेकरते डेढ़ साल हो गया. उस की मेहनत और लगन से खुश हो कर उस के मालिक ने पूछा, ‘‘क्या तुम हमारे साथ एक बेकरी में सा?ोदारी करोगे?’’

अहसान बोला, ‘‘मेरे पास अभी पैसा नहीं है. बड़ी मुश्किल से 70,000 रुपए ही जोड़ पाया हूं.’’

मालिक बोले, ‘‘ठीक है, बाकी पैसा मैं लगा दूंगा. एक बेकरी किराए पर मिल रही है. 30,000 रुपए महीना किराया है, ऊपर का जो खर्च होगा, वह तकरीबन 3 लाख रुपए है.

3 पार्टनर मिल कर इस बेकरी को ले लेते हैं. तुम ईमानदारी और जिम्मेदारी से उसे चलाना. जो बचत होगी, उसे तीनों आपस में बांट लेंगे.’’

अहसान बोला, ‘‘ठीक है, मैं तैयार हूं.’’

अगले ही दिन वह बेकरी किराए पर ले ली गई. अहसान को उस की जिम्मेदारी दे दी गई.

अहसान की मेहनत रंग लाई और 3 महीने में ही उस बेकरी में 2 लाख रुपए हर महीने की बचत होने लगी.

अहसान के ऊपर जो कर्जा हो गया था, वह भी उतर गया था और अब वह तकरीबन 60,000 रुपए हर महीने कमाने लगा था.

2 साल पूरे होने में अभी 15 दिन बाकी थे. अहसान ने गांव जाने का इरादा किया और एक महीने के लिए बेकरी पर अपने पार्टनर को बैठा कर वह गांव चला गया.

गांव पहुंचते ही अहसान सब से पहले अपनी चाची के घर गया और बोला, ‘‘चाची, मैं अब 60,000 रुपए महीना कमाने लगा हूं, जिस से मैं परवीन को सारी खुशियां दे सकता हूं. अब आप अपने वादे के मुताबिक मेरी शादी परवीन से करा कर उसे मेरी झाली में डाल दो.’’

यह सुन कर चाची बोलीं, ‘‘परवीन की शादी तो एक साल पहले ही कर दी गई है. उस के एक बेटा भी हो गया है. उस का शौहर भी मुंबई में रहता है और महीने में 15,000 रुपए कमा लेता है.’’

अहसान ने जैसे परवीन की शादी की बात सुनी, तो उस का खून खुश्क हो गया. उस के दिल की धड़कन जहां की तहां थम गई. उस ने जिस लड़की को पाने के लिए अपनी पढ़ाई कुरबान कर दी थी, जिस के लिए वह अपना गांव छोड़ कर पैसा कमाने के लिए मुंबई चला गया था, वापस आने से पहले ही उस के सपने चूर हो कर रह गए.

अहसान का दिल पूरी तरह टूट चुका था. उस ने दबे लहजे में अपनी चाची से कहा, ‘‘चाची, आप को भी थोड़ा सब्र नहीं हुआ. मेरे दिल के टुकड़े को किसी दूसरे के हवाले करते हुए आप का दिल नहीं धड़का.’’

चाची बोलीं, ‘‘हमें क्या पता था कि तू 2 साल में कामयाब हो जाएगा. हम ने सोचा था कि अगर तू कामयाब न हुआ, तो परवीन को जिंदगीभर तेरे इंतजार में थोड़ा बिठाए रखेंगे, इसलिए हमें रिश्ता अच्छा लगा तो हम ने उस की शादी कर दी. मेरी बात मान, तू भी कोई अच्छी सी लड़की देख कर शादी कर ले.’’

कुछ दिनों के बाद अहसान ने भी शादी कर ही ली. वह अपनी पुरानी जिंदगी भूल कर नई जिंदगी की शुरुआत करने में मशगूल हो गया. दिन बीतते गए.

एक बार अहसान ‘महाराष्ट्र संपर्क क्रांति’ ट्रेन से मुंबई जाने के लिए जैसे ही बोगी नंबर एस 5 की बर्थ नंबर 32 पर पहुंचा, तो वहां परवीन को देख कर दंग रह गया.

परवीन बर्थ नंबर 31 पर अपने 4 महीने के बेटे के साथ बैठी थी. जैसे ही दोनों की नजर एकदूसरे पर पड़ी, तो हैरान रह गए.

अहसान परवीन से बोला, ‘‘तुम भी मुंबई जा रही हो क्या परवीन?’’

‘‘हां, मेरे शौहर को 2 महीने के लिए उन के दोस्त का कमरा मिला था, तो उन्होंने मुझे अपने पास मुंबई बुला लिया है. वे बांद्रा स्टेशन पर आ कर मुझे ले जाएंगे.’’

अहसान ने कहा, ‘‘बहुत जल्दी की तुम ने शादी करने में, थोड़ा इंतजार कर लेती.’’

परवीन बोली, ‘‘वह एक साल मैं ने तुम्हारी याद में कैसे गुजारा था, मैं ही जानती हूं. तुम्हारा न कुछ अतापता था और न ही कोई मोबाइल नंबर. तब बाजी बोलीं कि क्यों उस की याद में परेशान होती है. अम्मी की तबीयत भी ठीक नहीं है. एक रिश्ता आया है.

‘‘अम्मी की तमन्ना थी कि उन के जीतेजी मेरी शादी हो जाए, तो मैं ने हां कर दी और मेरी शादी के एक महीने बाद ही वे चल बसीं.’’

अहसान ने कहा, ‘‘मेरा खयाल नहीं आया कि जब मैं तुम्हारी शादी की खबर सुनूंगा, तो मुझे पर क्या बीतेगी? मैं ने तुम्हारी बाजी से कामयाब होने के लिए 2 साल का समय मांगा था और मैं कामयाब हो कर तुम्हारी बाजी के पास गया, तो मुझे पता चला कि तुम ने शादी कर ली है. यह सुनते ही मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी दुनिया ही उजड़ गई है.’’

परवीन ने कहा, ‘‘अहसान, मुझे माफ कर देना. मैं मजबूर थी.’’

अहसान बोला, ‘‘चलो, छोड़ो पुरानी बातें… और सुनाओ, घर में सब कैसे हैं?’’

परवीन ने कहा, ‘‘सब सही है, पर जिस कमाऊ लड़के के चक्कर में घर वालों ने मेरी शादी की, वह बहुत गुस्से वाला है और हर समय घर पर ही पड़ा रहता है. सालभर में 6 महीने ही काम करता है,’’ यह कहतेकहते वह रोने लगी.

इस के बाद बात करतेकरते कब समय निकल गया, कुछ पता ही नहीं चला. रात के 10 बज गए थे.

तभी परवीन बोली, ‘‘बहुत दिन गुजर गए एकसाथ खाना खाए. चलो, खाना खाते हैं.’’

दोनों ने एकसाथ खाना निकाल कर सीट पर रख लिया. तभी परवीन ने हाथ बढ़ा कर पहला निवाला अहसान को खिलाते हुए कहा, ‘‘आज तो खाना मेरे हाथ से ही खाना पड़ेगा.’’

यह सुनते ही अहसान की आंखों में आंसू आ गए और उस ने भी अपने हाथों से परवीन को खाना खिलाना शुरू कर दिया.

रात के 12 बज चुके थे. पूरे डब्बे के मुसाफिर सो गए थे. बस, अहसान और परवीन जाग रहे थे कि तभी परवीन ने अहसान को जगह देते हुए कहा, ‘‘तुम आराम से यहीं सो जाओ.’’

अहसान चौंका और सोने के इरादे से अपने बैग से चादर निकालने लगा. जैसे ही उस ने अपनी चादर निकाली, उस में से एक छोटा टैडी बीयर निकल कर अहसान के पास आ गिरा.

जैसे ही अहसान ने उसे उठाया, उस में एक परचा लगा था, जिस में उस की बीवी ने बड़े प्यार से प्यारभरी बातें लिखी थीं और आखिर में ‘आई लव यू’ लिखा था, जिसे देखते ही अहसान की आंखें भर आईं और वह उसे अपने सीने से लगा कर ऊपर वाली बर्थ पर ही लेट गया.

परवीन ने उसे आवाज दी और कहा, ‘‘नीचे आ कर यहां सो जाओ.’’

पर अहसान नीचे नहीं आया और बोला, ‘‘तुम सो जाओ. मैं यहीं सो रहा हूं.’’

दरअसल, अहसान के सामने उस की बीवी का प्यारभरा लव लैटर आ गया था, जिसे देख कर उसे अहसास हो गया था कि परवीन के पास जा कर सोना अपनी बीवी का साथ गद्दारी करना है, उसे धोखा देना है, जबकि परवीन अब एक पराई औरत है.

अपनी बीवी को याद करतेकरते कब अहसान की आंख लग गई, उसे पता ही न चला. सुबह जब आंख खुली, तो उस ने अपनेआप को बांद्रा स्टेशन पर पाया. ट्रेन मुंबई आ चुकी थी. अहसान जल्दी से उठा और नीचे उतर आया.

परवीन ने पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम रात को नीचे नहीं आए?’’

अहसान टालते हुए बोला, ‘‘मेरी आंख लग गई थी.’’

दोनों ने जल्दीजल्दी अपना सामान एक साइड में किया. थोड़ी देर बाद परवीन बोली, ‘‘पता नहीं, अब कभी हमारी मुलाकात होगी या नहीं. अच्छा, अपना मोबाइल नंबर तो दे दो.’’

अहसान ने परवीन को अपना मोबाइल नंबर दे दिया और दोनों का सामान वह गाड़ी से नीचे उतारने लगा.

प्लेटफार्म से बाहर निकलते ही परवीन का शौहर आ गया और आटोरिकशा में बैठा कर उसे ले जाने लगा.

परवीन हसरतभरी निगाहों से अहसान को देखती रही. थोड़ी ही देर में दोनों एकदूसरे की आंखों से ओझल हो गए.

अहसान ने मुंबई आ कर अपना काम संभाल लिया और खूब तरक्की की. कुछ ही दिनों में अहसान ने भी अपनी बीवी को मुंबई बुला लिया.

एक दिन अहसान ने अपनी चाची को फोन किया और उन की खबर जाननी चाही, तो उन्होंने बताया, ‘‘परवीन मायके में आ कर रह रही है. उस का शौहर उसे जानवरों की तरह मारतापीटता है. कुछ कामकाज भी नहीं करता है. और तू सुना क्या हाल हैं तेरे?’’

‘‘मैं 2 बेकरी चला रहा हूं. अब महीने के एक लाख रुपए कमाता हूं. बीवी भी खुश है. एक बेटी का बाप बन गया हूं.’’

चाची बोलीं, ‘‘तू ने वह कर दिखाया है, जिस की हमें उम्मीद भी नहीं थी. काश, हम समय रहते तुझे समझ पाते और परवीन से ही तेरी शादी करा देते, तो आज परवीन इस तरह की परेशानियों में न घिरी होती.’’

अहसान ने परवीन के बारे में इतना सुन कर फोन रख दिया.

एक दिन अहसान के फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठाया, तो दूसरी तरफ से परवीन के बोलने की आवाज आई, ‘‘अहसान, मैं अब उस जालिम के साथ नहीं रहूंगी, जो मुझे जानवरों की तरह मारतापीटता है, खाने को भी नहीं देता. कुछ कमाता ही नहीं, बस रातदिन दोस्तों के साथ घूमता फिरता है. उस ने मेरी जिंदगी नरक बना दी है. अहसान, अगर मैं उस से तलाक ले लूंगी, तो क्या तुम मुझ से शादी करोगे?’’

अहसान ने कहा, ‘‘कैसी बात कर रही हो तुम? ऐसा कुछ मत करो. अपने घर वालों से कहो कि उसे प्यार से सम?ाएं और उसे कोई काम करा दें, ताकि उस की कुछ इनकम होने लगे.

‘‘यह तो सोचो कि तुम्हारे पास अब उस का एक बेटा भी है. क्यों उसे उस के बाप से अलग करना चाहती हो? जल्दबाजी में कोई ऐसा कदम मत उठाना, जिस की वजह से बाद में परेशानी हो.’’

परवीन बोली, ‘‘मैं तुम से मशवरा नहीं मांग रही, बल्कि मैं तो यह कह रही हूं कि अगर मैं उस से तलाक ले लूं, तो क्या तुम मुझे अपनाओगे?’’

अहसान ने कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है… मेरी भी बीवी है, बच्ची है, जिन्हें मैं बहुत प्यार करता हूं. तुम समझती क्यों नहीं…’’

परवीन गुस्से में बोली, ‘‘इस का मतलब यह है कि तुम मुझ से प्यार नहीं करते थे और न ही करते हो…’’

अहसान बोला, ‘‘मैं सिर्फ तुम से ही प्यार करता था, पर अब अपने बीवीबच्चों से प्यार करता हूं.

हां, तुम से अब वह प्यार नहीं करता, जो तुम सोच रही हो, क्योंकि अब तुम भी किसी दूसरे की

अमानत हो और मैं भी. अब सिर्फ हम एक अच्छे दोस्त हैं.’’

परवीन गुस्से में बोली, ‘‘ठीक है, तुम से ही उम्मीद थी कि तुम मुझे अपनाओगे, पर जब तुम ही पराए हो गए तो किसी और से क्या उम्मीद की जाए,’’ कहते हुए उस ने फोन रख दिया.

अहसान भी अपने काम में मसरूफ हो गया. रहरह कर उसे परवीन के कहे शब्द सता रहे थे, पर वह अब उसे कैसे अपना सकता था, क्योंकि उस की बीवी थी, बच्ची थी, जिन्हें वह धोखा नहीं दे सकता था

एक दिन अहसान की चाची का फोन आया और उन्होंने उसे एक दुखभरी बात बताई, जिसे सुन कर अहसान के होश ही उड़ गए.

चाची ने बताया, ‘‘परवीन अब इस दुनिया में नहीं रही. उसे अचानक सीने में दर्द हुआ, फिर जल्दबाजी में उसे हौस्पिटल ले जाया गया, पर वहां पहुंचतेपहुंचते उस की मौत हो गई.’’

यह सुनते ही अहसान को बड़ा धक्का लगा. देखते ही देखते उस की पाक मुहब्बत, जिसे वह सच्चे दिल से चाहता था, आज इस दुनिया में नहीं थी.

अहसान कई दिनों तक परवीन के गम में दुखी रहा. उसे न तो खाना अच्छा लगा और न ही कोई काम. उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह यही सोच कर बेचैन हो रहा था कि कहीं परवीन की मौत का जिम्मेदार वह तो नहीं, क्योंकि आखिरी समय में परवीन ने उस से प्यार मांगा था, पर अपने बीवीबच्चों के होते हुए उस ने उस के प्यार को ठुकरा दिया था.

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