Crime Story in Hindi: वह नीला परदा- भाग 7: आखिर ऐसा क्या देख लिया था जौन ने?

Writer- Kadambari Mehra

मौयरा अगले दिन किनारों पर से फटी काली हाटपैंट, कसा हुआ ब्लाउज और 10 इंच लंबा आगे बांधने वाला कार्डिगन पहन कर और छोटेछोटे बौबकट केशों में बिलकुल स्कूल गर्ल बन कर नासेर की दुकान में अकेली चली गई.

नासेर को चिडि़या अच्छी लगी. उस ने दाना फेंकने में देर नहीं लगाई. बताया कि वह दुकान के ऊपर अकेला रहता है. मौयरा ने कहा, ‘‘हो सकता है तुम अकेले हो पर अकसर तुम्हारी जात के लड़के 30 से पहले ही ब्याह जाते हैं.’’

‘‘ब्याह तो हुआ था. मगर मेरी बीवी मुझ से बहुत बड़ी है. मेरे भाई की बेवा थी वह.

3 बच्चे थे पर लड़का नहीं था. लड़के के बिना उस के आदमी की सारी जायदाद उस के भतीजे ले जाते, इसलिए उस ने मुझ से शादी कर ली.’’

‘‘लड़का हो गया तुम से उसे?’’

‘‘हां हुआ, मगर मैं कमाई करने इधर आ गया. 7-8 साल से मुल्क नहीं गया. तुम क्या इधर ही रहती हो?’’

‘‘हां, यहीं पास में. 4-5 मील दूर. तरहतरह की चीजें खानेपीने का शौक है, इसलिए इधर चली आई. तुम क्या पाकिस्तान से हो?’’

‘‘अरे नहीं, हम तो तुम्हारे पड़ोसी हैं. टर्की से आया हूं. वह तो यूरोप का ही हिस्सा है. देखो न, मेरा रंग भी कितना गोरा है.’’

ये भी पढ़ें- Romantic Story: तुमने क्यों कहा मैं सुंदर हूं

मौयरा ने कबाब बनवाया.

फिर मौयरा से बोला, ‘‘यहीं बैठ कर खाओ न. मैं ने भी सुबह से दाना पेट में नहीं डाला. तुम्हारी कंपनी में मुझे भी भूख लग गई है.’’

नासेर बड़ा स्मार्ट और हंसमुख आदमी लगा मौयरा को, मगर एकएक कर के जो तथ्य सामने आ रहे थे, उसे कटघरे में धकेलते जा रहे थे.

‘‘नहीं, अभी पैक करा दो. फिर किसी दिन फुरसत में आ जाऊंगी. आज तो मेरा टैनिस कोर्ट में सेशन बुक किया हुआ है. बेकार में नुकसान हो जाएगा किराए का.’’

‘‘टैनिस तो मैं भी खेलता हूं. चलो अगली बार संगसंग बुक करवाएंगे. कल आओगी?’’

‘‘कह नहीं सकती पर मिलूंगी, तुम मुझे अच्छे लगे.’’

डेविड क्रिस्टी ने दुकान के बाहर एक सिपाही एंडी को ट्रैफिक वार्डन बना कर तैनात कर दिया. लोगों की गाडि़यों की अवैध पार्किंग पर नजर रखता. वह वहीं घूमता और नासेर की दुकान पर भी नजर रखता.

उस दिन तो नहीं मगर 2-4 दिन बाद नासेर बाहर निकला. वार्डन ने अपनी कार से उस का पीछा किया. नासेर एक मसजिद में गया, जहां लंबी स्कर्ट और पूरी बांह का ब्लाउज पहने एक प्रौढ़ सी खूबसूरत औरत 3 बच्चों को ले कर खड़ी थी. 2 बड़ी बेटियां और 1 बेटा, जो करीब 5 साल का था. बेटा नासेर को देख कर डैडडैड कहता हुआ आया और उंगली पकड़ कर मसजिद में दाखिल हो गया. स्कर्ट वाली औरत ने सिर पर रेशमी रूमाल बांधा हुआ था. वह बेटियों के साथ दूसरे दरवाजे से अंदर गई. नासेर उस बच्चे को देख कर एकदम खिल उठा.

यानी नासेर ने मौयरा को जो कहानी सुनाई थी वह झूठी थी. नासेर की बीवी वहीं पर थी.

क्रिस्टी ने इस औरत पर भी जाल बिछा दिया. टै्रफिक वार्डन बने हुए अपने सहायक से कहा कि वह नासेर को छोड़ कर इस स्त्री का पीछा करे.

2 घंटे बाद नासेर अपनी दुकान में चला गया. मसजिद के बाहर कई औरतें उस की बीवी से बातें करती रहीं. जब वह वहां से चली, सिपाही ने लगातार उस पर निगरानी रखी. अंत में उस ने उसे घर की चाबी निकाल कर ताला खोलते हुए और अंदर जाते हुए देखा. उस ने पता अपनी डायरी में लिख लिया और घर का एक फोटो भी कैमरे में कैद कर लिया.

ये भी पढ़ें- Romantic Story: चलो एक बार फिर से

उस दिन शुक्रवार था. शनिवार और इतवार को दफ्तर की छुट्टी थी. सोमवार को सुबह 7 बजे से एंडी की ड्यूटी नासेर के तथाकथित घर के बाहर लगा दी गई. वह एक वीडियो कैमरा ले कर अपनी कार में बैठा सारी गतिविधियां रिकार्ड करता रहा. 8 बजे नासेर की पत्नी अपने तीनों बच्चों को ले कर स्कूल की ओर रवाना हुई. स्कूल ज्यादा दूर नहीं था. यही कोई 15 मिनट की चहलकदमी पर. एंडी अपना फासला रखते हुए धीमी रफ्तार से पीछेपीछे रेंगता हुआ स्कूल का नामपता भी दर्ज कर लाया.

बच्चों को भेज कर नासेर की बस से कहीं जाने लगी. एंडी ने पीछा किया. 2-3 मील दूर पर एक दुकान थी, जिस में मिठाइयां, स्वीट, अखबार आदि के साथसाथ ब्रैड, दूध, सब्जी, फल भी रखे थे. दुकान पहले से खुली हुई थी. मतलब उस का मालिक कोई और था. नासेर की पत्नी ने अंदर जा कर कार्यभार संभाल लिया और वहां से एक और औरत, जो काफी कम उम्र की और स्मार्ट थी बाहर आई और एक छोटी कार से कहीं चली गई.

शाम को 3 बजे वह लड़की दुकान में वापस आ गई और नासेर की पत्नी वापस अपने बच्चों को स्कूल से ले कर अपने घर चली गई.

एंडी ने यह सारी रिपोर्ट मौयरा और डेविड को दे दी. मौयरा की बातों से जाहिर था कि नासेर इस शादी की कतई इज्जत नहीं करता था. फिर भी वह उसी घर में रहता था और वहीं रात को सोता था. हो सकता है कि उस की बीवी को उस की तफरीहों का पता ही न हो. बेईमान पुरुष जरा ज्यादा ही शरीफ बने रहते हैं अपनी बीवियों के साथ. क्रिस्टी को संभलसंभल कर अगला कदम रखना होगा. मौयरा को वह इस खेल में झोंक नहीं सकता था. वह एक इज्जतदार स्त्री थी. कई सालों से एक ही बौयफैंरड से निभा रही थी. वह भी इसे पूरे मन से चाहता था, मगर उस की कमर्शियल पायलट की जिंदगी शादी, गृहस्थी के हिसाब से ठीक नहीं बैठती थी, इसलिए वे दोनों शादी नहीं कर रहे थे.

एक दिन मौयरा फिर उड़ती चिडि़या की तरह कबाब की दुकान में जा बैठी. नासेर खिल उठा. मौयरा ने जरा ज्यादा भाव दिया, तो नासेर सीधा मतलब पर आ गया.

‘‘तू आ न आज शाम को. हम इकट्ठे घूमेंगेफिरेंगे.’’

‘‘नहीं, शाम को बड़ा मुश्किल होता है. मेरी मां रहती है साथ में.’’

‘‘तो फिर अभी चल ऊपर मेरे फ्लैट में. वहां आराम से बैठते हैं. आई विल गिव यू ए गुड टाइम.’’

‘‘थैंक यू, मगर मैं तो तुम्हें ज्यादा जानती नहीं, फिर कभी मिलेंगे. हो सका तो वीकएंड में आऊंगी.’’

‘‘वीकएंड में ठीक नहीं रहेगा. काम बहुत बढ़ जाता है. मुझे फुरसत नहीं मिलती.’’

‘‘कोई बात नहीं अगले हफ्ते देखूंगी, बाय.’’

नासेर की दाल नहीं गल रही थी.

क्रिस्टी ने स्कूल के हेडमास्टर को अपने विश्वास में लपेटा. बिना उसे कुछ बताए उस ने नासेर के बच्चों का हवाला लिया. बड़ी लड़की 10 साल की होने जा रही थी. उस से छोटी 7 साल की थी और सब से छोटा लड़का 5 साल पूरे कर चुका था, अभी कुछ ही दिन पहले मां का नाम साफिया था मगर लड़के का नाम अब्दुल नहीं था. उसे सब शकूर अली नासेर बुलाते थे.

ये भी पढ़ें- Romantic Story: प्यार एक एहसास

डेविड क्रिस्टी ने बच्चे का बर्थ सर्टिफिकेट निकलवाया. वह मोरक्को का पैदा हुआ बच्चा था और उस की जन्म की तारीख में भी फर्क था.

फिर से चक्का जाम हो गया यानी इस पहेली के कई दरवाजे अभी भी बंद थे. डेविड और मौयरा दोनों बौखला गए. अब किस आधार पर जा कर नासेर को पकड़ें? कहीं भी नासेर की तसवीर में फैमी फिट नहीं हो रही थी.

कहां थी जैनेट के घर में रहने वाली फैमी और उस का बच्चा? हो सकता है वे दोनों कहीं और रहते हों. बेकार ही वह इस परिवार को दोषी समझ बैठा है.

अगले दिन सुबह वह अपने औफिस में मौयरा के आने का इंतजार कर रहा था. नीचे से उस को खबर आई कि एक औरत मिलने आई है. डेविड ने उसे वहीं अपने औफिस में बुला लिया. आगंतुक एक ईरानी औरत थी. उस ने सिर में रूमाल बांधा हुआ था और टखनों तक लंबा कोट पहना था. डेविड देर तक उस से बातें करता रहा.

उस के जाने के बाद मौयरा आई तो डेविड खिड़की से बाहर खोयाखोया सा आसमान को ताक रहा था.

‘‘तुम्हारा चेहरा तो बेहद उतरा हुआ है डेविड, क्या हुआ?’’

‘‘कुछ भी नहीं हुआ मगर मौयरा जब भी मैं यह केस बंद करना चाहता हूं, कुछ ऐसा हो जाता है कि मुझे अपना फैसला रद्द कर देना पड़ता है.’’

मौयरा ने पूछा, ‘‘यह औरत कौन थी?’’

‘‘यह एक ईरानी औरत है बर्ग हीथ से आई थी.’’

‘‘क्या चाहती थी?’’

‘‘फिर बताऊंगा, वह इत्तफाक से यहां आ पहुंची. हां, यह पता लगा है कि नासेर का बेटा मोरक्को में पैदा हुआ.’’

‘‘तो फिर अब्दुल कहां गया?’’

‘‘यही तो गड़बड़ है. अब किस बिना पर नासेर को दोषी मान लें?’’

‘‘छोड़ो मत उसे, वह बेहद गंदा आदमी है. एकदम घटिया. मैं अब अकेली उस के यहां नहीं जाऊंगी. वह तो सीधा गुड टाइम की बात करने लगता है.’’

‘‘हां, वह खतरनाक हो सकता है पर अब क्या करें कि उसे पकड़ कर इलजाम लगाया जा सके?’’

‘‘मेरी मानो तो लारेन को ले आना चाहिए. देखें कैसा रिएक्शन रहता है उस का.’’

‘‘चलो यह भी कर के देख लें.’’

अगले दिन डेविड फिर नासेर की दुकान में गया. नासेर हंसहंस कर उस से बातें करने लगा.

‘‘क्या बताया तुम ने कि टर्की से आए हो?’’

‘‘नहीं टर्की से तो मेरी बीवी है. मैं तो सच पूछो तो मोरक्को का रहने वाला हूं, वहां मेरे खानदान का बड़ा बिजनेस है.’’

‘‘मोरक्को के तो कई लोगों को मैं जानता हूं. एक बीवी की फ्रैंड थी फैमी फहमीदा सादी. वह भी मोरक्को से आई थी. तुम जानते हो उसे?’’

यह सुन कर नासेर का रंग उड़ गया. वह अटक कर बोला, ‘‘नहीं, मैं इस नाम की किसी और को नहीं जानता.’’

इस के बाद उस का बातचीत का रुख बदल गया. वह धंधे की परेशानियों का रोना रोने लगा.

क्रिस्टी का शक और पक्का हो गया मगर ऊपर से उस ने कुछ जाहिर नहीं किया.

इस के बाद क्रिस्टी लारेन से मिला. लारेन को पुलिस के काम के लिए छुट्टी दिला दी और वह उसे ले कर नासेर की दुकान में गया. खुद कुछ देर के लिए बाहर ही खड़ा रहा और अकेली लारेन अंदर गई. लारेन को देख कर नासेर के चेहरे पर की हवाइयां उड़ने लगीं. उस ने झूठा स्वांग रचा कि उसे दमा का रोग है और अटैक आ गया है, इसलिए वह दुकान बंद कर के बाहर खुली हवा में जाना चाहता है.

वह जोरजोर से खांसने लगा. काउंटर के नीचे झुक कर उस ने कबाब के ग्रिल का बटन बंद कर दिया और रुकरुक कर घुटती सी आवाज में गालियां बकने लगा.

‘‘ये कम्बख्त चूल्हा और यह गोश्त का धुआं मेरी जान ले लेगा. जाओ, प्लीज बाहर निकलो, मुझे जाना है.’’

लारेन बाहर चली गई तो उस ने झटपट दुकान का शटर गिरा दिया और ऊपर फ्लैट में चला गया.

इधर मौयरा बाल मनोविज्ञान का परीक्षण करने वाली टीचर बन कर शकूर अली नासेर के हेडमास्टर से मिली और उसे इस बात के लिए राजी कर लिया कि शकूर से अकेले में बात करेगी. एक अन्य डिनर लेडी शकूर को लाने की जिम्मेदारी बनी. शायद इतना छोटा बच्चा अजनबी स्त्री से ठीक तरह बात न करता.

मौयरा ने ढेर सारे कंस्ट्रक्शन गेम टेबल पर रख दिए और शकूर से उन्हें बनाने को कहा. बच्चा ही तो था झट बहल गया.

फिर उस की बनाई चीजें की खूब तारीफ की और अनेक मिलेजुले छोटेमोटे सामान मेज पर बिखेर दिए.

‘‘शकूर, तुम्हें जोड़े मिलाने पड़ेंगे यानी क्या चीज किस के साथ जोड़ी जाती है. जैसे, ताले के साथ चाबी, जूते के साथ मोजा वगैरह.’’

शकूर जब खूब मगन हो गया तब उस ने धीमे से फैमी का फोटो मेज पर रख दिया.

जैसे ही उस ने उसे देखा वह सकपका गया और फिर रोआंसा हो गया. उस ने फोटो उठा लिया और उसे निहारता रहा.

‘‘तुम जानते हो यह कौन है?’’

‘‘आंटी.’’

‘‘तुम्हें प्यार करती है?’’

‘‘बहुत, हम घूमने जाते थे. वह मुझे बाहर ले जाती थी.’’

‘‘कहां?’’

‘‘कभी चिडि़याघर तो कभी पार्क में.’’

‘‘अब भी जाते हो?’’

‘‘अब नहीं आती.’’

यह बात कह कर शकूर रोने लगा.

अगले दिन हेडमास्टर ने साफिया को स्कूल के बाद आधा घंटा रुकने को कहा. बताया कि तुम्हारा बेटा बहुत मेधावी है.

Manohar Kahaniya- दुलारी की साजिश: भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लोक जनशक्ति पार्टी के आदिवासी प्रकोष्ठ के युवा प्रदेश अध्यक्ष 35 वर्षीय अनिल उरांव रोजाना की तरह उस दिन भी नाश्ता कर के क्षेत्र में भ्रमण के लिए तैयार हो कर ड्राइंगरूम में बैठे अपने भतीजे के आने का इंतजार कर रहे थे. तभी उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. अपनी शर्ट की जेब से मोबाइल निकाल कर डिसप्ले पर उभर रहे नंबर पर नजर डाली तो वह नंबर जानापहचाना निकला.

स्क्रीन पर डिसप्ले हो रहे नंबर को देख कर अनिल उरांव का चेहरा खुशियों से खिल उठा था. उन्होंने काल रिसीव करते हुए कहा, ‘‘हैलो!’’

‘‘नेताजी, प्रणाम.’’ दूसरी ओर से एक महिला की मीठी सी आवाज अनिल उरांव के कानों से टकराई.

‘‘प्रणाम…प्रणाम.’’ उन्होंने जबाव दिया, ‘‘कैसी हो प्रियंकाजी?’’ उस महिला का नाम प्रियंका उर्फ दुलारी था.

‘‘ठीक हूं, नेताजी.’’ प्रियंका जबाव देते हुए बोली, ‘‘मैं क्या कह रही थी कि जनता की खैरियत पूछने जब क्षेत्र में निकलिएगा तो मेरे गरीबखाने पर जरूर पधारिएगा. मैं आप की राह तकूंगी.’’

‘‘सुबह….सुबह क्यों मेरी टांग खींच रही हैं प्रियंकाजी. कोई और नहीं मिला था क्या आप को टांग खींचने के लिए? आलीशान और शानदार महल कब से गरीबखाना बन गया?’’ अनिल ने कहा.

‘‘क्या नेताजी? क्यों मजाक उड़ा रहे हैं इस नाचीज का. काहे का शानदार महल. सिर ढंकने के लिए ईंटों की छत ही तो है. बहुत मजाक करते हैं आप मुझ से. अच्छा, अब मजाक छोडि़ए और सीरियस हो जाइए. ये बताइए कि दोपहर तक आ रहे हैं न मेरी कुटिया में, मुझ से मिलने. कुछ जरूरी मशविरा करना है आप से.’’ वह बोली.

‘‘ऐसा कभी हुआ है प्रियंकाजी कि आप बुलाएं और हम न आएं. फिर जब आप इतना प्रेशर मुझ पर बना ही रही हैं तो भला मैं कैसे कह दूं कि मैं आप की कुटिया पर नहीं पधारूंगा, मैं जरूर आऊंगा. मुझे तो सरकार के दरबार में हाजिरी लगानी ही होगी.’’

ये भी पढ़ें- Manohar Kahaniya: चित्रकूट जेल साजिश

नेता अनिल उरांव की दिलचस्प बातें सुन कर प्रियंका खिलखिला कर हंस पड़ी तो वह भी अपनी हंसी रोक नहीं पाए और ठहाका मार कर हंसने लगे. उस के बाद दोनों के बीच कुछ देर तक हंसीमजाक होती रही. फिर प्रियंका ने अपनी ओर से फोन डिसकनेक्ट कर दिया तो अनिल उरांव ने भी मोबाइल वापस अपनी जेब के हवाले किया.

फिर भतीजे राजन के साथ मोटरसाइकिल पर सवार हो कर वह मनिहारी क्षेत्र की ओर निकल पड़े. वह खुद मोटरसाइकिल चला रहे थे और भतीजा पीछे बैठा था. यह 29 अप्रैल, 2021 की सुबह साढ़े 10 बजे की बात है.

अनिल उरांव को क्षेत्र भ्रमण में निकले तकरीबन 10 घंटे बीत चुके थे. वह अभी तक घर वापस नहीं लौटे थे और न ही उन का फोन ही लग रहा था. घर वालों ने साथ गए जब भतीजे से पूछा कि दोनों बाहर साथ निकले थे तो तुम उन्हें कहां छोड़ कर आए?

इस पर उस ने जबाव दिया, ‘‘चाचा को रेलवे लाइन के उस पार छोड़ कर आया था. उन्होंने कहा था कि वह प्रियंका के यहां जा रहे हैं, बुलाया है, मीटिंग करनी है. थोड़ी देर वहां रुक कर वापस घर लौट आऊंगा, तब मैं बाइक ले कर घर लौट आया था.’’

नेताजी अचानक हुए लापता

भतीजे राजन के बताए अनुसार अनिल प्रियंका से मिलने उस के घर गए थे. राजन उस के घर के पास छोड़ कर आया था तो फिर वह कहां चले गए? अनिल के घर वालों ने प्रियंका को फोन कर के अनिल के बारे में पूछा तो उस ने यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया कि नेताजी तो उस के यहां आए ही नहीं.

यह सुन कर सभी के पैरों तले से जमीन खिसक गई थी. वह प्रियंका के यहां नहीं गए तो फिर कहां गए?

लोजपा नेता अनिल उरांव और प्रियंका काफी सालों से एकदूसरे को जानते थे. दोनों के बीच संबंध काफी मधुर थे. यह बात अनिल के घर वाले और प्रियंका के पति राजा भी जानते थे. बावजूद इस के किसी ने कभी कोई विरोध नहीं जताया था.

अनिल को ले कर घर वाले परेशान हो गए थे. उन के परिचितों के पास भी फोन कर के पता लगाया गया, लेकिन उन का कहीं पता नहीं चला. घर वालों को अंदेशा हुआ कि कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई.

उसी दिन रात में नेता अनिल उरांव की पत्नी पिंकी कुछ लोगों को साथ ले कर हाट थाने पहुंची और पति की गुमशुदगी की एक तहरीर थानाप्रभारी सुनील कुमार मंडल को सौंप दी. तहरीर लेने के बाद थानाप्रभारी सुनील कुमार ने पिंकी को भरोसा दिलाया कि पुलिस नेताजी को ढूंढने का हरसंभव प्रयास करेगी. आप निश्चिंत हो कर घर जाएं. उस के बाद पिंकी वापस घर लौट आई.

मामला हाईप्रोफाइल था. लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के आदिवासी प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल उरांव की गुमशुदगी से  जुड़ा हुआ मामला था. उन्होंने अनिल उरांव की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली और आवश्यक काररवाई में जुट गए. चूंकि यह मामला राज्य के एक बड़े नेता की गुमशुदगी से जुड़ा हुआ था, इसलिए उन्होंने इस बाबत एसपी दया शंकर को जानकारी दे दी थी.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: नफरत की विषबेल

वह जानते थे कि अनिल उरांव कोई छोटीमोटी हस्ती नहीं है. उन के गुम होने की जानकारी जैसे ही समर्थकों तक पहुंचेगी, वो कानून को अपने हाथ में लेने से कभी नहीं हिचकिचाएंगे. इस से शहर की कानूनव्यवस्था बिगड़ सकती है, इसलिए किसी भी स्थिति से निबटने के लिए उन्हें मुस्तैद रहना होगा.

इधर पति के घर लौटने की राह देखती पिंकी ने पूरी रात आंखों में काट दी थी. लेकिन अनिल घर नहीं लौटे. पति की चिंता में रोरो कर उस का हाल बुरा था. दोनों बेटे प्रांजल (7 साल) और मोनू (2 साल) भी मां को रोता देख रोते रहे. रोरो कर सभी की आंखें सूज गई थीं.

फिरौती की आई काल

बात अगले दिन यानी 30 अप्रैल की सुबह की है. पति की चिंता में रात भर की जागी पिंकी की आंखें कब लग गईं, उसे पता ही नहीं चला. उस की आंखें तब खुलीं जब उस के फोन की घंटी की आवाज कानों से टकराई.

स्क्रीन पर डिसप्ले हो रहे नंबर को देख कर हड़बड़ा कर वह नींद से उठ कर बैठ गई. क्योंकि वह फोन नंबर उस के पति का ही था. वह जल्दी से फोन रिसीव करते हुए बोली, ‘‘हैलो! कहां हो आप? एक फोन कर के बताना भी जरूरी नहीं समझा और पूरी रात बाहर बिता दी. जानते हो कि हम सब आप को ले कर कितने परेशान थे रात भर. और आप हैं कि…’’

पिंकी पति का नंबर देख कर एक सांस में बोले जा रही थी. तभी बीच में किसी ने उस की बात काट दी और रौबदार आवाज में बोला, ‘‘तू मेरी बात सुन. तेरा पति अनिल मेरे कब्जे में है. मैं ने उस का अपहरण कर लिया है.’’

‘‘अपहरण किया है?’’ चौंक कर पिंकी बोली.

‘‘तूने सुना नहीं, क्या कहा मैं ने? तेरे पति का अपहरण किया है, अपहरण.’’

‘‘तुम कौन हो भाई.’’ बिना घबराए, हिम्मत जुटा कर पिंकी आगे बोली, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया? मेरे पति से तुम्हारी क्या दुश्मनी है, जो उन का अपहरण किया?’’

अपहर्त्ताओं को दिए 10 लाख रुपए

‘‘ज्यादा सवाल मत कर. जो मैं कहता हूं चुपचाप सुन. फिरौती के 10 लाख रुपयों का बंदोबस्त कर के रखना. मेरे दोबारा फोन का इंतजार करना. मैं दोबारा फोन करूंगा. रुपए कब और कहां पहुंचाने हैं, बताऊंगा. हां, ज्यादा चूंचपड़ करने या होशियारी दिखाने की कोशिश मत करना और न ही पुलिस को बताना. नहीं तो तेरे पति के टुकड़ेटुकड़े कर के कौओं को खिला दूंगा, समझी.’’ फोन करने वाले ने पिंकी को धमकाया.

‘‘नहीं…नहीं उन्हें कुछ मत करना.’’ पिंकी फोन पर गिड़गिड़ाने लगी, ‘‘तुम जो कहोगे, मैं वही करूंगी. मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं. मैं पुलिस को कुछ नहीं बताऊंगी. प्लीज, उन्हें छोड़ दो. पैसे कहां पहुंचाने हैं, बता दो. तुम्हारे पैसे समय पर पहुंच जाएंगे.

अगले भाग में पढ़ें- अनिल उरांव की मिली लाश

Satyakatha- चाची के प्यार में बना कातिल: भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

12 जून, 2021 को दोनों ने घर से भागने का पूरा प्लान तैयार किया और काशीपुर से ट्रेन पकड़ कर घर वालों की चोरीछिपे मुरादाबाद जा पहुंचे. मुरादाबाद रेलवे स्टेशन पर पहुंचते ही दोनों जीआरपी की निगाहों में संदिग्ध के रूप में चढ़ गए.

जीआरपी ने उन से पूछताछ की तो मंजीत ने साफसाफ बता दिया कि वह उस की चाची है. हम दोनों किसी बीमार रिश्तेदार को देखने के लिए आए हुए हैं. लेकिन पुलिस को उन की बातों पर विश्वास नहीं हुआ तो उन्होंने परिवार वालों से बात कराने को कहा.

तब मंजीत ने अपनी बुआ की नातिन से जीआरपी वालों की बात करा दी. जिस के बाद पुलिस वालों ने उन्हें सीधे घर जाने की हिदायत देते हुए छोड़ दिया.

रेलवे पुलिस से छूटने के बाद भी मंजीत बुरी तरह से घबराया हुआ था. उसे पता था कि इस वक्त देश बुरे हालात से गुजर रहा है. घर से जाने के बाद न तो उन्हें कहीं भी इतनी आसानी से नौकरी ही मिलने वाली है और न ही उस के बाद उस के घर वाले उसे शरण देने वाले हैं.

यह सब मन में विचार उठते ही सविता ने मंजीत के सामने एक प्रश्न किया, ‘‘मंजीत, मैं तेरी खातिर अपना घरबार, बच्चों तक को छोड़ आई. लेकिन तेरे अंदर इतनी भी हिम्मत नहीं कि तू अपने ताऊ को सबक सिखा सके. उस ने ही हम दोनों का जीना हराम कर रखा है. अगर वह न हो तो हमें घर से भागने की जरूरत भी नहीं होती.’’

ये भी पढ़ें- Manohar Kahaniya- दुलारी की साजिश: भाग 1

सविता की बात मंजीत के दिल को छू गई

सविता की बात मंजीत के दिल को छू गई, ‘‘चाची, तुम अब बिलकुल भी चिंता मत करो. मैं घर वापस जाते ही उस ताऊ का ऐसा इलाज करूंगा कि वह कुछ कहने लायक भी नहीं रहेगा.’’

सविता को विश्वास में ले कर मंजीत अपने घर वापस चला गया. घर जाने के बाद वही सब कुछ हुआ, जिस की उम्मीद थी. दोनों के घर पहुंचते ही परिवार वालों ने उन्हें उलटासीधा कहा. चंद्रपाल ने सविता को घर तक में नहीं जाने दिया था. जिस के कारण मंजीत ने उसी रात अपने ताऊ को मौत की नींद सुलाने का प्रण कर लिया था.

14 जून, 2021 की शाम को मंजीत अपने काम पर चला गया. लेकिन फैक्ट्री में काम करते वक्त भी उस की निगाहों के सामने उस के ताऊ की सूरत ही घूमती रही. उसी वक्त मशीनों में कोई तकनीकी खराबी आ गई, जिस के कारण मशीन बंद करनी पड़ी.

मंजीत को लगा कि वक्त उस का साथ दे रहा है. उस ने तभी सविता को फोन मिलाया और आधे घंटे बाद ताऊ के घेर के पास मिलने को कहा. मंजीत की बात सुनते ही सविता के हाथपांव थरथर कांपने लगे थे.

उसे लगा कि आज वह जो काम करने जा रही है वह ठीक से हो पाएगा भी या नहीं. उस की चारपाई के पास ही पति रामपाल खर्राटे मार कर सो रहा था. रामपाल को सोते देख उस ने किसी तरह से हिम्मत जुटाई और धीरे से घर का दरवाजा खोल कर दबे पांव चंद्रपाल के घेर की तरफ बढ़ गई.

ये भी पढ़ें- Manohar Kahaniya: चित्रकूट जेल साजिश

मंजीत किसी तरह से फैक्ट्री की पिछली दीवार फांद कर बाहर आया और सीधे अपने ताऊ चंद्रपाल के घेर में पहुंचा. उस वक्त सभी लोग गहरी नींद में सोए हुए थे. सविता मंजीत के पहुंचने से पहले ही वहां पहुंच चुकी थी.

घेर में पहुंचते ही मंजीत ने घेर में जल रहे बल्ब को उतार दिया, ताकि कोई उन्हें पहचान न सके. चंद्रपाल भी सारे दिन मेहनतमजदूरी कर के थक जाता था. उसी थकान को उतारने के लिए वह अकसर ही रात में शराब पी कर ही सोता था. जिस वक्त मंजीत और सविता उस के पास पहुंचे, वह गहरी नींद में सोया हुआ था.

मुंह बंद होने के कारण चंद्रपाल की चीख तक न निकल सकी

चंद्रपाल को सोते देख मंजीत ने सविता को उस का मुंह बंद करने का इशारा किया, फिर उस ने अपने हाथ में थामी ईंट से लगातार कई वार कर डाले. मुंह बंद होने के कारण चंद्रपाल की चीख तक न निकल सकी.

थोड़ी देर तड़पने के बाद उस की सांसें थम गईं. इस के बावजूद भी मंजीत बेरहमी दिखाते हुए उस के चेहरे व सिर पर कई वार ईंट से प्रहार किया. जब चंद्रपाल का शरीर पूरी तरह से शांत हो गया तो दोनों वहां से चले गए.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: नफरत की विषबेल

सविता के हाथों पर खून लगा हुआ था, जो उस के घर के दरवाजे पर भी लग गया था. घर पहुंच कर सविता ने एक कपड़े से हाथों का खून पोंछा. वह कपड़ा उस ने बाथरूम में डाल दिया था, जिसे बाद में पुलिस ने बरामद कर लिया था.

ताऊ को  मौत की नींद सुला कर मंजीत सीधा फैक्ट्री में पहुंच गया, जिस के बाद उस ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की. लेकिन पुलिस के आगे उस की सारी होशियारी धरी की धरी रह गई.

चंद्रपाल के बेटे सचिन की तरफ से भादंवि की धारा 302 व 120बी के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस ने इस मामले में दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया था.

Manohar Kahaniya: चित्रकूट जेल साजिश- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले का नाम वैसे तो दुनियाभर में रामायण काल से ही विख्यात है. क्योंकि अयोध्या के राजा श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ इसी चित्रकूट में अपने 14 साल के वनवास का अधिकांश समय व्यतीत किया था.

लेकिन इन दिनों यह पौराणिक शहर एक ऐसी घटना के लिए चर्चित हो रहा है, जिस ने पूरी उत्तर प्रदेश सरकार और यहां की कानून व्यवस्था को कठघरे में खड़ा कर दिया है.

14 मई, 2021 की सुबह का वक्त था. उस दिन पूरा देश ईदउलफितर यानी ईद का त्यौहार मना रहा था. चित्रकूट जिले की रगौली जेल के जेलर महेंद्र पाल हमेशा की तरह सुबह साढे़ 5 बजे जेल परिसर के अपने निवास से जेल के भीतर पहुंचे. उन्होंने जेल की हाई सिक्योरिटी समेत सभी बैरकों को खुलवाया था, ताकि बंदी अपने नित्यकर्म कर सकें.

जेल अधीक्षक श्रीप्रकाश त्रिपाठी भी जेल में सुबह 7 बजे आ गए थे. उन के कारागार में पहुंचने पर जेलर महेंद्र पाल ठीक 8 बजे अपने सरकारी आवास में नहानेधोने और नाश्ता करने के लिए चले गए थे. जेल में होने वाली सुबह की गतिविधियां ठीक से संचालित होने लगीं तो जेल अधीक्षक त्रिपाठी भी साढे 9 बजे कारागार से बाहर अपने सरकारी आवास पर नहानेधोने और नाश्ता करने चले गए.

जेल के दोनों जिम्मेदार अधिकारी जेल के बाहर अपने आवास में नित्य कर्म करने में व्यस्त थे, उसी वक्त उन्हें कारागार के भीतर से धांय… धांय गोलियां चलने की आवाजें आने लगीं.

जेल अधीक्षक तत्काल अपने आवास के बाहर आए तो उन्होंने बंगले के बाहर तैनात सुरक्षाकर्मियों से पूछा कि गोलियां कहां और क्यों चल रही हैं.  सुरक्षाकर्मियों ने कुछ देर में जेलर व जेल अधीक्षक को बता दिया था कि जेल के भीतर एक बंदी ताबड़तोड़ गोलियां चला रहा है और उस ने 2 बंदियों को गोलियां मार दी हैं.

जेल अधीक्षक और जेलर के लिए यह सूचना एकदम सिर पर फूटने वाले बम जैसी थी. उन्होंने हड़बड़ी में वरदी डाली और 5 मिनट के भीतर तैयार हो कर कारागार के भीतर पहुंच गए.

ये भी पढ़ें- Manohar Kahaniya- पावर बैंक ऐप के जरिए धोखाधड़ी: चीनी ठगों के देशी गुर्गे

कारागार के भीतर पहुंचते ही त्रिपाठी ने जेल का अलार्म बजवा कर खतरे का संकेत दे दिया. जिस का मतलब था कि जेल के भीतर या तो दंगा हो गया है या कोई सुरक्षा की खतरनाक स्थिति उत्पन्न हो गई. इस का मतलब साफ होता है कि जेल के सभी सुरक्षाकर्मी, जिन के आवास कारागार के आसपास ही होते हैं, यह अलार्म उन के लिए तत्काल कारागार तक पहुंचने की चेतावनी होती है.

जेल अधीक्षक ने जेल मार्ग पर ही बनी पुलिस चौकी के अलावा जिले के डीएम व एसपी को भी जेल में एक बंदी द्वारा गोलियां चलाए जाने की सूचना दे दी.

जेल अधीक्षक त्रिपाठी व जेलर महेंद्र  पाल सुरक्षाकर्मियों को ले कर जेल के भीतर पहुंचे और इस के बाद जेल के भीतर जो नजारा देखने को मिला उस ने चित्रकूट की जेल और जिला प्रशासन को ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश शासन को हिला कर रख दिया.

दरअसल, इस दिन चित्रकूट की रगौली जेल में 90 मिनट तक चले रोमांचक ड्रामे में एक या 2 नहीं, 3 लोगों की मौत हुई थी.

दरअसल, उस सुबह करीब 10 बजे से कुछ मिनट पहले अंशुल दीक्षित अपनी बैरक से निकला. वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों से उस ने कहा कि वह पीसीओ जा रहा है, किसी को फोन करना है.

बैरक के बाहर निकलते ही वह उस चक्कर वाले ग्राउंड में पहुंचा, जहां बंदियों को लाइन में खड़ा कर के उन की गिनती हो रही थी. जिस के बाद उन्हें अपनी बैरकों में वापस लौटना था.

अंशुल ने चलाईं गोलियां

परेड ग्रांउड में पहंचने के बाद अंशुल की नजरें तेजी से किसी को खोजने लगीं. अचानक उस की नजरें मेराज पर टिक गईं. उसे देखते ही अंशुल चीख कर बोला, ‘‘अबे ओ मेराज, तुम लोगों ने बहुत आतंक मचा लिया. अब तेरे बाप मुख्तार का खेल खत्म हो चुका है, उस का कोई गुर्गा जिंदा नहीं रहेगा.’’

कुछ बंदी साथियों के साथ खड़ा हो कर बात कर रहा मेराज जब तक कुछ समझ पाता, तब तक अंशुल ने अपनी जींस की बेल्ट में खोंसी हुई पिस्तौल निकाल ली और एक के बाद एक ताबड़तोड़ कई गोलियां मेराज के ऊपर चला दीं. मेराज वहीं लहरा कर जमीन पर गिर गया.

इस दौरान पहली गोली चलते ही और अंशुल के हाथ में पिस्तौल देख वहां आसपास खड़े बंदी सिर पर हाथ रख कर इधरउधर दौड़ते हुए छिपने के लिए जहां जगह मिली उस तरफ भाग निकले.

एक के बाद एक मेराज पर कई गोलियां चलाने के बाद जब अंशुल को इत्मीनान हो गया कि मेराज मर चुका है तो कुछ ही सेकेंड बाद 50 मीटर की दूरी पर स्थित उस अस्थाई बैरक में पहुंचा, जहां पर मुकीम काला बंद था.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: नफरत की विषबेल

वहां पहुंचते ही अंशुल ने मुकीम से कहा, ‘‘काला मुझे तेरा बहुत दिनों से इंतजार था. मुख्तार का कोई बदमाश जिंदा नहीं रहेगा. खेल खत्म.’’ कहते हुए अंशुल ने अपने हाथ में पकड़े हुए पिस्तौल से कई गोलियां मुकीम पर झोंक दी.

अचानक उस के पिस्तौल की गोलियां खत्म हो गईं तो उस ने जेब में पड़ी एक दूसरी मैग्जीन निकाल कर पिस्तौल में लगाई और एक बार फिर उस का रुख मुकीम काला की तरफ कर ताबड़तोड़ गोलियां चलानी शुरू कर दीं.

चंद मिनटों में ही अंशुल ने मुकीम का शरीर गोलियों से छलनी कर दिया. लहूलुहान मुकीम अस्थाई बैरक में ही लाश बन कर लहराते हुए जमीन पर ढेर हो गया. मुकीम को मारने के बाद अंशुल इत्मीनान से टहलते हुए अपनी बैरक में गया. उस के भीतर कोई डर नहीं दिख रहा था और न ही कोई फिक्र.

अंशुल दीक्षित ने पिस्तौल लहराते हुए बैरक में बंद कुछ अन्य बंदियों को अपने काबू में कर लिया. तब तक जेल के अधिकारी एकत्र होने लगे थे. अंशुल ने उन से कहा कि अगर इन कैदियों को जिंदा बचाना चाहते हो तो मुझे जिंदा जेल से बाहर जाने दो.

जिस वक्त अंशुल रगौली जेल में यह खूनी तांडव कर रहा था. तब इस की खबर पा कर पहले जेल अधीक्षक व जेलर जेल के भीतर पहुंचे. उस के बाद स्थानीय चौकी की पुलिस भी सूचना पा कर जेल के भीतर पहुंच चुकी थी. जेल अधिकारियों व पुलिस ने अंशुल से जब बारबार आत्मसमर्पण के लिए कहना शुरू किया तो उस ने खीझ कर पुलिस पर भी गोलियां चला दीं.

पहले तो पुलिस आत्मरक्षा करने की कोशिश करती रही. लेकिन जब अंशुल की गोलीबारी का सिलसिला जारी रहा तो पुलिस की जवाबी गोलीबारी में अंशुल भी मारा गया.

दरअसल, करीब आधा घंटे तक अंशुल ने पिस्तौल के बल पर कई बंदियों को काबू में कर अपने आगे खड़ा कर लिया था. उस ने बंदियों को मारने की धमकी दे कर खुद को जेल से बाहर निकालने के लिए कहा था.

लेकिन किसी तरह जब उस के आगे खड़े बंदी उसे चकमा दे कर भाग कर बैरकों में चले गए. तो एक तरफ अंशुल और दूसरी तरफ पुलिस फोर्स बची थी. अंशुल ने जैसे ही पोजिशन ले कर पुलिस पर फिर से फायर झोंका तो पुलिस ने जवाबी काररवाई कर उसे मौके पर ही ढेर कर दिया.

इस बीच पुलिस और शार्प शूटर के बीच फायरिंग की सूचना पा कर मंडलायुक्त दिनेश कुमार सिंह, आईजी के. सत्यनारायण, जिलाधिकारी शुभ्रांत कुमार शुक्ल, एसपी अंकित मित्तल भी भारी पुलिस फोर्स के साथ जेल पहुंच गए.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: दो नावों की सवारी

मुख्यमंत्री ने की रिपोर्ट तलब

जेल के अंदर ताबड़तोड़ फायरिंग की सूचना पूरे जिले में तो जंगल की आग की तरह फैल ही गई थी बल्कि टेलीफोन से मिली सूचना के बाद लखनऊ में सत्ता के गलियारों और नौकरशाही तक में हड़कंप मच गया.

उसी दिन इस घटना का मुकदमा स्थानीय थाने में दर्ज कर लिया गया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चित्रकूट जेल में हुए शूटआउट के मामले में डीजी (जेल) आनंद कुमार से रिपोर्ट तलब कर ली.

कमिश्नर डी.के. सिंह, डीआईजी के. सत्यनारायण और एडीजी (जेल) संजीव त्रिपाठी से इस मामले की जांच कर 6 घंटे में पूरी रिपोर्ट देने के लिए कहा गया. डीजी  (जेल) ने घटना की विस्तृत जांच और जेल का जायजा लेने के लिए प्रभारी उप महानिरीक्षक (कारागार) इलाहाबाद रेंज पी.एन. पांडे को चित्रकूट रवाना कर दिया.

दिलचस्प बात थी कि इस शूटआउट में जेल के जो तीनों बंदी मारे गए, उन का किसी न किसी रूप में उत्तर प्रदेश के सब से बड़े डौन मुख्तार अंसारी से करीबी संबंध रहा था.

चित्रकूट जेल शूटआउट की जांच जैसे ही शुरू हुई तो इस में जेल प्रशासन की भूमिका संदिग्ध नजर आने लगी. मामले की जांच कर रहे अफसरों के काररवाई की सूई भी जेलकर्मियों की तरफ घूम गई.

पिस्तौल कैसे पहुंची हमलावर तक

क्योंकि जेल मैनुअल और नियमों के हिसाब से जेल के भीतर कोई भी हथियार लाने पर प्रतिबंध होता है. तब अंशुल दीक्षित के पास पिस्तौल और कारतूसों से मैग्जीन कैसे पहुंचीं. जाहिर था, ये सब जेल के कर्मचारियों और अधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं था.

तत्काल तो वारदात की कडि़यां नहीं जुड़ सकीं, लेकिन यह साफ हो गया कि सुबह करीब साढ़े 9 बजे जेल में ड्यूटी करने वाले बंदी सभी बैरकों में जा कर नाश्ता बांट रहे थे. उसी वक्त कैदियों की गणना भी चल रही थी. ज्यादातर कैदी बैरक से बाहर मैदान में ही थे.

इस की वजह से चारों तरफ जेल के सिपाही नजर गड़ाए मुस्तैद थे. इसी दौरान बाल्टी में कच्चा चना और गुड़ ले कर 2 कैदी अंशुल की बैरक में दाखिल हुए.

वे चना दे कर जैसे ही लौटे चंद मिनट बाद ही अंशुल भी अपनी बैरक से बाहर आया था और उस ने पिस्टल से ताबड़तोड़ फायरिंग कर मेराज और मुकीम काला को मौत के घाट उतार दिया. जांच करने वाले अधिकारियों को शक है कि नाश्ते के साथ ही पिस्तौल भी अंशुल तक पहुंचाई गई थी.

अगले भाग में पढ़ें-  तीनों  कुख्यात अपराधी मारे गए

Crime Story in Hindi: वह नीला परदा- भाग 8: आखिर ऐसा क्या देख लिया था जौन ने?

Writer- Kadambari Mehra

पूर्व कथा

एक रोज जौन सुबहसुबह अपने कुत्ते डोरा के साथ जंगल में सैर के लिए गया, तो वहां नीले परदे में लिपटी सड़ीगली लाश देख कर वह बुरी तरह घबरा गया. उस ने तुरंत पुलिस को सूचना दी. बिना सिर और हाथ की लाश की पहचान करना पुलिस के लिए नामुमकिन हो रहा था. ऐसे में हत्यारे तक पहुंचने का जरिया सिर्फ वह नीला परदा था, जिस में उस लड़की की लाश थी. इंस्पैक्टर क्रिस्टी ने टीवी पर वह नीला परदा बारबार दिखाया, मगर कोई सुराग हाथ नहीं लगा.

एक रोज क्रिस्टी के पास किसी जैनेट नाम की लड़की का फोन आया, जो पेशे से नर्स थी. वह क्रिस्टी से मिल कर नीले परदे के बारे में कुछ बताना चाहती थी.

जैनेट ने क्रिस्टी को जिस लड़की का फोटो दिखाया उस का नाम फैमी था. फोटो में वह अपने 3 साल के बेटे को गाल से सटाए बैठी थी. जैनेट ने बताया कि वह छुट्टियों में अपने वतन मोरक्को गई थी. क्रिस्टी ने मोरक्को से यहां आ कर बसी लड़कियों की खोजबीन शुरू की. आखिरकार क्रिस्टी को फहमीदा नाम की एक महिला की जानकारी मिली. क्रिस्टी फहमीदा के परिवार से मिलने मोरक्को गया. वहां फहमीदा की मां ने लंदन में बसे अपने

2-3 जानकारों के पते दिए. क्रिस्टी को लारेन नाम की औरत ने बताया कि फहमीदा किसी मुहम्मद नाम के व्यक्ति से प्यार करती थी. वह उस के बच्चे की मां बनने वाली थी.

एक रोज लारेन ने क्रिस्टी को बताया कि उस ने मुहम्मद को देखा है. क्रिस्टी और लारेन जब उस जगह पहुंचे तो पता चला कि यह दुकान मुहम्मद की नहीं, बल्कि साफिया की थी, जिस के दूसरे पति का नाम नासेर था. अब सवाल यह उठ रहा था, आखिर साफिया दुकान बेच कर कहां चली गई?

एक रोज डेविड एक कबाब की दुकान पर गया तो अचानक दुकान के मालिक को देख उस के दिमाग में लारेन का बताया हुलिया कुलबुलाने लगा.

ये भी पढ़ें- Short Story: एक कमरे में बंद दो एटम बम  

नासेर के बारे में एकएक कर के जो बातें उजागर हो रही थीं, वे उसे कठघरे की तरफ धकेलती जा रही थीं. कांस्टेबल एंडी ने नासेर का पीछा किया तो मालूम पड़ा कि उस की बीवी और 3 बच्चे वहीं रहते हैं. डेविड ने एंडी को उस की बीवी का पीछा करने की सलाह दी. एंडी ने उस की बीवी, दुकान व बच्चों का ब्योरा डेविड को दिया. डेविड ने स्कूल से बच्चे का बर्थसर्टिफिकेट निकलवाया तो कई बातें उजागर हो गईं. डेविड ने नासेर से फहमीदा नाम की औरत का जिक्र किया, तो उस के चेहरे का रंग उड़ गया. मौयरा ने स्कूल के हैडमास्टर की मदद से बच्चे को फैमी का फोटो दिखाया तो बच्चे ने तुरंत उसे पहचान लिया.

अब आगे पढ़ें…

शकूर की तारीफें सुन कर साफिया बहुत खुश हुई. मौयरा ने कहा कि वह उस के घर के वातावरण से परिचित होना चाहती है. साफिया ने झट से उसे बुलावा दे डाला, अगले ही दिन सुबह लंच से पहले.

घर बड़े करीने से सजा था. साफिया ने  मौयरा को बताया कि वह 2 साल पहले ही यहां आई है. इस से पहले वह पति की दुकान के ऊपर फ्लैट में रहती थी. वह दुकान ग्रोसरी की थी.

उस का पिता टर्की से आया था और उस ने काफी अच्छा पैसा बनाया लंदन में. उसी दौरान उस ने एक मोरक्कन मुसलमान से शादी कर ली. वह भी अच्छे घरपरिवार से था, मगर उसे सिगरेट पीने की बुरी लत थी. इसलिए

वह फेफड़े के कैंसर से मर गया. उन की 3 बेटियां थीं.

पति के मरने के बाद साफिया ने उस की फलसब्जी की दुकान संभाली. मगर 3 बच्चों को पालना और दुकान चलाना काफी भारी पड़ता था. कुछ साल बाद उस के पति के रिश्ते का भाई अली नासेर स्टूडैंट वीजा पर लंदन आया. पति का भाई होने के नाते साफिया ने उसे घर में रखा. बाद में उस से शादी कर ली. अली से भी उसे 2 बेटियां हुईं. अली हर हालत में एक लड़का चाहता था ताकि वह अपनी पुश्तैनी जायदाद का हक न खो दे.

‘‘फिर?’’ मौयरा ने पूछा.

साफिया थोड़ा अटकी फिर सोच कर बोली, ‘‘फिर क्या, शकूर आ गया, बस.’’

साफिया की कहानी हूबहू लारेन की बताई कहानी से मिलती थी. मौयरा ने अपने बैग में रखे टेपरिकौर्डर पर उस की सारी बातें रिकौर्ड कर ली थीं.

मौयरा ने आगे पूछा, ‘‘तुम किसी मुहम्मद नाम के आदमी को जानती हो?’’

‘‘वह तो मेरा पहला पति था, जो मर गया.’’

‘‘अली मुहम्मद?’’

‘‘नहीं, मुहम्मद जब्बार नासेर. यह नाम था उस का.’’

‘‘किसी अब्दुल नाम के बच्चे को जानती हो, वह भी मोरक्को से आया है?’’

‘‘नहीं, यहां कोई मोरक्कन नहीं है.’’

‘‘उस की मां का नाम फहमीदा है.’’

‘‘नहीं, मैं नहीं जानती.’’

साफिया की बातचीत एकदम निश्छल लगी.

‘‘तुम्हारी बड़ी बेटियां?’’

ये भी पढ़ें- Romantic Story: प्रेम की सूरत

साफिया उदासी को छिपाते हुए बोली, ‘‘वे अलग रहती हैं. दरअसल, मेरे पिता ने उन के लिए अलग से बिजनैस शुरू करवा दिया और फ्लैट खरीद कर दे दिया. दरअसल, ग्रोसरी ही हमारा पुराना धंधा है, जिसे अब वे तीनों मिल कर चलाती हैं और मैं भी वहां जा कर उन की मदद कर आती हूं. ये तीनों छोटे बच्चे मेरे दूसरे पति नासेर की जिम्मेदारी हैं. अब कोई तकरार नहीं.’’

‘‘क्या पहले तकरार होती थी?’’

साफिया मुसकरा कर चुप हो गई.

‘‘नासेर क्या करता है?’’

‘‘उसी दुकान में है मगर डोनर कबाब बेचता है.’’

‘‘फ्लैट में कौन रहता है?’’

‘‘कोई नहीं, पिछले क्रिसमस के बाद उस ने उसे रंगरोगन करवाया था मगर खाली ही पड़ा है.’’

मौयरा ने सारी रिपोर्ट क्रिस्टी को दे दी.

क्रिस्टी सावधान था. लारेन को चकमा दे कर दुकान से निकलने के बाद नासेर का अगला कदम होगा कि वह भाग जाए. क्रिस्टी

ने चारों तरफ से नाकेबंदी कर दी और वह सीधा दुकान पहुंचा. लारेन भी उस के साथ

थी. लारेन ने ऐसा दिखावा किया जैसे वह क्रिस्टी की बीवी हो और वह नासेर को पहचानती ही न हो.

मगर उसे देख कर नासेर का रंग उड़ गया.

क्रिस्टी ने उस से पूछा, ‘‘क्या तुम हमें पसंद नहीं करते?’’

नासेर संभल कर सामान्य होते हुए बोला, ‘‘नहीं, वह बात नहीं. दरअसल, आप की मित्र को देख कर मुझे किसी और का भ्रम हो गया था. आप गोरी चमड़ी के लोग न कभीकभी एकदूसरे से काफी मिलते हो.’’

‘‘मुझे भी तुम सारे मोरक्कन एकजैसे लगते हो.’’

सुन कर नासेर जोरजोर से हंसने लगा, मगर उस की घबराहट छिपी नहीं रही. क्रिस्टी ने लारेन को अभी तक नहीं बताया था कि फैमी गायब थी. मगर उस का शक एकदम पक्का हो गया कि नासेर अपराधी है. सिवा उसे हिरासत में ले कर सवालजवाब करने के, क्रिस्टी के पास दूसरा चारा नहीं बचा था.

नासेर और साफिया दोनों की इंक्वायरी अलगअलग तरीकों से की गई थी. दोनों को जरा भी शक नहीं हुआ कि यह सब तहकीकात एक ही गुत्थी को सुलझाने का प्रयास था. साफिया ने नासेर को मनोवैज्ञानिक टीचर के बारे में सब बताया मगर नासेर अपनी ही परेशानी में उलझा रहा.

लारेन को देखने के बाद वह बदहवास हो गया था. हालांकि लारेन ने उसे जरा भी यह एहसास नहीं होने दिया कि वह उसे पहचानती है. साफिया से बहाना बना कर वह अगले दिन चंपत हो गया. साफिया अपने दूर के किसी रिश्तेदार को दुकान खोलने के लिए कह कर स्वयं अपनी दुकान में चली गई.

क्रिस्टी इस के लिए तैयार था. जिस टे्रन से नासेर भागा वह उसी पर चढ़ गया. उस की तैनात की हुई पुलिस फोर्स ने उसे नासेर के स्टेशन पर गाड़ी पकड़ने की इत्तला तुरंत दे दी थी. अगले स्टेशन पर क्रिस्टी उस में चढ़ा और ऐसा दिखाया, जैसे यह इत्तफाक हो. नासेर उसे देख कर बेबसी से मुसकराया और उस से पूछा कि आप कहां तक जाएंगे?

क्रिस्टी ने कहा कि जहां तक यह टे्रन जाएगी.

मुझे तो पास ही जाना है, कह कर नासेर फटाफट अगले ही स्टेशन पर उतर गया.

मगर जैसे ही वह उतरा, क्रिस्टी ने इंटरकाम पर पुलिस को आगाह कर दिया. लंदन के बाहरी इलाकों में छोटे शहरों में उतरने वाले इक्केदुक्के लोग ही होते हैं. नासेर का पीछा करना आसान नहीं तो दुष्कर भी नहीं था.

Manohar Kahaniya : पावर बैंक ऐप के जरिए धोखाधड़ी- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

कोरोना की दूसरी लहर के बीच देश के अधिकांश हिस्सों में लौकडाउन और कर्फ्यू के कारण तमाम तरह की गतिविधियां लगभग बंद पड़ी थीं. इस दौरान पुलिस अपराध नियंत्रण की जगह या तो लोगों की मदद करने में जुटी थी या लौकडाउन का पालन कराने और लोगों को कोरोना संक्रमण से जागरुक करने में.

लेकिन इस दरम्यान कुछ ऐसा हुआ कि 30 मई, 2021 को दिल्ली पुलिस कमिश्नर को पुलिस मुख्यालय में एक खास मकसद से एक आपात बैठक बुलानी पड़ी. इस बैठक में चुनिंदा पुलिस अधिकारी मौजूद थे. इस आपात बैठक में पुलिस कमिश्नर एस.एन. श्रीवास्तव के सामने क्राइम ब्रांच के विशेष आयुक्त प्रवीर रंजन के साथ साइबर क्राइम सेल के संयुक्त आयुक्त प्रेमनाथ तथा इसी सेल के डीसीपी अनेष राय मौजूद थे. पुलिस कमिश्नर के सामने एक मोटी फाइल  रखी थी.

‘‘प्रवीर क्या तुम्हारी यूनिट को खबर है कि इन दिनों औनलाइन फ्रौड का कौन सा नया ट्रेंड सब से तेजी से अपना काम कर रहा है?’’ कमिश्नर एस.एन. श्रीवास्तव ने क्राइम ब्रांच के विशेष आयुक्त प्रवीर रंजन से मुखातिब होते हुए पूछा.

‘‘औनलाइन फ्रौड के तो दरजनों तरीके हैं सर और साइबर क्रिमिनल इन सब के जरिए ही क्राइम कर रहे हैं. जब से कोरोना महामारी फैली है और लोग लौकडाउन के कारण घरों में बंद हैं, तब से तो आए दिन एक नया औनलाइन फ्रौड सामने आ रहा है. सौरी सर, लेकिन आप किस नए ट्रेंड की बातें कर रहे हैं?’’ प्रवीर रंजन पुलिस कमिश्नर की बात को स्पष्ट रूप से समझ नहीं सके तो उन्होंने संकोच करते हुए उन से साफतौर से बताने का आग्रह किया.

ये भी पढ़ें- Crime: शक की सुई और हत्या

‘‘मेरे सामने जो फाइल है इस में पिछले 2 महीने के दौरान औनलाइन मिली वो शिकायतें हैं, जिन में सैंकड़ों लोगों ने एक ही तरह से ठगी की शिकायत की है. सब के साथ एक ही तरह से ठगी की गई है. इन के अलावा न्यूजपेपर में अलग से आए दिन इसी तरह से ठगी की शिकायतों की खबरें छप रही हैं.

‘‘मुझे लगता है कि कोई गैंग है जो बड़े आर्गनाइज तरीके से इस तरह से ठगी की वारदातों को अंजाम दे रहा है. अभी ये तो नहीं पता कि कितने लोगों के साथ अब तक ऐसी वारदात हो चुकी है, लेकिन जिस तेजी से ये गैंग काम कर रहा है उसे देख कर लगता है कि ठगी के शिकार लोगों की गिनती लाखों में हो सकती है.’’

पुलिस आयुक्त ने दिए कुछ हिंट

पुलिस आयुक्त श्रीवास्तव ने गंभीर होते हुए सीधे मुद्दे की बात शुरू कर दी, जिस के लिए उन्होंने यह बैठक बुलाई थी.

‘‘मेरे पास जितनी भी शिकायतें आई हैं, वे सब एक ही तरह की हैं. जिस में लोगों को गूगल प्लेस्टोर से कुछ खास तरह के ऐप डाउनलोड करने के लिंक भेजे जा रहे हैं. लोगों को इन ऐप्स ने 25-35 दिनों में निवेश राशि को दोगुना करने के दावों के साथ निवेश पर आकर्षक रिटर्न की पेशकश की. ये ऐप्स प्रति घंटा और दैनिक आधार पर रिटर्न की पेशकश कर रहे हैं. शुरू में लोगों को छोटे निवेश पर रिटर्न दिया जा रहा है और बड़ी रकम का निवेश होते ही निवेशक के मोबाइल पर ऐप ब्लौक हो जाता है.’’

विशेष आयुक्त प्रवीर रंजन स्पष्ट बताते ही समझ गए कि पुलिस कमिश्नर ठगी के किस नए ट्रेंड की बात कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘‘सर, आप पावर ऐप बैंक की बात कर रहे हैं. सर, पिछले हफ्ते ही मुझे सीधे कुछ ऐसी शिकायतें मिली थीं और हम ने अखबारों में भी पढ़ा था, जिस के बाद मैं ने अपनी साइबर यूनिट को ऐसे मामलों की छानबीन करने के काम पर लगा दिया है. हम आलरेडी इस पर काम कर रहे हैं.’’

‘‘गुड प्रवीर, मुझे तुम से ऐसी ही उम्मीद थी. मैं चाहता हूं कि एक बड़ी टीम बना कर इस पर सीरियसली तुरंत ऐक्शन शुरू करो. लोग किस तरह इस ठगी से बच सकते हैं, इस के लिए भी एक एडवाइजरी बनाओ जिस से हम लोगों को ऐसे जालसाजों के चंगुल में फंसने से बचा सकें और उन्हें जागरुक कर सकें.’’ कहते हुए पुलिस आयुक्त श्रीवास्तव ने अपने सामने रखी मोटी फाइल प्रवीर रंजन की तरफ बढ़ा दी.

इस के बाद इसी मुद्दे पर खास हिदायतें देने के बाद मीटिंग खत्म हो गई और पुलिस आयुक्त एस.एन. श्रीवास्तव मीटिंग से चले गए.

पुलिस कमिश्नर के जाने के बाद प्रवीर रंजन इस मामले को ले कर जौइंट सीपी प्रेमनाथ और डीसीपी अनेष राय के साथ काफी देर तक चर्चा करते रहे और कुछ देर की माथापच्ची के बाद बाकायदा एक रणनीति तैयार कर ली गई, ताकि जालसाजी का अनोखा जाल फैलाने वालों को पकड़ा जा सके.

तीनों अधिकारी कुछ देर बाद जब मीटिंग रूम से बाहर निकले तो उन के इरादे साफ थे कि इस मामले में जल्द ही बड़ा ऐक्शन शुरू होगा. क्योंकि किसी खास अपराध को ले कर अगर पुलिस आयुक्त खुद चिंता व्यक्त करें तो मातहतों के लिए ऐसा ऐक्शन लेना लाजिमी भी हो जाता है. वैसे भी जालसाजी का ये जो नया ट्रेंड सामने आया था, वो सीधे लाखोंकरोड़ों लोगों से जुड़ा था और इस के जरिए हर रोज लोगों के साथ धोखाधड़ी की शिकायतें सामने आ रही थीं.

ये भी पढ़ें- Manohar Kahaniya: चाची का आशिक- भाग 1

साइबर क्राइम की टीम जुटी जांच में

इस बैठक के बाद विशेष आयुक्त प्रवीर रंजन ने साइबर अपराध प्रकोष्ठ के तेजतर्रार एसीपी आदित्य गौतम के नेतृत्व में इंसपेक्टर परवीन, इंसपेक्टर हंसराज, सबइंसपेक्टर अवधेश, सुनील, व हरजीत के साथ 3 दरजन पुलिसकर्मियों की एक बड़ी टीम तैयार की.

इस टीम के कई लोग पहले से ही जालसाजी के इस रैकेट को समझने के लिए इस पर काम कर रहे थे. साइबर क्राइम की टीम ने सब से पहले पावर बैंक ऐप और ईजीमनी ऐप की मोडस औपरेंडी का विश्लेषण किया कि वे कैसे काम करते हैं.

टीम के सदस्यों ने इन ऐप्स पर अपने खाते बनाए और इस के बाद उन्होंने इस में कुछ पैसे इनवेस्ट भी कर दिए ताकि पता लगाया जा सके कि पैसे किन खातों में और कहां ट्रांसफर होते हैं.

पुलिस ने लंबी कवायद के बाद आखिरकार पता लगा लिया कि ऐप्स में होने वाले इनवैस्टमेंट का पैसा किस पेमेंट गेटवे से हो कर किनकिन बैंक खातों में ट्रांसफर होता है और वे बैंक खाते किन लोगों के नाम पर खुले हैं. उन में जो मोबाइल नंबर दर्ज हैं, उन का संचालन कौन करता है. साइबर क्राइम की टीम ने ठगी के इस जाल की पूरी कड़ी तैयार कर ली, जिस के बाद शुरू हुआ ऐक्शन का काम.

2 जून, 2021 की सुबह एक ही समय में दिल्लीएनसीआर, पश्चिम बंगाल और बंगलुरु में एक साथ छापेमारी की गई और 11 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया. इस में 2 चार्टर्ड एकाउंटेंट थे. इन की पहचान गुड़गांव निवासी अविक केडिया और दिल्ली के कटवारिया सराय निवासी रौनक बंसल के रूप में हुई.

पूछताछ में पता चला कि ठगी की रकम को ट्रांसफर करने के लिए जो मुखौटा कंपनियां बनाई गई थीं, वे इन्हीं दोनों ने तैयार की थीं.

मास्टरमाइंड हुआ गिरफ्तार

पश्चिम बंगाल के हावड़ा में स्थित उलबेरिया में रहने वाला शेख रौबिन इस धोखाधड़ी के नेटवर्क का भारत में मास्टरमाइंड सरगना था. शेख रौबिन से पूछताछ और उस से बरामद हुए दस्तावेजों की छानबीन में पता चला कि वह कई बार चीन, सिंगापुर, दुबई और दूसरे देशों की यात्रा कर चुका था.

शेख रौबिन वीचैट और टेलीग्राम जैसे मोबाइल ऐप के जरिए कुछ चीनी लोगों के संपर्क में था. उन्होेंने शेख को अपने गूगल प्लेस्टोर पर अपलोड किए गए अपने मोबाइल ऐप पावर बैंक और सन लाइट फैक्ट्री के जरिए भारतीय लोगों से धोखाधड़ी करने के लिए एक ऐसा सिंडीकेट तैयार करने के लिए राजी किया था, जो अपना लाभ ले कर उन के लिए काम कर सकें.

धोखाधड़ी का पूरा प्लान जानने के बाद शेख रौबिन ने दिल्ली और गुड़गांव में सीए अविक केडिया और दिल्ली के रौनक बंसल से संपर्क किया. दोनों सीए ने अपने करीबी लोगों, रिश्तेदारों के नाम, पते और दस्तावेजों का इस्तेमाल कर करीब 25 शैल कंपनियां बनाईं और उन्हें शेख रौबिन को 3 लाख रुपए इन का इस्तेमाल करने के लिए बेच दिया.

शेख ने इन सभी कंपनियों के नाम से देश के अलगअलग शहरों में करीब 30 से अधिक बैंक खाते खुलवाए और इन में अपने लोगों के नाम से फरजी आधार कार्ड व दस्तावेज बना कर खरीदे गए सिम कार्ड व मोबाइल नंबर दर्ज करा दिए.

शेख रौबिन ने बंगुलरु में एक तिब्बत मूल की युवती पेमा वांगमो के साथ मिल कर एक ऐसी फरजी स्टार्टअप कंपनी का गठन कर दिया, जो मल्टीलेवल मार्केटिंग के लिए ईजी मनी ऐप को प्रमोट करने लगी. पेमा के साथ बंगलुरु में सुकन्या और नागाभूषण नाम के उस के साथी भी उस की मदद करते थे.

अगले भाग में पढ़ेंपुलिस ने बैंक खाते कराए सीज

Satyakatha- जब इश्क बना जुनून: भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

शाहिदा इस के लिए तैयार ही थी. उस ने किसी तरह का कोई विरोध नहीं किया तो रईस और शाहिदा के बीच अमित दाखिल हो गया.

इस तरह अमित और शाहिदा के अनैतिक संबंध बन गए. फिर तो अकसर अमित रईस की गैरमौजूदगी में उस के घर जाने लगा. अमित न तो रईस का रिश्तेदार था और न ही दोस्त. वह उस के घर आता भी उस की गैरमौजूदगी में था. इसलिए बिटिया से जब उस के घर आने का पता चला तो उसे शक हुआ. उस ने शाहिदा से उस के बारे में पूछा तो वह साफ मुकर गई. इस से रईस का शक और बढ़ गया.

इस तरह की बातें कहां ज्यादा दिनों तक छिपी रहती हैं. इस की वजह यह थी कि जैसेजैसे दिन बीतते गए, दोनों की मिलने की चाह बढ़ती गई और वे लापरवाह होते गए.

जब रईस को पूरा विश्वास हो गया कि उस की बीवी का अमित से गलत संबंध है तो वह शाहिदा को उस से मिलने से रोकने लगा. शाहिदा पहले तो मना करती रही कि उस का अमित से इस तरह का कोई संबंध नहीं है. पर रईस को उस की बात पर जरा भी विश्वास नहीं था. क्योंकि उस के पास पक्का सबूत था कि उस की पत्नी अब उस के प्रति वफादार नहीं रही. वह शाहिदा पर दबाव डालने लगा कि वह अमित से मिलनाजुलना छोड़ दे, वरना ठीक नहीं होगा.

ये भी पढ़ें- Satyakatha- चाची के प्यार में बना कातिल

जब रईस का दबाव बढ़ता गया तो शाहिदा बेचैन हो उठी. इस की वजह यह थी अब तक शाहिदा पूरी तरह से अमित की हो चुकी थी. अब उसे अपने पति रईस से जरा भी लगाव नहीं रह गया था. इसलिए उस ने अमित से साफसाफ कह दिया कि अब वह हमेशाहमेशा के लिए उस की होना चाहती है. इस के लिए जरूरत पड़ेगी तो वह रईस को ठिकाने भी लगा सकती है. क्योंकि रईस जीते जी उन दोनों को एक नहीं होने देगा.

अमित शाहिदा के प्यार में पागल था. उस ने भी हर तरह से शाहिदा का साथ देने के लिए हामी भर दी. इस तरह एक खौफनाक कत्ल की साजिश रची जाने लगी.

अमित और शाहिदा रईस को ठिकाने लगाने के बारे में सोच ही रहे थे कि 21 मई, 2021 की शाम ऐसा संयोग बना कि बिना किसी योजना के ही अचानक उन्होंने रईस को ठिकाने लगा दिया.

हुआ यह कि उस दिन रईस समय से काफी पहले घर आ गया. घर पहुंचा तो उसे शाहिदा और अमित आपत्तिजनक स्थिति में मिले. बच्चे बाहर खेल रहे थे. कोई भी गैरतमंद पति अपनी पत्नी को किसी गैर के आगोश में देख लेगा तो उस के शरीर में आग लग ही जाएगी.

शाहिदा को अमित के पहलू में देख कर रईस को भी गुस्सा आ गया. वह शाहिदा और अमित की पिटाई करने लगा.

अमित और शाहिदा ने तो पहले से ही रईस को ठिकाने लगाने की तैयारी कर रखी थी. जब उन दोनों की जान पर बन आई तो शाहिदा दौड़ कर किचन से चाकू उठा लाई, जिस से अमित ने गला काट कर रईस को मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद लाश घर में ही छिपा दी.

पति की लाश घर में पड़ी थी. अगर लाश बरामद हो जाती तो दोनों पकड़े जाते. काफी सोचविचार कर रातोंरात अमित और शाहिदा ने रईस की लाश को उसी घर में गड्ढा खोद कर दफनाने का भयानक निर्णय ले लिया.

कमरे में गड्ढा खोद कर लाश को गाड़ना इसलिए मुश्किल था, क्योंकि कमरे में बच्चे सो रहे थे. लाश को ठिकाने लगाने के लिए शाहिदा ने अपने प्रेमी अमित के साथ किचन में एक गड्ढा खोद डाला.

किचन का वह गड्ढा इतना बड़ा नहीं था कि पूरी की पूरी लाश उस में आ जाती. इसलिए दोनों ने क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए पहले लाश के 4 टुकड़े किए, उस के बाद वे टुकड़े बेतरतीब तरीके से एक के ऊपर एक रख कर दफना दिए.

जब यह सब हो रहा था, संयोग से शाहिदा और रईस की 6 साल की मासूम बेटी की आंखें खुल गईं. जब उस ने अपने पापा को 4 टुकड़ों में देखा तो सहम उठी. मारे डर के वह चीख उठी.

उस की चीख सुन कर शाहिदा और अमित घबरा गए. क्योंकि उस बच्ची ने अपनी आंखों से सब कुछ देख लिया था. बच्ची इतनी छोटी नहीं थी कि वह यह न जानती कि यह सब क्या हो रहा है? वह उन दोनों की पोल खोल सकती थी. इसलिए किसी न किसी तरह उस का मुंह बंद कराना था.

पिता की लाश को 4 टुकड़ों में देख कर वह वैसे ही सहमी हुई थी, वह तब और सहम गई जब उस की मां ने कहा कि अगर उस ने किसी को इस बारे में बताया तो वह उसे पानी के ड्रम में डुबो कर मार देगी और उस की लाश को भी उस के पापा की तरह काट कर गाड़ देगी.

ये भी पढ़ें- Crime: एक चंचल लड़की की अजब दास्तां

मां की यह धमकी सुन कर वह मासूम बुरी तरह डर गई और जा कर चुपचाप सो गई.

दोनों ने रईस की हत्या की साजिश काफी सोचविचार कर रची थी. तभी तो शाहिदा ने सीमेंट, टाइल्स और घर की मरम्मत का सामान पहले से ही मंगा कर रख लिया था.

रईस को इस सब का बिलकुल पता नहीं था. लेकिन जब उस ने इस सामान को देखा था, तब शाहिदा से पूछा जरूर था. शाहिदा ने कहा था कि वह किचन की मरम्मत कराना चाहती है. रईस को यह तो शक था नहीं कि शाहिदा उस की हत्या भी करवा सकती है, इसलिए उस ने शाहिदा की बात पर विश्वास कर लिया था.

अब रईस ठिकाने लग चुका था. उस की हत्या हो चुकी थी और उसी घर के किचन में दफन है, यह बात शाहिदा, उसकी बेटी और अमित के अलावा किसी और को पता नहीं थी.

लेकिन यह भी सच है कि हत्यारा कोई न कोई सबूत अवश्य छोड़ देता है. ऐसा ही रईस की हत्या के मामले में भी हुआ.

शाहिदा ने अमित के साथ मिल कर जो किया था, उस की मासूम बेटी ने सब देख लिया था, जिस की वजह से केस खुल गया. शातिर खिलाड़ी शाहिदा से पूछताछ के बाद पुलिस ने अमित को भी गिरफ्तार कर लिया.

ये भी पढ़ें- Manohar Kahaniya: शैली का बिगड़ैल राजकुमार

थाने में शाहिदा को देख कर अमित ने भी तुरंत अपना अपराध स्वीकार कर लिया. क्योंकि उसे पता था कि पुलिस को सारी सच्चाई पता चल चुकी है. इस के बाद सारी काररवाई पूरी कर थाना दहिसर पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

Satyakatha: नफरत की विषबेल- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

हैदराबाद के जुबली हिल्स थाने के इंसपेक्टर राजशेखर रेड्डी अपने औफिस में बैठे आगंतुकों से मुखातिब हो रहे थे. उन के बीच एक 55 वर्षीय व्यक्ति चिंतित और परेशान सा बैठा हुआ था. इंसपेक्टर रेड्डी ने उस से पूछा, ‘‘हां बताइए, यहां कैसे आना हुआ?’’

‘‘सर, मेरा नाम कावला अनाथैया है.’’ उस व्यक्ति ने अपना परिचत देते हुए कहा, ‘‘मैं यूसुफगुड़ा का रहने वाला हूं.’’

‘‘हूं.’’

‘‘सर, मेरी पत्नी कमला बैंकटम्मा 2 दिनों से लापता है. मैं ने उसे अपने स्तर पर हर जगह खोजने की कोशिश की, लेकिन कहीं पता नहीं चला. मैं बहुत परेशान हूं. मेरी पत्नी को ढूंढने में मेरी मदद कीजिए, सर. मैं आप का जीवन भर आभारी रहूंगा.’’

‘‘क्या उम्र होगी आप की पत्नी की?’’ कुछ सोचते हुए इंसपेक्टर रेड्डी ने कावला से सवाल किया.

‘‘यही कोई 50 साल.’’

‘‘50 साल!’’ जबाव सुन कर वह चौंक गए, ‘‘फिर कहां गायब हो सकती हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप दोनों के बीच झगड़ा हुआ हो और वह नाराज हो कर घर छोड़ कर चली गई हों?’’

‘‘नहीं साहब, हमारे बीच कोई झगड़ा नहीं हुआ.’’ कावला अनाथैया दोनों हाथ जोड़ बोला, ‘‘कह रही थी काम से जा रही हूं शाम तक लौट आऊंगी. शाम होने के बाद भी जब घर नहीं लौटी तो चिंता हुई. मैं ने अपनी जानपहचान वालों के वहां फोन कर के पता किया लेकिन वह कहीं नहीं मिली.’’

‘‘ठीक है, एक एप्लीकेशन लिख कर दे दीजिए. उन्हें खोजने की हरसंभव कोशिश करेंगे.’’

‘‘ठीक है, साहब. मैं अभी लिख कर देता हूं.’’ उस के बाद कावला अनाथैया कक्ष से बाहर निकला और एक तहरीर थानाप्रभारी रेड्डी को दे दी.

इंसपेक्टर राजशेखर रेड्डी ने गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर के जांचपड़ताल शुरू कर दी. यह बात पहली जनवरी, 2021 की थी.

पुलिस बैंकटम्मा की तलाश में जुट गई थी. 3 दिनों की तलाश के बाद भी बैंकटम्मा का कहीं पता नहीं चला तो पुलिस ने जिले के सभी थानों में उस की गुमशुदगी के पोस्टर चस्पा करा दिए और पता बताने वाले को उचित ईनाम देने की घोषणा भी की.

बात 4 जनवरी, 2021 की है. इसी जिले के घाटकेसर थानाक्षेत्र के अंकुशपुर गांव के निकट रेलवे ट्रैक के पास एक 50 वर्षीय महिला की लाश पाई गई. लाश की सूचना पा कर घाटकेसर पुलिस मौके पर पहुंच गई और आवश्यक काररवाई में जुट गई.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: दो नावों की सवारी

महिला के शरीर पर किसी प्रकार का कोई चोट का निशान नहीं था. लाश की पुलिस ने सूक्ष्मता से पड़ताल की तो उस के गले पर किसी चौड़े चीज से गला घोंट कर हत्या किए जाने का प्रमाण मिला था. यह देख कर पुलिस दंग रह गई थी.

दरअसल, 25 दिन पहले 10 दिसंबर, 2020 को साइबराबाद थानाक्षेत्र के बालानगर के एक कैंपस के पास 40-45 साल की एक महिला की लाश पाई गई थी. हत्यारे ने उस महिला की भी इसी तरह गला घोंट कर हत्या की थी और उस की लाश सुनसान कैंपस में फेंककर फरार हो गया था.

दोनों महिलाओं की हत्या करने का तरीका एक जैसा था. लाश को देख कर यही अनुमान लगाया जा रहा था कि दोनों महिलाओं का हत्यारा एक ही है.

बहरहाल, पुलिस यही मान कर चल रही थी कि हत्यारे ने महिला की हत्या कहीं और कर के लाश छिपाने के लिए यहां फेंक दी होगी. चूंकि जुबली हिल्स पुलिस ने कावला अनाथैया की पत्नी कमला बैंकटम्मा की गुमशुदगी के पोस्टर जिले के सभी थानों में चस्पा कराए थे.

उस पोस्टर वाली महिला की तसवीर से काफी हद तक इस महिला का चेहरा मिल रहा था तो साइबराबाद पुलिस ने जुबली हिल्स पुलिस को फोन कर के मौके पर बुला लिया, ताकि लाश की शिनाख्त आसानी से कराई जा सके.

सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद जुबली हिल्स पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. लाश की पहचान के लिए पुलिस अपने साथ कावला अनाथैया को भी साथ लेती आई थी.

लाश देखते ही कावला अनाथैया की चीख निकल गई. उन्होंने उस लाश की पहचान अपनी पत्नी कमला बैंकटम्मा के रूप में की.

लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेजवा दिया और गुमशुदगी को हत्या की धारा 302 में तरमीम कर अज्ञात हत्यारे के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत कर लिया.

कमला बैंकटम्मा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट अगले दिन यानी 5 जनवरी, 2021 को आ गई थी. रिपोर्ट पढ़ कर इंसपेक्टर राजशेखर रेड्डी चौंक गए थे. रिपोर्ट में बैंकटम्मा की मौत का कारण दम घुटना बताया गया. इस के अलावा उन के साथ दुष्कर्म होने का उल्लेख भी किया गया था.

घटना से 25 दिनों पहले बालानगर क्षेत्र में पाई गई महिला के साथ भी हत्यारे ने दुष्कर्म किया था. दोनों हत्याओं में काफी समानताएं पाई गई थीं. जांचपड़ताल से पुलिस ने पाया कि दोनों हत्याएं एक ही हत्यारे ने की थीं.

इस घटना ने तकरीबन 7-8 साल पुरानी घटना की यादें ताजा कर दी थीं. उस समय हैदराबाद के विभिन्न इलाकों में ऐसी ही महिलाओं की लाशें पाई जा रही थीं, जिस में हत्यारा महिला के साथ दुष्कर्म करने के बाद उस की गला घोंट कर हत्या कर देता था.

काफी खोजबीन के बाद पुलिस ने उस सिरफिरे हत्यारे को ढूंढ निकाला था. उस किलर का नाम माइना रामुलु के रूप में सामने आया था, जो संगारेड्डी जिले के बोरामंडा इलाके के कंडी मंडल का रहने वाला था. कई सालों तक जेल में बंद रहने के बाद वह हैदराबाद हाईकोर्ट से साल 2018 में जमानत पर रिहा हुआ था. उस के बाद वह भूमिगत हो गया था.

ये भी पढ़ें- धोखाधड़ी: न्यूड वीडियो कालिंग से लुटते लोग

पिछली घटनाओं की कडि़यों को पुलिस ने इन घटनाओं से जोड़ कर देखा तो आईने की तरह तसवीर साफ हो गई. सभी हत्याओं की कडि़यां चीखचीख कर कह रही थीं कि सिरफिरा हत्यारा माइना रामुलु ही इन हत्याओं को अंजाम दे रहा है.

पुलिस कमिश्नर अंजनी कुमार ने हैदराबाद टास्क फोर्स, जुबली हिल्स पुलिस और घाटकेसर पुलिस को खूंखार किलर माइना रामुलु को गिरफ्तार करने के लिए लगा दिया.

पुलिस की तीनों टीमें दिनरात रामुलु के ठिकानों पर छापा मार रही थीं, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चल रहा था. आखिरकार पुलिस की मेहनत रंग लाई. 22 दिनों बाद यानी 26 जनवरी, 2021 को पुलिस खूंखार सीरियल किलर माइना रामुलु को जुबली हिल्स इलाके से गिरफ्तार करने में कामयाब हो गई.

अगले भाग में पढ़ें- रामुल की पत्नी ने दिया धोखा

Satyakatha: दो नावों की सवारी- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

पूजा अस्के अपने घर के रोजमर्रा के काम कर रही थी, तभी किसी ने दरवाजे पर घंटी बजाई. ‘कौन आ गया’ कहते हुए वह दरवाजे

की ओर बढ़ी. जैसे ही उस ने फ्लैट का दरवाजा खोला तो सामने खड़े 2 युवकों को देख कर उस के चेहरे पर मुसकान थिरक उठी थी. क्योंकि दोनों युवक उस के देवर थे. पूजा दरवाजा बंद कर दोनों को अंदर कमरे में ले आई. दोनों युवकों में से एक का नाम राहुल अस्के था, जो उस का सगा देवर था जबकि दूसरे का नाम नवीन अस्के था. नवीन राहुल की मौसी का बेटा था. अकसर दोनों कहीं भी साथ ही आतेजाते थे.

जबलपुर के धार मोहल्ले का रहने वाला राहुल अस्के प्रदेश पुलिस में सबइंसपेक्टर था. जबकि उस का बड़ा भाई जितेंद्र अस्के मध्य प्रदेश पुलिस की एक बटालियन में कंपनी कमांडर था. पूजा जितेंद्र अस्के की ही दूसरी पत्नी थी. जितेंद्र पूजा के साथ इंदौर की मल्हारगंज इलाके में स्थित कमला नेहरू कालोनी के रामदुलारी अपार्टमेंट में रहता था. दोनों अपनी भाभी से मिलने आए थे. पूजा उन्हें कमरे में बिठा कर किचन में चली गई. वह थोड़ी देर में दोनों देवरों और अपने लिए ट्रे में 3 प्याली चाय और नमकीन ले कर लौटी.

तीनों साथ बैठ कर नमकीन के साथ चाय की चुस्की ले रहे थे. चाय खत्म हुई तो पूजा राहुल की ओर मुखातिब हुई, ‘‘कैसे हो देवरजी.’’

ये भी पढ़ें- धोखाधड़ी: न्यूड वीडियो कालिंग से लुटते लोग

‘‘ठीक हूं भाभी. आप बताओ, कैसी हो?’’

‘‘एकदम चकाचक, फर्स्टक्लास हूं.’’ चहक कर पूजा बोली, ‘‘मम्मीपापा कैसे हैं? उन की तबीयत कैसी है? घर पर सब खैरियत तो हैं न?’’

‘‘हां…हां, सब ठीक हैं भाभी, और मम्मीपापा भी एकदम ठीकठाक हैं.’’

‘‘और आप..?’’ पूजा ने पूछा.

‘‘एकदम चंगा, शेर की माफिक…’’

राहुल ने इस अंदाज में जवाब दिया था कि सभी अपनी हंसी नहीं रोक पाए और ठहाका लगाने लगे.

कई महीने बाद राहुल अपनी भाभी पूजा से मिलने आया था तो पूजा भी उन के स्वागत में कसर नहीं छोड़ रही

थी. दिल खोल कर उन के आवभगत में लगी रही.

बीचबीच में देवर और भाभी के बीच हंसीमजाक भी होता रहा. 4-5 घंटे का समय कैसे बीत गया, किसी को पता ही नहीं चला. यह बात 24 अप्रैल, 2021 की दोपहर की है.

बात उसी दिन शाम 7 बजे की है. पूजा की पड़ोसन सीमा उस से मिलने उस के कमरे पर पहुंची तो देखा दरवाजे के दोनों पट आपस में भिड़े हुए हैं.

पूजा इतनी देर तक अपना दरवाजा कभी बंद कर के नहीं रखती थी. यह देख कर सीमा को थोड़ा अजीब लगा. फिर बाहर दरवाजे से उस ने कई बार पूजा को आवाज लगाई लेकिन भीतर से कोई हरकत नहीं हुई तो उसे और भी अजीब लगा. सीमा ने दरवाजे को हलका सा धक्का दिया तो किवाड़ अंदर की ओर खुल गए. फिर आवाज लगाती हुई वह उस के कमरे में पहुंच गई, जहां बिस्तर पर पूजा सोती हुई नजर आ रही थी.

सीमा ने फिर से उसे आवाज लगाई लेकिन पूजा ने कोई जवाब नहीं दिया तो उसे कुछ शक हुआ. उस ने उसे हिलाडुला कर देखा तो शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही थी. वह बिस्तर पर अचेत पड़ी थी और उस का शरीर गरम था. यह देख कर सीमा बुरी तरह घबरा गई और वहां से अपने कमरे में वापस लौट आई.

उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? पूजा के घर पर उस के अलावा कोई नहीं था. उस का पति जितेंद्र अस्के जबलपुर स्थित अपने घर गया था.

सीमा ने पूजा के बेहोश होने की जानकारी उस के पति जितेंद्र अस्के को फोन पर दे दी थी. इस के बाद सीमा ने आसपास के फ्लैटों में रहने वाले अपने जानकारों को पूजा के बेहोश होने की जानकारी दे दी. लोगों ने पूजा की हालत देखते हुए फोन कर सरकारी एंबलेंस बुला कर पूजा को अस्पताल ले गए. लेकिन अस्पताल के डाक्टरों ने पूजा को मृत घोषित कर दिया.

ये भी पढ़ें- Crime: करीबी रिश्तो में बढ़ते अपराध

उधर पत्नी की बेहोशी की जानकारी पा कर जितेंद्र अस्के घबरा गया और उसी समय प्राइवेट साधन से जबलपुर से इंदौर चल दिया. सुबह होतेहोते वह इंदौर पहुंच गया था.

जैसे ही अस्पताल में उसे पत्नी की मौत की जानकारी मिली तो वह वहां बिलख कर रोने लगा. लोगों ने किसी तरह उसे सांत्वना दे कर चुप कराया तो उस ने पूजा की मौत की सूचना अपनी ससुराल वालों को दी तो सुन कर जैसे उन के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई.

पूजा की मौत पर सहसा उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि कल तक तो वह अच्छीभली थी, अचानक उस की मौत कैसे हो सकती है. जरूर दाल में कुछ काला है.

पूजा की छोटी बहन दुर्गा को भी बहन की मौत पर शक हो रहा था. वह घर वालों को साथ ले कर अस्पताल पहुंची, जहां पूजा की बौडी पड़ी थी. बहन की अचानक मौत पर  दुर्गा अपने जीजा जितेंद्र अस्के से भिड़ गई.

वह यह कतई मानने को तैयार नहीं थी कि उस की बहन की मौत अचानक हो सकती है. क्योंकि वह बेहद जिंदादिल इंसान थी. वह भलीचंगी थी. उस की कोख में 8 माह का बच्चा पल रहा था. बच्चे को ले कर वह बेहद संजीदा थी. इस मौत को वह चीखचीख कर हत्या बता रही थी.

अस्पताल में हंगामा खड़ा होता देख प्रशासन ने पुलिस को सूचित कर दिया. अस्पताल प्रशासन की सूचना पर थोड़ी देर बाद वहां मल्हारगंज थाने की पुलिस आ गई थी. अस्पताल उसी थानाक्षेत्र में आता था. पुलिस ने लाश अपने कब्जे में ले ली. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो पूजा के गले पर कुछ निशान नजर आए. इस से पुलिस को भी मामला संदिग्ध लगा तो पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

एक दिन बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई. रिपोर्ट में गला दबा कर हत्या किए जाने का उल्लेख किया गया था. यानी मृतका की बहन दुर्गा का शक सच था. पूजा की हत्या की गई थी.

पूजा अस्के उर्फ जाह्नवी की हत्या का आरोप जिस व्यक्ति पर लगाया जा रहा था वह उस का पति जितेंद्र अस्के था. जितेंद्र अस्के कोई मामूली व्यक्ति नहीं था. वह मध्य प्रदेश पुलिस की 34वीं बटालियन का कंपनी कमांडर था. एक पुलिस अफसर पर अपनी पत्नी की हत्या का आरोप मढ़ा जा रहा था. फिर क्या था, शक के आधार पर 26 अप्रैल, 2021 को मल्हारगंज के थानाप्रभारी प्रीतम सिंह ठाकुर ने पूछताछ के लिए जितेंद्र अस्के को थाने बुला लिया.

उसी समय पूजा की बहन दुर्गा भी थाने पहुंची. उस ने थानाप्रभारी प्रीतम सिंह ठाकुर को बताया कि घटना से एक दिन पहले शाम 7 से 8 बजे के बीच में फोन पर उस की पूजा से बात हुई थी. तब पूजा ने बताया था कि जितेंद्र उस के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे हैं. चरित्र पर लांछन लगा कर वह उस के साथ मारपीट करते हैं.

और तो और जीजा ने अपनी पहली शादी के बारे में दीदी से छिपाया था, उन्हें सच्चाई नहीं बताई थी कि वह पहले से शादीशुदा हैं और 2 बच्चों के पिता भी. दुर्गा के बयान ने थाने में सनसनी फैला दी थी. उस के बयान में कितनी सच्चाई थी, यह जांच का विषय था.

फिलहाल, दुर्गा के बयान ने पूजा हत्याकांड से रहस्य का परदा उठा दिया था. पूजा की हत्या निश्चित ही 2 औरतों के बीच की जंग की उपज थी. दोनों औरतों की लड़ाई ने पूजा को मौत के मुंह में ढकेला था.

ये भी पढ़ें- Crime- लव वर्सेज क्राइम: प्रेमिका के लिए

पुलिस हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए जितेंद्र से पूछताछ कर रही थी. कंपनी कमांडर जितेंद्र ने पुलिस को दिए अपने बयान में कहा कि जिस दिन घटना घटी थी उस दिन वह जबलपुर स्थित अपने गांव आया था. पत्नी की हत्या किस ने की, उसे नहीं पता.

पूछताछ के बाद पुलिस ने जितेंद्र को इस हिदायत के साथ छोड़ दिया कि वह शहर छोड़ कर कहीं नहीं जाए और कहीं जाने से पहले इस की सूचना थाने को देनी होगी.

जितेंद्र को छोड़ने के बाद थानाप्रभारी प्रीतम ठाकुर ने उस की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए उस के पीछे पुलिस लगा दी. दुर्गा की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या की धारा में मुकदमा दर्ज कर लिया और जांच की काररवाई शुरू कर दी.

इंसपेक्टर प्रीतम सिंह ठाकुर हत्या की जांच करने के लिए अपनी टीम के साथ जितेंद्र के आवास रामदुलारी अपार्टमेंट पहुंचे. पुलिस ने कमरे की गहराई से छानबीन की.

छानबीन के दौरान पुलिस को कोई ऐसा सुराग हाथ नहीं लगा, जिस से वह हत्यारों तक पहुंचती किंतु पड़ोसियों से की गई पूछताछ से इतना जरूर पता चल गया था कि घटना वाले दिन पूजा से मिलने उस के 2 देवर यहां आए थे. कुछ घंटों बाद वे उस के घर से चले गए थे.

देवरों के जाने के बाद से पूजा के कमरे का दरवाजा लगातार बंद आ रहा था. इस का मतलब पूजा की हत्या उस के देवरों ने मिल कर की थी. हत्या करने के बाद पुलिस से बचने के लिए वे मौके से फरार हो गए. अब तो उन दोनों के गिरफ्तार होने के बाद ही सच का पता चल सकता था.

इस के बाद पुलिस ने अपने मुखबिर तंत्र से पता लगा लिया कि कंपनी कमांडर जितेंद्र अस्के की 2 शादियां हुई थीं. पूजा आस्के उस की दूसरी पत्नी थी और उस ने प्रेम विवाह किया था. धोखे में रखने की वजह से दूसरी पत्नी ने पति जितेंद्र की नाक में दम कर दिया था और पहली पत्नी को छोड़ने के लिए उस पर निरंतर दबाव बनाए हुए थी.

बहरहाल, थानाप्रभारी प्रीतम सिंह ने घटना की सारी सच्चाई एसपी (वेस्ट) महेशचंद जैन और एएसपी (वेस्ट) प्रशांत चौबे को दी तो एसपी महेशचंद ने एएसपी के नेतृत्व में आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए एक टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी प्रीतम सिंह ठाकुर को भी शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने जबलपुर के धार से पूजा के दोनों देवरों राहुल अस्के और नवीन अस्के को हिरासत में ले लिया. दोनों से कड़ाई से पूछताछ की तो राहुल अस्के ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. हत्या करने में नवीन ने बराबर का सहयोग किया था. उस ने बताया कि हत्या की साजिश बड़े भैया जितेंद्र अस्के के सामने रची गई थी.

अगले भाग में पढ़ें- पूजा के घरवाले उससे खुश क्यों नहीं थे?

Satyakatha- सूदखोरों के जाल में फंसा डॉक्टर: भाग 2

आशीष नेमा अपने साथियों भागचंद यादव, राहुल जैन, धर्मेंद्र जाट, सुनील जाट, अजय जाट के साथ मिल कर सूदखोरी का काम करता था. स्थानीय लोग बताते हैं कि जो भी जरूरतमंद इन के चंगुल में फंस जाता, उसे ये सूदखोर दिन दूना रात चौगुना ब्याज लगा कर तबाह कर देते. पैसे न देने पर घर में घुस कर परिवार की महिलाओं की बेइज्जती करते और जान से मारने की धमकी देते.

नरसिंहपुर और आसपास के इलाके के न जाने कितने लोग इन के कर्ज में दब कर बरबाद हो चुके थे. इन सूदखोरों के पास कर्ज देने का कोई वैधानिक लाइसैंस नहीं था. ये तो केवल अपने रसूख और दबंगई के चलते यह धंधा कर रहे थे.

इन सब बातों से अंजान डा. सिद्धार्थ अपने व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए इन सूदखोरों से कर्ज लेने लगे. वे मानते थे कि बैंक से सस्ता लोन मिला है चुक जाएगा. लेकिन वे भूल कर बैठे कि वे उन ठगों के गिरोह की  गिरफ्त में आ गए हैं, जहां कितने ही हाथपैर मारो, दलदल में फंसते जाना है.

सूदखोरों को तो एक दुधारू गाय हाथ आ गई थी. सूदखोरों ने शुरुआत में उन्हें डेढ़दो प्रतिशत के ब्याज पर कर्जा दिया, बाद में यह ब्याज चक्रवृद्धि की तर्ज पर लगने लगा. एक समय ऐसा आया, जब डा. सिद्धार्थ से सूदखोर 120 फीसद तक ब्याज वसूलने लगे. कुछ अवसरों पर तो पैनल्टी की राशि 1 लाख रुपए प्रतिदिन तक हो गई थी.

ये भी पढ़ें- Social media बना ठगी का हथियार!

सिद्धार्थ को सूदखोरों के चंगुल से बचाने के लिए पूरा परिवार मजबूती के साथ खड़ा तो हुआ लेकिन भ्रष्ट सिस्टम के आगे उन की एक न चली.

एक संभ्रांत परिवार का चिराग डा. सिद्धार्थ सूदखोरों के चंगुल में ऐसे फंसे कि उन के पास दुनिया छोड़ने का ही इकलौता विकल्प रह गया था. अपनी धनदौलत, मानसम्मान, जीवन सब कुछ गंवाने के बाद भी वह सूदखोरों के कर्जे तले दबते रहे. खास बात यह है कि बरबादी के इस चक्रव्यूह की रचना आशीष नेमा नाम के उस शख्स ने की थी, जिस ने डा. सिद्धार्थ से अपनी जानपहचान को दोस्ती का रूप दिया, फिर उन्हें लुटवाने के लिए घाघ, माफिया सूदखोरों के पास ले गया.

कोतवाली थाना पुलिस द्वारा इस मामले की विवेचना में यह बात सामने आई कि नरसिंहपुर शहर में लगभग 20 सूदखोरों से संबंध रखने वाला मास्टरमाइंड गुलाब चौराहा निवासी आशीष नेमा था.

डा. सिद्धार्थ को सूदखोरों से मिलवाने का काम आशीष नेमा ने किया था. इस के पहले आशीष ने सिद्धार्थ से जानपहचान बढ़ा कर दोस्ती की. दोस्ती के चलते आशीष ने डा. सिद्धार्थ का दिल जीत लिया था.

दरअसल आशीष को यह बात पता थी कि डा. सिद्धार्थ को पैसों की जरूरत है. इसी बात का फायदा उठा कर उस ने पहले छोटीमोटी रकम दे कर सिद्धार्थ का विश्वास हासिल कर लिया. छोटीमोटी मदद के बाद आशीष और सौरभ रिछारिया ने शहर के नामीगिरामी सूदखोरों से मोटी रकम ब्याज पर उठवा दी.

आशीष और सौरभ रिछारिया ने कर्जा तो दिला दिया, लेकिन ये सिद्धार्थ की मजबूरी का फायदा उठा कर उन्हें ब्लैकमेल करने लगे. अकसर दोनों सिद्धार्थ से ब्लैंक चैक साइन करवा के रख लेते थे और फिर उन के खिलाफ चैक बाउंस का मामला दर्ज कराने की धमकी दे कर उन से अनापशनाप तरीके से वसूली करने लगे.

ये भी पढ़ें- Top 10 Best Crime Stories in Hindi: टॉप 10 बेस्ट क्राइम कहानियां हिंदी में

डा. सिद्धार्थ ने सेकेंडहैंड कारों को बेचने के लिए महिंद्रा फस्ट चौइस नाम से एक एजेंसी की शुरुआत की. इस के लिए उन्होंने 50 लाख रुपए का कर्जा आशीष के माध्यम से दूसरे सूदखोरों से लिया. इस सूदखोरी से मिलने वाली ब्याज की रकम में आशीष नेमा भी पार्टनर रहता. डा. सिद्धार्थ पर जब कर्जा बढ़ता गया तो आशीष नेमा भी अपने असली रंग में आ गया.

डा. सिद्धार्थ की मजबूरी का फायदा उठा कर आशीष ब्याज पर ब्याज वसूलने का काम करने लगा. डा. सिद्धार्थ अपने क्लीनिक से होने वाली सारी आमदनी इन्ही सूदखोरों को देते रहे, मगर उन का कर्जा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था, क्योंकि सूदखोरों ने ब्याज की दर 20 से ले कर 120 फीसद तक कर दी थी. उन की एजेंसी की सभी कारें भी सूदखोरों ने हथिया लीं.

पुलिस घटना के सभी पहलुओं की जांच में लगी थी. पुलिस ने जब अपने थाने के रिकौर्ड की पड़ताल की तो एक अहम जानकारी हाथ लगी. करीब 3 साल पहले डा. तिगनाथ फैमिली द्वारा नरसिंहपुर के कुछ सूदखोरों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी.

ये भी पढ़ें- Satyakatha- जब इश्क बना जुनून: भाग 1

6 मई, 2018 को तिगनाथ परिवार के सभी सदस्यों ने तत्कालीन एसपी को एक लिखित शिकायत दे कर बताया था कि नगर के कुछ सूदखोरों ने उन के घर में घुस कर गालीगलौज कर जान से मारने की धमकी दी थी. सबूत के तौर पर तिगनाथ फैमिली ने अपने घर पर लगे सीसीटीवी फुटेज, काल रिकौर्डिंग भी पुलिस को उपलब्ध कराई थी.

इस मामले में 7 मई, 2018 को डा. सिद्धार्थ के अलावा उन के पिता डा. दीपक तिगनाथ, मां और पत्नी ने जबलपुर में तत्कालीन आईजी से मुलाकात कर उन्हें भी सूदखोरों की प्रताड़ना के सबूत दिए थे.

अगले भाग में पढ़ें- डा. सिद्धार्थ तिगनाथ ने  22 अप्रैल को दुनिया से अलविदा कह दिया

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें