Satyakatha: कल्पना की अधूरी उड़ान

 सौजन्य- सत्यकथा

 ऐसा क्या हुआ कि कल्पना की शादी की उड़ान अधूरी ही बन कर रह गई…

उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के थाना एलाऊ क्षेत्र में एक गांव है नगला लालमन. उसी गांव के 2 भाई यशपाल और शेषपाल सुबह 10 बजे किसी काम से जा रहे थे. गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित जल्लापुर निवासी दिनेश यादव के खेत के पास से गुजर रहे थे. तभी उन की नजर खेत में झाड़ी की ओर गई तो वहां का दृश्य देख कर दोनों भाइयों के पैर थम गए.

झाड़ी के पीछे 21-22 साल की युवती की लाश पड़ी थी. पास जा कर देखा तो पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. वह लाश गांव के ही फेरू सिंह की 22 वर्षीय बेटी कल्पना की थी. उस के चारों ओर खून फैला हुआ था. किसी ने गोली मार कर उस की हत्या कर दी थी.

उसी समय दोनों भाइयों ने कल्पना के भाई अवधपाल सिंह को इस बात की जानकारी फोन से दे दी. यह बात अवधपाल ने अपने घर बताने के साथ ही पड़ोसियों को भी बताई.  खबर सुनते ही परिवार में कोहराम मच गया. घरवालों के साथ ही लालमन गांव के लोग खेत की ओर दौड़े.

गांव की युवती को दिनदहाड़े खेतों पर गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया गया था. इस से गांव में सनसनी फैल गई. कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई.

यह 17 मार्च, 2021 की सुबह की बात है. भाई अवधपाल व ग्रामीणों ने पास जा कर देखा तो कल्पना की कनपटी पर गोली मारी गई थी. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी थी.

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सूचना मिलते ही थाना एलाऊ के थानाप्रभारी सुरेशचंद्र शर्मा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. युवती की हत्या की खबर आसपास के गांवों में भी फैल चुकी थी, जिस से वहां देखने वालों की भीड़ जमा हो गई.

लाश देख कर लोग आक्रोशित थे और हंगामा कर रहे थे. थानाप्रभारी ने बिना देर किए अपने उच्चधिकारियों को भी घटना से अवगत करा दिया.

सूचना मिलने पर एसपी अविनाश पांडेय, एएसपी मधुबन सिंह, सीओ (सिटी) अभय नारायण राव के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. एसपी के आदेश पर फोरैंसिक टीम, डौग स्क्वायड की टीम भी वहां पहुंच गई.

उच्चाधिकारियों ने युवती के शव का निरीक्षण किया. शव की दशा इस बात की ओर इशारा कर रही थी कि गोली मारने से पहले उस के साथ मारपीट भी की गई थी.

क्योंकि उस के दाएं हाथ पर चोट के निशान थे, जिन्हें देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वह टूटा हुआ है. गोली बाएं कान के नीचे सटा कर मारी गई थी. इस से लग रहा था कि हत्यारे जानपहचान वाले ही होंगे. चेहरे के चारों ओर खून फैला हुआ था.

पुलिस ने मृतका के घरवालों से बात की. उन्होंने बताया कि कल्पना आज तड़के साढ़े 5 बजे अपने घर से दिशामैदान के लिए निकली थी. लेकिन जब वह 2 घंटे तक वापस नहीं आई तो घर वाले उस की तलाश में जुट गए.

जब उस की तलाश की जा रही थी, तभी उन्हें उस की हत्या की खबर मिली. घर वालों ने बताया कि कल्पना अपने पास मोबाइल रखती थी, लेकिन वह अपना मोबाइल घर पर ही छोड़ गई थी.

पुलिस अधिकारियों ने जब उन से पूछा कि उन की किसी से दुश्मनी या रंजिश तो नहीं है तो कल्पना के भाई अवधपाल सिंह ने बताया कि गांव में उन की किसी से कोई दुश्मनी नहीं है. फिर सवाल यह था कि हत्या किस ने और क्यों की है?

फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से जरूरी सबूत जुटाए. मृतका के कपड़ों से कुछ भी नहीं मिला. हां, उस का दुपट्टा वहीं खेत की मेड़ पर तह बना कर हुआ रखा मिला.

पुलिस का खोजी कुत्ता भी घटनास्थल से कुछ दूरी तक खेतों में गया. इस पर पुलिस ने खेतों की तलाशी की. लेकिन ऐसा कोई सुराग नहीं मिल सका, जिस से हत्यारे का सुराग मिलता. पानी का डिब्बा गायब था.

कई घंटे तक जांच करने के बाद जब पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए शव को उठाना चाहा तो ग्रामीणों ने विरोध किया. उन्होंने कहा कि गुत्थी सुलझने के बाद ही कल्पना का शव उठने दिया जाएगा.

एसपी अविनाश पांडेय ने आक्रोशित ग्रामीणों को समझाया कि मृतका के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर हत्यारों का पता लगाया जाएगा. उन्होंने आक्रोशित लोगों को आश्वासन दिया कि पुलिस शीघ्र ही हत्यारों को गिरफ्तार कर लेगी. उन के आश्वासन के बाद ग्रामीण शांत हो गए. तब पुलिस ने काररवाई कर शव को मोर्चरी भेज दिया.

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मृतका के भाई अवधपाल ने इस संबंध में गांव के ही 2 सगे भाइयों दिनेश और विक्रम के खिलाफ कल्पना की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई. आरोपित दिनेश शिक्षक है और कुरावली क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत है. वहीं उस का भाई विक्रम गांव में रोजगार सेवक है.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस जांच में जुट गई. पुलिस ने दोनों की गिरफ्तारी के लिए उन के घर पर दबिश दी, लेकिन वे घर पर नहीं मिले.

मृतका के घर वालों से पुलिस ने पूछताछ की. लेकिन परिवार के लोग कल्पना की हत्या का कारण नहीं बता सके. जबकि भाई अवधपाल ने गांव के ही 2 लोगों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई थी. अवधपाल ने बताया कि दोनों आरोपित घटना के समय से फरार हैं, इसलिए उन पर शक है.

घर वालों की ओर से बताए गए घटनाक्रम पर पुलिस पूरे तौर पर विश्वास नहीं कर रही थी. युवती की हत्या के मामले में पुलिस की नजर में परिवार के लोग भी शक के दायरे में थे. पुलिस किसी भी तथ्य को नजरंदाज नहीं कर रही थी.

जांच शुरू हुई तो नामजद आरोपियों के खिलाफ कोई भी साक्ष्य नहीं मिला. इस के चलते अन्य पहलुओं पर पुलिस ने जांच शुरू की. घटना का राजफाश करने के लिए सीओ (सिटी) अभय नारायण राय के नेतृत्व में स्वाट और सर्विलांस सहित 4 टीमों को लगाया गया.

शाम तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. इस में गोली से मौत होने के साथ ही मृतका की बांह पर चोट के निशान थे लेकिन बांह की हड्डी नहीं टूटी थी. इस बात से यह स्पष्ट हो गया कि युवती का हत्यारे के साथ संघर्ष हुआ था. इसी के चलते उस की बांह में चोट लगी थी.

पुलिस ने ग्रामीणों से भी इस संबंध में पूछताछ की. पुलिस की जानकारी में आया कि मृतका के गांव के ही एक युवक से प्रेम संबंध थे. पुलिस ने इस बीच कल्पना का मोबाइल फोन कब्जे में ले लिया. काल डिटेल्स की जांच की गई. मोबाइल में एक नंबर ऐसा था, जिस पर सब से ज्यादा बातें होती थीं.

पुलिस ने जब इस संबंध में जानकारी की तो पता चला कि यह नंबर गांव के ही अजब सिंह का है. अजब सिंह की तलाश हुई तो वह गायब था. इस से पुलिस के शक की सुई उस की तरफ घूम गई.

जांच के दौरान पता चला कि अजब सिंह अपनी ससुराल फर्रुखाबाद में है. सर्विलांस के जरिए पुलिस को उस के बारे में अहम सुराग मिलने शुरू हो गए.

दूसरे दिन गुरुवार की रात इंसपेक्टर एलाऊ सुरेशचंद्र शर्मा पूछताछ के लिए उसे ससुराल से थाने ले आए.  पुलिस ने जब उस से पूछताछ शुरू की उस ने युवती के घर वालों पर ही हत्या करने का आरोप लगाते हुए बताया कि जब उस के बुलावे पर कल्पना खेत पर आ गई तो हम लोग झाड़ी की आड़ में बातचीत करने लगे. इसी बीच कल्पना के घर वाले आ गए.

हम लोगों को बातचीत करते देख उन लोगों ने कल्पना के साथ मारपीट शुरू कर दी. जब मैं ने उन्हें रोका तो मेरे साथ भी मारपीट की. कल्पना को गोली मारने के बाद उस के परिवार वाले उसे भी गाड़ी में डाल कर ले गए थे.

एक स्थान पर उसे मुंह बंद करने की हिदायत दे कर वे लोग गाड़ी से उतार कर चले गए थे. राहगीरों ने उसे अस्पताल में भरती कराया. इस के बाद वह अपनी ससुराल चला गया.

इतनी बड़ी घटना के बाद भी पुलिस को घटना की सूचना क्यों नहीं दी? पुलिस के सवालों में वह उलझ गया. पुलिस की सख्ती करने पर फिर उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

अजब सिंह ने बताया कि उसी ने नाराज हो कर अपनी प्रेमिका कल्पना की गोली मार कर हत्या की थी. उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटना में प्रयुक्त बाइक और तमंचा तथा अजब सिंह का मोबाइल भी बरामद कर लिया.

19 मार्च को प्रैस कौन्फ्रैंस में एसपी अविनाश पांडेय ने इस हत्याकांड का खुलासा कर दिया. शादीशुदा और 2 बच्चों के पिता आरोपी अजब सिंह और मृतका के बीच प्रेम संबंध थे.

कल्पना की शादी तय होने की जानकारी मिलने के बाद अजब सिंह बौखला गया था. उस ने कल्पना के सामने हमेशा साथ रहने की फरमाइश रख दी. जब इस बात पर वह राजी नहीं हुई तो उस ने उस की गोली मार कर हत्या कर दी.

इस घटना को औनर किलिंग का मामला बनाने के लिए उस ने ड्रामा रचा, लेकिन पुलिस ने सर्विलांस के आधार पर उसे गिरफ्तार कर लिया. इस संबंध में जो खौफनाक कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

कल्पना का पिता फेरू सिंह दिल्ली में काम करता है. अवधपाल की गांव में खुद की जमीन कम होने के कारण वह उगाही पर गांव के लोगों की जमीन ले कर खेती करता था. गांव के ही अजब सिंह की छोटी उम्र में ही शादी हो गई थी. वह 2 बच्चों का पिता है.  खेतीकिसानी के कारण उस के कल्पना के घर वालों के साथ अच्छे संबंध थे. उस का कल्पना के घर भी आनाजाना था.

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एक दिन अजब सिंह की नजर उस पर पड़ी. कल्पना सुंदर थी. वह उस की सुंदरता देख ठगा सा रह गया. उस ने उसी क्षण उस से दोस्ती करने का निर्णय ले लिया.

अजब सिंह टकटकी लगाए उसे निहारता रहा. कल्पना को भी इस बात का अहसास हो गया कि अजब सिंह उसे देख रहा है. अजब सिंह कसी हुई कदकाठी का युवक था. जवानी की दलहीज पर पहुंची कल्पना का दिल भी उस पर रीझ गया. उसे देख कल्पना का दिल तेजी से धड़कने लगा था.

अब जब भी अजब सिंह कल्पना के घर आता, वह पीने के लिए पानी मांगता. जब कल्पना उसे पानी का गिलास देती वह उस का धीरे से हाथ दबा देता. कल्पना उस के मन की बात जान कर मुसकरा देती. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती हुई फिर प्यार हो गया.

दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर दे दिए थे, जिस से फोन पर भी उन की बातें होने लगीं. इस के बाद उन का प्यार और गहराता गया. उन के प्रेम संबंधों की किसी को भनक तक नहीं लगी.

अजब सिंह के शादीशुदा होने से कल्पना के परिजनों को उस पर शक नहीं हुआ. इसी आड़ में वह लगातार कल्पना से मिलताजुलता रहा और उस पर काफी पैसा खर्च करने लगा.

कल्पना अब जवान हो गई थी. घर वालों को उस की शादी की चिंता होने लगी. घर वालों ने भागदौड़ कर कल्पना की शादी तय कर दी थी. इस की जानकारी अजब सिंह को हो गई थी.

17 मार्च की सुबह साढ़े 5 बजे अजब सिंह ने मैसेज कर कल्पना को मिलने खेत पर बुलाया. वह भी अपने खेतों की सिंचाई के बहाने बाइक से वहां पहुंच गया था.

कुछ ही देर में कल्पना भी आ गई. अजब सिंह ने उस से कहा, ‘‘कल्पना, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. लेकिन अब मैं देख रहा हूं कि जब भी फोन करता हूं तुम्हारा फोन बिजी मिलता है. तुम शायद अपने मंगेतर से ज्यादा बातें करती हो. कल्पना, तुम अपने मंगेतर से बात करना बंद कर दो.’’

अजब सिंह और कल्पना के बीच पिछले 4 साल से दोस्ती थी. दोनों के बीच गहरे प्रेम संबंध थे. अजब सिंह अपनी 2 बीघा जमीन भी प्यार की भेंट चढ़ा चुका था. वह कल्पना पर बहुत पैसा खर्च करता था. उस ने 4 सालों में कई मोबाइल फोन भी ला कर उसे दिए थे.

सब कुछ ठीक चल रहा था. कल्पना के घर वालों ने कल्पना की शादी तय कर दी थी. यह बात प्रेमी अजब सिंह को नागवार गुजरी. उस ने कल्पना से कहा, ‘‘कल्पना, मैं तुम्हें पहले की तरह प्यार करता रहूंगा. तुम्हारी शादी जरूर हो रही है लेकिन तुम शादी के बाद भी मुझ से संबंध खत्म मत करना.’’

‘‘देखो, मेरे और तुम्हारे बीच अब तक जो कुछ था, वह अब सब खत्म हो गया है. अब तुम मुझे फोन और मुझ से मिलने की कोशिश भी मत करना. क्योंकि मेरी शादी होने वाली है. और हां, मैं अपने मंगेतर से बात करनी बंद नहीं करूंगी.’’ कल्पना ने जवाब दिया.

अपनी प्रेमिका की इस बेरुखी से अजब सिंह बौखला गया. उसे डर था कि शादी के बाद उस की मोहब्बत उस से छिन जाएगी. इसी बात को ले कर दोनों के बीच बहस होने लगी. गुस्से में उस ने कल्पना की बांह मोड़ दी, जिस से वह दर्द से कराह उठी और खेत में गिर गई.

इसी बीच अजब सिंह ने तमंचा निकाल कर उस की कनपटी पर रख कर गोली चला दी. कुछ देर तड़पने के बाद कल्पना ने दम तोड़ दिया. इस के बाद अजब सिंह बाइक से वहां से चला गया.

आरोपी अजब सिंह गजब का ड्रामेबाज निकला. उस ने कल्पना के घर वालों को औनर किलिंग में फंसाने के लिए पूरा घटनाक्रम तैयार किया था. उस ने हत्या करने के बाद कुछ दूरी पर अपना मोबाइल तो कुछ दूर जा कर तमंचा फेंक दिया. इस के बाद सीने पर अपने नाखूनों से खरोंच करने के

बाद सिर पत्थर पर मार कर खुद को घायल किया.

फिर उस ने कानपुर नगर के बिल्हौर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के रास्ते में जा रहे राहगीरों की मदद से अपने ऊपर गांव के कुछ युवकों द्वारा मारुति वैन में डाल कर पीटने और यहां फेंकने की बात कह कर स्वास्थ्य केंद्र में भरती हो गया. वहां से खुद को कन्नौज के एक अस्पताल में रेफर कराया, जहां से अपनी ससुराल फर्रुखाबाद आ गया.

अपने ऊपर हमले की झूठी अफवाह फैलाई. पुलिस को उस की यह कहानी समझ नहीं आई थी. कल्पना के घर वालों को फंसाने में वह कामयाब होता,

इस से पहले ही पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने अजब सिंह को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस प्रकार 2 निर्दोष भाई जेल जाने से बच गए. कल्पना ने एक बालबच्चेदार व्यक्ति से मोहब्बत कर जो भूल की थी, उस का खामियाजा उसे अपनी जान दे कर चुकाना पड़ा.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

“वायरस अटैक” जैसे एप से सावधान!

ऐसा ही एक वायरस अटैक ऐप कुछ दिनों से स्मार्ट मोबाइल पर बार-बार आकर के आपके सामने प्रस्तुत हो जाता, लोगों को ऐसा महसूस होता कि हमारे बेशकीमती मोबाइल में कोई वायरस अटैक होने वाला है जिसे गूगल ने पकड़ कर हमें यह वायरस अटैक ऐप भेजा है ताकि हम अपने मोबाइल को सेफ कर ले.

ऐसा बारंबार होता है हमारे संवाददाता ने कुछ लोगों से बातचीत करने के पश्चात यह रिपोर्ट तैयार की है जो यह बताती है कि स्मार्ट मोबाइल में कुछ ऐसे ऐप अचानक ही ट्रेंड करने लगते हैं जो सीधे-सीधे आप को भारी क्षति पहुंचा सकते हैं.

सवाल लाख टके का यह भी है कि गूगल जैसी शक्तिशाली आखिर ऐसे ऐप को पहचानऔर उन्हें खत्म करने में इतना समय क्यों लगा देती हैं, जब तक वह लाखों लोगों को नुकसान पहुंचा चुके होते हैं.

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ऐसा ही एक ऐप लाल कलर में हो सकता है आपके मोबाइल पर भी पिछले कुछ दिनों से बार-बार आता होगा आप जब भी मोबाइल पर आए नहीं की वायरल अटैक का भय दिखा करके आपको यह संकेत देता रहा होगा कि आप तुरंत ही इस ऐप को अपलोड करके अपने मोबाइल को बचा लें.

एक शख्स एचडी महंत के मुताबिक जब बार-बार मेरे स्मार्टफोन पर एक ऐप आने लगा तो मुझे यह महसूस हुआ कि हो सकता है मेरे मोबाइल में कहीं वायरस  प्रवेश कर चुका है और मुझे यह संकेत आ रहा है सो मैंने उस ऐप को जैसे टच किया तो खुलने लगा लेकिन मैंने जैसे ही उसे बंद करने का प्रयास किया तो वह ना तो बंद हो रहा था और नहीं डिलीट.

अंततः मैंने अपने फोन को ही बंद किया तब जाकर के उस ऐप से मेरी रक्षा सुरक्षा हो पाई.

दरअसल, अगरचे आप एंड्रॉइड स्मार्टफोन यूजर हैं तो आपको हर हमेशा सावधान रहने की दरकार है.हाल में “गूगल प्ले स्टोर” पर एक ऐसा ऐप मिला है, जो खतरनाक मैलवेयर से ग्रसित था. खास बात यह है कि इस ऐप को Google Play Store पर 5 लाख से ज्यादा डाउनलोड्स मिल चुके थे रिपोर्ट के मुताबिक, ऐप में जोकर मैलवेयर  पाया गया है. आखिरकार गूगल ने चेतावनी जारी की कि सभी यूजर्स यह ऐप तुरंत डिलीट कर दें नहीं तो आपका बड़ा नुकसान हो सकता है. तब तक जाने कितनी देर हो चुकी थी और कितने ही लोग इस खतरनाक एक के शिकार हो चुके होंगे.

यह जानना भी आवश्यक है!

इसी तरह  लाखों की  संख्या में यूजर्स के लिए खतरा पैदा करने वाले एक ऐप का नाम कलर मैसेज  है.

दरअसल, यह ऐप SMS टेक्सिंग को इमोजी के जरिए ज्यादा मजेदार बनाने का दावा करता था. गूगल प्ले स्टोर पर यह ऐप पहली नजर में  बिल्कुल सेफ लगता है. लेकिन मोबाइल सिक्योरिटी सॉल्यूशंस फर्म Pradeo की टीम ने जांच में पाया कि “कलर मैसेज”  में जोकर मैलवेयर से संक्रमित है और  स्मार्टफोन यूजर्स के लिए खतरनाक है.

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सिक्यॉरिटी फर्म ने इस जोकर मैलवेयर को फ्लीसवियर (Fleecewear) की कैटेगरी में डाल दिया है. इस ऐप का मुख्य शातिर काम यूजर्स की परमिशन के बिना ही उन्हें प्रीमियम सर्विस के लिए सब्सक्राइब करना है.  यह मैलवेयर डिटेक्शन लगभग एक साल पुराना है लाखों लोगों के लिए घातक साबित हुआ है अब 16 दिसंबर के बाद इसे गूगल प्ले स्टोर में प्रतिबंधित कर दिया गया है.

मगर सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आपको यह समझना होगा अपनी छठी इंद्री हमेशा जागृत रखनी होगी की कौन सा ऐप आपके लिए काम का है और कौन सा आपके लिए घातक.

Satyakatha: ब्लैकमेलर प्रेमिका- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

अपनी छत पर टहलते हुए बबलू शर्मा की नजर ज्यों ही पड़ोसी की छत पर पड़ी, वह चौंक गए. चौंकने लायक बात ही थी. वहां शशि गौतम चारपाई पर औंधे मुंह पड़ी थी. उस की चारपाई के ठीक नीचे फर्श पर काफी खून फैला हुआ था. यह वाकया 10 जुलाई, 2021 का है.

उन्होंने शशि गौतम का नाम ले कर पुकारा, किंतु कोई जवाब नहीं मिला. फिर किसी अनहोनी की आशंका से दूसरे पड़ोसियों को पुकारने लगे.

कुछ समय में ही आसपास की छतों पर कई लोग आ गए. सभी शशि को इस हालत में देख कर हैरान थे. वे समझ नहीं पा रहे थे कि शशि आखिर इस हालत में क्यों है? वे लोग तमाशबीन बने आंखें फाड़े सिर्फ देखे जा रहे थे. किसी के मुंह से एक आवाज नहीं निकल रही थी.

आखिर में बबलू शर्मा ने ही पहल करते हए बिठूर थाने की पुलिस को इस की सूचना दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह मकसूदाबाद जाने की तैयारी में जुट गए. कानपुर नगर की सीमा से सटा यह इलाका कहने को तो गांव है, लेकिन काफी विकसित मोहल्ला बन चुका है. इसी मोहल्ले में शशि गौतम का मकान है.

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मकान में 2 गेट थे. एक गेट पर अंदर से ताला लगा था, जबकि दूसरे गेट पर बाहर  ताला जड़ा था. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह ने दूसरे गेट का ताला तुड़वाया और पुलिस टीम के साथ मकान की छत पर पहुंचे.

घटनास्थल पर पहुंचने से पहले थानाप्रभारी ने यह खबर पुलिस अधिकारियों को भी दे दी थी. पुलिस के आने तक शशि गौतम के मकान के बाहर काफी भीड़ जुट गई थी. आसपास की छतों पर भी बहुत लोग खड़े आपस में दबी आवाज के साथ बातें कर रहे थे.

छत का दृश्य भयावह था. वहां पड़ी चारपाई पर 30 वर्षीय शशि गौतम की लाश औंधे मुंह पड़ी थी. उस के सीने में गोली मारी गई थी, जो आरपार हो गई थी. पास ही .315 बोर का खोखा पड़ा था. चारपाई के नीचे फर्श पर खून ही खून था, जो आसपास फैल चुका था.

थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह ने पुलिस टीम के सभी सदस्यों के साथ मिल कर घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया. तमाम तरह की जानकारियां जुटा लीं. उन में खून के नमूने, बंदूक की गोली का खोखा, फिंगरप्रिंट, लाश की विभिन्न एंगल से तसवीरें और कुछ लोगों के बयान आदि शामिल थे.

घटनास्थल की छानबीन के दरम्यान ही शशि गौतम के पिता रामदास गौतम, मां शिवदेवी और भाई अनिल भी अपने गांव से वहां पहुंच चुके थे. बेटी का शव देख कर शिवदेवी बदहवास हो गई थी, जबकि भाई अनिल और पिता भी शव देख कर फफक पड़े थे.

एएसपी अभिषेक कुमार अग्रवाल को शशि के पिता रामदास ने पूछताछ में बताया कि उन की बेटी का काफी समय से पति संतोष के साथ मतभेद चल रहा था. इस कारण वह अपनी ससुराल छोड़ कर मायके आ गई थी.

2 साल पहले ही शशि ने मकसूदाबाद में अपना घर भी बनवा लिया था. उस में वह अकेली रहती थी, जबकि उस के 2 बच्चे ननिहाल में और एक बच्चा पति के साथ रहता है.

‘‘तुम्हे किसी पर शक है?’’ एएसपी ने उन से पूछा.

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‘‘इस बारे मैं क्या कह सकता हूं. मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है,’’ रामदास गौतम ने कहा.

इस मामले की पहली सूचना देने वाले मृतका के पड़ोसी बबलू शर्मा से एसपी संजीव त्यागी ने पूछताछ की.

उस ने मामले की जानकारी से एक दिन पहले शाम 7 बजे की कुछ बातें बताईं. कहा कि उस समय शशि मकान की छत पर थी और उस के मोबाइल से ही मास्टर महेशचंद्र शर्मा से बात भी की थी. फोन पर महेशचंद्र को अपने घर बुला रही थी, लेकिन उन्होंने आने से मना कर दिया था.

रात 10 बजे शशि ने महेशचंद्र से एक बार फिर बात करने की कोशिश की थी, लेकिन उन की बात नहीं हो पाई और वह छत पर जा कर सो गई थी. वह भी अपनी छत पर जा कर सो गया था. सुबह उठा तो तो शशि चारपाई पर औंधे मुंह पड़ी दिखी.

‘‘महेशचंद्र शर्मा कौन है, तुम जानते हो उसे?’’ त्यागी ने बबलू से पूछा.

‘‘सर, महेशचंद्र शशि गौतम के मायके सिंहपुर गांव का ही रहने वाला है. उस के साथ शशि काफी घुलीमिली थी. महेश का शशि के पास आनाजाना लगा रहता था. वह जबतब शशि को पैसे की भी मदद करता रहता था.’’

एसपी त्यागी के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. उन्होंने इसी आधार पर अवैध संबंध को ध्यान में रखते हुए शशि की हत्या की जांच शुरू करवा दी.

उन्होंने हत्या का खुलासा करने के लिए एएसपी अभिषेक कुमार अग्रवाल की निगरानी में एक टीम गठित कर दी. सर्विलांस टीम को भी सहयोग के लिए लगा दिया. थानाप्रभारी ने शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिया.

पुलिस टीम ने शीघ्र ही जांच की शुरुआत करते हुए मृतका के पिता रामदास व भाई अनिल के बयान लिए. पड़ोसी बबलू शर्मा से पूछताछ की. बबलू के बयानों के आधार पर महेशचंद्र शर्मा संदेह के दायरे में आ चुका था.

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साइबर ट्रैप: मानवी का भरोसा क्या कायम रह पाया

‘‘ओएमजी, कहां थे यार?’’

‘‘थोड़ा बिजी था, तुम सुनाओ, एनीथिंग न्यू? हाउ आर यू, कैसा चल रहा तुम्हारा काम?’’

‘‘के.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘ओके…शौर्ट फौर्म के.’’

‘‘हाहाहा…तुम और तुम्हारे शौर्ट फौर्म्स.’’

‘‘हाहाहा…को तुम एलओएल भी लिख सकते हो, मतलब, लाफिंग आउट लाउड.’’

‘‘हाहा, वही एलओएल.’’

‘‘पर एक पहेली अब तक नहीं सुलझी, अब टालो नहीं बता दो.’’

‘‘केपी.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘क्या पहेली…हाहाहा…’’

‘‘मतलब कुछ भी शौर्ट.’’

‘‘और क्या?’’

‘‘ओके, मुझे बहस नहीं करनी. अब पहेली बुझाना बंद करो और जल्दी से औनलाइन वाला नाम छोड़ कर अपना ‘रियल नेम’ बताओ?’’

‘‘द रौकस्टार.’’

‘‘उहुं, यह तो हो ही नहीं सकता. कुछ तो रियल बताओ, न चेहरा दिख रहा, न नाम रियल.’’

‘‘हाहाहा…तुम तो बस मेरे नाम के पीछे ही पड़ गई हो, अरे बाबा, यह तो बस फेसबुक के लिए है. जैसे तुम्हारा नाम ‘स्वीटी मनु’ वैसे मेरा नाम.’’

‘‘तो तुम्हारा असली नाम क्या है?’’

‘‘असलियत फिर कभी, बाय.’’

‘‘बाय, हमेशा ऐसे ही टाल जाते हो, कह देती हूं अगर अगली बार तुम ने अपना नाम नहीं बताया और अपना चेहरा नहीं दिखाया तो फिर सीधा ब्लौक कर दूंगी. याद रखना कोई मजाक नहीं.’’

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‘‘एलओएल.’’

‘‘मजाक नहीं, बिलकुल सच.’’

‘‘चलचल देखेंगे.’’

‘‘ठीक है, फिर तो देख ही लेना.’’

हर रोज लड़की लड़के से उस का असली नाम और पहचान पूछती, लेकिन लड़का बात ही बदल देता. लड़की धमकी देती और लड़का हंस कर टाल देता. दरअसल, दोनों को ही पता था कि यह तो कोरी धमकी है, सच के धरातल से कोसों दूर दोनों एकदूसरे से बात किए बगैर रह नहीं पाते थे. कंप्यूटर की भाषा में चैटिंग उन की रोजमर्रा की जीवनचर्या का हिस्सा थी. दोनों के बीच दोस्ती की पहल लड़के की ओर से ही हुई थी. दोनों के सौ से अधिक म्यूचुअल फ्रैंड्स थे. लड़के ने लड़की की डीपी (प्रोफाइल फोटो) देखी और बस फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी. लड़की ने भी इतने सारे म्यूचुअल फ्रैंड्स देख कर रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली. बस, बातचीत का सिलसिला चल निकला, कभी ऊटपटांग तो कभी गंभीर. दोनों एक ही शहर से थे, तो कई कौमन फ्रैंड्स भी निकल आए. एक दिन बातचीत करते हुए लड़की लड़के की पहचान पर अटक गई.

‘‘तुम ने अपना चेहरा क्यों छिपा रखा है यार, एकदम मिस्टीरियस मैन टाइप. बिलकुल अच्छा नहीं लगता, कभीकभी बिलकुल अजनबी सा लगता है.’’

‘‘एक बात बताऊं, मैं भीड़ में या सोशल साइट्स पर बहुत असहज महसूस करता हूं.’’

‘‘हम्म…क्यों? अगर ऐसा है तो सोशल साइट पर क्यों हो?’’

‘‘बिजनैस की वजह से यहां होना मजबूरी है.’’

‘‘ओके, ठीक है पर हम लोग इतने समय से एकदूसरे से बातें कर रहे हैं. हम दोनों के बीच राज जैसा तो कुछ होना नहीं चाहिए. मुझे तो अपना चेहरा दिखा ही सकते हो, प्लीज.’’

इस बार लड़का उस के आग्रह को टाल नहीं पाया. बिना नानुकुर के उस ने अपनी फोटो भेज दी.

‘‘ओएमजी. इस युग में भी इतनी घनी मूंछें, यहां आने के बाद तो सब की मूंछें सफाचट हो जाती हैं, एलओएल.’’

‘‘अच्छा, एक बात बताओ तुम्हारा नाम स्वीटी है या मनु?’’

‘‘गेस करो.’’

‘‘उम्म्म…स्वीटी.’’

‘‘नहीं… मानवी नाम है मेरा. सहेलियां मनु कह कर बुलाती हैं. तुम्हारा नाम भी मनु ही है न?’’

‘‘नहीं….मानव नाम है, एलओएल. ओके, बाद में बातें करते हैं, मीटिंग का समय हो गया है.’’

‘‘ओके, बीओएल.’’

‘‘अब ये बीओएल का मतलब क्या हुआ?’’

‘‘बैस्ट औफ लक, बुद्धू.’’

‘‘ओके, बाय.’’

‘‘मतलब कुछ भी तो शौर्टकट.’’

‘‘हां…हाहाहा…बाय.’’

छोटे शहरों से युवक जब महानगरों का रुख करते हैं तो दोस्तों की संगत में सब से पहली कुर्बानी मूंछों की ही होती है. भले ही जवानी कब की गुजर गईर् हो, पर मूंछें छिलवा कर जवान दिखने की ख्वाहिश बनी रहती है. इस मामले में मानव थोड़ा अलग था. उसे अपनी मूंछें बेहद प्रिय थीं. बड़े शहर ने उस की मूंछों को नहीं छीना था. अपने सपनों को मूर्तरूप देने के लिए वह घर से पैसे लिए बिना महानगर भाग आया था. अपनी मेहनत और लगन से उस ने नौकरी तो पा ली, लेकिन मूंछें कटने नहीं दी. घनी मूंछें उस के चेहरे पर फबती थीं.

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वास्तविक दुनिया में वह महिलाओं से दूर रहता था. उन से जल्दी घुलमिल नहीं पाया था, लेकिन आभासी दुनिया में महिलाओं से चैटिंग और फ्लर्टिंग करना उस की आदत थी. लफ्फाजी में उस से कोई नहीं जीत पाता था. उस की इसी काबिलीयत पर महिलाएं रीझ जाती थीं.

मानवी और मानव दोनों के नाम बिलकुल एक से थे, लेकिन दोनों एकदूसरे से एकदम अलग थे. जहां मानव किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लेता, चाहे वह रिश्ते की ही क्यों न हो, वहीं मानवी के लिए छोटीछोटी चीजें भी महत्त्वपूर्ण हुआ करती थीं. वह टूट रहे रिश्तों को जोड़ने की कोशिश में लगी रहती. उस ने अपने मातापिता को अलग होते देखा था. वह अपनों के खोने का दर्द अच्छी तरह जानती थी.

उसे लगता था कि मर रहे रिश्ते में भी जान फूंकी जा सकती है, बशर्ते सच्चे दिल से इस के लिए कोशिश की जाए. मानवी और मानव की रुचि लगभग एक सी थीं. दोनों को ही पढ़ने और नाटक का शौक था. शेक्सपियर और उन का लिखा ड्रामा रोमियोजूलिएट दोनों के ही पसंदीदा थे. चैटिंग करते हुए वे घंटों रोमियोजूलिएट के संवाद बोलते हुए उन्हें जी रहे होते.

उन दोनों के कुछ चुनिंदा दोस्तों को इस की भनक लग चुकी थी. दोनों के कौमनफ्रैंड्स उन्हें रोमियोजूलिएट कह कर छेड़ने लगे थे.

मानव और मानवी दोनों हमउम्र थे. वे एक ही शहर के रहने वाले थे और महानगर में अपना भविष्य संवार रहे थे. मानवी भी उसी महानगर में नौकरी कर रही थी, जहां मानव की नौकरी थी. शुरुआत में हलकीफुलकी बातचीत से शुरू होने वाली चैटिंग धीरेधीरे 24 घंटे वाली चैटिंग में बदल गई थी. कभी स्माइली, कभी इमोजी, कभी साइन लैंग्वेज तो कभी हम्म… नजदीकियां बढ़ीं और बात वीडियो कौलिंग तक पहुंच गई.

दोनों साइबर लव की गिरफ्त में आ चुके थे. अब तक साक्षात मुलाकात यानी आमनासामना नहीं हुआ था, लेकिन प्यार परवान चढ़ चुका था. साइबर दुनिया में एकदूसरे की बातों का वैचारिक विरोध करते हुए एक समय ऐसा आया जब दोनों एकदूसरे के कट्टर समर्थक हो गए. पहली बार दोनों एक कौफी शौप पर मिले. मोबाइल पर दिनरात चाहे जितनी भी बातें कर लें पर इस पहली मुलाकात में मानव की नजरें लगातार झुकी रहीं. मानवी की तरफ उस ने नजर उठा कर भी नहीं देखा. यही नहीं, उस से बातें करते हुए मानव के हाथपांव कांप रहे थे, जो लड़का सोशल नैटवर्किंग साइट पर इतना बिंदास हो, उस का यह रूप देख कर मानवी की हंसी रुक नहीं रही थी और मानव अपनी झेंप मिटाने के लिए इधरउधर की बातें करने और जबरदस्ती चुटकुले सुनाने की कोशिश कर रहा था. बीतते समय के साथ मानवी का मानव पर भरोसा गहरा होता चला गया.

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दुनिया से बेखबर दोनों ने उस महानगर में एकसाथ, एक ही फ्लैट में रहने का निर्णय ले लिया. अब वे दोनों एकदूसरे के पूरक और साझेदार बन गए थे. मानव कभी खुल कर नहीं हंसता था. और मानवी की खुशी अकसर मानव के होंठों पर छिपी मुसकान में फंस कर रह जाती. गरमी अपने चरम पर थी, पर इश्क के मौसम ने दोनों के एहसास ही बदल डाले थे. एक रोज जब गरमी के उबाऊ मौसम से ऊब कर सूखी सी दोपहर उबासी ले रही थी. पारा 40 डिगरी पहुंचने को था. गरमी से बचने के लिए लोग अपने घरों में दुबके पड़े थे. प्यासी चिडि़यां पानी की खोज में इधरउधर भटक रही थीं. उस रोज दोनों ही जल्दी घर चले आए थे. उस उबाऊ और तपती दोपहरी में सारे बंधन टूट गए. उमस और इश्क अपने उत्कर्ष पर था.

उस दिन घर, घर नहीं रहा पृथ्वी बन गया और मानवमानवी पूरी पृथ्वी पर अकेले, बिलकुल आदमहौआ की तरह. तृप्त मानव गहरी नींद सो गया, लेकिन मानवी की आंखों में नींद नहीं थी. मानवी के होंठों पर मुसकान तैर गई. देर तक उस सुखद एहसास को वह महसूस करती रही.

उस दिन मानवी को एक पूर्ण महिला होने का एहसास हुआ. उस का अंगअंग खिल चुका था, चेहरे पर कांति महसूस हो रही थी. चाल में अल्हड़पन की जगह लचक आ गई थी. उन दोनों के बीच कोई कमिटमैंट नहीं था, कोई सात फेरे और वचन नहीं…. न ही मांग में सिंदूर या मंगलसूत्र का बंधन, लेकिन एक भरोसा था. उसी भरोसे पर तो मानवी ने अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया.

मानवी की दुनिया अब मानव के इर्दगिर्द सिमटने लगी थी. उसे अब सोशल साइट्स पर महिलाओं के संग मानव की फ्लर्टिंग पसंद नहीं आती थी. इस पर मानवी अकसर अपना गुस्सा जाहिर भी कर देती और मानव खामोश रह जाता.

छोटे शहर की यह लघु प्रेमकथा धीरेधीरे बड़ी कहानी में बदलती जा रही थी. मानव की बुलेट की आवाज मानवी दूर से ही पहचान जाती. जब दोनों अपने शहर जाते तो ये बुलेट ही थी जो दोनों को मिलवा पाती. मानव की बुलेट धड़धड़ाती, मानवी की खिड़की पर आ जाती. एकदूसरे की एक झलक पाने के लिए बेताब दोनों के होंठों पर मुसकान थिरक उठती. दोनों आपस में अकसर वैसे ही बातें करने लगते जैसे की सचमुच के रोमियोजूलिएट हों. दोनों की लवलाइफ भी बुलेट की तरह ही तेज गति से भाग रही थी, अंतर सिर्फ इतना था कि बुलेट शोर मचाती है और यह बेहद खामोश थी. दिन बीत रहे थे. कुछ करीबी दोस्तों के सिवा उन दोनों के इस सहजीवन की खबर किसी को नहीं थी.

उन्हें एकसाथ रहते 2 साल हो गए थे. एक दिन मानवी के मोबाइल पर उन दोनों की एक अंतरंग तसवीर किसी अनजान नंबर से आई. यह देख मानवी के होश उड़ गए. वह इस बारे में बात करने के लिए मानव को ढूंढ़ने लगी, पर मानव उसे पूरे घर में कहीं नहीं मिला. उस का फोन भी स्विच औफ आ रहा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उन की यह तसवीर किस ने ली. इतनी अंतरंग तसवीर या तो वह खुद ले सकती थी या फिर मानव.

उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह तसवीर भेजने वाले तक पहुंची कैसे? उस ने तसवीर भेजने वाले नंबर पर फोन लगाया पर वह भी स्विच औफ था. उस के बाद मानवी ने एक कौमनफ्रैंड को फोन कर के सारी बातें उसे कह सुनाईं. उस ने थोड़ी ही देर में इस संबंध में बहुत सारी ऐसी सूचनाएं मानवी को दीं, जिस से उस के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. उस ने बताया कि उन दोनों की और भी ऐसी कई तसवीरें व वीडियोज मानव ने एक साइट पर अपलोड कर रखे हैं.

‘‘मानव ने?’’

‘‘हां, मानव ने.’’

मानवी को यह सुन कर अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. उसे लग रहा था कि शायद उन दोनों के रिश्ते को वह कौमनफ्रैंड तोड़ना चाहता है, इसलिए ऐसा कह रहा है, लेकिन फिर मानव का फोन स्विच औफ क्यों आ रहा है? ऐसा तो वह कभी नहीं करता है. अब मानवी को पूरी दुनिया अंधकारमय लगने लगी. उसे अपने उस दोस्त की बातों पर यकीन होेने लगा था. क्या इसलिए उस ने कभी खुल कर अपने प्यार का इजहार नहीं किया? वह फूटफूट कर रोने लगी. ‘‘मैं मान नहीं सकती, ही लव्स मी, ही लव्स मी यार,’’ मानवी ने चिल्लाते हुए कहा. सिसकियों की वजह से उस के शब्द अस्पष्ट थे. जब अंदर का तेजाब बह निकला तो वह पुलिस स्टेशन की ओर चल पड़ी. शिकायत दर्ज करवाने के दौरान उसे कई जरूरी गैरजरूरी सवालों से दोचार होना पड़ा. मानवी हर सवाल का जवाब बड़ी दृढ़ता से दे रही थी.

बात जब बिना ब्याह के सहजीवन की आई और महिला कौंस्टेबल उसे ही कटघरे में खड़ी करने लगी, तो उस के सब्र का बांध टूट गया. उस का दम घुटने लगा. वह वहां से उठी और घर के लिए चल पड़ी. उस दिन हर नजर उसे नश्तर की तरह चुभ रही थी, सब की हंसी व्यंग्यात्मक लग रही थी. उस दिन उसे सभी पुरुषों की आंखों में हवस की चमक दिख रही थी. मानवी शर्म से पानीपानी हुए जा रही थी. किसी से नजर मिलाने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. घर पहुंचने के साथ ही उस ने मानव पर चिल्लाना शुरू कर दिया. क्षोभ और शर्मिंदगी से वह पागल हुई जा रही थी. हर कमरे में जा कर वह मानव को ढूंढ़ रही थी, लेकिन मानव तो कहीं था नहीं. वह तो वहां से जा चुका था, हमेशा के लिए.

आभासी दुनिया से शुरू हुआ प्यार आभासी हो कर ही रह गया. उसे दुनिया के सामने नंगा कर मानव भाग चुका था. इस धोखे के लिए मानवी बिलकुल तैयार नहीं थी. उस ने संपूर्णता के साथ मानव को स्वीकार किया था. वह मानव के इस ओछेपन को स्वीकार नहींकर पा रही थी. 2 साल तक दोनों सहजीवन में रहे थे. मानवी उस की नसनस से वाकिफ थी, लेकिन ऐसे किसी धोखे की गंध से वह दूर रह गई. उसे आत्मग्लानि हो रही थी, दुख हो रहा था. वह दोबारा पुलिस के पास नहीं जाना चाहती थी. घर पर कुछ बता नहीं सकती थी.

मानव ने जो किया उस की माफी भी संभव नहीं थी. मानवी ने सोशल मीडिया के जरिए मानव को ट्रैक करना शुरू किया. जालसाजी करने वाला शख्स हमेशा अपने बचाव की तैयारी के साथ आगे बढ़ता है. मानव भी फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्वीटर सब की पुरानी आईडी को ब्लौक कर नई आईडी बना चुका था. लेकिन मानवी भी हार मानने वाली नहीं थी. एक पुरानी कड़ी से उस का नया प्रोफाइल मिल गया. मानवी ने अपना एक नकली प्रोफाइल बनाया और उस से दोस्ती कर ली. नकली प्रोफाइल के जरिए उस ने मानव को मजबूर कर दिया कि वह उस से मिले. एक बार फिर मानव आत्ममुग्ध हुआ जा रहा था. मिलने की बात सोच कर बारबार वह अपनी मूंछों पर ताव दे रहा था. उस की आंखों में वही शैतानी चमक थी और होंठों पर हंसी थिरक रही थी.

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दोनों के मिलने का स्थान मानव के औफिस का टैरिस गार्डन तय हुआ. मानव बेसब्री से आभासी दुनिया की इस नई दोस्त का इंतजार कर रहा था. एकएक पल गुजारना उस के लिए मुश्किल हो रहा था.

थोड़े इंतजार के बाद मानवी उस के सामने थी. उसे देख कर मानव चौंक पड़ा. जब तक वह कुछ समझ पाता, कुछ बोलता, मानवी बिजली की तेजी से आई और तेजाब की पूरी शीशी उस के चेहरे पर उड़ेल दी. पहले ठंडक और फिर जलन व दर्द से वह छटपटाने लगा.

मानवी पर तो जैसे भूत सवार था. वह चिल्लाती जा रही थी, ‘‘तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद की, अब मैं तुम्हें बरबाद करूंगी. इसी चेहरे से तुम सब को छलते हो न. अब यह चेहरा ही खत्म हो जाएगा.’’ मानव अवाक रह गया. उसे इस अंजाम की उम्मीद न थी. उस के सोचनेसमझने की शक्ति खत्म हो गई थी. मानवी चीख रही थी, ठहाके लगा रही थी. मानव का चेहरा धीरेधीरे वीभत्स हो रहा था. वह छटपुटा रहा था.

उस की इस हालत को देख कर मानवी को एहसास हुआ कि वह अब भी उस इंसान से प्यार करती है. उस की नफरत क्षणिक थी, लेकिन प्रेम स्थायी है. उस से उस की यह छटपटाहट बरदाश्त नहीं हो पा रही थी. देखते ही देखते मानवी ने भी उस ऊंची छत से छलांग लगा दी और इस तरह 2 जिंदगियां साइबर ट्रैप में फंस कर तबाह हो गईं.

Satyakatha: फरीदाबाद- नफरत का खतरनाक अंजाम- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

Writer- शाहनवाज

21अक्तूबर, 2021 की रात के करीब साढ़े 11 बजे फरीदाबाद के गोठड़ा मोहब्ताबाद का रहने वाला गगन (26 वर्ष) अपने परिवार के साथ खाटू श्याम के दर्शन कर के घर लौटा था. गगन हर साल इसी समय के आसपास अपने पूरे परिवार के साथ खाटू श्याम मंदिर में दर्शन के लिए जाया करता था. उस मंदिर के प्रति उस की आस्था बहुत थी.

वह इस साल अपनी माता सुमन (50 वर्ष), बहन आयशा (30 वर्ष), छोटे भांजे सक्षम (12 वर्ष) और दोस्त राजन शर्मा के साथ मंदिर में दर्शन कर के लौटा था.

गगन राजन के साथ ही फरीदाबाद सेक्टर 55-56 में प्रौपर्टी डीलिंग और पुरानी गाडि़यों की खरीदफरोख्त का काम करता था. इस से पहले गगन अपने परिवार के साथ फरीदाबाद सेक्टर 55 में किराए पर ही रहता था. लेकिन इसी साल सितंबर में उस ने गोठड़ा मोहब्ताबाद में किराए के एक मकान में, जो कि एक पूर्व सरपंच का मकान है, वहां रहने लगा था. उस के पुराने घर से इस नए मकान के बीच करीब 30 मिनट पैदल की दूरी थी.

21 अक्तूबर को मंदिर से दर्शन कर देर रात घर लौटने की वजह से गगन ने राजन को अपने घर पर ही रुकने का आग्रह किया था, क्योंकि रात बहुत हो चुकी थी और वह अपने इलाके में देर रात होने वाली घटनाओं और वारदातों के बारे में अच्छे से जानता था.

राजन ने भी गगन की बात मान ली और वह रात में उसी के घर रुक गया. देर रात को लंबा सफर कर के लौटे सभी लोग पहले फ्रैश हुए और हलकाफुलका खाना खा कर वे सब सोने के लिए अपनेअपने कमरे में चले गए.

आयशा व उस की मां सुमन मकान में नीचे के कमरे में सोने चली गईं और गगन, राजन व सक्षम पहली मंजिल पर सोने चले गए. सब थकेहारे थे तो हर किसी को जल्दी नींद भी आ गई थी और सभी गहरी नींद में सो भी गए थे. बस सक्षम ही रात को जागा हुआ था.

नींद तो सक्षम को भी तेज आ रही थी, लेकिन वह किसी का बहुत बेसब्री से इंतजार कर रहा था. वह रात को जगे हुए अपने मम्मी के फोन में गेम खेल रहा था. रात के करीब ढाई बजे के आसपास उस का फोन बजा. इस से पहले कि फोन की घंटी हर किसी को नींद से जगा देती कि उस से पहले ही सक्षम ने तुरंत फोन उठा लिया.

यह उस के पिता नीरज चावला (35 वर्ष) का फोन था. सक्षम ने फोन उठा कर फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘हैलो पापा.’’

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नीरज अपने बेटे को पुचकारते हुए बोला, ‘‘अरे मेरा बेटा कैसा है? खाटू श्याम घूम कर आ गए सब? कैसा लगा वहां घूम कर? मजा आया?’’

सक्षम ने फिर से फुसफुसाते हुए अपने पिता के सवालों का जवाब दिया, ‘‘जी पापा. वहां तो खूब मजा आया पापा. काश! आप भी साथ होते और मजा आता. हमें तो काफी रात हो गई थी वहां से वापस आते हुए.’’

ये सुन कर नीरज ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटे. सुनो, जो हमारी बीच बात हुई थी तुम्हें याद है न?’’

सक्षम ने उत्सुकता के साथ कहा, ‘‘जी पापा, मुझे याद है. आप क्या लाए हो मेरे लिए?’’

नीरज ने जवाब दिया, ‘‘वो तो सरप्राइज है मेरे बच्चे. मैं अभी तुम्हारे घर के बाहर ही तो खड़ा हूं. नीचे आ कर दरवाजा खोलो और अपना गिफ्ट ले जाओ. और हां, किसी को इस बारे में बताने की जरूरत नहीं है. ये गिफ्ट स्पैशल तुम्हारे लिए मंगवाया है बाहर से. अब जल्दी से नीचे आ कर अपना गिफ्ट ले लो. इसी बहाने मैं अपने बेटे से भी मिलूंगा.’’

अपने पिता के द्वारा लाए हुए गिफ्ट की बात सुन कर सक्षम के मन में खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. वह तुरंत अपने बिस्तर से इस तरह से उठा कि किसी और को उस के उठने की भनक तक नहीं लगी और वह जल्द ही नीचे दरवाजे की ओर भागा.

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आहिस्ता से सक्षम ने अंदर से लगी दरवाजे की कुंडी खोली और धीरे से दरवाजा खोला. उस ने देखा उस के पिता दरवाजे के ठीक सामने अपने हाथों में एक थैली लिए खड़े थे.

सक्षम के दरवाजा खोलने पर नीरज ने झुक कर उसे पहले अपने गले लगा लिया और फुसफुसाते हुए उस से पूछा, ‘‘कोई जागा तो नहीं बेटा?’’

सक्षम ने भी उसी तरह से नीरज को जवाब दिया, ‘‘नहीं पापा, कोई नहीं जागा.’’

अगले भाग में पढ़ें- नीरज ने मौका देख कर एक गोली अपनी पत्नी की छाती पर दाग दी

Satyakatha: पुलिसवाली ने लिया जिस्म से इंतकाम- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

शिवाजी माधवराव सानप (54) मुंबई पुलिस के नेहरू नगर थाने में हैडकांस्टेबल के पद पर तैनात था. वह पुणे में रहता था. वहीं से रोजाना ड्यूटी के लिए अपडाउन करता था. पुणे से वह बस से पनवेल जाता था, फिर पनवेल से दूसरी बस पकड़ कर कुर्ला पहुंचता और कुर्ला से लोकल ट्रेन के जरिए वह नेहरू नगर थाने पहुंचता. आनेजाने के लिए उस का रुटीन ठीक उसी तरह तय था, जैसे सुबह उठ कर लोग दैनिक काम करते हैं.

इस साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के कारण काफी भागदौड़ रही. दिन भर की थकान के बाद वह उस रात भी कुर्ला स्टेशन से उतरने के बाद पनवेल के लिए बस पकड़ने के लिए लगभग रात के साढ़े 10 बजे सड़क से गुजर रहा था.

तभी सड़क पार करते समय एक तेज रफ्तार नैनो कार ने शिवाजी को इतनी जोर की टक्कर मारी कि उस का शरीर हवा में उछलता हुआ सड़क के किनारे दूर जा गिरा.

इस बीच शिवाजी को टक्कर मारने वाली कार हवा की गति से नौ दो ग्यारह हो गई. शिवाजी सानप गंभीर रूप से घायल हो गया. आनेजाने वाले कुछ राहगीरों ने यह माजरा अपनी आखों से देखा था. लिहाजा वहां मौजूद हुए लोगों में से किसी ने उसी समय पुलिस कंट्रोल रूम को इस की सूचना दे दी.

पहले पीसीआर की गाड़ी आई जिस ने घायल शिवाजी को पास के एक अस्पताल में भरती करा दिया. लेकिन कुछ देर की जद्दोजहद के बाद आखिरकार शिवाजी को मृत घोषित कर दिया गया.

मामला बिलकुल सीधासाधा सड़क हादसे का दिख रहा था, इस में शक की कोई गुंजाइश भी नहीं लग रही थी. लिहाजा पनवेल शहर पुलिस स्टेशन के सीनियर पीआई अजय कुमार लांडगे ने सड़क दुर्घटना का मामला दर्ज करवा दिया.

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शिवाजी के कपड़ों की तलाशी लेने के बाद जेब से उस का महाराष्ट्र पुलिस का परिचय पत्र, आधार कार्ड व अन्य दस्तावेज मिले थे. इस से पुलिस को उस की पहचान कराने में भी ज्यादा जहमत नहीं उठानी पड़ी.

सड़क दुर्घटना का केस दर्ज करने के बाद पनवेल पुलिस स्टेशन ने पुणे में रहने वाले शिवाजी के घर वालों को भी हादसे की खबर कर दे दी. अगली सुबह ही शिवाजी सानप की पत्नी गायत्री अपने भाई व रिश्तेदारों को ले कर पनवेल पुलिस स्टेशन पहुंची, जहां उन्हें हादसे के बारे में बताया गया.

पुलिस ने विभाग का आदमी होने के कारण जल्दी ही शिवाजी के शव का पोस्टमार्टम करवा कर शव उस के परिजनों का सौंप दिया.

1-2 दिन गुजरने के बाद अचानक शिवाजी की पत्नी गायत्री अपने भाई के साथ पनवेल पुलिस स्टेशन पहुंची और सीनियर पीआई अजय कुमार लांडगे से मुलाकात की.

गायत्री ने अपने मन में छिपे शक का इजहार करते हुए कहा, ‘‘सर, मेरे पति का ऐक्सीडेंट नहीं हुआ उन की हत्या की गई है. हत्या भी इस तरह कि लोगों को लगे कि ये पूरी तरह से सड़क दुर्घटना है.’’

यह सुन कर अजय लांडगे के होंठों पर हलकी सी मुसकान तैर गई. वह बोले, ‘‘देखो गायत्री, मैं तुम्हारा दुख समझता हूं. तुम्हारे पति की मौत हुई है और तुम्हारे दिमाग की हालत अभी ठीक नहीं है. लेकिन इस का मतलब ये नहीं कि तुम्हारे पति की हत्या हुई है. भला तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है. सड़कों पर हर रोज ऐसे हजारों ऐक्सीडेंट होते हैं, लेकिन इस का मतलब ये तो नहीं कि सब हत्या कही जाएंगी.’’

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‘‘हां साहब, इस की वजह मैं आप को बताती हूं,’’ कहने के बाद गायत्री ने इंसपेक्टर अजय कुमार लांडगे को जो कुछ बताया, उसे सुन कर लांडगे की आंखें फैल गईं.

कुछ देर शांत रहने के बाद इंसपेक्टर लांडगे ने कहा, ‘‘ठीक है गायत्री, तुम ने जो कुछ बताया, अगर वो सच है तो हम इस की जांच करेंगे. अगर तुम्हारे पति की मौत हत्या है तो तुम्हें इंसाफ जरूर मिलेगा और कातिल जेल की सलाखों के पीछे होगा.’’

इंसपेक्टर लांडगे ने उसी दिन पनवेल डिवीजन के एसीपी भगवत सोनावने को शिवाजी की पत्नी और उस के साले के इस शक के बारे में जानकारी दे कर यह भी बता दिया कि उन्हें क्यों शक है कि शिवाजी की मौत सड़क हादसा नहीं बल्कि मर्डर है.

अगले भाग में पढ़ें- पुलिस टीम को एक और कहानी पता चली.

Manohar Kahaniya: 2 महिलाओं की बलि देकर बच्चा पाने का ऑनलाइन अनुष्ठान- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

ग्वालियर पुलिस एक औरत की लाश की पहचान को ले कर उलझी हुई थी. लाश 21 अक्तूबर, 2021 की सुबह साढ़े 5 बजे के करीब ग्वालियर से आगरा की ओर जाने वाले हाईवे पर स्थित ट्रिपल आईटीएम कालेज के निकट सड़क किनारे मिली थी. हजीरा थाना पुलिस को इस की सूचना एक राहगीर ने दी थी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी आलोक सिंह परिहार एसआई अभिलाख सिंह तोमर, त्रिवेणी राजावत, आनंद कुमार, नरेंद्र छिकारा, हैडकांस्टेबल जयसिंह और मनोज शर्मा को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए थे. तब तक वहां लोगों की अच्छीखासी भीड़ जमा हो गई थी. सभी लाश को ले कर तरहतरह की बातें कर रहे थे.

थानाप्रभारी ने लाश के चेहरे से दुपट्टे को हटवाया. मृतका के गले पर निशान नजर आए. लाश के किसी वाहन से दुर्घटनाग्रस्त होने के कोई ठोस सबूत नजर नहीं आए. कहीं भी खून का एक कतरा नहीं नजर आया और न ही उसे घसीटे जाने का कोई निशान ही दिखा.

इस आधार पर अनुमान लगाया गया कि मृतक की हत्या गला घोंट कर की गई होगी और दुर्घटना दिखाने के लिए उसे सड़क के किनारे फेंक दिया. पहली जरूरत मृतका की शिनाख्त करने की थी.

मृतका चौकलेटी कलर की लैगी और पिंक कुरती पहने हुए थी. उस के पैरों में कोई चप्पल या जूती नहीं थी. शरीर पर कहीं भी खरोंच के कोई निशान नहीं थे.

मामला गंभीर था, इसलिए थानाप्रभारी ने यह सूचना अपने आला अधिकारियों के अलावा क्राइम इन्वैस्टीगेशन और फोरैंसिक टीम को भी दे दी थी.

कुछ समय में ही एसपी अमित सांघी, एडिशनल एसपी हितिका वासल और एसपी (सिटी) रवि भदौरिया भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

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उन्होंने क्राइम सीन को समझने के साथसाथ वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करवाई. इस में उन्हें सफलता मिल गई. लाश की पहचान लक्ष्मी उर्फ आरती मिश्रा के रूप में हुई. यह भी मालूम हुआ कि वह चारशहर के नाका की निवासी थी, लेकिन नरसिंह नगर हजीरा में मंशाराम कुशवाह के मकान में किराए पर रह रही थी.

मृतका की इस संक्षिप्त शिनाख्त के बाद सामान्य औपचारिकताएं पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

हजीरा थाने की पुलिस उसी दिन मृतका के उस निवास पर गई, जहां वह किराए पर रहती थी. वहां उस के बारे में कुछ अन्य जानकारी मालूम हुई. पता चला कि 2 साल पहले उस का पति सुनील दुबे से तलाक हो चुका था और वह अकेली किराए पर घरपरिवार से अलग रहती थी.

उस के बारे में अन्य जानकारियां जुटाने के लिए पुलिस ने अपने तमाम तंत्र फैला दिए. जल्द ही पुलिस को उस के बारे में चौंकाने वाली कुछ जानकारियां मिलीं. उस में एक जानकारी आरती के चालचरित्र के बारे में थी, जबकि एक अन्य जानकारी उस जैसी चालचरित्र वाली मीरा राजावत नाम की औरत के बारे में थी.

दोनों के बारे में कई तरह की बातें सुनने को मिलीं. जैसे वे छिपे तौर पर सैक्स वर्कर का काम करती थीं. उन के लिवइन रिलेशन के पार्टनर थे. उन के संबंध कई अनैतिक काम करने वाले लोगों के साथ थे, आदिआदि…

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इसी के साथ एक और जानकारी इलाके में सक्रिय कुछ वैसे ढोंगी बाबाओं के बारे में भी मिली, जो अकेली रहने वाली औरतों को बेवकूफ बना कर ठगी किया करते थे. हालांकि उन के खिलाफ कोई ठोस सबूत पुलिस को हाथ नहीं लग पाया था.

आरती के बारे में पुलिस को यह भी मालूम हुआ कि उस के कई लोगों के साथ अवैध संबंध थे. यहां तक कि उस की जानपहचान संदिग्ध चरित्र वाली महिलाओं से भी थी. दरअसल, वह एक कालगर्ल ही थी, जो किसी के बुलावे पर ही आतीजाती थी.

पुलिस ने सब से पहले महिला के पास अकसर आनेजाने वाले घासमंडी निवासी एक आटो चालक राहुल को दबोचा. उस ने आरती से जानपहचान की बात तो स्वीकार कर ली, लेकिन उस की हत्या में खुद को निर्दोष बताया.

हालांकि राहुल ने बताया कि उस की मौत के एक सप्ताह पहले ही आटो समय पर नहीं लाने को ले कर आरती से उस की तकरार हो गई थी. उस के बाद वह उस से नहीं मिला था.

रोशनी से पुलिस को मिली अहम जानकारी

आरती के साथ उस का कोई गलत संबंध नहीं था. वह केवल उसे कहीं लाने ले जाने के लिए बुलाती थी. किंतु राहुल ने इतना जरूर बताया कि उस की गतिविधियां संदेह भरी थीं.

कहां जाती थी, क्या करती थी, नहीं मालूम, लेकिन कई बार काफी सजसंवर कर जाती थी. राहुल के बयान के मुताबिक वह उस से मिलनाजुलना बंद कर चुका था. इस का एक कारण उस ने यह बताया कि पैसे को ले कर वह बहुत चिकचिक करती थी.

पुलिस को राहुल से भी आरती की हत्या से संबंधित कोई ठोस सबूत नहीं मिले, सिवाय उस के मोबाइल नंबर के. जांच में वह भी पुलिस संदेह के घेरे से बाहर हो गया. उस के बाद एएसपी हितिका वासन और सीएसपी रवि भदौरिया व आलोक परिहार ने राहुल से मिले आरती के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई.

अगले भाग में पढ़ें- नीरज के फोन से पुलिस को मिलीं खास तसवीरें

Manohar Kahaniya: प्यार के जाल में फंसा बिजनेसमैन- भाग 1

भाजपा नेता और प्रतिष्ठित मानसी की अदाओं और खूबसूरती का दीवाना बन चुके कारोबारी संजीव जैन ने उसे फोन किया, ‘‘यार मानसी, तुम कहां हो? मिलना है…’’

‘‘… लेकिन मैं तो आज ही मेरठ आई हूं.’’ मानसी की आवाज आई.

‘‘मेरठ कब? क्यों गई हो मेरठ? कोई खास बात है क्या?’’ संजीव लगातार बोलता चला गया.

‘‘इतने सवाल एक साथ मत करो. मेरी ससुराल है मेरठ में. मेरी भी तो कुछ पर्सनल है. मैं अपने चाचा के यहां भाई की शादी में आई हूं. कल शाम ही रायपुर से आई थी… कुछ जरूरी बात है तो बताओ, अभी के अभी आती हूं…’’ मानसी मिठास भरी शब्दों में बोली.

‘‘अरे यार, तुम्हारी बहुत याद आ रही है. मैं आज रायपुर पहुंच रहा हूं. सोचा था तुम से भी मिलता चलूं.’’ संजीव जैन ने मानसी के प्रति प्यार दर्शाते हुए धीरे से कहा.

‘‘अच्छा तो ये बात है,’’ मानसी बोली, ‘‘कोई बात नहीं, एक दिन वहां रुक सकते हो तो होटल में ठहरो.’’

‘‘तुम ने न जाने कैसा जादू कर दिया है मुझ पर, जब तक तुम से बात न कर लूं, मिल न लूं, मन नहीं लगता… और तुम से मिले हुए भी तो कई दिन हो गए हैं,’’ संजीव ने कहा.

संजीव की इस बात पर मानसी हंसती हुई बोली, ‘‘मैं भी तो तुम्हें हमेशा याद करती हूं. तुम्हारे इंतजार में कई बार घंटों बैठी रही हूं. और वैसे भी जब तुम ने फोन कर ही दिया है तो मेरी एक छोटी सी प्राब्लम दूर कर दो न प्लीज!’’

‘‘बताओ न प्राब्लम. मेरी तो जान हाजिर है तुम्हारे लिए,’’ संजीव चहकते हुए बोला.

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‘‘अरे, नहींनहीं, मैं भला तुम्हारी जान क्यों मांगने लगी… मेरा एक छोटा सा काम कर दो. मैं जानती हूं तुम वहीं से बैठेबैठे कर दोगे.’’ मानसी बोली.

‘‘काम बोलो तो सही.’’ संजीव बोला.

‘‘अरे! यहां शादी में आई हूं लेनदेन के खर्च में पैसे कम पड़ रहे हैं…’’ मानसी अपनी बात पूरी करने वाली ही थी कि संजीव ने कहा, ‘‘बस, इतनी सी बात… मैं हूं न. अभी ट्रांसफर करता हूं. और हां, 2 दिन तुम्हारे लिए रायपुर में ठहरूंगा.’’ कह कर संजीव ने फोन कट कर दिया और उस के अकाउंट में 20 हजार रुपए ट्रांसफर करने के लिए गूगलपे ऐप खोल लिया.

‘‘चैक कर लो,’’ 2 मिनट बाद संजीव ने दोबारा मानसी को काल किया.

‘‘अरे, चैक क्या करना, मुझे जितना तुम पर भरोसा है, उतना पति पर भी नहीं. रायपुर में मेरा इंतजार करना. कल शाम को मिलती हूं. आज ही ललित 3 दिनों के लिए बाहर जाने के लिए निकला है.’’ मानसी की इस जानकारी से संजीव जैन और भी खुश हो गया. उस ने मानसी के लिए एक गिफ्ट खरीदने के लिए कैब बुक कर ली.

छत्तीसगढ़ के जिला राजनंदगांव शहर की पहचान उस की सांस्कृतिक धरोहरों और साहित्यिक विरासत को ले कर है. यहां मुख्य रूप से कारोबार का काम जैनबंधु संभाले हुए हैं. भारत में उन की गिनती भले ही अल्पसंख्यकों में होती हो, किंतु राजनंदगांव में उन की संख्या बहुतायत में है.

उन का प्रमुख कारोबार राइस, पोहा और दाल मिल का है, उस के लिए उन्होंने बड़ेबड़े कारखाने लगा रखे हैं. वे एक विकसित उद्योग धंधे बने हुए हैं.

इसी शहर के हीरामोती लाइन इलाके में 75 वर्षीय सुरेशचंद्र जैन अपने भरेपूरे परिवार के साथ निवास करते हैं. उन के बड़े बेटे संजीव जैन, जिन की उम्र 56 वर्ष की थी, कुछ माह पहले तक अपने पुश्तैनी व्यवसाय को संभाले हुए थे. साथ ही वह न केवल भारतीय जनता पार्टी से जुड़ कर राजनीति में सक्रिय थे, बल्कि 2 साल पहले नगर पालिका में पार्षद का चुनाव भी जीत चुके थे.

अपने मृदुल व्यवहार और राजनीतिक रसूख के कारण संजीव जैन का शहर में अपना एक विशेष स्थान था. अपने व्यवसाय से समय निकाल कर वह सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी निभाया करते थे. इस वजह से ही उन की गिनती शहर में एक जानीमानी शख्सियत के रूप में होती थी. संयोग से वह अब इस दुनिया में नहीं हैं.

उन के साथ क्या हुआ? वह कैसे इंसान थे? कितने हमदर्द, हर दिल अजीज और प्रिय थे? लोकप्रियता की पहचान और रसूख के पहनावे में वे भीतर से कितने खोखले और खलबली से भरे थे, इस का थोड़ा अंदाजा मानसी के साथ उन की हुई बातचीत से लग ही चुका होगा. आगे क्या हुआ और मानसी से वे कैसे जुडे, इत्यादि के बारे में जानने के लिए संजीव और मानसी के संबंध की तह में जाना होगा, जो इस प्रकार है—

एक दिन संजीव जैन ने कारोबार के सिलसिले में मोबाइल पर उत्तम जैन काल किया. दूसरी तरफ से एक महिला की आवाज सुनाई दी, ‘‘हैलोहैलो! मेरी किस से बात हो रही है? आप कौन?’’

संजीव जैन ने अपने मित्र उत्तम जैन को काल लगाया था, वह सोच में पड़ गया कि उत्तम की जगह मोबाइल पर कालसेंटर वाली सधी हुई मधुर आवाज कैसे आने लगी, कहीं उस ने इस तरह का इंतजाम तो नहीं कर लिया है?’’

‘‘मैं संजीव जैन बोल रहा हूं, मगर आप कौन? मैं ने तो उत्तम भाई को फोन लगाया है.’’ संजीव बोले.

दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘मैं मानसी, मानसी यादव. यह तो मेरा नंबर है. आप ने कैसे लगाया? नंबर कहां से मिला?’’

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परवान चढ़ने लगी दोस्ती

संजीव समझ गए कि उन से कोई गलत नंबर लग गया है. फिर भी झल्लाने की बजाय उन्होंने फोन पर बातों का सिलसिला जारी रखा, ‘‘… मगर यह तो मेरे दोस्त का नंबर है. आप कहां से बीच में आ गईं? लगता है रौंग नंबर लग गया है.’’

‘‘कोई बात नहीं, इसी बहाने एक नई जानपहचान तो हो गई, वरना इस भीड़भाड़ वाली दुनिया में कौन किसी को याद करता है?’’ मानसी का यह अंदाज संजीव को और भी लुभावना लगा.

‘‘रौंग नंबर ही सही, आप से बातें करते हुए अच्छा लग रहा है. लगता है मैडम, आप बहुत ही मिलनसार किस्म की हैं,’’ संजीव तारीफ करते हुए बोले.

‘‘अरेअरे ये क्या कह दिया आप ने मैडम. मैं तो अभी मिस हूं. मिस मानसी यादव.’’ रस घोलती मानसी की इस आवाज ने मानो संजीव पर जादू कर दिया हो. उसे मानसी से बात कर के मजा आने लगा था.

‘‘वैसे आप कौन हैं? मेरा मतलब आप के नाम और काम से है. रहते कहां हैं?’’ मानसी बोली.

मौका नहीं चूकते हुए संजीव ने हंसते हुए कहा, ‘‘ मैं…मैं… संजीव जैन हूं. राजनंदगांव से बोल रहा हूं. मैं एक बिजनैसमैन हूं. भाजपा का सक्रिय कार्यकर्ता भी हूं.’’

इतना सुन कर मानसी तपाक से बोल पड़ी, ‘‘अरे वाह! तब तो आप बड़ी पहुंच वाले हैं, आप से दोस्ती करनी ही चाहिए. आप की बातें सुन कर मुझे पता नहीं क्यों लग रहा है आप एक सज्जन व्यक्ति हैं.’’

उस के बाद संजीव ने उत्तम का वेटिंग काल आने की आवाज सुन कर मानसी को सौरी बोल कर उस का काल कट कर दिया. तब तक उत्तम का काल बंद हो चुका था.

उसे दोबारा काल मिलाते हुए संजीव काफी अच्छा महसूस करने लगा था …चलो, नई जानपहचान के बहाने उन का एक और समर्थक मिल गया. अनजान ही सही, कभी न कभी तो वह उस के कोई काम आएगी ही. उसे भी सामाजिक काम में शामिल किया जा सकता है.

उधर मानसी के मन में भी कुछ ऐसी मेलजोल बढ़ाने की भावनाएं अंकुरित होने लगी थीं. अनजाने में ही सही, लेकिन आज उस की बात धनवान व्यक्ति से हुई थी, जो भाजपा का एक नेता भी है, तो उस की बड़े लोगों से जानपहचान जरूर होगी. फिर उस ने संजीव का नंबर शौर्ट में ‘बीएमएन’ यानी बिजनेसमैन नेता के नाम से सेव कर लिया. यह वाकया साल 2013 का है.

संजीव और मानसी की फोन पर हुई पहली बातचीत कब दोनों के लिए अनंत काल का सिलसिला बन गई, उन्हें पता ही नहीं चला. उन की आपस में अकसर बातें होने लगीं.

मैसेजिंग का दौर भी चलने लगा. एक दिन संजीव को अचानक रायपुर जाना हुआ. उन्होंने तुरंत फोन कर मानसी को मैग्नेटो माल के निकट आने को कहा.

तब तक मानसी भी संजीव जैन से फोन पर बातें करतेकरते काफी खुल चुकी थी. दोनों ‘आप’ से ‘तुम’ पर आ चुके थे. यह कहना गलत नहीं होगा कि वह भी उस की तरफ आकर्षित हो चुकी थी. संजीव के बुलावे पर मैग्नेटो माल के पास पहुंचने में जरा भी देरी नहीं की.

यह दोनों की पहली मुलाकात थी. अभी तक वे एकदूसरे की सिर्फ तस्वीरों से ही पहचानते थे. संजीव अपनी कार में था. उस ने मानसी को अपनी साथ वाली सीट पर बैठा लिया.

पहली डेटिंग रही यादगार

मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाली मानसी के लिए गाड़ी में बैठने का एक सुखद अनुभव था. वह खुश थी. संजीव की पर्सनैलिटी को ले कर जैसी उस ने कल्पना की थी, वह उस से कहीं अधिक बेहतर लग रहा था.

मानसी और संजीव के दिलों में एकदूसरे के लिए कितनी जगह बन चुकी थी, इस से दोनों अनजान थे, लेकिन उन के बीच मधुरता के बीज अवश्य अंकुरित हो चुके थे.

संजीव कार को धीरेधीरे बढ़ाते हुए उस की मुसकराहट की तारीफ कर बैठा, ‘‘आप बहुत खुश दिख रही हैं, सुंदर चेहरे पर मुसकान अच्छी लग रही है… आप ऐसे ही हमेशा रहती हैं?’’

इस के जवाब में मानसी की मुसकान और फैल गई. संजीव दोबारा बोला, ‘‘सच कहूं तो मैं ने नहीं सोचा था कि आप इतनी खूबसूरत और अच्छी दिखती होंगी.’’

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Satyakatha: पति बदलने वाली मनप्रीत कौर को मिली ऐसी सजा- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

शादी के बाद ही उन का बड़ा बेटा गुरमुख सिंह अपनी बीवी को ले कर अलग हो गया था. सुखबीर सिंह ने अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए ड्राइवरी को ही अपना पेशा बनाया था. सुखबीर की शादी के कुछ समय बाद ही हरनाम सिंह भी किसी बीमारी के चलते चल बसा. उस के बाद सुखवीर अपनी पत्नी मनप्रीत कौर के साथ ही अपने पिता के घर में अकेला ही रहने लगा था.

मनप्रीत कौर के साथ शादी हो जाने के बाद दोनों खुशहाल जिंदगी गुजारने लगे थे. सुखवीर सिंह एक सीधेसादे स्वभाव का था. वह कार ड्राइवरी करता था. वह सुबह ही अपनी कार ले कर रोजीरोटी की तलाश में निकल जाता. फिर मनप्रीत कौर घर पर अकेली ही रह जाती थी.

हालांकि सुखवीर सिंह और उस के भाई गुरमुख सिंह का घर एकदूसरे से सटा हुआ था, लेकिन बीच में दीवार होने के कारण दोनों का अपना ही रहना, खानापीना था. जिस कारण मनप्रीत कौर का मन घर से उचटने लगा था.

मनप्रीत कौर और सुखवीर की शादी को 2 साल गुजर गए. लेकिन उन का आंगन फिर भी सूनासूना ही था. जिस कारण दोनों ही परेशान रहने लगे थे. अपनी परेशानी को देखते हुए सुखवीर सिंह ने मनप्रीत कौर को कई डाक्टरों को दिखाया.

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शादी के 2 साल के बाद मनप्रीत एक बच्ची की मां बनी. उन के घर के आंगन में बच्चे की किलकारी गूंजी

तो सुखवीर सिंह की खुशी का ठिकाना न रहा.

लेकिन एक बच्ची की मां बन जाने के बाद भी मनप्रीत कौर का मन घर की तरफ से उखड़ाउखड़ा रहने लगा था. जिस के बाद वह अपनी बेटी परबदीप को साथ ले कर अधिकांश समय अपने मायके में ही गुजारने लगी थी.

मनप्रीत कौर के मायके चले जाने के बाद सुखवीर सिंह के सामने खाना बनाने की दिक्कत आने लगी थी. अपनी परेशानी को देखते हुए उस ने कई बार अपनी बीवी मनप्रीत से घर आ कर रहने को कहा, लेकिन वह कुछ समय के लिए ही अपनी ससुराल रुकती और फिर मायके चली जाती थी. जिस कारण दोनों की जिंदगी में खटास आनी शुरू हो गई थी.

घरगृहस्थी में मनमुटाव के कारण एक दिन मनप्रीत कौर सुखवीर को छोड़ कर घर से अचानक ही गायब हो गई. मनप्रीत कौर के गायब होते ही उस के घर वालों ने उसे हर जगह ढूंढा, लेकिन उस का कहीं भी अतापता नहीं चला.

लेकिन 10-15 दिन बाद वह खुद ही अपने घर चली आई. जिस के बाद दोनों में काफी विवाद भी हुआ. लेकिन फिर भी बच्ची के भविष्य को देखते हुए सुखवीर ने उसे माफ कर दिया और फिर से वह उसी के साथ रहने लगी.

उसी दौरान एक दिन मनप्रीत कौर काशीपुर नगर से अपनी बच्ची के लिए कपड़े खरीदने गई. वहां पर उस की मुलाकात आईसा से हुई. आईसा की कपड़ों की दुकान थी. उस ने वहीं से अपनी बच्ची के लिए कपड़े भी खरीदे. कपड़े खरीदने के दौरान उस ने आईसा से जानपहचान बढ़ा ली.

मनप्रीत कौर देखनेभालने में सुंदर और बोलचाल में तेज थी. तभी आईसा ने उस से जानपहचान बढ़ाते हुए पूछा, ‘‘आप क्या कोई जौब करती हो?’’

‘‘अरे दीदी, क्यों मजाक करती हो. जौब हमारी किस्मत में कहां है.’’ मनप्रीत ने टूटे दिल से जबाव दिया.

‘‘लेकिन एक बात है मनप्रीतजी, आप को कोई भी देख कर यही कहेगा कि आप कोई जौब करती होंगी.’’

‘‘मेरे बारे में कोई कुछ भी समझे. लेकिन शायद मेरी किस्मत बिन स्याही की कलम से लिखी है. किस्मत में एक ड्राइवर लिखा था. जिस के साथ अपनी टूटीफूटी जिंदगी को जैसेतैसे काट रही हूं.’’ मनप्रीत ने आईसा के सामने अपना दुखड़ा रोया.

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‘‘मनप्रीतजी, आप परेशान क्यों हो रही हो. अगर आप चाहो तो मेरी शौप पर आ जाओ. मुझे काफी समय से आप जैसी ही एक लड़की की तलाश है.’’

‘‘दीदी, क्यों मजाक कर रही हो.’’

‘‘नहींनहीं, मैं मजाक नहीं कर रही. अगर आप चाहो तो कल से ही काम पर आ जाओ.’’

आईसा की बात सुनते ही मनप्रीत कौर का चेहरा खिल उठा. उस ने उसी समय आईसा की शौप पर काम करने की हामी भर ली.

मनप्रीत का मायका काशीपुर के पास ही था. उस के बाद वह अपनी बेटी को ले कर अपने मायके आ गई. फिर उस ने बच्ची को अपने मायके में छोड़ा और वह वहीं से आईसा की शौप पर काम करने आने लगी.

कपड़े की दुकान पर काम करने के दौरान ही एक दिन उस की मुलाकात नफीस से हुई. नफीस उस दिन वहां कपड़े खरीदने आया था. उसी मुलाकात के दौरान मनप्रीत ने नफीस की जानकारी लेते ही बता दिया था कि उस का पति भी एक ड्राइवर ही है.  मनप्रीत की सुंदरता को देख कर वह उस का इतना दीवाना हो गया कि उस ने उस का मोबाइल नंबर तक ले लिया था.

मनप्रीत को मायके गए हुए काफी समय हो गया तो सुखवीर उसे बुलाने के लिए ससुराल गया. उसे ससुराल जा कर ही पता चला कि वह काशीपुर में किसी कपड़े की दुकान पर काम करने लगी है.

सुखवीर ने उस से घर चलने को कहा तो उस ने साफ शब्दों में कहा कि उस का मन गांव में नहीं लगता. अगर उसे उस के साथ रहना है तो काशीपुर में कमरा ले कर रह ले.

पत्नी की बात सुनते ही सुखवीर परेशान हो उठा. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह मनप्रीत को कैसे समझाए. उस ने उसे समझाने की कोशिश भी की. लेकिन मनप्रीत ने उस की एक न चलने दी. उस के बाद सुखवीर परेशान हो कर अपनी बेटी परबदीप को साथ ले कर अपने गांव लौट गया.

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Manohar Kahaniya: कातिल घरजमाई- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

गुजरात के जानेमाने शहर बड़ौदा के न्यू समा रोड पर स्थित चंदन पार्क सोसायटी के मकान नंबर सी-48 की तीसरी मंजिल पर तेजस पटेल अपनी पत्नी शोभना और 6 साल की बेटी काव्या के साथ रहता था.

10 अक्तूबर दिन रविवार की रात को तेजस और शोभना की बेटी काव्या मामी के साथ गरबा खेल कर हंसीखुशी से ऊपर आई तो रात के साढ़े 11 बज रहे थे. ऊपर आते समय काव्या ने दूसरी मंजिल पर रहने वाले अपने मामा जितेंद्र बारिया को गुडनाइट कहा था. उस समय वह बहुत खुश थी.

बेटी के आने पर तेजस ने पहले से ला कर फ्रिज में रखी आइसक्रीम निकाली और एकएक आइसक्रीम पत्नी और बेटी को दी तथा एक आइसक्रीम खुद खाई. आइसक्रीम खा कर तीनों सोने के लिए लेट गए.

रात डेढ़ बजे के आसपास तेजस ने दूसरी मंजिल पर रहने वाले अपने साले जितेंद्र बारिया से आ कर बताया कि पता नहीं क्यों शोभना और काव्या उठ नहीं रही हैं? यह सुन कर जितेंद्र पत्नी के साथ तुरंत ऊपर पहुंचा. बहन और भांजी की हालत देख कर जितेंद्र घबरा गया.

पत्नी और बहनोई की मदद से वह बहन और भांजी को पास के ही एक प्राइवेट अस्पताल में ले गया, जहां डाक्टर ने दोनों को देखते ही कहा, ‘‘इन की तो मौत हो चुकी है. इन का अब कुछ नहीं किया जा सकता.’’

इतना सुनते ही जितेंद्र रोने लगा. उस के साथ उस की पत्नी भी रोने लगी थी. पर तेजस की आंखों से एक बूंद भी आंसू नहीं गिरा. वह इस तरह मुंह लटकाए खड़ा था, जैसे वह वहां संवेदना व्यक्त करने आया हो और मरने वालों से उस का कोई खास संबंध न हो.

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मांबेटी की मौत डाक्टर को संदेहास्पद लगी थी, इसलिए डाक्टर ने इस बात की सूचना क्षेत्रीय थाना समा पुलिस को दे दी थी.

उस समय रात के यही कोई ढाई बज रहे थे. फिर भी बात 2 लोगों की संदेहास्पद मौत की थी, इसलिए थानाप्रभारी इंसपेक्टर एन.एच. ब्रह्मभट्ट 2 सिपाहियों के साथ कुछ ही देर में अस्पताल पहुंच गए. डाक्टर की मौजूदगी में उन्होंने लाशों का निरीक्षण किया.

लाशों को देख कर ही लग रहा था कि इन्हें गला दबा कर मारा गया है या फिर इन्हें जहर दिया गया है. पर जहर पीने या खाने से मुंह से झाग निकलता है, जबकि इन दोनों के मुंह से झाग बिलकुल नहीं निकला. उन के होंठ एकदम सूखे हुए थे.

इस के अलावा जहर खा कर मरने वाले के शरीर से जहर की गंध भी आती है. लेकिन यहां ऐसा भी कुछ नहीं था. निरीक्षण के दौरान थानाप्रभारी ने ही नहीं, किसी ने भी इस तरह की कोई गंध नहीं महसूस की थी. हां, शोभना के गले पर नाखून की खरोंच का निशान जरूर साफ दिखाई दे रहा था.

इस के अलावा उस ने गले में जो चेन पहनी थी, उस की रगड़ का भी निशान था. इस से डाक्टर और थानाप्रभारी को लगा कि कहीं गला दबा कर तो इन दोनों की हत्या नहीं की गई?

पर जब इस बारे में मृतका शोभना के पति तेजस से पूछताछ की गई तो उस ने साफ मना कर दिया. उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं अपनी पत्नी और बेटी की हत्या क्यों करूंगा? हम सब तो रात को प्रेम से साथ खाना खा कर रात साढ़े 11 बजे के करीब आइसक्रीम खा कर सोए थे. रात में मैं डेढ़ बजे उठा तो इन लोगों को देख कर मुझे कुछ गड़बड़ लगी. मैं ने शोभना को जगाना चाहा, तो वह नहीं उठी. मैं घबरा गया. नीचे जा कर साले को बुला लाया. उस के बाद हम सभी दोनों को अस्पताल ले आए.’’

‘‘तुम जब रात में उठे तो तुम्हें क्या गड़बड़ लगी, जो तुम पत्नी को जगाने लगे?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, बेटी के सो जाने के बाद मैं उठ कर पत्नी के बगल जा कर लेट गया था. मैं ने उसे जगाना चाहा, पर वह हिली भी नहीं. तब मुझे पता चला कि यह तो बेहोश है. उस के बाद मैं नीचे भागा.’’ तेजस ने बताया.

‘‘यह सब कैसे हुआ?’’ थानाप्रभारी ब्रह्मभट्ट ने अगला सवाल किया.

‘‘सर, मैं क्या बताऊं. मैं भी तो सो रहा था,’’ तेजस ने कहा.

इस के बाद थानाप्रभारी एन.एच. ब्रह्मभट्ट ने तेजस के साले जितेंद्र बारिया से पूछा, ‘‘तुम्हें क्या लगता है, इन की हत्या की गई है या इन्होंने आत्महत्या की है? क्योंकि देखने से ही लग रहा है कि ये स्वाभाविक मौतें नहीं हैं.’’

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जितेंद्र ने रोते हुए कहा, ‘‘सर, मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी बहन ने आत्महत्या नहीं की है. शाम को दोनों बहुत खुश थीं. फिर आत्महत्या करने की कोई वजह भी तो होनी चाहिए. मेरी बहन को कोई तकलीफ नहीं थी, जो वह आत्महत्या करती.’’

‘‘इस का मतलब इन की हत्या की गई है? खैर, इस का भी पता हम लगा ही लेंगे. पहले दोनों लाशों का पोस्टमार्टम करा लें, उस से साफ हो जाएगा कि इन की मौत कैसे हुई है?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

अगले भाग में पढ़ें- जहर से मौत की हुई पुष्टि

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