Hindi Story: चोट – पायल ने योगेश को कैसी सजा दी

Hindi Story: योगेश की निगाहें तो एकटक पायल पर लगी हुई थीं. उस का खूबसूरत चेहरा योगेश की आंखों से हो कर दिल में उतर गया था, जिस से उस के दिल में एक हलचल सी मच गई थी.

योगेश की क्लास के सभी छात्र अपना काम पूरा करने में लगे हुए थे और वह कुरसी पर बैठा एकटक पायल को देखे जा रहा था.

पायल कुछ ही महीने पहले योगेश के स्कूल में आई थी. उस की उम्र 16 साल थी और उस ने 10 वीं क्लास में दाखिला लिया था.

योगेश शहर के एक नामचीन स्कूल में अंगरेजी का मास्टर था. उस की उम्र तकरीबन 45 साल थी.  वह शादीशुदा और एक बच्ची का बाप था.

स्वभाव से रंगीनमिजाज योगेश की निगाहें स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों के बदन को टटोलती रहती थीं. ऐसे में जो लड़की उस के मन को भा जाती थी, वह उस के पीछे पड़ जाता था. प्यार से, मनुहार से या फिर इम्तिहान में फेल करने का डर दिखा कर वह उस का जिस्मानी शोषण करता था.

ऐसा करते हुए योगेश उस लड़की के मन में इतना डर भर देता था कि पीडि़त लड़की चाह कर भी उस के खिलाफ मुंह नहीं खोल पाती थी.

योगेश की निगाहें पायल पर थीं. जब भी मौका मिलता, वह उसे छूनेसहलाने की कोशिश करता. ऐसे में पायल चौंक कर उसे देखती, फिर न जाने क्यों उस के होंठों पर एक मुसकान फैल जाती. पायल की यह मुसकान योगेश की वासना को हवा देती थी.

दरअसल, पायल के रसीले होंठ जब भी मुसकराते, तो ऐसा लगता मानो उस से रस टपक पड़ेगा. ऐसे में योगेश का दिल चाहता कि वह उस के होंठों पर अपने होंठ रख कर रस को पी ले.

स्कूल में ज्यादा से ज्यादा योगेश पायल को छू सकता था, सहला सकता था, पर उस के होंठों और बदन से छलकती जवानी का पान नहीं कर सकता था. इस के लिए एकांत की जरूरत थी और यह एकांत उसे अपने घर पर ही मिल सकता था.

पर घर पर योगेश की पत्नी थी, पर उस से उसे कोई खास डर न था. वह एक सीधीसादी और घरेलू औरत थी. वह आएदिन मायके जाती रहती थी. वह इस मौके का फायदा उठा सकता था और अपनी इच्छा पूरी कर सकता था. पर इस के लिए उसे पायल को अपने जाल में फांसना जरूरी था.

‘‘पायल, तुम्हारी अंगरेजी तो बहुत ही कमजोर है,’’ एक दिन योगेश उस की कौपी देखते हुए बोला, ‘‘अगर ऐसा ही रहा, तो तुम इम्तिहान में अच्छे नंबर नहीं ला पाओगी.’’

योगेश की बातें सुन कर पायल के चेहरे पर उदासी छा गई. वह बोली, ‘‘सर, मैं कोशिश तो बहुत करती हूं, पर अंगरेजी मेरी समझ में ही नहीं आती है.’’

‘‘आ जाएगी, अगर मैं तुम्हें पढ़ाऊंगा…’’ योगेश अपने असली मकसद पर आता हुआ बोला, ‘‘ऐसा करो, तुम मेरे घर आ जाया करो, मैं तुम्हें पढ़ा दिया करूंगा.’’

‘‘पर, मैं आप की फीस नहीं दे पाऊंगी…’’ पाय ने मजबूरी जाहिर की.

‘‘कोई बात नहीं.’’

‘‘थैंक्यू सर…’’ पायल बोली, ‘‘तो मैं कब से आ जाऊं?’’

‘‘कल से ही आ जाओ.’’

‘‘ठीक है.’’

पायल योगेश के घर जा कर उस से पढ़ने लगी. शुरूशुरू में सबकुछ ठीकठाक रहा, फिर उसे थोड़ी उलझन सी होने लगी.

दरअसल, योगेश पढ़ातेपढ़ाते उस के बदन को जहांतहां छूने लगता था. वह दिखाता तो ऐसा था कि ऐसा जानेअनजाने में हो जाता है, पर धीरधीरे पायल को यह बात समझ में आने लगी थी कि वह जानबूझ कर ऐसा करता है. पर चूंकि योगेश ने कभी मर्यादा की सीमा पार करने की कोशिश न की थी, सो वह उस की इन हरकतों को नजरअंदाज करती रही.

योगेश की यह हरकत आगे चल कर उसे कितनी महंगी पड़ने वाली है, तब पायल को इस बात का एहसास न था.

उस दिन रविवार था. पायल उस शाम जब योगेश से पढ़ने घर पहुंची, तो उस के घर में सन्नाटा पसरा हुआ था. पूछने पर योगेश ने बताया कि उस की पत्नी अपनी बेटी के साथ मायके गई हुई है और 3 दिन बाद लौटेगी.

आज योगेश ने उसे अपने बैडरूम में बिठाया था. वह थोड़ी देर के लिए कमरे से बाहर निकला, फिर आ कर कमरे में बिछावन पर उस के करीब बैठ गया था.

न जाने क्यों पायल का मन किसी अनजान मुसीबत से घबरा रहा था, पर वह अपनेआप को संभालते हुए बोली, ‘‘सर, आज मुझे क्या पढ़ाएंगे?’’

‘‘आज मैं तुम्हें प्यार का सबक पढ़ाऊंगा,’’ योगेश वासना की निगाहों से पायल के उभारों को घूरता हुआ बोला.

‘‘क्या मतलब है सर?’’ पायल थोड़ा चौंकते हुए बोली.

‘‘मतलब यह कि तुम बहुत ही खूबसूरत हो और मेरा मन तुम्हारी खूबसूरती पर आ गया है.’’

‘‘आप कैसी बातें कर रहे हैं सर?’’ पायल कठोर आवाज में बोली, ‘‘यह मत भूलिए कि आप मेरे गुरु हैं.’’

‘‘आज मैं न तो तुम्हारा गुरु हूं और न तुम मेरी शिष्या. इस समय मैं प्यार की आग में झुलसता एक मर्द हूं और तुम यौवन रस से भरपूर एक औरत…

‘‘आओ, मेरी बांहों में आओ. मेरे तनमन पर प्यार की ऐसी बरसात करो कि मेरी महीनों की प्यास बुझ जाए,’’ कहते हुए योगेश ने पायल को अपनी बांहों में भींच लिया.

पायल रोई, छटपटाई, गुरुशिष्या के पवित्र रिश्ते की दुहाई दी, पर योगेश ने उस की एक न सुनी. वह वासना के मद में इतना अंधा हो चुका था कि उस ने पायल को तभी छोड़ा, जब उस की आबरू की चादर को तारतार कर दिया.

पायल कुछ देर तक तो उसे नफरत से घूरती रही, फिर अपने कपड़े संभालती हुई कमरे से निकल गई.

उस रात जब पायल अपने घर पर बिछावन पर लेटी, तो नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी.

पायल ने सोचा कि वह अपनी मां को इस हादसे के बारे में बता दे, पर अगले ही पल उसे विचार आया कि वे यह सब सुनते ही जीतेजी मर जाएंगी. वे तो इस आस में मेहनतमजदूरी कर पायल को पढ़ा रही थीं, ताकि वह पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो सके. ऐसे में इस हादसे के बारे में सुन कर वे बुरी तरह टूट जाएंगी.

पायल सारी रात अपने मन में उठे विचारों से लड़ती रही और जब सुबह हुआ, तो इस बात का फैसला कर चुकी थी कि वह योगेश के किए की सजा जरूर दे कर रहेगी, चाहे इस के लिए उसे कुछ भी करना पड़े.

योगेश ने पायल को अपनी वासना का शिकार बना तो डाला था, पर अब इस बात से डरा हुआ था कि कहीं वह उस की करतूत किसी और को न बता दे.

इस घटना के बाद 2 दिन तक पायल स्कूल नहीं आई. इस बीच योगेश एक अनजाने डर से घिरा रहा. तीसरे दिन पायल स्कूल आई. उसे स्कूल आया देख योगेश के मन को थोड़ी राहत मिली.

योगेश ने उसे डरतेडरते देखा तो पाया कि वह पहले की ही तरह सामान्य दिख रही थी. उस की ऐसी हालत देख योगेश के होंठों पर मक्कारी भरी मुसकान तैर गई. उसे पक्का यकीन हो गया कि पायल पर उस की धमकी काम कर गई है.

योगेश को तेज झटका तब लगा, जब अगले दिन शाम को पायल उस से पढ़नेघर आ गई. पढ़ाने को तो वह उसे पढ़ाता रहा, पर उस के मन में एक अजीब सी हलचल मची रही.

पढ़ाई खत्म करने के बाद योगेश पायल को गौर से देखता हुआ बोला, ‘‘पायल, तुम्हें मेरे उस दिन की हरकत बुरी तो नहीं लगी?’’

‘‘लगी,’’ पायल उस की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘पर एक अजीब सा मजा भी मिला,’’ कहते हुए पायल के होंठों पर एक मादक मुसकान उभरी.

‘‘सच?’’ योगेश की आंखों में हैरानी भरी चमक उभरी.

‘‘बिलकुल.’’

‘‘क्या तुम फिर से वैसा मजा पाना चाहोगी?’’

‘‘हां,’’ कह कर पायल तेजी से कमरे से निकल गई.

योगेश कई पल तक तो हैरान सा कमरे में खड़ा रहा, फिर उस के मन में वासना की तरंगें उठने लगीं. इस के बाद तो योगेश की जब इच्छा होती, पायल को बिस्तर पर लिटा लेता. यह खेल वह या तो किसी होटल के कमरे में खेलता या फिर एकांत मिलने पर अपने घर पर. वह अपनी इस कामयाबी पर बेहद खुश था.

एक शाम पायल योगेश के घर पढ़ने आई हुई थी. योगेश उसे पढ़ा कम छेड़छाड़ ज्यादा कर रहा था. जब उस ने पायल को अपनी बांहों में भर लेना चाहा, तो पायल मुसकराते हुए बोली, ‘‘सर, मैं आज आप को एक चीज दिखाना चाहती हूं. सच कहती हूं, इसे देख कर आप को बड़ा मजा आएगा.’’

‘‘क्या?’’

पायल ने अपनी किताब से कुछ फोटो निकाले और योगेश को थमा दिए. योगेश की निगाह जैसे ही उन फोटो पर पड़ी, वह ऐसे उछला, मानो किसी बिच्छु ने उसे डंक मार दिया हो.

‘‘यह क्या है?’’ योगेश ने डरते हुए पूछा.

‘‘यह उन पलों के फोटो हैं, जब आप अपनी एक शिष्या की आबरू से खेल रहे थे…’’ पायल के मुंह से नफरत भरी आवाज फूटी, ‘‘जरा सोचिए, अगर ये फोटो आप की पत्नी या पुलिस तक पहुंच गए, तो आप की क्या गत होगी?’’

‘‘नहीं,’’ योगेश के मुंह से चीख निकल गई.

‘‘मैं ऐसा नहीं करूंगी, अगर आप ने मेरी मांग पूरी कर दी तो…’’ पायल इतराते हुए अदा से बोली.

‘‘कैसी मांग?’’ योगेश पायल को यों देख रहा था, मानो वह दुनिया का आठवां अजूबा हो.

‘‘आप ने मेरी इज्जत से खिलवाड़ किया है. मुझे पत्नी की तरह भोगा है, तो मुझे सचमुच की पत्नी बना लीजिए.’’

‘‘क्या कह रही हो तुम?’’ योेगेश चीखा, ‘‘मैं पहले से ही शादीशुदा हूं और एक बच्ची का बाप भी हूं.’’

‘‘यह बात आप को मेरी इज्जत से खेलते समय सोचनी चाहिए थी.’’

‘‘पर मेरी पत्नी यह बात कभी नहीं मानेगी.’’

‘‘तो फिर उसे घर से निकाल दीजिए. वैसे भी आप जिस ढंग से प्यार का खेल खेलते हैं, वह उस के बस की बात नहीं है.’’

‘‘यह नहीं हो सकता.’’

‘‘तो फिर वह होगा, जो मैं चाहती हूं. मैं इस फोटो के साथ पुलिस के पास जाऊंगी और वहां इस बात की रिपोर्ट लिखवा दूंगी कि आप ने मेरे साथ रेप किया है. उस के बाद क्या होगा? आप समझें.’’

योगेश ने अपना सिर पीट लिया. एक तरफ कुआं था, तो दूसरी तरफ खाई. काफी देर तक वह परेशानी से अपना माथा मलता रहा, फिर बोला, ‘‘मुझे सोचने के लिए थोड़ा वक्त दो.’’

‘‘ठीक है, सोच लीजिए. पर सोचने में इतना ज्यादा समय मत लगाइएगा कि मैं पुलिस के पास पहुंच जाऊं.’’

योगेश ने इस बारे में काफी सोचा, फिर इस नतीजे पर पहुंचा कि उस की भलाई इसी में है कि वह पत्नी को घर से निकाल दे. वैसे भी पायल की खिलती जवानी के आगे अब पत्नी उसे बासी लगने लगी थी.

योगेश ने उलटेसीधे आरोप लगा कर अपनी पत्नी को घर से निकाल दिया और पायल को पत्नी की तरह अपने घर में रख लिया. पर पायल के मन में तो कुछ और था. वह योगेश को पूरी तरह बरबाद कर देना चाहती थी. वह दोनों हाथों से उस की दौलत लुटाने लगी.

पायल तो उस के घर को ऐयाशी का अड्डा बनाने पर तुल गई थी. वह यारदोस्तों को अपने साथ उस के घर में लाने लगी थी और उस की मौजूदगी में ही बंद कमरे में उन के साथ मौजमस्ती करने लगी थी.

योगेश यह सब देख कर मन ही मन कुढ़ता रहता. वह उस समय को कोसता, जब उस ने पायल की जवानी से खेलने का फैसला किया था. उस ने अपनी हंसतीखेलती दुनिया उजाड़ ली थी. उस ने अपनी पत्नी और बच्ची को घर से निकाल दिया था और अब वह पछतावे की आग में जल रहा था.

पायल ने न केवल उस के मकान पर कब्जा जमा लिया था, बल्कि योगेश की जिंदगी को नरक बना दिया था.पर एक रात योगेश का सब्र जवाब दे गया. उस रात पायल अपने एक दोस्त के साथ आई थी और आते ही कमरे में बंद हो गई थी. जब तक दरवाजा खुलता, तब तक योगेश की हालत अजीब हो गई थी.

जैसे ही पायल का दोस्त घर से बाहर निकला, योगेश पायल पर बरस पड़ा, ‘‘बहुत हुआ, अब यह सब बंद करो. मैं अपने घर को ऐयाशी का अड्डा बनते नहीं देख सकता.’’

‘‘यह सबक तो मैं ने आप से ही सीखा है सर…’’ पायल बोली, ‘‘और अब आप के लिए अच्छा यही होगा कि आप यह सब देखने की आदत डाल लें.’’ योगेश के मुंह से बोल न फूटे. वह खून के आंसू पी कर रह गया.

Hindi Story: दोस्ती – क्या एक हो पाए आकांक्षा और अनिकेत ?

Hindi Story, लेखिका – रश्मि वर्मा

आकांक्षा खुद में सिमटी हुई दुलहन बनी सेज पर पिया के इंतजार में घडि़यां गिन रही थी. अचानक दरवाजा खुला, तो उस की धड़कनें और बढ़ गईं. मगर यह क्या? अनिकेत अंदर आया.

दूल्हे के भारीभरकम कपड़े बदल नाइटसूट पहन कर बोला, ‘‘आप भी थक गई होंगी. प्लीज, कपड़े बदल कर सो जाएं. मुझे भी सुबह औफिस जाना है.’’

आकांक्षा का सिर फूलों और जूड़े से पहले ही भारी हो रहा था, यह सुन कर और झटका लगा, पर कहीं राहत की सांस भी ली. अपने सूटकेस से खूबसूरत नाइटी निकाल कर पहनी और फिर वह भी बिस्तर पर एक तरफ लुढ़क गई.

अजीब थी सुहागसेज. 2 अनजान जिस्म जिन्हें एक करने में दोनों के परिवार वालों ने इतनी जहमत उठाई थी, बिना एक हुए ही रात गुजार रहे थे. फूलों को भी अपमान महसूस हुआ. वरना उन की खुशबू अच्छेअच्छों को मदहोश कर दे.

अगले दिन नींद खुली तो देखा अनिकेत औफिस के लिए जा चुका था. आकांक्षा ने एक भरपूर अंगड़ाई ले कर घर का जायजा लिया.

2 कमरों का फ्लैट, बालकनी समेत अनिकेत को औफिस की तरफ से मिला था. अनिकेत एअरलाइंस कंपनी में काम करता है. कमर्शियल विभाग में. आकांक्षा भी एक छोटी सी एअरलाइंस कंपनी में परिचालन विभाग में काम करती है. दोनों के पिता आपस में दोस्त थे और उन का यह फैसला था कि अनिकेत और आकांक्षा एकदूसरे के लिए परफैक्ट मैच रहेंगे.

आकांक्षा को पिता के फैसले पर कोई आपत्ति नहीं थी, पर अनिकेत ने पिता के दबाव में आ कर विवाह का बंधन स्वीकार किया था. आकांक्षा ने औफिस से 1 हफ्ते की छुट्टी ली थी. सब से पहले किचन में जा कर चाय बनाई, फिर चाय की चुसकियों के साथ घर को संवारने का प्लान बनाया.

शाम को अनिकेत के लौटने पर घर का कोनाकोना दमक रहा था. जैसे ही अनिकेत ने घर में कदम रखा, करीने से सजे घर को देख कर उसे लगा क्या यह वही घर है जो रोज अस्तव्यस्त होता था? खाने की खुशबू भी उस की भूख को बढ़ा रही थी.

आकांक्षा चहकते हुए बोली, ‘‘आप का दिन कैसा रहा?’’

‘‘ठीक,’’ एक संक्षिप्त सा उत्तर दे कर अनिकेत डाइनिंग टेबल पर पहुंचा. जल्दी से खाना खाया और सीधा बिस्तर पर. औरत ज्यादा नहीं पर दो बोल तो तारीफ के चाहती ही है, पर आकांक्षा को वे भी नहीं मिले. 5 दिन तक यही दिनचर्या चलती रही.

छठे दिन आकांक्षा ने सोने से पहले अनिकेत का रास्ता रोक लिया, ‘‘आप प्लीज 5 मिनट बात करेंगे?’’

‘‘मुझे सोना है,’’ अनिकेत ने चिरपरिचित अंदाज में कहा.

‘‘प्लीज, कल से मुझे भी औफिस जाना है. आज तो 5 मिनट निकाल लीजिए.’’

‘‘बोलो, क्या कहना चाहती हो,’’ अनिकेत अनमना सा बोला.

‘‘आप मुझ से नाराज हैं या शादी से?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘आप जानते हैं मैं क्या जानना चाहती हूं?’’

‘‘प्लीज डैडी से बात करो, जिन का फैसला था.’’

‘‘पर शादी तो आप ने की है? आकांक्षा को भी गुस्सा आ गया.’’

‘‘जानता हूं. और कुछ?’’ अनिकेत चिढ़ कर बोला.

आकांक्षा समझ गई कि अब सुलझने की जगह बात बिगड़ने वाली है. बोली, ‘‘क्या यह शादी आप की मरजी से नहीं हुई है?’’

‘‘नहीं. और कुछ?’’

‘‘अच्छा, ठीक है पर एक विनती है आप से.’’

‘‘क्या?’’

‘‘क्या हम कुछ दिन दोस्तों की तरह रह सकते हैं?’’

‘‘मतलब?’’ अनिकेत को आश्चर्य हुआ.

‘‘यही कि 1 महीने बाद मेरा इंटरव्यू है. मुझे लाइसैंस मिल जाएगा और फिर मैं आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चली जाऊंगी 3 सालों के लिए. उस दौैरान आप को जो उचित लगे, वह फैसला ले लीजिएगा… यकीन मानिए आप को परेशानी नहीं होगी.’’

अनिकेत को इस में कोई आपत्ति नहीं लगी. फिर दोनों साथसाथ नाश्ता करने लगे. शाम को घूमने भी जाने लगे. होटल, रेस्तरां यहां तक कि सिनेमा भी. आकांक्षा कालेजगर्ल की तरह ही कपड़े पहनती थी न कि नईनवेली दुलहन की तरह. उन्हें साथ देख कर कोई प्रेमी युगल समझ सकता था, पर पतिपत्नी तो बिलकुल नहीं.

कैफे कौफीडे हो या काके दा होटल, दोस्तों के लिए हर जगह बातों का अड्डा होती है और आकांक्षा के पास तो बातों का खजाना था. धीरेधीरे अनिकेत को भी उस की बातों में रस आने लगा. उस ने भी अपने दिल की बातें खोलनी शुरू कर दी.

एक दिन रात को औफिस से अनिकेत लेट आया. उसे जोर की भूख लगी थी. घर में देखा तो आकांक्षा पढ़ाई कर रही थी. खाने का कोई अतापता नहीं था.

‘‘आज खाने का क्या हुआ?’’ उस ने पूछा.

‘‘सौरी, आज पढ़तेपढ़ते सब भूल गई.’’

‘‘वह तो ठीक है… पर अब क्या?’’

‘‘एक काम कर सकते हैं, आकांक्षा को आइडिया सूझा,’’ मैं ने सुना है मूलचंद फ्लाईओवर के नीचे आधी रात तक परांठे और चाय मिलती है. क्यों न वहीं ट्राई करें?

‘‘क्या?’’ अनिकेत का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया.

‘‘हांहां, मेरे औफिस के काफी लोग जाते रहते हैं… आज हम भी चलते हैं.’’

‘‘ठीक है, कपड़े बदलो. चलते हैं.’’

‘‘अरे, कपड़े क्या बदलने हैं? ट्रैक सूट में ही चलती हूं. बाइक पर बढि़या रहेगा… हमें वहां कौन जानता है?’’

मूलचंद पर परांठेचाय का अनिकेत के लिए भी बिलकुल अलग अनुभव था. आखिर वह दिन भी आ ही गया जब आकांक्षा का इंटरव्यू था. सुबहसुबह घर का काम निबटा कर वह फटाफट डीजीसीए के लिए रवाना हो गई. वहां उस के और भी साथी पहले से मौजूद थे. नियत समय पर इंटरव्यू हुआ.

आकांक्षा के जवाबों ने एफआईडी को भी खुश कर दिया. उन्होंने कहा, ‘‘जाइए, अपने दोस्तों को भी बताइए कि आप सब पास हो गए हैं.’’

आकांक्षा दौड़ते हुए बाहर आई और फिल्मी अंदाज में टाई उतार कर बोली, ‘‘हे गाइज, वी औल क्लीयर्ड.’’ फिर क्या था बस, जश्न का माहौल बन गया. खुशीखुशी सब बाहर आए. आकांक्षा सोच रही थी कि बस ले या औटो तभी उस का ध्यान गया कि पेड़ के नीचे अनिकेत उस का इंतजार कर रहा है. आकांक्षा को अपने दायरे का एहसास हुआ तो पीछे हट कर बोली, ‘‘आप आज औफिस नहीं गए?’’

‘‘बधाई हो, आकांक्षा. तुम्हारी मेहनत सफल हो गई. चलो, घर चलते हैं. मैं तुम्हें लेने आया हूं,’’ अनिकेत ने मुसकराते हुए बाइक स्टार्ट की.

आकांक्षा चुपचाप पीछे बैठ गई. घर पहुंच कर खाना खा कर थोड़ी देर के लिए दोनों सो गए. शाम को आकांक्षा हड़बड़ा कर उठी और फिर किचन में जाने लगी तो अनिकेत ने रोक लिया, ‘‘परेशान होने की जरूरत नहीं है. हम आज खाना बाहर खाएंगे या मंगा लेंगे.’’

‘‘ओके,’’ आकांक्षा अपने कमरे में आ कर अपना बैग पैक करने लगी.

‘‘यह क्या? तुम कहीं जा रही हो?’’ अनिकेत ने पूछा.

‘‘जी, आप के साथ 1 महीना कैसे कट गया, पता ही नहीं चला. अब बाकी काम डैडी के पास जा कर ही कर लूंगी. और वहीं से 1 हफ्ते बाद अमेरिका चली जाऊंगी.’’

‘‘तो तुम मुझे छोड़ कर जा रही हो?’’

‘‘जी नहीं. आप से जो इजाजत मांगी थी, उस की आखिरी रात है आज, आकांक्षा मुसकराते हुए बोली.’’

‘‘जानता हूं, आकांक्षा मैं तुम्हारा दोषी हूं. पर क्या आज एक अनुरोध मैं तुम से कर सकता हूं? अनिकेत ने थोड़े भरे गले से कहा.’’

‘‘जी, बोलिए.’’

‘‘हम 1 महीना दोस्तों की तरह रहे. क्या अब यह दोस्ती प्यार में बदल सकती है? इस 1 महीने में तुम्हारे करीब रह कर मैं ने जाना कि अतीत की यादों के सहारे वर्तमान नहीं जीया जाता… अतीत ही नहीं वर्तमान भी खूबसूरत हो सकता है. क्या तुम मुझे माफ कर सकती हो?’’

उस रात आकांक्षा ने कुछ ही पलों में दोस्त से प्रेमिका और प्रेमिका से पत्नी का सफर तय कर लिया, धीरधीरे अनिकेत के आगोश में समा कर.

Hindi Story: इच्छाधारी बाबा – बाबा जी को क्यों गिरफ्तार किया गया?

Hindi Story: मंदिर के ऊपरी भाग में बने स्पैशल कमरे से नीचे का सारा नजारा दिखाई देता था. वे इस कमरे में आराम करते हुए मंदिर में आने वाले भक्तों को देखते रहते थे. वैसे तो उन्हें मर्द भक्तों से इतना मतलब नहीं रहता था, पर उन में से वे केवल ऐसे भक्तों पर ही निगाह गड़ाए रहते थे, जो उन्हें पैसे वाला दिखाई देता था. इस से उलट वे मंदिर में आने वाली उन लड़कियों और औरतों को खास निगाह से देखते थे, जो गरीब घरों की होती थीं.

वे अपने कमरे से ही उन के चेहरे को पढ़ लेते थे. उन में से जिन में उन्हें कोई उम्मीद नजर आती, उन्हें अपने दूसरे कमरे में बुला लिया जाता. इस दूसरे कमरे से ही इस कमरे तक आने का सफर तय होता था. वे ‘इच्छाधारी बाबा’ कहे जाते थे.

अब थोड़ा ‘इच्छाधारी बाबा’ का इतिहास जान लेते हैं. उस का असली नाम मूलचंद था. वह शुरू से ही शानशौकत से जीने के सपने देखा करता था, पर वह ज्यादा पढ़लिख नहीं पाया था, तो उसे जो सरकारी नौकरी मिली, वह क्लर्क की थी.

यह नौकरी भी मूलचंद को इस वजह से मिल गई थी कि उस के पिताजी भी सरकारी नौकर थे और रिटायर होने से पहले एक हादसे में उन की मौत हो गई थी.

मूलचंद को आसानी से नौकरी मिली तो उस के सपने जोर मारने लगे. अपने सपनों को पूरा करने के लिए उस के पास घपला करने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

क्लर्क की तनख्वाह तो इतनी होती नहीं कि वह उस में ऐशोआराम की जिंदगी बिता सके. घपला किया और पकड़ा गया.

मूलचंद ने जितने रुपयों का घपला किया था, उन को अपने एक दोस्त  के पास रख दिया था, ताकि  अगर  वह पकड़ा भी जाए तो उस के पैसे महफूज रहें.

मूलचंद को भरोसा था कि वह पकड़े जाने के बाद इन्हीं पैसों की रिश्वत खिला कर अपनेआप को बेदाग साबित कर लेगा, पर ऐसा हुआ नहीं. न केवल उसे नौकरी से निकाल दिया गया, बल्कि उस के खिलाफ पुलिस थाने में रिपोर्ट भी दर्ज करा दी गई. रिपोर्ट दर्ज होते ही उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई. डर के मारे वह फरार हो गया.

पुलिस मूलचंद को ढूंढ़ती फिर रही थी और वह यहांवहां छिपते हुए दिन काट रहा था. पुलिस के साथ आंखमिचौली के दौरान ही वह एक मंदिर के पुजारी के पास पहुंचा. उस पुजारी ने उसे छिपने में बहुत मदद की.

बाद में मूलचंद को पता चला कि वह पुजारी खुद भी सालों से ऐसे ही पुलिस से छिपता फिर रहा है. उस ने तो अपनी पत्नी का ही खून कर दिया था.

मूलचंद ने भी सोचा, ‘कितने लोग ऐसे ही अपनेआप को छिपाए हुए हैं, तू भी यही चोला पहन ले…’

मूलचंद तब तक वहां छिपा रहा, जब तक उस के बाल और दाढ़ीमूंछ नहीं आ गई. फिर एक दिन वह भगवा चोला पहन कर वहां से निकल पड़ा. उस ने अपना नया नाम ‘इच्छाधारी बाबा’ रख लिया था. अब उसे पुलिस का कोई डर नहीं था.

‘इच्छाधारी बाबा’ ने अपना जो नया ठिकाना बनाया, वह एक रईस रम्मू का पुरखों का मंदिर था. इस मंदिर में बहुत सारी जमीन लगी हुई थी. इस जमीन को रम्मू ही जोतता था और सारा पैसा अपने इस्तेमाल में ही खर्च करता था.

रम्मू को अपने पुरखों से इस वजह से चिढ़ होती थी कि इतनी सारी जमीन मंदिर में लगा दी और इतनी कीमती जमीन पर मंदिर बना दिया. वह मंदिर जिस जगह पर बना था, उस की कीमत आज लाखों रुपए में हो गई थी.

धीरेधीरे जब रम्मू ने मंदिर में खर्चा कराना बंद कर दिया, तो महल्ले के लोगों ने चंदा इकट्ठा कर के मंदिर  को चलाने की जिम्मेदारी अपने कंधे पर ले ली.

कहीं मंदिर पूरी तरह से हाथ से न निकल जाए, इस भावना के चलते रम्मू मंदिर में अपना दबदबा बनाए रखता था. उसे एक ऐसे आदमी की तलाश थी, जो मंदिर से आमदनी करा सके.

मूलचंद यानी ‘इच्छाधारी बाबा’ से रम्मू की एक डील हुई थी. ‘इच्छाधारी बाबा’ ने उसे हर साल एकमुश्त मोटी रकम देने का लिखित करार कर दिया था. इस के बदले रम्मू ने पूरा मंदिर उसे सौंप दिया.

रम्मू का भार हलका हो गया. अब उसे अपने पुरखों से इतनी नाराजगी भी नहीं रही. इसी बीच ‘इच्छाधारी बाबा’  मंदिर से पैसा कमाने की कला सीख चुका था.

वह महल्ला अच्छे लोगों का था, इसलिए ‘इच्छाधारी बाबा’ को अपनी कमाई को ले कर कोई शक था भी नहीं. अब समाज में इज्जत भी मिलने लगी थी. वह तू से आप हो गया था.

रम्मू ने ‘इच्छाधारी बाबा’ की योजना के मुताबिक उन्हें बड़ी धूमधाम और उन से जुड़ी अनेक कहानियों का प्रचार कर मंदिर में बैठा दिया. मंदिर में एक पंडित था रामलाल, जो कुछ मंत्र वगैरह पढ़ लेता था. वह मंदिर में भगवान की पूजा करता और अपना पंडिताई धर्म निभा लेता. सपने तो वह भी बहुत सारे पाले हुए था, पर उस के पास ‘इच्छाधारी बाबा’ की तरह खुद पर यकीन और चालाकियां नहीं थीं.

‘इच्छाधारी बाबा’ को एक ऐसा ही आदमी तो चाहिए ही था, इसलिए उन्होंने उस पंडित रामलाल के सिर पर अपना हाथ रख कर यह भी सम झा दिया कि अगर उस ने उन के कामों में रोड़े अटकाए तो उस की खैर नहीं.

रामलाल वैसे भी ‘इच्छाधारी बाबा’ को देख कर घबरा चुका था, उन की धमकी को सुन कर और भी घबरा गया. वह ‘इच्छाधारी बाबा’ के पैरों में गिर गया और कसम खा ली कि बाबा के न केवल सारे कामों में वह हिस्सेदार बनेगा, साथ ही हर राज को भी बरकरार रखेगा.

‘इच्छाधारी बाबा’ को अपना जलवा बनाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. वे जल्दी ही सम झ गए थे कि जो अपने चेहरे पर जितनी मुसकान लिए रहता है, उस के दिल में उतने ही दर्द छिपे होते हैं. उन्हें केवल उन दर्दों को कुरेदना ही था.

एक औरत सविता पर उन की निगाह पहले ही दिन पड़ गई थी. वह मंदिर गाहेबगाहे आ जाती थी और जोरजोर से बातें करती और हंसती रहती. ‘इच्छाधारी बाबा’ ने सविता को ही अपना पहला शिकार बनाया.

सविता के कोई औलाद नहीं थी और उम्र भी ढलती जा रही थी. पति दूसरे शहर में काम करता था. वह 15 दिनों में एक बार ही आता, वह भी एक दिन के लिए.

सविता ने यह सब ‘इच्छाधारी बाबा’ को बता दिया. उस की बातें सुन कर बाबाजी की हवस जाग गई. फिर एक दिन सविता को अपने कमरे में बुला कर बाबाजी ने उस की कोख में अपना बीज रोप दिया.

सविता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह पेट से हो गई और बाबाजी के लिए खिलौना बन गई. वे जब चाहते, उसे बुला लेते और अपने कमरे में मौज करते.

सविता का पेट अब बाहर की ओर निकला दिखाई देने लगा था. बाबाजी का मजा खत्म हो गया था. सविता ने एक दूसरी औरत को उन के कमरे में पहुंचा दिया था. धीरेधीरे ‘इच्छाधारी बाबा’ के पास औरतों की लाइन लगने लगी.

‘इच्छाधारी बाबा’ की नजर अब नवीन पर गई. नवीन के पास धनदौलत की कोई कमी नहीं थी. वह सुबह फैक्टरी जाने के पहले मंदिर में आ कर भगवान के दर्शन करता था.

‘इच्छाधारी बाबा’ की निगाह उस पर गड़ चुकी थी. वैसे तो वे बहुत ही कम सुबह जल्दी सो कर उठते थे और कभीकभार ही सुबह की पूजा में शामिल होते थे. पर अब वे रोज आने लगे थे.

नवीन को अपने जाल में फंसाने के लिए ‘इच्छाधारी बाबा’ को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. सविता ने नवीन के लिए एक खूबसूरत लड़की का इंतजाम कर दिया था.

‘इच्छाधारी बाबा’ के कमरे में नवीन की मुलाकात उस लड़की से कराई गई और उन के बिस्तर पर जाते ही वीडियो बना लिया गया. नवीन अब बाबाजी के लिए सोने का अंडा देने वाली मुरगी बन चुका था.

इस मंदिर को और बड़ा नवीन ने ही कराया था. इसी दौरान बाबाजी ने ऊपरी भाग में अपने लिए एक ऐसा कमरा बनवा लिया था, जिस की कांच की दीवारों से वे तो बाहर  झांक सकते थे, पर कोई और बाहर से कमरे में नहीं  झांक पाता था. कमरे की मोटी कांच की दीवारों के अंदर से बहुत जोर की आवाज भी बाहर नहीं निकल पाती थी.

‘इच्छाधारी बाबा’ की दुकानदारी चल निकली थी. मंदिर में भक्तों का जमावड़ा बढ़ने लगा था और पैसा बरसने लगा था. बाबाजी ने पैसा कमाने का एक और खेल चालू कर लिया था. उन के पास अब औरत भक्तों की तादाद खूब  हो गई थी. इन में वे तो शामिल थीं ही, जिन की गोद भर चुकी थी और वे भी थीं, जिन्हें केवल बाबाजी के साथ से मजा मिलता था.

‘इच्छाधारी बाबा’ ने अपने अमीर भक्तों तक इन औरतों को पहुंचना शुरू कर दिया. बाबाजी के पास उन सब औरतों के वीडियो तो थे ही, इसलिए चाह कर भी वे उन के आदेश को मानने से इनकार नहीं कर पाती थीं. बाबाजी को इस नए कारोबार से ज्यादा आमदनी हो रही थी.

रम्मू ने जब अपना पुरखों का मंदिर ‘इच्छाधारी बाबा’ को किराए पर दिया था, तब उसे भी उम्मीद नहीं थी कि बाबाजी इस मंदिर को इतना चमत्कारिक बना देंगे कि पैसा बरसने लगेगा. उसे तो लग रहा था कि कुछ ही दिनों में बाबाजी मंदिर छोड़ कर भाग खड़े होंगे, पर अब जब मंदिर की चर्चा दूरदूर तक होने लगी थी, तो उसे बाबाजी से जलन होने लगी थी. उसे लगने लगा था कि वह ठगा गया है. वह अब उन्हें मंदिर से भगाने की जुगत में लग गया था.

एक दिन ‘इच्छाधारी बाबाजी’ अपने भक्तों के साथ नाच रहे थे. उन्होंने जिस औरत का हाथ पकड़ा हुआ था, उसे वे पहली निगाह में ही पसंद कर चुके थे. उन्होंने अपने कांच वाले कमरे से ही उस औरत को एक बच्चे और मर्द के साथ आते देख लिया था.

उस औरत की उम्र ज्यादा नहीं थी. उस के लंबे बाल कमर के नीचे तक लहरा रहे थे. बाबाजी ने उस औरत को दर्शन देने का मन बना लिया था, इसलिए वे अपने कमरे से नीचे आ गए थे.

उस औरत ने अपने सिर पर आंचल रख कर पूरी श्रद्धा के साथ बाबाजी के चरणों पर अपना सिर रख दिया और बाबाजी ने आशीर्वाद देने के बहाने उस की पीठ को सहला दिया.

इस के बाद बाबाजी उस औरत का हाथ पकड़ कर नाचने लगे. मंदिर के अहाते में जमा सभी भक्त भी बाबाजी के साथ नाच रहे थे. वे उसे यहांवहां छू रहे थे. वह औरत भी उन्हें छूने का भरपूर मौका दे रही थी.

थोड़ी देर के बाद वह औरत बाबाजी के कमरे में उन के सामने बैठी थी. बाबाजी उसे एकटक निगाहों से देख रहे थे. जैसे ही उन्होंने उस औरत के चेहरे पर आने वाली लट को हटाते हुए अपनी बांहों में लेने की कोशिश की, तभी उस औरत ने अपनी कमर में छिपी पिस्तौल को निकाल कर बाबाजी के माथे पर अड़ा दिया.

‘इच्छाधारी बाबा’ अभी भी मदहोश ही थे. उन्होंने पिस्तौल की परवाह किए बिना एक बार फिर उस औरत को बांहों में लेने की कोशिश की, पर अब की बार पिस्तौल से गोली निकल चुकी थी, जो तेज आवाज के साथ कांच की दीवार से जा टकराई.

गोली की आवाज बाहर नहीं गई थी, पर अंदर ही उस ने इतना धमाका किया था कि बाबाजी का सारा नशा गायब हो चुका था.

‘इच्छाधारी बाबा’ को गिरफ्तार कर लिया गया था. दरअसल, पुलिस ने ही यह सारा प्लान बनाया था. वह खूबसूरत औरत एसपी थी, जिस ने बाबाजी को अपने मोह जाल में फंसाया था.

पुलिस ने एक दिन पहले ही कुछ औरतों को एक होटल से गिरफ्तार किया था. उन्होंने ही मंदिर में चल रहे इस गोरखधंधे का खुलासा किया था. बाबाजी के कमरे से गंदी किताबों के अलावा नशीली दवाएं भी बरामद हुई थीं. ‘इच्छाधारी बाबा’ का पुराना कच्चाचिट्ठा भी खुल चुका था.

Hindi Story: झुमकी – क्या झुमकी अपने पति का इलाज करा पाई?

Hindi Story: ‘‘बाजार से खाने के लिए कुछ ले आती हूं,’’  झुमकी पलंग पर लेटे बिछुआ को देख कर बोली और बाहर निकल गई.  बटुए से पैसे निकाल कर गिनते हुए  झुमकी के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंची हुई थीं. उत्तर प्रदेश के कमालपुर गांव से वह अपने बीमार पति बिछुआ का इलाज कराने दिल्ली आई थी. उसे यहां आए हुए 2 हफ्ते हो चुके थे. कोई जानपहचान वाला तो था नहीं, सो अस्पताल के पास ही एक कमरा किराए पर ले कर रह रही थी.

कई दिनों से चल रही जांच के बाद ही पता लग पाया कि बिछुआ के पेट की छोटी आंत में एक गांठ थी. आपरेशन जल्द कराने को कह रहे थे अस्पताल वाले, लेकिन  झुमकी यह सोच कर परेशान थी कि पैसों का जुगाड़ कैसे होगा? सरकारी अस्पताल है तो क्या हुआ… कुछ खर्चा तो होगा ही आपरेशन का. फिर इस कमरे का किराया, खानापीना और बिछुआ की दवाएं… पैसे के बिना तो कुछ मुमकिन था ही नहीं. क्या बिछुआ का इलाज कराए बिना ही वापस लौट जाना पड़ेगा?

सड़क पर चलते हुए अचानक ही  झुमकी को किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी. पास जा कर देखा तो एक 35-40 साल की औरत जमीन पर गिरी हुई थी. उठने की भरपूर कोशिश करने के बावजूद वह उठ नहीं पा रही थी.  झुमकी ने सहारा दे कर उसे उठाया और पास ही पड़े एक बड़े से पत्थर पर बैठा दिया.

झुमकी को उस औरत ने बताया कि वह आराम से चलती हुई जा रही थी कि अचानक एक लड़का तेजी से साइकिल चलाता हुआ पीछे से आया और धक्का मार दिया. उस के धक्के से वह इतनी जोर से गिरी कि एक पैर बुरी तरह मुड़ गया और कुहनियां भी छिल गईं.

कुछ देर वहीं बैठने के बाद उस औरत ने  झुमकी से एक रिकशा रोक लेने को कहा. रिकशा रुकते ही वह औरत  झुमकी की मदद  से चढ़ तो गई, लेकिन  हाथों में दर्द के चलते रिकशे को पकड़ नहीं पा रही थी.

झुमकी भी तब रिकशे में बैठ गई और अपने हाथ का घेरा उस घायल औरत की कमर पर बना कर सहारा दे दिया. रिकशा उस औरत के घर की ओर रवाना हो गया.

रास्ते में उन दोनों की बातचीत हुई. उस औरत ने  झुमकी को बताया कि  उस का नाम राधा है. नजदीक के ही  एक महल्ले में वह अपने पति सुरेंद्र  के साथ रहती है. सुरेंद्र की पास के बाजार में किराने की दुकान है.

शादी को 10 साल बीत चुके थे, लेकिन राधा के कोई बच्चा नहीं था, इसलिए घर पर अकेली ऊब जाती थी. अपना समय बिताने और पति की मदद करने के मकसद से वह कुछ देर के लिए दुकान पर चली जाती है. आज भी वह दुकान से वापस लौट रही थी, तब यह घटना घटी.

अपने बारे में बता कर राधा ने  झुमकी से उस का परिचय पूछा, तो  झुमकी ने अपने बारे में सब बता दिया.

झुमकी की बात पूरी होतेहोते ही राधा का घर आ गया.  झुमकी ने चाबी राधा के हाथ से ले कर ताला खोल दिया और उसे सहारा देते हुए कमरे के भीतर ले

आई. जब तक राधा ने सुरेंद्र को फोन किया, तब तक  झुमकी वहां खड़ी रही.

राधा की सुरेंद्र से बात पूरी होते ही  झुमकी  बोली, ‘‘मैडमजी, मैं अब चलती हूं. बिछुआ मेरी बाट देखते होंगे.’’

राधा ने उसे रुकने को कहा. धीरेधीरे चलते हुए उस ने रसोई से ला कर कुछ नमकीन के पैकेट  झुमकी को थमा दिए.

रात को  झुमकी और बिछुआ राधा की दी हुई नमकीन खा कर सो गए. अगले दिन सुबहसुबह  झुमकी के कमरे का दरवाजा खड़का तो दरवाजा खोलने पर वह सामने सुरेंद्र को देख चौंक उठी.

सुरेंद्र ने उसे बताया कि राधा के पैर में पलस्तर चढ़ गया है. वह एक जरूरी बात करने के लिए  झुमकी को घर बुला रही है.

झुमकी बिछुआ को बता कर सुरेंद्र के साथ राधा से मिलने आ गई.

राधा  झुमकी को देख कर बहुत खुश हुई और तुरंत अपनी बात सामने रखते हुए बोली, ‘‘ झुमकी, मैं कल से तुम्हारे बारे में ही सोच रही थी. तुम्हारी परेशानी को ले कर मैं ने सुरेंद्र से भी बात की  है. मेरा एक सु झाव है, तुम्हें जंचे तो ही हां करना.’’

‘‘जी, कहिए…’’  झुमकी बोली.

‘‘मैं ने अपने घर का कुछ हिस्सा पिछले महीने ही बनवाया है. पहले आगे वाले 2 कमरे ही थे. कई दिनों बाद रंगरोगन हुआ तो पीछे की ओर एक कमरा भी बनवा लिया. उसे हम दुकान के गोदाम के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं.

‘‘अभी वह कमरा खाली है. बस, मकान बनवाने के बाद का कुछ बचाखुचा सामान जैसे रंगरोगन के खाली डब्बे रखे हैं. तुम चाहो तो बिछुआ के इलाज तक उस कमरे में रह सकती हो.

‘‘तुम मेरे घर का काम कर दिया करना, क्योंकि चोट की वजह से मु झ से काम हो नहीं पाएगा. तुम हम दोनों का खाना बनाओगी तो साथसाथ अपना खाना भी बना लिया करना. काम के बदले पैसे तो दूंगी ही मैं तुम्हें.’’

झुमकी को मानो मुंहमांगी मुराद मिल गई हो. खुशीखुशी यह प्रस्ताव स्वीकार कर उसी दिन बिछुआ को ले कर वह राधा के घर चली आई.

राधा ने अपने घर पर रखे सामान में से बिस्तर और कुछ पुराने कपड़े  झुमकी के कमरे में रखवा दिए. अस्पताल के खर्च के लिए उस को कुछ रुपए भी दे दिए.

बिछुआ के पेट में खून रिसने के चलते जल्द ही आपरेशन कर दिया गया. आपरेशन कामयाब रहा और 4 दिन बाद उसे अस्पताल से छुट्टी भी मिल गई. तकरीबन एक महीने के लिए उसे आराम करने की सलाह दी गई. साथ ही, यह भी कहा कि दर्द ज्यादा हो तो तुरंत अस्पताल आना है, वरना एक महीने बाद जांच कराने ही आना होगा.

झुमकी ने पहले दिन से ही खाना बनाने के साथसाथ घर के बाकी काम पूरी जिम्मेदारी से करने शुरू कर दिए. वह सोच रही थी कि राधा के घर पर अगर आसरा न मिला होता तो जाने क्या होता? इधर राधा को भी  झुमकी के रूप में बड़ा सहारा मिल गया था.

एक दिन सफाई करते समय कमरे  में मकान बनने के बाद का बचा हुआ सामान और एक अलमारी में रखे रद्दी अखबार देख  झुमकी कुछ सोच कर मुसकरा उठी. शादी से पहले अपने  पिता से उस ने कुट्टी नाम की कला सीखी थी.

कुट्टी का मतलब होता है कागज को कूट कर उस से सुंदरसुंदर चीजें बनाना. पहले बेकार पड़े कागजों को कुछ दिन पानी में भिगो कर कूटा जाता है. इस लुगदी में मुलतानी मिट्टी और गोंद डाल कर गूंद लिया जाता है और किसी भी आकृति में ढाल कर सुखा लिया जाता है. बाद में उस आकृति पर रंग कर देते हैं.

‘इस काम के लिए मु झे जो भी सामान चाहिए, उस में से मुलतानी मिट्टी को छोड़ कर यहां सबकुछ  है, लेकिन उस की जगह एक थैली में  जो सफेद सीमेंट रखा है, उस से काम चल जाएगा.

‘मैडमजी तो यह सारा सामान फेंकने को कह रही थीं. इस का मतलब उन  को इस में से कुछ चाहिए भी नहीं, तो  मैं ही इस्तेमाल कर लेती हूं इसे,’  झुमकी ने सोचा.

डिस्टैंपर के खाली डब्बे में पानी भर कर  झुमकी ने वहां रखे रद्दी अखबार उस में भिगो दिए. 2-3 दिन बीतने पर भीगे कागजों को कूट कर लुगदी बना ली और बाकी सामान मिला कर एक सुंदर बड़ा सा फूलदान बना दिया. सूखने पर वहां रखे पेंट और ब्रश ले कर उसे सुंदर रंगों से रंग दिया.

जब  झुमकी फूलदान ले कर राधा के पास पहुंची, तो पीले, संतरी और सुनहरी रंगों से चमकते फूलदान को देख कर राधा हैरान रह गई. जब उसे पता लगा कि वह  झुमकी ने बचे सामान से बनाया है, तो हैरानी के साथसाथ उस की खुशी का ठिकाना न रहा.

‘‘ झुमकी तुम मु झे सिखाओगी यह कला?’’ राधा ने चहकते हुए पूछा.

‘‘क्यों नहीं मैडमजी, मु झे तो बहुत अच्छा लगेगा,’’  झुमकी को बहुत दिनों बाद एक अजीब सी खुशी महसूस हो रही थी.

अगले दिन से ही  झुमकी ने राधा को कुट्टी कला की बारीकियां बतानी शुरू कर दीं.  झुमकी ने बताया कि उस के पिता ज्यादा सामान बनाते थे, तो तकरीबन 15 दिन भिगोते थे कागजों को. ऐसे में 2-3 दिनों के बाद पानी बदल लेते थे. पुराना पानी वे पेड़पौधों में दे  देते थे.

पानी में कागजों को कुछ दिन भिगो कर जब कलाकृतियां बनाने का समय आया, तो  झुमकी राधा को सहारा देते हुए आंगन में ले आई और एक कुरसी पर बिठा दिया.

झुमकी को छोटेछोटे खिलौने बनाते देख राधा का मन भी खिलौने बनाने को करने लगा.  झुमकी एक टीचर की तरह राधा को सब सिखा रही थी और कुरसी पर बैठेबैठे ही राधा भी  झुमकी को देख कर खिलौने बना रही थी.

झुमकी ने उसे मूर्तियां, कटोरे और प्लेट जैसी और चीजें बनानी भी सिखाईं. सूखने पर रंग करने का आसान तरीका भी  झुमकी ने राधा को सिखा दिया. कुछ रंगों को मिला कर नए सुंदर रंग बनाना और उन का सही ढंग से इस्तेमाल करना भी राधा ने  झुमकी से सीख लिया.

इधर बिछुआ ठीक हुआ, उधर राधा के पैर का पलस्तर भी कट गया.  झुमकी और बिछुआ के गांव वापस जाने का समय आ गया था. जाने से पहले एक बार अस्पताल में जांच कराने के बाद  झुमकी और बिछुआ राधा और सुरेंद्र का अहसान मानते हुए भरे मन से विदा ले कर गांव चले गए.

कुछ दिनों तक राधा को घर सूनासूना लगता रहा, फिर धीरेधीरे सब सामान्य हो गया. वह पहले की तरह ही घर संभालने लगी और सुरेंद्र की मदद को दुकान भी पर जाने लगी थी.

अचानक उन की जिंदगी में एक मुसीबत आ गई. सुरेंद्र को दुकान के मालिक ने एक दिन आ कर बताया कि उस की और आसपास की कई दुकानों को गैरकानूनी होने के चलते जल्दी ही गिरा दिया जाएगा.

सभी दुकानदार आपस में सलाह कर इस नोटिस के खिलाफ कोई कदम उठाते, इस से पहले ही अचानक दुकानों को तोड़ने का काम शुरू हो गया.

सुरेंद्र ने बाकी सब की तरह ही अफरातफरी के बीच जल्दीजल्दी अपना सामान बाहर निकाला. उस का काफी सामान इधरउधर बिखर कर खराब हो गया. बाकी बचे सामान को किसी तरह वह घर ले कर आया.

अड़ोसपड़ोस में जा कर उन दोनों ने गुजारिश की कि पड़ोसी रोजमर्रा का कुछ सामान उन से खरीद लें, लेकिन बहुत कम लोगों ने ही सामान खरीदने के लिए उन के घर तक आने की जहमत उठाई. बचे सामान में से कुछ खराब हो गया और बाकी राधा ने घर पर इस्तेमाल कर लिया.

उन की असली चिंता तो अभी भी सामने थी, रोजीरोटी की. वे जान गए थे कि घर पर दुकान खोलने की बात सोचना बेकार है, क्योंकि ग्राहक तो आएंगे नहीं वहां चल कर. कुछ सालों से बचत कर के जो पैसे जोड़े थे, वे अब खत्म होने को आए थे.

एक दिन सुरेंद्र का दोस्त अनवर उस से मिलने घर आया हुआ था. चाय पीते हुए उस का ध्यान  झुमकी के बनाए फूलदान पर चला गया. उस ने बताया कि उस के दफ्तर के पास इस तरह का सामान बेचने वाला बैठता है, जिस की खूब बिक्री होती है. वहां विदेश से घूमने आए सैलानी भी आते हैं. वे लोग इसे ‘पेपर मैशे’ से बना सामान कहते हैं.

अनवर की बात सुन कर राधा की आंखें चमक उठीं. वह सुरेंद्र से बोली, ‘‘क्यों न हम सजावट का सामान बना कर उसे ही बेचने की कोशिश करें?  झुमकी ने कितने आसान तरीके से इतनी सुंदर चीजें बनानी सिखाई थीं हमें. शायद यही हो हमारी समस्या का हल.’’

सुरेंद्र की परेशानी अनवर सम झता था, लेकिन दूर करने का उपाय नहीं मिल पा रहा था. उसे भी यह बात जंच गई. वह बोला, ‘‘आप लोग ऐसा कर सकते हैं, तो मैं आप की बात दफ्तर के पास दुकान लगाने वाले से करवा दूंगा. महेश नाम है उस का.’’

सुरेंद्र ने तुरंत हामी भर दी.

अनवर ने जल्दी ही महेश से सुरेंद्र को मिलवा दिया. महेश  झुमकी के हाथों से बना फूलदान देख कर बहुत प्रभावित हुआ. उस ने कहा कि अगर सुरेंद्र ऐसा ही सामान बना लेगा, तो वह सारा सामान उस से खरीद लेगा. वैसे भी उसे खरीदारी के लिए बहुत दूर जाना पड़ता है. इस से किराए पर बहुत खर्च होता है और सामान टूटने पर नुकसान भी हो जाता है.

महेश की शर्त यही थी कि नया बनने वाला सामान भी फूलदान की टक्कर का हो. बेचने की जिम्मेदारी उस पर होगी. इस में दोनों का फायदा ही होगा.

अगले दिन से ही राधा ने  झुमकी द्वारा सिखाई गई एकएक बात को याद करते हुए काम करना शुरू कर दिया. सुरेंद्र भी उस की मदद कर रहा था. उन्होंने कागज भिगो कर रख दिए. राधा को याद आया कि  झुमकी ने उसे कुट्टी कला के एक और रूप के बारे में भी बताया था, जिस में गुब्बारा फुला कर उस पर कागज की कतरनें गोंद से चिपकाते हुए तकरीबन 7 परतें बना दी जाती हैं. सूखने पर गुब्बारे को फोड़ कर उस ढांचे को बराबर 2 भागों में काट कर दीवार पर सजाने वाले मुखौटे बनाए जाते हैं.

राधा ने सुरेंद्र से कई बड़ेबड़े गुब्बारे बाजार से मंगवा लिए और उन को फुला कर एकएक कर कागज की परतें  चिपका दीं.

कागज की मोटी परतें सूख गईं, तो मुलतानी मिट्टी गूंद कर ढांचे पर आंख, नाक व होंठ बना दिए और उन्हें फिर सुखाने के लिए रख दिया. सूखने पर  पेंट के डब्बों से रंग ले कर उन को रंग दिया गया.

सुरेंद्र ने अपना दिमाग लगाते हुए बोरी के रेशों से मुखौटों की भौंहें व बाल बनाए और बेकार पड़े बिजली के तारों से कानों में कुंडल पहना दिए. अपने बनाए मुखौटे देख कर उन की खुशी का ठिकाना न रहा.

कुछ दिनों बाद पानी में भीगे कागज जब गल गए तो  झुमकी के बताए तरीके से उन दोनों ने मिल कर छोटेछोटे पक्षी, जानवर, फोटो फ्रेम, फूलदान, गिफ्ट बौक्स और सजावट की अनेक चीजें बना कर तैयार कर लीं.

उन चीजों के सूख जाने पर राधा ने पुराना और बेकार सामान जैसे आईना, चूडि़यां, बिंदी व बटन वगैरह ले कर उन को सजा दिया

महेश ने जब उन सब चीजों को देखा, तो बहुत खुश हुआ. उस ने सामान ले जा कर जब अपनी दुकान में रखा तो पाया कि बाकी सामान के मुकाबले सुरेंद्र से खरीदे गए सामान की ओर लोग ज्यादा खिंच रहे हैं. जल्द ही उस ने यह बात सुरेंद्र को बता कर और चीजें बनाने का और्डर दे दिया.

राधा और सुरेंद्र मन ही मन  झुमकी का धन्यवाद करना नहीं भूले. राधा जानती थी कि  झुमकी के पिता कुट्टी कला में माहिर थे. उन के साथ बचपन से काम करती आ रही  झुमकी का हाथ इतना सधा हुआ था कि उस से सीखने के बाद ही आज राधा बेजोड़ सामान तैयार कर पाई है.

इस बार राधा ने मूर्तियां, खिलौने, कटोरे, प्लेट और सजावट की अनेक चीजें बनाईं. इस बार रंगने का काम सुरेंद्र ने किया. उस ने पेंट करने के लिए ब्रश के अलावा पेड़ के पत्तों, भिंडी के कटे भाग व फूलों की पंखुडि़यों का इस्तेमाल भी किया.

महेश के सामान को देख कर दूसरे कारोबारियों ने भी सुरेंद्र से सामान खरीदना शुरू कर दिया. धीरेधीरे धंधा खूब चमकने लगा. घर का नया कमरा, जो उन्होंने दुकान का सामान रखने के लिए बनाया था, उस में अब कुट्टी कला की मदद से सामान बनने लगा था.

झुमकी का अहसान वे न तो भूले थे और न ही भूलना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अपने इस नए कारोबार को ‘ झुमकी कला निकेतन’ नाम दिया.

Short Story: मजाक – प्यार का एहसास

Short Story, लेखिका- सुनीता चंद्रा

मैं अकेली पत्नी बेचारी, मुझे धुन चढ़ी कि प्रेम का एहसास पाऊं. इस एहसास को पाने के लिए मैं ने क्याक्या नहीं किया. अब आप पूछेंगे कि मुझे यह धुन चढ़ी क्यों? तो हुआ यों कि मैं बाल धो कर सजसंवर कर अपनी बालकनी में खड़ी थी तो युवकयुवती मेरी बालकनी के नीचे खड़े बातें कर रहे थे. अब कोई इतनी जोरजोर से बातें करेगा, तो मैं कान तो बंद नहीं कर सकती. बातें कुछ रोमांटिक थीं तो मैं भी ध्यान से सुनने लगी.

युवती कह रही थी कि भई, यह प्यार का एहसास भी क्या एहसास है, सबकुछ भुला देता है. सब नयानया लग रहा है. अपने पराए हो जाते हैं और जिसे कुछ दिन पहले मिले उस के लिए दुनिया भी छोड़ देने को तैयार…

अब मैं उन्हें सुनना छोड़ कर प्यार का एहसास क्या होता है, यह सोचने लग गई. भई, इतने साल हो गए मुझे क्यों नहीं यह एहसास हुआ अभी तक? अब मैं ने भी ठाना कि यह एहसास तो कर के ही रहूंगी.

अब मैं सजसंवर कर शाम को पति के आने का इंतजार करने लगी. पति आए और मैं झट से पेड़ की लता की माफिक उन से लिपट गई. पति बेचारे घबरा कर दूर हटे. मैं बेचारी प्यार के एहसास से महरूम उलटे पति के पसीने से तरबतर शरीर से आती बदबू से चकरा गई. मैं ने झट से अच्छा सा अपना मनपसंद परफ्यूम नथुनों से लगाया और सोचा, कोई बात नहीं, किला तो फतह कर के ही रहूंगी.

मैं ने अगले दिन रात के खाने में अच्छेअच्छे व्यंजन बनाए और फिर से पति का इंताजर करने लगी. पतिदेव आए, लेकिन साथ में ढेर सारे दोस्तों को ले कर और दरवाजे से ही आवाज लगाई, ‘‘अरे भई, देखो मेरे साथ कौनकौन आया है… ये सब आज तुम्हारे हाथों का बना खाना खा कर जाएंगे.’’

मैं अब अकेली पत्नी बेचारी. लंबी सांस भर कर रह गई. खैर, खाना बनाया गया. सब ने खाना खा कर खूब तारीफ की, डकार मारी और देर शाम तक खूब मस्ती की और फिर चले गए. मैं फिर प्यार के एहसास से कोसों दूर उलटे किचन में चारों तरफ बिखरे जूठे बरतन देख परेशान हो उठी.

अगले दिन मैं ने तय किया कि कुछ शौपिंग की जाए पति के साथ जा कर. हो सकता है वहीं कुछ प्यार का एहसास हो जाए. अब पतिदेव से कहा, ‘‘शाम को शौपिंग के लिए जाना है. कुछ जरूरी सामान लेना है. आप के साथ ही चलूंगी, इसलिए जल्दी आ जाना.’’

अभी महीने की शुरुआत थी, नईनई तनख्वाह आई थी हाथ में. सो उसे समेटा और अपनी जमापूंजी भी ली और चल पड़ी शौपिंग करने. मैं बड़े प्यार से इन की बांहो में बांह डाल कर पूरे बाजार से कुछ न कुछ खरीदती रही.

बाद में घर आ कर अपनी खरीदारी को देखा. मैं जो खरीद कर लाई थी उस की तो बिलकुल भी जरूरत नहीं थी. सोचा अब घर का बाकी खर्च कैसे चलेगा पर अगले ही पल मन को समझा लिया कि कोई बात नहीं. प्यार का एहसास तो करना ही था. फिर कुछ दिन शांत हो कर सोचा कि ऐसा क्या करूं कि मुझे भी प्यार का एहसास हो जाए. फिर एक आइडिया आया. पति के औफिस जाते ही एक बड़ा सा फूलों का गुलदस्ता पति के औफिस भेजा और एक प्यारा सा कार्ड भी. उस पर भी न जाने क्याक्या लिख डाला. फिर यह सोच कर बेसब्री से पति का इंतजार करने लगी कि वे आ कर जरूर अपनी खुशी का इजहार करेंगे और मुझे फिर प्रेम का एहसास हो ही जाएगा.

मगर यह क्या. पति आए, न कोई बात, न चेहरे पर कोई मुसकान, उलटे रोनी सूरत.

मैं ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

बोले, ‘‘पता नहीं किस ने आज औफिस में गुलदस्ता भेजा और साथ में एक कार्ड भी. कार्ड पर भी न जाने क्याक्या लिखा था. मेरे सपनों का राजा, मेरे जानू, वगैरहवगैरह.

‘‘2-4 बातें बौस के बारे में भी लिखी थीं कि खड़ूस? तुम से ओवरटाइम करवाता है, फालतू के काम भी लेता है. इसलिए मेरे लिए तुम्हारे पास वक्त ही नहीं है… और भी न जाने क्याक्या…

‘‘मेरे बौस मेरी मेज पर गुलदस्ता देख उस में से कार्ड निकाल कर सब के सामने चिल्लाचिल्ला कर पढ़ने लगे. शुक्र है उस पर भेजने वाले का नाम नहीं था, वरना आज मेरी नौकरी चली जाती.’’

अब मैं रोंआसी हो गई. यह देख पतिदेव बोले, ‘‘भई, तुम क्यों उदास होती हो? मेरी नौकरी थोड़ी ही चली गई है. फिर वह गुलदस्ता तुम ने थोड़े ही भेजा था.’’

मैं संभल कर कुछ देर बाद धीरे से बोली, ‘‘वह मैं ने ही भेजा था. मैं अपना नाम लिखना भूल गई थी.’’

इतना सुनना था कि वे चिल्लाने के लिए तत्पर हुए, पर

फिर शांत हो कर पूछा तो मैं ने सब उगल दिया.

सुन कर जोर से हंसे और बोले, ‘‘तो यह बात है. तभी मैं सोचूं कि तुम यह कैसा व्यवहार कर रही हो. मैं ने तो सोच लिया था कि तुम्हें डाक्टर के पास ले जाना पड़ेगा.’’

वे और भी न जाने क्याक्या बोलते रहे और मैं प्यार का एहसास पाने के अगले नुसखे के बारे में सोच रही हूं. पाठको, आप को भी यदि कोई उपाय सूझे तो मुझे जरूर लिखना.

Hindi Story: जुगाड़ – आखिर वह लड़की अमित से क्या चाहती थी?

Hindi Story, लेखक- अमित कुमार अम्बष्ट ‘आमिली’

मैं ठीक 10 बजे पूर्व निर्धारित स्थान पर पहुंच गया था. वह दूर से आती हुई दिखी. मैं ने मन ही मन में कहा ‘जुगाड़’ आ गई. हम ने फिर साथ में रिकशा लिया. इस बार मैं पहले की अपेक्षा अधिक चिपक कर बैठा शायद उसे आजमाना चाहता था.

मैंने फर्राटे से दौड़ते, हौर्न का शोर मचाते वाहनों के बीच दबे कदमों से चौराहा पार किया.

बीच चौराहे पर अंबेडकर की प्रतिमा जैसे हाथ खड़ी कर सब को स्टेशन की ओर जाने का संकेत कर रही हो. कैसरबाग, अमीनाबाद एक सवारी की रट लगाते वाहनचालक. दिन के 10 बजे लखनऊ के चारबाग चौराहे की हालत ऐसी ही होती है. भीड़ का एक हजूम, भागतेदौड़ते लोग, न जाने कितनी जल्दी है उन्हें मंजिल तक पहुंचने की.

मैं ने रिकशावाले से पूछा, ‘‘लाटूश रोड के कितने लोगे?’’

‘‘कहां जाना है लाटूश रोड में?’’ उस ने प्रश्न किया.

मैं ने कहा, ‘अमीनाबाद चौक से दोचार कदम आगे.’

‘एक सवारी के 8 रुपए और एक और बैठा लूं, तो 5 रुपए लगेंगे?’

मैं ने कहा, ‘अगर कोई मिलता है तो बैठा लो.’

अभी रिकशावाले ने पैडल पर पांव डाले ही थे कि आसमानी शमीज और सफेद सलवार धारण किए एक लड़की ने पूछा, ‘भैया, अमीनाबाद का क्या लोगे?’

‘5 रुपए,’ उस ने उत्तर दिया और वह लड़की आ कर मेरे साथ रिकशे पर बैठ गई.

गर मैं कहूं कि उस के मेरे साथ बैठने से मु झे कोई फर्क नहीं पड़ा तो शायद यह  झूठ होगा. विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. चाहे वह स्त्री का पुरुष के प्रति हो या पुरुष का स्त्री के प्रति. मैं भी इस से अछूता नहीं था. कई बार हम अपनी पत्नी या फिर प्रेमिका से कहते हैं, ‘मैं तुम्हारे सिवा किसी और को नहीं देखता. जबकि, हमें पता है कि हम  झूठ बोल रहे हैं उस से जिस से वास्तव में हम बेहद प्रेम करते हैं. हर इंसान को खुद से प्यार करने वाले का संपूर्ण समर्पण बेहद सुकून देता है चाहे वह स्त्री का पुरुष के प्रति हो या पुरुष का स्त्री के प्रति.

हम जैसे आम लोगों के लिए इस चुंबकीय आकर्षण से बचना संभव नहीं. बस, हम आकर्षण की दिशा बदल सकते हैं. किसी लड़की को बहन स्वीकार करना भी उतना ही बड़ा आकर्षण है जितना किसी स्त्री में प्रेयसी ढूंढ़ना. फर्क सिर्फ रिश्तों का है क्योंकि दोनों में ही प्रेम है. हां, दोनों ही प्रेम के आयाम भले भिन्न हों पर मेरी दृष्टि से बहन का रिश्ता जितना शुद्ध है उतना ही पवित्र प्रेमिका का रिश्ता भी है. शायद मैं भावना में बह गया.

उस लड़की की ड्रैस देख कर मैं सम झ चुका था कि वह किसी कालेज की छात्रा है और इस से पहले मैं अपनी जबान खोलता, उस ने मु झ से पूछा, ‘‘आप कहीं नौकरी करते हैं?’’

बड़ा ही सहज मगर दूरगामी प्रश्न था क्योंकि इस के उत्तर के साथ ही वह मु झे और मेरी शैक्षिक योग्यता को अपने मूल्यों के तराजू पर तौलने वाली थी.

मैं ने जोशीले अंदाज में कहा, ‘‘मैं ने एमबीए किया है और जरमनी की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए काम करता हूं. मैं कविताएं और आलेख भी लिखता हूं जिन में से कुछ विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं.’’ मैं ने शेखी बघारी मगर मेरे हृदय में आत्मविश्वास के भाव थे.

फिर उस ने पूछा, ‘‘तुम्हारी सैलरी कितनी है?’’

मैं ने कहा, ‘‘20 हजार रुपए.’’

उस ने पूछा, ‘‘कुल कितना मिल  जाता है.’’

मैं ने उत्तर दिया, ‘‘तकरीबन 25-30 हजार रुपए हो जाता है.’’

इस बार मैं थोड़ा असहज था क्योंकि मैं  झूठ बोल रहा था. फिर भी मैं ने अपने चेहरे का भाव छिपाने का हर संभव प्रयास किया. मु झे पता नहीं कि उस ने मु झ पर भरोसा किया या नहीं.

उस ने मु झ से अपने बारे में बताते हुए कहा, ‘‘मैं ने आईटी में एमबीए किया है. किंतु नौकरी नहीं मिली. अब बीएड कर रही हूं. शिक्षा का क्षेत्र महिलाओं के लिए बहुत उपयुक्त है.’’

उस ने साथ में तर्क दिया और मैं ने स्वीकृति में सिर हिलाया. उस ने आगे पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

मैं ने कहा, ‘‘अमित.’’

फिर उस ने चहक कर कहा, ‘‘मेरे भाई का नाम भी अमित है.’’

इस बार मु झे लगा जैसे वह जानबू झ कर मेरे करीब आने की कोशिश कर रही हो. उस ने फिर प्रश्न किया, ‘‘तुम रहने वाले कहां के हो?’’

मैं ने कहा, ‘‘बिहार.’’

उस ने इस बार चौंक कर कहा, ‘‘बिहार, फिर हाथ मिलाओ, मैं भी बिहार की हूं.’’

इस बार मु झे उस का उत्तर थोड़ा संदेहास्पद लगा. मैं ने धीरे से उस के हाथ पर अपना हाथ रख दिया. लेकिन यह पकड़ वैसी नहीं थी जिस आत्मविश्वास से मैं ‘मिली’ (मेरी प्रेमिका) का हाथ पकड़ता था. मैं ने जासूस की तरह उस से सवाल किया, ‘‘बिहार में कहां की रहने वाली हो?’’

उस ने कहा. ‘‘गया.’’

इस बार मु झे लगा जैसे वह सच कह रही हो. मैं ने कहा, ‘‘मैं हाजीपुर का रहने वाला हूं.’’

उस ने अनभिज्ञता से कहा, ‘‘हाजीपुर?’’

मैं ने कहा, ‘‘हां, वही जहां से माननीय रामविलास पासवानजी सांसद का चुनाव जीतते रहे  हैं.’’ मनुष्य भी अजीब प्राणी है. जब वह कमजोर पड़ता है, सभी उस से दूरी बना लेते हैं और जैसे ही वह शक्तिशाली हो जाता है लौह चुंबक की भांति, अनजानों को भी अपनी ओर समेट लेता है. इसलिए मैं ने भी रामविलासजी से अपना रिश्ता जोड़ा.

अब उस ने मेरा मोबाइल नंबर मांगा और मैं ने उस का. फिर मैं औफिस के पास रिकशे से उतर गया. उस ने कहा, ‘‘अगर कभी चाहो तो मेरे घर आओ. मु झे मिलना हुआ तो मैं इस औफिस में आ जाऊंगी.’’

मैं ने असहज भाव से उसे देखा, रिकशे वाले को अपने हिस्से के पैसे दिए. फिर औफिस के अंदर चला गया. हृदय में अजीब सा द्वंद्व था. मैं ने सब से पहले इस घटना की चर्चा अपने औफिस की महिला सहकर्मियों से की. सुनते ही सब के सब साथ हंस पड़ीं, साथ मैं भी हंसा. किंतु उन सब की हंसी में एक रहस्य था जो उस लड़की के चरित्र की ओर इशारा कर रहा था और मैं असमंजस की हालत में था.

दिन खत्म हुआ. घर पहुंचा. अजीब सी मनोस्थिति थी. इस घटना का जिक्र मैं ने अपने रूमपार्टनर विकास से किया. उस ने जोर दे कर पूछा, ‘‘उस ने तेरा हाथ छुआ?’’

‘‘मैं ने कहा, ‘‘हां.’’

‘‘तु झे अपने घर भी बुलाया है?’’

‘‘हां.’’

‘‘अपना मोबाइल नंबर भी दिया है. फिर तो वह साली जुगाड़ है. मु झे उस का मोबाइल नंबर देना,’’ उस ने कहा.

पता नहीं क्यों लेकिन मैं उस की बात टाल गया और मैं ने उसे मोबाइल नंबर नहीं दिया. जुगाड़ का अभिप्राय मैं अच्छी तरह से सम झ सकता था. पता नहीं क्यों, हम सब दोहरी जिंदगी जीते हैं, चाहे हम और हमारा समाज नारी स्वतंत्रता की कितनी ही बड़ीबड़़ी बातें सार्वजनिक स्थल पर कर ले पर सब ‘ढाक के तीन पात’ अपने हमाम में सब नंगे.

यों देखें, तो हाथ का पकड़ा जाना एक साधारण सी घटना थी. पर न जाने क्यों हम सब को लगा कि इस में कुछ असामान्य था और यह सिर्फ इसलिए क्योंकि वह एक लड़की थी.

क्या हम सचमुच 21वीं शताब्दी के दौर में हैं? मेरे लिए यह एक यक्ष प्रश्न था क्योंकि उन सब की सोच में मैं भी शामिल था.

मैं 2 दिनों तक उस के फोन आने का इंतजार करता रहा. पर कोई कौल नहीं आई. अकसर लड़कियों की जबान से सुना है, ‘लड़के एक नंबर के कुत्ते होते हैं’ और मैं इस से कभी इनकार नहीं करता. मन में अजीब सा कुतूहल था. तीसरे दिन मैं ने उस का नंबर मिलाया.

मैं ने कहा, ‘‘मैं अमित बोल रहा हूं. हम लाटूश रोड पर मिले थे.’’

उस ने कहा, ‘‘हां अमित, कैसे हो?’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं ठीक हूं. तुम कैसी हो?’’

‘‘मैं भी ठीक हूं.’’

इस से पहले मैं कुछ पूछता, उस ने फिर सवाल दागना शुरू किया, ‘‘तुम कमरे में अकेले रहते हो?’’

मेरा उत्तर ‘हां’ था. मैं फिर  झूठ बोल रहा था मगर इस बार मु झे अपने चेहरे के भाव छिपाने की जरूरत न पड़ी क्योंकि दूरभाष पर आप हमेशा आधीअधूरी बात ही करते हैं. आप वे बातें सुन तो सकते हो जो सामने वाला कह रहा होता है किंतु आप उस के चेहरे पर लिखे शब्दों को पढ़ नहीं सकते.

उस ने सवाल किया, ‘‘तुम ने अब तक शादी क्यों नहीं की?’’

मैं ने महसूस किया कि जैसे वह मु झे खोलने का प्रयास कर रही हो. मैं ने अनमने ढंग से कहा, ‘‘हो जाएगी, मम्मीपापा देख

रहे हैं.’’

उस के प्रश्न का सिलसिला अभी थमा नहीं था, ‘‘अमित तुम्हारी उम्र कितनी है?’’

मैं ने कहा, ‘‘26 प्लस.’’

उस ने कहा, ‘‘अमित, तुम्हें शादी की शारीरिक जरूरत महसूस नहीं होती?’’

इस से पहले मैं हां या न कुछ भी उत्तर दे पाता, उस ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘मैं तुम लड़कों का मनोविज्ञान बहुत अच्छे से सम झती हूं. सोचते होगे, पहले सैटल हो जाओ. खूब पैसे कमा लो, फिर किसी परी जैसी लड़की से शादी करोगे. अमित, मु झे लगता है ये सब करतेकरते कब जिंदगी निकल जाती है, हमें पता भी नहीं चलता. जिंदगी जैसी है, जितनी है, उसे बस जी लेनी चाहिए.’’

अब मु झे विकास की बातों पर भरोसा होने लगा था. मु झे लगा जैसे वह मु झे आमंत्रण दे रही हो और इस से पहले कुछ कह पाता, उस ने फिर सवाल दागा, ‘‘तुम खाना कहां खाते हो?’’

मैं ने कहा, ‘खुद ही बनाता हूं.’

‘‘अमित, तुम किसी कामवाली को क्यों नहीं रख लेते. काम से थक जाते होगे,’’ उस ने हंसते हुए आगे कहा, ‘‘किसी जवान लड़की को मत रख लेना. किसी उम्रदराज या किसी छोटे लड़के को रख लो, तुम्हारी मदद करेगा.’’

मैं ने जानबू झ कर उसे कुरेदा, ‘‘जवान लड़की क्यों नहीं?’’

उस ने कहा, ‘‘यह लखनऊ है,  दिल्ली नहीं.’’

इस बार मु झे लगा जैसे वह मेरी भावनाओं को छेड़ने का प्रयास कर रही हो. सवाल अभी खत्म नहीं हुए थे. अगला प्रश्न फिर सामने था.

‘‘तुम ने कभी किसी से प्यार किया है?’’

मैं ने कहा, ‘‘लड़कियां दोस्त बहुत हैं मगर कोई रिश्ता अब तक प्यार तक नहीं पहुंचा.’’ इस बार मु झे खुद पर हंसी आई.

‘‘अमित, तुम ने बताया था कि तुम कविताएं लिखते हो.’’

मेरे पास बस यही मौका था. मैं ने कहा, ‘अगर कविता सुननी हो तो मु झ से मिलो. मु झे खुद नहीं पता था कि मैं ने उसे क्यों बुलाया क्योंकि यह शारीरिक आकर्षण कतई नहीं था. अगर वह मु झे अपना संपूर्ण समर्पण कर भी देती तो भी मैं शायद उस के लिए न जाता. यह शायद इसलिए क्योंकि एक पुरुष एक साधारण स्त्री से भी बेहद कमजोर होता है. लेकिन, उस के बारे में जानने की जिज्ञासा जरूर थी.

उस ने कहा, ‘‘मु झे प्रेम वाली कविताएं अच्छी लगती हैं.’’

मैं ने उत्तर दिया, ‘‘मैं रोमांटिक कविता ही लिखता हूं.’’ और फिर अगले दिन चारबाग चौराहे पर मिलना तय हुआ.

मैं ठीक 10 बजे पूर्व निर्धारित स्थान पर पहुंच गया. वह दूर से आती हुई दिखी. मैं ने मन ही मन में कहा जुगाड़ आ गई. हम ने फिर साथ में रिकशा लिया. इस बार मैं पहले की अपेक्षा अधिक चिपक कर बैठा.

मैं ने पूछा, ‘‘कैसी हो?’’

उस ने कहा, ‘‘बस, ठीक. अमित, तुम ने कहा था कि तुम अपनी कविता सुनाओगे.’’

मैं ने उसे अपनी एक छोटी सी कविता सुनाई. इस बार मैं उस के चेहरे पर उभरे शब्दों को पढ़ सकता था.

उस ने कहना प्रारंभ किया, ‘‘अमित, कविताओं की कोंपलें हृदय के भीतर से निकलती हैं. पहले हम अपनी भावनाओं को कोरे कागज पर उकेरते हैं, फिर धीरेधीरे उसे जीने लगते हैं. शायद, मैं गलत होऊं मगर मु झे लगता है हर लिखने वाले का दिल आईने की तरह बिलकुल साफ होता है. पता नहीं क्यों मैं उस दिन तुम से मिली तो तुम पर विश्वास करने को दिल चाहा और मैं ने तुम्हें अपना मोबाइल नंबर दे दिया.

‘‘अमित, पता नहीं इस अंधी दौड़ में हम कहां जा रहे हैं. पैसापैसा और पैसा, जिंदगी बस इस में सिमट कर रह गई है. पर मेरे लिए प्यार महत्त्वपूर्ण है.’’

उस ने मेरा हाथ फिर खींच कर अपने हाथों में लिया. हमारी मानसिकता संकीर्ण होती जा रही है. हम जो हैं वह दिखना नहीं चाहते और जो नहीं हैं, चाहते हैं बस वही दिखे. अजीब सी सचाई थी उस की आंखों में.

‘‘अमित, अगर मु झे कोई तुम्हारे साथ इस तरह बैठे देखे तो पता नहीं क्या सोचेगा और मैं उन्हें रोक भी नहीं सकती क्योंकि बहुत कम ऐसे लोग हैं जो व्यवस्थित सोचते हैं या इस की कोशिश करते हैं. मगर यह जरूरी नहीं है कि हम रोज मिलें क्योंकि  2 अच्छे लोगों का बिखर जाना अच्छा होता है ताकि वे 2 अलगअलग दिशाओं में अच्छाइयां फैला सकें.’’

मैंने एक भरपूर दृष्टि उस के चेहरे पर डाली और खुद से प्रश्न किया, क्या सचमुच मैं एक अच्छा आदमी हूं? अचानक रिकशे वाले ने कहा, ‘‘अमीनाबाद आ गया.’’ हमारे बीच का वार्त्तालाप थम सा गया.

वह हंसी और कहना शुरू किया, ‘‘अमित अपना खयाल रखो, बिलकुल दुबलेपतले हो. खाने का ध्यान रखा करो और हां, जल्दी शादी कर लो. लेकिन, मु झे बुलाना मत भूलना.’’

उस के चेहरे पर आदेश का भाव था. मैं रिकशे से उतरा. इस बार मैं ने उस का हाथ उसी आत्मविश्वास से पकड़ा जैसे मैं किसी परममित्र या अपनी प्रेमिका का पकड़ता था क्योंकि इस बार मेरे आकर्षण को दिशा मिल चुकी थी. उस का रिकशा धीरेधीरे आगे बढ़ने लगा. मैं वहीं खड़ा तब तक उसे देखता रहा जब तक वह मेरी आंखों से ओझल नहीं हो गई.

Hindi Story: चौराहे की काली

Hindi Story: ‘‘मेरी बीवी बहुत बीमार है पंडितजी…’’ धर्म सिंह ने पंडित से कहा, ‘‘न जाने क्यों उस पर दवाओं का असर नहीं होता है. जब वह मुझे घूर कर देखती है तो मैं डर जाता हूं.’’ ‘‘तुम्हारी बीवी कब से बीमार है?’’ पंडित ने पूछा.

‘‘महीनेभर से.’’ ‘‘पहले तुम मुझे अपनी बीवी से मिलवाओ तभी मैं यह बता पाऊंगा कि वह बीमार है या उस पर किसी भूत का साया है.’’

‘‘मैं अपनी बीवी को कल सुबह ही दिखा दूंगा,’’ इतना कह कर धर्म सिंह चला गया. पंडित भूतप्रेत के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना कर पैसे ऐंठता था. इसी धंधे से उस ने अपना घर भर रखा था.

अगली सुबह धर्म सिंह के घर पहुंच कर पंडित ने कहा, ‘‘अरे भाई धर्म सिंह, तुम ने कल कहा था कि तुम्हारी बीवी बीमार है. जरा उसे दिखाओ तो सही…’’ धर्म सिंह अपनी बीवी सुमन को अंदर से ले आया और उसे एक कुरसी पर बैठा दिया.

पंडित ने उसे देखते ही पैसा ऐंठने का अच्छा हिसाबकिताब बना लिया. सुमन के बाल बिखरे हुए और कपड़े काफी गंदे थे. उस की आंखें लाल थीं और गालों पर पीलापन छाया था. जो भी उस के सामने जाता, वह उसे ऐसे देखती मानो खा जाएगी.

पंडित सुमन की आंखें देख कर बोला, ‘‘अरे धर्म सिंह, मैं देख रहा हूं कि तुम्हारी बीवी पर बड़े भूत का साया है.’’ ‘‘कैसा भूत पंडितजी?’’ धर्म सिंह ने हैरानी से पूछा.

‘‘तुम नहीं समझ पाओगे कि इस पर किस किस्म का भूत है,’’ पंडित बोला. ‘‘क्या भूतों की भी किस्में होती हैं?’’

‘‘क्यों नहीं. कुछ भूत सीधे होते हैं, कुछ अडि़यल, पर तुम्हारी बीवी पर…’’ पंडित बोलतेबोलते रुक गया. ‘‘क्या बात है पंडितजी… जरा साफसाफ बताइए.’’

‘‘यही कि तुम्हारी बीवी पर सीधेसादे भूत का साया नहीं है. इस पर ऐसे भूत का साया है जो इनसान की जान ले कर ही जाता?है,’’ पंडित ने हाथ की उंगली उठा कर जवाब दिया. ‘‘फिर तो पंडितजी मुझे यह बताइए कि इस का हल क्या है?’’ धर्म सिंह कुछ सोचते हुए बोला.

पंडित ने हाथ में पानी ले कर कुछ बुदबुदाते हुए सुमन पर फेंका और बोला, ‘‘बता तू कौन है? यहां क्या करने आया है? क्या तू इसे ले कर जाएगा? मगर मेरे होते हुए तू ऐसा कुछ नहीं कर सकता.’’ ‘‘पंडितजी, आप किस से बातें कर रहे हैं?’’ धर्म सिंह ने पूछा.

‘‘भूत से, जो तेरी बीवी पर चिपटा है,’’ होंठों से उंगली सटा कर पंडित ने धीरे से कहा. ‘‘क्या भूत बोलता है?’’ धर्म सिंह ने सवाल किया.

‘‘हां, भूत बोलता है, पर सिर्फ हम से, आम आदमी से नहीं.’’ ‘‘तो क्या कहता है यह भूत?’’

‘‘धर्म सिंह, भूत कहता है कि वह भेंट चाहता है.’’ ‘‘कैसी भेंट?’’ यह सुन कर धर्म सिंह चकरा गया.

‘‘मुरगे की,’’ पंडित ने कहा. ‘‘पर हम लोग तो शाकाहारी हैं.’’

‘‘तुम नहीं चढ़ा सकते तो मुझे दे देना. मैं चढ़ा दूंगा,’’ पंडित ने रास्ता सुझाया. ‘‘पंडितजी, मुझे एक बात बताओ?’’

‘‘पूछो, क्या बात है?’’ ‘‘मेरी बीवी पर कौन सी किस्म का भूत है?’’

पंडित ने सुमन की तरफ उंगली उठाते हुए कहा, ‘‘इस पर ‘चौराहे की काली’ का असर है.’’ ‘‘क्या… ‘चौराहे की काली’,’’ धर्म सिंह की आंखें डर के मारे फैल गईं, ‘‘मेहरबानी कर के कोई इलाज बताएं पंडितजी.’’

‘‘जरूर. वह काली कहती है कि तुझे एक मुरगा, एक नारियल, 101 रुपए, बिंदी, टीका, कपड़ा और सिंदूर रात को 12 बजे चौराहे पर रख कर आना पड़ेगा.’’ ‘‘इतना सारा सामान पंडितजी?’’ धर्म सिंह ने कहा.

‘‘हां, अगर ऐसा नहीं हुआ तो तेरी बीवी गई काम से,’’ पंडित तपाक से बोला. ‘‘जी अच्छा पंडितजी, पर इतना सामान और वह भी रात के समय, यह मेरे बस की बात नहीं है,’’ धर्म सिंह ने कहा.

‘‘तेरे बस की बात नहीं है तो मैं रख आऊंगा…’’ पंडित ने कहा, ‘‘शाम को सारा सामान लेते आना. मैं शाम को आऊंगा.’’ धर्म सिंह तैयारी करने में लग गया. हालांकि उस ने बीवी को डाक्टर से दवा भी दिला दी, पर वह पंडित को भी मौका देना चाहता था इसीलिए चौराहे पर जाने से मना कर दिया.

रात को पंडित पूरा सामान ले कर चौराहे पर रखने के लिए चल दिया. हवा के झोंके, झींगुरों का शोर और उल्लुओं की डरावनी आवाजें रात के सन्नाटे को चीर रही थीं.

पंडित जैसे ही चौराहे से 30 फुट की दूरी पर पहुंचा, उसी समय वहां 15-16 फुट ऊंची मीनार सी मूर्ति नजर आने लगी. वह कभी छोटी हो जाती तो कभी बड़ी. उस में से घुंघरू की खनखनाती आवाज भी आ रही थी. पंडित यह सब देख कर बुरी तरह घबरा गया. हिम्मत कर के उस ने पूछा, ‘‘क… क… कौन है तू?’’

‘‘मैं चौराहे की काली हूं,’’ मीनार से घुंघरूओं की झंकार के साथ एक डरावनी आवाज निकली. ‘‘तू… तू… क्या चाहती है?’’

‘‘मैं तुझे खाना चाहती हूं,’’ मीनार में से फिर आवाज आई. ‘‘क… क… क्यों? मेरी क्या गलती है?’’ पंडित ने डरते हुए पूछा.

‘‘क्योंकि तू ने लोगों से बहुत पैसा ऐंठा है. अब मैं तेरे खून से अपनी प्यास बुझाऊंगी,’’ कहतेकहते काली धीरेधीरे नजदीक आ रही थी. पंडित के हाथों से सामान तो पहले ही छूट चुका था. ज्यों ही उस ने मुड़

कर पीछे की तरफ भागना चाहा, उस का पैर धोती में अटक गया और वह

गिर पड़ा. जब पंडित को होश आया तो उस ने अपनेआप को बिस्तर पर पाया. वह उस समय भी चिल्लाने लगा, ‘‘बचाओ… बचाओ… चौराहे की काली मुझे खा जाएगी…’’

‘‘कौन खा जाएगी? कैसी काली पंडितजी?’’ पंडित के कानों में धर्म सिंह की आवाज गूंजी. पंडित ने आंखें खोलीं तो अपने सामने धर्म सिंह व गांव के तमाम लोगों को खड़ा पाया. पंडित फिर बोला, ‘‘चौराहे की काली.’’

‘‘नहीं पंडितजी, आप बिना वजह ही डर गए हैं. वह काली नहीं थी,’’ धर्म सिंह ने पंडित को थपथपाते हुए कहा. ‘‘तो फिर कौन थी वह?’’

‘‘वहां मैं था पंडितजी, आप तो यों ही डर रहे हैं,’’ धर्म सिंह ने कहा. ‘‘पर वह तो… कभी छोटी तो कभी बड़ी और घुंघरुओं की आवाज…’’ पंडित बड़बड़ाया, ‘‘न… न… नहीं, तुम नहीं हो सकते.’’

‘‘क्यों नहीं हो सकता? मैं वही नजारा फिर दिखा सकता हूं,’’ इतना कह कर धर्म सिंह काला कपड़ा लगा लंबा बांस, जिस में घुंघरू लगे थे, ले आया. उस ने बांस से कपड़ा कभी ऊंचा उठाया तो कभी नीचा किया और खुद को बीच में छिपा लिया. तब जा कर पंडित को यकीन हुआ कि वह काली नहीं थी.

धर्म सिंह ने पंडित से कहा, ‘‘इस दुनिया में न तो भूत हैं और न ही चुड़ैल. यह सारा चक्कर तो सरासर मक्कारी और फरेब का है.”

Social Story: यह कैसा बदला

Social Story: मृदुल को अब अहसास हो रहा था कि बदले की आग ने उसे ही झुलसा कर रख दिया है… और फिर बदला भी कैसा? उस के साथ किसी और ने अपराध किया और उस ने किसी और से बदला लिया. उसे ऐसा फैसला नहीं लेना चाहिए था.

पुलिस मृदुल के पीछे पड़ी हुई थी और यकीनन उसे पकड़ लेगी. उस के 2 साथियों को पुलिस ने पकड़ भी लिया था. क्या करे क्या न करे, उस की समझ में नहीं आ रहा था.

तकरीबन 3 महीने पहले तक मृदुल की जिंदगी काफी अच्छी चल रही थी. वह एक एयर कंपनी में पायलट था. वह थाईलैंड में रहता था और अच्छी जिंदगी जी रहा था. वैसे तो तकरीबन हर देश में उसे जाना होता था, पर ज्यादातर वह भारत और यूरोप ही जाता था.

काफी खर्च कर के मृदुल ने पायलट का कोर्स किया था. नौकरी भी मिल गई थी. 2-3 सालों तक उस ने नौकरी की, पर कोरोना महामारी के चलते सब से ज्यादा असर अगर किसी कारोबार पर पड़ा था तो, वह थी एयर इंडस्ट्री. कई देशों ने दूसरे देशों से आवाजाही बंद कर दी थी. यहां तक कि घरेलू उड़ान भी रद्द हो गई थी. ऐसे हालात में कई पायलटों को कंपनियों ने अलविदा कह दिया था और उन में से एक वह भी था.

महामारी ने सिर्फ इतना कहर ही मृदुल के ऊपर नहीं बरपाया था. एक दिन वह थाईलैंड में अपने फ्लैट में बैठा भविष्य के बारे में सोच रहा था कि अचानक कुछ लोग उस के घर में आए. वे सरकारी वरदी में थे. उन्होंने उसे बताया कि वे कस्टम महकमे से हैं और उस के घर की तलाशी लेने आए हैं.

जब तक मृदुल कुछ समझ पाता, उस के मोबाइल फोन, लैपटॉप, पर्स वगैरह को उन्होंने अपने कब्जे में ले लिया. उन में से कुछ लोग इस घटना का वीडियो भी बना रहे थे.

“पुलिस स्टेशन…” एक ने कहा और मृदुल को घसीटते हुए गाड़ी में बिठाया वे और पुलिस स्टेशन की ओर ले चले, पर कुछ दूर जाने के बाद उन लोगों ने मृदुल को एक टैक्सी में बिठाया और टैक्सी वाले को वहां की भाषा में कुछ कह कर थाईलैंड की करंसी कुछ ‘बाट’ दिए. मृदुल हक्काबक्का था. कुछ ही देर में टैक्सी वाले ने उसे उस के फ्लैट के नजदीक ही छोड़ दिया.

“पुलिस स्टेशन?” मृदुल ने ड्राइवर से पूछा.

“नो पुलिस स्टेशन…” ड्राइवर ने कहा और चलता बना.

मृदुल समझ गया कि उसे अपराधियों ने ठग लिया है. नजदीकी पुलिस स्टेशन में जा कर उस ने रिपोर्ट लिखवा दी और दुखी मन से उस ने थाईलैंड छोड़ मुंबई में रहने की योजना बना ली.

भारत सरकार हर देश से अपने नागरिकों को लाने का इंतजाम कर रही थी और उसी के तहत मृदुल भी वापस आ गया.

थाईलैंड में हुए कांड को मृदुल भूल तो नहीं पाया था, पर जख्म कुछ कम जरूर हो गए थे. एक दिन वह मुंबई में भटक रहा था कि उस की नजर यूंग नाम के एक थाई बाशिंदे पर नजर पड़ी. थाईलैंड में यूंग उस के फ्लैट के नजदीक ही रहता था और सुबह की सैर के लिए नजदीकी पार्क में आया करता था. अकसर यूंग से उस की बात होती थी.

यूंग को देख मृदुल ने टोकना चाहा, पर एकाएक उस के मन में खयाल आया कि जिस तरह उसे थाईलैंड में ठगा गया था, वैसे ही वह यूंग को ठग सकता है. पर अगर वह यूंग के पास जाएगा तो वह उसे पहचान लेगा, यह सोच उस ने दूरी बना कर उस का पीछा किया और उस का फ्लैट कहां है, इस की जानकारी ले ली.

मृदुल ने सब से पहले यूंग पर निगरानी रखना शुरू कर दिया. उस ने देखा कि वह किसी लड़की के साथ वह रहता है. लगता था कि वह यूंग की गर्लफ्रैंड है. उन के घर से आनेजाने के समय पर भी वह निगाह रख रहा था. वह चाहता था कि जब यूंग घर में अकेला हो, तभी उस के ऊपर धावा बोला जाए.

यूग की गर्लफ्रैंड अमूमन सुबह 9 बजे घर से निकलती थी और शाम 6 बजे वापस आती थी. इस बीच ही काम को अंजाम देना उचित रहेगा, मृदुल ने सोचा.

मृदुल खुद यूंग के पास जा नहीं सकता था, क्योंकि वह उसे पहचान जाता. जिस तरह यूंग के देश वालों ने उसे ठगा है उसी तरह मृदुल भी उसे अपने देश में ठगेगा. पर कैसे? कस्टम डिपार्टमैंट की ओर से कुछ अफसर यूंग के पास जाएंगे और जो समान उस के पास होगा उसे छीन लेंगे. पर कस्टम डिपार्टमैंट के आदमी वह लाए कहां से?

एकाएक मृदुल को अपने क्लब का ध्यान आया जहां कई बाउंसर रहते थे. 1-2 से उस की जानपहचान भी थी. एक दिन समय निकाल कर वह एक बाउंसर के पास गया और बोला, “भाई, एक छोटा सा काम है, पर उसे आप जैसे बाहुबली ही कर सकते हैं.”

“क्या काम है बताओ?” खुद को बाहुबली कहलाने में उस बाउंसर को फख्र महसूस हुआ.

“कस्टम डिपार्टमैंट का अफसर बन कर एक थाई बाशिंदे को लपेटना है,” मृदुल ने कहा.

“पुलिसथाने के चक्कर में नहीं पड़ेंगे हम,” उस बाउंसर ने साफ माना किया.

“क्या पुलिस का चक्कर… उस थाई के समझ में कुछ आएगा तब न? वह न तो हमारा नाम जानता है, न हमें पहचानता है. क्या बताएगा पुलिस को.. और पुलिस भी आप लोगों से पंगा नहीं लेना चाहेगी. फिर जो कुछ भी मिलेगा उस में आधा हिस्सा आप लोगों का,” मृदुल ने उसे समझाया.

“आप लोगों का मतलब? और कौन रहेगा इस में?” बाउंसर ने पूछा.

“भाई, कस्टम डिपार्टमैंट की ओर से जाओगे, तो कम से कम 4-5 आदमी तो होने चाहिए,” मृदुल ने समझाया.

“अगर उस के पास एक लाख मिले भी तो 5 आदमियों में क्या मिलेगा? क्यों इतना बड़ा रिस्क लें हम?” बाउंसर ने एतराज जताया.

“कैसे जानते हो कि एक लाख ही मिलेगा… अरे, उस का मोबाइल, आईपैड, पर्स, जेवर सभी कुछ मिला कर कई लाख हो जाएंगे,” मृदुल ने समझाया.

कुछ नानुकर के बाद वह बाउंसर राजी हो गया और अपने कुछ और साथी बाउंसरों को भी राजी कर लिया.

वे सब दोपहर के 2 बजे यूंग की हाउसिंग सोसाइटी में कस्टम अफसर बन कर पहुंच गए. सरकारी अफसर समझ कर सिक्योरिटी गार्ड ने भी उन्हें नहीं रोका.

वे यूंग के फ्लैट के दरवाजे पर गए और डोरबैल का बटन दबाया. यूंग डोरबैल की आवाज सुनते ही बाहर निकाला. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाता, वे चारों उस के घर में धड़ाधड़ घुस गए. उन्होंने उस का मोबाइल फोन छीन लिया. साथ ही पास में रखे आईपैड, कंप्यूटर, पर्स वगैरह को भी छीन लिया. 2 लोग अंदर जा कर तलाशी लेने लगे और बाकी 2 वीडियो बनाने लगे.

आननफानन में सामान बटोर कर यूंग को थाने चलने को कहा गया. जैसे ही वह बाहर निकला उसे एक आटोरिकशा में बिठा दिया गया और ड्राइवर को नजदीक की किसी जगह पर छोड़ने को कह दिया.

मृदुल के प्लान के मुताबिक, जैसा उस के साथ थाईलैंड में हुआ था, सबकुछ वैसा ही हो गया. पर यूंग ने तुरंत पुलिस स्टेशन में इस की खबर कर दी और पुलिस ने वीडियो फुटेज की मदद से सभी बाउंसरों को पकड़ लिया. इस की जानकारी मृदुल को आज के अखबार से मिली थी.

अब क्या करे, मृदुल समझ ही नहीं पा रहा था. एकाएक उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. स्क्रीन पर उस बाउंसर का नाम फ्लैश हो रहा था, जिसे पुलिस गिरफ्तार कर चुकी थी. इस का मतलब पुलिस ने बाउंसर के मोबाइल से उसे फोन किया है. उस ने कांपते हाथों से मोबाइल को स्विच औफ किया और चेहरे पर आए पसीने को पोंछा.

मृदुल जानता था कि आज नहीं तो कल पुलिस की गिरफ्त में उसे आना ही है. यह कैसा बदला लिया था उस ने यूंग से. बदले की इस आग ने तो उसे ही झुलसा दिया था. अब पछताने के सिवा उस के पास कोई चारा नहीं था.

Short Story: बरसात की एक रात

Short Story, लेखक- राजीव रोहित

थोड़ी देर पहले तक बरसात अपने शबाब पर था. रात के आठ साढ़े आठ बजनेवाले थे. अब बारिश की रफ्तार थोड़ी धीमी हो रही थी.

वे दोनों बस स्टॉप की एक शेड के नीचे खड़े थे.बहुत देर से एक भी बस नहीं आयी थी. आम कहानी के नायक और नायिका की तरह…! लड़की का जिक्र पहले…तो लड़की बेहद खूबसूरत..

चेहरे पर परिपक्वता भी स्पष्ट नजर आ रही थी. बारिश की बूंदे उसके चेहरे को सुंदरता और गरिमा दोनों प्रदान कर रही थीं.

फिलहाल परिस्थिति के अनुसार चेहरे पर चिंता छायी हुई थी. जो  उसकी उदासी को दर्शाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी.

सबसे खास बात यह कि वह गौर से बस स्टॉप पर खड़े एकमात्र सहयात्री पुरुष को देखे जा रही थी. सहयात्री पुरुष युवावस्था से थोड़ा बहुत आगे बढ़ चुका प्रतीत हो रहा था.

कपड़े उसने किसी युवा के समान ही चुस्त दुरुस्त पहन रखे थे.चेहरा एकदम साफ सुथरा. चिकना या चॉकलेटी कहें तो ज्यादा बेहतर होगा.बालों की शैली में दिलीप साहब, अमित जी और शाहरूख का बेमिसाल गठजोड़ दिखाई दे रहा था.गोरे चिट्टे भी थे.कुल मिलाकर उनके और उनके दोस्तों के हिसाब से उनके चेहरे में युवा तत्व अभी भी नजर आते थे.

लड़की वो भी अकेली…दुर्लभ संयोग था. उनके होंठो पर बरबस रफी साहब की मीठी आवाज में कभी ‘जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात’ गीत आ जा रहा था तो कभी किशोर दा का प्यारा सा मदहोश करनेवाला गीत ‘एक लड़की भीगी भागी सी’…उनकी आंखों से बरस पड़ने को तड़प रहा था.

उनका हृदय कभी या खुदा ये बरसात की रात कभी खत्म न हो.ताकि बन जाये एक नया खूबसूरत सा  रिश्ता !

लड़की अब भी उन्हें गौर से देखे जा रही थी. उनका दिल बेचैन हो रहा था.

‘क्या वो बात करना चाहती है?

‘क्या वो उन पर फिदा हो गयी है?’

‘क्या सचमुच एक नया रिश्ता बन जायेगा आज की रात?’

‘दोस्त उसे यूं ही नहीं कहते कि भाई किस चक्की का आटा खाते हो?

‘उम्र का पता ही नहीं चलता.‘

‘भाभी बहुत किस्मतवाली है.‘

‘विवाह पश्चात प्रेम संबंध क्या उचित होगा?’

‘लोग क्या कहेंगे?’

”पत्नी का तो दिल ही टूट जाएगा.गुस्से में कहीं तलाक का नोटिस भेज देगी तो फिर क्या होगा?

‘पता नहीं, प्रत्येक महीने में कितना हरजाना भरना पड़ेगा?’

‘समाज की  नजरों से गिरकर  वो कैसे जियेंगे?

इतना सोचेंगे तो मिल चुका जीवन में आनंद!

जो होगा वो देखा जाएगा.

इश्क और जंग में सब  जायज है.

इतिहास के पन्नों पर पहुँच गए.

दुनिया की जितनी मशहूर प्रेम कथाएँ हैं. उनमें किसी में भी मिलन-योग नहीं है.

तो क्या हुआ प्रेम-योग तो है.

फिल्मों में ऐसे ही नहीं दिखाते !पहली नजर में प्रेम…!

इस उधेड्बुन में फंसे थे कि  उनके कानों में मिश्री की डली में घुली आवाज पड़ी.

“क्या दो मिनट आपसे बात कर सकती हूँ ? आखिर चीर-प्रतीक्षित कामना पूर्ण हुई.

“हाँ-हाँ कहिए न?”

“जी मेरे मोबाईल की बैटरी डाउन हो गई है.क्या आपका फोन इस्तेमाल कर सकती हूँ.

घर  में जरा फोन करना था.“

“हाँ-हाँ, क्यों नहीं?घरवालों को चिंता तो हो ही रही होगी. बारिश का मौसम है. समय  भी

ज्यादा होता जा रहा है.“ उन्होने  फोन निकालकर उसे बड़े प्यार से दिया.

ऐसा करते समय उनका हाथ उसकी हथेलियों से छू  गया. इतना मखमली  स्पर्श…!

“थैंक्स.“ उसने फोन अपने हाथों में लिया.

“ जरा मेरा बैग पकड़िए न. अगर आप बुरा न मानें तो. उसमें रखी हुई डायरी में नंबर है.  “

कहते हुये उसने .बैग से डायरी निकालनी है.

‘घर का नंबर तो सबको याद रहता है. इसका अर्थ है यह भी चाहती है कि बातचीत का सिलसिला आगे बढ़े.

उन्होने बैग बड़ी नजाकत से पकड़ा.

उसने अंदर से एक छोटी सी प्यारी सी डायरी निकाली.

“पापा ने नंबर कल ही बदला है. इसलिए याद नहीं है. “ उसने मुस्कुराकर कहा.

‘अरे वाह! आने दो. उसके पापा से दोस्ती कर लूँगा. फिर घर तक पहुंचाना आसान हो जाएगा.‘

“हैलो पापा, मैं यहाँ बस स्टॉप पर एक घंटे से खड़ी हूँ.आप जल्दी आ जाओ. मैं एक भाई साहब के फोन से कर रही हूँ.मैं लोकेशन भेजती हूँ.“

‘ भाई साहब कहा… भैया नहीं… अंकल नहीं…धन्यवाद शहजादी.‘ उन्होने संतोष  की सांस ली.

“लीजिये. आपका  बहुत-बहुत शुक्रिया.आप इधर ही जॉब करते हैं?”

“ जी हा. और आप?”

“ मैं तो गलत नंबर की बस पकड़ने के कारण इधर आकर फंस गई. “

“ अच्छा हुआ. “ उनके मुंह से निकाल पड़ा.

“ कुछ कहा आपने?”

“ जी  नहीं.ये मेरा कार्ड है. रख लीजिये. कभी आपके काम आ सकूँ तो मुझे अच्छा लगेगा.“

“ मेरे पास कार्ड तो नहीं है. पर आपको नंबर देती हूं.नाम शालिनी लिखिएगा.

बड़े मनोयोग से उन्होने नाम और नंबर मोबाईल में फीड किया.

“ कहाँ  काम करते हैं आप?”

“ कार्ड में है. सेंट्रल गवर्नमेंट के ऑडिट डिपार्टमेन्ट में सीनियर ऑफिसर हूँ. “

“ बहुत बढ़िया.मेरे पापा भी…!”

उसकी बात अधूरी रह गई.

एक मोटर साईकिल आकर वहाँ रुकी.

मोटरसाईकिल सवार का हेलमेट उठाना था कि उनके लिए मानों कयामत आ गई.

“ अरे शर्मा जी आप! अच्छा हुआ. मैं तो घबरा रहा था कि पता नहीं कैसा आदमी है?

बेटी, ये शर्मा जी हैं. हमारे डिपार्टमेन्ट में हैं. दूसरे सेक्शन में बैठते हैं. शर्मा जी, कभी आइये न हमारे घर पर.

बिटिया बहुत अच्छी चाय बनाती है.“वो बड़े उत्साह में बोले जा रहे थे.

“ जी अच्छा . उन्होने मरी हुई आवाज में कहा.

लड़की की आँखों में अब शोख़ी और शरारत दोनों झलक रही थीं.

वो मोटर साईकिल में पीछे  बैठ गई.

“थैंक  यू अंकल … बाय अंकल.“

मोटरसाईकिल आगे बढ़ गई.

‘क्या दो बार अंकल कहना जरूरी था?उनका दिल भर आया था.

बड़ा अफसोस हो रहा था. सारे अरमान धरे के धरे रह गए.

चल खुसरो घर आपने.

बरसात भी अब पूरी तरह थम चुकी थी.

Family Story: सच्चाई – आखिर क्यों मां नहीं बनना चाहती थी सिमरन?

Family Story: पड़ोस में आते ही अशोक दंपती ने 9 वर्षीय सपना को अपने 5 वर्षीय बेटे सचिन की दीदी बना दिया था. ‘‘तुम सचिन की बड़ी दीदी हो. इसलिए तुम्हीं इस की आसपास के बच्चों से दोस्ती कराना और स्कूल में भी इस का ध्यान रखा करना.’’ सपना को भी गोलमटोल सचिन अच्छा लगा था. उस की मम्मी तो यह कह कर कि गिरा देगी, छोटे भाई को गोद में भी नहीं उठाने देती थीं. समय बीतता रहा.

दोनों परिवारों में और बच्चे भी आ गए. मगर सपना और सचिन का स्नेह एकदूसरे के प्रति वैसा ही रहा. सचिन इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए मणिपाल चला गया. सपना को अपने ही शहर में मैडिकल कालेज में दाखिला मिल गया था. फिर एक सहपाठी से शादी के बाद वह स्थानीय अस्पताल में काम करने लगी थी. हालांकि सचिन के पापा का वहां से तबादला हो चुका था. फिर भी वह मौका मिलते ही सपना से मिलने आ जाता था. सऊदी अरब में नौकरी पर जाने के बाद भी उस ने फोन और ईमेल द्वारा संपर्क बनाए रखा. इसी बीच सपना और उस के पति सलिल को भी विदेश जाने का मौका मिल गया. जब वे लौट कर आए तो सचिन भी सऊदी अरब से लौट कर एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी कर रहा था.

‘‘बहुत दिन लगा दिए लौटने में दीदी? मैं तो यहां इस आस से आया था कि यहां आप अपनी मिल जाएंगी. मम्मीपापा तो जबलपुर में ही बस गए हैं और आप भी यहां से चली गईं. इतने साल सऊदी अरब में अकेला रहा और फिर यहां भी कोई अपना नहीं. बेजार हो गया हूं अकेलेपन से,’’ सचिन ने शिकायत की. ‘‘कुंआरों की तो साथिन ही बेजारी है साले साहब,’’ सलिल हंसा, ‘‘ढलती जवानी में अकेलेपन का स्थायी इलाज शादी है.’’

‘‘सलिल का कहना ठीक है सचिन. तूने अब तक शादी क्यों नहीं की?’’ सपना ने पूछा.

‘‘सऊदी अरब में और फिर यहां अकेले रहते हुए शादी कैसे करता दीदी? खैर, अब आप आ गई हैं तो लगता है शादी हो ही जाएगी.’’

‘‘लगने वाली क्या बात है, शादी तो अब होनी ही चाहिए… और यहां अकेले का क्या मतलब हुआ? शादी जबलपुर में करवा कर यहां आ कर रिसैप्शन दे देता किसी होटल में.’’

‘‘जबलपुर वाले मेरी उम्र की वजह से न अपनी पसंद का रिश्ता ढूंढ़ पा रहे हैं और न ही मेरी पसंद को पसंद कर रहे हैं,’’ सचिन ने हताश स्वर में कहा, ‘‘अब आप समझा सको तो मम्मीपापा को समझाओ या फिर स्वयं ही बड़ी बहन की तरह यह जिम्मेदारी निभा दो.’’ ‘‘मगर चाचीचाचाजी को ऐतराज क्यों है? तेरी पसंद विजातीय या पहले से शादीशुदा बालबच्चों वाली है?’’ सपना ने पूछा.

‘‘नहीं दीदी, स्वजातीय और अविवाहित है और उसे भविष्य में भी संतान नहीं चाहिए. यही बात मम्मीपापा को मंजूर नहीं है.’’

‘‘मगर उसे संतान क्यों नहीं चाहिए और अभी तक वह अविवाहित क्यों है?’’ सपना ने शंकित स्वर में पूछा. ‘‘क्योंकि सिमरन इकलौती संतान है. उस ने पढ़ाई पूरी की ही थी कि पिता को कैंसर हो गया और फिर मां को लकवा. बहुत इलाज के बाद भी दोनों को ही बचा नहीं सकी. मेरे साथ ही पढ़ती थी मणिपाल में और अब काम भी करती है. मुझ से शादी तो करना चाहती है, लेकिन अपनी संतान न होने वाली शर्त के साथ.’’

‘‘मगर उस की यह शर्त या जिद क्यों है?’’

‘‘यह मैं ने नहीं पूछा न पूछूंगा. वह बताना तो चाहती थी, मगर मुझे उस के अतीत में कोई दिलचस्पी नहीं है. मैं तो उसे सुखद भविष्य देना चाहता हूं. उस ने मुझे बताया था कि मातापिता के इलाज के लिए पैसा कमाने के लिए उस ने बहुत मेहनत की, लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया, जिस के लिए कभी किसी से या स्वयं से लज्जित होना पड़े. शर्त की कोई अनैतिक वजह नहीं है और वैसे भी दीदी प्यार का यह मतलब यह तो नहीं है कि उस में आप की प्राइवेसी ही न रहे? मेरे बच्चे होने न होने से मम्मीपापा को क्या फर्क पड़ता है? जतिन और श्रेया ने बना तो दिया है उन्हें दादादादी और नानानानी. फूलफल तो रही है उन की वंशबेल,’’ फिर कुछ हिचकते हुए बोला, ‘‘और फिर गोद लेने या सैरोगेसी का विकल्प तो है ही.’’

‘‘इस विषय में बात की सिमरन से?’’ सलिल ने पूछा. ‘‘उसी ने यह सुझाव दिया था कि अगर घर वालों को तुम्हारा ही बच्चा चाहिए तो सैरोगेसी द्वारा दिलवा दो, मुझे ऐतराज नहीं होगा. इस के बावजूद मम्मीपापा नहीं मान रहे. आप कुछ करिए न,’’ सचिन ने कहा, ‘‘आप जानती हैं दीदी, प्यार अंधा होता है और खासकर बड़ी उम्र का प्यार पहला ही नहीं अंतिम भी होता है.’’

‘‘सिमरन का भी पहला प्यार ही है?’’ सपना ने पूछा. सचिन ने सहमति में सिर हिलाया, ‘‘हां दीदी, पसंद तो हम एकदूसरे को पहली नजर से ही करने लगे थे पर संयम और शालीनता से. सोचा था पढ़ाई खत्म करने के बाद सब को बताएंगे, लेकिन उस से पहले ही उस के पापा बीमार हो गए और सिमरन ने मुझ से संपर्क तक रखने से इनकार कर दिया. मगर यहां रहते हुए तो यह मुमकिन नहीं था. अत: मैं सऊदी अरब चला गया. एक दोस्त से सिमरन के मातापिता के न रहने की खबर सुन कर उसी की कंपनी में नौकरी लगने के बाद ही वापस आया हूं.’’ ‘‘ऐसी बात है तो फिर तो तुम्हारी मदद करनी ही होगी साले साहब. जब तक अपना नर्सिंगहोम नहीं खुलता तब तक तुम्हारे पास समय है सपना. उस समय का सदुपयोग तुम सचिन की शादी करवाने में करो,’’ सलिल ने कहा.

‘‘ठीक है, आज फोन पर बात करूंगी चाचीजी से और जरूरत पड़ी तो जबलपुर भी चली जाऊंगी, लेकिन उस से पहले सचिन मुझे सिमरन से तो मिलवा,’’ सपना ने कहा. ‘‘आज तो देर हो गई है, कल ले चलूंगा आप को उस के घर. मगर उस से पहले आप मम्मी से बात कर लेना,’’ कह कर सचिन चला गया. सपना ने अशोक दंपती को फोन किया. ‘‘कमाल है सपना, तुझे डाक्टर हो कर भी इस रिश्ते से ऐतराज नहीं है?  तुझे नहीं लगता ऐसी शर्त रखने वाली लड़की जरूर किसी मानसिक या शारीरिक रोग से ग्रस्त होगी?’’ चाची के इस प्रश्न से सपना सकते में आ गई.

‘‘हो सकता है चाची…कल मैं उस से मिल कर पता लगाने की कोशिश करती हूं,’’ उस ने खिसियाए स्वर में कह कर फोन रख दिया.

‘‘हम ने तो इस संभावना के बारे में सोचा ही नहीं था,’’ सब सुनने के बाद सलिल ने कहा. ‘‘अगर ऐसा कुछ है तो हम उस का इलाज करवा सकते हैं. आजकल कोई रोग असाध्य नहीं है, लेकिन अभी यह सब सचिन को मत बताना वरना अपने मम्मीपापा से और भी ज्यादा चिढ़ जाएगा.’’

‘‘उन का ऐतराज भी सही है सलिल, किसी व्याधि या पूर्वाग्रस्त लड़की से कौन अभिभावक अपने बेटे का विवाह करना चाहेगा? बगैर सचिन या सिमरन को कुछ बताए हमें बड़ी होशियारी से असलियत का पता लगाना होगा,’’ सपना ने कहा. ‘‘सिमरन के घर जाने के बजाय उस से पहले कहीं मिलना बेहतर रहेगा. ऐसा करो तुम कल लंचब्रेक में सचिन के औफिस चली जाओ. कह देना किसी काम से इधर आई थी, सोचा लंच तुम्हारे साथ कर लूं. वैसे तो वह स्वयं ही सिमरन को बुलाएगा और अगर न बुलाए तो तुम आग्रह कर के बुलवा लेना,’’ सलिल ने सुझाव दिया. अगले दिन सपना सचिन के औफिस में पहुंची ही थी कि सचिन लिफ्ट से एक लंबी, सांवली मगर आकर्षक युवती के साथ निकलता दिखाई दिया.

‘‘अरे दीदी, आप यहां? खैरियत तो है?’’ सचिन ने चौंक कर पूछा.

‘‘सब ठीक है, इस तरफ किसी काम से आई थी. अत: मिलने चली आई. कहीं जा रहे हो क्या?’’

‘‘सिमरन को लंच पर ले जा रहा था. शाम का प्रोग्राम बनाने के लिए…आप भी हमारे साथ लंच के लिए चलिए न दीदी,’’ सचिन बोला.

‘‘चलो, लेकिन किसी अच्छी जगह यानी जहां बैठ कर इतमीनान से बात कर सकें.’’

‘‘तब तो बराबर वाली बिल्डिंग की ‘अंगीठी’ का फैमिलीरूम ठीक रहेगा,’’ सिमरन बोली. चंद ही मिनट में वे बढि़या रेस्तरां पहुंच गए. ‘बहुत बढि़या आइडिया है यहां आने का सिमरन. पार्किंग और आनेजाने में व्यर्थ होने वाला समय बच गया,’’ सपना ने कहा. ‘‘सिमरन के सुझाव हमेशा बढि़या और सटीक होते हैं दीदी.’’

‘‘फिर तो इसे जल्दी से परिवार में लाना पड़ेगा सब का थिंक टैंक बनाने के लिए.’’ सचिन ने मुसकरा कर सिमरन की ओर देखा. सपना को लगा कि मुसकराहट के साथ ही सिमरन के चेहरे पर एक उदासी की लहर भी उभरी जिसे छिपाने के लिए उस ने बात बदल कर सपना से उस के विदेश प्रवास के बारे में पूछना शुरू कर दिया. ‘‘मेरा विदेश वृतांत तो खत्म हुआ, अब तुम अपने बारे में बताओ सिमरन.’’ ‘‘मेरे बारे में तो जो भी बताने लायक है वह सचिन ने बता ही दिया होगा दीदी. वैसे भी कुछ खास नहीं है बताने को. सचिन की सहपाठिन थी, अब सहकर्मी हूं और नेहरू नगर में रहती हूं.’’

‘‘अपने पापा के शौक से बनाए घर में जो लाख परेशानियां आने के बावजूद इस ने बेचा नहीं,’’ सचिन ने जोड़ा, ‘‘अकेली रहती है वहां.’’

‘‘डर नहीं लगता?’’

‘‘नहीं दीदी, डर तो अपना साथी है,’’ सिमरन हंसी. ‘‘आई सी…इस ने तेरे बचपन के नाम डरपोक को छोटा कर दिया है सचिन.’’ सिमरन खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘‘नहीं दीदी, इस ने बताया ही नहीं कि इस का नाम डरपोक था. किस से डरता था यह दीदी?’’ ‘‘बताने की क्या जरूरत है जब रातदिन इस के साथ रहोगी तो अपनेआप ही पता चल जाएगा,’’ सपना हंसी. ‘‘रातदिन साथ रहने की संभावना तो बहुत कम है, मैं मम्मीजी की भावनाओं को आहत कर के सचिन से शादी नहीं कर सकती,’’ सिमरन की आंखों में उदासी, मगर स्वर में दृढ़ता थी. सपना ने घड़ी देखी फिर बोली, ‘‘अभी न तो समय है और न ही सही जगह जहां इस विषय पर बहस कर सकें. जब तक मेरा नर्सिंगहोम तैयार नहीं हो जाता, मैं तो फुरसत में ही हूं, तुम्हारे पास जब समय हो तो बताना. तब इतमीनान से इस विषय पर चर्चा करेंगे और कोई हल ढूंढ़ेंगे.’’

‘‘आज शाम को आप और जीजाजी चल रहे हैं न इस के घर?’’ सचिन ने पूछा.

‘‘अभी यहां से मैं नर्सिंगहोम जाऊंगी यह देखने कि काम कैसा चल रहा है, फिर घर जा कर दोबारा बाहर जाने की हिम्मत नहीं होगी और फिर आज मिल तो लिए ही हैं.’’

‘‘आप मिली हैं न, जीजाजी से भी तो मिलवाना है इसे,’’ सचिन बोला, ‘‘आप घर पर ही आराम करिए, मैं सिमरन को ले कर वहीं आ जाऊंगा.’’

‘‘इस से अच्छा और क्या होगा, जरूर आओ,’’ सपना मुसकराई, ‘‘खाना हमारे साथ ही खाना.’’ शाम को सचिन और सिमरन आ गए. सलिल की चुटकियों से शीघ्र ही वातावरण अनौपचारिक हो गया. जब किसी काम से सपना किचन में गई तो सचिन उस के पीछेपीछे आया.

‘‘आप ने मम्मी से बात की दीदी?’’

‘‘हां, हालचाल पूछ लिया सब का.’’

‘‘बस हालचाल ही पूछा? जो बात करनी थी वह नहीं की? आप को हो क्या गया है दीदी?’’ सचिन ने झल्ला कर पूछा. ‘‘तजरबा, सही समय पर सही बात करने का. सिमरन कहीं भागी नहीं जा रही है, शादी करेगी तो तेरे से ही. जहां इतने साल सब्र किया है थोड़ा और कर ले.’’ ‘‘इस के सिवा और कर भी क्या सकता हूं,’’ सचिन ने उसांस ले कर कहा. इस के बाद सपना ने सिमरन से और भी आत्मीयता से बातचीत शुरू कर दी. यह सुन कर कि सचिन औफिस के काम से मुंबई जा रहा है, सपना उस शाम सिमरन के घर चली गई. उस का घर बहुत ही सुंदर था. लगता था बनवाने वाले ने बहुत ही शौक से बनवाया था. ‘‘बहुत अच्छा किया तुम ने यह घर न बेच कर सिमरन. जाहिर है, शादी के बाद भी यहीं रहना चाहोगी. सचिन तैयार है इस के लिए?’’ ‘‘सचिन तो बगैर किसी शर्त के मेरी हर बात मानने को तैयार है, लेकिन मैं बगैर उस के मम्मीपापा की रजामंदी के शादी नहीं कर सकती. मांबाप से उन के बेटे को विमुख कभी नहीं करूंगी. प्रेम तो विवेकहीन और अव्यावहारिक होता है दीदी. उस के लिए सचिन को अपनों को नहीं छोड़ने दूंगी.’’

‘‘यह तो बहुत ही अच्छी बात है सिमरन. चाचाचाचीजी यानी सचिन के मम्मीपापा भी बहुत अच्छे हैं. अगर उन्हें ठीक से समझाया जाए यानी तुम्हारी शर्त का कारण बताया जाए तो वे भी सहर्ष मान जाएंगे. लेकिन सचिन ने उन्हें कारण बताया ही नहीं है.’’ ‘‘बताता तो तब न जब उसे खुद मालूम होता. मैं ने उसे कई बार बताने की कोशिश की, लेकिन वह सुनना ही नहीं चाहता. कहता है कि जब मेरे साथ हो तो भविष्य के सुनहरे सपने देखो, अतीत की बात मत करो. मुझे भी अतीत याद रखने का कोई शौक नहीं है दीदी, मगर अतीत से या जीवन से जुड़े कुछ तथ्य ऐसे भी होते हैं जिन्हें चाह कर भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, उन के साथ जीना मजबूरी होती है.’’ ‘‘अगर चाहो तो उस मजबूरी को मुझ से बांट सकती हो सिमरन,’’ सपना ने धीरे से कहा. ‘‘मैं भी यही सोच रही थी दीदी,’’ सिमरन ने जैसे राहत की सांस ली, ‘‘अकसर देर से जाने और बारबार छुट्टी लेने के कारण न नौकरी पर ध्यान दे पा रही थी न पापा के इलाज पर, अत: मैं नौकरी छोड़ कर पापा को इलाज के लिए मुंबई ले गई थी. वहां पैसा कमाने के लिए वैक्यूम क्लीनर बेचने से ले कर अस्पताल की कैंटीन, साफसफाई और बेबी सिटिंग तक के सभी काम लिए. फिर मम्मीपापा के ऐतराज के बावजूद पैसा कमाने के लिए 2 बार सैरोगेट मदर बनी. तब तो मैं ने एक मशीन की भांति बच्चों को जन्म दे कर पैसे देने वालों को पकड़ा दिया था, लेकिन अब सोचती हूं कि जब मेरे अपने बच्चे होंगे तो उन्हें पालते हुए मुझे जरूर उन बच्चों की याद आ सकती है, जिन्हें मैं ने अजनबियों पर छोड़ दिया था. हो सकता है कि विचलित या व्यथित भी हो जाऊं और ऐसा होना सचिन और उस के बच्चे के प्रति अन्याय होगा. अत: इस से बेहतर है कि यह स्थिति ही न आने दूं यानी बच्चा ही पैदा न करूं. वैसे भी मेरी उम्र अब इस के उपयुक्त नहीं है. आप चाहें तो यह सब सचिन और उस के परिवार को बता सकती हैं. उन की कोई भी प्रतिक्रिया मुझे स्वीकार होगी.’’

‘‘ठीक है सिमरन, मैं मौका देख कर सब से बात करूंगी,’’ सपना ने सिमरन को आश्वासन दिया. सिमरन ने जो कहा था उसे नकारा नहीं जा सकता था. उस की भावनाओं का खयाल रखना जरूरी था. सचिन के साथ तो खैर कोई समस्या नहीं थी, उसे तो सिमरन हर हाल में ही स्वीकार थी, लेकिन उस के घर वालों से आज की सचाई यानी सैरोगेट मदर बन चुकी बहू को स्वीकार करवाना आसान नहीं था. उन लोगों को तो सिमरन की बड़ी उम्र बच्चे पैदा करने के उपयुक्त नहीं है कि दलील दे कर समझाना होगा. सचिन के प्यार के लिए इतने से कपट का सहारा लेना तो बनता ही है.

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