शक की फांस बनी नासूर : भाग 2

एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित ने मृतका शालू का मोबाइल फोन खंगाला तो उस में स्वीट होम, हसबैंड, सिस्टर तथा आकाश के नाम से फोन नंबर सेव थे, जो उस के घर वालों के थे. इन नंबरों पर काल कर केश्री दीक्षित ने घर वालों को घटना की जानकारी दी तथा शीघ्र ही विधूना थाने आने को कहा.

शालू ने मौत से पहले अपनी बहन सपना से बात की थी. घटनास्थल पर मकान मालिक तरुण सिंह भी मौजूद था. सीओ मुकेश प्रताप सिंह ने जब उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि सिपाही शालू गिरि ने 2 हफ्ते पहले ही रूम किराए पर लिया था.

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दूसरे रूम में पब्लिक डिग्री कालेज विधूना के निदेशक मनोज कुमार सिंह चौहान रहते हैं. उन का परिवार कानपुर में रहता है. कल वह परिवार से मिलने कानपुर चले गए थे. मकान मालिक ने बताया कि शालू गिरि बातचीत में सरल तथा हंसमुख स्वभाव की थी. उस ने आत्महत्या किन परिस्थितियों में की, उसे इस की जानकारी नहीं है.

पति करता था शक

चूंकि आत्महत्या का यह मामला एक सिपाही का था. अत: पुलिस अधिकारियों ने नायब तहसीलदार को भी सूचना भेज दी थी. सूचना पा कर नायब तहसीलदार वंदना कुशवाहा घटनास्थल पर आ गई थीं. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर पुलिस अधिकारियों से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की. उस के बाद उन्हीं की मौजूदगी में इंस्पेक्टर विनोद कुमार शुक्ला ने सिपाही शालू गिरि के शव का पंचनामा भरा.

पंचनामे पर नायब तहसीलदार वंदना कुशवाहा ने हस्ताक्षर किए. उस के बाद शव पोस्टमार्टम हेतु औरैया के जिला अस्पताल भिजवा दिया.

देर शाम मृतका शालू गिरि के मांबाप, भाईबहन तथा पति थाना विधूना आ गए. उस के बाद तो थाने में कोहराम मच गया. मां सुमित्रा देवी, पिता राजेंद्र गिरि तथा बहन स्वाति व सपना दहाड़ मार कर रो रही थीं. थानाप्रभारी ने उन्हें धैर्य बंधाया. फिर थानाप्रभारी उन सब को उस रूम में ले गए, जहां शालू ने आत्महत्या की थी.

वहां एक बार फिर कोहराम मच गया. थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने आत्महत्या का कारण जानने के लिए सब से पहले मृतका शालू की मां सुमित्रा देवी से पूछताछ की. सुमित्रा देवी ने बताया कि शालू उन की लाडली बेटी थी. वह बेहद खुशमिजाज थी. अभी एक महीना पहले ही उस की शादी पड़ोस में रहने वाले इलम चंद्र के बेटे राहुल से हुई थी.

राहुल शालू को खुश नहीं रखता था, जिस से वह परेशान रहने लगी थी. राहुल, शालू पर शक भी करता था. वह उसे मानसिक तौर पर भी टौर्चर करता था. उस के कारण ही शालू ने आत्महत्या की है.

पिता राजेंद्र गिरि ने बताया कि वह किसान हैं. बेटियों को पढ़ाने व उन का भविष्य बनाने के लिए उन्होंने सब कुछ दांव पर लगाया. शालू सिपाही बनी तो बेहद खुशी हुई. इस के बाद शालू की मरजी से उस का विवाह राहुल के साथ कर दिया. लेकिन शादी के बाद उस की खुशी गायब हो गई थी.

पहली जून सोमवार को शालू की बात उस की मां सुमित्रा से दिन में ढाई बजे हुई थी. तब वह परेशान थी और जिंदगी से ऊबने की बात कर रही थी. तब हम दोनों ने उसे समझाया था, और जिंदगी को निराशा से आशा में बदलने की बात कही थी. लेकिन उस ने रात में आत्महत्या कर ली.

शालू की बड़ी बहन सपना, जो लखनऊ के कैसर बाग थाने में सिपाही है, ने बताया कि ट्रेनिंग के बाद जब शालू की पहली पोस्टिंग विधूना थाने में हुई तो वह बेहद खुश थी. सप्ताह में एकदो बार उस की उस से बात जरूर होती थी.

शादी के पहले वह बेहद खुश रहती थी. हंसहंस कर बतियाती थी और चुहलबाजी भी करती थी. लेकिन शादी के बाद वह गुमसुम रहने लगी थी. उस ने फोन पर बात करना भी बंद कर दिया था. जब कभी बात होती तो कहती कि वह अपनी जिंदगी से खुश नहीं है. जी चाहता है जिंदगी खत्म कर लूं.

शायद शालू अपने पति राहुल से खुश नहीं थी. क्योंकि वह शालू पर शक करता था. सिपाही आकाश को ले कर राहुल के मन में गलत धारणा घर कर गई थी. आकाश को ले कर ही राहुल उसे मानसिक तौर पर परेशान करता था. जबकि शालू और सिपाही आकाश के बीच सिर्फ दोस्ती थी. दोनों एकदूसरे के व्यक्तित्व से प्रभावित थे और आमनासामना होने पर हंसबोल लेते थे.

सपना ने बताया कि बीती रात 11 बजे कई बार नंबर मिलाने के बाद उस की शालू से बात हुई थी. तब वह बहकीबहकी बातें कर रही थी. बात करतेकरते उस ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया था.

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उस के बाद जब सुबह उस ने फोन मिलाया तो शालू फोन रिसीव ही नहीं कर रही थी. तब घबरा कर मैं ने आप को फोन किया था और शालू से बात कराने को कहा था. लेकिन कुछ देर बाद आप ने सूचना दी थी कि शालू ने आत्महत्या कर ली है.

पत्नी की मौत की खबर पा कर राहुल भी अपने पिता इलम चंद्र के साथ थाना विधूना पहुंचा था. थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने जब राहुल से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस ने शालू की रजामंदी से उस के साथ प्रेमविवाह किया था. शादी के बाद उसे पता चला कि शालू की दोस्ती किसी आकाश नाम के सिपाही से है.

वह मोबाइल फोन पर उस से बतियाती है. आकाश को ले कर उस ने शालू से टोकाटाकी की थी. इस से वह उस से नाराज रहने लगी थी. पर वह आत्महत्या जैसा कदम उठा लेगी, ऐसा तो उस ने कभी सोचा नहीं था.

शालू कौन थी? उस ने आत्महत्या क्यों और किन परिस्थितियों में की? यह सब जानने के लिए हम पाठकों को उस के अतीत की ओर ले चलते हैं.

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बालौनी थाना अंतर्गत एक गांव है- लतीफपुर दत्त नगर. इसी गांव में राजेंद्र गिरि अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुमित्रा गिरि के अलावा 3 बेटियां सपना, शालू, स्वाति तथा एक बेटा राजीव था.

राजेंद्र गिरि किसान थे. कृषि उपज से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. खेती के काम में उन का बेटा राजीव भी मदद करता था. उन्होंने अपने सभी बच्चों को उन की इच्छा के अनुसार पढ़ाया.

राजेंद्र की बड़ी बेटी सपना पुलिस विभाग में नौकरी करना चाहती थी. उन्हीं दिनों पुलिस विभाग में महिला सिपाही के पद पर भरती हो रही थी. सपना ने प्रयास किया तो उस का चयन हो गया. उस की ट्रेनिंग सीतापुर में हुई. बाद में उस की पोस्टिंग लखनऊ के कैसर बाग थाने में हो गई.

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सपना से छोटी शालू थी. अपनी बड़ी बहन सपना की तरह वह भी पुलिस में भरती होना चाहती थी. इस के लिए उस ने पढ़ाई के अलावा अपने शरीर को चुस्तदुरूस्त बनाने के लिए सुबहशाम दौड़ लगानी शुरू कर दी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

शक की फांस बनी नासूर : भाग 1

उस दिन जून 2020 की 2 तारीख थी. सुबह के 8 बज रहे थे. औरैया जिले की विधूना कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक विनोद कुमार शुक्ला अपने कक्ष में आ कर बैठे ही थे कि उन के फोन पर काल आई. उन्होंने काल रिसीव की और बोले, ‘‘मैं विधूना कोतवाली से इंसपेक्टर वी.के. शुक्ला बोल रहा हूं. बताइए, आप ने फोन क्यों किया?’’

‘‘जय हिंद सर, मैं लखनऊ के कैसर बाग थाने से सिपाही सपना गिरि बोल रही हूं. मुझे आप की मदद चाहिए.’’

‘‘कैसी मदद? बताइए, मैं आप की हरसंभव मदद को तैयार हूं.’’ इंसपेक्टर विनोद कुमार शुक्ला ने आश्वासन दिया.

‘‘सर, आप के थाने में हमारी छोटी बहन शालू गिरि सिपाही पद पर तैनात है. बीती रात 11 बजे हमारी उस से बात हुई थी. तब वह परेशान लग रही थी और बहकीबहकी बातें कर रही थी. तब मैं ने उसे समझाया था और सो जाने को कहा था. आज मैं सुबह से उस का फोन ट्राई कर रही हूं. लेकिन वह फोेन उठा ही नहीं रही है. सर, किसी तरह आप उस से मेरी बात करा दीजिए.’’

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‘‘ठीक है सपना, मैं जल्द ही शालू से तुम्हारी बात कराता हूं.’’ श्री शुक्ला ने सपना को आश्वस्त किया.

शालू गिरि नई रंगरूट महिला सिपाही थी. उस की तैनाती 5 महीने पहले ही विधूना थाने में हुई थी. वह तेजतर्रार थी और मुस्तैदी से ड्यूटी करती थी. बीती रात 8 बजे वह ड्यूटी समाप्त कर अपने रूम पर गई थी.

इंसपेक्टर विनोद कुमार शुक्ल ने शालू से बात करने के लिए कई बार उसे फोन किया, लेकिन वह काल रिसीव ही नहीं कर रही थी. अत: उन की चिंता बढ़ गई.

उन्होंने थाने में तैनात दूसरी महिला सिपाही जीतू कुमारी को बुलाया और पूछा, ‘‘क्या तुम्हें पता है कि शालू गिरि कहां रहती है?’’

‘‘हां सर, पता है. वह विधूना कस्बे के किशोरगंज मोहल्ले में तरुण सिंह के मकान में किराए पर रहती है.’’

‘‘तुम किसी सिपाही के साथ उस के रूम पर जा कर देखो कि वह फोन रिसीव क्यों नहीं कर रही है. कहीं वह बीमार तो नही है?’’ इंसपेक्टर शुक्ला ने कहा.

‘‘ठीक है, सर.’’ कह कर जीतू कुमारी सिपाही अजय सिंह के साथ शालू के रूम पर पहुंची. उस के रूम का दरवाजा अंदर से बंद था और कूलर चल रहा था. कमरे के अंदर की लाइट भी जल रही थी.

जीतू कुमारी ने दरवाजा पीटना शुरू किया तथा शालू…शालू कह कर आवाज भी लगाई. लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. घबराई जीतू कुमारी ने थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला को सूचना दी तो वह पुलिस टीम के साथ मौके पर आ गए.

फंदे पर झूलती मिली शालू

श्री शुक्ला ने भी दरवाजा थपथपाया तथा शालू को पुकारा. पर अंदर से कोई हलचल नहीं हुई. किसी अनहोनी की आशंका को भांप कर थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने सिपाहियों को शालू के रूम का दरवाजा तोड़ने का आदेश दिया.

आदेश पाते ही 2 सिपाहियों ने दरवाजा तोड़ दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रूम में गए तो वह चौंक गए. रूम के अंदर महिला सिपाही शालू का शव फांसी के फंदे पर झूल रहा था. उस ने दुपट्टे का फंदा गले में डाल कर पंखे से लटक कर मौत को गले लगाया था.

थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ल ने सब से पहले मृतका की बड़ी बहन सपना को खबर दी और उसे तत्काल विधूना थाने आने को कहा. इस के बाद उन्होंने पुलिस अधिकारियों को सूचना दी और फिर घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने लगे.

कमरे के अंदर एक प्लास्टिक का स्टूल गिरा पड़ा था. शायद इसी स्टूल पर चढ़ कर शालू ने फांसी का फंदा तैयार किया था और गले में फंदा डाल कर स्टूल को पैर से गिरा दिया था. रूम का बाकी सब सामान अपनी जगह था. रूम के एक ओर पड़ी छोटी टेबल पर पैक खाना रखा था, जिसे उलझन के कारण शायद उस ने नहीं खाया था.

निरीक्षण के दौरान थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला को कमरे के अंदर से एक डायरी तथा मोबाइल फोन बरामद हुआ, जिसे उन्होंने सुरक्षित कर लिया. इस के बाद उन्होेंने शालू के शव को फांसी के फंदे से नीचे उतरवाया.

चूंकि विभागीय मामला था और अतिसंवेदनशील भी, अत: सूचना मिलते ही औरैया की एसपी सुश्री सुनीति, एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित तथा सीओ (विधूना) मुकेश प्रताप सिंह घटनास्थल पर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, वहीं फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए.

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घटनास्थल से बरामद शालू की डायरी की पुलिस अधिकारियों ने जांच की तो उन्हें डायरी में 3 पन्ने का सुसाइड नोट मिला. डायरी के एक पन्ने पर शालू ने लिखा था,

‘मेरे प्यारे मांपिताजी,

आप ने पालपोस कर मुझे बड़ा किया. पढ़ायालिखाया और प्रदेश सुरक्षा को समर्पित किया. आप के इस बड़प्पन को मैं कभी नहीं भुला सकती. लेकिन मैं अपनी ही जिंदगी से हार गई. मैं ने बहुत कोशिश की कि परेशानियों से उबर जाऊं, पर कामयाब नहीं हुई. इसलिए अपनी जिंदगी से परेशान हो कर आत्महत्या कर रही हूं. प्लीज किसी को परेशान न किया जाए.’

डायरी के दूसरे पन्ने पर शालू गिरी ने प्रभु (ईश्वर) को संबोधित करते हुए पत्र लिखा था और रास्ता सुझाने की बात लिखी थी. उस ने लिखा—

‘हे प्रभु, मुझे रास्ता दिखाओ. बचपन से ले कर आज तक मैं कभी फेल नहीं हुई. फिर मुझे वहां फेल क्यों कर रहे हो, जहां पास होने की सब से ज्यादा जरूरत है. मैं लाइफ में कभी खुश नहीं रह पाऊंगी. मुझे अपने पास बुला लो.’

पुलिस तलाशने लगी आत्महत्या की वजह

डायरी के तीसरे पन्ने पर शालू गिरि ने मरने से पहले घर वालों के नाम एक अन्य पत्र लिखा था, जिस में उस ने सिपाही आकाश का जिक्र किया था. उस ने लिखा था— मेरे मरने का दोषी आकाश को न ठहराया जाए. वह सिर्फ मेरा दोस्त था. दोस्ती के नाते हम एकदूसरे को पसंद करते थे. उस की बातों में जादू था. जिस से मुझे सुकून मिलता था. उस ने मुझे समझाने की भरपूर कोशिश की. लेकिन मैं अपनी परेशानियों से हार गई, इसलिए हताश जिंदगी का अंत कर रही हूं.’

पुलिस अधिकारी सुसाइड नोट पढ़ कर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सिपाही शालू गिरि ने परेशानियों के चलते आत्महत्या की है. पर वे परेशानियां क्या थीं, जिस से उसे इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा. इस का खुलासा उस ने पत्रों में नहीं किया था. इस का खुलासा तभी हो सकता था, जब उस के घर वाले मौके पर आते.

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पुलिस रिकौर्ड के अनुसार शालू गिरि बागपत जिले के बालौनी थानांतर्गत लतीफपुर दत्त नगर गांव की रहने वाली थी. विधूना थाने में उस की पोेस्टिंग दिसंबर माह में हुई थी. एक माह पहले ही उस की शादी हुई थी. विधूना कस्बे में वह किराए के रूम में रहती थी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

प्रीति की कड़वी गोली : भाग 3

लेखक- रघुनाथ सिंह लोधी

कभी वह मसजिदों के इर्दगिर्द नजर आती है तो कभी गुरुद्वारे के आसपास. फर्राटेदार अंगरेजी तो बोलती ही है , मराठी और हिंदी में भी उस के तेवर तने रहते हैं. उस के जीवन में 4 लोगों के नाम प्रमुखता से जुड़े हैं. इन में एक मराठी, दूसरे कारोबारी हैं तो 2 मुसलिम हैं. चर्चा है कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए उस ने संदीप दुधे, महेश गुप्ता, रफीक अहमद व मकसूद शेख से अलगअलग शादी रचाई. फिर उन को उस ने छोड़ दिया.

शिकायतकर्ता गुड्डू की शिकायत में इन नामों का जिक्र है. फिलहाल यह साफ नहीं हो पाया है कि प्रीति अपने पति से क्यों और कैसे दूर हुई. परिवार में उस की बुजुर्ग मां व बेटा है. खबर है कि प्रीति के पिता सेना में थे. पिता की मृत्यु के बाद उस की मां को अब पेंशन मिलती है.

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घर में अनुशासन व शिष्टाचार का पाठ तो मिलता रहा, लेकिन कहा जाता है कि प्रीति की हसरतों ने उसे नई राह पर ला दिया. उस की सोशल मीडिया पर साझा की गई एक तसवीर पर लिखा है, ‘मेरी सादगी ही गुमनाम रखती है मुझे, जरा सा बिगड़ जाऊं तो मशहूर हो जाऊं.’

उसे करीब से जानने वालों का कहना है कि वह आपराधिक प्रवृत्ति की नहीं थी. लेकिन शोहरत और दौलत पाने का जुनून कुछ ऐसा सवार है कि वह हर हद से गुजर जाने का दंभ भरती है. वह अपनी सोशल इमेज चमकाने का निरंतर प्रयास करती रही. हालत यह है कि अब भी कुछ लोग उसे धोखेबाज मानने को तैयार नहीं है.

प्रीति एक भाजपा पार्षद की सामाजिक संस्था से भी जुड़ी थी. लौकडाउन में जरूरतमंदों को राहत सामग्री देने के अभियान में वह पूरी ताकत के साथ जुटी रही. लिहाजा उस संस्था से जुड़े नेता ने तो उसे निर्दोष ठहराने का अभियान ही शुरू कर दिया है. दावे के साथ सोशल मीडिया पर लिखा जा रहा है— हमारी ताई को फंसाया जा रहा है. उस ने कोई अपराध नहीं किया है.

यह भी सुना जा रहा है कि प्रीति स्वयं को बैंकर बताती रही है. वह खुद को एक राजनीतिक दल के पदाधिकारियों द्वारा संचालित एक बैंक की संचालक के रूप में भी प्रचारित करती रही है. सदर क्षेत्र में उस बैंक के कार्यालय में उस के कारनामों के किस्से हैं.

बैंक का मैनेजर भी सिर पर हाथ धरे रहता है. बैंक अधिकारी बताते हुए सीज किए हुए वाहन सस्ते में दिलाने के दावे के साथ धोखाधड़ी करने के उस के किस्से भी सुने जा रहे हैं. खास बात है कि प्रीति अकसर सादे लिबास में रहती है. उस का बर्ताव उच्चशिक्षित सा आकर्षक है.

हमपेशेवर सहेलियों ने की चुगली

यह चर्चा भी जोरों पर है कि प्रीति के कारनामों की चुगली उस की हमपेशेवर सहेलियों ने की. राजनीति से ले कर सामाजिक कार्यों में ऐसी कई नईपुरानी कार्यकर्ता हैं, जिन की पहचान वसूली एजेंट के तौर पर है. अब सब के काम और सोच के तरीके अलगअलग हो गए हैं.

इन में से कुछ को केवल यह बात खटक रही है कि प्रीति कम समय में बहुतों की चहेती बन गई. नेता, पुलिस से ले कर अन्य क्षेत्र के बड़े लोग भी उस के साथ उठनेबैठने लगे. प्रीति का सोशल मीडिया पर इमेज चमकाने का तरीका भी कइयों की आंखों में चुभने लगा था.

लिहाजा प्रीति की चुगली भी होने लगी थी. कभी वह इंसपेक्टर स्तर के अफसर के साथ बदनाम होती तो कभी नेता के घर उस के नाम पर पारिवारिक झगड़ा होता था. बताते हैं कि चुगली के चक्कर में एक पुलिस वाले ने प्रीति से कुछ बातों को ले कर सवाल किए थे, जिस पर वह थाने में ही भड़क गई थी. उस ने उस अफसर को भी खरीखोटी सुनाते हुए ज्यादा चूंचपड़ नहीं करने को कहा था. थाने में सिपाहियों के सामने हुए उस अपमान को अफसर भूल नहीं पाया.

शहर में हनीट्रैप के कारनामों में लिप्त कुछ महिलाओं के लिए भी प्रीति आंख का कांटा बनी है. उन्हें लगता है कि यह कल की आई महिला सब को पीछे छोड़ कर काफी आगे निकल चुकी है.

सेक्स रैकेट, भोजनालयों, अवैध धंधों के अड्डों से पुलिस के नाम पर वसूली कर गुजारा करने वालों के लिए यह बात और भी खटकने वाली है कि प्रीति तो सीधे पुलिस अफसरों की गाडि़यों में ही घूमने लगी.

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आइडियाज क्वीन

प्रीति को पहचानने वाले उसे अवैध वसूली की आइडियाज क्वीन भी कहते हैं. अपनी सोशल इमेज बनाते हुए वह सत्कार कार्यक्रम का आयोजन करती रही है. चर्चा के अनुसार वह सत्कार के लिए ऐसे लोगों की तलाश करती रहती है जो कार्यक्रम में  शौल, श्रीफल मिलने के बदले 10 से 20 हजार रुपए खर्च कर सकें.

कार्यक्रम आयोजन के नाम पर सहयोग के तौर पर वह हजारों रुपए जमा कर लेती है. उन कार्यक्रमों में पुलिस के बड़े अधिकारी या अन्य क्षेत्र के सम्मानित लोगों को आमंत्रित करती रही है. सत्कार कराने के इस खेल में भी वह मोटी रकम बटोरती है. बड़े पुलिस अफसरों के लिए मुखबिरी कर के भी वह अपने स्वार्थ साधती रही है.

इस के अलावा विविध मामलों को ले कर वह अफसरों व नेता, मंत्री को निवेदन सौंपने में भी आगे रही है. पुलिस मित्र के तौर पर शहर के सभी 33 पुलिस थानों में उस की खास पहचान है. अफसरों की निजी पार्टी के अलावा नेताओं की पर्सनल बैठकों में वह शामिल होती रही है.

खुशियों के मौकों पर मनपा के बड़े नेता भी उस के साथ ठुमके लगाते दिखे. लिहाजा कइयों को यही लगता है कि प्रीति की प्रीत केवल उस से है. उसे होनहार कार्यकर्ता मानने वालों की भी कमी नहीं है. सत्कार करनेकराने का दौर कुछ ऐसा चला है कि शहर में जिम्मेदार वर्ग कहलाने वाले सभी क्षेत्रों के प्रतिष्ठितों के साथ वह मंच साझा कर चुकी है. नगर सेवक, महापौर, विधायक स्तर के जनप्रतिनिधि उस की खास मित्रमंडली में शामिल हैं.

वह सब से पहले अपने शिकार के बारे में जानकारी लेती है. मनचाही खुशियों का दाना फेंक कर शिकार फांसने का गुर वह जान चुकी है. हनीट्रैप के मामलों में उत्तर नागपुर में ही एक गिरोह चर्चा में रहा है. प्रीति का नाम आते ही वह हवा हो गया था. इस के अलावा कुछ आपराधिक मामलों में उस का नाम थानों तक पहुंचा, लेकिन पुलिस के रिकौर्ड में दर्ज नहीं हो पाया.

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बहरहाल कहा जा रहा है कि प्रीति के चक्कर में दास बने लोगों की लंबी कतार है. इन में कई सफेदपोश लोग भी हैं. उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही सारी हकीकत सामने आने लगेगी.

प्रीति की कड़वी गोली : भाग 2

लेखक- रघुनाथ सिंह लोधी

गिरफ्तारी के बाद प्रीति को पुलिस रिमांड पर लिया गया. उस के खिलाफ पुलिस ने सबूत जुटाने शुरू किए. जांच में जुटी पुलिस यह जान कर दंग रह गई कि कुछ समय पहले तक मामूली मोपेड पर घूमने वाली प्रीति अब करोड़पति हो गई है. वह महंगी कारों से घूमती है. उस ने अपने करीबियों व रिश्तेदारों के नाम पर बेनामी संपत्ति खरीद रखी है.

बंगला, खेती की जमीन के अलावा वह एक कंपनी की भी संचालक भी थी. अवैध वसूली के लिए उस ने बाकायदा एक संस्था रजिस्टर्ड करा रखी थी. लिहाजा पुलिस ने धर्मदाय आयुक्तालय, विजिलैंस विभाग के अलावा अन्य विभागों को पत्र लिख कर उस के बारे में आवश्यक जानकारी मांगी.

घर में हुआ अपमान तो कर लिया सुसाइड

प्रीति के कारनामों की जानकारी जुटाई ही जा रही थी कि पुलिस अधिकारियों तक एक गुहार और पहुंची. गुहार यह कि एक व्यक्ति ने प्रीति और उस के साथियों के डर से सुसाइड कर लिया था. मृतक के परिवार को न्याय दिलाने के लिए यह शिकायत जूनी मंगलवारी निवासी वैशाली पौनीकर की थी.

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शिकायत के अनुसार वैशाली के पति सुनील पौनीकर ने अक्तूबर 2019 में सतीश सोनकुसरे से कुछ रकम कर्ज ली थी. सुनील पौनीकर मेस संचालक था. काम में घाटे के कारण उसे कर्ज लेना पड़ा था. सतीश सोनकुसरे ने कर्ज वापसी के लिए सुनील पर दबाव बनाया. लेकिन समय पर रुपए नहीं लौटा पाने पर उस ने प्रीति की मदद ली.

प्रीति यह भी दावा करती थी कि वह कर्ज वसूली का काम भी करती है. शहर के सारे बड़े पुलिस अफसर व नेता उस के पहचान के हैं. बतौर वैशाली पौनीकर, प्रीति ने सतीश सोनकुसरे से कर्ज वसूली की सुपारी ली थी. वह कुछ पुलिस कर्मचारियों की मदद से सुनील को प्रताडि़त करती थी.

प्रीति की धमकी से किया सुसाइड

एक दिन प्रीति सतीश सोनकुसरे और मंगेश पौनीकर को साथ ले कर सुनील के घर पर पहुंच गई. प्रीति ने सुनील को कर्ज नहीं लौटाने पर धमकी दी. उस के साथ कुछ पुलिस वाले भी थे, जो घर में आ कर मांबहन की गालियां दे गए. यहीं नहीं, वह बस्ती में नंगा घुमाने की धमकी दे रहे थे. धमकी और घिनौनी बातों से सुनील बुरी तरह आहत हुआ. लिहाजा उस ने 27 नवंबर, 2019 की दोपहर ढाई बजे लकड़गंज थाना क्षेत्र के बाबुलवन प्राथमिक शाला के मैदान में जहर पी लिया. मेयो अस्पताल में उपचार के दौरान 30 नवंबर, 2019 को सुनील ने दम तोड़ दिया था.

पुलिस ने आकस्मिक मौत का मामला दर्ज कर जांच जारी रखी. अब वैशाली पौनीकर की शिकायत पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर लकड़गंज थाने की पुलिस ने प्रीति व उस के साथियों के खिलाफ सुनील आत्महत्या मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रकरण दर्ज कर तलाश शुरू कर दी.

मेस संचालक को आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रकरण लकड़गंज थाने में दर्ज हो ही रहा था कि जरीपटका थाने में एक और शिकायत पहुंची. शिकायत यह थी कि आरोपी प्रीति ने धौंस दिखा कर 25 हजार रुपए ऐंठ लिए. शिकायतकर्ता पूर्णाबाई सडमाके का बेटा नीतेश वायुसेना में लिपिक था. 8 मार्च, 2019 को उस की प्रणिता से शादी हुई थी.

शादी के 2 माह बाद ही प्रणिता की अपनी सास पूर्णाबाई से अनबन होने लगी. प्रणिता अपना सामान ले कर मायके चली गई. समझाने पर भी वह नहीं मानी. उस ने पुलिस के भरोसा सेल में पूर्णाबाई की शिकायत दर्ज करा दी. भरोसा सेल में पूर्णाबाई की प्रीति से भेंट हुई.

प्रीति भरोसा सेल की एजेंट बन कर घूमती थी. उस ने विवाद निपटाने का झांसा दे कर पूर्णाबाई से 25 हजार रुपए मांगे. रुपए नहीं देने पर उस के बेटे की नौकरी जाने का भय बताया. लिहाजा 17 अक्तूबर, 2019 को पूर्णाबाई ने प्रीति को 25 हजार रुपए दे दिए. पूर्णाबाई ने प्रीति को फोन कर पूछताछ की. प्रीति ने बताया कि तुम्हारे बेटे का काम हो गया है. मैं ने मैडम को पैसे दे दिए हैं.

बेटे से जुड़े मामले को ले कर एक बार पूर्णाबाई को भरोसा सेल की इंचार्ज इंसपेक्टर शुभदा शंखे ने पूछताछ के लिए बुलाया. उस दौरान पूर्णाबाई ने इंसपेक्टर शुभदा से सहज ही कह दिया कि मैं ने तो आप को 25 हजार रुपए दिए थे, फिर आप मुझ से इस तरह घुमावदार सवाल क्यों कर रही हो.

इंसपेक्टर शुभदा चौंकी. वह यह जान कर हैरान थी कि जिस प्रीति दास को वह सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर सम्मान देती रही, वह तो उस के नाम पर ही अवैध वसूलियां करने लगी है. लिहाजा, इंसपेक्टर शंखे ने पूर्णाबाई को शहर पुलिस के जोन-5 के उपायुक्त नीलोत्पल के पास भेजा.

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पूर्णाबाई की शिकायत पर जरीपटका पुलिस ने आरोपी प्रीति के खिलाफ हफ्ता वसूली का मामला दर्ज कर लिया. 2 दिन बाद शहर पुलिस के पास एक और शिकायत पहुंची. शिकायतकर्ता युवती उच्चशिक्षित थी. उस के अनुसार उस के साथ एक युवक ने विवाह का झांसा दे कर दुष्कर्म किया था.

प्रीति दास ने युवती को यह कह कर मदद का आश्वासन दिया था कि उस की पुलिस के बड़े अधिकारियों से खासी पहचान है. वह दुष्कर्म के आरोपी को सजा दिलाएगी.

इस कार्य के लिए उस ने युवती से 25 हजार रुपए मांगे. रुपए मिलने के बाद प्रीति उस युवती से मिलती भी नहीं थी. ऐसे में एक रोज युवती ने प्रीति से तल्खी के साथ सवाल किया तो वह उसे धमकाने लगी. साथ ही यह औफर देने लगी कि उस की गैंग में शामिल हो जाए.

उस युवती का आरोप था कि प्रीति अकसर खूबसूरत युवतियों की मजबूरियों का फायदा उठाती है. युवतियों को पेश कर के वह रसूखदारों से मनचाहा माल वसूलती रहती है. 2 से 3 पुलिस कर्मचारी व अधिकारी को हनीट्रैप में फंसा देने का डर दिखा कर उसने कथित तौर पर लाखों की वसूली की है.

उस ने यह भी बताया कि नागपुर में पश्चिम महाराष्ट्र के कई पुलिस अधिकारी बैचलर रहते हैं. उन का परिवार उन के गांव या शहर में है. लिहाजा उन्हें रात रंगीन कराने के एवज में प्रीति लगातार ब्लैकमेल करती रही है.

भंडारा पुलिस थाने में प्रीति के विरुद्ध दर्ज धोखाधड़ी के मामले में बताया गया कि वह नागपुर के बाहर के जिलों में खुद को बैंकर के तौर पर प्रचारित करती रही है. जरूरतमंदों को आसानी से लाखों का कर्ज दिलाने का झांसा देती रही है. उस के इस चक्रव्यूह में कुछ बैंक कर्मचारी व अधिकारी भी शामिल रहे हैं.

दीवाने ही दीवाने

प्रीति अपना पूरा नाम प्रीति ज्योतिर्मय दास लिखती है. 40 की उम्र की हो चली इस महिला के चेहरे से ही सादगी व शिष्टता झलकती है. लेकिन उस के शिकायतकर्ताओं की मानें, तो वह जैसी दिखती है वैसी है नहीं. उस की मित्रमंडली की फेहरिस्त में दीवाने ही दीवाने हैं.

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उस के कारनामों के तराने न जाने कहांकहां गूंज रहे हैं. शिकायतकर्ता गुड्डू तिवारी की सुनें तो प्रीति कपड़ों की तरह रिश्ते बदलती है. लिबास ही नहीं, जरूरत हो तो वह जाति और धर्म भी बदल लेती है.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

प्रीति की कड़वी गोली : भाग 1

लेखक- रघुनाथ सिंह लोधी 

लौकडाउन से अनलौक की ओर कदम बढ़ते ही महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में यूं तो अपराध की जबरदस्त ताक धिना धिन सुनी जा रही थी. हत्याओं का सिलसिला सा बन गया था. राज्य के गृहमंत्री के गृहनगर की इस हालत पर राजनीतिक तीरतलवार चलाने वाले तरकश कसने लगे थे. पुलिस और प्रशासन पर तोहमत लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे.

कोरोना योद्धा के तौर पर शाबासी लूट चुकी शहर पुलिस ऐसी किसी तोहमत को तवज्जो नहीं देना चाहती थी. दावा यही कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की न जरूरत थी न ही होनी चाहिए.

शहर पुलिस ने बड़ेबड़े अपराधियों के अपराध के आशियानों को कुछ समय में ही बड़े स्तर पर ध्वस्त कर दिया था. ऐसे में एक मामला अचानक चर्चा में हौट हुआ. यह मामला चार सौ बीसी के खेल में पकड़ी गई प्रीति का.

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राजनीति के गलियारे में चहलकदमी के साथ समाजसेवा का नया मौडल बनी घूमती उस महिला के बारे में बड़ी चर्चा ये थी कि कई पुलिस वाले साहब उस के दबेल यानी उस के दबाव में थे. लिहाजा उस ने शहर व शहर के आसपास के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर दबावतंत्र बना कर कइयों की जिंदगी में जहर घोल दिया. पुलिस कभी उस का सत्कार करती थी तो कभी उस से सत्कार कराती थी.

समाजसेवा के चोले में हनी ट्रैपर

घटना 5 जून, 2020 की है. एक शिकायतकर्ता पांचपावली पुलिस स्टेशन में बेबस मुद्रा में मदद की याचना ले कर पहुंचा. शिकायतकर्ता का नाम था उमेश उर्फ गुड्डू तिवारी. पांचपावली क्षेत्र में ही रहने वाले गुड्डू ने बताया कि उस का जीवन एकदम सामान्य था. वह एक स्कूल का कर्मचारी है. हर माह मिलने वाले वेतन से उस के परिवार का हंसीखुशी गुजारा हो रहा था. लेकिन जब से वह प्रीति की सोहबत में आया, उस की दुनिया लुटने लगी.

उमेश उर्फ गुड्डू ने उस वक्त को कोसा है, जब वह फेसबुक पर प्रीति से जुड़ा था. प्रीति का आकर्षक फोटो देख गुड्डू ने उस पर सहज कमेंट किया था. उस कमेंट के जवाब में प्रीति ने फेसबुक पर ही गुड्डू को पर्सनल मैसेज भेज कर मोबाइल फोन नंबर का आदानप्रदान कर लिया. गुड्डू इस बात को ले कर भी खुद को दोष देता है कि एकदो बार फोन पर बात के बाद वह उस अनजानी महिला के सामने पूरी तरह से खुल गया.

उस ने अपने घरपरिवार की बातें साझा कर दीं. यहां तक कि वैवाहिक जीवन में भी उस ने अरमानों के सूखे कंठ की वेदना को स्वर दे दिया.

प्रीति ने गुड्डू को बताया कि नागपुर के जिस इलाके में वह रहता है, उस के पास ही वह भी रहती है. उस ने अपनी पहचान के दायरे के ट्रेलर के तौर पर कुछ लोगों के नाम गिनाए.

कुछ दिनों बाद दोनों के मिलने का सिलसिला मोहब्बत की परवाज भरने लगा. कभी प्रीति मिलने पहुंचती तो कभी गुड्डू को बुला लेती थी.

एक दिन प्रीति ने गुड्डू से साफ कह दिया कि वह उस के साथ जीवन गुजारने को तैयार है. बशर्ते उसे अपनी पत्नी को तलाक देना होगा. भविष्य की योजना भी उस ने गुड्डू से साझा की. 50 वर्षीय गुड्डू जिंदगी के नए सफर पर चलने के लिए न केवल राजी हुआ बल्कि अति उत्साहित भी था.

माल मिलते ही बदला रंग

गुड्डू की शिकायत का लब्बोलुआब यह था कि प्रीति मनचाहा धन मिलते ही तेवर बदलने लगती थी. बतौर गुड्डू प्रीति ने उस से फ्लैट खरीदने के लिए रुपयों की मांग की थी. उस का कहना था कि जब तक गुड्डू की पत्नी का तलाक नहीं हो जाता, तब तक दोनों उस फ्लैट में मिलतेजुलते रहेंगे.

गुड्डू ने अग्रिम के तौर पर प्रीति को फ्लैट के लिए 2.60 लाख रुपए दे दिए. तय समय पर फ्लैट नहीं लिया गया तो गुड्डू ने रुपए वापस मांगे. बस यहीं से गुड्डू पर दबाव का नया सिलसिला चल पड़ा. फ्लैट के नाम पर लिए गए रुपए वापस लौटाना तो दूर प्रीति ने रुपयों की नई पेशकश रख दी.

उस ने कहा कि सोशल मीडिया पर जितनी भी हौट बातें हुई हैं और फोन पर लाइव चैटिंग हुई है, उन का सारा हिसाब उस के पास है. अगर वह उस रिकौर्डिंग को पुलिस को सौंप दे तो कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा.

प्रीति की सीधी धमकी यह भी थी कि ज्यादा चूंचपड़ मत करना. मेरे हाथ काफी लंबे हैं. चुटकी बजा कर ऐसी जगह पर घुसेड़वा दूंगी, जहां से जीवन भर नहीं निकल पाएगा. और हां, अपनी इज्जत बचानी हो तो 5 लाख रुपए तैयार रखना.

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प्रीति के ठग अंदाज का जिक्र करते हुए गुड्डू ने बताया कि उस ने डर के मारे प्रीति को 2.42 लाख रुपए और दिए, जिस से वह कहीं मुंह न खोले. लेकिन माल पाने के बाद तो वह और भी रंग बदलने लगी. रुपए और गिफ्ट ले कर यहांवहां बुलाने लगी.

उस से दूर होने का प्रयास किया तो वह घर में आ कर पिटवा देने की धमकी देने लगी. कुछ ही दिनों में उस ने नकदी और गिफ्ट के रूप में 14.87 लाख रुपए ऐंठ लिए. आखिरकार उसे अपने बचाव में पुलिस की शरण लेनी पड़ी.

पुलिस ने उस की शिकायत की शुरुआती पड़ताल करने के बाद प्रीति के खिलाफ भादंवि की धारा 420 व धारा 384 हफ्तावसूली के तहत केस दर्ज कर लिया.

मामला दर्ज करने के बाद पुलिस ने प्रीति के कामठी रोड स्थित प्रियदर्शिनी अपार्टमेंट के घर पर छापेमारी की. प्रीति वहां से चंपत हो गई थी. पुलिस ने उस के घर से काफी सामान और दस्तावेज बरामद किए.

खुला भेद तो पुलिस भी रह गई दंग

जिस पांचपावली पुलिस स्टेशन में प्रीति का आनाजाना लगा रहता था, उसी थाने की पुलिस उस के कारनामों की फेहरिस्त देख कर दंग रह गई. रिकौर्ड खंगालने पर पता चला कि प्रीति धोखाधड़ी के मामले में जेल की यात्रा कर चुकी है. उस के आपराधिक क्षेत्र के छोटेबड़े लोगों से भी करीबी संबंध है. उस के खिलाफ शहर के सीताबर्डी पुलिस स्टेशन में भादंवि की धारा 420, 406, 468, 467, 506, 507, 34 के  तहत प्रकरण दर्ज है.

धोखाधड़ी का वह प्रकरण शहर में काफी चर्चित हुआ था. इस के अलावा भंडारा के पुलिस स्टेशन में भी भादंवि की धारा 420 के तहत मुकदमा दर्ज था. शहर पुलिस के बड़े अधिकारियों के लिए यह जानकारी काफी चौंकाने वाली थी कि जिस महिला को वे केवल सामाजिक कार्यकर्ता समझ रहे थे वह ब्लैकमैलर है. यही नहीं वह पुलिस से संबंधों का नाजायज फायदा उठाती रहती है.

शहर पुलिस की ओर से प्रीति के अपराधों की जानकारी जुटानी शुरू कर दी गई. बाकायदा प्रैस नोट जारी कर आह्वान किया गया कि इस महिला ने किसी से धोखाधड़ी की हो, तो तत्काल पुलिस से संपर्क करे.

इस बीच प्रीति फरार हो गई थी. पुलिस उसे ढूंढती रही. करीब हफ्ते भर प्रीति बचाव का रास्ता खोजती रही. उस ने वकील के माध्यम से जिला सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. कोशिश यही थी कि पुलिस गिरफ्तारी से बचते हुए उसे न्यायालय से जमानत मिल जाए. लेकिन उस की कोशिशों पर पानी फिर गया. न्यायालय ने उस की अरजी खारिज कर दी.

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लिहाजा उस ने 13 जून को पांचपावली पुलिस स्टेशन में आत्मसमर्पण किया. उसे पुलिस तक पहुंचाने वालों में राजनीतिक कार्यकर्ताओं के अलावा पुलिस के कुछ नुमाइंदे भी शामिल थे.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

प्रीति की कड़वी गोली

मौत के आगोश में समाया ‘फूल’

मौत के आगोश में समाया ‘फूल’ : भाग 2

लगभग एक घंटे बाद अनुपम लौटा तो मिठाई, मटन के अलावा शराब की बोतल थी. पहले सब ने मिठाई खाई. फिर मुन्नी ने अपने हाथ से मीट और चावल पकाए. खाना तैयार हो गया तो अनुपम शराब की बोतल खोल कर पीने बैठ गया. जानबूझ कर वह धीरेधीरे चुस्कियां ले रहा था ताकि बच्चे खापी कर सो जाएं. रही मुन्नी तो अनुपम ने उसे रसीली बातों से जगा रखा था.

मुन्नी जानती थी कि अनुपम के मन में क्या है. लिहाजा रतजगा के लिए उस ने खुद को मानसिक तौर पर तैयार कर लिया था और अनुपम की बातों का खूब आनंद ले रही थी.

मुन्नी ने की पहल

बच्चे सो गए, लेकिन अनुपम शराब की चुस्कियां लेते हुए मुन्नी से गपशप करता रहा. मुन्नी को उम्मीद थी कि अनुपम उस पर हाथ डालेगा, लेकिन जब उस ने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया तो उस ने ही पहल की, ‘‘बस करो, शराब बहुत हो गई है.’’

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‘‘एक पैग और पी लूं,’’ अनुपम उस के हसीन बदन को लालच से देखने लगा, ‘‘उस के बाद गोश्त खाऊंगा.’’

मुन्नी भी कम नहीं थी. आंखें नचाते हुए उस ने पूछा, ‘‘कैसा गोश्त, कच्चा या पका हुआ.’’

अनुपम रोमांच से भर गया, ‘‘आदमी जब भूखा हो, तब कच्चा गोश्त भी हलाल होता है.’’

‘‘गोश्त खाना है तो सामने से शराब की बोतल हटा दो.’’ मुन्नी ने बड़े मदमाते अंदाज में कहा, ‘‘कहीं ऐसा न हो कि शराब ज्यादा हो जाए और तुम बोटियां चबाने लायक ही न रहो.’’

अनुपम ने ढक्कन बंद कर के बोतल सामने से हटा दी और मुन्नी की कलाई पकड़ कर उसे अपनी ओर खींचा. मुन्नी झट से उस की गोद में आ गिरी और अनुपम के गले में बांहों का हार डाल दिया.

कुछ देर आंखों से आंखें मिलीं, फिर होंठों से होंठ मिल गए. शराब अनुपम ने पी थी, गंध मुन्नी की सांसों में आने लगी. इस के बाद उन के बीच कोई दीवार न रही. वे दोनों एकदूसरे में समा गए. आनंद की मंजिल पर पहुंचने के बाद ही दोनों अलग हुए. कम उम्र के कुंवारे युवा जोश को अपने अंदर महसूस कर के मुन्नी निहाल हो गई.

इस के बाद तो उन के बीच बेरोकटोक संबंधों का यह सिलसिला चलता रहा.

देश में लौकडाउन हुआ तो सब काम रुक गए. इस वजह से फूलचंद्र भी होशियारपुर से अपने गांव आ गया.

27 मई की रात अचानक फूलचंद्र गायब हो गया. उस का पता न लगने पर रात करीब साढ़े 9 बजे मुन्नी ने गांव में ही रहने वाले अपने देवर हुकुमचंद्र को फोन कर के बताया कि उन के भाई कहीं चले गए हैं उन का पता नहीं चल रहा है. इस पर हुकुमचंद्र चौंक गए. उस की गांव में तलाश की लेकिन कुछ पता नहीं चला.

अगले दिन सुबह गांव के लोगों ने बीरबल कुट्टी में हनुमान मंदिर के प्रांगण में फूलचंद्र की लाश पड़ी देखी तो परिजनों को सूचना दी. घटनास्थल से फूलचंद्र के मकान की दूरी लगभग 500 मीटर थी. पता चलते ही मुन्नी बच्चों के साथ वहां पहुंच गई. फूलचंद्र के तीनों भाई भी मौके पर पहुंच गए. मुन्नी अपने पति की लाश देख कर रोनेबिलखने लगी.

इसी बीच किसी ने मल्हीपुर थाने में घटना की सूचना दे दी थी. सूचना मिलने पर थाने के इंसपेक्टर देवेंद्र पांडेय ने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दी. फिर अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. मृतक फूलचंद्र के सिर व गले पर किसी तेज धारदार हथियार से प्रहार किए गए थे, जिन के गहरे घाव हो गए थे और काफी खून बह गया था. लाश के आसपास काफी मात्रा में खून पड़ा था.

लाश का निरीक्षण करने के बाद इंसपेक्टर देवेंद्र पांडेय ने मृतक की पत्नी मुन्नी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के पति शाम घर से निकले थे, लेकिन देर रात होने पर भी वापस नहीं लौटे तो उसे चिंता हुई. उस ने अपने देवर हुकुमचंद्र को यह बात बताई. रात में ही उन्होंने खोजा लेकिन कुछ पता नहीं चला, सुबह लाश मिल गई.

मुन्नी ने अपना शक गांव के भुजौली, अलखराम, कब्बे और मंशाराम पर जताया कि इन चारों ने ही उस के पति की हत्या की है. उन से साल भर पहले छप्पर डालने को ले कर विवाद हुआ था. पूछताछ के बाद इंसपेक्टर पांडेय ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

फिर थाने आ कर मुन्नी की तहरीर पर भुजौली, अलखराम, कब्बे और मंशाराम के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. प्रारंभिक जांच में इंसपेक्टर देवेंद्र पांडेय को गांव के लोगों से मुन्नी के अवैध संबंध अनुपम वर्मा नाम के युवक से होने की बात पता चली.

इस लाइन पर उन्होंने अपनी जांच आगे बढ़ाई. उन्होंने मुन्नी के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस की एक नंबर पर घंटों बात होने का पता चला. वह नंबर अनुपम वर्मा का था.

दोनों के फोन नंबरों की लोकेशन ट्रेस की गई तो घटना की रात एक साथ मिली. इस का मतलब यह था कि फूलचंद्र की हत्या में मुन्नी और उस के प्रेमी अनुपम का हाथ है.

30 मई, 2020 को इंसपेक्टर देवेंद्र पांडेय ने गौहनिया गांव से अनुपम वर्मा को गिरफ्तार कर लिया. उस के बाद मुन्नी को घर से गिरफ्तार कर लिया. थाने में कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. पूछताछ के बाद दोनों का साथ देने वाले श्रीराम को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

लौकडाउन के कारण फूलचंद्र घर लौट आया तो मुन्नी और अनुपम की मौजमस्ती पर ब्रेक लग गए थे. फूलचंद्र की मौजूदगी उन्हें खलने लगी. अब उन के संबंधों के बीच में फूलचंद्र नाम की दीवार खड़ी थी. इस दीवार को हटाए बिना उन का मिलन संभव नहीं था. ऐसे में मुन्नी और अनुपम ने फूलचंद्र को मौत के आगोश में सुलाने का फैसला कर लिया.

23 मई को अनुपम अपने एक साथी के साथ फूलचंद्र के घर आया. तीनों ने साथ बैठ कर शराब पी. तभी अनुपम ने चाकू से उस का गला रेतने के लिए फूलचंद्र के गले पर हलका चलाया ही था कि मुन्नी ने उसे यह कह कर रोक दिया कि घर के अंदर ऐसा करना ठीक नहीं.

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फूलचंद्र के गले में घाव हो गया था, जिस से खून बहने लगा. इस पर मुन्नी उसे गांव के ही एक झोलाछाप डाक्टर के पास ले गई और उस के जख्म की मरहमपट्टी कराई. फिर उसे ले कर वापस घर आ गई. अनुपम उस दिन चला गया.

मुन्नी के साथ मिल कर उस ने फिर फूलचंद्र की हत्या की योजना बनाई. अनुपम ने इस योजना में अपने दोस्त श्रीराम को भी शामिल कर लिया. श्रीराम भिनगा कोतवाली के इटवरिया गांव का रहने वाला था. अनुपम के गौहनिया गांव में मोबाइल की दुकान चलाता था. अनुपम उस का विवाह अपनी ममेरी बहन से करा रहा था. दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने की पूरी तैयारी थी. अनुपम ने उस से फूलचंद्र की हत्या में साथ देने को कहा तो वह मना न कर सका.

27 मई, 2020 को अनुपम श्रीराम के साथ घर से निकला. उस ने 3 बीयर की केन खरीदीं और एक मैडिकल शौप से उस ने नशीला इंजेक्शन और सीरिंज खरीदी. सीरिंज के जरिए उस ने वह नशीली दवाई एक बीयर की केन में डाल दी. वह बीयर की केन अनुपम ने खुद अपने पास रख ली और बाकी दोनों केन श्रीराम ने रख लीं. इस के अलावा एक कुल्हाड़ी भी ले ली.

फूलचंद्र के मकान से करीब 500 मीटर की दूरी पर बीरबल कुट्टी में हनुमान मंदिर के प्रांगण में पहुंच कर अनुपम ने रात 9 बजे फूलचंद्र को फोन कर के बीयर पीने के लिए बुलाया. उस के बुलावे पर फूलचंद्र घर से निकल लिया. उस के पीछेपीछे मुन्नी भी चली गई.

फूलचंद्र के पहुंचने पर अनुपम ने उसे नशीली दवा मिली हुई बीयर की केन पीने को दी. बाकी दोनों बीयर अनुपम और श्रीराम उस के साथ बैठ कर पीने लगे. बीयर पीतेपीते नशीली दवा ने अपना असर दिखाना शुरू किया तो बेहोश हो कर फूलचंद्र एक ओर लुढ़क गया. इस के बाद मुन्नी भी वहां आ गई. तीनों ने मिल कर कुल्हाड़ी से फूलचंद्र के सिर व गले पर कई प्रहार किए, जिस से उस की मौत हो गई. इस के बाद अनुपम श्रीराम के साथ वापस घर लौट गया.

मुन्नी ने घर लौट कर अपने देवर हुकुमचंद्र को फूलचंद्र के लापता होने की झूठी बात फोन पर बताई. फिर अपने विरोधियों को फंसा कर मुन्नी साफ बच निकलना चाहती थी, लेकिन उस की चाल किसी काम न आई. वह प्रेमी और उस के दोस्त के साथ पकड़ी गई.

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इंसपेक्टर देवेंद्र पांडेय ने अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रक्तरंजित कुल्हाड़ी, एक खाली सीरिंज, बीयर की 3 खाली केन और घटना के समय अनुपम द्वारा पहनी गई खून से सनी शर्ट बरामद कर ली. इस के बाद कानूनी लिखापढ़ी कर के तीनों को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मौत के आगोश में समाया ‘फूल’ : भाग 1

आदमी को जब कोई मुसीबत अचानक आ घेरे तो उसे ऐसे में किसी अपने की याद आती है जो उस का मददगार या सहारा बन सके. फूलचंद्र की पत्नी मुन्नी अचानक बीमार हुई तो उसे अनुपम की याद आई. अनुपम और फूलचंद्र की उम्र में दोगुने का अंतर था. फूलचंद्र 40 वर्ष का था तो अनुपम 20 वर्ष का. पहले दोनों में जानपहचान हुई, फिर गहरी दोस्ती हो गई.

फूलचंद्र ने तुरंत अनुपम को फोन किया, ‘‘अनुपम, तुम्हारी भाभी मुन्नी की तबियत बहुत खराब है, अस्पताल ले जाना पड़ेगा. मैं बच्चों को संभालूं या मुन्नी को. इस वक्त मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है, आ जाओ.’’

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‘‘मुसीबत हो या परेशानी, दोस्त ही दोस्त के काम आता है. तुम चिंता न करो, मैं आ रहा हूं.’’ अनुपम बोला.

अनुपम से जितना जल्दी संभव हो सकता था, फूलचंद्र के घर पहुंच गया. वे दोनों मुन्नी को अस्पताल ले गए. मुन्नी के उपचार के लिए जिन दवाओं व संसाधनों की जरूरत थी, वे उस अस्पताल में नहीं थे. उसे समुचित इलाज के लिए शहर जाने को कहा.

मुन्नी की जिंदगी और मौत का सवाल था, इसलिए वे दोनों उसे शहर ले गए. शहर के अस्पताल में मुन्नी का सही एवं बेहतर इलाज हुआ. समय तो लगा, पर पैसा काफी खर्च हो गया.

मुन्नी ठीक हो कर घर आ गई, मगर फूलचंद्र को आर्थिक अभावों ने घेर लिया. जो पैसा था, उस ने मुन्नी के इलाज में लगा दिया था. इस के अलावा भी उस ने कुछ लोगों से पैसा उधार लिया था. फूलचंद्र तनाव में रहने लगा कि कैसे वह घर का खर्च उठाएगा और उधार लिया पैसा कैसे वापस करेगा.

मुन्नी की खैरखबर लेने और फूलचंद्र से मिलने के लिए रोज शाम को अनुपम उस के घर आता था. फूलचंद्र उसे अपने दुखड़े में शामिल कर लेता, ‘‘अनुपम, मुझे चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा दिखाई देता है. समझ में नहीं आता कि कहां से पैसा आए और देनदारी चुकता करूं. गांव में मेहनतमशक्कत के अलावा ऐसा कोई काम भी तो नहीं है, जिस से चार पैसे ज्यादा कमा सकूं.’’

यह सुन कर शातिर अनुपम के होंठों पर मुसकान आ गई. दरअसल वह मुन्नी के रूपलावण्य पर फिदा था और उस का उपभोग करना चाहता था. फूलचंद्र से दोस्ती भी उस ने अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए की थी. अनुपम ने मुन्नी पर डोरे डालने शुरू ही किए थे कि वह बीमार पड़ गई. अब मुन्नी पहले जैसी स्वस्थ हो गई थी तो फूलचंद्र उसे घेरे बैठा रहता था.

अनुपम ने लगाई तिकड़म

अनुपम के मन में खुद यह बात थी कि किसी तिकड़म से फूलचंद्र को घर से दूर भेज दिया जाए, तभी मुन्नी को हासिल किया जा सकता है. मुन्नी उस के अहसानों तले दबी है, इसलिए उसे पटाने में अधिक मेहनत नहीं करनी पडे़गी. अत: फूलचंद्र से सुहानुभूति जताते हुए वह बोला, ‘‘तुम सही कहते हो, तुम गांव रहोगे तो कुछ नहीं कर पाओगे. कुछ करना है तो तुम्हें गांव छोड़ना पडे़गा.’’

‘‘अनुपम, मैं गांव तो छोड़ दूं, पर यह समझ नहीं आ रहा कि जाऊं कहां और क्या करूं?’’ फूलचंद्र बोला.

‘‘मेरे गांव के कुछ लोग पंजाब के होशियारपुर में रह कर छोटेमोटे काम कर रहे हैं. उन के काम जरूर छोटे हैं, पर आमदनी अच्छी है.’’ अनुपम ने ऐसी तरकीब सुझाई कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे, ‘‘अगर तुम होशियारपुर जा कर काम करना चाहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं.’’

फूलचंद्र ऐसा काम करना ही चाहता था, जिस में ज्यादा कमा सके. अत: वह राजी हो गया. वह बोला, ‘‘होशियारपुर तो मैं चला जाऊंगा, लेकिन यहां पर मुन्नी और तीनों बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी तुम्हें उठानी पडे़गी.’’

अनुपम के लिए यह बात मलाई भरी कटोरी की रखवाली बिल्ले से कराने जैसी थी, लेकिन फूलचंद्र को अनुपम की नीयत पता नहीं थी, इसलिए उस ने हां कह दी. अनुपम ने भी यह जिम्मेदारी फौरन लपक ली, ‘‘तुम बेफिक्र हो कर होशियारपुर जाओ, भाभी और बच्चों की देखभाल मैं करता रहूंगा.’’

अनुपम ने होशियारपुर में रह कर कमाने वाले एक परिचित का नामपता और मोबाइल नंबर फूलचंद्र को लिखवा दिया. इतना ही नहीं, फूलचंद्र की उस परिचित से बात भी करा दी.

दूसरे ही दिन फूलचंद्र होशियारपुर के लिए रवाना हो गया. इधर मलाई भरी कटोरी पर झपटने के लिए बिल्ला तैयार था.

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उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले के मल्हीपुर थाना क्षेत्र में एक गांव है— ओरीपुरवा. इसी गांव में रहता था 40 वर्षीय फूलचंद्र वर्मा. उस के परिवार में पत्नी मुन्नी के अलावा 3 बच्चे थे, बेटे प्रदीप (11) व सूरज (9) और बेटी लक्ष्मी (7).

दूसरी युवतियों की तरह मुन्नी ने भी विवाह से पहले फिल्मी हीरो जैसे पति की कल्पना की थी. तमन्ना करने मात्र से चांद मिल तो नहीं जाता. मुन्नी को जो पति मिला, वह उस की अपेक्षाओं के वितरीत था. अनपढ़, न बोलने का सलीका, न पहननेओढ़ने का.

कुछ ही दिनों में मुन्नी समझ गई कि फूलचंद्र जिंदा है तो केवल खाने के लिए और कमाता इसलिए है ताकि दोनों टाइम भर पेट भोजन मिलता रहे. न सिनेमा में रुचि, न सैरसपाटे में. मुन्नी उस से सिनेमा देखने या घूमने की फरमाइश करती तो वह उसे झिड़क देता, ‘‘ये सब उन के चोंचले हैं, जिन के पास अनापशनाप पैसा होता है. मैं ठहरा गरीब मजदूर, इसलिए यह सब मेरे भाग्य में कहां. तुम भी हैसियत की चादर देख कर पांव पसारना सीखो.’’

पति के मुंह से इस तरह की बातें सुनसुन कर मुन्नी ऊब गई और शादी के चंद हफ्तों में ही मुन्नी को पति से अरुचि हो गई. लेकिन शादी हुई थी, इसलिए निभाना ही था. मुन्नी फूलचंद्र का साथ निभातेनिभाते 3 बच्चों की मां बन गई. फूलचंद्र को उस ने बदलने की बहुत कोशिश की लेकिन बदल न सकी.

हां, मुन्नी ने अपने शौक नहीं मारे. सीमित साधनों में वह पहले की ही तरह अपने शौकशृंगार करती रही. 3 बच्चों की मां बनने के बाद भी उस ने अपना फिगर खराब नहीं होने दिया था.

इसी बीच फूलचंद्र की दोस्ती अनुपम वर्मा उर्फ अन्नू से हो गई. वह उस के घर आनेजाने लगा. 20 वर्षीय अनुपम वर्मा भिनगा थाना कोतवाली अंतर्गत गौहनिया राजगांव निवासी सुभाषचंद्र पटेल का बेटा था. सुभाषचंद्र खेतीकिसानी करते थे. अनुपम के हाईस्कूल तक पढ़ने के बाद उस का मन पढ़ाई में नहीं लगा तो सुभाषचंद्र ने उसे अपने साथ खेती के कामों में रमा लिया. वह अविवाहित था.

एक दिन किसी काम से अनुपम ओरीपुरवा आया तो मुन्नी को देख कर उस का मन डोल गया. उस ने अपने स्तर से मुन्नी के बारे में पता किया तो जाना कि मुन्नी चरित्र की कमजोर नहीं है, इसलिए आसानी से हाथ आने वाली नहीं है. अनुपम भी जल्दी निराश होने वाला शख्स नहीं था. मुन्नी को सेट करने के लिए उस ने उस के पति फूलचंद्र को सीढ़ी बनाने का फैसला किया और उस से दोस्ती कर ली.

अनुपम जब भी आता, मुन्नी और बच्चों के लिए कुछ न कुछ खानेपीने की चीजें ले आता था. कुछ ही दिनों में मुन्नी समझ गई कि फूलचंद्र से तो दोस्ती एक आड़ है, असल में अनुपम उस के यौवन का फल चखना चाहता है, तभी उन पर मेहरबानियां कर रहा है.

अनुपम सुंदर, सजीला, पढ़ालिखा और मौजमस्ती में यकीन रखने वाला शख्स था. हंसमुख और जिंदादिल. मुन्नी ने बिलकुल ऐसे ही जीवनसाथी की तमन्ना की थी. वैसे भी फूलचंद्र उम्र के ढलान पर था तो अनुपम नई चढ़ती उम्र का था युवा जोश से भरपूर. फूलचंद्र उस के सामने कुछ भी नहीं था. तमाम बातों पर गौर करने के बाद मुन्नी भी अनुपम की ओर आकर्षित होने लगी.

मुन्नी हो या अनुपम दोनों के दिलों में चाहत की आग बराबर लगी थी. तय था कि जल्द ही चाहत का इजहार हो जाएगा, लेकिन तभी मुन्नी बीमार हो गई. मुन्नी पर प्रभाव जमाने के लिए वह बराबर उस के इलाज के लिए साथ लगा रहा. फूलचंद्र को होशियारपुर भेज कर काम पर लगवा दिया.

काम पर लगने के बाद फूलचंद्र ने फोन कर के मुन्नी को यह बात बताई तो वह खुश हो गई. शाम को अनुपम आया तो मुन्नी ने उसे बताया, ‘‘तुम्हारी मेहरबानी से वह काम पर लग गए हैं.’’

‘‘इस खुशी में तो आज जश्न होना चाहिए.’’ अनुपम बोला.

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मुन्नी के चेहरे पर उदासी छा गई, ‘‘अभी तो मेरे हाथ खाली हैं. ‘वह’ जब कमा कर लौटेंगे या पैसे भेजेंगे, तब मैं तुम्हारी दावत करूंगी.’’

‘‘दावत के लिए फूलचंद्र की वापसी का इंतजार क्या करना,’’ अनुपम ने मौके का लाभ उठाने का मन बना लिया, ‘‘वह नहीं है, मैं तो हूं और मेरे रहते हुए किसी चीज के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है,’’ उस ने फौरन 200 रुपए जेब से निकाल कर मुन्नी के हाथ पर रखे, ‘‘इसे तुम अपने पास रखो. जश्न का सामान ले कर मैं अभी आया.’’ कह कर वह बाहर चला गया.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

ऑनलाइन ठगी का संजाल: सतर्कता परमो धर्म

पहला मामला- सेवानिवृत्त हो चुके पुलिस अधिकारी रघुनंदन प्रसाद कि मोबाइल में कॉल आता है- हम पुलिस मुख्यालय से बोल रहे हैं फलां फलां जानकारी दीजिए. रघुनंदन प्रसाद पुलिस मुख्यालय से जानकारी मांगने पर सब कुछ बताते चले जाते हैं और लूट जाते हैं.

दूसरा मामला- सेवानिवृत्त पुलिस कर्मचारी के पास कॉल आता है और कहां जाता है आपको कुछ जानकारी देनी है। हम  आपके विभाग से ही बोल रहे हैं.कर्मचारी जैसे ही जानकारी देता है उसके बैंक खाते से लाखों रुपए उड़ा लिया जाता है.

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वस्तुतः आज हर एक इंसान की मजबूरी है सोशल मीडिया का इस्तेमाल. और इस मजबूरी का फायदा लेते हैं चतुर ठग. जिनसे आपको बचना होगा. आज जिस तरह से ठगी का कारोबार उजागर हो रहा है उसे देखकर यही कहा जा सकता है की ऑनलाइन परमो धर्मा बन चुका है तो सतर्कता भी आपके लिए परमो धर्मा: है.

अब आपको यह तय करना है कि कैसे आप  चतुर ठगों से अपनी रात दिन की कमाई गाढ़ी कमाई को बचा सकते हैं.यह सच है कि आज के दौर में अपराध के तरीके भी आधुनिक हो गए हैं जहां तक सोशल मीडिया और ऑनलाइन ठगी के मामले की बात करें तो यह लगातार बढ़ते जा रहे हैं. ऑनलाइन ठग नए-नए तरीकों से लोगों को ठगने का  एक तरह से रिकॉर्ड बना रहे हैं.

छत्तीसगढ़ में  ऑनलाइन ठगों ने सेवानिवृत पुलिसकर्मियों को अपना निशाना बनाया है. लेकिन कहते हैं ना  कानून के हाथ लंबे होते हैं  तो यह एक बार फिर  सिद्ध हो गया . इन शातिर ठगों को  पुलिस ने ढूंढ निकाला और अपनी गिरफ्त में ले, जेल के सिखचों के पीछे  पहुंचा दिया है.

और पुलिस फंस गई फेर में

हमारी इस रिपोर्ट  के केंद्र में है पुलिस .वह पुलिस जो  लोगों को सतर्क रहने का आह्वान करती है. लोगों को  ठगों से बचाती है,  लुटेरों से बचाती है.  मगर छत्तीसगढ़ में  पुलिस के अधिकारी और कर्मचारी भी  शातिर ठगों के फेर में फंस गए. ऐसे में यह समझा जा सकता है कि  जब पढ़े-लिखे पुलिस अधिकारी  जो  24 घंटे  अपराधिक लोगों से दो-चार होते हैं.  लोगों को राहत देते हैं… बचाते हैं  इन सोशल मीडिया के ठगों के संजाल में फंस गए तो आम आदमी  कि  बखत क्या है.

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छत्तीसगढ़ के महासमुंद, कांकेर, राजनांदगांव, दंतेवाड़ा, रायपुर, सरगुजा, बिलासपुर सहित कुछ नगरों में सेवानिवृत्त पुलिस कर्मियों को शातिर ठगों ने कुछ  दिनों में  तकरीबन  40 लाख रुपए की ठगी की. इसी  माह 16 जुलाई को राजनांदगांव जिले के अंबागढ़ चौकी थाने में सेवनिवृत्त पुलिसकर्मी भगवान सिंह सलामे ने रपट  दर्ज कराई कि एक फोन कॉल में अपने आप को पेंशन अधिकारी बताकर उनसे एक शख्स  ने एटीएम कार्ड की संपूर्ण जानकारी  ली और उनके खाते में जमा 18 लाख 33 हजार रूपये  देखते ही देखते उड़ा लिए .

छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव सहित  अन्य जिलों से भी इसी तरह  के  प्रकरण  सामने आये। राजनांदगांव  पुलिस अधीक्षक जितेंद्र शुक्ला के  तत्परता से  शातिर आरोपियों की  तलाशी की जाने लगी .

छत्तीसगढ़ राजधानी पुलिस मुख्यालय भी इन प्रकरणों को लेकर सतर्क हुआ. जांच तेजी से होने लगी. महासमुंद और दंतेवाड़ा पुलिस की एक संयुक्त टीम बनाकर आरोपियों की तलाश में लग गई.

इस  दरमियान पुलिस को कुछ सुराग मिले और पुलिस आरोपियों तक पहुंच गई. पुलिस ने सेवा निवृत्त  पुलिसकर्मियों के साथ ठगी करने वाले बिहार के लीलावरण थाना बंधवापुरूवा निवासी आरोपी बाबर अली हेम्ब्राम, मनोज कुमार, रोहित कुमार यादव, पिंटू कुमार मंडल, जितेंद्र चौधरी को गिरफ्तार किया है। राजनांदगांव पुलिस ने इस मामले का  खुलासा कर दिया.

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पुलिस की गिरफ्त में आए ये शातिर ठग सेवा निवृत्त  पुलिसकर्मियों से पेंशन अधिकारी बनकर उन्हें पेंशन राशि, पीएफ सहित अन्य मामलों में उलझाते  थे और एटीएम कार्ड पर अंकित नंबर पुछकर उनके बैंक खाते से सारे रुपए निकाल लेते थे. मजे की बात यह है कि ठगी करने वाले आज के तेजी से प्रचलन में आई सोशल मीडिया का दुरुपयोग करते रहे. यह  सेवानिवृत्ति पुलिस कर्मियों के बारे में ऑनलाइन ही जानकारी इकट्ठा करते थे.पुलिस ने सभी आरोपियों को झारखंड और बिहार के अलग-अलग स्थानों से गिरफ्तार किया है. पकड़े गए आरोपियों के पास से दर्जनों मोबाइल सिम, वहीं 2 दर्जन से अधिक मोबाइल फोन, एटीएम कार्ड,  लैपटॉप, कलर प्रिंटर सहित कई फर्जी दस्तावेज बरामद हुए हैं. इस तरह छत्तीसगढ़ में पुलिस ने एक अंतर राज्य ऑनलाइन शातिर ठग गिरोह का पर्दाफाश किया है.

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