सुगंधा लौट आई: क्या थी सुगंधा की अनिल को छोड़ने की वजह?

Holi Special: अधूरी चाह- भाग 3

अब शालिनी जो पैसे कमाने के चक्कर में नौकरी करने लगी थी, वह अब पति यानी संजय की जमापूंजी खत्म कर रही है. कभी संजय से 50,000 तो कभी एक लाख रुपए लेती, किसी न किसी काम के बहाने. घर के खर्चों और बच्चों के खर्चों की संजय को बिलकुल भी जानकारी नहीं थी, इसलिए जितना वह मांगती संजय दे देता.

इस तरह कई साल बीत गए, लेकिन कोई भी राज कहां तक राज रह सकता है. आखिरकार यह राज भी जगजाहिर हो गया. बात उठी है तो न जाने कितने कानों तक पहुंचेगी. जाहिर सी बात है कि संजय के कानों तक भी तो पहुंचनी ही थी, पहुंच गई.

संजय ने पूछा, तो शालिनी ने साफ इनकार कर दिया, लेकिन संजय को जहां से भी खबर मिली थी, वह खबर पक्की थी.

संजय को यह फिक्र थी कि बच्चे अब बड़े हैं, सम?ादार हैं, हर बात को सम?ाते हैं, उन के सामने वह कोई तमाशा नहीं करना चाहता था. बस, शालिनी को सम?ाता कि वह यह सब छोड़ दे या उसे छोड़ वहीं जा कर बसे, लेकिन शालिनी सच स्वीकार न करती.

इस बात को अब 11 साल बीत गए. शालिनी का वही रूटीन है. संजय अपनी नौकरी और ऐक्स्ट्रा काम में बिजी है, क्योंकि केवल नौकरी से घर का गुजारा नहीं चल रहा था.

शालिनी तकरीबन संजय का पैसा सब खत्म कर चुकी है और संजय ने औफिस से लोन भी लिया हुआ है. शालिनी जान गई कि संजय के साथ कोई भविष्य नहीं. वह संजय को तलाक के कागज थमा कर कहती है कि उसे तलाक चाहिए. संजय उसे तलाक दे देता है. शालिनी अजय से शादी कर लेती है.

शालिनी बच्चों को साथ ले जाती है अजय के घर. संजय अकेला बैठा सोच रहा है कि उस ने कहां क्या गलती की?

हां, याद आता है संजय को वह हर पल जबजब वह शालिनी के साथ हमबिस्तर हुआ, उस ने कभी शालिनी के इमोशन को नहीं सम?ा और जाना, बस केवल अपनी हवस शांत की और सो गया.

शालिनी कहती, ‘मु?ो तुम्हारा तन नहीं मन चाहिए. मु?ो केवल प्यार चाहिए, सैक्स ही जिंदगी की धुरी नहीं, जिंदगी का मतलब तो प्यार है.’’

लेकिन संजय इन बातों पर ध्यान न देता, क्योंकि उसे अपनी जवानी पर नाज था, फख्र था कि उस पर हजारों लड़कियां मरती हैं, यही घमंड उस की रगरग में बस चुका था. उस की नजर में औरत का प्यार कोई माने नहीं रखता, औरत केवल बिस्तर की शोभा ही बन सकती है.

शालिनी, जो जब तक संजय के साथ थी, सच्चे प्यार को तरसती रही, लेकिन उसे वह प्यार अजय श्रीवास्तव ने दिया. वह उस की दीवानी हो गई. कहते हैं कि औरत जब कुरबान करने पर आती है, तो अपनी जान की भी परवाह नहीं करती.

आज शालिनी अपनी जान देना चाहती है, संजय या अजय के लिए नहीं, बल्कि इसलिए कि अब उसे एहसास हो गया कि उस ने कितना गलत कदम उठाया था, लेकिन उसे इस बात का सुकून है कि उसे थोड़े समय के लिए ही सही, अजय से सच्चा प्यार तो मिला था. अब अजय ने बेशक शादी कर ली उस से, लेकिन वह उसे वह खुशी नहीं दे रहा, क्योंकि उस के सिर से शालिनी नाम का भूत उतर चुका है.

वह अब सम?ा चुका है कि शालिनी के पास अब कोई धनदौलत नहीं, वह तो केवल पैसों का भूखा निकला, शालिनी के लिए तो उस का प्यार चंद महीनों में ही खत्म हो गया था. अब उस ने शालिनी को भी पैसेपैसे के लिए मुहताज कर दिया है, बच्चे भी परेशान हैं.

संजय बच्चों को अपने पास लाना चाहता है, मगर बच्चे जानते हैं कि मां परेशान हैं. अब उन्हें छोड़ कर नहीं जा सकते वरना मां डिप्रैशन में न चली जाएं कहीं.

शालिनी अपने किए पर शर्मिंदा है और संजय को अब अपनी गलती का एहसास हो रहा है, लेकिन अब इस समस्या का समाधान नहीं है.

संजय ने कश्मीर छोड़ दिया हमेशा के लिए, करता भी क्या वहां रह कर. सिर पर कर्ज है लोगों का, जो लेले कर शालिनी की ख्वाहिशें पूरी करता रहा और किस तरह शालिनी को अपने सामने गैर के साथ देखता. रातोंरात भाग आया दिल्ली अपने भाइयों के पास. दोनों अपनी गलतियों पर पछता रहे हैं, लेकिन इन सब में बच्चों का भविष्य कहीं सुखद दिखाई नहीं देता.

तू आए न आए – भाग 3: शफीका का प्यार और इंतजार

निश्चित दिन, निश्चित समय, उन के घर की डौरबैल बजाने से पहले, क्षणभर के लिए हाथ कांपा था, ‘तुम शफीका के भतीजे के बेटे हो. गेटआउट फ्रौम हियर. वह पृष्ठ मैं कब का फाड़ चुका हूं. तुम क्या टुकड़े बटोरने आए हो?’ कुछ इस तरह की ऊहापोह में मैं ने डौरबैल पर उंगली रख दी.

‘‘प्लीज कम इन, आई एम वेटिंग फौर यू.’’ एक अनौपचारिक स्वागत के बाद उन के द्वारा मेरा परिचय और मेरा मिलने का मकसद पूछते ही मैं कुछ देर तो चुप रहा, फिर अपने ननिहाल का पता बतलाने के बाद देर तक खुद से लड़ता रहा.

अनौपचारिक 2-3 मुलाकातों के बाद वे मुझ से थोड़ा सा बेबाक हो गए. उन की दूसरी पत्नी की मृत्यु 15 साल पहले हो चुकी थी. बेटों ने पाश्चात्य सभ्यता के मुताबिक अपनी गृहस्थियां अलग बसा ली थीं. वीकैंड पर कभी किसी का फोन आ जाता, कुशलता मिल जाती. महीनों में कभी बेटों को डैड के पास आने की फुरसत मिलती भी तो ज्यादा वक्त फोन पर बिजनैस डीलिंग में खत्म हो जाता. तब सन जैसी सफेद पलकें, भौंहें और सिर के बाल चीखचीख कर पूछने लगते, ‘क्या इसी अकेलेपन के लिए तुम श्रीनगर में पूरा कुनबा छोड़ कर यहां आए थे?’

हालांकि डाक्टर खालिद अनवर की उम्र चेहरे पर हादसों का हिसाब लिखने लगी थी मगर बचपन से जवानी तक खाया कश्मीर का सूखा मेवा और फेफड़े में भरी शुद्ध, शीतल हवा उन की कदकाठी को अभी भी बांस की तरह सीधा खड़ा रखे हुए है. डाक्टर ने बुढ़ापे को पास तक नहीं फटकने दिया. अकसर बेटे उन के कंधे पर हाथ रख कर कहते हैं, ‘‘डैड, यू आर स्टिल यंग दैन अस. सो, यू डौंट नीड अवर केयर.’’ यह कहते हुए वे शाम से पहले ही अपने घर की सड़क की तरफ मुड़ जाते हैं.

शरीर तो स्वस्थ है लेकिन दिल… छलनीछलनी, दूसरी पत्नी से छिपा कर रखी गई शफीका की चिट्ठियां और तसवीरों को छिपछिप कर पढ़ने और देखने के लिए मजबूर थे. प्यार में डूबे खतों के शब्द, साथ गुजारे गिनती के दिनों के दिलकश शाब्दिक बयान, 63 साल पीछे ले जाता, यादों के आईने में एक मासूम सा चेहरा दिखलाई देने लगता. डाक्टर हाथ बढ़ा कर उसे छू लेना चाहते हैं जिस की याद में वे पलपल मरमर कर जीते रहे. बीवी एक ही छत के नीचे रह कर भी उन की नहीं थी. दौलत का बेशुमार अंबार था. शानोशौकत, शोहरत, सबकुछ पास में था अगर नहीं था तो बस वह परी चेहरा, जिस की गरम हथेलियों का स्पर्श उन की जिंदगी में ऊर्जा भर देता.

मेरे अपनेपन में उन्हें अपने वतन की मिट्टी की खुशबू आने लगी थी. अब वे परतदरपरत खुलने लगे थे. एक दिन, ‘‘लैपटौप पर क्या सर्च कर रहे हैं?’’

‘‘बेटी के लिए प्रौपर मैच ढूंढ़ रहा हूं,’’ कहते हुए उन का गला रुंधने लगा. उन की यादों की तल्ख खोहों में उस वक्त वह कंपा देने वाली घड़ी शामिल थी, जब उन की बेटी का पति अचानक बिना बताए कहीं चला गया. बहुत ढूंढ़ा, इंटरनैशनल चैनलों व अखबारों में उस की गुमशुदगी की खबर छपवाई, लेकिन सब फुजूल, सब बेकार. तब बेटी के उदास चेहरे पर एक चेहरा चिपकने लगा. एक भूलाबिसरा चेहरा, खोयाखोया, उदास, गमगीन, छलछला कर याचना करती 2 बड़ीबड़ी कातर आंखें.

किस का है यह चेहरा? दूसरी बीवी का? नहीं, तो? मां का? बिलकुल नहीं. फिर किस का है, जेहन को खुरचने लगे, 63 साल बाद यह किस का चेहरा? चेहरा बारबार जेहन के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. किस की हैं ये सुलगती सवालिया आंखें? किस का है यह कंपकंपाता, याचना करता बदन, मगर डाक्टर पर उस का लैशमात्र भी असर नहीं हुआ था. लेकिन आज जब अपनी ही बेटी की सिसकियां कानों के परदे फाड़ने लगीं तब वह चेहरा याद आ गया.

दुनियाभर के धोखों से पाकसाफ, शबनम से ज्यादा साफ चेहरा, वे कश्मीर की वादियां, महकते फूलों की लटकती लडि़यों के नीचे बिछी खूबसूरत गुलाबी चादर, नर्म बिस्तर पर बैठी…खनकती चूडि़यां, लाल रेशमी जोड़े से सजा आरी के काम वाला लहंगाचोली, मेहंदी से सजे 2 गोरे हाथ, कलाई पर खनकती सोने की चूडि़यां, उंगलियों में फंसी अंगूठियां. हां, हां, कोई था जिस की मद्धम आवाज कानों में बम के धमाकों की तरह गूंज रही थी, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी खालिद, हमेशा.

लाहौर एयरपोर्ट पर अलविदा के लिए लहराता हाथ, दिल में फांस सी चुभी कसक इतनी ज्यादा कि मुंह से बेसाख्ता चीख निकल गई, ‘‘हां, गुनहगार हूं मैं तुम्हारा. तुम्हारे दिल से निकली आह… शायद इसीलिए मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद हो गई. मेरे चाचा के बहुत जोर डालने पर, न चाहते हुए भी मुझे उन की अंगरेज बेटी से शादी करनी पड़ी. दौलत का जलवा ही इतना दिलफरेब होता है कि अच्छेअच्छे समझदार भी धोखा खा जाते हैं.

‘‘शफीका, तुम से वादा किया था मैं ने. तुम्हें लाहौर ला कर अपने साथ रखने का. वादा था नए सिरे से खुशहाल जिंदगी में सिमट जाने का, तुम्हारी रातों को हीरेमोती से सजाने का, और दिन को खुशियों की चांदनी से नहलाने का. पर मैं निभा कहां पाया? आंखें डौलर की चमक में चौंधिया गईं. कटे बालों वाली मोम की गुडि़या अपने शोख और चंचल अंदाज से जिंदगी को रंगीन और मदहोश कर देने वाली महक से सराबोर करती चली गई मुझे.’’

अचानक एक साल बाद उन का दामाद इंगलैंड लौट आया, ‘‘अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा. आप की बेटी के साथ ही रहूंगा. वादा करता हूं.’’

दीवानगी की हद तक मुहब्बत करने वाली पत्नी को छोड़ कर दूसरी अंगरेज औरत के टैंपरेरी प्यार के आकर्षण में बंध कर जब वह पूरी तरह से कंगाल हो गया तो लौटने के लिए उसे चर्चों के सामने खड़े हो कर वायलिन बजा कर लोगों से पैसे मांगने पड़े थे.

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पति की अपनी गलती की स्वीकृति की बात सुन कर बेटी बिलबिला कर चीखी थी, ‘‘वादा, वादा तोड़ कर उस फिनलैंड वाली लड़की के साथ मुझ पत्नी को छोड़ कर गए ही क्यों थे? क्या कमी थी मुझ में? जिस्म, दौलत, ऐशोआराम, खुशियां, सबकुछ तो लुटाया था तुम पर मैं ने. और तुम? सिर्फ एक नए बदन की हवस में शादी के पाकीजा बंधन को तोड़ कर चोरों की तरह चुपचाप भाग गए. मेरे यकीन को तोड़ कर मुझे किरचियों में बिखेर दिया.

‘‘तुम को पहचानने में मुझ से और मेरे बिजनैसमैन कैलकुलेटिव पापा से भूल हो गई. मैं इंगलैंड में पलीपढ़ी हूं, लेकिन आज तक दिल से यहां के खुलेपन को कभी भी स्वीकार नहीं कर सकी. मुझ से विश्वासघात कर के पछतावे का ढोंग करने वाले शख्स को अब मैं अपना नहीं सकती. आई कांट लिव विद यू, आई कांट.’’ यह कहती हुई तड़प कर रोई थी डाक्टर की बेटी.

आज उस की रुलाई ने डाक्टर को हिला कर रख दिया. आज से 50 साल पहले शफीका के खामोश गरम आंसू इसी पत्थरदिल डाक्टर को पिघला नहीं सके थे लेकिन आज बेटी के दर्द ने तोड़ कर रख दिया. उसी दम दोटूक फैसला, दामाद से तलाक लेने के लिए करोड़ों रुपयों का सौदा मंजूर था क्योंकि बेटी के आंसुओं को सहना बरदाश्त की हद से बाहर था.

डाक्टर, शफीका के कानूनी और मजहबी रूप से सहारा हो कर भी सहारा न बन सके, उस मजलूम और बेबस औरत के वजूद को नकार कर अपनी बेशुमार दौलत का एक प्रतिशत हिस्सा भी उस की झोली में न डाल सके. शफीका की रात और दिन की आह अर्श से टकराई और बरसों बाद कहर बन कर डाक्टर की बेटी पर टूटी. वह मासूम चेहरा डाक्टर को सिर्फ एक बार देख लेने, एक बार छू लेने की चाहत में जिंदगी की हर कड़वाहट को चुपचाप पीता रहा. उस पर रहम नहीं आया कभी डाक्टर को. लेकिन आज बेटी की बिखरतीटूटती जिंदगी ने डाक्टर को भीतर तक आहत कर दिया. अब समझ में आया, प्यार क्या है. जुदाई का दर्द कितना घातक होता है, पहाड़ तक दरक जाते हैं, समंदर सूख जाते हैं.

मैं यह खबर फूफीदादी तक जल्द से जल्द पहुंचाना चाहता था, शायद उन्हें तसल्ली मिलेगी. लेकिन नहीं, मैं उन के दिल से अच्छी तरह वाकिफ था. ‘मेरे दिल में डाक्टर के लिए नफरत नहीं है. मैं ने हर लमहा उन की भलाई और लंबी जिंदगी की कामना की है. उन की गलतियों के बावजूद मैं ने उन्हें माफ कर दिया है, बजी,’ अकसर वे मुझ से ऐसा कहती थीं.

मैं फूफीदादी को फोन करने की हिम्मत जुटा ही नहीं सका था कि आधीरात को फोन घनघना उठा था, ‘‘बजी, फूफीदादी नहीं रहीं.’’ क्या सोच रहा था, क्या हो गया. पूरी जिंदगी गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहीं फूफीदादी.

सुबह का इंतजार मेरे लिए सात समंदर पार करने की तरह था. धुंध छंटते ही मैं डाक्टर के घर की तरफ कार से भागा. कम से कम उन्हें सचाई तो बतला दूं. कुछ राहत दे कर उन की स्नेहता हासिल कर लूं मगर सामने का नजारा देख कर आंखें फटी की फटी रह गईं. उन के दरवाजे पर एंबुलैंस खड़ी थी. और घबराई, परेशान बेटी ड्राइवर से जल्दी अस्पताल ले जाने का आग्रह कर रही थी. हार्टअटैक हुआ था उन्हें. हृदयविदारक दृश्य.

मैं स्तब्ध रह गया. स्टेयरिंग पर जमी मेरी हथेलियों के बीच फूफीदादी का लिखा खत बर्फबारी में भी पसीने से भीग गया, जिस पर लिखा था, ‘बजी, डाक्टर अगर कहीं मिल जाएं तो यह आखिरी अपील करना कि वे मुझ से मिलने कश्मीर कभी नहीं आए तो मुझे कोई शिकवा नहीं है लेकिन जिंदगी के रहते एक बार, बस एक बार, अपनी मां की कब्र पर फातेहा पढ़ जाएं और अपनी सरजमीं, कश्मीर की खूबसूरत वादियों में एक बार सांस तो ले लें. मेरी 63 साल की तपस्या और कुरबानियों को सिला मिल जाएगा. मुझे यकीन है तुम अपने वतन से आज भी उतनी ही मुहब्बत करते हो जितनी वतन छोड़ते वक्त करते थे.’

गुनाहों की सजा तो कानून देता है, लेकिन किसी का दिल तोड़ने की सजा देता है खुद का अपना दिल.

‘तू आए न आए,

लगी हैं निगाहें

सितारों ने देखी हैं

झुकझुक के राहें…’

इस गजल का एकएक शब्द खंजर बन कर मेरे सीने में उतरने लगा और मैं स्टेयरिंग पर सिर पटकपटक कर रो पड़ा.

एक जहां प्यार भरा: भाग 2

“पर यह कैसे हो सकता है?” उसे विश्वास नहीं हो रहा था.

“क्यों नहीं हो सकता?”

“आई मीन मुझे बहुत से लोग पसंद करते हैं, कई दोस्त हैं मेरे. लड़कियां भी हैं जो मुझ से बातें करती हैं. पर किसी ने आज तक मुझे आई लव यू तो नहीं कहा था. क्या तुम वाकई…? आर यू श्योर ?”

“यस इत्सिंग. आई लव यू.”

“ओके… थोड़ा समय दो मुझे रिद्धिमा.”

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“ठीक है, कल तक का समय ले लो. अब हम परसों बात करेंगे,” कह कर मैं औफलाइन हो गई.

मुझे यह तो अंदाजा था कि वह मेरे प्रस्ताव पर सहज नहीं रह पाएगा. पर जिस तरह उस ने बात की थी कि उस की बहुत सी लड़कियों से भी दोस्ती है. स्वाभाविक था कि मैं भी थोड़ी घबरा रही थी. मुझे डर लग रहा था कि कहीं वह इस प्रस्ताव को अस्वीकार न कर दे. सारी रात मैं सो न सकी. अजीबअजीब से खयाल आ रहे थे. आंखें बंद करती तो इत्सिंग का चेहरा सामने आ जाता. किसी तरह रात गुजरी. अब पूरा दिन गुजारना था क्योंकि मैं ने इत्सिंग से कहा था कि मैं परसों बात करूंगी. इसलिए मैं जानबूझ कर देर से जागी और नहाधो कर पढ़ने बैठी ही थी कि सुबहसुबह अपने व्हाट्सएप पर इत्सिंग का मैसेज देख कर मैं चौंक गई.

धड़कते दिल के साथ मैं ने मैसेज पढ़ा. लिखा था,”डियर रिद्धिमा, कल पूरी रात मैं तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा. तुम्हारा प्रस्ताव भी मेरे दिलोदिमाग में था. काफी सोचने के बाद मैं ने फैसला लिया है कि हम चीन में अपना घर बनाएंगे पर एक घर इंडिया में भी होगा. जहां गरमी की छुट्टियों में बच्चे नानानानी के साथ अपना वक्त बिताएंगे.”

“तो मिस्टर इन बातों का सीधासीधा मतलब भी बता दीजिए,” मैं ने शरारत से पूछा तो अगले ही पल इत्सिंग ने बोल्ड फौंट में आई लव यू टू डियर लिख कर भेजा. साथ में एक बड़ा सा दिल भी. मैं खुशी से झूम उठी. वह मेरी जिंदगी का सब से खूबसूरत पल था. अब तो मेरी जिंदगी का गुलशन प्यार की खुशबू से महक उठा था. हम व्हाट्सएप पर चैटिंग के साथ फोन पर भी बातें करने लगे थे.

कुछ महीने के बाद एक दिन मैं ने इत्सिंग से फिर से अपने दिल की बात की,”यार, जब हम प्यार करते ही हैं तो क्यों न शादी भी कर लें.”

“शादी?”

“हां शादी.”

“तुम्हें अजीब नहीं लग रहा?”

“पर क्यों? शादी करनी तो है ही न इत्सिंग या फिर तुम केवल टाइमपास कर रहे हो?” मैं ने उसे डराया था और वह सच में डर भी गया था.

वह हकलाता हुआ बोला,”ऐसा नहीं है रिद्धिमा. शादी तो करनी ही है पर क्या तुम्हें नहीं लगता कि यह फैसला बहुत जल्दी का हो जाएगा? कम से कम शादी से पहले एक बार हमें मिल तो लेना ही चाहिए,”कह कर वह हंस पड़ा.

इत्सिंग का जवाब सुन कर मैं भी अपनी हंसी रोक नहीं पाई.

अब हमें मिलने का दिन और जगह तय करना था. यह 2010 की बात थी. शंघाई वर्ल्ड ऐक्सपो होने वाला था. आयोजन से पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी में इंडियन पैविलियन की तरफ से वालंटियर्स के सिलैक्शन के लिए इंटरव्यू लिए जा रहे थे. मैं ने जरा सी भी देर नहीं की. इंटरव्यू दिया और सिलैक्ट भी हो गई.

इस तरह शंघाई के उस वर्ल्ड ऐक्सपो में हम पहली दफा एकदूसरे से मिले. वैसे तो हम ने एकदूसरे की कई तसवीरें देखी थीं पर आमनेसामने देखने की बात ही अलग होती है. एकदूसरे से मिलने के बाद हमारे दिल में जो एहसास उठे उसे बयां करना भी कठिन था. पर एक बात तो तय थी कि अब हम पहले से भी ज्यादा श्योर थे कि हमें शादी करनी ही है.

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ऐक्सपो खत्म होने पर मैं ने इत्सिंग से कहा,”एक बार मेरे घर चलो. मेरे मांबाप से मिलो और उन्हें इस शादी के लिए तैयार करो. उन के आगे साबित करो कि तुम मेरे लिए परफैक्ट रहोगे.”

इत्सिंग ने मेरे हाथों पर अपना हाथ रख दिया. हम एकदूसरे के आगोश में खो गए. 2 दिन बाद ही इत्सिंग मेरे साथ दिल्ली एअरपोर्ट पर था. मैं उसे रास्ते भर समझाती आई थी कि उसे क्या बोलना है और कैसे बोलना है, किस तरह मम्मीपापा को इंप्रैस करना है.

मैं ने उसे समझाया था,”हमारे यहां बड़ों को गले नहीं लगाते बल्कि आशीर्वाद लेते हैं. नमस्कार करते हैं.”

मैं ने उसे सब कुछ कर के दिखाया था. मगर एअरपोर्ट पर मम्मीपापा को देखते ही इत्सिंग सब भूल गया और हंसते हुए उन के गले लग गया. मम्मीपापा ने भी उसे बेटे की तरह सीने से लगा लिया था. मेरी फैमिली ने इत्सिंग को अपनाने में देर नहीं लगाई थी मगर उस के मम्मीपापा को जब यह बात पता चली और इत्सिंग ने मुझे उन से मिलवाया तो उन का रिएक्शन बहुत अलग था.

उस के पापा ने नाराज होते हुए कहा था,”लड़की की भाषा, रहनसहन, खानपान, वेशभूषा सब बिलकुल अलग होंगे. कैसे निभाएगी वह हमारे घर में? रिश्तेदारों के आगे हमारी कितनी बदनामी होगी.”

इत्सिंग ने उन्हें भरोसा दिलाते हुए कहा था,”डोंट वरी पापा, रिद्धिमा सब कुछ संभाल लेगी. रिद्धिमा खुद को बदलने के लिए तैयार है. वह चाइनीज कल्चर स्वीकार करेगी.”

“पर भाषा? वह इतनी जल्दी चाइनीज कैसे सीख लेगी?” पापा ने सवाल किया.

“पापा वह चाइनीज जानती है. उस ने चाइनीज लैंग्वेज में ही ग्रैजुएशन किया है. वह बहुत अच्छी चाइनीज बोलती है,” इत्सिंग ने अपनी बात रखी.

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यह जवाब सुन कर उस के पापा के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आ गई. थोड़ी नानुकर के बाद उस के मांबाप ने भी मुझे अपना लिया. उस के पिता हमारी शादी के लिए तैयार तो हो गए मगर उन्होंने हमारे सामने एक शर्त रखते हुए कहा,” मैं चाहता हूं कि तुम दोनों की शादी चीनी रीतिरिवाज के साथ हो. इस में मैं किसी की नहीं सुनूंगा.”

“जी पिताजी,” हम दोनों ने एकसाथ हामी भरी.

बाद में जब मैं ने अपने मातापिता को यह बात बताई तो वे अड़ गए. वे मुझे अपने घर से विदा करना चाहते थे और वह भी पूरी तरह भारतीय रीतिरिवाजों के साथ. मैं ने यह बात इत्सिंग को बताई तो वह भी सोच में डूब गया. हम किसी को भी नाराज नहीं कर सकते थे. पर एकसाथ दोनों की इच्छा पूरी कैसे करें यह बात समझ नहीं आ रही थी.

तभी मेरे दिमाग में एक आईडिया आया,” सुनो इत्सिंग क्यों न हम बीच का रास्ता निकालें. ”

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Valentine’s Special- भाग-2: वैलेंटाइन के फूल

हितेश की बातें सुन कर मानसी मन ही मन  झल्ला गई थी, पर कुछ कह न सकी, क्योंकि हितेश ने उसे बिस्तर पर गिरा दिया था और मानसी के कपड़े उतार कर सैक्स में लीन हो गया था.

‘‘ऐसा है हितेश… मु झे अभी काम बाकी है. मु झे इसे निबटाने में समय लग जाएगा,’’ अगले दिन की शाम को मानसी ने फोन कर के हितेश से कहा.

‘‘यानी आज मु झे मेरे लिए खुद ही चाय बनानी पड़ेगी,’’ मुसकराते हुए हितेश ने कहा.

रात के 8 बजे नैतिक मानसी को घर छोड़ने आया, तो मानसी ने उसे अपने फ्लैट में बुला लिया. हितेश और नैतिक अपनी पुरानी यादें ताजा करने लगे थे और दोनों के बीच जम कर हंसी के ठहाके गूंज रहे थे. देर रात तक नैतिक उन दोनों के साथ बातें करता रहा.

कई दिनों तक मानसी को औफिस में देर हो जाती और अकसर नैतिक उसे छोड़ने के लिए आता. मानसी को रोज नैतिक के साथ आता देख कर हितेश के मन में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा और वह मानसी और नैतिक के बढ़ते हुए रिश्ते से मन ही मन चिढ़ने लगा था.

हितेश को लगने लगा था कि उन दोनों के बीच प्रेम संबंध पनप रहा है, इसलिए उस ने मानसी और नैतिक पर निगाहें रखनी शुरू कर दीं और हितेश मानसी के मोबाइल और ह्वाट्सएप संदेशों की भी जांच बराबर करने लगा.

मानसी आज एक माल में गई थी. वहां मानसी को देख कर एक कोने में खड़े लड़के आपस में कुछ कानाफूसी करने लगे. वे लड़के बारबार मानसी को देखते और फिर अपने मोबाइल की स्क्रीन पर देखते मानो किसी की शक्ल से मानसी की शक्ल मिलाने की कोशिश कर रहे हों. उन की यह हरकत मानसी ने भी नोट की थी, पर उस ने उन लोगों पर ध्यान न देना ही उचित सम झा.

पर उन लड़कों में से एक ने कोई तंज कसा, ‘‘भई वाह, आजकल तो पोर्नस्टार भी पारिवारिक जगहों पर घूमनेफिरने लगी हैं… तो मैडम हम में क्या बुराई है… पैसे तो हम भी दे देंगे…’’

मानसी से अब रहा नहीं गया और बोली, ‘‘क्या मतलब है तुम लोगों का? ये कैसी बातें कर रहे हो तुम?’’

उस की बात सुन कर उन लड़कों ने बिना कुछ कहे ही अपने मोबाइल की स्क्रीन मानसी के सामने कर दी. मानसी ने मोबाइल में जो भी देखा उसे देख कर उस की आंखें हैरानी से फटी रह गई थीं.

मोबाइल में कोई पोर्नसाइट खुली हुई थी, जिस में एक वीडियो प्ले हो रहा था और उस वीडियो में मानसी और हितेश सैक्स कर रहे थे. यह वही वीडियो क्लिप थी जो हितेश ने अपने मोबाइल से शूट की थी.

अपने निजी पलों को इस तरह आम होते हुए देख कर मानसी शर्म से पानीपानी हो गई थी. वह उन लड़कों से आंखें भी नहीं मिला पाई. उसे सम झ नहीं आ रहा था कि क्या कहे और क्या न कहे. मानसी ने आंखें नीची कीं और वहां से भाग खड़ी हुई.

‘‘अरे… ओ, अकेले कहां जा रही हो… कम से कम अपना भाव तो बताती जाओ,’’ पीछे से आने वाली ऐसी आवाजें उसे नश्तर बन कर चुभ रही थीं.

रात को जैसे ही मानसी सोने को हुई तो हितेश ने फिर से अपने मोबाइल कैमरे को चालू कर के मानसी की वीडियो बनानी शुरू की.

इस पर मानसी बुरी तरह बिफर पड़ी और उस ने हितेश को खूब बुराभला कहते हुए बताया कि कैसे हितेश ने उस की वीडियो पोर्नसाइट पर अपलोड कर के उस को बेइज्जत किया है.

पर हितेश ने कहा कि उस ने मानसी की वीडियो बनाई जरूर थी, लेकिन वह भी सिर्फ रोमांच के लिए, किसी तरह की साइट पर अपलोड करने का उस का कोई इरादा नहीं था और उस ने कोई भी वीडियो नहीं अपलोड की है.

पहले तो मानसी को हितेश की बात पर यकीन नहीं आया, पर जब हितेश अपनी बात पर कायम रहा तो मानसी  को उस की बात पर यकीन करना पड़ा.

‘‘तो फिर हमारे वीडियो कैसे इंटरनैट पर पहुंच गए?’’ परेशान हो कर मानसी ने पूछा.

‘‘जब उन लड़कों ने तुम्हे अपने मोबाइल की स्क्रीन दिखाई थी तो उस पोर्नसाइट का नाम क्या तुम देख पाई थी?’’ हितेश ने पूछा.

पहलेपहल तो मानसी को कुछ याद नहीं आया, पर जब 1-2 कौमन साइटों के नाम हितेश ने उसे गिनवाए तो मानसी के जेहन में उस साइट का नाम उभर आ गया जो मोबाइल की स्क्रीन पर नीचे कोने में लिखा हुआ था.

हितेश ने बिना देरी किए उस साइट को खोला और कुछ वीडियो सर्च किए तो दंग रह गया. उस साइट पर मानसी और हितेश के बहुत से वीडियो थे.

इन वीडियो को भले ही हितेश ने बनाया था, पर थोड़ी सी जांच करने के बाद ही हितेश ने मानसी को बताया कि ये सारे वीडियो नैतिक के मोबाइल फोन से ही अपलोड किए गए हैं.

‘‘मानसी, हमें तुरंत ही पुलिस के पास जाना होगा. हम किसी बहुत बड़े जाल में फंसने वाले हैं,’’ हितेश ने कहा.

हितेश और मानसी ने सारी बात थाने में जा कर पुलिस को बता दी. कुछ डाटा खंगालने के बाद पुलिस ने उस आदमी का नाम भी खोज निकाला था जो इस गंदे काम को अंजाम देता था. वह कोई और नहीं, बल्कि नैतिक था.

‘‘पर नैतिक… वह क्यों करेगा ऐसा काम? उस ने तो हम लोगों की मदद की है,’’ बुदबुदा पड़ी थी मानसी. पुलिस ने मानसी और हितेश की शिकायत के आधार पर नैतिक को गिरफ्तार कर लिया.

नैतिक के गिरफ्तार होने से हितेश को बड़ी राहत सी महसूस हो रही थी और मन ही मन वह मुसकराए जा रहा था. हितेश ने मानसी को यह यकीन दिला दिया था कि कालेज में अपने प्यार में नाकाम रहने के बाद नैतिक ने मानसी और हितेश से बदला लेने के लिए ही

उन दोनों को बदनाम कर के बदले की नीयत से ही उन के वीडियो पोर्नसाइट पर डाले थे. मानसी के मन में  झं झावात सा चल रहा था. सारे सुबूत नैतिक को कुसूरवार ठहरा रहे  थे और वह पुलिस की गिरफ्त में भी था, पर पता नहीं क्यों मानसी नैतिक को कुसूरवार नहीं मान पा रही थी.

‘‘नैतिक और कुछ भी हो, पर ऐसा तो नहीं कर सकता,’’ अपनेआप से ही सवाल करती रही थी मानसी. अगले दिन मानसी नैतिक से मिलने से अपनेआप को रोक नहीं सकी और हितेश को बिना बताए उस से मिलने पहुंच गई.

मानसी ने नैतिक की आंखों में  झांका. नैतिक के चेहरे पर तनाव जरूर था, पर उस की आंखों में एक सचाई नजर आ रही थी और वह सचाई नैतिक की बातों से भी पता चली, जब उस ने मानसी को यह बताया कि वह बेकुसूर है और मानसी की इज्जत के साथ तो ऐसा कतई नहीं कर सकता.

उस ने मानसी से यह भी कहा कि बेहतर होगा कि वह अपने घर में ही नौकर के मोबाइल देख कर पता लगाए कि ऐसा काम किस ने और क्यों किया है.

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खूबसूरती की मल्लिका अनारा बेगम- भाग 1: एक हिंदू राजा ने मुस्लिम स्त्री से ऐसे निभाया प्यार

राजामहाराजे का एक दौर था, जब जोधपुर में जोधाणे की ख्यातिप्राप्त रियासत थी. वहां के महाराजा गजसिंह राठौड़ की आगरा, लखनऊ, और दिल्ली के नवाबों के बीच भी काफी चर्चा होती थी.

एक रोज वह आगरा के नवाब फजल के घर शयनकक्ष में मखमली बिस्तर पर नींद में थे. वह जहां सो रहे थे, वहीं समीप जल रहे एक दीपक की मद्धिम रोशनी में बिस्तर पर बिछी जरीदार गद्दे चमक रहे थे.

कल रात शराब ज्यादा पीने से महाराजा अलसाए हुए अनिद्रा में थे. चाह कर भी नहीं उठ पा रहे थे. जबकि सुबह होने वाली थी. नौकर कई बार आ कर देख चुका था. वह चिंता में था कि महाराजा साहब समय पर क्यों नहीं उठे हैं. मगर वह उन्हें जगाना नहीं चाहता था.

रात की खुमारी जैसे उन की आंखों की पलकों पर जमी बैठी थी. मानो वह पलकों की बोझिलता के साथ एक अनोखी दुनिया में होने जैसे सपनीली मादकता के एहसास में हों. रेशमी जरीदार कमरबंद, किनारी में झूलती हुई स्वर्णिम जरी, गले में चमकता अमूल्य हार, कानों में लौंग और हाथों में सोने के कड़े.

वह कल रात मुगल सम्राट शाहजहां के विशेष कृपापात्र नवाब फजल के घर आमंत्रित किए गए थे. नवाब फजल ने गजसिंह के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. जबरदस्त महफिल जमी थी. कुछ अन्य सरदार और रसूखदार वहां बैठे थे. सभी को उम्दा शराब परोसी गई थी. सुरा के साथ सुंदरी का भी इंतजाम किया गया था.

ईरानी हसीन नर्तकी ने हुस्न के जलवे बिखेरे थे. और फिर नृत्य, गायनवादन से शमा परवाने की रातें रंगीन होने लगी थीं. देर रात तक जश्न चला था. सुंदरी ने सभी अतिथियों को शराब के मनुहार से संतुष्ट किया था.

…और जब महफिल की शमा बुझी, तब तक अतिथिगण मदहोश हो चुके थे. अधिकतर तो अपनेअपने घर चले गए थे, लेकिन महाराजा गजसिंह को तनिक भी होश नहीं था. वह वहीं बैठ गए. नवाब फजल भी तकिए के सहारे वहीं लुढ़क गए.

गजसिंह के पास हाजरिए कृपाल सिंह ने उन्हें सतर्क करते हुए कहा, ‘‘महाराजा साहेब, होश में आइए, हमें अपने डेरे पर चलना है. उठिए महाराजा साहेब!’’

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‘‘नहींनहीं, हम डेरे पर नहीं चल सकते.’’ एक पल रुक कर उन्होंने हुक्म दिया, ‘‘बुलाओ हमारे लिए उस ईरानी नर्तकी को. हम उसे ईनाम देंगे.’’

‘‘वह तो चली गई. रात बहुत हो गई है. अब हम को भी चलना चाहिए, महाराजा साहेब.’’ कृपाल सिंह ने कहा.

गजसिंह उस के कहने पर चलने के लिए उठे. साथ चलने लगे, लेकिन 2-4 कदम चल कर ही अचानक रुक गए. फिर नशे में बुदबुदाने लगे, ‘‘जिस की नर्तकी चांद के समान रूपवती हो, उस नवाब की बीवी अनारा कितनी सुंदर होगी? मैं ने अनारा बेगम की बहुत चर्चा सुनी है. हमें कोई उस का दीदार करवा दे तो हम उस को मुहमांगा ईनाम दे सकते हैं.’’

यह बात उस जगह से कही गई थी, जहां से पास के झरोखे तक उन की आवाज बाहर जा सकती थी. वह ईरानी नर्तकी की मधुर यादों में खोए हुए थे. कहते हैं न कि नशा चीज ही ऐसी है, जो अच्छेअच्छों को बेसुध कर देती है. क्या शूरवीर और क्या अमीर क्या गरीब.

मंदिर से शंख और घंटेघडि़याल की आवाजें आते ही गजसिंह हड़बड़ा कर उठ बैठे और तेजी से चल दिए. आज वह दरबार में हाजिर नहीं हो पाएंगे. ऐसा उन्होंने आलीजहां को कहवा कर भेज दिया और अपने डेरे में ऊपरी मंजिल पर आ गए.

अब भी उन की आंखों में बीते रात की महफिल का सुरूर और ईरानी नर्तकी छाई हुई थी. उन का मन ईरानी नर्तकी को अपनी बाहों में कैद करने की भावना से बेचैन था. बिस्तर पर लेट चुके थे, नींद की आगोश में आने लगे थे, किंतु दिमाग में हलचल सी मची हुई थी. तभी एक सेवक ने आ कर कहा, ‘‘अन्नदाता, हुजूर नवाब साहब की दासी आप से मिलना चाहती है.’’

‘‘नवाब साहब की दासी? आने दो.’’

चंद मिनटों में ही एक 40 वर्षीया औरत महाराज गजसिंह के सामने पेश हो गई. उस का रंग गोरा था और मुंह में पान चबा रही थी.

‘‘नवाब साहब का कोई परवाना लाई हो?’’ महाराजा ने उस से पूछा.

‘‘गुस्ताखी माफ हो, मैं तनहाई में कुछ अर्ज करना चाहती हूं.’’

दासी के कहने पर वहां खड़ा अंगरक्षक सिर झुका कर चला गया. दासी ने अत्यंत ही कोमलता के साथ अदबी लहजे में कहा, ‘‘दासी को जरीन नाम से जानते हैं. मैं एक खास मकसद से पेश हुई हूं. मुआफी चाहूंगी.’’

‘‘कहो, क्या बात है? बेहिचक बताओ.’’ महाराजा गजसिंह बोले.

‘‘हुजूर, कल रात जब आप ने ईरानी नर्तकी रक्कासा की प्रशंसा करतेकरते अनारा बेगम का जिक्र किया था, तब मैं झरोखे पर खड़ी थी. आप को इस कदर हुस्न का आशिक मिजाज देख कर मेरा दिल पसीज गया और…’’

‘‘…और क्या?’’ महाराजा ने बेसब्री से पूछा.

‘‘बात यह है हुजूर कि हमारी सब से छोटी बेगम साहिबा के नाखून के बराबर भी नहीं है रक्कासा. आप चाहें तो…’’

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इतना सुनते ही विलासी महाराजा गजसिंह के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई, लेकिन उन्होंने तुरंत अपनी बेसब्री पर काबू किया. गंभीरता से बोले, ‘‘जरीन, यह मत भूलो कि तुम एक हिंदू राजा के सामने खड़ी हो, जो तुम्हें जिंदा जमीन में गड़वा सकता है. मुगलिया सल्तनत की नींव हिला सकता है. तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यह सब कहने की? मुझ से किसी तरह का खेल खेलने की कोशिश मत करना. जानती हो, उस वक्त हम नशे में थे. शराब ने हम को होशोहवास में नहीं रहने दिया था. तुम मर्द की कमजोरी का नाजायज फायदा…’’

‘‘तौबा करती हूं, गरीब परवर! हम गुलाम हैं, आप हमें माफ कर दें.’’ दासी कांपती हुई हाथ जोड़ कर बोली.

सुगंधा लौट आई- भाग 3 : क्या थी सुगंधा की अनिल को छोड़ने की वजह?

शकुंतला सिन्हा

और आगे निजी बातें पूछने के लिए सुगंधा से बहुत फटकार मिली. जब मैं ने कहा कि आप ने मेरे निकटतम मित्र की जिंदगी बरबाद कर दी है और वह आप की याद में काफी दिनों तक शराब के नशे में डूबे इधरउधर भटक रहा था.’’

मैं ने पूछा ‘‘उस ने क्या कहा?’’

वह बोली ‘‘मैं अनिल को बहुत प्यार करती थी और उन का सम्मान आज भी करती हूं. वे बहुत टैलेंटेड हैं और वे अपने काम में ज्यादा ध्यान न दे कर मेरे पीछेपीछे अपना समय बरबाद कर रहे थे. मैं उन्हें ऊंचाईयों पर देखना चाहती हूं. मुझे लगा कि मैं उन की उन्नति में बाधा बन गई थी इसीलिए दिल पर पत्थर रख कर उन से दूर चली गई.’’

‘‘अगर आज वे कहीं से मिल जाएं तो आप दोबारा उन्हें स्वीकार करेंगी?’’ मेरे कलीग के पूछने पर सुगंधा बोली, ‘‘अगर अनिलजी मेरे सामीप्य से अपने मुकाम तक पहुंचने में कामयाब होंगे तो मैं समझूंगी कि मेरा त्याग और मेरी उपासना सफल रही और मैं अपने को खुशनसीब समझूंगी.’’

‘‘अगर मैं कहूं कि मेरा वह दोस्त आज भी आप के इंतजार में पलकें बिछाए बैठा है और अब उस ने इतना कुछ हासिल कर रखा है जिसे जान कर आप को गर्व होगा और आप इसे अपने वर्षों की उपासना का नतीजा ही समझें.’’

‘‘वे कहां है आजकल? मुझे बस इतना पता है कि मैनेजमैंट करने के बाद वे विदेश चले गए थे.’’ सुगंधा ने मेरे  कलीग से कहा.

‘‘फिलहाल मुझे भी ठीक से पता नहीं है फिर भी मैं जल्द ही पता कर आप को बता दूंगा. वैसे आप का जौइनिंग लैटर रैडी है. आज फ्राइडे है, आप मंडे को ज्वाइन करेंगी. तब तक हमारे चीफ भी यहां होंगे और आप सीधा उन्हें ही रिपोर्ट करेंगी.’’ मेरे कलीग ने कहा.

मैं मुंबई आ गया. सोमवार को अपने केबिन में बैठा था, मेरी पीए ने फोन पर कहा ‘‘सर, सुगंधा मैम हैज कम. शी इज गोइंग टू रिपोर्ट यू.’’

‘‘सैंड हर इन.’’

‘‘गुड मौर्निंग सर, दिस इज सुगंधा योर सौफ्टवेयर इंजीनियर रिपोर्टिंग टू यू.’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘वैलकम इन अवर फैमिली, मेरा मतलब मेरी कंपनी में. मेरी कंपनी ही मेरी फैमिली रही है अब तक.’’

सुगंधा मुझे अभी भी नहीं पहचान सकी थी. मैं ने उस से कहा ‘‘आप अपने केबिन में जा कर अपनी जौब की जानकारी लें. कल सुबह आप मुझे मिलेंगी फिर बाकी काम मैं समझा दूंगा.’’

दूसरे दिन सुबह मैं ने अपने केबिन डोर पर अपना नेम प्लेट ‘अनिल कुमार’ लगवा दी थी. मैं क्लीन शेव्ड हो कर अपनी कुर्र्सी पर बैठा था. सुगंधा नौक कर मेरे केबिन में आई

और मुझे देख कर ठिठक कर खड़ी हो गई और बोली ‘‘आप?’’

‘‘लगता है तुम ने मेरी नेम प्लेट नहीं देखी?’’

‘‘मैं ने गौर नहीं किया.’’

‘‘यही मेरी कंपनी और फैमिली है. आज से तुम भी इसी फैमिली की अतिविशिष्ट सदस्य हुई. मुझे उम्मीद थी मेरी सुगंधा एक न एक दिन जरूर आएगी इसीलिए तुम्हारे सिवा किसी और के बारे में मैं ने आज तक सोचा ही नहीं.’’

मेरे कलीग ने तुम्हारे दूर जाने का कारण मुझे बता दिया था. मुझे तुम पर नाज है और तुम्हें सैल्यूट करना होगा.

मैं ने उठ कर सैल्यूट किया और उसे गले लगाया. मेरा कलीग केबिन के शीशे के पारदर्शी दीवार के उस पार से यह नजारा देख रहा था. उस ने मुझे कनखी मारी और हम तीनों मुस्करा उठे.

खूबसूरती की मल्लिका अनारा बेगम- भाग 2: एक हिंदू राजा ने मुस्लिम स्त्री से ऐसे निभाया प्यार

‘‘अच्छी बात है,’’ सहसा महाराज ने आवाज में नरमी के साथ कहा. दासी नि:शब्द वहीं हाथ जोड़े खड़ी रही.

‘‘हमें बेगम का दीदार करवाओ, हम तुम्हें मुंहमांगा इनाम देंगे.’’

‘‘जरूर दीदार करवाऊंगी, तब आप को मुझ पर यकीन हो जाएगा कि हमारी मालकिन हकीकत में हुस्न और इल्म की मलिका हैं.’’ दासी अदब के साथ बोली.

इस पर महाराजा ने तुरंत उसे एक अंगूठी बतौर बख्शीश दे दी.

बादशाह के दरबार में गजसिंह का बहुत ही मानसम्मान था. शाहजहां उन की खूब इज्जत करते थे. आनबान का विशेष खयाल रखते थे. खातिरदारी में कोई शिकायत नहीं आने देना चाहते थे. साथ ही मन ही मन डरते भी थे कि गजसिंह किसी बात को ले कर नाराज न हो जाएं.

गजसिंह दासी जरीन का बेसब्री से इंतजार  में करने लगे थे. नवाब साहब से उन्होंने खूब दोस्ती गांठ रखी थी. कभी उन के यहां जाना, तो कभी उन को अपने यहां बुलाना. यह सिलसिला चलता रहता था.

फिर एक दिन दासी जरीन आई. वह बहुत खुश थी. एकांत में गजसिंह से मिल कर बोली, ‘‘हुजूर, आज ही दोपहर को बेगम साहिबा आप का दीदार करना चाहती हैं.’’

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‘‘मगर कहां?’’ गजसिंह ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘यमुना के उस पार, पेड़ों के पीछे झुरमुट में.’’ जरीन ने महाराजा साहब से धीमे से कहा.

गजसिंह ने अपनी खुशी को बेकाबू होने से रोकते हुए कहा, ‘‘उन्हें हमारी ओर से पूरा यकीन दिला देना.’’

उस के बाद वह अपने विश्वस्त अंगरक्षकों के साथ यमुना नदी के पार समय रहते पहुंच गए. तेज धूप से रात में ठिठुरे पेड़ों और झाडि़यों को राहत मिल रही थी. यमुना का पानी भी छोटीछोटी लहरों के साथ तट से टकरा रहा था. गजसिंह ने एक घने झुरमुट में अपने सभी अंगरक्षकों को सावधान कर दिया. उस के बाद उन्होंने विशेष दासी देवली को एकांत में आने का इशारा किया.

उस के आने पर निर्देश दिया, ‘‘तुम बेगम की नाव के पास चली जाना. बेहद सावधानी से इस बात का ध्यान रखना कि आसपास कोई संदिग्ध व्यक्ति न हो.’’

‘‘आप निश्चिंत रहिए, हुजूर.’’ देवली इतना कह कर चली गई.

थोड़ी देर में एक नाव धीमी गति से आती दिखाई दी. छोटी सी नाव के तट के पास आने से पहले गजसिंह एक बड़े वृक्ष के मोटे तने के पीछे छिप गए. वह निकट आती नाव को अपलक देखने लगे. देखते ही देखते नाव तट पर आ लगी. उसे 2 मल्लाह खेव रहे थे.

उस में सवार जरीन नीचे उतरी. उस के साथ बुरके में एक और औरत थी. निश्चित तौर पर वही अनारा बेगम थी. जरीन ने इधरउधर देखा, तभी वहां देवली आ गई. जरीन के कुछ बोलने से पहले ही बोल पड़ी, ‘‘बेगम साहिबा, मैं महाराजा गजसिंह राठौड़ की खास बंदी हूं. आप मेरे साथ चलिए.’’

‘‘नहीं जरीन, हम इन्हें नहीं जानते.’’ बुरके में आई अनारा सुमधुर आवाज में बोली.

जरीन के कुछ कहनेसुनने से पहले ही गजसिंह तेजी से वृक्ष की ओट से बाहर निकल आए, ‘‘जरीन, हम यहां हैं.’’

जरीन ने इधरउधर देखा और बेगम साहिबा को ले कर एक झुरमुट में घुस गई. झुरमुट क्या था, वह पूरी तरह झाडि़यों और लताओं से चारों ओर से घिरी शांत एकांत जगह थी.

घनी लताओं में छोटेछोटे फूल भी खिले थे. वे गंधहीन थे, किंतु उन की खास किस्म की खूबसूरती सुगंधित होने का एहसास देने जैसी थी.

जरीन ने तुरंत अदब बजा कर कहा, ‘‘महाराज, मेरा ईनाम?’’

महाराजा ने भी झट से अपने गले का एक बड़ा हार उतार कर उसे सौंप दिया. जरीन थोड़ी दूर चली गई. रह गई बुरके में बेगम. अनारा बेगम. बुरके में तराशी गई प्रतिमा की तरह खड़ी सामने आई.

गजसिंह उस के समीप जा कर धीमी आवाज में बोले, ‘‘इस परदे को दूर कीजिए बेगम साहिबा.’’

कुछ पल में जैसे ही सामने खड़ी बेगम ने बुरका उतारा, उस के अद्वितीय सौंदर्य और कोमलांगी काया को देख कर गजसिंह सहसा बोल पड़े, ‘‘अति सुंदर. हम नहीं जानते थे कि यह प्यार किस किस्म का है, पर इतना जरूर है कि हम आप से मिलने को तड़प रहे थे. रातदिन बेचैनी की सांसें चल रही थीं..’’

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बेगम चुपचाप निस्तब्ध गजसिंह की बातें सुनती रही और वह लगातार बोलते जा रहे थे, ‘‘शायद इसीलिए प्रेममोहब्बत प्यार करने वालों के बारे में लोगों ने कहा है कि वे जन्मजन्मांतर से प्रेम करते आए हैं.’’

अनारा जवाब में कुछ भी नहीं बोली. तब गजसिंह उस के और समीप आ गए. बेगम का चेहरा धूपछांह वाली रोशनी में और भी चमक रहा था. हाथ में बुरका थामे खड़ी बेगम की ओर महाराजा ने हाथ बढ़ाया. थोड़ा पीछे हटती हुई अनारा बोल पड़ी, ‘‘ओह!’’

महाराजा स्तब्ध खड़े उसे निहारते रहे. बेगम साहिबा की आवाज सुनने का इंतजार करते रहे. जब वह कुछ नहीं बोली, तब वह खुद ही बोल पड़े, ‘‘जरीन सच में ही कहती थी कि हमारी अनारा बेगम साहिबा चांद का टुकड़ा हैं. उस ने आप के बारे में इस तरह बताया था कि मानो वह नहीं आप ही खुद हम से बातचीत कर रही हों. इस पहली मुलाकात में हम सब कुछ नहीं कहते हैं, सिर्फ इतना ही वादा करते हैं कि हम आप के लिए सब कुछ न्यौछावर कर सकते हैं.’’

इतना सुनने के बाद अनारा बेगम ने अपनी पंखुडि़यों सी पलकों को आहिस्ता से खोला. बहुत ही मद्धिम स्वर में बोली, ‘‘आप के बारे में बहुत कुछ सुन चुकी हूं, हम भी वफा नहीं छोड़ेंगे, आप यकीन रखें.’’

इतना सुनना था कि महाराजा का मन दहक उठा. उन्होंने बढ़ कर अनारा बेगम के हाथ थाम लिए. और उन्हें चूम कर कहा, ‘‘विदा.’’

बेगम ने सिर्फ खामोशी से सलाम किया.

उस के बाद दिनप्रतिदिन उन का प्यार बढ़ता चला गया. महाराजा गजसिंह अपना सारा धैर्य, संस्कार, सरोकार, गौरव, मानमर्यादा और अपनी आनबान को भूल कर अनारा बेगम के प्यार में खो गए.

अनारा बेगम ने भी किसी की परवाह न कर के गजसिंह को अपना तनमन समर्पित कर दिया. उन का इश्क परवान चढ़ने लगा.

वे खुलेआम मिलने लगे. उन के प्यार के चर्चे भी शुरू हो गए. मुसलमानों को यह अनुचित लगा. उन्होंने नवाब फजल से इस की शिकायत कर दी. पहले तो नवाब को विश्वास नहीं हुआ, पर बाद में जब उन्हें भी सच्चाई मालूम हुई, तब वह भी सजग हो गए.

फिर क्या था, उन्होंने अनारा पर प्रतिबंध लगा दिया. अनारा बेगम कहीं आजा नहीं सकती थीं. ड्योढ़ी पर भी कड़ा पहरा बिठा दिया गया था.

एक बार जरीन ने देवली को अपने यहां बुलवाया. बेगम ने दर्द भरे स्वर में कहा, ‘‘मैं महाराजा के पास आऊंगी. मैं उन के बिना रह नहीं सकती. उन्हें मेरी ओर से हाथ जोड़ कर कहना कि वह मुझे यहां से आजाद करवा लें.’’

देवली ने बेगम को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘महाराजा तो स्वयं आप के प्यार में बेचैन हैं. उन्होंने कहा है कि आप उन से एक बार मिल लें, सिर्फ एक बार. क्या आप उन से मिल नहीं सकतीं?’’

‘‘कैसे मिल सकती हूं देवली, नवाब साहब खुद बादशाह सलामत के खास आदमी हैं. मुझे डर इस बात का है कि कहीं मेरी वजह से कोई बड़ा खूनखराबा न हो जाए.’’

‘‘मैं इस का क्या जवाब दूं? आप किसी भी तरह उन से एक बार बस मिल लीजिए.’’

कुछ क्षणों तक सन्नाटा छाया रहा. बेगम सोचती रहीं. सहसा चेहरे पर प्रसन्न्नता की रेखा उभरी. वह बोली, ‘‘महाराजा गजसिंह महल के पश्चिमी झरोखे में आ सकते हैं क्या? उन्हें कहना कि मैं वहां उन का इंतजार करूंगी.’’

देवली ने आ कर यह बात महाराजा गजसिंह को बताई. सुन कर महाराजा और भी व्याकुल हो गए. उन्हें लगा कि बेगम के बिना यह जीवन, यह भोगविलास, यह शौर्य और शानोशौकत सब व्यर्थ है. अनारा बेगम का प्यार और साहस देख कर वह बेचैन हो उठे.

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‘‘मैं आऊंगा देवली, तू बेगम से जा कर कह दे कि वह झरोखे में रस्सी की सीढि़यां बना कर डाल दें. मैं उस रस्सी से झरोखे में पहुंच जाऊंगा.’’

देवली चली गई. निश्चित समय पर महाराजा अपने व्यक्तित्व की महत्ता को भूल कर साधारण प्रेमी की भांति चल पड़े. वह हाथी पर थे. जैसे ही हाथी झरोखे के नीचे पहुंचा वैसे ही बेगम ने रस्सी की सीढि़यां लटका दीं. महाराजा पलक झपकते उस पर चढ़ गए.

‘‘बेगम!’’ गजसिंह अनारा का हाथ थामते हुए बोले.

‘‘महाराजा, आप कुछ भी कहिए, पर यह सच है कि हम मोहब्बत की राह में बहुत आगे बढ़ गए हैं. अब मैं आप के बगैर जिंदा नहीं रह सकूंगी. पता नहीं आप क्या सोचते हैं.’’ बेगम ने भी राजा का हाथ थामते हुए कहा.

ऐ दिल संभल जा: क्या डाक्टर गोविंद से रीमा अपने दिल की बात कह पाई?

रीमा की आंखों के सामने बारबार डाक्टर गोविंद का चेहरा घूम रहा था. हंसमुख लेकिन सौम्य मुखमंडल, 6 फुट लंबा इकहरा बदन और इन सब से बढ़ कर उन का बात करने का अंदाज. उन की गंभीर मगर चुटीली बातों में बहुत वजन होता था, गहरी दृष्टि और गजब की याददाश्त. एक बार किसी को देख लें तो फिर उसे भूलते नहीं. उन  की ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा के गुण सभी गाते थे. उम्र 50 वर्ष के करीब तो होगी ही लेकिन मुश्किल से 35-36 के दिखते थे. रीमा बारबार अपना ध्यान मैगजीन पढ़ने में लगा रही थी लेकिन उस के खयालों में डाक्टर गोविंद आजा रहे थे.

रीमा ने जैसे ही पन्ना पलटा, फिर डाक्टर गोविंद का चेहरा सामने आ गया जैसे हर पन्ने पर उन का चेहरा हो वह हर पन्ने के बाद यही सोचती कि अब नहीं सोचूंगी उन के बारे में.

‘‘रीमा, जरा इधर आना,’’ रमा की मम्मी किचन से चिल्लाई.

‘‘अभी आई,’’ कहती हुई रीमा मैगजीन रख कर किचन में आ गई.

‘इस लड़की ने जब से कालेज में दाखिला लिया है, इस का दिमाग न जाने कहां रहता है’ मम्मी बड़बड़ा रही थी.

रीमा मैनेजमैंट का कोर्स कर रही है. मम्मी उसे कालेज भेजना ही नहीं चाहती थी. वह हमेशा चिल्लाती रहती कि 20वां चल रहा है, इस के हाथ पीले कर दो, लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने से क्या लाभ.

रीमा की जिद और पापा के सपोर्ट की वजह से उस का दाखिला कालेज में हुआ. मम्मी कम पढ़ीलिखी थी. उन का पढ़ाई पर जोर कम ही था. मम्मी की बातों से रीमा कुढ़ती रहती. और जब से उस ने डाक्टर गोविंद को देखा है, उसे और कुछ दिखता ही नहीं.

डाक्टर गोविंद जब क्लास ले रहे होते, रीमा सिर्फ उन्हें ही देखती रह जाती. वे किस टौपिक पर चर्चा कर रहे हैं, इस की भी सुध उसे कई बार नहीं होती. यह तो शुक्र था उस के सहपाठी अमित का, जो बाद में उस की मदद करता, अपने नोट्स उसे दे देता और यदि कोई टौपिक उस की समझ में नहीं आता तो वह उसे समझा भी देता.

वैसे रीमा खुद भी तेज थी. कोई चीज उस की नजरों से एक बार गुजर जाती, उसे वह कभी नहीं भूलती. डाक्टर गोविंद भी उस की तारीफ करते. उन के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर रीमा को बहुत अच्छा लगता. शर्म से उस की नजरें झुक जातीं. उसे ऐसा लगता कि डाक्टर गोविंद सिर्फ उसे ही देख रहे हैं. उस के चेहरे को पढ़ रहे हैं.

डाक्टर गोविंद रीमा के रोल मौडल बन गए. वह हर समय उन की तारीफ करती रहती. कोई स्टूडैंट उन के खिलाफ कुछ कहना चाहता तो वह एक शब्द न सुनती. एक दिन उस की सहेली सुजाता ने यों ही कह दिया, ‘गोविंद सर कुछ स्टूडैंट्स पर ज्यादा ही ध्यान देते हैं.’ बस, इतनी सी बात पर रीमा उस से झगड़ पड़ी. उस से बात करनी बंद कर दी.

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रीमा भावनाओं में बह रही थी. उस ने डाक्टर गोविंद को समझने की कोशिश भी नहीं की. उन के दिल में अपने सभी छात्रों के लिए समान स्नेह था. वे सभी को प्रोत्साहित करते और जहां जरूरत होती, प्रशंसा करते. यह सब रीमा को नजर नहीं आता. वह कल्पनालोक की सैर करती रहती. उसे हर पल, चारों ओर डाक्टर गोविंद ही नजर आते.

उस ने मन ही मन तय कर लिया कि वह अपने दिल की बात डाक्टर गोविंद को जरूर बताएगी. कल वे मेरी ओर देख कर कैसे मुसकरा रहे थे. वे भी उस में दिलचस्पी लेते हैं. उस से अधिक बातें करते हैं. अगर वे मुझे पसंद नहीं करते तो क्यों सिर्फ मुझे नोट्स देने के बहाने बुलाते. देर तक मुझ से बातें करते रहते. शायद वे मुझ से अपनी चाहत का इजहार करना चाहते हैं लेकिन संकोचवश कर नहीं पाते.

रीमा को रातभर नींद नहीं आई, उनींदी में रात काटी और सुबह समय से पहले कालेज पहुंच गई. क्लास शुरू होने में अभी देर थी. मैरून कलर की कमीज, चूड़ीदार पजामा और गले में मैचिंग दुपट्टा डाले रीमा गजब की खूबसूरत लग रही थी. वह चहकती हुई सीढि़यां चढ़ रही थी. डाक्टर गोविंद अपनी क्लास ले कर उतर रहे थे. ‘‘अरे रीमा, तुम आ गई.’’

‘‘नमस्ते सर,’’ कहते हुए रीमा झेंप गई.

‘‘यह लो,’’ उन्होंने अपने हाथ में लिया गुलाब का फूल रीमा की ओर बढ़ा दिया.

‘‘थैंक्यू सर,’’ कह कर रीमा जल्दीजल्दी सीढि़यां चढ़ गई. वह क्लास में जा कर ही रुकी. उस की सांसें तेजतेज चल रही थी. वह बैंच पर बैठ गई. गुलाब का फूल देखदेख बारबार उस के होंठों पर मुसकराहट आ रही थी. उसे लगा उस का सपना साकार हो गया. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. तभी अमित आ गया.

‘‘अकेली बैठी यहां क्या कर रही हो? अरे, गुलाब का फूल. बहुत खूबसूरत है. मेरे लिए लाई हो तो दो न. शरमा क्यों रही हो?’’ अमित ने गुलाब छूने के लिए हाथ बढ़ाया.

रीमा बिफर पड़ी. ‘‘यह क्या तरीका है? ऐसे क्यों बिहेव कर रहे हो, जंगली की तरह.’’

‘‘अरे, तुम्हें क्या हो गया? मैं ने तो ऐसा कुछ नहीं किया. वैसे, बिहेवियर तो तुम्हारा बदला हुआ है. कहां खोई रहती हैं मैडम आजकल?’’

‘‘सौरी अमित, पता नहीं मुझे क्या हुआ अचानक…’’

‘‘अच्छा, छोड़ो इन बातों को. सैमिनार हौल में चलो.’’

‘‘क्यों? अभी तो गोविंद सर की क्लास है.’’

‘‘अरे पागल, गोविंद सर अब क्लास नहीं लेंगे. वे आज ही यहां से जा रहे हैं. उन का दिल्ली यूनिवर्सिटी में वीसी के पद पर चयन हुआ है. सभी लोग हौल में जमा हो रहे हैं. उन का विदाई समारोह है. उठो, चलो.’’

रीमा की समझ में कुछ नहीं आया. वह सम्मोहित सी अमित के पीछेपीछे चल पड़ी. सैमिनार हौल में छात्र जमा थे. रीमा को आश्चर्य हो रहा था कि इतना कुछ हो गया, उसे पता ही नहीं चला. वह कल्पनालोक में विचरती रही और हकीकत में उस का सारा नाता टूटता गया.

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वह इन्हीं विचारों में मग्न थी कि गोविंद सर की बातों ने उस का ध्यान भंग किया.

‘‘मैं भले ही यहां से जा रहा हूं लेकिन चाहता हूं कि जीवन में किसी मोड़ पर कोई स्टूटैंट मुझे मिले तो वह तरक्की की नई ऊंचाई पर मिले. एक छात्र का एकमात्र उद्देश्य अपनी मंजिल पाना होना चाहिए. अन्य बातों को उसे नजरअंदाज कर के आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि एक बार मन भटका, तो फिर अपना लक्ष्य पाना अत्यंत मुश्किल हो जाता है. मेरे लिए सभी छात्र मेरी संतान के समान हैं. मैं चाहता हूं कि सभी खूब पढ़ें और अपना व अपने मातापिता का नाम रोशन करें.’’

तालियों की गड़गड़ाहट में उन की आवाज दब गई. सभी उन्हें विदा करने को खड़े थे. कई  छात्रों की आंखें नम थीं लेकिन होंठों पर मुसकराहट तैर रही थी. डाक्टर गोविंद के शब्दों में जाने क्या जादू था कि रीमा भी नम आंखों और होंठों पर मुसकराहट लिए अपना हाथ हिला रही थी. गुलाब का फूल अपनी खुशबू बिखेर रहा था.

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बैलेंसशीट औफ लाइफ- भाग 1: अनन्या की जिंदगी में कैसे मच गई हलचल

औफिस में अनन्या अपने सहकर्मियों के साथ जल्दीजल्दी लंच कर रही थी. लंच के फौरन बाद उस का एक महत्त्वपूर्ण प्रेजैंटेशन था, जिस के लिए वह काफी उत्साहित थी. इस मीटिंग की तैयारी वह 1 हफ्ते से कर रही थी. उस की अच्छी फ्रैंड सनाया ने टोका, ‘‘खाना तो कम से कम आराम से खा लो, अनन्या. काम तो होता रहेगा.’’

‘‘हां, जानती हूं, पर इस प्रेजैंटेशन के लिए बहुत मेहनत की है, राहुल का स्कूल उस का होमवर्क, उस का खानापीना सुमित ही देख रहा है आजकल.’’ ‘‘सच में, तुम्हें बहुत अच्छा पति मिला है.’’

‘‘हां, उस की सपोर्ट के बिना मैं कुछ कर ही नहीं सकती.’’ लंच कर के अनन्या एक बार फिर अपने काम में डूब गई. पवई की इस अत्याधुनिक बिल्डिंग के अपने औफिस के हर व्यक्ति की प्रशंसा की पात्र थी अनन्या. सब उस के गुणों की, मेहनत की तारीफ करते नहीं थकते थे. आधुनिक, स्मार्ट, सुंदर, मेहनती, प्रतिभाशाली अनन्या

10 साल पहले सुमित से विवाह कर दिल्ली से यहां मुंबई आई थी और पवई में ही अपने फ्लैट में अनन्या, सुमित और उन का बेटे राहुल का छोटा सा परिवार खुशहाल जीवन जी रहा था. अनन्या ने अपने काम से संतुष्ट हो कर घड़ी पर एक नजर डाली. तभी व्हाट्सऐप पर सुमित का मैसेज आया, ‘‘औल दि बैस्ट’, साथ ही किस की इमोजी. अनन्या को अच्छा लगा, मुसकराते हुए जवाब भेजा. अचानक उस के फोन की स्क्रीन पर मेघा का नाम चमका तो उस ने हैरान होते हुए फोन उठा लिया. मेघा उस की कालेज की घनिष्ठ सहेली थी. वह इस समय दिल्ली में थी.

मेघा ने कुछ परेशान सी आवाज में कहना शुरू किया, ‘‘अनन्या, तुम औफिस में हो?’’ ‘‘अरे, क्या हुआ? न हाय, न हैलो, सीधे सवाल तुम ठीक तो हो न?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं अनन्या, पर बड़ी गड़बड़ हो गई.’’

‘‘क्या हुआ? कुछ बताएगी भी.’’ ‘‘मार्केट में राघव की आत्मकथा ‘‘बैलेंसशीट औफ लाइफ’’ आई है न. उस ने तेरा और अपना पूरा किस्सा इस में लिख दिया है.’’

‘‘क्या?’’ तेज झटका लगा अनन्या को.

‘‘हां, मैं ने अभी पढ़ी नहीं है पर मेरे पति संजीव को बुक पढ़ कर किसी ने बताया कि किसी अनन्या की कहानी लिख कर तो इस ने शायद उस की लाइफ में तूफान ला दिया होगा. संजीव समझ गए कि शायद यह अनन्या तुम ही हो, आज शायद संजीव यह बुक लाएंगे तो पढ़ूंगी. मेरा तो दिमाग ही घूम गया सुन कर. सुमित जानता है न उस के बारे में?’’

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‘‘हां, जानता तो है कि मैं और राघव एकदूसरे को पसंद करते थे और हमारा विवाह उस के महत्त्वाकांक्षी स्वभाव के चलते हो नहीं पाया और उस ने धनदौलत के लिए किसी बड़े बिजनैसमैन की बेटी से विवाह कर लिया था और आज वह भी देश का जानामाना नाम है.’’ मेघा ने अटकते हुए संकोचपूर्वक कहा, ‘‘अनन्या, सुना है तुम्हारे और उस के बीच होने वाले सैक्स की बात उस ने…’’

अनन्या एक शब्द नहीं बोल पाई, आंखें अचानक आंसुओं से भरती चली गईं. अपमान के घूंट चुपचाप पीते हुए, ‘‘बाद में फोन करती हूं.’’ कह कर फोन रख दिया.

मेघा ने उसी समय मैसेज भेजा, ‘‘प्लीज डौंट बी सैड, फ्री होते ही फोन करना.’’ कुछ पल बाद सनाया ने आ कर उसे झंझोड़ा तो जैसे वह होश में आई, ‘‘क्या हुआ अनन्या? एसी में भी इतना पसीना.. तेरी तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हांहां, बस ऐसे ही.’’ ‘‘टैंशन में हो?’’

‘‘नहींनहीं, कुछ नहीं,’’ अनन्या फीकी सी हंसी हंस दी. यों ही कह दिया, ‘‘प्रेजैंटेशन के बारे में सोच रही थी.’’ ‘‘कोई और बात है जानती हूं, तू इतनी कौन्फिडैंट है, प्रेजैंटेशन के बारे में सोच कर माथे पर इतना पसीना नहीं आएगा. नहीं बताना चाहती तो कोई बात नहीं. ले, पानी पी और चल.’’

अनन्या ने उस दिन कैसे अपना प्रेजैंटेशन दिया, वही जानती थी. अतीत की परछाईं से उस ने स्वयं को बड़ी मुश्किल से निकाला था. मन अतीत में पीछे ले जाता रहा था और दिमाग वर्तमान पर ध्यान देने के लिए आगे धकेलता रहा था. तभी वह सफल हो पाई थी. उस के सीनियर्स ने उस की तारीफ कर उस का मनोबल बढ़ाया था. ‘‘तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही,’’ कह कर वह घर के लिए जल्दी निकल गई. राहुल स्कूल से डे केयर में चला जाता था. सुमित आजकल उसे लेता हुआ ही घर आता था, वह चुपचाप घर जा कर बैड पर पड़ गई.

राघव उस का पहला प्यार था. कौलेज में वह उस के प्यार में ऐसे मगन हुई कि यही मान लिया कि जीवन भर का साथ है. राघव एक छोटे से कसबे से दिल्ली में किराए का कमरा ले कर पढ़ता था. राघव के बहुत बार आग्रह करने पर वह एक ही बार उस के कमरे पर गई थी. वहीं भावनाओं में बह कर अनन्या ने पूर्ण समर्पण कर दिया था. आगे विवाह से पहले कभी ऐसा न हो, यह सोच कर फिर कभी उस के कमरे पर नहीं गई थी. पर दिल्ली के मशहूर धनी बिजनैसमैन की बेटी गीता से दोस्ती होने पर राघव को गीता के साथ ही भविष्य सुरक्षित लगा तो कई बहानों से दूरियां बनाते हुए राघव अनन्या से दूर होता चला गया.

अनन्या भी राघव में आए परिवर्तन को भलीभांति भांप गई थी. उस ने पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई, कैरियर पर लगा दिया था और अपने प्यार को कई परतों में दिल में दबा कर यह जख्म समय के ऊपर ही भरने के लिए छोड़ दिया था. कुछ समय बाद मातापिता की पसंद सुमित से विवाह कर मुंबई चली आई और सुमित व राहुल को पा बहुत संतुष्ट व सुखी थी पर आजकल जो आत्मकथा लिखने का फैशन बढ़ता जा रहा है, उस की चपेट में कहीं उस का वर्तमान न आ जाए, यह फांस अनन्या के गले में ऐसे चुभ रही थी कि उसे एक पल भी चैन नहीं आ रहा था. जिस प्यार के एहसास की खुशबू को अपने दिल में ही दबा उस की स्मृति से लंबे समय तक सुवासित हुई थी, आज जैसे उस एहसास से दुर्गंध आ रही थी.

अपनी सफलता, प्रसिद्धि के नशे में चूर राघव ने अपनी आत्मकथा में उस का प्रसंग लिख उस के लिए मुश्किल खड़ी कर दी थी. कहीं ससुराल वाले, मायके और राहुल बड़ा हो कर यह सब जान न ले. कितने ही अपने, दोस्त, परिचत, रिश्तेदार उस के चरित्र पर दाग लगाने के लिए खड़े हो जाएंगे. औफिस में जिन लोगों की नजरों में आज अपने लिए इतना स्नेह और सम्मान दिखता है, उस का क्या होगा? राघव ने यह क्यों नहीं सोचा? अपने लालच, फरेब, महत्त्वाकांक्षाओं के बारे में लिख कर अपनी चालबाजियां दुनिया के सामने रखता, एक लड़की जो अब कहीं शांति से अपने परिवार के साथ जी रही है, उस के शांत जीवन में कंकड़ मार कर उथलपुथल मचाने का क्या औचित्य है?

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अनन्या के मन में क्रोध, अपमान की इतनी तेज भड़ास थी कि उस ने मेघा को फोन मिलाया. मेघा ने फोन उठाते ही प्यार से कहा, ‘‘अनन्या, तू बिलकुल परेशान मत होना, पढ़ कर तुझे बताऊंगी क्या लिखा है उस ने.’’

‘‘नहीं, रहने दे मैं कल औफिस जाते हुए खरीद लूंगी, अगर बुक स्टोर में दिख गई तो. पढ़ लूं फिर बताऊंगी उसे, छोड़ूगी नहीं उसे.’’ दोनों ने कुछ देर बातें करने के बाद फोन रख दिया.

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