मनोहर कहानियां: प्रेमी की खातिर

 नसीम अंसारी कोचर 

18सितंबर, 2021 की रात को बिहार के शहर मुजफ्फरपुर के टाउन थाना क्षेत्र के बालूघाट इलाके में स्थित एक मकान की तीसरी मंजिल के कमरे में अचानक तेज धमाका हुआ. धमाके की आवाज के साथ बंद कमरे के खिड़कीदरवाजे की झिर्रियों से काला धुआं निकलने लगा.

पहले लोगों को लगा कि मकान के भीतर कोई बम फटा है. कुछ लोगों ने अंदाजा लगाया कि शायद गैस सिलिंडर फटा है. कुछ ही देर में वहां भारी भीड़ जुट गई, मगर मकान के भीतर जाने की हिम्मत किसी की नहीं हो रही थी. मकान से निकलने वाला बदबूदार धुआं हवा में फैलता जा रहा था.

इसी दौरान भीड़ में मौजूद किसी व्यक्ति ने इस की सूचना फोन द्वारा पुलिस को दे दी. इस सूचना पर थोड़ी देर में पुलिस की गाड़ी और फायर ब्रिगेड वहां पहुंच गई. पुलिस और फायर ब्रिगेड कर्मचारी जब दरवाजा तोड़ कर भीतर पहुंचे तो वहां का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. वहां एक ड्रम गिरा पड़ा था. आसपास मांस के लोथड़े बिखरे हुए थे. ड्रम से बदबूदार धुआं बाहर निकल रहा था. लग रहा था जैसे कि ड्रम में कोई कैमिकल हो.

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फायर ब्रिगेड ने खिड़की और अन्य सामान में लगी आग बुझाई. धुआं छंटा तो ड्रम के भीतर मानव शरीर के टुकड़े मिले. पुलिस ने सभी टुकड़े इकट्ठे किए तो उन की संख्या 8 थी. वे टुकड़े किसी पुरुष के थे, जिन्हें शायद ड्रम के भीतर भरे कैमिकल में गलाने के लिए डाला गया था. कमरे में और कोई नहीं था.

पुलिस के सामने बड़ा सवाल उस लाश की पहचान का था. आखिर वह कौन था? उसे क्यों मारा गया? किस ने मारा? मार कर उस की लाश गलाने के लिए ड्रम में कैमिकल के भीतर किस ने डुबोई? कातिल एक था या कई थे? ऐसे अनेक सवाल पुलिस के सामने थे.

पुलिस ने लाश की पहचान के लिए बाहर खड़े लोगों को बुलाया. मगर कोई भी उस लाश को नहीं पहचान पाया. तभी भीड़ से एक आदमी निकल कर लाश के काफी करीब पहुंच गया. वह झुक कर लाश को गौर से देखने लगा और फिर उस ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया.

उस ने कहा कि उस का नाम दिनेश साहनी है और यह लाश उस के भाई राकेश साहनी की है, जो शराब का अवैध धंधा करता था और जिस के खिलाफ पुलिस ने वारंट निकाल रखा था.

गौरतलब है कि बिहार में शराबबंदी लागू है. राकेश लंबे समय से पुलिस से छिपछिप कर यहांवहां रह रहा था. मगर वह मारा जा चुका है, इस बात से उस के घरवाले बेखबर थे.

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लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने मकान मालिक सुनील कुमार शर्मा को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. दरअसल, किताब कारोबारी सुनील कुमार शर्मा के इस मकान में कई कमरे थे, जिसे उस ने अलगअलग लोगों को किराए पर दे रखे थे.

जिस कमरे से लाश मिली, वह सुनील ने सुभाष नाम के व्यक्ति को किराए पर दिया हुआ था. लेकिन इधर काफी दिनों से सुभाष और उस का परिवार यहां दिख नहीं रहा था. आसपास के लोग सोच रहे थे कि शायद वह सपरिवार गांव गया हुआ है.

दिनेश साहनी की तहरीर पर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर तफ्तीश शुरू कर दी. पुलिस का पहला लक्ष्य था सुभाष की तलाश करना. राकेश नाम के जिस व्यक्ति की लाश टुकड़ों में पुलिस को मिली थी, वह शराब का अवैध धंधा करता था और सुभाष भी उस के धंधे में बराबर का शरीक था.

मकान मालिक से हुई पूछताछ

मकान मालिक सुनील कुमार शर्मा ने पुलिस को बताया कि जब उस ने सुभाष को यह कमरा किराए पर दिया था, तब उस ने बताया था कि वह मुजफ्फरपुर के कर्पूरी नगर का रहने वाला है. वहां उस के घर में बाढ़ का पानी घुस गया है, इस वजह से वह कुछ दिन इस मकान में किराए पर रहना चाहता है.

सुनील ने अपने बयान में कहा, ‘‘मैं ने उस को कमरा इसलिए किराए पर दे दिया क्योंकि उस ने किराए में कोई रियायत नहीं मांगी, उलटा बाकी किराएदारों द्वारा दिए जा रहे किराए से एक हजार रुपए ज्यादा दिए और एडवांस किराया औनलाइन ही अकाउंट में जमा करवा दिया.

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‘‘फिर वह अपनी पत्नी और 3 बच्चों के साथ यहां रहने लगा. कुछ दिन बाद उस की साली और साढ़ू भी यहां आ कर उस के साथ रहने लगे. मगर 3 दिन से कमरे पर ताला लटका था तो लगा कि वह अपने पुराने मकान में गए होंगे.’’

उधर राकेश के बारे में पुलिस को पता चला कि 5 साल पहले उस ने राधा से शादी की थी. उस के 3 बच्चे हैं. वह सुभाष के साथ मिल कर अवैध शराब का धंधा चलाता था और फिलहाल पुलिस से जान बचा कर भागा हुआ था. उस की पत्नी राधा भी उसी दिन से गायब है जिस दिन से राकेश गायब है.

पुलिस को यह भी पता चला कि जबजब राकेश पुलिस से बचने के लिए फरार होता था, उस की पत्नी बच्चों को ले कर सुभाष के इसी मकान में आ जाती थी और सुभाष ही उन का खयाल रखता था.

कुछ लोगों ने यह भी बताया कि सुभाष और राधा के बीच अफेयर चल रहा था. आसपास के कुछ लोग तो यही समझते थे कि राधा सुभाष की पत्नी है. ऐसा समझने वालों में मकान मालिक सुनील शर्मा भी था.

पुलिस को सुभाष और राधा के ऊपर शक पक्का हो गया और वह तेजी से उन की तलाश में जुट गई. शहर भर के होटलों, बस अड््डों और रेलवे स्टेशन पर उन की खोज शुरू हो गई. आखिरकार पुलिस की तेजी काम आई और पुलिस ने सुभाष और राधा को शहर के स्टेशन रोड से गिरफ्तार कर लिया. दोनों दिल्ली भागने की फिराक में थे और ट्रेन पकड़ने के लिए निकले थे.

पुलिस ने उन की निशानदेही पर अहियापुर थाने के संगम घाट के पास से खून से सने कपड़े व बिस्तर भी बरामद किया. कपड़े  सुभाष, राधा और अन्य आरोपियों के थे.

जिन लोगों को पुलिस और अन्य लोग सुभाष की साली और साढ़ू समझ रहे थे, दरअसल वे राकेश की साली यानी राधा की बहन कृष्णा देवी और उस का पति विकास कुमार था, जो सुभाष और राधा के साथ राकेश साहनी की हत्या में शामिल थे.

सुभाष के बताने पर पुलिस ने दोनों को पकड़ने के लिए सीतामढ़ी व शिवहर में छापेमारी की, मगर सुभाष और राधा की गिरफ्तारी की खबर पा कर दोनों वहां से फरार हो चुके थे.

राधा निकली मास्टरमाइंड

पुलिस ने सुभाष और राधा को थाने ला कर जब सख्ती से पूछताछ की तो राकेश की हत्या की रोंगटे खड़े कर देने वाली एक भयानक कहानी सामने आई.

दरअसल, अवैध शराब के धंधेबाज राकेश कुमार की हत्या की साजिश 2 माह से रची जा रही थी. इस साजिश में उस का दोस्त सुभाष, राकेश की पत्नी और सुभाष की प्रेमिका राधा, राधा की बहन कृष्णा और उस का पति विकास शामिल था.

राकेश की हत्या कर शव के डिस्पोजल की तैयारी भी पूरी कर ली थी. शव को गलाने के लिए कैमिकल का इंतजाम किया गया था. शव से उठने वाली दुर्गंध को बाहर फैलने से रोका जा सके, इस के लिए अगरबत्ती का इंतजाम भी किया गया था.

राकेश की हत्या के पीछे कारण था सुभाष और राधा का नाजायज रिश्ता. दरअसल, शराब के धंधे के चलते राकेश के पीछे अकसर पुलिस पड़ी रहती थी. इस के चलते राकेश कईकई दिनों तक अंडरग्राउंड हो जाता था. उस के पीछे उस की पत्नी राधा और बच्चों की देखभाल सुभाष ही करता था.

पति के बाहर कहीं छिपते रहने की वजह से राधा की सुभाष के साथ नजदीकियां बढ़ती गईं. सुभाष भी राधा को चाहता था. इस तरह उन दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए.

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राकेश को जब इस बात का पता चला तो उस ने पत्नी राधा को खूब पीटा. राधा ने उस से माफी मांग ली. सुभाष ने भी उस से माफी मांग ली. राकेश की भी मजबूरी थी. क्योंकि वह बीवीबच्चों की देखभाल के लिए सुभाष पर आश्रित था. लिहाजा उस ने दोनों को माफ कर दिया.

लेकिन यही उस की भूल थी. राकेश जबजब परेशान होता तो वह राधा से लड़ता और राधा भाग कर सुभाष के घर चली जाती थी. फिर राकेश उसे समझाबुझा कर वापस ले आता. यह चक्र काफी समय से चल रहा था.

सुभाष ने राधा को अपने प्रेम जाल में पूरी तरह फांस रखा था और राधा भी अब राकेश की गालीगलौज और मारपीट से तंग आ चुकी थी. राधा पति के बजाय अपने प्रेमी सुभाष के साथ ज्यादा खुशी महसूस करती थी. वह तनमन दोनों से सुभाष की हो चुकी थी.

अब राकेश दिनरात उस की नजर में खटक रहा था. वह उस की कोई भी जलीकटी बात सुनने को तैयार नहीं थी. सुभाष और राधा अब राकेश को अपने बीच कांटा समझने लगे थे.

पति के बाहर रहने पर बहक गई राधा

राकेश की जिंदगी स्थिर नहीं थी. पुलिस उस के पीछे थी और घर में बीवी उसे धोखा दे रही थी. वह काफी तनाव में रहता था और अकसर शराब पी कर राधा को पीट देता था.

राधा अब राकेश से ज्यादा ही परेशान हो चुकी थी. वह उस की मोहब्बत के रास्ते का रोड़ा भी था, लिहाजा राधा और सुभाष ने इस रोड़े को हटाने का मन बना लिया था.

कर्पूरी नगर में जहां सुभाष का घर था, वहां उस के अन्य परिवार वाले भी रहते थे. सभी का एकदूसरे के घर में आनाजाना लगा रहता था. काफी घनी बस्ती होने के कारण वहां हत्याकांड को अंजाम देना संभव नहीं था. इसलिए सुभाष बालूघाट में नया ठिकाना तलाशने लगा.

उसे पता चला कि सुनील शर्मा के मकान की तीसरी मंजिल खाली है. उस ने किसी के माध्यम से सुनील कुमार शर्मा की मां से संपर्क साधा और बाढ़ पीडि़त होने की बात कह कर किराए पर कमरा देने का आग्रह किया.

उस ने मकान में अन्य कमरों के किराएदारों से एक हजार रुपए अधिक किराया देना भी स्वीकार किया और फटाफट एडवांस किराया औनलाइन उस के अकाउंट में जमा करवा दिया.

वह अपने कुछ सामान के साथ सुनील कुमार के मकान में आ गया. थोड़े दिन में राधा भी अपने तीनों बच्चों के साथ उस के पास आ गई. आसपास के लोगों को राधा का परिचय सुभाष ने अपनी पत्नी के रूप में कराया. इस के कुछ रोज बाद ही राधा की बहन कृष्णा और बहनोई विकास भी उन के साथ रहने आ गए.

राकेश को खत्म करने की साजिश इन चारों ने बैठ कर बनाई. राधा की बहन और बहनोई को साजिश में शामिल करना सुभाष की मजबूरी थी. दरअसल, राकेश अच्छी कदकाठी का आदमी था. उस पर काबू पाना एकदो लोगों के बस की बात नहीं थी. इन दोनों को भी लाने का मकसद यह था कि जब राकेश वहां आएगा तो सब मिल कर उस का काम आसानी से तमाम कर देंगे.

हत्या कर कैमिकल के ड्रम में डाले लाश के टुकड़े

सारी तैयारियां हो जाने के बाद राधा ने तीज वाले दिन राकेश को फोन कर के वहां बुलाया. उस वक्त राकेश पुलिस के डर से कहीं छिप कर रह रहा था. उस के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट भी निकला हुआ था.

हालांकि एक माह पहले राकेश की सुभाष से लड़ाई भी हुई थी. तब सुभाष ने उसे धमकाते हुए कहा था, ‘‘राकेश, तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम हम दोनों के बीच में मत आओ.’’

राकेश उस का मंसूबा भांप गया था. इस के बावजूद पत्नी के बुलाने पर आ गया था. उस रात वहां सभी ने शराब पी और मुरगा खाया. राकेश को राधा और सुभाष ने जम कर शराब पिलाई थी. जब वह नशे में धुत हो गया तो उन्होंने उस की निर्मम हत्या कर दी.

शराब के नशे में बेसुध राकेश के सिर पर हथौड़ा मार कर उसे खत्म कर दिया और तेजधार वाले चाकू से उस के शरीर के 8 टुकड़े कर दिए. इस के बाद एक बड़े ड्रम में उस के शव के सभी टुकड़ों को डाल कर गलाने के लिए ऊपर से यूरिया, नमक और तेजाब भर दिया.

हत्या: प्रेम गली अति सांकरी

कमरे से बदबू बाहर न जाए, इसलिए खिड़की और दरवाजे में कपड़े ठूंस दिए गए. रात में कमरे के दरवाजे और आसपास काफी संख्या में अगरबत्ती जलाने के बाद सभी आरोपी वहां से निकल गए.

4 दिन तक यूरिया, सल्फ्यूरिक एसिड और नमक से शव गलने के कारण ड्रम में अमोनियम नाइट्रेट गैस बनने लगी. इस गैस के जलती अगरबत्ती के संपर्क के कारण ही वहां धमाका हुआ और सारे राज का परदाफाश हो गया.

सुभाष व राकेश की शराब के धंधे की चलती थी फ्रैंचाइजी

अखाड़ा घाट रोड, बालूघाट व सिकंदरपुर क्षेत्र में सुभाष व राकेश की जोड़ी ने अवैध शराब के धंधे की फ्रैंचाइजी खोल रखी थी. बड़े धंधेबाजों से शराब ले कर इस क्षेत्र के छोटेछोटे विक्रेताओं को आपूर्ति की जाती थी. इस धंधे की कमाई से राकेश और सुभाष दोनों ने कई स्थानों पर जमीन भी खरीदी थी. अब पुलिस उन संपत्तियों का पता लगा रही है.

2 महीने पहले जब राकेश के ठिकाने से पुलिस ने शराब की बड़ी खेप पकड़ी तभी उस का खेल बिगड़ गया था. पुलिस के भय से राकेश शुरू में इधरउधर छिपता रहा, फिर वह भाग कर दिल्ली चला गया था. इधर उस की पत्नी को मौका मिल गया और वह बच्चों को ले कर सुभाष के पास चली गई थी.

साली और साढ़ू की तलाश में छापेमारी

घटना में शामिल मृतक राकेश की साली कृष्णा और साढ़ू विकास की तलाश में एक टीम समस्तीपुर और सीतामढ़ी में छापेमारी कर रही है. हालांकि, कथा लिखने तक दोनों का सुराग नहीं मिला था. गिरफ्तार आरोपियों से उन दोनों के ठिकाने के बारे में पूछताछ की गई. सुभाष ने बताया, ‘‘विकास और कृष्णा के बारे में कोई जानकारी नहीं है. घटना के बाद से दोनों का उस से संपर्क नहीं हुआ है.’’  हालांकि उस के बयान पर पुलिस संदेह कर रही है.

टाउन डिप्टी एसपी रामनरेश पासवान का कहना है, ‘‘कई बिंदुओं पर आरोपियों से पूछताछ की गई. पुलिस की पूछताछ में आरोपियों ने बताया है कि घटना के बाद सभी एक साथ शहर से भागे थे. पहले वे सब बसस्टैंड पर छिप गए थे. वहीं रात गुजारी थी. फिर दूसरे दिन अलगअलग जगहों के लिए निकले थे. विकास और कृष्णा ने सीतामढ़ी जाने की बात कही थी. वहां से निकलने के बाद सुभाष का उन से संपर्क नहीं हुआ.’’

सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

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—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौल्वर गैंग : पैसा फेंको, इम्तिहान पास करो

बीरेंद्र बरियार

लाखों रुपए ले कर फर्जी तरीके से इम्तिहान देने वालों की जगह किसी सौल्वर (सवाल हल करने वाला) को बिठा कर इम्तिहान देने वालों के एक गैंग का खुलासा हुआ है. इस गैंग के सरगना के तार बिहार के छपरा और जहानाबाद जिले से जुड़े हुए हैं. सौल्वर गैंग के ज्यादातर लोग मैडिकल और इंजीनियरिंग का इम्तिहान पास कर चुके हैं या उस की तैयारियों में लगे हुए हैं.

सौल्वरों के जरीए नीट (नैशनल ऐलिजिबिलिटी कम ऐंट्रैंस टैस्ट) पास कराने का सौदा करने वाले गैंग का सरगना पीके उर्फ प्रेम कुमार उर्फ प्रमोद कुमार उर्फ नीलेश इस के लिए 30 लाख से 50 लाख रुपए तक वसूलता था.

इसी पैसे से पीके ने पटना में तिमंजिला मकान और दानापुर में 4 प्लौट खरीदे. उस के पास फौर्चुनर, हुंडई लिवो और एक वैगनआर कार बरामद हुई. बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और त्रिपुरा की पुलिस पीके की तलाश में लगी हुई थी. वाराणसी पुलिस ने पीके को पकड़ने वाले को एक लाख रुपए का इनाम देने का ऐलान कर रखा था.

पीके पिछले 6-7 सालों से नीट (यूजी) और पीजी के इम्तिहान में सौल्वरों को बिठा कर कैंडिडेट को पास कराने का गेम खेल रहा था. इस के अलावा वह बिहार और उत्तर प्रदेश में मास्टरों की बहाली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अधीनस्थ सेवा, बिहार पुलिस सेवा वगैरह में भी अपना गोरखधंधा चला रहा था. उसे पिछली 18 नवंबर को छपरा में दबोचा गया.

पीके की बहन प्रिया भी इस गिरोह में शामिल है. प्रिया साल 2019 में पटना के इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट औफ मैडिकल साइंसेज से एमबीबीएस की डिगरी ले कर डाक्टर बनी थी. फिलहाल वह छपरा के सारण में नगरा ब्लौक के प्राइमरी हैल्थ सैंटर में पोस्टेड है.

प्रिया की शादी रीतेश कुमार सिंह के साथ साल 2014 में हुई थी, जो बिहार सरकार के कला एवं संस्कृति विभाग में क्लर्क है. वह इस पद पर साल 2004 में बहाल हुआ था. पीके की गिरफ्तारी के बाद उस की बहन प्रिया की एमबीबीएस की डिगरी भी जांच के घेरे में आ गई है.

पीके ने कोरैस्पोंडेंस कोर्स के जरीए पटना यूनिवर्सिटी से बीए का इम्तिहान पास किया था. उस ने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बता रखा था कि वह डाक्टर है.

पीके मूल रूप से छपरा के सारण के एकमासिंटू गांव का रहने वाला है. उस के पिता कमलवंश नारायण सिंह बिहार सरकार के उद्योग विभाग से साल 1990 में रिटायर हो चुके हैं. पीके अपने पिता के साथ ही पटना की पाटलिपुत्र कालोनी के अपने मकान में रहता था.

12 सितंबर को सारनाथ के एक परीक्षा केंद्र पर त्रिपुरा के रहने वाली हिना विश्वास की जगह बीएचयू की बीडीएस की छात्रा जूली कुमारी को इम्तिहान देते हुए पकड़ा गया था. इस मामले में जूली, उस की मां बबीता, भाई ओसामा, विकास कुमार महतो, रवि कुमार गुप्ता और तपन साहा को पुलिस ने गिरफ्तार किया था.

उस के बाद 22 सितंबर को पटना के रघुनाथ गर्ल्स हाईस्कूल में डिप्लोमा इन ऐलीमैंट्री ऐजूकेशन के इम्तिहान में 4 लड़कियों समेत 9 सौल्वर को पकड़ा गया.

इम्तिहान के दौरान वहां आए इंविजीलेटर को कुछ छात्रों पर शक हुआ. उस ने मजिस्ट्रेट को इस बात की जानकारी दी. जब सभी छात्रों के एडमिट कार्ड की जांच की गई, तो सौल्वर गैंग के लोग पकड़ में आ गए.

सौल्वर गैंग के सदस्य रिंकू कुमारी (मधुबनी), शैलेंद्र कुमार (मधेपुरा), शिवम सौरभ (मधुबनी), बीरेंद्र कुमार (मधुबनी), सुरुचि कुमारी (नालंदा), रंजीत कुमार (निर्मली), विनोद कुमार (सुपौल), गुडि़या कुमार (नालंदा), गुंजन कुमारी (मधेपुरा) को पुलिस ने गिरफ्तार किया.

पाटलिपुत्र थाना क्षेत्र के मंगलदीप अपार्टमैंट्स के पास औनलाइन परीक्षा केंद्र आईडीजेड-5 में इम्तिहान देने के दौरान किसी दूसरे की जगह इम्तिहान दे रहे दीपक कुमार को पकड़ा गया. बाद में उस से मिली जानकारी के आधार पर ओरिजनल उम्मीदवार लकी कुमार को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

लकी कुमार सारण के गरखा गांव का रहने वाला है. दीपक ने पुलिस को बताया कि एक लाख रुपए में सौदा तय हुआ था और एडवांस के तौर पर 10,000 रुपए मिले थे. बाकी रकम कैंडिडेट के पास होने के बाद मिलने वाली थी.

पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक, लकी कुमार ने दीपक को अपने एडमिट कार्ड के साथ इम्तिहान सैंटर में पहुंचा दिया था. इम्तिहान शुरू होने से पहले जब सभी कैंडिडेट की जांच की गई, तो दीपक का चेहरा एडमिट कार्ड में चिपकाए गए फोटो से मेल नहीं खा रहा था. शक होने पर दीपक से पूछताछ की गई. पहले तो उस ने चकमा देने की कोशिश की, पर कुछ ही देर में सबकुछ सचसच उगल दिया.

पीके के गैंग में उस की प्रेमिका समेत दूसरी 12 लड़कियां भी शामिल थीं. सभी लड़कियां एजेंट का काम करती थीं और मैडिकल और इंजीनियरिंग का इम्तिहान देने वाले छात्रों को अपने जाल में फंसाती थीं. जब कोई छात्र जाल में फंस जाता था, तो उस की काउंसलिंग भी कराई जाती थी.

पुलिस रिकौर्ड के मुताबिक, बिहार के जहानाबाद जिले के अतुल वत्स ने सब से पहले सौल्वर गैंग बनाया था. उस के बाद उस ने काफी कम समय में बिहार समेत हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश तक अपना जाल फैला लिया था.

उस के गैंग में तकरीबन 60 लड़के थे. सभी लड़कों को बाकायदा ट्रेनिंग दी गई थी कि किस तरह से शिकार को फंसाया जाए.

सभी एजेंट लग्जरी गाडि़यों में घूमते थे और महंगे होटलों में ठहरते थे. तमाम सुविधाओं के साथ उन्हें 20,000 से 25,000 रुपए हर महीने तनख्वाह के रूप में दिए जाते थे.

सौल्वर गैंग के लोगों ने पुलिस से बचने के लिए ऐसा पक्का इंतजाम कर रखा था कि उन का मोबाइल फोन सर्विलांस पर ट्रेस न हो सके. गैंग के सभी लोगों को कोडवर्ड में बात करने की हिदायत थी. जैसे ‘टिशू मिलना’ का मतलब होता था, डौक्यूमैंट मिलना. इसी तरह ‘खजूर मिलना’ का मतलब होता था, एडवांस मिलना. ‘डनडन’ कहा गया तो समझिए डील पक्की हो गई.

बीटैक, नीट, बीबीए क्वालिफाई कर चुके स्टूडैंट रातोंरात करोड़पति बनने के चक्कर में सौल्वर गैंग के जाल में फंसते रहे हैं.

गैंग का सरगना अतुल वत्स खुद बीटैक है. इस के अलावा गैंग में शामिल उज्ज्वल कश्यप, रमेश सिंह, प्रशांत कुमार और रोहित कुमार के पास भी बीटैक की डिगरी है.

साल 2006 में अतुल ने एनईईटी में और कंप्यूटर साइंस में दाखिला लिया था. साल 2010 में बीटैक करने के बाद अतुल ने दिल्ली जा कर एमबीए किया.

एमबीए में उसे काफी कम नंबर मिले, जिस से वह बहुत परेशान हुआ था. उस के बाद वह पटना लौट आया और अपने दोस्त दीपक के साथ मिल कर उस ने बोरिंग रोड इलाके में इंजीनियरिंग और मैडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट खोला.

कोचिंग में अतुल फिजिक्स और कार्बनिक रसायन पढ़ाता था. साल 2014 में उस ने यूको बैंक के पीओ का इम्तिहान पास किया, लेकिन एक साल में ही उस का मन ऊब गया और उस ने नौकरी छोड़ दी.

साल 2016 में नीट पेपर सौल्वर गैंग में अतुल का नाम आया था. साल 2017 में वह पहली बार पुलिस के हत्थे चढ़ा था. दिल्ली पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था.

मनोहर कहानियां: 1 मोक्ष, 5 मौतें

  भारत भूषण श्रीवास्तव

बात 20 दिसंबर, 2021 की सुबह के समय की है. हरियाणा के हिसार जिले की बरवाला-अग्रोहा रोड पर गांव वालों ने एक अधेड़ व्यक्ति की लाश पड़ी देखी. पहली नजर में लग रहा था कि किसी गाड़ी ने कुचला है. यानी यह सड़क हादसे का मामला लग रहा था. कुछ ही देर में वहां आनेजाने वालों की भीड़ जमा हो गई.

आसपास के गांवों के लोग भी वहां जमा हो गए. भीड़ में से किसी व्यक्ति ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. वहां मौजूद लोगों में कुछ लोगों ने मृतक को पहचान लिया. वह पास के ही नंगथला गांव का रहने वाला 45 वर्षीय रमेश था.

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रमेश का समाज में मानसम्मान था. इसलिए आसपास के गांवों के लोग उसे अच्छी तरह जानते थे. तभी तो उस की इतनी जल्द शिनाख्त हो गई. सूचना पा कर पुलिस कुछ ही देर में वहां पहुंच गई और घटनास्थल की जांच करने लगी.

इधर कुछ लोग यह खबर देने के लिए रमेश के घर की तरफ दौड़े, लेकिन जब वह घर पर पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर और सन्न रह गए. क्योंकि घर पर 4 और लाशें पड़ी थीं. इस के बाद गांव में ही नहीं, बल्कि क्षेत्र में सनसनी फैल गई. क्योंकि एक ही परिवार के 5 सदस्यों की मौत बहुत बड़ी घटना थी.

रोड पर रमेश के एक्सीडेंट के मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारियों को जब पता चला कि रमेश के घर में 4 सदस्यों की लहूलुहान लाशें पड़ी हैं तो वे भी सन्न रह गए. उन्हें मामला जरूरत से ज्यादा संगीन लगा, लिहाजा इस की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को देने के बाद वहां से कुछ पुलिसकर्मी रमेश के घर की तरफ चल दिए. उन के पीछेपीछे भीड़ भी चल दी.

पुलिस जब रमेश के घर पहुंची तो घर के अंदर का दृश्य दख कर हक्कीबक्की रह गई. जितने मुंह थे, उतनी बातें भी हुईं लेकिन कोई किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका. एक हैरानी जरूर सभी को थी कि यह क्या हो गया. रमेश तो बहुत सीधासादा और धार्मिक प्रवृत्ति वाला था, जिस की किसी से दुश्मनी होने का सवाल ही नहीं उठता था और हर तरह के नशापत्ती से वह दूर रहता था.

बैडरूम में 2 पलंगों पर 4 लाशें पड़ी थीं, जिन्हें देखने पर साफ लग रहा था कि उन की बेरहमी से हत्या की गई है. साथ ही समझ यह भी आ रहा था कि मृतकों ने कोई विरोध नहीं किया था.

हाथापाई के निशान वहां कहीं नजर नहीं आ रहे थे. ये लाशें रमेश की 38 वर्षीय पत्नी सुनीता, 14 साल की बेटी अनुष्का, 12 साल की दीपिका और 11 साल के इकलौते बेटे केशव की थीं. जिस ने भी यह नजारा देखा, वह सिहर उठा क्योंकि एक अच्छाखासा घर उजड़ चुका था.

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मामला सनसनीखेज तो निकला पर वैसा नहीं जैसा कि आमतौर पर ऐसी वारदातों में होता है. पुलिस टीम को ज्यादा मशक्कत नहीं करना पड़ी, क्योंकि रमेश इस केस की खुद ही गुत्थी सुलझा कर गया था.

कागजों पर उतरी काली कथा

पुलिस जांच शुरू करती, इस के पहले ही उस के हाथ एक नोटबुक लग गई जोकि रमेश का सुसाइड नोट था. यह नोटबुक केशव के स्कूल की थी, जो रखी इस तरह गई थी कि आसानी से पुलिस को नजर आ जाए.

नोटबुक क्या थी रमेश की परेशानियों, मूर्खताओं और वहशीपन का पुलिंदा थी जिसे टुकड़ोंटुकड़ों में लिखा गया था. इस के बाद भी इस के 11 पेज भर गए थे.

अब हर कोई यह जानना चाह रहा था कि अगर अपनी पत्नी और बच्चों की हत्या रमेश ने ही की है तो इस की वजह क्या है.

अधिकृत रूप से यह वजह दोपहर को लोगों को पता चली, जब डीआईजी (हिसार) बलवान सिंह राणा ने इस बारे में जानकारी दी. इस के पहले वह डीएसपी नारायण सिंह और अग्रोहा थानाप्रभारी के साथ घटनास्थलों पर पहुंचे थे.

शुरुआती जांच के बाद पांचों शव अग्रोहा मैडिकल कालेज पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए गए थे. अब तक इस वारदात की खबर जंगल की आग की तरह देश भर में फैल चुकी थी. रमेश ने अपने सुसाइड नोट में आत्महत्या करने की जो वजह बताई, उसे जान कर हर कोई हैरान था कि एक पढ़ालिखा और सभ्य आदमी भला यह कैसे कर सकता है. पता चला कि उन्होंने यह सब मोक्ष पाने के लिए किया.

हरियाणा के हिसार जिले की अग्रोहा तहसील का छोटा सा गांव है नंगथला. कहने को और सरकारी कागजों में ही यह अब गांव रह गया है नहीं तो अग्रोहा से महज 4 किलोमीटर दूर होने से यह उसी का ही हिस्सा बन गया है. 700 साल पुराने इस गांव में दाखिल होते ही लोगों की नजरें एक घर पर जरूर ठहर जाती हैं जिस की दीवारों पर पक्षियों के लिए कोई एकदो नहीं बल्कि 50 इको फ्रैंडली घोंसले बने हुए हैं.

घर पर बना रखे थे पक्षियों के घोंसले

पक्षी संरक्षण के इस अनूठे तरीके से देश भर के लोग प्रभावित थे और आए दिन इस बाबत रमेश वर्मा को फोन किया करते थे.

45 वर्षीय रमेश वर्मा अब इस दुनिया में नहीं है. पक्षियों के लिए बसाया उस का छोटा सा संसार भी अब उजड़ रहा है, जहां कुछ दिन पहले तक 100 से भी ज्यादा चिडि़या चहचहाया करती थीं. रमेश बच्चों की तरह उन का ध्यान रखता था और उन्हें वक्त पर दानापानी दिया करता था. इस मिशन में उस का परिवार भी उस का साथ देता था.

इन घोंसलों को देख कर कुछ लोग उसे सनकी भी कहते थे लेकिन रमेश किसी और धुन या सनक में ही पिछले कुछ दिनों से जी रहा था, जिस के बीज तो किशोरावस्था में ही उस के दिलोदिमाग में पड़ चुके थे.

उन में से एक बीज कैक्टस से भी ज्यादा कंटीला और विषैला पेड़ कब बन गया, यह न तो वह समझ पाया और न ही कोई उसे ढंग से समझा पाया. दिसंबर की हड्डी गला देने वाली ठंडी रातों में जब सारी दुनिया कंबलों, रजाइयों में दुबकी सो रही होती थी, तब रमेश एक कशमकश में डूबा कुछ सोच रहा होता था.

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एक निरर्थक सी बात पर कोई जितना खुद से लड़ सकता है रमेश उस से ज्यादा खुद से लड़ चुका था. आखिरकार 20 दिसंबर को उस की हिम्मत जबाब दे गई. ऐसा नहीं कि उस के पास किसी चीज की कमी थी, बल्कि वह तो दुनिया के उन खुशकिस्मत लोगों में से एक था, जिन के पास सब कुछ था.

परिवार में एक सीधीसादी आज्ञाकारी पत्नी, 2 हंसमुख सुंदर बेटियां और उन के बाद हुआ मासूम सा दिखने वाला बेटा, जिस का नाम उस ने कृष्ण के नाम पर प्यार से केशव रखा था.

नंगथला में प्रिंटिंग प्रैस चलाने वाले रमेश की कमाई इतनी थी कि घर खर्च आराम से चलने के बाद पैसा बच भी जाता था, जिस का बड़ा हिस्सा वह कारोबार बढ़ाने में लगा भी रहा था.

शादी के कार्ड छाप कर खासी कमाई कर लेने वाले इस तजुर्बेकार कारोबारी ने फ्लेक्स प्रिंटिंग का भी काम शुरू कर दिया था. इस के पहले वह पेंटिंग भी किया करता था.

फिर किस चीज की कमी थी रमेश के पास, जो उसे मुंहअंधेरे आत्महत्या कर लेनी पड़ी? इस बात को समझने से पहले और भी बहुत सी बातें समझ लेनी जरूरी हैं, जो आए दिन हर किसी के दिमाग में उमड़तीघुमड़ती रहती हैं.

मैं कौन हूं कहां से आया हूं मरने के बाद कहां जाऊंगा, क्या मेरी आत्मा को मुक्ति मिलेगी या मुझे भी 84 लाख योनियों में भटकना पड़ेगा और नर्क की सजा भुगतनी पड़ेगी, जैसे दरजनों सवाल रमेश को आज से नहीं बल्कि सालों से परेशान कर रहे थे.

इन्हीं सवालों से आजिज आ कर वह संन्यास लेना चाहता था, यानी घर से पलायन करना चाहता था. लेकिन घर वालों ने शादी कर उसे घरगृहस्थी के बंधन में बांध दिया.

धर्म के दुकानदारों के पैदा किए इन सवालों के कोई माने नहीं हैं इसलिए समझदार लोग इन्हें दिमाग से झटक कर अपने काम में लग जाते हैं और थोड़ी सी दक्षिणा पंडे, पुजारियों, पुरोहितों को दे कर अपना परलोक सुधरने की झूठी तसल्ली और मौखिक गारंटी ले कर अपनी जिम्मेदारियां निभाने में जुट जाते हैं और जिंदगी का पूरा लुत्फ उठाते हैं.

लोगों को धर्म के धंधेबाजों के हाथों ठगा कर एक अजीब सा सुख मिलता है, जिस की कीमत रमेश जैसे लोगों को मर कर चुकानी पड़ती है, जो पाखंडों के चक्रव्यूह में अभिमन्यु की तरह फंस कर दम तोड़ देते हैं.

क्या कोई धार्मिक व्यक्ति ऐसे जघन्य हत्या कांड को अंजाम दे सकता है? इस सवाल का जवाब हर कोई न में देना चाहेगा लेकिन हकीकत में यह धार्मिक सनक थी.

हैवान बनने की है अनोखी कहानी

रमेश ने हैवान बनने की कहानी भी खुद अपने हाथों से इस भूमिका के साथ लिखी कि यह दुनिया रहने लायक नहीं है. मैं इस दुनिया में नहीं रहना चाहता, लेकिन सोचता हूं कि मेरी मौत के बाद मेरे घर वालों का क्या होगा. मैं उन से बहुत प्यार करता हूं मैं कोई मानसिक रोगी नहीं हूं.

सुसाइड नोट में आगे रमेश ने लिखा, ‘मैं ने जिंदगी के आखिरी दिनों में बहुत मन लगाने की कोशिश की थी. मशीनें खरीदीं, दुकान भी खरीद ली थी. 2 लाख रुपए दे भी दिए थे और भी बहुत पैसा आ रहा था. चुनाव में कई लाख रुपए आए थे लेकिन शरीर और दिमाग हार मान चुके हैं. मन अब आजाद होना चाहता था कोई सुख, कोई बात अब रोक नहीं सकती. रोज रात को सब सोचता हूं. 3 दिन से पूरी रात जागा हूं आखों में नींद नहीं है. मन को बहुत लालच दिए, लेकिन बहुत देर हो चुकी है. अब रुकना मुश्किल था. कोई अफसोस कोई दुख नहीं.’

अपनी बात जारी रखते रमेश जैसे इस हादसे का आंखों देखा हाल बता देना चाहता था. इस के बाद उस ने लिखा, ‘सुबह के 4 बज चुके हैं घर से निकल चुका हूं. इतनी सर्दी में सब को परेशान कर के जा रहा हूं, माफ करना. सब से माफी.’ जाहिर है कि रमेश ने बेहद योजनाबद्ध तरीके से अपने प्यार करने वालों के मर्डर का प्लान किया था.

खीर में मिला दी थीं नींद की गोलियां

19 दिसंबर को उस ने अपनी दुकान दोपहर 3 बजे ही बंद कर दी थी जबकि आमतौर वह रात 10 बजे दुकान बढ़ाता था, इस दिन बेटा केशव भी उस के साथ था. दूसरे दुकानदारों से वह कम ही बातचीत करता था, इसलिए किसी ने यह नहीं पूछा कि आज इतनी जल्दी घर क्यों जा रहे हो.

कोई भी उसे देख कर अंदाजा नहीं लगा सकता था कि इस आदमी के दिमाग में क्या खुराफात चल रही है. घर पहुंच कर उस ने अपने हाथों से खीर बनाई और पत्नी सहित तीनों बच्चों को बड़े प्यार से खिला दी. फिर वह उन के सोने का इंतजार करने लगा, क्योंकि खीर में उस ने नींद की गोलियां मिला दी थीं.

इन चारों के नींद की गोलियों के असर में आ जाने के बाद उस ने उन सभी के सो जाने का इंतजार किया. सो जाने की तसल्ली हो जाने के बाद कुछ धार्मिक अनुष्ठान किए और फिर कुदाल उठा कर एकएक कर सभी की हत्या कर दी, जो वे बेचारे सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि माली ही अपनी बगिया उजाड़ रहा है.

जन्ममरण के चक्र से मुक्त होने की इच्छा लिए इस धार्मिक आदमी को यह एहसास तक नहीं हुआ कि वह 4 बेकुसूर लोगों को महज मोक्ष की अपनी सनक पूरी करने के लिए बलि चढ़ा रहा है.

अपनी दिमागी परेशानी की चर्चा उस ने सुनीता से की भी थी, इस पर सुनीता ने हथियार डालते हुए आदर्श पत्नियों की तरह यह वादा किया था कि साथ जिए हैं तो मरेंगे भी साथसाथ ही. पति के पागलपन को बेहतर तरीके से समझने लगी.

सुनीता कितनी हताशनिराश हो चुकी थी, यह समझना बहुत ज्यादा मुश्किल काम नहीं. जब चारों ने दम तोड़ दिया तो इस पगलाए जुनूनी रमेश ने खुद को भी मारने की गरज से बिजली का नंगा तार अपनी जीभ पर रख लिया लेकिन इस से वह मरा नहीं, क्योंकि बिजली का करंट उस पर असर नहीं करता था, इस बात का जिक्र भी उस ने अपने सुसाइड नोट में किया था.

अब तक रमेश की सोचनेसमझने की ताकत पूरी तरह खत्म हो चुकी थी और जैसे भी हो वह मर जाना चाहता था, क्योंकि सूरज उगने में कुछ वक्त बाकी था फिर खुदकुशी करना आसान नहीं रह जाता और 4 हत्याओं के अपराध में वह हवालात में होता.

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अब उस ने घर से निकल कर सड़क पर आ कर किसी वाहन के नीचे आ कर मरने का फैसला कर लिया और जातेजाते यह बात भी सुसाइड नोट में लिख दी. इस के बाद क्या हुआ, इस के बारे में पुलिस का अंदाजा है कि वह झाडि़यों में छिप कर बैठ गया होगा और तेज रफ्तार से आती किसी गाड़ी के सामने आ गया, जिस से उस की मौके पर ही मौत हो गई.

काफी कोशिशों के बाद भी उस गाड़ी का अतापता नहीं चला, जिस के पहियों ने रमेश की मोक्ष की सनक को पूरा किया.

बुराड़ी कांड का दोहराव

एक और दुखद कहानी का अंत हुआ, जिस की तुलना दिल्ली के 21 जुलाई, 2018 को हुए बुराड़ी कांड से की गई. क्योंकि उस में भी मोक्ष के चक्कर में एक ही घर के 11 सदस्यों ने थोक में आत्महत्या कर ली थी.

मोक्ष नाम के पाखंड का स्याह और वीभत्स सच सामने आने के बाद भी अधिकतर लोगों ने इस बात से इत्तफाक नहीं रखा कि मोक्ष बकवास है बल्कि कहा यह कि रमेश को अगर मोक्ष चाहिए था तो खुद मर जाता, बीवीबच्चों की हत्या न करता. और जिन लोगों ने यह माना कि रमेश को मोक्ष के लिए आत्महत्या नहीं करना चाहिए थी, वे भी मोक्ष की औचित्यता पर सवाल नहीं कर पा रहे.

सवाल यह है कि मोक्ष का इतना फरजी गुणगान क्यों किया जाता है कि लोग अच्छीखासी हंसतीखेलती जिंदगी छोड़ आत्महत्या करने पर उतारू हो जाते हैं और इस के लिए अपने घर वालों की हत्या तक करने लगे हैं. पंडेपुजारियों और मोक्ष का महिमामंडित कर दक्षिणा बटोरने वालों पर गैरइरादतन हत्या का मामला दर्ज क्यों नहीं किया जाता.

रमेश ने गलत किया, यह कहने वाले तो बहुत मिल जाएंगे लेकिन धार्मिक अंधविश्वास और दहशत फैलाने वाले कौन सा सही काम करते हैं. यह कहने वाले जब तक इनेगिने हैं, तब तक इस प्रवृत्ति पर रोक लगने की उम्मीद करना एक बेकार की बात है. रमेश मानसिक कम धार्मिक रोगी ज्यादा था.

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सौजन्य:  मनोहर कहानियां 

उस दिन जून 2019 की 10 तारीख थी. रात के 10 बज रहे थे. कानपुर के थाना अनवरगंज के थानाप्रभारी रमाकांत पचौरी क्षेत्र में गश्त पर थे. गश्त करते हुए जब वह डिप्टी पड़ाव चौराहा पहुंचे, तभी उन के मोबाइल पर एक काल आई. उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘सर, मैं गुरुवतउल्ला पार्क के पास से पप्पू बोल रहा हूं. हमारे घर के सामने पूर्व सभासद नफीसा बाजी की बेटी शहला परवीन किराए के मकान में रहती है. उस के घर के बाहर तो ताला बंद है, लेकिन घर के अंदर से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आ रही हैं. लगता है, उस घर के अंदर किसी की जान खतरे में है. आप जल्दी आ जाइए.’’

डिप्टी पड़ाव से गुरुवतउल्ला पार्क की दूरी ज्यादा नहीं थी. अत: थानाप्रभारी रमाकांत पचौरी चंद मिनटों बाद ही बताई गई जगह पहुंच गए. वहां एक मकान के सामने भीड़ जुटी थी. भीड़ में से एक व्यक्ति निकल कर बाहर आया और बोला, ‘‘सर, मेरा नाम पप्पू है और मैं ने ही आप को फोन किया था. अब घर के अंदर से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आनी बंद हो चुकी हैं.’’

रमाकांत पचौरी ने सहयोगी पुलिसकर्मियों की मदद से उस मकान का ताला तोड़ा फिर घर के अंदर गए. कमरे में पहुंचते ही पचौरी सहम गए. क्योंकि कमरे के फर्श पर एक महिला की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. पड़ोसियों ने बताया कि यह तो शहला परवीन है. इस की हत्या किस ने कर दी.

शव के पास ही खून सनी ईंट तथा एक मोबाइल फोन पड़ा था. लग रहा था कि उसी ईंट से सिर व मुंह पर प्रहार कर बड़ी बेरहमी से उस की हत्या की गई थी. शहला की उम्र यही कोई 35 साल के आसपास थी. पुलिस ने लाश के पास पड़ा फोन सबूत के तौर पर सुरक्षित कर लिया.

घनी आबादी वाले मुसलिम इलाके में पूर्व पार्षद नफीसा बाजी की बेटी शहला परवीन की हत्या की सूचना थानाप्रभारी ने पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर में एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (क्राइम) राजेश कुमार, एसपी (पूर्वी) राजकुमार, सीओ (कलेक्टरगंज) श्वेता सिंह तथा सीओ (अनवरगंज) सैफुद्दीन भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

एसएसपी अनंतदेव ने फारैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. बढ़ती भीड़ तथा उपद्रव की आशंका को देखते हुए एसएसपी ने रायपुरवा, चमनगंज तथा बेकनगंज थाने की फोर्स भी बुलवा ली. पूरे क्षेत्र को उन्होंने छावनी में तब्दील कर दिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वह भी आश्चर्यचकित रह गए. शहला परवीन की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस के शरीर पर लगी चोटों के निशानों से स्पष्ट था कि हत्या से पहले शहला ने हत्यारों से अपने बचाव के लिए संघर्ष किया था.

कमरे के अंदर रखी अलमारी और बक्सा खुला पड़ा था, साथ ही सामान भी बिखरा हुआ था. देखने से ऐसा लग रहा था कि हत्या के बाद हत्यारों ने लूटपाट भी की थी. शहला का शव जिस कमरे में पड़ा था, उस का एक दरवाजा पीछे की ओर गली में भी खुलता था.

पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि वारदात को अंजाम देने के बाद हत्यारे पीछे वाले दरवाजे से ही फरार हुए होंगे और इसी रास्ते से अंदर आए होंगे. पुलिस अधिकारियों के मुआयने के बाद फोरैंसिक टीम ने भी जांच की और साक्ष्य जुटाए. टीम ने अलमारी, बक्सा, ईंट आदि से फिंगरप्रिंट भी उठाए.

भाई ने बताए हत्यारों के नाम

अब तक सूचना पा कर मृतका का भाई तारिक शादाब भी वहां आ गया था. बहन की लाश देख कर वह फफकफफक कर रोने लगा. थानाप्रभारी ने उसे धैर्य बंधाया फिर पूछताछ की. तारिक शादाब ने बताया कि उस की बहन की हत्या उस के पति मोहम्मद शाकिर और बेटों शाकिब व अर्सलान उर्फ कल्लू ने की है. उस ने कहा कि हत्या में शाकिर का बहनोई गुड्डू भी शामिल है, जो कुख्यात अपराधी है.पुलिस अधिकारियों ने पड़ोसी पप्पू से पूछताछ की. उस ने भी बताया कि शहला के पति व बेटों को उस ने शहला के घर के आसपास देखा था. उस ने उन्हें टोका भी था. तब उन्होंने उसे धमकी दी थी कि टोकाटाकी करोगे तो परिणाम भुगतोगे.

उन की धमकी से वह डर गया था. पप्पू ने भी शहला के पति व बेटों पर शक जाहिर किया. कुछ अन्य लोगों ने बताया कि शहला का पति उस के चरित्र पर शक करता था. शायद अवैध संबंधों में ही उस के पति ने उसे हलाल कर दिया है.

अब तक हत्या को ले कर वहां मौजूद भीड़ उत्तेजित होने लगी थी. अत: पुलिस अधिकारियों ने आननफानन में शहला परवीन के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया. बवाल व तोड़फोड़ की आशंका को देखते हुए घटनास्थल के आसपास पुलिस तैनात कर दी.

चूंकि मृतका शहला परवीन के भाई तारिक शादाब ने अपने बहनोई व भांजे पर हत्या का शक जाहिर किया था, अत: थानाप्रभारी रमाकांत पचौरी ने तारिक शादाब की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत मोहम्मद शाकिर, उस के दोनों बेटे शाकिब, अर्सलान तथा शाकिर के बहनोई गुड्डू हलवाई के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद हत्यारोपियों को पकड़ने के लिए एसएसपी अनंतदेव ने एसपी (क्राइम) राजेश कुमार की अगुवाई में एक पुलिस टीम गठित कर दी. टीम में थानाप्रभारी रमाकांत, सीओ (अनवरगंज) सैफुद्दीन, एसआई राम सिंह, देवप्रकाश, कांस्टेबल अतुल कुमार, दयाशंकर सिंह, राममूर्ति यादव, मोहम्मद असलम तथा अब्दुल रहमान को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर मृतका के भाई तारिक शादाब से विस्तृत जानकारी हासिल कर उस का बयान दर्ज किया. पुलिस ने मृतका के पड़ोसी पप्पू से भी कुछ अहम जानकारियां हासिल कीं. इस के बाद पुलिस टीम मृतका शहला परवीन की मां नफीसा बाजी (पूर्व पार्षद) के घर दलेलपुरवा पहुंची. नफीसा बाजी बीमार थीं. बेटी की हत्या की खबर सुन कर उन की तबीयत और बिगड़ गई. पुलिस ने जैसेतैसे कर के उन का बयान दर्ज किया.

चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए पुलिस ने आरोपियों की तलाश के लिए उन के घर दबिश दी तो वह सब घर से फरार मिले. पुलिस टीम ने उन्हें तलाशने के लिए उन के संभावित ठिकानों पर ताबड़तोड़ दबिश दी. लेकिन आरोपी पकड़ में नहीं आए. तब इंसपेक्टर रमाकांत पचौरी ने अपने कुछ खास मुखबिरों को आरोपियों की टोह में लगा दिया और खुद भी उन्हें तलाशने में लगे रहे.

12 जून, 2019 की दोपहर को मुखबिर ने थानाप्रभारी को आरोपियों के बारे में खास सूचना दी. मुखबिर की सूचना पर थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ तुरंत हमराज कौंप्लैक्स पहुंच गए.

जैसे ही उन की जीप रुकी तो वहां से 3 लोग चाचा नेहरू अस्पताल की ओर भागे, लेकिन पुलिस टीम ने उन को कुछ ही दूरी पर धर दबोचा. उन से पूछताछ की तो उन्होंने अपने नाम मोहम्मद शाकिर, शाकिब तथा अर्सलान उर्फ कल्लू बताए. इन में शाकिब तथा अर्सलान शाकिर के बेटे थे. पुलिस उन तीनों को थाने ले आई.  उन की गिरफ्तारी की खबर सुन कर एसपी (क्राइम) राजेश कुमार और सीओ सैफुद्दीन भी थाने पहुंच गए.

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थाने में एसपी (क्राइम) राजेश कुमार तथा सीओ सैफुद्दीन ने उन तीनों से शहला परवीन की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो वे टूट गए और उन्होंने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

मोहम्मद शाकिर ने बताया कि उस की पत्नी शहला परवीन चरित्रहीन थी. उस की बदलचलनी की वजह से समाज में उस की इज्जत खाक में मिल गई थी. हम ने उसे बहुत समझाया, नहीं मानी तो अंत में उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. हम तो उस के आशिक रेहान को भी मार डालते, लेकिन वह बच कर भाग गया.

चूंकि मोहम्मद शाकिर तथा उस के बेटों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. अत: पुलिस ने उन तीनों को हत्या के जुर्म में विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच तथा अभियुक्तों के बयानों के आधार पर एक ऐसी औरत की कहानी सामने आई, जिस ने बदचलन हो कर न सिर्फ अपने शौहर से बेवफाई की बल्कि बेटों को भी समाज में शर्मसार किया.

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के अनवरगंज थानांतर्गत एक मोहल्ला है दलेलपुरवा. इसी मोहल्ले में हरी मसजिद के पास मोहम्मद याकूब अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी नफीसा बाजी के अलावा 2 बेटे तारिक शादाब, असलम और एक बेटी शहला परवीन थी.  मोहम्मद याकूब का कपड़े का व्यापार था. व्यापार से होने वाली आमदनी से वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. व्यापार में उन के दोनों बेटे भी उन का सहयोग करते थे.

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मोहम्मद याकूब जहां व्यापारी थे, वहीं उन की पत्नी नफीसा बाजी की राजनीति में दिलचस्पी थी. वह समाजवादी पार्टी की सक्रिय सदस्य थीं. दलेलपुरवा क्षेत्र से उन्होंने 2 बार पार्षद का चुनाव लड़ा, पर हार गई थीं. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. वह पार्टी के साथसाथ समाजसेवा में जुटी रहीं. तीसरी बार जब उन्हें पार्टी से टिकट मिला तो वह पार्षद का चुनाव लड़ीं. इस बार वह जीत कर दलेलपुरवा क्षेत्र की पार्षद बन गईं. नफीसा बाजी की बेटी शहला परवीन भी उन्हीं की तरह तेजतर्रार थी. वैसे तो शहला बचपन से ही खूबसूरत थी, लेकिन जब वह जवान हुई तो वह पहले से ज्यादा खूबसूरत दिखने लगी थी. जब वह बनसंवर कर घर से निकलती तो देखने वाले देखते ही रह जाते. शहला पढ़ने में भी तेज थी. उस ने फातिमा स्कूल से हाईस्कूल तथा जुबली गर्ल्स इंटर कालेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली थी.

शहला शादी लायक हो चुकी थी, मोहम्मद याकूब उस का निकाह कर उसे मानमर्यादा के साथ ससुराल भेजना चाहते थे. एक दिन मोहम्मद याकूब ने अपने पड़ोसी जावेद खां से बेटी के रिश्ते के बारे में बात की तो वह उत्साह में भर कर बोला, ‘‘याकूब भाई, मेरी जानपहचान में एक अच्छा लड़का है मोहम्मद शाकिर. वह चमनगंज में रहता है और कपड़े का व्यवसाय करता है. जिस दिन फुरसत में हो, मेरे साथ चमनगंज चल कर उसे देख लेना. सब कुछ ठीक लगे तो बात आगे बढ़ाएंगे.’’

शाकिर से हो गया निकाह

एक सप्ताह बाद मोहम्मद याकूब जावेद के साथ चमनगंज गए. मोहम्मद शाकिर साधारण शक्ल वाला हंसमुख युवक था. उस में आकर्षण जैसी कोई बात नहीं थी. परंतु वह कमाऊ था, उस का परिवार भी संपन्न था. इस के विपरीत शहला परवीन चंचल व खूबसूरत थी.कहीं बेटी गलत रास्ते पर न चल पड़े, सोचते हुए मोहम्मद याकूब ने शाकिर को अपनी बेटी शहला परवीन के लिए पसंद कर लिया. इस बारे में उन्होंने बेटी की राय लेनी भी जरूरी नहीं समझी. इस के बाद आगे की बातचीत शुरू हो गई. बातचीत के बाद दोनों पक्षों की सहमति से रिश्ता पक्का हो गया. तय तारीख को मोहम्मद शाकिर की बारात आई, निकाह हुआ और शहला परवीन शाकिर के साथ विदा कर दी गई. यह सन 1998 की बात है.

सुहागरात को शहला परवीन ने अपने शौहर शाकिर को देखा तो उस के अरमानों पर पानी फिर गया. पति मोहमद शाकिर किसी भी तरह से उसे पसंद नहीं था. उस रात वह दिखावे के तौर पर खुश थी, पर मन ही मन कुढ़ रही थी.

सप्ताह भर बाद शहला का भाई तारिक उसे लेने आ पहुंचा. तभी मौका देख कर शाकिर ने शहला से कहा, ‘‘दुलहन का मायके जाना रिवाज है. रिवाज के मुताबिक तुम्हें मायके भेजना ही पड़ेगा. खैर तुम जाओ. तुम्हारे बिना किसी तरह हफ्ता 10 दिन रह लूंगा.’’

शहला परवीन ने शौहर को घूर कर देखा और कर्कश स्वर में बोली, ‘‘अपनी यह मनहूस सूरत ले कर मेरे मायके मत आना. नहीं तो तुम्हें देख कर मेरी सहेलियां हंसेंगी. कहेंगी देखो शहला जैसी हूर का लंगूर शौहर आया है.’’

यह सुन कर शाकिर को लगा, जैसे किसी ने उस के कानों में गरम शीशा उड़ेल दिया हो. वह पत्नी को देखता रहा और वह भाई के साथ मायके चली गई. 8-10 दिन बाद जब शहला को विदा कर लाने की तैयारी शुरू हुई तो शाकिर ने घर वालों के साथ ससुराल जाने से इनकार कर दिया. तब घर वाले ही शहला को विदा करा लाए.

शाकिर को विश्वास था कि ससुराल आ कर शहला शिकायत करेगी कि सब आए पर तुम नहीं आए. लेकिन ऐसा कुछ कहने के बजाए शहला ने उलटा शौहर की छाती में शब्दों का भाला घोंप दिया, ‘‘अच्छा हुआ तुम नहीं आए, वरना तमाशा बन जाते और शर्मिंदा मुझे होना पड़ता.’’

छाती में शब्दों के शूल चुभने के बावजूद शाकिर चुप रहा. उस का विचार था कि वह अपने प्रेम से शहला का दिल जीत लेगा और खुदबखुद सब ठीक हो जाएगा. शहला को उस की जो शक्ल बुरी लगती है, वह अच्छी लगने लगेगी.

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शाकिर ने की दिल जीतने की कोशिश

शाकिर पत्नी को प्यार से जीतने की कोशिश करता रहा और शहला उसे दुत्कारती रही. इस तरह प्यार और नफरत के बीच उन की गृहस्थी की गाड़ी ऐसे ही चलती रही.समय बीतता गया और शहला 2 बेटों शाकिब व अर्सलान की मां बन गई. शाकिर को विश्वास था कि बच्चों के जन्म के बाद शहला के व्यवहार में कुछ बदलाव जरूर आएगा, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. उस का बर्ताव पहले जैसा ही रहा.

वह बच्चों की परवरिश पर भी ज्यादा ध्यान नहीं देती थी और अपनी ही दुनिया में खोई रहती थी. उसे घर में कैद रहना पसंद न था, इसलिए वह अकसर या तो मायके या फिर बाजार घूमने निकल जाती थी. शाकिर रोकटोक करता तो वह उस से उलझ जाती और अपने भाग्य को कोसती.शहला परवीन की अपने शौहर से नहीं पटती थी. इसलिए दोनों के बीच दूरियां बनी रहती थीं. शहला का मन पुरुष सुख प्राप्त करने के लिए भटकता रहता था, लेकिन उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. उन्हीं दिनों शहला के जीवन में मुबीन ने प्रवेश किया. मुबीन अपराधी प्रवृत्ति का था. अनवरगंज क्षेत्र में उस की तूती बोलती थी. व्यापारी वर्ग तो उस के साए से भी डरता था.

वह व्यापारियों से हफ्ता वसूली करता था. शाकिर का कपड़े का व्यवसाय था. मुबीन शाकिर से भी रुपए वसूलता था. शहला परवीन मुबीन को अच्छी तरह जानती थी लेकिन शौहर के रहते वह उस के सामने नहीं आती थी.

एक रोज शहला घर में अकेली थी, तभी मुबीन उस के घर में बेधड़क दाखिल हुआ और दबे पांव जा कर शहला के पीछे खड़ा हो गया. शहला किसी काम में ऐसी व्यस्त थी कि उसे भनक तक नहीं लगी कि कोई उस के पीछे आ खड़ा हुआ है. शहला तब चौंकी जब मुबीन ने कहा, ‘‘शहला भाभी नमस्ते.’’

शहला फौरन पलटी. मुबीन को देख कर उस का चेहरा फूल की तरह खिल गया. वह अपने चेहरे पर मुसकान बिखरते हुए बोली, ‘‘नमस्ते मुबीन भाई, तुम कब आए, मुझे पता ही नहीं चला. बताओ, कैसे आना हुआ? तुम्हारे भैया तो घर पर हैं नहीं.’’

‘‘भैया नहीं हैं तो क्या हुआ. क्या भाभी से मिलने नहीं आ सकता?’’ मुबीन भी हंसते हुए बोला.

‘‘क्यों नहीं?’’ कहते हुए शहला उस के पास बैठ कर बतियाने लगी. बातों ही बातों में मुबीन बोला, ‘‘भाभी, एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी.’’

‘‘एक नहीं चार कहो, मैं बिलकुल बुरा नहीं मानूंगी.’’ शहला ने कहा.

‘‘भाभी, कसम से तुम इतनी खूबसूरत हो कि कितना भी देखूं, जी नहीं भरता.’’ वह॒बोला.

‘‘धत…’’ कहते हुए शहला के गालों पर लाली उतर आई.

कुछ देर बतियाने के बाद मुबीन वहां से चला गया.

इस के बाद मुबीन का शहला के घर आनेजाने लगा. दोनों एकदूसरे की बातों में रमने लगे. शहला और मुबीन हमउम्र थे, जबकि शहला का पति शाकिर उम्र में उस से 6-7 साल बड़ा था. मुबीन शरीर से हृष्टपुष्ट तथा स्मार्ट था. क्षेत्र में उस की हनक भी थी, सो शहला उस से प्यार करने लगी. वह सोचने लगी कि काश उसे मुबीन जैसा छबीला पति मिलता.

मुबीन भी शहला को चाहने लगा था. आतेजाते मुबीन ने शहला से हंसीमजाक के माध्यम से अपना मन खोलना शुरू किया तो शहला भी खुलने लगी. आखिर एक दिन दोनों के बीच नाजायज संबंध बन गए. इस के बाद जब भी मौका मिलता, दोनों शारीरिक भूख मिटा लेते. शहला को अब पति की कमी नहीं खलती थी.

शहला और मुबीन के नाजायज रिश्ते ने रफ्तार पकड़ी तो पड़ोसियों के कान खड़े हो गए. एक आदमी ने शाकिर को टोका, ‘‘शाकिर भाई, तुम दिनरात कमाई में लगे रहते हो. घर की तरफ भी ध्यान दिया करो.’’

‘‘क्यों, मेरे घर को क्या हुआ? साफसाफ बताओ न.’’ शाकिर ने पूछा.

‘‘साफसाफ सुनना चाहते हो तो सुनो. तुम्हारे घर पर बदमाश मुबीन का आनाजाना है. तुम्हारी लुगाई से उस का चक्कर चल रहा है.’’ उस ने सब बता दिया.

उस की बात सुन कर शाकिर का माथा ठनका. जरूर कोई चक्कर है. अफवाहें यूं ही नहीं उड़तीं. उन में कुछ न कुछ सच्चाई जरूर होती है.

शाम को शाकिर जब घर लौटा तो उस ने पत्नी से पूछा, ‘‘शहला, मैं ने सुना है मुबीन तुम से मिलने घर आता है. वह भी मेरी गैरमौजूदगी में.’’

शहला न डरी न घबराई बल्कि बेधड़क बोली, ‘‘मुबीन आता है पर मुझ से नहीं तुम से मिलने आता है. तुम नहीं मिलते तो चला जाता है.’’

‘‘तुम उसे मना कर दो कि वह घर न आया करे. उस के आने से मोहल्ले में हमारी बदनामी होती है.’’

‘‘मुझ से क्यों कहते हो, तुम खुद ही उसे क्यों नहीं मना कर देते.’’

‘‘ठीक है, मना कर दूंगा.’’

इस के बाद शाकिर मुबीन से मिला और उस ने उस से कह दिया कि वह उस की गैरमौजूदगी में उस के घर न जाया करे.

शाकिर की बात सुनते ही मुबीन उखड़ गया. उस ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. शाकिर डर गया और अपनी जुबान बंद कर ली. मुबीन बिना रोकटोक उस के घर आता रहा और शहला के साथ मौजमस्ती करता रहा.

मुबीन ने जब शाकिर का सुखचैन छीन लिया तब उस ने अपने रिश्तेदारों को घर बुलाया और इस समस्या से निजात पाने के लिए विचारविमर्श किया. आखिर में तय हुआ कि इज्जत तभी बच सकती है, जब मुबीन को ठिकाने लगा दिया जाए.

इस के बाद शाकिर के भाई, शहला के भाई और मामा ने मिल कर दिनदहाड़े खलवा में मुबीन की हत्या कर दी. हत्या के आरोप में सभी को जेल जाना पड़ा. यह बात सन 2012 की है.

इस घटना के बाद करीब 4 साल तक घर में शांति रही. शहला का शौहर के प्रति व्यवहार भी सामान्य रहा. अब तक शहला के दोनों बेटे शाकिब और अर्सलान भी जवान हो गए थे. बापबेटे रोजाना सुबह 10 बजे घर से निकलते तो फिर देर शाम ही घर लौटते थे. कपड़ों की बिक्री का हिसाबकिताब लगा कर, खाना खा कर वे सो जाते थे.

शहला परवीन न शौहर के प्रति वफादार थी और न ही उसे बेटों से कोई लगाव था. वह तो खुद में ही मस्त रहती थी. बनसंवर कर रहना और घूमनाफिरना उस की दिनचर्या में शामिल था. उस का बनावशृंगार देख कर कोई कह नहीं सकता था कि वह 2 जवान बच्चों की मां है.

शहला को घर में सभी सुखसुविधाएं हासिल थीं पर शौहर की बांहों का सुख प्राप्त नहीं हो पाता था. शाकिर अपने धंधे में लगा रहता था. काम की वजह से बीवी से भी दूरियां बनी रहती थीं. दूसरी ओर शहला उसे पसंद भी नहीं करती थी. वह तो किसी नए प्रेमी की तलाश में थी. हालांकि इस खेल में उसे शौहर तथा जवान बच्चों का डर लग रहा था.

उसी दौरान उस की नजर रेहान पर पड़ी. रेहान गम्मू खां के अहाते में रहता था और प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. वह उस का दूर का रिश्तेदार भी था. उस का जबतब शहला के यहां आनाजाना लगा रहा था. वह हैंडसम था.

शहला परवीन का दिल रेहान पर आया तो वह उसे खुला आमंत्रण देने लगी, आंखों के तीरों से उसे घायल करने लगी. खुला आमंत्रण पा कर रेहान भी उस की ओर आकर्षित होने लगा. जब भी उसे मौका मिलता, शहला के साथ हंसीमजाक और छेड़छाड़ कर लेता. शहला उस की हंसीमजाक का जरा भी बुरा नहीं मानती थी. दोनों के पास एकदूसरे का मोबाइल नंबर था. जल्दी ही दोनों की मोबाइल पर प्यारभरी बातें होने लगीं.

आदमी हो या औरत, मोहब्बत होते ही उस का मन कल्पना की ऊंची उड़ान भरने लगता है. रेहान और शहला का भी यही हाल था. दोनों मोहब्बत की ऊंची उड़ान भरने लगे थे. आखिर एक रोज रेहान ने चाहत का इजहार किया तो शहला ने इकरार करने में जरा भी देर नहीं लगाई. इतना ही नहीं, शहला ने उसी समय अपनी बांहों का हार रेहान के गले में डाल दिया.

इस के बाद दोनों के बीच शारीरिक रिश्ता बनते देर नहीं लगी. एक बार अवैध रिश्ता बना तो उस का दायरा बढ़ता गया. शहला अब पति की कमी प्रेमी से पूरी करने लगी. उसे जब भी मौका दिखता, फोन कर रेहान को अपने यहां बुला लेती और दोनों रंगरलियां मनाते.

कभीकभी रेहान शहला को होटल में भी ले जाता था, जहां वे मौजमस्ती करते. शहला परवीन रेहान के साथ घूमनेफिरने भी जाने लगी. रेहान उसे कभी बाहर पार्क में ले जाता तो कभी तुलसी उपवन. वहां दोनों खूब बतियाते.

पर एक दिन शाकिर ने शहला और रेहान को अपने ही घर में आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया. वे दोनों एकदूसरे की बांहों में इस कदर मस्त थे कि उन्हें खबर ही नहीं हुई कि दरवाजे पर खड़ा शाकिर उन की कामलीला देख रहा है.

घर में अनाचार होते देख शाकिर का खून खौल उठा. उस ने दोनों को ललकारा तो रेहान सिर पर पैर रख कर भाग गया लेकिन शहला कहां जाती. शाकिर ने सारा गुस्सा उसी पर उतारा. उस ने पीटपीट कर पत्नी को अधमरा कर दिया.

शाकिर ने शहला को रंगेहाथों पकड़ने की जानकारी अपने दोनों बेटों को दी तो बेटों ने भी मां को खूब लताड़ा. शौहर और बेटों ने शहला को जलील किया. इस के बावजूद उस ने रेहान का साथ नहीं छोड़ा.

कुछ दिनों बाद ही वह घर से बाहर रेहान से मिलने लगी. चोरीछिपे मिलने की जानकारी शाकिर को हुई तो उस ने फिर से शहला की पिटाई की. इस के बाद तो यह सिलसिला ही चल पड़ा.

जब भी शाकिर को दोनों के मिलने की जानकारी होती, उस दिन शहला की शामत आ जाती. लेकिन पिटाई के बावजूद जब शहला ने रेहान का साथ नहीं छोड़ा तो आजिज आ कर शाकिर ने शहला को तलाक दे दिया. तलाक के मामले में बेटों ने बाप का ही साथ दिया. यह बात जनवरी, 2018 की है.

शौहर से तलाक मिलने के बाद शहला कुछ महीने मायके दलेलपुरवा में रही. उस के बाद उस ने अनवरगंज थाना क्षेत्र के डिप्टी पड़ाव में गुरुवतउल्ला पार्क के पास किराए पर मकान ले लिया और उसी में रहने लगी. इस मकान में उस का प्रेमी रेहान भी आने लगा. शहला को अब कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था, सो वह प्रेमी के साथ खुल कर मौज लेने लगी.

रेहान के पास पैसों की कमी नहीं थी, सो वह शहला पर दिल खोल कर खर्च करता था. पे्रमी के आनेजाने की जानकारी पड़ोसियों को न हो, इस के लिए वह मकान के आगे वाले गेट पर ताला लगाए रखती थी और पीछे के दरवाजे से आतीजाती थी. इसी पीछे वाले दरवाजे से उस का प्रेमी रेहान भी आता था.

शहला और रेहान के अवैध संबंधों की जानकारी शाकिर के घर वालों व नातेरिश्तेदारों को भी थी. इस से पूरी बिरादरी में उस की बदनामी हो रही थी. उस के दोनों बेटे शादी योग्य थे. पर मां शहला की चरित्रहीनता के कारण बेटों का रिश्ता नहीं हो पा रहा था. आखिर आजिज आ कर शाकिर ने शहला और रेहान को सबक सिखाने की योजना बनाई. अपनी इस योजना में शाकिर ने अपने बहनोई गुड्डू हलवाई तथा दोनों बेटों को भी शामिल कर लिया.

बन गई हत्या की योजना

10 जून, 2019 की रात 8 बजे शाकिर को एक रिश्तेदार के माध्यम से पता चला कि शहला के घर में रेहान मौजूद है और वह आज रात को वहीं रुकेगा.

यह खबर मिलने के बाद शाकिर ने अपने बहनोई गुड्डू हलवाई को बुला लिया. फिर बहनोई व बेटों के साथ शाकिर शहला के घर जा पहुंचा. घर के बाहर गेट पर ताला लगा था. वे लोग पीछे के दरवाजे से घर के अंदर दाखिल हुए.

घर के अंदर कमरे में रेहान और शहला आपत्तिजनक अवस्था में थे. शाकिर ने उन दोनों को ललकारा और सब मिल कर रेहान को पीटने लगे.प्रेमी को पिटता देख शहला बीच में आ गई. वह प्रेमी को बचाने के लिए पति और बेटों से भिड़ गई. दोनों बेटे मां को पीटने लगे. इसी बीच मौका पा कर रेहान वहां से भाग निकला.

रेहान को भगाने में शहला ने मदद की थी, सो वे सब मिल कर शहला को लातघूंसो से पीटने लगे. इसी समय शाकिर की निगाह वहीं पड़ी ईंट पर चली गई. उस ने लपक कर ईंट उठा ली और उस से शहला के सिर व मुंह पर ताबड़तोड़ प्रहार किए. जिस से शहला का सिर फट गया और खून बहने लगा.

कुछ देर तड़पने के बाद शहला ने दम तोड़ दिया. हत्या के बाद उन सब ने मिल कर अलमारी व बक्से के ताले खोले और उस में रखी नकदी तथा जेवर निकाल लिए तथा सामान बिखेर दिया. फिर पीछे के रास्ते से ही फरार हो गए.

इधर पड़ोसी पप्पू ने शहला के घर चीखनेचिल्लाने की आवाज सुनी तो उस ने थाना अनवरगंज पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही इंसपेक्टर रमाकांत पचौरी घटनास्थल पर आए और शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की. जांच में अवैध रिश्तों में हुई हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए.

13 जून, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त मोहम्मद शाकिर, उस के बेटों शाकिब और अर्सलान को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया.

कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी. एक अन्य अभियुक्त गुड्डू हलवाई फरार था. पुलिस उसे पकड़ने का प्रयास कर रही थी. द्य

 —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पतिहंत्री: क्या प्रेमी के लिए पति को मार सकी अनामिका?

काश,जो बात अनामिका अब समझ रही है वह पहले ही समझ गई होती. काश, उस ने अपने पड़ोसी के बहकावे में आ कर अपने ही पति किशन की हत्या नहीं की होती. आज वह जेल के सलाखों के पीछे नहीं होती. यह ठीक है कि उस का पति साधारण व्यक्ति था. पर था तो पति ही और उसे रखता भी प्यार से ही था. उस का छोटा सा घर, छोटा सा संसार था. हां, अनावश्यक दिखावा नहीं करता था किशन.

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अनावश्यक दिखावा करता था समीर, किशन का दोस्त, उसे भाभी कहने वाला व्यक्ति. वह उसे प्रभावित करने के लिए क्याक्या तिकड़म नहीं लगाता था. पर उस समय उसे यह तिकड़म न लग कर सचाई लगती थी. उस का पति किशन समीर का पड़ोसी होने के साथसाथ उस का मित्र भी था. अत: घर में आनाजाना लगा रहता था.

समीर बहुत ही सजीला और स्टाइलिश युवक था. अनामिका से वह दोस्त की पत्नी के नाते हंसीमजाक भी कर लिया करता था. धीरेधीरे दोनों में नजदीकियां बढ़ती गईं. अनामिका को किशन की तुलना में समीर ज्यादा भाने लगा. समय निकाल कर समीर अनामिका से फोन पर बातें भी करने लगा. शुरू में साधारण बातें. फिर चुटकुलों का आदानप्रदान. फिर कुछकुछ ऐसे चुटकुले जो सिर्फ काफी करीबी लोगों के बीच ही होती हैं. फिर अंतरंग बातें. किशन को संदेह न हो इसलिए वह सारे कौल डिटेल्स को डिलीट भी कर देती थी. समीर का नंबर भी उस ने समीरा के नाम से सेव किया था ताकि कोई देखे तो समझे कि किसी सखी का नंबर है. समीर ने अपने डीपी भी किसी फूल का लगा रखा था. कोई देख कर नहीं समझ सकता था कि वह किस का नंबर है.

धीरेधीरे स्थिति यह हो गई कि अनामिका को समीर के अलावा कुछ भी अच्छा नहीं लगने लगा. समीर भी उस से यही कहता था कि उसे अनामिका के अलावा कोई भी अच्छा नहीं लगता. कई बार जब वह घर में अकेली होती तो समीर को कौल कर बुला लेती और दोनों जम कर मस्ती करते थे. घर के अधिकांश सदस्य निचले माले पर रहते थे अत: सागर के छत के रास्ते से आने पर किसी को भनक भी नहीं लगती थी.

न जाने कैसे किशन को भनक लग गई.

उस ने अनामिका से कहा, ‘‘तुम जो खेल खेल रही हो उस से तुम्हें भी नुकसान है, मुझे भी और समीर को भी. यह खेल अंत काल तक तो चल नहीं सकता. तुम चुपचाप अपना लक्षण सुधार लो.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हो? समीर तुम्हारा दोस्त है. इस नाते मैं उस से बातें कर लेती हूं

तो इस में तुम्हें खेल नजर आ रहा है? अगर तुम नहीं चाहते तो मैं उस से बातें नहीं करूंगी,’’ अनामिका ने प्रतिरोध किया पर उस की आवाज में खोखलापन था.

बात आईगई तो हो गई, लेकिन इतना तय था कि अब अनामिका और समीर का मिलनाजुलना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर हो गया था. पर अनामिका समीर के प्यार में अंधी हो चुकी थी. समीर को शायद अनामिका से प्यार तो न था पर वह उस की वासनापूर्ति का साधन थी. अत: वह अपने इस साधन को फिलहाल छोड़ना नहीं चाहता था.

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एक दिन समीर ने मौका पा कर अनामिका को फोन किया.

‘‘हैलो’’

‘‘कहां हो डार्लिंग? और कब मिल रही हो?’’

‘‘अब मिलना कैसे संभव होगा? किशन को पता चल गया है.’’

‘‘किशन को अगर रास्ते से हटा दें तो?’’

‘‘इतना आसान काम है क्या? कोई फिल्मी कहानी नहीं है यह. वास्तविक जिंदगी है.’’

‘‘आसान है अगर तुम साथ दो. फिल्मी कहानी भी हकीकत के आधार पर ही बनती है. उसे रास्ते से हटा देंगे. यदि संभव हुआ तो लाश को ठिकाने लगा देंगे अन्यथा पुलिस को तुम खबर करोगी कि उस की हत्या किसी ने कर दी है. पुलिस अबला विधवा पर शक भी नहीं करेगी. फिर हम भाग चलेंगे कहीं दूर और नए सिरे से जिंदगी बिताएंगे.’’

अनामिका समीर के प्यार में इतनी अंधी हो चुकी थी कि उस के सोचनेसमझने की क्षमता जा चुकी थी. समीर ने जो प्लान बताया उसे सुन पहले तो वह सकपका गई पर बाद में वह इस पर अमल करने के लिए राजी हो गई.

प्लान के अनुसार उस रात अनामिका किशन को खाना खिलाने के बाद कुछ देर

उस के साथ बातें करती रही. फिर दोनों सोने चले गए. अनामिका किशन से काफी प्यार से बातें कर रही थी. दोनों बातें करतेकरते आलिंगनबद्ध हो गए. आज अनामिका काफी बढ़चढ़ कर सहयोग कर रही थी. किशन को भी यह बहुत ही अच्छा लग रहा था.

उसे महसूस हुआ कि अनामिका सुबह की भूली हुई शाम को घर आ गई है. वह भी काफी उत्साहित, उत्तेजित महसूस कर रहा था. देखतेदेखते उस के हाथ अनामिका के शरीर पर फिसलने लगे. वह उस के अंगप्रत्यंग को सहला रहा था, दबा रहा था. अनामिका भी कभी उस के बालों पर हाथ फेरती कभी उस पर चुंबन की बौछार कर देती. प्यार अपने उफान पर था. दोनों एकदूसरे में समा जाएंगे. थोड़ी देर तक दोनों एकदूसरे में समाते रहे फिर किशन निढाल हो कर हांफते हुए करवट बदल कर सो गया.

अनामिका जब निश्चिंत हो गई कि किशन सो गया है तो वह रूम से बाहर आ कर अपने मोबाइल से समीर को मैसेज किया. समीर इसी ताक में था. समीर के घर की छत किशन के घर की छत से मिला हुआ था. अत: उसे आने में कोई परेशानी नहीं होनी थी. जैसे ही उसे मैसेज मिला वह छत के रास्ते ही किशन के घर में चला आया. अनामिका उस की प्रतीक्षा कर ही रही थी. वह उसे उस रूम में ले कर गई जिस में किशन बेसुध सोया हुआ था.

सागर अपने साथ रस्सी ले कर आया था. उस ने धीरे से रस्सी को सागर के गरदन के नीचे से डाल कर फंदा बनाया और फिर जोर से दबा दिया. नींद में होने के कारण जब तक किशन समझ पाता स्थिति काबू से बाहर हो चुकी थी. तड़पते हुए किशन अपने हाथपैर फेंक रहा था. अनामिका ने उस के पैर को अपने हाथों से दबा दिया. उधर सागर ने रस्सी पर पूरी शक्ति लगा दी. मुश्किल से 5 मिनट के अंदर किशन का शरीर ढीला पड़ गया.

अब आगे क्या किया जाए यह एक मुश्किल थी. लाश को बाहर ले जाने से लोगों के जान जाने का खतरा था. सागर छत के रास्ते वापस अपने घर चला गया. अनामिका ने रोतेकलपते हुए निचले माले पर सोए घर के सदस्यों को जा कर बताया कि किसी ने किशन की हत्या कर दी है. पूरे घर में कोहराम मच गया. पुलिस को सूचना दी गई. योजना यही थी कि कुछ दिनों के बाद अनामिका सागर के साथ कहीं दूर जा कर रहने लगेगी.

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पर पुलिस को एक बात नहीं पच रही थी कि पत्नी के बगल में सोए पति की कोई हत्या कर जाएगा और पत्नी को पता नहीं चलेगा. पुलिस अनामिका से तथा आसपास के अन्य लोगों से तहकीकात करती रही. किसी ने पुलिस को सागर और अनामिकाके प्रेम प्रसंग की बात बता दी. पुलिस ने सागर से भी पूछताछ की. उस का जवाब कुछ बेमेल सा लगा तो उस के मोबाइल कौल की डिटेल ली गई. स्पष्ट हो गया कि दोनों के बीच कई हफ्तों से बातें होती रही हैं. कड़ी पूछताछ हुई तो अनामिका टूट गई. उस ने सारी बातें पुलिस को बता दी. सागर और अनामिका दोनों जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए. अब अनामिका को एहसास हुआ कि उस ने समीर के बहकावे में आ कर गलत कदम उठा लिया था.

अब उन के पास पछताने के सिवा कोई चारा नहीं था.

एक तरफा प्यार में जिंदा जल गई अंकिता: भाग 3

पुलिस ने अंकिता और उस के भाई के बयान दर्ज किए और उन का वीडियो भी बनाया गया. उस आधार पर पुलिस ने काररवाई करते हुए इंदिरा नगर जरुआडीह निवासी मोहम्मद शाहरुख हुसैन (22) को गिरफ्तार कर पूछताछ की और न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

उधर रिम्स में डाक्टरों की टीम अंकिता के इलाज में जुटी हुई थी, लेकिन इलाज के दौरान 28 अगस्त को उस की मौत हो गई.

बाद में इस कांड के एक अन्य अभियुक्त छोटू खान उर्फ नईम खान को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. पेशे से बढ़ई नईम खान ने स्वीकार किया कि उस ने ही अपने दोस्त शाहरुख को पैट्रोल ला कर दिया था ताकि वह अंकिता को जला सके. नईम से भी पूछताछ करने के बाद पुलिस ने कोर्ट में पेश कर उसे भी न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि अंकिता को अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थ से जलाया गया था. इस वजह से उस के शरीर के ऊपर की हर परत में मवाद (पस) भर गया था. यही वजह रही कि लगभग 40 फीसदी जलने के बाद भी उस के अंगों ने धीरेधीरे काम करना बंद कर दिया था.

अंकिता के आग से झुलसने से ले कर उस की रांची के अस्पताल में मौते होने और शाहरुख की गिरफ्तारी को लेकर काफी हंगामा खड़ा हो गया. झारखंड सहित पूरे देश में दुमका की बेटी अंकिता की मौत पर बवाल मच गया.

देश भर से लोग अंकिता की मौत से गुस्से में आ गए. सभी एक स्वर में हत्यारों के लिए फांसी की सजा की मांग करने लगे. यहां तक कि अंकिता ने भी अपने बयान में कहा कि मैं जैसे मर रही हूं, वैसी उसे भी मौत की सजा मिले.

मौत से ठीक पहले 12वीं में पढ़ने वाली अंकिता का वीडियो सामने आने पर हंगामा और भी बढ़ा हो गया. उस के शव को दादा अनिल सिंह ने मुखाग्नि दी. अंकिता की अंतिम यात्रा में दुमका से बीजेपी सांसद सुनील सोरेन, उप विकास आयुक्त कर्ण सत्यार्थी, डीएसपी विजय कुमार सहित कई प्रशासनिक अधिकारी और हिंदू समर्थित विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ता समेत आम लोग शामिल हुए.

उस के पिता संजीव सिंह ने आंसू पोंछते हुए पुलिस को कहा था, ‘‘3 भाईबहनों में मंझली अंकिता पढ़ने में काफी अच्छी थी. वह दुमका के राजकीय बालिका उच्च विद्यालय में 12वीं में पढ़ती थी. अंकिता पिछले महीनों से एक ऐसा दर्द झेल रही थी, जिसे वह सब के साथ शेयर नहीं कर सकती थी.’’

उन्होंने यह भी बताया कि जब हम ने इस मामले में पुलिस का सहारा लेना चाहा, तब शाहरुख के बड़े भाई ने आ कर हम से माफी मांग ली थी. यह विश्वास भी दिलाया कि अब उस का भाई कभी परेशान नहीं करेगा. थोड़े दिनों तक सब ठीकठाक चलता रहा, लेकिन फिर शाहरुख अपनी आदत से बाज नहीं आया.

मौत से पहले अंकिता ने एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रैट चंद्रजीत सिंह और एसडीपीओ नूर मुस्तफा के सामने दिए अपने बयान में अपनी आपबीती सुनाई थी. इस पूरे मामले में जहां पुलिस की भूमिका काफी संदिग्ध रही, वहीं पुलिस कस्टडी में शाहरुख ऐसे हंसता हुआ दिखा, मानो उस ने जो किया वह सही था. उसे अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है.

पुलिस जब आरोपी को गिरफ्तार कर ले जा रही थी, तब उस की बौडी लैंग्वेज से भी ऐसा नहीं लग रहा था कि उसे किसी तरह का अफसोस है.

अंकिता के पिता और दादी की भी मांग है कि उस की बेटी के हत्यारे को फांसी की सजा मिलनी ही चाहिए. उन्होंने कहा कि जिस तरह उन की बेटी तड़पतड़प कर मरी है, उस के एवज में हत्यारे को फांसी होनी चाहिए.

जैसे ही अंकिता की मौत की खबर आई, झारखंड की उपराजधानी दुमका में तनाव का माहौल बन गया. भाजपा के नगर अध्यक्ष और वहां की महिला मोर्चा के अलावा बजरंग दल के कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए. बाजार को बंद करवा दिया.

प्रदर्शनकारियों ने जिला प्रशासन विरोधी नारे लगाए. उन की मांग थी कि आरोपी शाहरुख को फास्टट्रैक कोर्ट के माध्यम से फांसी की सजा दी जाए. साथ ही साथ अंकिता के परिजनों को सरकार की तरफ से आर्थिक मदद दी जाए.

इस मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर बताया कि मामले को फास्टट्रैक कोर्ट में चलाया जाएगा. इस मामले की जांच की प्रोग्रेस रिपोर्ट एडीजी स्तर के अफसर से तत्काल मांगी गई. इस के लिए डीजीपी को भी निर्देश दे दिया गया. साथ ही अंकिता के परिवार को 10 लाख रुपए की मदद दी गई. राज्यपाल ने भी तत्काल 2 लाख रुपए देने की भी घोषणा की.

राज्यपाल रमेश बैस ने भी अंकिता के साथ हुई घटना और उस की मौत पर दुख जताया और कहा कि एक लड़की जिस ने अभी पूरी दुनिया भी नहीं देखी थी, उस का इस प्रकार से अंत बहुत ही पीड़ादायक है. इस प्रकार की जघन्य और पीड़ादायी घटना राज्य के लिए शर्मनाक है. राज्यपाल ने भी इस घटना की सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में करने की बात का समर्थन किया.

इस पर दुमका के आरक्षी अधीक्षक अंबर लाकड़ा ने बताया कि मामले की फास्टट्रैक कोर्ट में तेजी से काररवाई की जाएगी. ताकि आरोपी को जल्द से जल्द सजा मिल सके.

इसी के साथ झारखंड के भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने दुमका में पदस्थापित उपआरक्षी अधीक्षक नूर मुस्तफा को आड़े हाथों लेते हुए उन पर आरोप लगाया कि उन्होंने अंकिता हत्याकांड में अभियुक्त शाहरुख को बचाने के लिए भरपूर सहयोग किया.

इस का उन्होंने एक पूर्व घटित मामले को उजागर करते हुए नूर मुस्तफा पर आदिवासी विरोधी एवं घोर सांप्रदायिक होने का भी आरोप लगाया.

बहरहाल, डीआईजी को अपनी निगरानी में कांड की तहकीकात वैज्ञानिक तरीके से जल्द पूरा कराते हुए न्यायालय में चार्जशीट दाखिल कराने को कहा गया. इस के बाद फास्टट्रैक कोर्ट से स्पीडी ट्रायल कराने के लिए पुलिस न्यायालय से अनुरोध करेगी, ताकि दोषियों को सजा हो सके.

पुलिस मुख्यालय के अनुसार यह अतिसंवेदनशील एवं अत्यंत गंभीर अपराध है. इस घटना में दोषियों को प्राथमिकता के आधार पर स्पीडी ट्रायल करा कर कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए झारखंड पुलिस प्रयास करेगी.

पुलिस मुख्यालय के आदेश पर एडीजी मुख्यालय मुरारी लाल मीणा व आईजी (सीआईडी) असीम विक्रांत मिंज दुमका गए.

इस कांड की वैज्ञानिक तरीके से जांच में आवश्यक सहयोग के लिए अपराध अनुसंधान विभाग (सीआईडी) के सहयोग से राज्य विधि विज्ञान प्रयोगशाला की टीम को भी घटनास्थल पर भेजा गया है.

जांच की यह पहल झारखंड हाईकोर्ट द्वारा डीजीपी को तलब करने के बाद हुई. कोर्ट ने अंकिता के परिवार को सुरक्षा मुहैया कराने के भी आदेश दिए.

राष्ट्रीय महिला आयोग की अवर सचिव शिवानी डे और लीगल काउंसलर शालिनी सिंह ने दुमका पहुंच कर मृतका अंकिता के घर वालों से घटना की विस्तृत जानकारी ली. जिस कमरे में अंकिता को जलाया गया, उन्होंने उस कमरे की एकएक चीज को देखा. इस के बाद उन्होंने रांची पहुंच कर डीजीपी नीरज सिन्हा से मुलाकात की.

उधर क्रूरतम तरीके से अंकिता की हत्या किए जाने पर वकीलों में भी नाराजगी व्याप्त है.

दुमका डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश कुमार यादव ने बताया कि एसोसिएशन की बैठक में फैसला लिया गया है कि कोई भी वकील दोनों आरोपियों शाहरुख और नईम खान का केस नहीं लड़ेंगे और न ही उन की कोई पैरवी करेंगे. क्योंकि उन का यह जघन्य अपराध है. समाज में इस की पुनरावृत्ति न हो, इसलिए उन्होंने यह फैसला लिया है.

सत्यकथा: ऐसे पकड़ा गया गे सेक्स रैकेट

—संवाददाता

अकसर ब्लैकमेलिंग के पोर्न वीडियो में लड़कालड़की होते हैं, किंतु मुंबई में पहली बार गे सैक्स का रैकेट चलाने वाले एक गिरोह द्वारा समलैंगिक पोर्न वीडियो बना कर नवयुवकों से ठगी का परदाफाश हुआ..

मुंबई के मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाला 23 वर्षीय वशिष्ठ प्रताप (बदला हुआ नाम) अपने एकाकीपन और अकाउंट के उबाऊ काम के बोझ को कम करने के लिए डेटिंग ऐप का सहारा लिया करता था.

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कुछ समय के लिए औनलाइन डेटिंग की दुनिया में तफरीह कर वह तरोताजा महसूस करता था. दरअसल, उसे एक गर्लफ्रैंड की तलाश थी, क्योंकि उस की कोई गर्लफ्रैंड नहीं थी. इस के चलते उस ने कई डेटिंग ऐप पर अपने अकाउंट खोल रखे थे. उन पर उस की प्रोफाइल के मुताबिक किसी वैसी लड़की से दोस्ती नहीं हो पाई थी, जिस की उस ने कल्पना कर रखी थी.

एक दिन उसे एक नए डेटिंग ऐप ‘ग्राइंडर’ पर नजर पड़ी. उस ने तुरंत उस पर रजिस्टर कर अपना सेपरेट अकाउंट बना लिया. उस ऐप की खासियत यह थी कि वहां देसी लुक वाली लड़कियों की कई प्रोफाइल थी, जैसा वह चाहता था.

उस ने फटाफट कई लड़कियों को अपने अकाउंट से जुड़ने के लिए रिक्वेस्ट भेज दी. कुछ घंटे में ही कुछ का एक्सेप्टेंस भी आ गया. उन में उस ने एक को सेलेक्ट कर ओके कर दिया. फिर उस की चैटिंग के साथ डेटिंग शुरू हो गई.

2-4 दिनों की लुभावनी और मजेदार चैटिंग के बाद एक वीडियो आ गया. वीडियो खुदबखुद चल भी पड़ा. उसे देख कर उस के होश उड़ गए. दरअसल, वह एक गे सैक्स का वीडियो था. उस के 2 मिनट में खत्म होते ही एक मैसेज आया ‘न्यू ईयर पार्टी में आप का स्वागत है.’

कुछ सेकेंड में उस के पास एक काल आई, जिस में उसे बताया कि वह अगर थोड़े समय में पैसे कमाना चाहता है तो पार्टी में शामिल हो सकता है. पार्टी वर्चुअल भी होगी, लेकिन जूम ऐप पर सेलिब्रिटीज भी शामिल होंगे.

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उन के द्वारा ईनामी सवाल पूछे जाएंगे, जो कोरोना और लाइफस्टाइल से संबंधित होंगे. सही जवाब देने पर ईनाम की राशि पार्टी खत्म होते ही मिल जाएगी.

वशिष्ठ बगैर कुछ सोचविचार किए पार्टी में शामिल होने के लिए बताए गए उस पते पर चला गया, जहां एक फिक्स टाइम पर शाम के 8 बजे पार्टी का इंतजाम किया गया था.

बेसमेंट में बने छोटे से हाल में गिनती के 4-5 लोग थे. उन की वेशभूषा अजीबोगरीब थी. शोख अदाओं वाले फैशन में सजेसंवरे सभी उसी की उम्र के थे. उन के पहनावे न तो लड़कों जैसे थे और न ही लड़कियों जैसे. खैर, वशिष्ठ ने उन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

कुछ मिनटों में ही वह समझ गया कि वह किसी गलत जगह आ गया है. दीवार पर टंगे टीवी के अलवा वहां स्टैंड पर कैमरे लगे थे. धीमी आवाज में म्यूजिक भी बज रहा था. 2 लड़के कैमरे के सामने टेबल पर चढ़ गए. म्यूजिक तेज हो गया.

टेबल से कुछ दूरी पर रखी कुरसियों पर बाकी लड़के बैठ गए. उन्होंने वशिष्ठ को बीच में बैठा लिया. उस के कंधे पर हाथ रख कर पकड़ बना ली. तब तक टेबल पर दोनों लड़के म्यूजिक की धुन पर डांस करने लगे थे.

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उन का डांस बेहद ही फूहड़ और अश्लील किस्म का था. वे कूल्हे मटकाने लगे थे और एकदूसरे के गले लगते हुए आपस में किस करना शुरू कर दिया था.

यह सब देख वशिष्ठ ने कुरसी से उठना चाहा, लेकिन दोनों लड़कों ने उस के कंधे को दबा कर बैठा दिया. इसी बीच डांस करते लड़कों ने अपनी शर्ट उतार कर वशिष्ठ की ओर फेंक दी, जिस से उस का चेहरा ढंक गया.

थोड़ी देर में वशिष्ठ दोनों लड़कों के बीच टेबल पर था और उस के कपड़े जबरन उतारे जाने लगे थे. उस ने चीखना चाहा. लड़कों को रोकना चाहा. लेकिन तेज म्यूजिक में उस की आवाज दब गई और अर्धनग्न लड़कों ने उस के अंगों को बेतरतीब ढंग से छूनासहलाना शुरू कर दिया था.

उस के बाद जो कुछ हुआ वह वशिष्ठ के शरीर और दिलोदिमाग दोनों पर चोट करने जैसा था. पीड़ा भी हुई. वह गे सैक्स के गिरोह का एक हिस्सा बन चुका था.

उस समय लड़कों ने उस का न केवल शारीरिक शोषण किया, बल्कि मानसिक तौर पर गे सैक्स के लिए प्रेरित भी किया. उस पर अप्राकृतिक सैक्स के लिए दबाव बनाया. इस के बदले में उस से पैसे मांगे. नहीं देने पर धमकियां दीं.

वास्तव में वशिष्ठ डेटिंग ऐप के जरिए गे सैक्स के गिरोह में फंस चुका था. उस से हर घंटे के हिसाब से एक हजार रुपए की मांग की गई थी. गिरोह की योजना के अनुसार उसे गे सैक्स के शौकीनों के पास भेजे जाने की थी. बदले में उसे भी पैसे मिलने के सब्जबाग दिखाए गए.

हालांकि उस रोज पैसा नहीं देने पर चारों युवकों ने उसे बुरी तरह पीटा. उस का फोन, पर्स और सोने की अंगूठी व सोने की चेन छीन ली. साथ ही आरोपी उसे धमका कर उस का एटीएम कार्ड ले कर उस का पिन भी ले लिया.

लड़कों ने जातेजाते उसे के साथ किए गए सैक्स की क्लिपिंग भी दिखा दी. धमकी दी कि उस के बुलावे पर नहीं आने की स्थिति में उस की क्लिपिंग को इंटरनेट पर सार्वजनिक कर दिया जाएगा.

बोरीवली का रहने वाला लुटापिटा वशिष्ठ किसी तरह से उन लड़कों के चंगुल से निकल पाया. घर पहुंच कर घर वालों को आपबीती बताई. घर वालों की पहल से वशिष्ठ के साथ हुए दुराचार की शिकायत थाना मालवानी पहुंची.

पुलिस ने इस मामले में तत्परता दिखाई. डीसीपी विशाल ठाकुर के निर्देश पर सीनियर इंसपेक्टर शेखर भालेराव और हसन मुलानी ने अपनी जांच टीम के साथ 16 जनवरी, 2022 को तड़के मास्टरमाइंड समेत 3 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. इन्हें गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने इलेक्ट्रौनिक सर्विलांस का सहारा लिया.

आरोपियों को उसी दिन शाम को बोरीवली कोर्ट में पेश किया गया. यहां से कोर्ट ने उन्हें 3 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया.

उन से पूछताछ में पता चला कि यह गिरोह पिछले कई महीने से औनलाइन डेटिंग गे ऐप ‘ग्राइंडर’ के जरिए यह सैक्स रैकेट चला रहा था और ब्लैकमेलिंग भी करता था. पुलिस जांच में सामने आया है कि इन के क्लाइंट्स में कई हाईप्रोफाइल लोग भी शामिल हैं.

गिरफ्तार आरोपियों की पहचान इरफान फुरकान खान (26), अहमद फारुकी शेख (24) और इमरान शफीक शेख (24) के रूप में हुई. मामले के 2 अन्य आरोपी कथा लिखे जाने तक फरार थे. पुलिस उन्हें तलाश रही थी.

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आरोपी ऐप के माध्यम से ‘गे’ लोगों से संपर्क करते थे या फिर भोलेभाले लोगों को पैसे का लालच दे कर फंसाते थे. उन से पैसे ले कर सैक्स मुहैया कराने का वादा करते थे.

मुंबई में इस तरह का पहला मामला सामने आया था, जिस में गे सैक्स रैकेट के धंधे के साथसाथ लूटमार और वीडियो बना कर लोगों को ब्लैकमेल कर पैसे भी ऐंठने का काम किया जाता था.

पुलिस ने बताया कि ऐप डाउनलोड करने के बाद उस में पूरी डिटेल्स भरी जाती थी. उस के बाद एरिया के हिसाब से सभी समलैंगिक लड़के एकदूसरे के साथ जुड़ जाते थे. पहले बातचीत करते थे फिर मिल कर अनैतिक संबंध बनाते थे.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें फिर से कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

न्यायदंश – क्या दिनदहाड़े हुई सुनंदा की हत्या का कातिल पकड़ा गया?

लेखक-श्रीप्रकाश श्रीवास्तव

जेठ का महीना था. गरम लू के थपेड़ों ने आम लोगों का जीना मुहाल कर दिया था. ऐन दोपहर के वक्त लोग तभी घर से निकलते जब उन्हें जरूरत होती वरना अपने घर में बंद रहते. यही वक्त था जब 4 लोग सुनंदा के घर में घुसे. सुनंदा पीछे के कमरे में लेटी थीं. जब तक किसी की आहट पर उठतीं तब तक वे चारों कमरे में घुस आए. एक ने उन के पैर दबाए तो दूसरे ने हाथ. बाकी दोनों ने मुंह तकिए से दबा कर बेरहमी के साथ सुनंदा का गला रेत दिया. वे छटपटा भी न सकीं.

जब चारों आश्वस्त हो गए कि सुनंदा जिंदा नहीं रहीं तो इत्मीनान से अपने हाथ धोए. कपड़ों पर लगे खून के छींटे साफ किए. फ्रिज खोल कर मिठाइयां खाईं. पानी पीया और निकल गए. महल्ले में दोपहर का सन्नाटा पसरा हुआ था. इसलिए किसी को कुछ पता भी न चला.

हमेशा की तरह शाम को पारस यादव दूध ले कर आया. फाटक खोल कर अंदर घुसा, आवाज दी. कोई जवाब न पा कर बैठक में घुस गया. सुनंदा अमूमन बैठक में रहती थीं. जब वे वहां न मिलीं तो ‘दीदी, दीदी’ कहते इधरउधर देखते हुए बैडरूम में घुस गया. सामने का दृश्य देख कर वह बुरी तरह से घबरा गया. भाग कर बाहर आया. एक बार सोचा कि चिल्ला कर सब को बता दे, परंतु ऐसा न कर सका. शहर में रहते उसे इतनी समझ आ गई थी कि बिना वजह लफड़े में नहीं फंसना चाहिए. वह उलटेपांव घर लौट आया.

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इस हादसे की खबर उस ने अपनी बीवी तक को न दी. रहरह कर सुनंदा का विकृत चेहरा उस के सामने तैर जाता तो वह डर से सिहर जाता. रात भर वह सो न सका. उस के दिमाग में बारबार यही सवाल उठता कि आखिर 62 वर्ष की सुनंदा को इतनी बेरहमी से किस ने मारा? किस से उन की दुश्मनी हो सकती है? पिछले 40 साल से वह उन के घर में दूध दे रहा है. हिसाबकिताब की पक्की सुनंदा बेहद पाकसाफ महिला थीं. हां, थोड़ी तेज अवश्य थीं.

पिं्रसिपल होने के नाते सुनंदा के स्वर में सख्ती व कड़की दोनों थी. वे बिना लागलपेट के अपनी बात कहतीं. उन्हें इस बात की परवा नहीं रहती कि उन के कहे का दूसरों पर क्या असर पड़ेगा. उन के तल्ख स्वभाव ने उन्हें अपने सहकर्मियों के बीच भी अप्रिय बना दिया था. अध्यापिका थीं तब भी वे अपना लंच अकेले करतीं.

वे अविवाहित थीं. बालबच्चे वाले प्रेमशंकर के साथ रहने का फैसला उन का अपना था. अपने इस निर्णय पर वे अंत तक कायम रहीं.

प्रेमशंकर ने भी आखिरी दम तक उन का साथ निभाया. उन के बीवीबच्चे जानते थे कि सुनंदा के साथ उन का क्या संबंध है, परंतु प्रतिरोध नहीं किया. इस की सब से बड़ी वजह थी, प्रेमशंकर सुनंदा पर निर्भर थे. सुनंदा अपनी तनख्वाह का ज्यादातर हिस्सा प्रेमशंकर के बच्चों की पढ़ाईलिखाई पर खर्च कर देतीं. विरोध की जगह उलटे कभीकभार आ कर अपने आत्मीय होने का परिचय प्रेमशंकर की पत्नीबच्चे दे जाते. प्रेमशंकर अकसर रात सुनंदा के पास गुजारते. जहां भी जाना होता, सुनंदा के साथ जाते. रुसवाइयों से बेखबर प्रेमशंकर सुनंदा के पास समय गुजारते.

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सारा महल्ला जानता था कि प्रेमशंकर सुनंदा के लिए क्या हैं? शायद एक वजह यह भी थी सुनंदा के पासपड़ोसियों से कटने की.

सुनंदा जिस मकान में किराएदार थीं वह मकान उन के पिता के जमाने से चला आ रहा था. लगभग 75 सालों से वे मकान पर काबिज थीं. मांबाप के मरने व भाइयों के शादी कर दूसरे शहरों में बस जाने के बावजूद उन्होंने यह मकान खाली नहीं किया. चाहतीं तो अपना घर बनवा कर जा सकती थीं. लेकिन इस घर में उन के मांबाप रहे, यहीं वे पलीबढ़ीं, इसलिए इस घर से उन का भावनात्मक रिश्ता था. मकानमालिक विपिन नहीं चाहता था कि अब वे रहें. इस को ले कर अकसर दोनों में तकरार होती. आज की तारीख में वह मकान शहर के प्राइम लोकेशन पर था. खरीदार उस की मनमानी कीमत दे रहे थे, जो सुनंदा के लिए संभव न था. सुनंदा न वह मकान खरीद सकती थीं न छोड़ सकती थीं. किराया भी नाममात्र का था. सुनंदा ने मकान पर कब्जा कर लिया था और नियमानुसार मकान का किराया कचहरी में जमा करतीं. विपिन तभी से खार खाए बैठा था. इस के बावजूद उस ने हिम्मत न हारी. एक रोज आया, विनीत स्वर में बोला, ‘‘मैडम, आप अध्यापिका रह चुकी हैं. लोगों को नेकी के रास्ते पर चलने की शिक्षा देती हैं. क्या आप की शिक्षा में यही लिखा है कि किसी का हक मार लो?’’

‘‘हक तो आप ने मेरा मारा है?’’ सुनंदा बोलीं.

‘‘वह कैसे?’’

‘‘पिछले 75 सालों से रह रही हूं. इतना किराया दे चुकी हूं कि इस मकान पर मालिकाना हक हमारा बनता है.’’

‘‘अरे वाह, ऐसे कैसे हक बनता है?’’ विपिन बोला, ‘‘आप किराएदार थीं न कि मकानमालिक बनने आई थीं. इतने साल मेरे घर का उपभोग किया. उपभोग की कीमत आप ने दी, न कि इस जमीन व ईंट सीमेंट के बने मकान की?’’

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‘‘आप जो समझिए, मैं जीतेजी इस मकान को खाली नहीं करूंगी.’’

‘‘किसी की जमीन हड़पना आप को शोभा देता है?’’

‘‘मैं ने हड़पा कहां है, मरने के बाद आप की ही है.’’

‘‘तब तक मैं हाथ पर हाथ धरे बैठा रहूं?’’

‘‘यह आप जानें,’’ सुनंदा किचन में चली गईं. विपिन को नागवार लगा.

एक दिन सुनंदा ने पुलिस को बुला लिया. उन का आरोप था कि मकानमालिक ने बिजली काट दी है. सुनंदा के साथ प्रेमशंकर भी बैठे थे.

‘‘कनैक्शन क्यों काटा?’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

‘‘एक साल से ये बिजली का बिल नहीं दे रहीं,’’ मकानमालिक बोला.

‘‘क्या यह सही है, मैडम?’’ इंस्पैक्टर सुनंदा की तरफ मुखातिब हुआ.

‘‘यह सरासर झूठ बोल रहा है,’’ सुनंदा उत्तेजित हो गईं.

‘‘अभी पिछले महीने मैं ने इसे 200 रुपए बिजली के बिल के लिए दिए थे,’’ प्रेमशंकर बोले.

‘‘आप कौन हैं?’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

प्रेमशंकर बगलें झांकने लगे. तब मकानमालिक बोला, ‘‘ये पिछले 30 साल से यहां आ रहे हैं.’’

‘‘क्या रिश्ता है आप का इन से?’’ इंस्पैक्टर ने प्रेमशंकर से पूछा.

‘‘आप से मतलब?’’ सुनंदा झुंझलाईं.

‘‘मतलब तो नहीं है, फिर भी पुलिस होने के नाते यह जानना मेरा पेशा है,’’ इंस्पैक्टर बोला.

‘‘बेमतलब की बात छोडि़ए. इन से कहिए कि कनैक्शन जोड़ दें,’’ प्रेमशंकर सिगरेट की राख झटकते हुए बोले.

‘‘मैं नहीं जोड़ूंगा. पिछले साल भर का बकाया चुकता करें.’’

‘‘झूठा, बेईमान,’’ सुनंदा चिल्लाईं.

‘‘चिल्लाइए मत,’’ इंस्पैक्टर ने डंडा हिलाया.

‘‘डंडा नीचे रख कर बात कीजिए. मैं कोई चोरउचक्की नहीं,’’ सुनंदा ने आंखें तरेरीं, ‘‘एक सम्मानित स्कूल की प्रिसिंपल हूं.’’

‘‘बेहतर होगा कि आप अपनी जबान को लगाम दें.’’ इंस्पैक्टर बोला.

‘‘मैं लगाम दूं और यह झूठ पर झूठ बोलता जाए.’’

‘‘क्या सुबूत है कि आप सच बोल रही हैं?’’ इंस्पैक्टर का स्वर तल्ख था.

‘‘सच बोलने के लिए किसी सुबूत की जरूरत नहीं होती. किसी से पूछ लीजिए, मेरे ऊपर किसी की फूटी कौड़ी भी बकाया है?’’

‘‘मकानमालिक का तो है?’’ इंस्पैक्टर बोला.

‘‘तमीज से बात कीजिए. आप कैसे कह सकते हैं?’’ सुनंदा बोलीं.

‘‘मैं नहीं, मकानमालिक कह रहा है.’’

‘‘आप मकानमालिक की पैरवी करने आए हैं या हल निकालने?’’

‘‘हम जो कुछ करेंगे कानून के दायरे में करेंगे. जबरदस्ती बिजली कनैक्शन दिलाना हमारे दायरे में नहीं आता. बेहतर होगा, आप दूसरा मकान ढूंढ़ लें,’’ इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘आप एक समझदार महिला हैं. किसी के घर पर कब्जा करना क्या आप को शोभा देता है?’’

‘‘मैं ने कब्जा किया है? मैं किराया बराबर देती हूं.’’

‘‘न के बराबर. फिर मकानमालिक नहीं चाहता तो छोड़ दीजिए मकान.’’

‘‘अपने जीतेजी यह मकान नहीं छोड़ूंगी,’’ सुनंदा भावुक हो उठीं. प्रेमशंकर ने बात संभाली. उस ने इंस्पैक्टर को बताया कि वे मकान क्यों नहीं छोड़ना चाहतीं, जबकि शहर में उन की खुद की जमीन है. वस्तुस्थिति जानने के बाद इंस्पैक्टर को सुनंदा से सहानुभूति तो हुई फिर भी इतने भर के लिए वह किसी के मकान पर इतने सालों से काबिज हैं, यह उस की समझ से परे था.

लाखों लोग बंटवारे के बाद अपनी पुश्तैनी जमीन छोड़ कर भारत चले आए. अगर सब ऐसा ही सोचते तो हो चुकती सुलह. इंस्पैक्टर को सुनंदा की भावुकता बचकानी लगी. इस उम्र में भी परिपक्वता का अभाव दिखा. सुनंदा उसे घमंडी, नकचढ़ी, बदमिजाज और एक अव्यावहारिक महिला लगीं.

उस रोज कुछ नहीं हुआ. आपसी सहमति से कुछ बन पड़ता तो ठीक था, जबरदस्ती तो वह बिजली जोड़ नहीं सकता था. दूसरे जिस तरीके से सुनंदा पेश आईं, इंस्पैक्टर को वह नागवार लगा.

इंस्पैक्टर थाने लौट आया. मकानमालिक खुश था. उसे विश्वास था कि बगैर बिजली सुनंदा ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाएंगी. उन लोगों के बीच प्रेमशंकर ने भले ही सुनंदा की हां में हां मिलाई, पर अंदर ही अंदर वे चाहते थे कि सुनंदा यह घर कुछ लेदे कर छोड़ दें. वैसे भी महल्ले में लोग उन्हें भेद भरी नजरों से देखते हैं तो उन्हें अच्छा नहीं लगता. लड़ाईझगड़े की स्थिति में उन की स्थिति और भी खराब हो जाती. उन से सफाई देते नहीं बन पाता कि आखिर अपने व सुनंदा के बीच के संबंधों को वे किस रूप में दर्शाएं. एक दिन क्रोध में आ कर मकानमालिक की बीवी ने कह दिया था कि आप से इन का रिश्ता क्या है जो इन की तरफ से बोलते हैं? तब प्रेमशंकर से जवाब देते न बना था. सुनंदा ने तूतूमैंमैं कर के उस का मुंह बंद कर दिया था.

प्रेमशंकर पर सुनंदा के बड़े एहसान थे. उस के घर का सारा खर्चा वही चलातीं. जमीन भी प्रेमशंकर के नाम खरीदी. बीमा की सारी पौलिसियों में नौमिनी प्रेमशंकर को बनाया था. एक दिन मौका पा कर प्रेमशंकर ने अपने मन की बात कही. सुनंदा ने दोटूक शब्दों में प्रेमशंकर की बोलती बंद कर दी, ‘‘तुम्हें दिक्कत होती है तो मत रहो मेरे साथ. मैं बाकी जिंदगी किसी तरह काट लूंगी. पर यह मकान नहीं छोड़ूंगी.’’

प्रेमशंकर एहसानफरामोश नहीं थे. जिस के साथ जवानी गुजारी उस का बुढ़ापे में साथ छोड़ना उन्हें गवारा न था.

‘‘हमारी उम्र हो चली है. तुम हर महीने कोर्ट में किराया जमा करने जाती हो. क्या कोर्टकचहरी अब संभव है?’’ प्रेमशंकर बोले.

‘‘मेरे लिए संभव है. उस ने मेरे साथ ज्यादती की है. मैं इसे नहीं भूल सकती,’’ सुनंदा जिद्दी थीं. प्रेमशंकर की उन के आगे एक न चली.

इधर, मकानमालिक इंस्पैक्टर से बोला, ‘‘सर, आप सोच सकते हैं कि वह कैसी मगरूर महिला है. जिस मकान का किराया 5 हजार रुपए होना चाहिए उस का सिर्फ 500 रुपए देती है.’’

‘‘वह तो ठीक है. औरत का मामला है, इसलिए मैं ज्यादा जोरजबरदस्ती नहीं कर सकता,’’ इंस्पैक्टर बोला. कुछ देर सोचने के बाद फिर बोला, ‘‘मकान बेच क्यों नहीं देते?’’

‘‘बापदादाओं का मकान बेचने का दिल नहीं है.’’

‘‘और कोई चारा नहीं?’’

‘‘खरीदेगा कौन? किराएदार के रहते कोई जल्दी हाथ नहीं लगाएगा.’’

‘‘किसी दबंग को बेच दो. थोड़ा कम दाम देगा मगर मुक्ति तो मिलेगी,’’ इंस्पैक्टर की राय उसे माकूल लगी. मकानमालिक ने घर आ कर अपनी पत्नी से रायमशविरा किया. पत्नी भी बेमन से तैयार हो गई.

2 करोड़ रुपए के मकान का आधे दाम में सौदा हुआ. गुड्डू सिंह ठेकेदार ने वह मकान खरीद लिया. गुड्डू सिंह ने पहले तो मिन्नतें कीं. सुनंदा जब नहीं मानीं तो थाने जा कर 5 लाख रुपए इंस्पैक्टर को दे दिए. 2 दिन बाद खबर आई कि कुछ गुंडों ने सुनंदा का गला रेत कर उन की हत्या कर दी. होहल्ला मचा. कुछ संगठनों ने विरोध में जुलूस निकाला. भाषणबाजी हुई.

संपादकों ने एक अकेली महिला की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा संपादकीय लिखा. दोचार दिन खबरें छपीं. असली हत्यारा लापता रहा. पुलिस ने प्रेमशंकर को गिरफ्तार किया क्योंकि इस हत्या से सीधेसीधे लाभ उन्हीं को मिला. बीमा की राशि मिली. जमीन तो उन के नाम थी ही. बैंक एफडी के भी वारिस प्रेमशंकर थे. अंत में न कुछ निकलना था, सो न ही निकला. इंस्पैक्टर ने नाटे यादव नामक हिस्ट्रीशीटर को इस हत्या का जिम्मेदार मान कर झूठी रिपोर्ट दर्ज कर ली, ताकि जनता व मीडिया चुप हो जाए.

नाटे यादव की खोज की खबरें रोज अखबार में आने लगीं. 1 महीना बीत जाने के बाद भी जब नाटे यादव गिरफ्तार नहीं हुआ व अखबार पुलिसिया कार्यशैली पर सवाल उठाने लगे तो एक रोज खबर छपी कि पुलिस मुठभेड़ में नाटे यादव मारा गया. उस के एनकाउंटर से भले ही जनता को संतोष हुआ हो कि सुनंदा के साथ न्याय हुआ, फिर भी यह सवाल हमेशा के लिए सवाल ही रह गया कि क्या नाटे यादव ने ही सुनंदा का कत्ल किया था? कोयला माफिया गुड्डू सिंह उस मकान को गिरवा कर मल्टीस्टोरी बिल्डिंग बनवाने लगा.

सत्यकथा: कुश्ती अकेडमी बनी मौत का अखाड़ा

—शाहनवाज 

हरियाणा के सोनीपत से 10 नवंबर, 2021 की दोपहर करीब साढ़े 3 बजे एक खबर वायरल हुई, जिस ने लोगों को सकते में डाल दिया. खबर ऐसी थी जिस पर भरोसा करना आसान नहीं था.

दरअसल, सोनीपत से रेसलर निशा दहिया की हत्या की खबर सुन कर लोग हैरान हो गए थे. खबर सिर्फ निशा दहिया की हत्या के बारे में नहीं थी, बल्कि निशा के साथसाथ उस के भाई और उस की मां को गोली लगने की भी बात वायरल हुई थी. यही नहीं, इस खबर के जिस हिस्से ने लोगों के बीच दहशत मचा दी थी वह यह थी कि हत्या करने वाला कोई और नहीं बल्कि निशा की अकेडमी का कोच था.

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निशा दहिया की हत्या की खबर इतनी तेजी से वायरल हुई कि देखते ही देखते ये खबर टीवी चैनलों पर दिखाई जाने लगी. लोगों के लिए यह खबर इसलिए भी हैरान करने वाली थी क्योंकि हत्या के महज 2 दिन पहले ही निशा ने सर्बिया की राजधानी बेलग्रेड शहर में हुई अंडर23 रेसलिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीत कर देश का नाम ऊंचा किया था.

निशा ने इस प्रतियोगिता में 65 किलोग्राम वर्ग में भाग लिया था और तीसरा स्थान प्राप्त किया था. जिस के बाद प्रधानमंत्री ने उन्हें और बाकी विजेता खिलाडि़यों को ट्वीट कर मुबारकबाद दी थी.

लोग यह सोच कर हैरानपरेशान थे कि जिस खिलाड़ी ने अनेक बार विदेश में देश के तिरंगे का सम्मान ऊंचा किया, उसी के कोच ने ही उस की हत्या क्यों कर दी.

लेकिन उसी दिन शाम के करीब 7 बजे इंस्टाग्राम पर निशा की आईडी से एक विडियो अपलोड हुआ, जिसे देख कर लोग फिर से हैरत में पड़ गए थे. दरअसल, उस विडियो में इंटरनैशनल रेसलर निशा दहिया ही दिखाई दी. निशा के साथ नामचीन रेसलर साक्षी मलिक भी थी.

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निशा ने अपने इस विडियो में कहा, ‘मेरा नाम निशा है और मैं सीनियर नैशनल खेलने गोंडा आई हूं. मेरी हत्या की न्यूज झूठी है. मैं बिलकुल ठीक हूं.’

निशा के द्वारा पोस्ट किए गए इस विडियो से यह तो साफ हो गया था कि लोग हत्या की खबर सुन कर जिस निशा के बारे में सोच रहे थे, वह वो नहीं थी. लेकिन रेसलर निशा दहिया की हत्या की खबर झूठी भी नहीं थी.

निशा के विडियो पोस्ट करने के बाद सोनीपत के एसपी राहुल शर्मा ने भी आधिकारिक रूप से बयान दिया, ‘‘यह निशा दहिया (जिन की गोली मार कर हत्या की गई) और पदक विजेता पहलवान निशा दहिया 2 अलगअलग लड़कियां हैं. पदक विजेता पहलवान पानीपत की हैं और अभी एक कार्यक्रम में गोंडा गई हुई हैं.’’

अब लोगों के बीच सवाल यह था कि अगर इंटरनैशनल रेसलर निशा दहिया ने विडियो पोस्ट कर अपनी सलामती की जानकारी दी थी तो वो कौन निशा थी जिस की हत्या हुई?

बाद में पता चला कि निशा दहिया नाम की जिस पहलवान की हत्या हुई है, वह सोनीपत की रहने वाली है और वह विश्वविद्यालय स्तर की पहलवान है.

10 नवंबर, 2021 के दिन हरियाणा के सोनीपत में एक छोटे से गांव खरखौदा में 21 वर्षीय निशा दहिया सुबह 10 बजे अपने गांव से 14 किलोमीटर दूर हलालपुर में पहलवानी की ट्रेनिंग के लिए घर से निकली थी.

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घर से निकलने से पहले उस ने नाश्ता किया. क्योंकि उस की दिलचस्पी रेसलिंग में बहुत पहले से थी तो वह घर से ट्रेनिंग के लिए निकलने से पहले भारीभरकम नाश्ता कर के निकलती थी.

हालांकि वह अकसर अपने घर से ट्रेनिंग के लिए सुबहसुबह ही निकल जाया करती थी, लेकिन 10 नवंबर, 2021 के दिन अकेडमी के कोच पवन कुमार ने उसे थोड़ा लेट बुलाया था.

पवन अकसर निशा को एक्स्ट्रा ट्रेनिंग के लिए अलग से बुला लिया करता था.  उस दिन जब निशा घर से देर से निकली तो निशा की मां धनपति की चिंता उस के लिए बढ़ने लगी थी. लेकिन वह बेटी के प्रति ज्यादा चिंता न करते हुए अपने दैनिक कामों में व्यस्त हो गईं.

निशा का जन्म हरियाणा के एक छोटे से गांव में बेहद आम परिवार में हुआ. निशा के पिता दयानंद दहिया सीआरपीएफ के जवान हैं और इस समय जम्मू में तैनात हैं. पत्नी धनपति देवी के अलावा इन के 2 ही बच्चे थे. बेटा सूरज दहिया और बेटी निशा. निशा की दिलचस्पी पहलवानी में बचपन से ही थी.

बचपन में स्कूल में दोस्तों के साथ उस के खेल भी उसी तरह के पहलवानी वाले ही हुआ करते थे. लेकिन उस की दिलचस्पी को उड़ान 2 साल पहले उस समय मिली, जब खरखौदा गांव के नजदीक हलालपुर गांव में पहलवानी के लिए कोच पवन ने अकेडमी खोली. उस ने इस का नाम ‘सुशील कुमार अकेडमी’ रखा.

इस अकेडमी के उद्घाटन के लिए खुद रेसलर सुशील कुमार पहुंचे थे और यह बात आसपास के इलाकों में आग की तरह फैल गई थी.

यह अकेडमी उस के घर से करीब 10 किलोमीटर दूर थी. निशा ने इस अकेडमी में प्रवेश ले लिया था. वह गांव से बस द्वारा करीब 25 मिनट में अकेडमी पहुंच जाती थी. हलालपुर में ‘सुशील कुमार अकेडमी’ के नाम से पवन कुमार की इस अकेडमी की जगह काफी बड़ी थी.

अकेडमी में प्रवेश करने के बाद देसी अखाड़े के लिए एक खुला ग्राउंड था, जिस के बाद प्रोफेशनल ट्रेनिंग के लिए अंदर छत के नीचे एक बड़ा सा रिंग भी बनाया गया था.

रोजाना की तरह निशा 10 नवंबर, 2021 को भी अकेडमी पहुंची. अकेडमी पहुंच कर निशा ने देखा कि वहां बेहद कम ही लोग मौजूद थे, जिस में कोच पवन, उस के कुछ दोस्त, जिस में सचिन दहिया और विक्रम थे.

उन के साथ पवन की पत्नी सुजाता, पवन का साला अमित मौजूद था. वे सभी अकेडमी में खुले आसमान के नीचे आपस में बातचीत कर रहे थे.

निशा को यह देख कर अजीब लगा कि उस दिन सुजाता भी अकेडमी में मौजूद थी. क्योंकि जब से अकेडमी खुली थी, लगभग तभी से पवन की पत्नी सुजाता ने कभी भी अकेडमी में कदम नहीं रखा था. यही नहीं पवन के वे दोस्त जो मुश्किल से कभीकभार ही अकेडमी में दिखाई देते थे, वो भी उस दिन वहां थे.

यह सब देख कर निशा को दाल में कुछ काला होने की आशंका हुई. लेकिन फिर भी उन्हें अनदेखा करते हुए वह कोच के पास गई और बोली, ‘‘जी सरजी, आज कौन सी प्रैक्टिस करनी है?’’

पवन जो अपने दोस्तों के साथ बात कर रहा था, उस ने निशा के सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘‘पहले वार्मअप करना है. अपनी डेली एक्सरसाइज कर के मुझे अंदर रिंग में मिलो.’’

निशा ने बिना रेसलिंग सूट पहने अपने ट्रैक सूट में ही वार्मअप करना शुरू कर दिया. करीब आधे घंटे तक वार्मअप करने के बाद जब निशा अंदर रेसलिंग रिंग में पहुंची तो उस ने देखा कि वहां पर उस के कोच के साथ उस के दोस्त सचिन और अमित भी मौजूद थे. और उसी रूम के किनारे पत्नी सुजाता और उस का साला भी था.

उन्हें देख कर निशा कुछ पलों के लिए घबरा गई, क्योंकि जब से उस ने अकेडमी जौइन की थी तब से उसे इस तरह से किसी ने नहीं घूरा था, जिस तरह से उस दिन उसे बाकी लोग घूर कर देख रहे थे.

निशा कमरे में अंदर आई तो पवन ने तेज आवाज में उस पर चीखना शुरू कर दिया. वह बोला, ‘‘मैं ने तुझे मना किया था न किसी को भी बताने के लिए. फिर भी तेरा मुंह कैसे खुल गया, बता.’’

कोच की इस तीखी जोरदार आवाज सुन कर निशा कुछ पलों के लिए डर सी गई. वह एक ही जगह पर मानो पुतले सी हो गई थी. लेकिन कुछ पलों के बाद ही उस के दिमाग ने कोच से डरना छोड़ दिया था.

निशा ने साहस दिखाते हुए इतने लोगों के बीच में अपने कोच का विरोध करते हुए कहा, ‘‘के कर लेगा? एक तो ट्रेनिंग के बहाने मुझ से छेड़छाड़ करे है, ऊपर से सोचे है कि तेरी शिकायत भी ना करूं.’’

ये सुन कर पवन ने अपने कान झटके, जैसे मानो उसे अपने कानों पर यकीन न हो रहा हो. उस ने बिना निशा को जवाब दिए अपनी जेब से फोन निकाला, नंबर ढूंढा और अपने कान पर लगाया.

दूसरी तरफ से फोन उठा तो पवन बोला, ‘‘तुम्हारी बेटी की तबियत खराब हो गई है. उसे अकेडमी से आ कर ले जाओ.’’

यह सुन कर निशा के दिलदिमाग में एक तरफ गुस्सा उफान मार रहा था तो दूसरी तरफ वह डर भी रही थी कि अब आगे उस के साथ क्या होगा?

दरअसल, पवन ने निशा के घर पर फोन किया था जोकि उस की मां धनपति ने उठाया था. धनपति पवन की बात सुन कर अपनी बेटी की फिक्र में रोने लगीं. धनपति को रोता देख बेटे सूरज ने मां को सहारा दिया और उन से पूछा कि क्या बात हो गई?

जब धनपति ने अपने बेटे को निशा और पवन की बात बताई तो सूरज को भी अपनी बहन की फिक्र होने लगी. सूरज ने बिना देर किए अपनी मां को बाइक पर बिठाया और तुरंत हलालपुर में अकेडमी के लिए निकल गया. सूरज ने इतनी तेज गति से बाइक चलाई कि 25 मिनट के सफर को महज 10 मिनट में पूरा कर लिया.

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इधर अकेडमी में निशा का झगड़ा पवन और उस के साथ बाकी लोगों से लगातार हो ही रहा था. जब सूरज और धनपति अकेडमी पहुंचे और वे मेनगेट से अंदर घुसे तो उन्होंने कुछ ऐसा देखा, जो कभी सपने में भी नहीं सोचा था. उन्होंने देखा कि निशा पवन और उस के बाकी साथियों से अपनी जान बचाने के लिए ग्राउंड में इधर से उधर भाग रही है.

लेकिन तभी पवन ने जब धनपति और सूरज को अकेडमी में अंदर आते हुए देखा तो उस ने निशा के पीछे भागना बंद कर दिया. उस ने अपनी कमर से पिस्तौल निकाली और निशा पर लगातार गोलियां दागनी शुरू कर दीं.

पवन का निशाना अचूक था. उस की पिस्तौल से निकली एक भी गोली बेकार नहीं गई. निशा पर 4 राउंड की फायरिंग करने के बाद पवन ने अपना रुख धनपति और सूरज की ओर किया. धनपति ने अपनी आंखों से अपनी बेटी को गोली लगते हुए देखा, लेकिन अफसोस वह अपनी बेटी को बचा नहीं पाईं.

खतरे की परवाह किए बगैर धनपति अपनी जख्मी बेटी की ओर भाग कर पहुंचना चाहती थीं कि इस से पहले ही पवन उन दोनों के बीच आ खड़ा हुआ और उस ने धनपति पर पिस्तौल का निशाना लगा दिया.

यह देख कर धनपति अपनी जान बचाने के लिए उल्टा भागने लगी लेकिन पवन की पिस्तौल से गोली निकल चुकी थी, जो जा कर सीधे धनपति को लग गई.

गोली लगने से धनपति जमीन पर गिर पड़ीं. पवन को लगा कि वह भी मर जाएगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. पवन की गोली से धनपति सिर्फ घायल हुई थीं.

इसी दौरान जब सूरज ने अपनी मां पर पवन के द्वारा फायर किए जाने की घटना देखी तो वह सकते में आ गया था. जवान हट्टाकट्टा होने की वजह से वह तेजी से भाग कर अकेडमी से बाहर निकल गया.

उसे भागता हुआ देख पवन और सचिन उस के पीछे भागे और उसे जान से मारने के लिए उस का पीछा करने लगे. अफसोस सूरज ज्यादा तेज भागने के बावजूद पवन की गोली से तेज नहीं भाग पाया. अकेडमी के किनारे नहर की ओर करीब 500 मीटर भागने के बाद पवन ने सूरज पर गोली चला दी. सूरज पर 3 राउंड फायरिंग करने के बाद बाइक पर सवार पवन और सचिन वहीं से फरार हो गए. गोली लगने से सूरज की मौत हो गई.

एक ही परिवार में 2 लोगों को जान से मारने और एक को जख्मी करने के बाद अकेडमी में सुजाता समेत बाकी लोग भी वहां से फरार हो गए.

यह पूरी घटना मात्र 5 मिनट के अंदर घटी. गोलियों की आवाजें सुन कर जब तक आसपास के गांव वाले अकेडमी तक पहुंचे, तब तक सभी आरोपी वहां से फरार हो गए थे.

गांव वालों ने इस की सूचना पुलिस को दी और स्थानीय पुलिस तुरंत मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने घायल पड़ी धनपति को अस्पताल पहुंचाया. फिर सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी. पुलिस ने काररवाई करते हुए पवन और उस के बाकी साथियों के खिलाफ हत्या की धाराओं में केस दर्ज कर लिया.

इस घटना के बाद 10 नवंबर, 2021 की रात को गुस्साए गांव वालों ने पवन की अकेडमी पर हमला कर दिया. हलालपुर गांव के निवासियों ने पीडि़ता को न्याय दिलवाने की मांग करते हुए पवन की अकेडमी जला कर राख कर दी.

गांव वालों का इस कदर पवन की अकेडमी पर गुस्सा फूटना लाजिमी था, क्योंकि पवन हलालपुर गांव में एक गुंडे के अलावा और कुछ नहीं था.

यहां तक कि जिस जमीन पर उस ने अपनी अकेडमी खोली थी, वह उस की खुद की नहीं थी. बल्कि उस के रिश्तेदार धर्मवीर की थी. लेकिन पवन ने जबरदस्ती हथियार के दम पर उन की इस जमीन पर कब्जा कर लिया था. जिस का वह अपने रिश्तेदार को किराया भी नहीं देता था. गांव वाले पवन और उस की हरकतों से बेहद परेशान हो गए थे.

वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी फरार हो गए थे. इस की सूचना हरियाणा पुलिस ने दिल्ली पुलिस को भी दे दी थी. इसलिए दिल्ली पुलिस भी अलर्ट गई थी. इस के लिए दिल्ली पुलिस ने अपने मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया था.

मुखबिरों की सूचना के आधार पर दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने पहलवान निशा दहिया और उस के भाई की हत्या के मामले में 12 नवंबर, 2021 को 2 आरोपियों को दिल्ली के द्वारका इलाके से गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों की पहचान हरियाणा के रोहतक निवासी पवन कुमार उर्फ कोच और उस के दोस्त सोनीपत निवासी सचिन दहिया के रूप में की.

पवन के पास से पुलिस ने एक लाइसैंसी पिस्तौल बरामद की, जिस से उस ने निशा और उस के भाई सूरज की हत्या की थी. दिल्ली पुलिस ने दोनों आरोपियों को हरियाणा पुलिस के हवाले कर दिया.

वहीं हरियाणा पुलिस घटना के एक दिन बाद 11 नवंबर को ही पवन की पत्नी सुजाता और उस के भाई अमित को हिरासत में ले चुकी थी. पुलिस ने अगले दिन इन दोनों को कोर्ट में भी पेश किया, जिस के बाद सुजाता को पुलिस ने एक दिन की रिमांड पर लिया तो उस के साले अमित को 3 दिनों की रिमांड पर लिया गया.

पुलिस ने कोर्ट से सुजाता की 3 दिन की रिमांड मांगी थी और अमित की 5 दिन की, लेकिन कोर्ट ने सुजाता की एक दिन की और अमित की 3 दिनों की रिमांड मंजूर की थी.

सोनीपत में सुशील कुमार अकेडमी में हमलावरों ने गोलीबारी कर विश्वविद्यालय स्तर की पहलवान निशा दहिया और उस के भाई की हत्या की जबकि उस की मां घायल हो गई थीं.

मामले में अब तक पुलिस ने निशा दहिया के कोच पवन और उस की पत्नी समेत 4 लोगों को गिरफ्तार कर लिया था. इस मामले में पांचवीं गिरफ्तारी विक्रम के रूप में हुई.

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मूलरूप से उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के रहने वाले विक्रम ने पूछताछ में बताया कि हत्याओं के बाद सबूत मिटाने के मकसद से अकेडमी में लगे सीसीटीवी कैमरे की डीवीआर यानी डिजिटल वीडियो रिकौर्डर को वह पास के एक नाले में फेंक आया था. पुलिस ने उस रिकौर्डर को तलाश करने की कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई.

अब तक की पुलिस जांच में सामने आया है कि आरोपी कोच पवन मृतक निशा के घर वालों से कोचिंग के नाम पर 8 लाख रुपए वसूल चुका था. मृतका के पिता का आरोप है कि पवन ने निशा का ब्रेनवाश कर के पैसे हड़प लिए थे. वहीं निशा की मां ने पुलिस को दिए बयान में कहा कि आरोपी उस की बेटी के साथ छेड़छाड़ करता था.

11 नवंबर को सोनीपत के सिविल अस्पताल में पोस्टमार्टम के बाद निशा और सूरज के शवों को उन के घर लाया गया. शवों के पहुंचते ही पूरे गांव में गमगीन माहौल हो गया था. पूरे गांव के लोग निशा के घर इकट्ठे हो चुके थे. चूंकि निशा दहिया एक उभरती हुई खिलाड़ी थी, इसलिए गांव वालों की आंखों से भी आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे.

आक्रोश में आ कर गांव वाले कोई ऐसा कदम न उठा लें, जिस से क्षेत्र में अशांति पैदा हो जाए, इसलिए एसपी ने स्थानीय पुलिस के साथ गांव में सीआरपीएफ भी तैनात कर दी थी.

सत्यकथा: दोस्त को दी पति की सुपारी

राईटर  —वेणीशंकर पटेल ‘ब्रज’ 

मध्य प्रदेश के जबलपुर के पास पनागर थाना क्षेत्र में एक छोटा सा गांव है मछला. जिस की आबादी बमुश्किल एकडेढ़ हजार होगी. इसी गांव में 40 साल का नरेश मिश्रा अपनी पत्नी ऊषा और 13 साल के बेटे के साथ रहता है.

10 जनवरी, 2021 की शाम करीब सवा 7 बजे नरेश अपनी बोलेरो ले कर घर पहुंचा. घर के सामने खाली जगह में गाड़ी खड़ी कर वह घर के अंदर जाने के बजाय बाहर जाने को हुआ तो पत्नी ऊषा ने टोक दिया, ‘‘कहां जा रहे हो, पहले हाथमुंह धो कर खाना खा लो, फिर बाहर जाना.’’

‘‘मुझे अभी भूख नहीं है, मैं थोड़ी देर में आता हूं.’’ नरेश इतना कह कर घर से बाहर निकल गया.

ऊषा नरेश की रोजाना की आदत को जानती थी, उसे पता था कि नरेश गांव के नशेड़ी युवकों के साथ बैठ कर शराब पिएगा और आधी रात को लड़खड़ाते हुए घर वापस आएगा. लिहाजा वह नरेश की बात को अनसुना कर अपने कामों में लग गई.

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10 जनवरी की शाम घर से निकला नरेश उस रात घर वापस नहीं आया तो दूसरे दिन अलसुबह ऊषा ने इस की जानकारी अपने पड़ोसियों को दी. पड़ोसी भी नरेश की हरकतों से वाकिफ थे. उन्होंने ऊषा से कहा, ‘‘रात में ज्यादा टिका ली होगी तो कहीं सो गया होगा. जब होश आएगा तो खुदबखुद आ जाएगा.’’

जब दोपहर होने तक भी नरेश घर नहीं लौटा और न ही उस का कोई पता चला तो 11 जनवरी की शाम को ऊषा ने पनागर पुलिस थाने में जा कर उस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कराई.

ऊषा ने पुलिस को बताया कि उस का पति नरेश मिश्रा खेतीकिसानी के साथ खुद की बोलेरो चलाता है. उस ने हाल ही में आधा एकड़ खेत बेच कर बोलेरो खरीदी थी. गांव में उस की सोहबत ठीक नहीं है. अकसर गांव के लड़कों से उस का झगड़ा होता रहता है.

ऊषा ने बताया कि 10 जनवरी को भी नरेश का गांव के बाहर बनी पुलिया पर गांव के युवकों से विवाद हो गया था, उस झगड़े के बाद से उस का पता नहीं चल रहा है. उसे अंदेशा है कि कोई उसे शराब पिला कर कोई अनहोनी न कर दे. पनागर पुलिस थाना के टीआई ने ऊषा की सूचना दर्ज करते हुए जल्द ही उसे खोजने का भरोसा दिया.

12 जनवरी की सुबह पनागर पुलिस थाने के टीआई आर.के. सोनी नरेश मिश्रा की गुमशुदगी की जांच कर ही रहे थे कि उन के मोबाइल पर घंटी बज उठी. जैसे ही काल रिसीव की दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘साब, मैं मछला गांव से सुखचैन गोंटिया बोल रहा हूं, गांव के नरेश मिश्रा का कटा हुआ सिर मछला गांव से 50 मीटर दूर बेलखाड़ू रोड पर उस के ही भतीजे अशोक के खेत में पड़ा हुआ है.’’

टीआई जानते थे कि नरेश मिश्रा का भतीजा अधारताल सीएसपी के यहां रीडर है. इस बजह से उन्होंने इस सूचना पर तत्काल एक्शन लेते हुए पुलिस के आला अधिकारियों को सूचना दे दी. इस के बाद पनागर पुलिस टीम, एफएसएल, डौग स्क्वायड टीम घटनास्थल पर पहुंच गई.

पुलिस टीम ने देखा कि सिर को किसी चीज से बेरहमी से कुचला गया था. पुलिस टीम ने धड़ की तलाश शुरू कर दी. आसपास के इलाकों की सघन चैकिंग के दौरान खून के दागधब्बों के निशान देख कर आखिरकार पुलिस धड़ को खोजने में भी कामयाब हो गई.

दोपहर में 100 मीटर दूर रोड के दूसरी ओर धड़ मिल गया. धड़ के पास काफी खून फैला हुआ था. खून छिपाने के लिए उस पर मिट्टी डाल दी गई थी. पनागर पुलिस ने अनुमान लगाया कि जहां धड़ मिला है, वहां पर ही घटना को अंजाम दिया गया होगा. उस के जांघ व सिर पर भी वार करने के निशान मिले.

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गांव के खेत में कटा सिर मिलने से पूरे इलाके में सनसनी फैल गई और लोगों की भीड़ उसे देखने जमा हो गई थी. गांव के लोगों ने कपड़ों के आधार पर पहचान कर इस बात की पुष्टि कर दी कि धड़ भी नरेश मिश्रा का ही है.

इसी बीच नरेश की पत्नी ऊषा भी खबर लगते ही खेत पर पहुंच गई और नरेश मिश्रा के सिर और धड़ के पास जा कर जोरजोर से रोने लगी. किसी तरह गांव के लोगों ने उसे समझाबुझा कर वहां से दूर किया. सिर को ले कर 2 तरह की बातें सामने आ रही थीं. सिर या तो वहां आरोपी ने जानबूझ कर पुलिस को भ्रमित करने के लिए फेंका होगा या फिर किसी जानवर ने वहां खींच कर पहुंचा दिया होगा. सिर व धड़ को बेरहमी से कुल्हाड़ी से काट कर अलग करने की बात कही जा रही है. घटनास्थल पर शराब की खाली बोतल भी मिली थी.

जबलपुर जिले में इस से पहले तिलवारा में इसी तरह सिर काट कर हत्या करने का सनसनीखेज मामला सामने आ चुका था. तिलवारा में प्रेम विवाह से नाराज धीरज शुक्ला ने 11 मार्च, 2021 को जीजा विजेत कश्यप की कुल्हाड़ी से गरदन उड़ा दी थी और बोरी में सिर ले कर वह खुद ही तिलवारा थाने पहुंच गया था.

इसी तरह 28 नवंबर, 2021 को परासिया झिरी गांव में 60 साल के गया प्रसाद कुसराम की गरदन काट कर हत्या कर दी गई. उस की गरदन 30 नवंबर को एक किलोमीटर दूर पुराने शमशान घाट में जमीन में गड़ी मिली थी.

इस तरह की तीसरी वारदात होने से जबलपुर जिले के एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा, एडीशनल एसपी संजय अग्रवाल, एसपी (सिटी) प्रियंका करचाम भी उसी दिन शाम को मछला गांव पहुंचे. गांव में दहशत का माहौल था और लोगों में आक्रोश भी.

 

मामले की गंभीरता को देखते हुए एसपी (जबलपुर)  सिद्धार्थ बहुगुणा द्वारा मौके पर उपस्थित अधिकारियों को आवश्यक दिशानिर्देश देते हुए शीघ्र पतासाजी कर आरोपियों की गिरफ्तारी के निर्देश दिए.

एडीशनल एसपी संजय कुमार अग्रवाल एवं गोपाल खांडेल तथा एसपी (सिटी)  प्रियंका करचाम के मार्गदर्शन में उन्होंने एक टीम का गठन किया.

टीम में थानाप्रभारी आर.के. सोनी, एसआई अंबुज पांडे, आकाशदीप साहू, एएसआई ब्रह्मदत्त दूबे, संतोष पांडेय, कांस्टेबल राममिलन, विनय जायसवाल, देशपाल, कुलदीप, मोनू करारे, विवेक, नरेंद्र, लेडी कांस्टेबल मोनिका, अभिलाषा एवं क्राइम ब्रांच जबलपुर के एएसआई रामसनेही शर्मा, हैडकांस्टेबल अजीत पटेल, हरिशंकर गुप्ता, अरविंद, कांस्टेबल राजेश केवट आदि को शामिल किया गया.

एफएसएल टीम की डा. सुनीता तिवारी द्वारा मौके की पूरी कर लेने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. फिर पुलिस टीम जांच में जुट गई.

पुलिस ने सब से पहले गांव के उन 5 लड़कों को बुला कर पूछताछ की, जिन से नरेश का उसी दिन विवाद हुआ था. पूछताछ में यह बात सामने आई कि नरेश को उसी रात 8 बजे नरेश के जिगरी दोस्त अखिलेश विश्वकर्मा के साथ देखा गया था.

पुलिस ने जब नरेश के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि घटना वाले दिन उस की अखिलेश से बातचीत हुई थी. इस के बाद पुलिस ने अखिलेश के फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई. उस से यह पता चला कि अखिलेश की बातचीत नरेश की पत्नी ऊषा से कई बार हुई थी.

घटना वाली रात को भी 11 बजे दोनों की बातचीत हुई थी. इसी काल डिटेल्स के आधार पर पुलिस ने अखिलेश विश्वकर्मा से पूछताछ की तो पहले वह पुलिस को गुमराह करता रहा, लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे वह जल्द ही टूट गया. पुलिस पूछताछ में अखिलेश ने नरेश मिश्रा की हत्या का जुर्म कुबूल करते हुए जो कहानी बताई, उसे जान कर लोग हैरान रह गए.

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कहानी की शुरुआत आज से 7 साल पहले 2015 में हुई थी. अपने मातापिता की इकलौती संतान नरेश मिश्रा पनागर में ट्रक चलाता था. एक दिन ट्रक ले कर वह घर लौट रहा था. रात का वक्त था, उस ने सोचा कि किसी ढाबे पर खाना खा कर ही वह घर की तरफ रवाना होगा.

कटनी के एक ढाबे पर ट्रक खड़ा कर वह खाना खाने के लिए रुका. वह ढाबे पर बिछी खाट पर बैठा कुछ सोच रहा था कि पानी ले कर आई एक युवती की आवाज से उस का ध्यान टूटा गया, ‘‘लो उस्ताद पानी पी लो.’’

नरेश ने उस युवती को देखा तो बस देखता ही रह गया. बाद में पता चला कि तीखे नाकनक्श वाली उस युवती का नाम ऊषा कुशवाहा है. ऊषा की शादी कटनी के पास के एक गांव में हुई थी और उस का 6 साल का एक बेटा भी था. उस का पति कोई कामधंधा करने के बजाय आवारागर्दी कर शराब पीता था.

घर में खाने के लाले थे. ऊषा अपने बच्चे को पढ़ालिखा कर कुछ बनाना चाहती थी. इसी वजह से उस ने ढाबे में खाना बनाने के साथ ग्राहकों को चायपानी देने का काम करना शुरू कर दिया था. 25 साल की ऊषा भरे हुए बदन की थी. उसे देख कर नरेश कुछ ऐसा मोहित हुआ कि वह रोज ही ढाबे पर आनेजाने लगा.

बातों ही बातों में नरेश उसे अपना दिल दे बैठा. पति से प्रताडि़त ऊषा को किसी पुरुष की सहानुभूति की जरूरत थी, लिहाजा वह भी अपनी भरी जवानी पर काबू न रख सकी. जब नरेश ने उस के साथ शादी करने का प्रस्ताव रखा तो ऊषा ने नरेश को बता दिया था कि वह शादीशुदा और 6 साल के बेटे की मां है.

नरेश इस की परवाह न करते हुए उस से शादी करने को राजी हो गया. ऊषा कटनी से पति को छोड़ कर बेटे संग नरेश के साथ मचला आ गई. नरेश की इस शादी को ले कर गांव में विरोध हुआ था. नरेश पहले ऊषा को ले कर अपने घर आया तो उस के मातापिता ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. गांव में भी जातिबिरादरी के लोगों ने नरेश के इस तरह एक महिला को रखने पर ऐतराज जताया.

धुन के पक्के नरेश ने किसी की नहीं मानी और उस ने ऊषा से विधिवत शादी रचा ली और बाद में ऊषा अपने बेटे के साथ आ कर नरेश के घर में पत्नी बन कर रहने लगी.

इस बीच नरेश के मातापिता का निधन हो गया और सारी प्रौपर्टी उस के नाम हो गई. ऊषा का बेटा अब 13 साल का हो गया था. ऊषा नरेश पर अपने बेटे के नाम कुछ प्रौपर्टी करने का दबाव बना रही थी, पर नरेश इस के लिए तैयार नहीं था. क्योंकि उस की खुद की कोई औलाद नहीं हुई थी.

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नरेश शराब के नशे में ऊषा से झगड़ा और मारपीट भी करने लगा, जिस के कारण ऊषा का झुकाव अखिलेश नाम के युवक की तरफ हुआ.

 

अखिलेश और नरेश अच्छे दोस्त थे. नरेश रंगीनमिजाज था. उस के गांव की एक महिला से अवैध संबंध थे, जिस की जानकारी उस की पत्नी ऊषा को हो गई थी. इस बात को ले कर अकसर ही उन के बीच झगड़ा होता रहता था.

ऊषा सोचती कि जिस प्यार के लिए उस ने अपने पति को छोड़ दिया उसे वह प्यार भी नसीब नहीं हो रहा.

अखिलेश गांव के ही गिरिजाप्रसाद विश्वकर्मा का बेटा था. नशाखोरी की वजह से 32 साल की उम्र होने के बाद भी उस की शादी नहीं हुई थी. नरेश के साथ रहने से उसे मुफ्त की शराब पीने को मिलती थी.

दोनों ही अकसर गांव में साथसाथ घूमतेफिरते और साथ शराब पीते थे. सन 2019 में नरेश ने अपनी फितरत के अनुसार मौका पा कर अखिलेश की भाभी के साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की थी, जिस की रिपोर्ट पनागर थाने में दर्ज की गई थी. मगर पैसों का लालच दे कर उस समय मामला रफादफा हो गया था.

उसी समय से अखिलेश मन ही मन नरेश से रंजिश रखने लगा था. उस के साथ बैठ कर वह शराब तो पीता था, मगर हरदम नरेश से बदला लेने की फिराक में रहता था.

अखिलेश मौका पा कर नरेश की पत्नी से भी मेलजोल बढ़ाने लगा था. अखिलेश नरेश से मिलने अकसर उस के घर आता रहता था. नरेश की पत्नी ऊषा भी उस की खूब आवभगत करती थी.

 

एक दिन जब अखिलेश नरेश से मिलने आया तो नरेश और उस का बेटा घर पर मौजूद नहीं थे. ऊषा ने अखिलेश से बातचीत के दौरान अपनी परेशानी बताई. उस ने कहा, ‘‘लगता है मेरे पति का मुझ से मन भर गया है और वह किसी दूसरी औरत में दिलचस्पी लेने लगा है.’’

इस पर अखिलेश बोला, ‘‘घर में जिस की इतनी खूबसूरत बीवी हो वह भला और कहीं और मुंह क्यों मारेगा.’’

ऊषा अपनी खूबसूरती की तारीफ सुनते ही शरमा कर बोली, ‘‘हमारी खूबसूरती किसे दिखती है.’’

‘‘भाभी, हमें तो तुम अप्सरा लगती हो. हमारी शादी तुम से हुई होती तो हम तो तुम्हारे कदमों में चांदतारे बिछा देते,’’ अखिलेश ने अपने मन की बात कह डाली.

‘‘तुम ठिठोली तो खूब कर लेते हो, पर तुम्हें मेरी कोई फिक्र ही नहीं है,’’ ऊषा ने शिकायती लहजे में कहा.

‘‘ऐसा नहीं है भाभी, मुझ से तुम्हारी हालत देखी नहीं जाती. मुझे मालूम है कि नरेश तो शराब पी कर तुम्हें मारतापीटता भी है. उसे तुम्हारे बेटे से भी कोई मतलब नहीं है. अगर उस के दिल में तुम्हारे और बेटे के प्रति जरा सी चाहत होती तो अपनी प्रौपर्टी उस के नाम नहीं कर देता.’’ अखिलेश सहानुभूति जताते हुए बोला.

‘‘मैं तंग आ गई हूं कब ऐसे मर्द से छुटकारा मिले,’’ ऊषा बोली.

‘‘भाभी, इस ने मेरी भाभी के साथ संबंध बनाने का प्रयास किया था, तब से मेरे अंदर भी इंतकाम की आग जल रही है. तुम कहो तो इसे रास्ते से हटा दूं.’’ अखिलेश ने ऊषा का मन जानने के लिए कहा.

‘‘सचमुच यदि तुम ऐसा कर दो तो मैं तुम्हें 2 लाख रुपए दूंगी,’’ ऊषा बोली.

‘‘तो भाभी, समझो काम हो गया. तुम बस रुपयों का इंतजाम कर लो,’’ पैसे के लालच और बदले की भावना से ग्रस्त अखिलेश ने ऊषा का प्रस्ताव मानते हुए कहा.

ऊषा अब नरेश से छुटकारा पाने का मन बना चुकी थी. जैसे ही उसे अखिलेश की शह मिली, वह पति को जान से मरवाने की योजना बनाने लगी. नरेश ने कुछ समय पहले अपनी आधा एकड़ जमीन बेच कर एक बोलेरो गाड़ी खरीदी थी, जिसे वह खुद किराए पर चलाता था. बाकी पैसे उस ने घर पर ही रखे थे. ऊषा ने सोचा कि घर में रखे हुए नरेश के पैसों से 2 लाख रुपए अखिलेश को दे कर नरेश का कत्ल करा कर वह उस की प्रौपर्टी की मालिक हो जाएगी. अखिलेश को पैसों के लालच के साथ नरेश से बदला लेना था.

अखिलेश तैयार हो गया तो ऊषा ने ही नरेश की हत्या के लिए उसे एक फरसा भी दिया. जिसे पहले ही खेत में एक पेड़ के नीचे छिपा कर अखिलेश ने रख दिया था.

तय साजिश के मुताबिक 10 जनवरी, 2022 की शाम अखिलेश ने नरेश को फोन किया और गांव के बाहर श्याम मिश्रा के खेत में शराब पीने के लिए बुलाया. दोनों ने साथ में बैठ कर शराब पी. नरेश को अखिलेश ने ज्यादा शराब पिला दी, जिस से वह नशे में धुत्त हो कर बेसुध हो गया.

इस के बाद अखिलेश ने पहले से खेत में छिपा कर रखा फरसा निकाला और 4-5 वार कर नरेश की गरदन पर कर धड़ से अलग कर दी. अखिलेश शातिर दिमाग का था. कुछ देर इंतजार करने के बाद जब नरेश के सिर से खून निकलना बंद हो गया तो उस ने नरेश का सिर उठा कर रोड के दूसरी तरफ सुखचैन गोटियां के पीछे अशोक पटेल के खेत में ले जा कर फेंक दिया.

अखिलेश ने सोचा कि सुखचैन एवं अशोक पर नरेश की हत्या का शक पुलिस करेगी. क्योंकि अखिलेश को पता था कि सुखचैन गोटियां और नरेश के बीच मनमुटाव रहने से हमेशा विवाद होता रहता था.

इतना ही नहीं, नरेश की हत्या करने के बाद अखिलेश ने ऊषा को काम पूरा होने की खबर मोबाइल से दी और खून से सना फरसा घर के आंगन में फेंक वह घर चला गया, जिसे ऊषा ने धो कर घर में ही छिपा दिया था. नरेश की हत्या के बाद ऊषा ने पहले थाने जा कर उस की गुमशुदगी की सूचना लिखवाई. लाश मिलने पर अखिलेश और ऊषा दोनों दुखी होने का नाटक करते रहे. पुलिस ने जब पूछताछ की तो सारी कहानी सामने आ गई.

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पुलिस ने नरेश की पत्नी ऊषा मिश्रा को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो उस ने भी स्वीकार कर लिया कि पति से परेशान हो कर उसे उस की हत्या कराने के लिए मजबूर होना पड़ा. पुलिस ने अखिलेश और ऊषा की निशानदेही पर घटना में प्रयुक्त फरसा एवं घटना के वक्त उपयोग में लाए गए 2 मोबाइल फोन बरामद कर लिए. दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर पुलिस ने जबलपुर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा ने 24 घंटे के अंदर केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की सराहना की.

—कथा पुलिस सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट पर आधारित

 

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