रुह का स्पंदन: भाग 1

‘‘डूयू बिलीव इन वाइब्स?’’ दक्षा द्वारा पूरे गए इस सवाल पर सुदेश चौंका. उस के चेहरे के हावभाव तो बदल ही गए, होंठों पर हलकी मुसकान भी तैर गई. सुदेश का खुद का जमाजमाया कारोबार था. वह सुंदर और आकर्षक युवक था. गोरा चिट्टा, लंबा, स्लिम,

हलकी दाढ़ी और हमेशा चेहरे पर तैरती बाल सुलभ हंसी. वह ऐसा लड़का था, जिसे देख कर कोई भी पहली नजर में ही आकर्षित हो जाए. घर में पे्रम विवाह करने की पूरी छूट थी, इस के बावजूद उस ने सोच रखा था कि वह मांबाप की पसंद से ही शादी करेगा.

सुदेश ने एकएक कर के कई लड़कियां देखी थीं. कहीं लड़की वालों को उस की अपार प्यार करने वाली मां पुराने विचारों वाली लगती थी तो कहीं उस का मन नहीं माना. ऐसा कतई नहीं था कि वह कोई रूप की रानी या देवकन्या तलाश रहा था. पर वह जिस तरह की लड़की चाहता था, उस तरह की कोई उसे मिली ही नहीं थी.

सुदेश का अलग तरह का स्वभाव था. उस की सीधीसादी जीवनशैली थी, गिनेचुने मित्र थे. न कोई व्यसन और न किसी तरह का कोई महंगा शौक. वह जितना कमाता था, उस हिसाब से उस के कपड़े या जीवनशैली नहीं थी. इस बात को ले कर वह हमेशा परेशान रहता था कि आजकल की आधुनिक लड़कियां उस के घरपरिवार और खास कर उस के साथ व्यवस्थित हो पाएंगी या नहीं.

अपने मातापिता का हंसताखेलता, मुसकराता, प्यार से भरपूर दांपत्य जीवन देख कर पलाबढ़ा सुदेश अपनी भावी पत्नी के साथ वैसे ही मजबूत बंधन की अपेक्षा रखता था. आज जिस तरह समाज में अलगाव बढ़ रहा है, उसे देख कर वह सहम जाता था कि अगर ऐसा कुछ उस के साथ हो गया तो…

सुदेश की शादी को ले कर उस की मां कभीकभी चिंता करती थीं लेकिन उस के पापा उसे समझाते रहते थे कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा. सुदेश भी वक्त पर भरोसा कर के आगे बढ़ता रहा. यह सब चल रहा था कि उस से छोटे उस के चचेरे भाई की सगाई का निमंत्रण आया. इस से सुदेश की मां को लगा कि उन के बेटे से छोटे लड़कों की शादी हो रही हैं और उन का हीरा जैसा बेटा किसी को पता नहीं क्यों दिखाई नहीं देता.

चिंता में डूबी सुदेश की मां ने उस से मेट्रोमोनियल साइट पर औनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने को कहा. मां की इच्छा का सम्मान करते हुए सुदेश ने रजिस्ट्रेशन करा दिया. एक दिन टाइम पास करने के लिए सुदेश साइट पर रजिस्टर्ड लड़कियों की प्रोफाइल देख रहा था, तभी एक लड़की की प्रोफाइल पर उस की नजर ठहर गई.

ज्यादातर लड़कियों ने अपनी प्रोफाइल में शौक के रूप में डांसिंग, सिंगिंग या कुकिंग लिख रखा था. पर उस लड़की ने अपनी प्रोफाइल में जो शौक लिखे थे, उस के अनुसार उसे ट्रैवलिंग, एडवेंचर ट्रिप्स, फूडी का शौक था. वह बिजनैस माइंडेड भी थी.

उस की हाइट यानी ऊंचाई भी नौर्मल लड़कियों से अधिक थी. फोटो में वह काफी सुंदर लग रही थी. सुदेश को लगा कि उसे इस लड़की के लिए ट्राइ करना चाहिए. शायद लड़की को भी उस की प्रोफाइल पसंद आ जाए और बात आगे बढ़ जाए. यही सोच कर उस ने उस लड़की के पास रिक्वेस्ट भेज दी.

सुदेश तब हैरान रह गया, जब उस लड़की ने उस की रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. हिम्मत कर के उस ने साइट पर मैसेज डाल दिया. जवाब में उस से फोन नंबर मांगा गया. सुदेश ने अपना फोन नंबर लिख कर भेज दिया. थोड़ी ही देर में उस के फोन की घंटी बजी. अनजान नंबर होने की वजह से सुदेश थोड़ा असमंजस में था. फिर भी उस ने फोन रिसीव कर ही लिया.

दूसरी ओर से किसी संभ्रांत सी महिला ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मैं दक्षा की मम्मी बोल रही हूं. आप की प्रोफाइल मुझे अच्छी लगी, इसलिए मैं चाहती हूं कि आप अपना बायोडाटा और कुछ फोटोग्राफ्स इसी नंबर पर वाट्सऐप कर दें.’’

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सुदेश ने हां कह कर फोन काट दिया. उस के लिए यह सब अचानक हो गया था. इतनी जल्दी जवाब आ जाएगा और बात भी हो जाएगी, सुदेश को उम्मीद नहीं थी. सोचविचार छोड़ कर उस ने अपना बायोडाटा और फोटोग्राफ्स वाट्सऐप कर दिए.

फोन रखते ही दक्षा ने मां से पूछा, ‘‘मम्मी, लड़का किस तरह बातचीत कर रहा था? अपने ही इलाके की भाषा बोल रहा था या किसी अन्य प्रदेश की भाषा में बात कर रहा था?’’

‘‘बेटा, फिलहाल वह दिल्ली में रह रहा है और दिल्ली में तो सभी प्रदेश के लोग भरे पड़े हैं. यहां कहां पता चलता है कि कौन कहां का है. खासकर यूपी, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान वाले तो अच्छी हिंदी बोल लेते हैं.’’ मां ने बताया.

‘‘मम्मी, मैं तो यह कह रही थी कि यदि वह अपने ही क्षेत्र का होता तो अच्छा रहता.’’ दक्षा ने मन की बात कही. लड़का गढ़वाली ही नहीं, अपने इलाके का ही है. मां ने बताया तो दक्षा खुश हो उठी.

हरिराम- भाग 1: शशांक को किसने सही राह दिखाई

शशांक अपने आफिस में काम कर रहा था कि चपरासी ने आ कर कहा, ‘‘साहब, आप को बनर्जी बाबू याद कर रहे हैं.’’ उत्पल बनर्जी कंपनी के निदेशक थे. पीठ पीछे उन्हें सभी बंगाली बाबू कह कर संबोधित करते थे. कंपनी विद्युत संयंत्रों की आपूर्ति, स्थापना और रखरखाव का काम करती थी. कंपनी के अलगअलग प्रांतों में विद्युत निगमों के साथ प्रोजेक्ट थे. शशांक इस कंपनी में मैनेजर था.

‘‘यस सर,’’ शशांक ने बनर्जी साहब के कमरे में जा कर कहा. ‘‘आओ शशांक,’’ इतना कह कर उन्होंने उसे बैठने का इशारा किया.

शशांक के दिमाग में खतरे की घंटी बज उठी. उसे लगा कि उस की हालत उस बकरे जैसी है जिसे पूरी तरह सजासंवार दिया गया है और बस, गर्दन काटने के लिए ले जाना बाकी है. शशांक ने अपने चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिया और चुपचाप कुरसी पर बैठ गया. ‘‘तुम्हारा फरीदाबाद का प्रोजेक्ट कैसा चल रहा है?’’

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‘‘सर, बहुत अच्छा चल रहा है. निर्धारित समय पर काम हो रहा है और भुगतान भी ठीक समय से हो रहा है.’’ ‘‘बहुत अच्छा है. मुझे तुम से यही उम्मीद थी, पर मैं तुम्हें ऐसा काम देना चाहता हूं जो सिर्फ तुम ही कर सकते हो.’’

शशांक चुपचाप बैठा अपने निदेशक मि. बनर्जी को देखता रहा. उसे लगा कि बस, गर्दन पर तलवार गिरने वाली है. ‘‘शशांक, तुम्हें तो पता है कि लखनऊ वाले प्रोजेक्ट में कंपनी की बदनामी हो रही है. भुगतान बंद हो चुका है. हमें पैसा वापस करने का नोटिस भी मिल चुका है. मैं चाहता हूं कि तुम वह काम देखो.’’

‘‘लेकिन वह काम तो जतिन गांगुली देख रहे हैं,’’ शशांक ने कहा. ‘‘मैं ने फैसला किया है कि अब कंपनी के हित में लखनऊ का प्रोजेक्ट तुम देखोगे और जतिन गांगुली फरीदाबाद का प्रोजेक्ट संभालेगा.’’

शशांक की इच्छा हुई कि कह दे कि उस के साथ इसलिए ज्यादती हो रही है क्योंकि वह बंगाली नहीं है. उस ने सोचा कि कंपनी अध्यक्ष से जा कर मिले पर उसे याद आया कि कंपनी अध्यक्ष सेनगुप्ता साहब भी बंगाली हैं. वह भी बंगाली का ही साथ देंगे. शशांक अपने केबिन में जाने से पहले अपनी सहकर्मी वंदना के केबिन पर रुका.

‘‘वंदना, चलो काफी पीते हैं. मुझे तुम से कुछ पर्सनल बात करनी है.’’ काफी पीतेपीते शशांक ने उसे सारी बात बता दी.

‘‘अगले 3 माह में प्रमोशन के लिए निर्णय लिए जाएंगे. यह मामला जतिन गांगुली के प्रमोशन का है. लखनऊ प्रोजेक्ट की जो उस ने हालत की है, उस से प्रमोशन तो दूर उसे कंपनी से निकाल देना चाहिए,’’ वंदना ने कहा. ‘‘क्या मैं सेनगुप्ता साहब से मिलूं?’’

‘‘नहीं, उस से फायदा नहीं होगा. तुम्हें लखनऊ जाना पडे़गा पर फरीदाबाद प्रोजेक्ट की फाइलों की सूची बना कर, आज की स्थिति की रिपोर्र्ट बना कर तुम जतिन गांगुली के दस्तखत ले लेना और उस की कापी सेनगुप्ता साहब को भेज देना. प्रोजेक्ट में गड़बड़ होने पर वे लोग तुम्हें दोष दे सकते हैं,’’ वंदना ने सुझाव दिया. कुछ समय तक दोनों के बीच खामोशी छाई रही.

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‘‘शशांक, तुम से एक बात पूछना चाहती हूं. मुझे दोस्त समझ कर सचसच बताना,’’ वंदना बोली. ‘‘क्या बात है?’’

‘‘कहीं तुम्हारे और तुम्हारी पत्नी सरिता के बीच तनाव तो नहीं?’’ ‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘पिछले हफ्ते तुम फरीदाबाद प्रोजेक्ट की मीटिंग में थे तब शाम को 8 बजे सरिता का फोन मेरे घर पर आया था. तुम्हारे बारे में पूछ रही थी.’’ शशांक को अपनी पत्नी पर क्रोध आ गया. पर उस ने कहा, ‘‘उस दिन मैं उसे बताना भूल गया था. इसलिए वह परेशान होगी.’’

‘‘शशांक, प्रोजेक्ट और प्रमोशन के बीच में अपने परिवार को मत भूलो,’’ वंदना ने गंभीरता से कहा. ‘‘आज कोई मीटिंग नहीं थी क्या? जल्दी आ गए,’’ सरिता ने शशांक के घर पहुंचने पर व्यंग्य भरे लहजे में पूछा.

शशांक के मन में क्रोध भरा हुआ था. वह बिना जवाब दिए अपने कमरे में चला गया. ‘‘मुझे लखनऊ वाले प्रोजेक्ट पर काम दिया गया है. कल ही मैं 1 सप्ताह के लिए लखनऊ जा रहा हूं,’’ उस ने रात को खाना खाते हुए सरिता से कहा.

‘‘अकेले जा रहे हो? क्या तुम्हारी प्यारी दोस्त वंदना नहीं जा रही है?’’ शशांक को लगा कि उस के संयम की सीमा पार हो चुकी है और वह अभी सरिता के गाल पर तमाचा लगा देगा. पर वह आग्नेय नेत्रों से सरिता को देख कर आधा खाना खा कर ही उठ गया.

दूसरे दिन लखनऊ पहुंच कर शशांक कंपनी के अतिथिगृह में ठहरा, जहां उस की मुलाकात अतिथिगृह के प्रभारी हरिराम से हुई. ‘‘नमस्ते साहब,’’ हरिराम ने हाथ जोड़ कर कहा.

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यह कैसा प्यार- भाग 3

रमा के पिता ने विजय को घर बुला कर कहा, ‘‘तुम घर के लड़के हो. रमा के लिए लड़के वाले देखने आए थे. उन्होंने रमा को पसंद कर लिया है. मैं चाहता हूं तुम मेरे साथ चलो. हम भी उन का घरपरिवार देख आएं.’’

विजय चाह कर भी मना न कर सका. लड़के वालों ने अच्छा स्वागतसत्कार किया. रमा के पिता ने विवाह की स्वीकृति दे दी.

विजय ने बातोंबातों में लड़के का मोबाइल नंबर ले लिया. साथ ही, घर का पता दिमाग में नोट कर लिया. विजय भलीभांति जानता था कि वह जो कर रहा है और करने वाला है, वह गलत है. लेकिन उस ने स्वयं को समझाया कि रास्ता गलत है, पर मकसद तो अपने प्यार को पाना है. विजय ने रमा के चरित्रहनन की झूठी कहानी बना कर लड़के के पते पर भेजी. साथ ही, रमा को पढ़ाने वाले प्रोफैसर, उस की सहेलियों को भी रमा के विषय में लिख भेजा.

एकदो पत्र तो उस ने महल्ले के लड़कों के नाम, एक अधेड़ प्रोफैसर के नाम इस तरह भेजे मानो रमा अपने प्रेम का इजहार कर रही हो. बात तेजी से फैली. कुछ लोगों ने रमा को पत्र का जवाब लिखा. कुछ लोगों ने उस के पिता को पत्र दिखाया. न जाने कितने प्रकार के अश्लील पत्र रमा की तरफ से विजय ने भेजे.

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कालेज, महल्ले में तमाशा खड़ा हो गया. रमा को समझ ही नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है. जितनी सफाई रमा और उस का परिवार देता, मामला उतना ही उछलता. लड़कियों को ले कर भारतीय समाज संवेदनहीन है. सब मजे लेले कर एकदूसरे को किस्से सुना रहे थे.

हालांकि समझने वाले समझ गए थे कि किसी ने शरारत की है लेकिन समझने के बाद भी लोग अश्लील पत्रों का आनंद ले कर एकदूसरे को सुना रहे थे. प्रोफैसर ने तो अपने कक्ष में बुला कर रमा को अपने सीने से लगा लिया और कहा, ‘‘मैं भी तुम से प्यार करता हूं.’’ जब रमा ने थप्पड़ जमाया तब प्रोफैसर को समझ आया कि वे धोखा खा गए.

लड़के के मोबाइल पर अज्ञात नंबर से रमा का प्रेमी बन कर विजय ने यह कहते हुए जान से मारने की धमकी दी कि रमा और मैं एकदूसरे से प्यार करते हैं पर घर वाले उस की जबरदस्ती शादी कर रहे हैं. यदि तुम ने शादी की तो मार दिए जाओगे.

लड़के वालों के परिवार ने रिश्ता तोड़ दिया. अच्छीभली लड़की का पूरे महल्ले में तमाशा बन गया. बेगुनाह होते हुए भी रमा और उस का परिवार किसी से नजर नहीं मिला पा रहे थे.

विजय को अनोखा आनंद आ रहा था. उस के मातापिता का उजाड़ चेहरा देख कर उसे लग रहा था कि मंजिल अब करीब है.

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रमा के पिता तो शहर छोड़ने का मन मना चुके थे. पुलिस में रिपोर्ट करने पर पुलिस अधिकारी ने उलटा उन्हें ही समझा दिया, ‘‘लड़की का मामला है, आप लोगों की खामोशी ही सब से बढि़या उत्तर है. जितनी आप सफाई देंगे, जांच करवाएंगे, आप की ही मुसीबत बढ़ेगी.’’

विजय को फोन कर के रमा के पिता ने अपने घर बुलाया. रमा की मां का रोरो कर बुरा हाल था. रमा के पिता ने उदास स्वर में विजय से कहा, ‘‘पता नहीं मेरी बेटी से किस की क्या दुश्मनी है कि उसे चरित्रहीन घोषित कर दिया. उस की शादी टूट गई. हम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. बेटा, तुम तो जानते हो रमा को अच्छी तरह से.’’

विजय ने अपनी खुशी को छिपाते हुए गंभीर स्वर में कहा, ‘‘जी अकंलजी, मैं तो बचपन से देख रहा हूं. रमा पाकपवित्र लड़की है. मैं तो आंख बंद कर के विश्वास करता हूं रमा पर.’’

‘‘बेटा, तुम रमा से शादी कर लो,’’ रमा के पिता ने हाथ जोड़ते हुए विजय से कहा, ‘‘मैं तुम्हारा जीवनभर ऋणी रहूंगा. अन्यथा हम तो शहर छोड़ कर जाने की सोच रहे हैं.’’ रमा दरवाजे के पास छिप कर सुन रही थी और देख रही थी अपने दबंग पिता को नतमस्तक होते हुए.

नादानियां- भाग 3: उम्र की इक दहलीज

राकेश का माथा ठनका. अब उस ने प्रथमा की बचकानी हरकतों पर गौर करना शुरू किया. उसे दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली नजर आने लगी. उसे याद आया कि बातबात पर ‘पापा’ कहने वाली प्रथमा आजकल उस से बिना किसी संबोधन के ही बात करती है. उस की उम्र का अनुभव उसे चेता रहा था कि प्रथमा उस से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश कर रही है मगर उस के घर का संस्कारी माहौल इस की बगावत कर रहा था, वह ऐसी किसी भी संभावना के खिलाफ था. इस कशमकश से बाहर निकलने के लिए राकेश ने एक रिस्क लेने की ठानी. वह अपने तजरबे को परखना चाहता था. प्रथमा की मानसिकता को परखना चाहता था. जल्द ही उसे ऐसा एक मौका भी मिल गया. साल अपनी समाप्ति पर था. हर जगह न्यू ईयर सैलिब्रेशन की तैयारियां चल रही थीं. रितेश को उस के एक इवैंट मैनेजर दोस्त ने न्यू ईयर कार्निवाल का एक कपल पास दिया. ऐन मौके पर रितेश का जाना कैंसिल हो गया तो प्रथमा ने राकेश से जिद की, ‘‘चलिए न. हम दोनों चलते हैं.’’ राकेश को अटपटा तो लगा मगर वह इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहता था, इसलिए उस के साथ जाने के लिए तैयार हो गया.

पार्टी में प्रथमा के जिद करने पर वह डांसफ्लोर पर भी चला गया. जैसा कि उस का अनुभव कह रहा था, प्रथमा उस से एकदम चिपक कर डीजे की तेज धुन पर थिरक रही थी. कभी अचानक उस की बांहों में झूल जाती तो कभी अपना चेहरा बिलकुल उस के पास ले आती. अब राकेश का शक यकीन में बदल गया. वह समझ गया कि यह उस का वहम नहीं है बल्कि प्रथमा अपने पूरे होशोहवास में यह सब कर रही है. मगर क्यों? क्या यह अपने पति यानी रितेश के साथ खुश नहीं है? क्या इन के बीच सबकुछ ठीक नहीं है? प्रथमा जनून में अपनी हदें पार कर के कोई सीन क्रिएट करे, इस से पहले ही वह उसे अपनी तबीयत खराब होने का बहाना बना कर वहां से वापस ले आया. राकेश को रातभर नींद नहीं आई. पिछले दिनों की घटनाएं उस की आंखों में चलचित्र की तरह गुजरने लगीं.

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रितेश का अपनी मां से अत्यधिक लगाव ही प्रथमा के इस व्यवहार की मूल जड़ था. नवविवाहिता पत्नी को छोड़ कर उस का अपनी मां के पल्लू से चिपके रहना एक तरह से प्रथमा के वजूद को चुनौती थी. उसे लग रहा था कि उस का रूप और यौवन पति को बांधने में नाकामयाब हो रहा है. ऐसे में इस नादान बच्ची ने यह रास्ता चुना. शायद उस का अवचेतन मन रितेश को जताना चाहता था कि उस के लावण्य में कोई कमी नहीं है. वह किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम है.

बेचारी बच्ची, इतने दिनों तक कितनी मानसिक असुरक्षा से जूझती रही. रितेश को तो शायद इस बात का अंदाजा भी नहीं होगा कि उस का मम्मीप्रेम क्या गुल खिला रहा है. और वह भी तो इस द्वंद्व को कहां समझ सका…या फिर शायद प्रथमा मुझ पर डोरे डाल कर अपनी सास को कमतरी का एहसास कराना चाहती है. ‘कारण जो भी हो, मुझे प्रथमा को इस रास्ते से वापस मोड़ना ही होगा,’ राकेश का मन उस के लिए द्रवित हो उठा. उस ने मन ही मन आगे की कार्ययोजना तय कर ली और ऐसा होते ही उस की आंखें अपनेआप मुंदने लगीं और वह नींद की आगोश में चला गया.

अगले दिन राकेश ने औफिस से आते ही पत्नी के पास बैठना शुरू कर दिया और चाय उस के साथ ही पीने लगा. वह रितेश को किसी न किसी बहाने से उस की चाय ले कर प्रथमा के पास भेज देता ताकि वे दोनों कुछ देर आपस में बात कर सकें. चाय पी कर राकेश पत्नी को ले कर पास के पार्क में चला जाता. जाने से पहले रितेश को हिदायत दे कर जाता कि वह दोस्तों के पास जाने से पहले प्रथमा के साथ कम से कम 1 घंटे बैठे.

शुरूशुरू में तो प्रथमा और रितेश को इस फरमान से घुटन सी हुई क्योंकि दोनों को ही एकदूसरे की आदत अभी नहीं पड़ी थी मगर कुछ ही दिनों में उन्हें एकदूसरे का साथ भाने लगा. कई बार राकेश दोनों को अकेले सिनेमा या फिर होटल भी भेज देता था. हां, पत्नी को अपने साथ घर पर ही रोके रखता. एकदो बार रितेश ने साथ चलने की जिद भी की मगर राकेश ने हर बार यह कह कर टाल दिया कि अब इस उम्र में बाहर का खाना उन्हें सूट नहीं करता. राकेश ने महसूस किया कि अब रितेश भी प्रथमा के साथ अकेले बाहर जाने के मौके तलाशने लगा है यानी उस की योजना सही दिशा में आगे बढ़ रही थी.

हनीमून के बाद रितेश कभी प्रथमा को मायके के अलावा शहर से बाहर घुमाने नहीं ले गया. इस बार उन की शादी की सालगिरह पर राकेश ने जब उन्हें 15 दिनों के साउथ इंडिया ट्रिप का सरप्राइज दिया तो रितेश ने जाने से मना का दिया, कहा, ‘‘हम दोनों के बिना आप इतने दिन अकेले कैसे रहेंगे? आप के खाने की व्यवस्था कैसे होगी? नहीं, हम कहीं नहीं जाएंगे और अगर जाना ही है तो सब साथ जाएंगे.’’ ‘‘अरे भई, मैं तो तुम दोनों को इसलिए भेज रहा हूं ताकि कुछ दिन हमें एकांत मिल सके. मगर तुम हो कि मेरे इशारे को समझ ही नहीं रहे.’’ राकेश ने अपने पुराने नाटकीय अंदाज में कहा तो रितेश की हंसी छूट गई. उस ने हंसते हुए प्रथमा से चलने के लिए पैकिंग करने को कहा और खुद भी उस की मदद करने लगा.

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15 दिनों बाद जब बेटाबहू लौट कर आए तो दोनों के ही चेहरों पर असीम संतुष्टि के भाव देख कर राकेश ने राहत की सांस ली. दोनों उस के चरणस्पर्श करने को झुके तो उन्होंने बच्चों को बांहों में समेट लिया. प्रथमा ने आज न जाने कितने दिनों बाद उसे फिर से ‘पापा’ कह कर संबोधित किया था. राकेश खुश था कि उस ने राह भटकती एक नादान को सही रास्ता दिखा दिया और खुद भी आत्मग्लानि से बच गया.

हकीकत- भाग 3: क्या रश्मि की मां ने शादी की मंजूरी दी?

राइटर- सोनाली करमरकर

“ठीक है, मैं आज ही तुम्हारे पापा से बात करूंगी,” मम्मी ने उसे दिलासा दिया.

अगला दिना हमेशा से ज्यादा खूबसूरत था. पापा ने रश्मि से गोविंद के बारे में बात की, उस की सारी जानकारी ली. मम्मी ने भी प्यार से नाश्ता कराया. रश्मि मानो बादलों पर सवार हो कर औफिस पहुंची. तभी उसे गोविंद का एसएमएस मिला कि वह 2-3 दिन बाद आएगा.

इस तरह 5 दिन गुजर गए. रश्मि के मन में अब बुरे खयाल आने लगे. जब रश्मि गोविंद को फोन करती, तो वह बड़े रूखेपन से पेश आता और कहता कि अभी वह बिजी है.

उस दिन जब रश्मि औफिस पहुंची तो उसे गोविंद अपने के‍बिन में नजर आया. मारे खुशी के वह उस की तरफ गई, पर बिजी होने का बहाना बना कर गोविंद फोन उठा कर किसी और से बात करने लगा. जैसे रश्मि के लिए यह वहां से जाने का इशारा हो.

किसी अनजाने डर से रश्मि का मन कांप उठा, फिर भी उस ने अपने मन को समझाया कि हो सकता है वाकई गोविंद बिजी हो, आखिर मैनेजर है वह कंपनी का. वह भी काम में अपना ध्यान लगाने की कोशिश करने लगी.

शाम को 5 बजे जब रश्मि गोविंद के के‍बिन में गई, तो पता चला कि वह तो कब का जा चुका है. रश्मि ने जल्दी से गोविंद को फोन मिलाया तो उस का मोबाइल स्विच औफ आने लगा.

‘आखिर क्या बात हो सकती है, जो गोविंद मुझे ऐसे टाल रहा है…’ सोच कर रश्मि बेचैन होने लगी. अगले 2 दिनों तक गोविंद यों ही उस से लुकाछुपी खेलता रहा.

एक दिन तंग आ कर रश्मि जब गोविंद के घर पहुंची तो दरवाजे पर ताला झूल रहा था. वह वहीं गोविंद का इंतजार करती रही. जब साढ़े 8 बजे के आसपास गोविंद घर लौटा तो रश्मि को वहां देख कर वह दंग रह गया. ताला खोल कर गोविंद ज्यों ही अंदर गया, पीछेपीछे रश्मि भी आ गई.

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“तुम्हे क्या लगा था गोविंद कि अगर तुम टालते रहोगे तो हम मिल नहीं सकते? इतना रूखा बरताव क्यों है तुम्हारा? इस तरह क्यों कतरा रहे हो मुझ से?” अंदर आते ही रश्मि बिफर पड़ी.

“रश्मि, मैं ज्यादा कुछ नहीं कह सकता. बस, यह समझ लो कि हमारी शादी अब नहीं हो सकती,” गोविंद ने बात खत्म करते हुए कहा.

“अरे, यह क्या बात हुई? शादी का फैसला तो हम दोनों का था. अब इस तरह तुम कैसे बदल सकते हो? और तुम्हारी मां ने भी तो हां कहा था, फिर अब क्या मुसीबत आ गई?” रश्मि गुस्से से बोली.

“देखो रश्मि, मां ने अब इनकार कर दिया है. और वजह तुम न ही जानो तो अच्छा है. बस, इतना कह सकता हूं कि आज के बाद हम दोनों न ही मिलें तो बेहतर है.”

“वजह तो तुम्हें बतानी पड़ेगी. आखिर खुशियां बड़ी मुश्किल से मेरे दरवाजे पर आई हैं. मैं उन को तुम्हारे साथ जीना चाहती हूं,” रश्मि की आंखों की बेबसी गोविंद को तड़पा रही थी. वह नहीं चाहता था कि रश्मि वजह जाने.

“ठीक है, बताता हूं. लेकिन यह भी सुन लो कि जो मैं तुम्हे बताना चाहता हूं उस से मैं सहमत तो नहीं हूं, पर मैं कुछ नहीं कर सकता.

“मैं जब यहां से टूर पर गया था, वहीं से मां को लेने अपने गांव चला गया था. मां तुम्हारे बारे में जान कर बहुत खुश थीं. तुम्हें देने के लिए उन्हें कुछ खरीदारी करनी थी, तो उन्होंने मुझे 2 दिन और रुकने को कहा.

“जिस रात को हम निकलने वाले थे उस दिन दोपहर की डाक से हमें एक लिफाफा मिला, जिस में तुम्हारे बारे में काफी गलतसलत लिखा गया था…”

“क्या लिखा था,” रश्मि ने बड़ी हैरानी से पूछा.

“उस में लिखा था कि चिट्ठी लिखने वाला तुम्हें अच्छी तरह जानता है. तुम्हारा चरित्र अच्छा नहीं है, इसी वजह से तुम्हारी शादी 2-3 बार टूट चुकी है, वरना 30 साल की उम्र तक तुम कुंआरी क्यों रहती? वह भी अच्छाखासा कमाने वाली हो तब भी?

“बस, मां ने चिट्ठी पढ़ कर इस शादी से मना कर दिया. वे नहीं चाहती हैं कि उन की बहू चरित्रहीन हो. मैं ने समझाने की बहुत कोशिश की, मगर वे मानने को तैयार नहीं हैं और मैं उन्हें इस उम्र में अकेला नहीं छोड़ सकता.

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“तुम्हारे ‍बिना मेरी जिंदगी मुश्किल होगी, पर मुझे मां के लिए यह सहना ही होगा. मुझे माफ कर दो…” सब बता कर गोविंद ने उस के सामने वह लिफाफा रख दिया.

रश्मि ने लिफाफा खोल कर देखा तो उस की आंखें फटी रह गईं. उस ने उस लिखावट को पहचान लिया. आखिर कैसे भूल सकती थी वह उस लिखावट को जो उस के लिए आदर्श थी… बचपन में उस में संस्कार भरने वाले यही तो अक्षर थे.

3 बार अपनी शादी टूटने का सबब रश्मि की समझ में आ गया. भावनाओं के बवंडर में उलझी वह अनायास बोल पड़ी, “आप ने यह क्या कर दिया पापा..” और फिर उस के सब्र का बांध टूट गया.

“रश्मि, क्या यह खत तुम्हारे पापा ने भेजा है?” गोविंद ने हैरान हो कर पूछा.

रश्मि कुछ न कह सकी. वह अपने पापा को गोविंद की नजरों में गिराना नहीं चाहती थी. लेकिन गोविंद अब जानने को मचल रहा था. रश्मि ने कड़े मन से अपने अतीत की सारी बातें उस के सामने रख दीं.

“मैं तो अपने हिस्से का फर्ज निभा चुकी हूं गोविंद. अब पापा की बारी है न? आखिर कब तक फर्ज के नाम पर मैं तनहाई के ‍बियाबान रास्ते पर चलती रहूंगी? कब तक रोऊंगी? कब तक कमजोर रहूंगी? खोखले रिश्ते के मकड़जाल में कब तक उलझी रहूंगी?

“तुम कहो तो मैं अपने पापा का घर हमेशा के लिए छोड़ दूंगी…” पता नहीं रश्मि की संजीदा आवाज में कैसी कसक थी, जो गोविंद को भीतर तक झकझोर गई.

“नहीं पगली. ऐसा नहीं कहते. तुम्हारे पापा को डर है कि तुम्हारी शादी हो गई तो उन का क्या होगा, क्योंकि बेटे ने तो पहले से ही पल्ला झाड़ लिया है. उन की भावनाओं को मैं समझ सकता हूं रश्मि. ये बातें तुम्हें पहले बतानी चाहिए थीं. हम कुछ हल जरूर निकाल लेते..”

“क्या अब कुछ नहीं हो सकता है? मुझे यों अकेला छोड़ कर मत जाओ गोविंद. मैं तुम्हारे बिना रह नहीं पाऊंगी,” रश्मि ने उसे कस कर पकड़ लिया.

“हां, हम जरूर कोशिश करेंगे…” गोविंद उसे सहला कर शांत करता रहा, “रश्मि, मेरे खयाल से तुम्हारे पापा अपनी और तुम्हारी मम्मी की बची हुई जिंदगी के लिए परेशान हैं, तुम्हारी शादी से नहीं. अगर तुम्हारी शादी होती है तो उन्हें दामाद के घर में रहना शायद पसंद न आए.

“देखो, हम दोनों की नौकरी इसी शहर में है, तो शादी के बाद हम दोनों उम्रभर उन के साथ रह लेंगे. कभीकभी मां भी हमारे साथ रहने आ जाया करेंगी. मैं तुम्हारे मम्मीपापा का बेटा बन कर उन का खयाल रखूंगा. फिर तो उन्हें हमारी शादी से कोई एतराज नहीं होगा न?”

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गोविंद की बातों से रश्मि के मन में उम्मीद के चिराग टिमटिमा उठे, “क्या यह मुमकिन है गोविंद?” उस ने भरी आंखों से पूछा.

“हां, थोड़ा मुश्किल तो है पर नामुमकिन नहीं है. मेरी मां को राजी करवाना पड़ेगा. और मैं तुम्हारे लिए इतना तो करूंगा ही रश्मि.”

“अपने रिश्ते को समेट लो गोविंद… इस से पहले कि कुछ और बिखर जाए…”  रश्मि ने बड़े विश्वास से अपना सिर गोविंद के कंधे पर रख दिया. गोविंद ने उसे अपनी मजबूत बांहों में कस लिया.

मेरा कुसूर क्या है: भाग 2

लेखक- एस भाग्यम शर्मा

‘20 साल की लड़की 12 लोगों का खाना बनाती है और उस से उम्मीद की जाती है कि पूरे घर की साफसफाई,  झाड़ूपोंछा वही लगाए, पूरे घर वालों के कपड़े धोए, देवरों को पढ़ाए.’

ससुर अफसर थे, साथ में, पत्नी के नाम से इंश्योरैंस का काम भी करते थे. पत्नी तो पढ़ीलिखी नहीं थी, सो उस का काम भी मुझ से कराना चाहते हैं. इस के अलावा मुझे कालेज भी जाना पड़ता था अपनी पढ़ाई पूरी करने.’

मेरी मम्मी मेरी हालत जान कर परेशान होतीं और पापा से कहतीं, ‘मैं बात करूं?’

पापा कहते, ‘ऐसे तो संबंध बिगड़ जाएगा. हर बात की तुम्हें जल्दी पड़ी रहती है. शादी की भी जल्दी थी, अब बात करने की भी जल्दी है.’

और लोगों ने भी मम्मी को सम झाया कि जल्दबाजी मत करो. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.

सब से बड़ी बात तो सासससुर को छोड़ो, मेरे पति ने सरकारी नौकरी को छोड़ कर निजी कंपनी में नौकरी कर ली.

इतने में मैं प्रैग्नैंट हो गई. मेरी तबीयत खराब रहने लगी. ऊपर से पढ़ाई और काम करना बहुत मुश्किल हो गया. पीहर वालों की प्रेरणा से किसी प्रकार से मैं ने परीक्षा की तैयारी की. गर्भ को पूरा समय था जब मैं ने एग्जाम दिया.

बहुत मुश्किल से गरमी के दिनों में भी एग्जाम देने जाती थी.

खैर, परीक्षा खत्म होने के हफ्तेभर बाद बेटा पैदा हुआ. उस के पहले मेरी सास ही नहीं, पति और देवर भी कहते थे कि हमारे घर में लड़की होने का रिवाज नहीं है. हमारे घर तो लड़के ही होते हैं. लड़कियां चाहिए भी नहीं.

इन बातों को सुन कर मु झे बहुत घबराहट होती थी.

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मैं मम्मी से कहती, ‘मम्मी, यदि लड़की हो जाए तो ये लोग लड़ाई करेंगे?’ मम्मी परेशान हो जातीं.

वे लोग मु झे पीहर आने नहीं दे रहे थे पर मैं जिद कर के आ गई थी.

बेटा हुआ तो ससुराल वालों को सूचित किया गया. 5 मिनट के लिए सासुमां आईं.

इस के पहले मम्मी ने मेरी जन्मपत्री पंडितजी को दिखाई. उन्होंने बहुत सारे उपचार बताए. मम्मी ने सब पर खर्चा किया. पर उस से कुछ नहीं हुआ.

कोई और आया नहीं. न कोई खर्चा किया, न कोई फंक्शन. मम्मीपापा ने ही सारे खर्चे उठाए. मु झे विदा करते समय भी मम्मी ने बहुतकुछ दिया.

मम्मी नौकरी करती थीं, बावजूद छुट्टी ले कर सबकुछ करना पड़ा, जिस का मु झे बहुत दुख हुआ. ससुराल वाले आ कर मु झे ले गए.

बच्चा रोता तो उस को ले कर पति मुझे खड़े रहने को बोलते. ठंड में मैं बिना कपड़े के ही खड़ी रहती. इन परिस्थितियों में राजीव का ट्रांसफर छोटे गांव में हो गया. वे मु झे वहां ले कर गए.

यह ट्रांसफर राजीव ने जानबू झ कर कराया था ताकि मैं दूरदर्शन और आकाशवाणी में न जा सकूं.

वहां रोज मु झ से लड़ाई करते. सुबह ठंड के दिनों में 4 बजे उठ कर नहाने को कहते. ‘आज चौथ का व्रत है’, ‘आज पूर्णमासी है’, ‘आज एकादशी है…’ रोज कुछ न कुछ होता और मु झे व्रत रखने को मजबूर करते.

मु झे बहुत एसिडिटी होती थी. डाक्टर ने मु झे खाली पेट रहने को मना किया. पर मैं क्या कर सकती थी.

‘हमारे यहां तो सारी औरतें रखती हैं. तुम कोई अनोखी हो क्या? तुम्हें अपनी पढ़ाई का घमंड है.’

मैं जब भी अपनी मम्मी को चिट्ठी लिखती, तो राजीव कहते कि मैं पोस्ट कर दूंगा. मु झे लगता वे कर देंगे, मगर मम्मी ने मु झे बताया कि उन के पास कोई चिट्ठी ही नहीं आई.

मम्मी कोई चिट्ठी भेजतीं तो औफिस के पते पर पोस्ट करने को कहा जाता. मैं ने कहा कि घर के पते पर मंगाओ तो राजीव कहते कि यहां पर ठीक से पोस्टमैन नहीं आता.

मम्मी के पत्रों को भी मु झे नहीं दिया जाता. मेरे पत्रों को संदूक में बंद कर के ताला लगा जाते. इस का तो मु झे पता ही नहीं था.

एक दिन राजीव ताला लगाना भूल गए. मैं ने जो उसे खोल कर देखा तो सारे पत्र उस में थे. मु झे बहुत तेज गुस्सा आया. मैं ने राजीव से औफिस से आते ही कहा तो मु झे गालियां देने लगे और बुरी तरह से पिटाई भी की और बाहर से ताला लगा कर कहीं चले गए.

फिर मैं ने पड़ोसियों को आवाज दी और बोली, ‘‘मेरे पति मेरे सोते समय ताला लगा चले गए. अब उन के आने में देर हो रही है बच्चा रो रहा है. अब प्लीज आप ताला तोड़ दो.’’

कोई सज्जन पुरुष थे. उन्होंने ताला तोड़ दिया तो मैं उन्हें शुक्रिया कह कर जयपुर आ गई.

मम्मीपापा मु झे देख कर दंग रह गए. मेरी मम्मी को तो बहुत गुस्सा आया और वे खूब चिल्लाने लगीं. पापा मेरे सहनशील व्यक्ति थे.

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उन्होंने कहा, ‘आकांक्षा की ससुराल में सूचित कर देता हूं. ऐसे मामले में जल्दबाजी ठीक नहीं.’

ससुराल वालों ने अपने बेटे की गलती को मानने के बदले मेरी सहनशीलता को दोष दिया. खैर, हम ने कुछ नहीं किया.

पापा बोले, ‘ऐसी स्थिति में बेटी को हम बीएड करा कर पैरों पर खड़ा कर देते हैं.’

मैं बीएड की तैयारी में लग गई.

राजीव का पत्र आया कि तुम आ जाओ, सब ठीक हो जाएगा. जब उन्हें पता चला कि मैं बीएड की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही हूं तो ससुराल वालों ने राजीव को हमारे घर पर भेजा.

‘अब मैं ठीक रहूंगा, तुम्हें कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगा. तुम मेरे साथ आ जाओ. मैं तुम्हें नौकरी भी करने दूंगा,’ राजीव कहने लगे.

मैं ने उन से कहा, ‘बगैर बीएड किए मैं यहां से नहीं जाऊंगी.’

राजीव उस समय तो यहां से चले गए. फिर जहां नौकरी करते थे वहां के जिले में कोर्ट केस कर दिया, ‘मेरी पत्नी को मेरे साथ आ कर रहना चाहिए. मैं चाहता हूं वह मेरे साथ रहे.’

सब लोग कहने लगे, ‘वह इतना खराब तो नहीं है. उस ने कोई लांछन नहीं लगाया तुम्हारे ऊपर.’

मेरे घर वालों ने भी कहा कि हम भी ठीकठाक ही जवाब दे देते हैं. ऐसे रिश्ते को तोड़ना ठीक नहीं है. एक बच्चा भी  हो गया.’ मैं कोर्ट में गई. आमनेसामने देख कर सम झौते की बात करने लगा. वकील भी बोले, यही ठीक रहेगा. उस समय राजीव ने सारी बातें मान लीं.

तब सारे रिश्तेदारों ने मु झे सम झाया.

मेरी मम्मी तो ज्योतिष के चक्कर में पड़ गईं. बड़ेबड़े ज्योतिषाचार्य के पास गईं. सब ने कहा कि इस का यह उपचार करो, वह यज्ञ करो. यह दान दो वह दान दो. उस मंदिर में पूजा करो, वहां अर्चना करो…

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दिल वर्सेस दौलत: भाग 2

लेखिका- रेणु गुप्ता

‘लेकिन मैं सोच रही हूं अगर अबीर भी दादी की तरह हुआ तो क्या तू खर्चे को ले कर उस की तरफ से किसी भी तरह की टोकाटाकी सह पाएगी? खुद कमाएगी नहीं, खर्चे के लिए अबीर का मुंह देखेगी. याद रख लड़की, बच्चे अपने बड़ेबुजुर्गों से ही आदतें विरासत में पाते हैं. अबीर ने भी अगर तेरे खर्चे पर बंदिशें लगाईं तो क्या करेगी? सोच जरा.’

‘अरे मां, क्या फुजूल की हाइपोथेटिकल बातें कर रही हैं? क्यों लगाएगा वह मु झ पर इतनी बंदिशें? इतना बढि़या पैकेज है उस का. फिर अबीर मु झे अपनी दादी के बारे में बताता रहता है. कहता है, वे बहुत स्नेही हैं. पहली बार जब वे लोग हमारे घर आए थे, दादी ने मु झे कितनी गर्माहट से अपने सीने से चिपकाया था. मेरे हाथों को चूमा था.’

‘तो लाली बेटा, तुम ने पूरापूरा मन बना लिया है कि तुम अबीर से ही शादी करना चाहती हो. सोच लो बेटा, तुम्हारी मम्मा की बातों में भी वजन है. ये पूरी तरह से गलत नहीं. उन के और हमारे घर के रहनसहन में मु झे भी बहुत अंतर लगा. तुम कैसे ऐडजस्ट करोगी?’’ पापा ने कहा था.

‘अरे पापा, मैं सब ऐडजस्ट कर लूंगी. जिंदगी तो मु झे अबीर के साथ काटनी है न. और वह बेहद अच्छा व जैनुइन लड़का है. कोई नशा नहीं है उस में. मैं ने सोच लिया है, मैं अबीर से ही शादी करूंगी.’

‘लाली बेटा, यह क्या कह रही हो? मैं ने दुनिया देखी है. तुम तो अभी बच्ची हो. यह सीने से चिपकाना, आशीष देना, चुम्माचाटी थोड़े दिनों के शादी से पहले के चोंचले हैं. बाद में तो, बस, उन की रोकटोक, हेकड़ी और बंधन रह जाएंगे. फिर रोती झींकती मत आना मेरे पास कि आज सास ने यह कह दिया और दादी सास ने यह कह दिया.

‘और एक बात जो मु झे खाए जा रही है वह है उन का टू बैडरूम का दड़बेनुमा फ्लैट. हर बार त्योहार के मौके पर तु झे ससुराल तो जाना ही पड़ेगा. एक बैडरूम में अबीर के पेरैंट्स रहते हैं, दूसरे में उस की दादी. फिर तू कहां रहेगी? तेरे हिस्से में ड्राइंगरूम ही आएगा? न न न, शादी के बाद मेरी नईनवेली लाडो को अपना अलग एक कमरा भी नसीब न हो, यह मु झे बिलकुल बरदाश्त नहीं होगा.

‘सम झा कर बेटा, हमारे सामने यह खानदान एक चिंदी खानदान है. कदमकदम पर तु झे इस वजह से बहू के तौर पर बहुत स्ट्रगल करनी पड़ेगी. न न, कोई और लड़का देखते हैं तेरे लिए. गलती कर दी हम ने, तु झे अबीर से मिलाने से पहले हमें उन का घरबार देख कर आना चाहिए था. खैर, अभी भी देर नहीं हुई है. मेरी बिट्टो के लिए लड़कों की कोई कमी है क्या?’

‘अरे मम्मा, आप मेरी बात नहीं सम झ रहीं हैं. इन कुछ दिनों में मैं अबीर को पसंद करने लगी हूं. उसे अब मैं अपनी जिंदगी में वह जगह दे चुकी हूं जो किसी और को दे पाना मेरी लिए नामुमकिन होगा. अब मैं अबीर के बिना नहीं रह सकती. मैं उस से इमोशनली अटैच्ड हो गई हूं.’

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‘यह क्या नासम झी की बातें कर रही है, लाली? तू तो मेरी इतनी सम झदार बेटी है. मु झे तु झ से यह उम्मीद न थी. जिंदगी में सक्सैसफुल होने के लिए प्रैक्टिकल बनना पड़ता है. कोरी भावनाओं से जिंदगी नहीं चला करती, बेटा. बात सम झ. इमोशंस में बह कर आज अगर तू ने यह शादी कर ली तो भविष्य में बहुत दुख पाएगी. तु झे खुद अपने पांव पर कुल्हाड़ी नहीं मारने दूंगी. मैं ने बहुत सोचा इस बारे में, लेकिन इस रिश्ते के लिए मेरा मन हरगिज नहीं मान रहा.’

‘मम्मा, यह आप क्या कह रही हैं? मैं अब इस रिश्ते में पीछे नहीं मुड़ सकती. मैं अबीर के साथ पूरी जिंदगी बिताने का वादा कर चुकी हूं. उस से प्यार करने लगी हूं. पापा, आप चुप क्यों बैठे हैं? सम झाएं न मां को. फिर मैं पक्का डिसाइड कर चुकी हूं कि मु झे अबीर से ही शादी करनी है.’

‘अरे भई, क्यों जिद कर रही हो जब यह कह रही है कि इसे अबीर से ही शादी करनी है तो क्यों बेबात अड़ंगा लगा रही हो? अबीर के साथ जिंदगी इसे बितानी है या तुम्हें?’ लाली के पिता ने कहा.

‘आप तो चुप ही रहिए इस मामले में. आप को तो दुनियादारी की सम झ है नहीं. चले हैं बेटी की हिमायत करने. मैं अच्छी तरह से सोच चुकी हूं. उस घर में शादी कर मेरी बेटी कोई सुख नहीं पाएगी. सास और ददिया सास के राज में 2 दिन में ही टेसू बहाते आ जाएगी. जाइए, आप के औफिस का टाइम हो गया. मु झे हैंडल कर लेने दीजिए यह मसला.’

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चेतावनी- भाग 1: मीना उन दोनों के प्रेमसंबंध में क्यों दिलचस्पी लेने लगी?

लेखक- अवनिश शर्मा

उन दोनों की जोड़ी मुझे बहुत जंचती.  पिछले कुछ दिनों से वे दोपहर 1  से 2  के बीच रोज पार्क में आते. युवक कार से और युवती पैदल यहां पहुंचती  थी. दोनों एक ही बैंच पर बैठते  और उन के आपस में बात करने के ढंग को देख कर कोई भी कह सकता कि वे प्रेमीप्रेमिका हैं.

मैं रोज जिस जगह घास पर बैठती थी वहां माली ने पानी दे दिया तो मैं ने जगह बदल ली. मन में उन के प्रति उत्सुकता थी इसलिए उस रोज मैं उन की बैंच के काफी पास शाल से मुंह ढक कर लेटी हुई थी, जब वे दोनों पार्क में आए.

उन के बातचीत का अधिकांश हिस्सा मैं ने सुना. युवती का नाम अर्चना और युवक का संदीप था. न चाहते हुए भी मुझे उन के प्रेमसंबंध में पैदा हुए तनाव व खिंचाव की जानकारी मिल गई.

नाराजगी व गुस्से का शिकार हो कर संदीप कुछ पहले चला गया. मैं ने मुंह पर पड़ा शाल जरा सा हटा कर अर्चना की तरफ देखा तो पाया कि उस की आंखों में आंसू थे.

मैं उस की चिंता व दुखदर्द बांटना चाहती थी. उस की समस्या ने मेरे दिल को छू लिया था, तभी उस के पास जाने से मैं खुद को रोक नहीं सकी.

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मुझ जैसी बड़ी उम्र की औरत के लिए किसी लड़की से परिचय बनाना आसान होता है. बड़े सहज ढंग से मैं ने उस के बारे में जानकारी हासिल की. बातचीत ऐसा हलकाफुलका रखा कि वह भी जल्दी ही मुझ से खुल गई.

इस सार्वजनिक पार्क के एक तरफ आलीशान कोठियां बनी हैं और दूसरी तरफ मध्यमवर्गीय आय वालों के फ्लैट्स हैं. मेरा बड़ा बेटा अमित कोठी में रहता है और छोटा अरुण फ्लैट में.

अर्चना भी फ्लैट में रहती थी. उस की समस्या पर उस से जिक्र करने से पहले मैं उस की दोस्त बनना चाहती थी. तभी जिद कर के मैं साथसाथ चाय पीने के लिए उसे अरुण के फ्लैट पर ले आई.

छोटी बहू सीमा ने हमारे लिए झटपट अदरक की चाय बना दी. कुछ समय हमारे पास बैठ कर वह रसोई में चली गई.

चाय खत्म कर के मैं और अर्चना बालकनी के एकांत में आ बैठे. मैं ने उस की समस्या पर चर्चा छेड़ दी.

‘‘अर्चना, तुम्हारी व्यक्तिगत जिंदगी को ले कर मैं तुम से कुछ बातें करना चाहूंगी. आशा है कि तुम उस का बुरा नहीं मानोगी,’’ यह कह कर मैं ने उस का हाथ अपने दोनों हाथों में ले कर प्यार से दबाया.

‘‘मीना आंटी, आप मुझे दिल की बहुत अच्छी लगी हैं. आप कुछ भी पूछें या कहें, मैं बिलकुल बुरा नहीं मानूंगी,’’ उस का भावुक होना मेरे दिल को छू गया.

‘‘वहां पार्क में मैं ने संदीप और तुम्हारी बातें सुनी थीं. तुम संदीप से प्रेम करती हो. वह एक साल के लिए अपनी कंपनी की तरफ से अगले माह विदेश जा रहा है. तुम चाहती हो कि विदेश जाने से पहले तुम दोनों की सगाई हो जाए. संदीप यह काम लौट कर करना चाहता है. इसी बात को ले कर तुम दोनों के बीच मनमुटाव चल रहा है ना?’’ मेरी आवाज में उस के प्रति गहरी सहानुभूति के भाव उभरे.

कुछ पल खामोश रहने के बाद अर्चना ने चिंतित लहजे में जवाब दिया, ‘‘आंटी, संदीप और मैं एकदूसरे के दिल में 3 साल से बसते हैं. दोनों के घर वालों को हमारे इस प्रेम का पता नहीं है. वह बिना सगाई के चला गया तो मैं खुद को बेहद असुरक्षित महसूस करूंगी.’’

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‘‘क्या तुम्हें संदीप के प्यार पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘भरोसा तो पूरा है, आंटी, पर मेरा दिल बिना किसी रस्म के उसे अकेला विदेश भेजने से घबरा रहा है.’’

मैं ने कुछ देर सोचने के बाद पूछा, ‘‘संदीप के बारे में मातापिता को न बताने की कोई तो वजह होगी.’’

‘‘आंटी, मेरी बड़ी दीदी ने प्रेम विवाह किया था और उस की शादी तलाक के कगार पर पहुंची हुई है. पापा- मम्मी को अगर मैं संदीप से प्रेम करने के बारे में बताऊंगी तो मेरी जान मुसीबत में फंस जाएगी.’’

‘‘और संदीप ने तुम्हें अपने घरवालों से क्यों छिपा कर रखा है?’’

अर्चना ने बेचैनी के साथ जवाब दिया, ‘‘संदीप के पिता बहुत बड़े बिजनेसमैन हैं. आर्थिक दृष्टि से हम उन के सामने कहीं नहीं ठहरते. मैं एम.बी.ए. पूरा कर के नौकरी करने लगूं, तब तक के लिए उस ने अपने मातापिता से शादी का जिक्र छेड़ना टाल रखा था. मेरा एम.बी.ए. अगले महीने समाप्त होगा, लेकिन उस के विदेश जाने की बात के कारण स्थिति बदल गई है. मैं चाहती हूं कि वह फौरन अपने मातापिता से इस मामले में चर्चा छेड़े.’’

अर्चना का नजरिया तो मैं समझ गई लेकिन संदीप ने अभी विदेश जाने से पहले अपने मातापिता से शादी का जिक्र छेड़ने से पार्क में साफ इनकार कर दिया था और उस के इनकार करने के ढंग में मैं ने बड़ी कठोरता महसूस की थी. उस ने अर्चना के नजरिए को समझने की कोशिश भी नहीं की थी. मुझे उस का व्यक्तित्व पसंद नहीं आया था. तभी दुखी व परेशान अर्चना का मनोबल बढ़ाने के लिए मैं ने उस की सहायता करने का फैसला लिया था.

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मेरा 5 वर्षीय पोता समीर स्कूल से लौट आया तो हम आगे बात नहीं कर सके क्योंकि उस की मांग थी कि उस के कपड़े बदलने, खाना परोसने व खिलाने का काम दादी ही करें.

अर्चना अपने घर जाना चाहती थी पर मैं ने उसे यह कह कर रोक लिया कि बेटी, अगर तुम्हें कोई ऐतराज न हो तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूं. तुम्हारी मां से मिलने का दिल है मेरा.

अटूट बंधन- भाग 2: प्रकाश ने कैसी लड़की का हाथ थामा

शालिनी को ऐसा लगा जैसे त्रिशा उस से कुछ छिपा रही थी. फिर भी त्रिशा को छेड़ने के लिए गुदगुदाते हुए उस ने कहा, ‘‘अब इतनी भी उदास मत हो जाओ, उन को याद कर के. जानती हूं भई, याद तो आती है, पर अब कुछ ही दिन तो बाकी हैं न.’’ त्रिशा अपनी आदत के अनुसार मुसकरा उठी. शालिनी को जरा परे धकेलते हुए बोली, ‘‘जाओ, मैं नहीं करती तुम से बात. जब देखो एक ही रट.’’

तभी अचानक त्रिशा का मोबाइल बज उठा. ‘‘उफ, कितनी लंबी उम्र है उन की. नाम लिया और फोन हाजिर,’’ शालिनी उछल पड़ी. ‘‘खूब इत्मीनान से जी हलका कर लो. मैं तो चली,’’ कहती हुई शालिनी कमरे से बाहर निकल गई.

दरअसल, बात यह थी कि कुछ ही दिनों में त्रिशा का प्रेमविवाह होने वाला था. डा. आजाद, जिन से जल्द ही त्रिशा का विवाह होने वाला था, लखनऊ विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक थे. त्रिशा और आजाद ने दिल्ली के एक स्पैशल स्कूल से साथसाथ ही पढ़ाई पूरी की थी. उस के बाद आजाद अपने घर लखनऊ वापस आ गए थे. वहीं से उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की और फिर अपनी रिसर्च भी पूरी की. रिसर्च पूरी करने के कुछ ही दिनों बाद उन्हें यूनिवर्सिटी में ही जौब मिल गई. ऐसा लगता था कि त्रिशा और आजाद एकदूसरे के लिए ही बने थे.

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स्कूल में लगातार पनपने वाला लगाव और आकर्षण एकदूसरे से दूर हो कर प्यार में कब बदल गया, पता ही नहीं चला. शीघ्र ही दोनों ने विवाह के अटूट बंधन में बंधने का फैसला कर लिया. दोनों के न देख पाने के कारण जाहिर है परिवार वालों को स्वीकृति देने में कुछ समय तो लगा, पर उन दोनों के आत्मविश्वास और निश्छल प्रेम के आगे एकएक कर सब को झुकना ही पड़ा.

त्रिशा के बेंगलुरु आने के बाद आजाद बहुत खुश थे. ‘‘चलो अच्छा है, वहां तुम्हें इतने अच्छे दोस्त मिल गए हैं. अब मुझे तुम्हारी इतनी चिंता नहीं करनी पड़ेगी.’’ ‘‘अच्छी बात तो है, पर इस बेफिक्री का यह मतलब नहीं कि आप हमें भूल जाएं,’’ त्रिशा आजाद को परेशान करने के लिए यह कहती तो आजाद का जवाब हमेशा यही होता, ‘‘खुद को भी कोई भूल सकता है क्या.’’

आज जब त्रिशा आजाद से बात कर रही थी तो आजाद को समझते देर न लगी कि त्रिशा आज उन से कुछ छिपा रही है, ‘‘क्या बात है, आज तुम कुछ परेशान हो?’’ ‘‘नहीं तो.’’

‘‘त्रिशा, इंसान अगर खुद से ही कुछ छिपाना चाहे तो नहीं छिपा सकता,’’ आजाद की आवाज में कुछ ऐसा था, जिसे सुन कर त्रिशा की आंखें डबडबा आईं. ‘‘मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है. मैं आप से कल बात करती हूं,’’ यह कह कर त्रिशा ने फोन डिसकनैक्ट कर दिया. अगले दिन त्रिशा और प्रकाश के बीच औफिस में भी कोई बात नहीं हुई. ऐसा पहली बार ही हुआ था. प्रकाश का मिजाज आज एकदम उखड़ाउखड़ा था.

‘‘चलो,’’ शाम को उस ने त्रिशा के पास आ कर कहा. रास्तेभर दोनों ने कोई बात नहीं की. होस्टल आने ही वाला था कि त्रिशा ने खीझ कर कहा, ‘‘तुम कुछ बोलोगे भी कि नहीं?’’ ‘‘मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए.’’

कितनी डूबती हुई आवाज थी प्रकाश की. 3 साल में त्रिशा ने प्रकाश को इतना खोया हुआ कभी नहीं देखा था. पिछले 2 दिन में प्रकाश में जो बदलाव आए थे, उन पर गौर कर के त्रिशा सहम गई. ‘क्या वाकई प्रकाश… क्या प्रकाश… नहीं, ऐसा नहीं हो सकता,’ त्रिशा का मन विचलित हो उठा. ‘मुझे तुम से कल बात करनी है. कल छुट्टी भी है. कल सुबह 11 बजे मिलते हैं. गुडनाइट,’’ कहते हुए त्रिशा गाड़ी से उतर गई.

जैसा तय था, अगले दिन दोनों 11 बजे मिले. बिना कुछ कहेसुने दोनों के कदम अनायास ही पार्क की ओर बढ़ते चले गए. त्रिशा के होस्टल से एक किलोमीटर की दूरी पर ही शहर का सब से बड़ा व खूबसूरत पार्क था. ऐसे ही छुट्टी के दिनों में न जाने कितनी ही बार वे दोनों यहां आ चुके थे. पार्क के भीतरी गेट पर पहुंच कर दोनों को ऐसा लगा जैसे आज असाधारण भीड़ उमड़ पड़ी हो. भीड़भाड़ और चहलपहल तो हमेशा ही रहती है यहां, पर आज की भीड़ में कुछ खास था. सैकड़ों जोड़े एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले अंदर चले जा रहे थे. बहुतों के हाथ में गुलाब का फूल, किसी के पास चौकलेट तो किसी के हाथ में गिफ्ट पैक. पर प्रकाश का मन इतना अशांत था कि वह कुछ समझ ही नहीं सका.

हवा जोरों से चलने लगी थी. बादलों की गड़गड़ाहट सुन कर ऐसा मालूम होता था कि किसी भी पल बरस पड़ेंगे. मौसम की तरह प्रकाश का मन भी आशंकाओं से घिर आया था. त्रिशा को लगा, शायद आज यहां नहीं आना चाहिए था. तभी अचानक उस का मोबाइल बज उठा. ‘‘हैप्पी वैलेंटाइंस डे, मैडम,’’ आजाद की आवाज थी. ‘‘ओह, मैं तो बिलकुल भूल ही गई थी,’’ त्रिशा बोली.

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‘‘आजकल आप भूलती बहुत हैं. कोई बात नहीं. अब आप का गिफ्ट नहीं मिलेगा, बस, इतनी सी सजा है,’’ आजाद ने आगे कहा, ‘‘अच्छा, अभी हम थोड़ा जल्दी में हैं. शाम को बात करते हैं.’’ आज बैंच खाली मिलने का तो सवाल नहीं था. सो, साफसुथरी जगह देख दोनों घास पर ही बैठ गए. त्रिशा अकस्मात पूछ बैठी, ‘‘क्या तुम वाकई सीरियस हो?’’

‘‘तुम समझती हो कि मैं मजाक कर रहा हूं?’’ प्रकाश का स्वर रोंआसा हो उठा.

Romantic Story: रुह का स्पंदन- भाग 3

घर वालों की सहमति पर सुदेश और दक्षा ने मिल कर बातें करने का निश्चय किया. सुदेश सुबह ही मिलना चाहता था, लेकिन दक्षा ने ब्रेकफास्ट कर के मिलने की बात कही. क्योंकि वह पूजापाठ कर के ही ब्रेकफास्ट करती थी. सुदेश में दक्षा से मिलने के लिए गजब का उत्साह था. दक्षा की बातों और उस के स्वभाव ने आकर्षण तो पैदा कर ही दिया था. इस के अलावा दक्षा ने अपने जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण बातें मिल कर बताने को कहा था. वो बातें कौन सी थीं, सुदेश उन बातों को भी जानना चाहता था.

निश्चित की गई जगह पर सुदेश पहले ही पहुंच गया था. वहां पहुंच कर वह बेचैनी से दक्षा की राह देख रहा था. वह काले रंग की शर्ट और औफ वाइट कार्गो पैंट पहन कर गया था. रेस्टोरेंट में बैठ कर वह हैडफोन से गाने सुनने में मशगूल हो गया. दक्षा ने काला टौप पहना था, जिस के लिए उस की मम्मी ने टोका भी था कि पहली बार मिलने जा रही है तो जींस टौप, वह भी काला.

तब दक्षा ने आदत के अनुसार लौजिकल जवाब दिया था, ‘‘अगर मैं सलवारसूट पहन कर जाती हूं और बाद में उसे पता चलता है कि मैं जींस टौप भी पहनती हूं तो यह धोखा देने वाली बात होगी. और मम्मी इंसान के इरादे नेक हों तो रंग से कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

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तर्क करने में तो दक्षा वकील थी. बातों में उस से जीतना आसान नहीं था. वह घर से निकली और तय जगह पर पहुंच गई. सढि़यां चढ़ कर दरवाजा खोला और रेस्टोरेंट में अंदर घुसी. फोटो की अपेक्षा रियल में वह ज्यादा सुंदर और मस्ती में गाने के साथ सिर हिलाती हुई कुछ अलग ही लग रही थी.

अचानक सुदेश की नजर दक्षा पर पड़ी तो दोनों की नजरें मिलीं. ऐसा लगा, दोनों एकदूसरे को सालों से जानते हों और अचानक मिले हों. दोनों के चेहरों पर खुशी छलक उठी थी.

खातेपीते दोनों के बीच तमाम बातें हुईं. अब वह घड़ी आ गई, जब दक्षा अपने जीवन से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें उस से कहने जा रही थी. वहां से उठ कर दोनों एक पार्क में आ गए थे, जहां दोनों कोने में पेड़ों की आड़ में रखी एक बेंच पर बैठ गए. दक्षा ने बात शुरू की, ‘‘मेरे पापा नहीं हैं, सुदेश. ज्यादातर लोगों से मैं यही कहती हूं कि अब वह इस दुनिया में नहीं है, पर यह सच नहीं है. हकीकत कुछ और ही है.’’

इतना कह कर दक्षा रुकी. सुदेश अपलक उसे ही ताक रहा था. उस के मन में हकीकत जानने की उत्सुकता भी थी. लंबी सांस ले कर दक्षा ने आगे कहा, ‘‘जब मैं मम्मी के पेट में थी, तब मेरे पापा किसी और औरत के लिए मेरी मम्मी को छोड़ कर उस के साथ रहने के लिए चले गए थे.

‘‘लेकिन अभी तक मम्मीपापा के बीच डिवोर्स नहीं हुआ है. घर वालों ने मम्मी से यह कह कर उन्हें अबार्शन कराने की सलाह दी थी कि उस आदमी का खून भी उसी जैसा होगा. इस से अच्छा यही होगा कि इस से छुटकारा पा कर दूसरी शादी कर लो.’’

दक्षा के यह कहते ही सुदेश ने उस की तरफ गौर से देखा तो वह चुप हो गई. पर अभी उस की बात पूरी नहीं हुई थी, इसलिए उस ने नजरें झुका कर आगे कहा, ‘‘पर मम्मी ने सभी का विरोध करते हुए कहा कि जो कुछ भी हुआ, उस में पेट में पल रहे इस बच्चे का क्या दोष है. यानी उन्होंने गर्भपात नहीं कराया. मेरे पैदा होने के बाद शुरू में कुछ ही लोगों ने मम्मी का साथ दिया. मैं जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे सब शांत होता गया.

‘‘मेरा पालनपोषण एक बेटे की तरह हुआ. अगलबगल की परिस्थितियां, जिन का अकेले मैं ने सामना किया है, उस का मेरी वाणी और व्यवहार में खासा प्रभाव है. मैं ने सही और गलत का खुद निर्णय लेना सीखा है. ठोकर खा कर गिरी हूं तो खुद खड़ी होना सीखा है.’’

अपनी पलकों को झपकाते हुए दक्षा आगे बोली, ‘‘संक्षेप में अपनी यह इमोशनल कहानी सुना कर मैं आप से किसी तरह की सांत्वना नहीं पाना चाहती, पर कोई भी फैसला लेने से पहले मैं ने यह सब बता देना जरूरी समझा.

‘‘कल कोई दूसरा आप से यह कहे कि लड़की बिना बाप के पलीबढ़ी है, तब कम से कम आप को यह तो नहीं लगेगा कि आप के साथ धोखा हुआ है. मैं ने आप से जो कहा है, इस के बारे में आप आराम से घर में चर्चा कर लें. फिर सोचसमझ कर जवाब दीजिएगा.’’

सुदेश दक्षा की खुद्दारी देखता रह गया. कोई मन का इतना साफ कैसे हो सकता है, उस की समझ में नहीं आ रहा था. अब तक दोनों को भूख लग आई थी. सुदेश दक्षा को साथ ले कर नजदीक की एक कौफी शौप में गया. कौफी का और्डर दे कर दोनों बातें करने लगे तभी अचानक दक्षा ने पूछा था, ‘‘डू यू बिलीव इन वाइब्स?’’

सुदेश क्षण भर के लिए स्थिर हो गया. ऐसी किसी बात की उस ने अपेक्षा नहीं की थी. खासकर इस बारे में, जिस में वह पूरी तरह से भरोसा करता हो. वाइब्स अलौकिक अनुभव होता है, जिस में घड़ी के छठें भाग में आप के मन को अच्छेबुरे का अनुभव होता है. किस से बात की जाए, कहां जाया जाए, बिना किसी वजह के आनंद न आए और इस का उलटा एकदम अंजान व्यक्ति या जगह की ओर मन आकर्षित हो तो यह आप के मन का वाइब्स है.

यह कभी गलत नहीं होता. आप का अंत:करण आप को हमेशा सच्चा रास्ता सुझाता है. दक्षा के सवाल को सुन कर सुदेश ने जीवन में एक चांस लेने का निश्चय किया. वह जो दांव फेंकने जा रहा था, अगर उलटा पड़ जाता तो दक्षा तुरंत मना कर के जा सकती थी. क्योंकि अब तक की बातचीत से यह जाहिर हो गया था. पर अगर सब ठीक हो गया तो सुदेश का बेड़ा पार हो जाएगा.

सुदेश ने बेहिचक दक्षा से उस का हाथ पकड़ने की अनुमति मांगी. दक्षा के हावभाव बदल गए. सुदेश की आंखों में झांकते हुए वह यह जानने की कोशिश करने लगी कि क्या सोच कर उस ने ऐसा करने का साहस किया है. पर उस की आंखो में भोलेपन के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया. अपने स्वभाव के विरुद्ध उस ने सुदेश को अपना हाथ पकड़ने की अनुमति दे दी.

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दोनों के हाथ मिलते ही उन के रोमरोम में इस तरह का भाव पैदा हो गया, जैसे वे एकदूसरे को जन्मजन्मांतर से जानते हों. दोनों अनिमेष नजरों से एकदूसरे को देखते रहे. लगभग 5 मिनट बाद निर्मल हंसी के साथ दोनों ने एकदूसरे का हाथ छोड़ा. दोनों जो बात शब्दों में नहीं कह सके, वह स्पर्श से व्यक्त हो गई.

जाने से पहले सुदेश सिर्फ इतना ही कह सका, ‘‘तुम जो भी हो, जैसी भी हो, किसी भी प्रकार के बदलाव की अपेक्षा किए बगैर मुझे स्वीकार हो. रही बात तुम्हारे पिछले जीवन के बारे में तो वह इस से भी बुरा होता तब भी मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता. बाकी अपने घर वालों को मैं जानता हूं. वे लोग तुम्हें मुझ से भी अधिक प्यार करेंगे. मैं वचन देता हूं कि बचपन से ले कर अब तक अधूरे रह गए सपनों को मैं हकीकत का रंग देने की कोशिश करूंगा.’’

सुदेश और दक्षा के वाइब्स ने एकदूसरे से संबंध जोड़ने की मंजूरी दे दी थी.

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