पति की सुपारी

50 करोड़ की आग

50 करोड़ की आग : भाग 3

कुछ देर तक वह फूलों की क्यारी में बैठा रहा. फिर उठ कर लड़खड़ाते कदमों से लौन से निकलने लगा. उस के दिमाग पर धुंध छाई हुई थी और वह बारबार सिर झटक रहा था. थोड़ी देर के लिए वह एक पेड़ के तने से टेक लगा कर बैठ गया.

वह घंटी की आवाज थी, जो बहुत दूर से आती महसूस हो रही थी. वह आंखें खोल कर आवाज की दिशा में देखने लगा. वह फायर ब्रिगेड की गाड़ी की घंटी की आवाज थी जो मोड़ घूम कर उसी सड़क पर आ चुकी थी.

विक्रम सिर झटकता हुआ संभल कर बैठ गया. कुछ देर वह फायर ब्रिगेड की आवाज सुनता रहा, फिर रेंगता हुआ झाडि़यों की ओर बढ़ने लगा. मकान के पीछे की ओर कांटों वाली झाडि़यों की बाड़ पार करते हुए उस के हाथ जख्मी हो गए. उस ने होंठ दांतों तले दबा लिया. ठीक उसी समय फायर इंजन ललिता हाउस के सामने आ कर रुका, विक्रम उठ कर लड़खड़ाते कदमों से दूर हटने लगा.

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मडप हालांकि उस के लिए अजनबी था. लेकिन एक जगह ऐसी थी जहां उसे शरण मिल सकती थी. वह लड़खड़ाते हुए चलता रहा, उस का रुख शहर के सब से बड़े पुलिस अफसर मोहित के घर की ओर था.

अंधेरी गलियों में छिपतेछिपाते मोहित के घर तक पहुंचने में उसे 45 मिनट लगे. उस ने दरवाजे पर घंटी का बटन दबा दिया और दीवार से टेक लगा कर खड़ा हो गया.

मोहित उस समय बिस्तर पर कुछ कागजात फैलाए बैठा था. उन में उस की स्वर्गवासी पत्नी का वसीयतनामा, बैंक की स्लिपें और ललिता हाउस के बीमा के कागजात थे.

वह हिसाब लगा रहा था कि मकान के बीमा के सिलसिले में उस ने अब तक कितना प्रीमियम अदा किया था. उसे बीमा कंपनी से 50 करोड़ की धनराशि में से उस के अदा किए गए प्रीमियम और बाकी खर्चे काट कर उसे क्या बचेगा.

घंटी की आवाज सुन कर मोहित चौंका. उस ने घड़ी देखी 4 बजकर 10 मिनट हुए थे. वह कागजात और पेन बिस्तर पर छोड़ कर उठा और जैसे ही बाहरी दरवाजा खोला, विक्रम को देख बुरी तरह उछल पड़ा.

‘‘माई गौड, तुम…’’ कहने के साथ मोहित ने दरवाजा बंद करने की कोशिश की, लेकिन इस बीच विक्रम दरवाजे में पैर फंसा चुका था.

‘‘दरवाजा खोलो, मुझे अंदर आने दो मोहित.’’ विक्रम ने थके हुए स्वर में कहा.

‘‘तुम यहां क्यों आए हो?’’ मोहित उस के पैर को ठोकर मारते हुए बोला, ‘‘मेरा तुम से कोई संबंध नहीं और न ही मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूं. चले जाओ यहां से. अपने साथ तुम मुझे भी फंसाओगे.’’

विक्रम ने अचानक पिस्तौल निकाल लिया और उस की पसलियों पर गड़ाते हुए गुर्राया, ‘‘मुझे अंदर आने दो.’’

पिस्तौल देख कर मोहित की आंखों में डर उभरा और उस ने दरवाजा खोल दिया. डर से उस के हाथ और टांगें कांपने लगी थीं.

‘‘इजी विक्रम,’’ वह थरथराते लहजे में बोला, ‘‘मेरी बात सुनो, भावावेश में आने की आवश्यकता नहीं है. परिस्थिति को समझने की कोशिश करो.’’

विक्रम उसे देखता हुआ अंदर दाखिल हो गया. मोहित ने दरवाजा बंद कर दिया, मगर उस का हाथ अभी तक दरवाजे के हैंडिल पर था. डर के मारे उस के हाथ कांप रहे थे.

‘‘तुम मुझ से क्या चाहते हो विक्रम?’’ उस की बातों में भय झलक रहा था, ‘‘मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं?’’

‘‘मुझे सिर के लिए एक रुमाल और एक चादर चाहिए,’’ विक्रम बोला.

‘‘क्यों नहीं, तुम्हें जिस चीज की जरूरत हो, मैं देने को तैयार हूं.’’

‘‘इस के अलावा तुम मुझे अपनी गाड़ी में थाणे छोड़ कर आओगे,’’ विक्रम ने कहा.

मोहित को सीने में सांस रुकती हुई महसूस हुई, ‘‘देखो विक्रम…’’ वह शुष्क होंठों पर जुबान फेरते हुए बोला, ‘‘परिस्थिति को समझने की कोशिश करो. मेरे लिए तुम्हें थाणे ले जाना संभव नहीं है. मैं यहां का इंचार्ज हूं. किसी प्रकार का रिस्क नहीं ले सकता.अगर किसी ने मुझे तुम्हारे साथ देख लिया तो न सिर्फ सारे किएधरे पर पानी फिर जाएगा बल्कि तुम्हारे साथ मैं भी जेल…..’’

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‘‘बंद करो बकवास,’’ विक्रम ने उसे पिस्तौल की नाल से टोहका दिया, ‘‘मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है. अगर तुम ने मना किया तो…’’

‘‘ठीक है विक्रम, ठीक है,’’ मोहित हाथ उठाते हुए बोला, ‘‘मैं तुम्हारी मदद करने को तैयार हूं, लेकिन इस तरह चीखने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘तकलीफ मेरी बरदाश्त से बाहर हो रही है,’’ विक्रम ने लड़खड़ाते हुए कहा, ‘‘मुझे डाक्टरी मदद की जरुरत है. इस से पहले कि मेरा दम निकल जाए, मुझे थाणे ले चलो, जल्दी करो, गाड़ी निकालो.’’

‘‘एक मिनट मैं कपड़े तो बदल लूं,’’ मोहित बोला.

‘‘नहीं, उस की जरूरत नहीं है, मेरे लिए एकएक पल कीमती है गाड़ी निकालो.’’ विक्रम चीखा. मोहित को उस का हुक्म मानना पड़ा. विक्रम उसे दोबारा कमरे में जाने का मौका नहीं देना चाहता था.

रात के सन्नाटे में मोहित की कार थाणे की ओर जाने वाली सड़क पर दौड़ रही थी. विक्रम पैसेंजर सीट पर बैठा हुआ था. उस ने मोहित का ओवरकोट और पुराना हैट पहन रखा था. जो उस के सिर की जली हुई त्वचा पर काफी तकलीफ दे रहा था.

कार को लगने वाले झटकों से विक्रम दाएंबाएं झूल रहा था. स्टीयरिंग पर मोहित की पकड़ काफी मजबूत थी, उस की गर्दन पर पसीने की धार बह रही थी. वह बारबार कनखियों से विक्रम की ओर देख रहा था.

‘‘बारबार मेरी तरफ क्या देख रहे हो?’’ विक्रम ने एक बार उसे अपनी तरफ देखते पा कर कहा, ‘‘मैं अभी जिंदा हूं, मरा नहीं हूं. सामने देख कर गाड़ी चलाओ, कहीं गाड़ी को टकरा मत देना, इंचार्ज साहब.’’

मोहित ने कोई जवाब नहीं दिया, वह सामने सड़क पर देखने लगा. भटान सुरंग से एक किलोमीटर पहले उस ने गाड़ी रोक ली.

‘‘विक्रम प्लीज, मुझे थाणे जाने पर मजबूर मत करो. मैं किसी किस्म का खतरा मोल नहीं ले सकता.’’

‘‘मुझे जल्द से जल्द किसी अच्छे डाक्टर के पास पहुंचना है.’’ विक्रम जख्मी होंठों पर जुबान फेरते हुए बोला, ‘‘और तुम मुझे यहां इस वीराने में छोड़ने के बजाए थाणे ले चलोगे, क्योंकि मेरी इस हालत के जिम्मेदार भी तुम हो. गाड़ी स्टार्ट करो.’’ विक्रम दर्द पर काबू पाने के लिए सीट पर आगेपीछे झूलने लगा.

‘‘गाड़ी स्टार्ट करो’’ वह गला फाड़ कर चिल्लाया.

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मोहित ने तुरंत गाड़ी स्टार्ट कर दी. उस की टांगें और हाथ बुरी तरह कांप रहे थे, जिस से उस के लिए गाड़ी पर कंट्रोल रखना काफी मुश्किल हो रहा था, लेकिन वह जैसेतैसे गाड़ी चला रहा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

50 करोड़ की आग : भाग 4

लोनावाला पहुंच कर उस ने गाड़ी सिटरस होटल के अंदर मोड़ दी. मनमोहन इसी होटल में ठहरा हुआ था. वह चंद पल स्टीयरिंग व्हील के सामने बैठा रहा, फिर विक्रम की ओर मुड़ कर बोला, ‘‘देखो विक्रम, हम यहां पहुंच गए हैं. तुम कोई ऐसी हरकत नहीं करोगे, जिस से मुझे या तुम्हें पछताना पड़े.

‘‘मैं एक जिम्मेदार आदमी हूं. मेरे 3 बेटे हैं जो हौस्टल में रहते हैं. मैं समझता हूं तुम एक अच्छा आदमी होने का सबूत दोगे और मुझे किसी किस्म का नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं करोगे. वैसे भी तुम मुझे नुकसान पहुंचाओगे ही क्यों?’’

‘‘इसलिए कि तुम कमीने आदमी हो.’’ विक्रम ने होंठ चबाते हुए कहा, ‘‘मेरी यह हालत देख कर भी तुम ने घर का दरवाजा बंद करने की कोशिश की थी. तुम इतने बेगैरत हो कि मरते हुए आदमी के हलक में पानी की बूंद भी नहीं डाल सकते. अगर मेरे पास पिस्तौल न होता तो तुम कभी मेरी मदद नहीं करते.’’

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‘‘मेरे सब से छोटे बेटे की उम्र 5 साल है’’ मोहित घिघियाया, ‘‘क्या तुम 5 साल के बच्चे के सिर से उस के बाप का साया छीन सकते हो? विक्रम तुम जो कहोगे, मैं करने को तैयार हूं.’’

‘‘तुम झूठ बोलते हो,’’ विक्रम दहाड़ा, ‘‘मैं जानता हूं तुम्हारी कोई औलाद नहीं है. तुम्हारी बीवी कई साल पहले मर गई थी. तुम ने ललिता हाउस के बीमा की रकम हासिल करने के लिए इमारत को आग लगवाई है, क्योंकि तुम जानते हो कि चंद माह बाद तुम्हें इस मकान का कुछ भी नहीं मिलेगा.

‘‘मुझे शक है कि तुम्हारी बीवी भी अपनी मौत नहीं मरी होगी. उस की दौलत पर कब्जा करने के लिए तुम ने उस की हत्या ही की होगी. बहरहाल, मैं इस समय तुम से किसी किस्म की बहस करने के मूड में नहीं हूं, मनमोहन को बुला कर लाओ, मैं कार में बैठा हूं.’’

मोहित छलांग लगा कर कार से उतर गया और तेजतेज कदमों से होटल में दाखिल हो गया. उस की वापसी में चंद मिनट से अधिक का समय नहीं लगा. उस के साथ मनमोहन और श्याम भी थे. मनमोहन ने कार का दरवाजा खोल कर जब अंदर झांका तो विक्रम के जख्मी होंठों पर मंद मुसकान आ गई.

‘‘खूब… बहुत खूब!’’ मनमोहन सीटी बजाते हुए बोला.

‘‘ओहो!’’ श्याम ने कहा, ‘‘लगता है यह सीधे मोर्चे से आ रहा है.’’

‘‘अगर तुम उस मकान को जा कर देखोगे तो मुझे भूल जाओगे,’’ विक्रम ने कहा.

‘‘तुम बेहोश होने की तैयारी तो नहीं कर रहे हो विक्रम?’’ श्याम आगे झुकते हुए बोला.

विक्रम आगेपीछे झूल रहा था. उस की आंखें बंद थीं, फिर एकाएक उस का सिर डैशबोर्ड से टकराया और वह दाईं ओर झूल गया.

दोबारा होश आने पर उस ने खुद को ऐसे कमरे में पाया, जिस की दीवारों पर मकड़ी के जाले लटके हुए थे. छत पर मद्धिम रोशनी का बल्ब झूल रहा था. उसी पल मनमोहन की आवाज उस के कानों से टकराई जो डाक्टर को संबोधित करते हुए कह रहा था, ‘‘सुनो डाक्टर, यह मरना नहीं चाहिए. इसे हर हालत में जिंदा रखना है क्योंकि लाश को ठिकाने लगाना हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा. इसलिए इस की दोनों टांगें और दोनोंं हाथ भी काटने पड़ें तो कोई बात नहीं.’’

‘‘मैं इसे बचाने की कोशिश करूंगा,’’ डाक्टर की आवाज सुनाई दी, ‘‘नौजवान है, इसे खुद भी जिंदा रहने की ख्वाहिश होगी.’’

‘‘अब तुम जाओ मोहित, इसे हम संभाल लेंगे.’’ मनमोहन ने कहा.

‘‘मुझ से बहुत बड़ी बेवकूफी हो गई,’’ मोहित ने जवाब दिया, ‘‘तुम लोगों पर भरोसा कर के मैं ने अपना मानसम्मान, अपनी जिंदगी सब दांव पर लगा रखी है. अगर यह मर गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे. बहरहाल, मैं जा रहा हूं.’’

विक्रम की आंखें बंद थीं. उस ने मोहित के जाते कदमों की आवाज सुनी और एकाएक गहरीगहरी सांस लेने लगा.

मोहित जब वहां से निकला तो दिन की रोशनी छा चुकी थी. सुबह की ताजा हवा में उस ने लंबीलंबी सांस ली और कार में बैठ गया.

कार तेज गति से हाइवे पर दौड़ रही थी. मोहित के चेहरे पर सुकून था. अब उसे विक्रम की ओर से कोई चिंता नहीं थी. मरे तो मर जाए. उसे यकीन था कि मनमोहन और श्याम उसे संभाल लेंगे. वह मन ही मन ललिता हाउस और उस के बीमा की रकम के बारे में सोचने लगा, 50 करोड़ बड़ी रकम थी. वह बाकी की जिंदगी आराम से गुजार सकता था.

मोहित को यकीन था कि बीमा कंपनी का स्थानीय एजेंट भी सूचना पा कर मकान के मलबे के पास पहुंच गया होगा. स्थानीय एजेंट से उस का अच्छा परिचय था. वह अपने संबंधों के आधार पर उसे मजबूर कर सकता था कि दुर्घटना की जांच रिपोर्ट जल्द से जल्द पूरी कर के कंपनी को भेज दे ताकि क्लेम की अदायगी में देर न लगे.

जब उस ने कार हाइवे से ललिता हाउस की तरफ मोड़ी तो धूप फैल चुकी थी. फैक्ट्री एरिया से आगे निकलते ही उस ने कार का रुख अपने घर की ओर मोड़ दिया. उस ने सोचा था कि कपड़े बदल कर ललिता हाउस की तरफ जाएगा.

मोहित भविष्य की योजनाएं बनाता हुआ घर पहुंच गया. कार रोक कर वह नीचे उतरा और आगे बढ़ कर जैसे ही दरवाजे पर हाथ रखा तो चौंका. दरवाजा हलके से दबाव से खुल गया. अचानक उसे याद आया कि विक्रम के साथ जाते हुए उस ने दरवाजा लौक नहीं किया था.

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वह होंठ सिकोड़े धीमे सुर में सीटी बजाता हुआ अपने बैडरूम में दाखिल हुआ लेकिन पहला कदम रखते ही वह इस तरह रुक गया जैसे जमीन ने उस के पैर पकड़ लिए हों. उस का दिल उछल कर हलक में आ गया और सीने में सांस रुकता हुआ महसूस होने लगा.

कमरे में उस का एक मातहत इंसपेक्टर, एक सबइंसपेक्टर और 2 कांस्टेबल के अलावा बीमा कंपनी का एजेंट भी मौजूद था, जिस के हाथ में वे तमाम कागजात नजर आ रहे थे, जिन्हें वह रखा छोड़ गया था.

‘‘हैलो बौस,’’ इंसपेक्टर उस की ओर देखते हुए मुसकराया, ‘‘रात आप के मकान को आग लगने के बाद हम ने कई बार फोन कर के संपर्क करना चाहा मगर कामयाब न हो सके. मैं ने सोचा संभव है आप घर पर मौजूद न हों, लगभग एक घंटे पहले मिस्टर ठाकुर…’’ उस ने बीमा कंपनी के एजेंट की ओर इशारा किया, ‘‘मिस्टर ठाकुर भी आग लगने की सूचना पा कर ललिता हाउस पहुंच गए थे. यह फौरी तौर पर आप से मिलना चाहते थे.

इस बार भी फोन पर संपर्क नहीं हो पाया तो हम स्वयं यहां चले आए और यहां आप के बिस्तर पर बिखरे हुए ये कागजात…’’ उस ने ठाकुर के हाथ में पकड़े कागजात की तरफ इशारा करते हुए वाक्य अधूरा छोड़ दिया.

‘‘यह तुम्हारी ही हैंड राइटिंग है न मिस्टर मोहित?’’ ठाकुर ने सवालिया निगाहों से उस की ओर देखा.

‘‘हां.’’ आवाज मोहित के हलक से फंसीफंसी सी निकली.

‘‘इस सिलसिले में हम आप से कुछ पूछना चाहेंगे बौस.’’ इंसपेक्टर बोला.

उस के होंठों पर रहस्यमयी मुस्कान थी, ‘‘और मेरा खयाल है, यह बातचीत पुलिस स्टेशन पहुंच कर ही होना चाहिए, वहां एसपी साहब भी इंतजार कर रहे हैं, चलिए बौस.’’

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औफिसर इंचार्ज मोहित सिर झुकाए अपने मातहतों के आगेआगे चल दिया. वह जान गया था कि उस का खेल खत्म हो चुका है.

50 करोड़ की आग : भाग 2

मोहित मडप का पुलिस इंचार्ज था. ललिता हाउस उस की ही मिल्कियत थी, जो कई साल पहले उस की पत्नी की मृत्यु के बाद उसे विरासत में मिली थी. उस की पत्नी ने मरने से कुछ साल पहले 50 करोड़ में ललिता हाउस का बीमा करवाया था, जिस का प्रीमियम अब मोहित भर रहा था. लेकिन आमदनी सीमित होने की वजह से उस के लिए प्रीमियम की अदायगी जारी रखना मुश्किल हो रहा था.

वैसे भी 60 साल पुराना ललिता हाउस उस की जरूरत से कहीं ज्यादा बड़ा था. लंबे समय से देखभाल न होने की वजह से इमारत की हालत भी खराब हो गई थी. चंद महीने पहले उस ने ललिता हाउस को बेचने की कोशिश की तो पता चला कोई भी इस इमारत के 20 करोड़ से ज्यादा देने को तैयार नहीं था.

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फिर 6 सप्ताह पहले जब उस ने अखबार में यह खबर पढ़ी कि बीमा कंपनी बीमाशुदा पुरानी इमारतों की मौजूदा हालत का पुनर्निरीक्षण कर के उन की बीमा की रकम का दोबारा निर्धारण करेगी तो मोहित चौंका. उसे विश्वास था कि उस के मकान की हालत देखने के बाद बीमा कंपनी उस की पौलिसी खत्म कर देगी और इस तरह उसे बड़ी रकम से वंचित होना पड़ेगा. यह सब सोच कर उस ने ललिता हाउस को आग लगाने का फैसला कर लिया और इस के लिए 2 करोड़ की रकम के बदले मनमोहन की सेवाएं ले लीं.

मनमोहन या उस के साथियों का मडप से कोई संबंध नहीं था. इस तरह उन पर किसी किस्म का शक भी नहीं किया जा सकता था. मोहित को विश्वास था कि इमारत जलने के बाद ज्यादा से ज्यादा 2 सप्ताह में बीमा कंपनी अपनी जांच पूरी कर के उसे 50 करोड़ की अदायगी कर देगी. फिर वह पुलिस की नौकरी छोड़ कर गोवा या कहीं और चला जाएगा.

मकान को आग लगाने के लिए मोहित ने बड़ी उम्दा प्लानिंग की थी लेकिन पहली ही स्टेज पर गड़बड़ हो गई थी. अब वह बारबार पीछे मुड़ कर देखते हुए विक्रम की कामयाबी की दुआएं मांग रहा था.

कार निगाहों से ओझल हो चुकी थी. विक्रम ने हाथ से चेहरा पोंछते हुए मनमोहन को 2-4 गालियां दीं और सड़क पार कर के ललिता हाउस के लौन में दाखिल हो गया. रात के 3 बजने वाले थे, हर तरफ गहरा सन्नाटा और अंधेरा था.

अचानक झाडि़यों में से किसी पक्षी के फड़फड़ाने की आवाज से वह बुरी तरह उछल पड़ा. उस के मुंह से चीख निकलतेनिकलते रह गई. वह अपने दिल की धड़कनों पर काबू पाने की कोशिश करते हुए एक बार फिर मनमोहन की शान में कसीदे पढ़ने लगा.

ललिता हाउस में दाखिल होते ही वह होशियार हो गया. बिना नीचे रुके वह ऊपर वाली मंजिल पर चला गया, जहां पिछली बार उस ने ज्वलनशील पदार्थ नेफ्थलीन के 2 डिब्बे रखे थे.

दोनों डिब्बे उठा कर वह नीचे ले आया, फिर सारी खिड़कियों, दरवाजों के परदे उतार कर उन्हें चौड़ी गैलरी के आखिरी सिरे पर स्थित लाउंज में ढेर कर दिया. वहां का फर्नीचर बाबा आदम के जमाने का था. उस ने फर्नीचर पर चढ़े कपड़े के सारे कवर उतार कर उन के ऊपर डाल दिए.

उस ने मेजें और कुर्सियां भी कपड़ों के ढेर के पास जमा कर दीं. फटे पुराने कालीन भी उस जगह पहुंचा दिए. फिर नेफ्थलीन का एक डिब्बा खोल कर कपड़ों के उस ढेर और फर्नीचर पर ज्वलनशील पदार्थ छिड़कने लगा.

खिड़कियों और दरवाजों पर भी उस ने ज्वलनशील पदार्थ छिड़क दिया. इस भागदौड़ में उस का जिस्म पसीने से भीग गया था. नेफ्थलीन की गंध दिमाग में चढ़ी जा रही थी. अपने अब तक के काम का निरीक्षण कर के उस ने निश्चिंत होने वाले अंदाज में सिर हिलाया.

इधरउधर निगाह दौड़ाने पर उसे लगभग 4 फीट लंबा बांस का एक टुकड़ा मिल गया. उस ने ढेर पर से एक परदा उठा कर फाड़ा और कपड़े का एक टुकड़ा बांस के सिरे पर लपेटने लगा. फिर उसे नेफ्थलीन में कुछ इस तरह गीला किया कि तरल पदार्थ नीचे टपकने लगा.

जेब से माचिस निकालते हुए वह गहरी नजरों से गैलरी का निरीक्षण करने लगा. गैलरी लगभग 35 फीट लंबी थी. वह अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहा था कि इस ढेर को आग लगाने के बाद कितनी देर में गैलरी के सिरे वाली खिड़की तक पहुंच पाएगा. चांस कम है, यह सोचते हुए उस ने लाउंज की एक खिड़की खोल दी और माचिस जला कर बांस के सिरे पर लिपटे ज्वलनशील पदार्थ में डूबे कपड़े को दिखा दी.

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मशाल भड़क उठी. वह कुछ क्षण तक अपने और खिड़की के बीच की दूरी का अंदाजा लगाता रहा. फिर मशाल को पूरी ताकत के साथ कपड़ों के ढेर की ओर उछाल दिया. मशाल ठीक कपड़ों के ढेर के ऊपर गिरी. एक क्षण को कुछ भी नहीं हुआ. विक्रम जलती हुई मशाल को देखते हुए खिड़की से छलांग लगाने को तैयार खड़ा था. उसे हैरत थी कि फर्नीचर और कपड़ों के ढेर पर फैले ज्वलनशील पदार्थ ने आग क्यों नहीं पकड़ी.

लेकिन फिर अचानक भक की आवाज हुई और कपड़ों का ढेर आतिशबाजी की तरह उड़ गया. शोलों में लिपटे हुए भारी परदे चारों ओर उड़ते हुए नजर आ रहे थे. एक जलता हुआ परदा उस के सिर के ऊपर से होता हुआ खिड़की के बाहर चला गया. एक परदे ने विक्रम को अपनी लपेट में लेने की कोशिश की.

विक्रम अपने आप को बचाने के लिए फर्श पर गिर गया. बचाव के बावजूद परदे का एक कोना उस के सिर पर लिपट गया था. उस ने हाथ मार कर परदा एक तरफ झटक दिया. उस के बाल जल गए थे, उस ने उठना चाहा लेकिन उस का पैर रपट गया और वह धड़ाम से नीचे गिर गया.

उस का सिर जोरों से फर्श से टकराया तो उसे अपनी आंखों के सामने नीलीपीली चिंगारियां सी निकलती दिखाई दीं. और फिर उस का दिमाग अंधेरे में डूबता चला गया.

होश में आते ही वह बुरी तरह बदहवास हो गया, उस के सिर के नीचे कालीन सुलग रहा था. सिर के आधे से ज्यादा बाल जल चुके थे और 1-2 जगह से खाल भी जल गई थी. वह बुरी तरह सिर पटकने लगा. फिर खांसता हुआ उठ खड़ा हुआ, लेकिन दूसरे ही क्षण उसे फिर गिरना पड़ा. अगर उसे एक पल की भी देर हो जाती तो कुरसी से टूटी हवा में जलती हुई लकड़ी उस के सिर पर लगती.

हाल में धुंआ भर चुका था. हर तरफ आग ही आग नजर आ रही थी. वह कालीन पर रेंगता हुआ पास के दरवाजे की ओर बढ़ने लगा. उस के हाथों की खाल भी बुरी तरह जल चुकी थी. चेहरे पर भी 1-2 जगह जख्म आए थे. उसे लग रहा था, जैसे वह यहां से नहीं निकल पाएगा.

दरवाजे के पास पहुंच कर उस ने जोर से टक्कर मारी, दरवाजा खुल गया और वह कलाबाजी खाता हुआ बाहर लौन में आ गिरा. ठीक उसी क्षण एक जोरदार धमाका हुआ और ललिता हाउस की छत का एक सिरा नीचे गिर गया. विक्रम ने बदहवासी में अपनी जगह से छलांग लगा दी और दूर फूलों की क्यारी में जा कर गिरा.

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विक्रम फूलों की क्यारी में पड़ा गहरीगहरी सांस ले रहा था. पीठ पर जलन महसूस हो रही थी. उस ने गरदन घुमा कर पीछे देखा और दूसरे ही क्षण उछल पड़ा. उस के कोट में आग लगी हुई थी, जिस से उस की त्वचा भी जल गई थी. उस ने जल्दी से कोट उतार दिया और पीठ को उस जगह सहलाने लगा, जहां तेज जलन महसूस हो रही थी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

50 करोड़ की आग : भाग 1

उस कमरे में 3 लोग थे, मनमोहन, श्याम और विक्रम. मनमोहन मोटा जरूर था, लेकिन उस का दिमाग बहुत तेज था. वैसे उस का मोटापा एक तरह से उस की पर्सनैलिटी पर भी सूट करता था और पेशे पर भी. वह आपराधिक कामों की पेशगी ले कर काम कराता था, लेकिन छोटेमोटे नहीं, बड़ेबड़े. हालांकि खूंखार दिखने वाला मनमोहन खुद कोई अपराध नहीं करता था.

श्याम उस का सहयोगी भी था और ड्राइवर भी. हाल ही में मनमोहन ने छोटे शहर मडप के सब से बड़े पुलिस अफसर मोहित से 2 करोड़ की डील की थी. काम था बंद पड़ी एक पुरानी इमारत को इस तरह आग लगाने का कि सब कुछ जल कर खाक हो जाए.

इस काम के लिए उस ने विक्रम को चुना था. वह ऐसे कामों का मास्टर था. दोनों के बीच इस काम का सौदा 50 लाख रुपए में तय हुआ था. 10 लाख उसे दे भी दिए गए थे. लेकिन किन्हीं कारणों से विक्रम यह काम नहीं कर पाया था, उस का पहला प्रयास ही विफल रहा था.

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फिलहाल विक्रम मनमोहन के सामने बैठा था. हाथ में रिवौल्वर थामे मनमोहन उसे गालियां देते हुए लानतमलामत कर रहा था, जबकि विक्रम सफाई देते हुए कह रहा था कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि वह किसी काम में हाथ डाले और वह न हो. वह कभी फेल नहीं होता. जबकि मनमोहन बता रहा था कि पुलिस अफसर मोहित का फोन आया था. उस ने बताया कि बिल्डिंग जस की तस खड़ी है.

काफी जद्दोजहद के बाद तय हुआ कि मौके पर जा कर बिल्डिंग को देखा जाए. मनमोहन, श्याम और विक्रम कार से मडप के लिए रवाना हो गए. कार श्याम चला रहा था. चलने से पहले मनमोहन ने मोहित को फोन कर के रास्ते में मिलने को कह दिया था.

कार सड़क पर दौड़ रही थी. अपने काम का मंथन करते हुए विक्रम खिड़की से बाहर अंधेरे में देख रहा था. थोड़ीथोड़ी दूरी पर सड़क के दोनों ओर फैक्ट्रियों की रोशनी दिख रही थी.

मनमोहन अब भी गुस्से में था और विक्रम को गालियां बक रहा था. 20 मिनट की दूरी तय करने के बाद कार शिवगंगा वाटर पार्क की ओर मुड़ गई. थोड़ा आगे जा कर घने पेड़ों वाला जंगल था.

वहां पहुंच कर श्याम ने कार को हलका सा झटका दिया तो पेड़ों के झुरमुट में से एक मानवीय साया निकला और कार के पास आ गया. उस ने बेतकल्लुफी से कार का दरवाजा खोला और अंदर आ कर बैठ गया. यह मोहित था जो सादे कपड़ों में था. कार आगे बढ़ गई.

‘‘मेरा खयाल है, तुम इसी तरह काम करते हो?’’ मोहित ने विक्रम की ओर देख कर कहा, ‘‘मैं पुलिस स्टेशन में बैठा सूखता रहा और तुम लोगों का दूरदूर तक कोई पता नहीं था. क्या हुआ, कहां मर गए थे तुम लोग?’’

‘‘गुस्से की जरूरत नहीं है, सब ठीक हो जाएगा.’’ मनमोहन बोला.

‘‘सब कुछ प्लानिंग के अनुसार हुआ था,’’ मोहित मनमोहन की तरफ देख कर हाथ पर हाथ मारते हुए बोला, ‘‘पौने 11 बजे शहर के उत्तरी इलाके में आग लगने की सूचना मिलते ही तमाम फायर इंजन उस तरफ चले गए थे. वहां झाडि़यों में आग लगी थी. यह सब फायर इंजनों को व्यस्त रखने के लिए किया गया था ताकि दूसरी तरफ हम इस अवसर का लाभ उठा सकें, लेकिन 2 घंटे बाद भी ललिता हाउस में आग लगने की सूचना नहीं मिली. मैं ने इस काम के लिए तुम्हें 2 करोड़ रुपए देने की पेशकश की थी, एडवांस भी दिए, लेकिन तुम लोग बिलकुल नाकारा साबित हुए. आखिर चाहते क्या हो तुम लोग?’’

‘‘इसे देख रहे हो?’’ मनमोहन ने विक्रम की ओर इशारा किया, ‘‘यह हमारा फायर एक्सपर्ट है, जिस की वजह से आज हमें नाकामी का मुंह देखना पड़ा.’’

‘‘मैं ने हर काम बड़ी ऐहतियात से किया था. लेकिन कहीं कोई न कोई गड़बड़ हो गई होगी. इस में मेरा कोई कुसूर नहीं है.’’ विक्रम ने एक बार फिर अपनी सफाई दी.

‘‘सुनो विक्रम, मैं इस कस्बे का औफिसर इंचार्ज हूं. मैं किसी किस्म की गड़बड़ी या गलती को सहन नहीं कर सकता.’’

‘‘मैं तुम्हारा यह काम करूंगा.’’ विक्रम ने उसे शांत करने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘यकीन रखो, इस बार कोई गड़बड़ नहीं होगी.’’

‘‘श्याम, गाड़ी ललिता हाउस की ओर मोड़ दो.’’

‘‘उसी तरफ जा रहा हूं,’’ कहते हुए श्याम ने गाड़ी एक दूसरी सड़क पर मोड़ दी.

कुछ देर बाद गाड़ी ललिता हाउस के सामने रुक गई. विक्रम दरवाजा खोल कर नीचे उतर गया.

‘‘हम 10 मिनट में वापस आएंगे,’’ मनमोहन ने दरवाजा बंद करते हुए कहा, ‘‘इस दौरान पता लगाओ,क्या गड़बड़ हुई थी.’’

गाड़ी आगे बढ़ गई. विक्रम कंधे उचका कर रह गया. फिर वह ललिता हाउस की ओर देखने लगा. उस के हिसाब से इस पुरानी पर आलीशान इमारत को अब तक राख के ढेर में बदल जाना चाहिए था. लेकिन इमारत जस की तस खड़ी थी. उसे हैरत थी कि बिल्डिंग में आग क्यों नहीं लगी.

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विक्रम अंधेरे लौन को पार करते हुए 50 लाख रुपए के बारे में सोच रहा था, जो बिल्डिंग के जलने की स्थिति में उसे मिलने थे.

विक्रम खिड़की पर चढ़ कर बहुत खामोशी से ललिता हाउस के अंदर कूद गया. यह खिड़की वह उस वक्त खुली छोड़ गया था, जब पहली बार यहां आया था. लाइब्रेरी रूम से निकल कर वह गैलरी में आ गया और टौर्च की रोशनी में आगे बढ़ने लगा.

गैलरी में बिछे पुराने कालीन से अब भी नेफ्थलीन की हलकी सी बू उठ रही थी. वह टौर्च की रोशनी में उस फ्यूज का निरीक्षण करने लगा जो खिड़की के रास्ते बाहर कूदने से पहले उस ने लगाया था. फ्यूज जल चुका था और वहां राख की छोटी सी ढेरी नजर आ रही थी.

राख की इस ढेरी के नीचे उस ने कालीन को छू कर देखा. वह बिलकुल शुष्क था. विक्रम अपना सिर पीटते हुए खिड़की की ओर चल दिया. कुछ देर बाद वह ललिता हाउस से निकल कर सड़क के दूसरी ओर पेड़ों के अंधेरे में छिप गया और मनमोहन वगैरह की वापसी का इंतजार करने लगा.

अंधेरे की चादर में लिपटी उस इमारत की ओर देखते हुए वह सोच रहा था कि यह बिल्डिंग उस का भाग्य बदल सकती है.

कार के इंजन की आवाज उसे ख्वाबों की दुनिया से बाहर ले आई. कार सड़क पर रुकते ही विक्रम पेड़ों की ओट से निकल कर सामने आ गया.

‘‘क्या रहा विक्रम?’’ मनमोहन ने खिड़की पर झुकते हुए पूछा.

‘‘मेरा अंदाजा सही निकला, वाकई गड़बड़ी हो गई थी.’’ विक्रम ने बहुत धीमे लहजे में कहा.

‘‘कोई कहानी सुनाने वाले हो क्या?’’ मनमोहन ने उसे गुस्से से घूरा. मोहित के कहने पर विक्रम कार में बैठ गया ताकि आराम से बात हो सके.

‘‘अपनी बकवास बंद रखो मनमोहन, जो कुछ कहनासुनना है जल्दी से कहो और यहां से निकल चलो.’’ कहते हुए मोहित ने सड़क पर इधरउधर देखा, ‘‘मेरे अंदाजे के मुताबिक ड्यूटी कांस्टेबल गश्त करते हुए इस ओर आने वाला होगा.’’

‘‘यह इस इलाके का पुलिस इंचार्ज है, जो एक मामूली कांस्टेबल से डरता है.’’  मनमोहन ने उस का मजाक उड़ाया.

‘‘मुझ से बड़ी गलती हो गई जो इस काम के लिए तुम लोगों से बात कर बैठा.’’ मोहित नागवारी से बोला, ‘‘बहरहाल, क्या गड़बड़ी हुई थी?’’

‘‘मैं ने 2 घंटे का फ्यूज लगाया था, जबकि वक्त ज्यादा होने की वजह से इस दौरान नेफ्थलीन हवा में उड़ गया.’’ विक्रम ने जवाब दिया.

‘‘क्या हवा में उड़ गया?’’ श्याम ने सवालिया निगाहों से उस की ओर देखा.

‘‘हमारा यह फायर एक्सपर्ट साइंस का स्टूडेंट है, बातचीत में बड़े कठिन शब्दों का प्रयोग करता है, जो दूसरों के सिर से गुजर जाते हैं. तुम्हें तो किसी होटल में बरतन धोने का काम करना चाहिए था विक्रम.’’ मनमोहन ने आखिरी शब्द विक्रम को संबोधित करते हुए कहे.

‘‘सवाल यह है कि अब क्या किया जाए?’’ मोहित ने दखल देते हुए कहा.

‘‘सुनो विक्रम, तुम इमारत में वापस जाओगे और आग लगाने के बाद उस वक्त तक बाहर नहीं निकलोगे जब तक शोले तुम्हारे कद से ऊपर न उठने लगें.’’ मनमोहन ने विक्रम को आदेश सा दिया.

‘‘हां, सुन लिया,’’ विक्रम की आवाज गुस्से से कांप रही थी, ‘‘सुन लिया है मैं ने.’’

‘‘अब तुम न कोई फ्यूज इस्तेमाल करोगे और न कोई ऐसी चीज जो हवा में उड़ जाए. आग अपने हाथ से लगाओगे, समझे.’’ मनमोहन बोला.

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विक्रम को उतार कर कार झटके से आगे बढ़ गई और मोहित पीछे मुड़ कर विक्रम को देखने लगा जो अब भी सड़क पर खड़ा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

हत्यारा हमसफर : भाग 3

छोटी बहन का दर्द सुन कर सपना बहुत दुखी हुई. उस ने सारी बात मांबाप को बताई. तब सुरेश कुमार मिश्रा ने दामाद रोहित तथा उस के मांबाप से बात की और अनुरोध किया कि वे लोग श्वेता को प्रताड़ित न करें.

इतना ही नहीं उन्होंने श्वेता को भी समझाया कि वह परिवार में सामंजस्य बनाए रहे. लेकिन सुरेश कुमार के अनुरोध का रोहित और उस के परिजनों पर कोई असर न पड़ा, उन की प्रताड़ना बदस्तूर जारी रही.

इसी तनाव भरी जिंदगी के बीच रोहित का तबादला उदयपुर के महाराणा प्रताप एयरपोर्ट पर हो गया. श्वेता दिल्ली छोड़ कर पति के साथ उदयपुर चली गई. उदयपुर में ही श्वेता ने अप्रैल 2018 में बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम श्रीयम रखा गया. बेटे के जन्म के बाद श्वेता को लगा कि अब उस की खुशियां वापस आ जाएंगी और पति के स्वभाव में भी परिवर्तन आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

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श्रीयम के जन्म से न तो रोहित को खुशी हुई और न ही उस के स्वभाव में परिवर्तन आया. उस की प्रताड़ना बदस्तूर जारी रही. रोहित के मातापिता भी श्रीयम के जन्म से खुश नजर नहीं आए.

उदयपुर एयरपोर्ट पर तैनाती के दौरान रोहित तिवारी की मुलाकात सह कर्मी हरीसिंह से हुई. धीरेधीरे दोनों में गहरी दोस्ती हो गई. हरी सिंह अपनी पत्नी सुधा सिंह को साथ ले कर रोहित के घर आने लगा. सुधा सिंह मिलनसार थी. इसलिए श्वेता और सुधा अपना सुखदुख एकदूसरे से शेयर कर लेती थीं. श्वेता ने प्रताडि़त किए जाने की बात भी सुधा से शेयर की थी.

सौरभ चौधरी हरीसिंह का साला था. वह भरतपुर में रहता था, और हैंडीक्राफ्ट का काम करता था. हरीसिंह के मार्फत सौरभ की जानपहचान रोहित से हुई. वह रोहित के घर आने लगा. उस ने श्वेता से भी पहचान बना ली, और उस से खूब बतियाने लगा. सौरभ जब भी रोहित से मिलने आता था, वह उसे शराब पिलाता था.

इधर श्रीयम के जन्म के बाद रोहित तिवारी का ट्रांसफर उदयपुर से जयपुर हो गया. जयपुर में रोहित ने प्रताप नगर थाना क्षेत्र के जगतपुरा में स्थित यूनिक टावर सेक्टर 26, आई ब्लौक में फ्लैट संख्या 103 किराए पर ले लिया और पत्नी श्वेता तथा बेटे श्रीयम के साथ रहने लगा.

जयपुर आ कर भी श्वेता और रोहित के बीच तनाव बरकरार रहा. दोनों का छोटीछोटी बातों में झगड़ा और मारपीट होती रहती थी. हरीसिंह का साला सौरभ चौधरी यहां भी रोहित से मिलने आता था. उसे दोनों की तनाव भरी जिंदगी के बारे में जानकारी थी. रोहित कभीकभी शराब के नशे में कह भी देता था कि वह झगड़ालू श्वेता से छुटकारा पाना चाहता है.

दिसंबर 2019 की बात है. रोहित को कंपनी के काम से 8 से 21 दिसंबर के बीच शहर से बाहर जाना था. इसलिए वह श्वेता को अपने मांबाप के पास दिल्ली छोड़ गया. पहले वह कोलकाता गया फिर मुंबई. 21 दिसंबर को वह मुंबई से दिल्ली आया. घर वालों ने हमेशा की तरह उसे श्वेता के खिलाफ भड़काया. तब दोनों के बीच झगड़ा भी हुआ.

इस के बाद वह श्वेता को ले कर जयपुर आ गया. दोनों कार से आए थे. घर आ कर श्वेता ने अपनी मां माधुरी को फोन पर बताया कि रोहित ने 272 किलोमीटर के सफर में उसे पानी तक नहीं पीने दिया और वह झगड़ता रहा.

अब तक रोहित अपनी शादीशुदा जिंदगी से ऊब चुका था. वह दूसरी शादी रचा कर अपनी नई जिंदगी की शुरूआत करने के सपने देखने लगा, लेकिन एक पत्नी के रहते वह दूसरी शादी नहीं कर सकता था. उस ने श्वेता की हत्या के साथ मासूम श्रीयम की भी हत्या कराने का फैसला किया, ताकि शादीशुदा जिंदगी का नामोनिशान मिट जाए. वह जिंदगी की बैक हिस्ट्री को ही डिलीट करना चाहता था.

3 जनवरी, 2020 को रोहित ने सौरभ चौधरी को फोन कर जयपुर एयरपोर्ट के पास स्थित होटल फ्लाइट व्यू में बुलाया. वहां रोहित ने सौरभ के साथ बैठ कर पत्नी व बेटे की हत्या की साजिश रची. साजिश इस तरह रची गई कि रोहित का नाम सामने नहीं आए. रोहित ने हत्या के लिए सौरभ को 20 हजार रुपए भी दे दिए.

दरअसल सौरभ चौधरी शादीशुदा था. रोहित की तरह सौरभ भी पत्नी से परेशान रहता था और पत्नी से छुटकारा पाना चाहता था. इसलिए दोनों में तय हुआ कि पहले वह रोहित का साथ देगा. फिर रोहित उस की पत्नी की हत्या में उस का साथ देगा. यही कारण था कि मात्र 20 हजार में सौरभ डबल मर्डर को राजी हो गया था.

5 जनवरी, 2020 को मोबाइल रिचार्ज न कराने को ले कर रोहित और श्वेता के बीच झगड़ा और मारपीट हुई. इस के बाद उस ने श्वेता के पिता सुरेश कुमार मिश्रा को फोन कर के झगड़े की जानकारी दी और गुस्से में कहा, ‘‘पापा जी, आप श्वेता को ले जाइए. मैं उस का मुंह नहीं देखना चाहता. आप को जितना पैसा चाहिए ले लीजिए. अन्यथा मैं इस की हत्या कर दूंगा.’’

दामाद की धमकी से सुरेश कुमार मिश्रा घबरा उठे. उन्होंने दामाद को भी समझाया और बेटी को भी. लेकिन समझाने के बावजूद रोहित का गुस्सा ठंडा नहीं हुआ. उस ने फोन कर सौरभ चौधरी को जयपुर बुला लिया और श्वेता तथा उस के मासूम बेटे श्रीयम की हत्या की पूरी योजना तैयार कर के हत्या का दिन तारीख और समय तय कर दिया.

योजना के मुताबिक 7 जनवरी, 2020 की सुबह 9 बजे रोहित जयपुर एयरपोर्ट पहुंच गया और अपने काम पर लग गया. वह वहां एक मीटिंग में भी शामिल हुआ. वहां लगे सीसीटीवी कैमरों के सामने भी वह आताजाता रहा, ताकि उस का फोटो कैमरों में कैद हो जाए.

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इधर योजना के मुताबिक सौरभ चौधरी भी 7 जनवरी को दोपहर बाद लगभग 2 बजे रोहित के यूनिक टावर अपार्टमेंट स्थित फ्लैट पर पहुंचा और डोरवेल बजाई. श्वेता ने दरवाजा खोला तो सामने सौरभ खड़ा था.

चूंकि सौरभ को श्वेता जानतीपहचानती थी, इसलिए उसे घर के अंदर ले गई और कमरे में बिठाया. फिर उस ने 2 कप चाय बनाई और दोनों ने बैठ कर चाय पी. चाय पी कर दोनों ने कप प्लास्टिक की टेबल पर रख दिए.

इसी बीच श्वेता दूसरे कमरे में चली गई, जहां उस का बेटा श्रीयम सो रहा था. तभी मौका पा कर सौरभ रसोई में गया और अदरक कूटने वाली लोहे की मूसली उठा लाया. चंद मिनट बाद श्वेता वापस आई तो सौरभ ने अकस्मात श्वेता के सिर पर मूसली से वार कर दिया. श्वेता सिर पकड़ कर पलंग पर गिर पड़ी.

इस के बाद सौरभ ने श्वेता को दबोच लिया, और मूसली से उस का सिर व चेहरा कूट डाला. इस के बाद वह पुन: रसोई में गया और चाकू ले आया और चाकू से श्वेता का गला रेत दिया. उस ने चाकू पलंग पर तथा मूसली पलंग के नीचे फेंक दी.

श्वेता की हत्या करने के बाद सौरभ चौधरी दूसरे कमरे में पहुंचा, जहां मासूम श्रीयम पलंग पर सो रहा था. सौरभ को उस मासूम पर जरा भी दया नहीं आई और न ही उस का कलेजा कांपा. उस ने श्रीयम को गला दबा कर मार डाला तथा उस का सिर भी कूट डाला. इस के बाद सौरभ ने उस का शव तौलिए में लपेटा और बाउंड्री वाल के पीछे झाडि़यों में फेंक दिया.

श्रीयम का शव ठिकाने लगाने के बाद उस ने फिर से कमरे में आ कर श्वेता का मोबाइल फोन अपनी जेब में डाला और मुंह पर कपड़ा ढक कर फ्लैट से निकल गया. बाद में उस ने श्वेता का मोबाइल फोन तोड़ कर सांगानेर से शिकारपुरा की ओर बहने वाले नाले में फेंक दिया और दूसरा फोन खरीद कर फिरौती के लिए रोहित को मैसेज भेजा.

इधर शाम 4 बजे नौकरानी काम करने फ्लैट पर आई तब घटना की जानकारी हुई. इस के बाद तो कोहराम मच गया. थाना प्रताप नगर पुलिस को सूचना मिली तो पुलिस मौके पर पहुंची.

11 जनवरी, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त रोहित तिवारी तथा सौरभ चौधरी को जयपुर कोर्ट में पेश किया. पुलिस ने मृतका का मोबाइल फोन व सिम कार्ड बरामद करने के लिए अदालत में अभियुक्तों की 3 दिन के रिमांड की अरजी लगाई. अदालत ने 2 दिन की रिमांड अरजी मंजूर कर ली.

रिमांड मिलने पर जब पुलिस ने सौरभ से श्वेता के मोबाइल फोन व सिम के बारे में पूछा तो उस ने सिम तो बरामद करा दिया, लेकिन मोबाइल फोन के बारे में बताया कि उस ने मोबाइल तोड़ कर सांगानेर के नाले में फेंक दिया था. रिमांड के दौरान पुलिस मोबाइल बरामद नहीं कर सकी. जिस से उन दोनों को 13 जनवरी को अदालत में पेश करना पड़ा.

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पुलिस की अरजी पर अदालत ने 15 जनवरी, 2020 तक फिर से रिमांड अवधि बढ़ाई लेकिन पुलिस मोबाइल फोन फिर भी बरामद नहीं कर सकी. इसलिए उन्हें अदालत में पेश कर जयपुर की जिला जेल भेज दिया गया. हरीसिंह को पुलिस ने उदयपुर से हिरासत में जरूर ले लिया था, परंतु बाद में उसे इस मामले में क्लीन चिट दे दी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

हत्यारा हमसफर : भाग 1

उस दिन जनवरी 2020 की 7 तारीख थी. शाम के 7 बज रहे थे. हर रोज की तरह घरेलू नौकरानी पूजा, जयपुर की यूनिक टावर सोसायटी के आई ब्लौक स्थित रोहित तिवारी के फ्लैट नंबर 103 पर काम करने के लिए पहुंची. उस ने डोरबैल बजाई तो मालकिन श्वेता तिवारी ने दरवाजा नहीं खोला और न ही अंदर कोई हलचल सुनाई दी.

पूजा ने दरवाजे को अंदर की ओर धकेला तो वह खुल गया. नौकरानी कमरे के अंदर पहुंची तो उस के मुंह से चीख निकल गई. कमरे के अंदर पलंग पर मालकिन श्वेता तिवारी मृत पड़ी थीं. उन का मुंह खून से लाल था.

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पूजा चीखतेचिल्लाते बाहर निकली और पासपड़ोस के फ्लैट्स में रहने वाले लोगों को जानकारी दी. मर्डर की खबर से सोसायटी में हडकंप मच गया, लोगों की भीड़ जुटने लगी. इसी बीच किसी ने थाना प्रताप नगर पुलिस को सूचना दे दी.

पौश सोसायटी के फ्लैट में हत्या की सूचना पा कर प्रताप नगर थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ मौके पर आ गए. उन्होंने यह खबर वरिष्ठ अधिकारियों को दी और पूछताछ में जुट गए. पूछताछ से पता चला कि जिस फ्लैट में मर्डर हुआ है उस में रोहित तिवारी किराए पर रहते हैं. रोहित इंडियन औयल कारपोरेशन में सीनियर मैनेजर हैं और जयपुर एयर पोर्ट पर बतौर फ्यूल इंचार्ज तैनात हैं. मर्डर उन की पत्नी श्वेता तिवारी का हुआ है.

हत्या का मामला हाई प्रोफाइल था. सूचना पा कर पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव, डीआईजी सुभाष बघेल, एएसपी डा. अवधेश सिंह, एसपी डा. सतीश कुमार, डीएसपी (पूर्वी) राहुल जैन तथा सीओ संजय शर्मा घटना स्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम तथा डौग स्क्वायड टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जयपुर एयरपोर्ट पर तैनात रोहित तिवारी को उन की पत्नी श्वेता की हत्या की सूचना दी तो कुछ देर में वह भी फ्लैट पर आ गए.

रोहित ने फ्लैट के अंदर देख कर पुलिस अधिकारियों को बताया कि बेड पर पड़ी लाश उस की पत्नी श्वेता की है, लेकिन उस के 21 माह के मासूम बेटे श्रीयम का पता नहीं है. लगता है, हत्यारों ने श्वेता की हत्या के बाद श्रीयम का अपहरण कर लिया है. रोहित की बात सुन कर पुलिस अधिकारी सन्न रह गए. क्योंकि अभी तक जानकारी हत्या की थी लेकिन अब श्रीयम के अपहरण की बात सामने आई थी.

पुलिस अधिकारियों ने हत्या और अपहरण के इस मामले को गंभीरता से लेते हुए घटना स्थल का बारीकी से निरीक्षण शुरू किया. कमरे के अंदर पड़े बेड पर 30-32 वर्षीय श्वेता तिवारी की लाश पड़ी थी. उस के सिर से खून रिस रहा था, जिस से उस का चेहरा खून से लाल था. उस का गला भी रेता गया था. सिर पर भी जख्म था.

बेड पर खून से सना चाकू पड़ा था, बेड के नीचे अदरक कूटने वाली लोहे की मूसली पड़ी थी. बिस्तर भी खून से तरबतर था. खून की बूंदे दीवार पर भी दिखाई दे रही थीं. कमरे में रखी प्लास्टिक टेबल पर चाय के 2 कप रखे थे. जिस में कुछ चाय बची हुई थी. श्वेता का मोबाइल फोन भी गायब था.

घटना स्थल का निरीक्षण करने के बाद पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि श्वेता का हत्यारा कोई करीबी ही रहा होगा, जिस के आने पर श्वेता ने दरवाजा खोला और उसे कमरे में बिठा कर चाय पिलाई. इसी बीच हत्यारे ने अदरक कूटने वाली मूसली से उस के सिर पर प्रहार कर उसे पलंग पर गिरा दिया होगा, फिर चाकू से उस का गला रेता होगा. इस के बाद वह श्रीयम का अपहरण कर ले गया होगा. पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू व मूसली को सुरक्षित कर लिया.

फोरैंसिक टीम ने भी घटना स्थल का निरीक्षण किया और दीवार, प्याले, फर्श व बेड से फिंगरप्रिंट उठाए. डौग स्क्वायड टीम ने सुराग के लिए खोजी कुत्ते को छोड़ा. खोजी कुत्ता घटना स्थल को सूंघ कर भौंकते हुए बाहर निकला और रोहित की कार के 2 चक्कर काटे. कुछ देर वह रोहित के आसपास भी मंडराता रहा. इस से टीम को रोहित पर शक हुआ. किंतु उस के खिलाफ कोई पक्का सुबूत न मिलने से उस से ज्यादा कुछ पूछताछ नहीं की गई.

निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका श्वेता का शव पोस्टमार्टम के लिए जयपुर के महात्मा गांधी अस्पताल भिजवा दिया.

श्वेता तिवारी का मायका उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर स्थित सर्वोदय नगर में था और ससुराल गांधी नगर, दिल्ली में थी. रोहित ने फोन कर के श्वेता की हत्या और मासूम श्रीयम के अपहरण की जानकारी अपने माता पिता तथा ससुराल वालों को दे दी. बेटी की हत्या की खबर पा कर श्वेता के पिता सुरेश कुमार मिश्रा तथा उन की पत्नी माधुरी मिश्रा घबरा गईं.

परिवार में कोहराम मच गया. वह पत्नी, बेटे शुभम व परिवार के अन्य सदस्यों के साथ निजी वाहन से जयपुर के लिए रवाना हो लिए. अब तक श्वेता की हत्या की खबर टीवी चैनलों पर भी प्रसारित होने लगी थी. वह मोबाइल फोन पर रास्ते भर हत्या की जानकारी लेते रहे.

पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव ने इस हत्या और अपहरण के मामले को बेहद गंभीरता से लिया. उन्होंने 22 महीने के श्रीयम का पता लगाने के लिए 6 थाना प्रभारियों, 3 सीओ तथा पुलिस के 100 जवानों को लगा दिया. भारीभरकम पुलिस फोर्स ने डीएसपी (पूर्वी) राहुल जैन तथा एसपी डा. सतीश कुमार के निर्देशन में श्रीयम की खोज आरंभ की.

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इस बारे में पुलिस ने तकरीबन डेढ़ सौ लोगों से पूछताछ की. दरजनों संदिग्ध लोगों को हिरासत में ले कर उन से कड़ाई से पूछताछ की. सैकड़ों संदिग्ध नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई, तकनीक का सहारा लिया. लेकिन श्रीयम का कोई सुराग नहीं मिला और न ही श्वेता के हत्यारों का.

पुलिस अधिकारी रात भर रोहित तिवारी के फ्लैट पर जुटे रहे. एसपी डा. सतीश कुमार एएसपी डा. अवधेश सिंह तथा सीओ संजय शर्मा  अन्य पुलिस कर्मियों के साथ जांच में जुटे थे.

वह सीसीटीवी फुटेज खंगाल चुके थे और कमरे की हर चीज का निरीक्षण कर रहे थे. तभी रोहित तिवारी के मोबाइल फोन पर एक मैसेज आया. मैसेज देख कर वह चीख पड़ा, ‘‘सर, यह देखो श्रीयम के अपहर्त्ता का मैसेज आया है. उस ने 30 लाख रुपए फिरौती की मांग की है.’’

फिरौती का मैसेज मृतका श्वेता के मोबाइल नंबर से भेजा गया था. रोहित ने उसी नंबर पर काल बैक कर अपहर्त्ता से कहा कि वह फिरौती की रकम देने को तैयार है लेकिन पहले श्रीयम का चेहरा दिखाए. लेकिन फोन करने वाले ने चेहरा नहीं दिखाया और फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

पुलिस अधिकारियों की समझ में यह नहीं आ रहा था कि अपहर्त्ता को रोहित का मोबाइल नंबर कैसे मिला. क्या अपहर्त्ता रोहित की जान पहचान का है?

पुलिस अधिकारी अभी जांच कर ही रहे थे कि सुबह मृतका श्वेता के मांबाप व अन्य परिजन रोहित के फ्लैट पर आ गए. श्वेता के पिता सुरेश कुमार मिश्रा तथा मां माधुरी मिश्रा ने आते ही एसपी डा. सतीश कुमार को बताया कि उन की बेटी की हत्या उन के दामाद रोहित ने ही की है.

5 जनवरी को मोबाइल रिचार्ज न करवाने की बात को ले कर रोहित और श्वेता के बीच झगड़ा हुआ था. मारपीट करने के बाद रोहित ने उन के मोबाइल पर फोन किया था. उस ने गुस्से में कहा था, ‘‘पापा जी, हम बहुत परेशान हैं. आप को जितना रुपया चाहिए, ले लो लेकिन श्वेता को अपने साथ ले जाओ. नहीं तो मैं इस की हत्या कर दूंगा.’’

इस पर उन्होंने रोहित को समझाने का प्रयास किया तो उस ने फोन काट दिया. इस के बाद उन्होंने श्वेता को काल कर के समझाया था. लेकिन यह नहीं सोचा था कि रोहित हत्या कर ही देगा.

रोहित जिस तरह से बारबार अपनी बेगुनाही का सबूत दे रहा था और हत्या के समय अपनी मौजूदगी औफिस में बता रहा था, उस से पुलिस अधिकारियों को उस पर शक बढ़ता जा रहा था. लेकिन जब मृतका के मांबाप ने भी उस पर सीधे तौर पर हत्या का आरोप लगाया तो पुलिस का भी शक उस पर गहराने लगा.

8 जनवरी, 2020 की दोपहर 3 बजे हल्ला मचा कि एक बच्चे का शव रोहित के फ्लैट की बाउंड्रीवाल के पीछे झाडि़यों में पड़ा है. पुलिस ने झाडि़यों से शव को बाहर निकाला, शव तौलिया में लिपटा था. तौलिया हटाया गया तो सभी अवाक रह गए, शव श्रीयम का ही था. उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. श्रीयम का सिर भी कुचला गया था. जिस श्रीयम को खोजने के लिए पुलिस के 100 जवान पसीना बहा रहे थे, उस का शव उसी के घर के पीछे झाडि़यों में पड़ा था. नाती की लाश देख कर सुरेश कुमार मिश्रा व उन की पत्नी माधुरी मिश्रा फफक पड़ी. बेटे शुभम ने मांबाप को धैर्य बंधाया.

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मासूम श्रीयम की हत्या की जानकारी पाते ही पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव तथा डीएसपी (पूर्वी) राहुल जैन वहां आ गए. उन्होंने मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारियों से कहा कि मां के बाद बेटे की हत्या दिल को झकझोर देने वाली है. ऐसे क्रूर हत्यारों को वह जल्द से जल्द सलाखों के पीछे देखना चाहते हैं. इस के बाद उन्होंने श्रीयम का शव भी पोस्टमार्टम के लिए महात्मा गांधी अस्पताल भेज दिया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

हत्यारा हमसफर : भाग 2

भारी पुलिस सुरक्षा के बीच 3 डाक्टरों के एक पैनल ने श्वेता और उस के मासूम बेटे श्रीयम के शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम के बाद दोनों शव मृतका के पति रोहित के बजाय मृतका के मातापिता को सौंप दिए गए.

सुरेश कुमार मिश्रा बेटी श्वेता व नाती श्रीयम के शव सर्वोदय नगर (कानपुर) स्थित अपने घर ले आए. वहां भैरवघाट पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

अंतिम संस्कार का दृश्य बड़ा ही हृदय विदारक था. शव यात्रा के समय 22 महीने के श्रीयम का शव श्वेता की गोद में था. ठीक इसी तरह उन्हें चिता पर लिटाया गया. श्वेता का एक हाथ बेटे के ऊपर था. ठीक वैसे ही जैसे कोई सो रही मां अपने बेटे को अपनी बांहों की सुरक्षा देती है. श्मशान घाट पर जिस ने भी यह दृश्य देखा उस का कलेजा फट गया. लोग तो अपनी आंखों से आंसू नहीं रोक सके.

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उधर डबल मर्डर की गुत्थी सुलझाने के लिए जयपुर पुलिस अधिकारियों ने मृतका के पति रोहित तिवारी पर शिकंजा कसा और उस से सख्ती से पूछताछ की. पुलिस अधिकारी उसे एयर पोर्ट ले गए और घटना वाले दिन यानी 7 जनवरी की सीसीटीवी फुटेज खंगाली.

पता चला कि उस रोज रोहित तिवारी सुबह 9 बजे एयरपोर्ट पहुंचा था और पत्नी की हत्या की सूचना मिलने के बाद एयरपोर्ट से घर को निकला था. फुटेज से यह भी पता चला कि रोहित घटना के समय वहां एक बैठक में मौजूद था.

उस के मोबाइल की लोकेशन भी दिन भर एयरपोर्ट की ही मिल रही थी. सारे सबूत रोहित के पक्ष में जा रहे थे जिस से पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं कर पा रही थी. यद्यपि पुलिस अधिकारियों को पक्का यकीन था कि दोहरी हत्या में रोहित का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हाथ हो सकता है.

पुलिस ने रोहित पर कड़ा रुख अपनाया तो पुलिस पर दबाव बनाने के लिए उस ने कोर्ट का रुख किया. 9 जनवरी को रोहित ने जयपुर की निचली अदालत में अपने वकील दीपक चौहान के मार्फत प्रार्थना पत्र दे कर पुलिस पर प्रताडि़त करने का अरोप लगाया.

कोर्ट ने इस मामले में प्रताप नगर थानाप्रभारी को 10 जनवरी को प्रकरण से जुड़े तथ्यों के साथ उपस्थित होने का आदेश दिया.

रोहित की इस काररवाई से पुलिस बौखला गई. जिस मोबाइल फोन से रोहित के मोबाइल पर मैसेज किया गया था, पुलिस ने उस मोबाइल फोन की जांच में जुट गई. जांच से पता चला कि श्वेता अपने मोबाइल फोन में पैटर्न लाक लगाती थी, जिसे कोई दूसरा नहीं खोल सकता था.

इस का मतलब मैसेजकर्ता ने श्वेता का सिम निकाल कर किसी दूसरे मोबाइल में डाला था. मैसेज करते समय इस मोबाइल फोन की लोकेशन जयपुर के सांगानेर की मिली. पुलिस फोन के आईएमईआई नंबर के सहारे उस दुकानदार तक पहुंची, जहां से वह हैंडसेट खरीदा गया था.

वहां से मोबाइल खरीदार के बारे में जानकारी नहीं मिली तो उस फोन के आईएमईआई (इंटरनैशनल मोबाइल इक्विपमेंट आइडेंटिटी) नंबर को ट्रेस कर पुलिस मैसेजकर्ता तक पहुंच गई.

पुलिस मैसेजकर्ता को उस के घर से पकड़ कर थाने ले आई. उस ने अपना नाम सौरभ चौधरी निवासी भरतपुर (राजस्थान) तथा हाल पता सांगानेर बताया. उस से जब श्वेता व उस के मासूम बेटे श्रीयम की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने ऐसा कुछ करने से इनकार किया.

लेकिन जब उस के साथ सख्ती की गई तो वह टूट गया और दोहरी हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया. सौरभ चौधरी ने बताया कि रोहित तिवारी ने ही उसे 20 हजार रुपए दे कर पत्नी व बेटे की हत्या की सुपरी दी थी. मतलब दोहरी हत्या की साजिश रोहित ने ही रची थी.

सौरभ से पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने 10 जनवरी, 2020 को रोहित तिवारी को भी बंदी बना लिया. थाने में जब उस का सामना सौरभ चौधरी से हुआ तो उस का चेहरा लटक गया और उस ने सहज ही पत्नी श्वेता की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

डबल मर्डर के हत्यारों के पकड़े जाने की जानकारी पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव और डीसीपी (पूर्वी) डा. राहुल जैन को हुई तो वह थाना प्रताप नगर आ गए. उन्होंने आरोपियों से पूछताछ की, फिर प्रैसवार्ता कर घटना का खुलासा कर दिया.

चूंकि हत्यारोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी ने भादंवि की धारा 302/201 तथा 120बी के तहत सौरभ चौधरी तथा रोहित तिवारी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर एक ऐसे पति की कहानी सामने आई जिस ने दूसरी शादी रचाने के लिए अपनी पत्नी व बच्चे के कत्ल की साजिश रच डाली.

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उत्तर प्रदेश के कानुपर महानगर के काकादेव थाना अंतर्गत एक मोहल्ला है सर्वोदय नगर. सुरेश कुमार मिश्रा अपने परिवार के साथ इसी सर्वोदय नगर में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी माधुरी मिश्रा के अलावा एक बेटा और 3 बेटियां थीं. सुरेश कुमार मिश्रा भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) में अधिकारी थे, जो अब रिटायर हो चुके हैं. उन का आलीशान मकान है, मिश्राजी अपनी 2 बेटियों की शादी कर चुके थे.

श्वेता सुरेश कुमार मिश्रा की सब से छोटी बेटी थी. वह अपनी दोनों बहनों से ज्यादा खूबसूरत थी. जब वह आंखों पर काला चश्मा लगा कर घर से बाहर निकलती थी तो लोग उसे मुड़मुड़ कर देखते थे, लेकिन वह किसी को भाव नहीं देती थी. श्वेता ने कानपुर छत्रपति साहू जी महाराज विश्वविद्यालय से बीए किया था.

वह आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती थी ताकि अपने पैरों पर खड़ी हो सके, लेकिन पिता सुरेश कुमार मिश्रा कोई अच्छा घरवर ढूंढ कर उस के हाथ पीले करना चाहते थे. उन्होंने उस के लिए वर की खोज भी शुरू कर दी. उसी खोज में उन्हें रोहित तिवारी पसंद आ गया.

रोहित के पिता उमाशंकर तिवारी मूल रूप से औरैया जनपद के गांव कंठीपुर के रहने वाले थे, लेकिन वह दिल्ली के गांधी नगर के रघुवरपुरा स्थित माता मंदिर वाली गली में रहते थे. उमाशंकर तिवारी के परिवार में पत्नी कृष्णादेवी के अलावा बेटा रोहित तथा 2 बेटियां थीं. बेटियों की शादी वह कर चुके थे.

रोहित अभी कुंवारा था. रोहित पढ़ालिखा हैंडसम युवक था. वह इंडियन आयल कारपोरशन में मैनेजर था. उस की पोस्टिंग दिल्ली में ही थी. सुरेश कुमार मिश्रा ने रोहित को देखा तो उसे अपनी बेटी श्वेता के लिए पसंद कर लिया.

फिर 24 जनवरी, 2011 को रीतिरिवाज से रोहित के साथ श्वेता का विवाह धूमधाम से कर दिया. उस की शादी में उन्होंने लगभग 30 लाख रुपए खर्च किए थे.

शादी के बाद श्वेता और रोहित ने बड़े प्रेम से जिंदगी का सफर शुरू किया. हंसतेखेलते 2 साल कब बीत गए दोनों में किसी को पता ही न चला. लेकिन इन 2 सालों में श्वेता मां नहीं बन सकी. सूनी गोद का दर्द जहां श्वेता और रोहित को था, वहीं श्वेता के सासससुर को भी टीस थी. सास कृष्णादेवी तो श्वेता को ताने भी देने लगी थी.

इतना ही नहीं, श्वेता को कम दहेज लाने की भी बात कही जाने लगी. उस के हर काम में कमी निकाली जाने लगी. यहां तक कि उस के खानपान और पहनावे पर भी सवाल उठाए जाने लगे. उसे तब और गहरी चोट लगी जब उसे पता चला कि उस के पति रोहित के किसी अन्य लड़की से नाजायज संबंध हैं, जो उस के साथ कालेज में पढ़ती थी.

वर्ष 2013 में जब श्वेता की प्रताड़ना ज्यादा बढ़ गई तो वह ससुराल छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी. यहां वह 7 महीने तक रही. उस के बाद एक प्रतिष्ठित कांग्रेसी नेता ने बीच में पड़ कर समझौता करा दिया. उस के बाद सुरेश कुमार मिश्रा ने श्वेता को ससुराल भेज दिया.

ससुराल में कुछ समय तक तो उसे ठीक से रखा गया. लेकिन उसे फिर से प्रताडि़त किया जाने लगा. मांबाप की नुकताचीनी पर रोहित उसे पीट भी देता था. कृष्णा देवी तो सीधेसीधे उसे बांझ होने का ताना देने लगी थी. ननद नूतन और मीनाक्षी भी अपने मांबाप व भाई का ही पक्ष ले कर प्रताडि़त करती थीं.

ससुराली बातों की प्रताड़ना से दुखी हो कर श्वेता ने एक रोज अपनी बड़ी बहन सपना को एक खत भेजा, जिस में उस ने अपना दर्द बयां करते हुए लिखा, ‘सपना दीदी, रोहित तथा उस के मांबाप मुझे बहुत परेशान करते हैं. चैन से जीने नहीं देते. सब पीटते हैं, मुझे नीचा दिखाते हैं. खाने को भी नहीं देते. यहां तक कि मेरे पहनावे पर सवाल उठाते हैं.

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‘‘मुझे यह भी पता चला है कि रोहित के एक युवती से संबंध हैं. वह उस के कालेज समय की दोस्त है. वह उसी से प्यार करता है. यही वजह है कि वह मुझे प्रताडि़त करता है. उसे मेरी हर बात बुरी लगती है. मामूली बातों पर मारपीट कर घर से जाने को कहता है. सासससुर भी उसी का साथ देते हैं. नौकरानी की तरह दिन भर घर का काम करवाते हैं. यदि मेरे साथ कोई अप्रिय वारदात हो जाए तो ये सभी जिम्मेदार होंगे.’’

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

एक पति ऐसा भी : भाग 3

इस बार विनीता ससुराल आई तो उस के तेवर उग्र थे. बात व्यवहार करने का तरीका भी बदल गया था. शायद पति द्वारा किया गया अपमान उसे सता रहा था. जब वह बीते पलों के बारे में सोचती तो उस की आंखें में गुस्सा उतर आता. सास उस के काम में रोकाटोकी करती तो वह उस से झगड़ा कर बैठती. पति को भी वह करारा जवाब दे देती थी.

बहू के इस व्यवहार से दुखी हो कर खेमराज अहिरवार ने उसे संयुक्त परिवार में रखने के बजाय अलग कर दिया. उन्होंने उसे अजनारी रोड वाला मकान रहने को दे दिया. इस टिन शेड वाले मकान के पीछे वाले भाग में प्रमोद विनीता व बच्चों के साथ रहने लगा. मकान के अगले हिस्से में बने 3 कमरे किराए पर उठे थे.

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इस मकान में लगभग 6 माह तक विनीता और प्रमोद ठीक से रहे, उस के बाद दोनों में पुन: झगड़ा होने लगा. झगड़ा बेरोजगारी को ले कर होता था. मकान में आने वाले किराए से विनीता परिवार का खर्चा नहीं चला पा रही थी. उसे सदैव आर्थिक परेशानी से जूझना पड़ता था.

वह प्रमोद से खर्चा मांगती तो वह कहता कि मायके से ले कर आओ. विनीता 2-4 बार तो मायके से खर्च के पैसे ले आई. लेकिन हर बार जाने से उस ने मना कर दिया. तब प्रमोद उस से झगड़े पर उतारू हो जाता. इस तरह उन में तकरार होने लगी.

साल 2018 की फरवरी माह की बात है. एक रोज खाना न बनाने को ले कर विनीता को प्रमोद ने पीट दिया तो विनीता महिला थाने पहुंच गई. वहां उस ने पति की शिकायत की तो प्रमोद को थाने बुलाया गया. वहां पुलिस ने प्रमोद को डरायाधमकाया और झगड़ा या मारपीट न करने की नसीहत दी. बाद में पुलिस ने इस मामले को जिला परिवार परामर्श केंद्र भेज दिया. परामर्श केंद्र से दोनों का समझौता हो गया.

विनीता और प्रमोद के बीच समझौता हो जरूर गया था, लेकिन उन के बीच तनाव कम नहीं हुआ था. किसी न किसी बात को ले कर उन में झगड़ा हो ही जाता था. प्रमोद के मन में अब विनीता के प्रति नफरत की आग सुलगने लगी थी. यह आग जब शोला बन गई तो प्रमोद ने विनीता की हत्या करने की ठान ली और हत्या की गहरी साजिश रच डाली.

योजना के अनुसार 18 मई, 2018 की सुबह करीब 10 बजे प्रमोद अपने पिता खेमराज के घर पहुंचा. उस के साथ उस की तीनों बेटियां भी थीं. उस ने पिता से कहा कि वह काम करने के लिए दिल्ली जा रहा है, विनीता को भी साथ ले जाएगा. इसलिए इन्हें यहां छोड़ने आया है.

न जाने क्यों पिता खेमराज व मां रामवती ने आवारा बेटे की बातों पर विश्वास कर लिया और वह उन मासूम बच्चियों को अपने पास रखने के लिए तैयार हो गए.

बेटियों को मातापिता के घर छोड़ कर प्रमोद वापस घर आ गया. चूंकि विनीता की बेटियां एकदो दिन के लिए दादादादी के घर चली जाती थीं, इसलिए विनीता ने इस तरह ज्यादा ध्यान नहीं दिया और न ही पति से तर्कवितर्क किया.

प्रमोद भी दिनभर सामान्य बना रहा. पति की साजिश की विनीता को जरा भी भनक नहीं लगी. शाम को विनीता ने खाना बनाया. उस ने पहले प्रमोद को खाना खिलाया फिर स्वयं भी खाना खाया. चौकाबरतन साफ कर वह चारपाई पर लेट गई. कुछ देर बाद वह गहरी नींद में सो गई.

लेकिन प्रमोद की आंखों में नींद नहीं थी. उसे तो इसी वक्त का इंतजार था. वह आहिस्ताआहिस्ता विनीता की चारपाई के पास पहुंचा और उसी की साड़ी से उस का गला कसने लगा. विनीता की आंखें खुलीं तो पति को गला घोंटते पाया.

उस ने बचाव का भरपूर प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सकी. कुछ देर घटपटाने के बाद उस की मौत हो गई.

पत्नी की हत्या करने के बाद प्रमोद ने रात के सन्नाटे में कमरे के अंदर फावड़े से करीब 4 फीट गहरा गड्ढा खोदा और उस में विनीता की लाश दफन कर दी. दूसरे रोज वह ईंट की गिट्टी लाया और कमरे में बिछा कर दुरमुट से खूब कुटाई की. फिर राजमिस्त्री से कमरे का फर्श बनवा दिया.

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किसी को कानोंकान खबर नहीं लगी. इस के बाद वह कमरा बंद कर दिल्ली चला गया. दिल्ली में वह क्या करता है, कहां रहता है इस की जानकारी उस ने न तो अपने मांबाप को दी और न ही किसी और को.

इधर जब 3 महीने बीत गए और उर्मिला की बेटी से फोन पर भी बात नहीं हो सकी तो उर्मिला अपनी बड़ी बेटी वंदना के साथ उस के घर आई. लेकिन कमरे में ताला लटक रहा था. वह रामनगर स्थित विनीता के ससुर खेमराज के पास गई. खेमराज ने बताया कि विनीता और प्रमोद दिल्ली में हैं. बच्चे उस के साथ हैं. प्रमोद दिल्ली में नौकरी करने लगा है.

उर्मिला ने खेमराज से प्रमोद का मोबाइल नंबर लिया और फिर प्रमोद से फोन पर बात की. प्रमोद ने बताया कि वह दिल्ली में है. विनीता भी उस के साथ है. उर्मिला ने जब उस से विनीता से बात कराने को कहा तो उस ने कह दिया कि वह इस समय ड्यूटी पर है, विनीता से बात नहीं हो पाएगी.

इस के बाद तो यह सिलसिला बन गया. जब भी उर्मिला या कालीचरण प्रमोद से फोन पर बात करते और विनीता से बात कराने को कहते तो वह कोई न कोई बहाना बना देता था. न ही वह दिल्ली में अपने रहने का ठिकाना बताता था.

धीरेधीरे एक साल बीत गया. लेकिन वह बेटी की आवाज नहीं सुन सकी. विनीता के संबंध में जानकारी करने उर्मिला कभीकभी उस के अजनारी रोड स्थित घर भी आती थी और किराएदारों से पूछताछ करती थी. लेकिन उसे क्या पता था कि जिस बेटी की तलाश में वह भटक रही है, उस का शव कमरे में दफन है.

उर्मिला जब परेशान हो गई तो उस ने प्रमोद की टोह में उसी के मकान में रहने वाले एक किराएदार की मदद ली. उर्मिला ने उस से कहा कि जब भी प्रमोद अपने कमरे में आए उसे तत्काल मोबाइल पर फोन कर दे. उस ने किराएदार को अपना फोन नंबर दिया, साथ ही सटीक सूचना पर पैसों का लालच भी दिया.

3 जनवरी, 2020 की सुबह उर्मिला को किराएदार ने सूचना दी कि प्रमोद दिल्ली से अपने घर आया है और कमरे में मौजूद है. लेकिन उस के साथ विनीता नहीं है. यह सूचना पाते ही उर्मिला और कालीचरण उरई कोतवाली पहुंच गए और पुलिस को सूचना दी.

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5 जनवरी, 2020 को पुलिस ने अभियुक्त प्रमोद कुमार अहिरवार से पूछताछ कर उसे उरई की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट डी. एन. राय की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

मां की हत्या और पिता के जेल जाने के बाद मासूम बच्चियों को संभालने की जिम्मेदारी मृतका की बहनों ने ली है. मृतका की बड़ी बहन वंदना 4 वर्षीय कनिष्का का पालनपोषण करेगी जबकि लाली 3 वर्षीय गुंजन का. नौभी 2 वर्षीय परी का पालनपोषण करेगी. तीनों के पति भी इस के लिए तैयार हो गए.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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