सयाना इश्क: क्यों अच्छा लाइफ पार्टनर नही बन सकता संजय- भाग 2

”कुछ तो है, गेस करो.‘’

”तुम ही बताओ.‘’

”तुम्हारी बेटी को शायद प्यार हो गया है.‘’

विनय जोर से हंसे, ”इतनी खुश हो रही हो. उस ने खुद बताया है या अंदाजा लगाती घूम रही हो.‘’

”नहीं, उस ने तो नहीं बताया, मेरा अंदाजा है.”

”अच्छा, उस ने नहीं बताया?”

”नहीं.‘’

”तो फिर पहले उसे बताने दो.‘’

”नहीं, मैं सही सोच रही हूं.‘’

”देखते हैं.‘’

पर बात इतनी सरल रूप में भी सामने नहीं आई जैसे नंदिता और विनय ने सोचा था. एक संडे पीहू ने सुबह कहा, ”मम्मी, पापा, आज मेरा एक दोस्त घर आएगा.‘’

नंदिता और विनय ने एकदूसरे को देखा, नंदिता ने आंखों ही आंखों में जैसे विनय से कहा, देखा, मेरा अंदाजा!”

विनय मुसकराए, ”अच्छा, कौन है?”

”संजय, वह भी सीए कर रहा है. बस, में ही साथ आतेजाते दोस्ती हुई. मैं चाहती हूं आप दोनों उस से मिल लें.‘’

नंदिता मुसकराई, ”क्यों नहीं, जरूर मिलेंगे.”

इतने में पीहू का फोन बजा तो नंदिता ने कनखियों से देखा, ‘माय लव’ का ही फोन था. वह विनय को देख हंस दी, पीहू दूसरे रूम में फोन करने चली गई.

शाम को संजय आया. नंदिता तो पीहू के फोन में उस दिन किचन में ही इस ‘माय लव’ की फोटो देख चुकी थी. संजय जल्दी ही नंदिता और विनय से फ्री हो गया. नंदिता को वह काफी बातूनी लगा. विनय को ठीक ही लगा. बहुत देर वह बैठा रहा. उस ने अपनी फेमिली के बारे में कुछ इस तरह बताया, ”पापा ने जौब छोड़ कर अपना बिजनैस शुरू किया है. किसी जौब में बहुत देर तक नहीं टिक रहे थे. अब अपना काम शुरू कर दिया है तो यहां तो उन्हें टिकना ही पड़ेगा. मम्मी को किट्टी पार्टी से फुरसत नहीं मिलती, बड़ी बहन को बौयफ्रैंड्स से.’’

नंदिता और विनय इस बात पर एकदूसरे का मुंह देखने लगे. पर संजय जो भी था, मेहमान था, पीहू उसे कुर्बान हो जाने वाली नजरों से देखती रही थी. चायनाश्ते के साथ गपें चलती रहीं. संजय के जाने के बाद पीहू ने नंदिता के गले में बांहें डाल दीं, ”मम्मी, कैसा लगा संजय?”

”ठीक है.‘’

”मम्मी, मैं चाहती हूं आप एक बार उस के पेरैंट्स से भी जल्दी मिल लें.‘’

”क्यों?”

”मैं उस से शादी करना चाहती हूं.‘’

अब नंदिता को एक झटका लगा, ”अभी तो सीए फाइनल के एक्जाम्स बाकी हैं, बहुत मेहनत के दिन हैं ये तो. और अभी उम्र ही क्या है तुम्हारी.”

”ओह्ह, मम्मी, पढ़ाई तो हम साथ रह कर भी कर लेंगे. आप को तो पता ही है मैं अपने कैरियर को ले कर सीरियस हूं.‘’

”सीरियस हो तो बेटा, इस समय सिर्फ पढ़ाई के ही दिन हैं, अभी शादी के लिए रुका जा सकता है.‘’

”पर संजय अभी शादी करना चाहता है, और मैं भी. मम्मी, आप को पता है, लड़कियां उस के कूल ऐटिट्यूड की दीवानी हैं, सब जान देती हैं उस के बेफिक्र नेचर पर.’’

”चलो, अभी तुम कुछ पढ़ लो, फिर बात करते हैं,” किसी तरह अपने गुस्से पर कंट्रोल रखते हुए नंदिता कह कर किचन की तरफ चली गई.

अब तक विनय बिलकुल चुप थे. वे अल्पभाषी थे. अभी मांबेटी के बीच में बोलना उन्हें ठीक नहीं लगा. नंदिता पीहू से बात कर ही रही है, तो ठीक है. दोनों एकसाथ शुरू हो जाएंगे तो बात बिगड़ सकती है. यह सोच कर वे बस अभी तक सुन ही रहे थे. अब जब नंदिता किचन में और पीहू पैर पटकते अपने रूम में चली गई तो वे किचन में गए और कुछ बिना कहे बस अपना हाथ नंदिता के कंधे पर रख दिया. नंदिता इस मौन में छिपे हुए उन के मन के भाव भी समझ गई.

अब पीहू अलग ही मूड में रहती. कभी भी ज़िद करने लगती कि आप लोग संजय के पेरैंट्स से कब मिलोगे, जल्दी मिल कर हमारी शादी की बात करो. संजय भी कभी कभी घर आने लगा था. पीहू उस के आने पर खिलीखिली घूमती. अकेले में विनय ने नंदिता से कहा, ”हमें पीहू की पसंद पर कोई आपत्ति नहीं है, पर पहले पढ़ तो ले. सीए की फाइनल परीक्षा का टाइम है, इसे क्या हो गया है, कैसे पढ़ेगी, ध्यान इतना बंट गया है.”

विनय की चिंता जायज थी. नंदिता ने मन ही मन बहुतकुछ सोचा और एक दिन बहुत हलकेफुलके मूड में पीहू के पास जा कर लेट गई. पीहू भी अच्छे मूड में थी. नंदिता ने बात शुरू की, ”पीहू, हमें संजय पसंद है, पर तुम भी हमारी इकलौती बेटी हो और तुम आज तक अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे कर अपना कैरियर बनाने की बात करती रही हो जो हमें गर्व से भर देता था. संजय को पसंद करना, उस से शादी करने की इच्छा होना, इस में कुछ भी गलत नहीं.” फिर नंदिता ने अपने उसी ख़ास स्टाइल में मजाक करना शुरू किया जिस स्टाइल से मांबेटी अब तक बात करती आई थीं, ”तुम्हारी उम्र में प्यार नहीं होगा तो क्या हमारी उम्र में होगा. मेरी बेटी को प्यार फाइनली हो ही गया किसी से, इस बात को तो मैं एंजौए कर रही हूं पर पीहू, मेरी जान, इस हीरो को भी तो अपने पैरों पर खड़े हो जाने दो. अपने पापा से पैसे मांग मांग कर थोड़े ही तुम्हारे शौक पूरे करेगा और अभी तो उस के पापा ही सैट नहीं हुए,” नंदिता के यह कहने के ढंग पर पीहू को हंसी आ गई. नंदिता ने आगे कहा, ”देखो, हम संजय के पेरैंट्स से जल्दी ही जरूर मिलेंगे. तुम जहां कहोगी, हम तुम्हारी शादी कर देंगे. पर तुम्हें हमारी एक बात माननी पड़ेगी.‘’

पीहू इस बात पर चौकन्नी हुई तो नंदिता हंस दी. पीहू ने पूछा, ”कौन सी बात?”

”अभी सब तरफ से ध्यान हटा कर सीए की तैयारी में लगा दो, बैठ जाओ पढ़ने. फिर जो कहोगी, हो जाएगा. सीए करते ही शादी कर लेना, हम खुश ही होंगे.‘’

पीहू ने इस बात पर सहमति दे दी तो नंदिता ने चैन की सांस ली और विनय को भी यह बातचीत बताई तो उन की भी चिंता कम हुई. पीहू फिर सचमुच रातदिन पढ़ाई में जुट गई. वह हमेशा यही कहती थी कि वह एक ही बार में सीए क्लियर करने के लिए जीतोड़ मेहनत करेगी, बारबार वही चीज नहीं पढ़ती रहेगी. नंदिता ने सुना, पीहू फोन पर कह रही थी

सयाना इश्क: क्यों अच्छा लाइफ पार्टनर नही बन सकता संजय- भाग 1

इक्कीस वर्षीया पीहू ने जब कहा, ”मम्मी, प्लीज, डिस्टर्ब न करना, जरा एक कौल है,” तो नंदिता को हंसी आ गई. खूब जानती है वह ऐसी कौल्स. वह भी तो गुजरी है उम्र के इस पड़ाव से.

”हां, ठीक है,” इतना ही कह कर नंदिता ने पास में रखी पत्रिका उठा ली. पर मन आज अपनी इकलौती बेटी पीहू में अटका था.

पीहू सीए कर रही है. उस की इसी में रुचि थी तो उस ने और उस के पति विनय ने बेटी को अपना कैरियर चुनने की पूरी छूट दी थी. मुंबई में ही एसी बस से वह कालेज आयाजाया करती थी. पीहू और नंदिता की आपस की बौन्डिंग कमाल की थी. पीहू के कई लड़के, जो स्कूल से उस के दोस्त थे, के घर आनेजाने में कोई पाबंदी या मनाही नहीं रही. अब तक कभी ऐसा नहीं हुआ था कि नंदिता को यह लगा हो कि पीहू की किसी विशेष लड़के में कोई खास रुचि है. उलटा, लड़कों के जाने के बाद नंदिता ही पीहू को छेड़ती, ‘पीहू, इन में से कौन तुम्हें सब से ज्यादा अच्छा लगता है?’

पीहू अपनी बड़ी बड़ी खूबसूरत आंखों से मां को घूरती और फिर हंस देती, ‘आप क्यों पूछ रही हैं, मुझे पता है. जासूसी करने की कोई जरूरत नहीं. इन में से कोई मुझे अलग से वैसे पसंद नहीं है जैसे आप सोच रही हैं.’

नंदिता हंस पड़ती और बेटी के गाल पर किस कर देती.

इधर 6 महीनों से पीहू में अगर कोई बदलाव आता तो यह कैसे संभव होता कि उस की दोस्त जैसी मां नंदिता से छिपा रहता. नंदिता ने नोट किया था कि अब पीहू घर आने के बाद अपने फोन से चिपकी रहती है. कहीं भी फोन इधरउधर नहीं रखती है. पहले उस का फोन कहीं भी पड़ा रहता था. वह अपने काम करते हुए कभी फोन नहीं देखती थी. अब तो मम्मी, पापा से बात करते हुए भी वह अकसर फोन चैक करती रहती. हां, यह नया बदलाव था.

नंदिता पूरी तरह से समझ रही थी कि किसी लड़के से बात करती है पीहू और यह उन लड़कों में से नहीं है जो घर आते रहे हैं. पीहू के बचपन के दोस्त हैं क्योंकि पीहू बाकी सब से उस के पास बैठ कर भी फोन करती रहती पर यह जो नया फोन आता है, इस पर पीहू अलर्ट हो जाती है.

आजकल नंदिता को पीहू को औब्ज़र्व करने में बड़ा मजा आता. पीहू के कालेज जाने के बाद अगर नंदिता कभी उसे फोन करती तो वह हमेशा ही बहुत जल्दी में रख देती. विनय एक व्यस्त इंसान थे. नंदिता के मन में पीहू के साथ चल रहा यह खेल उस ने विनय को नहीं बताया था. कुछ बातें मां और बेटी की ही होती हैं, यह मानती थी नंदिता. नंदिता एक दिन जोर से हंस पड़ी जब उस ने देखा, पीहू नहाने जाते हुए भी फोन ले कर जा रही थी. नंदिता ने उसे छेड़ा, ‘अरे, फोन को भी नहलाने जा रही हो क्या? बाथरूम में भी फोन?’

पीहू झेंप गई, ‘मम्मी, गाने सुनूंगी.’ नंदिता को हंसी आ गई.

पीहू का फोन अकसर रात 9 बजे जरूर आता. उस समय पीहू अपने रूम में बिलकुल अकेली रहने की कोशिश करती. कभीकभी शरारत में यों ही नंदिता किसी काम से उस के रूम में जाती तो पीहू के अलर्ट चेहरे को देख मन ही मन नंदिता को खूब हंसी आती. मेरी बिटिया, तुम अभी इतनी सयानी नहीं हुई कि अपने चेहरे के बदलते रंग अपनी मां से छिपा लोगी. फोन किसी लड़के का ही है, यह बहुत क्लियर हो गया था क्योंकि पीहू के पास से निकलते हुए फोन से बाहर आती आवाज नंदिता को सुनाई दे गई तो शक की गुंजाइश थी ही नहीं.

एक दिन विनय भी औफिस की तैयारी कर रहे थे, पीहू के भी निकलने का टाइम था. उस ने जल्दीजल्दी में किचन में ही फोन चार्ज होने लगा दिया और नहाने चली गई. फोन बजा तो नंदिता ने नजर डाली और हंस पड़ी. नंबर ‘माय लव’ के नाम से सेव्ड था. फिर ‘माय लव’ की व्हाट्सऐप कौल भी आ गई. नंदिता मुसकरा रही थी. आज पकड़े गए, बच्चू, व्हाट्सऐप कौल पर लड़के की फोटो थी. नंदिता ने गौर से देखा, लड़का तो काफी स्मार्ट है, ठीक है पीहू की पसंद. इतने में भागती सी पीहू आई, तनावभरे स्वर में पूछा, ”मम्मी, मेरा फोन बजा क्या?”

”हां, बज तो रहा था.”

”किस का था?” पीहू ने चौकन्ने स्वर में पूछा. नंदिता समझ गई कि बेटी जानना चाह रही है कि मां को तो कुछ पता तो नहीं चला.

पीहू बेदिंग गाउन में खड़ी अब तक फोन चार्जर से निकाल चुकी थी. नंदिता ने अपनेआप को व्यस्त दिखाते हुए कहा, ”पता नहीं, टाइम नहीं था देखने का, रोटी बना रही थी. इस समय कुछ होश नहीं रहता मुझे फोनवोन देखने का.”

पीहू ने सामान्य होते हुए छेड़ा, ”हां, हां, पता है, आप इस समय 2 टिफ़िन और नाश्ता बना रही हैं, बहुत बिजी हैं,” और नंदिता को किस कर के किचन से निकल गई. विनय और पीहू के जाने के बाद नंदिता अपने खयालों में गुम हो गई, ठीक है, अगर पीहू के जीवन में कोई लड़का आया भी है तो इस में कोई बुराई वाली बात तो है नहीं. उम्र है प्यार की, प्यार होगा ही, कोई अच्छा लगेगा ही. आखिरकार मैं ने और विनय ने भी तो प्रेम विवाह किया था. आह, क्या दिन थे, सब नयानया लगता था. अगर कोई लड़का पीहू को पसंद है तो अच्छा है. इस उम्र में प्यार नहीं होगा तो कब होगा. रात को सोते समय उस की ख़ास स्माइल देख विनय ने पूछा, ”क्या बात है?”

मार्मिक बदला : रौनक से कौनसा बदला लेना चाहती थी रागिनी

तुम मेरी हो: क्या शीतल के जख्मों पर मरहम लगा पाया सारांश- भाग 2

सारांश ने बैठक में जा कर सब से क्षमा मांगी और अपने स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति को बैठा कर औफिस से सीधा चुनमुन के पास आ गया. उसे देखते ही चुनमुन खिल उठा. शीतल भी मन ही मन राहत महसूस कर रही थी. चुनमुन ने सारांश को अपने घर कपड़े बदलने भी तभी जाने दिया जब उस ने रात को चुनमुन के घर ठहरने का वादा किया. शीतल के आग्रह पर सारांश रात का खाना उन के साथ ही खाने को तैयार हो गया.

तेज बुखार के कारण चुनमुन की नींद बारबार खुल रही थी, इसलिए शीतल और सारांश उस के पास ही बैठे थे. अपनेपन की एक डोर दोनों को बांध रही थी. अपने जीवन के पिछले दिन दोनों एकदूसरे के साथ सा झा कर रहे थे. सारांश का जीवन तो कमोबेश सामान्य ही बीता था, पर शीतल एक भयंकर तूफान से गुजर चुकी थी. कुछ वर्षों पहले वह अपनी दादी के घर हिमाचल के सुदूर गांव में गई थी. उन का गांव मैक्लोडगंज के पास पड़ता था जहां अकसर सैलानी आतेजाते रहते हैं. एक रात वह ठंडी हवा का आनंद लेती हुई कच्ची सड़क पर मस्ती से चली जा रही थी. अचानक एक कार उस के पास आ कर रुकी. पीछे से किसी ने उस का मुंह दबोच लिया और उसे स्त्री जन्म लेने की सजा मिल गई.

अंधेरे में वह उस दानव का चेहरा भी न देख पाई और वह तो अपने पुरुषत्त्व का दंभ भरते हुए चलता बना. उसे तो पता भी नहीं कि एक नन्हा अंकुर वह वहीं छोड़ कर जा रहा है. शीतल का नन्हा चुनमुन. मातापिता ने शीतल पर चुनमुन को अनाथाश्रम में छोड़ कर विवाह करने का दबाव बनाया पर वह नहीं मानी. लोग तरहतरह की बातें कर के उस के मातापिता को तंग न करें, इसलिए उस ने घर से दूर आ कर रहने का निर्णय कर लिया. चुनमुन उस के लिए अपनी जान से बढ़ कर था.

चुनमुन का बुखार कम हुआ तो दोनों थोड़ी देर आराम करने के लिए लेट गए. सारांश की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह रहरह कर शीतल के बारे में सोच रहा था, ‘कितनी दर्दभरी जिंदगी जी रही हो तुम, जैसे कोई फिल्मी कहानी हो. इतनी पीड़ा सह कर भी चुनमुन का पालनपोषण ऐसा कि यह बाग का खिला हुआ फूल लगता है, टूट कर मुर झाया हुआ नहीं.

पुरुष के इतने वीभत्स रूप को देखने के बाद भी तुम मु झ से अपना दर्द बांट पाई. तुम शायद यह जानती हो कि हर पुरुष बलात्कारी नहीं होता. तुम्हारे इस विश्वास के लिए मैं तुम्हारा जितना सम्मान करूं, वह कम है. स्वयं जीवन की नकारात्मकता में जी रही हो और दूसरों को सकारात्मक ऊर्जा दे रही हो. तुम कितनी अच्छी हो, शीतल.’ शीतल को मन ही मन इस तरह सराहते हुए सारांश उस का सब से बड़ा प्रशंसक बन चुका था.

2-3 दिनों में चुनमुन का बुखार कम होना शुरू हो गया. औफिस के अलावा सारांश अपना सारा समय आजकल चुनमुन के साथ ही बिता रहा था. शीतल ने स्कूल से छुट्टियां ली हुई थीं, इसलिए बाहर से सामान आदि लाने का काम भी सारांश ही कर दिया करता था. उस का सहारा शीतल के लिए एक परिपक्व वृक्ष के समान था, फूलों से लदी बेल सी वह उस के बिना अधूरा अनुभव करने लगी थी स्वयं को. स्त्री एक लता ही तो है जो पुरुष का आश्रय पा कर और भी खिलती है तथा निस्वार्थ हो कर सब के लिए फलनाफूलना चाहती है.

चुनमुन का बुखार उतरा तो कामवाली बाई बीमार पड़ गई. दोनों घरों का काम लक्ष्मी ही देखती थी. उस ने शीतल को फोन पर सूचना दी और यह सूचना जब वह सारांश को देने पहुंची तो वह सिर पकड़ कर बैठ गया. रात को उस की मां नीलम का फोन आया था कि वे सुरभि के साथ 2 दिनों के लिए चमोली आ रही हैं. सिर्फ एक सप्ताह के लिए भारत आई थी सुरभि और सारांश से बिना मिले वापस नहीं जाना चाहती थी.

‘‘लगता है दोनों यहां आ कर काम में ही लगी रहेंगी,’’ सारांश ने निराश हो कर शीतल से कहा.

‘‘तुम क्यों फिक्र करते हो, मैं सब देख लूंगी,’’ शीतल के इन शब्दों से सारांश को कुछ राहत मिली और वह घर की चाबी शीतल को सौंप कर औफिस चला गया. सारांश की मां नीलम और सुरभि दोपहर को पहुंचने वाली थीं. शीतल ने चुनमुन की बीमारी के कारण पहले ही पूरे सप्ताह की छुट्टियां ली हुई थीं विद्यालय से.

सुरभि और मां सारांश की अनुपस्थिति में घर पहुंच गईं. शीतल के रहते उन्हें किसी भी प्रकार की समस्या नहीं हुई. सारांश के आने पर भी वह सारा घर संभाल रही थी. चुनमुन भी सारांश की मां से बहुत जल्दी घुलमिल गया.

2 दिन कैसे बीत गए, किसी को पता ही नहीं लगा. जाने से एक दिन पहले रात का खाना खाने के लिए शीतल ने सब को अपने घर पर बुलाया. घर की साजसज्जा, खाने का स्वाद, रहने का सलीका आदि से सारांश की मां शीतल से प्रभावित हुए बिना न रह सकीं. बैडरूम में पुराने गानों की सीडी और विभिन्न विषयों पर पुस्तकों का खजाना देख कर सुरभि को शीतल के शौक अपने जैसे ही लगे और वह प्रसन्नता से चहकती हुई हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ का आनंद लेने लगी. चुनमुन सारांश की मां से कहानियां सुन रहा था.

देररात भारी मन से वे शीतल के घर से आए. घर आ कर भी वे दोनों सारांश से शीतल और चुनमुन के बारे में ही बातें कर रही थीं. मौका पा कर सारांश ने शीतल की जिंदगी की दुखभरी कहानी दोनों को सुनाई और शीतल को घर की बहू बनाने का आग्रह किया. किंतु उसे जो शंका थी, वही हुआ. मां ने इस रिश्ते के लिए साफ इनकार कर दिया. सारांश के इस फैसले से सुरभि यद्यपि सहमत थी किंतु मां ने विभिन्न तर्क दे कर उस का मुंह बंद कर दिया. अगले दिन दोनों दिल्ली वापस चली गईं.

मार्मिक बदला – भाग 3 : रौनक से कौनसा बदला लेना चाहती थी रागिनी

‘‘रागिनी का कहना था कि असलम का मतलब सिर्फ खाना बनवाने

और खाने से था. टीवी पर खबर देख कर मेरे और रागिनी के परिवार के लोग भी आ गए थे. रागिनी के घर वालों का तो पता नहीं, लेकिन मैं और मेरे घर वाले रागिनी की बात को मानने को तैयार नहीं थे कि रागिनी का बलात्कार नहीं हुआ है. जब रागिनी के मम्मीपापा जाने लगे तो रागिनी भी उन के साथ जाने को तैयार हो गई. मैं ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं की.’’

‘‘उस के बाद तो संपर्क किया होगा?’’ डा. कबीर ने पूछा.

‘‘डा. रौनक खिसिया गए कि उसी ने संपर्क किया था यह बताने को कि वह मां बनने वाली है… मैं ने छूटते ही कहा कि फिर तो पक्का हो गया कि उस के साथ बलात्कार हुआ था, क्योंकि मेरा बच्चा होने का तो सवाल ही नहीं उठता. मैं तो बेहद एहतियात बरतता था. सुन कर उस ने फोन रख दिया. उस के बाद आपसी सम झौते से हमारा तलाक हो गया. इसी बीच मु झे एमडी में दाखिला मिल गया और मैं ने खुद को पढ़ाई और फिर काम में  झोंक दिया.’’

‘‘रागिनी का हालचाल मालूम नहीं किया?’’

डा. रौनक ने इनकार में सिर हिलाया.

‘‘जिस गांव जाना नहीं उस की राह क्यों पूछता और पूछता भी किस से? एमडी करने वैल्लोर गया था, फिर वहीं से स्पैशलाइजेशन करने विभिन्न देशों में घूमता रहा सो किसी ऐसे से संपर्क ही नहीं रहा जो रागिनी के संपर्क में हो.’’

‘‘घर वालों ने शादी के लिए नहीं कहा?’’

‘‘पहली शादी के लिए ही जल्दी मचाते हैं सब लोग जो मैं ने खुद ही जल्दी मचा कर करवा ली थी. एमडी करने के दौरान ही मम्मीपापा चल बसे थे. रिश्तेदारों को दूसरी शादी करवाने का उत्साह नहीं होता और अपने को तो अकेले रहने की आदत पड़ चुकी है. बहुत देर हो गई है डा. कबीर, कमरे में चल कर आराम करना चाहिए शुभ रात्रि,’’ कह कर डा. रौनक ने हाथ मिलाया और अपने कमरे की ओर बढ़ गए.

डा. कबीर को उन का रवैया बहुत गलत लगा और उन की सहानुभूति अवहेलना में बदल गई. अगले रोज सिवा औपचारिक अभिवादन के उन्होंने डा. रौनक से कोई बात नहीं की. सम्मेलन खत्म होने के बाद सब अपनेअपने शहर लौट गए. प्राय सालभर बाद डा. कबीर को अपने भतीजे आलोक की शादी में अमृतसर जाना पड़ा. वहां शादी से पहले एक समारोह में उन के भाई ने उन्हें अपने पड़ोसी डा. भुपिंदर सिंह से मिलवाया. डा. कबीर को नाम कुछ जानापहचाना सा लगा. इस से पहले कि वे कुछ सोच पाते, उन की भतीजी ने डा. भुपिंदर सिंह से पूछा, ‘‘और सब नहीं आए अंकल?’’

‘‘सासबहू तो अपनी समाजसेवा से लौटने के बाद ही आएंगी, रूपिंदर टैनिस खेल कर आ गया है अभी कपड़े बदल कर आता होगा.’’

सासबहू और समाजसेवा… तार जुड़ते से लगे… डा. सतीश के दोस्त

भुपिंदर सिंह ही लगते हैं आतंकवाद के बैनिफिशियरी डा. कबीर दिलचस्पी से उन के पास ही बैठ गए. औपचारिक बातचीत खत्म भी नहीं हुई थी कि एक किशोर को देख कर डा. कबीर को जैसे करंट छू गया. हूबहू डा. रौनक की फोटोकौपी.

‘‘मेरा बेटा रूपिंदर, टैनिस की अंडर नाइनटीन प्रतियोगिता में भाग लेने की तैयारी कर रहा है,’’ डा भुपिंदर सिंह ने गर्व से बताया.

‘‘आई सी. और कितने बच्चे हैं आप के?’’

‘‘बस यही है जी, सवा लाख के बराबर एक. असल में इस के जन्म के बाद मम्मी ने इस की मां को अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी करने में लगा दिया. एमबीबीएस तो कर ही चुकी थी, एमडी करने में व्यस्त हो गई और फिर स्पैशलाइजेशन के लिए हम दोनों ही विदेश चले गए और इन्हीं व्यस्तताओं के चलते रूपिंदर को भाईबहन दिलवाने का समय निकल गया.’’

हालांकि डा. रौनक ने यह नहीं बताया था कि उन की पत्नी भी डाक्टर थी. डा. कबीर को यकीन था कि वह रागिनी है और यह यकीन कुछ ही देर में पक्का हो गया जब किसी फैशन मैगजीन में छपी महिला की तसवीर से डा. भुपिंदर सिंह ने उन का परिचय करवाया, ‘‘मेरी पत्नी रागिनी और रागिनी ये आलोक के चाचा डा. कबीर पाल हैं.’’

रागिनी ने शालीनता से हाथ जोड़े और कहा, ‘‘आलोक के चाचा होने के नाते आप का हमारे घर आना भी बनता है भाई साहब, जाने से पहले आप जरूर आइएगा.’’

‘‘जी, जरूर. पत्नी यहीं कहीं होगी भाभीजी के आसपास, उन से मिलने पर सब तय कर लीजिएगा,’’ डा. कबीर ने विनम्रता से कहा और मन ही मन सोचा कि आप से तो मु झे अकेले में मिलना ही है… पिछले वर्र्ष सुनी एकतरफा कहानी का दूसरा पहलू जानने को.

पड़ोस में रहने वाली डाक्टर रागिनी कहां काम करती हैं यह पता लगाना मुश्किल नहीं था और यह भी कि किस समय वे अपेक्षाकृत कम व्यस्त होती हैं.

शादी के अगले रोज लंच के बाद डा. कबीर रागिनी के हस्पताल पहुंच गए. रागिनी लंच के बाद अपनी कुरसी पर ही सुस्ता रही थी. डा. कबीर को देख कर चौंकना स्वाभाविक था. डा. कबीर ने बगैर किसी भूमिका के बताया कि कैसे पिछले वर्ष एक मैडिकल कौन्फ्रैंस में उन की मुलाकात डा. रौनक से हुई थी और उन्होंने अपने को आतंकवाद का शिकार बताया था. उस के बाद डा. सतीश ने अपने एक दोस्त के बारे में बताया, जो आंतकवाद की शिकार युवती से शादी कर के बहुत खुश था.

‘‘डा. रौनक की कहानी सुन कर मु झे लगा कि वे आतंकवाद के शिकार नहीं अपने वहम और पूर्वाग्रहों के शिकार हैं,’’ डा. कबीर ने कहा, ‘‘यहां आने पर रूपिंदर को देख कर मैं सम झ गया कि आतंकवाद के जिस बैनिफिशियरी का जिक्र डा. सतीश कर रहे थे वे आप के पति ही हैं. बस, जिज्ञासावश डा. रौनक से सुनी कहानी का दूसरा पहलू सुनने चला आया हूं. अगर आप को बुरा लगा हो तो धृष्टता के लिए क्षमा मांग कर चला जाता हूं.’’

‘‘अरे नहीं भाई साहब, आप पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने मु झ से बगैर मिले रौनक को गलत कहा है सो अब तो आप न भी चाहें तो भी मैं आप को अपनी कहानी सुनाऊंगी ही,’’ रागिनी हंसी.

‘‘एलकेजी से एमबीबीएस तक का सफर मैं ने और रौनक ने साथ ही तय किया था, जाहिर है ंिंजदगी का सफर भी साथ ही तय करना था, लेकिन एमडी करने के बाद जब तक एमडी में दखिला नहीं मिलता तब तक तो नौकरी करनी ही थी. मु झे संयोग से अपने शहर में ही नौकरी मिल गई, लेकिन रौनक को जम्मू के एक सीमावर्ती गांव में हालांकि उस गांव में मेरे लिए कोई काम नहीं था फिर भी रौनक के अकेलेपन के रोने से द्रवित हो कर मैं ने मम्मीपापा को शादी के लिए मना लिया. उस रात जो हुआ वह अप्रत्याशित था, लेकिन उस से भी ज्यादा अप्रत्याशित था रौनक का व्यवहार.

‘‘रौनक के जाते ही घुसपैठियों ने मु झे चाय और फिर दालचावल बनाने को कहा. वे लोग खाना खा ही रहे थे कि पुलिस आ गई और खाना छोड़ कर उन्होंने खिड़कियों पर मोरचा संभाल लिया और आतेजाते मु झ पर लातघूसों की बौछार करते रहे. उन्हें इतना समय ही कहां मिला कि मेरे साथ कुछ करते, इस का सुबूत अधखाया खाना और चाय के जूठे बरतन थे.

‘‘उसी रौनक ने जिस ने यह कह कर शादी की थी कि वह मेरे बिना जीने की

कल्पना भी नहीं कर सकता, मु झ पर और सुबूतों पर यकीन करने से इनकार कर दिया. एक डाक्टर होने के नाते क्या रौनक को मालूम नहीं है कि कोई भी गर्भनिरोधक उपाय शतप्रतिशत सुरक्षित नहीं होता. खैर, सब के सम झाने के बावजूद मैं ने गर्भपात नहीं करवाया.

‘‘उस हालत में न तो नौकरी कर सकती थी न ही पढ़ाई, मगर खाली घर बैठना भी नहीं चाहती थी सो मैं ने समय काटने के लिए एक एनजीओ जौइन कर लिया. वहां की संचालिका स्नेहदीप कौर ने मु झे अपने पुत्र के लिए पसंद कर लिया और पुत्र ने भी यह कह कर किसी का भी बच्चा होने दो, कहलाएगा तो यह मेरा बच्चा ही और मैं इसे इतना अच्छा इनसान बनाऊंगा. मु झे शादी के लिए मना लिया. संयोग से रूपिंदर पासपड़ोस में भी सभी का चहेता है.

‘‘वैसे तो मैं रौनक को भूल चुकी हूं और मन ही मन उन घुसपैठियों का भी धन्यवाद करती हूं, जिन के कारण मु झे भुपिंदर जैसे पति और स्नेहदीप जैसी सास मिलीं, जिन के सहयोग से मैं आज एक जानीमानी गाइनौकोलौजिस्ट हूं, मगर अभी भी यदाकदा रौनक का व्यवहार याद कर के तिलमिला जाती हूं और उस से बदला लेने को जी चाहता है. आप के पास रौनक का पता है?’’

‘‘संपर्क तो नहीं रखा उस से, लेकिन यह तो जानता ही हूं कि कहां काम करता है. मिलना चाहेंगी उस से?’’

‘‘कदापि नहीं. बस उस से मूक बदला लेने को रूपिंदर की तसवीर भेजना चाहूंगी यह सिद्ध करने को कि न तो गर्भनिरोधक उपायों पर विश्वास करना चाहिए और न ही बचपन के प्यार पर जो करने की भूल मैं ने करी थी.’’

डा. कबीर ने चुपचाप एक कागज पर डा. रौनक का पता लिख दिया.

 

तुम मेरी हो: क्या शीतल के जख्मों पर मरहम लगा पाया सारांश- भाग 1

सारांश का स्थानांतरण अचानक ही चमोली में हो गया. यहां आ कर उसे नया अनुभव हो रहा था. एक तो पहाड़ी इलाका, उस पर जानपहचान का कोई भी नहीं. पहाड़ी इलाकों में मकान दूरदूर होते हैं. दिल्ली जैसे शहर में रह कर सारांश को ट्रैफिक का शोर, गानों की आवाजें और लोगों की बातचीत के तेज स्वर सुनने की आदत सी पड़ गई थी. किंतु यहां तो किसी को देखने के लिए भी वह तरस जाता था. जिस किराए के मकान में वह रह रहा था, वह दोमंजिला था. ऊपर के घर से कभीकभी एक बच्चे की मीठी सी आवाज कानों में पड़ जाती थी. पर कभी आतेजाते किसी से सामना नहीं हुआ था उस का.

उस दिन रविवार को नाश्ता कर के वह बाहर लौन में कुरसी पर आ कर बैठ गया. पास ही मेज पर उस ने लैपटौप रखा हुआ था. कौफी के घूंट भरते हुए वह औफिस का काम निबटा रहा था, तभी अचानक मेज पर रखे कौफी के मग में ‘छपाक’ की आवाज आई. सारांश ने एक तरफ जा कर कौफी घास पर उड़ेल दी. इतनी देर में ही पीछे से एक बच्चे की प्यारी सी आवाज सुनाई दी, ‘‘अंकल, मेरा मोबाइल.’’

सारांश ने मुड़ कर बच्चे की ओर देखा और मुसकराते हुए पास रखे टिशू पेपर से कौफी में गिरे हुए फोन को साफ करने लगा.

‘‘लाइए अंकल, मैं कर लूंगा,’’ कहते हुए बच्चे ने अपना नन्हा हाथ आगे बढ़ा दिया.

किंतु फोन सारांश ने साफ कर दिया और बच्चे को थमा दिया. बच्चा जल्दी से फोन को औन करने लगा. लेकिन कईर् बार कोशिश करने के बाद भी वह औन नहीं हुआ. बच्चे का मासूम चेहरा रोंआसा हो गया.

उस की उदासी दूर करने के लिए सारांश बोला. ‘‘अरे, वाह, तुम्हारा फोन तो छलांग मार कर मेरी कौफी में कूद गया था. अभी स्विमिंग पूल से निकला है, थोड़ा आराम करने दो, फिर औन कर के देख लेना. चलो, थोड़ी देर मेरे पास बैठो, नाम बताओ अपना.’’

‘‘अंकल, मेरा नाम प्रियांश है,’’ पास रखी दूसरी कुरसी पर बैठता हुआ वह बोला, ‘‘पर यह मोबाइल औन क्यों नहीं हो रहा, खराब हो गया है क्या?’’ चिंतित हो कर वह सारांश की ओर देखने लगा.

‘‘शायद, पर कोई बात नहीं. मैं तुम्हारे पापा से कह दूंगा कि इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं है, अपनेआप छूट गया था न फोन तुम्हारे हाथ से?’’

‘‘हां अंकल, मैं हाथ में फोन को पकड़ कर ऊपर से आप को देख रहा था,’’ भोलेपन से उस ने कहा.

‘‘फिर तो पापा जरूर नया फोन दिला देंगे तुम्हें. हां, एक बात और, तुम इतने प्यारे हो कि मैं तुम्हें चुनमुन नाम से बुलाऊंगा, ठीक है?’’ सारांश ने स्नेह से प्रियांश की ओर देखते हुए कहा.

‘‘बुला लेना चुनमुन कह कर, मम्मी भी कभीकभी मुनमुन कह देती हैं मु झे. पर मेरे पापा तो बहुत दूर रहते हैं. मु झ से कभी मिलने भी नहीं आते. अब मैं नानी से फोन पर बात कैसे करूंगा?’’ कहते हुए चुनमुन की आंखें डबडबा गईं.

सारांश को चुनमुन पर तरस आ गया. प्यार से उस के गालों को थपथपाता हुआ वह बोला, ‘‘चलो, हम दोनों बाजार चलते हैं, मैं दिला दूंगा तुम को मोबाइल फोन.’’

‘‘पर अंकल, मेरी मम्मी नहीं मानेंगी न,’’ चुनमुन ने नाक चढ़ाते हुए ऊपर अपने घर की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘अरे, आप की मम्मी को मैं मना लूंगा. हम दोनों तो दोस्त बन गए न, तुम्हारा नाम प्रियांश और मेरा सारांश. चलो, तुम्हारे घर चलते हैं,’’ कहते हुए सारांश ने चुनमुन का हाथ थाम लिया और सीढि़यों पर चढ़ना शुरू कर दिया.

दरवाजे पर नाइटी पहने खड़ी गौरवर्ण की आकर्षक महिला शायद चुनमुन का इंतजार कर रही थी. सारांश को देख कर वह एक बार थोड़ी सकपकाई, फिर मुसकरा कर अंदर आने को कहती हुई आगेआगे चलने लगी. भीतर आ कर सारांश ने अपना परिचय दिया.

उस के बारे में वह केवल इतना ही जान पाया कि उस का नाम शीतल है और पास के ही एक विद्यालय में अध्यापिका है. चुनमुन ने मोबाइल की घटना एक सांस में बता दी शीतल को, और साथ ही यह भी कि अंकल ने उस का नाम चुनमुन रखा है, इसलिए शीतल भी उसे इसी नाम से बुलाया करे, मुनमुन तो किसी लड़की के नाम जैसा लगता है.

शीतल रसोई में चली गई और सारांश चुनमुन से बातें करने लगा. तब तक शीतल फू्रट जूस ले कर आ गई. सारांश ने शाम को बाजार जाने का कार्यक्रम बना लिया. शीतल को भी बाजार में कुछ काम था. पहले तो वह साथ जाने में थोड़ी  िझ झक रही थी, पर सारांश के आग्रह को वह टाल न सकी.

तीनों शाम को सारांश की कार में बाजार गए और रात को बाहर से ही खाना खा कर घर लौटे. बाजार में चुनमुन सारांश की उंगली पकड़े ही रहा. सारांश भी कई दिनों से अकेलेपन से जू झ रहा था. इसलिए उसे भी उन दोनों के साथ एक अपनत्व का एहसास हो रहा था. शीतल के चेहरे पर आई चमक को सारांश साफसाफ देख पा रहा था. वह खुश था कि पड़ोसी एकदूसरे के साथ किस प्रकार एक परिवार की तरह जु

उस दिन के बाद चुनमुन अकसर सारांश के पास आ जाया करता था, सारांश भी कभीकभी उन के घर जा कर बैठ जाता था. सारांश को शीतल ने बताया कि उस के मातापिता हिमाचल प्रदेश में रहते हैं. ससुराल पक्ष के विषय में उस ने कभी कुछ नहीं बताया. सारांश भी अकसर उन को अपने मातापिता व छोटी बहन सुरभि के विषय में बताता रहता था. पिता दिल्ली में एक व्यापारी थे जबकि छोटी बहन एक साल से मिस्र में अपने पति के साथ रह रही थी.

उस दिन सारांश औफिस में बाहर से आए हुए कुछ व्यक्तियों के साथ व्यस्त था. एक महत्त्वपूर्ण बैठक चल रही थी. उस के फोन पर बारबार चुनमुन का फोन आ रहा था. सारांश ने 3-4 बार फोन काट दिया पर चुनमुन लगातार फोन किए जा रहा था. बैठक के बीच में ही बाहर जा कर सारांश ने उस से बात की.

चुनमुन को तेज बुखार था. शीतल ने डाक्टर को दिखा कर दवाई दिलवा दी थी और लगातार उस के पास ही बैठी थी. पर चुनमुन तो जैसे सारांश को ही अपनी पीड़ा बताना चाहता था. सारांश के दुलार से मिला अपनापन वह अपने नन्हे से मन में थाम कर रखना चाहता था.

मार्मिक बदला – भाग 2 : रौनक से कौनसा बदला लेना चाहती थी रागिनी

‘‘आप लोग जाइए शौपिंग के लिए, मैं डाक्टर रौनक के साथ कुछ समय बिताना चाहूंगा. उन की दुखती रग छेड़ने के बाद उन का ध्यान बंटाना तो बनता है,’’ डा. कबीर ने कहा.

डा. रौनक उन्हें गैस्टहाउस के लौन में ही टहलते हुए मिल गए, उन्होंने धीरे से उन के कंधे पर हाथ रख दिया.

‘‘अरे, आप डा. कबीर?’’ डा. रौनक ने चौंक कर कहा, ‘‘आप तो शौपिंग के लिए गए थे?’’

‘‘मगर यहां परदेश में आप को अकेले उदास छोड़ना अच्छा नहीं लगा सो लौट आया, शौपिंग कल कर लेंगे.’’

‘‘मेरे लिए इतना सोचने के लिए बहुतबहुत धन्यवाद कबीर भाई,’’ डा. रौनक नम्रता से बोले, ‘‘मेरी उदासी तो मेरी परछाईं है, देशपरदेश की साथिन उस के लिए आप अपना प्रोग्राम खराब मत करिए.’’

‘‘काहे का प्रोग्राम यार,’’ डा. कबीर भी अनौपचारिक हो गए, ‘‘हर जगह हर चीज मिलती है, लेकिन चाहे 2 रोज को भी अपने शहर से दूर जाओ फैमिली के लिए वापसी में कुछ ले कर आने का रिवाज बन गया है. बस इसीलिए भाई लोग बाजार चले गए हैं.’’

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं, बहुत पुराना रिवाज है यह. पापा जब भी दौरे पर जाते थे तो मां और बहनें अटकलें लगाने लगती थीं कि वे क्याक्या ले कर आएंगे.’’

‘‘और आप की पत्नी?’’

‘‘कह नहीं सकता, क्योंकि उस समय तो मेरी शादी ही नहीं हुई थी और शादी के बाद रागिनी को छोड़ कर कहीं जाना ही नहीं हुआ. बहुत ही कम समय मिला उस के साथ रहने को,’’ डा. रौनक ने गहरी सांस ले कर कहा.

‘‘उफ, आई एम सो सौरी,’’ डा. कबीर का स्वर भीग गया, ‘‘वैसे हुआ कैसे ये सब?’’

‘‘डाक्टर बनते ही पहली पोस्टिंग जम्मू के एक सीमावर्ती गांव में हुई थी. जगह सुंदर थी, खानेपीने की दिक्कत भी नहीं थी, लेकिन अकेलापन बहुत था और उसे ही बांटने के लिए मैं ने रागिनी से शादी कर ली. बहुत मजे में गुजर रही थी जिंदगी.

‘‘एक रात घंटी बजने पर जब मैं ने दरवाजा खोला तो मुंहसिर लपेटे 6-7 लोग

एकदम अंदर घुस आए. उन में से एक बुरी तरह जख्मी था. उन की वेशभूषा से ही मैं सम झ गया कि वे सब सीमापार के घुसपैठिए हैं. एक ने मु झ पर बंदूक तान कर कहा कि मैं उन के जख्मी साथी का इलाज करूं. उसे देखने के बाद मैं ने कहा कि उस के जख्म बहुत गहरे हैं और इलाज की दवाइयां मेरे पास नहीं हैं. मेरे पास तो तुरंत खून रोकने के लिए बांधने को पट्टी भी नहीं थी.

‘‘बीवी का दुपट्टा फाड़ कर बांधा और अपनी मोटरसाइकिल पर जा कर तुरंत जरूरी दवाइयां लाने को तैयार हो गया.

‘‘रागिनी जो गले से दुपट्टा खींचे जाने पर तिलमिलाई हुई थी चिल्ला कर बोली कि ये कहीं नहीं जाएंगे.’’

‘‘इस का तो बाप भी जाएगा और तेरी तो मैं अभी ऐसी की तैसी करता हूं,’’ दांत किटकिटाता एक बंदूकधारी रागिनी की ओर लपका.

‘‘इसे मारना नहीं हिरासत में रखना है असलम, तभी तो यह डाक्टर दवाइयां ले कर जल्दी से लौटेगा,’’ दूसरे बंदूकधारी ने उसे रोका.

‘‘ठीक कहते हो उस्ताद, तब तक इस औरत से हम खिदमत करवाते हैं. भूखे हैं कब से. चल, डाक्टर फौरन इलाज का सामान ले कर आ और देख पुलिसवुलिस को बुलाने की हिमाकत करी तो तेरी बीवी जिंदा नहीं बचेगी.’’

‘‘मेरे जिंदा रहने की फिक्र मत करना रौनक…’’ रागिनी चिल्लाई.

यही उस की गलती थी. घुसपैठिए सर्तक

हो गए और उन्होंने अपने एक साथी अकरम

को मेरे कपड़े पहना कर मेरी कमर में पिस्तौल सटा कर मेरे पीछे मोटरसाइकिल पर बैठा दिया. इस बीच रागिनी चिल्लाती रही कि मेरी परवाह मत करना.

‘‘उस के चिल्लाने से शायद मेरी हिम्मत बढ़ी और दवा की दुकान पर कई लोगों को देखते ही मैं चिल्ला पड़ा कि यह आतंकवादी है मु झे इस से बचाओ.’’

इस से पहले कि अकरम कुछ कर पाता कुछ लोगों ने उसे दबोच कर उस की पिस्तौल छीन ली. उस के बाद पुलिस और फिर मिलिटरी ने हमारे घर को घेर लिया. घर में चारों तरफ खिड़कियां थी जिन से घुसपैठिए गोलियां दाग कर किसी को घर के पास नहीं फटकने दे रहे थे और घर के करीब न कोईर् दूसरा घर था और न ही कोई पेड़, जिस पर चढ़ कर सिपाही छत पर पहुंच सकते.

‘‘रागिनी ने जिद कर के यह घर लिया ही इसलिए था कि ताक झांक का डर न होने से हम उन्मुक्त हो कर जीया करेंगे. कई घंटों तक अंदर से गोलाबारी बंद होने यानी घुसपैठियों के असले के खत्म होने का इंतजार करने के बाद हार कर हैलिकौप्टर के जरीए कमांडो छत पर उतारे गए. सब घुसपैठियों ने खुद को गोली मार दी.

‘‘रागिनी रसोई के फर्श पर बेसुध पड़ी थी. थोड़े से उपचार के बाद वह ठीक हो गई. उस ने बताया कि पहले तो घुसपैठिए उस से लगातार चाय, खाना बनवाते रहे, लेकिन मकान की घेराबंदी के बाद उन्होंने उस पर लातघूसें बरसाने शुरू कर दिए कि इसी के उकसाने पर डाक्टर पुलिस ले कर आया है. उस का कहना था कि इस के अलावा उन्होंने उस के साथ कुछ गलत नहीं किया. मु झे उस का यह कहना बिलकुल अविश्वसनीय लगा. इतनी खूबसूरत अकेली जवान औरत को कौन ऐसे ही छोड़ेगा और यह कहने के बाद कि यह हमारी खिदमत करेगी, हम भूखे हैं.

मार्मिक बदला – भाग 1 : रौनक से कौनसा बदला लेना चाहती थी रागिनी

अखिलभारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के वार्षिक सम्मेलन में कई विषयों पर संगोष्ठियां हो रही थीं. एक शाम ऐसी ही एक संगोष्ठी के समाप्त होने पर कुछ डाक्टर उसी विषय पर बात करते हुए परिसर में बने अतिथिगृह में अपनेअपने कमरे की ओर जा रहे थे.

‘‘डा. रंजन ने ठीक कहा है कि सब बीमारियों की जड़ मिलावट और कुपोषण है,’’ एक डाक्टर कह रहा था, ‘‘जिस के चलते आधुनिक चिकित्सा कोई चमत्कार नहीं दिखा सकती.’’

‘‘सही कह रहे हैं डा. सतीश. ये दोनों चीजें जीवन का विनाश कर सकती हैं. मिलावटखोरों को मानवता का दुश्मन घोषित कर देना चाहिए.’’

‘‘मिलावटखोर ही नहीं आतंकवादी भी मानवता के दुश्मन हैं डा. चंद्रा. कितने ही खुशहाल घरों को पलभर में उजाड़ कर रख देते हैं, लेकिन आज तक उन पर ही कोई रोक नहीं लग सकी तो मिलावटखोरों पर कहां लगेगी? आज रोज कुपोषण की रोकथाम के लिए अनेक छोटेबड़े क्लब पांच सितारा होटलों में मिलते हैं  झुग्गी झोंपडि़यों में रहने वाले बच्चों को कितना दूध दिया जाए इस पर विचारविमर्श करने को…’’

‘‘आप ठीक कहते हैं डा. कबीर हम सिर्फ विचारविमर्श और बातें ही कर सकते हैं. इस से पहले की हम बातों में उल झ जाएं और डाइनिंगरूम में बैठने की जगह भी न मिले, चलिए अपनेअपने कमरे में जाने से पहले खाना खा लें,’’ डा. चंद्रा ने कहा.

सब लोग डाइनिंगरूम में चले गए. खाना खा कर जब सब बाहर निकले तो डा. चंद्रा ने कहा, ‘‘मैं तो फैमिली के लिए शौपिंग करने जा रहा हूं, आप लोग चलेंगे?’’

‘‘अभी से कमरे में बैठ कर भी क्या करेंगे, चलिए शौपिंग ही करते हैं. आप भी चलिए न डा. रौनक,’’ डा. कबीर ने बेमन से खड़े व्यक्ति की ओर देख कर कहा.

‘‘धन्यवाद डा. कबीर, लेकिन मु झे किसी चीज की जरूरत नहीं है.’’

‘‘हम अपनी जरूरत के लिए नहीं फैमिली के लिए शौपिंग करने जा रहे हैं.’’

‘‘लेकिन मेरी फैमिली भी नहीं है,’’ डा. रौनक का स्वर संयत होते हुए भी भीगा सा लग रहा था.

‘‘यानी आप घरगृहस्थी के चक्कर में नहीं पड़े हैं.’’

‘‘ऐसा तो नहीं है डा. चंद्रा,’’ डा. रौनक ने उसांस ले कर कहा, ‘‘जैसाकि कुछ देर पहले डा. कबीर ने कहा था कि आतंकवादी पलभर में एक खुशहाल परिवार को उजाड़ देते हैं. मेरी जिंदगी की खुशियां भी आतंकवाद की आंधी उड़ा ले गई. खैर छोडि़ए, ये सब. आप लोग चलिए, देर कर दी तो मार्केट बंद हो जाएगी,’’ किसी को कुछ कहने का मौका दिए बगैर डा. रौनक तेजी से अपने कमरे की ओर बढ़ गए.

‘‘मु झे यह आतंकवाद वाली बात करनी ही नहीं चाहिए थी. इसे सुनने के बाद ही डा. रौनक एकदम गुमसुम हो गए थे, खाना भी ठीक से नहीं खाया,’’ डा. कबीर बोले.

‘‘आप को मालूम थोड़े ही था कि डा. रौनक आतंकवाद के शिकार हैं,’’ डा. चंद्रा ने कहा.

‘‘हरेक शै के अच्छेबुरे पहलु होते हैं. डा. रौनक आतंकवाद का शिकार हैं और मेरे एक मित्र डा. भुपिंदर सिंह आतंकवाद के बैनिफिशियरी,’’ डा. सतीश ने कहा, ‘‘भुपिंदर की माताजी एक समाजसेविका हैं. उन्होंने आतंकवाद की शिकार एक युवती से उस की शादी करवा दी और भुपिंदर शादी के बाद बेहद खुश हैं.’’

‘‘अरे वाह, पहली बार सुना कि कोई समाजसेविका किसी हालात की मारी को अपनी बहू बना ले और बेटा भी मान जाए.’’

‘‘हम ने भी ऐसा पहली बार ही सुना और देखा था. असल में भुपिंदर की माताजी बहुत ही कड़क और अनुशासनप्रिय हैं और भुपिंदर ने सोचा था कि सुख से जीना है तो शादी मां की पसंद की लड़की से ही करनी होगी, चाहे अच्छी हो या बुरी. लेकिन मां ने तो उसे एक नायाब हीरा थमा दिया है…’’

‘‘यानी लड़की सुंदर और पढ़ीलिखी है?’’ कबीर ने बात काटी.

‘‘डाक्टर है और बेहद खूबसूरत. व्यस्त गाइनौकोलौजिस्ट होने के बावजूद सासूमां की समाजसेवा में समय लगाती है सो वे उस से बहुत खुश रहती हैं और भुपिंदर के घरसंसार में सुखशांति,’’ डा. चंद्रा ने बताया.

 

प्यार का रिश्ता : कौनसा था वह अनाम रिश्ता – भाग 4

सब रीना से रोने को बोल रहे थे, लेकिन उसे रोना ही नहीं आ रहा था. कोई रोने को बोल रहा, कोई चूड़ी तोड़ रहा तो कोई मांग से सिंदूर पोंछ रहा था. रीना मन ही मन सोच रही थी, ‘मैं क्यों रोऊं? चला गया तो अच्छा हुआ. मेरी जान का क्लेश चला गया. कभी चैन नहीं लेने दिया, कभी कोठी के अंकल के साथ नाम जोड़ देता तो कभी सुनील तो कभी अखिल के साथ. जिस से भी मैं दो पल बात करती, उसी के साथ रिश्ता जोड़ देता. गाली तो हर समय जबान पर रहती…’ रमेश की अर्थी उठनी थी, इसलिए पैसे की जरूरत थी. उस ने मान्या मैडम को फोन कर के बताया था कि उस का आदमी नहीं रहा है, इसलिए पैसे की जरूरत है.

सुनील जा कर पैसे ले आया था. रीना मन ही मन सोच रही थी ‘वाह रे पैसा, जब बच्चा पैदा हुआ था, तो आपरेशन, दवा के लिए पैसा चाहिए, इनसान की मौत हो गई है तो दाहसंस्कार के लिए भी पैसा.’  रमेश की अर्थी सज चुकी थी. सुनील घर के सदस्य की तरह आगे बढ़ कर सारे काम जिम्मेदारी से कर रहा था. सासू मां और चाल की औरतें चिल्लाचिल्ला कर रो रही थीं. तीसरे दिन हवन और शांतिपाठ हो कर शुद्धि हो गई थी. अगली सुबह जब वह काम पर जाने के लिए निकलने लगी, वैसे ही सासू मां उस पर चिल्ला उठी थीं ‘‘कैसी लाजशर्म छोड़ दी है. शोक तो मना नहीं रही और देखो तो काम पर जा रही है. ऐसी बेशर्मबेहया औरत तो देखी नहीं.’’ बूआ ने नहले पर दहला मारा था, ‘‘कैसी सज के जा रही है, किसी के संग नैनमटक्का करती होगी. इसी बात से रमेश दुखी हो कर शराब पीने लगा होगा.’’

रीना अब किसी की परवाह नहीं करती. वह रंगबिरंगे कपड़े पहनती, हाथों में भरभर चूडि़यां पहनती, पाउडर, लिपिस्टिक और बालों में गजरा भी लगाती. देखने वाले उसे देख कर आह भरते. ‘किस पर बिजली गिराने चल दी.’  ‘अब तो रमेश भी नहीं रहा. किस के लिए यह साजसिंगार करती हो…’ ‘‘मैं अपनी खुशी के लिए सजती हूं.’’ ‘‘रीना कुछ तो डरो. विधवा हो, विधवा की तरह रहा करो,’’ पीछे से सासू मां की आवाज थी, पर वह अनसुनी कर के चली जाती. सुनील उस के लिए चांदी की झुमकी ले आया था. वह पहनने को बेचैन थी. उस ने सासू मां से कहा, ‘‘मैडम ने दीवाली के लिए दी है.’’ हाथ में पैसा रहता, रीना तरहतरह की सजनेसंवरने की चीजें खरीदती और मैडम लोगों के कपड़े भी मिल जाते.

उसे बचपन से शोख रंग के कपड़े पसंद थे. अब वह अपने सारे शौक पूरे कर रही थी. अब उसे न तो सासू मां के निर्देशों की परवाह थी और न ही चाल वालों के तानों की. सासू मां को रमेश का जाना और रीना की मनमानी बरदाश्त नहीं हो रही थी. वे कमजोर होती जा रही थीं. एक दिन वे रात में बाथरूम के लिए उठीं तो गिर पड़ीं.

मालूम हुआ कि उन्हें लकवे का अटैक आ गया है. रात में तो किसी तरह बच्चों की मदद से उन्हें चारपाई पर लिटा लिया, लेकिन सुबह जब डाक्टर बुला कर सुनील लाया तो पता चला कि उन का आधा शरीर बेकार हो गया है.  ऐसे मुश्किल समय में सुनील रीना की मदद को आगे आया था. वह भी परेशान था, सोसाइटी की नौकरी छूट गई थी, कहीं रहने का ठिकाना भी नहीं था. उस ने उसे अपने घर में रख लिया. वह रिया और सोम को पढ़ाता. घर के लिए सागसब्जी ले आता.

सब से ज्यादा तो सासू मां के काम में सहारा करता. रीना को उस के रहने से सहूलियत हो गई थी. दोनों के बीच एक अनाम रिश्ता हो गया था. वह पढ़ालिखा था, नौकरी छूटने के चलते वह आटोरिकशा चलाने लगा था. लोग तरहतरह की बातें बनाते. रीना एक कान से सुनती दूसरे से निकाल देती. एक दिन सासू मां सोई तो सोती रह गई थीं. खबर सुनते ही लोगों की भीड़ तरहतरह की कानाफूसी कर रही थी. सासू मां के जाने का गम रीना सहन नहीं कर पा रही थी, इसलिए वह रोरो कर बेहाल थी.  सुनील ने ही आगे बढ़ कर सारा काम किया था. रिश्तेदार ‘चूंचूं’ कर  रहे थे. ‘‘यह कौन है?

दूसरी बिरादरी का है.’’ ‘‘यह रीना का नया खसम है. इसी के चक्कर में तो रमेश को नशे की लत लग गई थी और सास भी इसी गम में चली गई,’’ कहते हुए रिश्ते की एक ननद रोने का नाटक कर रही थी. रीना के लिए चुप रहना मुश्किल हो गया था, ‘‘इतने दिन से सासू मां खटिया पर सब काम कर रही थीं, तो कोई नहीं आया पूछने को कि रीना अम्मां को कैसे संभाल रही हो. सुनील ने उन की सारी गंदगी साफ की. अम्मां तो उसे आशीर्वाद देते नहीं थकती थीं.

आज सब बातें बनाने को खड़े हो गए.’’ सब तरफ सन्नाटा छा गया था. अब रीना को किसी की परवाह नहीं थी कि कौन क्या कह रहा है. कई दिनों से सुनील अनमना सा रहता. वह देख रही थी कि वह बच्चों से भी बात नहीं करता. सुबह जल्दी चला जाता और देर रात लौटता. ‘‘क्यों सुनील, कोई परेशानी है तो बताओ?’’ ‘‘नहीं, मैं अपने लिए खोली ढूंढ़  रहा था. पास में मिल नहीं रही थी, इसलिए दूर पर ही लेना पड़ा. आज एडवांस दूंगा.’’ ‘‘क्यों? यहीं रहो, मुझे सहारा है  और बच्चों के भी कितने अच्छे नंबर आ रहे हैं.’’ ‘‘लोगों की उलटीसीधी गंदी बातें सुनसुन कर मेरे कान पक गए हैं.

अब बरदाश्त नहीं होता. अब अम्मां भी नहीं रहीं. मेरा यहां क्या काम?’’ ‘‘लोगों का तो काम है कहना. आज एडवांस मत देना. शाम को बात करेंगे,’’ कह कर रीना अपने काम पर चली गई थी. सुनील अभी लौटा नहीं था. बच्चे सो गए थे. उस ने सुहागिनों की तरह अपना सोलह सिंगार किया था. वही लाल साड़ी पहन ली, जो सुनील उस के लिए लाया था. सिंगार कर के जब आईने में अपने अक्स को देखा, तो अपनी सुंदरता पर वह खुद शरमा उठी थी.  तभी आहट हुई थी और सुनील उस को देखता ही रह गया था. रीना ने कांपते हाथों से सिंदूर का डब्बा सुनील की ओर बढ़ा दिया. उस रात वह सुनील की बांहों में खो गई थी. अनाम रिश्ते को एक नाम मिल गया था ‘प्यार का रिश्ता’.

प्यार का रिश्ता: कौनसा था वह अनाम रिश्ता – भाग 3

रमेश का शराब का चसका इतना बढ़ गया था कि बक्से, अलमारी में उस का छिपाया हुआ पैसा, सब चुरा कर ले गया. रीना ने तकिए के अंदर अपनी सोने की अंगूठी और पायल छिपा कर सिल दी थी. वह भी नशे के लिए रमेश चुरा कर ले गया था. शराब के नशे में रमेश कभी नाली में पड़ा मिलता, तो कभी ठेके पर. जब चाल वाले रीना को खबर करते, तो वह पकड़ कर ले आती. लेकिन अब जब वह गाली देता तो वह भी चार सुनाती.

अगर मारने को वह हाथ उठाता, तो वह भी जो हाथ में आता उठा कर मार देती. जिस दिन रीना को पता लगा कि वह उस की अंगूठी, रुपए, पायल चुरा ले गया?है, उस दिन उस ने उसे चुनचुन कर गाली दी और धक्के मार कर घर से निकाल दिया था.

सरिता मैडम बैंक में काम करती थीं, उन्होंने रीना का अकाउंट बैंक में खुलवा दिया. उस की एक रैकरिंग की स्कीम भी चालू करवा दी. अब वह अपने पैरों पर खड़ी थी. इस के अलावा कपड़ेत्योहार वगैरह अलग मिल जाते थे. अब वह रमेश से नहीं डरती थी और न ही उस की परवाह करती थी. सोसाइटी में दूसरी बाइयों के साथ खूब बातें होतीं, सब की एक सी परेशानी रहती, लेकिन आपस में हंसीमजाक कर  के सब अपना दिल हलका कर लेती थीं. वहीं पर रीना की मुलाकात सुनील से हुई थी.

वह वहां पर प्लंबर था. छोटी सी आपसी मुसकान दोस्ती में बदल गई थी.  ‘‘काहे री छम्मकछल्लो, आज बड़ी सुंदर लग रही हो,’’ सुनील बोला. रीना मुसकरा कर शरमा गई. अभी वह 23-24 साल की ही तो थी. उस के मन में भी तो अरमान थे. इधर रमेश की हालत बिगड़ती चली जा रही थी. उस का लिवर खराब हो रहा था. वह उस के लिए दवा ले आती, लेकिन उस से कोई फायदा नहीं होता.

रीना और सासू मां दोनों मिल कर रमेश को ‘नशा मुक्ति सैंटर’ ले गईं. सुनील ने बताया था कि पहले वह भी शराब पीने लगा था, लेकिन वहां से इलाज करा कर ठीक हो गया. रमेश भी वहां भरती रहा. उस का नशा छूट भी गया था, लेकिन वहां से लौट कर आते ही उस ने फिर से शराब पीना शुरू कर दिया था. अब उस की हालत पहले से ज्यादा बिगड़ गई थी. रीना रमेश की हरकतों से तंग हो चुकी थी, इसलिए वह अपने काम पर खूब सजधज कर जाती.

सुनील उस के लिए चूड़ी ले आया था. वह पहन कर अपने हाथों को निहारती हुई निकल  रही थी. तभी रमेश गाली देते हुए चिल्लाया, ‘‘काम पर जाती है कि अपने यार  से मिलने जाती है. ऐसे सजधज कर निकलती है, जैसे मेला देखने जा रही हो.’’ ‘‘काहे गाली दे रहे हो. मुझे भरभर हाथ चूड़ी अच्छी लगती है तो पहनती हो. काहे को गुस्सा हो रहे हो. तुम्हारे नाम की ही तो चूड़ी पहनती हूं,’’ इतना कह कर रीना जल्दीजल्दी अपने काम पर जाते के लिए निकल पड़ी थी.

चाल में आतेजाते अखिल मिल जाता था. वह भी देवर बन कर उस से हंसीमजाक करता. पहले तो रमेश के डर से रीना बाहर निकलती ही नहीं थी. अब वह आराम से उस से भी बात करती.  ‘‘भाभीजी, बड़ी लाइट मार रही हो,’’ अखिल बोला. तारीफ भला किसे नहीं पसंद. वह भी उस के समय से ही निकलती. वह रमेश के सामने भी कई बार उस के घर चाय पीने आ जाता. ‘‘रमेश भैया, बड़े किस्मत वाले हो, जो ऐसी पत्नी मिली, घर भी संभाल रही है और बाहर भी,’’ अखिल जब यह बोलता, तब रमेश कुढ़ कर रह जाता. रीना खूब सजधज कर अपने काम पर जाया करती, जो रमेश को बहुत नागवार गुजरता, लेकिन अब वह उस की परवाह नहीं करती थी. दूसरा, वह शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो चुका था.

रमेश अपनी अम्मां से चुपचाप पैसा ले लेता और शराब पी आता. अब तो डाक्टर ने भी मना कर दिया था. रीना कभी डाक्टर के हाथ जोड़ती, तो अस्पताल भागती. उसे काम से भी छुट्टी लेनी पड़ती, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल रहा था. मैडम से रोजरोज छुट्टी मांगती तो वे चार बातें सुनातीं. इधर बच्चों की अलग स्कूल से शिकायत आई थी. रीना तो पढ़ीलिखी नहीं थी. उस ने सुनील के सामने अपनी समस्या रखी तो वह पढ़ाने को राजी हो गया. उस ने पैसे की बात पूछी, तो उस ने मना कर दिया. सुनील रोज सुबहसुबह बच्चों को पढ़ाने के लिए आने लगा. कभी वह तो कभी सासू मां सुबह उस को चायनाश्ता करवा देतीं. यह आपसी तालमेल अच्छा बन गया था.

बच्चों के इम्तिहान में नंबर अच्छे आए, तो उस का मन खुश हो गया था. रमेश की हालत बिगड़ती जा रही थी. वह समझ रही थी कि अब रमेश ज्यादा दिन नहीं रहेगा. एक दिन रीना काम पर गई हुई थी, तभी उस के फोन पर खबर आई कि तेरा रमेश हिचकी ले रहा है. वह भाग कर घर आई थी. पीछेपीछे सुनील भी आ गया था. रमेश सच में इस दुनिया से विदा हो गया था. फिर शुरू हो गया चाल की औरतों का जुड़ना, रिश्तेदारों का आना और रोनाधोना, सासू मां पछाड़ें खा रही थीं. दोनों बच्चे भी ‘पापापापा’ कह कर रो रहे थे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें