Crime Story: माता बनी कुमाता- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

पुलिस ने महेंद्र ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ के आधार पर मृतक के बहनोई विपिन को भी गिरफ्तार कर लिया. विपिन मथुरा जिले के फरह थाना इलाके के गांव सनोरा का रहने वाला है. विपिन से पूछताछ के बाद पुलिस ने पहली अप्रैल को जितेंद्र की मां गीता देवी को भी गिरफ्तार कर लिया.

इन से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह एक मां की अपनी कोख से पैदा किए एकलौते बेटे के प्रति नफरत की इंतहा की कहानी है.

मथुरा जिले के ओल गांव के रहने वाले नत्थी सिंह के परिवार में उस की पत्नी गीता देवी के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था. नत्थी के पास खेतीबाड़ी थी. इस से अच्छी गुजरबसर हो जाती थी. घरपरिवार में मौज थी. किसी तरह की कोई कमी नहीं थी.

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नत्थी सिंह की कुछ साल पहले मृत्यु हो गई. गीता देवी पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई. दोनों बेटियां जवान हो रही थीं. इसलिए उसे उन के हाथ पीले करने की ज्यादा फिक्र थी. रिश्तेदारों से पूछ परखने के बाद उस ने अपनी दोनों बेटियों की शादी पास के ही गांव सनोरा में एक ही परिवार में तय कर दी.

सनोरा गांव भी मथुरा जिले के फरह थाना इलाके में आता है. गीता ने सनोरा गांव के रहने वाले विपिन से बड़ी बेटी की शादी कर दी और विपिन के छोटे भाई सुनील से छोटी बेटी की शादी कर दी. बेटियों की शादी के बाद गीता देवी के सिर से एक बोझ सा उतर गया. उस की आधी चिंता खत्म हो गई. दोनों बेटियां पास के ही गांव में ब्याही थीं, इसलिए उन का जब मन होता, मां गीता के पास आ जाती थीं. गीता का दोनों बेटियों से ज्यादा मोह था. इसलिए बेटी या जमाई आते तो वह खुले हाथ से उन पर पैसे खर्च करती थी. उन्हें दान या शगुन देने में कोई कंजूसी नहीं करती थी.

कभी कोई दुखतकलीफ होती तो गीता फोन कर दोनों में से किसी भी बेटी को अपने पास बुला लेती. 2-4 दिन रुक कर वे चली जातीं. गीता का मन अपनी बेटियों में ज्यादा लगता था. होने को तो वे जितेंद्र की ही बहनें थी, लेकिन मां का बेटियों के प्रति लाडप्यार देख कर जितेंद्र को कोफ्त होती थी.

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जितेंद्र शराब पीता था. उस की इस बुरी लत पर मां टोकती थी. बहनें जब घर पर होतीं, तो वे भी जितेंद्र को लताड़ लगाती थीं. मां और बहनों के टोकने पर उसे बुरा लगता था. ऐसा 1-2 बार नहीं, बीसियों बार हुआ. धीरेधीरे जितेंद्र के मन में मां और बहनों के प्रति गुस्सा बढ़ने लगा.

शराब पीने के बाद जितेंद्र कई बार अपनी मां से मारपीट करने लगा. पहले तो मां और बहनबहनोइयों ने उसे समझाया, लेकिन उस के दिमाग में यह बात बैठ गई कि मां उस से ज्यादा प्यार दोनों बहनों को करती है. इस से जितेंद्र के मन में हीनभावना बढ़ती गई.

वह मां की बातों पर ऐतराज जताने लगा. मां जब अपनी बेटियों और जमाई को पैसे या कोई सामान देती तो जितेंद्र को बुरा लगता था. वह घर में मां से झगड़ा करता और उसे पीटता था.

बुढ़ापे की ओर बढ़ रही गीता बेटे की रोजरोज की पिटाई को आखिर कब तक बरदाश्त करती. घर में हालत यह हो गए कि मां और बेटा दोनों एकदूसरे से नफरत करने लगे. दोनों नफरत की आग में जलते थे. जितेंद्र तो अपनी नफरत की आग को मां की पिटाई कर शांत कर लेता था, लेकिन गीता क्या करती? वह जवान बेटे का मुकाबला भी नहीं कर सकती थी.

एक दिन गीता ने अपने बड़े जमाई विपिन को घर बुला कर सारी बातें बताईं. विपिन को पहले से ही अपने साले जितेंद्र की सारी हरकतों के बारे में पता था. विपिन को यह भी पता था कि जितेंद्र को समझानेबुझाने का कोई फायदा नहीं है. उस ने अपनी सास को कोई न कोई रास्ता निकालने का भरोसा दिया और यह सुझाव दिया कि जितेंद्र की शादी कर दी जाए. हो सकता है शादी के बाद वह सुधर जाए.

गीता को भी यह बात ठीक लगी. उस ने रिश्ता ढूंढ कर पिछले साल जितेंद्र की शादी कर दी. ज्योति से उस की शादी धूमधाम से हो गई. गीता ने सोचा था कि शादी के बाद बेटा सुधर जाएगा. शादी का लड्डू खा कर जितेंद्र ज्योति के साथ खुश था. इसी हंसीखुशी के बीच, शादी के कुछ समय बाद ही ज्योति गर्भवती हो गई.

अगले भाग में पढ़ें- गीता ने की अपने ही बेटे की हत्या

Crime Story: माता बनी कुमाता- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

ज्योति के गर्भवती होने से जितेंद्र खुश था, लेकिन गीता के मन में इस की जरा भी खुशी नहीं थी. बेटे के अत्याचारों से नफरत की आग में सुलगती गीता नहीं चाहती थी कि घर में कोई नया वारिस आए. इसलिए उस ने बहू ज्योति को भरोसे में ले कर उस का ढाई महीने का गर्भपात करा दिया.

दरअसल, गीता के पास करीब 50 लाख रुपए की संपत्ति थी. यह संपत्ति वह अपनी दोनों बेटियों को देना चाहती थी. बेटे जितेंद्र को संपत्ति में से फूटी कौड़ी भी नहीं देना चाहती थी. जितेंद्र जब गीता को पीटता था, तो वह कई बार यह बात कह चुकी थी. जितेंद्र को भी इस का अंदेशा था कि पैतृक संपत्ति में से मां उसे कुछ नहीं देगी. इसीलिए वह मां पर अत्याचार और अपनी बहनों का विरोध करता था.

शादी के बाद भी बेटा जितेंद्र नहीं सुधरा. वह अपनी मां पर अत्याचार करता रहा, तो गीता उस से तंग आ गई. उस ने अपने बड़े जमाई विपिन के साथ मिल कर जितेंद्र की रोजरोज की पिटाई से छुटकारा पाने के लिए उस का काम तमाम करने की योजना बनाई.

विपिन को इस में अपना फायदा नजर आया. एक तो जितेंद्र मां के लाडप्यार के कारण अपनी बहनों से भी नफरत करता था. इसलिए विपिन ने सोचा कि यदि जितेंद्र नाम का कांटा निकल जाएगा तो नफरत की झाड़ी हमेशा के लिए कट जाएगी.

फिर सास गीता भी बेटे की रोज की पिटाई से बच जाएगी. इस के अलावा गीता की संपत्ति भी उस के हाथ में आ जाएगी.

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विपिन ने अपनी सास के भरोसे का फायदा उठाया. योजना के तहत, उस ने सास का खाता अपने नजदीकी बैंक में ट्रांसफर करवा लिया और खुद नौमिनी बन गया. गीता के बैंक खाते में करीब 7 लाख रुपए थे.

गीता ने विपिन की मदद से इसी साल जनवरी महीने में मथुरा जिले के कुख्यात सुपारी किलर छविराम ठाकुर के गैंग को अपने बेटे जितेंद्र की हत्या की 3 लाख रुपए की सुपारी दे दी. उसी दिन एडवांस के रूप में उसे 50 हजार रुपए भी दे दिए. छविराम ठाकुर ने अपनी गैंग के शार्पशूटर महेंद्र ठाकुर को जितेंद्र की हत्या का जिम्मा सौंप दिया.

योजनाबद्ध तरीके से महेंद्र ठाकुर ने शराब पिलाने के बहाने जितेंद्र से दोस्ती की. इस के बाद 20 मार्च की शाम महेंद्र ने जितेंद्र को बुलाया. महेंद्र के साथ एकदो लोग और भी थे. उन्होंने कोलीपुरा गांव के पास ठेके से शराब खरीदी. इन सभी ने पास ही एक खाली खेत में बैठ कर शराब पी.

रात करीब 8-साढ़े 8 बजे शराब का दौर खत्म हुआ तो जितेंद्र ने अपने घर जाने की बात कही. महेंद्र ने उसे पकड़ कर वापस बैठा लिया और तमंचा निकाल कर उस की कनपटी पर गोली मार दी. जितेंद्र कुछ बोलता, उस से पहले ही उस के प्राण निकल गए.

सीसीटीवी फुटेज के आधार पर महेंद्र ठाकुर की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने जितेंद्र की हत्या के मामले में उस के बहनोई विपिन और मां गीता को भी गिरफ्तार कर लिया.

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गीता को अपने ही बेटे की हत्या कराने का कतई मलाल नहीं था. उस ने कहा, ‘‘मैं ने उसे जनम दिया और मैं ने ही उसे मरवा दिया, इस का कोई अफसोस नहीं है. पति की मौत के बाद दोनों बेटियां ही मेरा खयाल रखती थीं. बेटा तो रोज पैसे मांगता और मारपीट करता था. कभी बेटियां मेरे पास आ जातीं, तो वह उन का विरोध करता था.

‘‘वह मेरे बैंक खाते और सारी संपत्ति का अकेला ही मालिक बनना चाहता था. मैं ने उसे कई बार समझाया, लेकिन वह किसी भी कीमत पर दोनों बहनों को स्वीकार नहीं करता था. मैं उस की रोजरोज की कलह से तंग आ गई थी. इसलिए उसे रास्ते से हटाना ही उचित समझा. कोई नया वारिस न आए, इसलिए बहू ज्योति का भी गर्भपात करा दिया.’’ सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

Crime Story: माता बनी कुमाता- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

राजस्थान के भरतपुर जिले और उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले की सीमाएं एकदूसरे से सटी हुई हैं. इसी सीमा पर भरतपुर जिले की ग्राम पंचायत जाटौली रथभान का गांव कोलीपुरा बसा हुआ है. इसी साल 21 मार्च की बात है. पौ फट गई थी, लेकिन सूरज निकलने में अभी देर थी. कुछ लोग खेतों की तरफ जा रहे थे, तभी उन्होंने कोलीपुरा गांव के पास एक खेत में एक युवक का शव पड़ा देखा. कुछ लोगों ने शव के पास जा कर देखा. वहां शराब की बोतल, गिलास, नमकीन और पानी के पाउच पड़े थे.

खेत में लाश मिलने की बात जल्दी ही आसपास के गांवों में फैल गई. इस के बाद कोलीपुरा समेत दूसरे गांवों के लोग भी मौके पर जमा हो गए. किसी गांव वाले ने पुलिस को इस की सूचना दे दी. सूचना मिलने पर भरतपुर जिले की चिकसाना थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई.

पुलिस ने लाश का मुआयना किया. करीब 25 साल के उस युवक की कनपटी पर गोली लगी हुई थी. लग रहा था कि उसे नजदीक से गोली मारी गई थी. पुलिस ने वहां इकट्ठा लोगों से मृतक युवक के बारे में पूछताछ की. लोगों ने शव देख कर उस की शिनाख्त कर ली. उस का नाम जितेंद्र उर्फ टल्लड़ था. वह मथुरा जिले के ओल गांव के रहने वाले नत्थी सिंह का बेटा था.

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कोलीपुरा गांव में जिस जगह जितेंद्र की लाश मिली थी, वह जगह उस के गांव से करीब दोढाई किलोमीटर ही दूर थी. उस जगह से कुछ ही दूरी पर शराब का ठेका भी था. पुलिस ने मौके पर मौजद कोलीपुरा गांव के लोगों से पूछताछ की. इस में पता चला कि एक दिन पहले यानी 20 मार्च की शाम को 7-8 बजे के आसपास गांव वालों ने 3-4 युवकों को उस जगह देखा था.

गांव वालों से पूछताछ में जो बातें पता चलीं, उस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि जितेंद्र अपने दोस्तों के साथ रात में खाली खेत में शराब पी रहा होगा. इस दौरान किसी बात पर उन दोस्तों में झगड़ा हो गया होगा. झगड़े में ही किसी ने उसे गोली मार दी होगी. गोली पास से मारी गई, जो उस की आंख के नीचे कनपटी पर धंस गई.

लाश की शिनाख्त हो गई थी. मृतक जितेंद्र का गांव भी वहां से ज्यादा दूर नहीं था. इसलिए थानाप्रभारी ने एक सिपाही ओल गांव भेज कर उस के घर वालों को मौके पर बुला लिया. घर वालों ने लाश की शिनाख्त जितेंद्र के रूप में कर दी. उन्होंने पुलिस को बताया कि जितेंद्र कल शाम को आसपास घूमने जाने की बात कह कर घर से निकला था. इस के बाद वह रात को घर नहीं लौटा. रात को उस की तलाश भी की, लेकिन पता नहीं चला.

पुलिस ने जितेंद्र के घर वालों से जरूरी पूछताछ की. इस के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दी. पोस्टमार्टम कराने के बाद उसी दिन पुलिस ने लाश जितेंद्र के घर वालों को दे दी.

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एकलौते जवान बेटे जितेंद्र की लाश देख कर उस की मां गीता दहाड़े मार कर रोने लगी. जितेंद्र की मौत से दुखी दोनों बहनों और बहनोइयों की आंखों से भी आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. जवान मौत का गम तो पूरे गांव को था. फिर वे तो घर के लोग थे. उन का रोना, विलाप करना स्वाभाविक था.

मृतक के चाचा राधाचरण ने जितेंद्र की हत्या का मामला भरतपुर जिले के चिकसाना पुलिस थाने में दर्ज करा दिया. थानाप्रभारी रामनाथ सिंह गुर्जर ने इस मामले की जांच खुद अपने हाथ में

ले ली. मृतक जितेंद्र के पिता नत्थी सिंह की मौत हो चुकी थी. जितेंद्र शादीशुदा था. करीब 9 महीने पहले उस की शादी ज्योति से हुई थी. ज्योति के साथ वह खुश था. पतिपत्नी में किसी तरह की कोई अनबन नहीं थी. दोनों का दांपत्य जीवन सुखी था.

परिवार में केवल 2 ही प्राणी थे. जितेंद्र की मां गीता और उस की पत्नी ज्योति. पुलिस ने इन दोनों से पूछताछ की, लेकिन न तो कातिलों के बारे में कुछ पता चला और न ही कत्ल के कारण का राज सामने आया.

पुलिस ने ओल गांव के लोगों से भी पूछताछ की, लेकिन कोई खास बात पता नहीं चली. यह बात जरूर पता चली कि जितेंद्र के घर उस की 2 शादीशुदा बहनों और बहनोइयों का आनाजाना रहता था. पुलिस ने दोनों बहनोइयों विपिन और सुनील से भी पूछताछ की, लेकिन जितेंद्र की हत्या के बारे में ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस से कातिलों तक पहुंचा जा सके.

जांचपड़ताल में मृतक जितेंद्र की किसी से दुश्मनी या खराब चालचलन की बात भी सामने नहीं आई. यह पता चला कि जितेंद्र शराब पीने का आदी था. शराब पी कर वह घर में क्लेश और अपनी मां से मारपीट करता था.

जितेंद्र के घर वालों और गांव वालों से पूछताछ में कोई बात पता नहीं चलने पर पुलिस ने ओल गांव से कोलीपुरा तक 2 किलोमीटर के दायरे में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने का फैसला किया.

सीसीटीवी फुटेज में एक पलसर बाइक पुलिस के संदेह के दायरे में आई. पुलिस ने नंबरों के आधार पर इस बाइक के मालिक का पता लगाया. इस के बाद पुलिस ने महेंद्र ठाकुर को पकड़ा. वह मथुरा जिले के फरह थानांतर्गत परखम गांव का रहने वाला है. सख्ती से पूछताछ में महेंद्र ठाकुर ने जितेंद्र की हत्या का राज उगल दिया. उस ने जो बताया, उस से पुलिस को भी एक बार तो भरोसा नहीं हुआ कि कोई मां भी अपने बेटे को मरवा सकती है.

अगले भाग में पढ़ें- जितेंद्र के मन में अपनी मां के लिए हीनभावना बढ़ती गई

Crime Story: जेठ के चक्कर में पति की हत्या- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

मनमोहन दास जिला कामरूप मेट्रो, असम के रहने वाले थे. उन के 2 बेटे थे. बड़ा तपन और छोटा उत्तम. उत्तम ने रूपा से लवमैरिज की थी. रूपा उन महिलाओं की तरह थी, जो कभी एक मर्द के पल्ले से बंध कर नहीं रहतीं.

उत्तम से लव मैरिज के बाद रूपा को अहसास हुआ कि उस ने गलत और ठंडे व्यक्ति से शादी की है. रूपा चाहती थी कि उसे पति रात भर बांहों में भर कर मथता रहे. मगर उत्तम में इतना दमखम नहीं था.

ऐसे में जब कई महीनों तक भी रूपा के बदन की आग मंद नहीं पड़ी तब उस के कदम बहक गए. उस ने घर में ही अपने जेठ तपन दास पर ध्यान देना शुरू कर दिया. तपन उस से उम्र में 10 साल बड़ा था, मगर वह था गबरू. हृष्टपुष्ट तपन ने छोटे भाई की पत्नी रूपा को अपनी तरफ ताकते व मूक आमंत्रण देते देखा तो वह आशय समझ गया.

एक रोज घर में जब कोई नहीं था तो तपन ने रूपा को अपनी मजबूत बांहों में भर लिया. रूपा ने कुछ प्रतिक्रिया नहीं की, तो तपन का हौसला बढ़ गया. वह उसे बिस्तर पर ले गया. तब दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

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वैसे तो रूपा तपन की बहू लगती थी. मगर उन दोनों ने जेठ बहू के रिश्ते को कलंकित कर के एक नया रिश्ता बना लिया था, अवैध संबंधों का रिश्ता. एक बार दोनों के बीच की मर्यादा रेखा टूटी तो वे अकसर मौका निकाल कर हसरतें पूरी करते रहे.

तपन उदयपुर, राजस्थान स्थित एक कंपनी में नौकरी करता था. वह छुट्टी पर घर आता तो रूपा के इर्दगिर्द ही मंडराता रहता था. दोनों एकदूसरे से खुश थे. मगर कभीकभार उन का मन होने पर भी उत्तम के होने की वजह से संबंध नहीं बना पाते थे. ऐसे में उन्हें उत्तम राह का कांटा दिखने लगा.

उत्तम दास वहीं कामरूप में ही काम करता था. कई साल तक रूपा और तपन के बीच यह खेल चोरीछिपे चलता रहा. घरपरिवार में किसी को भनक तक नहीं लगी थी.

तपन की उम्र 50 वर्ष की हो गई थी फिर भी वह बिस्तर का अच्छा खिलाड़ी था. रूपा ने तय कर लिया कि वह उत्तम को रास्ते से हटवा कर उस की पैतृक संपत्ति एवं इंश्योरेंस के पैसे से तपन के साथ ताउम्र मौज करेगी.

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उस ने अपनी योजना प्रेमी जेठ तपन को बताई तो वह बहुत खुश हुआ. वह भी यही चाहता था. सन 2020 में कोरोना के कारण कामधंधा बंद हो गया था. तपन उदयपुर से अपने घर कामरूप लौट आया.

जब कामधंधा शुरू होने वाला था तब तपन ने अपने भाई उत्तम से कहा, ‘‘उत्तम, यहां काम नहीं है. मैं ने तेरे लिए उदयपुर स्थित अपनी कंपनी में बात की है. तुम वहां जा कर साइट देख लो. पसंद आए तो वहीं काम करना.’’

उत्तम को बड़े भाई की बात बात जंच गई. वह अगले दिन ही उदयपुर के लिए निकल पड़ा. तपन ने इस से पहले रूपा के साथ मिल कर उत्तम की कहानी खत्म करने की योजना बना ली थी.

रूपा ने तपन को साढ़े 12 लाख रुपए दे कर कहा था कि पति जिंदा नहीं लौटना चाहिए. तपन अपने भाई से मोबाइल के जरिए कांटैक्ट में रहा. तपन ने उदयपुर में अपनी पहचान के राकेश लोहार को फोन कर के कहा, ‘‘एक आदमी जयपुर आ रहा है. उसे गाड़ी में ले जा कर उस का काम तमाम कर देना. तुम्हें साढ़े 12 लाख रुपए दे दूंगा.’’

‘‘ठीक है तपन भाई. उस का मोबाइल नंबर दे दो. मैं मिलता हूं और उस का खेल खत्म कर दूंगा.’’ राकेश लोहार ने भरोसा दिया.

राकेश लोहार ने उत्तम का मोबाइल नंबर ले लिया. राकेश ने अपने 4 साथियों सुरेंद्र, संजय, अजय व जयवर्द्धन को पूरी बात बता कर कहा कि एक दिन में

2-2 लाख रुपए मिलेंगे. राकेश ने खुद साढ़े 4 लाख रुपए रखे.

सब दोस्त गाड़ी ले कर जयपुर पहुंच गए. मोबाइल पर उत्तम से संपर्क कर उसे गाड़ी में बिठा लिया. उधर तपन भी असम से फ्लाइट पकड़ कर उदयपुर आ गया. ये लोग जयपुर से उदयपुर तक मौका नहीं मिलने के कारण उत्तम को मार नहीं सके. ये लोग उदयपुर आ गए. उन से तपन भी आ मिला. इस के बाद शराब में नींद की गोलियां डाल कर उत्तम को रास्ते में ही पिला कर नींद की आगोश में पहुंचा दिया.

अगले भाग में पढ़ें- उत्तम का मृत्यु प्रमाणपत्र बन पाया या नहीं

Best of Crime Stories: शादी जो बनी बर्बादी- भाग 3

करीब 3 सालों तक दोनों की दोस्ती इसी तरह चलती रही. बाद में यह दोस्ती प्यार में बदल गई. उन्हें लगने लगा कि दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हैं.

वे अपने प्यार को एक नाम देना चाहते थे. उन्होंने विवाह करने का फैसला कर लिया. लेकिन यह निर्णय उन के लिए आसान नहीं था. खासकर प्रतीक्षा के लिए.

धार्मिक प्रवृत्ति के थे प्रतीक्षा के घर वाले

क्योंकि वह यह अच्छी तरह जानती थी कि उस का परिवार धर्म, रीतिरिवाज में बहुत ज्यादा विश्वास रखता है. उस के घर वाले उसे इस बात की इजाजत नहीं देंगे. यह बात उस ने राहुल को बताई. राहुल ने उसे समझाया कि यह सब गुजरे जमाने की बातें हैं. अब वक्त  के अनुसार सभी को बदल जाना चाहिए. यह बात प्रतीक्षा की समझ में आ गई और 10 अक्तूबर, 2013 को श्रीदेव महाराज यशोदानगर की सामाजिक संस्था के सहयोग से उस ने राहुल से शादी कर ली और नोटरी से इस का प्रमाणपत्र भी हासिल कर लिया.

विवाह के बाद राहुल भड़ ने सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री ले कर नागपुर में अपना ठेकेदारी का काम शुरू किया और प्रतीक्षा ने एमएससी की पढ़ाई पूरी कर ली. इस बीच समय निकाल कर दोनों मिलते भी रहे. लेकिन दोनों का यह सिलसिला अधिक दिनों नहीं चला. काफी सावधानियां बरतने के बावजूद भी उन का राज राज नहीं रहा.

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प्रतीक्षा के परिवार वालों को जब इस बात की खबर हुई तो उन के पैरों के नीचे की जैसे जमीन खिसक गई. उन्हें अपनी बेटी प्रतीक्षा से इस की आशा नहीं थी. उन्हें मानसम्मान, मर्यादा समाज के बीच सब खत्म होता नजर आया.

वह उस का विवाह अपने समाज के युवक से कराना चाहते थे, लेकिन वह सब उन के लाड़प्यार की आंधी में तिनके की तरह उउ़ता हुआ दिखाई दिया. मामला काफी नाजुक और संवेदनशील था. प्रतीक्षा के पिता तथा मामा ने उसे अच्छी तरह समझाया और कहा कि उस की और राहुल की कुंडली में दोष है, इसलिए उस का राहुल से मिलना ठीक नहीं है.

शादी कर के भी राहुल से कर लिया किनारा

प्रतीक्षा ने अपने घर वालों की बात मान ली और उस ने राहुल से मिलनाजुलना और बातचीत करना बंद कर दिया. प्रतीक्षा को अपने उठाए गए कदम पर आत्मग्लानि महसूस हुई. इस बात की खबर जब राहुल को हुई तो उसे प्रतीक्षा के परिवार वालों पर बहुत गुस्सा आया.

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एक दिन वह प्रतीक्षा के घर पहुंच गया और उसे साथ चलने के लिए कहने लगा. परिवार वालों ने विरोध किया तो उस ने उन्हें अपनी और प्रतीक्षा की शादी का प्रमाणपत्र दिखाते हुए कहा, ‘‘मैं ने प्रतीक्षा से विवाह किया है. इसे अपने साथ ले जाने के लिए मुझे कोई नहीं रोक सकता.’’

परिवार वालों ने जब राहुल की इन बातों का विरोध किया तो राहुल प्रतीक्षा और उस के परिवार वालों को धमकी देते हुए अपने शादी के प्रमाणपत्र को सोशल मीडिया पर डालने की धमकी दी. उस ने ऐसा कर भी दिया. इस से प्रतीक्षा और उस के घर वालों की बड़ी बदनामी हुई. प्रतीक्षा के पिता मुरलीधर ने थाने में राहुल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. यह मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है.

प्रतीक्षा के परिवार वालों के इस व्यवहार से राहुल और चिढ़ गया. अब राहुल उन्हें तरहतरह से परेशान करने के साथ धमकियां देने लगा. उस की धमकियों से परेशान हो कर मुरलीधर फ्रेजरपुरा पुलिस थाने में उस के खिलाफ 4 और गाड़गेनगर थाने में एक शिकायत दर्ज करवा दी. लेकिन राहुल के ऊपर इस का प्रभाव नहीं पड़ा, बल्कि उस के हौंसले और बढ़ गए.

उस ने प्रतीक्षा का बाहर आनाजाना मुश्किल कर दिया था. वह बारबार उसे धमकी देता था कि अगर वह उस की नहीं हो सकी तो किसी और की भी नहीं होगी. उस की इन धमकियों और किसी अनहोनी के भय से उन्होंने थाना राजापेठ में भी 22 नवंबर, 2017 को उस की शिकायत दर्ज करवा दी.

थाना राजापेठ पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए राहुल भड़ के खिलाफ शिकायत दर्ज कर ली. राजापेठ पुलिस उस पर कोई सख्त काररवाई करती, उस के पहले ही राहुल ने प्रतीक्षा के प्रति एक खतरनाक फैसला ले लिया और उसे दिनदहाड़े शहर के बीच मौत के घाट उतार दिया.

पश्चाताप में करनी चाही आत्महत्या

हुआ यह था कि अपने खिलाफ गाड़गेनगर और राजापेठ पुलिस थाने में शिकायत दर्ज होने की खबर पा कर वह बौखला उठा था. उसे इस बात का अहसास हो गया था कि अब बात नहीं बनेगी और न ही उसे प्रतीक्षा मिलेगी. उस ने तय कर लिया कि वह एक बार और प्रतीक्षा की राय जानेगा. यही सोच कर वह नागपुर से अमरावती पहुंच गया और प्रतीक्षा के बारे में रेकी करने लगा कि वह किस समय कहां जाती है और उस के साथ कौन जाता है.

उसे पता चला कि गुरुवार को वह साईंबाबा के मंदिर जरूर जाती है, इसलिए उस ने उस दिन योजना को अंजाम देने का फैसला कर लिया. 23 नवंबर, 2017 को सुबह 10 बजे के करीब प्रतीक्षा अपनी सहेली श्रेया के साथ साईं दर्शन कर के घर लौट रही थी, तभी उस ने रास्ता रोक लिया. जब प्रतीक्षा ने उस के साथ जाने से मना किया तो राहुल ने चाकू से गोद कर प्रतीक्षा की हत्या कर दी.

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प्रतीक्षा की हत्या करने के बाद वह अपनी स्कूटी से बड़नेरा पुलिस थाने के अंतर्गत आने वाले रेलवे स्टेशन गया. वहां वह अपनी स्कूटी पार्किंग में खड़ी कर के नागपुर जाने वाली ट्रेन का टिकट लिया.

वह ट्रेन के आने का इंतजार करने लगा. लेकिन यहां उसे पुलिस का खतरा अधिक लग रहा था, इसलिए वह स्टेशन से बाहर आया और अपनी स्कूटी से सीधे यवतमाल के मुर्तिजापुर रेलवे स्टेशन पहुंचा और ट्रेन का इंतजार करने लगा.

ट्रेन का इंतजार करते हुए उसे अपने अपराध का आभास और आत्मग्लानि हुई. उसे लगा कि जब उस की प्रेमिका ही नहीं रही तो उस का भी जीना बेकार है. यह सोच कर वह स्टेशन से बाहर आया और एक दवा की दुकान से कीटनाशक खरीद लाया. फिर उस दवा को पी कर स्टेशन के एक कोने में जा कर अपनी मौत की प्रतीक्षा करने लगा. इस के पहले कि उसे मौत दबोच पाती, उसे खोजती पुलिस वहां पहुंच गई.

राहुल भड़ ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया था. पूछताछ करने के बाद इंसपेक्टर दुर्गेश तिवारी ने उस के खिलाफ मामला दर्ज कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

इस मामले की जांच पूरी होने के बाद अमरावती पुलिस कमिश्नर दत्तात्रय मंडलिक ने तत्काल प्रभाव से फ्रेजरपुरा पुलिस थाने के इंसपेक्टर राहुल अठावले, कांस्टेबल गौतम धुरंदर, ईशा खाड़े को निलंबित कर दिया. बाकी उन अधिकारियों के विरुद्ध जांच बैठा दी, जिन्होंने समय रहते काररवाई नहीं की थी.

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इस मामले में गृहराज्यमंत्री रणजीत सिंह पाटिल ने मृतक के परिवार वालों से मिल कर उन्हें सांत्वना देते हुए दोषियों के खिलाफ कठोर काररवाई का भरोसा दिया.

Crime Story: पैसों की लालच में अपनों का खून- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा 

इस दौरान वह जब भी गांव जाता तो वर्षा के शानोशौकत भरे खर्चे देख कर उसे बेहद पीड़ा होती थी. उसे लगता था कि उस का परिवार आर्थिक दिक्कत झेल रहा है और वर्षा उस के भाई की मौत के बाद मिले पैसों से ऐश कर रही है. कुछ दिनों बाद कृष्णकांत को पता चला की वर्षा किसी और व्यक्ति के साथ लिवइन में रहने लगी है तो उसे और बुरा लगा. उसे लगा कि अब तो वर्षा की संपत्ति उसे कभी नहीं मिलेगी.

लाखों के लालच में उस ने वर्षा को मारने का फैसला कर लिया. इस के लिए उस ने कीर्ति को अपने विश्वास में लिया और उस से दोस्ती कर ली. कीर्ति को उस ने यह जिम्मेदारी दी कि वर्षा की हर गतिविधि पर नजर रखे और उस की हर गतिविधि की उसे फोन द्वारा जानकारी देती रहे.

6 फरवरी, 2021 को वर्षा अपनी मां के यहां आई थी. कीर्ति ने इस की जानकारी फोन पर कृष्णकांत को दी. कृष्णकांत को लगा कि अच्छा मौका है. शाम के समय वैसे भी गांव में अंधेरा छा जाता है और अधिकांश लोग अपने घरों में कैद हो जाते हैं. ऐसे मे वर्षा की हत्या करना को आसान लगा.

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उस ने अपने एक मित्र से एक तमंचे का जुगाड़ किया और शाम को मोटरसाइकिल से सीधा कनौजिया गांव पहुंचा और वर्षा के घर के सामने जा कर खड़ा हो गया. वहां उस समय कुछ लोग उसे दिखे और घर का दरवाजा भी बाहर से बंद था.

लिहाजा वह घर के पीछे गया. वहां वर्षा की दादी बरतन साफ कर रही थीं. बूढ़ी होने के कारण उन्हें कम दिखाई और कम सुनाई देता था. उन्हें चकमा दे कर वह पीछे के दरवाजे से अंदर घुस गया. वर्षा कमरे में किसी से फोन पर बात कर रही थी. कृष्णकांत ने बिना समय गंवाए उस पर गोली चला दी.

गोली लगते ही वर्षा ढेर हो गई. उधर अपना काम करने के बाद कृष्णकांत पीछे के दरवाजे से फरार हो गया. उसी रात वह मोटरसाइकिल से भोपाल आ गया. कोर्ट के काम से उसे फिर आमला जाना पड़ा. हालांकि वह 2 दिन में निश्चिंत हो चुका था कि उसे किसी ने नहीं देखा होगा. इस कारण वह पकड़ा नहीं जाएगा.

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लेकिन कहते हैं न कि जुर्म कहीं न कहीं अपने निशान छोड़ ही जाता है. कृष्णकांत के साथ भी यही हुआ. पुलिस ने कड़ी से कड़ी जोड़ी तो उस का जुर्म सामने आ गया. पुलिस ने कृष्णकांत और कीर्ति से पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया

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सौजन्य- सत्यकथा 

पुलिस को यह भी पता चला कि वह कोर्ट के काम से आमला आने वाला है. लिहाजा पुलिस मुस्तैद हो कर उस के आने का इंतजार करने लगी. अगले दिन जैसे ही वह आमला आया, पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने थाने ले जा कर जब कृष्णकांत से पूछताछ की तो वह खुद को बेगुनाह बताने लगा. उस ने बताया कि घटना वाली तारीख को वह भोपाल में था.

पुलिस ने जब उसे बताया कि घटना की रात उस का मोबाइल देर रात तक आमला के आसपास ही लोकेशन दिखा रहा था. उसे उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स दिखाई तो वह टूट गया. उस ने कबूल कर लिया कि उस ने अपनी दोस्त कीर्ति की मदद से अपनी भाभी वर्षा की हत्या की है. वर्षा ने हालात ही ऐसे बना दिए थे, जिस से उसे उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

कृष्णकांत ने पुलिस को जो बताया उस के अनुसार कहानी कुछ इस प्रकार सामने आई—

बैतूल जिले के आमला गांव के समीप बोडखी में रहने वाले आर.के. नागपुरे के 3 बेटों में सब से बड़ा चंद्रशेखर नागपुरे था. इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के बाद चंद्रशेखर सेना में भरती हो गया.

नौकरी से छुट्टी मिलने पर जब वह घर आता तो कनोजिया में रहने वाले अपने मामा के यहां भी जाता था. उस के मामा की बेटी वर्षा उस समय जवानी की दहलीज पर कदम रख ही रही थी और महज 16 साल की थी. इधर चंद्रशेखर 27 की उम्र छू रहा था. पर सेना में होने के कारण उस का बदन गठीला था और सेना में होने का रौब तो उस पर था ही. उसी दौरान वर्षा से उसे प्यार हो गया. दोनों ही एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे.

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रिश्ते मे वर्षा चंद्रशेखर की ममेरी बहन थी, पर इस के बाद भी दोनों रिश्तों की मर्यादा भूल गए और प्यार की पींगे बढ़ाने लगे.

जब इस बात की भनक चंद्रशेखर के घर वालों को लगी तो वे उस पर नाराज हुए. उन को कतई गवारा नहीं था कि उन का बेटा ऐसी युवती से प्रेम करे, जो उस के सगे रिश्ते में आती हो. वे चंद्रशेखर का रिश्ता कहीं दूसरी जगह करने की योजना बना रहे थे. उन्होंने चंद्रशेखर को काफी समझाया पर वह नहीं माना.

चंद्रशेखर ने घर वालों के विरोध की परवाह नहीं की ओर वर्षा से मिलना जारी रखा. वर्षा भी उस के प्यार में दीवानी थी. लिहाजा उस ने नजदीकी रिश्ते से ज्यादा अपने प्यार को अहमियत दी. नतीजा यह हुआ कि घर वालों के विरोध के बावजूद चंद्रशेखर और वर्षा ने शादी का फैसला कर लिया और घर वालों के विरोध के बावजूद उन्होंने शादी कर ली.

शादी चूंकि चंद्रशेखर ने घर वालों के विरोध के बावजूद की थी, लिहाजा शादी के बाद वह घर से अलग हो गया और बोखड़ी में ही अलग मकान ले कर रहने लगा. समय अपनी गति से बीतता रहा. कुछ समय बाद वर्षा एक बेटे की मां भी बन गई.

बात 2013 के आसपास की है. चंद्रशेखर की जहर खाने से संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. उस ने जहर कैसे खाया, इस बात का खुलासा तो नहीं हो पाया, पर कहा यह जाता है कि चंद्रशेखर अपने घर वालों के व्यवहार से दुखी था और घर वालों द्वारा उसे स्वीकार नहीं किया तो उस ने यह कदम उठा लिया.

हालांकि उस ने जहर खाया था या उसे दिया गया था, यह भी एक रहस्य था. चंद्रशेखर की मृत्यु के बाद उस की सारी संपत्ति की वारिस उस की पत्नी वर्षा बन गई. चंद्रशेखर के घर वाले वर्षा को पहले ही नापसंद करते थे. उन्होंने इस शादी को भी मान्यता नहीं दी थी, लिहाजा वे इस के खिलाफ हो गए कि वर्षा को उस की संपत्ति में से कुछ मिले. पर उन के चाहने से कुछ नहीं हुआ.

सेना ने वर्षा को उस की पत्नी मानते हुए उस की मौत के बाद उस के सारे देय दे दिए. बताया जाता है कि वर्षा को चंद्रशेखर की मौत के बाद करीब 30 लाख रुपए मिले थे. चंद्रशेखर का भाई कृष्णकांत इसे अपनी संपत्ति मान रहा था और उस का मानना था कि इस से उस के घर वालों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है.

उस ने सेना मुख्यालय में भी पत्र लिख कर इस धनराशि में अपना अधिकार बताया. कृष्णकांत ने कहा कि चंद्रशेखर का वर्षा के साथ कभी विवाह हुआ ही नहीं था. दोनों भाईबहन थे, लिहाजा उस की संपत्ति पर घर वालों का अधिकार है.

उस ने चंद्रशेखर की मौत के बाद खुद को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति देने की मांग भी सेना से की थी. जब यह बात नहीं बनी तो वह कोर्ट चला गया. कोर्ट में इस मामले की सुनवाई अभी जारी थी.

अब बात करते हैं हत्या के कारणों की. बड़े भाई चंद्रशेखर की मौत के बाद कृष्णकांत भोपाल आ गया और यहां एक कंपनी में मोटरसाइकिल राइडर बन गया. वह कंपनी के निर्देश पर लोगों को लाने ओर छोड़ने का काम करने लगा.

अगले भाग में पढ़ें- कृष्णकांत ने वर्षा की हत्या कैसे की?

Crime Story: पैसों की लालच में अपनों का खून- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा 

वर्षा से शादी के बाद से ही खफा चल रहे उस के देवर कृष्णकांत को जब यह पता चला की वर्षा  किसी और के साथ लिवइन में रह रही है तो यह उस से सहा नहीं गया. बड़े भाई चंद्रशेखर की मौत के बाद उस का सारा पैसा भी उस की भाभी वर्षा ही ले गई थी. भाई के बदले वह सेना में नौकरी चाह रहा था. यह मामला भी कोर्ट की दहलीज पर पहुंच चुका था.

भाभी के लिवइन में रहने की खबर के बाद कृष्णकांत को लगा कि भाभी उस के भाई की ही संपत्ति और पैसे पर ऐश कर रही है. तब कृष्णकांत ने अपनी भाभी को सदा के लिए मौत की नींद सुला देने का भयानक निर्णय ले लिया.

मध्य प्रदेश के जिला बैतूल से करीब 22 किलोमीटर की दूरी पर बसा है आमला कस्बा. आदिवासी बाहुल्य यह कस्बा ज्यादा बड़ा तो नहीं है पर आसपास के गांव वाले यहां खरीदारी करने आया करते हैं.

लिहाजा शाम तक यहां के बाजार भीड़ से भरे होते हैं. ऐसे में पुलिस को भी कानूनव्यवस्था के लिए चुस्त रहना पड़ता है. 6 फरवरी, 2021 को रात करीब 9 बजे का वक्त रहा होगा. आमला के टीआई सुनील लाटा शहर में भ्रमण पर थे. इसी बीच उन्हें पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि कनौजिया गांव में गोली चली है, इस में एक महिला गंभीर रूप से घायल है.

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सूचना मिलते ही टीआई कनौजिया गांव पहुंचे, इस इलाके में गोली चलने की वारदात अमूमन कम ही होती है. बरहाल, टीआई ने इस घटना की जानकारी एसपी सिमाला प्रसाद को दी. साथ ही एसडीपीओ मुलताई नम्रता सोंधिया समेत फोरैंसिक टीम के सदस्यों को दी और वह तत्काल कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

आमला से कनौजिया की दूरी करीब 5 किलोमीटर है, लिहाजा पुलिस को यहां पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची, तब तक भीड़ काफी जमा हो चुकी थी. कनौजिया गांव के जिस मकान में गोली चलने की घटना हुई थी, वहां करीब 4-5 कमरे थे.

पहले कमरे में बैड पर खून से लथपथ एक 27-28 वर्षीय युवती का शव पड़ा था. पास में ही उस का मोबाइल पड़ा था. पुलिस ने अनुमान लगाया कि घटना के समय युवती मोबाइल पर बात कर रही होगी.

टीआई सुनील लाटा अभी मौकामुआयना कर ही रहे थे कि इतने में एसडीपीओ (मुलताई) नम्रता सोंधिया भी मौके पर आ गईं. इस के बाद एसपी सिमाला प्रसाद भी वहां पहुंच गईं.

पूछताछ में पता चला कि मृतका का नाम वर्षा नागपुरे है और वह बोखड़ी कस्बे की रहने वाली थी. सुबह ही वह अपनी मां के पास कनोजिया आई थी.

पुलिस ने यहां लोगों से प्रारंभिक पूछताछ भी की, पर वे कुछ बताने की स्थिति में नहीं थे. उन का कहना था कि कौन आया, किस ने वर्षा को गोली मारी, पता ही नहीं चला. वे तो गोली चलने की आवाज के बाद अपने घरों से बाहर आए थे.

वर्षा की हत्या की वजह पुलिस को भी समझ नहीं आ रही थी. पुलिस समझ नहीं पा रही थी कि मायके में आने के बाद उस की हत्या किस ने की? एफएसएल टीम द्वारा जांच करने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

पुलिस ने इस के बाद वर्षा के मायके वालों से पूछताछ की तो वर्षा के भाई कृष्णा पवार ने बहन वर्षा की हत्या का संदेह उस के देवर कृष्णकांत नागपुरे और महेश नागपुरे निवासी बोडखी पर व्यक्त किया था. इधर पुलिस को जांच में यह भी पता चला कि वर्षा किसी के साथ लिवइन रिलेशन में रह रही थी.

बहरहाल, सारी जानकारी जुटाने के बाद टीआई सुनील लाटा आमला लौट आए. उन के सामने जिन लोगों के नाम संदेह के तौर पर सामने आए थे, उन पर नजर रखने के लिए उन्होंने कुछ पुलिसकर्मियों को लगा दिया. पुलिस को अपनी जांच में यह भी पता चला कि अपनी ससुराल वालों से वर्षा के रिश्ते ठीक नहीं थे, लिहाजा उन्होंने जांच का रुख ससुराल वालों की तरफ मोड़ लिया.

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इस बीच टीआई सुनील लाटा को खबर मिली कि वर्षा का देवर कृष्णकांत घटना से कुछ दिनों से गांव बोडखी में ही देखा गया था. पर घटना के बाद से वह गायब है. पुलिस ने अब अपना ध्यान कृष्णकांत की ओर लगा दिया.

पुलिस की जांच आगे बढ़ी तो यह भी पता चला कि कृष्णकांत का अपनी भाभी वर्षा से काफी समय से विवाद चल रहा था. जब से उस ने कृष्णकांत के बड़े भाई चंद्रशेखर नागपुरे से लवमैरिज की थी, तभी से ससुराल वाले उस से नाराज चल रहे थे. जिस से वह शादी के बाद से ही ससुराल वालों से अलग पति के साथ रह रही थी. वह भी उस से खुश नहीं थे.

पुलिस ने वर्षा की सास और जेठ से भी पूछताछ की. उन्होंने बताया कि वर्षा उन से अलग रहती थी. लिहाजा उन्होंने भी उस से रिश्ता लगभग खत्म कर रखा था. इस मामले में पता चला कि कीर्ति नाम की युवती से मृतका के देवर की मित्रता थी.

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पुलिस ने कीर्ति के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि उस का कृष्णकांत से मिलनाजुलना था. पुलिस ने कीर्ति से पूछताछ की और उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना के दिन कई बार उस की कृष्णकांत से बात भी हुई थी.

कीर्ति से जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि कृष्णकांत अकसर उस से वर्षा के बारे में पूछता रहता था. तब वह उसे वर्षा की लोकेशन बता देती थी. कीर्ति ने पुलिस को बताया कि अब कृष्णकांत कहां है, इस बारे में उसे कुछ भी पता नहीं है.

कृष्णकांत का मोबाइल फोन भी बंद था. पुलिस ने अपने मुखबिरों को लगातार इस मामले में नजर रखने को कहा था. इस का परिणाम यह हुआ की पुलिस को जानकरी मिली कि कृष्णकांत भोपाल में है.

अगले भाग में पढ़ें- कृष्णकांत ने पुलिस को क्या बताया 

Crime Story: नौकर के प्यार में- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

वैभव को पुचकार कर पुलिस अधिकारियों ने कुछ और जानकारी पूछी तो उस ने एक पत्र ला कर पुलिस अधिकारियों को दिया. वैभव ने कहा, ‘‘यह चिट्ठी मेरी बड़ी बहन, जो शादीशुदा है, ने पापा को लिखी थी. यह पत्र हम भाईबहनों को मिला तो हम ने छिपा दिया था.’’

उस पत्र में मृतक की बड़ी बेटी ने पापा प्रेमनारायण को लिखा था कि वह मम्मी को बदनाम नहीं करना चाहती है. नौकर जितेंद्र को अब अपने यहां नहीं रखना चाहिए.

पुलिस ने चिट्ठी के आधार पर तथा वारदात से जुड़े अन्य पहलुओं पर जांच करते हुए जांच आगे बढ़ाई. पुलिस ने साइबर एक्सपर्ट सत्येंद्र सिंह की भी मदद ली.

बच्चों ने पुलिस अधिकारियों से यहां तक कहा कि पापा की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि मम्मी ने ही नौकर जितेंद्र उर्फ जीतू बैरवा (मेघवाल) के साथ मिल कर रात में की है. रात में वैभव कमरे से बाहर आना चाहता था मगर कमरा बाहर से लौक था. इस कारण वह वापस जा कर सो गया था.

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इसी दौरान मुखबिरों ने भी पुलिस को जानकारी दी. इन सब तथ्यों पर गौर किया गया तो मृतक की पत्नी का किरदार संदिग्ध नजर आया. पुलिस अधिकारियों ने तब उसे पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने रुक्मिणी से कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में वह टूट गई. उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने अपने प्रेमी व नौकर जितेंद्र उर्फ जीतू बैरवा और एक अन्य हंसराज भील के साथ मिल कर पति की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. बस, फिर क्या था, पुलिस ने उसी दिन जितेंद्र और हंसराज भील को भी दबोच लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की.

पूछताछ में उन्होंने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया.  जितेंद्र ने बताया कि वह पिछले 2 साल से टीचर प्रेमनारायण के घर नौकर था. वह खेतों की रखवाली और खेतीबाड़ी करता था. जितेंद्र को 65 हजार रुपए सालाना तनख्वाह पर रखा हुआ था.

प्रेमनारायण ज्यादातर समय अपनी ड्यूटी पर फतेहगढ़, मध्य प्रदेश में रहते थे. वह 15-20 दिन बाद ही अपने गांव आखाखेड़ी आते थे. प्रेमनारायण की अपनी बीवी से नहीं बनती थी. दोनों में मनमुटाव रहता था. इस कारण रुक्मिणी ने पति की गैरमौजूदगी में अपने नौकर से अवैध संबंध बना लिए थे.

प्रेमनारायण की बड़ी बेटी ने एक दिन अपनी मम्मी और नौकर जितेंद्र को रंगरलियां मनाते देख लिया था. इस कारण वह चिट्ठी लिख कर पापा को अपनी मम्मी की करतूत बताना चाहती थी. मगर यह चिट्ठी उस के छोटे भाईबहनों के हाथ लग गई थी. तब उन्होंने चिट्ठी पढ़ कर छिपा ली.

26 मार्च, 2021 को यह चिट्ठी बच्चों ने पुलिस अधिकारियों को सौंपी. तब जा कर इस घटना की परतें खुलनी शुरू हुईं. प्रेमनारायण को किसी तरह बीवी और नौकर के अवैध संबंधों की खबर लग गई थी. इस कारण वह इन दोनों के बीच राह का रोड़ा बन चुके थे. इस रोड़े को हमेशा के लिए रास्ते से हटाने के लिए रुक्मिणी ने एक योजना बना ली.

फिर जितेंद्र ने 31 वर्षीय हंसराज भील को 20 हजार रुपए दे कर योजना में शामिल कर लिया. हंसराज जितेंद्र का दोस्त था. पुलिस ने मात्र 3 घंटे में ही मास्टर प्रेमनारायण मीणा की हत्या का राजफाश कर दिया.

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मृतक के शव का मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम करा कर शव परिजनों को सौंप दिया गया. परिजनों ने उसी रोज दोपहर बाद अंतिम संस्कार क र दिया. आखाखेड़ी में मास्टर की मौत से सनसनी फैल गई थी. जिस ने भी बीवी और उस के प्रेमी नौकर की करतूत के बारे में सुना, सन्न रह गया.

आरोपी पुलिस हिरासत में थे, जिन से पुलिस अधिकारियों ने पूछताछ की. पूछताछ में जो घटना प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी.

प्रेमनारायण मीणा अपनी पत्नी रुक्मिणी और 3 बच्चों के साथ जिला बारां के गांव आखाखेड़ी में रहते थे. वह सरकारी अध्यापक थे.

प्रेमनारायण की ड्यूटी इन दिनों मध्य प्रदेश के जिला गुना के फतेहगढ़ में थी. वह महीने में एकाध बार अपने गांव बीवीबच्चों से मिलने आते रहते थे.

प्रेमनारायण जहां शांत स्वभाव के थे तो वहीं उन की बीवी कर्कश स्वभाव की थी. उन की शादी को 20 साल से ज्यादा हो गए थे मगर इतना समय साथ गुजारने के बाद भी मियांबीवी में अकसर झड़प हो जाया करती थी. उन के बच्चे बड़े हो गए थे. मगर दोनों का मनमुटाव कम नहीं हुआ.

रुक्मिणी दिनरात काम कर के थक जाने का रोना रोती रहती थी. तब प्रेमनारायण ने वार्षिक तनख्वाह पर जितेंद्र उर्फ जीतू बैरवा  को 2 साल पहले घर का नौकर रख लिया. जितेंद्र जहां खेतों पर काम करता, वहीं घर पर भी काम करता था. रुक्मिणी और जितेंद्र का रिश्ता मालकिन और नौकर का था. मगर पति के दूर रहने और मनमुटाव के चलते रुक्मिणी शारीरिक सुख से वंचित थी.

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जब उसे जितेंद्र नौकर के रूप में मिला तो वह उसे बिस्तर तक ले आई. रुक्मिणी की उम्र 40 साल थी. इस के बावजूद वह अपने से 8 साल छोटे नौकर के साथ सेज सजाने लगी. उस ने नौकर को प्रेमी बना लिया और उस की बांहों में झूला झूलने लगी.

रुक्मिणी की बड़ी बेटी शादी लायक हो गई थी. इस के बावजूद अधेड़ उम्र में उस पर वासना का ऐसा भूत सवार हुआ कि वह जबतब मौका पा कर नौकर जितेंद्र बैरवा के साथ शारीरिक संबंध बनाने लगी.

अगले भाग में पढ़ें-  क्या प्रेमनारायण को रुक्मिणी और जितेंद्र के बारे में पता चला?

Crime Story: दौलत की खातिर दांव पर लगी दोस्ती

19मार्च, 2021 की रात 10 बजे शीला देवी अपने देवर आनंद प्रजापति के साथ जनता नगर चौकी पहुंचीं. उस समय इंचार्ज ए.के. सिंह चौकी पर मौजूद थे. उन्होंने शीला देवी को बदहवास देखा, तो पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम घबराई हुई क्यों हो? कोई गंभीर बात है क्या?’’

‘‘हां सर. हमें किसी अनहोनी की आशंका है.’’

‘‘कैसी अनहोनी? साफसाफ पूरी बात बताओ.’’

‘‘सर, दरअसल बात यह है कि रात 8 बजे मेरा बेटा शैलेश, उस का दोस्त अर्श गुप्ता व विनय घर पर नीचे कमरे में शराब पी रहे थे. कुछ देर बाद कमरे से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आईं. फिर वे लोग बाइक से कहीं चले गए.

‘‘उन के जाने के बाद मैं कमरे में गई, तो वहां खून से सनी चादर देखी. अनहोनी की आशंका से मैं घबरा गई. मैं ने इस की जानकारी पड़ोस में रहने वाले अपने देवर आनंद को दी, फिर उन के साथ सूचना देने आप के पास आ गई. आप मेरी मदद करें.’’

शीला देवी की बात सुनकर ए.के. सिंह को लगा कि जरूर कोई अनहोनी घटना घटित हुई है. उन्होंने यह सूचना बर्रा थानाप्रभारी हरमीत सिंह को दी फिर 2 सिपाहियों के साथ शीला देवी के बर्रा भाग 8 स्थित मकान पर पहुंच गए. उन के पहुंचने के चंद मिनट बाद ही थानाप्रभारी हरमीत सिंह भी आ गए.

हरमीत सिंह ने ए.के. सिंह के साथ कमरे का निरीक्षण किया तो सन्न रह गए. कमरे के फर्श पर खून पड़ा था और पलंग पर बिछी चादर खून से तरबतर थी. कमरे का सामान भी अस्तव्यस्त था. खून की बूंदें कमरे के बाहर गली तक टपकती गई थीं.

निरीक्षण के बाद हरमीत सिंह ने अनुमान लगाया कि कमरे के अंदर कत्ल जैसी वारदात हुई है या फिर गंभीर रूप से कोई घायल हुआ है. शैलेश और उस का दोस्त या तो लाश को ठिकाने लगाने गए हैं या फिर अस्पताल गए हैं. कहीं भी गए हों, वे लौट कर घर जरूर आएंगे. अत: उन्होंने घर के आसपास पुलिस का पहरा लगा दिया तथा खुद भी निगरानी में लग गए.

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रात लगभग डेढ़ बजे शैलेश और उस का दोस्त अर्श गुप्ता वापस घर आए तो पुिलस ने उन्हें दबोच लिया और थाना बर्रा ले आए. दोनों के हाथ और कपड़ों पर खून लगा था. इंसपेक्टर हरमीत सिंह ने पूछा, ‘‘तुम दोनों ने किस का कत्ल किया है और लाश कहां है?’’

शैलेश कुछ क्षण मौन रहा फिर बोला, ‘‘साहब, मैं ने अपने बचपन के दोस्त विनय प्रभाकर का कत्ल किया है. वह बर्रा भाग दो के मनोहर नगर में रामजानकी मंदिर के पास रहता था. उस की लाश को मैं ने अर्श की मदद से रिंद नदी में फेंक दिया है. पैट्रोल खत्म हो जाने की वजह से हम ने विनय की मोटरसाइकिल खाड़ेपुर-फत्तेपुर मोड़ पर खड़ा कर दी और वापस लौट आए.’’

‘‘तुम ने अपने दोस्त का कत्ल क्यों किया?’’ थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने शैलेश से पूछा.

इस सवाल पर शैलेश काफी देर तक हरमीत सिंह को गुमराह करता रहा. पहले वह बोला, ‘‘साहब, नशे में गलती हो गई. हम ने उस का कत्ल कर दिया.’’

फिर बताया कि उस के मोबाइल फोन में उस की महिला मित्र की कुछ आपत्तिजनक फोटो थीं. उन फोटो को विनय ने धोखे से अपने मोबाइल फोन में ट्रांसफर कर लिया था. वह उन फोटो को सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी दे कर ब्लैकमेल कर रहा था, इसलिए हम ने उसे मार डाला.

लेकिन थानाप्रभारी हरमीत सिंह को उस की इन दोनों बातों पर यकीन नहीं हुआ. सच्चाई उगलवाने के लिए उन्होंने सख्ती की तो दोनों टूट गए.

फिर उन्होंने बताया कि उन्होंने 10 लाख रुपए की फिरौती मांगने के लिए विनय की हत्या की योजना बनाई थी. कुछ माह पहले संजीत हत्याकांड की तरह शव को ठिकाने लगाने के बाद उसी के मोबाइल फोन से उस के घर वालों को फोन कर फिरौती मांगने की योजना थी. उस ने दौलत की चाहत में दोस्त की हत्या की थी. लेकिन फिरौती मांगने के पहले ही वे पकड़े गए.

शैलेश व अर्श की जामातलाशी में उन के पास से 3 मोबाइल फोन मिले, जिस में एक मृतक विनय का था तथा बाकी 2 शैलेश व अर्श के थे. उन के पास एक पर्स भी बरामद हुआ जिस में मृतक का फोटो, आधार कार्ड तथा कुछ रुपए थे. बरामद पर्स मृतक विनय प्रभाकर का था.

शैलेश व अर्श गुप्ता की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल बांका तथा लाश ठिकाने लगाने में इस्तेमाल मोटरसाइकिल बरामद कर ली. बांका उस ने अपने कमरे में छिपा दिया था और पैट्रोल खत्म होने से उस ने मोटरसाइकिल खाड़ेपुर मोड़ पर खड़ी कर दी थी.

फिरौती और हत्या के इस मामले में थानाप्रभारी हरमीत सिंह कोई कोताही नहीं बरतना चाहते थे. क्योंकि इस के पहले संजीत अपहरण कांड में बर्रा पुलिस गच्चा खा चुकी थी. अपहर्त्ताओं ने फिरौती की रकम भी ले ली थी और उस की हत्या भी कर दी थी.

इस मामले में लापरवाही बरतने में एसपी व डीएसपी सहित 5 पुलिसकर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया था. अत: उन्होंने घटना की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी.

सूचना पा कर रात 3 बजे एसपी (साउथ) दीपक भूकर तथा डीएसपी विकास पांडेय थाना बर्रा पहुंच गए. उन्होंने घटना के संबंध में गिरफ्तार किए गए शैलेश व अर्श गुप्ता से विस्तार से पूछताछ की. फिर दोनों को साथ ले कर रिंद नदी के पुल पर पहुंचे. इस के

बाद कातिलों की निशानदेही पर नदी किनारे पड़ा विनय प्रभाकर का शव बरामद कर लिया.

विनय की हत्या बड़ी निर्दयतापूर्वक की गई थी. उस का गला धारदार हथियार से काटा गया था, जिस से सांस की नली कट गई थी और उस की मौत हो गई थी. मृतक विनय की उम्र 26 वर्ष के आसपास थी और उस का शरीर हृष्टपुष्ट था.

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20 मार्च की सुबह 5 बजे बर्रा थाने के 2 सिपाही मृतक विनय के घर पहुंचे और उस की हत्या की खबर घर वालों को दी. खबर पाते ही घर व मोहल्ले में सनसनी फैल गई. घर वाले रिंद नदी के पुल पर पहुंचे. वहां विनय का शव देख कर मां विमला तथा बहन रीता बिलख पड़ीं. पिता रामऔतार प्रभाकर तथा भाई पवन की आंखों से भी अश्रुधारा बह निकली. पुलिस अधिकारियों ने उन्हे धैर्य बंधाया.

पवन ने एसपी दीपक भूकर को बताया कल शाम साढ़े 7 बजे किसी का फोन आने पर उस का भाई विनय यह कह कर अपनी पल्सर मोटरसाइकिल से घर से निकला था कि अपने दोस्त से मिलने जा रहा है. उस के बाद वह घर नहीं लौटा.

रात भर हम लोग उस के घर वापस आने का इंतजार करते रहे. उस का फोन भी बंद था. सुबह 2 सिपाही घर आए. उन्होंने विनय की हत्या की सूचना दी. तब हम लोग यहां आए. लेकिन समझ में नहीं आ रहा कि विनय की हत्या किस ने और क्यों की?

‘‘तुम्हारे भाई की हत्या किसी और ने नहीं, उस के बचपन के दोस्त शैलेश प्रजापति व उस के साथी अर्श गुप्ता ने की है. वह तुम लोगों से फिरौती के 10 लाख रुपए वसूलना चाहते थे. लेकिन शैलेश की मां ने ही उस का भांडा फोड़ दिया और दोनों पकड़े गए.’’

यह जानकारी पा कर पवन व उस के घर वाले अवाक रह गए. क्योंकि वे सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि शैलेश ऐसा विश्वासघात कर सकता है.

निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने शव को पोस्टमार्टम हाउस हैलट अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद वह शैलेश के उस कमरे में पहुंचे, जहां विनय का कत्ल किया गया था.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का निरीक्षण किया, वहीं फोरैंसिक टीम ने भी बेंजाडीन टेस्ट कर साक्ष्य जुटाए.

चूंकि आरोपियों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल बांका भी बरामद करा दिया था, अत: थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने मृतक के भाई पवन को वादी बना कर भादंवि की धारा 302/201 तथा एससी/एसटी ऐक्ट के तहत शैलेश प्रजापति तथा अर्श गुप्ता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

उन्हें न्यायसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस पूछताछ में दौलत की चाहत में दोस्त की हत्या की सनसनीखेज घटना का खुलासा हुआ.

कानपुर शहर का एक बड़ी आबादी वाला क्षेत्र है-बर्रा. इस क्षेत्र के बड़ा होने से इसे कई भागों में बांटा गया है. रामऔतार प्रभाकर अपने परिवार के साथ इसी बर्रा क्षेत्र के भाग 2 में मनोहरनगर में जानकी मंदिर के पास रहते थे. उन के परिवार में पत्नी विमला के अलावा 2 बेटे पवन कुमार, विनय कुमार तथा बेटी रीता कुमारी थी. रामऔतार प्रभाकर आर्डिनैंस फैक्ट्री में काम करते थे. किंतु अब रिटायर हो चुके थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

फैक्ट्री में रामऔतार प्रभाकर के साथ सोमनाथ प्रजापति काम करते थे. सोमनाथ भी बर्रा भाग 8 में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी शीला देवी के अलावा एकलौता बेटा शैलेश था. सोमनाथ भी रिटायर हो चुके थे. सोमनाथ बीमार रहते थे. उन्हें सुनाई भी कम देता था और दिखाई भी. उन की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी.

रामऔतार और सोमनाथ इस के पहले अर्मापुर स्थित फैक्ट्री की कालोनी में रहते थे. 3 साल पहले दोनों ने बर्रा क्षेत्र में जमीन खरीद ली थी और अपनेअपने मकान बना कर रहने लगे थे. मकान बदलने के बावजूद दोनों की दोस्ती में कमी नहीं आई थी. दोनों परिवार के लोगों का एकदूसरे के घर आनाजाना था.

रामऔतार का बेटा विनय और सोमनाथ का बेटा शैलेश बचपन के दोस्त थे. दोनों एकदूसरे के घर आतेजाते थे. विनय ने हाईस्कूल पास करने के बाद आईटीआई से मशीनिस्ट का कोर्स किया था. वह नौकरी की तलाश में था. जबकि शैलेश ड्राइवर बन गया था. वह बुकिंग की कार चलाता था.

शैलेश का एक अन्य दोस्त अर्श गुप्ता था. वह फरनीचर कारीगर था और गुजैनी गांव में रहता था. अर्श और शैलेश शराब के शौकीन थे. अकसर दोनों साथ पीते थे और लंबीलंबी डींग हांकते थे. उन दोनों ने विनय को भी शराब पीना सिखा दिया था. अब हर रविवार को शैलेश के घर शराब पार्टी होती थी. तीनों बारीबारी से पार्टी का खर्चा उठाते थे.

एक शाम खानेपीने के दौरान विनय ने शैलेश व अर्श को बताया कि उस की बहन रीता की शादी तय हो गई है. 27 अप्रैल को बारात आएगी. शादी में लगभग 10-12 लाख रुपया खर्च होगा. पिता व भाई ने रुपयों का इंतजाम कर लिया है. शादी की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं.

शैलेश व अर्श मामूली कमाने वाले युवक थे. वह शार्टकट से लखपति बनना चाहते थे. इस के लिए शैलेश उरई में पान मसाला का कारोबार करना चाहता था. उरई में वह जगह भी देख आया था. लेकिन कारोबार के लिए उस के पास पैसा नहीं था.

पैसा कहां से और कैसे आए, इस के लिए शैलेश और अर्श ने सिर से सिर जोड़ कर विचारविमर्श किया तो उन्हें विनय याद आया. विनय ने बताया था कि उस के यहां बहन की शादी है और घर वालों ने 10-12 लाख रुपए का इंतजाम किया है.

दौलत की चाहत में शैलेश व अर्श ने दोस्त के साथ छल करने और फिरौती के रूप में 10 लाख रुपया वसूलने की योजना बनाई. संजीत हत्याकांड दोनों के जेहन में था. उसी तर्ज पर उन दोनों ने विनय की हत्या कर के उस के घर वालों से फिरौती वसूलने की योजना बनाई.

योजना के तहत 19 मार्च, 2021 की रात पौने 8 बजे शैलेश ने अर्श के मोबाइल से विनय प्रभाकर के मोबाइल पर काल की और पार्टी के लिए घर बुलाया.

विनय की 5 दिन पहले ही लोहिया फैक्ट्री में नौकरी लगी थी. फैक्ट्री से वह साढ़े 7 बजे घर लौटा था कि 15 मिनट बाद शैलेश का फोन आ गया. पार्टी की बात सुन कर वह शैलेश के घर जाने को राजी हो गया.

रात 8 बजे विनय अपनी पल्सर मोटरसाइकिल से बर्रा भाग 8 स्थित शैलेश के घर पहुंच गया. उस समय कमरे में शैलेश व अर्श गुप्ता थे और पार्टी का पूरा इंतजाम था. इस के बाद तीनों ने मिल कर खूब शराब पी. विनय जब नशे में हो गया तो योजना के तहत अर्श व शैलेश ने उसे दबोच लिया और उस की पिटाई करने लगे.

विनय ने जब खुद को जाल में फंसा देखा तो वह भी भिड़ गया. कमरे से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. इसी बीच शैलेश ने कमरे में छिपा कर रखा बांका निकाला और विनय की गरदन पर वार कर दिया. विनय का गला कट गया और वह फर्श पर गिर पड़ा.

इस के बाद अर्श ने विनय को दबोचा और शैलेश ने उस की गरदन पर 2-3 वार और किए. जिस से विनय की गरदन आधी से ज्यादा कट गई और उस की मौत हो गई.

हत्या करने के बाद उन दोनों ने शव को तोड़मरोड़ कर चादर व कंबल में लपेटा और फिर विनय की मोटरसाइकिल पर रख कर रिंद नदी में फेंक आए. वापस लौटते समय उन की बाइक का पैट्रोल खत्म हो गया, इसलिए उन्होंने बाइक को खाड़ेपुर मोड़ पर खड़ा कर दिया. फिर पैदल ही घर आ गए.

घर पर उन के स्वागत के लिए बर्रा पुलिस खड़ी थी, जिस से वे पकड़े गए. दरअसल, शैलेश की मां शीला ने ही कमरे में खून देख कर पुलिस को सूचना दी थी, जिस से पुलिस आ गई थी.

21 मार्च, 2021 को थाना बर्रा पुलिस ने आरोपी शैलेश प्रजापति व अर्श गुप्ता को कानपुर कोर्ट में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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