पीरागढ़ी कांड: मासूम किशोरी के साथ वहशीपन का नंगा नाच

Crime News in Hindi: घरों में अकेले रहना अब मासूमों के लिए ज्यादा मुफीद नहीं रहा है. चोरी के मकसद से आए चोरों ने मासूम किशोरी के साथ दर्दनाक और दिल दहला देने वाली घटना को अंजाम दिया और फरार हो गए.यह घटना दिल्ली के पीरागढ़ी( Peeragarhi Crime) इलाके में 4 अगस्त, 2020 को घटी. मांबाप तो हर रोज की तरह सुबह ही काम पर चले गए थे, वहीं बड़ी बहन भी दोपहर में काम पर चली गई थी. अनुमान है कि शाम के तकरीबन 4 बजे 12-13 साल की किशोरी कमरे में अकेली थी, तभी चोर चोरी के मकसद से घर में घुसे. अजनबी शख्स को कमरे में देख किशोरी ने शोर मचाया, पर उस की चीख कमरे में ही दब गई. चुप कराने की कोशिश में चोरों ने उस के साथ दरिंदगी की. विरोध करने पर कैंची से उस के सिर और शरीर को बुरी तरह गोद डाला.

घायल होने के बाद भी किशोरी बड़ी बहादुरी से इन चोरों से काफी देर तक जूझती रही. खून से नहाई मासूम को आखिर मरा समझ कर आरोपी फरार हो गए.

काफी देर तक वह बच्ची कमरे में बेसुध रही, उस के बाद जैसेतैसे कमरे से घिसटते हुए वह बाहर आई और पड़ोसी के दरवाजे को खटखटा कर इशारे से खुद की हालत बयां करते हुए फिर बेहोश हो गई. उस के निजी अंगों से लगातार खून बह रहा था.

किशोरी की ऐसी बुरी हालत देख पड़ोसी भी सहम गए. तुरंत ही इस की सूचना पुलिस को दी गई. साथ ही, उस के मातापिता को भी इस हादसे के बारे में बताया गया.

सूचना मिलने पर पश्चिम विहार वेस्ट थाने की पुलिस आई और बच्ची को संजय गांधी अस्पताल में भरती कराया. उस के सिर और हिप्स में किसी धारदार हथियार से कई वार किए गए थे. डाक्टरों ने फौरन ही बच्ची के सिर व कटे हुए हिस्सों में टांके लगाए और हाथोंहाथ एम्स रेफर कर दिया.

किशोरी ने जो बयान दिया, उस के आधार पर इस वारदात में 2 लड़के शामिल हैं. पुलिस के मुताबिक, 13 साल की किशोरी अपने परिवार के साथ पीरागढ़ी में किराए के मकान में रहती है. परिवार मूल रूप से बिहार का रहने वाला है. जिस कमरे में परिवार रहता है, वह बिल्डिंग तीनमंजिला है. इस बिल्डिंग में छोटेछोटे तकरीबन 2 दर्जन कमरे बने हुए हैं. ज्यादातर आसपास की फैक्टरियों में लेबर का काम करते हैं. बच्ची के परिवार में मातापिता और एक बड़ी बहन है. वे सभी एक फैक्टरी में लेबर का काम करते हैं.

तकरीबन साढ़े 5 बजे फोन के जरीए पुलिस को सूचना मिली थी. आशंका है कि बच्ची के साथ 4 बजे के आसपास वारदात हुई. शुरुआती जांच में उस मासूम किशोरी के साथ सैक्सुअल एसौल्ट की पुष्टि हुई.

पुलिस ने हत्या की कोशिश और पोक्सो एक्ट समेत कई धाराओं में केस दर्ज कर आरोपियों की तलाश में संभावित ठिकानों पर छापेमारी की. तकरीबन 36 घंटे बाद यानी 3 दिन बाद एक आरोपी को पकड़ने का पुलिस ने दावा किया.

पुलिस के मुताबिक, आरोपी ड्रग एडिक्ट है. उस पर पहले से ही चोरी के अलावा दूसरे आपराधिक मामले दर्ज हैं. इस के कारण वह जेल भी जा चुका है.

हाल ही में आरोपी जेल से बाहर आया था. जेल से छूटने के बाद पास के पार्क में ही आरोपी ठहरता था. पुलिस को आरोपी के बारे में सीसीटीवी कैमरे से सुराग हाथ लगा.

घटना को अंजाम दे कर आरोपी फरार होने के बाद आसपास की जगहों पर छिप रहा था. केस की पड़ताल में पुलिस ने क्रिमिनल अपराधियों की हिस्ट्रीशीट खंगाली. इस के अलावा जमानत पर छूट कर आए चोरउचक्कों की लोकेशन का पता किया. सीसीटीवी, पड़ोसियों और 100 से अधिक संदिग्धों से पूछताछ के बाद जांच की सूई इस आरोपी पर आ कर टिकी.

पुलिस के मुताबिक, वारदात के समय आरोपी नशे में था और चोरी के इरादे से कमरे में घुसा था. कमरे में अकेली बच्ची ने जब उसे टोका और शोर मचाने की कोशिश की तो  उस ने दबोच लिया.

आरोपी ने नशे में बेरहमी से लड़की पर कैंची से ताबड़तोड़ वार किए और उसे मरा हुआ समझ कर फरार हो गया.

पुलिस ने जब आरोपी को पकड़ा, तब उस के शरीर पर खरोंच के निशान पाए गए थे. इस से खुलासा यह हुआ कि बहादुर किशोरी ने जम कर मुकाबला किया.

वहीं दूसरी ओर जांच में जुटी टीम का मानना है कि मासूम बेसुध होने तक आरोपियों से मुकाबला करती रही. कमरे में बिखरा खून और पास ही पड़ी कैंची इस ओर इशारा कर रहे थे.

कैंची खून से सनी फर्श पर पड़ी थी. पास ही में सिलाई की मशीन रखी हुई थी. उसी सिलाई मशीन पर कैंची रखी थी. माता, पिता और बड़ी बहन हर रोज की तरह काम पर चले जाते थे. घर में किशोरी के पास मोबाइल फोन रहता था, पर वह बंद था.

मासूम किशोरी का एम्स में इलाज चल रहा है और वह जिंदगी और मौत से जूझ रही है. पर, उस ने अपने ऊपर हो रहे जुल्म का डट कर विरोध किया और उन से जम कर जूझी भी. वहीं जेल से छूट कर आए अपराधियों पर पुलिस का नकेल न कस पाना ऐसे अपराधों को बढ़ाने में मददगार साबित हो रहा है.

लगता है, समाज में ओछी यानी गिरती हुई सोच और बदली मानसिकता पर लगाम लगा पाना बेहद मुश्किल साबित हो रहा है, तभी तो इनसानियत यों शर्मसार हो रही है. यही वजह है कि आएदिन मासूम बच्चियों व किशोरियों पर हमले की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं.

 

कैंची खून से सनी फर्श पर पड़ी थी. पास ही में सिलाई की मशीन रखी हुई थी. उसी सिलाई मशीन पर कैंची रखी थी. घर में किशोरी के पास मोबाइल फोन रहता था, पर वह बंद था.

इश्क में हुआ अंधा, पर क्या मिला माशूक

Crime News in Hindi: सेक्स की चाहत (Sex Desire) और उसके नशे में, आदमी विवेकशील न हो तो अपना सब कुछ खो बैठता है. और कुछ इस कदर अंधा हो जाता है कि खून के रिश्ते भी छोटे पड़ जाते हैं. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के जिला भाटापारा (Bhatapara) बलोदा बाजार के थाना बिलाईगढ़ (Bilaigarh Police Station) में एक ऐसा ही हत्याकांड घटित हुआ जिसमें एक भाई ने अपने चचेरे भाई को सिर्फ और सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतार दिया क्योंकि वह उसकी पत्नी अर्थात् अपनी भाभी से प्यार करने लगा था और उसे किसी भी हालात में प्राप्त करना चाहता था. दरअसल, देवर ने भाभी की किसी भी हालत में हासिल करने की चाहत में अपने बड़े भाई की हत्या कर दी. पुलिस ने आशिक हत्यारे को अपनी गिरफ्त में ले लिया है.अब हालात यह है कि वह अपने भाई को खो चुका है और अपनी चाहत को भी. पढ़िए छत्तीसगढ़ की ग्रामीण अंचल की एक सनसनीखेज मर्डर मिस्ट्री (Murder Mystrey).

माया  मिली न राम!

हत्या के बाद आरोपी, अपनी भाभी को अपनाना चाहता था, लेकिन मृतक की पत्नी ने उसके चेहरे पर थूक दिया. इस तरह हत्या करने के बाद में कहा जा सकता है कि उस शख्स को ना तो माया मिली और ना ही राम! और जैसा कि अक्सर होता है उसकी पोल खुल गई. हत्या का खुलासा मृतक का कपड़ा मिलने से हुई. जांच में पुलिस ने शव बरामद कर परिजनों से पूछताछ की तो करीबियों पर शक हुआ. पुलिस जांच में जुटी ही थी कि आरोपी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. थाना बिलाईगढ के प्रभारी  व मामले के जांच  अफसर राजेश साहू के अनुसार महेश्वर साहू की पत्नी ने रविवार सुबह थाने आकर रिपोर्ट दर्ज कराई कि शनिवार रात 8 बजे से उसके पति तालाब जाने के लिए घर से निकले थे, लेकिन अभी तक घर नहीं आये है.
इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की. रिपोर्ट के बाद पुलिस लगातार जांच में जुटी थी.इस दौरान महेश्वर साहू के कपड़े गांव के तालाब के पास मिले. साथ ही तालाब के पास शराब की बोतले भी थी. मौके पर पहुंचकर जब जांच की गई तो उसकी लाश मिल गई. पुलिस को मामला संदेहजनक लगा. मृतक के घर जाकर परिजनों से पूछताछ की गई. पूछताछ में आरोपी संजय भास्कर ने अपने चचेरे बड़े भाई की हत्या करना स्वीकार कर लिया.

भाभी के प्यार मे हत्या 

अंततः हत्यारे ने पुलिस के समक्ष सच्चाई स्वीकार कर ली और सब कुछ सच-सच बता दिया.पहले तो उसने पुलिस को गुमराह करने शराब के लिए हत्या करने की बात कही. जब कड़ाई से पूछताछ की गई तो आरोपी ने अपने भाभी से प्यार करने की बात कबूल कर ली. उसने कहा भाभी को पाने के लिए ही बड़े भाई की हत्या करने की साजिश रची थी.
आरोपी संजय ने बताया कि 25 अप्रैल 2020 को हत्या की योजना बनाकर चचेरे भाई को तालाब के  किनारे शराब पिलाने के बहाने ले गया. नशा चढ़ते ही धारदार तलवार ले उसे मारने की कोशिश की तो वह भागा मगर अंततः वार कर उसने हत्या कर दी. तत्पश्चात स्वयं को बचाने के लिए लाश में पत्थर बांधकर उसे फेंक दिया.अब हालात यह है कि वह एक हत्या का आरोपी बन चुका है और जिसे वह चाहता था वह भाभी भी उससे नफरत करने लगी है और चाहती है कि उसे फांसी हो जाए.

कहीं आप भी तो नहीं हो रहे ‘हेरा फेरी’ जैसी ठगी के शिकार!

Crime News in Hindi: अक्षय कुमार (Akshay kumar), सुनील शेट्टी (Sunil Shetty), परेश रावल ({Paresh Rawal) अभिनीत फिल्म ‘हेरा फेरी’ (Movie Hera Pheri) तो आपको याद होगी. जिसमें ठगी को बड़े ही सरल ढंग से दिखाया गया है. फिल्म में पैसे उधार लेकर के भी लोग दांव लगा देते हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद रहती है कि पैसा कई गुना ज्यादा हो जाएगा. सच तो यह है कि यह एक तरह से कुछ चालबाज नेताओं और सत्ताधारी पार्टियों के कार्यकर्ताओं का अघोषित धंधा बना हुआ है. नेताओं के संरक्षण में पुलिस (Police) भी कार्रवाई नहीं करती और प्रार्थी को डपट कर थाने से भगा देने के भी कई किस्से अक्सर हमने सुने हैं. यह भी सच है कि बहुत से मामले स्वंय ही दब जाते हैं और पुलिस तक तो गिनती के ही मामले पहुंचते हैं. यह भी गंभीर तथ्य है कि कई मामलों में फरियादी थाना पुलिस के आगे पीछे घूमता रहता हैं.

क्योंकि कुछ मामलों मे फरियादी के पास पर्याप्त साक्ष्य नहीं होते है. जिससे आरोपी को न्यायालय मे सजा दिलाई जा सके,कई मामलों मे पुलिस जानबूझकर कर अपराध दर्ज नहीं करना चाहती. इस प्रकार पीड़ित व्यक्ति को न्याय नहीं मिल पाता. कई बार पीड़ित ब्याज पर उधार लेकर, पैसा ठग को दे देता है, ठगी का शिकार होने से, जिनसे उधार लिए होते है उनको वापस करना मुश्किल हो जाता है. फिर वे भागते फिरते हैं या आत्महत्या कर लेते हैं.

पहला किस्सा-

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के केदारपुर निवासी जगदीश विश्वकर्मा ने घर में गड़े धन और उसके अदृश्य रक्षकों द्वारा बढ़ाई जा रही परेशानी को दूर कराने के चक्कर मे 21 तोला सोना और 40 हजार रुपए नगद गंवा दिया. करीबी महिला रिश्तेदार के झांसे में आए परिवार के बाबा ने जैसा कहा वे वैसा करते चले गए.

बाबा ने पीतल के मटके में लिपटे सांप से बात करके इन्हें औऱ भी आश्चर्य में डाल दिया था. कथित विघ्नहर्ता बाबा ने स्वार्थ पूरा होने पर इनसे दूरी बनाई तब ठगी का एहसास हुआ. कथित तांत्रिक आचार्य संजय शर्मा द्वारा पैसा एवं सोना ठगी करने की रिपोर्ट सरगुजा अंचल के अंबिकापुर कोतवाली थाने में दर्ज कराई गई है.

दूसरा किस्सा- 

संस्कारधानी कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक भौमिक नामक शख्स ने पौश इलाके में एक दमकती दुकान खोली और यह विज्ञापन देना शुरू किया कि आइए लोन लीजिए. लोग अपनी जमीन के कागजात के दस्तावेज जमा करते चले गए और ठगराज भौमिक ने बैंक से सांठगांठ करके उनके दस्तावेजों के आधार पर लगभग 9 करोड़ रुपए बिलासपुर की पांच बैंकों से निकलवा लिया.जब यह जानकारी लोगों को हुई तो बिलासपुर पुलिस अधीक्षक के पास शिकायत पहुंची जांच शुरू हुई तो मामला सामने आ गया. पुलिस ने कथित ठग भौमिक के खिलाफ जांच प्रारंभ कर दी है.

तीसरा किस्सा-

छत्तीसगढ़ की औद्योगिक नगर कोरबा में छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल, रेलवे में नौकरी दिलाने के नाम पर विद्युत मंडल के एक पूर्व कर्मचारी ने जिला चांपा जांजगीर, कोरबा के कुछ बेरोजगारों को भ्रमित कर की उन्हें नौकरी दिलाई जाएगी. लगभग बीस लाख रुपए वसूल कर लिए. लंबे समय तक जब नौकरी नहीं लगी तो युवा थाना पहुंचे और मामला रंग लेने लगा. जांच पड़ताल में मामला सही पाया गया और आरोपी को जेल दाखिल कर दिया गया.

देश में बेरोजगार युवाओं को ठगने का धंधा हर कोने में फल-फूल रहा है. हर दिन कहीं न कहीं से अखबारों में ऐसी खबरें सुर्खियां बटोरती रहती हैं कि किसी बेरोजगार युवक का पिता, परिजन या फिर स्वयं बेरोजगार युवक-युवती नौकरी लगाने के नाम पर, मोबाइल टावर लगाने के नाम पर, रूपये दुगुना-तिगुना करने के नाम पर, इंश्योरेंस के नाम पर, मेडिकल कालेज मे एडमिशन के नाम पर, जमीन खरीदने के नाम से, शादी के नाम पर और न जाने  कितने प्रकार के फ्राड के शिकार युवा बेरोजगार और अभिभावक लोग होते रहते है. इस संदर्भ में छत्तीसगढ़ के आईपीएस रतनलाल डांगी कहते हैं कि-“कई मामलों मे तो पीड़ित व्यक्ति लोकलाज के कारण कहीं पर शिकायत भी नहीं करता, कुछ मामलों मे पीड़ित जब शिकायत करता हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती हैं. ठगने वाले लोग अपना ठिकाना व सम्पर्क नम्बर बदल चुके होते हैं.”

हमारे संवाददाता से बातचीत में रतनलाल डांगी ने बताया की कई मामलों में दोनों पक्षों के बीच कम ज्यादा करके रकम वापसी का प्रयास चलता रहता है, कई मामलों मे रुपये के लेनदेन का कोई साक्ष्य भी नहीं होता हैं, कई मामलों में रूपये की वापसी किश्तों मे देने की बात करके पीड़ित को घुमाते रहते है.

दुखी पीड़ित आत्महत्या भी कर लेते हैं…

परेशान होकर कुछ पीड़ित न्याय मिलने से पहले ही जीवन लीला समाप्त कर लेते है. जिससे परिवार पर और असहनीय दुखों का पहाड़ टूट पड़ता हैं.कुछ संवेदनशील पुलिस अधिकारी मामला दर्ज भी कर लेते हैं. न्यायालय से मामलों में निराकरण तक कोई रकम पीड़ित को वो रकम वापस नहीं मिलती है और आरोपी उसी पैसे से अपना मामला अदालत मे लड़ते  रहते हैं. आज की सच्चाई है की शिक्षित बेरोजगार कानून की जानकारी नहीं होने की कारण और देश की लुंज पुंज व्यवस्था के कारण दोनों हाथों से ठगे जा रहे हैं. इसके लिए कानून भी जहां लचर है वही प्रश्न यह भी है कि एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति जबकि आज टीवी और समाचार पत्रों में लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं फिर पैसे देकर ठगी का शिकार क्यों हो रहा है. मां-बाप के वर्षों से कमाये हुए पैसों को गंवा कर अपनी इह लीला समाप्त कर रहा है.

युवाओं को सचेत रहना आवश्यक…

ऐसे युवाओं को पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा का संदेश पढ़कर गांठ बांध लेना चाहिए की अगरचे रुपये से ही नौकरी लगती तो आज  केवल अमीर लोगों के ही बच्चे सरकारी नौकरी में होते. सरकारी नौकरी शिक्षा से ही मिलती है. असफल रहने वाले और  मेहनत न करके अपने आपको सांत्वना देने और अपनी कमजोरी छिपाने के लिए लोग कहानी गढ़ लेते है कि बिना पैसे दिए लिए कुछ नहीं होता है.

यह समझने की बात है कि आप किसी तरह का शोर्टकट रास्ता न खोजें और न किसी के झांसे में आए. आपको बालक ध्रुव की कहानी स्मरण होनी चाहिए जब वह प्रभु को ढूंढने निकलता है तो उसे नारद मुनि कहते हैं कि प्रभु को पाने के दो रास्ते हैं एक कठिन जिसमें कांटे हैं पत्थर हैं दूसरा सरल. बालक ध्रुव कठिन रास्ते को अपनाते हैं और प्रभु को आप जानते ही हैं कि प्राप्त कर लेते हैं. अतः आप पढ़िए डिग्री प्राप्त करिए नौकरी आपका इंतजार कर रही है किसी के झांसे में ना आइए.

झांसे देने वाले से कहिए…

अगर आपको कोई नौकरी देने की बात कहता है तो उससे एक बात कहिए कि क्या आप स्टांप पेपर पर लिखित में दे सकते हैं की मैं नौकरी दिलाऊंगा. आप देखेंगे यह सुनते ही वह गायब हो जाएगा. वहीं अगर आप झांसे में आ गए हैं तो समझदारी से काम लें और सुबूत इकट्ठा करें कि आपने फलां व्यक्ति को पैसे दिए हैं और निकट के थाना में शिकायत दर्ज कराएं. कोई भी कदम उठाने से पहले हर बात को तस्दीक कीजिए. संदेह होने से पुलिस को अनिवार्य रूप से सूचना दीजिए. लोकलाज मे किसी बात को छिपाने का काम न कीजिए, हो सकता है आपके द्वारा ऐसी घटना उजागर करने से आपके और भी साथी ठगी का शिकार होने से बच जाए. आपकी सावधानी ही आपको ठगी का शिकार होने से बचा सकती हैं. जितना रूपये आपसे कोई ठगता है उससे आप कोई काम-धंधा भी शुरू करेंगे तो अच्छा रहेगा. आप नौकरी करने के बजाय नौकरी देने वाले बन सकते हैं.

बदले की आग में किया दोस्त का कत्ल

31 मार्च, 2017 को सुबह के करीब 7 बजे की बात है. उत्तरी दिल्ली के थाना तिमारपुर के ड्यूटी अफसर एएसआई सतीश कुमार को पुलिस कंट्रोल रूम से एक चौंकाने वाली खबर मिली. कंट्रोलरूम से बताया गया कि बाहरी रिंग रोड पर गोपालपुर रेडलाइट के पास जो बिजलीघर है, उस के नजदीक तकिए के एक कवर में किसी इंसान के 2 हाथ पड़े हैं.

मामला हत्या का लग रहा था. दरअसल, कुछ शातिर हत्यारे किसी का कत्ल करने के बाद पहचान छिपाने के लिए उस के अंग काट कर अलगअलग जगहों पर फेंक देते हैं. इस से पुलिस भी भ्रमित हो जाती है. ड्यूटी अफसर ने इस काल से मिली सूचना एएसआई अशोक कुमार त्यागी के नाम मार्क कर दी.

एएसआई अशोक कुमार त्यागी कांस्टेबल अनिल कुमार को साथ ले कर सूचना में बताए गए पते की तरफ रवाना हो गए. वह जगह थाने से करीब 2 किलोमीटर दूर थी इसलिए वह 10 मिनट के अंदर वहां पहुंच गए. वहां पर तमाम लोग जमा थे. भीड़ को देख कर उधर से गुजरने वाले वाहनचालक भी रुक रहे थे. एएसआई ने मुआयना किया तो वास्तव में एक मटमैले छींटदार तकिए के कवर में 2 हाथ रखे मिले.

उन्होंने इस की सूचना थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर को दे दी. थानाप्रभारी कुछ देर पहले ही रात्रि गश्त से थाने लौटे थे. एएसआई अशोक कुमार से बात कर के वह भी एसआई हरेंद्र सिंह, एएसआई उमेश कुमार, हेडकांस्टेबल राजेश, कांस्टेबल कमलकांत और निखिल कुमार को ले कर कुछ ही देर में बिजलीघर के पास पहुंच गए.

मौके पर पहुंचने के बाद थानाप्रभारी ने मामले की गंभीरता को समझते हुए क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और फोरैंसिक टीम को भी सूचना दे दी. इन दोनों टीमों के पहुंचने तक पुलिस उन अंगों से दूर रही. करीब आधे घंटे में फोरैंसिक और क्राइम इनवैस्टीगेशन की टीमें वहां पहुंच गईं. मौके के फोटो वगैरह खींचने के बाद पुलिस ने तकिए को उठा कर उलटा किया तो उस में से 2 बाहों के अलावा पीले रंग की एक पौलीथिन भी निकली. दोनों बाहों को कंधे से काटा गया था.

उस थैली को खोला गया तो उस में एक युवक का सिर था. सिर और हाथ देख कर वहां मौजूद सभी लोग चौंक गए. फोरैंसिक टीम और क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम का काम निपट जाने के बाद थानाप्रभारी ने जांच शुरू कर दी. वहां पर मृतक के चेहरे को कोई भी नहीं पहचान पाया, क्योंकि हत्यारे ने चाकू से उस के चेहरे को बुरी तरह से गोद डाला था. उस के दाहिने हाथ पर ‘ऊं साईंराम’ गुदा हुआ था. जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने उन तीनों अंगों को अपने कब्जे में ले लिया.

मृतक के अन्य अंग भी हत्यारे ने कहीं आसपास ही डाले होंगे, यह सोच कर थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर बुराड़ी से कश्मीरी गेट की तरफ जाने वाली सड़क की साइड को बड़े ध्यान से देखते हुए चल रहे थे. करीब 100 मीटर चलने पर खून से सनी एक चादर पड़ी मिली. वहीं पर एक विंडचिटर, स्वेटर, लोअर, शर्ट और एक जींस भी पड़ी थी. कांस्टेबल अनिल को वहां छोड़ कर थानाप्रभारी करीब 200 मीटर आगे बढ़े थे कि सड़क किनारे बाईं टांग पड़ी मिली, जो जांघ से कटी हुई थी.

कांस्टेबल कमलकांत को हिफाजत के लिए वहां छोड़ कर थानाप्रभारी और आगे बढ़े. वहां से वह 200 मीटर आगे सड़क के बाईं ओर उन्हें दाहिनी टांग भी पड़ी मिल गई. मृतक का हाथपैर और सिर बरामद हो चुके थे. अब केवल धड़ बरामद करना था. उस की खोजबीन के लिए वह और आगे बढ़े. बाहरी रिंगरोड पर जहां तक उन के थाने की सीमा थी, वहां तक उन्होंने सड़क के दोनों तरफ काफी खोजबीन की. झाडि़यां भी देखीं पर कहीं भी धड़ नहीं मिला.

फोरैंसिक टीम और क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम भी उन जगहों पर पहुंच गई, जहां दोनों टांगें मिली थीं. उन का काम निपट जाने के बाद थानाप्रभारी ने पंचनामे की काररवाई पूरी की. इस के बाद सिर, दोनों हाथों और दोनों पैरों को सब्जीमंडी मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया गया. खबर मिलने पर डीसीपी जतिन नरवाल ने भी उन जगहों का निरीक्षण किया, जहांजहां पर वे कटे अंग मिले थे.

दोपहर करीब 12 बजे उत्तरी जिला पुलिस को वायरलैस द्वारा मैसेज मिला कि मजनूं टीला गुरुद्वारे के पास स्थित संजय गांधी अखाड़े के नजदीक फुटपाथ के किनारे प्लास्टिक का सफेद रंग का बोरा पड़ा हुआ है. उस बोरे से दुर्गंध आ रही है और उस पर मक्खियां भिनभिना रही हैं. यह इलाका थाना सिविल लाइंस क्षेत्र में आता था, इसलिए वहां के थानाप्रभारी 10 मिनट में ही मौके पर पहुंच गए.

चूंकि यह मैसेज पूरे जिले में प्रसारित हुआ था, जिसे तिमारपुर के थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर ने भी सुना था. मैसेज सुनते ही ओ.पी. ठाकुर के दिमाग में विचार आया कि कहीं उस बोरे में उस व्यक्ति का धड़ तो नहीं है, जिस के अन्य अंग उन के इलाके में मिले थे. लिहाजा वह भी संजय अखाड़े के पास पहुंच गए.

सिविल लाइंस थानाप्रभारी ने जब उस बोरे को खुलवाया तो एक चादर में लपेट कर रखी हुई सिरविहीन लाश दिखी. यह देख तुरंत क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और फोरैंसिक टीम को खबर दे दी गई. कुछ देर में दोनों टीमें मौके पर पहुंच गईं. पुलिस ने चादर में लिपटी हुई लाश बाहर निकलवाई. वह किसी युवक का धड़ था. धड़ देख कर थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर को लगा कि यह धड़ उसी युवक का हो सकता है, जिस के और अंग बरामद किए गए हैं.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और फोरैंसिक टीम का काम निपट जाने के बाद ओ.पी. ठाकुर ने इस की सूचना डीसीपी को दी. डीसीपी के निर्देश पर थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर ने पंचनामे की काररवाई कर के उस धड़ को भी सब्जीमंडी मोर्चरी भिजवा दिया.

डाक्टरों ने जांच कर बता दिया कि धड़ और कटे हुए सारे अंग एक ही व्यक्ति के हैं. इस से यह बात जाहिर हो रही थी कि हत्यारे बेहद शातिर हैं. उन्होंने मृतक के अंगों को अलगअलग जगहों पर इस तरह डाला था, जिस से पुलिस उन तक न पहुंच सके. लाश के सारे टुकड़े बुराड़ी से कश्मीरी गेट बसअड्डे की तरफ जाने वाली सड़क पर ही डाले गए थे. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्यारों ने लाश ठिकाने लगाने के लिए या तो स्कूटर या स्कूटी का प्रयोग किया होगा या फिर लाश औटोरिक्शा अथवा कार वगैरह से ठिकाने लगाई होगी.

पुलिस के सामने सब से बड़ी चुनौती मृतक की शिनाख्त करने की थी. वह कौन था, कहां का रहने वाला था, यह सब पता लगाना आसान नहीं था, क्योंकि मौके से पुलिस को ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से मृतक की शिनाख्त में सहयोग मिल सके. बस दाहिने बाजू पर ‘ॐ साईंराम’ गुदा था.

मृतक का हुलिया बताते हुए थानाप्रभारी ने सब से पहले दिल्ली के समस्त थानों में मैसेज भेज कर यह जानने की कोशिश की कि इस हुलिए से मिलताजुलता कोई व्यक्ति गायब तो नहीं है. पर किसी भी थाने में इस हुलिए से मिलतेजुलते किसी व्यक्ति की गुमशुदगी की सूचना दर्ज नहीं थी.

31 मार्च को ही शाम के समय बुराड़ी थाने के संतनगर की गली नंबर 92 की रहने वाली शकुंतला नाम की महिला थाने पहुंची. शकुंतला ने ड्यूटी अफसर को बताया कि उस का 26 वर्षीय बेटा नितिन कल रात से घर नहीं आया है. उन्होंने बेटे का हुलिया भी बता दिया.

ड्यूटी अफसर को यह बात तो पता थी ही कि तिमारपुर पुलिस ने किसी व्यक्ति की 6 टुकड़ों में कटी लाश बरामद की है, इसलिए उन्होंने शकुंतला से कहा, ‘‘मैडम, हम तो यही चाहते हैं कि नितिन जहां भी हो सहीसलामत हो. पर आज तिमारपुर थाना पुलिस ने एक लाश बरामद की है, जिस की शिनाख्त अभी नहीं हो सकी है. आप एक बार तिमारपुर थाने जा कर संपर्क कर लें तो अच्छा रहेगा.’’

इतना सुन कर शकुंतला घबराते हुए बोलीं, ‘‘नहीं मेरे बेटे के साथ ऐसा नहीं हो सकता.’’

उधर ड्यूटी अफसर ने तिमारपुर के थानाप्रभारी को फोन कर के बताया कि संतनगर की एक महिला अपने 26 साल के बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराने आई है. इन का बेटा कल से गायब है. यह खबर मिलने पर थानाप्रभारी ने एसआई हरेंद्र सिंह को बुराड़ी थाने भेज दिया. हरेंद्र सिंह ने बुराड़ी थाने में बैठी शकुंतला से उस के बेटे नितिन के गायब होने के बारे में बात की. फिर वह उसे अपने साथ तिमारपुर थाने ले गए.

सब से पहले उन्होंने महिला को बरामद की गई लाश के सारे टुकड़ों के फोटो दिखाए. उस के दाहिने बाजू पर ‘ॐ साईंराम’ लिखा था. यही नितिन के सीधे हाथ पर भी लिखा था. उस का चेहरा ज्यादा क्षतिग्रस्त था इसलिए वह उसे ठीक से नहीं पहचान सकी. इस पर एसआई हरेंद्र सिंह उसे सब्जीमंडी मोर्चरी ले गए.

दरअसल, हत्यारों ने मृतक के चेहरे को चाकू से गोद दिया था, जिस से चेहरा बुरी तरह बिगड़ गया था. फिर भी उस बिगड़े चेहरे और हाथ पर गुदे टैटू से शकुंतला ने लाश की पहचान अपने बेटे नितिन के रूप में कर ली. इस के बाद तो वह वहीं पर दहाड़ें मारमार कर रोने लगी.

पुलिस ने उसे सांत्वना दे कर जैसेतैसे चुप कराया. इस के बाद शकुंतला ने नितिन की हत्या की जानकारी अपने पति और अन्य लोगों को दी. खबर मिलते ही शकुंतला के पति लालता प्रसाद मोहल्ले के कई लोगों के साथ सब्जीमंडी मोर्चरी पहुंच गए. किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि नितिन की कोई इस तरह हत्या कर सकता है. बहरहाल पोस्टमार्टम कराने के बाद लाश के सभी टुकड़े लालता प्रसाद को सौंप दिए गए.

लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस का अगला काम हत्यारों तक पहुंचना था. डीसीपी जतिन नरवाल ने थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर की अगुवाई में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर संजीव वर्मा, एसआई अमित भारद्वाज, हरेंद्र सिंह, एएसआई सतेंद्र सिंह, हेडकांस्टेबल सुनील, राजेश, कांस्टेबल कुलदीप, निखिल, कमलकांत, विकास और सुनील कुमार आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले मृतक नितिन उर्फ सुमित उर्फ भोला के परिजनों से बात की. उस की मां शकुंतला ने बताया कि नितिन हैदरपुर में जौनसन एंड जौनसन कंपनी के डिस्ट्रीब्यूटर के यहां सेल्समैन था. वह कल यानी 30 मार्च को अपनी ड्यूटी खत्म कर के 6 बजे घर आ गया था. बाद में वह किसी से मिलने बाहर चला गया था.

जब वह काफी देर तक नहीं लौटा तो उसे कई बार फोन किया पर उस ने नहीं उठाया. सुबह होने तक भी जब नितिन घर नहीं लौटा तो उसे फोन किया पर उस का फोन बंद मिला. उस के दोस्तों और अन्य लोगों को फोन कर के उस के बारे में मालूम किया गया, लेकिन कोई पता नहीं चला. थकहार कर वह थाने में गुमशुदगी लिखाने पहुंची.

इस जानकारी के बाद पुलिस ने नितिन के दोस्तों से पूछताछ करनी शुरू कर दी.

8-10 दोस्तों से पूछताछ करने के बाद एक दोस्त ने पुलिस को बताया कि नितिन 30 मार्च की शाम सवा 6 बजे सरदा मैडिकल स्टोर के सामने देखा गया था. वह किसी की मोटरसाइकिल पर बैठा था. सरदा मैडिकल स्टोर संतनगर में मेनरोड पर ही है. पुलिस ने उस मैडिकल स्टोर पर पहुंच कर नितिन के बारे में पता किया तो पता चला कि वहां काम करने वाला कोई भी व्यक्ति नितिन को नहीं जानता था.

इस के बाद पुलिस ने वहां मार्केट में दुकानों के सामने लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. फुटेज देखते समय नितिन के कुछ दोस्तों को भी बैठा लिया गया था, जिस से वह नितिन को आसानी से पहचान सकें. एक फुटेज में नितिन मोटरसाइकिल पर जाता दिख गया. दोस्तों ने बता दिया कि वह हैप्पी नाम के दोस्त के साथ मोटरसाइकिल पर जा रहा है. हैप्पी संतनगर की ही गली नंबर 18 में रहने वाले सुनील कपूर का बेटा था. पुलिस को यह भी जानकारी मिली कि हैप्पी बदमाश और दबंग किस्म का है.

पुलिस जब उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. घर वालों ने बताया कि वह कहीं रिश्तेदारी में गया है. जिस मोटरसाइकिल पर वह फुटेज में दिखा था, वह उस के घर के सामने खड़ी दिखी. इस के अलावा उस के घर के सामने एक वैगनआर कार भी खड़ी थी.

इस के बाद पुलिस ने हैप्पी के बारे में गोपनीय जांच शुरू कर दी. इस जांच में पुलिस को उस के बारे में कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलीं. यह भी पता चला कि हैप्पी और उस के मामा का लड़का पवन नितिन से गहरी दुश्मनी रखते थे.

पुलिस टीम ने हैप्पी को तलाश करने के बजाय उस के खिलाफ सबूत जुटाने शुरू कर दिए. उस के फोन की काल डिटेल्स पाने के लिए संबंधित मोबाइल कंपनी को लिख दिया गया. पुलिस ने हैप्पी की उस रात की मूवमेंट देखने के लिए पुन: आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. फुटेज में रात 1 बजे के आसपास उसी वैगनआर कार की मूवमेंट दिखाई दी जो उस के घर के सामने खड़ी पाई गई थी. इस से पुलिस को शक हुआ कि नितिन की हत्या में हैप्पी का हाथ हो सकता है.

नितिन से हैप्पी और उस के मामा का लड़का पवन रंजिश रखते थे. हैप्पी तो घर से गायब था जबकि पवन संतनगर की गली नंबर 88 में रहता था. पुलिस टीम पवन के घर पहुंच गई. वह घर पर ही मिल गया. पुलिस को देख कर वह घबरा गया. पुलिस ने उस से हैप्पी के बारे में पूछा तो उस ने अनभिज्ञता जताई.

पुलिस ने पवन के कमरे की गहनता से जांच की तो बैड के पास खून के छींटे मिले. उन छींटों के बारे में पूछा गया तो वह इधरउधर की बातें करने लगा. तभी थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर ने उस के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया. एक थप्पड़ लगते ही पवन लाइन पर आ गया. अचानक उस के मुंह से निकल गया, ‘‘सर, नितिन को मैं ने नहीं बल्कि हैप्पी ने मारा था.’’

केस का खुलासा होते ही थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. उन्होंने पवन को हिरासत में ले लिया. इस के बाद हैप्पी के घर के बाहर खड़ी सीबीजेड मोटरसाइकिल और वैगनआर कार कब्जे में लेने के बाद हैप्पी के घर वालों पर उसे तलाश करने का दबाव बनाया. कार चैक की गई तो उस की सीट कवर पर भी खून के धब्बे पाए गए. पुलिस ने पवन से नितिन की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस की हत्या के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह दोस्ती में अविश्वास की भावना से उपजी हुई निकली.

26 वर्षीय नितिन उर्फ सुमित उर्फ भोले उत्तरी दिल्ली के थाना बुराड़ी के संतनगर में अपने परिवार के साथ रहता था. वह जौनसन एंड जौनसन कंपनी के हैदरपुर डिस्ट्रीब्यूटर के यहां सेल्समैन था. नितिन की संतनगर के ही रहने वाले सूरज और विक्की से अच्छी दोस्ती थी. तीनों दोस्त साथ खातेपीते थे.

एक बार नितिन को कुछ पैसों की जरूरत पड़ी तो उस ने विक्की से पैसे मांगे. दोस्त की जरूरत को समझते हुए विक्की ने उसे 10 हजार रुपए उधार दे दिए. कई बार पैसों की वजह से अपने नजदीकी संबंधों और यहां तक कि रिश्तेदारी तक में दरार पड़ जाती है. यही बात इन दोस्तों के बीच भी हुई. निर्धारित समय पर जब नितिन ने विक्की के पैसे नहीं लौटाए तो विक्की ने उस से तकाजा करना शुरू कर दिया. नितिन कोई न कोई बहाना बना कर उसे टालता रहा.

नितिन के बारबार किए जा रहे झूठे वादों से विक्की भी परेशान हो गया. 10 हजार की रकम कोई छोटीमोटी तो होती नहीं जो विक्की छोड़ देता. दोस्ती में भी कोई दरार न आए इसलिए वह उस से पैसे लौटाने को कहता रहा. बारबार पैसों का तकाजा करना नितिन को पसंद नहीं था. इस बात पर कभीकभी उन दोनों के बीच तकरार हो जाती थी.

15 अगस्त, 2015 की बात है. नितिन, विक्की और सूरज यमुना किनारे पार्टी करने गए थे. नितिन तो वापस आ गया लेकिन विक्की और सूरज नहीं आए. घर वालों ने पूछा तो नितिन ने बता दिया कि वे दोनों नदी में डूब गए. जवान बच्चों के डूबने की बात पर उन के घरों में हाहाकार मच गया. पुलिस को सूचना दी गई तो पुलिस ने गोताखोरों की मदद से सूरज और विक्की की लाशें बरामद करने की कोशिश की लेकिन उन की लाशों का पता तक नहीं चला. सूरज विक्की का ममेरा भाई था.

विक्की के भाई हैप्पी और सूरज के भाई पवन को नितिन पर शक था. उन का मानना था कि नितिन ने उधारी के पैसों से बचने के लिए दोनों को मार डाला. उन का कहना था कि नितिन ने विक्की और सूरज को शराब पिलाने के बाद गला घोंट कर हत्या कर दी होगी और उन की लाशें पत्थर के साथ बांध कर नदी में डाल दी होंगी.

दोनों ही आपराधिक प्रवृत्ति के थे. दोनों पर ही चोरी, लूट आदि के कई मुकदमे चल रहे थे. उन्होंने दिल्ली पुलिस की औपरेशन सेल से नितिन की शिकायत की थी. औपरेशन सेल ने इस मामले की जांच शुरू कर दी. शिकायत के लगभग एक साल बाद भी जब इस मामले में कोई नतीजा नहीं निकला तो पवन और हैप्पी को निराशा हुई. उन्होंने सोचा कि नितिन ने पुलिस से सांठगांठ कर के काररवाई दबवा दी है. वे नितिन को ही अपने भाइयों का कातिल मान रहे थे. उस के किए की वे उसे सजा दिलाना चाहते थे.

जब उन्हें लगा कि उसे कानूनी सजा नहीं मिल पाएगी तो उन्होंने खुद ही नितिन को सजा देने की ठान ली और सोच लिया कि जिस तरह उन के भाइयों की लाश आज तक नहीं मिल सकी है, उसी तरह नितिन की हत्या कर के लाश इस तरह से ठिकाने लगाएंगे कि उस के घर वाले ढूंढते ही रहें.

नितिन से उन दोनों की बोलचाल तक बंद हो चुकी थी, लेकिन अपना मकसद पूरा करने के लिए उस से नजदीकी संबंध बनाने जरूरी थे. इसलिए पवन और हैप्पी ने अपनी योजना के तहत उस से दोस्ती की. चूंकि नितिन भी शराब का शौकीन था इसलिए उस ने सारे गिलेशिकवे भुला कर हैप्पी और पवन से दोस्ती कर ली.

लेकिन हैप्पी और पवन के मन में तो कोई दूसरी ही खिचड़ी पक रही थी, जिस से नितिन अनभिज्ञ था. लेकिन इस से पहले नितिन पर अपना विश्वास जमाना जरूरी था ताकि काम आसानी से हो सके.

हैप्पी संतनगर की गली नंबर-18 में अपने परिवार के साथ रहता था जबकि उस का ममेरा भाई पवन गली नंबर-88 में अकेला रहता था. पवन दुकानों पर कौस्मेटिक सामान सप्लाई करता था. उस ने अपने कमरे के ताले की एक चाबी हैप्पी को दे रखी थी और एक खुद रखता था. कभीकभी वे नितिन के साथ इसी कमरे में दारू की पार्टी रखते थे.

हैप्पी नितिन को ठिकाने लगाने के तरहतरह के प्लान बनाता पर उसे मौका नहीं मिल पा रहा था. 30 मार्च, 2017 की शाम को हैप्पी अपनी सीबीजेड मोटरसाइकिल से आ रहा था, तभी संतनगर बसअड्डे पर उसे नितिन दिखाई दिया. दरअसल, ड्यूटी के बाद वह घर हो कर बाहर बाजार में आ गया था. नितिन को देखते ही उस ने उस से बात की और पार्टी करने के बहाने उसे गली नंबर-88 में पवन के कमरे पर ले गया. जाते समय हैप्पी ने शराब की बोतल खरीद ली थी. पवन के कमरे की एक चाबी उस के पास पहले से थी. लिहाजा ताला खोल कर हैप्पी और नितिन शराब पीने बैठ गए. हैप्पी ने सोच लिया था कि वह आज नितिन का काम तमाम कर के रहेगा.

लिहाजा उस दिन उस ने नितिन को खूब शराब पिलाई और खुद कम पी. उस की शराब में उस ने नशीली दवा भी मिला दी थी. नितिन जब शराब के नशे में चूर हो गया तभी हैप्पी ने उसे धक्का दे दिया. नितिन फर्श पर गिर गया. हैप्पी ने आव देखा न ताव चाकू से उस का गला रेत दिया. खून को उस ने एक कपड़े से पोंछ दिया तथा लाश चादर में लपेट कर बैड में छिपा दी और ताला लगा कर घूमने निकल गया.

पवन उस समय तक भी कमरे पर नहीं लौटा था. हैप्पी ने कुछ देर बाद पवन को फोन किया, ‘‘नितिन का मर्डर कर के मैं ने तो अपना इंतकाम पूरा कर लिया, तू भी आ जा.’’

थोड़ी देर बाद पवन कमरे पर लौटा तो उसी समय हैप्पी भी वहां पहुंच गया. हैप्पी ने बैड से नितिन की लाश बाहर निकाली. इस के बाद उन्होंने सब से पहले धड़ से सिर अलग किया. फिर उस की दोनों बाहों को कंधों से काट कर अलग किया. इस के बाद दोनों टांगों को भी काट दिया. पवन के दिल में भी नितिन के प्रति खुंदक भरी हुई थी. गुस्से में उस ने भी उस के चेहरे को चाकू से इस तरह गोद डाला कि उसे कोई पहचान तक न सके.

इस के बाद दोनों भाइयों ने उस की लाश के टुकड़ों को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. नितिन के कटे सिर को उन्होंने एक पौलीथिन में बांध लिया. फिर उसे तकिए के कवर में रख लिया. तकिए के उसी कवर में उन्होंने उस की दोनों भुजाओं को भी रख लिया. धड़ को उन्होंने एक चादर में लपेटा और प्लास्टिक की एक बोरी में डाल लिया.

हैप्पी अपनी वैगनआर कार नंबर एचआर-26एएस-3712 ले आया. रात एक बजे के करीब जब अधिकांश लोग गहरी नींद सो रहे थे, तभी हैप्पी और पवन ने नितिन की लाश के सभी टुकडे़ कार में रखे.

कार ले कर वे कश्मीरी गेट बसअड्डे की तरफ बाहरी रिंगरोड से चल दिए. गोपालपुर बिजलीघर के नजदीक कार रोक कर उन्होंने तकिए का कवर बाहर फेंक दिया. वहां से 100 मीटर चलने के बाद खून से सनी चादर सड़क के किनारे फेंक दी. वहीं पर कुछ और कपड़े फेंके. वहां से करीब 200 मीटर आगे सड़क के बाईं ओर को उन्होंने एक पैर फेंक दिया.

वहां से 200 मीटर और चल कर उन्होंने दूसरा पैर भी सड़क किनारे फेंक दिया. अब उन के पास केवल धड़ बचा था. धड़ वाली बोरी उन्होंने मजनूं का टीला गुरुद्वारे से लगे संजय अखाड़े के नजदीक फुटपाथ के किनारे रख दी.

लाश ठिकाने लगाने के बाद वे दोनों कमरे पर लौट आए. उन्होंने कमरे में जहांतहां लगा खून पोंछ दिया. कार की सीट पर भी खून के कुछ धब्बे लगे थे. वह भी साफ कर दिए. लेकिन किसी तरह बैड पर लगा खून का दाग रह गया, जिस से पुलिस उन तक पहुंच गई.

पवन से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 2 अप्रैल, 2017 को उसे तीसहजारी कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी पवन कुमार के समक्ष पेश कर के 3 दिनों की पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस की निशानदेही पर हत्या से संबंधित कुछ और सबूत जुटाए. फिर 4 अप्रैल को उसे फिर से न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. बाद में हैप्पी को पुलिस ने बिहार के नालंदा से गिरफ्तार कर लिया. अदालत में पेश कर के उसे भी जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

रिहाई: अनवार मियां के जाल में फंसी अजीजा का क्या हुआ?

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हवस: मर्यादा तोड़ने का खतरनाक अंजाम

जय प्रकाश दोपहर में अपनी दुकान से घर आ गया. उस ने तय कर लिया था कि आज वह हर हाल में अपनी बीवी सीमा और उस के चचेरे भाई मनोज के असली चेहरे बेनकाब कर के रहेगा.

आंगन का दरवाजा बंद था. चारदीवारी फांद कर जय प्रकाश अंदर गया. दबे पैर चल कर उस ने बैडरूम के दरवाजे पर कान लगाया, तो अंदर से उसे सीमा और मनोज की बातें सुनाई पड़ीं.

‘‘काश, तुम मेरी बीवी बन कर जिंदगीभर मेरे साथ रहतीं?’’ यह मनोज की आवाज थी.

‘‘बीवी तो मैं दूसरे की हूं, लेकिन प्रेमिका के नाते तुम्हारे साथ बीवी जैसा फर्ज तो अदा कर रही हूं,’’ सीमा बोल रही थी.

‘‘मैं तुम्हें जिंदगीभर के लिए पाना चाहता हूं,’’ मनोज ने कहा था.

‘‘ठीक है, अगर कभी मेरे पति को हमारे नाजायज रिश्ते की जानकारी हो गई और उसी ने मु?ो अपने साथ रखने से मना कर दिया, तो तुम मु?ो अपनी बीवी बना लेना.

‘‘मैं क्या अपनी खुशी से जय प्रकाश के साथ रह रही हूं. यह मैं ही जानती हूं कि मैं उस से कैसे निबाह रही हूं. यह मेरी बदकिस्मती थी कि लाख कोशिशों के बावजूद मेरी तुम से शादी नहीं हो सकी, नहीं तो मैं आज तुम्हारी ही बीवी होती. खैर, छोड़ो उन सब बातों को, अपने कपड़े तो उतारो.’’

जय प्रकाश सबकुछ सम?ा गया, मगर दरवाजे पर दस्तक देने से पहले वह अपनी आंखों से कमरे का नजारा देख कर यह पक्का कर लेना चाहता था कि उन दोनों में नाजायज रिश्ता है.

दरवाजे में कोई छेद नहीं था, इसलिए वह खिड़की की तरफ बढ़ गया. उस ने खिड़की के पाटों के बीच एक दरार में आंख लगा दी.

भीतर का नजारा देख कर जय प्रकाश हैरान था. सीमा बिस्तर पर लेटी थी. मनोज उस से सट कर बैठा था. वह सीमा के होंठों और गालों को चूम रहा था.

जय प्रकाश का खून खौल उठा. उस का मन सीमा का कत्ल कर के जेल चले जाने का हुआ, मगर उस ने यह सोच कर इस विचार को छोड़ दिया कि अगर वह जेल चला जाएगा, तो उस के 3 साल के बेटे रोहित की परवरिश कौन करेगा?

मगर जय प्रकाश सीमा और मनोज को यों ही नहीं छोड़ना चाहता था. वह उन्हें सबक सिखाना चाहता था, इसलिए उस ने दरवाजे पर दस्तक दी.

दस्तक सुन कर वे दोनों सचेत हो गए. अपने कपडे़ ठीक करते हुए सीमा बिस्तर से उठ कर आई और दरवाजा खोल दिया.

जैसे ही सीमा की नजर जय प्रकाश पर पड़ी, उस का हलक सूख गया.

सीमा को कुछ कहे बिना जय प्रकाश कमरे में आ गया और उस ने मनोज को ढूंढ़ निकाला. वह पलंग के नीचे छिप गया था.

सीमा को लातघूंसों से मारते हुए जय प्रकाश ने कहा, ‘‘बदजात औरत, तू ने तो कहा था कि मनोज तुम्हारा चचेरा भाई है. महल्ले के लोग यों ही तु?ो बदनाम करते हैं.

‘‘अब बता कि यह सब क्या है? भाई के साथ कमरा बंद कर के क्या कोई चोंच से चोंच मिलाता है?’’

सीमा ने ?ाट से जय प्रकाश के पैर पकड़ लिए और अपनी गलती के लिए माफी मांगते हुए कहा कि अब वह मनोज के साथ नाजायज संबंध नहीं रखेगी.

जय प्रकाश सीमा को एक मौका और देना चाहता था, इसलिए उस ने उसे इस शर्त पर माफ किया कि वह आइंदा मनोज से नहीं मिलेगी.

मनोज के जाने के कुछ देर बाद जय प्रकाश अपने मकान से बाहर आया, तो वहां लोगों की भीड़ लगी थी. लोग उसे ऐसे देख रहे थे, जैसे आज उन्हें पता चला हो कि उन के महल्ले में कोई नामर्द रहता है.

पड़ोस की एक औरत ने जय प्रकाश के मुंह पर कह भी दिया, ‘‘क्यों भैया, मर्द नहीं हो क्या? बीवी को दूसरे मर्द के साथ सोते देख कर भी उसे माफ कर दिया?’’

जय प्रकाश सिर ?ाका कर अपने रास्ते चला गया. भला वह उस औरत की बात का क्या जवाब देता? उसे कैसे बताता कि अपने बेटे का खयाल कर के उस ने अपनेआप से सम?ौता किया है.

सीमा मुजफ्फरपुर के एक गांव की रहने वाली थी. मनोज का घर भी उसी गांव में था. वह सीमा से एक साल बड़ा था, मगर दोनों ने बीए तक एकसाथ पढ़ाई की थी.

जवानी की दहलीज पर आते ही मनोज सीमा की तरफ खिंच गया और उसे अपना दिल दे दिया.

सीमा भी मनोज को मन ही मन प्यार करती थी. दोनों का मिलनाजुलना शुरू हो गया. एक दिन मौका मिला, तो दोनों ने जिस्मों का मिलन भी कर लिया.

कुछ महीनों के बाद उन दोनों ने शादी कर के जिंदगीभर साथ रहने का फैसला किया, मगर उन की एक न चली.

दोनों एक ही गांव के थे और अलगअलग जाति के भी. उन के घर वाले जाति की दीवार तोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए.

आखिरकार सीमा की शादी जय प्रकाश से कर दी गई. वह कोलकाता का रहने वाला था. वहां उस की कपड़े की दुकान थी.

सीमा अपने पति के घर आ गई. पति से भरपूर प्यार और सासससुर का दुलार पा कर भी वह मनोज को भुला न सकी. जब भी मौका मिलता, सीमा मनोज को फोन कर लेती.

मनोज भी सीमा से मिलने के लिए कम बेचैन नहीं था.

इसी तरह 6 महीने बीत गए. मनोज अपनेआप पर काबू न रख सका. फोन पर सीमा से इजाजत ले कर एक दिन वह कोलकाता पहुंच गया.

सीमा ने पति और सासससुर से मनोज की पहचान अपने चचेरे भाई के रूप में कराई, इसलिए उन दोनों के नाजायज रिश्ते पर किसी को शक नहीं हुआ. एकदूसरे की बांहों में समा कर वे दोनों अपनी हवस शांत कर लेते.

जल्दी ही मनोज के घर वालों को पता चल गया कि वह सीमा से मिलने बारबार कोलकाता जाता है, फिर तो मनोज के पिता ने जल्दी ही उस की शादी वीणा से करा दी.

वीणा सीमा से भी ज्यादा खूबसूरत थी. लेकिन मनोज उस के रूपजाल में ज्यादा दिनों तक बंधा न रह सका.

अपनी शादी के 4 महीने बाद ही मनोज कोलकाता जा कर सीमा से मिला. उस समय वह मां बन चुकी थी. उस के बेटे का नाम रोहित था. इस के बावजूद सीमा ने मनोज से नाजायज संबंध नहीं तोड़ा.

सीमा से मिलने बारबार कोलकाता न आना पड़े, इसलिए मनोज ने वहीं रहने का फैसला किया.

कुछ कोशिश के बाद मनोज को एक कंपनी में नौकरी मिल गई. उसे सीमा के घर से कुछ ही दूरी पर किराए का मकान भी मिल गया.

जय प्रकाश रोजाना घर से सुबह 10 बजे दुकान जाता था. वहां से लौट कर वह रात के 10 बजे घर आता था. इस बीच सीमा पूरी तरह आजाद रहती थी. उस का जब भी मन होता, वह मनोज को घर बुला लेती.

मनोज की आजादी पर अंकुश उस समय लगा, जब उस की पत्नी वीणा गांव से शहर आ गई. उस की एक साल की बच्ची थी.

जल्दी ही वीणा को मनोज और सीमा के नाजायज संबंध की सारी जानकारी हो गई. फिर तो उन दोनों में सीमा को ले कर ?ागड़ा होने लगा.

मनोज किसी भी हाल में सीमा से नाजायज संबंध तोड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ, तो एक दिन वीणा सीमा के घर गई.

उस ने सीमा को सम?ाने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

सीमा ने उसी दिन मनोज को बुला कर बताया. मनोज को वीणा पर बहुत गुस्सा आया. उस ने घर जा कर वीणा की खूब पिटाई की और यह चेतावनी दी कि अगर उस ने फिर कभी सीमा से कुछ कहा, तो वह उसे तलाक दे देगा.

वीणा को इस बात से इतना धक्का पहुंचा कि एक दिन वह गले में साड़ी का फंदा लगा कर पंखे से ?ाल गई. खुदकुशी करने से पहले उस ने अपनी बेटी को भी जहर दे कर मार डाला था.

पत्नी और बच्ची की मौत के बाद भी मनोज नहीं सुधरा. उस ने पहले की तरह सीमा से नाजायज संबंध बनाए रखा.

सीमा ने भी इस घटना से कोई सीख नहीं ली.

वीणा ने जब अपनी बेटी को मार कर खुदकुशी की थी, तभी जय प्रकाश को किसी ने मनोज और सीमा के नाजायज संबंध के बारे में सबकुछ बता दिया था.

जय प्रकाश सीधासादा था. वह मन में छलकपट नहीं रखता था. सो, एक दिन उस ने सीमा से पूछा, ‘‘क्या यह सच है कि मनोज से तुम्हारा नाजायज रिश्ता है? तुम दोनों की वजह से ही मनोज की पत्नी ने खुदकुशी की थी?’’

पहले तो सीमा घबरा गई, मगर तुरंत उस ने अपनेआप को संभाल लिया और बोली ‘‘यह आप क्या कह रहे हैं? महल्ले वालों की बातों में आ कर भाईबहन के पवित्र रिश्ते पर लांछन लगा रहे हैं? आप ही बताइए कि क्या मैं चरित्रहीन लगती हूं?’’ यह कह कर सीमा फफकफफक कर रोने लगी.

जय प्रकाश को उस की बात पर भरोसा हो गया और उस ने उसे यह कह कर चुप कराया कि अब वह उस पर शक नहीं करेगा.

इस के बाद 3 महीने और बीत गए. एक दिन जय प्रकाश के पड़ोस की मुंहबोली भाभी ने उसे मनोज और सीमा की सारी करतूतें बताते हुए कहा कि अगर उस ने जल्दी ही सीमा और मनोज के नाजायज संबंध को नहीं रोका, तो महल्ले के लोग उस की बीवी पर जिस्मफरोशी का आरोप लगा कर पुलिस के हवाले कर देंगे.

जय प्रकाश को अपनी मुंहबोली भाभी पर पूरा भरोसा था. उस ने मनोज और सीमा को रंगे हाथ पकड़ने का प्लान बना लिया.

अगले दिन ही जय प्रकाश दुकान से घर आया और उस ने सीमा को मनोज के साथ पकड़ लिया.

अपने बेटे का खयाल कर के जय प्रकाश ने सीमा को माफ कर दिया. मगर सीमा ने मनोज से नाजायज संबंध नहीं तोड़ा, वह सिर्फ सावधानी बरतने लगी.

2-3 महीने बाद जब सीमा को लगा कि महल्ले के लोग अब उस के पति के कान नहीं भरेंगे, तो उस ने फिर से मनोज को अपने घर बुलाना शुरू कर दिया.

एक दिन जय प्रकाश को एक काम से किसी रिश्तेदार के घर पटना जाना था. सीमा को 3 दिन बाद लौटने की बात कह कर वह चला गया, मगर उस की ट्रेन छूट गई और वह घर लौट आया.

उस समय शाम के 4 बज रहे थे. उस के घर के बाहर महल्ले के बहुत से लोग खड़े थे.

जय प्रकाश ने उस भीड़ में एक से पूछा, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘हम लोग यहां तमाशा देखने के लिए खड़े हैं. तुम अंदर जाओगे, तो खुद जान जाओगे कि यहां कैसा तमाशा हो रहा है.’’

जय प्रकाश उस शख्स की बात सम?ा नहीं पाया. वह चुपचाप आंगन में चला गया.

उस के बैडरूम का दरवाजा बंद था. पड़ोस में रहने वाला एक 16 साल का लड़का दरवाजे से आंख लगाए खड़ा था.

जय प्रकाश को गुस्सा आ गया.

उस ने लड़के का गरीबान पकड़ कर पूछा, ‘‘मेरे घर में ताक?ांक क्यों कर रहा है? चल, तेरे बाप को तेरी करतूत बताता हूं.’’

वह लड़का भी कोई कम नहीं था. उस ने तुरंत जवाब दिया, ‘‘मेरे बाप को बाद में बताना, पहले दरवाजा खुलवा कर अपनी बीवी से पूछ कि तेरे रहते वह गैरमर्द के साथ कमरा बंद कर के क्या कर रही है?’’

जय प्रकाश के हाथों के तोते उड़ गए. लड़के ने अपना गिरेबान छुड़ाया और अपनी राह चला गया.

जय प्रकाश ने गुस्से में दरवाजा पीटना शुरू कर दिया.

जय प्रकाश को देखते ही सीमा डर गई. वह कुछ सम?ा नहीं पाई कि ऐसी हालत में उसे क्या करना चाहिए.

लेकिन जय प्रकाश सम?ा गया था कि सीमा और मनोज के दिल में हवस का तूफान है. वे दोनों सम?ाने वालों में से नहीं हैं, इसलिए उस ने छुटकारा पाने के लिए उन का कत्ल कर देना ही ठीक सम?ा.

जय प्रकाश ने बरामदे में पड़ी लोहे की छड़ उठाई और सीमा के सिर पर एक जोरदार वार किया, जिस से उस का सिर फट गया और वह चीख कर जमीन पर गिर गई.

सीमा का हश्र देख कर मनोज ने वहां से भागने की कोशिश की, मगर जय प्रकाश ने उसे भागने नहीं दिया.

लोहे की उसी छड़ से उस ने मनोज के सिर पर कई वार किए. जो हश्र सीमा का हुआ, वही मनोज का भी हुआ. थोड़ी देर में दोनों की लाशें बिछ गईं.

सूचना पा कर पुलिस आई और जय प्रकाश को गिरफ्तार कर के ले गई. रोहित अनाथ हो गया.

रिहाई- भाग 3: अनवर मियां के जाल में फंसी अजीजा का क्या हुआ?

उस दिन खासतौर पर खाला बी ने शौहर के लिए बीवी के फर्ज का बयान करते हुए बताया कि इसलाम में शौहर को दूसरा दरजा दिया गया है. एक किस्सा सुनाते हुए यों बयान किया कि एक शौहर ने बीवी को पानी पिलाने का हुक्म दिया. बीवी के पानी लातेलाते शौहर को नींद आ गई. बीवी ने शौहर की नींद में खलल न डाल कर पूरी रात हाथ में पानी का गिलास लिए खड़ा रहना मुनासिब समझा. बीवी की खिदमत देख कर कुदरत ने उस को बेशकीमती इनाम दिया. यह सुन कर महिलाएं भावविभोर हो गईं. कुछ तो पल्लू से आंसू पोंछने लगीं.

बातबेबात, कसूरवार हों या न हों, आएदिन लातजूते, गालीगलौज खाने वाली औरतों ने भी शौहर की लंबी जिंदगी की दुआएं मांगीं और खुद को नेक बीवी बनाने की शपथ भी ली.

अजीजा की सुनहरी चूडि़यों की खनक में हलाला के जलालत भरे दौर से गुजरने का जरा सा भी मलाल नहीं था. कुरैशा ने हिकारत भरी निगाहों से अपनी बहन अजीजा पर उचटती नजर डाली और तमतमाया चेहरा लिए झटके से उठ कर कमरे से बाहर आ गई.

खाला बी 3 महीने बाद अपने छोटे बेटे की मंगनी के लड्डू ले कर अनवार मियां के घर पहुंचीं. घर में अजीब सा सन्नाटा खिंचा था. इतने बड़े घर में सिर्फ बैठकखाने में ही पीली रोशनी वाला एकमात्र बल्ब जल रहा था.

‘‘अम्मी कहां हैं?’’ खाला बी ने अजीजा की छोटी बेटी से पूछा.

‘‘जीजी, वे ललितपुर गई हैं फूफी के घर,’’ बेटी का खौफजदा चेहरा और आवाज की थरथराहट को खाला बी ने भांप लिया.

‘‘कब तक वापस लौटेंगी?’’

‘‘जी, कुछ पता नहीं है,’’ बेटी का स्वर हकला गया.

खाला बी को याद आ गया, एक बार अजीजा ने बताया था कि अनवार मियां और उन के बहनोई में पैसों को ले कर जबरदस्त झगड़ा हो गया था, इसलिए दोनों घरों में आनाजाना बिलकुल बंद है. फिर अचानक अजीजा का उन के घर जाना और घर में इतनी खामोशी. कुछ समझ में नहीं आया लेकिन जिंदगी

को नए सिरे से शुरू करने के मधुर एहसास को अजीजा के मुंह से सुनने की बेताबी खाला बी के अंतर्मन में कुलबुला रही थी. आखिर बचपन में मदरसे में अलिफ, बे, ते, से का सबक शुरू करने से ले कर बालों में चांदी चमकने तक का दोनों का पलपल साथ रहा. दोनों ने एकदूसरे से सुखदुख, प्यारमोहब्बत, अमीरीगरीबी के एहसासों को साथसाथ दिल खोल कर बांटा है.

‘‘बस दोचार दिन में वापस आ जाएंगी अम्मी,’’ अजीजा के बड़े बेटे ने छोटी बहन को आंखों ही आंखों में अंदर जाने का इशारा करते हुए तपाक से जवाब दिया.

‘‘अच्छाअच्छा, घर में और तो सब ठीक है न. मेरा मतलब अब्बूअम्मी के बीच अब कोई तकरार…’’ किसी के घर के अंदरूनी मामले की टोह लेने जैसा अपराधबोध खाला बी को छील गया.

‘‘जी, सब ठीक है,’’ बात को एक झटके में खत्म करने की कोशिश की बेटे ने.

‘‘शुक्र है कुदरत का. अच्छा, तो मैं चलती हूं. खुदाहाफिज,’’ कह कर इत्मीनान की सांस ले कर खाला बी सीढि़यों से उतरने लगीं तो जीने के नीचे के स्टोररूम का दरवाजा हिलता दिखाई दिया. खाला बी ने मोबाइल की रोशनी से देखा तो दरवाजे की सांकल में बड़ा सा ताला लटका दिखाई पड़ा. फिर अंदर से दरवाजा कौन हिला रहा है? कहीं कोई जानवर धोखे से बंद तो नहीं हो गया कमरे में. वापस मुड़ कर अजीजा के बच्चों को वे यह बताना ही चाहती थीं कि दरवाजे से मद्धिममद्धिम नारी स्वर में अपना नाम पुकारे जाने की आवाज सुनाई पड़ी. झट सीढि़यों से नीचे उतर कर स्टोररूम के दरवाजे पर कान रख कर सुनने लगीं. नारी स्वर फिर उभरा, ‘‘आपा बी, मैं अजीजा, मुझे बाहर निकालो,’’ अजीजा की सिसकियों भरी आवाज साफ सुनाई पड़ी.

ठीक उसी वक्त ऊपर से किसी के नीचे उतरने की आहट आने लगी. खाला बी काले नकाब और स्याह अंधेरे का फायदा उठा कर जीने की नीचे वाली दीवार से चिपक गईं सांस रोके हुए. धीरेधीरे अजीजा के बड़े बेटे के कदमों की आहट मेन गेट से बाहर चली गई तो खाला बी दबे कदमों से फिर स्टोररूम के दरवाजे की झिरी पर अपने कान रख कर सुनने लगीं :

‘‘आपा बी, मुझे 8 दिनों से इस कोठरी में बंद कर रखा है, भूखाप्यासा.’’

‘‘लेकिन क्यों?’’ खाला बी की बेचैनी बढ़ती चली गई और वे दम साधे सुनने लगीं.

‘‘लालची व दौलत के भूखे हैं मेरे शौहर और बेटे. मेरे नाम पर यह 10 कमरों का मकान है, 8 लाख की बीमा पौलिसी अगले महीने मैच्योर होने वाली है और 5 एकड़ आम के बगीचे वाली जमीन भी मेरे नाम पर है. केस हार जाने पर इन को मेरा खानाखर्चा, मेहर और दहेज वापस देना पड़ता और पूरी जायदाद पर सिर्फ मेरा हक होता. इन के सारे अधिकार खत्म हो जाते. सब कंगाल हो जाते. इसलिए मुझे बहलाफुसला कर दोबारा निकाह करने की साजिश रची गई. मुझ पर पूरी जायदाद अनवार मियां के नाम पर करने का दबाव डाला जा रहा है. मेरे इनकार करने पर मुझे जानवरों की तरह पीटा और यहां बंद कर दिया है.’’

‘‘क्या तुम्हारे बच्चों को ये सब मालूम है?’’ खाला बी ने फुसफुसा कर पूछा.

‘‘हां, बेटियों को छोड़ कर सभी बेटे इस षड्यंत्र में शामिल हैं. मुझे बहलानेफुसलाने और जज्बाती तौर पर धोखा देने में बेटों का पूरापूरा हाथ है और शौहर ने तो निकाह के बाद एक बार भी मुझ से बात नहीं की, यह कह कर कि मैं दूसरे की जूठन को खाना तो दूर देखना भी पसंद नहीं करता. आपा बी, मुझे इन शैतानों और निहायत गिरे हुए खुदगर्ज शौहर और बेटों से बचा लीजिए.’’

अजीजा की घुटीघुटी दम तोड़ती आवाज ने खाला बी को अंदर तक कंपकंपा दिया.

इतनी गंदी और भयानक सचाई ये नमाजीपरहेजगार अनवार मियां की शातिर दिमागी और ऐसी तुरुपचाल…अफसोस, चंद रुपयों और जायदाद के लिए पत्नी के साथ इतना बड़ा विश्वासघात और घिनौना अमानवीय व्यवहार?

अजीजा की कैदियों सी हालत देख कर खाला बी का कलेजा कांप गया, रोंगटे खड़े हो गए. बड़ी मुश्किल से खुद को संभालते हुए कांटे उगे गले से बोलीं, ‘‘अजीजा, किसी भी कागज पर किसी भी सूरत में दस्तखत मत करना. बस, चंद घंटे की इस काली रात को और काट लो, हिम्मत से. मैं जल्द ही तुम्हारी रिहाई का इंतजाम करती हूं. हौसला रखना, बहन,’’

खाला बी अनवार मियां के घर की बाउंड्री से चिपकती हुई धीरेधीरे मेनगेट से बाहर निकल गईं.

दूसरे दिन तड़के ही खाला बी की रिपोर्ट पर पुलिस ने अनवार मियां की कोठी से अजीजा को जख्मी और मरणासन्न हालत में बाहर निकाला. अजीजा के बयान पर पुलिस ने अनवार मियां और उन के बेटों को हथकड़ी डाल कर पैदल ही महल्ले की गलियों से ले जाते हुए पुलिस हवालात तक पहुंचा दिया.

पूरे 1 महीने बाद कुरैशा ने अजीजा के सामने अनवार मियां के खिलाफ किए जाने वाले केस के कागजात रख दिए. अजीजा दस्तखत करते हुए खाला बी और कुरैशा को भीगी आंखों से देखते हुए भर्राए गले से बस इतना ही बोल पाई, ‘‘मेरी रिहाई और मेरा आत्मसम्मान लौटाने का शुक्रिया.’’

रिहाई- भाग 2: अनवर मियां के जाल में फंसी अजीजा का क्या हुआ?

घर आ कर कुरैशा छत पर जा कर बैठ गई. अभी भी गुस्से से उस के चेहरे की मांसपेशियां तनी हुई थीं. अपनी ही बहन अजीजा के प्रति उस का मन कड़वाहट से भरा था.

अभी पिछले बरस तक तो अजीजा का भरापूरा खुशियों से लहलहाता घरपरिवार था. 4 बेटे और 2 बेटियों के साथ जिंदगी मजे से कट रही थी. खिदमतगुजार अजीजा शौहर को हाकिम समझती रही. उन की हां और ना पर ही घर के फैसले लिए जाते. बहस की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ती थी अजीजा कभी भी.

मगर दूसरी बेटी का रिश्ता एक धन्नासेठ के सजायाफ्ता बेटे से करने के फैसले को ले कर पतिपत्नी के बीच मनमुटाव हो गया. 22 साल की जिंदगी में पहली बार अनवार मियां ने अजीजा को अपने सामने मुंह खोल कर विरोध करते देखा. तिलमिला गए वह. मर्दाना गुरूर का सांप फन उठा कर खड़ा हो गया. 3-4 थप्पड़ जड़ दिए अजीजा के गाल पर. लेकिन बदन के निशान अजीजा को उस के फैसले से डिगा नहीं पाए. नतीजा तलाक, तलाक, तलाक. बरसों के रूहानी, जिस्मानी, सामाजिक और मजहबी रिश्ते की धज्जियां उड़ा दीं पुरुष प्रधान समाज के एक प्रतिनिधि ने अपने अहं को चूरचूर होते देख कर.

धार्मिक कानून को कट्टरता से मानते हुए अनवार मियां ने एक ही झटके में तिनकातिनका जोड़ कर घरगृहस्थी जमाने वाली, सुखदुख में बराबर शामिल रहने वाली अजीजा को घर से बेदखल कर दिया. उस दिन न आसमान कराहा, न जमीन सिसकी. सबकुछ वैसा ही चलता रहा जैसे मुसलमान औरत की यही नियति हो. तब कुरैशा ही रोतीबिलखती अजीजा की जिंदा लाश को कंधों का सहारा दे कर अपने घर ले गई थी.

महल्ले वालों व रिश्तेदारों ने सुना, लेकिन किसी ने भी सुलहसफाई की जरूरत नहीं समझी. एक तलाक का हथौड़ा और किरचियों में बदलते खुशहाल जिंदगी के शीशमहल से सपने. क्या गारंटी है रिश्तों के ताउम्र कायम रहने की? मतभेद का हलका सा जलजला आया और बहा ले गया बरसों की मेहनत के बाद खड़े किए गए आशियाने को. पानी उतरा तो दूरदूर तक, उस के अवशेष ढूंढ़ने पर भी न मिले. वक्त बहा ले गया रिश्तों की बुरादा हुई हड्डियों को.

अजीजा ने बचपन में मदरसे से उर्दू और अरबी का ज्ञान हासिल किया था. यही ज्ञान आड़े वक्त में उस के काम आया. महल्ले के बच्चों को ‘अलिफ बे पे’ पढ़ापढ़ा कर जीविका चलाने लगी.

अनवार मियां की जहालत और गुस्से की इंतेहा अखबार में पढ़ी गई, ‘तलाकनामे का हल्फिया बयान’.

‘‘अनवार मियां ने अजीजा के तलाक पर मजहबी मुहर भले ही लगा दी हो समाज के सामने, लेकिन कोर्ट का कानून अजीजा को उस के हक से महरूम न रखेगा. बहन के हक के लिए सुप्रीम कोर्ट तक लड़ूंगी,’’ सीना ठोंक कर बोली कुरैशा.

रऊफ बीड़ी वालों ने अपने अजीज दोस्त वकील का पता दे दिया और अजीजा की तरफ से खानाखर्चा, महर और दहेज वापस लेने का दावा ठोंक दिया गया अनवार मियां पर. महल्ले के इज्जतदार और हकपसंद लोगों ने पैसे से साथ दिया. 4 महीने गुजर गए, बेटों ने मां को पलट कर नहीं देखा. हां, बेटियां जरूर चोरीछिपे आ कर मां से मिल लिया करतीं.

उस दिन कचहरी में अजीजा के सामने पड़ गए अनवार मियां. दोनों हाथ जोड़ कर भीगे स्वर में बोले, ‘‘घर आप का है. आप ही मालकिन हैं. तलाक दे कर मैं पछतावे की आग में झुलस रहा हूं. गलती हो गई मुझ से. गुस्सा हराम होता है. आप मुझे माफ कर दीजिए. इस से पहले कि हमारा आशियाना वक्त और हालात की आंधी में नेस्तनाबूद हो जाए,’’ सुन कर अजीजा चुप रही.

केस की तारीखों पर अकसर जानबूझ कर अजीजा के सामने पड़ जाते अनवार मियां और हर बार गिड़गिड़ाते हुए नई पेशकश करते, ‘‘आप जैसा चाहेंगी वैसा ही होगा घर में. मैं औफिस, महल्ले और कोर्ट में सिर उठा कर चल नहीं पा रहा हूं. हर सवालिया निगाह मुझे भीतर तक छीले जा रही है. बिना मां के जवान बेटियों को कब तक संभाल सकूंगा मैं?’’

बरसों से जिस घर से अजीजा पलपल जुड़ी रही, उसे इतनी आसानी से कैसे भुला देती. बच्चों की ममता उसे बारबार खयालों में अपने घर की चौखट पर ला कर खड़ा कर देती. स्वार्थपरता से कोसों दूर भोली अजीजा अनवार मियां की तिकड़मी और चालाकी भरी बातों के पीछे छिपी चाल को समझ कर ताड़ने का विवेक कहां से लाती?

अनवार मियां पर किए गए केसों का फैसला नजदीक ही था कि एक रात अजीजा ने कुरैशा को अपना फैसला सुना कर उसे आसमान से जमीन पर गिरा दिया. कुरैशा के कानों में जहरीले सांप रेंगने लगे और वह सन्न खड़ी अजीजा के भावहीन चेहरे को एकटक देखती रह गई. कुरैशा भीतर तक मर्माहत हुई.

कुर्बान कसाई ने अनवार मियां से 50 हजार रुपए लिए थे अजीजा से निकाह कर के उसे अपने साथ एक रात सुलाने और दूसरे दिन तलाक देने के लिए. सिर्फ सिर पर एक छत की सुरक्षा और बच्चों के मोह में औरत को अपना जिस्म नुचवाना पड़े अनचाहे गैर मर्द से, यह शरीअत का कैसा कानून है? यह सोच कर कुरैशा के दिलोदिमाग में भट्ठियां सुलगने लगी थीं.

कुछ दिन बाद कुरैशा ने अनवार मियां के साथ रेशमी लिबास में लदीफंदी अजीजा को स्कूटर पर बैठ कर जाते देखा. कलेजा पकड़ कर बैठ गई, ‘‘या मेरे मालिक, क्या इसलाम में औरत को इतना कमजोर कर देने के लिए बराबरी का दरजा दिया है?’’

इस घटना के बाद, हर हफ्ते शुक्रवार के दिन महिलाओं की बैठकी में अजीजा का जिक्र किसी न किसी बहाने से निकल ही आता. नमाजरोजे की पाबंद, इसलामी कानून पर चलने वाली खाला बी ने अजीजा का हलाला के बाद अनवार मियां से दोबारा निकाह करने को नियति का फैसला करार दिया. अजीजा का यह मजबूत और सार्थक कदम मजहबपरस्ती की बेमिसाल सनद बन गया. लेकिन कुरैशा अंदर तक धधक गई. मर्दों के जुल्म को, औरतों के मौलिक अधिकारों का हनन करने वाली साजिशें करार देती रही और औरतों को अपने अधिकारों की जानकारी रखते हुए अपने अस्तित्व को पहचानने का मशवरा देती रही.

मजहबी कानूनों की अधकचरी जानकारी रखने वाली कट्टरपंथी खाला बी और आधुनिक विचारों वाली कुरैशा के बीच अकसर बहस छिड़ जाती और बुरकों का लबादा ओढ़े मुसलिम औरतें खाला बी के बयानों से प्रभावित होतीं व कुरैशा को मजहब के प्रति बागी और नाफरमान घोषित कर देतीं.

उस दिन हाथों में कुहनी तक मेहंदी रचाए, आंखों में सुरमा डाले, इत्र में सराबोर, मुसकान भरा चेहरा लिए अजीजा महिला सम्मेलन में आई तो वहां पर मौजूद सभी औरतों की हैरत भरी निगाहें उस पर टिक गईं. रेशमी कपड़ों की सरसराहट, बारबार सिर से ढलक जाता कामदार शिफौन का दुपट्टा, भीनीभीनी उठती इत्र की खुशबू ने अजीजा की मौजूदगी को कुछ लमहों के लिए मजहबीरूहानी एहसास को दुनियाबी, भौतिकवादी, ऐशोआरामतलबी के जज्बे से भर दिया.

रिहाई- भाग 1: अनवार मियां के जाल में फंसी अजीजा का क्या हुआ?

‘‘अस्सलाम अलैकुम,’’ कुरैशा ने नकाब उठा कर सलाम किया.

‘‘वालेकुम अस्सलाम,’’ कमरे में मौजूद कई औरतों ने एकसाथ जवाब दिया. वहां धार्मिक ज्ञान के आदानप्रदान के लिए औरतों की एक बैठकी होनी थी.

‘‘अजीजा नहीं आई?’’ खाला बी ने छूटते ही पूछा. सुन कर कुरैशा का चेहरा तमतमा गया. गुस्से से कुछ कहना चाहती थी लेकिन कमरे में बैठी 20-25 औरतों के चलते उस ने सख्ती से होंठ भींच कर चुप्पी साध ली.

इत्र और अगरबत्ती की खुशबू ने महिलाओं के नकाबों से उठती पसीने की बदबू को कुछ हद तक दबा दिया था.

महल्ले में सब से ज्यादा धार्मिक जानकारी रखने वाली खाला बी ने कुदरत की तारीफ करने के साथ बैठकी की शुरुआत की. रोजा व नमाज हर मर्द और औरत का फर्ज है, यह बता कर पाबंदी से उस की अदायगी के तरीके समझाए. कब और किन परिस्थितियों में औरत को नमाज नहीं पढ़नी है, यह भी बताया. किसी की बुराई करने, किसी का अधिकार छीनने पर कुदरत की मार पड़ने की जानकारी देते हुए वे देर तक मजहबी बातें बताती रहीं.

दोपहर और शाम के बीच की नमाज की अजान होते ही महिलाएं नमाज पढ़ने लगीं. उस के बाद खाला बी की तलाकशुदा बेटी ट्रे में चाय के कप ले कर हाजिर हो गई. बहुत देर से जबान बंद रखने की सजा पर सब्र किए बैठी, हमेशा बोलते रहने वाली कुदरत खाला ने बारबार फिसलते दुपट्टे को सिर पर ठीक से रखते हुए कुरैशा से पूछ ही लिया, ‘‘आप की बहन अजीजा दिखाई नहीं देती, तबीयत खराब है क्या? वह तो कभी गैरहाजिर नहीं रहती?’’

बारबार अपनी बड़ी बहन अजीजा के बारे में पूछे जाने पर कुरैशा की आंखों से चिनगारियां फूटने लगीं, तभी खाला बी बोल पड़ीं, ‘‘अल्लाह जाने, हमारे छोटे बेटे इदरीस मियां बता रहे थे कि अजीजा कल अपने शौहर अनवार मियां के साथ तांगे पर बैठ कर कहीं जा रही थी.’’

सुनते ही हलीमा खाला झनझना गईं, ‘‘तौबातौबा, जिस शौहर ने 6 महीने पहले तलाक दे कर घर से बेघर कर दिया, उसी के साथ फिर मिलनाजुलना? छीछीछी, गुनाह है गुनाह.’’

‘‘मौलाना साहब बता रहे थे कि अजीजा को तलाक दे कर अनवार मियां बहुत दुखी और शर्मिंदा हैं. अपनी बिखरी जिंदगी को फिर से संवारने के लिए…’’ कुरैशा की तरफ गहरी नजर डालते हुए बोलतेबोलते बीच में रुक गईं मौलाना साहब की बीवी.

‘‘हांहां, बताइए न, क्या चाह रहे हैं अनवार मियां? क्या बतला रहे थे मौलाना साहब?’’ नसरीन आपा की चटपटी खबर को जानने की उत्सुकता छिपाए न छिपी.

‘‘तो क्या अनवार मियां दोबारा अजीजा से निकाह करना चाहते हैं?’’ बहुत देर से चुप बैठी बिलकीस फूफी ने पान का बीड़ा मुंह में डालते हुए गंभीरता से पूछा.

मौलाना साहब की बीवी कुरता उठा कर अपने बच्चे को दूध पिलाती हुई बोलीं, ‘‘महल्ले में तो यही खबर गरम है.’’

‘‘जी, मैं ने भी कुछ ऐसा ही सुना है. फरहान के अब्बू बतला रहे थे कि अनवार मियां अपने दोस्त कुरबान कसाई से अजीजा का निकाह करवा कर दूसरे ही दिन तलाक करवा कर खुद अजीजा के साथ दोबारा निकाह कर लेंगे,’’ इशाक साइकिल वाले की बीवी ने जानकारी दी.

‘‘हलाला यानी कि  तलाक के बाद उसी औरत से दोबारा निकाह करना चाहते हैं अनवार मियां,’’ तभी हुसैना फूफी ऐसी बेफिक्री से बोलीं जैसे हलाला सिर्फ एक धार्मिक रस्म की अदायगी भर है.

‘‘तो क्या अजीजा भी अनवार मियां से दोबारा निकाह करने के लिए तैयार है?’’ सईद ठेकेदार की पत्नी ने कुरैशा की तरफ व्यंग्यात्मक नजर डालते हुए पूछा.

‘‘अगर न होती तो जाती ही क्यों तलाक देने वाले शौहर के साथ,’’ एक महिला ने कहा.

कुरैशा को लगा कि एक करारा थप्पड़ जड़ दिया किसी ने उस के गाल पर.

‘क्या हो गया अजीजा को? क्यों सरेआम अपनी और मेरी बेइज्जती करवा कर अपने ही हाथों अपनी खिल्ली उड़वा रही है,’ सोचती हुई बड़ी बहन के प्रति घृणा से भर गई कुरैशा.

‘‘बराबर के 6 बच्चों के सामने अजीजा के शौहर ने उसे तलाक दिया. कितनी बदनामी हुई समाज में, कितनी जिल्लत उठानी पड़ी. अब रहीसही इज्जत भी हलाला के तहत उसी शौहर से दोबारा निकाह करने पर मिट्टी में मिल जाएगी,’’ हिफाजत तांगे वाले की अम्मा ने चिंता जताई.

‘‘इस में इज्जत जाने वाली क्या बात है? दरअसल, यह शौहर को अपनी गलती पर पछतावा कर के फिर से नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करने का एक मौका है,’’ इकबाल टायर वाले की बीवी ने कहा.

‘‘अपनी गलती की सजा शौहर को खुद भुगतनी चाहिए, न कि दूसरे मर्द के पास बीवी को भेज कर जिंदगी भर अपनी ही नजर में गिर कर जलील होने की सजा देनी चाहिए?’’ कुरैशा भड़क उठी.

‘‘कुरैशा, जब हमारा मजहब ही मुसलमान मर्दों को अपनी गलती सुधारने का मौका देता है तो किसी को भला क्यों एतराज होगा,’’ खाला बी की दलीलों में इसलामी कानून का जिक्र आते ही सारी औरतें चुप हो गईं.

 

मजहब के इस कानून को औरतजात का शारीरिक व मानसिक शोषण मानने वाली आधुनिक सोच रखने वाली कुरैशा ने पूरी ताकत से अपनी आवाज बुलंद की, ‘‘बहनो, जरा सोचिए, छोटी सी बात को ले कर मर्द ने औरत को तलाक दे कर समाज की नजर से गिरा दिया, फिर औरत को ही अपने शौहर को दोबारा हासिल करने के लिए एक रात दूसरे मर्द के साथ जिस्मानी रिश्ते से गुजरना पड़े तो क्या यह औरतजात के डूब मरने के लिए काफी नहीं है?

मैं कहती हूं, यह जुल्म है, इंसानियत के नाम पर धब्बा है, मानवाधिकारों का हनन है, औरत के स्वाभिमान को कुचलने की साजिश है. कोई भी औरत कभी भी ऐसी शर्तों को मानने के लिए न तो दिल से तैयार होती है न ही जिस्मानी तौर पर,’’ गुस्से की उत्तेजना से कुरैशा का सांवला रंग तांबई हो गया.

‘‘लेकिन कुरैशा, मजहब के कानून में अगरमगर या बहस और शक की कोई गुंजाइश नहीं होती. इसलामी कायदेकानून में सूत बराबर भी फेरबदल करने वाला शख्स मुसलमान होने की शर्त से ही खारिज कर दिया जाता है,’’ खाला बी ने समझाने की कोशिश की.

‘‘लेकिन औरतें इस जलील समझौते के लिए तैयार क्यों हो जाती हैं? मेरी समझ में नहीं आता. क्या औरत की अपनी कोई इज्जत नहीं? उस की अपनी राय और फैसले की कोई अहमियत नहीं? क्या उस का जमीर खुद उसे झकझोरता नहीं कि वह अपने ही शौहर को हासिल करने के लिए दूसरे मर्द की बांहों में जाने के लिए मजबूर हो? भले ही एक रात के लिए. अपनी पाकीजगी पर धब्बे लगा कर औरतजात के पैदा होने को ही उस की बदनसीबी साबित कर दे.

‘‘पता नहीं अनवार मियां ने सीधीसादी, अनपढ़ अजीजा को ऐसी क्या उलटीसीधी पट्टी पढ़ा दी है कि वह उन के साथ दोबारा निकाह करने के लिए तैयार हो गई…बेवकूफ, बुजदिल कहीं की,’’ कुरैशा के अंदर का सुलगता ज्वालामुखी फट पड़ा, जिस की तपन में महफिल झुलस गई.

बिचौलिए: क्यों मिला वंदना को धोखा

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