बेफिक्र होकर उठाएं Masturbation का लुत्फ

के के अग्रवाल देश के जाने माने डाक्टर हैं जिन्हे अपनी काबिलियत के लिए कई दूसरे पुरुस्कारों और सम्मान के साथ  सरकार से पद्म श्री जैसा पुरुस्कार भी मिल चुका है . दिल के रोगों के माहिर ये डाक्टर साहब सेक्स से ताल्लुक रखते मसलों पर भी बेबाकी से अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं . देश के वे पहले नामी डाक्टर हैं जो मास्टरवेशन यानि हस्तमैथुन पर खुलकर बोलते लोगों की कई गलतफहमियाँ दूर करते हैं . उनकी मानें तो हस्तमैथुन कतई सेहत के लिए नुकसानदेह नहीं है बल्कि फायदेमंद है .

हस्तमैथुन को लेकर कई गलतफहमियाँ फैली हुई हैं , बेहतर तो यह कहना होगा कि जानबूझकर फैलाई जाती हैं जिससे लोग इसका लुत्फ न ले सकें .  जबकि सेक्स सुख लेने का यह इकलौता बेहतर और महफूज रास्ता है जिसमें किसी पार्टनर की मोहताजी नहीं रह जाती . मेडिकल साइंस में यह बात ज़ोर देकर कही और मानी जाती है कि एक दो या चार पाँच नहीं बल्कि 99 फीसदी लोग हस्तमैथुन करते हैं . खासतौर से कुँवारे लड़के लड़कियां तो सेक्स की अपनी इच्छा इसी से पूरी करते हैं . हालांकि दिलचस्प सच यह भी है कि कई शादीशुदा लोग भी हस्तमैथुन करते हैं क्योंकि उन्हें हमबिस्तरी से पूरा और मनमाफिक मजा नहीं मिलता.

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यह कोई बीमारी नहीं है बल्कि एक आम बात है लेकिन सच यह भी है कि सही जानकारियाँ न होने से अधिकतर लोग हस्तमैथुन को लेकर वेबजह के तनाव में रहते हैं और खुद को कमजोर और कभी कभी तो नामर्द तक समझने की गलती कर बैठते हैं . ऐसा महज इसलिए कि इनके दिमाग में यह बात ठूंस ठूंस कर भर दी गई है कि हस्तमैथुन बुरी बात है और इसके जरिये जो वीर्य बेकार निकल जाता है वह बड़ी मुश्किल से बनता है इसकी एक बूंद की कीमत ही करोड़ों रु होती है . इस बाबत वेबकूफी भरी बात यह फैला दी गई है कि एक बूंद वीर्य बनने सैकड़ों किलो अन्न लगता है जिससे खून और उस खून से एक तरह का रस और फिर उससे वीर्य बनता है .

गलतफहमी यह भी बड़े पैमाने पर पसरी है कि जो वीर्य को हस्तमैथुन के जरिये जाया कर देता है उसकी ज़िंदगी के कोई माने नहीं रह जाते उसके चेहरे पर रौनक नहीं रह जाती और उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है . धार्मिक किताबों में इस वीर्य का बखान इतने भयानक तरीके से किया गया है कि अच्छे अच्छे इसे पढ़कर दहल जाएँ लेकिन हकीकत एकदम उलट है .

जानें सच – हकीकत यह है कि वीर्य शरीर में लगातार बनते रहने बाला एक खास किस्म का केमिकल है जो बनता तभी है जब शरीर और दिमाग में सेक्स की उत्तेजना चरम पर होती है हर कोई इसे महसूसता भी है . यानि वीर्य शरीर के अंदर स्टाक में नहीं रहता है और न ही उत्तेजना होने पर इसका निकलना रोका जा सकता .  इस के निकलने से ही सेक्स सुख मिलता है फिर चाहे वह हमबिस्तरी से मिले या हस्तमैथुन से इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता . आमतौर पर मर्दों में 12 – 13 साल की उम्र में सेक्स उत्तेजना आने लगती है जिसे शांत या पूरी करने वे हस्तमैथुन करते हैं .

गड़बड़ यहीं से शुरू होती है क्योंकि जवान होते लड़के लड़कियों के दिमाग में यह बात पहले से ही भरी होती है कि हस्त मैथुन गलत है , पाप है . ये बातें वे ठीक उसी तरह सीखते हैं जैसे यह कि भगवान है और उसके पूजा पाठ से ही मनचाहे फल मिलते हैं . फर्क इतना है कि हस्तमैथुन के बारे में जानकारियाँ उन्हें इधर उधर से नीम हकीमों के इश्तिहारों और यार दोस्तों से मिलती हैं.

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जब जवान होते लड़के किसी इश्तहार में यह पढ़ते हैं कि बचपन के कुसंग की वजह से नामर्दी या  कमजोरी आ गई हो , थकान महसूस होती हो , शीघ्रपतन हो जाता हो , स्वप्न दोष हो तो घबराएँ नहीं शीघ्र हमसे मिलें और मर्दाना ताकत पाएँ तो वे घबरा उठते हैं और उन्हें यह वहम और गलतफहमी हो जाती है कि वे हस्तमैथुन करने के चलते बच्चा पैदा करना तो बाद की बात है औरत को सेक्स सुख नहीं दे पाएंगे . ऐसा इसलिए और भी होता है कि हमारे यहाँ सेक्स एज्यूकेशन यानि तालीम के कोई इंतजाम नहीं हैं . गलत जानकारियाँ कैसे ज़िंदगी दुश्वार कर देती हैं इसके बारे में भोपाल के नजदीक सीहोर के एक दुकानदार के उदाहरण से समझा जा सकता है .

40 साला इस दुकानदार के मुताबिक वह 15 साल की उम्र से ही हस्तमैथुन कर रहा था 25 का होते होते जब शादी की बात चली तो वह घबरा उठा कि कैसे बीबी को संतुष्ट करेगा इसलिए वह शादी से कतराने लगा . एक दिन उसने शहर के कोतवाली चौराहे पर एक खानदानी हकीम को तम्बू गड़ाए देखा तो अपनी परेशानी लेकर उसके पास जा पहुंचा . हकीम साहब तो बैठे ही ऐसे मुर्गों के लिए थे .  उन्होने पहले तो उसे डराया फिर 40 रु लेकर कुछ पुड़ियेँ थमा दीं कि रात को सोते वक्त दूध के साथ खाते रहना आठ दिन में ही घोड़े को भी मात कर दोगे .

सोते वक्त  दुकानदार ने हिदायत के मुताबिक दवा दूध से खा ली लेकिन आधी रात को उसके पेट में इतना भयंकर दर्द उठा कि उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती करना पड़ा . डाक्टर ने खान पान के बारे में पूछताछ की तो घबराए दुकानदार ने तुरंत सच उगल दिया . 2 दिन बाद अस्पताल से छुट्टी हुई तो अकेले में उसके चाचा ने उसे समझाया कि हस्तमैथुन से ऐसा कुछ नहीं होता जिसे सोचकर वह घबरा गया था . फिर उन्होने सेक्स से ताल्लुक रखती कई अहम बातें उसे समझाईं तो उसका डर जाता रहा . अब यह दुकानदार 2 बच्चों का बाप है और बिना किसी खानदानी हकीम की दवा खाए इस उम्र में भी पलंग तोड़ सेक्स करता है और नौजवानों को मेसेज देता है कि वे नीम हकीमी के चक्कर में वक्त और पैसा जाया न करें हस्तमैथुन से न तो कमजोरी आती और न ही ज़िंदगी बर्बाद होती .

नुकसान कुछ नहीं फायदे कई – माहिरों की मानें तो हस्तमैथुन से कोई नुकसान नहीं होता उल्टे फायदे कई होते हैं मसलन इससे मूड फ्रेश होता है और जिस्म सहित अंग की भी कसरत हो जाती है . जानकर हैरानी होना कुदरती बात है कि इससे तनाव भी दूर होता है .  कई रिचर्स में चौका देने बाली ये बातें भी उजागर हुई है कि सेक्स की इच्छा होने पर हस्तमैथुन कर लेने से लोग सेक्स रोगों के जोखिम से बचे रहते हैं और स्वप्न दोष भी नहीं होता अलावा इसके अच्छी नींद भी आती है .

डाक्टर के के अग्रवाल पूरे भरोसे से ज़ोर देकर कहते हैं कि मेडिकल साइंस हस्तमैथुन को गलत या नुकसानदेह नहीं मानती और न ही इसका शरीर की ताकत और मर्दानगी से कुछ लेना देना यह एक कुदरती बात है . इससे एनर्जी कम नहीं होती बल्कि बढ़ती है . भोपाल के नामी  मनोविज्ञानी यानि दिमागी बीमारियों के माहिर डाक्टर विनय मिश्रा तो यह तक कहते हैं कि अगर सेक्स इच्छाओं को जरूरत से ज्यादा दबाया जाये तो जरूर दिमागी बीमारियों का खतरा बनने लगता है . इसलिए जरूरत पड़ने पर हस्तमैथुन करना हर्ज की बात नहीं .

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एहतियात रखें – एक पुरानी कहावत है कि अति सर्वत्र वर्जयते यानि अति हर जगह नुकसान करती है फिर वह चाहे अच्छे खाने पीने की ही क्यों न हो . हस्तमैथुन पर भी यह बात  लागू होती है . आमतौर पर माहिर यह मानते हैं कि हफ्ते में 3-4 दिन हस्तमैथुन किया जा सकता है . इसके अलावा ये एहतियात भी बरतना चाहिए –

1 – अंग को पूरा उत्तेजित होने पर ही हस्तमैथुन करना चाहिए .

2 – कमरे या बाथरूम बगैरह जहां भी करें दरवाजा अच्छे से बंद कर लेना चाहिए .

3 – ज्यादा ज़ोर से नहीं करना चाहिए इससे अंग को नुकसान हो सकता है .

4 – वीर्य को पोंछने साफ कपड़े या टिसु पेपर का इस्तेमाल करना चाहिए .

5 – एक दिन में बार बार हस्तमैथुन नहीं करना चाहिए .

6 – अगर इसके लिए किसी सेक्स टोय का इस्तेमाल कर रहे हैं तो उसे अच्छे से साफ करना चाहिए खासतौर से उन लड़कियों को जो नकली अंग का इस्तेमाल करती हैं .

और आखिरी बात जो हमेशा जेहन में रखनी चाहिए वह यह कि हस्तमैथुन कतई नुकसानदेह नहीं है इसे आत्मनिर्भरता भी कहा और समझा जा सकता है .

Dr Ak Jain: नामर्द नहीं हैं बांझ पुरुष, जानें उपाय

चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि देश में लगभग 4 करोड़ पुरुषों के बांझ होने का अनुमान है. संतान सुख से वंचित जोड़ों के पुरुष सदस्य शर्म के मारे इलाज के लिए आगे नहीं आते और अपनी निर्दोष पत्नियों को जीवन भर बांझ होने का उलाहना सुनने के लिए बाध्य कर देते हैं  यह जरूरी नहीं है कि जो पुरुष बांझ हो वह नपुंसक भी हो. किसी व्यक्ति का नपुंसक होना और बांझ होना 2 अलगअलग बातें हैं. संभोग न कर पाना नपुंसकता है, लेकिन संभोग शक्ति होते हुए भी स्त्री को गर्भवती न कर पाना बांझपन कहलाता है. कई व्यक्ति, जो ऊपर से स्वस्थ, हृष्टपुष्ट होते हैं और सफल संभोग करते हैं, वे भी संतान सुख से वंचित रहते हैं.

पुरुषों में बांझपन कई कारणों से हो सकता है. कई बार एकसाथ अनेक कारण मिल कर पुरुषों को बांझ कर देते हैं, तो कई बार एक ही कारण इतना सशक्त होता है कि पुरुष बांझ रह जाता है. पुरुषों में बांझपन का सब से बड़ा कारण वीर्य दोष होता है. यदि पुरुष स्वस्थ है तो वीर्य की 15 बूंदों में ही साढ़े 7 करोड़ शुक्राणु होने चाहिए. इन में अधिकांश शुक्राणु स्वस्थ और सक्रिय होने आवश्यक हैं. यदि इन शुक्राणुओं में अधिकांश अस्वस्थ या निष्क्रिय होंगे तो गर्भधारण नहीं होगा.

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शुक्राणु कमजोर होने की वजह से पुरुष अपनी पत्नी को गर्भवती करने में असमर्थ रहते हैं. पुरुषों में बांझपन का सब से बड़ा कारण वीर्य दोष ही होता है.

वीर्य दोष के कई कारण हो सकते हैं जैसे आहारविहार, चोट, मानसिक परेशानी, गलसुआ, बेरिकोसील और एक्सरे के कुप्रभाव की वजह से पुरुष का वीर्य दूषित हो जाता है और वह प्रजनन करने लायक नहीं रह जाता. कई बार यह भी होता है कि शुक्राणु निर्माण की प्रक्रिया बराबर चल रही होती है, लेकिन वीर्य में वे अनुपस्थित रहते हैं तो इस का मतलब यह है कि शुक्राणुओं के वीर्य में मिलने के मार्ग में कहीं अवरोध है. इस अवरोध को आपरेशन द्वारा ठीक कराया जा सकता है.

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मानसिक नपुंसकता

पुरुषों में बांझपन का एक कारण उन का नपुंसक होना भी हो सकता है. शारीरिक संरचना में कोई जन्मजात विकार हो तो व्यक्ति संबंध बनाने में सफल नहीं हो पाता. कई बार मानसिक नपुंसकता की वजह से भी वह बांझ रहता है. मानसिक नपुंसकता की वजह से वह संभोग ही नहीं कर पाता है और हर बार वह असफल रहता है. मानसिक नपुंसकता 2 प्रकार की हो सकती है. एक तो यह कि समय पर अंग उत्तेजित ही न हो, इस वजह से संभोग ही न कर पाए. दूसरी स्थिति में जैसेतैसे उत्तेजित तो हो जाता है, लेकिन संबंध बनाने से पूर्व ही वीर्य स्खलित हो जाता है. शीघ्रपतन भी बांझपन का एक कारण बनता है, क्योंकि इस में संबंध बनाने के प्रयास में ही वीर्यपात हो जाता है और ऐसे में शुक्राणु व अंडाणु का संपर्क ही नहीं हो पाता है.

कई बार तो यह भी देखा गया है कि पतिपत्नी दोनों संतानोत्पात्त के लिए पूर्णत: योग्य होते हैं और किसी में कोई दोष नहीं होता, फिर भी बच्चा नहीं होता. इस का सब से बड़ा कारण है कि वे सही समय पर संबंध नहीं बनाते. यह एक संयोग हो सकता है कि जब वे संबंध बनाते हों, उस समय स्त्री के अंडाणु नहीं बनते हों. मानसिक स्थिति और संबंध बनाने के बीच बड़ा नाजुक संबंध है. यदि आप किसी चिंता या तनाव को पालें अथवा व्यग्र या भयग्रस्त हो कर संबंध बनाएंगे, तो स्त्री को गर्भ ठहरना मुशकिल होगा.

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अत्यधिक तनाव

तंबाकू और सिगरेट के अत्यधिक सेवन से वीर्य में शुक्राणुओं की बनावट और संख्या पर दुष्प्रभाव से पुरुषों में बांझपन का खतरा बढ़ा है. पुरुष जननेंद्रिय को गरम कर देने वाले वातावरण में काम करने से भी पुरुष बांझ हो सकता है. यही कारण है कि जिन कारखानों में भट्टियों, जहरीले रसायन तथा एक्सरे जैसी किरणों का प्रयोग होता है, वहां के श्रमिकों के बांझ होने के आसार ज्यादा रहते हैं. लगातार नाइलोन का जांघिया पहनने से भी पुरुष बांझ हो सकते हैं. कई मामलों में पाया गया है कि घर और बाहर के झंझटों से महिलाएं और पुरुष इतने तनावग्रस्त रहते हैं कि शारीरिक क्षमताओं के बावजूद बेमेल मानसिक दशाओं के कारण गर्भधारण नहीं हो पाता. परीक्षणों से यह सिद्ध हुआ है कि ऐसे तनावग्रस्त दंपतियों को यदि एक माह घर से दूर खुशनुमा माहौल में रखा जाए, तो उन्हें संतान प्राप्त हो सकती है.

मधुमेह से भी पुरुषों में बांझपन आ सकता है. इसी प्रकार थायराइड जैसी बीमारी भी पुरुष बांझपन का कारण बन सकती है. जन्मजात शारीरिक नपुंसकता के लिए पुरुषों को चाहिए कि वे किसी कुशल चिकित्सक को बताएं. आजकल चिकित्सा विज्ञान काफी उन्नत है और आपरेशनों के जरिए जन्मजात विकृतियों को ठीक भी किया जा सकता है.

सफल संभोग जरूरी

मानसिक नपुंसकता केवल मनोवैज्ञानिक बीमारी है. शरीर स्वस्थ हो, लेकिन मन अशांत हो तो बात नहीं बन सकती. सफल संभोग के लिए शरीर एवं मन दोनों से व्यक्ति को स्वस्थ एवं प्रसन्न होना चाहिए. तभी वह कुछ कर सकता है. अत: अपने मन से पूर्व अनुभव को त्याग कर पूर्ण आत्मविश्वास के साथ संबंध बनाना चाहिए. फिर देखिए, सारी नपुंसकता छूमंतर. जब भी संबंध बनाएं, दोनों प्रसन्नचित्त हो कर और सारी चिंताओं से मुक्त हो कर भयरहित वातावरण में बनाएं. हो सकता है बात बन जाए. पुरुषों में नपुंसकता और बांझपन दूर करने और संतानसुख का शर्तिया दावा करने वाले अनेक बोगस किंतु आकर्षक विज्ञापन अखबारों में छपते हैं और दीवारों पर पोस्टर के रूप में भी लगते हैं. ये नीमहकीम आप का धन लूटते हैं. यदि आप में कोई कमजोरी है तो किसी योग्य, कुशल एवं अनुभवी चिकित्सक से परीक्षण एवं उपचार कराना चाहिए.

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वीर्य को पुष्ट बनाने तथा शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने के लिए कुछ समय के लिए उपचार किया जाता है. इन से शुक्राणु स्वस्थ व गतिशील हो जाते हैं तथा उन की संख्या बढ़ जाती है और वे गर्भधारण कराने में सक्षम हो जाते हैं.

टोनेटोटकों से परहेज

एक बात और जादूटोने से बांझपन दूर नहीं होता. कितने ही टोटके कर लिए जाएं, जब तक पतिपत्नी दोनों पूरी तरह सामान्य नहीं होते, संतान नहीं हो सकती. इसी प्रकार यज्ञ, हवन, व्रत, उपवास और सूर्य उपासना आदि से संतान नहीं हो सकती. यदि कोई खराबी है तो वह उचित उपचार से ही दूर हो सकती है. यदि व्रत और सूर्य उपासना से संतान होती तो आज विश्व में सभी औलाद वाले होते. यदि किसी दंपती को संभोगरत रहने के बावजूद संतान सुख नहीं मिल पा रहा है, तो सब से पहले पुरुष को अपनी जांच करानी चाहिए, क्योंकि पुरुष की जांच सब से सरल है व कम समय में पूरी हो जाती है. यदि जांच में सब कुछ ठीक निकले तो स्त्री की जांच करानी चाहिए.

बांझ दंपतियों के लिए टेस्ट ट्यूब द्वारा बच्चे को जन्म देने की पद्धति एक वरदान है, किंतु अत्यधिक खर्चीली होने के कारण गरीब और मध्यवर्गीय दंपतियों के लिए टेस्ट ट्यूब बेबी पाना एक सपना हो गया है. इस प्रणाली में लगभग 40 हजार रुपए लगभग खर्च आता है. चूंकि इस पद्धति में  20% मामलों में ही सफलता मिलती है इसलिए बेहतर है कि बांझ दंपती इस खर्चीली विधि को अपनाने के बजाय बच्चा गोद लेने की सामाजिक प्रथा को अपनाएं.

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Dr Ak Jain: मर्दों में बढ़ती शीघ्रपतन की समस्या, पढ़ें खबर

आज के दौर में हर उम्र के मर्दों में शीघ्रपतन की समस्या देखने में आ रही है. आम भाषा में इसे जल्दी पस्त हो जाना और अंगरेजी में इसे प्रीमैच्योर इजैकुलेशन या अर्ली इजैकुलेशन कहा जाता है. ऐसा अकसर अंग में प्रवेश से पहले या उस के तुरंत बाद हो सकता है. इस की वजह से दोनों पार्टनर सेक्स संबंधों के लिहाज से असंतुष्ट रहते हैं. दरअसल, शीघ्रपतन आदमियों में सेक्स की आम समस्याओं में से एक है. शायद हर मर्द अपनी जिंदगी में कभी न कभी इस परेशानी से घिरता है. अगर अंग में डालने से पहले ही मर्द का वीर्य गिर जाता है, तो ऐसे में उस जोड़े में बच्चे पैदा न होने की समस्या भी पेश आती है.

शीघ्रपतन की समस्या का असर आदमी की सेक्स लाइफ पर देखने को मिलता है. इस समस्या के चलते आदमी अपनी लाइफ पार्टनर या प्रेमिका को सेक्स सुख नहीं दे पाता. इस से नाजायज संबंध भी बन जाते हैं, जिस का नतीजा कई बार परिवार के टूटने के रूप में भी होता है. इस समस्या के हल के लिए लोग नीमहकीमों के चंगुल में भी फंस जाते हैं, जो उन को लूटते हैं और समस्या को सुलझाने के बजाय और बढ़ा देते हैं. ज्यादा हस्तमैथुन करने से शरीर के बायोलौजिकल क्लौक का सैट हो जाना है. इस की वजह से आदमी को क्लाइमैक्स पर पहुंचने की जल्दी होती है और वह जल्दी से जल्दी मजा पाना चाहता है.

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* सेक्स के बारे में ज्यादा सोचना भी शीघ्रपतन के लिए जिम्मेदार होता है. सेक्स फैंटेसी या पोर्न फिल्में देखने से भी आदमी ज्यादा जोश में आ जाता है और जल्दी ही पस्त हो जाता है.

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* शराब के ज्यादा सेवन या डायबिटीज की वजह से भी शीघ्रपतन की समस्या पैदा हो सकती है.

* सेक्स संबंध बनाने के शुरुआती दिनों में भी इस तरह की समस्या पैदा हो जाती है.

* नया पार्टनर होने के चलते जोश में जल्दी वीर्य गिर सकता है.

* जल्दी पस्त होना इस बात पर भी निर्भर करता है कि जोश देने का तरीका कैसा है.

* ओरल सेक्स से भी आदमी जल्दी डिस्चार्ज हो सकता है.

क्या करें?

अगर शीघ्रपतन की समस्या आप की जिंदगी में भी तनाव की वजह बन चुकी है, तो इसे चुपचाप सहन न करते रहें, बल्कि अपने डाक्टर से मिलें. वह आप की शारीरिक जांच कर इस की वजह पता लगाने की कोशिश करेगा. डाक्टर के साथ खुल कर अपनी सेक्स लाइफ के बारे में बात करें और अगर कभी किसी बीमारी से पीडि़त हैं, तो उस के बारे में भी किसी तरह की जानकारी न छिपाएं.

ये उपाय भी आजमाएं

* जल्दी पस्त होना रोकने के लिए लंबी सांसें लें.

* जब भी वीर्य निकलने का समय हो, अपने साथी को लंबी सांसें लेने को कहें. इस से धड़कनों की रफ्तार कम होगी और वीर्य जल्दी नहीं निकलेगा.

* सेक्स के पहले इस प्रक्रिया के बारे में उसे अच्छे से समझाएं.

* ‘निचोड़ने की विधि’ के तहत अपने साथी के अंग को नीचे से जोर से दबाएं. ऐसा तब करें, जब आप के साथी का वीर्य निकलने वाला हो. इस से उस के अंग का इरैक्शन कम होगा और वीर्य नहीं निकलेगा.

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* जल्द वीर्य को गिरने से रोकने के लिए स्टौप एंड स्टार्ट विधि अपनाएं. इस के तहत अपने साथी को 3 से 4 बार हस्तमैथुन करने के लिए कहें, जिस में वीर्य निकलने के समय पर उस का रुकना जरूरी है. इस से उसे पता चलेगा कि किस समय इजैकुलेशन होता है और वह इस पर अच्छे से काबू भी कर सकता है.

शीघ्रपतन और दवाएं

ऐसा नहीं है कि शीघ्रपतन होने से हर किसी के मन में तनाव की भावना पैदा हो जाती है. कुछ लोग इसे ले कर ज्यादा नहीं सोचते और इस का हल अपने तरीके से निकालते हैं. लेकिन अगर आप को लगता है कि इस से आप के मजे में कमी आ रही है, तो आप जोलोफ्ट, प्रोजाक जैसी दवाओं का सेवन कर सकते हैं. ये दवाएं शीघ्रपतन रोकने में आप की मदद करती हैं व आप का साथी बिस्तर पर आने से कई घंटे पहले भी इन दवाओं का सेवन कर सकता है.

एक बार इस दवा का सेवन कर लेने पर जब आप दोनों अच्छा वक्त बिताना शुरू कर रहे हों, तो उस समय मर्द की कामुकता में इजाफा होगा. इस से न सिर्फ वीर्य निकलने से रुकेगा, बल्कि पहले के मुकाबले आप के सेक्स संबंध भी बेहतर होंगे.

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इन दवाओं के सेवन के लिए बेहतर यही होगा कि आप किसी माहिर सेक्स डाक्टर से सलाह लें. इस के अलावा जोश रोकने के लिए अंग पर लोकल एनैस्थैटिक क्रीम या स्प्रे का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. अंग में जोश में कमी आने से वीर्य गिरने में देरी आएगी. कुछ मर्दों में कंडोम का इस्तेमाल भी इसी तरह जोश घटाने में मददगार होता है.

आमतौर पर आदमी वीर्य गिरने को कंट्रोल करना सीख लेते हैं. इस बारे में जानकारी हासिल करना और कुछ आसान उपायों को अपनाने से हालात पूरी तरह सामान्य हो जाते हैं, लेकिन लंबे समय तक शीघ्रपतन की समस्या का जारी रखना आदमी में डिप्रैशन या एंग्जाइटी की वजह से हो सकता है. किसी मनोवैज्ञानिक से मिल कर इन परेशानियों को दूर किया जा सकता है.

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लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन, पिछले 40 सालों से इन सभी समस्याओं का इलाज कर रहे हैं. तो आप भी पाइए अपनी सभी  सेक्स समस्या का बेहतर इलाज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति एवं मान्यता प्राप्त डॉ. जैन द्वारा. 

Dr Ak Jain: जानें क्या है एजुस्पर्मिया और इसके लक्षण

अनुसंधान तथा सर्वेक्षण से यह ज्ञात हो गया है कि 5% पुरुष एजुस्पर्मिक होते हैं, यानी उन के वीर्य में शुक्राणु होते ही नहीं. इस स्थिति को एजुस्पर्मिया कहा जाता है. दूसरी ओर, जब शुक्राणु की संख्या सामान्य से कम होती है, तो उसे ओलिगोस्पर्मिया कहा जाता है. इन दोनों परिस्थितियों वाले पुरुषों के जरिए सामान्यतया प्रैग्नैंसी की संभावना नहीं होती, क्योंकि वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या 60-120 मिलियन प्रति मि.ली. के बीच होनी चाहिए.

यहां यह बता दें कि वीर्य परीक्षण में शुक्राणुओं के नहीं पाए जाने का यह अर्थ कदापि नहीं होता कि अंडकोष में स्पर्म का निर्माण हो ही नहीं रहा है या कभी होगा ही नहीं. वीर्य में स्पर्म की कमी या नहीं पाए जाने के कई कारण हो सकते हैं. अधिकतर स्थितियों में उन के कारणों का इलाज करा देने के बाद शुक्राणुओं की संख्या सामान्य हो जाती है और पुरुष पिता बनने की स्थिति में आ जाता है.

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शुक्राणुओं की कमी के कई कारण हो सकते हैं. जैसे, ऐसा हो सकता है कि अंडकोष की कोशिकाओं में शुक्राणु निर्माण की पर्याप्त क्षमता हो पर सहायक हारमोन के स्राव में कमी से निर्माण नहीं हो पा रहा हो या यह भी हो सकता है कि अंडकोष में इन का निर्माण पर्याप्त संख्या में हो रहा हो, पर संवहन नलिकाओं में गड़बड़ी या अवरोध के कारण आगे नहीं बढ़ पा रहे हों और अंडकोष या संग्राहक थैली में ही जमा हो जाते हों. एक तीसरी संभावना यह भी हो सकती है कि सहवास के दौरान लिंग द्वारा स्खलन के बजाय वीर्य पीछे की ओर स्थित मूत्र थैली में चला जाता हो और शुक्राणु गर्भाशय में जाने से वंचित रह जाते हों.

ऐसा क्यों होता है

शुक्राणुओं के निर्माण में आने वाली इन बाधाओं के कई कारण हो सकते हैं, जिन में हारमोन के स्राव की समस्या, टेस्टिकुलर फेल्योर, टेस्टिस में सप्लाई करने वाली रक्त नलियों में सूजन तथा संक्रमण आदि प्रमुख हैं.

मस्तिष्क में स्थित एक विशेष ग्रंथि, जिसे पिट्यूटरी ग्लैंड कहते हैं, से एक विशेष हारमोन, जिसे फौलिकल स्टिमुलेटिंग हारमोन कहते हैं, का स्राव होता है जो रक्त के माध्यम से टेस्टिस में पहुंच कर उस की कोशिकाओं को शुक्राणुओं का निर्माण करने के लिए प्रेरित करता है. इस में किसी तरह की गड़बड़ी या इस के स्राव में कमी हो जाने की वजह से शुक्राणुओं का निर्माण प्रभावित होता है. अंडकोष को सप्लाई करने वाली रक्त नलियों में किसी कारणवश सूजन हो जाने की स्थिति में भी कई बार स्पर्म का निर्माण प्रभावित होता है.

जननांगों में संक्रामक रोग, जैसे मंप, टी.बी. गुप्त रोग की वजह से भी टेस्टिस की सामान्य क्रियाशीलता प्रभावित होती है. यह सिकुड़ कर छोटा हो जाता है, जिस से शुक्राणुओं का निर्माण बाधित हो जाता है. अत्यधिक धूम्रपान, खैनी, जरदा, सिगरेट, शराब, गुटका आदि का सेवन करने वालों में भी इस तरह की कमी आमतौर पर देखने को मिलती है. जननांगों में संक्रमण से भी प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है. ई.कोलाई, टी.बी., विषाणु, गुप्त रोग के कारण भी प्रजनन तथा शुक्राणु निर्माण की क्षमता प्रभावित होती है.

पर्याप्त संख्या में शुक्राणुओं के निर्माण के लिए यह भी जरूरी है कि अंडकोष अपनी सही पोजिशन में हो तथा उस का तापमान शारीरिक तापमान से कम हो. इस में थोड़ी सी भी गड़बड़ी होने से इस से शुक्राणु निर्माण में बाधा होती है. वे पुरुष, जो गरम जगहों पर काम करते हैं, जैसे ब्लास्ट फर्नेस, फायर एरिया, अंडरग्राउंड खदान, जहां का तापमान ज्यादा होता है, उन में इस तरह की शिकायत आमतौर पर देखने को मिलती है. जो पुरुष टाइट अंडरपैंट पहनते हैं या जिन्हें रक्त नलियों में सूजन की बीमारी होती है, उन में भी इस तरह की शिकायत देखने को मिल सकती है. टेस्टिस में रचनागत खराबी, टी.बी., गुप्त रोग, चोट लगने, संक्रमण या फिर सूजन हो जाने की स्थिति में भी इस तरह की समस्या देखने को मिल सकती है. शुक्राणुओं को वहन करने वाली नालियों में अवरोध या विकृति आ जाने की स्थिति में, जैसे हर्निया के औपरेशन के बाद उस से बनने वाले निशान से भी कई बार इस तरह की दिक्कतें आ सकती हैं.

पुरानी बीमारियों के कारण अंडकोष में कई बार अवांछित विषैले पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है, जिसे ऐंटीबौडी कहते हैं. यह शुक्राणुओं के साथ चिपक कर उन की गतिशीलता को प्रभावित करता है. इस की वजह से कई शुक्राणु आपस में चिपक कर बेकार हो जाते हैं.

कई बार ऐसा होता है कि टेस्टिस में कोई गड़बड़ी नहीं होती, फिर भी वीर्य में शुक्राणु नहीं पाए जाते. ऐसी स्थिति में यह पता लगाना जरूरी हो जाता है कि कहीं इस के संवहन के रास्ते में किसी तरह की गड़बड़ी तो नहीं है.

इस की मुख्यतया 2 वजहें होती हैं- डक्ट सिस्टम तथा इजेकुलेशन की प्रक्रिया में गड़बड़ी. स्पर्म कैरियर डक्ट नहीं होने या इस के ब्लाक होने के कारण स्पर्म आगे की ओर नहीं  बढ़ पाते हैं. ऐसा वास डिफरेंस नामक नली में जन्मजात खराबी होने या फिर इपिडिडाइमिस, प्रोस्टेट और सेमिनल वैजाइकल में संक्रमण के कारण होने वाली रुकावट की वजह से हो सकता है. कई बार हर्निया या फिर हाइड्रोसील के कारण भी इस में खराबी आ जाती है.

अब आइए जानें कि शुक्राणुओं के इजेकुलेशन की राह में कौनकौन सी समस्याएं हो सकती हैं? सहवास के दौरान इजेकुलेशन के पहले वीर्य को युरेथ्रा में जमा होना जरूरी है. लेकिन कई बार तंत्रिकातंत्र में गड़बड़ी होने के कारण ऐसा हो नहीं पाता. यह समस्या प्रजनन अंगों की सर्जरी, डायबिटीज या फिर रीढ़ की हड्डी में चोट लगने की वजह से हो सकती है. कई बार कई तरह की दूसरी समस्याएं आने के कारण वीर्य आगे की ओर न जा कर पीछे की राह पकड़ लेता है. वह मूत्र थैली में जमा होने लगता है और पेशाब के साथ बाहर निकल जाता है.

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एजुस्पर्मिक पुरुष भी बन सकते हैं पिता

आज जमाना बदल चुका है और विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है. बांझपन को भी दूर करने के ऐसेऐसे उपाय निकल गए हैं, जिन की पहले कल्पना नहीं की जा सकती थी. इसलिए ऐसे लोगों को घबराने या निराश होने की जरूरत नहीं है. ऐसे दंपती को सब से पहले किसी अच्छे अस्पताल में अपनी पूरी जांच करानी चाहिए. पूरी तहकीकात कर उन्हें ऐसे संस्थानों में जाना चाहिए, जहां इस तरह की समस्या की जांच और इलाज की उच्च स्तरीय व्यवस्था हो.

जांच के दौरान यदि हारमोन संबंधी किसी भी तरह की गड़बड़ी होती है, तो इस के लिए दवा दे कर इस के लेवल को बढ़ाया जाता है. यदि टेस्टिस में किसी तरह का ट्यूमर, सिस्ट या किसी तरह की रचनागत खराबी होती है, तो औपरेशन द्वारा इसे ठीक किया जाता है. कई बार इस में संक्रमण होने के कारण भी कई तरह के विकार उत्पन्न हो जाते हैं, जिस को ऐंटिबायोटिक्स या दूसरी दवाएं दे कर ठीक किया जाता है. शुक्राणुओं को संवहन करने वाली नलियों में विकार होने की स्थिति में उसे रिप्रोडक्टिव सर्जरी के द्वारा ठीक किया जाता है.

कई बार ऐसा होता है कि वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या अत्यधिक कम होती है और वह टेस्टिस में ही जमा होता है. ऐसी स्थिति में माइक्रो सर्जरी के द्वारा वहां से निकाल कर लैब में कृत्रिम विधि से ओवम में इंजेक्ट कर के फर्टिलाइजेशन कराया जाता है और फिर उसे फैलोपियन ट्यूब में प्रतिस्थापित कर दिया जाता है. इस विधि को इंट्रा साइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंसेमिनेशन कहते हैं. कई बार वीर्य में अवांछित तत्त्व होने के कारण ट्यूब में फर्टिलाइजेशन की क्रिया संपन्न नहीं हो पाती है.ऐसी स्थिति में स्पर्मवाश कर इन विट्रो फर्टिलाइजेशन विधि से ट्यूब या यूटरस में प्रतिस्थापित कर दिया जाता है.

यदि किसी कारणवश किसी मरीज में शुक्राणु एकदम से बनता ही नहीं हो, तो उस के भी उपाय चिकित्सा विज्ञान ने ढूंढ़ निकाले हैं, जिस में डोनर स्पर्म की सहायता से आर्टिफिशियल इंसेमिनेशन विधि या फिर आई.वी.एफ. की सहायता से कृत्रिम गर्भाधान कराया जा सकता है और संतान की कमी को दूर किया जा सकता है.

लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन, पिछले 40 सालों से इन सभी समस्याओं का इलाज कर रहे हैं. तो आप भी पाइए अपनी सभी  सेक्स समस्या का बेहतर इलाज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति एवं मान्यता प्राप्त डॉ. जैन द्वारा. 

Dr Ak Jain: अंडकोष के दर्द को न करें अनदेखा

मैडिकल साइंस की एक पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ सालों से पुरुषों में अंडकोष के कैंसर की समस्या तेजी से बढ़ रही है. अंडकोष में कैंसर 6 माह के अंदर खतरनाक हालत में पहुंच जाता है. इस का फैलाव पेड़ से दिमाग तक हो सकता है.

 पुरुष अंडकोष के दर्द को सामान्य रूप में लेते हैं जिस की वजह से वे डाक्टर के पास देर से जाते हैं. कुछ डाक्टर के पास जाते भी हैं तो डाक्टर पहचानने में गलती कर जाते हैं. साधारण बीमारी समझ कर उस का इलाज कर देते हैं. अधिकतर भारतीय पुरुष  अंडकोष के कैंसर से अनजान हैं जिस की वजह से वे अपने अंडकोष में आए परिवर्तन की ओर ध्यान नहीं देते हैं. जब समस्या बढ़ जाती है तब डाक्टर के पास पहुंचते हैं.

अगर आप भी ऐसी ही किसी समस्या से जूझ रहे हैं तो संपर्क करिए लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन से जो पिछले 40 सालों से इन समस्याओं का इलाज कर रहे हैं.

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हर पुरुष को चाहिए कि वह अपने अंडकोष  में आए परिवर्तन पर ध्यान रखे. अंडकोश में दर्द, सूजन, आसपास भारीपन, अजीब सा महसूस होना, लगातार हलका दर्द बना रहना, अचानक अंडकोष के साइज में काफी अंतर महसूस करना, अंडकोष पर गांठ, अंडकोश का धंसना आदि लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए. पुरुषों में यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है.

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अंडकोष  कैंसर के कारण

किसी भी व्यक्ति के अंडकोष में कैंसर उत्पन्न हो सकता है. इस के होने की कुछ वजहें ये हैं :

क्रिस्टोरचाइडिज्म :

यदि किसी युवक के बचपन से ही अंडकोश शरीर के अंदर धंसे रहें तो उसे अंडकोष कैंसर की समस्या हो सकती है. क्रिप्टोरचाइडिज्म का इलाज बचपन में ही करवा लेना चाहिए ताकि बड़े होने पर उसे खतरनाक समस्या से न जूझना पड़े. सर्जन छोटा सा औपरेशन कर के अंडकोष को बाहर कर देते हैं.

आनुवंशिकता :

यदि पिता, चाचा, नाना, भाई आदि किसी को अंडकोष के कैंसर की समस्या हुई हो तो सावधान हो जाना चाहिए. टीएसई यानी टैस्टीक्युलर सैल्फ एक्जामिनेशन द्वारा अंडकोष की जांच करते रहना चाहिए.

बचपन की चोट :

बचपन में खेलते वक्त कभी किसी बच्चे को यदि अंडकोष में चोट लगी है तो बड़े होने पर उसे अंडकोष के कैंसर की समस्या उत्पन्न हो सकती है. बचपन में चोट लगने वाले पुरुषों के अंडकोष में किसी तरह का दर्द, सूजन आदि महसूस होने पर तुरंत डाक्टर को दिखाना चाहिए.

हर्निया :

हर्निया की समस्या की वजह से भी किसीकिसी के अंडकोश में दर्द व सूजन उत्पन्न हो जाती है. ऐसे में डाक्टर से शीघ्र मिलना चाहिए.

हाइड्रोसील :

हाइड्रोसील की समस्या होने पर अंडकोष की थैली में पानी जैसा द्रव्य जमा हो जाता है. इस में अंडकोष में दर्द भले ही न हो लेकिन थैली के भारीपन से अंडकोश प्रभावित हो जाते हैं जिस की वजह से अंडकोष का कैंसर हो सकता है.

इंपोटैंसी :

नई खोज के अनुसार, इंपोटैंसी की वजह से भी अंडकोष के कैंसर की समस्या उत्पन्न हो सकती है. डा. जूड मोले बताते हैं कि जिन लोगों को अंडकोष कैंसर की समस्या पाई गई है उन में से अधिकतर पुरुष इंपोटैंसी यानी नपुंसकता के शिकार थे.

अंडकोष का इलाज :

अंडकोष में असामान्यता दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए. डा. राना का कहना है कि ब्लड, यूरिन टैस्ट व अल्ट्रासाउंड द्वारा बीमारी का पता लगा लिया जाता है. बीमारी की स्थिति के मद्देनजर मरीज को दवा, कीमोथेरैपी या सर्जरी की सलाह दी जाती है. जिस तरह से महिला अपने स्तन का सैल्फ टैस्ट करती है उसी प्रकार पुरुष अपने अंडकोश का सैल्फ टैस्ट कर के जोखिम से बच सकते हैं.

सावधानी

  1. विपरीत पोजिशन में संबंध बनाते वक्त ध्यान रखें कि अंडकोष में चोट न लगे.
  2. तेज गति से हस्तमैथुन न करें, इस से अंडकोष को चोट लग सकती है.
  3. किसी भी हालत में शुक्राणुओं को न रोकें. उन्हें बाहर निकल जाने दें नहीं तो यह शुक्रवाहिनियों में मर कर गांठ बना देते हैं. आगे चल कर कैंसर जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है.
  4. क्रिकेट, हौकी, फुटबाल, कुश्ती आदि खेल खेलते समय अपने अंडकोश का ध्यान रखें. उस में चोट न लग जाए. चोट लगने पर तुरंत डाक्टर को दिखाएं.
  5. टाइट अंडरवियर न पहनें, लंगोट बहुत अधिक कस कर न बांधें. इस से अंडकोष पर अधिक दबाव पड़ता है.
  6. सूती और हलके रंग के अंडरवियर पहनें. नायलोन के अंडरवियर पहनने से अंडकोष को हवा नहीं मिल पाती है. गहरे रंग का अंडरवियर अंडकोष को गरमी पहुंचाता है.
  7. हमेशा अंडरवियर पहन कर न रहें. रात के वक्त उसे उतार दें जिस से अंडकोष को हवा लग सके.
  8. अधिक गरम जगह जैसे भट्ठी, कोयला इंजन के ड्राइवर, लंबी दूरी के ट्रक ड्राइवर आदि अपने अंडकोष को तेज गरमी से बचाएं.
  9. अंडकोष पर किसी प्रकार के तेल की तेजी से मालिश न करें. यह नुकसान पहुंचा सकता है.

बहरहाल, अंडकोष में किसी भी प्रकार की तकलीफ या फर्क महसूस करने पर खामोश न रहें. डाक्टर से सलाह लें. अंडकोष की हर तकलीफ कैंसर नहीं होती लेकिन आगे चल कर वह कैंसर को जन्म दे सकती है इसलिए इस से पहले कि कोई तकलीफ गंभीर रूप ले, उस का निदान कर लें.

लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन, पिछले 40 सालों से इन सभी समस्याओं का इलाज कर रहे हैं. तो आप भी पाइए अपनी सभी  सेक्स समस्या का बेहतर इलाज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति एवं मान्यता प्राप्त डॉ. जैन द्वारा. 

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Dr Ak Jain: क्या करें जब पुरुषों में घटने लगे बच्चा पैदा करने की ताकत?

इनफर्टिलिटी एक बहुत गंभीर समस्‍या है. जिसके कारण बहुत से कपल्‍स की गोद सूनी ही रह जाती है. मौजूदा लाइफस्टाइल की वजह से इनफर्टिलिटी की समस्‍या आम बात हो गई है. इनफर्टिलिटी का मुख्य लक्षण प्रेग्नेंट न हो पाना है. अगर आप भी इस समस्या से जूझ रहे हैं तो संपर्क करिए लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन से जो पिछले 40 सालों से इसका इलाज कर रहे हैं.

आइए अब जानते हैं इनफर्टिलिटी के बारे में…

नौजवानों में तेजी से बढ़ते तनाव और डिप्रैशन के साथसाथ प्रदूषण और गलत लाइफस्टाइल के चलते एनीमिया की समस्या भी मर्दों में नामर्दी की वजह बनती है. इनफर्टिलिटी से जुड़े सब से बुरे हालात तब पैदा होते हैं जब मर्द के वीर्य में शुक्राणु नहीं बन पाते हैं. इस को एजूस्पर्मिया कहा जाता है. तकरीबन एक फीसदी मर्द आबादी भारत में इसी समस्या से पीडि़त है.

हमारे शरीर को रोज थोड़ी मात्रा में कसरत की जरूरत होती है, भले ही वह किसी भी रूप में क्यों न हो. इस से हमारे शारीरिक विकास को बढ़ावा मिलता है.

हालांकि कसरत के कई अच्छे पहलू भी हैं. मगर इस के कुछ बुरे पहलुओं पर भी ध्यान देने की जरूरत है जिन की तरफ कम ही लोगों का ध्यान जाता है. मसलन, औरतों का ज्यादा कसरत करना बांझपन की वजह भी बन सकता है. वैसे, कसरत करने के कुछ फायदे इस तरह से हैं:

  1. दिल बने मजबूत : हमारे दिल की हालत सीधेतौर पर इस बात से जुड़ी होती है कि हम शारीरिक रूप से कितना काम करते हैं. जो लोग रोजाना शारीरिक रूप से ज्यादा ऐक्टिव नहीं रहते हैं, दिल से जुड़ी सब से ज्यादा बीमारियां भी उन्हीं लोगों को होती हैं खासतौर से उन लोगों के मुकाबले जो रोजाना कसरत करते हैं.

2. अच्छी नींद आना : यह साबित हो चुका है कि जो लोग रोजाना कसरत करते हैं, उन्हें रात को नींद भी अच्छी आती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कसरत करने की वजह से हमारे शरीर की सरकेडियन रिदम मजबूत होती है जो दिन में आप को ऐक्टिव बनाए रखने में मदद करती है और जिस की वजह से रात में आप को अच्छी नींद आती है.

3. शारीरिक ताकत में बढ़ोतरी : हम में से कई लोगों के मन में कसरत को ले कर कई तरह की गलतफहमियां होती हैं, जैसे कसरत हमारे शरीर की सारी ताकत को सोख लेती है और फिर आप पूरे दिन कुछ नहीं कर पाते हैं. मगर असल में होता इस का बिलकुल उलटा है. इस की वजह से आप दिनभर ऐक्टिव रहते हैं, क्योंकि कसरत करने के दौरान हमारे शरीर से कुछ खास तरह के हार्मोंस रिलीज होते हैं, जो हमें दिनभर ऐक्टिव बनाए रखने में मदद करते हैं.

4. आत्मविश्वास को मिले बढ़ावा : नियमित रूप से कसरत कर के अपने शरीर को उस परफैक्ट शेप में ला सकते हैं जो आप हमेशा से चाहते हैं. इस से आप के आत्मविश्वास में भी बढ़ोतरी होती है.

रोजाना कसरत करने के कई सारे फायदे हैं इसलिए फिजिकल ऐक्टिविटी को नजरअंदाज करने का तो मतलब ही नहीं बनता, लेकिन बहुत ज्यादा कसरत करने का हमारे शरीर पर बुरा असर भी पड़ सकता है खासतौर से आप की फर्टिलिटी कम होती है, फिर चाहे वह कोई औरत हो या मर्द.

ऐसा कहा जाता है कि बहुत ज्यादा अच्छाई भी बुरी साबित हो सकती है. अकसर औरतों में एक खास तरह के हालात पैदा हो जाते हैं जिन्हें एमेनोरिया कहते हैं. ऐसी हालत तब पैदा होती है, जब एक सामान्य औरत को लगातार 3 महीने से ज्यादा वक्त तक सही तरीके से माहवारी नहीं हो पाती है.

कई औरतों में ऐसी हालत इस वजह से पैदा होती है क्योंकि वे शरीर को नियमित रूप से ताकत देने के लिए जरूरी कैलोरी देने वाली चीजों का सेवन किए बिना ही जिम में नियमित रूप से किसी खास तरह की कसरत के 3 से 4 सैशन करती हैं.

शरीर में कैलोरी की कमी का सीधा असर न केवल फर्टिलिटी पर पड़ता है, बल्कि औरतों की सेक्स इच्छा पर भी बुरा असर पड़ता है. साथ ही मोटापा भी इस में एक अहम रोल निभाता है क्योंकि ज्यादातर मोटी औरतें वजन घटाने के लिए कई बार काफी मुश्किल कसरतें भी करती हैं. इस वजह से भी उन की फर्टिलिटी पर बुरा असर पड़ता है.

इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे जोड़े शारीरिक और मानसिक तनाव की हालत में पहुंच जाते हैं. अकसर देखा गया है कि ऐसे मामलों में या तो शुक्राणु की मात्रा कम होती है या स्पर्म की ऐक्टिविटी बहुत कम रहती है. लिहाजा ऐसे शुक्राणु औरत के अंडाणु को गर्भाधान करने में नाकाम रहते हैं.

वैसे अब इनफर्टिलिटी से नजात पाने के लिए कई उपयोगी इलाज मुहैया हैं. ओलिगोस्पर्मिया में स्पर्म की तादाद बहुत कम पाई जाती है और एजूस्पर्मिया में तो वीर्य के नमूने में स्पर्म होता ही नहीं है. एजूस्पर्मिया में मर्द के स्खलित वीर्य से स्पर्म नहीं निकलता है जिसे जीरो स्पर्म काउंट कहा जाता है. इस का पता वीर्य की जांच के बाद ही लग पाता है.

कुछ मामलों में जांच के दौरान तो स्पर्म नजर आता है लेकिन कुछ रुकावट होने के चलते वीर्य के जरीए यह स्खलित नहीं हो पाता है. स्पर्म न पनपने की एक और वजह है वैरिकोसिल. इस का इलाज सर्जरी से ही मुमकिन है.

कुछ समय पहले तक पिता बनने के लिए या तो दाता के स्पर्म का इस्तेमाल करना पड़ता था या किसी बच्चे को गोद लेना पड़ता था, लेकिन अब चिकित्सा विज्ञान में स्टेम सैल्स टैक्नोलौजी की तरक्की ने लैबोरेटरी में स्पर्म बनाना मुमकिन कर दिया है.

लैबोरेटरी में  मरीज के स्टेम सैल्स का इस्तेमाल करते हुए स्पर्म को बनाया जाता है, फिर इसे विट्रो फर्टिलाइजेशन तरीके से औरत पार्टनर के अंडाशय में डाल कर अंडाणु में फर्टिलाइज किया जाता है. इस तरीके से वह औरत पेट से हो सकती है.

लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन, पिछले 40 सालों से इन सभी समस्याओं का इलाज कर रहे हैं. तो आप भी पाइए अपनी सभी  सेक्स समस्या का बेहतर इलाज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति एवं मान्यता प्राप्त डॉ. जैन द्वारा. 

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Lockdown में उजड़ने लगीं देह व्यापार की मंडियां

49 साला सोनिया बीते 25 सालों से मुंबई के कमाठीपुरा में रहते देह व्यापार कर रही है यानि सेक्स वर्कर है. सालों पहले पह नेपाल से इस बदनाम इलाके में आई थी, तब कमसिन थी सो अच्छा खासा पैसा मिल जाता था क्योंकि जवान लड़कियां हमेशा ही ग्राहकों की पहली पसंद रहीं हैं. हालांकि इस उम्र में भी वह 2-3 हजार रु रोज कमा लेती है लेकिन लॉक डाउन के बाद यानि  24 मार्च से सोनिया ने एक धेला भी नहीं कमाया है क्योंकि कोरोना की दहशत और लॉक डाउन के चलते ग्राहक कमाठीपुरा की तरफ झांक भी नहीं रहे हैं.

हैरान परेशान सोनिया पहली सेक्स वर्कर है जिसने मीडिया के सामने अपना दुख दर्द बयां किया वह कहती है, पूरी ज़िंदगी इधर निकल गई, लेकिन इतने बुरे हालात कभी नहीं देखे. इतने बम फटे, अटैक हुये, बीमारिया आईं पर ऐसी वीरानी कभी नहीं देखी.

सोनिया जिस कमरे में रहती है उसमें तीन और सेक्स वर्कर रहतीं हैं. उन्हें भी हालात सुधरते नहीं दिख रहे. बक़ौल सोनिया, अगर हालात ऐसे ही रहे तो हमें खाने पीने के लाले पड़ जाएंगे.  अभी तो मकान मालिक को किराया देने भी पैसे नहीं हैं. सोनिया के साथ रहने वाली जया भी उसी की तरह चिंतित है कि अब क्या होगा, कमाठीपुरा में इतना सन्नाटा उसने भी पहले कभी नहीं देखा.

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जया ने अपने 6 साल के बेटे को पुणे में एक रिश्तेदार के यहां रख छोड़ा है जिससे वह पढ़ लिखकर कुछ बन सके. बेटे की पढ़ाई के लिए उसे हर महीने 1500 रु भेजने पड़ते हैं जो अब शायद ही वह भेज पाये. अभी तो चिंता पेट पालने की है क्योंकि धंधा एकदम से बंद हुआ है जिसकी उम्मीद उसने या देह व्यापार के लिए बदनाम कमाठीपुरा की हजारों काल गर्ल्स ने नहीं की थी.

कमाठीपुरा में हजारों सेक्स वर्कर हैं जिनमें से कई यहीं की चालों में किराए से रहती हैं तो कई मुंबई की उपनगरियों से देहव्यापार के लिए आती हैं. इस इलाके में सुबह ही देर रात 8 बजे के बाद होती है. देश का ऐसा कोई इलाका नहीं जहां की काल गर्ल्स यहां न मिलती हों. ग्राहकों की फरमाइश पर दलाल हर तरह का माल उन्हें मुहैया कराते हैं मसलन साउथ इंडियन, नेपाली बंगाली, हिन्दी राज्यों की और पूर्वोत्तर राज्यों की लड़कियां भी इस बाजार में मिलती हैं. लेकिन लॉकडाउन के बाद न केवल कमाठीपुरा बल्कि देश भर की देह मंडियों की सेक्स वर्कर भुखमरी के कगार पर आ खड़ी हुई हैं और चूंकि वे समाज के माथे पर बदनुमा दाग हैं इसलिए कोई उनकी सुध नहीं ले रहा जबकि इनकी हालत भी रोज कमाने खाने वाले दिहाड़ी मजदूरो सरीखी ही है.

एक और सेक्स वर्कर किरण का कहना है कि आप मीडिया बाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हमें माली इमदाद भेजने क्यों नहीं कहते क्योंकि हमारे ऊपर भी बूढ़े माँ बाप और बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारी है. अब जब धंधा चौपट है तो हम क्या करें. कमाठीपुरा में तकरीबन 2 लाख सेक्स वर्कर हैं जो लॉकडाउन  के चलते बदबूदार और संकरी कोठियों में कैद होकर रह गईं हैं. इनके अधिकतर ग्राहक भी रोज कमाने खाने बाले ही होते हैं जिनके अब कहीं अते पते नहीं.

ये मंडियां हुईं सूनी…   

कमाठीपुरा से भी बड़ा बाजार कोलकाता का सोनगाछी है जो एशिया का सबसे बड़ा रेड लाइट इलाका है. एक अंदाजे के मुताबिक सोनगाछी में कोई 3 लाख सेक्स वर्कर हैं कुछ पार्ट टाइम धंधा करती हैं तो कुछ फुल टाइम. इनका एक बड़ा संगठन भी है जिसका नाम दरबार महिला समन्वय समिति है. इस संगठन में लगभग 1 लाख 30 हजार सेक्स वर्कर्स ने रजिस्ट्रेशन कराया हुआ है और इससे ज्यादा वे हैं जिनहोने रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं समझी.

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सोनगाछी में हैरानी की बात है लॉकडाउन से पहले ही ग्राहकों की आवाजाही कम हो चली थी. दरबार की एक पदाधिकारी महाश्वेता मुखर्जी के पास पश्चिम बंगाल के अलग अलग इलाकों से फोन सेक्स वर्कर्स के आने लगे थे कि उन्हें भुखमरी से बचाने कोई पहल की जाये. 30 मार्च आते आते तो हालात काफी भयावह हो चले थे. अधिकांश सेक्स वर्कर्स के पास जमापूंजी और राशन खत्म हो चला था.

ऐसे में महाश्वेता ने एक एनजीओ सोनगाछी रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की मदद से एक योजना बनाई. इस एनजीओ के प्रबंध निदेशक समरजीत साना ने ममता बनर्जी सरकार की सामाजिक कल्याण मंत्री शशि पांजा से गुजारिश की कि कोरोना वायरस के मद्देनजर सरकार की तरफ से दिये जाने बाले फायदे सेक्स वर्कर्स को भी दिये जाएँ. किराए से रह रही तकरीबन 30 हजार सेक्स वर्कर्स के मकान मालिकों को भी उन्होने कहा कि उनका किराया माफ किया जाये. अलावा इसके समरजीत ने कई जानी मानी हस्तियों और दूसरी एनजीओ से भी सेक्स वर्कर्स की मदद के लिए गुहार लगाई है.

यह कोशिश थोड़ी ही सही रंग लाई. शशि पांजा की पहल पर सेक्स वर्कर्स को दाल चावल और आलू के अलावा पका हुआ खाना भी दिया जा रहा है लेकिन लॉकडाउन के बाद क्या होगा इसे लेकर काल गर्ल्स की चिंता कुदरती बात है. सोनगाछी एक महीने पहले तक चौबीसों घंटे गुलजार रहने बाला बाजार हुआ करता था जिसमें देहव्यापार पर बनी कई फिल्मों की शूटिंग भी हुई है. लेकिन अब यहाँ मनहूसियत पसरी पड़ी हुई है.

देह व्यापार पर दर्जनो फिल्मे बन चुकी हैं और मीना कुमारी से लेकर करीना कपूर और विद्धया बालान तक तकरीबन सभी नामी एक्ट्रेसों ने तवायफ का किरदार जिया है. इनकी मुसीबतों पर बनी सबसे सटीक फिल्म 1983 में आई श्याम बेनेगल निर्देशित मंडी थी जिसमें लीड रोल शबाना आजमी ने निभाया था. मंडी में सधे ढंग से दिखाया गया था कि नेता कारोबारी, समाजसेवी और दलाल कैसे कैसे वेश्याओं को मोहरा बनाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं.

कमाठीपुरा और सोनगाछी के मुक़ाबले दिल्ली के रेड लाइट इलाके जीबी रोड की सेक्स वर्कर थोड़ी बेहतर हालात में हैं. इस इलाके में 98 के लगभग ऐसे मकान हैं जिन्हें कोठा कहा जा सकता है इनमें 1500 के लगभग सेक्स वर्कर रहती हैं. लॉकडाउन  के बाद यहाँ की सेक्स वर्कर भी भुखमरी के कगार पर आ गईं थीं लेकिन उन्हें खाना दिल्ली पुलिस दे रही है और नजदीक के गुरुद्वारे से भी मदद और राशन मिल जाता है.

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सेक्स वर्कर भूखी न रहें इसके लिए पहले दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग यानि डीसीपीसीआर ने जीबी रोड के कोठों पर रहने बालियों के लिए एक हंगर सेंटर बनाया था लेकिन ये सेक्स वर्कर लोगों के तानों के चलते वहाँ जाने से कतराईं तो उन्हें घर पर ही दवाइयों और राशन पहुंचाया जा रहा है. यह एक काबिले तारीफ पहल है जिसका श्रेय डीसीपीसीआर के मेम्बर सुदेश विमल को जाता है जो दूसरे जरूरी सामान के साथ साथ सेनेटरी नेपकिन तक सेक्स वर्कर्स को पहुंचाने का इंतजाम कर रहे हैं.

यहां तो कुछ भी नही –

ये तो वे शहर और इलाके थे जहां सेक्स वर्कर बड़ी तादाद में हैं और एक ही जगह से धंधा करती हैं इसलिए राज्य सरकारें इनकी अनदेखी नहीं कर पाईं लेकिन कोरोना और लॉकडाउन  का सबसे बुरा और ज्यादा असर उन शहरों और इलाकों पर पड़ रहा है जहां यह धंधा छिटपुट और छोटे पैमाने पर होता है लेकिन अक्सर चर्चाओं और सुर्खियों में रहता है.

ऐसे खास इलाके हैं ग्वालियर का रेशमपुरा, आगरा का कश्मीरी मार्केट, पुणे का बुधबर पैठ, सहारनपुर का नक्काफसा बाजार, इलाहाबाद का मीरागंज और एक और नामी धार्मिक शहर वाराणसी का मड़ुआडिया, मेरठ का कबाड़ी बाजार और नागपुर का गंगा जमुना.

इन इलाकों और अड्डों की रौनक गायब है और अधिकांश सेक्स वर्कर या तो घरों में कैद हैं या फिर अपने घरो को लौट गईं हैं. मुमकिन है लॉकडाउन के बाद ये भी दूसरे दिहाड़ी मजदूरों की तरह अपने धंधे पर वापस लौट आयें लेकिन धंधा पहले सा चलेगा इसमें शक है क्योंकि हर कोई कोरोना से लंबे वक्त तक डरा रहेगा और सोशल डिस्टेन्सिंग पर अमल करने की हर मुमकिन कोशिश करेगा लेकिन यह देखना भी दिलचस्पी की बात होगी की शरीर की भूख और जरूरत पर कोरोना कितना और कब तक भारी पड़ेगा .

भोपाल के एमपी नगर इलाके की एक काल गर्ल लक्ष्मी शर्मा (बदला नाम) से इस बारे में बात की गई तो उसने बताया नौबत तो भूखों मरने की आ गई है सामाजिक संगठन जो खाना बाँट रहे हैं उससे पेट भर रही हूँ लेकिन अब न तो खाने में मजा आ रहा है और न ही जीने में. पास के शहर विदिशा से भोपाल आकर धंधा करने बाली 28 साला लक्ष्मी कहती है पैसों के लिए कई ग्राहकों को फोन किया लेकिन कोई साला नहीं दे रहा कई ग्राहक जो आम दिनों में कुत्ते की तरह दुम हिलाते आगे पीछे घूमते थे परेशानी के इन दिनों में फोन ही नहीं उठा रहे.

वे क्यों मुझे भाव दें, वह जैसे खुद को तसल्ली देते हुये बताती है यह तो इस हाथ दे उस हाथ ले वाला सौदा है पर लोक डाउन की बेगारी ने साबित कर दिया कि एक रंडी आखिर रंडी ही होती है जिसका कोई सगा नहीं होता.

फर्क धंधे के तरीकों का

लक्ष्मी की खीझ अपनी जगह सही है लेकिन उसकी बातों से एक बात तो समझ आती है कि कालगर्ल दो तरह की होती हैं एक वे जो मर्जी से धंधा करतीं हैं और दूसरी वे जो मजबूरी के चलते इस दलदल में आती हैं. हाई टेक कालगर्ल्स उतनी परेशानी में नहीं हैं जितनी में कि  लक्ष्मी जैसी हैं जिनकी गुजर का जरिया ही रोज रोज जिस्म बेचना है. इन्हें ज्यादा पैसा नहीं मिलता है कई बार तो दिन में 200– 300 रु ही मिल जाएं तो ही इनके घर का चूल्हा जल पाता है.

कमाठीपुरा और सोनागाछी जैसे इलाकों में लक्ष्मी जैसी ही सेक्स वर्कर हैं जबकि फाइव स्टार होटलों, स्पा, मसाज सेंटर्स, फार्म हाउसों और खुद के आलीशान फ्लेट्स से धंधा करने बालियों पर लॉकडाउन का कोई खास असर नहीं पड़ा है. यह ठीक वैसी ही स्थिति है कि अमीर और आम मध्यांवर्गीयो पर लॉकडाउन बेअसर है लेकिन मारा गरीब मजदूर जा रहा है.

हाइटैक कालगर्ल्स की तादाद 10 फीसदी ही है जबकि रोजाना कमाने खाने वालियों की 90 फीसदी है जो बद से बदतर हालत में लॉकडाउन के बाद आ गई हैं और ऐसा लगता नहीं कि अभी एकाध साल और ये उजड़ती मंडिया आबाद हो पाएंगी.

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दूसरों की जिस्मानी भूख मिटाने बाली इन सेक्स वर्कर्स के पेट की भूख खैरात के खाने से अगर जैसे तैसे मिट पा रही है तो इसकी वजह इस धंधे का गैर कानूनी होना भी है और इन्हें पापिन करार देना भी है.

योजनाओं का भी फायदा नहीं

इन सेक्स वर्कर्स की गिनती दिहाड़ी मजदूरों में नहीं होती इसलिए इन्हें सरकारी योजनाओं का फायदा भी न के बराबर ही मिलता है. सेक्स वर्कर्स के भले के लिए काम करने बाली सबसे बड़ी एजेंसी भारतीय पतिता उद्धार सभा की दिल्ली इकाई के सचिव इकबाल अहमद की मानें तो सरकार की जनधन और सेहत समेत किसी योजना का लाभ सेक्स वर्कर्स को नहीं मिल पा रहा है क्योंकि अधिकांश के पास न तो आधार कार्ड हैं और न ही राशन कार्ड हैं और न ही इनके बेंक खाते हैं.

बक़ौल इकबाल अहमद लॉकडाउन के मुश्किल वक्त में कई संगठन बाले आते हैं और थोड़ा बहुत सामान देकर चले जाते हैं पर उनकी असल मंशा फोटो खिंचाने की होती है. राशन मिल भी जाये तो सेक्स वर्कर्स के पास उसे पकाने न तो गेस सिलेन्डर हैं और न ही केरोसिन के लिए पैसे हैं. इस पर भी दिक्कत यह कि अधिकांश सामान देने बाले नीचे से ही सामान देकर चले जाते हैं जिससे तीसरे चौथे माले पर रहने बालियों को सामान मिल ही नहीं पाता.

इसी संस्था के अध्यक्ष खैराती लाल भोला की मानें तो लॉकडाउन के बाद उन्हें देश भर से सेक्स वर्कर्स के फोन आए और उन्होने अपनी समस्याएँ बताईं जिनसे मैंने पत्र द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्वास्थ मंत्री हर्षवर्धन को अवगत कराया लेकिन अभी तक कोई जबाब मुझे इनसे नहीं मिला है. गौरतलब है कि देश में कोई 1100 रेड लाइट इलाके हैं. खैराती लाल पहले भी सेक्स वर्कर्स की परेशानियों को लेकर सभी सांसदों को चिट्ठी लिख चुके हैं जिससे सेक्स वर्कर्स का हेल्थ कार्ड बन सके क्योंकि अस्पताल में जब ये खुद को रेड लाइट इलाके का बताती हैं तो हर कोई इनसे कन्नी काटने लगता है.

अब लॉकडाउन के वक्त में सेक्स वर्कर्स की बदहाली भुखमरी के जरिये भी उजागर हो रही है तो बारी सरकार की है कि वह इनके बाबत संजीदगी से सोचे और इनके भले के लिए कदम उठाए क्योंकि ये भी समाज का अहम हिस्सा हैं.

घट रही है या बढ़ रही है, Lockdown में कंडोम की बिक्री

फरवरी के दूसरे हफ्ते यह खबर तेजी से वायरल हुई थी कि चीन और सिंगापुर में कंडोम की बिक्री बहुत तेजी से बढ़ रही है लेकिन सेक्स के लिए नहीं बल्कि लोग कंडोम का इस्तेमाल बतौर हेंड ग्लब्स ज्यादा कर रहे थे. यह वह वक्त था जब लोग कंडोम को कोरोना वायरस से लड़ने का कारगर तरीका बता रहे थे .  इस आशय की खबरें और फोटो भी तेजी से वायरल हुये  थे कि लिफ्ट के बटन और कार के हेंडल तक को पकड़ने हर कोई कंडोम का दास्ताना पहने था .

19 मार्च के बाद हमारे देश में कंडोम की बिक्री घटी है या बढ़ी है इस पर जबरजस्त विरोधाभास देखने में आ रहा है . कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो कंडोम की बिक्री बढ़ी है लेकिन हमारे यहाँ इसे हाथ के दास्तानों की तरह कहीं इस्तेमाल नहीं किया जा रहा बल्कि जिस काम के लिए यह बना है उस के लिए ही इस्तेमाल किया जा रहा है . कहा तो यह तक गया कि मास्क और सेनेटाइजर के साथ साथ दवा की दुकानों से सबसे ज्यादा बिकने बाला आइटम कंडोम है और लोग इसके छोटे नहीं बल्कि बड़े पेक खरीद रहे हैं.

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यह एक रोमांटिक अंदाजा भर हो सकता है कि लाक डाउन के चलते पति पत्नी खाली वक्त में इफ़रात से सेक्स करेंगे और किसी भी खतरे से बचने कंडोम स्वाभाविक रूप से इस्तेमाल करेंगे इसलिए वे थोक में कंडोम खरीद रहे हैं . हालांकि इस बात से पूरी तरह इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन अगर वाकई कंडोम के लिए मारामारी मची होती और यह भी ब्लेक में या ऊंचे दाम पर बिक रहा होता तो लाक डाउन की दिलचस्प खबरों में इसे निश्चित रूप से शुमार होना चाहिए था .

सच क्या है इसकी पड़ताल के लिए जब भोपाल के कुछ केमिस्टों से बात की गई तो उन्होने निराशा प्रदर्शित करते हुये बताया कि कंडोम की बिक्री में कोई खास इजाफा नहीं हुआ है उल्टे गिरावट आई है . भोपाल के पाश इलाके शाहपुरा के मनीषा मार्केट के एक केमिस्ट अनिल ललवानी का कहना है कि उनकी दुकान से औसतन 8 पेकेट कंडोम के रोज बिकते हैं लेकिन लाक डाउन के बाद बिक्री न के बराबर हो रही है .

ऐसा क्यों इस पर अनिल बताते हैं कि दरअसल में कंडोम के बड़े खरीददार कालेज स्टूडेंट और होस्टलर्स होते हैं जो अपने अपने घरों को चले गए हैं .  ये लोग अक्सर दोपहर में या फिर देर रात कंडोम खरीदते थे अब मौज मस्ती करने बाले इन लोगों के अते पते नहीं है लिहाजा मुश्किल से एक पेकेट रोज बिक पा रहा है और खरीददार लाइसेन्सशुदा यानि शादी शुदा हैं.

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कारोबारी इलाके एमपी नगर के एक केमिस्ट इस बात की पुष्टि करते हुये बताते हैं कि होस्टल्स खाली हो जाने से कंडोम की बिक्री घटी है . गौरतलब है कि भोपाल में लगभग 1 लाख बाहरी स्टूडेंट हैं ये लोग किराए के मकानों में भी रहते हैं . सेक्स संबंध इनके लिए गोल गप्पे खाने जैसी आम और रोजमरराई बात है , अब जब शहर वीरान सा है तो कंडोम शो केस की ही शोभा बढ़ा रहे हैं .

पुराने भोपाल के गांधी मेडिकल कालेज के नजदीक के एक केमिस्ट की माने तो दरअसल में लाक डाउन के चलते देह व्यापार भी लाक हो गया है स्टूडेंट्स के साथ काल गर्ल्स और उनके ग्राहक भी कंडोम के नियमित और अनिवार्य ग्राहक होते हैं जो अब नदारद हैं .  इस केमिस्ट ने दूसरी दिलचस्प बात यह बताई कि आम शादीशुदा भी कंडोम नवरात्रि के चलते नहीं खरीद रहे क्योंकि व्रत उपवास के दिनों में पति पत्नी सहवास नहीं करते हैं . मुमकिन है नवरात्रि के बाद थोड़ी बहुत मांग बढ़े लेकिन वह रूटीनी होगी उल्लेखनीय नहीं .

दरअसल में कंडोम की बिक्री का भी अपना सीजन होता है. दुनिया भर में दिसंबर के आखिर के दिनों और नए साल पर इफ़रात से कंडोम बिकते हैं लिहाजा थोक और फुटकर व्यापारी भारी  भरकम स्टाक इन दिनों रखते हैं लेकिन अब जब देश भर में सन्नाटा है तब कंडोम बिक्री में बढ़ोत्री अति उत्साह में की गई कल्पना ज्यादा लगती है.

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यह ठीक है कि यंग कपल्स फुर्सत में हैं और कंडोम भी खरीद रहे हैं लेकिन ये कंडोम का उतना बड़ा ग्राहक वर्ग नहीं है जो बाजार में हलचल मचा दे. एक अंदाजे के मुताबिक कंडोम के 70 फीसदी ग्राहक प्रेमी प्रेमिकाए और देह व्यापार से जुड़े लोग होते हैं जो लाक डाउन के चलते तितर बितर हो गए हैं हाँ इतना तय है कि लाक डाउन के खत्म होते ही जरूर कंडोम की मांग में जबरजस्त इजाफा होगा.

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कोरोना की दहशत और लौक डाउन , शट डाउन के चलते यह वह दौर है जब अधिकतर लोग घरों में कैद हैं. हमारे देश में एक दिन के जनता कर्फ़्यू के बाद से ही लोगों को वक्त काटना मुहाल हो रहा है ऐसे में जाहिर है आनंद लेने का एक बड़ा जरिया सेक्स भी है जिस पर यह शेर एकदम फिट बैठता है कि मौसम भी है… मौका भी है… और दस्तूर भी है…

जानकर हैरानी होती है कि आपदा के इस वक्त में भी दुनिया भर के लोग तबीयत से पौर्न साइट सर्च कर रहे हैं जो उन्हें निराश नहीं कर रहीं है बल्कि यह तक सिखा रहीं हैं कि मास्क पहनकर और कुछ एहतियात बरतकर वे कैसे कैसे सेक्स का लुत्फ उठा सकते हैं . इनमें से एक वीडियो चीन के वुहान , जहां से कोरोना की उत्पत्ति हुई बताई जा रही है का भी है कि वहां के लोग अब कैसे सेक्स कर रहे हैं .

बात कम दिलचस्प नहीं कि आहार , भय और निद्रा की तरह मैथुन भी लोगों की प्राथमिकता में शिद्दत से है जिसकी तादाद इन दिनों बढ़ रही है लेकिन लोग कोरोना को लेकर सहमे हुये भी हैं कि कहीं सेक्स करने से तो इस जानलेवा वायरस का प्रकोप उन पर नहीं होगा . भोपाल जैसे बी श्रेणी के शहर में जहां लौक डाउन है वहां भी लोग स्पेशलिस्ट डाक्टरों से भी सलाह ले रहे हैं कि सेक्स करें या न करें और करें तो कैसे करें जिससे महफूज रहें .

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इस बारे में इस प्रतिनिधि ने भोपाल के सबसे बड़े और नामी बंसल अस्पताल के जाने माने कंसल्टेंट साइकेट्रिस्ट और सेक्सपर्ट डा. सत्यकान्त त्रिवेदी से बात की तो उन्होने बताया कि कोरोना के चलते सेक्स बेहिचक किया जा सकता है क्योंकि यह सेक्सुअली ट्रांसमिटेड बीमारी नहीं है लेकिन जरूरी यह है कि आप या आपका पार्टनर संक्रमित न हो इसलिए सेक्स के पहले खुद का और पार्टनर का संक्रमित न होना सुनिश्चित किया जाना जरूरी है .

डा. सत्यकान्त के पास रोज कई लोग ऐसे आ रहे हैं या फिर फोन पर सलाह ले रहे हैं जिन्हें वे ये टिप्स दे रहे हैं –

  • इस वक्त में कोई नया सेक्स पार्टनर न बनाएं यानी नए व्यक्ति से सेक्स करने से बचें.
  • अगर विदेश से आए हैं या विदेश से आए किसी व्यक्ति के संपर्क में आए हैं तो सेक्स से यथासंभव परहेज करें.
  • सर्दी जुकाम खांसी हो तो भी सेक्स से बचें लेकिन यह डरने की बात नहीं बल्कि एक तरह की सावधानी है , सर्दी जुकाम भी नजदीक आने से फैलते हैं.
  • संक्रमण की स्थिति में नो टच पालिसी पर चलें.
  • सेक्स के दूसरे माध्यमों का प्रयोग कर सकते हैं जैसे आडियो वीडियो चेट वगैरह.

यानि बात डरने की नहीं बल्कि सावधानिया बरतने की है क्योंकि कोरोना वायरस सहवास से नहीं फैलता और न ही इसका प्राइवेट पार्ट्स से कुछ लेना देना है .  यह श्वसन तंत्र से फैलने बाली बीमारी है इसलिए चुंबन और मुंह से की जाने बाली दूसरी सेक्स क्रियाएँ नहीं की जानी चाहिए .

यह दबाब मुक्त एकांत सेक्स के लिए तो वरदान सा ही है क्योंकि अधिकांश कपल्स आजकल कामकाजी हैं और क्षमता से ज्यादा काम उन्हें करना पड़ता है जिसका दुष्प्रभाव उनकी सेक्स लाइफ पर भी पड़ता है इसलिए खुलकर सेक्स का लुत्फ उठाएँ लेकिन ऊपर बताई गई सावधानियों के साथ .

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बेल्जियम में प्रतिबंध –    कोरोना का सेक्स कनेकशन बड़े दिलचस्प तरीके से बेल्जियम में देखने में आया है जहां की स्वास्थ मंत्री ने ग्रुप सेक्स पर प्रतिबंध लगा दिया है क्योंकि सेक्स पार्टियों के लिए बदनाम बेल्जियम के लोग बियर भी इफ़रात से पीने के लिए जाने जाते हैं हमारे देश के चुनिन्दा बड़े शहरों में इस तरह की पार्टियां होती हैं जहां समूहिक सेक्स का चलन बड़े पैमाने पर पसर चुका है . कोरोना इन लोगों के लिए चेतावनी है नहीं तो इस मजे की कीमत बहुत महंगी भी पड़ सकती है .

पिछले कुछ समय से मेरे चेहरे पर बहुत सारी फुंसियां हो गई हैं, मैं क्या करूं?

सवाल-

मेरी उम्र 21 साल है. पिछले कुछ समय से मेरे चेहरे पर बहुत सारी फुंसियां हो गई हैं. बहुत इलाज कराया, पर इन से छुटकारा नहीं मिला. मैं इन से बहुत ज्यादा परेशान हो गया हूं. इलाज बताएं?

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जवाब-

आप एक्ने से पीडित मालूम पड़ते हैं. एक्ने एक तरह की त्वचा संबंधी बीमारी है. इस के कई उपचार हो सकते हैं जिन में जिंदगी जीने के तरीके में बदलाव, दवाएं और दूसरी डाक्टरी प्रक्रियाएं शामिल हैं. चीनी जैसे सामान्य कार्बोहाइड्रेट खाने से भी फायदा हो सकता है.

प्रभावित त्वचा पर लगाए जाने वाले उपचार जैसे एजेलिक एसिड, बेनजोइल पैरोक्साइड और सैलिसिलिक एसिड आमतौर पर इस्तेमाल होते हैं. चमड़ी के माहिर डाक्टर से मुलाकात करें.

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