नीरो अभी जिंदा है

बचपन में एक कहावत सुनी थी कि रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था, मगर जब इतिहास पढ़ना शुरू किया तो इस कहावत की जड़ तक पहुंचने की कोशिश की. कहावत से आगे एक तानाशाह राजा की कारिस्तानी पता चली.

हुआ यों कि सम्राट नीरो ने एक बहुत बड़ी पार्टी का आयोजन किया था. तेसतीस के बाग में पार्टी रखी गई थी और रोम साम्राज्य के तमाम बड़े लोगों को न्योता दिया गया था. उस समय उस बगीचे में शाम को रोशनी का इंतजाम नहीं हो पाया था.

रोशनी का बंदोबस्त किस तरह किया जाए, इस के लिए सम्राट नीरो चिंता में पड़ गया. देशभर के इज्जतदार लोगों के बीच अपनी इज्जत का सवाल था. रोशनी व चमकदमक हर हाल में जरूरी थी.
सम्राट नीरो को आइडिया आया और जेल प्रहरियों व अनाथाश्रम संचालकों को निर्देश दिया गया कि जितने भी जेलों में व गरीब और लाचार लोग अनाथाश्रम में पड़े हैं, उन सब को बगीचे के चारों तरफ खड़ा कर के उन को आग के हवाले कर दो, ताकि पूरा बगीचा रोशन हो जाए और देशभर के नामचीन लोगों के बीच उस की इज्जत बरकरार रहे.

मेरे मन में सवाल यह नहीं था कि कितने लोगों को फूंका गया था या वे मरने वाले लोग कौन थे? सवाल यह था कि उस पार्टी में शामिल लोग कौन थे, जो अपना ईमान और इनसानियत सबकुछ ठेंगे पर रख कर पार्टी का लुत्फ उठाते रहे थे?

सवाल यह नहीं था कि विभिन्न आरोपों में जेलों में बंद पड़े लोगों को फूंक दिया गया और न न्यायपालिका बोल पाई और न ही आम जनता. सवाल यह भी था कि जब बेबस और बेसहारा लोगों को उस पार्टी के लिए फूंका जा रहा था, तो किसी ने विरोध क्यों नहीं किया?

जब मैं इतिहास के इन छिपे पन्नों की सचाई खोज रहा था, तो मेरे मन में सवाल यह नहीं था कि गड़े मुरदे उखाड़ कर वर्तमान व भविष्य के लिए बदले व नफरत की फसल की बोआई करूं, बल्कि मेरा ध्यान उसी सवाल पर लगा था कि उस पार्टी में वे मेहमान कौन थे?

देश के किसानों और कमेरों के निकलते जनाजे के बीच खुद को लाचार पाया, तो उस को भूल कर आज भाषण सुनने लग गया. मेरी दुविधा या सवाल यह नहीं है कि देश में किसानों की बरबादी कैसे हुई, बल्कि मेरा सवाल यह है कि किसानों की चिताएं जब बगीचे के चारों तरफ खड़ी कर के फूंकी जा रही हैं, तो इन की पार्टी में शामिल मेहमान कौन हैं?

आज पूरे 20 मिनट भाषण सुना, तो मुझे यकीन हो गया कि नीरो मरा नहीं था, वह अभी जिंदा है.
मेरा सवाल यह नहीं है कि नीरो ऐसा क्यों कर रहा है? मेरा सवाल यह नहीं है कि नीरो की पार्टी की इज्जत के लिए कौन लोग जिंदा फूंके जा रहे हैं?

मेरा असली सवाल यह है कि नीरो की पार्टी में शामिल वे मेहमान कौन हैं, जो तानाशाह राजशाही में बगावत  करने वाले जेलों में बंद आरोपी को फूंक रहे हैं, मगर ह्विस्की का मजा उठा रहे हैं?

वे मेहमान कौन हैं, जो भूखप्यास, सर्दीगरमी में दिल्ली बौर्डर पर बैठे किसानों को पार्टी की इज्जत के लिए जिंदा फूंकने की तैयारी कर रहे हैं, मगर उन के ऐशोआराम में कोई रुकावट नहीं पड़ने देना चाहते.
मेरा सवाल यह नहीं है कि नीरो की पार्टी के चलते वैश्विक महामारी कोरोना में देश क्यों फूंका जा रहा है, बल्कि मेरा असली सवाल यह है कि पार्टी का लुत्फ उठाने वाले कौन लोग हैं?

किसान, बीमार, मजदूर के मुद्दों में कुछ बदलाव हो सकता है, मगर उन का दर्द एक ही है कि वे दिल्ली में बैठे नीरो की पार्टी को रोशन करने के लिए जिंदा फूंके जा रहे हैं. अब मैं बताता हूं कि नीरो की पार्टी के मेहमान कौन थे. सम्राट नीरो, उस के मंत्रिमंडल के सदस्य, सरकारी अफसर, जज, पत्रकार, साहित्यकार, कलाकार, पढ़ाने वाले, क्रांतिकारी विचारक और समाज के बुद्धिजीवी लोग.

जो पार्टी में शामिल नहीं थे, वे जलते गरीबों के बुतों के बीच से ह्विस्की की गिलास लेदे रहे थे और जैसे ही एक लाश जल कर गिरती, वैसे ही अंदर से बाहर की तरफ ऐशोआराम की दवा फेंक दी जाती थी. कुसूर भूतकाल के नीरो का नहीं था और न ही वर्तमान के नीरो का है. कुसूर न किसानों और मजदूरों का है और न ही महामारी से पीडि़तों का है.

नीरो की पार्टी में शामिल कौन लोग हैं, बस इतना देखते रहिए. देशभर में तकरीबन 700 हाईटैक दफ्तर बनाए जा चुके हैं और काम जारी है, बाकी जनता आपस में सहयोग कर के देख ले, शायद बचने का और कोई रास्ता निकल आए.

प्रेम न बाड़ी उपजै : लीला का चैन किसने छीना

लीला ने जब से उस को देखा था, तब से ही उस के दिल में चैन ओ करार था ही नहीं. यह लड़का मनोज उस का सब सुकून छीन रहा था. इतना ही नहीं, सपनों में भी वह आ रहा था, पर वो जैसे कमजोर पड़ रही थी और आसक्ति में फंस कर खुद कुछ नहीं कर पा रही थी या शायद करना ही नहीं चाहती थी.

लीला कोई गईगुजरी तो थी नहीं. वह खुद एक दौलतमंद महिला थी. उस की इतनी लंबीचैड़ी जमींदारी थी, फिर भी वह साधना के पथ पर अपना आध्यात्मिक काम भी कर रही थी. वह जगहजगह यात्रा कर रही थी और प्रेम की कार्यशाला चला रही थी.

यों सच्ची बात यह थी कि साधना, वार्ता वगैरह यह सब वह अपने अकेलेपन की सूखी नदी को भरने के लिए ही कर रही थी. समाज उस को इतनी गपशप करने नहीं देता, मगर इस बहाने कितने चेहरे कितनी रसभरी बातें सब काम हो रहे थे. साथ ही, उस पर एक आवरण लग गया था त्याग करती महिला का, वह अपनी प्रेम पिपासा को ढंक कर, छिपा कर बहुत ही मजे में पूरा कर रही थी.

मगर, आज सुबह 3 बजे अचानक ही भद्देपन से फिर मनोज सपने में आ धमका और उस ने ही प्रीत की अगन जलाई और लीला को तत्परता से अपनी देह में भर कर यहांवहां टटोलने लगा. वह खुद भी बेसुध हो सब भूल सा गई थी. पुरुषोचित शौर्य से सम्मोहित वह कितनी पागल कैसी मोहित हो गई थी.

पर, आज वह 5 बजे जाग कर फिर से यही सोच रही थी कि कहीं कुछ जाहिर न हो जाए. मनोज को रोकना होगा. वह बेकार के लफडे़ में ही क्यों पड़ रही है, जबकि वह इस से पहले इसी तरह अचानक वहां, जहां उस के प्रवचन और वार्ता ही भलीभांति प्यास बुझा सकती हैं, कितने भी दर्जी बदल लो, न कपड़ा बदलता है, न तन और न ही मन. तो…, तो फिर खुद लीला क्या देहचक्र के साथ इतनी तेजी से खुद ही गोलगोल घूम रही थी?

यही सब सोचतेसोचते 6 बज गए. वह यों ही बाहर आंगन में निकल आई. देखा, अरे, मनोज  एक कुरसी पर बुत बना बैठा है. कम उजाले में अनिश्चितता में, उस के पदचाप सुन कर वह उठ खड़ी हुई और हंस दी.

यह हंसी मनोज की किसी सांस में झनझना उठी. वह चुपचाप उस के निकट गया. शायद वह देखना चाहता था, उस को आत्मा के भीतर बिलकुल उस की गहराई में देखना चाहता हो, पर यह तो, हमारा खयाल है, लीला ने एक मंत्र कहा और आवाज के तीव्र एकरस प्रकाश से उस का मुख एकबारगी चकाचौंध सा हो गया.

नहीं… यह खयाल नहीं है. मैं अभीअभी खेतों से चल कर यहां आया हूं.

और भरोसा दिलाने के लिए मनोज ने तिलमिला कर लीला को थाम लिया. उस की उंगली को 2-3 बार चूस कर छोड़ दिया.

‘‘ओह, बस… बस, मनोज बस… बहुत हुआ,‘‘ कह कर लीला ने हाथ छुड़ा लिया.

अब वे दोनों ही वहीं बैठ गए और फिर कोई जादू सा छाने लगा. उस खामोशी में जैसे मनोज अपने अंक में लीला को अचानक एक क्षण में पा गया.

‘‘फिर मिलेंगे. आज मैं चली जाऊंगी. अंतिम सत्र है आज मेरा,‘‘ वह जैसे इन एकएक शब्दों की सूक्ष्म ध्वनि नहीं, स्थूल शरीर दांतों से चबाना चाहती है. यह सुन कर मनोज जैसे हताश सा हो गया.

‘तो लीला, तुम्हारे आगे क्या इरादे हैं?’ जैसे इसी प्रश्न को करने के लिए शब्दों का दास बना हुआ है मनोज. जैसे उसे यह प्रश्न करने का निर्विवाद अधिकार है. लीला ने निर्विकार कहा, ‘कुछ… नहीं, नहीं.’

यह सुन कर वह चौंक उठा. एक विचित्र संतोष से, जैसे यह उत्तर पाने के लिए ही उस ने यह प्रश्न किया था, फिर बोला, ’क्या तुम मुझ से बंधी नहीं हो?’

‘बंधी’,  मैं तो जाने कब से जीवन के हर बंधन के मुंह पर थूक रही हूं. वह बोली, जैसे वह कुछ और कहना चाहती थी, ‘‘तो मुझे अभी और इसी समय प्रेम का रहस्य जानना है,‘‘ कह कर वह उस के पैरों से लिपट गया.

‘‘मगर, अभी तो भोर हुई है बस. ये क्या तमाशा कर रहे हो… यहां गेस्ट हाउस के नौकरचाकर आते ही होंगे,‘‘ लीला कुछ परेशान सी हो रही थी.

‘‘आने दो… आ जाते हैं तो भला हो क्या जाएगा? लीला, मैं तो तुम्हारा भक्त हो गया हूं. अब मैं अपनी देवी के पास जब चाहे आ सकता हूं… मुझे कोई डर नहीं है, कोई भय नहीं है.‘‘

सचमुच लीला यही सुनना चाहती थी. वह भी तो मन ही मन मनोज की दीवानी हो गई थी. उस ने यह भी नहीं पूछा कि 9 बजे का सत्र है. तुम इतनी सुबह क्यों खेतों से और कैसे पैदलपैदल ही आ धमके,‘‘ वह उस के गाल सहलाती हुई बोली, ‘‘मनोज, तुम बच्चे नहीं हो. तुम को यह पता होना चाहिए कि प्रेम करने की कला या किसी के प्यार में डूब जाने का गुर, किसी भी कार्यशाला में सीखे जाने लायक कौशल या हुनर बिलकुल नहीं है.”

‘‘हां… हां, जानता हूं,‘‘ मनोज ने बीच में टोका और कहने लगा, ‘‘लीला, ये बात अलग है कि कई विदेशी और भारतीय मीडिया में ‘क्रिएटिव लव’ यानी जादुई अटैचमेंट के फार्मूले सिखलाने के रसीले कोर्स बाकायदा चलाए जाते आ रहे हैं, और वे अकेले पड़ गए मनोज जैसे संकोची जीवों के बीच लोकप्रिय भी हैं.‘‘

‘‘लीला, मुझे मालूम है कि अकेले में मैं ने ही यही कोई 3,000 वैबसाइट देख रखी हैं, जो प्यार कैसे करें का बाकायदा लज्जतदार मसाला बना कर अनोखा आनंद भी देती हैं,‘‘ मनोज के  मुंह से निकल पड़ा.

यह सुनते ही लीला ने भी तपाक से कहा, ‘‘मनोज, मेरा मतलब प्रेम का आनंद आकर्षित करने वाली कुछ जरूरी चीजों की याद दिलाने की कोशिश तक ही सीमित नहीं है. मैं प्यार की कला के बारे में वे छोटीमोटी बातें कहूंगी, जिन्हें हम सब जानते हैं, पर जिन्हें हम अकसर भूल जाते हैं, इसलिए… और इस वार्ता के अंत में होने वाली निराशा के लिए मैं खासतौर पर मनोज तुम जैसे प्रेमियों से क्षमादान की उम्मीद करती हूं, जिन्होंने अपने दिल में ये छाप लिया है कि मैं तुम को आज प्यार करने के जादुई गुर सिखाने जा रही हूं… दुनिया में अनेक आविष्कार हुए हैं, पर प्यार करने, उस में डूबने का फार्मूला आज तक नहीं बना.‘‘

‘‘अच्छा… तो कब बनेगा? ऐसा करो, तुम ही बना दो ना,’’ मनोज ने उस की कलाई थाम ली.

‘‘मनोज, जहां तक सुंदर देह को सोचने का सवाल है, हमारे प्राचीन रसिकों ने, प्रेमशास्त्रियों ने 2 बातें जोर दे कर कही हैं- एक तो कल्पना और दूसरी लगाव. तुम जानते ही होगे या कभी सुना तो होगा ना…’’

‘‘क्या सुना होगा? साफसाफ कहो लीला?‘‘

‘‘वही मनोज, ‘करतकरत अभ्यास के जड़मति होत सुजान’. मनोज, मेरा मतलब है कि देह की  आहट सुनो… भाव को दफनाओ मत.‘‘

यह सुन कर मनोज जोरों से हंस पड़ा. लीला समझ गई तो वह भी खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘मन में कोई देवी स्थापित कर लो मनोज इस की तर्ज पर, न सिर्फ अकेली सौंदर्य कला का आनंद मिल जाता है. साथ में लगाव का अभ्यास करते जाने से, बल्कि दोनों के आदर्श मेल से सुकून ही सुकून… इसलिए प्रेम प्रतिभा को भी युद्ध अभ्यास की तरह जरूरी बतलाया गया है.”

‘‘ओह, अच्छा,’’ कह कर मनोज ने अपनी दोनों आंखों को बंद कर लिया.

‘‘देखो, तबला बजाना सीखना है, तो इस कला में  ‘रियाज’ का असाधारण महत्त्व है. मुझे लगता है, प्रेम में भी अभ्यास या रियाज शायद उतना ही उपयोगी और जरूरी चीज होनी चाहिए, मुझे उम्मीद है कि संकल्प ही प्रेम को झरने की तरह प्रस्फुटित करता है, बहने देता है. प्रेम की हर गली में नयापन खोजने की संभावना है? इस मामले में कल, आज और कल कोई पगडंडी नहीं है.

“इसलिए जादुई अहसास में डूबने को राजी मन, उस की कल्पनाशक्ति और गंध महसूस करना यही एक बेहतरीन प्रेमी होने के लिए 3 जरूरी औजार हैं,‘‘ लीला कहती रही.

‘‘मनोज, सुन लो, यह भी एक विचार है, सौंदर्य और आनंद को ‘देखने’ की आदत से बंधा विचार, जो यह बतलाता है कि हम कितना कम देखते हैं.‘‘

‘‘लीला, यह लगाव और देखने के अलावा एक और बात है, खुद अपनी देह की जरूरत उस से प्रेम करने की निरंतरता, अनिवार्यता, यही ना लीला,‘‘ मनोज ने कहा, तो लीला ने सहमति में सिर हिला दिया.

वह फिर उस का माथा चूम कर बोली, ‘‘सुनो मनोज, कोई और दूसरा रास्ता नहीं बचा है… और हां, एक बात और सुन लो, याद भी रखना, अचार, चटनी बेशक कम खाएं,  पर अच्छा खाएं.

‘‘यह लालसा भी वही है… समझे, यानी तुम्हारी सलाह है, प्रेमी, आशिक बेशक कम ही डूबें, पर शानदार ढंग से.‘‘

मनोज ने सवाल किया, “केवल आकर्षण के जोर से या केवल जरूरत के चमत्कार भर से कोई अच्छा प्रेम पूरा हो पाएगा, मुझे संदेह है.‘‘

मनोज के इस सवाल पर लीला ने उस को संकेत किया कि उसे तैयार होना है क्योंकि सत्र का समय हो रहा है और उसे आज यहां से लौट कर भी जाना था. आज इस गेस्ट हाउस में उस का अंतिम दिन था. अब वह यहां कब वापस लौटेगी, कुछ पता नहीं था.

मनोज ने सत्र में रुकना उचित नहीं समझा. वह किसान था. अब उस को फसल कटवानी थी. मजदूरों की व्यवस्था करनी थी. वह भी लौट चला. जब तक अपने खेतों मे पहुंचा, याद करता रहा कि लीला क्या कह रही थी…

‘‘मनोज, प्रेम की दुनिया वैसी ही दुनिया है, जिस में अनगिनत महकतेगमकते चित्रों का असमाप्त मेला है, हर कोने में हर कदम पर आप का साबका तसवीरों से पड़ता है, पर जिन के बारे में आप तब तक जागरूक नहीं होते, जब तक आप उन्हें देखने की सही कोशिश और अभ्यास न करें, जैसा रोमियो जैसे समर्पित प्रेमी ने कभी जूलियट से कहीं कहा था. हमें चाहिए कि हम थोडा सा रुकें और वे अद्भुतअनूठे चित्र देखें, जो सिर्फ प्रेम ही हमें दिखला सकता है.’’

‘‘हर पल, हर समय आनंद आने तक रोज कई घंटे बस एक ही रंगरूप का विचार इस बात का सब से बड़ा उदाहरण है… अब भले ही वह युद्ध जैसा उतना कठोर और भयानक न हो, पर हौलेहौले उस रूप को दिल की कल्पना की किताब में रोज लिख रहा था और यथासंभव कलापूर्ण तरीके से उस में अपने अनुभव लिखना प्रेम रियाज की एक शुरुआत हो चुकी थी. यह चौंकाने वाला अनुभव वह झरोखा बन गया, जो उस को घरबैठे संसारभर के आनंद  दिखला रही थी.

अब मनोज विधिवत अपना कामधंधा देख रहा था. अनाज मंडी जा रहा था. रुपया आ रहा था. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सब सिद्ध हो गए. हर काम हो रहा था. सबकुछ आसान था.

जहां जैसी जरूरत होती है, वो अपनी कल्पना का वैसा ही उपयोग कर रहा था. जैसी उस पल की मांग होती, पर अब उस के दिमाग में कल्पना का भंडार ही इतना चटपटा था कि अभिव्यक्ति भी वैसी ही होने लगी थी.

अब तो कल्पना की कामधेनु को वह कितना दुह सकता, यह उस की कलाकारी थी. अब वह माहिर हो गया तो वह जान चुका था कि कैसे आती है सुंदरी किसी दृश्य, किसी आवाज, किसी गंध, किसी आकृति, किसी याद, किसी स्पर्श में सुंदरी की आत्मा एक पल के हजारवें हिस्से में दिखती है और सांस की तरह उस में दाखिल हो जाती है… पर, वह जानता था कि वह बहुत देर रुकने वाला अनुभव नहीं. फौरन वह उस आत्मा को अपनी हैरत, अचरज के आभूषण पहना कर सफलतम लाभ ले लिया करता था. अब तो हर जादुई अनुभव उस के निकट उस अनुभव को व्यक्त करने की, ‘’मोहिनी विद्या का खुशबूदार- प्रस्ताव भी साथ ही लिए आता रहा.”

वह फांकी वाली : सुनसान गलियों की प्रेम कहानी

वह एक उमस भरी दोपहर थी. नरेंद्र बैठक में कूलर चला कर लेटा हुआ था. इस समय गलियों में लोगों का आनाजाना काफी कम हो जाता था और कभीकभार तो गलियां सुनसान भी हो जाती थीं.

उस दिन भी गलियां सुनसान थीं. तभी गली से एक फेरी वाली गुजरते हुए आवाज लगा रही थी, ‘‘फांकी ले लो फांकी…’’

जैसे ही आवाज नरेंद्र की बैठक के नजदीक आई तो उसे वह आवाज कुछ जानीपहचानी सी लगी. वह जल्दी से चारपाई से उठा और गली की तरफ लपका. तब तक वह फेरी वाली थोड़ा आगे निकल गई थी.

नरेंद्र ने पीछे से आवाज लगाई, ‘‘लच्छो, ऐ लच्छो, सुन तो.’’

उस फेरी वाली ने मुड़ कर देखा तो नरेंद्र ने इशारे से उसे अपने पास बुलाया. वह फेरी वाली फांकी और मुलतानी मिट्टी बेचने के लिए उस के पास आई और बोली, ‘‘जी बाबूजी, फांकी लोगे या मुलतानी मिट्टी?’’

नरेंद्र ने उसे देखा तो देखता ही रह गया. दोबारा जब उस लड़की ने पूछा, ‘‘क्या लोगे बाबूजी?’’ तब उस की तंद्रा टूटी.

नरेंद्र ने पूछा, ‘‘तुम लच्छो को जानती हो, वह भी यही काम करती है?’’

उस लड़की ने मुसकरा कर कहा, ‘‘लच्छो मेरी मां है.’’

नरेंद्र ने कहा, ‘‘वह कहां रहती है?’’

उस लड़की ने कहा, ‘‘वह यहीं मेरे साथ रहती है. आप के गांव के स्कूल के पास ही हमारा डेरा है. हम वहीं रहते हैं. आज मां पास वाले गांव में फेरी लगाने गई है.’’

नरेंद्र ने उस लड़की को बैठक में बिठाया, ठंडा पानी पिलाया और उस से कहा कि कल वह अपनी मां को साथ ले कर आए. तब उन का सामान भी खरीदेंगे और बातचीत भी करेंगे.

अगले दिन वे मांबेटी फेरी लगाते हुए नरेंद्र के घर पहुंचीं. उस ने दोनों को बैठक में बिठाया, चायपानी पिलाया. इस के बाद नरेंद्र ने लच्छो से पूछा, ‘‘क्या हालचाल है तुम्हारा?’’

लच्छो ने कहा, ‘‘तुम देख ही रहे हो. जैसी हूं बस ऐसी ही हूं. तुम सुनाओ?’’

नरेंद्र ने कहा, ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. अभी 2 साल पहले रिटायर हुआ हूं. 2 बेटे हैं. दोनों सर्विस करते हैं. बेटीदामाद भी भी सर्विस में हैं.

‘‘पत्नी छोटे बेटे के पास चंडीगढ़ गई है. मैं यहां इस घर की देखभाल करने के लिए. तुम अपने परिवार के बारे में बताओ,’’ नरेंद्र ने कहा.

लच्छो बोली, ‘‘तुम से बाबा की नानुकर के बाद हमारी जात में एक लड़का देख कर बाबा ने मेरी शादी करा दी थी. पति तो क्या था, नशे ने उस को खत्म कर रखा था.

‘‘यह मेरी एकलौती बेटी है सन्नो. इस के जन्म के 2 साल बाद ही इस के पिता की मौत हो गई थी. तब से ले कर आज तक अपनी किस्मत को मैं इस फांकी की टोकरी के साथ ढो रही हूं.’’

उन दोनों के जाने के बाद नरेंद्र यादों में खो गया. बात उन दिनों की थी जब वह ग्राम सचिव था. उस की पोस्टिंग राजस्थानहरियाणा के एक बौर्डर के गांव में थी. वह वहीं गांव में एक कमरा किराए पर ले कर रहता था.

वह कमरा गली के ऊपर था. उस के आगे 4-5 फुट चौड़ा व 8-10 फुट लंबा एक चबूतरा बना हुआ था. उस चबूतरे पर गली के लोग ताश खेलते रहते थे. दोपहर में फेरी वाले वहां बैठ कर आराम करते थे यानी चबूतरे पर रात तक चहलपहल बनी रहती थी.

राजस्थान से फांकी, मुलतानी मिट्टी, जीरा, लहसुन व दूसरी चीजें बेचने वाले वहां बहुत आते थे. कड़तुंबा, काला नमक, जीरा वगैरह के मिश्रण से वे लोग फांकी तैयार करते थे जो पेटदर्द, गैस, बदहजमी जैसी बीमारियों के लिए इनसानों व पशुओं के लिए बेहद गुणकारी साबित होती है.

उस दिन भी गरमी की दोपहर थी. फेरी वाली गांव में फेरी लगा कर कमरे के बाहर चबूतरे पर आ कर आराम कर रही थी. उस ने किवाड़ की सांकल खड़काई. नरेंद्र ने दरवाजा खोल कर देखा कि 18-20 साल की एक लड़की राजस्थानी लिबास में चबूतरे पर बैठी थी.

नरेंद्र ने पूछा था, ‘क्या बात है?’

उस ने मुसकरा कर कहा था, ‘बाबूजी, प्यास लगी है. पानी है तो दे देना.’

नरेंद्र ने मटके से उस को पानी पिलाया था. पानी पी कर वह कुछ देर वहीं बैठी रही. नरेंद्र उस के गठीले बदन के उभारों को देखता रहा. वह लड़की उसे बहुत खूबसूरत लगी थी.

नरेंद्र ने उस से पूछ लिया, ‘तुम्हारा नाम क्या है?’

उस ने कहा था, ‘लच्छो.’

‘तुम लोग रहते कहां हो?’ नरेंद्र के यह पूछने पर उस ने कहा था, ‘बाबूजी,  हम खानाबदोश हैं. घूमघूम कर अपनी गुजरबसर करते हैं. अब कई दिनों से यहीं गांव के बाहर डेरा है. पता नहीं, कब तक यहां रह पाएंगे,’ समय बिताने के बहाने नरेंद्र लच्छो के साथ काफी देर तक बातें करता रहा था.

अगले दिन फिर लच्छो चबूतरे पर आ गई. वे फिर बातचीत में मसरूफ हो गए. धीरेधीरे बातें मुलाकातों में बदलने लगीं. लच्छो ने बाहर चबूतरे से कमरे के अंदर की चारपाई तक का सफर पूरा कर लिया था.

दोपहर के वीरानेपन का उन दोनों ने भरपूर फायदा उठाया था. अब तो उन का एकदूसरे के बिना दिल ही नहीं लगता था.

नरेंद्र अभी तक कुंआरा था और लच्छो भी. वह कभीकभार लच्छो के साथ बाहर घूमने चला जाता था. लच्छो उसे प्यारी लगने लगी थी. वह उस से दूर नहीं होना चाहता था. उधर लच्छो की भी यही हालत थी.

लच्छो ने अपने मातापिता से रिश्ते के बारे में बात की. वे लगातार समाज की दुहाई देते रहे और टस से मस नहीं हुए. गांव के सरपंच से भी दबाव बनाने को कहा.

सरपंच ने उन को बहुत समझाया और लच्छो का रिश्ता नरेंद्र के साथ करने की बात कही लेकिन लच्छो के पिताजी नहीं माने. ज्यादा दबाव देने पर वे अपने डेरे को वहां से उठा कर रातोंरात कहीं चले गए.

नरेंद्र पागलों की तरह मोटरसाइकिल ले कर उन्हें एक गांव से दूसरे गांव ढूंढ़ता रहा लेकिन वे नहीं मिले.

नरेंद्र की भूखप्यास सब मर गई. सरपंच ने बहुत समझाया, लेकिन कोई फायदा नहीं. बस हर समय लच्छो की ही तसवीर उन की आंखों के सामने छाई रहती. सरपंच ने हालत भांपते हुए नरेंद्र की बदली दूसरी जगह करा दी और उस के पिताजी को बुला कर सबकुछ बता दिया.

पिताजी नरेंद्र को गांव ले आए. वहां गांव के साथियों के साथ बातचीत कर के लच्छो से ध्यान हटा तो उन की सेहत में सुधार होने लगा. पिताजी ने मौका देख कर उस का रिश्ता तय कर दिया और कुछ समय बाद शादी भी करा दी.

पत्नी के आने के बाद लच्छो का बचाखुचा नशा भी काफूर हो गया था. फिर बच्चे हुए तो उन की परवरिश में वह ऐसा उलझा कि कुछ भी याद नहीं रहा.

आज 35 साल बाद सन्नो की आवाज ने, उस के रंगरूप ने नरेंद्र के मन में एक बार फिर लच्छो की याद ताजा कर दी.

आज लच्छो से मिल कर नरेंद्र ने आंखोंआंखों में कितने गिलेशिकवे किए.  लच्छो व सन्नो चलने लगीं तो नरेंद्र ने कुछ रुपए लच्छो की मुट्ठी में टोकरी उठाते वक्त दबा दिए और जातेजाते ताकीद भी कर दी कि कभी भी किसी चीज की जरूरत हो तो बेधड़क आ कर ले जाना या बता देना, वह चीज तुम तक पहुंच जाएगी.

लच्छो का भी दिल भर आया था. आवाज निकल नहीं पा रही थी. उस ने उसी प्यारभरी नजर से देखा, जैसे वह पहले देखा करती थी. उस की आंखें भर आई थीं. उस ने जैसे ही हां में सिर हिलाया, नरेंद्र की आंखों से भी आंसू बह निकले. वह अपने पहले की जिंदगी को दूर जाता देख रहा था और वह जा रही थी.

एहसास सच्ची मुहब्बत का

कल विवेक ने मुझे प्रपोज किया. मन ही मन मैं भी उसे पसंद करती थी. वह देखने में हैंडसम है, पढ़ालिखा है और एक अच्छी कंपनी में नौकरी करता है. उस के अंदर वे सारे गुण हैं, जो एक कामयाब इनसान में होने चाहिए.

तकरीबन 3 साल पहले ही मुझे यह अंदाजा हो गया था कि विवेक मुझे पसंद करता है और मुझ से बहुत प्यार करता है, लेकिन कहने से डरता है. फिर मैं भी तो यही चाहती थी कि विवेक पहले मुझ से अपने दिल की बात कहे, तब मैं कुछ कहूंगी. पर क्या पता था कि इंतजार की ये घडि़यां 3 साल लंबी हो जाएंगी और कल विवेक ने साफ लफ्जों में कह दिया, ‘अंजलि, मैं पिछले 3 साल से तुम्हें पसंद करता हूं, पर पता नहीं क्यों मैं तुम से कुछ कह नहीं पाता हूं. लेकिन अब मेरा सब्र जवाब दे गया है. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और अब बहुत जल्द तुम से शादी करना चाहता हूं.

‘मुझे यह तो मालूम है अंजलि कि तुम्हारे दिल के किसी कोने में मेरे लिए मुहब्बत है, लेकिन फिर भी मैं एक बार तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’

विवेक इतना कह कर मेरे जवाब का इंतजार करने लगा. लेकिन मुझे खामोश देख कर कहने लगा, ‘ठीक है अंजलि, मैं तुम्हें 2 दिन का वक्त देता हूं. तुम सोचसमझ कर बोलना.’

मेरा दिल सोच के गहरे समंदर में डूबने लगा. मैं जब 8 साल की थी तो मेरी मम्मी चल बसी थीं और फिर

2 साल के बाद पापा भी हमें अकेला छोड़ गए थे. मुझे से बड़े मेरे भैया थे और मुझ से छोटी एक बहन थी, जिस का नाम नेहा था.

मम्मीपापा के चले जाने के बाद हम तीनों भाईबहन की देखभाल मेरी बूआ ने की थी. वे बहुत गरीब थीं उन का भी एक बेटा और एक बेटी थीं.

नेहा मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर थी. उस के इलाज और मेरी पढ़ाई में भैया ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मेरी पढ़ाई पूरी होने के बाद भैया ने मेरे लिए रिश्ता ढूंढ़ना शुरू कर दिया था, लेकिन मैं आगे भी पढ़ना चाहती थी, इसलिए शादी से इनकार कर दिया.

भैया ने मेरी बात मान ली, क्योंकि हमारे घर में एक औरत की जरूरत थी. इसलिए भैया ने अपनी शादी रचा ली. मेरी भाभी भी मेरी बैस्ट फ्रैंड की तरह थी. फिर वह दिन भी आ गया, जब मैं बूआ बन गई. एक नन्ही सी गुडि़या भी हमारे घर आ गई. मेरे भैया मेरे किसी भी ख्वाहिश को मेरी जबान पर आते ही पूरा कर देते थे.

हमारा परिवार बहुत खुशहाल था कि एक दिन कुदरत ने हम से हमारी दुनिया ही छीन ली. भैयाभाभी और नन्ही सी गुडि़या एक कार हादसे में मारे गए. हमें अब संभालने वाला कोई नहीं था. नेहा तो कुछ समझ नहीं पाई, बस सबकुछ देखती रही.

भैया जब तक जिंदा थे, तब तक मैं यह भी नहीं जानती थी कि भैया की तनख्वाह कितनी है, पर उन की मौत के बाद धीरेधीरे उन के सारे जमा पैसों का पता चलता गया. उन्होंने हम दोनों बहनों के नाम पर भारी रकम जमा की थी और भाभी और अपने नाम पर जो इंश्योरैंस कराया था, वह अलग. इन पैसों के बारे में कुछ रिश्तेदारों को भनक लगी, तो कुछ लोगों ने हम दोनों बहनों की देखरेख का जिम्मा उठाना चाहा. पर मैं उन लोगों की गिद्ध जैसी नजरों को पहचान गई और इनकार कर दिया.

लेकिन विवेक ने आखिर अब इतनी जल्दबाजी क्यों की? अभी तो इस हादसे को 2 महीना ही हुआ है. क्या विवेक भी उन में से एक है? क्या उसे भी मेरे पैसों से मुहब्बत है? यही सोचसोच कर मेरा दिल एकदम से बेचैन था. मैं रातभर ठीक से सो भी नहीं पाई.

फिर 2 दिन के बाद जब विवेक ने मुझे फोन किया और मेरा जवाब जानना चाहा तो मैं ने यही कहा कि अगर मैं शादी कर लूंगी तो नेहा अकेली हो जाएगी.

‘‘पगली क्या हम नेहा को उसी घर में अकेले छोड़ देंगे? उसे भी तुम्हारे साथ अपने घर ले आएंगे.’’

इस बात से मेरा दिल और भी दहशत में डूब गया. नेहा के नाम पर भी इतना पैसा और जायदाद है, तो क्या नेहा पर विवेक की नजर है? मुझे तो हमेशा से पैसे के लालची लोगों से नफरत है. अब विवेक के चेहरे पर भी उन्हीं लोगों का चेहरा नजर आता है.

मैं रातभर इसी सोच में डूबी रही. कब आंख लगी, पता ही नहीं चला. मेरी आंख तब खुली, जब बूआ ने आ कर आवाज दी कि अंजलि उठो. विवेक आया है. मैं जल्दी से उठी और फ्रैश हो कर नीचे आ गई.

‘‘अंजलि, क्या बात है. आज 4 दिन हो गए हैं और तुम ने कोई जवाब नहीं दिया मेरी बातों का?’’

‘‘विवेक, आखिर तुम्हें जवाब की इतनी जल्दी क्या पड़ गई है, अभी तो हमारे घर में इतना बड़ा हादसा हुआ है.’’

‘‘अंजलि, यही तो वजह है कि तुम अब अकेली हो गई हो और मैं जल्द से जल्द तुम्हारा सहारा बनना चाहता हूं. मैं तुम्हें इस घर में अकेले नहीं छोड़ना चाहता हूं.’’

‘‘विवेक, मैं ने अपनी जिंदगी के लिए कुछ फैसले लिए हैं और उन के बारे में तुम्हें बताना चाहती हूं.

‘‘हां हां, जरूर बताओ,’’ विवेक ने कहा.

‘‘मैं तुम से शादी करने के लिए राजी हूं. मेरी बूआ ने हम दोनों की हमेशा देखभाल की. मम्मीपापा के जाने के बाद उन्होंने कभी भी उन की कमी महसूस नहीं होने दी.

‘‘मैं चाहती हूं कि मैं अपनी आधी जायदाद उन के नाम कर दूं, ताकि उन के बच्चों का भविष्य सुधर जाए.

‘‘विवेक, मेरा सहारा तो तुम हो, लेकिन नेहा तो मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर है और उस के इलाज में भारी रकम खर्च होती है.

‘‘मुझे अब पैसों की क्या जरूरत है. विवेक कहो, मेरा फैसला ठीक है या गलत है?’’

विवेक कुछ देर चुप था, बस अंजलि को देख रहा था.

अंजलि को लग रहा था कि उस का यह फैसला सुनने के बाद अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

‘‘अंजलि, मैं ने तुम्हें जो समझ कर प्यार किया, तुम वह नहीं हो,’’ विवेक बोला.

‘‘मैं समझी नहीं विवेक, तुम क्या समझते हो मुझे और मैं क्या हूं?’’

‘‘मैं तो सिर्फ इतना समझता था कि तुम एक खूबसूरत लड़की हो, मैं ने सिर्फ आज तक तुम्हारे चेहरे की खूबसूरती को देखा था, लेकिन आज तुम्हारे मन की खूबसूरती को देख रहा हूं.

‘‘एक लाचार बहन पर अपना सबकुछ कुरबान कर देना और एक गरीब बूआ के बच्चों के अच्छे भविष्य के बारे में सोचना…

‘‘आज पहली बार मुझे तुम से मुहब्बत करने पर गर्व हो रहा है अंजलि, जहां आज इस पापी दुनिया में लोग दूसरों का हक छीन कर खाते हैं, वहीं इसी दुनिया में तुम्हारे जैसे लोग भी मौजूद हैं, जो दूसरों के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं.

‘‘मुझे तुम्हारा फैसला मंजूर है, बस तुम तैयार रहो. मैं जल्दी ही डोली ले कर तुम्हारे घर आ रहा हूं.’’

अंजली विवेक की बात सुन कर मुसकरा दी. उसे आज ऐसा महसूस हुआ, जैसे सालों से दिल में गड़ा हुआ कांटा निकल गया हो.

आज उसे विवेक की सच्ची मुहब्बत का एहसास हो गया था. ऐसा लग रहा था कि उसे नई जिंदगी मिल गई. मैं भी तो विवेक को नहीं जानती थी कि उस के मन में भी इतना अच्छा इनसान छिपा था और मैं भी कितनी पागल थी कि उस पर शक कर रही थी.

मैं ने खिड़की का परदा हटाया. देखा, एक नई सुबह मेरा इंतजार कर रही थी जिस में सचाई थी, मुहब्बत थी और सबकुछ था, जो मुझे जीने के लिए चाहिए था.

लेखिका- तबस्सुम बानो

शॉर्टकट: नसरीन ने सफलता पाने के लिए कौन-सा रास्ता अपनाया?

उफ फिर एक नया ग्रुप. लगता है सारी दुनिया सिर्फ व्हाट्सऐप में ही सिमट गई है. कालेज जाने से पहले अपने मोबाइल में व्हाट्सऐप मैसेज चैक करते समय नसरीन ने खुद को एक नए व्हाट्सऐप ग्रुप सितारे जमीं पर से जुड़ा पाया.

यह व्हाट्सऐप का शौक भी धीरेधीरे लत बनता जा रहा है. न देखो तो कई महत्त्वपूर्ण सूचनाओं और जानकारी से वंचित रह जाते हैं और देखने बैठ जाओ तो वक्त कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता. किसीकिसी ग्रुप में तो एक ही दिन में सैकड़ों मैसेज आ जाते हैं. बेचारा मोबाइल हैंग हो जाता है. आधे से ज्यादा तो मुफ्त का ज्ञान बांटने वाले कौपीपेस्ट ही होते हैं और बचे हुए आधों में भी ज्यादातर तो गुडमौर्निंग, गुड ईवनिंग या गुड नाइट जैसे बेमतलब के होते. लेदे कर कोई एकाध मैसेज ही दिन भर में काम का होता है. बच्चे का नैपी जैसे हो गया है मोबाइल. चाहे कुछ हो या न हो बारबार चैक करने की आदत सी हो गई है. नसरीन सोचतेसोचते सरसरी निगाहों से सारे मैसेज देख रही थी. कुछ पढ़ती और फिर डिलीट कर देती. कालेज जाने से पहले रात भर के आए सभी मैसेज चैक करना उस की आदत में शुमार है.

देखें तो क्या है इस नए ग्रुप में? ऐडमिन कौन है? कौनकौन जुड़ा है इस में? क्या कोई ऐसा भी है जिसे मैं जानती हूं? नसरीन ने नए ग्रुप के गु्रप इन्फो पर टैब किया. इस ग्रुप में फिलहाल 107 लोग जुड़े थे. स्क्रोल करतेकरते उस की उंगलियां एक नाम पर जा कर ठहर गईं. राजन? ग्रुप ऐडमिन को पहचानते ही नसरीन उछल पड़ी.

अरे, ये तो फेस औफ द ईयर कौंटैस्ट के आयोजक हैं. इस का मतलब मेरा प्रोफाइल फर्स्ट लैवल पर सलैक्ट हो गया है. नसरीन के अरमानों को छोटेछोटे पंख उग आए.

नसरीन जयपुर में रहने वाले मध्यवर्गीय मुसलिम परिवार की साधारण युवती है. मगर उस की महत्त्वाकांक्षा उसे असाधारण बनाती है. 5 फुट 5 इंच लंबी, आकर्षक नैननक्श और छरहरी काया की मालकिन नसरीन के सपने बहुत ऊंचे हैं और अपने सपनों को पूरा करने के लिए वह किसी भी हद तक जाने का जनून रखती है. जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने वाली नसरीन को समाज के रूढिवादी रवैए ने बागी बना दिया. उस का सपना मौडल बनने का है. मगर सब से बड़ी बाधा उस का खुद का परिवार बना हुआ है. उस के भाई को उस का फैशनेबल कपड़े पहनना फूटी आंख नहीं सुहाता और मां भी जितनी जल्दी हो सके अपने भाई के बेटे से उस का निकाह कराना चाहतीं. मगर इस सब से बेखबर नसरीन अपनी ही दुनिया में खोई रहती है. उस की जिंदगी में फिलहाल शादी और बच्चों के लिए कोई जगह नहीं है. उस की हमउम्र सहेलियां उस से ईर्ष्या करती हैं. मगर मन ही मन उस की तरह जीना भी चाहती हैं.

महल्ले के बड़ेबुजुर्गों और मौलाना साहब तक उस के अब्बा हुजूर को हिदायत दे चुके हैं कि बेटी को हिजाब में रखें और कुरान की तालीम दें, क्योंकि उसे देख कर समाज की बाकी लड़कियां भी बिगड़ रही हैं. लेकिन अब्बा को जमाने से ज्यादा अपनी बेटी की खुशी प्यारी थी, इसलिए उन्होंने उसे सब की निगाहों से दूर फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने दिल्ली भेज दिया.

एक दिन कालेज के नोटिस बोर्ड पर राजन की कंपनी द्वारा आयोजित फेस औफ द ईयर कौंटैस्ट का विज्ञापन देखा, तो उसे आशा की एक किरण नजर आई. हालांकि दिल्ली में आए दिन इस तरह के आयोजन होते रहते हैं, मगर राजन की कंपनी द्वारा चुने गए मौडल देश भर में अलग पहचान रखते हैं. विज्ञप्ति के अनुसार विभिन्न चरणों से होते हुए प्रतियोगिता का फाइनल राउंड मुंबई में होना था तथा विजेता मौडल को क्व10 लाख नकद इनाम राशि के साथसाथ 1 साल का मौडलिंग कौंट्रैक्ट साइन करना था. यह जानते हुए भी कि फिल्मों की तरह इस क्षेत्र में भी गौड फादर का होना जरूरी है, नसरीन ने इस प्रतियोगिता के लिए अपनी ऐंट्री भेज दी. उस का सोचना था कि वह यह कौंटैस्ट जीत गई तो आगे का रास्ता खुल जाएगा.

राजन फैशन जगत में जाना माना नाम है. उस की रंगीनमिजाजी के किस्से अकसर सुनाई देते हैं. फिर भी उस के लिए मौडलिंग करना किसी भी नवोदित का सपना होता है. आज खुद इस ग्रुप में राजन के साथ जुड़ कर नसरीन को यों लगा मानो उस की लौटरी लग गई. आज आसमान मुट्ठी में कैद हुआ सा लग रहा था. उसे अचानक नीरस और उबाऊ व्हाट्सऐप अच्छा लगने लगा.

‘सब कुछ सिस्टेमैटिक तरीके से करना होगा.’ सोचते हुए मिशन की प्लानिंग के हिसाब से सब से पहले नसरीन ने व्हाट्सऐप प्रोफाइल की डीपी पर लगी अपनी पुरानी तसवीर हटा कर सैक्सी तसवीर लगाई. फिर राजन को पर्सनल चैट बौक्स में मैसेज भेज कर थैंक्स कहा. राजन ने जवाब में दोनों हाथ नमस्कार की मुद्रा में जुड़े हुए 2 स्माइली प्रतीक भेजे. यह नसरीन की राजन के साथ पहली चैट थी.

एक दिन नसरीन ने अपने कुछ फोटो राजन के इनबौक्स में भेजे तथा तुरंत ही सौरी का मैसेज भेजते हुए लिखा, ‘‘माफ कीजिएगा, गलती से सैंड हो गए.’’

‘‘इट्स ओके. बट यू आर लुकिंग वैरी सैक्सी,’’ राजन ने लिखा.

‘‘सर, मैं इस वक्त दुनिया की सब से खुशहाल लड़की हूं, क्योंकि मैं आप जैसे किंग मेकर से सीधे रूबरू हूं.’’

‘‘मैं तो एक अदना सा कला का सेवक हूं.’’

‘‘हीरा अपना मोल खुद नहीं आंक सकता.’’

‘‘आप नाहक मुझे चने के झाड़ पर चढ़ा रही हैं.’’

‘‘जो सच है वही कह रही हूं…’’

राजन ने 2 हाथ जुड़े हुए धन्यवाद की मुद्रा में भेजे.

‘‘ओके सर बाय. कल मिलते हैं,’’ और 2 स्माइली के साथ नसरीन ने चैट बंद कर दी.

2 दिन बाद प्रतियोगिता का पहला राउंड था. नसरीन ने राजन को लिखा, ‘‘सर, यह मेरा पहला चांस है, क्या हमारा साथ बना रहेगा?’’

‘‘यह तो वक्त तय करेगा या फिर खुद तुम,’’ कह कर राजन ने जैसे उसे एक हिंट दिया.

नसरीन उस का इशारा कुछकुछ समझ गई. फिर ‘मैं यह कौंटैस्ट हर कीमत पर जीतना चाहूंगी,’ लिख कर नसरीन ने उसे हरी झंडी दे दी.

पहले राउंड में देश भर से चुनी गईं 60 मौडलों में से दूसरे राउंड के लिए  20 युवतियों का चयन किया गया. नसरीन भी उन में से एक थी. राजन ने उसे बधाई देने के लिए अपने कैबिन में बुलाया. आज उस की राजन से प्रत्यक्ष मुलाकात हुई. राजन जितना फोटो में दिखाई देता था उस से कहीं ज्यादा आकर्षक और हैंडसम था. अपने कैबिन में उस ने नसरीन के गाल थपथपाते हुए कहा, ‘‘बेबी, हाऊ आर यू फीलिंग नाऊ?’’

‘‘यह राउंड क्वालिफाई करने के बाद या फिर आप से मिलने के बाद?’’ नसरीन ने शरारत से पूछा.

‘‘स्मार्ट गर्ल.’’

‘‘अब आगे क्या होगा?’’

‘‘कहा तो है कि यह तुम पर डिपैंड करता है,’’ राजन ने उस की खुली पीठ को हलके से छूते हुए कहा.

‘‘वह तो है, मगर अब कंपीटिशन और भी टफ होने वाला है,’’ नसरीन ने राजन की हरकत का कोई विरोध न करते हुए कहा.

‘‘बेबी, तुम एक काम करो, नैक्स्ट राउंड में अभी 10 दिन का टाइम है. तुम रोनित शेट्टी से पर्सनैलिटी ग्रूमिंग की क्लासेज ले लो. मैं उसे फोन कर देता हूं,’’ राजन ने उस के चेहरे पर आई लटों को हटाते हुए कहा.

‘‘सो नाइस औफ यू… थैंक्स,’’ कह नसरीन ने उस के हाथ से रोनित का कार्ड ले लिया.

10 दिन बाद प्रतियोगिता के सैकंड राउंड में नसरीन सहित 10 मौडलों का चयन किया गया. अब आखिरी राउंड में विजेता का चयन किया जाना था. प्रतियोगिता का फाइनल मुंबई में होना था. निर्णायक मंडल में राजन सहित एक प्रसिद्ध टीवी ऐक्ट्रैस और एक प्रसिद्ध पुरुष मौडल था.

नसरीन भी सभी प्रतिभागियों के साथ मुंबई पहुंच गई. प्रतिभागियों के रुकने की अलग व्यवस्था की गई थी और बाकी टीम की अलग. राजन ने नसरीन को मैसेज कर के अपने रूम में बुलाया.

‘‘तो बेबी, क्या सोचा तुम ने?’’

‘‘इस में सोचना क्या? यह तो एक डील है… तुम मुझे खुश कर दो, मैं तुम्हें कर दूंगी,’’ नसरीन ने बेबाकी से कहा.

‘‘तो ठीक है, रात को डील पर मुहर लगा देते हैं.’’

‘‘आज नहीं कल रिजल्ट के बाद.’’

‘‘मुझ पर भरोसा नहीं?’’

‘‘भरोसा तो है, मगर मेरे पास भी तो सैलिब्रेट करने का कोई बहाना होना चाहिए न?’’ नसरीन ने उसे अपने से अलग करते हुए कहा.

‘‘ऐज यू विश… औल द बैस्ट,’’ कहते हुए राजन ने उसे बिदा किया.

अगले दिन विभिन्न चरणों की औपचारिकता से गुजरते हुए अंतिम निर्णय के आधार पर नसरीन को फेस औफ द ईयर चुना गया. तालियों की गड़गड़ाहट के बीच पिछले वर्ष की विजेता ने अपना क्राउन उसे पहनाया तो नसरीन की आंखें खुशी के मारे छलक उठीं. उस ने राजन की तरफ कृतज्ञता से देखा तो राजन ने एक आंख दबा कर उसे उस का वादा याद दिलाया. नसरीन मुसकरा दी.

आज की रात अपनी देह का मखमली कालीन बिछा कर नसरीन ने अपनी मंजिल को पाने के लिए शौर्टकट की पहली सीढ़ी पर पांव रखा. एक गरम कतरा उस की पलकों की कोर को नम करता हुए धीरे से तकिए में समा गया.

खिताब जीतने के बाद पहली बार नसरीन अपने शहर आई. पर रेलवे स्टेशन पर कट्टर समाज के लोगों ने उस के भाई की अगुआई में उसे काले झंडे दिखाए, मुर्दाबाद के नारे लगाए और उसे ट्रेन से उतरने नहीं दिया. भीड़ में सब से पीछे खड़े उस के अब्बा उसे डबडबाई आंखों से निहार रहे थे. नसरीन उन्हें देख कर सिर्फ हाथ ही हिला सकी और ट्रेन चल पड़ी. इस विरोध के बाद उस ने फिर कभी जयपुर का रुख नहीं किया.

देखते ही देखते विज्ञापन की दुनिया में नसरीन छा गई. लेकिन शौर्टकट सीढि़यां चढ़तेचढ़ते काफी ऊपर आ गई नसरीन के लिए मंजिल अभी भी दूर थी. उस की ख्वाहिश इंटरनैशनल लैवल तक जाने की थी और सिर्फ राजन के पंखों के सहारे इतनी ऊंची उड़ान भरना संभव नहीं था. उसे अब और भी सशक्त पंखों की तलाश थी, जो उस की उड़ान को 7वें आसमान तक ले जा सके.

एक दिन उसे पता चला कि फैशन जगत के बेताज बादशाह समीर खान को अपने इंटरनैशनल प्रोजैक्ट के लिए फ्रैश चेहरा चाहिए. उस ने समीर खान से अपौइंटमैंट लिया और उस के औफिस पहुंच गई. इधरउधर की बातों के बाद सीधे मुद्दे पर आते हुए समीर ने कहा, ‘‘देखो बेबी, यह एक बीच सूट है और बीच सूट कैसा होता है, आई होप तुम जानती होंगी.’’

‘‘यू डौंट वरी. जैसा आप चाहोगे हो जाएगा,’’ नसरीन ने उसे आश्वस्त किया.

‘‘ठीक है, नैक्स्ट वीक औडिशन है, लेकिन उस से पहले हम देखना चाहेंगे कि यह जिस्म बीच सूट लायक है भी या नहीं,’’ समीर ने कहा.

नसरीन उस का इशारा समझ रही थी. अत: उस ने कहा, ‘‘पहले औडिशन ले कर ट्रेलर देख लीजिए. कोई संभावना दिखे तो पूरी पिक्चर भी देख लेना.’’

‘‘वाह, ब्यूटी विद ब्रेन,’’ कहते हुए समीर ने उस के गाल थपथपाए.

नसरीन का चयन इस प्रोजैक्ट के लिए हो गया. 1 महीने बाद उसे समीर की टीम के साथ सूट के लिए विदेश जाना था. अब राजन से उस का संपर्क कुछ कम होने लगा था.

आज राजन ने उसे डिनर के लिए इनवाइट किया था. नसरीन जानती थी कि वह रात की गई सुबह ही वापस आएगी. कुछ भी हो, मगर राजन के लिए उस के दिल में एक सौफ्ट कौर्नर था.

‘‘समीर के साथ जा रही हो?’’

‘‘हूं.’’

‘‘मुझे भूल जाओगी?’’

‘‘यह मैं ने कब कहा?’’

‘‘तुम उसे जानती ही कितना हो… एक नंबर का लड़कीखोर है.’’

‘‘तुम्हें भी कहां जानती थी?’’

‘‘शायद तुम्हें उड़ने के लिए अब आकाश छोटा पड़ने लगा?’’

‘‘तुम्हें कहीं मुझ से प्यार तो नहीं होने लगा?’’ नसरीन ने माहौल को हलकाफुलका करने के लिए हंसते हुए कहा.

‘‘अगर मैं हां कहूं तो?’’ राजन ने उस की आंखों में झांका.

‘‘तुम ऐसा नहीं कहोगे.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि फैशन की इस दुनिया में प्यार नहीं होता. वैसे भी तुम्हारी कंपनी फेस औफ द ईयर कौंटैस्ट फिर से आयोजित करने वाली है. फिर एक नया चेहरा चुना जाएगा, जो तुम्हारी कंपनी और तुम्हारे बिस्तर की शोभा बढ़ाएगा. फिर से तुम साल भर के लिए बिजी हो जाओगे. मैं ने पिछले वर्ष की मौडल के चेहरे पर एक पीड़ा देखी थी जब वह मुझे क्राउन पहना रही थी. वह पीड़ा मैं अपनी आंखों में नहीं आने देना चाहती,’’ नसरीन ने बहुत ही साफगोई से कहा.

राजन उसे अवाक देख रहा था. उस ने अपनी जिंदगी में आज तक इतनी पारदर्शी सोच वाली लड़की नहीं देखी थी.

नसरीन ने आगे कहा, ‘‘मेरी मंजिल अभी बहुत दूर है राजन. तुम जैसे न जाने कितने छोटेछोटे पड़ाव आएंगे. मैं वहां कुछ देर सुस्ता तो सकती हूं, मगर रुक नहीं सकती.’’

रात को सैलिब्रेट करने का राजन का सारा उत्साह ठंडा पड़ गया. उस ने नसरीन से कहा, ‘‘चलो, तुम्हें गाड़ी तक छोड़ दूं.’’

‘‘ओके, बाय बेबी… 2 दिन बाद मेरी फ्लाइट है. देखते हैं अगला पड़ाव कहां होता है,’’ कहते हुए नसरीन ने आत्मविश्वास के साथ गाड़ी स्टार्ट कर दी.

राजन उसे आंखों से ओझल होने तकदेखता रहा.

शक्ति प्रदर्शन

विजयकांत जब अपने बैडरूम में घुसा, तो रात के 10 बज रहे थे. उस की पत्नी सीमा बिस्तर पर बैठी टैलीविजन पर एक सीरियल देख रही थी. विजयकांत को देखते ही सीमा ने टैलीविजन की आवाज कम करते हुए कहा, ‘‘आप खाना खा लीजिए.’’

‘‘मैं खाना खा कर आ रहा हूं. मीटिंग के बाद कुछ दोस्त होटल में चले गए थे. कल गांधी पार्क में शक्ति प्रदर्शन का प्रोग्राम होगा. उसी के बारे में मीटिंग थी. कल देखना कितना जबरदस्त कार्यक्रम होगा. पूरे जिले से पार्टी के पांचों विधायक अपने दलबल के साथ यहां गांधी पार्क में पहुंचेंगे.’’ ‘‘चुनाव आने वाले हैं, इसीलिए प्रदेश सरकार ने प्रदेश में शक्ति प्रदर्शन का कार्यक्रम शुरू कराया है, ताकि इतने जनसमूह को देख कर विरोधी दलों के हौसले पस्त हो जाएं. जनता हमारी ताकत देख कर अगली बार भी हमारी सरकार बनवाए,’’ विजयकांत ने बिस्तर पर बैठते हुए कहा.

सीमा ने चैनल बदल कर खबरें लगाते हुए कहा, ‘‘आप का कार्यक्रम कितने घंटे का रहेगा?’’ ‘‘11 बजे से 3 बजे तक,’’ विजयकांत ने टैलीविजन की ओर देखते हुए कहा.

सीमा चुप रही. विजयकांत ने सीमा के बढ़े हुए पेट की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘कब तक सुना रही हो खुशखबरी? डाक्टर ने कब की तारीख दे रखी है?’’ ‘‘बस, 5-7 दिन ही बाकी हैं,’’ सीमा बोली.

‘‘हमें यह खुशी कई साल बाद मिल रही है. बेटा ही होगा, क्योंकि डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना ने जांच कर के बता दिया था कि पेट में बेटा है. मैं ने तो उस का नाम भी पहले ही सोच लिया, ‘कमलकांत’,’’ विजयकांत खुश हो कर कह रहा था. तभी मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. उस ने स्क्रीन पर नाम पढ़ा, माधुरी वर्मा. वह बोल उठा, ‘‘कहिए मैडम, कैसी हो? मातृ शक्ति से बढ़ कर कोई शक्ति नहीं है, इसलिए आप को भी अपने महिला मोरचा की ओर से भरपूर शक्ति प्रदर्शन करना है, क्योंकि आप पार्टी की महिला मोरचा की नगर अध्यक्ष हैं. आप के कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है.’’

‘सो तो है. एक बात है, जिस के लिए फोन किया है,’ उधर से आवाज आई. ‘‘कहिए?’’ विजयकांत बोला.

‘आज शाम हमारी पार्टी की एक सदस्या के साथ एक सिपाही ने बेहूदा हरकत कर दी. उस ने मुझे मोबाइल पर सूचना दी, तो मैं ने थाना चंदनपुर के इंस्पैक्टर को बताया, लेकिन उस ने ढंग से बात ही नहीं की.’ ‘‘मैडम, इस इंस्पैक्टर का बुरा समय आ गया है. अरे, वह तो पुलिस इंस्पैक्टर ही है, हम तो एसपी और डीएम की भी परवाह नहीं करते. आज हमारी सरकार है, हमारे हाथ में शक्ति है. हम जिस अफसर को जहां चाहें फिंकवा सकते हैं.

‘‘कमाल है मैडम, आप सत्तारूढ़ पार्टी में होते हुए भी हमारे इन नौकरों से परेशान हुई हो. आप कहिए, तो मैं अभी आप के साथ चल कर उस इंस्पैक्टर को लाइन हाजिर और सिपाही को संस्पैंड करा दूं?’’ ‘कल का प्रोग्राम हो जाने दो, परसों इन दोनों का दिमाग ठीक कर देंगे,’ उधर से आवाज आई.

‘‘मैडम, आप जरा भी चिंता न करें. अभी तो आप को भी राजनीति की बहुत ऊंचाई तक जाना है. अब आप आराम करें, गुडनाइट,’’ विजयकांत ने कहा और मोबाइल बंद कर के सीमा की ओर देखा. वह सो चुकी थी. विजयकांत की उम्र 40 साल थी. वह सत्तारूढ़ पार्टी का नगर अध्यक्ष था. रुपएपैसे की उसे चिंता न थी. उसी के दम पर ही वह नगर अध्यक्ष बना था.

2 मंत्री उस के रिश्तेदार थे. विजय ऐंड कंपनी के नाम से शहर में उस का एक बड़ा सा दफ्तर था, जहां फाइनैंस व जमीनजायदाद की खरीदबिक्री का काम होता था. उस ने एक गैरकानूनी कालोनी तैयार कर करोड़ों रुपए बना लिए थे. विजयकांत की पत्नी सीमा खूबसूरत और कुशल गृहिणी थी. उसे राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

अजयकांत उस का छोटा भाई था, जिस ने पिछले साल एमबीए किया था. वह कुंआरा था. उस के रिश्ते आ रहे थे, पर वह अभी शादी नहीं करना चाहता था. उस का कहना था कि पहले कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाए, बाद में शादी कर लेगा. वह विजय ऐंड कंपनी में मैनेजर के पद पर बैठ कर सारा कामकाज देख रहा था. विजयकांत की अम्मांजी की उम्र 65 साल थी. इतनी उम्र में भी वे बहुत चुस्त थीं. वे भी एक कुशल गृहिणी थीं. उन्हें अपना खाली समय समाजसेवा में बिताना पसंद था. तकरीबन 7 साल पहले विजयकांत, उस के पिता महेशकांत, अम्मांजी अपने 5 साला पोते राजू के साथ कार में जा रहे थे. कार विजयकांत ही चला रहा था. एक साइकिल सवार को बचाने के चक्कर में कार एक पेड़ से टकरा गई थी. इस हादसे में पिता महेशकांत व बेटे राजू की मौके पर ही मौत हो गई थी.

इस हादसे से उबरने में उन सभी को काफी समय लग गया था. 2 साल पहले विजयकांत को जब पता चला कि सीमा मां बनने वाली है, तो उस ने डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना के यहां जा कर जांच कराई. पता चला कि पेट में बेटी है, तब उस ने सीमा को साफ शब्दों में कह दिया था, ‘मुझे बेटी नहीं, बेटा चाहिए.’

उस के सामने सीमा व अम्मांजी की बिलकुल नहीं चली थी. सीमा को मजबूर हो कर बच्चा गिराना पड़ा था. अब फिर सीमा पेट से हुई थी. पहले ही जांच करा कर पता कर लिया था कि पेट में पलने वाला बच्चा बेटा ही है.

अगले दिन नाश्ता करने के बाद विजयकांत ने अजयकांत से कहा, ‘‘मैं नगर विधायक राजेश्वर प्रसाद के यहां पहुंच रहा हूं. वहीं से हमें इकट्ठा हो कर जुलूस के रूप में गांधी पार्क पहुंचना है. तुम समय पर दफ्तर पहुंच जाना. आज शक्ति प्रदर्शन का यह बहुत बड़ा कार्यक्रम है. इस से विरोधी दलों की भी आंखें फटी की फटी रह जाएंगी.’’ अजयकांत ने खुश हो कर कहा, ‘‘मैं भी थोड़ी देर बाद गांधी पार्क में पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘ठीक है, आ जाना. मैं मंच पर ही मिलूंगा,’’ विजयकांत ने कहा और कमरे से बाहर निकल गया. कुछ देर बाद अजयकांत भी दफ्तर पहुंच गया. तकरीबन एक घंटे बाद कमरे में बैठी सीमा को प्रसव का दर्द होने लगा. उस ने अम्मांजी को पुकारा.

आते ही अम्मांजी ने सीमा का चेहरा देखते हुए कहा, ‘‘लगता है, अभी नर्सिंग होम जाना पड़ेगा. तुम बैठो, मैं जाने की तैयारी करती हूं. तुम ऐसा करो कि विजय को फोन कर दो, आ जाएगा,’’ कह कर अम्मांजी कमरे से चली गईं. सीमा ने विजयकांत को मोबाइल पर सूचना देनी चाही. घंटी जाने की आवाज सुनाई देती रही, पर जवाब नहीं मिला. उस ने कई बार फोन मिलाया, पर कोई जवाब नहीं मिला.

अम्मांजी ने कमरे में घुसते ही पूछा, ‘‘विजय से बात हुई क्या? क्या कहा उस ने? कितनी देर में आ रहा है?’’ ‘‘अम्मांजी, घंटी तो जा रही है, लेकिन वे मोबाइल नहीं उठा रहे हैं. जुलूस के शोर में उन को पता नहीं चल पा रहा होगा.’’

‘‘अजय को फोन मिला दो. वह दफ्तर से गाड़ी ले कर आ जाएगा,’’ अम्मांजी ने कहा. सीमा ने तुरंत अजयकांत को फोन मिला दिया. उधर से आवाज आई, ‘हां भाभीजी, कहिए?’

‘‘तुम गाड़ी ले कर घर आ जाओ. अभी नर्सिंग होम चलना है. तुम्हारे भैया से फोन पर बात नहीं हो पा रही है.’’ ‘मैं अभी पहुंचता हूं. एक मिठाई का डब्बा लेता आऊंगा. वहां सभी का मुंह मीठा कराया जाएगा.’

‘‘वह बाद में ले लेना. पहले तुम जल्दी से यहां आ जाओ.’’ ‘बस, अभी पहुंच रहा हूं,’ अजयकांत ने कहा.

अम्मांजी ने एक बैग में कुछ जरूरी सामान रख लिया. तभी घरेलू नौकरानी कमला रसोई से निकल कर आई और बोली, ‘‘अम्मांजी, घर की आप जरा भी चिंता न करना. बस, जल्दी से बहूरानी को अस्पताल ले जाओ.’’

‘‘हां कमला, जरा ध्यान रखना. मैं तुझे खुश कर दूंगी. सोने की चेन, कपड़े, मिठाई सब दूंगी. इतने सालों से हमारी सेवा जो कर रही है,’’ अम्मांजी ने कहा. कुछ ही देर में अजयकांत गाड़ी ले कर घर आ गया.

‘‘अब जल्दी चलो, देर न करो. सीमा, तुम गाड़ी में बैठो,’’ कहते हुए अम्मांजी ने कमला की ओर देखा, ‘‘कमला, ठीक से ध्यान रखना. घर पर कोई नहीं है. पूरा घर तेरे ऊपर छोड़ कर जा रही हूं. कोई बात हो, तो हमारे मोबाइल की घंटी बजा देना.’’ ‘‘आप बेफिक्र हो कर जाओ अम्मांजी. बहुत जल्द मुझे भी फोन पर खुशखबरी सुना देना,’’ कमला ने खुशी से कहा.

कार में पीछे की सीट पर अम्मांजी व सीमा बैठ गईं. अजयकांत कार चलाने लगा. बच्चा होने का दर्द सीमा के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था. कार चलाते हुए अजयकांत देख रहा था कि आज सड़क पर कुछ ज्यादा ही रौनक दिखाई दे रही है. ट्रैक्टरट्रौली, आटोरिकशा सड़कों पर दौड़े जा रहे थे. इन में लदे हुए लोग पार्टी के झंडे हाथों में लिए जोरदार आवाज में नारे लगा रहा थे, ‘जन विकास पार्टी, जिंदाबाद.’

अजयकांत रेलवे का पुल पार कर जैसे ही आगे बढ़ा, तो वहां जाम लगा हुआ था. उसे कार रोकनी पड़ी. सामने पटेल चौक था, जहां से पार्टी के एक विधायक का जुलूस जा रहा था. एक ट्रक पर ऊपर की ओर फूलमालाओं से लदा हुआ विधायक जनता की ओर हाथ हिलाहिला कर अभिवादन स्वीकार कर रहा था और कभी खुद भी हाथ जोड़ रहा था. उस के बराबर में पार्टी के दूसरे पदाधिकारी बैठे और कुछ खड़े थे.

कुछ के गले में फूलमालाएं थीं. ट्रक में पीछे लोग लदे हुए थे. ट्रक पटेल चौक में रुक गया. विधायक खड़ा हो कर नमस्कार करने लगा. कार में पीछे बैठी अम्मांजी ने पूछा, ‘‘यह किस पार्टी का जुलूस है? नगर विधायक राजेश्वर प्रसाद का है क्या?’’

‘‘नहीं अम्मां, यह तो जीवनदास का है, जो रामगढ़ का विधायक है. हो सकता है कि राजेश्वर प्रसाद का जुलूस गांधी पार्क में पहुंच गया हो या किसी दूसरे रास्ते से जा रहा हो. भैया भी तो राजेश्वर प्रसाद के बराबर में बैठे होंगे. भैया से फोन पर बात नहीं हो सकती. जुलूस में शोर ही इतना है,’’ अजयकांत ने जवाब दिया. कुछ ही देर में अजयकांत की कार के बहुत पीछे तक जाम लग चुका था. पैदल निकलने का रास्ता भी न बचा था. कोई अपनी जगह से हिल भी न सकता था. सभी को लग रहा था, मानो किसी चक्रव्यूह में फंस गए हों. कोई मन ही मन नेताओं को कोस रहा था, कोई जोरदार आवाज में गालियां दे रहा था.

सीमा दर्द को सहन करने की भरसक कोशिश कर रही थी. अम्मांजी ने सीमा के चेहरे की ओर देखा, तो मन ही मन तड़प उठीं. उन्होंने अजयकांत से कहा, ‘‘ओह, बहुत देर लगा दी इस जुलूस ने. पता नहीं, कितनी देर और लगाए?’’

‘‘लगता है, 10-15 मिनट और लग जाएंगे. अगर मुझे पता होता कि यहां ऐसा जाम लग जाएगा, तो मैं इस तरफ गाड़ी ले कर ही न आता,’’ अजयकांत ने दुखी मन से कहा. ‘‘अजय, तू यहां से जल्दी कार निकालने की कोशिश कर.’’

‘‘कैसे निकलें अम्मां? सभी तो फंसे खड़े हैं. सभी परेशान हैं, पर कोई कुछ नहीं कर सकता?’’ ‘‘सब की बात अलग है. तेरी भाभी की हालत ठीक नहीं है. किसी पुलिस वाले से बात कर. हो सकता है कि वह हमारी गाड़ी निकलवा दे.’’

अजयकांत ने देखा कि हर ओर भीड़ ही भीड़, मानो पूरे शहर का जनसमूह यहां आ कर इकट्ठा हो गया हो. वह बोल उठा, ‘‘वहां पटेल चौक में खड़े हैं पुलिस वाले. वहां तक पैदल जाना क्या आसान है? और फिर वे हमारी गाड़ी कैसे निकालेगी? आसमान में तो कार उड़ नहीं सकती.’’ ‘‘तो अब क्या होगा?’’ अम्मांजी ने घबराई आवाज में कहा.

अजयकांत चुप रहा. उस के पास कोई जवाब न था, जबकि वह जानता था कि देर होने से गड़बड़ भी हो सकती है. उस ने तो सपने में भी न सोचा था कि वह आज इस तरह जाम में फंस जाएगा. अजयकांत की कार के पीछे खड़ा एक रिकशे वाला बराबर में खड़े टैंपो ड्राइवर से कह रहा था, ‘‘इन नेताओं ने हमारे देश का बेड़ा गर्क कर दिया है. जब देखो शहर में जुलूस निकाल कर जाम लगा देते हैं. हम गरीबों को मजदूरी भी नहीं करने देते. एक सवारी मिली थी, जाम के चलते वह भी बिना पैसे दिए चली गई.’’

‘‘अरे यार, इन नेताओं के पास तो हराम की कमाई आती है. इन्हें कौन सी मेहनतमजदूरी कर के बच्चे पालने हैं. आजकल तो जिसे देखो, खद्दर का लंबा कुरतापाजामा पहन कर हाथ में मोबाइल ले कर बहुत बड़ा नेता बना फिरता है. मेरे टैंपो में भी 4-5 ऐसे ही उठाईगीर नेता बैठे थे. वे भी ऐसे ही उतर कर चले गए, मानो उन के बाप का टैंपो हो,’’ टैंपो ड्राइवर ने बुरा सा मुंह बना कर कहा. अजयकांत पिंजरे में फंसे किसी पंछी की तरह मन ही मन तड़प उठा.

जाम खुलने में एक घंटा लग गया. अजयकांत ने डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना को मोबाइल पर सूचना दे दी थी कि वे जल्दी ही पहुंच रहे हैं. नर्सिंग होम में कार रोक कर अजयकांत तेजी से डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना के पास पहुंचा. वे उस के साथ बाहर आईं. कार में सीमा निढाल सी हो चुकी थी.

अजयकांत ने कहा, ‘‘पटेल चौक पर जाम में फंसने के चलते हमें इतनी देर हो गई.’’ ‘‘यह जाम आप की पार्टी के शक्ति प्रदर्शन की वजह से लगा था. इस जाम से पता नहीं कितने लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा होगा. खैर, आप चिंता न करें, मैं देखती हूं,’’ डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना ने कहा.

सीमा को स्ट्रैचर पर लिटा कर औपरेशन थिएटर में ले जाया गया. कुछ देर बाद डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना बाहर निकलीं और दुख भरी आवाज में बोलीं, ‘‘आप लोगों के आने में देर हो गई. अम्मांजी, आप की बहू सीमा और पोता बच नहीं सके.’’

अम्मांजी के मुंह से दुखभरी चीख निकली. अजयकांत फूटफूट कर रोने लगा. तकरीबन 3 बजे अजयकांत के मोबाइल की घंटी बजी. उस ने मोबाइल में नाम देखा, विजयकांत. अजयकांत के मुंह से आवाज नहीं निकली.

‘‘हैलो अजय, अभीअभी कार्यक्रम खत्म हुआ है. मैं ने मोबाइल चैक किया, तो सीमा और तुम्हारी बहुत मिस काल थीं. मुझे पता नहीं लग पाया. कोई बहुत जरूरी बात थी क्या?’’ उधर से विजयकांत की आवाज सुनाई दी. अजयकांत कुछ कह नहीं पाया और रोने लगा.

‘‘अजय… क्या हुआ?’’ उधर से विजयकांत की आवाज में चिंता का भाव था. अम्मांजी ने अजय से मोबाइल ले कर दुखी लहजे में कहा, ‘‘विजय, सब बरबाद हो गया. सीमा और मेरा पोता बच नहीं पाए, तुम्हारे शक्ति प्रदर्शन की बलि चढ़ गए.’’

‘‘ओह नहीं… यह क्या कह रही हो अम्मां? मैं अभी पहुंच रहा हूं नर्सिंग होम,’’ विजयकांत बोला. कुछ ही देर बाद 2 कारें नर्सिंग होम के बाहर रुकीं. कार से विधायक राजेश्वर प्रसाद, विजयकांत और 5-6 नेता बाहर निकले.

सभी उस कमरे में पहुंचे, जहां सीमा व नवजात बेटे की लाश थी. विजयकांत को अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि सीमा उसे हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुकी है. उस ने सीमा का हाथ अपने हाथ में लिया और सीमा को देखता रहा.

जिस शक्ति प्रदर्शन को वह एक यादगार मान कर खुश हो रहा था, वहीं उस के लिए दुखद यादगार बन गया. उस की अपनी सरकार है. हजारों लोग उस के साथ हैं. उस के पास इतनी ताकत होते हुए भी वह आज बुरी तरह टूट चुका था. आज के प्रदर्शन ने न जाने कितने लोगों को नुकसान पहुंचाया होगा? हो सकता है कि किसी दूसरे के साथ भी ऐसी ही दुखद घटना हुई हो.

जिस्म का मुआवजा

जुलूस शहर की बड़ी सड़क से होता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था. औरतों के हाथों में बैनर थे, जिन में से एक पर मोटेमोटे अक्षरों में लिखा हुआ था, ‘हम जिस्मफरोश नहीं हैं. हमें भी जीने का हक है. औरत का जिस्म खिलौना नहीं है…’ लोग उन्हें पढ़ते, कुछ पढ़ कर चुपचाप निकल जाते, कुछ मनचले भद्दे इशारे करते, तो कुछ मनचले जुलूस के बीच घुस कर औरतों की छातियों पर चिकोटी काट लेते. औरतें चुपचाप सहतीं, बेखबर सी नारे लगाती आगे बढ़ती जा रही थीं.

वे सब मुख्यमंत्री के पास इंसाफ मांगने जा रही थीं. इंसाफ की एवज में अपनी इज्जत की कीमत लगाने, अपने उघड़े बदन को और उघाड़ने, गरम गोश्त के शौकीनों को ललचाने. शायद इसी बहाने उन्हें अपने दर्द का कोई मरहम मिल सके. उन के माईबाप सरकार को बताएंगे कि उन की बेटी, बहन, बहू के साथ कब, क्या और कैसे हुआ? करने वाला कौन था? उन की देह को उघाड़ने वाला, नोचने वाला कौन था?

औरतों के जिस्म का सौदा हमेशा से होता रहा है और होता रहेगा. ये वे अच्छी तरह जानती हैं, लेकिन वे सौदे में नुकसान की हिमायती नहीं हैं. घर वाले बतातेबताते यह भूल जाएंगे कि शब्दों के बहाने वे खुद अपनी ही बेटियोंऔरतों को चौराहों पर, सभाओं में या सड़कों पर नंगा कर रहे हैं. उन की इज्जत के चिथड़े कर रहे हैं, लेकिन जुलूस वालों की यह सोच कहां होती है? उन्हें तो मुआवजा चाहिए, औरत की देह का सरकारी मुआवजा.

अखबार के पहले पेज पर मुख्यमंत्रीजी के साथ छपी तसवीर ही शायद उन के दर्द का मरहम हो. चाहे कुछ भी हो, लेकिन लोग उन्हें देखेंगे, पढ़ेंगे और यकीनन हमदर्दी जताने के बहाने उन के घर आ कर उन के जख्म टटोलतेटटोलते खुद कोई चीरा लगा जाएंगे. भीड़ में इतनी सोच और समझ कहां होती है. पर मगनाबाई इतनी छोटी सी उम्र में भी सब समझने लगी थी. लड़की जब एक ही रात में औरत बना दी जाती है, तब न समझ में आने वाली बातें भी समझ में आने लगती हैं. मर्दों के प्रति उस का नजरिया बदल जाता है.

15 साल की मगनाबाई 8 दिन की बच्ची को कंधे से चिपकाए जुलूस में चल रही थी. उस के साथ उस जैसी और भी लड़कियां थीं. किसी की सलवार में खून लगा था, कपड़े फटे और गंदे थे. किसी के गले और मुंह पर खरोंचों के निशान साफ नजर आ रहे थे. अंदर जाने कितने होंगे. किसी का पेट बढ़ा था. क्या ये सब अपनीअपनी देह उघाड़ कर दिखाएंगी? कैसे बताएंगी कि उस रात कितने लोगों ने…

मगनाबाई का गला सूखने लगा. कमजोरी के चलते उसे चक्कर आने लगे. लगा कि कंधे से चिपकी बच्ची छूट कर नीचे गिर जाएगी और जुलूस उस को कुचलता हुआ निकल जाएगा. जो कुचली जाएगी, उस के साथ किसी की भी हमदर्दी नहीं होगी. मगनाबाई ने साथ चलती एक औरत को पकड़ लिया. उस औरत ने मगनाबाई पर एक नजर डाली, उस की पीठ थपथपाई, ‘‘बच्ची, जब इतनी हिम्मत की है, तो थोड़ी और सही. अब तो मंजिल के करीब आ ही गए हैं. भरोसा रख. कहीं न कहीं तो इंसाफ मिलेगा…’’

कहने वाली औरत को मगनाबाई ने देखा. मन हुआ कि हंसे और पूछे, ‘भला औरत की भी कोई मंजिल होती है? किस पर भरोसा रखे? भेडि़यों से इंसाफ की उम्मीद तुम्हें होगी, मुझे नहीं,’ नफरत से उस ने जमीन पर थूक दिया. कंधे से चिपकी बच्ची रोए जा रही थी. मगनाबाई का मन हुआ कि जलालत के इस मांस के लोथड़े को पैरों से कुचल जाने के लिए जमीन पर गिरा दे. उसे लगा कि बच्ची बहुत भारी होती जा रही है. उस के कंधे बोझ उठाने में नाकाम लग रहे थे. जुलूस के साथ पैरों ने आगे बढ़ने से मना कर दिया था.

मगनाबाई कुछ देर वहीं खड़ी रही. जुलूस को उस ने आगे बढ़ जाने दिया. सड़क खाली हुई, तो उस की नजर सड़क के किनारे लगे हैंडपंप पर पड़ी. उस ने दौड़ कर किसी तरह बच्ची को गोद में उठाए ही पानी पीया. फिर वह एक बंद दुकान के चबूतरे पर रोती बच्ची को लिटा कर दीवार की टेक लगा कर बैठ गई. बच्ची ने लेटते ही रोना बंद कर दिया. मगनाबाई को भी सुकून मिला. कुनकुनी धूप उसे भली लगी. वह भी बच्ची के करीब लेट गई. उस की आंखें मुंदने लगीं.

मगनाबाई इस जुलूस के साथ आना नहीं चाहती थी. गप्पू भाई और भोला चाचा ही उसे बिस्तर से घसीट कर जुलूस के साथ ले आए. उस की आंखों के सामने बस्ता ले कर स्कूल जाती चंपा, गंगा और जूही नाच उठीं, लेकिन अब उस का बस्ता छूट गया और बस्ते की जगह इस बच्ची ने ले ली. गप्पू भाई और भोला चाचा कहते थे कि मगनाबाई पहले की तरह स्कूल जा सकेगी. इस बच्ची को किसी अनाथालय में डाल देंगे. वह फिर पहले की तरह हो जाएगी. बस, मुख्यमंत्री से मुआवजा मिल जाए. वे दोनों इन औरतों को दलदल से निकालने वाली संस्था के पैरोकार थे. जब भी पुलिस की रेड पड़नी होती थी, वे दोनों और उन की रखैलें इन औरतों के साथ बदसलूकी न हो, इसलिए साथ होते. जब भी वे दोनों साथ होते, तो पुलिस वाले रहम से पेश आते थे. आमतौर पर प्रैस रिपोर्टर भी पहुंचे होते थे. वे दोनों कई बार गोरी चमड़ी वाली लड़कियों को भी लाते थे.

उन दोनों का खूब रोब था, क्योंकि दलालों को अगर डर लगता था, तो उन से ही. उन दोनों ने मुख्यमंत्री के सामने धरनेप्रदर्शन का प्रोग्राम बनाया था और पुलिस से मिल कर जुलूस का बंदोबस्त करा था. क्या मजाल है कि ये मिलीजुली जिस्म बेचने वाली थुलथुल लड़कियां इस तरह बाजार में निकल सकें. मगनाबाई को कहा गया था कि वे दोनों मुआवजा मांग रहे हैं. इस से स्कूल खुलवाएंगे. इन की जिंदगी खुशहाल होगी. तभी मगनाबाई के विचारों को झटका लगा. मुआवजा किस बात का? किसे मिलेगा? क्या इसलिए कि 9 महीने तक इस बच्ची को बस्ते की जगह पेट में लादे घूमती रही थी? बारीबारी से लोगों का वहशीपन सहती रही थी? या फिर मुआवजे के रूप में गप्पू और भोला की पीठ ठोंकी जाएगी कि उन्होंने बेटी और बहन को अपनी मर्दानगी से परिचित कराया? सरकार उस की भी पीठ ठोंकेगी कि वह स्कूल जाने की उम्र में मां बनना सीख गई?

क्या सरकार उस से पूछेगी कि उसे मां किस तरह बनाया गया? क्या वह बता पाएगी कि उस के भाई ने पहली बार उस के हाथपैर खाट की पाटियों से बांध कर उसे चाचा को सौंप दिया था? चाचा ने भी इस के बदले भाई को मुआवजा दिया था और फिर भाई ने भी चाचा की तरह वही सब उस के साथ दोहराया था. यही सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा. उसे डर दिखाया जाता कि अगर किसी से इस बात का जिक्र किया, तो काट कर फेंक दिया जाएगा. मुआवजे के रूप में यह बच्ची उस की कोख में आ गई. पता नहीं, दोनों में से किस की थी? क्या इन तमाम औरतों के साथ भी इसी की तरह…

बच्ची दूध पी कर सो गई थी. तभी किसी ने बाल पकड़ कर मगनाबाई को झकझोरा, ‘‘तो यहां है नवाबजादी?’’ मगनाबाई ने मुड़ कर देखा. भोला चाचा जलती आंखों से उसे देख रहा था.

‘‘मैं नहीं जाऊंगी. अब मुझ से नहीं चला जाता,’’ मगनाबाई ने कहा. ‘‘चला तो तुझ से अभी जाएगा. चलती है या उतारूं सब के सामने…’’

लोग सुन कर हंस पड़े. वे चटपटी बात सुन कर मजेदार नजारा देखने के इच्छुक थे. उसे लगा कि यहां मर्द नहीं, महज जिस्मफरोश हैं. डरीसहमी मगनाबाई बच्ची को उठा कर धीरेधीरे उन के पीछे चल दी.

भोला चाचा ने मगनाबाई को पीछे से जोरदार लात मारी. उस के मुंह से निकला, ‘‘हम जिस्मफरोश नहीं हैं. हमारी मांगें पूरी करो… पूरी करो…’’

प्यार का चसका : अमित और रंभा ने की मस्ती

शहर के कालेज में पढ़ने वाला अमित छुट्टियों में अपने गांव आया, तो उस की मां बोली, ‘‘मेरी सहेली चंदा आई थी. वह और उस की बेटी रंभा तुझे बहुत याद कर रही थीं. वह कह गई है कि तू जब गांव आए तो उन से मिलने उन के गांव आ जाए, क्योंकि रंभा अब तेरे साथ रह कर अपनी पढ़ाई करेगी.’’

यह सुन कर दूसरे दिन ही अमित अपनी मां की सहेली चंदा से मिलने उन के गांव चला गया था.

जब अमित वहां पहुंचा, तो चंदा और उन के घर के सभी लोग खेतों पर गए हुए थे. घर पर रंभा अकेली थी. अमित को देख कर वह बहुत खुश हुई थी.

रंभा बेहद खूबसूरत थी. उस ने जब शहर में रह कर अपनी पढ़ाई करने की बात कही, तो अमित उस से बोला, ‘‘तुम मेरे साथ रह कर शहर में पढ़ाई करोगी, तो वहां पर तुम्हें शहरी लड़कियों जैसे कपड़े पहनने होंगे. वहां पर यह चुन्नीवुन्नी का फैशन नहीं है,’’ कह कर अमित ने उस की चुन्नी हटाई, तो उस के हाथ रंभा के सुडौल उभारों से टकरा गए. उस की छुअन से अमित के बदन में बिजली के करंट जैसा झटका लगा था.

ऐसा ही झटका रंभा ने भी महसूस किया था. वह हैरान हो कर उस की ओर देखने लगी, तो अमित उस से बोला, ‘‘यह लंबीचौड़ी सलवार भी नहीं चलेगी. वहां पर तुम्हें शहर की लड़की की तरह रहना होगा. उन की तरह लड़कों से दोस्ती करनी होगी. उन के साथ वह सबकुछ करना होगा, जो तुम गांव की लड़कियां शादी के बाद अपने पतियों के साथ करती हो,’’ कह कर वह उस की ओर देखने लगा, तो वह शरमाते हुए बोली, ‘‘यह सब पाप होता है.’’

‘‘अगर तुम इस पापपुण्य के चक्कर में फंस कर यह सब नहीं कर सकोगी, तो अपने इस गांव में ही चौकाचूल्हे के कामों को करते हुए अपनी जिंदगी बिता दोगी,’’ कह कर वह उस की ओर देखते हुए बोला, ‘‘तुम खूबसूरत हो. शहर में पढ़ाई कर के जिंदगी के मजे लेना.’’

इस के बाद अमित उस के नाजुक अंगों को बारबार छूने लगा. उस के हाथों की छुअन से रंभा के तनबदन में बिजली का करंट सा लग रहा था. वह जोश में आने लगी थी.

रंभा के मांबाप खेतों से शाम को ही घर आते थे, इसलिए उन्हें किसी के आने का डर भी नहीं था. यह सोच कर रंभा धीरे से उस से बोली, ‘‘चलो, अंदर पीछे वाले कमरे में चलते हैं.’’ यह सुन कर अमित उसे अपनी बांहों में उठा कर पीछे वाले कमरे में ले गया. कुछ ही देर में उन दोनों ने वह सब कर लिया, जो नहीं करना चाहिए था.

जब उन दोनों का मन भर गया, तो रंभा ने उसे देशी घी का गरमागरम हलवा बना कर खिलाया. हलवा खाने के बाद अमित आराम करने के लिए सोने लगा. उसे सोते हुए देख कर फिर रंभा का दिल उसके साथ सोने के लिए मचल उठा.

वह उस के ऊपर लेट कर उसे चूमने लगी, तो वह उस से बोला, ‘‘तुम्हारा दिल दोबारा मचल उठा है क्या?’’

‘‘तुम ने मुझे प्यार का चसका जो लगा दिया है,’’ रंभा ने अमित के कपड़ों को उतारते हुए कहा. इस बार वे कुछ ही देर में प्यार का खेल खेल कर पस्त हो चुके थे, क्योंकि कई बार के प्यार से वे दोनों इतना थक चुके थे कि उन्हें गहरी नींद आने लगी थी.

शाम को जब रंभा के मांबाप अपने खेतों से घर लौटे, तो अमित को देख कर खुश हुए.

रंभा भी उस की तारीफ करते नहीं थक रही थी. वह अपने मांबाप से बोली, ‘‘अब मैं अमित के साथ रह कर ही शहर में अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी.’’

यह सुन कर उस के पिताजी बोले, ‘‘तुम कल ही इस के साथ शहर चली जाओ. वहां पर खूब दिल लगा कर पढ़ाई करो. जब तुम कुछ पढ़लिख जाओगी, तो तुम्हें कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाएगी. तुम्हारी जिंदगी बन जाएगी.’’

‘‘फिर किसी अच्छे घर में इस की शादी कर देंगे. आजकल अच्छे घरों के लड़के पढ़ीलिखी बहू चाहते हैं,’’ रंभा की मां ने कहा, तो अमित बोला, ‘‘मैं दिनरात इसे पढ़ा कर इतना ज्यादा होशियार बना दूंगा कि फिर यह अच्छेअच्छे पढ़ेलिखों पर भारी पड़ जाएगी.’’

रंभा की मां ने अमित के लिए खाने को अच्छेअच्छे पकवान बनाए. खाना खाने के बाद बातें करते हुए उन्हें जब रात के 10 बज गए, तब उस के सोने का इंतजाम उन्होंने ऊपर के कमरे में कर दिया.

जब अमित सोने के लिए कमरे में जाने लगा, तो चंदा रंभा से बोली, ‘‘कमरे में 2 पलंग हैं. तुम भी वहीं सो जाना. वहां पर अमित से बातें कर के शहर के रहनसहन और अपनी पढ़ाईलिखाई के बारे में अच्छी तरह पूछ लेना.’’

यह सुन कर रंभा मुसकराते हुए बोली, ‘‘जब से अमित घर पर आया है, तब से मैं उस से खूब जानकारी ले चुकी हूं. पहले मैं एकदम अनाड़ी थी, लेकिन अब मुझे इतना होशियार कर दिया है कि मैं अब सबकुछ जान चुकी हूं कि असली जिंदगी क्या होती है?’’

यह सुन कर चंदा खुशी से मुसकरा उठी. वे दोनों ऊपर वाले कमरे में सोने चले गए थे. कमरे में जाते ही वे दोनों एकदूसरे पर टूट पड़े. शहर में आ कर अमित ने रंभा के लिए नएनए फैशन के कपड़े खरीद दिए, जिन्हें पहन कर वह एकदम फिल्म हीरोइन जैसी फैशनेबल हो गई थी. अमित ने एक कालेज में उस का एडमिशन भी करा दिया था.

जब उन के कालेज खुले, तो अमित ने अपने कई अमीर दोस्तों से उस की दोस्ती करा दी, तो रंभा ने भी अपनी कई सहेलियों से अमित की दोस्ती करा दी. गांव की सीधीसादी रंभा शहर की जिंदगी में ऐसी रम गई थी कि दिन में अपनी पढ़ाई और रात में अमित और उस के दोस्तों के साथ खूब मौजमस्ती करती थी.

जब रंभा शहर से दूसरी लड़कियों की तरह बनसंवर कर अपने गांव जाती, तब सभी लोग उसे देख कर हैरान रह जाते थे. उसे देख कर उस की दूसरी सहेलियां भी अपने मांबाप से उस की तरह शहर में पढ़ने की जिद कर के शहर में ही पढ़ने लगी थीं.

अब अमित उस की गांव की सहेलियों के साथ भी मौजमस्ती करने लगा था. उस ने रंभा की तरह उन को भी प्यार का चसका जो लगा दिया था.

चिंता : आखिर क्या था लता की चिंताओं कारण?

बुधवार को दिन भर लता अपने पति के लौटने की प्रतीक्षा करती रही. घर के मुख्यद्वार पर जरा सी आहट होने पर उस की निगाहें खुद ब खुद बाहर की ओर उठ जाती थीं. एक बार तो उसे लगा जैसे कोई दरवाजे पर दस्तक दे रहा हो. आशा भरे मन से उस ने दरवाजा खोला. देखा तो एक पिल्ला दरवाजे से अंदर घुसने का व्यर्थ प्रयास कर रहा था, जिस के कारण खटखट की आवाज हो रही थी. देख कर लता के होंठों पर मुसकराहट तैर गईर्. अगले ही पल निराश हो कर वह फिर लौट आई.

पिछले शनिवार को उस के पति इलाहाबाद गए थे. उस दिन अचानक उन्हें अपने मुख्य अधिकारी की ओर से इलाहाबाद जाने का आदेश प्राप्त हुआ था. कुछ गोपनीय कागजात सुबह तक वहां जरूरी पहुंचाए जाने थे, इसलिए वह रात की गाड़ी से ही रवाना हो गए थे. लता को यह बता कर गए थे कि एकदो दिन का ही काम है, मंगलवार को वह हर हालत में वापस लौट आएंगे.

मंगलवार की शाम तक तो लता को अधिक फिक्र नहीं थी परंतु जब बुधवार की शाम तक भी उस के पति नहीं लौटे तो उसे चिंता सताने लगी. उसे लगा, जैसे उन्हें घर से गए महीनों बीत गए हों. जब देर रात गए तक भी पति महोदय नहीं आए तो उस के मन में बुरेबुरे विचार आने लगे. वह सोने का असफल प्रयास करने लगी. कभी एक ओर करवट लेती तो कभी दूसरी ओर, पर नींद जैसे उस से कोसों दूर थी.

‘कहां रुक सकते हैं वह,’ लता सोचने लगी, ‘कहीं गाड़ी न छूट गई हो. लेकिन अगर गाड़ी छूट गई होती तो अगली गाड़ी भी पकड़ सकते थे. कल न सही, आज तो आ ही सकते थे.

‘हो सकता है उन की जेब कट गई हो और सभी पैसे निकल गए हों. ऐसे में उन्हें बड़ी मुश्किल हो गई होगी. वापसी पर टिकट लेने के लिए उन के सामने विकट समस्या खड़ी हो गई होगी.’

पर दूसरे ही क्षण लता उस का समाधान भी खोजने लगी, ‘इस के बावजूद तो कई उपाय थे. वहां स्थित अपने कार्यालय के शाखा अधिकारी को अपनी समस्या बता कर पैसे उधार मांग सकते थे. वहां के शाखा अधिकारी यहीं से तो स्थानांतरित हो कर गए हैं और उन के अच्छे दोस्त भी हैं. हां, उन की कलाई पर घड़ी भी तो बंधी है, उसे बेच सकते हैं. नहीं, उन की जेब नहीं कटी होगी. अब तक न आ सकने का कोई और ही कारण रहा होगा.

‘हो सकता है स्टेशन पर उन का सामान चुरा लिया गया हो. तब तो वह बड़ी मुसीबत में फंस गए होंगे. उन के ब्रीफकेस में तो दफ्तर के बहुत सारे महत्त्वपूर्ण कागज थे. यदि ऐसा हो गया तो अनर्थ हो जाएगा. फिर तो उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा. अपनी नौकरी के बचाव के लिए अधिकारियों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ेगा. कैसी भयावह स्थिति होगी वह?’

यह सोच कर लता की आंखों के सामने कई प्रकार के भयानक दृश्य घूमने लगे.

‘नौकरी छूट गई तो दरदर भटकना पड़ेगा. आजकल दूसरी नौकरी कहां मिलती है? हर महीने मिलने वाला वेतन एकदम बंद हो जाएगा. तनख्वाह के बिना गुजारा कैसे चलेगा? मकान का किराया कहां से देंगे? बच्चों की फीस, किताबें, घर का अन्य खर्च, इतना सबकुछ. कटकटा कर उन्हें हर माह 2,200 रुपए तनख्वाह मिलती है. सब का सब घर के अंदर व्यय हो जाता है. लेकिन अगर यह पैसा भी मिलना बंद हो गया तो कहां से करेंगे ये सब खर्च?

‘यदि ऐसी नौबत आ गई तो कोई अन्य उपाय करना होगा…हां, अपने मायके से कुछ मदद लेनी होगी. पर वह भी आखिर कब तक हमारी सहायता करेंगे? बाबूजी, मां, भैया, भाभी और उन के छोटेछोटे बच्चे…उन का भी भरापूरा परिवार है. उन के अपने भी तो बहुत सारे खर्चे हैं. अंत में तो उन्हें खुद ही कुछ न कुछ अपनी आमदनी का उपाय करना होगा.

‘हां, एक बात हो सकती है,’ लता को उपाय सूझा, ‘मैं अपने पिताजी से कहसुन कर उन्हें कोई छोटीमोटी दुकान खुलवा दूंगी. कितने कष्टदायक दिन होंगे वे भी. क्या हमारे लिए दूसरों का मोहताज बनने की नौबत आ जाएगी.’

लता सोचतेसोचते एक बार फिर वर्तमान में लौट आईर्. दोनों बच्चे चारपाई पर हर बात से बेखबर गहरी नींद सो रहे थे. वह सोचने लगी, ‘काश, वह खुद भी एक बच्ची होती.’

बाहर घुप अंधेरा छाया हुआ था. दूर कहीं से कुत्ते भूंकने की आवाज रात के सन्नाटे को तोड़ रही थी. उस ने अनुमान लगाया कि रात के 12 बज चुके होंगे. उस ने सिर को झटका दिया, ‘मैं तो यों ही जाने क्याक्या सोचने लगी हूं. बाहर जाने वाले को किसी कारण ज्यादा दिन भी तो लग सकते हैं.’

लता ने अपने मन को समझाने की पूरीपूरी कोशिश की. दुश्ंिचताएं उस का पीछा नहीं छोड़ रही थीं. न चाहते हुए भी उसे तरहतरह के खयाल सताने लगते थे.

‘नहीं, उन का सामान चोरी नहीं हुआ होगा. तो फिर वह अभी तक लौटे क्यों नहीं थे? कल तो उन्हें जरूर आ जाना चाहिए,’ और तब लता को पति पर रहरह कर गुस्सा आने लगा, अगर ज्यादा ही दिन लगाने थे तो कम से कम तार द्वारा तो सूचना दे ही सकते थे. फोन पर भी बता सकते थे कि वह अभी नहीं आ सकेंगे…आ जाएं एक बार, खूब खबर लूंगी उन की. आएंगे तो दरवाजा ही नहीं खोलूंगी. पर दरवाजा तो खोलना ही होगा. मैं उन से बात ही नहीं करूंगी. बेशक, जितना जी चाहे मनाते रहें. खूब तंग करूंगी. चाय तक के लिए नहीं पूछूंगी. वह समझते क्या हैं अपनेआप को. पता नहीं, जनाब वहां क्या गुलछर्रे उड़ा रहे होंगे. उन्हें क्या पता यहां उन की चिंता  में कोई दिनरात घुले जा रहा है.’

अगले क्षण उसे किसी अज्ञात भय ने घेर लिया, ‘कहीं वह किसी औरत वगैरह के चक्कर में न पड़ गए हों. आजकल बड़ेबडे़ शहरों में कई पेशेवर औरतें केवल अजनबी व्यक्तियों को फंसाने के चक्कर में रहती हैं. जरूर ऐसा ही हुआ होगा. उन्हें फंसा कर उन का सब कुछ लूट लिया होगा. पर ऐसा नहीं हो सकता. वह आसानी से किसी के चंगुल में फंसने वाले नहीं हैं. जरूर कोई अन्य कारण रहा होगा.’ लता के दिलोदिमाग में अजीब तर्कवितर्क चल रहे थे.

ऐसी कौन सी वजह हो सकती है जो वह अभी तक नहीं लौटे. कहीं कोई दुर्घटना वगैरह तो नहीं हो गई? नहीं, नहीं…लता एक बार तो भीतर तक कांप उठी.

‘रिकशा से स्टेशन आते समय कोई दुर्घटना…नहीं, नहीं…बस दुर्घटना या रेलगाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई हो. अगर चोट लगी होगी तो किसी अस्पताल में पड़े कराह रहे होंगे…नहीं, नहीं, उन्हें कुछ नहीं हो सकता.’ लता मन ही मन पति की सलामती के लिए कामना करने लगी.

‘अगर ऐसी कोई दुर्घटना हुई होती तो अब तक अखबार, रेडियो या टेलीविजन पर खबर आ जाती.’

लता चारपाई से उठी और अलमारी में से पिछले 3-4 दिन के समाचारपत्र ढूंढ़ कर ले आई. उस ने अखबारों के सभी पन्ने उलटपलट कर एकएक खबर देख डाली. इलाहाबाद की किसी भी दुर्घटना की खबर नहीं थी.

‘यह मैं क्या उलटासीधा सोचने लगी. कितनी मूर्ख हूं मैं,’ लता ने अपनेआप को चिंता के भंवर से मुक्त करना चाहा. पर उस का व्याकुल मन उसे घेरघार कर फिर वहीं ले आता. उसे लगता, जैसे उस के पति अस्पताल में पड़े मौत से जूझ रहे हों.

‘वहां तो उन की देखभाल करने वाला कोई भी नहीं होगा. बेहोशी की हालत में वह अपना अतापता भी नहीं बता पाए होंगे. कहीं वह वहीं पर दम न तोड़ गए हों. नहीं, नहीं, उन का लावारिस शव…यह सोच कर वह अंदर तक सिहर उठी. उस ने पाया कि उस की आंखें गीली हो गई हैं और आंसुओं की बूंदें उस के गालों पर लुढ़क आईं. अपनी नादान सोच पर उसे हंसी भी आई और गुस्सा भी.

‘यह मुझे क्या होता जा रहा है. जागते हुए भी मुझे कैसेकैसे बुरे सपने आने लगे हैं.’ लता कल्पना की आंखों से देख रही थी कि कुछ लोग उस के पति के शव को गाड़ी पर लाद कर ले आए हैं. घर पर भीड़ जमा हो गई है. चारों ओर हंगामा मचा हुआ है. लोग उस से सहानुभूति जता रहे हैं.’

उस ने एक बार फिर उन विचारों को अपने दुखी मन से झटक देना चाहा, पर विचारों की उड़ान पर किस का वश चलता है.

‘उन के मरने के बाद मेरा क्या होगा? उन के अभाव में यह पहाड़ सी जिंदगी कैसे कटेगी,’ लता के विचारों की शृंखला लंबी होती जा रही थी.

‘नहीं, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. ऐसे में दूसरी शादी…नहीं, नहीं, किस से शादी करूंगी मैं? इस उम्र में कौन थामेगा मेरा हाथ. क्या कोई व्यक्ति उस के दोनों बच्चों को अपनाने के लिए राजी हो जाएगा. कौन करेगा इतना त्याग, पर मैं अभी इतनी बूढ़ी तो नहीं हो गई हूं कि कोई मुझे पसंद न करे. 24 वर्ष की उम्र ही क्या होती है. 2 बच्चों को जन्म देने के बाद भी मैं सुंदर व अल्हड़ युवती सी दिखाई देती हूं. उस दिन पड़ोस वाली कमला चाची कह रही थीं, ‘लता, लगता ही नहीं तुम 2 बच्चों की मां हो. अगर साथ में बच्चे न हों और मांग में सिंदूर न हो तो कोई पहचान ही नहीं सकता कि तुम विवाहिता हो.’

फिर एकाएक लता को सुशील का ध्यान हो आया, ‘सुशील अविवाहित है. कई बार मैं ने सुशील को प्यार भरी नजरों से अपनी ओर निहारते पाया है. वह अकसर मेरे बनाए खाने की तारीफ किया करता है. मुझे खुद भी तो सुशील बहुत अच्छा लगता है. सुशील सुदर्शन है, सभ्य है, मनमोहक व्यक्तित्व वाला है. वह उन का दोस्त भी है. यहां घर पर आताजाता रहता है. मैं किसी के माध्यम से उस के दिल को टोहने का प्रयास करूंगी. यदि वह मान गया तो उस के साथ मेरा जीवन खूब सुखमय रहेगा. वह उन से ऊंचे पद पर भी है. आय भी अच्छी है. उस के पास कार, बंगला सबकुछ है. वह जरूर मुझ से विवाह कर लेगा,’ लता अनायास मन ही मन खुद को सुशील के साथ जोड़ने लगी.

‘मैं सुशील के साथ हनीमून भी मनाने जाऊंगी. वह मुझे कश्मीर ले जाने के लिए कहेगा. मैं ने कभी कश्मीर नहीं देखा है. उन्होंने कभी मुझे कश्मीर नहीं दिखाया. कितनी बार उन से अनुरोध किया कि कभी कश्मीर घुमा लाओ, पर वह हमेशा टालते रहे हैं. पर मुन्ना और मुन्नी? उन को मैं यहीं उन के नानानानी के पास छोड़ जाऊंगी.’

सुशील के साथ प्रेम क्रीड़ा, छेड़छाड़ इत्यादि क्षण भर में ही लता कई बातें अनर्गल सोच गईर्.

कश्मीर का काल्पनिक दृश्य, तसवीरों में देखी डल झील, शिकारे, हाउस बोट, निशात बाग, शालीमार बाग, गुलमर्ग इत्यादि के बारे में सोच कर उस का मन रोमांचित हो उठा.

एकाएक उस की तंद्रा भंग हो गई. बाहर दरवाजे पर दस्तक हो रही थी. लता कल्पनाओं के संसार से मुक्त हो कर एकाएक वास्तविकता के धरातल पर लौट आईर्. अपने ऊटपटांग विचारों को स्मरण कर के वह ग्लानि से भर गई, ‘कितने नीच विचार हैं मेरे. क्या मैं इतना गिर गई हूं? क्या इतनी ही पतिव्रता हूं मैं?’ लता को लगा जैसे अभीअभी उस ने कोई भयंकर सपना देखा हो.

बाहर कोई अब भी दरवाजा खटखटा रहा था. ‘इतनी रात गए कौन हो सकता है?’ लता सोचती हुई उठी और आंगन में आ गईर्. दरवाजा खोला, देखा तो उस के पति ब्रीफकेस हाथ में लिए सामने खड़े मुसकरा रहे थे. वह दौड़ कर उन से लिपट गई.

प्रसन्नता के मारे उस की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी.

धोखा : काश शशि इतना समझ पाती

घर में चहलपहल थी. बच्चे खुशी से चहक रहे थे. घर की साजसज्जा और मेहमानों के स्वागतसत्कार का प्रबंध करने में घर के बड़ेबुजुर्ग व्यस्त थे.

किंतु शशि का मन उदास था. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. दरअसल, आज उस की सगाई थी. घर की महिलाएं बारबार उसे साजश्रृंगार के लिए कह रही थीं लेकिन वह चुपचाप खिड़की से बाहर देख रही थी. उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करे?

2 महीने पहले जब उस की शादी तय हुई थी तो वह खूब रोई थी. वह किसी और को चाहती थी. लेकिन उस के मातापिता ने उस से पूछे बगैर एक व्यवसायी से उस की शादी पक्की कर दी थी.

वह अभी शहर में होस्टल में रह कर बीएड कर रही थी. वहीं अपने साथ पढ़ने वाले राकेश को वह दिल दे बैठी थी. लेकिन उस ने यह बात अपने मातापिता को नहीं बताई थी क्योंकि वह खुद या राकेश अभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाए थे. पढ़ाई पूरी होने में भी 2 साल बाकी थे. इसलिए वह चाहती थी कि शादी 2 साल के लिए किसी तरह से रुकवा ले. उस ने सोचा कि जब परिस्थितियां ठीक हो जाएंगी तो मन की बात अपने मातापिता को बता कर राकेश के लिए उन्हें राजी कर लेगी.

इसीलिए, पिछली छुट्टी में वह घर आई तो अपनी शादी की बात पक्की होने की सूचना पा कर खूब रोई थी. शादी के लिए मना कर दिया था, लेकिन किसी ने उस की एक न सुनी. पिताजी तो एकदम भड़क गए और चिल्लाते हुए बोले थे, ‘शादी वहीं होगी जहां मैं चाहूंगा.’

राकेश को उस ने फोन पर ये बातें बताई थीं. वह घबरा गया था. उस ने कहा था, ‘शशि, तुम शादी के लिए मना कर दो.’

‘नहीं, यह इतना आसान नहीं है. पिताजी मानने को तैयार नहीं हैं.’

‘लेकिन मैं कैसे रहूंगा? अकेला हो जाऊंगा तुम्हारे बिना.’

‘मैं भी तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी, राकेश,’ शशि का गला भर आया था.

‘एक काम करो. तुम पहले होस्टल आ जाओ. कोई उपाय निकालते हैं,’ राकेश ने कहा था, ‘मैं रेलवे स्टेशन पर तुम्हारा इंतजार करूंगा. 2 नंबर गेट पर मिलना. वहीं से दोनों होस्टल चलेंगे.’

उदास स्वर में शशि बोली थी, ‘ठीक है. मैं 2 नंबर गेट पर तुम्हारा इंतजार करूंगी.’

तय योजना के अनुसार, शशि रेल से उतर कर 2 नंबर गेट पर खड़ी हो गई. तभी एक कार आ कर शशि के पास रुकी. उस में से राकेश बाहर निकला और शशि के गले लग कर बोला, ‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’

शशि रोआंसी हो गई. राकेश ने कहा, ‘आओ, गाड़ी में बैठ कर बातें करते हैं.’

‘राकेश कितना सच्चा है,’ शशि ने सोचा, ‘तभी होस्टल जाने के लिए गाड़ी ले आया. नहीं तो औटो से 20 रुपए में पहुंचती. 2 किलोमीटर दूर है होस्टल.’

गाड़ी में बैठते ही राकेश ने शशि का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘शशि, मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम नहीं मिलीं, तो अपनी जान दे दूंगा.’

कार सड़क पर दौड़ने लगी.

शशि बोली, ‘नहीं राकेश, ऐसा नहीं करना. मैं तुम्हारी हूं और हमेशा तुम्हारी ही रहूंगी.’

‘इस के लिए मैं ने एक उपाय सोचा है,’ राकेश ने कहा.

‘क्या,’ शशि बोली.

‘हम लोग शादी कर लेते हैं और अपनी नई जिंदगी शुरू करते हैं.’

शशि आश्चर्यचकित हो कर बोली, ‘यह क्या कह रहे हो, तुम्हारा दिमाग तो ठीक है न.’

‘तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है,’ तभी उस ने ड्राइवर से कार रोकने को कहा.

कार एक पुल पर पहुंच गई थी. नीचे नदी बह रही थी. राकेश कार से बाहर आ कर बोला, ‘तुम शादी के लिए हां नहीं कहोगी तो मैं इसी पुल से नदी में कूद कर जान दे दूंगा,’ यह कह कर राकेश पुल की तरफ बढ़ने लगा.

‘यह क्या कर रहे हो, राकेश?’ शशि घबरा गई.

‘तो मैं जी कर क्या करूंगा.’

‘चलो, मैं तुम्हारी बात मानती हूं. लेकिन जान न दो,’ यह कह कर उस ने राकेश को खींच कर वापस कार में बिठा दिया और खुद भी बगल में बैठ कर बोली, ‘लेकिन यह सब होगा कैसे?’

शशि के हाथों को अपने सीने से लगा कर राकेश बोला, ‘अगर तुम तैयार हो तो सब हो जाएगा. हम दोनों आज ही शादी करेंगे.’

शशि चकित रह गई. इस निर्णय पर वह कांप रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? न कहे तो प्यार टूट जाता और राकेश जान दे देता. हां कहे तो मातापिता, रिश्तेदार और समाज के गुस्से का शिकार बनना पड़ेगा.

‘क्या सोच रही हो?’ राकेश ने पूछा.

शशि बोली, ‘यह सब अचानक और इतनी जल्दी ठीक नहीं है, मुझे कुछ सोचनेसमझने का समय तो दो.’

‘इस का मतलब तुम्हें मुझ से प्यार नहीं है. ठीक है, मत करो शादी. मैं भी जिंदा नहीं रहूंगा.’

‘अरे, यह क्या कर रहे हो? मैं तैयार हूं, लेकिन शादी कोई खेल नहीं है. कैसे शादी होगी. हम कहां रहेंगे? घर के लोग नाराज होंगे तो क्या करेंगे? हमारी पढ़ाई का क्या होगा?’ शशि ने कहा.

‘तुम इस की चिंता मत करो. मैं सब संभाल लूंगा. एक बार शादी हो जाने दो. कुछ दिनों बाद सब मान जाएंगे. वैसे अब हम बालिग हैं. अपने जीवन का फैसला स्वयं ले सकते हैं,’ राकेश ने समझाया.

‘लेकिन मुझे बहुत डर लग रहा है.’

‘मैं हूं न. डरने की क्या बात है?’

‘चलो, फिर ठीक है. मैं तैयार हूं,’ डरतेडरते शशि ने शादी के लिए हामी भर दी. वह किसी भी कीमत पर अपना प्यार खोना नहीं चाहती थी.

राकेश खुश हो कर बोला, ‘तुम कितनी अच्छी हो.’

थोड़ी देर बाद कार एक होटल के गेट पर रुकी. राकेश बोला, ‘डरो नहीं, सब ठीक हो जाएगा. हम लोग आज ही शादी कर लेंगे, लेकिन किसी को बताना नहीं. शादी के बाद कुछ दिन हम लोग होस्टल में ही रहेंगे. 15 दिनों बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा. मेरी मां अपनी बहू को देखना चाहती हैं. वे बहुत खुश होंगी.’

‘तो क्या तुम ने अपनी मम्मीपापा को सबकुछ बता दिया?’

‘नहीं, सिर्फ मम्मी को, क्योंकि मम्मी को गठिया है. ज्यादा चलफिर नहीं पातीं. इसीलिए वे जल्दी बहू को घर लाना चाहती हैं. किंतु पापा नहीं चाहते कि मेरी शादी हो. वे चाहते हैं कि मैं पहले पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊं, लेकिन वे भी मान जाएंगे फिर हम दोनों की सारी मुश्किलें खत्म हो जाएंगी,’ राकेश बोला.

‘सच, तुम बहुत अच्छे हो.’

‘तो मेरी प्यारी महबूबा, तुम होटल में आराम करो और हां, इस बैग में तुम्हारी जरूरत की सारी चीजें हैं. तुम रात 8 बजे तक तैयार हो जाना. फिर हम दोनों पास के मंदिर में चलेंगे. वहां शादी कर लेंगे. फिर हम होटल में आ जाएंगे. आज हमारी जिंदगी का सब से खुशी का दिन होगा.’

कुछ प्रबंध करने राकेश बाहर चला गया. शशि उधेड़बुन में थी. उस के कुछ समझ में नहीं आ रहा था. अपने मातापिता को धोखा देने की बात सोच कर उसे बुरा लग रहा था, लेकिन राकेश जिद पर अड़ा था और वह राकेश को खोना नहीं चाहती थी.

कब रात के 8 बज गए, पता ही नहीं चला. तभी राकेश आ कर बोला, ‘अरे, अभी तक तैयार नहीं हुई? समय कम है. तैयार हो जाओ. मैं भी तैयार हो रहा हूं.’

‘लेकिन राकेश यह सब ठीक नहीं हो रहा है,’ शशि ने कहा.

‘यदि ऐसा है तो चलो, तुम्हें होस्टल पहुंचा देता हूं. किंतु मुझे हमेशा के लिए भूल जाना. मैं इस दुनिया से दूर चला जाऊंगा. जहां प्यार नहीं, वहां जी कर क्या करना?’ राकेश उदास हो कर बोला.

‘तुम बहुत जिद्दी हो, राकेश. डरती हूं कहीं कुछ बुरा न हो जाए.’

‘लेकिन मैं किसी कीमत पर अपना प्यार पाना चाहता हूं, नहीं तो…’

‘बस राकेश, और कुछ मत कहो.’

1 घंटे में तैयार हो कर दोनों पास के एक मंदिर में पहुंच गए. वहां राकेश के कुछ दोस्त पहले से मौजूद थे.

राकेश मंदिर के पुजारी से बोला, ‘पंडितजी, हमारी शादी जल्दी करा दीजिए.’

जल्दी ही शादी की प्रक्रिया पूरी हो गई. शशि और राकेश एकदूसरे के हो गए. शशि को अपनी बाहों में ले कर राकेश बोला, ‘चलो, अब हम होटल चलते हैं. आज की रात वहीं बितानी है.’

दोनों होटल में आ गए. लेकिन यह दूसरा होटल था. शशि को घबराहट हो रही थी. राकेश बोला, ‘चिंता न करो. अब सब ठीक हो जाएगा. आज की रात हम दोनों की खास रात है न.’

शशि मन ही मन डर रही थी, किंतु राकेश को रोक न सकी. फिर उसे भी अच्छा लगने लगा था. दोनों एकदूसरे में समा गए. कब 2 घंटे बीत गए, पता ही नहीं चला.

‘थक गई न. चलो, पानी पी लो और सो जाओ,’ पानी का गिलास शशि की तरफ बढ़ाते हुए राकेश बोला. शशि ने पानी पी लिया. जल्द ही उसे नींद आने लगी. वह सो गई.

सुबह जब शशि की नींद खुली तो वह हक्काबक्का रह गई. उस के शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं था. उस के मुंह से चीख निकल गई. जब उस ने देखा कि कमरे में राकेश के अलावा 3 और लड़के थे. सब मुसकरा रहे थे.

तभी राकेश बोला, ‘चुप रहो जानेमन, यहां तुम्हारी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है. ज्यादा इधरउधर की तो तेरी आवाज को हमेशा के लिए खामोश कर देंगे.’

‘यह तुम ने अच्छा नहीं किया, राकेश,’ अपने शरीर को ढकने का प्रयास करती हुई शशि रोने लगी, ‘तुम ने मुझे बरबाद कर दिया. मैं सब को बता दूंगी. पुलिस में शिकायत करूंगी.’

‘नहीं, तुम ऐसा नहीं करोगी अन्यथा हम तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ेंगे. वैसे ऐसा करोगी तो तुम खुद ही बदनाम होगी,’ कह कर राकेश हंसने लगा. उस के दोस्त भी हंसने लगे.

शशि का बदन टूट रहा था. उस के शरीर पर जगहजगह नोचनेखसोटने के निशान थे. वह समझ गई कि रात में पानी में नशीला पदार्थ मिला कर पिलाया था राकेश ने. उस के बेहाश हो जाने पर सब ने उस के साथ…

शशि का रोरो कर बुरा हाल हो गया.

राकेश बोला, ‘अब चुप हो जा. जो हो गया उसे भूल जा. इसी में तेरी भलाई है और जल्दी से तैयार हो जा. तुझे होस्टल पहुंचा देता हूं. और हां, किसी से कुछ कहना नहीं वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा.’

शशि को अपनी व अपने परिवार की खातिर चुप  रहना पड़ा था.

‘‘अरे, खिड़की के बाहर क्या देख रही हो? जल्दी तैयार हो जा. मेहमान आने वाले होंगे,’’ तभी मां ने उसे झकझोरा तो वह पिछली यादों से वर्तमान में लौटी.

‘‘वह प्यार नहीं धोखा था. उस ने अपने मजे के लिए मेरी सचाई और भावना का इस्तेमाल किया,’’ शशि ने मन ही मन सोचा.

अपने आंसू पोंछते हुए शशि बाथरूम में घुस गई. उसे अपनी नासमझी पर गुस्सा आ रहा था. अपनी जिंदगी का फैसला उस ने दूसरे को करने का हक दे दिया था जो उस की भलाई के लिए जिम्मेदार नहीं था. इसीलिए ऐसा हुआ, लेकिन अब कभी वह ऐसी भूल नहीं करेगी. मुंह पर पानी के छींटे मार कर वह राकेश के दिए घाव के दर्द को हलका करने की कोशिश करने लगी.

मेहमान आ रहे हैं. अब उसे नई जिंदगी शुरू करनी है. हां, नई जिंदगी…वह जल्दीजल्दी सजनेसंवरने लगी.

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