आस्तीन का सांप

रात के 2 बज रहे थे. घर के सभी लोग गहरी नींद में थे. रीमा चुपचाप उठी और बगल वाले कमरे में चली गई. उस कमरे में उस का देवर सूरज सो रहा था.

रीमा सूरज के बगल में आ कर लेट गई और उस के बालों में उंगलियां फिराने लगी. उस के लगातार ऐसा करते रहने से सूरज जाग गया और बगल में अपनी भाभी को लेटा देख धीरेधीरे मुसकराने लगा. एकदूसरे को सहलाते और चूमते रहने के बाद देवरभाभी ने जब तक ताकत रही जम कर एकदूसरे के साथ खेले.

दोनों को एकदूसरे के साथ लेटे हुए सुबह के 5 बज चुके थे. रीमा जब अपने कमरे में जाने लगी, तो सूरज ने उसे पकड़ कर फिर से घसीट लिया.

‘‘जाने दो न, तुम्हारे भैया जाग गए होंगे,’’ रीमा ने इठलाते हुए कहा.

‘‘अरे भाभी, जाग गए होंगे तो जागने दो न उन्हें. मैं ने तुम्हें पाने के लिए कितनाकुछ किया है. वैसे भी उन को यह सब हमारा प्लान समझ में नहीं आएगा. इतने स्मार्ट नहीं हैं वे,’’ सूरज ने अंगड़ाई लेते हुए कहा.

सूरज की इस बात पर दोनों ही खिलखिला कर हंसने लगे और रीमा अपनी साड़ी और पल्लू सही कर के अपने कमरे में चली गई, जहां उस का पति बिरज सो रहा था. उस ने एक नजर अपने पति की ओर डाली और उस के माथे को चूम लिया.

बिरज ने आंखें खोलीं और कहने लगा, ‘‘रीमा, तुम मुझे कितना प्यार करती हो. रोज मेरे माथे पर चूम कर जगाती हो. मुझे यह बहुत अच्छा लगता है. मैं कितना खुशनसीब हूं, जो मुझे तुम्हारी जैसी पत्नी मिली,’’ यह कह कर बिरज ने रीमा को अपनी बांहों में भर लिया.

बिरज और सूरज का कपड़ों का कारोबार था. बिरज बहुत ही सीधा और सज्जन था, जबकि सूरज एक आवारा और गलत संगत में पड़ कर इधरउधर पैसे बरबाद करने वाला लड़का बन गया था.

सारा कारोबार बिरज ने ही संभाल रखा था, जबकि सूरज सिर्फ इधरउधर घूमता और दोस्तों पर पैसे लुटाता था.

सूरज को एक लड़की से प्यार भी हो गया था, जिस से वह शादी करना चाहता था. वह लड़की और कोई नहीं, बल्कि बाद में उस की भाभी बन चुकी रीमा ही थी, पर उस समय जब सूरज ने रीमा के घर वालों से अपनी शादी की बात कही तो रीमा के पिताजी ने साफ मना कर दिया था, ‘हम तुम्हारे जैसे आवारा लड़के से अपनी बेटी की शादी नहीं करेंगे.’

पर, सूरज और रीमा के लिए एकदूसरे के बिना रह पाना नामुमकिन था. जब दोनों को अपनी शादी हो पाना मुश्किल लगा, तो दोनों ने आपसी रजामंदी से एक योजना बनाई.

हालांकि बिरज और सूरज दोनों सगे भाई थे, पर उन में काफी खुलापन था. लड़कियों को ले कर भी आपस में काफी हंसीमजाक भी चल जाता था.

इसी बात का फायदा सूरज ने उठा लिया और अपने मोबाइल फोन में रीमा का फोटो दिखाया. फोटो देखते ही बिरज को रीमा बहुत पसंद आ गई.

‘‘अरे सूरज, यह लड़की तो बहुत खूबसूरत है,’’ बिरज ने उतावला होते हुए कहा.

‘‘हां भैया, खूबसूरत तो है. पसंद हो, तो बात चलाऊं?’’ सूरज ने पांसा फेंका.

‘‘अरे, नहींनहीं. ये सब अच्छी बातें नहीं हैं,’’ बिरज थोड़ा शरमा सा गया.

‘‘अरे भैया, शरमा क्यों रहे हो? यह इस का ह्वाट्सएप नंबर है और चैटिंग शुरू कर दो,’’ सूरज ने एक और दांव फेंका.

बिरज सीधासादा लड़का था. जमाने की हवा उसे लगी नहीं थी, इसलिए उसे सूरज की चाल समझ में नहीं आई. उस ने धीरेधीरे रीमा से फोन पर बातें शुरू कर दीं.

रीमा ने भी बिरज को अपने प्रेम में गिरफ्तार कर लिया और जब ऐसा लगने लगा कि वह रीमा के बिना नहीं रह पाएगा, तब उस ने खुद ही अपनी मां से अपने मन की बात कह दी.

बिरज के पिता की मौत 4 साल पहले ही हो चुकी थी. बड़े दिनों के बाद बिरज की मां ने उस की आंखों में कोई चमक देखी थी, इसलिए वे बिरज को मना न कर पाईं और शादी के लिए न सिर्फ हां कर दी, बल्कि खुद ही रिश्ता ले कर रीमा के घर पहुंच गईं.

रीमा के घर वालों को भी कोई दिक्कत नहीं हुई और जब उन्होंने रीमा का मन टटोला तो उस की भी रजामंदी देख रीमा के घर वालों ने रीमा और बिरज की शादी करा दी.

सुहागरात के दिन जब बिरज अपने कमरे में पहुंचा और रीमा का चेहरा देख जब उस ने संबंध बनाना चाहा, तो रीमा ने मना कर दिया.

‘‘क्या आप ने सिर्फ शरीर के लिए मुझ से शादी की है?’’ रीमा ने बिरज से धीरे से पूछा.

नई दुलहन से बिरज को ऐसे सवाल की उम्मीद नहीं थी, इसलिए वह एकदम सकपका सा गया.

‘‘नहीं, लेकिन दोस्त कहते हैं कि पहली रात में यह सब जरूरी होता है,’’ बिरज ने शरमाते हुए कहा.

‘‘देखिए, मुझे अभी पढ़ाई करनी है, इसलिए मैं इन सब कामों में नहीं पड़ना चाहती हूं. जब मेरा रिजल्ट आ जाएगा, तभी हमारे बीच में कोई संबंध बन सकेगा,’’ रीमा ने समझाने वाले अंदाज में कहा.

बिरज भोला था. वह रीमा की बातों में आ गया और यही समझता रहा कि रीमा पढ़ाई में बिजी है, इसलिए उस ने फिर संबंध बनाने के लिए जबरदस्ती नहीं की.

लेकिन बिरज को क्या पता था कि उस का भाई सूरज ही उस के साथ दुश्मनी कर रहा है.

बिरज तो अपने काम में बिजी रहता और रीमा और सूरज जवानी के मजे लूट रहे थे. अब उन लोगों को किसी की परवाह नहीं थी. वैसे भी सूरज और रीमा में भाभीदेवर का रिश्ता था, इसलिए मां को भी शक नहीं हुआ.

रीमा कभीकभी डाक्टर को दिखाने को कहती तो बिरज यही कह देता कि आज दुकान पर बहुत काम है. तुम सूरज के साथ चली जाना. फिर क्या था, रीमा और सूरज घर से निकल जाते और किसी होटल में 3-4 घंटे मजे कर के लौट आते.

किसी ने सोचा भी न था कि एक प्रेमी जोड़ा अपने प्रेम को कायम रखने के लिए किस कदर गंदे खेल को अंजाम दे सकता है.

बिरज और रीमा की शादी को एक साल बीत चुका था, पर उसे अभी तक रीमा के शरीर का सुख नहीं मिला था. जब बिरज से न रहा गया तो उस ने शरमाते हुए यह बात अपनी मां से बता दी.

बिरज की मां को कुछ अजीब सा तो लगा, पर उन्होंने सोचा कि पढ़नेलिखने वाली लड़की है, अभी से बच्चों के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती, यह सोच कर उन्होंने उलटे ही बिरज को समझा दिया.

एक दिन की बात है. बिरज शाम को दुकान बंद कर के घर लौट रहा था. रीमा के लिए गजरा लेने के लिए वह एक दुकान की तरफ बढ़ा, तभी एक पान की गुमटी के पीछे से सूरज की आवाज आती हुई सुनाई दी, जो अपने दोस्तों के साथ मस्ती कर रहा था. बिरज वहीं रुक कर सूरज की बातें सुनने लगा.

एक दोस्त सूरज से कह रहा था, ‘‘अरे भाई सूरज, दिमाग हो तो तेरे जैसा. कैसे अपनी गर्लफ्रैंड को तुम ने अपनी भाभी बना लिया और अब तो जब चाहे जितनी चाहे उतनी बार मौज ले सकता है.’’

‘‘अरे यार, मैं यह सब नहीं करना चाहता था, पर रीमा का बाप मुझ जैसे आवारा लड़के से अपनी लड़की की शादी करना ही नहीं चाहता था, इसलिए मुझे उस की शादी अपने भैया से करवाने का यह नाटक करना पड़ा,’’ सूरज नशे में सब कहे जा रहा था.

बिरज के कानों में मानो किसी ने पिघला सीसा भर दिया था.

‘‘लेकिन… दोस्तो, रीमा भी बड़ी चालाक निकली. उस ने आज तक भैया को अपना शरीर छूने तक नहीं दिया है, पर उसे क्या मालूम कि रीमा के सीने पर मैं कई बार अपनी कलाकारी दिखा चुका हूं और आगे भी दिखाता रहूंगा,’’ इतना कह कर सूरज जोरजोर से हंसने लगा.

अपने खिलाफ इतना बड़ा धोखा होने की उम्मीद बिरज को सपने में भी नहीं थी और जिस तरह से सूरज ने रीमा के लिए गलत बातें कह रखी थीं, उन से बिरज का खून उबाल मारने लगा था.

‘‘बेईमान, कमीने, धोखेबाज, भाई हो कर तू ने भाई को धोखा दिया,’’ चिल्लाते हुए बिरज ने सूरज को एक जोरदार तमाचा मार दिया.

अपने दोस्तों के सामने हुई इस बेइज्जती को सूरज सहन नहीं कर पाया और उस ने भी बिरज पर हाथ छोड़ दिया. दोनों भाई आपस में ही लातघूंसे चलाने लगे.

सूरज का खून गरम तो था ही, उस पर शराब ने और भी गरमी चढ़ा रखी थी और ये गरमी तब शांत हुई, जब उस ने शराब की टूटी बोतल अपने भाई बिरज के सीने में उतार दी.

दर्द से छटपटाता बिरज खून से नहा उठा था और कुछ देर में वह शांत हो गया. उस की मौत हो चुकी थी.

सामने भाई बिरज की लाश देख कर सूरज पहले तो घबराया, पर बाद में पुलिस की कार्यवाही और इस झमेले से बचने के लिए उस ने प्लान बनाया.

सूरज और उस के दोस्तों ने पुलिस में यह बताया कि कोई लूटने के मकसद से बिरज का खून कर गया है और पर्स, मोबाइल फोन, घड़ी वगैरह भी उन लोगों ने ठिकाने लगा दिया.

बिरज अपने हाथ में एक सोने की अंगूठी पहने रहता था, जिस पर सूरज का दिल आ गया, इसलिए वह अंगूठी सूरज ने पुलिस को न दे कर अपने पास रख ली.

पुलिस ने भी सूरज की बात को सच मान लिया और लूट का केस मान कर केस बंद कर दिया. बिरज की मां ने भी अपनी फूटी किस्मत समझ कर आंसू पोंछ लिए.

बिरज के मरने के बाद मां एकदम अकेली हो गई थीं और वे रीमा के कमरे में ही सोने लगी थीं.

मां के रीमा के साथ में सोने से सूरज और रीमा का बनाबनाया खेल चौपट सा दिखने लगा, क्योंकि अब उन दोनों को जिस्मानी जरूरतें पूरी करने की आजादी नहीं मिल पा रही थी, इसलिए सूरज ने मन ही मन एक दूसरा प्लान बनाया.

‘‘मां, बिरज भैया के जाने के बाद से आप बड़े अशांत रहने लगी हो, आप को शांति मिले, इसलिए चलो, मैं आप को और भाभी को हरिद्वार घुमा लाता हूं.

‘‘कुछ दिन आश्रम में रहेंगे तो मन भी हलका हो जाएगा,’’ सूरज ने मासूमियत भरे लहजे में अपनी मां से कहा.

‘‘अरे बेटा, मैं अब बूढ़ी हड्डियां ले कर कहां जाऊंगी. तुम और रीमा ही हो आओ, मैं यहीं रह कर घर की देखभाल करूंगी,’’ मां ने कहा.

अंधे को क्या चाहिए दो आंखें. सूरज और रीमा जो चाहते थे, वही उन को मिल गया. फिर क्या था, दोनों ने खूब रुपयापैसा इकट्ठा किया और निकल पड़े शांति की तलाश में.

पहले तो शहर में जा कर उन्होंने होटल में कमरा लिया और जी भर कर अपने जिस्मों की प्यास बुझाई.

इधर सूरज की मां घर में अकेली होने के चलते घर की साफसफाई में लग गईं. सफाई के दौरान उन्हें सूरज के कमरे की अलमारी में बिरज की वह अंगूठी मिली, जो सूरज उस को मारने के बाद ले आया था. अचानक से बिरज को लूट लिया जाना, जबकि बिरज कई सालों से उस रास्ते से आताजाता था और आज अचानक से बिरज की अंगूठी का सूरज की अलमारी में मिलना मां के दिल में शक सा पैदा कर गया.

मां ने कमरे को और खंगाला तो पाया कि उस की बहू रीमा की चुन्नी भी सूरज के कपड़ों में मिली. मां समझ गई कि क्या मामला है. लेकिन, वे कर क्या सकती थीं.

उन्होंने सूरज के दोस्तों को घर पर बुलाया और बातोंबातों में सारा भेद उगलवा लिया. अब उन के पास एक ही उपाय था, दोनों की शादी कर देना, ताकि देवरभाभी का खेल किसी को पता नहीं चले.

मां को मालूम था कि अब रीमा के मातापिता भी कुछ न कहेंगे, क्योंकि वे विधवा बेटी का बोझ क्यों संभालेंगे.

नीरज कुमार मिश्रा

कचरे वाले : गंदगी फैलाने वाले लोग हैं कौन

मंगलवार की सुबह औफिस के लिए निकलते वक्त पत्नी ने आवाज दी, ‘‘आज जाते समय यह कचरा लेते जाइएगा, 2 दिनों से पड़ेपड़े दुर्गंध दे रहा है.’’ मैं ने नाश्ता करते हुए घड़ी पर नजर डाली, 8 बजने में 10 मिनट बाकी थे. ‘‘ठीक है, मैं देखता हूं,’’ कह कर मैं नाश्ता करने लगा. साढ़े 8 बज चुके थे. मैं तैयार हो कर बालकनी में खड़ा मल्लपा की राह देख रहा था. कल बुधवार है यानी सूखे कचरे का दिन. अगर आज यह नहीं आया तो गुरुवार तक कचरे को घर में ही रखना पड़ेगा.

बेंगलुरु नगरनिगम का नियम है कि रविवार और बुधवार को केवल सूखा कचरा ही फेंका जाए और बाकी दिन गीला. इस से कचरे को सही तरह से निष्क्रिय करने में मदद मिलती है. यदि हम ऐसा नहीं करते तो मल्लपा जैसे लोगों को हमारे बदले यह सब करना पड़ता है. मल्लपा हमारी कालोनी के कचरे ढोने वाले लड़के का नाम था. वैसे तो बेंगलुरु के इस इलाके, केंपापुरा, में वह हमेशा सुबहसुबह ही पहुंच जाता था लेकिन पिछले 2 दिनों से उस का अतापता न था. मैं ने घड़ी पर फिर नजर दौड़ाई, 5 मिनट बीत चुके थे. मैं ने हैलमैट सिर पर लगाया और कूड़ेदान से कचरा निकाल कर प्लास्टिक की थैली में भरने लगा. कचरे की थैली हाथ में लिए 5 मिनट और बीत गए, लेकिन मल्लपा का अतापता न था.

मैं ने तय किया कि सोसाइटी के कोने पर कचरा रख कर औफिस निकल लूंगा. दबेपांव मैं अपने घर के बरामदे से बाहर निकला और सोसाइटी के गेट के पास कचरा रखने लगा. ‘‘खबरदार, जो यहां कचरा रखा तो,’’ पीछे से आवाज आई. मैं सकपका गया. देखा तो पीछे नीलम्मा अज्जी खड़ी थीं. ‘‘अभी उठाओ इसे, मैं कहती हूं, अभी उठाओ.’’

‘‘पर अज्जी, मैं क्या करूं, मल्लपा आज भी नहीं आया,’’ मैं ने सफाई देने की कोशिश की. ‘‘जानती हूं, लेकिन सोसाइटी की सफाई तो मुझे ही देखनी होती है न. तुम तो यहां कचरा छोड़ कर औफिस चल दोगे, आवारा कुत्ते आ कर सारा कचरा इधरउधर बिखेर देंगे, फिर साफ तो मुझे ही करना होगा न,’’ उन का स्वर तेज था. मैं ने कचरा वापस कमरे में रखने में ही भलाई समझी.

‘‘तुम तो गाड़ी से औफिस जाते हो, इस कूड़े को रास्ते में किसी कूडे़दान में क्यों नहीं फेंक देते,’’ उन्होंने सलाह दी. ‘‘बात तो ठीक कहती हो अज्जी, घर में रखा तो यह ऐसे ही दुर्गंध देता रहेगा,’’ यह कह कर कचरे का थैला गाड़ी की डिग्गी में डाल लिया, सोचा कि रास्ते में किसी कूड़े के ढेर में फेंक दूंगा. सफाई के मामले में वैसे तो बेंगलुरु भारत का नंबर एक शहर है, लेकिन कूड़े का ढेर ढूंढ़ने में ज्यादा दिक्कत यहां भी नहीं होती. मैं अभी कुछ ही दूर गया था कि सड़क के किनारे कूड़े का एक बड़ा सा ढेर दिख गया. मैं ने कचरे से छुटकारा पाने की सोच, गाड़ी रोक दी. अभी डिग्गी खोली भी नहीं थी कि एक बच्ची मेरे सामने आ कर खड़ी हो गई. ‘‘अंकल, क्या आप मेरी हैल्प कर दोगे, प्लीज.’’

‘‘हां बेटा, बोलो, आप को क्या हैल्प चाहिए,’’ मैं ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा. उस ने झट से अपने साथ के 2 बच्चों को बुलाया जो वहां सड़क के किनारे अपनी स्कूलबस का इंतजार कर रहे थे. उन में से एक से बोली, ‘‘गौरव, वह बोर्ड ले आओ, अंकल हमारी हैल्प कर देंगे.’’

गौरव भाग कर गया और अपने साथ एक छोटा सा गत्ते का बोर्ड ले आया. उस के साथ 3-4 बच्चे और मेरी गाड़ी के पास आ कर खड़े हो गए. छोटी सी एक बच्ची ने वह गत्ते का बोर्ड मुझे थमाते हुए कहा, ‘‘अंकल, आप यह बोर्ड यहां ऊपर टांग दीजिए, प्लीज.’’

‘‘बस, इतनी सी बात,’’ कह कर मैं ने वह बोर्ड वहां टांग दिया. बोर्ड पर लिखा था, ‘कृपया यहां कचरा न फेंकें, यह हम बच्चों का स्कूलबस स्टौप है.’

बोर्ड टंगा देख सभी बच्चे तालियां बजाने लगे. मैं ने एक नजर अपनी बंद पड़ी डिग्गी पर दौड़ाई और वहां से निकल पड़ा. कोई बात नहीं, घर से औफिस का सफर 20 किलोमीटर का है, कहीं न कहीं तो कचरे वालों का एरिया होगा, यह सोच मैं ने मन को धीरज बंधाया और गाड़ी चलाने लगा.

आउटर रिंग रोड पर गाड़ी चलते समय कहीं भी कचरे का ढेर नहीं दिखा तो हेन्नुर क्रौसिंग से आगे बढ़ने पर मैं ने लिंग्रज्पुरम रोड पकड़ ली. मैं ने सोचा कि रैजिडैंशियल एरिया में तो जरूर कहीं न कहीं कचरे का ढेर मिलेगा या हो सकता है कि कहीं कचरे वालों की कोई गाड़ी ही मिल जाए. अभी थोड़ी दूर ही चला था कि रास्ते में गौशाला दिख गई. साफसुथरे कपड़े पहने लोगों के बीच कुछ छोटीमोटी दुकानें थीं और पास ही कचरे का ढेर भी लगा था, लेकिन यह क्या, वहां तो गौशाला के कुछ कर्मचारी सफाई करने में लगे थे.

मैं ने गाड़ी की रफ्तार और तेज कर दी और सोचने लगा कि इस कचरे को आज डिग्गी में ही ढोना पड़ेगा. लिंग्रज्पुरम फ्लाईओवर पार करने के बाद मैं लेजर रोड पर गाड़ी चला रहा था. एमजी रोड जाने के लिए यहां से 2 रास्ते जाते थे. एक कमर्शियल स्ट्रीट से और दूसरा उल्सूर लेक से होते हुए. उल्सूर लेक के पास गंदगी ज्यादा होगी, यह सोच कर मैं ने गाड़ी उसी तरफ मोड़ दी.

अनुमान के मुताबिक मैं बिलकुल सही था. रोड के किनारे लगी बाड़ के उस पार कचरे का काफी बड़ा ढेर था. थोड़ा और आगे बढ़ा तो 2-3 महिलाएं कचरे के एक छोटे से ढेर से सूखा व गीला कचरा अलग कर रही थीं. उन्हें नंगेहाथों से ऐसे करते देख मुझे बड़ी घिन्न आई. थोड़ी ग्लानि भी हुई. हम अपने घरों में छोटीछोटी गलतियां करते हैं सूखे और गीले कचरे को अलग न कर के. यहां इन बेचारों को यह कचरा अपने हाथों से बिनना पड़ता है.

मुझे डिग्गी में रखे कचरे का खयाल आया, जो ऐसे ही सूखे और गीले कचरे का मिश्रण था. मन ग्लानि से भर उठा. धीमी चल रही गाड़ी फिर तेज हो गई और मैं एमजी रोड की तरफ बढ़ गया. एमजी रोड बेंगलुरु के सब से साफसुथरे इलाकों में से एक है.

चौड़ीचौड़ी सड़कें और कचरे का कहीं नामोनिशान नहीं. सफाई में लगे कर्मचारी वहां भी धूल उड़ाते दिख रहे थे. लेकिन मुझे जेपी नगर जाना था. इसीलिए मैं ने बिग्रेड रोड वाली लेन पकड़ ली. सोचा शायद यहां कहीं कूड़ेदान मिल जाए, लेकिन लगता है, इस सूखेगीले कचरे के मिश्रण की लोगों की आदत सुधारने के लिए नगरनिगम ने कूड़ेदान ही हटा दिए थे.

शांतिनगर, डेरी सर्किल, जयदेवा हौस्पिटल होते हुए अब मैं अपने औफिस के नजदीक वाले सिग्नल पर खड़ा था. सामने औफिस की बड़ी बिल्ंिडग साफ नजर आ रही थी. वहां कचरा ले जाने की बात सोच कर मन में उथलपुथल मच गई. आसपास नजर दौड़ाई तो सामने कचरे की एक छोटी सी हाथगाड़ी खड़ी थी और गाड़ी चलाने वाली महिला कर्मचारी पास में ही कचरा बिन रही थी. यह सूखे कचरे की गाड़ी थी.

मैं ने मन ही मन सोचा, ‘यही मौका है, जब तक वह वहां कचरा बिनती है, मैं अपने कचरे की थैली को उस की गाड़ी में डाल के निकल लेता हूं,’ था तो यह गलत, क्योंकि उस बेचारी ने सूखा कचरा जमा किया था और मैं उस में मिश्रित कचरा डाल रहा था, लेकिन मेरे पास और कोई उपाय नहीं था. मैं ने साहस कर के गाड़ी की डिग्गी खोली, लेकिन इस से पहले कि मैं कचरा निकाल पाता, सिग्नल ग्रीन हो गया.

पीछे से गाडि़यों का हौर्न सुन कर मैं ने अपनी गाड़ी वहां से निकालने में ही भलाई समझी. अब मैं औफिस के अंदर पार्किंग में था. कचरा रखने से कपड़े की बनी डिग्गी भरीभरी दिख रही थी.

मैं ने गाड़ी लौक की और लिफ्ट की तरफ जाने लगा, तभी सिक्योरिटी गार्ड ने मुझे टोक दिया, ‘‘सर, कहीं आप डिग्गी में कुछ भूल तो नहीं रहे,’’ उस ने उभरी हुई डिग्गी की तरफ इशारा किया. ‘‘नहींनहीं, उस में कुछ इंपौर्टेड सामान नहीं है,’’ मैं ने झेंपते हुए कहा और लिफ्ट की तरफ लपक लिया.

औफिस में दिनभर काम करते हुए एक ही बात मन में घूम रही थी कि कहीं, कोई जान न ले कि मैं घर का कचरा भी औफिस ले कर आता हूं. न जाने इस से कितनी फजीहत हो. बहरहाल, शाम हुई. मैं औफिस से जानबूझ कर थोड़ी देर से निकला ताकि अंधेरे में कचरा फेंकने में कोई दिक्कत न हो.

गाड़ी स्टार्ट की और घर की तरफ निकल लिया, फिर से वही रास्ता. फिर से वही कचरे के ढेर. इस बार कोई बंदिश न थी और न ही कोई रोकने वाला, लेकिन फिर भी मैं कचरा नहीं फेंक पाया. कचरे के ढेर आते रहे और मैं दृढ़मन से गाड़ी आगे बढ़ाता रहा. न जाने क्या हो गया था मुझे.

अब कुछ ही देर में घर आने वाला था. सुबह निकलते वक्त पत्नी की बात याद आई, ‘अंदर से आवाज आई, छोड़ो यह सब सोचना. एक तुम्हारे से थोड़े न, यह शहर इतना साफ हो जाएगा.’ मैं ने सोसाइटी के पीछे वाली सड़क पकड़ ली. लगभग 1 किलोमीटर दूर जाने के बाद एक कचरे का ढेर और दिखा. मैं ने गाड़ी रोकी, डिग्गी खोली और कचरा ढेर के हवाले कर दिया.

सुबह से जो तनाव था वह अचानक से फुर्र हो गया. मन को थोड़ी राहत मिली. रास्तेभर से जो जंग मन में चल रही थी, वह अब जीती सी लग रही थी.

तभी सामने एक औटोरिकशा आ कर रुका, देखा तो मल्लपा अपनी बच्ची को गोद में लिए उतर रहा था. ‘‘नमस्ते सर, आप यहां.’’

‘‘नहीं, मैं बस यों ही, और तुम यहां? कहां हो इतने दिनों से, आए नहीं?’’ ‘‘मेरा तो घर यहीं पीछे है. क्या बताऊं सर, मेरी बच्ची की तबीयत बहुत खराब है. बस, इसी की तिमारदारी में लगा हूं 2 दिनों से.’’

‘‘क्या हुआ इसे?’’ ‘‘संक्रमण है, डाक्टर कहता है कि गंदगी की वजह से हुआ है.’’

‘‘ठीक तो कहा डाक्टर ने, थोड़ी साफसफाई रखो,’’ मैं ने सलाह दी. ‘‘अब साफ जगह कहां से लाएं. हम तो कचरे वाले हैं न, सर,’’ यह कह कर मुसकराता हुआ वह अपने घर की ओर चल दिया.

सामने उस का घर था, बगल में कचरे का ढेर. वहां खड़ा मैं, अब, हारा हुआ सा महसूस कर रहा था.

चौदह इंच की लंबी दूरी : क्यों उदास थी अचला

रात के 11 बज रहे थे. बाहर बारिश हो रही थी. अचला अपने बैडरूम की खुली खिड़की से बाहर का दृश्य देख रही थी, आंसू चुपचाप उस के गालों को भिगोने लगे थे. दिल में तूफान सा मचा था. वह बहुत उदास थी. कहां वह ऐसे हसीन मौसम का आनंद मनीष की बांहों में खो कर लेना चाहती थी और कहां अब अकेली उदास लेटी थी. उस ने 2 घंटे से लैपटौप पर काम करते मनीष को देखा, तो खुद को रोक नहीं पाई. कहने लगी, ‘‘मनीष, क्या हो रहा है यह… कितनी देर काम करते रहोगे?’’

‘‘तुम सो जाओ, मुझे नींद नहीं आ रही.’’

अचला का मन हुआ कि कहे नींद नहीं आ रही तो यह समय पत्नी के साथ भी तो बिता सकते हो, लेकिन वह कह नहीं पाई. यह एक दिन की तो बात थी नहीं. रोज का काम था. महीने में 10 दिन मनीष टूअर पर रहता था, बाकी समय औफिस या घर पर लैपटौप अथवा अपने फोन में व्यस्त रहता था.अचला को अपना गला सूखता सा लगा तो पानी लेने किचन की तरफ चली गई. सासससुर प्रकाश और राधा के कमरे की लाइट बंद थी. बच्चों के रूम में जा कर देखा तो तन्मय और तन्वी भी सो चुकी थे. घर में बिलकुल सन्नाटा था.वह बेचैन सी पानी पी कर अपने बैड पर आ कर लेट गई. सोचने लगी कि प्यार का खुमार कुछ सालों बाद इतना उतर जाता है? रोमांस का सपना दम क्यों तोड़ देता है? रोजरोज की घिसीपिटी दिनचर्या के बोझ तले प्यार कब और क्यों कुचल जाता है पता भी नहीं चलता. प्यार रहता तो है पर उस पर न जाने कैसे कुहरे की चादर पड़ जाती है कि पुराने दिन सपने से लगते हैं.

लोगों के सामने जब मनीष जोश से कहता कि मुझे तो घर की, मांपिताजी की, बच्चों की पढ़ाई की कोई चिंता नहीं रहती, अचला सब मैनेज कर लेती है, तो अचला को कुछ चुभता. सोचती बस, मनीष को अपनी पत्नी के प्रति अपना कोई फर्ज महसूस नहीं होता. आज वह बहुत अकेलापन महसूस कर रही थी. उस से रहा नहीं गया तो उठ बैठी. फिर कहने लगी, ‘‘मनीष, क्या हम ऐसे ही बंधेबंधाए रूटीन में ही जीते रहेंगे? तुम्हें नहीं लगता कि हम कुछ बेहतरीन पल खोते जा रहे हैं, जो हमें इस जीवन में फिर नहीं मिलेंगे?’’

मनीष ने लैपटौप से नजरें हटाए बिना ही कहा, ‘‘अचला, मैं आज जिस पोजीशन पर हूं उसी से घर में हर सुखसुविधा है… तुम्हें किसी चीज की कोई कमी नहीं है, फिर तुम क्यों उदास रहती हो?’’

‘‘पर मुझे बस तुम्हारा साथ और थोड़ा समय चाहिए.’’

‘‘तो मैं कहां भागा जा रहा हूं. अच्छा, जरा एक जरूरी मेल भेजनी है, बाद में बात करता हूं.’’

फिर मनीष कब बैड पर आया, अचला की उदास आंखें कब नींद के आगोश में चली गईं, अचला को कुछ पता नहीं चला. काफी दिनों से प्रकाश और राधा उन दोनों के बीच एक सन्नाटा सा महसूस कर रहे थे, कहां इस उम्र में भी दोनों के पास बातों का भंडार था कहां उन के आधुनिक बेटाबहू नीरस सा जीवन जी रहे थे. राधा देख रही थीं कि अचला मनीष के साथ समय बिताने की चाह में उस के आगेपीछे घूमती है, लेकिन वह अपनी व्यस्तता में हद से ज्यादा डूबा था. यहां तक कि खाना खाते हुए भी फोन पर बात करता रहता. उसे पता भी नहीं चलता था कि उस ने क्या खाया. अचला का उतरा चेहरा प्रकाश और राधा को तकलीफ पहुंचाता. बच्चे अपनी पढ़ाई, टीवी में व्यस्त रहते. उन से बात कर के भी अचला के चेहरे पर रौनक नहीं लौटती.

एक दिन प्रकाश और राधा ने मनीष को अपने पास बुलाया. प्रकाश ने कहा, ‘‘काम करना अच्छी बात है, लेकिन उस में इतना डूब जाना कि पत्नी को भी समय न दे पाओ, यह ठीक नहीं है.’’

‘‘पापा, क्या कह रहे हैं आप? समय ही कहां है मेरे पास? देखते नहीं कितना काम रहता है मेरे पास?’’

‘‘पढ़ीलिखी होने के बाद भी अचला ने घरगृहस्थी को ही प्राथमिकता दी. कहीं नौकरी करने की नहीं सोची. दिनरात सब का ध्यान रखती है, कम से कम उस का ध्यान रखना तुम्हारा फर्ज है बेटा,’’ मां राधा बोलीं.

‘‘मां, उस ने आप से कुछ कहा है? मुझे नहीं लगता कि वह मेरी जिम्मेदारियां समझती है?’’

‘‘उस ने कभी कुछ नहीं कहा, लेकिन हमें तो दिखती है उस की उदासी. मनीष, संसार में सब से लंबी दूरी होती है सिर्फ 14 इंच की, दिमाग से दिल तक, इसे तय करने में काफी उम्र निकल जाती है. कभीकभी यह दूरी इंसान का बहुत कुछ छीन लेती है और उसे पता भी नहीं चल पाता,’’ राधा ने गंभीर स्वर में कहा तो मनीष बिना कुछ कहे टाइम देखता हुआ जाने के लिए खड़ा हो गया.

प्रकाश ने कहा, ‘‘मुझे इस पर किसी बात का असर होता नहीं दिख रहा है.’’

राधा ने कहा, ‘‘आज अचला से भी बात करूंगी. अभी उसे भी बुलाती हूं.’’

उन की आवाज सुन कर अचला आई तो राधा ने स्नेह भरे स्वर में कहा, ‘‘बेटा, देख रही हूं आजकल कुछ चुप सी रहती हो. भावुक होने से काम नहीं चलता बेटा. मैं तुम्हारी उदासी का कारण समझ सकती हूं.’’

प्रकाश ने भी बातचीत में हिस्सा लेते हुए कहा, ‘‘स्थान, काल, पात्र के अनुसार इंसान को खुद को उस में ढाल लेना चाहिए. तुम भी कोशिश करो, सुखी रहोगी.’’

अचला ने मुसकरा कर हां में सिर हिला दिया. सासससुर उसे बहुत प्यार करते हैं, यह वह जानती थी. अचला अकेले बैठी सोचने लगी. मांपिताजी ठीक ही तो कह रहे हैं, मैं ही क्यों हर समय रोनी सूरत लिए मनीष के साथ समय बिताने के लिए उन के आगेपीछे घूमती रहूं? रोजरोज पासपड़ोस में निंदापुराण सुनने में मन भी नहीं लगता, लाइब्रेरी की सदस्यता ले लेती हूं. कुछ अच्छी पत्रिकाएं पढ़ा करूंगी. कंप्यूटर सीखा तो है पर उस से ज्यादा अपनों के साथ बात करना अच्छा लगता है. कहां दिल लगाऊं? पता नहीं क्यों आज एक नाम अचानक उस के जेहन में कौंध गया, विकास. कहां होगा, कैसा होगा? वह उस अध्याय को शादी से पहले समाप्त समझ साजन के घर आ गई थी. लेकिन आज उसी बंद अध्याय के पन्ने फिर से खुलने के लिए उस के सामने फड़फड़ाने लगे.

विकास उम्र का वह जादू था जिसे कोई चाह कर भी वश में नहीं कर सकता. यह भी सच था मनीष से विवाह के बाद उस ने विकास को मन से पूरी तरह निकाल दिया था. विकास से उस का विवाह जातिधर्म अलगअलग होने के कारण दोनों के मातापिता को मंजूर नहीं था. फिर मातापिता के सामने जिद करने की दोनों की हिम्मत भी नहीं हुई थी. दोनों ने चुपचाप अपनेअपने मातापिता की मरजी के आगे सिर झुका दिया था. आज जीवन के इस मोड़ पर नीरस जीवन के अकेलेपन से घबरा कर अचला विकास को ढूंढ़ने लगी. अचला ने कंप्यूटर औन किया, फेसबुक पर अकाउंट था ही उस का. सोचा उसे सर्च करे, क्या पता वह भी फेसबुक पर हो. नाम टाइप करते ही असंख्य विकास दिखने लगे, लेकिन अचानक एक फोटो पर नजर टिक गई. यह वही तो था. फिर उस ने उस का प्रोफाइल चैक किया, शहर, कालेज, जन्मतिथि सब वही. उस ने फौरन मैसेज बौक्स में मैसेज छोड़ा, ‘‘अचला याद है?’’

3 दिन बाद मैसेज आया, ‘‘हां, कभी भूला ही नहीं.’’

मैसेज आते ही अचला ने अपना मोबाइल नंबर भेज दिया. कुछ देर बाद ही वह औनलाइन दिखा और कुछ पलों में ही दोनों भूल गए कि उन का जीवन 15 साल आगे बढ़ चुका है. अचला भी मां थी अब तो विकास भी पिता था. अचला मुंबई में थी, तो विकास इस समय लखनऊ में था. अब दोनों अकसर चैट करते. कितने नएपुराने किस्से शुरू हो गए. बातें थीं कि खत्म ही नहीं होती थीं. पुरानी यादों का अंतहीन सिलसिला. प्रकाश और राधा चूंकि घर पर ही रहते थे, इसलिए बहू में आया यह परिवर्तन उन्होंने साफसाफ नोट किया. अचला के बुझे चेहरे पर रौनक रहने लगी थी. हंसतीमुसकराती घर के काम जल्दीजल्दी निबटा कर वह अपने बैडरूम में रखे कंप्यूटर पर बैठ जाती. कई बार वह विकास को अपने दिमाग से झटकने की कोशिश तो करती पर भूलाबिसरा अतीत जब पुनर्जीवित हो कर साकार सामने आ खड़ा हुआ तो उस से पीछा छुड़़ा पाना उतना आसान थोड़े ही होता है.

अब मनीष रात को लैपटौप पर होता, तो अचला फेसबुक पर. 1-2 बार मनीष ने पूछा, ‘‘तुम क्या ले कर बैठने लगी?’’

‘‘चैट कर रही हूं.’’

‘‘अच्छा? किस के साथ?’’

‘‘कालेज का दोस्त औनलाइन है.’’

मनीष चौंका पर चुप रहा. अचला और विकास अकसर एकदूसरे के संपर्क में रहते, पुरानी यादें ताजा हो चुकी थीं. दोनों अपनेअपने परिवार के बारे में भी बात करते. फोन पर भी मैसेज चलते रहते. एक दिन मनीष ने सुबह नाश्ते के समय अचला के फोन पर मैसेज आने की आवाज सुनी तो पूछा, ‘‘सुबहसुबह किस का मैसेज आया है?’’

अचला ने कहा, ‘‘फ्रैंड का?’’

‘‘कौन सी फ्रैंड?’’

‘‘आप को मेरी फ्रैंड्स में रुचि लेने का टाइम कब से मिलने लगा?’’

अचला मैसेज चैक कर रही थी, पढ़ कर अचला के चेहरे पर मुसकान फैल गई. विकास ने लिखा था, ‘‘याद है एक दिन मेरी मेज पर बैठेबैठे मेरी कौपी में तुम ने छोटे से एक पौधे का एक स्कैच बनाया था. आ कर देखो उस पौधे पर फूल आया है.’’ अचला की भेदभरी मीठी मुसकान सब ने नोट की. मनीष के चेहरे का रंग उड़ गया. वह चुप रहा. प्रकाश और राधा भी कुछ नहीं बोले.

तन्मय ने कहा, ‘‘मम्मी, आजकल आप बहुत बिजी दिखती हैं फोन पर. आप ने भी हमारी तरह खूब फ्रैंड्स बना लीं न?’’

तन्वी ने भी कहा, ‘‘अच्छा है मम्मी, कभी कंप्यूटर पर, कभी फोन पर, आप का अच्छा टाइमपास होता है न अब?’’

‘‘क्या करती बेटा, कहीं तो बिजी रहना ही चाहिए वरना बेकार तुम लोगों को डिस्टर्ब करती रहती थी.’’

मनीष ने उस के व्यंग्य को साफसाफ महसूस किया. प्रकाश और राधा ने अकेले में स्थिति की गंभीरता पर बात की. प्रकाश ने कहा, ‘‘राधा, मुझे लग रहा है हमारी बहू किसी से…’’

बात बीच में ही काट दी राधा ने, ‘‘मुझे अपनी बहू पर पूरा भरोसा है, मनीष को हम समझासमझा कर थक गए कि अचला और परिवार के लिए समय निकाले, पर उस के कान पर तो जूं तक नहीं रेंगती. पत्नी के प्रति उस की यह लापरवाही मुझे सहन नहीं होती. अब अचला अपने किसी दोस्त से बात करती है तो करने दो, मनीष का चेहरा देखा मैं ने आज, बहुत जल्दी उसे अपनी गलती समझ आने वाली है.’’

‘‘ठीक कहती हो राधा, मनीष बस काम को ही प्राथमिकता देने में लगा रहता है. मानता हूं वह भी जरूरी है पर उस के साथसाथ उसे अपने पति होने के दायित्व भी याद रखना चाहिए.’’ अगले कुछ दिन मनीष ने साफसाफ नोट किया कि अब अचला ने उसे कुछ कहना छोड़ दिया है. चुपचाप उस के काम करती. वह कुछ पूछता तो जवाब दे देती वरना अपनी ही धुन में मगन रहती. वह उस के औफिस जाने के बाद कंप्यूटर पर ही बैठी रहती है, यह वह घर के सदस्यों से जान ही चुका था. उस के सामने वह अपने फोन में व्यस्त रहती. अचला का फोन चैक करने की उस की बहुत इच्छा होती, लेकिन उस की हिम्मत न होती, क्योंकि घर में कोई किसी का फोन नहीं छूता था. यह घर वालों का एक नियम था.

एक दिन रात के 9 बज रहे थे. अचला विकास से चैटिंग करने की सोच ही रही थी कि अपना जरूरी काम जल्दी से निबटा कर और अचला का ध्यान कंप्यूटर और फोन से हटाने के लिए विकास ने अपना लैपटौप जल्दी से बंद कर दिया.

अचला ने चौंक कर पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मूड नहीं हो रहा काम करने का.’’

‘‘फिर क्या करोगे?’’

मनीष ने उसे बांहों में कस लिया. शरारत से हंसते हुए कहा, ‘‘बहुत कुछ है करने के लिए,’’  और फिर रूठी सी अचला पर उस ने प्रेमवर्षा कर दी.

अचला हैरान सी उस बारिश में भीगती रही. उस में भीग कर उस का तनमन खिल उठा. अगले कई दिनों तक मनीष ने अचला को भरपूर प्यार दिया. उसे बाहर डिनर पर ले गया, औफिस से कई बार उस का हालचाल पूछ कर उसे छेड़ता, जिसे याद कर अचला अकेले में भी हंस देती. पतिपत्नी की छेड़छाड़ क्या होती है, यह बात तो अचला भूल ही गई थी. उस ने जैसे मनीष का कोई नया रूप देखा था. अब वह हैरान थी, उसे एक बार भी विकास का खयाल नहीं आया था. फोन के मैसेज पढ़ने में भी उस की कोई रुचि नहीं होती थी. मनीष को अपनी गलती समझ आ गई थी और उस ने उसे सुधार भी लिया था. उस ने अचला से प्यार भरे शब्दों में कहा भी था, ‘‘मैं तुम्हारा कुसूरवार हूं, मैं ने तुम्हारे साथ ज्यादती की है, तुम्हारा दिल दुखाने का अपराधी हूं मैं.’’ बदले में अचला उस के सीने से लग गई थी. उस की सारी शिकायतें दूर हो चुकी थीं. उसे भी लग रहा था विकास से संपर्क रख कर वह भी एक अपराधबोध में जी रही थी.

14 इंच की दूरी को मनीष ने अपने प्यार और समझदारी से खत्म कर दिया था. अब अचला को कहीं भटकने की जरूरत नहीं थी. एक दिन अचला ने अचानक अपने फोन से विकास का नंबर डिलीट कर दिया और फेसबुक से भी उसे अनफ्रैंड कर दिया.

चाहत की शिकार : कैसे बरबाद हुई आनंद की जिंदगी

कुलमिला कर उस की जिंदगी की गाड़ी ठीकठाक चल रही थी. श्वेता से उस का परिचय होने के बाद तो जिंदगी में कोई कमी ही नहीं रह गई थी. बीचबीच में श्वेता उस के पास आती थी और उस की रातों को गुलजार कर जाया करती थी. वह अपनी जिंदगी से काफी संतुष्ट था खासकर श्वेता के आने के बाद से.

श्वेता समयसमय पर उस से थोड़ेबहुत पैसे लेती रहती थी, पर उसे इस का जरा भी अफसोस नहीं था, क्योंकि बदले में उसे श्वेता से काफीकुछ मिलता भी था.

परेशानी तब हुई, जब श्वेता की मांग दिनबदिन बढ़ने लगी. एक दिन तो उस ने उस से बड़ी मांग कर दी, ‘‘आनंद, मुझे 50,000 रुपए की सख्त जरूरत है,’’ यह उस ने आनंद के बालों में प्यार से हाथ फेरते हुए कहा.

‘‘क्या… 50,000 रुपए? तुम पागल तो नहीं हो गई हो क्या श्वेता?’’ आनंद ने चौंक कर उठते हुए कहा था.

‘‘क्या तुम मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकते? पहली बार तुम मुझे मना कर रहे हो. क्या इतना ही प्यार है तुम्हारे दिल में मेरे लिए या फिर मुझ से मन भर गया है?’’ श्वेता ने प्यार से कहा.

‘‘देखो, जो रकम मेरे बस में है, वह मैं तुम्हें दे सकता हूं, पर 50,000 रुपए… इतने रुपए तो मेरी सालभर की तनख्वाह के बराबर हैं,’’ आनंद ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘7 साल की तनख्वाह के बराबर तो नहीं हैं न?’’ एकाएक श्वेता का रुख बदल गया.

‘‘अगर मैं पुलिस में शिकायत कर दूं तो 7 साल के लिए हवालात में चले जाओगे. सीसीटीवी कैमरे में सुबूत हैं कि तुम मुझे अपने साथ लाते रहे हो. यहां की हर गलीनुक्कड़ में सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं. मेरे कपड़ों पर तुम्हारी करतूत के सुबूत भी हैं. वैसे भी आजकल ‘मी टू’ के चलते बड़ेबड़ों की हालत खराब है, फिर तुम्हारी क्या बिसात है?’’

‘‘यह क्या कह रही हो श्वेता… मैं ने तो कभी तुम्हारे साथ जबरदस्ती नहीं की. तुम पैसे के बदले मेरे पास आती रही हो,’’ आनंद ने दलील दी.

‘‘देखो, 50,000 रुपए तो मुझे हर हाल में चाहिए ही चाहिए. तुम कैसे इंतजाम करोगे, यह तुम जानो. एक हफ्ते का समय है तुम्हारे पास,’’ कहते हुए श्वेता चली गई और आनंद हैरान सा उसे जाते हुए देखता रहा.

इस के बाद से आनंद काफी चिंतित रहने लगा था. उस की कुल तनख्वाह 6,000 रुपए महीने थी जिस में से 2-3 हजार रुपए तो वह श्वेता पर ही लुटा देता था. 1,000 रुपए घर भेज दिया करता था. बाकी उस के खानेपीने पर खर्च हो जाया करते थे. पैसों के लिए एकमात्र सहारा उस का मालिक था जो 1-2 महीने से ज्यादा की एडवांस तनख्वाह नहीं दे सकता था.

तो फिर क्या किया जाए? अगर श्वेता ने पुलिस में शिकायत कर दी तो उसे लेने के देने पड़ जाएंगे. एक साल पहले ही वह मुंबई आया था. कोई ऐसा जानकार भी नहीं था जिस से उसे पैसों की मदद मिल सके.

आनंद मुंबई के दादर इलाके में एक प्लाट पर बने छोटे से झोंपड़ीनुमा मकान में रहता था. प्लाट के मालिक ने प्लाट की देखभाल के लिए उसे वहां टिका दिया था. प्लाट के मालिक की उस प्लाट पर एक बहुमंजिला अपार्टमैंट्स बनाने की योजना थी जिस के लिए बिल्डरों से बात चल रही थी.

आनंद को महज 6,000 रुपए तनख्वाह मिलती थी. घर पर बेकार बैठे रहने के बजाय यह भी बुरा न था. न जाने कितने लोग मुंबई जैसे बड़े शहरों में मामूली तनख्वाह पर काम करने आते हैं क्योंकि उन के पास और कोई काम नहीं होता. कइयों को तो काफी खराब हालात में रहना पड़ता है, पर वह संतुष्ट था. रहने को झोंपड़ी थी ही. वहीं कुछ कच्चापक्का बना कर खा लेता था. बिजलीपानी की सुविधा चौबीसों घंटे थी जिस का बिल मालिक अदा करता था.

काफी सोचविचार के बाद आनंद के दिमाग में एक ही उपाय आया श्वेता को रास्ते से हटाने का. उस की हत्या कर देना, पर लाश को कहां और कैसे ठिकाने लगाएगा, यह बहुत बड़ी समस्या थी.

काफी सोचविचार के बाद आनंद ने लाश को प्लाट के एक कोने में फेंक कर खुद पुलिस को सूचित करने की योजना सोची. वह खुद शिकायत करेगा तो पुलिस को शक भी नहीं होगा.

अगली बार जब श्वेता आई तो आनंद ने उस का दिल खोल कर स्वागत किया.

‘‘जैसेतैसे मैं ने रुपयों का इंतजाम किया है. आगे से इतनी बड़ी रकम मत मांगना. मैं गरीब आदमी कहां से इतनी बड़ी रकम लाऊंगा?’’ आनंद ने श्वेता को बांहों में भरते हुए कहा.

श्वेता को इस बात से मतलब नहीं था कि आनंद ने रुपयों का इंतजाम कहां से किया है. मन ही मन उस ने सोचा, ‘रुपए तो मैं तुम से हमेशा मांगूंगी. आखिर मजबूरी में तुम्हें अपना जिस्म देती हूं तो उस का भुगतान तो देना ही होगा.’

श्वेता बोली, ‘‘अगर जरूरत नहीं होती तो तुम्हें क्यों तकलीफ देती…’’

फिर वे दोनों एकदूसरे के आगोश में समा गए. आनंद सोच रहा था कि वह आखिरी बार श्वेता के जिस्म को भोग रहा है, इस के बाद तो इसे खत्म कर देना है इसलिए वह जम कर उस के बदन का मजा ले रहा था.

श्वेता सोच रही थी कि आज 50,000 रुपए लेने के बाद फिर कब उस से रकम मांगनी है.

मौका पा कर आनंद ने श्वेता का गला दबा दिया, फिर चाकू से गले को रेत दिया और लाश को एक कोने में जा कर फेंक दिया.

आनंद को अपने प्लान पर पूरा भरोसा था, इसलिए वह आराम से सो गया. अगले दिन सुबह उस ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर जानकारी दी कि एक औरत की लाश प्लाट के एक कोने में पड़ी हुई है.

आनंद को यह गुमान था कि पुलिस को आसानी से चकमा दिया जा सकता है और इस के लिए उस ने खुद पुलिस से शिकायत करने की तरकीब अपनाई थी. शिकायत करने वाले पर पुलिस भला क्यों शक करेगी, उस ने यही सोचा था.

पुलिस ने आ कर सब से पहले श्वेता को अस्पताल पहुंचाया, जहां उसे ‘मृत लाया गया’ घोषित कर दिया. पुलिस ने अनजान शख्स के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया.

आनंद बहुत खुश हुआ. उसे अपनी योजना कामयाब होती दिखाई दी, पर उसे पता नहीं था कि पुलिस शक के आधार पर उस से पूछताछ शुरू कर देगी. विरोधाभाषी बयानों के चलते वह पकड़ में आ गया और फिर मामला सुलझ गया.

आनंद ज्यादा देर तक पुलिस के सामने टिक नहीं पाया और उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. वही पुलिस को उस जगह पर भी ले गया जहां उस ने हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू छिपा कर रखा था.

इस तरह श्वेता के लालच ने उस की जिंदगी खत्म करवा दी और जिस्मानी आकर्षण ने आनंद की जिंदगी बरबाद कर दी.

नीरो अभी जिंदा है

बचपन में एक कहावत सुनी थी कि रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था, मगर जब इतिहास पढ़ना शुरू किया तो इस कहावत की जड़ तक पहुंचने की कोशिश की. कहावत से आगे एक तानाशाह राजा की कारिस्तानी पता चली.

हुआ यों कि सम्राट नीरो ने एक बहुत बड़ी पार्टी का आयोजन किया था. तेसतीस के बाग में पार्टी रखी गई थी और रोम साम्राज्य के तमाम बड़े लोगों को न्योता दिया गया था. उस समय उस बगीचे में शाम को रोशनी का इंतजाम नहीं हो पाया था.

रोशनी का बंदोबस्त किस तरह किया जाए, इस के लिए सम्राट नीरो चिंता में पड़ गया. देशभर के इज्जतदार लोगों के बीच अपनी इज्जत का सवाल था. रोशनी व चमकदमक हर हाल में जरूरी थी.
सम्राट नीरो को आइडिया आया और जेल प्रहरियों व अनाथाश्रम संचालकों को निर्देश दिया गया कि जितने भी जेलों में व गरीब और लाचार लोग अनाथाश्रम में पड़े हैं, उन सब को बगीचे के चारों तरफ खड़ा कर के उन को आग के हवाले कर दो, ताकि पूरा बगीचा रोशन हो जाए और देशभर के नामचीन लोगों के बीच उस की इज्जत बरकरार रहे.

मेरे मन में सवाल यह नहीं था कि कितने लोगों को फूंका गया था या वे मरने वाले लोग कौन थे? सवाल यह था कि उस पार्टी में शामिल लोग कौन थे, जो अपना ईमान और इनसानियत सबकुछ ठेंगे पर रख कर पार्टी का लुत्फ उठाते रहे थे?

सवाल यह नहीं था कि विभिन्न आरोपों में जेलों में बंद पड़े लोगों को फूंक दिया गया और न न्यायपालिका बोल पाई और न ही आम जनता. सवाल यह भी था कि जब बेबस और बेसहारा लोगों को उस पार्टी के लिए फूंका जा रहा था, तो किसी ने विरोध क्यों नहीं किया?

जब मैं इतिहास के इन छिपे पन्नों की सचाई खोज रहा था, तो मेरे मन में सवाल यह नहीं था कि गड़े मुरदे उखाड़ कर वर्तमान व भविष्य के लिए बदले व नफरत की फसल की बोआई करूं, बल्कि मेरा ध्यान उसी सवाल पर लगा था कि उस पार्टी में वे मेहमान कौन थे?

देश के किसानों और कमेरों के निकलते जनाजे के बीच खुद को लाचार पाया, तो उस को भूल कर आज भाषण सुनने लग गया. मेरी दुविधा या सवाल यह नहीं है कि देश में किसानों की बरबादी कैसे हुई, बल्कि मेरा सवाल यह है कि किसानों की चिताएं जब बगीचे के चारों तरफ खड़ी कर के फूंकी जा रही हैं, तो इन की पार्टी में शामिल मेहमान कौन हैं?

आज पूरे 20 मिनट भाषण सुना, तो मुझे यकीन हो गया कि नीरो मरा नहीं था, वह अभी जिंदा है.
मेरा सवाल यह नहीं है कि नीरो ऐसा क्यों कर रहा है? मेरा सवाल यह नहीं है कि नीरो की पार्टी की इज्जत के लिए कौन लोग जिंदा फूंके जा रहे हैं?

मेरा असली सवाल यह है कि नीरो की पार्टी में शामिल वे मेहमान कौन हैं, जो तानाशाह राजशाही में बगावत  करने वाले जेलों में बंद आरोपी को फूंक रहे हैं, मगर ह्विस्की का मजा उठा रहे हैं?

वे मेहमान कौन हैं, जो भूखप्यास, सर्दीगरमी में दिल्ली बौर्डर पर बैठे किसानों को पार्टी की इज्जत के लिए जिंदा फूंकने की तैयारी कर रहे हैं, मगर उन के ऐशोआराम में कोई रुकावट नहीं पड़ने देना चाहते.
मेरा सवाल यह नहीं है कि नीरो की पार्टी के चलते वैश्विक महामारी कोरोना में देश क्यों फूंका जा रहा है, बल्कि मेरा असली सवाल यह है कि पार्टी का लुत्फ उठाने वाले कौन लोग हैं?

किसान, बीमार, मजदूर के मुद्दों में कुछ बदलाव हो सकता है, मगर उन का दर्द एक ही है कि वे दिल्ली में बैठे नीरो की पार्टी को रोशन करने के लिए जिंदा फूंके जा रहे हैं. अब मैं बताता हूं कि नीरो की पार्टी के मेहमान कौन थे. सम्राट नीरो, उस के मंत्रिमंडल के सदस्य, सरकारी अफसर, जज, पत्रकार, साहित्यकार, कलाकार, पढ़ाने वाले, क्रांतिकारी विचारक और समाज के बुद्धिजीवी लोग.

जो पार्टी में शामिल नहीं थे, वे जलते गरीबों के बुतों के बीच से ह्विस्की की गिलास लेदे रहे थे और जैसे ही एक लाश जल कर गिरती, वैसे ही अंदर से बाहर की तरफ ऐशोआराम की दवा फेंक दी जाती थी. कुसूर भूतकाल के नीरो का नहीं था और न ही वर्तमान के नीरो का है. कुसूर न किसानों और मजदूरों का है और न ही महामारी से पीडि़तों का है.

नीरो की पार्टी में शामिल कौन लोग हैं, बस इतना देखते रहिए. देशभर में तकरीबन 700 हाईटैक दफ्तर बनाए जा चुके हैं और काम जारी है, बाकी जनता आपस में सहयोग कर के देख ले, शायद बचने का और कोई रास्ता निकल आए.

प्रेम न बाड़ी उपजै : लीला का चैन किसने छीना

लीला ने जब से उस को देखा था, तब से ही उस के दिल में चैन ओ करार था ही नहीं. यह लड़का मनोज उस का सब सुकून छीन रहा था. इतना ही नहीं, सपनों में भी वह आ रहा था, पर वो जैसे कमजोर पड़ रही थी और आसक्ति में फंस कर खुद कुछ नहीं कर पा रही थी या शायद करना ही नहीं चाहती थी.

लीला कोई गईगुजरी तो थी नहीं. वह खुद एक दौलतमंद महिला थी. उस की इतनी लंबीचैड़ी जमींदारी थी, फिर भी वह साधना के पथ पर अपना आध्यात्मिक काम भी कर रही थी. वह जगहजगह यात्रा कर रही थी और प्रेम की कार्यशाला चला रही थी.

यों सच्ची बात यह थी कि साधना, वार्ता वगैरह यह सब वह अपने अकेलेपन की सूखी नदी को भरने के लिए ही कर रही थी. समाज उस को इतनी गपशप करने नहीं देता, मगर इस बहाने कितने चेहरे कितनी रसभरी बातें सब काम हो रहे थे. साथ ही, उस पर एक आवरण लग गया था त्याग करती महिला का, वह अपनी प्रेम पिपासा को ढंक कर, छिपा कर बहुत ही मजे में पूरा कर रही थी.

मगर, आज सुबह 3 बजे अचानक ही भद्देपन से फिर मनोज सपने में आ धमका और उस ने ही प्रीत की अगन जलाई और लीला को तत्परता से अपनी देह में भर कर यहांवहां टटोलने लगा. वह खुद भी बेसुध हो सब भूल सा गई थी. पुरुषोचित शौर्य से सम्मोहित वह कितनी पागल कैसी मोहित हो गई थी.

पर, आज वह 5 बजे जाग कर फिर से यही सोच रही थी कि कहीं कुछ जाहिर न हो जाए. मनोज को रोकना होगा. वह बेकार के लफडे़ में ही क्यों पड़ रही है, जबकि वह इस से पहले इसी तरह अचानक वहां, जहां उस के प्रवचन और वार्ता ही भलीभांति प्यास बुझा सकती हैं, कितने भी दर्जी बदल लो, न कपड़ा बदलता है, न तन और न ही मन. तो…, तो फिर खुद लीला क्या देहचक्र के साथ इतनी तेजी से खुद ही गोलगोल घूम रही थी?

यही सब सोचतेसोचते 6 बज गए. वह यों ही बाहर आंगन में निकल आई. देखा, अरे, मनोज  एक कुरसी पर बुत बना बैठा है. कम उजाले में अनिश्चितता में, उस के पदचाप सुन कर वह उठ खड़ी हुई और हंस दी.

यह हंसी मनोज की किसी सांस में झनझना उठी. वह चुपचाप उस के निकट गया. शायद वह देखना चाहता था, उस को आत्मा के भीतर बिलकुल उस की गहराई में देखना चाहता हो, पर यह तो, हमारा खयाल है, लीला ने एक मंत्र कहा और आवाज के तीव्र एकरस प्रकाश से उस का मुख एकबारगी चकाचौंध सा हो गया.

नहीं… यह खयाल नहीं है. मैं अभीअभी खेतों से चल कर यहां आया हूं.

और भरोसा दिलाने के लिए मनोज ने तिलमिला कर लीला को थाम लिया. उस की उंगली को 2-3 बार चूस कर छोड़ दिया.

‘‘ओह, बस… बस, मनोज बस… बहुत हुआ,‘‘ कह कर लीला ने हाथ छुड़ा लिया.

अब वे दोनों ही वहीं बैठ गए और फिर कोई जादू सा छाने लगा. उस खामोशी में जैसे मनोज अपने अंक में लीला को अचानक एक क्षण में पा गया.

‘‘फिर मिलेंगे. आज मैं चली जाऊंगी. अंतिम सत्र है आज मेरा,‘‘ वह जैसे इन एकएक शब्दों की सूक्ष्म ध्वनि नहीं, स्थूल शरीर दांतों से चबाना चाहती है. यह सुन कर मनोज जैसे हताश सा हो गया.

‘तो लीला, तुम्हारे आगे क्या इरादे हैं?’ जैसे इसी प्रश्न को करने के लिए शब्दों का दास बना हुआ है मनोज. जैसे उसे यह प्रश्न करने का निर्विवाद अधिकार है. लीला ने निर्विकार कहा, ‘कुछ… नहीं, नहीं.’

यह सुन कर वह चौंक उठा. एक विचित्र संतोष से, जैसे यह उत्तर पाने के लिए ही उस ने यह प्रश्न किया था, फिर बोला, ’क्या तुम मुझ से बंधी नहीं हो?’

‘बंधी’,  मैं तो जाने कब से जीवन के हर बंधन के मुंह पर थूक रही हूं. वह बोली, जैसे वह कुछ और कहना चाहती थी, ‘‘तो मुझे अभी और इसी समय प्रेम का रहस्य जानना है,‘‘ कह कर वह उस के पैरों से लिपट गया.

‘‘मगर, अभी तो भोर हुई है बस. ये क्या तमाशा कर रहे हो… यहां गेस्ट हाउस के नौकरचाकर आते ही होंगे,‘‘ लीला कुछ परेशान सी हो रही थी.

‘‘आने दो… आ जाते हैं तो भला हो क्या जाएगा? लीला, मैं तो तुम्हारा भक्त हो गया हूं. अब मैं अपनी देवी के पास जब चाहे आ सकता हूं… मुझे कोई डर नहीं है, कोई भय नहीं है.‘‘

सचमुच लीला यही सुनना चाहती थी. वह भी तो मन ही मन मनोज की दीवानी हो गई थी. उस ने यह भी नहीं पूछा कि 9 बजे का सत्र है. तुम इतनी सुबह क्यों खेतों से और कैसे पैदलपैदल ही आ धमके,‘‘ वह उस के गाल सहलाती हुई बोली, ‘‘मनोज, तुम बच्चे नहीं हो. तुम को यह पता होना चाहिए कि प्रेम करने की कला या किसी के प्यार में डूब जाने का गुर, किसी भी कार्यशाला में सीखे जाने लायक कौशल या हुनर बिलकुल नहीं है.”

‘‘हां… हां, जानता हूं,‘‘ मनोज ने बीच में टोका और कहने लगा, ‘‘लीला, ये बात अलग है कि कई विदेशी और भारतीय मीडिया में ‘क्रिएटिव लव’ यानी जादुई अटैचमेंट के फार्मूले सिखलाने के रसीले कोर्स बाकायदा चलाए जाते आ रहे हैं, और वे अकेले पड़ गए मनोज जैसे संकोची जीवों के बीच लोकप्रिय भी हैं.‘‘

‘‘लीला, मुझे मालूम है कि अकेले में मैं ने ही यही कोई 3,000 वैबसाइट देख रखी हैं, जो प्यार कैसे करें का बाकायदा लज्जतदार मसाला बना कर अनोखा आनंद भी देती हैं,‘‘ मनोज के  मुंह से निकल पड़ा.

यह सुनते ही लीला ने भी तपाक से कहा, ‘‘मनोज, मेरा मतलब प्रेम का आनंद आकर्षित करने वाली कुछ जरूरी चीजों की याद दिलाने की कोशिश तक ही सीमित नहीं है. मैं प्यार की कला के बारे में वे छोटीमोटी बातें कहूंगी, जिन्हें हम सब जानते हैं, पर जिन्हें हम अकसर भूल जाते हैं, इसलिए… और इस वार्ता के अंत में होने वाली निराशा के लिए मैं खासतौर पर मनोज तुम जैसे प्रेमियों से क्षमादान की उम्मीद करती हूं, जिन्होंने अपने दिल में ये छाप लिया है कि मैं तुम को आज प्यार करने के जादुई गुर सिखाने जा रही हूं… दुनिया में अनेक आविष्कार हुए हैं, पर प्यार करने, उस में डूबने का फार्मूला आज तक नहीं बना.‘‘

‘‘अच्छा… तो कब बनेगा? ऐसा करो, तुम ही बना दो ना,’’ मनोज ने उस की कलाई थाम ली.

‘‘मनोज, जहां तक सुंदर देह को सोचने का सवाल है, हमारे प्राचीन रसिकों ने, प्रेमशास्त्रियों ने 2 बातें जोर दे कर कही हैं- एक तो कल्पना और दूसरी लगाव. तुम जानते ही होगे या कभी सुना तो होगा ना…’’

‘‘क्या सुना होगा? साफसाफ कहो लीला?‘‘

‘‘वही मनोज, ‘करतकरत अभ्यास के जड़मति होत सुजान’. मनोज, मेरा मतलब है कि देह की  आहट सुनो… भाव को दफनाओ मत.‘‘

यह सुन कर मनोज जोरों से हंस पड़ा. लीला समझ गई तो वह भी खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘मन में कोई देवी स्थापित कर लो मनोज इस की तर्ज पर, न सिर्फ अकेली सौंदर्य कला का आनंद मिल जाता है. साथ में लगाव का अभ्यास करते जाने से, बल्कि दोनों के आदर्श मेल से सुकून ही सुकून… इसलिए प्रेम प्रतिभा को भी युद्ध अभ्यास की तरह जरूरी बतलाया गया है.”

‘‘ओह, अच्छा,’’ कह कर मनोज ने अपनी दोनों आंखों को बंद कर लिया.

‘‘देखो, तबला बजाना सीखना है, तो इस कला में  ‘रियाज’ का असाधारण महत्त्व है. मुझे लगता है, प्रेम में भी अभ्यास या रियाज शायद उतना ही उपयोगी और जरूरी चीज होनी चाहिए, मुझे उम्मीद है कि संकल्प ही प्रेम को झरने की तरह प्रस्फुटित करता है, बहने देता है. प्रेम की हर गली में नयापन खोजने की संभावना है? इस मामले में कल, आज और कल कोई पगडंडी नहीं है.

“इसलिए जादुई अहसास में डूबने को राजी मन, उस की कल्पनाशक्ति और गंध महसूस करना यही एक बेहतरीन प्रेमी होने के लिए 3 जरूरी औजार हैं,‘‘ लीला कहती रही.

‘‘मनोज, सुन लो, यह भी एक विचार है, सौंदर्य और आनंद को ‘देखने’ की आदत से बंधा विचार, जो यह बतलाता है कि हम कितना कम देखते हैं.‘‘

‘‘लीला, यह लगाव और देखने के अलावा एक और बात है, खुद अपनी देह की जरूरत उस से प्रेम करने की निरंतरता, अनिवार्यता, यही ना लीला,‘‘ मनोज ने कहा, तो लीला ने सहमति में सिर हिला दिया.

वह फिर उस का माथा चूम कर बोली, ‘‘सुनो मनोज, कोई और दूसरा रास्ता नहीं बचा है… और हां, एक बात और सुन लो, याद भी रखना, अचार, चटनी बेशक कम खाएं,  पर अच्छा खाएं.

‘‘यह लालसा भी वही है… समझे, यानी तुम्हारी सलाह है, प्रेमी, आशिक बेशक कम ही डूबें, पर शानदार ढंग से.‘‘

मनोज ने सवाल किया, “केवल आकर्षण के जोर से या केवल जरूरत के चमत्कार भर से कोई अच्छा प्रेम पूरा हो पाएगा, मुझे संदेह है.‘‘

मनोज के इस सवाल पर लीला ने उस को संकेत किया कि उसे तैयार होना है क्योंकि सत्र का समय हो रहा है और उसे आज यहां से लौट कर भी जाना था. आज इस गेस्ट हाउस में उस का अंतिम दिन था. अब वह यहां कब वापस लौटेगी, कुछ पता नहीं था.

मनोज ने सत्र में रुकना उचित नहीं समझा. वह किसान था. अब उस को फसल कटवानी थी. मजदूरों की व्यवस्था करनी थी. वह भी लौट चला. जब तक अपने खेतों मे पहुंचा, याद करता रहा कि लीला क्या कह रही थी…

‘‘मनोज, प्रेम की दुनिया वैसी ही दुनिया है, जिस में अनगिनत महकतेगमकते चित्रों का असमाप्त मेला है, हर कोने में हर कदम पर आप का साबका तसवीरों से पड़ता है, पर जिन के बारे में आप तब तक जागरूक नहीं होते, जब तक आप उन्हें देखने की सही कोशिश और अभ्यास न करें, जैसा रोमियो जैसे समर्पित प्रेमी ने कभी जूलियट से कहीं कहा था. हमें चाहिए कि हम थोडा सा रुकें और वे अद्भुतअनूठे चित्र देखें, जो सिर्फ प्रेम ही हमें दिखला सकता है.’’

‘‘हर पल, हर समय आनंद आने तक रोज कई घंटे बस एक ही रंगरूप का विचार इस बात का सब से बड़ा उदाहरण है… अब भले ही वह युद्ध जैसा उतना कठोर और भयानक न हो, पर हौलेहौले उस रूप को दिल की कल्पना की किताब में रोज लिख रहा था और यथासंभव कलापूर्ण तरीके से उस में अपने अनुभव लिखना प्रेम रियाज की एक शुरुआत हो चुकी थी. यह चौंकाने वाला अनुभव वह झरोखा बन गया, जो उस को घरबैठे संसारभर के आनंद  दिखला रही थी.

अब मनोज विधिवत अपना कामधंधा देख रहा था. अनाज मंडी जा रहा था. रुपया आ रहा था. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सब सिद्ध हो गए. हर काम हो रहा था. सबकुछ आसान था.

जहां जैसी जरूरत होती है, वो अपनी कल्पना का वैसा ही उपयोग कर रहा था. जैसी उस पल की मांग होती, पर अब उस के दिमाग में कल्पना का भंडार ही इतना चटपटा था कि अभिव्यक्ति भी वैसी ही होने लगी थी.

अब तो कल्पना की कामधेनु को वह कितना दुह सकता, यह उस की कलाकारी थी. अब वह माहिर हो गया तो वह जान चुका था कि कैसे आती है सुंदरी किसी दृश्य, किसी आवाज, किसी गंध, किसी आकृति, किसी याद, किसी स्पर्श में सुंदरी की आत्मा एक पल के हजारवें हिस्से में दिखती है और सांस की तरह उस में दाखिल हो जाती है… पर, वह जानता था कि वह बहुत देर रुकने वाला अनुभव नहीं. फौरन वह उस आत्मा को अपनी हैरत, अचरज के आभूषण पहना कर सफलतम लाभ ले लिया करता था. अब तो हर जादुई अनुभव उस के निकट उस अनुभव को व्यक्त करने की, ‘’मोहिनी विद्या का खुशबूदार- प्रस्ताव भी साथ ही लिए आता रहा.”

वह फांकी वाली : सुनसान गलियों की प्रेम कहानी

वह एक उमस भरी दोपहर थी. नरेंद्र बैठक में कूलर चला कर लेटा हुआ था. इस समय गलियों में लोगों का आनाजाना काफी कम हो जाता था और कभीकभार तो गलियां सुनसान भी हो जाती थीं.

उस दिन भी गलियां सुनसान थीं. तभी गली से एक फेरी वाली गुजरते हुए आवाज लगा रही थी, ‘‘फांकी ले लो फांकी…’’

जैसे ही आवाज नरेंद्र की बैठक के नजदीक आई तो उसे वह आवाज कुछ जानीपहचानी सी लगी. वह जल्दी से चारपाई से उठा और गली की तरफ लपका. तब तक वह फेरी वाली थोड़ा आगे निकल गई थी.

नरेंद्र ने पीछे से आवाज लगाई, ‘‘लच्छो, ऐ लच्छो, सुन तो.’’

उस फेरी वाली ने मुड़ कर देखा तो नरेंद्र ने इशारे से उसे अपने पास बुलाया. वह फेरी वाली फांकी और मुलतानी मिट्टी बेचने के लिए उस के पास आई और बोली, ‘‘जी बाबूजी, फांकी लोगे या मुलतानी मिट्टी?’’

नरेंद्र ने उसे देखा तो देखता ही रह गया. दोबारा जब उस लड़की ने पूछा, ‘‘क्या लोगे बाबूजी?’’ तब उस की तंद्रा टूटी.

नरेंद्र ने पूछा, ‘‘तुम लच्छो को जानती हो, वह भी यही काम करती है?’’

उस लड़की ने मुसकरा कर कहा, ‘‘लच्छो मेरी मां है.’’

नरेंद्र ने कहा, ‘‘वह कहां रहती है?’’

उस लड़की ने कहा, ‘‘वह यहीं मेरे साथ रहती है. आप के गांव के स्कूल के पास ही हमारा डेरा है. हम वहीं रहते हैं. आज मां पास वाले गांव में फेरी लगाने गई है.’’

नरेंद्र ने उस लड़की को बैठक में बिठाया, ठंडा पानी पिलाया और उस से कहा कि कल वह अपनी मां को साथ ले कर आए. तब उन का सामान भी खरीदेंगे और बातचीत भी करेंगे.

अगले दिन वे मांबेटी फेरी लगाते हुए नरेंद्र के घर पहुंचीं. उस ने दोनों को बैठक में बिठाया, चायपानी पिलाया. इस के बाद नरेंद्र ने लच्छो से पूछा, ‘‘क्या हालचाल है तुम्हारा?’’

लच्छो ने कहा, ‘‘तुम देख ही रहे हो. जैसी हूं बस ऐसी ही हूं. तुम सुनाओ?’’

नरेंद्र ने कहा, ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. अभी 2 साल पहले रिटायर हुआ हूं. 2 बेटे हैं. दोनों सर्विस करते हैं. बेटीदामाद भी भी सर्विस में हैं.

‘‘पत्नी छोटे बेटे के पास चंडीगढ़ गई है. मैं यहां इस घर की देखभाल करने के लिए. तुम अपने परिवार के बारे में बताओ,’’ नरेंद्र ने कहा.

लच्छो बोली, ‘‘तुम से बाबा की नानुकर के बाद हमारी जात में एक लड़का देख कर बाबा ने मेरी शादी करा दी थी. पति तो क्या था, नशे ने उस को खत्म कर रखा था.

‘‘यह मेरी एकलौती बेटी है सन्नो. इस के जन्म के 2 साल बाद ही इस के पिता की मौत हो गई थी. तब से ले कर आज तक अपनी किस्मत को मैं इस फांकी की टोकरी के साथ ढो रही हूं.’’

उन दोनों के जाने के बाद नरेंद्र यादों में खो गया. बात उन दिनों की थी जब वह ग्राम सचिव था. उस की पोस्टिंग राजस्थानहरियाणा के एक बौर्डर के गांव में थी. वह वहीं गांव में एक कमरा किराए पर ले कर रहता था.

वह कमरा गली के ऊपर था. उस के आगे 4-5 फुट चौड़ा व 8-10 फुट लंबा एक चबूतरा बना हुआ था. उस चबूतरे पर गली के लोग ताश खेलते रहते थे. दोपहर में फेरी वाले वहां बैठ कर आराम करते थे यानी चबूतरे पर रात तक चहलपहल बनी रहती थी.

राजस्थान से फांकी, मुलतानी मिट्टी, जीरा, लहसुन व दूसरी चीजें बेचने वाले वहां बहुत आते थे. कड़तुंबा, काला नमक, जीरा वगैरह के मिश्रण से वे लोग फांकी तैयार करते थे जो पेटदर्द, गैस, बदहजमी जैसी बीमारियों के लिए इनसानों व पशुओं के लिए बेहद गुणकारी साबित होती है.

उस दिन भी गरमी की दोपहर थी. फेरी वाली गांव में फेरी लगा कर कमरे के बाहर चबूतरे पर आ कर आराम कर रही थी. उस ने किवाड़ की सांकल खड़काई. नरेंद्र ने दरवाजा खोल कर देखा कि 18-20 साल की एक लड़की राजस्थानी लिबास में चबूतरे पर बैठी थी.

नरेंद्र ने पूछा था, ‘क्या बात है?’

उस ने मुसकरा कर कहा था, ‘बाबूजी, प्यास लगी है. पानी है तो दे देना.’

नरेंद्र ने मटके से उस को पानी पिलाया था. पानी पी कर वह कुछ देर वहीं बैठी रही. नरेंद्र उस के गठीले बदन के उभारों को देखता रहा. वह लड़की उसे बहुत खूबसूरत लगी थी.

नरेंद्र ने उस से पूछ लिया, ‘तुम्हारा नाम क्या है?’

उस ने कहा था, ‘लच्छो.’

‘तुम लोग रहते कहां हो?’ नरेंद्र के यह पूछने पर उस ने कहा था, ‘बाबूजी,  हम खानाबदोश हैं. घूमघूम कर अपनी गुजरबसर करते हैं. अब कई दिनों से यहीं गांव के बाहर डेरा है. पता नहीं, कब तक यहां रह पाएंगे,’ समय बिताने के बहाने नरेंद्र लच्छो के साथ काफी देर तक बातें करता रहा था.

अगले दिन फिर लच्छो चबूतरे पर आ गई. वे फिर बातचीत में मसरूफ हो गए. धीरेधीरे बातें मुलाकातों में बदलने लगीं. लच्छो ने बाहर चबूतरे से कमरे के अंदर की चारपाई तक का सफर पूरा कर लिया था.

दोपहर के वीरानेपन का उन दोनों ने भरपूर फायदा उठाया था. अब तो उन का एकदूसरे के बिना दिल ही नहीं लगता था.

नरेंद्र अभी तक कुंआरा था और लच्छो भी. वह कभीकभार लच्छो के साथ बाहर घूमने चला जाता था. लच्छो उसे प्यारी लगने लगी थी. वह उस से दूर नहीं होना चाहता था. उधर लच्छो की भी यही हालत थी.

लच्छो ने अपने मातापिता से रिश्ते के बारे में बात की. वे लगातार समाज की दुहाई देते रहे और टस से मस नहीं हुए. गांव के सरपंच से भी दबाव बनाने को कहा.

सरपंच ने उन को बहुत समझाया और लच्छो का रिश्ता नरेंद्र के साथ करने की बात कही लेकिन लच्छो के पिताजी नहीं माने. ज्यादा दबाव देने पर वे अपने डेरे को वहां से उठा कर रातोंरात कहीं चले गए.

नरेंद्र पागलों की तरह मोटरसाइकिल ले कर उन्हें एक गांव से दूसरे गांव ढूंढ़ता रहा लेकिन वे नहीं मिले.

नरेंद्र की भूखप्यास सब मर गई. सरपंच ने बहुत समझाया, लेकिन कोई फायदा नहीं. बस हर समय लच्छो की ही तसवीर उन की आंखों के सामने छाई रहती. सरपंच ने हालत भांपते हुए नरेंद्र की बदली दूसरी जगह करा दी और उस के पिताजी को बुला कर सबकुछ बता दिया.

पिताजी नरेंद्र को गांव ले आए. वहां गांव के साथियों के साथ बातचीत कर के लच्छो से ध्यान हटा तो उन की सेहत में सुधार होने लगा. पिताजी ने मौका देख कर उस का रिश्ता तय कर दिया और कुछ समय बाद शादी भी करा दी.

पत्नी के आने के बाद लच्छो का बचाखुचा नशा भी काफूर हो गया था. फिर बच्चे हुए तो उन की परवरिश में वह ऐसा उलझा कि कुछ भी याद नहीं रहा.

आज 35 साल बाद सन्नो की आवाज ने, उस के रंगरूप ने नरेंद्र के मन में एक बार फिर लच्छो की याद ताजा कर दी.

आज लच्छो से मिल कर नरेंद्र ने आंखोंआंखों में कितने गिलेशिकवे किए.  लच्छो व सन्नो चलने लगीं तो नरेंद्र ने कुछ रुपए लच्छो की मुट्ठी में टोकरी उठाते वक्त दबा दिए और जातेजाते ताकीद भी कर दी कि कभी भी किसी चीज की जरूरत हो तो बेधड़क आ कर ले जाना या बता देना, वह चीज तुम तक पहुंच जाएगी.

लच्छो का भी दिल भर आया था. आवाज निकल नहीं पा रही थी. उस ने उसी प्यारभरी नजर से देखा, जैसे वह पहले देखा करती थी. उस की आंखें भर आई थीं. उस ने जैसे ही हां में सिर हिलाया, नरेंद्र की आंखों से भी आंसू बह निकले. वह अपने पहले की जिंदगी को दूर जाता देख रहा था और वह जा रही थी.

एहसास सच्ची मुहब्बत का

कल विवेक ने मुझे प्रपोज किया. मन ही मन मैं भी उसे पसंद करती थी. वह देखने में हैंडसम है, पढ़ालिखा है और एक अच्छी कंपनी में नौकरी करता है. उस के अंदर वे सारे गुण हैं, जो एक कामयाब इनसान में होने चाहिए.

तकरीबन 3 साल पहले ही मुझे यह अंदाजा हो गया था कि विवेक मुझे पसंद करता है और मुझ से बहुत प्यार करता है, लेकिन कहने से डरता है. फिर मैं भी तो यही चाहती थी कि विवेक पहले मुझ से अपने दिल की बात कहे, तब मैं कुछ कहूंगी. पर क्या पता था कि इंतजार की ये घडि़यां 3 साल लंबी हो जाएंगी और कल विवेक ने साफ लफ्जों में कह दिया, ‘अंजलि, मैं पिछले 3 साल से तुम्हें पसंद करता हूं, पर पता नहीं क्यों मैं तुम से कुछ कह नहीं पाता हूं. लेकिन अब मेरा सब्र जवाब दे गया है. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और अब बहुत जल्द तुम से शादी करना चाहता हूं.

‘मुझे यह तो मालूम है अंजलि कि तुम्हारे दिल के किसी कोने में मेरे लिए मुहब्बत है, लेकिन फिर भी मैं एक बार तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’

विवेक इतना कह कर मेरे जवाब का इंतजार करने लगा. लेकिन मुझे खामोश देख कर कहने लगा, ‘ठीक है अंजलि, मैं तुम्हें 2 दिन का वक्त देता हूं. तुम सोचसमझ कर बोलना.’

मेरा दिल सोच के गहरे समंदर में डूबने लगा. मैं जब 8 साल की थी तो मेरी मम्मी चल बसी थीं और फिर

2 साल के बाद पापा भी हमें अकेला छोड़ गए थे. मुझे से बड़े मेरे भैया थे और मुझ से छोटी एक बहन थी, जिस का नाम नेहा था.

मम्मीपापा के चले जाने के बाद हम तीनों भाईबहन की देखभाल मेरी बूआ ने की थी. वे बहुत गरीब थीं उन का भी एक बेटा और एक बेटी थीं.

नेहा मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर थी. उस के इलाज और मेरी पढ़ाई में भैया ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मेरी पढ़ाई पूरी होने के बाद भैया ने मेरे लिए रिश्ता ढूंढ़ना शुरू कर दिया था, लेकिन मैं आगे भी पढ़ना चाहती थी, इसलिए शादी से इनकार कर दिया.

भैया ने मेरी बात मान ली, क्योंकि हमारे घर में एक औरत की जरूरत थी. इसलिए भैया ने अपनी शादी रचा ली. मेरी भाभी भी मेरी बैस्ट फ्रैंड की तरह थी. फिर वह दिन भी आ गया, जब मैं बूआ बन गई. एक नन्ही सी गुडि़या भी हमारे घर आ गई. मेरे भैया मेरे किसी भी ख्वाहिश को मेरी जबान पर आते ही पूरा कर देते थे.

हमारा परिवार बहुत खुशहाल था कि एक दिन कुदरत ने हम से हमारी दुनिया ही छीन ली. भैयाभाभी और नन्ही सी गुडि़या एक कार हादसे में मारे गए. हमें अब संभालने वाला कोई नहीं था. नेहा तो कुछ समझ नहीं पाई, बस सबकुछ देखती रही.

भैया जब तक जिंदा थे, तब तक मैं यह भी नहीं जानती थी कि भैया की तनख्वाह कितनी है, पर उन की मौत के बाद धीरेधीरे उन के सारे जमा पैसों का पता चलता गया. उन्होंने हम दोनों बहनों के नाम पर भारी रकम जमा की थी और भाभी और अपने नाम पर जो इंश्योरैंस कराया था, वह अलग. इन पैसों के बारे में कुछ रिश्तेदारों को भनक लगी, तो कुछ लोगों ने हम दोनों बहनों की देखरेख का जिम्मा उठाना चाहा. पर मैं उन लोगों की गिद्ध जैसी नजरों को पहचान गई और इनकार कर दिया.

लेकिन विवेक ने आखिर अब इतनी जल्दबाजी क्यों की? अभी तो इस हादसे को 2 महीना ही हुआ है. क्या विवेक भी उन में से एक है? क्या उसे भी मेरे पैसों से मुहब्बत है? यही सोचसोच कर मेरा दिल एकदम से बेचैन था. मैं रातभर ठीक से सो भी नहीं पाई.

फिर 2 दिन के बाद जब विवेक ने मुझे फोन किया और मेरा जवाब जानना चाहा तो मैं ने यही कहा कि अगर मैं शादी कर लूंगी तो नेहा अकेली हो जाएगी.

‘‘पगली क्या हम नेहा को उसी घर में अकेले छोड़ देंगे? उसे भी तुम्हारे साथ अपने घर ले आएंगे.’’

इस बात से मेरा दिल और भी दहशत में डूब गया. नेहा के नाम पर भी इतना पैसा और जायदाद है, तो क्या नेहा पर विवेक की नजर है? मुझे तो हमेशा से पैसे के लालची लोगों से नफरत है. अब विवेक के चेहरे पर भी उन्हीं लोगों का चेहरा नजर आता है.

मैं रातभर इसी सोच में डूबी रही. कब आंख लगी, पता ही नहीं चला. मेरी आंख तब खुली, जब बूआ ने आ कर आवाज दी कि अंजलि उठो. विवेक आया है. मैं जल्दी से उठी और फ्रैश हो कर नीचे आ गई.

‘‘अंजलि, क्या बात है. आज 4 दिन हो गए हैं और तुम ने कोई जवाब नहीं दिया मेरी बातों का?’’

‘‘विवेक, आखिर तुम्हें जवाब की इतनी जल्दी क्या पड़ गई है, अभी तो हमारे घर में इतना बड़ा हादसा हुआ है.’’

‘‘अंजलि, यही तो वजह है कि तुम अब अकेली हो गई हो और मैं जल्द से जल्द तुम्हारा सहारा बनना चाहता हूं. मैं तुम्हें इस घर में अकेले नहीं छोड़ना चाहता हूं.’’

‘‘विवेक, मैं ने अपनी जिंदगी के लिए कुछ फैसले लिए हैं और उन के बारे में तुम्हें बताना चाहती हूं.

‘‘हां हां, जरूर बताओ,’’ विवेक ने कहा.

‘‘मैं तुम से शादी करने के लिए राजी हूं. मेरी बूआ ने हम दोनों की हमेशा देखभाल की. मम्मीपापा के जाने के बाद उन्होंने कभी भी उन की कमी महसूस नहीं होने दी.

‘‘मैं चाहती हूं कि मैं अपनी आधी जायदाद उन के नाम कर दूं, ताकि उन के बच्चों का भविष्य सुधर जाए.

‘‘विवेक, मेरा सहारा तो तुम हो, लेकिन नेहा तो मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर है और उस के इलाज में भारी रकम खर्च होती है.

‘‘मुझे अब पैसों की क्या जरूरत है. विवेक कहो, मेरा फैसला ठीक है या गलत है?’’

विवेक कुछ देर चुप था, बस अंजलि को देख रहा था.

अंजलि को लग रहा था कि उस का यह फैसला सुनने के बाद अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

‘‘अंजलि, मैं ने तुम्हें जो समझ कर प्यार किया, तुम वह नहीं हो,’’ विवेक बोला.

‘‘मैं समझी नहीं विवेक, तुम क्या समझते हो मुझे और मैं क्या हूं?’’

‘‘मैं तो सिर्फ इतना समझता था कि तुम एक खूबसूरत लड़की हो, मैं ने सिर्फ आज तक तुम्हारे चेहरे की खूबसूरती को देखा था, लेकिन आज तुम्हारे मन की खूबसूरती को देख रहा हूं.

‘‘एक लाचार बहन पर अपना सबकुछ कुरबान कर देना और एक गरीब बूआ के बच्चों के अच्छे भविष्य के बारे में सोचना…

‘‘आज पहली बार मुझे तुम से मुहब्बत करने पर गर्व हो रहा है अंजलि, जहां आज इस पापी दुनिया में लोग दूसरों का हक छीन कर खाते हैं, वहीं इसी दुनिया में तुम्हारे जैसे लोग भी मौजूद हैं, जो दूसरों के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं.

‘‘मुझे तुम्हारा फैसला मंजूर है, बस तुम तैयार रहो. मैं जल्दी ही डोली ले कर तुम्हारे घर आ रहा हूं.’’

अंजली विवेक की बात सुन कर मुसकरा दी. उसे आज ऐसा महसूस हुआ, जैसे सालों से दिल में गड़ा हुआ कांटा निकल गया हो.

आज उसे विवेक की सच्ची मुहब्बत का एहसास हो गया था. ऐसा लग रहा था कि उसे नई जिंदगी मिल गई. मैं भी तो विवेक को नहीं जानती थी कि उस के मन में भी इतना अच्छा इनसान छिपा था और मैं भी कितनी पागल थी कि उस पर शक कर रही थी.

मैं ने खिड़की का परदा हटाया. देखा, एक नई सुबह मेरा इंतजार कर रही थी जिस में सचाई थी, मुहब्बत थी और सबकुछ था, जो मुझे जीने के लिए चाहिए था.

लेखिका- तबस्सुम बानो

शॉर्टकट: नसरीन ने सफलता पाने के लिए कौन-सा रास्ता अपनाया?

उफ फिर एक नया ग्रुप. लगता है सारी दुनिया सिर्फ व्हाट्सऐप में ही सिमट गई है. कालेज जाने से पहले अपने मोबाइल में व्हाट्सऐप मैसेज चैक करते समय नसरीन ने खुद को एक नए व्हाट्सऐप ग्रुप सितारे जमीं पर से जुड़ा पाया.

यह व्हाट्सऐप का शौक भी धीरेधीरे लत बनता जा रहा है. न देखो तो कई महत्त्वपूर्ण सूचनाओं और जानकारी से वंचित रह जाते हैं और देखने बैठ जाओ तो वक्त कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता. किसीकिसी ग्रुप में तो एक ही दिन में सैकड़ों मैसेज आ जाते हैं. बेचारा मोबाइल हैंग हो जाता है. आधे से ज्यादा तो मुफ्त का ज्ञान बांटने वाले कौपीपेस्ट ही होते हैं और बचे हुए आधों में भी ज्यादातर तो गुडमौर्निंग, गुड ईवनिंग या गुड नाइट जैसे बेमतलब के होते. लेदे कर कोई एकाध मैसेज ही दिन भर में काम का होता है. बच्चे का नैपी जैसे हो गया है मोबाइल. चाहे कुछ हो या न हो बारबार चैक करने की आदत सी हो गई है. नसरीन सोचतेसोचते सरसरी निगाहों से सारे मैसेज देख रही थी. कुछ पढ़ती और फिर डिलीट कर देती. कालेज जाने से पहले रात भर के आए सभी मैसेज चैक करना उस की आदत में शुमार है.

देखें तो क्या है इस नए ग्रुप में? ऐडमिन कौन है? कौनकौन जुड़ा है इस में? क्या कोई ऐसा भी है जिसे मैं जानती हूं? नसरीन ने नए ग्रुप के गु्रप इन्फो पर टैब किया. इस ग्रुप में फिलहाल 107 लोग जुड़े थे. स्क्रोल करतेकरते उस की उंगलियां एक नाम पर जा कर ठहर गईं. राजन? ग्रुप ऐडमिन को पहचानते ही नसरीन उछल पड़ी.

अरे, ये तो फेस औफ द ईयर कौंटैस्ट के आयोजक हैं. इस का मतलब मेरा प्रोफाइल फर्स्ट लैवल पर सलैक्ट हो गया है. नसरीन के अरमानों को छोटेछोटे पंख उग आए.

नसरीन जयपुर में रहने वाले मध्यवर्गीय मुसलिम परिवार की साधारण युवती है. मगर उस की महत्त्वाकांक्षा उसे असाधारण बनाती है. 5 फुट 5 इंच लंबी, आकर्षक नैननक्श और छरहरी काया की मालकिन नसरीन के सपने बहुत ऊंचे हैं और अपने सपनों को पूरा करने के लिए वह किसी भी हद तक जाने का जनून रखती है. जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने वाली नसरीन को समाज के रूढिवादी रवैए ने बागी बना दिया. उस का सपना मौडल बनने का है. मगर सब से बड़ी बाधा उस का खुद का परिवार बना हुआ है. उस के भाई को उस का फैशनेबल कपड़े पहनना फूटी आंख नहीं सुहाता और मां भी जितनी जल्दी हो सके अपने भाई के बेटे से उस का निकाह कराना चाहतीं. मगर इस सब से बेखबर नसरीन अपनी ही दुनिया में खोई रहती है. उस की जिंदगी में फिलहाल शादी और बच्चों के लिए कोई जगह नहीं है. उस की हमउम्र सहेलियां उस से ईर्ष्या करती हैं. मगर मन ही मन उस की तरह जीना भी चाहती हैं.

महल्ले के बड़ेबुजुर्गों और मौलाना साहब तक उस के अब्बा हुजूर को हिदायत दे चुके हैं कि बेटी को हिजाब में रखें और कुरान की तालीम दें, क्योंकि उसे देख कर समाज की बाकी लड़कियां भी बिगड़ रही हैं. लेकिन अब्बा को जमाने से ज्यादा अपनी बेटी की खुशी प्यारी थी, इसलिए उन्होंने उसे सब की निगाहों से दूर फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने दिल्ली भेज दिया.

एक दिन कालेज के नोटिस बोर्ड पर राजन की कंपनी द्वारा आयोजित फेस औफ द ईयर कौंटैस्ट का विज्ञापन देखा, तो उसे आशा की एक किरण नजर आई. हालांकि दिल्ली में आए दिन इस तरह के आयोजन होते रहते हैं, मगर राजन की कंपनी द्वारा चुने गए मौडल देश भर में अलग पहचान रखते हैं. विज्ञप्ति के अनुसार विभिन्न चरणों से होते हुए प्रतियोगिता का फाइनल राउंड मुंबई में होना था तथा विजेता मौडल को क्व10 लाख नकद इनाम राशि के साथसाथ 1 साल का मौडलिंग कौंट्रैक्ट साइन करना था. यह जानते हुए भी कि फिल्मों की तरह इस क्षेत्र में भी गौड फादर का होना जरूरी है, नसरीन ने इस प्रतियोगिता के लिए अपनी ऐंट्री भेज दी. उस का सोचना था कि वह यह कौंटैस्ट जीत गई तो आगे का रास्ता खुल जाएगा.

राजन फैशन जगत में जाना माना नाम है. उस की रंगीनमिजाजी के किस्से अकसर सुनाई देते हैं. फिर भी उस के लिए मौडलिंग करना किसी भी नवोदित का सपना होता है. आज खुद इस ग्रुप में राजन के साथ जुड़ कर नसरीन को यों लगा मानो उस की लौटरी लग गई. आज आसमान मुट्ठी में कैद हुआ सा लग रहा था. उसे अचानक नीरस और उबाऊ व्हाट्सऐप अच्छा लगने लगा.

‘सब कुछ सिस्टेमैटिक तरीके से करना होगा.’ सोचते हुए मिशन की प्लानिंग के हिसाब से सब से पहले नसरीन ने व्हाट्सऐप प्रोफाइल की डीपी पर लगी अपनी पुरानी तसवीर हटा कर सैक्सी तसवीर लगाई. फिर राजन को पर्सनल चैट बौक्स में मैसेज भेज कर थैंक्स कहा. राजन ने जवाब में दोनों हाथ नमस्कार की मुद्रा में जुड़े हुए 2 स्माइली प्रतीक भेजे. यह नसरीन की राजन के साथ पहली चैट थी.

एक दिन नसरीन ने अपने कुछ फोटो राजन के इनबौक्स में भेजे तथा तुरंत ही सौरी का मैसेज भेजते हुए लिखा, ‘‘माफ कीजिएगा, गलती से सैंड हो गए.’’

‘‘इट्स ओके. बट यू आर लुकिंग वैरी सैक्सी,’’ राजन ने लिखा.

‘‘सर, मैं इस वक्त दुनिया की सब से खुशहाल लड़की हूं, क्योंकि मैं आप जैसे किंग मेकर से सीधे रूबरू हूं.’’

‘‘मैं तो एक अदना सा कला का सेवक हूं.’’

‘‘हीरा अपना मोल खुद नहीं आंक सकता.’’

‘‘आप नाहक मुझे चने के झाड़ पर चढ़ा रही हैं.’’

‘‘जो सच है वही कह रही हूं…’’

राजन ने 2 हाथ जुड़े हुए धन्यवाद की मुद्रा में भेजे.

‘‘ओके सर बाय. कल मिलते हैं,’’ और 2 स्माइली के साथ नसरीन ने चैट बंद कर दी.

2 दिन बाद प्रतियोगिता का पहला राउंड था. नसरीन ने राजन को लिखा, ‘‘सर, यह मेरा पहला चांस है, क्या हमारा साथ बना रहेगा?’’

‘‘यह तो वक्त तय करेगा या फिर खुद तुम,’’ कह कर राजन ने जैसे उसे एक हिंट दिया.

नसरीन उस का इशारा कुछकुछ समझ गई. फिर ‘मैं यह कौंटैस्ट हर कीमत पर जीतना चाहूंगी,’ लिख कर नसरीन ने उसे हरी झंडी दे दी.

पहले राउंड में देश भर से चुनी गईं 60 मौडलों में से दूसरे राउंड के लिए  20 युवतियों का चयन किया गया. नसरीन भी उन में से एक थी. राजन ने उसे बधाई देने के लिए अपने कैबिन में बुलाया. आज उस की राजन से प्रत्यक्ष मुलाकात हुई. राजन जितना फोटो में दिखाई देता था उस से कहीं ज्यादा आकर्षक और हैंडसम था. अपने कैबिन में उस ने नसरीन के गाल थपथपाते हुए कहा, ‘‘बेबी, हाऊ आर यू फीलिंग नाऊ?’’

‘‘यह राउंड क्वालिफाई करने के बाद या फिर आप से मिलने के बाद?’’ नसरीन ने शरारत से पूछा.

‘‘स्मार्ट गर्ल.’’

‘‘अब आगे क्या होगा?’’

‘‘कहा तो है कि यह तुम पर डिपैंड करता है,’’ राजन ने उस की खुली पीठ को हलके से छूते हुए कहा.

‘‘वह तो है, मगर अब कंपीटिशन और भी टफ होने वाला है,’’ नसरीन ने राजन की हरकत का कोई विरोध न करते हुए कहा.

‘‘बेबी, तुम एक काम करो, नैक्स्ट राउंड में अभी 10 दिन का टाइम है. तुम रोनित शेट्टी से पर्सनैलिटी ग्रूमिंग की क्लासेज ले लो. मैं उसे फोन कर देता हूं,’’ राजन ने उस के चेहरे पर आई लटों को हटाते हुए कहा.

‘‘सो नाइस औफ यू… थैंक्स,’’ कह नसरीन ने उस के हाथ से रोनित का कार्ड ले लिया.

10 दिन बाद प्रतियोगिता के सैकंड राउंड में नसरीन सहित 10 मौडलों का चयन किया गया. अब आखिरी राउंड में विजेता का चयन किया जाना था. प्रतियोगिता का फाइनल मुंबई में होना था. निर्णायक मंडल में राजन सहित एक प्रसिद्ध टीवी ऐक्ट्रैस और एक प्रसिद्ध पुरुष मौडल था.

नसरीन भी सभी प्रतिभागियों के साथ मुंबई पहुंच गई. प्रतिभागियों के रुकने की अलग व्यवस्था की गई थी और बाकी टीम की अलग. राजन ने नसरीन को मैसेज कर के अपने रूम में बुलाया.

‘‘तो बेबी, क्या सोचा तुम ने?’’

‘‘इस में सोचना क्या? यह तो एक डील है… तुम मुझे खुश कर दो, मैं तुम्हें कर दूंगी,’’ नसरीन ने बेबाकी से कहा.

‘‘तो ठीक है, रात को डील पर मुहर लगा देते हैं.’’

‘‘आज नहीं कल रिजल्ट के बाद.’’

‘‘मुझ पर भरोसा नहीं?’’

‘‘भरोसा तो है, मगर मेरे पास भी तो सैलिब्रेट करने का कोई बहाना होना चाहिए न?’’ नसरीन ने उसे अपने से अलग करते हुए कहा.

‘‘ऐज यू विश… औल द बैस्ट,’’ कहते हुए राजन ने उसे बिदा किया.

अगले दिन विभिन्न चरणों की औपचारिकता से गुजरते हुए अंतिम निर्णय के आधार पर नसरीन को फेस औफ द ईयर चुना गया. तालियों की गड़गड़ाहट के बीच पिछले वर्ष की विजेता ने अपना क्राउन उसे पहनाया तो नसरीन की आंखें खुशी के मारे छलक उठीं. उस ने राजन की तरफ कृतज्ञता से देखा तो राजन ने एक आंख दबा कर उसे उस का वादा याद दिलाया. नसरीन मुसकरा दी.

आज की रात अपनी देह का मखमली कालीन बिछा कर नसरीन ने अपनी मंजिल को पाने के लिए शौर्टकट की पहली सीढ़ी पर पांव रखा. एक गरम कतरा उस की पलकों की कोर को नम करता हुए धीरे से तकिए में समा गया.

खिताब जीतने के बाद पहली बार नसरीन अपने शहर आई. पर रेलवे स्टेशन पर कट्टर समाज के लोगों ने उस के भाई की अगुआई में उसे काले झंडे दिखाए, मुर्दाबाद के नारे लगाए और उसे ट्रेन से उतरने नहीं दिया. भीड़ में सब से पीछे खड़े उस के अब्बा उसे डबडबाई आंखों से निहार रहे थे. नसरीन उन्हें देख कर सिर्फ हाथ ही हिला सकी और ट्रेन चल पड़ी. इस विरोध के बाद उस ने फिर कभी जयपुर का रुख नहीं किया.

देखते ही देखते विज्ञापन की दुनिया में नसरीन छा गई. लेकिन शौर्टकट सीढि़यां चढ़तेचढ़ते काफी ऊपर आ गई नसरीन के लिए मंजिल अभी भी दूर थी. उस की ख्वाहिश इंटरनैशनल लैवल तक जाने की थी और सिर्फ राजन के पंखों के सहारे इतनी ऊंची उड़ान भरना संभव नहीं था. उसे अब और भी सशक्त पंखों की तलाश थी, जो उस की उड़ान को 7वें आसमान तक ले जा सके.

एक दिन उसे पता चला कि फैशन जगत के बेताज बादशाह समीर खान को अपने इंटरनैशनल प्रोजैक्ट के लिए फ्रैश चेहरा चाहिए. उस ने समीर खान से अपौइंटमैंट लिया और उस के औफिस पहुंच गई. इधरउधर की बातों के बाद सीधे मुद्दे पर आते हुए समीर ने कहा, ‘‘देखो बेबी, यह एक बीच सूट है और बीच सूट कैसा होता है, आई होप तुम जानती होंगी.’’

‘‘यू डौंट वरी. जैसा आप चाहोगे हो जाएगा,’’ नसरीन ने उसे आश्वस्त किया.

‘‘ठीक है, नैक्स्ट वीक औडिशन है, लेकिन उस से पहले हम देखना चाहेंगे कि यह जिस्म बीच सूट लायक है भी या नहीं,’’ समीर ने कहा.

नसरीन उस का इशारा समझ रही थी. अत: उस ने कहा, ‘‘पहले औडिशन ले कर ट्रेलर देख लीजिए. कोई संभावना दिखे तो पूरी पिक्चर भी देख लेना.’’

‘‘वाह, ब्यूटी विद ब्रेन,’’ कहते हुए समीर ने उस के गाल थपथपाए.

नसरीन का चयन इस प्रोजैक्ट के लिए हो गया. 1 महीने बाद उसे समीर की टीम के साथ सूट के लिए विदेश जाना था. अब राजन से उस का संपर्क कुछ कम होने लगा था.

आज राजन ने उसे डिनर के लिए इनवाइट किया था. नसरीन जानती थी कि वह रात की गई सुबह ही वापस आएगी. कुछ भी हो, मगर राजन के लिए उस के दिल में एक सौफ्ट कौर्नर था.

‘‘समीर के साथ जा रही हो?’’

‘‘हूं.’’

‘‘मुझे भूल जाओगी?’’

‘‘यह मैं ने कब कहा?’’

‘‘तुम उसे जानती ही कितना हो… एक नंबर का लड़कीखोर है.’’

‘‘तुम्हें भी कहां जानती थी?’’

‘‘शायद तुम्हें उड़ने के लिए अब आकाश छोटा पड़ने लगा?’’

‘‘तुम्हें कहीं मुझ से प्यार तो नहीं होने लगा?’’ नसरीन ने माहौल को हलकाफुलका करने के लिए हंसते हुए कहा.

‘‘अगर मैं हां कहूं तो?’’ राजन ने उस की आंखों में झांका.

‘‘तुम ऐसा नहीं कहोगे.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि फैशन की इस दुनिया में प्यार नहीं होता. वैसे भी तुम्हारी कंपनी फेस औफ द ईयर कौंटैस्ट फिर से आयोजित करने वाली है. फिर एक नया चेहरा चुना जाएगा, जो तुम्हारी कंपनी और तुम्हारे बिस्तर की शोभा बढ़ाएगा. फिर से तुम साल भर के लिए बिजी हो जाओगे. मैं ने पिछले वर्ष की मौडल के चेहरे पर एक पीड़ा देखी थी जब वह मुझे क्राउन पहना रही थी. वह पीड़ा मैं अपनी आंखों में नहीं आने देना चाहती,’’ नसरीन ने बहुत ही साफगोई से कहा.

राजन उसे अवाक देख रहा था. उस ने अपनी जिंदगी में आज तक इतनी पारदर्शी सोच वाली लड़की नहीं देखी थी.

नसरीन ने आगे कहा, ‘‘मेरी मंजिल अभी बहुत दूर है राजन. तुम जैसे न जाने कितने छोटेछोटे पड़ाव आएंगे. मैं वहां कुछ देर सुस्ता तो सकती हूं, मगर रुक नहीं सकती.’’

रात को सैलिब्रेट करने का राजन का सारा उत्साह ठंडा पड़ गया. उस ने नसरीन से कहा, ‘‘चलो, तुम्हें गाड़ी तक छोड़ दूं.’’

‘‘ओके, बाय बेबी… 2 दिन बाद मेरी फ्लाइट है. देखते हैं अगला पड़ाव कहां होता है,’’ कहते हुए नसरीन ने आत्मविश्वास के साथ गाड़ी स्टार्ट कर दी.

राजन उसे आंखों से ओझल होने तकदेखता रहा.

शक्ति प्रदर्शन

विजयकांत जब अपने बैडरूम में घुसा, तो रात के 10 बज रहे थे. उस की पत्नी सीमा बिस्तर पर बैठी टैलीविजन पर एक सीरियल देख रही थी. विजयकांत को देखते ही सीमा ने टैलीविजन की आवाज कम करते हुए कहा, ‘‘आप खाना खा लीजिए.’’

‘‘मैं खाना खा कर आ रहा हूं. मीटिंग के बाद कुछ दोस्त होटल में चले गए थे. कल गांधी पार्क में शक्ति प्रदर्शन का प्रोग्राम होगा. उसी के बारे में मीटिंग थी. कल देखना कितना जबरदस्त कार्यक्रम होगा. पूरे जिले से पार्टी के पांचों विधायक अपने दलबल के साथ यहां गांधी पार्क में पहुंचेंगे.’’ ‘‘चुनाव आने वाले हैं, इसीलिए प्रदेश सरकार ने प्रदेश में शक्ति प्रदर्शन का कार्यक्रम शुरू कराया है, ताकि इतने जनसमूह को देख कर विरोधी दलों के हौसले पस्त हो जाएं. जनता हमारी ताकत देख कर अगली बार भी हमारी सरकार बनवाए,’’ विजयकांत ने बिस्तर पर बैठते हुए कहा.

सीमा ने चैनल बदल कर खबरें लगाते हुए कहा, ‘‘आप का कार्यक्रम कितने घंटे का रहेगा?’’ ‘‘11 बजे से 3 बजे तक,’’ विजयकांत ने टैलीविजन की ओर देखते हुए कहा.

सीमा चुप रही. विजयकांत ने सीमा के बढ़े हुए पेट की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘कब तक सुना रही हो खुशखबरी? डाक्टर ने कब की तारीख दे रखी है?’’ ‘‘बस, 5-7 दिन ही बाकी हैं,’’ सीमा बोली.

‘‘हमें यह खुशी कई साल बाद मिल रही है. बेटा ही होगा, क्योंकि डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना ने जांच कर के बता दिया था कि पेट में बेटा है. मैं ने तो उस का नाम भी पहले ही सोच लिया, ‘कमलकांत’,’’ विजयकांत खुश हो कर कह रहा था. तभी मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. उस ने स्क्रीन पर नाम पढ़ा, माधुरी वर्मा. वह बोल उठा, ‘‘कहिए मैडम, कैसी हो? मातृ शक्ति से बढ़ कर कोई शक्ति नहीं है, इसलिए आप को भी अपने महिला मोरचा की ओर से भरपूर शक्ति प्रदर्शन करना है, क्योंकि आप पार्टी की महिला मोरचा की नगर अध्यक्ष हैं. आप के कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है.’’

‘सो तो है. एक बात है, जिस के लिए फोन किया है,’ उधर से आवाज आई. ‘‘कहिए?’’ विजयकांत बोला.

‘आज शाम हमारी पार्टी की एक सदस्या के साथ एक सिपाही ने बेहूदा हरकत कर दी. उस ने मुझे मोबाइल पर सूचना दी, तो मैं ने थाना चंदनपुर के इंस्पैक्टर को बताया, लेकिन उस ने ढंग से बात ही नहीं की.’ ‘‘मैडम, इस इंस्पैक्टर का बुरा समय आ गया है. अरे, वह तो पुलिस इंस्पैक्टर ही है, हम तो एसपी और डीएम की भी परवाह नहीं करते. आज हमारी सरकार है, हमारे हाथ में शक्ति है. हम जिस अफसर को जहां चाहें फिंकवा सकते हैं.

‘‘कमाल है मैडम, आप सत्तारूढ़ पार्टी में होते हुए भी हमारे इन नौकरों से परेशान हुई हो. आप कहिए, तो मैं अभी आप के साथ चल कर उस इंस्पैक्टर को लाइन हाजिर और सिपाही को संस्पैंड करा दूं?’’ ‘कल का प्रोग्राम हो जाने दो, परसों इन दोनों का दिमाग ठीक कर देंगे,’ उधर से आवाज आई.

‘‘मैडम, आप जरा भी चिंता न करें. अभी तो आप को भी राजनीति की बहुत ऊंचाई तक जाना है. अब आप आराम करें, गुडनाइट,’’ विजयकांत ने कहा और मोबाइल बंद कर के सीमा की ओर देखा. वह सो चुकी थी. विजयकांत की उम्र 40 साल थी. वह सत्तारूढ़ पार्टी का नगर अध्यक्ष था. रुपएपैसे की उसे चिंता न थी. उसी के दम पर ही वह नगर अध्यक्ष बना था.

2 मंत्री उस के रिश्तेदार थे. विजय ऐंड कंपनी के नाम से शहर में उस का एक बड़ा सा दफ्तर था, जहां फाइनैंस व जमीनजायदाद की खरीदबिक्री का काम होता था. उस ने एक गैरकानूनी कालोनी तैयार कर करोड़ों रुपए बना लिए थे. विजयकांत की पत्नी सीमा खूबसूरत और कुशल गृहिणी थी. उसे राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

अजयकांत उस का छोटा भाई था, जिस ने पिछले साल एमबीए किया था. वह कुंआरा था. उस के रिश्ते आ रहे थे, पर वह अभी शादी नहीं करना चाहता था. उस का कहना था कि पहले कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाए, बाद में शादी कर लेगा. वह विजय ऐंड कंपनी में मैनेजर के पद पर बैठ कर सारा कामकाज देख रहा था. विजयकांत की अम्मांजी की उम्र 65 साल थी. इतनी उम्र में भी वे बहुत चुस्त थीं. वे भी एक कुशल गृहिणी थीं. उन्हें अपना खाली समय समाजसेवा में बिताना पसंद था. तकरीबन 7 साल पहले विजयकांत, उस के पिता महेशकांत, अम्मांजी अपने 5 साला पोते राजू के साथ कार में जा रहे थे. कार विजयकांत ही चला रहा था. एक साइकिल सवार को बचाने के चक्कर में कार एक पेड़ से टकरा गई थी. इस हादसे में पिता महेशकांत व बेटे राजू की मौके पर ही मौत हो गई थी.

इस हादसे से उबरने में उन सभी को काफी समय लग गया था. 2 साल पहले विजयकांत को जब पता चला कि सीमा मां बनने वाली है, तो उस ने डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना के यहां जा कर जांच कराई. पता चला कि पेट में बेटी है, तब उस ने सीमा को साफ शब्दों में कह दिया था, ‘मुझे बेटी नहीं, बेटा चाहिए.’

उस के सामने सीमा व अम्मांजी की बिलकुल नहीं चली थी. सीमा को मजबूर हो कर बच्चा गिराना पड़ा था. अब फिर सीमा पेट से हुई थी. पहले ही जांच करा कर पता कर लिया था कि पेट में पलने वाला बच्चा बेटा ही है.

अगले दिन नाश्ता करने के बाद विजयकांत ने अजयकांत से कहा, ‘‘मैं नगर विधायक राजेश्वर प्रसाद के यहां पहुंच रहा हूं. वहीं से हमें इकट्ठा हो कर जुलूस के रूप में गांधी पार्क पहुंचना है. तुम समय पर दफ्तर पहुंच जाना. आज शक्ति प्रदर्शन का यह बहुत बड़ा कार्यक्रम है. इस से विरोधी दलों की भी आंखें फटी की फटी रह जाएंगी.’’ अजयकांत ने खुश हो कर कहा, ‘‘मैं भी थोड़ी देर बाद गांधी पार्क में पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘ठीक है, आ जाना. मैं मंच पर ही मिलूंगा,’’ विजयकांत ने कहा और कमरे से बाहर निकल गया. कुछ देर बाद अजयकांत भी दफ्तर पहुंच गया. तकरीबन एक घंटे बाद कमरे में बैठी सीमा को प्रसव का दर्द होने लगा. उस ने अम्मांजी को पुकारा.

आते ही अम्मांजी ने सीमा का चेहरा देखते हुए कहा, ‘‘लगता है, अभी नर्सिंग होम जाना पड़ेगा. तुम बैठो, मैं जाने की तैयारी करती हूं. तुम ऐसा करो कि विजय को फोन कर दो, आ जाएगा,’’ कह कर अम्मांजी कमरे से चली गईं. सीमा ने विजयकांत को मोबाइल पर सूचना देनी चाही. घंटी जाने की आवाज सुनाई देती रही, पर जवाब नहीं मिला. उस ने कई बार फोन मिलाया, पर कोई जवाब नहीं मिला.

अम्मांजी ने कमरे में घुसते ही पूछा, ‘‘विजय से बात हुई क्या? क्या कहा उस ने? कितनी देर में आ रहा है?’’ ‘‘अम्मांजी, घंटी तो जा रही है, लेकिन वे मोबाइल नहीं उठा रहे हैं. जुलूस के शोर में उन को पता नहीं चल पा रहा होगा.’’

‘‘अजय को फोन मिला दो. वह दफ्तर से गाड़ी ले कर आ जाएगा,’’ अम्मांजी ने कहा. सीमा ने तुरंत अजयकांत को फोन मिला दिया. उधर से आवाज आई, ‘हां भाभीजी, कहिए?’

‘‘तुम गाड़ी ले कर घर आ जाओ. अभी नर्सिंग होम चलना है. तुम्हारे भैया से फोन पर बात नहीं हो पा रही है.’’ ‘मैं अभी पहुंचता हूं. एक मिठाई का डब्बा लेता आऊंगा. वहां सभी का मुंह मीठा कराया जाएगा.’

‘‘वह बाद में ले लेना. पहले तुम जल्दी से यहां आ जाओ.’’ ‘बस, अभी पहुंच रहा हूं,’ अजयकांत ने कहा.

अम्मांजी ने एक बैग में कुछ जरूरी सामान रख लिया. तभी घरेलू नौकरानी कमला रसोई से निकल कर आई और बोली, ‘‘अम्मांजी, घर की आप जरा भी चिंता न करना. बस, जल्दी से बहूरानी को अस्पताल ले जाओ.’’

‘‘हां कमला, जरा ध्यान रखना. मैं तुझे खुश कर दूंगी. सोने की चेन, कपड़े, मिठाई सब दूंगी. इतने सालों से हमारी सेवा जो कर रही है,’’ अम्मांजी ने कहा. कुछ ही देर में अजयकांत गाड़ी ले कर घर आ गया.

‘‘अब जल्दी चलो, देर न करो. सीमा, तुम गाड़ी में बैठो,’’ कहते हुए अम्मांजी ने कमला की ओर देखा, ‘‘कमला, ठीक से ध्यान रखना. घर पर कोई नहीं है. पूरा घर तेरे ऊपर छोड़ कर जा रही हूं. कोई बात हो, तो हमारे मोबाइल की घंटी बजा देना.’’ ‘‘आप बेफिक्र हो कर जाओ अम्मांजी. बहुत जल्द मुझे भी फोन पर खुशखबरी सुना देना,’’ कमला ने खुशी से कहा.

कार में पीछे की सीट पर अम्मांजी व सीमा बैठ गईं. अजयकांत कार चलाने लगा. बच्चा होने का दर्द सीमा के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था. कार चलाते हुए अजयकांत देख रहा था कि आज सड़क पर कुछ ज्यादा ही रौनक दिखाई दे रही है. ट्रैक्टरट्रौली, आटोरिकशा सड़कों पर दौड़े जा रहे थे. इन में लदे हुए लोग पार्टी के झंडे हाथों में लिए जोरदार आवाज में नारे लगा रहा थे, ‘जन विकास पार्टी, जिंदाबाद.’

अजयकांत रेलवे का पुल पार कर जैसे ही आगे बढ़ा, तो वहां जाम लगा हुआ था. उसे कार रोकनी पड़ी. सामने पटेल चौक था, जहां से पार्टी के एक विधायक का जुलूस जा रहा था. एक ट्रक पर ऊपर की ओर फूलमालाओं से लदा हुआ विधायक जनता की ओर हाथ हिलाहिला कर अभिवादन स्वीकार कर रहा था और कभी खुद भी हाथ जोड़ रहा था. उस के बराबर में पार्टी के दूसरे पदाधिकारी बैठे और कुछ खड़े थे.

कुछ के गले में फूलमालाएं थीं. ट्रक में पीछे लोग लदे हुए थे. ट्रक पटेल चौक में रुक गया. विधायक खड़ा हो कर नमस्कार करने लगा. कार में पीछे बैठी अम्मांजी ने पूछा, ‘‘यह किस पार्टी का जुलूस है? नगर विधायक राजेश्वर प्रसाद का है क्या?’’

‘‘नहीं अम्मां, यह तो जीवनदास का है, जो रामगढ़ का विधायक है. हो सकता है कि राजेश्वर प्रसाद का जुलूस गांधी पार्क में पहुंच गया हो या किसी दूसरे रास्ते से जा रहा हो. भैया भी तो राजेश्वर प्रसाद के बराबर में बैठे होंगे. भैया से फोन पर बात नहीं हो सकती. जुलूस में शोर ही इतना है,’’ अजयकांत ने जवाब दिया. कुछ ही देर में अजयकांत की कार के बहुत पीछे तक जाम लग चुका था. पैदल निकलने का रास्ता भी न बचा था. कोई अपनी जगह से हिल भी न सकता था. सभी को लग रहा था, मानो किसी चक्रव्यूह में फंस गए हों. कोई मन ही मन नेताओं को कोस रहा था, कोई जोरदार आवाज में गालियां दे रहा था.

सीमा दर्द को सहन करने की भरसक कोशिश कर रही थी. अम्मांजी ने सीमा के चेहरे की ओर देखा, तो मन ही मन तड़प उठीं. उन्होंने अजयकांत से कहा, ‘‘ओह, बहुत देर लगा दी इस जुलूस ने. पता नहीं, कितनी देर और लगाए?’’

‘‘लगता है, 10-15 मिनट और लग जाएंगे. अगर मुझे पता होता कि यहां ऐसा जाम लग जाएगा, तो मैं इस तरफ गाड़ी ले कर ही न आता,’’ अजयकांत ने दुखी मन से कहा. ‘‘अजय, तू यहां से जल्दी कार निकालने की कोशिश कर.’’

‘‘कैसे निकलें अम्मां? सभी तो फंसे खड़े हैं. सभी परेशान हैं, पर कोई कुछ नहीं कर सकता?’’ ‘‘सब की बात अलग है. तेरी भाभी की हालत ठीक नहीं है. किसी पुलिस वाले से बात कर. हो सकता है कि वह हमारी गाड़ी निकलवा दे.’’

अजयकांत ने देखा कि हर ओर भीड़ ही भीड़, मानो पूरे शहर का जनसमूह यहां आ कर इकट्ठा हो गया हो. वह बोल उठा, ‘‘वहां पटेल चौक में खड़े हैं पुलिस वाले. वहां तक पैदल जाना क्या आसान है? और फिर वे हमारी गाड़ी कैसे निकालेगी? आसमान में तो कार उड़ नहीं सकती.’’ ‘‘तो अब क्या होगा?’’ अम्मांजी ने घबराई आवाज में कहा.

अजयकांत चुप रहा. उस के पास कोई जवाब न था, जबकि वह जानता था कि देर होने से गड़बड़ भी हो सकती है. उस ने तो सपने में भी न सोचा था कि वह आज इस तरह जाम में फंस जाएगा. अजयकांत की कार के पीछे खड़ा एक रिकशे वाला बराबर में खड़े टैंपो ड्राइवर से कह रहा था, ‘‘इन नेताओं ने हमारे देश का बेड़ा गर्क कर दिया है. जब देखो शहर में जुलूस निकाल कर जाम लगा देते हैं. हम गरीबों को मजदूरी भी नहीं करने देते. एक सवारी मिली थी, जाम के चलते वह भी बिना पैसे दिए चली गई.’’

‘‘अरे यार, इन नेताओं के पास तो हराम की कमाई आती है. इन्हें कौन सी मेहनतमजदूरी कर के बच्चे पालने हैं. आजकल तो जिसे देखो, खद्दर का लंबा कुरतापाजामा पहन कर हाथ में मोबाइल ले कर बहुत बड़ा नेता बना फिरता है. मेरे टैंपो में भी 4-5 ऐसे ही उठाईगीर नेता बैठे थे. वे भी ऐसे ही उतर कर चले गए, मानो उन के बाप का टैंपो हो,’’ टैंपो ड्राइवर ने बुरा सा मुंह बना कर कहा. अजयकांत पिंजरे में फंसे किसी पंछी की तरह मन ही मन तड़प उठा.

जाम खुलने में एक घंटा लग गया. अजयकांत ने डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना को मोबाइल पर सूचना दे दी थी कि वे जल्दी ही पहुंच रहे हैं. नर्सिंग होम में कार रोक कर अजयकांत तेजी से डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना के पास पहुंचा. वे उस के साथ बाहर आईं. कार में सीमा निढाल सी हो चुकी थी.

अजयकांत ने कहा, ‘‘पटेल चौक पर जाम में फंसने के चलते हमें इतनी देर हो गई.’’ ‘‘यह जाम आप की पार्टी के शक्ति प्रदर्शन की वजह से लगा था. इस जाम से पता नहीं कितने लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा होगा. खैर, आप चिंता न करें, मैं देखती हूं,’’ डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना ने कहा.

सीमा को स्ट्रैचर पर लिटा कर औपरेशन थिएटर में ले जाया गया. कुछ देर बाद डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना बाहर निकलीं और दुख भरी आवाज में बोलीं, ‘‘आप लोगों के आने में देर हो गई. अम्मांजी, आप की बहू सीमा और पोता बच नहीं सके.’’

अम्मांजी के मुंह से दुखभरी चीख निकली. अजयकांत फूटफूट कर रोने लगा. तकरीबन 3 बजे अजयकांत के मोबाइल की घंटी बजी. उस ने मोबाइल में नाम देखा, विजयकांत. अजयकांत के मुंह से आवाज नहीं निकली.

‘‘हैलो अजय, अभीअभी कार्यक्रम खत्म हुआ है. मैं ने मोबाइल चैक किया, तो सीमा और तुम्हारी बहुत मिस काल थीं. मुझे पता नहीं लग पाया. कोई बहुत जरूरी बात थी क्या?’’ उधर से विजयकांत की आवाज सुनाई दी. अजयकांत कुछ कह नहीं पाया और रोने लगा.

‘‘अजय… क्या हुआ?’’ उधर से विजयकांत की आवाज में चिंता का भाव था. अम्मांजी ने अजय से मोबाइल ले कर दुखी लहजे में कहा, ‘‘विजय, सब बरबाद हो गया. सीमा और मेरा पोता बच नहीं पाए, तुम्हारे शक्ति प्रदर्शन की बलि चढ़ गए.’’

‘‘ओह नहीं… यह क्या कह रही हो अम्मां? मैं अभी पहुंच रहा हूं नर्सिंग होम,’’ विजयकांत बोला. कुछ ही देर बाद 2 कारें नर्सिंग होम के बाहर रुकीं. कार से विधायक राजेश्वर प्रसाद, विजयकांत और 5-6 नेता बाहर निकले.

सभी उस कमरे में पहुंचे, जहां सीमा व नवजात बेटे की लाश थी. विजयकांत को अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि सीमा उसे हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुकी है. उस ने सीमा का हाथ अपने हाथ में लिया और सीमा को देखता रहा.

जिस शक्ति प्रदर्शन को वह एक यादगार मान कर खुश हो रहा था, वहीं उस के लिए दुखद यादगार बन गया. उस की अपनी सरकार है. हजारों लोग उस के साथ हैं. उस के पास इतनी ताकत होते हुए भी वह आज बुरी तरह टूट चुका था. आज के प्रदर्शन ने न जाने कितने लोगों को नुकसान पहुंचाया होगा? हो सकता है कि किसी दूसरे के साथ भी ऐसी ही दुखद घटना हुई हो.

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