सुबह के 9 बजे होंगे. भैंसों का चारापानी कर के, दूध दुह कर और उसे ग्राहकों को बांट कर मदन खाट पर जा कर लेट गया. पल दो पल में ही धूप उस के बदन पर लिपट कर अंगअंग सहला कर गरमाहट बढ़ाने लगी.

30 साल के मदन का पूरा बदन धूप की शरारतों से इठला ही रहा था, तभी अचानक किसी ने बाहर खटखट की आवाज की.

‘अब कौन आया होगा?’ यह सवाल खुद से करता हुआ वह ?झट से करवट बदल कर पलटा और खाट पर से उठ कर जमीन खड़ा हुआ. जल्दी से वह बाहर गया, तो देखते ही पहचान गया.

‘‘अरे, चमेली तुम...?’’

‘‘हां, मैं...’’ उस जवान लड़की ने अपने पास खड़े 4-5 साल के बच्चे की कलाई को ?ाक?ार कर कहा.

चमेली मदन की दूर की रिश्तेदार थी. उस की शादी जिला गाजियाबाद में हुई थी. इस समय कुछ तो ऐसा हुआ था कि सारी दुनिया छोड़ कर वह बस मदन के दरवाजे पर खड़ी थी.

मदन ने चमेली को भीतर बुला लिया. कुछ ही देर बाद मदन को बाहर से कुछ आवाजें सुनाई देने लगीं. लोगों में खुसुरफुसुर होने लगी थी. पर, मदन अपनी मेहनत पर जीने वाला स्वाभिमानी नौजवान किसी बात से नहीं डरता था और न ही किसी की परवाह करता था.

इस से पहले मदन कुछ कहता, चमेली ?ाक कर उस के पैरों से लिपट गई.

चमेली को इस तरह लिपटते देख मदन को अभीअभी सेंकी हुई धूप की गरमाहट दोबारा महसूस होने लगी और वह रोमांचित सा हो रहा था, पर उधर इस सब से बेखबर चमेली उस से सुबकसुबक कर बोली, ‘‘मेरा पति हर बात पर शक करता था. मैं वहां से भाग आई. अब मैं वापस लौट कर नहीं जाना चाहती. आप मु?ो अपनी शरण में ले लो.’’

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