पुलिस की भूलभुलैया : भाग 3

हाजी गफूर ने उस का गर्मजोशी से स्वागत किया और उसे लाइब्रेरी में ले आए. वहां उन्होंने अपने कातिल को सिगार भी पेश किया. उन दोनों के बीच चीनी मिल के स्टौक के मामले में बातचीत होती रही. कातिल ने हाजी गफूर को कोई पेशकश की, जिसे उन्होंने क्षमा याचना के साथ नकार दिया.

ऐसी स्थिति में कातिल उठ खड़ा हुआ. वहां उस ने एक मुगरी देखी थी. वह मुगरी उठा कर हाजी साहब के पीछे जा पहुंचा और उन के सिर पर जोर से प्रहार किया. ऐसी स्थिति में उन का सिर फट गया और खून बहने लगा.

लगातार खून बहने से उन की मौत हो गई. उस के बाद कातिल ने संदूकची में से सारी रकम निकाल ली. ऐसा उस ने मात्र गलतफहमी पैदा करने के लिए किया, अन्यथा उसे करेंसी नोटों की कोई जरूरत नहीं थी.’’ कह कर इंसपेक्टर अलीम राहत अली की ओर देखने लगा. राहत अली की निगाहें उसी पर जमी हुई थीं.

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कुछ देर चुप रहने के बाद इंसपेक्टर अलीम बोला, ‘‘अब समस्या यह है राहत साहब कि मो. रऊफ यानी हाजी गफूर का भाई सिगार नहीं पीता. हाजी गफूर का सेकेट्री रफीक खान और चीनी मिल का मैनेजर मो. लतीफ कभीकभार ही सिगार पीते हैं. सलीम अहमद पाइप पीता है जबकि कातिल सिगरेट पीने वाला व्यक्ति था.’’

राहत अली ने इंसपेक्टर अलीम की बात का कोई जवाब नहीं दिया. इंसपेक्टर अलीम आगे बोला, ‘‘वस्तुत: सिगार पीने वाला व्यक्ति सिगार के एक सिरे को अपने दांतों से काटता है और फिर सावधानीपूर्वक अपने दांत सिगार के दूसरे सिरे में गड़ा देता है. ऐसी स्थिति में सिगार उस के मुंह से नहीं गिर सकता.

लेकिन सिगरेट पीने वाला व्यक्ति सिगरेट को अपने होठों से दबाता है, दांतों से नहीं. उस रात जो व्यक्ति हाजी गफूर साहब से मिलने के लिए लाइब्रेरी में आया, वो सिगरेट पीने का आदी था, इसलिए उस ने सिगार के सिरे को दांतों से नहीं दबाया था. दूसरी बात यह है कि कातिल बाएं हाथ से काम करने का आदी है.’’

‘‘अच्छा, क्या सलीम अहमद बाएं हाथ से काम करता है?’’ राहत अली ने बेचैनी से पूछा.

‘‘नहीं, सलीम अहमद बाएं हाथ से काम नहीं करता.’’ इंसपेक्टर अलीम ने गंभीरतापूर्वक कहा, ‘‘बल्कि आप बाएं हाथ से काम करते हो. दूसरी बात आप सिगार पीने के आदी भी नहीं हो, क्योंकि आप सिर्फ सिगरेट पीते हो. इसलिए आप यह बात भूल गए थे कि सिगरेट पीने का तरीका अलग है और सिगार पीने का अलग.’’

‘‘आप मुझ पर यह आरोप लगा रहे हैं कि मैं ने हाजी गफूर साहब का कत्ल किया है.’’ राहत अली गुस्से से कांपता हुआ खड़ा हो गया.

‘‘मैं माफी चाहता हूं राहत साहब.’’ इंसपेक्टर अलीम ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं ने तो सारी बातें और घटनाएं बताई हैं और यह सब आप की ही ओर इशारा कर रही हैं.’’

राहत अली तेज स्वर में बोला, ‘‘सवाल यह है कि मैं हाजी गफूर साहब का कत्ल क्यों करूंगा. इस कत्ल के पीछे कोई उद्देश्य तो होना चाहिए.’’

‘‘तुम्हारे पास चीनी मिल के पैंतालिस प्रतिशत शेयर हैं.’’ इंसपेक्टर अलीम ने शांत स्वर में कहा, ‘‘तुम कई साल से हाजी गफूर पर दबाव डाल रहे थे कि वह तुम्हें 50 फीसदी से ज्यादा शेयर दे दें, ताकि तुम चीनी मिल के मामले में आदेश देने की पोजीशन में आ जाओ. हाजी गफूर का भाई मो. रऊफ वैसे भी मौजमस्ती में पड़ा रहने वाला आदमी है. बाद में तुम उसे बरगला कर उस का हिस्सा भी खरीद लेते.’’ यह कह कर इंसपेक्टर अलीम ने राहत अली की ओर घूर कर देखा, राहत अली ने अपना मुंह दूसरी तरफ कर लिया.

‘‘सच का सामना करो राहत अली.’’ इंसपेक्टर अलीम बोला, ‘‘इस तरह मुंह मोड़ने से कुछ नहीं होगा. जब तुम हाजी गफूर से मिलने गए तो खासतौर पर दस्ताने पहन कर गए थे.’’

‘‘मैं ने पर्स छीने जाने की सूचना दे कर कोई अपराध नहीं किया.’’ राहत अली गुस्से से बोला.

‘‘हां तुम तंबाकू वाले स्टाल पर गए जरूर थे, ताकि लोगों को यह दिखा सको कि हाजी गफूर के कत्ल के समय तुम तंबाकू वाले के स्टाल पर थे. दूसरे तुम मेरे पास भी इसलिए आए थे, ताकि मेरा ध्यान तुम्हारी तरफ न जा सके. मेरे पास आने की एक वजह यह भी थी कि तुम हाजी गफूर के कत्ल के सिलसिले में पुलिस की कारर्रवाई से पूरी तरह बाखबर रहना चाहते थे.’’

राहत अली कुछ देर तक इंसपेक्टर अलीम को देखता रहा, फिर उस पर खांसी का दौरा पड़ गया. खांसतेखांसते राहत अली ने अपना सीना थाम लिया, तभी पल भर में उस के हाथ में पिस्तौल आ गया और उस ने इंसपेक्टर अलीम की ओर तान दिया.

फिर कुटिल शब्दों में बोला, ‘‘तुम बहुत बुद्धिमान हो इंसपेक्टर, मगर तुम्हारी यह बुद्धिमानी तुम्हें  मरने से नहीं बचा सकेगी. अपनी जगह से हिलने की कोशिश मत करना.’’

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लेकिन इंसपेक्टर अलीम ने एक अजीब हरकत की. मेज पर जिस जगह उस ने अपना एक हाथ रखा हुआ था, वहीं ऐश ट्रे भी रखी थी. उस ने पलक झपकते ही वह ऐश ट्रे उठाई और राहत अली की तरफ उछाल दी. राहत अली को हिलने का भी मौका नहीं मिल सका.

ऐश ट्रे की राख ने उसे अचानक अंधा सा कर दिया था. राहत अली ने अंधाधुंध दो फायर किए. तभी कोई वजनी चीज उस के सिर पर लगी और उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया.

जब राहत अली की आंख खुली तो उस ने अपने आप को हवालात में पाया. कुछ ही देर बाद इंसपेक्टर अलीम राहत अली के सामने खड़ा था.

‘‘राहत अली! तुम इतने खतरनाक होगे, यह मैं सोच भी नहीं सकता था.’’ इंसपेक्टर अलीम ने कहा, ‘‘तुम ने अपने हिसाब से बहुत अच्छी योजना बनाई थी, लेकिन कोई भी अपराधी कानून की नजर से ज्यादा देर तक नहीं बच पाता.’’

राहत अली ने इंसपेक्टर अलीम की बात का कोई जवाब नहीं दिया. इंसपेक्टर अलीम ने आगे कहा, ‘‘तुम बराबर मेरे पास आते रहे और मुझे धोखा देते रहे. तुम ने दो बार मुझ पर फायर किए. एक बार कब्रिस्तान में और दूसरी बार मेरे ही दफ्तर में… तुम बाहर से गोली चला कर अपने स्कूटर से भाग गए.’’

‘‘हां, यह सब ठीक है.’’ राहत अली उदास हो कर बोला, ‘‘लेकिन इस में उस सिगार का बड़ा रोल है. अगर वह तुम्हारे हाथ न आता, तो तुम मुझे कभी नहीं पकड़ सकते थे. मैं ने इस योजना में बड़ी सावधानी बरती थी. कहीं कोई झोल नहीं छोड़ा था. लेकिन उस सिगार ने मुझे जेल तक पहुंचा दिया.’’

‘‘मगर एक बात तुम्हें माननी पड़ेगी.’’ इंसपेक्टर अलीम ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘सिगार के बारे में मुझे इतना कुछ नहीं मालूम था, जितना मैं ने तुम्हें बताया. समझ लो, मैं ने अंधेरे में तीर चलाया था, जो इत्तेफाक से निशाने पर लग गया.’’

इंसपेक्टर अलीम की बात सुन कर राहत अली उसे देखता रह गया.

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पुलिस की भूलभुलैया : भाग 2

इंसपेक्टर अलीम ने जेब से रुमाल निकाला और उस की मदद से मुगरी को पकड़ कर उठाया. वह बड़े ध्यानपूर्वक उस का निरीक्षण करता रहा. फिर उस ने उसे वापस टोकरी में डाल दिया और मेज की तरफ बढ़ा. तभी थाने से उस के स्टाफ के अन्य लोग भी आ गए और अपने काम में जुट गए.

उसी समय उस की नजर ऐशट्रे में पड़े एक अधजले सिगार पर पड़ी. उस ने तत्काल उसे उठा लिया और राहत अली से पूछा, ‘‘क्या आप सिगार पीते हैं?’’ उस का सवाल अचानक था.

‘‘कभीकभार…!’’ राहत अली ने जवाब दिया.

वह 3 तलों वाला हवाना का सिगार था जो गहरे रंग का था. सिगार के नाम की पट्टी हटा दी गई थी, जबकि मेज की दराज में मौजूद सभी सिगारों पर वह पट्टी लगी थी और गोल्डन सील भी थी. हर सिगार पर साइड में एक निर्धारित ट्रेड मार्क था. जिस में ग्रेट लीगेशन लिखा था. यह एक महंगा सिगार था.

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कुछ देर बाद इंसपेक्टर अलीम ने राहत अली को जाने की इजाजत दे दी. उसी रात जब इंसपेक्टर अलीम थाने के अपने बाहरी कमरे में अकेला बैठा ताश खेल रहा था तो कोई स्कूटर सवार वहां आया और उस पर गोली चला कर भाग गया लेकिन गोली इंसपेक्टर के कान को छूती हुई गुजर गई. वह बालबाल बच गया था.

उस घटना के दस दिन बाद शाम को 6 बजे इंसपेक्टर अलीम ने राहत अली को फोन कर के थाने आने के लिए कहा. उस ने बताया कि छीने जाने वाले पर्स के बारे में कुछ मालूमात हासिल हुई है.

राहत अली हाजी गफूर की रायल चीनी मिल में पैंतालिस प्रतिशत का शेयर होल्डर था. उसे अखबारों और न्यूज चैनलों से यह ज्ञात हो गया था कि हाजी गफूर की हत्या की तफतीश शुरू हो गई है. किसी गुमनाम कातिल ने उन के सिर पर उसी मुगरी से जबरदस्त चोट मारी थी जिस से हाजी गफूर की तत्काल मृत्यु हो गई थी.

राहत अली जब थाना पहुंच कर इंसपेक्टर अलीम से मिला तो वह किसी केस की फाइल देख रहा था. राहत अली को देखते ही इंसपेक्टर ने अपने हवलदार को बुला कर कहा, ‘‘गब्दू को ले आओ.’’

कुछ देर बाद एक लंबाचौड़ा, बुझे चेहरे वाला आदमी कमरे के अंदर दाखिल हुआ. इंसपेक्टर अलीम ने उसे देखते ही राहत अली से पूछा, ‘‘क्या यही वह आदमी है जिस ने आप का पर्स छीना था.’’

राहत अली ने गौर से उस आदमी को देखा और ‘न’ में सिर हिला दिया.

‘‘और यह पर्स…’’ इंसपेक्टर अलीम ने एक पुराना पर्स राहत अली के सामने रखते हुए कहा, ‘‘यह आप का है?’’

‘‘नहीं…’’ इस बार भी राहत अली ने इनकार कर दिया.

‘‘ठीक है.’’ इंसपेक्टर अलीम ने हवलदार को इशारा किया और वह उस आदमी को ले कर वापस चला गया.

‘‘हाजी गफूर के केस में मैं ने अपनी तफतीश का दायरा तंग कर दिया है.’’ इंसपेक्टर अलीम ने कहा, ‘‘अब मेरी नजर में सिर्फ 6 लोग शक के दायरे में हैं. इन में से दो अभी लाए जाने वाले हैं.’’

‘‘ठीक है.’’ राहत अली ने सहजतापूर्वक कहा.

‘‘मेरी लिस्ट में जो 6 लोग हैं, उन में हाजी गफूर का भाई मो. रऊफ और हाजी गफूर का सेकेट्री रफीक खान सब से ऊपर हैं. उन दोनों के अलावा मोहतरमा हिना, एक व्यापारी सलीम अहमद, चीनी मिल का मैनेजर मो. लतीफ और एक अन्य व्यक्ति मेरी लिस्ट में हैं.’’ इंसपेक्टर अलीम ने आगे बताया, ‘‘हाजी गफूर और मो. रऊफ में प्राय: लड़ाई होती थी. एक हफ्ते पहले उन दोनों में अच्छाखासा विवाद हुआ था. मो. रऊफ अपने भाई हाजी गफूर पर पूरी तरह आश्रित था.’’

‘‘और रफीक खान पर शक की क्या वजह है?’’ राहत अली ने पूछा.

‘‘वह यह जानता है कि गफूर साहब उस संदूकची में विदेशों के करेंसी नोट रखते थे…’’ अभी इंसपेक्टर अलीम की बात पूरी नहीं हुई थी कि एक सिपाही कमरे में आया और उस ने इंसपेक्टर अलीम के कान में कुछ कहा तो वह झटके से उठते हुए बोला, ‘‘राहत साहब! अभी मैं ने आप को बताया था कि मुझे एक व्यापारी सलीम अहमद पर भी शक है. सलीम अभी कब्रिस्तान में नजर आया था. मुझे कुछ गड़बड़ लगती है. मैं वहां जा रहा हूं. क्या आप मेरे साथ चलना पसंद करेंगे.’’

5 मिनट बाद इंसपेक्टर अलीम और राहत अली कब्रिस्तान पहुंच गए. दोनों लोग कब्रों के बीच से होते हुए पेड़ों के साए में आगे बढ़े. वहां अंधेरा छाया था. इंसपेक्टर अलीम ने कहा, ‘‘राहत साहब, आप उधर से आगे बढ़ें और मैं इधर से जा रहा हूं. लेकिन जरा सावधान रहना.’’

राहत अली तुरंत आगे बढ़ गया. लेकिन अंधेरे में सौ गज तक आगे बढ़ने के बाद वह वापस हो गया. इस प्रकार वह एक दायरे में आ गया था. एकाएक कब्रिस्तान में फायर की आवाज सुनाई दी. राहत अली ने वहां से फौरन दौड़ लगा दी और किसी से जा टकराया. वह इंसपेक्टर अलीम था जिस पर किसी ने फायर किया था. इंसपेक्टर अलीम के बाएं हाथ में गोली लगी थी जिस में से खून बह रहा था.

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राहत अली ने पूछा, ‘‘ये क्या हुआ इंसपेक्टर साहब?’’

‘‘कुछ नहीं, वह गोली मार कर भाग गया. लेकिन मैं ठीक हूं.’’ इंसपेक्टर अलीम ने अपना रूमाल राहत अली को देते हुए कहा, ‘‘लो, इसे जख्म पर बांध दो.’’ थोड़ी देर बाद वे दोनों कब्रिस्तान से बाहर निकले और शीघ्र ही थाने पहुंच गए.

दूसरे दिन इंसपेक्टर अलीम के बुलावे पर राहत अली पुन: थाने पहुंच गया. इंस्पेक्टर अलीम ने उस से कहा, ‘‘कल मैं ने आप को कुछ लोगों के बारे में बताया था. अब बारी आती है मोहतरमा हिना की. वह एक सुंदर युवती है और कुछ ही समय में गफूर साहब के काफी निकट आ गई थी.’’

दरअसल, गफूर साहब ने शुरू में कुछ गलतियां की थीं, जो मोहतरमा हिना को मालूम हो गई थीं. वह उन्हीं को ले कर हाजी गफूर को ब्लैकमेल कर रही थी. लेकिन वह काफी सतर्क रहती थी.’’ यह कह कर इंसपेक्टर अलीम कुछ देर के लिए रुका. फिर आगे बोला, ‘‘गफूर साहब के सिर पर लकड़ी की मुगरी से प्रहार कर के उन्हें मारा गया है और यह काम किसी स्त्री का नहीं हो सकता. क्योंकि यह काम शक्तिशाली आदमी ही कर सकता है.’’

‘‘अच्छा…तो फिर?’’ राहत अली बोला.

‘‘मुझे चीनी मिल के मैनेजर मो. लतीफ पर शक है. वह घोड़ों पर शर्तें लगाने की वजह से तबाह हो चुका है. संभव है कि वह गफूर साहब के पास गया हो और कुछ पैसे मांगे हों, मगर इनकार करने पर उस ने…’’ इंसपेक्टर अलीम की बात सुन कर राहत अली खामोशी से बैठ गया.

‘‘अब रह जाता है सलीम अहमद.’’ इंसपेक्टर अलीम ने आगे कहा, ‘‘मेरा खयाल है कि कब्रिस्तान में उसी ने मुझ पर फायर किया था.’’

‘‘तो क्या सलीम अहमद ने ही हाजी गफूर को कत्ल किया है?’’ राहत अली ने पूछा.

‘‘नहीं, शायद मैं ऐसा ही सोचता, मगर सिगार की वजह से मुझे अपना खयाल बदलना पड़ा.’’

‘‘सिगार? क्या मतलब है आप का?’’ राहत अली ने सहजतापूर्वक कहा.

‘‘हां… ग्रेट लीगेशन का वही सिगार, जो मुझे गफूर साहब की लाइब्रेरी में मिला था.’’ इंसपेक्टर अलीम ने जवाब दिया, ‘‘वह सिगार जिस आदमी ने पिया, वही हाजी गफूर का कातिल है.’’

‘‘तब तो फौरन उस सिगार पर से उंगलियों के निशान आप को चैक कराने चाहिए.’’ राहत अली ने गंभीरतापूर्वक कहा.

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‘‘यही तो समस्या है कि सिगार पर किसी की उंगलियों के निशान नहीं मिले, क्योंकि कातिल ने दस्ताने पहन रखे थे.’’ थोड़ी देर खामोश रहने के बाद इंसपेक्टर अलीम ने आगे कहा, ‘‘6 बजे के करीब हाजी गफूर साहब लाइब्रेरी से निकल कर डाइनिंग रूम में जाने वाले थे, तभी बाग के दरवाजे पर उन्हें कातिल मिला.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

पुलिस की भूलभुलैया : भाग 1

जब राहत अली थाने में दाखिल हुआ तो उसे इंसपेक्टर अलीम अपनी सीट पर अकेला बैठा दिखाई दिया. इंसपेक्टर अलीम ने राहत अली की ओर देखा तो वह बोला, ‘‘इंसपेक्टर साहब, मेरा नाम राहत अली है. मैं अपने पर्स के छीने जाने की रिपोर्ट दर्ज कराने आया हूं.’’

‘‘कब और किसने छीना है आप का पर्स?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘मैं आप को पूरी बात बताता हूं,’’ राहत अली बोला, ‘‘लगभग आधे घंटे पहले मैं अलआजम स्क्वायर की मेन मार्केट की एक दुकान पर तंबाकू लेने के लिए रुका था. उस समय वहां अन्य लोग भी खड़े थे, लेकिन मैं उस गुंडे को नहीं देख सका, जो मेरे पीछे आ कर खड़ा हो गया था.

जब मैं अपना पर्स खोलने वाला था, तभी उस ने झपट्टा मार कर मेरा पर्स छीन लिया और दौड़ कर पल भर में भीड़ में गायब हो गया. मेरे पर्स में 20 हजार, 4 सौ रुपए थे.’’

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राहत अली की बात सुन कर इंसपेक्टर ने अपनी मेज की दराज से एक कागज निकाला और पेन उठा कर एक साथ कई सवाल कर डाले, ‘‘उस गुंडे का हुलिया? उस की उम्र? आप के पर्स में रुपयों के अलावा और क्या था? क्या इस राहजनी का कोई चश्मदीद गवाह है?’’

राहत अली के जवाब इंसपेक्टर अलीम ने लिखने शुरू कर दिए. अचानक उस की मेज पर रखा फोन बजने लगा. उस ने रिसीवर उठा कर कान में लगा लिया. कुछ देर तक वह दूसरी तरफ से बोलने वाले व्यक्ति की आवाज सुनता रहा, फिर बोला, ‘‘ठीक है, मैं आता हूं.’’

फोन बंद कर के इंसपेक्टर अलीम ने राहत अली की ओर देखा, तो उस ने कहा, ‘‘मेरा संबंध ग्रीन बिल्डिंग से है. गफूर साहब के मार्फत कई बार आप का नाम सुन चुका हूं. रायल चीनी मिल में गफूर साहब के साथ शेयर होल्डर हूं.’’

‘‘अच्छा! गफूर साहब तो चीनी के बहुत बड़े व्यापारी हैं.’’ इंसपेक्टर अलीम ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘आप उन से आखिरी बार कब मिले थे?’’

‘‘बुध की शाम को…क्यों? खैरियत तो है?’’ राहत अली ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘कुछ गड़बड़ लगती है.’’ इंसपेक्टर अलीम ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘आप जरा मेरे साथ ग्रीन बिल्डिंग तक चलें.’’

हाजी गफूर रायल चीनी निर्यात कंपनी का मालिक था. उस का औफिस ग्रीन बिंल्डिग में था. उस बिल्डिंग में हाजी गफूर ने अन्य कामों के औफिस भी स्थापित कर रखे थे तथा अनेक तल किराए पर दे रखे थे.

ग्रीन बिल्डिंग के निकट ही उस का लाल टाइलों वाला 4 मंजिला मकान था. इंस्पेक्टर अलीम राहत अली को पुलिस जीप में बिठा कर हाजी गफूर के घर की ओर चल पड़ा.

आधे घंटे बाद इंसपेक्टर अलीम ने हाजी गफूर के घर के ड्राइव वे में अपनी जीप रोक दी. वे दोनों जीप से उतर कर घर में दाखिल हुए जहां हाजी गफूर का भाई मो. रऊफ इंसपेक्टर अलीम का इंतजार कर रहा था. रऊफ की उम्र पचास साल से ज्यादा थी.

उस के बोलने का अंदाज अलग था. वह बोलतेबोलते गहरी सांसें लेने लगता था. वह उन दोनों को सीधा लाइब्रेरी में ले गया. इंस्पेक्टर अलीम ने देखा वहां बिछे लाल कालीन पर एक मेज के पीछे चौड़े कंधों वाला एक आदमी पड़ा था, जिस की दाढ़ी सफेद थी. उस के जिस्म पर सफेद शलवारकमीज थी.

सिर के पिछले हिस्से पर एक बड़ा सा घाव था. सिर की हड्डी टूटी हुई थी और वहां से खून निकल कर चेहरे से टपकता हुआ लाल कालीन में समा गया था. हाजी गफूर की आंखें खुली हुई थीं. वह मर चुके थे.

‘‘ये तो हाजी गफूर साहब हैं.’’ राहत अली ने आगे बढ़ कर चौंकते हुए कहा, ‘‘ये… इन्हें किसने… कत्ल… कर दिया है?’’

उसी समय पैंटशर्ट पहने एक आदमी आगे आया. वह एक लंबे कद का सुंदर युवक था. वह धीरे से बोला, ‘‘मेरा नाम रफीक खान है और मैं गफूर साहब का सैकेट्री हूं. मैं ने ही आप को फोन किया था. हम में से किसी ने भी किसी चीज को हाथ नहीं लगाया है.’’

रफीक खान की बात सुन कर इंसपेक्टर अलीम ने सहमति में सिर हिलाया और आगे बढ़ कर हाजी गफूर की लाश का निरीक्षण करने लगा. उस ने मेज को भी गौर से देखा. फिर वह एक कुर्सी पर बैठ कर रफीक खान से बोला, ‘‘मुझे शुरू से विस्तारपूर्वक बताओ.’’

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‘‘गफूर साहब दिन के 2 बजे अपने किसी मित्र से मिल कर घर लौटे,’’ रफीक खान बताने लगा, ‘‘उन्होंने मुझ से कहा कि वे आज औफिस नहीं जाएंगे और सभी दफ्तरी फाइलें घर पर ही देखेंगे. जब वे काफी थके होते थे तो प्राय: ऐसा ही करते थे. फिर उन्होंने मुझ से तीन लैटर लिखवाए और आगे काम करने से इनकार कर दिया. दरअसल उन्हें 3 लोगों से अलगअलग व्यापार संबंधी बातें करनी थीं. जब मैं आधे घंटे बाद यहां आया तो वे मर चुके थे.’’

इंस्पेक्टर अलीम ने पूछा, ‘‘गफूर साहब किन लोगों से व्यापार संबंधी भेंट करने वाले थे.’’

‘‘मुझे सिर्फ एक मुलाकाती के बारे में मालूम है,’’ रफीक खान ने बताया, ‘‘किसी मोहतरमा हिना को 4 बजे यहां आना था.’’

इंसपेक्टर अलीम ने मुड़ कर हाजी गफूर के भाई मो. रऊफ की तरफ देखा. न जाने क्यों रऊफ के चेहरे पर अपने भाई की मौत का कोई गम नजर नहीं आ रहा था. इंसपेक्टर अलीम ने रऊफ से पूछा, ‘‘क्या हाजी गफूर साहब का कोई दुश्मन था?’’

‘‘वैसे तो कारोबारी दुनिया में सभी के दुश्मन होते हैं, मगर हाजी गफूर साहब का कोई दुश्मन नहीं था.’’ मो. रऊफ ने बताया, ‘‘मेरी और भाई साहब की मुलाकात सिर्फ खाने की मेज पर होती थी. हम दोनों के पास एकदूसरे से मिलने, बातें करने या विभिन्न समस्याओं पर बहस करने की फुरसत नहीं थी.’’

लाइब्रेरी में एक बड़ी अलमारी भी थी, जिस के ऊपर दो गोताखोरों की मूर्तियां रखी थीं. उन दोनों ने बीच में एक संदूकची पकड़ रखी थी. वह कला का एक शानदार नमूना था. इंसपेक्टर अलीम की नजरें उस पर जम कर रह गई थीं. थोड़ी देर बाद इंसपेक्टर अलीम ने पुन: बड़ी बारीकी से पूरी लाइब्रेरी का निरीक्षण किया और लाश की जेबों की तलाशी ली.

एक जेब में से चाबियों का एक गुच्छा मिला. इंसपेक्टर ने सब से छोटी चाबी का चुनाव कर के उसे मूर्तियों वाली संदूकची की सूराख में दाखिल किया. जब उस ने चाबी घुमाई तो संदूकची का ताला खुलने की आवाज आई. संदूकची के अंदर साफसुथरे कागजों और दस्तावेजों को बड़े सलीके से रखा गया था.

इंसपेक्टर अलीम ने रफीक खान से पूछा, ‘‘ये क्या है मिस्टर सेकेट्री?’’

‘‘हाजी साहब हर देश के करेंसी नोट भी इस में रखते थे. एक हजार से पांच हजार डौलर मूल्य के. लेकिन अब वे नोट दिखाई नहीं दे रहे हैं. सिर्फ कागजात हैं.’’ रफीक खान ने संदूकची को गौर से देखते हुए कहा.

फिर इंसपेक्टर अलीम ने दोबारा पूरे 25 मिनट तक उस कमरे की एक कोने से दूसरे कोने तक तलाशी ली. उस ने देखा कि बिजली का पंखा अभी तक चल रहा था. उस ने किताबों की शेल्फ भी देखी.

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इंसपेक्टर अलीम ने कई किताबें निकालीं और वापस उसी जगह रख दीं. उस ने लाइब्रेरी के कोने में रखा ग्लोब भी घुमाया. वहां एक सुंदर रद्दी की टोकरी भी पड़ी थी, जो बहुत बड़ी थी. उस टोकरी में लकड़ी का एक डंडा पड़ा हुआ था जिस पर मुगरी की तरह का सिर भी था. ऐसे डंडे पोलो खेलने वाले लोग बैट के रूप में प्रयोग करते हैं.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

पुलिस की भूलभुलैया

पुलिस का बदरंग : भाग 3

अपनी बेटी को खो चुके सुरेश के परिवार वाले उस की जमानत के लिए तारीखों पर पैसे खर्च कर रहे थे. 2 महीने पहले सुरेश के एक मिलने वाले ने उस की बीवी चंद्रवती को बताया कि उस ने बिलकुल उस की बेटी की तरह एक लड़की को देखा है. लेकिन किसी ने भी उस की बात पर गहराई से नहीं सोचा. जबकि चंद्रवती अपनी बेटी जैसी युवती दिखने वाली बात सुन कर परेशान हो उठी.

चंद्रवती को पूरा विश्वास था कि उस की बेटी जिंदा है और एक न एक दिन घर वापस जरूर आएगी. यही सोच कर चंद्रवती ने अपनी बेटी के जिंदा होने की बात कहते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर उसे बरामद कराने की मांग की थी. लेकिन लौकडाउन के चलते उस के प्रार्थना पर कोई सुनवाई न हो सकी.

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कमलेश को जीवित देख कर पुलिस रह गई भौचक

मामला खुलने पर जब पुलिस को पता चला कि जिस कमलेश की हत्या के आरोप में वह उस के पिता और भाई को 7 महीने पहले जेल भेज चुकी है, वह जिंदा मिल गई है तो पुलिस के होश फाख्ता हो गए. इस मामले को गंभीरता से लेते हुए एसपी डा. विपिन ताड़ा, सीओ धनौरा और इंसपेक्टर पंकज वर्मा ने किशोरी व राकेश से विस्तृत जानकारी हासिल की.

इस मामले में पुलिस का फरजीवाड़ा उजागर होते ही लोगों का गुस्सा भड़क उठा. देखते ही देखते थाने पर ग्रामीणों की भीड़ जमा हो गई. उस के बाद भीड़ ने खूब हंगामा किया. थाने पर लोगों की भीड़ जुटने की सूचना पाते ही शासनप्रशासन हिल गया.

सूचना पाते ही एसपी डा. विपिन ताड़ा थाने पहुंचे और वहां पर इकट्ठा भीड़ को भरोसा दिया कि इस मामले में फिर से निष्पक्ष जांच कर के दोषी पाए जाने वाले पुलिसकर्मियों को उचित दंड दिया जाएगा. इस के तुरंत बाद उन्होंने थानाप्रभारी अशोक कुमार शर्मा को निलंबित कर दिया. पुलिस ने कमलेश और राकेश से कड़ी पूछताछ की. पुलिस पूछताछ में राकेश और उस की प्रेमिका कमलेश के द्वारा जो जानकारी मिली वह इस प्रकार थी.

मलकपुर गांव से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित था राकेश का गांव पौरारा. राकेश सैनी शादियों में खाना बनाने का काम करता था. उसी काम के सिलसिले में उसे आसपास के गांवों में जाना पड़ता था.

सुरेश ने अपनी बेटी राधा और बेटे राहुल की शादी में खाना बनवाने के लिए राकेश को ही बुलाया था. उसी दौरान राकेश को खाना बनाने के लिए किसी सामान की जरूरत होती तो घर के सदस्यों के व्यस्त होने की वजह से कमलेश ही सामान ला कर देती थी. इसी के चलते कमलेश उस के दिल को भा गई थी. उस की नजर हर वक्त उसी की राह ताकती रहती थी.

हालांकि कमलेश नाबालिग थी. लेकिन उसे दूसरों की नजरें पढ़ने का भी ज्ञान था. वह समझ गई कि राकेश उस से क्या चाहता है. धीरेधीरे दोनों के दिलों में एकदूसरे के प्रति प्यार अंकुरित हुआ. राकेश ने कमलेश को अपने दिल की रानी बनाने का निर्णय ले लिया.

कमलेश ने राकेश का मोबाइल नंबर ले लिया और उस के जाने के बाद जब कभी उस की याद सताती तो वह परिवार वालों से नजर बचा कर उस से बात करने लगी थी. राकेश भी उस के गांव आ कर कमलेख से खेतों पर मिलने लगा.

राकेश के साथ हो गई फरार

इस प्रेम कहानी के चलते दोनों को फिर से रूबरू होने का मौका मिल जाता. राकेश और कमलेश के बीच काफी समय से प्रेम प्रसंग चला आ रहा था, लेकिन उस के परिवार वालों को इस की भनक तक नहीं थी. इसी प्रेम प्रसंग के चलते ही दोनों ने एक साथ जीनेमरने की कसम ली और जिंदगी के सफर पर आगे बढ़ने के लिए घर से भागने का फैसला भी कर लिया.

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6 फरवरी, 2019 को वादे के मुताबिक दोनों अपनेअपने घरों से निकले. राकेश को कहीं भी जाने से रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. कमलेश ने उस दिन घर वालों से खेतों पर जाने की बात कही और निकल पड़ी गंगा किनारे की ओर. राकेश पहले से ही गंगा पुल पर खड़ा मिल गया.

राकेश पक्का खिलाड़ी था. उस ने घाटघाट का पानी पी रखा था. कमलेश को साथ ले कर वह सीधा दिल्ली पहुंचा. वहां उस ने दोस्त की मदद से दिल्ली में एक किराए का कमरा लिया और वहीं रह कर काम करने लगा.

कुछ दिन दिल्ली में रहने के बाद दोनों गाजियाबाद में आ कर रहने लगे थे. वहीं पर दोनों ने लव मैरिज कर ली. लव मैरिज कर के दोनों घर वालों की चिंता से मुक्त हो गए. राकेश के साथ शादी करने के बाद कमलेश ऐसी मस्त हुई कि उस ने एक बार भी अपने परिवार वालों की खैरखबर तक जानने की कोशिश नहीं की.

गाजियाबाद में शादी कर के राकेश कमलेश को साथ ले कर मुरादाबाद आ कर रहने लगा था. मुरादाबाद में उस का काम ठीकठाक चलने लगा था. इसी दौरान कमलेश एक बेटे की मां बनी. मुरादाबाद आ कर राकेश की आर्थिक स्थिति ठीकठाक हो गई थी. लेकिन इसी दौरान मार्च में लौकडाउन लग गया, जिस के बाद शहर में काम के लाले पड़ने लगे थे.

ऐसे में राकेश को कमलेश के साथ अपने गांव पौरारा लौट पड़ा. तब से दोनों गांव में रह रहे थे. इसी दौरान राहुल को घर के बाहर कमलेश दिखाई दी. जिस के बाद उस की पोल खुल गई थी.

षडयंत्रकारी आदमपुर पुलिस की झूठी स्क्रिप्ट ने सुरेश और उस के परिवार वालों को जो दर्द दिया, उस की भरपाई कभी नहीं हो सकती. लेकिन सुरेश के परिवार को इस बात की खुशी थी कि उस पर लगने वाला बेटी के कत्ल का कलंक गया था. उन्हें गम भी नहीं था कि उन की बेटी ने घर से भाग कर उन के चेहरे पर कालिख पोती थी.

उन्हें सब से ज्यादा दुख पुलिस की षडयंत्रकारी दरिंदगी का था. पुलिस ने सुरेश सिंह, उस के बेटे रूपकिशोर व रिश्तेदार को असहनीय यातनाएं दे कर मुलजिम बना कर जेल में डाल दिया था. इस केस के खुलते ही इस केस की तफ्तीश कर रहे पंकज वर्मा ने कमलेश के सीआरपीसी की धारा 164 के तहत न्यायालय में बयान दर्ज कराए.

कोर्ट ने कमलेश को मुरादाबाद स्थित बाल कल्याण समिति के पास भेज दिया. समिति के सदस्य मसरूर सिद्दीकी और जहीरुल इसलाम ने कमलेश की काउंसलिंग की.

समिति ने कमलेश के सामने नारी निकेतन या फिर अपने मातापिता के पास जाने के विकल्प रखे. कमलेश ने अपने पति राकेश के साथ जाने की इच्छा जताई. उस की मां चंद्रवती ने उस से अनुरोध किया कि वह उस के साथ घर चले. कोई भी उसे कुछ नहीं कहेगा लेकिन कमलेश अपनी जिद पर अड़ी रही. इसलिए समिति ने उसे 6 महीने के लिए नारी निकेतन भेज दिया ताकि वह सोच कर अपने लिए सही फैसला कर सके.

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दूसरी ओर आदमपुर पुलिस ने बेगुनाही में जेल में बंद उस के पिता सुरेश सिंह, भाई रूपकिशोर और रिश्तेदार देवेंद्र की रिहाई के लिए कोर्ट में प्रार्थनापत्र दे दिया. कानूनी प्रक्रियाओं के बाद तीनों को रिहा कर दिया गया.

पुलिस का बदरंग : भाग 2

जब सुरेश के घर वाले कमलेश की तलाश करतेकरते थक गए तो उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट लिखाई. रिपोर्ट में सुरेश ने अपने एक रिश्तेदार की संलिप्तता का शक जाहिर किया था.

कमलेश के गायब होने से 15 दिन पूर्व कमलेश की चचेरी बहन भी अचानक गायब हो गई थी, जिस के गायब होने में 2 लोगों के नाम सामने आए थे. ये दोनों लोग सुरेश के दूर के रिश्तेदार थे. लेकिन पुलिस ने उन दोनों पर कोई काररवाई नहीं की थी. इसी आधार पर सुरेश को कमलेश के लापता होने में उन्हीं का हाथ होने की शंका थी.

20 फरवरी, 2019 को सुरेश सिंह के बेटे रूपकिशोर की ओर से थाना बछरायूं, सुल्तानपुर निवासी होमराम, हरफूल, खेमवती, जयपाल और सुरेंद्र के खिलाफ कमलेश के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी. एक युवती के अपहरण की नामजद रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस ने त्वरित काररवाई कर के इस मामले में होमराम व हरफूल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.

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इस मामले की विवेचना स्वयं आदमपुर थानाप्रभारी अशोक कुमार शर्मा कर रहे थे. उसी विवेचना के दौरान पुलिस को पता चला कि सुरेश का अपने भाइयों के साथ जुतासे की जमीन को ले कर विवाद चल रहा था. जिस का फैसला होने में भाई का दामाद होमराम और हरफूल व उन के रिश्तेदार फैसला नहीं होने दे रहे थे. इसी रंजिश के चलते सुरेश ने दोनों को अपनी लड़की के अपहरण के आरोप में जेल भिजवा दिया था.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने इस मामले की फिर से तफ्तीश शुरू की. जांच अधिकारी अशोक कुमार ने इस केस को नया मोड़ देते हुए 28 दिसंबर, 2019 को दूसरे पक्ष के लोगों के दबाव में आ कर सुरेश व उस के बेटे रूपकिशोर और उस के एक रिश्तेदार देवेंद्र को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. तीनों से गहनता के साथ पूछताछ की गई.

सुरेश पहले ही अपनी बेटी के गायब होने से परेशान था, पुलिस की उलटी काररवाई देख उस का मनोबल पूरी तरह से टूट गया. पुलिस ने सुरेश और उस के बेटे के साथ उस के एक रिश्तेदार को इतना टौर्चर किया कि सुरेश का मानसिक संतुलन ऐसा गड़बड़ाया कि उस ने स्वयं को बेटी का हत्यारा मान लिया. पुलिस की काररवाई ने सुरेश व उस के घर वालों को ऐसा दर्द दिया कि उन की रातों की नींद ही उड़ गई थी.

पहले से ही अपनी बेटी के खो जाने का गम मन में पाले सुरेश सिंह की बीवी ने अपने पति और बेटे पर बेटी की मौत का कलंक लगने से क्षुब्ध थी और खानापीना त्याग दिया था.

आखिर पुलिस ने बना दिया रस्सी का सांप

पुलिस की बेरहमी के सामने दुखी और कुंठित सुरेश ने आत्मसमर्पण तो कर दिया, लेकिन पुलिस ने उस के कबूलनामे में जो बात पत्रकारों को बताई, वह निराधार थी. पुलिस विवेचना के अनुसार सुरेश ने अपनी बेटी की हत्या का जुर्म कबूलते हुए बताया था कि उस की लड़की गलत संगत में पड़ गई थी, उस के चालचलन से बदनामी हो रही थी.

काफी समझाने की कोशिश की गई, लेकिन उस ने उस की एक नहीं मानी. उसी से तंग आ कर उस ने अपने बेटे रूपकिशोर और रिश्तेदार देवेंद्र के साथ मिल कर कमलेश की गोली मार कर हत्या कर दी. इस के बाद तीनों ने उस की लाश बोरे में भर कर गंगा नदी में फेंक दी थी.

कमलेश को मौत के घाट उतारने के बाद तीनों अपने घर चले आए. उस के बाद उन्होंने इस केस में अपने भाई रोहताश के दामाद होमराम और उस के परिजनों को फंसाने के लिए षडयंत्र रचा. फिर होमराम और उस के घर वालों सहित 5 लोगों के खिलाफ अपनी बेटी के अपहरण का झूठा मुकदमा दर्ज करा दिया था, ताकि उन के जेल चले जाने के बाद विवाद वाली भूमि उन्हें मिल जाए.

पुलिस ने आरोपी पिता सुरेश की निशानदेही पर उसी के घर के संदूक से कमलेश की हत्या में इस्तेमाल तमंचा, कारतूस और जंगल में छिपाए गए कमलेश के कपड़े बरामद कर लिए. इस केस का खुलासा स्वयं अमरोहा एसपी डा. विपिन ताड़ा व एएसपी ने किया था. 29 दिसंबर, 2019 को पुलिस ने सुरेश सिंह व उस के बेटे रूपकिशोर व टेलर देवेंद्र को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था.

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पुलिस ने इस मामले की तहकीकात में लगी पुलिस टीम में शामिल एसएसआई विनोद कुमार त्यागी, एसआई राकेश कुमार, आरिफ मोहम्मद, कांस्टेबल कृष्णवीर सिंह, दीपक कुमार, अनिरुद्ध, महिला कांस्टेबल अपेक्षा तोमर और निधि सिंह की भी इस केस को खोलने में सराहना की थी.

सुरेश सिंह के जेल जाने से पूरे परिवार पर जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. गांव वालों की नजरों में सुरेश और उस का परिवार बेटी का कातिल बन गया था. गांव के लोग उस के परिवार वालों से मिलते हुए भी कतराने लगे थे. लेकिन उस के घर वालों को उम्मीद थी कि जिस तरह का इलजाम सुरेश सिंह पर लगाया गया है वह निराधार  है.

घर वाले जेल में सुरेश से मिलने जाते. उस से हकीकत पूछते तो उस का साफ कहना होता था कि वह इतना पागल नहीं कि अपनी ही बेटी को मौत की नींद सुला सके. सुरेश हर बार यही सफाई देता कि पुलिस ने होमराम और उस के परिवार वालों से मिल कर उसे साजिशन फंसाया है. यह बात जब गांव वालों के सामने आई तो गांव वाले भी उस की जमानत कराने की कोशिश करने लगे.

इसी दौरान घर वालों ने जेल में बंद पिता और बेटे की जमानत के लिए 2 बार आवेदन किया. लेकिन पुलिस के पक्के दावे के कारण दोनों बार आवेदन खारिज हो गया. इस पर घर वालों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण लेते हुए बेटी का शव बरामद नहीं होने को आधार बना कर जमानत पत्र दाखिल किया. लेकिन लौकडाउन के चलते सब कुछ खटाई में पड़ गया.

सुरेश के वकील ने हर तारीख पर तीनों को झूठे मुकदमे में फंसाने की वकालत की, लेकिन पुलिस की ओर से इस मामले को औनर किलिंग का मामला दिखा कर केस को काफी मजबूती से पेश किया गया था, जिस के चलते उन की जमानत में अड़चनें आ रही थीं.

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समय गुजरता गया. सुरेश जेल की सलाखों में पड़ा अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहाता रहा. एक बार उस की जमानत की उम्मीद जागी तो देश में लौकडाउन लग गया. देश की सभी अदालतों के दरवाजे बंद हुए तो सुरेश सिंह की दिक्कतें और भी बढ़ गईं. इस मामले को हुए पूरे 17 महीने गुजर गए.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

पुलिस का बदरंग : भाग 1

चंद्रवती के पति और बेटे को जेल गए लगभग 7 महीने बीत चुके थे. लेकिन उसे अभी भी न्याय मिलने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी. उन दोनों की जमानत होने की सब से बड़ी अड़चन थी देश में लौकडाउन का लगना. इस लौकडाउन के चलते उस के घर की आर्थिक स्थिति चरमरा गई थी.

कोर्ट में कुछ इमरजेंसी केसों की औनलाइन सुनवाई चालू हुई तो चंद्रवती ने अपने वकील से मिल कर पति सुरेश सिंह और बेटे रूपकिशोर की जमानत की अरजी लगवा दी. पति और बेटे को जेल से छुड़ाने के लिए चंद्रवती ने जुतासे की अपनी ढाई बीघा जमीन भी बेच दी. लेकिन उस के बाद भी उस के हाथ खाली के खाली रहे.

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चंद्रवती ने जैसेतैसे 6 अगस्त, 2020 को 5 हजार रुपयों का बंदोबस्त किया और वह पैसे अपने बेटे राहुल को देते हुए वकील साहब के खाते में डालने को कहा, जिस से पति और बेटे की जमानत की प्रक्रिया आगे बढ़ सके. राहुल बाइक ले कर हसनपुर स्थित बैंक चला गया.

उस समय न तो उस के पास बाइक के कागज थे और न ही ज्यादा पैट्रोल. अपना काम पूरा करने के बाद उस ने घर का रुख किया तो रास्ते में एक जगह पुलिस वाहनों की चैकिंग करती मिली. चैकिंग के डर से राहुल ने अपना रास्ता बदला. वह गांव रहरा से पौरारा गांव की ओर चल पड़ा. लेकिन परेशानी ने उस का वहां भी पीछा नहीं छोड़ा.

पौरारा गांव पहुंचते ही उस की बाइक का पैट्रोल खत्म हो गया. बाइक साइड में लगा कर राहुल सोचने लगा कि अब क्या करे. उसी दौरान उस की नजर सामने के घर से निकलती एक युवती पर पड़ी तो उस का माथा झनझना उठा. पलभर के लिए उसे लगा कि कहीं सपना तो नहीं देख रहा. एकबारगी आंखों पर यकीन नहीं हुआ तो उस ने आंखें मल कर फिर देखा. लेकिन उस ने जो देखा था, उस पर वह उस का मन विश्वास करने को तैयार नहीं था.

उस के दिमाग से बाइक का पैट्रोल खत्म होने की बात पूरी तरह निकल गई थी. उस ने घर पर फोन मिला कर मां को वह बात बताई तो चंद्रवती ने राहुल को समझाया, ‘‘बेटा, पागल हो गया है क्या. जिस की हत्या के आरोप में तेरा बाप और भाई जेल काट रहे हैं, तू उस के जिंदा होने की बात कह रहा है.’’

राहुल किसी भी कीमत पर अपनी आंखों देखी बात झुठलाने को तैयार नहीं था. फिर भी उस ने जैसेतैसे पौरारा गांव में किसी से पैट्रोल लिया और घर लौट आया. जब वह घर पहुंचा, तो उस के घर वाले उसी बात की चर्चा कर रहे थे.

राहुल ने घर वालों को अपनी बहन कमलेश, जो मर चुकी थी, के जिंदा होने की बात बताई तो घर वालों को सहजता से यकीन नहीं हुआ.

उसी शाम राहुल ने यह बात घर के सभी सदस्यों और गांव वालों के सामने रखी. राहुल की बात की सच्चाई जानने के लिए गांव वालों ने अगली सुबह पौरारा गांव जाने की योजना बना ली.

7 अगस्त, 2020 को राहुल गांव वालों के साथ गांव पौरारा जा पहुंचा. जिस घर में राहुल ने युवती को देखा था, उस घर में पहुंच कर सब ने जो देखा, उसे देख सब की आंखें फटी रह गईं. घर के आंगन में कमलेश अपने नवजात शिशु को खिला रही थी. उस के पास ही एक चारपाई और पड़ी थी, जिस पर एक युवक बैठा उन दोनों को देख रहा था.

घर में अचानक आए दरजनों लोगों को देख कर दोनों सहम गए. पलभर को उन की समझ में कुछ नहीं आया. लेकिन जैसे ही कमलेश की नजर मां और भाई पर पड़ी तो उसे सब कुछ समझ आ गया.

बेटी की हकीकत जानने के बाद मांबेटा दोनों आदमपुर थाने पहुंच गए. चंद्रवती ने पुलिस को बताया कि जिस बेटी की हत्या के आरोप में उस का पति और बेटा जेल की सजा काट रहे हैं, वह जिंदा है. लेकिन पुलिस ने उन की बात को गंभीरता से नहीं लिया.

इस के बाद चंद्रवती ने सीओ सत्येंद्र सिंह को इस बात से अवगत कराया, जिन के आदेश के तुरंत बाद थाना पुलिस हरकत में आई. आननफानन में पुलिस गांव पौरारा पहुंच गई.

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जिस वक्त पुलिस राहुल के बताए घर पर पहुंची, उस वक्त कमलेश और उस का प्रेमी घर पर मौजूद थे. कमलेश के जिंदा होने की खबर क्षेत्र में फैल गई थी.

लेकिन कमलेश को देख कर पुलिस को जैसे सांप सूंघ गया था. कमलेश के जिंदा होने की खबर पा कर मलकपुर के सैकड़ों ग्रामीण पहले ही पौरारा पहुंच गए थे. कमलेश को ले कर काफी हंगामा हुआ.

कमलेश की हकीकत आई सामने

अपने घर पर हंगामा होते देख कमलेश का प्रेमी राकेश अपने मोबाइल से लोगों की रिकौर्डिंग करने लगा तो उत्तेजित भीड़ ने उस का मोबाइल छीन लिया. उस के बाद कमलेश की मां ने उसे खरीखोटी सुनानी शुरू की तो कमलेश अपने पति राकेश के बचाव में सामने आ खड़ी हुई.

उस का साफ कहना था कि राकेश उस का पति है. उस ने उस के साथ प्रेम विवाह किया है. अगर किसी ने भी उस के ऊपर हाथ उठाने की कोशिश की तो उस का अंजाम अच्छा नहीं होगा.

राकेश के घर पर भीड़ को बेकाबू होते देख पुलिस दोनों को अपने साथ थाने ले आई. जहां पर पुलिस ने दोनों से विस्तार से पूछताछ की. पुलिस पूछताछ में कमलेश के गायब होने की जो गाथा खुल कर सामने आई, उस से खुद पुलिस ही अपराधी के कटघरे में आ खड़ी हुई.

उत्तर प्रदेश के जिला अमरोहा का एक थाना है आदमपुर. इस थाना क्षेत्र का का एक गांव है मलकपुर. सुरेश सिंह का 11 सदस्यों का परिवार इसी गांव में रहता था. सुरेश के पास गांव में जुतासे की जमीन थी, जिस के सहारे उस के परिवार की जीविका चलती थी. बेटे बड़े हुए तो सुरेश का सहारा बन गए. वे खेती के अलावा दूसरा कामधंधा कर के पैसा कमाने लगे.

कमलेश सुरेश के बच्चों में चौथे नंबर की बेटी थी. वह अभी नाबालिग थी. सुरेश सिंह को उस की शादी की अभी कोई चिंता भी नहीं थी.

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सुरेश सिंह के परिवार में सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि 6 फरवरी, 2019 को खेतों से चारा लेने गई कमलेश वापस नहीं लौटी. उस के गायब होने से पूरा गांव सन्न सा रह गया. उस के घर वालों ने गांव वालों के सहयोग से उसे हरसंभव जगह पर खोजा, लेकिन उस का कोई पता नहीं चल सका.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

पुलिस का बदरंग

तंत्र मंत्र का सुबहा, बहुत दूर से आए हत्यारे!

जादू टोना, तंत्र मंत्र का खेल लोगों को किस तरह हलाक करता है, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. यह दोधारी “तलवार” होता है. अगर कोई  तंत्र-मंत्र की भूल भुलैया मे आगे बढ़ता है और यह गम पालता है कि मैं अपना भला कर रहा हूं, यह सिद्धि प्राप्त करके संसार पर राज करूंगा अथवा मनोकामना पूरी करूंगा. मगर होता क्या है!यह “वह” भी नहीं जानता. और समय की परिस्थितियों में एक दिन खुद मौत का शिकार बन जाता है.

ऐसा ही कुछ घटनाक्रम छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिला में हुआ जहां बिहार से आकर एक शख्स सार्वजनिक सुलभ शौचालय में नौकरी कर रहा था. तंत्र मंत्र का फितूर था, इसी  का दुष्परिणाम यह निकला कि बिहार से आकर दो लोगों ने उसे मौत का कफन पहना दिया और सकुशल चले भी गए वह कुछ भी नहीं कर सका.

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इस संपूर्ण घटनाक्रम को देखें तो एक बार पुनः यह स्पष्ट हो चुका है कि तंत्र मंत्र, जादू टोना आदि सिर्फ अज्ञान है और अशिक्षित लोगों का मन का भ्रम है. जिसके फेर में पड़कर वह अपनी अथवा लोगों की जिंदगी बर्बाद करते रहते हैं.

गेली में हुए घटनाक्रम और भी कई पेंच हैं- आइए हम आपको बताते हैं एक ऐसे हत्याकांड की कहानी जिसे पढ़ सुनकर आप स्वयं आश्चर्य में डूब जाएंगे कि क्या ऐसा भी हो सकता है? वहीं दूसरी तरफ “कानून के हाथ लंबे” कहे जाते हैं इस हत्याकांड को कारित करने वाले हत्यारों को पुलिस ने जिस तरह पकड़ा, धर दबोचा, कहा जा सकता है कि सचमुच कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं.

crime

बिहार का गनौरी पंडित

9 अगस्त 2020  की सुबह मुंगेली जिला मुख्यालय के पड़ाव चौक स्थित सुलभ शौचालय में कार्यरत कर्मचारी बिहार निवासी गनौरी पंडित की संदिग्ध हालत में लाश मिली. पुलिस शुरुआत से ही इस प्रकरण को हत्या मानकर चल रही थी. यही वजह है कि  पुलिस कप्तान अरविंद कुजूर ने एडिशनल एसपी कमलेश्वर चंदेल और एसडीओपी तेजराम पटेल के निर्देशन में जांच टीम गठित कर दी. जांच टीम ने साइबर सेल से मिले सुराग के आधार पर बिहार निवासी संदेही शिलानन्द एवं प्रदीप कटारे को पुलिस हिरासत में लेकर पूछताछ की, जिस पर आरोपियों ने गुनाह कबूल करते हुए जादू-टोने के शक में गनौरी पंडित की हत्या की बात बात कबूल की.

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मृतक गनौरी और आरोपी शिलानन्द भी बिहार के मूल निवासी हैं. कुछ समय  पूर्व  साथ में आपस में काम करते रहे, तब से मृतक पर  तंत्र मंत्र जादू टोने की शंका आरोपी और उसके परिजन  करते थे. आरोपी शिलानन्द  ने अपने इकबालिया बयान में बताया कि मृतक ने उसके परिजनों पर टोना-जादू कर दिया था, फल स्वरूप आए दिन तबीयत खराब रहती.  इसी वर्ष  फरवरी माह में भी मृतक से मुलाकात करने आरोपी मुंगेली पहुंचे थे मगर स्थिति ऐसी बनी  कि काम तमाम नहीं कर सके. दूसरे प्रयास में 8 अगस्त को किराए की कार लेकर मर्डर की तैयारी से मिर्ची पाउडर और लोहे की हथौड़ी लेकर आरोपी अपने  निकले.

9 अगस्त को तड़के सुबह मुंगेली  सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर पहुंचे. सुलभ शौचालय में  गनौरी पंडित को अकेला पा कर मिर्ची पाउडर छिड़क कर उसे हक्का-बक्का कर दिया गया  और फिर हथौड़ी से ताबड़तोड़ सिर पर वार कर दिया, जिससे मौके पर ही उसकी मौत हो गई. आरोपियों ने पुलिस के समक्ष गुनाह कबूल कर लिया. छत्तीसगढ़ में तंत्र-मंत्र के खिलाफ निरंतर प्रयासरत शिव दास महंत बताते हैं लोगों में अशिक्षा व परंपरा में मिली घुट्टी के कारण यहां जादू  टोटका की घटनाएं घटित होती रहती हैं सभी को मालूम है कि इसका कोई सु- परिणाम नहीं आता और आगे जाकर पछताना ही पड़ता है.

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