Manohar Kahaniya- गोरखपुर: मोहब्बत के दुश्मन- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

Writer- शाहनवाज

काल रिसीव करते हुए अनीश चाचा को इशारे से हिसाब देखने को कहते हुए दुकान से बाहर निकल गया और सड़क के एक किनारे बात करने में मशगूल हो गया. तभी साए की तरह उस के पीछे पीछे चाचा देवी दयाल भी बाहर निकल आए और कुछ दूरी पर खड़े भतीजे की निगरानी करने लगे.

उसी समय दूसरी तरफ से तेजी से 2 बाइक आ कर अनीश के पीछे रुकीं. दोनों बाइक पर 2-2 नकाबपोश युवक सवार थे. एक बाइक पर पीछे बैठे नकाबपोश ने अपने कमर में पीछे खोंस रखा धारदार दतिया निकाला और फिल्मी स्टाइल में अचानक अनीश के सिर, गले और सीने पर ताबड़तोड़ कई वार कर दिए.

भतीजे अनीश पर हमला होते देख चाचा देवी दयाल हमलावरों से भिड़ गए. अपनी जान की परवाह किए बिना उन्होंने भतीजे पर हमला करने वाले एक नकाबपोश को धर दबोचा.

यह देख कर नकाबपोश हड़बड़ा गया और उन से छूटने के लिए देवी दयाल के सीने पर प्रहार कर दिया. अचानक हुए हमले से देवी दयाल पल भर के लिए गश खा कर जमीन पर गिर गए. कुछ पलों बाद जब उठे तो नकाबपोश ने उन पर फिर से पलटवार किया. तब तक चीखपुकार तेज हो गई थी.

देवी दयाल की चीख सुन कर पासपड़ोस के दुकानदार शोर मचाते हुए बाहर निकले. पब्लिक को बदमाशों ने अपनी ओर आते हुए देखा तो चौंकन्ने हो गए और जिधर से आए थे, मौके पर हथियार फेंक कर उसी दिशा में फरार हो गए.

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दीप्ति ने अपने ही घर वालों के खिलाफ लिखाई रिपोर्ट

इधर अचानक हुए हमले से अनीश डर गया था. गंभीर रूप से घायल वह हवा में लहराते हुए किसी कटे पेड़ की तरह जमीन पर धड़ाम से गिरा.

आननफानन में लोगों ने अनीश और देवी दयाल को टैंपो में लाद कर गोला स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने अनीश को देखते ही मृत घोषित कर दिया.

भतीजे की मौत की खबर सुनते ही देवी दयाल की हालत और बिगड़ गई. घबराहट के मारे उन की सांसों की रफ्तार और तेज हो गई. यह देख डाक्टर भी घबरा गए और उन्हें बाबा राघवदास (बीआरडी) मैडिकल कालेज, गुलरिहा रेफर कर दिया.

अनीश की हत्या की खबर मिलते ही इलाके में सनसनी फैल गई थी. जैसेजैसे उस के शुभचिंतकों को जानकारी हुई, वैसेवैसे कुछ घटनास्थल तो कुछ अस्पताल पर जुटते गए. उधर दिल दहला देने वाली घटना की सूचना गोला थाने के थानेदार सुबोध कुमार को मिल चुकी थी. घटना की सूचना मिलते ही वह फोर्स सहित अस्पताल पहुंच गए और अस्पताल को पुलिस छावनी में बदल दिया ताकि कोई अप्रिय घटना न घट सके.

सूचना पा कर थोड़ी ही देर में वहां तत्कालीन एसएसपी दिनेश कुमार प्रभु, एसपी (दक्षिणी) अरुण कुमार सिंह और सीओ गोला अंजनि कुमार पांडेय भी पहुंच गए थे. पुलिस अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया. सिर, गले और सीने पर किसी धारदार हथियार से ताबड़तोड़ हमला किया गया था. ज्यादा खून बहने से अनीश की मौत हुई थी.

पुलिस ने शव को अपने कब्जे में ले लिया और उसे पोस्टमार्टम के लिए बीआरडी मैडिकल कालेज, गुलरिहा भिजवा दिया. उस के बाद इंसपेक्टर सुबोध कुमार को कागजी काररवाई पूरी करतेकरते दोपहर के 2 बज गए थे.

अस्पताल से फारिग होते ही पुलिस गोपलापुर चौराहा पर उस जगह पहुंची, जहां घटना घटी थी. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. मौके पर फैला खून जम चुका था, जिस पर ढेर सारी मक्खियां भिनभिना रही थीं.

मौके से कुछ दूरी पर खून से सना एक धारदार हथियार गिरा पड़ा था, पुलिस ने उसे बतौर सबूत अपने कब्जे में लिया. मौके पर पहुंची फोरैंसिक टीम अपनी जांच में जुट गई.

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पुलिस ने अनीश की पत्नी दीप्ति चौधरी की तहरीर पर आईपीसी की धारा 302, 307, 506, 120बी एवं एससी/एसटी की धारा 3(2)(वी) के तहत मायके के 17 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

जिन में नलिन मिश्र (पिता), मणिकांत मिश्र (बड़े पापा यानी ताऊ), अभिनव मिश्र (भाई), अनुपम मिश्र (भाई), विनय, उपेंद्र, अजय, प्रियंकर, अतुल्य, प्रियांशु, राजेश, राकेश, त्रियोगी, नारायण, संजीव, विवेक तिवारी और सन्नी सिंह सहित 4 अज्ञात शामिल थे. घटना की जांच की जिम्मेदारी गोला के सीओ अंजनि कुमार पांडेय को सौंपी गई थी.

इस मामले में पुलिस ने 4 आरोपियों मणिकांत मिश्र, विवेक तिवारी, अभिषेक तिवारी और सन्नी सिंह को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें गोला के दीडीहा क्षेत्र से गिरफ्तार किया था. इन चारों से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपराध स्वीकार करते हुए अन्य आरोपियों के नाम भी बता दिए. पुलिस ने इन्हें अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

28 जुलाई, 2021 को एएसपी (साउथ) अरुण कुमार सिंह ने एक प्रैसवार्ता आयोजित कर 4 आरोपियों को गिरफ्तार करने की जानकारी दी और कहा कि जल्द ही बाकी के आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा. कथा लिखने तक अन्य आरोपी गिरफ्तार नहीं हो सके थे. पुलिस उन्हें तलाश रही थी.

Crime- रोहतक चौहरा हत्याकांड: बदनामी, भय और भड़ास का नतीजा

फरवरी, 2021 को रोहतक के जाट कालेज अखाड़े में रात के तकरीबन सवा 8 बजे कुश्ती के कोच सुखविंदर ने अंधाधुंध फायरिंग कर 5 लोगों की हत्या कर दी थी. मरने वालों में जाट कालेज के कोच मनोज, रेलवे में काम कर रही उन की पत्नी साक्षी, उत्तर प्रदेश की पहलवान पूजा समेत 2 और कोच शामिल थे.

इस वारदात से 5 दिन पहले ही पूजा ने कोच मनोज को बताया था कि सुखविंदर उसे परेशान कर रहा है और शादी के लिए दबाव बना रहा है.

यह सुन कर कोच मनोज ने सुखविंदर की अखाड़े में आने से रोक लगा दी थी. इसी बात की रंजिश के चलते सुखविंदर ने यह घिनौना कदम उठाया था. हालांकि वह बाद में पकड़ा गया था.

इस बात को 7 महीने भी नहीं हुए थे कि विजय नगर कालोनी, रोहतक में ही एक चौहरे हत्याकांड ने नई सुर्खियां बना दीं. 27 अगस्त, 2021 को दिनदहाड़े घर में घुस कर 3 लोगों की हत्या कर दी गई, वहीं एक 17 साल की लड़की इस फायरिंग में घायल हुई, जिस ने वारदात के 40 घंटे बाद अस्पताल में दम तोड़ दिया.

पुलिस को मिली पहली जानकारी के मुताबिक, अज्ञात हथियारबंद बदमाशों ने घर में घुस कर परिवार के 4 सदस्यों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं, जिस के चलते 45 साल के प्रदीप उर्फ बबलू पहलवान, उन की 40 साल की पत्नी बबली और 60 साल की सास रोशनी की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि प्रदीप की 17 साल की बेटी तमन्ना ने बाद में अस्पताल में दम तोड़ा.

प्रदीप उर्फ बबलू पहलवान और उस की सास रोशनी से हत्यारा सब से ज्यादा गहरी रंजिश रखता था, क्योंकि उस ने बबलू पहलवान को 3 और सास रोशनी को 2 गोलियां मारी थीं.

Crime: अठारह साल बाद शातिर अपराधी की स्वीकारोक्ति

पुलिस के पास जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट पहुंची, उस में सामने आया कि बबलू पहलवान को माथे में पहली गोली मारने के बाद हत्यारे ने सटा कर उसी जगह

2 गोलियां और मारीं, वहीं सास रोशनी को भी पौइंट ब्लैंक रेंज से पहली गोली मारने के बाद दूसरी गोली भी सिर में पिस्टल सटा कर मारी गई.

इस हंसतेखेलते परिवार में 20 साल का एकलौता अभिषेक उर्फ मोनू ही बचा, जो बबलू पहलवान का बेटा था और वारदात के समय घर पर नहीं था. बाद में उसी ने घर आ कर यह खूनखराबा देखा था और पड़ोसियों को जमा किया था.

हुआ सनसनीखेज खुलासा

पुलिस इस हत्याकांड की पेचीदगी में उलझ गई थी. कभी इस बात का शक होता कि क्योंकि बबलू पहलवान दबंग था और प्रोपर्टी डीलर था, लिहाजा किसी ने उस से दुश्मनी निकाली होगी. पर हर एंगल से जांच करने के बाद पुलिस ने हैरतअंगेज तरीके से अभिषेक उर्फ मोनू को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस के मुताबिक, अभिषेक उर्फ मोनू अपनी बहन तमन्ना के नाम प्रोपर्टी करवाने से नाराज था. ऐसा नहीं था कि प्रदीप उर्फ बबलू पहलवान अभिषेक से प्यार नहीं करता था.

लोगों की मानें, तो उस ने अपने बेटे अभिषेक को होंडा सिटी कार व सवा लाख रुपए का एप्पल का फोन तक दे रखा था. उसे दिल्ली में एयरलाइंस में क्रू मैंबर का कोर्स करवाया था. साथ ही, शहर के एक कालेज में दाखिला दिलवाया था. यहां तक कि एक निजी एयरलाइंस में नौकरी के लिए भी बातचीत की थी और उसे विदेश भेजने के लिए तैयार हो गया था.

बाद में पुलिस को पता चला कि अभिषेक कई दिन से अपने पिता से  5 लाख रुपए मांग रहा था, पर जब पिता ने वजह पूछी तो उस ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया और जब परिवार को उस वजह की भनक लगी, तो अभिषेक की तुड़ाई कर दी गई.

दरअसल, पुलिस पूछताछ में अभिषेक उर्फ मोनू ने खुलासा किया कि वह सैक्स सर्जरी के जरीए अपना जैंडर बदलवाना चाहता था यानी लड़के से लड़की बनना चाहता था. वह पिछले एक साल से सर्जरी के लिए इंटरनैट पर इस तरह के क्लिनिक की जानकारी जुटा  रहा था.

यही नहीं, वह ऐसा कर के उत्तराखंड के एक दोस्त के साथ विदेश भागना चाहता था. इस दोस्त से अभिषेक की मुलाकात क्रू मैंबर का कोर्स करने के दौरान हुई थी.

पुलिस के मुताबिक, अभिषेक उर्फ मोनू अपने इस काम को अंजाम दे पाता, उस से पहले परिवार को इस बात का पता चला तो उसे जम कर पीटा गया. इस से गुस्सा हो कर उस ने यह वारदात कर डाली.

पुलिस के मुताबिक, अभिषेक उर्फ मोनू ने बड़े ही शातिर तरीके से इस वारदात को अंजाम दिया. अपना परिवार खत्म करने के बाद वह छत के रास्ते से फरार हुआ और एक होटल में जा छिपा, जहां उस का वही उत्तराखंड का तथाकथित दोस्त था, जिस के लिए वह अपना सैक्स बदलवा कर लड़की बनना चाहता था.

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वहां उन दोनों ने जिस्मानी रिश्ता बनाया और फिर एक घंटे के बाद अभिषेक दोबारा घर गया और इस हत्याकांड का पहला चश्मदीद गवाह बनते हुए पड़ोसियों को जमा कर लिया.

पुलिस रिमांड में जब कुछ मनोवैज्ञानिक अभिषेक उर्फ मोनू से मिले, तो वह सामान्य बना रहा और एक तरह से उन्हें भी उलझा दिया. बाद में वकील मोहित वर्मा ने शनिवार, 11 सितंबर, 2021 को सुनारिया जेल में जा कर उस से तकरीबन 12 मिनट तक बातचीत की तो अभिषेक ने खुद को बेकुसूर बताया.

अभिषेक उर्फ मोनू ने यह भी बताया कि पुलिस ने उसे बिना वजह फंसाया है. उस से काफी दस्तावेजों पर दस्तखत भी कराए गए हैं. उस का इस हत्याकांड से कोई मतलब नहीं है. उस ने सीबीआई जांच की भी मांग की.

अभिषेक उर्फ मोनू अपने बचाव में दलील रखने का हकदार है, पर खुद को बेकुसूर कहने भर से वह इस हत्याकांड से पीछा नहीं छुड़ा सकता. वैसे, वह ऐसे परिवार और समाज से आता है, जहां किसी लड़के का लड़की बन कर जीने की सोच रखना ही सब से बड़ी सजा है.

जिस हरियाणा में दूसरी जाति में शादी करने से ओनर किलिंग हो जाती है, वहां प्रदीप उर्फ बबलू पहलवान कैसे सहन कर सकता था कि उस का लाड़ला बेटा ऐसी शर्मनाक डिमांड उस के सामने रख दे.

अभिषेक उर्फ मोनू को पता था कि आज यह बात बताने पर उस की पिटाई हुई है, तो कल को समाज में अपनी इज्जत की खातिर बाप ही उस की बलि चढ़ा सकता है.

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हो सकता है कि उस के उत्तराखंड वाले दोस्त ने उसे यह राह दिखाई हो, पर उम्र के जिस पड़ाव पर अभिषेक था, उसे खुद का वजूद बचाने के लिए यही एक रास्ता समझ आया हो.

जिस तरह से अभिषेक उर्फ मोनू ने क्राइम सीन पर पुलिस के सामने सबकुछ उगल कर यह हत्याकांड कबूल किया है, उस से शक की कोई गुंजाइश नहीं बचती है, बशर्ते इस वारदात में जमीनजायदाद से जुड़े पारिवारिक झगड़े का कोई दूसरा पेंच न फंसता हो.

Satyakatha: ऑपरेशन करोड़पति- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

उसी कार से उन्होंने औपरेशन करोड़पति की शुरुआत की. उस दिन अगस्त की 4 तारीख थी. पांचों साथी कार में सवार नवीन पटेल के शोरूम पहुंचे. समय दोपहर साढ़े 12 बजे का था.

वीरेंद्र अपने 4 साथियों को ले कर शोरूम में घुसा, जबकि एक साथी कार में ही बैठा रहा. वह निशांत था. वह कार में लगे काले शीशे के कारण बाहर से नहीं दिख रहा था. वीरेंद्र ने नवीन पटेल को अपना परिचय एक प्लाईवुड व्यापारी के रूप में दिया.

नवीन पटेल से परिचय करने के बाद उस ने अपने 3 सहयागियों के तौर पर बाकी का परिचय करवाया. थोड़ी देर तक इधरउधर की बातें करने के बाद वीरेंद्र ने बताया कि कुछ समय में ही उन का कारपेंटर आने वाला है. वही प्लाईवुड के बारे में बाकी जानकारी देगा.

नवीन पटेल ने उन्हें सामने के सोफे पर बैठने को कहा और अपने एक कर्मचारी को पानी और चाय लाने के लिए बोल कर अपना काम निपटाने लगे. कर्मचारी के वहां से हटते ही वीरेंद्र के एक साथी ने अचानक ही शोरूम का शटर बंद कर दिया.

नवीन पटेल चौंक गए. उन्होंने समझा कि शटर अपने आप गिर गया है. क्योंकि ऐसा पहले भी 2-3 बार हो चुका था. उन्होंने तुरंत अपने कर्मचारी को आवाज लगाई, ‘‘कितनी बार कहा है कि शटर ठीक करवा लो, लेकिन नहीं.’’

नवीन बात पूरी करने वाले ही थे कि वीरेंद्र बिहारी ने फुरती से नवीन  के गले पर चाकू रख दिया. नवीन बौखलाते हुए बोले, ‘‘अरे, यह क्या बदतमीजी है? कौन…कौन हो तुम लोग? यह क्या कर रहे हो?’’

‘‘अगर अपनी जान की सलामती चाहते हो, तो एक करोड़ रुपया निकालो. अभी के अभी.’’ वीरेंद्र कड़कती आवाज में बोला.

‘‘छोड़ो मुझे, मुझे छोड़ दो.’’ नवीन अपना हाथ पीछे ले जा कर दूसरे बदमाश का हाथ पकड़ने की कोशिश करने लगे, जो पीछे से उन के दोनों कंधे पकड़े था.

‘‘नहीं छोड़ेंगे तुम्हें, जब तक कि तुम पैसे नहीं दे देते हो. वरना जिंदा भी नहीं बचोगे.’’ वीरेंद्र बोला.

नवीन अचानक आई इस मुसीबत से बुरी तरह घबरा गए. अपने पुराने कर्मचारी निशांत को आवाज दी. चाय लाने के लिए गया कर्मचारी शोरगुल सुन कर वहां आ चुका था. उसे तीसरे बदमाश ने धर दबोचा.

नवीन समझ चुके थे कि वे अपहर्त्ताओं के चंगुल में फंस चुके हैं. वह उन से विनती करने लगे, ‘‘मेरे पास पैसा नहीं है. लौकडाउन में इतना बिजनैस भी नहीं हो रहा है.’’

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‘‘कहीं से भी लाओ हम नहीं जानते. घरवाली को फोन कर अभी पैसे मंगवाओ. वरना…’’ कहते हुए वीरेंद्र चाकू उन की गरदन पर रेतने की स्थिति में ले आया.

काफी कोशिश और मारपीट करने के बाद भी बात नहीं बनी. बारबार नवीन एक ही रट लगाए रहे कि उन के पास पैसे नहीं है. वीरेंद्र ने अपने एक साथी को उन की आंखों और मुंह पर पट्टी बांधने को कहा.

फटाफट बदमाशों ने नवीन की आंखों और मुंह पर पट्टी बांधी, फिर चाकू की नोक पर ढकेलते हुए कार के पास ले गए. कार में पहले से बैठे निशांत ने उसे तुरंत अंदर खींच लिया. कार की ड्राइविंग सीट पर वीरेंद्र जा बैठा. कुछ समय में ही कार सड़क पर दौड़ने लगी.

यहां तक तो पांचों बदमाशों को सफलता मिल गई थी, लेकिन उन्हें इस बात की चिंता हुई कि वे फिरौती की काल कैसे करें? किस से पैसे मंगवाएं? कहां पर मंगवाएं?

अचानक प्रोग्राम में बदलाव होने से सभी दुविधा में आ गए थे. भीतर से उन्हें पकड़े जाने का डर भी लग रहा था.

अपहरण जैसे अपराध का यह उन का पहला अनुभव था. वह अभी तक छोटीमोटी चोरियां और लूटपाट ही किया करते थे.

उन्हें यह भी डर था कि अपना फोन इस्तेमाल करने पर तुरंत पुलिस की नजर में आ जाएंगे. ऐसे में हो सकता है कि वह फिरौती मिलने से पहले ही पकड़े जाएं.

वीरेंद्र को सामने मोबाइल पर बात करते हुए मजदूरों को देख कर एक आइडिया आया. उस ने तुरंत गाड़ी रोकी और 2 मजदूरों के मोबाइल छीन लिए. फिर गाड़ी तेजी से आगे बढ़ा दी.

फोन निशांत को देते हुए नवीन की पत्नी को काल लगाने के लिए कहा. नवीन पटेल की पत्नी मीनाक्षी का नंबर निशांत को मालूम था. उस ने तुरंत से फोन लगा दिया. मीनाक्षी द्वारा फोन रिसीव करते ही निशांत ने स्पीकर   औन कर दिया.

‘‘हैलो, कौन बोल रहा है?’’ मीनाक्षी ने पूछा.

‘‘मैडम, अगर तुम अपने पति की खैरियत चाहती हो तो एक करोड़ रुपए का बंदोबस्त जल्द कर लो. वरना उन्हें भूल जाओ.’’ वीरेंद्र  कर्कश आवाज में बोला.

‘‘हैलो…हैलो, आप कौन बोल रहे हैं?’’ मीनाक्षी कांपती आवाज में बोली.

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‘‘मैं कौन बोल रहा हूं, इस से तुम्हें कोई मतलब नहीं है. तुम सिर्फ उतना ही करो जितना हम कह रहे हैं. पैसा कहां लाना है, यह हम तुम्हें जल्द बातएंगे.’’ वीरेंद्र बोला.

‘‘लेकिन…. लेकिन तुम हो कौन? मेरे पति कहां हैं?’’

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं. बस, तुम इतना याद रखना कि पुलिस के पास भूल कर भी मत जाना. नहीं तो नतीजा बुरा होगा, समझी. और हां, तुम्हारा पति हमारे कब्जे में अभी तक सुरक्षित है.’’ कहते हुए वीरेंद्र ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

दूसरी तरफ नवीन पटेल की पत्नी मीनाक्षी यह समझ गई थीं कि उस के पति का का अपहरण हो चुका है. वह बेहद घबरा गईं. यह बात किसे बताएं, किसे नहीं समझ नहीं पा रही थीं.

कुछ पल रुक कर उन्होंने निशांत को फोन लगाया. निशांत ने काल रिसीव की, लेकिन आवाज उस की नहीं थी. कोई और भद्दी गाली देते हुए बोला, ‘‘…आखिर तूने होशियारी दिखा दी न?’’ निशांत का फोन वीरेंद्र ने रिसीव किया था, ‘‘अब किसी को काल मत करना और रुपए के साथ हमारे फोन का इंतजार करना.’’

मीनाक्षी ने झट से फोन कट कर दिया. उन्होंने समझा कि शायद निशांत भी उस के पति के साथ है या फिर उस का फोन अपहर्त्ताओं के पास है.

उन के सामने बड़ी समस्या यह भी थी कि एक करोड़ रुपए कहां से लाएगी? अपहर्त्ताओं की इस शर्त से परिवार में कोहराम मच गया. इस समस्या का समाधान कैसे करें, यह उन की समझ में नहीं आ रहा था.

मीनाक्षी की मानसिक स्थिति बिगड़ गई. वह डिप्रेशन में चली गईं. परिवार वालों ने बड़ी मुश्किल से उन्हें संभाला. समझाबुझा कर पुलिस की मदद लेने को कहा. तब तक रात के 9 बज चुके थे.

मीनाक्षी हिम्मत कर 4 अगस्त, 2021 को रात साढ़े 9 बजे अपने रिश्तेदारों के साथ पणजी पुलिस स्टेशन पहुंचीं. 3 रिश्तेदारों के साथ होने के बावजूद वह काफी घबराई हुई थीं. उन की हालत देख थानाप्रभारी विजय चौडणखर ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या बात है? आप इतना घबराई हुई क्यों हैं?’’

नवीन पटेल गोवा के एक जानेमाने कारोबारी थे, इस कारण थानाप्रभारी मीनाक्षी को पहले से पहचानते थे. हाल में ही वह नवीन की मैरिज एनिवर्सरी में शामिल भी हुए थे. तब मीनाक्षी ने उन की अच्छी आवभगत की थी.

उत्तरी गोवा में थिविन गांव के रहने वाले 30 वर्षीय नवीन पटेल एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. उन का गोवा के मौडल टाउन में आशीर्वाद नाम का एक शोरूम और एक प्लाईवुड का गोदाम था.

नवीन की पत्नी को अपने पास आया देख कर थानाप्रभारी चौंक गए. उन की घबराई हुई हालत देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभीजी? आप इतनी घबराई हुई क्यों हैं?’’ इसी के साथ उन्होंने मीनाक्षी को बैठने को कहा.

सामने की कुरसी पर बैठते ही मीनाक्षी फूटफूट कर रोने लगीं. थानाप्रभारी ने उन्हें शांत करवाया. एक गिलास पानी पिलाया और पूरी बात बताने को कहा. जब मीनाक्षी ने नवीन पटेल के अपहरण की बात बताई तो थानाप्रभारी चिंता में पड़ गए. उन्होंने पूरी बात विस्तार से बताने को कहा.

मीनाक्षी ने अपहर्त्ताओं से हुई सभी बातें उन्हें बताईं. साथ ही अपने मोबाइल पर आए अपहर्त्ताओं के काल के समय को बताया.

थानाप्रभारी विजय चोडणखर मीनाक्षी का स्मार्टफोन ले कर जांचपरख करने लगे. संयोग से फोन में आटो रिकौर्डिंग का ऐप था. विजय ने काल की रिकौर्डिंग औन कर मीनाक्षी के सामने ही कई बार सुना.

फोन में शोरूम के कर्मचारी निशांत का भी नाम था. उसे काल करने पर मिले जवाब के बारे में पूछने पर मीनाक्षी ने सिर्फ इतना बताया कि वह उन का बहुत ही भरोसेमंद कर्मचारी है और उस का हमारे घर भी आनाजाना होता था. इस वक्त वह कहां है, पूछने पर मीनाक्षी ने बताया कि अब उस का फोन बंद आ रहा है.

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थानाप्रभारी इतना तो जानते ही थे कि अधिकतर अपहरण के मामले में किसी न किसी नजदीकी का ही हाथ होता है. इसी अंदेशे के साथ उन्होंने निशांत के जरिए अपहर्त्ताओं तक पहुंचने की योजना बनाई.

इस के बाद थानाप्रभारी ने मीनाक्षी और उन के साथ आए लोगों के बयानों के आधार पर नवीन पटेल के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई. थानाप्रभारी ने उन्हें इस आश्वासन के साथ घर भेज दिया कि पुलिस उन के पति को अवश्य छुड़ा लेगी.

अगले भाग में पढ़ें- पुलिस को अपहर्त्ताओं तक पहुंचने के लिए क्या जानकारी मिली

Satyakatha- दिल्ली: शूटआउट इन रोहिणी कोर्ट- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

3 मार्च, 2020 को दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने गुरुग्राम से उसे गिरफ्तार किया था. इस से पहले साल 2015 में जब जितेंद्र गोगी को गिरफ्तार किया गया था तो 30 जुलाई, 2016 को गोगी पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गया था.

उस वक्त उसे हरियाणा रोडवेज की बस से नरवाना कोर्ट में पेशी पर ले जाया जा रहा था. तब 10 हथियारबंद बदमाश बस को रुकवा कर जितेंद्र गोगी को अपने साथ ले कर भाग गए थे.

इस के बाद से लगातार बड़ी वारदात में जितेंद्र गोगी का नाम सामने आता रहा. 17 अक्तूबर, 2017 को हरियाणा के पानीपत में चर्चित सिंगर हर्षिता दहिया की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. हर्षिता को 4 गोलियां मारी गई थीं. इस केस में जितेंद्र गोगी का नाम सामने आया था और कहा गया था कि हर्षिता के जीजा ने जितेंद्र गोगी को सुपारी दे कर हत्या करवाई थी.

इस के अगले ही महीने स्वरूप नगर में एक टीचर दीपक बालियान की हत्या कर दी गई, जिस में जितेंद्र गोगी का ही नाम सामने आया. जनवरी, 2018 में अलीपुर के रवि भारद्वाज की 25 गोलियां मार कर हत्या की गई थी. इस में भी जितेंद्र गोगी ही शामिल था.

अभी इसी साल 19 फरवरी को रोहिणी के कंझावला में आंचल उर्फ पवन की भी हत्या जितेंद्र गोगी गैंग ने की थी, जिस में कम से कम 50 राउंड फायरिंग हुई थी.

8 सितंबर, 2019 को दिल्ली के नरेला इलाके में विधानसभा का चुनाव लड़ चुके वीरेंद्र मान की 26 गोलियां मार कर हत्या कर दी गई थी. इस केस का भी मुख्य आरोपी जितेंद्र गोगी ही था. तब पुलिस ने जितेंद्र गोगी के शार्पशूटर कपिल को गिरफ्तार किया था.

इस दुश्मनी में अब तक ये दोनों गैंग 8 बार सड़क पर टकरा चुके हैं. कम से कम 30 लोगों की जान गई है और जितेंद्र गोगी की मौत के बाद एक बार फिर से इस गैंगवार के बढ़ने का अंदेशा जताया जा रहा है.

राजधानी दिल्ली की रोहिणी कोर्ट में जज के सामने ही टौप मोस्ट गैंगस्टर जितेंद्र मान उर्फ गोगी हत्याकांड की पटकथा 10 दिन पहले ही मंडोली जेल में लिख ली गई थी.

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15 सितंबर को टिल्लू ताजपुरिया से मिलने उस के गैंग के लोग मंडोली जेल में पहुंचे थे. वहां टिल्लू ने अपने साथियों को गोगी की हत्या का प्लान बताया था. टिल्लू के कहने पर ही प्लान को अंजाम तक पहुंचाने के लिए लगातार 4 दिन कोर्ट की रैकी कर पांचवें दिन वारदात को अंजाम दे दिया गया.

अदालत के सभी गेट पर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया गया. इस के बाद फैसला हुआ कि गेट नंबर 4 से अंदर दाखिल हो कर वकील के कपड़ों में कोर्टरूम में पहुंचा जाएगा. बदमाशों ने ऐसा ही किया. वे अपने मकसद में कामयाब हुए और इन्होंने योजना के तहत गोगी की हत्या कर दी.

पुलिस सूत्रों का कहना है कि गोगी की हत्या के बाद विरोधी टिल्लू खेमे में खुशी का माहौल है. पिछले कई सालों से टिल्लू लगातार गोगी की हत्या की योजना बना रहा था.

पुलिस सूत्रों का कहना है कि 15 सितंबर को मंडोली जेल में टिल्लू से मिलने के लिए उमंग और विनय के अलावा कुछ और भी लोग थे. वहां मुलाकात के दौरान टिल्लू ने इन को अपना प्लान समझाया था.

योजना के तहत शूटरों के रुकने की व्यवस्था उमंग ने हैदरपुर में स्थित अपने घर में की. यहां से रोहिणी कोर्ट ढाई से तीन किलोमीटर के बीच है. ऐसे में यहां से आनाजाना आसान था.॒

पुलिस के अनुसार, 20 सितंबर के बाद उमंग, विनय, राहुल और जगदीप लगातार 3 से 4 घंटे कोर्ट की रैकी कर रहे थे. इन सभी को इस बात का पहले से ही अंदाजा था कि गोगी की सुनवाई कोर्टरूम नंबर 207 में ही होगी.

गोगी किसी भी सूरत में जिंदा न रहे, इसलिए शूटरों को आदेश था कि वे दोनों ओर से गोगी पर फायर करें.

सब कुछ साजिश के तहत हुआ. घटना वाले दिन उमंग शूटर राहुल व जगदीप को ले कर कोर्ट के गेट नंबर 4 से ही दाखिल हुआ. काफी देर वह पार्किंग में ही मौजूद रहा. जब कोर्ट रूम में गोलियां चलने की आवाज आई तो उमंग वहां से भाग निकला और सीधा अपने घर पहुंचा.

पुलिस सूत्रों का दावा है कि तिहाड़ और मंडोली जेल से इस साजिश को अंजाम दिया गया है. इस साजिश में टिल्लू ताजपुरिया, पश्चिमी यूपी का गैंगस्टर सुनील राठी, नीरज बवानिया गैंग का नवीन बाली और उस का भाई राहुल काला, टिल्लू का गुर्गा सुनील मान के शामिल होने की आशंका है.

इन में अधिकतर गैंगस्टर तिहाड़ की जेल नंबर 15 में हैं. आशंका है कि गैंगस्टरों ने इस हत्याकांड को अंजाम देने से पहले फोन के जरिए आपस में संपर्क किया होगा.

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वहीं दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने मामले में काररवाई करते हुए 2 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. स्पैशल सेल की गिरफ्त में आए दोनों लोगों की पहचान उमंग और विनय के रूप में हुई. स्पैशल सेल ने दोनों को कोर्ट के गेट नंबर 4 के सीसीटीवी फुटेज के आधार पर गिरफ्तार किया था. ये दोनों आरोपी उत्तर पश्चिमी दिल्ली के हैदरपुर के रहने वाले हैं.

गैंगस्टर सुनील उर्फ टिल्लू ताजपुरिया एक पुराने मामले में रोहिणी कोर्ट में पेश हुआ. दिल्ली पुलिस स्पैशल सेल और थर्ड बटालियन के हथियारों से लैस जवान उसे सुबह ही कोर्ट में लाए थे.

रोहिणी जिला पुलिस ने भी भारी बंदोबस्त कर रखा था. रोहिणी कोर्ट पूरी तरह से छावनी में तब्दील दिखी. पुलिस को आशंका थी कि गोगी गैंग पलटवार करते हुए टिल्लू पर हमला कर सकता है, इसलिए एजेंसियां कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थीं.

पुलिस सूत्रों ने बताया कि टिल्लू ताजपुरिया को शनिवार सुबह मंडोली जेल से लेने के लिए स्पैशल सेल की टीम को भेजा गया.

थर्ड बटालियन के जवान और स्पैशल सेल की टीम उसे अपनी सुरक्षा के घेरे में सुबह करीब सवा 10 बजे ले कर रोहिणी कोर्ट परिसर में पहुंच गई. एक पुराने मामले में उस की पेशी कोर्ट नंबर 202 में अडिशनल सेशन जज राकेश कुमार की कोर्ट में थी.

इस से पहले ही पुलिस ने पूरी तरह से रोहिणी कोर्ट परिसर को अपने घेरे में ले लिया था. पुलिस सूत्रों ने बताया कि जज के सामने टिल्लू को पेश किया गया तो उन्होंने अगली तारीख लगा दी.

सुरक्षा टीम करीब 12 बजे टिल्लू को कड़े सुरक्षा घेरे के बीच मंडोली जेल के लिए ले कर रवाना हो गई. करीब एक घंटे बाद जब पुलिस अफसरों को टिल्लू के सुरक्षित मंडोली जेल पहुंचने का मैसेज किया गया तो सब ने राहत की सांस ली.

क्राइम ब्रांच की टीम शूटआउट के अगले दिन 25 सितंबर को दोपहर बाद रोहिणी कोर्ट में पहुंची और 2 घंटे से भी ज्यादा समय तक पड़ताल की.

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इस दौरान कोर्ट रूम में क्राइम सीन रीक्रिएट किया गया. लोकल पुलिस से जल्द ही सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज हासिल की, जिन का एनलिसिस कर पता लगाया जाएगा कि वकील की ड्रेस में कोर्ट के भीतर आए बदमाश किसकिस रूट से आए थे और दोनों हमलावरों के साथ क्या कुछ और बदमाश भी अदालत में आए थे?

Satyakatha- केरला: अजब प्रेम की गजब कहानी- भाग 2

सौजन्य: सत्यकथा

Writer- शाहनवाज

उन दिनों भारी बारिश की वजह से कच्चे घरों में अकसर बिजली से जुड़ी समस्या पैदा हो ही जाया करती थी. साजिता के साथसाथ रहमान का भी उन दिनों कच्चा ही घर था.

दरअसल, रहमान और साजिता एक लंबे समय से एकदूसरे से नजर से नजर मिलाया करते थे, लेकिन दोनों की एकदूसरे के साथ बातचीत करने की हिम्मत पैदा नहीं हो रही थी.

बिजली ठीक करने के बाद जब रहमान, साजिता के घर से वापस जाने लगा तो उस ने अपना फोन नंबर साजिता के पिता को यह कहते हुए दे दिया कि अगर कुछ दिक्कत महसूस हो तो फोन कर के उसे बुला लें. उस समय तो नहीं, लेकिन कुछ दिनों बाद साजिता ने हिम्मत कर के रहमान को फोन कर ही लिया.

पहली बार की बातचीत तो सिर्फ हायहैलो में ही निकल गई, लेकिन उस के बाद जब कभी साजिता को मौका मिलता तो वह रहमान के साथ फोन पर बातें किया करती.

धीरेधीरे समय के साथसाथ दोनों के बीच दोस्ती हुई. साजिता काम का बहाना कर के घर से निकलती और वे दोनों अकसर अपने गांव से दूर कहीं और मिलने जाया करते थे. कभी साथ में शहर घूमने निकलते तो कभी दूर के खेतों में वक्त गुजारा करते.

उन की ये दोस्ती समय के साथ गहराती चली गई और वे दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे. रहमान और साजिता दोनों के जीवन का वह पहला प्यार था, इसलिए उन के बीच एकदूसरे से लगाव कुछ ज्यादा ही हो गया था.

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इस के साथसाथ रहमान और साजिता ने एक बात का खासा ध्यान रखा था, वह यह कि वे दोनों अपना रिश्ता लोगों के सामने जाहिर नहीं करना चाहते थे. अपने गांव वालों के सामने तो बिलकुल भी नहीं.

ऐसा इसलिए कि रहमान और साजिता दोनों बखूबी जानते थे कि वे दोनों अलगअलग धर्म से ताल्लुक रखते थे. रहमान मुसलमान था तो साजिता हिंदू.

वे जानते थे कि उन के इस प्यार को, इस रिश्ते को उन के घर वाले और समाज मंजूरी नहीं देगा. इसलिए अपने प्यार को जगजाहिर होने से बचाने के लिए वे हरसंभव तरीके अपनाते थे. यहां तक कि जब दोनों फोन पर बातें करते तो बात करने के बाद काल डिटेल्स डिलीट कर देते थे.

उन के बीच यह पहले से ही तय हुआ था कि उन्हें अपने रिश्ते को दुनिया की नजरों से बचा कर रखना है, नहीं तो किसी की भी बुरी नजर लग सकती है.

समय बीता तो उन के बीच नजदीकियां और बढ़ती चली गईं. दोनों एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करने लगे थे. एकदूसरे के साथ पूरी जिंदगी गुजारना चाहते थे. ऐसे में साजिता ने एक शाम को प्लान बनाया और उस ने रहमान को इस के लिए तैयार भी कर लिया.

सजिता ने रहमान से कहा, ‘‘रहमान, मैं तुम्हारे साथ अपनी बाकी की जिंदगी गुजारना चाहती हूं. हम दोनों को अगर साथ में रहना है तो हमें इस गांव से, अपने परिवार से दूर जाना पड़ेगा. उन्हें छोड़ना पड़ेगा. नहीं तो ये लोग हमें जुदा कर देंगे. मैं जानती हूं कि तुम्हारे लिए यह मुश्किल फैसला होगा. मैं ने बहुत सोचसमझ कर ही तुम से यह बात कही है.’’

रहमान ने भी पहले से ही इस विषय में सोचविचार कर रखा था. उस ने साजिता की बातों का जवाब देते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी इस बात से मैं भी बिलकुल सहमत हूं. अगर हम ने अपने घर वालों को अपने इस रिश्ते के बारे में बताया तो वे इस रिश्ते को मंजूरी कभी नहीं देंगे. बेहतर यही है कि हमें इस गांव से, अपने परिवार से दूर चले जाना चाहिए.’’

दोनों के बीच इस बातचीत के बाद दोनों ने दिन तय कर लिया कि उन्हें किस दिन अपने घर छोड़ देना है. ठीक 11 साल पहले, 2 फरवरी 2010 की रात के करीब साढ़े 9 बज रहे थे. ठंड के दिन थे तो उस समय तक गांव वाले सब सो चुके थे. साजिता और रहमान के घर वाले भी गहरी नींद में थे सिवाय उन दोनों के.

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साजिता ने पहले से ही अपने कपड़ेलत्ते और जरूरी सामान एक छोटे से बैग में भर लिया था. बिना आवाज किए साजिता ने घर से निकल कर पहले इधरउधर नजरें घुमाईं और यह सुनिश्चित किया कि बाहर कोई है तो नहीं. जब उसे सभी रास्ते साफ और सुनसान दिखाई दिए तो वह घर से निकल गई और पगडंडियों के सहारे रहमान से मिलने तय जगह पर चली गई.

वहां रहमान पहले से ही मौजूद था. वह वहां पहुंच तो गया था लेकिन उस के चेहरे पर काफी उदासी छाई हुई थी. साजिता ने उस से उस की उदासी की वजह पूछी तो उस ने बताया कि उस के पास इतने पैसे नहीं थे, जिस से वह उस के साथ कहीं शहर में जा कर किराए के कमरे पर गुजरबसर कर सके.

अगले भाग में पढ़ें- रहमान ने जानबूझ कर अपने मिजाज में बदलाव कर लिया था

Satyakatha: मियां-बीवी और वो- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

देवेंद्र ने थानाप्रभारी को जो बयान दिया था, उस में कहा था कि घटना के समय 2 लोगों ने अचानक हमला किया था, वह लघुशंका के लिए कुछ कदम आगे चला गया था. इसी दरमियान गाड़ी में लूटपाट की घटना हुई और उन लोगों ने दीप्ति के गले में रस्सी डाल कर के हत्या कर दी.

जब वह पास आया था तो उस के भी हाथ बांध दिए गए थे, मगर उस ने एक लात मार कर भाग कर अपनी जान बचाई थी.

देवेंद्र ने यह भी बताया था कि किसी एक ने उस की कनपटी पर पिस्टल रख कर के धमकी भी दी थी. इन सारी

बातों की विवेचना जब पुलिस ने की तो देवेंद्र सोनी की बातों में विरोधाभास दिखा. सब से बड़ा सवाल यह था कि जब लूटपाट करने वालों के पास पिस्टल थी तो उन्होंने दीप्ति को नायलोन की रस्सी से क्यों मारा? और मोबाइल के सिम को क्यों निकाला था?

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पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि देवेंद्र अपने बयान में कहीं झूठ बोल रहा है और उस की बातों की सत्यता जानने के लिए अब पुलिस को देवेंद्र से पूछताछ करनी थी. पुलिस ने पत्नी के अंतिम संस्कार के लिए उसे रात को घर भेज दिया गया था, साथ ही यह निर्देश भी दिए कि जरूरत पड़ने पर बयान के लिए फिर से थाने आना होगा.

दीप्ति के अंतिम संस्कार के बाद अगले दिन 16 जून को जब देवेंद्र को जांच अधिकारी अविनाश कुमार श्रीवास ने फोन लगाया तो उस का फोन दिन भर बंद  मिला. देवेंद्र का फोन बंद हो जाने से पुलिस का शक और भी गहरा  गया.

अंतत: बिलासपुर जिला पुलिस के सहयोग से थाना पंतोरा और बलौदा की पुलिस टीम ने देर शाम को देवेंद्र सोनी का मोबाइल ट्रैक कर के उसे बिलासपुर से हिरासत में ले लिया.

जांजगीर ला कर उस से पूछताछ शुरू की गई तो पहले तो वह कुछ भी कहने से गुरेज करता रहा. पुलिस ने जब उस के मोबाइल की जांच की तो पता चला कि घटना के कुछ समय पहले वह लगातार शालू सोनी नाम की एक महिला से बात करता रहा था.

पुलिस ने उस से शालू के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि प्रदीप सोनी उस के रिश्तेदार के यहां नौकर है और शालू प्रदीप की पत्नी है.

पुलिस ने दूसरे दिन प्रदीप सोनी और उस की पत्नी शालू सोनी, जो अपने घर से गायब थे, को जिला मुंगेली के एक मकान से हिरासत में लिया और पूछताछ के लिए थाने ले आए.

प्रदीप ने पुलिस के समक्ष घबरा कर अपना  अपराध स्वीकार कर लिया और दोनों पतिपत्नी ने जो कहानी बताई, उस से दीप्ति हत्याकांड से परदा उठता चला गया.

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अपनेअपने इकबालिया बयान में दोनों ने बताया कि वे सरकंडा बंगाली पारा में झोपड़ी में रहते हैं और देवेंद्र सोनी ने उन्हें डेढ़ लाख रुपए देने की बात कह कर के इस हत्याकांड में शामिल किया था.

शालू ने बताया देवेंद्र अकसर उस के साथ हंसीमजाक किया करता था और एक दिन बातोंबातों में कहने लगा, ‘‘तुम लोग आखिर कब तक इस तरह नौकरी करते रहोगे. कुछ अपना भविष्य भी बनाओगे कि नहीं.’’

इस पर शालू सोनी ने कहा, ‘‘भैया, इन की तबीयत तो हमेशा खराब रहती है. आखिर हमारा क्या होगा यह पता नहीं.’’

इस पर देवेंद्र ने मासूमियत से कहा, ‘‘देखो, तुम चाहो तो अपनी तकदीर खुद बना सकती हो. कहो तो मैं तुम्हें एक तरकीब बताऊं, तुम्हें एकडेढ़ लाख रुपए तो यूं ही मिल जाएगा.’’

देवेंद्र ने उन से कहा, ‘‘बस, तुम्हें किसी भी तरीके से मेरी पत्नी दीप्ति को मेरे रास्ते से हटाना है.’’

पहले तो शालू और प्रदीप ने इंकार कर दिया, मगर जब डेढ़ लाख रुपए की एक बड़ी रकम उन की आंखों के आगे झूलने लगी तो वे लालच के फंदे में फंस गए और दीप्ति हत्याकांड की पटकथा बुनी जाने लगी.

एक दिन देवेंद्र ने ही कहा कि सोमवार, 14 जून की रात को दीप्ति के साथ कोरबा से बिलासपुर की तरफ आऊंगा. इस रास्ते में जिला जांजगीर चांपा का घनघोर छाता जंगल पड़ता है. जहां हम दीप्ति का काम तमाम कर  सकते हैं.

इस तरह देवेंद्र ने पूरी हत्याकांड की पटकथा बनाई. 3 दिन पहले ही पंतोरा के वन बैरियर के पास रैकी कर के घटना को अंजाम देने की प्लानिंग कर ली गई थी. जिसे उन्होंने 14 जून की रात को अंजाम दे दिया था.

जब प्रदीप और शालू सोनी से पुलिस ने देवेंद्र का सामना कराया तो देवेंद्र टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि हत्या उसी ने करवाई है क्योंकि अकसर उन का झगड़ा होता रहता था.

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उस ने पुलिस को बताया कि दीप्ति हमेशा उस पर शक किया करती थी. दूसरी तरफ उसे दीप्ति पर शक था और एक बार उस ने दीप्ति को किसी गैरमर्द के साथ रंगेहाथों पकड़ भी लिया था. मगर इस का कोई सबूत देवेंद्र पुलिस को नहीं दे सका.

पुलिस ने जांच के बाद दोनों मोबाइल फोन, जो प्रदीप सोनी ने फेंक दिए थे, बरामद कर लिए. लैपटौप देवेंद्र सोनी के घर से ही बरामद कर लिया गया. आरोपी प्रदीप सोनी और शालू ने जिस स्कूटी को घटना के लिए इस्तेमाल किया था, उसे भी पुलिस ने जब्त कर लिया गया.

घटना के खुलासे के बाद जिला चांपा जांजगीर की एसपी पारुल माथुर ने देर शाम एक पत्रकारवार्ता आयोजित कर वारदात का खुलासा कर दिया.

पुलिस ने थाना पंतोरा में भादंवि की धारा 397, 302 के  तहत मुख्य आरोपी देवेंद्र सोनी, प्रदीप सोनी तथा शालू सोनी को 17 जून, 2021 को गिरफ्तार कर चांपा जांजगीर के प्रथम न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Manohar Kahaniya: खोखले निकले मोहब्बत के वादे- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

कुल मिला कर गीता निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की थी. परिवार उन दिनों गीता की शादी को ले कर चिंतित था. गीता तीखे नाकनक्श वाली बेहद खूबसूरत थी.

परिवार चाहता था कि गीता की शादी बिरादरी में ही किसी अच्छे परिवार के ठीकठाक कमाई करने वाले लड़के से हो. लेकिन जहां भी पसंद का लड़का मिलता तो दहेज की ऐसी मांग होती कि गीता के परिवार के लिए दहेज की मांग पूरी करना मुश्किल हो जाता. इसीलिए गीता की उम्र तेजी से बढ़ रही थी और गीता के परिवार की चिंताएं भी.

पहली मुलाकात में हो गया था दीवाना

लेकिन जब मनोरंजन ने गीता को देखा तो उसे पहली ही नजर में उस से प्यार हो गया. कुछ समय पहले तक वह नहीं मानता था कि किसी लड़की को देख कर उस के मन में ऐसा मीठामीठा अहसास जगेगा.

जब उस ने गीता को देखा था, तब उस से कुछ पल की मुलाकात हुई थी. लेकिन तभी से न जाने कब उस का दिल खो सा गया. हालांकि मनोरंजन ने गीता से भी ज्यादा हसीन लड़कियां देखी थीं. लेकिन गीता की हसीन मुसकराहट और खिलखिलाहट भरी खनखनाती मीठी आवाज ने उस पर अजीब सा जादू कर दिया था.

पहली बार किसी लड़की की याद में उस ने एक शेर लिख डाला ‘न तीर न तलवार से, उन की नजर के वार से, हम तो घायल हो गए, उन की भोली सी मुसकान पे.’

उस दिन रात भर नींद की तलाश में मनोरजन करवटें बदलता रहा. लेकिन आंखें बंद करते ही कानों में उस की मीठी आवाज गूंजने लगती थी. इस अहसास के बाद उसे लगने लगा कि सालों बाद हो रहा ये अहसास प्यार है.

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अगला पूरा दिन मनोरंजन ने गीता के इंतजार में बिता दिया. क्योंकि उसे अपने फोटो लेने के लिए आना था. आंखें उस का इंतजार करते हुए थक गईं लेकिन वह नहीं आई.

फिर उस रात वही बेकरारी, रात भर उस का खयाल और यही सोचना… आखिर ये प्यार क्या चीज है. 3 दिन हो गए लेकिन गीता फोटो लेने नहीं आई. इंतजार जैसेजैसे बढ़ता जा रहा था, बेकरारी भी उसी तरह बढ़ती जा रही थी.

आखिर चौथे दिन जब गीता अपना फोटो लेने के लिए उस के स्टूडियो पर आई तो दिल को वैसे ही सुकून मिला, जैसे तपती रेत पर पानी गिरने से ठंडक का अहसास होता है.

संयोग ये भी था कि पहले दिन जब गीता फोटो खिंचाने आई थी तो उस के साथ पड़ोस में रहने वाली कोई महिला थी. लेकिन उस दिन वह अकेली पहुंची.

‘‘आप की फोटो उतनी खूबसूरत नहीं आई, जितनी खूबसूरत आप हो.’’ फोटो का लिफाफा गीता के हाथ में थमाते हुए मनोरंजन ने कहा.

‘‘फिर तो मैं फोटो का कोई पैसा नहीं दूंगी.’’ गीता बोली.

‘‘आप की खूबसूरती को कैमरे में कैद करने की गुस्ताखी तो हम कर चुके हैं, इसलिए आप का पैसा नहीं देना हमें मंजूर है.’’ मनोरंजन ने हिम्मत जुटा कर थोड़ा सा खुलना शुरू किया.

‘‘वैसे अगर आप मांग में सिंदूर और माथे पर बिंदी लगातीं तो आप की फोटो और भी खूबसूरत आती.’’ कुछ जानकारी की जिज्ञासा लिए मनोरंजन ने कहा.

मनोरंजन के इतना कहते ही गीता ने नाक सिकोड़ते हुए कह, ‘‘छि: हम क्यों मांग में सिंदूर लगाएं, वो तो शादीशुदा औरतें लगाती हैं. हमारी तो अभी शादी भी नहीं हुई.’’

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गीता ने नाराजगी का इजहार किया तो मनोरंजन का दिल खुशियों से उछलता हुआ सीने से बाहर आने को हो गया. क्योंकि घुमाफिरा कर वह यही तो पूछना चाहता था कि गीता शादीशुदा है या नहीं.

उस का काम हो गया क्योंकि जो लड़की उसे पसंद आई थी वो सिंगल है या शादीशुदा, यह जानना उस के लिए जरूरी था.

बस, उस के बाद मनोरंजन के लिए गीता से दोस्ती करना आसान हो गया. गीता की तरह वह भी भोलाभाला था. उस ने गीता का नामपता पूछा, उस के परिवार के बारे में जानकारी ली और उस का मोबाइल नंबर हासिल कर उसे भी अपना मोबाइल नंबर दे दिया.

गीता भी चाहने लगी मनोरंजन को

गीता को उस ने यह बात इशारेइशारे में बता दी कि वह उस को पसंद करता है और फोन पर उस से बात करेगा. इस के बाद दोनों के बीच फोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया.

कुछ दिनों बाद दोनों एकदूसरे से मुलाकात भी करने लगे. साथ में सिनेमा देखने, रेस्टोरेंट में साथ जा कर खाना खाने का सिलसिला भी शुरू हो गया.

एकदो महीने के बाद मनोरंजन की तरह गीता भी उसे पूरे दिल से प्यार करने लगी. एक दिन मनोरंजन ने अपने दिल का इजहार करते हुए गीता से कह दिया. गीता क्या तुम मेरी सूनी जिंदगी में आ कर उसे रोशन कर सकती हो. गीता खुद भी मनोरंजन से कुछ ऐसा ही कहना चाहती थी. दोनों ने उस दिन साथ जीनेमरने की सौगंध खा ली.

बस, एक ही अड़चन थी. मनोरंजन जाति से ब्राह्मण था, जबकि गीता यादव बिरादरी से थी. मनोरंजन को तो कोई ऐतराज नहीं था. लेकिन गीता के परिवार को ऐतराज न हो, इसलिए उस ने गीता से अपने परिवार की राय जानने के लिए कहा.

गीता ने जब अपनी मां शांति व भाई राजेश यादव को मनोरंजन के बारे में बताया तो पहले उन्होंने नाराजगी दिखाई कि एक गैरबिरादरी के लड़के से हम कैसे उस की शादी कर दें. लेकिन फिर यही सवाल उठा कि बिरादरी में अच्छे लड़के तो मोटा दहेज मांग रहे हैं.

जबकि मनोरंजन अच्छा लड़का भी है और कमाता भी अच्छा है. ऊपर से वह गीता को बेहद प्यार भी करता है. अगर वह मनोरंजन से गीता की शादी करते हैं तो अच्छा लड़का भी मिल जाएगा और दहेज भी नहीं देना पड़ेगा.

ना ना करतेकरते गीता की मां और भाई दोनों मान गए और उन्होंने शादी के लिए हां कर दी. फरवरी, 2007 में दोनों परिवार वालों की रजामंदी से मंदिर में जा कर मनोरंजन और गीता ने शादी कर ली.

शादी के बाद मनोरंजन को मानो जीने का मकसद मिल गया. उस की चाहत गीता उस की जिंदगी की रोशनी बन चुकी थी. 6 महीने कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला. मनोरंजन पूरी तरह गीता के प्यार के आगोश में डूब चुका था.

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वक्त का पहिया तेजी से घूमने लगा. महीने गुजरे फिर साल गुजरने लगे. दोनों के प्यार की तपिश के वक्त के साथ तेजी से बढ़ती गई. लेकिन 2 साल गुजर गए तो एक कमी दोनों को खलने लगी. उन की चाहत थी कि घरआंगन में एक बच्चे की किलकारी गूंजे. लेकिन वो चाहत पूरी नहीं हो रही थी.

3 साल हो गए, लेकिन गीता मां नहीं बन सकी. जब मनोरंजन अपनी इस चाहत का जिक्र कर गीता से इस कमी को पूरा करने की फरमाइश करता तो वह कहती, ‘‘इस में मेरा क्या दोष है. तुम्हारी मर्दानगी में कमी होगी, जो बच्चा पैदा नहीं हो रहा.’’

अगले भाग में पढ़ें- पति मनोरंजन के खिलाफ लिखाई रिपोर्ट

Crime: अठारह साल बाद शातिर अपराधी की स्वीकारोक्ति

कहते हैं- हत्या का अपराध छुपता नहीं है, यह बात एक बार पुनः सत्य हो गई हत्या करने के बाद सालों साल आत्मग्लानि से पीड़ित शख्स ने अाखिर कानून के सामने यह स्वीकार कर लिया कि उसने अपने दोस्त की हत्या 18 साल पहले की थी.

यह आत्म स्वीकारोक्ति बताती है कि हत्या जैसे संगीन अपराध इंसान की जिंदगी को किस तरह तबाह और बर्बाद कर देता है.

अपने दोस्त को मौत के घाट उतार कर उसे जंगल में दफनाने की घटना का खुलासा 18 साल बाद स्वयं आरोपी ने किया है. यह घटना छत्तीसगढ़ के जिला बालोद की है आरोपी के पुलिस के समक्ष स्वीकारोक्ति के बाद  प्रशासन और नगर में में हड़कंप मच गया है.

यह घटना हम आपको तपसील से बताते हैं – बालोद के करकभाट गांव के आरोपी की निशानदेही पर दो दिन तक स्थानीय प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने जंगल में खुदाई करवाई लेकिन मृतक का शव या कोई भी अवशेष नहीं मिल पाया है.

आरोपी हत्या के बाद  परिवार के साथ रोजी-रोटी की तलाश में कहीं चला गया था जब वापस आया तो गुमसुम रहने लगा था धीरे धीरे उसकी मानसिक हालत खराब होने  लगी रातों को नींद नहीं आती थी वह बैचेन रहने लगा था.

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दरअसल, यह सनसनीखेज मामला छत्तीसगढ़ के बालोद थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम करकभाट में रहने वाले टीकम कोलियार का है. उसने अचानक अपने परिवार और गांववालों को बताया कि 2003 में उसने अपने दोस्त छवेश्वर गोयल की हत्या कर दी थी. हत्या करने के बाद में उसे गांव के पास की जंगल में दफना दिया था. इस मामले की सूचना ग्रामीणों ने अंततः पुलिस को दी.और पुलिस ने आरोपी की निशानदेही पर दो दिन तक खुदाई जरूर की लेकिन हाथ कुछ नहीं लगा. पुलिस का मानना है कि घटना घटित हो सकती है क्योंकि मृतक युवक 2003 से लापता है उस दरमियान लापता युवक की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज कराई गई थी. यह भी तथ्य सामने आए हैं दोनों ही अच्छे मित्र थे साथ साथ रहते थे पता पुलिसि यह मान के चल रही है घटना में सत्यता हो सकती है.मगर जब तक मृतक का कोई अवशेष बरामद नहीं होता फॉरेंसिक जांच नहीं हो जाती पुलिस मामला दर्ज करने में अपने आप को असमर्थ पा रही है.जो कानूनी रूप से सही भी है.

पुलिस के मुताबिक आरोपी का बयान है कि मृतक दोस्त अब उसे सपने में आकर सताने लगा है, इस वजह से उसने इस पूरे मामले को लोगों को बताया. वहीं इस घटना का कारण उसने बताया कि उसकी जो प्रेमिका थी और जो वर्तमान में उसकी धर्म पत्नी है उसे देखकर उसका दोस्त उससे लगातार जबरदस्ती संबंध बनाने की कोशिश करता था उसकी हरकतों से नाराज़ हो कर उसने गुस्से में आकर दोस्त छवेश्वर गोयल की हत्या कर दी थी.

शातिर अपराधी है हत्यारा

हत्या की घटना स्वीकार करने के‌ पश्चात रोते हुए उसने पुलिस को बताया कि 2003 फरवरी में छबेश्वर ने उसकी होने वाली पत्नी के साथ छेड़छाड़ की थी.  इसकी जानकारी उसे मिली उसकी छबेश्वर से अच्छी दोस्ती थी उसे समझाया मगर वह नहीं माना जिसके बाद वह गांव के खेत तरफ छबेश्वर के साथ  गया, शाम 7 बजे अचानक लोहे की रॉड से उसके सिर पर हमला कर हत्या कर दी.

गांव में किसी को इसकी जानकारी न हो, इसलिए घटना स्थल से 300 मीटर दूर देर रात गड्ढा खोदकर शव को बोरे में भरकर दफना दिया. घटना के दो साल बाद छेड़छाड़ की शिकार लड़की से टीकम ने विवाह कर लिया.

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इस घटना में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि मृतक के पिता जगदीश व मां सरस्वती के मुताबिक  जब उनका बेटा घर नहीं आया तो इसकी सूचना थाने में भी दी.  उम्मीद थी कि उनका बेटा एक दिन वापस  आएगा. अब टीकम के द्वारा हत्या की बात बताई जाने पर उन्होंने  आरोपी को कड़ी सजा देने की मांग की है.

हमारे संवाददाता को पुलिस ने बताया  छबेश्वर के घर वाले लगातार खोजबीन कर रहे थे तो  इसलिए वह गांव के एक लैंडलाइन फोन से मित्र के पिता और मां को फोन लगाकर बात करता था . वह छबेश्वर बनकर उसके माता-पिता से बात करता था. कहता था – वह जहां भी है, खुश है,अच्छा सा काम कर रहा है. मेरी फिक्र मत करना. यह इसलिए कहता था ताकि अहसास न हो कि उनका बेटा मर गया है. यह सच  टीकम ने छबेश्वर के पिता जगदीश को भी बताई सुन कर आवाक रह गए.

Manohar Kahaniya: बच्चा चोर गैंग- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अलीगढ़ में महुआखेड़ा थाने के थानाप्रभारी विनोद कुमार पिछले कुछ महीने से इलाके में बच्चा चोरी या लापता होने की घटनाओं को लेकर काफी उलझन में थे. इस तरह की घटनाओं की शिकायतें दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही थीं. गरीब परिवार के लोगों की अपने छोटे बच्चे के अचानक लापता होने की कई शिकायतें दर्ज थीं.

चिंता इस बात की थी कि न तो चोरी का बच्चा बरामद हो पा रहा था और न ही उस का कोई सुराग ही मिल रहा था. उन की रातों की नींद उड़ी हुई थी. हर पल आंखों के सामने बच्चे की तलाश में आने वाली रोतीबिलखती मांओं का चेहरा घूम जाता था.

आखिर कौन हैं बच्चे चुराने वाले? गायब बच्चे कहां होंगे? बच्चे की देखभाल कौन कर रहा होगा? उन की मां का क्या हाल होगा? आदि सवालों के इसी उधेड़बुन के साथ थानाप्रभारी 22 जून को अपने क्वार्टर थाने में स्थित औफिस आ रहे थे.

अभी वह औफिस के गेट तक ही पहुंचे थे कि एक औरत और एक आदमी को थाने में जमीन पर बैठे देखा. औरत की आंखों से आंसू टपक रहे थे. वह बारबार अपने दुपट्टे से आंसू पोछे जा रही थी. उस के साथ बैठा आदमी उसे ढांढस बंधा रहा था.

थानाप्रभारी विनोद कुमार ने उन्हें इशारे से अपने औफिस में बुलाया. आदर भाव से पूछा, ‘‘अरे, आप लोग जमीन पर क्यों बैठे हो, अंदर आओ.’’

बुरी तरह से बिलख रही महिला को शांत  करते हुए पूछा, ‘‘हांहां, बताइए क्या परेशानी है?’’

‘‘श्रीमान जी, मैं राजा हूं. ये मेरी घरवाली रेखा है. आज सुबह मेरी बच्ची को कोई उठा ले गया.’’ औरत के साथ बैठा आदमी बोला.

थानाप्रभारी फिर बच्चा चोरी की शिकायत सुन कर विचलित हो गए. उन्होंने उन से पूरी मामले की जानकारी ली. उस के बाद उन को बच्चे का पता जल्द पता लगा लिए जाने का आश्वासन देते हुए तसल्ली दी. बच्चा मिलने का भरोसा पा कर पतिपत्नी चले गए. किंतु विनोद कुमार के माथे पर शिकन और गहरा गई.

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कुछ समय में ही रामकरण नाम का एक मुखबिर आया. दूर से ही रामराम किया. वह एक फेरीवाला था. साइकिल पर स्कूलों के बाहर बच्चों के लिए खानेपीने का सामान बेचने का काम करता था. स्कूल बंद होने के कारण वह गलीमोहल्ले में घूमघूम कर सामान बेचने लगा था. थानाप्रभारी विनोद कुमार का वह पूर्व परिचित था.

‘‘साब जी, अभीअभी जो औरत आप से मिल कर गई है, उस पर मुझे शक है,’’ फेरीवाला बोला.

‘‘क्या कहते हो रामकरण! वह तो अपने बच्चे के चोरी होने की शिकायत ले कर आई थी,’’ थानाप्रभारी चौंक गए.

‘‘मैं सही कह रहा हूं साब जी, उस का तो कोई बच्चा है ही नहीं. उस के साथ जो आदमी था, वह उस का पति भी नहीं है,’’ रामकरण ने बताया. ‘‘तो फिर वे कौन लोग हैं?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘औरत तो अलीगढ़ की रहने वाली ही नहीं है. और रही बात उस के साथ आए आदमी की तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वह भी मेरी तरह फेरीवाला है. वह घूमघूम कर फलसब्जियां बेचता है. उसे मैं ने कई बार सुबह के समय में सब्जी मंडी में थोक में सब्जियां खरीदते हुए देखा है.’’ रामकरण बोला.

‘‘यदि वे दोनों पतिपत्नी नहीं हैं तो उन्होंने बच्चा चोरी की शिकायत क्यों दर्ज कराई?’’ थानाप्रभारी ने सवाल किया.

‘‘ताकि आप एक और बच्चा चोरी की तलाश में उलझ जाएं.’’ फेरीवाला रामकरण बोला.

‘‘ठीक है, तुम अब जाओ,’’ कहने के बाद थानाप्रभारी एक बार फिर सोच में पड़ गए.

घटनाक्रम का पेंच

मुखबिर रामकरण ने जो कुछ बताया अगर उस में जरा सी सच्चाई है, तो इस का मतलब है कि बच्चा चोरी की वारदातों में कोई गिरोह पूरी तरह से योजना बना कर काम कर रहा है.

इसे आधार बना कर थानाप्रभारी ने बच्चों के गुमशुदा मामलों की तहकीकात नए सिरे से शुरू करने की योजना बनाई.

उत्तर प्रदेश का जिला अलीगढ़ तरहतरह के ताले बनाने के लिए देशविदेश में प्रसिद्ध है. तालों की जरूरत तो कोठियों, बंगलों, आलीशान मकानों, दुकानों, गोदामों आदि की सुरक्षा के लिए होती है. किंतु सड़क के किनारे खानाबदोशों की जिंदगी उतनी ही असुरक्षित बनी रहती है. वे अपनी बैलगाड़ी के ऊपर और नीचे तंबू तान कर जैसेतैसे अपनी जिंदगी गुजारते हैं. वे बंजारे के नाम से जाने जाते हैं. उन के घरों में दरवाजे ही नहीं होते हैं. पूरा परिवार सड़कों या कहीं नालों के किनारे खाली पड़ी जगहों पर रहता है.

वहीं उन का खाना पकाना, खाना और नहानाधोना होता है. उन्हें तालों की जरूरत हो न हो, लेकिन उन के जानमाल की सुरक्षा के लिए पुलिस प्रशासन की जरूरत बनी रहती है.

यही कारण है कि वहां के लोग अकसर पुलिस के पास अपनी तरहतरह की शिकायतें ले कर पहुंचते रहते हैं.

अलीगढ़ के इसी इलाके में बंजारों का एक परिवार क्वारसी बाईपास स्थित सरोज नगर की गली नंबर 6 के पास रहता था. वे पारंपरिक भट्ठी में लोहे को तपा कर सामान्य जरूरत के सामान छेनी, हथौड़ी, बाल्टी, कड़ाही आदि बनाते हैं. इस काम में दिमाग लगाने वाला काम पुरुष और हथौड़ा चलाने का काम अधिकतर औरतें करती रहती हैं.

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बात 21 जून, 2021 की है. रोज की तरह राजा भट्ठी पर लोहा तपा रहा था. तभी उस के सामने एक कार आ कर रुकी. उस में से 3 युवक निकल कर राजा के पास आए. उन से किसी बात को ले कर राजा से नोकझोंक हो गई. तभी उस की पत्नी रेखा भी आ गई. वह चीखती हुई बोली, ‘‘क्यों धमका रहे हो मेरे पति को?’’

‘‘तू क्या महारानी है?’’ एक युवक चिल्लाया और दूसरे ने राजा को पकड़ लिया. उन के आक्रामक तेवर देख वह घबरा गई.

‘‘बाबू हम गरीब लोग हैं, हमारे पति को माफ कर दो. आपलोग चले जाओ.’’ वह बोली.

ये सारी बातें थानाप्रभारी विनोद कुमार को रेखा ने तब बताईं, जब उसे रामकरण फेरीवाला के कहने पर दोबारा थाने बुला कर पूछा गया.

अगले भाग में पढ़ें- रेखा की बातों पर हुआ शक

Manohar Kahaniya: वीडियो में छिपा महंत नरेंद्र गिरि की मौत का रहस्य- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुने जाने के बाद नरेंद्र गिरि का कद तेजी से बढ़ने लगा. उन से मिलने वालों में नेताओं और अधिकारियों की लाइन लगने लगी. जिस निरंजनी अखाडे़ में वह हाशिए पर रहते थे, वहां भी उन का महत्त्व बढ़ गया था.

अखाड़े के तमाम प्रभावशाली लोग किनारे हो गए थे. ऐसे लोगों को नरेंद्र गिरि का बढ़ता कद अखरने लगा था. नरेंद्र गिरि ने तमाम ऐसे फैसले करने शुरू कर दिए, जो लोगों को नागवार गुजरने लगे थे. अखाड़ा परिषद का प्रमुख कार्य संतों के अलगअलग अखाड़ों को मान्यता देने का होता है. ऐसे में नरेंद्र गिरि ने 2017 में किन्नर और परी अखाडे़ को मान्यता देने से इंकार कर दिया था.

अखाड़ा परिषद में नरेंद्र गिरि की छवि कड़े फैसले लेने वाले अध्यक्ष की बन गई थी. महंत नरेंद्र गिरि ने फरजी संतों की एक लिस्ट जारी कर दी थी. इस में 19 संतों के नाम शामिल थे, जिस की वजह से वह काफी चर्चा में रहे थे.

मीडिया में यह सूची जारी करने के बाद उन पर दबाव पड़ रहा था कि वह इस सूची को वापस ले लें, लेकिन नरेंद्र गिरि सूची वापस लेने को तैयार नहीं थे. ऐसे में उन के खिलाफ विरोधियों की साजिश शुरू हो गई.

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नरेंद्र गिरि का एक वीडियो वायरल किया गया, जिस में वह एक शादी समारोह में डांस करने वाली लड़कियों पर नोट लुटा रहे थे.

नरेंद्र गिरि की तरफ से सफाई देते यह कहा गया था कि वह शादी रिश्तेदारी में थी, जिस में वह खुशीखुशी डांस करने वाली लड़कियों को नोट दे रहे थे. इस वीडियो के वायरल होने के बाद से नरेंद्र गिरि की छवि को काफी धक्का लगा था.

जायदाद और जमीन से जुडे़ विवाद

बाघंबरी गद्दी मठ और निरजंनी अखाड़े के पास अकूत धन और संपदा है. इसे ले कर साजिशों का दौर चल रहा था. प्रभावशाली लोग संतों के साथ मिल कर इस की जायदाद पर कब्जा करने का काम कर रहे थे. संतमहंत ही नहीं सेवादार भी अपने परिजनों के नाम जमीनें खरीद रहे थे.

इस तरह की बातों को ले कर ही नरेंद्र गिरि का अपने ही शिष्य आंनद गिरि के साथ विवाद शुरू हो गया. मठ मंदिर से जुडे़ लोग किसी न किसी तरह से ऐसे मसले तलाश करने लगे, जिस से वह नरेंद्र गिरि से अपनी बात मनवा सकें.

आनंद गिरि मूलरूप से उत्तराखंड के रहने वाले थे. किशोरावस्था में ही वह हरिद्वार के आश्रम में नरेंद्र गिरि को मिले थे. इस के बाद नरेंद्र गिरि उन को प्रयागराज ले आए थे. 2007 में आनंद गिरि निरजंनी अखाड़े से जुड़े और महंत भी बने. गुरु के करीबी होने के कारण लेटे हनुमान मंदिर के छोटे महंत के नाम से भी उन्हें जाना जाता था.

यह मंदिर भी बाघंबरी ट्रस्ट के द्वारा ही संचालित होता था. आनंद गिरि को योग गुरु के नाम से भी जाना जाता था. वह देशविदेश में योग सिखाने के लिए भी जाता था.

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महत्त्वाकांक्षी आनंद गिरि ने खुद को नरेंद्र गिरि का उत्तराधिकारी भी घोषित कर लिया था. बाद में विवाद होने के बाद नरेंद्र गिरि ने इस का खंडन किया था.

आनंद गिरि ने गंगा सफाई के लिए गंगा सेना भी बनाई थी. वह हरिद्वार में एक आश्रम भी बना रहा था. इस के बाद नरेंद्र गिरि के साथ उन का विवाद बढ़ गया था.

दूसरे शिष्य भी खफा रहते थे आनंद गिरि से

महत्त्वाकांक्षी आनंद गिरि दूसरे शिष्यों की आंखों में खटकता था. ऐसे में उस को ले कर सभी इस कोशिश में रहते थे कि वह नरेंद्र गिरि से दूर हो जाए.

आनंद गिरि के विरोधियों को तब मौका मिल गया, जब आनंद गिरि 2016 और 2018 के पुराने मामलों में अपनी ही 2 शिष्याआें के साथ मारपीट और अभद्रता को ले कर 2019 में सुर्खियों में आया था.

मई, 2019 में उसे जेल भी जाना पड़ा था. इस के बाद सितंबर माह में सिडनी कोर्ट ने उसे बाइज्जत बरी कर दिया था. इस के बाद उस का पासपोर्ट भी रिलीज कर दिया गया था. तब आनंद गिरि भारत आ गया.

आनंद गिरि का हवाई जहाज में शराब पीते हुए एक फोटो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. आंनद गिरि ने इसे शराब नहीं जूस बताया था. आनंद गिरि शौकीन किस्म का था. महंगी कार, बाइक और ऐशोआराम का उसे शौक था.

नरेंद्र गिरि से पहले भी ऐसे ही विवादों के बीच ही मठ के 2 महंतों की संदिग्ध हालत में मौत हो चुकी है. नरेंद्र गिरि का अपने ही षिष्य आनंद गिरि के साथ विवाद की वजह 80 फीट चौड़ी और 120 फीट लंबी गौशाला की जमीन का टुकड़ा बना. आनंद गिरि के नाम यह जमीन लीज पर थी. यहां पर पेट्रोल पंप बनना था.

कुछ दिनों के बाद महंत नरेंद्र गिरि ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि यहां पर पेट्रोल पंप नहीं चल सकता. उन का कहना था कि यहां पर मार्केट बना दी जाए, जिस से मठ की आमदनी बढ़ेगी.

आनंद गिरि का कहना था कि नरेंद्र गिरि उस जमीन को बेचना चाहते हैं. इस कारण लीज कैंसिल कराई गई थी.

मठ की इस करोड़ों रुपए की जमीन को ले कर नरेंद्र गिरि और उन के शिष्य आनंद गिरि के बीच घमासान इस कदर बढ़ गया कि नरेंद्र गिरि ने आनंद गिरि को निरंजनी अखाड़े और मठ से निकाल दिया था. इस के बाद आंनद गिरि भाग कर हरिद्वार पहुंच गया था.

आनंद गिरि ने इस के बाद सोशल मीडिया पर कई तरह के ऐसे वीडियो वायरल किए, जिन में नरेंद्र गिरि के शिष्यों के पास करोड़ों की संपत्ति होने का दावा किया गया था.

नरेंद्र गिरि ने इन मुद्दों पर सफाई देते कहा था कि ये आरोप बेबुनियाद हैं. उन की छवि को धूमिल करने के लिए यह काम किया गया है. कुछ समय के बाद आनंद गिरि ने अपने गुरु नरेंद्र गिरि से माफी मांग ली थी. माफी मांगने के वीडियो भी खूब वायरल हुए थे.

नरेंद्र गिरि का एक और विवाद लेटे हनुमान मंदिर के मुख्य पुजारी आद्या तिवारी और उस के बेटे संदीप तिवारी के साथ बताया जाता है. लेनेदेन के इस विवाद की वजह से दोनों के बीच बातचीत बंद थी.

जायदाद के ऐसे विवादों के अलावा भी नरेंद्र गिरि कई तरह के दूसरे विवादों में भी घिरे थे. नरेंद्र गिरि के करीबी रहे शिष्य और निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत आशीष गिरि ने 17 नवंबर, 2019 को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी. आशीष गिरि ने जमीन बेचने का विरोध किया था.

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दारागंज स्थित अखाड़े के आश्रम में आशीष गिरि ने गोली मार कर आत्महत्या की थी. इस की वजह यह बताई जा रही थी कि 2011 और 2012 में बाघंबरी गद्दी की जमीन समाजवादी पार्टी के नेता को बेची जा रही थी. पुलिस ने आशीष गिरि की आत्महत्या का कारण डिप्रेशन बताया था.

वीडियो में छिपे राज

जानकार लोगों का मानना है कि नरेंद्र गिरि का कोई ऐसा वीडियो था, जिस के वायरल होने से उन को अपने मानसम्मान के धूमिल होने का डर लग रहा था. एक ऐसा ही वीडियो पहले भी वायरल हो चुका था, जिस में वह डांस करने वाली लड़कियों पर रुपए लुटा रहे थे.

यह माना जा रहा है कि उस की तरह का या उस से अधिक घातक वीडियो और भी हो सकता है. जिस की आड़ में उन को ब्लैकमेल किया जा रहा था. ऐसे में अपना मानसम्मान खोने के डर से नरेंद्र गिरि ने आत्महत्या जैसा फैसला कर लिया.

उत्तर प्रदेश सरकार ने नरेंद्र गिरि की मौत की जांच कराने के लिए एसआईटी का गठन कर दिया है. 18 सदस्यों वाली इस जांच टीम की निगरानी 4 अफसरों को सौंपी.

पुलिस ने गिरफ्तार किए गए आरोपी आनंद गिरि, आद्या तिवारी और उन के बेटे संदीप तिवारी को भादंवि की धारा 306 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर नैनी जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक इस केस की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी.

नरेंद्र गिरि ने सुसाइड नोट लिखने के अलावा अपना बयान रिकौर्ड कर के भी मोबाइल में रखा है. मौत की वजह जायदाद और मठ के महंत पद का लालच है.

महंत नरेंद्र गिरि की मौत से पता चलता है कि मंदिर और मठ कितनी भी धर्म की बातें कर लें पर वहां भी लालच और एक दूसरे के खिलाफ षडयंत्र हावी रहता है, जिस की वजह से ऐसी घटनाएं घटती रहती है.

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