दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड और रात के 11 बजे महल्ले वाले अपनेअपने घरों की रजाइयों में दुबके होंगे. जबकि प्रेम की अगन, हम दोनों को एकदूसरे से मिलने के लिए बेकरारी बढ़ा रही थी. मैं अपने घर की छत पर पहुंचा. धीरे से उस की छत पर पहुंचा पूरी सावधानी से. मन में डर था. कोई देख न ले. प्रेम आदमी में हिम्मत और जोश भर देता है. यह बात तो आज पक्की हो गई थी.
मैं उस के बैडरूम में था उस के साथ. मैं उसे जीभर कर देख रहा था. और वह मु झे. मैं उस से लिपट गया. उस ने विरोध नहीं किया. मैं उसे चूमने लगा. उस ने मेरा साथ दिया. मैं ने उस के कपड़े उतारने की कोशिश की. उस ने कहा, ‘‘यह सब जरूरी है क्या? मन तो मिल चुके हैं,’’ मैं ने अपने हाथ वापस खींच लिए. उसे गोद में उठा कर बिस्तर पर फूल की तरह रखा और उस से लिपट गया. मैं उसे फिर से चूमने लगा. वह भी मु झे चूमने लगी. सर्दी में गरमी का एहसास होने लगा. मैं ने फिर आगे बढ़ना चाहा. उस ने फिर कहा, ‘‘यह सब जरूरी है क्या?’’
‘‘तुम डर रही हो. घबराओ मत. मैं तुम्हारे साथ हूं,’’ मैं ने उसे हिम्मत बंधाते हुए कहा. और मेरे हाथ फिर से उस के वस्त्र उतारने की ओर बढ़े.
‘‘यह सब तो तुम अपनी पत्नी के साथ कई बार कर चुके होगे. मैं तुम से सैक्स नहीं, केवल प्यार चाहती हूं.’’
‘‘सैक्स भी तो प्यार प्रदर्शित करने का एक माध्यम है. क्या तुम मु झे नहीं चाहती. यदि प्रेम करती हो तो फिर संबंध बनाने से इनकार क्यों?’’ उस के जिस्म पर मेरे होंठ और हाथ हरकत कर रहे थे. उस का शरीर समर्पण मुद्रा में था.
‘‘अगर तुम यही चाहते हो तो यही सही. मैं आप की खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं. आगे कुछ हो तो आप संभाल लेना.’’
मैं शिकारी की मुद्रा में था. इस अनमोल समय को मैं किसी भी हालत में छोड़ना नहीं चाहता था. एकदो बार दिमाग ने सम झाने की कोशिश की. लेकिन इस स्थिति में दिमाग की कौन सुनता है. दिमाग खुदबखुद शरीर के बाकी हिस्से के साथ शामिल हो जाता है. वह शरमाती रही. मैं उसे निर्वस्त्र करता रहा. उस ने कहा, ‘‘एक बार फिर सोच लो.’’
मैं ने कहा, ‘आई लव यू’ और मैं आगे बढ़ता रहा. वह धीरेधीरे कराहती रही और मैं आगे बढ़ता रहा. कुछ समय बाद वह मेरा साथ देने लगी. मेरे चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे. उस के चेहरे पर संतुष्टि के साथ डर भी था. मैं ने उसे गोली निकाल कर दी.
‘‘इसे खा लो.’’
‘‘पूरी तैयारी के साथ आए हो,’’ उस ने गोली हाथ में ले ली. फिर वह मु झ से लिपट कर रोने लगी.
‘‘मु झे छोड़ना मत. मैं ने अपना सबकुछ तुम्हें सौंप दिया.’’
मैं ने उसे कभी न छोड़ने का वादा किया. सुबह 4 बजे में वापस लौटा. मेरे मन पर भी कुछ बो झ सा आ गया था. मैं भी सही और गलत पर विचार करने लगा था. और वह तो अब जैसे मु झ पर ही निर्भर हो चुकी थी. मु झे ही अपना सबकुछ मान बैठी थी. उस का बारबार फोन आना. अपना अधिकार जता कर बात करना. भविष्य के बारे में बात करना. बातबात पर रो देना. कभी भी मेरे कालेज चले आना. फिर मिलने की बात करना. इन सब बातों ने मु झे भारी दबाव में ला दिया था.
मैं स्वयं को मानसिक रूप से क्षतिग्रस्त सा पा रहा था. मैं ने उसे सम झाया कि देखो, हम एकदूसरे से प्यार करते हैं. इस तरह तुम्हारी जिद और अधिकार हमारे प्रेमभरे संबंधों के लिए घातक हैं. हम बिना किसी बंधन के ज्यादा सुखी रह सकते हैं. तुम्हें अपने ऊपर नियंत्रण रखना चाहिए. मेरी बात पर उस ने सिसकते हुए कहा, ‘‘मैं कहां अधिकार जता रही हूं. प्रेम के बदले प्रेम ही तो मांग रही हूं. पहले आप मिलने के लिए कितने उतावले रहते थे. अब तो बस हां या न में उत्तर देते हो. पहले की तरह सुबह आते भी नहीं हो.’’
‘‘इन दिनों मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है,’’ कहने को तो मैं ने कह दिया. लेकिन सच बात यही थी कि मैं अपने अंदर अब वह जोश वह उत्साह नहीं पा रहा था, चाह कर भी. उस की बारबार की शिकायतों से तंग आने लगा था मैं. तो क्या मु झे उस से जो चाहिए था उस की पूर्ति हो चुकी थी? क्या उस के प्रति मेरी दीवानगी मात्र उस के शरीर को पाने तक सीमित थी? क्या चंद रातों के लिए मैं ने अपना सुकून और एक लड़की का जीवन दांव पर लगा दिया था? क्या मु झे अपनी पत्नी से ऐसा कुछ नहीं मिल रहा था जो मैं ने इस लड़की में तलाशना चाहा? कहीं यह मेरी अधेड़ावस्था के कारण तो नहीं.
प्यार तो उस समय करता था मैं उस से. आज भी करता हूं लेकिन वह बात नहीं रही अब? क्यों नहीं रही वह बात? क्या मैं उस के शरीर का भूखा था मात्र? अब क्यों उस के पीछेपीछे नहीं जाता मैं? क्यों उस से कतराता रहता हूं. इस के लिए कहीं न कहीं वह भी दोषी है. एकदम से पीछे पड़ जाना, बारबार फोन करना, हरदम मिलने की कोशिश करना कहां तक उचित है? लेकिन मु झे उसे सम झाना होगा. उस पर ध्यान भी देना होगा. कमउम्र की लड़की है. न जाने गुस्से या नाराजगी में क्या कर बैठे? वह जबजब मिली, नईपुरानी शिकायतों के साथ मिली. और मैं प्रेम से उसे प्रेम की परिभाषा सम झाता रहा. जिस में त्याग की भावना मुख्य थी. लेकिन सम झाना व्यर्थ ही रहता. वह अधिकार चाहती थी. जो मैं उसे नहीं दे सकता था.
‘‘आप ने ही तो कहा था कि मेरे लिए सबकुछ कर सकते हो.’’
‘‘हां, तो कर तो रहा हूं. तुम से मिलता हूं, बात करता हूं.’’
‘‘मु झे अपना अधिकार चाहिए.’’
‘‘हमारे बीच अधिकार की बात कहां से आ गई?’’
‘‘प्यार है तो अधिकार तो आएगा ही, मेरी भी कुछ इच्छाएं हैं, अरमान हैं. मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं. घर बसाना चाहती हूं.’’
‘‘अब वह शादी की बात कहां से आ गई? तुम क्या चाहती हो? मैं अपने बीवी, बच्चे छोड़ दूं? क्या वे मु झे इतनी आसानी से छोड़ देंगे? समाज, कानून भी कोईर् चीज है.’’
‘‘आप ने जो वादे किए थे उन का क्या?’’
‘‘मैं ने प्यार करने का, निभाने का वादा किया था.’’
‘‘तो ले चलो मु झे कहीं दूर अपने साथ. मत करना शादी. मैं ऐसे ही रहने को तैयार हूं.’’
‘‘उफ यह क्या मुसीबत मोल ले ली मैं ने. कहां ले जाऊं इसे? कहां रखूं? लोगों को पता चलेगा. पत्नी को पता चलेगा तो क्या सोचेगी मेरे बारे में. मैं उस से स्पष्ट नहीं कह सकता था कि मेरा पीछा छोड़ो. वह कुछ भी कर सकती थी. इन दिनों उस के तेवर ठीक नजर नहीं आ रहे थे मु झे. वह मेरा नाम लिख कर आत्महत्या कर सकती थी. वह पुलिस थाने जा कर यौनशोषण का आरोप लगा सकती थी मु झ पर. मु झे ऐसी किसी भी स्थिति से बचने के लिए उसे यह एहसास दिलाना जरूरी था कि मैं जल्द ही उस की इच्छा पूरी करने के लिए कोई कदम उठाने जा रहा हूं. क्या करूं, कैसे पीछा छुड़ाऊं? जिस लड़की के लिए मैं मरा जा रहा था आज उस से पीछा छुड़ाने के विषय में सोच रहा था.’’
मैं भूल गया था कि वह कोई सैक्स का खिलौना नहीं थी कि जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल कर दिया और रख दिया एक तरफ. वह जीवित हाड़मांस की 25 वर्षीया नौजवान लड़की थी. उस की इच्छाएं, अरमान होना स्वाभाविक था. लेकिन मेरा अपना जीवन था. मैं प्रोफैसर था. विवाहित था. 2 बच्चों का बाप था. यह बात मु झे उस रात उस के घर में जा कर उस से संबंध बनाने से पहले सोचनी चाहिए थी. तो क्या करूं पीछा छुड़ाने के लिए. ले जाऊं कहीं दूर और फेंक दूं मार कर उस की लाश को कहीं. क्या मैं यह कर सकता हूं? क्या यह मु झे करना चाहिए? तो क्या उसे अपनी गैरकानूनी पत्नी बना कर रख लूं. लोग यही तो कहेंगे कि दूसरी औरत रख ली है. हत्यारा बनने से तो बचूंगा. फिर मेरी उम्र और उस की उम्र में 20 वर्ष का अंतर है. जब मु झ से शारीरिक सुखों की पूर्ति नहीं होगी, तो खुद ही चली जाएगी छोड़ कर. सारा प्यार एक तरफ धरा रह जाएगा. नहीं…नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता.
एक दिन उस ने रोते हुए कहा, ‘‘जल्दी कुछ करो, मेरे घर वाले शादी के लिए लड़का तलाश रहे हैं.’’
‘‘यह तो अच्छी बात है. तुम्हारी उम्र का पढ़ालिखा, अच्छी नौकरी वाला जीवनसाथी मिलेगा. जो सिर्फ तुम्हारा होगा.’’
‘‘मैं किसी से शादी नहीं करूंगी. मेरी शादी होगी तो सिर्फ तुम से… वरना सारा जीवन कुंआरी रहूंगी.’’
मैं ने उसे सम झाते हुए कहा, ‘‘तो ठीक है तुम अपने पैरों पर खड़ी हो. यदि शादी की तुम्हारी शर्त है तो मेरी भी एक शर्त है. तुम्हें प्रोफैसर की पत्नी बनना है तो पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होना होगा.’’
मैं ने दांव चलाया. दांव चल गया. उस ने जोश में कहा, ‘‘तो ठीक है, मैं आप को अपने पैरों पर खड़ी हो कर दिखाऊंगी. लेकिन प्यार कम नहीं होना चाहिए.’’
उस के आखिरी वाक्य से मैं आहत
सा हुआ. लेकिन मु झे रास्ता मिल गया.
अच्छा रास्ता जो लड़की के भविष्य के लिए उचित था.
‘‘हां, प्यार कम नहीं होगा. वादा रहा. लेकिन तुम्हें किसी बड़ी कंपनी या सरकारी नौकरी में ऊंची पोस्ट पर आना होगा. इस के लिए तुम्हें खूब तैयारी करनी होगी. सबकुछ भूल कर कम से कम 12 घंटे पढ़ना होगा. चाहो तो किसी बड़े शहर में कोचिंग जौइन कर लो. साथ ही, अपनी पढ़ाई भी जारी रखो. मैं इस में तुम्हारी मदद करूंगा.’’
‘‘लेकिन मेरे घर वाले मु झे बाहर भेजने के लिए राजी नहीं होंगे.’’
‘‘तुम पढ़ाई पर ध्यान दो. तुम्हारी लगन और मेहनत देख कर वे खुद तुम्हें भेजेंगे. मैं भी सम झाऊंगा उन्हें.’’
‘‘लेकिन अपना वादा याद रखना.’’
‘‘तुम अपना वादा तो निभाओ.’’
‘‘मैं बीचबीच में मिलती रहूंगी. मिलना होगा आप को. फोन पर बात भी करनी होगी.’’
‘‘मु झे मंजूर है,’’ मैं ने खुशी के साथ कहा.
यदि लड़की अपने पैरों पर खड़ी हो कर भी मु झ से जुड़ी रहना चाहे तो मु झे कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. ऐसा मेरा मानना था. धीरेधीरे उम्र बढ़ेगी. सम झ भी बढ़ेगी. लड़की नौकरी में होगी तो उस का अपना स्टेटस भी होगा. वह अपने बराबर का रिश्ता देखेगी. चार लोगों में उसे भी तो अपने पति से मिलवाना होगा. मु झे नहीं लगता कि वह आज से 5 वर्ष बाद मु झे किसी से अपने पति के रूप में मिलवाना पसंद करेगी.
इस बीच मेरी पत्नी का शक मजबूत हो चुका था. अब वह उसे घर आने की बात पर टाल देती. उस से ठीक से बात नहीं करती. मु झ से भी कई बार उसे ले कर झगड़ा हो चुका था. मेरे मोबाइल की घंटी बजते ही झट से पत्नी आ कर मोबाइल उठा कर पूछती. जब उसे यकीन हो जाता कि दूसरी तरफ मेरी प्रेमिका है तो वह उलटीसीधी बातें सुनाती. गालियां देती और मोबाइल पटक देती. कई बार मेरे कालेज भी आ जाती. एकदो बार उस ने बात करते हुए पकड़ भी लिया और उसे और मु झे खूब खरीखोटी सुनाई. मैं ने अपनी पत्नी को कई बार सम झाया कि वह कम उम्र की नादान लड़की है. पढ़ाईलिखाई में मदद मांगने आती है. लेकिन पत्नी का स्पष्ट कहना था कि मु झे बेवकूफ बनाने की जरूरत नहीं है. मैं सब सम झती हूं. घर में मेरे सम्मान की धज्जियां उड़ने लगीं. पत्नी बातबात पर व्यंग्य करने से नहीं चूकती.
मैं ने अपनी पत्नी की आड़ ले कर उसे डराते हुए सम झाया, ‘‘मेरे मोबाइल पर बात मत करना. खासकर जब मैं घर में रहूं. तुम्हारे घर वालों से शिकायत कर दी, तो तुम्हारे घर वाले तुम्हें चरित्रहीन सम झेंगे. तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध तुम्हारा विवाह कर देंगे. यदि तुम हम दोनों का भला चाहती हो, सुखी भविष्य देखना चाहती हो तो अपने पैरों पर खड़ी हो कर दिखाओ. इसी दिन के लिए मैं बारबार फोन करने, मिलने के लिए मना करता था. यह दुनिया शुरू से प्यार की दुश्मन रही है. लेकिन तुम ने प्यार को प्यार न सम झ कर अधिकार सम झ लिया.’’
उस ने रोंआसे स्वर में कहा, ‘‘जब तुम्हारी पत्नी ने मु झे भलाबुरा कहा, तब तुम ने क्यों कुछ नहीं कहा. अपने प्यार का अपमान होते देखते रहे.’’
मैं ने गुस्से से कहा, ‘‘यदि मैं कुछ कहता तो वह तुम्हारा तमाशा बना कर रख देती. जो मैं नहीं चाहता था. तुम सम झतीं क्यों नहीं बात?’’
वह सम झ गई. उदास हो कर घर चली गई. मैं ने लड़की के पिता बिहारीलालजी को एक पत्र लिखा और उन के बैंक के पते पर पोस्ट कर दिया. पत्र में बहुत विश्वसनीयता से उन की पुत्री के गैर लड़के से संबंधों की जानकारी लिखी थी. बिहारीलालजी बैंक में अंकाउंटैंट थे. उन के परिवार में इस बेटी के अलावा एक बेटी, एक बेटा और पत्नी थी. मैं जानता था कि भारतीय मध्यमवर्गीय परिवार में लड़की बाहर चाहे जो करे लेकिन प्रेम के नाम पर यदि मातापिता उसे डांटेंमारें तो वह किसी अपराधी की तरह सिर झुका कर सब सुनतीसहती रहेगी. यही हुआ भी. उस के मातापिता डांट रहे थे. उन की आवाजें मेरे घर तक आ रही थीं. मेरी पत्नी ने मु झ पर व्यंग्य करते हुए कहा, ‘‘लो, लड़की ने तो तुम जैसे न जाने कितने फंसा रखे हैं.’’
मैं ने पत्नी को जम कर लताड़ते हुए कहा, ‘‘गंवार, बेवकूफ औरत. वह एक सीधीसाधी लड़की है. कम उम्र की है. बचपना है उस में. मैं तो उसे टीचर बन कर पढ़ाता था. तुम ने मु झे भी नहीं बख्शा. इस उम्र में हो जाता है लगाव. मैं उस के पिता से बात कर के उन्हें सम झाऊंगा. दोबारा मेरा नाम उस के साथ जोड़ने की गलती मत करना. वह सिर्फ मेरे लिए एक स्टूडैंट है. और ऐसी न जाने कितनी छात्राएं मु झ से पढ़ाई संबंधी सवाल पूछती हैं. कभीकभी कम उम्र के बच्चों को लगाव हो जाता है. इस का अर्थ यह तो नहीं कि मैं उस का प्रेमी हो गया.’’
पत्नी खामोश हो गई. कभीकभी तेज स्वर में सचाई से झूठ बोलना सच को छिपा देता है. दूसरे ही दिन मैं बैंक में जा कर बिहारीलालजी से मिला. मु झे देख कर वे आश्चर्य में पड़ गए. मैं ने कहा, ‘‘कुछ बात करनी थी. थोड़ा सा समय लूंगा आप का.’’
‘‘कहिए.’’
‘‘थोड़ा एकांत में.’’
वे बैंक से बाहर आ गए. मैं ने कहा, ‘‘कल आप के घर से तेज आवाजें आ रही थीं.’’ उन के चेहरे पर तनाव आ गया.’’
‘‘मैं पहले ही इस संबंध में आप को बताना चाहता था लेकिन हिम्मत नहीं हुई. अब जब आप को सब पता चल ही चुका है तो मेरी सलाह मानिए. आप की बेटी पढ़ने में होशियार है. किसी लड़के के बहकावे में आ गई है. लड़की सभ्य, संस्कारी, पढ़ने में तेज है. इस तरह की बातों पर शोर करने से मामला बिगड़ता है. कल गुस्से में लड़की ने कोई गलत कदम उठा लिया तो मुश्किल हो जाएगी आप के लिए.’’
‘‘आप ही बताइए, क्या करूं मैं?’’
‘‘मेरी मानिए, लड़की को कुछ समय कोचिंग और कालेज की पढ़ाई के लिए बाहर भेज दीजिए. यदि नौकरी में आ गई तो आप के दोनों बच्चों को भी मार्गदर्शन मिल जाएगा. घर की मदद भी हो जाएगी. यह सारा झमेला भी खत्म हो जाएगा.’’
‘‘आप जानते हैं उस लड़के को?’’
‘‘नहीं, मैं ने एकदो बार उसे मोटरसाइकिल पर घूमते देखा है आप की लड़की को. आप यह सब छोडि़ए और लड़की के भविष्य व परिवार के सम्मान की खातिर उसे दिल्ली भेज दीजिए. दोतीन साल की बात है. इस बीच कोई अच्छा रिश्ता आ जाए तो बुला कर शादी कर दीजिए.’’
‘‘आप ठीक कहते हैं,’’ बिहारीलालजी मेरी बात से सहमत थे.
उन्होंने तब तक लड़की का घर से निकलना बंद कर दिया. उस का मोबाइल छीन लिया. जब तक कि वे उसे दिल्ली के एक अच्छे कोचिंग इंस्टिट्यूट में नहीं छोड़ आए. मैं ने राहत की सांस ली. एक प्यारभरी गलती, एक विवाहित पुरुष की प्यार करने की गलती, एक कम उम्र की लड़की से प्यार करने का अपराध और बाद में उस से अपने सुखद भविष्य, शांतिपूर्ण गृहस्थी और लड़की की भलाई के लिए मु झे जो करना था, वह मैं ने किया. इसे गुनाह छिपाने का सकारात्मक तरीका भी कहा जा सकता है.
कालेज के समय पर उस के फोन आते. वह ‘आई लव यू’, ‘आई मिस यू’ के मैसेज करती. मु झे बेइंतहा प्यार करने की बात कहती और साथ ही अपना वादा याद रखने की बात कहती. मैं बदले में यही कहता, ‘कुछ बन कर दिखाओ, प्यार के लिए, पहले.’
वह शायद पढ़ाई में व्यस्त होती गई. अब फोन आते, लेकिन पहले वह पढ़ाई संबंधी मार्गदर्शन लेती, उस के बाद अंत में आई लव यू पर अपनी बात खत्म करती. मैं जानता हूं होस्टल का खुलापन, हमउम्र लड़केलड़कियों की एक कालेज में पढ़ाई के साथ मौजमस्ती. धीरेधीरे उस का मेरी तरफ से ध्यान हटेगा. अपने हमउम्र किसी लड़के पर उस का झुकाव बढ़ेगा.
उस ने एक दिन फोन कर के बताया कि वह बैंक के साथसाथ पीएससी की तैयारी भी कर रही है. कालेज की पढ़ाई खत्म हो चुकी है. उस ने यह भी बताया कि पिताजी को किसी ने मेरे बारे में उलटासीधा पत्र लिखा था. इसलिए उन्होंने मु झे दिल्ली भेज दिया. जबकि ऐसा नहीं था. उस ने यह भी बताया कि शादी के लिए पिताजी ने एक लड़का पसंद किया है. मु झे बुलाया है. लेकिन मैं ने उन से स्पष्ट कह दिया कि मैं जब तक अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाती, वापस नहीं आऊंगी. यदि वे रुपए न भी भेजें, तो कोई पार्टटाइम जौब कर लूंगी. फिर धीरेधीरे फोन अंतराल से आने लगे. कईकई दिनों में. फोन आते भी तो आई लव यू भी कई बार नहीं कहा जाता.
मेरी उम्र 50 वर्ष हो चुकी थी. उसे गए हुए 5 वर्ष बीत चुके थे. मु झे पता चला उस के पिता से कि उस ने पीएचडी कर ली है. नैट निकाल लिया है. वह साथ ही आईपीएस की तैयारी भी कर रही है. मु झे खुशी हुई कि उस ने मु झे फोन लगा कर नहीं बताया. इच्छा हुई कि एक बार उस से मिलूं, इस मिलने में कोई प्रेम नहीं था, वासना नहीं थी. बस, देखना था कि कितना भूल चुकी है वह.
मैं ने 3 माह लगातार साबुन से बाल धोए. न बाल कटवाए, न डाई करवाई. इस से मेरे बालों की पिछली सारी ब्लैक डाई निकल चुकी थी. मेरे सारे बाल सफेद थे. और चेहरे पर सफेद चमचमाती दाढ़ी. आंखों में पावर का चश्मा. मैं इग्नू के काम से दिल्ली आया हुआ था. सोचा, मिलता चलूं और परिवर्तन देखूं. होस्टल का पता उसी के द्वारा मु झे मालूम था. मैं होस्टल के बाहर था. वह गु्रप में लड़कियों के साथ हंसीमजाक कर रही थी. मु झे देख कर वह सकते में आ गई.
मैं उस के पास पहुंचा तो उस ने अपनी साथ की लड़कियों से कहा, ‘‘यह मेरे अंकल हैं,’’ सभी लड़कियों ने मु झे ‘हाय अंकल,’ ‘नमस्ते अंकल’ कहा. उसे लगा मैं कुछ कह न दूं. वह मु झे फौरन होस्टल के गैस्टरूम में ले गई. उस समय वहां कोई नहीं था. वह मु झ पर भड़क कर बोली, ‘‘आप बिना बताए कैसे आ गए? आए थे तो कम से कम हुलिया ठीक कर के आते. इस समय आप अंकल नहीं, दादाजी लग रहे हैं. क्या जरूरत थी आप को यहां आने की?’’
मु झे खुशी हुई उस की बात सुन कर. फिर भी मैं ने कहा, ‘‘तुम से मिलने की इच्छा हुई, तो चला आया.’’
‘‘ऐसे कैसे चले आए? यह गर्ल्स होस्टल है. फिर आशिकी का भूत सवार तो नहीं हो गया ठरकी बुड्ढे. जो हुआ मेरा बचपना था. अगर वह बात किसी को बता कर बदनाम करने की कोशिश की तो जेल भिजवा दूंगी यौनशोषण का केस लगा कर.’’
तभी उस का फोन बजा. वह एक तरफ जा कर बात करने लगी.
‘‘हां, रमेश, कल की पार्टी मेरी तरफ से. उस के बाद पिक्चर का भी प्रोग्राम है. हां, मेरा सलैक्शन हो गया है कालेज में.’’
‘‘यह रमेश कौन है?’’ मैं ने पूछा, हालांकि मु झे पूछने की जरूरत नहीं थी.
‘‘मेरा बौयफ्रैंड है,’’ फिर उस ने मु झे सम झाया, ‘‘प्लीज, पुरानी बातें भूल जाओ. मैं ने गुस्से में जो कहा, उस के लिए माफ करना. यहां मेरा अपना टौप का सर्कल है. यदि किसी को तुम्हारे बारे में पता चलेगा तो मेरा मजाक उड़ाएंगे सब.’’
‘‘अच्छा, मैं चलता हूं,’’ मैं पूरी तरह निश्ंिचत हो कर उठा.
‘‘अंकल, आप ने पढ़ाई में मेरी जो मदद की है, उस के लिए धन्यवाद. एक बार गलती हम दोनों से हुई थी. उसे याद करने की जरूरत नहीं. प्लीज, आप जाइए. कोई पूछे तो कहना आप मेरे अंकल हैं. घर के लोगों ने कहा था कि दिल्ली जा रहे हो, तो बेटी के हालचाल पूछते हुए आना.’’
‘‘हां, बिलकुल यही कहूंगा.’’
मैं होस्टल के गैस्टरूम से बाहर निकला. उस का मु झे भूलना, मु झ से चिढ़ना, मु झ से बचना, यही तो चाहता था मैं. जो हो चुका था. मेरी गलती का, अपराध का सफल प्रायश्चित्त हो चुका था. मैं खुश था, मेरे मन का सारा बो झ उतर चुका था. मैं अपनी सफाई, सम झदारी से बच तो निकला था लेकिन दाग फिर भी धुला नहीं था पूरी तरह.
घर पर जब कभी कोई नैतिकता, प्रेम, विश्वास की बात करता तो पत्नी के मुंह से निकल ही जाता, तुम तो रहने ही दो. तुम्हारे मुंह से ये बातें अच्छी नहीं लगतीं. और मैं चुप रह जाता. चुप रहने में ही भलाई सम झता. कहने को अपनी सफाई में बहुतकुछ कह सकता था मैं. लेकिन, मैं खामोश रहता क्योंकि अंदर से मैं जानता था कि कहीं न कहीं से गुनहगार हूं मैं. द्य