25 अगस्त, 2020 को नरेंद्र गंगवार अपने ससुर हीरालाल के पैतृक गांव पैगानगरी पहुंचा. यह गांव बरेली जिले की तहसील मीरगंज में आता है. गांव के दुर्गाप्रसाद नरेंद्र को जानते थे, इसलिए वह उन्हीं से मिला. नरेंद्र के ससुर हीरालाल दुर्गाप्रसाद के नाना थे.
पैगानगरी में हीरालाल की 16 बीघा जमीन थी जो उन्होंने बटाई पर दे रखी थी. वह खेती की पैदावार का हिस्सा लेने गांव आते रहते थे. नरेंद्र बटाई का हिस्सा लेने आया था. साथ ही उसे इस से भी बड़ा एक और काम था. दुर्गा प्रसाद नरेंद्र को जानते थे. वह कई बार अपने ससुर के साथ गांव आया था.
इस पर नरेंद्र ने कहा, ‘‘दुर्गा प्रसादजी, बहुत दुखद खबर है. आप के नाना हीरालालजी अब इस दुनिया में नहीं रहे. 22 अप्रैल, 2020 को हीरालालजी और उन की मंझली बेटी दुर्गा ने जहर खा कर आत्महत्या कर ली थी. लौकडाउन के चलते हम किसी को उन की मृत्यु की खबर नहीं दे पाए.
कोरोना महामारी के चलते मैं ने अपनी बीवी लीलावती, किराएदार विजय व अन्य लोगों के सहयोग से उन का दाहसंस्कार करा दिया था.
बाद में पति के वियोग में उन की पत्नी हेमवती भी बेटी पार्वती को ले कर कहीं चली गईं. मैं ने और लीलावती ने उन्हें सब जगह ढूंढा, लेकिन उन का कहीं पता न चल सका.’’
हीरालाल की मृत्यु की खबर सुन कर दुर्गा प्रसाद को झटका लगा.
दुर्गाप्रसाद के पास गांव के कई लोग बैठे थे. यह खबर सुन कर सब हैरत में रह गए. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि जो इंसान अपनी औलादों के सुनहरे भविष्य के लिए गांव छोड़ शहर जा बसा था, वह कायरों की तरह आत्महत्या कर लेगा.
हीरालाल की मृत्यु की खबर सुन कर गांव के लोग तरहतरह की बातें करने लगे. दुर्गाप्रसाद और गांव वालों की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि जब पति और बेटी खत्म हो गई तो हेमवती को छोटी बेटी को ले कर कहीं जाने की क्या जरूरत थी? गांव में उस के पति की 16 बीघा जमीन थी, जिस के सहारे आराम से दोनों की जिंदगी चल जाती. गांव में उन का अपना मकान भी था.
नरेंद्र ने अपने आने का मकसद बताते हुए कहा, ‘‘ससुर के घर के पास ही मेरा भी मकान है. उन के मकान पर एकमात्र बची उन की बेटी लीलावती का मालिकाना हक है. मैं उस मकान को लीलावती के नाम कराना चाहता हूं, लेकिन इस के लिए मुझे हीरालालजी के मृत्यु प्रमाण पत्र की जरूरत है. आप लोग उन के परिवार के लोग हो, आप यह काम करा सकते हैं.’’
नरेंद्र की बात सुन कर दुर्गा प्रसाद का दिमाग घूम गया. उन्हें नरेंद्र की बात में कुछ झोल नजर आया. दुर्गा प्रसाद ने उसी समय हीरालाल के बटाईदार कुंवर सैन के घर जा कर उन्हें सारी बात बताई और नरेंद्र की बातों पर शक जाहिर किया.
कुंवर सैन ने उसे बटाई का हिस्सा देने से साफ मना कर दिया. साथ ही दुर्गा प्रसाद ने लिखित में कुछ देने से भी इनकार कर दिया. नरेंद्र खाली हाथ लौट गया.
नरेंद्र की बातों पर शक हुआ तो दुर्गा प्रसाद हीरालाल के बटाईदार कुंवर सैन को साथ ले कर 27 अगस्त, 2020 को उन की मौत की सच्चाई जानने के लिए रुद्रपुरट्रांजिट कैंप पहुंचे. वहां हीरालाल के घर पर ताला लगा मिला.
उन्होंने पड़ोसियों से उन के बारे में जानकारी लेनी चाही तो पता चला कि हीरालाल के घर पर पिछले 15 महीने से ताला लटका हुआ है. इस दौरान उन्होंने कभी भी हीरालाल और उन के परिवार वालों को आतेजाते नहीं देखा.
यह जान कर दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन को हैरानी हुई, क्योंकि नरेंद्र ने उन्हें बताया था कि हीरालाल ने जहर खा कर आत्महत्या कर ली थी. लेकिन उस के पड़ोसियों को इस की जानकारी नहीं थी.
नरेंद्र का झूठ सामने आया तो दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन समझ गए कि हीरालाल की संपत्ति हड़पने की मंशा के चलते नरेंद्र ने ही कोई चक्रव्यूह रच कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया होगा.
हीरालाल के परिवार के साथ किसी अनहोनी की आशंका को देखते हुए दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन उसी दिन ट्रांजिट कैंप थाने पहुंच गए. उन्होंने यह बात थानाप्रभारी ललित मोहन जोशी को बताई.
मामला एक ही परिवार के 4 लोगों के लापता होने का था, इसलिए जोशीजी ने इसे गंभीरता से लिया. दुर्गाप्रसाद और कुंवर सैन से जरूरी जानकारी ले कर जोशी ने उन्हें घर भेज दिया. फिर थानाप्रभारी जोशी ने इस मामले की सच्चाई जानने के लिए गुप्तरूप से जांचपड़ताल करानी शुरू की. सादे कपड़ों में जा कर उन्होंने नरेंद्र गंगवार को कब्जे में लिया, ताकि वह फरार न हो सके.
थानाप्रभारी ललित मोहन जोशी ने नरेंद्र से हीरालाल और उन के परिवार के सदस्यों के बारे में कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में नरेंद्र शुरूशुरू में इधरउधर की कहानी गढ़ता रहा. लेकिन जब पुलिस की सख्ती बढ़ी तो उस का धैर्य जवाब दे गया. उस के बाद उस ने अपनी ससुराल वालों की हत्या की बात स्वीकार कर ली. उस ने यह काम अपने किराएदार विजय की मदद से किया था.
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नरेंद्र गंगवार ने बताया कि 20 अप्रैल, 2019 को सुबह साढ़े 5 बजे उस ने विजय के साथ मिल कर सासससुर और 2 सालियों को डंडे से मार कर मौत के घाट उतारा था. फिर गड्ढा खोद कर उन की लाशों को उन्हीं के मकान में दफन कर दिया था.
नरेंद्र द्वारा 4 लोगों की हत्या कर घर में ही दफनाने वाली बात सामने आई तो थानाप्रभारी भी आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने इस की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. साथ ही तत्परता दिखाते हुए थानाप्रभारी ने नरेंद्र के सहयोगी उस के किराएदार विजय को अपनी हिरासत में ले लिया.
अधिकारियों ने थाना ट्रांजिट कैंप के साथसाथ थाना पंतनगर, थाना रुद्रपुर और थाना किच्छा से भी पुलिस टीम बुला ली. देखतेदेखते आजादनगर की मुख्य सड़क पुलिस छावनी में तब्दील हो गई.
आजादनगर के आसपास के लोग इतनी पुलिस को देख हैरत में पड़ गए. एसएसपी दिलीप सिंह व आईजी (कुमाऊं) अजय कुमार रौतेला भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे.
पुलिस ने नरेंद्र की निशानदेही पर मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में 4 मजदूरों को लगा कर खुदाई शुरू कराई. लगभग 2 घंटे बाद पुलिस लाश तक पहुंची. साढ़े 4 फीट की गहराई में एक के ऊपर एक 4 लाशें पड़ी मिलीं, जो प्लास्टिक बैग में पैक थीं.
इस हृदयविदारक दृश्य को देख लोगों के होश उड़ गए. किसी को विश्वास नहीं हो रहा था कि जो उन के सामने है वह सच है. पुलिस ने प्लास्टिक बैग को खोल कर लाशों की जांचपड़ताल की. लाशों को देख कर पुलिस हैरान थी, क्योंकि सभी लाशें अच्छी हालत में थीं.
पुलिस को उम्मीद थी कि 15 महीनों के लंबे अंतराल के दौरान लाशें कंकाल में बदल गई होंगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं था. उसी गड्ढे से पुलिस ने लकड़ी के डंडे के आकार की एक फंटी बरामद की. नरेंद्र ने उसी फंटी से चारों को मारने की बात स्वीकार की.
घटनास्थल पर पहुंची फोरैंसिक टीम ने सैंपल एकत्र किए, जिन्हें जांच के लिए सुरक्षित रख लिया गया.
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पुलिस ने चारों लाशें कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. मामले की गंभीरता को देखते हुए 4 डाक्टरों के पैनल से लाशों का पोस्टमार्टम कराया गया. साथ ही वीडियोग्राफी भी कराई गई. यह कुमाऊं का पहला ऐसा सनसनीखेज मामला था, जिस ने पूरे प्रदेश में तहलका मचा दिया था.