जानें क्यों प्राइवेट पार्ट की सफाई है जरूरी

पूरे बदन की साफ-सफाई के प्रति लापरवाही न बरतने वाले मर्द भी अपने प्राइवेट पार्ट की सफाई पर खास ध्यान नहीं देते हैं, जिस की वजह से वे कई तरह के खतरनाक इंफैक्शन के शिकार हो जाते हैं. आइए जानते हैं कि प्राइवेट पार्ट की साफसफाई कैसे की जाती है और उस से होने वाले फायदों के बारे में

बालों की छंटाई करें

प्राइवेट पार्ट के आसपास के अनचाहे बालों की समयसमय पर सफाई करनी चाहिए, वरना बाल बड़े हो जाते हैं. इस की वजह से ज्यादा गरमी पैदा होती है और इन बालों की वजह से ज्यादा पसीना निकलने लगता है. बदबू भी आने लगती है. बैक्टीरिया पैदा होने से इंफैक्शन फैल जाता है. इस वजह से चमड़ी खराब हो जाती है. खुजली, दाद वगैरह की समस्या पैदा हो जाती है. देखा गया है कि अनचाहे बाल लंबे व घने हो जाने से उन में जुएं भी हो जाती हैं, इसलिए उन्हें समयसमय पर साफ करते रहना चाहिए. प्राइवेट पार्ट के अनचाहे बालों की सफाई के लिए कैंची से छंटाई करना अच्छा उपाय है. इस के अलावा ब्लेड  या हेयर रिमूवर क्रीम का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

सावधानी

प्राइवेट पार्ट के अनचाहे बालों की सफाई जल्दबाजी, हड़बड़ी या डर कर न करें. छंटाई के लिए छोटी धारदार कैंची का इस्तेमाल करें. अनचाहे बालों को अगर रेजर से साफ करना चाहते हैं, तो नए ब्लेड का इस्तेमाल करें. पहले इस्तेमाल किए ब्लेड से बाल ठीक तरह से नहीं कटते हैं. उलटा ब्लेड कभी न चलाएं, इस से चमड़ी पर फोड़ेफुंसी होने का डर रहता है. हेयर रिमूवर क्रीम का इस्तेमाल करने से पहले एक बार टैस्ट जरूर कर लें. अगर उस से एलर्जी होती है, तो इस्तेमाल न करें.

अंग दिखेगा बड़ा

प्राइवेट पार्ट के एरिया में बाल बड़े हो जाने से अंग उन में छिप जाता है, जिस से उस का आकार छोटा दिखाई देने लगता है. अनचाहे बालों को साफ करने से अंग का आकार बड़ा दिखने लगता है. इसे देख कर आप की पार्टनर ज्यादा मोहित होती है. प्यार के पलों के समय वह ज्यादा सहज महसूस करती है.

सेहतमंद महसूस करेंगे

प्राइवेट पार्ट के एरिया को साफ रखने से अंग सेहतमंद दिखाई देता है. आप भी संतुष्ट महसूस करते हैं, क्योंकि आप निश्चिंत हो जाते हैं कि अब आप को किसी तरह का इंफैक्शन नहीं है.

यह भी करें

अंग की नियमित सफाई करें. अंग के ऊपर की त्वचा को सावधानी के साथ पीछे की ओर ले जाएं. वहां सफेदपीला क्रीमनुमा चीज जमा होती है. यह पूरी तरह से कुदरती होती है. इस की नियमित सफाई न करने से बदबू आने या इंफैक्शन फैलने का डर बना रहता है. रोजाना नहाते समय कुनकुने पानी से इसे साफ करना चाहिए.

पेशाब करने के बाद अंग को अच्छी तरह से हिला कर अंदर रुके पेशाब को जरूर निकाल दें. इसे अपनी आदत में शुमार करें, क्योंकि अंग के अंदर रुका हुआ पेशाब बुढ़ापे में प्रोटैस्ट कैंसर के रूप में सामने आ सकता है. माहिर डाक्टरों का कहना है कि अगर अंग के अंदर का पेशाब अच्छी तरह से निकाल दिया जाए, तो प्रोटैस्ट कैंसर का डर खत्म हो जाता है.

अंडरगारमैंट्स पर ध्यान दें

रोजाना नहाने के तुरंत बाद ही अपने अंडरगारमैंट्स को  बदलें. कई दिनों तक इस्तेमाल किए गए अंडरगारमैंट्स पहनने से प्राइवेट पार्ट के एरिया में इंफैक्शन फैलने का डर बढ़ जाता है. दूसरों के अंडरगारमैंट्स, साबुन वगैरह इस्तेमाल न करें. इस से भी इंफैक्शन फैलने का डर रहता है. नहाने के बाद इस एरिया को तौलिए से अच्छी तरह से सुखा लें. हमेशा सूती अंडरगारमैंट्स पहनें. नायलौन के अंडरगारमैंट्स कतई न पहनें, क्योंकि उन में से हवा पास नहीं हो पाती है. इस वजह से प्राइवेट पार्ट के एरिया को भी अच्छी तरह से हवा नहीं मिल पाती है, जिस से कई तरह की बीमारियां पैदा हो सकती हैं.

सेक्स संबंध बनाने के बाद

सेक्स संबंध बनाने के बाद अंग को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए, क्योंकि सेक्स के समय व बाद में इस के अंदर कई तरह के स्राव बनते हैं. इन्हें साफ न करने पर इंफैक्शन हो सकता है. इस एरिया को पानी से साफ करें. सफाई करने के बाद अंग को अच्छी तरह से पोंछ कर सुखा लें.

जिम जाएं पर जरा संभल कर

मुंबई में रहने वाले 26 साल के राकेश को जिम जाने का बहुत शौक था, क्योंकि उन्हें फिल्मों में हीरो के सिक्स पैक एब्स बहुत अच्छे लगते थे. उन्होंने जिम जौइन किया और एक दिन कुछ ज्यादा वजन उठा लिया, जिस से उन की कमर की मांसपेशी में दर्द शुरू हो गया.

डाक्टर ने राकेश को एक महीने का रैस्ट बताया. उन्होंने रैस्ट किया, पर मसल्स में दर्द अभी भी है, इसलिए उन्होंने जिम करना तकरीबन छोड़ रखा है.

वर्कआउट करने के शौकीन लोग आजकल ज्यादातर जिम में जाने से नहीं कतराते हैं, क्योंकि वहां का एयरकंडीशन और इंस्ट्रक्टर की ट्रेनिंग पसंद होती है. साथ ही, वहां रखी महंगी मशीनें भी लुभाती हैं, पर देखा जाए तो जिम में वर्कआउट करने की कई मशीनें होती हैं, जिन से हमें कई तरह के इंफैक्शन होने का खतरा बना रहता है.

आइए जानते हैं, जिम जाने से होने वाली बीमारियों के बारे में और हमें सावधानी बरतना जरूरी क्यों है :

हार्टअटैक आने का खतरा

एक रिसर्च में वर्कआउट के दौरान दिल को होने वाले नुकसान के संबंध में जानने की कोशिश की गई है. रिसर्च में उम्रदराज मर्द एथलीटों को शामिल किया गया. इस दौरान टीम ने पाया कि हैवी वर्कआउट से कोरोनरी ऐथेरोस्क्लेरोसिस नामक बीमारी के होने का खतरा बढ़ जाता है.

दरअसल, इस बीमारी की वजह से आप के दिल की धमनियों के ऊपर और अंदर वसा व बैड कोलैस्ट्रौल जमा होने लगता है. इस हालत में हार्टअटैक होने का खतरा बढ़ जाता है.

रिसर्च में सामने आए नतीजों के मुताबिक, ये धमनियां पूरे शरीर में खून भेजती हैं और जब उन की भीतरी त्वचा ब्लौक होने लगती है तो खून का दौरा रुक जाता है. यही वजह है कि किसी शख्स को चलतेफिरते या फिर जिम करते हुए हार्टअटैक आ जाता है.

मांसपेशी में खिंचाव व दर्द

जिम में ज्यादा ऐक्सरसाइज करने से मांसपेशियों में खिंचाव व दर्द की समस्या हो सकती है. ज्यादा ऐक्सरसाइज करने से बौडी मसल्स पूरी तरह से ऐक्टिवेट हो जाते हैं. ऐसे में ओवर वर्कआउट करने से मसल्स में ज्यादा खिंचाव हो सकता है. बौडी पर ज्यादा दबाव डालने से दर्द या चोट लगने का खतरा भी बढ़ जाता है.

भूख कम लगना

वर्कआउट करने के बाद आमतौर पर भूख ज्यादा लगती है, लेकिन जरूरत से ज्यादा ऐक्सरसाइज करने से भूख में कमी आ सकती है. इस के अलावा शरीर में हार्मोनल चैंजेज आने लगते हैं, जिस वजह से भूख कम हो जाती है. ओटीएस यानी ओवरट्रेनिंग सिंड्रोम भूख में कमी, थकावट और वजन कम होने की वजह बन सकता है.

नींद में परेशानी

जब बौडी के स्ट्रैस हार्मोन का संतुलन बिगड़ जाता है, तो बौडी सोते हुए भी तनाव महसूस करती है. तनाव में होने की वजह से सही नींद नहीं आती. ऐक्सरसाइज करने के बाद बौडी को रिकवरी की जरूरत होती है और नींद न आने की वजह से बौडी रिलैक्स नहीं हो पाती. कई बार पूरी नींद न आना थकान, मूड स्विंग और चिड़चिड़ेपन की वजह बन जाती है.

कमजोर इम्यूनिटी

ऐक्सरसाइज करने के बाद अगर थकान या कमजोरी महसूस हो रही है, तो सम?िए बौडी की इम्यूनिटी कमजोर हो रही है. ऐसा होने पर बौडी में इंफैक्शन और बीमारी आसानी से हो सकती है. ऐक्सरसाइज के साथ बौडी की इम्यूनिटी बढ़ाने पर भी जोर देना जरूरी होता है.

इतना ही नहीं, जिम में जाने से कई तरह की त्वचा संबंधी बीमारियां भी हो सकती हैं, जिस का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि एक शख्स के एक मशीन के इस्तेमाल के बाद दूसरा शख्स भी उसे इस्तेमाल करता है. कुछ बीमारियां इस तरह हैं :

* इंपैटिगो एक तरह का त्वचा से जुड़ा इंफैक्शन है, जो बैक्टीरिया के चलते होता है. इस इंफैक्शन से त्वचा लाल हो जाती है और प्रभावित जगह पर खुजली होनी शुरू हो जाती है. इस के बाद त्वचा पपड़ी छोड़ती है. यह इंफैक्शन एक इनसान से दूसरे इनसान में भी फैल सकता है.

* फंगस की वजह से अकसर स्किन पर दाद की समस्या हो जाती है. दाद इंफैक्शन वाली जगह या किसी शख्स को छूने पर फैलता है. रिंग की बनावट वाला यह इंफैक्शन लाल और पपड़ीदार होता है. दाद में खुजली और चुभन जैसी समस्या होती है.

* एथलीट फुट एक बेहद साधारण फंगल इंफैक्शन है और इसे ‘टिनिया पेडिस’ के नाम से जाना जाता है. यह पैरों में होता है और हाथ से खरोंचने पर हाथों में भी फैल सकता है.

* जिम में ह्यूमन पेपिलोमा वायरस का जोखिम भी होता है. जिम में नंगे पैर चलने से इस इंफैक्शन के होने का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए जिम करने के दौरान हमेशा जूते पहन कर चलें.

* जिम के अंदर हाईजीन का बहुत खयाल रखने की जरूरत होती है. किसी से भी किसी सामान को शेयर करने से बचें. मसलन, किसी का तौलिया, बोतल या दूसरे किसी भी निजी सामान का इस्तेमाल करने से बचें. किसी भी मशीन का इस्तेमाल करने से पहले उसे साफ करें.

 प्रोटीन की सही मात्रा

आम सोच यह है कि फैट और कार्बोहाइड्रेट वाला खाना खाने से वजन बढ़ता है, इसलिए फिटनैस की दौड़ में शामिल लोग ज्यादा से ज्यादा ऐनर्जी, प्रोटीन वाला खाना लेना चाहते हैं. मैडिकल जर्नल नेचर मैटाबौलिज्म में पब्लिश हुई एक स्टडी के मुताबिक, रोजाना शारीरिक जरूरत की 22 फीसदी से ज्यादा कैलोरी अगर प्रोटीन से ली जाए, तो यह इम्यून सेल्स को सक्रिय कर सकता है, शरीर में एमीनो एसिड बढ़ा सकता है. इस से आर्टरीज में ब्लौकेज आने लगती है, जो हार्टअटैक की वजह बन सकता है.

ऐक्सपर्ट की लें सलाह

मुंबई की कोकिलाबेन धीरूबाई हौस्पिटल की कंसल्टैंट स्पोर्ट्स न्यूट्रिशनिस्ट पूजा उदेशी समझाते हुए कहती हैं, ‘‘प्रोटीन पाउडर या सप्लीमैंट अपने शरीर और वजन के हिसाब से लेना पड़ता है. ज्यादा लेने पर उस का असर खराब हो सकता है. प्रोटीन के भी कई सारी वैराइटी वाले प्रोडक्ट होते हैं, जो मार्केट में मिलते हैं. इस के साइड इफैक्ट की अगर बात करें तो ज्यादा मात्रा में लेने पर किडनी की समस्या, कार्डिएक अरैस्ट या लिवर की समस्या वगैरह कुछ भी हो सकती है.

‘‘जिम करने वाले हर शख्स की प्रोटीन की जरूरत अलगअलग होती है, जिसे न्यूट्रिशनिस्ट की सलाह ले कर लेना पड़ता है, ताकि शरीर को किसी तरह का नुकसान न हो.

‘‘एक किलोग्राम के वजन पर एक ग्राम प्रोटीन लिया जा सकता है. इस के अलावा किसी बीमारी, खेल खेलने या व्यायाम से प्रोटीन की जरूरत ज्यादा पड़ती है. शाकाहारी लोग जो ज्यादा प्रोटीन नहीं खा पाते, उन्हें प्रोटीन शेक लेने की जरूरत पड़ सकती है.

‘‘कितनी मात्रा में कोई शख्स प्रोटीन ले, इस की जानकारी ऐक्सपर्ट से ले लेना अच्छा होता है. नैचुरल प्रोडक्ट पर ज्यादा ध्यान देना अच्छा होता है, मसलन शाकाहारी लोग पनीर, अंकुरित दाल, सोयाबीन, ब्राउन राइस वगैरह ले सकते हैं, जबकि नौनवेज खाने वाले लोग अंडा, मछली, मांस वगैरह को नियमित खा सकते हैं.’’

जिम जाएं, पर कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें, ताकि आप की फिटनैस और सेहत दोनों बनी रहें. कुछ सुझाव ये हैं :

* वर्कआउट या ऐक्सरसाइज हमेशा डाक्टर या ट्रेनर की सलाह से ही करना बेहतर है.

* फिटनैस को मेंटेन रखने के लिए नौर्मल लैवल की ऐक्सरसाइज ही करनी चाहिए.

* हैवी ऐक्सरसाइज करने से बौडी और हार्ट दोनों पर नैगेटिव इफैक्ट पड़ने लगता है.

* ट्रेडमिल या किसी कार्डियो ऐक्सरसाइज करते समय एक बार में 10 मिनट से ज्यादा वक्त न बिताएं.

* हर कार्डियो ऐक्सरसाइज के बाद कम से कम 5 मिनट का ब्रेक जरूर लें, ताकि हार्ट को रिलैक्स फील हो.

* वर्कआउट के दौरान अगर छाती की लेफ्ट साइड में दर्द हो, तो तुरंत ऐक्सराइज रोक कर डाक्टर से मिलें.

स्किन संवारने लगे हैं कूल डूड

बौलीवुड अभिनेता जौन अब्राहम, रितिक रोशन, सलमान खान और शाहरुख खान अकेले पुरुष नहीं हैं जो अपने शरीर की देखभाल के लिए चर्चा में रहते हैं. इन की तर्ज पर आज के युवा भी अपने शरीर की देखभाल करने में लगे हुए हैं. पहले युवा लड़के ज्यादा से ज्यादा अपने शरीर का खयाल रखने के लिए ही जिम जाते थे. अब युवा अपनी स्किन केयर भी करने लगे हैं.

कौस्मैटिक बाजार के जानकारों का मानना है कि लड़कों के शृंगार का बाजार एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का है. लखनऊ में एस्थेवा ब्यूटी ऐंड हैल्थ क्रिएटर की अपर्णा मिश्रा का मानना है, ‘‘युवा लड़के क्लींजर, फेसबौडी स्क्रबर, टोनर, मौइस्चराइजर, नरिशिंग क्रीम, शेविंग क्रीम, सन क्रीम, आफ्टर शेव लोशन, हेयर क्रीम और हेयर जैल का प्रयोग करते हैं. इस के साथ ही साथ स्पा, मसाज और सभी ब्यूटी सुविधाओं का लाभ भी लेते हैं.’’

छोटे से ले कर बड़े शहरों में यूनीसैक्स और मैंस पार्लर खुल गए हैं. वहां पुरुष फेशियल, नेल फाइलिंग, हेयर कलरिंग, हिना, मसाज और स्पा कराने के लिए आते हैं. अपर्र्णा मिश्रा बताती हैं, ‘‘ मैंस पार्लर आने वालों में हर आयु के लोग शामिल हैं. जहां कम आयु के लोग हेयर स्टाइल, फेशियल और हेयर कलरिंग के लिए आने लगे हैं तो वहीं बड़ी उम्र के लोग रिलैक्स करने के लिए आते हैं.

‘‘ये लोग घर से अपना समय काटने के लिए भी यहां चले आते हैं. अब तो पुरुष चैस्ट वैक्सिंग भी कराने लगे हैं. वैसे, ध्यान रखने वाली बात यह है कि कभी भी ब्लीच और शेविंग साथसाथ नहीं कराना चाहिए.’’

युवा बनाती है स्किन केयर

पहले लड़के त्वचा की देखभाल के लिए क्रीम का इस्तेमाल नहीं करते थे लेकिन अब वे भी त्वचा की क्रीम प्रयोग करने लगे हैं. त्वचा की खूबसूरती के लिए यह जरूरी भी है. आज लड़के मुंहासों, पिगमैंटेशन और चेहरे पर पड़े निशानों को मिटाने के लिए पार्लर जाने लगे हैं. जो लड़के हाफस्लीव शर्ट पहनते हैं उन के खुले हाथों का रंग बदल जाता है. इस रंग को साफ करने और खुली त्वचा की देखभाल के लिए वे पार्लरों का सहारा लेने लगे हैं. शायद इसीलिए सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली कंपनियां अब पुरुषों को गोरा बनाने में जुट गई हैं.

आज के दौर में लड़के एक से 2 घंटे अपने सौंदर्य की देखभाल पर खर्च कर रहे हैं. लड़के जमाने को यह दिखाना चाहते हैं कि सुंदरता पर केवल औरतों का ही हक नहीं रह गया है. खूबसूरती और स्मार्टनैस आदमी में आत्मविश्वास जगाते हैं. आज कैरियर के हर क्षेत्र में ऐसे ही लोगों की जरूरत है. इसलिए लड़के ज्यादा से ज्यादा अपने रखरखाव में आगे बढ़ रहे हैं.

त्वचा पुरुष की हो या औरत की, दोनों को ही देखभाल की जरूरत होती है. लड़कों की त्वचा थोड़ी सख्त जरूर होती है पर देखभाल की जरूरत उन को भी पड़ती है. लड़कों के सौंदर्य प्रसाधनों में वही सब होता है जो लड़कियों के सौंदर्य प्रसाधनों में होता है. लड़कों की त्वचा पर इस्तेमाल होने वाली क्रीम थोड़ी ज्यादा स्ट्रौंग होती है.

लड़कों के सौंदर्य प्रसाधनों में 50 रुपए की शेंविग क्रीम से ले कर 400 रुपए तक के सामान मिल रहे हैं. इस के अलावा मास्क की कीमत इस से ज्यादा हो सकती है. गोरा बनाने की क्रीम पहले लड़कियों की ही पसंदीदा होती थी. अब लड़के भी गोरा बनने के नाम पर क्रीम का इस्तेमाल करने लगे हैं. धूप से त्वचा को बचाने के लिए सनस्क्रीन लोशन का प्रयोग पुरुष भी करने लगे हैं. वे भी त्वचा पर झुर्रियां रोकने वाली क्रीम लगाने लगे हैं.

बाजार के जानकार बताते हैं कि बालों और त्वचा की देखभाल में लड़के लड़कियों से ज्यादा पैसा और समय लगाने लगे हैं. कुछ वर्षों से लड़कों में त्वचा की देखभाल करने की जागरूकता आई है. कम उम्र में देखभाल शुरू हो जाने से त्वचा को नुकसान कम पहुंचता है.

हसीन बनने के उपाय

त्वचा की देखभाल के साथ ही साथ चेहरे को मर्दाना हसीन और कम उम्र का दिखाने के लिए कई तरह के इलाज भी होते हैं. इस को स्पैशलिस्ट डाक्टर ही करते हैं.

  •  बोटोक्स में सूई के जरिए झुर्रियां डालने वाली मांसपेशियों को प्रभावहीन कर दिया जाता है. एक बार का असर 3-4 महीने तक रहता है.
  •  नाक और होंठ के आसपास की सिलवटों को सही करने के लिए फिलर का प्रयोग किया जाता है.
  •  फेसलिफ्ट के जरिए ढीली त्वचा को सही किया जाता है. इस से आदमी की उम्र 5 साल तक कम लगने लगती है.
  •  झुर्रियों को कम करने के लिए उन को काट दिया जाता है.
  •  चकत्ते, गले और छाती पर तेज धूप के निशान को कम करने के लिए फोटो फेशियल किया जाता है.
  • हरे पर चमक के लिए माइक्रोडर्माब्रेशन का उपयोग किया जाता है. यह अभी कम प्रचलन में है.

15 टिप्स फौर मैन स्किन

  •  जो लोग धूप में ज्यादा रहते हैं उन्हें 15 दिन में एक बार मैंस पार्लर जा कर ‘डेड स्किन रिमूवर क्रीम’ का प्रयोग करना चाहिए.
  •  जिन लोगों की त्वचा धूप में रहने के कारण ज्यादा खराब होती हो उन को औक्सी ब्लीच एवं फेशियल कराना चाहिए.
  • फेशियल एक समय के अंतर पर माह में एक बार ही कराना चाहिए. अधिक बार फेशियल कराने से त्वचा को नुकसान भी होता है.
  •  त्वचा पर अधिक मुंहासे हों तो गोल्ड या चौकलेट फेशियल में विटामिन ई आयल कैप्सूल का प्रयोग करना चाहिए. रात में सोते समय एलोवेरा क्रीम या विटामिन ई का प्रयोग करना चाहिए.
  •  त्वचा पर चमक के लिए खूब पानी पीना चाहिए.
  •  औयली स्किन होने पर औयल कंट्रोल फेसवाश का प्रयोग करें.
  • मुंहासे और दाने होने पर कालीमिर्च शहद के साथ मिलाने से आराम मिलता है.
  • आंखों के नीचे के डार्क सर्कल्स हटाने के लिए आलू का रस लगाने से लाभ होता है.
  •  केला कुदरती क्लींजर होता है. इस से चेहरा साफ होता है.
  •  अनचाहे बालों को हटाने के लिए वैक्सिंग करवाएं. शेविंग करने से त्वचा खराब होती है.
  •  खास मौकों पर गोल्ड एवं पर्ल फेशियल कराएं.
  •  झांइयों और दागधब्बों को हटाने के लिए बेसन में मौसमी का जूस मिला कर लगाने से लाभ होता है.
  •  पिंपल्स ज्यादा होने पर नीबू और मुलतानी मिट्टी को मिला कर लगाने से आराम मिलता है.
  •  स्किन हार्ड होने पर शेव से पहले नीबू का रस लगाएं. शेविंग जैल लगाने के बाद शेव आसानी से बन जाती है. फोम का प्रयोग ज्यादा नहीं करना चाहिए. इस से त्वचा खराब होती है.
  •  गरमी और धूप में पूरी बांह की कौटन शर्ट पहनें. यह त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचाती और त्वचा का रंग भी खराब नहीं होता है.

फैट से हो सकता है लिवर कमजोर, जानें कैसे रहें स्वस्थ

आपके शरीर में जमा फैट कई सेहत से जुड़ी समस्या पैदा कर सकता है इसलिए समय समय पर हमें अपनी सेहत पर ध्यान देने की जरुरत होती पर बिजी लाईफ के चलते हम ऐसा कर नहीं पाते. फैट ना सिर्फ शरीर बल्कि आपके सोचने समझने पर भी प्रभाव डालता. एक उदहारण के तौर पर समझिए तो शरीर एक इंजन है जिसे समय समय पर सफाई और औयल की जरुरत होती है.

अगर ये सफाई और समय कर औयलिंग ना हो तो इंजन ठप्प पड़ जाता हैं शरीर का फैटी, लिवर में सूजन को दर्शाता है. इससे तमाम लोग प्रभावित होते हैं. इस स्थिति में लिवर में फैट जमा होने लगता है. कई बार ज्‍यादा शराब के सेवन से भी फैटी लिवर की समस्‍या हो जाती है. यह तब भी हो सकता है जब आप शराब न पीते हों. हालांकि, नौन-एल्‍कोहौलिक फैटी लिवर रोग का शराब से कोई खास जुड़ाव नही है. इसलिए आज हम लेकर आए है कुछ टिप्स और खाने में बदलाव के फायदे जिसे अपनाकर आप भी स्वस्थ रहेंगे.

लहसुन

दुनिया भर में भोजन और प्राकृतिक उपचार के रूप में लहसुन का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है. एडवांस्ड बायोमेडिकल रिसर्च में एक अध्ययन में पाया गया कि लहसुन पाउडर की खुराक फैटी लिवर की बीमारी वाले लोगों में वसा और शरीर के वजन दोनों को कम करने में मदद कर सकती है.

ग्रीन टी

यह दावा किया जाता है कि ग्रीन टी फैटी लिवर डिजीज सहित कई बीमारियों की रोकथाम और उपचार पर लाभकारी प्रभाव डालती है. शोध बताते हैं कि इस लोकप्रिय पेय को पीने से वसा के अवशोषण में बाधा उत्पन्न हो सकती है, हालांकि फैटी लिवर रोग की रोकथाम और उपचार में ग्रीन टी की प्रभावकारिता का पता लगाने के लिए अधिक काम करने की आवश्यकता होती है. कई अध्ययनों से यह भी पता चला है कि ग्रीन टी में एंटीऑक्सिडेंट प्रभावी रूप से वजन घटाने में सहायता कर सकते हैं.

ब्रोकली

क्रूसीफेरस कुल की इस सब्‍जी में स्‍वास्‍थ्‍य सुरक्षा से जुड़े कई यौगिक होते हैं और कुछ कैंसर के कम जोखिम से जुड़े हैं- जैसे ब्रेस्‍ट, प्रोस्टेट, कोलन और लिवर कैंसर. अध्ययनों से पता चलता है कि ब्रोकली चूहों में लिवर में वसा के निर्माण को रोकने में मदद कर सकती है. हरी सब्जियां का सेवन करने से वजन घटाने को बढ़ावा मिलता है.

अखरोट

अखरोट ओमेगा -3 फैटी एसिड में उच्च होते हैं, जो कि नॉन-एल्‍कोहोलिक फैटी एसिड रोग वाले लोगों में वसा और सूजन को कम करने में मदद करते हैं. शोध में पाया गया है कि जिन लोगों को फैटी लिवर की बीमारी होती है वे अखरोट का सेवन कर सकते हैं, इससे उनके लिवर फंक्‍शन में सुधार होता है. तो ये वो कुछ खाने के आइटम्स जिसे आपने खानपान में शामिल कर आप फैट समस्या से निजाद पा सकते हैं.

पुरुषों की ताकत को बढ़ा देंगे ये हेल्थ टिप्स, नहीं पड़ेगी दवा की जरूरत

भागदौड़ भरी जिंदगी में आदमी की लाइफस्टाइल सबसे जरूरी है और जरूरी ये भी है कि वे खुद को फिट रखें. क्योंकि महिलाओं की तुलना में पुरुषों पर अधिक जिम्मेदारी भी होती है. उन्हें घर और बाहर की चीजों को बैलेंस करके चलना होता है, जो काफी मुश्किल भरा होता है इन सभी के साथ-साथ पुरुषों की कुछ गलत आदत और लाइफस्टाइल के कारण उनकी सेहत खराब होती है. ऐसे में पुरुष को अपने स्वास्थ का बेहद ध्यान रखना होता है. अगर आप खुद को फिट रखना चाहते हैं, तो दिए हेल्थ टिप्स को फोलो करें.

सवेरे उठें

व्यक्ति तभी हमेशा स्वस्थ रहते हैं, जब वे सुबह उठते हैं. यदि आपको देर से उठने की आदत है, तो इसे बदल लें. देर से उठने से स्वास्थ पर बुरा असर पड़ता है. इसके कारण कई बीमारियों के शिकार हो सकते हैं.

खाने में सही तेल का करें यूज

अधिकतर खाने में तेल का इस्तेमाल किया जाता है. अगर आप अपने खाने में सही तेल का इस्तेमाल नहीं करते हैं, तो इससे सेहत पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए हमेशा कोशिश करें कि उच्च क्वालिटी वाले तेल का इस्तेमाल करें.

खाने का रखें ख्याल

फीट रहने के लिए कभी भी सुबह का नाश्ता ना छोड़ें. दोपहर में खाना समय पर खाएं. रात में कोशिश करें कि 8 बजे से पहले डिनर कर लें. डिनर हमेशा हल्का करें. इसके साथ ही सोने से पहले एक ग्‍लास हल्दी वाला दूध जरूर पीएं.

रोज करें एक्सरसाइज

बिना एक्सरसाइज के खुद को फिट रखना सिर्फ एक कल्पना है. इसलिए नियमित रूप से एक्सरसाइज करने की कोशिश करें. एक्सरसाइज ना करने से मोटापा बढ़ता है. मोटापे के कारण पुरूषों की यौन क्षमता प्रभावित होती है.

एल्कोहल और धूम्रपान से रहें दूर

पुरुष महिलाओं की तुलना में अधिक धूम्रपान करते हैं. धूम्रपान सभी के सेहत के लिए जानलेवा साबित होता है. इसलिए धूम्रपान का सेवन करने से बचें.

यौन रोग के शुरुआती लक्षण

यौन रोग पतिपत्नी के संबंधों में बाधक बन जाते हैं. यौन रोग के डर से लोग संबंध बनाने से डरने लगते हैं. कई बार यौन रोगों से अंदरूनी अंग से बदबू आने लगती है, जिस की वजह से सेक्स संबंधों से रुचि खत्म हो जाती है. ऐसे में पतिपत्नी एक दूसरे से दूर जा कर कहीं और संबंध बनाने लगते हैं.

क्या है यौन रोग

यौन रोग शरीर के अदरूनी अंगों में होने वाली बीमारियों को कहा जाता है. यह एक पुरुष और औरत के साथ संपर्क करने से भी हो सकता है और बहुतों के साथ संबंध रखने से भी हो सकता है. यौन रोग से ग्रस्त मां से पैदा होने वाले बच्चे को भी यह रोग हो सकता है. ऐसे में अगर मां को कोई यौन रोग है, तो बच्चे का जन्म डाक्टर की सलाह से औपरेशन के जरीए कराना चाहिए. इस से बच्चा योनि के संपर्क में नहीं आता और यौन रोग से बच जाता है.

कभीकभी यौन रोग इतना मामूली होता है कि उस के लक्षण नजर ही नहीं आते हैं. इस के बाद भी इस के परिणाम खतरनाक हो सकते हैं. इसलिए यौन रोग के मामूली लक्षण को भी नजरअंदाज न करें. मामूली यौन रोग कभीकभी अपनेआप ठीक हो जाते हैं, पर इन के बैक्टीरिया शरीर में रह जाते हैं, जो कुछ समय बाद शरीर में तेजी से हमला करते हैं. यौन रोग शरीर की खुली और छिली जगह वाली त्वचा से ही फैलते हैं.

यौन रोग का घाव इतना छोटा होता है कि उस का पता ही नहीं चलता है. पति या पत्नी को भी इस का पता नहीं चलता है. यौन रोगों का प्रभाव 2 से 20 सप्ताह के बीच कभी भी सामने आ सकता है. इस के चलते औरतों को माहवारी बीच में ही आ जाती है. यौन रोग योनि, गुदा और मुंह के द्वारा शरीर में फैलते हैं. यौन रोग कई तरह के होते हैं. इन के बारे में जानकारी होने पर इन का इलाज आसानी से हो सकता है.

हार्पीज: हार्पीज बहुत ही आम यौन रोग है. इस रोग में पेशाब करते समय जलन होती है. पेशाब के साथ कई बार मवाद भी आता है. बारबार पेशाब जाने को मन करता है. बुखार भी हो जाता है. टौयलेट जाने में भी परेशानी होने लगती है.  जिसे हार्पीज होता है उस के मुंह और योनि में छोटेछोटे दाने हो जाते हैं. शुरुआत में ये अपनेआप ठीक भी हो जाते हैं. अगर ये दोबारा हों तो इलाज जरूर कराएं.

व्हाट्स: व्हाट्स में शरीर के तमाम हिस्सों में छोटीछोटी फूलनुमा गांठें पड़ जाती हैं. व्हाट्स एचपीवी वायरस यानी ह्यूमन पैपिलोमा वायरस के चलते फैलता है. यह 70 प्रकार का होता है. अगर ये गांठें अगर शरीर के बाहर हों और 10 मिलीमीटर के अंदर हों तो इन्हें जलाया जा सकता है. 10 मिलीमीटर से बड़ा होने पर औपरेशन के जरीए हटाया जाता है.

योनि में फैलने वाले वायरस को जैनरेटल व्हाट्स कहते हैं. यह योनि में बच्चेदानी के मुख पर हो जाता है. अगर समय पर इलाज न हो तो यह घाव कैंसर का रूप ले लेता है. अगर यह हो तो 35 साल की उम्र के बाद एचपीवी का कल्चर जरूर करा लें. इस से घाव का पूरा पता चल जाता है

गनेरिया: इस रोग में पेशाब की नली में घाव हो जाता है, जिस से पेशाब की नली में जलन होने लगती है. कई बार खून और मवाद भी आने लगता है. इस का इलाज ऐंटीबायोटिक दवाओं के जरीए किया जाता है. अगर यह बारबार होता है तो इस का घाव पेशाब की नली को बंद कर देता है, जिसे बाद में औपरेशन के द्वारा ठीक किया जाता है.

गनेरिया को साधारण बोली में सुजाक भी कहा जाता है. इस के होने पर तेज बुखार भी आता है. इस के बैक्टीरिया की जांच के लिए मवाद की फिल्म बनाई जाती है. अगर यह बीमारी शुरू में ही पकड़ में आ जाए तो इलाज आसानी से हो जाता है. बाद में इलाज कराने में मुश्किल आती है.

सिफलिस: यह यौन रोग भी बैक्टीरिया के कारण फैलता है. यह यौन संबंध के कारण ही होता है. इस रोग के चलते पुरुषों के अंग के ऊपर गांठ सी बन जाती है. कुछ समय के बाद यह ठीक भी हो जाती है. इस गांठ को शैंकर भी कहा जाता है. शैंकर से पानी ले कर माइक्रोस्कोप द्वारा ही बैक्टीरिया को देखा जाता है. इस बीमारी की दूसरी स्टेज पर शरीर में लाल दाने से पड़ जाते हैं. यह कुछ समय के बाद शरीर के दूसरे अंगों को भी प्रभावित करने लगता है. इस बीमारी का इलाज तीसरी स्टेज के बाद मुमकिन नहीं होता है. खराब हालत में यह शरीर की धमनियों को प्रभावित करता है. धमनियां फट भी जाती हैं. यह रोग आदमी और औरत दोनों को हो सकता है. इस का इलाज दवा और इंजैक्शन से होता है.

क्लैमाइडिया: इस बीमारी में औरतों को योनि में हलका सा संक्रमण होता है. यह योनि के द्वारा बच्चेदानी तक फैल जाता है. यह बांझपन का सब से बड़ा कारण होता है. यह बच्चेदानी को खराब कर देता है. बीमारी की शुरुआत में ही इलाज हो जाए तो ठीक रहता है. क्लैमाइडिया के चलते औरतों को पेशाब करते समय जलन, पेट दर्द, माहवारी में दर्द, टौयलेट के समय दर्द, बुखार आदि परेशानियां पैदा होने लगती हैं.

अगर आप भी करते हैं स्टेरौइडस का इस्तमाल, तो हो जाइए सावधान

पिछले कुछ सालों से लोगों में बौडी बनाने के लिए जिम जा कर घंटों वर्कआउट करने का चलन तेजी से बढ़ा है. यहां तक कि महिलाएं भी छरहरी काया के लिए शरीर की अतिरिक्त चरबी कम करने की कोशिश करती हैं. लोगों के बीच व्यायाम करने के चलन को बढ़ावा मिलने के साथसाथ स्टेरौइड और प्रोटीन सप्लिमैंट जैसे अननैचुरल प्रोडक्ट्स भी चलन में आए हैं, जिन का प्रयोग लोग तेजी से मांसपेशियां बनाने की चाह में करते हैं.

मगर ज्यादातर लोगों को यह मालूम नहीं कि लंबे समय तक ली गई स्टेरौइड की मात्रा दिल के लिए घातक साबित हो सकती है. यहां तक कि इस से दिल का दौरा या अचानक कार्डिएक अरैस्ट भी हो सकता है. विशेषरूप से बौडी बिल्डर्स जो लंबे समय तक स्टेरौइड और प्रोटीन सप्लिमैंट का सेवन भारी मात्रा में करते हैं, उन के लिए जरूरी है कि वे इन से सेहत पर होने वाले बुरे असर के बारे में सजग हों.

आइए, विस्तार से जानें कि स्टेरौइड और प्रोटीन एकदूसरे से कैसे अलग हैं और इन के स्वास्थ्य पर क्या बुरे प्रभाव पड़ते हैं:

1. जरूरी स्टेरौइड और प्रोटीन की भूमिका

स्टेरौइड शब्द आमतौर पर दवाओं की एक श्रेणी के तहत आता है, जिस का प्रयोग विभिन्न चिकित्सा स्थितियों के इलाज के लिए किया जाता है जैसे पुरुषों में यौन हारमोन को बढ़ावा देना, प्रजनन क्षमता को बढ़ाना, मैटाबोलिज्म और रोगप्रतिरोधक क्षमता को नियमित करने के अलावा मसल मास, बोन मास बढ़ावा आदि.

प्रोटीन पाउडर मुख्यरूप से सोया, दूध या पशु प्रोटीन से बना होता है और इस का प्रयोग अधिक समय तक वर्कआउट के बाद शरीर की प्रोटीन की जरूरत को पूरा करने के लिए किया जाता है.

2. स्टेरौइड और प्रोटीन सप्लिमैंट के प्रभाव

बौडी बनाने में असल में प्रोटीन बहुत फायदेमंद होते हैं और पोषण सुरक्षित स्रोत भी हैं, क्योंकि ये प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान नहीं पहुंचाते. यदि इन का सेवन सही मात्रा में किया जाए तो ये किसी भी शारीरिक बीमारी का कारण नहीं बनते हैं. मगर स्टेरौइड के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है.

स्टेरौइड मुख्यरूप से टैस्टोस्टेरौन का बनावटी संस्करण है. यह कृत्रिम रूप से मांसपेशियों के विकास में मदद करता है. हृदय भी मांसपेशियों की तरह होता है, मगर स्टेरौइड के सेवन से इस का आकार बढ़ भी सकता है. दिक्कत तब होती है जब दिल के आसपास मौजूद सतहों यानी वौल्स तक उस की मोटाई पहुंचने लगती है, तब यह सही तरीके से काम नहीं कर पाता है और रक्तसंचार में समस्या होने लगती है.

3. स्टेरौइड का दिल पर प्रभाव

स्टेरौइड का सेवन करने वालों का दिल इस का सेवन न करने वालों की तुलना में बहुत कमजोर होता है. एक कमजोर दिल शरीर के लिए जरूरी पर्याप्त रक्त पंप नहीं कर पाता है और इस स्थिति में दिल काम करना बंद कर सकता है. अचानक दिल की धड़कन रुकने से मौत भी हो सकती है.

स्टेरौइड का सेवन न करने वालों की तुलना में इस का सेवन करने वालों की धमनियों में प्लेक यानी गंदगी या मैल बढ़ जाता है. जो पुरुष लंबे समय तक स्टेरौइड लेना जारी रखते हैं, उन की धमनियों की स्थिति बहुत बदतर हो जाती है.

4. अन्य समस्याएं 

दिल को नुकसान पहुंचाने के अलावा स्टेरौइड गुरदों की विफलता, लिवर की क्षति, टैस्टिकल्स के संकुचन यानी सिकुड़ना और शुक्राणुओं की संख्या घटाने का काम भी कर सकता है. शौर्टकट के जरीए बौडी बनाना भी दिल को नुकसान पहुंचा सकता है.

Summer Special: सेहत का खजाना है सत्तू, गर्मी से बचने के लिए इसे खाएं जरूर

गर्मियों के दिनों की शुरुआत हो चुकी है और इस मौसम सबके लिए जरुरी है भरपूर एनर्जी.  गरमियो को लोग एनर्जी देने के लिए तरह तरह की चीजे खाते है. इस मौसम में मौसम में लोग सत्तू पीना ज्यादा पसंद करते है. सत्तू का इस्तेमांल कर कई तरह की चीजे भी बनाई जाती है. गर्मियो लोग अपने शरीर को ठंडा रखने के लिए रोजाना सत्तू पिया करते है. प्रोटीन से भरपूर सत्तू शरीर को ताकत देता है. यह जीम लवर्स के लिए प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत है. आइए जानते है गर्मियों में इसके क्या फायदें है.

 

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जानें क्या है सत्तू

सत्तू सूखे भुने हुए चने से बनाया जाता है. यह ज्यादात्तर भारत के उत्तरी भाग में खाया जाता है. खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में सबसे ज्यादा सत्तू का सेवन किया जाता है. सत्तू अपने पोषण संबंधी लाभों के लिए जाना जाता है. यह शरीर के लिए बहुत लाभदायक होता है.

सत्तू का सेवन वैसे गर्मियों में होता है. सत्तू आपको गर्मियों में चिलचिलाती धूप और गर्मी से बचाता है. यह शरीर को ठंडा रखता है. वैसे तो सत्तू को पानी के साथ मिलाकर खाया जाता है. लेकिन अब सत्तू को आप कई तरह से बना भी सकते हैं जो खाने में स्वाद भी होता है और आपको भरपूर पोषण भी देता है.

सत्तू खाने के फायदे

शरीर के लिए सत्तू के कई फायदे हैं. यह शरीर को मिलने वाले प्रोटीन और फाइबर का नेचुरल स्त्रोत है. जैसा कि हम जानते हैं कि सत्तू में फाइबर की मात्रा अधिक होती है. इससे इम्युनिटी बढ़ती है. साथ ही वेटलॉस के लिए भी यह काफी फायदेमंद होता है.

अगर आप रोज सवेरे खाली पेट सत्तू काते हैं तो इससे आपकी पाचन क्रिया अच्छी होती है और आसानी से फ्रेश हो जाएंगे. यही नहीं सत्तू एसिडिटी का भी बढ़िया इलाज करता है.

सत्तू घर में कैसे बनाया जाता है?

सत्तू भुने हुए चनों से बनाया जाता है. इसे बनाने के लिए चने को तब तक भुनना होता है तक कि वह सुनहरा ना हो जाए. फिर भुने हुए चनों को पीसकर बारीक पाउडर बनाया जाता है. इस पाउडर का यूज अलग-अलग डिश को बनाने में किया जाता है.

शरीर को देता है प्रोटीन

इसके सेवन के बाद आपको शरीर में अच्छे बदलाव देखने को मिलेंगे. सत्तू के साथ अच्छे-अच्छे पकवान और ड्रिंक बनाकर अपनी गर्मियों को लाभदायक बनाएं. जिससे आपका परिवार और आपके बच्चे हमेशा स्वस्थ बने रहेंगे.

क्या बौडी बिल्डर्स के लिए फायदेमंद है सत्तू?

सत्तू उन बौडी बिल्डर्स के लिए ठीक है जो प्रोटीन पर ज्यादा पैसा खर्च नहीं कर सकते हैं. घर में ही चने को पीसकर वह आसानी से पाउडर बना सकते हैं.

सत्तू खाने के नुकसान

सत्तू में फाइबर की मात्रा अधिक होती है. ऐसे में इससे पेट का फूलना, ऐंठन, गैस और दस्त लग सकते हैं. जिन्हें पथरी की समस्या है वह गलती से भी सत्तू का सेवन ना करें. यह उनके लिए बहुत हानिकारक साबित हो सकता है सत्तू खाने से पथरी के मरीज को दर्द उठ सकता है. इसलिए पथरी वाले मरीजों को सत्तू से बिल्कुल दूर रखें.

पौरुष की कमी से जूझती युवा पीढ़ी

आरती को शिकायत है कि शादी के 8 सालों के भीतर ही उस की वैवाहिक जिंदगी का सारा चार्म खत्म हो गया है. उस के पति अनुराग को अब शायद उस में कोई दिलचस्पी ही नहीं रह गई है. वह देर रात औफिस से आता है, खाना खाता है और सोने चला जाता है. आरती ने अपनी शादीशुदा जिंदगी में रोमांस पैदा करने के लिए सारे जतन कर के देख लिए. पति को रिझाने के लिए वह शाम से ही बनावशृंगार में जुट जाती. पति की पसंद का भोजन बनाती है. बैडरूम को सुसज्जित करती है. खुद भी सुगंध में डूबी रहती है, तो हलकी सुगंध वाले रूम फ्रैशनर से पूरा घर भी महकाए रखती है. मगर पति की नजदीकियां पाने की उस की सारी कोशिशें बेकार चली जाती हैं.

अनुराग थकाहारा सा दफ्तर से आता है और एक उड़ती सी नजर आरती पर डाल कर अपने काम में व्यस्त हो जाता है. थोड़ी देर अपने 5 साल के बेटे राहुल से खेलता है और फिर खाना खा कर सोने चला जाता है. अब तो आरती को शक होने लगा है कि शायद उस के वैवाहिक जीवन में कोई दूसरी औरत आग लगा रही है. अनुराग का यह व्यवहार उस से अब बरदाश्त नहीं हो रहा है. प्यार और सैक्स के अभाव में दोनों के बीच दूरियां बढ़ गई हैं. कितने दिन हो जाते हैं अनुराग उसे हाथ भी नहीं लगाता. एक कमरे में एक ही बिस्तर पर दोनों अजनबियों की तरह पड़े रहते हैं.

यह समस्या सिर्फ आरती और अनुराग की नहीं, बल्कि हर 10 में से 3 कपल की है. पत्नी समझ ही नहीं पाती कि उस का पति उस से बेरुखी क्यों दिखा रहा है? वह उस से कटाकटा सा क्यों रहने लगा है? वह यह शक भी पाल बैठती है कि हो सकता है इन का कोई ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर चल रहा है. यह सोच पत्नियों  को और ज्यादा तनाव से भर देती है. कुछ पत्नियां सोचती हैं कि शायद उन का रंगरूप पहले की तरह मोहक नहीं रहा. वे सजतीसंवरती हैं कि पति को लुभा सकें. तरहतरह के व्यंजन बनाती हैं कि पति का प्यार पा सकें, मगर पति का दिल फिर भी नहीं पसीजता.

दरअसल, पत्नी के प्रति पति की बेरुखी का कारण हमेशा वह नहीं होता जो पत्नियां सोचसोच कर परेशान होती रहती हैं, बल्कि प्रौब्लम कुछ और होती है. पति की बेरुखी का कारण उन में पौरुष हारमोन की कमी हो सकती है, जिस के चलते पति शारीरिक संबंधों से दूरी बनाने लगते हैं, क्योंकि उन्हें यह डर होता है कि बिस्तर पर वे पत्नी को संतुष्ट नहीं कर पाएंगे. उन पर नामर्दगी का आरोप लगेगा. वे पत्नी की नजरों में गिर जाएंगे. अगर पत्नी को पता चल गया कि वे उसे संतुष्ट करने में अक्षम हैं तो वह किसी दूसरे पुरुष का साथ ढूंढ़ेगी और चोरीछिपे अपनी शारीरिक जरूरत पूरी करने लगेगी. ये तमाम डर पुरुष मन पर हावी हो जाते हैं और पति खामोशी ओढ़ कर पत्नी से दूरी बना लेता है और पत्नी को उस की उधेड़बुन में फंसे रहने देता है. अब पत्नी से कैसे कहे कि वह उसे बिस्तर पर संतुष्टि देने लायक नहीं रहा.

खामोशी है खतरनाक

जीवनसाथी को अपनी कमी को न बता पाने की विवशता अपराधबोध भी पैदा करती है, फिर भी आशंका और बदनामी के भय से मुंह सिले रहते हैं और दांपत्य में दूरियां और गलतफहमियां पैदा होने देते हैं.
पति द्वारा अपनी शारीरिक समस्या पर खामोशी ओढ़े रहना दंपतियों के बीच न सिर्फ दूरी बढ़ा रहा है, बल्कि कहींकहीं तो नौबत तलाक तक जा पहुंची है. पौरुष की कमी की वजह से पुरुष न सिर्फ सैक्स से दूर हो रहे हैं, बल्कि नामर्दगी के डर से उत्पन्न तनाव के कारण कई प्रकार की बीमारियां भी उन में पनप रही हैं.

हाल ही में दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल की एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि 60% मर्द जवानी में ही अपनी मर्दानगी खोने के कगार पर हैं. देश में  40 साल की उम्र तक पहुंचने वाला हर तीसरा पुरुष सैक्सुअल हारमोन की कमी से जूझ रहा है यानी हर तीसरा व्यक्ति टेस्टोस्टेरौन डैफिसिएंसी सिंड्रोम यानी टीडीएस से पीडि़त है. अस्पताल के 745 लोगों पर किए शोध में इस बात के खुलासे से मैडिकल जगत में हलचल मची हुई है.

डाक्टरों का मानना है कि यह परेशानी लगातार बढ़ रही है. अस्पताल ने टीडीएस का पता लगाने के लिए पहले बिना जांच किए सिर्फ लक्षण के आधार पर इस का पता लगाया. इस के लिए शोध में शामिल युवाओं से 10 सवाल पूछे गए. डाक्टर ने बताया कि सैक्स के प्रति रुचि यानी कामेच्छा, क्षमता यानी स्टैमिना और स्ट्रैंथ में कमी जैसे 3 लक्षणों के आधार पर 48.18% लोगों में टेस्टोस्टेरौन हारमोन कम पाया गया. लेकिन जब इन सभी का बायोकैमिकल टैस्ट किया गया तो आंकड़ा बढ़ कर 60.17% हो गया.

टीडीएस का खतरा

सर गंगाराम अस्पताल के यूरोलौजी विभाग के चेयरमैन डाक्टर सुधीर चड्ढा कहते हैं कि इस स्टडी से यह साफ हो रहा है कि हमारी आबादी में हर तीसरा इंसान सैक्स हारमोन की कमी से पीडि़त है. लोग डायबिटीज, हाइपरटैंशन, विटामिन डी की कमी, हार्ट डिजीज जैसे बीमारियों से पीडि़त होते हैं तो उन में टीडीएस यानी टेस्टोस्टेरौन की कमी का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.

टेस्टोस्टेरौन हारमोन पुरुषों में यौन क्षमता बनाए रखने वाला महत्त्वपूर्ण हारमोन है. किसी पुरुष में इस की कमी से सैक्स से जुड़ी परेशानियां पैदा होने लगती हैं. 40 साल की उम्र के बाद टेस्टोस्टेरौन में हर साल 0.4 से 2.6 फीसदी की कमी होने लगती है. भारत में 40 साल से अधिक उम्र का हर तीसरा व्यक्ति सैक्सुअल हारमोन की कमी से जूझ रहा है, जिस के चलते पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने से बचने के कारण उन के वैवाहिक जीवन में असंतुष्टि, शक, कड़वाहट, तनाव और दूरियां बढ़ रही हैं. 40 साल से अधिक उम्र के वे लोग जो डायबिटीज, हार्ट डिजीज, बीपी, विटामिन डी की कमी से जूझ रहे हैं, उन्हें हर साल टीडीएस की जांच जरूर करवानी चाहिए. सैक्स संबंधों में अरुचि का मुख्य कारण तो यह है ही, तनाव, बीपी और हाइपरटैंशन का भी जनक है.

स्टडी में पाया गया कि जिन लोगों को डायबिटीज नहीं थी, उन में टीडीएस का स्तर 52.8% था और डायबिटीज वालों में यह 71.03% था. इसी प्रकार हाई बीपी के मरीजों में टीडीएस का खतरा 72.89% पाया गया और नौनबीपी वालों में यह केवल 54.86% था. कोरोनरी हार्ट डिजीज के 32 मरीज भी इस स्टडी में शामिल हुए थे. इन में से 27 यानी 84.30% में टीडीएस की बीमारी थी. डाक्टरों के मुताबिक, ऐसे लोग जिन की उम्र ज्यादा है और वे डायबिटीज, हार्ट डिजीज, बीपी, विटामिन डी की कमी से जूझ रहे हैं उन्हें हर साल टीडीएस की जांच करानी चाहिए.

क्या है टेस्टोस्टेरौन हारमोन

टेस्टोस्टेरौन हारमोन को पिट्यूटरी ग्रंथि और हाइपोथेलेमस नियंत्रित करते हैं. इस का स्रावण अंडकोष में होता है. सैक्स और शुक्राणुओं की संख्या के लिए यह हारमोन जिम्मेदार है. टेस्टोस्टेरौन हारमोन पुरुष में मर्दानगी के लक्षणों को पैदा करने वाला मुख्य कारक है. सरल भाषा में कहें तो युवावस्था में यह एक लड़के को मर्द बनाता है, जैसे चेहरे पर दाढ़ीमूंछ आना, सीने पर बाल आना, आवाज में भारीपन आना, जननांग का विकसित होना, शरीर का सुडौल होना, ताकतवर मांसपेशियां बनना सब इस हारमोन के कारण ही होता है. शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के लिए यह हारमोन पुरुषों के लिए जरूरी है. यह उम्र बढ़ने के साथ कम होने लगता है.

एक अनुमान के मुताबिक 30 से 40 की उम्र के बाद इस में हर साल 2 फीसदी की गिरावट आने लगती है. इस में क्रमिक गिरावट सेहत से जुड़ी कोई समस्या नहीं है, लेकिन जब कुछ खास बीमारियों, इलाज या चोटों के कारण यह सामान्य से कम हो जाता है, परेशानी तब शुरू होती है. अंडकोष में चोट, उस की सर्जरी, क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम और आनुवंशिकी गड़बड़ी से पिट्यूटरी ग्रंथि और हाइपोथैलेमस प्रभावित होता है, जिस से हाइपोगोनैडिज्म के हालात पैदा होते हैं.

इन्फैक्शन, लिवर और किडनी में बीमारी, शराब की लत, कीमोथेरैपी या रैडिएशन थेरैपी के कारण भी टेस्टोस्टेरौन हारमोन में कमी आती है. टेस्टोस्टेरौन की कमी वैवाहिक जीवन में कलह का कारण बनती है. इस हारमोन की कमी के चलते पति चाह कर भी पत्नी को शारीरिक सुख नहीं दे पाता.
सोशल टैबू ने जकड़ रखा है भारत में सामाजिक बंधन और शर्मिंदगी की वजह से पुरुष न तो अपनी इस कमी को उजागर करते हैं और न ही इस के इलाज के लिए डाक्टर के पास जाते हैं. इस के विपरीत वे ताकत की दवाएं, झाड़फूंक, योगा या आयुर्वेद जैसी चीजों का सहारा लेने लगते हैं, जो उन की परेशानी को और ज्यादा बढ़ा देते हैं. टेस्टोस्टेरौन की कमी एक प्रकार की बीमारी है, जिस का इलाज ऐलोपैथी में संभव है. औरतों की तरह पुरुषों में भी सैक्स हारमोन रीप्लेसमैंट संभव है. बस जरूरत है सोशल टैबू को भूल कर डाक्टर के पास जाने की.

पत्नी को विश्वास में लें

आप की जीवनसाथी को आप के जीवन पर पूरा अधिकार है. उस से अपनी बीमारी, अपनी कमी, अपनी गलतियां न छिपाएं. उसे विश्वास में लें. उसे बताएं कि आप किस तरह की समस्या का सामना कर रहे हैं. यदि आप ठीक तरीके से अपनी समस्या पत्नी को बताएंगे तो न सिर्फ आप का वैवाहिक जीवन तबाह होने से बचेगा, बल्कि आप के बीच बौंडिंग भी बढ़ेगी. इस के साथ ही जीवनसाथी का साथ और विश्वास पा कर आप में डाक्टर के पास जाने और इलाज करवाने की हिम्मत भी पैदा होगी.

जानें Pregnancy में कैसी हो सेक्स पोजीशन, पढ़ें खबर

प्रेगनेंसी के दौरान महिलाएं काफी सतर्क हो जाती हैं. कहीं गर्भस्थ शिशु को कोई हानि न पहुंचे, इस कारण वे पति से शारीरिक तौर पर भी हर संभव दूरी बनाए रखने की कोशिश करती हैं, मगर डाक्टरों के अनुसार गर्भावस्था में सेक्स किया जा सकता है.

हां, अगर प्रेगनेंट महिला की हालत नाजुक हो या फिर कोई कौंप्लिकेशन हो, तो शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहिए. लेकिन पत्नी से ज्यादा दिनों तक दूर रहना पति के लिए नामुमकिन हो जाता है, जिस के चलते रिश्तों में अलगाव होने की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में इस स्थिति को रोकने के लिए आइए जानते हैं कि गर्भावस्था में कैसे करें सेक्स:

गर्भावस्था के दौरान सेक्स के समय इन पोजीशंस के माध्यम से सुरक्षित सेक्स का आनंद भी लिया जा सकता है और इस से होने वाले बच्चे और मां को भी कोई तकलीफ न होगी.

पहली पोजीशन: पति और पत्नी एकदूसरे के सामने लेट जाएं. पत्नी अपना बायां पैर पति के शरीर पर रख दे. इस पोजीशन में सेक्स करने से गर्भ को झटके नहीं लगते.

दूसरी पोजीशन: पत्नी पीठ के बल टखने मोड़ कर अपनी टांगें पति के कंधों पर रखे, फिर सेक्स करें. इस से पेट पर कोई दबाव नहीं पड़ेगा.

तीसरी पोजीशन: पति कुरसी पर बैठे और पत्नी उस के ऊपर बैठ जाए. यह भी सेफ सेक्स में आता है.

कुछ व्यायामों के माध्यम से भी सेक्स किया जा सकता है, लेकिन इस के पहले डाक्टर से सलाह जरूर ले लें.

सावधानियां

  •  गर्भावस्था में सेक्स के दौरान पति को पत्नी का खास ध्यान रखना चाहिए. पति ज्यादा उत्तेजना में न आए और न ही पत्नी पर ज्यादा दबाव पड़े.
  •  गर्भावस्था में सेक्स करें, लेकिन किसी प्रकार का नया प्रयोग करने से बचें.
  •  सेक्स करते हुए ध्यान रहे कि पत्नी पर ज्यादा दबाव न पड़े.
  •  गर्भावस्था में प्रसव पीड़ा से पहले तक सेक्स किया जा सकता है, पर गर्भवती को इस से कोई तकलीफ  न हो तब.

गर्भावस्था में सेक्स के फायदे

प्रेगनेंसी के दौरान सेक्स मां और बच्चे दोनों की सेहत के लिए फायदेमंद होता है, आइए जानते हैं कैसे:

  •  गर्भावस्था में सेक्स करने से आप की पैल्विक मांसपेशियों में सिकुड़न बढ़ जाती है, जिस से वे प्रसव के लिए और मजबूत बनती हैं.
  •  प्रेगनेंसी के दौरान जल्दी पेशाब आना, हंसने या छींकने पर पानी निकलने आदि की समस्या आप के बच्चे के बड़े होने के कारण मूत्राशय पर पड़ने वाले दबाव की वजह से होती है. यह थोड़ा असुविधाजनक हो सकता है, लेकिन इस से आप की मांसपेशियां मजबूत होती हैं जो प्रसव के समय लाभ पहुंचाती हैं.
  •  सेक्स करने से महिला ज्यादा फिट रहती है. इस दौरान वह सिर्फ 30 मिनट में 50 कैलोरी कम कर सकती है जोकि उस की हैल्थ के लिए अच्छा है.
  •  गर्भावस्था में सेक्स करने से महिला की सहनशक्ति 78% बढ़ जाती है, जिस से प्रसव के समय उसे थोड़ा आराम महसूस होता है.
  • सेक्स के बाद रक्तचाप कम हो जाता है. अधिक रक्तचाप मां और बच्चे दोनों के लिए हानिकारक होता है, इसलिए बेहतर है कि ऐसी स्थिति में डाक्टर से सलाह लें.
  • औक्सीटोसिन हारमोन संभोग के समय शरीर से मुक्त होता है, जो तनाव को कम करने में उपयोगी होता है, जिस कारण अच्छी नींद आती है.
  •  शोधकर्ताओं का मानना है कि गर्भावस्था में सेक्स प्रीक्लेंपसिया से बचाता है. यह ऐसी स्थिति है, जिस में अचानक रक्तचाप बढ़ जाता है. ऐसा शुक्राणु में पाए जाने वाले प्रोटीन के कारण होता है जो इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है.

जब डाक्टर को कुछ जटिलताएं नजर आती हैं, तब वे सेक्स न करने की सलाह देते हैं. जटिलताएं कई प्रकार की हो सकती हैं, जैसे:

  • अगर पहले कभी गर्भपात हुआ हो तो.
  •  पहले कभी समय से पूर्व बच्चा जन्मा हो तो.
  •  किसी प्रकार का गर्भपात का जोखिम होने पर.
  • योनि से अधिक रक्तस्राव होने या तरल पदार्थ बहने की स्थिति में.
  •  एक से अधिक बच्चे होने पर.

अगर आप चाहती हैं कि आप की प्रैगनैंसी खुशहाल और सुरक्षित हो तो टोनेटोटकों जैसे गर्भ रक्षा कवच, गर्भ रक्षा हेतु चमत्कारी टोटके, पुत्र प्राप्ति के नुसखे आदि के चक्करों में उलझने से बचें, क्योंकि इस दौरान टोनेटोटके नहीं, बल्कि पतिपत्नी के बीच प्यार और अच्छे संबंध ज्यादा जरूरी हैं. इस दौरान अपने और अपने होने वाले बच्चे का पूरा ध्यान रखें. डाक्टर की सलाह पर चलें और संपूर्ण आहार लें, ताकि आप के शरीर को सभी पोषक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में मिल सकें, जो आप के होने वाले बच्चे के विकास के लिए जरूरी हैं.

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