‘वो’ केवल पैसा चाहे

‘यार दिलदार तु?ो कैसा चाहिए, प्यार चाहिए या पैसा चाहिए…’ कोई भी सच्चा हमसफर तो प्यार की ही बात करेगा, पर वे हमसफर जो सिर्फ पैसे के चलते ही किसी के हमकदम बनते हैं, वे पैसे को ही तवज्जुह देंगे.

पतिपत्नी के बीच जब ‘वो’ आती है, तो शादीशुदा जिंदगी की गाड़ी लड़खड़ाने लगती है. पति के लिए पत्नी का होना ‘घर की मुरगी दाल बराबर’ की तरह होता है. उसे सैक्रेटरी या किसी और के लटके?ाटके अच्छे लगने लगते हैं, तो वह ‘वो’ बन जाती है. तब शुरू होता है पतिपत्नी के बीच मनमुटाव.

ऐसे में मर्द को यह सम?ा लेना चाहिए कि उस की जिंदगी में ‘वो’ का आना किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है. इस में कोई दो राय नहीं कि ‘वो’ केवल पैसा ही चाहती है. ‘वो’ वही शख्स है, जो आज इस के पास और कल उस के पास.

मनोज कुमार एक एजेंसी के डायरैक्टर थे. उन की शादी हो चुकी थी. एक बच्चा भी था. उन की एक सैक्रेटरी थी, जिस के साथ उन के नाजायज संबंध थे और अपने उस संबंध के प्रति वे शर्मिंदा भी नहीं थे.

शुरूशुरू में सैक्रेटरी ने खुद को बेबस बता कर नौकरी हासिल की. बाद में वह मन से कंपनी की सेवा करने लगी और तब से बौस अपनी सैक्रेटरी से संबंधों के चलते अकसर ?ाठ बोल कर देर रात घर लौटते और ‘वो’ पर ज्यादा से ज्यादा खर्च करते. पत्नी के मांगने पर वे उस से कहते कि कंपनी घाटे में जा रही है, इसलिए कम खर्च करो.

वह बेवकूफ औरत अपने पति पर आंख मूंद कर भरोसा कर रही थी. सैक्रेटरी से संबंधों के चलते मनोज साहब औफिस पर पूरी तरह ध्यान नहीं दे पाते थे. ऐसे में उन का कारोबार पूरी तरह चौपट हो गया और जब उन के पास पैसा नहीं रहा, तो उन की ‘वो’ भी उन का दामन छुड़ा कर चली गई और वह भी सामने वाली कंपनी के डायरैक्टर की बांहों में.

उस के लिए तो वही बात थी कि चलो एक और मूर्ख फंसा. पर हैरानी की बात यह है कि क्या उस मूर्ख को यह नहीं दिखता कि कल तक तो यह सामने वाली कंपनी के डायरैक्टर की बांहों में ?ाल रही थी?

मर्दों को यह सम?ा लेना चाहिए कि आज की इस रफ्तार भरी जिंदगी में जहां उस की पत्नी उस की सच्ची हमकदम है, ऐसे में किसी दूसरी औरत का हाथ थामना किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता.

यह माना कि आप की पत्नी खूबसूरत नहीं है या बोलचाल में ज्यादा व्यवहार कुशल नहीं है, पर फिर भी बुरे वक्त में यही बीवी अपनी बचत की पूंजी से आप को उबारती है.

उस वक्त वह अपने किसी कीमती गहने या साड़ी का मोह नहीं रखती, क्योंकि उस का अनमोल गहना उस का मर्द जो उस के पास होता है.

पत्नी यह जानती है कि आप के पास पैसा नहीं है तो वह भूखी सोना भी मंजूर कर लेगी, पर आप को छोड़ कर हरगिज नहीं जाएगी, बल्कि दिनरात मेहनत कर वह आप को सहयोग ही देगी.

इस के उलट बाहर वाली ‘वो’ केवल वहीं तक सहयोग देती है, जब तक आप के पास पैसा है. वैसे भी यह सम?ा लेना चाहिए कि वह आप के पास सुख और आराम खोजने आई है, न कि आप का दुखदर्द बांटने, इसलिए ‘वो’ को अपनी शादीशुदा जिंदगी में घुसपैठ कभी मत करने दीजिए.

दिनेश इस मामले में कहता है, ‘‘घरवाली ही घरवाली होती है और बाहरवाली बाहरवाली. बाहरवाली नए फैशन की होती है, जबकि घरवाली तो वही रूटीन… कभीकभी तो घरवाली की शक्ल देख कर मैं उकता जाता हूं.

‘‘बाहरवाली मेरे लिए हर दिन नई सोच और नया अंदाज ले कर आती

है. बस, एक बर्गर, पिज्जा या कौफी और बदले में ढेर सारी मस्ती. है

न सस्ती?’’

सम?ादार लोग मानते हैं कि ‘वो’ अकसर वे लड़कियां होती हैं, जो आलसी औरकायर होती हैं. वे मेहनत नहीं करना चाहतीं, पर उन के सपने ऊंचे होने के चलते बहुत सा पैसा कमाना चाहती हैं.

उन्हें जिंदगी में हर समय नया स्टाइल चाहिए, इसलिए वे एक पैसे वाले से संबंध बनाती हैं, जिस के पास पैसा और गाड़ीबंगला हो. ऐसी लड़कियां उन नए कारोबारियों के पास कम ही फटकती हैं, जो अभी मध्यम तबके से आए होते हैं.

मजेदार बात यह है कि शादी के बारे में भी इन के खयाल कुछ ऐसे ही होते हैं. कोई पैसे वाला, पर तब यही लड़कियां किसी नौजवान को ढूंढ़ती हैं, जबकि सिर्फ मौजमस्ती के लिए ये न उम्र देखती हैं और न शक्ल. वे तो बस पर्स देखती हैं. अगर आप ऐसी गलती करने जा रहे हैं, तो पत्नी के बारे में भी सोचिए.

आप की पत्नी क्या स्मार्ट नहीं. अगर है तो फिर क्यों इधरउधर मुंह मार रहे हैं. और अगर नहीं है, तो आप उसे स्मार्ट बनने में कितनी मदद करते हैं?

आप की पत्नी आप को अगर बोर लगने लगे, तो आप उस का गैटअप चेंज करने में उस की मदद कीजिए. इस तरह आप अपनी पत्नी को कभीकभी ‘वो’ सम?ा कर प्यार करने की कोशिश कीजिए, तो शायद कभी ‘वो’ की जरूरत ही न पड़े. और आप के पैसे बचे रहें.

‘वो’ अकसर पतिपत्नी का आपस में लड़ा कर उन का तलाक कराती है और फिर पति की जायदाद हड़प कर उसे फुटपाथ पर ला खड़ा करती है. अब मरजी है आप की.

धर्म का चश्मा चढ़ाए अंधी सोच

धर्म का चश्मा पहन कर सोच भी अंधी हो जाती है. रायपुर (भाटापाड़ा) के गांव टेहका में 3 आंखें, 2 नाभि व सिर पर एक मांस के पिंड के साथ बच्चे का जन्म हुआ. उसे देखने के लिए सैकड़ों लोग वहां जा पहुंचे और खूब चढ़ावा चढ़ा, क्योंकि गणेश पक्ष की समाप्ति व पितृ पक्ष के लगते ही बच्चे का जन्म उसे देवता की श्रेणी में ले आया था. इस में कुदरत की चूक पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.

इस मसले पर मनोवैज्ञानिक डाक्टर विचित्रा दर्शन आनंद कहती हैं, ‘‘सवाल न करने की सोच ही इनसान की शख्सीयत उभारने में सब से बड़ी बाधक होती है और इसे जन्म देता है वह माहौल, जिस में कोई शख्स पलताबढ़ता है.

‘‘तभी तो आज भी काला जादू से बीमारी ठीक करने की बात पर विश्वास किया जाता है. मिसाल के तौर पर तिलक हजारिका (जादूगर) ने एक शख्स की पीठ पर थाली चिपका दी और उस की तकलीफ दूर करने का दावा किया.’’

तर्कशास्त्री सीवी देवगन ने काला जादू होने की बात को नकारा है. इसे एक चालबाजी बताया है.

कुछ महीने पहले टैलीविजन पर एक शख्स लटकन बाबा ने भविष्यफल व अचूक उपाय बताने के नाम पर अपनी किस्मत चमका ली. उस बाबा ने कहा कि शंकरजी पर चढ़ा बेलपत्र ले कर उस पर भभूत लगाएं और उस का तावीज बना कर गले में डाल लें. आप के सारे रुके काम पूरे हो जाएंगे.

इस से ज्यादा मजाकिया बात और क्या होगी? फिर भी लोग पाखंड के कामों से जुड़े रहते हैं. अपने दिमाग का छोटा सा हिस्सा भी इस्तेमाल में नहीं लाते, तभी तो ऐसे बाबाओं की तादाद में लगातार बढ़ोतरी हो रही है.

भक्ति या भरमजाल

कुछ समय पहले ‘राधे मां’ का बिगुल बजा था. लाखों भक्तों ने ‘राधे मां’ नामक औरत को देवी का दर्जा दे कर उस की पूजा की. एक से बढ़ कर एक विवादों से घिरी यह ‘राधे मां’ हाथ में त्रिशूल, माथे पर बड़ा लाल टीका, नाक में नथनी पहन कर भक्तों के आकर्षण का केंद्र बन गई.

क्या है असलियत

पंजाब में गुरुदासपुर की सुखविंदर कौर शादी के बाद घर चलाने के लिए कपड़े सिलती थी. 21 साल की उम्र में सुखविंदर कौर गुरु की शरण में जा पहुंची. वहां उस का नामकरण ‘राधे मां’ हुआ और ‘राधे मां’ के भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी. इन में सिनेमा जगत व दूसरी हस्तियां भी शामिल हो गईं.

यह ‘राधे मां’ कभी भक्तों के बीच झूमती और भक्ति के जोश में किसी भक्त की गोद में चढ़ जाती. आशीर्वाद दे कर उस भक्त की मनोकामना पूरी करती.

आस्था के मायाजाल में लिपटी जनता ‘राधे मां’ के जयकारे लगाते कई बार देखी गई. कभी यही ‘राधे मां’, लाल मिनी स्कर्ट में कहर बरपाती देखी गई. इस का अपना दरबार सजता था.

वकील फाल्गुनी ब्रह्मभट्ट ने विरोध किया कि यह औरत धर्म के नाम पर लोगों को ठग रही है.

एक और बाबा

‘सारथी बाबा’, जिस की करोड़ों की जायदाद है. गंजाम, ओडिशा में वह साधुगीरी कर धनदौलत के नशे में डूबा हुआ है. ‘सारथी बाबा’ का असली नाम संतोष राउल है. घर से भाग कर 7 साल भटकने के बाद साल 1992 में केंद्रपाड़ा, ओडिशा में अपना आश्रम खोला. यह बाबा प्रवचन देने के बजाय रंगरलियां मनाता रहा और बीयर बेचता रहा. बाद में पुलिस ने इसे गिरफ्तार किया और अब इस पर केस चल रहा है.

‘हीलिंग बाबा’ के नाम से मशहूर सैबेश्चियन मार्टिन मुंबई के ठाणे इलाके में एक ‘आशीर्वाद प्रार्थना केंद्र’ चला रहा था. यह बाबा मरीज को अपने सामने खड़ा करता है और अपने दोनों हाथों को ऊपर उठा कर कुछ बुदबुदाता है. कुछ ही देर में वह मरीज खड़ेखड़े ही गिर जाता है, मतलब उस की बीमारी दूर हो गई.

इस ‘हीलिंग बाबा’ ने जन्म से अंधी एक लड़की की आंखें ठीक करने का दावा किया. इस के अलावा पुष्पा नाम की औरत की दोनों खराब किडनी को ‘जीसस’ की दुहाई दे कर ‘हीलिंग बाबा’ ने ठीक करने का दावा किया.

पिछले 10 साल से यह केंद्र चल रहा है, पर अब पुलिस ने इस केंद्र के 2 लोगों को गिरफ्तार किया है और ‘हीलिंग बाबा’ खुद एक अस्पताल में भरती हो गया.

अब सोचने वाली बात यह है कि जो आदमी किडनी ठीक कर सकता है, आंखों में रोशनी ला सकता है, वह अपना इलाज क्यों नहीं कर पाया?

जानलेवा प्रथा

3 सौ सालों से चल रहा 2 गांवों के बीच खुलेआम मौत का खूनी खेल ‘गोटमार उत्सव’ बड़े ही जोश के साथ मनाया जाता है. कहा जाता है कि छिंदवाड़ा के पांडुरना गांव का एक लड़का और सांवर गांव की एक लड़की भाग कर नदी पार कर रहे थे, तभी गांव वालों ने देख लिया और दोनों को पत्थर मारमार कर मार डाला.

तभी से यह ‘गोटमार उत्सव’ के रूप में भादों मास के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है. इस में हर साल काफी लोग घायल होते हैं और कुछ की मौत भी हो जाती है.

प्रशासन इसे रोकने में नाकाम रहा है. इस के लिए धारा 144 भी लगाई गई, लोगों के खिलाफ रबड़ की गोलियां भी चलाई गईं, पर यह उत्सव न रुक पाया. अब उत्सव वाले दिन प्रशासन की तरफ से एंबुलैंस वहां रहती है, जो घायलों को अस्पताल ले जाने का काम करती है.

अभी हाल ही में सिंहस्थ, उज्जैन में कुंभ मेले में साधुसंतों में गोलीबारी और तलवारबाजी हुई. कई साधुसंन्यासी तो चोटिल हो कर अस्पताल पहुंच गए.

सोचने की बात यह है कि साधुसंत मोहमाया से दूर रहने की बात करते हैं, पर खुद गुटबाजी में लिप्त हैं और लड़मर रहे हैं. उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भी चढ़ावे के बंटवारे के चक्कर में वहां के पंडों को हाथापाई करते देखा गया था.

ऐसी घटनाएं देखसुन कर भी जनता की आंखें क्यों नहीं खुलतीं? ऐसी सोच पर दुख होता है. धर्म की आड़ में धर्म के ठेकेदार जनता को यों ही बहलातेफुसलाते रहेंगे, पर जनता कब तक दिमाग की खिड़की बंद किए उन के पीछेपीछे चलती रहेगी?

सरकारी नौकरी या खुद का काम

बेरोजगार नौजवानों की फौज दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. जहां तक सरकारी नौकरी का सवाल है, चपरासी जैसे पद के लिए लाखों डिगरीधारी अर्जी देते हैं. आज का नौजवान तबका सरकारी नौकरी के लालच में रहता है, लेकिन खुद अपना काम करने की कोशिश नहीं करता.

काश, नौजवान अगर सरकारी नौकरी के बजाय खुद का कारोबार करने का रास्ता चुनें, तो सही समय पर उन के कैरियर की शुरुआत हो सकेगी, क्योंकि तब उन्हें नौकरी के लिए दरदर की ठोकरें नहीं खानी पड़ेंगी.

सरकारी नौकरी मिलना बच्चों का खेल नहीं है. अनेक नौजवान ऐसे हैं, जिन्हें 10-15 साल कोशिश करने के बाद भी सरकारी नौकरी नहीं मिली और अब वे ‘ओवर ऐज’ हो गए हैं, यानी अब उन्हें नौकरी नहीं मिल सकती. अगर वे सरकारी नौकरी का मोह छोड़ कर समय पर कारोबारी बनने की सोच लेते, तो आज नई ऊंचाइयों को छू रहे होते.

ऐसे लोगों से उन नौजवानों को सबक लेना चाहिए, जो आज भी सरकारी नौकरी की उम्मीद लगाए बैठे हैं और अपनी जिंदगी के अहम सालों को बेरोजगार रह कर बरबाद कर रहे हैं.

याद रखिए, बीता हुआ समय लौट कर नहीं आता. ऐसे में जितनी देर से आप कोई कारोबार शुरू करेंगे, उस में उतने ही पीछे रहेंगे, इसलिए सरकारी नौकरी का दामन थामने की इच्छा रखने के बजाय खुद इस लायक बनने की कोशिश करें कि आप दूसरों को अपने कारोबार में रोजगार दे सकें.

अगर सरकारी नौकरी को छोड़ कर निजी क्षेत्र की कंपनियों में नौकरी की बात करें, तो वहां सिर्फ डिगरी होने से काम नहीं चलता, बल्कि कोई हुनर भी होना चाहिए. क्योंकि वहां ‘कचरा’ नहीं चलता, बल्कि वे ‘क्रीम’ को छांटते हैं.

जाहिर है, जिन नौजवानों में ये गुण हैं, वे ही निजी क्षेत्र की कंपनियों में नौकरी की उम्मीद लगा सकते हैं.

निजी कंपनियां सालाना पैकेज भले ही खूब देती हैं, लेकिन उन के काम करने के घंटे और शर्तें बड़ी कठोर होती हैं. जो नौजवान मेहनती हैं, चुनौतियों को स्वीकार करने की हालत में हैं, उन्हें ही कंपनियां मौका देती हैं.

ऐसे में एक आम नौजवान क्या करे? क्यों न वह अपना कारोबार खुद लगाए? नौकर के बजाय वह मालिक क्यों न बने?

जी हां, आज सरकार और बैंकों की इतनी सारी योजनाएं हैं, जिन का फायदा उठा कर बेरोजगार नौजवान अपना खुद का कारोबार लगा सकते हैं.

नौजवान कारोबारियों के सामने सब से बड़ी समस्या पैसा लगाने की होती है. अमीर परिवार के नौजवान के लिए तो इस का समाधान है, लेकिन मध्यम और गरीब तबके के नौजवान कारोबार शुरू करने के लिए पैसा कहां से लाएं? कौन उन की मदद करेगा? नातेरिश्तेदार मुंह फेर लेते हैं. मांबाप के पास इतना पैसा नहीं होता कि वे अपनी औलाद को उस के पैरों पर खड़ा होने के लिए दे सकें.

ऐसे नौजवानों को निराश होने की जरूरत नहीं है. इस के लिए किसी भी सरकारी बैंक में जाइए और लोन के लिए उन की योजनाओं की जानकारी लें. वहां आप की बात बन सकती है.

नौजवान कारोबारियों के लिए सरकार अनेक साधन जुटाती है. इस में जमीन, पूंजी, शक्ति के साधन, कच्चा माल, यातायात, संचार वगैरह खास हैं.

अगर नौजवानों को कारोबार लगाने के लिए तकनीकी मदद की जरूरत होती है, तो सरकारी संस्थाएं उन्हें उचित सलाह देती हैं.

सरकार नए कारोबारियों को आकर्षित करने के लिए समयसमय पर अलगअलग कार्यशालाएं, सम्मेलन और विचार गोष्ठियां भी कराती है.

लड़कियों को कारोबार के क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से विशेष योजनाएं चलाई जा रही हैं. उन्हें स्वरोजगार के लिए ट्रेनिंग, सलाह व कर्ज संबंधी सुविधाएं दी जा रही हैं. उन्हें खासतौर पर रियायती दर पर कर्ज दिया जाता है.

लघु उद्योग सेवा संस्थान, लघु उद्योग व्यवसाय संगठन, जिला उद्योग केंद्र, भारतीय औद्योगिक विकास संगठन वगैरह इस दिशा में अच्छा काम कर रहे हैं. इस के अलावा राष्ट्रीय साहस विकास कार्यक्रम, लघु उद्योग विकास संगठन और राज्यस्तरीय परामर्श देने वाले संगठन भी नएनवेले कारोबारियों को ट्रेनिंग देने का काम बखूबी करते हैं.

सरकार द्वारा पिछड़े क्षेत्रों में कारोबारियों को बढ़ावा देने के लिए विशेष सुविधाएं और छूट दी जाती है. सरकार उन्हें अनुदान देती है, ताकि उन की सामान बनाने की लागत कम हो सके. उन्हें टैक्सों में भी कई तरह की छूट दी जाती है.

जब आप कारोबारी बनेंगे, तो आप के सामने तमाम चुनौतियां आएंगी, लेकिन निराश हो कर पीछे हटने के बजाय उन का डट कर सामना करने की कोशिश करें.

जिस दिन आप ऐसा करने के लायक हो जाएंगे, तब आप का दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास ही आप को कामयाबी की सीढ़ी पर आगे बढ़ने में मददगार होगा.

नजदीकी रिश्तों में प्यार को परवान न चढ़ने दें

मामला 1

मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले धार के गांव गिरवान्या में पिछले साल 12 दिसंबर को महुआ के एक पेड़ पर जवान लड़कालड़की फांसी पर लटके मिले थे. लड़के का नाम दिनेश और लड़की का नाम सीमा था. वे दोनों एक शादी में शामिल होने अपने गांव देगडी नानपुर से गिरवान्या आए थे.

यह खबर जंगल की आग की तरह पूरे निमाड़ इलाके में फैली. यह तो हर किसी को समझ आ गया था कि मामला प्यारमुहब्बत का रहा होगा, लेकिन लोगों को जब यह पता चला कि सीमा और दिनेश आपस में चचेरे भाईबहन थे, तो हर किसी ने यह कहा कि उन्होंने खुदकुशी कर के दूसरी गलती की. पहली गलती यह थी कि भाईबहन होने के नाते उन्हें प्यार के पचड़े में ही नहीं पड़ना चाहिए था.

तो फिर क्या करते वे दोनों और ऐसी गलतियां अकसर आजकल के जवान लड़केलड़कियों से क्यों हो रही हैं कि वे नजदीकी रिश्ते में प्यार में पड़ जाते हैं और साथ जीनेमरने और शादी की कसमें खाने के बाद जब घर वालों से शादी की बात करते हैं, तो उन पर तो मानो पहाड़ सा टूट पड़ता है, क्योंकि रिश्तेनातों की मर्यादा इस की इजाजत नहीं देते?

इस सवाल का जवाब दिनेश के पिता सुकलाल और सीमा के पिता इरडा के पास भी नहीं है जो आपस में भाईभाई हैं. उन दोनों के चेहरे अपने बच्चों को खोने के 3 महीने बाद भी बुझे और उतरे हुए हैं, लेकिन वे भी समाज और उसूलों से बंधे हैं, जो गलत कहीं से नहीं कहे जा सकते.

सीमा और दिनेश ने अपने प्यार के बारे में बताते हुए शादी की इजाजत अपनेअपने पिता से मांगी थी, जो उन्होंने नहीं दी. इस जवाब पर उन्होंने वही बुजदिली दिखाई, जो बीती 9 फरवरी को गुजरात के सूरत में रामसेवक और पूनम उर्फ लक्ष्मी ने दिखाई थी.

मामला 2

रामसेवक निषाद मूलत: उत्तर प्रदेश का रहने वाला था और अपने 3 भाइयों के साथ रोजगार के जुगाड़ में सूरत आ गया था. अच्छी बात यह थी कि उसे एक कंपनी में मशीन आपरेटर का काम भी मिल गया था. 6 लोगों वाला यह परिवार शिवांजलि सोसाइटी के नजदीक अक्षय पटेल की चाल में एक दड़बेनुमा घर में रहता था.

घर की माली हालत हालांकि ठीक नहीं थी, लेकिन सभी भाइयों के कामकाजी होने से जिंदगी की गाड़ी ठीकठाक और शांति से चल रही थी, लेकिन लौकडाउन के दिनों में इन की फुफेरी बहन लक्ष्मी भी सूरत आ गई तो एक तूफान आया और सबकुछ अपने साथ बहा ले गया.

सूरत की एक कंपनी में बतौर टीएफओ आपरेटर काम करने वाले पूनम के पिता गंगाचरण ने भी इसी चाल में कमरा ले लिया था, जो रामसेवक के घर के नजदीक था.

3 महीनों में ही नाबालिग 17 साला पूनम और रामसेवक को एकदूसरे से इतना प्यार हो गया कि वे साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे.

रिश्ते में कजिन होने के चलते उन पर दोनों के घर वालों ने किसी तरह का शक नहीं किया, लेकिन यह लापरवाही

5 फरवरी को उन पर तब गाज बन कर गिरी, जब उन्होंने अपने प्यार की बात बताते हुए शादी करने की भी ख्वाहिश जाहिर की.

यह सोचते हुए कि जवानी में नादानी हो ही जाती है, घर वालों ने उन्हें टरकाने की कोशिश की कि जल्द ही मसला सुलझा लेंगे और कुछ सख्ती भी दिखाई कि किसी भी सूरत में यह शादी नहीं हो सकती तो रामसेवक और लक्ष्मी ने भी पंखे पर एकसाथ लटक कर खुदकुशी कर ली.

मामला 3

यह दिलचस्प मामला छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले का है. दिसंबर, 2020 के दूसरे हफ्ते में सुबह के तकरीबन 10 बजे एक जवान लड़की गंगरेल बांध पर बने मां अंगार मोती मंदिर के पास गहरे पानी में कूद पड़ी, जिस पर राह चलते लोगों की नजर पड़ी तो उन्होंने बांध में कूद कर उसे बचा लिया.

मामला थाने तक पहुंचा तो पता चला कि एक साल पहले ही लड़की ने अपने ही गांव के एक लड़के से लव मैरिज की थी. लेकिन दोनों में शादी के बाद पटरी नहीं बैठी तो वह पति से तलाक ले कर मायके आ कर रहने लगी.

यहां तक बात हर्ज की नहीं थी, लेकिन लोचा उस वक्त शुरू हुआ जब लड़की अपने ममेरे भाई से दिल लगा बैठी और वह भी उसे टूट कर चाहने लगा. उन दोनों ने घर वालों से अपनी शादी कराने की बात कही तो वे सकते में आ गए और ऊंचनीच बताते हुए दो टूक कह दिया कि रिश्ते के भाईबहन में आपस में शादी नहीं हो सकती, तो लड़की अकेली दरिया में कूद गई, लेकिन लोगों की नजर में आ जाने से बचा ली गई.

मामला 4

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गांव पश्चिम टोला का 20 साला पिंकू लोधी मुंबई में टेलरिंग का काम करता था, लेकिन लौकडाउन के दौरान दूसरे तमाम लोगों की तरह उसे भी गांव वापस आना पड़ा था. आया तो घर के सामने रहने वाली लड़की ज्योतिका लोधी से उसे प्यार हो गया, जो रिश्ते में उस की भतीजी लगती थी. चूंकि नजदीकी रिश्ता होने के चलते उन की शादी की मंजूरी घर वाले नहीं दे रहे थे, इसलिए दोनों ने बीती

18 जनवरी को गांव के एक बगीचे के पेड़ पर साथ लटक कर खुदकुशी कर ली. बाद में यह सुगबुगाहट भी हुई कि दोनों प्यार तो बहुत पहले से करते थे, लेकिन लौकडाउन में पिंकू के गांव आ जाने के बाद यह तेजी से परवान चढ़ने लगा था, जिस का अंजाम इस तरीके से हुआ.

जवानी और नादानी

नजदीकी रिश्तों में प्यार और शादी की जिद पूरी न होने पर साथ या फिर अकेले खुदकुशी कर लेने के जो मामले आएदिन सामने आते हैं, उन में लड़कालड़की की उम्र इतनी कम होती है कि उन्हें समझदार नहीं माना जा सकता. वे सपनों की दुनिया में जी रहे होते हैं, जहां रिश्तेनातों और हकीकत की कोई जगह ही नहीं होती. यह सच है कि प्यार का असल लुत्फ जवानी के दिनों में ही आता है, क्योंकि इस उम्र में प्यार किया नहीं जाता, बल्कि हो जाता है.

लेकिन जब यह प्यार गलत जगह होता है, तो लुत्फ कम मुसीबतें ज्यादा प्रेमियों को झेलनी पड़ती हैं. खासतौर पर जब घरपरिवार के लोगों समेत समाज और कानून भी उन की जिद से इत्तिफाक न रखते हों.

इन सभी की निगाह में नजदीकी रिश्तों में प्यार और शादी जुर्म है, फिर भी नौजवान यह करते हैं तो इस की वजहें जानना भी जरूरी हैं, जिस से इस

आफत को वक्त रहते काबू किया जा सके और निराशहताश बच्चों की जान बचाई जा सके.

इसलिए परवान चढ़ता इश्क

यह समाज का वह दौर है, जब हर तबके के लोग आजादी से रहना चाहते हैं, इसलिए वे कमाऊ होते ही या फिर शादी के कुछ दिनों बाद मांबाप और घर से अलग हो जाते हैं. जब बच्चे होते हैं, तो उन्हें पालनेपोसने में सभी को पसीने आ जाते हैं. रोजीरोटी के जुगाड़ में सभी इस तरह मसरूफ रहते हैं कि बड़े होते बच्चों को बहुत सी जरूरी बातें नहीं सिखा पाते, खासतौर से रिश्तों की हद और अहमियत कि ममेरा, चचेरा, फुफेरा और मौसेरा रिश्ता क्या होता है और  कैसे निभाया जाता है.

रिश्तेदारी में पहले सी नजदीकियां नहीं रह गई हैं, लिहाजा लोग सालोंसाल एकदूसरे से नहीं मिल पाते. और जब कभी मिलते भी हैं, तो 2-4 दिनों के लिए और पुरानी यादें ताजा कर चलते बनते हैं. जवान होते बच्चे होश संभालने के बाद एकदूसरे को देखते हैं, तो उन की फीलिंग्स में एकदूसरे के लिए सैक्स का आकर्षण हो आना कुदरती बात होती है, क्योंकि उन्होंने एकदूसरे को कभी भाई या बहन की नजर से देखा और महसूसा ही नहीं होता.

इन के मिलनेजुलने पर कोई रोकटोक नहीं होती, इसलिए गलत जगह हो गया प्यार जल्द परवान चढ़ता है. चूंकि तनहाई और आजादी इफरात से मिलती है, इसलिए अकसर उन में सैक्स ताल्लुकात भी कायम हो जाते हैं. फिर तो इन की वापसी मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन हो जाती है.

चूंकि एक नया रिश्ता कायम हो चुका होता है, इसलिए पुराने रिश्ते की कोई कीमत और अहमियत इन के लिए नहीं रह जाती.

आखिर हमारी शादी में हर्ज क्या है? यह सवाल जब वे घर वालों से करते हैं, तो जवाब में समझाइश और मारकुटाई ही उन के हिस्से में आती है. पर तब तक लड़कालड़की तन और मन से एकदूसरे के हो चुके होते हैं. घर वालों की बातें सुन कर उन्हें लगता है कि उन्होंने कोई भारी पाप कर डाला है.

प्यार के दौरान किए गए वादे और खाई गई कसमें इन्हें रहरह कर याद आती हैं. साथ जी नहीं सकते, लेकिन साथ मर तो सकते हैं की सोच लिए ये लोग एकसाथ खुदकुशी कर लेते हैं.

मांबाप भी ध्यान दें

जवान होते लड़केलड़कियों को शुरू से ही रिश्तेनातों की अहमियत वक्तवक्त पर समझाते रहें और उन्हें अकेले में ज्यादा मिलनेजुलने न दें. सीधे टोकने पर बात बिगड़ सकती है, इसलिए कोई न कोई उन के साथ रहे तो प्यार पनपेगा ही नहीं. लड़कालड़की भी रिश्ते की अहमियत आप की तरह समझते हैं, यह मुगालता पालना अकसर महंगा पड़ता है.

लड़का या लड़की को कभी रिश्तेदार के यहां लंबे वक्त के लिए अकेला न छोड़ें, खासतौर से वहां जहां उन की उम्र का लड़का या लड़की हो. इस के बाद भी कभी वे अगर शादी की बात करें तो सब्र और समझ से काम लें, ज्यादा डांटफटकार, रोकटोक और मारपिटाई से भी बात नहीं बनती, क्योंकि इश्क का भूत बच्चों के सिर चढ़ कर बोल रहा होता है, इसलिए उन्हें इतना मौका ही न दें कि वे नजदीकी रिश्ते में प्यार करें.  तो फिर हल क्या

तेजी से बढ़ती इस समस्या का हल नौजवानों के पास ही है, जो जानतेमझते हैं कि नजदीकी रिश्तों में प्यार और शादी को कोई मंजूरी नहीं देता, इसलिए इन्हें ही ये एहतियात बरतनी चाहिए :

* रिश्ते के कजिन यानी भाईबहन के अलावा हमउम्र चाचा, मामा, मौसा और फूफा से अकेले में मिलनेजुलने से बचना चाहिए. यही बात लड़कों को भी समझते हुए उस पर अमल करना चाहिए.

* हंसीमजाक और सैक्सी बातें तो बिलकुल नहीं करनी चाहिए.

* मोबाइल फोन पर बात करने से परहेज करना चाहिए. आजकल प्यार जायज हो या नाजायज इसी पर ज्यादा पनपता है.

* अगर कोई नजदीकी रिश्तेदार प्यार हो जाने की बात कहे, तो बजाय उसे शह देने के पहली बार में ही सख्ती से मना कर देना चाहिए.

* तोहफे न तो लेना चाहिए और न ही देना चाहिए.

* यह बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए कि नजदीकी रिश्तेदारी में प्यार और शादी कामयाब नहीं होती. इस से फायदा तो कोई नहीं उलटे नुकसान कई हैं.

* इस के बाद भी प्यार हो जाए तो धीरेधीरे प्रेमी से दूरी बनाने की कोशिश करते हुए कहीं और मन लगाने की भी कोशिश करनी चाहिए. एक दफा दूसरी जाति और धर्म में प्यार करने पर दुनिया, समाज और कानून आप का साथ दे सकते हैं, लेकिन नजदीकी रिश्तों में प्यार हो जाने पर नहीं, इसलिए इस से बचना ही बेहतर रास्ता है.

* खुदकुशी इस समस्या का हल नहीं है. इस से 2 परिवारों के लोग जिंदगीभर दुख में डूबे रहते हैं और आप को भी कुछ हासिल नहीं होता.

* शादी के लिए घर वालों के राजी न होने पर अगर दूसरा साथ मरने की बात कहे तो उस की जज्बाती बातों में न आ कर उसे समझाना चाहिए कि इस से प्यार अमर नहीं हो जाएगा, बल्कि घर वालों और मांबाप की बदनामी होगी, इसलिए रास्ते अलग करना ही एकलौता रास्ता है.

जब मां की अय्याशी का फल एक बेटी ने भुगता

सीमा के पिता रेलवे में नौकरी करते थे, सो वे ज्यादातर दौरे पर रहते थे. सीमा की मां सारा दिन कालोनी में यहांवहां घूमती रहती थीं. सीमा घर पर होती तो उस की मां का रिश्तेदार चंदू आ जाता. चंदू तबीयत से दिलफेंक मिजाज का था और इस की वजह से उस की बीवी उसे छोड़ चुकी थी. वह प्राय: इधरउधर लड़कियों के पीछे घूमता रहता. सीमा की मां के लिए शहर से उपहार लाता तो वे खुश हो जातीं. एक दिन वह सीमा को शहर घुमाने के बहाने ले गया और उसे बहलाफुसला कर उस से संबंध बना लिए. सीमा को जब तक कुछ समझ में आता, उसे अनचाहा गर्भ ठहर चुका था.

अब चूंकि चंदू तो मतलब साध कर निकल गया, लेकिन जैसेजैसे सीमा पर दिन चढ़े तो उन की पड़ोसिन को संदेह हुआ. गांव में रहने के कारण मामला गंभीर था. अगर किसी को भनक लग गई तो पूरे गांव में बदनामी हो जाएगी.

अब सीमा की मां को कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करें? क्योंकि 3-4 माह का गर्भ हो चुका था. यदि वे पति को बतातीं तो पति तो उन्हें ही बदचलन कह कर छोड़ देता. सीमा की मां अपनी पड़ोसिन के साथ पास के गांव की दाई रजिया के पास गई. रजिया ने यह काम आसानी से करने का भरोसा दिलाया और बतौर मेहताना मोटी रकम मांगी. वक्त तय हुआ रात 12 बजे का. सीमा के पिता नाइट ड्यूटी पर चले गए तब रजिया व पड़ोसिन सीमा के घर आए. उस ने सीमा को लिटाया. बिना किसी दवा व इंजैक्शन के रजिया ने सीमा की योनि से उस के गर्भ में एक कमची जैसी पतली लकड़ी डाली, जैसे हरे बांस की छड़ी होती है. उस पतली लकड़ी के भीतर डाले जाने से सीमा चीखने लगी. वह असहाय दर्द से बिलबिला उठी तो रजिया ने कहा कि उस का हाथ पकड़ कर रखो साथ ही मुंह भी दबा दो.

रजिया ने लकड़ी को गर्भाशय में आघात से चलाना शुरू किया व उस की मां व पड़ोसिन ने सीमा के हाथ कस कर पकड़े रखे और मुंह भी कपड़े से बांध दिया ताकि वह चीख न सके.

लकड़ी के तेज आघात से सीमा का गर्भाशय क्षतविक्षत हो गया और जब ब्लीडिंग होने लगी तो सीमा की मां घबरा गई. रजिया बोली, ‘‘गर्भ गिर गया है. सुबह तक होश आ जाएगा.’’ वह पैसे ले कर चली गई. लेकिन न तो ब्लीडिंग रुकी और न ही सीमा होश में आई. वह असहनीय पीड़ा से तड़पतड़प कर प्राण गवां चुकी थी.

सीमा की मां को सुबह पता चला कि सीमा का प्राणांत हो चुका है. कमरा सीमा के खून से भर चुका था. पुलिस ने जांच की तो रजिया की करतूत पता चली. सीमा की मां की रंगीनमिजाजी उस की बेटी को लील गई. इतना ही नहीं, चंदू की ऐयाशी अभी भी जारी रही क्योंकि वह पकड़ से दूर जा चुका था.

प्यार सबकुछ नहीं जिंदगी के लिए 

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के आईटी चौराहे पर रैड सिग्नल होने से ट्रैफिक रुक गया. हमारी बाइक यानी मोटरसाइकिल के ठीक बगल में एक दूसरी बाइक आ कर रुकती है. नए जमाने के स्टाइल वाली बाइक पर एक लड़का अपने पीछे एक लड़की को बैठाए है. दोनों आपस में बात करते हैं. लड़का सम झाते हुए कहता है कि यह आईटी चौराहा है. दाहिनी तरफ आईटी कालेज है. लड़का आईटी चौराहे से कपूरथला की तरफ जाने वाला था. वहां कई रैस्तरां हैं. लड़की को ले कर उसे वहां जाना रहा होगा. यह अंदाजा लड़की को लग जाता है. शायद वह पहले कभी उधर गई होगी. वह लड़के के कान में कहती है, ‘उधर आज नहीं जाना. वहां भीड़ बहुत होती है. भीड़भाड़ वाली जगह हमें पसंद नहीं आती.’ वह कहता है, ‘कोई नहीं, आज सीतापुर रोड की तरफ चलते हैं. वहां अच्छी जगहें हैं.’

इसी बीच चौराहे का ट्रैफिक सिगनल ग्रीन हो जाता है. लड़का अपनी बाइक सीतापुर रोड की तरफ मोड़ देता है. दोनों को देख कर यह लग रहा था कि वे एकांत में कुछ समय गुजारना चाहते थे. ऐसे लोगों को प्यार करने वाला कपल कहा जाता है. जब प्यार की बात होती है तो ऐसे ही कपल की चर्चा सब से ज्यादा होती है. इन की दोस्ती, इन का प्यार छोटीछोटी वजहों से टूट जाता है. हर दोस्ती को प्यार की नजर से नहीं देखना चाहिए. हर कपल को प्यार करने वाला कपल नहीं माना जा सकता. यह जरूर है कि दोस्ती में सैक्स और प्यार दोनों आगे बढ़ जाते हैं. प्यार और सैक्स के बीच दूरी बनाए रखना जरूरी है. जहां यह दूरी नहीं होती वहां प्यार बदनाम हो जाता है. प्यार के ऐसे ही रास्ते से घर, परिवार और समाज को डर लगता है. यही डर पाबंदी का भी रूप ले लेता है.

प्यार के अलग फलसफे प्यार को ले कर दिल और समाज में अलगअलग फलसफे हैं. कहीं कहा जाता है कि ‘प्यार ही जिंदगी है’ तो कहीं कहा जाता है कि ‘प्यार सबकुछ नहीं जिंदगी के लिए.’ यह सच है कि प्यार से खूबसूरत चीज दूसरी दुनिया में नहीं है. प्यार उम्र, जाति और दूरी के बंधन को भी नहीं मानता है. आज जिस प्यार की बात हम करने जा रहे हैं वह ‘टीनएज लव’ या ‘युवावस्था में होने वाला प्यार’ है. यह प्यार उम्र के उस दौर में होता है जब सब से अधिक जरूरत युवाओं को अपने कैरियर पर ध्यान देने की होती है. ऐसे युवाओं को ही सम झाने के लिए कहा जाता है, ‘प्यार से भी जरूरी कई काम हैं, प्यार सबकुछ नहीं जिंदगी के लिए’. क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट डाक्टर मधु पाठक कहती हैं, ‘‘किशोरावस्था में शरीर में हारमोनल चेंज आते हैं. ऐसे में लड़के और लड़कियों के बीच आपस में एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता है. यह आकर्षण पहले दोस्ती, फिर प्यार, फिर शादी तक भी पहुंच जाता है.

समाज की नजरों से देखें तो इस को सफल प्यार कहा जाता है. जो प्यार शादी तक नहीं पहुंच पाता उस को असफल प्यार की श्रेणी में रख दिया जाता है. प्यार की कुछ कहानियां पहले आकर्षण के बाद खत्म हो जाती हैं. कुछ एकतरफा हो कर ही रह जाती हैं, कुछ दोस्ती से आगे नहीं बढ़ पातीं और कुछ तो शादी के बाद भी टूट जाती हैं.’’ अलगअलग है प्यार और सैक्स  प्यार के अलगअलग दौर होते हैं. हर दौर की अपनी मुश्किलें होती हैं. प्यार का सब से अलग दौर वह होता है जब उस में सैक्स की चाहत पनप जाती है. असल में लड़कालड़की के बीच जो आकर्षण प्यार की तरह से दिखता है उस में सैक्स का अहम रोल होता है. प्यार और सैक्स के बीच में एक बहुत ही पतली विभाजन रेखा होती है. यह इतनी पतली होती है कि इस में अंतर कर पाना समाज और देखने वालों के लिए मुश्किल होता है.

समाज का एक बड़ा वर्ग प्यार को सैक्स का आकर्षण सम झता है. सैक्स को ले कर लड़कियों के व्यवहार के प्रति समाज का नजरिया बेहद संकीर्ण होता है. इस की वजह यह है कि समाज उन लड़कियों को सही नहीं मानता जो शादी से पहले सैक्स कर लेती हैं. शादी के पहले सैक्स के प्रति इसी सोच के कारण मातापिता और समाज प्यार करने वालों को सही नहीं मानते. उन के बीच दूरियां डालने का काम करते हैं. प्यार और सैक्स में घट रही दूरियों के कारण ही प्यार की चुनौतियां बढ़ रही हैं. समाज और परिवार का मानना होता है कि किशोरावस्था से ले कर युवावस्था तक का समय कैरियर बनाने व अपने भविष्य की मजबूत नींव रखने के लिए होता है. ऐसे में प्यार का होना उन को रास्ते से भटकाने का काम करता है, जिस से प्यार के चक्कर में पड़ कर लड़के हों या लड़कियां, अपने भविष्य से खिलवाड़ करते हैं. यहीं पर यह धारणा जन्म लेती है कि प्यार सबकुछ नहीं जिंदगी के लिए.

प्यार में नासम झी खतरनाक  हमारे समाज में सब से गलत धारणा यह है कि प्यार पहली नजर में हो जाता है. प्यार अंधा होता है, प्यार सोचसम झ कर नहीं किया जाता और प्यार में अमीरीगरीबी नहीं देखी जाती. ये बातें किताबी होती हैं. प्यार जब वास्तविकता के धरातल पर उतरता है तो ये सारी बातें बेमानी हो जाती हैं. और तब जातिधर्म, अमीरीगरीबी, रूपरंग सभी कुछ माने रखने लगते हैं. पहली नजर के आकर्षण में होने वाले प्यार के समय मानसिक स्तर के तालमेल को भी महत्त्व नहीं दिया जाता है. जबकि, सचाई यह होती है कि जिन लोगों के विचार आपस में नहीं मिलते उन के बीच दूरियां बनी रहती हैं. वे प्यार, मोहब्बत और शादी के बंधन में भी तालमेल नहीं बना पाते हैं. जो युवा प्यार में नासम झी करते हैं वे कभी प्यार में सफल नहीं हो सकते. लखनऊ में घर से भाग कर शादी करने वाले लड़केलड़कियों के जिन मामलों में पुलिस में रिपोर्टें दर्ज हुईं, पुलिस ने कुछ लड़केलड़कियों को पकड़ कर कोर्ट में पेश किया, तो ज्यादातर लड़कियां कम उम्र की थीं. वे अपने पिता के घर जाने को तैयार नहीं थीं.

ऐसे में उन को ‘बालिका गृह’ भेजा गया. वहां जांच में पता चला कि आधे से अधिक लड़कियां गर्भवती निकलीं. प्यार में घर से विद्रोह कर लड़के के साथ भाग जाना और फिर गर्भवती होना प्यार के लिए बेहद खतरनाक हो जाता है. ऐसे मामलों में ही घरपरिवार और समाज का डर भी पैदा हो जाता है जो आपराधिक गतिविधियों को जन्म दे देता है. इस वजह से ऐसे कपल कई बार आत्महत्या करने जैसे आत्मघाती कदम उठा लेते हैं. कई बार समाज इन के प्रति हिंसक हो जाता है. प्यार में नासम झी भारी पड़ती है. सम झदारी और सू झबू झ से सफल होता है प्यार समाज में तमाम ऐसे उदाहरण भी हैं जो जातिधर्म या दूसरे बंधनों से अलग हो कर भी प्यार, शादी, परिवार और समाज के लिए उदाहरण या रोल मौडल माने जाते हैं. ऐसे लोगों के गुणों को देखें तो पता चलता है कि ये प्यार और सैक्स के बीच दूरी को बना कर रखने वाले थे. इन्होंने अपने कैरियर को प्राथमिकता दी.

जब आत्मनिर्भर हो गए तब शादी व सैक्स के फैसले किए. जिस के बाद इन के प्यार पर किसी भी तरह की उंगली न उठी. ऐसे ही प्यार में शादी करने वाली शबाना खंडेलवाल ने गैरधर्म में शादी की थी. शबाना कहती हैं, ‘‘हमारा प्यार जब आगे बढ़ा तब हम ने यह फैसला किया था कि जब हम अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे तभी शादी का फैसला लेंगे. यही हुआ. हम ने अलग रहने का फैसला भले ही लिया पर एकदूसरे के परिवार के सुखदुख में हिस्सा लेते रहे. दोनों ही परिवारों ने हमें स्वीकार किया.’’

शबाना आगे कहती हैं, ‘‘अगर हम ने केवल प्यार के युवा आकर्षण में पड़ कर ऐसा कदम उठाया होता तो हम सफल नहीं होते. प्यार का विरोध करने वाले यह सोचते हैं कि केवल आकर्षण में ऐसे कदम उठाने वालों में जिम्मेदारी का भाव नहीं होता है. इस कारण वे प्यार का विरोध करते हैं. जिन लोगों में जहां प्यार का आकर्षण और जिम्मेदारी का भाव दोनों होता है वहां पर प्यार के सफल होने के अवसर बढ़ जाते हैं. समाज ऐसे लोगों को स्वीकार कर लेता है.’’ डाक्टर मधु पाठक कहती हैं, ‘‘रिश्तों की सफलता व असफलता की तमाम वजहें होती हैं. ऐसे में प्यार में टूटने वालों को अपने जीवन से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए. जिंदगी की जो तमाम वजहें होती हैं, प्यार उन में से एक है.

प्यार सबकुछ नहीं जिंदगी के लिए, ऐसे में एक वजह के लिए पूरी जिंदगी को दांव पर लगाना उचित नहीं होता.’’  युवाओं से केवल घर व परिवार को ही नहीं, देश व समाज को भी उम्मीदें होती हैं. युवाशक्ति देश के विकास में अहम रोल अदा करती है. प्यार के लिए जिंदगी को दांव पर लगाना ठीक नहीं है. प्यार से भी जरूरी कई काम हैं.

डा. अरविंद गोयल: 600 करोड़ की प्रापटी दान करने वाले दानवीर

कहते हैं कि समाज सेवा से बड़ा कोई कर्म और धर्म नहीं है. यह मुरादाबाद के डा. अरविंद कुमार गोयल ने कर दिखाया है. उन्होंने इस के लिए कितना किया है, इस का हिसाब लगाना आसान नहीं. लेकिन इतना जरूर है कि उन्होंने सामाजिक जरूरतों को महसूस करते हुए अपनी 600 करोड़ रुपए की प्रौपर्टी दान करने का जो कदम उठाया, उसे एक मिसाल कह सकते हैं.

25 साल पहले बात उस समय की है, जब एक बार डा. अरविंद कुमार गोयल अपने मैडिकल प्रोफेशन के सिलसिले में ट्रेन से दिल्ली जा रहे थे. दिसंबर महीने की सर्दी की रात थी. उन की ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी थी. तब उन्हें चाय पीने की तलब हुई.

वह चाय पीने के लिए प्लेटफार्म पर उतरे. उन्हें कहीं चाय बेचने वाला नहीं दिखा. कुहासे में बहुत कुछ साफ भी नहीं दिख रहा था. इधरउधर नजरें घुमाईं. चार कदम पर ही बेंच पर लेटे एक आदमी को ठिठुरता देख उन की निगाहें उस पर टिक गईं.

उन्होंने देखा कि वह आदमी ठंड के कारण बुरी तरह से ठिठुर रहा था. उस के पास कोई कंबल नहीं था. साधारण सी चादर से वह खुद को किसी तरह से ढंके हुए था. उस के पैर चादर से बाहर निकले हुए थे. पैरों में कोई जुराब या चप्पल तक नहीं थे.

डा. गोयल ट्रेन में तुरंत अपनी सीट पर गए. अपना कंबल समेटा, जूते खोले, उन में जुराबें डालीं और ठिठुरने वाले उस आदमी के पास जा पहुंचे. उन्होंने उसे अच्छी तरह से कंबल ओढ़ाया और उसे जूतेमोजे पहना दिए.

वापस गाड़ी में आ गए. बैग से अपना शाल निकाला और ओढ़ कर बैठ गए. उन्होंने पानी के 2-4 घूंट पिए तो लगा चाय की तलब खत्म हो गई हो. गाड़ी चल पड़ी. इसी के साथ उन के दिमाग में कई बातें भी चलती रहीं.

कुछ देर तक उन्होंने सर्दी सहन करने की कोशिश की. कड़ाके की ठंड होने की वजह से उन की हालत भी खराब होने लगी थी. लेकिन उस आदमी की हालत उन के जेहन में बस चुकी थी. इस के बाद उन्होंने गरीब बेसहारों के लिए काम करना शुरू कर दिया था. यहीं से समाज सेवा न केवल उन की दिनचर्या का हिस्सा बनी, बल्कि जीवन का लक्ष्य भी.

उस के बाद से ठंड हो या बारिश, वह रोजाना ही गरीबों की आर्थिक मदद करने लगे थे. लिहाफ या कंबल वितरण वह स्वयं करते हैं.

सारी संपत्ति दान कर के बचा है सिर्फ स्कूटर

इस बात का जिक्र डा. गोयल ने पिछले दिनों तब किया, जब उन्होंने 18 जुलाई, 2022 को मीडिया के सामने अपनी 600 करोड़ रुपए की संपत्ति दान में देने की घोषणा की. इस बारे में उन्होंने राज्य सरकार को लिखा पत्र भी दिखाया. उन्होंने बताया कि दान की संपत्ति को इस्तेमाल करने के लिए सरकार को एक कमेटी बनाने की सलाह दी है.

पुरानी घटना का जिक्र करते हुए डा. गोयल ने बताया, ‘‘उस रात मैं ने सोचा कि न जाने कितने लोग ठंड में ठिठुरते होंगे. तब से मैं ने गरीब और बेसहारा लोगों की मदद करने की कोशिश शुरू की थी. मैं ने काफी तरक्की की है, लेकिन जीवन का कोई भरोसा नहीं है. इसलिए जीवित रहते अपनी संपत्ति सही हाथों में सौंप रहा हूं. ताकि ये किसी जरूरतमंद के काम आ सके. गरीबों की शिक्षा और चिकित्सा के लिए राज्य सरकार को सहयोग मिल सके.’’

अपने जीवन भर की कमाई से डा. गोयल ने मुरादाबाद के सिविल लाइंस का सिर्फ बंगला ही अपने पास रखा है, जिस में वह अपने परिवार के साथ रहते हैं. परिवार में उन की पत्नी रेणु गोयल के अलावा उन के 2 बेटे और एक बेटी है.

उन के बड़े बेटे मधुर गोयल मुंबई में रहते हैं. छोटा बेटा शुभम प्रकाश गोयल मुरादाबाद में रहते हैं और अपने पिता को समाजसेवा और व्यवसाय में मदद करते हैं. दान के बाद आनेजाने के लिए उन के पास मात्र एक स्कूटर बचा हुआ है. उन की इसी पुराने स्कूटर की वजह से सादगी को ले कर भी चर्चा होती रही है.

वह जब भी अपने वृद्धाश्रम जाते हैं तो वहां रह रही महिलाओं के आशीर्वाद के हाथ स्वत: उठ जाते हैं. सभी उन्हें अपने बेटे की तरह स्नेह करती हैं. वह भी उन के साथ घंटों गुजारते हैं. घरेलू खेल और दूसरे कार्यों में सहभागी बनते हैं. उन्हें वृद्ध महिलाओं के साथ कैरम बोर्ड खेलते हुए और मां की तरह सेवा करते अकसर देखा जा सकता है.

गरीबों और असहायों की सेवा में जुटे रहने वाले शहर के समाजसेवी एवं शिक्षाविद डा. गोयल का नाम उन की सेवा कार्यों को ले कर ही चर्चा में बना रहता है. देश और विदेश तक उन की चर्चा होती है.

वृद्धों की सेवा के साथ ही हजारों निराश्रित बच्चों की पढ़ाई के खर्च का भी जिम्मा उन्होंने उठा रखा है. देश के अलगअलग राज्यों में उन की शिक्षण संस्थाओं में गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है.

इस संबंध में बीते साल 2021 में उन्हें दिल्ली में आयोजित एक निजी कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था. इस दौरान उन्होंने बच्चों को कैसे संस्कार दिया जाएं, के बारे में संबोधित किया था. इस कार्यक्रम में अलगअलग राज्यों से आए समाजसेवी और कारोबारियों को सम्मानित किया गया था.

इसी कार्यक्रम का एक वीडियो उन की एक प्रशंसक द्वारा फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अपलोड कर दिया गया था. वह वीडियो इस कदर वायरल हुआ कि 2 दिनों में ही फेसबुक पर इस वीडियो को 50 लाख और इंस्टाग्राम में 89 लाख लोगों ने देखा.

देशविदेश की अनेक हस्तियों ने किया सम्मानित

इस उपलब्धि पर उन्हें लोगों ने बधाइयां दीं. वीडियो के वायरल होने का एक कारण यह भी बताया जाता है कि समाजसेवा के साथ ही शिक्षा क्षेत्र में किए गए कार्यों को ले कर देश और विदेश में कई बार उन्हें सम्मानित किया जा चुका है. उन के बारे में एक बात सर्वमान्य हो चुकी है कि वह हमेशा असहायों की मदद को तत्पर रहते हैं.

डा. गोयल के पिता प्रमोद कुमार गोयल और मां शकुंतला देवी स्वतंत्रता सेनानी थे. पिता का भी बड़ा कारोबार था. उन के कई कोल्डस्टोरेज, राइस मिल, स्टील फैक्ट्री आदि थे. समाज सेवा की भावना डा. अरविंद के अंदर अपने मातापिता के संस्कार के कारण ही आई.

डा. अरविंद गोयल को देश के 4 राष्ट्रपति सम्मानित कर चुके हैं. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रणव मुखर्जी, प्रतिभा देवी पाटिल, डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने इन्हें सम्मानित किया तो इन्हें भी अपार खुशी महसूस हुई.

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, शाहरुख खान, सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ भी इन्हें सम्मानित कर चुके हैं.

थाईलैंड सरकार द्वारा इन्हें ग्लोब लीडरशिप अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. फिल्म इंडस्ट्री के सब से बड़े आइफा अवार्ड समारोह में वह 3 बार मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए हैं.

उत्तराखंड की तत्कालीन राज्यपाल मार्गरेट अल्वा ने अरविंद गोयल को उत्तराखंड रत्न सम्मान से सम्मानित किया था. कपिल सिब्बल भी एकता सम्मान से इन्हें सम्मानित कर चुके हैं. पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने गोयल को भारत के गौरव रत्न दे कर सम्मानित किया था. 2015 में टाइम्स औफ इंडिया द्वारा आयोजित इकोनौमिक टाइम्स इंडिया कार्यक्रम में राजनेता राजीव प्रताप रूड़ी ने इन्हें सम्मानित किया था.

अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी डा. अरविंद गोयल को स्टार्टअप योजना के शुभारंभ पर लखनऊ में उन्हें प्रतीक चिह्न दे कर सम्मानित किया.

यही नहीं, उन के परिवार में कई सदस्य जिम्मेदार पदों पर काम कर चुके हैं. बहनोई मुख्य चुनाव आयुक्त और ससुर जज रह चुके हैं, जबकि उन के दामाद सेना में कर्नल हैं.

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद शहर के रहने वाले डा. अरविंद गोयल के पास उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में 100 से ज्यादा शिक्षण संस्थान, वृद्धाश्रम और अस्पताल हैं. उन में  वह ट्रस्टी हैं. कोविड 19 लौकडाउन के दौरान उन्होंने मुरादाबाद के 50 गांवों को गोद ले कर लोगों को मुफ्त खाना और दवा दिलवाई थी. वह भी अपनी जान जोखिम में डाल कर.

डा. गोयल का यह फैसला व्यक्तिगत नहीं था. बल्कि इस में उन्हें पूरे परिवार वालों की सहमति मिली. पत्नी रेणु और तीनों बच्चों ने इस फैसले पर खुशी जताई.

डा. गोयल द्वारा संपत्ति दान करने की घोषणा से नगर के लोग खुश हैं तो हतप्रभ भी हैं कि आखिर वह क्या वजह रही, जो उन्होंने अपनी मेहनत से अर्जित की गई संपत्ति 3 बच्चों के होते हुए भी सरकार के हवाले करने का निर्णय लिया. जबकि सरकार की संस्थाएं घिसटती हुई चलती हैं.

बहरहाल, डा. गोयल द्वारा दान की गई संपत्ति की निगरानी को लेकर भी लोगों के मन में कई सवाल हैं, हालांकि उस के लिए कमेटी बनाने का बात कही गई है.

आईएएस और आईपीएस की टीम करेगी निगरानी

सरकार संपत्ति लेने से पहले 5 सदस्यीय टीम गठित करेगी, जिस में आईएएस और आईपीएस अफसर शामिल होंगे. इस टीम के द्वारा दान की गई जमीन में परियोजनाओं का संचालन करने की योजना बनाई जाएगी.

टीम द्वारा संपत्ति का पूर्ण आकलन कर गरीबों के लिए बेहतर उपचार, शिक्षा की व्यवस्था के केंद्र खोले जाएंगे.

अरविंद गोयल ने मुरादाबाद के जिलाधिकारी शैलेंद्र कुमार सिंह को पत्र द्वारा अपनी 600 करोड़ रुपए की संपत्ति राज्य सरकार को दान देने की घोषणा कर दी है. दान की प्रक्रिया जिलाधिकारी शैलेंद्र कुमार सिंह के माध्यम से पूरी की जाएगी.

डा. अरविंद गोयल की मदद से देश में सैकड़ों स्कूल, हजारों प्याऊ, अनेकों वृद्धाश्रम, बड़ी संख्या में अस्पताल, सैकड़ों सुलभ शौचालय, रैन बसेरे, अनेक विकलांग आश्रम, विधवा आश्रम संचालित हैं. वह अनेक गांवों को गोद ले कर उन्हें आदर्श गांव में बदल चुके हैं.

अरविंद गोयल व उन के परिवार के पास देश भर में 250 से ज्यादा स्कूल थे. कोरोना काल में कुछ स्कूल बंद हो गए. वर्तमान में करीब 200 से ज्यादा स्कूल चल रहे हैं.

इन स्कूलों का संचालन डा. अरविंद गोयल की मदद से होता है. विभिन्न प्रदेशों में जो स्कूल गोद लिए हैं, उन का नाम तक नहीं बदला है. प्रदेश में स्थित संपत्तियों को दान करने का प्रस्ताव उत्तर प्रदेश शासन को भेजा जा चुका है, जल्द ही इस की प्रक्रिया पूर्ण हो जाएगी.

जब बहन निचली जाति में ब्याह कर ले

बात कुछ साल पुरानी है, पर आज भी हालात ज्यादा बदले नहीं हैं. सुनीता रक्षाबंधन से कुछ दिन पहले डाकघर गई थी. उस ने राखी का लिफाफा तो बना लिया था, पर अपने भाई के नाम चिट्ठी नहीं लिखी थी. लिहाजा, वह डाकघर में ही बैठ कर चिट्ठी लिखने लगी.

सुनीता के साथ की सीट पर मालती नाम की एक और औरत बैठी थी और वह समझ गई कि सुनीता क्या और क्यों लिख रही है. यह देख कर मालती फूटफूट कर रोने लगी.

जब सुनीता ने रोने की वजह पूछी, तो मालती ने अपने जज्बातों पर काबू रखते हुए बताया, ‘‘मैं भी आप की तरह अपने भाइयों को राखी भेजने आई हूं, पर मेरी हिम्मत नहीं हो रही है.’’

‘‘पर क्यों? इस में दिक्कत क्या है? क्या तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं?’’ सुनीता ने मालती का हाथ पकड़ कर पूछा.

‘‘वह बात नहीं है. आज से 5 साल पहले मैं ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ शादी कर ली थी. लड़का छोटी जाति का था. हम घर वालों के गुस्से से बचने के लिए गांव छोड़ कर दिल्ली आ गए थे.

‘‘उस समय मेरे पिताजी ने मुझे मरा हुआ कह दिया था. मेरे तीनों भाई भी मुझ से नाराज हो गए थे. पिछले साल ही मेरे पिताजी की मौत हो गई थी. अब मैं अपने भाइयों को राखी भेजना चाहती हूं. पता नहीं, उन्हें मेरी राखी से मेरी याद भी आएगी या नहीं,’’ मालती ने अपनी कहानी बताई.

सुनीता ने मालती का हौसला बढ़ाते हुए कहा, ‘‘बिलकुल भेजो. अब तक तो तुम्हारे भाई पुरानी सारी बातें भूल गए होंगे.’’

मालती ने वैसा ही किया और राखी भेज कर वह अपने घर चली गई.

रक्षाबंधन के दिन मालती हैरान रह गई, जब उस के तीनों भाई उस के दरवाजे पर खड़े थे. वह खुशी के मारे उछल पड़ी और तीनों भाइयों को राखी बांधी. भाइयों ने भी उस का खूब मान रखा और अपने जीजा को घर आने का न्योता दिया.

मालती ने मन ही मन सुनीता का शुक्रिया अदा किया, क्योंकि उसी के बढ़ावा देने पर उस ने राखी भेजी थी.

रक्षाबंधन के साथसाथ भाई दूज भाईबहन के रिश्ते को मजबूत करने वाला त्योहार है. मांबाप के बाद भाईबहन ही कई साल एकसाथ जिंदगी गुजारते हैं. बचपन से ले कर शादी होने तक उन दोनों के बीच इतना ज्यादा गहरा रिश्ता बन जाता है कि वे एकदूसरे के सुखदुख में भागीदार बन जाते हैं. चूंकि आजकल अमूमन 2 ही बच्चे पैदा करने का चलन है, तो यह रिश्ता और भी ज्यादा गहरा हो जाता है.

ऐसा नहीं है कि शादी के बाद इस रिश्ते में कम गहराई हो जाती है, पर कुछ वजहों से खटास पैदा होने का खतरा जरूर बन जाता है. मालती के साथ यही हुआ था. निचली जाति में शादी करने के बाद वह अपने परिवार से कट गई थी. पिता के गुस्से और नाराजगी की वजह से मालती के भाई भी उस से खुन्नस खाए हुए थे, लिहाजा मालती ने भी चुप्पी साध ली थी, पर वह अपने भाइयों के बगैर घुटघुट कर जी रही थी.

पिता के न रहने पर उस के मन में उम्मीद की किरण जगी और सुनीता के बढ़ावा देने पर उस ने अपने भाइयों को राखी भेज दी, जिस का नतीजा बेहद सुखद रहा.

यह हमारे लिए शर्मनाक बात है कि आजादी के 75 साल बाद भी कोई लड़की अपनी पसंद का लड़का ढूंढ़ कर उसे अपना जीवनसाथी नहीं बना सकती है. और अगर वह लड़का निचली जाति का है तो घरसमाज में भूचाल आ जाता है. पिता तो लड़की को मरा हुआ मान लेते हैं, जबकि भाई मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं.

गुजरात के अहमदाबाद जिले के वारमोर गांव में 9 मई, 2019 को 8 लोगों ने मिल कर दलित नौजवान हरेश सोलंकी पर तलवार, चाकू, छड़ और डंडे से हमला बोला और उसे मार डाला. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इन लोगों की अगुआई लड़की के पिता दशरथ सिंह जाला कर रहे थे.

लड़की का नाम उर्मिला था और जिस समय उस के पति की हत्या हुई, उस समय उस के पेट में 2 महीने का बच्चा पल रहा था. तकरीबन 6 महीने पहले हरेश और उर्मिला ने शादी की थी.

इस वारदात से कुछ दिनों पहले तेलंगाना में एक कारोबारी पिता ने अपनी गर्भवती बेटी अमृता के पति की किराए के गुंडों से सरेआम हत्या करा दी थी, क्योंकि लड़की ने अपने पिता की मरजी के खिलाफ एक दलित लड़के प्रणय से शादी कर ली थी. यह हत्या लड़की की आंखों के सामने हुई थी.

ये तो वे वारदातें हैं, जिन में अति कर दी गई थी, पर ज्यादातर मामलों में लड़की को अपने परिवार से नाता तोड़ना पड़ जाता है और वह न चाहते हुए भी अपने भाई से दूर हो जाती है. लेकिन भाइयों को इस सिलसिले में पहल करनी चाहिए और रक्षाबंधन और भाई दूज जैसे त्योहार इस टूटे रिश्ते को जोड़ने का काम करते हैं.

सब से पहले तो भाई को यह समझ लेना चाहिए कि उस की बहन ने सोचसमझ कर ही अपना जीवनसाथी चुना होगा. अगर उस समय कोई गुस्सा था भी, तो रक्षाबंधन और भाई दूज के दिन तो भाई अपनी बहन के घर जा कर यह देख सकता है कि वह सुखी तो है.

अगर मालती की तरह उस की शादी को कई साल हो गए हैं, तो यकीनन वह मां भी बन गई होगी और किसी भी मामा के लिए उस के भानजाभानजी दिल के टुकड़े होते हैं, फिर वह उन्हें अपने स्नेह से कैसे दूर रख सकता है.

भाई और बहन तो एकदूसरे के लिए संबल होते हैं. मांबाप के न रहने के बाद सब से ज्यादा नजदीकी रिश्ता उन्हीं का होता है. समझदार भाईबहन कभी भी एकदूसरे को अकेलेपन का एहसाह नहीं होने देते हैं.

उन्होंने अपनी जिंदगी के कई साल उस घर में बिताए होते हैं, जो उन के मांबाप का सपनों का घरौंदा होता है. वहां उन की खट्टीमीठी, अच्छीबुरी यादें बीती होती हैं. फिर एक निचली जाति के लड़के से शादी करने के बाद इस मजबूत रिश्ते में दरार आने की कोई वजह नहीं है. और ऐसा हो भी गया है, तो रक्षाबंधन और भाई दूज पर उस दरार को भरा जा सकता है. यही इस त्योहार का असली मकसद भी है.

बहन के जिंदा होते हुए किसी भाई की कलाई कभी सूनी नहीं रहनी चाहिए और भाई दूज पर भाई को अपने स्नेह का तिलक लगाना हर बहन का हक होता है, इसलिए पुरानी कड़वी यादों को भूलें और बहन को फिर से अपने परिवार में शामिल कर लें.

पंडे, पुजारी और पाखंड

पंडेपुजारी पुराणों के हवाले से कहते फिरते हैं कि तीर्थों के दर्शनों के बड़े फायदे हैं और उन के दर्शन से ही पाप धुल जाते हैं और आदमीऔरत का मन साफ हो जाता है. ऋषिकेश, मथुरा, वाराणसी, नासिक, उज्जैन जैसे तीर्थों में रहने वाले जानते हैं कि उन के शहरों में किस तरह लूटपाट होती है. जो भक्त दिमाग और आंख बंद कर के आते हैं वे अकसर लूट का शिकार होते हैं.

इसी तरह के एक तीर्थ प्रयागराज, जिस का पहले नाम इलाहाबाद था, में एक पति ने अपनी पत्नी को हथौड़े से मार दिया और फिर शव को वहीं छोड़ कर खुद पुलिस थाने में जा कर अपने को हवाले कर दिया. मामला कोई छोटी बात थी, न दहेज की, न सासससुर की, न दूसरी प्रेमिका या दूसरे प्रेमी की. पत्नी की उम्र सिर्फ 24 साल थी और शादी 14 साल की उम्र में ही हो गई थी और 3 बच्चे भी थे.

छुटपन में शादी, एक नहीं 3 बच्चे, पैसे की कमी, गुस्सा… क्या नहीं था इन दोनों में बिना यह सोचे कि 3 छोटे बच्चों का क्या होगा, आदमी ने औरत पर हथौड़ा चला दिया. इलाहाबाद यानी प्रयागराज का वह उपदेशों से भरा माहौल किस काम का रहा कि न तो 14 साल की उम्र में शादी रोक पाया, न छोटी सी लड़की को 3-3 की मां बनने से रोक सका.

इतने पंड़ों, कथावाचकों की भीड़ का क्या फायदा हुआ कि आगापीछा सोचे बिना छोटी सी बात पर हथौड़े चल गए. गंगा का पानी क्यों नहीं इन के मन को साफ कर पाया जिस का गुणगान रातदिन कथाओं में भी सुना जाता है और अब टीवी, मोबाइलों पर मौजूद है.

‘‘तीर्थराज प्रयाग ऐसे राजा हैं जिन के दर्शन से चारों पुरुषार्थ– धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष मिलते हैं. बहुत पैसा मिलता है, घरपरिवार सुखी रहता है, बदन मजबूत व निरोगी रहता है…’’ इस तरह की बात प्रयागराज यानी इलाहाबाद के बारे में आज भी मोबाइल पर एकदम मिल जाती है. महाभारत, रामायण, रामचरितमानस और पुराणों का हवाला दे कर बारबार कहा जाता है कि इलाहाबाद यानी प्रयागराज से बढ़ कर तीर्थ नहीं है. प्रयागराज की मिट्टी को छूने से ही पाप खत्म हो जाते हैं.

यह तो अचंभे की बात है न कि इसी इलाहाबाद में एक मर्द ने अपनी औरत को हथौड़े से मार डाला. प्रयागराज तीर्थ ने उस का दिमाग क्यों नहीं ठीक किया? और फिर वह थाने गया. आखिर प्रयागराज में थाने का क्या काम? इलाहाबाद तो मुसलमान नाम है, वहां तो सब खूनखराबा होते हों तो बड़ी बात नहीं पर नाम बदलते ही यह तीर्थ आखिर सारे गुनाहों से दूर क्यों नहीं हो गया कि पुलिस मौजूद रहती है?

असल में धर्म, पूजापाठ, रीतिरिवाज, दान किसी को सुधारते नहीं हैं. छोटीछोटी बातों पर झगड़े कराने में तो हर धर्म सब से अव्वल रहता है. हर धर्म एक तरफ भक्त से वसूलने में लगा रहता है और इसलिए वसूल करने वालों को बचाता है तो दूसरी ओर भक्तों को बहकाता है. इसी बहकने में हथौड़े चलते हैं.

बेरोजगारी: चायपकौड़े ही बेचने हैं तो डिगरी की क्या जरूरत

प्रियंका गुप्ता चाय वाली. अब आप पूछेंगे कि इस में क्या खास बात है? खास बात यह है कि बिहार की राजधानी पटना में महिला कालेज के सामने पूर्णिया जिले की रहने वाली प्रियंका गुप्ता टपरी पर चाय तो बेचती है, पर अगर उस की पढ़ाईलिखाई की बात करें तो वह बीएचयू, बनारस से इकोनौमिक्स से ग्रेजुएशन कर चुकी है.

प्रियंका गुप्ता 2 साल तक पटना में रह कर प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रही थी. जब उसे लगा कि वह किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा में बैठ नहीं पाएगी, क्योंकि सालों से किसी भी प्रतियोगिता में बैठने का मौका ही नहीं मिल पा रहा है और बिहार समेत पूरे देश में नौकरी की रिक्तियां ही नहीं निकल रही हैं, तब उसे अनुभव हुआ कि समय खराब करने से कोई फायदा नहीं. तो वह बिना समय गंवाए अपनेआप को चाय बेचने के लिए तैयार कर पाई.

पर प्रियंका गुप्ता को बैंक में चक्कर लगाने के बाद भी 30,000 रुपए तक का लोन नहीं मिल पाया. लिहाजा, वह अपने एक दोस्त से उधार ले कर महिला कालेज के सामने चाय की दुकान लगाने लगी.

जब से एक पढ़ीलिखी लड़की ने चाय की दुकान की शुरुआत की, तब से मीडिया वाले खासकर सोशल मीडिया पर अपना चैनल चलाने वालों का उस के मुंह में माइक घुसेड़ कर इंटरव्यू लेने वालों का तांता लगने लगा. सारे मीडिया वाले बड़े गर्व से चिल्लाचिल्ला कर बताने लगे कि देखो, एक पढ़ीलिखी लड़की ने चाय की टपरी लगाई है.

अरे भाई, प्रियंका गुप्ता को एक अदना सी नौकरी नहीं मिल पाई, तो वह चाय बेचने को मजबूर हो गई. किसी भी लड़केलड़की को ग्रेजुएशन तक पढ़ने में तकरीबन 15 साल बीत जाते हैं. अगर उस के बाद भी नौकरी नहीं मिली, तो उन की 15 साल की तपस्या बेकार चली जाती है. यह सब मीडिया वाले क्यों नहीं बताते हैं?

यह क्यों नहीं बताया जा रहा है कि यह प्रियंका गुप्ता की नाकामी नहीं, बल्कि मोदी सरकार की नाकामी है, जो अब ऊंची डिगरी वालों से भी चायपकौड़े बिकवा रही है? देशभर में सरकारी नौकरियों को खत्म किया जा रहा है. इस बात को मीडिया जगत में जगह नहीं दी जा रही है.

जब देश के पढ़ेलिखे बेरोजगार नौजवानों को रोजगार नहीं दिया जाता है, तो चायपकौड़े बेचने का नैरेटिव सैट किया जाता है, ताकि नौजवान नौकरी से डाइवर्ट हो कर फालतू के रोजीरोजगार कर सड़कों पर खाक छानें और जब चुनाव का समय आए तो उन से रामलला के नारे लगवाए जाएं, मंदिरमसजिद के नाम पर अंधभक्ति कराई जाए.

सब से बड़ा सवाल यह है कि जब चाय की दुकान ही लगानी है, तो इतनी बड़ी डिगरी की क्या जरूरत है? दरअसल, देश में रोजगार की कमी हो गई है. दिनोंदिन बेरोजगारों की फौज बढ़ती जा रही है. पढ़ेलिखे लोग नौकरी के लिए मारेमारे फिर रहे हैं. उन में निराशा बढ़ती जा रही है.

इस सब के बावजूद मीडिया इस बारे में ज्यादा गंभीरता से बात नहीं कर रहा है. वह जानता है, अगर विरोध करेगा भी, तो अंधभक्तों द्वारा देशद्रोही होने का सर्टिफिकेट दिया जा सकता है.

कुछ समय पहले ही देशभर के नौजवानों द्वारा रेलवे की परीक्षा की गलत नीतियों का विरोध किया गया था. पटना और लखनऊ से ले कर दिल्ली तक इस का असर पड़ा था. जानबूझ कर कोचिंग संस्थानों को भी आंदोलन भड़काने का आरोप लगाया गया था.

आखिर लाखों रुपए कोचिंग संस्थानों से कमाने वाले शिक्षकों की रौनक लड़केलड़कियों से ही हो पाती है. लेकिन नौकरी नहीं निकलने के चलते उन के बिजनैस पर बुरा असर पड़ रहा है. लड़केलड़कियां भी कोचिंग सैंटरों में दाखिला लेने से पहले सौ बार सोचते हैं.

आज के गरीब तबके के लड़केलड़कियां किसी भी काम को करने से पहले अपने मांबाप की माली हैसियत का भी जरूर खयाल रखते हैं. ज्यादातर लड़केलड़कियां बेकार में पैसा बरबाद नहीं करना चाहते हैं. वे कोचिंग भी तभी करना पसंद करते हैं, जब नौकरी के इश्तिहार आने शुरू होते हैं. तभी वे पढ़ने की रणनीति भी बना पाते हैं.

क्या प्रियंका गुप्ता दुनिया की पहली महिला हैं, जो चाय की टपरी चला रही है? फिर जो पहले से औरतें और लड़कियां चाय बेचने पर मजबूर हैं, उन्हें पब्लिसिटी क्यों नहीं मिल रही है? जो औरतें और लड़कियां चाय बेचने पर मजबूर हुई हैं, उन की खोजखबर क्यों नहीं की जा रही है? वे आखिर किन हालात में ऐसा करने को मजबूर हुई हैं या हो रही हैं?

दरअसल, आज वर्तमान सरकार द्वारा नौकरी के लिए रिक्तियां निकालनी कम कर दी गई हैं और सरकारी संस्थाओं को निजीकरण की ओर धकेला जा रहा है. जबकि एक समय ऐसा था, जब निजी संस्थानों का सरकारीकरण किया जाता था, ताकि सरकार ज्यादा से ज्यादा रोजगार पैदा कर सके. तब लोगों को लगता था कि पढ़लिख लेने के बाद कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी.

वे लोग भले ही प्रतियोगिता परीक्षा में कामयाबी हासिल नहीं कर पाते थे, लेकिन फिर भी वे खुद को चायपकौड़े बेचने के लिए अपनेआप को तैयार नहीं कर पाते थे. बेरोजगार रहने पर कोई अच्छा सा कारोबार करने के बारे में सोचते थे.

लेकिन आज नौकरी की रिक्तियां नहीं निकलने के चलते ज्यादातर बेरोजगार प्रियंका गुप्ता की तरह ही निराश और हताश हैं. कुछ लोग निराशा में छोटेमोटे कामधंधे करने के लिए राजी हो रहे हैं, पर शौक से ऐसा करने वालों की तादाद न के बराबर है.

इस के बावजूद मीडिया का एक धड़ा यह बताने पर आमादा है कि पढ़ेलिखे लोग चायपकौड़े बेचने के लिए बड़े शौक से राजी हैं. दरअसल, जब से मीडिया के एक धड़े ने मोदी मौडल पर काम करना शुरू कर दिया है, तब से कुछ लोगों द्वारा यह सलाह दी जा रही है कि पढ़ेलिखे भी चायपकौड़े बेच सकते हैं.

अब पढ़ेलिखे लोग चायपकौड़े बेचने लगेंगे, तो कम पढ़ेलिखे लोग कौन सा धंधा करेंगे? क्या उन के हकों को नहीं मारा जा रहा है? लिहाजा, पत्रकारों और मीडिया वालों द्वारा बेरोजगारों की समस्याओं को प्रमुखता देने की जरूरत है.

समाज के बुद्धिजीवी वर्ग, सामाजिक चिंतन करने वालों को भी इस समस्या के प्रति सोचने की सख्त जरूरत है, वरना आने वाले समय में इन नौजवानों की बेरोजगारी की समस्या से देश में बड़ा संकट पैदा हो सकता है.

धीरज कुमार

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