दूसरी बीवी का खेल

20जनवरी, 2022 को गुरुवार का दिन था. दोपहर के करीब 12 बजे शरद विश्वकर्मा ने लखनऊ के
थाना पारा की हंसखेड़ा पुलिस चौकी के इंचार्ज ओमप्रकाश मिश्रा को फोन किया. उस ने बताया कि उस की बहन शिवा विश्वकर्मा उर्फ जारा उर्फ सोफिया खान (27 साल) सुबह से अपने घर से गायब है. वह पुरानी कांशीराम कालोनी के फ्लैट नंबर 2/6 में अपने पति यासीन खान के साथ रहती है.  ‘‘ठीक है, आप चिंता मत करो, कुछ ही देर में पुलिस वहां पहुंचती है,’’ चौकी इंचार्ज ओमप्रकाश मिश्रा ने शरद से कहा.

इस के बाद एसआई मिश्रा ने अपने पास बैठे सहयोगी एसआई सुधांशु रंजन को फोन पर हुई बातचीत के बारे में बताते हुए विचारविमर्श किया.फिर वह एसआई सुधांशु रंजन और महिला सिपाही अंतिमा पांडेय को साथ ले कर मौके पर आ पहुंचे. फ्लैट पर ताला लगा था. उन्होंने फ्लैट के दरवाजे की झिरखी से झांक कर देखा. कमरे में अंधेरा था.

अंधेरे में कमरे के अंदर कुछ साफ दिखाई नहीं दे रहा था. अंदर से हलकी दुर्गंध आती महसूस हुई तो मौके की नजाकत को समझ कर एसआई सुधांशु रंजन ने थाना पारा के प्रभारी दधिबल तिवारी को फोन पर मामला संदिग्ध होने की आशंका जाहिर करते हुए तुरंत ही मौके पर आने को कहा.
थानाप्रभारी दधिबल तिवारी एसआई की सूचना पा कर महिला एसआई रीना वर्मा, हैडकांस्टेबल अशोक कुमार को साथ ले कर पुरानी कांशीराम कालोनी आ पहुंचे.

पड़ोसियों से पुलिस ने यासीन खान के बारे में पूछताछ की तो वह कुछ नहीं बता सके.चूंकि फ्लैट से दुर्गंध आ रही थी, इसलिए लोगों की मौजूदगी में पुलिस ने फ्लैट का ताला तोड़ दिया. उस के बाद कमरे का सघन निरीक्षण किया. काफी देर तक छानबीन करने पर यासीन खान की दूसरी पत्नी शिवा विश्वकर्मा उर्फ जारा उर्फ सोफिया खान की लाश पलंग पर गद्दे की तह में लिपटी हुई मिली.
पुलिस टीम अभी छानबीन कर ही रही थी, उसी समय मृतका शिवा उर्फ सोफिया का भाई शरद विश्वकर्मा भी मौके पर पहुंच गया.

उस ने थानाप्रभारी को बताया कि यासीन खान ने पहली पत्नी शहर बानो के मौजूद रहते हुए उस की बहन शिवा विश्वकर्मा से दूसरा प्रेम विवाह नेपाल में किया था और उस के साथ इसी फ्लैट पर दोनों पत्नियां रहती थीं.

शरद विश्वकर्मा ने बताया कि वह 6 दिन पहले नेपाल से अपना इलाज कराने बहन शिवा उर्फ सोनिया खान के कहने पर लखनऊ आया था और डिलाइट सन हौस्पिटल में भरती था.20 जनवरी, 2022 को दिन के लगभग 10 बजे के समय शिवा से उस की फोन पर बात हुई थी तो उस ने खाना ले कर अस्पताल में आने को कहा था. लेकिन 2 घंटे बीत जाने के बाद भी शिवा खाना ले कर जब अस्पताल नहीं पहुंची तो मन में जानने की उत्सुकता हुई.

इस पर उस ने शिवा को कई बार फोन किया तो बहुत मुश्किल से बहनोई यासीन खान ने काल रिसीव करते हुए उसे बताया कि तुम्हारी बहन की शहर बानो से कुछ कहासुनी हो गई है. कुछ ही देर में मैं उसे मना कर अस्पताल ला रहा हूं.जब काफी देर हो गई और शिवा खाना ले कर अस्पताल नहीं पहुंची तो शरद विश्वकर्मा को कुछ आशंका हुई. तब उस ने मोबाइल फोन से थाना पारा चौकी इंचार्ज ओमप्रकाश मिश्रा को सूचना दी.

शरद विश्वकर्मा ने कहा कि उस का बहनोई यासीन खान और उस की पहली पत्नी शहर बानो सुबह अपने घर पर मौजूद थे, जिन्होंने अस्पताल आने का जिक्र किया था, लेकिन अब वह अपनी पत्नी शहर बानो को ले कर गायब हो गया.थानाप्रभारी दधिबल तिवारी ने एसआई ओमप्रकाश मिश्रा और सुधांशु रंजन से मृतका के पोस्टमार्टम काररवाई कराने हेतु निर्देश देने के बाद शरद विश्वकर्मा से तहरीर ले कर मुकदमा दर्ज करने को कहा और थाने लौट आए.

शरद विश्वकर्मा की तरफ से पारा थाने में भादंवि की धारा 302, 201 के अंतर्गत यासीन खान एवं उस की पत्नी शहर बानो के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस के गले यह बात नहीं उतर रही थी कि यासीन खान अपनी पत्नी सोफिया की हत्या भला क्यों करेगा.
पड़ोसियों से छानबीन करने पर एसआई ओमप्रकाश मिश्रा को पता चला कि शहर बानो 2 दिन पहले ही अपने मायके बहराइच से लगभग 3 माह के बाद ही लौटी थी और वह यहां लखनऊ में यासीन और सोफिया के साथ एक ही रूम में रहती थी.

अब पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. 22 जनवरी, 2022 को शिवा विश्वकर्मा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को मिल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात स्पष्ट हो गई कि उस की हत्या किसी धारदार हथियार से नहीं, बल्कि गला दबा कर की गई थी.थानाप्रभारी दधिबल तिवारी ने विवेचना अपने हाथों में ले कर जांच करनी शुरू कर दी. पुलिस को भरोसा था कि सोफिया की हत्या का क्लू उस के भाई शरद विश्वकर्मा से जरूर मिल जाएगा, लेकिन पुलिस के पूछने पर शरद हत्या का राज व कारण तो नहीं बता सका, अलबत्ता इतना जरूर कहा कि शहर बानो एवं उस की बहन में काफी अनबन रहती थी और उस की बहन को शहर बानो फूटी आंख नहीं सुहाती थी.

पड़ोसियों ने बताया यासीन खान सोफिया के कहने पर ही शहर बानो को मनमुटाव के चलते 3 महीने पहले उस के मायके नानपारा, बहराइच छोड़ आया था और घटना के बाद पुलिस के पहुंचने से पहले शहर बानो और यासीन खान दोनों घर से फरार हो गए थे.अब पुलिस को शिवा उर्फ सोफिया के पति यासीन खान और शहर बानो की तलाश थी ताकि हत्या का परदाफाश हो सके.कानपुर रोड कृष्णानगर अंडरपास से मुखबिर की सूचना पर 22 जनवरी, 2022 को रात के समय शहर बानो और यासीन खान को गिरफ्तार कर लिया गया.

पूछताछ में यासीन खान ने बताया कि उस ने शहर बानो के सहयोग से ही दूसरी पत्नी सोफिया की हत्या की थी. हत्या के बाद उस की लाश को गद्दे में छिपा दी थी. उस ने हत्या की जो वजह बताई, वह हैरान कर देने वाली निकली—उत्तर प्रदेश के शहर लखनऊ और हरदोई मार्ग पर अवध हौस्पिटल बहुत चर्चित है. इसी अवध अस्पताल से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा कांशीराम कालोनी बनाई गई है.

पुरानी कांशीराम कालोनी में लगभग 5 हजार आबादी रहती है. प्राधिकरण द्वारा बनाई गई इस कालोनी में यासीन खान किराए के फ्लैट नंबर 2/6 में सोफिया व शहर बानो के साथ रहता था. उस के पिता का नाम ताहिर खान है और वह नेपाल के जिला बांके के कस्बा उधड़ापुर का मूल निवासी है.
उस की पहली शादी सन 2016 में उत्तर प्रदेश के जिला बहराइच के मोहल्ला घसियारिन टोला निवासी मुल्ला खान की बेटी शहर बानो से हुई थी.

वह लखनऊ में 2 साल पहले शहर बानो के साथ रोजीरोटी की तलाश में आ कर बस गया था. इन दिनों वह आयुर्वेदिक दवाओं का सप्लायर था.यासीन खान की दूसरी पत्नी शिवा विश्वकर्मा उर्फ सोफिया शरद विश्वकर्मा की बहन थी. वह हिंदू थी. उस के पिता का नाम बंसबहादुर विश्वकर्मा था. वह नेपाल के कस्बा घोराई उपमहानगर पालिका वार्ड-14, जिला-दाड़ के मूल निवासी थे.शरद विश्वकर्मा से यासीन खान के व्यवसाय के सिलसिले में आनेजाने के कारण नेपाल में ही दोस्ती हो गई थी. शरद ने यासीन को साथ मिल कर नेपाल में ही प्रौपर्टी डीलिंग का काम करने की सलाह दी. यासीन खान शरद के कहने पर नेपाल के कस्बा घोराई में प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा करने लगा था.

शरद के कहने पर उस ने उस की बहन शिवा विश्वकर्मा को अपने औफिस में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी पर रख लिया था.शरद और यासीन खान ने घोराई में रह कर लगभग एक साल तक धंधा किया. लेकिन इन का वहां कोई खास फायदा नहीं हुआ और अधिक पूंजी न होने के कारण प्रौपर्टी डीलिंग के धंधे में कोई खास सफलता नहीं मिल सकी.तब यासीन के कहने पर शरद नेपाल छोड़ कर लखनऊ आ कर रहने लगा. यहां भी इस धंधे में सफलता न मिलने पर शरद विश्वकर्मा का मन इस काम से उचट गया और वह शिवा को साथ ले कर नेपाल वापस लौट गया.

यहां उल्लेख कर दें कि नेपाल में ही प्रौपर्टी के धंधे के दौरान शिवा विश्वकर्मा यासीन खान के संपर्क में आई थी और उस के प्यार में रचबस गई थी. दोनों ने प्रेम विवाह करने की कसमें खाई थीं. उस ने यासीन खान से धर्म बदल कर जीवन भर साथ निभाने का भरोसा दिला कर 3 साल पहले प्रेम विवाह कर लिया था. यासीन से शादी के बाद शिवा विश्वकर्मा ने अपना नाम बदल कर सोफिया खान रख लिया था.
नेपाल में धंधा बंद होने पर यासीन के साथ वह लखनऊ आ कर शेष जीवन गुजारना चाहती थी. लेकिन शिवा मुसलिम रीतिरिवाजों के कारण यासीन के साथ खुल कर जीने का रास्ता नहीं खोज पा रही थी.
तब शिवा ने नेपाल में ही अपने पिता के यहां जा कर बसने का तानाबाना बुन कर यासीन के समक्ष प्रस्ताव रखा. लेकिन यासीन उस के साथ नेपाल में रहने के लिए हरगिज तैयार नहीं हुआ.

तब यासीन ने शिवा उर्फ सोफिया खान उर्फ जारा को लखनऊ में अपने साथ रहने के लिए राजी कर लिया था.वर्ष 2018 से यासीन खान शिवा उर्फ सोफिया को साथ ले कर लखनऊ रहने लगा था. शिवा उसे दिलोजान से प्यार करती थी. लेकिन यासीन खान की पहली बीवी शहर बानो को शिवा उर्फ सोफिया पसंद नहीं थी. वह नहीं चाहती थी कि उस का पति उस के अलावा किसी और को प्यार करे.
लखनऊ में ही रहने के दौरान शिवा ने एक बेटी को जन्म दिया और उस का नाम सारा रखा था. उस की बेटी सारा इस समय लगभग 3 साल को होने जा रही है. लखनऊ के कांशीराम कालोनी के मकान नंबर 2/6 में यासीन खान सोफिया के साथ रहने लगा था.

यहां उस ने कुछ समय तक इलैक्ट्रीशियन का धंधा किया लेकिन बाद में वह आयुर्वेदिक दवाओं की सप्लाई की कंपनी में नौकरी करने लगा.लखनऊ में सोफिया उर्फ जारा के रहने के कारण पहली बीवी शहर बानो घसियारी टोला, नानपारा बहराइच में अपने पिता के घर पर रहा करती थी और यासीन साल छ: महीने में शहर बानो से मिलने बहराइच आताजाता था.बहराइच पहुंचने पर शहर बानो यासीन खान को काफी भलाबुरा कहा करती थी और दोनों में सोफिया को ले कर कहासुनी होती थी. शहर बानो यासीन से सीधे मुंह बात तक नहीं करती थी और यह कह कर उलाहने दिया करती थी कि अब यहां क्या लेने आते हो. उस कलमुंही के साथ ही गुरछर्रे उड़ाओ.

यासीन 1-2 दिन ससुराल में रुकने के बाद शहर बानो को तसल्ली दे कर लखनऊ वापस लौट आता था. शहर बानो के साथ किए गए वादों को अमली जामा पहनाने के लिए वह दिनरात बेचैन रहने लगा था.
पहली पत्नी शहर बानो के बाद सोफिया यासीन की जिंदगी में जब से आई थी, उस के अमनचैन की जिंदगी में जहर घुल गया था.एक बार की बात है. उस समय सोफिया और यासीन का निकाह नहीं हुआ था. मनमुटाव के कारण शहर बानो जब अपने मायके आई थी, तब यासीन शहर बानो की रुखसती कराने अपनी ससुराल आया हुआ था.

लखनऊ से यासीन के साथ शिवा विश्वकर्मा भी आई थी तो शहर बानो को ससुराल में न पा कर यासीन को काफी अचरज हुआ.शहर बानो की बहन रेशमा ने पूछने पर यासीन को बताया कि आपा तो खालाजान के यहां गई हुई हैं. उन के यहां कुरान खुवानी की दावत है. आज ही वापस आने के लिए कह गई थीं.यासीन को जान कर काफी तसल्ली हुई कि अब शहर बानो नाम का कांटा उस की आंखों से दिन भर के लिए दूर है. दोपहर के समय यासीन खान जब शिवा के साथ कमरे में सो रहा था तो शिवा के साथ अठखेलियां खेलने में मस्त हो गया. शिवा यासीन के साथ बातें करने मे मशगूल थी.

कुछ ही देर पहले शिवा और यासीन हमबिस्तर हो कर अलग हुए थे. तब शिवा ने उस के साथ निकाह नहीं किया था. शिवा यासीन को प्यार का वास्ता दे कर शीघ्र ही निकाह करने के लिए कुछ कहने ही जा रही थी कि अचानक घर में शहर बानो के आने की आहट सुनाई दी.दरवाजे पर उस की ब्याहता बेगम शहर बानो खड़ी थी. शहर बानो उस के लिए कमरे में चाय ले कर आई थी कि यासीन शहर बानो को अच्छे कपड़ों में देख कर चहक उठा और बोला आज तुम काफी खूबसूरत लग रही हो.शहर बानो ने उस दिन काफी सुंदर लिबास पहन रखा था, पति की बातें सुन कर वह मुसकरा उठी.

शहर बानो के पूछने पर उस ने शिवा विश्वकर्मा का परिचय कराया तो वह जलभुन कर राख हो गई. शहर बानो खिसियानी बिल्ली की तरह नफरत भरी नजरों से शिवा विश्वकर्मा को घूर कर रह गई. शहर बानो काफी देर तक उसे जलीकटी सुनाती रही.यासीन खान के संपर्क में आने के बाद शहर बानो को शिवा की गतिविधियों पर शक होने लगा था. उसे यह आभास नहीं था कि उस का पति शिवा के चक्कर में फंस गया है और उस के सामने सौत के गुन गाया करता है.

यासीन के साथ वह कांशीराम कालोनी में आई हुई थी तो शिवा को पति के साथ एक बार आपत्तिजनक अवस्था में उसे देख लिया था तो उसे पूर्ण विश्वास हो गया था कि शिवा विश्वकर्मा उर्फ सोफिया उस के शौहर पर डोरे डाल चुकी है और यासीन भी उस के रंग में रचबस चुका है.यहीं से शहर बानो के मन में कांटा पनप चुका था और खुशहाल जिंदगी में घर के अंदर कलह शुरू हो गई थी.

फलस्वरूप शहर बानो आए दिन अपनी ससुराल में रहा करती थी और यासीन खान ने पूर्णरूप से स्वतंत्र हो कर शिवा विश्वकर्मा के साथ निकाह कर लिया था. घर में शहर बानो पहले से जलीभुनी बैठी थी और उस ने घर में शिवा उर्फ सोफिया को देख कर कोहराम मचा दिया था.पानी सिर से ऊंचा होते देख यासीन पत्नी शहर बानो की बातें सुन कर बुरी तरह बौखला उठा था. उस ने कहा, ‘‘तुम लोग सोफिया के बारे में बुराभला कहने वाले कौन होते हो.’’

शहर बानो और उस की बहन रेशमा को तो उस दिन जैसे भूत सवार था. यासीन ने रेशमा को डांटते हुए खामोश रहने की हिदायत दी.विवाद बढ़ता गया और यासीन ने गुस्से में सोफिया के सामने शहर बानो पर मिट्टी का तेल उड़ेल दिया और शहर बानो को जला कर मारने की धमकी दे डाली.उस दिन कोई अनहोनी न हो, इसलिए मातापिता के द्वारा मामला रफादफा कर दिया गया और यासीन अगले दिन शहर बानो की बिना रुकसती कराए सोफिया को साथ ले कर बहराइच से लखनऊ वापस लौट आया और शहर बानो को धमकी दे डाली कि अगर तुम्हारी गर्ज हो तो तुम लखनऊ खुद चली आना.

लेकिन सोफिया के कारण शहर बानो लखनऊ वापस लौट कर नहीं आई. यासीन उसे ले कर परेशान रहने लगा था क्योंकि सोफिया के कारण शहर बानो से अब उस की तलाक की नौबत आ गई थी. कहावत है कि नारी नदिया की धार होती है और पुरुष एक किनारा होता है. दोनों विमुख भी नहीं रह सकते हैं.शहर बानो भी यासीन से लगाव होने के कारण उसे दिल से निकाल नहीं पा रही थी. शहर बानो के मातापिता ने अपनी बेटी की जिंदगी में फिर से बहार लाने के लिए यासीन को रुखसत कराने के लिए खबर भेजी.

यासीन ने भी उत्तर में कहलवा दिया कि यदि वह अपनी बेटी को भेजने के लिए तैयार हैं तो वह उसे खुद पहुंचा दें. वह उसे अपने पास रखने को तैयार है.शहर बानो के वालिद मुल्ला खान ने बेटी को समझाया कि तुम्हें अपने शौहर के यहां खुद चले जाना चाहिए. उस दिन 18 जनवरी, 2022 को एक लंबे अरसे के बाद लखनऊ स्थित कांशीराम कालोनी वह खुद आ गई थी.शहर बानो जब कांशीराम कालोनी वाले आवास पर पहुंची तो यासीन बरामदे में बैठाबैठा दूसरी पत्नी शिवा उर्फ सोफिया से हंसहंस कर बातें कर रहा था.

शहर बानो को अचानक आया देख कर वह भड़क उठा और बोला कि आने से पहले तुम्हें फोन करना चाहिए था. शिवा उर्फ सोफिया ने भी यासीन का साथ दिया, ‘‘यासीन ठीक तो कह रहे हैं. कम से कम आने से पहले तुम्हें फोन तो करना चाहिए था. जब से यासीन ने मुझ से निकाह किया है तुम बातबात में रूठ कर चली जाती हो.’’शहर बानो ने कहा कि तुम लोगों से मेरा यहां रहना देखा नहीं जाता है तो मैं बहराइच न जाऊं तो फिर क्या करूं.

लंबे अरसे बाद लखनऊ आने पर शहर बानो को यासीन खान से यह उम्मीद नहीं थी. वह उलाहना सुन कर मन मसोस कर रह गई थी.पुलिस के पूछने पर यासीन खान ने बताया कि सोफिया ने अपने भाई शरद विश्वकर्मा के इलाज के लिए 30-40 हजार रुपया अलमारी में बचा कर रखे थे, गुरुवार को सोफिया को बिना बताए वह पैसे उस ने निकाल लिए.इस पर पहले तो उस का शक शहर बानो पर गया था. जिस पर दोनों में काफी कहासुनी हुई थी. लेकिन सोफिया को उस ने बताया कि वह रुपए शहर ने नहीं बल्कि उस ने निकाले थे. इस पर उस का उस से भी काफी झगड़ा हुआ.

जब रात को सोफिया अपने अंदर के कमरे में जा कर सो गई, तभी शहर बानो ने यासीन खान को अपने बाहुपाश में लेते हुए सोफिया की हत्या करने और हमेशा के लिए रास्ते का कांटा हटाने के लिए उकसाया, ताकि वह बाकी जिंदगी चैन से जी सके.यासीन उस की बात सुन कर राजी हो गया. शहर बानो जानती थी कि जब से शिवा उर्फ सोफिया खान उस के पति यासीन की जिंदगी में आई है, यासीन की महीने भर की कमाई अपने भाई शरद को भेज दिया करती है, जिस से यासीन मन मसोस कर रह जाता है.

20 जनवरी, 2022 को शिवा उर्फ सोफिया जब सो गई तो शहर बानो ने सोफिया की हत्या करने के लिए यासीन को अस्पताल में शरद विश्वकर्मा के पास न भेज कर घर पर ही रोक लिया.
सुबह होने पर जब सोफिया ने अस्पताल में भरती अपने भाई शरद के लिए खाना बना कर और उस के औपरेशन के लिए रुपए ले कर यासीन को साथ चलने को कहा तो यासीन ने रुपए न देने की बात कही.
जिस के कारण उस की सोफिया से कहासुनी हो गई. उसी दौरान यासीन के इशारे पर शहर बानो ने सोफिया के हाथ पकड़ लिए और यासीन ने गला दबा कर शिवा उर्फ सोफिया की हत्या कर दी. हत्या के बाद शव को पलंग पर गद्दे में लपेट कर छिपा दिया.

जब शिवा विश्वकर्मा उर्फ सोफिया खाना और रुपए ले कर अस्पताल नहीं पहुंची, तब शरद ने उसे कई बार फोन किया. जब उस की बहन से बात नहीं हो पाई तो शरद ने संदेह होने पर हंसखेड़ा पुलिस चौकीप्रभारी को फोन कर सूचना देते हुए बहन के घर पहुंचने को कहा था.
गिरफ्तारी के बाद थानाप्रभारी दधिबल तिवारी, एडिशनल सीपी राजेश श्रीवास्तव, डीसीपी गोपालकृष्ण चौधरी व एसीपी आशुतोष कुमार के समक्ष शहर बानो व यासीन खान को पेश किया गया. आरोपियों ने इन सभी अधिकारियों को भी हत्या की कहानी बताई.
इस के बाद यासीन खान और शहर बानो को 23 जनवरी, 2022 को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक विवेचना जारी थी.

दोस्ती की कमजोर छत

छत्तीसगढ़ के जिला महासमुंद के गांव किशनपुर में मनहरण उर्फ मोनो और दुर्गेश उर्फ पुस्तम की दोस्ती एक मिसाल बन चुकी थी. लोग उन की दोस्ती की नजीर दिया करते थे. दोनों का ही एकदूसरे के घर खूब आनाजाना था.

करीब 6 महीने पहले मनहरण की शादी आरती से हुई थी. दोनों की गृहस्थी ठीक चल रही थी. दुर्गेश को पिथौरा में आरटीओ एजेंट से काम था. उस ने सोचा कि पहले मनहरण के घर जाएगा, वहां से उसे साथ ले कर एजेंट के पास चला जाएगा. यही सोच कर वह सुबह 8 बजे मनहरण के घर चला गया.

मनहरण की पत्नी आरती नहाने के बाद नाश्ता तैयार करने के लिए किचन में जा रही थी, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. आरती ने दरवाजा खोला तो दुर्गेश को आया देख कर मुसकराई. वह बोली, ‘‘भैया आप? आओ, अंदर आओ.’’

उस समय आरती बेहद खूबसूरत लग रही थी. दुर्गेश उसे निहारता रह गया. आरती उसे कमरे में ले गई. मनहरण उस समय सो रहा था. आरती दुर्गेश को बैठा कर चाय बनाने लगी. दुर्गेश आरती के खयालों में खो सा गया. कुछ ही देर में वह दुर्गेश के लिए चाय बना कर ले आई. आरती उसे खोया देख बोली, ‘‘क्या बात है भैया, कहां खो गए? लो, चाय पी लो.’’

‘‘कुछ नहीं भाभी, बस यूं ही… मनहरण कहां है, दिखाई नहीं दे रहा.’’ दुर्गेश ने पूछा.

‘‘अभी सो रहे हैं. मैं उठाती हूं.’’ कह कर वह पति को जगाने चली गई.

दुर्गेश के आने की बात सुन कर मनहरण ने बिस्तर छोड़ दिया. वह दुर्गेश के पास पहुंच कर बोला, ‘‘अरे यार, तुम बैठो मैं तुरंत तैयार होता हूं. बस 5 मिनट में…’’

इस बीच आरती दुर्गेश के पास बैठी बतियाती रही. उस दौरान दुर्गेश उसे चाहत की नजरों से देखता रहा. इस बात को आरती ने महसूस किया तो उस ने दुर्गेश को टोका, ‘‘क्या बात है दुर्गेश भैया, ऐसा क्या है जो मुझे इतनी गौर से देखे जा रहे हो?’’

दुर्गेश ने साहस कर के कहा, ‘‘भाभी, मैं देख रहा हूं कि आप कितनी खूबसूरत हैं. आप की मिसाल तो पूरी दुनिया में नहीं मिलेगी. मेरा दोस्त कितना भाग्यशाली है, जो आप उसे मिली हैं.’’ चाय की चुस्कियां लेते हुए दुर्गेश बोला.

‘‘तुम जरूर झूठी तारीफ कर रहे हो. कुछ लोग दोस्त की पत्नी की झूठी तारीफ इसलिए करते हैं कि समय पर चायनाश्ता मिलता रहे.’’ कह कर आरती रसोई की ओर जाने लगी तो दुर्गेश ने कहा, ‘‘भाभी, एक बात कहूं.’’

आरती ने ठिठकते हुए रुक कर उस की ओर देखा तो वह बोला, ‘‘मैं जो भी कह रहा हूं सौ फीसदी सही है. आप इसे दिल बहलाने वाली बात मत समझना. आप वाकई…’’

आरती ने हंस कर कहा, ‘‘अच्छा भैया, तुम्हारी पत्नी खूबसूरत नहीं है क्या, बताओ तो. मैं आज ही तुम्हारे यहां आ धमकूंगी और सब कुछ बता दूंगी.’’

यह सुन कर दुर्गेश ने साहस के साथ कहा, ‘‘ऐसा है तो आप आज शाम को ही हमारे यहां आ जाओ. आप का स्वागत है. और हां, मेरी बात सही हुई तो मुझे क्या दोगी?’’

‘‘मैं भला तुम्हें क्या दूंगी? मगर मैं इतना जरूर जानती हूं कि तुम बिलावजह मेरी प्रशंसा कर रहे हो. तुम्हारी पत्नी रेशमा को मैं ने देखा है, समझे न.’’ आरती मुसकराते हुए बोली.

आरती कमरे से फिर जाने को हुई तो दुर्गेश ने रुकने का अनुरोध किया लेकिन वह उस की बातें अनसुनी कर के किचन में चली गई.

दोस्त की बीवी पर गंदी नजर

थोड़ी देर में मनहरण नहा कर बाहर आया और नाश्ता कर दुर्गेश के साथ चला गया.

इस के बाद दुर्गेश किसी न किसी बहाने मनहरण के घर आनेजाने लगा. दुर्गेश की आंखों के आगे बस आरती घूमती रहती थी. अब वह उसे पाने के उपाय खोजने लगा था. वह यह भी भूल गया था कि आरती उस के जिगरी दोस्त मनहरण की जीवनसंगिनी है.

पति की गैरमौजूदगी में भी दुर्गेश आरती से मिलता तो वह उसे पूरा सम्मान देती थी. लेकिन उस की नजरों की भाषा को समझते हुए वह खुद संयम से रहती थी.

एक दिन जब मनहरण घर पर नहीं था, तो दुर्गेश आ धमका और आरती से अधिकारपूर्वक बोला, ‘‘भाभी, आज मेरे सिर में बड़ा दर्द हो रहा है. मैं ने सोचा कि आप के हाथों की चाय पी लूं तो शायद सिरदर्द गायब हो जाए.’’

आरती ने स्वाभाविक रूप से उस का स्वागत किया और कहा, ‘‘बैठिए, मैं चाय बना कर लाती हूं. लेकिन भैया, यह तो बताओ कि मेरी बनाई चाय में ऐसा क्या जादू है, जो तुम ठीक हो जाओगे. और हां, रेशमा की चाय में ऐसा क्या नहीं है, जो तुम्हारा सिरदर्द ठीक नहीं होगा.’’ कह कर आरती हंसने लगी.

‘‘भाभी, मेरा यह मर्ज आप नहीं समझोगी.’’ वह बोला.

‘‘क्यों…क्यों नहीं समझूंगी. मुझे समझाओ मैं कोशिश करूंगी.’’ आरती ने भोलेपन से कहा.

‘‘भाभी, एक गाना है न ‘तुम्हीं ने दर्द दिया है, तुम्हीं दवा देना’ तो यह समझो कि दर्द तुम्हारा ही दिया हुआ है इसलिए यह तुम्हारी ही दवाई से ठीक भी होगा. इसलिए जल्द से चाय बना कर पिला दो.’’

आरती समझ रही थी कि दुर्गेश कुछ ज्यादा ही बहकने लगा है, इसलिए एक दिन उस ने पति को दुर्गेश की हरकतों का हवाला देते हुए सारी बातें विस्तार से बता दीं.

पति की गैरमौजूदगी में दुर्गेश के आनेजाने का मतलब आरती समझ रही थी. वह पति का दोस्त था, इसलिए वह उसे घर आने को मना भी नहीं कर सकती थी. उस का आदरसत्कार करना उस की मजबूरी थी. लेकिन दुर्गेश के वहां आने का मकसद कुछ और ही था.

एक दिन दुर्गेश आरती के यहां पहुंचा तो आरती उस के लिए चाय बना कर लाई. चाय पीते समय आरती बोली, ‘‘दुर्गेश भैया, मैं बहुत दिनों से आप से एक सवाल पूछना चाहती थी. सचसच बताओगे?’’

सुन कर दुर्गेश खिल उठा. उसे लगा कि बस उस की बात बन गई. आरती कुछ ऐसा कहेगी कि उस की मनोकामना पूरी हो जाने का रास्ता खुल जाएगा.

‘‘भाभी, आप एक क्या 2 बातें पूछो.’’ दुर्गेश खुश हो कर बोला.

‘‘भैया, पिछले साल एक मर्डर हुआ था, जिस में तुम्हारे बड़े भाई जेल में हैं, वो क्या मामला था?’’ आरती बोली.

आरती की बातें सुन कर दुर्गेश मानो आसमान से जमीन पर आ गिरा. वह सोचने लगा कि भाई द्वारा मर्डर करने की बात आरती को पता है. उस ने तत्काल बातों को घुमाया और कहने लगा, ‘‘कुछ नहीं भाभी, मेरे भैया को झूठा फंसाया गया था. भैया तो देवता समान आदमी हैं, वे भला किसी का मर्डर क्यों करेंगे. मैं तुम को सब कुछ बता दूंगा कि सच्चाई क्या है, मगर फिर किसी दिन…’’ दुर्गेश ने आरती की आंखों में डूबते हुए कहा.

‘‘ठीक है, बता देना.’’ कह कर आरती कमरे से निकलने को हुई कि तभी दुर्गेश ने पीछे से आ कर उसे बांहों में भर लिया. आरती ने किसी तरह उस के चंगुल से छूट कर कहा, ‘‘दुर्गेश भैया, यह तुम क्या कर रहे हो. शर्म आनी चाहिए तुम्हें. मैं तुम्हें जो सम्मान देती हूं, उस का तुम यह सिला दे रहे हो. अपनी मर्यादा में रहो. आइंदा अगर तुम ने ऐसी हरकत की तो अच्छा नहीं होगा.’’

इसी बीच मनहरण भी आ गया. उस ने पत्नी की सारी बातें सुन ली थीं लेकिन अपने हावभाव से उस ने यह बात दुर्गेश को महसूस नहीं होने दी. कुछ देर तक दुर्गेश और मनहरण इधरउधर की बातें करते रहे. इस के बाद दुर्गेश वहां से चला गया.

मनहरण हकीकत जान गया था

उस रात आरती ने पति को दुर्गेश के क्रियाकलापों से अवगत कराया. उस ने कहा कि वह अपने दोस्त को समझाने की कोशिश करे. मनहरण ने पत्नी की ओर उचटती निगाह डालते हुए कहा, ‘‘मैं ने उस की हरकतें देख ली हैं और तुम्हारी बातें भी सुन ली हैं. सच कहूं, मुझे तुम पर गर्व है.’’

यह सुन कर आरती के चेहरे पर मुसकान तैरने लगी. वह बोली, ‘‘मैं ने आज उसे सही तरह से डांट दिया है और तुम भी आ गए थे. अब वह दोबारा गलत हरकत नहीं करेगा.’’

‘‘और अगर करेगा तो मैं उसे हमेशा के लिए सही कर दूंगा.’’ मनहरण के स्वर में कठोरता थी.

‘‘यह आप क्या कह रहे हो?’’ आरती घबराते हुए बोली, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’

‘‘कुछ नहीं, मैं उसे अच्छी तरह समझा दूंगा. वह सोचता है कि उस के भाई फूल सिंह ने 4 मर्डर किए हैं तो उस की वजह से मैं डर जाऊंगा. वह बेवकूफ है. फूल सिंह अपनी करनी का फल जेल में भोग रहा है. देखना यह भी भोगेगा.’’ वह गुस्से में बोला.

‘‘देखो जी, वह तुम्हारा दोस्त है, उसे प्रेम से समझा कर मामला खत्म करना है. हमें बात का बतंगड़ नहीं बनाना है, समझे. वादा करो मुझ से…’’ आरती ने कहा.

‘‘ठीक है, चलो अब सो जाओ. मुझे नींद आ रही है.’’ कह कर मनहरण ने करवट बदल कर सोने का अभिनय किया. मगर सच तो यह था कि उस की आंखों की नींद उड़ चुकी थी.

7 सितंबर, 2019 की शाम को जब मनहरण और दुर्गेश मिले तो दोनों एकदम सामान्य थे. ऐसे जैसे उन के बीच कुछ हुआ ही न हो. मनहरण ने कहा, ‘‘यार, मैं ने देशी माल बनवाया है.’’

मनहरण दुर्गेश को किशनपुर के पास स्थित गांव रामपुर ले गया, जहां मनहरण के लिए पहले से ही देशी शराब तैयार थी. उसे ले कर दोनों कटरा नाले के पास बैठ गए. उसी समय दुर्गेश का एक दोस्त सूरज वहां आ टपका. तीनों ने एक साथ शराब पीनी शुरू की.

मनहरण ने उस दिन पहले से ही मन ही मन एक योजना बना ली थी. उसी के तहत उस ने खुद कम शराब पी. दुर्गेश और सूरज को ज्यादा पिलाता चला गया. जब दोनों मदहोश हुए तो अपनेअपने घर जाने को तैयार हो गए, मगर दुर्गेश और सूरज ने इतनी ज्यादा पी ली थी कि दोनों के पैर लड़खड़ाने लगे.

सूरज अभी 16 साल का ही था. वह चलतेचलते साइकिल सहित सड़क पर गिर गया. उधर मनहरण दोनों की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. जब दुर्गेश पर शराब का नशा चढ़ा तो वह भी एक खेत के पास गिर गया.

शराब पिला कर मार डाला

मनहरण इसी मौके की तलाश में था. वह दुर्गेश के पास बैठा सोचता रहा कि आखिर सोचीसमझी योजना को मूर्तरूप कैसे दिया जाए. तभी दुर्गेश को हलका होश सा आने लगा तो वह उठ बैठा.

‘‘तुम तो शेर हो यार, तुम ढेर कैसे हो गए.’’ मनहरण ने व्यंग्य बुझा तीर चलाया.

‘‘नहींनहीं, मैं ठीक हूं. चलो.’’ दुर्गेश बोला.

‘‘कहां जाओगे, पहले मेरी बात तो सुन लो. तुम कमीने हो, नीच आदमी हो, तुम ने मेरी बीवी का हाथ पकड़ कर उसे छेड़ा. तुम से मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी.’’ मनहरण गुस्से में कहता चला गया, ‘‘मैं ने बहुत बरदाश्त किया, लेकिन तुम दोस्ती के लायक नहीं निकले.’’

दुर्गेश पर ज्यादा नशा सवार था. नशे में मनहरण की ओर देख कर बोला, ‘‘यार, तू इतनी छोटी सी बात पर गुस्सा हो रहा है. दोस्ती में यह सब तो चलता है भाई. एक रोटी को मिलबांट कर खाना चाहिए.’’

मनहरण को गुस्सा आ गया. वह बोला, ‘‘तुम नीच सोच के आदमी निकले, इसलिए आज मैं तुम्हें मौत की सजा दूंगा. और सुनो, बोल कर मार रहा हूं.’’

यह कह कर मनहरण दुर्गेश पर टूट पड़ा और उसे लातघूंसों से मारता रहा. शराब के नशे में दुर्गेश विरोध भी नहीं कर सका. मनहरण ने लस्तपस्त पड़े दुर्गेश को अंतत: गला दबा कर मार डाला और गालियां देते हुए अपने घर चला गया.

जब रात को दुर्गेश घर नहीं पहुंचा, तो उस के घर वालों को चिंता हुई. पिता कन्हैया यादव उसे ढूंढने निकले. सुबह जब उन की मुलाकात मनहरण से हुई तो मनहरण ने दुर्गेश से कई दिनों से मुलाकात न होने की बात कही.

8 सितंबर तक दुर्गेश का कहीं पता नहीं चला. परिवार के लोग यह सोचते रहे कि दुर्गेश कहीं बाहर तो नहीं चला गया, मगर 9 सितंबर को सुबह रामपुर गांव का तीरथराम जब अपने खेत पर पहुंचा तो वहां एक आदमी की लाश पड़ी देख उस के होश उड़ गए.

उस ने कोटवार (चौकीदार) समयलाल और सरपंच को घटना की जानकारी दी. कोटवार ने पिथौरा के थानाप्रभारी दीपेश जायसवाल को घटना की सूचना मिली तो वह घटनास्थल पर पहुंच गए.

वहां मौजूद लोगों ने मृतक की शिनाख्त दुर्गेश उर्फ पुस्तम के रूप में की. थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

जांच अधिकारी दीपेश जायसवाल को जानकारी मिली कि दुर्गेश मनहरण का जिगरी दोस्त था. पुलिस ने मनहरण को यह सोच कर पूछताछ के लिए थाने बुलाया कि शायद उस से हत्यारे के बारे में कोई सुराग मिल जाए.

लेकिन मनहरण ने इस मामले से पल्ला झाड़ लिया. तभी पुलिस सूरज को हिरासत में ले कर थाने लौट आई.

दरअसल, पुलिस को जानकारी मिली थी कि मृतक दुर्गेश, मनहरण और सूरज ने कल शाम एक साथ बैठ कर शराब पी थी. सूरज को आया देख कर मनहरण समझ गया कि अब उस का झूठ नहीं चल सकता, इसलिए वह टूट गया.

मनहरण ने पुलिस के सामने स्वीकार कर लिया कि पत्नी आरती के साथ छेड़छाड़ की वजह से उस ने अपने दोस्त दुर्गेश की हत्या की थी. उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने मनहरण उर्फ मोनो को दुर्गेश उर्फ पुस्तम की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. जबकि सूरज को बेकसूर पाए जाने पर थाने से घर भेज दिया.

दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है, जो कभीकभी सगे भाई से भी बेहतर साबित होता है. लेकिन जब यह रिश्ता वासनामय हो कर दोस्त की पत्नी का दामन छूने लगे तो अंजाम भयानक ही होता है. अगर समाज में आप को रिश्ते बनाए रखने हैं तो रिश्तों की मर्यादा को समझिए और उन का सम्मान बनाए रखिए.

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

मोहब्बत की मकड़ी, क्राइम का मकड़जाल

बुधवार, 17 मई, 2017 का दिन ढल चुका था और रात उतर आई थी. 9 बजे के करीब राजस्थान के जिला कोटा के थाना नयापुरा के थानाप्रभारी देवेश भारद्वाज के चैंबर में जिस समय 2 लड़कियां दाखिल हुई थीं, उस समय वह बाहर निकलने की तैयारी कर रहे थे. उन लड़कियों के नाम पूजा और स्वाति थे. दोनों की ही उम्र 30-32 साल के बीच थी. वे थीं भी काफी आकर्षक. अपना परिचय देने के बाद पिछले पौन घंटे के बीच उन्होंने हिचकियां लेले कर रोते हुए जो कुछ बताया था, उस ने देवेश भारद्वाज को पशोपेश में डाल दिया था.

पूरी बात पूजा ने बताई थी. स्वाति तो बीचबीच में हौसला बढ़ाते हुए उस की बातों की तसदीक कर रही थी और जहां पूजा रुकती थी, वहां वह उसे याद दिला देती थी. उन की बातें सुन कर देवेश भारद्वाज उसे जिन निगाहों से ताक रहे थे, उस से पूजा को लग रहा था कि शायद वह उस की बातों पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं. शायद इसी वजह से एक बार तो लगा कि वह फूटफूट कर रो पड़ेगी. लेकिन किसी तरह खुद को संभालते हुए आखिर उस ने पूछ ही लिया, ‘‘सर, क्या आप को हमारी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा है?’’

देवेश भारद्वाज ने पानी का गिलास पूजा की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आप को ऐसा क्यों लग रहा है? आप ने अपने ऊपर हुए जुल्मों के बारे में जो बताया है, उसे एक कागज पर लिख कर रिपोर्ट दर्ज करा दीजिए.’’

युवती, जिस ने अपना नाम पूजा हाड़ा बताया था, उस के बताए अनुसार, वह कोटा के कुन्हाड़ी की रहने वाली थी. आर्थिक तंगी की वजह से वह नौकरी करना चाहती थी. नौकरी की तलाश में उस की मुलाकात लालजी नमकीन भंडार के मालिक अशोक अग्रवाल से हुई. उन्होंने उसी दिन यानी 17 मई की दोपहर लगभग 3 बजे नयापुरा स्थित एक रेस्तरां में नौकरी की खातिर बातचीत करने के लिए उसे बुलाया.

बातचीत के दौरान अशोक अग्रवाल ने सौफ्टड्रिंक औफर किया. व्यावहारिकता के नाते मना करना ठीक नहीं था, इसलिए पूजा ने भी मना नहीं किया. उसे पीते ही पूजा पर नशा सा चढ़ने लगा. उस में शायद कोई नशीली चीज मिलाई गई थी. वह जल्दी ही बेसुध हो गई.

होश आया तो पूजा को पता चला कि नौकरी के बहाने बुला कर अशोक अग्रवाल ने उस की अस्मत लूट ली थी. होश में आने पर पूजा ने यह बात सब को बताने की धमकी दी तो उन्होंने उसे बेइज्जत कर के भगा दिया.

पूजा के साथ स्वाति उस की घनिष्ठ सहेली थी. जब यह पूरा वाकया पूजा ने उसे बताया तो हिम्मत दिला कर वह उसे थाने ले आई. अशोक अग्रवाल पैसे वाले आदमी थे, वह कुछ भी करा सकते थे, इसलिए पूजा ने अपनी जान का खतरा जताया.

रिपोर्ट दर्ज करा कर पूजा और स्वाति ने देवेश भारद्वाज के पास आ कर कहा, ‘‘सर, अब हम जाएं?’’

देवेश भारद्वाज ने अपनी घड़ी देखी. उस समय रात के 11 बज रहे थे. उन्होंने कहा, ‘‘नहीं, तुम लोग इतनी रात को अकेली कैसे जा सकती हो? अकेली जाना तुम दोनों के लिए ठीक नहीं है. क्योंकि अभी तुम्हीं ने कहा है कि तुम्हारी जान को खतरा है.’’

इस के बाद ट्रेनी आरपीएस सीमा चौहान की ओर देखते हुए देवेश भारद्वाज ने कहा, ‘‘मैडम, आप अपनी जिप्सी से इन्हें इन के घर पहुंचा दीजिए.’’

‘‘नहीं सर, इस की कोई जरूरत नहीं है. मैं खुद चली जाऊंगी और पूजा को भी उस के घर पहुंचा दूंगी.’’ स्वाति ने कहा, ‘‘मैं ही इसे ले कर आई थी और मैं ही इसे इस के घर छोड़ भी आऊंगी. पूजा को घर पहुंचाना मेरी जिम्मेदारी है. आप इतनी रात को मैडम को क्यों परेशान करेंगे?’’

देवेश भारद्वाज स्वाति की इस बात पर हैरान रह गए. उन की समझ में यह नहीं आया कि पुलिस की गाड़ी से जाने में इन्हें परेशानी क्यों हो रही है? आखिर उन्हें शक हो गया. क्योंकि इधर लगभग रोज ही अखबारों में वह पढ़ रहे थे कि लड़कियों ने फलां व्यापारी को दुष्कर्म में फंसाने की धमकी दे कर मोटी रकम ऐंठी है, इसलिए उन्होंने दोनों लड़कियों को चुपचाप पुलिस जिप्सी में बैठने को कहा.

आखिर वही हुआ, जिस का अंदेशा देवेश भारद्वाज को था. करीब डेढ़ घंटे बाद उन्हें पता चला कि सीमा चौहान को स्वाति और पूजा करीब एक घंटे तक कुन्हाड़ी की गलियों में घुमाती रहीं, लेकिन उन का घर नहीं मिला. जब वे अपना घर नहीं दिखा सकीं तो वह उन्हें ले कर थाने आ गईं.

सीमा चौहान ने यह बात देवेश भारद्वाज को बताई तो उन्होंने कहा, ‘‘अब समझ में आया कि स्वाति और पूजा आप के साथ क्यों नहीं जाना चाहती थीं. स्वाति क्यों कह रही थी कि पूजा को मैं खुद उस के घर छोड़ आऊंगी.’’

इस के बाद पूजा और स्वाति शक के घेरे में आ गईं. देवेश भारद्वाज ने पूजा के बयान पर विचार किया तो उन्हें सारा माजरा समझ में आने लगा. भला दिनदहाड़े रेस्तरां में ग्राहकों की आवाजाही के बीच कोई किसी के साथ कैसे दुष्कर्म कर सकता है? दुष्कर्म की छोड़ो, छेड़छाड़ भी मुमकिन नहीं है. लड़की शोर मचा सकती थी. हां, लड़की चाहती तो कुछ भी हो सकता था. इस का मतलब शिकारी भी वही है और शिकार भी वही है.

इस के बाद पूजा और स्वाति से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों टूट गईं और उन्होंने जो बताया, उस से एक ऐसे रैकेट का खुलासा हुआ, जो खूबसूरत औरतों का चारा डाल कर शहर के रसूखदार लोगों को दुष्कर्म में फंसाने की धमकी दे कर मनमानी रकम वसूल रहा था. इस पूछताछ में जो खुलासा हुआ, वह काफी चौंकाने वाला था.

पूजा का असली नाम पूजा बघेरवाल था. वह कोटा के अनंतपुरा की रहने वाली थी. पुलिस ने उस के घर पर छापा मार कर वहां से जो कागजात बरामद किए थे, उस के अनुसार उस की उम्र 20 साल थी. स्वाति इस रैकेट की सरगना थी. उन के गिरोह में नाजमीन भी शामिल थी. पुलिस ने उसे भी अनंतपुरा से गिरफ्तार कर लिया था.

पूछताछ में स्वाति ने स्वीकार किया कि नमकीन कारोबारी अशोक अग्रवाल तक पूजा को उसी ने पहुंचाया था. पूजा और स्वाति ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो देवेश भारद्वाज ने देर रात नमकीन कारोबारी अशोक अग्रवाल को बुला कर पूजा और स्वाति के खिलाफ धारा 420 और 384 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

इस तरह आढ़त और नमकीन के बड़े कारोबारी अशोक अग्रवाल इस गिरोह का आखिरी शिकार साबित हुए. जब उन से पूछा गया कि उन्हें कैसे फंसाया गया तो उन्होंने जो बताया, उस के अनुसार 7 मई, 2017 को जब वह बूंदी जा रहे थे तो उन के मोबाइल पर एक फोन आया. वह फोन उन्हें पूजा हाड़ा ने किया था.

पूजा ने उन से कहा कि उसे नौकरी की सख्त जरूरत है. वह बड़े आदमी होने के साथसाथ जानेमाने कारोबारी भी हैं. वह चाहें तो उसे कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी. किसी अजनबी लड़की द्वारा इस तरह बेबाकी से नौकरी मांगना अशोक अग्रवाल के लिए हैरानी की बात थी. उन्होंने पूछा, ‘‘तुम मुझे कैसे जानती हो, मेरा मोबाइल नंबर तुम्हें कैसे मिला?’’

इस पर पूजा ने कहा, ‘‘तरक्की के इस दौर में आप जैसी जानीमानी हस्ती के मोबाइल नंबर हासिल कर लेना कोई मुश्किल काम नहीं है.’’

पूजा ने अपनी गरीबी और लाचारी का हवाला दिया तो अशोक अग्रवाल ने उसे कहीं नौकरी दिलाने की बात कह कर टालने की कोशिश की. लेकिन पूजा उन्हें लगातार फोन करती रही. यह सिलसिला लगातार जारी रहा. 17 मई की दोपहर को जब पूजा ने फोन कर के कहा कि वह उन से मिल कर अपनी परेशानी बताना चाहती है तो वह पिघल गए.

संयोग से अशोक अग्रवाल उस समय नयापुरा किसी काम से गए हुए थे. पूजा की परेशानी पर तरस खा कर वह उस के बताए रेस्टोरेंट में मिलने पहुंच गए. जिस समय वह रेस्टोरेंट में पहुंचे थे, उस समय वहां गिनेचुने लोग ही थे. कोने की एक मेज पर अकेली लड़की बैठी थी, जिसे देख कर वह समझ गए कि वही पूजा होगी. वह उन्हें देख कर मुसकराई तो उन्हें विश्वास भी हो गया. वह उस की ओर बढ़ गए.

कुरसी से उठ कर नमस्ते करते हुए उस ने कहा, ‘‘मेरा नाम पूजा है. आप ने मेरे लिए इस दोपहर में आने का कष्ट किया, इस के लिए आप को बहुतबहुत धन्यवाद.’’

अशोक अग्रवाल उस के सामने पड़ी कुरसी पर बैठते हुए बोले, ‘‘अब बताओ, मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं?’’

‘‘मैं अपनी परेशानी इतनी दूरी से नहीं बता सकती.’’ पूजा ने अशोक अग्रवाल की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘आप यहां मेरे बगल में आ कर बैठें तो मैं आप को अपनी परेशानी बताऊं.’’

इतना कह कर पूजा दोनों हाथ टेबल पर रख कर झुकी तो उस के वक्ष झांकने लगे. अशोक अग्रवाल यह देख कर हड़बड़ा उठे, क्योंकि उन्होंने ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं की थी. उन्होंने इधरउधर देखा, संयोग से उन की ओर कोई नहीं देख रहा था. लेकिन उस तनहाई में उस के इस रूप को देख कर वह पसीनेपसीने हो गए. उन का हलक सूख गया. जुबान से हलक को तर करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह क्या है?’’

‘‘वही, जो एक औरत किसी मर्द को खुश करने के लिए करती है.’’ अधखुले वक्षों की ओर ताकते हुए पूजा ने मदभरी आवाज में कहा, ‘‘इधर आओ न?’’

परेशान हो कर अशोक अग्रवाल ने इधरउधर देखा. इस के बाद नाराज हो कर उठते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें क्या समझा था और तुम क्या निकली?’’

पूजा ने आंखें तरेरते हुए कहा, ‘‘सही बात यही है कि मैं वही हूं, जो तुम ने नहीं समझा था. मैं तुम्हें इज्जत दे कर वह देना चाहती थी, जिस के लिए लोग तरसते हैं. लेकिन शायद तुम्हें हसीन तोहफा पसंद नहीं है. फिलहाल तो जो कुछ भी तुम्हारे पास है, चुपचाप निकाल कर रख दो, वरना अभी शोर मचा कर लोगों को इकट्ठा कर लूंगी कि तुम नौकरी देने के बहाने यहां बुला कर मेरी इज्जत पर हाथ डाल रहे हो?’’

अशोक अग्रवाल पसीनेपसीने हो गए. कांपती आवाज में उन्होंने कहा, ‘‘तुम ने यह ठीक नहीं किया.’’

इतना कह कर उन्होंने अपनी जेब से सारी नकदी निकाल कर मेज पर रख दी. उस समय उन के पास करीब 8 हजार रुपए थे. पूजा ने फौरन सारे पैसे समेटे और तेजी से यह कहती हुई बाहर चली गई कि इतनी रकम से मेरी इज्जत की भरपाई नहीं होनी सेठ.

अशोक अग्रवाल हक्काबक्का उसे जाते देखते रहे. हैरानपरेशान कांपते हुए वह अपनी दुकान पर पहुंचे. वह अभी सांस भी नहीं ले पाए थे कि एक नई मुसीबत आ खड़ी हुई. अचानक एक मोटरसाइकिल उन की दुकान पर आ कर रुकी. उस से मवाली सरीखे 3 लोग आए थे.

अशोक अग्रवाल उन से कुछ पूछ पाते, उस से पहले ही उन में से एक युवक उन के पास आ कर उन्हें डांटते हुए बोला, ‘‘इतना बड़ा कारोबारी है, फिर भी लड़कियां फंसाता घूमता है? तू ने पूजा के साथ क्या किया है, उस रेस्टोरेंट में? 50 लाख का इंतजाम कर ले, वरना दुष्कर्म के मामले में ऐसा फंसेगा कि सीधे जेल जाएगा. बदनामी ऐसी होगी कि किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा.’’

डरेसहमे अशोक अग्रवाल के मुंह से बोल नहीं निकले. वह यह भी नहीं पूछ पाए कि वे आखिर हैं कौन और दिनदहाड़े इतना दुस्साहस करने की उन की हिम्मत कैसे हुई? उन्हें जैसे सांप सूंघ गया था. यह नौकरों की मौजूदगी में हुआ था, इसलिए बेइज्जती और धमकी से परेशान हो कर वह सिर थाम कर बैठ गए.

अशोक अग्रवाल के बयान के आधार पर उन्हें दुष्कर्म में फंसाने की धमकी दे कर 50 लाख रुपए की मांग करने वाले तीनों लोगों को भी थाना नयापुरा पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. उन तीनों के नाम थे महेंद्र सिंह तंवर उर्फ चाचा, फिरोज खान और शानू उर्फ सलीम. महेंद्र सिंह रंगपुर रोड स्थित रेलवे कालोनी का रहने वाला था तो फिरोज खान साजीदेहड़ा का. शानू उर्फ सलीम कोटडी का रहने वाला था.

तीनों ने स्वाति के साथ मिल कर पूरी योजना तैयार की थी. उसी योजना के तहत तीनों ने अशोक अग्रवाल की दुकान पर जा कर रुपए मांगे थे. पूजा और स्वाति के साथ गिरफ्तार की गई नाजमीन भी रसूखदार लोगों को फंसाने में उन्हीं की तरह माहिर थी. उस की 3 बहनें हैं. पिता की मौत हो चुकी है. उस की मां भी अपराधी प्रवृत्ति की है. मादक पदार्थों की तस्करी के आरोप में वह 10 साल की सजा काट चुकी है.

शहर के रसूखदारों को हनीट्रैप में फंसाने वाला रैकेट सामने आया तो पुलिस ने विस्तार से पूछताछ की. इस पूछताछ में उन्होंने एक और खुलासा किया. स्वाति उर्फ श्वेता और पूजा बघेरवाल ने मिल कर बैंकिंग सेक्टर में एजेंसी चलाने वाले प्रदीप जैन के खिलाफ थाना गुमानपुरा में छेड़छाड़ और दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराया था. अक्तूबर, 2016 में इन लोगों ने प्रदीप जैन से 8 लाख रुपए मांगे थे. हालांकि बाद में दोनों अपने इस बयान से मुकर गई थीं.

इस के बाद प्रदीप जैन से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि उन्हें औफिस में काम करने वाले कर्मचारियों की जरूरत थी, जिस के लिए उन्होंने अखबार में विज्ञापन दिया था. उसी विज्ञापन के आधार पर पूजा बघेरवाल ने खुद को निशा जैन बताते हुए उन से संपर्क किया. उस ने करीब 3 महीने तक उन के यहां नौकरी की.

वह काम करने के बजाय दिन भर फोन पर ही बातें करती रहती थी, इसलिए उन्होंने उसे नौकरी से निकाल दिया. इस के बाद स्वाति उर्फ श्वेता उन के यहां नौकरी करने आई. लेकिन 3 दिन बाद ही वह नौकरी छोड़ कर चली गई. इस के बाद उस ने उन के खिलाफ छेड़खानी की रिपोर्ट दर्ज करा दी, लेकिन प्रदीप जैन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. उन्हें परेशानी तब हुई, जब अक्तूबर, 2016 में पूजा ने थाना गुमानपुरा में उन के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराया. उस का कहना था कि 8 महीने पहले जब वह उन के यहां नौकरी करती थी, तब उन्होंने उस के साथ दुष्कर्म किया था.

जब इस बात की जानकारी प्रदीप को हुई तो वह सन्न रह गए. उन का परिवार तनाव में आ गया. लेकिन वह अपनी बात पर अडिग थे, क्योंकि आरोप सरासर झूठा था. पर मित्रों और रिश्तेदारों के कहने पर बेगुनाह होते हुए भी उन्हें भूमिगत होना पड़ा. बाद में डील हुई तो पूजा ने अदालत में अपने बयान बदल दिए. समझौता होने के बाद उस से फिर 50 हजार रुपए मांगे गए. लेकिन उस ने देने से साफ मना कर दिया. उस ने कहा कि अब उस का खेल खत्म हो चुका है.

पुलिस के अनुसार, शहर में यह गिरोह अभी ताजाताजा ही सक्रिय हुआ था. किसी रसूखदार को जाल में फंसाने से पहले ये लोग उस के रिश्तों और कारोबार की पूरी जानकारी जुटाते थे. उस के बाद शिकार की पंसद की लड़की का जुगाड़ किया जाता था, जो उसे फांस सके. शिकार से जो रकम मिलती थी, वह सभी में बराबरबराबर बंटती थी. गिरोह की सरगना स्वाति हनीट्रैप के लिए ‘नई’ और ‘काम की’ लड़कियां तलाशती रहती थी.

स्वाति पति को छोड़ कर साजीदेहड़ा में फिरोज के साथ रहती थी. लोगों की नजरों में वह मेहंदी लगाने और ब्यूटीशियन का काम करती थी. वह इन दिनों एक कोचिंग संचालक को फंसाने की फिराक में थी. उस के लिए वह हाईप्रोफेशनल लड़की ढूंढ रही थी.

लेकिन अशोक अग्रवाल को फंसाने के चक्कर में वह खुद ही फंस गई. अगर ऐसा न होता तो शायद वह उस कोचिंग संचालक को बरबाद कर के ही मानती. पुलिस ने पूछताछ के बाद स्वाति, पूजा, नाजमीन, महेंद्र सिंह तंवर उर्फ चाचा, फिरोज खान और शानू उर्फ सलीम को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

महेंद्र सिंह तंवर, फिरोज खान और शानू उर्फ सलीम को तब गिरफ्तार किया गया, जब स्वाति, पूजा और नाजमीन की गिरफ्तारी की खबर पा कर तीनों शहर छोड़ कर भागने की तैयारी कर रहे थे. लड़कियों के पास से एक डायरी मिली थी, जिस में इन तीनों के नाम और मोबाइल नंबर थे.

स्वाति से बरामद मोबाइल का बिल फिरोज खान के नाम था तो उस में पड़ा सिम महेंद्र सिंह के पिता मोहनलाल के नाम था. शिकार को फंसाने के लिए पूजा और नाजमीन इसी मोबाइल का इस्तेमाल करती थीं. यह मोबाइल स्वाति के पास रहता था. पुलिस अब उस मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि इस नंबर से किसकिस को फोन किए गए थे.

महेंद्र सिंह तंवर उर्फ चाचा पहले औटो चलाता था. औटो चलाने के दौरान उस की मुलाकात स्वाति से हुई तो वह इस रैकेट से जुड़ गया. जबकि सलीम उर्फ शानू मकानों की मरम्मत का काम करता था. स्वाति 2 साल पहले पति से अलग हुई थी. इस के बाद साजीदेहड़ा में किराए का मकान ले कर वह फिरोज खान के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगी थी. उस का बच्चे की सुपुर्दगी को ले कर पति से कोर्ट में केस चल रहा है.

पति से अलग होने के बाद जब वह ब्यूटीपार्लर चला रही थी, तभी फिरोज खान से उस का परिचय हुआ था. उस के बाद वह उस के साथ रहने लगी. स्वाति से बरामद डायरी में अंगरेजी के कुछ ऐसे शब्द लिखे हैं, जो आमतौर पर हाईप्रोफाइल सर्किल में व्यावहारिक तौर पर बोलबाल में इस्तेमाल किए जाते हैं. पुलिस का मानना है कि संभवत: नई लड़कियों को शिकार फंसाने के लिए इन शब्दों का ज्ञान कराया जाता था, ताकि उन की कुलीनता का असर पड़े.

जंगल में मिली लाश की गुत्थी और एक संगीन अपराध

अब माहौल दिनों दिन ऐसा त्रासद होता जा रहा है कि हत्या जैसे संगीन अपराध कम उम्र के किशोर युवा नशे और सेक्स की उत्तेजना में करने लगे हैं. परिणाम स्वरूप उन्हें मिलती है पुलिस की लाठियां और जेल की कोठरी.

छत्तीसगढ़ की न्याय धानी बिलासपुर में, महमंद के जंगल में मिली लाश की गुत्थी एक सच्चे संगीन अपराध  का सार संक्षेप कहा जा सकता है. दरअसल, तोरवा पुलिस ने यह बड़ी मशक्कत के बाद आरोपियों तक पहुंच गई है. मामले में जो तथ्य निकल कर सामने आए है वह चौंकाने वाले है और समाज को सोचने पर विवश करते है.

पुलिस को शुरू से ही शक था कि आरोपी ने मृतिका के संग शारीरिक संबंध बनाने का प्रयास किया होगा और उसका विरोध करने पर ही उसने एलुमिनियम के तार से उसका गला घोट कर उसकी हत्या कर दी है. इस बहुचर्चित हत्या मामले में तोरवा पुलिस ने लाल खदान निवासी मुख्य आरोपी सूरज कश्यप उर्फ राजा और उसके साथी महेंद्र पासी को गिरफ्तार किया है.

पुलिस के अनुसार मामला का पटाक्षेप इस तरह हो गया है मगर छत्तीसगढ़ के साहू समाज ने इसे लेकर एक जेहाद छेड़ दिया है और खुलकर सामने आकर सांसद बिलासपुर अरुण साहू के नेतृत्व में शासन प्रशासन से मांग की है कि मामला अभी पूरी तरीके से सुलझा नहीं है कुछ और आरोपी पुलिस की पकड़ से बाहर हैं. संपूर्ण घटनाक्रम आपको बताएं उससे पहले देखिए सिलसिलेवार घटनाक्रम.

स्वावलंबी और चंचल  थी किशोरी

जिला बिलासपुर के महमंद गांव में राजू साहू का  परिवार रहता है. परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण सोनू (उम्र17) (काल्पनिक नाम) नौकरी कर घर खर्चे में सहयोग करती थी. जानकारी के अनुसार सूरज (उम्र 21) उस पर लंबे समय से बुरी नियत रखता था सभी जानते थे कि वह एक बिगड़ा हुआ लड़का है और नित्य नशा करता है और ऐसी उसकी दोस्तों की मंडली है.वह और कई बार सोनू को प्रपोज भी कर चुका था. लेकिन सोनू उसे मना कर देती, लेकिन फिर भी सूरज कश्यप उसका पीछा नहीं छोड़ रहा था. घटना दिनांक को सोनू जब शौच के लिए घर से  सुबह करीब साढ़े 9 बजे निकली मगर दोपहर तक नहीं लौटी तो परिजनों को चिंता हुई. उन्होंने सोनू की तलाश शुरू की तो जंगल झाड़ी में उसकी लाश मिली.किसी  हत्यारे ने तार से गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी थी और फिर उसके मुंह में बेशर्म की पत्तियां भी ठूंसी मिली  थी.

मामला सनसनीखेज बनता चला गया. इधर पुलिस को जानकारी मिली की घटना के दिन सोनू अपने काम पर नहीं गई थी क्योंकि उसकी तबीयत खराब थी और इस वजह से वह काफी कमजोर भी थी. सुबह जब सोनू शौच के लिए निकली तो उसे जाते  महेंद्र पासी ने देख लिया और इसकी जानकारी सूरज को दे दी. सूरज कश्यप और महेंद्र किशोरी का पीछा करते हुए जंगल पहुंच गए. जहां पहले तो सूरज कश्यप ने सोनू से इधर उधर की बातें की और फिर वे उसे सुनसान में लेकर गए, जहां बेशर्म के झाड़ियों में उसे पटक कर उसके साथ दुष्कर्म का प्रयास किया गया. बीमारी की वजह से सोनू काफी कमजोर हो गई थी, इसका फायदा आरोपियों ने उठाया और उसकी इच्छा विरुद्ध उसके साथ संबंध बनाने का प्रयास किया. जब सोनू शोर मचाने लगी तो उसका मुंह बंद करने के लिए उसके मुंह में बेशर्म के पत्ते ठूस दिया. सोनू ने  उन्हें धमकी दी थी कि वह यह बात सबको बता देगी. इसलिए डर कर सूरज कश्यप और महेंद्र ने पास ही पड़े एलुमिनियम के तार से उसका गला घोट मार दिया.

सांसद अरुण साहू की हुंकार

साहू समाज की एक नाबालिक लड़की से  अनाचार हत्या के इस मामले ने लगातार तूल पकड़ लिया और नित्य नए खुलासे हो रहे हैं. बिलासपुर के सांसद अरुण साहू ने इस मामले को गंभीर बताते हुए आरोपियों को कड़ी सजा देने की मांग सरकार से कर आर्थिक मदद की मांग की है. साहू संघ ने कहा कि नाबालिग की निर्मम हत्या हुई है.  संघ के अध्यक्ष का कहना है कि इस मामले पर जो शासन-प्रशासन से मदद मिलनी चाहिए वह नहीं मिल पाई है. उनके अनुसार सोनू हत्या काण्ड में 4 लोग शामिल हो सकते हैं, लेकिन दो लोग पर ही कार्रवाई हुई है. दो और लोग हैं जिनके पास से नाबालिग का पायल भी मिला है.

दूसरी तरफ हमारे संवाददाता से बात करते हुए सांसद अरुण साहू ने प्रदेश में नशे पर रोक लगाने मांग की है. उन्होंने कहा कि महमंद में जो घटना हुई है उसमें ठीक प्रकार की जांच कर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि परिवार को न्याय मिले. उन्होंने कहा कि महमंद का पूरा क्षेत्र अपराधियों का केंद्र बना हुआ है.

यही कारण है कि महमंद गांव के ग्रामीणों का  गुस्सा फूट पड़ा और कलेक्ट्रेट का  घेराव किया गया.आरोपी सूरज कश्यप आरोपी हर पल उस पर नजर बनाए हुए था.

10 महीने के बेटे ने खोला मां की हत्या का राज, सब रह गए हैरान

रात के 9 बज रहे थे. गुजरात के गांधीनगर के पीथापुर में स्वामिनारायण गौशाला के बाहर एक बच्चे के तेज रोने की आवाज सुन कर गौशाला के कर्मचारी बाहर आए. देखा गौशाला के गेट के बाहर सड़क पर एक मासूम रो रहा है. बच्चे के आसपास कोई नहीं था.

मासूम पैरों से अभी चल भी नहीं पाता था. एक कर्मचारी ने बच्चे को गोद में उठाने के बाद उसे चुप कराने की कोशिश की और उस के मांबाप की तलाश आसपास की गई. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. रात के अंधेरे में वहां कोई नहीं दिखाई दिया.

गौशाला के कर्मचारी बच्चे को ले कर अंदर आ गए. रात में ही गांधीनगर पुलिस को इस की सूचना दी गई. इस बीच जानकारी होने पर आसपास के लोग एकत्र हो गए. जिस ने भी यह बात सुनी, वही दांतों तले अंगुली दबाने लगा. सभी बच्चे के पत्थर दिल मांबाप को कोस रहे थे. पुलिस ने भी उस समय अपने स्तर से छानबीन की लेकिन कुछ पता नहीं चला.

बच्चा 10-11 महीने का था. वह अभी अपने पैरों से चल भी नहीं सकता था. इस समय इस मासूम को मां के आंचल में होना चाहिए था, लेकिन वह रात के अंध्ेरे में सड़क पर लावारिस हालत में था.

पुलिस ने उस मासूम को क्षेत्र की पार्षद दीप्ति पटेल के सुपुर्द कर दिया और सुबह बच्चे के बारे में जानकारी जुटाने की बात कही. दीप्ति पटेल ने मासूम को अपने पास रखा और रात में उसे खिलायापिलाया और पूरा ध्यान रखा.

यह बात 8 अक्तूबर, 2021 की है. पुलिस सुबह बच्चे को मैडिकल चैकअप के लिए सिविल अस्पताल ले गई. जहां जांच के बाद बच्चे को स्वस्थ बताया गया.

सोशल मीडिया पर जिस किसी ने इस खबर को पढ़ा व देखा, वह सन्न रह गया. जितने मुंह उतनी बातें. कोई इतना बेदर्द कैसे हो सकता है, जो अपने कलेजे के टुकड़े को रात के अंधेरे में इस तरह गौशाला के बाहर सड़क पर लावारिस छोड़ गया. उस मां के साथ ऐसी क्या मजबूरी थी, जो उसे कलेजे पर पत्थर रख कर यह काम करना पड़ा.

दूसरे दिन 9 अक्तूबर को अखबारों में जब मासूम की फोटो सहित समाचार छपा तो हर किसी का कलेजा फट रहा था. बात गुजरात के गृहमंत्री हर्ष सांगवी के कानों तक पहुंची. गृहमंत्री भी अस्पताल पहुंचे और बच्चे के बारे में जानकारी की. बच्चे को गोदी में ले कर दुलारा. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को बच्चे के मांबाप का शीघ्र पता लगाने के निर्देश दिए.

50 पुलिसकर्मी जुटे जांच में गांधीनगर के एसपी मयूर चावड़ा ने बच्चे के परिजनों का पता लगाने के लिए 50 पुलिसकर्मियों की 7 टीमें लगा दीं.

पुलिस ने गौशाला के बाहर लगे एक सीसीटीवी कैमरे की फुटेज को चैक किया. फुटेज में रात 9 बज कर 20 मिनट पर एक व्यक्ति बच्चे को गोद में ले कर आता हुआ दिखाई दे रहा था. वह बच्चे को गौशाला के गेट के बाहर सड़क पर छोड़ कर तेजी से भागता हुआ अंधेरे में गायब हो गया. इस पर पुलिस ने गौशाला आनेजाने वाले रास्तों पर लगे सीसीटीवी कैमरों को चैक करने का निर्णय लिया.

पुलिस ने लगभग 150 सीसीटीवी कैमरों को चैक किया. आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई. एक फुटेज में एक सैंट्रो कार दिखाई दे रही थी. कार में एक व्यक्ति इसी बच्चे के साथ बैठा हुआ गौशाला की ओर जाता दिखाई दे रहा था.

यहीं से पुलिस को कार का नंबर भी मिल गया. तब पुलिस ने इस कार के रजिस्ट्रेशन नंबर से कार के मालिक का पता किया.

पता चला कि यह सैंट्रो कार सचिन दीक्षित के नाम रजिस्टर्ड है. 30 साल के सचिन का पता अहमदाबाद का लिखा हुआ था. पुलिस पते पर पहुंची तो पता चला कि सचिन दीक्षित अहमदाबाद में नहीं बल्कि अब गांधीनगर में रहता है.

पुलिस जब गांधीनगर स्थित सचिन के घर पहुंची तो वहां ताला लगा हुआ था. तब तक पुलिस को सचिन का मोबाइल नंबर मिल गया था. पुलिस ने सचिन के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया.

इस से पता चला कि सचिन राजस्थान के कोटा के आसपास है. सचिन की लोकेशन मिलते ही पुलिस ने सचिन को फोन कर बच्चा मिलने के बारे में जानकारी दी. इस पर सचिन ने पुलिस को बताया कि वह बच्चा उसी का है और उस का नाम शिवांश है.

रविवार 10 अक्तूबर, 2021 की सुबह राजस्थान पुलिस की मदद से कोटा में ही सचिन को रोक कर हिरासत में ले लिया गया. जिस समय सचिन को हिरासत में लिया गया, उस समय वह अपनी पत्नी अनुराधा और 3 साल के बेटे तथा अपने मातापिता के साथ था. वह फुटेज में दिखाई दे रही उसी सैंट्रो कार से दशहरा मनाने उत्तर प्रदेश जा रहा था.

गुजरात पुलिस व क्राइम ब्रांच ने 11 अक्तूबर को राजस्थान पहुंचने के बाद जब सचिन से बच्चे को गौशाला के बाहर लावारिस छोड़ने की वजह पूछी. इस पर सचिन ने चुप्पी साथ ली.

इस के बाद पत्नी अनुराधा से पुलिस ने पूछा, ‘‘आप ने अपने बेटे को रात में सड़क पर क्यों छोड़ा?’’

यह सुन कर अनुराधा हैरान रह गई. उस ने पुलिस को बताया कि उस का 3 साल का एक ही बेटा है, जो इस समय उस के साथ है.

पुलिस ने अनुराधा को शिवांश की फोटो दिखाई तो उस ने पहचानने से इंकार कर दिया. उस ने बताया कि वह इस बच्चे को पहली बार देख रही है वह उसे नहीं जानती.

सचिन कह रहा था कि 10 महीने का शिवांश उस का बेटा है और उसी ने उसे गौशाला के बाहर छोड़ा था. जबकि उस की पत्नी इस बात से इंकार कर रही थी. पुलिस उलझन में पड़ गई. पुलिस ने एक बार फिर सचिन से पूछताछ करने का फैसला किया.

सचिन से लंबी पूछताछ के बाद गांधीनगर पुलिस ने बड़ोदरा पुलिस को फोन किया और एक घर का पता बताया. इस मकान पर पहुंच कर उस की किचन में रखे बैग की तलाशी लेने को कहा.

किचन में मिली लाश

गांधीनगर पुलिस के कहने पर बड़ोदरा पुलिस बताए गए मकान जो बड़ोदरा में जी-102 दर्शनम ओएसिस सोसायटी में स्थित था, पर पहुंची.

सीढि़यां चढ़ कर पुलिस जब उस फ्लैट पर पहुंची तो ताला लगा था. पुलिस ताला तोड़ कर किचन में दाखिल हुई. वहां सचमुच एक बैग रखा हुआ मिला.

पुलिस ने जब बैग को खोला तो उस में एक महिला की लाश मिली. लाश देखते ही पुलिस हैरान रह गई. बैग में बंद होने के कारण लाश से दुर्गंध आ रही थी. बड़ोदरा पुलिस ने तत्काल गांधीनगर पुलिस को बताया कि बैग में 27-28 साल की एक महिला की लाश है.

पुलिस के सामने प्रश्न था कि बैग में बंद महिला कौन थी? उस की हत्या कब और क्यों की गई थी? लाश की भनक सचिन को कैसे लगी?

अब पुलिस ने इस हत्या के बारे में सचिन से कड़ाई से पूछताछ की. आखिर पुलिस ने सचिन से सच उगलवा ही लिया. सचिन ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. जो कहानी सामने आई, उसे सुन कर पुलिस भी हैरान रह गई. इस घटना का 24 घंटे में ही पुलिस ने कड़ी मेहनत कर परदाफाश कर दिया था.

गांधीनगर के एसपी मयूर चावड़ा ने प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि मृतका सचिन की प्रेमिका थी. दोनों लिवइन रिलेशन में रह रहे थे. उन का एक बच्चा शिवांश था.

प्रेमिका शादी करने के लिए सचिन पर जोर दे रही थी. उस से व बच्चे से छुटकारा पाने के लिए सचिन ने षडयंत्र रच इस कृत्य को अंजाम दिया था.

लेकिन तीसरी आंख से वह अपने गुनाह को छिपा नहीं सका. आखिर पुलिस की 7 टीमों ने दिनरात मेहनत कर बेरहम गुनहगार को गिरफ्तार कर लिया था.

पत्नी अनुराधा को अपने पति सचिन के गुमनाम रिश्ते के बारे में कुछ पता नहीं था. उसे नहीं मालूम था कि पति की प्रेमिका व उस से बेटा भी है. यह बात तो उसे घटनाक्रम के सामने आने के बाद पता चली.

सचिन के राज से पत्नी थी अनभिज्ञ

सचिन 3 साल से इस राज को अपनी पत्नी से छिपाए हुए था. उस ने अपनी पत्नी को भी इस बात की भनक तक नहीं लगने दी कि उस की कोई प्रेमिका और उस से पैदा कोई बच्चा भी है.प्रेमिका की हत्या करने और जिगर के टुकड़े को रात के अंधेरे में सड़क पर छोड़ने की जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी—

4 साल पहले सचिन दीक्षित के मातापिता ने उस की शादी अनुराधा के साथ कर दी थी. इस समय अनुराधा के 3 साल का एक बेटा है. सचिन गांधीनगर की एक कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत था.

वर्ष 2018 में अहमदाबाद के एक शोरूम में उस की मुलाकात हिना पेथाणी उर्फ मेहंदी नाम की युवती से हुई. हिना मूलरूप से जूनागढ़ जिले के केशोद की रहने वाली थी. उस की मां की मौत हो चुकी थी. मां की मौत के बाद पिता महबूब पेथाणी ने दूसरी शादी कर ली. इस के बाद हिना अपने मौसामौसी के साथ अहमदाबाद में आ कर उन के साथ रहने लगी थी.

हिना उसी शोरूम में काम करती थी. धीरेधीरे दोनों के बीच मुलाकातें बढ़ने लगीं. इन मुलाकातों के चलते दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे. दोनों दिलोजान से एकदूसरे को प्यार करने लगे. इस के बाद साल 2019 में दोनों लिवइन रिलेशन में रहने लगे.

लिवइन रिलेशन के दौरान साल 2020 में शिवांश पैदा हुआ, जो घटना के समय लगभग 10 महीने का था. घटना से 2 महीने पहले सचिन का बड़ोदरा ट्रांसफर हो गया. तब सचिन ने दर्शनम ओएसिस सोसायटी में एक फ्लैट किराए पर ले लिया.

वह इसी फ्लैट में हिना और बेटे शिवांश के साथ रहने लगा. सचिन सप्ताह में 5 दिन बच्चे व प्रेमिका हिना के साथ तथा 2 दिन शनिवार और रविवार को गांधीनगर में मातापिता व पत्नी अनुराधा के साथ रहता था.

प्रेमिका हिना डाल रही थी शादी का दबाव

पिछले 3 साल से सब कुछ ठीक चल रहा था. पिछले कुछ दिनों से हिना शादी करने के लिए सचिन पर दबाव डाल रही थी. सचिन कोई न कोई बहाना बना कर टालमटोल कर देता था.

8 अक्तूबर की दोपहर सचिन ने हिना को बताया कि वह एक सप्ताह के लिए अपने घर गांधीनगर मातापिता के पास जा रहा है. वहां से सभी लोग दशहरा मनाने के लिए उत्तर प्रदेश जाएंगे.

यह बात हिना को नागवार गुजरी. उस ने सचिन को दशहरा मनाने के लिए जाने से मना करते हुए अपने साथ ही रहने की बात कही. उस ने सचिन से कहा, ‘‘हम लोग लिवइन रिलेशन में कब तक रहेंगे? अब तो हमारे एक बेटा भी हो चुका है. तुम जल्द ही पत्नी अनुराधा को तलाक दे दो, ताकि हम जल्द शादी कर सकें.’’

इस बात को ले कर दोनों के बीच सुबहसुबह झगड़ा हुआ. शाम के समय भी दोनों में फिर से झगड़ा हुआ. हिना शादी के लिए सचिन पर दबाव डाल रही थी. वहीं सचिन उस से शादी करने से आनाकानी करने के साथ ही परिवार के साथ दशहरा मनाने के लिए जाने की बात कह रहा था.

बात बढ़ गई. दोनों के बीच कहासुनी, फिर हाथापाई हुई. गुस्से में सचिन ने हिना का गला दबा कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद घर में ही रखे एक सूटकेस में उस की लाश ठूंस कर भर दी और सूटकेस को किचन में रख दिया.

उस समय रात घिर आई थी. सचिन ने घर को ताला लगाया और बेटे शिवांश को ले कर अपनी सैंट्रो कार से निकल गया. सचिन सीधे गांधीनगर पहुंचा. प्रेमिका की हत्या कर परिवार के साथ सामान्य हो गया सचिन.

वह गांधीनगर के पीथापुर की स्वामिनारायण गौशाला को जानता था, क्योंकि वह गांधीनगर में रहने के दौरान इसी गौशाला से दूध, घी लेने जाता था. सचिन रात में उसी गौशाला के पास पहुंचा. उस समय रात होने से सड़क सुनसान थी.

गौशाला से कुछ दूरी पर उस ने अपनी कार खड़ी कर दी. फिर मासूम बेटे शिवांश को गोद में ले कर वह दबेपांव गौशाला के गेट पर पहुंचा. उस समय रात के 9 बज कर 20 मिनट का समय था. उस ने शिवांश को गौशाला के गेट के सामने सड़क पर बैठाया और तेजी से उलटे पांव अपनी कार में बैठ कर रफूचक्कर हो गया.

सचिन अपनी प्रेमिका की हत्या करने और अपने बच्चे को लावारिस छोड़ने के बाद अपने घर पहुंचा और पत्नी, बच्चे व मातापिता के साथ सैंट्रो कार से दशहरा मनाने के लिए उत्तर प्रदेश के लिए निकल पड़ा.

सचिन अपने परिवार में ऐसा व्यवहार कर रहा था कि कुछ हुआ ही नहीं है. उस ने अपनी पत्नी व मातापिता पर भी कुछ जाहिर नहीं होने दिया.

जानकारी होने पर गांधीनगर पुलिस ने कोटा में सचिन को गिरफ्तार कर लिया. संतान प्राप्ति के लिए लोग देवीदेवताओं की पूजा करते हैं. लेकिन एक पत्थरदिल पिता की जो शर्मनाक करतूत सामने आई, उस से मजबूत दिल वाले भी कांप गए.

उस ने पहले उस की मां का कत्ल किया और फिर अपने ही मासूम बेटे से छुटकारा पाने के लिए रात के अंधेरे में सुनसान सड़क पर छोड़ दिया. आवारा कुत्ते या अन्य कोई हिंसक पशु उसे कोई नुकसान पहुंचाता, उस से पहले ही वह सुरक्षित हाथों में पहुंच गया.

जांच के दौरान सचिन के पड़ोसियों ने बताया कि सचिन के घर का दरवाजा केवल कचरा वाले के लिए खुलता था. सभी उन्हें पतिपत्नी समझते थे. शिवांश का जन्म 10 दिसंबर, 2020 को अहमदाबाद के बोपल स्थित एक अस्पताल में हुआ था.

मृतका के पिता महबूब पेथानी सोमवार 11 अक्तूबर को एसएसजी हौस्पिटल में बेटी का शव लेने पहुंचे.

सचिन के खिलाफ बड़ोदरा के बापोद थाने में हत्या की रिपोर्ट गांधीनगर के इंसपेक्टर की शिकायत पर दर्ज की गई. जिस की जांच बापोद के थानाप्रभारी यू.जे. जोशी कर रहे हैं. जबकि सचिन पर पहले ही अपहरण भादंवि की धारा 363 और बच्चे को छोड़ने की धारा 317 के तहत मामला दर्ज है.

गांधीनगर पुलिस ने आरोपी सचिन को 11 अक्तूबर को न्यायालय के समक्ष पेश किया. जहां से उसे 14 अक्तूबर तक पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया.

गांधीनगर के पुलिस उपाधीक्षक एम.के. राणा के अनुसार सोमवार को अदालत में पेश किए जाने से पहले फोरैंसिक साइंस लैबोरेटरी के विशेषज्ञों ने आरोपी सचिन के फिंगरप्रिंट व नाखूनों के नमूने के साथ ही डीएनए का नमूना लिए, ताकि पता लगाया जा सके कि वह बच्चे का पिता है या नहीं. इस के अलावा अन्य फोरैंसिक एविडेंस जुटाने का कार्य किया गया. शिवांश को फिलहाल शिशुगृह में रखा गया है.

10 दिसंबर, 2021 को शिशुगृह में शिवांश का पहला जन्मदिन मनाया गया. इस अवसर पर बच्चे से केक भी कटवाया गया.

सचिन ने अपना हंसताखेलता परिवार उजाड़ने के साथ ही एक मासूम की जिंदगी दांव पर लगा दी. बच्चे से मां की गोद उस का आंचल और बचपन छीन लिया. उस मासूम को इस की कीमत ताउम्र चुकानी पड़ेगी.

इंसानियत को शर्मसार करने और 2 नावों में सवार होने पर सचिन को आखिर डूबना तो था ही. अब अपने कृत्यों के लिए उसे सलाखों के पीछे जिंदगी बितानी होगी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चोट : नेकलेस के चक्कर में रीना की मौत

योगेन नपेतुले कदमों से आगे बढ़ते हुए साफ महसूस कर रहा था कि आगे चल रही महिला उस से डर रही है. उस अंधेरे कौरीडोर में वह बारबार पीछे मुड़ कर देख रही थी. उस की आंखों में एक अंजाना सा डर था और वह बेहद घबराई हुई लग रही थी. शायद उसे लग रहा था कि वह उस का पीछा कर रहा है. बिजनैस सेंटर में ज्यादातर औफिस थे, जिन में अब तक काफी बंद हो चुके थे. इस बिजनैस सेंटर में खास बात यह थी कि इस के औफिस में किसी भी समय आयाजाया जा सकता था. इसीलिए सेंटर के गेट पर एक रजिस्टर रख दिया गया था, जिस में आनेजाने वालों को अपना नामपता और समय लिखना होता था.

महिला रजिस्टर में अपना नामपता और समय लिख कर तेजी से आगे बढ़ गई. उस के बाद योगेन भी नामपता और समय लिख कर महिला के साथ लिफ्ट में सवार हो गया था. लिफ्ट में महिला ने एक बार भी नजर उठा कर उस की ओर नहीं देखा.

शायद वह अपने खौफ पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी. योगेन ने लिफ्ट औपरेटर से कहा, ‘‘सातवीं मंजिल पर जाना है.’’

इस पर महिला ने चौंक कर उस की ओर देखा, क्योंकि उसे भी उसी मंजिल पर जाना था. यह सोच कर उस की सांस रुकने लगी कि यह आदमी क्यों उस के पीछे लगा है?

चंद पलों में ही सातवीं मंजिल आ गई. लिफ्ट का दरवाजा खुलते ही महिला तेजी से निकली और उसी रफ्तार से आगे बढ़ गई. उस की ऊंची ऐड़ी के सैंडल फर्श पर ठकठक बज रहे थे. तेजी से चलते हुए उस ने पलट कर देखा तो गिरतेगिरते बची.

योगेन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उस महिला को कैसे समझाए कि वह उस का पीछा नहीं कर रहा, इसलिए उसे उस से डरने की कोई जरूरत नहीं है.

आगे बढ़ते हुए योगेन दोनों ओर बने धुंधले शीशे वाले औफिसों पर नजर डालता जा रहा था. अंधेरा होने की वजह से दरवाजों पर लिखे नंबर ठीक से दिखाई नहीं दे रहे थे. कौरीडोर खत्म होते ही महिला बाईं ओर मुड़ गई. वह भी उसी ओर मुड़ा तो महिला और ज्यादा सहम गई.

वह और तेजी से आगे बढ़ कर एक औफिस के आगे रुक गई. उस की लाइट जल रही थी. दरवाजे के हैंडल पर हाथ रख कर उस ने योगेन की ओर देखा. लेकिन वह उस के करीब से आगे बढ़ गया.

आगे बढ़ते हुए योगेन ने दरवाजे पर नजर डाली थी. उस पर डा. साहिल परीचा के नाम का बोर्ड लगा था. उस के आगे बढ़ जाने से महिला हैरान तो हुई ही, उसे यकीन भी हो गया कि वह उस का पीछा नहीं कर रहा था.

योगेन अंधेरे में डूबे दरवाजों को पार करते हुए आगे बढ़ता रहा. उस कौरीडोर में आखिरी दरवाजे से रोशनी आ रही थी. आगे बढ़ते हुए उस ने अपनी दोनों जेबें थपथपाई. एक जेब में पिस्तौल था, जिसे इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ी थी. दूसरी जेब में 50 लाख रुपए की कीमत का बहुमूल्य हीरे का नेकलैस मखमल की एक डिब्बी में रखा था. जिसे लेने से पहले योगेन ने अच्छी तरह चैक किया था. वह वही नेकलैस पहुंचाने यहां आया था.

दरवाजा खोलने से पहले योगेन ने पलट कर देखा तो वह महिला अभी तक दरवाजे पर खड़ी उसी को देख रही थी. योगेन ने उसे घूरा तो वह हड़बड़ा कर जल्दी से अंदर चली गई.

योगेन ने एक बार फिर खाली कौरीडोर को देखा और दरवाजा खोल कर अंदर चला गया. सामने रिसैप्शन में बैठी लड़की उसे देख कर मुसकराते हुए उठी और उस के गले लग गई. योगेन कुछ कहता, उस के पहले ही वह बोली, ‘‘तुम एकदम सही समय साढ़े 8 बजे आए हो डियर. उसे साथ ले आए हो न?’’

‘‘हां, ले आया हूं.’’ योगेन ने जेब पर हाथ फेरते हुए कहा.

‘‘कैसा है, क्या बहुत खूबसूरत है?’’ लड़की ने बेचैनी से पूछा.

योगेन ने लड़की का हाथ पकड़ कर उस के बाएं हाथ की हीरे की अंगूठी देखते हुए कहा, ‘‘रीना, नेकलैस के सारे हीरे इस से बड़े और काफी कीमती हैं.’’

‘‘योगेन फिर कभी ऐसा मत कहना. मेरे लिए यह अंगूठी दुनिया की सब से कीमती चीज है. जानते हो क्यों? क्योंकि इसे तुम ने दिया है. यह तुम्हारे प्यार की निशानी है.’’ रीना योगेन की आंखों में झांकते हुए प्यार से कहा.

रीना की इस बात पर योगेन मुसकराया.

रीना ने अपने बैग से टिशू पेपर निकालते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे गाल पर मेरी लिपस्टिक का निशान लग गया है…’’ रीना इतना ही कह पाई थी कि उस की आंखें हैरानी से फैल गईं और आगे की बात मुंह में ही रह गई.

रीना की हालत से ही योगेन अलर्ट हो गया. वह समझ गया कि उस के पीछे जरूर कोई मौजूद है. उस ने मुड़ने की कोशिश की कि तभी उस के सिर के पिछले हिस्से पर कोई भारी चीज लगी और वह रीना की बांहों में गिर कर बेहोश हो गया.

जब उसे होश आया तो उसे लगा कि वह किसी मुलायम चीज पर लेटा है. सिर के पिछले हिस्से में तेज दर्द हो रहा था. उस के होंठों से कराह निकली. आंखें खोलने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा.

उसे लगा जैसे उस की आंखों पर भारी बोझ रखा है. फिर भी उस ने हिम्मत कर के आंखें खोल दीं. लेकिन तेज रोशनी से उस की आंखें बंद हो गईं. उस के कानों में कुछ आवाजें पड़ रही थीं. कोई कह रहा था, ‘‘ओह गाड, यह क्या हुआ?’’

‘‘पता नहीं, मैं ने इसे इसी तरह पड़ा पाया था.’’ किसी ने जवाब दिया.

‘‘अरे इसे होश आ रहा है.’’ किसी ने कहा.

इस के बाद 2-3 लोगों ने मिल कर योगेन को उठाया तो उस के हलक से कराह निकल गई.

‘‘आराम से, शायद यह जख्मी है. शायद इसे दिमागी चोट आई है. रुको डा. परीचा के औफिस में लाइट जल रही है. मैं उन्हें बुला कर लाता हूं.’’ किसी ने भारी आवाज में कहा.

‘‘ठीक है, डाक्टर को जल्दी ले कर आओ.’’ किसी अन्य ने कहा.

अब तक योगेन को पूरी तरह से होश आ गया था. कोई धीरेधीरे उस के शरीर को टटोल रहा था. शायद चोट तलाश रहा था. जैसे ही उस का हाथ योगेन के सिर के पीछे पहुंचा, उसके मुंह से कराह निकल गई. उस का शरीर कांप उठा.

‘‘इस का मतलब सिर के पिछले हिस्से में काफी गहरी चोट लगी है. इसे उठा कर सोफे पर लिटाओ, उस के बाद देखता हूं.’’

योगेन को उठा कर मुलायम और आरामदेह सोफे पर लिटा दिया गया. इस के बाद कोई उस के जख्म की जांच करने लगा तो उसे तकलीफ हुई और वह दोबारा बेहोश हो गया.

योगेन को दोबारा होश आया तो उस का दर्द काफी कम हो चुका था. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे वह नींद से जागा हो. किसी की कोमल अंगुलियों ने उस के सिर को छुआ तो उस ने आंखें खोल दीं. उस की आंखों के सामने उसी औरत का चेहरा था, जो कौरीडोर में उस से डर रही थी. लेकिन अब डर की जगह उस के चेहरे पर मुसकराहट थी.

उस ने हमदर्दी से पूछा, ‘‘अब तुम कैसा फील कर रहे हो?’’

‘‘ठीक हूं.’’ योगेन ने मुश्किल से जवाब दिया.

‘‘मुझे पहचाना मैं लिलि… लिलि पराशर. मैं वही हूं, जो तुम्हारे आगेआगे बिजनैस सेंटर में आई थी. तुम मेरे पीछे थे.’’ लिलि ने बेहद नरमी से कहा.

‘‘लेकिन मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा था.’’

‘‘तुम्हें याद है, मैं डा. परीचा के औफिस में गई थी?’’ लिलि ने पूछा.

योगेन ने ‘हां’ में सिर हिला दिया.

‘‘तुम से मेरी एक रिक्वैस्ट है. अगर तुम ने मेरी बात मान ली तो मुझ पर एक बड़ा एहसान करोगे.’’ लिलि ने कहा.

‘‘इस की वजह?’’ योगेन ने पूछा.

‘‘दरअसल, मेरे पति अतुल पराशर बहुत ही शक्की स्वभाव के हैं. मैं और डा. परीचा बहुत अच्छे दोस्त हैं. शादी के पहले से हम एकदूसरे को जानते हैं. अतुल उन से जलता है, इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम यह बात भूल जाओ कि मैं डाक्टर के औफिस में गई थी. इस समय तुम मेरे पति के ही औफिस में हो.’’

योगेन चुपचाप उसे देखता रहा. लिलि ने आगे कहा, ‘‘मेरी बात मानोगे न? बाहर पुलिस आ चुकी है. कहीं ऐसा न हो कि तुम कह दो कि मैं डाक्टर के पास गई थी.’’

‘‘पुलिस… पुलिस क्यों आई है?’’ यह कह योगेन उठा और दरवाजे की ओर बढ़ा. लिलि ने उसे रोकना चाहा, लेकिन वह रुका नहीं. उसे चक्कर आ गया तो उस ने दीवार का सहारा ले कर दरवाजा खोला. दूसरे कमरे में काफी लोग जमा थे. फर्श पर रीना चित लेटी थी. उस की आंखें खुली थीं, चेहरा सफेद पड़ गया था. उस के सीने में चमकदार चीज घुसी थी. वह जोर से चीखा, ‘‘रीना…’’

इसी के साथ वह लड़खड़ा कर गिरने लगा तो 2 लोगों ने उसे संभाल कर सोफे पर लिटा दिया. थोड़ी देर बाद एक स्मार्ट सा आदमी उस के पास आ कर बोला, ‘‘मैं इंसपेक्टर पटेल…क्या तुम इस लड़की को जानते हो?’’

‘‘जी, रीना मेरी मंगेतर थी.’’ उस ने उदासी से कहा.

‘‘जी, मुझे अफसोस है. इस लड़की का कातिल यहीं मौजूद है. वह कौन है? हम पता करने की कोशिश कर रहे हैं.’’ पटेल ने हमदर्दी से कहा, ‘‘मैं उसे जल्दी ही पकड़ लूंगा.’’

योगेन चुपचाप भरी आंखों से पटेल को देखता रहा. इंसपेक्टर पटेल ने पूछा, ‘‘तुम मि. अतुल पराशर को हीरो का नेकलैस डिलीवर करने आए थे न?’’

यह सुन कर योगेन का हाथ जेब पर गया. जेब में न नेकलैस था, न पिस्तौल. उस ने कहा, ‘‘सर, नेकलैस की डिबिया गायब है.’’

‘‘मुझे पता है. मैं तुम्हारी तलाशी ले चुका हूं. तुम्हारी पिस्तौल मेरे पास है. तुम पूरी बात मुझे बताओ.’’ पटेल ने कहा.

योगेन ने शुरू से अंत तक पूरी बात बता दी. उस के बाद पटेल ने कहा, ‘‘तुम्हारे और मृतका लड़की के अलावा बाहर के कमरे में 4 लोग मौजूद हैं. वे चारों इसी फ्लोर पर थे. इन में से किसी ने तुम्हारे ऊपर हमला कर के तुम्हारी मंगेतर का कत्ल किया और तुम्हारी जेब से वह नेकलैस लिया.’’

‘‘क्या, सचमुच कातिल और चोर बाहर मौजूद हैं?’’ योगेन ने पूछा.

‘‘हां, क्योंकि इन लोगों के अलावा यहां कोई और नहीं था. लिफ्ट से कोई आया नहीं, सीढि़यों वाले दरवाजे में ताला बंद था.’’ पटेल ने बताया.

‘‘वे 4 लोग कौन हैं?’’ योगेन ने पूछा.

‘‘मि. अतुल, उन की बीवी लिलि, डा. परीचा और एक इंश्योरैंस एजेंट प्रेमप्रकाश.’’

‘‘आप ने उन लोगों से कुछ पता किया?’’

‘‘हम ने सभी की अच्छी तरह तलाशी ले ली है. डा. परीचा और अतुल के औफिसों की भी अच्छी तरह तलाशी ले ली गई है. लेकिन नेकलैस नहीं मिला. कोई सुराग भी नहीं मिल रहा है.’’ पटेल ने कहा.

‘‘हो सकता है, किसी तरह नेकलैस बाहर पहुंचा दिया गया हो?’’ योगेन ने कहा.

‘‘सवाल ही नहीं उठता. हम ने लगभग सभी दरवाजे लौक करवा दिए हैं. सारे रास्ते बंद करा दिए हैं. सब से जरूरी है कातिल को पकड़ना. नेकलैस को बाद में भी ढूंढ़ लेंगे.’’

‘‘रीना को किस ने और कैसे मारा?’’ योगेन ने रुंधे गले से पूछा.

‘‘किसी ने लिफाफे खोलने वाली छुरी, जो उस की मेज पर रखी रहती थी, उसी को उस के सीने में घोंप कर मार दिया है. तुम्हारे सिर पर पीछे से एक पाइप से वार किया गया था, जिस पर कपड़ा लपेटा हुआ था.’’

‘‘अब आप क्या करेंगे?’’ उस ने पूछा.

‘‘मैं तुम्हारे सामने उन चारों को बुला कर पूछताछ करूंगा. तुम सारी बातें सुनते रहना, शायद उस में काम की कोई बात निकल आए.’’ इंसपेक्टर पटेल ने कहा.

इस के बाद उन्होंने लिलि और अतुल को बुलवाया. लिलि ने सवालिया नजरों से योगेन की ओर देखा तो योगेन ने उसे नजरंदाज कर के उस के पति की ओर देखा. वह एक छोटे कद का भारीभरकम आम सा आदमी था, जबकि लिलि काफी खूबसूरत थी. अतुल ने आते ही ऐतराज करते हुए कहा, ‘‘मैं पुलिस का हर तरह से सहयोग कर रहा हूं, फिर भी मुजरिमों की तरह मेरी तलाशी ली जा रही है. मेरी बीवी को भी पूछताछ में शामिल किया गया है.’’

पटेल ने उस के ऐतराज पर ध्यान दिए बगैर योगेन का उस से परिचय कराया. अतुल ने हमदर्दी से कहा, ‘‘तो तुम्हीं से रीना की शादी होने वाली थी?’’

योगेन ने ‘हां’ में सिर हिलाया.

‘‘उस की मौत का मुझे बहुत अफसोस है. रीना अकसर तुम्हारा जिक्र किया करती थी. उसी के कहने पर मैं ने तुम्हारी फर्म की नेकलैस का और्डर दिया था. काश, मैं ऐसा न करता.’’ अफसोस जाहिर करते हुए अतुल ने कहा.

‘‘इस का मतलब तुम ने रीना की सिफारिश पर नेकलैस का और्डर दिया था?’’ पटेल ने कहा.

‘‘जी, मेरे और्डर पर इस लड़के को फायदा होता. हालांकि यह उस फर्म का सेल्समैन नहीं है, फिर भी रीना के कहने पर मैं ने उस फर्म से संपर्क कर और्डर देते हुए कहा था कि वह नेकलैस योगेन के जरिए मुझे भिजवा दिया जाए, ताकि उसे फायदा हो जाए.’’

‘‘मि. अतुल, सब से पहले तुम ने रीना और योगेन को देखा था?’’ पटेल ने पूछा.

‘‘मैं अपने औफिस में बैठा था. रिसेप्शन पर मुझे शोर सुनाई दिया तो मैं ने घंटी बजाई कि रीना को बुला कर इस शोर के बारे में पता करूं. लेकिन रीना की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो मैं बाहर निकला. तब ये दोनों मुझे फर्श पर पड़े मिले. रीना के सीने में लिफाफे खोलने वाली छूरी घुसी हुई थी और यह योगेन बेहोश पड़ा था.’’

‘‘फिर…?’’

‘‘मैं मामला समझ ही रहा था कि प्रेमप्रकाश अंदर आए. मैं ने उन से डा. परीचा को बुलाने को कहा. इस के बाद पुलिस को फोन किया.’’

‘‘मिसेज अतुल पराशर मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम अपने पति के औफिस में आने से पहले डा. परीचा के औफिस में क्यों गई थीं? और तुम ने योगेन से यह क्यों कहा कि वह इस बात का किसी से जिक्र न करे?’’

लिलि ने गुस्से से योगेन की ओर देखा. उस के बाद बोली, ‘‘इंसपेक्टर योगेन या तो ख्वाबों की दुनिया में रहता है या बहुत बड़ा झूठा है.’’

‘‘ठीक है, हम डा. परीचा से पता कर लेते हैं, लेकिन उस से पहले प्रेमप्रकाश से बात करूंगा. वहीं डा. परीचा को बुलाने गया था. अगर तुम वहां थीं तो उस ने तुम्हें जरूर देखा होगा?’’ पटेल ने रूखेपन से कहा.

‘‘जरूरजरूर, अगर सच में मैं डा. परीचा के पास थी तो प्रेमप्रकाश जरूर बता देगा.’’ लिलि ने कहा.

इस के बाद उस ने अतुल की ओर देखा, जो कभी पटेल को देख रहा था और कभी लिलि को. उस के चेहरे पर उलझन थी. लिलि समझ गई थी कि योगेन ने ही इंसपेक्टर पटेल को यह बताया होगा.

‘‘इंसपेक्टर, आप मुझ से सवाल पर सवाल किए जा रहे हैं और इस आदमी से कुछ नहीं पूछ रहे हैं, जिस के गाल पर अभी तक लिपस्टिक का निशान है.’’ लिलि ने कहा.

‘‘तुम चुपचाप आराम से बैठो. यह पुलिस की जांच है, कोई मजाक नहीं. बेकार की बातें करने के बजाय यह बताओ कि तुम डाक्टर के औफिस में क्यों गई थी?’’ इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

‘‘तुम्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होना चाहिए.’’ लिलि ने गुस्से में कहा.

इस बात पर उस का पति अतुल गुस्से में बोला, ‘‘पर मुझे मतलब है लिलि. मुझे बताओ कि तुम डा. परीचा के औफिस में क्यों गई थीं?’’

‘‘अतुल, तुम क्यों पागल हो रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हारा पति हूं. मेरा पूरा हक है यह जानने का कि तुम डाक्टर के पास क्यों गई थीं? क्या मैं बेवकूफ हूं कि इतनी बड़ी रकम खर्च कर के तुम्हारे लिए हीरों का नेकलैस खरीद रहा था? मेरी यही मंशा थी कि तुम डाक्टर का खयाल तक न करो, पूरी तरह मेरी वफादार बन जाओ. रीना ने ही मुझ से कहा था कि मैं वह हीरों का नेकलैस इस के मंगेतर योगेन के जरिए खरीदूं, ताकि उस का कुछ भला हो जाए. उसे कमीशन मिल सके. यह इतना कीमती नेकलैस मैं ने तुम्हारे लिए ही खरीदा था और इस के बदले मैं तुम्हारी वफा चाहता था, लेकिन मुझे खुशी है कि वह नेकलैस चोरी हो गया. अच्छा हुआ जो तुम जैसी बेवफा औरत को नहीं मिला. वैसे भी मैं ने कौन सी अभी उस की कीमत अदा की है. अच्छा हुआ कि तुम्हारे चेहरे से नकाब उतर गया. तुम्हारी असली सूरत सामने आ गई. शक तो मुझे पहले भी था, अब तो इस का सबूत भी मिल गया.’’

‘‘जहन्नुम में जाओ तुम और तुम्हारा नेकलैस. मामूली सी बात का बतंगड़ बना दिया सब ने.’’ लिलि गुस्से से बोली.

‘‘तुम दोनों लड़नाझगड़ना बंद करो. यह तुम्हारा आपस का मामला है. घर जा कर सुलझाना. यहां जांच हो रही है, उस में अड़ंगे मत डालो.’’ इंसपेक्टर पटेल ने कहा.

इंसपेक्टर पटेल ने डा. परीचा और प्रेम प्रकाश को अंदर बुलाया. डा. परीचा सेहतमंद और काफी स्मार्ट था. प्रेमप्रकाश लंबा और स्लिम था. वह इंश्योरैंस एजेंट था.

‘‘प्रेमप्रकाश जब तुम डाक्टर को बुलाने उस के औफिस में गए थे तो वह अकेला था या उस के साथ कोई और था?’’ इंसपेक्टर ने पहला सवाल किया.

‘‘मैं सिर्फ बाहरी कमरे तक ही गया था. वह वहां अकेला ही था. अंदर के कमरे में कोई रहा हो तो मुझे मालूम नहीं.’’ प्रेमप्रकाश ने कहा.

‘‘तुम क्या कहते हो डा. परीचा?’’ पटेल ने डा. परीचा से पूछा.

‘‘मैं अकेला था.’’ डाक्टर धीरे से बोला.

‘‘लिलि पराशर तुम्हारे साथ नहीं थीं?’’

उस ने इनकार में सिर हिला दिया.

‘‘पर लिलि ने तो मान लिया है कि वह तुम्हारे साथ थी.’’ इंसपेक्टर पटेल ने कहा.

पर डाक्टर इनकार करता रहा.

‘‘डाक्टर पुलिस के काम में उलझन मत पैदा करो. तुम्हें अंदाजा नहीं है कि तुम्हारा यह झूठ तुम्हें मुश्किल में डाल सकता है. लिलि और उस के पति ने मान लिया है कि वह तुम्हारे कमरे में थी. पर तुम लगातार इनकार कर रहे हो. आखिर कारण क्या है?’’

‘‘मि. अतुल एक शक्की आदमी है. मैं नहीं चाहता कि मेरे सच बोलने की वजह से लिलि के लिए कोई मुसीबत खड़ी हो. वह पागल आदमी उस का जीना मुश्किल कर देगा.’’ डा. परीचा ने कहा.

‘‘तुम और लिलि शादी के पहले से दोस्त हो?’’

पटेल ने अचानक प्रेमप्रकाश से सवाल किया, ‘‘तुम ने मि. अतुल को इस लड़की और योगेन को करीब खड़े देखा था, ये दोनों फर्श पर पड़े थे, तुम अपने औफिस से इस औफिस में क्यों आए थे?’’

‘‘मैं यहां शोर सुन कर वजह जानने आया था.’’

‘‘तुम्हें नेकलैस के बारे में मालूम था?’’ पटेल ने घूरते हुए पूछा.

‘‘जी, अतुल ने मुझ से ही उस कीमती नेकलैस का इंश्योरैंस करवाया था. मुझे यह भी पता था कि वह नेकलैस आज ही उन्हें मिलने वाला है.’’ प्रेमप्रकाश ने कहा.

‘‘उस नेकलैस के चोरी होने से तुम्हें तो नुकसान होगा?’’ पटेल ने पूछा.

‘‘मुझे तो नहीं, हां मेरी कंपनी को जरूर नुकसान होगा. इस के लिए पुलिस जांच की रिपोर्ट की जरूरत पड़ेगी.’’ प्रेमप्रकाश ने बताया.

‘‘क्या तुम रेस खेलते हो, घोड़ों पर रकम लगाते हो, यह बहुत महंगा शौक है?’’ पटेल ने पूछा.

‘‘तुम्हारा मतलब है नेकलैस मैं ने चुराया है?’’ प्रेमप्रकाश ने खीझ कर पूछा.

पटेल ने उसे जवाब देने के बजाय डाक्टर से पूछा, ‘‘तुम इतनी रात तक अपने औफिस में क्या कर रहे थे? लिलि की राह देख रहे थे क्या?’’

‘‘मुझे लिलि के आने के बारे में कुछ भी पता नहीं था. वह जिस वक्त मेरे पास आई, घबराई हुई थी. उस ने बताया कि कोई उस का पीछा कर रहा है. उस ने यह भी कहा कि वह आदमी उस के पति के औफिस में गया है. इस के बाद हम बातें करने लगे. तभी प्रेमप्रकाश आ गया. मैं ने लिलि को अंदर वाले कमरे में भेज दिया और अपना बैग ले कर उस के साथ यहां आ गया. लिलि को मुझे छिपाना नहीं चाहिए था.’’ डाक्टर ने कहा.

‘‘उस के बाद क्या हुआ?’’ पटेल ने पूछा.

‘‘जब मैं अतुल के औफिस में पहुंचा तो रीना मर चुकी थी. मगर यह लड़का जिंदा था. इस के सिर पर चोट आई थी. अगर चोट जरा भी गहरी होती तो यह मर भी सकता था.’’ डाक्टर ने कहा.

‘‘अच्छा, तुम दोनों जा सकते हो.’’ पटेल ने कहा.

‘‘क्या मैं भी जा सकता हूं?’’ योगेन ने पूछा.

इंसपेक्टर पटेल ने उसे भी इजाजत दे दी.

योगेन की चोट तकलीफ दे रही थी. सिर के पिछले हिस्से में दर्द था. उस की नजरों के सामने बारबार रीना की लाश आ रही थी. कैसी हंसतीमुसकराती लड़की मिनटों में मौत की गोद में समा गई. नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. रीना से मुलाकात का दृश्य उस की आंखों में घूम रहा था, कानों में उस की आवाज गूंज रही थी.

वह उन आवाजों के बारे में सोचने लगा, जो जरा होश में आने पर उस के कानों में पड़ी थी. अचानक एक आवाज उसे याद आई तो वह उछल पड़ा. उस ने उसी वक्त इंसपेक्टर पटेल को फोन किया. पटेल ने झुंझला कर कहा, ‘‘अभी तुम सो जाओ, सुबह बात करेंगे.’’

‘‘इंसपेक्टर साहब, सुबह तक बहुत देर हो जाएगी. सारा खेल खतम हो जाएगा. हमें अभी और इसी वक्त बिजनैस सेंटर चलना होगा. मुझे उम्मीद है कि नेकलैस भी बरामद कर लेंगे और कातिल को भी पकड़ लेंगे.’’

आधे घंटे बाद दोनों अतुल के औफिस में बैठे थे. इंसपेक्टर पटेल थोड़ा नाराज थे. योगेन जबरदस्ती उन्हें औफिस ले आया था. गार्ड से चाबी ले कर अतुल का औफिस खोल कर दोनों उस में बैठे थे.

‘‘मुझे रीना के कातिल का पता चला गया है.’’ योगेन ने कहा.

‘‘कौन है वह?’’ इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

‘‘यह बड़ी होशियारी से तैयार किया गया प्लान था. कातिल किसी का कत्ल नहीं करना चाहता था. उस ने पाइप में भी कपड़ा लपेट रखा था, ताकि अपने शिकार को बेहोश कर के नेकलैस उड़ा सके. न जाने क्यों उस ने लिफाफे खोलने वाली छुरी से रीना पर हमला कर दिया? शायद उसे अंदाजा नहीं था कि यह छुरी किसी को मार भी सकती है.’’

‘‘यह सब छोड़ो, तुम यह बताओ कि हम यहां क्यों आए हैं? रीना का कातिल कौन है?’’ इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

‘‘जिस वक्त रीना मेरी बांहों में थी, उसी वक्त उस ने चौंक कर मेरे पीछे देखा था. मतलब उस ने मुझ पर हमला करने वाले को देख लिया था. हमला करने वाला मुझे बेहोश कर के नेकलैस हासिल करना चाहता था. मगर रीना ने उसे देख लिया था, इसलिए हमला करने वाले को मजबूरन उस का कत्ल करना पड़ा.’’ योगेन ने कहा.

‘‘आखिर वह है कौन?’’ पटेल ने झुंझला कर पूछा.

‘‘इस के लिए आप को थोड़ा इंतजार करना होगा. सुबह होते ही कातिल आप की गिरफ्त में होगा.’’ योगेन ने जवाब में कहा.

दोनों बैठे इंतजार करते रहे. जैसे ही सुबह का उजाला फैला, योगेन ने उठ कर अतुल के औफिस के दरवाजे में हलकी सी झिरी कर दी और बाहर झांकने लगा. पटेल भी उसी के साथ खड़ा था. धीरेधीरे लोग आने लगे. सभी अपनेअपने औफिसों में जा रहे थे. कुछ देर बाद डा. परीचा नजर आया, वह भी अपने औफिस का दरवाजा खोल कर अंदर चला गया.

अतुल और प्रेमप्रकाश भी नजर आए. दोनों साथसाथ बातें करते आ रहे थे. प्रेमप्रकाश अपने औफिस में चला गया. जैसे ही अतुल ने अपने औफिस के दरवाजे के हैंडल पर हाथ रखा, योगेन ने दरवाजा खोल दिया.

योगेन को अंदर देख कर अतुल हैरान रह गया. कभी वह इंसपेक्टर पटेल को देखता तो कभी योगेन को. योगेन ने कहा, ‘‘अतुलजी अंदर आ जाइए. थोड़ी देर में आप को सब मालूम हो जाएगा.’’

उन दोनों को हैरानी से देखते हुए अतुल अंदर आ गया. फिर वह अंदर के कमरे में चला गया. योगेन झिरी से बाहर की तरफ देखता रहा. अचानक उस ने एकदम से दरवाजा खोल  कर कहा, ‘‘आइए पटेल साहब.’’

दोनों तेजी से दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. सामने ही मरदाना टौयलेट था. योगेन ने पटेल से चाबियों का गुच्छा मांगा, जो उस ने गार्ड से ले रखा था. उस में से एक चाबी ढूंढ़ कर टौयलेट में लगाई, दरवाजा खुल गया, सामने का सीन साफ नजर आने लगा. प्रेमप्रकाश फर्श पर झुका बेसिन के नीचे कुछ तलाश रहा था.

उन दोनों को देख कर वह सीधा खड़ा हो गया. योगेन ने उसे एक तरफ धकेल कर बेसिन के नीचे हाथ डाला तो अगले पल उस के हाथ में वह मखमली डिबिया थी, जिस में हीरों का नेकलैस था. यह वही डिबिया थी, जो रात योगेन अतुल पराशर को देने लाया था.

‘‘मिल गया न इंसपेक्टर साहब नेकलैस.’’ योगेन ने कहा.

इंसपेक्टर पटेल प्रेमप्रकाश को घूर रहे थे. उस का चेहरा पीला पड़ गया था. वह हकलाते हुए बोला, ‘‘मैं तो… बस अंदाजे से तलाश रहा था. इस से पहले कि मैं सफल होता, आप लोग आ गए. मैं तो…’’

‘‘प्रेमप्रकाश झूठ मत बोलो.’’ योगेन ने कहा.

‘‘मैं सच कह रहा हूं,’’ उस ने कहा.

‘‘बेकार की बकवास मत करो.’’ पटेल ने घुड़का.

‘‘तुम झूठे हो, पहले तुम ने मेरी मंगेतर रीना का खून किया, उस के बाद नकेलैस ले कर इस बेसिन के नीचे छिपा दिया.’’ योगेन ने कहा.

प्रेमप्रकाश घबरा गया. वह दोनों को देखता रहा. उस की जुबान बंद हो चुकी थी.

‘‘जब मैं नेकलैस ले कर अतुल के औफिस की तरफ जा रहा था, तब तक तुम अपने औफिस में अंधेरा किए खड़े थे और मेरी निगरानी कर रहे थे. जब मैं औफिस में रीना की बांहों में था तो तुम अंदर आए. रीना ने तुम्हें देख लिया. पहले तुम ने मुझ पर हमला किया, उस के बाद रीना को छुरी घोप कर मार दिया, क्योंकि वह तुम्हें देख चुकी थी.

मेरी बेहोशी का फायदा उठा कर तुम नेकलैस ले उड़े. नेकलैस तुम ने मरदाना टौयलेट में छिपा दिया. इस के बाद यहां आ कर ड्रामा करने लगे. तुम्हारी जुबान से निकले एक वाक्य ने तुम्हें फंसवा दिया. बाद में तुम्हारी भारी आवाज पहचान ली थी. जब मुझे थोड़ाथोड़ा होश आ रहा था, तब तुम ने कहा था, ‘पीछे देखो, शायद इस के दिमाग पर चोट आई है.’

‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि मेरे सिर के पीछे चोट लगी थी. हमलावर जा चुका था, हम दोनों फर्श पर पड़े थे. इस से यह साबित होता है कि चोट तुम ने ही मारी थी. इसलिए तुम इस के बारे में जानते थे.’’

योगेन ने सारी बात का खुलासा कर दिया. रीना की मौत का दुख उस की आंखों में छलक आया.

‘‘प्रेमप्रकाश, तुम्हारा खेल खत्म हो चुका हूं. मैं तुम्हें रीना के कत्ल और हीरों के नेकलैस की चोरी के इल्जाम में गिरफ्तार करता हूं.’’ इंसपेक्टर पटेल ने सख्ती से कहा.

प्रेमप्रकाश ने सिर झुका लिया. योगेन ने दरवाजा खोला और आंसू पोंछते हुए चला गया.

भाभी : वेदना के आगे छोटे सांत्वना के शब्द

अपनी सहेली के बेटे के विवाह में शामिल हो कर पटना से पुणे लौट रही थी कि रास्ते में बनारस में रहने वाली भाभी, चाची की बहू से मिलने का लोभ संवरण नहीं कर पाई. बचपन की कुछ यादों से वे इतनी जुड़ी थीं जो कि भुलाए नहीं भूल सकती. सो, बिना किसी पूर्वयोजना के, पूर्वसूचना के रास्ते में ही उतर गई. पटना में ट्रेन में बैठने के बाद ही भाभी से मिलने का मन बनाया था. घर का पता तो मुझे मालूम ही था, आखिर जन्म के बाद 19 साल मैं ने वहीं गुजारे थे. हमारा संयुक्त परिवार था. पिताजी की नौकरी के कारण बाद में हम दिल्ली आ गए थे. उस के बाद, इधरउधर से उन के बारे में सूचना मिलती रही, लेकिन मेरा कभी उन से मिलना नहीं हुआ था. आज 25 साल बाद उसी घर में जाते हुए अजीब सा लग रहा था, इतने सालों में भाभी में बहुत परिवर्तन आ गया होगा, पता नहीं हम एकदूसरे को पहचानेंगे भी या नहीं, यही सोच कर उन से मिलने की उत्सुकता बढ़ती जा  रही थी. अचानक पहुंच कर मैं उन को हैरान कर देना चाह रही थी.

स्टेशन से जब आटो ले कर घर की ओर चली तो बनारस का पूरा नक्शा ही बदला हुआ था. जो सड़कें उस जमाने में सूनी रहती थीं, उन में पैदल चलना तो संभव ही नहीं दिख रहा था. बड़ीबड़ी अट्टालिकाओं से शहर पटा पड़ा था. पहले जहां कारों की संख्या सीमित दिखाई पड़ती थी, अब उन की संख्या अनगिनत हो गई थी. घर को पहचानने में भी दिक्कत हुई. आसपास की खाली जमीन पर अस्पताल और मौल ने कब्जा कर रखा था. आखिर घूमतेघुमाते घर पहुंच ही गई.

घर के बाहर के नक्शे में कोई परिवर्तन नहीं था, इसलिए तुरंत पहचान गई. आगे क्या होगा, उस की अनुभूति से ही धड़कनें तेज होने लगीं. डोरबैल बजाई. दरवाजा खुला, सामने भाभी खड़ी थीं. बालों में बहुत सफेदी आ गई थी. लेकिन मुझे पहचानने में दिक्कत नहीं हुई. उन को देख कर मेरे चेहरे पर मुसकान तैर गई. लेकिन उन की प्रतिक्रिया से लग रहा था कि वे मुझे पहचानने की असफल कोशिश कर रही थीं. उन्हें अधिक समय दुविधा की स्थिति में न रख कर मैं ने कहा, ‘‘भाभी, मैं गीता.’’ थोड़ी देर वे सोच में पड़ गईं, फिर खुशी से बोलीं, ‘‘अरे, दीदी आप, अचानक कैसे? खबर क्यों नहीं की, मैं स्टेशन लेने आ जाती. कितने सालों बाद मिले हैं.’’

उन्होंने मुझे गले से लगा लिया और हाथ पकड़ कर घर के अंदर ले गईं. अंदर का नक्शा पूरी तरह से बदला हुआ था. चाचाचाची तो कब के कालकवलित हो गए थे. 2 ननदें थीं, उन का विवाह हो चुका था. भाभी की बेटी की भी शादी हो गई थी. एक बेटा था, जो औफिस गया हुआ था. मेरे बैठते ही वे चाय बना कर ले आईं. चाय पीतेपीते मैं ने उन को भरपूर नजरों से देखा, मक्खन की तरह गोरा चेहरा अपनी चिकनाई खो कर पाषाण जैसा कठोर और भावहीन हो गया था. पथराई हुई आंखें, जैसे उन की चमक को ग्रहण लगे वर्षों बीत चुके हों. सलवटें पड़ी हुई सूती सफेद साड़ी, जैसे कभी उस ने कलफ के दर्शन ही न किए हों. कुल मिला कर उन की स्थिति उस समय से बिलकुल विपरीत थी जब वे ब्याह कर इस घर में आई थीं.

मैं उन्हें देखने में इतनी खो गई थी कि उन की क्या प्रतिक्रिया होगी, इस का ध्यान ही नहीं रहा. उन की आवाज से चौंकी, ‘‘दीदी, किस सोच में पड़ गई हैं, पहले मुझे देखा नहीं है क्या? नहा कर थोड़ा आराम कर लीजिए, ताकि रास्ते की थकान उतर जाए. फिर जी भर के बातें करेंगे.’’ चाय खत्म हो गई थी, मैं झेंप कर उठी और कपड़े निकाल कर बाथरूम में घुस गई.

शादी और सफर की थकान से सच में बदन बिलकुल निढाल हो रहा था. लेट तो गई लेकिन आंखों में नींद के स्थान पर 25 साल पुराने अतीत के पन्ने एकएक कर के आंखों के सामने तैरने लगे…

मेरे चचेरे भाई का विवाह इन्हीं भाभी से हुआ था. चाचा की पहली पत्नी से मेरा इकलौता भाई हुआ था. वह अन्य दोनों सौतेली बहनों से भिन्न था. देखने और स्वभाव दोनों में उस का अपनी बहनों से अधिक मुझ से स्नेह था क्योंकि उस की सौतेली बहनें उस से सौतेला व्यवहार करती थीं. उस की मां के गुण उन में कूटकूट कर भरे थे. मेरी मां की भी उस की सगी मां से बहुत आत्मीयता थी, इसलिए वे उस को अपने बड़े बेटे का दरजा देती थीं. उस जमाने में अधिकतर जैसे ही लड़का व्यवसाय में लगा कि उस के विवाह के लिए रिश्ते आने लगते थे. भाई एक तो बहुत मनमोहक व्यक्तित्व का मालिक था, दूसरा उस ने चाचा के व्यवसाय को भी संभाल लिया था. इसलिए जब भाभी के परिवार की ओर से विवाह का प्रस्ताव आया तो चाचा मना नहीं कर पाए. उन दिनों घर के पुरुष ही लड़की देखने जाते थे, इसलिए भाई के साथ चाचा और मेरे पापा लड़की देखने गए. उन को सब ठीक लगा और भाई ने भी अपने चेहरे के हावभाव से हां की मुहर लगा दी तो वे नेग कर के, शगुन के फल, मिठाई और उपहारों से लदे घर लौटे तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. भाई जब हम से मिलने आया तो बहुत शरमा रहा था. हमारे पूछने पर कि कैसी हैं भाभी, तो उस के मुंह से निकल गया, ‘बहुत सुंदर है.’ उस के चेहरे की लजीली खुशी देखते ही बन रही थी.

देखते ही देखते विवाह का दिन भी आ गया. उन दिनों औरतें बरात में नहीं जाया करती थीं. हम बेसब्री से भाभी के आने की प्रतीक्षा करने लगे. आखिर इंतजार की घडि़यां समाप्त हुईं और लंबा घूंघट काढ़े भाभी भाई के पीछेपीछे आ गईं. चाची ने  उन्हें औरतों के झुंड के बीचोंबीच बैठा दिया.

मुंहदिखाई की रस्मअदायगी शुरू हो गई. पहली बार ही जब उन का घूंघट उठाया गया तो मैं उन का चेहरा देखने का मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी और जब मैं ने उन्हें देखा तो मैं देखती ही रह गई उस अद्भुत सौंदर्य की स्वामिनी को. मक्खन सा झक सफेद रंग, बेदाग और लावण्यपूर्ण चेहरा, आंखों में हजार सपने लिए सपनीली आंखें, चौड़ा माथा, कालेघने बालों का बड़ा सा जूड़ा तथा खुशी से उन का चेहरा और भी दपदपा रहा था.

वे कुल मिला कर किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थीं. सभी औरतें आपस में उन की सुंदरता की चर्चा करने लगीं. भाई विजयी मुसकान के साथ इधरउधर घूम रहा था. इस से पहले उसे कभी इतना खुश नहीं देखा था. उस को देख कर हम ने सोचा, मां तो जन्म देते ही दुनिया से विदा हो गई थीं, चलो कम से कम अपनी पत्नी का तो वह सुख देखेगा.

विवाह के समय भाभी मात्र 16 साल की थीं. मेरी हमउम्र. चाची को उन का रूप फूटी आंखों नहीं सुहाया क्योंकि अपनी बदसूरती को ले कर वे हमेशा कुंठित रहती थीं. अपना आक्रोश जबतब भाभी के क्रियाकलापों में मीनमेख निकाल कर शांत करती थीं. कभी कोई उन के रूप की प्रशंसा करता तो छूटते ही बोले बिना नहीं रहती थीं, ‘रूप के साथ थोड़े गुण भी तो होने चाहिए थे, किसी काम के योग्य नहीं है.’

दोनों ननदें भी कटाक्ष करने में नहीं चूकती थीं. बेचारी चुपचाप सब सुन लेती थीं. लेकिन उस की भरपाई भाई से हो जाती थी. हम भी मूकदर्शक बने सब देखते रहते थे.

कभीकभी भाभी मेरे व मां के पास आ कर अपना मन हलका कर लेती थीं. लेकिन मां भी असहाय थीं क्योंकि चाची के सामने बोलने की किसी की हिम्मत नहीं थी.

मैं मन ही मन सोचती, मेरी हमउम्र भाभी और मेरे जीवन में कितना अंतर है. शादी के बाद ऐसा जीवन जीने से तो कुंआरा रहना ही अच्छा है. मेरे पिता पढ़ेलिखे होने के कारण आधुनिक विचारधारा के थे. इतनी कम उम्र में मैं अपने विवाह की कल्पना नहीं कर सकती थी. भाभी के पिता के लिए लगता है, उन के रूप की सुरक्षा करना कठिन हो गया था, जो बेटी का विवाह कर के अपने कर्तव्यों से उन्होंने छुटकारा पा लिया. भाभी ने 8वीं की परीक्षा दी ही थी अभी. उन की सपनीली आंखों में आंसू भरे रहते थे अब, चेहरे की चमक भी फीकी पड़ गई थी.

विवाह को अभी 3 महीने भी नहीं बीते होंगे कि भाभी गर्भवती हो गईं. मेरी भोली भाभी, जो स्वयं एक बच्ची थीं, अचानक अपने मां बनने की खबर सुन कर हक्कीबक्की रह गईं और आंखों में आंसू उमड़ आए. अभी तो वे विवाह का अर्थ भी अच्छी तरह समझ नहीं पाई थीं. वे रिश्तों को ही पहचानने में लगी हुई थीं, मातृत्व का बोझ कैसे वहन करेंगी. लेकिन परिस्थितियां सबकुछ सिखा देती हैं. उन्होंने भी स्थिति से समझौता कर लिया. भाई पितृत्व के लिए मानसिक रूप से तैयार तो हो गया, लेकिन उस के चेहरे पर अपराधभावना साफ झलकती थी कि जागरूकता की कमी होने के कारण भाभी को इस स्थिति में लाने का दोषी वही है. मेरी मां कभीकभी भाभी से पूछ कर कि उन्हें क्या पसंद है, बना कर चुपचाप उन के कमरे में पहुंचा देती थीं. बाकी किसी को तो उन से कोई हमदर्दी न थी.

प्रसव का समय आ पहुंचा. भाभी ने चांद सी बेटी को जन्म दिया. नन्हीं परी को देख कर, वे अपना सारा दुखदर्द भूल गईं और मैं तो खुशी से नाचने लगी. लेकिन यह क्या, बाकी लोगों के चेहरों पर लड़की पैदा होने की खबर सुन कर मातम छा गया था. भाभी की ननदें और चाची सभी तो स्त्री हैं और उन की अपनी भी तो 2 बेटियां ही हैं, फिर ऐसा क्यों? मेरी समझ से परे की बात थी. लेकिन एक बात तो तय थी कि औरत ही औरत की दुश्मन होती है. मेरे जन्म पर तो मेरे पिताजी ने शहरभर में लड्डू बांटे थे. कितना अंतर था मेरे चाचा और पिताजी में. वे केवल एक साल ही तो छोटे थे उन से. एक ही मां से पैदा हुए दोनों. लेकिन पढ़ेलिखे होने के कारण दोनों की सोच में जमीनआसमान का अंतर था.

मातृत्व से गौरवान्वित हो कर भाभी और भी सुडौल व सुंदर दिखने लगी थीं. बेटी तो जैसे उन को मन बहलाने का खिलौना मिल गई थी. कई बार तो वे उसे खिलातेखिलाते गुनगुनाने लगती थीं. अब उन के ऊपर किसी के तानों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था. मां बनते ही औरत कितनी आत्मविश्वास और आत्मसम्मान से पूर्ण हो जाती है, उस का उदाहरण भाभी के रूप में मेरे सामने था. अब वे अपने प्रति गलत व्यवहार की प्रतिक्रियास्वरूप प्रतिरोध भी करने लगी थीं. इस में मेरे भाई का भी सहयोग था, जिस से हमें बहुत सुखद अनुभूति होती थी.

इसी तरह समय बीतने लगा और भाभी की बेटी 3 साल की हो गई तो फिर से उन के गर्भवती होने का पता चला और इस बार भाभी की प्रतिक्रिया पिछली बार से एकदम विपरीत थी. परिस्थितियों ने और समय ने उन को काफी परिपक्व बना दिया था.

गर्भ को 7 महीने बीत गए और अचानक हृदयविदारक सूचना मिली कि भाई की घर लौटते हुए सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई है. यह अनहोनी सुन कर सभी लोग स्तंभित रह गए. कोई भाभी को मनहूस बता रहा था तो कोई अजन्मे बच्चे को कोस रहा था कि पैदा होने से पहले ही बाप को खा गया. यह किसी ने नहीं सोचा कि पतिविहीन भाभी और बाप के बिना बच्चे की जिंदगी में कितना अंधेरा हो गया है. उन से किसी को सहानुभूति नहीं थी.

समाज का यह रूप देख कर मैं कांप उठी और सोच में पड़ गई कि यदि भाई कमउम्र लिखवा कर लाए हैं या किसी की गलती से दुर्घटना में वे मारे गए हैं तो इस में भाभी का क्या दोष? इस दोष से पुरुष जाति क्यों वंचित रहती है?

एकएक कर के उन के सारे सुहाग चिह्न धोपोंछ दिए गए. उन के सुंदर कोमल हाथ, जो हर समय मीनाकारी वाली चूडि़यों से सजे रहते थे, वे खाली कर दिए गए. उन्हें सफेद साड़ी पहनने को दी गई. भाभी के विवाह की कुछ साडि़यों की तो अभी तह भी नहीं खुल पाई थी. वे तो जैसे पत्थर सी बेजान हो गई थीं. और जड़वत सभी क्रियाकलापों को निशब्द देखती रहीं. वे स्वीकार ही नहीं कर पा रही थीं कि उन की दुनिया उजड़ चुकी थी.

एक भाई ही तो थे जिन के कारण वे सबकुछ सह कर भी खुश रहती थीं. उन के बिना वे कैसे जीवित रहेंगी? मेरा हृदय तो चीत्कार करने लगा कि भाभी की ऐसी दशा क्यों की जा रही थी. उन का कुसूर क्या था? पत्नी की मृत्यु के बाद पुरुष पर न तो लांछन लगाए जाते हैं, न ही उन के स्वरूप में कोई बदलाव आता है. भाभी के मायके वाले भाई की तेरहवीं पर आए और उन्हें साथ ले गए कि वे यहां के वातावरण में भाई को याद कर के तनाव में और दुखी रहेंगी, जिस से आने वाले बच्चे और भाभी के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा. सब ने सहर्ष उन को भेज दिया यह सोच कर कि जिम्मेदारी से मुक्ति मिली. कुछ दिनों बाद उन के पिताजी का पत्र आया कि वे भाभी का प्रसव वहीं करवाना चाहते हैं. किसी ने कोई एतराज नहीं किया. और फिर यह खबर आई कि भाभी के बेटा हुआ है.

हमारे यहां से उन को बुलाने का कोई संकेत दिखाई नहीं पड़ रहा था. लेकिन उन्होंने बुलावे का इंतजार नहीं किया और बेटे के 2 महीने का होते ही अपने भाई के साथ वापस आ गईं. कितना बदल गई थीं भाभी, सफेद साड़ी में लिपटी हुई, सूना माथा, हाथ में सोने की एकएक चूड़ी, बस. उन्होंने हमें बताया कि उन के मातापिता उन को आने नहीं दे रहे थे कि जब उस का पति ही नहीं रहा तो वहां जा कर क्या करेगी लेकिन वे नहीं मानीं. उन्होंने सोचा कि वे अपने मांबाप पर बोझ नहीं बनेंगी और जिस घर में ब्याह कर गई हैं, वहीं से उन की अर्थी उठेगी.

मैं ने मन में सोचा, जाने किस मिट्टी की बनी हैं वे. परिस्थितियों ने उन्हें कितना दृढ़निश्चयी और सहनशील बना दिया है. समय बीतते हुए मैं ने पाया कि उन का पहले वाला आत्मसम्मान समाप्त हो चुका है. अंदर से जैसे वे टूट गई थीं. जिस डाली का सहारा था, जब वह ही नहीं रही तो वे किस के सहारे हिम्मत रखतीं. उन को परिस्थितियों से समझौता करने के अतिरिक्त कोई चारा दिखाई नहीं पड़ रहा था. फूल खिलने से पहले ही मुरझा गया था. सारा दिन सब की सेवा में लगी रहती थीं.

उन की ननद का विवाह तय हो गया और तारीख भी निश्चित हो गई थी. लेकिन किसी भी शुभकार्य के संपन्न होते समय वे कमरे में बंद हो जाती थीं. लोगों का कहना था कि वे विधवा हैं, इसलिए उन की परछाईं भी नहीं पड़नी चाहिए. यह औरतों के लिए विडंबना ही तो है कि बिना कुसूर के हमारा समाज विधवा के प्रति ऐसा दृष्टिकोण रखता है. उन के दूसरे विवाह के बारे में सोचना तो बहुत दूर की बात थी. उन की हर गतिविधि पर तीखी आलोचना होती थी. जबकि चाचा का दूसरा विवाह, चाची के जाने के बाद एक साल के अंदर ही कर दिया गया. लड़का, लड़की दोनों मां के कोख से पैदा होते हैं, फिर समाज की यह दोहरी मानसिकता देख कर मेरा मन आक्रोश से भर जाता था, लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी.

मेरे पिताजी पुश्तैनी व्यवसाय छोड़ कर दिल्ली में नौकरी करने का मन बना रहे थे. भाभी को जब पता चला तो वे फूटफूट कर रोईं. मेरा तो बिलकुल मन नहीं था उन से इतनी दूर जाने का, लेकिन मेरे न चाहने से क्या होना था और हम दिल्ली चले गए. वहां मैं ने 2 साल में एमए पास किया और मेरा विवाह हो गया. उस के बाद भाभी से कभी संपर्क ही नहीं हुआ. ससुराल वालों का कहना था कि विवाह के बाद जब तक मायके के रिश्तेदारों का निमंत्रण नहीं आता तब तक वे नहीं जातीं. मेरा अपनी चाची  से ऐसी उम्मीद करना बेमानी था. ये सब सोचतेसोचते कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला.

‘‘उठो दीदी, सांझ पड़े नहीं सोते. चाय तैयार है,’’ भाभी की आवाज से मेरी नींद खुली और मैं उठ कर बैठ गई. पुरानी बातें याद करतेकरते सोने के बाद सिर भारी हो रहा था, चाय पीने से थोड़ा आराम मिला. भाभी का बेटा, प्रतीक भी औफिस से आ गया था. मेरी दृष्टि उस पर टिक गई, बिलकुल भाई पर गया था. उसी की तरह मनमोहक व्यक्तित्व का स्वामी, उसी तरह बोलती आंखें और गोरा रंग.

इतने वर्षों बाद मिली थी भाभी से, समझ ही नहीं आ रहा था कि बात कहां से शुरू करूं. समय कितना बीत गया था, उन का बेटा सालभर का भी नहीं था जब हम बिछुड़े थे. आज इतना बड़ा हो गया है. पूछना चाह रही थी उन से कि इतने अंतराल तक उन का वक्त कैसे बीता, बहुतकुछ तो उन के बाहरी आवरण ने बता दिया था कि वे उसी में जी रही हैं, जिस में मैं उन को छोड़ कर गई थी. इस से पहले कि मैं बातों का सिलसिला शुरू करूं, भाभी का स्वर सुनाई दिया, ‘‘दामादजी क्यों नहीं आए? क्या नाम है बेटी का? क्या कर रही है आजकल? उसे क्यों नहीं लाईं?’’ इतने सारे प्रश्न उन्होंने एकसाथ पूछ डाले.

मैं ने सिलसिलेवार उत्तर दिया, ‘‘इन को तो अपने काम से फुरसत नहीं है. मीनू के इम्तिहान चल रहे थे, इसलिए भी इन का आना नहीं हुआ. वैसे भी, मेरी सहेली के बेटे की शादी थी, इन का आना जरूरी भी नहीं था. और भाभी, आप कैसी हो? इतने साल मिले नहीं, लेकिन आप की याद बराबर आती रही. आप की बेटी के विवाह में भी चाची ने नहीं बुलाया. मेरा बहुत मन था आने का, कैसी है वह?’’ मैं ने सोचने में और समय बरबाद न करते हुए पूछा.

‘‘क्या करती मैं, अपनी बेटी की शादी में भी औरों पर आश्रित थी. मैं चाहती तो बहुत थी…’’ कह कर वे शून्य में खो गईं.’’

‘‘चलो, अब चाचाचाची तो रहे नहीं, प्रतीक के विवाह में आप नहीं बुलाएंगी तो भी आऊंगी. अब तो विवाह के लायक वह भी हो गया है.’’

‘‘मैं भी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाह रही हूं,’’ उन्होंने संक्षिप्त उत्तर देते हुए लंबी सांस ली.

‘‘एक बात पूछूं, भाभी, आप को भाई की याद तो बहुत आती होगी?’’ मैं ने सकुचाते हुए उन्हें टटोला.

‘‘हां दीदी, लेकिन यादों के सहारे कब तक जी सकते हैं. जीवन की कड़वी सचाइयां यादों के सहारे तो नहीं झेली जातीं. अकेली औरत का जीवन कितना दूभर होता है. बिना किसी के सहारे के जीना भी तो बहुत कठिन है. वे तो चले गए लेकिन मुझे तो सारी जिम्मेदारी अकेले संभालनी पड़ी. अंदर से रोती थी और बच्चों के सामने हंसती थी कि उन का मन दुखी न हो. वे अपने को अनाथ न समझें,’’ एक सांस में वे बोलीं, जैसे उन्हें कोई अपना मिला, दिल हलका करने के लिए.

‘‘हां भाभी, आप सही हैं, जब भी ये औफिस टूर पर चले जाते हैं तब अपने को असहाय महसूस करती हूं मैं भी. एक बात पूछूं, बुरा तो नहीं मानेंगी? कभी आप को किसी पुरुषसाथी की आवश्यकता नहीं पड़ी?’’ मेरी हिम्मत उन की बातों से बढ़ गई थी.

‘‘क्या बताऊं दीदी, जब मन बहुत उदास होता था तो लगता था किसी के कंधे पर सिर रख कर खूब रोऊं और वह कंधा पुरुष का हो तभी हम सुरक्षित महसूस कर सकते हैं. उस के बिना औरत बहुत अकेली है,’’ उन्होंने बिना संकोच के कहा.

‘‘आप ने कभी दूसरे विवाह के बारे में नहीं सोचा?’’ मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी.

‘‘कुछ सोचते हुए वे बोलीं,  ‘‘क्यों नहीं दीदी, पुरुषों की तरह औरतों की भी तो तन की भूख होती है बल्कि उन को तो मानसिक, आर्थिक सहारे के साथसाथ सामाजिक सुरक्षा की भी बहुत जरूरत होती है. मेरी उम्र ही क्या थी उस समय. लेकिन जब मैं पढ़ीलिखी न होने के कारण आर्थिक रूप से दूसरों पर आश्रित थी तो कर भी क्या सकती थी. इसीलिए मैं ने सब के विरुद्ध हो कर, अपने गहने बेच कर आस्था को पढ़ाया, जिस से वह आत्मनिर्भर हो कर अपने निर्णय स्वयं ले सके. समय का कुछ भी भरोसा नहीं, कब करवट बदले.’’

उन का बेबाक उत्तर सुन कर मैं अचंभित रह गई और मेरा मन करुणा से भर आया, सच में जिस उम्र में वे विधवा हुई थीं उस उम्र में तो आजकल कोई विवाह के बारे में सोचता भी नहीं है. उन्होंने इतना समय अपनी इच्छाओं का दमन कर के कैसे काटा होगा, सोच कर ही मैं सिहर उठी थी.

‘‘हां भाभी, आजकल तो पति की मृत्यु के बाद भी उन के बाहरी आवरण में और क्रियाकलापों में विशेष परिवर्तन नहीं आता और पुनर्विवाह में भी कोई अड़चन नहीं डालता, पढ़ीलिखी होने के कारण आत्मविश्वास और आत्मसम्मान के साथ जीती हैं, होना भी यही चाहिए, आखिर उन को किस गलती की सजा दी जाए.’’

‘‘बस, अब तो मैं थक गई हूं. मुझे अकेली देख कर लोग वासनाभरी नजरों से देखते हैं. कुछ अपने खास रिश्तेदारों के भी मैं ने असली चेहरे देख लिए तुम्हारे भाई के जाने के बाद. अब तो प्रतीक के विवाह के बाद मैं संसार से मुक्ति पाना चाहती हूं,’’ कहतेकहते भाभी की आंखों से आंसू बहने लगे. समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा न करने के लिए कह कर उन का दुख बढ़ाऊंगी या सांत्वना दूंगी, मैं शब्दहीन उन से लिपट गई और वे अपना दुख आंसुओं के सहारे हलका करती रहीं. ऐसा लग रहा था कि बरसों से रुके हुए आंसू मेरे कंधे का सहारा पा कर निर्बाध गति से बह रहे थे और मैं ने भी उन के आंसू बहने दिए.

अगले दिन ही मुझे लौटना था, भाभी से जल्दी ही मिलने का तथा अधिक दिन उन के साथ रहने का वादा कर के मैं भारी मन से ट्रेन में बैठ गई. वे प्रतीक के साथ मुझे छोड़ने के लिए स्टेशन आई थीं. ट्रेन के दरवाजे पर खड़े हो कर हाथ हिलाते हुए, उन के चेहरे की चमक देख कर मुझे सुकून मिला कि चलो, मैं ने उन से मिल कर उन के मन का बोझ तो हलका किया.

ए सीक्रेट नाइट इन होटल, झांसे में न आएं लड़कियां

अप्रैल के तीसरे सप्ताह में नोएडा की रहने वाली रश्मि (बदला नाम) जब भी अपना फेसबुक एकाउंट खोलती, उसे फ्रैंड रिक्वैस्ट में एक अंजान शख्स की रिक्वैस्ट जरूर दिखाई दे जाती. वह जानती थी कि आवारा, शरारती और दिलफेंक किस्म के मनचले युवक लड़कियों की कवर फोटो और प्रोफाइल देख कर ऐसी फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजा करते हैं. अगर इन की रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली जाए तो जल्द ही ये रोमांस और सैक्स की बातें करते हुए नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगते हैं.

आमतौर पर ऐसी फ्रैंड रिक्वैस्ट पर समझदारी दिखाते हुए रश्मि ध्यान नहीं देती थी. इसलिए इस पर भी उस ने ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वह बैठेबिठाए आफत मोल नहीं लेना चाहती थी. लेकिन 20 अप्रैल को उस ने इस अंजान फ्रैंड रिक्वैस्ट के साथ एक टैगलाइन लगी देखी तो वह बेसाख्ता चौंक उठी. वह लाइन थी ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल.’

इस टैगलाइन ने उसे भीतर तक न केवल हिला कर रख दिया, बल्कि गुदगुदा भी दिया. उसे पढ़ कर अनायास ही वह 20 दिन पहले की दुनिया में ठीक वैसे ही पहुंच गई, जैसे फिल्मों के फ्लैशबैक में नायिकाएं पहुंचने से खुद को रोक नहीं पातीं.

कीबोर्ड पर चलती उस की अंगुलियां थम गईं और दिलोदिमाग पर ग्वालियर छा गया. वह वाकई सीक्रेट और हसीन रात थी, जब उस ने पूरा वक्त पहले अभिसार में अपने मंगेतर विवेक (बदला नाम) के साथ गुजारा था. जिंदगी के पहले सहवास को शायद ही कोई युवती कभी भुला पाती है. वह वाकई अद्भुत होता है, जिसे याद कर अरसे तक जिस्म में कंपकंपी और झुरझुरी छूटा करती है.

रश्मि को याद आ गया, जब वह और विवेक दिल्ली से ग्वालियर जाने वाली ट्रेन में सवार हुए थे तो उन्हें कतई गर्मी का अहसास नहीं हो रहा था. उस के कहने पर ही विवेक ने रिजर्वेशन एसी कोच के बजाय स्लीपर क्लास में करवाया था. दिल्ली से ग्वालियर लगभग 5 घंटे का रास्ता था. कैसे बातोंबातों में कट गया, इस का अंदाजा भी रश्मि को नहीं हो पाया.

आगरा निकलतेनिकलते रश्मि के चेहरे पर पसीना चुहचुहाने लगा तो विवेक प्यार से यह कहते हुए झल्ला भी उठा, ‘‘तुम से कहा था कि एसी कोच में रिजर्वेशन करवा लें, पर तुम्हें तो बचत करने की पड़ी थी. अब पोंछती रहो बारबार रूमाल से पसीना.’’

विवेक और रश्मि की शादी उन के घर वालों ने तय कर दी थी, जिस का मुहूर्त जून के महीने का निकला था. चूंकि सगाई हो चुकी थी, इसलिए दोनों के साथ ग्वालियर जाने पर घर वालों को कोई ऐतराज नहीं था. यह आजकल का चलन हो गया है कि एगेंजमेंट के बाद लड़कालड़की साथ घूमेफिरें तो उन के घर वाले पुराने जमाने की तरह ऊंचनीच की बातें करते टांग नहीं अड़ाते.

रश्मि को अपनी रिश्तेदारी के एक समारोह में जाना था, जिस के बाबत घर वालों ने ही कहा था कि विवेक को भी ले जाओ तो उस की रिश्तेदारों से जानपहचान हो जाएगी. बारबार पसीना पोंछती रश्मि की हालत देख कर विवेक खीझ रहा था कि इस से तो अच्छा था कि एसी में चलते. उसे परेशानी तो न होती.

प्यार की बात का जवाब भी प्यार से देते रश्मि उसे समझा रही थी कि उस का साथ है तो क्या गर्मी और क्या सर्दी, वह सब कुछ बरदाश्त कर लेगी. बातों ही बातों में रश्मि ने अपना सिर विवेक के कंधे पर टिका दिया तो सहयात्री प्रेमीयुगल के इस अंदाज पर मुसकरा उठे. लेकिन उन्हें किसी की परवाह नहीं थी. ट्रेनों में ऐसे दृश्य अब बेहद आम हो चले हैं.

आगरा निकलते ही विवेक ने उस से वह बात कह डाली, जिसे वह दिल्ली से बैठने के बाद से दिलोदिमाग में जब्त किए बैठा था कि क्यों न हम रिश्तेदार के यहां कल सुबह चलें. वैसे भी फंक्शन कल ही है, आज की रात किसी होटल में गुजार लें. यह बात शायद रश्मि भी अपने मंगेतर के मुंह से सुनना चाहती थी.

क्योंकि स्वाभाविक तौर पर शरम के चलते वह एदकम से कह नहीं पा रही थी. दिखाने के लिए पहले तो उस ने बहाना बनाया कि घर वालों को पता चल गया तो वे क्या सोचेंगे? इस पर विवेक का रेडीमेड जवाब था, ‘‘उन्हीं के कहने पर तो हम साथ जा रहे हैं और फिर बस 2 महीने बाद ही तो हमारी शादी होने वाली है. उस के बाद तो हमें हर रात साथ ही बितानी है.’’

इस पर रश्मि बोली, ‘‘…तो फिर उस रात का इंतजार करो, अभी से क्यों उतावले हुए जा रहे हो?’’

रश्मि का मूड बनते देख विवेक ऊंचनीच के अंदाज में बोला, ‘‘अरे यार, क्या तुम्हें भरोसा नहीं मुझ पर?’’

यह एक ऐसा शाश्वत डायलौग है, जिस का कोई जवाब किसी प्रेमिका या मंगेतर के पास नहीं होता. और जो होता है, वह सहमति में हिलता सिर वह जवाब होता है.

‘‘तुम पर भरोसा है, तभी तो सब कुछ तुम्हें सौंप दिया है.’’ रश्मि ने कहा.

यही जवाब विवेक सुनना चाहता था. जब यह तय हो गया कि दोनों रात एक साथ किसी होटल के कमरे में गुजारेंगे तो बहने वाली पसीने की तादाद तो बढ़ गई, पर बरसती गर्मी का अहसास कम हो गया. दोनों आने वाले पलों की सोचसोच कर रोमांचित हुए जा रहे थे. अलबत्ता रश्मि के दिल में जरूर शंका थी कि धोखे से अगर किसी जानपहचान वाले ने देख लिया तो वह क्या सोचेगा?

अपनी शंका का समाधान करते हुए वह विवेक की आवाज में खुद को समझाती रही कि सोचने दो जिसे जो सोचना है, आखिर हम जल्द ही पतिपत्नी होने जा रहे हैं. आजकल तो सब कुछ चलता है. और कौन हम होटल के कमरे में वही सब करेंगे, जो सब सोचते हैं. हमें तो रोमांस और प्यार भरी बातें करने के लिए एकांत चाहिए, जो मिल रहा है तो मौका क्यों हाथ से जाने दें?

ट्रेन के ग्वालियर स्टेशन पहुंचतेपहुंचते अंधेरा छा गया था, पर इस प्रेमीयुगल के दिलोदिमाग में एक अछूते अंजाने अहसास को जी लेने का सुरूर छाता जा रहा था. स्टेशन पर उतर कर विवेक ने औटोरिक्शा किया. नई सवारियों को देख कर ही औटोरिक्शा वाले तुरंत ताड़ लेते हैं कि ये किसी लौज में जाएंगे. कुछ देर औटोरिक्शा इधरउधर घूमता रहा. दोनों ने कई होटल देखे, फिर रुकना तय किया होटल उत्तम पैलेस में.

ग्वालियर रेलवे स्टेशन के प्लेटफौर्म नंबर एक के बाहर की सड़क पर रुकने के लिए होटलों की भरमार है. चूंकि आमतौर पर रेलवे स्टेशनों के बाहर की होटलें जोड़ों को रुकने के लिए मुफीद नहीं लगतीं, इसलिए विवेक और रश्मि को उत्तम होटल पसंद आया. जो रेलवे स्टेशन से एक किलोमीटर दूर रेसकोर्स रोड पर सैनिक पैट्रोल पंप के पास स्थित है. दोनों को यह होटल सुरक्षित लगा.

औटो वाले को पैसे दे कर दोनों काउंटर पर पहुंचे तो वहां एक बुजुर्ग मैनेजर बैठा था, जिस की अनुभवी निगाहें समझ गईं कि यह नया जोड़ा है. मैनेजर पूरे कारोबारी शिष्टाचार से पेश आया और एंट्री रजिस्टर उन के आगे कर दिया. आजकल होटलों में रुकने के लिए फोटो आईडी अनिवार्य है, जो मांगने पर विवेक और रश्मि ने दिए तो मैनेजर ने तुरंत उन की फोटोकौफी कर के अपने पास रख ली.

खानापूर्ति कर दोनों अपने कमरे में आ गए. 6 घंटों से दिलोदिमाग में उमड़घुमड़ रहा प्यार का जज्बा अब आकार लेने लगा. दरवाजा बंद करते ही विवेक ने रश्मि को अपनी बांहों में जकड़ लिया और ताबड़तोड़ उस पर चुंबनों की बौछार कर दी. एक पुरानी कहावत है, आग और घी को पास रखा जाए तो घी पिघलेगा, जिस से आग और भड़केगी.

यही इस कमरे में हो रहा था. मंगेतर की बांहों में समाते ही रश्मि का संयम जवाब दे गया. जल्द ही दोनों बिस्तर पर आ कर एकदूसरे के आगोश में खो गए. तकरीबन एक घंटे कमरे में गर्म सांसों का तूफान उफनता रहा. तृप्त हो जाने के बाद दोनों फ्रेश हुए तो शरीर की भूख मिटने के बाद अब पेट की भूख सिर उठाने लगी.

रश्मि का मन बाहर जा कर खाना खाने का नहीं था, इसलिए विवेक ने कमरे में ही खाना मंगवा लिया. खाना खा कर टीवी देखते हुए दोनों दुनियाजहान की बातें करते आने वाले कल का तानाबाना बुनते रहे कि शादी के बाद हनीमून कहां मनाएंगे और क्याक्या करेंगे?

एक बार के संसर्ग से दोनों का मन नहीं भरा था, इसलिए फिर सैक्स की मांग सिर उठाने लगी, जिस में उस एकांत का पूरा योगदान था, जिस की जरूरत एक अच्छे मूड के लिए होती है. इस बार दोनों ने वे सारे प्रयोग कर डाले, जो वात्स्यायन के कामसूत्र सोशल मीडिया और इधरउधर से उन्होंने सीखे थे.

2-3 घंटे बाद दोनों थक कर चूर हो गए तो कब एकदूसरे की बांहों में सो गए, दोनों को पता ही नहीं चला. और जब चला तब तक सुबह हो चुकी थी. रश्मि और विवेक, दोनों के लिए ही यह एक नया अनुभव था, जिसे उन्होंने जी भर जिया था. दोनों के बीच कोई परदा नहीं रह गया था, पर इस बात की कोई ग्लानि उन्हें नहीं थी, क्योंकि दोनों शादी के बंधन में बंधने जा रहे थे.

सुबह अपना सामान समेट कर दोनों काउंटर पर पहुंचे और होटल का बिल अदा कर रिश्तेदार के यहां पहुंच गए. रश्मि ने चहकते हुए सभी रिश्तेदारों से विवेक का परिचय कराया, लेकिन दोनों यह बात छिपा गए कि वे रात को ही ग्वालियर आ गए थे और रात उन्होंने एक होटल में गुजारी थी. जाहिर है, यह बात बताने की थी भी नहीं.

उसी दिन शाम को दोनों वापस नोएडा के लिए रवाना हो गए. साथ में था एक रोमांटिक रात का दस्तावेज, जिसे याद कर दोनों सिहर उठते थे और एकदूसरे की तरफ देख हौले से मुसकरा देते थे. बात आई गई हो गई, पर दोनों के बीच व्हाट्सऐप और फेसबुक की चैटिंग में वह रात और उस की बातें और यादें ताजा होती रहीं. अब न केवल दोनों, बल्कि उन के घर वाले भी शादी की तैयारियां और खरीदारी में लग गए थे.

इन यादों से उबरते रश्मि की नजर फिर से टैग की हुई इस लाइन पर पड़ी ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल’ तो वह चौंक उठी कि अजीब इत्तफाक है. फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजने वाले ने जैसे उस की यादों को जिंदा कर दिया था. रश्मि की जिज्ञासा अब शबाब पर थी कि आखिर इस लाइन का मतलब क्या है? लिहाजा उस ने कुछ सोच कर उस अंजान व्यक्ति की फ्रैंड रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली.

जैसे ही उस ने इस नए फेसबुक फ्रैंड का एकाउंट खोला, वह भौचक रह गई. भेजने वाले ने एक पैराग्राफ का यह मैसेज लिख रखा था.

‘रश्मिजी, आप का कमसिन फिगर लाखों में एक है. जब से मैं ने आप को देखा है, मेरी रातों की नींद उड़ गई है. वीडियो में आप एक लड़के को प्यार कर रही हैं. सच कहूं तो मुझे उस लड़के की किस्मत से जलन हो रही है. काश! उस युवक की जगह मैं होता तो आप मुझे उसी तरह टूट कर प्यार करतीं. आप को यकीन नहीं हो रहा हो तो अब वीडियो देखिए.’

अव्वल तो मैसेज पढ़ कर ही रश्मि के दिमाग के फ्यूज उड़ गए थे. रहीसही कसर वह वीडियो देखने पर पूरी हो गई, जिस में उत्तम होटल के कमरे में उस के और विवेक के बीच बने सैक्स संबंधों की तमाम रिकौर्डिंग कंप्यूटर स्क्रीन पर दिख रही थी.

वीडियो देख कर रश्मि पानीपानी हो गई. अब उसे लग रहा था कि उस ने और विवेक ने जो किया था, वह किसी ब्लू फिल्म से कम नहीं था. वह हैरान इस बात पर थी कि यह सब रिकौर्ड कैसे हुआ? जबकि विवेक ने कमरे में दाखिल होते ही अच्छे से ठोकबजा कर देख लिया था कि कमरे में कोई कैमरा वगैरह तो नहीं लगा.

पर जो हुआ था, वह कंप्यूटर स्क्रीन पर चल रहा था. वीडियो देख कर सकते में आ गई रश्मि ने तुरंत फोन कर के विवेक को अपने घर बुलाया. विवेक आया तो रश्मि ने उसे सारी बात बताई, जिसे सुन कर वह भी झटका खा गया. यह तो साफ समझ आ रहा था कि वीडियो उसी रात का था, पर इसे भेजने वाले की मंशा साफ नहीं हो रही थी कि वह क्या चाहता है, सिवाय इस के कि वह गलत मंशा से रश्मि पर दबाव बना रहा था.

दोनों गंभीरतापूर्वक काफी देर तक इस बिन बुलाई मुसीबत पर चरचा करते रहे. बात चिंता की थी, इस लिहाज से थी कि अगर यह वीडियो वायरल हो गया तो वे कहीं के नहीं रह जाएंगे. दोनों अब अपनी जवानी के जोश में छिप कर किए इस कृत्य पर पछता रहे थे. लंबी चर्चा के बाद आखिरकार उन्होंने तय किया कि भेजने वाले से उस की मंशा पूछी जाए.

लिहाजा उन्होंने इस बाबत मैसेज किया तो जवाब आया कि अगर इस वीडियो को वायरल होने से बचाना है तो ढाई लाख रुपए दे दो. अब तसवीर साफ थी कि उन्हें ब्लैकमेल किया जा रहा था. विवेक और रश्मि, दोनों निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों से थे, इसलिए ढाई लाख रुपए का इंतजाम करना उन की हैसियत के बाहर की बात थी. पर होने वाली बदनामी का डर भी उन के सिर चढ़ कर बोल रहा था.

आखिरकार विवेक ने सख्त और समझदारी भरा फैसला लिया कि जब पौकेट में इतने पैसे नहीं हैं तो बेहतर है कि पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी जाए. दोनों अपनेअपने घर से बहाना बना कर बीती 1 मई को ग्वालियर पहुंचे और सीधे एसपी डा. आशीष खरे से मिले. मामले की गंभीरता और शादी के बंधन में बंधने जा रहे इन दोनों की परेशानी आशीष ने समझी और मामला पड़ाव थाने के टीआई को सौंप दिया.

पुलिस वालों ने दोनों को सलाह दी कि वे ब्लैकमेलर से संपर्क कर किस्तों में पैसा देने की बात कहें. रश्मि ने पुलिस की हिदायत के मुताबिक ब्लैकमेलर को फोन कर के कहा कि वह ढाई लाख रुपए एकमुश्त तो देने की स्थिति में नहीं हैं, पर 5 किस्तों में 50-50 हजार रुपए दे सकती है. इस पर ब्लैकमेलर तैयार हो गया.

सीधे उत्तम होटल पर छापा न मारने के पीछे पुलिस की मंशा यह थी कि ब्लैमेलर को रंगेहाथों पकड़ा जाए. ऐसा हुआ भी. आरोपी आसानी से पुलिस के बिछाए जाल में फंस गया और रश्मि से 50 हजार रुपए लेते धरा गया. जिस युवक को पुलिस ने पकड़ा था, उस का नाम भूपेंद्र राय था. वह उत्तम होटल में ही काम करता था.

भूपेंद्र को उम्मीद नहीं थी कि रश्मि पुलिस में खबर करेगी, इसलिए वह पकड़े जाने पर हैरान रह गया. पूछताछ में उस ने बताया कि वह तो बस पैसा लेने आया था, असली कर्ताधर्ता तो कोई और है.

वह कोई और नहीं, बल्कि होटल का 63 वर्षीय मैनेजर विमुक्तानंद सारस्वत निकला. उसे भी पुलिस ने तत्काल गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों ने पूछताछ में मान लिया कि उन्होंने इस तरह कई जोड़ों को ब्लैकमेल किया था.

भूपेंद्र ने बताया कि इस होटल में उसे उस के बहनोई पंकज इंगले ने काम दिलवाया था. काम करतेकरते भूपेंद्र ने महसूस किया कि होटल में रुकने वाले अधिकांश कपल सैक्स करने आते हैं. लिहाजा उस के दिमाग में एक खुराफाती बात वीडियो बना कर ब्लैकमेल करने की आई, जिस का आइडिया एक क्राइम सीरियल से उसे मिला था.

भूपेंद्र ने दिल्ली जा कर नाइट विजन कैमरे खरीदे, जो आकार में काफी छोटे होते हैं. इन कैमरों को उस ने टीवी के औनऔफ स्विच में फिट कर रखा था. इस से कोई शक भी नहीं कर पाता था कि उन की हरकतें कैमरे में कैद हो रही हैं. आमतौर पर ठहरने वाले इस बात पर ध्यान नहीं देते कि टीवी का स्विच औन है, क्योंकि इस से कोई खतरा रिकौर्डिंग का नहीं होता.

ग्राहकों के जाने के बाद भूपेंद्र कैमरे निकाल कर फिल्म देखता था और जिन लोगों ने सैक्स किया होता था, उन के नामपते होटल में जमा फोटो आईडी से निकाल कर फेसबुक, व्हाट्सऐप या फिर सीधे मोबाइल फोन के जरिए ब्लैकमेल करता था. दोनों ने माना कि वे ब्लैकमेलिंग के इस धंधे से लाखों रुपए अब तक कमा चुके हैं. दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

मामला उजागर हुआ तो ग्वालियर में हड़कंप मच गया. पता यह चला कि कई होटलों में इस तरह के कैमरे फिट हैं और ब्लैकमेलिंग का धंधा बड़े पैमाने पर फलफूल रहा है. इस तरह की रिकौर्डिंग के विरोध में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने प्रदर्शन भी किया.

इस पर पुलिस ने कई होटलों में छापे मारे, पर कुछ खास हाथ नहीं लगा. क्योंकि संभावना यह थी कि भूपेंद्र की गिरफ्तारी के साथ ही ब्लैकमेलर्स ने कैमरे हटा दिए थे. हालांकि उम्मीद बंधती देख कुछ लोगों ने पुलिस में जा कर अपने ब्लैकमेल होने का दुखड़ा रोया.

जब यह सब कुछ हो गया तो विवेक और रश्मि ब्रेफ्रिकी से नोएडा वापस चले गए और दोबारा शादी की तैयारियों में जुट गए. पर एक सबक इन्हें मिल गया कि हनीमून मनाते वक्त  होटल में इस बात का ध्यान रखेंगे कि टीवी के खटके में कैमरा न लगा हो और घर आने के बाद फिर फेसबुक पर यह मैसेज न मिले कि ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल.’

पति परदेस में तो फिर डर काहे का

जिला अलीगढ़ मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर थाना गोंडा क्षेत्र में एक गांव है वींजरी. इस गांव में एक किसान परिवार है अतर सिंह का. उस के परिवार में उस की पत्नी कस्तूरी के अलावा 5 बेटे हैं. इन में सब से छोटा है जयकिंदर. अतर सिंह के तीसरे नंबर के बेटे को छोड़ कर सभी बेटों की शादियां हो चुकी हैं. इस के बावजूद पूरा परिवार आज भी एक ही मकान में संगठित रूप से रहता है. अतर सिंह का सब से छोटा बेटा जयकिंदर आंध्र प्रदेश में रेलवे में नौकरी करता है. डेढ़ साल पहले उस की शादी पुरा स्टेशन, हाथरस निवासी फौजी रमेशचंद्र की बेटी प्रेमलता उर्फ मोना के साथ तय हो गई थी. मोना के पिता के सामने अतर सिंह की कुछ भी हैसियत नहीं थी. यह रिश्ता जयकिंदर की रेलवे में नौकरी लग जाने की वजह से हुआ था.

अतर सिंह ने समझदारी से काम लेते हुए जयकिंदर की शादी से पहले अपने मकान के ऊपरी हिस्से पर एक हालनुमा बड़ा सा कमरा, बरामदा और रसोई बनवा दी थी, ताकि दहेज में मिलने वाला सामान ढंग से रखा जा सके. साथ ही उस में जयकिंदर अपनी पत्नी के साथ रह भी सके. मई 2015 में जयकिंदर और मोना की शादी हुई तो मोना के पिता ने दिल खोल कर दहेज दिया, जिस में घर गृहस्थी का सभी जरूरी सामान था.

मोना जब मायके से विदा हो कर ससुराल आई तो अपने जेठजेठानियों की हालत देख कर परेशान हो उठी. उन की माली हालत ठीक नहीं थी. उस की समझ में नहीं आया कि उस के पिता ने क्या देख कर उस की शादी यहां की. मोना ने अपनी मां को फोन कर के वस्तुस्थिति से अवगत कराया. मां पहले से ही हकीकत जानती थी. इसलिए उस ने मोना को समझाते हुए कहा, ‘‘तुझे उन सब से क्या लेनादेना. छत पर तेरे लिए अलग मकान बना दिया गया है. तेरा पति भी सरकारी नौकरी में है. तू मौज कर.’’

मोना मां की बात मान गई. उस ने अपने दहेज का सारा सामान ऊपर वाले कमरे में रखवा कर अपना कमरा सजा दिया. उस कमरे को देख कर कोई भी कह सकता था कि वह बड़े बाप की बेटी है. उस के हालनुमा कमरे में टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन और गैस वगैरह सब कुछ था. सोफा सेट और डबलबैड भी. शादी के बाद करीब 15 दिन बाद जयकिंदर मोना को अपने घर वालों के भरोसे छोड़ कर नौकरी पर चला गया.

पति के जाने के बाद मोना ने ऊपर वाले कमरे में न केवल अकेले रहना शुरू कर दिया, बल्कि पति के परिवार से भी कोई नाता नहीं रखा. अलबत्ता कभीकभार उस की जेठानी के बच्चे ऊपर खेलने आ जाते तो वह उन से जरूर बोलबतिया लेती थी. वरना उस की अपनी दुनिया खुद तक ही सिमटी थी.

उस की जिंदगी में अगर किसी का दखल था तो वह थी दिव्या. जयकिंदर के बड़े भाई की बेटी दिव्या रात को अपनी चाची मोना के पास सोती थी ताकि रात में उसे डर न लगे. इस के लिए जयकिंदर ही कह कर गया था. देखतेदेखते जयकिंदर और मोना की शादी को एकडेढ़ साल बीत गया. जयकिंदर 10-5 दिन के लिए छुट्टी पर आता और लौट जाता. उस के जाने के बाद मोना को अकेले ही रहना पड़ता था.

मोना को घर की जगह बाजार की चीजें खाने का शौक था. इसी के मद्देनजर उस के पति जयकिंदर ने एकदो बार नौकरी पर जाने से पहले उसे समझा दिया था कि जब उसे किसी चीज की जरूरत हो तो सोनू को बुला कर बाजार से से मंगा लिया करे. सोनू जयकिंदर के पड़ोसी का बेटा था जो किशोरावस्था को पार कर चुका था. वह सालों से जयकिंदर का करीबी दोस्त था. सोनू बिलकुल बराबर वाले मकान में रहता था. मोना को वह भाभी कह कर पुकारता था. मोना ने शादी में सोनू की भूमिका देखी थी. वह तभी समझ गई थी कि वह उस के पति का खास ही होगा.

जयकिंदर के जाने के बाद सोनू जब चाहे मोना के पास चला आता था, नीचे घर की महिलाएं या पुरुष नजर आते तो वह छज्जे से कूद कर आ जाता. दोनों आपस में खूब हंसीमजाक करते थे. मोना तेजतर्रार थी और थोड़ी मुंहफट भी. कई बार वह सोनू से द्विअर्थी शब्दों में भी मजाक कर लेती थी.

एक दिन सोनू जब बाजार से वापस लौटा तो मोना छत पर खड़ी थी. उस ने सोनू को देखते ही आवाज दे कर ऊपर बुला कर पूछा, ‘‘आज सुबह से ही गायब हो? कहां थे?’’

‘‘भाभी, बनियान लेने बाजार गया था.’’ सोनू ने हाथ में थामी बनियान की थैली दिखाते हुए बताया. यह सुन कर मोना बोली, ‘‘अगर गए ही थे तो भाभी से भी पूछ कर जाते कि कुछ मंगाना तो नहीं है.’’

‘‘कल फिर जाऊंगा, बता देना क्या मंगाना है?’’ सोनू ने कहा तो मोना ने पूछा, ‘‘और क्या लाए हो?’’

‘‘बताया तो बनियान लाया हूं.’’ सोनू ने कहा तो मोना बोली, ‘‘मुझे भी बनियान मंगानी है, ला दोगे न?’’

‘‘तुम्हारी बनियान मैं कैसे ला सकता हूं? मुझे नंबर थोड़े ही पता है.’’ सोनू बोला.

‘‘साइज देख कर भी नहीं ला सकते?’’

‘‘बेकार की बातें मत करो, साइज देख कर अंदाजा होता है क्या?’’

‘‘तुम बिलकुल गंवार हो. अंदर आओ साइज दिखाती हूं.’’ कहती हुई मोना कमरे में चली गई. सोनू भी उस के पीछेपीछे कमरे में चला गया.

कमरे में पहुंचते ही मोना ने साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया और सीना फुलाते हुए बोली, ‘‘लो नाप लो साइज. खुद पता चल जाएगा.’’

‘‘मुझ से साइज मत नपवाओ भाभी, वरना बहुत पछताओगी.’’

‘‘पछता तो अब भी रही हूं, तुम्हारे भैया से शादी कर के.’’ मोना ने अंगड़ाई लेते हुए साड़ी का पल्लू सिर पर डालते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ सोनू ने पूछा तो मोना बोली, ‘‘महीने दो महीने बाद घर आते हैं, वह भी 2 दिन रह कर भाग जाते हैं. और मैं ऐसी बदनसीब हूं कि देवर भी साइज नापने से डरता है. कोई और होता तो साइज नापता और…’’ मोना की आंखों में नशा सा उतर आया था. अभी तक सोनू मोना की बातों को केवल मजाक में ले रहा था. उस में उसी हिसाब से कह दिया, ‘‘जब भैया नौकरी से आएं तो उन्हीं को दिखा कर साइज पूछना.’’

‘‘अगर पति बुद्धू हो तो भाभी का काम समझदार देवर को कर देना चाहिए.’’ मोना ने सोनू का हाथ पकड़ते हुए कहा.

‘‘क्याक्या काम कराओगी देवर से?’’ सोनू ने शरारत से पूछा.

‘‘जो देवर करना चाहे, भाभी मना नहीं करेगी. बस तुम्हारे अंदर हिम्मत होनी चाहिए.’’ मोना हंसी.

‘‘कल बात करेंगे.’’ कहते हुए सोनू वहां से चला गया.

दूसरे दिन सोनू मां की दवाई लेने बाजार जाने के लिए निकला तो मोना के घर जा पहुंचा. उस वक्त मोना खाना बना कर खाली हुई थी. सोनू को देखते ही वह चहक कर बोली, ‘‘बाजार जा रहे हो क्या?’’

‘‘मम्मी की दवाई लेने जा रहा हूं. तुम्हें कुछ मंगाना हो तो बोलो?’’ सोनू ने पूछा. मोना बोली, ‘‘बाजार में मिल जाए तो मेरी भी दवाई ले आना.’’ मोना ने चेहरे पर बनावटी उदासी लाते हुए कहा.

‘‘पर्ची दे दो, तलाश कर लूंगा.’’

‘‘मुंह जुबानी बोल देना कि ‘प्रेमरोग’ है, जो भी दवा मिले, ले आना.’’

‘‘भाभी, तुम्हें ये रोग कब से हो गया?’’ सोनू ने हंसते हुए पूछा.

‘‘ये बीमारी तुम्हारी ही वजह से लगी है.’’ मोना की आंखों में खुला निमंत्रण था.

‘‘फिर तो तुम्हें दवा भी मुझे ही देनी होगी.’’

‘‘एक खुराक अभी दे दो, आराम मिला तो और ले लूंगी.’’ कहते हुए मोना ने अपनी दोनों बांहें उठा कर उस की ओर फैला दीं.

सोनू कोई बच्चा तो था नहीं, न बिलकुल गंवार था, जो मोना के दिल की मंशा न समझ पाता. बिना देर लगाए आगे बढ़ कर उस ने मोना को बांहों में भर लिया. थोड़ी देर में देवरभाभी का रिश्ता ही बदल गया.

सोनू जब वहां से बाजार के लिए निकला तो बहुत खुश था. मन में कई महीनों की पाली उस की मुराद पूरी हो गई थी.

दरअसल, जब से मोना ने उसे इशारोंइशारों में रिझाना शुरू किया था, तभी से वह उसे पाने की कल्पना करने लगा था. उस ने आगे कदम नहीं बढ़ाया था तो केवल करीबी रिश्तों की वजह से. लेकिन आज मोना ने खुद ही सारे बंधन तोड़ डाले थे. धीरेधीरे मोना और सोनू का प्यार परवान चढ़ने लगा. मोना को सासससुर, जेठजेठानी किसी का डर नहीं था. वह परिवार से अलग और अकेली रहती थी. पति परदेश में नौकरी करता था, बालबच्चा कोई था नहीं. बच्चों के नाम पर सब से बड़े जेठ की 14 वर्षीय बेटी दिव्या ही थी जो रात को मोना के साथ सोती थी. वह भी इसलिए क्योंकि जाते वक्त मोना का पति बडे़ भैया से कह कर गया था मोना अकेली है, दिव्या को रात में सोने के लिए मोना के पास भेज दिया करें.

तभी से दिव्या रात में मोना के पास सोती थी. सुबह को चाय पी कर दिव्या अपने घर आ जाती थी और स्कूल जाने की तैयारी करने लगती थी. उस के स्कूल जाने के बाद मोना 4-5 घंटे के लिए फ्री हो जाती थी. इस बीच वह शरारती देवर सोनू को बुला लेती थी. स्कूल से आने के बाद दिव्या कभी चाची के घर आ जाती तो कभी अपने घर रह कर काम में मां का हाथ बंटाती. कभीकभी वह अपनी सहेलियों को ले कर मोना के घर आ जाती और उसे भी अपने साथ खिलाती. मोना पूरी तरह सोनू के प्यार में डूब चुकी थी. वह चाहती थी कि दिन ही नहीं बल्कि पूरी रात सोनू के साथ गुजारे.

शाम ढल चुकी थी. अंधेरे ने चारों ओर पंख पसारने शुरू कर दिए थे. दिव्या को उस की मां मंजू ने कहा, ‘‘जब चाची के पास जाए तो किताबें साथ ले जाना, वहीं पढ़ लेना.’’ दिव्या ने ऐसा ही किया.

दिव्या चाची के घर पहुंची तो दरवाजे के किवाड़ भिड़े हुए थे. वह धक्का मार कर अंदर चली गई. अंदर जब चाची दिखाई नहीं दी तो वह कमरे में चली गई. कमरे में अंदर का दृश्य देख कर वह सन्न रह गई. वहां बेड पर सोनू और मोना निर्वस्त्र एकदूसरे से लिपटे पड़े थे. दिव्या इतनी भी अनजान नहीं थी कि कुछ समझ न सके. वह सब कुछ समझ कर बोली, ‘‘चाची, यह क्या गंदा काम कर रही हो?’’

दिव्या की आवाज सुनते ही सोनू पलंग से अपने कपड़े उठा कर बाहर भाग गया. मोना भी उठ कर साड़ी पहनने लगी. फिर मोना ने दिव्या को बांहों में भरते हुए पूछा, ‘‘दिव्या, तुम ने जो भी देखा, किसी से कहोगी तो नहीं?’’

‘‘जब चाचा घर वापस आएंगे तो उन्हें सब बता दूंगी.’’

‘‘तुम तो मेरी सहेली हो. नहीं तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी.’’ मोना ने दिव्या को बहलाना चाहा, लेकिन दिव्या ने खुद को मोना से अलग करते हुए कहा, ‘‘तुम गंदी हो, मेरी सहेली कैसे हो सकती हो?’’

‘‘मैं कान पकड़ती हूं, अब ऐसा गंदा काम नहीं करूंगी.’’ मोना ने कान पकड़ते हुए नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘कसम खाओ.’’ दिव्या बोली.

‘‘मैं अपनी सहेली की कसम खा कर कहती हूं बस.’’

‘‘चलो खेलते हैं.’’ इस सब को भूल कर दिव्या के बाल मन ने कहा तो मोना ने दिव्या को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया, ‘‘कितनी प्यारी हो तुम.’’

26 दिसंबर, 2016 की अलसुबह गांव के कुछ लोगों ने गांव के ही गजेंद्र के खेत में 14 वर्षीय दिव्या की गर्दन कटी लाश पड़ी देखी तो गांव भर में शोर मच गया. आननफानन में यह खबर दिव्या के पिता ओमप्रकाश तक भी पहुंच गई. उस के घर में कोहराम मच गया. परिवार के सभी लोग रोतेबिलखते, जिन में मोना भी थी घटनास्थल पर जा पहुंचे. बेटी की लाश देख कर दिव्या की मां का तो रोरो कर बुरा हाल हो गया. किसी ने इस घटना की सूचना थाना गोंडा पुलिस को दे दी.

सूचना मिलते ही गोंडा थानाप्रभारी सुभाष यादव पुलिस टीम के साथ गांव पींजरी के लिए रवाना हो गए. तब तक घटनास्थल पर गांव के सैकड़ों लोग एकत्र हो चुके थे. थानाप्रभारी ने भीड़ को अलग हटा कर लाश देखी. तत्पश्चात उन्होंने इस हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी और प्रारंभिक काररवाई में लग गए.

थोड़ी देर में एसपी ग्रामीण संकल्प शर्मा और क्षेत्राधिकारी पंकज श्रीवास्तव भी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. लाश के मुआयने से पता चला कि दिव्या की हत्या उस खेत में नहीं की गई थी, क्योंकि लाश को वहां तक घसीट कर लाने के निशान साफ नजर आ रहे थे. मृत दिव्या के शरीर पर चाकुओं के कई घाव मौजूद थे.

जब जांच की गई तो जहां लाश पड़ी थी, वहां से 300 मीटर दूर पुलिस को डालचंद के खेत में हत्या करने के प्रमाण मिल गए. ढालचंद के खेत में लाल चूडि़यों के टुकड़े, कान का एक टौप्स, एक जोड़ी लेडीज चप्पल के साथ खून के निशान भी मिले.

जांच चल ही रही थी कि डौग एक्वायड के अलावा फोरेंसिक विभाग के प्रभारी के.के. मौर्य भी अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल से बरामद कान के टौप्स और चप्पलें मृतका दिव्या की ही थीं. जबकि लाल चूडि़यों के टुकड़े उस के नहीं थे. इस से यह बात साफ हो गई कि दिव्या की हत्या में कोई औरत भी शामिल थी. डौग टीम में आई स्निफर डौग गुड्डी लाश और हत्यास्थल को सूंघने के बाद सीधी दिव्या के घर तक जा पहुंची. इस से अंदेशा हुआ कि दिव्या की हत्या में घर का कोई व्यक्ति शामिल रहा होगा.

पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पंचनामा भर कर दिव्या की लाश को पोस्टमार्टम के लिए अलीगढ़ भिजवा दिया गया. पूछताछ में दिव्या के परिवार से किसी की दुश्मनी की बात सामने नहीं आई. अब सवाल यह था कि दिव्या की हत्या किसने और किस मकसद के तहत की थी.

हत्या का यह मुकदमा उसी दिन थाना गोंडा में अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत दर्ज हो गया. पोस्टमार्टम के बाद उसी शाम दिव्या का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

दूसरे दिन थानाप्रभारी ने महिला सिपाहियों के साथ पींजरी गांव जा कर व्यापक तरीके से पूछताछ की. दिव्या की तीनों चाचियों से भी पूछताछ की गई. सुभाष यादव अपने स्तर पर पहले दिन ही दिव्या की हत्या की वजह के तथ्य जुटा चुके थे. बस मजबूत साक्ष्य हासिल कर के हत्यारों को पकड़ना बाकी था.

दिव्या की सब से छोटी चाची मोना से जब चूडि़यों के बारे में सवाल किया गया तो उस ने बताया कि वह चूड़ी नहीं पहनती, लेकिन जब तलाशी ली गई तो उस के बेड के पीछे से लाल चूडि़यां बरामद हो गईं, जो घटनास्थल पर मिले चूडि़यों के टुकड़ों से पूरी तरह मेल खा रही थीं. सुभाष यादव का इशारा पाते ही महिला पुलिस ने मोना को पकड़ कर जीप में बैठा लिया. पुलिस उसे थाने ले आई.

थाने में थानाप्रभारी सुभाष यादव को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. मोना ने हत्या का पूरा सच खुद ही बयां कर दिया. सच सामने आते ही बिना देर किए गांव जा कर मोना के प्रेमी सोनू को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

सोनू के अलावा नगला मोनी के रहने वाले मनीष को भी धर दबोचा गया. दोनों को थाने ला कर पूछताछ के बाद हवालात में डाल दिया गया. दिव्या हत्याकांड के खुलासे की सूचना एसपी ग्रामीण संकल्प शर्मा और सीओ इगलास पंकज श्रीवास्तव को दे दी गई.

दोनों अधिकारियों ने थाना गोंडा पहुंच कर थानाप्रभारी सुभाष यादव को शाबासी देने के साथ अभियुक्तों से खुद भी पूछताछ की.

पूछताछ में मोना के साथ उस के प्रेमी सोनू व उस के दोस्त ने जो कुछ बताया वह कुछ इस तरह था-

दिव्या ने सोनू को मोना के साथ शारीरिक संबंध बनाते देख लिया था. उस ने चाचा के घर लौटने पर उसे सब कुछ सचसच बता देने की बात भी कही थी. उस समय बात खत्म जरूर हो गई थी. फिर भी डर यही था कि बाल बुद्धि की दिव्या ने अगर यह बात जयकिंदर को बता दी तो उस का क्या हश्र होगा, इसी से चिंतित मोना व सोनू ने योजना बनाई कि जयकिंदर के आने से पहले दिव्या की हत्या कर दी जाए.

दिव्या हर रोज मोना के साथ ही सोती थी और अलसुबह चाची के साथ दौड़ लगाने जाती थी. कभीकभी वह दौड़ने के लिए वहीं रुक जाती थीं. जब कि मोना अकेली लौट आती थी. दिव्या को दौड़ का शौक था, ये बात घर के सभी लोग जानते थे. इसी लिए हत्या में मोना का हाथ होने की संभावना नहीं मानी जाएगी, यह सोच कर मोना ने सोनू के साथ योजना बना डाली, जिस में सोनू ने दूसरे गांव के रहने वाले अपने दोस्त मनीष को भी शामिल कर लिया.

26 दिसंबर को सोनू व मनीष पहले ही वहां पहुंच गए. मोना दिव्या को ले कर जब डालचंद के खेत के पास पहुंची तो घात में बैठे सोनू और मनीष ने दिव्या को दबोच कर चाकुओं से वार करने शुरू कर दिए. दिव्या ने बचने के लिए मोना का हाथ पकड़ा, जिस से उस के हाथ से 2 चूडि़यां टूट कर वहां गिर गईं. हत्यारे उसे खींच कर खेत में ले गए, जहां गर्दन काट कर उस की हत्या कर डाली. इसी छीनाझपटी में दिव्या के कान का एक टौप्स भी गिर गया था और चप्पलें भी पैरों से निकल गई थीं.

दिव्या की हत्या के बाद ये लोग लाश को खींचते हुए लगभग 300 मीटर दूर गजेंद्र के खेत में ले गए. इस के बाद सभी अपनेअपने घर चले गए.

हत्यारा कितना भी चतुर हो फिर भी कोई न कोई सुबूत छोड़ ही जाता है. जो पुलिस के लिए जांच की अहम कड़ी बन जाता है. ऐसा ही साक्ष्य मोना की चूडि़यां बनीं, जिस ने पूरे केस का परदाफाश कर दिया.

रूपाली का घिनौना रूप, कौन बना उस का शिकार

Crime News in Hindi: 13 जून, 2017 को पुलिस कंट्रोलरूप (Control Room) द्वारा उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर (Jaunpur) की कोतवाली मड़िया हूं पुलिस को गांव सुभाषपुर में एक युवक की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. सूचना मिलते ही कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर नरेंद्र कुमार सिंह पुलिस बल के साथ सुभाषपुर गांव (Subhashpur Village) स्थित उस जगह पहुंच गए, जहां लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी. घटनास्थल केडीएस स्कूल के पीछे था. अब तक वहां गांव वालों की काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. लेकिन पुलिस को देखते ही लोग एक किनारे हो गए थे. नरेंद्र कुमार सिंह ने लाश का निरीक्षण शुरू किया. मृतक की हत्या किसी धारदार हथियार से बड़ी बेरहमी से की गई थी. उस की उम्र यही कोई 27-28 साल थी. देखने से ही वह गांव का रहने वाला लग रहा था.

पुलिस कंट्रोलरूम से इस घटना की सूचना पुलिस अधिकारियों को भी मिल गई थी. उसी सूचना के आधार पर एसपी भौलेंद्र कुमार पांडेय भी घटनास्थल पर आ गए थे. उन्होंने भी घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. काफी प्रयास के बाद भी लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी थी. मृतक के कपड़ों की तलाशी में भी कोई ऐसी चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की शिनाख्त हो सकती.

पुलिस लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने की तैयारी कर रही थी, तभी कोतवाली प्रभारी नरेंद्र कुमार सिंह एक बार फिर घटनास्थल का निरीक्षण बारीकी से करने लगे. इस का नतीजा यह निकला कि लाश से कुछ दूरी पर उन्हें एक टूटा हुआ सिम मिला. इस से जांच में मदद मिल सकती थी, इसलिए उन्होंने उसे सुरक्षित रख लिया.

एसपी भौलेंद्र कुमार पांडेय मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने का आदेश दे कर चले गए थे. इस के बाद नरेंद्र कुमार सिंह भी लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर थाने आ गए. थाने में उन्होंने अपराध संख्या 461/2017 पर अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने के लिए एसपी भौलेंद्र कुमार पांडेय ने थाना पुलिस की मदद के लिए क्राइम ब्रांच के अलावा सर्विलांस टीम को भी लगा दिया था. जांच को आगे बढ़ाते हुए नरेंद्र कुमार सिंह ने घटनास्थल से मिले सिमकार्ड पर लिखे नंबर के आधार पर संबंधित कंपनी से पता किया तो जानकारी मिली कि वह सिम महाराष्ट्र के जिला गढ़चिरौली के थाना देशाई के गांव तुलसी के रहने वाले पंकज का था. वह सिम महाराष्ट्र से खरीदा गया था.

इस का मतलब यह हुआ कि मृतक का आसपास के रहने वाले किसी से कोई संबंध था या फिर वह यहां घूमने आया था. उस का किस से क्या संबंध था, यह पता करने के लिए पुलिस ने नंबर पता कर के उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस नंबर से अंतिम नंबर पर जिस से बात हुई थी, उस का नाम सत्यम था.

13 जून को सत्यम की पंकज से कई बार बात हुई थी. यही नहीं, उस के नंबर की लोकेशन भी 13 जून को घटनास्थल की पाई गई थी. अब शक की कोई गुंजाइश नहीं रही. नरेंद्र कुमार सिंह ने सत्यम के नंबर को सर्विलांस पर लगवा कर उस की लोकेशन पता कराई, क्योंकि फोन करने पर उसे शक हो जाता और फरार हो सकता था.

सर्विलांस के आधार पर ही उन्होंने 24 जुलाई, 2017 की सुबह इटाए बाजार के आगे नहर की पुलिया के पास से सत्यम और उस के साथ एक युवक तथा एक युवती को गिरफ्तार कर लिया. तीनों एक मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे. बाद में पूछताछ में पता चला कि तीनों कहीं दूर भाग जाना चाहते थे, जिस से पुलिस उन्हें पकड़ न सके.

तीनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम सत्यम उर्फ छोटू गौड़, सचिन गौड़ उर्फ चिंटू और रूपाली बताए. इन में सत्यम और सचिन वाराणसी के थाना फूलपुर के गांव करियांव के रहने वाले थे. युवती का नाम रूपाली था. वह मृतक पंकज उर्फ प्रेम उर्फ बबलू की पत्नी थी. वह महाराष्ट्र के जिला गढ़चिरौली के थाना देशाई के गांव तुलसी की रहने वाली थी.

पुलिस ने तीनों से पूछताछ शुरू की तो थोड़ी हीलाहवाली के बाद उन्होंने पंकज की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने उन की मोटरसाइकिल संख्या यूपी65बी क्यू 7062 जब्त कर ली थी. इस के बाद इन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, दस्ताने भी बरामद कर लिए गए थे. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में तीनों ने पंकज की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

महाराष्ट्र के जिला गढ़चिरौली के थाना देशाई के गांव तुलसी का रहने वाला 28 साल का पंकज उर्फ प्रेम उर्फ बबलू उत्तर प्रदेश के जिला वाराणसी के थाना फूलपुर के गांव करियांव में आ कर रह रहा था. वह यहां शादीविवाहों या किसी अन्य कार्यक्रमों में डांस करता था. इसी से होने वाली आमदनी से उस का और उस के परिवार वालों का भरणपोषण हो रहा था. वह डांस कर के इतना कमा लेता था कि उस का और उस के परिवार का गुजारा आराम से हो रहा था.

करियांव में ही सत्यम उर्फ छोटू गौड़ भी रहता था. पंकज से उस की दोस्ती हो गई तो वह उस के घर भी आनेजाने लगा, घर आनेजाने से उन की दोस्ती तो गहरी हुई ही, पंकज की पत्नी रूपाली से भी उस की अच्छी पटने लगी. वह उसे भाभी कहता था. चूंकि सत्यम की शादी नहीं हुई थी, इसलिए जल्दी ही रूपाली पर उस का दिल आ गया. इस के बाद वह पंकज की अनुपस्थिति में भी उस के घर जाने लगा, क्योंकि उस के सामने वह दिल की बात नहीं कह सकता था.

आखिर एक दिन पंकज की अनुपस्थिति में सत्यम ने रूपाली से दिल की बात कह ही नहीं दी, बल्कि दिल की मुराद भी पूरी कर ली. एक बार मर्यादा भंग हुई तो सिलसिला चल निकला. दोनों को जब भी मौका मिलता, इच्छा पूरी कर लेते. पंकज इस सब से अंजान था. जिस पत्नी को ले कर वह अपने घरपरिवार से इतनी दूर आ गया था, उसी पत्नी ने उस से बेवफाई करने में जरा भी संकोच नहीं किया था.

पंकज की गैरमौजूदगी में सत्यम का आनाजाना कुछ ज्यादा बढ़ गया तो लोगों की नजरों में यह बात खटकने लगी. लोगों ने इस बात पर ध्यान दिया तो उन्हें मामला गड़बढ़ लगा. लोग इस बात को ले कर चर्चा करने लगे तो यह बात पंकज के कानों तक पहुंची. पहले तो उस ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब लोगों ने टोकाटाकी शुरू की तो उस ने सच्चाई का पता करना चाहा. इस के लिए उस ने एक योजना बनाई.

एक दिन वह रूपाली से कार्यक्रम में जाने की बात कह कर घर से निकला जरूर, लेकिन थोड़ी देर बाद अचानक वापस आ गया. अचानक पंकज को देख कर रूपाली घबरा गई. इस की वजह यह थी कि उस समय सत्यम उस के घर में ही मौजूद था. पंकज को देख कर सत्यम तो पिछवाड़े से भाग निकला, लेकिन रूपाली पकड़ी गई. उस की हालत ने सच्चाई उजागर कर दी. पंकज ने उसे खरीखोटी तो सुनाई ही, इतने से मन नहीं माना तो पिटाई भी कर दी.

रूपाली ने उस समय वादा किया कि अब वह फिर कभी ऐसी गलती नहीं करेगी. पंकज ने भी उस की बात पर विश्वास कर लिया. माफ करना उस की मजबूरी भी थी. आखिर उसे भी तो अपना घर बचाना था. उसे लगा कि गलती सभी से हो जाती है, रूपाली से भी हो गई. अब संभल जाएगी.

लेकिन रूपाली संभली नहीं, कुछ दिनों तक तो वह सत्यम से बिलकुल नहीं मिली. लेकिन धीरेधीरे दोनों लोगों की नजरें बचा कर फिर चोरीचुपके मिलने लगे. रूपाली पंकज से ऊब चुकी थी. वह पूरी तरह से सत्यम की हो कर रहना चाहती थी, इसलिए वह जब भी सत्यम से मिलती, एक ही बात कहती, ‘‘सत्यम, अब मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकती. इस तरह छिपछिप कर मिलना मुझे अच्छा नहीं लगता. मैं पूरी तरह तुम्हारी हो कर रहना चाहती हूं. चलो, हम कहीं भाग चलते हैं.’’

‘‘मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकता रूपाली, लेकिन थोड़ा शांति से काम लो. देखो, मैं कोई उपाय करता हूं.’’ जवाब में सत्यम कहता.

सत्यम उपाय सोचने लगा. उस ने जो उपाय सोचा, उस के बारे में एक दिन रूपाली से कहा, ‘‘रूपाली, क्यों न हम पंकज को हमेशाहमेशा के लिए रास्ते से हटा दें. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.’’

रूपाली पहले तो थोड़ा हिचकिचाई, लेकिन उस के बाद धीरे से बोली, ‘‘कहीं हम पकड़े न जाएं?’’

‘‘इस की चिंता तुम बिलकुल मत करो. उसे तो मैं ऐसा निपटा दूंगा कि किसी को कानोकान खबर नहीं होगी.’’ सत्यम ने कहा.

इस के बाद सत्यम ऐसा मौका ढूंढने लगा, जब वह अपना काम कर सके. 12 जून, 2017 को पंकज को कार्यक्रम में डांस करने के लिए थाना मडि़याहूं के गांव सुभाषपुर जाना था. वह अपनी पार्टी के साथ निकल भी गया.

पंकज के घर से निकलते ही रूपाली ने सत्यम को बता दिया. चूंकि वाराणसी और जौनपुर की सीमा सटी हुई है और मडि़याहूं तथा फूलपुर के बीच की दूरी तकरीबन 40 किलोमीटर है, इसलिए सत्यम रूपाली के सूचना देते ही अपने साथी सचिन के साथ सुभाषपुर गांव के लिए निकल पड़ा.

आधी रात के बाद लोगों की नजरें बचा कर सत्यम ने बहाने से पंकज को गांव के बाहर केडीएस स्कूल के पीछे बुलाया और सचिन की मदद से चाकू से उस की हत्या कर दी. इस के बाद पंकज के मोबाइल से उस का सिम निकाल कर तोड़ कर झाडि़यों में फेंक दिया और मोबाइल ले कर चला गया.

पंकज के अचानक गायब होने से उस के साथियों ने सोचा, शायद किसी बात से नाराज हो कर वह घर चला गया होगा और अपना मोबाइल भी बंद कर लिया होगा. पति के इस तरह गायब होने से रूपाली रोनेधोने का नाटक करती रही. काफी दिन बीत जाने के बाद भी जब पुलिस हत्यारों तक नहीं पहुंची तो उचित मौका देख कर उस ने सत्यम के साथ भाग जाने की योजना बना डाली.

संयोग से पुलिस ने उन्हें उसी दिन पकड़ लिया, जिस दिन सत्यम और रूपाली भाग रहे थे. मामले का त्या कर रूपाली और सत्यम को मिला क्या? पंकज तो जान से गया, लेकिन अब उन दोनों की जिंदगी भी अबखुलासा होने के बाद पुलिस ने अज्ञात की जगह सत्यम, सचिन और रूपाली को नामजद कर तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. सोचने वाली बात तो यह है कि पंकज की ह जेल में ही कटेगी?

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें