Mother’s Day 2024- कन्याऋण : कन्याऋण : क्या नेहा की शादी का फैसला सही साबित हुआ? – भाग 2

अनुभा की सलाह का उस की सास पर कोई असर नहीं हुआ. वह बोलीं, ‘बहू, यह जरूरी नहीं है कि जो तुम्हारी मौसेरी बहन के साथ हुआ, वैसा ही नेहा के साथ भी घटित हो. मुझे गोमती जीजी ने भरोसा दिया है कि उन के रिश्तेदार बहुत भले और नेक इनसान हैं, वे हमारी नेहा को बहुत प्यार से रखेंगे.’

‘मांजी दूसरे लोगों की बातों से तो हम अपनी नेहा के भविष्य का फैसला नहीं कर सकते,’ अनुभा बोली, ‘नेहा की शादी कर के हमें क्या लाभ होगा? कल को शादी के बाद वह गर्भवती हो गई और उस की संतान भी उस जैसी ही होगी तो कितनी मुसीबत हो जाएगी?’

अनुभा की बात सुन कर सास और भी झल्ला गईं. वह आवेश में बोलीं, ‘वाह बहू, तुम भी कितनी दूर की सोचती हो, तुम्हारी अपनी कोई बेटी नहीं है न इसीलिए तुम क्या जानो, कन्यादान का धर्म क्या होता है? कोई भी मां अपनी बेटी को जीवन भर कुंआरी नहीं रख सकती. मैं तो अब तक यही समझ रही थी कि नेहा को उस की दोनों छोटी भाभियां तो नहीं चाहतीं पर कम से कम तुम तो उस को दिल से चाहती हो पर आज तुम्हारी बातों को सुन कर लगा कि वह मेरा भ्रम था.

‘तुम्हें शायद इस बात की चिंता है कि नेहा की शादी के लिए तुम्हारे पति को 2-4 लाख रुपए की व्यवस्था करनी पड़ेगी पर तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है. तुम्हारे ससुरजी ने नेहा के जन्म के समय ही उस के विवाह के लिए 25 हजार की एफ.डी. करवा दी थी जो अब ब्याज समेत 5 लाख की है. मैं उसी से नेहा के विवाह की सारी व्यवस्था कर लूंगी.’

नवीन इतनी देर तक मौन रह कर दोनों की बातें सुन रहा था. अंत में वह अनुभा को डांटते हुए बोला, ‘तुम मां से क्यों बहस कर रही हो. जब उन को तुम्हारी बात ठीक नहीं लग रही है तो इस विषय पर चर्चा बंद करो.’

फिर नवीन मां से बोला, ‘मां, आप जो भी फैसला करेंगी, मुझे मान्य है. नेहा के विवाह के लिए रुपए की व्यवस्था की चिंता करने की आप को जरूरत नहीं है, मैं सारा इंतजाम कर दूंगा.’

2 माह बाद नेहा के विवाह की तारीख तय हो गई. इस बीच नवीन और उस के दोनों भाई नेहा के ससुराल जा कर लड़के और उस के परिवार से मिल आए. वहां से वापस लौटने के बाद नवीन ने नेहा की ससुराल वालों के लालचीपूर्ण रवैये और लड़के के दब्बूपन के बारे में मां को बता कर अपना असंतोष दिखाया था पर मां अपने निर्णय पर दृढ़ रही थीं.

विवाह की तैयारियों में व्यस्त अनुभा जब भी नेहा को देखती, उस की आंखें भर आतीं. नेहा शादीविवाह का असली मतलब क्या है, इस बात से पूरी तरह अनजान थी पर अपने लिए आए ढेर सारे सामान को देख कर उस की आंखें खुशी से चमक उठती थीं. वह बारबार अनुभा से पूछती, ‘भाभी, यह सारी चीजें मेरी हैं न? भाभी, बबलू, टीना, रीना और मिनी मुझे अपनी चीजें छूने नहीं देते. दोनों भाभियां भी मुझे अपना सामान नहीं देखने देतीं, अब मैं भी अपना सामान किसी को छूनेनहीं दूंगी.’ कभी नेहा कहती, ‘भाभी, शादी में मुझे भी घाघराचुन्नी पहनाओगी न.

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हां, साथ में

मैचिंग चूडि़यां भी पहनाना. मुझे लाल रंग बहुत अच्छा लगता है.’

नेहा की बालसुलभ जिज्ञासाएं देख कर कभी अनुभा सोचती, चलो, नेहा के जीवन में कभी तो खुशी के क्षण आए, चाहे थोडे़ समय के लिए ही सही. उस ने शादी के पहले नेहा को उस के वैवाहिक जीवन के बारे में भी जानकारी देने का प्रयास किया. उस का, अपने पति तथा ससुराल के दूसरे सदस्यों से कैसा व्यवहार हो, इस बारे में भी उसे विस्तार से समझाया.

नेहा उस की बातें सुन कर कुछ क्षण तो गंभीर हो जाती पर फिर अपनी वही बालसुलभ बातें और हरकतें करने लगती.

अनुभा को यह देख कर हैरानी होती कि ज्यादातर रिश्तेदार नेहा की शादी के फैसले पर उस की सास को बधाइयां देते हुए कहते, ‘चलो जी, आप ने तो बेटी की शादी कर के बहुत अच्छा किया. अब आप कन्याऋण से उऋण हो जाएंगी.’ उन की बातें सुन कर उस की सास अपने चेहरे पर गर्वीली मुसकान लाते हुए उस की ओर नजर डालती, ताकि उस को एहसास हो कि नेहा के विवाह का विरोध कर वह कितनी बड़ी गलती कर रही थी.

नेहा के ससुराल जाने के बाद घर एकदम सूना हो गया. उस की बालसुलभ हरकतें रहरह कर अनुभा को याद हो आतीं. मांजी भी नेहा के जाने के बाद से उदास रहने लगी थीं. यद्यपि वे सब के सामने अपनी मनोदशा जाहिर नहीं करतीं पर सब की तरह उन के मन में भी यह आशंका जरूर थी कि नेहा ससुराल में एडजस्ट हो पाएगी कि नहीं.

नेहा को ससुराल गए एक माह से अधिक हो गया था. शुरूशुरू में तो उस से हर दिन ही फोन पर बात हो जाती थी और वह खुश भी लगती थी पर धीरेधीरे उस की आवाज में उदासी छलकने लगी. अब फोन पर वह बोलने लगी थी, ‘भाभी, मुझे यहां अच्छा नहीं लगता. यह लोग सारे समय मुझे देख कर हंसते हैं और मुझे पागल कह कर चिढ़ाते हैं. ये सब बहुत गंदे हैं, राजेश भी इन के साथ मेरा मजाक उड़ाता है.’

नेहा की बातें सुन कर अनुभा को थोड़ी चिंता होनी लगी थी पर वह नेहा को यही समझाती कि वह जिद न करे. सब की बात माने.

पिछले एक सप्ताह से वे जब भी फोन करते नेहा के ससुराल वाले कोई न कोई बहाना बना कर उस से बात नहीं होने देते. कभी कहते, नेहा बाजार गई है, कभी बाथरूम में है तो कभी सो रही है. एक दिन नवीन ने राजेश से बात करने की कोशिश की पर वह भी उन से बात करने से कतराता रहा.

उस दिन रविवार था. नवीन, मांजी और अनुभा ड्रांइगरूम में बैठे नेहा की ही बात कर रहे थे कि नवीन बोला, ‘मां, आज एक बार मैं फिर नेहा से बात करने की कोशिश करता हूं, यदि आज भी उस से बात नहीं हो पाती है तो मैं कल नेहा को कुछ दिनों के लिए उस के ससुराल से ले कर आने की सोच रहा हूं.’

इतना कह कर नवीन नेहा के ससुराल फोन डायल करने लगा. संयोग से उस दिन नेहा ने ही फोन उठाया था.

नवीन की आवाज सुनते ही वह फोन पर ही जोरजोर से रो पड़ी, ‘भैया, आप लोग फोन क्यों नहीं करते? आप यहां से मुझे ले जाओ. ये लोग बहुत खराब हैं. मुझे बहुत तंग करते हैं. मैं इन के पास नहीं रहूंगी.’

नेहा आगे कुछ कहती उस के पहले ही किसी ने रिसीवर उस के हाथ से छीन कर रख दिया था.

अब तो कुछ सोचने का प्रश्न ही नहीं था. उन लोगों ने तय किया कि शाम की ट्रेन से ही नवीन और अनुभा नेहा के ससुराल जा कर एक बार वस्तुस्थिति की जानकारी लें. नेहा की बात सुन कर घर में सब का ‘मूड’ खराब हो गया था.

सुबह अचानक अपने घर में नवीन और अनुभा को देख कर नेहा के ससुराल वाले सकपका गए. नेहा को जब उन के आने का पता चला तो वह दौड़ती हुई आई और नवीन को देखते ही उस से लिपट गई. नेहा की आंखों में दहशत और खौफ देख कर दोनों घबरा गए और अनुभा ने ज्यों ही उस की पीठ पर हाथ फेरा, वह जोरजोर से सुबक पड़ी. बारबार एक ही बात दोहरा रही थी, ‘भाभी, मुझे अपने साथ ले चलो, ये सब लोग बहुत गंदे हैं. मैं इन के घर कभी नहीं आऊंगी.’

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Mother’s Day 2024- कन्याऋण : नेकन्याऋण : क्या नेहा की शादी का फैसला सही साबित हुआ? – भाग 3

नेहा को इस तरह रोते देख कर एक बार तो उस की सास और ससुराल के दूसरे लोग घबरा गए पर तुरंत ही उस की सास अपने को संभालती उन पर हावी होने का प्रयास करते हुए बोली, ‘आप लोगों ने मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा किया है. मुझ से कहा गया था कि लड़की थोड़ी भोली और नादान है पर शादी के बाद पता चला कि आप की बहन तो मानसिक रूप से अविकसित है. हम लोगों ने फिर भी इस को समझाने और निभाने की बहुत कोशिश की पर यह तो बहुत ही जिद्दी और ढीठ है. अच्छा हुआ, आप खुद अपनी बहन को लेने आ गए, वरना हमें इस को आप के पास पहुंचाना पड़ता.’

नेहा की सास को समझाने का प्रयास करते हुए नवीन ने कहा, ‘मांजी, हम लोगों ने तो गौतमी मौसी के माध्यम से सारी बातों का पहले ही खुलासा कर दिया था पर उस समय तो आप ने इस रिश्ते से इनकार नहीं किया बल्कि नेहा को अपनाने के एवज में हम से दहेज के अलावा 3 लाख रुपए नकद अलग से मांगे थे, जो हम ने आप को दिए, फिर धोखे में रखने का प्रश्न ही कहां उठता है?’

‘3 लाख रुपए दे कर आप ने मुझ पर कोई एहसान नहीं किया है,’ नेहा के जेठ ने जोर से कहा, ‘राजेश के लिए तो इस से भी अधिक दहेज देने वालों के प्रस्ताव आ रहे थे पर मेरी ही मति फिर गई थी कि मैं आप के झांसे में आ गया. अब मुझे आप से कोई बहस नहीं करनी, आप अपनी बहन को ले कर लौट जाएं तो बेहतर होगा.’

इसी बीच नेहा के ससुर और ननदोई भी आ गए. नवीन और अनुभा को अचानक अपने घर में देख कर वे हैरान लग रहे थे. नेहा के ससुर ने उस के ननदोई का जैसे ही नवीन से परिचय कराया और वह हाथ मिलाने के लिए नवीन की तरफ बढ़ा, नेहा नवीन को अपनी ओर खींचते हुए चिल्ला पड़ी, ‘भैया, इस के पास मत जाना, यह बहुत खराब है. इस ने जैसे मुझे काटा था, आप को भी काट लेगा.’

नेहा क्या कह रही है, एक बार तो किसी को समझ में नहीं आया. लेकिन उस के ननदोई जरूर सकपका गए थे पर नेहा फिर उस की ओर इशारा करते हुए बोली, ‘भैया, इस को मारो, यह बहुत गंदा है. जब राजेश अपनी मां के साथ बाहर गया हुआ था तो इस ने जबरन मेरे कमरे में घुस कर मेरे साथ बहुत गंदी हरकतें कीं और मैं ने जब इसे रोका तो इस ने मुझे काटा और मेरे सारे कपड़े उतार कर मेरे साथ जबरदस्ती की,’ इतना बताते हुए नेहा अपनी साड़ी का पल्ला फेंकते हुए अपने ब्लाउज को खोल अपने शरीर पर जगहजगह काटे और खरोंचों के निशान दिखाने लगी.

नेहा के इस रहस्योद्घाटन से कमरे में सन्नाटा सा छा गया. उस के ससुराल वालों की निगाहें झुक गईं. खासकर उस के ननदोई का तो बुरा हाल था. नवीन ने दोनों हाथों से अपनी आंखों को ढांपते हुए अनुभा से कहा, ‘अनुभा प्लीज, नेहा को कमरे में ले जा कर उस के कपड़े ठीक करो. अब हमें एक पल भी यहां नहीं ठहरना है.’

नेहा के ससुर ने इतना कुछ हो जाने पर भी नेहा की बात को झुठलाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘नेहा एकदम झूठ बोल रही है. हमारे जवांई बाबू तो बहुत नेक और शरीफ इनसान हैं, वह भला ऐसी गंदी हरकत क्यों करेंगे?’

नवीन ने उन की ओर घृणा से देखते हुए कहा, ‘मुझे आप की कोई सफाई नहीं सुननी है. मेरी बहन कभी भी झूठ नहीं बोलती. मेरी बहन के साथ जो घिनौना और वहशियाना कुकर्म आप के घर में हुआ है, उस के लिए शर्मिंदगी या अफसोस जाहिर करने के बजाय आप फिर झूठ बोल कर मुझ पर हावी होना चाहते हैं, धिक्कार है आप लोगों को. पिछले सप्ताह भर से आप नेहा को हम से बात नहीं करने दे रहे थे, तभी मुझे दाल में कुछ काला होने का शक हो गया था पर अपने ही घर की बहूबेटियों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार आप लोग करेंगे, इस की मैं ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी.’

नवीन ने वहां से उठते हुए बेहद दुखी मन से कहा, ‘आज से हमारे बीच के सारे रिश्ते खत्म हो गए. ऐसे दरिंदे और हैवान लोगों के बीच अपनी बहन को छोड़ने के बजाय मैं उसे आजीवन अपने घर में रखना बेहतर समझूंगा. पर यह याद रखें, मैं इतनी आसानी से आप को छोड़ने वाला नहीं. आप की इस हरकत के लिए आप को जेल की हवा नहीं खिलाई तो मेरा भी नाम नवीन नहीं.’

नवीन की इस धमकी से नेहा के सासससुर घबरा गए. उन्होंने हाथ जोड़ कर नवीन को शांत करने का प्रयास किया पर वह यह कहते हुए उठ गया कि मुझे आप से अब कोई बहस नहीं करनी है. मैं अपनी बहन को हमेशा के लिए ले कर जा रहा हूं.

नेहा के साथ भारी मन से वे घर लौट आए थे. मांजी ने जब नेहा को देखा और उस के साथ हुए हादसे के बारे में सुना तो वह सिर थाम कर बैठ गई थीं.

बहुत देर बाद जब वे सामान्य हुईं तो बोलीं, ‘बेटा, यह सब मेरी वजह से हुआ है. मैं मां होते हुए भी अपनी बेटी का सब से बड़ा अहित कर गई. तुम लोगों की बात मान कर नेहा के  विवाह के लिए जिद नहीं करती तो आज मेरी बेटी की यह दुर्दशा नहीं होती. कन्याऋण से उऋण होने के बदले मैं तो तन, मन, धन तीनों से हाथ धो बैठी.’

नेहा के बारे में सोचतेसोचते अनुभा इतनी खो गई कि उस को समय का पता ही नहीं चला. नेहा ने जब आ कर उसे बताया कि मां बुला रही हैं तो वह यथार्थ की दुनिया में वापस आई.

अनुभा मांजी को गंभीर देख कर उन के पास जा कर बैठ गई. मांजी की आंखों में अभी भी आंसू थे. अपने आंसू पोंछते हुए वह बोलीं, ‘‘अनुभा, तुम जब से नेहा को डाक्टर के पास दिखा कर आई हो, मुझे चिंता लग रही है. बेटी, तुम मुझ से लाख छिपाओ पर मैं हकीकत जान गई हूं.’’

मांजी से नजरें चुराते अनुभा बोली ‘‘मांजी आप व्यर्थ ही चिंता कर रही हैं…’’

मांजी ने उस को बीच में ही टोका, ‘‘बेटी, उम्र में तुम से बड़ी होने के कारण मेरे जीवन के अनुभव भी तुम से अधिक हैं. तुम्हारा नजरें चुरा कर मुझ से बात करना मेरे विश्वास को पुख्ता करता है. मैं चाहती हूं कि अब अधिक समय सोचने में नष्ट करने से बेहतर है कि इस समस्या का अविलंब समाधान हो.’’ अपना गला साफ कर के मांजी फिर बोलीं, ‘‘नेहा जब अपना रखरखाव भी ठीक से करने में असमर्थ है तो इस स्थिति में वह मां बनने की जिम्मेदारी कैसे संभाल सकती है? ससुराल के लोग कैसे हैं यह तुम देख कर आई हो. इसीलिए मैं ने सारी स्थितियों पर विचार कर के ही यह फैसला किया है कि हम जितनी जल्दी नेहा को इस समस्या से मुक्ति दिलवा दें, उतना ही बेहतर है. यह शायद मेरा सब से बड़ा प्रायश्चित होगा.’’

अनुभा, मांजी में आए इस अप्रत्याशित बदलाव को देख कर हैरान थी. डेढ़ 2 माह पहले जो महिला कन्यादान के ऋण से उऋण होने तथा किसी भी हालत में बेटी को कुंआरी नहीं रखने की पुरातन विचारधारा में विश्वास करती थी, आज वह अचानक ही इतनी आधुनिक और व्यावहारिक कैसे हो गईं? खैर, जो भी हो मांजी का यह बदलाव उसे बहुत समयोचित लगा.

Mother’s Day 2024- कन्याऋण : कन्याऋण : क्या नेहा की शादी का फैसला सही साबित हुआ? – भाग 1

नेहा के ससुराल से लौट कर आने के बाद से ही मांजी बहुत दुखी और परेशान लग रही हैं. बारबार वह एक ही बात कहती हैं, ‘‘अनुभा बेटी, काश, मैं ने तुम्हारी बात मान ली होती तो आज मुझे यह दिन नहीं देखना पड़ता. तुम ने मुझे कितना समझाया था पर मैं अपने कन्याऋण से उऋण होने की लालसा में नेहा की जिंदगी से ही खिलवाड़ कर बैठी. अब तो अपनी गलती सुधारने की गुंजाइश भी नहीं रही.’’

अनुभा समझ नहीं पा रही थी कि मांजी को कैसे धीरज बंधाए. जब से उस ने नेहा को सुबहसुबह बाथरूम में उलटियां करते देखा उस का माथा ठनक गया था और आज जब डा. ममता ने उस के शक की पुष्टि कर दी तो लगता है अनर्थ ही हो गया.

डाक्टर के यहां से लौटने के बाद मांजी ने जब उस से पूछा तो उन की मानसिक अवस्था को देखते हुए वह उन से सच नहीं बोल पाई और यह कह दिया कि एसिडिटी के कारण नेहा को उलटियां हो रही थीं. लेकिन अनुभा को लगा था कि उस की सफाई से मांजी के चेहरे से शक और संदेह के बादल छंट नहीं पाए थे. उन्हें सच क्या है, इस का आभास हो गया था.

सहसा अनुभा की नजरें नेहा की ओर उठीं. वह सारी चिंताओं से अनजान अपनी गुडि़या से खेल रही थी. उस के साथ क्या हो रहा था और आगे क्या होगा? उस का जरा सा भी एहसास उसे नहीं था. अबोध नेहा को देख कर तो उस का मन यह सोच कर और भी खराब हो गया कि कैसे वह भविष्य में आने वाली मुश्किलों का सामना कर पाएगी.

यद्यपि नेहा उस की ननद है पर अनुभा ने सदैव उसे अपनी बेटी की तरह ही समझा है. जब शादी होने के बाद अनुभा ससुराल आई थी, उस समय नेहा 4 साल की रही होगी.

ससुराल आने पर अनुभा ने जब पहली बार नेहा को देखा, तभी उस के प्रति उस के मन में सहानुभूति और प्रेम जाग उठा था, क्योंकि मायके में उस के घर के पास ही मंदबुद्धि और मानसिक रूप से विकलांग बच्चों का एक स्कूल था. इस कारण ऐसे बच्चों के मनोभावों से उस का पूर्व परिचय रहा था. वह जानती थी कि नेहा का बौद्धिक और शैक्षणिक विकास आम बच्चों की तरह नहीं हो सकता इसलिए नेहा की सारी जिम्मेदारियां उस ने शुरू से ही अपने ऊपर ले ली थीं.

अनुभा ने नेहा को मानसिक रूप से अविकसित बच्चों के विशेष मनो- चिकित्सा केंद्र में प्रवेश भी दिलवाया था ताकि अपने समान बच्चों के बीच रह कर उस में किसी प्रकार की हीनभावना नहीं आ पाए. वह नेहा को घर पर भी उस की समझ के अनुसार कभी माला पिरोने, कभी पेंटिंग करने तो कभी घर के छोटेमोटे कामों में व्यस्त रखती थी.

नेहा को भी शुरू से ही अनुभा से गहरा लगाव हो गया था. वह हर समय भाभीभाभी कह कर उस के इर्दगिर्द घूमती रहती. जबकि नेहा की नासमझी की हरकतों से तंग आ कर कई बार मांजी अपना आपा खो कर उस पर हाथ उठा देतीं. उस के भाई तथा दूसरी भाभियां भी नेहा को बातबात में टोकते या डांटते रहते थे.

नेहा उम्र में जरूर बड़ी हो रही थी पर उस की बुद्धि और समझ तो 5-6 साल के बच्चे जितनी हो कर ठहर गई थी. घर में नेहा को किसी की भी डांट पड़ती तो वह भाग कर अनुभा के पास चली आती. वह कभी उसे प्यार से समझाती तो कभी गंभीर हो कर उस की गलती का एहसास करवाने का प्रयास करती.

नेहा 18 वर्ष की हो गई. उस की हमउम्र लड़कियों के जब शादीविवाह होने लगे तो वह भी कभीकभी बहुत भोलेपन से उस से पूछती, ‘भाभी, मेरा विवाह कब होगा? मेरा दूल्हा घोड़ी पर बैठ कर कब आएगा?’

वह नेहा को समझाती, ‘अभी तो तुम्हें पढ़लिख कर बहुत होशियार बनना है, फिर कहीं जा कर तुम्हारा विवाह होगा.’ नेहा उस के इस तरह समझाने पर संतुष्ट हो कर सबकुछ भूल कर खेलने में व्यस्त हो जाती पर नेहा के ऐसे सवाल उसे अकसर भविष्य की चिंता में डाल जाते.

एक दिन सास ने उस के पति नवीन के सामने नेहा के विवाह का प्रसंग छेड़ते हुए बताया कि उन की पड़ोसिन गोमती देवी ने अपने रिश्ते के चाचा के बेटे के लिए नेहा के रिश्ते की बात चलाई है. मांजी के मुंह से अचानक नेहा के विवाह की चर्चा सुन कर नवीन और अनुभा दोनों ही अवाक् रह गए.

नवीन ने कहा भी, ‘मां, नेहा जिस स्थिति में है, उस का विवाह करना क्या उचित होगा? दूसरे, क्या वे लोग नेहा के बारे में सबकुछ जानते हैं. यदि उन लोगों को अंधेरे में रख कर हम ने विवाह किया तो यह रिश्ता कितने दिन निभ पाएगा?’

नवीन की बातों को सुन कर मांजी एक बार तो गंभीर हो गईं, फिर कुछ सोच कर बोलीं, ‘बेटा, मैं ने गोमती देवी से सारी बात स्पष्ट करने के बाद ही तुम्हारे सामने इस रिश्ते की बात छेड़ी है. लड़के के एक पांव में पोलियो होने की वजह से वह बैसाखी से चलता है. उन लोगों ने इस संबंध को स्वीकार करने के बदले में 3 लाख रुपए नकद मांगे हैं, बाकी जो कुछ दहेज में हम नेहा को दें, वह हमारी इच्छा है. अब जब अपनी बेटी में ही कमी है तो हमें थोड़ा झुकना तो पडे़गा ही.’

मांबेटे की बातचीत सुन रही अनुभा अब स्वयं को रोक नहीं सकी और बोली, ‘मांजी, बीच में बोलने के लिए मैं क्षमा चाहूंगी पर मैं एक बात जरूर कहना चाहूंगी कि नेहा के विवाह का फैसला करने से पहले हमें एक बार सारी स्थितियों पर गंभीरता से विचार कर लेना चाहिए.’

‘सारी स्थितियों को स्पष्ट करने से तुम्हारा तात्पर्य क्या है बहू?’ मांजी ने उसे टोकते हुए पूछा.

‘मांजी, मेरे कहने का मतलब है कि दूसरों के बहलावे में आ कर हमें नेहा की शादी का फैसला नहीं करना चाहिए. मैं ने तो अपनी मौसी की लड़की को देखा है. उस की स्थिति भी कमोबेश नेहा जैसी ही थी. मेरी मौसी ने रुपयों का लालच दे कर एक गरीब घर के लड़के से अपनी बेटी का विवाह कर दिया पर शादी के 2 माह बाद ही उस के ससुराल वालों ने उसे यह कहते हुए वापस लौटा दिया कि उस कम दिमाग लड़की के साथ उन के बेटे का निभाव नहीं हो सकता. उन्होंने मेरी मौसी के रुपए भी हड़प लिए और उन की बेटी को भी वापस भेज दिया. मांजी, मुझे डर है कि हमारी नेहा के साथ भी ऐसा ही कुछ न घट जाए.’

Holi 2024: सतरंगी रंग

Story in Hindi

Holi 2024 सतरंगी रंग: कैसा था पायल का जीवन- भाग 1

पायल ने उस दिन सुबह से ही घर में हंगामा खड़ा कर रखा था. वह तेजतेज चिल्ला कर बोले जा रही थी, ‘‘भाई को बचपन से इंगलिश के प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया है. चलो, मु झे हिंदी मीडियम में पढ़ाया तो कोई बात नहीं, लेकिन अब मैं जो करना चाहती हूं, सब कान खोल कर सुन लो, वह मैं कर के ही रहूंगी.’’

‘‘मगर, तू ठहरी लड़की. तु झे यहीं रह कर जो करना है कर, वह ठहरा लड़का,’’ दादी की यह बात सुन कर पायल उन्हें चुप कराते हुए बोली, ‘‘दादी, आप तो चुप ही रहिए. जमाना कहां से कहां चला गया और आप की घिसीपिटी सोच अभी तक नहीं बदली.’’

पायल एकबारगी दादी को इतना सब बोल तो गई, पर अचानक उसे लगा कि उस ने दादी को कुछ ज्यादा ही बोल दिया है, इसलिए वह मन में पछतावा करते हुए दादी के गले में हाथ डाल कर बोली, ‘‘अरे मेरी प्यारी दादी, सौरी,’’ फिर उस ने अपने दोनों कान पकड़ लिए थे.

दादी के गाल सहलाते हुए पायल बोली, ‘‘जमाना बहुत बदल गया है दादी. अब लड़कियां वे सब काम कर रही हैं, जो पहले सिर्फ लड़के करते थे. दादी, आज हम सब को भी अपनी सोच बदलने की जरूरत है.’’

गांव में कहीं भी कोई भी रूढि़वादी बातें करता, तो पायल उस से उल झ जाती. कई बार तो घर में ही किसी न किसी से किसी न किसी बात पर उस की कहासुनी हो जाती.

इस के बाद पायल अपने होस्टल चली गई. वहां वह अपनी 12वीं जमात की तैयारी में जुटी हुई थी. कुछ महीने बाद ही उस के इम्तिहान शुरू होने वाले थे. उस दिन वह बैठीबैठी सोच रही थी, ‘मैं अपनी जिद पर इतनी दूर पढ़ने आई हूं. मम्मीपापा ने मु झ पर भरोसा कर के ही परदेश में पढ़ने भेजा है. मु झे कुछ तो ऐसा कर के दिखाना चाहिए, जिस से मेरे मम्मीपापा का सिर गर्व से ऊंचा हो सके,’ अभी वह यह सब सोच ही रही थी कि उस के घर से फोन आ गया. उस ने  झट से मोबाइल उठाया और बोल उठी, ‘‘मैं अभी आप सब को याद ही कर रही थी.’’

पर यह क्या, उधर से तो कोई और ही बोल रहा था. किसी अनजान शख्स की आवाज सुन कर पायल घबरा गई.

‘‘अरे, आप कौन बोल रहे हैं?’’ उस के इतना पूछने पर उधर से आवाज आई, ‘हम तुम्हारे पड़ोसी मदन चाचा बोल रहे हैं. तुम्हारी मम्मी की तबीयत ज्यादा खराब हो गई है, तुम तुरंत यहां आ जाओ.’

पायल घबराते हुए मदन चाचा से पूछ बैठी, ‘‘आखिर हुआ क्या है मेरी मां को?’’

जवाब में मदन चाचा ने बस इतना ही कहा, ‘अरे बिटिया, तुम बस जल्दी से घर आ जाओ.’

पायल फिर कुछ परेशान सा होते हुए बोली, ‘‘चाचा, मेरी पापा से बात तो कराओ.’’

इस पर मदन चाचा ने कहा, ‘पापा अभी यहां नहीं हैं. वे डाक्टर साहब को लेने गए हैं.’

मोबाइल फोन अपनी जेब में रखते हुए पायल ने जल्दी से बैग में 3-4 जोड़ी कपड़े डाले और फटाफट चल पड़ी रेलवे स्टेशन की ओर. उस के मन में तरहतरह की बातें आ रही थीं. रास्ते में वह थोड़ीथोड़ी देर में अपने पापा व चाचा के मोबाइल पर काल करती रही, पर कोई भी उस की काल नहीं उठा रहा था. इस से उस के मन की बेचैनी और भी बढ़ती जा रही थी.

घर के दरवाजे पर काफी भीड़ देख कर पायल की बेचैनी और भी बढ़ गई. वह आपे से बाहर हो गई. उस के कदमों की रफ्तार और भी तेज हो गई. वह एक ही सांस में अपने घर तक पहुंच गई.

पायल ने देखा कि उस की मां को जमीन पर लिटा कर रखा गया था. उन के चारों ओर गांव की कई औरतें बैठी हुई थीं.

इतना देखते ही वह दहाड़ें मारमार कर रोने लगी. वह अपनी दादी से चिपक कर फूटफूट कर रो पड़ी. वह उन से पूछती जाती, ‘‘मां को क्या हो गया… मेरी मां कहां चली गईं मु झे छोड़ कर.’’

पायल दादी के सामने सवालों की  झड़ी लगाती चली जा रही थी, पर दादी के पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं था.

रूपा चाची ने पायल को चुप कराते हुए कहा, ‘‘चुप हो जा पायल बेटी,’ और फिर वे खुद भी फूटफूट कर रोने लगीं.

रूपा चाची रोतेरोते ही बोलीं, ‘‘अचानक ही सबकुछ हो गया. पता ही नहीं चला कि क्या हुआ था दीदी को. डाक्टर ने आ कर देखा तो बताया कि इन की तो सांस ही बंद हो चुकी है.’’

उस समय पायल को रहरह कर अपनी मां की सभी बातें याद आ रही थीं और रोना भी आ रहा था.

वहां मौजूद सभी औरतें आपस में बातें कर रही थीं कि पायल की मां बहुत ही सौभाग्यशाली थीं, जो वे सुहागिन हो कर अपने पति के कंधे पर सवार हो कर जाएंगी.

ये सब बातें पायल भी सुन रही थी. वह मन ही मन सोचने लगी, ‘इन औरतों को भी कुछ न कुछ बकवास करने को चाहिए. मेरी मां चली गईं और इन सब को उन के सौभाग्य की बातें सू झ रही हैं.’

थोड़ी ही देर में पायल की मां को नहलाधुला कर उन का खूब साजशृंगार किया गया और फिर उन्हें श्मशान घाट ले जाया गया.

मां की मौत के कुछ दिनों बाद से ही पायल के रिश्तेदारों ने उस की दादी से कहना शुरू कर दिया कि अभी सुकेश की उम्र ही क्या है? अभी तो 45 भी पार नहीं किया है उस ने और यह सब हो गया. वह अकेले बेचारा कैसे गुजारेगा अपनी इतनी लंबी जिंदगी? अब उस की दूसरी शादी कर देनी चाहिए.

पायल की दादी को भी लगने लगा था कि सभी ठीक ही तो कह रहे हैं. पायल से भी अपने पापा की उदासी देखी नहीं जा रही थी.

पायल कुछ दिन घर में रह कर होस्टल वापस चली गई. वहां जा कर वह इम्तिहानों की तैयारी में जुट गई.

कुछ महीने बाद ही दादी ने एक बड़ी उम्र की लड़की देख कर पायल के पापा की शादी तय कर दी. शादी की सूचना पायल को भी भेज दी गई.

पायल को जब यह खबर मिली तो वह खुश हुई और सोचने लगी कि मां के जाने के बाद पापा सचमुच अकेले हो गए थे. अब दूसरी शादी हो जाने से उन का अकेलापन दूर हो जाएगा.

पायल इम्तिहान दे कर शादी के समय घर आ गई. उस के पापा की शादी सारे रस्मोरिवाज के साथ बड़ी धूमधाम से हुई. घर में नई दुलहन का स्वागत भी बड़े जोरशोर से हुआ. पायल खुश थी, क्योंकि वह नए खयालों वाली लड़की थी. उसे घिसेपिटे रीतिरिवाज और रूढि़यों से चिढ़ थी.

कुछ समय बाद पायल फिर से अपने होस्टल वापस चली गई और वहां जा कर अपनी पढ़ाई में मसरूफ हो गई.

पर यह क्या, अभी कुछ महीने ही बीते होंगे कि अचानक एक दिन पायल के पास घर से फोन आ गया. पता चला कि उस के चाचाजी सख्त बीमार हैं. उसे जल्द घर आने को कहा गया.

चाचाजी की बीमारी की खबर सुनते ही पायल के दिमाग में तरहतरह के खयाल आने लगे. वह सोचने लगी, ‘अब चाचाजी को क्या हुआ? अभी तो मैं उन्हें अच्छाखासा छोड़ कर आई थी.’

पायल मन में उल झन लिए होस्टल से निकल कर रेलवे स्टेशन पहुंची, फिर बस पकड़ कर अपने गांव पहुंची. आज फिर उस ने दूर से दरवाजे पर भीड़ लगी देखी, तो किसी अनहोनी के डर से?घबरा गई. जब वह घर के नजदीक पहुंची तो उस ने देखा कि उस के मदन चाचा की लाश जमीन पर रखी थी और उस की चाची दहाड़ें मारमार कर रो रही थीं.

इतना बहुत है: जिंदगी के पन्ने पलटती एक औरत

घर के कामों से फारिग होने के बाद आराम से बैठ कर मैं ने नई पत्रिका के कुछ पन्ने ही पलटे थे कि मन सुखद आश्चर्य से पुलकित हो उठा. दरअसल, मेरी कहानी छपी थी. अब तक मेरी कई कहानियां  छप चुकी थीं, लेकिन आज भी पत्रिका में अपना नाम और कहानी देख कर मन उतना ही खुश होता है जितना पहली  रचना के छपने पर हुआ था. अपने हाथ से लिखी, जानीपहचानी रचना को किसी पत्रिका में छपी हुई पढ़ने में क्या और कैसा अकथनीय सुख मिलता है, समझा नहीं पाऊंगी. हमेशा की तरह मेरा मन हुआ कि मेरे पति आलोक, औफिस से आ कर इसे पढ़ें और अपनी राय दें. घर से बाहर बहुत से लोग मेरी रचनाओं की तारीफ करते नहीं थकते, लेकिन मेरा मन और कान तो अपने जीवन के सब से महत्त्वपूर्ण व्यक्ति और रिश्ते के मुंह से तारीफ सुनने के लिए तरसते हैं.

पर आलोक को साहित्य में रुचि नहीं है. शुरू में कई बार मेरे आग्रह करने पर उन्होंने कभी कोई रचना पढ़ी भी है तो राय इतनी बचकानी दी कि मैं मन ही मन बहुत आहत हो कर झुंझलाई थी, मन हुआ था कि उन के हाथ से रचना छीन लूं और कहूं, ‘तुम रहने ही दो, साहित्य पढ़ना और समझना तुम्हारे वश के बाहर की बात है.’

यह जीवन की एक विडंबना ही तो है कि कभीकभी जो बात अपने नहीं समझ पाते, पराए लोग उसी बात को कितनी आसानी से समझ लेते हैं. मेरा साहित्यप्रेमी मन आलोक की इस साहित्य की समझ पर जबतब आहत होता रहा है और अब मैं इस विषय पर उन से कोई आशा नहीं रखती.

कौन्वैंट में पढ़ेलिखे मेरे युवा बच्चे तनु और राहुल की भी सोच कुछ अलग ही है. पर हां, तनु ने हमेशा मेरे लेखन को प्रोत्साहित किया है. कई बार उस ने कहानियां लिखने का आइडिया भी दिया है. शुरूशुरू में तनु मेरा लिखा पढ़ा करती थी पर अब व्यस्त है. राहुल का साफसाफ कहना है, ‘मौम, आप की हिंदी मुझे ज्यादा समझ नहीं आती. मुझे हिंदी पढ़ने में ज्यादा समय लगता है.’ मैं कहती हूं, ‘ठीक है, कोई बात नहीं,’ पर दिल में कुछ तो चुभता ही है न.

10 साल हो गए हैं लिखते हुए. कोरियर से आई, टेबल पर रखी हुई पत्रिका को देख कर ज्यादा से ज्यादा कभी कोई आतेजाते नजर डाल कर बस इतना ही पूछ लेता है, ‘कुछ छपा है क्या?’ मैं ‘हां’ में सिर हिलाती हूं. ‘गुड’ कह कर बात वहीं खत्म हो जाती है. आलोक को रुचि नहीं है, बच्चों को हिंदी मुश्किल लगती है. मैं किस मन से वह पत्रिका अपने बुकश्ैल्फ  में रखती हूं, किसे बताऊं. हर बार सोचती हूं उम्मीदें इंसान को दुखी ही तो करती हैं लेकिन अपनों की प्रतिक्रिया पर उदास होने का सिलसिला जारी है.

मैं ने पत्रिका पढ़ कर रखी ही थी कि याद आया, परसों मेरा जन्मदिन है. मैं हैरान हुई जब दिल में जरा भी उत्साह महसूस नहीं हुआ. ऐसा क्यों हुआ, मैं तो अपने जन्मदिन पर बच्चों की तरह खुश होती रहती हूं. अपने विचारों में डूबतीउतरती मैं फिर दैनिक कार्यों में व्यस्त हो गई. जन्मदिन भी आ गया और दिन इस बार रविवार ही था. सुबह तीनों ने मुझे बधाई दी. गिफ्ट्स दिए. फिर हम लंच करने बाहर गए. 3 बजे के करीब हम घर वापस आए. मैं जैसे ही कपड़े बदलने लगी, आलोक ने कहा, ‘‘अच्छी लग रही हो, अभी चेंज मत करो.’’

‘‘थोड़ा लेटने का मन है, शाम को फिर बदल लूंगी.’’

‘‘नहीं मौम, आज नो रैस्ट,’’ तनु और राहुल भी शुरू हो गए.

मैं ने कहा, ‘‘अच्छा ठीक है, फिर कौफी बना लेती हूं.’’

तनु ने फौरन कहा, ‘‘अभी तो लंच किया है मौम, थोड़ी देर बाद पीना.’’

मैं हैरान हुई. पर चुप रही. तनु और राहुल थोड़ा बिखरा हुआ घर ठीक करने लगे. मैं और हैरान हुई, पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ कोई कुछ नहीं बोला. फिर दरवाजे की घंटी बजी तो राहुल ने कहा, ‘‘मौम, हम देख लेंगे, आप बैडरूम में जाओ प्लीज.’’

अब, मैं सरप्राइज का कुछ अंदाजा लगाते हुए बैडरूम में चली गई. आलोक आ कर कहने लगे, ‘‘अब इस रूम से तभी निकलना जब बच्चे आवाज दें.’’

मैं ‘अच्छा’ कह कर चुपचाप तकिए का सहारा ले कर अधलेटी सी अंदाजे लगाती रही. थोड़ीथोड़ी देर में दरवाजे की घंटी बजती रही. बाहर से कोई आवाज नहीं आ रही थी. 4 बजे बच्चों ने आवाज दी, ‘‘मौम, बाहर आ जाओ.’’

मैं ड्राइंगरूम में पहुंची. मेरी घनिष्ठ सहेलियां नीरा, मंजू, नेहा, प्रीति और अनीता सजीधजी चुपचाप सोफे पर बैठी मुसकरा रही थीं. सभी ने मुझे गले लगाते हुए बधाई दी. उन से गले मिलते हुए मेरी नजर डाइनिंग टेबल पर ट्रे में सजे नाश्ते की प्लेटों पर भी पड़ी.

‘‘अच्छा सरप्राइज है,’’ मेरे यह कहने पर तनु ने कहा, ‘‘मौम, सरप्राइज तो यह है’’ और मेरा चेहरा सैंटर टेबल पर रखे हुए केक की तरफ किया और अब तक के अपने जीवन के सब से खूबसूरत उपहार को देख कर मिश्रित भाव लिए मेरी आंखों से आंसू झरझर बहते चले गए. मेरे मुंह से कोई आवाज ही नहीं निकली. भावनाओं के अतिरेक से मेरा गला रुंध गया. मैं तनु के गले लग कर खुशी के मारे रो पड़ी.

केक पर एक तरफ 10 साल पहले छपी मेरी पहली कहानी और दूसरी तरफ लेटेस्ट कहानी का प्रिंट वाला फौंडेंट था, बीच में डायरी और पैन का फौंडेंट था. कहानी के शीर्षक और पन्ने में छपे अक्षर इतने स्पष्ट थे कि आंखें केक से हट ही नहीं रही थीं. मैं सुधबुध खो कर केक निहारने में व्यस्त थी. मेरी सहेलियां मेरे परिवार के इस भावपूर्ण उपहार को देख कर वाहवाह कर उठीं. प्रीति ने कहा भी, ‘‘कितनी मेहनत से तैयार करवाया है आप लोगों ने यह केक, मेरी फैमिली तो कभी यह सब सोच भी नहीं सकती.’’ सब ने खुलेदिल से तारीफ की, और केक कैसे, कहां बना, पूछती रहीं. फूडफूड चैनल के एक स्टार शैफ को और्डर दिया गया था.

मैं भर्राए गले से बोली, ‘‘यह मेरे जीवन का सब से खूबसूरत गिफ्ट है.’’  अनीता ने कहा, ‘‘अब आंसू पोंछो और केक काटो.’’

‘‘इस केक को काटने का तो मन ही नहीं हो रहा है, कैसे काटूं?’’

नीरा ने कहा, ‘‘रुको, पहले इस केक की फोटो ले लूं. घर में सब को दिखाना है. क्या पता मेरे बच्चे भी कुछ ऐसा आइडिया सोच लें.’’

सब हंसने लगे, जितनी फोटो केक की खींची गईं, उन से आधी ही लोगों की नहीं खींची गईं.

केक काट कर सब को खिलाते हुए मेरे मन में तो यही चल रहा था, कितना मुश्किल रहा होगा मेरी अलमारी से पहली और लेटेस्ट कहानी ढूंढ़ना? इस का मतलब तीनों को पता था कि सब से बाद में कौन सी पत्रिका आई थी. और पहली कहानी का नाम भी याद था. मेरे लिए तो यही बहुत बड़ी बात थी.

मैं क्यों कुछ दिनों से उलझीउलझी थी, अपराधबोध सा भर गया मेरे मन में. आज अपने पति और बच्चों का यह प्रयास मेरे दिल को छू गया था. क्या हुआ अगर घर में कोई मेरे शब्दों, कहानियों को नहीं समझ पाता पर तीनों मुझे प्यार तो करते हैं न. आज उन के इस उपहार की उष्मा ने मेरे मन में कई दिनों से छाई उदासी को दूर कर दिया था. तीनों मुझे समझते हैं, प्यार करते हैं, यही प्यारभरी सचाई है और मेरे लिए इतना बहुत है.

अपना अपना नजरिया : शुभी का क्यों था ऐसा बरताव

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शादी की उम्र : शाहिदा ने क्यों फोड़े दिल के छाले

शाहिदा ने मोबाइल फोन पर फेसबुक में झांका कि कुछ नया तो नहीं और फिर कुलसुम को दिखाया कि वह अपनी डीपी में कैसी लग रही है. इस के बाद वह बोली, ‘‘हां कुलसुम, कल जो लड़का तुम्हें मैट्रीमोनियल साइट के मारफत मिला था और उस के घर वाले आए थे, उस में क्या हुआ?’’

‘‘और तो सब ठीक है शाहिदा आंटी,’’ कुलसुम बोली, ‘‘जरा एक अड़चन है.’’

‘‘कैसी अड़चन?’’ कुलसुम ने मोबाइल बंद किया और फिर गला साफ करते हुए बोली, ‘‘आंटी, यों तो लड़का खातेपीते घर का है, हैल्दी भी है और एमएनसी में नौकरी भी है, लेकिन…’’

कुलसुम कुछ कहतेकहते रुक गई, तो शाहिदा ने ही बात आगे बढ़ाई, ‘‘क्या चालचलन ठीक नहीं है?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. लड़का बहुत शरीफ है. पर एक तो पापा का हाथ तंग है और लड़का तलाकशुदा है. पहली से उस का 3-4 साल का बच्चा भी है. कस्टडी तो मां के पास है, पर हर हफ्ते एक रात के लिए आता है, इसलिए जरा हिचकिचाहट हो रही है.’’

इस बार शाहिदा उठी और खिड़की के बाहर खड़ी हो कर कुछ सोचने लगी. फिर आ कर बोली, ‘‘देखो कुलसुम, तुम पैसों की परवाह मत करो. पापा को कहो कि जितनी रकम चाहिए, मुझ से ले लें. धीरेधीरे अदा कर देना. और तलाकशुदा जैसी जरा सी बात के लिए अच्छे लड़के को मत ठुकराओ. बच्चे को एक और मां का प्यार दे कर अपने पति का दिल जीतो.’’

कुलसुम ने शाहिदा की ओर देखा और बोली, ‘‘शाहिदा आंटी, एक सवाल पूछूं?’’

शाहिदा ने एक सवालिया निगाह से देखा, तो कुलसुम ने कहा, ‘‘माफ करें, मेरा सवाल आप की निजी जिंदगी से जुड़ा है. आप किसी भी लड़की की शादी कराने में बहुत ज्यादा दिलचस्पी लेती हैं, रुपएपैसों की मदद भी करती हैं. मेरी कई सहेलियों के साथ आप ने ऐसा किया है. लेकिन मालदार और अच्छी नौकरी के बावजूद भी आप कुंआरी रह गईं, ऐसा क्यों हुआ?’’

अचानक अधेड़ उम्र की शाहिदा की आंखें छलछला आईं. कुलसुम को लगा कि शायद उस ने यह सब पूछ कर अच्छा नहीं किया. वह उठते हुए बोली, ‘‘आंटी माफ करना, शायद मैं कुछ गलत पूछ गई. आप का दिल दुखाने का मेरा इरादा कतई नहीं था.’’

‘‘नहींनहीं, बैठो कुलसुम. मैं आज तुम्हें सबकुछ बताऊंगी,’’ शाहिदा एक टिशू से आंखें पोंछती हुई बोलीं, ‘‘मैं अपने अमीर मांबाप की एकलौती लड़की थी. लाड़प्यार से पलने की वजह से और अमीर घराना होने से थोड़ा गुमान मुझ में भी आ गया था.

‘‘जब मैं 15 साल की हुई, तो मैं ने पाया कि चौकीदार का जवान लड़का, जो देखने में भलाचंगा था, मेरी तरफ खिंचने लगा था और एक दिन मौका पा कर उस ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा था, ‘शाहिदा, मैं आप को दिलोजान से चाहता हूं. मैं आप के लिए कुछ भी कर सकता हूं.’

‘‘मैं ने फुरती से अपना हाथ छुड़ा कर एक चांटा उस के गाल पर मारा और कहा, ‘तो डूब मर चुल्लू भर पानी में. अपनी औकात देखी है. हमारे टुकड़ों पर पलने वाला हम पर ही डोरे डाल रहा है.’

‘‘वह बेचारा फिर कभी दिखाई नहीं दिया. अपनी जिंदगी में आए प्यार के इस पाले इजहार को मैं बिलकुल भूल गई. जब मैं 19 साल की हुई, तो रिश्ते के एक चाचा ने अपने बेटे से मेरा निकाह करने की बात चलाई. उन के बेटे में कोई कमी नहीं थी. हां, यह बात जरूर थी कि वे हमारी बराबरी के नहीं थे. फिर लड़का मामूली किरानी था. मुझ पर उन दिनों एमबीए करने का भूत सवार था.

‘‘उन की बात सुन कर अम्मी भी भड़क उठी थीं, ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यह कहने की. कम से कम अपनी औकात तो देखी होती. फिर आप के साहबजादे करते क्या हैं, किरानीगीरी. मेरी बेटी के 12वीं में 95 परसैंट मार्क्स आए थे. वैसे भी, ऐसी हैसियत के तो हमारे यहां नौकरचाकर हैं. जितनी तनख्वाह आप के बेटे को मिलती होगी, उतने की तो आज भी शाहिदा एक पोशाक पहन कर फाड़ डालती है. अगर अच्छी नौकरी मिल गई तो न जाने क्या होगा.’

‘‘वे लोग मुंह लटकाए वापस चले गए. अम्मी की बातें मुझे बहुत अच्छी लगी थीं. मैं ने मन में सोचा कि अच्छा फटकारा. चले आए थे मुंह उठा कर.

‘‘तीसरी बार एक अच्छे घर से रिश्ता आया. उस समय मैं 25 साल की हो चुकी थी. लड़के वाले हमारी टक्कर के तो न थे, लेकिन फिर भी अच्छे पैसे वाले थे. लड़का भी ठीक था. पर एक सरकारी कंपनी में इंजीनियर था. उस के पिता का कहना था कि हम बरात में बाजा नहीं लाएंगे. शोरशराबों से क्या होता है? वे समाज सुधारक थे और शादीब्याह सीधी तरह करने वाले थे.

‘‘इस बार मेरे अब्बा भड़क गए थे, ‘अमा लड़की ब्याहने आना चाहते हो या मातमपुर्सी करने. दुनिया के लोग बेवकूफ हैं, जो इतनी धूमधाम से शादियां करते हैं?’

‘‘मैं भी एक ग्रेट इंडियन वैडिंग चाहती थी, जिस में खूब धूमधड़ाम हो.

‘‘बहरहाल, बात बनी नहीं और वह रिश्ता भी इनकार कर दिया गया. अगला रिश्ता भी इनकार कर दिया गया. यह रिश्ता भी एक अच्छे घराने से आया था. लड़के ने मुझ से कहा कि पापा को कहो कि कोई सामान न दें. मेरी बचत, उस की बचत और दहेज के सामान की बचत से 1 करोड़ हो जाएंगे और वह स्टार्टअप शुरू करेगा. हम बराबर के पार्टनर तो होंगे ही.

‘‘अम्मी ने गाल फुलाते हुए कहा, ‘क्या हमारे पैसों की और बेटी के पैसों की उम्मीद पर ही हाथ पर हाथ धरे अभी तक लड़का बैठा हुआ है?’

‘‘इस तरह वह रिश्ता भी न हो सका. मैं अब तक एक एमएनसी में अच्छा कमाने लगी थी. मेरी खुद की चाहत अच्छे पढ़ेलिखे लड़के की होने लगी.

‘‘मेरी उम्र के 28वें साल में मौका आया. एक सांवले लड़के ने मुझे प्रपोज किया. वह एक दूसरी कंपनी में डायरैक्टर के पद पर था. वह न तो काला ही था, न साउथ इंडियनों की तरह. न मुझे पसंद था और न घर वालों को. मन ही मन मैं उसे काला बंदर कह कर हंस दी थी.

‘‘हालांकि उम्र के इस दौर में मुझे सोचना चाहिए था कि आखिर किसी न किसी को तो हमसफर बना ही लेना चाहिए. लड़की की उम्र निकल जाए तो फिर सबकुछ हाथ से निकल जाता है. और बेशुमार दौलत भी उम्र वापस नहीं ला सकती. पर, मैं अपने मांबाप की लाड़ली अपनी नौकरी और दौलत के नशे में चूर इस पर गहराई से न सोच सकी.

‘‘उम्र के 30वें साल में एक से शादी की बात चली. उस में कहीं कोई कमी न थी. लड़का डिप्टी कलक्टर था. हम कई बार मिले. एक बार रात भी बिताई. उस रात देखा कि लड़के वाले करीबकरीब हमारी टक्कर के थे. पर लड़का जरा सा लंगड़ाता था.

‘‘अम्मी को बताया तो उन्होंने कहा, ‘भई, पैसा और रसूख तो आताजाता रहता?है. लेकिन कम से कम लड़का तो ऐसा हो, जिस के साथ लड़की घूमफिर सके.’

‘‘मुझे भी लगा कि कहीं टांग में कैंसर वगैरह न हो. जब सहेलियों को बताया तो वे बोलीं, ‘चल कर ले न तैमूर लंग से शादी. अरे, उसे कहो कहीं लंगड़ीलूली लड़की देखे.’

‘‘फिर कई और रिश्ते आए. पर किसी में मुझे कमी आई, किसी में अम्मी को कमी नजर आई, तो किसी में मेरी सहेलियों को. मेरी सब सहेलियां शादीशुदा हो चुकी थीं और उन के खाविंद मुझ पर मरते थे. शायद वे लड़कियां चाहती थीं कि मेरी शादी ही न हो. फिर लड़के मिलने कम हो गए. मैं उम्र की 34वीं मंजिल पार कर गई.

‘‘उम्र का यह वह ढलान था, जब लड़की को शादी कर लेनी चाहिए. पर दौलत के नशे में मैं ने कुछ न सोचा. उम्र के इस मोड़ पर मैं भी एक मर्द साथी की कमी महसूस कर रही थी और मैं ने तय कर लिया था कि अब किसी भी रिश्ते के आने पर, चाहे वह आम आमदनी वाले का ही क्यों न हो, मैं टांग नहीं अड़ाऊंगी. 2-3 से मेलजोल भी हुआ, पर रात को पता लगा कि वे तो सब शादीशुदा हैं या आधेअधूरे.

‘‘मैं 36 साल की थी, तब एक रिश्ता आया. लड़का तलाकशुदा था. उस की घरवाली भाग गई थी. 2 बच्चे थे. मैं ने इस बार सोच लिया था कि तलाकशुदा है तो क्या हुआ? बच्चे हैं तो क्या हुआ? मैं सब संभाल लूंगी.

‘‘औरत की समझदारी से ही गृहस्थी चलती है. मैं भी बच्चों को प्यार दूंगी. घर को खुशहाल बना दूंगी. पर बात मुझ तक आने का मौका ही नहीं मिला. अम्मीजान तो मुंहफट थीं ही, सो रिश्ते लाने वाले के मुंह पर ही कह मारा, ‘तलाकशुदा है तो कहीं बेवा या तलाकशुदा को तलाशो. हमारी लड़की में कोई कमी थोड़े ही है, जो सैकंडहैंड के मत्थे मढ़ दें.’

‘‘और बस यही आखिरी रिश्ता था. फिर कोई रिश्ता नहीं आया. कुछ ही दिनों में मांबाप ढेर सी दौलत छोड़ कर मर गए. मैं नौकरी में आगे बढ़ती गई, पर मैं एक मर्द साथी के लिए बेचैन हो उठी थी. जो मिलते थे, केवल 2-4 रात बिताते. एक मिला, पर रात को बिस्तर पर हैवान होने लगा. मैं रात को सिर्फ नाइटी में उस के घर से निकल कर भागी थी.

‘‘आखिर एक दिन हिम्मत कर के अपने बूढ़े चौकीदार से पूछा, ‘बाबा, आप का लड़का था न रमजानी. कहां है वह?’

‘‘बूढ़े चौकीदार ने मुसकरा कर कहा, ‘बेटी, वह मुंबई में गोदी में मजदूरी करता है. अचानक उस की याद कैसे आ गई.’ ‘‘मैं ने अपनी आंखें बचाते हुए कहा, ‘यों ही पूछा था. शादी तो अब कर ही ली होगी.’

‘‘बूढ़ा चौकीदार हंसा और बोला, ‘शादी… अब तो उस के बच्चे भी शादी लायक हो गए हैं.’

‘‘फिर मुझे पता चला कि उन सभी लड़कों की शादियां हो चुकी हैं, जिन के लिए मेरे साथ तार जुड़ने आए थे. और अब सभी बालबच्चों में घिर कर जिंदगी गुजार रहे हैं. और मैं अपने और अपने मांबाप की झूठी शान की वजह से उन मंजिलों को पार कर गई थी, जो एक बार छूट जाने के बाद फिर कभी नहीं मिलती.

‘‘मैं इस इंतजार में रही कि अब जो भी रिश्ता आएगा, उसे फौरन मंजूर कर लूंगी, पर फिर कोई रिश्ता नहीं आया और मैं रिश्ते के इंतजार में उम्र को पीछे छोड़ने लगी.

‘‘अब आईने में खड़ी अपनेआप को देखती हूं कि मेरे सिर के बाल सफेद हो रहे हैं. चेहरा भी कुछ ढीला पड़ रहा है. मैं समझ गई हूं कि अब किसी रिश्ते का इंतजार बेकार है. एक औरत के रूप में मैं वह सबकुछ खो चुकी थी, जो उम्र के एक खास पड़ाव तक ही रहता है. बस, फिर मैं अपने अकेलेपन में कैद हो कर रह गई.’’

अपनी कहानी सुना कर शाहिदा ने अपनी आंखों को टिशू से एक बार फिर साफ किया. उन्होंने अब चाय का ठंडा होता कप उठाया. थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद वे बोलीं,

‘‘कुलसुम, औरत बिना मर्द के बिलकुल बेजान है. मैं नहीं चाहती कि मेरी तरह कोई और लड़की वह सुख झेले, जो मैं झेल रही हूं. तुम फौरन जा कर अम्मीअब्बा को मेरे पास भेज दो. मैं उन्हें समझाऊंगी.’’

कुलसुम ने अपनी अम्मीअब्बा को शाहिदा के पास भेजा. शाहिदा ने उन्हें तलाकशुदा के साथ शादी करने के लिए राजी कर लिया. कुलसुम की शादी में शाहिदा ने उधार की रकम तो दी ही, अपनी तरफ से बहुतकुछ खर्च भी किया. कुलसुम को विदा करा कर जब वे अपने घर आई, तो उन्हें ऐसा लगा मानो उन की ही शादी हो गई है.

Holi 2024 सतरंगी रंग: कैसा था पायल का जीवन- भाग 4

चाची को रोता देख पायल उन्हें चुप कराते हुए बोली, ‘‘चाची प्लीज, ऐसी बातें मत करो. मौत तो जब जिस की लिखी होगी, तभी होगी. किसी के चाहने से कुछ नहीं होता. वह तो हमारे समाज में ऐसा रूढि़वाद है कि हमेशा औरत को ही कुसूरवार सम?ा जाता है, पर यह सब हमें और आप को ही बदलना होगा.’’

चाची पायल की बातें ध्यान से सुने जा रही थीं. पायल ने चाची को हिम्मत बंधाते हुए आगे कहा, ‘‘चाची, आप लोगों के कहे की फिक्र मत करना. आप तो अपने बच्चों के साथ अच्छे से रहो.’’

पायल कुछ दिन गांव में रह कर फिर वापस शहर चली गई थी. जब वह कुछ महीने बाद लौटी तो गांव में फिर से इसी बात को ले कर काफी होहल्ला मचा हुआ था. उस की चाची ने अपनेआप को एक कमरे तक सीमित कर लिया था. यही नहीं, 2 दिन से तो वे न किसी से बात कर रही थीं और न ही अपने कमरे से बाहर निकल रही थीं.

चाची की ऐसी हालत देख पायल की दादी भी काफी परेशान हो गई थीं. जब पायल को इस बात का पता चला तो वह चाची के कमरे की ओर भागी.

पायल ने चाची के कमरे का दरवाजा खटखटाया, पर उस की चाची ने दरवाजा नहीं खोला. इस से घबरा कर पायल रोते हुए चाची से दरवाजा खोलने की गुहार लगाने लगी.

काफी देर बाद चाची कुछ पसीजीं और उन्होंने दरवाजा खोल दिया.

चाची के बाल बिखरे हुए और आंखें सूजी हुई थीं. देखने से ही लग रहा था कि वे कई दिनों से सोई नहीं थीं. उन का शरीर कमजोर पड़ गया था.

पायल को सामने देख चाची भी उस से लिपट कर बिलखबिलख कर रो पड़ीं.

पायल ने चाची के आंसू पोंछते हुए और प्यार जताते हुए पूछा, ‘‘चाची, आप ने यह क्या हाल बना रखा है. इस तरह कैसे काम चलेगा. आप मु?ो बताओ कि क्या बात है? आखिर अब फिर इतना बवाल क्यों हो रहा है? अब ऐसा क्या हो गया है?’’

पायल की बातों के जवाब में चाची अपने आंसू पोंछते हुए बोलीं, ‘‘कुछ नहीं, वही किराएदार को ले कर फिर से…’’ और यह कहतेकहते वे दोबारा फफक पड़ीं.

वे तेजतेज हिचकियां लेते हुए आगे बोलीं, ‘‘मैं ने तो देखा नहीं कि उस ने क्या लिखा था उस चिट्ठी में… लेकिन सुना है कि मेरे बारे में ही कुछ लिखा था और वह चिट्ठी बगल वाली काकी के हाथ लग गई. उन्होंने तो पूरे गांव वालों को ही वह चिट्ठी दिखा दी और मु?ा पर कुलटा होने का ठप्पा भी लगा दिया.

‘‘मैं तो पहले से ही अधमरी थी, अब इन लोगों ने तो मु?ो पूरी तरह से मार डाला. मैं तो पराए मर्द के बारे में कभी सोच भी नहीं सकती.’’

इस पर पायल चाची के मुंह की ओर ताकते हुए बोली, ‘‘चाची, उस चिट्ठी में ऐसा क्या लिखा था उस ने, जो इतना बड़ा बवाल खड़ा कर दिया?’’

चाची ने कुछ गुस्सा होते हुए कहा, ‘‘उस ने लिख दिया कि वह मु?ो पसंद करता है और मु?ा से शादी करना चाहता है…’’ फिर वे बोलीं, ‘‘तुम्हीं बताओ पायल… यह आदमी सचमुच पागल हो गया है.

‘‘उस ने ऐसी चिट्ठी लिखने से पहले यह भी नहीं सोचा कि मेरे बारे में लोग क्या सोचेंगे. इस विधवा का तो जीना हराम कर दिया उस ने. मेरा तो जी करता है कि कहीं जा कर मर ही जाऊं.’’

चाची की बातें सुन कर पायल ने चाची के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘ऐसा न कहो… चाची. आप को पता है न, खुदकुशी करना बहुत बड़ा अपराध है.’’

इस पर चाची बोलीं, ‘‘फिर क्या करूं पायल, तू ही बता? अब तू ही मु?ो सम?ा सकती है इस घर में.’’

पायल से बात कर के चाची के मन का बो?ा कुछ हलका हो गया और उन के सिर से तनाव के बादल छंट गए.

इस के बाद तो पायल के दिमाग में चाची द्वारा कही गई बात कि वह मु?ो पसंद करता है और मु?ा से शादी करना चाहता है, बैठ गई थी.

किराएदार द्वारा कही हुई वह बात पायल के दिमाग में काफी दिनों तक कौंधती रही थी. इस के बाद एक दिन पायल अपनी एक सहेली को ले कर सीधे उस किराएदार के घर जा पहुंची.

पायल उस किराएदार से बोली, ‘‘अंकलजी, मु?ो आप से कुछ बात करनी है. वैसे तो मु?ो इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए, पर मु?ो लगा कि आप की बात और कोई तो सम?ोगा भी नहीं, इसलिए कुछ पूछने चली आई हूं.’’

पायल की बातों के जवाब में वह किराएदार कुछ घबराते हुए बोला, ‘‘बोलो बेटी, क्या पूछना है मु?ा से?’’

इस पर कुछ गंभीर होते हुए पायल ने कहा, ‘‘क्या यह सच है कि आप मेरी चाची को पसंद करते है? क्या आप उन से शादी करना चाहते हैं?’’

पायल की बातों से किराएदार की आंखों में चमक आ गई. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘हांहां, बेटी. मेरी अभी

तक शादी नहीं हुई है और मैं तुम्हारी चाची से शादी करना चाहता हूं. उन की बेरंग जिंदगी में मैं नए रंग भर देना चाहता हूं.’’

किराएदार की बातों से पायल की आंखों में उम्मीद की एक किरण जाग गई. उस ने तुरंत अपनी सहेलियों के साथ घर आ कर चाची से बात की. उस ने उन से पूछा, ‘‘चाची, वह किराएदार सचमुच आप से शादी करना चाहता है. अब आप बताओ कि क्या चाहती हो?’’

पायल की बातें सुन कर चाची ने पायल को चुप कराते हुए कहा, ‘‘पायल, ऐसी बातें मत कर… देख… कोई सुन लेगा.’’

इस पर पायल ने चाची को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘आप किसी बात की फिक्र मत करो, मैं हूं न,’’ और फिर वह चाची के जवाब के इंतजार में उन्हें पकड़ कर ?ाक?ोरने लगी थी.

पायल की बातों से चाची ?ां?ालाते हुए बोलीं, ‘‘पायल, यह तू कैसी बातें कर रही है? बिना बात के तो बतंगड़ बन रहा है, तू ऐसी बातें करेगी तो मेरा जीना भी मुश्किल हो जाएगा.’’

चाची की इस बात पर पायल ने उन्हें सम?ाते हुए कहा, ‘‘अब तो बात का बतंगड़ बन ही गया है तो आप उस किराएदार से शादी कर लो तो सब ठीक हो जाएगा. सब के मुंह बंद हो जाएंगे.’’

इतने में ही पायल की दादी भी वहां आ पहुंचीं. उन्होंने उन की सारी बातें सुन ली थीं. वे आगबबूला होते हुए बोलीं, ‘‘यह क्या कह रही है तू छोरी. तू कौन सी नई रीत निकाल रही है. विधवा की भी कोई शादी होती है.’’

इस पर पायल अपनी दादी से लाड़ में बोली थी, ‘‘क्यों नहीं दादी, जब एक मर्द की दूसरी शादी हो सकती है, तो औरत की क्यों नहीं?’’

पायल की सहेलियां भी उस की हां में हां मिलाने लगीं. अब तक उस के पापा ने भी ये सब बातें सुन ली थीं. उन्हें पायल की बात उचित लग रही थी. कुछ कोशिश के बाद उन्होंने अपनी मां को पायल की चाची की दूसरी शादी के लिए मना लिया. कुछ दिनों बाद चाची की शादी उस किराएदार से हो गई. पायल ने अपनी चाची की बेरंग जिंदगी में सतरंगी रंग भर दिए थे.

Holi 2024 सतरंगी रंग: कैसा था पायल का जीवन- भाग 3

पायल की बातों पर चाची कुछ भावुक होते हुए बोलीं, ‘‘जब मैं बाहर छत पर खड़ी होती हूं तो वह किराएदार मेरा हालचाल पूछने लगता है, मैं भी उस को कुछ जवाब दे देती हूं. पर गांव के ये लोग भी पता नहीं क्यों मेरी हर बात का बतंगड़ बना देते हैं…’’

चाची एक लंबी सांस लेती हुई बोलीं, ‘‘अच्छा… पायल तू ही बता, इस में मेरी क्या गलती है?’’

चाचा को रोता देख पायल उन्हें चुप कराते हुए बोली, ‘‘चाची प्लीज, ऐसी बातें न करो. मौत तो जब जिस की लिखी होगी, तभी होगी. किसी के चाहने से कुछ नहीं होता. वह तो हमारे समाज में ऐसा रूढि़वाद है कि हमेशा औरत को ही कुसूरवार सम झा जाता है. पर यह सब हमें और आप को ही बदलना होगा.’’

चाची पायल की बातें ध्यान से सुने जा रही थीं. पायल ने चाची को ढांढस बंधाते हुए आगे कहा, ‘‘चाची, आप लोगों के कहे की फिक्र मत करना. आप तो अपने बच्चों के साथ अच्छे से रहो.’’

पायल कुछ दिनों गांव में रह कर फिर वापस शहर चली गई थी. जब वह कुछ महीने बाद लौटी तो गांव में फिर से इसी बात को ले कर काफी होहल्ला मचा हुआ था. उस की चाची ने अपनेआप को एक कमरे तक सीमित कर लिया था. यही नहीं 2 दिन से तो वे न किसी से बात कर रही थीं और न ही अपने कमरे से बाहर निकल रही थीं.

चाची को ऐसी हालत देख कर पायल की दादी भी काफी परेशान हो गई थीं. जब पायल को इस बात का पता चला तो वह चाची के कमरे की ओर भागी. उस ने चाची के कमरे का दरवाजा खटखटाया, पर उस की चाची ने दरवाजा नहीं खोला. इस से घबरा कर पायल रोते हुए चाची से दरवाजा खोलने की गुहार लगाने लगी.

काफी देर बाद चाची कुछ पसीजीं और उन्होंने दरवाजा खोल दिया. चाची के बाल बिखरे और आंखें सूजी हुई थीं. देखने से ही लग रहा था कि वे कई दिनों से सोई नहीं थीं. उन का शरीर कमजोर पड़ गया था.

पायल को सामने देख कर चाची भी उस से लिपट कर बिलखबिलख कर रो पड़ीं.

पायल ने चाची के आंसू पोंछते हुए और प्यार जताते हुए पूछा, ‘‘चाची, आप ने यह क्या हाल बना रखा है. इस तरह कैसे काम चलेगा. आप मु झे बताओ क्या बात है? आखिर अब फिर इतना बवाल क्यों हो रहा है? अब ऐसा क्या हो रहा है?’’

पायल की बातों के जवाब में चाची अपने आंसू पोंछते हुए बोलीं, ‘‘कुछ नहीं, वही किराएदार को ले कर फिर से…’’ और यह कहतेकहते वे दोबारा फफक पड़ीं. वे तेजतेज हिचकियां लेते हुए आगे बोलीं, ‘‘मैं ने तो देखा नहीं कि उस ने क्या लिखा था उस चिट्ठी में… लेकिन सुना है कि मेरे बारे में ही कुछ लिखा था और वह चिट्ठी बगल वाली काकी के हाथ लग गई. उन्होंने तो पूरे गांव वालों को ही वह चिट्ठी दिखा दी और मु झ पर कुलटा होने का ठप्पा भी लगा दिया. मैं तो पहले से ही अधमरी थी अब इन लोगों ने तो मु झे पूरी तरह से मार डाला. मैं तो पराए मर्द के बारे में कभी सोच भ्ी नहीं सकती.’’

इस पर पायल चाची के मुंह की ओर ताकते हुए बोली, ‘‘चाची, उस चिट्ठी में ऐसा क्या लिखा था उस ने, जो इतना बड़ा बवाल खड़ा कर दिया.’’

चाची ने कुछ गुस्सा होते हुए कहा, ‘‘उस ने लिख दिया कि वह मु झे पसंद करता है और मु झ से शादी करना चाहता है…’’ फिर वे बोलीं, ‘‘तुम्हीं बताओ पायल… यह आदमी सचमुच पागल हो गया है. उस ने ऐसी चिट्ठी लिखने से पहले यह भी नहीं सोचा कि मेरे बारे में लोग क्या सोचेंगे. इस विधवा का तो जीना हराम कर दिया उस ने. मेरा तो जी करता है कि कहीं जा कर मर ही जाऊं.’’

चाची की बातें सुन कर पायल ने चाची के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘ऐसा न कहो… चाची. पता है खुदकुशी करना बहुत बड़ा अपराध है.’’

इस पर चाची फफक कर रोते हुए बोलीं, ‘‘फिर क्या करूं पायल, तू ही बता? तू ही मु झे सम झ सकती है इस घर में.’’

पायल से बात कर के चाची के मन का बो झ कुछ हलका हो गया और उन के सिर से तनाव के बादल छंट गए.

इस के बाद तो पायल के दिमाग में चाची द्वारा कही गई बात कि वह मु झे पसंद करता है और मु झ से शादी करना चाहता है, बैठ गई थी. किराएदार द्वारा कही हुई वह बात पायल के दिमाग में काफी दिनों तक कौंधती रही थी. इसके बाद एक दिन पायल अपनी एक सहेली को ले कर सीधे उस किराएदार के घर जा पहुंची.

पायल उस किराएदार से हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘अंकलजी. आप से मु झे कुछ बात करनी है. वैसे तो मु झे इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए. पर मु झे लगा कि आप की बात और कोई तो सम झेगा भी नहीं, इसलिए कुछ पूछने चली आई हूं.’’

पायल की बातों के जवाब में किराएदार कुछ घबराते हुए बोला, ‘‘बोलो बेटी, क्या पूछना है तुम्हें मु झ से?’’

इस पर कुछ गंभीर होते हुए पायल ने कहा, ‘‘क्या यह सच है कि आप मेरी चाची को पसंद करते है? क्या आप उन से शादी करना चाहते है?’’

पायल की बातों से किराएदार की आंखों में चमक आ गई, उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘हांहां, बेटी. मेरी अभी तक शादी नहीं हुई है और मैं तुम्हारी चाची से शादी करना चाहता हूं. उन की बेरंग जिंदगी में मैं नए रंग भर देना चाहता हूं.’’

किराएदार की बातों से पायल की आंखों में उम्मीद की एक किरण जाग गई. उस ने तुरंत अपनी सहेलियों के साथ घर आ कर चाची से बात की. उस ने उन से पूछा, ‘‘चाची, वह किराएदार सचमुच आप से शादी करना चाहता है. अब आप बताओ आप क्या चाहती हो?’’

पायल की बातें सुन कर चाची ने पायल को चुप कराते हुए कहा, ‘‘पायल, ऐसी बातें मत कर… देख… कोई सुन लेगा.’’

इस पर पायल ने चाची को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘आप किसी बात की फिक्र मत करो, मैं हूं न,’’ और फिर वह चाची के जवाब के इंतजार में उन्हें पकड़ कर  झक झोरने लगी थी.

पायल की बातों से चाची  झुं झलाते हुए बोली, ‘‘पायल, यह तू कैसी बातें कर रही है? बिना बात के तो बतंगड़ बन रहा है, तू ऐसी बातें करेगी तो मेरा जीना भी मुश्किल हो जाएगा.’’

चाची की इस बात पर पायल ने उन्हें सम झाते हुए कहा, ‘‘अब तो बात का बतंगड़ बन ही गया तो आप उस किराएदार से शादी कर लो. तो सब ठीक हो जाएगा. सब के मुंह बंद हो जाएंगे.’’

इतने में ही पायल की दादी भी वहां आ पहुंची. उन्होंने उन की सारी बातें सुन ली थीं. वे आगबबूला होते हुए बोलीं, ‘‘यह क्या कह तू छोरी. तू कौन सी नई रीत निकाल रही है. विधवा की भी कोई शादी होती है.’’

इस पर पायल अपनी दादी से लाड़ में बोली थी, ‘‘क्यों नहीं दादी. जब एक मर्द की दूसरी शादी हो सकती है, तो औरत की क्यों नहीं?’’

पायल की सहेलियां भी उस की हां में हां मिलाने लगीं. अब तक उस के पापा ने भी यह सब बातें सुन ली थीं. उन्हें पायल की बात उचित लग रही थी. कुछ कोशिश के बाद उन्होंने अपनी मां को पायल की चाची की दूसरी शादी के लिए मना लिया. कुछ दिनों के बाद चाची की शादी उस किराएदार से हो गई. पायल ने अपनी चाची की बेरंग जिंदगी में सतरंगी रंग भर दिए थे.

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