Satyakatha: फौजी की सनक का कहर- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

सुबहसुबह साढ़े 7 बजे के करीब गुरुग्राम के राजेंद्र पार्क इलाके में जब सायरन बजाती पुलिस की गाडि़यां आईं, तब अपनी दिनचर्या की शुरुआत करते हुए लोग चौंक पड़े. कोई बाथरूम में फ्रैश हो रहा था, तो कोई अपनी बालकनी में ब्रश कर रहा था तो कोई अपने फूलों के गमलों की देखरेख में लगा हुआ था.

कई घरों के किचन से कुकर की सीटियां बजने लगी थीं. कोई अपने पालतू कुत्ते के साथ सैर पर था, जबकि कुछ लोग वहीं छोटे से पार्क में जौगिंग और एक्सरसाइज कर रहे थे. हर दिन की तरह ही 24 अगस्त को साफ आसमान और सूरज की चमकदार किरणों वाले दिन की शुरुआत हो चुकी थी.

सायरन की आवाज सुन कर अचानक सभी लोगों का ध्यान उस ओर चला गया. उस वक्त गली में भी कुछ लोगों का आनाजाना शुरू हो चुका था. गाडि़यां उन के बीच से गुजरती हुई एक घर के आगे रुकीं. गाडि़यों से पुलिसकर्मियों को उतरते देख आसपास के लोग धीमी आवाज में बातें करने लगे थे. कुछ लोग अपनीअपनी छतों पर या बालकनी में भी आ गए थे.

पुलिसकर्मी जब एक घर के आगे खड़े हो कर अपने हाथों में रबर के ग्लव्स पहनने शुरू किए, तब वहां मौजूद लोगों के मन में जानने की उत्सुकता बढ़ गई. जिस घर के आगे इकट्ठे हुए थे, वह घर रिटायर्ड फौजी राव राय सिंह का था.

गुरुग्राम थाने के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सुरेंदर गाड़ी से उतरे. उन्होंने भी अपने हाथों में रबर का ग्लव्स पहन लिया और 10-12 पुलिसकर्मियों का नेतृत्व करते हुए सब से पहले मकान में प्रवेश किया.

पुलिस की टीम मकान में जा कर 2 हिस्सों में बंट गई. एक ऊपर की मंजिलों पर चली गई, जबकि दूसरी इंसपेक्टर सुरेंदर के साथ ग्राउंड फ्लोर पर बनी रही. वहां कई कमरे थे, पुलिस ने सभी का एकएक कर दरवाजा खटखटाया.

अधिकतर कमरों के दरवाजे बाहर से ही बंद या भिड़े हुए थे. कहीं किसी कमरे में कुछ नहीं मिला. बस एक में बुजुर्ग महिला कुरसी पर बैठी दिखी. पास ही एक लड़की पलंग पर सोई हुई थी.

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पुलिस ने उस बुजुर्ग महिला को बाहर निकलने का इशारा किया. वह सो रही लड़की को जगा कर कुछ मिनट बाद कमरे से बाहर आई. लड़की उस की पोती थी और उस ने खुद को राव राय सिंह की पत्नी विमलेश यादव बताया.

ग्राउंड फ्लोर के साथसाथ पहली मंजिल पर भी सूचना के मुताबिक गहन छानबीन जारी थी. कुछ सेकेंड बाद टीम के एक सदस्य ने आवाज लगा कर थानाप्रभारी को पुकारा. वह तुरंत भागते हुए सीढि़यों से पहली मंजिल पर जा पहुंचे. उस कमरे में घुसे जहां से उन्हें आवाज लगाई गई थी.

कमरे में घुसते ही थानाप्रभारी कमरे का दृश्य देख कर अवाक रह गए. कमरे के फर्श पर एक महिला का शव पड़ा था. पूरे कमरे के फर्श पर खून फैल चुका था. शव पर गहरे जख्म का निशान था, उस में से खून रिस रहा था.

थानाप्रभारी अभी वहां का मुआयना कर ही रहे थे कि दूसरी मंजिल से एक अन्य पुलिसकर्मी ने चीखने जैसी आवाज लगाई. थानाप्रभारी तुरंत भागेभागे दूसरी मंजिल के उसी कमरे में जा पहुंचे, जहां से उन्हें आवाज दी गई थी.

कमरे में पहुंचते ही थानाप्रभारी हक्केबक्के रह गए. कमरे के फर्श पर एकदो नहीं, बल्कि 4 लाशें पड़ी हुई थीं. वहां का दृश्य देख कर पुलिसकर्मियों के माथे से पसीना छूटने लगा था. उन 4 लाशों में 2 छोटीछोटी बच्चियां थीं.

सभी लाशों के बारे में प्राथमिक जानकारी जुटाई गई. उस के मुताबिक पहली मंजिल के कमरे से बरामद लाश सुनीता यादव की थी. वह राव राय सिंह की बहू थी. इसी तरह दूसरी मंजिल के कमरे से मिली लाशों में एक लाश वहां रहने वाले किराएदार कृष्णकांत तिवारी (40), दूसरी तिवारी की पत्नी अनामिका तिवारी (32) और बाकी दोनों लाशें उन की बेटियों सुरभि तिवारी (9) और विधि तिवारी (6) की थी. सभी के शरीर पर एक जैसे गहरे जख्म के निशान थे.

मकान में मौजूद पुलिस की टीम ने लाशों को निकालने का काम शुरू किया. इसी क्रम में पता चला कि 6 साल की विधि की सांसें चल रही हैं. पुलिस टीम तुरंत उसे नजदीकी अस्पताल ले गई.

राव राय सिंह के घर के बाहर लाशों को देख कर लोग हैरान थे. वे समझ नहीं पर रहे थे कि आखिर इतनी लाशें कैसे और क्यों? साथ ही सभी की आंखें राव राय सिंह को भी तलाश रही थीं. वह नजर नहीं आ रहा  था.

इलाके के लोगों को पता था कि पहली मंजिल पर राय सिंह की बहू सुनीता यादव और दूसरी मंजिल पर किराएदार कृष्णकांत तिवारी अपने परिवार के साथ रहते थे. सभी लाशों को देख कर यह तो स्पष्ट हो गया था कि उन की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी.

उन की हत्या कैसे और किस ने की होगी, इन सवालों के साथसाथ एक सवाल और था कि आखिर राव राय सिंह कहां है?

उसी दोरान जांच में पता चला कि इस जघन्य हत्याकांड की नींव में एक मकान मालिक और उस के किराएदार के बीच आपसी रिश्ते के मिठास और खटास के साथ उस में भर चुकी कड़वाहट की कहानी शामिल है, जो वीभत्स हत्या का मुख्य कारण बन गई.

बिहार में सीवान के रहने वाले कृष्णकांत तिवारी ने करीब ढाई साल पहले राव राय सिंह के मकान में दूसरी मंजिल पर किराए का कमरा लिया था. वह गुरुग्राम की एक कंपनी में काम करते थे.

उस से पहले वह पास में ही लक्ष्मण विहार में किराए के कमरे में रहते थे. उन्होंने बिहार से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी और दिल्ली आने पर शुरुआत से ही गुरुग्राम में अपने परिवार के साथ रहते थे.

कृष्णकांत जब राव राय सिंह के मकान में आए, तब वहां बहुत जल्द मकान मालिक के सभी सदस्यों के प्रिय बन गए. इस कारण उन्हें काफी अपनापन सा महसूस होता था. उन के बच्चे छोटे थे और पत्नी अनामिका की राय सिंह की बहू सुनीता यादव के साथ अच्छी पटती थी.

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राय सिंह के एकलौते बेटे आनंद यादव, जो गुड़गांव की जिला अदालत में वकील थे, की पत्नी सुनीता यादव अलग मिजाज की औरत थी. वह अपनी ही दुनिया में मस्त रहती थी.

अपनी मरजी से अकसर मायके चली जाती थी. उस की इन्हीं आदतों से न केवल पति, बल्कि ससुर राय सिंह और सास तक परेशान रहते थे.

सुनीता और अनामिका हमउम्र होने के चलते आपस में अपनी बातें शेयर करती थीं. उन के बीच हंसीमजाक चलता रहता था. वह अनामिका के कमरे में बेधड़क आयाजाया करती थी.

इसी क्रम में वह कृष्णकांत से भी बातचीत करने में काफी खुली हुई थी.

राय सिंह की पहचान इलाके में सब से शांत व्यवहार रखने वाले लोगों में थी.

फौज से रिटायर हो जाने के बाद उन्होंने प्रौपर्टी का काम कर रखा था. उस के लिए अपने घर के नीचे ही औफिस बना लिया था.

जब एकएक कर 5 लाशें उन के घर से निकल रही थीं, उस वक्त राय सिंह दिखाई नहीं दिया. लोग सोच रहे थे कि वह अचानक कहां चला गया, जबकि उन्हें बीते दिन की शाम को लोगों ने देखा था. यहां तक कि कुछ लोगों ने उसे सुबह पार्क में भी मौर्निंग वाक करते देखा था.

दूसरी तरफ गुरुग्राम थाने की पुलिस 24 अगस्त की सुबह अलसाई हुई बैठी थी. थानाप्रभारी इस बात से निश्चिंत थे कि रात शांति से गुजरी. इलाके में किसी तरह की कोई अप्रिय घटना नहीं हुई. उन्होंने एक कांस्टेबल को चाय लाने के लिए कहा और खुद फ्रैश होने चले गए.

अगले भाग में पढ़ें- हाथ में कस कर पकड़ा हुआ गंडासा थानाप्रभारी के सामने टेबल पर रख दिया

Satyakatha: डॉक्टर की बीवी- रसूखदार के प्यार का वार- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

वहां एक मकान की सीसीटीवी फुटेज में दोनों बदमाश अपने एक साथी के साथ निकलते देखे गए. तीनों बदमाश उसी मकान में किराए पर रह रहे थे, जिस मकान की सीसीटीवी फुटेज में तीनों कैद हुए थे. पुलिस ने 22 सितंबर, 2021 को तीनों शूटर्स को गिरफ्तार कर लिया. उन से पूछताछ के बाद डाक्टर दंपति को गिरफ्तार कर लिया गया.

शूटर्स को पैसा देने वाला मिहिर सिंह था, जोकि खुशबू का पुराना बौयफ्रैंड था. पूरे मामले की मास्टरमाइंड खुशबू थी. मिहिर घर से भाग कर दिल्ली चला गया था. पुलिस ने परिवार पर दबाव डाला तो मिहिर दिल्ली से फ्लाइट से वापस आ गया. 23 सितंबर की शाम 5 बज कर 20 मिनट पर फ्लाइट से पटना में उतरते ही पुलिस ने मिहिर को गिरफ्तार कर लिया.

23 सितंबर की ही शाम साढे़ 6 बजे एसएसपी उपेंद्र कुमार शर्मा ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर के पूरे मामले का खुलासा किया.

राजधानी पटना की पाटलिपुत्र कालोनी में रहते थे राजधानी के मशहूर फिजियोथैरेपिस्ट डा. राजीव सिंह और उन की पत्नी खुशबू. उन के 2 छोटे बच्चे थे. डा. राजीव सिंह साईंकेयर सेंटर नाम से अपना क्लिनिक चलाते थे. वह पेज थ्री की जमात में शामिल थे. हर रोज वह अखबार की सुर्खियों में बने रहते थे.

उन का रसूखदार नेताओं, अधिकारियों के साथ उठनाबैठना होता था.  वह जनता दल यूनाईटेड (जेडीयू) के डाक्टर्स विंग के प्रदेश उपाध्यक्ष बना दिए गए. चिकित्सा के क्षेत्र में होने के कारण पैसों की कमी तो थी नहीं, अब राजनीतिक पार्टी के नेता बन गए तो पावर भी आ गई.

फरवरी, 2020 में राजीव के संपर्क में विक्रम आया. विक्रम से संपर्क बना, उस के काम के बारे में जाना तो डा. राजीव ने विक्रम को बच्चों की डांस की टे्रनिंग के लिए लगा लिया. इसी बीच कोरोना के चलते लौकडाउन लग गया तो विक्रम राजीव के घर जा कर बच्चों को डांस सिखाने लगा.

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डा. राजीव काफी व्यस्त रहते थे. घर पर कम ही रह पाते थे. बच्चों के अलावा उन की पत्नी खुशबू ही घर पर होती थी. बच्चों को डांस सिखाते विक्रम पर खुबसूरत खुशबू की निगाहें ठहरने लगीं.

खुशबू हाई सोसायटी के लोगों में से थी, जो शादी के बाद भी पराए मर्दों से अफेयर करने को बुरा नहीं मानते. यह एक तरह से इस सोसायटी का चलन होता है. खुशबू भी इस से अछूती नहीं थी.

उस के 5 साल से मिहिर सिंह नाम के युवक से प्रेम संबंध थे. हाल में ही मिहिर के साथ उस का ब्रेकअप हुआ था.

खुशबू घर में हो या बाहर, सिर्फ अपनी ही चलाना चाहती थी. वह अपनी जिंदगी के फैसले हो किसी दूसरे के, खुद ही लेना पसंद करती थी. वह काफी जिद्दी थी. इसलिए खुशबू की अपने पति राजीव से भी पटरी

नहीं खाती थी. उस से जबतब झगड़ा होता रहता था.

इस बार खुशबू और राजीव में इतनी अनबन हो गई कि मामला थाने तक पहुंच गया. खुशबू ने बुद्धा कालोनी थाने में शिकायत कर दी थी. पुलिस ने बड़ी मशक्कत के बाद दोनों के बीच सुलह कराई थी.

विक्रम काफी खूबसूरत था और मौडलिंग और अभिनय के क्षेत्र में नाम कमा रहा था. वह और भी कई विधाओं में पारंगत था. सब से बड़ी बात कुंवारा था. खुशबू की नजर में वह चढ़ गया. वह जब भी घर पर आता तो खुशबू उस पर ही निगाहें गड़ाए रखती. उस के करीब आने के लिए खुशबू को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी.

विक्रम जिम ट्रेनर था. इसलिए खुशबू ने उस से जिम की टे्रनिंग घर पर लेने की सोच ली. विक्रम से उस ने कहा तो विक्रम ने सहमति दे दी. लौकडाउन के कारण जिम बंद चल रहे थे, इसलिए विक्रम ने मना नहीं किया.

व्यायाम के दौरान खुशबू स्किन टाइट शार्ट्स पहनती थी. उस में उस के शरीर के हर अंग का आकार साफ नजर आता था. विक्रम उसे देखता जरूर लेकिन कुछ कहता नहीं था.

व्यायाम के दौरान शार्ट्स ही पहने जाते हैं, इसलिए अपनी तरफ से उस ने टोकना मुनासिब नहीं समझा. वजन उठाने के दौरान विक्रम को खुशबू के पीछे बहुत नजदीक खड़ा होना पड़ता था, जिस से वजन उठाने में खुशबू को कोई परेशानी हो तो वह वजन को

पकड़ ले, अन्यथा खुशबू को चोट भी लग सकती थी.

खुशबू मर मिटी जिम ट्रेनर विक्रम पर

खुशबू इस का भरपूर फायदा उठाती थी. वजन उठाने के दौरान उठतेबैठते समय अपना शरीर जानबूझ कर विक्रम से सटा देती, जिस से विक्रम के कुंवारे शरीर में करंट सा दौड़ने लगता. लेकिन अगले ही पल उसे खूबसूरत धोखा मान कर भुला देता.

लेकिन बारबार खुशबू के द्वारा ऐसा किया जाने लगा तो विक्रम को खुशबू की मंशा समझते देर नहीं लगी. पहले उस ने सोचा कि खुशबू 2 बच्चों की मां है और धनाढ्य परिवार से है, वह अपनी अच्छी बसीबसाई गृहस्थी में आग क्यों लगाएगी, वह भी उस जैसे मिडिल क्लास लड़के के लिए.

लेकिन खुशबू की हरकतें उस की इस सोेच को गलत साबित कर रही थीं. उस ने सुन रखा था कि हाईसोसायटी की महिलाएं रंगीनमिजाज होती हैं. पति के अलावा भी वह दूसरोंं से संबंध रखती हैं. खुशबू भी उन्हीं महिलाओं की तरह है.

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यह सोच कर वह भी खुशबू में इंटरेस्ट लेने लगा. वह भी उस से प्यार भरी बातें करता और उस के बदन से चिपकने लगा. खुशबू को भी समझ में आ गया कि विक्रम भी उस की चाहत में बहक गया है.

एक दिन दोनों के तन सटे तो दोनों ने एकदूमरे को बांहों में भर लिया और अपने प्यार का इजहार कर दिया. दोनों के संबंधों का सिलसिला अनवरत चलने लगा.

अगले भाग में पढ़ेंखुशबू हमेशा के लिए अपना बनाना चाहती थी जिम ट्रेनर को

Satyakatha- सुहागन की साजिश: सिंदूर की आड़ में इश्क की उड़ान- भाग 2

सौजन्य: सत्यकथा

आखिर पति की खुशी को रीता ने भी स्वीकार कर लिया. वह पति की सीमित आमदनी में ही खुश रहने लगी. लेकिन यह खुशी शायद ज्यादा दिनों तक कायम न रह सकी. रीता पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा.

हुआ यह कि एक दिन किसी काम से हरगोविंद अकबरपुर कस्बा गया. शाम को लौटते समय बाराजोड़ के पास उस का एक्सीडेंट हो गया.

गंभीर चोट लगने से उस की मौके पर ही मौत हो गई. उस की मौत की खबर घर पहुंची तो घर में कोहराम मच गया. रीता बिलखबिलख कर रोने लगी. घर वालों ने उसे किसी तरह संभाला. यह बात वर्ष 2012 की है.

समय बीतते जब दुख के बादल छंटने लगे तो रीता को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी. वह सोचने लगी कि आखिर वह पहाड़ सी जिंदगी पुरुष के सहारे के बिना कैसे गुजारेगी. मायके में रह कर वह विधवा का जीवन नहीं बिताना चाहती थी. रीता की चिंता से घर वाले भी परेशान थे. लेकिन उन्हें कोई उपाय नहीं सूझ रहा था.

रीता के देवर का नाम शिवगोविंद था. रीता और शिवगोविंद की उम्र में लगभग 10 साल का अंतर था. रीता जब से ब्याह कर ससुराल आई थी, शिवगोविंद से उस की खूब पटरी खाती थी.

पति की मौत का जहां रीता को गम था, वहीं शिवगोविंद भी बड़े भाई की मौत पर दुखी था. अब शिवगोविंद ही रीता की देखभाल करता था और उस के गमों को बांटता था.

रीता को भी मिल गया सहारा

30 वर्षीय रीता विधवा जरूर हो गई थी, लेकिन खूबसूरत व जवान थी. शिवगोविंद भी 20 वर्षीय गबरू जवान था. धीरेधीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं और दिलों में चाहत जाग उठी.

शिवगोविंद ने अपनी चाहत को एक दिन उजागर भी कर दिया, ‘‘रीता भाभी, मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं.’’

‘‘सोच लो देवरजी. मैं विधवा हूं और विधवा से ब्याह रचाना तो दूर, उस से हंसनाबोलना भी यह समाज गुनाह मानता है.’’ रीता ने शंका प्रकट की.

‘‘भाभी, मुझे समाज की नहीं, तुम्हारी चिंता है. मैं तुम्हारी मांग में सिंदूर भर कर विधवा होने का कलंक मिटाना चाहता हूं.’’ शिवगोविंद ने अपनी मंशा जाहिर की.

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‘‘तुम्हें मेरी चिंता है तो मैं साथ देने को तैयार हूं.‘‘ रीता ने रजामंदी दे दी.

रीता राजी हो गई तो इस बाबत शिवगोविंद ने अपने मंझले भाई बालगोविंद तथा भाभी ममता से बातचीत की. पहले तो दोनों चौंके, फिर आमनेसामने बिठा कर रीता तथा शिवगोविंद से बात की.

उस के बाद उन्होंने उन दोनों को शादी करने की इजाजत दे दी. गांव में भी चर्चा आम हो गई कि शिव अपनी विधवा भाभी से ब्याह रचा रहा है.

घर वालों की रजामंदी हुई तो एक दिन शिवगोविंद व रीता मंदिर पहुंचे, वहां शिवगोविंद ने रीता की मांग में सिंदूर भर कर उसे विधवा से सुहागिन बना दिया. इस के बाद रीता, शिवगोविंद की पत्नी बन कर उस के साथ रहने लगी.

शिवगोविंद का प्यार मिला तो रीता पहले पति की यादें भुला बैठी. हंसीखुशी से 4 साल बीत गए. इस बीच रीता एक बेटी राधा की मां बन गई. राधा के जन्म से घर की खुशियां और बढ़ गईं.

लगभग 5 साल तक रीता और शिवगोविंद का जीवन आनंदपूर्वक बीता. उस के बाद उन के बीच विवाद शुरू हो गया. विवाद की कोई बड़ी वजह नहीं थी.

शिवगोविंद रनिया स्थित एक फैक्ट्री में काम करता था. फैक्ट्री में उसे कभी काम मिलता तो कभी नहीं मिलता. रीता खर्चीली थी. कंजूसी उस का मिजाज न था. जरूरत और शौक के आगे उस के लिए पैसे का महत्त्व न था. यही कारण था कि वह शिवगोविंद से पैसे की मांग करती रहती.

पत्नी की मांग सुन कर शिवगोविंद झुंझला उठता, ‘‘रीता मेरा वेतन ज्यादा नहीं है, इसलिए तुम अपने खर्चों पर कंट्रोल करो. मुझे किसी के आगे हाथ फैलाने को मजबूर मत करो.’’

‘‘जितना कर सकती थी कर लिया, अब और कंट्रोल नहीं,’’ रीता भी झुंझला कर जवाब देती, ‘‘पत्नी के खर्चे पति नहीं पूरे करेगा तो क्या पड़ोसी करेंगे?’’

‘‘रीता, मेरी कमाई उतनी नहीं है कि मैं तुम्हारे महंगे शौक पूरे कर सकूं.’’

‘‘पहले आमदनी बढ़ाते, फिर मेरी मांग में सिंदूर भरते,’’ रीता का जवाब पैना तथा द्विअर्थी होता, ‘‘हर रात तुम्हें मुझ से तो अपनी खुशी चाहिए, मेरे खर्च उठाने की तुम्हें परवाह नहीं. तुम्हारा शौक मैं पूरा करती हूं तो तुम्हें भी मेरे शौक पूरे करने होंगे.’’

‘‘तुम्हें खर्च में कटौती भी करनी पड़ेगी और हालात से समझौता भी करना होगा.’’

‘‘हरगिज नहीं करूंगी,’’ रीता ने झुंझला कर जवाब दिया.

बस इसी मुद्दे पर विवाद बढ़ता गया. शिवगोविंद महसूस करने लगा कि उस ने रीता की मांग सिंदूर से सजा कर जबरदस्त गलती की है, तो रीता महसूस करने लगी कि शिव से प्रेम विवाह कर के उस ने स्वयं अपना मुकद्दर फोड़ लिया है.

दिलों की बढ़ गईं दूरियां

दिल में गांठ पड़ जाए तो वह कम नहीं होती, निरंतर बढ़ती जाती है. रीता व शिव भी एकदूसरे को अपने जीवन की गलती मान कर धीरेधीरे एकदूजे से दूरियां बढ़ाने लगे.

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शिवगोविंद सुबह काम पर चला जाता, देर रात को घर आता. काम से इतना थका होता कि अकसर खाना खाते ही सो जाता. रीता की हसरतें प्यासी ही रह जातीं.

रीता अकेलापन महसूस करने लगी तो उस का मन बहकने लगा. मन बहका तो वह पति से विश्वासघात करने पर उतारू हो गई.

वह भूल गई कि जिस इंसान ने उसे विधवा से सुहागन बनाया, मांग में सिंदूर भर कर समाज में सम्मान दिलाया, उसी के साथ वह विश्वासघात करने का मंसूबा पाल रही है. मांग का सिंदूर भी उसे बेमानी लगने लगा.

रीता ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो उस की नजर दीपक उर्फ लल्ला पर टिक गई. दीपक उस के पति शिवगोविंद का दोस्त था और पड़ोस में ही रहता था.

उस का आनाजाना घर में लगा रहता था. खासकर उस रोज जब शिवगोविंद घर पर रहता था. दोनों में खूब गपशप होती तथा खानेपीने का दौर चलता था.

रीता के मन में पाप समाया तो उस ने दीपक को खुली छूट दे दी. उन दोनों के बीच हंसीठिठोली भी होने लगी. रीता जहां गबरू जवान दीपक पर फिदा हो गई थी, वहीं दीपक उर्फ लल्ला भी मतवाली भाभी रीता का दीवाना बन गया था.

सहयोगी : जय कुमार मिश्र

अगले भाग में पढ़ें- पति बना इश्क में रोड़ा

Satyakatha: खूंखार प्यार- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

देवेंद्र सोनी उर्फ दीपक अपनी पत्नी दीप्ति और 7 वर्षीय बेटी सोनिया के साथ कोरबा आया था. पहले पहल दोनों ने बालको नगर स्थित अपने भारतीय स्टेट बैंक के काम को निपटाया. बहुत दिनों से देवेंद्र पत्नी से कह रहा था कि अपने बैंक अकाउंट को अब बिलासपुर ट्रांसफर करवा ले. लगे हाथ उस दिन देवेंद्र सोनी ने पत्नी के अकाउंट में नौमिनी के रूप में अपना नाम भी दर्ज करवा लिया था.

दीप्ति का बचपन कोरबा के बालको नगर में बीता था. यहां भारत अल्युमिनियम कंपनी, जो देश की प्रथम सार्वजनिक क्षेत्र की अल्युमिनियम कंपनी कहलाती थी, में उस के पिता कृष्ण कुमार सोनी काम करते थे.

एक सहेली रजनी से भी उस की अकसर फोन पर बात होती थी. उस से भी उस दिन मुलाकात हो गई दीप्ति बहुत खुश थी. मगर अचानक जाने क्या हुआ कि वह परेशान नजर आने लगी.

पतिपत्नी दोनों ने रजनी के यहां शाम की चाय नाश्ते के बाद बेटी सोनिया को परिजन के यहां छोड़ दिया. इस के बाद वह गृहनगर सरकंडा, बिलासपुर की ओर अपनी मारुति ब्रेजा कार  सीजी10 एयू 6761 से रवाना हो गए.

देवेंद्र ने गौर किया कि दीप्ति आज दिन भर तो खुश नजर आ रही थी मगर बाद में शाम होतेहोते कुछ परेशान नजर आने लगी.  उस ने उस की ओर देखते हुए संशय भाव से पूछा, ‘‘क्या बात है दीपू, तुम उखड़ीउखड़ी सी दिखाई दे रही हो.’’

दीप्ति को वह प्यार से अकसर दीपू कह कर पुकारता था. दीप्ति खुद को फिल्मों की बहुचर्चित स्टार दीपिका पादुकोण जैसी समझती थी. उस ने अपना चेहरा नाराजगी से दूसरी तरफ घुमा लिया, मानो देवेंद्र की बात उस ने सुनी ही नहीं.

लंबे समय से देवेंद्र सोनी (30 वर्ष) और दीप्ति (28 वर्ष) का दांपत्य जीवन इसी तरह उतारचढ़ाव मानमनुहार में बीत रहा था. देवेंद्र मन ही मन दीप्ति पर शक करता, वह भी लड़झगड़ कर चुप रह जाती थी, सोचती कि धीरेधीरे गाड़ी पटरी पर आ जाएगी. दरअसल, दीप्ति पति देवेंद्र के दूसरी औरत के साथ संबंध के बारे में आज जान चुकी थी.

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जब वे दोनों गाड़ी से गृहनगर बिलासपुर जा रहे थे. देवेंद्र भी चुपचाप ड्राइविंग पर ध्यान दे रहा था, तभी अंतत: दीप्ति फट पड़ी, ‘‘मुझे लगता है, तुम शायद अपने आप को बदल नहीं सकते.’’

‘‘क्यों, फिर क्या हो गया?’’ अनजान से देवेंद्र सोनी ने गाड़ी ड्राइव करते हुए उस की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘तुम जितने भोले बनते हो, दरअसल हो नहीं. मैं ने तुम्हारा फोन चैक किया था, तुम अभी भी…’’

यह सुन कर देवेंद्र थोड़ा घबराया फिर बोला, ‘‘तुम्हें मेरा मोबाइल नहीं देखना चाहिए. इस बात के लिए मैं पहले भी मना कर चुका हूं.’’

‘‘क्यों, मैं क्यों नहीं देख सकती, लो तुम भी मेरा मोबाइल देख लो.’’ तुनक कर दीप्ति ने अपना मोबाइल उस की तरफ बढ़ा दिया.

देवेंद्र ने गुस्से में फुफकारते हुए अपनी निगाह सड़क की ओर लगाई और गाड़ी ड्राइव करते हुए बोला, ‘‘दीप्ति तुम हद पार कर रही हो…’’

‘‘अच्छा, मैं हद पार कर रही हूं.’’ दीप्ति ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी पत्नी हूं. हमारी एक बेटी है यह तुम्हें पता है न. और मैं हद पार कर रही हूं और तुम जो कर रहे हो, क्या वह सही है? बताओ, तुम एक पति के रूप में मेरे साथ न्याय कर रहे हो.’’ गुस्से से उफनती दीप्ति के मुंह में जो आ रहा था, कहने लगी.

‘‘अच्छाअच्छा शांत हो जाओ, गुस्सा तुम्हारे लिए नुकसानदेह होगा. हम पतियों को तो ऐश करने का अधिकार है. अच्छी बीवियां शौहर के गैरऔरतों से बनाए संबंधों पर निगाह नहीं डालतीं.’’

‘‘अच्छा, तुम मुझ पर जब बेवजह शक करते हो तो बताओ मैं क्यों चुप रहूं? अब  मेरे पास तो सबूत है, तुम्हारा अपना मोबाइल.’’

‘‘देखो, तुम मेरे रास्ते में मत आओ, चुपचाप मौज से अपनी जिंदगी गुजारो. मुझे भी गुजारने दो, यह मैं तुम से आज अंतिम बार कह रहा हूं, वरना…’’

देवेंद्र सोनी की आंखों में आंसू आ गए थे, वह बहुत घबरा रहा था. उस ने पानी पिया और धीरेधीरे बोला, ‘‘सर, मैं अपनी पत्नी दीप्ति सोनी के साथ कोरबा से बिलासपुर अपने घर जा रहा था कि खिसोरा के पास वन बैरियर के निकट जब वह लघुशंका के लिए गाड़ी से नीचे उतरा तो थोड़ी देर बाद 2 लोगों ने मेरी पत्नी और मुझे घेर लिया.

‘‘वे लोग पिस्टल लिए हुए थे. पत्नी दीप्ति के गले में रस्सी डाल कर के उसे मार कर  रुपए और लैपटौप, मोबाइल छीन कर भाग गए हैं. घटना के बाद मैं ने अपने दोस्त सौरभ गोयल, जोकि पास ही बलौदा नगर में रहता है, को फोन कर के बुला लिया. फिर दोस्त के साथ मैं थाने आया हूं.’’

अविनाश कुमार श्रीवास ने लूट और हत्या की इस घटना को सुन कर थानाप्रभारी ने तुरंत हैडकांस्टेबल नरेंद्र रात्रे व एक अन्य सिपाही को घटनास्थल पर रवाना किया और एसपी पारुल माथुर को सारी घटना की जानकारी देने के बाद वह खुद देवेंद्र सोनी और सौरभ को ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

थाना पंतोरा से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर वन विभाग का एक बैरियर है. यहां से एक रास्ता सीधा बलौदा होते हुए बिलासपुर की ओर जाता है. एक रास्ता एक दूसरे गांव की ओर. यहीं चौराहे पर देवेंद्र सोनी की काली  मारुति ब्रेजा कार पुलिस को खड़ी मिली, जिस की पिछली सीट पर दीप्ति का मृत शरीर पड़ा हुआ था.

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इसी समय थानाप्रभारी अविनाश कुमार श्रीवास भी घटनास्थल पर

पहुंच गए थे. हैडकांस्टेबल नरेंद्र

रात्रे ने उन्हें बताया, ‘‘सर, जब हम यहां पहुंचे तो मृतक महिला का शरीर गर्म था, यहां पास में एक सिम मिला है.’’

अविनाश कुमार श्रीवास ने सिम अपने पास सुरक्षित रख लिया. पुलिस को एक अहम सुराग मिल चुका था.

पुलिस दल ने प्राथमिक जांच करने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए बलोदा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भिजवा दिया. इस समय तक देवेंद्र की हालत बहुत खराब हो चली थी, वह मानो टूट सा गया था.

दीप्ति सोनी हत्याकांड की खबर जब दूसरे दिन 15 जून, 2021 को क्षेत्र में फैली तो चांपा जांजगीर की एसपी पारुल माथुर ने मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए इस केस की जांच के लिए एक पुलिस टीम का गठन कर दिया.

टीम में पंतोरा थाने के प्रभारी अविनाश कुमार श्रीवास, बलौदा थाने के नगर निरीक्षक व्यास नारायण भारद्वाज के अलावा आसपास के अन्य थानों के प्रभारी भी सहयोग के लिए जांच दल में शामिल कर लिए गए थे.

अगले भाग में पढ़ें- विवाह के बाद देवेंद्र सोनी का असली रूप धीरेधीरे सामने आने लगा 

Satyakatha- अय्याशी में गई जान: भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

Writer- प्रमोद गौडि़या

यह सुन कर राधा कभी पुलिस को देखती, तो कभी इधरउधर देखने के बहाने से सत्यम को देखने लगती. वह यह सोच कर भीतर से डर गई कि लगता है सरवन ने पुलिस को सब कुछ बता दिया. कुछ सेकेंड बाद सिंह ने फिर सवाल किया, ‘‘बताया नहीं, तुम्हारे विशाल से क्या संबंध थे?’’

‘‘सर, मैं उसे प्यार करती थी,’’ राधा धीमी आवाज में बोली.

‘‘इस का सत्यम को पता था?’’ सिंह ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ राधा बोली.

‘‘क्यों?’’

‘‘मैं डर गई थी.’’

‘‘भाई से डर कर कुछ नहीं बताया था या फिर कुछ और बात है?’’

‘‘सर, मैं भाई से डरती थी, इसलिए नहीं बताया.’’ राधा बोली.

‘‘अच्छा चलो, अब यह बता दो कि 7 सितंबर की शाम को तुम्हारी विशाल से क्या बात हुई थी?’’

अलगअलग तरह से बदले हुए सवालों को सुन कर राधा पसीनेपसीने हो गई थी, दुपट्टे से पसीना पोछती हुई बोली, ‘‘उस से मिलना चाहती थी.’’

‘‘वह भी रात में! मिलने के लिए कहां बुलाया था?’’ सिंह ने पूछा.

‘‘भाई के फ्लैट पर,’’ राधा ने बताया.

‘‘क्यों, क्या उसे भाई से मिलवाना था? लेकिन भाई तो बोला कि वह उस दिन कहीं गया हुआ था. घर पर था ही नहीं.’’ थानाप्रभारी के सवालों से राधा खुद को घिरा महसूस करने लगी. कुछ भी नहीं बोल पाई. बीच में सत्यम कुछ बोलने को हुआ, तब थानाप्रभारी ने उसे डपट दिया. उस के बाद राधा रोने लगी.

थानाप्रभारी ने तुरंत महिला सिपाही को एक गिलास पानी लाने के लिए कहा और खुद उठ कर अलमारी खोलने लगे.

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महिला सिपाही से पानी पीने के बाद सिंह एक बार फिर बोले, ‘‘सचसच बताओ, 7 सितंबर को तुम्हारे और विशाल के साथ क्याक्या हुआ? अभी मैं तुम से प्यार से पूछ रहा हूं, लेकिन मुझे सच्चाई बाहर निकलवाना भी आता है. देखो उसे, जिस ने तुम्हें पानी पिलाया है, वही तुम्हारे मुंह में अंगुली डाल कर सारी बातें भी निकलवा लेगी.’’ यह कहते हुए थानाप्रभारी ने सत्यम और सरवन को दूसरे कमरे में भेज दिया.

अब तक पुलिस दबाव में आ कर राधा पूरी तरह से टूट गई थी. उस ने विशाल के साथ अपने अवैध संबंध को स्वीकार करते हुए 7 सितंबर की पूरी घटना बता दी. फिर क्या था, जो बातें थानाप्रभारी ने सत्यम और सरवन से भी नहीं पूछी थीं और उन पर विशाल की हत्या का सिर्फ संदेह था, उस की पुष्टि राधा ने ही कर दी.

थानाप्रभारी के लिए राधा द्वारा दी गई जानकारी बेहद महत्त्वपूर्ण थी. वह मुसकराए और राधा को महिला सिपाही के साथ बैठा कर सत्यम व सरवन के पास जा पहुंचे. उन से भी उन्होंने विशाल अग्रवाल की हत्या के संबंध में घुमाफिरा कर कई सवाल पूछे.

कुछ सवाल उन्होंने हवा में तीर की तरह चलाए. जबकि कुछ सवालों के साथ सबूत होने के दावे और राधा द्वारा बताए जाने की बातें कह कर उन्हें उलझा दिया.

नतीजा यह हुआ कि सत्यम और सरवन भी टूट गए और उन्होंने विशाल हत्याकांड से ले कर उस की लाश को ठिकाने लगाने तक की बात बता दी.

राधा, सरवन और सत्यम के द्वारा जुर्म स्वीकार किए जाने के बाद सरवन ने विशाल के शव को फेंकने का खुलासा कर दिया. इस तरह राधा ने विशाल के साथ अनैतिक संबंध बनाते हुए रंगेहाथों पकड़े जाने से ले कर उस की हत्या संबंधी साक्ष्य मिटाने का जुर्म स्वीकार कर लिया.

पुलिस ने साक्ष्य को मजबूत बनाने के लिए राधा का वैजाइनल टेस्ट करवाया. साथ ही आरोपियों की निशानदेही पर विशाल अग्रवाल की स्कूटी, लैपटाप तथा हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड बरामद कर ली.

अय्याशी के चक्कर में जान गंवाने वाले बैंककर्मी विशाल की प्रेम कहानी इस प्रकार सामने आई—

उत्तर प्रदेश जिला कानपुर के थाना नौबस्ता अंतर्गत संजय नगर कालोनी मछिरिया में विष्णु प्रसाद अग्रवाल के 2 बेटे अंशुल (26 वर्ष) औरविशाल (25 वर्ष) के अलावा बेटी दिव्या (23 वर्ष) थी. इन में से विशाल कुंवारा था. वह भी अपने भाई अंशुल की तरह ही  बैंक मैनेजर था और मातापिता के साथ ही रहता था.

स्वभाव से वह आशिक मिजाज था. जल्द ही किसी लड़की के पीछे पड़ जाता था. आकर्षक और सैक्स अपील होने के कारण कोई भी लड़की पहली ही नजर में उस की ओर आकर्षित हो जाती थी.

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उस के दिलफेंक होने के कारण ही वह किसी के साथ भी यौन संबंध बनाने से परहेज नहीं करता था. उस ने मौका पा कर राधा को भी अपने प्रेमजाल में फंसा लिया था. उसे शादी के सपने दिखाते हुए ऐशोआराम की जिंदगी देने के वादे किए थे. राधा भी उस के प्रेम में फंस चुकी थी.

सत्यम ओमर अपने मातापिता के साथ पहले माहेश्वरी मोहाल में रहता था. बाद में उन के देहांत के बाद वह घंटाघर स्थित अपने मामा के यहां रहने लगा था.

हालांकि 6 साल पहले उस के मामा की भी मृत्यु हो गई थी. उस की मामी अपने मायके में रहती थी, जिस कारण उस ने घंटाघर में ही एक फ्लैट किराए पर ले लिया था. वहीं विशाल अग्रवाल भी आताजाता था.

बताते हैं कि वहां दोनों के एक बैंक में इंश्योरेंस का काम करने वाली युवती के साथ अवैध संबंध हो गए थे. विशाल और सत्यम के लिए वह युवती केवल मौजमस्ती का साधन भर थी. दोनों बदले में युवती को कुछ पैसे या गिफ्ट दे दिया करते थे.

Satyakatha: पत्नी की बेवफाई- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

Writer- मुकेश तिवारी

2 दिनों बाद पुलिस ने मालती को फिर थाने बुलाया. वहां पहले से रामऔतार को देख कर वह चौंक पड़ी. उस के आते ही टीआई ने कड़कदार आवाज में कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे बारे में बहुत कुछ मालूम हो चुका है. अब तुम सब कुछ सचसच बता दो, वरना मुझे सच्चाई पता करने के लिए दूसरा रास्ता अख्तियार करना पडे़गा. और हां, तुम्हारे पति का सुराग मिल गया है.’’

‘‘क्या कहते हैं साहब, मेरा पति कहां है?’’ मालती खुद को संभालती हुई बोली. जब तक दूसरे पुलिसकर्मी ने रामऔतार को दूसरे कमरे में बुला लिया.

‘‘तुम्हारे बारे में रामऔतार ने बहुत सारी बातें बताई हैं.’’ यह कहते हुए जांच अधिकारी ने अंधेरे में तीर चलाया, जो निशाने पर जा लगा. मालती के चेहरे का रंग उड़ गया था.

‘‘क्या बोला साहब मेरे बारे में?’’ मालती डरती हुई बोली.

‘‘यह कि तुम पति से हमेशा झगड़ती रहती थी और वह उस की मारपीट से तुम्हें बचाया करता था.’’

‘‘किस मियांबीवी के बीच झगड़ा नहीं होता है, साहब?’’ मालती बोली.

‘‘तुम बातें मत बनाओ, सहीसही बताओ कि 6 अगस्त को तुम्हारा पति से झगड़ा हुआ था या नहीं?’’ जांच अधिकारी ने पूछा.

उसी वक्त एक पुलिसकर्मी आ कर बोला, ‘‘सर, रामऔतार ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया है.’’

‘‘क्याऽऽ कैसा जुर्म?’’ मालती अचानक बोल पड़ी.

जांच अधिकारी बोले, ‘‘जुर्म कुबूला है रामऔतार ने तो तुम क्यों चौंक रही हो?’’ उस के बाद वह रामऔतार से पूछताछ करने चले गए. इधर मालती सिर झुकाए बैठी रही.

एसडीओपी थोड़ी देर बाद रामऔतार को ले कर मालती के पास आए. उन्होंने मालती से कहा तुम्हारा सारा राज खुल गया है. उस का सबूत कुछ मिनटों में मिल जाएगा. इसलिए भलाई इसी में है कि तुम दोनों सब कुछ सचसच बता दो.

कुछ देर में ही 2 पुलिसकर्मी एक ग्रामीण को ले कर आए. उसे देखते ही रामऔतार चौंक गया, लेकिन खुद को काबू में रखते चुप रहा. एसडीओपी रामऔतार से बोले, ‘‘इसे तो तुम पहचानते ही हो. शिवराज है. इस की एक गलती ने तुम्हारा भेद खोल दिया है.’’

मालती और रामऔतार चुप रहे. अब जांच अधिकारी ने कुछ बातें विस्तार से बताते हुए कहा, ‘‘इस के पास जो मोबाइल है, उस में तुम्हारे दोस्त और मालती के पति फेरन के मोबाइल का खास नंबर आ चुका है. शिवराज का कहना है कि उस ने रामऔतार के साथ मिल कर फेरन की हत्या कर दी है. उस के बाद उस के मोबाइल के सिम को फेंक कर अपना नया सिम लगा लिया था, जिस से फेरन के मोबाइल का आईएमईआई नंबर एक्टिवेट हो गया और हमारी पहुंच उस तक हो गई.’’

इतना बताने के बाद जांच अधिकारी ने रामऔतार से कहा, ‘‘अब तुम सच बताओगे या मुझे कुछ और सख्ती दिखानी होगी.’’

‘‘तो फिर रामऔतार ने अभी तक जुर्म नहीं कुबूला था, आप लोगों ने मुझ से झूठ बोला.’’ मालती सहसा बोल पड़ी.

‘‘एक जुर्म करने वाला तुम्हारे सामने आ चुका है, दूसरा तुम्हारा प्रेमी रामऔतार है, जो अपनी सच्चाई बताएगा.’’

‘‘यदि पता होता तो मैं आप को अवश्य बता देता साहब. हम दोनों तो रोज मजदूरी करने साथ जाते थे. मेरी तो उस से खूब पटती थी.’’

रामऔतार का यह बोलना था कि थानाप्रभारी पंकज त्यागी का झन्नाटेदार थप्पड़ उस के गाल पर पड़ा. वह अपना गाल पकड़ कर बैठ गया.

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अभी बैठाबैठा कुछ सोच ही रहा था कि एसडीओपी अभिनव बारंगे बोले, ‘‘तुम्हारा इश्क किस से और किस हद तक है, यह सब मुझे जांच के दौरान पता चल चुका है. तुम ने फेरन को क्यों और किसलिए मारा, वह भी तुम्हारे सामने है.’’ उन्होंने मालती की ओर इशारा करते हुए कहा.

यह सुन कर मालती ने शर्म से नजरें झुका लीं. उसे इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं था कि टीवी पर क्राइम सीरियल देख कर बनाई कहानी का अंत इतनी आसानी से हो जाएगा और पुलिस उस से सच उगलवा लेगी.

तीर निशाने पर लगता देख एसडीओपी  ने बिना विलंब किए तपाक से कहा कि अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम दोनों साफसाफ बता दो कि फेरन की हत्या क्यों की? मुझे तुम्हारे मुंह से सच जानना है.

मालती और रामऔतार लगातार पुलिस अधिकारियों द्वारा फेरन को ले कर पूछे जा रहे सवालों के जवाब देने में इस कदर उलझ गए कि उन्होंने उस की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करने में ही अपनी भलाई समझा.

फेरन की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह पराए मर्द की चाहत में निर्दयता की पराकाष्ठा की कहानी बयां करती है.

कोई सोच भी नहीं सकता था कि पत्नी अपने ही पति का अपने प्रेमी के साथ मिल कर कत्ल कर देगी. वह भी तब जब वह अपनी पत्नी को हर सुखसुविधाएं उपलब्ध कराता हो.

रामऔतार ने अपना गुनाह कुबूल करते हुए बताया कि उस ने अपनी प्रेमिका मालती के कहने पर अपने दोस्त शिवराज के साथ मिल कर  फेरन की हत्या की थी.

पूछताछ में मालती ने बताया कि उस के और रामऔतार के बीच संबंध थे. पति ने उसे एक बार रंगेहाथों पकड़ लिया था. उस के बाद से उस के फेरन के साथ संबंध बिगड़ गए थे. इसे देख कर ही फेरन को रास्ते से हटाने के लिए उस की हत्या की योजना बनाई.

योजना के तहत रामऔतार ने अपने दोस्त शिवराज को भी शामिल कर लिया. इस के लिए उस ने शिवराज को 5 हजार रुपए और शराब भी  उपलब्ध कराई.

6 अगस्त, 2020 को फेरन अपने मामा के गांव निमाई गया हुआ था. वहां से उस के लौट कर घर आते समय रामऔतार और शिवराज ने उसे रास्ते में ही रोक लिया. फिर शराब पिलाने के बहाने से हस्तिनापुर क्षेत्र के चपरोली गांव के बाहर खेत में ले गए. वहीं तीनों ने शराब पी.

रामऔतार और उस के दोस्त शिवराज ने जानबूझ कर फेरन को कुछ ज्यादा ही शराब पिला दी. जब उसे अधिक नशा हो गया, तब उन्होंने उस के सिर पर पत्थर और लोहे के पाइप से वार कर मौत के घाट उतार दिया.

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फिर उस की लाश शिवराज की बाइक पर ले जा कर कृपालपुर गांव में स्थित एक सूखे कुएं में फेंक दी. बाद में उस कुएं पर मिट्टी डाल कर पौधे लगा दिए गए.

तीनों को भरोसा था कि अब वे कभी भी फेरन की हत्या के मामले में पकडे़ नहीं जाएंगे. लेकिन इस बीच शिवराज ने यह गलती कर दी कि फेरन के मोबाइल में डाली सिम निकाल कर फेंक दी और उस में अपनी सिम डाल ली.

मालती और रामऔतार की निशानदेही पर पुलिस द्वारा 26 जुलाई, 2021 को कुएं से फेरन का कंकाल बरामद कर लिया गया. बाद में वह डीएनए टेस्ट के लिए प्रयोगशाला भेज दिया.

हत्यारोपियों मालती, रामऔतार और शिवराज के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत रिपोर्ट दर्ज कर तीनों अभियुक्तों को जेल भेज दिया गया.

Satyakatha: मियां-बीवी और वो- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

देवेंद्र सोनी उर्फ दीपक अपनी पत्नी दीप्ति और 7 वर्षीय बेटी सोनिया के साथ कोरबा आया था. पहले पहल दोनों ने बालको नगर स्थित अपने भारतीय स्टेट बैंक के काम को निपटाया. बहुत दिनों से देवेंद्र पत्नी से कह रहा था कि अपने बैंक अकाउंट को अब बिलासपुर ट्रांसफर करवा ले. लगे हाथ उस दिन देवेंद्र सोनी ने पत्नी के अकाउंट में नौमिनी के रूप में अपना नाम भी दर्ज करवा लिया था.

दीप्ति का बचपन कोरबा के बालको नगर में बीता था. यहां भारत अल्युमिनियम कंपनी, जो देश की प्रथम सार्वजनिक क्षेत्र की अल्युमिनियम कंपनी कहलाती थी, में उस के पिता कृष्ण कुमार सोनी काम करते थे.

एक सहेली रजनी से भी उस की अकसर फोन पर बात होती थी. उस से भी उस दिन मुलाकात हो गई दीप्ति बहुत खुश थी. मगर अचानक जाने क्या हुआ कि वह परेशान नजर आने लगी.

पतिपत्नी दोनों ने रजनी के यहां शाम की चाय नाश्ते के बाद बेटी सोनिया को परिजन के यहां छोड़ दिया. इस के बाद वह गृहनगर सरकंडा, बिलासपुर की ओर अपनी मारुति ब्रेजा कार  सीजी10 एयू 6761 से रवाना हो गए.

देवेंद्र ने गौर किया कि दीप्ति आज दिन भर तो खुश नजर आ रही थी मगर बाद में शाम होतेहोते कुछ परेशान नजर आने लगी.  उस ने उस की ओर देखते हुए संशय भाव से पूछा, ‘‘क्या बात है दीपू, तुम उखड़ीउखड़ी सी दिखाई दे रही हो.’’

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दीप्ति को वह प्यार से अकसर दीपू कह कर पुकारता था. दीप्ति खुद को फिल्मों की बहुचर्चित स्टार दीपिका पादुकोण जैसी समझती थी. उस ने अपना चेहरा नाराजगी से दूसरी तरफ घुमा लिया, मानो देवेंद्र की बात उस ने सुनी ही नहीं.

लंबे समय से देवेंद्र सोनी (30 वर्ष) और दीप्ति (28 वर्ष) का दांपत्य जीवन इसी तरह उतारचढ़ाव मानमनुहार में बीत रहा था. देवेंद्र मन ही मन दीप्ति पर शक करता, वह भी लड़झगड़ कर चुप रह जाती थी, सोचती कि धीरेधीरे गाड़ी पटरी पर आ जाएगी. दरअसल, दीप्ति पति देवेंद्र के दूसरी औरत के साथ संबंध के बारे में आज जान चुकी थी.

जब वे दोनों गाड़ी से गृहनगर बिलासपुर जा रहे थे. देवेंद्र भी चुपचाप ड्राइविंग पर ध्यान दे रहा था, तभी अंतत: दीप्ति फट पड़ी, ‘‘मुझे लगता है, तुम शायद अपने आप को बदल नहीं सकते.’’

‘‘क्यों, फिर क्या हो गया?’’ अनजान से देवेंद्र सोनी ने गाड़ी ड्राइव करते हुए उस की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘तुम जितने भोले बनते हो, दरअसल हो नहीं. मैं ने तुम्हारा फोन चैक किया था, तुम अभी भी…’’

यह सुन कर देवेंद्र थोड़ा घबराया फिर बोला, ‘‘तुम्हें मेरा मोबाइल नहीं देखना चाहिए. इस बात के लिए मैं पहले भी मना कर चुका हूं.’’

‘‘क्यों, मैं क्यों नहीं देख सकती, लो तुम भी मेरा मोबाइल देख लो.’’ तुनक कर दीप्ति ने अपना मोबाइल उस की तरफ बढ़ा दिया.

देवेंद्र ने गुस्से में फुफकारते हुए अपनी निगाह सड़क की ओर लगाई और गाड़ी ड्राइव करते हुए बोला, ‘‘दीप्ति तुम हद पार कर रही हो…’’

‘‘अच्छा, मैं हद पार कर रही हूं.’’ दीप्ति ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी पत्नी हूं. हमारी एक बेटी है यह तुम्हें पता है न. और मैं हद पार कर रही हूं और तुम जो कर रहे हो, क्या वह सही है? बताओ, तुम एक पति के रूप में मेरे साथ न्याय कर रहे हो.’’ गुस्से से उफनती दीप्ति के मुंह में जो आ रहा था, कहने लगी.

‘‘अच्छाअच्छा शांत हो जाओ, गुस्सा तुम्हारे लिए नुकसानदेह होगा. हम पतियों को तो ऐश करने का अधिकार है. अच्छी बीवियां शौहर के गैरऔरतों से बनाए संबंधों पर निगाह नहीं डालतीं.’’

‘‘अच्छा, तुम मुझ पर जब बेवजह शक करते हो तो बताओ मैं क्यों चुप रहूं? अब  मेरे पास तो सबूत है, तुम्हारा अपना मोबाइल.’’

‘‘देखो, तुम मेरे रास्ते में मत आओ, चुपचाप मौज से अपनी जिंदगी गुजारो. मुझे भी गुजारने दो, यह मैं तुम से आज अंतिम बार कह रहा हूं, वरना…’’

‘‘अच्छा, ऐसी अंतिम धमकियां तो तुम जाने कितनी बार दे चुके हो. तुम मेरा मुंह बंद कर के गुलछर्रे उड़ाना चाहते हो. मेरी जिंदगी, मेरी बच्ची की जिंदगी बरबाद करना चाहते हो. मैं तुम से डरने वाली नहीं. देखो, एक मैं ही हूं जो तुम्हें बारबार माफ करती हूं. कोई दूसरी औरत होती तो अभी तक तुम जेल में होते.’’ वह गुस्से में बोली.

‘‘दीपू, तुम बारबार मुझे जेल की धमकी मत दिया करो, मैं भी कोई आम आदमी नहीं, मेरी भी ऊंची पहुंच है. चाहूं तो तुम्हें गायब करवा दूं, कोई ढूंढ भी नहीं पाएगा. बहुत ऊंची पहुंच है मेरी.’’

वे दोनों इसी तरह आपस में नोकझोंक करते हुए गृहनगर बिलासपुर की ओर बढ़ रहे थे. अचानक देवेंद्र ने कार रोकी और दीप्ति की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘मैं एक मिनट में आता हूं.’’

दीप्ति ने उस की तरफ प्रश्नसूचक भाव से  देखा तो देवेंद्र ने छोटी अंगुली दिखाते हुए कहा, ‘‘लघुशंका.’’

देवेंद्र ने गाड़ी को सड़क से नीचे उतार दिया था. रात के लगभग 10 बज रहे थे, दीप्ति पीछे सीट पर बैठी हुई थी. दीप्ति ने गौर किया देवेंद्र देखतेदेखते कहीं दूर चला गया, दिखाई नहीं दे रहा था.

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वह चिंतित हो उठी और इधरउधर देखने लगी. तभी उस ने देखा सामने से 2 लोग उस की ओर तेजी से आ रहे हैं. दोनों के चेहरे पर नकाब था, यह देख दीप्ति घबराई मगर देखते ही देखते दोनों उस पर टूट पड़े.

उन में एक पुरुष था और एक महिला, पुरुष ने जल्दी से एक नायलोन की रस्सी उस के गले में डाल दी और उस का गला रस्सी से दबाने लगा. इस में उस की साथी महिला भी उस की मदद करने लगी और दीप्ति का दम घुटने लगा. थोड़ी देर वह छटपटाती रही फिर आखिर में उस का दम टूट गया.

पुरुष और महिला ने मिल कर के उस का पर्स और मोबाइल अपने कब्जे में लिया. रुपए ले लिए, मोबाइल का सिम निकाला और जल्दीजल्दी उसे अपने कब्जे में ले कर के जेब में रखा. और एक झोले में लाए पत्थर से कार का शीशा तोड़ कर चले गए.

मगर उन लोगों ने यह ध्यान नहीं दिया कि इस आपाधापी में मोबाइल में लगा एक दूसरा सिम वहीं नीचे जमीन पर गिर गया है.

देवेंद्र सोनी और दीप्ति का विवाह 2003 में हुआ था. देवेंद्र के पिता रामस्नेही सोनी नगर के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे और उन का संयुक्त परिवार बिलासपुर के सरकंडा बंगाली पारा में रहता था.

देवेंद्र बीकौम की पढ़ाई कर ही रहा था कि पिता ने जिला कोरबा के उपनगर बालको कंपनी में कार्यरत कृष्ण कुमार सोनी की दूसरी बेटी दीप्ति से उस के विवाह की बात चलाई और दोनों परिवारों की सहमति से विवाह संपन्न हो गया.

अगले भाग में पढ़ें- दीप्ति ने उस के इस अत्याचार को भी एक तरह से स्वीकार किया था

Satyakatha- मनीष गुप्ता केस: जब रक्षक बन गए भक्षक- भाग 2

सौजन्य: सत्यकथा

Writer- शाहनवाज

प्रदीप ने लेटे हुए ही हरवीर से कहा, ‘‘अरे यार, इतनी रात को भला कौन परेशान करने आ गया. देख जरा हरवीर कौन है?’’

दरवाजे की खटखटाहट अब तेज होने लगी थी. हरवीर अपना थकान भरा शरीर ले कर उठा और उस ने गेट खोला. हरवीर ने देखा कि गेट पर कुछ पुलिस वाले आए हुए थे.

इस से पहले कि हरवीर उन से कुछ कहता, थानाप्रभारी जगत नारायण सिंह और उस के साथ कुछ और पुलिसकर्मी हरवीर को अंदर की ओर धकेलते हुए खुद कमरे के अंदर आ घुसे और कमरे की लाइट जलाई.

कमरे में उजाला फैला तो जगे हुए प्रदीप ने कमरे में पुलिस वालों को देखा और उठ कर पलंग पर बैठ गया. लेकिन मनीष गहरी नींद में ही था.

थानाप्रभारी जगत नारायण सिंह ने उन्हें हड़काने वाले अंदाज में कहा, ‘‘ये एक रुटीन चैकिंग है. जल्दी से अपनी आईडी निकालो.’’

कमरे में मौजूद बाकी पुलिसकर्मी पूरे कमरे में फैल कर रखे सामान को अस्तव्यस्त करते हुए चैक करने लगे. प्रदीप और हरवीर ने पुलिसवालों से उलझना ठीक नहीं समझा. उन्होंने चुपचाप अपनेअपने बैग से अपनी आईडी निकाली और थानाप्रभारी के हाथों में सौंप दी.

दोनों की आईडी देख लेने के बाद थानाप्रभारी ने पलंग पर एक ओर सो रहे मनीष पर नजर डाली और काफी देर तक गुस्से से घूरते रहे. घूरते हुए जगत नारायण सोते हुए मनीष के पास पहुंचे और उसे उठाने के लिए हाथ मारा. 2-3 हाथ मारने के बाद मनीष उठा और उस ने देखा की पुलिसकर्मी उस के सामने हैं.

मनीष ने बेखौफ जगत नारायण के सामने कहा, ‘‘ये कोई समय नहीं है किसी को जगाने का. किस काम के लिए आए हैं आप लोग?’’

मनीष की बात पर थानाप्रभारी भड़क उठा, लेकिन उस ने फिर भी मनीष को जवाब दिया, ‘‘ये रुटीन चैकिंग है. अपनी आईडी निकाल जल्दी से.’’

मनीष ने थानाप्रभारी की बात सुन कर कहा, ‘‘हमारे दस्तावेज होटल रिसैप्शन पर जमा हैं, आप वहां से भी देख सकते थे. और वैसे भी हम कोई आतंकवादी तो हैं नहीं जो इस तरह से हमारी चैकिंग की जा रही है.’’

मनीष की इस बात से जगत नारायण सिंह का खून उबल पड़ा. उस ने अपने दांत पीसते हुए मनीष के बाल पकड़ते हुए कहा, ‘‘तू पुलिस को उस का काम सिखाएगा?’’

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यह कहते हुए थानाप्रभारी ने मनीष के गाल पर जोर का एक चांटा मारा. उस चांटे से मनीष उबर पाता कि उस पर बाकी पुलिस वालों ने एकएक कर घूंसा जमाने शुरू कर दिए.

दूसरी ओर दरवाजे के पास खड़े एक पुलिसकर्मी ने अंदर से गेट बंद कर दिया. अंदर सभी पुलिस वाले एकएक कर के मनीष को पीटते ही चले जा रहे थे. दोनों दोस्त डर की वजह से कुछ भी न कह सके.

करीब 20-25 मिनट तक उन की जी भर के पिटाई करने के बाद जब जगत नारायण ने देखा कि मनीष के शरीर में कोई हलचल नहीं हो रही तो उस ने अपना होश संभाला.

उस ने मनीष का हाथ उठा कर उस की नब्ज चैक किया कि वह जिंदा है या नहीं. उस की नब्ज धीमी पड़ने लगी थी. एसएचओ ने अपने साथी पुलिस वालों को इशारा कर के मनीष को अस्पताल ले जाने के लिए कहा.

मनीष गुप्ता को कर दिया मृत घोषित

इधर पुलिसकर्मी अस्पताल पहुंचे और उधर चंदन भी होटल पहुंचा. उस ने कमरे में पहुंच कर बाकियों से बात की और उसे पता चला कि मनीष को बीआरडी अस्पताल ले जाया गया है.

सुबह जब तक उस के परिवार वालों तक यह बात पहुंचती, उस से काफी पहले ही मनीष इस दुनिया को छोड़ कर जा चुके थे.

मनीष की मौत की जानकारी परिवार वालों को लगी तो मनीष की पत्नी मीनाक्षी गोरखपुर गई. पुलिस वालों के खिलाफ हत्या की एफआईआर लिखवाई. काररवाई के लिए थाने के बाहर धरना दिया. लेकिन पुलिस के बड़े अधिकारियों ने काररवाई करने के बजाय मामले में लीपापोती की कोशिश की.

एक वीडियो भी सामने आया, जिस में एसएसपी और डीएम परिवार को केस दर्ज नहीं कराने के लिए मना रहे थे. डीएम विजय किरण आनंद कह रहे थे कि वो बड़े भाई के नाते समझा रहे हैं कि सुलह कर ली जाए.

गोरखपुर के एसएसपी ने शुरुआती जांच में इसे बिस्तर से गिर कर हुई मौत का मामला बताया था. जब मनीष गुप्ता की पत्नी काररवाई पर अड़ी रहीं और इस मामले को ले कर विवाद गहराया, तब कहीं जा कर 6 पुलिसकर्मियों के खिलाफ धारा 302 के तहत एफआईआर दर्ज की गई.

एफआईआर में 3 लोग नामजद और 3 अज्ञात थे. रामगढ़ताल थानाप्रभारी जगत नारायण सिंह, एसआई अक्षय मिश्रा और एसआई विजय यादव का नाम लिखा गया है. बाकी 3 आरोपी, एसआई राहुल दुबे, हैडकांस्टेबल कमलेश यादव और कांस्टेबल प्रशांत कुमार हैं. ये सभी 6 आरोपी पुलिस वाले सस्पेंड कर दिए गए.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद भी पुलिस की तरफ से गिरने से चोट लगने वाली थ्योरी दी जा रही थी. एडीजी प्रशांत कुमार ने कहा कि भगदड़ में गिरने से चोट लगने की जानकारी मिली है.

उधर मनीष की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उस में मनीष के शरीर पर 4 गंभीर चोटों की जानकारी मिली. उन के सिर में 5 सेंटीमीटर×4 सेंटीमीटर का घाव मिला. इस के अलावा दाहिने हाथ पर डंडा मारने के निशान, बाईं आंख और कई जगह पर हलके चोट के निशान मिले थे.

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विपक्षी दलों ने किया प्रदर्शन

विपक्षी पार्टियों की तरफ से इस मुद्दे को ले कर सरकार पर सवाल उठाए गए. 30 सितंबर को पूर्व मुख्यमंत्री और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने परिवार से मुलाकात की थी और न्यायिक जांच की मांग की. सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी मृतक के परिवार से मुलाकात की और उन से इस मामले को सीबीआई से जांच की सिफारिश की. साथ ही आरोपी पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी पर ईनाम भी घोषित कर दिया.

इस मामले में मुख्य आरोपी थानाप्रभारी जगत नारायण सिंह और अक्षय मिश्रा को 10 अक्टूबर को रामगढ़ताल एरिया से पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया है. अक्षय मिश्रा की गिरफ्तारी के बाद एक बड़ा खुलासा हुआ है.

अगले भाग में पढ़ें- लाश ठिकाने लगाना चाहते थे पुलिस वाले

Satyakatha: सिंह बंधुओं से 200 करोड़ ठगने वाला ‘नया नटवरलाल’ सुकेश चंद्रशेखर- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

Writer- निखिल

ईडी की जांच में सामने आया कि लीना अपने पति सुकेश की बेईमानी की कमाई से ऐशोआराम की जिंदगी जी कर रही थी.

लीना 2009 में जब तमिल और मलयालम फिल्मों के लिए स्ट्रगल कर रही थी, तब सुकेश ने उसे अपने झांसे में लिया और उसे कुछ फिल्मों में काम दिलवाया. यहीं से दोनों की प्रेम कहानी शुरू हुई. इस के बाद इन की प्रेम कहानी परवान चढ़ती रही और ये पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

सुकेश से मुलाकात के बाद लीना की लाइफस्टाइल भी बदल गई. वह उस के सभी गलत सही कामों में साथ देने लगी. यही कारण रहा कि वह भी सुकेश के साथ जेल जाती रही.

लीना से पूछताछ के आधार पर इन के 4 साथियों अरुण मुथू, मोहन राज, कमलेश कोठारी और जोएल डेनियल को भी दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. ये चारों चेन्नई के रहने वाले हैं. ये लोग भी सुकेश और लीना के उगाही रैकेट में शामिल थे.

अभिनेत्री लीना को 2013 में भी सुकेश के साथ चेन्नई के एक बैंक में 19 करोड़ की धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किया गया था. वर्ष 2015 में भी करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी के मामले में उस की गिरफ्तारी हुई थी.

बाद में दिसंबर 2018 में लीना पाल अपने ब्यूटीपार्लर में शूटआउट के बाद सुर्खियों में आई थी. कहा गया कि गैंगस्टर रवि पुजारी ने उस से करोड़ों रुपए की रंगदारी मांगी थी. नहीं देने पर उस के ब्यूटीपार्लर पर फायरिंग कराई थी.

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इस मामले में लीना ने अदालत में याचिका दायर कर पुलिस सुरक्षा दिलाने की मांग की थी. इसे अदालत ने खारिज कर कहा था कि वह सुरक्षा के लिए निजी गार्ड रख सकती हैं.

कर्नाटक के रहने वाले सुकेश चंद्रशेखर उर्फ बालाजी के अपराधों की फेहरिस्त बहुत लंबी है. अभी उस के खिलाफ 20 से ज्यादा मामले चल रहे हैं. वह कई बार पकड़ा जा चुका है. कभी अकेला, तो कभी अभिनेत्री पत्नी लीना के साथ.

अभी वह 2017 से जेल में है. हालांकि इस दौरान वह बीचबीच में पैरोल पर जाता रहा. पिछले साल भी वह चेन्नई गया था.

अय्याश जिंदगी जीने के शौक ने उसे शातिर ठग बना दिया. सुकेश के पिता रबर कौन्ट्रेक्टर थे. उस ने 10वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी और अपराध की दुनिया में कदम रख लिया.

जब उस की उम्र महज 17 साल थी, तब उस ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी के बेटे का दोस्त बन कर एक परिवार से एक करोड़ 14 लाख रुपए की ठगी की थी.

बेंगलुरु पुलिस ने तब उसे पहली बार पकड़ा था. जमाने पर आने के बाद वह चेन्नई चला गया. उसे अप्रैल 2017 में चुनाव आयोग घूसकांड के मामले में दिल्ली के एक पांच सितारा होटल से एक करोड़ से ज्यादा की नकदी सहित गिरफ्तार किया था.

आरोप था कि उस ने तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के बाद पार्टी के चुनाव चिह्न को ले कर हुए विवाद में एआईएडीएमके के डिप्टी चीफ टी.टी.वी. दिनाकरण को चुनाव आयोग के अधिकारियों को रिश्वत के रूप में 50 करोड़ रुपए दे कर सिंबल दिलवाने का वादा किया था.

इसी मामले में गिरफ्तारी के बाद दिल्ली की तिहाड़ जेल में उस ने जेल अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर देश के नामी लोगों से ठगी का काम शुरू कर कर दिया था.

बाद में उसे तिहाड़ से दिल्ली की ही रोहिणी जेल में शिफ्ट कर दिया गया था. सुकेश पर तेलगूदेशम पार्टी के पूर्व सांसद रायपति संबाशिव राव से वसूली करने के लिए सीबीआई के शीर्ष अधिकारियों के नाम का दुरुपयोग करने का भी आरोप लगा था.

उस ने पूर्व सांसद से सीबीआई व गृह मंत्रालय के अधिकारियों के नाम पर 100 करोड़ रुपए की रिश्वत मांगी थी.

संबाशिव राव पर अपनी कंपनी के माध्यम से 7 हजार 926 करोड़ रुपए की बैंक धोखाधड़ी करने और फरजी फर्मों को धन देने का आरोप है.

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वर्ष 2013 में सुकेश और उस की पत्नी लीना को चेन्नई के केनरा बैंक से 19 करोड़ की ठगी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उस समय इन के दिल्ली स्थित फार्महाउस से 20 करोड़ रुपए कीमत की 9 लग्जरी गाडि़यां जब्त की गई थीं.

वह राजनेताओं के रिश्तेदार के रूप में खुद को पेश करता था. इस के अलावा केंद्रीय मंत्रियों, सीबीआई व गृह मंत्रालय के अधिकारियों या सुप्रीम कोर्ट के जज के नाम पर लोगों से ठगी करता था.

जेल से बाहर आने पर वह ठगी के पैसों से महंगी कारें खरीदता और ऐशोआराम की जिंदगी जीता था.

कभी उस ने एम. करुणानिधि का पोता बन कर तो कभी कर्नाटक के पूर्व मंत्री करुणाकर रेड्डी का सहयोगी बन कर तो कभी बी.एस. येदियुरप्पा का सचिव बन कर लोगों से करोड़ों रुपए की ठगी की.

उस ने लोगों को नौकरियों का झांसा दे कर भी 75 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम ठगी.

दिल्ली की जेल में रहते हुए उस ने एक बड़े बिजनैसमैन से 50 करोड़ रुपए ठग लिए थे. वह खुद या अपने सहयोगी से मोबाइल से स्पूफिंग के जरिए लोगों को काल कराता था.

स्पूफिंग के जरिए वह जिस अधिकारी या राजनेता के नाम से फोन करता था, उसी का नंबर फोन रिसीव करने वाले के स्क्रीन या ट्रूकालर पर प्रदर्शित होता था. इसी कारण लोगों को यह विश्वास हो जाता था कि उस से बात कर रहा शख्स सही है.

देशभर में अनेक लोगों से सैकड़ों करोड़ रुपए की ठगी करने के आरोपी सुकेश और लीना अभी जेल में हैं. अपराधों में भागीदार उन के साथी, बैंक वाले और जेल अफसर भी जेल में हैं. दिल्ली पुलिस के अलावा प्रवर्तन निदेशालय इस मामले की जांच कर रहा है.

बहरहाल, जेल से इतने बड़े पैमाने पर हुई ठगी गंभीर जरूर है, लेकिन इस तरह की वारदातें रोकने के लिए सरकार के स्तर पर कोई भी ठोस प्रयास नहीं किए जाते. इसलिए जेल और जेल से बाहर रोजाना नएनए ठग पैदा होते हैं.

Satyakatha: प्रेमी ने खोदी मोहब्बत की कब्र- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

आकाश खुशबू की बेवफाई को बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. वह खुशबू की हरकतों से इतना जलभुन गया था कि उस ने यह ठान लिया था कि खुशबू यदि मेरी नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होने दूंगा.

आकाश बारबार खुशबू को फोन करने लगा. हर दिन आने वाली फोन काल से खुशबू परेशान रहने लगी. एक दिन फोन कर के आकाश ने भावुक होते हुए खुशबू से कहा, ‘‘खुशबू, मैं तुम से एक बार मिलना चाहता हूं, प्लीज मना मत करना.’’

आकाश की हालत पर खुशबू को तरस आ गया और 31 मई, 2021 को वह आकाश से मिलने को तैयार हो गई.

31 मई की दोपहर में ब्यूटीपार्लर जाने की कह कर जैसे ही खुशबू घर से बाहर निकली तो सुभाष चौराहे पर स्कूटी लिए आकाश उसी का बेसब्री से इंतजार करता मिला. खुशबू को स्कूटी पर बैठा कर आकाश व्हीकल एस्टेट के खंडहर हो चुके दोमंजिला क्वार्टर में ले गया.

क्वार्टर चारों तरफ से झाडि़यों से घिरा हुआ था और वहां किसी का आनाजाना नहीं होता. इसी का फायदा उठा कर आकाश खंडहर हो चुके क्वार्टर की दूसरी मंजिल पर खुशबू को ले गया.

आकाश ने वहां खुशबू को एक पैकेट दिखाते हुए कहा, ‘‘देखो तो मैं तुम्हारे लिए क्या गिफ्ट लाया हूं.’’

खुशबू ने पैकेट को हाथों में लेते हुए आकाश से पूछा, ‘‘क्या गिफ्ट लाए हो?’’ ्र

‘‘खुद खोल कर देखो,’’ कहते हुए आकाश ने उसे बाहों में भरने की कोशिश की.

खुशबू ने अपने आप को उस से दूर करते हुए कहा, ‘‘देखो आकाश, अब मेरा रिश्ता तय हो गया है. अब तुम मुझे भूलने की कोशिश करो. मैं अब नई जिंदगी शुरू करना चाहती हूं.’’

खुशबू के समझाने का जैसे आकाश पर कोई असर ही नहीं हो रहा था. आकाश के मन में तो कुछ और ही चल रहा था. वह तो उस दिन यह ठान कर ही घर से निकला था कि खुशबू का कत्ल कर उसे किसी और की दुलहन नहीं बनने देगा. यानी आकाश अपनी मोहब्बत की कब्र खोदने ही आया था.

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जैसे ही खुशबू ने उस से दूर होने की कोशिश की तो आकाश ने एक हाथ से खुशबू की गरदन को घेर लिया. खुशबू ने जैसे ही अपना चेहरा सामने की तरफ किया, आकाश ने दूसरे हाथ से अपनी पैंट की जेब में रखा चाकू निकाल लिया. खुशबू संभल पाती, इस के पहले ही उस ने चाकू से उस का गला रेत कर उसे मौत की नींद सुला दिया. खुशबू की हत्या कर आकाश ने उसी क्वार्टर में आसपास पड़ी झाडि़यों से शव को छिपा दिया. उस के बाद दूसरे दिन से ही खुशबू के घर पहुंच कर उस की खोजबीन करने का नाटक करने लगा.

मामले को छिपाने के लिए आकाश ने लाश को बड़ी ही सफाई से व्हीकल की खंडहरनुमा बिल्डिंग की दूसरी मंजिल में झाडि़यों में छिपा दिया था. आकाश को यकीन था कि इस खंडहर में कोई आताजाता नहीं है और कुछ ही दिनों में खुशबू की मृत देह को चीलकौवे खा जाएंगे. लेकिन कानून के लंबे हाथों से आकाश बच नहीं सका.

रांझी पुलिस के साथ क्राइम ब्रांच की पूछताछ में जब आकाश ने खुशबू की हत्या करने का जुर्म कुबूल किया तो पुलिस 24 सितंबर, 2021 को आकाश को ले कर व्हीकल एस्टेट के खंडहरनुमा र्क्वाटर की दूसरी मंजिल पर पहुंच गई. वहां पर खूशबू की लाश 4 महीनों में कंकाल बन चुकी थी.

पुलिस ने वहां से खुशबू का कंकाल बरामद किया. वहीं हत्या में प्रयुक्त चाकू और हत्या के दिन गिफ्ट में दिए गए कपड़े भी जब्त कर लिए.

घटनास्थल पर युवती के पहने हुए कपड़े और जूते भी पड़े हुए थे. कंकाल के आसपास चूडि़यां और सिर के बाल भी बिखरे हुए थे. सिर के बाल और कंकाल को फोरैंसिक टीम की मौजूदगी में पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवाया गया.

खुशबू की गरदन सहित सिर के हिस्से के कंकाल को जांच के लिए फोरैंसिक लैब, सागर भेज दिया गया और शेष बची हुई हड्डियां खुशबू के घर वालों को एक बोरी में भर कर अंतिम संस्कार के लिए दे दीं.

नंदकिशोर और सुधा बेटी की हड्डियों के बोरे को अपनी छाती से लगा कर चीखचीख कर रो रहे थे. इस सनसनीखेज हत्या से वंशकार समाज के लोगों ने परिजनों के साथ रांझी थाने पहुंच कर विरोध प्रदर्शन किया. उन्होंने रांझी पुलिस पर जांच में लापरवाही बरतने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि पुलिस ने पहले ही गंभीरता से मामले की जांच की होती तो इस हत्याकांड का खुलासा तभी हो गया होता.

मां सुधा और पिता नंदकिशोर आरोप लगा रहे थे कि इस हत्याकांड में आकाश के अलावा उस के पिता सूरज बेन और उस के रिश्तेदार प्रकाश और बसंत बेन भी शामिल रहे हैं. उन्हें भी पुलिस गिरफ्तार करे.

जबलपुर जिले के एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा के निर्देश पर एडीशनल एसपी संजय अग्रवाल और रांझी टीआई विजय परस्ते ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर 117 दिन पुराने गुमशुदगी के केस का परदाफाश करने की जानकारी मीडिया को दी.

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24 साल के प्रेमी आकाश बेन को अपनी प्रेमिका खुशबू की हत्या कर शव छिपाने के अपराध में गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे सेंट्रल जेल जबलपुर भेज दिया गया.

आकाश जो कभी खुशबू से बेइंतहा मोहब्बत करता था, आखिरकार उसी ने मोहब्बत की कब्र खोद कर अपने प्यार को हमेशा के लिए दफन कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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