एक मुलाकात ऐसी भी: भाग 4

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लेखिका- रेनू ‘अंशुल’

सक्सेना साहब ने जज साहब का हाथ अपने हाथों में ले लिया था और भावविह्वल हो कर बोले, ‘‘ऐसीवैसी कोई बात मत कीजिए जज साहब, नहीं तो मैं उठ कर चला जाऊंगा. जिंदगी में सबकुछ मिल जाता है, मगर दोस्ती, अच्छे लोग, अच्छा परिवार बहुत कम लोगों को मिल पाता है और हम लोग उन्हीं में से एक हैं कि हमें आप मिले हैं.’’

‘‘सुन रही हो निशि. तुम जाति- बिरादरी की बातें करती रहती हो, क्या इन से अच्छा तुम्हें मिशिका के लिए कुछ मिल पाएगा. अच्छे लोग, अच्छे रिश्ते, अच्छे परिवार इन सब से बढ़ कर न धर्म है न जाति है और न ही कुछ और. आज मैं ने बिना तुम्हारी इच्छा जाने इस रिश्ते को हां कर दी है क्योंकि मैं जानता हूं कि मैं सही काम कर रहा हूं और अदालत में आएदिन परिवारों के टूटनेबिखरने के मामले मैं ने सुने और निबटाए हैं, उन में रिश्ते टूटने की वजह यह शायद ही हो कि उन की जाति अलग थी या धर्म.

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मुझे माफ करना निशि, तुम्हारी बेसिरपैर की बातों के लिए मैं इतना अच्छा रिश्ता नहीं ठुकरा सकता. अच्छा लड़का सोच कर ही पार्थ से मिशिका की शादी की बात खुद तुम्हारे दिमाग में आए इस के लिए ही वह मुलाकात करवाई गई और अब यह पार्टी भी रखी गई ताकि इस ड्रामे का सुखद अंत कर दिया जाए.’’

पत्नी को काफी कुछ कह कर अंत में जज साहब ने उन का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘मेरे खयाल से अब तुम्हें भी समझ जाना चाहिए कि तुम्हारी सोच बहुत संकीर्ण थी. वक्त और जमाने से हट कर थी. तुम्हारे भैया तुम्हारी बात सुन कर अपनी बेटी का जीवन बिगाड़ सकते हैं, पर मैं नहीं.’’

सभी अपनीअपनी बात कह चुके थे. मिशिका और पार्थ भी अपनी स्वीकृति दे चुके थे. अब मेरी बारी थी सो मैं ने भी हाथ जोड़ कर इस रिश्ते को अपनी स्वीकृति दे दी. मिसेज सक्सेना ने उठ कर मुझे गले लगाते हुए कहा, ‘‘बधाई हो निशिजी. सबकुछ कितनी जल्दी हो गया न. अभीअभी तो हम दोस्त बने थे और अभीअभी समधिनें. उन्होंने अपने गले में पहना एक जड़ाऊ हार उतार कर तुरंत मिशिका को पहनाते हुए कहा, ‘‘आज से तुम्हारी एक नहीं, दोदो मांएं हैं.’’

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सबकुछ बहुत अच्छा लग रहा था मगर दिल में कहीं एक डर और चिंता थी, जो मुझे खुल कर खुश नहीं होने दे रही थी. क्या करूंगी, कैसे जाऊंगी भैयाभाभी के सामने. यह सोचसोच कर ही मेरी जान सूखी जा रही थी. सभी थक कर सो गए थे, मगर मेरे मन का डर और अपराधभाव मुझे सोने ही नहीं दे रहा था.

अगली सुबह काफी देर से आंखें खुल पाईं. पता नहीं कितने बजे नींद आई थी. घड़ी पर नजर पड़ी तो पूरे 10 बज रहे थे. जज साहब के कोर्ट जाने की बात दिमाग में आते ही मैं तेजी से उठी कि भाभी ने चाय के प्याले के साथ कमरे में प्रवेश किया और हंसती हुई बोलीं, ‘‘क्या निशि, इतनी बड़ी खुशखबरी है और तुम सो रही हो अब तक?’’

जिस बात के लिए मैं अब तक इतनी परेशान थी, वह इतनी आसानी से सुलझ जाएगी, मैं ने सोचा भी न था. मुझे तो अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था.

मुझे हैरान देख भाभी बोलीं, ‘‘सुबहसुबह ही ननदोईजी का फोन आ गया और फोन पर उन्होंने जब रिश्ता तय होने की बात बताई तो हम से रहा नहीं गया और आप की खुशी में खुशी मनाने चले आए. अपने जीजाजी को देखने के लिए अंतरा भी बेचैन हो रही है, शाम को वह भी यहीं आएगी. सक्सेना परिवार को भी बुला लिया है, आज का डिनर मामामामी की तरफ से शहर के सब से अच्छे होटल में…’’ भाभी बोले जा रही थीं.

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मैं हैरत में पड़ी भाभी का चेहरा पढ़ने में लगी थी. मगर वहां स्नेह व प्यार के अलावा और कुछ भी नहीं था. मेरे इतना बड़ा दुख देने के बावजूद भाभी का यह व्यवहार…कुछ समझ में नहीं आया तो मैं भाभी से लिपट कर जोरजोर से रो पड़ी.

‘‘भाभी, मैं इस लायक कहां कि आप मुझे इतना प्यार दें. मैं ने आप लोगों को अपनी गलत सोच की वजह से इतना दुख पहुंचाया, मैं तो आप को अपना मुंह भी दिखाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी. मैं कितनी बुरी हूं भाभी, कितनी बुरी…’’ मेरा रुदन तेज हुआ जा रहा था और भाभी मेरी पीठ सहलाए जा रही थीं.

‘‘मत रो निशि, मत रो. अब वह भी तुम्हारा हम से अगाध प्रेम ही तो था, वरना किसी को क्या पड़ी है, अच्छा हो या बुरा हो. तुम्हें गलत लगा, इसीलिए तुम ने रोका और हमें तुम्हारी बात सही लगी इसीलिए हम ने उसे मान लिया.’’

‘‘तुम्हारी भाभी बिलकुल सही कह रही हैं निशि. जो हो गया उसे भूल जा, और दिल खोल कर आने वाली खुशियों का इंतजार कर.’’ तभी कमरे में जज साहब के संग भैया आतेआते बोले, ‘‘मेरे मन का बोझ इतनी सहजता से उतर जाएगा, सोचा नहीं था,’’ मैं ने कृतज्ञता से जज साहब को देखा जिन्होंने अपनी समझदारी से इतनी बड़ी खुशी मुझे दे दी थी. उन्होंने मेरी आंखें पढ़ लीं और मुसकरा दिए.

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‘‘मगर अभी तो अंतरा का दुख है मेरे सामने. वह तो बहुत नाराज है अपनी बूआ से. उसे कैसे वापस पा सकूंगी मैं?’’

‘‘अरे, अपने बच्चे छोटेछोटे हैं. ज्यादा देर तक अपने बड़ों से नाराज नहीं रहते. मैं ने उसे समझाया है निशि, उस के मन में तुम्हारे लिए कोई गुस्सा नहीं है.’’ भैया बोले तो साथसाथ भाभी भी बोल पड़ीं, ‘‘और अभी सुबहसुबह ही तो फूफाजी से उस की ढेरों बातें हुई हैं और फूफाजी ने उस से वादा किया है कि अब चाहे उस की बूआ कुछ भी कहें, वह अपनी अंतरा की शादी उसी के संग कराएंगे जिसे वह पसंद करती है. पहले चर्च में अंतरा की उस ईसाई लड़के से शादी होगी, फिर मिशिका की मंडप के नीचे. बच्चे जितनी जल्दी गुस्सा हो जाते हैं, उतनी ही जल्दी मान भी जाते हैं निशि.’’

भाभी अपनी बात कह चुकीं तो मैं ने खुश हो कर तुरंत कहा, ‘‘और अब सब से पहले तैयार हो कर हम लोग वहां चलेंगे. मुझे भी तो अपने दूसरे दामाद को शाम के डिनर के लिए आमंत्रित करना है. उन से भी तो माफी मांगनी है, इस बुरी बूआ को.’’

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तुम्हारा इंतजार था

अभय अपनी यूरोप यात्रा के दौरान वेनिस गया हुआ था. वेनिस में सड़कें पानी की होती हैं, मतलब एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए कार नहीं, लांच नावों से जाना पड़ता है. वह मुरानो ग्लास फैक्टरी देखने गया था. वे लोग लाइव शो दिखाते हैं यानी ग्लास को पिघला कर कैसे उसे विभिन्न शक्लों में ढाला जाता है. अभी शो शुरू होने में कुछ वक्त बाकी था, सो, वह बाहर एक पेड़ की छाया में बैठ कर वेनिस की सुंदरता देख रहा था. ग्रैंड कैनाल में सैलानी वेनिस की विशेष नाव ‘गोंडोला’ और अभय मन ही मन सोच रहा था कि वेनिस बनाने वाले के दिमाग की दाद देनी होगी.

जुलाई का महीना था, काफी गरमी थी. तभी एक इंडियन लड़की आ कर उस के बगल में बैठ गई.

उस ने अभय से कहा, ‘‘हाय, मुझे लग रहा है कि आप इंडिया से हैं?’’

‘‘हां, मैं इंडियन हूं,’’ बोल कर अभय ने उस लड़की को एक बार गौर से ऊपर से नीचे तक देखा. मन ही मन सोच रहा था श्यामल वर्ण में भी इतना आकर्षण.

‘‘मैं, एल्मा. मैं केरल से हूं. वेनिस घूमने आई हूं,’’ लड़की बोली.

‘‘और मैं, अभय. बनारस से हूं. मैं भी एक टूर पैकेज पर आया हूं.’’

फिर एल्मा ही ने हाथ बढ़ाया और हैंड शेक कर कहा, ‘‘आप से मिल कर बहुत खुशी हुई.’’

‘‘मुझे भी. पर न जाने क्यों लग रहा है कि आप को पहले भी कहीं देखा है.’’

तब तक शो का समय हो गया था और दोनों फैक्टरी के अंदर चले गए. इस के बाद दोनों साथसाथ ही फैक्टरी घूमे. फैक्टरी से निकल कर दोनों ने फैक्टरी से जुड़ा भव्य शोरूम देखा. एक से बढ़ कर एक शीशे की कलाकृतियां और घरेलू उपयोग के सामान थे. उन्हें वहां खरीदा जा सकता था या और्डर देने पर वे लोग दिए पते पर इंश्योर्ड पार्सल कर देते थे. पर दोनों में किसी ने भी कुछ नहीं खरीदा था.

अभय ने पूछा, ‘‘क्या तुम अकेले यहां आई हो?’’

‘‘नहीं, मेरी सहेली भी साथ में है. हम तो यहां 3 दिनों से हैं. आज उस की तबीयत ठीक नहीं है तो वह नहीं निकल सकी. अब मैं यहां से सीधे होटल जाऊंगी उसी के पास.’’  एल्मा ने जवाब दिया और ‘‘ओके, बाय’’ बोल कर चली गई.

अगले दिन को वह वैटिकन सिटी में था. यह अत्यंत छोटा सा शहर जिसे एक स्वतंत्र देश का दरजा प्राप्त है और विश्वविख्यात है. यह विश्व का सब से छोटा देश है. यहीं पोप का मुख्यालय भी है. यह रोम शहर के अंदर ही दीवारों से घिरा एन्क्लेव (अंत:क्षेत्र) है. एक आइसक्रीम की दुकान पर खड़ेखड़े आइसक्रीम खा रहा था, तभी एल्मा भी वहां आ गई थी.

अभय ने कहा, ‘‘हाय एल्मा, क्या सुखद आश्चर्य है. आज फिर हम मिल गए. पर तुम आज भी अकेली हो? तुम्हारी सहेली कहां रह गई?’’

‘‘तुम ने इंडिया की न्यूज सुनी? कल मुंबई में सीरियल बम ब्लास्ट हुए हैं.

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2 सौ से ज्यादा लोग मरे हैं और सैकड़ों घायल हैं. घायलों में मेरी सहेली का भाई भी था. वह रोम चली गई है. वहां से सीधे मुंबई जाएगी.’’

‘‘ओह, हाउ सैड. पता नहीं हमारे देश को किस की नजर लग गई है. खैर, तुम वैटिकन घूम चुकी हो?’’

‘‘नहीं, अभी सेंट पीटर बैसिलिक बाकी है.’’

‘‘ओह, तुम क्रिश्चियन हो?’’ अभय ने पूछा.

‘‘हां,’’ बोली एल्मा.

‘‘पर एल्मा, मुझे क्यों बारबार लग रहा है कि पहले भी तुम्हें देख चुका हूं. एक बार से ज्यादा ही. तुम केरल में कहां रहती हो?’’

‘‘केरल मेरा नेटिव स्टेट है. पर स्कूलिंग के बाद वहां नहीं रही. मैं हैदराबाद चली आई.’’

अभय चौंक कर बोला ‘‘हैदराबाद.’’

‘‘क्यों? इस में चौंकने वाली क्या बात है? मैं ने वहीं माधापुर के नैशनल फैशन इंस्टिट्यूट से फैशन टैक्नोलौजी का कोर्स किया है और वहीं रेडीमेड कपड़े बनाने वाली कंपनी में काम भी करती हूं.’’

‘‘तभी मुझे बारबार लग रहा है कि मैं ने तुम्हें देखा है. मैं भी वहीं माधापुर के साइबर टावर्स में स्थित ओरेकल कंपनी में काम करता हूं.’’

‘‘चलो, अच्छा है, कोई परदेस में बिलकुल अपने शहर का आदमी मिलता है तो बहुत खुशी होती है.’’

अभय को तब तक कुछ याद आया तो कहा, ‘‘अब मैं बता सकता हूं कि तुम्हें मैं ने पहले कहां देखा है. वहां कोंडापुर के एक रैस्टोरैंट में जो हर संडे को 99 रुपए में बुफे ब्रेकफास्ट देता है.’’

‘‘सही कहा है तुम ने. मैं तो कोशिश करती हूं हर संडे वहां जाने की और 99 रुपए में ब्रंच (नाश्ता और दोपहर का मिलाजुला भोजन) कर लेती हूं. नाश्ते के नाम पर जीभर के जितना खानापीना हो सिर्फ 99 रुपए में हो जाता है,’’ एल्मा बोली, और हंस कर आगे कहा, ‘‘लड़कों का काम ही यही है. जहां मौका मिला, नजरें चुरा कर लड़कियों को देखने लगते हैं. डोंट माइंड, मजाक कर रही थी.’’

‘‘वैटिकन के बाद तुम्हारा क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘मैं तो यहां से इंगलैंड होते हुए इंडिया जा रही हूं. और तुम?’’

‘‘मैं तो यहां से सीधे वापस इंडिया जाऊंगा.’’

लेकिन एल्मा को अब बैसिलिक रोमन विशेषाधिकार प्राप्त चर्च देखने जाना था. वह जातेजाते बोली, ‘‘ठीक है, मैं चलती हूं. जब दोनों हैदराबाद में ही हैं तो कभी मिल भी सकते हैं. अपना खयाल रखना.’’

‘‘एक मिनट रुको, हैदराबाद में मिलने के लिए यह रख लो,’’ बोलते हुए उस ने अपना कार्ड एल्मा को दे दिया. एल्मा ने भी पर्स से अपना एक कार्ड निकाल कर अभय को दे दिया. इस के बाद दोनों ने एकदूसरे को बाय किया.

कुछ दिनों के बाद दोनों हैदराबाद में थे. एक दिन अभय ने एल्मा से फोन कर के पूछा, ‘‘संडे को क्या प्रोग्राम है? रैस्टोरैंट में ब्रंच के लिए आ रही हो?’’

‘‘वह तो आना ही है. वरना 99 रुपए में भरपेट नाश्ता और खाना दोनों कहीं नहीं मिलेगा. वह भी क्वालिटी फूड.’’

‘‘चलो, तो फिर वहीं मिलते हैं.’’

संडे को दोनों उसी रैस्टोरैंट में मिले. दोनों अपनेअपने दोस्त व रूममेट के साथ गए थे. एल्मा ने अपनी सहेली निशा से दोनों का परिचय कराया. अभय ने भी अपने दोस्त का दोनों लड़कियों से परिचय कराया. चारों एक ही टेबल पर बैठे थे. बुफे था, चारों जम के पेटपूजा कर रहे थे, साथ में बातें भी हो रही थीं.

अपने दोस्त को इंगित करते हुए अभय बोला, ‘‘मैं कोंडापुर में इस के साथ अपार्टमैंट शेयर कर रहा हूं.  और तुम?’’

‘‘मैं भी निशा के साथ माधापुर में ही एक दोरूम का अपार्टमैंट शेयर करती हूं.’’

‘‘और आज क्या कर रही हो? मूवी चलोगी? बोलो तो मैं अपने मोबाइल से 4 टिकटें यहीं से बुक कर देता हूं.’’

एल्मा ने अपनी सहेली की ओर देखा तो उस ने कहा, ‘‘चलेगा.’’

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फिर अभय ने वहीं से दोपहर 2 बजे शो की टिकटें बुक कर दीं. इस के बाद चारों अपने अपार्टमैंट गए और फिर सही समय पर सिनेमाहौल पहुंच गए थे. मूवी देखने के बाद चारों ने कैफे में कौफी पी और फिर वे अपनेअपने अपार्टमैंट के लिए चल दिए.

इस के बाद अभय और एल्मा दोनों अब अकेले भी मिलने लगे थे. उन के साथ अब उन के रूममेट नहीं होते थे. छुट्टी के दिन वे दिनभर साथ रहते, घूमतेफिरते, होटलों में जाते और मूवी देखते थे. देखतेदेखते दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे थे. दोनों इस स्थिति को भी समझ रहे थे कि वे अलगअलग धर्मों के मानने वाले थे.

एक दिन अभय ने एल्मा को शादी के लिए प्रोपोज भी कर दिया था. एल्मा ने कहा, ‘‘मुझे तो तुम से बेहद प्यार है और मैं पर्सनली तो इस के लिए तैयार हूं. पर हम लोगों को एकबार अपने मातापिता को भी बताना चाहिए. संभव हो वे हमारी शादी से खुश भी हों.’’

अभय बोला, ‘‘ठीक है, हम दोनों अगले संडे को उन लोगों को यहां बुला लेते हैं.’’

अगले रविवार दोनों के मातापिता हैदराबाद पहुंच गए थे. उसी दिन शाम को वे 6 लोग, अभय, एल्मा और उन के मातापिता शाम को हैदराबाद के केबीआर पार्क में मिले. दोनों के मातापिता के बीच बहस चल रही थी.

अभय के पिता ने कहा ‘‘ये अंगरेज सब से पहले केरल में ही आए थे. फिर वहां के गरीब, असहाय या पिछड़े लोगों को प्रलोभन दे कर या बहका कर धर्मपरिवर्तन करवाते थे. उन के आने के पहले तो वहां क्रिश्चियन नहीं थे. हम लोग तो सदियों से हिंदू हैं. हम को यह शादी स्वीकार है बशर्ते कि आप लोग हिंदू धर्म अपना लें. वरना हमें यह रिश्ता मंजूर नहीं है.’’

एल्मा के पिता ने अपना तर्क देते हुए कहा, ‘‘हम तो दादा, परदादा के समय से ही क्रिश्चियन हैं. हम भी यही चाहते हैं कि अभय हमारा धर्म अपना ले. वैसे भी हिंदू धर्म तो बस इंडिया और नेपाल में ही है जबकि हमारा धर्म दुनिया के अनेक देशों में प्रचलित है. अभय के क्रिश्चियन बनने के बाद ही हम एल्मा की शादी की इजाजत दे सकते हैं. वरना हमें यह शादी मंजूर नहीं है.’’

अभय और एल्मा दोनों के मातापिता अपनीअपनी बात पर अड़े थे, कोई भी झुकने को तैयार न था. बल्कि बहस अब गरम हो चली थी. दोनों अपनेअपने धर्म को अच्छा साबित करने में लगे थे.

तभी अभय ने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘आप लोग बहुत बोल चुके हैं. अब कृपया शांत रहे. कुछ हम दोनों पर भी छोड़ दीजिए. आखिरी फैसला हम दोनों मिल कर करेंगे.’’

एल्मा बिलकुल खामोश थी बल्कि थोड़ी सहमी थी. सब लोग पार्क से निकल अपनेअपने घर चले गए. अगले दिन ही दोनों के मातापिता हैदराबाद से लौट गए थे.

इधर, अभय ने एल्मा से पूछा ‘‘हम दोनों के मातापिता को बिना धर्मपरिवर्तन किए यह शादी मंजूर नहीं है. मैं तो कोर्टमैरिज करने को तैयार हूं. तुम मेरा साथ दोगी?’’

‘‘मुझे तुम से प्यार है और शादी से कोई एतराज नहीं. पर बड़ी समस्या यह है कि मेरे मातापिता और मेरी छोटी बहन सभी मुझ पर आश्रित हैं. पिताजी ने काफी ख्ेत बंधक रखे हैं मेरी पढ़ाई के लिए. पिताजी ने कहा है कि अगर मैं ने अपनी मरजी से शादी की तो मुझ से उन का कोई रिश्ता नहीं रहेगा. अब मैं उन लोगों को कैसे छोड़ दूं? मेरी स्थिति समझ रहे हो न तुम?’’

‘‘तब मैं क्या समझूं? तुम्हारा फैसला?’’

‘‘मैं मजबूर हूं, मैं फिलहाल शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘तो क्या मैं तुम्हारा इंतजार करूं?’’

एल्मा बोली, ‘‘मैं तो यह भी नहीं कहूंगी कि तुम मेरे लिए अनिश्चितता की स्थिति में रहो. तुम अपना फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हो.’’

इस के बाद दोनों जुदा हो गए. मिलनाजुलना जानेअनजाने ही कभी हो पाता था, पर फोन पर संपर्क बना हुआ था. कुछ दिनों बाद अभय ने चंडीगढ़ के पास मोहाली में एक आईटी कंपनी जौइन कर ली थी. अब एल्मा से फोन पर भी संपर्क नहीं रहा था.

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इस बीच 3 साल बीत चुके थे. अभय शिमला घूमने गया था. दिसंबर का महीना था, बर्फ तो गिर ही रही थी ऊपर से मौसम भी खराब था. जोरों की बारिश हो रही थी. वह अपने होटल के कमरे में बैठा था. रात हो चुकी थी. तभी कौलबैल बजी, तो उस ने सोचा कि वेटर होगा और कहा, ‘‘खुला है, आ जाओ.’’

दरवाजा खुलने पर जो आकृति उसे नजर आई तो कुछ पल के लिए उसे लगा कि सपना देख रहा है. पर जब वह उस के और निकट आई तो वह आश्चर्य से कुछ देर तक उसे देखता ही रहा था. भीगे कपड़ों में एल्मा सामने खड़ी थी सूटकेस लिए.

अभय बोला ‘‘तुम अचानक यहां कैसे? यहां का पता तुम्हें किस ने दिया?’’

‘‘सब बताऊंगी. मैं भीग गई हूं. पहले मुझे चेंज करने दोगे?’’

‘‘ठीक है, बाथरूम में धुला टौवेल है. जाओ, चेंज कर लो.’’

थोड़ी देर में एल्मा चेंज कर निकली, तब तक अभय ने उस के लिए कौफी मंगा दी थी. उस ने कहा ‘‘कौफी गरम है, पी लो.’’

कौफी पीते हुए एल्मा ने कहा, ‘‘मैं ने हैदराबाद के तुम्हारे रूममेट से मोहाली का पता लिया. मोहाली गई तो वहां से तुम्हारे रूममेट ने मुझे यहां का पता दिया. मैं सब छोड़ तुम्हारे पास आई हूं. मुझे पता है तुम ने अभी तक शादी नहीं की है. क्या तुम मुझे अपनाने को तैयार हो? ’’

अभय बोला, ‘‘मैं तो पहले भी तैयार था, आज भी तैयार हूं, पर तुम्हारा धर्म, तुम्हारे मातापिता और बहन?’’

‘‘मैं तो प्यार को धर्म से बड़ा मानती हूं. हम दोनों धर्म बदले बिना भी अपना रिश्ता निभा सकते हैं.’’

‘‘मैं तो तैयार हूं पर तुम्हारा परिवार?’’ अभय बोला.

एल्मा बोली, ‘‘मेरी बहन नर्सिंग कर के दुबई में नर्स है. उस ने वहीं पर लवमैरिज कर ली है. उसी ने मुझे तुम्हारे पास आने की हिम्मत दी है. मातापिता को हम दोनों बहनें पैसे भेजती रहेंगी जिस से वे अपने खेत छुड़ा लेंगे. मैं भी चंडीगढ़ की गारमैंट कंपनी में जौब कर लूंगी.’’ थोड़ी देर की खामोशी के बाद एल्मा आगे बोली, ‘‘पर पहले यह बताओ, तुम ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘शादी कैसे करता? तुम्हारा इंतजार था,’’  अभय बोला.

‘‘वह तो ठीक है, पर तुम्हें यकीन था कि मैं वापस तुम्हारे पास आऊंगी.’’

‘‘मुझे अपने प्यार पर यकीन था,’’ बोल कर अभय ने एल्मा को अपनी आगोश में ले लिया.

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वार पर वार : आखिर क्या थी नमिता की कहानी ?

वार पर वार : भाग 1

नमिता एक हंसमुख और खुशमिजाज लड़की थी. उस के चेहरे की मासूमियत किसी का भी मन मोह लेती थी. उस के गुलाबी होंठ हमेशा मीठी मुसकराहट के दरिया में छोटी नाव की तरह हिचकोले खाते रहते थे. आंखों की पुतलियां सितारों की तरह नाचती रहती थीं. उस के चेहरे और बातों में ऐसा खिंचाव था, जो देखने वाले को बरबस अपनी तरफ खींच लेता था.

पर पिछले कुछ दिनों से नमिता के चेहरे की चमक धुंधली पड़ती जा रही थी. होंठों की मुसकराहट सिकुड़ कर मुरझाए फूल की तरह सिमट गई थी. आंखों की पुतलियों ने नाचना बंद कर दिया था. आंखों के नीचे काले घेरे पड़ने लगे थे.

नमिता समझ नहीं पा रही थी कि वह अपनी जिंदगी की कौन सी बेशकीमती चीज खोती जा रही थी. सबकुछ हाथ से फिसलता जा रहा था.

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नमिता के दुख की वजह क्या थी, यह वह किसी को बता नहीं पा रही थी… लोग पहले कानाफूसी में उस के बारे में बात करते रहे, फिर खुल कर बोलने लगे.

सीधे उसी से पूछते, ‘क्या हुआ है नमिता तुम्हारे साथ जो तुम ग्रहण लगे चांद की तरह चमक खोती जा रही हो?’

नमिता पूछने वाले की तरफ देखती भी नहीं थी, सिर झुका कर एक फीकी मुसकराहट के साथ बस इतना कहती थी, ‘नहीं, कुछ नहीं…’ शब्द जैसे उस का साथ छोड़ देते थे.

इस तरह के हालात कब तक चल सकते थे? नमिता किसकिस से मुंह छिपाती? अनजान लोगों से नजरें चुरा सकती थी, पर अपने घरपरिवार, परिचितों और औफिस के साथियों की निगाहों से कब तक बच सकती थी? उन की बातों का कब तक जवाब नहीं देती?

आखिर टूट ही गई एक दिन… सब के सामने नहीं… औफिस की एक साथी थी प्रीति. उम्र में उस से कुछ साल बड़ी.

एक दिन एकांत में जब उन्होंने नमिता से प्यार भरी आवाज में भरोसा देते हुए पूछा तो नमिता रोने लगी. सब्र का बांध टूट चुका था.

फालतू का पानी बह जाने के बाद जब नमिता ठीक हुई तो उस ने धीरेधीरे अपनी परेशानी की वजह को बयान कर दिया, जिसे सुन कर प्रीति हैरान रह गई थी.

नमिता स्टेनोग्राफर थी और औफिस हैड भूषण राज के साथ जुड़ी थी. भूषण राज अधेड़ उम्र का सुखी परिवार वाला शख्स था. औफिस में उस की अपनी पर्सनल असिस्टैंट थी, पर डिक्टेशन और टाइपिंग का काम वह नमिता से ही कराता था. काम कम कराता था, सामने बिठा कर बातें ज्यादा करता था. वह उसे मुसकराती नजरों से देखा करता था.

पहले नमिता भी मुसकराती थी और उस की बातों का जवाब भी देती थी, पर धीरेधीरे नमिता की समझ में आ गया कि भूषण राज की नजरों का मतलब कुछ दूसरा था, इसलिए वह सावधान हो गई.

जब वह कोई बेहूदा बात कहता तो वह अंदर से डर कर सिमट जाती, पर बाहर से अपनेआप को संभाले रहती कि सूने कमरे में कोई अनहोनी न हो जाए.

नमिता यह तो नहीं जानती थी कि भूषण राज के तहत काम करते हुए वह कितनी महफूज है या वह जिंदगी का कौन सा सुख उसे देगा या उस के घरपरिवार के लिए क्या करेगा, पर वह इतना जरूर जानती थी कि केंद्र सरकार के औफिस की यह पक्की नौकरी उस के लिए बहुत जरूरी थी. उस का 3 साल का प्रोबेशन था. 2 साल पूरे हो चुके थे. एक साल बाद उसे कन्फर्मेशन लैटर मिल जाएगा, तब उस की पक्की नौकरी हो जाएगी.

नमिता मिडिल क्लास परिवार की लड़की थी. मांबाप के अलावा घर में एक छोटा भाई और बहन थी. पापा एक प्राइवेट फर्म में अकाउंटैंट थे. सीमित आमदनी के बावजूद उन्होेंने नमिता को ऊंची पढ़ाई कराई थी.

घर में बड़ी होने के नाते नमिता अपने मांबाप की आंखों का तारा तो थी ही, साथ ही साथ उम्मीद का चिराग भी कि पढ़ाई पूरी करते ही कोई नौकरी मिल जाएगी तो घर की हालत में थोड़ा सुधार आ जाएगा. छोटे भाईबहन की पढ़ाई अच्छे ढंग से चलती रहेगी.

नमिता ने अपने मांबाप को निराश नहीं किया. बीए में दाखिला लेने के साथसाथ वह एक प्राइवेट इंस्टीट्यूट से शौर्टहैंड का कोर्स भी पूरा करती रही.

जैसे ही वह कोर्स पूरा हुआ, उस ने एसएससी का इम्तिहान दिया और आज अपनी मेहनत की बदौलत वह सरकारी नौकरी कर रही थी.

नमिता की चुप्पी ने भूषण राज की हिम्मत बढ़ा दी. उस ने और ज्यादा चारा फेंका, ‘‘अगर तुम चाहोगी तो तुम्हारे भाईबहन पढ़लिख कर अच्छी सर्विस में आ जाएंगे. मैं उन्हें आगे बढ़ने में मदद करूंगा.’’

नमिता ने अपनी निगाहें उठाईं और भूषण राज के लाललाल फूले गालों वाले चेहरे पर टिका दीं. उस की आंखों में दुनिया का सारा प्यार नमिता के लिए उमड़ रहा था. पर इस प्यार में उसे भूषण राज के खतरनाक इरादों का भी पता चल रहा था.

‘‘तुम चिंता मत करो. मैं तुम्हारे भाईबहन को गाइड करूंगा कि उन्हें प्रोफैशनल कोर्स करना चाहिए या सामान्य कोर्स कर के प्रतियोगी परीक्षा के जरीए लोक सेवा में आना चाहिए. मैं ने कई लोगों को गाइड किया है और आज कई लड़के ऊंची सरकारी नौकरी में हैं.’’

पर नमिता गुमसुम सी बैठी रही, उठ कर भाग नहीं सकती थी. न तो वह उसे खुल कर मना कर सकती थी, न अपने मन का दर्द किसी से कह सकती थी.

जब नमिता ने कोई जवाब नहीं दिया तो वह बोला, ‘‘अच्छा, तुम बोर हो रही होगी… एक काम करो, चलो, एक डीओ का डिक्टेशन ही ले लो.’’

नमिता जब तक अपना पैड और कलम संभालती, वह अपनी कुरसी से उठ कर खड़ा हो गया और मेज की दाहिनी तरफ आ गया और कुछ सोचने का बहाना करते हुए नमिता की कुरसी के बाएं सिरे पर आ कर खड़ा हो गया. फिर दाहिनी तरफ नमिता के बाएं कंधे पर तकरीबन झुकते हुए बोला, ‘‘हां लिखो… माई डियर…’’ फिर एक पल की चुप्पी के बाद, ‘‘नहीं, यह छोड़ो. लिखो डियर श्री…’’ फिर भूषण राज की सूई तकरीबन अटक गई और वह ‘माई डियर’ या ‘डियर श्री’ से आगे नहीं बढ़ पाया.

यह शायद नमिता की खूबसूरती या उस के बदन का कमाल था कि पलभर में ही उस की सांसें फूलने लगीं और वह नमिता की चिकनी पीठ को लालसा भरी निगाहों से ताकते हुए लंबीलंबी सांसें लेने लगा. जब वह ज्यादा बेकाबू हो गया तो कसमसाते हुए नमिता के सिर पर हाथ रख कर बोला, ‘‘हां, क्या लिखा?’’

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नमिता के शरीर में एक लिजलिजी लहर समा गई.

मजबूरी इनसान को हद से ज्यादा सब्र वाला बना देती है. नमिता के साथ भी यही हो रहा था. वह अपने बौस की ज्यादतियों का शिकार हो रही थी, पर उस का विरोध नहीं कर पा रही थी. न शब्दों से, न हरकतों से…

नतीजा यह हुआ कि भूषण राज के हाथ अब नमिता के सिर से होते हुए उस की गरदन को गुदगुदाने लगे थे और कभीकभी उस के गालों तक पहुंच जाते थे. फिर कई बार उस की पीठ को सहलाते, जैसे कुछ ढूंढ़ने की कोशिश कर रहे हों. उस की ब्रा के ऊपर हाथ रोक कर उस के हुक को टटोलते हुए ऊपर से ही खोलने की कोशिश करते, पर नमिता कुछ इस तरह सिकुड़ जाती कि वह अपनी कोशिश में नाकाम हो कर कुरसी पर जा कर बैठ जाता और कहता, ‘‘निम्मी…’’ आजकल वह प्यार से उसे निम्मी कहने लगा था, ‘‘तुम कुछ हैल्प क्यों नहीं करती? तुम समझ रही हो न… मैं क्या कहना चाहता हूं?’’

पर नमिता झटके से उठ कर खड़ी हो जाती और बाहर निकल जाती.

नमिता किस मुसीबत में फंस गई थी? क्या करे, क्या न करे? वह रातदिन सोचती रहती. जब से भूषण राज ने उस की पीठ को सहलाना शुरू किया था और उस के गालों को उंगलियों के बीच फंसा कर कभी धीरे से तो कभी जोर से चिकोटी काट लेता था, तब से वह और ज्यादा डरने लगी थी.

भूषण राज जब इस तरह की हरकतें करता तो नमिता अपने शरीर को मेज पर टिका देती कि कहीं उस के हाथ उस गोलाइयों को न लपक लें. वह हर मुमकिन कोशिश करती कि भूषण राज उस के साथ कोई गलत हरकत न करने पाए, पर शिकारी भेडि़ए के पंजे अकसर उस के कोमल बदन को खरोंच देते.

एक दिन तो हद हो गई. भूषण राज ने उस के दोनों गालों पर हाथ फिराते हुए आगे की तरफ से ठोढ़ी और गरदन को सहलाना शुरू कर दिया, फिर धीरेधीरे हाथों को आगे बढ़ाते हुए उस के गालों की तरफ झुक आया. जब उस की गरम सांसें नमिता के बाएं गाल से टकराईं तो वह चौंकी, झटके से बाईं तरफ मुड़ी तो भूषण राज का मुंह सीधे उस के होंठों से जा लगा.

उस ने भूखे भेडि़ए की तरह नमिता के दोनों होंठ अपने मुंह में भर लिए. इसी हड़बड़ी में उस के हाथ नमिता की छाती को मसलने लगे. पलभर के लिए वह हैरान सी रह गई. जब उस की समझ में आया तो उस ने झटका दे कर अपनेआप को छुड़ाया और धक्का दे कर उसे पीछे किया. भूषण राज पीछे हटते हुए मेज से टकराया और गिरतेगिरते बचा.

नमिता कमरे से बाहर जा चुकी थी. अपनी सांसें काबू करने में उसे बहुत देर लगी. उस की आंखों के सामने अंधेरा सा छा गया था. उस का दिल और दिमाग दोनों सुन्न से हो गए थे. कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे?

उधर भूषण राज अपनी सांसों को काबू में करते हुए मन ही मन खुश हो रहा था कि एक मंजिल उस ने हासिल कर ली थी, अब आखिरी मंजिल हासिल करने में कितनी देर लग सकती थी.

नमिता के पास अब 2 ही रास्ते बचे थे. या तो वह नौकरी छोड़ देती या भूषण राज के साथ समझौता कर उस के साथ नाजायज रिश्ता बना लेती. पहला रास्ता आसान नहीं था और दूसरा रास्ता अपनाने से न केवल बदनामी होती, बल्कि उस की जिंदगी भी तबाह हो सकती थी.

भूषण राज उस का ही नहीं, पूरे औफिस का बौस था. नमिता को अब जब भी बौस उसे अपने कमरे में बुलाता, जानबूझ कर देरी से जाती. बारबार कहने के बावजूद भी नमिता कुरसी पर नहीं बैठती, बल्कि खड़ी ही रहती, ताकि जैसे ही बौस अपनी कुरसी से उठ कर खड़ा हो और उस की तरफ बढ़े, वह दरवाजे की तरफ सरक जाए.

भूषण राज चालाक भेडि़या था. उस ने अपना पैतरा बदला. अब वह नमिता को किसी सैक्शन से कोई फाइल ले कर आने के लिए कहता. वह फाइल को ले कर आती तो कहता, ‘‘देखो, इस में एक लैटर लगा होगा… पिछले महीने हम ने मुंबई औफिस से कुछ जानकारी मांगी थी. उस का जवाब अभी तक नहीं आया है. एक रिमाइंडर बना कर लाओ… बना लोगी?’’ वह थोड़ी तेज आवाज में कहता, जैसे धमकी दे रहा हो.

नमिता जानती थी कि भूषण राज जानबूझ कर उसे तंग करने के लिए यह काम सौंप रहा था, ताकि काम न कर पाने के चलते वह उसे डांटडपट सके.

‘‘मैं कर लूंगी सर,’’ कहते हुए वह बाहर निकल गई.

भूषण राज अपनी कुटिल मुसकान के साथ मन ही मन सोच रहा था, ‘कहां तक उड़ोगी मुझ से? पंख काट कर रख दूंगा.’

नमिता ने सब्र से काम लिया. वह संबंधित अनुभाग के अधीक्षक के पास गई और अपनी समस्या बताई. कार्यालय अधीक्षक समझदार था. उस ने नमिता का रिमाइंडर तैयार करा दिया. वह खुशी खुशी फाइल के साथ रिमाइंडर ले कर भूषण राज के चैंबर में घुसी. वह किसी फाइल पर झुका हुआ था, चश्मा नाक पर लटका कर उस ने आंखें उठाईं और त्योरियां चढ़ा कर पूछा, ‘‘तो रिमाइंडर बन गया?’’

‘‘जी सर, देख लीजिए,’’ नमिता आत्मविश्वास से बोली. उस की अंगरेजी और टाइपिंग दोनों अच्छी थीं. भूषण राज ने सरसरी तौर पर लैटर को देखा और घुड़क कर बोला, ‘‘तो ऐसे बनाया जाता है रिमाइंडर? तुम्हें कोई अक्ल भी है.

‘‘यह देखो, यह फिगर गलत है. यह कौलम तो बिलकुल सही नहीं बना है. इस का प्रेजेंटेशन ठीक नहीं है… और यह कौन से फौंट में टाइप किया है… जाओ, दोबारा से बना कर लाओ, वरना समझ लो, अभी प्रोबेशन में हो.

‘‘मन लगा कर काम करो, वरना जिंदगीभर इसी ग्रेड में पड़ी रहोगी. कभी प्रमोशन नहीं मिलेगा.’’

नमिता कुछ देर तो सहमी खड़ी रही. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि ड्राफ्ट में क्या गलती थी. वह तकरीबन रोंआसी हो गई. 2 साल तक भूषण राज ने भले ही उस से एक पैसे का काम नहीं लिया था, पर बातें बहुत मीठी की थीं. अब अचानक उस के बरताव में आए इस बदलाव से नमिता हैरान थी.

अब यह रोज का नियम बन गया था. भूषण राज नमिता को रोज कोई न कोई मुश्किल काम बता देता. वह सही ढंग से काम कर भी देती, तब भी उस के काम में नुक्स निकालता, जोरजोर से सब के सामने उसे डांटता, उस को जलील करता.

‘‘तो यह है तुम्हारी परेशानी की वजह,’’ प्रीति ने लंबी सांस ले कर कहा, ‘‘समस्या बड़ी है… तो क्या सोचा है तुम ने? क्या तुम समझती हो कि इस तरह की लड़ाई से तुम खुद को बचा पाओगी? नामुमकिन है… मैं ने इस दफ्तर में तकरीबन 10 साल गुजारे हैं. मैं उस की एकएक हरकत से वाकिफ हूं.

‘‘मैं जब यहां आई थी, तब शादीशुदा थी. वह केवल कुंआरी लड़कियों पर नजर डालता है. 10 सालों में मैं ने बहुतकुछ देखा है… कितनी लड़कियों को मैं ने यहीं पर हालात से समझौता करते हुए देखा है, कितनी तो जबरदस्ती उस की हवस का शिकार हुई हैं.’’

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‘‘मेरे लिए यह अच्छी नौकरी और इज्जत दोनों ही जरूरी हैं. मैं दोनों में से किसी को खोना नहीं चाहती. नौकरी जाने से मेरे मांबाप, भाई और बहन की जिंदगी पर असर पड़ेगा. इज्जत खो दी, तो फिर मेरे जीने का क्या मकसद…’’ नमिता की आवाज में हताशा टपक रही थी.

प्रीति ने उस के हाथ को थामते हुए कहा, ‘‘इस तरह निराश होने से काम नहीं चलेगा. क्या तुम किसी लड़के को प्यार करती हो?’’

नमिता ने चौंकती नजरों से प्रीति को देखा. उस के इस अचानक किए गए सवाल का मतलब वह नहीं समझी, फिर सिर झुका कर बोली, ‘‘उस हद तक नहीं कि उस से शादी कर लूं. कालेज में इस तरह के प्यार हो जाते हैं, जिन का कोई गंभीर मतलब नहीं होता. बस, एकदूसरे के प्रति खिंचाव होता है. ऐसा ही पहले कुछ था… 2 लड़कों के साथ, पर अब नहीं, लेकिन आप ने क्यों पूछा?’’

‘‘यही कि शिद्दत से किसी को प्यार करने वाली लड़की के कदम जल्दी किसी और राह पर नहीं चलते. मैं ऐसा समझ रही थी, शायद तुम अपने प्यार की खातिर भूषण राज के मनमुताबिक नरमदिल नहीं हो पा रही हो, वरना रुपएपैसे के साथसाथ जवानी का मजा कौन लड़की नहीं उठाना चाहती.’’

नमिता के सीने पर जैसे किसी ने घूंसा मार दिया हो. वह कराहते हुए बोली, ‘‘तो क्या मैं भूषण राज के नीचे लेट जाती?

क्या किसी को प्यार न करने वाली लड़की इज्जतदार नहीं होती?’’ – क्रमश:

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

वार पर वार : भाग 3

पिछले अंकों में आप ने पढ़ा था :

सरकारी नौकरी कर रही नमिता का बौस भूषण राज उसे पाना चाहता था. नमिता ने यह बात अपनी एक साथी प्रीति को बताई तो वह नमिता से बोली कि तुम्हें भी रुपएपैसे के साथसाथ जवानी का मजा उठाना चाहिए. यह सुन कर नमिता हैरान रह गई, लेकिन फिर नमिता ने सोचा कि क्यों न वह अपना ट्रांसफर कहीं और करा ले, पर इस बारे में भी भूषण राज को पता चल गया और मामला बिगड़ गया.

अब पढि़ए आगे…

प्रीति आगे बोली, ‘‘अगर तुम्हारी नौकरी बनी रहेगी तो सारी सुखसुविधाएं तुम्हारे कदमों में बिछी रहेंगी. तुम्हारी सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा. अच्छे घर में शादी हो जाएगी. और क्या चाहिए तुम्हें?’’

नमिता की समझ में नहीं आया कि वह अपनी नौकरी कैसे बचा सकती थी? लेकिन पूछा नहीं… प्रीति खुद ही बताने लगी, ‘‘तुम नौकरी छोड़ दोगी तो दूसरी नौकरी जल्दी कहां मिलेगी? वह भी सरकारी नौकरी… प्राइवेट नौकरी भले ही मिल जाए.

‘‘पर, हर जगह एक ही से हालात हैं नमिता. इनसानरूपी मगरमच्छ हर जगह मुंह खोले जवान लड़कियों को निगलने के लिए तैयार रहते हैं. समझौता कर लो. किसी को पता भी नहीं चलेगा. सुख तुम्हारी झोली में भर जाएंगे और नौकरी भी बची रहेगी.’’

नमिता का शक सच में बदल गया. कई बार उसे लगता था कि प्रीति उसे किसी न किसी जाल में फंसाएगी… वह बौस भूषण राज की दलाल थी.

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उस ने प्रीति को गौर से देखा, तो वह हलके से मुसकराई. प्रीति बोली, ‘‘तुम अपने मन में कोई शक मत पालो. उस से तुम्हारी समस्या का समाधान नहीं होगा.

तुम मुझे भले ही बुरा समझो, पर इस में तुम्हारी ही भलाई है. सोचो, खूबसूरती और जवानी का क्या इस्तेमाल…?’’

नमिता अच्छी तरह समझ गई थी कि इस दुनिया में मर्द ही नहीं, बल्कि औरतें भी एकदूसरे की दुश्मन होती हैं. औरतें कब नागिन बन कर किसी को डस लें, पता ही नहीं चलता. उस ने एक कठोर फैसला किया.

प्रीति अभी तक नमिता के दिमाग की सफाई करने में जुटी हुई थी, ‘‘औरत और मर्द के संबंध में किसी का कुछ नहीं बिगड़ता, पर सुख दोनों को मिलता है… तुम ठीक से समझ रही हो न? जा कर एक बार बौस से माफी मांग लो. वे जैसा कहें, कर दो.’’

अब नमिता को किसी और प्रवचन की जरूरत नहीं थी. वह झटके से उठी और धीरेधीरे कदमों से बौस भूषण राज के चैंबर में चली गई. आज न तो उस के मन में डर था, न वह कांप रही थी. उस की आंखें भी झुकी हुई नहीं थीं. वह भूषण राज की आंखों में आंखें डाल कर देख रही थी.

पहले तो भूषण राज चौंका, फिर कुरसी से उठ कर बोला, ‘‘आओआओ, निम्मी. कैसी हो?’’ उस के मुंह से लार टपकने लगी थी.

‘‘मैं ठीक हूं सर…’’ नमिता ने सपाट लहजे में कहा, ‘‘मैं आप से माफी मांगने आई हूं, उस सब के लिए, जो अभी

तक हुआ है और उस सब के लिए, जो अभी तक नहीं हुआ, पर कभी भी हो सकता है.’’

नमिता का अंदाज ऐसा था, जैसे वह कह रही हो, ‘भूषण साहब, मैं आप को देखने आई हूं कि कितने खूंख्वार भेडि़ए हैं आप. किसी तरह आप औरत के शरीर को खाते हैं, नोंच कर या पूरा… चलिए दिखाइए अपनी ताकत.’

भेडि़ए की खुशी का ठिकाना न रहा. शिकार अपनेआप उस के जाल में फंस गया था. वह अपनी जगह से उठा और इस तरह अंगड़ाई ली, जैसे वह अच्छी तरह जानता था कि अब शिकार उस के पंजे से बच कर कहीं नहीं जा सकता. उसे अपनी चालों पर पूरा भरोसा था. वह धीरेधीरे मुसकराते हुए आगे बढ़ रहा था.

भेड़ को डर नहीं लग रहा था. वह सीधे तन कर खड़ी थी. भेडि़या नजदीक आ गया था, वह फिर भी नहीं डरी.

भेडि़या थोड़ा सहमा… इस भेड़ को आज क्या हो गया. वह उस के भयानक मुंह के तीखे दांतों और नुकीले पंजों से भी नहीं डर रही थी.

भेडि़या भेड़ को जिंदा निगलने की जल्दबाजी में था. भेड़ अगर तन कर खड़ी रही, उस से डर कर भागी नहीं, तो फिर शिकार करने का फायदा क्या?

भेडि़ए ने अपने नुकीले पंजे भेड़ के कंधे पर रखे और दर्दनाक हालत तक उस के नरम गोश्त में चुभाया, पर भेडि़ए को भेड़ के कंधे पत्थर के लगे. उस ने अपना चेहरा भेड़ के खूबसूरत लपलपाते चेहरे की तरफ बढ़ाया तो उसे लगा जैसे वह एक आग का गोला निगल रहा हो.

नमिता ने बालों को मादक झटका दे कर और छातियों को हलका उभार देते हुए कहा, ‘‘शाम को 7 बजे घर पर आइएगा. घर पर और कोई नहीं है. बस, मैं, आप और पूरी रात.’’

भूषण राज भौचक्का रह गया, पर उस का विवेक तो मर चुका था. वह समझ नहीं सकता था कि ऐसी लड़की जो इतने दिन से उस के हर प्रस्ताव को ठुकरा रही थी, अचानक कैसे बदल गई.

भूषण राज ने दिन कैसे बिताया, यह बताना आसान नहीं, पर नमिता आधे दिन की छुट्टी ले कर यह कह कर चली गई थी कि घर को ठीक करना है.

शाम 6 बजे से ही भूषण राज को बेचैनी होने लगी थी. फिर भी उस ने 7 बजाए. औफिस में नहाया, कपड़ों की 1-2 जोड़ी वह हमेशा अपनी दराज में रखता था. पत्नी को कहा कि देर रात तक मीटिंग चलेगी, वह सो जाए.

शबाब मिल रहा था तो शराब भी होनी चाहिए. 2 बोतलें खरीदीं. शायद नमिता भी पी ले तो रात पूरी मस्त हो जाए.

भूषण राज नमिता के बताए पते पर पहुंचा तो थोड़ा मन खट्टा हुआ. बेहद मिडिल क्लास इलाका था. छोटे मैले मकानों में एक संकरे जीने पर चढ़ कर पुराने से दरवाजे को खटखटाया.

दरवाजा नमिता ने ही खोला था. वह पूरी तरह सजीधजी थी. बढि़या मेकअप. पोशाक जो उस के बदन को ढक कम रही थी, दिखा ज्यादा रही थी. घर में खुशबू फैली थी. रोशनी केवल मोमबत्तियों की थी या 2 टेबल लैंपों की.

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नमिता ने उसे बांहों में जकड़ लिया. इसी का तो इंतजार वह महीनों से कर रहा था.

‘‘आज तो बड़े स्मार्ट लग रहे हो सर,’’ कहते हुए वह उसे सोफे पर ले गई. सामने मेज पर खाने का सामान और कई गिलास थे. शायद नमिता जान गई थी, भूषण राज क्या चीज है. उस ने उस के हाथ से बोतलें लीं और कहा कि लाइए, इन्हें मैं फ्रिज में रख दूं.

‘यह कबूतरी तो खुद ही शिकारी के तीर तेज कर रही है…’ भूषण राज ने सोचा. उसे अपने पर गर्व हुआ. है ही वह ताकतवर. कौन चिडि़या है जो उस के जाल से निकल सकती है.

नमिता ने सोफे पर बैठा कर कहा, ‘‘सर, आप कपड़े तो उतारिए, मैं अभी आई.’’

भूषण राज तो सब सावधानियां छोड़ कर कपड़े उतारने लगा और सोफे पर आराम से पसर गया. फिर तसल्ली से खाना ठूंसा? नमिता शायद नहा रही थी.

‘आज तो मजा आ जाएगा… ऐसा सुख तो उसे कभी न मिला था.’

तभी दरवाजे पर खटखट हुई. भूषण राज ने सोचा, ‘कौन हो सकता है इस समय? नमिता ने तो कहा था कि वह अकेली है?’

बिना कपड़ों के किसी के घर में आ जाने पर क्या हो सकता है, वह जान सकता था. पर इस से पहले कि वह कुछ कहता, नमिता दूसरे कमरे से तकरीबन भागती हुई आई और दरवाजा खोल डाला.

बाहर पूरा स्टाफ खड़ा था. कुछ लोग कैमरे भी लिए थे.

‘हैप्पी बर्थडे नमिता’ की आवाज गूंजी और 10-15 लोग कमरे में घुस गए.

भूषण राज फटीफटी आंखों से देख रहा था. उस ने अपने कपड़े उठाने चाहे थे कि नमिता ने झपट कर छीन लिए.

उस के बाद बहुतकुछ हुआ. बहुत सारे फोटो ले लिए गए. भूषण राज की पत्नी को बुला लिया गया. नमिता को ट्रांसफर करने का आदेश पास हो गया. छोटे से घर में हंगामा हो गया. नमिता के घर वाले भी उसी समय पहुंच गए थे.

अब नमिता शान से काम कर रही थी उसी दफ्तर में. भूषण राज ने इस्तीफा दे दिया था और वह शहर बदल कर जा चुका था.

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नमिता की हिम्मत और आंखों की अनोखी चमक ने भूषण राज के सारे हौसलों को मात कर दिया. उस को अपने जाल में फंसाने के लिए भूषण राज ने न जाने कितने जतन किए थे, पर अब वह उस के फंदे में आ कर फंस गया था.

वार पर वार : भाग 2

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था :

सरकारी नौकरी कर रही नमिता का बौस भूषण राज उसे पाना चाहता था. नमिता ने यह बात अपनी एक साथी प्रीति को बताई कि भूषण राज केबिन में बुला कर उसे यहांवहां छूता है. प्रीति ने पहले तो गुस्सा दिखाया पर कुछ दिनों बाद वह नमिता से बोली कि तुम्हें भी रुपएपैसे के साथसाथ जवानी का मजा उठाना चाहिए. यह सुन कर नमिता हैरान रह गई.

अब पढि़ए आगे…

प्रीति ने तुरंत एतराज किया, ‘‘नहींनहीं, मेरा यह मतलब नहीं… मैं एक आम बात कह रही थी. तुम्हारे जैसी लड़कियां आजकल कहां मिलती हैं. आज बाहर की दुनिया में इतनी चमक है और पैसों की इतनी खनक है कि इस सब के लिए कोई भी लड़की अपनी इज्जत बेचने के लिए आमादा रहती है.

‘‘तुम बुरा मत मानो, मैं सच कहती हूं, आजकल की पढ़ीलिखी लड़कियों के लिए कुंआरापन बेकार का शब्द है. मौजमस्ती करना, ढेर सारा रुपया कमाना, चाहे जिस रास्ते से और समाज में एक हैसियत बनाना उन का मकसद होता है.’’

‘‘मैं क्या करूं?’’ नमिता ने अपने हाथ मलते हुए पूछा.

प्रीति मुसकराते हुए बोली, ‘‘हताश होने की जरूरत नहीं है, कुदरत किसी को भी इतना कमजोर नहीं बनाती कि उस के जिंदा रहने के सारे रास्ते बंद कर दे. जो उम्मीद का दामन उलट हालात में भी थामे रहते हैं, वे अपना लक्ष्य जरूर हासिल करते हैं.’’

प्रीति की बातों से नमिता को भले ही कोई राहत न मिली हो, पर बाद में उस ने जो सलाह दी, उस से नमिता को धुंधले अंधेरे में रोशनी की किरण दिखाई देने लगी. फिर भी एक डर बना रहा.

नमिता ने पूछा, ‘‘अगर मैं तबादले की अर्जी देती हूं तो उसे औफिस में ही देना पड़ेगा न? तब यह बौस का बच्चा क्यों उसे आगे भेजेगा?’’

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‘‘बात तो तुम्हारी सही है, पर एक रास्ता फिर भी है. अर्जी की एक प्रति हम रजिस्टर्ड डाक से सीधे डायरैक्टर को भेज सकते हैं. दूसरी प्रति प्रौपर चैनल के जरीए भेजने के लिए औफिस में देंगे. झक मार कर उसे हैडर्क्वाटर भेजना पड़ेगा,’’ प्रीति ने बताया.

उन दोनों ने बहुत सोचसमझ कर एकएक शब्द चुन कर तबादले की अर्जी बनाई. एक प्रति डाक से हैडक्वार्टर भेज दी. हालांकि वह दिल्ली में ही था. दूसरी प्रति उसी दिन उस ने औफिस में जमा कर दी… धड़कते दिल से कि जब उस की अर्जी भूषण राज के सामने होगी तो वह क्या सोचेगा? क्या वह भड़क उठेगा और उसे बुला कर अनापशनाप कुछ सुनाएगा या फिर शांत रह कर कोई ऐसी चाल चलेगा कि नमिता धराशायी हो जाएगी और उस की उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा?

उस दिन नमिता बहुत बेचैन रही. औफिस के साथियों से बातें करती थी, पर मन कहीं और अटका हुआ था. न उस के दिल की धड़कन की रफ्तार कम हो रही थी, न उस की बेचैनी. रहरह कर मन भूषण राज के इर्दगिर्द ही घूमने लगता था.

दुष्ट आदमी चाहे ऊपर से कितना ही मीठा दिखाई देता हो, प्यारीप्यारी बातें करता हो, पर अपनी दुष्टता से कभी बाज नहीं आता.

नमिता की अर्जी को देखते ही भूषण राज की नसों में खून की जगह आग बहने लगी. थोड़ी देर बाद ही उस ने नमिता को अपने चैंबर में बुलाया. वह डरतीकांपती उस के सामने पहुंची…

अपनी नजरों से नमिता के सारे बदन को नंगा करता हुआ वह बोला, ‘‘तो उड़ने का ख्वाब देख रही हो…’’

डर के मारे नमिता अपनी आंखें नहीं उठा पा रही थी.

‘‘तुम यह अवार्ड देने से पहले यह क्यों भूल गई कि तुम्हारी हालत पिंजरे में कैद पंछी की तरह है. बाज तुम्हारी रखवाली कर रहा है. पिंजरे का दरवाजा खुल भी जाएगा तो बाज की तेज निगाहों और उस की तेज रफ्तार से खुद को कैसे बचा पाओगी?’’

नमिता की रूह कांप कर रह गई. उस की आंखों के सामने अंधेरा सा छाता जा रहा था. उस की समझ में कुछ नहीं आया तो लरजती आवाज में उस ने दया की भीख मांगी, ‘‘मैं आप की बेटी जैसी हूं, मुझ पर दया कीजिए.’’

‘‘दया… क्या तुम मुझ पर दया कर सकती हो? बोलो, तुम भी एक लड़की हो, तुम्हारे पास भी भावनाएं हैं. क्या तुम मेरे दिल का हाल नहीं समझ सकती? तुम अपनी थोड़ी सी दया और प्यार की एक छोटी बूंद मेरे ऊपर टपका दो, फिर देखो, मैं तुम्हारे ऊपर दया की इतनी बारिश करूंगा कि तुम्हारी जिंदगी बदल जाएगी. बोलो, मंजूर है?’’ कह कर वह हंसा.

नमिता के पास उस की बात का कोई जवाब नहीं था. वह चुपचाप उस के चैंबर से बाहर निकल आई.

नमिता को हैडक्वार्टर में बैठे अफसरों पर पूरा भरोसा था. वहां के सारे अफसर पत्थरदिल नहीं हो सकते थे. संबंधित अफसर उस की अर्जी पर जरूर विचार करेंगे.

कई दिन बीत गए. नमिता की चिंता बढ़ती जा रही थी. वह औफिस का काम भी ढंग से नहीं कर पाती थी. भूषण राज उस की हालत को समझ रहा था. नमिता अभी मर्यादा की बाढ़ में बह रही थी. वह जानता था कि बाढ़ का पानी एक न एक दिन कम जरूर होगा.

नमिता की परेशानी के मद्देनजर भूषण राज ने उसे एक दिन समझाते हुए कहा, ‘‘क्यों अपनी जान सुखा रही हो तुम? कंचन काया को पत्थर मत बनाओ. मेरा कहना मान लो, तुम्हारा कुछ बिगड़ेगा नहीं…’’

नमिता फिर भी नहीं समझी. वह समझ कर भी नहीं समझना चाहती थी.

एक महीने बाद नमिता को पता चला कि बौस ने उस की अर्जी को हैडक्वार्टर भेज तो दिया है, लेकिन नोट में जोकुछ लिखा है, उसे सुन कर नमिता के पैरों तले जमीन ही खिसक गई. वह इनसान जो उस से प्यार करने का दावा करता था, उस के शरीर को भोगना चाहता था, बौस के मन में उस के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने और उसे पूरी तरह से बरबाद कर देने के लिए ये विचार किस तरह आए होंगे, यह नमिता की समझ से परे था.

प्रीति ने फाइल देखने के बाद नमिता को बताया था कि बौस ने उस की अर्जी पर क्या नोट दिया था. नमिता के कानों में कुछ शब्द पड़े, कुछ नहीं… वह बेहोश सी हो गई थी…

बस इतना समझ में आया कि वह कामचोर थी, अपना काम ढंग से नहीं कर पाती थी. अंगरेजी अच्छी नहीं थी. स्टेनोग्राफर होने के बावजूद डिक्टेशन नहीं ले पाती थी. टाइपिंग में भी ढेर सारी गलतियां करती थी. उसे सुधारने और ढंग से काम करने के तमाम मौके मुहैया कराए गए, पर वह अपने काम में सुधार लाने के बजाय और ज्यादा लापरवाही बरतने लगी थी.

शायद वह किसी अनजान लड़के के प्यार में गिरफ्तार थी, जिस से हमेशा मोबाइल फोन पर बातें करती रहती थी.

बौस ने आगे अपने नोट में लिखा था कि समझाने के साथसाथ उसे काम में सुधार लाने के तरीके भी सुझाए गए थे, पर सारी कोशिशें नाकाम हो गईं और नमिता में जरूरी सुधार नहीं आने के बाद उसे चेतावनी दी जाने लगी, जिस से घबरा कर उस ने दूसरे दफ्तर में अपने तबादले के लिए अर्जी दे दी थी.

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नमिता की उम्मीद के सारे चिराग बुझ गए. दफ्तर के सारे साथियों की हमदर्दी उस के साथ थी, पर वे भी नमिता की तरह लाचार थे.

बौस के दुष्ट स्वभाव, गंदी हरकतों और भेडि़ए जैसी चालाकी से परिचित थे. उस ने बड़े अफसरों को अपनी मुट्ठी में कर रखा था. बेईमान था, पर अकेला सब माल हजम नहीं करता था. नियमित रूप से हैड औफिस जा कर अफसरों की सेवा करता रहता था. पैसे के बल पर सभी को उस ने अपने वश में कर रखा था. सालों से वह एक ही दफ्तर में जमा हुआ था. जिस के बारे में जो कुछ लिखता था, हैड औफिस के अफसर तुरंत उसे मान लेते थे.

नमिता के मामले में भी यही हुआ. एक हफ्ता भी नहीं बीता था कि हैड औफिस से नमिता की अर्जी का जवाब आ गया. उस के तबादले की अर्जी को खारिज करते हुए उस के खिलाफ विभागीय जांच शुरू कर दी गई थी और मजे की बात यह कि जांच अफसर भूषण राज को ही बनाया गया था.

नमिता इतनी थक चुकी थी कि वह बीमार रहने लगी थी. 2-3 दिनों तक वह औफिस नहीं आई. पर उस से क्या फायदा होगा? बीमारी के बहाने वह कितनी छुट्टी ले सकती थी. छुट्टी भी तो भूषण राज को ही मंजूर करनी थी. वह कोई और अड़ंगा लगा देता तो… नमिता के हाथ में क्या था? वह क्या कर सकती थी?

3 दिन तक छुट्टी पर रहने पर नमिता ने बहुतकुछ सोचा और बहुतकुछ समझने की कोशिश की. घर में किसी से बात नहीं की. पर क्या ज्यादतियों की कोई सीमा नहीं है… उस की भी कोई सीमा होगी. कोई किसी पर कितना जुल्म कर सकता है. हम जुल्म सहते चले जाते हैं, इसीलिए हमें और ज्यादा जुल्मों का सामना करना पड़ता है. अगर हम उस का मुकाबला डट कर करें तो शायद इस से छुटकारा मिल जाए. तुरंत नहीं तो थोड़े समय बाद…

जब नमिता 3 दिन बाद वापस दफ्तर आई तो खुश लग रही थी. मन को काफी हद तक उस ने काबू में कर लिया था. खुद को उस ने समझा लिया था कि चिंता करने से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता था.

प्रीति ने नमिता को समझाया, ‘‘देखो नमिता, हालात अब गंभीर हो चुके हैं. भेडि़ए को ही अगर भेड़ की रखवाली के लिए नियुक्त किया जाए तो तुम समझ सकती हो कि भेड़ का क्या हश्र होगा. यहां तो भेडि़ए को भेड़ के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए कहा गया है.’’

‘‘तब…?’’ नमिता ने प्रीति से पूछा, शायद वह कोई राह बता सके. प्रीति पर वह बहुत ज्यादा यकीन करने लगी थी.

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‘‘समझदारी से काम लो नमिता… अगर तुम नौकरी छोड़ती हो या जांच के बाद तुम्हें नौकरी से निकाल दिया जाता है तो दोनों में फर्क क्या है? दोनों हालात में तुम बेरोजगार हो जाओगी. तब तुम्हारे घर का सुखचैन, दो जून की रोटी, भाईबहनों की पढ़ाईलिखाई, तुम्हारी शादी, एक सुखभरी जिंदगी… सब खटाई में पड़ सकता है,’’ प्रीति बहुत धीरेधीरे उसे समझाने के अंदाज में बता रही थी.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

मुट्ठी भर राख

मुट्ठी में जो था वह राख थी, दूसरों के लिए चमकते सितारे थे, झिलमिलाते, दमकते. पहले मन में कितनी साध थी कि दूर गगन में दमकते इन सितारों को झट से झपट कर मुट्ठी में भर लें. ज्यादा कोशिश न करनी पड़ी, न ही पंजों के बल ज्यादा उचकना पड़ा. आसमान ही इतना झुक आया कि हाथ भी न बढ़ाने पड़े और झोली सितारों से भर गई.

आंचल में आने को सितारे तैयार थे. बस, अपने ही पग मैं ने पीछे हटा लिए. एक उम्र होती है जिस में सितारों के सपने आते हैं. फूलों से लदी डालियां लचक- लचक कर हवाओं को खुशबू से भर देती हैं. ठीक इसी वक्त मुंहमांगी मुराद कुबूल होने के समय पांव अपनेआप पीछे हो गए.

बेटी के लिए वर तलाश करें तो गुणों की एक अदृश्य लंबी सूची साथ रहती है. पढ़ालिखा, बारोजगार, सुंदर, सुदर्शन, सुशील, अच्छे कुलखानदान का सभ्य, संभ्रांत. अपना मकान, छोटा परिवार. छोटा भी इतना कि न सास न ननद. लड़के की बहन कोई है ही नहीं और मां का 4 साल पहले इंतकाल हो गया. यह आखिरी वाक्य इस ठसक के साथ मुंह से बाहर आया कि यह गुणों का कोई बोनस है, सोने पर सुहागा है.

बापबेटे 2 जन ही हैं. दोनों कामकाजी हैं. मां की तसवीर पर माला लटक रही है, ड्राइंगरूम में ही. बस, लड़की तो पहले ही दिन से राज करेगी, राज. सासननदों की झिकझिक उस परिवार में नहीं है.

बताने वाली चहक रही थी, ‘‘क्या राजकुमार सा वर मिला है. लड़की तकदीर वाली है.’’

मां ने बेटी की आंखों में चमक देखी, ‘यही ठीक है.’

‘‘लड़का सुंदर है. दोनों ही परिवारों ने एकदूसरे को देख लिया है, पसंद कर लिया है. ऐसे लड़के को तो झट से घेर लेना चाहिए. देर करोगी तो रिश्ता हाथ से निकल जाएगा. अब सोच क्या रही हो?’’

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‘‘मैं सोच रही हूं कि लड़के की मां नहीं है…’’

‘‘यह तो और अच्छी बात है. फसाद की जड़ ही नहीं है,’’ बताने वाली को लड़के के गुण को कम कर के आंकने की जरूरत न समझ आई. बेटी की मां है, बेटी का हित नहीं देख पा रही. अरे, सास नहीं है. लड़की पहले ही दिन से राज करेगी. अपने घर को अपने हिसाब से चलाएगी. बापबेटे दोनों चाहते हैं कि जल्दी से रिश्ता पक्का हो, घर में रौनक आए.

मां की आंखों में रौनक की जगह उदासी का सागर दिखा. पहले दिन से होने वाला राज दिखा कि लाड़चाव करने, बोलनेबतियाने के लिए परिवार में कोई नहीं. लड़की जाते ही गृहस्थी का बोझ संभालेगी और बापबेटे हर घड़ी उस की तुलना अपनी पत्नी व मां से करेंगे. जिंदा मां धूरि बराबर और मरी मां देवी समान. हर घड़ी पूजित. मां ऐसा करती थीं, वैसा करती थीं. होतीं तो उन के साथ देखसुन कर लड़की गृहस्थी सीखसमझ लेती कि क्या करना है, कैसे करना है. अब ऐसे में तो तुलना मात्र ही शेष रहती है.

काम की तुलना, उठनेबैठने, चलने- फिरने की तुलना. बेटेबहू का सुख बाप से न सहा जाएगा. न हंसना न बोलना, न घूमना न फिरना. बेटे को पापा…पापा का राग रहेगा. पापा घर में अकेले हैं, पापा उदास हैं…पापा के दुख के सागर में गोते लगाता रहेगा.

जमाना जालिम होता रहेगा और ध्यानाकर्षण के लिए तरहतरह की बीमारियां, पापाजी को सिरदर्द, पापाजी को ब्लड प्रेशर…मां होती तो पापाजी की देखभाल करती रहती और बेटेबहू अपने में मगन रहते. दुखी आदमी के सामने सुखी होना भी तो मुसीबत ही है. ऐसे में परपीड़न का आनंद लेने वाला कैसे उसे बेटी समझेगा? मां होती तो यह आशंका शायद न होती.

मां का न होना कोई गुण नहीं बल्कि कमी है, ऐसा बेटी की मां को लग रहा था. परिवार एक ऐसे शीशे का सामान था जिस पर ‘हैंडिल विद केअर’ तो लगा ही होता है. यहां तो यह न केवल शीशे का था बल्कि चटका भी हुआ था. हाथ में लग जाए तो खून निकल आए.

सास नहीं है, यानी कि वर की मां नहीं है. इस बात पर हाथ आया रिश्ता छोड़ने वाली कन्या की मां को जिस ने कहा, मूर्ख ही कहा. बताइए सास नहीं है लड़ने को, इस बात पर प्रसन्न नहीं हो सकती. ज्यादा सोचनेसमझने की जरूरत नहीं होती, इस को कहते हैं भाग्य को ठोकर मारना.

कब से बेटी हंसीहंसी में कहती कि कितना अच्छा है. मांबाप फोटो वाले हों. मतलब फोटो माला पहन कर दीवार पर लटकी हो. सास की ‘नो किचकिच.’

किचकिच, झिकझिक नहीं किंतु इस का अर्थ स्नेह की कमी, नियंत्रण का अभाव. ननद नहीं है, लड़का अकेला है. मान लें कि वह शेयर करना जानता ही न होगा. स्वकेंद्रित होगा. बिना नियंत्रण के या तो उच्छृंखल होगा या दब्बू. पिता के स्नेह में सहानुभूति का अनुपात अधिक. जो कहो, सो मान लो. बच्चा कहीं उदास न हो. उस की आदत अपनी बात मनवाने की होगी बजाय मानने की.

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सास का न होना कोई बोनस नहीं हो सकता. न ही सोने पर सुहागा. दुख की छाया यों कि लड़की के तन पर गहने तक सास के पुराने होंगे. मोह के मारे तुड़वा कर फिर न गढ़वाए जाएंगे. मां होती तो यह फैसला मां का होता कि नए गढ़वाए जाएंगे कि पुरानों को बदला जाएगा. अब चूंकि है नहीं इसलिए मां को तो उन्हें पहनना नहीं है. सब बहू पहनेगी. वैसे के वैसे ही पहने तो अच्छा. अनुपस्थित होते हुए भी वह सदा उपस्थित रहेगी. इस में सुलहसंवाद की संभावना नहीं है.

बेटी की मां की रात करवटें बदलते बीती. ऐसे झंझटों में क्यों डालें बेटी को. परिवार ठीक है, अच्छा है लेकिन सामान्य नहीं है. खोज के पैरामीटर में एक शब्द और जुड़ा. परिवार छोटा और सामान्य और बेटा पढ़ालिखा, बारोजगार, सुंदर, सुदर्शन, सुशील, अच्छे कुलखानदान का, सभ्य, संभ्रांत. सास का न होना मुट्ठी की राख भर है, आसमान के चमकते सितारे नहीं, जिस की कोई साध करे.

गांठ खुल गई: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- 

‘‘यह कहने के लिए बुलाया है कि जो होना था वह हो गया. अब मुद्दे की बात करते हैं. सचाई यह है कि हम अब भी एकदूसरे को चाहते हैं. तुम मेरे लिए बेताब हो, मैं तुम्हारे लिए.

‘‘इसलिए शादी होेने तक हम रिश्ता बनाए रख सकते हैं. चाहोगे तो शादी के बाद भी मौका पा कर तुम से मिलती रहूंगी. ससुराल कोलकाता में ही है. इसलिए मिलनेजुलने में कोई परेशानी नहीं होगी.’’

श्रेया का चरित्र देख कर गौतम को इतना गुस्सा आया कि उस का कत्ल कर फांसी पर चढ़ जाने का मन हुआ. लेकिन ऐसा करना उस के वश में नहीं था. क्योंकि वह उसे अथाह प्यार करता था. उसे लगता था कि श्रेया को कुछ हो गया तो वह जीवित नहीं रह पाएगा.

उसे समझाते हुए उस ने कहा, ‘‘मुझे इतना प्यार करती हो तो शादी मुझ से क्यों नहीं कर लेतीं?’’

‘‘इस जमाने में शादी की जिद पकड़ कर क्यों बैठे हो? वह जमाना पीछे छूट गया जब प्रेमीप्रेमिका या पतिपत्नी एकदूसरे से कहते थे कि जिंदगी तुम से शुरू, तुम पर ही खत्म है.

‘‘अब तो ऐसा चल रहा है कि जब तक साथ निभे, निभाओ, नहीं तो अपनेअपने रास्ते चले जाओ. तुम खुद ही बोलो, मैं क्या कुछ गलत कह रही हूं? क्या आजकल ऐसा नहीं हो रहा है?

‘‘दरअसल, मैं सिर्फ कपड़ों से ही नहीं, विचारों से भी आधुनिक हूं. जमाने के साथ चलने में विश्वास रखती हूं. मैं चाहती हूं कि तुम भी जमाने के साथ चलो. जो मिल रहा है उस का भरपूर उपभोग करो. फिर अपने रास्ते चलते बनो.’’

श्रेया जैसे ही चुप हुई, गौतम ने कहा, ‘‘लगा था कि तुम्हें गलती का अहसास हो गया है. मुझ से माफी मांगना चाहती हो. पर देख रहा हूं कि आधुनिकता के नाम पर तुम सिर से पैर तक कीचड़ से इस तरह सन चुकी हो कि जिस्म से बदबू आने लगी है.

‘‘यह सच है कि तुम्हें अब भी अथाह प्यार करता हूं. इसलिए तुम्हें भूल जाना मेरे वश की बात नहीं है. लेकिन अब तुम मेरे दिल में शूल बन कर रहोगी, प्यार बन कर नहीं.’’

श्रेया ने गौतम को अपने रंग में रंगने की पूरी कोशिश की, परंतु उस की एक दलील भी उस ने नहीं मानी.

उस दिन से गौतम पहले से भी अधिक गमगीन हो गया.

इस तरह कुछ दिन और बीत गए. अचानक इषिता ने फोन पर बताया कि उस ने कोलकाता में ट्रांसफर करा लिया है. 3-4 दिनों में आ जाएगी.

3 दिनों बाद इषिता आ भी गई. गौतम के घर गई तो वह गहरी सोच में था.

उस ने आवाज दी. पर उस की तंद्रा भंग नहीं हुई. तब उसे झंझोड़ा और कहा, ‘‘किस सोच में डूबे हुए हो?’’

‘‘श्रेया की यादों से अपनेआप को मुक्त नहीं कर पा रहा हूं,’’ गौतम ने सच बता दिया.

इषिता गुस्से से उफन उठी, ‘‘इतना सबकुछ होने के बाद भी उसे याद करते हो? सचमुच तुम पागल हो गए हो?’’

‘‘तुम ने कभी किसी को प्यार नहीं किया है इषिता, मेरा दर्द कैसे समझ सकती हो.’’

‘‘कुछ घाव किसी को दिखते नहीं. इस का मतलब यह नहीं कि उस शख्स ने चोट नहीं खाई होगी,’’ इषिता ने कहा.

गौतम ने इषिता को देखा तो पाया कि उस की आंखें नम थीं. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी आंखों में आंसू हैं. इस का मतलब यह है कि तुम ने भी प्यार में धोखा खाया है?’’

‘‘इसे तुम धोखा नहीं कह सकते. जिसे मैं प्यार करती थी उसे पता नहीं था.’’

‘‘यानी वन साइड लव था?’’

‘‘कुछ ऐसा ही समझो.’’

‘‘लड़का कौन था. निश्चय ही वह कालेज का रहा होगा?’’

इषिता उसे उलझन में नहीं रखना चाहती थी, रहस्य पर से परदा हटाते हुए कह दिया, ‘‘वह कोई और नहीं, तुम हो.’’

गौतम ने चौंक कर उसे देखा तो वह बोली, ‘‘कालेज में पहली बार जिस दिन तुम से मिली थी उसी दिन तुम मेरे दिल में घर कर गए थे. दिल का हाल बताती, उस से पहले पता चला कि तुम श्रेया के दीवाने हो. फिर चुप रह जाने के सिवा मेरे पास रास्ता नहीं था.

‘‘जानती थी कि श्रेया अच्छी लड़की नहीं है. तुम से दिल भर जाएगा, तो झट से किसी दूसरे का दामन थाम लेगी. आगाह करती, तो तुम्हें लगता कि अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए उस पर इलजाम लगा रही हूं. इसलिए तुम से दोस्ती कर ली पर दिल का हाल कभी नहीं बताया.

‘‘श्रेया के साथ तुम्हारा सबकुछ खत्म हो गया, तो सोचा कि मौका देख कर अपनी मोहब्बत का इजहार करूंगी और तुम से शादी कर लूंगी. पर देख रही हूं कि आज भी तुम्हारे दिल में वह ही है.’’

दोनों के बीच कुछ देर तक खामोशी पसर गई. गौतम ने ही थोड़ी देर बार खामोशी दूर की, ‘‘उसे दिल से निकाल नहीं पा रहा हूं, इसीलिए कभी शादी न करने का फैसला किया है.’’

‘‘तुम्हें पाने के लिए मैं ने जो तपस्या की है उस का फल मुझे नहीं दोगे?’’ इषिता का स्वर वेदना से कांपने लगा था. आंखें भी डबडबा आई थीं.

‘‘मुझे माफ कर दो इषिता. तुम बहुत अच्छी लड़की हो. तुम से विवाह करता तो मेरा जीवन सफल हो जाता. पर मैं दिल के हाथों मजबूर हूं. किसी से भी शादी नहीं कर सकता.’’

इषिता चली गई. उस की आंखों में उमड़ा वेदना का समंदर देख कर भी वह उसे रोक नहीं पाया. वह उसे कैसे समझाता कि श्रेया ने उस के साथ जो कुछ भी किया है, उस से समस्त औरत जाति से उसे नफरत हो गई है.

3 दिन बीत गए. इषिता ने न फोन किया न आई. गौतम सोचने लगा, ‘कहीं नाराज हो कर उस ने दोस्ती तोड़ने का मन तो नहीं बना लिया है?’

उसे फोन करने को सोच ही रहा था कि अचानक उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. उस समय शाम के 6 बज रहे थे. फोन किसी अनजान का था.

उस ने ‘‘हैलो’’ कहा तो उधर से किसी ने कहा, ‘‘इषिता का पापा बोल रहा हूं. तुम से मिलना चाहता हूं. क्या हमारी मुलाकात हो सकती है?’’

उस ने झट से कहा, ‘‘क्यों नहीं अंकल. कहिए, कहां आ जाऊं?’’

‘‘तुम्हें आने की जरूरत नहीं है बेटे. 7 बजे तक मैं ही तुम्हारे घर आ जाता हूं.’’

इषिता उसे 3-4 बार अपने घर ले गई थी. वह उस के मातापिता से मिल चुका था.

उस के पिता रेलवे में उच्च पद पर थे. बहुत सुलझे हुए इंसान थे. वह उन की इकलौती संतान थी. मां कालेज में अध्यापिका थीं. बहुत समझदार थीं. कभी भी उस के और इषिता के रिश्ते पर शक नहीं किया था.

इषिता के पापा समय से पहले ही आ गए. गौतम के साथसाथ उस की मां और बहन ने भी उन का भरपूर स्वागत किया.

उन्होंने मुद्दे पर आने में बहुत देर नहीं लगाई. पर उन चंद लमहों में ही अपने शालीन व्यक्तित्व की खुशबू से पूरे घर को महका दिया था. इतनी आत्मीयता उड़ेल दी थी वातावरण में कि उसे लगने लगा कि उन से जनमजनम का रिश्ता है.

कुछ देर बाद इषिता के पापा को गौतम के साथ कमरे में छोड़ कर मां और बहन चली गईं तो उन्होंने कहा, ‘‘बेटा, इषिता तुम्हें प्यार करती है और शादी करना चाहती है. उस ने श्रेया के बारे में भी सबकुछ बता दिया है.

‘‘श्रेया से तुम्हारा रिश्ता टूट चुका है तो इषिता से शादी क्यों नहीं करना चाहते? वैसे तो बिना कारण भी कोई किसी को नापसंद कर सकता है. यदि तुम्हारे पास इषिता से विवाह न करने का कारण है तो बताओ. मिलबैठ कर कारण को दूर करने की कोशिश करें.’’

उसे लगा जैसे अचानक उस के मन में कोई बड़ी सी शिला पिघलने लगी है. उस ने मन की बात बता देना ही उचित समझा.

‘‘इषिता में कोई कमी नहीं है अंकल. उस से जो भी शादी करेगा उस का जीवन सार्थक हो जाएगा. कमी मुझ में है. श्रेया से धोखा खाने के बाद लड़कियों से मेरा विश्वास उठ गया है.

‘‘लगता है कि जिस से भी शादी करूंगा वह भी मेरे साथ बेवफाई करेगी. ऐसा भी लगता है कि श्रेया को कभी भूल नहीं पाऊंगा और पत्नी को प्यार नहीं कर पाऊंगा,’’ गौतम ने दिल की बात रखते हुए बताया.

‘‘इतनी सी बात के लिए परेशान हो? तुम मेरी परवरिश पर विश्वास रखो बेटा. तुम्हारी पत्नी बन कर इषिता तुम्हें इतना प्यार करेगी कि तुम्हारे मन में लड़कियों के प्रति जो गांठ पड़ गई है वह स्वयं खुल जाएगी.’’

वे बिना रुके कहते रहे, ‘‘प्यार या शादी के रिश्ते में मिलने वाली बेवफाई से हर इंसान दुखी होता है, पर यह दुख इतना बड़ा भी नहीं है कि जिंदगी एकदम से थम जाए.

‘‘किसी एक औरतमर्द या लड़कालड़की से धोखा खाने के बाद दुनिया के तमाम औरतमर्द या लड़केलड़की को एकजैसा समझना सही नहीं है.

‘‘यह जीवन का सब से बड़ा सच है कि कोई भी रिश्ता जिंदगी से बड़ा नहीं होता. यह भी सच है कि हर प्रेम संबंध का अंजाम शादी नहीं होता.

‘‘जीवन में हर किसी को अपना रास्ता चुनने का अधिकार है. यह अलग बात है कि कोई सही रास्ता चुनता है कोई गलत.

‘‘श्रेया के मन में गलत विचार भरे पड़े थे. इसलिए चंद कदम तुम्हारे साथ चल कर अपना रास्ता बदल लिया. अब तुम भी उसे भूल कर जीने की सही राह पर आ जाओ. गिरते सब हैं पर जो उठ कर तुरंत अपनेआप को संभाल लेता है, सही माने में वही साहसी है.’’

थोड़ी देर बाद इषिता के पापा चले गए. गौतम ने मंत्रमुग्ध हो कर उन की बातें सुनी थीं.

श्रेया के कारण लड़कियों के प्रति मन में जो गांठ पड़ गई थी वह खुल गई.

अब देर करना उस ने मुनासिब नहीं समझा. इषिता के पापा को फोन किया, ‘‘अंकल, कल अपने घर वालों के साथ इषिता का हाथ मांगने आप के घर आना चाहता हूं.’’

उधर से इषिता के पापा ने कहा, ‘‘वैलकम बेटे. देर आए दुरुस्त आए. अब तुम्हें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता. तुम ने अपने भीतर के डर पर विजय जो प्राप्त कर ली है.’’

गांठ खुल गई: भाग 1

श्रेया से गौतम की मुलाकात सब से पहले कालेज में हुई थी. जिस दिन वह कालेज में दाखिला लेने गया था, उसी दिन वह भी दाखिला लेने आई थी.

वह जितनी सुंदर थी उस से कहीं अधिक स्मार्ट थी. पहली नजर में ही गौतम ने उसे अपना दिल दे दिया था.

गौतम टौपर था. इस के अलावा क्रिकेट भी अच्छा खेलता था. बड़ेबड़े क्लबों के साथ खेल चुका था. उस के व्यक्तित्व से कालेज की कई लड़कियां प्रभावित थीं. कुछ ने तो खुल कर मोहब्बत का इजहार तक कर दिया था.

उस ने किसी का भी प्यार स्वीकार नहीं किया था. करता भी कैसे? श्रेया जो उस के दिल में बसी हुई थी.

श्रेया भी उस से प्रभावित थी. सो, उस ने बगैर देर किए उस से ‘आई लव यू’ कह दिया.

वह कोलकाता के नामजद अमीर परिवार से थी. उस के पिता और भाई राजनीति में थे. उन के कई बिजनैस थे. दौलत की कोई कमी न थी.

गौतम के पिता पंसारी की दुकान चलाते थे. संपत्ति के नाम पर सिर्फ दुकान थी. जिस मकान में रहते थे, वह किराए का था. उन की एक बेटी भी थी. वह गौतम से छोटी थी.

अपनी हैसियत जानते हुए भी गौतम, श्रेया के साथ उस के ही रुपए पर उड़ान भरने लगा था. उस से विवाह करने का ख्वाब देखने लगा था.

कालांतर में दोनों ने आधुनिक रीति से तनमन से प्रेम प्रदर्शन किया. सैरसपाटे, मूवी, होटल कुछ भी उन से नहीं छूटा. मर्यादा की सारी सीमा बेहिचक लांघ गए थे.

2 वर्ष बीत गए तो गौतम ने महसूस किया कि श्रेया उस से दूर होती जा रही है. वह कालेज के ही दूसरे लड़के के साथ घूमने लगी थी. उसे बात करने का भी मौका नहीं देती थी.

बड़ी मुश्किल से एक दिन मौका मिला तो उस से कहा, ‘‘मुझे छोड़ कर गैरों के साथ क्यों घूमती हो? मुझ से शादी करने का इरादा नहीं है क्या?’’

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श्रेया ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘कभी कहा था कि तुम से शादी करूंगी?’’

वह तिलमिला गया. किसी तरह गुस्से को काबू में कर के बोला, ‘‘कहा तो नहीं था पर खुद सोचो कि हम दोनों में पतिपत्नी वाला रिश्ता बन चुका है तो शादी क्यों नहीं कर सकते हैं?’’

‘‘मैं ऐसा नहीं मानती कि किसी के साथ पतिपत्नी वाला रिश्ता बन जाए तो उसी से विवाह करना चाहिए.

‘‘मेरा मानना है कि संबंध किसी से भी बनाया जा सकता है, पर शादी अपने से बराबर वाले से ही करनी चाहिए. शादी में दोनों परिवारों के आर्थिक व सामाजिक रुतबे पर ध्यान देना अनिवार्य होता है.

‘‘तुम्हारे पास यह सब नहीं है. इसलिए शादी नहीं कर सकती. तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा कि अब मेरा पीछा करना बंद कर दो, नहीं तो अंजाम बुरा होगा.’’

श्रेया की बात गौतम को शूल की तरह चुभी. लेकिन उस ने समझदारी से काम लेते हुए उसे समझाने की कोशिश की पर वह नहीं मानी.

आखिरकार, उसे लगा कि श्रेया किसी के बहकावे में आ कर रिश्ता तोड़ना चाहती है. उस ने सोचा, ‘उस के घर वालों को सचाई बता दूंगा तो सब ठीक हो जाएगा. परिजनों के कहने पर उसे मुझ से विवाह करना ही होगा.’

एक दिन वह श्रेया के घर गया. उस के पिता व भाई को अपने और उस के बारे में सबकुछ बताया.

श्रेया अपने कमरे में थी. भाई ने बुलाया. वह आई. भाई ने गौतम की तरफ इंगित कर उस से पूछा, ‘‘इसे पहचानती हो?’’

श्रेया सबकुछ समझ गई. झट से अपने बचाव का रास्ता भी ढूंढ़ लिया. बगैर घबराए कहा, ‘‘यह मेरे कालेज में पढ़ता है. इसे मैं जरा भी पसंद नहीं करती. किंतु यह मेरे पीछे पड़ा रहता है. कहता है कि मुझ से शादी नहीं करोगी तो इस तरह बदनाम कर दूंगा कि मजबूर हो कर शादी करनी ही पड़ेगी.’’

वह कहता रहा कि श्रेया झूठ बोल रही है परंतु उस के भाई और पिता ने एक न सुनी. नौकरों से उस की इतनी पिटाई कराई कि अधमरा हो गया. पैरों की हड्डियां टूट गईं.

किसी पर किसी तरह का इलजाम न आए, इसलिए गौतम को अस्पताल में दाखिल करा दिया गया.

थाने में श्रेया द्वारा यह रिपोर्ट लिखा दी गई, ‘घर में अकेली थी. अचानक गौतम आया और मेरा रेप करने की कोशिश की. उसी समय घर के नौकर आ गए. उस की पिटाई कर मुझे बचा लिया.’

थाने से खबर पाते ही गौतम के पिता अस्पताल आ गए. गौतम को होश आया तो सारा सच बता दिया.

सिर पीटने के सिवा उस के पिता कर ही क्या सकते थे. श्रेया के परिवार से भिड़ने की हिम्मत नहीं थी.

उन्होंने गौतम को समझाया, ‘‘जो हुआ उसे भूल जाओ. अस्पताल से वापस आ कर पढ़ाई पर ध्यान लगाना. कोशिश करूंगा कि तुम पर जो मामला है, वापस ले लिया जाए.’’

उन्होंने सोर्ससिफारिश की तो श्रेया के पिता ने मामला वापस ले लिया.

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अस्पताल में गौतम को 5 माह रहना पड़ा. वे 5 माह 5 युगों से भी लंबे थे. कैलेंडर की तारीखें एकएक कर के उस के सपनों के टूटने का पैगाम लाती रही थीं.

उसे कालेज से निकाल दिया गया तो दोस्तों ने भी किनारा कर लिया. महल्ले में भी वह बुरी तरह बदनाम हो चुका था. कोई उसे देखना नहीं चाहता था.

श्रेया के आरोप पर किसी को विश्वास नहीं हुआ तो वह थी इषिता. वह उसी कालेज में पढ़ती थी और गौतम की दोस्त थी. वह अस्पताल में उस से मिलने बराबर आती रही. उसे हर तरह से हौसला देती रही.

गौतम घर आ गया तो भी इषिता उस से मिलने घर आती रही. शरीर के घाव तो कुछ दिनों में भर गए पर आत्मसम्मान के कुचले जाने से उस का आत्मविश्वास टूट चुका था.

मन और आत्मविश्वास के घावों पर कोई औषधि काम नहीं कर रही थी. गौतम ने फैसला किया कि अब आगे नहीं पढ़ेगा.

परिजनों तथा शुभचिंतकों ने बहुत समझाया लेकिन वह फैसले से टस से मस नहीं हुआ.

इस मामले में उस ने इषिता की भी नहीं सुनी. इषिता ने कहा था, ‘‘ पढ़ना नहीं चाहते हो तो कोई बात नहीं. क्रिकेट में ही कैरियर बनाओ.’’

‘‘मेरा आत्मविश्वास टूट चुका है. कुछ नहीं कर सकता. इसलिए मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो,’’ उस ने दोटूक जवाब दिया था.

वह दिनभर चुपचाप घर में पड़ा रहता था. घर के लोगों से भी ठीक से बात नहीं करता था. किसी रिश्तेदार या दोस्त के घर भी नहीं जाता था. हर समय चिंता में डूबा रहता.

पहले छुट्टियों में पिता की दुकान संभालता था. अब पिता के कहने पर भी दुकान पर नहीं जाता था. उसे लगता था कि दुकान पर जाएगा तो महल्ले की लड़कियां उस पर छींटाकशी करेंगी तो वह बरदाश्त नहीं कर पाएगा.

इसी तरह घटना को 2 वर्ष बीत गए. इषिता ने ग्रैजुएशन कर ली. जौब की तलाश की, तो वह भी मिल गई. बैक में जौब मिली थी. पोस्टिंग मालदह में हुई थी.

जाते समय इषिता ने उस से कहा, कोलकाता से जाने की इच्छा तो नहीं है पर सवाल जिंदगी का है. जौब तो करनी ही पड़ेगी, पर 6-7 महीने में ट्रांसफर करा कर आ जाऊंगी. विश्वास है कि तब तक श्रेया को दिल से निकाल फेंकने में सफल हो जाओगे.

इषिता मालदह चली गई तो गौतम पहले से अधिक अवसाद में आ गया. तब उस के मातापिता ने उस की शादी करने का विचार किया.

मौका देख कर मां ने उस से कहा, ‘‘जानती हूं कि इषिता सिर्फ तुम्हारी दोस्त है. इस के बावजूद यह जानना चाहती हूं कि यदि वह तुम्हें पसंद है तो बोलो, उस से शादी की बात करूं?’’

‘‘वह सिर्फ मेरी दोस्त है. हमेशा दोस्त ही रहेगी. रही शादी की बात, तो कभी किसी से भी शादी नहीं करूंगा. यदि किसी ने मुझ पर दबाव डाला तो घर छोड़ कर चला जाऊंगा.’’

गौतम ने अपना फैसला बता दिया तो मां और पापा ने उस से फिर कभी शादी के लिए नहीं कहा. उसे उस के हाल पर छोड़ दिया.

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लेकिन एक दोस्त ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘श्रेया से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती, यह अच्छी तरह जानते हो. फिर जिंदगी बरबाद क्यों कर रहे हो? किसी से विवाह कर लोगे तो पत्नी का प्यार पा कर अवश्य ही उसे भूल जाओगे.’’

‘‘जानता हूं कि तुम मेरे अच्छे दोस्त हो. इसलिए मेरे भविष्य की चिंता है. परंतु सचाई यह है कि श्रेया को भूल पाना मेरे वश की बात नहीं है.’’

दोस्त ने तरहतरह से समझाया. पर वह किसी से भी शादी करने के लिए राजी नहीं हुआ.

इषिता गौतम को सप्ताह में 2-3 दिन फोन अवश्य करती थी. वह उसे बताता था कि जल्दी ही श्रेया को भूल जाऊंगा. जबकि हकीकत कुछ और ही थी.

हकीकत यह थी कि इषिता के जाने के बाद उस ने कई बार श्रेया को फोन लगाया था. पर लगा नहीं था. घटना के बाद शायद उस ने अपना नंबर बदल लिया था.

न जाने क्यों उस से मिलने के लिए वह बहुत बेचैन था. समझ नहीं पा रहा था कि कैसे मिले. अंजाम की परवा किए बिना उस के घर जा कर मिलने को वह सोचने लगा था.

तभी एक दिन श्रेया का ही फोन आ गया. बहुत देर तक विश्वास नहीं हुआ कि उस का फोन है.

विश्वास हुआ, तो पूछा, ‘‘कैसी हो?’’

‘‘तुम से मिल कर अपना हाल बताना चाहती हूं. आज शाम के 7 बजे साल्ट लेक मौल में आ सकते हो?’’ उधर से श्रेया ने कहा.

खुशी से लबालब हो कर गौतम समय से पहले ही मौल पहुंच गया. श्रेया समय पर आई. वह पहले से अधिक सुंदर दिखाई पड़ रही थी.

उस ने पूछा, ‘‘मेरी याद कभी आई थी?’’

‘‘तुम दिल से गई ही कब थीं जो याद आतीं. तुम तो मेरी धड़कन हो. कई बार फोन किया था, लगा नहीं था. लगता भी कैसे, तुम ने नंबर जो बदल लिया था.’’

उस का हाथ अपने हाथ में ले कर श्रेया बोली, ‘‘पहले तो उस दिन की घटना के लिए माफी चाहती हूं. मुझे इस का अनुमान नहीं था कि मेरे झूठ को पापा और भैया सच मान कर तुम्हारी पिटाई करा देंगे.

‘‘फिर कोई लफड़ा न हो जाए, इस डर से पापा ने मेरा मोबाइल ले लिया. अकेले घर से बाहर जाना बंद कर दिया गया.

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‘‘मुंबई से तुम्हें फोन करने की कोशिश की, परंतु तुम्हारा नंबर याद नहीं आया. याद आता तो कैसे? घटना के कारण सदमे में जो थी.

‘‘फिलहाल वहां ग्रैजुएशन करने के बाद 3 महीने पहले ही आई हूं. बहुत कोशिश करने पर तुम्हारे एक दोस्त से तुम्हारा नंबर मिला, तो तुम्हें फोन किया. मेरी सगाई हो गई है. 3 महीने बाद शादी हो जाएगी.

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