क्षितिज के उस पार: भाग -3

‘‘क्या हुआ, क्या हुआ?’’ 2-3 साइकिल सवार उतर कर पूछने लगे थे. ट्रक ड्राइवर भी आ गया था, ‘‘बाबूजी, क्या मरने का इरादा है? भला ऐसे गाड़ी चलाई जाती है…मैं ट्रक न रोक पाता तो… वह तो अच्छा हुआ कि गाड़ी पत्थर से ही टकरा कर रुक गई, मामूली ही नुकसान हुआ है.’’

मैं ने अचेत से पड़े अभय को संभालना चाहा था, डर के मारे दिल अभी तक धड़क रहा था.

‘‘अभय, तुम ठीक तो हो न…?’’ मेरा स्वर भीगने लगा था.

‘‘यह तो अच्छा हुआ बहनजी…आप ने इन्हें खींच लिया वरना स्टियरिंग पेट में घुस जाता तो…’’ ट्रक ड्राइवर कह रहा था. अभय ने मेरी तरफ देखा तो मैं ने आंखें झुका ली थीं.

‘‘बाबूजी, इस समय गाड़ी चलाना ठीक नहीं है, आगे की पुलिया भी टूटी हुई है. आप पास के डाकबंगले में रुक जाइए, सुबह जाना ठीक होगा…गाड़ी की मरम्मत भी हो जाएगी,’’ ड्राइवर ने राय दी.

‘‘हां…हां, यही ठीक है…’’ मैं सचमुच अब तक डरी हुई थी.

डाकबंगला पास ही था. मैं तो निढाल सी बाहर बरामदे में पड़ी कुरसी पर ही बैठ गई थी. अभय शायद चौकीदार से कमरा खोलने के लिए कह रहे थे.

‘‘बाबूजी, खाना खाना चाहें तो अभी पास के ढाबे से मिल जाएगा…फिर तो वह भी बंद हो जाएगा,’’ चौकीदार ने कहा था.

‘‘रितु, तुम अंदर कमरे में बैठो, मैं खाना ले कर आता हूं,’’ कहते हुए अभय बाहर चले गए थे.

साधारण सा ही कमरा था. एक पलंग बिछा था. कुछ सोच कर मैं ने बैग से चादर, कंबल निकाल कर बिछा दिए थे. फिर मुंह धो कर गाउन पहन लिया. अभय को बड़ी देर हो गई थी खाना लाने में. सोचने लगी कि पल भर में ही क्या हो जाता है.

एकाएक मेरा ध्यान भंग हुआ था. अभय शायद खाना ले कर लौट आए थे. अभय ने साथ आए लड़के से प्लेटें मेज पर रखने को कहा था. खाना खाने के बाद अभय ने एक के बाद दूसरी और फिर तीसरी सिगरेट सुलगानी चाही थी.

‘‘बहुत सिगरेट पीने लगे हो…’’ मैं ने धीरे से उन के हाथ से लाइटर ले लिया था और पास ही बैठ गई थी, ‘‘इतनी सिगरेट क्यों पीने लगे हो?’’

‘‘दूर रहोगी तो कुछ तो करूंगा ही…’’ पहली बार अभय का स्वर मुझे स्वाभाविक लगा था, ‘‘थक गया हूं रितु, ठीक है तुम नौकरी मत छोड़ना, मैं ही समय से पहले सेवानिवृत्त हो जाऊंगा, बस, अब तो खुश हो,’’ उन्होंने और सहज होने का प्रयास किया था…और मुझे पास खींच लिया था. फिर धीरे से मेरे उस गाल को सहला दिया था जहां शाम को थप्पड़ लगा था.

‘‘नहीं अभय, मैं नौकरी छोड़ दूंगी… आखिर मेरी सब से बड़ी जरूरत तो तुम्हीं हो,’’ कहते हुए मेरा गला रुंध गया था.

‘‘सच…क्या सच कह रही हो रितु?’’ अभय ने मेरी आंखों में झांका.

‘‘हां सच, बिलकुल सच,’’ मैं ने धीरे से कहते हुए अपना सिर अभय के कंधे पर टिका दिया था.

रिस्क: क्यों रवि ने मानसी को छोड़ने का रिस्क लिया ?

इस नए औफिस में काम करते हुए मुझे 3 महीने ही हुए हैं और अब तक मेरे सभी सहयोगी जान चुके हैं कि मैं औफिस की ब्यूटी क्वीन मानसी को बहुत चाहता हूं. मुझे इस बात की चिंता अकसर सताती है कि जहां मैं उस से शादी करने को मरा जा रहा हूं, वहीं वह मुझे सिर्फ अच्छा दोस्त ही बनाए रखना चाहती है.

मानसी और मेरे प्रेम संबंध में और ज्यादा जटिलता पैदा करने वाली शख्सीयत का नाम है, शिखा. साथ वाले औफिस में कार्यरत शोख, चंचल स्वभाव वाली शिखा अकेले में ही नहीं बल्कि सब के सामने भी मेरे साथ फ्लर्ट करने का कोई मौका नहीं चूकती है.

‘‘दुनिया की कोई लड़की तुम्हें उतनी खुशी नहीं दे सकती, जितनी मैं दूंगी. खासकर बैडरूम में तुम्हारे हर सपने को पूरा करने की गारंटी देती हूं,’’ शादी के लिए मेरी ‘हां’ सुनने को शिखा अकेले में मुझे अकसर ऐसे प्रलोभन देती.

‘‘तुम पागल हो क्या? अरे, किसी ने कभी तुम्हारी ऐसी बातों को सुन लिया, तो लोग तुम्हें बदनाम कर देंगे,’’ उस की बिंदास बातें सुन कर मैं सचमुच हैरान हो उठता.

‘‘मुझे लोगों की कतई परवा नहीं और यह साबित करना मेरे लिए बहुत आसान है कि मैं गलत लड़की नहीं हूं.’’

‘‘तुम यह कैसे साबित कर सकती हो?’’

‘‘तुम मुझ से शादी करो और अगर सुहागरात को तुम्हें मेरे वर्जिन होने का सुबूत न मिले तो अगले दिन ही मुझ से तलाक ले लेना.’’

‘‘ओ, पागलों की लीडर, तू मेरा पीछा छोड़ और कोई नया शिकार ढूंढ़,’’ मैं ने नाटकीय अंदाज में उस के सामने हाथ जोड़े, तो हंसतेहंसते उस के पेट में दर्द हो गया.

मानसी को शिखा फूटी आंख नहीं सुहाती है. मेरी उस पागल लड़की में कोई दिलचस्पी नहीं है, बारबार ऐसा समझाने पर भी मानसी आएदिन शिखा को ले कर मुझ से झगड़ा कर ही लेती.

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उस ने पिछले हफ्ते से जिद पकड़ ली थी कि मैं शिखा को जोर से डांट कर सब के बीच एक बार अपमानित करूं, जिस से कि वह मेरे साथ बातचीत करना बिलकुल बंद कर दे.

‘‘मेरी समझ से वह हलकेफुलके मनोरंजन के लिए मेरे साथ फ्लर्ट करने का नाटक करती है. उसे सब के बीच अपमानित करना गलत होगा, क्योंकि वह दिल की बुरी नहीं है, मानसी,’’ मेरे इस जवाब को सुन मानसी ने 2 दिन तक मुझ से सीधे मुंह बात नहीं की थी.

मैं ने तंग आ कर दूसरे दिन शिखा को लंच टाइम में सख्ती से समझाया, ‘‘मैं बहुत सीरियसली कह रहा हूं कि तुम मुझ से दूर रहा करो.’’

‘‘क्यों,’’ उस ने आंखें मटकाते हुए कारण जानना चाहा.

‘‘क्योंकि तुम्हारा मेरे आगेपीछे घूमना मानसी को अच्छा नहीं लगता है.’’

‘‘उसे अच्छा नहीं लगता है तो मेरी बला से.’’

‘‘बेवकूफ, मैं उस से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘मुझ से बड़े बेवकूफ, मानसी मुझ से जरा सी ज्यादा सुंदर जरूर है, पर मैं दावे से कह रही हूं कि मेरी जैसी शानदार लड़की तुम्हें पूरे संसार में नहीं मिलेगी.’’

‘‘देवी, तू मेरे ऊपर लाइन मारना छोड़ दे.’’

‘‘मैं अपने पापी दिल के हाथों मजबूर होने के कारण तुम से दूर नहीं रह सकती हूं, लव.’’

‘‘मुहावरा तो कम से कम ठीक बोल, मेरी जान की दुश्मन. पापी पेट होता है, दिल नहीं.’’

‘‘तुम्हें क्या पता कि मेरा पापी दिल सपनों में तुम्हारे साथ कैसेकैसे गुल खिलाता है,’’ इस डायलौग को बोलते हुए उस के जो सैक्सी हावभाव थे, उन्हें देख कर मैं ऐसा शरमाया कि उस से आगे कुछ कहते नहीं बना.

पिछले हफ्ते मानसी ने अब तक मुझ से शादी के लिए ‘हां’ ‘ना’ कहने के पीछे छिपे कारण बता दिए, ‘‘मेरे मम्मीपापा की आपस में कभी नहीं बनी. पापा अभी भी मम्मी पर हाथ उठा देते हैं. भाभी घर में बहुत क्लेश करती हैं. मेरी बड़ी बहन अपने 3 साल के बेटे के साथ मायके आई हुई है, क्योंकि जीजाजी किसी दूसरी के चक्कर में पड़ गए हैं, समाज में नीचा दिखाने वाले इन कारणों के चलते मुझे लगता था कि अपनी शादी हो जाने के बाद मैं अपने पति और ससुराल वालों से कभी आंखें ऊंची कर के बात नहीं कर पाऊंगी. अब अगर तुम्हें इन बातों से फर्क न पड़ता हो तो मैं तुम से शादी करने के लिए ‘हां’  कह सकती हूं.’’

‘‘मुझे इन सब बातों से बिलकुल भी फर्क नहीं पड़ता है. आई एम सो हैप्पी,’’ मानसी की ‘हां’ सुन कर मेरी खुशी का सचमुच कोई ठिकाना नहीं रहा था.

उस दिन के बाद मानसी ने बड़े हक के साथ मुझे शिखा से कोई संबंध न रखने की चेतावनी दिन में कईकई बार देनी शुरू कर दी थी. उसे किसी से भी खबर मिलती कि शिखा मुझ से कहीं बातें कर रही थी, तो वह मुझ से झगड़ा जरूर करती.

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मैं ने परेशान हो कर एक दिन शिखा की सीट पर जा कर विनती की, ‘‘मानसी मुझ से शादी करने को राजी हो गई है और उसे हमारा ‘हैलोहाय’ करना तक पसंद नहीं है. तुम मुझ से दूर रहा करो, प्लीज.’’

‘‘जब तक मानसी के साथ तुम्हारी शादी के कार्ड नहीं छप जाते, मैं तो तुम से मिलती रहूंगी,’’ उस पागल लड़की ने मेरी विनती को तुरंत ठुकरा दिया था.

‘‘तुम मेरी प्रौब्लम को समझने की कोशिश करो, प्लीज.’’

‘‘और तुम मेरी प्रौब्लम को समझो. देखो, मैं तुम्हें प्यार करती हूं और इसीलिए आखिरी वक्त तक याद दिलाती रहूंगी कि मुझ से बेहतर पत्नी तुम्हें…’’ उस पर अपनी बात का कोई असर न होते देख मैं उस का डायलौग पूरा सुने बिना ही वहां से चला आया था.

किसी झंझट में न फंसने के लिए मैं ने अगले हफ्ते छोटे से बैंकटहौल में हुई अपने जन्मदिन की पार्टी में शिखा को नहीं बुलाया, पर उसे न बुलाने का मेरा फैसला उसे पार्टी से दूर रखने में सफल नहीं हुआ था. वह लाल गुलाब के फूलों का सुंदर गुलदस्ता ले कर बिना बुलाए ही पार्टी में शामिल होने आ गई थी.

‘‘रवि डियर, मुझे यहां देख कर टैंशन मत लो, मैं ने तुम्हें फूल भेंट कर दिए, शुभकामनाएं दे दीं और अब अगर तुम हुक्म दोगे, तो मैं उलटे पैर यहां से चली जाऊंगी,’’ अपनी बात कहते हुए वह बिलकुल भी टैंशन में नजर नहीं आ रही थी.

‘‘अब आ ही गई हो तो कुछ खापी कर जाओ,’’ मुझ से पार्टी में रुकने का निमंत्रण पा कर उस का चेहरा गुलाब की तरह खिल उठा था.

अचानक मानसी हौल में आई उसी दौरान शिखा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे डांस फ्लोर की तरफ ले जाने की कोशिश कर रही थी.

मुझे उस के आने का तब पता चला जब उस ने पास आ कर शिखा को मेरे पास से दूर धकेला और अपमानित करते हुए बोली, ‘‘जब तुम्हें रवि ने पार्टी में बुलाया ही नहीं था, तो क्यों आई हो?’’

‘‘मेरी मरजी, वैसे तुम होती कौन हो मुझ से यह सवाल पूछने वाली,’’ शिखा उस से दबने को बिलकुल तैयार नहीं थी.

‘‘तुझे मालूम नहीं कि हमारी शादी होने वाली है, घटिया लड़की.’’

‘‘तुम मुझ से तमीज से बात करो,’’ शिखा को भी गुस्सा आ गया, ‘‘रवि से तुम्हारी शादी होने वाली बात मैं उसी दिन मानूंगी जिस दिन शादी का कार्ड अपनी आंखों से देख लूंगी.’’

‘‘तुम्हारे जैसी जबरदस्ती गले पड़ने वाली बेशर्म लड़की मैं ने दूसरी नहीं देखी. कहीं तुम किसी वेश्या की बेटी तो नहीं हो?’’

‘‘मेरी मां के लिए अपशब्द निकालने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई,’’ वह मानसी की तरफ झपटने को तैयार हुई, तो मैं ने फौरन उस का हाथ मजबूती से पकड़ कर उसे रोका.

‘‘इसे इसी वक्त यहां से जाने को कहो, रवि,’’ मानसी ऊंची आवाज में कह कर उसे बेइज्जत कर रही थी.

‘‘तुम जरा चुप करो,’’ मैं ने मानसी को जोर से डांटा और फिर हाथ छुड़ाने को मचल रही शिखा से कहा, ‘‘तुम अपने गुस्से को काबू में करो. क्या तुम दोनों ही मेरी पार्टी का मजा खराब करना चाहती हो?’’

शिखा ने फौरन अपने गुस्से को पी कर कुछ शांत लहजे में जवाब दिया, ‘‘नहीं, और तभी मैं इस बेवकूफ को अपने साथ बदतमीजी करने के लिए माफ करती हूं.’’

मेरे द्वारा डांटे जाने से बेइज्जती महसूस कर रही मानसी ने मुझे अल्टीमेटम दे दिया, ‘‘रवि, तुम इसे अभी पार्टी से चले जाने को कहो, नहीं तो मैं इसी पल यहां से चली जाऊंगी.’’

‘‘मानसी, छोटे बच्चे की तरह जिद मत करो.’’

उस ने मुझे टोक कर अपनी धमकी दोहरा दी, ‘‘अगर तुम ने ऐसा नहीं किया, तो तुम मेरे साथ घर बसाने के सपने देखना भूल जाना.’’

‘‘तुम अपना घर बसने की फिक्र न करो, माई लव, क्योंकि मैं तुम से शादी करने को तैयार हूं,’’ शिखा ने बीच में ही यह डायलौग बोल कर बात को और बिगाड़ दिया था.

‘‘तुझ जैसी कई थालियों में मुंह मारने की शौकीन लड़की से कोई इज्जतदार युवक शादी नहीं करेगा,’’ मानसी उसे अपमानित करने वाले लहजे में बोली, ‘‘तुम जैसी आवारा लड़कियों को आदमी अपनी रखैल बनाता है, पत्नी नहीं.’’

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अपने गुस्से को काबू में रखने की कोशिश करते हुए शिखा ने मुझे सलाह दी, ‘‘रवि, तुम इस कमअक्ल से तो शादी मत ही करना. इस का चेहरा जरूर खूबसूरत है, पर मन के अंदर बहुत ज्यादा जहर भरा हुआ है.’’

‘‘तुम इसे फौरन पार्टी से चले जाने को कह रहे हो या नहीं,’’ मानसी ने चिल्ला कर अपना अल्टीमेटम एक बार फिर दोहराया, तो मेरी परेशानी व उलझन बहुत ज्यादा बढ़ गई.

मेरी समस्या सुलझाने की पहल शिखा ने की.

‘‘रवि, तुम टैंशन मत लो. पार्टी में हंसीखुशी का माहौल बना रहे, इस के लिए मैं यहां से चली जाती हूं. हैप्पी बर्थडे वन्स अगेन,’’ मेरे कंधे को दोस्ताना अंदाज में दबाने के बाद वह दरवाजे की तरफ बढ़ने को तैयार हो गई थी.

‘‘मैं तुम्हें बाहर तक छोड़ने चलूंगा. जरा 2 मिनट के लिए रुक जाओ, प्लीज.’’

’’तुम इसे बिलकुल भी बाहर तक छोड़ने नहीं जाओगे,’’ मानसी के चहरे की खूबसूरती को गुस्से के हावभावों ने विकृत कर दिया था.

मैं ने गहरी सांस ली और मानसी के पास जा कर बोला, ’’मेरी जिंदगी से निकल जाने की तुम्हारी धमकी को नजरअंदाज करते हुए मैं अपने इस पल दिल में पैदा हुए ताजा भाव तुम से जरूर शेयर करूंगा. सच यही है कि आजकल मेरी जिंदगी में सारी टैंशन तुम्हारे और सारा हंसनामुसकराना शिखा के कारण हो  रहा है. तुम्हारी खूबसूरती के सम्मोहन से निकल कर अगर मैं निष्पक्ष भाव से देखूं, तो मुझे साफ महसूस होता है कि यह जिंदादिल लड़की मेरी जिंदगी की रौनक बन गई है.’’

’’गो, टू हैल,’’ मेरी बात सुन कर आगबबूला  हो उठी मानसी को जन्मदिन की बिना शुभकामनाएं दिए दरवाजे की तरफ जाता देख कर भी मैं ने उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की.

मैं शिखा का हाथ पकड़ कर मुसकराते हुए बोला, ’’ओ, पगली लड़की, मुझे साफ नजर आ रहा है कि अगर तुम मेरी जिंदगी से निकल गई, तो वह रसहीन हो जाएगी. तुम अगर मुझे आश्वासन दो कि तुम अपने जिंदादिल व्यक्तित्व को कभी नहीं मुरझाने दोगी, तो मैं तुम से एक महत्त्वपूर्ण सवाल पूछना चाहूंगा?’’

’’माई डियर रवि, मैं तुम्हारे प्यार में हमेशा ऐसी ही पागल बनी रहूंगी. प्लीज जल्दी से वह खास सवाल पूछो न,’’ वह उस छोटी बच्ची की तरह खुश नजर आ रही थी, जिसे अपना मनपसंद उपहार मिलने की आशा हो.

’’अपने बहुत से शुभचिंतकों की चेतावनी को नजरअंदाज कर मैं तुम्हारे जैसी बिंदास लड़की को अपनी जीवनसंगिनी बनाने का रिस्क लेने को तैयार हूं. क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

’’हुर्रे, मैं तुम से शादी करने को बिलकुल तैयार हूं, माई लव,’’ जीत का जोरदार नारा लगाते हुए उस ने सब के सामने मेरे होंठों पर चुंबन अंकित कर हमारे नए रिश्ते पर स्वीकृति की मुहर लगा दी थी.

देह से परे: मोनिका ने आरव से कैसे बदला लिया?

लेखिका- निहारिका

लिफ्ट बंद है फिर भी मोनिका उत्साह से पांचवीं मंजिल तक सीढि़यां चढ़ती चली गई. वह आज ही अभी अपने निर्धारित कार्यक्रम से 1 दिन पहले न्यूयार्क से लौटी है. बहुत ज्यादा उत्साह में है, इसीलिए तो उस ने आरव को बताया भी नहीं कि वह लौट रही है. उसे चौंका देगी. वह जानती है कि आरव उसे बांहों में उठा लेगा और गोलगोल चक्कर लगाता चिल्ला उठेगा, ‘इतनी जल्दी आ गईं तुम?’ उस की नीलीभूरी आंखें मारे प्रसन्नता के चमक उठेंगी.

इन्हीं आंखों की चमक में अपनेआप को डुबो देना चाहती है मोनिका और इसीलिए उस ने आरव को बताया नहीं कि वह लौट रही है. उसे मालूम है कि आरव की नाइट शिफ्ट चल रही है, इसलिए वह अभी घर पर ही होगा और इसीलिए वह एयरपोर्ट से सीधे उस के घर ही चली आई है. डुप्लीकेट चाबी उस के पास है ही. एकदम से अंदर जा कर चौंका देगी आरव को. मोनिका के होंठों पर मुसकराहट आ गई.

वह धीरे से लौक खोल कर अंदर घुसी तो घर में सन्नाटा पसरा हुआ था. जरूर आरव सो रहा होगा. वह उस के बैडरूम की ओर बढ़ी. सचमुच ही आरव चादर ताने सो रहा था. मोनिका ने झुक कर उस का माथा चूम लिया.

‘‘ओ डियर अलीशा, आई लव यू,’’ कहते हुए आंखें बंद किए ही आरव ने उसे अपने ऊपर खींच लिया. लेकिन अलीशा सुनते ही मोनिका को जैसे बिजली का करैंट सा लगा. वह छिटक पड़ी.

‘‘मैं हूं, मोनिका,’’ कहते हुए उस ने लाइट जला दी. लेकिन लाइट जलते हो वह स्तब्ध हो गई. आरव की सचाई बेहद घृणित रूप में उस के सामने थी. जिस रूप में आरव और अलीशा वहां थे, उस से यह समझना तनिक भी मुश्किल नहीं था कि उस कमरे में क्या हो रहा था. मोनिका भौचक्की रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे अपने जीवन में ऐसा दृश्य देखना पड़ेगा. आरव को दिलोजान से चाहा है उस ने. उस के साथ जीवन बिताने और एक सुंदर प्यारी सी गृहस्थी का सपना देखा है, जहां सिर्फ और सिर्फ खुशियां ही होंगी, प्यार ही होगा. लेकिन आरव ऐसा कुछ भी कर सकता है यह तो वह सपने में भी नहीं सोच पाई थी. पर सचाई उस के सामने थी.

इस आदमी से उस ने प्यार किया. इस गंदे आदमी से. घृणा से उस की देह कंपकंपा उठी. अपने नीचे गिरे पर्स को उठा कर और आरव के फ्लैट की चाबी वहीं पटक कर वह बाहर निकल आई. खुली हवा में आ कर उसे लगा कि बहुत देर से उस की सांस रुकी हुई थी. उस का सिर घूम रहा था, उसे मितली सी आ रही थी, लेकिन उस ने अपनेआप को संभाला. लंबीलंबी सांसें लीं. तभी आरव के फ्लैट का दरवाजा खुला और आरव की धीमी सी आवाज आई, ‘‘मोनिका, प्लीज मेरी बात सुनो. आई एम सौरी यार.’’

लेकिन जब तक वह मोनिका के पास पहुंचता वह लिफ्ट में अंदर जा चुकी थी. इत्तफाक से नीचे वही टैक्सी वाला खड़ा था जिस से वह एयरपोर्ट से यहां आई थी. टैक्सी में बैठ कर उस ने संयत होते हुए अपने घर का पता बता दिया. टैक्सी ड्राइवर बातूनी टाइप का था. पूछ बैठा, ‘‘क्या हुआ मैडम, आप इतनी जल्दी वापस आ गईं? मैं तो अभी अपनी गाड़ी साफ ही कर रहा था.’’

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‘‘जिस से मिलना था वह घर पर नहीं था,’’ मोनिका ने कहा, लेकिन आवाज कहीं उस के गले में ही फंसी रह गई. ड्राइवर ने रियर व्यू मिरर से उस को देखा फिर खामोश रह गया. अच्छा हुआ कि वह खामोश रह गया वरना पता नहीं मोनिका कैसे रिऐक्ट करती. उस की आंखों में आंसू थे, लेकिन दिमाग गुस्से से फटा जा रहा था. क्या करे, क्या करे वह?

आरव ने कई बार उस से कहा था कि आजकल सच्चा प्यार कहां होता है? प्यार की तो परिभाषा ही बदल चुकी है आज. सब कुछ  ‘फिजिकल’ हो चुका है. लेकिन मोनिका ने कभी स्वीकार नहीं किया इस बात को. वह कहती थी कि जो ‘फिजिकल’ होता है वह प्यार नहीं होता. कम से कम सच्चा प्यार तो नहीं ही होता. प्यार तो हर दुनियावी चीज से परे होता है. आरव उस की बातों पर ठहाका लगा कर हंस देता था और कहता था कि कम औन यार, किस जमाने की बातें कर रही हो तुम? अब शरतचंद के उपन्यास के देवदास टाइप का प्यार कहां होता है?

आरव के तर्कों को वह मजाक समझती थी, सोचती थी कि वह उसे चिढ़ा रहा है, छेड़ रहा है. लेकिन वह तो अपने दिल की बात बता रहा होता था. अपनी सोच को उस के सामने रख रहा होता था और वह समझी ही नहीं. उस की सोच, उस के सिद्धांत इस रूप में उस के सामने आएंगे इस की तो कभी कल्पना भी नहीं की थी उस ने. लेकिन वास्तविकता तो यही है कि सचाई उस के सामने थी और अब हर हाल में उसे इस सचाई का सामना करना था.

मोनिका का यों गुमसुम रहना और सारे वक्त घर में ही पड़े रहना उस के डैडी शशिकांत से छिपा तो नहीं था. आज उन्होंने ठान लिया था कि मोनिका से सचाई जान ही लेनी है कि आखिर उसे हुआ क्या है और कुछ भी कर के उसे जीवन की रफ्तार में लाना ही है.

वे, ‘‘मोनिका, माई डार्लिंग चाइल्ड,’’ आवाज देते उस के कमरे में घुसे तो हमेशा की तरह गुडमौर्निंग डैडी कहते हुए मोनिका उन के गले से नहीं झूली. सिर्फ एक बुझी सी आवाज  में बोली, ‘‘गुडमौर्निंग डैडी.’’

‘‘गुडमौर्निंग डियर, कैसा है मेरा बच्चा?’’ शशिकांत बोले.

‘‘ओ.के डैडी,’’ मोनिका ने जवाब दिया. शशिकांत और उन की दुलारी बिटिया के बीच हमेशा ऐसी ही बातें नहीं होती थीं. जोश, उत्साह से बापबेटी खूब मस्ती करते थे, लेकिन आज वैसा कुछ भी नहीं है. शशिकांत जानबूझ कर हाथ में पकड़े सिगार से लंबा कश लगाते रहे, लेकिन मोनिका की ओर से कोई रिऐक्शन नहीं आया. हमेशा की तरह ‘डैडी, नो स्मोकिंग प्लीज,’ चिल्ला कर नहीं बोली वह. शशिकांत ने खुद ही सिगार बुझा कर साइड टेबल पर रख दिया. मोनिका अब भी चुप थी.

‘‘आर यू ओ.के. बेटा?’’ शशिकांत ने फिर पूछा.

‘‘यस डैडी,’’ कहती मोनिका उन के कंधे से लग गई. मन में कुछ तय करते शशिकांत बोले, ‘‘ठीक है, फिर तुझे एक असाइनमैंट के लिए परसों टोरैंटो जाना है. तैयारी कर ले.’’

‘‘लेकिन डैडी…,’’ मोनिका हकलाई.

‘‘लेकिन वेकिन कुछ नहीं, जाना है तो जाना है. मैं यहां बिजी हूं. तू नहीं जाएगी तो कैसे चलेगा?’’ फिर दुलार से बोले, ‘‘जाएगा न मेरा बच्चा? मुझे नहीं मालूम तुझे क्या हुआ है. मैं पूछूंगा भी नहीं. जब ठीक समझना मुझे बता देना. लेकिन बेटा, वक्त से अच्छा डाक्टर कोई नहीं होता. न उस से बेहतर कोई मरहम होता है. सब ठीक हो जाएगा. बस तू हिम्मत नहीं छोड़ना. खुद से मत हारना. फिर तू दुनिया जीत लेगी. करेगी न तू ऐसा, मेरी बहादुर बेटी?’’

कुछ निश्चय सा कर मोनिका ने हां में सिर हिलाया. शशिकांत का लंबाचौड़ा रेडीमेड गारमैंट्स का बिजनैस है जो देशविदेश में फैला हुआ है. उस के लिए आएदिन ही उन्हें या मोनिका को विदेश जाना पड़ता है. मोनिका की उम्र अभी काफी कम है फिर भी अपने डैडी के काम को बखूबी संभालती है वह. इसलिए मोनिका के हां कहते ही शशिकांत निश्चिंत हो गए. वे जानते हैं कि उन की बेटी कितना भी बिखरी हो, लेकिन उस में खुद को संभालने की क्षमता है. वह खुद को और अपने डैड के बिजनैस को बखूबी संभाल लेगी.

निश्चित दिन मोनिका टोरैंटो रवाना हो गई. मन में दृढ़ निश्चय सा कर लिया उस ने कि आरव जैसे किसी के लिए भी वह अपना जीवन चौपट नहीं करेगी. अपने प्यारे डैड को निराश नहीं करेगी. सारा दिन खूब व्यस्त रही वह. आरव क्या, आरव की परछाईं भी याद नहीं आई. लेकिन शाम के गहरातेगहराते जब उस की व्यस्तता खत्म हो गई, तो आरव याद आने लगा. आदत सी पड़ी हुई है कि खाली होते ही आरव से बातें करती है वह. दिन भर का हालचाल बताना तो एक बहाना होता है. असली मकसद तो होता है आरव को अपने पास महसूस करना लेकिन आज? आज आरव की याद आते ही उस से अंतिम मुलाकात ही याद आई. थोड़ी देर बाद मोनिका जैसे अपने आपे में नहीं थी. वह कहां है, क्या कर रही है, उसे कुछ भी होश नहीं था. सिर्फ और सिर्फ आरव और अलीशा की तसवीर

उस की आंखों के सामने घूम रही थी. उसे अपनी हालत का तनिक भी भान नहीं था कि वह होटल के बार में बैठी क्या कर रही है और यह स्मार्ट सा कनाडाई लड़का उसी के बगल में बैठा उसे क्यों घूर रहा है? फिर अचानक ही उस ने मोनिका का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘मे आई हैल्प यू? ऐनी प्रौब्लम?’’

मोनिका जैसे होश में आई. अरे, उस की आंखों से तो आंसू झर रहे हैं. शायद इसीलिए उस लड़के ने मदद की पेशकश कर दी होगी. फिर उस ने अपना गिलास मोनिका की ओर बढ़ा दिया जिसे बिना कुछ सोचेसमझे मोनिका पी गई.

बदला…बदला लेना है उसे आरव से. उस ने जो किया उस से सौ गुना बेवफाई कर के दिखा देगी वह. कनाडाई लड़का एक के बाद एक भरे गिलास उस की ओर बढ़ाता रहा और वह गटागट पीती रही और फिर उसे कोई होश नहीं रहा. थोड़ी देर बाद वह संभली तो अपने रूम में लौटी. फिर दिन गुजरते गए और  मोनिका जैसे विक्षिप्त सी होती गई. अपने डैडी के काम को वह जनून की तरह करती रही. आएदिन विदेश जाना फिर लौटना. इसी भागदौड़ भरी जिंदगी में 6-7 महीने पहले यहीं इंडिया में वह अदीप से मिली और न जाने क्यों धीरेधीरे अदीप बहुत अपना सा लगने लगा.

आरव के बाद वह किसी और से नहीं जुड़ना चाहती थी, लेकिन अदीप उस के दिल से जुड़ता ही जा रहा था. किसी के साथ न जुड़ने की अपनी जिद के ही कारण वह हर बार विदेश से लौट कर सीधेसपाट शब्दों में अपनी वहां बिताई दिनचर्या के बारे में अदीप को बताती रहती थी. कभी न्यूयार्क कभी टोरैंटो, कभी पेरिस तो कभी न्यूजर्सी.

नई जगह, नया पुरुष या वही जगह लेकिन नया पुरुष. ‘मैं किसी को रिपीट नहीं करती’ कहती मोनिका किस को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही थी, खुद को ही न? और ऐसे में अदीप के चेहरे पर आई दुख और पीड़ा की भावना को क्या सचमुच ही नहीं समझ पाती थी वह या समझना नहीं चाहती थी? लेकिन यह भी सच था कि दिन पर दिन अदीप के साथ उस का जुड़ाव बढ़ता ही जा रहा था.

उस की इस तरह की बातों पर अदीप कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करता था, लेकिन एक दिन उस ने मोनिका से पूछा, ‘‘आरव से बदला लेने की बात करतेकरते कहीं तुम खुद भी आरव तो नहीं बन गईं मोनिका?’’

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‘‘नहीं…’’ कह कर, चीख उठी मोनिका, ‘‘आरव का नाम भी न लेना मेरे सामने.’’

‘‘नाम न भी लूं, लेकिन तुम खुद से पूछो क्या तुम वही नहीं बनती जा रहीं, बल्कि शायद बन चुकी हो?’’ अदीप फिर बोला.

‘‘नहीं, मैं आरव से बदला लेना चाहती हूं. उसे बताना चाहती हूं कि फिजिकल रिलेशन सिर्फ वही नहीं बना सकता मैं भी बना सकती हूं और उस से कहीं ज्यादा. मैं उसे दिखा दूंगी.’’ मुट्ठियां भींचती वह बोली. लेकिन न जाने क्यों उस की आंखें भीग गईं. अदीप की गोद में सिर रख कर वह यह कहते रो दी, ‘‘मैं सच्चा प्यार पाना चाहती थी. ऐसा प्यार जो देह से परे होता है और जिसे मन से महसूस किया जाता है. पर मुझे मिला क्या? मेरे साथ तो कुछ हुआ वह तुम काफी हद तक जानते हो. अगर ऐसा न होता तो मैं उस से कभी बेवफाई न करती.’’ मोनिका की हिचकियां बंध गई थीं. अदीप कुछ नहीं बोला सिर्फ उस के बालों में उंगलियां फिराता उसे सांत्वना देता रहा.

कुछ देर रो लेने के बाद मोनिका सामान्य हो गई. सीधी बैठ कर वह अदीप से बोली, ‘‘मुझे कल न्यूयार्क जाना है. 3 दिन वहां रुकंगी. फिर वहां से पेरिस चली जाऊंगी और 4 हफ्ते बाद लौटूंगी.’’ अदीप कुछ नहीं बोला. दोनों के बीच एक सन्नाटा सा पसरा रहा. कुछ देर बाद मोनिका उठी और बोली, ‘‘मैं चलूं.? मुझे तैयारी भी करनी है.’’

मोनिका आरव से बहुत प्यार करती थी. मगर उस ने ही उसे धोखा दिया. फिर आरव से बदला लेने के लिए मोनिका ने कौन सा रास्ता चुना…

‘‘मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ हर बार की तरह इस बार भी अदीप का छोटा सा जवाब था.

एकाएक तड़प उठी मोनिका, ‘‘क्यों मेरा इंतजार करते हो तुम अदीप? और सब कुछ जानने के बाद भी. हर बार विदेश से लौट कर मैं सब कुछ सचसच बता देती हूं. फिर भी तुम क्यों मेरा इंतजार करते हो?’’

अदीप सीधे उस की आंखों में झांकता हुआ बोला, ‘‘क्या तुम सचमुच नहीं जानतीं मोनिका कि मैं तुम्हारा इंतजार क्यों करता हूं? मेरे इस प्रेम को जब तक तुम नहीं पहचान लेतीं, जब तक स्वीकार नहीं कर लेतीं, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

मोनिका की हिचकियां सी बंध गईं. अदीप के कंधे से लगी वह सुबक रही थी और अदीप उस की पीठ थपक रहा था. देह परे, मोनिका और अदीप का निश्छल प्रेम दोनों के मन को भिगो रहा था.

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एक बार फिर से : लॉकडाउन के बाद कैसे एक बार फिर क़रीब आए प्रिया और प्रकाश

“हैलो कैसी हो प्रिया ?”

मेरी आवाज में बीते दिनों की कसैली यादों से उपजी नाराजगी के साथसाथ प्रिया के लिए फिक्र भी झलक रही थी. सालों तक खुद को रोकने के बाद आज आखिर मैं ने प्रिया को फोन कर ही लिया था.

दूसरी तरफ से प्रिया ने सिर्फ इतना ही कहा,” ठीक ही हूं प्रकाश.”

हमेशा की तरह हमदोनों के बीच एक अनकही खामोशी पसर गई. मैं ने ही बात आगे बढ़ाई, “सब कैसा चल रहा है ?”

” बस ठीक ही चल रहा है .”

एक बार फिर से खामोशी पसर गई थी.

“तुम मुझ से बात करना नहीं चाहती हो तो बता दो?”

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“ऐसा मैं ने कब कहा? तुम ने फोन किया है तो तुम बात करो. मैं जवाब दे रही हूं न .”

“हां जवाब दे कर अहसान तो कर ही रही हो मुझ पर.” मेरा धैर्य जवाब देने लगा था.

“हां प्रकाश, अहसान ही कर रही हूं. वरना जिस तरह तुम ने मुझे बीच रास्ते छोड़ दिया था उस के बाद तो तुम्हारी आवाज से भी चिढ़ हो जाना स्वाभाविक ही है .”

“चिढ़ तो मुझे भी तुम्हारी बहुत सी बातों से है प्रिया, मगर मैं कह नहीं रहा. और हां, यह जो तुम मुझ पर इल्जाम लगा रही हो न कि मैं ने तुम्हें बीच रास्ते छोड़ दिया तो याद रखना, पहले इल्जाम तुमने लगाए थे मुझ पर. तुम ने कहा था कि मैं अपनी ऑफिस कुलीग के साथ…. जब कि तुम जानती हो यह सच नहीं था. ”

“सच क्या है और झूठ क्या इन बातों की चर्चा न ही करो तो अच्छा है. वरना तुम्हारे ऐसेऐसे चिट्ठे खोल सकती हूं जिन्हें मैं ने कभी कोर्ट में भी नहीं कहा.”

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“कैसे चिट्ठों की बात कर रही हो? कहना क्या चाहती हो?”

“वही जो शायद तुम्हें याद भी न हो. याद करो वह रात जब मुझे अधूरा छोड़ कर तुम अपनी प्रेयसी के एक फोन पर दौड़े चले गए थे. यह भी परवाह नहीं की कि इस तरह मेरे प्यार का तिरस्कार कर तुम्हारा जाना मुझे कितना तोड़ देगा.”

“मैं गया था यह सच है मगर अपनी प्रेयसी के फोन पर नहीं बल्कि उस की मां की कॉल पर. तुम्हें मालूम भी है कि उस दिन अनु की तबीयत खराब थी. उस का भाई भी शहर में नहीं था. तभी तो उस की मां ने मुझे बुला लिया. जानकारी के लिए बता दूं कि मैं वहां मस्ती करने नहीं गया था. अनु को तुरंत अस्पताल ले कर भागा था.”

“हां पूरी दुनिया में अनु के लिए एक तुम ही तो थे. यदि उस का भाई नहीं था तो मैं पूछती हूं ऑफिस के बाकी लोग मर गए थे क्या ? उस के पड़ोस में कोई नहीं था क्या?

“ये बेकार की बातें जिन पर हजारों बार बहस हो चुकी है इन्हें फिर से क्यों निकाल रही हो? तुम जानती हो न वह मेरी दोस्त है .”

“मिस्टर प्रकाश बात दरअसल प्राथमिकता की होती है. तुम्हारी जिंदगी में अपनी बीवी से ज्यादा अहमियत दोस्त की है. बीवी को तो कभी अहमियत दी ही नहीं तुम ने. कभी तुम्हारी मां तुम्हारी प्राथमिकता बन जाती हैं, कभी दोस्त और कभी तुम्हारी बहन जिस ने खुद तो शादी की नहीं लेकिन मेरी गृहस्थी में आग लगाने जरूर आ जाती है.”

“खबरदार प्रिया जो फिर से मेरी बहन को ताने देने शुरू किए तो. तुम्हें पता है न कि वह एक डॉक्टर है और डॉक्टर का दायित्व बहुत अच्छी तरह निभा रही है. शादी करे न करे तुम्हें कमेंट करने का कोई हक नहीं.”

“हां हां मुझे कभी कोई हक दिया ही कहां था तुम ने. न कभी पत्नी का हक दिया और न बहू का. बस घर के काम करते रहो और घुटघुट कर जीते रहो. मेरी जिंदगी की कैसी दुर्गति बना दी तुम ने…”

कहतेकहते प्रिया रोने लगी थी. एक बार फिर से दोनों के बीच खामोशी पसर गई थी.

“प्रिया रो कर क्या जताना चाहती हो? तुम्हें दर्द मिले हैं तो क्या मैं खुश हूं? देख लो इतने बड़े घर में अकेला बैठा हुआ हूं. तुम्हारे पास तो हमारी दोनों बच्चियां हैं मगर मेरे पास वे भी नहीं हैं.” मेरी आवाज में दर्द उभर आया था.

“लेकिन मैं ने तुम्हें कभी बच्चों से मिलने से  रोका तो नहीं न.” प्रिया ने सफाई दी.

“हां तुम ने कभी रोका नहीं और दोनों मुझ से मिलने आ भी जाती थीं. मगर अब लॉकडाउन के चक्कर में उन का चेहरा देखे भी कितने दिन बीत गए.”

चाय बनाते हुए मैं ने माहौल को हल्का करने के गरज से प्रिया को सुनाया, “कामवाली भी नहीं आ रही. बर्तनकपड़े धोना, झाड़ूपोछा लगाना यह सब तो आराम से कर लेता हूं. मगर खाना बनाना मुश्किल हो जाता है. तुम जानती हो न खाना बनाना नहीं जानता मैं. एक चाय और मैगी के सिवा कुछ भी बनाना नहीं आता मुझे. तभी तो ख़ाना बनाने वाली रखी हुई थी. अब हालात ये हैं कि एक तरफ पतीले में चावल चढ़ाता हूं और दूसरी तरफ अपनी गुड़िया से फोन पर सीखसीख कर दाल चढ़ा लेता हूं. सुबह मैगी, दोपहर में दालचावल और रात में फिर से मैगी. यही खुराक खा कर गुजारा कर रहा हूं. ऊपर से आलम यह है कि कभी चावल जल जाते हैं तो कभी दाल कच्ची रह जाती है. ऐसे में तीनों वक्त मेगी का ही सहारा रह जाता है.”

मेरी बातें सुन कर अचानक ही प्रिया खिलखिला कर हंस पड़ी.

“कितनी दफा कहा था तुम्हें कि कुछ किचन का काम भी सीख लो पर नहीं. उस वक्त तो मियां जी के भाव ही अलग थे. अब भोगो. मुझे क्या सुना रहे हो?”

मैं ने अपनी बात जारी रखी,” लॉकडाउन से पहले तो गुड़िया और मिनी को मुझ पर तरस आ जाता था. मेरे पीछे से डुप्लीकेट चाबी से घर में घुस कर हलवा, खीर, कढ़ी जैसी स्वादिष्ट चीजें रख जाया करती थीं. मगर अब केवल व्हाट्सएप पर ही इन चीजों का दर्शन कराती हैं.”

“वैसे तुम्हें बता दूं कि तुम्हारे घर हलवापूरी, खीर वगैरह मैं ही भिजवाती थी. तरस मुझे भी आता है तुम पर.”

“सच प्रिया?”

एक बार फिर हमारे बीच खामोशी की पतली चादर बिछ गई .दोनों की आंखें नम हो रही थीं.

“वैसे सोचने बैठती हूं तो कभीकभी तुम्हारी बहुत सी बातें याद भी आती हैं. तुम्हारा सरप्राइज़ देने का अंदाज, तुम्हारा बच्चों की तरह जिद करना, मचलना, तुम्हारा रात में देर से आना और अपनी बाहों में भर कर सॉरी कहना, तुम्हारा वह मदमस्त सा प्यार, तुम्हारा मुस्कुराना… पर क्या फायदा ? सब खत्म हो गया. तुम ने सब खत्म कर दिया.”

“खत्म मैं ने नहीं तुम ने किया है प्रिया. मैं तो सब कुछ सहेजना चाहता था मगर तुम्हारी शक की कोई दवा नहीं थी. मेरे साथ हर बात पर झगड़ने लगी थी तुम.” मैं ने अपनी बात रखी.

“झगड़े और शक की बात छोड़ो, जिस तरह छोटीछोटी बातों पर तुम मेरे घर वालों तक पहुंच जाते थे, उन की इज्जत की धज्जियां उड़ा देते थे, क्या वह सही था? कोर्ट में भी जिस तरह के आरोप तुम ने मुझ पर लगाए, क्या वे सब सही थे ?”

“सहीगलत सोच कर क्या करना है? बस अपना ख्याल रखो. कहीं न कहीं अभी मैं तुम्हारी खुशियों और सुंदर भविष्य की कामना करता हूं क्यों कि मेरे बच्चों की जिंदगी तुम से जुड़ी हुई है और फिर देखो न तुम से मिले हुए इतने साल हो गए . तलाक के लिए कोर्टकचहरी के चक्कर लगाने में भी हम ने बहुत समय लगाया. मगर आजकल मुझे अजीब सी बेचैनी होने लगी है . तलाक के उन सालों का समय इतना बड़ा नहीं लगा था जितने बड़े लॉकडाउन के ये कुछ दिन लग रहे हैं. दिल कर रहा है कि लौकडाउन के बाद सब से पहले तुम्हें देखूं. पता नहीं क्यों सब कुछ खत्म होने के बाद भी दिल में ऐसी इच्छा क्यों हो रही है.” मैं ने कहा तो प्रिया ने भी अपने दिल का हाल सुनाया.

“कुछ ऐसी ही हालत मेरी भी है प्रकाश. हम दोनों ने कोर्ट में एकदूसरे के खिलाफ कितने जहर उगले. कितने इल्जाम लगाए. मगर कहीं न कहीं मेरा दिल भी तुम से उसी तरह मिलने की आस लगाए बैठा है जैसा झगड़ों के पहले मिला करते थे.”

“मेरा वश चलता तो अपनी जिंदगी की किताब से पुराने झगड़े वाले, तलाक वाले और नोटिस मिलने से ले कर कोर्ट की चक्करबाजी वाले दिन पूरी तरह मिटा देता. केवल वे ही खूबसूरत दिन हमारी जिंदगी में होते जब दोनों बच्चियों के जन्म के बाद हमारे दामन में दुनिया की सारी खुशियां सिमट आई थी.”

“प्रकाश मैं कोशिश करूंगी एक बार फिर से तुम्हारा यह सपना पूरा हो जाए और हम एकदूसरे को देख कर मुंह फेरने के बजाए गले लग जाएं. चलो मैं फोन रखती हूं. तब तक तुम अपनी मैगी बना कर खा लो.”

प्रिया की यह बात सुन कर मैं हंस पड़ा था. दिल में आशा की एक नई किरण चमकी थी. फोन रख कर मैं सुकून से प्रिया की मीठी यादों में खो गया.

एक झूठ  : इकबाल से शादी करने के लिए क्या था निभा का झूठ?

इकबाल जल्दीजल्दी निभा के लिए केक बना रहा था. दरअसल, आज निभा का बर्थडे था. इकबाल ने अपने औफिस से छुट्टी ले ली थी. वह निभा को सरप्राइज देना चाहता था.

उस ने निभा की पसंद का खाना बनाया था, पूरा घर सजाया था और निभा के लिए एक खूबसूरत सी ड्रैस भी खरीदी थी. आज की शाम वह निभा के लिए यादगार बना देना चाहता था.

शाम में जब निभा घर लौटी तो इकबाल ने दरवाजा खोला. निभा के अंदर कदम रखते ही इकबाल ने पंखा चला दिया और रंगबिरंगे फूल निभा के ऊपर गिरने लगे. निभा को बांहों में भर कर इकबाल ने धीरे से कहा,”जन्मदिन मुबारक हो मेरी जान.”

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इकबाल का हाथ थाम कर निभा ने कहा,”सच इकबाल, तुम मेरी जिंदगी की सच्ची खुशी हो. कितना प्यार करते हो मुझे. ख्वाहिशों का आसमान छू लिया है मैं ने तुम्हारे दम पर… अब तमन्ना यही है मेरा दम निकले तुम्हारे दर पर…”

इकबाल ने उस के होंठों पर उंगली रख दी,”दम निकलने की बात दोबारा मत करना निभा. तुम ने मेरी जिंदगी हो. तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं.”

केक काट कर और गिफ्ट दे कर जब इकबाल ने अपने हाथों से तैयार किया हुआ खाना डाइनिंग टेबल फर सजाया तो निभा की आंखों में आंसू आ गए,”इतना प्यार मत करो मुझ से इकबाल. हम लिवइन में रहते हैं मगर तुम तो मुझे पत्नी से ज्यादा मान देते हो. हमारा धर्म एक नहीं पर तुम ने प्यार को ही धर्म बना दिया. मेरे त्योहार तुम मनाते हो. मेरे रिवाज तुम निभाते हो. मेरा दिल हर बार तुम चुराते हो. कब तक चलेगा ऐसा?”

“जब तक धरती पर मैं हूं और आसमान में चांद है…”

दोनों एकदूसरे की बांहों में खो गए थे. धर्म, जाति, ऊंचनीच, भाषा, संस्कृति जैसे हर बंधन से आजाद उन का प्यार पिछले 5 सालों से परवान चढ़ रहा था.

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5 साल पहले एक कौमन फ्रैंड की पार्टी में दोनों मिले थे. उस वक्त दोनों ही दिल्ली में नए थे और जौब भी नईनई थी. समय के साथसाथ दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई. एकदूसरे के विचार और व्यवहार से प्रभावित इकबाल और निभा धीरेधीरे करीब आने लगे थे. दोनों के बीच दूरियां सिमटने लगीं और फिर दोनों अलगअलग घर छोड़ कर एक ही घर में शिफ्ट हो गए. किराया तो बचा ही जीवन को नई खुशियां भी मिलीं.

जल्दी ही दोनों ने मिल कर एक फ्लैट किस्तों पर ले लिया. दोनों मिल कर मकान की किस्त भी देते और घर के दूसरे खर्चे भी करते. दोनों के बीच प्यार गहरा होता गया. रिश्ता गहरा हुआ तो दोनों ने घर वालों को बताने की सोची.

इकबाल के घर वालों में केवल मां थीं जो बहुत सीधी थीं. वह तुरंत मान गई थीं. मगर निभा के यहां स्थिति विपरीत थी. उस के पिता इलाहाबाद के जानेमाने उद्योगपति थे. शहर में अपनी कोठी थी. 3-4 फैक्ट्रियां थीं. 100 से ज्यादा मजदूर काम करते थे. उन की शानोशौकत ही अलग थी. पैसों की कोई कमी नहीं थी पर पतिपत्नी दोनों ही अव्वल दरजे के धार्मिक और कट्टरमिजाज थे. मां अकसर ही धार्मिक कार्यक्रमों में शरीक हुआ करती थीं.

धर्म की तो बात ही अलग है. यहां तो जाति के साथसाथ गोत्र, वर्ण, कुंडली सब कुछ देखा जाता था. ऐसे में निभा को हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वह घर वालों से कुछ कहे.

एक बार दीवाली की छुट्टियों में जब वह घर गई तो उसे शादी के लिए योग्य लड़कों की तसवीरें दिखाई गईं. निभा ने तब पिता से सवाल किया,”पापा क्या मैं अपनी पसंद के लड़के से शादी नहीं कर सकती?”

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पापा ने गुस्से से उस की तरफ देखा. तब तक मां ने उन्हें चुप रहने का इशारा किया और बोलीं,” देख बेटा, तू अपनी पसंद की शादी करने को तो कर सकती है, पर इतना ध्यान रखना कि लड़का अपने धर्म, अपनी जाति और अपनी हैसियत का होना चाहिए. थोड़ा भी इधरउधर हम स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए प्यार करना भी है तो आंखें खोल कर. वरना तू तो जानती ही है गोलियां चल जाएंगी.”

“जी मां,” कह कर निभा खामोश हो गई.

उसे पता था कि इकबाल के बारे में बता कर वह खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी दे मारेगी. इसलिए उस ने रिश्ते का सच छिपाए रखना ही उचित समझा. वक्त इसी तरह बीतता रहा.

एक दिन सुबह निभा बड़ी परेशान सी बालकनी में खड़ी थी. इकबाल ने पीछे से उसे बांहों में भरते हुए पूछा,”हमारी बेगम के चेहरे पर उदासी के बादल क्यों छाए हुए हैं?”

निभा ने खुद को छुड़ाते हुए परेशान स्वर में कहा,”क्योंकि आप के शहजादे दुनिया में आने के लिए निकल चुके हैं.”

“क्या?”

“हां इकबाल. मैं मां बनने वाली हूं और यह जिम्मेदारी मैं अभी उठा नहीं सकती. एक तरफ घर वालों को कुछ पता नहीं और दूसरी तरफ मेरा कैरियर भी पीक पर है. मैं यह रिस्क अभी नहीं ले सकती.”

“तो ठीक है निभा गर्भपात करा लो. मुझे भी यही सही लग रहा है.”

“पर क्या यह इतना आसान होगा?”

“आसान तो नहीं होगा बट डोंट वरी, हम पतिपत्नी की तरह व्यवहार करेंगे और कहेंगे कि एक बच्चा पहले से है और इसलिए अभी दूसरा बच्चा इतनी जल्दी नहीं चाहते.”

“देखो क्या होता है. शाम को आ जाना मेरे औफिस में. वहीं से लैडी डाक्टर के पास चलेंगे. ”

और फिर निभा ने वह बच्चा गिरा दिया. इस के 5-6 महीने बाद एक बार फिर गर्भपात कराना पड़ा. निभा को काफी अपराधबोध हो रहा था. शरीर भी कमजोर हो गया था. पर वह करती क्या…. उसे कोई और रास्ता ही समझ नहीं आया था. पर अब इस बात को ले कर वह काफी सतर्क हो गई थी और जरूरी ऐहतियात भी लेने लगी थी.

एक दिन औफिस में ही उस के पास खबर आई कि उस के पिता का ऐक्सीडैंट हो गया है और वे काफी गंभीर अवस्था में हैं. निभा एकदम बदहवाश सी घर लौटी और जरूरी सामान बैग में डाल कर निकल पड़ी. अगली सुबह वह हौस्पिटल में थी. उस के पापा आखिरी सांसें ले रहे थे.

उसे देखते ही पापा ने कुछ बोलने की कोशिश की तो वह करीब खिसक आई और हाथ पकड़ कर कहने लगी,” बोलो पापा, आप क्या कहना चाहते हैं?”

“बेटा मैं चाहता हूं कि मेरा सारा काम तुम्हारा चचेरा भाई नहीं बल्कि तुम संभालो. वादा कर बेटा…”

निभा ने उन के हाथों पर अपना हाथ रख कर वादा किया. फिर कुछ ही देर बाद उन का देहांत हो गया. अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया कर वह 14 दिनों बाद दिल्ली लौटी. इकबाल भी औफिस से जल्दी आ गया था. निभा उस के गले लग कर बहुत रोई और फिर अपना सामान पैक करने लगी.

इकबाल चौंकता हुआ बोला,”यह क्या कर रही हो निभा?”

“मुझे हमेशा के लिए घर लौटना पड़ेगा इकबाल. पापा ने वादा लिया है मुझ से. उन का सारा कारोबार मुझे संभालना है.”

“वह तो ठीक है मगर एक बार मेरी तरफ भी तो देखो. मैं यहां अकेला तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा? मकान की किस्तें, अकेलापन और तुम्हारे बिना जीने का दर्द कैसे उठा पाऊंगा? नहीं निभा नहीं. मैं नहीं रह पाऊंगा ऐसे…”

“रहना तो पड़ेगा ही इकबाल. अब मैं क्या करूं?”

“मत जाओ निभा. यहीं से संभालो अपना काम. कोई मैनेजर नियुक्त कर लो जो तुम्हें जरूरी जानकारी देता रहेगा.”

“इकबाल लाखोंकरोड़ों का कारोबार ऐसे नहीं संभलता. पापा अपने कारोबार के प्रति बहुत जनूनी थे. उन्होंने कोई भी काम मातहतों पर नहीं छोड़ा. हर काम में खुद आगे रहते थे. तभी आज इस मुकाम तक पहुंचे. उन्हें मेरे चचेरे भाई पर भी यकीन नहीं. मेरे भरोसे छोड़ कर गए हैं सब कुछ और मैं उन को दिया गया अंतिम वचन कभी तोड़ नहीं सकती.”

“और मुझ से किए गए प्यार के वादे? उन का क्या? उन्हें ऐसे ही तोड़ दोगी? नहीं निभा, तुम्हारे बिना मैं यहां 2 दिन भी नहीं रह सकता.”

“तो फिर चले आओ न…” आंखों में चमक लिए निभा ने कहा.

“मतलब?”

“देखो इकबाल, तुम एक बार मेरे पास इलाहाबाद आ जाओ. हमें एकदूसरे की कंपनी मिल जाएगी और फिर देखेंगे…कोई न कोई रास्ता भी निकाल ही लेंगे.”

फिर क्या था 10 दिन के अंदर ही इकबाल इलाहाबाद पहुंच गया. दोनों ने एक होटल में मुलाकात कर आगे की योजना तैयार की.

अगली सुबह इकबाल मैनेजर बन कर निभा के घर में खड़ा था. निभा ने अपनी मां से इकबाल का परिचय कराया,” मां यह बाला हैं. हमारे नए मैनेजर.”

इकबाल ने बढ़ कर मां के पैर छू लिए तो मां एकदम से अलग होती हुई बोलीं,”अरे नहीं बेटा. तुम मैनेजर हो. मेरे पैर क्यों छू रहे हो?”

“क्योंकि बड़ों के आशीर्वाद से ही सफलता के रास्ते खुलते हैं मां.”

“बेटा अब तुम ने मुझे मां कहा है तो यही आशीष देती हूं कि तुम्हारी हर इच्छा पूरी हो.”

बाला यानी इकबाल ने हाथ जोड़ कर आशीर्वाद लिया और अपने काम में लग गया. निभा ने मां को बताया, “मां, दरअसल बाला कालेज में मेरा क्लासमैट था. इस ने एमबीए की पढ़ाई की हुई है. पढ़ाई के बाद कुछ समय से दिल्ली में काम कर रहा था. यहां मुझे अकेले इतना बड़ा कारोबार संभालना था तो मेरी हैल्प के लिए आया है. वैसे इस का घर तो जमशेदपुर में है. यहां बिलकुल अकेला है यह. मां, क्या हम इसे अपने बड़े से घर में रहने के लिए एक छोटा सा कमरा दे सकते हैं?”

“क्यों नहीं बेटा? इसे गैस्टरूम में ठहरा दो. कुछ दिनों में यह खुद अपने लिए कोई घर ढूंढ़ लेगा.”

“जी मां…” कह कर निभा अपने कैबिन में चली गई. योजना का पहला चरण सफलतापूर्वक संपन्न हुआ था. इकबाल घर में आ भी गया था और मां को कोई शक भी नहीं हुआ था. मैनेजर के रूप इकबाल बाला बन कर निभा के साथ काम करने लगा.

धीरेधीरे समय बीतने लगा. इकबाल और निभा ने मिल कर कारोबार अच्छी तरह संभाल लिया था. मां भी खुश रहने लगी थीं. इकबाल समय के साथ मां के संग काफी घुलमिल गया. वह मां की हरसंभव सहायता करता. हर मुश्किल का हल निकालता. बेटे की तरह अपनी जिम्मेदारियां निभाता. यही नहीं, कई बार उस ने अपने हाथों से बना कर मां को स्वादिष्ठ खाना भी खिलाया. उस के बातव्यवहार से मां बहुत खुश रहती थीं.

इस बीच दीवाली आई तो इकबाल ने उन के साथ मिल कर त्योहार मनाया. किसी को कभी एहसास ही नहीं हुआ कि वह हिंदू नहीं है.

एक बार कारोबार के किसी काम के सिलसिले में निभा को दिल्ली जाना था. इकबाल भी साथ जा रहा था. तभी मां ने कहा कि वे भी दिल्ली घूमना चाहती हैं. बस फिर क्या था, तीनों ने काम के साथसाथ घूमने का भी कार्यक्रम बना लिया.

तीनों अपनी गाड़ी से दिल्ली के लिए निकले. लेकिन नोएडा के पास हाईवे पर अचानक निभा की गाड़ी का ऐक्सीडैंट हो गया. उस वक्त निभा गाड़ी चला रही थी और मां बगल में बैठी थीं. ऐक्सीडैंट इतना भयंकर हुआ कि गाड़ी पूरी तरह डैमेज हो गई. निभा को गहरी चोटें लगीं पर उतनी नहीं जितनी मां को लगीं. मां के सिर में कांच घुस गए थे और खून बह रहा था. वह बीचबीच में होश में आ रही थीं और फिर बेहोश हो जा रही थीं.

करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर एक बड़ा अस्पताल था. निभा ने मां को वहीं ऐडमिट करने का फैसला लिया.

रात का समय था. हाईवे का वह इलाका थोड़ा सुनसान था. हाथ देने पर भी कोई भी गाड़ी रुकने का नाम नहीं ले रही थी. कोई और उपाय न देख कर इकबाल ने मां को गोद में उठाया और तेजी से अस्पताल की तरफ भागा. पीछेपीछे निभा भी भाग रही थी.

निभा ने ऐंबुलैंस वाले को काल किया मगर ऐंबुलैंस को आने में वक्त लग रहा था. इतनी देर में इकबाल खुद ही मां को गोद में उठाए अस्पताल पहुंच गया.

मां को तुरंत आईसीयू में ऐडमिट किया गया. उन्हें खून की जरूरत थी. संयोग था कि इकबाल का ब्लड ग्रुप ओ पौजिटिव था. उस ने मां को अपना खून दे दिया. मां को बचा लिया गया था. इस दौरान इकबाल लगातार दौड़धूप करता रहा.

इस घटना ने मां के दिल में इकबाल की जगह बहुत ऊंची कर दी थी. वापस घर लौट कर एक दिन मां ने इकबाल को सामने बैठाया और प्यार से उस के बारे में सब कुछ पूछने लगीं. पास ही निभा भी बैठी हुई थी.

निभा ने मां का हाथ पकड़ कर कहा,”मां मैं आज आप से एक हकीकत बताना चाहती हूं.”

“वह क्या बेटा?”

“मां यह बाला नहीं इकबाल है. हम ने झूठ कहा था आप से.”

इतना कह कर वह खामोश हो गई और मां की तरफ देखने लगी. मां ने गौर से इकबाल की तरफ देखा और वहां से उठ कर अपने कमरे में चली गईं. दरवाजा बंद कर लिया. निभा और इकबाल का चेहरा फक्क पड़ गया. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब इस परिस्थिति से कैसे निबटें.

अगले दिन तक मां ने दरवाजा नहीं खोला तो निभा को बहुत चिंता हुई. वह दरवाजा पीटती हुई रोतीरोती बोली,”मां, माफ कर दो हमें. तुम नहीं चाहती हो तो मैं इकबाल को वापस भेज दूंगी. गलती मैं ने की है इकबाल ने नहीं. मैं ने ही उसे बाला बन कर आने को कहा था. प्लीज मां, माफ कर दो.”

मां ने दरवाजा खोल दिया और मुंह घुमा कर बोलीं,”गलती तुम्हारी नहीं. गलती बाला की भी नहीं. गलती तो मेरी है जो मैं उसे पहचान न सकी.”

निभा और इकबाल परेशान से एकदूसरे की तरफ देखने लगे. तभी पलटते हुए मां ने हंस कर कहा,”बेटा, मैं ही पहचान न सकी कि तुम दोनों के बीच कितना गहरा प्यार है. इकबाल कितना अच्छा इंसान है. धर्म या जाति से क्या होता है? यदि सोचो तो समझ आएगा. बेटा, पलभर में मेरा धर्म भी तो बदल गया न जब इकबाल ने मुझे अपना खून दिया. मेरे शरीर में उसी का खून तो बह रहा है. फिर क्या अंतर है हम में या उस में. इतने दिनों में जितना मैं ने समझा है इकबाल मुझे एक शरीफ, ईमानदार और साथ निभाने वाले लड़का लगा है. इस से बेहतर जीवनसाथी तुम्हें और कौन मिलेगा?”

“सच मां, आप मान गईं…” कह कर खुशी से निभा मां के गले लग गई. आज उसे जिंदगी की सब से बड़ी खुशी मिल गई थी. पास ही इकबाल भी मुसकराता हुआ अपने आंसू पोंछ रहा था

तुम्हारी रोजी : क्यों पति को छोड़कर अमेरिका लौट गई वो?

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

उस का नाम रोजी था. लंबा शरीर, नीली आंखें और सांचे में ढला हुआ शरीर. चेहरे का रंग तो ऐसा जैसे मैदे में सिंदूर मिला दिया गया हो.

रोजी को भारत की संस्कृति से बहुत प्यार था और इसलिए उस ने अमेरिका में रहते हुए भी हिंदी भाषा की पढ़ाई की थी और हिंदी बोलना भी सीखा.

उस ने किताबों में भारत के लोगों की शौर्यगाथाएं खूब सुनी थीं और इसलिए भारत को और नजदीक से जानने के लिए वह राजस्थान के एक छोटे से गांव में घूमने आई थी.

अभी उस की यात्रा ठीक से शुरू भी नहीं हो पाई थी कि कुछ लोगों ने एक विदेशी महिला को देख कर आदतानुसार अपनी लार गिरानी शुरू कर दी और रोजी को पकड़ कर उस का बलात्कार करने की कोशिश की. पर इस से पहले कि वे अपने इस मकसद में कामयाब हो पाते, एक सजीले से युवक रूप ने रोजी को उन लड़कों से बचाया और उस के तन को ढंकने के लिए अपनी शर्ट उतार कर दे दी.

रूप की मर्दानगी और उदारता से रोजी इतना मोहित हुई कि उस ने रूप से चंद मुलाकातों के बाद ही शादी का प्रस्ताव रख दिया.

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रोजी पढ़ीलिखी थी व सुंदर युवती थी. पैसेवाली भी थी इसलिए रूप को उस से शादी करने के लिए हां कहने मे कोई परेशानी नहीं हुई पर थोड़ाबहुत प्रतिरोध आया भी तो वह रूप के रिश्तेदारों की तरफ से कि एक विदेशी क्रिस्चियन लड़की से शादी कैसे होगी? न जात की न पात की और न देशकोस की…इस से कैसे निभ पाएगी?

पर रूप अपना दिल और जबान तो रोजी को दे ही चुका था इसलिए उस की ठान को काटने की हिम्मत किसी में नहीं हुई पर पीठ पीछे सब ने बातें जरूर बनाईं.

अंगरेजन बहू की पूरे गांव में चर्चा थी.

“भाई देखने में तो सुंदर है. पतली नाक और लंबा शरीर,” एक ने कहा.

“पर भाई, दोनों लोगों में संबंध भारतीय तरीके से बनते होंगे या फिर अंगरेजी तरीके से? या फिर दोनों लोग इशारोंइशारों मे ही सब काम करते होंगे,” दूसरे ने चुटकी ली.

“कुछ भी कहो, यार पर मुझे तो सारी अंगरेजन लड़कियों को देख कर तो बस एक ही फीलिंग आती है कि ये सब वैसी वाली फिल्मों की ही हीरोइनें हैं.”

इस पर सभी जोर के ठहाके लगाते हुए हंसते.

उधर औरतों की जमात में भी आजकल बातचीत का मुद्दा रोजी ही थी.

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“सुना है रूप की बहू मुंह उघाड़ कर घूमती है,” पहली औरत बोली.

“न जी न कोई झूठ न बुलवाए. अभी कल ही उस से मिल कर आई हूं, बड़ी गुणवान सी लगी मुझे और कल तो उस ने घाघराचोली पहना था और अपने सिर को भी ढंकने की कोशिश कर रही थी पर अभी नईनई है न इसलिए पल्लू बारबार खिसक जा रहा था,”दूसरी औरत ने कहा.

“पर जरा यह तो बताओ कि दोनों में बातचीत किस भाषा में होती होगी ? रूप इंग्लिश सीखे या फिर अंगरेजन बहू को हिंदी सीखनी पड़ेगी,” तीसरी औरत ने कहा.

और उन की बात सच ही साबित हुई. रोजी को नया काम सीखने का इतना चाव था कि काफी हद तक घर का कामकाज भी सीखने लगी थी.

रोजी के गांव में आने से जवान तो जवान बल्कि बूढ़े भी उस की खूबसूरती के दीवाने हो गए थे और आहें भरा करते थे. कुछ युवक तो रोजी की एक झलक पाने के लिए रूप से बहाने से मिलने भी आ धमकते.

गांव के पुरुषों को लगता था कि एक विलायती बहू के लिए तो किसी से भी शारीरिक संबंध बना लेना बहुत ही सहज होता है.

रोजी के सासससुर को शुरुआत में तो अपनी विलायती बहू के साथ आंकड़ा बैठाने में समस्या हुई पर मन से न सही ऊपर मन से ही सास रोजी को मानने का नाटक करने ही लगी थीं.
दूसरों की क्या कही जाए रूप का चचेरा भाई शेरू भी अपनी रिश्ते की भाभी पर बुरी नजर लगाए हुए था.

रूप और शेरू का घर एकदूसरे से कुछ ही दूरी पर था इसलिए शेरू दिन में कई बार आता और बहाने से रोजी के आसपास मंडराता. ऐसा करने के पीछे भी उस की यही मानसिकता थी कि अंगरेजन तो कई मर्दों से संबंध  बना लेती हैं और इन के लिए
पति बदलना माने चादर बदलना होता है.

क्या पता कब दांव लग जाए और अपने पति की गैरमौजूदगी में कब रोजी का मूड बन जाए और शेरू को उस के साथ अपने जिस्म की आग निकालने का मौका मिल जाए.

पर रोजी बेचारी इन सब बातों से अनजान भारत में ही रह कर यहां के लोगों को समझ रही थी और रीतिरिवाज सीख रही थी.

इस सीखने में एक बड़ी बाधा तब आई जब रोजी को शादी के बाद माहवारीचक्र से गुजरना था. रोजी ने पढ़ रखा था कि इन दिनों में गांव में बहुत ही नियमों का पालन किया जाता है इसलिए उस ने इस बारे में अपनी सास को बता दिया.

रोजी की सास ने उसे कुछ नसीहतें दीं और यह भी बताया कि अभी वे लोग पास के गांव में एक समारोह में जा रहे हैं और चूंकि उसे अभी किचन में प्रवेश नहीं करना है इसलिए सासूमां ने उसे बाहर ही नाश्ता भी दे दिया और घर के लोग चले गए.

रोजी घर में अकेली रह गई. उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. नाश्ता शुरू करने से पहले रोजी की चाय ठंडी हो गई थी और चाय को गरम करने के लिए उसे किचन में जाना था.

‘सासूमां तो किचन में जाने को मना कर गई हैं. कोई बात नहीं बाहर से किसी बच्चे को बुला कर उसे किचन में भेज कर चाय गरम करवा लेती हूं,’ ऐसा सोच कर रोजी ने दरवाजा खोल कर बाहर की ओर झांका तो सामने ही आसपड़ोस के कुछ किशोर लड़के बैठेबैठे गाना सुन रहे थे.

“भैयाजी, जरा इधर आना तो… मेरा एक छोटा सा काम कर देना,” रोजी ने एक लड़के को उंगली से इशारा कर के बुलाया और खुद अंदर चली गई.

रोजी घर में अकेली है, यह उन बाहर बैठे हुए लड़कों को पता था हालांकि रोजी की नजर में वे लड़के अभी बच्चे ही थे पर उसे क्या पता कि ये बच्चे उस के बारे में क्या सोचे बैठे हैं…

“अबे भाई तेरी तो लौटरी लग गई. विलायती माल घर में अकेली है और तुझे इशारे से बुला रही है. जा मजे लूट.”

“हां, एक काम जरूर करना दोस्त, उस की वीडियो जरूर बना लेना,” एक ने कहा.

मन में ढेर सारी कामुक कल्पनाएं ले कर वह किशोर लड़का अंदर आया तो रोजी ने निश्छल भाव से उस से चाय गरम कर देने को कहा.

लड़का मन ही मन खुश हुआ और उस ने सोचा कि य. तो हंसीनाओं के अंदाज होते हैं. उस ने चाय गरम कर के रोजी को प्याली पकड़ाई और उस की उंगलियों को छूने का उपक्रम करते हुए उस के सीने को जोर से भींच लिया.

इस बदतमीजी से रोजी चौंक उठी और गुस्से में भर उठी. एक जोरदार तमाचा उस ने उस लड़के के गाल पर रसीद दिए. गाल सहलाता रह गया वह लड़का मगर फिर भी रोजी से जबरदस्ती करने लगा. रोजी ने उसे
धक्का दे दिया. तभी इतने में रूप खेतों पर से वापस आ गया. रोजी जा कर उस से लिपट गई और कहने लगी कि यह लड़का उसे छेड़ रहा है.

इस से पहले कि सारा माजरा रूप की समझ में आ पाता नीचे गिरा हुआ लड़का जोर से रोजी की तरफ मुंह कर के चिल्लाने लगा,”पहले तो इशारे से बुलवाती हो और जब कोई पीछे से आ जाता है तो छेड़ने का आरोप लगाती हो. अरे वाह रे त्रियाचरित्र…” वह लड़का चीखते हुए बोला.

“रूप इस का भरोसा नहीं करना. यह गंदी नीयत डाल रहा था मुझ पर. मेरा भरोसा करो.”

रोजी की बात पर रूप को पूरा भरोसा था इसलिए उस ने तुरंत ही उस लड़के के कालर पकङे और धक्का देते हुए दरवाजे तक ले आया.

तब घर के बाहर उस के पड़ोसियों की भीड़ जमा होते देख कर उस ने खुद ही मामला रफादफा कर दिया और उस लड़के को डांट कर भगा दिया.

उस दिन की घटना के बारे में भले ही लोग पीठ पीछे बातें करते रहे पर सामने कोई कुछ नहीं कह सका.

यह पहली दफा था जब रोजी को गांव में शादी कर के आना खटक रहा था. वह इस घटना से अंदर तक हिल गई थी पर जब रात को रूप ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और जीभर कर प्यार किया तो उस के मन का भारीपन थोड़ा कम हुआ.

एक दिन की बात है. रूप किसी काम से शहर गया हुआ था तब मौका देखकर शेरू रोजी की सास के पास आया और आवाज में लाचारी भर कर बोला,”ताईजी, दरअसल बात यह है कि आप की बहू की तबीयत अचानक खराब हो गई है और मुझे शाम होने से पहले शहर
जा कर दवाई लानी है और अब आनेजाने का कोई साधन नहीं है, जो मुझे शाम से पहले शहर पहुंचा दे.”

“हां तो उस में क्या है शेरू, तू रूप की गाड़ी ले कर चला जा. खाली ही तो खड़ी है,”रोज़ी की सासूमां ने कहा.

“हां सो तो है ताईजी, पर आप तो जानती हो कि मैं गाड़ी चलाना नहीं जानता. अगर आप इजाजत दो तो मैं भाभी को अपने साथ लिए जाऊं? वे तो विदेशी हैं और गाड़ी तो चला ही लेती हैं. हम बस यों जाएंगे और बस यों आएंगे.”

शेरू की बात सुन कर रोजी की सास हिचकी, पर उस ने इतनी लाचारी से यह बात कही थी कि वे चाह कर भी मना नहीं कर पाईं.

“अरे बहू, जरा गाड़ी निकाल कर शेरू के साथ चली जा. शहर से कोई दवा लानी है इसे,” रोजी की सास ने कहा.

“जी मांजी, चली जाती हूं.”

“और सुन, जरा धीरे गाड़ी चलाना. यह गांव है हमारा, तेरा विदेश नहीं,” सासूमां ने मुस्कराते हुए कहा.

रोजी को क्या पता था कि शेरू की नीयत में ही खोट है. उस ने गाड़ी निकाली और शेरू कृतज्ञता से हाथ जोड़ कर बैठ गया. रोजी ने गाड़ी बढ़ा दी.

गांव से कुछ दूर निकल आने के बाद एक सुनसान जगह पर शेरू दांत चियारते हुए बोला,”भाभी, थोडा गाड़ी रोको… जरा पेशाब कर आएं.”

गाड़ी रुकी तो शेरू झाड़ियों के पीछे चल गया और उस के जाते ही शेरू के 3 दोस्त कहीं से आ गए और शेरू से बातचीत करने लगे और बातें करतेकरते गाड़ी मैं बैठ गए.

इससे पहले कि रोजी कुछ समझ पाती शेरू ने उस का मुंह तेजी से दबा दिया और एक दोस्त ने रोजी के हाथों को रस्सी से बांध दिया और शेरू गाड़ी के अंदर ही रोजी के कपड़े फाड़ने लगा.

रोजी अब तक उन लोगों की गंदी नीयत समझ गई थी. उस के हाथ जरूर बंधे हुए थे पर पैर अभी मुक्त थे. उस ने एक जोर की लात शेरू के मरदाना अंग पर मारी.

दर्द से बिलबिला उठा था शेरू. अपना अंग अपने हाथों से पकड़ कर वहीं जमीन पर लौटने लगा.

इस दौरान उस के एक दोस्त ने रोजी के पैरों को भी रस्सी से बांध दिया और रोजी के नाजुक अंगों से खेलने लगा.

“रुक जाओ, पहले इस विदेशी कुतिया को मैं नोचूंगा. कमीनी ने बहुत तेज मार दिया है. अब इसे मैं बताता हूं कि दर्द क्या होता है.”

एक दरिंदा की तरह वह टूट पङा रोजी पर. रिश्ते की मर्यादा को भी उस ने तारतार कर दिया था. उस के बाद उस के तीनों दोस्तों ने रोजी के साथ बलात्कार किया. चीख भी नहीं सकी थी वह.

बलात्कार करने के बाद उस के हाथपैरों को खोल दिया उन लोगों ने.
जब रोजी की चेतना लौटी तो पोरपोर दर्द कर रहा था. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? पुलिस में रिपोर्ट करे या अपना जीवन ही खत्म कर दे?

पर भला वह जीवन को क्यों खत्म करे? आखिर उस ने क्या गलत क्या किया है? बस इतना कि किसी झूठ बोल कर सहायता मांगने वाले की सहायता की है और फिर किसी के चेहरे को देख कर उस की
नीयत का अंदाजा तो नहीं लगाया जा सकता है न…

‘अगर मैं इसी तरह मर गई तो रूप क्या सोचेगा?’ परेशान रोजी ने पहले यह बात रूप को बताने के लिए सोची और उस के बाद ही कोई फैसला लेने का मन बनाया.

रोजी किसी तरह घर वापस पहुंची तो रूप वहां पहले से ही बैठा हुआ उस की राह देख रहा था. रोजी रूप से लिपट गई और रोने लगी.

“क्या हुआ रोजी? तुम्हारे बदन पर इतने निशान कैसे आए? क्या कोई दुर्घटना हुई है तुम्हारे साथ?” रूप ने रोजी के हाथों और चेहरे को देखते हुए कहा.

“हां, दुर्घटना ही तो हुई है. ऐसी दुर्घटना जिस के घाव मेरे जिस्म पर ही नहीं आत्मा पर भी पहुंचे हैं…”

“पर हुआ क्या है?” सब्र का बाँध टूट रहा था रूप का.

“शेरू ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर मेरे साथ बलात्कार किया है…” फफक पङी थी रोजी.

“क्या… उस ने तुम्हारे साथ ऐसा किया? मैं शेरू को ऐसी सजा दूंगा कि उस की पुश्तें भी कांप उठेंगी. मैं उस को जिंदा नहीं छोडूंगा.”

रूप ने रिवाल्वर पर मुट्ठी कसी, कुछ कदम तेजी से बढ़ाए और फिर अचानक रोजी की तरफ पलटा और बोला,”वैसे, एक बात मुझे समझ नहीं आती कि जब से मैं ने तुम्हें जाना है तब से तुम्हारे साथ कोई न कोई छेड़छाड़ होती ही रहती है. कहीं कोई तुम्हें देख कर घर में घुसता है और कहीं कोई तुम्हारे साथ गैंगरेप करता है. आखिर अपनी गाड़ी चला कर तुम
क्यों गई थीं शेरू को ले कर? सवाल तो तुम पर भी उठ सकते हैं न?”

शेरू के मुंह से निकले ये शब्द उसे बाणों की तरह लग रहे थे. कुछ भी न कह सकी रोजी. आंसुओं में टूट गई थी वह और अपने कमरे की तरफ भाग गई थी.

अगले दिन रोजी पूरे घर में कहीं नहीं थी. अलबत्ता, उस के बिस्तर पर एक कागज रखा जरूर मिला.

कागज में लिखा था-

मेरे रूप,

मैं जब से भारत आई, सब ने मेरी देह को ही देखा और सब ने मेरी देह को ही भोगना चाहा. कहीं किसी ने कुहनी मारी तो किसी ने पीछे से धक्का मारा. तुम्हारी आंखों में पहली बार मुझे सच्चा प्रेम दिखा तो मैं ने तुम से ब्याह रचाया पर अब मुझ पर तुम्हारा विश्वास भी डगमगा रहा है.

माना कि मैं यहां के लिए विदेशी हूं, मगर इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं सब के साथ सो सकती हूं. क्या सब लोग मुझे एक वेश्या भर समझते हैं?

मेरे जाने के बाद मुझे ढूंढ़ने की कोशिश मत करना, क्योंकि मैं अपने घर वापस जा रही हूं. मैं तो यहां की संस्कृति के बारे में जानने और समझने आई थी, पर अब मन भर गया है. अफसोस यह वह भारत नहीं जिस के बारे में मैं ने किताबों में पढ़ा था…

प्यार की खातिर- भाग -3

वह आज जरा उत्तेजित है, विचलित है, क्योंकि उस की मनमानी नहीं हुई है. कभीकभी उस का पति किसी बात पर अड़ जाता है तो टस से मस नहीं होता और उसे मजबूरन उस के आगे हार माननी पड़ती है. उस की शादी को 4 साल हो गए और अभी तक वह समझ न पाई कि वह अपने पति से कैसे पेश आए.

खयालों में डूबी रोहिणी को समय का भान ही न हुआ. अचानक उस ने चौंक कर देखा कि उस के आसपास की भीड़ अब छंट चुकी थी. खोमचे वाले, आइसक्रीम वाले अपना सामान समेट कर चल दिए थे. हां, ताज होटल के सामने अभी भी काफी रौनक थी. लोग आ जा रहे थे. मुख्यद्वार पर संतरी मुस्तैद था.

एक और बात रोहिणी ने नोट की. समुद्र के किनारे की सड़क पर अब कुछ स्त्रियां भड़कीले व तंग कपड़े पहने चहलकदमी कर रही हैं. उन्हें देख कर साफ लगता है कि वे स्ट्रीट वाकर्स हैं यानी रात की रानियां.

हर थोड़ी देर में लोग गाडि़यों में आते. किसी एक स्त्री के पास गाड़ी रोकते, मोलतोल करते और वह स्त्री गाड़ी में बैठ कर फुर्र हो जाती. यह सब देख कर रोहिणी को बड़ी हंसी आई.

सहसा एक गाड़ी उस के पास आ कर रुकी. उस में 3-4 युवक सवार थे, जो कालेज के छात्र लग रहे थे.

‘‘हाय ब्यूटीफुल,’’ एक युवक ने कार की खिड़की में से सिर निकाल कर उसे आवाज दी, ‘‘अकेली बैठी क्या कर रही हो? हमारे साथ आओ… कुछ मौजमस्ती करेंगे, घूमेंगेफिरेंगे.’’

रोहिणी दंग रह गई कि क्या ये पाजी लड़के उसे एक वेश्या समझ बैठे हैं? हद हो गई. क्या इन्हें एक भले घर की स्त्री और एक वेश्या में फर्क नहीं दिखाई देता? अब यहां इतनी रात गए यों अकेले बैठे रहना ठीक नहीं. उसे अब घर चल देना चाहिए.

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रोहिणी तेजी से घर का रूख किया. कार उस के पास से सर्र से निकल गई. पर कुछ ही देर बाद वही कार लौट कर फिर उस के पास आ कर रुकी.

‘‘आओ न डियर. होटल में बियर पीएंगे. तुम्हें चाइनीज खाना पसंद है? हम तुम्हें नौनकिंग रेस्तरां में खाना खिलाएंगे. उस के बाद डांस करेंगे. हम तुम्हारा भरपूर मनोरंजन करेंगे,’’ एक लड़के ने खिड़की से सिर निकाल कर कहा.

‘‘आप को गलतफहमी हुई है,’’ वह संयत स्वर में बोली, ‘‘मैं एक हाउसवाइफ हूं. अपने घर जा रही हूं.’’

‘‘तो चलो न हम आप को आप के घर छोड़ देते हैं. कहां रहती हैं आप?’’ वे लड़के कार धीरेधीरे चलाते हुए उस का पीछा करते रहे और लगातार उस से बातें करते रहे. जाहिर था कि वे कंगाल थे. वे बिना पैसा खर्च किए उस की सोहबत का आनंद उठाना चाहते थे.

रोहिणी अपनी राह चलती रही. सहसा गाड़ी उस के पास आ कर झटके से रुकी. एक लड़का गाड़ी से उतरा और उस के पास आ कर बोला, ‘‘आखिर इतनी जिद क्यों कर रही हो स्वीटी?’’ हम तुम्हें सुपर टाइम देंगे… आई प्रौमिस. चलो गाड़ी में बैठो और वह रोहिणी से हाथापाई करने लगा.

‘‘मुझे हाथ मत लगाना नहीं तो मैं शोर मचा पुलिस बुला लूंगी,’’ उस ने कड़क आवाज में कहा.

अचानक एक और कार उस के पास आ कर रुकी. उस का हौर्न जोर से बज उठा. रोहिणी ने चौंक कर देखा तो कार्तिक अपनी कार में बैठा उसे आवाजें लगा रहा था, ‘‘रोहिणी जल्दी आओ गाड़ी में बैठो.’’

रोहिणी अपना हाथ छुड़ा दौड़ कर गाड़ी में बैठ गई.

‘‘इतनी रात को यह तुम्हें क्या सूझी?’’ कार्तिक ने उसे लताड़ा, ‘‘यह क्या घर से अकेले बाहर निकलने का समय है?’’ रोहिणी तुम्हें कब अक्ल आएगी? देखा नहीं कैसेकैसे गुंडेमवाली रात को सड़कों पर घूमते शिकार की ताक में रहते हैं… मेरी नजर तुम पर पड़ गई वरना जानती हो क्या हो जाता?’’

‘‘क्या हो जाता?’’

‘‘अरे वे लोफर तुम्हें गाड़ी में बैठा कर अगवा कर ले जाते.’’

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‘‘अगवा करना क्या इतना आसान है?’’ हर समय पुलिस की गाड़ी गश्त लगाती रहती है.

‘‘हां, लेकिन पुलिस के आने से पहले ही अगर वे गुंडे तुम्हें ले उड़ते तो तुम समझ सकती हो फिर वे तुम्हारा क्या हश्र करते? तुम्हें रेप कर के अधमरी हालत में कहीं झाडि़यों में फेंक कर चलते बनते. रोहिणी तुम रोज अखबार में इस तरह की घटनाओं के बारे में पढ़ती हो, टीवी पर देखती हो. फिर भी तुम ने ऐसा खतरा मोल लिया. तुम्हारी अक्ल क्या घास चरने चली गई?’’

‘‘ये सब वे कैसे कर पाते?’’ रोहिणी ने प्रतिवाद किया, ‘‘मैं जोर से चिल्लाती तो भीड़ इकट्ठी हो जाती, पुलिस पहुंच जाती.’’

‘‘ये सब कहने की बातें हैं. इस सुनसान सड़क पर तुम्हारे शोर मचाने से पहले ही बहुत कुछ घट जाता. वे तुम्हें मिनटों में गायब कर देते और फिर तुम्हारा अतापता भी न मिलता. मत भूलो कि वे 4 थे तुम अकेली. तुम उन से मुकाबला कैसे कर पातीं. इस तरह की हठधर्मिता की वजह से ही आए दिन औरतों के साथ हादसे होते रहते हैं. इतनी रात को अकेले घर से निकलना, अनजान लोगों से लिफ्ट लेना, गैरों के साथ टैक्सी शेयर करना ये सब सरासर नादानी है.’’

रोहिणी ने चुप्पी साध ली. घर पहुंच कर कार्तिक ने उसे अपनी बांहों में समेट लिया, ‘‘डार्लिंग एक वादा करो कि अब से जब भी तुम मुझ से खफा होगी तो बेशक मुझे जो चाह कर लेना पर इस तरह का पागलपन नहीं करोगी,’’ कह उस ने इटली जाने के लिए होटल की बुकिंग और प्लेन के टिकट रोहिणी को थमा दिए.

‘‘यह क्या? तुम तो कह रहे थे कि इस साल जाना नहीं हो सकता.’’

‘‘हां, कहा तो था, पर मैं अपनी प्रिये का कहना कैसे टाल सकता हूं?’’

‘‘प्रोग्राम कैंसल कर दो.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘अरे भाई, शकुंतला दीदी की बेटी की शादी जो हो रही है… हमें वहां जाना पड़ेगा न.’’

‘‘दीदी से शादी में न आने का कोई बहाना बना दूंगा.’’

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‘‘जी हां, और फिर सब से डांट सुनोगे. तुम तो आसानी से छूट जाओगे पर सब मुझे ही परेशान करेंगे कि रोहिणी अपने ससुराल वालों से अलगथलग रहती है और अपने पति को भी अपने चंगुल में कर रखा है. उसे अपने परिवार से दूर कर देना चाहती है.’’

‘‘हद हो गई रोहिणी. चित भी तुम्हारी और पट भी तुम्हारी. तुम से मैं कभी पार नहीं पा सकता.’’

‘‘सो तो है,’’ रोहिणी ने विजयी भाव से कहा.

प्यार की खातिर- भाग -2

मगर आज रात खाने के बाद जब उस ने यह बात उठाई तो कार्तिक बोला, ‘‘इस बार तो विदेश जाना जरा मुश्किल होगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘इसलिए कि बड़ी दीदी शकुंतला की बेटी रीना की शादी पक्की हो गई है. मैं ने तुम्हें बताया तो था… आज ही सुबह उन का फोन आया कि इसी महीने सगाई की रस्म है और हमारा वहां पहुंचना बहुत जरूरी है. आखिर मैं एकलौता मामा हूं न… भानजी की शादी में मेरी प्रमुख भूमिका रहेगी.’’

‘‘आप के घर में तो हमेशा कुछ न कुछ लगा रहता है,’’ वह मुंह बना कर बोली, ‘‘कभी किसी का जन्मदिन हैतो कभी किसी का मुंडन तो कभी कुछ और.’’

‘‘अरे जन्मदिन तो हर साल आता है. उस की इतनी अहमियत नहीं… पर शादीब्याह तो रोजरोज नहीं होते नदीदी ने बहुत आग्रह किया है कि हम जरूर आएं. वे कोई भी बहाना सुनने को तैयार नहीं हैं.’’

‘‘मैं पूछती हूं कि क्या हम कभी अपनी मरजी से नहीं जी सकते?’’

 ‘‘डार्लिंगइतना क्यों बिगड़ती हो… हम शादी की सालगिरह मनाने अगले साल भी तो जा सकते हैं… अभी से तय कर लो कि कहां जाना है और कितने दिनों के लिए जाना है… मैं सारी प्लानिंग तुम्हीं पर छोड़ता हूं.’’

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‘‘जी हांबड़ी मेहरबानी आप की… हम सारा प्लान बना लेंगे और फिर आप के घर वालों का एक फोन आएगा और सब कुछ कैंसल.’’

‘‘यह हमेशा थोड़े न होता है?’’

‘‘यह हमेशा होता है… हर बार होता है. हमारी अपनी कोई जिंदगी ही नहीं है.’’

‘‘तुम बेकार में नाराज हो रही हो… क्या मैं ने कभी तुम्हें किसी चीज से वंचित रखा हैहमेशा तुम्हारी इच्छा पूरी की है. तुम्हारे सारे नाजनखरे सहर्ष उठाता हूं.’’

‘‘इस में कौन सी बड़ी बात है…. यह तो हर पति करता हैबशर्ते वह अपनी पत्नी से प्यार करता हो.’’

‘‘तो तुम्हारा खयाल है कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता?’’ कार्तिक रोहिणी की आंखों में झांक कर मुसकराया.

‘‘लगता तो ऐसा ही है.’’

‘‘रोहिणीयह तुम ज्यादती कर रही हो. जानती हो मेरा तुम्हारे प्रति प्रेम देख कर मेरे यारदोस्त मुझे बीवी का गुलाम कह कर चिढ़ाते हैं.’’

‘‘अच्छावे ऐसा क्यों कहते हैं भलाजब मेरी हर बात काटी जाती है… मेरा हर प्रस्ताव ठुकराया जाता है. हांअगर कोई तुम्हें मां के पल्लू से बंधा लल्लू या बहनों का पिछलग्गू कहे तो मैं मान सकती हूं.’’

कार्तिक खिलखिला कर हंस पड़ा, ‘‘तुम्हारा भी जवाब नहीं.’’

कार्तिक ने टीवी औन कर लिया. रोहिणी थोड़ी देर बड़बड़ाती रही. वह इस मसले को कल पर नहीं छोड़ना चाहती थी. अभी कोई फैसला कर लेना चाहती थी. अत: बोली, ‘‘तो क्या तय किया तुम ने?’’

‘‘किस बारे में?’’

‘‘यह लो घंटे भर से मैं क्या बकबक किए जा रही हूं… हम इस टूअर पर जा रहे हैं या नहीं?’’

‘‘कह तो दिया भई कि इस बार जरा मुश्किल हैं. तुम तो जानती हो कि मुझे साल में सिर्फ हफ्ते की छुट्टी मिलती है. शादी में जाना जरूरी है… पर अगले साल इटली अवश्य…’’

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‘‘जी नहींमुझे तुम इन खोखले वादों से नहीं टाल सकते.’’

‘‘पर अगले साल भी इटली उसी जगह बना रहेगा और हम दोनों भी.’’

‘‘और तुम्हारा परिवार भी तो वैसे ही सहीसलामत ही रहेगा.’’

‘‘तुम कभीकभी बड़ी बचकानी बातें करती हो.’’

‘‘हांमैं तो हूं ही बेवकूफसिरफिरीअदूरदर्शी…  सारी बुराइयां मुझ में कूटकूट कर भरी हैं.’’

‘‘तुम से इस विषय में बात करना बेकार है… अभी तुम्हारा दिमाग जरा गरम है. कल

सुबह ठंडे दिमाग से इस बारे में बात करेंगे.

मैं जरा दफ्तर का जरूरी काम निबटा कर आता हूं,’’ कह कार्तिक अपने औफिसरूम में चला गया.

रोहिणी अपनी बात न मनवा पाई तो गुस्से से बिफर गई. कुछ देर वह क्रोध में भरी बैठी रही. फिर सहसा उठ कर बाहर की ओर चल दी.

कोलाबा के बाजार में अभी भी काफी चहलपहल थी. रीगल सिनेमा के पास पहुंची तो देखा कि वहां भी भीड़ है. उस ने सोचा कि टिकट खरीद कर रात का शो देख ले. घंटे आराम से बीत जाएंगे. पर फिर यह सोच कर कि इस बीच अगर कार्तिक ने उसे घर में न पाया तो वह परेशान हो जाएगा. उसे पागलों की तरह ढूंढ़ेगा. इधरउधर फोन घुमाएगाअपना इरादा बदल दिया. फिर वह गेट वे औफ इंडिया की तरफ मुड़ गई.

यहां लोग समुद्र के किनारे बैठे ठंडी हवा का लुत्फ उठा रहे थे. रोहिणी भी वहां मुंडेर पर बैठ गईर् और अपनी नजरें समुद्र के पार क्षितिज पर गड़ा दीं.

समुद्र के बीच 2-3 समुद्री जहाज लंगर डाले थे. उन की बत्तियां पानी में झिलमिला रही थीं. रोहिणी ने हसरत भरी नजरों से समुद्र की गहराइयों में झांका. बस इस अथाह जल में समाने की देर हैउस ने सोचा. एक ही पल में उस के प्राणों का अंत हो जाएगा.

उस ने मन की आंखों से देखा कार्तिक उस के निष्प्राण शरीर से लिपट कर बिलख रहा है कि हाय प्रियेमैं ने क्यों तुम्हारी बात न मानी. मैं जानता न था कि तुम इतनी सी बात पर मुझ से रूठ जाओगी और मुझे हमेशा के लिए छोड़ कर चली जाओगी.

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पर नहींवह क्यों अपनी जान दे. उस ने अभी दुनिया में देखा ही क्या है और उस के ऊपर कौन सा गमों का पहाड़ टूट पड़ा हैजो वह अपनी जान देने की सोचे. ठीक है पति से थोड़ी खटपट हुई है. यह तो हर शादीशुदा स्त्री के जीवन का हिस्सा है. कभी खुशी तो कभी गम. और सच पूछा जाए तो उस के जीवन में खुशियां ज्यादा हैं गम न के बराबर.

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प्यार की खातिर- भाग -1

Ramni Motana

हमेशा की तरह इस बार भी जब रोहिणी और कार्तिक के बीच जम कर बहस हुईतो कार्तिक झगड़ा समाप्त करने की गरज से अपने कमरे में जा कर लैपटौप में व्यस्त हो गया.

रोहिणी उत्तेजित सी कुछ देर कमरे में टहलती रही. फिर एकाएक बाहर चल दी.

गेट से निकल ही रही थी कि वाचमैन दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘कहीं जाना है मेमसाबटैक्सी बुला दूं?’’

‘‘नहींमैं पास ही जा रही हूं. 10 मिनट में लौट आऊंगी.’’

रात के 10 बज रहे थेपर कोलाबा की सड़कों पर अभी भी काफी गहमागहमी थी. दुकानें अभी भी खुली हुई थीं और लोग खरीदारी कर रहे थे. रेस्तरां और हलवाईर् की दुकानों के आसपास भी भीड़ थी.

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रोहिणी के मन में खलबली मची हुई थी. आजकल जब भी उस की पति के साथ बहस होतीतो बात कार्तिक के परिवार पर ही आ कर थमती. कार्तिक अपने मातापिता का एकलौता बेटा था. अपनी मां की आंखों का ताराउन का बेहद दुलारा. उस की बड़ी बहनें थींजो उसे बेहद प्यार करती थीं और उसे हाथोंहाथ लेती थीं.

रोहिणी को इस बात से कोई परेशानी नहीं थीपर कभीकभी उसे लगता था कि उस का पति अभी भी बच्चा बना हुआ है. वह एक कदम भी अपनी मरजी से नहीं उठा सकता है. रोज जब तक दिन में एकाध बार वह अपनी मां व बहनों से बात नहीं कर लेता उसे चैन नहीं पड़ता था.

जब भी इस बात को ले कर रोहिणी भुनभुनाती तो कार्तिक कहता, ‘‘पिताजी के देहांत के बाद उन की खोजखबर लेने वाला मैं अकेला ही तो हूं. मेरे पैदा होने के बाद से मां बीमार रहतीं… मेरी तीनों बहनों ने ही मेरी परवरिश की है. मेरे पिता के देहांत के बाद मेरी मां ने मुझे बड़ी मुश्किल से पाला है. मैं उन का ऋण कभी नहीं चुका सकता.’’

ऐसी दलीलों से रोहिणी चुप हो जाती थी. पर उसे यह बात समझ में न आती थी कि बच्चों को पालपोस कर बड़ा करना हर मातापिता का फर्ज होता हैतो इस में एहसान की बात कहां से आ गईपर वह जानती थी कि कार्तिक से बहस करना बेकार था. वैसे उसे अपने पति से और कोई शिकायत नहीं थी. वह उस से बेहद प्यार करता था. वह एक भला इनसान था और उस के प्रति संवेदशील था. उसे कोफ्त केवल इस बात से होती कि उसे अपने पति का प्यार उस के घर वालों से साझा करना पड़ता है.

जब उस की शादी हुई तो कार्तिक ने उस से कहा था, ‘‘जानेमनतुम्हें पूरा अधिकार है कि तुम अपना घर जैसे चाहे सजाओजिस तरह चाहे चलाओ. मैं ने अपने को भी तुम्हारे हवाले किया. मेरी तुम से केवल एक ही गुजारिश है कि चूंकि मैं अपने परिवार से बेहद जुड़ा हुआ हूं इसलिए चाहता हूं तुम भी उन से मेलजोल रखोउन का आदरसम्मान करो. मैं अपनी मां की आंखों में आंसू नहीं देख सकता और अपनी बहनों को भी किसी भी कीमत पर दुख नहीं पहुंचाना चाहता.’’

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उसे याद आया कि अपने हनीमून पर जब वे सिंगापुर गए थेतो उन्होंने खूब मौजमस्ती की थी.

एक दिन जब वे बाजार से हो कर गुजर रहे थेतो कार्तिक एक जौहरी की दुकान के सामने ठिठक गया. बोला, ‘‘चलो जरा इस दुकान में चलते हैं.’’

वह मन ही मन पुलकित हुई कि क्या कार्तिक उसे कोई गहना खरीद कर देने वाला है.

उन्होंने दुकान में रखे काफी गहने देख डाले. फिर कार्तिक ने एक हार उठा कर कहा, ‘‘यह हार तुम्हें कैसा लगता है?’’

‘‘अरेयह तो बहुत ही खूबसूरत है,’’ खुशी से बोली.

‘‘तुम्हें पसंद है तो ले लो. हमारे हनीमून की एक यादगार भेंट’’

‘‘ओह कार्तिकतुम कितने अच्छे हो. लेकिन इतनी महंगी…?’’

‘‘कीमत की तुम फिक्र न करो और हां सुनो 1-1 गहना अपनी तीनों बहनों के लिए भी ले लेते हैं. यहां से लौटेंगे तो वे सब मुझ से किसी भेंट की अपेक्षा करेंगी.’’

सुन कर रोहिणी मन ही मन कुढ़ गई पर कुछ बोली नहीं.

‘‘और मांजी के लिए?’’ उस ने पूछा.

‘‘उन के लिए एक शाल ले लेते हैं.’’

वे घर सामान से लदेफदे लौटे. उस के बाद भी हर तीजत्योहार पर अपने परिवार के लिए तोहफे भेजता. जब भी विदेश जातातो उस के पास भानजेभानजियों की मनचाही वस्तुओं की लिस्ट पहले पहुंच जाती. अपने परिवार वालों के लिए उन के कहने की देर होती कि वह उन की फरमाइश तुरंत पूरी कर देता.

रोहिणी को इस पर कोई आपत्ति न थी. कार्तिक एक आईटी कंपनी में कार्यरत था और अच्छा कमा रहा था. उसे पूरा हक था कि वह अपनी कमाई जैसे चाहेजिस पर चाहेखर्च करे. पर उसे यह बात बुरी तरह अखरती थी कि कार्तिक के जिस कीमती समय को वह अपने लिए सुरक्षित रखना चाहती उसे भी वह बिना हिचक अपने परिवार को समर्पित कर देता. रोहिणी को अपने पति का प्यार उस के घर वालों के साथ बांटना बहुत नागवार गुजरता.

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अब आज ही की बात ले लो. उन की शादी की सालगिरह थी. वह कब से सोच रही थी कि इस बार एक शानदार जगह जा कर ठाट से छुट्टियां मनाएंगे पर सब गुड़ गोबर हो गया. जब से उस की 2-4 किट्टी पार्टी वाली सहेलियां इटली हो कर आई थीं वे लगातार उस जगह की तारीफ के पुल बांध रही थीं कि उन्होंने वहां कितना लुत्फ उठाया. सुनसुन कर उस के कान पक गए थे. उस की 1-2 सहेलियों के पति जो अरबपति थेवे उन की दौलत दोनों हाथों से लुटातीं थीं और नित नईर् साडि़यों और गहनों की नुमाइश करती थीं. इस से रोहिणी जलभुन जाती थी.

बड़ी मुश्किल से उस ने अपने पति को राजी कर लिया था कि इस बार वे भी विदेश जा कर दिल खोल कर पैसा खर्च करेंगेखूब मौजमस्ती करेंगे.

उस ने मन ही मन कल्पना की थी कि जब वह फ्रैंच शिफौन की साड़ी में लिपटीमहंगे फौरेन सैंट की खुशबू बिखेरतीहाथ में चौकलेट का डब्बा लिए किट्टी पार्टी में पहुंचेगी तो सब उसे देख कर ईर्ष्या से जल मरेंगी पर ऊपरी मन से उस की खूब तारीफ करेंगी.

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