हरीश अपने बनाए स्कैच में रंग भर रहा था. रविंद्र बैठा गिटार के तार कस रहा था कि तभी विकास आया और बोला, ‘‘यार रविंद्र, मैं अभीअभी नारायण के घर से आ रहा हूं. उस के पापा पहली तारीख को कंपनी के दौरे पर हिमाचल जा रहे हैं. वे नारायण को साथ चलने को कह रहे थे, लेकिन उस ने मना कर दिया जबकि उन की कंपनी की गाड़ी खाली जाएगी. क्यों न हम उस के पापा के साथ चले जाएं. बड़े दिनों से मन था चंडीगढ़ घूमने का. तू लगा न जुगाड़ उस के पापा से.’’

‘‘अरे भई, चले तो नारायण के पापा के साथ जाएंगे पर आएंगे कैसे? और फिर हमारे पास तो इतने पैसे भी नहीं कि वहां घूमफिर सकें,’’ हरीश बोला तो विकास ने उस की बात काटते हुए पंजाबी लहजे में कहा, ‘‘तू तो रहने ही दे काका. तूने तो बस कूंचियां फेरनी हैं. ड्राइंग बना ड्राइंग.’’

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हरीश थोड़ा नाराज हो गया पर रविंद्र को बात जंच गई, ‘‘हां यार, चल नारायण के पापा से बात कर जाने का जुगाड़ लगाते हैं. पता है चंडीगढ़ इतना खूबसूरत और साफसुथरा शहर है कि सब का मन मोह ले. यह योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया शहर है, जिसे वास्तुकार ली कार्बूजियर द्वारा डिजाइन किया गया था. यह प्रदूषण मुक्त, चौड़ी सड़कों वाला हरियाली से भरपूर शहर है. चल, चलते हैं नारायण के घर.’’ नारायण के पापा से मिल कर रविंद्र और विकास ने चंडीगढ़ सैरसपाटे की अपनी इच्छा जाहिर की तो वे बोले,

‘‘भई, गाड़ी में मैं और मेरा ड्राइवर जा रहे हैं बाकी सीटें खाली हैं. मैं तुम्हें साथ ले जा सकता हूं पर वापस लाने की गारंटी नहीं. मुझे आगे कितना समय लगे पता नहीं.’’

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‘‘ बस अंकल, आप हमें चंडीगढ़ पहुंचा दें. आगे का जुगाड़ हम खुद कर लेंगे,’’ विकास ने कहा तो नारायण के पापा बोले, ‘‘ ठीक है, परसों सुबह 5 बजे अपने पीजी के बाहर मिलना, मैं वहीं से तुम्हें ले लूंगा.’’

‘‘ठीक है अंकल,’’ कह कर दोनों खुशीखुशी वापस आ गए.

हरीश, रविंद्र और विकास दिल्ली के एक कालेज में बीटैक फर्स्ट ईयर के छात्र थे और पीजी में रहते थे. तीनों को सैरसपाटे का बहुत शौक था. उन्होंने कई बार जुगाड़ लगा कर कई जगहें देखी थीं. तीनों ने 100-100 रुपए हर रोज के हिसाब से मिला कर हरीश के पास रखवा दिए. उन की इस जुगाड़ू प्रवृत्ति के कारण ही उन के दोस्तों ने उन का नाम जुगाड़ू घुमक्कड़ रख दिया था. हरीश जहां बहुत अच्छी ड्राइंग बनाता वहीं रविंद्र को गिटार बजाने का शौक था. विकास पंजाबी गीत गाने, मिमिक्री करने में माहिर था. कई नेता, अभिनेताओं की वह हूबहू आवाज निकाल लेता था. तीनों ने नैट से सर्च कर चंडीगढ़ की देखने लायक जगहों की जानकारी निकाली और लोकल बसों आदि के बारे में जाना. हरीश ने अपने एक  दोस्त से स्मार्टफोन ले लिया और उस में अपना सिम व मैमोरी कार्ड डाल लिया. फिर तीनों ने हलकेफुलके बैग तैयार कर लिए. रविंद्र ने अपना गिटार भी साथ ले लिया. हरीश ने स्कैच बुक रख ली.

सुबह नारायण के पापा आए. उन के साथ गाड़ी में बैठ वे चंडीगढ़ के लिए रवाना हो गए. लगभग 10 बजे वे चंडीगढ़ में थे. नारायण के पापा ने उन्हें सैक्टर 17 के बस अड्डे पर छोड़ा और विदा ली. अब उन्होंने अपने प्रोग्राम के मुताबिक नैट से ली जानकारी का प्रिंट निकाला औैर उस के अनुसार सब से नजदीक स्थित रोज गार्डन चल दिए. बस अड्डे से रोज गार्डन लगभग 2 किलोमीटर दूर है अत: यह दूरी उन्होंने पैदल ही पार करने की सोची. दोनों ने रास्ते से चने खरीदे और खाते हुए लगभग 20 मिनट में वे जाकिर हुसैन रोज गार्डन पहुंच गए. यह एशिया का सब से बड़ा रोज गार्डन है. इस में 1,600 से भी अधिक किस्म के गुलाब देख वे आश्चर्यचकित रह गए. यहां हर साल गुलाब पर्व भी मनाया जाता है. जिस का 50 रुपए टिकट लगता है लेकिन अभी तो वे यहां फ्री घूमे.

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घूमतेघूमते दोपहर हो गई थी. खाने का वक्त भी था सो उन्होंने बाहर खड़े छोलेकुलचे वाले से छोलेकुलचे खाए औैर अपने अगले पड़ाव की तरफ चल दिए. इन का अगला डैस्टिनेशन रौक गार्डन था. 15 रुपए में वे बस से रौक गार्डन पहुंच गए. रौक गार्डन में ऐंट्री फीस 20 रुपए थी. वे टिकट ले कर अंदर गए. वहां लगे बोर्ड से उन्हें पता चला कि इस का निर्माण नेक चंद ने किया था. उन्हें इस के लिए पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाजा गया था. यहां टूटे बरतनों, ट्यूबलाइट्स व अन्य बेकार वस्तुओं के इस्तेमाल से बनी मूर्तियां देखते ही बनती हैं. इन सजीव दिखने वाली मूर्तियों के साथ उन्होंने कई सैल्फी लीं. यहां बहते झरनों ने भी उन का मन मोह लिया.

रौक गार्डन का नजारा देख बाहर निकले तो शाम के 4 बजे थे. किसी से पूछने पर पता चला कि सुखना झील यहां से थोड़ी ही दूरी पर है. पास ही हैंड मोन्यूमैट भी है लेकिन उस के लिए परमिशन लेनी होती है अत: उन्होंने उसे बाहर से ही देखा और सुखना झील की ओर चल पड़े. सुखना झील मानवनिर्मित झील है. यह 3 किलोमीटर क्षेत्र में फैली है. इस का निर्माण 1958 में हुआ था. वे सुखना झील लगभग 20 मिनट में पहुंच गए. वहां काफी भीड़ थी, लेकिन माहौल खुशगवार था. वहां सामने मंच पर कोई पंजाबी गायक पंजाबी गीत गा रहा था, जिस पर सब झूम रहे थे. विकास तो ढोल की तान सुनते ही झूम उठा औैर वहां नाचते लोगों के साथ भांगड़ा करने लगा. हरीश ने उस के मस्ती भरे डांस की वीडियो रिकौर्डिंग कर ली व कई फोटो भी खींचे. गीत खत्म होने पर वे सुखना झील का सुखद नजारा देख गदगद हो गए. उन्होंने देखा कि यहां बोटिंग भी होती है. रविंद्र बोला, ‘‘यार, बोटिंग का तो काफी चार्ज है. चलो, यहीं से नजारे देखते हैं.’’

लेकिन विकास को यह गवारा न था, अत: वह बोला, ‘‘इतनी दूर आए हैं तो बोटिंग भी करेंगे. ठहरो, मैं कुछ जुगाड़ करता हूं,’’ कह वह एक ऊंचे चौबारे पर चढ़ गया. रविंद्र समझ गया कि विकास अपने रंग में आ गया है अत: साथ खड़ा हो गिटार बजाने लगा. तभी आवाज गूंजी, ‘‘जली को आग कहते हैं, बुझी को राख कहते हैं. उस राख से जो बारूद बने उसे विश्वनाथ कहते हैं.’’ अचानक शत्रुघ्न सिन्हा की आवाज सुन सब उस ओर मुखातिब हुए पर यह विकास था जो फिल्मी डायलौग बोल रहा था. विकास बोला, ‘‘दोस्तो, मैं आप को कुछ हस्तियों की आवाजें सुनाऊंगा जो पहचान ले, हाथ खड़ा करे. सही जवाब देने वाले को 10 रुपए इनाम मिलेगा पर अगर जवाब गलत हुआ तो 20 रुपए देने पडे़ंगे. फिर विकास ने कईर् फिल्मों के डायलौग बोले, लेकिन कइयों को लोग जज न कर पाए और गलत जवाब दिया जिस से उन की कमाई भी हुई. इसी तरह करते गलतसही जवाबों से मिमिक्री कर विकास ने लोगों को हंसाया और 500 रुपए इकट्ठे भी कर लिए. अब वे बोटिंग कर सकते थे.

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एक घंटा उन्होंने खूब बोटिंग की. चप्पू चलाचला कर उन के पसीने छूट गए पर सुखना झील का व्यू और मौसम उन्हें थकने न दे रहा था तिस पर सूर्यास्त का नजारा देखना बड़ा मोहक लगा. बोटिंग का लुत्फ उठा वे झील से निकले तो भूख लग आई थी. अत: पास के एक ढाबे पर खाना खाया. दालमक्खनी और मिस्सी रोटी खाना उन्हें पंजाबी कल्चर का स्वाद दे गया. रात घिर आई थी. अब उन के सामने रात बिताने की समस्या थी. हरीश ने सुझाया, ‘‘क्यों न हम चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन चलें. ट्रेन से जाने के बहाने वहीं रात बिताएंगे.’’ रविंद्र और विकास को भी उस का सुझाव पसंद आया, अत: वे चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन चल दिए. सुखना लेक से स्टेशन थोड़ी दूर था अत: शेयरिंग औटो कर वे रेलवे स्टेशन पहुंचे.

रास्ते में उन्होेंने कई सैक्टर की मार्केट का नजारा देखा. स्टेशन पहुंच कर हरीश अपनी तरकीब भिड़ाता स्टेशन मास्टर के पास गया व बोला, ‘‘अंकल, हम स्टूडैंट हैं. सुबह ट्रेन पकड़नी है लेकिन रहने की व्यवस्था नहीं है. मेरे पिताजी भी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कार्यरत हैं. उन्होंने कहा था कि समस्या होने पर मैं आप से मिल लूं,’’ हरीश ने चालाकी से स्टेशन मास्टर के बैच पर लिखा उन का नाम पढ़ लिया था. पहले तो स्टेशन मास्टर नानुकर करने लगा लेकिन तीनों के हाथ में किताबें देख वह उन से इंप्रैस हो गया व उन्हें वेटिंग रूम में रहने की इजाजत दे दी. तीनों ने रात वेटिंग रूम में बिताई. सुबह उठ कर प्लेटफौर्म के सुलभ शौचालय जा कर फै्रश हुए और चायमट्ठी खा कर तैयार हो गए अपने अगले डैस्टिनेशन पर जाने को. अब वे संग्रहालय देखने गए. सरकारी संग्रहालय व कला दीर्घा में गांधार शैली की अनेक मूर्तियां देख वे अचंभित हुए. यहां अंतर्राष्ट्रीय डौल म्यूजियम में दुनियाभर की गुडि़याओं को रखा गया है. यहां पर 10 रुपए टिकट लगा.

अब वे अपने अंतिम डैस्टिनेशन पिंजौर गार्डन पहुंचे. हालांकि पिंजौर गार्डन चंडीगढ़ से 22 किलोमीटर दूर है पर पर्यटकों का पसंदीदा रिसौर्ट है, अत: वे इसे जरूर देखना चाहते थे. लेकिन वहां पहुंच उन्हें निराशा हाथ लगी क्योंकि वहां टिकट काफी महंगा था. रविंद्र बोला, ‘‘छोड़ो, इसे बाहर से ही देखो और वापसी का जुगाड़ करो.’’ विकास उसे निराश देख कर बोला, ‘‘ऐसे कैसे चले जाएं भई. इसे बिना देखे. पता है पिंजौर गार्डन की शानोशौकत कितनी निराली है. कोई जुगाड़ करना होगा.’’ हरीश बोला, ‘‘मैं वही तो बता रहा हूं. एक आइडिया है…’’ कहते हुए उस ने दोनों को अपनी तरकीब सुझाई तो वे खुश हो गए. अब पास के पेड़ की छांव तले विकास सामने बैठा और हरीश अपनी स्कैच बुक निकाल उस का स्कैच बनाने लगा. रविंद्र पीछे खड़ा उस की ड्रांइग देख रहा था.

विकास को स्कैच बनवाते देख आतेजाते लोग इकठ्ठे हो गए तो रविंद्र ने हरीश की तारीफ की, ‘‘क्या स्कैच बनाया है.’’ सुन कर अन्य लोग भी उस से स्कैच बनवाने को राजी हो गए. हरीश ने हर स्कैच के 150 रुपए लिए व कइयों के स्कैच बनाए व उस से मिले पैसों से पिंजौर गार्डन में टिकट ले कर घुस गए. सुंदरता से लबरेज पिंजौर गार्डन का लुक देखते ही बनता था. शहर की भीड़भाड़ से दूर खुशनुमा वातावरण से भरपूर पिंजौर ऐतिहासिक दृष्टि से भी मशहूर है. पिंजौर गार्डन की शाही शानोशौकत ने उन्हें मंत्रमुग्ध कर दिया था. अब शाम होने को थी और उन्हें अगले दिन कालेज भी अटैंड करना था. सो वापस जाने की समस्या पर विचार करने लगे, ‘‘चलो, इस का भी जुगाड़ करते हैं. पैसे तो हम खर्च करने से रहे, ’’रविंद्र ने कहा तो हरीश और विकास भी मुसकरा दिए. फिर सामने देख विकास बोला, ‘‘देखो, उस ढाबे पर कई ट्रक खड़े हैं. चलो, वहीं किसी से बात करें.’’ ‘‘तुम ठीक कहते हो, लेकिन कुछ जुगाड़ लगाना होगा यहां भी,’’ रविंद्र बोला.

फिर तीनों ढाबे पर पहुंचे. वहां कई ट्रक ड्राइवर खाना खा रहे थे. हरीश ने विकास से कहा, ‘‘यार, ये लोग पंजाबी कल्चर के लगते हैं. वैसे भी यहां पंजाबी कल्चर ज्यादा है. तू ही कुछ जुगाड़ बैठा.’’ ‘‘यह बात है तो हो जा शुरू,’’ कहते हुए विकास ने रविंद्र को इशारा किया तो रविंद्र ने गिटार बजाना शुरू कर दिया. हरीश भी पास की टेबल पर तबले की थाप देने लगा. विकास ने एक लोकप्रिय पंजाबी गीत गाना शुरू कर दिया, जिस से सब उन की ओर मुखातिब हुए. फिर उस के गाने की ताल पर झूमने लगे. गीत खत्म होते ही सब वाहवाह कर उठे. तभी हरीश नाटक करता हुआ हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘हम दिल्ली के एक कालेज के छात्र हैं. टूर पर चंडीगढ़ आए थे, लेकिन अपनी टीम से बिछुड़ गए. अगर आप मदद करें तो हम अपने साथियों से मिल सकते हैं. वे अभी कुछ ही दूर दिल्ली के रास्ते पर होंगे.’’ ‘‘ओए, तुसी चिंता न करो,’’ तभी एक सरदारजी पंजाबी लहजे में हिंदी में बोले, ‘‘मैं तुहानूं पहुंचाऊंगा दिल्ली, बै जाओ मेरे ट्रक विच.’’

अब उन की समस्या सौल्व हो गई थी. ट्रक में बैठे वे पंजाबी गाने सुनते सरदारजी से बातें करते रहे. सरदारजी ने बताया कि इतना घूमने के बाद भी तुम पुरानी कारों की मार्केट नहीं देख पाए. इस में सभी तरह की सैकंड हैंड कारें मिलती हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि यहां सैक्टर 42 में सुखना लेक की तर्ज पर न्यू लेक  नाम से एक लेक हाल ही में बनी है. इस का भी आकर्षण देखते ही बनता है. बातों ही बातों में हरीश सरदारजी का पोट्रेट बनाता रहा. दिल्ली बौर्डर पर पहुंच सरदारजी से उन्होंने विदाई लेते वक्त वह पोट्रेट गिफ्ट किया तो सरदारजी बड़े खुश हुए. बौर्डर से डीटीसी की बस पकड़ वे पीजी पहुंच गए. अगले दिन वे कालेज गए तो दोस्तों को अपने चंडीगढ़ ट्रिप की सारी कहानी सुनाते हुए वहां लिए फोटोज और वीडियोज दिखाए और साथ ही बताया कि कैसे वे अपने जुगाड़ और हुनर से 100 रुपए पर डे से भी कम में चंडीगढ़ का सैरसपाटा कर पाए. उन का यात्रा वृत्तांत सुन पारुल एकदम बोल पड़ी, ‘‘अगली बार जाना तो मुझे भी संग लेना न भूलना.’’ जहां सभी दोस्त हतप्रभ थे. वहीं नारायण सोच रहा था, ‘काश, मैं भी इन के साथ शामिल होता तो कितना मजा आता.’

वाकई तुम जुगाड़ू घुमक्कड़ हो दोस्त. सभी बोले औैर मोबाइल में उन के फोटोज देखने लगे.

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