यह सुन कर संजीव आश्चर्य में पड़ गया, ‘‘मानसी ऐसी क्या बात हो गई, मैं हूं न.’’
‘‘अब क्या बताऊं, शादी के बाद तो मैं मानो पिंजरे का पंछी बन गई हूं. यह भी सह लेती, मगर सासससुर के ताने और घर का माहौल बहुत ही तकलीफ देता है. मुझे मौत के सिवा कोई रास्ता नजर नहीं आता.’’ वह बोली.
इस पर संजीव ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘देखो मरने जैसी बात कभी नहीं करना, जब तक मैं जिंदा हूं, कभी नहीं. कहो तो मैं आ जाऊंगा.’’
‘‘क्या आप मेरठ आएंगे?’’ आश्चर्य से मानसी ने कहा.
‘‘अरे मेरठ क्या, मैं तो तुम से मिलने दुनिया के किसी भी कोने में आ सकता हूं. मैं आज ही निकलता हूं, कल पहुंच जाऊंगा, तुम बिलकुल भी चिंता न करो.’’
आपत्तिजनक हालत में संजीव को देख लिया ललित ने
दूसरे दिन शाम होतेहोते संजीव जैन ने मेरठ के कोतवाली थाना क्षेत्र पहुंच कर मानसी को काल की. मानसी खुशी से बावरी हो गई. अपनी ससुराल में मायके जाने के बहाने से निकली, लेकिन सीधा संजीव के ठहरे हुए होटल में चली गई.
महीनों बाद संजीव मानसी से मिला था. उस ने उसे अपनी आगोश में ले लिया. मानसी ने उस रात अपना जिस्म सौंपने के एक लाख रुपए संजीव से वसूल लिए. दूसरे दिन संजीव जैन खुशीखुशी मेरठ से राजनंदगांव की ओर अपनी गाड़ी में निकल पड़ा और मानसी रायपुर मायके चली आई.
उस के बाद संजीव और मानसी की मुलाकातें फिर पहले की तरह होने लगीं. मानसी के मायके में सभी को दोनों की दोस्ती के बारे में पता था. वे उस की मदद के बारे में भी जानते थे. इस कारण उस की खूब आवभगत होती थी.
एक दिन संजीव जब मानसी के घर आया हुआ था, उस वक्त मानसी का पति ललित भी आया हुआ था. उसे भी संजीव के बारे में थोड़ी जानकारी थी.
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यहां तक कि संजीव जैन की मानसी से अवैध संबंध की कहानी भी कानोकान उस के घरपरिवार तक पहुंच चुकी थी. मगर उस के प्रभाव और उस की मदद के बोझ के आगे कोई कुछ खुल कर नहीं बोल पाता था.
संयोग से एक रोज ललित ने मानसी और संजीव को अलिंगनबद्ध देख लिया था. फिर उसे उन के संबंध के बारे में समझते देर नहीं लगी. ललित को सामने देख कर संजीव भी घबरा गया. ललित ने इस की प्रतिक्रिया में संजीव को 3-4 थप्पड़ जड़ दिए. वह गालीगलौज करने लगा. तब संजीव वहां से चुपचाप निकल गया.
दूसरे दिन मानसी ने संजीव को फोन कर बताया कि मेरे साथ गलत काम करने का आरोप लगा कर ललित पुलिस में शिकायत करने जा रहा है. उस ने उस से हाथपैर जोड़ कर रोक के रखा है.
आज ही उस से बात कर मामले को निपटा लो. इस के साथ ही मानसी ने संजीव यह भी कहा कि उसे किस तरह से मनाना है. वह कर्ज से लदा हुआ है उसे कुछ पैसे दे कर उसे पुलिस में जाने से रोक सकते हो.
पुलिस की बात सुन कर संजीव भी घबरा गया और बोला, ‘‘अगर वह पुलिस में चला गया, तो मेरी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी. तुम किसी भी तरीके से बात करवाओ, मैं उसे मनाने का प्रयास करूंगा.’’
देर शाम संजीव की काल आई. मानसी ने ललित को फोन दे दिया. उस ने सिर्फ कहा, ‘‘तुम मुझ से आ कर मिलो, सारी बातें फोन पर नहीं की जा सकतीं.’’
संजीव और ललित की मुलाकात हुई. ललित ने साफ शब्दों में पैसे की मांग रखते हुए कहा कि 20 लाख रुपए चाहिए. वह उस पैसे से कर्ज उतारेगा. मानसी की खुशी के लिए उसे ऐसा करना चाहिए.
ललित की शर्तनुमा बातें सुन कर संजीव ने थोड़ी राहत महसूस की, किंतु चिंतित भी हो गया. कारण इतनी बड़ी रकम का बंदोबस्त करने में समय लग सकता था. उस ने ललित को आश्वासन दिया कि पैसों का इंजताम जल्द कर लेगा. उस के लिए उसे अपना एक मकान बेचना होगा.
कुछ दिनों में ही संजीव ने कुआं चौक नंदई में स्थित अपना पुराना मकान बेच दिया. उस से मिले रुपए ललित को दे दिए और राहत की सांस ली. सोचा ललित रुपए पा कर शांत हो जएगा, मगर ऐसा नहीं हुआ. कुछ दिनों बाद उस की फिर कौल आई.
उस ने धमकाते हुए और रुपए की मांग की. इस पर संजीव ने मानसी से बात की, तब उस ने भी अपना दूसरा रूप दिखा दिया. उस ने ललित को समझाने और समझौता करवाने के बजाय संजीव से रुपए की मांग करने लगी.
संजीव मानसी पर पहले ही करोड़ों लुटा चुका था, कारोबार भी प्रभावित हो चुका था. रहीसही कसर लौकडाउन ने निकाल दी थी. लिहाजा वह कंगाली की ओर बढ़ने लगा था. इस कारण उस ने पैसे की मांग को पूरा करने से इनकार कर दिया.
मजबूरी बताते हुए उस ने कहा, ‘‘मुझ में अब रुपए देने की ताकत नहीं है, मेरा मकान भी बिक चुका है. मेरा बहुत सारा कामधंधा ठप हो गया है. रुपए आने के सारे स्रोत भी बंद हो चुके हैं, अब मैं तुम्हें कहां से पैसे दूं?’’
यह सुन कर मानसी और भी भड़क उठी, कहा, ‘‘देखो, तुम झूठ कह रहे हो, मैं जानती हूं कि मरा हुआ हाथी भी लाखों रुपए का होता है, मुझे पैसों की बहुत सख्त जरूरत है.’’
संजीव से रूखा व्यवहार करने लगी मानसी
मानसी ने संजीव से इस तरह रूखेपन और नाराजगी से बात पहली बार की थी. संजीव को काफी बुरा लगा. लेकिन वह इतना तो समझ ही गया कि मानसी का प्यार महज एक दिखावा था. वह उसे रुपए देता था और मानता रहा कि मानसी उस से प्यार करती है, लेकिन वह गलत था. यह सोच कर वह गहरी पीड़ा से भर गया.
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संजीव अब मानसी से पीछा छुड़ाने की सोचने लगा, जबकि मानसी बारबार उसे अपना दुखड़ा सुनाने के साथसाथ उस पर दूसरे तरह के दबाव बना कर पैसे की मांग करती रही. संजीव उस से बचने के लिए तरीके निकालने लगा. कभी आश्वासन दे कर तो कभी समय नहीं रहने का बहाना बना कर बचता रहा.
एक दिन संजीव ने कहा, ‘‘देखो, तुम चाहो तो मैं तुम्हें बैंक से लोन दिलवा देता हूं, इंस्टालमेंट तुम भरना. मैं गारंटी दे दूंगा, तुम पैसे ले कर अपना काम चलाओ.’’
मानसी कुछ सोच कर तैयार हो गई, उस ने कहा, ‘‘ठीक है मैं एक परिचित बैंक अधिकारी से बात कर के देखती हूं.’’
एक हफ्ते में ही मानसी को एक सरकारी बैंक से पर्सनल लोन मिल गया. उस का गारंटर संजीव बन गया. लोन अप्रूवल के लिए प्रोसेसिंग फीस संजीव ने ही जमा करवा दी.
इसी बीच संजीव की बेटी का रिश्ता तय होने जा रहा था. उसे बेटी की शादी मे होने वाले खर्च को लेकर चिंता होने लगी थी. अपने स्टेटस के मुताबिक. मगर कामधंधा सब चौपट हो चुका था.
संजीव राजनीति से भी हाशिए में आ चुका था. बेटी के विवाह में समाज के सम्मान के अनुरूप लंबे रुपए की आवश्यकता थी. नगर निगम में ठेके बंद हो चुके थे. अब हाथों में रुपए भी नहीं थे. वह बड़ा चिंतित हो गया, आखिर कैसे बेटी का विवाह संपन्न होगा.
संजीव इसी उधेड़बुन में लगा हुआ था कि उस पर एक और मुसीबत आ गई. दरअसल, मानसी लोने लेने के बाद 2 किस्त ही जमा करवा पाई. बैंक के काल सेंटर से रिमाइंडर फोन आने पर उस ने मोबाइल ही बंद कर दिया. नतीजतन गारंटर संजीव के पास भी लोन की किस्त जमा करने के फोन आने लगे.
वह करता भी तो क्या, उस ने खुद ही दीवार पर अपना सिर दे मारा था. उस के सामने पछताने और मानसी को कोसने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था.
उस ने मानसी को समझाने का फैसला किया. उस ने बात की. लोन की किस्त जमा करवाने का आग्रह किया. बख्श देने की भीख मांगी. किंतु उस की बातों का मानसी पर कोई असर नहीं हुआ. उलटे मानसी ने साफसाफ कहा कि उस के सामने खुद पैसों का संकट है.
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