बदनाम बस्ती : धंधे वाली पर आया सुमित का दिल

बदनाम बस्ती के मोड़ पर पहुंचते ही सुमित का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. उस ने चोर निगाहों से इधरउधर देखा. आसपास किसी को न देख उस ने एक रिकशा वाले से धीमी आवाज में पूछा, ‘‘बदनाम बस्ती चलोगे?’’

‘‘चलूंगा, पर 20 रुपए लूंगा,’’ रिकशा वाला बोला.

‘‘अरे भाई, रुपए की तुम चिंता क्यों करते हो? पहले जल्दी यहां से चलो तो सही,’’ सुमित रिकशा पर बैठता हुआ बोला.

कुछ पल बाद ही रिकशा बदनाम बस्ती की तरफ चल पड़ा. तकरीबन 15 मिनट बाद रिकशा रुका.

‘‘उतरिए साहब,’’ रिकशा वाला गमछे से पसीना पोंछते हुए बोला.

सुमित जल्दी से नीचे उतरा. रिकशा वाले को 20 रुपए का नोट थमाया और तेजी से बदनाम बस्ती में चला गया. कच्ची सड़क के दोनों किनारों पर कई झोंपडि़यां थीं. उन के बाहर लड़कियां सजधज कर बैठी थीं.

कभीकभी सुमित चोर निगाहों से उन लड़कियों की तरफ देख लेता. नजर मिलते ही लड़कियां उस को इशारे से अपने पास बुलातीं, पर सुमित उन के मनमोहक इशारों को नजरअंदाज करता हुआ आगे बढ़ता रहा. वह सीधा सुचित्रा की झोंपड़ी के पास रुका. झोंपड़ी के बाहर सुचित्रा को न देख हौले से आवाज दी.

अगले ही पल मामूली साड़ी अपने जिस्म पर लपेटे एक जवान लड़की उस झोंपड़ी से बाहर निकली. सुमित पर नजर पड़ते ही उस के होंठों पर मुसकान बिखर गई.

सुचित्रा बला की खूबसूरत थी. गोरा, लंबा चेहरा, बड़ीबड़ी आंखें और लंबाई भी अच्छी. उस की देह में एक कशिश थी. बड़े उभार, पतली कमर जैसे तराशा हुआ बदन.

‘‘तुम आ गए सुमित, तुम्हारे इंतजार में मैं बेकरार हो जाती हूं,’’ सुचित्रा वापस अपनी झोंपड़ी में घुसते हुए बोली.

झोंपड़ी में घुसते ही फूलों की भीनीभीनी खुशबू सुमित के दिलोदिमाग में समाती चली गई.

‘‘देखो सुमित, आज मैं ने तुम्हारे लिए अपनी झोंपड़ी को फूलों से सजाया है,’’ सुचित्रा चारपाई पर बैठते हुए बोली.

सुमित उस के पास बैठ गया. सुचित्रा की हथेलियों को अपने हाथों में ले कर वह एकटक उस के चेहरे को देखने लगा.

‘‘आज तुम मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो?’’ सुचित्रा चेहरे पर आ गई लटों को समेटती हुई बोली.

‘‘पिछले कई दिनों से मैं तुम से एक बात पूछना चाहता था, पर पूछ नहीं पाया,’’ सुमित बोला.

‘‘क्या पूछना चाहते थे? पूछो न हिचकिचाहट कैसी? तुम तो जानते ही हो कि तुम से मिलने के बाद मैं सिर्फ तुम्हारी हूं… और तुम्हारी ही रहूंगी.’’

‘‘मैं यह पूछना चाहता था कि तुम इस बस्ती में कैसे आ गई? तुम्हारी क्या मजबूरियां थीं, जो तुम्हें यहां खींच लाईं? क्या तुम शौक से…?’’ सुमित ने बात अधूरी छोड़ दी.

‘‘नहीं सुमित, कोई लड़की शौक से अपना जिस्म नहीं बेचती, इस पेशे से जुड़ने के पहले मैं भी एक भोलीभाली और शरीफ लड़की थी. मेरा गांव नदी के किनारे बसा था. मेरे पिताजी एक अच्छे किसान थे. एक बार अचानक मेरा गांव बाढ़ की चपेट में आ गया और हमारा सबकुछ बह गया.

‘‘मेरे मांबाप भी बाढ़ के पानी में हमेशा के लिए बह गए. किसी तरह मैं बच गई, पर मैं अनाथ हो चुकी थी. मांबाप के गुजरने के बाद मुझे किसी ने सहारा नहीं दिया.

‘‘मैं सड़कों पर भटकने लगी. पढ़ीलिखी तो थी नहीं कि कोई नौकरी ढूंढ़ लेती. फिर भी कई लोगों से मैं ने काम मांगा, पर किसी ने भी मुझे काम नहीं दिया. हर कोई मेरे जिस्म को ही घूरता, मानो मैं कोई खूबसूरत पंछी हूं और वे लोग शिकारी.

‘‘मैं ने इज्जत की रोटी खाने की बहुत कोशिश की, पर कामयाब न हो सकी. हवस के पुजारियों ने मुझे इज्जत से जीने नहीं दिया. मेरी खूबसूरती, मेरी जवानी, मेरी इज्जत नीलाम हो गई. मैं कुछ न कर सकी. घायल पंछी की तरह सिर्फ फड़फड़ा कर रह गई.

‘‘अब जिंदा रहने के लिए रोटी की जरूरत तो होती ही है न. जब मेरी इज्जत ही खत्म हो गई, तो इज्जत की रोटी खाने कौन देता? मैं मजबूर हो कर इस बस्ती में आ गई,’’ सुचित्रा की आंखों में आंसू भर आए थे.

सुचित्रा की दर्दभरी कहानी सुन कर सुमित की आंखें भी डबडबा आईं. कुछ देर तक झोंपड़ी में खामोशी छाई रही.

‘‘सुचित्रा, मैं तुम्हें ऐसी घटिया जिंदगी नहीं जीने दूंगा. मैं तुम से शादी करूंगा. क्या तुम मेरा साथ दोगी?’’ सुमित ने खामोशी तोड़ी.

सुचित्रा कुछ न बोली, सुमित ने फिर पूछा, ‘‘बोलो सुचित्रा, क्या तुम मुझ से ब्याह करोगी?’’

‘‘नहीं सुमित, मैं तुम्हारे काबिल नहीं. मैं तो अपना सबकुछ गंवा बैठी हूं. मैं तो कोयले की तरह काली हो चुकी हूं. उस पर कितना ही साबुन रगड़ो, कालिख धुल नहीं सकती,’’ सुचित्रा मायूस हो कर बोली.

‘‘पर सुचित्रा, फूल तो आखिर फूल ही होता है. उस की खूबसूरती को कोई नहीं छीन सकता. उस की खुशबू को कोई खत्म नहीं कर सकता. जानती हो, जब मैं तुम से पहली बार मिला था तो उसी दिन मैं ने तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाने का फैसला कर लिया था. पर बारबार मेरे मन में यही सवाल उठता था कि तुम इस बस्ती में क्यों आई? कैसे आई? आज मुझे उन सवालों के जवाब मिल गए हैं.’’

‘‘पर, क्या तुम्हारे घर वाले इस शादी के लिए राजी हो जाएंगे? क्या तुम्हारा समाज यह बरदाश्त कर सकेगा?’’

‘‘मुझे उन सब की परवाह नहीं. कोई कुछ भी कहे, मेरा फैसला बदलने वाला नहीं. सिर्फ तुम ‘हां’ कर दो. बस, नौकरी मिलते ही मैं तुम्हें डोली में बैठा कर यहां से हमेशाहमेशा के लिए ले जाऊंगा. हमारा अपना घर होगा. वहां सिर्फ हम दोनों होंगे और होगा हमारा प्यार,’’ सुमित खयालों में खो गया.

‘‘मुझे ऐसे सपने न दिखाओ सुमित. मैं खुशी से पागल हो जाऊंगी,’’ सुचित्रा उस से लिपट गई.

‘‘यह सपना नहीं है पगली. मैं सचमुच तुम से ब्याह करूंगा,’’ सुमित ने सुचित्रा को अपनी बांहों में कस लिया.

‘‘सुमित, देखो बाहर कैसी चांदनी छिटकी हुई है? कितना खूबसूरत नजारा है,’’ सुचित्रा सुमित की बांहों से निकल कर झोंपड़ी के बाहर देखती हुई बोली.

‘‘तेरे चेहरे से तो नजर ही नहीं हटती, बाहर का नजारा मैं क्या देखूं? अच्छा, अब मैं चलता हूं,’’ कह कर सुमित चारपाई से उठ खड़ा हुआ और झोंपड़ी से बाहर निकल कर तेजी से कच्ची सड़क पर आगे बढ़ने लगा.

सुचित्रा मुसकराते हुए सुमित को जाते हुए देखती रही. कुछ ही मिनटों में सुमित उस की आंखों से ओझल हो गया.

समय अपनी रफ्तार से सरकता रहा. सुमित रोज सुचित्रा से मिलने आता. सबकुछ भूल कर दोनों प्यार के सागर में खो जाते.

फिर एक दिन सुमित को नौकरी भी मिल गई. वह बहुत खुश हुआ. सुचित्रा को यह खुशखबरी देने वह तेजी से बदनाम बस्ती की तरफ चल पड़ा. खुशी के मारे उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. वह बदनाम बस्ती कब पहुंच गया, उसे कुछ पता ही न चला.

सुचित्रा की झोंपड़ी के पास लड़कियों की भीड़ देख कर वह सकपका गया. तकरीबन दौड़ता हुआ वह झोंपड़ी के भीतर घुस गया. वहां का नजारा देखते ही उस का दिल दहल गया. सुचित्रा खून से लथपथ पड़ी थी. पास ही खून से सनी शराब की टूटी हुई बोतल पड़ी थी. आसपास कांच के टुकड़े बिखरे पड़े थे. वह मौत से लड़ रही थी.

सुमित सुचित्रा के सिरहाने बैठ गया. उस के सिर को अपनी गोद में रख कर उस के माथे पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘यह क्या हो गया सुचित्रा? आज तो मैं तुम्हें अपनी नौकरी की खुशखबरी देने आया था, पर…’’ उस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे.

सुचित्रा आखिरी सांसें गिन रही थी. वह टूटे हुए शब्दों में बोली, ‘‘मुझे… माफ… कर देना सुमित. मैं… तुम्हारे सपनों को… पूरा… न कर…’’ अचानक सुचित्रा की आवाज बंद हो गई और उस का सिर सुमित की गोद में लुढ़क गया.

सुमित फफकफफक कर रो पड़ा. कभी वह इधरउधर बिखरे कांच के टुकड़ों को देखता तो कभी खून के धब्बों कोे. घूमफिर कर उस की नजर सुचित्रा के मासूम चेहरे पर अटक जाती. किसी तरह उस ने अपनेआप को संभालते हुए एक लड़की से पूछा, ‘‘सुचित्रा की यह हालत कैसे हुई?’’

वह लड़की बोली, ‘‘अभी कुछ देर पहले नशे में झूमता हुआ एक आदमी यहां आया था. उस के हाथ में शराब की बोतल थी. सुचित्रा की झोंपड़ी में घुस गया. फिर हम लोगों को झोंपड़ी से शोरगुल सुनाई दिया.

‘‘शायद सुचित्रा उसे अपना जिस्म सौंपने से इनकार कर रही थी. धीरेधीरे आवाज तेज होती चली गई. फिर अचानक सुचित्रा की चीख गूंज उठी. जब हम लोग यहां पहुंचे, तो सबकुछ खत्म हो चुका था. सुचित्रा खून से लथपथ पड़ी थी. शराबी का कहीं पता न था.’’

सुचित्रा का अंतिम संस्कार कर के सुमित जब श्मशान से लौटा, तो उस के कदम शराब की दुकान की तरफ बढ़ चले. दुकान के पास पहुंचते ही वह अचानक ठिठक गया, ‘नहींनहीं, मैं अपना गम भुलाने के लिए कभी भी शराब नहीं पीऊंगा. इसी शराब के नशे में उस जालिम ने मेरी सुचित्रा को मार डाला. अगर वह नशे में न होता तो शायद…? नहीं, मैं कभी भी शराब को हाथ नहीं लगाऊंगा,’ मन ही मन फैसला कर के सुमित वापस मुड़ गया.

एहसास सच्ची मोहब्बत का : विवेक का प्रोपोजल हुआ एक्सेप्ट

कल विवेक ने मुझे प्रपोज किया. मन ही मन मैं भी उसे पसंद करती थी. वह देखने में हैंडसम है, पढ़ालिखा है और एक अच्छी कंपनी में नौकरी करता है. उस के अंदर वे सारे गुण हैं, जो एक कामयाब इनसान में होने चाहिए.

तकरीबन 3 साल पहले ही मुझे यह अंदाजा हो गया था कि विवेक मुझे पसंद करता है और मुझ से बहुत प्यार करता है, लेकिन कहने से डरता है. फिर मैं भी तो यही चाहती थी कि विवेक पहले मुझ से अपने दिल की बात कहे, तब मैं कुछ कहूंगी. पर क्या पता था कि इंतजार की ये घड़ियां 3 साल लंबी हो जाएंगी और कल विवेक ने साफ लफ्जों में कह दिया, ‘अंजलि, मैं पिछले 3 साल से तुम्हें पसंद करता हूं, पर पता नहीं क्यों मैं तुम से कुछ कह नहीं पाता हूं. लेकिन अब मेरा सब्र जवाब दे गया है. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और अब बहुत जल्द तुम से शादी करना चाहता हूं.

‘मुझे यह तो मालूम है अंजलि कि तुम्हारे दिल के किसी कोने में मेरे लिए मुहब्बत है, लेकिन फिर भी मैं एक बार तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’

विवेक इतना कह कर मेरे जवाब का इंतजार करने लगा. लेकिन मुझे खामोश देख कर कहने लगा, ‘ठीक है अंजलि, मैं तुम्हें 2 दिन का वक्त देता हूं. तुम सोचसमझ कर बोलना.’

मेरा दिल सोच के गहरे समंदर में डूबने लगा. मैं जब 8 साल की थी तो मेरी मम्मी चल बसी थीं और फिर

2 साल के बाद पापा भी हमें अकेला छोड़ गए थे. मुझे से बड़े मेरे भैया थे और मुझ से छोटी एक बहन थी, जिस का नाम नेहा था.

मम्मीपापा के चले जाने के बाद हम तीनों भाईबहन की देखभाल मेरी बूआ ने की थी. वे बहुत गरीब थीं उन का भी एक बेटा और एक बेटी थीं.

नेहा मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर थी. उस के इलाज और मेरी पढ़ाई में भैया ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मेरी पढ़ाई पूरी होने के बाद भैया ने मेरे लिए रिश्ता ढूंढ़ना शुरू कर दिया था, लेकिन मैं आगे भी पढ़ना चाहती थी, इसलिए शादी से इनकार कर दिया.

भैया ने मेरी बात मान ली, क्योंकि हमारे घर में एक औरत की जरूरत थी. इसलिए भैया ने अपनी शादी रचा ली. मेरी भाभी भी मेरी बैस्ट फ्रैंड की तरह थी. फिर वह दिन भी आ गया, जब मैं बूआ बन गई. एक नन्ही सी गुडि़या भी हमारे घर आ गई. मेरे भैया मेरे किसी भी ख्वाहिश को मेरी जबान पर आते ही पूरा कर देते थे.

हमारा परिवार बहुत खुशहाल था कि एक दिन कुदरत ने हम से हमारी दुनिया ही छीन ली. भैयाभाभी और नन्ही सी गुडि़या एक कार हादसे में मारे गए. हमें अब संभालने वाला कोई नहीं था. नेहा तो कुछ सम?ा नहीं पाई, बस सबकुछ देखती रही.

भैया जब तक जिंदा थे, तब तक मैं यह भी नहीं जानती थी कि भैया की तनख्वाह कितनी है, पर उन की मौत के बाद धीरेधीरे उन के सारे जमा पैसों का पता चलता गया. उन्होंने हम दोनों बहनों के नाम पर भारी रकम जमा की थी और भाभी और अपने नाम पर जो इंश्योरैंस कराया था, वह अलग. इन पैसों के बारे में कुछ रिश्तेदारों को भनक लगी, तो कुछ लोगों ने हम दोनों बहनों की देखरेख का जिम्मा उठाना चाहा. पर मैं उन लोगों की गिद्ध जैसी नजरों को पहचान गई और इनकार कर दिया.

लेकिन विवेक ने आखिर अब इतनी जल्दबाजी क्यों की? अभी तो इस हादसे को 2 महीना ही हुआ है. क्या विवेक भी उन में से एक है? क्या उसे भी मेरे पैसों से मुहब्बत है? यही सोचसोच कर मेरा दिल एकदम से बेचैन था. मैं रातभर ठीक से सो भी नहीं पाई.

फिर 2 दिन के बाद जब विवेक ने मुझे फोन किया और मेरा जवाब जानना चाहा तो मैं ने यही कहा कि अगर मैं शादी कर लूंगी तो नेहा अकेली हो जाएगी.

‘‘पगली क्या हम नेहा को उसी घर में अकेले छोड़ देंगे? उसे भी तुम्हारे साथ अपने घर ले आएंगे.’’

इस बात से मेरा दिल और भी दहशत में डूब गया. नेहा के नाम पर भी इतना पैसा और जायदाद है, तो क्या नेहा पर विवेक की नजर है? मुझे तो हमेशा से पैसे के लालची लोगों से नफरत है. अब विवेक के चेहरे पर भी उन्हीं लोगों का चेहरा नजर आता है.

मैं रातभर इसी सोच में डूबी रही. कब आंख लगी, पता ही नहीं चला. मेरी आंख तब खुली, जब बूआ ने आ कर आवाज दी कि अंजलि उठो. विवेक आया है. मैं जल्दी से उठी और फ्रैश हो कर नीचे आ गई.

‘‘अंजलि, क्या बात है. आज 4 दिन हो गए हैं और तुम ने कोई जवाब नहीं दिया मेरी बातों का?’’

‘‘विवेक, आखिर तुम्हें जवाब की इतनी जल्दी क्या पड़ गई है, अभी तो हमारे घर में इतना बड़ा हादसा हुआ है.’’

‘‘अंजलि, यही तो वजह है कि तुम अब अकेली हो गई हो और मैं जल्द से जल्द तुम्हारा सहारा बनना चाहता हूं. मैं तुम्हें इस घर में अकेले नहीं छोड़ना चाहता हूं.’’

‘‘विवेक, मैं ने अपनी जिंदगी के लिए कुछ फैसले लिए हैं और उन के बारे में तुम्हें बताना चाहती हूं.

‘‘हां हां, जरूर बताओ,’’ विवेक ने कहा.

‘‘मैं तुम से शादी करने के लिए राजी हूं. मेरी बूआ ने हम दोनों की हमेशा देखभाल की. मम्मीपापा के जाने के बाद उन्होंने कभी भी उन की कमी महसूस नहीं होने दी.

‘‘मैं चाहती हूं कि मैं अपनी आधी जायदाद उन के नाम कर दूं, ताकि उन के बच्चों का भविष्य सुधर जाए.

‘‘विवेक, मेरा सहारा तो तुम हो, लेकिन नेहा तो मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर है और उस के इलाज में भारी रकम खर्च होती है.

‘‘मुझे अब पैसों की क्या जरूरत है. विवेक कहो, मेरा फैसला ठीक है या गलत है?’’

विवेक कुछ देर चुप था, बस अंजलि को देख रहा था.

अंजलि को लग रहा था कि उस का यह फैसला सुनने के बाद अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

‘‘अंजलि, मैं ने तुम्हें जो समझ कर प्यार किया, तुम वह नहीं हो,’’ विवेक बोला.

‘‘मैं समझ नहीं विवेक, तुम क्या समझाते हो मुझे और मैं क्या हूं?’’

‘‘मैं तो सिर्फ इतना सम?ाता था कि तुम एक खूबसूरत लड़की हो, मैं ने सिर्फ आज तक तुम्हारे चेहरे की खूबसूरती को देखा था, लेकिन आज तुम्हारे मन की खूबसूरती को देख रहा हूं.

‘‘एक लाचार बहन पर अपना सबकुछ कुरबान कर देना और एक गरीब बूआ के बच्चों के अच्छे भविष्य के बारे में सोचना…

‘‘आज पहली बार मुझे तुम से मुहब्बत करने पर गर्व हो रहा है अंजलि, जहां आज इस पापी दुनिया में लोग दूसरों का हक छीन कर खाते हैं, वहीं इसी दुनिया में तुम्हारे जैसे लोग भी मौजूद हैं, जो दूसरों के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं.

‘‘मुझे तुम्हारा फैसला मंजूर है, बस तुम तैयार रहो. मैं जल्दी ही डोली ले कर तुम्हारे घर आ रहा हूं.’’

अंजली विवेक की बात सुन कर मुसकरा दी. उसे आज ऐसा महसूस हुआ, जैसे सालों से दिल में गड़ा हुआ कांटा निकल गया हो.

आज उसे विवेक की सच्ची मुहब्बत का एहसास हो गया था. ऐसा लग रहा था कि उसे नई जिंदगी मिल गई. मैं भी तो विवेक को नहीं जानती थी कि उस के मन में भी इतना अच्छा इनसान छिपा था और मैं भी कितनी पागल थी कि उस पर शक कर रही थी.

मैं ने खिड़की का परदा हटाया. देखा, एक नई सुबह मेरा इंतजार कर रही थी जिस में सचाई थी, मुहब्बत थी और सबकुछ था, जो मुझे जीने के लिए चाहिए था.

सुरक्षाबोध: कहानी नए प्यार की

लड़के ने लड़की को मैसेज किया सुंदर से गुलाब के फूल के साथ, जिस की पंखुडि़यों पर ओस की बूंदें थीं. उस के हाथ जुड़े हुए थे और उस पर लिखा था, ‘‘बीते साल में हम से कोई गलती हुई हो तो माफ कीजिएगा. यह साथ नए वर्ष में भी बना रहे.’’

उस मैसेज को पढ़ कर लड़की ने हंसते हुए अनेक इमोजी दाग दिए.

‘‘अरे, ऐसा तो मैं ने कुछ नहीं कहा कि इतना हंसा जाए,’’ बेचारा हैरान सा हो कर रह गया. अभी सोच ही रहा था कि उधर से हंसी वाले इमोजी की एक कतार और टपक पड़ी. अगले दिन जब मुलाकात हुई तो उस ने पूछ ही लिया, ‘‘भला ऐसा क्या था मेरे मैसेज में जो तुम को हंसी आ गई, जोक तो नहीं भेजा था मैं ने.’’

लड़की फिर भी लगातार हंसे जा रही थी. उस ने थोड़ा झुक कर पेट पकड़ लिया था और दोहरी हुई जा रही थी. लड़की की विस्मय से आंखें फटी जा रही थीं.

‘‘तुम ने जोक नहीं सुनाया, यह तो सही है मगर तुम ने माफी किस बात की मांगी, यह तो बताओ,’’ लड़की ने कहा.

‘‘ऐसे ही, जानेअनजाने गलती हो जाती है. बस, इसीलिए मैं ने इंसानियत के नाते माफी मांग ली.’’

18 साल की वह लड़की देखने में पूरी तरह मौडर्न कही जा सकती थी. मिनी स्कर्ट के साथ पिंक स्लीवलैस टौप उस पर खूब फब रहा था. कंधे तक कटे बाल उस पर बहुत सूट कर रहे थे. आंखों में लगे मोटेमोटे काजल ने उन्हें और बड़ा बना दिया था. वह इतनी अदा से बोल रही थी कि लड़के की नजर उस के चेहरे से हट ही नहीं रही थी. लड़का कुछ कम स्मार्ट हो, ऐसा नहीं था. अच्छाखासा कद, चौड़े कंधे, स्टाइलिश बाल, उसे देख कर कोई भी लड़की उस पर फिदा हो सकती थी.

वे दोनों दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ते थे. कालेज औफ कैंपस था. आसपास का माहौल भी ऐसा था कि बिगड़े और कुछ लफंगे लड़के ही नजर आते थे. कालेज में सुबह से शाम तक हलचल रहती थी और किसी न किसी बात पर होहल्ला भी होता रहता था.

वे दोनों कैंटीन में थे. लड़की चल कर बड़ी टेबल तक पहुंच गई. लड़का भी उस के पीछेपीछे चला जा रहा था जैसे सूई के पीछे धागा. लड़की ने टेबल पर अपना पर्स उलट दिया, छोटेछोटे कई सामान गिर पड़े, ब्रेसलेट, ईयर रिंग, रूमाल आदि. उस ने ब्रेसलेट हाथ में उठाया और लड़के की नाक के पास ले गई. लड़के को लगा था माथे पर मारेगी तो थोड़ा पीछे हटा, लेकिन, लड़की नहीं मानी, वह उतना ही आगे झुक गई.

‘‘यह ब्रेसलेट मुझे उस ने दिया,’’ लड़की ने कहा.

‘‘हकलाते हुए उस ने बोला, ‘‘किस ने?’’

‘‘वह जो फर्स्ट रौ में सब से लास्ट में बैठता है.’’

‘‘अच्छाअच्छा वह तो…’’ लड़के ने राहत की सांस ली. लेकिन अगले ही पल लड़की ने परफ्यूम उठा लिया और दाएंबाएं शीशी नचाने लगी. पास आते हुए बोली, ‘‘यह मुझे उस ने दिया.’’

‘‘किस ने?’’ लड़का फिर घबरा गया उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस की सांस क्यों तेज चल रही है.

‘‘वही जिस के बाजू पर टैटू है,’’ लड़की बोली, ‘‘और कुछ कहा भी, सुनना चाहोगे?’’

लड़का हकलाने लगा था, ‘‘हां, ब…ब… बताओ… क क क्या कहा था उस ने?’’

‘‘न्यू ईयर गिफ्ट जानेमन,’’ लड़की ने बताया.

लड़के की आंखों की पुतलियां फैल गईं, ‘‘उस ने ऐसा कहा?’’

लड़की अब एक के बाद एक आइटम उठाउठा कर लड़के की आंखों के सामने नचा रही थी और देने वाले का बखान भी कर रही थी.

फिर, लड़की एकदम गंभीर हो गई.

‘‘तुम लड़के क्या समझते हो? मित्रता क्या है?’’

लड़का मौन था. जैसे सांप सूंघ गया हो. उसे लड़की की ओर देखने के अलावा कुछ और सूझ नहीं रहा था. न सूझने के कारण ही वह अवाक था. ऐसा लगने लगा जैसे उस की आंखें 2 बटन की तरह लड़की के चेहरे पर टांक दी गई थीं.

लड़की अब तटस्थ हो चली थी, ‘‘तुम लड़के हम से मित्रता करते ही क्यों हो? क्योंकि यह एक अच्छा टाइमपास है?’’ उस ने अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया.

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है,’’ लड़का मुश्किल से बस इतना ही बोल पाया.

‘‘तो फिर बताओ,’’ लड़की अब काफी नजदीक आ गई थी. उस का चेहरा फिर लड़के के चेहरे के बिलकुल सामने था जैसे कि उस की आंखें लड़के की आंखों में कूदी जा रही थीं.

‘‘तुम ने कभी इन सब को रोका क्यों नहीं, तुम तो जानते थे कि ये सब मुझे तंग करते हैं या नहीं, जानते थे. बोलो?’’ उस के हाथ से चुटकी बजी.

‘‘हां, थोड़ा तो…’’ लड़के ने जवाब दिया.

‘‘तो फिर?’’ लड़की ने उसे घूरते हुए कहा.

‘‘सौरी,’’ लड़का झिझकते हुए बोला.

‘‘सौरी क्यों बोल रहे हो,’’ लड़की ने आश्चर्य से उस की ओर देखते हुए कहा.

‘‘मुझे इन सब के बारे में पता नहीं था लेकिन जब मैं उन सब को तुम्हारी तरह देखता, तो मुझे लगता था जैसे तुम्हें यह अटैंशन अच्छी लगती है.’’

‘‘क्या, सच में?’’

‘‘हां, पर सच अब जान पाया हूं और गलती का एहसास हो रहा है.’’

लड़के को फिर से कुछ सूझ नहीं रहा था. कुछ न सूझने की यह बीमारी उस की एकदम नई थी. बेचारा सही अर्थों में मिट्टी का माधो हो गया था. वैसे लड़का था मेधावी. हमेशा मैरिट लिस्ट में रहता था. स्कूल के दिनों में ऐथलीट भी रहा. लेकिन इधर कालेज में आने के बाद किताबी कीड़ा हो गया था. पिता की बेकरी शौप पर भी कभीकभी बैठ लेता था. ग्राहकों से मिठयामिठया कर बोलता. वैसे कोई ऐब नहीं था लड़के में. बस, दिन में 2-4 मैसेज वह लड़की को कर ही देता था. उस का हालचाल पूछता, गुडमौर्निंग और गुडनाइट के अलावा फलानेढिमकाने दिवस की शुभकामनाएं देता रहता और हां, उस की डीपी को एकांत में जूम कर के देखा करता.

शायद लड़का लड़की को मन ही मन चाहता था पर बेचारा बोलने से घबरा जाता. उसे लगता, कहीं जितनी बात होती है वह भी बंद न हो जाए.

इधर लड़की को भी लड़के की संजीदगी पसंद थी. लड़की के सामने आने पर वह मुसकरा कर रह जाता, कभीकभी हाय बोलता. कभी अधिक बात नहीं करता था. यही उस की एक बात थी जो लड़की को अच्छी लगती थी. वह चाहती थी इस घोंचू से कुछ कहे, मगर क्यों कहे, क्या उसे खुद नहीं दिखाई देता?

जब परफ्यूम वाले लड़के ने परफ्यूम गिफ्ट किया था और जानेमन कहा था तो सातों समंदर उस के अंदर खौल पड़े थे, फिर भी वह ऊपर से शांत पानी थी. लहर का कोई निशान नहीं. निर्भया के साथ क्या हुआ इधर हैदराबाद में वेटेरिनरी डाक्टर का भी कैसा हाल हुआ था. उन्नाव में भी… तभी उसे उस लड़की का चेहरा याद आ गया. वह किसी से मदद नहीं मांग सकती. हां, यह लड़का है न, कुछ और नहीं तो कम से कम उस के साथ चल तो सकता है, उन से बात कर सकता है समझा सकता है. लेकिन लड़के ने ऐसा कुछ नहीं किया. वह किसी तरह व्हाट्सऐप नंबर पा गया था और इतने में ही खुश था. लड़की ने लंबी सांस ली और बताया, ‘‘मैं अब क्लासेस अटैंड नहीं करूंगी.’’

‘‘क्यों?’’ लड़के ने पूछा.

‘‘डर लगता है कहीं मैं भी… निर्भया…डाक्टर… उन्नाव… समझ गए न? मुझे इस माहौल में डर लगता है कभीकभी.’’

‘‘चुप,’’ न जाने कैसे लड़के का हाथ लड़की के मुंह तक चला गया. लड़की की आंखों में 2 बूंदें आंसू की छलक आई थीं. इस बार सातों समंदर में एकसाथ ज्वार आया था.

‘‘मैं वादा करता हूं,’’ लड़का अब तक स्वयं को संतुलित कर चुका था. ‘‘तुम्हारी सुरक्षा अब मेरी जिम्मेदारी है. तुम्हें अकेला नहीं छोड़ूंगा. तुम्हें अब से कोई तंग नहीं करेगा,’’ कहते हुए लड़का एक समझदार वयस्क की तरह पेश आ रहा था.

लड़की अब सुबकने लगी थी. उस ने लड़के का हाथ अपने मुंह से हटा दिया, ‘‘मगर वे तुम्हें कुछ करेंगे तो नहीं? झगड़ा मत करना प्लीज’’ लड़की को अब एक अलग तरह का डर सताने लगा था.

‘‘मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा,’’ उस ने लड़की का हाथ अपने हाथ में ले लिया, ‘‘मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे साथ रहूंगा, देखूंगा तुम्हें कोई तंग न करे, तुम्हें अकेला नहीं छोड़ूंगा, बस.’’

‘‘सच?’’ लड़की खुश थी. उस ने लड़के के कंधे को अपने सिर से हलका धक्का दिया, ‘‘जाओ, अब माफ किया.’’

‘‘हैं?’’ लड़का फिर हैरान था.

‘‘नए साल में अगर मुझ से कोई गलती हो गई हो तो प्लीज मुझे माफ करना. यह साथ यों ही बना रहे,’’ कहते हुए लड़की के मुंह से फूल और सितारे झड़ रहे थे जो सीधे धरती से आकाश तक फैल गए थे. लड़का लड़की को खुश देख कर खुश था.

एक लड़की : प्यार के नाम से क्यों चिढ़ती थी शबनम?

मैंने पकौड़ा खा कर चाय का पहला घूंट भरा ही था कि बाहर से शबनम की किसी पर बिगड़ने की तेज आवाज सुनाई दी. वह लगातार किसी को डांटे जा रही थी. उत्सुकतावश मैं बाहर निकली तो देखा कि वह गार्ड से उलझ रही है.

एक घायल लड़के को अपने कंधे पर एक तरह से लादे हुए वह अंदर दाखिल होने की कोशिश में थी और गार्ड लड़के को अंदर ले जाने से मना कर रहा था.

‘‘भैया, होस्टल के नियम तो तुम मुझे सिखाओ मत. कोई सड़क पर मर रहा है, तो क्या उसे मर जाने दूं? क्या होस्टल प्रशासन आएगा उसे बचाने? नहीं न. अरे, इंसानियत की तो बात ही छोड़ दो, यह बताओ किस कानून में लिखा है कि एक घायल को होस्टल में ला कर दवा लगाना मना है? मैं इसे कमरे में तो ले जा नहीं रही. बाहर ग्राउंड में जो बैंच है, उसी पर लिटाऊंगी. फिर तुम्हें क्या प्रौब्लम हो रही है? लड़कियां अपने बौयफ्रैंड को ले कर अंदर घुसती हैं तब तो तुम से कुछ बोला नहीं जाता,’’ शबनम झल्लाती हुई कह रही थी.

गार्ड ने झेंपते हुए दरवाजा खोल दिया और शबनम बड़बड़ाती हुई अंदर दाखिल हुई. उस ने किसी तरह लड़के को बैंच पर लिटाया और जोर से चीखी, ‘‘अरे, कोई है? ओ बाजी, देख क्या रही हो? जाओ, जरा पानी ले कर आओ.’’ फिर मुझ पर नजर पड़ते ही उस ने कहा, ‘‘नेहा, प्लीज डिटोल ला देना. इस के घाव पोंछ दूं और हां, कौटन भी लेती आना.’’

मैं ने अपनी अलमारी से डिटोल निकाला और बाहर आई. देखा, शबनम अब उस लड़के पर बरस रही है, ‘‘कर ली खुदकुशी? मिल गया मजा? तेरे जैसे लाखों लड़के देखे हैं. लड़की ने बात नहीं की तो या फेल हुए तो जान देने चल दिए. पैसा नहीं है, तो जी कर क्या करना है? अरे मरो, पर यहां आ कर क्यों मरते हो?’’

शबनम उसे लगातार डांट रही थी और वह खामोशी से शबनम को देखे जा रहा था. उस का दायां हाथ काफी जख्मी हो गया था. एक तरफ चेहरे और पैरों पर भी चोट लगी थी. माथे से भी खून बह रहा था.

बाजी बालटी में पानी भर लाईं और शबनम उस में रुई डुबाडुबा कर उस के घाव पोंछने लगी. फिर घाव पर डिटोल लगा कर पट्टी बांध दी और मुझ से बोली, ‘‘तू जरा इसे ठंडा पानी पिला दे, तब तक मैं इस के घर वालों को खबर कर देती हूं.’’

‘‘तू इसे पहले से जानती थी शबनम?’’ मैं ने पूछा तो वह मुसकराई.

‘‘अरे नहीं, मैं औफिस से आ रही थी, तो देखा यह लड़का जानबूझ कर गाड़ी के नीचे आ गया. इस के सिर पर चोट लगी थी, इसलिए यहां उठा लाई. अब घर वाले आ कर इसे अस्पताल ले जाएं या घर, उन की मरजी,’’ कह कर उस ने लड़के से उस के पिता का नंबर पूछा और उन्हें बुला लिया.

इधर मैं अपने कमरे में आ कर शबनम के बारे में सोचने लगी. आज कितना अलग रूप देखा था मैं ने उस का. उस लड़के के घाव पोंछते वक्त वह कितनी सहज थी. लड़कियां चाहे कुछ भी कहें, आज मैं ने महसूस किया था कि वह दिल की कितनी अच्छी है.

पूरे होस्टल में अक्खड़, मुंहफट और घमंडी कही जाने वाली शबनम की बुराई करने से कोई नहीं चूकता. लड़कियां हों या गार्ड या फिर कामवाली, हर किसी की यही शिकायत थी कि शबनम कभी सीधे मुंह बात नहीं करती है. अकड़ दिखाती है. टीवी देखने आती है तो जबरदस्ती वही चैनल लगाती है, जो उसे देखना हो. दूसरों की नहीं सुनती. वैसे ही उस की जिद रहती है कि काम वाली सुबह सब से पहले उस का कमरा साफ करे.

पहनावे में भी दूसरों से बिलकुल अलग दिखती थी वह. गरमी हो या सर्दी, हमेशा पूरी बाजू के कपड़े पहनती, जिस की नैक भी ऊपर तब बंद होती. उस की इस अटपटी ड्रैस की वजह से लड़कियां अकसर उस का मजाक उड़ाती थीं पर वह इस पर ध्यान नहीं देती थी.

देखने में वह खूबसूरत थी पर नाम के विपरीत चेहरे पर कोमलता नहीं सख्ती के भाव होते थे. डीलडौल भी काफी अच्छा था और आवाज काफी सख्त थी, जो उस की पर्सनैलिटी को दबंग बनाती थी और सामने वाला उस से पंगे लेने से बचता था.

वह मेरे कमरे के साथ वाले कमरे में रहती थी, इसलिए मुझ से उस की थोड़ीबहुत बातचीत होती रहती थी. हम 1-2 दफा साथ घूमने भी गए थे, पर हमेशा ही मुझे वह ऐसी बंद किताब लगी जिसे चाह कर भी पढ़ना मुमकिन नहीं था.

8-10 दिन बाद की बात है, मैं ने देखा, शबनम ग्राउंड में बैंच पर बैठी किसी लड़के से बात कर रही है. उस वक्त शबनम की आवाज इतनी तेज थी कि लग रहा था, वह उस लड़के को डांट रही है. 2-3 लड़कियां उधर से शबनम का मजाक उड़ाती हुई आ रही थीं.

एक कह रही थी, ‘‘लो आ गई उस लड़के की शामत. उसे नहीं पता कि किस लड़की से पाला पड़ा है उस का.’’

दूसरी ने कमैंट किया, ‘‘लड़का कह रहा होगा, मुझ पर करो न यों सितम…’’

मैं ने गौर से देखा, यह तो वही लड़का था, जिस की उस दिन शबनम ने मरहमपट्टी की थी. लड़का अब काफी हद तक ठीक हो चुका था पर माथे और हाथ पर अभी भी पट्टी बंधी थी.

बाद में जब मैं ने शबनम से उस के बारे में पूछा तो वह बोली, ‘‘धन्यवाद कहने आया था और हिम्मत तो देखो, मुझ से दोस्ती करना चाहता था. कह रहा था, फिर मिलने आऊंगा.’’

‘‘तो तुम ने क्या कहा?’’

‘‘अरे, मुझे क्या कहना था, अच्छी तरह समझा दिया कि मैं दोस्तीवोस्ती के चक्कर में नहीं पड़ने वाली. रोजरोज मेरा दिमाग खाने के लिए आने की जरूरत नहीं. लड़कों की फितरत अच्छी तरह समझती हूं मैं.’’

आगे उस लड़के का हश्र क्या होगा, यह मैं अच्छी तरह समझ सकती थी, इसलिए शबनम को और न छेड़ते हुए मैं मुसकराती हुई अपने कमरे में चली आई.

उस दिन के बाद 2-3 बार और भी मैं ने उस लड़के को शबनम से बातें करते देखा और हमेशा शबनम उसे झिड़कती हुई ही दिखी. एक दिन उस ने बताया कि वह लड़का हाथ धो कर पीछे पड़ गया है. फोन भी करने लगा है कि मैं तुम्हें पसंद करता हूं. अरे यार, बदतमीजी की भी हद होती है. घाव पर मरहम क्या लगाया, वह तो हाथ पकड़ने पर आमादा हो गया है.

‘‘तो इस में बुराई क्या है यार. वह तुझे इतना चाहता है, देखने में भी हैंडसम है. अच्छा कमाता है, घरपरिवार भी अच्छा है, तू ने ही बताया है. तो तू मना क्यों कर रही है? क्या कोई और है तेरी जिंदगी में?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, कोई और नहीं है. जरूरत भी नहीं है मुझे. और वह जैसा भी है उस से मुझे क्या लेनादेना? आज पीछे पड़ा है, तो हो सकता है कल देखना भी न चाहे, अजनबी बन जाए. हजारों कमियां निकाले मुझ में. इतना ही अच्छा है तो ढूंढ़ ले न कोई अच्छी लड़की. मैं ने क्या मना किया है? मैं क्यों अपनी खुशियां किसी और के आसरे छोड़ूं? जैसी भी हूं, ठीक हूं…’’ कहतेकहते उस की आंखें नम हो उठीं.

‘‘शबनम, प्यार बहुत खूबसूरत होता है. वह वीरान जिंदगी में खुशियों की बहार ले कर आता है. किसी से हो जाए तो सूरत, उम्र, जाति कुछ नहीं दिखता. इंसान इस प्यार को पाने के लिए हर कुरबानी देने को तैयार रहता है.’’ मैं ने समझाना चाहा.

पर वह अकड़ती हुई बोली, ‘‘बहुत देखे हैं प्यार करने वाले. मैं इन झमेलों से दूर सही…’’ और अपने कमरे में चली गई.

अगले दिन वह लड़का मुझे होस्टल के गेट पर मिल गया. मुझ से विनती करता हुआ बोला, ‘‘प्लीज नेहाजी, आप ही समझाओ न शबनमजी को. वे मुझ से मिलना नहीं चाहतीं.’’

‘‘तुम प्यार करते हो उस से?’’ में ने सीधा प्रश्न किया तो चकित नजरों से उस ने मेरी तरफ देखा फिर सिर हिलाता हुआ बोला, ‘‘बहुत ज्यादा. जिंदगी में पहली दफा ऐसी लड़की देखी. खुद पर निर्भर, दूसरों के लिए लड़ने वाली, आत्मविश्वास से भरपूर. उस ने मुझे जीना सिखाया है. मुश्किलों से हार मानने के बजाय लड़ने का जज्बा पैदा किया है. मैं ने तो औरतों को सिर्फ पति के इशारों पर चलते, रोतेसुबकते और घरेलू काम करते देखा था. पर वह बहुत अलग है. जितना ही उसे देखता हूं, उसे पाने की तमन्ना बढ़ती जाती है. प्लीज, आप मेरी मदद करें. मेरे मन की बातें उस तक पहुंचा दें.’’

‘‘मैं कोशिश करती हूं,’’ मैं ने कहा तो उस के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. मुझे नमस्ते कर के वह चला गया.

रात को मैं फिर से शबनम के कमरे में दाखिल हुई. वह अकेली थी. ‘‘आज वह गेट पर मिला था,’’ मैं ने कहा.

‘‘जानती हूं. मुझे बाहर बुला रहा था लेकिन मैं नहीं गई.’’

मैं ने उसे कुरेदा, ‘‘तू प्यार से भाग क्यों रही है? जानती है, प्यार हर दर्द मिटा देता है?’’

वह हंसी, ‘‘प्यार दर्द मिटाता नहीं, नए जख्म पैदा करता है. बहुत स्वार्थी होता है प्यार.’’

‘‘मैं आज वजह जान कर रहूंगी कि आखिर क्यों भागती है तू प्यार से? या तो मुझे हकीकत बता दे या फिर उस लड़के को अपना ले जो सिर्फ तेरी राह देख रहा है.’’

‘‘मैं ने भी देखी थी किसी की राह पर उस ने…,’’ कहते हुए अचानक उस की आंखें भीग गईं.

मैं ने प्यार से उस का माथा सहलाते हुए कहा, ‘‘शबनम, अपने दिल का दर्द बाहर निकाल. तभी तू खुश रह सकेगी. मुझे सबकुछ बता दे. मैं जानती हूं, तू दिल की बहुत अच्छी है. पर कुछ तो ऐसा है जो तेरे दिल को तड़पाता है. यह पीड़ा तुझे सामान्य नहीं रहने देती. तेरे चेहरे, तेरे व्यवहार में झलकने लगती है. यकीन रख, तू जो भी बताएगी, वह सिर्फ मुझ तक रहेगा. पर मुझ से कुछ मत छिपा. किस ने चोट पहुंचाई है तुझे?’’

वह थोड़ी नौर्मल हुई तो बिस्तर पर पीठ टिका कर बैठ गई और कहने लगी, ‘‘नेहा,

4 साल पहले तक मैं भी एक ऐसी लड़की थी जिस का दिल किसी के लिए धड़कता था. मैं भी प्यार को बहुत खूबसूरत मानती थी. मेरी भी तमन्नाएं थीं, कुछ सपने थे. दूसरों से प्रेम से बातें करना, मिल कर रहना अच्छा लगता था मुझे. जिसे प्यार किया, उसी के साथ पूरी उम्र गुजारना चाहती थी और उस की यानी विक्रम की भी यही मरजी थी. उस ने मुझे हमेशा ऐतबार दिलाया था कि वह मुझे प्यार करता है, मेरे साथ घर बसाना चाहता है. हमारी जोड़ी कालेज में भी मशहूर थी. पर वक्त की चोट ने उस की असलियत मेरे सामने ला कर रख दी.’’

‘‘एक दिन मैं ने देखा कि मेरी बांह और पीठ पर सफेद निशान हो गए हैं. मैं घबरा गई. डाक्टरों के चक्कर लगाने लगी पर दाग बढ़ते ही गए. जब मैं ने यह राज विक्रम के आगे खोला तो उस के चेहरे के भाव ही बदल गए और 2-4 दिनों के अंदर ही उस का व्यवहार भी बदलने लगा. अब वह मुझ से दूर रहने की कोशिश करता. हालांकि 1-2 दफा मेरे कहने पर वह मेरे साथ डाक्टर के यहां भी गया पर कुछ अनमना सा रहता था. धीरेधीरे वह मिलने से भी कतराने लगा.

‘‘उधर हमारी पढ़ाई पूरी हो गई और पापा को मेरी शादी की फिक्र होने लगी. मैं ने विक्रम से इस बारे में चर्चा की तो वह शादी से बिलकुल मुकर गया. मैं तड़प उठी. उस के आगे रोई, गिड़गिड़ाई पर सिर्फ इस सफेद दाग की वजह से वह मुझ से जुड़ने को तैयार नहीं हुआ.’’ कहते हुए उस ने अपने कुरते की बाजू ऊपर उठाई. उस की बांह पर कई जगह सफेद दाग थे.

शून्य की तरफ देखते हुए वह बोली, ‘‘मैं आज भी उसे भुला नहीं सकी पर कहां जानती थी कि उस का प्यार सिर्फ मेरे शरीर से जुड़ा था. शरीर में दोष उत्पन्न हुआ तो उस ने राहें बदल लीं. किसी और से शादी कर ली. तभी मैं ने समझा कितना स्वार्थी, कितना संकीर्ण होता है यह प्यार.

‘‘मैं ने तो विक्रम की शक्ल नहीं देखी थी. देखने में बिलकुल ऐवरेज था. सांवला, मोटा. मैं उस से बहुत खूबसूरत थी. मैं चाहती तो उस की कमियां गिना कर उसे ठुकरा सकती थी. पर मैं ने तो प्यार किया था और उस ने ऐसी चोट दी कि सारे जज्बात ही खत्म कर डाले. तभी से मुझ में एक तरह की जिद आ गई. मैं समझ गई कि जिंदगी में मांगने पर कुछ नहीं मिलता. मुझे जो चाहिए होता वह जबरदस्ती दूसरों से छीनने लगी. खुद को कमजोर महसूस नहीं कर सकती मैं. किसी की सहानुभूति भरी नजरें भी नहीं चाहिए. न ही किसी का इनकार सह पाती हूं. यही जिद मेरे व्यवहार में नजर आने लगा है. और शायद यही वजह है कि मैं 35 की हो गई पर शादी के नाम से दूर भागती हूं.’’

‘‘यह सब बहुत ही स्वाभाविक है शबनम. पर सच तो यह है कि विक्रम का प्यार मैच्योर नहीं था. वह दिल से तुझ से जुड़ ही नहीं सका था, इसीलिए तुम्हारे रिश्ते का धागा बहुत कमजोर था. वह हलकी सी चोट भी सह नहीं सका. पर अर्पण की आंखों में देखा है मैं ने, वाकई उस के दिल में सिर्फ तुम हो, क्योंकि उस ने सूरत देख कर नहीं, तुम्हारे गुण देख कर तुम्हें चाहा है. इसलिए वह तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ेगा. किसी स्वार्थी इंसान की वजह से खुद को खुशियों से बेजार रखना कहां की अक्लमंदी है?

‘‘शबनम, यदि ठंडी हवा के झोंके सा अर्पण का प्यार तुम्हारे जख्मों पर मरहम लगा सकता है, तो दिल की खिड़कियां बंद कर लेना सही नहीं.’’

‘‘मैं कैसे मान लूं कि अर्पण का प्यार सच्चा है, स्वार्थी नहीं.’’

‘‘ऐसा कर, उसे हर बात बता दे. फिर देख, वह क्या कहता है. मैं जानती हूं, उस का जवाब निश्चित रूप से हां होगा.’’

शबनम ने उसी वक्त फोन उठाया और बोली, ‘‘ठीक है, यह भी कर के देख लेती हूं. अभी तेरे सामने बताती हूं उसे सब कुछ.’’

फिर उस ने फोन मिलाया और स्पीकर औन कर बोली, ‘‘अर्पण, मैं तुम से बात करना चाहती हूं अभी, इसी वक्त. समय है तुम्हारे पास?’’

‘‘बिलकुल, आप कहिए तो,’’ अर्पण ने जवाब दिया.

‘‘अर्पण, तुम्हारे दिल की बात नेहा ने मुझ तक पहुंचा दी है. अब मैं अपनी जिंदगी की असलियत तुम तक पहुंचाना चाहती हूं. बस एक हकीकत, जिसे सुन कर तुम्हारा सारा प्यार काफूर हो जाएगा…’’

‘‘ऐसा क्या है शबनमजी?’’

‘‘बात यह है कि मेरे पूरे शरीर पर सफेद दाग हैं, जो ठीक नहीं हो सकते. गले पर, पीठ पर, बांहों पर और आगे… हर जगह. अब बताओ, क्या है तुम्हारा फैसला?’’

‘‘फैसला क्यों बदलेगा शबनमजी? और दूसरी बात यह कि किस ने कहा दाग ठीक नहीं हो सकते? मेरे अंकल डाक्टर हैं, उन्हें दिखाएंगे हम. वक्त लगता है, पर ऐेसे दाग ठीक हो जाते हैं. मान लीजिए, ठीक न हुए तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि मैं आप को चाहता हूं. कमियां तो मुझ में भी हैं, पर उस से क्या? एकदूसरे को अपनाने का मतलब एकदूसरे की खूबियों और कमियों को स्वीकारना ही तो होता है. कल को मेरे शरीर पर कुछ हो जाए या मुझे कोई बीमारी हो जाए तो क्या आप मुझे छोड़ देंगी? नहीं न शबनमजी, बताइए? मेरी मम्मी पास ही बैठी हैं, उन्होंने सब कुछ सुन लिया है और उन की तरफ से भी हां है. आप बस मेरा साथ दीजिए. आप नहीं जानतीं, मैं ने बहुत कुछ सीखा है आप से. आप मेरे साथ रहेंगी तो मैं खुद को बेहतर ढंग से पहचान सकूंगा. जी सकूंगा अपनी जिंदगी. आई लव यू…’’

शबनम ने मेरी तरफ देखा. मैं ने उस से हां कहने का इशारा किया तो वह धीरे से बोल उठी, ‘‘आई लव यू टू…’’

फिर शबनम ने तुरंत फोन काट दिया और मेरे गले लग कर रोने लगी. मैं जानती थी. आज उस की आंखें भले ही रो रही हों पर दिल पहली दफा पूरी तरह प्यार में डूबा मुसकरा रहा था.

हवेली : गीता के दम तोड़ते एहसास

‘साड्डा चिडि़यां दा चंबा वे… बाबुल, असां उड़ जाना…’ यानी हे पिता, हम लड़कियों का अपने पिता के घर में रहना चिडि़यों के घोंसले में पल रहे नन्हे चूजों के समान होता है, जो जल्द ही बड़े हो कर उड़ जाते हैं. हे पिता, हमें तो बिछुड़ जाना है.

लोग कहते हैं कि हमारे लोकगीतों में जिंदगी के दुखदर्द की सचाई बयान होती है, मगर गीता के लिए इस लोकगीत का मतलब गलत साबित हुआ था. आसपास की सभी लड़कियां ससुराल जा कर अपनेअपने परिवार में रम गई थीं, मगर गीता ने यों ही सारी जिंदगी निकाल दी. इस तनहा जिंदगी का बोझ ढोतेढोते गीता के सारे एहसास मर चुके थे. कोई अरमान नहीं था. अपनी अधेड़ उम्र तक उसे अपने सपनों के राजकुमार का इंतजार रहा, मगर अब तो उस के बालों में पूरी सफेदी उतर चुकी थी. आसपड़ोस के लोगों के सहारे ही अब उस के दिन कट रहे थे.

एक वक्त था, जब इसी हवेली में गीता का हंसताखेलता भरापूरा परिवार था. अब तो यहां केवल गीता है और उस की पकी हुई गम से भरी जवानी व लगातार खंडहर होती जा रही यह पुरानी हवेली. गीता की कहानी इसी खस्ताहाल हवेली से शुरू होती है और उस का खात्मा भी यहीं होना तय है.

‘साड्डी लंबी उडारी वे… बाबुल, असां उड़ जाना…’ यानी हमारी उड़ान बहुत लंबी है. ससुराल का घर बहुत दूर लगता है, चाहे वह कुछ कोस की दूरी पर ही क्यों न हो. हे पिता, हमें बिछुड़ जाना है.

गीता की शादी बहुत धूमधाम से हुई थी. बड़ेबड़े पंडाल लगाए गए थे. हजारों की तादाद में घराती और बराती इकट्ठा हुए थे. ऐसेऐसे पकवान बनाए गए थे, जो फाइवस्टार होटलों में भी कभी न बने हों. 10 किस्म के पुलाव थे, 5 किस्म के चिकन, बेहिसाब फलजूस, विलायती शराब की हजारों बोतलें पीपी कर लोग सारी रात झूमते रहे थे.

एक हफ्ते तक समारोह चलता रहा था. दनादन फोटो और वीडियो रीलें बनी थीं, जिन में गर्व से इतराते जवान दूल्हे और शरमाई दुलहन के साथ सभी रिश्तेदार खुशी से चिपक कर खड़े थे. गीता को तब पता नहीं था कि एक साल के अंदर ही उस की बदनामी होने वाली है.

‘कित्ती रोरो तैयारी वे… बाबुल, असां उड़ जाना…’ यानी शादी होने के बाद मैं ने बिलखबिलख कर ससुराल जाने की तैयारी कर ली है. हर किसी की आंखों में आंसू हैं. हे पिता, हमें बिछुड़ जाना है.

गीता का चेहरा शर्म से लाल सुर्ख हुआ जा रहा था और वह अंदर से इतनी ज्यादा खुश थी कि एक बहुत बड़े रईस परिवार से अब जुड़ गई थी. 2 महीने बाद उसे अपने पति के साथ लंदन जाना था. लड़के के परिवार वाले भी बेहद खुश दिख रहे थे. दूल्हा बड़ी शान से एक सजे हुए विशाल हाथी पर बैठ कर आया था. फूलों से लदी एक काली सुंदर चमचमाती लंबी लिमोजिन कार गीता की डोली ले जाने के लिए सजीसंवरी उस के पीछेपीछे आई थी.

लड़के का पिता अपने इलाके का बहुत बड़ा जमींदार था. उस ने भारी रोबदार लहजे में गीता के पिता से कहा था, ‘मेरे लिए कोई खास माने नहीं रखता कि तुम अपनी बेटी को दहेज में क्या देते हो. हमारे पास सबकुछ है. हमारी बरात का स्वागत कुछ ऐसे तरीके से कीजिएगा कि सदियों तक लोग याद रखें कि चौधरी धर्मदेव के बेटे की शादी में गए थे.’ लोग तो उस शानदार शादी को आसानी से भूल गए थे. आजकल तकरीबन सभी शादियां ऐसी ही सजधज से होती हैं. पर गीता को कुछ नहीं भूला था. उस के दूल्हे ने पहली रात को उसे हजारों सब्जबाग दिखाए थे.

शादी के बाद एक महीना कैसे बीता, पता ही नहीं चला. गीता के तो पैर जमीन पर नहीं पड़ते थे. वह पगलाई सी उस रस के लोभी भंवरे के साथ भारत के हर हिल स्टेशन पर घूमती रही, शादी को बिना रजिस्टर कराए. गीता के पति को एक दिन अचानक लंदन जाना पड़ा. कुछ महीनों बाद तक यह सारा माजरा गीता के परिवार वालों की समझ में नहीं आया. गीता तो कुछ ज्यादा ही हवा में थी कि विदेश जा कर यह कोर्स करेगी, वह काम करेगी.

कुछ दिनों तक गीता मायके में रही. ससुराल से कोई खोजखबर नहीं मिल पा रही थी. गीता का पति जो फोन नंबर उसे दे गया था, वह फर्जी था. लोगों को दो और दो जोड़ कर पांच बनाते देर नहीं लगती. अखबारों को भनक लगी, तो उन्होंने मिर्चमसाला लगा कर गीता के नाम पर बहुत कीचड़ उछाला. पत्रकारों को भी मौका मिल गया था अपनी भड़ास निकालने का. कहने लगे कि लालच के मारे ये

मिडिल क्लास लोग बिना कोई पूछताछ किए विदेशी दूल्हों के साथ अपनी लड़कियां बांध देते हैं. ये एनआरआई रईस 2-3 महीने जवान लड़की का जिस्मानी शोषण कर के फुर्र हो जाते हैं, फिर सारी उम्र ये लड़कियां विधवाओं से भी गईगुजरी जिंदगी बसर करती हैं. आने वाले समय में जिंदगी ने जो कड़वे अनुभव गीता को दिए थे, वे उस के लिए पलपल मौत की तरफ ले जाने वाले कदम थे. उस के मातापिता ने शादी में 25 लाख रुपए खर्च कर दिए थे और क्याकुछ नहीं दिया था. एक बड़ी कार भी उसे दहेज में दी थी.

खैर, 2-3 महीने बाद एक नया नाटक सामने आया. गीता के बैंक खाते में पति ने कुछ पैसे जमा किए. अब वह उसे हर महीने कुछ रुपए भेजने लगा था, ताकि पैसे के लिए ही सही गीता उस के खिलाफ कोई होहल्ला न करे. गीता के पिता ने कुछ रिश्तेदारों को साथ ले कर उस की ससुराल जा कर खोजबीन की.

पता चला कि लड़का तो लंदन में पहले से ही शादीशुदा है. यह बात उस ने अपने मांबाप से भी छिपाई थी. कुछ अरसा पहले उस ने अपनी मकान मालकिन से ही शादी कर ली थी, ताकि वहां का परमानैंट वीजा लग जाए. बाद में उस से पीछा छुड़वा कर वह गीता से शादी करने से 7 महीने पहले एक और रूसी गोरी मेम से कोर्ट में शादी रचा चुका था. गीता के साथ तो उस ने अपने मांबाप को खुश रखने के लिए शादी की थी, ताकि वह सारी उम्र उन की ही सेवा में लगी रहे.

इस मामले में गीता के घर वाले उस की ससुराल वालों को फंसा सकते थे, मगर यह इतना आसान नहीं था. गीता के मांबाप ने उस के ससुराल पक्ष पर सामाजिक दबाव बढ़ाना शुरू किया और अदालत का डर दिखाया, तो वे 5 लाख रुपए दे कर गीता से पीछा छुड़ाने का औफर ले कर आ गए. गीता की शादी भारत में रजिस्टर नहीं हुई थी और इंगलैंड में उस की कोई कानूनी मंजूरी नहीं थी, इसलिए गीता के घर वाले उस के पति का कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे, जिस ने गीता के साथ यह घिनौना मजाक किया था.

गीता के ससुराल वाले चाहते थे कि एक महीने तक उन के बेटे को जो गीता ने सैक्स सर्विस दी थी, उस का बिल 5 लाख रुपए बनता है. वह ले कर गीता दूसरी शादी करने को आजाद थी. वे बाकायदा तलाक दिलाने का वादा कर रहे थे. अब गीता का पति उन के हाथ आने वाला नहीं था.

तब गीता की ससुराल वालों ने उस के परिवार को एक दूसरी योजना बताई. गीता का देवर अभी कुंआरा ही था. उन्होंने सुझाया कि गीता चाहे तो उस के साथ शादी कर सकती है. ऐसा खासतौर पर तब किया जाता है, जब पति की मौत हो जाए. गीता की मरजी के बिना ही उस की जिंदगी को ले कर अजीबअजीब किस्म के करार किए जा रहे थे और वह हर बार मना कर देती. कोई उस के दिल के भीतर टटोल कर नहीं देख रहा था कि उसे क्या चाहिए.

फिर कुछ महीनों बाद गीता की ससुराल वालों का यह प्रस्ताव आया कि गीता के परिवार वाले 10 लाख रुपए का इंतजाम करें और गीता को उस के पति के पास लंदन भेज दें. शायद गीता के पति का मन अपनी विदेशी मेम से भर चुका था और वह गीता को बीवी बना कर रखने को तैयार हो गया था. गीता के सामने हर बार इतने अटपटे प्रस्ताव रखे जाते थे कि उस का खून खौल उठता था. शुरू में तो गीता को लगता था कि उस के परिवार वाले उस के लिए कितने चिंतित हैं और वे उस की पटरी से उतरी हुई गाड़ी को ठीक चढ़ा ही देंगे, मगर फिर उन की पिछड़ी सोच पर गीता को खीज भरी झुंझलाहट होने लगी थी.

गीता अपने दुखों का पक्का इलाज चाहती थी. समझौते वाली जिंदगी उसे पसंद नहीं थी. वह हाड़मांस की बनी एक औरत थी और इस तरह का कोई समझौता उस की खराब शादी को ठीक नहीं कर सकता था. अब गीता के मांबाप के पास इतना पैसा नहीं था कि वे उसे लंदन भेज सकें, ताकि गीता उस आदमी को पा सके. मगर पिछले 3 साल से वह भारत नहीं आया था और ऐसा कोई कानून नहीं था कि गीता के परिवार वाले उसे कोई कानूनी नोटिस भिजवा सकें.

गीता के मांबाप ने कोर्ट में केस दायर कर दिया था. वे अपने 25 लाख रुपए वापस चाहते थे, जो उन्होंने गीता की शादी में खर्च किए थे. गीता के लिए तो यह सब एक खौफनाक सपने की तरह था. वह पैसा नहीं चाहती थी. वह अपने बेवफा पति को भी वापस नहीं चाहती थी.

गीता क्या चाहती थी, यह उस की कच्ची समझ में तब नहीं आ रहा था. हर कोई अपनी लड़ाई लड़ने में मसरूफ था. किसी ने यह नहीं सोचा था कि गीता की उम्र निकलती जा रही है, उस के मांबाप बूढ़े होते जा रहे हैं. कोई सगा भाई भी नहीं है, जो बुढ़ापे में गीता की देखभाल करेगा.

अदालत के केस में फंसे गीता के पिता की सारी जमापूंजी खत्म हो गई. गीता की ससुराल वालों के पास खूब पैसा था. केस लटकता जा रहा था और एक दिन गीता के पिता ने तंग आ कर खेत में पेड़ से लटक कर जान दे दी. मां ने 3-4 साल तक गीता के साथ कचहरी की तारीखें भुगतीं, मगर एक दिन वे भी नहीं रहीं.

अब अपनी लड़ाई लड़ने को अकेली रह गई थी अधेड़ गीता. खेतों से जो पैदावार आती थी, वह इतनी ज्यादा नहीं थी कि लालची वकीलों को मोटी फीस दी जा सके. थकहार कर गीता ने कचहरी जाना ही छोड़ दिया. वह अपनी ससुराल वालों की दी गई हर पेशकश या समझौते को मना करती रही. एकएक कर के गीता के साथ के सभी लोग मरखप गए.

हवेली का रंगरूप बिगड़ता गया. अब इस कसबे में नए बाशिंदे आ कर बसने लगे थे. सरकार ने जब इस क्षेत्र को स्पैशल इकोनौमिक जोन बनाया, तो आसपास के खेतों में कारखाने खुलने लगे. उन में काम करने वालों के लिए गीता की हवेली सब से सस्ती जगह थी. गीता किराए के सहारे ही हवेली का थोड़ाबहुत रखरखाव कर रही थी. अपने बारे में तो उस ने कब से सोचना छोड़ दिया था.

ऐसा लग रहा था कि गीता और हवेली में एक प्रतियोगिता चल रही थी कि कौन पहले मिट्टी में मिलेगी.

हम बेवफा न थे : अख्तर के दिल की आवाज

‘‘अरे, आप लोग यहां क्या कर रहे हैं? सब लोग वहां आप दोनों के इंतजार में खड़े हैं,’’ हमशां ने अपने भैया और होने वाली भाभी को एक कोने में खड़े देख कर पूछा.

‘‘बस कुछ नहीं, ऐसे ही…’’ हमशां की होने वाली भाभी बोलीं.

‘‘पर भैया, आप तो ऐसे छिपने वाले नहीं थे…’’ हमशां ने हंसते हुए पूछा.

‘काश हमशां, तुम जान पातीं कि मैं आज कितना उदास हूं, मगर मैं चाह कर भी तुम्हें नहीं बता सकता,’ इतना सोच कर हमशां का भाई अख्तर लोगों के स्वागत के लिए दरवाजे पर आ कर खड़ा हो गया.

तभी अख्तर की नजर सामने से आती निदा पर पड़ी जो पहले कभी उसी की मंगेतर थी. वह उसे लाख भुलाने के बावजूद भी भूल नहीं पाया था.

‘‘हैलो अंकल, कैसे हैं आप?’’ निदा ने अख्तर के अब्बू से पूछा.

‘‘बेटी, मैं बिलकुल ठीक हूं,’’ अख्तर के अब्बू ने प्यार से जवाब दिया.

‘‘हैलो अख्तर, मंगनी मुबारक हो. और कितनी बार मंगनी करने की कसम खा रखी है?’’ निदा ने सवाल दागा.

‘‘यह तुम क्या कह रही हो? मैं तो कुछ नहीं जानता कि हमारी मंगनी क्यों टूटी. पता नहीं, तुम्हारे घर वालों को मुझ में क्या बुराई नजर आई,’’ अख्तर ने जवाब दिया.

‘‘बस मिस्टर अख्तर, आप जैसे लोग ही दुनिया को धोखा देते फिरते हैं और हमारे जैसे लोग धोखा खाते रहते हैं,’’ इतना कह कर निदा गुस्से में वहां से चली गई.

सामने स्टेज पर मंगनी की तैयारी पूरे जोरशोर से हो रही थी. सब लोग एकदूसरे से बातें करते नजर आ रहे थे. तभी निदा ने हमशां को देखा, जो उसी की तरफ दौड़ी चली आ रही थी.

‘‘निदा, आप आ गईं. मैं तो सोच रही थी कि आप भी उन लड़कियों जैसी होंगी, जो मंगनी टूटने के बाद रिश्ता तोड़ लेती हैं,’’ हमशां बोली.

‘‘हमशां, मैं उन में से नहीं हूं. यह सब तो हालात की वजह से हुआ है…’’ निदा उदास हो कर बोली, ‘‘क्या मैं जान सकती हूं कि वह लड़की कौन है जो तुम लोगों को पसंद आई है?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. वह देखो, सामने स्टेज की तरफ सुनहरे रंग का लहंगा पहने हुए खड़ी है,’’ हमशां ने अपनी होने वाली भाभी की ओर इशारा करते हुए बताया.

‘‘अच्छा, तो यही वह लड़की है जो तुम लोगों की अगली शिकार है,’’ निदा ने कोसने वाले अंदाज में कहा.

‘‘आप ऐसा क्यों कह रही हैं. इस में भैया की कोई गलती नहीं है. वह तो आज भी नहीं जानते कि हम लोगों की तरफ से मंगनी तोड़ी गई?है,’’ हमशां ने धीमी आवाज में कहा.

‘‘मगर, तुम तो बता सकती थीं.

तुम ने क्यों नहीं बताया? आखिर तुम भी तो इसी घर की हो,’’ इतना कह कर निदा वहां से दूसरी तरफ खड़े लोगों की तरफ बढ़ने लगी.

निदा की बातें हमशां को बुरी तरह कचोट गईं.

‘‘प्लीज निदा, आप हम लोगों को गलत न समझें. बस, मम्मी चाहती थीं कि भैया की शादी उन की सहेली की बेटी से ही हो,’’ निदा को रोकते हुए हमशां ने सफाई पेश की.

‘‘और तुम लोग मान गए. एक लड़की की जिंदगी बरबाद कर के अपनी कामयाबी का जश्न मना रहे हो,’’ निदा गुस्से से बोली.

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं?है. मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि मम्मी की कसम के आगे हम सब मजबूर थे वरना मंगनी कभी भी न टूटने देते,’’ कह कर हमशां ने उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘देखो हमशां, अब पुरानी बातों को भूल जाओ. पर अफसोस तो उम्रभर रहेगा कि इनसानों की पहचान करना आजकल के लोग भूल चुके हैं,’’ इतना कह कर निदा ने धीरे से अपना हाथ छुड़ाया और आगे बढ़ गई.

‘‘निदा, इन से मिलो. ये मेरी होने वाली बहू के मम्मीपापा हैं. यह इन की छोटी बेटी है, जो मैडिकल की पढ़ाई कर रही है,’’ अख्तर की अम्मी ने निदा को अपने नए रिश्तेदारों से मिलवाया.

निदा सोचने लगी कि लोग तो रिश्ता टूटने पर नफरत करते हैं, लेकिन मैं उन में से नहीं हूं. अमीरों के लिए दौलत ही सबकुछ है. मगर मैं दौलत की इज्जत नहीं करती, बल्कि इनसानों की इज्जत करना मुझे अपने घर वालों ने सिखाया है.

‘‘निदा, आप भैया को माफ कर दें, प्लीज,’’ हमशां उस के पास आ कर फिर मिन्नत भरे लहजे में बोली.

‘‘हमशां, कैसी बातें करती हो? अब जब मुझे पता चल गया है कि इस में तुम्हारे भैया की कोई गलती नहीं है तो माफी मांगने का सवाल ही नहीं उठता,’’ निदा ने हंस कर उस के गाल पर एक हलकी सी चपत लगाई.

कुछ देर ठहर कर निदा फिर बोली, ‘‘हमशां, तुम्हारी मम्मी ने मुझ से रिश्ता तोड़ कर बहुत बड़ी गलती की. काश, मैं भी अमीर घर से होती तो यह रिश्ता चंद सिक्कों के लिए न टूटता.’’

‘‘मुझे मालूम है कि आप नाराज हैं. मम्मी ने आप से मंगनी तो तोड़ दी, पर उन्हें भी हमेशा अफसोस रहेगा कि उन्होंने दौलत के लिए अपने बेटे की खुशियों का खून कर दिया,’’ हमशां ने संजीदगी से कहा.

‘‘बेटा, आप लोग यहां क्यों खड़े हैं? चलो, सब लोग इंतजार कर रहे हैं. निदा, तुम भी चलो,’’ अख्तर के अब्बू खुशी से चहकते हुए बोले.

‘‘मुझे यहां इतना प्यार मिलता है, फिर भी दिल में एक टीस सी उठती?है कि इन्होंने मुझे ठुकराया है. पर दिल में नफरत से कहीं ज्यादा मुहब्बत का असर है, जो चाह कर भी नहीं मिटा सकती,’ निदा सोच रही थी.

‘‘निदा, आप को बुरा नहीं लग रहा कि भैया किसी और से शादी कर रहे हैं?’’ हमशां ने मासूमियत से पूछा.

‘‘नहीं हमशां, मुझे क्यों बुरा लगने लगा. अगर आदमी का दिल साफ और पाक हो, तो वह एक अच्छा दोस्त भी तो बन सकता है,’’ निदा उमड़ते आंसुओं को रोकना चाहती थी, मगर कोशिश करने पर भी वह ऐसा कर नहीं सकी और आखिरकार उस की आंखें भर आईं.

‘‘भैया, आप निदा से वादा करें कि आप दोनों जिंदगी के किसी भी मोड़ पर दोस्ती का दामन नहीं छोड़ेंगे,’’ हमशां ने इतना कह कर निदा का हाथ अपने भैया के हाथ में थमा दिया और दोनों के अच्छे दोस्त बने रहने की दुआ करने लगी.

‘‘माफ कीजिएगा, अब हम एकदूसरे के दोस्त बन गए हैं और दोस्ती में कोई परदा नहीं, इसलिए आप मुझे बेवफा न समझें तो बेहतर होगा,’’ अख्तर ने कहा.

‘‘अच्छा, आप लोग मेरे बिना दोस्ती कैसे कर सकते हैं. मैं तीसरी दोस्त हूं,’’ अख्तर की मंगेतर निदा से बोली.

निदा उस लड़की को देखती रह गई और सोचने लगी कि कितनी अच्छी लड़की है. वैसे भी इस सब में इस की कोई गलती भी नहीं है.

‘‘आंटी, मैं हमशां को अपने भाई के लिए मांग रही हूं. प्लीज, इनकार न कीजिएगा,’’ निदा ने कहा.

‘‘तुम मुझ को शर्मिंदा तो नहीं कर रही हो?’’ अख्तर की अम्मी ने पलट कर पूछा.

‘‘नहीं आंटी, मैं एक दोस्त होने के नाते अपने दोस्त की बहन को अपने भाई के लिए मांग रही हूं,’’ इतना कह कर निदा ने हमशां को गले से लगा लिया.

‘‘निदा, आप हम से बदला लेना चाहती?हैं. आप भी मम्मी की तरह रिश्ता जोड़ कर फिर तोड़ लीजिएगा ताकि मैं भी दुनिया वालों की नजर में बदनाम हो जाऊं,’’ हमशां रोते हुए बोली.

‘‘अरी पगली, मैं तो तेरे भैया की दोस्त हूं, दुख और सुख में साथ देना दोस्तों का फर्ज होता है, न कि उन से बदला लेना,’’ निदा ने कहा.

‘‘नहीं, मुझे यह रिश्ता मंजूर नहीं है,’’ अख्तर की अम्मी ने जिद्दी लहजे में कहा.

तभी अख्तर के अब्बू आ गए.

‘‘क्या बात है? किस का रिश्ता नहीं होने देंगी आप?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘अंकल, मैं हमशां को अपने भाई के लिए मांग रही हूं.’’

‘‘तो देर किस बात की है. ले जाओ. तुम्हारी अमानत है, तुम्हें सौंप देता हूं.’’

‘‘निदा, आप अब भी सोच लें, मुझे बरबाद होने से आप ही बचा सकती हैं,’’ हमशां ने रोते हुए कहा.

‘‘कैसी बहकीबहकी बातें कर रही हो. मैं तो तुम्हें दिल से कबूल कर रही हूं, जबान से नहीं, जो बदल जाऊंगी,’’ निदा खुशी से चहकी.

‘‘हमशां, निदा ठीक कह रही हैं. तुम खुशीखुशी मान जाओ. यह कोई जरूरी नहीं कि हम लोगों ने उस के साथ गलत बरताव किया तो वह भी ऐसी ही गलती दोहराए,’’ अख्तर हमशां को समझाते हुए कहने लगा.

‘‘अगर वह भी हमारे जैसी बन जाएगी, तब हम में और उस में क्या फर्क रहेगा,’’ इतना कह कर अख्तर ने हमशां का हाथ निदा के भाई के हाथों में दे दिया.

‘‘निदा, हम यह नहीं जानते कि कौन बेवफा था, लेकिन इतना जरूर जानते हैं कि हम बेवफा न थे,’’ अख्तर नजर झुकाए हुए बोला.

‘‘भैया, आप बेवफा न थे तो फिर कौन बेवफा था?’’ हमशां शिकायती लहजे में बोली. उस की नजर जब अपने भैया पर पड़ी तो देख कर दंग रह गई. उस का भाई रो रहा था.

‘‘भैया, मुझे माफ कर दीजिए. मैं ने आप को गलत समझा,’’ हमशां अख्तर के गले लग कर रोने लगी.

सच है कि इनसान को हालात के आगे झुकना पड़ता है. अपनों के लिए बेवफा भी बनना पड़ता है.

घुटन : शमा की भाभी ने ऐसा क्या देख लिया था

आसिफ को ऐसी घुटन में जीने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, उस ने इस की कभी कल्पना भी नहीं की थी. इस घुटन ने उसे पूरी तरह तोड़ दिया था. रहरह कर आसिफ को अपनी पहली बीवी मुमताज की याद आ रही थी.

आज आसिफ की नई बीवी शमा उस पर शब्दों की ऐसी चोट करती थी, जिस का असर सीधे उस के दिल पर होता था, जबकि उस ने अपनी नई बीवी शमा और उस के बच्चों कैफ और आइजा को अपनी सगी औलाद से भी ज्यादा चाहा था और शमा से निकाह इसलिए ही किया था कि किसी बेवा और यतीमों का सहारा बन कर उन्हें दुनिया की हर खुशी देने की कोशिश करेगा. पर शमा लोगों के बहकावे में आ कर शब्दों की ऐसी चोट करती थी कि घर में ?ागड़ा शुरू हो जाता था.

आसिफ के अपनी पहली बीवी से

3 बच्चे फातिमा, आयशा और काशिफ थे. जब आसिफ की दूसरी शादी हुई थी, उस समय फातिमा की उम्र 10 साल, आयशा की उम्र 8 साल और काशिफ की उम्र महज 3 साल थी. शमा की बेटी आइजा की उम्र 10 साल और बेटे कैफ की उम्र 6 साल थी.

आसिफ ने डोनेशन दे कर आइजा और कैफ का एक अच्छे से इंगलिश मीडियम स्कूल में दाखिला करा दिया था, जबकि अपनी बेटी आयशा को साधारण स्कूल में ही रहने दिया था, क्योंकि उस के पास इस समय इतनी रकम नहीं थी कि एकसाथ 3-3 बच्चों के दाखिले के लिए डोनेशन दे सके.

शादी का एक साल प्यारमुहब्बत में गुजर गया और शमा को एक बेटा भी हो गया, जिसे पा कर पूरे घर में खुशी का माहौल था. सब बच्चे अपने छोटे भाई को पा कर खुश थे.

पर, जैसेजैसे समय अपनी रफ्तार से कटता गया, वैसेवैसे शमा में बदलाव आता गया. वह आसिफ की छोटी से छोटी बात पकड़ने लगी और उसे जलील करने लगी.

एक दिन शमा के भाईभाभी घर आए हुए थे. आसिफ का बेटा काशिफ खाना नहीं खा रहा था, तो आसिफ ने उसे पकड़ कर एक निवाला उस के मुंह में डाल दिया.

शमा की भाभी ने यह सब देख लिया और उस ने शमा के कान में जहर घोल दिया.

रात को जब आसिफ थकहार कर घर आया और अपने कमरे में गया, तो शमा मुंह फुलाए बैठी थी. आसिफ को देख वह गुस्से में बोली, ‘‘तुम काशिफ को अपने हाथ से खाना खिला रहे थे. मेरी भाभी ने अपनी आंखों से देखा और मु?ा से कहा कि आसिफ अपनी औलाद को तो अपने हाथ से खाना खिलाता है, पर तुम्हारे बच्चों को कभी ऐसे खाना नहीं खिलाता. भाभी को और मु?ो तुम्हारा बच्चों में यह फर्क करना बहुत बुरा लगा.’’

आसिफ शमा को प्यार से सम?ाते हुए बोला, ‘‘तुम ही मु?ा से कितनी बार शिकायत करती हो कि तुम्हारे 2 छोटे बच्चों को खिलाना मेरे बस की बात नहीं है. ये बच्चे मेरे हाथ से खाना नहीं खाते हैं खासकर काशिफ. आज भी काशिफ खाने में नखरे कर रहा था, तो मैं ने एक निवाला उस के मुंह में डाल दिया.’’

शमा बिगड़ते हुए बोली, ‘‘तो एक टुकड़ा मेरे बच्चों के मुंह में भी डाल देते.’’

आसिफ ने उसे सम?ाया, ‘‘काशिफ अभी बहुत छोटा है. मैं ने सिर्फ उसे ही एक निवाला खिलाया था.’’

लेकिन शमा पर आसिफ की इस दलील का कोई असर नहीं पड़ा और वह अपनी बात पर अड़ी रही.

कुछ दिनों बाद आसिफ काशिफ के लिए एबीसीडी लिखने वाली एक नोटबुक ले आया. जैसे ही उस ने वह नोटबुक शमा को दी और कहा कि इस में काशिफ को लिखना सिखाओ, जल्दी सीख जाएगा.

नोटबुक देखते ही शमा आगबबूला हो गई और नोटबुक को फेंकते हुए बोली, ‘‘सिर्फ अपने बच्चे के लिए ही लाए हो. मेरा भी तो बेटा कैफ है, उस के लिए क्यों नहीं लाए?’’

आसिफ को शमा की यह हरकत बहुत बुरी लगी. वह बोला, ‘‘कैफ तीसरी क्लास में है, उसे इस की क्या जरूरत है, जबकि काशिफ को तो अभी कुछ नहीं आता. उसे सीखने की जरूरत है. वह अभी 3 साल का ही तो है.’’

शमा चिल्ला कर बोली, ‘‘हांहां, सब तुम्हारे बच्चे के लिए ही जरूरी है.

वही तो पढ़ कर इंजीनियर बनेगा न… मेरा बच्चा कुछ न बने… सब अपने बेटे के लिए ही लाओ.’’

आसिफ को शमा से ऐसी उम्मीद न थी. उस ने जरा सी बात का बतंगड़ बना दिया. न आसिफ को खाना दिया और न उस से बात की.

आसिफ ने वह नोटबुक फाड़ दी, तब कहीं जा कर शमा का गुस्सा

शांत हुआ.

आसिफ को अब अपने ही घर में घुटन होने लगी थी. उस का घर में मन नहीं लगता था, इसलिए वह देर से घर आता था. वह जानता था कि उस की कोई न कोई बात पकड़ कर शमा ?ागड़ा करेगी और वह चाह कर भी अपने छोटे बेटे को गले नहीं लगा सकता, क्योंकि एक बार ऐसा करने पर घर में क्लेश हो गया था.

एक रात की बात है. आसिफ और शमा सोए हुए थे. रात को काशिफ की नींद खुली और वह ‘अम्मीअब्बू’ कहता हुआ आसिफ के पास आ गया. केवल आसिफ और शमा ही डबलबैड पर सोए हुए थे.

काशिफ बोला, ‘‘अब्बा, मैं आप के पास सोऊंगा.’’

आसिफ ने काशिफ को सम?ाया, तो वह रोने लगा. बच्चे का रोना सुन कर शमा बोली, ‘‘लिटा लो न अपने पास.’’

आसिफ ने शमा की बात सुन कर काशिफ को अपने पास लिटा लिया, पर अभी उसे लेटे हुए आधा घंटा ही

हुआ था कि शमा ने गुस्से में अपना तकिया उठाया और दूसरे कमरे में सोने चली गई.

आसिफ ने देखा कि शमा बिस्तर पर नहीं है, तो वह उठ कर दूसरे कमरे में गया. वहां उस ने देखा कि शमा मोबाइल देख रही थी.

आसिफ शमा से बोला, ‘‘तुम यहां क्यों आ गई?’’

शमा बोली, ‘‘नींद नहीं आ रही थी, इसलिए आ गई.’’

आसिफ सम?ा गया था कि जो इतनी देर से नींद आ रही है कह कर सो गई थी, उस की अचानक नींद कैसे गायब हो गई.

आसिफ बोला, ‘‘सचसच बताओ कि क्या बात है?’’

शमा गुस्से में बोली, ‘‘जाओ, अपनी औलाद को चिपका कर सुलाओ. यहां क्या करने आए हो? मु?ो सोने दो. मु?ो नहीं आना तुम्हारे पास. अपनी औलाद को गले से लगा कर सो जाओ, वही तुम्हारे लिए सबकुछ है.’’

आसिफ शमा की ऐसी बेरुखी देख कर हैरत में पड़ गया और उसे सम?ाते हुए बोला, ‘‘अरे बाबा, मैं काशिफ को नीचे सुला देता हूं.’’

आसिफ ने काशिफ को बिस्तर से उठा कर नीचे सुला दिया, पर शमा फिर भी नहीं आई. वह गुस्से में मुंह फुलाए दूसरे कमरे में पड़ी रही.

कई दिन तक शमा का मुंह फूला रहा और आसिफ घुटता रहा.

एक बार घर पर शमा के मेहमान आए थे. उन के बच्चों ने काशिफ की साइकिल तोड़ दी. इस के बाद शमा के बेटे कैफ की भी साइकिल खराब हो गई. उस ने आसिफ से कहा, ‘‘मेरी साइकिल ठीक करा दो.’’

आसिफ ने बोला, ‘‘कल करा दूंगा.’’

पर, अगले दिन आसिफ को ध्यान नहीं रहा और वह काम पर चला गया. फिर क्या था. शमा ऐंठ गई. आसिफ ने सम?ाया कि काशिफ की भी साइकिल उस ने ठीक नहीं कराई है, पर शमा ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई.

एक बार आसिफ की बेटी आयशा की तबीयत काफी खराब हो गई थी. आसिफ ने तुरंत उस का इलाज करा दिया था, पर जब शमा की बेटी आइजा को पीलिया हो गया, तो आसिफ ने उस का भी इलाज अच्छे डाक्टर के क्लिनिक में कराया, पर वहां शमा के रिश्तेदारों ने कान भर दिए कि तेरे ही बच्चे क्यों बीमारी का शिकार होते हैं.

शमा का यह सुनना था कि उस का गुस्सा फूट पड़ा आसिफ पर. वह बोली, ‘‘मेरे बच्चों का ध्यान नहीं रखते हो, न ही ढंग से इलाज कराते हो. अगर आज इन का असली बाप होता, तो यह इतनी बीमार न होती.’’

आसिफ बोला, ‘‘ऐसा कौन सा घर नहीं है, जहां बच्चे बीमार नहीं होते हैं. मैं सगा बाप नहीं तो क्या मैं ने इलाज कराने में कोई कमी की?’’

इतना सुनना था कि शमा और ज्यादा भड़क गई. वह अपने बच्चों को ले कर मायके चली गई. आसिफ हैरान सा उसे जाते देखता रहा.

इंग्लिश रोज: क्या सच्चा था विधि के लिए जौन का प्यार

Story in hinवह आज भी वहीं खड़ी है. जैसे वक्त थम गया है. 10 वर्ष कैसे बीत जाते हैं…? वही गांव, वही शहर, वही लोग…यहां तक कि फूल और पत्तियां तक नहीं बदले. ट्यूलिप्स, सफेद डेजी, जरेनियम, लाल और पीले गुलाब सभी उस की तरफ ठीक वैसे ही देखते हैं जैसे उस की निगाह को पहचानते हों. चौश्चर काउंटी के एक छोटे से गांव नैनटविच तक सिमट कर रह गई उस की जिंदगी. अपनी आरामकुरसी पर बैठ वह उन फूलों का पूरा जीवन अपनी आंखों से जी लेती है. वसंत से पतझड़ तक पूरी यात्रा. हर ऋतु के साथ उस के चेहरे के भाव भी बदल जाते हैं, कभी उदासी, कभी मुसकराहट. उदासी अपने प्यार को खोने की, मुसकराहट उस के साथ समय व्यतीत करने की. उसे पूरी तरह से यकीन हो गया था कि सभी के जीवन का लेखाजोखा प्रकृति के हाथ में ही है. समय के साथसाथ वह सब के जीवन की गुत्थियां सुलझाती जाती है. वह संतुष्ट थी. बेशक, प्रकृति ने उसे, क्वान्टिटी औफ लाइफ न दी हो किंतु क्वालिटी औफ लाइफ तो दी ही थी, जिस के हर लमहे का आनंद वह जीवनभर उठा सकेगी.

यह भी तो संयोग की ही बात थी, तलाक के बाद जब वह बुरे वक्त से निकल रही थी, उस की बड़ी बहन ने उसे छुट्टियों में लंदन बुला लिया था. उस की दुखदाई यादों से दूर नए वातावरण में, जहां उस का मन दूसरी ओर चला जाए. 2 महीने बाद लंदन से वापसी के वक्त हवाईजहाज में उस के साथ वाली कुरसी पर बैठे जौन से उस की मुलाकात हुई. बातोंबातों में जौन ने बताया कि रिटायरमैंट के बाद वे भारत घूमने जा रहे हैं. वहां उन का बचपन गुजरा था. उन के पिता ब्रिटिश आर्मी में थे. 10 वर्ष पहले उन की पत्नी का देहांत हो गया. तीनों बच्चे शादीशुदा हैं. अब उन के पास समय ही समय है. भारत से उन का आत्मीय संबंध है. मरने से पहले वे अपना जन्मस्थान देखना चाहते हैं, यह उन की हार्दिक इच्छा है. उन्होंने फिर उस से पूछा, ‘‘और तुम?’’

‘‘मैं भारत में ही रहती हूं. छुट्टियों में लंदन आई थी.’’

‘‘मैं भारत घूमना चाहता हूं. अगर किसी गाइड का प्रबंध हो जाए तो मैं आप का आभारी रहूंगा,’’ जौन ने निवेदन करते कहा.

‘‘भाइयों से पूछ कर फोन कर दूंगी,’’ विधि ने आश्वासन दिया. बातोंबातों में 8 घंटे का सफर न जाने कैसे बीत गया. एकदूसरे से विदा लेते समय दोनों ने टैलीफोन नंबर का आदानप्रदान किया. दूसरे दिन अचानक जौन सीधे विधि के घर पहुंच गए. 6 फुट लंबी देह, कायदे से पहनी गई विदेशी वेशभूषा, काला ब्लेजर और दर्पण से चमकते जूते पहने अंगरेज को देख कर सभी चकित रह गए. विधि ने भाइयों से उस का परिचय करवाते कहा, ‘‘भैया, ये जौन हैं, जिन्हें भारत में घूमने के लिए गाइड चाहिए.’’

‘‘गाइड? गाइड तो कोई है नहीं ध्यान में.’’

‘‘विधि, तुम क्यों नहीं चल पड़ती?’’ जौन ने सुझाव दिया. प्रश्न बहुत कठिन था. विधि सोच में पड़ गई. इतने में विधि का छोटा भाई सन्नी बोला, ‘‘हांहां, दीदी, हर्ज की क्या बात है.’’

‘‘थैंक्यू सन्नी, वंडरफुल आइडिया. विधि से अधिक बुद्धिमान गाइड कहां मिल सकता है,’’ जौन ने कहा. 2 सप्ताह तक दक्षिण भारत के सभी पर्यटन स्थलों को देखने के बाद दोनों दिल्ली पहुंचे. उस के एक सप्ताह बाद जौन की वापसी थी. जाने से पहले तकरीबन रोज मुलाकात हो जाती. किसी कारणवश जौन की विधि से बात न हो पाती तो वह अधीर हो उठता. उस की बहुमुखी प्रतिभा पर जौन मरमिटा था. वह गुणवान, स्वाभिमानी, साहसी और खरा सोना थी. विधि भी जौन के रंगीले, सजीले, जिंदादिल व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई. उस की उम्र के बारे में सोच कर रह जाती. जौन 60 वर्ष पार कर चुका था. विधि ने अभी 35 वर्ष ही पूरे किए थे. लंदन लौटने से 2 दिन पहले, शाम को टहलतेटहलते भरे बाजार में घुटनों के बल बैठ कर जौन ने अपने मन की बात विधि से कह डाली, ‘‘विधि, जब से तुम से मिला हूं, मेरा चैन खो गया है. न जाने तुम में ऐसा कौन सा आकर्षण है कि मैं इस उम्र में भी बरबस तुम्हारी ओर खिंचा आया हूं.’’ इस के बाद जौन ने विधि की ओर अंगूठी बढ़ाते हुए प्रस्ताव रखा, ‘‘विधि, क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

विधि निशब्द और स्तब्ध सी रह गई. यह तो उस ने कभी नहीं सोचा था. कहते हैं न, जो कभी खयालों में हमें छू कर भी नहीं गुजरता, वो, पल में सामने आ खड़ा होता है. कुछ पल ठहर कर विधि ने एक ही सांस में कह डाला, ‘‘नहींनहीं, यह नहीं हो सकता. हम एकदूसरे के बारे में जानते ही कितना हैं, और तुम जानते भी हो कि तुम क्या कह रहे हो?’’ ‘‘हांहां, भली प्रकार से जानता हूं, क्या कह रहा हूं. तुम बताओ, बात क्या है? मैं तुम्हारे संग जीवन बिताना चाहता हूं.’’ विधि चुप रही.

जौन ने परिस्थिति को भांपते कहा, ‘‘यू टेक योर टाइम, कोई जल्दी नहीं है.’’ 2 दिनों बाद जौन तो चला गया किंतु उस के इस दुर्लभ प्रश्न से विधि दुविधा में थी. मन में उठते तरहतरह के सवालों से जूझती रही, ‘कब तक रहेगी भाईभाभियों की छत्रछाया में? तलाकशुदा की तख्ती के साथ क्या समाज तुझे चैन से जीने देगा? कौन होगा तेरे दुखसुख का साथी? क्या होगा तेरा अस्तित्व? क्या उत्तर देगी जब लोग पूछेंगे इतने बूढ़े से शादी की है? कोई और नहीं मिला क्या?’ इन्हीं उलझनों में समय निकलता गया. समय थोड़े ही ठहर पाया है किसी के लिए. दोनों की कभीकभी फोन पर बात हो जाती थी एक दोस्त की तरह. कालेज में भी खोईखोई रहती. एक दिन उस की सहेली रेणु ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘विधि, जौन के जाने के बाद तू तो गुमसुम ही हो गई. बात क्या है?’’

‘‘जाने से पहले जौन ने मेरे सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था.’’

‘‘पगली…बात तो गंभीर है पर गौर करने वाली है. भारतीय पुरुषों की मनोवृत्ति तो तू जान ही चुकी है. अगर यहां कोई मिला तो उम्रभर उस के एहसानों के नीचे दबी रहेगी. उस के बच्चे भी तुझे स्वीकार नहीं करेंगे.

जौन की आंखों में मैं ने तेरे लिए प्यार देखा है. तुझे चाहता है. उस ने खुद अपना हाथ आगे बढ़ाया है. अपना ले उसे. हटा दे जीवन से यह तलाक की तख्ती. तू कर सकती है. हम सब जानते हैं कि बड़ी हिम्मत से तू ने समाज की छींटाकशी की परवा न करते हुए अपने पंथ से जरा भी विचलित नहीं हुई. समाज में अपना एक स्थान बनाया है. अब नए रिश्ते को जोड़ने से क्यों हिचकिचा रही है. आगे बढ़. खुशियों ने तुझे आमंत्रण दिया है. ठुकरा मत, औरत को भी हक है अपनी जिंदगी बदलने का. बदल दे अपनी जिंदगी की दिशा और दशा,’’ रेणु ने समझाते हुए कहा. ‘‘क्या करूं, अपनी दुविधाओं के क्रौसरोड पर खड़ी हूं. वैसे भी, मैं ने तो ‘न’ कर दी है,’’ विधि ने कहा. ‘‘न कर दी है, तो हां भी की जा सकती है. तेरा भी कुछ समझ में नहीं आता. एक तरफ कहती है, जौन बड़ा अलग सा है. मेरी बेमानी जरूरतों का भी खयाल रखता है. बड़ी ललक से बात करता है. छोटीछोटी शरारतों से दिल को उमंगों से भर देता है. मुझे चहकती देख कर खुशी से बेहाल हो जाता है. मेरे रंगों को पहचानने लगा है. तो फिर झिझक क्यों रही है?’’

‘‘उम्र देखी है? 60 वर्ष पार कर चुका है. सोच कर डर लगता है, क्या वह वैवाहिक सुख दे पाएगा मुझे?’’ ‘‘आजमा कर देख लेती? मजाक कर रही हूं. यह समय पर छोड़ दे. यह सोच कि तेरी आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा. तेरा अपना घर होगा जहां तू राज करेगी. ठंडे दिमाग से सोचना…’’ ‘‘डर लगता है कहीं विदेशी चेहरों की भीड़ में खो तो नहीं जाऊंगी. धर्म, सोच, संस्कृति, सभ्यता, कुछ भी तो नहीं है एकजैसा हमारा. फिर इतनी दूर…’’ ‘‘प्रेम उम्र, धर्म, भाषा, रंग और जाति सभी दीवारों को गिराने की शक्ति रखता है. मेरी प्यारी सखी, प्यार में दूरियां भी नजदीकियां हो जाती हैं. अभी ईमेल कर उसे, वरना मैं कर देती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, मैं खुद ही कर लूंगी,’’ विधि ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘डियर जौन,di

मैं ने आप के प्रस्ताव पर विचार किया. कोई भी नया रिश्ता जोड़ने से पहले एकदूसरे के बीते जीवन के बारे में जानना बहुत जरूरी है. ऐसी मेरी सोच है. 10 वर्ष पहले मेरा विवाह एक बहुत रईस घर में संपन्न हुआ. मेरी ससुराल का मेरे रहनसहन, सोचविचार और संस्कारों से कोई मेल नहीं था. वहां के तौरतरीकों के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती थी. वहां मुझे लगा कि मैं चूहेदानी में फंस गई हूं. मेरे पति शराब और ऐयाशी में डूबे रहते थे. शराब पी कर वे बेलगाम घुड़साल के घोड़े की तरह हो जाते थे, जिस का मकसद सवार को चोट पहुंचाना था. ऐसा हर रोज का सिलसिला था. हर रात अलगअलग औरतों से रंगरेलियां मनाते थे.

धीरेधीरे बात यहां तक पहुंच गई कि वे ग्रुपसैक्स की क्रियाओं में भाग लेने लगे. जबरदस्ती मुझ से भी औरों के साथ हमबिस्तर होने की अपेक्षा करने लगे. उन के अनुकूल उन की बात मानते जाओ तो ठीक था वरना कहते, ‘हम मर्द अच्छी तरह जानते हैं कि कैसे औरतों को अपने हिसाब से रखा जाए.’ ‘‘एक साधारण सी लड़की के लिए कितना कठिन था यह. एक दिन जब मैं ने किसी और के साथ हमबिस्तर होने से इनकार किया तो मुझे घसीट कर सामने बिठा कर सबकुछ देखने को मजबूर कर दिया. उस दिन मैं ने बरदाश्त की सभी सीमाएं लांघ कर उन के मुंह पर एक तमाचा जड़ दिया और सामान उठा कर भाई के घर चली आई. पैसे और मनगढ़ंत कहानियों के बल पर मेरा बेटा उन्होंने अपने पास रख लिया. उस दिन के बाद आज तक मैं अपने बेटे को देख नहीं पाई. अब सबकुछ जानते हुए भी आप तैयार हैं तो आप मेरे बड़े भाईसाहब अजय से बात करें.’’

‘‘आप की विधि’’

विधि का ईमेल पढ़ कर जौन नाचने लगा. तुरंत ही उस ने उत्तर दिया,

‘‘मेरी प्यारी विधि,

बस, इतनी सी बात से परेशान हो. जीवन में हादसे सभी के साथ होते हैं. मैं ने तो तुम से पूछा तक नहीं. तुम ने बता दिया तो मेरे मन में तुम्हारे लिए इज्जत और बढ़ गई. मेरी जान, मैं ने तुम्हें चाहा है. मैं स्त्री और पुरुष की समानता में विश्वास रखता हूं. तुम मेरी जीवनसाथी ही नहीं, पगसाथी भी होगी. जिन खुशियों से तुम वंचित रही हो, मैं उन की भरपाई की पूरी कोशिश करूंगा. मैं अगली फ्लाइट से दिल्ली पहुंच रहा हूं.

‘‘प्यार सहित

‘‘तुम्हारा जौन.’’

वह दिल्ली आ पहुंचा. होटल में विधि के बड़े भाईसाहब को बुला कर ईमेल दिखाते हुए उन से विधि का हाथ मांगा. भाईसाहब ने कहा, ‘‘शाम को तुम घर आ जाना.’’ पूरा परिवार बैठक में उस की प्रतीक्षा कर रहा था. जौन का प्रस्ताव सामने रखा गया. सभी हैरान थे. सन्नी तैश में आ कर बोला, ‘‘इतने बूढ़े से…? दिमाग खराब हो गया है क्या. जाहिर है विधि की उम्र के उस के बच्चे होंगे. अंगरेजों का कोई भरोसा नहीं.’’ बाकी बहनभाई भी सन्नी की बात से सहमत थे.

‘‘तुम ने क्या सोचा?’’ बड़े भाई अजय ने विधि से पूछा.

‘‘मुझे कोई एतराज नहीं,’’ उस ने कहा.

‘‘दीदी, होश में तो हो, क्या सचमुच सठियाए से शादी…?’’ विधि के हां करते ही अजय ने जौन को बुला कर कहा, ‘‘शादी तय करने से पहले हमारी कुछ शर्तें हैं. शादी हिंदू रीतिरिवाजों से होगी. उस के लिए तुम्हें हिंदू बनना होगा. हिंदू नाम रखना होगा. विवाह के बाद विधि को लंदन ले जाना होगा.’’ जौन को सब शर्तें मंजूर थीं. वह उत्तेजना से ‘आई विल, आई विल’ कहता नाचने लगा. पुरुष चहेती स्त्री को पाने का हर संभव प्रयास करता है. उस में साम, दाम, दंड, भेद सभी भाव जायज हैं. अच्छा सा मुहूर्त देख कर उन का विवाह संपन्न हआ. जौन लंदन से इमीग्रेशन के लिए जरूरी कागजात ले कर आया था. विधि का पासपोर्ट तैयार ही हो रहा था कि अचानक जौन के बेटे मार्क का ऐक्सिडैंट होने के कारण, जौन को विधि के बिना ही लंदन जाना पड़ा. जौन तो चला गया. विधि का मन बेईमान होने लगा. उसे घबराहट होने लगी. मन में अनेक प्रश्न उठने लगे. किसी से शिकायत भी तो नहीं कर सकती थी. 6 महीने से ऊपर हो गए. उधर जौन बहुत बेचैन था, चिंतित था. वह बारबार रेणु को ईमेल कर के पूछता. एक दिन हार कर रेणु विधि के घर आ ही पहुंची और उसे बहुत डांटा, ‘‘विधि, क्या मजाक बना रखा है, क्यों उस बेचारे को परेशान कर रही हो? तुम्हें पता भी है कितनी मेल डाल चुका है. कहतेकहते थक गया है कि आप विधि को समझाएं और कहें ‘डर की कोई बात नहीं है. मैं उसे पलकों पर बिठा कर रखूंगा.’ ‘‘अब गुमसुम क्यों बैठी हो. कुछ तो बोलो. यह तुम्हारा ही फैसला था. अब तुम्हीं बताओ, क्या जवाब दूं उसे?’’

‘‘मैं बहुत उलझन में हूं. परेशान हूं. खानापीना, उठनाबैठना बिलकुल अलग होगा. फिर उस के बच्चे…? क्या वे स्वीकार करेंगे मुझे…?’’

‘‘विधि, तुम बेकार में भावनाओं के द्वंद्व में डूबतीउतरती रहती हो. यह तो तुम्हें वहीं जा कर पता लगेगा. हम सब जानते हैं, तुम हर स्थिति को आसानी से हैंडल कर सकती हो. ऐसा भी होता है  कभीकभी सबकुछ सही होते हुए भी, लगता है कुछ गलत है. तू बिना कोशिश किए पीछे नहीं मुड़ सकती. चिंता मत कर. अभी जौन को मेल करती हूं कि तुझे आ कर ले जाए.’’ जौन को मेल करते ही एक हफ्ते में वह दिल्ली आ पहुंचा. 2 हफ्ते में विधि को लंदन भी ले गया. लंदन में घर पहुंचते ही जौन ने अंगरेजी रिवाजों के अनुसार विधि को गोद में उठा कर घर की दहलीज पार की. अंदर पहुंचते ही वह हतप्रभ रह गई. अकेले होते हुए भी जौन ने घर बहुत तरतीब और सलीके से रखा था. सुरुचिपूर्ण सजाया था. घर में सभी सुविधाएं थीं, जैसे कपड़े धोने की मशीन, ड्रायर, स्टोव, डिशवाशर और औवन…काटेज के पीछे एक छोटा सा गार्डन था जो जौन का प्राइड ऐंड जौय था. पहली ही रात को जौन ने विधि को एक अनमोल उपहार देते हुए कहा, ‘‘विधि, मैं तुम्हें क्रूर संसार की कोलाहल से दूर, दुनिया के कटाक्षों से हटा कर अपने हृदय में रखने के लिए लाया हूं. तुम से मिलने के बाद तुम्हारी मुसकान और चिरपरिचित अदा ही तो मुझे चुंबक की तरह बारबार खींचती रही है और मरते दम तक खींचती रहेगी. मैं तुम्हें इतना प्यार दूंगा कि तुम अपने अतीत को भूल जाओगी. मैं तुम्हारा तुम्हारे घर में स्वागत करता हूं.’’ इतना कह कर जौन ने उसे सीने से लगा लिया और यह सब सुन कर विधि की आंखों में खुशी के आंसू छलकने लगे.

ऐसे प्रेम का एहसास उसे पहली बार हुआ था. धीरेधीरे वह जान पाई कि जौन केवल गोराचिट्टा, ऊंचे कद का ही नहीं, वह रोमांटिक, सलोना, जिंदादिल, शरारती और मस्त इंसान है जो बातबात में किसी को भी अपना बनाने का हुनर जानता है. उस का हृदय जीवन की आकांक्षाओं से धड़क उठा. जौन ने उसे इतना प्यार दिया कि जल्दी ही उस की सब शंकाएं दूर हो गईं. विधि उसे मन से चाहने लगी थी. दोनों बेहद खुश थे. वीकेंड में जौन के तीनों बच्चों ने खुली बांहों से विधि का स्वागत किया और अपने पिता के विवाह पर एक भव्य पार्टी दी. विधि अपने फैसले पर प्रसन्न थी. अब उस का अपना घर था. अलग परिवार था. असीम प्यार देने वाला पति. जौन ने घर की बागडोर उसी के हाथ में थमा दी थी. उसे प्यार करना सिखाया, उस का आत्मविश्वास जगाया यहां तक कि उसे पोस्टग्रेजुएशन भी करवा दिया. क्योंकि भीतर से वह जानता था कि उस के जाने के बाद विधि अपने समय का सदुपयोग कर सकेगी.

गरमी का मौसम था. चारों ओर सतरंगी फूल लहलहा रहे थे. दोपहर के खाने के बाद दोनों कुरसियां डाल कर गार्डन में धूप सेंकने लगे. बाहर बच्चे खेल रहे थे. बच्चों को देखते विधि की ममता उमड़ने लगी. जौन की पैनी नजरों से यह बात छिपी नहीं. जौन ने पूछ ही लिया, ‘‘विधि, हमारा बच्चा चाहिए…? हो सकता है. मैं ने पता कर लिया है. पूरे 9 महीने डाक्टर की निगरानी में रह कर. मैं तैयार हूं.’’

‘‘नहींनहीं, हमारे हैं तो सही, वो 3, और उन के बच्चे. मैं ने तो जीवन के सभी अनुभवों को भोगा है. मां बन कर भी, अब नानीदादी का सुख भोग रही हूं,’’ विधि ने हंसतेहंसते कहा. ‘‘मैं तो समझा था कि तुम्हें मेरी निशानी चाहिए?’’ जौन ने विधि को छेड़ते हुए कहा, ‘‘ठीक है, अगर बच्चा नहीं तो एक सुझाव देता हूं. बच्चों से कहेंगे मेरे नाम का एक (लाल गुलाब) इंग्लिश रोज और तुम्हारे नाम का (पीला गुलाब) इंडियन समर हमारे गार्डन में साथसाथ लगा दें. फिर हम दोनों सदा एकदूसरे को प्यार से देखते रहेंगे.’’ इतना कह कर जौन ने प्यार से उस के गाल पर चुंबन दे दिया.

विधि भी होंठों पर मुसकान, आंखों में मोती जैसे खुशी के आंसू, और प्यार की पूरी कशिश लिए जौन के आगोश में आ गई. जौन विधि की छोटी से छोटी जरूरतों का ध्यान रखता. धीरेधीरे विधि के पूरे जीवन को उस ने अपने प्यार के आंचल से ढक लिया. सामाजिक बैठकों में उसे अदब और शिष्टाचार से संबोधित करता. उसे जीजी करते उस की जबान न थकती. कुछ ही वर्षों में जौन ने उसे आधी दुनिया की सैर करा दी थी. अब विधि के जीवन में सुख ही सुख थे. हंसीखुशी 10 साल बीत गए. इधर, कई महीनों से जौन सुस्त था. विधि को भीतर ही भीतर चिंता होने लगी, सोचने लगी, ‘कहां गई इस की चंचलता, चपलता, यह कभी टिक कर न बैठने वाला, यहांवहां चुपचाप क्यों बैठा रहता है? डाक्टर के पास जाने को कहो तो टालते हुए कहता है, ‘‘मेरा शरीर है, मैं जानता हूं क्या करना है.’’ भीतर से वह खुद भी चिंतित था. एक दिन बिना बताए ही वह डाक्टर के पास गया. कई टैस्ट हुए. डाक्टर ने जो बताया, उसे उस का मन मानने को तैयार नहीं था. वह जीना चाहता था. उस ने डाक्टर से कहा, ‘‘वह नहीं चाहता कि उस की यह बीमारी उस के और उस की पत्नी की खुशी में आड़े आए. समय कम है, मैं अब अपनी पत्नी के लिए वह सबकुछ करना चाहता हूं, जो अभी तक नहीं कर पाया. मैं नहीं चाहता मेरे परिवार को मेरी बीमारी का पता चले. समय आने पर मैं खुद ही उन्हें बता दूंगा.’’

अचानक एक दिन जौन वर्ल्ड क्रूज के टिकट विधि के हाथ में थमाते बोला, ‘‘यह लो तुम्हारा शादी की 10वीं वर्षगांठ का तोहफा.’’ उस की जीहुजूरी ही खत्म नहीं होती थी. विधि का जीवन उस ने उत्सव सा बना दिया था. वर्ल्ड क्रूज से लौटने के बाद दोनों ने शादी की 10वीं वर्षगांठ बड़ी धूमधाम से मनाई. घर की रजिस्ट्री के कागज और एफडीज उस ने विधि के नाम करवा कर उसे तोहफे में दे दिए. उस रात वह बहुत बेचैन था. उसे बारबार उलटी हो रही थी और चक्कर आते रहे. जल्दी से उसे अस्पताल ले जाया गया. वहां उसे भरती कर लिया गया. जौन की दशा दिनबदिन बिगड़ती गई. डाक्टर ने बताया, ‘‘उस का कैंसर फैल चुका है. कुछ ही समय की बात है.’’

‘‘कैंसर…?’’ कैंसर शब्द सुन कर सभी निशब्द थे. ‘‘तुम्हारे डैड, जाने से पहले, तुम्हारी मां को उम्रभर की खुशियां देना चाहते थे. तुम्हें बताने के लिए मना किया था,’’ डाक्टर ने बताया. बच्चे तो घर चले गए. विधि नाराज सी बैठी रही. जौन ने उस का हाथ पकड़ कर बड़े प्यार से समझाया, ‘‘जो समय मेरे पास रह गया था, मैं उसे बरबाद नहीं करना चाहता था, भोगना चाहता था तुम्हारे साथ. तुम्हारे आने से पहले मैं जीवन बिता रहा था. तुम ने जीना सिखा दिया है. अब मैं जिंदगी से रिश्ता चैन से तोड़ सकता हूं. जाना तो एक दिन सभी को है.’’ एक वर्ष तक इलाज चलता रहा. कैंसर इतना फैल चुका था कि अब कोई कुछ नहीं कर सकता था. अपनी शादी की 11वीं वर्षगांठ से पहले ही जौन चल बसा. अंतिम संस्कार के बाद उस के बेटे ने जौन की इच्छानुसार उस की राख को गार्डन में बिखरा दिया. एक इंग्लिश रोज और एक इंडियन समर (पीला गुलाब) साथसाथ लगा दिए. उन्हें देखते ही विधि को जौन की बात याद आई, ‘कम से कम तुम्हें हर वक्त देखता तो रहूंगा?’ इस सदमे को सहना कठिन था. विधि को लगा मानो किसी ने उस के शरीर के 2 टुकड़े कर दिए हों. एक बार वह फिर अकेली हो गई. एक दिन उस के अंतकरण से आवाज आई, ‘उठ विधि, संभाल खुद को, तेरे पास जौन का प्यार है, स्मृतियां हैं. वह तुझे थोड़े समय में जहानभर की खुशियां दे गया है.’ धीरेधीरे वह संभलने लगी. जौन के बच्चों के सहयोग और प्यार ने उसे फिर खड़ा कर दिया. कालेज में उसे नौकरी भी मिल गई. बाकी समय में वह गार्डन की देखभाल करती. इंग्लिश रोज और इंडियन समर की कटाईछंटाई करने की उस की हिम्मत न पड़ती. उस के लिए माली को बुला लेती. गार्डन जौन की निशानी था. एक दिन भी ऐसा न जाता, विधि अपने गार्डन को न निहारती, पौधों को न सहलाती. अकसर उन से बातें करती. बर्फ पड़े, कोहरा पड़े या फिर कड़कती सर्दी, वह अपने फ्रंट डोर से जौन के लगाए पौधों को निहारती रहती. उदासी में इंग्लिश रोज से शिकवेशिकायतें भी करती, ‘खुद तो अपने लगाए परिवार में लहलहा रहे हो और मैं? नहीं, नहीं, मैं शिकायत नहीं कर रही. मुझे याद है आप ने ही कहा था, ‘यह मेरा परिवार है डार्लिंग. मुझे इन से अलग मत करना.’

उस दिन सोचतेसोचते अंधेरा सा होने लगा. उस ने घड़ी देखी, अभी शाम के 4 ही बजे थे. मरियल सी धूप भी चोरीचोरी दीवारों से खिसकती जा रही थी. वह जानती थी यह गरमी के जाने और पतझड़ के आने का संदेशा था. वह आंखें मूंद कर घास पर बिछे रंगबिरंगों पत्तों की कुरमुराहट का आनंद ले रही थी. अचानक तेज हवा के झरोखे से एक सूखा पत्ता उलटतापलटता उस के आंचल में आ अटका. पलभर को उसे लगा, कोई उसे छू कर कह रहा हो… ‘डार्लिंग, उदास क्यों होती हो, मैं यही हूं तुम्हारे चारों ओर, देखो वहीं हूं, जहां फूल खिलते हैं…क्यों खिलते हैं? यह मैं नहीं जानता. बस, इतना जरूर जानता हूं, फूल खिलता है, झड़ जाता है. क्यों? यह कोई नहीं जानता. बस, इतना जानता हूं इंग्लिश रोज जिस के लिए खिलता है उसी के लिए मर जाता है. खिले फूल की सार्थकता और मरे फूल की व्यथा एक को ही अर्पित है.’

उस दिन वह झड़ते फूलों को तब तक निहारती रही जब तक अंधेरे के कारण उसे दिखाई देना न बंद हो गया. हवा के झोंके से उसे लगा, मानो जौन पल्लू पकड़ कर कह रहा हो, ‘आई लव यू माई इंडियन समर.’ ‘‘मी टू, माई इंग्लिश रोज. तुम और तुम्हारा शरारतीपन अभी तक गया नहीं.’’ उस ने मुसकरा कर कहा.

दिल तो बच्चा है जी: वैशाली को मिली ऊषा की सीख

वैशाली को जबतब बेटी और बहू से उम्र के लिए टोंट पड़ते थे. इस कारण वह अपनी पसंद जाहिर ही नहीं कर पाई पर जब ऊषा ने उसे सीख दी तो वह उम्र के सारे बंधनों से आजाद हो गई. क्या थी वह सीख?

दुकानदार एक के बाद एक साडि़यां खोलखोल कर दिखा रहा था पर वैशाली की नजर लाल साड़ी पर अटक गई थी. लाल रंग की जमीन पर सुनहरी जरी से बेलबूटे का काम हो रखा था.

कपड़ा इतना हलका जैसे कुछ पहना ही न हो. तभी छोटी बेटी कायरा बोली, ‘‘अरे भैया, यह क्या डार्क कलर दिखा रहे हो, मम्मी की शादी की गोल्डन जुबली है.

कुछ सोबर और एलिगेंट दिखाएं.’’ बहू माही बोली, ‘‘मम्मी को तो ग्रे, क्रीम शेड बेहद पसंद हैं. ऐसा ही कुछ दिखाएं.’’ वैशाली बोलना चाहती थी कि वह अपने सारे शौक इस वर्षगांठ पर पूरे करना चाहती है.

तब वैशाली और पराग की 50 साल पहले शादी हुई थी तब तो उन के पास न इतने पैसे थे और न ही इतनी सुविधा थी. वैशाली ने शादी में चटक रानी रंग का आर्टिफिशियल सिल्क का लहंगा पहना था. उस लहंगे का रंग और काम उसे बिलकुल नहीं सुहाया था. एक लोकल से पार्लर ने उस का मेकअप किया था जिस कारण उस की ठीकठाक शक्ल भी हास्यपद लग रही थी.

आज जब वैशाली किसी की शादी देखती तो उस के मन के सोए अरमान जाग जाते थे. तब वैशाली 70 वर्ष की नहीं बस 20 वर्ष की तरह ही सोचने लगती थी. दोनों बच्चों की शादी में वैशाली की इतनी भागमभाग रही कि वह ठीक से तैयार भी नहीं हो पाई थी.

10 दिन बाद वैशाली और पराग की गोल्डन जुबली है. दोनों बच्चे अब अच्छे से सैटल हैं और यह बच्चों का ही आइडिया था कि गोल्डन जुबली को धूमधाम से मनाया जाए. यह सुनते ही वैशाली के अंदर दबी इच्छाओं को मानो पंख लग गए हों.

हर बार उस की इच्छाओं के पंख उम्र के तले दबा दिए जाते थे. वैशाली के सामने दुकानदार ने क्रीम, वाइट, ग्रे, पीच रंग की साडि़यों का अंबार लगा दिया था पर वैशाली को तो एक भी साड़ी जंच नहीं रही थी. उस का पूरा मूड चौपट हो गया था.

न जाने क्यों माही और कायरा बरबस उसे उस की उम्र का एहसास दिलाने पर तुली हुई हैं. हां वे हैं 70 वर्ष की पर इस दिल का क्या करें जो फिर से एक 20 वर्ष की दुलहन की तरह सजना चाहता है.

दुकान से बाहर निकलते हुए वैशाली के कानों में बेटी कायरा के शब्द पड़ गए थे, ‘‘मम्मी को तो न जाने क्या चाहिए, अरे इस उम्र में कौन इतना चूजी होता है.’’ मेरी सास भी इस उम्र में बालों की रिबौंडिंग, फैशन कलर और न जाने क्याक्या करवाती रहती हैं. तभी माही की आवाज आई, ‘‘शुड ऐज ग्रेसफुल्ली.’’ दोनों को पता ही नहीं चला कि वैशाली को उन की बातें साफसाफ सुनाई दे रही थीं.

वैशाली का मन खट्टा हो गया था. मतलब अब उन के बच्चों को उन का हेयर कलर करना भी खलता है. बच्चे क्या चाहते हैं कि वे 70 वर्ष की हो गई हैं तो पहननाओढ़ना छोड़ दें. माही और कायरा भी 40 वर्ष से ऊपर की ही हैं पर उन्होंने तो कभी उन के झबलेनुमा कपड़े देख कर व्यंग्य नहीं कसा. वहां से कार पार्लर की तरफ चल पड़ी.

माही बोली, ‘‘मम्मी, आप को क्याक्या सर्विस लेनी हैं, आप बता दो.’’ कायरा बोली, ‘‘भाभी, मम्मी क्या इस उम्र में प्रीब्राइडल पैकेज लेंगी?’’ ‘‘क्यों मम्मी?’’ ‘‘एक फेशियल ले लेंगी और आयब्रो करवा लेंगी.’’ ‘‘मैं खुद ही देख लूंगी, मम्मी को क्या पता?’’ दोनों ननदभाभी ने अपने लिए अच्छाखासा पैकेज लिया मानो एनिवर्सरी उन की ही हो और वैशाली के लिए एक साधारण सा पैक बुक कर दिया था.

जब पार्लर वाली लड़की ने कहा, ‘‘अरे मैम की एनिवर्सरी है, उन के लिए स्पैशल पैक लीजिए. ‘‘अपनी गोल्डन जुबली पर उन्हें एकदम दुलहन की तरह ग्लो करना चाहिए.’’ माही बोली, ‘‘अरे मम्मी को ये सब पसंद नहीं है और इन सब चौचलों से क्या उम्र छिप सकती है?’’

वैशाली मन ही मन सोच रही थी क्या यह बात उन दोनों पर लागू नहीं होती है. जब शाम को वे लोग घर पहुंचे तो पराग बाहर लौन में पौधों को पानी दे रहा था. उन के हाथ में पैकेट्स देख कर बोला, ‘‘लगता है पूरी मार्केट उठा कर ले आए हो.’’

कायरा छूटते ही बोली, ‘‘बस मम्मी के कपड़ों के अलावा. ‘‘न जाने इस उम्र में भी उन्हें क्या चाहिए?’’ रात को जब पराग कमरे में आया तो वैशाली से पूछा, ‘‘तुम्हारे चेहरे पर 12 क्यों बज रहे हैं?’’ ‘‘औरतें तो बहू और बेटी के आने पर खुश होती हैं और तुम बु झ गई हो.’’

वैशाली के सब्र का बांध टूट गया, रोंआसी सी बोली, ‘‘तुम ही बता दो, मु झे इस उम्र में कैसे व्यवहार करना चाहिए. तुम्हारी बेटी और बहू ने तो कोई कमी नहीं छोड़ी थी.’’ पराग को वैशाली के गुस्से का कारण सम झ नहीं आ रहा था. चिढ़ते हुए बोले, ‘‘अरे अब किस बात पर नाराज हो, जितने पैसे तुम ने कहा उतने दिए और चाहिए तो और ले लो पर ये ताने मत दो.’’

‘‘कल कायरा की सास भी आ जाएगी. उन्हें ऐसा नहीं लगना चाहिए कि तुम उन के आने से खुश नहीं हो.’’ वैशाली का मूड और अधिक खराब हो गया था. कायरा की सास उसे फूटी आंख नहीं भाती थी. कायरा की सास ऊषा बेहद दबंग महिला थी.

पति के गुजरने के बाद भी वह खूब सजसंवर कर रहती थी. कायरा के साथसाथ वैशाली को भी ऊषा का इस तरह से सजना, ऊंची आवाज में होहो कर के हंसना, हमेशा पराग के साथ गप्पें लड़ाना बिलकुल पसंद नहीं था. पता नहीं क्यों वे ऐसा बच्चों जैसा व्यवहार करती हैं. अगर बेटी की सास न होती तो वैशाली ऊषा को घर में घुसने भी न देती पर क्या करे, रिश्ते से मजबूर हैं.

अगले दिन सुबह की फ्लाइट से ऊषा आ गई थी. नीली पैंट और लाल रंग की कुरती, लाल रंग की ही लिपस्टिक, केराटिन कराए हुए बाल, सलीके से किए हुए मेकअप के कारण ऊषा अपनी उम्र से 10 साल छोटी लग रही थी. वैशाली उसे देख कर मन ही मन जलभुन गई थी.

कायरा यह उम्र के प्रवचन अपनी सास को क्यों नहीं सुनाती? कौन कहेगा कि यह विधवा हैं. पता नहीं उसे अपने पति के मरने का दुख है भी या नहीं. ऊषा को देखते ही माही बोली, ‘‘आंटी, यू आर लुकिंग सो यंग एंड फ्रैश.’’ ऊषा बोली, ‘‘भई हमारे समधीसमधन की गोल्डन एनिवर्सरी है तो कुछ तो हमारा भी हक बनता है.’’ शाम को ऊषा ने अपने लाए हुए उपहार सब को दिखाए.

फिर एक पैकेट में से दो साडि़यां निकालते हुए बोली, ‘‘वैशाली आप कोई भी एक साड़ी पसंद कर लो, दूसरी साड़ी माही ले लेगी क्योंकि एनीवर्सरी आप की है तो पहला हक भी आप का है.’’ वैशाली ने अनमने ढंग से पैकेट खोला तो एक हरे रंग की और एक लाल रंग की साड़ी थी.

इस से पहले वैशाली कुछ चुनती, कायरा बोली, ‘‘भाभी को यह लाल रंग की साड़ी दे देते हैं. मम्मी कहां इस उम्र में लाल रंग पहनेंगी?’’ ऊषा डपटते हुए बोली, ‘‘क्यों मम्मी इंसान नहीं है या उम्र के साथ लोग जीना छोड़ देते हैं? वैसे यह लाल रंग वैशाली के गोरे रंग पर खूब फबेगा.

बाकी वैशाली तुम्हारी मरजी.’’ वैशाली िझ झकते हुए बोली, ‘‘इस उम्र में कोई यह तो नहीं कहेगा, बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम.’’ ऊषा बोली, ‘‘अरे बोलने दो, अब लोग मेरे बारे में न जाने क्याक्या बोलते हैं पर क्या मैं जीना छोड़ दूं. चलो, अब तुम यह बताओ, तुम ने उस रात के लिए क्या ड्रैस ली है?’’

वैशाली बोली, ‘‘अभी कुछ नहीं लिया है.’’ ऊषा हंसते हुए बोली, ‘‘और बहू और बेटी ने सब तैयारी कर ली है. कल सुबह तुम और मैं चलेंगे, माही और कायरा घर देखेंगी.’’ माही बोली, ‘‘पर मम्मी के बिना हम घर कैसे संभालेंगे.’’ ऊषा बोली, ‘‘सम झ लो अब वह सास नहीं, होने वाली दुलहन है. उसे कुछ दिनों के लिए घर की जिम्मेदारियों से मुक्त कर दो.

‘‘वैसे, अब तुम दोनों के बच्चे भी जवान हो गए हैं, कब तक तुम दोनों बच्ची बनी रहोगी?’’ माही और कायरा ऊषा के इस तंज पर चिढ़ गई थीं पर क्या कर सकती थीं. वैशाली को न जाने क्यों इस बार ऊषा बड़ी अपनी सी लगी थी.

अगले दिन ऊषा और वैशाली ने खूब सारी शौपिंग की. आज वैशाली को कोई उस की उम्र की याद दिलाने वाला नहीं था. वैशाली ने वही लाल साड़ी खरीदी और फिर ऊषा के कहने पर मैचिंग ज्वैलरी भी ली. पार्लर जा कर ऊषा ने अपना और वैशाली का ब्यूटी पैकेज लिया.

फिर दोनों ने बौडी स्पा लिया, बाहर लंच किया और फिर ऊषा के कहने पर वैशाली ने अपने बाल भी कटवा लिए थे. जब शाम को ऊषा और वैशाली पहुंचीं तो वैशाली का बदला रूप देख कर माही और कायरा हक्कीबक्की रह गई थीं पर सामने से कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ी थी पर उन के चेहरे पर दबीदबी हंसी वैशाली से छिपी नहीं रही थी.

वैशाली ऊषा से बोली, ‘‘बच्चे मन ही मन मु झ पर हंस रहे हैं.’’ ऊषा बोली, ‘‘पहले मांबाप के हिसाब से जिंदगी बिताई, फिर पति और अब बच्चों के अनुसार जिंदगी बिताई.’’ वैशाली बोली, ‘‘लेकिन उम्र का भी तो सोचना पड़ता है.

अब बच्चे भी बच्चों वाले हो गए हैं.’’ ऊषा हंसते हुए बोली, ‘‘पर दिल तो बच्चा है जी. क्या आज आप को अच्छा नहीं लगा.’’ वैशाली बोली, ‘‘बहुत अच्छा लगा.’’ रात में पराग बोला, ‘‘वैशाली, तुम आज सच में बहुत अच्छी लग रही हो. कटे हुए बाल बहुत सूट कर रहे हैं तुम पर.’’

अगले दिन फिर से वैशाली और ऊषा शौपिंग के लिए निकल पड़ीं. वैशाली ने कभी भी ऊषा को करीब से नहीं देखा था. अब जितना वह ऊषा को सम झती उतना ही उस के लिए सम्मान बढ़ रहा था. आखिकार वैशाली ने बोल ही दिया, ‘‘ऊषाजी, मैं आप को बहुत गलत सम झती थी.’’ ऊषा बोली, ‘‘जानती हूं सब यह ही सोचते हैं कि एक विधवा हो कर क्यों इतना सजतीसंवरती है. क्यों इस उम्र में भी एक्सपैरिमैंट करती रहती है.

‘‘पर वैशालीजी, क्या दिल कभी उम्र की सुनता है? अगर पति नहीं हैं, मेरे बच्चे बड़े हैं तो क्या मैं जीना छोड़ दूं? मेरा दिल तो हमेशा से ही बच्चा था और रहेगा भी.’’ वैशाली को भी ऊषा के उत्साह की छूत लग गई थी. अब वैशाली ने भी कायरा और माही की दबी मुसकान पर ध्यान देना छोड़ दिया था. आज वैशाली की शादी की गोल्डन एनिवर्सरी थी.

लाल साड़ी, कटे बालों में वह एक अलग ही अवतार में नजर आ रही थी. वैशाली को इतने कंप्लीमैंट्स मिले जितने उसे अपनी शादी पर भी नहीं मिले थे. डिनर के बाद कपल डांस का प्रोग्राम था.

बच्चों के डांस करने के बाद जब वैशाली और पराग डांसफ्लोर पर आए तो उन्होंने भी पुराने गानों पर जीभर कर डांस किया. ऊषा ने भी महफिल को जमाने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी. अगले दिन सुबह लगभग सभी मेहमान विदा हो गए थे.

अब ऊषाजी ने अपना सामान पैक कर लिया और जब वे विदा होने के लिए चल रही थीं तो वैशाली ने ऊषा को गले लगा कर कहा, ‘‘आप को हमेशा मैं ने गलत ही सम झा था पर इस बार आप से मैं ने बहुतकुछ सीखा है.

अगर हम अपनी उम्र को खुद पर हावी होने देंगे तो सच में समय से पहले ही बूढ़े हो जाएंगे.’’ ऊषा ने हंसते हुए कहा, ‘‘यह बात हमेशा याद रखना कि दिल तो बच्चा है जी. भूल कर भी अपने अंदर के बच्चे को मत मारना, यह ही तो हमारे जिंदा रहने की वजह है.’’

रमेश चंद्र छबीला : अकाश और सीमा के प्यार कंप्यूटर का रोल

…उसी चौराहे पर हो टल से बाहर निकल कर आकाश ने एक टैक्सी की और ड्राइवर से बांद्रा चलने को कहा. थोड़ी ही देर में वह टैक्सी मुंबई की सड़कों पर दौड़ने लगी.

आकाश सीट पर आराम से बैठ गया. उस की आंखों के सामने बारबार फिल्म मशहूर हीरोइन सीमा का हंसतामुसकराता चेहरा आ रहा था. पिछले कुछ महीनों में उस ने सीमा के मोबाइल फोन पर अनेक मैसेज भेजे थे, पर जब किसी का भी जवाब नहीं मिला तो उस ने रजिस्टर्ड डाक से चिट्ठी भेजी. पर लगता है कि सीमा ने जवाब न देने की कसम खा ली है. कहीं ऐसा तो नहीं कि सीमा ने उसे भुला दिया हो या जानबू?ा कर भुलाना चाहती हो?

लेकिन आकाश तो सीमा को भुला नहीं पा रहा है. आज 2 साल बाद सीमा से मिलने वह मुंबई आया है.

आकाश कुछ भूलीबिसरी यादों के जाल में उलझता चला गया. तकरीबन 7 साल पहले जब वह बीए में पढ़ रहा था तब सीमा भी उस की क्लास में ही पढ़ती थी. वह बहुत खूबसूरत थी. लड़के उस से बात करना चाहते थे, पर वह किसी से सीधे मुंह बात नहीं करती थी.

उन दिनों कालेज में एक नाटक खेला गया था जिस में आकाश हीरो था और हीरोइन सीमा थी. नाटक खूब पसंद गया था. इस के बाद उन दोनों की दोस्ती बढ़ती चली गई थी.

बीए करने के बाद आकाश दिल्ली आ गया था और अपना कैरियर बनाने के लिए उस ने आगे की पढ़ाई शुरू कर दी थी. 3 साल का कोर्स करने के बाद उस ने नौकरी की तलाश शुरू कर दी थी.

आकाश को गुड़गांव की एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी मिल गई थी. उस ने एक फ्लैट भी किराए पर ले लिया था.

कुछ महीने बाद एक दिन आकाश ने अपने औफिस में सीमा को देखा तो चौंक उठा था. सीमा भी उसे देख कर बहुत खुश हुई थी.

सीमा ने बताया था कि वह भी इसी कंपनी में नौकरी करती है. कंपनी ने उस का ट्रांसफर लखनऊ से यहां कर दिया है.

आकाश ने सीमा के रहने की समस्या का हल निकालते हुए बताया था कि उस के पास

2 कमरों का फ्लैट है और वह अकेला रहता है. जब तक कहीं कमरे का इंतजाम न हो जाए, तब तक सीमा उस के साथ रह सकती है. इस के बाद वे दोनों एक ही फ्लैट में रहने लगे थे.

एक दिन सीमा को डेंगू बुखार हो गया तो आकाश उसे डाक्टर के पास

ले गया था. दिन में सीमा की देखभाल के लिए एक नर्स का भी इंतजाम कर दिया था, लेकिन शाम को जब नर्स चली जाती तो वह खुद सीमा की देखभाल करता था.

सीमा की मां को जब उस की बीमारी का पता चला तो वे भी वहां आ गई थीं. उन्होंने उन दोनों के इकट्ठे रहने पर एतराज जताया था, पर सीमा ने

जब आकाश की तारीफ करते हुए उस के अच्छे बरताव और आदत के बारे में बताया तो वे चुप रह गईं.

मां की तो इच्छा थी कि आकाश व सीमा की शादी हो जाए, पर सीमा यह कह कर टाल गई थी कि वह अभी कुछ साल शादी नहीं करना चाहती है.

एक दिन दिल्ली में फिल्म बनाने वाली एक कंपनी ने नई हीरोइन के लिए टैस्ट लिया था. हजारों लड़कियों ने उस में भाग लिया था. 2 लड़कियां चुनी गईं जिन में सीमा पहले नंबर पर थी.

सीमा का पहली फिल्म में काम करने का कौंट्रैक्ट साइन हुआ था. इस फिल्म के लिए उसे 50 लाख रुपए मिलने वाले थे.

सीमा नौकरी से इस्तीफा दे कर अपनी मां के साथ मुंबई चली गई थी.

आकाश अकेला रह गया था. अकेले उस का मन नहीं लगता था. वह फोन पर सीमा से बात कर लेता था.

सीमा की पहली फिल्म ‘अनजान साजन’ की शूटिंग शुरू हो गई थी. आकाश भी फिल्म की शूटिंग देखने मुंबई चला गया था.

फिल्म रिलीज हुई. आकाश ने भी देखी थी. दर्शकों ने फिल्म को पसंद किया था. पत्रपत्रिकाओं में फिल्म की तारीफ लिखी गई थी.

एक दिन सीमा ने आकाश को फोन पर कहा था कि उस के पास 3-4 फिल्मों के औफर आ चुके हैं. यहां आ कर बहुत अच्छा लग रहा है. अब वह भी एक मशहूर हीरोइन बन जाएगी.

2 सालों में ही सीमा की 3 फिल्में रिलीज हो गई थीं. तीनों फिल्में खूब चली थीं.

आकाश सीमा को फोन करता तो उधर घंटी जाती रहती, पर कोई जवाब न मिलता था. वह सोचता कि हो सकता है सीमा शूटिंग में बिजी हो, सो रही हो या किसी मीटिंग में हो. उस ने फोन पर मैसेज भेजने शुरू कर दिए. कोई जवाब नहीं मिला, तो उस ने चिट्ठी भी लिख कर भेजी, पर उस का भी कोई जवाब नहीं आया.

क्या फिल्म नगरी की चकाचौंध में सीमा अपना पुराना समय भूल रही है? क्या फिल्मों की कामयाबी से सीमा का दिमाग खराब हो रहा है? सीमा कितनी बदल चुकी है… यही सब देखने तो आकाश यहां आया है.

‘‘गाड़ी कहां रोकनी है साहब?’’ ड्राइवर ने पूछा.

आकाश चौंक उठा. यादों के जाल से बाहर निकल कर उस ने पता बताया.

टैक्सी रुकी. ड्राइवर को पैसे दे कर आकाश एक बड़े से मकान के सामने जा पहुंचा और डोर बैल बजाई.

एक अधेड़ औरत ने दरवाजा खोल कर पूछा, ‘‘किस से मिलना है?’’

‘‘सीमा मैडम से.’’

‘‘वे अभी नहीं मिल सकतीं. मीटिंग में बिजी हैं.’’

आकाश ने जेब से विजिटिंग कार्ड निकाल कर देते हुए कहा, ‘‘यह अपनी मैडम को दे देना और जैसा वे कहें मु?ो बता देना.’’

विजिटिंग कार्ड ले कर वह औरत चली गई. कुछ ही देर बाद वह लौट कर आई और बोली, ‘‘आइए.’’

आकाश कमरे में पहुंचा. सीमा के सामने सोफे पर 2 आदमी बैठे थे. मेज पर शराब, बीयर, सोडा, बर्फ, नमकीन वगैरह सामान रखा था.

आकाश को देखते ही सीमा ने मुसकरा कर स्वागत करते हुए कहा, ‘‘आइए, आइए, वैलकम.’’

आकाश के चेहरे पर भी मुसकान फैल गई.

सीमा ने परिचय कराया, ‘‘आप से मिलिए, आप हैं मिस्टर सूरज कुमार. मेरी नई फिल्म के डायरैक्टर और आप हैं सेठ गोपी चंद्र… प्रोड्यूसर.’

‘‘मैं आकाश.’’

‘‘ये मेरे फ्रैंड हैं. गुड़गांव में रहते हैं,’’ सीमा उन दोनों से बोली.

शराब पीने का दौर शुरू हो गया.

‘‘मेरी फिल्में कैसी लगीं आकाश?’’

‘‘बहुत अच्छी लगीं. औफिस के सभी लोगों ने देखीं,’’ कहता हुआ आकाश शिकायत भरे लहजे में बोला, ‘‘सीमा, तुम ने मेरे फोन ही उठाने बंद कर दिए हैं. मैं तो तुम से 2 बातें करना चाहता था.’’

‘‘क्या करूं आकाश, यहां आ कर पता चला कि फिल्म कलाकारों की लाइफ कितनी बिजी होती है. न दिन का पता चलता है और न रात का. जब नींद आती है तो सपने में भी लाइट, कैमरा और ऐक्शन सुनाई देता है.’’

‘‘मैं ने तुम्हें मोबाइल पर मैसेज भेजे. मैं ने कई चिट्ठियां भी लिखीं, पर कोई जवाब नहीं मिला.’’

‘‘वे पत्र नहीं, प्रेमपत्र थे. भागदौड़ भरी इस जिंदगी में अब मेरे पास इतना समय कहां जो किसी प्रेमपत्र का जवाब दूं. फोन पर मैसेज पढ़ना और जवाब देना मुझे टाइम बरबाद करना लगता है.’’

आकाश चुप रहा. वह सीमा की आंखों में कुछ खोज रहा था.

सीमा ने आकाश की ओर देखते हुए कहा, ‘‘आकाश, मेरे पास रोजाना अनेक मैसेज आते हैं, फोन आते हैं. प्रेमपत्र आते हैं. इस समय मेरे प्रेमियों की संख्या न जाने कितनी है. कोई मैसेज भेजता है कि तुम्हारे बिना मैं जी नहीं पाऊंगा. कोई मेरे प्यार में पागल हो चुका है. किसी को दिनरात मेरे ही सपने आते हैं. कोई मेरे साथ एक रात बिताने के लाखों रुपए

देने को तैयार है. अब तुम ही बताओ आकाश कि मैं किसकिस को अपना प्रेमी बनाऊं?’’

‘‘क्या तुम ने मुझे भी इन दूसरे लोगों की तरह समझ लिया है? मुझ में और उन में बहुत फर्क है.’’

‘‘देखो आकाश, अभी मैं अपना कैरियर बनाने में बिजी हूं. प्रेम और शादी जैसी फालतू चीजों के बारे में सोचने का भी समय मेरे पास नहीं है.’’

‘‘मुझे तुम से ऐसी उम्मीद नहीं थी सीमा.’’

‘‘तुम ने क्या सोचा था कि तुम्हारे आते ही मैं तुम से लिपट कर कहूंगी कि कहां रह गए थे? इतने दिन बाद आए हो. मुंबई में अकेली बोर हो गई हूं. मुझ से शादी कर लो प्लीज. अब यह अकेलापन सहा नहीं जाता,’’ सीमा ने ताने भरे शब्दों में कहा और खिलखिला कर हंस दी.

यह सुन कर डायरैक्टर व प्रोड्यूसर भी हंसने लगे.

सीमा के ये ताने आकाश सहन नहीं कर पाया. वह उठा और कमरे से बाहर निकल आया.

आकाश गुड़गांव वापस आ गया. उस का ख्वाब टूट गया कि सीमा अब भी उस से प्रेम करती है. वह समझ चुका था कि सीमा के पास खूबसूरती, जवानी, पैसा सबकुछ है. इन सब के साथ उस में घमंड भी आ चुका है.

अब आकाश ने सीमा को फोन करने बंद कर दिए, पर सीमा उस के दिल व दिमाग से नहीं निकल पा रही थी. रात की तनहाई में जब वह बिस्तर पर सोने की कोशिश करता तो सीमा की यादें उस की आंखों के सामने आने लगतीं.

एक साल बाद आकाश ने अखबार में एक खबर पढ़ी तो बुरी तरह चौंक उठा. खबर थी कि हीरोइन सीमा की शादी एक अंगरेज से. पिछले दिनों फिल्म हीरोइन सीमा एक फिल्म ‘लंदन का छोरा’ की शूटिंग के लिए लंदन गई थीं. वहां एक अमीर नौजवान जौन पीटर से मुलाकात हुई. अब वे उस से शादी करने वाली हैं.

खबर पढ़ते ही आकाश ने अखबार एक तरफ फेंक दिया. दिल में गुस्से का ज्वालामुखी धधक उठा. नसों में खून का बहना तेज हो गया.

मुंबई में सीमा की शादी जौन पीटर से हो गई. शादी के बाद हनीमून के लिए शिमला जाने की जानकारी आकाश को अखबार से मिल गई.

आकाश भी शिमला जा पहुंचा. उस ने पता कर लिया कि सीमा और उस का अंगरेज पति किस होटल में ठहरे हैं. उस ने उसी होटल में एक कमरा ले लिया.

आकाश सीमा से अकेले में कुछ कहना चाहता था. अगले दिन जौन पीटर अकेला होटल से बाहर निकला तो आकाश कमरे में घुस गया.

आकाश को देखते ही सीमा बुरी तरह चौंक उठी. उस के मुंह से निकला, ‘‘आकाश तुम… यहां कब आए?’’

‘‘मैं तुम्हें शादी की मुबारकबाद देने आया हूं मिसेज सीमा जौन पीटर. यह काम मैं फोन पर भी कर सकता था, पर मैं ने फोन नहीं किया, क्योंकि तुम ने न फोन सुनना था और न मैसेज पढ़ना था.’’

‘‘क्या कहना चाहते हो?’’ सीमा ने उस की ओर देख कर पूछा.

‘‘हमारे देश में विदेशी चीजों का कितना मोह है. यहां प्रेमी भी विदेशी चाहिए और पति भी. खैर, तुम ने जो भी किया है, सोचसमझ कर ही किया होगा.’’

‘‘यही शिकायत करने आए हो?’’

‘‘मैं यह कहने आया हूं सीमा कि जिस देश में तुम जा रही हो, उन की और हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति में जमीनआसमान का फर्क है. वहां शादीब्याह को एक खेल समझ जाता है. वहां एक बांह में पत्नी और दूसरी बांह में प्रेमिका होती है. वहां जराजरा सी बात पर तलाक हो जाता है.’’

‘‘आखिर तुम कहना क्या चाहते हो?’’

‘‘मैं केवल एक बात जानना चाहता हूं कि क्या तुम्हें अपने देश में कोई

भी लड़का पति बनाने के लायक नहीं लगा?’’

‘‘मेरी निजी जिंदगी के बारे में

पूछने वाले तुम कौन हो? क्या लगते हो मेरे?’’

‘‘तुम्हारी एक फिल्म आई थी ‘ओल्ड लवर’, बस मुझे भी वही समझ लो,’’ आकाश ने कहा और कमरे से बाहर निकल आया. सीमा उसे देखती रह गई.

कुछ दिनों के बाद सीमा अपने पति जौन पीटर के साथ लंदन चली गई.

2 साल बाद… लंदन के हवाईअड्डे पर इंडियन एयरलाइंस का हवाईजहाज उतरा. अनेक मुसाफिरों के साथ आकाश भी हवाईजहाज से बाहर निकला.

आकाश ने एक अफसर से कुछ बात की और एक औफिस में घुस गया.

आकाश ने कंप्यूटर पर काम करती हुई सीमा को देखा तो उस के दिल की धड़कनें तेज होने लगीं और आंखों की चमक बढ़ गई.

आकाश ने धीरे से पुकारा, ‘‘हैलो सीमा.’’

सीमा ने आकाश को देखा तो चौंक उठी. उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि आकाश उस के सामने खड़ा है.

‘‘तुम सपना नहीं देख रही हो सीमा. मैं आकाश ही हूं,’’ सामने की सीट पर बैठते हुए आकाश ने कहा.

सीमा कुछ समझ नहीं पा रही थी

कि कहां से बात शुरू करे? आकाश अचानक लंदन क्यों आया है? उस का पता आकाश को किस ने दिया है?

‘‘कैसे आए हो? यहां घूमनेफिरने या किसी काम से आना हुआ है?’’ सीमा ने पूछा.

सीमा की आंखों के सामने वह मंजर आ गया जब उस ने मुंबई में आकाश का मजाक उड़ाया था. शिमला में भलाबुरा कहा था. इतना होने पर भी आकाश उस से मिल रहा है. आखिर क्यों? क्या आकाश को उस के बारे में सब पता चल गया है?

‘‘मैं किसी काम से नहीं बस तुम से मिलने के लिए ही आया हूं सीमा. मुझे अखबारों से पता चल गया था कि कुछ दिनों के बाद ही तुम्हारी और जौन पीटर की अनबन हो गई. तुम ने उस का घर छोड़ कर यहां हवाईअड्डे पर नौकरी कर ली.’’

‘‘आकाश, तुम ने ठीक कहा था कि हम दोनों देशों की संस्कृति में जमीनआसमान का फर्क है. मैं ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि पीटर का रूप इतना घिनौना होगा. वह इनसान नहीं हवस का एक पुजारी है. मैं ने बहुत सहन किया, पर जब सहन नहीं हुआ तो मैं ने उस का घर छोड़ दिया और यहां हवाईअड्डे पर नौकरी कर ली. कुछ महीने पहले हमारा तलाक हो चुका है.’’

आकाश चुपचाप सीमा की ओर देखता रहा.

सीमा ने कहा, ‘‘अपने बारे में बताओ आकाश. यहां लंदन में अकेले ही आए हो या परिवार के साथ?’’

‘‘सीमा, मैं आज भी परिवार के नाम पर अकेला ही हूं. तुम ने तो शादी कर ली थी और मैं ने शादी न करने का पक्का इरादा कर लिया था. बस, यों समझ लो कि मैं आज भी उसी चौराहे पर खड़ा हूं जहां तुम ने मुझे छोड़ा था. अच्छा, एक बात बताओ सीमा…’’

‘‘पूछो?’’

‘‘क्या तुम्हें कभी अपने देश भारत की याद नहीं आती?’’

‘‘बहुत याद आती है. लेकिन अब सोचती हूं किस मुंह से जाऊं. अब वहां कौन है मेरा? मां को पिछले साल हार्ट अटैक हो गया था और वे बच न पाईं. अब तो पछतावे के अलावा मैं कर ही क्या सकती हूं.

‘‘पता नहीं क्या हो गया था मुझे जो मैं एक विदेशी पर यकीन करते हुए सबकुछ छोड़ कर यहां चली आई,’’ कहतेकहते सीमा की आंखें भर आईं.

‘‘सीमा, वहां तुम्हारा सबकुछ है. तुम्हारे अपने सभी वहां हैं. इस देश की भीड़ में मैं तुम्हें नहीं खोने दूंगा. अब मैं तुम्हें अपने से दूर नहीं होने दूंगा. अब तुम हमेशा मेरे साथ रहोगी. अगर तुम फिल्मों में काम करना चाहोगी तो मुझे एतराज नहीं होगा.’’

सीमा की आंखें डबडबा गई. वह रो देना चाहती थी. इतना सब होने के बाद भी आकाश उसे अपनाने के लिए यहां आया है, इतनी दूर. उसे लगा मानो वह अकेली किसी अंधेरी गुफा में भटक रही थी और अचानक आकाश ने उस का हाथ पकड़ कर सही रास्ता दिखा दिया.

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