Family Story : कुदरत ने बहुत सारे हक अपने पास रखे हुए हैं, इसीलिए इनसान जैसा चाहता है, वैसा होता नहीं है. वह सोचता कुछ है और हो कुछ और जाता है.

प्रोफैसर मुकेश बालियान अपने रूम में अकेले बैठे थे. अनमने मन से आज दिन में ही वे शराब पीने बैठ गए थे. अभी उन्होंने एक पैग खाली किया था, लेकिन पता नहीं क्यों अभी दूसरा पैग लगाने को मन नहीं हो रहा था. वे अपनी जिंदगी में बिलकुल अकेला महसूस कर रहे थे. बेवजह ही वे मुसकरा रहे थे और उस मुसकराहट के साथ अचानक से रो भी पड़े थे.

औरतों की तरह मर्द दूसरों के सामने मुश्किल से ही रोता है, लेकिन अकेले में वह अपने दुख में फूटफूट कर रोता है और अपनी बुजदिली को छिपाता है.

जब भावनाओं का जोर कुछ कम हुआ, तो प्रोफैसर मुकेश बालियान ने आंखों में आए आंसुओं को रूमाल से पोंछने के बाद मन को हलका करने के लिए एक सिगरेट सुलगा ली.

सिगरेट से उड़ते धुएं के छल्ले उन्हें अपनी जिंदगी के छल्लों की तरह एकदम खोखले लग रहे थे. वे सोचने लगे कि आज डायरैक्टर को इस्तीफा सौंपने के बाद उन का और यवनिका का साथ हमेशाहमेशा के लिए छूट जाएगा.

यह प्यार भी अजीब चीज है, साथी का साथ छूटने से ऐसा लगता है जैसे जिंदगी खत्म हो गई हो. जीतेजी मौत का सा अहसास होने लगता है. जिस ने कभी टूट कर प्यार किया हो, वही तो इस को महसूस कर सकता है. उन पत्थरदिलों का क्या, जिन्होंने प्यार को हवस या खिलौना समझा?

प्रोफैसर मुकेश बालियान ने सिगरेट का आखिरी छल्ला हवा में उड़ाया और फिर अपना इस्तीफा लिखना शुरू किया.

लिखने के लिए कुछ ज्यादा नहीं था. बस, वे तो अपना एक वादा पूरा कर रहे थे, जिस के पूरा होने से किसी की जिंदगी खुशियों से लबरेज हो जानी थी. जैसा उन के साथ हुआ किसी और के साथ न हो, इसीलिए वे इस्तीफा दे रहे थे.

प्रोफैसर मुकेश बालियान की ट्रेन मुंबई सैंट्रल रेलवे स्टेशन से शाम 5 बज कर 15 मिनट पर छूटनी थी. अपने जरूरी सामान का सूटकेस और एक बैग उन्होंने पहले ही तैयार कर लिया था.

एसी 2 में टिकट का जुगाड़ भी जैसेतैसे हो ही गया था. वे अपना इस्तीफा डायरैक्टर को सौंप कर मुंबई छोड़ने की पूरी तैयारी में थे. मुंबई छोड़ने की वे किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होने देना चाहते थे.

इस्तीफा लिखने के बाद प्रोफैसर मुकेश बालियान ने डायरैक्टर कुलदीप खंडेलवाल से मिलने के लिए समय मांगा. डायरैक्टर अभी औफिस में ही थे.

प्रोफैसर मुकेश बालियान के इस्तीफे को अचानक अपने सामने देख कर उन का चौंक जाना लाजिमी था. ऐसे हालात में जो बातचीत हो सकती थी, वह हुई, लेकिन जब कोई अपनी जिद पर अड़ा हो, तो उसे कौन रोक सकता है?

आखिरकार प्रो. मुकेश बालियान का इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया. सारी औपचारिकताएं पूरी करवा ली गईं.

प्रो. मुकेश बालियान टैक्सी पकड़ कर मुंबई सैंट्रल रेलवे स्टेशन पहुंच गए. उन की ट्रेन ‘तेजस राजधानी ऐक्सप्रैस’ मुंबई छोड़ने के लिए तैयार थी.

प्रोफैसर मुकेश बालियान ट्रेन में अपनी सीट पर लेट गए और पुरानी यादों में खो गए. उन की कहानी का कथानक कुछ ऐसा था…

आज से तकरीबन 30 साल पहले प्रोफैसर मुकेश बालियान इसी ट्रेन से पहली बार मुंबई आए थे. उन्होंने सांख्यिकी की एक नैशनल लैवल की प्रतियोगिता पास की थी और उन का एडमिशन मुंबई के एक नामचीन जैव सांख्यिकी संस्थान में हो गया था.

उन्हें खुशी थी कि पढ़ाई का सारा खर्च सरकार उठा रही थी. उन्हें तो बस मेहनत कर के एमएससी बायो स्टैट की डिगरी अच्छे अंकों से हासिल करनी थी.

पहले ही दिन मुकेश बालियान की मुलाकात अजनबी यवनिका से हुई थी. मुलाकात क्या, यह तो पहली नजर का प्यार था.

‘‘मुकेश, किस जगह से हो तुम?’’ यवनिका ने सवाल पूछा था.

‘‘मैं उत्तर प्रदेश से,’’ मुकेश ने छोटा सा जवाब दिया था.

‘‘अरे, उत्तर प्रदेश तो बहुत बड़ा है. उत्तर प्रदेश में कहां से हैं?’’ यवनिका सही जगह जान लेना चाहती थी.

‘‘बिजनौर जिले से.’’

‘‘अरे, यह बिजनौर कहां है? यह नाम तो मैं पहली बार सुन रही हूं.’’

‘‘यवनिका, चाय तो लो. चाय ठंडी हो रही है. मेरठ का नाम तो सुना होगा तुम ने, बस उसी से 100 किलोमीटर उत्तर दिशा में उत्तराखंड के बौर्डर पर बिजनौर जिला है.’’

‘‘मतलब, हरिद्वार के आसपास.’’

‘‘बिलकुल सही यवनिका.’’

मुकेश सोचने लगा था कि यवनिका बहुतकुछ पूछने वाली है, लेकिन मुकेश के मन में भी जिज्ञासा जगी. उस ने पूछा, ‘‘यवनिका, तुम कहां से हो?’’

‘‘मैं तो महाराष्ट्र की हूं, नागपुर से,’’ यवनिका ने बताया.

इस से पहले कि यवनिका कुछ और पूछती, मुकेश ने उठते हुए कहा, ‘‘ठीक है यवनिका, कल मिलते हैं.’’
यवनिका ने अनमने मन से कहा, ‘‘ठीक है.’’

लेकिन यवनिका के मन में मुकेश को ले कर अभी भी कई सवाल उमड़घुमड़ रहे थे. वह तो सारे सवाल आज ही पूछ लेना चाहती थी. वह वहां से प्यासे पपीहे की तरह उठी.

जल्दी ही मुकेश और यवनिका में गहरी दोस्ती हो गई थी. उन दोनों की अच्छी जोड़ी बन गई थी. संस्थान में यह कोई अचंभे की बात नहीं थी. वहां तो कई प्रेमी जोड़े थे. ऐसे कई छात्र जोड़े थे, जो पहले एमएससी करते, फिर यहीं से पीएचडी करते और यहीं प्रोफैसर बन जाते थे.

मुकेश और यवनिका के परिवार वाले भी उन के प्रेम संबंधों के बारे में जान गए थे, लेकिन उन्हें भी कोई एतराज नहीं था. उन दोनों के परिवार सुलझे हुए और समझदार थे.

एक बार संस्थान की ओर से हिमाचल प्रदेश के कुल्लूमनाली, शिमला और धर्मशाला के लिए 10 दिन का टूर गया था. यवनिका और मुकेश वहां रूमानी दुनिया में खो गए थे.

जवानी के जोश में मुकेश सबकुछ कर लेना चाहता था, लेकिन यवनिका ने कहा था, ‘‘मुकेश, हम कोई नादान बच्चे नहीं हैं, जो ऐसी गलती करें. हम जानवर नहीं हैं कि अपनी हवस पर कंट्रोल न रख सकें. हम इनसान हैं. यह सब काम शादी के बाद.’’

उस दिन से मुकेश की नजरों में यवनिका की इज्जत कई गुना बढ़ गई थी. वह देखता था कि हवस के मारे प्रेमी जोड़े कितने मौजमस्ती में डूबे रहते हैं और फिर आएदिन जानवरों की तरह आपस में ऐसे लड़ते हैं, जैसे उन में कोई शर्महया बची ही न हो.

मुकेश सोचने लगा कि यवनिका कितनी समझदार है. वह चाहती तो मौजमस्ती के लिए कुछ भी कर सकती थी, लेकिन हर चीज का एक दायरा और समय होता है. सच्चा प्यार हवस का गुलाम नहीं होता. प्यार तो जिंदगी में कुरबानी मांगता है.

समय गुजरता गया और उसी संस्थान से मुकेश और यवनिका ने पीएचडी भी कर ली. इस के बाद यवनिका और मुकेश अपने अपनेअपने घर चले गए. दोनों पढ़लिख कर भी अभी बेरोजगार थे और नौकरी की तलाश में थे.

यवनिका के पापा को उस की शादी करने की जल्दी थी. वह 28 साल पार कर चुकी थी.

एक दिन यवनिका के पापा नितिन साल्वे ने उस से कहा, ‘‘यवनिका, मुझे तुम्हारी शादी की बड़ी चिंता है. मैं बूढ़ा तो हो ही रहा हूं, मेरा लिवर भी जवाब दे रहा है. मुकेश अच्छा लड़का है, लेकिन वह अभी बेरोजगार है और नौकरी तलाश रहा है. मैं उस के हाथ में तुम्हारा हाथ कैसे दे दूं, आखिर बेटी का बाप हूं? बेटी के सुख में ही तो बाप का सुख बसता है,’’ कह कर यवनिका के पापा कुछ मायूस से हो गए थे.

तब यवनिका बोली, ‘‘पापा, कुछ दिन और इंतजार कर लेते हैं. मुकेश नौकरी की तलाश तो कर ही रहा है.’’

‘‘यवनिका, मैं ने बहुत सोचसमझ कर यह कहने की हिम्मत की है. बेरोजगारी के जमाने में नौकरी का क्या भरोसा? मेरी चिंता कड़वी हकीकत है. आज अगर भावनाओं में बह कर मैं तुम्हारा हाथ एक बेरोजगार के हाथ में दे दूं, तो कल तुम्हें कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा, तुम्हें इस का अंदाजा भी नहीं है.’’

यवनिका जानती थी कि उस के पापा सही बोल रहे हैं. इतने नामचीन संस्थान से पीएचडी करने के बाद भी लोग उस की बेरोजगारी पर तंज कसने से नहीं चूकते थे.

यवनिका ने कहा, ‘‘पापा, बस कुछ दिन का समय और दे दो. किसी न किसी संस्थान में हम दोनों की नौकरी लग ही जाएगी.’’

‘‘यवनिका, मैं 2 साल से इंतजार ही तो कर रहा हूं, नहीं तो कब का तुम्हारे हाथ पीले कर देता. अब एक अच्छा सा लड़का निगाह में आया है, तो तुम से यह सब कह रहा हूं.

‘‘अपनी ही बिरादरी का एक लड़का मुंबई में इनकम टैक्स महकमे में अफसर लगा है. वह हैंडसम है और अच्छी पगार वाला है. और सब से बड़ी बात है कि अपने हाथ में है.

‘‘वह जिन का लड़का है, वे हमें अच्छे से जानते हैं. मैं चाहता हूं बेटी कि इस मौके को हाथ से न जाने दूं और अपने प्राण निकलने से पहले तुम्हारे हाथ पीले कर दूं.’’

उस रात यवनिका ने मुकेश से फोन पर लंबी बातचीत की. मुकेश ने कहा, ‘यवनिका, ऐसा लगता है कि यह पीएचडी ही बोझ बन गई है. किसी कंपनी में नौकरी के लिए अप्लाई करता हूं, तो कंपनी वाले यह कह कर टरका देते हैं कि कल तुम्हारी सरकारी नौकरी लग गई, तो हमारी नौकरी छोड़ कर भाग जाओगे.’

‘‘तो मुकेश अब क्या करना है? मैं तो बहुत परेशानी में हूं. पापा मेरी शादी करने की जिद पर अड़े हुए हैं.’’

‘यवनिका, जब इतना अच्छा लड़का मिल रहा है, तो शादी कर लो न. पापा की बात मान लो. मेरी नौकरी के इंतजार में तो तुम बुढि़या हो जाओगी. मेरी तो अपने मांबाप से भी खटपट हो गई है. मैं अलग रह रहा हूं. एडहौक पर एक डिगरी कालेज में नौकरी कर के किसी तरह अपना खर्चा चला रहा हूं.’

‘‘तो क्या हुआ मुकेश, मैं भी ऐसी ही कोई प्राइवेट नौकरी कर लूंगी. आखिर मैं ने भी तो पीएचडी की हुई है. रहेंगे तो दोनों साथ.’’

‘नहीं यवनिका, मैं इतना मतलबी नहीं कि अपने चलते तुम्हारी जिंदगी बरबाद कर दूं.’

‘‘तुम पागलों जैसी बातें क्यों कर रहे हो मुकेश? हम ने प्यार किया है. मैं तुम्हारे सिवा किसी और के बारे में सोच भी कैसे सकती हूं?’’ यवनिका ने गुस्सा जताते हुए कहा.

लेकिन मुकेश तो जैसे आज ज्ञान का पितामह बना बैठा था. वह फिर से ज्ञान बखारने लगा, ‘यवनिका, हालात को समझो. आदमी तो अकेले भी जिंदगी काट लेता है, लेकिन औरत के लिए अकेले जिंदगी काटना इस दुनिया में मुहाल हो जाता है. और ध्यान रखो तुम…’

‘‘मुकेश, यह क्या पागलपन लगा रखा है? कहीं भांग तो खाना नहीं शुरू कर दिए हो? क्या बेवकूफों वाले उपदेश दिए जा रहे हो? कहीं मुझ से छुटकारा तो नहीं पाना चाहते हो? कहीं अपने गांव में जा कर किसी दूसरी लड़की से तो चक्कर नहीं चला बैठे?’’

‘बस, इन औरतों के साथ यही परेशानी होती है. जरा सी बात हुई नहीं कि दूसरी औरत का शक दिमाग में बैठ जाता है. मैं तुम्हारा भला चाह रहा हूं और तुम बेबुनियाद आरोप लगाए जा रही हो. अगर ऐसा है तो ऐसा ही सही.’

‘‘मुकेश, जब किसी मर्द को किसी औरत से छुटकारा पाना होता है, तो वह ऐसी ही पागलों जैसी बातें करने लगता है. जाओ मरो तुम उस चुड़ैल के साथ… और आज के बाद फिर कभी मुझे फोन करने की कोशिश भी मत कर लेना,’’ यवनिका ने गुस्से में फोन काट दिया और फफकफफक कर रोने लगी.

मुकेश भी अपनी बेबसी पर रो रहा था. उसे लगा कि अगर उस के पास अच्छा रोजगार होता, तो यवनिका उस की होती. वह शान से उसे दुलहन बना कर अपने घर लाता. वह अब किस मुंह से यवनिका के पापा से यवनिका का हाथ मांगने जाए? प्यार में मजबूर कर के यवनिका को लाना उस की जिंदगी को बरबाद करने के सिवा क्या होगा? क्या प्यार का मतलब यही है? नहींनहीं… किसी की जिंदगी को बरबाद करना प्यार नहीं है.

कुछ दिनों के बाद यवनिका की इनकम टैक्स अफसर दौलत साल्वे के साथ धूमधाम से शादी हो गई. वह अपने पति के साथ मुंबई में रहने लगी. सभी सुख और आराम उस की जिंदगी में थे. उसे मुकेश की याद अभी भी आती थी, लेकिन सिर्फ चिढ़ और नफरत के साथ. उस ने तो मुकेश को अपनी जिंदगी से निकाल ही फेंका था.

यवनिका की किस्मत देखिए कि शादी के कुछ ही महीनों बाद वह उसी संस्थान में असिस्टैंट प्रोफैसर बन गई, जहां से उस ने पीएचडी की थी. वहां पहुंच कर यवनिका को मुकेश के साथ बिताए पुराने दिन याद आए, लेकिन उन में अब सिर्फ नफरत का धुआं था. वे दिन अब उसे काटने को दौड़ते थे.

यवनिका की जिंदगी खुशियों से लबालब भरी थी. पति दौलत साल्वे उसे बहुत प्यार करता था और उस की हर इच्छा पूरी करने के लिए उतावला रहता था. यवनिका की शानदार नौकरी लगने से उस की खुशियां आसमान छू रही थीं.

खुशियों से भरी जिंदगी के इसी मुहाने पर तकरीबन एक साल के बाद एक दिन… मुकेश यवनिका के सामने आ गया. उसे सामने देख कर पहले तो वह हैरान रह गई और फिर बिना सोचेसमझे नफरत की आग के साथ तिड़क कर बोली, ‘‘तुम और यहां…?’’

‘‘हां, मैं यवनिका, लेकिन तुम मुझे देख कर इतना चौंक क्यों गई हो?’’

‘‘अब क्या लेने आए हो यहां? मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी है. मैं अब शादीशुदा हूं.’’

‘‘यवनिका, तुम्हें तुम्हारी शादी की बधाई. बस, मैं तो तुम्हें यह बताना चाहता हूं कि मेरी भी यहां असिस्टैंट प्रोफैसर के पद पर नौकरी लग गई है.’’

‘‘क्या? क्या कहा… तुम यहां असिस्टैंट प्रोफैसर बन गए हो? और वह चुड़ैल, डायन कहां है, जिस के लिए तुम ने मुझे छोड़ा?’’

‘‘यवनिका, फिर वही पागलपन. मेरी जिंदगी में तुम्हारे सिवा कोई दूसरी थी ही नहीं. तुम ने बेवजह ही मुझ पर शक किया है.’’

‘‘तुम मर्द सफेद झूठ बोलने में माहिर होते हो और औरतों को निहायत ही बेवकूफ समझते हो, नहीं तो दुनिया का कोई भी प्रेमी अपनी प्रेमिका की शादी होते हुए नहीं देख सकता.

‘‘तुम उस डायन को कहीं भी छिपा लो, जिस ने तुम्हें मुझ से छीना है, लेकिन एक दिन तो वह सामने आएगी ही. मैं भी देखती हूं कि वह कितनी हुस्न की परी है.’’

अभी यवनिका और मुकेश की बात चल ही रही थी कि तभी उधर से प्रोफैसर राजीव खंडेलवाल आ गए और उन्हें अपनी बातें बंद करनी पड़ीं.

कुछ ही दिनों में यवनिका को यकीन हो गया कि मुकेश की जिंदगी में कोई दूसरी नहीं है. तब एक दिन यवनिका ने मुकेश से अपने दिल की बात कही, ‘‘मुकेश, भले ही मेरा पति मुझ से बहुत प्यार करता है, लेकिन अगर तुम चाहो तो मैं अभी भी सबकुछ छोड़ कर तुम्हारे पास लौट आने के लिए तैयार हूं, बस अपने प्यार की खातिर.’’

यह सुन कर मुकेश हंसा और फिर बोला, ‘‘यवनिका, मैं ने अभी तक किताबों में ही पढ़ा था कि औरत प्यार में पागल हो जाती है और आज देख भी रहा हूं.’’

‘‘मुकेश, तुम मर्द क्या समझोगे औरत के दिल को? ये पत्थरदिल मर्दों की दुनिया औरत के कोमल दिल को समझ पाती, तो यह दुनिया ही अलग होती. छोड़ो इन सब बातों को, अब इन में क्या रखा है. मुकेश, तुम अपना फैसला सुनाओ.’’

‘‘यवनिका, यह सही है कि तुम्हारा फैसला बहुत बड़ा है. एक औरत के लिए प्यार सब से कीमती चीज है. इस के लिए वह अपनी इज्जत और समाज की भी परवाह नहीं करती है, लेकिन जिस मर्द को तुम इतनी आसानी से पत्थरदिल कह देती हो, वह ऐसा होता नहीं है. वह कम जज्बाती होता है और दुनियादारी की परवाह करने वाला ज्यादा होता है. मैं चाहूं तो जज्बातों में बह कर तुम्हें भगा ले जाऊं, लेकिन इस के बाद जो होगा, उस की तुम ने कल्पना भी नहीं की है.’’

‘‘क्या होगा, जरा मैं भी तो सुनूं?’’

‘‘सब से पहले तो यह समाज तुम्हें कलंकिनी कहेगा. तुम्हारा पति अंदर तक टूट जाएगा और तुम्हारे मांबाप कभी तुम्हें माफ नहीं कर पाएंगे.’’

‘‘मुकेश, तुम डरपोक हो. इन बातों से मुझे डराओ मत. अपना फैसला सुनाओ. हां या न?’’

‘‘यवनिका, मैं इतना मतलबी नहीं कि तुम्हारी जिंदगी में भूचाल पैदा कर दूं और दुनिया हम पर थूके. मर्द जिंदगी में एक ही बार प्यार करता है, चाहे शादी वह हजार कर ले. औरत भी एक मर्द के दिल को नहीं समझ सकती. तुम मेरा फैसला सुनना चाहती हो तो सुनो… मैं ने तो जिंदगीभर कुंआरा रहने का फैसला किया है.’’

यह सुन कर यवनिका अपना सिर पकड़ कर बैठ गई, फिर अचानक से बोली, ‘‘इसीलिए… इसीलिए, मुझे तुम से नफरत हो गई है… जिद्दी आदमी. न तुम ने तब मेरी बात मानी और न अब मान रहे हो. आखिर क्यों रहोगे तुम सारी जिंदगी कुंआरे, बस मुझ पर अहसान चढ़ाने के लिए? लेकिन, मैं तो कह रही हूं कि अब भी मैं तुम्हारे साथ रहने के लिए तैयार हूं.’’

‘‘देखो यवनिका, मैं साफसाफ कह देता हूं, मैं ने तुम से प्यार किया था और अब किसी और से नहीं कर सकता. एक मर्द यह काम कर ही नहीं सकता कि वह एक बार में 2 औरतों से प्यार करे.

‘‘हां, औरतों को कुदरत ने यह ताकत बख्शी है कि वह एक बार में एक से ज्यादा मर्दों से प्यार कर सकती है और जब मैं यह बात कह रहा हूं, तो मैं प्यार की बात कर रहा हूं, हवस की नहीं.’’

‘‘तुम से बातों में मैं नहीं जीत सकती मुकेश.’’

‘‘यवनिका, आखिरी बात… प्यार का मतलब सिर्फ शादी करना नहीं होता है. मैं तुम्हारे शरीर को छुए बगैर भी तुम से प्यार कर सकता हूं और जिंदगीभर कर सकता हूं,’’ कह कर मुकेश वहां से उठ कर चला गया.

यवनिका के मन में कई सवाल उठे और खत्म भी हो गए. लेकिन यह सुन कर उसे संतुष्टि हुई कि मुकेश उसे जिंदगीभर प्यार करता रहेगा. बाकी सब बातें यवनिका के लिए छोटी हो गई थीं. वह होंठों पर मुसकान लिए अपनी कार की ओर बढ़ गई.

सच में मुकेश उसी संस्थान में रहा. 26 साल गुजर गए थे, लेकिन न तो उस ने शादी की और न ही उस का किसी लड़की या औरत से कोई अफेयर सुना गया. ऐसा लगता था मानो यवनिका से उस ने अपने प्यार को शिद्दत से निभाया था.

यवनिका ने एक दिन मुकेश को बताया, ‘‘मुकेश, अब हम बुढ़ापे की दहलीज पर हैं और मै इतिहास को दोहराते देख रही हूं.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं यवनिका…’’

‘‘मेरे बेटे दुष्यंत की गर्लफ्रैंड ने बोल दिया है कि अगर दुष्यंत की नौकरी नहीं लगी, तो उस के पापा उस की शादी कहीं और कर देंगे. तुम तो जानते ही हो कि दुष्यंत ने अपनी गर्लफैं्रड सोफिया के साथ यहीं से पीएचडी की है. अब तुम्हें तो सब पता ही है कि यहां नौकरी एकदम से तो मिलती नहीं है. कोई वैकेंसी ही नहीं है.’’

मुकेश ने कुछ देर सोचा और फिर कहा, ‘‘अगर मान लो कि वैकेंसी क्रिएट हो जाए, तब…?’’

‘‘मैं ने डायरैक्टर से बात की है. वे दुष्यंत को इसी कंडीशन पर यहीं लगवाने को तैयार हैं.’’

‘‘तो यवनिका, तुम बिलकुल चिंता मत करो. कल ही यहां एक वैकेंसी क्रिएट होगी.’’

यह सुन कर यवनिका बड़ी जोर से हंसी और बोली, ‘‘मुकेश, या तो तुम बुढ़ापे में सठिया गए हो या फिर तुम ने कोई जादूवादू सीख लिया है. भला ऐसा कैसे हो सकता है कि कल ही यहां वैकेंसी क्रिएट हो जाएगी?’’

‘‘मैं कह रहा हूं न, इसलिए ऐसा होगा.’’

‘‘अच्छा जादूगर साहब, आप की बात मान लेते हैं.’’

अगले दिन जैसे ही यवनिका को पता चला कि मुकेश इस्तीफा दे कर अपने गांव चला गया है, तो वह दौड़ते हुए डायरैक्टर के कमरे में पहुंच गई. आज उस ने डायरैक्टर से अंदर आने की इजाजत भी नहीं मांगी.

वह हड़बड़ाहट में बोली, ‘‘सर, क्या सचमुच मुकेश सर इस्तीफा दे कर अपने गांव चले गए हैं?’’

डायरैक्टर यवनिका की भावनाओं को समझेते थे. उन के ‘हां’ में जवाब देते ही यवनिका ऐसे बिलख कर रो पड़ी, जैसा उस का अपना कोई सगा मर गया हो.

मुकेश का जाना यवनिका के लिए किसी हादसे से कम नहीं था. तन भले ही यवनिका ने अपने पति के नाम कर दिया था, लेकिन मन तो उस का मुकेश में ही रमा था.

यवनिका के होंठों पर बस 2 ही शब्द थरथराए, ‘‘पागल आदमी.’’

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