सौजन्य- सत्यकथा
ससुराल वालों का माथा ठनका. जब नजर रखी तो उन्होंने कविता के साथ अजय की खिचड़ी पकती देखी. इस से पहले कि कोई अनर्थ हो जाए राजेश चंद्र ने बेटी कविता का विवाह कौशांबी के चरवा गांव निवासी नीरज से कर दिया. यह 5 साल पहले की बात है.
विवाह का एक साल बीततेबीतते कविता भी एक बेटी की मां बन गई. अब वह कभीकभार ही मायके आ पाती थी. उस के आने पर अजय ससुराल पहुंच जाता था. दोनों की चाहत तन मिलने से कुछ समय के लिए पूरी हो जाती, लेकिन फिर वही पहले जैसा हाल हो जाता.
दोनों को अपने बीच की दूरी बहुत अखर रही थी. कविता पूरी तरह से अजय के प्यार में रंगी थी. इसलिए उस का ससुराल में मन नहीं लगता था. एक साल पहले वह ससुराल से मायके आई तो वापस लौट कर ससुराल नहीं गई.
अजय की खुशी का ठिकाना न रहा. वह पहले की भांति उस से मिलने जाने लगा. अजय की ससुराल वाले सब जान कर भी कुछ न कर पाते. वह चुपचाप तमाशा देखते रहे.
सरिता को भी अपने पति के अपनी बहन कविता से संबंध की जानकारी हो गई. इस के बाद अजय और सरिता में विवाद होने लगा. अजय एक बहन का पति था तो दूसरे का प्रेमी. वह दोनों के जीवन से खेल रहा था.
13 अक्तूबर को अजय इलैक्ट्रौनिक्स का सामान खरीदने के लिए सुबह प्रयागराज चला गया. शाम 6 बजे जब वह घर लौटा तो दरवाजा अंदर से बंद नहीं था, धक्का देते ही खुल गया. जैसे ही वह अंदर पहुंचा तो कमरे में उस की पत्नी सरिता और 7 वर्षीय बेटी तनु की लाशें पड़ी थीं. यह देख कर वह चीखनेचिल्लाने लगा.
शोर सुन कर आसपास के लोग वहां आ गए. घटना की खबर मिलने पर क्षेत्र के विधायक शीतला प्रसाद पटेल भी वहां पहुंच गए. अजय के कमरे में उस की पत्नी व बेटी की लाशें देखने के बाद उन्होंने सैनी कोतवाली के इंसपेक्टर प्रदीप सिंह को घटना की सूचना दे दी.
इंसपेक्टर प्रदीप सिंह ने अपने उच्चाधिकारियों को दोहरे हत्याकांड की सूचना दे दी. फिर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंच कर उन्होंने लाशों का निरीक्षण किया. सरिता की लाश कमरे में मेज के पास जमीन पर पड़ी थी. उस के गले को चाकू से रेता गया था. शरीर पर भी 4-5 घाव के निशान थे.
लाश के पास काफी खून पड़ा था, जो सूख चुका था. लाश अकड़ी हुई थी. दरवाजे के पास सरिता की बेटी तनु की लाश पड़ी थी. उस के गले पर दबाए जाने के निशान मौजूद थे.
तनु की लाश में काफी चींटियां लग गई थीं. निरीक्षण करने के बाद अनुमान लगाया गया कि दिन में किसी वक्त दोनों को मारा गया है. घर में किसी व्यक्ति द्वारा जबरन घुसने का कोई सबूत नहीं मिला. न ही आसपास पड़ोस में किसी ने घटना को अंजाम देने के समय किसी प्रकार का शोरशराबा सुना था. इस का मतलब यह कि हत्यारा कोई परिचित व्यक्ति है.
इसी बीच एसपी अभिनंदन, एएसपी समर बहादुर सिंह और सीओ (सिराथू) श्यामकांत भी डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए. फोरैंसिक टीम साक्ष्य जुटाने में लग गई.
उच्चाधिकारियों ने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया. तत्पश्चात अजय साहू से पूछताछ की तो उस ने सुबह प्रयागराज जाने और शाम 6 बजे घर आने पर घटना का पता होने की बात बताई.
सीसीटीवी फुटेज देखी गई. लेकिन कोई संदेहास्पद व्यक्ति नहीं दिखा. इंसपेक्टर प्रदीप सिंह को अजय पर ही शक था. उन्होंने अपना शक एसपी अभिनंदन को बताया. एसपी अभिनंदन की सोच भी वही थी. अजय ने बताया था कि वह दोपहर 12 बजे के करीब प्रयागराज गया था. उस के बाद ही लगभग 2-3 बजे घटना हुई होगी. लेकिन 3-4 घंटे में लाश अकड़ नहीं सकती.
ऐसा तभी होता है, जब घटना हुए 10-12 घंटे का समय हो जाए. यानी सुबह के समय तब अजय घर पर ही था. अजय ने ही हत्या कर के सारी कहानी गढ़ी है, इस का विश्वास हुआ तो अजय से और सख्ती से पूछताछ के लिए उसे थाने ले जाया गया. लेकिन इस से पहले दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया गया.
अजय के ससुर राजेश चंद्र और छोटी साली सविता आई तो इंसपेक्टर प्रदीप सिंह ने उन से पूछताछ की. राजेश चंद्र काफी दुखी थे. उन्होंने अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पूछताछ करने पर वह चुप ही रहे लेकिन सविता फट पड़ी. उस ने बताया कि कविता दीदी और जीजा का आपस में काफी लगाव था. इंसपेक्टर प्रदीप सिंह का शक सही साबित हुआ.
इस के बाद अजय से थाने में सख्ती से उन्होंने पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और इस जुर्म में उस ने साली कविता के भी शामिल होने की बात स्वीकारी. दोनों ने ही मिल कर सरिता की हत्या की साजिश रची थी. इस के बाद कविता को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की गई.
पूछताछ में पता चला कि अजय और कविता एकदूसरे से विवाह कर के साथ रहना चाहते थे. सरिता उन के संबंधों का विरोध कर रही थी, वह उन के रास्ते में आ रही थी. इसलिए कविता और अजय ने मिल कर सरिता की हत्या की योजना बनाई. अजय ने कविता से बात करने के लिए दूसरा नंबर ले रखा था, उसी से बराबर कविता से बात करता था.
उसी नंबर से बात कर के उन्होंने हत्या का षडयंत्र रचा. 13 अक्तूबर की सुबह 6 बजे अजय ने घर में रखे सब्जी काटने वाले चाकू से नींद में सोई सरिता का गला काट दिया. सरिता चीख भी न सकी, जमीन पर गिर कर तड़पने लगी. अजय ने फिर उस के शरीर पर कई वार किए, जिस से सरिता की मौत हो गई.
अपने पिता के हाथों मां को मरता देख कर मासूम तनु जाग गई और डर की वजह से रोते हुए बाहर की तरफ भागने लगी. अजय ने दरवाजे तक पहुंचने से पहले ही उसे पकड़ लिया और उस का सिर दीवार पर पटक दिया.
सिर में लगी चोट से तनु बेहोश हो गई. अजय ने फिर उस का गला घोंट कर उस की भी हत्या कर दी. अजय तनु को मारना नहीं चाहता था लेकिन भेद खुलने के डर से उसे बेटी की हत्या करनी पड़ी. उस ने हत्या के बाद कविता से मोबाइल पर बात की और दोनों की हत्या करने की बात बता दी.
इस के बाद वह बाजार गया और कई जगह जानबूझ कर गया, जिस से वह सीसीटीवी कैमरों में कैद में आ जाए. एक जगह उस ने समोसा खरीद कर भी खाया. इस के बाद वह प्रयागराज चला गया.
वहां वह शाहगंज इलाके में कई उन इलैक्ट्रौनिक सामानों की दुकानों पर गया, जहां सीसीटीवी कैमरे लगे थे. अपने प्रयागराज में होने के सबूत छोड़ कर शाम को वह कौशांबी लौट आया. यहां लौटने के बाद भी कुछ जगहों पर गया.
शाम 6 बजे वह कमरे पर पहुंचा और लाश देख कर शोर मचाने लगा. लेकिन काफी होशियारी के बाद भी वह कविता के साथ कानून के शिकंजे में फंस गया. इंसपेक्टर प्रदीप सिंह ने दोनों आरोपियों को न्यायालय में पेश किया, वहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित