अपारदर्शी सच- भाग 3: किस रास्ते पर चलने लगी तनुजा

निशा उस की अच्छी सहेली थी. उस से तनुजा की कशमकश छिपी न रह सकी. तनुजा को दिल का बोझ हलका करने को एक साथी तो मिला जिस से सहानुभूति के रूप में फौरीतौर पर राहत मिल जाती थी. निशा उसे समझाती तो थी पर क्या वह समझना चाहती है, वह खुद भी नहीं समझ पाती थी. उस ने कई बार इशारे में उसे विकल्प तलाशने को कहा तो कई बार इस के खतरे से आगाह भी किया. कई बार तनुजा की जरूरत की अहमितयत बताई तो कई बार समाज, संस्कार के महत्त्व को भी समझाया. तनुजा की बेचैनी ने उस के मन में भी हलचल मचाई और उस ने खुद ही खोजबीन कर के कुछ रास्ते सुझाए.

धड़कते दिल और डगमगाते कदमों से तनुजा ने उस होटल की लौबी में प्रवेश किया था. साड़ी के पल्लू को कस कर लपेटे वह खुद को छिपाना चाह रही थी पर कितनी कामयाब थी, नहीं जानती. रिसैप्शन पर बड़ी मुश्किल से रूम नंबर बता पाई थी. कितनी मुश्किल से अपने दिल को समझा कर वह खुद को यहां तक ले कर आई थी. खुद को लाख मनाने और समझाने पर भी एक व्यक्ति के रूप में खुद को देख पाना एक स्त्री के लिए कितना कठिन होता है, यह जान रही थी.

अपनी इच्छाओं को एक दायरे से बाहर जा कर पूरा करना कितना मुश्किल होता है, लिफ्ट से कमरे तक जाते यही विचार उस के दिमाग को मथ रहे थे. कमरे की घंटी बजा कर दरवाजा खुलने तक 30 सैकंड में 30 बार उस ने भाग जाना चाहा. दिल बुरी तरह धड़क रहा था. दरवाजा खुला, उस ने एक बार आसपास देखा और कमरे के अंदर हो गई. एक अनजबी आवाज में अपना नाम सुनना भी बड़ा अजीब था. फुरफुराते एहसास उस की रीढ़ को झुनझुना रहे थे. बावजूद इस के, सामने देख पाना मुश्किल था. वह कमरे में रखे एक सोफे पर बैठ गई, उसे अपने दिमाग में मनीष का चेहरा दिखाई देने लगा.

क्या वह ठीक कर रही? इस में गलत क्या है? आखिर मैं भी एक इंसान हूं. अपनी इच्छाएं, अपनी जरूरतें पूरी करने का हक है मुझे. मनीष को पता चला तो?

कैसे पता चलेगा, शहर के इस दूसरे कोने में घरऔफिस से दसियों किलोमीटर दूर कुछ हुआ है, इस की भनक तक इतनी दूर नहीं लगेगी. इस के बाद क्या वह खुद से नजरें मिला पाएगी? यह सब सोच कर उस की रीढ़ की वह सनसनाहट ठंडी पड़ गई, उठ कर भाग जाने का मन हुआ. वह इतनी स्वार्थी नहीं हो सकती. मनीष, मम्मी, बच्चे, जानपहचान वाले, रिश्तेदार सब की नजरों में वह नहीं गिर सकती.

वेटर 2 कौफी रख गया. कौफी की भाप के उस पार 2 आंखें उसे देख रही थीं. उन आंखों की कामुकता में उस के एहसास फिर फुरफुराने लगे. उस ने अपने चेहरे से हो कर गरदन, वक्ष पर घूमती उन निगाहों को महसूस किया. उस के हाथ पर एक स्पर्श उस के सर्वांग को थरथरा गया. उस ने आंखें बंद कर लीं. वह स्पर्श ऊपर और ऊपर चढ़ते बाहों से हो कर गरदन के खुले भाग पर मचलने लगा. उस की अतृप्त कामनाएं सिर उठाने लगीं. अब वह सिर्फ एक स्त्री थी हर दायरे से परे, खुद की कैद से दूर, अपनी जरूरतों को समझने वाली, उन्हें पूरा करने की हिम्मत रखने वाली.

सहीगलत की परिभाषाओं से परे अपनी आदिम इच्छाओं को पूरा करने को तत्पर वह दुनिया के अंतिम कोने तक जा सकने को तैयार, उस में डूब जाने को बेचैन. तभी वह स्पर्श हट गया, अतृप्त खालीपन के झटके से उस ने आंखें खोल दीं. आवाज आई, ‘कौफी पीजिए.’

कामुकता से मुसकराती 2 आंखें देख उसे एक तीव्र वितृष्णा हुई खुद से, खुद के कमजोर होने से और उन 2 आंखों से. होटल के उस कमरे में अकेले उस अपरिचित के साथ यह क्या करने जा रही थी वह? वह झटके से उठी और कमरे से बाहर निकल गई. लगभग दौड़ते हुए वह होटल से बाहर आई और सामने से आती टैक्सी को हाथ दे कर उस में बैठ गई. तनुजा बुरी तरह हांफ रही थी. वह उस रास्ते पर चलने की हिम्मत नहीं जुटा पाई.

दोनों ओर स्थितियां चरम पर थीं. दोनों ही अंदर से टूटने लगे थे. ऐसे ही जिए जाने की कल्पना भयावह थी. उस रात तनुजा की सिसकियां सुन मनीष ने उसे सीने से लगा लिया. उस का गला रुंध गया, आंसू बह निकले. ‘‘मैं तुम्हारा दोषी हूं तनु, मेरे कारण…’’

तनु ने उस के होंठों पर अपनी हथेली रख दी, ‘‘ऐसा मत कहो, लेकिन मैं करूं क्या? बहुत कोशिश करती हूं लेकिन बरदाश्त नहीं कर पाती.’’

‘‘मैं तुम्हारी बेचैनी समझता हूं, तनु,’’ मनीष ने करवट ले कर तनुजा का चेहरा अपने हाथों में ले लिया, ‘‘तुम चाहो तो किसी और के साथ…’’ बाकी के शब्द एक बड़ी हिचकी में घुल गए.

वह बात जो अब तक विचारों में तनुजा को उकसाती थी और जिसे हकीकत में करने की हिम्मत वह जुटा नहीं पाई थी, वह मनीष के मुंह से निकल कर वितृष्णा पैदा कर गई.

तनुजा का मन घिना गया. उस ने खुद ऐसा कैसे सोचा, इस बात से ही नफरत हुई. मनीष उस से इतना प्यार करते हैं, उस की खुशी के लिए इतनी बड़ी बात सोच सकते हैं, कह सकते हैं लेकिन क्या वह ऐसा कर पाएगी? क्या ऐसा करना ठीक होगा? नहीं, कतई नहीं. उस ने दृढ़ता से खुद से कहा.

जो सच अब तक संकोच और शर्मिंदगी का आवरण ओढ़े अपारदर्शी बन कर उन के बीच खड़ा था, आज वह आवरण फेंक उन के बीच था और दोनों उस के आरपार एकदूसरे की आंखों में देख रहे थे. अब समाधान उन के सामने था. वे उस के बारे में बात कर सकते थे. उन्होंने देर तक एकदूसरे से बातें कीं और अरसे बाद एकदूसरे की बांहों में सो गए एक नई सुबह मेें उठने के लिए.

अपारदर्शी सच- भाग 2: किस रास्ते पर चलने लगी तनुजा

करीब सालभर पहले तक सब सामान्य था. मनीष और तनुजा जिंदगी के उस मुकाम पर थे जहां हर तरह से इतमीनान था. अपनी जिंदगी में एकदूसरे की अहमियत समझतेमहसूस करते एकदूसरे के प्यार में खोए रहते.

इस निश्चितता में प्यार का उछाह भी अपने चरम पर था. लगता, जैसे दूसरा हनीमून मना रहे हों जिस में अब उत्सुकता की जगह एकदूसरे को संपूर्ण जान लेने की तसल्ली थी. मनीष अपने दम भर उसे प्यार करते और वह पूरी शिद्दत से उन का साथ देती. फिर अचानक यों ही मनीष जल्दी थकने लगे तो उसी ने पूरा चैकअप करवाने पर जोर दिया.

सबकुछ सामान्य था पर कुछ तो असामान्य था जो पकड़ में नहीं आया था. वह उन का और ध्यान रखने लगी. खाना, फल, दूध, मेवे के साथ ही उन की मेहनत तक का. उस की इच्छाएं उफान पर थीं पर मनीष के मूड के अनुसार वह अपने पर काबू रखती. उस की इच्छा देखते मनीष भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते लेकिन वह अतृप्त ही रह जाती.

हालांकि उस ने कभी शब्दों में शिकायत दर्ज नहीं की, लेकिन उस की झुंझलाहट, मुंह फेर कर सो जाना, तकिए में मुंह दबा कर ली गई सिसकियां मनीष को आहत और शर्मिंदा करती गईं. धीरेधीरे वे उन अंतरंग पलों को टालने लगे. तनुजा कमरे में आती तो मनीष कभी तबीयत खराब होने का बहाना बनाते, कभी बिजी होने की बात कर लैपटौप ले कर बैठ जाते.

कुछकुछ समझते हुए भी उसे शक हुआ कि कहीं मनीष का किसी और से कोई चक्कर तो नहीं है? ऐसा कैसे हो सकता है जो व्यक्ति शाम होते ही उस के आसपास मंडराने लगता था वह अचानक उस से दूर कैसे होने लगा? लेकिन उस ने यह भी महसूस किया कि मनीष

अब भी उस से प्यार करते हैं. उस की छोटीछोटी खुशियां जैसे सप्ताहांत में सिनेमा, शौपिंग, आउटिंग सबकुछ वैसा ही तो था. किसी और से चक्कर होता तो उसे और बच्चों को इतना समय वे कैसे देते? औफिस से सीधे घर आते हैं, कहीं टूर पर जाते नहीं.

शक का कीड़ा जब कुलबुलाता है तब मन जितना उस के न होने की दलीलें देता है उतना उस के होने की तलाश करता. कभी नजर बचा कर डायरी में लिखे नंबर, तो कभी मोबाइल के मैसेज भी तनुजा ने खंगाल डाले पर शक करने जैसा कुछ नहीं मिला.

उस ने कईकई बार खुद को आईने में निहारा, अंगों की कसावट को जांचा, बातोंबातों में अपनी सहेलियों से खुद के बारे में पड़ताल की और पार्टियों, सोशल गैदरिंग में दूसरे पुरुषों की नजर से भी खुद को परखा. कहीं कोई बदलाव, कोई कमी नजर नहीं आई. आज भी जब पूरी तरह से तैयार होती है तो देखने वालों की नजर एक बार उस की ओर उठती जरूरी है.

हर ऐसे मौकों पर कसौटी पर खरा उतरने का दर्प उसे कुछ और उत्तेजित कर गया. उस की आकांक्षाएं कसमसाने लगीं. वह मनीष से अंतरंगता को बेचैन होने लगी और मनीष उन पलों को टालने के लिए कभी काम में, कभी बच्चों और टीवी में व्यस्त होने लगे.

अधूरेपन की बेचैनी दिनोंदिन घनी होती जा रही थी. उस दिन एक कलीग को अपनी ओर देखता पा कर तनुजा के अंदर कुछ कुलबुलाने लगा, फुरफुरी सी उठने लगी. एक विचार उस के दिलोदिमाग में दौड़ कर उसे कंपकंपा गया. छी, यह क्या सोचने लगी हूं मैं? मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती. मेरे मन में यह विचार आया भी कैसे? मनीष और मैं एकदूसरे से प्यार करते हैं, प्यार का मतलब सिर्फ यही तो नहीं है. कितना धिक्कारा था तनुजा ने खुद को लेकिन वह विचार बारबार कौंध जाता, काम करते हाथ ठिठक जाते, मन में उठती हिलोरें पूरे शरीर को उत्तेजित करती रहीं.

अतृप्त इच्छाएं, हर निगाह में खुद के प्रति आकर्षण और उस आकर्षण को किस अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है, वह यह सोचने लगी. संस्कारों के अंकुश और नैसर्गिक प्यास की कशमकश में उलझी वह खोईखोई सी रहने लगी.

उस दिन दोपहर तक बादल घिर आए थे. खाना खा कर वह गुदगुदे कंबल में मनीष के साथ एकदूसरे की बांहों में लिपटे हुए कोई रोमांटिक फिल्म देखना चाहती थी. उस ने मनीष को इशारा भी किया जिसे अनदेखा कर मनीष ने बच्चों के साथ बाहर जाने का प्रोग्राम बना लिया. वे नासमझ बन तनुजा से नजरें चुराते रहे, उस के घुटते दिल को नजरअंदाज करते रहे. वह चिढ़ गई. उस ने जाने से मना कर दिया, खुद को कमरे में बंद कर लिया और सारा दिन अकेले कमरे में रोती रही.

तनुजा ने पत्रपत्रिकाएं, इंटरनैट सब खंगाल डाले. पुरुषों से जुड़ी सैक्स समस्याओं की तमाम जानकारियां पढ़ डालीं. परेशानी कहां है, यह तो समझ आ गया लेकिन समाधान? समाधान निकालने के लिए मनीष से बात करना जरूरी था. बिना उन के सहयोग के कोई समाधान संभव ही नहीं था. बात करना इतना आसान तो नहीं था.

शब्दों को तोलमोल कर बात करना, एक कड़वे सच को प्रकट करना इस तरह कि वह कड़वा न लगे, एक ऐसी सचाई के बारे में बात करना जिसे मनीष पहले से जानते हैं कि तनुजा इसे नहीं जानती और अब उन्हें बताना कि वह भी इसे जानती है, यह सब बताते हुए भी कोई आक्षेप, कोई इलजाम न लगे, दिल तोड़ने वाली बात पर दिल न टूटे, अतिरिक्त प्यारदेखभाल के रैपर में लिपटी शर्मिंदगी को यों सामने रखना कि वह शर्मिंदा न करे, बेहद कठिन काम था.

दिन निकलते गए. कसमसाहटें बढ़ती गईं. अतृप्त प्यास बुझाने के लिए वह रोज नए मौकेरास्ते तलाशती रही. समाज, परिवार और बच्चे उस पर अंकुश लगाते रहे. तनुजा खुद ही सोचती कि क्या इस एक कमी को इस कदर खुद पर हावी होने देना चाहिए? तो कभी खुद ही इस जरूरी जरूरत के बारे में सोचती जिस के पूरा न होने पर बेचैन होना गलत भी तो नहीं. अगर मनीष अतृप्त रहते तो क्या ऐसा संयम रख पाते? नहीं, मनीष उसे कभी धोखा नहीं देते या शायद उसे कभी पता ही नहीं चलने देते.

भूल: प्यार के सपने दिखाने वाले अमित के साथ क्या हुआ?

कैफे कौफी डे’ में रजत, अमित, विनोद और प्रशांत बैठे गपें मार रहे थे, इतने में अचानक रजत की नजर घड़ी पर गई तो वह बोला, ‘‘अमित, तुझे तो अभी ‘उपवन लेक’ जाना है न, वहां पायल तेरा इंतजार कर रही होगी.’’

अमित ने अपने कौलर ऊपर करते हुए कहा, ‘‘वही एक अकेली थोड़ी है जो मेरा इंतजार कर रही है, कई हैं, करने दे उसे भी इंतजार, बंदा है ही ऐसा.’’

प्रशांत हंसा, ‘‘हां यार, तू अमीर बाप की इकलौती औलाद है, हैंडसम है, स्मार्ट है, लड़कियां तो तुझ पर मरेंगी ही.’’

अमित ने इशारे से वेटर को बुला कर बिल मंगवाया और बिल चुकाने के बाद अपनी गाड़ी की चाबी उठाई और बोला, ‘‘चलो, मैं चलता हूं, थोड़ा टाइमपास कर के आता हूं,’’ सब ने ठहाका लगाया और अमित बाहर निकल गया. वह सीधा ‘उपवन लेक’ पहुंचा, पायल वहां बैंच पर बैठी थी, उस ने कार से उतरते अमित को देखा तो खिल उठी. वह अमित को देखती रह गई. शिक्षित, धनी, स्मार्ट अमित उस जैसी मध्यवर्गीय घर से ताल्लुक रखने वाली साधारण लड़की को प्यार करता है, यह सोचते ही पायल खुद पर इतरा उठी. पास आते ही अमित ने उस की कमर में हाथ डाल दिया और इधरउधर देखते हुए कहा, ‘‘चलो, कहीं चल कर कौफी पीते हैं.’’

‘‘नहीं अमित, अगर किसी ने देख लिया तो?’’

‘‘अरे पायल, मैं तुम्हें जिस होटल में ले जाऊंगा वहां तुम्हारी जानपहचान का कोई फटक भी नहीं सकता.’’

पायल को अमित की यह बात बुरी तो लगी, लेकिन उस के व्यक्तित्व के रोब में दबा उस का मन कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाया, उस ने चुपचाप सिर हिला दिया. अमित उसे एक शानदार महंगे होटल में ले गया और दोनों ने एक कोने में बैठ कर कौफी और कुछ स्नैक्स का और्डर दे दिया, हलकाहलका मधुर संगीत और होटल के शानदार इंटीरियर को देख पायल का मन झूम उठा.

अमित की मीठीमीठी बातें सुन कर पायल किसी और ही दुनिया में पहुंच गई. करीब घंटेभर दोनों साथ बैठे रहे. इस दौरान कभी अमित पायल का हाथ अपने हाथ में ले कर बैठता तो कभी उस के खूबसूरत सुनहरे बालों को उंगलियों से सहलाने लगता. पायल हमेशा की तरह सुधबुध खो कर उस की बातों की दीवानी बन खोई रही. जब उस के मोबाइल की घंटी बजी तो वह होश में आई, उस के पापा का फोन था, उन्होंने पूछा, ‘‘कहां हो?’’

पायल ने तुरंत कहा, ‘‘बस पापा, रास्ते में हूं, घर पहुंचने वाली हूं.’’ उस ने अमित से कहा, ‘‘अब मैं जा रही हूं, फिर मिलेंगे.’’ अमित ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम जाओ, मैं यहां अपने दोस्त का इंतजार कर रहा हूं, वह आता ही होगा.’’ पायल चली गई. अमित ने मुसकराते हुए घड़ी देखी. रंजना को उस ने आधे घंटे बाद यहीं बुलाया था. वह जानता था कि पायल घंटेभर से ज्यादा नहीं रुक पाएगी, क्योंकि उस के पापा काफी अनुशासनप्रिय हैं.

अमित बिजनैसमैन कमलकांत का इकलौता बेटा था, मम्मी का देहांत हो चुका था. उस ने अभीअभी एमबीए किया था ताकि बिजनैस संभाल सके. वह युवतियों को खिलौना समझता था, उन पर पैसा खर्च कर वह अपना उल्लू साधता था. वह कई युवतियों से एकसाथ फ्लर्ट करता था. कालेज में युवतियां उस की दीवानी थीं, जिस का उस ने हमेशा फायदा उठाया.

पायल के जाने के बाद वह अब रंजना का इंतजार कर रहा था. खुले विचारों वाली रंजना मौडर्न ड्रैस पहन कर मिलने आई थी. अमित को देख कर उस ने फ्लाइंग किस की और पास पहुंच कर उस से सट कर बैठ गई. अमित ने उस से प्यार भरी बातें कीं और छेड़खानी शुरू कर दी.

रंजना खुद को बड़ी खुशनसीब मानती थी कि उसे अमित जैसा दौलतमंद बौयफ्रैंड मिला. उस ने शादी का जिक्र किया, ‘‘अमित, तुम डैड से हमारी शादी की बात कब कर रहे हो?’’

अमित चौंक कर बोला, ‘‘देखता हूं, अभी तो डैड बहुत बिजी हैं,’’ कहते हुए वह मन ही मन हंसा, ’कितनी बेवकूफ होती हैं लड़कियां, दो बोल प्यार के सुन कर शादी के सपने देखने लगती हैं, हुंह. शादी और इन से, शादी तो अपने ही जैसे उच्चवर्गीय परिवार की किसी लड़की से करूंगा, मखमल में टाट का पैबंद तो लगने से रहा,’अमित ने रंजना की बातों का रुख मोड़ दिया. फिर घंटेभर टाइमपास कर रंजना को ले कर कार की तरफ बढ़ा और उस के घर से पहले ही कार रोक कर उसे उतार कर आगे बढ़ गया.

वह जब घर पहुंचा तो उस के पिता कमलकांत औफिस से आ चुके थे, वे ड्राइंगरूम में गुमसुम बैठे थे. अमित गुनगुनाते हुए घर के अंदर दाखिल हुआ तो उस से पापा की नजरें मिलीं. अमित ने अपने पिता के चेहरे की गंभीरता भांप ली और बोला, ‘‘डैड, कुछ प्रौब्लम है क्या? आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

कमलकांत कुछ नहीं बोले, बस, सोफे पर उन्होंने सिर टिका लिया. अमित घबरा कर आगे बढ़ा, ‘‘क्या हुआ डैड?’’

कमलकांत की बुझीबुझी सी आवाज आई, ‘‘2 दिन से सोच रहा हूं तुम्हें बताने के लिए, मुझे एबीसी कंपनी के शेयरों में काफी घाटा हुआ है. अब सारा पैसा डूब गया, जबरदस्त नुकसान हुआ है.’’

दोनों बापबेटा काफी देर सिर पकड़ कर बैठे रहे, फिर कमलकांत ने कहा,

‘‘मि. कुलकर्णी की बेटी से तुम्हारे रिश्ते की जो बात चल रही थी आज उन्होंने भी बात घुमाफिरा कर इस रिश्ते को खत्म करने का संकेत दे दिया है. अब तुम्हें कोई लड़की पसंद हो तो बता देना,’’ तभी नौकर ने आ कर खाना बनाने के लिए पूछा तो दोनों ने ही मना कर दिया.

दोनों के होश उड़े हुए थे, दोनों बापबेटा अपनेअपने कमरे में रातभर जागते रहे. कमलकांत रातभर अपने वकील, सैक्रेटरी, मैनेजर से बात करते रहे, अमित ने तो अपना फोन ही स्विचऔफ कर दिया था, कहां तो वह रोज इस समय फोन पर किसी न किसी लड़की को भविष्य के सुनहरे सपने दिखा रहा होता था. अगले कुछ दिनों में स्थिति और भी स्पष्ट होती चली गई थी. शहर में चर्चा होने लगी, इसी वजह से कमलकांत को हार्टअटैक आ गया, उन्हें तुरंत अस्पताल में भरती किया गया. अमित की भी हालत खराब थी. रिश्तेदारों ने भी उस से दूरी बना ली. सिर्फ एकदो दोस्त उस के साथ अस्पताल में थे.

अमित पिता की रातदिन देखभाल कर रहा था. कुछ दिन बाद जब उन की हालत में कुछ सुधार हुआ तो डाक्टर के निर्देशों के साथ घर आते ही उन्होंने अमित से कहा, ‘‘बेटा, तुम जल्दी से जल्दी साधारण ढंग से ही शादी कर लो, मेरी एक चिंता तो खत्म हो जाएगी. तुम्हारी तो इतनी सारी लड़कियों से दोस्ती है. मुझे बताओ, किस से शादी करना चाहते हो?’’

‘‘डैड, पहले आप ठीक तो हो जाओ, मुझे तय करने के लिए थोड़ा समय चाहिए.’’

समाचारपत्रों में छपी खबरों से अब तक रंजना, पायल और अन्य लड़कियों को भी अमित के चरित्र और कमलकांत की गिरती साख की खबर लग चुकी थी. अमित ने पायल को मिलने के लिए फोन किया तो उस ने साफ इनकार कर दिया और बोली, ‘‘तुम एक आवारा और चरित्रहीन लड़के हो, लड़कियों की भावनाओं से खेलते हो. शादी तो दूर मैं तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहती.‘‘

अमित पायल के व्यंग्यबाणों से अपमान, मानसिक पीड़ा और क्रोध में जला जा रहा था. इस पीड़ा से उस ने अपनेआप को बहुत मुश्किल से संभाला. सामान्य होने के बाद उस ने रंजना को फोन किया तो रंजना का भी जवाब था, ‘‘तुम अब कुछ भी नहीं हो अमित, जिस पिता के पैसे पर ऐश कर के लड़कियों को बेवकूफ बनाते थे वह पैसा तो अब डूब गया. अब मेरी भी तुम में कोई रुचि नहीं है. मुझे पूजा, अनीता और मंजू के बारे में भी पता चल चुका है, अब सब तुम्हारी हकीकत जान चुके हैं. पिता की दौलत के बिना तुम कुछ नहीं हो, किसी लड़की को अपने से कम समझना, तुम लड़कों का ही हक नहीं है बल्कि हम में भी फैसला लेने की क्षमता, इच्छा, रुचि और पसंद होती है. काश, तुम गरीब और साधारण रूपरंग वाले लेकिन चरित्रवान युवक होते और लड़कियों की भावनाओं से नहीं खेलते,’’ कह कर रंजना ने उस की बात सुने बिना ही फोन रख दिया.

अमित को ऐसा लगा जैसा कि रंजना ने उसे करारा तमाचा मारा हो. निष्प्राण सा वह बिस्तर पर ढह गया. उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो शरीर का खून पानी हो गया हो. उस का गला सूखने लगा और वह अब कुछ करने की हालत में नहीं था. वह बड़ी मुश्किल से उठा और पापा को उस ने अपने हाथ से जबरदस्ती कुछ खिला कर दवा दी, फिर अपने कमरे में आ कर निढाल पड़ गया. उस के दिलोदिमाग में विचारों की आंधी का तांडव चल रहा था. वह इस तरह अपने को ठुकराना सहन नहीं कर पा रहा था. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस जैसे स्मार्ट, हैंडसम लड़के का कोई लड़की इस तरह से अपमान कर सकती है. उस ने अब तक न जाने कितनी लड़कियों को अपनी बातों के जाल में फंसाया था, लेकिन आज उन साधारण लड़कियों ने उस के घमंड को चकनाचूर कर दिया.

मन शांत हुआ तो उस ने सोचा कि सिर्फ पुरुष होने के नाते वह किसी लड़की की भावनाओं से नहीं खेल सकता. उस ने हमेशा अपनी भावनाओं को ही महत्त्व दिया. कभी उस के मन में यह बात नहीं आई कि किसी लड़की का भी आत्मसम्मान व पसंदनपसंद हो सकती है. उस के दिमाग में तो हमेशा यही गलतफहमी रही कि उसे पा कर हर लड़की खुद को धन्य समझेगी, लेकिन उस रात आत्मविश्लेषण करते हुए उस ने महसूस किया कि पायल और रंजना की बातों ने उस की सोच को नया आयाम दिया है. सुबह उस का मन एकदम शांत था, ठीक तूफान के गुजरने के बाद की तरह शांत. उसे अपनी भूल का एहसास हो चुका था. वह मन ही मन पायल, रंजना और पता नहीं कितनी लड़कियों से माफी मांग रहा था.

मिट गई दूरियां: कैसे एक हुए राजेश और अंजलि

कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान जहां सभी लोग अपनेअपने घरों में सिमट गए थे, वहीं नौकरीपेशा लोगों के लिए ड्यूटी पर जमे रहना जरूरी था.

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले का रहने वाला 25 साल का राजेश कुमार रेलवे में ट्रैकमैन की नौकरी कर रहा था. उस की पोस्टिंग बिहार के रोहतास जिले में हुई थी. वह कई सालों से रोहतास के डेहरी औन सोन के रेलवे क्वार्टर में रह रहा था.

रेलवे लाइन के किनारे सरकारी क्वार्टर बने हुए थे. वैसे, इस महकमे के सरकारी क्वार्टरों की हालत अच्छी नहीं थी. ज्यादातर रेलवे मुलाजिम इन क्वार्टरों में रहना पसंद नहीं करते थे. इस की वजह यह थी कि सरकारी क्वार्टर होने के चलते इन के रखरखाव और मरम्मत ठीक से नहीं हो पाई थी, जिस से कुछ को छोड़ कर ज्यादार क्वार्टर जर्जर हो चुके थे, इसलिए लोगों को रहने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था.

लिहाजा, ज्यादातर रेलवे मुलाजिम सरकारी क्वार्टर को अलौट नहीं करवाना चाहते थे. दूसरी वजह यह भी थी कि रेलवे स्टेशन शहर से थोड़ा दूर था. लेकिन राजेश कुंआरा था और उसे घर के लिए पैसे भी बचाने थे, इसलिए उस के लिए रेलवे क्वार्टर में ही रहना ठीक था.

जब कोरोना की पहली लहर आई तो राजेश को हाजिरी लगाने भर के लिए ड्यूटी जाना पड़ता था, क्योंकि देशभर में ट्रेनों की आवाजाही बंद कर दी गई थी.

उस दिन रात के तकरीबन 9 बजे राजेश क्वार्टर से खाना खा कर आदतन चहलकदमी करने निकला था. वह जैसे ही घर से बाहर निकला, घर के पिछवाड़े में एक औरत उस के कमरे की दीवार के पास बदहवास हालत में पड़ी हुई थी.

राजेश उसे देख कर हैरान हुआ. दूर से आ रही लैंपपोस्ट की रोशनी में भी वह साफ देख पा रहा था. उस की साड़ी और पेटीकोट घुटने से ऊपर तक चढ़े हुए थे. ब्लाउज का ऊपरी हुक टूट हुआ था, जिस के चलते उस के उभार साफ दिख रहे थे. उस की साड़ी जगहजगह से फटी हुई थी. उस के पैर लहूलुहान दिख रहे थे. देखने में वह भले घर की लग रही थी. राजेश को ऐसा महसूस हुआ कि उस औरत के साथ कुछ न कुछ गलत जरूर हुआ है.

राजेश को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? उसे हिम्मत नहीं हो रही थी कि उस से कुछ पूछे. फिर भी वह इनसानियत के नाते उस औरत के नजदीक गया और पूछा, ‘‘तुम कौन हो? यहां क्या कर रही हो?’’

वह औरत सिसक रही थी. उस ने अपने आंचल से आंखों के कोनों को साफ किया. वह कुछ पल राजेश की तरफ देखती रही, फिर डरतेडरते बोलने की कोशिश की, ‘‘मुझे जोर से प्यास लगी है.’’

राजेश झटपट जा कर कमरे से एक गिलास पानी ले आया था. वह पानी के गिलास को एक ही सांस में खाली कर गई थी. देखने से अंदाजा लगा कि वह काफी भूखीप्यासी है.

‘‘मैं काफी थकी हूं. मुझे सोने दो,’’ यह कह कर वह एक तरफ वहीं जमीन पर सोने लगी थी.

‘‘बाहर बहुत कीड़ेमकोड़े और मच्छर भी हैं. यहां सोना महफूज भी नहीं है… अंदर आ कर मेरे कमरे में सो जाओ,’’ राजेश ने उस से कहा.

वह औरत कुछ पल सोचती रही, क्योंकि बाहर बहुत सन्नाटा था. वह ऐसी सुनसान जगह में कभी नहीं रही थी.

उसे अजनबी आदमी पर यकीन नहीं हो रहा था, फिर भी वह बाहर डर महसूस कर रही थी. वर्तमान हालात ऐसे थे कि उसे राजेश पर यकीन करना ही ठीक लगा था, इसलिए वह उस के कहने पर अंदर आ गई थी.

राजेश उसे कमरे में सो जाने के लिए बोला था. उस के पास कुछ रोटियां थीं, उसे खाने के लिए दी थीं, पर वह बिना खाए ही कमरे में सो गई थी. राजेश बाहर बरामदे में सो गया था.

किंतु राजेश को नींद नहीं आ रही थी. वह उसी के बारे में सोच रहा था. कुछ भी अंदाजा नहीं लगा पा रहा था. आखिर यह औरत कौन है? इस हालत में यहां तक यह कैसे पहुंची है? इसी उधेड़बुन में उसे कब नींद लग गई, पता भी नहीं चला था.

राजेश की सुबह जल्दी ही नींद खुल गई थी. कुछ देर बाद वह औरत भी जाग गई थी. राजेश ने उसे बाथरूम के बारे में बता दिया. उस के पैर में छाले होने के चलते वह ठीक से चल भी नहीं पा रही थी.

राजेश के मन में कई तरह के सवाल उठ रहे थे. तभी राजेश किचन से चाय बना कर ले आया था. वह डरते हुए चाय पीने लगी थी और खुद के बारे में सोच रही थी.

चाय पीते ही राजेश ने उस औरत से कई तरह के सवाल पूछ डाले थे.

उस औरत ने बताना शुरू किया, ‘‘मैं अंजली हूं और मेरा घर तिलौथू ब्लौक के निमियाडीह गांव में है, जो यहां से तकरीबन 12 किलोमीटर दूर है.

‘‘दरअसल, मैं घर से भाग कर रेलवे लाइन पर मरने के लिए आई थी, लेकिन लौकडाउन होने के चलते कई दिनों से ट्रेन आजा नहीं रही है. मैं पिछली रात को ही अपने घर से चुपके से निकल गई थी. रातभर चलने के बाद यहां पहुंची थी.

‘‘दिनभर रेलवे लाइन के किनारे मरने के लिए भूखीप्यासी इधरउधर भटकती रही. लेकिन एक भी ट्रेन नहीं आ पाई तो मैं बहुत निराश हो गई थी.

‘‘मैं भूखप्यास से काफी थक गई थी, इसीलिए रात में आप के घर के पिछवाड़े पड़ी हुई थी. मैं यहां अपनी किस्मत पर रो रही थी. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करूं? मुझे सुनसान जगह होने के चलते काफी डर लग रहा था.’’

राजेश ने सवाल किया, ‘‘आखिर तुम मरना क्यों चाहती हो?’’

यह सुन कर अंजली काफी उदास हो गई थी. उस की आंखों से आंसू छलक पड़े थे. काफी कोशिश के बाद उस ने बताया, ‘‘मेरा पति एक नंबर का शराबी है. वह नकारा है. वह मुझे कोसता रहता था कि बेटी की शादी कौन करेगा?

‘‘एक दिन शराब के नशे में उस ने मेरी बेटी को बिस्तर से नीचे फेंक दिया था. ज्यादा चोट लगने के चलते मेरी बेटी मर गई.

‘‘इस के बाद मुझे अपने पति से नफरत हो गई थी, इसीलिए मैं जीना नहीं चाहती थी,’’ यह कहते हुए अंजली की आंखों में आंसू झिलमिलाने लगे थे.

राजेश को अंजली की आपबीती सुन कर दुख हुआ था. उसे अंजली के पति पर काफी गुस्सा आ रहा था, लेकिन कुछ शक भी हो रहा था कि कोई भी औरत इतनी दूर मरने के लिए क्यों आएगी?

राजेश ने चाय के खाली प्याले को टेबल पर रखते हुए अंजली को समझाया, ‘‘अब तुम नहाधो लो. अभी लौकडाउन है. तुम कहीं जा भी नहीं सकती हो. अगर तुम चाहो तो यहां अपने पैर के जख्म को ठीक होने तक रुक सकती हो. वैसे, तुम इस हालत में कहीं जाने लायक भी नहीं हो.

‘‘अरे हां, तुम्हारे पास तो कपड़े भी नहीं हैं. हैंगर पर मेरी पैंट और टीशर्ट टंगे हुए हैं. अभी तुम्हें वही पहन कर काम चलाना पड़ेगा. मैं थोड़ा बाहर से सब्जी, दूध और तुम्हारे लिए दवा लेने जा रहा हूं. यहां 2 घंटे के बाद दुकानें बंद हो जाएंगी,’’ यह कह कर वह एक थैला ले कर बाहर निकल गया.

जब राजेश डेढ़ घंटे बाद अपने क्वार्टर में वापस आया, तो अंजली उस हालत में भी घर की साफसफाई कर चुकी थी. वह नहाधो कर कर पैंटटीशर्ट पहन चुकी थी और अपनी साड़ी, ब्लाउज और पेटीकोट को सूखने के लिए आंगन में रस्सी पर फैला रखा था.

अंजली बालों में कंघी कर रही थी. वह देखने में काफी खूबसूरत लग रही थी. वह कहीं से भी शादीशुदा नहीं लग रही थी. अभी मुश्किल से उस की उम्र 24-25 साल के आसपास रही होगी. खिलेखिले बड़े उभारों की गोलाई और उस के गुलाबी होंठ देख कर एकबारगी राजेश का मन मचलने लगा था.

राजेश ने अंजली को गरम दूध के साथ ब्रैड खाने को दी. इस के बाद अपने हाथों से दवा खिलाई थी.

राजेश तौलिया ले कर बाथरूम में नहाने चला गया था. जब वह नहा कर आया, तो औफिस में हाजिरी लगाने के लिए निकल पड़ा. तकरीबन ढाई घंटे बाद जब वह घर लौट कर आया, तो अंजली खाना पका कर उस के इंतजार में बैठी हुई थी.

राजेश ने आते ही पूछा, ‘‘तुम ने खाना खा लिया?’’

‘‘नहीं,’’ अंजली ने छोटा सा जवाब दिया.

राजेश के कहने पर उस ने थोड़ा सा खाना खाया. खाना खाने के बाद वे एकदूसरे के सामने बैठे हुए थे. राजेश ने उस से कुरेदकुरेद कर पूछना शुरू किया, तो उस ने बताया, ‘‘मैं 10वीं जमात तक पढ़ी हूं. गरीबी के चलते मेरे मामा ने कम उम्र में ही मेरी शादी कर दी थी, क्योंकि मेरे मातापिता बचपन में ही गुजर गए थे.

‘‘मेरे मामा किसी तरह से मेरी शादी कर के छुटकारा पाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने बिना जानेसमझे मुझे उस पियक्कड़ के गले बांध दिया था.’’

1-2 दिन बाद ही राजेश को यह एहसास हुआ कि जिस घर में वह अकेलापन महसूस करता था, उस घर में अब रौनक आ गई थी. पहले वह घर से बाहर ज्यादा समय बिताना चाहता था, पर अब अंजली के आते ही उस का रूटीन बदल गया था. वह ज्यादा से ज्यादा समय उस के साथ बिताना चाहता था. उस के साथ बातें करना अच्छा लग रहा था.

अंजली कुछ दिन में ही अपना दुखदर्द भूल चुकी थी. अब वह बातचीत के दौरान थोड़ाबहुत हंसनेमुसकराने लगी थी. वह रोज उस के लिए खाना पकाने लगी थी. दोनों मिल कर खाते थे और देर रात तक इधरउधर की बातें करते थे.

तकरीबन हफ्तेभर बाद राजेश एक दिन औफिस से छुट्टी ले कर अपने एक दोस्त की बाइक से अंजली के गांव की तरफ चला गया था. वहां उस ने एक पान बेचने वाले से पूछा, ‘‘भैया, यहां कोरोना वायरस से कितने लोगों की मौत हुई होगी?’’

उस पान वाले ने बताया, ‘‘यहां कोरोना से किसी की मौत नहीं हुई है, पर हालफिलहाल में एक औरत ने घर से भाग कर नदी में कूद कर अपनी जान दे दी है. उस की लाश अभी तक नहीं मिल पाई है.’’

‘‘वे लोग कैसे जानें कि वह औरत नदी में कूद गई है?’’ राजेश ने पान वाले से सवाल किया.

‘‘उस औरत की चप्पल नदी के किनारे पड़ी मिली थी. अब उस औरत का श्राद्ध किया जा रहा है. उस का पति शराबी होने के साथसाथ नालायक भी है. वह बिना शराब पिए रह ही नहीं पाता है. बेचारी उस औरत को मुक्ति मिल गई,’’ पान बेचने वाले ने राजेश को बताया.

राजेश भरे मन से वापस लौट आया. वह इस उधेड़बुन में था कि अंजली को यह सब बात बताए कि नहीं बताए.

लेकिन वह अंजली से सचाई को छिपाना नहीं चाहता था, इसलिए उस ने बताया, ‘‘आज मैं तुम्हारे गांव में गया था. तुम उन लोगों की नजरों में मर चुकी हो, इसलिए तुम्हारे परिवार के द्वारा तुम्हारा श्राद्ध भी किया जा रहा था.’’

यह सुन कर अंजली निराश हुई. धीरेधीरे अनलौक की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. दुकानें वगैरह ज्यादा समय के लिए खुलने लगी थीं, इसीलिए राजेश अंजली के लिए पहनने के लिए कुछ नई साड़ी खरीद लाया था. अबतक राजेश को अंजली से लगाव हो चुका था.

राजेश की नईनई नौकरी लगी थी, इसलिए शादी के लिए उस के घर पर लड़की वाले आ रहे थे. उस के मातापिता जल्दी ही शादी कराना चाहते थे, लेकिन लौकडाउन के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा था.

अंजली के आने के बाद राजेश की इच्छा बदलने लगी थी. अंजली भी चाहती थी कि जब वह मर नहीं सकी तो राजेश के लिए ही जिएगी, क्योंकि उसी के चलते उसे नई जिंदगी मिली थी. वह मन ही मन राजेश को चाहने लगी थी.

उस रात मूसलाधार बारिश होने लगी थी. राजेश बरामदे में सो रहा था, लेकिन तेज बारिश के झोंकों के चलते बरामदे का बिस्तर गीला हो गया था. अंजली के कहने पर राजेश उस के साथ बिस्तर पर सो गया था.

तेज हवा और बारिश के चलते वातावरण में ठंडापन भी आ गया था. ऐसे में बिजली चली गई. जैसे ही दोनों की गरम सांसें टकराईं, दोनों के अंदर बिजली कौंधने लगी थी. वे एकदूसरे की बांहों में समाने लगे थे. कुछ देर में दूरियां मिट गई थीं. अब वे दोनों एकदूसरे की बांहों में पड़ कर भविष्य के नए सपने बुन रहे थे.

धीरज कुमार

प्रेम का निजी स्वाद: महिमा की जिंदगी में क्यों थी प्यार की कमी

Romantic Story In Hindi

पराकाष्ठा- भाग 1: एक विज्ञापन ने कैसे बदली साक्षी की जिंदगी

आज भी मुखपृष्ठ की सुर्खियों पर नजर दौड़ाने के पश्चात वह भीतरी पृष्ठों को देखने लगी. लघु विज्ञापन तथा वर/वधू चाहिए, पढ़ने में साक्षी को सदा से ही आनंद आता है.

कालिज के जमाने में वह ऐसे विज्ञापन पढ़ने के बाद अखबार में से उन्हें काट कर अपनी सहेलियों को दिखाती थी और हंसीठट्ठा करती थी.

शहर के समाचार देखने के बाद साक्षी की नजर वैवाहिक विज्ञापन पर पड़ी जिसे बाक्स में मोटे अक्षरों के साथ प्रकाशित किया गया था, ‘30 वर्षीय नौकरीपेशा, तलाकशुदा, 1 वर्षीय बेटे के पिता के लिए आवश्यकता है सुघड़, सुशील, पढ़ीलिखी कन्या की. गृहकार्य में दक्ष, पति की भावनाओं, संवेदनाओं के प्रति आदर रखने वाली, समझौतावादी व उदार दृष्टिकोण वाली को प्राथमिकता. शीघ्र संपर्र्ककरें…’

साक्षी के पूरे शरीर में झुरझुरी सी होने लगी, ‘कहीं यह विज्ञापन सुदीप ने ही तो नहीं दिया? मजमून पढ़ कर तो यही लगता है. लेकिन वह तलाकशुदा कहां है? अभी तो उन के बीच तलाक हुआ ही नहीं है. हां, तलाक की बात 2-4 बार उठी जरूर है.

शादी के पश्चात हनीमून के दौरान सुदीप ने महसूस किया कि अंतरंग क्षणोें में भी वह उस की भावनाओं का मखौल उड़ा देती है और अपनी ही बात को सही ठहराती है. सुदीप को बुरा तो लगा लेकिन तब उस ने चुप रहना ही उचित समझा.

शादी के 2 महीने ही बीते होंगे, छुट्टी का दिन था. शाम के समय अचानक साक्षी बोली, ‘सुदीप अब हमें अपना अलग घर बसा लेना चाहिए, यहां मेरा दम घुटता है.’

सुदीप जैसे आसमान से नीचे गिरा, ‘यह क्या कह रही हो, साक्षी? अभी तो हमारी शादी को 2 महीने ही हुए हैं और फिर मैं इकलौता लड़का हूं. पिताजी नहीं हैं इसलिए मां की और कविता की जिम्मेदारी भी मुझ पर ही है. तुम ने कैसे सोच लिया कि हम अलग घर बसा लेंगे.’

साक्षी तुनक कर बोली, ‘क्या तुम्हारी जिम्मेदारी सिर्फ तुम्हारी मां और बहन हैं? मेरे प्रति तुम्हारी कोई जिम्मेदारी नहीं?’

‘तुम्हारे प्रति कौन सी जिम्मेदारी मैं नहीं निभा रहा? घर में कोई रोकटोक, प्रतिबंध नहीं. और क्या चाहिए तुम्हें?’ सुदीप भी कुछ आवेश में आ गया.

‘मुझे आजादी चाहिए, अपने ढंग से जीने की आजादी, मैं जो चाहूं पहनूं, खाऊं, करूं. मुझे किसी की भी, किसी तरह की टोकाटाकी पसंद नहीं.’

‘अभी भी तो तुम अपने ढंग से जी रही हो. सवेरे 9 बजे से पहले बिस्तर नहीं छोड़तीं फिर भी मां चुप रहती हैं, भले ही उन्हें बुरा लगता हो. मां को तुम से प्यार है. वह तुम्हें सुंदर कपड़े, आभूषण पहने देख कर अपनी चाह, लालसा पूरी करना चाहती हैं. रसोई के काम तुम्हें नहीं आते तो तुम्हें सिखा कर सुघड़ बनाना चाहती हैं. इस में नाराजगी की क्या बात है?’

‘बस, अपनी मां की तारीफों के कसीदे मत काढ़ो. मैं ने कह दिया सो कह दिया. मैं उस घर में असहज महसूस करती हूं, मुझे वहां नहीं रहना?’

‘चलो, आज खाना बाहर ही खा लेते हैं. इस विषय पर बाद में बात करेंगे,’ सुदीप ने बात खत्म करने के उद्देश्य से कहा.

‘बाद में क्यों? अभी क्यों नहीं? मुझे अभी जवाब चाहिए कि तुम्हें मेरे साथ रहना है या अपनी मां और बहन के  साथ?’

सुदीप सन्न रह गया. साक्षी के इस रूप की तो उस ने कल्पना भी नहीं की थी. फिर किसी तरह स्वयं को संयत कर के उस ने कहा, ‘ठीक है, घर चल कर बात करते हैं.’

‘मुझे नहीं जाना उस घर में,’ साक्षी ने अकड़ कर कहा. सुदीप ने उस का हाथ खींच कर गाड़़ी में बैठाया और गाड़ी स्टार्ट की.

‘तुम ने मुझ पर हाथ उठाया. यह देखो मेरी बांह पर नीले निशान छप गए हैं. मैं अभी अपने मम्मीपापा को फोन कर के बताती हूं.’

साक्षी के चीखने पर सुदीप हक्काबक्का रह गया. किसी तरह स्वयं पर नियंत्रण रख कर गाड़ी चलाता रहा.

घर पहुंचते ही साक्षी दनदनाती हुई अपने कमरे की ओर चल पड़ी. मां तथा कविता संशय से भर उठीं.

‘सुदीप बेटा, क्या बात है. साक्षी कुछ नाराज लग रही है?’ मां ने पूछा.

‘कुछ नहीं मां, छोटीमोटी बहसें तो चलती ही रहती हैं. आप लोग सो जाइए. हम बाहर से खाना खा कर आए हैं.’

साक्षी को समझाने की गरज से सुदीप ने कहा, ‘साक्षी, शादी के बाद लड़की को अपनी ससुराल में तालमेल बैठाना पड़ता है, तभी तो शादी को समझौता भी कहा जाता है. शादी के पहले की जिंदगी की तरह बेफिक्र, स्वच्छंद नहीं रहा जा सकता. पति, परिवार के सदस्यों के साथ मिल कर रहना ही अच्छा होता है. आपस में आदर, प्रेम, विश्वास हो तो संबंधों की डोर मजबूत बनती है. अब तुम बच्ची नहीं हो, परिपक्व हो, छोटीछोटी बातों पर बहस करना, रूठना ठीक नहीं…’

‘तुम्हारे उपदेश हो गए खत्म या अभी बाकी हैं? मैं सिर्फ एक बात जानती हूं, मुझे यहां इस घर में नहीं रहना. अगर तुम्हें मंजूर नहीं तो मैं मायके चली जाऊंगी. जब अलग घर लोगे तभी आऊंगी,’ साक्षी ने सपाट शब्दों में धमकी दे डाली.

अमावस की काली रात उस रोज और अधिक गहरी और लंबी हो गई थी. सुदीप को अपने जीवन में अंधेरे के आने की आहट सुनाई पड़ने लगी. किस से अपनी परेशानियां कहे? जब लोगों को पता लगेगा कि शादी के 2-3 महीनों में ही साक्षी सासननद को लाचार, अकेले छोड़ कर पति के साथ अलग रहना चाहती है तो कितनी छीछालेदर होगी.

सुदीप रात भर इन्हीं तनावों के सागर में गोते लगाता रहा. इस के बाद भी अनेक रातें इन्हीं तनावों के बीच गुजरती रहीं.

मां की अनुभवी आंखों से कब तक सुदीप आंखें चुराता. उस दिन साक्षी पड़ोस की किसी सहेली के यहां गई थी. मां ने पूछ ही लिया, ‘सुदीप बेटा, तुम दोनों के बीच कुछ गलत चल रहा है? मुझ से छिपाओगे तो समस्या कम नहीं होगी, हो सकता है मैं तुम्हारी मदद कर सकूं?’

सुदीप की आंखें नम हो आईं. मां के प्रेम, आश्वासन, ढाढ़स ने हिम्मत बंधाई तो उस ने सारी बातें कह डालीं. मां के पैरों तले जमीन खिसक गई. वह तो साक्षी को बेटी से भी अधिक प्रेम, स्नेह दे रही थीं और उस के दिल में उन के प्रति अनादर, नफरत की भावना. कहां चूक हो गई?

एक दिन मां ने दिल कड़ा कर के फैसला सुना दिया, ‘सुदीप, मैं ने इसी कालोनी में तुम्हारे लिए किराए का मकान देख लिया है. अगले हफ्ते तुम लोग वहां शिफ्ट हो जाओ.’ सुदीप अवाक् सा मां के उदास चेहरे को देखता रह गया. हां, साक्षी के चेहरे पर राहत के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे.

‘लेकिन मां, यहां आप और कविता अकेली कैसे रहेंगी?’ सुदीप का स्वर भर्रा गया.

‘हमारी फिक्र मत करो. हो सकता है कि अलग रह कर साक्षी खुश रहे तथा हमारे प्रति उस के दिल में प्यार, आदर, इज्जत की भावना बढ़े.’

विदाई के समय मां, कविता के साथसाथ सुदीप की भी रुलाई फूट पड़ी थी. साक्षी मूकदर्शक सी चुपचाप खड़ी थी. कदाचित परिवार के प्रगाढ़ संबंधों में दरार डालने की कोशिश की पहली सफलता पर वह मन ही मन पुलकित हो रही थी.

अलग घर बसाने के कुछ ही दिनों बाद साक्षी ने 2-3 महिला क्लबों की सदस्यता प्राप्त कर ली. आएदिन महिलाओं का जमघट उस के घर लगने लगा. गप्पबाजी, निंदा पुराण, खानेपीने में समय बीतने लगा. साक्षी यही तो चाहती थी.

उस दिन सुदीप मां और बहन से मिलने गया तो प्यार से मां ने खाने का आग्रह किया. वह टाल न सका. घर लौटा तो साक्षी ने तूफान खड़ा कर दिया, ‘मैं यहां तुम्हारा इंतजार करती भूखी बैठी हूं और तुम मां के घर मजे से पेट भर कर आ रहे हो. मुझे भी अब खाना नहीं खाना.’

सुदीप ने खुशामद कर के उसे खाना खिलाया और उस के जोर देने पर थोड़ा सा स्वयं भी खाया.

एक नजर: क्या हुआ था छोटी बहू के साथ?

जनाजे की तैयारी हो रही थी. छोटी बहू की लाश रातभर हवेली के अंदर नवाब मियां के कमरे में ही बर्फ पर रखी हुई थी. रातभर जागने से औरतों और मर्दों के चेहरे पर सुस्ती और उदासी छाई हुई थी.

रातभर दूरदराज से लोग आतेजाते रहे और दुख जताने का सिलसिला चलता रहा.

पूरी हवेली मानो गम में डूबी हुई थी और घर के बच्चेबूढ़ों की आंखें नम थीं. मगर कई साल से खामोश और अलगथलग से रहने वाले बड़े मियां जान यानी नवाब मियां के बरताव में कोई फर्क नहीं पड़ा था. उन की खामोशी अभी भी बरकरार थी.

उन्होंने न तो किसी से दुख जताने की कोशिश की और न ही उन से मिल कर कोई रोना रोया, क्योंकि सभी जानते थे कि पिछले 2-3 सालों से वे खुद ही दुखी थे.

नवाब मियां शुरू से ऐसे नहीं थे, बल्कि वे तो बड़े ही खुशमिजाज इनसान थे. इंटर करने के बाद उन्हें अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में एलएलबी पढ़ने के लिए भेज दिया गया था.

अभी एलएलबी का एक साल ही पूरा हो पाया था कि अचानक नवाब मियां अलीगढ़ से पढ़ाई छोड़ कर हमेशा के लिए वापस आ गए. घर में किसी की हिम्मत नहीं थी कि कोई उन से यह पूछता कि मियां, पढ़ाई अधूरी क्यों छोड़ आए?

अब्बाजी यानी मियां कल्बे अली 2 साल पहले ही चल बसे थे और अम्मी जान रातदिन इबादत में लगी रहती थीं.

घर में अम्मी जान के अलावा छोटे मियां जावेद रह गए थे, जो पिछले साल ही अलीगढ़ से बीए करने के बाद जायदाद और राइस मिल संभालने लगे थे. वैसे भी जावेद मियां की पढ़ाई में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी. इधर पूरी हवेली की देखरेख नौकर और नौकरानियों के भरोसे चल रही थी.

हवेली में एक बहू की शिद्दत से जरूरत महसूस की जाने लगी थी. नवाब मियां के रिश्ते आने लगे थे. शायद ही कोई दिन ऐसा जाता था कि घर में नवाब मियां के रिश्ते को ले कर कोई दूर या पास का रिश्तेदार न आता हो. लेकिन अपने ही गम में डूबे नवाब मियां ने आखिर में सख्ती से फैसला सुना दिया कि वे अभी शादी करना नहीं चाहते, इसलिए बेहतर होगा कि जावेद मियां की शादी कर दी जाए.

हवेली के लोग एक बार फिर सकते में आ गए. कानाफूसी होने लगी कि नवाब मियां अलीगढ़ में किसी हसीना को दिल दे बैठे हैं, मगर इश्क भी ऐसा कि वे हसीना से उस का पताठिकाना भी न पूछ पाए और वह अपने घर वालों के बुलावे पर ऐसी गई कि फिर वापस ही न लौटी. उन्होंने उस का काफी इंतजार किया, मगर बाद में हार कर वे भी हमेशा के लिए घर लौट आए.

बरसों बाद हवेली जगमगा उठी. जावेद मियां की शादी इलाहाबाद से हुई. छोटी बहू के आने से हवेली में खुशियां लौट आई थीं.

छोटी बहू बहुत हसीन थीं. वे काफी पढ़ीलिखी भी थीं. नौकरचाकर भी छोटी बहू की तारीफ करते न थकते थे. मगर नवाब मियां हर खुशी से दूर हवेली के एक कोने में अपनी ही दुनिया में खोए रहते. न तो उन्हें अब कोई खुशी खुश करती थी और न ही गम उन्हें अब दुखी करता था. वे रातदिन किताबों में खोए रहते या हवेली के पास बाग में चहलकदमी करते रहते.

सालभर होने को आया, मगर किसी की हिम्मत न हुई कि नवाब मियां के रिश्ते की कोई बात भी करे, क्योंकि हर कोई जानता था कि नवाब मियां जिद के पक्के हैं और जब तक उन के दिल में यादों के जख्म हरे हैं, तब तक उन से बात करना बेमानी है.

अभी एक साल भी न होने पाया था कि छोटी बहू के पैर भारी होने की खबर से हवेली में एक बार फिर खुशियां छा गईं. सभी खुश थे कि हवेली में बरसों बाद किसी बच्चे की किलकारियां गूंजेंगी.

वह दिन भी आया. हवेली में छोटी बहू की तबीयत काफी बिगड़ गई थी. जैसेतैसे उन्हें शहर के बड़े अस्पताल में दाखिल कराया गया. मगर होनी को कौन टाल सकता है. सो, छोटी बहू नन्हे मियां को पैदा करने के बाद ही चल बसीं.

हवेली में कुहराम मच गया. किसी ने सोचा भी नहीं था कि जो छोटी बहू हवेली में खुशियां ले कर आई थी, वे इतनी जल्दी हवेली को वीरान कर जाएंगी. नौकरचाकरों का रोरो कर बुरा हाल था. जावेद मियां तो जैसे जड़ हो गए थे. उन की आंख में आंसू जैसे रहे ही न थे.

लाश को नहलाने के बाद जनाजा तैयार किया गया. जनाजा उठाते समय हवेली के बड़े दरवाजे पर नौकरानियां दहाड़ें मारमार कर रो रही थीं. सभी औरतें हवेली के दरवाजे तक आईं और फिर वापस हवेली में चली गईं.

छोटी बहू को कब्र में रखने के बाद किसी ने बुलंद आवाज में कहा, ‘‘जिस किसी को छोटी बहू का मुंह आखिरी बार देखना है, वह देख ले.’’

नवाब मियां कब्रिस्तान में लोगों से दूर पीपल के पेड़ के पास खड़े थे. उन के दिल में भी खयाल आया कि आखिरी समय में छोटी बहू का एक बार चेहरा देख लिया जाए. आखिर वे उन के घर की बहू जो थीं.

कब्र के सिरहाने जा कर नवाब मियां ने थोड़ा झुक कर छोटी बहू का मुंह देखना चाहा. छोटी बहू का चेहरा बाईं तरफ थोड़ा घूमा हुआ था.

नवाब मियां ने जब छोटी बहू के चेहरे पर नजर डाली, तो वे बुरी तरह तड़प उठे. दोनों हाथों से अपना सीना दबाते हुए वे सीधे खड़े हुए. उन की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. उन्होंने सोचा कि अगर वे जल्द ही कब्र के पास से नहीं हटे, तो इस कब्र में ही गिर पड़ेंगे.

कब्र पर लकड़ी के तख्ते रखे जाने लगे थे और लोग कब्र पर मुट्ठियों से मिट्टी डालने लगे. नवाब  मियां ने भी दोनों हाथों में मिट्टी उठाई और छोटी बहू की कब्र पर डाल दी.

जिस चेहरे की तलाश में वे बरसों से बेकरार थे, आज उसी चेहरे पर वे हमेशा के लिए 2 मुट्ठी मिट्टी डाल चुके थे.

एहसान : रुक्मिणी ने कैसे किया गोविंद पर एहसान

अंधेरा हो चला था. रुक्मिणी ने सब से पहले तो बैलगाड़ी जोती और अनाज के 2 बोरे गाड़ी में रख अपने गांव की तरफ चल दी. अंधेरे को देखते हुए रुक्मिणी ने लालटेन जला कर लटका ली थी. इस बार फसल थोड़ी अच्छी हो गई थी, इसलिए वह खुश थी.

खेत से निकल कर रुक्मिणी की गाड़ी रास्ते पर आ गई थी. अभी वह थोड़ा ही आगे बढ़ी थी कि उसे पेड़ से टकराई हुई मोटरसाइकिल दिखी. उस को चलाने वाला वहीं खून से लथपथ पड़ा था.

रुक्मिणी ने गाड़ी रोकी और लालटेन निकाल कर उस के चेहरे के पास ले गई. उस आदमी की नब्ज टटोली, जो अभी चल रही थी. इस के बाद उस का चेहरा देख कर एक पल के लिए तो रुक्मिणी का भी सिर घूम गया. वह सरपंच का बेटा मंगल सिंह था.

मंगल सिंह को देख कर रुक्मिणी का एक बार मन हुआ कि उसे ऐसा ही छोड़ कर आगे बढ़ जाए, लेकिन आखिर वह भी एक औरत थी और न चाहते हुए भी उस ने गाड़ी के सामान को एक तरफ किया और फिर मंगल सिंह को उठा

कर गाड़ी में डाल लिया. वह चाहती थी कि जल्दी से जल्दी मंगल सिंह को वह सरपंच के हवाले कर दे. इसी के साथ पुरानी यादों ने रुक्मिणी के जख्म को ताजा कर दिया.

सीतापुर गांव में रामलाल अपने छोटे से परिवार के साथ रहता था. उस के पास छोटा सा खेत था, इसी के साथ उस की पत्नी त्रिवेणी सरपंच गोविंद सिंह के यहां झाड़ूपोंछे का काम करती थी. त्रिवेणी के साथ उस की बेटी रुक्मिणी भी आती थी. मंगल सिंह और रुक्मिणी की उम्र बढ़ने के साथसाथ उन के दिलों में प्यार की कोंपलें भी फूटने लगी थीं और अकसर वे दोनों गांव व खेतों में निकल जाया करते थे.

रुक्मिणी के भरते शरीर, उभार और जवानी का रसपान गोविंद सिंह भी दूर से करने लगा था. रुक्मिणी इन सब बातों से दूर अपनी ही दुनिया में मस्त रहती थी.

गंगू ने जब सरपंच गोविंद सिंह को रुक्मिणी और मंगल सिंह की प्रेम कथा बताई, तो वह आगबबूला हो गया.

पहले तो गोविंद सिंह ने मंगल सिंह को समझाया, ‘मैं तुम्हारी शादी दूसरी जगह कर दूंगा, जहां से अच्छा दहेज मिल जाएगा और वैसे भी रुक्मिणी हमारी बराबरी की नहीं है.’

जब मंगल सिंह पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ, तब उस ने रुक्मिणी के पीछे अपने आदमी छोड़ दिए. वे उसे बदनाम करने लगे.

एक बार रुक्मिणी के पिता रामलाल ने उस से उस की शादी की बात की, तो वह उसे टाल गई.

समय धीरेधीरे गुजर रहा था. आखिर गोविंद सिंह ने एक दिन रुक्मिणी को उठवा लिया और मंगल सिंह से कहा कि वह गांव के किसी लड़के के साथ भाग गई है. कुछ दिन बाद जब गोविंद सिंह ने उसे छोड़ा, तब तक मंगल सिंह उस से दूर चला गया था.

रुक्मिणी में जिंदगी जीने और हालत से जूझने का हौसला था, इसलिए वह इतने पर भी टूटी नहीं. थोड़े दिन बाद इसी गम में रुक्मिणी के मांबाप भी इस दुनिया से चल बसे. लेकिन इन सब हालात ने उसे और भी जुझारू बना दिया था. इस के बाद रुक्मिणी ने खेतीबारी को खुद संभाल लिया और पास के दूसरे गांव में रहने चली गई. अमीर घराने की लड़की मंगल सिंह के साथ ज्यादा दिन नहीं निभा सकी और एक दिन वह भी उसे छोड़ कर चली गई.

इस के बाद मंगल सिंह पागल जैसा हो गया, क्योंकि बाद में उसे भी रुक्मिणी के साथ हुए गलत बरताव के बारे में मालूम पड़ा था.

इस के बाद मंगल सिंह अपने को कुसूरवार मानता था, उस से माफी मांगना चाहता था. इस के बाद उस ने भी अपने पिता सरपंच गोविंद सिंह का घर छोड़ दिया था और अलग रहने लगा था.

उस दिन भी मंगल सिंह रुक्मिणी से माफी मांगने के लिए उस के खेत पर ही जा रहा था. दिमागी परेशानी से उस का ध्यान सड़क से भटक गया था और सामने से आते हुए ट्रैक्टर ने उस की मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी थी.

तभी मंगल सिंह ने कराहते हुए अपनी आंखें खोलीं. अब रुक्मिणी भी यादों से वापस आ गई थी. सरपंच का घर अभी थोड़ी दूर था, इसलिए मंगल सिंह की हालत देखने के लिए उस ने बैलगाड़ी रोकी और उस के पास गई.

रुक्मिणी ने मंगल सिंह के सिर पर अपनी चुनरी कस कर बांध दी. तभी मंगल सिंह के हाथ माफी मांगने के लिए जुड़ गए थे. इन सब बातों का रुक्मिणी पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने बैलगाड़ी तेजी से चलाई और सरपंच के घर के सामने गाड़ी रोक कर पूरी बात गोविंद सिंह को बताई और वापस जाने लगी.

गोविंद सिंह उस के पैरों पर गिर गया और बोला, ‘‘रुक्मिणी, मुझे किसी गरीब को नहीं सताना चाहिए था. मुझे माफ कर दे.’’

गोविंद सिंह मंगल सिंह को जीप में डाल शहर के अस्पताल में ले जाने लगा, तब मंगल सिंह ने रुक्मिणी का हाथ जोर से पकड़ लिया और उसे भी साथ चलने के लिए इशारा किया.

अस्पताल में मंगल सिंह का इलाज शुरू हो गया और उसे तुरंत खून देना था. परिवार में से किसी का खून मंगल सिंह के खून से नहीं मिल रहा था. साथ ही, वहां आए लोगों का खून भी मंगल सिंह के खून से नहीं मिल रहा था. रुक्मिणी एक बार फिर यादों की दुनिया में चली गई थी.

मंगल सिंह और रुक्मिणी एक बार शहर घूमने गए थे. तब रुक्मिणी ने कहा था, ‘देख मंगल, हमारा प्यार एकदम सच्चा और पक्का है कि तू भले ही न माने, लेकिन हमारा खून भी एक ही है.’

तब मंगल सिंह ने हंसते हुए कहा था, ‘हट पगली, ऐसे थोड़े न होता है. सभी के खून का ग्रुप अलगअलग ही होता है.’

मजाक की बात शर्त में बदल गई और दोनों ने पास के एक अस्पताल में जा कर जब खून को चैक करवाया, तब दोनों का ग्रुप एक ही निकला.

तभी डाक्टर ने आ कर कहा, ‘‘गोविंद सिंह, जल्दी खून का इंतजाम करो. मंगल सिंह की हालत खराब होती जा रही है. खून काफी बह गया है.’’

तब रुक्मिणी ने विश्वास से कहा, ‘‘डाक्टर, मेरा खून ले लीजिए.’’

गोविंद सिंह हैरानी से रुक्मिणी को देख रहा था और एहसान तले दबा जा रहा था.

प्रेम का निजी स्वाद- भाग 3: महिमा की जिंदगी में क्यों थी प्यार की कमी

स्त्रीमन अभेद्य दुर्ग सरीखा होता है. युक्ति लगा कर उस में प्रवेश पाना लगभग नामुमकिन है. लेकिन हां, अगर द्वार पर लटके ताले की चाबी किसी तरह प्राप्त हो जाए तो फिर इस की भीतरी तह तक सुगमता से पहुंचा जा सकता है. कमल को शायद अभी तक यह चाबी नहीं मिली थी.

अगले कुछ दिनों तक महिमा की क्लासेज बंद रहने वाली थीं. वतन अपनी शादी के सिलसिले में छुट्टी ले कर गया था. उस के बाद वह हनीमून पर जाने वाला था. महिमा की चिड़चिड़ाहट चरम पर थी. न ठीक से खापी रही थी न ही कमल की तरफ उस का ध्यान था. कितनी ही बार कमल ने उस का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की लेकिन महिमा के होंठों पर मुसकान नहीं ला सका. एकदो बार तो गिटार के तार छेड़ने की कोशिश भी की लेकिन महिमा ने इतनी बेदर्दी से उस के हाथ से गिटार छीना कि वह सकते में आ गया.

बीमारी यदि शरीर की हो तो दिखाई देती है, मन के रोग तो अदृश्य होते हैं. ये घुन की तरह व्यक्ति को खोखला कर देते हैं. महिमा की बीमारी जानते हुए भी कमल इलाज करने में असमर्थ था. वतन का प्यार कोई वस्तु तो थी नहीं जिसे बाजार खरीदा जा सके. दोतरफा होता, तब भी कमल किसी तरह अपने दिल पर पत्थर रख लेता. लेकिन यहां तो वतन को खबर ही नहीं है कि कोई उस के प्यार में लुटा जा रहा है.

कमल महिमा की बढ़ती दीवानगी को ले कर बहुत चिंतित था. उस ने तय किया कि वह कुछ दिनों के लिए महिमा को उस की मां के पास छोड़ आएगा. शायद जगह बदलने से ही कुछ सकारात्मक असर पड़े. बेटीदामाद को एकसाथ देखते ही मां खिल गईं. कमल सास के पांवों में झुका तो मां के मुंह से सहस्रों आशीष बह निकले.

एक दिन ठहरने के बाद कमल वापस चला गया. जातेजाते उस का उदास चेहरा मां की आंखों में तसवीर सा बस गया था. मां ने अकेले में महिमा को बहुत कुरेदा लेकिन उन के हाथ कुछ भी नहीं लगा. महिमा का उड़ाउड़ा रंग उन्हें खतरे के प्रति आगाह कर रहा था. मां महिमा के आसपास बनी रहने लगीं.

दाइयों से भी कभी पेट छिपे हैं भला? दोचार दिनों में ही मां ताड़ गईं कि मामला प्रेम का है. ऐसा प्रेम जिसे न स्वीकार करते बन रहा है और न परित्याग. लेकिन भविष्य को अनिश्चित भी तो नहीं छोड़ा जा सकता न? एक दिन जब महिमा बालकनी के कोने में कोई उदास धुन गुनगुना रही थी, मां उस के पीछे आ कर खड़ी हो गईं.

“बहुत अपसैट लग रही हो. कोई परेशानी है, तो मुझे बताओ. मां हूं तुम्हारी, तुम्हारी बेहतरी ही सोचूंगी,” मां ने महिमा के कंधे पर हाथ रख कर कहा. उन के अचानक स्पर्श से महिमा चौंक गई.

“नहीं, कुछ भी तो नहीं. यों ही, बस, जरा दिल उदास है,” महिमा ने यह कह कर उन का हाथ परे हटा दिया. मां उस के सामने आ खड़ी हुईं. उन्होंने महिमा का चेहरा अपनी हथेलियों में भर लिया और एकटक उस की आंखों में देखने लगीं. महिमा ने अपनी आंखें नीची कर लीं.

“कहते हैं कि गोद वाले बच्चे को छोड़ कर पेट वाले से आशा नहीं रखनी चाहिए. यानी, जो हासिल है उसे ही सहेज लेना चाहिए बजाय इस के कि जो हासिल नहीं, उस के पीछे भागा जाए,” मां ने धीरे से कहा. महिमा की आंखें डबडबा आईं. वह मां के सीने से लग गई. टपटप कर उन का आंचल भिगोने लगी. मां ने उसे रोकने का प्रयास नहीं किया.

कुछ देर रो लेने के बाद जब महिमा ने अपना चेहरा ऊपर उठाया तो बहुत शांत लग रही थी. शायद उस ने मन ही मन कोई निर्णय ले लिया था. मां ने उस का कंधा थपथपा दिया.

“कमल को फोन कर के आने को कह दे. अकेला परेशान हो रहा होगा,” मां ने उस के हाथ में मोबाइल थमाते हुए कहा. अगले ही दिन कमल आ गया. कमल को देखते ही महिमा लहक कर उस के सीने से लग गई. कमल फिर से हैरान था.

‘यह लड़की है या पहेली.’ कमल उस के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करने लगा लेकिन असफल रहा.

इधर महिमा समझ गई थी कि कुछ यादों को यदि दिल में दफन कर लिया जाए तो वे धरोहर बन जाती हैं. वतन की मोहब्बत को पाने के लिए कमल के प्रेम का त्याग करना किसी भी स्तर पर समझदारी नहीं कही जा सकती वह भी तब, जब वतन को इस प्रेम का आभास तक न हो. और वैसे भी, प्रेम कहां यह कहता है कि पाना ही उस का पर्याय है. यह तो वह फूल है जो सूखने के बाद भी अपनी महक बिखेरता रहता है.

“हम कल ही अपने घर चलेंगे,” महिमा ने कहा. कमल ने उसे अपनी बांहों के घेरे में ले लिया.

महिमा मन ही मन वतन की आभारी है. वह उस की जिंदगी में न आता तो प्रेम के वास्तविक स्वरूप से उस का परिचय कैसे होता? कैसे वह इस का स्वाद चख पाती. वह स्वाद, जिस का वर्णन तो सब करते हैं लेकिन बता कोई नहीं पाता. असल स्वाद तो वही महसूस कर पाता है जिस ने इसे चखा हो.

हरेक के लिए प्रेम का स्वाद नितांत निजी होता है और उस का स्वरूप भी.

प्रेम का निजी स्वाद- भाग 2: महिमा की जिंदगी में क्यों थी प्यार की कमी

वतन ने संगीत के 8वें सुर की तरह उस के जीवन में प्रवेश किया. महिमा की जिंदगी सुरीली हो गई. रंगों का एक वलय हर समय उसे घेरे रहता. वतन के साथ ने उस की सोच को भी नए आयाम दिए. उस ने महिमा को एहसास करवाया कि मात्र सुर-ताल के साथ गाना ही संगीत नहीं है. संगीत अपनेआप में संपूर्ण शास्त्र है.

कॅरिओके पर अभ्यास करने वाली महिमा जब वाद्ययंत्रों की सोहबत में गाने लगी तो उसे अपनी आवाज पर यकीन ही न हुआ. जब उस ने अपनी पहली रिकौर्डिंग सुनी तब उसे एहसास हुआ कि वह कितने मधुर कंठ की स्वामिनी है. पहली बार उसे अपनी आवाज से प्यार हुआ.

सुगम संगीत से ले कर शास्त्रीय संगीत तक और लोकगीतों से ले कर ग़ज़ल तक, सभीकुछ वतन इतने अच्छे से निभाता था कि महिमा के पांव हौलेहौले जमीन पर थपकी देने लगते और उस की आंखें खुद ही मुंदने लगतीं. महिमा आनंद के सागर में डूबनेउतरने लगती. उन पलों में वह ब्रह्मांड में सुदूर स्थित किसी आकाशगंगा में विचरण कर रही होती.

‘यदि संगीत को पूरी तरह से जीना है तो कम से कम किसी एक वाद्ययंत्र से दोस्ती करनी पड़ेगी. इस से सुरों पर आप की पकड़ बढती है,’ एक दिन वतन ने उस से यह कहा तो महिमा ने गिटार बजाना सीखने की मंशा जाहिर की. उस की बात सुन कर वतन मुसकरा दिया. वह खुद भी यही बजाता है.

कला की दुनिया बड़ी विचित्र होती है. यह तिलिस्म की तरह होती है. यह आप को अपने भीतर आने के लिए आमंत्रित करती है, उकसाती है, सम्मोहित करती है. यह कांटें से बांध कर खींच भी लेती है. जो इस में समा गया वह बाहर आने का रास्ता खोजना ही नहीं चाहता. महिमा भी वतन की कलाई थामे बस बहे चली जा रही थी.

गिटार पर नृत्य करती वतन की उंगलियां महिमा के दिल के तारों को भी झंकृत करने लगीं. कोई समझ ही न सका कि कब प्रेम के रेशमी धागों की गुच्छियां उलझने लगीं.

सीखना कभी भी आसान नहीं होता. चूंकि मन हमेशा आसान को अपनाने पर ही सहमत होता है, इसलिए वह सीखने की प्रक्रिया में अवरोह उत्पन्न करने लगता है और इस के कारण अकसर सीखने की प्रक्रिया बीच में ही छोड़ देने का मन बनने लगता है.

महिमा को भी गिटार सीखना दिखने में जितना आसान लग रहा था, हकीकत में उस के तारों को अपने वश में करना उतना ही कठिन था. बारबार असफल होती महिमा ने भी प्रारंभिक अभ्यास के बाद गिटार सीखने के अपने इरादे से पांव पीछे खींच लिए. लेकिन वतन अपने कमजोर विद्यार्थियों का साथ आसानी से छोड़ने वालों में न था. जब भी महिमा ढीली पड़ती, वतन इतनी सुरीली धुन छेड़ देता कि महिमा दोगुने जोश से भर उठती और अपनी उंगलियों को वतन के हवाले कर देती.

वतन जब उसे किसी युगल गीत का अभ्यास करवाता तो महिमा को लगता मानो वही इस गीत की नायिका है और वतन उस के लिए ही यह गीत गा रहा है. स्टेज पर दोनों की प्रस्तुति इतनी जीवंत होती कि देखनेसुनने वाले किसी और ही दुनिया में पहुंच जाते.

अब महिमा गिटार को साधने लगी थी. अभ्यास के लिए वतन उसे कोई नई धुन बनाने को कहता, तो महिमा सबकुछ भूल कर, बस, दिनरात उसी में खोई रहती. घर में हर समय स्वरलहरियां तैरने लगीं. कमल भी उसे खुश देख कर खुश था.

महिमा सुबह से ही दोपहर होने की प्रतीक्षा करने लगती. कमल को औफिस के लिए विदा करने के बाद वह गिटार ले कर अपने अभ्यास में जुट जाती. जैसे ही घड़ी 3 बजाती, महिमा अपना स्कूटर उठाती और वतन के संगीत स्कूल के लिए चल देती. वहां पहुंचने के बाद उसे वापसी का होश ही न रहता. घर आने के बाद कमल उसे फोन करता तब भी वह बेमन से ही लौटती.

‘काश, वतन और मैं एकदूसरे में खोए, बस, गाते ही रहें. वह गिटार बजाता रहे और मैं उस के लिए गाती रहूं.’ ऐसे खयाल कई बार उसे बेचैन कर देते थे. वह अपनी सीमाएं जानती थी. लेकिन मन कहां किसी सीमा को मानता है. वह तो, बस, प्रिय का साथ पा कर हवा हो जाता है.

‘कल एक सरप्राइज पार्टी है. एक खास मेहमान से आप सब को मिलवाना है.’ उस दिन वतन ने क्लास खत्म होने पर यह घोषणा की तो सब इस सरप्राइज का कयास लगाने लगे. महिमा हैरान थी कि इतना नजदीक होने के बाद भी वह वतन के सरप्राइज से अनजान कैसे है. घर पहुंचने के बाद भी उस का मन वहीं वतन के इर्दगिर्द ही भटक रहा था.

“क्या सरप्राइज हो सकता है?” महिमा ने कमल से पूछा.

“हो सकता है उस की शादी तय हो गई हो. अपनी मंगेतर से मिलवाना चाह रहा हो,” कमल ने हंसते हुए अपना मत जाहिर किया. सुनते ही महिमा तड़प उठी. दर्द की लहर कहीं भीतर तक चीर गई. अनायास एक अनजानीअनदेखी लड़की से उसे ईर्ष्या होने लगी. रात बहुत बेचैनी में कटी. उसे करवटें बदलते देख कर कमल भी परेशान हो गया. दूसरे दिन जब महिमा संगीत स्कूल से वापस लौटी तो बेहद खिन्न थी.

“क्या हुआ? कुछ परेशान हो? क्या सरप्राइज था?” जैसे कई सवाल कमल ने एकसाथ पूछे तो महिमा झल्ला गई.

“बहुत काली जबान है आप की. वतन अपनी मंगेतर को ही सब से मिलाने लाया था. अगले महीने उस की शादी है,” कहतेकहते उस की रुलाई लगभग फूट ही पड़ी थी. आंसू रोकने के प्रयास में उस का चेहरा टेढ़ामेढ़ा होने लगा तो वह बाथरूम में चली गई. कमल अकबकाया सा उसे देख रहा था. वह महिमा की रुलाई के कारण को कुछकुछ समझने का प्रयास कर रहा था लेकिन वह तय नहीं कर पा रहा था कि उसे आखिर करना क्या चाहिए.

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