औरों से जुदा: निशा ने जब खुद को रवि को सौंपने का फैसला किया

अपनीसहेली महक का गुस्से से लाल हो रहा चेहरा देख कर निशा मुसकराने से खुद को रोक नहीं सकी. बोली, ‘‘मयंक की बर्थडे पार्टी में तेरे बजाय रवि प्रिया को क्यों ले जा रहा है?’’ निशा की मुसकराहट ने महक का गुस्सा और ज्यादा भड़का दिया.

निशा ने प्यार से महक का हाथ थामा और फिर शांत स्वर में जवाब दिया, ‘‘परसों रविवार को मेरा जापानी भाषा का एक महत्त्वपूर्ण इम्तिहान है, इसलिए मैं ने रवि को सौरी बोल दिया था. रही बात प्रिया की, तो वह रवि की अच्छी फ्रैंड है. दोनों का पार्टी में साथ जाना तुझे क्यों परेशान कर रहा है?’’ ‘‘क्योंकि मैं प्रिया को अच्छी तरह जानती हूं. वह तेरा पत्ता साफ रवि को हथियाना चाहती है.’’

‘‘देख एक सुंदर, स्मार्ट और अमीर लड़के को जीवनसाथी बनाने की चाह हर लड़की की तरह प्रिया भी अपने मन में रखती है, तो क्या बुरा कर रही है?’’ ‘‘तू रवि को खो देगी, इस बात को सोच कर क्या तेरा मन जरा भी चिंतित या परेशान नहीं होता है?’’

‘‘नहीं, क्योंकि रवि की जिंदगी में मुझ से बेहतर लड़की और कोई नहीं है,’’ निशा का स्वर आत्मविश्वास से लबालब था. ‘‘उस ने पहले मुझ से ही पार्टी में चलने को कहा था, यह क्यों भूल रही है तू?’’

‘‘प्रिया को रवि के साथ जाने का मौका दे कर तू ने गलती करी है, निशा. तुम जैसी मेहनती लड़की को इम्तिहान में पास होने की चिंता करनी ही नहीं चाहिए थी. रवि के साथ पार्टी में तुझे ही जाना चाहिए था, बेवकूफ.’’ ‘‘सच बात तो यह है कि मेरा मन भी नहीं लगता है रवि के अमीर दोस्तों के द्वारा दी जाने वाली पार्टियों में, महक. लंबीलंबी कारों में आने वाले मेहमानों की तड़कभड़क मुझे नकली और खोखली लगती है. न वे लोग मेरे साथ सहज हो पाते हैं और न मैं उन सब के साथ. तब रवि भी पार्टी का मजा नहीं ले पाता है. इन सब कारणों से भी मैं ऐसी पार्टियों में रवि के साथ जाने से बचती हूं,’’ निशा ने बड़ी सहजता से अपने मन की बात महक से कह दी.

‘‘तू मेरी एक बात का सचसच जवाब देगी?’’ ‘‘हां, दूंगी.’’

‘‘क्या तू रवि से शादी करने की इच्छुक नहीं है?’’

कुछ पलों के सोचविचार के बाद निशा ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘यह सच है कि रवि मेरे दिल के बेहद करीब है…उस का साथ मुझे बहुत अच्छा लगता है, लेकिन हमारी शादी जरूर हो, ऐसी उलझन मैं अपने मन में नहीं पालती हूं. भविष्य में जो भी हो मुझे स्वीकार होगा.’’ ‘‘अजीब लड़की है तू,’’ महक हैरानपरेशान हो उठी, देख, ‘‘अमीर खानदान की बहू बन कर तू अपने सारे सपने पूरे कर सकेगी. तुझे रवि को अपना बना कर रखने की कोशिशें बढ़ा देनी चाहिए. इस मामले में जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वासी होना गलत और नुकसानदायक साबित होगा, निशा.’’

‘‘रवि को अपना जीवनसाथी बनाने के लिए मेरा उस के पीछे भागना मूर्खतापूर्ण और बेहूदा लगेगा, महक. अच्छे जीवनसाथी साथसाथ चलते हैं न कि आगेपीछे.’’ ‘‘लेकिन…’’

‘‘अब लेकिनवेकिन छोड़ और मेरे साथ जिम चल. कुछ देर वहां पसीना बहा कर मैं तरोताजा होना चाहती हूं,’’ निशा ने एक हाथ में अपना बैग उठाया और दूसरे हाथ से महक का हाथ पकड़ कर बाहर चल पड़ी. निशा ने अपनी मां को जिम जाने की बात बताई और फिर दोनों सहेलियां फ्लैट से बाहर आ गईं.

जिम में अच्छीखासी भीड़ इस बात की सूचक थी कि लोगों में स्वस्थ रहने व स्मार्ट दिखने की इच्छा बढ़ती जा रही है. निशा वहां की पुरानी सदस्य थी, इसलिए ज्यादातर लोग उसे जानते थे. उन सब से हायहैलो करते हुए वह पसीना बहाने में दिल से लग गई. लेकिन महक की दिलचस्पी तो उस से बातें करने में कहीं ज्यादा थी.

खुद को फिट रखने की आदत ने निशा की फिगर को बहुत आकर्षक बना दिया था. उस का पसीने में भीगा बदन वहां मौजूद हर पुरुष की प्रशंसाभरी नजरों का केंद्र बना हुआ था. उन नजरों में अश्लीलता का भाव नहीं था, क्योंकि अपने मिलनसार स्वभाव के कारण वह उन सभी की दोस्ती, स्नेह व आदरसम्मान की पात्रता हासिल कर चुकी थी. लगभग 1 घंटा जिम में बिताने के बाद दोनों घर चल पड़ीं.

‘‘यू आर द बैस्ट, निशा,’’ अचानक महक के मुंह से निकले इन प्रशंसाभरे शब्दों को सुन कर निशा खुश होने के साथसाथ हैरान भी हो उठी. ‘‘थैंकयू, स्वीटहार्ट, लेकिन अचानक यों प्यार क्यों दर्शा रही है?’’ निशा ने भौंहें मटकाते हुए पूछा.

‘‘मैं सच कह रही हूं, सहेली. तेरे पास क्या नहीं है? सुंदर नैननक्श, गोरा रंग, लंबा कद… एमकौम, एमबीए और जापानी भाषा की जानकारी…बहुराष्ट्रीय कंपनी में शानदार नौकरी…एक साधारण से स्कूल मास्टर की बेटी के लिए ऐसे ऊंचे मुकाम पर पहुंचना सचमुच काबिलेतारीफ है.’’ ‘‘जो गुण और परिस्थितियां कुदरत ने दिए हैं, मैं न उन पर घमंड करती हूं और न ही कोई शिकायत है मेरे मन में. अपने व्यक्तित्व को निखारने व कड़ी मेहनत के बल पर अच्छा कैरियर बनाने के प्रयास दिल से करते रहना मेरे लिए हमेशा महत्त्वपूर्ण रहा है. अपनी गरीबी और सुखसुविधाओं की कमी का बहाना बना कर जिंदगी में तरक्की करने का अपना इरादा कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया. मेरे इसी गुण ने मुझे इन ऊंचाइयों तक पहुंचाया है,’’ अपने मन की बातें बताते हुए निशा की आवाज में उस का आत्मविश्वास साफ झलक रहा था.

‘‘अब रवि से तेरी शादी भी हो जाए तो फिर तेरी जिंदगी में कोई कमी नहीं रहेगी,’’ महक ने भावुक लहजे में अपने मन की इच्छा दर्शाई. कुछ पल खामोश रह कर निशा ने किसी दार्शनिक के से अंदाज में कहा, ‘‘मैं ने अपनी खुशियों को रवि के साथ शादी होने से बिलकुल नहीं जोड़ रखा है. कुछ खास पा कर अपनी खुशियां हमेशा के लिए तय कर लेना मुमकिन भी नहीं होता है, सहेली. जीवनधारा निरंतर गतिमान है और मैं अपनी जिंदगी की गुणवत्ता बेहतर बनाने को निरंतर गतिशील रहना चाहती हूं. मेरे लिए यह जीवन यात्रा महत्त्वपूर्ण है, मंजिलें नहीं. रवि से मेरी शादी हो गई, तो मैं खुश हूंगी और नहीं हुई तो दुखी नहीं हूंगी.’’

‘‘तुम दूसरी लड़कियों से कितनी अलग हो.’’ ‘‘सहेली, हम सब ही इस दुनिया में अनूठे और भिन्न हैं. दूसरों से अपनी तुलना करते रहना अपने समय व ताकत को बेकार में नष्टकरना है. मैं अपनी जिंदगी को खुशहाल अपने बलबूते पर बनाना चाहती हूं. इस यात्रा में रवि मेरा साथी बनता है, तो उस का स्वागत है. ऐसा नहीं होता है, तो भी कोई गम नहीं क्योंकि कोई दूसरा उपयुक्त हमराही मुझे जरूर मिलेगा, ऐसा मेरा विश्वास है.’’

‘‘शायद तेरे इस अनूठेपन के कारण ही रवि तेरा दीवाना है… तेरा आत्मविश्वास, तेरी आत्मनिर्भरता ही तेरी ताकत और अनूठी पहचान है.’’ महक के मुंह से निकले इन वाक्यों को सुन कर निशा बड़े रहस्यमयी अंदाज में मुसकराने लगी थी.

महक और निशा ने घर का आधा रास्ता ही तय किया होगा जब रवि की कार उन की बगल में आ कर रुकी. उसे अचानक सामने देख कर निशा का चेहरा गुलाब के फूल सा खिल उठा. ‘‘हाय, तुम यहां कैसे?’’ निशा ने रवि से प्रसन्न अंदाज में हाथ मिलाया और फिर छोड़ा

ही नहीं. ‘‘पार्टी में जाने का मन नहीं किया,’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए जवाब दिया, ‘‘कुछ समय तुम्हारे साथ बिताने के बाद पार्टी में जाऊंगा.’’

‘‘क्या? प्रिया को भी साथ ले जाओगे?’’ महक चुभते से लहजे में यह पूछने से खुद को नहीं रोक पाई. ‘‘नहीं, वह अमित के साथ जा चुकी है. चलो, आइसक्रीम खाने चलते हैं,’’ रवि ने महक के सवाल का जवाब लापरवाही से देने के बाद अपना ध्यान फिर से निशा पर केंद्रित कर लिया.

‘‘पहले मुझे घर छोड़ दो,’’ महक का मूड उखड़ा सा हो गया. ‘‘ओके,’’ रवि ने साथ चलने के लिए महक पर जरा भी जोर नहीं डाला.

निशा रवि की बगल में और महक पीछे की सीट पर बैठ गई तो रवि ने कार आगे बढ़ा दी. ‘‘पहले तुम दोनों मेरे घर चलो,’’ निशा ने मुसकराते हुए माहौल को सहज करने की कोशिश करी. ‘‘नहीं, यार. मैं कुछ वक्त सिर्फ तुम्हारे साथ गुजारना चाहता हूं,’’ रवि ने उस के प्रस्ताव का फौरन विरोध किया.

‘‘पहले घर चलो, प्लीज,’’ निशा ने प्यार से रवि का कंधा दबाया, ‘‘मां के हाथ की बनी एक खास चीज तुम्हें खाने को मिलेगी.’’ ‘‘क्या?’’

‘‘वह सीक्रेट है.’’ ‘‘लेकिन…’’

‘‘प्लीज, बड़े प्यार से करी गई प्रार्थना को रवि अस्वीकार नहीं कर सका और फिर कार निशा के घर की तरफ मोड़ दी.’’

महक अपने घर की तरफ जाना चाहती थी, पर निशा ने उसे प्यार से डपट कर खामोश कर दिया. वह समझती थी कि उस की सहेली रवि को उस के प्रेमी के रूप में उचित प्रत्याशी नहीं मानती है. महक को डर था कि रवि उसे प्रेम में जरूर धोखा देगा. काफी समझाने के बाद भी निशा उस के इस डर को दूर करने में सफल नहीं रही थी. इसीलिए जब ये दोनों उस के साथ होती थीं, तब उसे माहौल खुश बनाए रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास हमेशा करना पड़ता था.

रवि मीठा खाने का शौकीन था. निशा की मां के हाथों के बने शाही टोस्ट खा कर उस की तबीयत खुश हो गई. मीठा खा कर महक अपने घर चली गई. निशा ने रवि को खाना खिला कर ही भेजा. हंसतेबोलते हुए 2 घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला.

‘‘लंबी ड्राइव पर जाने का मौसम हो रहा है,’’ ताजी ठंडी हवा को चेहरे पर महसूस करते हुए रवि ने कार में बैठने से पहले अपने मन की इच्छा व्यक्त करी. ‘‘आज के लिए माफी दो. फिर किसी दिन कार्यक्रम…’’

‘‘परसों चलने का वादा करो…, इम्तिहान के बाद?’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए पूछा. ‘‘श्योर,’’ निशा ने फौरन रजामंदी जाहिर

कर दी. ‘‘इम्तिहान खत्म होते ही निकल लेंगे.’’

‘‘ओके.’’ ‘‘पूछोगी नहीं कि कहां चलेंगे?’’

‘‘तुम्हारा साथ है, तो हर जगह खूबसूरत बन जाएगी.’’

‘‘आई लव यू.’’ ‘‘मी टू.’’

रवि ने निशा के हाथ को कई बार प्यार से चूमा और फिर कार आगे बढ़ा दी. रवि के चुंबनों के प्रभाव से निशा के रोमरोम में अजीब सी मादक सिहरन पैदा हो गई थी. दिल में अजीब सी गुदगुदी महसूस करते हुए वह अपने कमरे में लौटी और तकिए को छाती से लगा कर पलंग पर लेट गई. रवि के बारे में सोचते हुए उस का तनमन अजीब सी खुमारी में डूबता जा रहा था. उस के होंठों की मुसकान साफ जाहिर कर रही थी कि उस वक्त उस के सपनों की दुनिया बड़ी रंगीन बनी हुई थी.

रविवार को दोपहर 12 बजे निशा की जापानी भाषा की परीक्षा समाप्त हो गई. वह हौल से बाहर आई तो उस ने रवि को अपना इंतजार करते पाया. सिर्फ 1/2 घंटे बाद रवि की कार दिल्ली से आगरा जाने वाले राजमार्ग पर दौड़ रही थी. दोनों का साथसाथ किसी दूसरे शहर की यात्रा करने का यह पहला मौका था.

मौसम बहुत सुहावना था. ठंडी हवा अपने चेहरों पर महसूस करते हुए दोनों प्रसन्न अंदाज में हसंबोल रहे थे. कुछ देर बाद निशा आंखें बंद कर के मीठे, प्यार भरे गाने गुनगुनाने लगी. रवि रहरह कर उस के सुंदर, शांत चेहरे को देख मुसकराने लगा.

‘‘तुम संसार की सब से सुंदर स्त्री हो,’’ रवि के मुंह से अचानक यह शब्द निकले, तो निशा ने झटके से अपनी आंखें खोल दीं.

रवि की आंखों में अपने लिए गहरे प्यार के भावों को पढ़ कर उस के गौरे गाल गुलाबी हो उठे और फिर शरमाए से अंदाज में वह सिर्फ इतना ही कह पाई, ‘‘झूठे.’’

रवि ने कार की गति धीमी करते हुए उसे एक पेड़ की छाया के नीचे रोक दिया. फिर उस ने झटके से निशा को अपनी तरफ खींचा और उस के गुलाबीि होंठों पर प्यारा सा चुंबन अंकित कर दिया. निशा की तेज सांसों और खुले होंठों ने उसे फिर से वैसा करने को आमंत्रित किया, तो रवि के होंठ फिर से निशा के होंठों से जुड़ गए.

इस बार का चुंबन लंबा और गहन तृप्ति देने वाला था. उस की समाप्ति पर दोनों ने एकदूसरे की आंखों में गहन प्यार से झांका. ‘‘तुम एक जादूगरनी हो,’’ निशा की पलक को चूमते हुए रवि ने उस की तारीफ करी.

‘‘वह तो मैं हूं,’’ निशा हंस पड़ी. ‘‘मेरा दिल इस वक्त मेरे काबू में नहीं है.’’

‘‘मेरा भी.’’ ‘‘मैं तुम्हें जी भर कर प्यार करना चाहता हूं.’’

‘‘मैं भी.’’ ‘‘सच?’’

निशा ने बेहिचक ‘हां’ में सिर ऊपरनीचे हिलाया, तो रवि की आंखों में हैरानी के भाव उभरे. ‘‘क्या तुम्हें अपनी बदनामी का, अपनी छवि खराब होने का डर नहीं है?’’

‘‘क्या करना है और क्या नहीं, इसे मैं दूसरों की नजरों से नहीं तोलती हूं, रवि.’’ ‘‘फिर भी शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने को समाज गलत मानता है, खासकर लड़कियों के लिए.’’

निशा ने आगे झुक कर रवि के गाल को चूमा और फिर सहज अंदाज में बोली, ‘‘स्वीटहार्ट, पुरानी मान्यताओं को जबरदस्ती ओढ़े रखने में मेरा विश्वास नहीं है. मैं इतना जानती हूं कि मैं तुम्हें प्यार करती हूं और तुम्हारा स्पर्श मेरे रोमरोम में मादक झनझनाहट पैदा कर देता है.’’ ‘‘तुम्हारे साथ सैक्स संबंध बनाने का फैसला मैं तुम्हारी और अपनी खुशियों को ध्यान में रख कर करूंगी. वैसा करने के लिए तुम मुझ से शादी करने का झूठासच्चा वादा करो, यह कतई जरूरी नहीं है.’’

‘‘तो क्या तुम मेरे साथ सोने को तैयार हो?’’ ‘‘बड़ी खुशी से,’’ निशा का ऐसा जवाब सुन कर रवि जोर से चौंका, तो वह खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘तुम्हें समझना मेरे बस की बात नहीं है. साधारण से घर में पैदा हुई लड़की इतनी असाधारण… इतनी अनूठी… इतनी आत्मविश्वास से भरी कैसे हो गई है?’’ कार को फिर से आगे बढ़ाते हुए हैरान रवि ने यह सवाल मानो खुद से ही पूछा हो. ‘‘जिस के पास अपने सपनों को पूरा करने के लिए हिम्मत, लगन और कठिन मेहनत करने जैसे गुण हों, वह इंसान साधारण घर में पैदा होने के बावजूद असाधारण ऊंचाइयां ही छू सकती है,’’ होंठों से बुदबुदा कर निशा ने रवि के सवाल का जवाब खुद को दिया और फिर रवि के हाथ को प्यार से पकड़ कर शांत अंदाज में आंखें मूंद लीं.

आत्मविश्वासी निशा अपने भविष्य के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थी. मस्त अंदाज में सीटी बजा रहे रवि ने भी भविष्य को ले कर एक फैसला उसी समय कर लिया. ताजमहल के सामने निशा के सामने शादी करने का प्रस्ताव रखने का निर्णय लेते हुए उस का दिल अजीब खुशी और गुदगुदी से भर उठा था, साधारण बगीचे में उगे इस असाधारण फूल की महक से वह अपना भावी जीवन भर लेने को और इंतजार नहीं करना चाहता था.

साथी साथ निभाना – भाग 1 : संजीव ने ऐसा क्या किया कि नेहा की सोच बदल गई

उस शाम नेहा की जेठानी सपना ने अपने पति राजीव के साथ जबरदस्त झगड़ा किया. उन के बीच गालीगलौज भी हुई.

‘‘तुम सविता के साथ अपने संबंध फौरन तोड़ लो, नहीं तो मैं अपनी जान दे दूंगी या तुम्हारा खून कर दूंगी,’’ सपना की इस धमकी को घर के सभी सदस्यों ने बारबार सुना.

नेहा को इस घर में दुलहन बन कर आए अभी 3 महीने ही हुए थे. ऐसे हंगामों से घबरा कर वह कांपने लगी.

उस के पति संजीव और सासससुर ने राजीव व सपना का झगड़ा खत्म कराने का बहुत प्रयास किया, पर वे असफल रहे.

‘‘मुझे इस गलत इंसान के साथ बांधने के तुम सभी दोषी हो,’’ सपना ने उन तीनों को भी झगड़े में लपेटा, ‘‘जब इन की जिंदगी में वह चुड़ैल मौजूद थी, तो मुझे ब्याह कर क्यों लाए? क्यों अंधेरे में रखा मुझे और मेरे घर वालों को? अपनी मौत के लिए मैं तुम सब को भी जिम्मेदार ठहराऊंगी, यह कान खोल कर सुन लो.’’

सपना के इस आखिरी वाक्य ने नेहा के पैरों तले जमीन खिसका दी. संजीव के कमरे में आते ही वह उस से लिपट कर रोने लगी और फिर बोली, ‘‘मुझे यहां बहुत डर लगने लगा है. प्लीज मुझे कुछ समय के लिए अपने मम्मीपापा के पास जाने दो.’’

‘‘भाभी इस वक्त बहुत नाराज हैं. तुम चली जाओगी तो पूरे घर में अफरातफरी मच जाएगी. अभी तुम्हारा मायके जाना ठीक नहीं रहेगा,’’ संजीव ने उसे प्यार से समझाया.

‘‘मैं यहां रही, तो मेरी तबीयत बहुत बिगड़ जाएगी.’’

‘‘जब तुम से कोई कुछ कह नहीं रहा है, तो तुम क्यों डरती हो?’’ संजीव नाराज हो उठा.

नेहा कोई जवाब न दे कर फिर रोने लगी.

उस के रोतेबिलखते चेहरे को देख कर संजीव परेशान हो गया. हार कर वह कुछ दिनों के लिए नेहा को मायके छोड़ आने को राजी हो गया.

उसी रात सपना ने अपने ससुर की नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या करने की कोशिश की.

उसे ऐसा करते राजीव ने देख लिया. उस ने फौरन नमकपानी का घोल पिला कर सपना को उलटियां कराईं. उस की जान का खतरा तो टल गया, पर घर के सभी सदस्यों के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं.

डरीसहमी नेहा ने तो संजीव के साथ मायके जाने का इंतजार भी नहीं किया. उस ने अपने पिता को फोन पर सारा मामला बताया, तो वे सुबहसुबह खुद ही उसे लेने आ पहुंचे.

नेहा के मायके जाने की बात के लिए अपने मातापिता से इजाजत लेना संजीव के लिए बड़ा मुश्किल काम साबित हुआ.

‘‘इस वक्त उस की जरूरत यहां है. तब तू उसे मायके क्यों भेज रहा है?’’ अपने पिता के इस सवाल का संजीव के पास कोई ठीक जवाब नहीं था.

‘‘मैं उसे 2-3 दिन में वापस ले आऊंगा. अभी उसे जाने दें,’’ संजीव की इस मांग को उस के मातापिता ने बड़ी मुश्किल से स्वीकार किया.

नेहा को विदा करते वक्त संजीव तनाव में था. लेकिन उस की भावनाओं की फिक्र न नेहा ने की, न ही उस के पिता ने. नेहा के पिता तो  गुस्से में थे. किसी से भी ठीक तरह से बोले बिना वे अपनी बेटी को ले कर चले गए.

उन के मनोभावों का पता संजीव को 3 दिन बाद चला जब वह नेहा को वापस  लाने के लिए अपनी ससुराल पहुंचा.

नेहा की मां नीरजा ने संजीव से कहा, ‘‘हम ने बहुत लाड़प्यार से पाला था अपनी नेहा को. इसलिए तुम्हारे घर के खराब माहौल ने उसे डरा दिया.’’

नेहा के पिता राजेंद्र तो एकदम गुस्से से फट पड़े, ‘‘अरे, मारपीट, गालीगलौज करना सभ्य आदमियों की निशानी नहीं. तुम्हारे घर में न आपसी प्रेम है, न इज्जत. मेरी गुडि़या तो डर के कारण मर जाएगी वहां.’’

 

क्या मैं गलत हूं: शादीशुदा मयंक को क्या अपना बना पाई मायरा?

पियाबालकनी में आ कर खड़ी हो गई. खुली हवा में सांस ले कर ऐसा लगा जैसे घुटन से बाहर आ गई हो. आसपास का शांत वातावरण, हलकीहलकी हवा से धीरेधीरे लहराते पेड़पौधे, डूबता सूरज सबकुछ सुकून मन को सुकून सा दे रहा था. सामने रखी चेयर पर बैठ कर आंखें मूंद लीं. भरसक प्रयास कर रही थी अपने को भीतर से शांत करने का. लेकिन दिमाग शांत होने का नाम नहीं ले रहा था. एक के बाद एक बात दिमाग में आती जा रही थी…

मैं पिया इस साल 46 की हुई हूं. जानपहचान वाले अगर मेरा, मेरे परिवार का खाका खींचेंगे तो सब यही कहेंगे, वाह ऐश है पिया की, अच्छाखासा खातापीता परिवार, लाखों कमाता पति, होशियार कामयाब बच्चे, नौकरचाकर और क्या चाहिए किसी को लाइफ में खुद भी ऐसी कि 4 लोगों के बीच खड़ी हो जाए तो अलग ही नजर आती है. खूबसूरती प्रकृति ने दोनों हाथों से है. ऊपर से उच्च शिक्षा ने उस में चारचांद लगा दिए. तभी तो मयंक को वह एक नजर में भा गई थी.

‘नैशनल इंस्टिट्यूट औफ फैशन टैक्नोलौजी, बेंगलुरु’ से मास्टर डिगरी ली थी उस ने.

जौब के बहुत मौके थे. मयंक का गारमैंट्स का बिजनैस देशविदेश में फैला था. फैशन इलस्टेटर की जौब के लिए उस ने अप्लाई किया था. उस के डिजाइन्स किए गारमैंट्स के कंपनी को काफी बड़ेबड़े और्डर मिले. मयंक की अभी तक उस से मुलाकात नहीं हुई, बस नाम ही

सुना था.

पिया के काम की तारीफ और स्पैशल इंसैंटिव के लिए मयंक ने उसे स्पैशल अपने कैबिन में बुलाया. कंपनी के सीईओ से मिलना पिया के लिए फक्र की बात थी.

मयंक को देखा तो देखती रह गई. किसी फिल्मी हीरो जैसी पर्सनैलिटी थी उस की. लेकिन पिया कौन सी कम थी. मयंक के दिल में उसी दिन से उतर गई थी. पिया कंपनी के सीईओ के लिए कुछ ऐसावैसा सोच भी नहीं सकती थी, लेकिन मयंक ने तो बहुत कुछ सोच लिया था पिया को देख कर. अब तो वह नित नए बहाने बना कर पिया को डिस्कस करने के लिए कैबिन में बुला लेता. पिया बेवकूफ तो थी नहीं कि कुछ सम?ा न पाती. मयंक ने उस से जब बातों ही बातों में शादी का प्रस्ताव रखा तो पिया को लगा कि कहीं वह कोई सपना तो नहीं देख रही. सपनों का राजकुमार उसे मिल गया था.

शादी के बाद पिया का हर दिन सोना और रात चांदी थी. 1 साल के अंदर ही पिया बेटे अनुज की मां बन गई और डेढ़ साल बाद ही स्वीटी की किलकारियों से घर फिर से गुलजार

हो गया.

कहते हैं न जब प्रकृति देती है तो छप्पर फाड़ कर देती है. दोनों बच्चे एक से बढ़ कर एक होशियार. अनुज 12वीं के बाद ही आस्ट्रेलिया चला गया और वहां से बीबीए करने के बाद उस ने मयंक के साथ बिजनैस संभाल लिया. बापबेटे की देखरेख में बिजनैस खूब फूलफल रहा था. स्वीटी का एमबीबीएस करते हुए शशांक के साथ अफेयर हो गया तो दोनों की पढ़ाई खत्म होते हुए उन की शादी कर दी. आज दोनों मिल कर अपना बड़ा सा क्लीनिक चला रहे हैं.

पिया की यह कहानी सुन कर यह लगेगा न वाऊ क्या लाइफ है. पिया को भी ऐसा लगता है. लेकिन लाइफ यों ही मजे से गुजरती रहे ऐसा भला होता है? बस पिया की जिंदगी में भी ट्विस्ट आना बाकी था.

मयंक का अपने बिजनैस के सिलसिले में दुबई काफी आनाजाना था. मायरा जरीवाला गुजरात से थी. गारमैंट्स स्टार्टअप से शुरुआत की थी उस ने और आज उस की गुजराती टचअप लिए क्लासिक और मौडर्न ड्रैसेज की खूब डिमांड हो रही थी. बहुत महत्त्वाकांक्षी लड़की थी. मयंक की गारमैंट इंडस्ट्री के साथ टाइअप कर के वह अपने और पांव पसारना चाहती थी. इसी सिलसिले में उस ने दुबई में मयंक के साथ एक मीटिंग रखी थी.

मयंक 48 वर्ष का हो चुका था. कहते हैं कि पुरुष इस उम्र में अपने अनुभव, अपने धीरगंभीर व्यक्तित्व और पैसे वाला हो तो उस की पर्सनैलिटी में गजब की रौनक आ जाती है. माएरा मयंक के इस रोबीले व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना न रह सकी. उस की कंपनी के साथ टाइअप के साथसाथ उस की जिंदगी के साथ भी टाइअप करने की उस ने ठान ली.

पता नहीं क्यों पत्नी चाहे कितनी ही खूबसूरत, प्यार करने वाली हो, हर तरह से खयाल रखने वाली हो, लेकिन जहां कोई दूसरी औरत, ऊपर से खूबसूरत लाइन देने लगे तो पुरुष को उस की तरफ खिंचते हुए ज्यादा देर नहीं लगती. मयंक भी पुरुष था. मायरा एक बिजनैस वूमन थी. ऊपर से पूरी तरह आत्मविश्वास से भरी 35 साल की खूबसूरत औरत.

मयंक धीरेधीरे उस की ओर आकर्षित होता गया. मायरा नए दौर की औरत थी, जिस के लिए पुरुष के साथ रिलेशनशिप बनाना कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी. अपनी खुशी उस के लिए सब से ज्यादा माने रखती थी. मयंक और वह अब अकसर दुबई में ही मिलते और हफ्ता साथ बिता कर अपनेअपने बिजनैस में लग जाते. दोनों बिजनैस वर्ल्ड में अपनी रैपो बना कर रखना चाहते थे.

‘‘मयंक डियर, मु?ो बुरा लगता है कि मेरे कारण तुम पिया के साथ धोखा कर रहे हो. लेकिन मैं क्या करूं. मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं. अब मेरी खुशी तुम से जुड़ी है,’’ मायरा मयंक को अपनी बांहों के घेरे में घेरती हुई बोली.

‘‘मायरा, मैं तुम से ?ाठ नहीं बोलूंगा. पिया से मैं भी प्यार करता हूं. लेकिन अब जब भी तुम्हारे साथ होता हूं मु?ो अजीब सा सुकून मिलता है. मैं उसे कोई दुख नहीं पहुंचाना चाहता, लेकिन तुम्हें अब छोड़ भी नहीं सकता. वह मेरी जिंदगी है तो तुम मेरी सांस हो. मायरा, अब मैं तुम्हें जीवनभर यों ही प्यार करना चाहता हूं. मेरी जिंदगी में अब तक पिया की जगह एक तरफ

है और तुम्हारी दूसरी तरफ. मैं दोनों को ही शिकायत का मौका नहीं देना चाहता,’’ मयंक ने मायरा को एक भरपूर किस करते हुए अपने आगोश में ले लिया.

मयंक ने पूरी कोशिश की थी कि पिया को मायरा के बारे में कुछ पता न चले.

वह मायरा के साथ अपनी सारी चैट साथ ही

साथ डिलीट कर देता था. मोबाइल में अपना फिंगर पासवर्ड लगा रखा था. पिया खुद भी मयंक का मोबाइल कभी चैक नहीं करती थी, पूरा विश्वास जो था उस पर, लेकिन उस दिन मयंक नहाने के लिए जैसे ही बाथरूम में गया मायरा के 2-3 व्हाट्सऐप मैसेज आ गए.

पिया की नजर मोबाइल पर पड़ी. मोबाइल पर 2-3 बार बीप की आवाज हुई. नोटीफिकेशन में माई डियर लिखा दिख गया.

पिया का माथा ठनक गया. अब उसे मयंक की हरकतों पर शक होना शुरू हो गया. मयंक का बिजनैस ट्रिप की बात कह कर जल्दीजल्दी दुबई जाना, मोबाइल चैट पढ़ते हुए मंदमंद मुसकान, उस पर जरूरत से ज्यादा प्यार लुटाना, बातवेबात उसे गिफ्ट दे कर खुश रखना.

अपनी बौडी फिटनैस के लिए जिम एक दिन भी मिस न करना, डाइट पर पूरापूरा ध्यान देना जिस के लिए वह कहतेकहते थक जाती थी, लेकिन वह लापरवाही करता था. पिया को एक के बाद एक सब बातें जुड़ती नजर आने लगीं.

मयंक की जिंदगी में आजकल क्या चल रहा है उस का पता लगाना उस के लिए मुश्किल नहीं था. मयंक का ऐग्जीक्यूटिव असिस्टैंट समीर को एक तरह से पिया ने ही जौब पर रखा था. वह उस की फ्रैंड सीमा का कजिन था. समीर पिया की बहुत इज्जत करता था और अपनी बड़ी बहन मानता था.

पिया ने जब समीर से मयंक के प्रेमप्रसंग के बारे में पूछा तो उस ने अपना नाम बीच में न आने की बात कह पिया को मायरा के बारे में सबकुछ बता दिया.

समीर उसे मायरा और मयंक के बीच के बारे में बताता जा रहा था और पिया को लग रहा था जैसे उस के सपनों का महल जिसे उस ने प्यार से मजबूत बना दिया था आज रेत की तरह ढह गया है.

कहां कमी छोड़ दी थी उस ने. सबकुछ तो मयंक के कहे अनुसार करती रही थी. उस ने कहा नौकरी छोड़ दो, उस ने छोड़ दी. अपने कैरियर के पीक पर थी वह लेकिन मयंक के प्यार के आगे सब फीका लगा. उस ने कहा कि पिया बच्चों की देखभाल तुम्हारी जिम्मेदारी है, मैं अपने काम में बिजी हूं, तो यह बात भी उस ने मयंक की चुपचाप मान ली थी.

बच्चों की हर जिम्मेदारी उस ने खुद पर ले ली थी. अड़ोसपड़ोस, नातेरिश्तेदार, घरबाहर की सब व्यवस्था उस ने संभाल ली थी. किस के लिए, मयंक के लिए न, क्योंकि मयंक ही उस की दुनिया था. सबकुछ उस से ही तो जुड़ा था और उस ने कितनी आसानी से मायरा को उस के हिस्से का प्यार दे दिया. यह भी नहीं सोचा कि उस पर क्या बीतेगी, जब उसे पता चलेगा.

पिया को ऐसा लग रहा था जैसे उस की नसों में गरम खून दौड़ रहा है. तनमन दहक रहा है. मन कर रहा था कि मयंक को सब के सामने शर्मसार कर दे.

पिया यह सब तू क्या सोच रही है’, अचानक पिया को अपने मन की आवाज सुनाई दी, ‘पिया, यह तो तु?ो मयंक के बारे में अचानक शक हो गया तो तू ने सच पता कर लिया. अगर उस दिन फोन नहीं देखती तो? सबकुछ वैसा ही चलता रहता जैसे पिछले कई बरसों से चलता आ रहा है.’

पिया की सोच जैसे तसवीर का दूसरा पहलू देखने लगी थी. आज समाज में मयंक का एक रुतबा है. बेटे की बिजनैस टाइकून की इमेज बनी हुई. बेटी स्वीटी अपनी ससुराल में सिरआंखों पर बैठाई जाती है, क्योंकि उस का मायका रुसूखदार है. खुद का सोसाइटी में हाई प्रोफोइल स्टेट्स रखती है. आज अगर वह मुंह खोलती है तो मयंक के इस अफेयर को ले कर मीडिया वाले मिर्चमसाला लगा कर जगजाहिर कर देंगे. उन के बिजनैस पर इस का बहुत फर्क पड़ेगा.

बरसों से कमाई गई शोहरत पर ऐसा धब्बा लगेगा जिस का खमियाजा अनुज को भुगतना पड़ेगा, बेटा जो है. अभी तो उस का पूरा भविष्य पड़ा है आगे अपनी शोहरत बटोरने के लिए. स्वीटी के लिए मयंक उस के आइडियल पापा हैं. समाज में कितना रुतबा है उन के खानदान का. ऊफ, सब मिट्टी में मिल जाएगा. सोचतेसोचते पिया का सिर चकराने लगा था.

‘‘पिया मैडम, जरा संभल कर. आप ठीक तो हैं न, आप यहां आराम से बैठिए,’’ समीर ने पिया को कुरसी पर बैठाते हुए कहा.

पिया को पानी का गिलास दिया तो वह एक सांस में पी गई. उस की चुप्पी सबकुछ वैसा ही चलते रहने देगी जैसे चलता आ रहा है और अपने साथ हो रही बेवफाई को सरेआम करती है तो सच बिखर जाएगा. दिल और दिमाग में टकराव चल रहा था.

अचानक पिया कुरसी से उठ खड़ी हुई. पर्स से मोबाइल निकाला और

मयंक को फोन मिलाया, ‘‘मयंक, कहां हो तुम.’’

‘‘डार्लिंग, मीटिंग के लिए बाहर आया था. क्यों क्या बात है?’’ मयंक ने पूछा.

‘‘वह मैं तुम्हारे औफिस आई थी कि साथ लंच करते हैं.’’

‘‘ओह, यह बात है. नो प्रौब्लम, ऐसा करो तुम शंगरिला होटल पहुंचो, मैं सीधा तुम्हें वहां

15 मिनट में मिलता हूं. साथ लंच करते हैं वहां,’’ मयंक ?ाट से बोला.

‘‘ठीक है मैं पहुंचती हूं,’’ बोल कर पिया ने फोन काट दिया.

पिया जब होटल पहुंची तो मयंक उसे उस का इंतजार करता मिला.

पिया को लगा जैसे मयंक वही तो है जैसे पहले था. उस का खयाल रखने वाला. उसे इंतजार न करना पड़े इसलिए खुद पहले पहुंच जाना. मयंक के प्यार में कमी तो उसे कहीं दिख नहीं रही.

दोनों ने साथ लंच किया और मयंक ने उसे घर छोड़ा और औफिस चला गया, क्योंकि 4 बजे उस की क्लाइंट के साथ फिर मीटिंग थी.

घर आ कर पिया बालकनी में बैठ गई थी. उस ने निर्णय ले लिया. मयंक का सबकुछ बिखेर कर रख देगा. जो कुछ वह देख पा रही है शायद मयंक ने उस बारे में सोचा तक नहीं है. उस का सबकुछ तबाह हो जाएगा.

मयंक ने शायद सोचा ही नहीं कि मायरा के साथ उस की खुशी बस तभी तक है जब तक सब परदे के पीछे है. सच सामने आ गया तो सब खत्म हो जाएगा. न प्यार का यह नशा रहेगा, न परिवार में इज्जत, न समाज में मानप्रतिष्ठा.

‘उस की तो दोनों तरफ हार है. मयंक की तबाही से उसे क्या हासिल होगा. खुशी तो मिलने से रही. फिर यह ?ाठ ही क्यों नहीं अपना लिया जाए,’ पिया दिल को एक तरफ रख दिमाग से सोचने लगी, ‘मयंक उस से मायरा का सच छिपाने के लिए उस से बेइंतहा प्यार करने लगा है. प्यार तो कर रहा है न.

‘उस के प्यार के बिना वह नहीं रह सकती. नहीं जी पाएगी वह उस के बिना. मयंक इस भुलावे में रहे कि वह उस की सचाई जानती तो अच्छा ही है. सब अच्छी तरह तो चल रहा है.

‘पत्नी हूं मैं उस की, मेरा हक कोई और छीन नहीं सकता. पतिपत्नी के रिश्ते में सचाई होनी चाहिए. यह बात मानती है वह लेकिन अगर आज वह मयंक को उस के सच के साथ नंगा कर देगी तो क्या उन के बीच वह पहले जैसा प्यार रह पाएगा? नहीं, कई बार ?ाठ को ही अपनाना पड़ता है. दवा कड़वी होती है, लेकिन इलाज के लिए खानी ही पड़ती है.’

पिया ने अब निर्णय ले लिया और एक नई पहल शुरू करने के लिए वह कमरे के भीतर गई. लाइट औन की. पूरा कमरा लाइट से जगमगा उठा. अब अंधेरा नहीं था. मयंक के सामने जाहिर नहीं होने देगी कि वह सब जान चुकी है. शायद यही सब के लिए ठीक है. गलत तो नहीं है वह कहीं?

साथी साथ निभाना – भाग 2 : संजीव ने ऐसा क्या किया कि नेहा की सोच बदल गई

‘‘पापा, नेहा को मेरे घर के सभी लोग बहुत प्यार करते हैं. उसे डरनेघबराने की कोई जरूरत नहीं है,’’ संजीव ने दबे स्वर में अपनी बात कही.

‘‘यह कैसा प्यार है तुम्हारी भाभी का, जो कल को तुम्हारे व मेरी बेटी के हाथों में हथकडि़यां पहनवा देगा?’’

‘‘पापा, गुस्से में इंसान बहुत कुछ कह जाता है. सपना भाभी को भी नेहा बहुत पसंद है. वे इस का बुरा कभी नहीं चाहेंगी.’’

‘‘देखो संजीव, जो इंसान आत्महत्या करने की नासमझी कर सकता है, उस से संतुलित व्यवहार की हम कैसे उम्मीद करें?’’

‘‘पापा, हम सब मिल कर भैयाभाभी को प्यार से समझाएंगे. हमारे प्रयासों से समस्या जल्दी हल हो जाएगी.’’

‘‘मुझे ऐसा नहीं लगता. मैं नहीं चाहता कि मेरी बेटी की खुशियां तुम्हारे भैयाभाभी के कभी समझदार बनने की उम्मीद पर आश्रित रहें.’’

‘‘फिर आप ही बताएं कि आप सब क्या चाहते हैं?’’ संजीव ने पूछा.

‘‘इस समस्या का समाधान यही है कि तुम और नेहा अलग रहने लगो. भावी मुसीबतों से बचने का और कोई रास्ता नहीं है,’’ राजेंद्रजी ने गंभीर लहजे में अपनी राय दी.

‘‘मुझे पता था कि देरसवेर आप यह रास्ता मुझे जरूर सुझाएंगे. लेकिन मेरी एक बात आप सब ध्यान से सुन लें, मैं संयुक्त परिवार में रहना चाहता हूं और रहूंगा. नेहा को उसी घर में  लौटना होगा,’’ संजीव का चेहरा कठोर हो गया.

‘‘मुझे सचमुच वहां बहुत डर लगता है,’’ नेहा ने सहमे हुए अपने मन की बात कही, ‘‘न ठीक से नींद आती है, न कुछ खाया जाता है? मैं वहां लौटना नहीं चाहती हूं.’’

‘‘नेहा, तुम्हें जीवन भर मेरे साथ कदम से कदम मिला कर चलना चाहिए. अपने मातापिता की बातों में आने के बजाय मेरी इच्छाओं और भावनाओं को ध्यान में रख कर काम करो. मुझे ही नहीं, पूरे घर को तुम्हारी इस वक्त बहुत जरूरत है. प्लीज मेरे साथ चलो,’’ संजीव भावुक हो उठा.

अपनी आदत के अनुरूप नेहा कुछ कहनेसुनने के बजाय रोने लगी. नीरजा उसे चुप कराने लगीं. राजेंद्रजी सिर झुका कर खामोश बैठ गए. संजीव को वहां अपना हमदर्द या शुभचिंतक कोई नहीं लगा.

कुछ देर बाद नेहा अपनी मां के साथ अंदर वाले कमरे में चली गई. संजीव के साथ राजेंद्रजी की ज्यादा बातें नहीं हो सकीं.

‘‘तुम मेरे प्रस्ताव पर ठंडे दिमाग से सोचविचार करना, संजीव. अभी नेहा की

बिगड़ी हालत तुम से छिपी नहीं है. उसे यहां कुछ दिन और रहने दो,’’ राजेंद्रजी की इस पेशकश को सुन संजीव अपने घर अकेला ही लौट गया.

नेहा को वापस न लाने के कारण संजीव को अपने मातापिता से भी जलीकटी बातें सुनने को मिलीं.

गुस्से से भरे संजीव के पिता ने अपने समधी से फोन पर बात की. वे उन्हें खरीखोटी सुनाने से नहीं चूके.

‘‘भाईसाहब, हम पर गुस्सा होने के बजाय अपने घर का माहौल सुधारिए,’’ राजेंद्रजी ने तीखे स्वर में प्रतिक्रिया व्यक्त की, ‘‘नेहा को आदत नहीं है गलत माहौल में रहने की. हम ने कभी सोचा भी न था कि वह ससुराल में इतनी ज्यादा डरीसहमी और दुखी रहेगी.’’

‘‘राजेंद्रजी, समस्याएं हर घर में आतीजाती रहती हैं. मेरी समझ से आप नेहा को हमारे इस कठिनाई के समय में अपने घर पर रख कर भारी भूल कर रहे हैं.’’

‘‘इस वक्त उसे यहां रखना हमारी मजबूरी है, भाईसाहब. जब आप के घर की समस्या सुलझ जाएगी, तो मैं खुद उसे छोड़ जाऊंगा.’’

‘‘देखिए, लड़की के मातापिता उस के ससुराल के मसलों में अपनी टांग अड़ाएं, मैं इसे गलत मानता हूं.’’

‘‘भाईसाहब, बेटी के सुखदुख को नजरअंदाज करना भी उस के मातापिता के लिए संभव नहीं होता.’’

इस बात पर संजीव के पिता ने झटके से फोन काट दिया. उन्हें अपने समधी का व्यवहार मूर्खतापूर्ण और गलत लगा. अपना गुस्सा कम करने को वे कुछ देर के लिए बाहर घूमने चले गए.

सपना ने नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या करने की कोशिश की है, यह बात किसी तरह उस के मायके वालों को भी मालूम पड़ गई.

उस के दोनों बड़े भाई राजीव से झगड़ने का मूड बना कर मिलने आए. उन के दबाव के साथसाथ राजीव पर अपने घर वालों का दबाव अलग से पड़ ही रहा था. सभी उस पर सविता से संबंध समाप्त कर लेने के लिए जोर डाल रहे थे.

सविता उस के साथ काम करने वाली शादीशुदा महिला थी. उस का पति सऊदी अरब में नौकरी करता था. अपने पति की अनुपस्थिति में उस ने राजीव को अपने प्रेमजाल में उलझा रखा था.

सब लोगों के दबाव से बचने के लिए राजीव ने झूठ का सहारा लिया. उस ने सविता को अपनी प्रेमिका नहीं, बल्कि सिर्फ अच्छी दोस्त बताया.

‘‘सपना का दिमाग खराब हो गया है. सविता को ले कर इस का शक बेबुनियाद है. मैं किसी भी औरत से हंसबोल लूं तो यह किलस जाती है. इस ने तो आत्महत्या करने का नाटक भर किया है, लेकिन मैं किसी दिन तंग आ कर जरूर रेलगाड़ी के नीचे कट मरूंगा.’’

उन सब के बीच कहासुनी बहुत हुई, मगर समस्या का कोई पुख्ता हल नहीं निकल सका.

संजीव की नाराजगी के चलते नेहा ही उसे रोज फोन करती. बातें करते हुए उसे अपने पति की आवाज में खिंचाव और तनाव साफ महसूस होता.

वह इस कारण वापस ससुराल लौट भी जाती, पर राजेंद्र और नीरजा ने उसे ऐसा करने की इजाजत नहीं दी.

‘‘वहां के संयुक्त परिवार में तुम कभी पनप नहीं पाओगी, नेहा,’’ राजेंद्रजी ने उसे समझाया, ‘‘अपने भैयाभाभी के झगड़ों व तुम्हारे यहां रहने से परेशान हो कर संजीव जरूर अलग रहने का फैसला कर लेगा. तेरे पास पैसा अपनी गृहस्थी अलग बसा लेने के बाद ही जुड़ सकेगा, बेटी.’’

नीरजा ने भी अपनी आपबीती सुना कर नेहा को समझाया कि इस वक्त उस का ससुराल में न लौटना ही उस के भावी हित में है.

एक रात फोन पर बातें करते हुए संजीव ने कुछ उत्तेजित लहजे में नेहा से कहा, ‘‘कल सुबह 11 बजे तुम मुझे नेहरू पार्क के पास मिलो. हम दोनों सविता से मिलने चलेंगे.’’

‘‘हम उस औरत से मिलने जाएंगे, पर क्यों?’’ नेहा चौंकी.

‘‘देखो, राजीव भैया पर उस से अलग होने की बात का मुझे कोई खास असर नहीं दिख रहा है. मेरी समझ से कल रविवार को तुम और मैं सविता की खबर ले कर आते हैं. उसे डराधमका कर, समाज में बेइज्जती का डर दिखा कर, उस के पति को उस की चरित्रहीनता की जानकारी देने का भय दिखा कर हम जरूर उसे भैया से दूर करने में सफल रहेंगे,’’ संजीव की बातों से नेहा का दिल जोर से धड़कने लगा.

 

ई. एम. आई. – भाग 3 : क्या लोन चुका पाए सोम और समिधा?

बाबूजी और सोम में बोलचाल बंद हो गई थी. वह उन के सामने भी नहीं पड़ता था. धीरेधीरे लगभग 1 साल बीत गया. एक बार अम्मां की ममता जाग उठी. बोलीं, ‘‘लल्ला, तुम उस छोरी से चुपचाप कचहरी में लिखापढ़ी से ब्याह कर लो. तुम्हारे बाबूजी गांव भर में पंडिताई करते हैं, इसलिए अपनी बदनामी से डरते हैं. तुम बाद में बहू को ले कर आ जाना. हम सब संभाल लेंगे.’’

दिल्ली लौट कर सोम ने कोर्ट में शादी के लिए अर्जी दे दी और नियत तिथि को उदास मन से शादी कर ली. शादी में कोई धूमधाम न होने से दोनों के मन में बड़ा मलाल था.

समिधा ने सोम की उदासी परखते हुए कुछ दिन बाद उस के गांव चलने का प्रस्ताव रखा. सोम अम्मांबाबूजी के स्वभाव से परिचित था. उस ने उसे समझाया, ‘‘तुम उन के क्रोध को नहीं जानती हो. वे न जाने कैसी प्रतिक्रिया करेंगे.’’

वैसे वह भी समिधा को सब से मिलवाना चाहता था. नए जीवन की शुरुआत पर अम्मां बाबूजी का आशीर्वाद लेना चाहता था. उस ने अम्मां को फोन किया, ‘‘अम्मां, आप के कहे अनुसार हम ने कचहरी में शादी कर ली है, अब हम दोनों आप लोगों का आशीर्वाद चाहते हैं.’’

अम्मां जैसे इंतजार ही कर रही थीं. तुरंत बोलीं, ‘‘आ जाओ, हम भी तो तुम्हारी परकटी परी को अपनी आंखों से देखें, जिस ने हमारे लल्ला को फंसा लिया है.’’

समिधा के बाल कटे हुए थे. आज्ञा पाते ही सोम खुशी से उछल पड़ा. वह बाजार जा कर बाबूजी के लिए सिल्क का कुरता, धोती और ऊनी दोशाला लाया. अम्मां के लिए सुंदर सी साड़ी और शाल लाया. सरिताजी ने भी अपनी ओर से उन के लिए उपहार दिए.

सोम के मन में रास्ते भर उमड़घुमड़ मची रही. वह घर रात के अंधेरे में पहुंचा. संयोगवश दरवाजा बाबूजी ने ही खोला. सोम को देखते ही वे मुंह फेर ही रहे थे कि समिधा उन के पैरों पर गिर पड़ी. बाबूजी थोड़ा सकपकाए, परंतु तुरंत ही सब समझ गए. फिर अप्रत्याशित रूप से आशीर्वाद देते हुए बोले, ‘‘सदा प्रसन्न रहो.’’

सोम का दिल बल्लियों उछल रहा था, परंतु यह क्या? बाबूजी ने अम्मां को आवाज दी, ‘‘उठो, तुम्हारा लाड़ला बहू ले कर आया है. न ढोल न नगाड़ा बस बेटे का ब्याह हो गया.’’ अम्मां ने आ कर दोनों को गले से लगा लिया. आंसुओं की धारा में सारा कलुष बह गया. बाबूजी भी चुपचाप अपने आंसू पोंछते रहे.

अगली सुबह ही अम्मां ने आदमी भेज कर अपनी बेटी सुनंदा को बुला लिया. वह सपरिवार आ गई. घर में खूब रौनक हो गई. बाबूजी ने कोई कसर न छोड़ी. गांव वालों को दावत दी. अम्मां ने समिधा को अपना हार पहना दिया.

सोम बहुत खुश था. उस ने स्वप्न में भी बाबूजी द्वारा ऐसे स्वागत के बारे में नहीं सोचा था. दोनों की गृहस्थी की गाड़ी रफ्तार से चल निकली थी. एक की पूरी तनख्वाह ई.एम.आई.  चुकाने में चली जाती थी, एक की तनख्वाह से घर चलता था. सोम अम्मांबाबूजी को हर महीने कुछ पैसा भेजता था, साथ ही सुनंदाजी की भी कुछ न कुछ मदद करता रहता था, इसलिए उस का हाथ हमेशा तंग रहता था.

‘‘सोम, कहां खो गए हो?’’

समिधा की आवाज से उस की विचार तंद्रा भंग हो गई. ट्रेन के आने की घोषणा हो गई थी. वह वर्तमान में लौट आया था. वह तेजी से अम्मांबाबूजी के डब्बे की ओर चल पड़ा.

‘‘प्लीज, अम्मां का ध्यान रखना,’’ सोम कहना नहीं भूला. उस ने लोन पर गाड़ी भी खरीद ली थी. उन लोगों को वह अपनी गाड़ी में दिल्ली घुमाने ले जाएगा, यह उस की चाहत थी.

सोम की अम्मां 65 वर्ष की बुजुर्ग महिला थीं. उन का पूरा जीवन गांव में गरीबी में बीता था. पहली बार वे दिल्ली आई थीं. प्लेटफार्म की भीड़ देख कर वे हैरान थीं. सड़कों पर लोगों की आवाजाही और गाडि़यों की कतार उन के लिए नई चीज थी. ऊंचीऊंची अट्टालिकाओं की भव्यता से वे हतप्रभ थीं. रोशनी की जगमग देख वे बोल उठीं, ‘‘का हो लल्ला, कोई मेला है क्या?’’

‘‘नहीं अम्मां, लोग काम से आतेजाते रहते हैं. यह देश की राजधानी दिल्ली है.’’

लिफ्ट से ऊपरी मंजिल पर चढ़ना भी उन के लिए अनोखा अनुभव था. सोम का फ्लैट छठी मंजिल पर था. सोम के ड्राइंगरूम में सोफासैट आदि सामान देख कर उन की आंखें फटी की फटी रह गईं.

‘‘सोम, इतने सामान में तो बहुत रुपया लगा होगा?’’

‘‘नहीं अम्मां, हम लोगों ने एकएक कर के पुरानी चीजें खरीद ली हैं.’’

साथी साथ निभाना

ई. एम. आई. – भाग 4 : क्या लोन चुका पाए सोम और समिधा?

सोम के 70 वर्षीय पिता दमा के मरीज थे. वे अकसर खांसते रहते थे. उस की दिली इच्छा थी कि वह बाबूजी का अच्छी तरह से इलाज कराए. वह उन्हें एक बड़े अस्पताल में दिखाने के लिए ले गया. उन की दवा और खानेपीने का पूरा खयाल रखा. बाबूजी उस से बहुत खुश थे. परंतु सोम का बजट थोड़ा गड़बड़ाने लगा था. फिर भी बाबूजी की सेवा कर के वह बहुत खुश था.

दवा के बड़े लिफाफे को देख कर अम्मां एक दिन बोलीं, ‘‘बुढ़ऊ की तो सारी उमर खांसत बीत गई, अब काहे को इन के लिए डाक्टरों की जेब में रुपया भर रहे हो. बहुत ज्यादा है तो बहन सुनंदा को कुछ भेज दो, उसे सहारा हो जाएगा.’’

उसे अच्छा नहीं लगा. ‘‘अम्मां, आप तो बस कुछ भी बोलती रहती हैं,’’ उस ने कहा, फिर बात बढ़ न जाए, यह सोच वह उठ कर अपने कमरे में चला गया. जब से अम्मां ने सोम का घर और रहनसहन देखा है, तब से उन्हें सुनंदा की याद बारबार आ रही थी.

समिधा समय से अम्मांबाबूजी को चायनाश्ता देती थी, खाना बना कर ही औफिस जाती थी, फिर भी अम्मां उसे पसंद नहीं करती थीं. हालांकि वह ज्यादा कुछ नहीं बोलती थीं, लेकिन उन के चेहरे के हावभाव व आंखें बहुत कुछ कह देती थीं.

एक दिन बोलीं, ‘‘बहू, अब औफिस जाना बंद करो. ऐसी हालत में घर से निकलना ठीक नहीं है. अगर कुछ उलटासीधा हो गया तो सब हाथ मलते रह जाएंगे.’’

उस ने धीरे से कहा, ‘‘अम्मां, बाद में भी छुट्टी लेनी है, इसलिए ज्यादा छुट्टी ले लेंगे तो तनख्वाह कट जाएगी.’’

एकदम बिगड़ कर वे बोलीं, ‘‘तुम तो ऐसे कह रही हो, जैसे मेरा सोम ढफली बजाता है, तुम्हीं रोटी चलाती हो.’’

इसी तरह कुछ न कुछ रोज होता रहता. समिधा तनाव से ग्रस्त हो जाती, परंतु उस ने मर्यादा का सदा ध्यान रखा. सोम व समिधा बच्चे को ले कर नित्य नई कल्पनाएं करते. समिधा ने पहले से ही छोटे बच्चे के लिए कपड़े, स्वैटर, मोजे आदि बना रखे थे. अम्मां भी दादी बनने की कल्पना से अत्यंत खुश थीं. वह मन से कोमल थीं, केवल जबान की तीखी थीं.

इंतजार की घडि़यां पूरी हुईं. समिधा ने प्यारे से बेटे को जन्म दिया. अम्मांबाबूजी तो खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. पूरे वार्ड में घूमघूम कर उन्होंने लड्डू बांटे. प्यार से समिधा के सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया. अम्मां बच्चे के ऊपर रुपए निछावर कर के आया को दे आईं. समिधा और सोम भी प्यारे से गोलू को पा कर निहाल हो उठे थे.

वह घर आ गई थी. अम्मां अपने साथ गांव से घी लाई थीं. उन्होंने प्यार से उस के लिए हलवा, सोंठ के लड्डू और गोंद की बरफी बनाई. बचपन से मां के अभाव में पलीबढ़ी वह सास के लाड़प्यार से अभिभूत हो उठी थी. उन की प्यार भरी देखभाल से उस की सेहत और रूप निखर उठा था. इतना सब करने के बाद भी अम्मां की दिखावे की आदत ने घर में कलुषता घोल दी.

एक दिन वे बोलीं, ‘‘सोम, तुम्हारे बेटा हुआ है, बहन सुनंदा को क्या दोगे?’’

‘‘अम्मां अभी तो अस्पताल वगैरह में बहुत रुपए खर्च हो गए हैं, इसलिए बाद में आप जो कहिएगा वह दे देंगे.’’

अम्मां सुनते ही बिफर पड़ीं, ‘‘तुम दोनों का तो हिसाब ही नहीं समझ आता है. दोनों सुबह के गए रात में घर घुसते हो. दोनों हाथ से कमा रहे हो, फिर भी बहन को देने के नाम पर कुछ है ही नहीं.’’

अम्मां का पारा गरम हो गया था. उन की आदत थी कि जब उन के मन का काम नहीं होता था, वे मुंह फुला कर बैठ जाती थीं. उन की चुप्पी उन के गुस्से की द्योतक थी. चेहरे के हावभाव बिगड़ेबिगड़े थे. समिधा समझ रही थी कि स्थिति नाजुक है. उस ने समझदारी से गोलू को उन की गोद में दे दिया. गोलू को देख कर वे थोड़ी सामान्य हुईं.

एक दिन अम्मां कोने में खड़ी हो कर सुनंदा जीजी से फोन पर धीरेधीरे बातें कर रही थीं. समिधा वहां से गुजरी तो उसे सुनाई पड़ा कि सुनंदा तुम छोटी हो, तुम्हें भाईभाभी को कुछ भी देने की जरूरत नहीं है. वे तुम से बड़े हैं. तुम अपने पैसे मत खर्च करना. बस जब आना तो गोलू के लिए एक जोड़ी कपड़े ले आना. सोम के पास तो तुम्हें देने के लिए कुछ है ही नहीं. समिधा चुप्पी है, लेकिन है पूरी घाघ. वही सोम को भरती रहती है.

इन बातों को सुन कर समिधा का दिल टूट गया. वह अम्मां को कैसे समझाए कि वह किस तरह से ई.एम.आई. के शिकंजे में फंसी हुई है. अम्मां को तो इस घर की ऊपरी चमकदमक दिख रही है, परंतु इस के अंदर की कहानी का उन्हें क्या पता?

गोलू 3 महीने का होने वाला था. समिधा की छुट्टियां समाप्त होने वाली थीं. अभी तक तो वह घर में रह कर सब कुछ अच्छी तरह संभाल रही थी. कल से उसे औफिस जाना है. उस ने सुबह जल्दी उठ कर जल्दीजल्दी नाश्ता और खाना बना दिया, फिर अपना और सोम का टिफिन भी तैयार कर लिया, लेकिन गोलू को छोड़ कर जाते समय उस की आंखें भर आईं. सोम से बोली, ‘‘मुझ से गोलू को छोड़ कर नौकरी नहीं हो पाएगी.’’

वह नाराज हो उठा, ‘‘मैं समझता हूं कि तुम्हें परेशानी हो रही है, लेकिन क्या करूं. तुम्हारी नौकरी मेरी मजबूरी है. इसीलिए मैं अभी बच्चे के लिए मना कर रहा था.’’

औफिस में उस का बिलकुल भी मन नहीं लग रहा था. अम्मां के लिए भी दिन भर गोलू को रखना भारी पड़ रहा था. अत: अम्मां की परेशानी को समझ कर उन की सहायता के लिए आया सुशीला को रख दिया. 2-4 दिन तो अम्मां सुशीला के साथ खुश रहीं, फिर शुरू हो गईं उन की शिकायतें. वह औफिस से आती तो गोलू और सुशीला दोनों की शिकायतों का लंबा पुलिंदा अम्मां की जबान पर तैयार रहता.

सुशीला के लिए अम्मां का कहना था कि सारे काम तो वे खुद करती हैं, यह तो बैठे रहने का पैसा लेती है. समिधा ने उन्हें कई बार समझाया कि आप इस को लगाए रखें, नहीं तो आप परेशान हो जाएंगी.

सुशीला 15-16 वर्ष की लड़की थी. उस में बचपना था. वह फटाफट काम कर के टीवी देखने लग जाती, जो अम्मां को नागवार गुजरता था. समिधा ने अम्मां को खुश करने के लिहाज से कई बार सुशीला को जोरदार डांट पिलाई, परंतु अम्मां जिस से चिढ़ जाएं उन्हें उस की शक्ल से भी नफरत हो जाती थी.

आखिर एक दिन उन्होंने उसे भगा दिया. वह औफिस से आई तो उस से बोलीं, ‘‘समिधा तुम नौकरी छोड़ दो, तुम्हारी नौकरी के कारण मैं भी यहां परेशान रहती हूं और यह नन्हा गोलू भी. तुम घर में रहोगी तभी मैं यहां रह पाऊंगी, नहीं तो मैं गांव चली जाऊंगी.’’

समिधा सन्न रह गई. उस की सारी छुट्टियां समाप्त हो चुकी थीं. वह तो स्वयं गोलू के बिना औफिस में कैसे समय बिताती है वही जानती है, परंतु वह क्या करे? नौकरी तो उस की मजबूरी है. वह गोलू को अपने से चिपटा कर सिसक उठी. वह बारबार गोलू को चूमती जा रही थी. तभी सोम आ गया.

‘‘समिधा क्या बात है?’’

वह आंसू पोंछती हुई बोली, ‘‘अम्मां मुझ से नौकरी छोड़ने को कह रही हैं, नहीं तो वे गांव चली जाएंगी.’’

वह घबरा कर बोला, ‘‘मैं ने तुम से पहले ही कहा था, अभी बच्चे के चक्कर में मत पड़ो, लेकिन तुम ने माना नहीं. अब क्या होगा? मैं तो जानता था वे यहां नहीं टिक सकतीं.’’

अम्मां जल्दीजल्दी बड़बड़ाती हुए सामान समेटने में लगी थीं. ‘बच्चा रोए तो रोए, सुबहसुबह सजधज कर घर से निकल जाना. नौकरी तो बहाना है. हम सब समझते हैं. सोम सीधा है, इसलिए जो जी में आता है वह करती है. उसे तो उंगली पर नचाती है. क्या हमारा सोम कमाता नहीं है?’ अनापशनाप बोलती जा रही थीं वे.

इन अनर्गल बातों को सुन कर सोम अपना आपा खो बैठा, ‘‘अम्मां सुनो, आप को जाना है तो जाइए, लेकिन जाने से पहले मेरी बात सुन लीजिए. आप को मेरे कमरे का सोफासैट, टीवी, फ्रिज दिखाई पड़ रहा है और मेरी गाड़ी भी दिख रही है. ये सब हम लोगों ने लोन से खरीदा है. इन चीजों के लिए हम लोग दिनरात मेहनत करते हैं. ओवरटाइम कर के आधीआधी रात में घर लौटते हैं ताकि ई.एम.आई. चुका सकें. जैसे आप लोग गांव में साहूकार से कर्ज ले कर अपना काम चलाते हैं, वैसे ही हम लोग यहां बैंक से कर्ज लेते हैं, उस का ब्याज और किस्त हमारी तनख्वाह से कटता रहता है. ब्याज चुकाने के बाद जो रुपए बचते हैं, हमें उन्हीं से गुजरबसर करना पड़ता है.

‘‘समिधा की तनख्वाह तो मुझ से ज्यादा है. यदि नौकरी छोड़नी है तो मैं छोड़ूं, क्योंकि मेरी कमाई कम है. पहले तो आप उस से कहती रहीं, तुम मां बन जाओ, हम लोग तुम्हारे पास रह कर बच्चे की देखभाल करेंगे. अब आप हमें मझधार में छोड़ कर गांव जाने को तैयार हैं. सब गड़बड़ समिधा की जिद के कारण हुआ है. हर समय आप सुनंदा को ले कर रोती रहती हैं, लेकिन सुनंदा की परेशानी का कारण आप हैं. जल्दबाजी में छोटी उम्र में उस का विवाह अनपढ़ लड़के से कर दिया. कच्ची उम्र और नासमझी में आज वह 4 बच्चों की मां है. जीजाजी को शराब की लत लग गई है. आमदनी अठन्नी है और खर्चा रुपया. हम से जितना बनता है हर महीने उन की मदद

कर देते हैं. आप क्या समझती हैं? समिधा नौकरी छोड़ देगी तो समझ लीजिए खाने के लाले पड़ जाएंगे.’’

‘‘बस करिए सोम,’’ समिधा बीच में आ गई और उसे पकड़ कर अपने कमरे में ले गई. घर में सन्नाटा छा गया था.

वह मन ही मन सोचने लगी, क्या जिंदगी है, हर क्षण संघर्ष, पलपल नई लड़ाई. किस तरह सोम से छल कर के इस प्यारे गोलू को मैं पाने में कामयाब हो पाई हूं, तो अब उस को पालने का संकट. क्या हम मध्यवर्गीय परिवार के जीवन की यही कहानी है.

आसू पोंछती हुई वह हिम्मत कर के अम्मां के पास आई और बोली, ‘‘अम्मां, मैं तो बचपन से ही अनाथ थी. बूआ ने पालपोस कर बड़ा किया, फिर वह भी इस दुनिया से चली गईं. मेरी झोली दोबारा खुशियों से भर गई, जो आप जैसे अम्मांबाबूजी मिल गए. पहले आप की एक बेटी थी, अब आप की 2 बेटियां हैं. नौकरी तो मेरी मजबूरी है. आप मेरे दर्द और मजबूरी को समझिए. मुझे भी गोलू को छोड़ कर जाने में तकलीफ होती है, लेकिन क्या करूं?’’ वह फूटफूट कर रो पड़ी.

अम्मां का दिल पिघल उठा. वे समिधा को गले से लगा कर बोलीं, ‘‘मत रो बेटी, मैं गांव की अनपढ़ यह सब क्या जानूं. तुम ने मेरी आंखें खोल दीं. सच, मुझे तो बहुत खुश होना चाहिए, जो मुझे तुम जैसी समझदार बेटी मिली. सुशीला को फोन कर दो, कहना अम्मां कह रही हैं चुपचाप कल से आ जाए और तुम निश्चिंत हो कर अपना कर्जा अमाई, क्या कहते हैं.

साथी साथ निभाना – भाग 3 : संजीव ने ऐसा क्या किया कि नेहा की सोच बदल गई

‘‘मेरे मुंह से तो वहां एक शब्द भी नहीं निकलेगा. उस स्थिति की कल्पना कर के ही मेरी जान निकली जा रही है,’’ नेहा की आवाज में कंपन था.

‘‘तुम बस मेरे साथ रहना. वहां बोलना कुछ नहीं पड़ेगा तुम्हें.’’

‘‘मुझे सचमुच लड़नाझगड़ना नहीं आता है.’’

‘‘वह सब तुम मुझ पर छोड़ दो. किसी औरत से उलझने के समय पुरुष के साथ एक औरत का होना सही रहता है.’’

‘‘ठीक है, मैं आ जाऊंगी,’’ नेहा का यह जवाब सुन कर संजीव खुश हुआ और पहली बार उस ने अपनी पत्नी से कुछ देर अच्छे मूड में बातें कीं.

बाद में जब नेहा ने अपने मातापिता को सारी बात बताई, तो उन्होंने फौरन उस के इस झंझट में पड़ने का विरोध किया.

‘‘सविता जैसी गिरे चरित्र वाली औरतों से उलझना ठीक नहीं बेटी,’’ नीरजा ने उसे घबराए अंदाज में समझाया, ‘‘उन के संगीसाथी भले लोग नहीं होते. संजीव या तुम पर उस ने कोई झूठा आरोप लगा कर पुलिस बुला ली, तो क्या होगा?’’

‘‘नेहा, तुम्हें संजीव के भैयाभाभी की समस्या में फंसने की जरूरत ही क्या है?

तुम्हारे संस्कार अलग तरह के हैं. देखो, कैसे ठंडे पड़ गए हैं तुम्हारे हाथ… चेहरे का रंग उड़ गया है. तुम कल नहीं जाओगी,’’ राजेंद्रजी ने सख्ती से अपना फैसला नेहा को सुना दिया.

‘‘पापा, संजीव को मेरा न जाना बुरा लगेगा,’’ नेहा रोंआसी हो गई.

‘‘उस से मैं कल सुबह बात कर लूंगा. लेकिन अपनी तबीयत खराब कर के तुम किसी का भला करने की मूर्खता नहीं करोगी.’’

नेहा रात भर तनाव की वजह से सो नहीं पाई. सुबह उसे 2 बार उलटियां भी हो गईं. ब्लडप्रैशर गिर जाने की वजह से चक्कर भी आने लगे. वह इस कदर निढाल हो गई कि 4 कदम चलना उस के लिए मुश्किल हो गया. वह तब चाह कर भी संजीव के साथ सविता से मिलने नहीं जा सकती थी.’’

राजेंद्रजी ने सुबह फोन कर के नेहा की बिगड़ी तबीयत की जानकारी संजीव को दे दी.

संजीव को उन के कहे पर विश्वास नहीं हुआ. उस ने रूखे लहजे में उन से इतना ही कहा, ‘‘जरा सी समस्या का सामना करने पर जिस लड़की के हाथपैर फूल जाएं और जो मुकाबला करने के बजाय भाग खड़ा होना बेहतर समझे, मेरे खयाल से उस की शादी ही उस के मातापिता को नहीं करनी चाहिए.’’

राजेंद्रजी कुछ तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करना जरूर चाहते थे, पर उन्हें शब्द नहीं मिले. वे कुछ और कह पाते, उस से पहले ही संजीव ने फोन काट दिया.

उस दिन के बाद से संजीव और नेहा के संबंधों में दरार पड़ गई. फोन पर भी दोनों अजनबियों की तरह ही बातें करते.

संजीव ने फिर कई दिनों तक जब नेहा से लौट आने का जिक्र ही नहीं छेड़ा, तो वह और उस के मातापिता बेचैन हो गए. हार कर नेहा ने ही इस विषय पर एक रात फोन पर चर्चा छेड़ी.

‘‘नेहा, अभी भैयाभाभी की समस्या हल नहीं हुई है. तुम्हारे लौटने के अनुरूप माहौल अभी यहां तैयार नहीं है,’’ ऐसा रूखा सा जवाब दे कर संजीव ने फोन काट दिया.

विवाहित बेटी का घर में बैठना किसी भी मातापिता के लिए चिंता का विषय बन ही जाता है. बीतते वक्त के साथ नीरजा और राजेंद्रजी की परेशानियां बढ़ने लगीं. उन्हें इस बात की जानकारी देने वाला भी कोई नहीं था कि वास्तव में नेहा की ससुराल में माहौल किस तरह का चल रहा है.

समय के साथ परिस्थितियां बदलती ही हैं. सपना और राजीव की समस्या का भी अंत हो ही गया. इस में संजीव ने सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.

अपने एक दोस्त और उस की पत्नी के साथ जा कर वह सविता से मिला, फिर उस के पति से टैलीफोन पर बात कर के उसे भी सविता के प्रति भड़का दिया.

संजीव की धमकियों व पति के आक्रोश से डर कर सविता ने नौकरी ही छोड़ दी. प्रेम का भूत उस के सिर से ऐसा उतरा कि उसे राजीव की शक्ल देखना भी गवारा न रहा.

कुछ दिनों तक राजीव घर में मुंह फुलाए रहा, पर बाद में उस के स्वभाव में परिवर्तन आ ही गया. अपनी पत्नी के साथ रह कर ही उसे सुखशांति मिलेगी, यह बात उसे समझ में अंतत: आ ही गई.

सपना ने अपने देवर को दिल से धन्यवाद कहा. नेहा से चल रही अनबन की उसे जानकारी थी. उन दोनों को वापस जोड़ने की जिम्मेदारी उस ने अपने कंधों पर ले ली.

सपना के जोर देने पर राजीव शादी की सालगिरह मनाने के लिए राजी हो गया.

सपना अपने पति के साथ जा कर नेहा व उस के मातापिता को भी पार्टी में आने का निमंत्रण दे आई.

‘‘उस दिन काम बहुत होगा. मुझे तैयार करने की जिम्मेदारी भी तुम्हारी होगी, नेहा. तुम जितनी जल्दी घर आ जाओगी, उतना ही अच्छा रहेगा,’’ भावुक लहजे में अपनी बात कह कर सपना ने नेहा को गले लगा लिया.

नेहा ने अपनी जेठानी को आश्वासन दिया कि वह जल्दी ही ससुराल पहुंच जाएगी. उसी शाम उस ने फोन कर के संजीव को वापस लौटने की अपनी इच्छा जताई.

‘‘मैं नहीं आऊंगा तुम्हें लेने. जो तुम्हें ले कर गए थे, उन्हीं के साथ वापस आ जाओ,’’ संजीव का यह रूखा सा जवाब सुन कर नेहा के आंसू बहने लगे.

राजेंद्रजी, नीरजा व नेहा के साथ पार्टी के दिन संजीव के यहां पहुंचे. उन के बुरे व्यवहार के कारण संजीव व उस के मातापिता ने उन का स्वागत बड़े रूखे से अंदाज में किया.

ससुराल के जानेपहचाने घर में नेहा ने खुद को दूर के मेहमान जैसा अनुभव किया. मुख्य मेजबानों में से एक होने के बजाय उस ने अपनेआप को सब से कटाकटा सा महसूस किया.

सपना ने नेहा को गले लगा कर जब कुछ समय जल्दी न आने की शिकायत की, तो नेहा की आंखों में आंसू भर आए.

‘‘मुझे माफ कर दो, भाभी,’’ सपना के गले लग कर नेहा ने रुंधे स्वर में कहा, ‘‘मेरी मजबूरी को आप के अलावा कोई दूसरा शायद नहीं समझे. मातापिता की शह पर अपने पति के परिवार से मुसीबत के समय दूर भाग जाना मेरी बड़ी भूल थी. मुझ कायर के लिए आज किसी की नजरों में इज्जत और प्यार नहीं है. अपने मातापिता पर मुझे गुस्सा है और अपने डरपोक व बचकाने व्यवहार के लिए बड़ी शर्मिंदगी महसूस हो रही है.’’

‘‘तुम रोना बंद करो, नेहा,’’ सपना ने प्यार से उस की पीठ थपथपाई, ‘‘देखो, पहले के संयुक्त परिवार में पली लड़कियों का जीवन की विभिन्न समस्याओं से अकसर परिचय हो जाता था. आजकल के मातापिता वैसी कठिन समस्याओं से अपने बच्चों को बचा कर रखते हैं. तुम अपनी अनुभवहीनता व डर के लिए न अपने मातापिता को दोष दो, न खुद को. मैं तुम्हें सब का प्यार व इज्जत दिलाऊंगी, यह मेरा वादा है. अब मुसकरा दो, प्लीज.’’

सपना के अपनेपन को महसूस कर रोती हुई नेहा राहत भरे भाव से मुसकरा उठी. तब सपना ने इशारा कर संजीव को अपने पास बुलाया.

उस ने नेहा का हाथ संजीव को पकड़ा कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘देवरजी, मेरी देवरानी नेहा अपने मातापिता से मिले सुरक्षाकवच को तोड़ कर आज सच्चे अर्थों में अपने पति के घरपरिवार से जुड़ने को तैयार है. आज के दिन अपनी भाभी को उपहार के रूप में यह पक्का वादा नहीं दे सकते कि तुम दोनों आजीवन हर हाल में एकदूसरे का साथ निभाओगे?’’

नेहा की आंखों से बह रहे आंसुओं को देख संजीव का सारा गुस्सा छूमंतर हो गया.

‘‘मैं पक्का वादा करता हूं, भाभी,’’ उस ने झुक कर जब नेहा का हाथ चूमा तो वह पहले नई दुलहन की तरह शरमाई और फिर उस का चेहरा गुलाब के फूल सा खिल उठा.

पराकाष्ठा- भाग 2: एक विज्ञापन ने कैसे बदली साक्षी की जिंदगी

पति को बस में करने के नएनए तरीके आजमाने की जब उस ने कोशिश की तो सुदीप का माथा ठनका. इस तरह शर्तों पर तो जिंदगी नहीं जी जा सकती. आपस में विश्वास, समझ, प्रेम व सामंजस्य की भावना ही न हो तो संबंधों में प्रगाढ़ता कहां से आएगी? रिश्तों की मधुरता के लिए दोनों को प्रयास करने पड़ते हैं और साक्षी केवल उस पर हावी होने, अपनी जिद मनवाने तथा स्वयं को सही ठहराने के ही प्रयास कर रही है. यह सब कब तक चल पाएगा. इन्हीं विचारों के झंझावात में वह कुछ दिन उलझा रहा.

एक दिन अचानक खुशी की लहर उस के शरीर को रोमांचित कर गई जब साक्षी ने उसे बताया कि वह मां बनने वाली है. पल भर के लिए उस के प्रति सभी गिलेशिकवे वह भूल गया. साक्षी के प्रति अथाह प्रेम उस के मन में उमड़ पड़ा. उस के माथे पर प्रेम की मोहर अंकित करते हुए वह बोला, ‘थैंक्यू, साक्षी, मैं तुम्हारा आभारी हूं, तुम ने मुझे पिता बनने का गौरव दिलाया है. मैं आज बहुत खुश हूं. चलो, बाहर चलते हैं. लेट अस सेलीब्रेट.’

मां को जब यह खुशखबरी सुदीप ने सुनाई तो वह दौड़ी चली आईं. अपने अनुभवों की पोटली भी वह खोलती जा रही थीं, ‘साक्षी, वजन मत उठाना, भागदौड़ मत करना, ज्यादा मिर्चमसाले, गरम चीजें मत लेना…’ कह कर मां चली गईं.

एकांत के क्षणों में सुदीप सोचता, बच्चा होने के बाद साक्षी में सुधार आ जाएगा. बच्चे की सारसंभाल में वह व्यस्त हो जाएगी, सहेलियों के जमघट से भी छुटकारा मिल जाएगा.

प्रसवकाल नजदीक आने पर मां ने आग्रह किया कि साक्षी उन के पास रहे मगर साक्षी ने दोटूक जवाब दिया, ‘मुझे यहां नहीं रहना, मां के पास जाना है. मेरी मम्मी, मेरी व बच्चे की ज्यादा अच्छी देखभाल कर सकती हैं.’

हार कर उसे मां के घर भेजना ही पड़ा था सुदीप को.

3 माह के बेटे को ले कर साक्षी जब घर लौटी तो सब से पहले उस ने आया का इंतजाम किया. चूंकि उस का वजन भी काफी बढ़ गया था इसलिए हेल्थ सेंटर जाना भी शुरू कर दिया. उसे बच्चे को संभालने में खासी मशक्कत करनी पड़ती. दिन भर तो आया ही उस की जिम्मेदारी उठाती थी. कई दफा मुन्ना रोता रहता और वह बेफिक्र सोई रहती. एक दिन बातों ही बातों में सुदीप ने जब इस बारे में शिकायत कर दी तो साक्षी भड़क उठी, ‘हां, मुझ से नहीं संभलता बच्चा. शादी से पहले मैं कितनी आजाद थी, अपनी मर्जी से जीती थी. अब तो अपना होश ही नहीं है. कभी घर, कभी बच्चा, बंध गई  हूं मैं…’

सुदीप के पैरों तले जमीन खिसक गई, ‘साक्षी, यह क्या कह रही हो तुम? अरे, बच्चे के बिना तो नारी जीवन ही अधूरा है. यह तो तुम्हारे लिए बड़ी खुशी की बात है कि तुम्हें मां का गौरवशाली, ममता से भरा रूप प्राप्त हुआ है. हम खुशकिस्मत हैं वरना कई लोग तो औलाद के लिए सारी उम्र तरसते रह जाते हैं,’ सुदीप ने समझाने की गरज से कहा.

‘तुम आज भी उन्हीं दकियानूसी विचारों से भरे हो. दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है. अभी भी तुम कुएं के मेढक बने हुए हो. घर, परिवार, बच्चे, बस इस के आगे कुछ नहीं.’

साक्षी के कटाक्ष से सुदीप भीतर तक आहत हो उठा, ‘साक्षी, जबान को लगाम दो. तुम हद से बढ़ती जा रही हो.’

‘मुझे भी तुम्हारी रोजरोज की झिकझिक में कोई दिलचस्पी नहीं. मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना, तलाक चाहिए मुझे…’

साक्षी के इतना कहते ही सुदीप की आंखों के आगे अंधेरा छा गया, ‘क्या कहा तुम ने, तलाक चाहिए? तुम्हारा दिमाग तो ठीक है?’

‘बिलकुल ठीक है. मैं अपने मम्मीपापा के पास रहूंगी. वे मुझे किसी काम के लिए नहीं टोकते. मुझे अपने ढंग से जीने देते हैं. मेरी खुशी में ही वे खुश रहते हैं…’

उन के संबंधों में दरार आ चुकी थी. मुन्ने के माध्यम से यह दरार कभी कम अवश्य हो जाती लेकिन पहले की तरह प्रेम, ऊष्मा, आकर्षण नहीं रहा.

तनावों के बीच साल भर का समय बीत गया. इस बीच साक्षी 2-3 बार तलाक की धमकी दे चुकी थी. सुदीप तनमन से थकने लगा था. आफिस में काम करते वक्त भी वह तनावग्रस्त रहने लगा.

मुन्ना रोए जा रहा था और साक्षी फोन पर गपशप में लगी थी. सुदीप से रहा नहीं गया. उस का आक्रोश फट पड़ा, ‘तुम से एक बच्चा भी नहीं संभलता? सारा दिन घर रहती हो, काम के लिए नौकर लगे हैं. आखिर तुम चाहती क्या हो?’

‘तुम से छुटकारा…’ साक्षी चीखी तो सुदीप भी आवेश में हो कर बोला, ‘ठीक है, जाओ, शौक से रह लो अपने मांबाप के घर.’

साक्षी ने फौरन अटैची में अपने और मुन्ने के कपड़े डाले.

अपारदर्शी सच- भाग 1: किस रास्ते पर चलने लगी तनुजा

रात के 11 बज चुके थे. तनुजा की आंखें नींद और इंतजार से बोझिल हो रही थीं. बच्चे सो चुके थे. मम्मीजी और मनीष लिविंगरूम में बैठे टीवी देख रहे थे. तनुजा का मन हो रहा था कि मनीष को आवाज दे कर बुला ले, लेकिन मम्मी की उपस्थिति के लिहाज के चलते उसे ठीक नहीं लगा. पानी पीने के लिए किचन में जाते हुए उस ने मनीष को देखा पर उन का ध्यान नहीं गया. पानी पी कर भी अतृप्त सी वह वापस कमरे में आ गई.

बिस्तर पर बैठ कर उस ने एक नजर कमरे पर डाली. उस ने और मनीष ने एकदूसरे की पसंदनापसंद का खयाल रख कर इस कमरे को सजाया था.

हलके नीले रंग की दीवारों में से एक पर खूबसूरत पहाड़ी, नदी से गिरते झरने और पेड़ों की पृष्ठभूमि से सजी पूरी दीवार के आकार का वालपेपर. खिड़कियों पर दीवारों से तालमेल बिठाते नैट के परदे, फर्श से छत तक की अलमारियां, तरहतरह के सौंदर्य प्रसाधनों से भरी अंडाकार कांच की ड्रैसिंगटेबल, बिस्तर पर साटन की रौयल ब्लू चादर और टेबल पर सजा महकते रजनीगंधा के फूलों का गुलदस्ता. उसे लगा, सभी मनीष का इंतजार कर रहे हैं.

तनुजा की आंख खुली, तब दिन चढ़ आया था. उस का इंतजार अभी भी बदन में कसमसा रहा था. मनीष दोनों हाथ बांधे बगल में खर्राटे ले कर सो रहे थे. उस का मन हुआ, उन दोनों बांहों को खुद ही खोल कर उन में समा जाए और कसमसाते इंतजार को मंजिल तक पहुंचा दे. लेकिन घड़ी ने इस की इजाजत नहीं दी. फुरफुराते एहसासों को जूड़े में लपेटते वह बाथरूम चली गई.

बेटे ऋषि व बेटी अनु की तैयारी करते, सब का नाश्ताटिफिन तैयार करते, भागतेदौड़ते खुद की औफिस की तैयारी करते हुए भी रहरह कर एहसास कसमसाते रहे. उस ने आंखें बंद कर जज्बातों को जज्ब करने की कोशिश की, तभी सासुमां किचन में आ गईं. वह सकपका गई. उस ने झटके से आंखें खोल लीं और खुद को व्यस्त दिखाने के लिए पास पड़ा चाकू उठा लिया पर सब्जी तो कट चुकी थी, फिर उस ने करछुल उठा लिया और उसे खाली कड़ाही में चलाने लगी. सासुमां ने चश्मे की ओट से उसे ध्यान से देखा.

कड़ाही उस के हाथ से छूट गई और फर्श पर चक्कर काटती खाली कड़ाही जैसे उस के जलते एहसास उस के जेहन में घूमने लगे और वह चाह कर भी उन्हें थाम नहीं पाई.

एक कोमल स्पर्श उस के कंधों पर हुआ. 2 अनुभवी आंखों में उस के लिए संवेदना थी. वह शर्मिंदा हुई उन आंखों से, खुद को नियंत्रित न कर पाने से, अपने यों बिखर जाने से. उस ने होंठ दबा कर अपनी रुलाई रोकी और तेजी से अपने कमरे में चली गई.

बहुत कोशिश करने के बावजूद उस की रुलाई नहीं रुकी, बाथरूम में शायद जी भर रो सके. जातेजाते उस की नजर घड़ी पर पड़ी. समय उस के हाथ में न था रोने का. तैयार होतेहोते तनुजा ने सोते हुए मनीष को देखा. उस की बेचैनी से बेखबर मनीष गहरी नींद में थे.

तैयार हो कर उस ने खुद को शीशे में निहारा और खुद पर ही मुग्ध हो गई. कौन कह सकता है कि वह कालेज में पढ़ने वाले बच्चों की मां है? कसी हुई देह, गोल चेहरे पर छोटी मगर तीखी नाक, लंबी पतली गरदन, सुडौल कमर के गिर्द लिपटी साड़ी से झांकते बल. इक्कादुक्का झांकते सफेद बालों को फैशनेबल अंदाज में हाईलाइट करवा कर करीने से छिपा लिया है उस ने. सब से बढ़ कर है जीवन के इस पड़ाव का आनंद लेती, जीवन के हिलोरों को महसूस करते मन की अंगड़ाइयों को जाहिर करती उस की खूबसूरत आंखें. अब बच्चे बड़े हो कर अपने जीवन की दिशा तय कर चुके हैं और मनीष अपने कैरियर की बुलंदियों पर हैं. वह खुद भी एक मुकाम हासिल कर चुकी है. भविष्य के प्रति एक आश्वस्ति है जो उस के चेहरे, आंखों, चालढाल से छलकती है.

मनीष उठ चुके थे. रात के अधूरे इंतजार के आक्रोश को परे धकेल एक मीठी सी मुसकान के साथ उस ने गुडमौर्निंग कहा. मनीष ने एक मोहक नजर उस पर डाली और उठ कर उसे बांहों में भर लिया. रीढ़ में फुरफुरी सी दौड़ गई. कसमसाती इच्छाएं मजबूत बांहों का सहारा पा कर कुलबुलाने लगीं. मनीष की आंखों में झांकते हुए तपते होंठों को उस के होंठों के पास ले जाते शरारत से उस ने पूछा, ‘‘इरादा क्या है?’’ मनीष जैसे चौंक गए, पकड़ ढीली हुई, उस के माथे पर चुंबन अंकित करते, घड़ी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘इरादा तो नेक ही है, तुम्हारे औफिस का टाइम हो गया है, तुम निकल जाना.’’ और वे बाथरूम की तरफ बढ़ गए.

जलते होंठों की तपन को ठंडा करने के लिए आंसू छलक पड़े तनुजा के. कुछ देर वह ऐसे ही खड़ी रही उपेक्षित, अवांछित. फिर मन की खिन्नता को परे धकेल, चेहरे पर पाउडर की एक और परत चढ़ा, लिपस्टिक की रगड़ से होंठों को धिक्कार कर वह कमरे से बाहर निकल गई.

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