प्रेम गली अति संकरी

कबीर कहते हैं, ‘कबीरा यह घर प्रेम का, खाला का घर नाहिं, सीस उतारे हाथि धरे, सो पैसे घर माहिं.’ उन सस्ते दिनों में भी आशिक और महबूबा के लिए प्रेम करना खांडे की धार पर चलने के समान था. आम लोग बेशक आशिकों को बेकार आदमी समझते होंगे, जो रातदिन महबूबा की याद में टाइम खोटा करते हैं. आशिकों को मालूम नहीं कि प्रेम करते ही सारा जमाना उन के खिलाफ हो जाता है.

गालिब कहते हैं, ‘इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के.’ जिगर मुरादाबादी ने कहा है, ‘इश्क जब तक न कर चुके रुसवा, आदमी काम का नहीं होता.’ अब कौन सही है और कौन गलत, जवानी की दहलीज पर पांव रखने वाले नवयुवक क्या समझें? ये सब उन पुराने जमाने के शायरों की मिलीजुली साजिश का नतीजा था कि लोग प्रेम से दूर भागने लगे थे. मीरा बोली, ‘जो मैं जानती प्रीत करे दुख होय, नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत न करियो कोई.’ फिर वही जमाना पलट आया है, जब बच्चों को इस नामुराद इश्क के कीड़े से दूर रहने की सलाह दी जाती है. तभी तो आज फिल्मों में गाने भी इस तरह के आ रहे हैं जैसे, ‘प्यार तू ने क्या किया’, ‘इस दिल ने किया है निकम्मा’, ‘कमबख्त इश्क है जो’.

एक कवि कहता है, ‘प्रेम गली अति संकरी, इस में दो न समाए.’ दो का अर्थ है 2 रकीब, जो एक ही महबूबा को एक ही समय में एकसाथ लाइन मारते हैं. कवि कहता है कि प्रेम नगर की गली बहुत तंग है. इसे एक समय में एक ही व्यक्ति पार कर सकता है. आशिक और महबूबा का गली में साथसाथ खड़े होना संभव नहीं बल्कि खतरे से खाली नहीं है, वर्जित भी है क्योंकि पड़ोसियों की सोच बहुत तंग है. लड़की के भाई जोरावर हैं और बाप पहलवान है.

इतनी सारी पाबंदियों के चलते दैहिक स्तर पर प्रेम का प्रदर्शन सूनी छत पर तो हो सकता है, गली में नहीं. तभी कवि जोर देता है कि प्रेम गली अति संकरी, इस में दो न समाए. लोगों का मानना है कि गलियां तो आनेजाने के लिए होती हैं. सभी लोग गलियों में ही प्रेम का इजहार करने लग जाएंगे तो आवकजावक यानी यातायात संबंधी बाधाएं उत्पन्न हो जाएंगी.

प्यार पाना या गवांना इतना उल्लासपूर्ण या त्रासद नहीं जितना प्रेम की राह में किसी अन्य का आ जाना, किसी का आना मजा किरकिरा तो करता ही है, उस के साथ प्यार किसी प्रतियोगिता से कम नहीं रह जाता और इस प्रतियोगिता में सारी बाजी पलटती हुई नजर आती है. सारी उर्दू शायरी रकीब के आसपास घूमती है. नायिका को हर समय यही डर सताता रहता है कि उस ने जो प्रेम का मायाजाल रचा है उस में कोई तीसरा आ कर टांग न अड़ाए.

असली जिंदगी में भी एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं. प्रेम में त्रिकोण का साहित्यिक व फिल्मी महत्त्व भी है. होता यों है कि नायकनायिका प्रेम की पींगे भर रहे होते हैं तभी जानेअनजाने कोई तीसरा आदमी कबाब में हड्डी की तरह पता नहीं कैसे और कहां से टपक पड़ता है. वैसे तो उस के होने से ही कथा में तनाव गहराता है मगर उस का होना जनता को गवारा नहीं लगता. प्रेमी को प्रेमिका से सहज भाव से प्रेम हो जाए, शादी हो जाए और फिर बच्चे हो जाएं तो सारा किस्सा ही अनरोमांटिक हो जाता है. कथा को आगे बढ़ाने के लिए कोई न कोई अवरोधक तो चाहिए ही न. बहुत कम कहानियां ऐसी होती हैं जिन में नायक व नायिका खुद एक दूसरे से उलझ जाते हैं. बात उन के अलगाव पर जा कर खत्म होती है मगर 90 फीसदी कहानियों में बाहरी दखल जरूरी है. इसी हस्तक्षेप के कारण कथा को गति मिलती है व कुछ रोचकता पैदा होती है.

प्रेम में रुकावट के लिए या तो किसी दूसरे आदमी या विलेन या क्रूर समाज की मौजूदगी होनी बहुत जरूरी है. प्रेम में जितनी बाधाएं होंगी, तड़प उतनी ही गहरी होगी और प्रेम की अनुभूति उतनी ही तीव्र होगी.

प्रेम कथा का प्लाट गहराएगा. लैलामजनूं, हीररांझा, शीरीफरहाद या रोमियोजूलियट जैसी विश्व की महान कथाओं में समाज पूरी शिद्दत के साथ प्रेमियों की राह में दीवार बन कर खड़ा हो गया था. कहीं पारिवारिक रंजिश के चलते तो कहीं विलेन की चालों के कारण 2 लोग आपस में नहीं मिल पाए तो एक बड़ी प्रेम कहानी ने जन्म लिया, जो सदियों तक लोगों को रुलाती रहती है.

कुछ कहानियों में किसी तीसरे की मौजूदगी इस कदर अनिवार्य व स्वीकार्य होती है कि प्रेमी या प्रेमिका उस की खातिर खुद को मिटाने का फैसला कर बैठता है. प्यार में यह अनचाही व बेमतलब की कुरबानी हमारी फिल्मों में सफलतापूर्वक फिट होती है मगर असल जिंदगी में ऐसे त्यागी लोग ढूंढ़े नहीं मिलेंगे.

आदमी की प्रकृति है जलन करना. इस जलन से मुक्ति पाने की कोशिश वैसे ही है जैसे अपनी परछाईं से मुक्त होना. इस जलन का एक दूसरा रूप है जब हम रिश्तों के क्षेत्र में संयुक्त स्वामित्व चाहते हैं यानी जिस से हम प्यार करते हैं उसे कोई दूसरा चाहने लगे तो हमारी ईर्ष्या चरम पर होती है. साहिर लुधियानवी ने इस जलन को क्या खूब बयान किया है, ‘तुम अगर मुझ को न चाहो, तो कोई बात नहीं, तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी…’ इस मुश्किल को आसान बनाने के लिए हमारे फिल्मी निर्देशकों ने कहानी में एक नए तरह के मोड़ को लाने की कोशिश की. नायक या नायिका को किसी दूसरे आदमी के प्रेम की छाया से मुक्त करने के लिए सहानुभूति के कारक की मदद ली गई. नया या पुराना आशिक किसी हालत का शिकार दिखाया जाने लगा. कैंसर या लापता होना या उस की अचानक मौत दिखा कर नायिका के मन में चल रहे द्वंद्व का हल निकाला गया.

चाहत : संगीता ने राजा को चुना या सुनील को?

राजा संगीता के पीछे पड़ा रहता. संगीता की चाहत में उस ने अपनेआप को भुला डाला था. अगर राजा से कोई संगीता के बारे में पूछता, तो उस का एक ही जवाब होता, ‘‘तुम जानो, मुझे क्या पता?’’

अब तक की अपनी जिंदगी में राजा ने किसी भी लड़की की तरफ आंख उठा कर नहीं देखा था और जब उस ने देखा, तो अपना सबकुछ सौंप दिया.

संगीता में गजब का खिंचाव था. वह खूबसूरत तो थी ही. गोल चेहरा, दूधिया रंग, हिरनी सी आंखें, गुलाब जैसे गुलाबी होंठ, बुलबुल की तरह की चाल, नागिन की तरह बलखाते काले बाल, जवानी से भरापूरा बदन. कहने का मतलब यह कि खूबसूरती का दूसरा नाम था संगीता. इतनी सारी खूबियां हर जवां दिल को हलचल में डालने के लिए काफी थीं. शायद राजा भी इन्हीं तीरों का निशाना बन गया था.

लेकिन संगीता ने राजा में कोई दिलचस्पी नहीं ली. जब भी राजा ने संगीता का दिल जीतने की कोशिश की, उसे नाकामी ही हाथ लगी, क्योंकि वह मन ही मन राजा से चिढ़ती थी. लेकिन राजा ने कभी गलत कदम नहीं उठाया और उस के इस तरह से मुंह मोड़ कर जाने का कभी उस ने बुरा भी नहीं माना.

राजा रात को पड़ापड़ा अपने एकतरफा प्यार के लंबेलंबे सपने बनाता, पर उस के सारे सपने मानो महाप्रलय में हाथपैर पीट रहे हों.

जब आखिरकार दिल नहीं माना, तब राजा ने एक दिन हिम्मत कर के संगीता के सामने अपने दिल को खोल कर रख दिया, ‘‘संगीता, मैं तुम्हारे बगैर एक पल भी जिंदा नहीं रह सकता. मैं तुम से बेइंतिहा प्यार करता हूं. तुम्हारे प्यार में मेरा क्या हाल है, यह तुम खुद देख सकती हो,’’ कह कर राजा ने अपराधी की तरह नजरें ?ाका लीं.

‘‘मैं सब जानती हूं राजा…’’ संगीता पहली दफा राजा को गौर से देख रही थी. उस ने आगे कहा, ‘‘तुम मु?ा से प्यार करते होगे, लेकिन मैं तुम से प्यार नहीं करती, क्योंकि मैं किसी और को चाहती हूं.

‘‘तुम जानते हो कि एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं, इसलिए तुम बेवजह अपना दिल मत जलाओ.’’

राजा ने भीगी पलकों से उसे देखा और गिड़गिड़ाने वाले अंदाज में कहा, ‘‘ऐसा मत कहो संगीता. तुम न सही, तुम्हारे दर्शन तो मिला करेंगे? जिंदगीभर तुम्हें इसी तरह देखदेख कर जिंदगी काट लूंगा. क्या तुम मुझे इतना भी हक नहीं दोगी?’’

राजा की बातों को सुन कर संगीता कुछ नहीं बोली और अपने रास्ते पर आगे बढ़ गई. राजा निराश हो गया. उसे ऐसा लगा, जैसे उस का दिल कांच की तरह टुकड़ेटुकड़े हो कर बिखर गया है. उस की सांसें थमने सी लगी हैं.

‘‘रुको संगीता…’’ अपनी समूची ताकत के साथ राजा बोला, तो संगीता के उठते कदम एकदम जहां के तहां रुक गए, ‘‘इतना तो बताती जाओ कि वह खुशनसीब कौन है, जिसे तुम्हारा प्यार मिल रहा है?’’ उस ने एक ही सांस में कह डाला.

‘‘सुनील,’’ कह कर बगैर पीछे देखे ही संगीता तेजी से बढ़ गई और पलभर में ही वह राजा की आंखों से ओझल हो गई. संगीता के प्रेमी का नाम जानते ही राजा के दिमाग की घंटियां बज उठीं.

वैसे तो सुनील में कोई कमी नहीं थी. देखने में खूबसूरत, हट्टाकट्टा जवान था, लेकिन हर चमकने वाली चीज सोना नहीं हुआ करती है. यह मुहावरा सुनील पर फिट बैठता, क्योंकि सुनील का चरित्र ठीक नहीं था. उस ने न जाने कितनी ही भोलीभाली मासूम लड़कियों को बरबादी के कगार पर पहुंचा दिया था.

काफी देर तक राजा विचारों में खोया रहा. उस ने सोचा कि वह संगीता को सुनील की असलियत बता देगा, लेकिन उस के दिल ने ही इस का विरोध किया कि संगीता उस की एक भी बात नहीं मानेगी. उलटे उसे ही छलिया, फरेबी कहेगी.

‘‘हैलो सुनील…’’ संगीता ने दूर से ही पार्क में बैठे सुनील को संबोधित किया, जो अपने 3-4 दोस्तों के साथ किसी खास मुद्दे पर बात करने में मशगूल था.

‘‘हैलो डार्लिंग…’’ सुनील भी जवाब में मुसकराया और बोला, ‘‘प्लीज संगीता, तुम कुछ देर वहीं बैठो. मैं अभी बात कर के आता हूं.’’ संगीता चहकती हुई किसी आज्ञाकारी नौकर की तरह वहीं बैठ गई.

सुनील के दोस्त संगीता को कामुक नजरों से देख रहे थे. एक दोस्त ने होंठों पर जीभ फेरते हुए कहा, ‘‘यार सुनील, चिडि़या तो गजब की फंसाई है. इस से खेलने को दिल करता है.’’

‘‘अबे अक्ल के दुश्मनो…’’ सुनील ने कहा, ‘‘क्या तुम जानते हो कि शिकारी चिडि़या का शिकार कैसे करता है? पहले अनाज के दाने डालता है, फिर जाल बिछाता है और उस के बाद धीरेधीरे जाल समेटता है. समझे.’’जोरदार हंसी के ठहाके से पार्क गूंज उठा.

‘‘वाह, मान गए सुनील भाई,’’ एक ने दाद दी.

हंसी संगीता ने भी सुनी थी, लेकिन वह इस के मतलब से अनजान थी.

सुनील ने संगीता को सच्चे दिल से कभी प्यार नहीं किया. वह तो उसे केवल खिलौना सम?ाता रहा.

उस दिन के बाद राजा के दिल में एक कसक सी भर गई. कसक इस बात की नहीं थी कि उसे संगीता का प्यार नहीं मिला, बल्कि इस बात की थी कि वह संगीता की जिंदगी के हरेभरे बाग को उजड़ने से कैसे बचाए? क्या वह संगीता के सामने सुनील के गलत कामों का कच्चाचिट्ठा खोल कर रख दे. पर उस के सामने एक ही समस्या थी कि वह संगीता को सचाई से कैसे परिचित कराए.

एक दिन संगीता ने जैसे ही सुनील के कमरे में कदम रखा, अंदर का नजारा देख कर उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. डर से उस के पैर कांप गए, क्योंकि सुनील अपने 2 दोस्तों के साथ शराब पी रहा था.

‘‘सुनील, तुम शराब पीते हो?’’ कांपते होंठों से संगीता ने पूछा.

सुनील के दोस्तों ने कामुक नजरों से संगीता को देखा. उस के उभरे अंगों को निहारा और होंठों पर जहरीली मुसकान लाते हुए एक ने कहा, ‘‘यार सुनील, शराब के साथ सुंदरी का भी जुगाड़ हो गया. अब तो मौज आएगी.’’

उन सब के ठहाकों से कमरा गूंज गया. संगीता के सामने सुनील का असली चेहरा आ गया था. उसे गुस्सा तो बहुत आया कि इस बेवफा का मुंह नोच डाले, मगर किसी तरह वह अपने गुस्से को पी गई.

तभी एक बदमाश ने उठ कर दरवाजे की कुंडी चढ़ा दी. दरवाजा बंद होते ही संगीता के चेहरे का रंग उड़ गया.

सुनील बेहूदा हंसी हंसते हुए मुसकराया, ‘‘अरे, इस में डरने की क्या बात है? हम कोई गैर थोड़े ही हैं. तुम मेरी माशूका हो न. हो न डार्लिंग?’’

सुनील के मुंह से शराब की बदबू आ रही थी.

‘‘जानेमन, हमें इस मतवाली जवानी का मजा चख लेने दो,’’ सुनील ने संगीता की कलाई पकड़ कर उसे अपनी ओर खींचा.

‘चटाक…’ अगले ही पल सुनील के गाल पर संगीता का झन्नाटेदार थप्पड़ पड़ा, तो वह तिलमिला गया.

लेकिन एक अकेली लड़की उन तीनों से कब तक लड़ती? आखिर वह हार गई. उस ने उन दरिंदों से अपनी इज्जत की भीख मांगी, पर सब बेकार रहा. वह बेचारी लुट गई थी. जिसे अपनी जवानी का रक्षक समझ था, वह भक्षक निकला और उसे अपनी हवस का शिकार बना डाला.

तभी राजा वहां आ पहुंचा और जैसे ही वह दरवाजे के करीब पहुंचा, उसे अंदर से किसी औरत के चीखने की आवाज सुनाई दी. आवाज पर गौर किया तो सन्न रह गया, क्योंकि यह तो यकीनन संगीता की चीख है.

दरवाजे को ढकेलने की कोशिश की, तो पाया कि वह अंदर से बंद है. जब भीतर जाने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया, तो उस ने दरवाजा तोड़ने का मनसूबा बनाया और इस में कामयाब भी हो गया.

राजा को अचानक देख कर वे तीनों ही संगीता को छोड़ कर पीछे हट गए. डरीसहमी संगीता जल्दीजल्दी अपने उघड़े बदन को ढकने लगी.

यह सब देख राजा की त्योरियां चढ़ गईं और वह तीनों बदमाशों से भिड़ गया. इस मारामारी में राजा के सिर पर चोट आ गई. उसे लहूलुहान देख सुनील और उस के साथी वहां से फरार हो गए.

इस घटना के थोड़ी देर बाद कुछ और लोग भी घटना वाली जगह पर पहुंच गए. उन्होंने राजा को अस्पताल भिजवाया. उस के साथ संगीता भी गई. उस ने पुलिस में सुनील और उस के दोस्तों के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज कराया और राजा की सेवा में जुट गई. उस ने अब बगले और हंस को पहचान लिया, पर उस का दिल धड़क रहा था.

कुछ घंटे बाद जब राजा को होश आया, तो वह वहां संगीता को देख अचरज में डूब गया. संगीता ने राजा को घूरते देख अपना चेहरा ?ाका लिया. लाज से उस का चेहरा लाल हो गया था.

‘‘संगीता…’’ राजा ने धीरे से कहा, ‘‘इस तरह दिल छोटा मत करो. जो हो गया, उसे भूल जाओ. आज से तुम अपनी नई जिंदगी की शुरुआत समझे.’’

राजा की बातों को सुन कर संगीता रो पड़ी और बोली, ‘‘मेरे पास कुछ भी नहीं बचा है, सबकुछ लुट चुका है. अब तो मौत ही मु?ा कलंकिनी की जिंदगी सुधार सकती है.’’

‘‘किसी ने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा है संगीता…’’ राजा ने उस की कलाई पकड़ी और बड़े प्यार से कहा, ‘‘तुम वही संगीता हो, जो पहले थी. अब भी मैं तुम से उतना ही प्यार करता हूं, जितना आज से पहले करता था.’’

‘‘सच राजा,’’ संगीता ने राजा को फटी आंखों से देखा.

‘‘हां संगीता, बल्कि पहले से भी ज्यादा मैं तुम्हें चाहने लगा हूं, क्योंकि पहले तुम्हारा दिल किसी और के पास था,’’ राजा ने संगीता की आंखों में देखा.

संगीता को सच्चा मोती मिल गया था. उस की लुटी हुई सारी खुशियां जैसे फिर उस की ?ोली में आ गई थीं. यह राजा की सच्ची चाहत थी.

 

प्यार का पहला खत: सौम्या के दिल में उतरा आशीष

मेरे हाथ में किताब थी और मैं इधरउधर देखे जा रही थी क्योंकि वह मेरे हाथ में किताब पकड़ा कर गायब हो चुका था या यों कहें वह कहीं छिप गया या वहां से दूर भाग चुका था. शायद मेरी मति मारी गई थी जो मैं ने उस से किताब ले ली थी. सच कहूं तो वह काफी समय से मुझे इंप्रैस करने में लगा हुआ था. हालांकि कभी कुछ कहा नहीं था और आज जब उसे पता चला कि मुझे इस सब्जैक्ट की किताब की जरूरत है तो न जाने कहां से फौरन उस किताब को अरेंज कर के मेरे हाथों में पकड़ा कर चला गया था.

मैं ने उस समय तो वह किताब पकड़ ली थी लेकिन अब उस के छिप जाने या गायब हो जाने से मेरा दिमाग बहुत परेशान हो रहा था. कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. मैं इस तरह परेशान हाल ही उस पार्क में पड़ी हुई एक बैंच पर बैठ गई. वहां पर कुछ लोग जौगिंग कर रहे थे और वे मेरे आसपास ही घूम रहे थे. मुझे लगा कि शायद मेरी परेशान हालत देख कर वे सब मेरे और करीब आ रहे हैं. खैर, हर तरफ से मन हटा कर मैं ने किताब का पहला पन्ना खोला, सरसराता हुआ एक सफेद प्लेन पेपर मेरे हाथों के पास आ कर गिर पड़ा. न जाने क्यों मेरा मन एकदम से घबरा गया, समझ ही नहीं आया क्या होगा इस में. फिर भी झुक कर उसे उठाया और खोल कर चैक किया, कहीं कुछ भी नहीं लिखा था.

मैं खुद को ही गलत कहने लगी. वह तो एक समझदार लड़का है और मेरी हैल्प करना चाहता है, बस. मैं ने दूसरा पन्ना पलटा तो एक और सफेद प्लेन पन्ना सरक कर गिर पड़ा. इस समय मैं अनजाने में ही जोर से चीख पड़ी. पार्क में मौजूद आधे लोग पहले से ही मेरी तरफ देख रहे थे और बचेखुचे लोग भी अपनी सेहत पर ध्यान देने के बजाय मेरी ओर निहार रहे थे.

‘‘क्या हुआ सौम्या?’’ अचानक से आशीष दौड़ कर मेरे पास आ गया. वह मेरे चीखने की आवाज सुन कर काफी घबराया हुआ लग रहा था.

‘‘कुछ नहीं, बस इस घास के कीड़े से डर गई थी. यह मेरे पैर पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था,’’ उस ने घास पर चल रहे हरे रंग के एक छोटे से कीड़े को दिखाते हुए कहा.

‘‘तुम बहुत डरती हो सौम्या. इस नन्हे से कीड़े से ही डर गईं. देखो, वह तुम्हारी जरा सी चीख से कैसे दुबक गया,’’ आशीष मुसकराते हुए बोला.

सौम्या भी थोड़ा झेंपते हुए मुसकरा दी.

‘‘तुम अभी तक कहां थे आशीष? मेरी एक चीख पर दौड़ते हुए अचानक कहां से आ गए?’’

‘‘अरे पागल, मैं तो यहीं पर था, जौगिंग कर रहा था.’’

‘‘ओह, तो क्या तुम यहां रोज आते हो?’’

‘‘हां और क्या. तुम्हें क्या लगा आज तुम्हारी वजह से पहली बार आया हूं?’’

‘‘नहींनहीं. ऐसा नहीं है, मैं ने यों ही पूछा.’’

‘‘चलो, अब मैं घर आ जा रहा हूं. तुम आराम से इस किताब को पढ़ कर वापस कर देना,’’ आशीष बिना कुछ कहे व रुके वहां से चला गया.

‘कितना बुरा है आशीष, बताओ उस ने एक बार भी यह नहीं पूछा कि तुम साथ चल रही हो?’ उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह किताब दे कर उस पर कोई एहसान कर के गया है.

मैं उदास होे घर की तरफ वापस चल पड़ी. मन में उस के लिए न जाने क्याक्या सोच रही थी और वह एकदम से उस का उलटा ही निकला.

घर आ कर भी बिलकुल मन नहीं लगा. कमरे में बैड पर लेट कर उस के बारे में ही सोचती रही, आखिर ऐसा क्यों होता है? क्या है यह सब? मन उस की तरफ से हट क्यों नहीं रहा? क्या वह भी मेरे बारे में सोच रहा होगा?

ओह, यह आज मेरे मन को क्या हो गया है. उस ने हलके से सिर को झटका दिया, पर दिमाग था कि उस की तरफ से हटने का नाम ही नहीं ले रहा था. चलो, थोड़ी देर मां के पास जा कर बैठती हूं. अब तो वे स्कूल से आ गई होंगी. थोड़ी देर उन से बातें करूंगी तो उधर से दिमाग हट जाएगा.

वह मां के पास आ कर बैठ गई.

‘‘तुम आ गई सौम्या बेटा?’’

‘‘हां मा.’’

‘‘बेटा, एक कप चाय बना लाओ. आज मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है. स्कूल में बच्चों की कौपियां चैक करना बहुत दिमाग का काम है. वह बिना कुछ बोले चुपचाप किचन में आ कर चाय बनाने लगी. 2 कप चाय बना कर वापस मां के पास आ कर बैठ गई.

लेकिन आज मां ने कोई बात नहीं की. उन्होंने चुपचाप चाय पी और आंखें बंद कर के लेट गईं. शायद वे आज बहुत थकी हुई थीं.

सौम्या वहां से उठ कर अपने कमरे में आ गई. इसी तरह 10 दिन गुजर गए.

आज कालेज में फेयरवेल पार्टी थी. येलो कलर की साड़ी पहन कर वह कालेज पहुंची. वहां सब उसे ही देख रहे थे. उसे लगा आज तो पक्का आशीष उस से बात करेगा. लेकिन पूरी पार्टी निकल गई पर आशीष ने एक बार भी उस की तरफ नजर उठा कर नहीं देखा. अब सच में उसे बहुत गुस्सा आने लगा था.

गुस्से और रोने के समय अकसर सौम्या के चेहरे पर लालिमा आ जाती है जो उस की सुंदरता में इजाफा कर देती है. वह यों ही कालेज गेट से बाहर निकल कर आ गई. अचानक से लगा कि कोई उस के पीछे आ रहा है. कौन हो सकता है, मन में थोड़ी घबराहट का भाव आया और दिल तेजी से धड़कने लगा.

वह एकदम से सौम्या के सामने आ गया.

‘‘ओह आशीष तुम, मैं तो एकदम घबरा ही गई थी,’’ उस का दिल वाकई में घबराहट के कारण तेजी से धड़कने लगा था.

वह कुछ नहीं बोला, फिर थोड़ी देर ऐसे ही खड़े रहने के बाद एक खूबसूरत सा लिफाफा देते हुए कहा, ‘‘यह सर ने आप के लिए भिजवाया है.’’

‘‘क्या है इस में?’’

‘‘आप की ड्रैस के लिए शायद बैस्ट कौंप्लिमैंट्स हैं.’’

उस के चेहरे को पढ़ते हुए लगा कि वह सच ही कह रहा है, क्योंकि उस के चेहरे पर कोई भी भाव ऐसा नहीं था जिस से लगे कि वह मजाक कर रहा है. उस वक्त अचानक से उस के मन में यह खयाल आया कि यह अपने मुंह से नहीं कह पा रहा तो शायद लिख कर दिया हो.

‘‘सौम्या, अगर तुम कहो तो आज मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूं? आज मैं अपने पापा की कार ले कर आया हूं,’’ आशीष ने उसे जाते देख कर कहा.

उस ने बिना देर किए फौरन सिर हिला दिया था क्योंकि वह आशीष के साथ थोड़ी सी देर का साथ भी गंवाना नहीं चाहती थी. ड्राइविंग सीट पर बैठे आशीष के चेहरे को सौम्या बराबर पढ़ती रही पर उस पर ऐसा कोई भाव नहीं था जिस से अनुमान भी लगाया जा सके कि उस के दिल में कोई कोमल भावना भी है.

सौम्या का घर आ गया था और वह उतर गई. उस ने आशीष से कहा, ‘‘आशीष घर के अंदर नहीं आओगे?’’

‘‘नहीं, आज नहीं फिर कभी. आज तो मुझे जल्दी घर पहुंचना है.’’

‘ओह, कितना खड़ूस है यह, इस की नजर में उस की कोई वैल्यू ही नहीं. मैं ही पागल हूं, जो इस से एकतरफा प्यार कर रही हूं. आज से इस के बारे में सोचना बिलकुल बंद.’ उस ने मन ही मन एक कठोर निर्णय लिया था. चाहे कैसे भी हो, मुझे अपने मन को समझाना ही पड़ेगा.

चलो, अब कभी उस का नाम ले कर उसे याद नहीं करूंगी. मैं मुसकराती गुनगुनाती अपने कमरे में आ गई. आईने के सामने खड़े हो कर खुद को निहारा. मन में उदासी का भाव आया. उस की वजह से ही तो इतना सजसंवर के गई थी. खैर, अब छोड़ो. उस ने हाथ में पकड़े लिफाफे को बैड पर रखा और कपड़े चेंज करने के लिए अलमारी से कपड़े निकालने लगी.

‘चलो, पहले इस लिफाफे को ही खोल कर देख लूं, सर ने न जाने क्या लिखा होगा?’ बेमन से उस को खोला.

उस में से सफेद रंग का प्लेन पेपर निकल कर नीचे गिर पड़ा. ओह, यह तो आशीष की बदतमीजी है.

आज उसे फोन कर के कह ही देती हूं कि उसे इस तरह का मजाक पसंद नहीं है.

गुस्से में आ कर वह फोन मिला ही रही थी कि लिफाफे के अंदर रखे एक कागज पर नजर चली गई.

वह निकाल कर पढ़ने के लिए खोला ही था कि मम्मी के कमरे में आने की आहट सी हुई.

मम्मी को भी अभी ही आना था.

‘‘बेटा, जरा मार्केट तक जा रही हूं, कुछ मंगाना तो नहीं है?’’

‘‘नहीं मम्मी, कुछ नहीं चाहिए.’’

‘‘चलो, ठीक है.’’

मम्मी के जाते ही उस ने उस पेपर को पढ़ना शुरू कर दिया, ‘प्रिय सौम्या, के संबोधन के साथ शुरू हुआ वह पत्र तुम्हारा आशीष के साथ खत्म हुआ. उस के बीच में जो लिखा था वह उसे खुशी से झुमाने के लिए काफी था. वह भी मुझे उतना ही प्यार करता था. वह भी मेरे लिए इतना ही बेचैन था. वह भी कुछ कहने को तरसता था. वह भी मेरा साथ पाना चाहता था. लेकिन मेरी ही तरह इस डर का शिकार था कि कहीं मैं मना न कर दूं. उस के प्यार को अस्वीकृत न कर दूं.

वाकई वह मुझे सच्चा प्यार करता है, तभी तो कभी उस ने मेरे हाथ तक को एक बार भी टच नहीं किया वरना कितने मौके आए थे. वह खुशी से झूम उठी. एक बार खुद को आईने में निहारा और अब वह खुद पर ही मोहित हो गई और उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘आई लव यू, आशीष.’’

उस की आंखों के सामने आशीष का मुसकराता चेहरा था और अब वह शरमा के अपनी नजरें नीचे की तरफ कर के जमीन को देखने लगी थी. आखिर, उस के सच्चे मन की दुआ सफल जो हो गई थी.

सपना : क्या पूरे हुए विकास के सपने

ट्रेन धीरेधीरे प्लेटफार्म पर पहुंच रही थी. वह एसी कोच में अपने छोटे से सूटकेस के साथ गैलरी में खड़ी ट्रेन के रुकने का इंतजार कर रही थी. जैसे ही गाड़ी ठहरी, वह झटके से नीचे उतरी.

गोरा रंग, चेहरे पर बिखरी कालीकाली जुल्फें मानो कोई छोटी सी बदली चांद को ढकने की कोशिश कर रही हो.

स्टेशन से बाहर निकली तो सवारियों की तलाश में आटोरिकशा वालों की भीड़ जमा थी. शहर में अनजान सी लग रही अकेली जवान लड़की को देख कर 10-12 आटोरिकशा वालों ने उसे घेर लिया और अपनेअपने लहजे से पूछने लगे, ‘बहनजी, कहां चलोगी…’, ‘मैडम, किधर को जाना है…’

वह खामोशी से खड़ी रही. सिर्फ कहीं न जाने का गरदन हिला कर इशारा करती रही. कुछ ही देर में भीड़ छंट सी गई.

उस ने अपनी सुराहीदार गरदन को इधरउधर घुमा कर देखा. थोड़ी ही दूरी पर एक आटोरिकशा वाला एक किताब ले कर ड्राइवर सीट पर पढ़ता हुआ दिखाई दिया. वह छोटेछोटे कदमों से उस की ओर बढ़ी.

‘‘लोक सेवा आयोग चलोगे…?’’ उस ने पूछा.

‘‘जी… जी… जरूर…’’ उस ड्राइवर ने अपनी किताब बंद करते हुए जवाब दिया.

‘‘क्या लोगे… मतलब, किराया कितना लगेगा…?’’ उस ने सूटकेस आटोरिकशा में रखते हुए पूछा.

‘‘80 रुपए…’’ उस ने बताया.

वह झट से आटोरिकशा में बैठ गई और बोली, ‘‘जल्दी चलो…’’

आटोरिकशा शहर की भीड़ से बाहर निकला ही था कि ड्राइवर ने पूछा, ‘‘आरएएस का इंटरव्यू देने के लिए आई हैं शायद आप?’’

‘‘जी…’’ उस ने छोटा सा जवाब दिया, फिर अगले ही पल उस ने पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे मालूम कि मैं इंटरव्यू देने आई हूं?’’

‘‘जी, आप पहले तो लोक सेवा आयोग जा रही हैं. दूसरे, इन दिनों इंटरव्यू चल रहे हैं… और…’’

‘‘और क्या?’’ उस ने पूछा.

वह नौजवान ड्राइवर बोला, ‘‘आप का पहनावा बता रहा है कि आप किसी बड़े पद के लिए ही इंटरव्यू देने आई हैं. काश, आज मैं भी…’’

‘‘काश, आज मैं भी… क्या तुम भी…?’’ उस ने थोड़ा हैरानी से पूछा.

‘‘जी मैडम, मैं ने भी मेन ऐग्जाम दिया था… सिर्फ 2 नंबरों से रह गया,’’ उस ने उदास मन से आटोरिकशा को लोक सेवा आयोग की तरफ घुमाते हुए कहा.

‘‘आप तो बड़े होशियार हो… मैं पहली ही नजर में पहचान गई थी कि आटोरिकशा में किताब ले कर पढ़ने वाला कोई साधारण ड्राइवर नहीं हो सकता… फिर तुम्हारा लहजा भी आम ड्राइवरों जैसा नहीं है…’’ अपने पर्स से 100 रुपए का नोट निकालते हुए उस ने कहा.

आटोरिकशा लोक सेवा आयोग के मेन गेट के सामने खड़ा था.

‘‘यह लीजिए…’’ लड़की ने पैसे देते हुए कहा.

‘‘मैडम, बैस्ट औफ लक,’’ 20 रुपए लौटाते हुए उस ड्राइवर ने कहा.

‘‘थैंक्स… तुम मैडम मत कहो मुझे… मेरा नाम सपना है. और हां… मुझे शाम को वापस स्टेशन छोड़ने के लिए आ सकते हो क्या? आनेजाने का भाड़ा दे दूंगी तुम्हें,’’ सपना ने चेहरे से बालों को हटाते हुए कहा.

‘‘ठीक है सपनाजी, आप को मैं यहीं मिल जाऊंगा. वैसे, लोग मुझे विकास कहते हैं…’’ आटोरिकशा वाले ने जवाब दिया.

‘‘ओके…’’ इतना कह कर सपना चल दी.

शाम को ठीक 5 बजे विकास अपना आटोरिकशा ले कर लोक सेवा आयोग के सामने अपनी अजनबी सवारी को लेने पहुंच गया.

कुछ लड़केलड़कियां बाहर निकल रहे थे. किसी का चेहरा उतरा हुआ था, तो किसी का फूलों की माफिक खिला हुआ था. विकास की निगाहें मेन गेट पर लगी थीं.

‘‘आ गए… तुम,’’ पीछे की तरफ से आवाज आई.

विकास एक झटके से पलटा और बोला, ‘‘आप… मैं तो कब से मेन गेट की तरफ देख रहा था…’’

‘‘अरे, मैं पीछे वाले गेट से निकल आई.’’

‘‘कैसा हुआ आप का इंटरव्यू?’’

‘‘बहुत ही बढि़या. मुझे पूरा भरोसा है कि मेरा सिलैक्शन हो जाएगा…’’ सपना ने आटोरिकशा में बैठते हुए कहा.

सपना ने अपना मोबाइल खोला और बोली, ‘‘अरे, यह क्या हुआ अब…

‘‘क्या हुआ सपनाजी?’’

‘‘जोधपुर वाली मेरी ट्रेन तकरीबन

5 घंटे लेट है…’’

विकास मुसकराते हुए बोला, ‘‘सपनाजी, चिंता मत करो. आप मेरे

घर ठहर जाना. मेरा भी घर जाने का समय हो गया… और फिर रात को मुझे  आटोरिकशा चलाने के लिए स्टेशन ही आना है.’’

‘‘अरे नहीं, आप को बेवजह तकलीफ होगी…’’

‘‘कैसी तकलीफ…? इस बहाने भविष्य के एक प्रशासनिक अधिकारी की सेवा करने का हमें भी मौका मिल जाएगा,’’ विकास ने हंसते हुए कहा.

सपना के पास अब मना करने का कोई ठोस बहाना नहीं रह गया था.

‘‘मां, देखो कौन आया है हमारी झोंपड़ी में…’’ विकास ने सपना को मिलवाते हुए कहा.

बूढ़ी मां ने पहले तो पहचानने की कोशिश की, पर अगले ही पल वह बोली, ‘‘बेटी, मैं ने तुम्हें नहीं पहचाना?’’

‘‘अरे, पहचानोगी भी नहीं… ये सपनाजी हैं…’’ विकास ने सारी कहानी बता दी.

3-4 घंटे में ही सपना विकास के परिवार से घुलमिल गई. विकास गरीब जरूर था, लेकिन होशियार बहुत था.

सपना को स्टेशन ले जाने के लिए विकास घर से बाहर आने लगा, तो सपना ने उस से कहा, ‘‘मुझ से एक

वादा करो…’’

‘‘कैसा वादा?’’ विकास एक पल के लिए ठहर सा गया.

‘‘यही कि तुम फिर से इम्तिहान

की तैयारी करोगे और तुम्हें भी

कामयाब होना है,’’ सपना ने हिम्मत देते हुए कहा.

‘‘ठीक है, मैं पूरी कोशिश करूंगा.’’

‘‘कोशिश करने वालों की हार नहीं होती,’’ सपना ने हंसते हुए जवाब दिया.

स्टेशन पर सपना को छोड़ने के बाद विकास में भी फिर से तैयारी करने की इच्छा जाग गई. अब वह आईईएस की तैयारियों में जीजान से जुट गया.

तकरीबन एक महीने बाद आरएएस का नतीजा आया. सपना पास ही नहीं हुई थी, बल्कि टौप 10 में आई थी.

‘‘सपनाजी… बधाई…’’ विकास ने फोन मिलाते ही कहा.

‘थैंक्स… यह सब मां की दुआओं और तुम्हारी शुभकामनाओं का नतीजा है,’ सपना ने चहकते हुए कहा.

तकरीबन 2 साल तक उन दोनों के बीच फोन पर बातचीत होती रही. सपना एसडीएम बन चुकी थी. अब विकास की जिंदगी में बहुत बड़ा दिन आया. उस का आईईएस में चयन हो गया.

‘‘हैलो विकास, मैं तुम से एक

चीज मांगूं….’’

‘‘सपना, मुझ गरीब के पास तुम्हारे लायक देने के लिए कुछ नहीं है… और अभी मेरी ट्रेनिंग भी शुरू नहीं हुई है.’’

‘‘क्या एक आईईएस किसी आरएएस लड़की से शादी कर सकता है?’’ सपना ने अजीब सा सवाल किया.

‘‘क्यों नहीं… अगर दोनों में प्यार हो तो…’’ विकास ने कहा.

‘‘तो क्या तुम मुझ से शादी करोगे?’’ सपना ने साफसाफ पूछा.

कुछ पलों के लिए विकास चुप रहा.

‘‘बोलो विकास, क्या तुम मुझ से प्यार नहीं करते?’’ सपना ने धीरे से पूछा.

‘‘जी… करता हूं,’’ विकास हकलाते हुए बोला. दरअसल, विकास का दूसरा सपना भी सच हो गया. कभी उस का पहला सपना प्रशासनिक अधिकारी बनना था और दूसरा सपना था सपना को पाना.

एक हंसमुख लड़की : क्या था कजरी के दुख का कारण

उस की उम्र थी, यही कोई 18-19 बरस. बड़ीबड़ी आंखें, घने बाल, सफेद मोतियों की लड़ी से दांत. जब हंसती थी, तो लगता था मानो बिजली चमक गई हो. गलीमहल्ले के मनचलों पर तो उस की हंसी कहर बरसाती थी.

मुझे आज भी याद है, एक बार पड़ोस के चित्तू बाबू का लड़का काफी बीमार हो गया था. उस के परिवार के लोग बहुत परेशान थे, लेकिन कजरी बड़े इतमीनान से हंसते हुए कह रही थी, ‘‘ऐ बाबू, भैया ठीक हो जाएंगे, तुम फिक्र न करो,’’ और फिर ढेरों लतीफे सुनाने लगी. यहां तक कि बीमार लड़का भी कजरी के लतीफे सुनसुन कर हंसने लगा था.

मैं तकरीबन 10 साल बाद उस शहर, उस महल्ले में जा रहा था, जहां कजरी अपने बापू के साथ अकेली रहते हुए भी महल्लेभर के सुखदुख में शरीक होती थी.

एक बार जब मुझे एक कुत्ते ने काट लिया था, तो मैं बहुत परेशान हो गया कि अब तो 14 बड़ीबड़ी सूइयां लगवानी पड़ेंगी, लेकिन कजरी ने हंसतेहंसते कहा, ‘‘पड़ोसी बाबू, काहे को चिंता करते हो, कुत्ते ने ही तो काटा है, किसी सांप ने तो नहीं. सब ठीक हो जाएगा.’’

मैं भी कजरी की बात मान कर टीके लगवाने के पचड़े में पड़ने के बजाय घर में ही मामूली इलाज करवाता रहा. यह कजरी के बोल का फल था या कुछ और. खैर, मैं बहुत जल्दी ठीक हो गया.

वही सांवलीसलोनी कजरी मुझे फिर से मिलने वाली थी, यही सोचसोच कर मैं खुश हुआ जा रहा था, लेकिन मैं इस बात को ले कर परेशान भी था कि कहीं कजरी अपनी ससुराल न चली गई हो. 10 साल का अरसा कम नहीं होता.

अचानक ही एक कुली ने पूछा, ‘‘बाबूजी, सामान ले चलूं?’’

मैं चौंका, लेकिन तभी मुझे भान हुआ कि गाड़ी तो पहले से ही प्लेटफार्म पर आ कर खड़ी हो चुकी है और स्टेशन आ चुका है.

‘‘हांहां, ले चलो. कितने पैसे लोगे?’’ मैं ने पूछा.

‘‘100 रुपए लगेंगे,’’ कुली बोला.

‘‘अच्छा, ठीक है. चलो.’’

स्टेशन से बाहर आ कर मैं ने सोचा कि पहले कुछ नाश्ता कर लिया जाए, लेकिन फिर यह सोच कर कि अब तो कजरी के हाथ का बना नाश्ता ही करूंगा. मैं ने रिकशे वाले को आवाज दी, ‘‘सुमेरपुर चलोगे?’’

‘‘30 रुपए लगेंगे,’’ रिकशे वाले ने कहा और मेरा बैग व अटैची उठा कर रिकशे में रख लिया.

रिकशा चल पड़ा और मैं फिर गुजरे दिनों की दुनिया में खो गया.

एक दिन सुबहसुबह ही कजरी मेरे पास आई थी और हंसते हुए बोली थी, ‘‘पड़ोसी बाबू, आज मेरा दिल डूबा जा रहा है…’’ फिर खुद ही खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली, ‘‘बाबू, मैं तो मजाक कर रही थी.’’

तभी अचानक कजरी के बापू के रोने की आवाज ने हम दोनों को चौंका दिया. दोनों ही लपके. कजरी के बापू के इर्दगिर्द भीड़ जमा थी और बीच में पड़ी थी, कजरी की मां की लाश.

मैं तो दंग रह गया. कजरी न रोई, न ही गुमसुम हुई. उस की मां की लाश को देख कर मैं उदासी में डूबा वापस अपने कमरे में आ गया.

शाम को कजरी मेरे सामने थी, वही हंसता हुआ चेहरा लिए. कह रही थी, ‘‘ऐ बाबू, मां मरी थोड़े ही है, वह तो सो रही है…’’ और फिर हंसते हुए वह बोली, ‘‘बाबू एक दिन तुम्हें भी और हमें भी तो इसी तरह सोना है.’’

फिर वह रुकी नहीं, तुरंत ही चली गई. मैं हैरानी से उसे जाते हुए देखता रहा.

रिकशे वाले को मैं ने रोक कर अपना कमरा खोला, सामान रखा और फिर उसे पैसे दिए. सोचा, इतने सालों के बाद कजरी से मिलने क्या खाली हाथ जाऊंगा. मैं पास की हलवाई की दुकान पर मिठाई लेने पहुंचा. एक किलो लड्डू लिए और पैसे दे कर मैं अपने घर जाने के बजाय सीधा कजरी के ही घर जा पहुंचा.

दरवाजा खटखटाया, तो एक अधेड़ आदमी ने दरवाजा खोला और बोला, ‘‘कहिए, कहां से आए हैं? किस से मिलना है? आइए, अंदर आइए.’’

मैं भी उस के पीछेपीछे चला गया. वह अंदर जा कर एक तरफ पड़ी चारपाई पर बैठ गया. फिर चारपाई पर बैठते

हुए मैं ने अधेड़ से पूछा, ‘‘भैया, त्रिलोचन बाबू दिखाई नहीं दे रहे… कहीं गए हैं क्या?’’

यह सुनते ही वह आदमी उदास हो गया. फिर धीरे से वह अधेड़ बोला, ‘‘मामा को मरे तो 4 बरस हो गए भैया. आप कौन हो? कहां से आए हो?’’

‘‘और कजरी…?’’ उस के सवाल का जवाब दिए बिना ही मैं ने पूछा.

‘‘कहीं गई होगी, शाम को आ जाएगी,’’ कहते हुए वह उठा और बोला, ‘‘बाबूजी, आप बैठो, मैं चाय बना कर लाता हूं.’’

‘‘अरे नहींनहीं, इस की कोई जरूरत नहीं है. लो, यह मिठाई रख लो… और हां, कजरी आए तो कह देना कि सामने वाले मकान में रहने वाला बाबू आया है,’’ कहते हुए मैं उठ खड़ा हुआ.

रातभर के सफर की वजह से मेरा बदन भारी हो रहा था. लिहाजा, कमरे में आ कर सब से पहले मैं नहाया और चारपाई पर लेट कर सोचने लगा कि

अब कैसी लगती होगी कजरी? यही सोचतेसोचते मैं सो गया.

शाम के वक्त मुझे ऐसा लगा, मानो कोई कह रहा हो, ‘‘पड़ोसी बाबू, पड़ोसी बाबू… उठो.’’

मैं ने लेटेलेटे ही सोचा कि यह कजरी ही होगी. आंखें खोलीं और देखा तो सचमुच कजरी ही थी. पर उसे देखते ही मैं हैरान रह गया कि क्या यह वही सुंदर लंबे बालों और पतले होंठों वाली कजरी है या कोई और?

वह बोली, ‘‘ऐ पड़ोसी बाबू, का सोचते हो? मैं कजरी ही हूं.’’

‘‘कजरी, आओ… बैठो, मैं तो सोच रहा था कि तुम इतनी दुबलीपतली कैसे हो गई?’’

जवाब में कजरी के होंठों पर फीकी मुसकान देख मैं चुप हो गया.

कुछ देर बाद भी जब वह कुछ न बोली, तो मैं ने कहा, ‘‘कजरी, बापू नहीं रहे, सुन कर बड़ा दुख हुआ. तुम बताओ, आजकल क्या कर रही हो? तुम्हारी शादी हो गई या नहीं?’’

जवाब में वह थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली, ‘‘बाबू, जो इस दुनिया में आया है, उसे तो जाना ही है. बापू चले गए, अब मैं भी चली जाऊंगी.’’

‘‘अरे नहीं पगली, मैं ने यह तो नहीं कहा. खैर, मैं समझता हूं तुम्हें दुख हुआ होगा. अच्छा, यह बताओ कि कहां

गई थीं सुबह से? कहीं काम करती

हो क्या?’’

वह जोर से हंसी. पर, पीले पड़ गए दांतों को देख कर अब मुझे कजरी

की हंसी रास नहीं आई. फिर भी मैं शांत बना रहा.

हंसतेहंसते ही वह बोली, ‘‘बाबू, तुम थक गए होगे. मैं अभी तुम्हारे लिए खाना ले कर आती हूं,’’ और मेरे कुछ कहने से पहले ही वह बाहर जा चुकी थी.

उस के बाहर जाते ही मैं सोचने लगा कि कजरी कुछ छिपा रही है. उस की हंसी में अब पहले वाली बात नहीं है. तभी मुझे खयाल आया कि जब मैं ने उस से शादी की बात की थी, तो वह टाल

गई थी. अब आएगी तो सब से पहले यही पूछूंगा.

तकरीबन आधे घंटे बाद साड़ी के आंचल में छिपा कर कजरी मेरे लिए खाना ले कर आ गई. खाना पलंग पर रख कर वह नीचे बैठ गई और बोली, ‘‘खाना खाओ बाबूजी.’’

‘‘नहीं कजरी, पहले तू यह बता

कि तेरी शादी कहां हुई है? किस से

हुई है और कब हुई? तभी मैं खाना खाऊंगा…’’

‘‘खा लो न, बाबूजी…,’’ हंसते हुए वह बोली, ‘‘अभी बता दूंगी.’’

कजरी की मोहक अदा देख कर मैं और कुछ न बोल सका.

खाना खाने के बाद मैं चारपाई

पर लेट गया और बोला, ‘‘हां, अब बता.’’

कजरी हंसी और बोली, ‘‘बाबूजी, आप जानना चाहते हो न कि मेरा मर्द कौन है? मेरी ससुराल कहां है?’’

‘‘हां, हां, यही.’’

‘‘बाबूजी, वह जो सामने महल्ला है न… उस महल्ले का हर मर्द मेरा शौहर है, हर घर मेरी ससुराल है. बचपन में

मैं लोगों को खुश रखती थी न,

इसीलिए अब मुझे मर्दों को खुश रखना पड़ता है. ..

‘‘अच्छा बाबूजी, किसी चीज की जरूरत हो तो मुझे बुला लेना,’’ और फिर हंसते हुए वह बाहर निकल गई.

मेरे ऊपर तो मानो आसमान ही टूट पड़ा, होंठ सिल गए, ऐसा लगा कि कोई तूफान आया और मुझे उड़ा ले गया. पर कजरी मेरे कई सवालों का जवाब दिए बिना जा चुकी थी.

सुबह यह खबर सुन कर कि कजरी ने कुएं में कूद कर जान दे दी, मैं मानो जमीन में गड़ गया. सोचने लगा कि अब कभी नहीं सुनाई देगी कजरी की मासूम हंसी, क्योंकि अब वह इस दुनिया से बहुत दूर जा चुकी है.

बेईमान बनाया प्रेम ने: क्या हुआ था पुष्पक के साथ

अगर पत्नी पसंद न हो तो आज के जमाने में उस से छुटकारा पाना आसान नहीं है. क्योंकि दुनिया इतनी तरक्की कर चुकी है कि आज पत्नी को आसानी से तलाक भी नहीं दिया जा सकता. अगर आप सोच रहे हैं कि हत्या कर के छुटाकारा पाया जा सकता है तो हत्या करना तो आसान है, लेकिन लाश को ठिकाने लगाना आसान नहीं है. इस के बावजूद दुनिया में ऐसे मर्दों की कमी नहीं है, जो पत्नी को मार कर उस की लाश को आसानी से ठिकाने लगा देते हैं. ऐसे भी लोग हैं जो जरूरत पड़ने पर तलाक दे कर भी पत्नी से छुटकारा पा लेते हैं. लेकिन यह सब वही लोग करते हैं, जो हिम्मत वाले होते हैं. हिम्मत वाला तो पुष्पक भी था, लेकिन उस के लिए समस्या यह थी कि पारिवारिक और भावनात्मक लगाव की वजह से वह पत्नी को तलाक नहीं देना चाहता था. पुष्पक सरकारी बैंक में कैशियर था. उस ने स्वाति के साथ वैवाहिक जीवन के 10 साल गुजारे थे. अगर मालिनी उस की धड़कनों में न समा गई होती तो शायद बाकी का जीवन भी वह स्वाति के ही साथ बिता देता.

उसे स्वाति से कोई शिकायत भी नहीं थी. उस ने उस के साथ दांपत्य के जो 10 साल बिताए थे, उन्हें भुलाना भी उस के लिए आसान नहीं था. लेकिन इधर स्वाति में कई ऐसी खामियां नजर आने लगी थीं, जिन से पुष्पक बेचैन रहने लगा था. जब किसी मर्द को पत्नी में खामियां नजर आने लगती हैं तो वह उस से छुटकारा पाने की तरकीबें सोचने लगता है. इस के बाद उसे दूसरी औरतों में खूबियां ही खूबियां नजर आने लगती हैं. पुष्पक भी अब इस स्थिति में पहुंच गया था. उसे जो वेतन मिलता था, उस में वह स्वाति के साथ आराम से जीवन बिता रहा था, लेकिन जब से मालिनी उस के जीवन में आई, तब से उस के खर्च अनायास बढ़ गए थे. इसी वजह से वह पैसों के लिए परेशान रहने लगा था. उसे मिलने वाले वेतन से 2 औरतों के खर्च पूरे नहीं हो सकते थे. यही वजह थी कि वह दोनों में से किसी एक से छुटकारा पाना चाहता था. जब उस ने मालिनी से छुटकारा पाने के बारे में सोचा तो उसे लगा कि वह उसे जीवन के एक नए आनंद से परिचय करा कर यह सिद्ध कर रही है. जबकि स्वाति में वह बात नहीं है, वह हमेशा ऐसा बर्ताव करती है जैसे वह बहुत बड़े अभाव में जी रही है. लेकिन उसे वह वादा याद आ गया, जो उस ने उस के बाप से किया था कि वह जीवन की अंतिम सांसों तक उसे जान से भी ज्यादा प्यार करता रहेगा.

पुष्पक इस बारे में जितना सोचता रहा, उतना ही उलझता गया. अंत में वह इस निर्णय पर पहुंचा कि वह मालिनी से नहीं, स्वाति से छुटकारा पाएगा. वह उसे न तो मारेगा, न ही तलाक देगा. वह उसे छोड़ कर मालिनी के साथ कहीं भाग जाएगा.

यह एक ऐसा उपाय था, जिसे अपना कर वह आराम से मालिनी के साथ सुख से रह सकता था. इस उपाय में उसे स्वाति की हत्या करने के बजाय अपनी हत्या करनी थी. सच में नहीं, बल्कि इस तरह कि उसे मरा हुआ मान लिया जाए. इस के बाद वह मालिनी के साथ कहीं सुख से रह सकता था. उस ने मालिनी को अपनी परेशानी बता कर विश्वास में लिया. इस के बाद दोनों इस बात पर विचार करने लगे कि वह किस तरह आत्महत्या का नाटक करे कि उस की साजिश सफल रहे. अंत में तय हुआ कि वह समुद्र तट पर जा कर खुद को लहरों के हवाले कर देगा. तट की ओर आने वाली समुद्री लहरें उस की जैकेट को किनारे ले आएंगी. जब उस जैकेट की तलाशी ली जाएगी तो उस में मिलने वाले पहचानपत्र से पता चलेगा कि पुष्पक मर चुका है.

उसे पता था कि समुद्र में डूब कर मरने वालों की लाशें जल्दी नहीं मिलतीं, क्योंकि बहुत कम लाशें ही बाहर आ पाती हैं. ज्यादातर लाशों को समुद्री जीव चट कर जाते हैं. जब उस की लाश नहीं मिलेगी तो यह सोच कर मामला रफादफा कर दिया जाएगा कि वह मर चुका है. इस के बाद देश के किसी महानगर में पहचान छिपा कर वह आराम से मालिनी के साथ बाकी का जीवन गुजारेगा.

लेकिन इस के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी. उस के हाथों में रुपए तो बहुत होते थे, लेकिन उस के अपने नहीं. इस की वजह यह थी कि वह बैंक में कैशियर था. लेकिन उस ने आत्महत्या क्यों की, यह दिखाने के लिए उसे खुद को लोगों की नजरों में कंगाल दिखाना जरूरी था. योजना बना कर उस ने यह काम शुरू भी कर दिया. कुछ ही दिनों में उस के साथियों को पता चला गया कि वह एकदम कंगाल हो चुका है. बैंक कर्मचारी को जितने कर्ज मिल सकते थे, उस ने सारे के सारे ले लिए थे. उन कर्जों की किस्तें जमा करने से उस का वेतन काफी कम हो गया था. वह साथियों से अकसर तंगी का रोना रोता रहता था. इस हालत से गुजरने वाला कोई भी आदमी कभी भी आत्महत्या कर सकता था.

पुष्पक का दिल और दिमाग अपनी इस योजना को ले कर पूरी तरह संतुष्ट था. चिंता थी तो बस यह कि उस के बाद स्वाति कैसे जीवन बिताएगी? वह जिस मकान में रहता था, उसे उस ने भले ही बैंक से कर्ज ले कर बनवाया था. लेकिन उस के रहने की कोई चिंता नहीं थी. शादी के 10 सालों बाद भी स्वाति को कोई बच्चा नहीं हुआ था. अभी वह जवान थी, इसलिए किसी से भी विवाह कर के आगे की जिंदगी सुख और शांति से बिता सकती थी. यह सोच कर वह उस की ओर से संतुष्ट हो गया था.

बैंक से वह मोटी रकम उड़ा सकता था, क्योंकि वह बैंक का हैड कैशियर था. सारे कैशियर बैंक में आई रकम उसी के पास जमा कराते थे. वही उसे गिन कर तिजोरी में रखता था. उसे इसी रकम को हथियाना था. उस रकम में कमी का पता अगले दिन बैंक खुलने पर चलता. इस बीच उस के पास इतना समय रहता कि वह देश के किसी दूसरे महानगर में जा कर आसानी से छिप सके. लेकिन बैंक की रकम में हेरफेर करने में परेशानी यह थी कि ज्यादातर रकम छोटे नोटों में होती थी. वह छोटे नोटों को साथ ले जाने की गलती नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे रकम का हेरफेर करना होगा, उस दिन वह बड़े नोट किसी को नहीं देगा. इस के बाद वह उतने ही बड़े नोट साथ ले जाएगा, जितने जेबों और बैग में आसानी से जा सके. पुष्पक का सोचना था कि अगर वह 20 लाख रुपए भी ले कर निकल गया तो उन्हीं से कोई छोटामोटा कारोबार कर के मालिनी के साथ नया जीवन शुरू करेगा. 20 लाख की रकम इस महंगाई के दौर में कोई ज्यादा बड़ी रकम तो नहीं है, लेकिन वह मेहनत से काम कर के इस रकम को कई गुना बढ़ा सकता है. जिस दिन उस ने पैसे ले कर भागने की तैयारी की थी, उस दिन रास्ते में एक हैरान करने वाली घटना घट गई. जिस बस से वह बैंक जा रहा था, उस का कंडक्टर एक सवारी से लड़ रहा था. सवारी का कहना था कि उस के पास पैसे नहीं हैं, एक लौटरी का टिकट है. अगर वह उसे खरीद ले तो उस के पास पैसे आ जाएंगे, तब वह टिकट ले लेगा. लेकिन कंडक्टर मना कर रहा था.

पुष्पक ने झगड़ा खत्म करने के लिए वह टिकट 50 रुपए में खरीद लिया. उस टिकट को उस ने जैकेट की जेब में रख लिया. आत्महत्या के नाटक को अंजाम तक पहुंचाने के बाद वह फोर्ट पहुंचा और वहां से कुछ जरूरी चीजें खरीद कर एक रेस्टोरैंट में बैठ गया. चाय पीते हुए वह अपनी योजना पर मुसकरा रहा था. तभी अचानक उसे एक बात याद आई. उस ने आत्महत्या का नाटक करने के लिए अपनी जो जैकेट लहरों के हवाले की थी, उस में रखे सारे रुपए तो निकाल लिए थे, लेकिन लौटरी का वह टिकट उसी में रह गया था. उसे बहुत दुख हुआ. घड़ी पर नजर डाली तो उस समय रात के 10 बज रहे थे. अब उसे तुरंत स्टेशन के लिए निकलना था. उस ने सोचा, जरूरी नहीं कि उस टिकट में इनाम निकल ही आए इसलिए उस के बारे में सोच कर उसे परेशान नहीं होना चाहिए. ट्रेन में बैठने के बाद पुष्पक मालिनी की बड़ीबड़ी कालीकाली आंखों की मस्ती में डूब कर अपने भाग्य पर इतरा रहा था. उस के सारे काम बिना व्यवधान के पूरे हो गए थे, इसलिए वह काफी खुश था.

फर्स्ट क्लास के उस कूपे में 2 ही बर्थ थीं, इसलिए उन के अलावा वहां कोई और नहीं था. उस ने मालिनी को पूरी बात बताई तो वह एक लंबी सांस ले कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘जो भी हुआ, ठीक हुआ. अब हमें पीछे की नहीं, आगे की जिंदगी के बारे में सोचना चाहिए.’’

पुष्पक ने ठंडी आह भरी और मुसकरा कर रह गया. ट्रेन तेज गति से महाराष्ट्र के पठारी इलाके से गुजर रही थी. सुबह होतेहोते वह महाराष्ट्र की सीमा पार कर चुकी थी. उस रात पुष्पक पल भर नहीं सोया था, उस ने मालिनी से बातचीत भी नहीं की थी. दोनों अपनीअपनी सोचों में डूबे थे. भूत और भविष्य, दोनों के अंदेशे उन्हें विचलित कर रहे थे. दूर क्षितिज पर लाललाल सूरज दिखाई देने लगा था. नींद के बोझ से पलकें बोझिल होने लगी थीं. तभी मालिनी अपनी सीट से उठी और उस के सीने पर सिर रख कर उसी की बगल में बैठ गई. पुष्पक ने आंखें खोल कर देखा तो ट्रेन शोलापुर स्टेशन पर खड़ी थी. मालिनी को उस हालत में देख कर उस के होंठों पर मुसकराहट तैर गई. हैदराबाद के होटल के एक कमरे में वे पतिपत्नी की हैसियत से ठहरे थे. वहां उन का यह दूसरा दिन था. पुष्पक जानना चाहता था कि मुंबई से उस के भागने के बाद क्या स्थिति है. वह लैपटौप खोल कर मुंबई से निकलने वाले अखबारों को देखने लगा.

‘‘कोई खास खबर?’’ मालिनी ने पूछा.

‘‘अभी देखता हूं.’’ पुष्पक ने हंस कर कहा.

मालिनी भी लैपटौप पर झुक गई. दोनों अपने भागने से जुड़ी खबर खोज रहे थे. अचानक एक जगह पुष्पक की नजरें जम कर रह गईं. उस से सटी बैठी मालिनी को लगा कि पुष्पक का शरीर अकड़ सा गया है. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या बात है डियर?’’

पुष्पक ने गूंगों की तरह अंगुली से लैपटौप की स्क्रीन पर एक खबर की ओर इशारा किया. समाचार पढ़ कर मालिनी भी जड़ हो गई. वह होठों ही होठों में बड़बड़ाई, ‘‘समय और संयोग. संयोग से कोई नहीं जीत सका.’’

‘‘हां संयोग ही है,’’ वह मुंह सिकोड़ कर बोला, ‘‘जो हुआ, अच्छा ही हुआ. मेरी जैकेट पुलिस के हाथ लगी, जिस पुलिस वाले को मेरी जैकेट मिली, वह ईमानदार था, वरना मेरी आत्महत्या का मामला ही गड़बड़ा जाता. चलो मेरी आत्महत्या वाली बात सच हो गई.’’

इतना कह कर पुष्पक ने एक ठंडी आह भरी और खामोश हो गया.

मालिनी खबर पढ़ने लगी, ‘आर्थिक परेशानियों से तंग आ कर आत्महत्या करने वाले बैंक कैशियर का दुर्भाग्य.’ इस हैडिंग के नीचे पुष्पक की आर्थिक परेशानी का हवाला देते हुए आत्महत्या और बैंक के कैश से 20 लाख की रकम कम होने की बात लिखते हुए लिखा था—‘इंसान परिस्थिति से परेशान हो कर हौसला हार जाता है और मौत को गले लगा लेता है. लेकिन वह नहीं जानता कि प्रकृति उस के लिए और भी तमाम दरवाजे खोल देती है. पुष्पक ने 20 लाख बैंक से चुराए और रात को जुए में लगा दिए कि सुबह पैसे मिलेंगे तो वह उस में से बैंक में जमा कर देगा. लेकिन वह सारे रुपए हार गया. इस के बाद उस के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा, जबकि उस के जैकेट की जेब में एक लौटरी का टिकट था, जिस का आज ही परिणाम आया है. उसे 2 करोड़ रुपए का पहला इनाम मिला है. सच है, समय और संयोग को किसी ने नहीं देखा है.’

फरेब : कौन किस से कर रहा था दगाबाजी?

‘‘आज फिर मालकिन रात को देर से आएंगी क्या साहब?’’ कमला ने डिनर के बाद बरतन उठा कर सिंक में रखते हुए बाईं आंख दबा कर होंठ का कोना दांत से काटते हुए मुसकरा कर पूछा.

कमला की इस अदा पर जितेंद्र कुरसी से उठा और उसे पीछे से बांहों में भरते हुए धीरे से उस के कान में बोला, ‘‘हां जानेमन. उस के बैंक में क्लोजिंग चल रही है, तो कुछ दिन देर रात तक ही लौटेगी. बहुत हिसाबकिताब करना होता है न बैंक वालों को. और मैनेजर पर सब से ज्यादा जिम्मेदारी होती है.’’

‘‘अच्छा है साहब, फिर हम भी कुछ हिसाबकिताब कर लेंगे. वैसे, आप हिसाब बहुत अच्छा करते हैं साहब. बस, किसी दिन मेमसाहब पूरी रात बाहर रहें तो मैं आप से ब्याज भी वसूल कर लूं,’’ कमला ने जितेंद्र की ओर घूमते हुए कहा और उस के ऐसा करने से जितेंद्र के होंठ कमला के होंठों के सामने आ गए, जिन्हें कमला ने थोड़ा सा और आगे हो कर अपने होंठों से चिपका लिया.

जितेंद्र की सांसें तेज होने लगी थीं. वह अब कमला से पूरी तरह चिपकने लगा था कि तभी कमला एक झटके से घूम कर जितेंद्र से अलग हो गई और बोली, ‘‘छोडि़ए साहब, देखते नहीं कितना काम पड़ा है. और फिर मुझे घर जा कर अपने मरद को भी हिसाब देना होता है. आप के साथ हिसाब करने लगी तो फिर मेरे मरद के हिसाब में कमी हो जाएगी और वह मुझ पर शक करेगा.

‘‘वैसे भी पिछली बार जब मैं आप के साथ चिपक कर गई थी तो वह सवाल कर रहा था कि यह जमीन में इतनी नमी क्यों है. वह तो मैं ने किसी तरह उसे यह कह कर संभाल लिया कि बहुत दिन से कुछ हुआ नहीं तो आज तुम्हारे हाथ लगाने से ज्यादा ही जोश आ गया है और वह मान गया, नहीं तो मेरा भेद खुल ही जाना था उस दिन.’’

जितेंद्र जो अब पूरी तरह मूड में आ चुका था, कमला को ऐसे दूर जाते देख कर झटका खा गया. वह अब किसी भी हालत में कमला का साथ चाहता था, तो वह आगे बढ़ कर फिर से कमला को बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘अरे कमला, क्या तुम्हें मेरा प्यार कम लगता है? किसी को कुछ नहीं पता चलेगा, बस तुम मुझ से दूर मत जाओ. कमला, मैं सच में तुम्हें चाहता हूं. तुम्हारा साथ मुझे बहुत अच्छा लगता है.

‘‘तुम जैसे मुझे प्यार करती हो न, ऐसा तो कभी तुम्हारी मेमसाहब भी नहीं करतीं. सच कहूं तो निर्मला को प्यार करना आता ही नहीं है,’’ जितेंद्र ने कमला को बांहों में भर कर उस के होंठों की तरफ होंठ ले जाते हुए कहा.

‘‘नहीं साहब, आप झूठ बोलते हैं. आप को मुझ से कोई प्यारव्यार नहीं है, आप तो बस अपनी जरूरत पूरी करते हो. मैं ही आप से प्रेम करने लगी थी साहब, लेकिन मैं अब समझ गई हूं कि आप बस मेरे साथ फरेब करते हो.

‘‘आप को मेरे जिस्म से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए. आप का प्रेम बस इतना सा ही है. अभी मैं आप के साथ बिस्तर पर चली जाऊंगी आप का काम हो जाएगा और आप मुझे भूल जाओगे बस,’’ कमला फिर अपनेआप को छुड़ाते हुए बोली.

‘‘नहींनहीं, ऐसा नहीं है कमला. मैं तुम से सच में प्यार करता हूं. अच्छा बताओ, मेरा प्यार सच्चा है, इसे साबित करने के लिए मैं तुम्हें क्या दूं?’’ जितेंद्र ने अब कमला को बांहों में उठा लिया था. हवस का जोश अब जितेंद्र के संभालने से बाहर हो रहा था.

जितेंद्र ने कमला को बिस्तर पर बिठाया और उस के सामने खड़े हो कर अपनी शर्ट के बटन खोलते हुए बोला, ‘‘बताओ न, क्या चाहिए तुम्हें?’’

‘‘साहब, आप सच कह रहे हैं. सच में आप मुझे प्यार करते हैं,’’ कमला ने बिस्तर पर लेट कर अपने पैर से जितेंद्र के सीने के बालों को सहला कर होंठ काटते हुए पूछा.

‘‘हां सच कमला, तुम एक बार मांग कर तो देखो, जो कहोगी, मैं तुम्हें दे दूंगा,’’ जितेंद्र ने आगे बढ़ते हुए कहा. उस की आवाज हवस में बहक रही थी. कमला अपनी अदाओं से उस के जिस्म की आग को और बल दे रही थी.

‘‘क्या आप को नहीं लगता कि ऐसे छिपछिप कर मिलने से हमारे प्यार की अच्छे से भरपाई भी नहीं हो पाती और हमारे पकड़े जाने का डर रहता है सो अलग.

‘‘अब मान लो कि अभी हम प्यार शुरू ही कर रहे हैं और आप की पत्नी आ जाए तब? या फिर मेरा मरद ही मुझे ढूंढ़ता हुआ आ जाए तब? क्या ऐसे अच्छे से प्यार हो सकता है?’’ कमला ने एकएक शब्द सोच कर बोला.

‘‘नहीं हो सकता कमला, तभी तो कह रहा हूं कि आओ हम जल्दी से प्यार कर लें, उस के बाद तुम आराम से काम खत्म कर के अपने घर चली जाना,’’ जितेंद्र ने कमला के ऊपर झुकते हुए कहा.

‘‘कुछ ऐसा नहीं हो सकता साहब कि हम लोग जब मन करे प्यार करें और हमें रोकनेटोकने वाला कोई न हो?’’ कमला ने जितेंद्र के गले में बांहें डाल कर उस की आंखों में देखते हुए बहुत मीठे शब्दों में कहा.

‘‘कैसे हो सकता है बताओ कमला? बताओ, मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने को तैयार हूं,’’ जितेंद्र ने अपनी उंगलियां कमला के ब्लाउज के बटनों में उलझाते हुए पूछा.

‘‘आप अपना ‘बोरीवली’ वाला वन रूम सैट मेरे नाम कर दो साहब. फिर जब आप का मन करे दिन या रात

कभी भी हम उस फ्लैट में आराम से प्यार करेंगे. वहां कोई हमें डिस्टर्ब नहीं करेगा साहब.’’

‘‘लेकिन, तुम्हारा मरद?’’ जितेंद्र ने कमला का कंधा सहलाते हुए कहा.

‘‘उस की फिक्र आप न करो साहब ऐसे तो वह 12-12 घंटे गार्ड की नौकरी करता है, कभी दिन, तो कभी रात. हमारे पास बहुत समय होगा अकेले में मिलने का, जब वह काम पर होगा.

‘‘और फिर मैं उसे बताऊंगी ही नहीं कि फ्लैट आप ने मेरे नाम पर किया है. मैं उस से कहूंगी कि मालिक ने तरस खा कर यह फ्लैट हमें रहने के लिए दिया है, इसलिए साहब जब चाहे यहां आ सकते हैं बस,’’ कमला ने जितेंद्र की पीठ पर हाथ चलाते हुए कहा.

‘‘लेकिन कमला, उस के लिए फ्लैट तुम्हारे नाम करने की क्या जरूरत है? उस में तो तुम ऐसे भी जा कर रह सकती हो?’’ जितेंद्र ने एक सवाल पूछा कि तभी कमला ने आगे बढ़ कर उस के होंठों को अपने होंठों में दबा कर एक लंबा सा चुम्मा किया और बोली, ‘‘तुम सोचते बहुत हो साहब, अभी तो कह रहे थे कि अपना प्यार साबित करने के लिए कुछ भी कर सकते हो और अब कुछ पेपर पर तनिक सा पैन घिसने में तुम्हारे पैन की स्याही खत्म होने लगी. फिर

तुम हमारे प्यार की कहानी कैसे लिखोगे साहब?’’

कमला ने जितेंद्र की आंखों में मुसकराते हुए देखा और अपने हाथ उस की पैंट की ओर बढ़ा दिए.

कमला की इस हरकत पर जितेंद्र के मुंह से हलकी ‘आह’ निकल गई और मस्ती से उस की आंखें बंद होने लगीं.

‘‘आप का पैन तो एकदम तैयार है साहब, तनिक इन पेपरों पर चला कर देखिए तो क्या यह हमारे प्रेम की कहानी लिख पाएगा…’’ कमला ने तकिए के नीचे से कुछ पेपर निकाल कर जितेंद्र के सामने रखे और उस के हाथ में एक कलम दे कर बोली, ‘‘यहां दस्तखत कीजिए साहब.’’

ऐसा कहने के साथ ही कमला के हाथ जितेंद्र की पैंट में हरकत करने लगे, उस से जितेंद्र की आंखें बंद हो गईं और वह बोला, ‘‘लेकिन, कमला…’’

‘‘ओहो… आप कितना सोचते हो साहब. बस जरा सा पैन ही तो चलाना है, फिर जी भर कर हम अपने प्यार की कहानी लिखेंगे. आप सोचिए मत. बस, दस्तखत कीजिए, तब तक मैं चैक करती हूं कि क्या आप की कलम मेरे प्रेम की किताब पर कोई कहानी लिख भी पाएगी या फिर…?’’ कह कर कमला ने अपने होंठ ‘उधर’ बढ़ा दिए.

अब जितेंद्र आगे कुछ नहीं कह पाया और उस ने कांपती उंगलियों से उन पेपरों पर दस्तखत कर दिए.

दस्तखत होने के बाद कमला को जैसे जितेंद्र के अंदर उमड़ रहे तूफान को शांत करने की बहुत जल्दी थी. उस ने अपनी हरकतों को और बढ़ा दिया और 3-4 मिनट में ही जितेंद्र निढाल हो कर बिस्तर पर लुढ़क गया.

कमला ने उठ कर अपना मुंह साफ किया और अपने कपड़े ठीक करते हुए गेट बंद कर के फ्लैट से बाहर निकल आई.

‘‘हो गया न काम?’’ नीचे आते ही चौकीदार की वरदी पहने खंभे की आड़ में खड़े एक आदमी ने उस से पूछा.

जवाब में कमला ने मुसकराते हुए पेपर उस के हाथ में रख दिए.

‘‘वाह मेरी जान, खूब फरेब में फंसाया तुम ने इस रईस को,’’ वह चौकीदार कमला को गले लगाते हुए खुश हो कर बोला.

‘‘फरेब तो इस ने किया था मेरे साथ, मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि अपने मरद के अलावा किसी को हाथ भी लगाने दूंगी, लेकिन उस दिन पार्टी के बाद इस कमीने ने मुझे जूस में न जाने क्या मिला कर पिलाया कि मैं इस की बांहों में गिर पड़ी और उस मदहोशी की हालत में इस की किसी भी हरकत का विरोध न कर सकी.

‘‘बस, आज मैं ने भी वही किया. और यह भी मदहोशी में मेरी किसी भी मांग का विरोध नहीं कर पाया. लेकिन इस ने जो काम मुझे ड्रग्स दे कर किया था. वह मैं ने केवल अपने हुस्न और अदाओं से कर दिया.

‘‘अच्छा, अब चलो यहां से. किसी ने देख लिया, तो गजब हो जाएगा. बस, कल सुबह ही ये पेपर ले कर वकील के पास चले जाना. एक बार 40 लाख

का वह फ्लैट अपने नाम हो जाए, फिर इसे लात मार कर भगा दूंगी,’’ कमला ने हंसते हुए कहा और दोनों वहां से चले गए.

‘‘कमला, तुम पिछले 5-6 दिन से काम पर क्यों नहीं आई? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न? तुम मेरा फोन भी नहीं उठा रही हूं और न ही तुम्हारा पति

फोन उठा रहा है. क्या हुआ? कोई बात है तो मुझे बताओ?’’ जितेंद्र ने सुबहसुबह फ्लैट पर पहुंच कर कमला से सवाल किया.

‘‘कुछ नहीं हुआ साहब, मेरे मरद ने अब मुझे लोगों के घरों में जा कर काम करने से मना किया है, तो आप दूसरी बाई ढूंढ़ लो. मैं अब काम नहीं करूंगी. अब मेरा मरद कमाएगा और मैं बैठ कर खाऊंगी बस,’’ कमला ने बहुत ही रूखे स्वर में जवाब दिया.

‘‘कैसी बात करती हो कमला? मैं किसी के घर काम की नहीं कह रहा हूं, लेकिन हमारे अपने घर…? क्या तुम्हारा प्यार खत्म हो गया, जो तुम मुझ से मिलने भी नहीं आईं और जैसी कि हमारी बात हुई थी कि इस फ्लैट में मैं और तुम साथ रहेंगे और प्यार करेंगे. क्या तुम वह भी भूल गईं?’’ जितेंद्र ने सवाल किया.

‘‘कौन सा प्यार साहब? वह तो बस एक सौदा था, उस में कुछ मैं ने अपना लुटाया और कुछ आप ने अपना. सौदा पूरा हुआ, साहब सब व्यापार खत्म,’’ कमला ने उसी रूखेपन से कहा.

‘‘तो क्या तुम्हारा प्यार सच में बस एक फरेब था कमला? क्या तुम ने मेरा मकान हड़पने के लिए मुझ से प्रेम का नाटक किया था?’’ जितेंद्र ने गुस्से से भर कर पूछा.

‘‘हाहाहा… फरेब… हां साहब, फरेब ही था वह. फरेब जो आप ने मेरे साथ किया था मेरे जूस में ड्रग्स मिला कर. फरेब जो आप ने अपनी पत्नी के साथ किया था पत्नी होते हुए भी मेरे साथ संबंध बना कर.

‘‘फरेब, जो आप ने अपने खुद के साथ किया था हवस में अंधे हो कर, यह मकान मेरे नाम कर के. अब

आप यहां से चले जाइए साहब, कहीं ऐसा न हो कि मैं आप की पत्नी को आप के फरेब के बारे में बता दूं और आप उन्हें भी खो दो. अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है साहब, रोक दो इस फरेब को और बचा लो अपने असली घर को टूटने से.

‘‘मुझे भी अपना घर बचाने दो साहब. मेरा मरद बस आता ही होगा और मैं नहीं चाहती कि वह फिर मेरी गीली होती हुई देखे आंखें,’’ कमला ने कहा और जितेंद्र के मुंह पर फ्लैट का दरवाजा बंद कर दिया.

जितेंद्र खड़ाखड़ा सोच रहा था कि फरेब किस ने किया? फरेबी कौन है? द्य

एक युग: सुषमा और पंकज की लव मैरिज में किसने घोला जहर?- भाग 3

‘‘मैं अपने वादे से कहां मुकरी. मैं ने कब कहा कि वे मुझे पसंद नहीं या मैं ने कभी कोई गलत चुनाव किया था. पर पिताजी की भावनाओं का क्या करूं? उन्हें मेरी ही चिंता रहती है. दिनरात वे मेरे ही बारे में सोचते रहते हैं. वे मेरे लिए बहुत परेशान हैं.’’

‘‘जब उन के विरोध के बावजूद तू ने पंकज का हाथ थामा था तब उन की भावनाओं का खयाल कहां चला गया था? फिर यह भी सोचा है कि तू ही तो उन्हें परेशान कर रही है?’’

‘‘मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करूं? मेरा तो दम घुटा जा रहा है. तू ही कुछ बता कि मुझे क्या करना चाहिए? मैं ही सब की परेशानी का कारण हूं.’’

‘‘पहले तो यह समझ ले कि इस सारे झगड़े में गलती की पूरी जिम्मेदारी तेरी ही है,’’ जया ने समझाने के लहजे में कहा.

‘‘हां, मैं यह मानने को तैयार हूं, पर पंकज की भी तो गलती है कि उस ने मुझे क्षमा मांगने का मौका ही नहीं दिया. उस ने मुझे कितना अपमानित किया.’’

‘‘वाह रानीजी, वाह, गलती तुम करो और दूसरा अपने मन का तनिक सा रोष भी न निकाल सके?’’

‘‘तो फिर मैं क्या करूं, बताओ न?’’

‘‘एक बात बता, क्या पंकज में कोई कमी है जो दूसरी शादी कर के तुझे उस से अच्छा पति मिल जाएगा? क्या गारंटी है कि आगे किसी छोटे से झगड़े पर तू फिर तलाक नहीं ले लेगी या जिस व्यक्ति से तेरी दूसरी शादी होगी वह अच्छा ही होगा, इस की भी क्या गारंटी है?’’ जया ने तनिक गुस्से से पूछा.

‘‘दूसरी शादी की बात मत कहो, जया. मैं तो पंकज के अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती. शायद उस से अच्छा व्यक्ति इस संसार में दूसरा कोई हो ही नहीं सकता.’’

‘‘फिर किस बात का इंतजार है. क्या तुम समझती हो कि पंकज एक होनहार युवक तुम्हारी प्रतीक्षा में जिंदगी भर अकेला बैठा रहेगा? क्या उस के घर वाले उस के भविष्य के प्रति उदासीन बैठे होंगे? पंकज अपने घर का अकेला होनहार चिराग है.’’

‘‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. अब बता कि मैं क्या करूं?’’

‘‘तू तुरंत पंकज से मिल कर अपने मन की दूरियां मिटा ले. उस से क्षमा मांग ले. आखिर गलती की पहल तो तू ने ही की थी.’’

‘‘लेकिन पिताजी?’’

‘‘क्या पिताजीपिताजी की रट लगा रखी है. क्या तू कोई दूध पीती बच्ची है? पिता क्या हमेशा ही तेरी जिंदगी के छोटेछोटे मसले हल करते रहेंगे? उन्हें अपने मुकदमों के फैसले ही करने दे, अपना फैसला तू खुद कर.’’

‘‘अगर पंकज ने मुझे क्षमा न किया तो? मुझ से मिलने से ही इनकार कर दिया तो?’’ सुषमा ने बेचारगी से कहा.

‘‘पंकज जैसा सुलझा हुआ व्यक्ति ऐसा कभी नहीं कर सकता. तुझे उस ने क्षमा न कर दिया होता तो वह तेरे घर क्या करने आता. क्या तू इतना भी नहीं समझ सकती?’’

‘‘सच जया, तुम ने तो मेरी आंखें ही खोल दी हैं. मेरी तो सारी दुविधा दूर कर दी. मैं अभी पंकज के पास जाऊंगी. इस समय वह संभवत: दफ्तर में ही होगा. मैं अभी उसे फोन मिलाती हूं.’’

बिना तनिक भी देर किए हुए सुषमा जया के साथ तुरंत पास के टैलीफोन बूथ पर बात करने चली गई. उस ने दफ्तर का नंबर मिलाया तो पता चला कि पंकज किसी आवश्यक कार्य से अचानक आज दोपहर के बाद छुट्टी ले कर अपने घर के लिए चला गया है. पूछने पर पता चला कि शायद सगाई की तारीख तय हो रही है.

सुषमा का मन हजार शंकाओं से घिर आया. उस ने समय देखा तो ध्यान आया कि पंकज की गाड़ी छूटने में अभी आधे घंटे का समय बाकी है. अब उसे पंकज के बिछोह का एकएक क्षण एक युग जैसा लग रहा था. उस ने कहा, ‘‘जया, मैं अभी, इसी समय स्टेशन जा रही हूं. तू भी मेरे साथ चली चल.’’

‘‘नहीं जी, अब मैं मियांबीवी के बीच दालभात में मूसलचंद बनने वाली नहीं, कल मिलूंगी तो हाल बताना. वैसे अब तू मुझे ढूंढ़ने वाली नहीं. मैं अपनी औकात समझती हूं,’’ कह कर जया अपने घर की ओर मुसकराती हुई चल पड़ी.

सुषमा का हृदय तेजी से धड़क रहा था. सोचने लगी कि ट्रेन में मैं उन्हें न ढूंढ़ पाई तो, टे्रन छूट गई तो? क्या करूंगी? उन्होंने देख कर मुंह फेर लिया तो क्या होगा? हजार शंकाओं से घिरी सुषमा टे्रन के हर डब्बे के बाहर निगाहें दौड़ा कर पंकज को ढूंढ़ रही थी. तभी टे्रन ने सीटी दे दी. उस की धड़कनें और भी तेज हो उठीं. पांव एकएक मन के भारी हो गए. सोचने लगी, आज तो उसे कैसे भी हो पंकज से मिलना ही है. न मिला तो क्या होगा. उस का तो दम ही निकल जाएगा. वह और भी तेजी से चलती इधरउधर देख रही थी. हर क्षण दिल की धड़कनें तेज होती जा रही थीं. तभी उस का पैर स्टेशन पर रखे किसी सामान से टकराया और वह औंधे मुंह गिरने को हो आई.

लेकिन किन्हीं मजबूत बांहों ने उसे गिरने से संभाल लिया और एक चिरपरिचित आवाज उस के कानों में सुनाई दी, ‘‘किसे ढूंढ़ रही हो, सुषमा? बहुत देर से तुम्हें देख रहा हूं,’’ अपने डब्बे की ओर बढ़ते हुए पंकज ने कहा.

‘‘मुझे आप से कुछ बातें करनी हैं,’’ घबराहट में धड़कते हृदय से सुषमा बस इतना ही बोल सकी.

‘‘अब तो बहुत देर हो चुकी है. मेरी गाड़ी छूट रही है.’’

सुषमा के पैरों के नीचे से तो मानो जमीन ही सरक गई. उस ने फिर कहा, ‘‘मुझे आप से जरूरी बात करनी है.’’

‘‘4 दिन बाद लौटूंगा तब यदि तुम ने मौका दिया तो जरूर बात करूंगा.’’

‘‘इतने दिन तो बहुत होते हैं. क्या मैं आप के साथ चल सकती हूं? मुझे अभी बातें करनी हैं.’’

‘‘तुम मेरे साथ मेरे घर चलोगी? तुम्हारा सामान कहां है? तुम्हारे पिता…’’

‘‘बस, अब कुछ न कहें, मुझे अपने साथ लेते चलें. आप के साथ मुझे सबकुछ मिल जाएगा.’’

ट्रेन सरकने लगी थी. पंकज ने तेजी से हाथ बढ़ा कर सुषमा को अपने डब्बे में चढ़ा लिया.

सुषमा उस के सीने से लग कर सिसक पड़ी. वह यह भी भूल गई कि सब उसी की ओर देख रहे हैं.

एक युग: सुषमा और पंकज की लव मैरिज में किसने घोला जहर?- भाग 2

लेकिन अभी उन की आंख लगी ही थी कि किसी के कराहने की आवाज से उन की नींद टूट गई. वे घबरा कर उठ बैठीं. तुरंत बच्चों के कमरे में पहुंचीं. वहां उन्होंने देखा कि उन की प्यारी बहू सुषमा कराह रही है. उन्होंने तुरंत कमरे की बत्ती जलाई तो देखा, सुषमा बेहोश सी बिस्तर पर पड़ी है.

उन्होंने बहू को बहुत हिलायाडुलाया पर उस ने आंखें न खोलीं. इस के बाद जो दृश्य उन्होंने देखा तो उन के तो पैरों के नीचे से जमीन ही सरक गई. बहू के बगल में बिस्तर पर एक खाली शीशी पड़ी हुई थी और उस पर लिखा था, ‘जहर’. देखते ही पार्वती के मुंह से चीख निकल गई.

उन्होंने तुरंत बेटी को जगाया और स्वयं लगभग दौड़ती हुई जा कर अपने पड़ोसी को बुला लाईं. पड़ोसी की सहायता से वे बहू को अस्पताल ले गईं, जहां आकस्मिक चिकित्सा कक्ष में उस का इलाज शुरू हो गया.

इधर पंकज को बुलाने के लिए भी सूचना भेज दी गई. कुछ घंटों में ही पंकज आ पहुंचा. पार्वती सोचसोच कर परेशान थीं कि आखिर बहू ने जहर क्यों खा लिया? पंकज भी सोच में पड़ गया कि सुषमा ने जहर क्यों खाया? क्या मां या बहनों ने कुछ कहा

लेकिन ये सब लोग तो उसे बहुत प्यार करते हैं. सुषमा को कुछ हो गया तो क्या उन पर दहेज का मामला नहीं चल जाएगा? आजकल आएदिन इस तरह के किस्से होते ही रहते हैं. कई प्रश्न पार्वती और उन के बेटे के दिलोदिमाग को मथने लगे.

डाक्टरों के उपचार के समय ही सुषमा ने चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘‘मैं ने जहर नहीं खाया, मैं ने जहर नहीं खाया…’’

पर डाक्टरों ने उस की एक न सुनी. सुषमा के पेट का सारा पानी निकाल दिया गया. पेट से निकले हुए पानी का परीक्षण करने पर पता चला कि उस के पेट में जहर की एक बूंद भी नहीं है.

पार्वती ने बहू के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटी, आखिर यह सब क्यों किया? मेरी तो जान ही निकल गई थी.’’

‘‘सुषमा, तुम ने हमें कहीं का न छोड़ा. पूरे महल्ले और मेरे दफ्तर में हमारी कितनी बदनामी हुई है. हम किसी से निगाहें मिलाने लायक नहीं रहे. आएदिन दहेज के किस्से होते हैं. डाक्टरी परीक्षण में तनिक भी कमी रह जाती तो हम सब तो जेल में पहुंच गए होते. हमारी कौन सुनता? तुम ने तो हम सब को जेल भेजने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी. अभी भी कितने लोगों को विश्वास आएगा कि तुम ने जहर नहीं खाया था?’’

पंकज के हृदय को सुषमा के इस नाटक से बहुत बड़ी ठेस लगी. उस का हृदय चूरचूर हो गया. पार्वती ने बेटे को समझाने का बहुत प्रयास किया, पर पंकज किसी तरह न माना.

पार्वती ने कहा, ‘‘बेटे, तुम बहू को अब अपने साथ ही ले जाओ.’’

उन्होंने सोचा, बेटा और बहू साथ रहेंगे तो सबकुछ अपनेआप ठीक हो जाएगा. उन का सोचना गलत था. पंकज सुषमा के इस घिनौने नाटक को भूल न सका.

इस अचानक हुए हादसे की सूचना सुषमा के पिता कन्हैया लाल को भी दी जा चुकी थी. उस की मां तो बेटी के जहर खाने का समाचार सुनते ही बेहोश हो गईं.

पिता कहने लगे, ‘‘मैं हमेशा समझाता था कि ये छोटे घर के लोग रुपएपैसे के बड़े लालची होते हैं. अरे, जब पूछा तो कहने लगे कि हमें कुछ भी नहीं चाहिए. अब अपनी फूल सी बेटी को जहर खा लेने पर मजबूर कर दिया न?’’

‘‘वह भी तो उस लड़के की दीवानी बनी हुई थी. आखिर उस लड़के में ऐसी क्या खास बात है?’’ मां ने आंसू बहाते हुए कहा.

‘‘अरे, यह सब उस पंकज की चालाकी है, जो उस ने सुषमा को अपने जाल में फंसा लिया. मैं भी एक जज हूं. छोड़ूंगा नहीं उस नालायक को. उसे हथकडि़यां न लगवाईं तो मेरा भी नाम नहीं.’’

जब कन्हैया लाल पत्नी के साथ सुषमा की ससुराल पहुंचे तो गुस्से में भर कर पंकज ने साफ कह दिया, ‘‘आप अपनी बेटी को अपने साथ ले जाइए. हम तो कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहे.’’

‘‘हांहां, बेटी को तो हम साथ ले ही जाएंगे पर तुम्हें भी जेल की हवा खिलाए बिना नहीं छोड़ेंगे. शुक्र है कि मेरी बेटी सहीसलामत है.’’

सुषमा ने भारी मन से अपनी प्रिय सहेली को पूरी कहानी बताते हुए कहा, ‘‘जया, इस हादसे के बाद मैं पिताजी के साथ ससुराल से यहां चली आई.’’

‘‘उस के बाद पंकज से तुम्हारी भेंट हुई या नहीं?’’

‘‘नहीं जया, इस घटना के एक सप्ताह बाद पंकज मेरे घर आए थे. पिताजी उन्हें बाहर बैठक में ही मिल गए. उन्होंने वहीं खूब उलटीसीधी सुना कर पंकज को अपमानित किया. कह दिया कि अब तुम सुषमा से कभी नहीं मिल सकते. अब तो तुम्हारे पास तलाक के कागज ही पहुंचेंगे.

‘‘तब पंकज ने मेरे पिताजी से कहा कि आप मुझ से बात नहीं करना चाहते तो न करें पर मुझे सुषमा से तो एक बार बात कर लेने का अवसर दें. पर पिताजी ने कहा कि मैं तुम्हारी कोई भी बात नहीं सुनना चाहता. अब तो तुम सुषमा से कचहरी में ही मिलोगे.

‘‘इस के बाद वे भारी मन से चले गए. बाद में एक दिन उन का टैलीफोन भी आया था तो मां ने कह दिया कि आगे से टैलीफोन करने की कोई जरूरत नहीं है.’’

‘‘यह सब तो तेरे मातापिता ने किया, पर तू ने इस बीच क्या किया, यह तो तू ने बताया ही नहीं?’’

‘‘जया, मैं क्या करती, मेरी तो कुछ समझ में आया ही नहीं कि कैसे यह सब कुछ हो गया. मैं तो बस एक मूकदर्शक ही बनी रही.’’

‘‘इस का मतलब यह है कि तुम ने पंकज की ओर हाथ बढ़ाने का कोई प्रयास ही नहीं किया, जबकि पंकज ने 2 बार तुम से मिलने का प्रयास किया.’’

‘‘मैं क्या करती, पिताजी ने तो सारे रास्ते ही बंद कर दिए. उन्होंने निर्णय सुना दिया कि पंकज से मिलने या बात करने की कोई जरूरत नहीं है.’’

‘‘उन्होंने तो निर्णय कर लिया, पर क्या तू ने भी उन का निर्णय मान लिया? तेरी सूरत से तो ऐसा नहीं लगता?’’ जया ने सोचते हुए कहा.

‘‘मैं क्या करूं? मेरे मातापिता हर समय उठतेबैठते यही कहते रहते हैं कि अपने मन से विवाह करने का परिणाम देख लिया. कितनी बेरहमी से उस ने तुझे अपने घर से निकाल दिया. समाज में हमारी कितनी थूथू हुई है. पहले तो तू ने अपने से इतने नीचे खानदान में शादी की और फिर उस के बाद यह बेइज्जती. दो कौड़ी के उस लड़के की हिम्मत तो देखो. हम बड़ी धूमधाम से तेरी दूसरी शादी करेंगे. अभी तेरी उम्र ही कितनी है?’’

‘‘मातापिता ने कह दिया और तू ने सब कुछ ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया. इसी दम पर पूरे परिवार का विरोध मोल ले कर पंकज का हाथ थामा था. क्या अब तुझे पंकज सचमुच पसंद नहीं?’’

एक युग: सुषमा और पंकज की लव मैरिज में किसने घोला जहर?- भाग 1

‘‘कहो सुषमा, तुम्हारे ‘वे’ कहां हैं? दिखाई नहीं दे रहे, क्या अभी अंदर ही हैं?’’

‘‘नहीं यार, मैं अकेली ही आई हूं. उन्हें फुरसत कहां?’’

‘‘आहें क्यों भर रही है, क्या अभी से यह नौबत आ गई कि तुझे अकेले ही फिल्म देखने आना पड़ता है? क्या कोई चक्करवक्कर है? मुझे तो तेरी सूरत से दाल में काला नजर आ रहा है.’’

‘‘नहीं री, यही तो रोना है कि कोई चक्करवक्कर नहीं. वे ऐसे नहीं हैं.’’

‘‘तो फिर कैसे हैं? मैं भी तो जरा सुनूं जो मेरी सहेली को अकेले ही फिल्म देखने की जरूरत पड़ गई.’’

‘‘वे कहीं अपनी मां की नब्ज पकड़े बैठे होंगे.’’

‘‘तेरी सास अस्पताल में हैं और तू यहां? पूरी बात तो बता कि क्या हुआ?’’

‘‘जया, चलो किसी पार्क में चल कर बैठते हैं. मैं तो खुद ही तेरे पास आने वाली थी. इन 3-4 महीनों में मेरे साथ जो कुछ गुजर गया, वह सब कैसे हो गया. मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आता,’’ कहते हुए सुषमा सिसक पड़ी.

‘‘अरे, तू इतनी परेशान रही और मुझे खबर तक नहीं. ब्याह के बाद तू इतनी बदल जाएगी, इस की तो मुझे आशा ही नहीं थी. जिंदगीभर दोस्ती निभाने का वादा इसी मुंह से किया करती थी?’’ सुषमा की ठोड़ी ऊपर उठाते हुए जया ने कहा, ‘‘मैं तो तेरे पास नहीं आई क्योंकि मैं समझ रही थी कि तू अपनी ससुराल जा कर मुझे भूल ही गई होगी. पर तू चिंता मत कर, मुझे पूरी बात तो बता. मैं अभी कोई न कोई हल निकालने का प्रयास करूंगी, उसी तरह जैसे मैं ने तुझे और पंकज को मिलाने का रास्ता निकाल लिया था.’’

अपनी इस प्यारी सहेली को पा कर सुषमा ने आपबीती बता कर मन का सारा बोझ हलका कर लिया.

पार्वती के पति 10 वर्ष पहले लकवा के शिकार हो कर बिस्तर से लग गए थे. इन 10 वर्षों में उस ने बड़े दुख झेले थे. उस के पति सरकारी नौकरी में थे. अत: उन्हें थोड़ी सी पैंशन मिलती थी. पार्वती ने किसी तरह स्कूल में शिक्षिका बन कर बच्चों के खानेपीने और पढ़नेलिखने का खर्च जुटाया था. 2 जोड़ी कपड़ों से अधिक कपड़े कभी किसी के लिए नहीं जुट पाए थे.

उस पर इकलौते बेटे पंकज को पार्वती इंजीनियर बनाना चाहती थी. गांव की थोड़ी सी जमीन थी, वह भी उन्हें अपनी चाह के लिए बेच देनी पड़ी. एकएक दिन कर के उन्होंने पंकज के पढ़लिख कर इंजीनियर बन जाने का इंतजार किया था. बड़ी प्रतीक्षा के बाद वह सुखद समय आया जब पंकज सरकारी नौकरी में आ गया.

पंकज के नौकरी में आते ही उस के लिए रिश्तों की भीड़ लग गई. उस भीड़ में न भटक कर उन्होंने अपने बेटे के लिए बेटे की ही पसंद की एक संपन्न घर की प्यारी सी बहू ढूंढ़ ली. सुषमा बहू बन कर उन के घर आई तो बरसों बाद घर में पहली बार खुशियों की एक बाढ़ सी आ गई.

पार्वती ने बहू को बड़े लाड़प्यार से अपने सीने से लगा लिया. छुट्टी खत्म होने पर पंकज ने सुषमा से कहा, ‘‘सुमी, मां ने बहुत दुख झेले हैं. तुम थोड़े दिन उन के पास रह कर उन का मन भर दो. मैं हर सप्ताह आता रहूंगा. घर मिलते ही तुम्हें अपने साथ ले चलूंगा.’’

पंकज की बहनें दिनभर सुषमा को घेरे रहतीं. वे उसे घर का कोई भी काम न करने देतीं. सुषमा उन की प्यारी भाभी जो थी. सुषमा को प्यास भी लगती तो उस की कोई न कोई ननद उस के लिए पानी लेने दौड़ पड़ती.

पार्वती के तो कलेजे का टुकड़ा ही थी सुषमा. उस के आने से पूरा घर खुशी से जगमगा उठा. पार्वती उसे प्यार से ‘चांदनी’ कहने लगी. सुषमा के सिर में दर्द भी होता तो वे तुरंत बाम ले कर दौड़ पड़तीं.

धीरेधीरे पंकज के विवाह को 2 महीने बीत गए थे. इस बार जब पंकज घर आया तो सुषमा ने कहा, ‘‘मैं भी तुम्हारे साथ ही चलूंगी. अब मुझे यहां अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘बस, अगले महीने ही तो घर मिल जाएगा, मैं ने तुम्हें बताया तो था…फिर तुम्हें यहां कौन छोड़ जाएगा?’’

‘‘तो तब तक हम लोग अपने पिताजी के घर रह लेंगे. मां और पिताजी कितने खुश होंगे. इतना बड़ा बंगला है.’’

‘‘नहीं सुषमा, मैं घरजमाई बन कर नहीं रह सकता. यह मुझ से नहीं होगा. यह मैं ने तुम से पहले भी कह दिया था कि मुझ से कभी इस तरह की जिद न करना.’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानती. मैं गैस्ट हाउस में ही तुम्हारे साथ रहूंगी.’’

‘‘सुमी, जिद नहीं करते. वहां सभी अकेले रहते हैं. तुम्हारा वहां साथ चलना ठीक नहीं है. बस, थोड़े ही दिनों की तो बात है. क्या मां और बहनें तुम्हें प्यार नहीं करतीं? बस, मैं यों गया और यों आया,’’ पंकज की गाड़ी का समय हो रहा था. वह सुषमा से विदा ले कर चला गया.

पंकज 4 बहनों का अकेला भाई था. आज छोटी का जन्मदिन था. पंकज को गए 3-4 दिन हो गए थे. पार्वती चौका समेट कर बिस्तर पर जो लेटीं तो लेटते ही उन्हें नींद आ गई.

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