ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार पर थी. जंगल, पेड़पौधे, पहाड़, नदीनाले सभी पीछे की ओर भागते जा रहे थे. मैं 6 साल बाद अपने गांव जा रहा था. मैं अपने खयालों में खोया बीते दिनों के बारे में सोच रहा था कि जब घर से निकला था, तो कुरतेपाजामे में हाथ में गठरी ले कर दिल्ली के लिए रवाना हुआ था.

मन में एक अजीब सा डर था कि इतने बड़े शहर में मैं कैसे रह पाऊंगा, लेकिन कुछ ही दिनों में मैं भी ‘शहरी बाबू’ बन गया और एक कंपनी में नौकरी भी लग गई.

मेरे सामने की सीट पर एक सुंदर लड़की अपने बूढ़े पिता के साथ बैठी थी. वह देखने में बहुत ही साधारण परिवार की लग रही थी. वह ठीक मेरी बिंदु जैसी लग रही थी. उसे देख कर मैं कुछ पलों के लिए अपने अतीत में खो गया. हम दोनों गांव में एकसाथ पढ़े थे. बचपन की दोस्ती कब प्यार में बदल गई, हमें पता भी नहीं चला. हम दोनों स्कूल के बाहर पीपल के पेड़ के नीचे बैठ कर घंटों बातें किया करते थे.

एक दिन बातें करतेकरते उस ने मेरा हाथ अपने हाथों में ले लिया, ‘अच्छा, बताओ, तुम मुझे एकटक क्यों देख रहे हो? तुम अपने मन की बात क्यों नहीं बोलते? तुम मुझे चाहते हो, यह बात क्या मैं नहीं जानती...’

‘तुम जानती हो बिंदु?’

‘मैं जानती न होती, तो तुम्हारे साथ अकेले में क्यों मिलती... क्या तुम इतना भी नहीं जानते?

‘मुझे प्यार भी करते हो और इतनी पराई भी समझाते हो. तुम्हारे प्यार पर मैं अपनी जान भी कुरबान कर सकती हूं,’ इतना कहते हुए उस ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए.

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