इंसानियत का दूत : आशीष और शीतल की कहानी

ललित हमेशा की तरह अपने चैंबर में कुरसी पर बैठे काम में तल्लीन थे. उन की नजरें कभी लैपटौप की स्क्रीन पर तो कभी साथ में रखी फाइल के पन्नों पर पड़ रही थीं. उंगलियां कौर्डलैस माउस को कभी इधरउधर खिसकातीं तो कभी किसी कमांड को क्लिक करतीं. ऐसा लगता था कि मानो वे किसी खोई हुई जानकारी को ढूंढ़ रहे हों. शायद किसी लंबे व जरूरी ईमेल का जवाब तैयार कर रहे  थे. चेहरे पर थोड़ा सा तनाव. तभी पास में रखा हुआ उन का फोन बज उठा.

आशीष का फोन था. और कोई होता तो शायद ‘कैन आई कौल यू लैटर’ वाले बटन को दबा कर अपने काम में व्यस्त हो जाते, लेकिन आशीष को उत्तर देना उन्होंने ठीक समझा.

दरअसल, आशीष, ललित की बेटी सुरेखा का बहनोई था. बात ऐसी थी कि ललित एक बहुत ही सुलझे हुए जीवंत व्यक्तित्व के मालिक और कैरियर की सीढ़ी में खूब ही सफल व्यक्ति थे. रुड़की आईआईटी से विद्युत यांत्रिकी की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड में सहायक अभियंता के पद पर नियुक्त हुए थे. और फिर अपने कैरियर की तमाम सीढि़यां जल्दीजल्दी फांदते हुए और उस यात्रा में अलगअलग स्थानों में अनुभव प्राप्त करते आज झांसी के निकट स्थित परीछा बिजली संयंत्र के सब से बड़े अधिकारी, यानी मुख्य अभियंता के पद पर आसीन थे. उन को 30 वर्षों से भी अधिक कार्य करने का अनुभव प्राप्त था.

ललित फोन उठाते ही बोले, ‘‘हैलो आशीष, क्या हाल हैं, कैसे याद किया?’’

‘‘हैलो अंकल, अंकल, आई होप आई एम नौट डिस्टरबिंग यू, आर यू इन औफिस अंकल?’’ आशीष का उत्तर था.

ललित तपाक  से बोले, ‘‘मैं औफिस में हूं, लेकिन डिस्टरबैंस की कोई बात नहीं है. बोलो, क्या कोई खास बात? सब ठीक तो है?’’

आशीष ने कहा, ‘‘अंकल कोई खास बात तो नहीं, मुझे अपना कुछ सामान आप के घर में रखवाना है.’’

ललित ने तुरंत ही कहा, ‘‘हांहां, क्यों नहीं, पर अचानक? हुआ क्या है?’’

आशीष बताना शुरू करता है, फिर अपनेआप ही सलाह देते हुए अंकल से अनुमति लेता है कि क्या वह और उस की पत्नी शीतल, शाम को उन के घर आ कर सब बातें विस्तार से बता सकते हैं.

ललित उस की बात फौरन ही मान लेते हैं और उन्हें डिनर साथ करने का न्योता भी दे देते हैं. उस दिन ललित घर थोड़ा जल्दी पहुंच जाते हैं और अपनी पत्नी नमिता को आशीष के फोन का जिक्र करने के साथ डिनर की तैयारी करने का अनुरोध करते हुए यह भी कहते हैं कि आज मुझे आशीष की आवाज में थोड़ी सी घबराहट छिपी दिखी, हालांकि मैं गलत भी हो सकता हूं.

थोड़ी सी देर इस विषय पर बातचीत करतेकरते दोनों पतिपत्नी अपने में ही पिछले 4-5 वर्षों की घटनाओं का स्मरण करते विचारमग्न हो जाते हैं.

ये भी पढ़ें- आस पूरी हुई : सोमरू और कजरी की क्या थी इच्छा

दरअसल, ललित और नमिता की एक ही बेटी थी सुरेखा. वह बहुत ही लाड़प्यार से पली थी. उन्होंने अपनी बेटी का विवाह बड़ी ही धूमधाम से डैस्टिनेशन वैडिंग के तौर पर उदयपुर से किया था. शीतल, सुरेखा के पति नंदन की एकमात्र बहन थी जो पहले से विवाहित थी और एक प्यारे से पुत्र की मां थी. विवाह बहुत ही अच्छे से संपन्न हुआ. लेकिन विवाह के अगले दिन ही, सुरेखा की विदाई से पहले शीतल के पति अमित का उदयपुर में ही एक कार ऐक्सिडैंट में निधन हो गया. इस अजीब सी घटना से जहां एक ओर शीतल, उस का भाई नंदन और कानपुर निवासी उन के वृद्ध मातापिता दुख के सागर में डूब गए, वहीं सुरेखा दुख के साथसाथ एक गिल्ट की भावना भी अपने अंदर महसूस करने लगी. ऐसी स्थिति में सुरेखा के पिता ललित और पति नंदन ने बड़े धैर्य के साथ और सूझबूझ से समय को संभाला. विदाई की रस्म जैसेतैसे संपन्न हुई और शीतल अपने मातापिता व पुत्र पार्थ के साथ कानपुर आ गई. नंदन एवं सुरेखा लखनऊ आ बसे अपने नए विवाहित जीवन को बसर करने. नंदन लखनऊ में बैंक की एक शाखा में प्रबंधक के पद पर आसीन था.

शीतल के मातापिता ने उस को और उस के 1 वर्ष के पुत्र पार्थ को बहुत ही लाड़ और दुलार के साथ रखा. बेटी के दुख और उस के सिर पर आई एक नई जिम्मेदारी को उन्होंने खूब ही समझदारी के साथ बांटा और पार्थ को पिता के नहीं होने का आभास नहीं होने दिया. इस तरह से वक्त गुजरता गया. नंदन और सुरेखा जब तब लखनऊ से आ जाते और शीतल व पार्थ के साथ समय गुजारते.

यों तो परिवार के हर सदस्य के मन में यह प्रश्न आता ही था कि क्या शीतल को दूसरे विवाह के बारे में सोचना चाहिए. किंतु सुरेखा इस प्रश्न को उजागर करती रहती थी. शायद कहीं अपराधबोध शीतल के मन में अनावश्यक तौर पर प्रवेश कर गया था कि यह दुर्घटना उस के इस परिवार में आने से हुई.

‘मैं दूसरे विवाह के बारे में सोच भी कैसे सकती हूं, अमित का चेहरा हर समय मेरी आंखों के सामने रहता है,’ शीतल अपना तर्क देती थी.

लेकिन, जैसा कहा गया है, समय हर दर्द के ऊपर मरहम का कार्य करता ही रहता है. इसी तरह 4 साल गुजर गए और अनायास एक दिन शीतल ने सुरेखा को फोन पर बताया, ‘मैं जीवनसाथी डौट कौम में यों ही सर्च कर रही थी तो मुझे एक लड़का पसंद आया.’

‘हां, हां, फिर?’ सुरेखा ने और बताने के लिए कहा.

‘सुरेखा, पता नहीं सही है कि गलत, मैं उस लड़के से मिल भी चुकी हूं और हम ने एकदूसरे के साथ जीवनसाथी बनने का वादा भी कर लिया है.’

‘दीदी, यह तो बहुत ही अच्छी खबर है, जल्दी से बताओ न, कौन है वह, क्या करता है, कहां रहता है, नाम क्या है?’ सुरेखा अपना उतावलापन रोक नहीं पा रही थी.

‘बताती हूं, बताती हूं, अरे भई, मुंबई में रहता है, एक प्राइवेट कंपनी में काफी अच्छी जौब करता है और देखने में भी अच्छाखासा है, हैंडसम है और नाम है आशीष,’ कह कर शीतल ने अपने मन की सारी बातें सुरेखा को बता दीं.

सुरेखा कहां रुकने वाली थी, उस ने उसी शाम अपने पति नंदन को बताया. और थोड़ी देर विचारविमर्श करने के बाद दोनों झटपट कानपुर के लिए रवाना हो गए. कानपुर में नंदन ने इस बात का खुलासा अपने माता और पिताजी को किया और फिर शीतल को बीच में बिठा कर सब ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

नंदन ने पूछा, ‘दीदी, तुम ने सबकुछ ठोकबजा कर देख लिया है न? उस की पहली शादी क्यों टूटी, यह पता लगाया?’

शीतल ने कहा, ‘हांहां, अपनी समझ से सबकुछ पूछ लिया है. उस की पहली पत्नी एक मुसलिम लड़की है जो कि मिजाज की बहुत चिड़चिड़ी थी. अपने जिद्दीपन और तुनकमिजाजी के कारण उस ने आशीष का जीना हराम कर रखा था. अब 1-2 वर्ष हो गए, आशीष अलग ही रहते हैं.’

‘दीदी, लेकिन कानूनी तौर पर तलाक लिया हुआ है कि नहीं?’ नंदन ने पूछा, ‘और फिर पार्थ का क्या होगा?’ सभी प्रश्नों का उत्तर शीतल ने धैर्य के साथ दिया. उस ने बताया कि आशीष तलाक की कोशिश में लगे हैं और वह हो ही जाएगा. और जहां तक पार्थ का प्रश्न है, आशीष ने उसे पूरी तरह आश्वास्त किया हुआ था कि वह उसे बेटे की तरह अपना लेगा. उस ने यह भी बताया कि अगले महीने आशीष मुंबई से लखनऊ किसी काम से आ रहे हैं और यदि सब को मंजूर हो तो वह नंदन के घर जा कर सब से मिलने के लिए भी तैयार है.

और ऐसा ही हुआ. आशीष के लखनऊ आते ही नंदन ने फोन कर के उसे अपने घर डिनर पर बुला लिया. शीतल कानपुर से पहले ही आ गई थी. नंदन और सुरेखा आशीष से मिल

कर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने उस से वे सभी प्रश्न पूछ डाले जो शीतल के अच्छे भविष्य को सुनिश्चित कर सकते थे.

‘आशीषजी, आप ने कानूनीतौर पर तलाक नहीं लिया है तो आगे चल कर कोई परेशानी तो नहीं होगी?’ नंदन का प्रश्न था.

‘देखिए नंदनजी, मैं ने अपने पिछले विवाह की हर बात शीतल को बता दी है. मैं तलाक के पेपर्स भी फाइल करने वाला हूं. और वैसे भी, पिछले 1-2 सालों से मेरी उस से कोईर् बात नहीं हुई है, आशीष का उत्तर था.

आशीष के हंसमुख स्वभाव ने सभी का मन जीत लिया था.

सुरेखा और नंदन ने इस मुलाकात के बाद फौरन ललित को फोन किया. सुरेखा ने कहा, ‘डैडी, देयर इज अ गुड न्यूज. शीतल दी ने एक लड़का पसंद कर लिया है, बहुत अच्छा है, आप की क्या राय है?’

‘बेटी, बहुत अच्छी बात है, लेकिन सबकुछ सोचसमझ लेना चाहिए,’ ललित का नपेतुले अंदाज में उत्तर था. फिर बापबेटी ने काफी देर इस विषय पर बात की.

कुछ वक्त और गुजर गया और महज इत्तफाक की बात कि आशीष का तबादला झांसी में हो गया. सुरेखा के लिए यह बहुत अच्छी खबर थी. जहां एक जोर शीतल व नंदन के मातापिता कुछ भी निर्णय लेने में हिचकिचा सा रहे थे, सुरेखा को पूरा विश्वास था कि उस के डैडी आशीष से मिलने के बाद एकदम सही सलाह और मार्गदर्शन देंगे.

हुआ भी यही. ललित ने आशीष को घर पर बुला कर उस से मुलाकात की और उन की सलाह पर सभी लोग इस बात पर राजी हो गए कि इन दोनों की शादी जल्दी ही कर देनी चाहिए.

ललित ने यह भी प्रस्ताव दे दिया कि विवाह पारीछा में आयोजित हो क्योंकि आशीष स्वयं भी अब झांसी में रहता था और पारीछा बिजली संयंत्र झांसी से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

जल्दी ही आशीष ने अपने मातापिता को झांसी में बुलवा लिया. ललित के पास साधनों की कमी नहीं थी. सभी लोगों के ठहरने की व्यवस्था पारीक्षा में आसानी से हो गई और जल्दी ही आशीष व शीतल का विवाह रीतिरिवाज के साथ संपन्न हुआ. पार्थ के बचपन को अब पिता की कमी नहीं रही.

ललित और उस की पत्नी नमिता दोनों ही विचारों में जैसे खोए से हुए थे कि अचानक नमिता जैसे नींद से चौंक कर उठती हुई बोल पड़ी, ‘‘अरे उठिए, वक्त का अंदाजा है आप को, वो लोग आते ही होंगे. दोनों तुरंत ही गतिशील हुए और जल्दी फ्रैश हो कर अपनी चिरपरिचित अभिवादन की मुद्रा में बैठ गए. जल्दी ही आशीष, पत्नी शीतल उन के घर पहुंच गए. आशीष के साथ एक बड़ा सा सूटकेस और एक दस्तावेजों का फोल्डर था.

आरंभिक औपचारिकताओं के तुरंत बाद आशीष ने प्रार्थनास्वरूप कहा, ‘‘अंकल, यह सूटकेस हमें आप के घर में रखवाना है और ये कुछ दस्तावेज हैं जो आप को अपने पास संभाल कर रखने हैं.’’

‘‘बेटा, यह आप का ही घर है. जो सामान रखवाना है रखो, किंतु अचानक, बात क्या है?’’ ललित ने कहा.

‘‘अंकल, मेरे ऊपर पुलिस केस हो गया है और शायद वारंट भी इश्यू हो गया हो. और ये सब नौशीन ने किया है, मेरी पहली पत्नी. मुझे आप से सलाह भी लेनी है,’’ आशीष ने कहा.

आश्चर्यचकित होते हुए ललित ने अपने सधे हुए अंदाज में कहा, ‘‘देखो आशीष बेटे, मैं ने तुम से पहले कभी नहीं पूछा किंतु आज जब यह समस्या आ खड़ी हुई है तो मुझे ठीक तरह से और सिलसिलेवार अपनी पिछली जिंदगी के बारे में सबकुछ बताओ.’’

ये भी पढ़ें- वे लमहे : मारिया ने किससे की शादी

आशीष ने लंबी सांस ली और अपनी कहानी बताने लगा :

उस की कहानी के अनुसार, नौशीन 21 बरस की एक मुसलिम लड़की थी. सुंदर, छरहरी लेकिन मिजाज की काफी बिगड़ी हुई. देखने में टीवी सीरियलों की सुंदर अभिनेत्री से कम नहीं लगती थी. उस का शादी डौट कौम के माध्यम से आशीष से परिचय होता है. कुछ रोज दोनों एकदूसरे से मिलतेमिलाते हैं और फिर एकदूसरे के बहुत करीब आ जाते हैं. एक तरह की आसक्ति या यह कहें कि प्रेमांधता में, दोनों शादी का फैसला कर लेते हैं.

नौशीन और आशीष आर्य समाज मंदिर में जाते हैं और वहां उन का विवाह हो जाता है. मात्र विवाह के उद्देश्य से नौशीन ऊपरी तौर पर हिंदू धर्म अपना लेती है.

हनीमून और शुरुआत के कुछ दिन ठीक गुजरते हैं लेकिन फिर उन के आपसी संबंधों में कड़वाहट आनी शुरू हो जाती है. दोनों के परिवारों में भी इस संबंध को ले कर तनाव सा रहता था. आशीष के मातापिता ने तो इस संबंध को अपने बेटे की खुशी के लिए स्वीकार कर लिया था लेकिन नौशीन के पिता ने बिलकुल भी नहीं, खासतौर से उस की मां इस रिश्ते से बिलकुल खुश नहीं थी. वह जिद पर अड़ी हुई थी कि मुसलिम रीति से निकाह होना चाहिए.

आशीष एक सुलझा हुआ, हंसमुख और व्यावहारिक व्यक्ति था. नौशीन और उस की मां के सारे नखरे व झल्लाहटों को सहन करते हुए जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ाता जा रहा था. इस तरह से करीब 4 साल निकल गए और फिर एक दिन आशीष ने घुटने टेक दिए और मुसलिम रीति के अनुसार निकाह होने के बाद शब्बीर अली के नाम से निकाहनामा तैयार हो गया.

एकदो वर्ष और बीत गए लेकिन उन के रिश्ते में मिठास अभी भी न आ सकी. नौशीन एक झक्की और जिद्दी लड़की की तरह पेश आती थी और उस की मां गरम तेल में पानी के छीटे फेंकने का काम करती रहती थी. आखिरकार उन्होंने अलगअलग रहने का फैसला कर लिया.

करीब डेढ़ साल के अंतराल से आशीष का जीवनसाथी डौट कौम के माध्यम से शीतल नाम की एक विधवा लड़की से संपर्क हुआ. यह लड़की एक बहुत ही संतुलित व पढ़ीलिखी थी जिस का एक बेटा भी था.

आशीष अपने इतिहास के बारे में बतातेबताते वर्तमान में आ चुका था कि तभी नमिता ने आग्रह किया, ‘‘क्या हम लोग बाकी बातें डाइनिंग टेबल पर बैठ कर नहीं कर सकते? ये लोग सिटी से आए हैं, भूख लग रही होगी.’’

ललित तुरंत मान गए और खाने के लिए बैठतेबैठते उन्होंने कहा, ‘‘बेटा आशीष, इस के बाद का तो हम लोगों को भी मालूम है और हम लोग तुम दोनों से ही बड़े खुश हैं.’’ ललित और नमिता इस बात की चर्चा आपस में पहले भी कर चुके थे कि कितनी अच्छी तरह आशीष ने पार्थ को अपने बेटे की तरह अपनाते हुए शीतल के जीवन में फिर से खुशियां भर दी थीं. शीतल ने भी आशीष के जीवन में भरपूर मिठास भर दी थी, उस की मनपसंद पत्नी के रूप में.

‘‘तो अब बताओ, अभी क्या हुआ?’’ ललित ने कौर मुंह में डालते हुए पूछा.

‘‘अंकल, फेसबुक ने गड़बड़ कर दी,’’ शीतल ने कहा.

‘‘फेसबुक ने? क्या मतलब?’’ नमिता और ललित चकित हुए.

‘‘बल्कि यों कहिए कि मैं ने गड़बड़ कर दी,’’ शीतल बोली.

हुआ यों था कि आशीष पार्थ और शीतल को ले कर गोवा गया हुआ था. उस ने बड़े ही उत्साह और शौक से औफिस से छुट्टी ले कर यह कार्यक्रम बनाया था. शीतल ने तमाम तसवीरें फेसबुक में पोस्ट कर दीं जिन में पतिपत्नी की नजदीकियां और एक अत्यंत सुखी परिवार की झलकियां स्पष्ट नजर आती थीं.

नौशीन, जिस का पिछले डेढ़ साल से कुछ अतापता नहीं था लेकिन जो शायद आशीष की फ्रैंड्स लिस्ट में अभी भी थी, इन तस्वीरों को देख कर भड़क गई.

आशीष के पास उस का फोन आया और फोन में उस ने साफसाफ कह दिया, ‘आशीष, मुझे छोड़ कर तुम ने दूसरी शादी कर ली है और तुम्हारा एक बच्चा भी है, और तसवीरों में तुम्हारे चेहरे पर कितनी खुशी और कितना सुख दिख रहा है. मैं यह कतई नहीं सह सकती.’

यों तो नौशीन ने पुरानी जिंदगी को भुला कर अपनी जिंदगी को अपनी तरह जीना सीख लिया था लेकिन आशीष की खुशी देख कर जैसे उस के अंदर की दबी हुई आग भड़क सी गईर् हो और उस दिन के बाद से शीतल और आशीष की अच्छीखासी चल रही जिंदगी में परेशानियां ही परेशानियां आ गईं.

लखनऊ के आलमबाग थाने से आशीष के पास फोन आया और उसे थाने में बुलाया गया. निर्धारित तिथि पर ही आशीष झांसी से ट्रेन से लखनऊ पहुंचा और सीधे आलमबाग थाने में गया. थाने के एक बड़े अधिकारी ने आशीष को विस्तार से नौशीन द्वारा दर्ज शिकायत पढ़ कर सुनाई और बताया कि यह मामला गंभीर हो सकता है और भलाई इसी में है कि आपसी बातचीत से सुलझा लिया जाए. दूसरे ही दिन फैमिली कोर्ट के एक अधिकारी ने दोनों को बुलवाया और उन की काउंसिलिंग शुरू की.

किंतु नौशीन कहां मानने वाली थी. एक घायल शेरनी की तरह, फेसबुक की कुछ तसवीरों का विवरण देती हुई और क्रोध में आ कर, वह एक ही बात दोहरा रही थी कि ‘या तो ये वापस आ जाएं मेरे पास, या फिर अदालत इन को जेल में बंद कर दे.’

और धीरेधीरे आशीष के लाख मनाने के बावजूद नौशीन के वकील ने धारा 494, धारा 504 इत्यादि लगा कर आशीष पर दहेज की मांग, अत्याचार, घरेलू हिंसा के इल्जाम लगा दिए.

आशीष और शीतल ने भी मामले के लिए एक वकील को तय किया. वकील को पता चला कि इस मामले में आशीष का पक्ष काफी कमजोर है, क्योंकि बिना किसी तलाकनामे के उस की दूसरी शादी नहीं हो सकती थी.

बहरहाल, आशीष के  वकील ने यह  तर्क  दिया कि उस की पहली शादी भी कानूनी नहीं थी, इसलिए तलाक का प्रश्न ही कहां उठता है. लेकिन इस तरह  के मामलों में महिला पक्ष को हमेशा प्राथमिकता मिलती है. कोर्ट की तारीखें, सुनवाईर् और तारीखों के मुल्तवी होने का सिलसिला शुरू हो गया. मुसीबतें इतनी बढ़ती गईं कि आशीष और शीतल को पुलिस के छापे के डर से झांसी में 2 बार अपने किराए के घर को बदलना पड़ा.

और आज उन दोनों का ललित श्रीवास्तव के घर में आने का मकसद यही था कि वो सारा सामान, वो सारे दस्तावेज जो ये साबित कर सकते हैं कि शीतल, आशीष के साथ रहती है, कहीं और रखवा दिए जाएं.

‘‘हूं,’’ ललित ने लंबी हुंकार भरी और कहा, ‘‘बेटा, तुम लोग डेजर्ट तो लो, तुम ने तो खाना भी ठीक से नहीं खाया, चावल तो लिए ही नहीं.’’

दरअसल, ललित खुद सोचविचार में पड़ गए थे. उन्हें आशीष और शीतल को देने के लिए उपयुक्त सलाह तुरंत नहीं सूझ रही थी. औपचारिक बातें कर के अपने मन को सोचने का कुछ समय देना चाह रहे थे. बोले, ‘‘आशीष, कानूनी रास्ते से मुझे कुछ समाधान निकलता नजर नहीं आ रहा है. फिर भी अपने खास मित्र, जो कि वकील हैं, से विचारविमर्श कर के देख लेता हूं.’’

इस बात को 4 ही दिन हुए होंगे कि ललित अपनी निजी कार ले कर आशीष को फोन से इत्तिला कर के उस के घर पर पहुंच गए. तुरंत काम की बात पर आते हुए बोले ‘‘देखो बेटा, मैं ने अपने मित्र से काफी विस्तार में बात की है. कानूनी रास्ते से हम थोड़ा समय अवश्य खरीद सकते हैं लेकिन केस जीत नहीं सकते, समय और पैसे की बरबादी अलग.’’

ये भी पढ़ें- Short Story : बीवी या बौस

‘‘तो अंकल, और कोई रास्ता है?’’ आशीष ने पूछा

‘‘अवश्य, कोई न कोई रास्ता तो निकलेगा ही. अच्छा यह बताओ और जरा सोच कर बताओ कि नौशीन को जीवन में सब से ज्यादा क्या अच्छा लगता था? या कोई ऐसी ख्वाहिश जो वह पूरी करना चाहती थी मगर हो नहीं पा रही थी?’’

‘‘अंकल, नौशीन का एक जबरदस्त सपना था कि वो भारत से दूर विदेश में जा कर जीवन बसर करे. हमारी शादी के बाद भी वह कई बार इस बात को बोलती थी कि हम किसी तरह से अमेरिका या यूरोप में चले जाएं और संपन्नता के साथ वहां जीवन बसर करें. मैं ने इस दिशा में प्रयास भी किया लेकिन मेरी फील्ड में बाहर नौकरी मिलनी मुश्किल थी.’’

ललित उठे और उन्होंने चेहरे पर एक सीमित सी मुसकान ओढ़ ली कि मानो कुछ खोजप्राप्ति हुई हो. फिर जातेजाते बोले, ‘‘आशीष, हम लोगों को कुछ काम करना होगा.’’

उस दिन के बाद से ललित अत्यंत व्यस्त हो गए. सरकारी कार्य के अलावा उन्होंने मानो एक प्रोजैक्ट की परिकल्पना की और फिर उस को पूरा करने के लिए पूरी तरह से जुट गए. आशीष और शीतल इस प्रोजैक्ट में उन के सहायक बन गए. नमिता भी समयसमय पर अपनी सलाह देती रहती थीं. सब यही सोच कर चकित रहते थे कि कैसे इतने ऊंचे ओहदे में रहते हुए भी वे किसी की सहायता के लिए समय निकाल लेते थे.

उन्होंने शादी डौट कौम में नौशीन जैसी एक लड़की की प्रोफाइल पंजीकृत कर दी और फिर तलाश में लग गए. सर्च के लिए जो मानदंड उन्होंने निर्धारित किए वो थे ‘अमेरिका’, ‘मुसलिम’, ‘उच्च वेतन श्रेणी’.

अथक प्रयास का परिणाम, 2 बहुत ही अच्छी प्रोफाइलें ललित और आशीष ने शौर्टलिस्ट कर लीं.

फोन पर ललित ने ही बात की, लड़की के चाचा के रूप में.

बात करने से ही ललित ने अंदाजा कर लिया कि शहजाद नाम के एक विधुर पुरुष से बातचीत आगे बढ़ाना ठीक रहेगा. हालांकि उस की और नौशीन की उम्र में करीब 10-12 साल का अंतर होगा लेकिन उस की परिपक्वता और उस की एक मुसलिम समाज से बीवी खोजने की बेकरारी देखते हुए, ललित ने शहजाद पर ही दांव लगाना ठीक समझा.

शहजाद को सलाह दी गई कि वह नौशीन से सीधे फोन पर बात करे, अपनी इच्छा जाहिर करे और उस से भारत आ कर मिलने का कार्यक्रम बनाए.

निशाना शायद सही जगह पर लगा था. 2 महीने के अंतराल में शहजाद, जिस का सैनफ्रांसिस्को में खुद का व्यवसाय था, ने भारत के 2 चक्कर लगा लिए. शहजाद और ललित के बीच में बात तय हो चुकी थी कि शहजाद उसे इस अंकल के बारे में तभी बताएगा जब उस का नौशीन से संबंध भलीभांति स्थपित हो जाएगा. और ऐसा ही हुआ अब शहजाद और नौशीन ने एकदूसरे के साथ बंधने का फैसला लिया, शहजाद ने नौशीन की बेसब्री तोड़ और अंकल ललित के बारे में बतलाया.

शहजाद ने न केवल नौशीन की बात ललित अंकल से करवाई बल्कि मोबाइल की उसी बातचीत में ललित को उन के निकाह पर आने का न्योता भी दे दिया. और कुछ ही रोज के बाद नौशीन का शहजाद के साथ लखनऊ के आलमबाग स्थित एक घर में मुसलिम रीति के साथ निकाह हुआ. ललित वहां मौजूद थे. उन्होंने दोनों को मुबारकबाद भी दी और जीवनभर प्यार से साथ रहने की सलाह भी.

नौशीन ने पूछ ही लिया, ‘‘अंकल, अब तो बता दीजिए कि आप कौन हैं? और हमारी मदद क्यों करना चाहते थे.’’

‘‘मैं बस तुम्हारी और आशीष की जिंदगी में खूब सारी खुशियां भर देने के लिए आया हूं. और किसी को खुशियां बांटने के लिए वक्त वजह नहीं ढूंढ़ा करता,’’ ललित ने हलकी सी मुसकराहट के साथ कहा.

‘‘तो आप वो महान शुभचिंतक हैं,’’ नौशीन बोली.

‘‘नहीं बेटा, मैं एक सामान्य इंसान हूं और कोशिश करता रहता हूं कि इंसानियत कायम रहे,’’ यह कह कर ललित वहां से चल दिए.

कुछ ही दिनों में नौशीन ने एक खत लिख कर आशीष को अपनी बंदिशों से मुक्त कर दिया. उसे नौशीन के वकील से भी एक पत्र मिला जिस के द्वारा वह कानूनीतौर से भी सभी इल्जामों से मुक्त हो गया.

नौशीन अपनी आगे की जिंदगी जीने को अमेरीका रवाना हो गई, आशीष और शीतल की खुशियां फिर से वापस आ गईं हमेशा के लिए.

वे लमहे : मारिया ने किससे की शादी

आस पूरी हुई : सोमरू और कजरी की क्या थी इच्छा

रमेश्वर आज अपनी पहली कमाई से सोमरू के लिए नई धोती और कजरी के लिए  चप्पल लाया था. अपनी मां को उस ने कई बार राजा ठाकुर के घर में नईनई लाललाल चप्पलों को ताकते देखा था. वह चाहता था कि उस के पिता भी बड़े लोगों की तरह घुटनों के नीचे तक साफ सफेद धोती पहन कर निकलें, पर कभी ऐसा हो न सका था.

कजरी ने धोती और चप्पल संभाल कर रख दी और बेटे को समझा दिया कि कभी शहर जाएंगे तो पहनेंगे. गांव में बड़े लोगों के सामने सदियों से हम छोटी जाति की औरतें चप्पल पहन कर नहीं निकलीं तो अब क्या निकलेंगी.

कजरी मन ही मन सोच रही थी कि इन्हीं चप्पलों की खातिर राजा ठाकुर के बेटे ने कैसे उस से भद्दा मजाक किया था और घुटनों से नीचे तक धोती पहनने के चलते भरी महफिल में सोमरू को नंगा किया गया था. कजरी और सोमरू धौरहरा गांव में रहते थे. सोमरू यानी सोनाराम और कजरी उस की पत्नी.

सोमरू कहार था और अपने पिता के जमाने से राजा ठाकुरों यहां पानी भरना, बाहर से सामान लाना, खेतखलिहानों में काम करना जैसी बेगारी करता था.

राजा ठाकुरों की गालीगलौज, मारपीट  जैसे उस के लिए आम बात थी. कजरी भी उस के साथसाथ राजा ठाकुरों के घरों में काम करती थी.

ये भी पढ़ें- पाखंडी तांत्रिक

कजरी थी सलीकेदार, खूबसूरत और फैशनेबल भी. काम ऐसा सलीके से करती थी कि राजा ठाकुरों की बहुएं भी उस के सामने पानी भरती थीं.

एक दिन आंगन लीपते समय कजरी घर की नई बहू की चमचमाती नईनई चप्पलें उठा कर रख रही थी कि राजा ठाकुर के बड़े बेटे की नजर उस पर पड़ गई. उस ने कहा, ‘‘कजरी, चप्पल पहनने का शौक हो रहा है क्या…? बोलो तो तुम्हारे लिए भी ला दें, लेकिन सोमरू को मत बताना. हमारीतुम्हारी आपस की बात रहेगी.

‘‘तुम्हारे नाजुक पैर चप्पल बिना अच्छे नहीं लगते. सब के सामने नहीं पहन सकती तो क्या हुआ… मेरा कमरा है न… रात को मेरे कमरे में पहन कर आ जाना. कोई नहीं देखेगा मेरे अलावा.’’

कजरी का मन हुआ कि चप्पल उस के मुंह पर मार दे, पर क्या करती… एक भद्दी सी गाली दे कर चुप रह गई. कजरी आंगन लीप कर हाथ धोने बाहर जा रही थी तभी देखा कि राजा साहब सोमरू को बुला रहे थे.

सोमरू घर के बाहर झाड़ू लगा रहा था. राजा ठाकुर भरी महफिल के सामने गरजे, ‘‘अबे सोमरू, बहुत चरबी चढ़ गई है तुझे. कई दिन से देख रहा हूं तेरी धोती घुटनों से नीची होती जा रही है. राजा बनने का इरादा है क्या?

‘‘जो काम तुम्हारे बापदादा ने नहीं किया, तुम करने की जुर्रत कर रहे हो? लगता है, जोरू कुछ ज्यादा ही घी पिला रही है…’’ और राजा साहब ने सब के सामने उस की धोती खोल कर फेंक दी.

भरी सभा में यह सब देख कर लोग जोरजोर से हंसने लगे. एक गरीब आदमी सब के सामने नंगा हो गया था. सोमरू को तो जैसे काठ मार गया.

सोमरू इधरउधर देख रहा था कि कहीं कजरी उसे देख तो नहीं रही. दरवाजे के पीछे खड़ी कजरी को उस ने खुद देख लिया. वह जमीन में गड़ गया.

कजरी दरवाजे की ओट से सब देख रही थी. शरीर जैसे जम सा गया था. वह जिंदा लाश की तरह खड़ी थी.

कजरी और सोमरू एकदूसरे से नजरें नहीं मिला पा रहे थे. आखिर क्या कहते? कैसे दिलासा देते? दोनों अंदर ही अंदर छटपटा रहे थे.

कजरी ने सोमरू की थाली जरूर लगाई, पर वह रातभर वैसी ही पड़ी रही. दोनों पानी पी कर लेट गए, पर नींद किस की आंखों में थी? उन का दर्द इतना साझा था कि बांटने की जरूरत न थी.

कजरी का दर्द पिघलपिघल कर उस की आंखों से बह रहा था, पर सोमरू… वह तो पत्थर की मानिंद पड़ा था. कजरी के सामने बारबार अपने पति का भरी सभा में बेइज्जत किया जाना कौंध जाता था और सोमरू को कजरी की डबडबाई आंखें नहीं भूल रही थीं.

कजरी और सोमरू की जिंदगी यों ही बीत रही थी. बेटे रमेश्वर को उन्होंने जीतोड़ मेहनतमजदूरी, कर्ज ले कर पढ़ाया लिखाया था.

सोमरू चाहता था कि उस के बेटे को कम से कम ऐसी जलालत भरी जिंदगी न जीनी पड़े. जिंदा हो कर भी मुरदों जैसे दिन न काटने पड़ें.

रमेश्वर पढ़लिख कर एक स्कूल में टीचर हो गया था और शहर में ही रहने लगा था. सोमरू चाहता भी नहीं था कि वह गांव लौटे. उन का बुढ़ापा जैसेतैसे कट ही जाएगा, पर बेटा खुशी और इज्जत से तो रहेगा.

सोमरू की एक आस मन में ही दबी थी कि वह और कजरी साथ घूमने जाएं.  कजरी अपनी मनपसंद चप्पल पहन कर उस के साथ शहर की चिकनी सड़क पर चले, जो रमेश्वर उस के लिए लाया था.

सोमरू अपने मन की आस किसी के सामने कह भी नहीं सकता था और कजरी को तो बिलकुल भी नहीं बता सकता था. कहां खाने के लाले पड़े थे और वह घूमने के बारे में सोच रहा है.

जमुनिया ताल के किनारे कजरी एक दिन बरतन धो रही थी. सोमरू भी वहीं बैठा था. उस दिन सोमरू ने अपने मन की बात कजरी को बताई, ‘‘बुढ़ापा आ गया  कजरी, पर मन की एक हुलस आज तक पूरी न कर पाया. चाहता था कि कसबे में चल रहे मेले में दोनों जन घूम आएं.’’

सोमरू एक बार उसे चप्पल पहने देखना चाहता था, जैसे नई ठकुराइन अपने ब्याह में पहन कर आई थीं.

रमेश्वर कितने प्यार से लाया था अपनी पहली कमाई से, पर इस गांव में यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी. जिंदगी बीत गई. अब जाने कितने दिन बचे हैं. एक बार मेला भी देख लें. कितना सुना है उस के बारे में. यह इच्छा पूरी हो जाए, फिर चाहे मौत ही क्यों न आ जाए, शिकायत न होगी.

कजरी को लगा कि सोमरू का दिमाग खिसक गया है. यह कोई उम्र है चप्पल पहन कर घूमने की. सारी जिंदगी नंगे पैर बीत गई. जब उम्र थी तब तो कभी न कहा कि चलो घूम आएं. अब बुढ़ापे में घूमने जाएंगे. उस समय तो कजरी ने कुछ न कहा, पर कहीं न कहीं सोमरू ने उस की दबी इच्छा जगा दी थी.

रात में कजरी सोमरू को खाना खिलाते समय बोली, ‘‘कहते तो तुम ठीक ही हो. जिंदगीभर कमाया और इस पापी पेट के हवाले किया. कुछ पैसा जोड़ कर रखे थे कि बीमारी में काम आएगा, पर लगता है कि अब थोड़ा हम अपने लिए भी जी लें, खानाकमाना तो मरते दम तक चलता ही रहेगा. पेट ने कभी बैठने दिया है इनसान को भला?’’

ये भी पढ़ें- कितने झूठ : क्या थी विकास की असलियत

दोनों ने अगले महीने ही गांव से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर ओरछा के मेले में जाने की योजना बनाई.

पूरे महीने दोनों तैयारी करते रहे. पैसा इकट्ठा किया. कपड़ेलत्ते संभाले. गांव वालों को बताया. बेटों को बताया. नातेरिश्तेदारों को खबर की कि कोई साथ में जाना चाहे तो उन के साथ चले. आखिर कोई संगीसाथी मिल जाएगा तो भला ही होगा. जाने का दिन भी आ गया, पर कोई तैयार न हुआ.

गांव से 4 किलोमीटर पैदल जा कर एक कसबा था, जहां से ओरछा के लिए सीधी ट्रेन जाती थी. दोनों बूढ़ाबूढ़ी भोर में ही गांव से पैदल चल दिए.

स्टेशन तक पहुंचतेपहुंचते सूरज भी सिर पर आ गया था. 11 बजे दोनों ट्रेन में खुशीखुशी बैठ गए. आखिर बरसों की साध पूरी होने जा रही थी.

कजरी घर से ही खाना बना कर लाई थी. दोनों ने खाया और बाहर का नजारा देखतेदेखते जाने कब सफर पूरा हो गया, पता ही न चला.

रात में दोनों एक धर्मशाला के बाहर ही सो गए. अगले दिन सुबह मेले में शामिल हुए. पूरा दिन वहीं गुजारा. कजरी ने एकसाथ इतनी दुकानें कभी न देखी थीं. हर दुकान के सामने खड़ी हो कर वह वहां रखे चमकते सामान को देखती और अपनी गांठ में बंधे रुपयों पर हाथ फेरती. दुकान में घुस कर दाम पूछने की हिम्मत न पड़ती.

एक दुकान में दुकानदार के बहुत बुलाने पर सोमरू और कजरी घुसे. कजरी वहां रखी धानी रंग की चुनरी देख कर पीछे न हट सकी.

सोमरू ने उस के लिए डेढ़ सौ रुपए की वह चुनरी खरीद ली और दुकान से बाहर आ गए. अब सोमरू के पास कुछ ही पैसे बचे थे. वह सोच रहा था कि कजरी के पास भी कुछ रुपए होंगे. उस ने पूछा तो कजरी ने हां में सिर हिला दिया.

कजरी ने जातबिरादरी में बांटने के लिए टिकुली, बिंदी, फीता, चिमटी के अलावा और भी बहुत सा सामान खरीदा. आखिर वह इतने बड़े मेले में आई थी. पासपड़ोसी, नातेरिश्तेदार सब को कुछ न कुछ देना था. खाली हाथ वापस कैसे जाती.

कजरी आज जब चप्पल पहन कर चल रही थी, सोमरू को रानी ठाकुराइन के गोरेगोरे महावर सजे पैर याद आ गए. कजरी के पैर आज भी गोरे थे और सुहागन होने के चलते महावर उस के पैरों में हमेशा लगा रहता था.

कजरी लाललाल चप्पल पहन कर जैसे आसमान में उड़ रही थी. आज उसे किसी के सामने चप्पल उतारने की जरूरत न थी. लोग उसे देख रहे थे और वह लोगों को.

सोमरू ने आज घुटनों तक धोती पहनी थी. वह आज इतना खुश था, जितना अपनी शादी में भी न हुआ था.

आज 70 बरस की कजरी उस के साथसाथ पक्की सड़क पर सब के सामने लाललाल चप्पल पहने, धानी रंग की चुनरी ओढ़े ठाट से चल रही थी, मानो किसी बड़े घर की नईनई बहू ससुराल से मायके आई हो.

सोमरू आज अपनेआप को दुनिया का सब से रईस आदमी समझ रहा था. दोनों घर वापस जाने के लिए स्टेशन आ गए. रात स्टेशन पर ही बितानी थी. ट्रेन सवेरे 5 बजे की थी. दोनों ने पास में बंधा हुआ खाना खाया और वहीं स्टेशन पर आराम करने लगे.

सोमरू सुबह टिकट लेने के लिए उठा. कजरी से बोला, ‘‘पैसे निकाल. टिकट ले लिया जाए. ट्रेन के आने का समय भी हो रहा है.’’

दोनों ने अपनेअपने पैसे निकाले और गिनने लगे. टिकट के लिए 40 रुपयों की जरूरत थी और दोनों के पास कुलमिला कर 38 रुपए ही हुए. अब वे क्या करें?

दोनों बारबार कपड़े, झोले को झाड़ते, सामान झाड़झाड़ कर देखते, कहीं से 2 रुपए निकल जाएं. पर पैसे होते तब न निकलते.

दोनों ऐसे भंवर में थे कि न डूब रहे थे, न निकल रहे थे. धीरेधीरे लोग उन के आसपास इकट्ठा होने लगे थे.

दरअसल, रात को सोमरू ने 2 रुपए का तंबाकू खरीदा था और अब टिकट के लिए पैसे कम पड़ रहे थे.

कजरी की आंखों से आग बरस रही थी. उस ने सोमरू को गुस्से में कहा, ‘‘अब क्या करोगे? टिकट के लिए पैसे कम पड़ गए. अब घर क्या उड़ कर जाएंगे? तुम्हारी तंबाकू की लत ने…’’

ये भी पढ़ें- Short Story : कबीरदास दुखी, कबीरदास सुखी

बेचारा सोमरू क्या करे. जिस दर्द को वह पूरी जिंदगी ढोता रहा, उस ने आज इतनी दूर आ कर भी उस का पीछा नहीं छोड़ा था. कभी अपने आसपास लगी भीड़ को देखता, तो कभी अपनी बूढ़ी पत्नी को.

सोमरू का मन पछतावे से इस तरह छटपटा रहा था जैसे वह पूरे समाज के सामने चोरी करता पकड़ा गया हो. आज फिर 2 रुपयों ने सब के सामने उसे नंगा कर दिया था.

Short Story : बीवी या बौस

मैंने अपनी जिद पर लव मैरिज की थी, इसीलिए विदाई के वक्त ससुरजी ने कहा था, ‘‘जमाई बाबू, अभी तो मैं अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहता था, लेकिन आप के प्यार के आगे मुझे झुकना पड़ा. खैर, बेटी को मैं ने अच्छे संस्कार दिए हैं, इसलिए आप की जिंदगी की बगिया हमेशा गुलजार रहेगी.’’

मैं ने ससुरजी के चरण छू कर कहा था, ‘‘जब तक मेरी इन बाजुओं में दम है, आप की बेटी राज करेगी.’’

और इस तरह बिना एक फूटी कौड़ी दिए ससुर साहब ने अपनी सुपुत्री मुझे सौंप दी और मैं अपनी बीवी को ले कर दिल्ली की एक बस्ती में आ गया.

जब मेरी मासूम सी बीवी ने मेरे घर में पहला कदम रखा था, तो मैं बहुत खुश हुआ था. सोचा था कि अब मुझे कष्ट नहीं होगा. समय पर नाश्ताखाना मिलेगा. जब दफ्तर से लौट कर आऊंगा तो बीवी मुझे प्यार करेगी. लेकिन मेरे सपने धरे के धरे रह गए.

एक दिन मैं ने दफ्तर से लौटते समय अपनी बीवी को फोन किया, ‘‘क्या कर रही हो?’’

‘कुछ नहीं, लेकिन आप कब आ रहे हैं?’ उधर से आवाज आई.

मुझे बहुत भूख लगी थी. मैं ने सोचा कि वह खाना बना कर रखेगी, इसीलिए मेरे आने के बारे में पूछ रही है. मैं ने कहा, ‘‘प्रिये, कुछ लजीज खाना बनाओ. मैं दफ्तर से निकल रहा हूं. एक घंटे में पहुंच जाऊंगा.’’

‘ठीक है,’ वह बोली.

मैं रास्तेभर गाना गुनगुनाते हुए घर पहुंचा. मैं खुश था कि घर पहुंचते ही गरमागरम लजीज खाना मिलेगा. मैं ने घंटी बजा दी लेकिन दरवाजा नहीं खुला. फिर 1-2 बार बजा कर इंतजार किया. फिर भी दरवाजा नहीं खुला तो कई बार घंटी बजाई. तब जा कर दरवाजा खुला.

ये भी पढ़ें- बदबू : कमली की अनोखी कहानी

‘‘क्यों, क्या हो गया? देर क्यों हुई दरवाजा खोलने में,’’ मैं ने पूछा.

वह अपने चेहरे पर लटक रहे बालों को समटते हुए बोली, ‘‘कुछ नहीं, जरा आंख लग गई थी.’’

घर का सामान सुबह जिस हालत में था वैसे ही अभी भी पड़ा था. सुबह जिस प्लेट में मैं ने नाश्ता किया था वह वैसे ही जूठी डाइनिंग टेबल पर पड़ी थी. धोने के लिए गंदे कपड़ों का ढेर एक कोने में मुंह चिढ़ा रहा था. फर्श पर धूल की परत थी. रसोईघर में जूठे बरतनों का ढेर लगा था.

लजीज खाना खाने का मेरा सपना चकनाचूर हो गया था. वह मासूमियत से हुस्न के हथियार के साथ अनमने ढंग से मुझे देख रही थी. मैं खून का घूंट पी कर रह गया.

कुछ दिनों के बाद एक सुबह मैं दफ्तर के लिए निकल रहा था, तो वह बोली, ‘‘सुनिएजी, मेरे मोबाइल फोन में बैलेंस खत्म हो गया है. बैलेंस डलवा दीजिएगा.’’

मैं ने चौंक कर कहा, ‘‘बैलेंस कैसे खत्म हो गया… कल ही तो 2 सौ रुपए का रीचार्ज कराया था?’’

‘‘कल मैं ने मम्मीपापा से बात की थी और बूआ से भी बात की थी…

2-3 सहेलियों से भी बात की थी…’’ वह थोड़ा अटकते हुए बोली.

‘‘तो इतनी ज्यादा बात करने की क्या जरूरत थी? सिर्फ हालचाल पूछ लेती और बात खत्म कर देती,’’ मैं ने कहा.

‘‘हालचाल ही तो पूछा था,’’ वह बोली.

मुझे दफ्तर के लिए देर हो रही थी. मैं ने कहा, ‘‘अच्छा, ठीक है, बैलेंस डलवा दूंगा,’’ कह कर मैं घर से निकल गया. मेरे सपनों का महल टूटता जा रहा था.

इसी बीच उसे एक नया शौक सूझा. अब वह टैलीविजन का रिमोट हाथ में लिए सीरियल देखती रहती थी. कुछ कहता तो भी सीरियल में ही खोई रहती. जोर से बोलने पर वह मेरी तरफ देख कर पूछती, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘दफ्तर से थकाहारा आया हूं. पानी और नाश्ते के लिए भी नहीं पूछती और कहती हो कि क्या हुआ…’’

‘‘अच्छा, अभी 5 मिनट में लाती हूं. सीरियल अब खत्म होने ही वाला है,’’ टैलीविजन पर से आंखें हटाए बिना वह जवाब देती.

उस के वे 5 मिनट कभी खत्म नहीं होते. मजबूरन मैं खुद ही रसोईघर में जा कर कुछ खाने को ले आता. खुद भी खाता और अपनी बीवी को भी खिलाता.

महीनों सीरियल प्रेम दिखाने के बाद मेरी बीवी का पासपड़ोस की औरतों के घरों में आनेजाने और गपबाजी का दौर शुरू हुआ.

मैं दफ्तर से आ कर दरवाजे की घंटी बजाता रहता लेकिन दरवाजा नहीं खुलता. जब फोन करता तो पता चलता कि वह किसी पड़ोसन के घर बैठी है.

जल्द ही मेरी बीवी का पड़ोसन के घरों में जाने का साइड इफैक्ट भी शुरू हो गया. दूसरों के घरों में कुछ नई और अच्छी चीजें देख कर आती और मुझे भी वे चीजें लाने को कहती. कुछ तो अपनी जरूरत और पैसे की सीमा को देखते हुए मैं ले भी आया लेकिन अकसर ऐसी डिमांड होने लगी.

कुछ मेरी चादर से बाहर होता तो मैं मना कर देता. वह मुंह फुला कर बैठ जाती. खाना जैसेतैसे बना कर लाती, जो खाया न जाता.

एक दिन मैं ने उसे समझाया, ‘‘प्रिये, सब की जरूरत और औकात अलग होती है और उसी के मुताबिक सब काम करते हैं. दूसरों को देख कर हमें परेशान नहीं होना चाहिए.’’

‘‘हां, मेरी किस्मत ही खराब है, तभी तो सारी अच्छी चीजें दूसरों के घर देखती हूं. अपने घर में नसीब कहां?’’ वह बुझी आवाज में बोली.

‘‘निराश क्यों होती हो? समय आने पर हमारे यहां भी सबकुछ हो जाएगा. सब एक दिन में तो अमीर नहीं हो जाते. इस में समय लगता है,’’ मैं ने कहा.

‘‘मैं बोझ हो गई थी, इसीलिए मेरे मम्मीपापा ने जल्दी मेरी शादी करा दी,’’ यह कहते ही उस की आंखों से आंसू टपकने लगे.

‘‘लेकिन यह शादी तो हम दोनों के बीच प्यार होने के चलते हुई थी.’’

‘‘तो क्या हुआ? मैं नादान थी, लेकिन मेरे मम्मीपापा को तो अक्ल थी. मुझे बोझ समझ कर उन्होंने मेरा निबटारा कर दिया.’’

‘‘खैर, देर से शादी होती तो क्या कोई टाटा, बिरला या मुकेश अंबानी का बेटा आ जाता रिश्ता ले कर?’’ गुस्से में मेरे मुंह से निकला.

ये भी पढ़ें- Short Story : कबीरदास दुखी, कबीरदास सुखी

‘‘कोई भी आता लेकिन आप से अच्छा आता,’’ उस ने जवाब दिया.

मैं ने चुप रह जाना ही ठीक समझा.

रविवार का दिन था. मैं ने सोचा कि आज आराम करूंगा. रोज अपने दफ्तर में बौस की और्डरबाजी से परेशान रहता हूं. कम से कम आज तो आराम कर लूं.

मैं ने बीवी से कहा, ‘‘जानेमन, आज कुछ अच्छा खाना बनाओ ताकि खा कर मजा आ जाए. मैं आज टैलीविजन पर फिल्म देखूंगा और आराम करूंगा.’’

लेकिन मेरी बीवी का खयाल कुछ और ही था. वह बोली, ‘‘चलिए न आज कहीं बाहर घूमने चलते हैं और होटल में खाना खाते हैं.’’

मैं ने घबरा कर कहा, ‘‘कहां घूमने चलेंगे? कोई अच्छी जगह नहीं है. भीड़भाड़ और गाडि़यों के जाम में ही फंसे रहे जाते हैं और होटल का खाना तो ऐसा होता है कि खाने के बाद पछतावा होने लगता है कि क्यों खाया.

‘‘खाने का कोई स्वाद नहीं होता. सिर्फ ज्यादा पैसे और टिप दो. शाम को हैरानपरेशान हो कर घर लौटो.’’

‘‘आप तो हमेशा ऐसे ही बोलते हैं. शादी के बाद हनीमून पर भी बाहर नहीं ले गए,’’ वह बिस्तर पर लेट कर आंसू बहाने लगी.

छुट्टी का मजा खराब हो चुका था. मैं खुद रसोईघर में जा कर कुछ स्वादिष्ठ खाना बनाने की कोशिश करने लगा.

एक बार पड़ोस में शादी थी. मुझे भी सपरिवार न्योता मिला था. दफ्तर से आ कर मैं ने अपनी बीवी से कहा, ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ. सब इंतजार कर रहे होंगे.’’

लेकिन बहुत देर बाद भी वह अपने कमरे से बाहर न निकली. मैं कमरे में गया तो देखा कि वह तकिए में मुंह छिपा कर रो रही थी.

‘‘अरे, क्या बात हो गई… रो क्यों रही हो?’’ मैं ने घबरा कर पूछा.

वह कुछ न बोली. मैं ने जबरदस्ती उसे खींच कर बैठाया और फिर वजह पूछी.

‘‘न्योते में जाने लायक मेरे पास कपड़े नहीं हैं. मैं क्या पहन कर जाऊंगी?’’ वह सुबकते हुए बोली.

मैं हैरान रह गया. मैं रोज दफ्तर आताजाता हूं. लेकिन मेरे पास सिर्फ 2 जोड़ी ढंग के कपड़े थे, जबकि मेरी बीवी के पास कई जोड़ी कपड़े थे. 2 महीने पहले भी उस ने एक सूट खरीदा था, फिर भी वह रो रही थी.

मैं ने अलमारी में से उस के कई कपड़े निकाले और उस के आगे फैलाते हुए कहा, ‘‘ये सारे तो नए सूट हैं, फिर क्यों रो रही हो?’’

‘‘ये सब तो मैं पहले पहन चुकी हूं,’’ वह मुंह फेर कर बोली.

‘‘तुम कहना क्या चाहती हो? जो कपड़ा एक बार पहन लिया, वह पुराना हो गया क्या?’’ मैं ने पूछा.

‘‘ये कपड़े पहने हुए मुझे सब औरतें देख चुकी हैं.’’

‘‘मतलब, हर मौके लिए तुम्हें नए कपड़े चाहिए?’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘कोई कपड़े से बड़ा या छोटा नहीं होता. देखो तो, यह सूट कितना अच्छा है. तुम पहन कर तो देखो. जो इस सूट में तुम्हें देखेगा, तारीफ करेगा,’’ मैं ने पुचकारते हुए कहा.

उस दिन मैं बड़ी मुश्किल से अपनी बीवी को मना पाया था.

लेकिन अब मेरी सीधीशांत दिखने वाली बीवी बातबात पर गुस्सा करने लगी थी. सीरियल देखने से मना करता तो रिमोट पटक देती. पासपड़ोस में ज्यादा जाने से मना करता तो गुस्से में अपने को कमरे बंद कर लेती.

फोन पर ज्यादा बात करने से मना करता तो कई दिन तक मोबाइल फोन नहीं छूती. इतना ही नहीं, अगर मैं उस के बने खाने की शिकायत करता तो मुझे पर ही चीखने लगती और खाना बनाना छोड़ देती.

मैं तंग आ गया था. सोचता कि शादी से पहले कितनी सीधी और प्यारी थी मेरी बीवी, पर अब तो ज्वालामुखी बन गई है और गुस्सा तो जैसे इस की नाक पर बैठा रहता है.

दफ्तर में मेरा बौस काम में कमी निकाल कर मुझ पर बातबात पर गुस्सा करता था. लेकिन नौकरी तो करनी ही थी, उसी से घर का गुजारा चलता था, इसीलिए बौस का गुस्सा सहना पड़ता था.

घर आता तो बीवी भी मुझ पर ही बातबात पर गुस्सा करती. समझ में नहीं आता कि वह मेरी बीवी है या बौस.

ये भी पढ़ें- कितने झूठ : क्या थी विकास की असलियत

मेरी बीवी और मेरे बौस ने मेरी जिंदगी दूभर कर दी थी. पता नहीं, इन दोनों के चक्रव्यूह से मैं कभी निकल पाऊंगा भी या नहीं.

वे लमहे : भाग 2

पिछले अंक में आप ने पढ़ा

राजेश पानी के जहाज पर ट्रेनिंग अफसर था. वह दूर देशों की यात्रा करता था. एक बार वह अपने सफर में आस्ट्रेलिया पहुंचा. वहां उस की मुलाकात 16 साल की लड़की मारिया से हुई. थोड़े ही वक्त में उन की दोस्ती बहुत गहरी हो गई.

अब पढि़ए आगे…

जहाज खुलने ही वाला था, इसलिए राजेश नीचे नहीं जा सका. मारिया तब तक हाथ हिलाती रही, जब तक कि जहाज तट से दूर नहीं चला गया.

जहाज सागर की ऊंची लहरों पर हिचकोले खा रहा था. राजेश के मन में भी उथलपुथल मची थी. वह सोच रहा था कि मारिया से अब मिलना मुमकिन होगा भी या नहीं, क्योंकि मन ही मन वह उसे चाहने लगा था. खैर, डेढ़ महीने बाद आस्ट्रेलिया के अलगअलग बंदरगाहों से होता हुआ जहाज अब वापसी के सफर पर था.

एक दिन राजेश मैलबौर्न के तट पर खड़ा था. वहां उसे 2 दिन रुकना था. पहले दिन शाम को राजेश क्लब गया. वहां उसे हिंदी गाने सुनने को मिले और उन्हीं गानों पर आस्ट्रेलियन लड़की के साथ डांस किया. पर उस का मन सोच रहा था कि कहीं मारिया मिल जाती, तो यहां एकांत में कुछ मन की बात कह सकता था. पर फिलहाल ऐसा नहीं हुआ और वह जहाज पर लौट गया.

ये भी पढ़ें- Short Story : कबीरदास दुखी, कबीरदास सुखी

राजेश की शिफ्ट सुबह 4 बजे से ले कर 8 बजे तक की थी, पर जब वह सुबह 8 बजे अपने केबिन में लौटा, तो अंदर भीनीभीनी जानीपहचानी खुशबू का एहसास हुआ. उसे लगा, जैसे मारिया आसपास है.

5 मिनट बाद बाथरूम का दरवाजा खुला, तो राजेश हैरान रह गया. मारिया उस के सामने खड़ी थी. राजेश को हैरान होते देख मारिया बोली,  ‘‘क्या हुआ? कहां खो गए? मुझे पहले नहीं देखा क्या?’’

मारिया ने सवालों की झड़ी लगा दी. इस से पहले कि राजेश कुछ बोलता, मारिया ही बोली,  ‘‘न जाने क्यों मेरा मन तुम से मिलने को हो रहा था.’’

राजेश बोला, ‘‘तुम्हें शायद यकीन न हो, पर एडिलेड से विदा होने के बाद से ही मेरे मन में भी अजब सी तड़प हो रही थी और कल रात तो यहां क्लब में मेरी आंखें तुम्हें ही ढूंढ़ रही थीं, पर अचानक तुम यहां…?’’

मारिया बोली,  ‘‘तुम शायद भूल गए हो. मैं ने कहा था कि मेरी आंटी यहां रहती हैं और वे बीमार हैं. सो, यहां चली आई. पेपर में पढ़ा कि तुम्हारा जहाज यहां लगा है, तो सुबहसुबह भागी आई.’’

राजेश बोला, ‘‘बहुत अच्छा किया.’’

‘‘मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. पर मैं यहां इसलिए आई हूं कि कुछ खानेपीने को दोगे?’’ मारिया बोली.

राजेश ने फोन पर 2 लोगों के लिए नाश्ता केबिन में मंगवा लिया और उस से बोला, ‘‘मैं फ्रैश हो कर आ रहा हूं, तब तक कौफी मेकर से कौफी निकालो और कुछ बिसकुट ले लो. आधा घंटे के अंदर नाश्ता आ जाएगा.’’

15 मिनट बाद राजेश फ्रैश हो कर निकला, तो मारिया बोली, ‘‘मुझे भी एक तौलिया देना. मैं भी फ्रैश हो लेती हूं.’’

राजेश ने कहा, ‘‘वहां वार्डरोब में रखा है, ले लो.’’

मारिया तौलिया ले कर बाथरूम में चली गई और जब थोड़ी देर बाद निकली, तो एक बार फिर राजेश की आंखें हैरानी से उसे कुछ देर तक देखती रह गईं. तौलिया उस के गोरे बदन को ढकने में नाकाम हो रहा था.

राजेश के जेहन में मारिया की मां की बात कि ‘उस का पति भारतीय होगा’ बैठ गई थी, जो बारबार उसे झकझोर कर रख देती थी.तभी मारिया ने कहा, ‘‘कहां खो गए? अब तुम 2 मिनट के लिए बाथरूम में जाओ, तब तक मैं कपड़े बदल लेती हूं.’’

इतना बोल कर मारिया छोटा सा बैग, जो वह अपने साथ लाई थी, उस में से अपनी ड्रैस निकाल कर बदली और राजेश को आवाज दे कर बुलाया. तब तक नाश्ता आ चुका था. दोनों नाश्ता करने लगे.

‘‘आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो. मुझे तो कुछकुछ होने लगा है,’’ राजेश बोला.

‘‘अरे वाह, गजब तो तुम लग रहे हो. इस के पहले तो तुम्हें बोलना भी नहीं आता था…’’ बोलते हुए मारिया ने उस के करीब खिसक कर उस का हाथ  अपने हाथ में ले लिया और कहा, ‘‘यहां के आगे जहाज का क्या प्रोग्राम है? मैं तो बस इसी बैग में 2 कपड़े ले कर घर से निकल पड़ी थी. अब मुझे एडिलेड अपने घर ही जाना है. अपने जहाज पर ले चलो न, मैं ने अभी तक जहाज पर सफर नहीं किया है, बस एक दिन का तो सफर है,’’ बोलते हुए मारिया उस से लिपट गई थी.

राजेश ने हलके से उस की पीठ सहलाते हुए कहा,  ‘‘तुम्हारा साथ तो मुझे भी बहुत अच्छा लगता है, पर एडिलेड तक तुम्हारा जहाज से जाना बहुत मुश्किल है.

‘‘तुम्हें इस की इजाजत नहीं मिलेगी. वैसे भी हम पहले जीलांग जा रहे हैं, वहां कुछ घंटे रुक कर फिर एडिलेड जाना होगा.’’

‘‘जीलांग तो बिलकुल पास ही है. करीब सवा घंटे की दूरी है. वहीं तक मुझे ले चलो न, फिर मैं ट्रेन पकड़ कर अपने घर चली जाऊंगी,’’ मारिया बोली.

राजेश उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘इस के लिए भी मुझे इजाजत लेनी होगी. मैं बौस से बात करूंगा. पर अभी उठो. चलो, डैक पर मौसम अच्छा है. बाद में तुम्हें इंजनरूम दिखाता हूं. खाना केबिन में मंगा लेते हैं.’’

और दोनों बाहर डैक पर दूर एक किनारे खड़े हो कर बातें करने लगे. कुछ देर बाद इंजनरूम घुमा कर मारिया को केबिन में बैठा कर राजेश बोला, ‘‘मैं थोड़ी देर में आता हूं.’’

राजेश जल्द ही अपने केबिन में लौट आया और मुसकराते हुए बोला, ‘‘तुम्हारे लिए खुशखबरी है. तुम जीलांग तक हमारे साथ चल सकोगी. दोपहर 2 बजे हम रवाना होंगे और 4 बजे से पहले ही वहां पहुंच जाएंगे. तब तक हम यहीं आराम करते हैं. तुम बैड पर जाओ, मैं यहीं सोफे पर रहूंगा.’’

इस के बाद वे दोनों अपनीअपनी जगहों पर चले गए. पर थोड़ी देर में मारिया बैड से उठ खड़ी हुई, रेडियो औन किया और कहा,  ‘‘चलो, एक ड्रिंक बनाते हैं, लंच के पहले.’’

‘‘पर तुम तो जानती हो कि मैं नहीं पीता,’’ राजेश बोला, ‘‘तो मैं कौन सा पीती हूं, बस आधा गिलास लेते हैं,’’ फिर दोनों ने बीयर पी.

मारिया ने राजेश का हाथ पकड़ कर कहा  ‘‘चलो, डांस हो जाए. रेडियो पर अच्छी धुन बज रही है.’’

राजेश बोला, ‘‘पर, मुझे तो डांस आता नहीं.’’

वह पलट कर बोली,  ‘‘इसीलिए तो कह रही हूं. कुछ बेसिक स्टैप्स जान लो. तुम्हारे लिए अच्छा होगा. आगे काम आएगा. सेलर्स के लिए डांस जरूरी है.’’

ये भी पढ़ें- बदबू : कमली की अनोखी कहानी

दोनों थोड़ी देर तक डांस करते रहे और बीचबीच में बातें भी. डांस के दौरान दोनों एकदूसरे की कमर में हाथ डाले हुए कभी इतने करीब होते कि तनमन में एक सिहरन दौड़ जाती और पीड़ा सी उठती, जिसे दोनों ने एकदूसरे की आंखों में देखा था.

फिर थोड़ी देर बाद लंच आया, जो दोनों ने साथ लिया. दोनों ने कुछ देर तक केबिन में आराम किया. थोड़ी देर में ही जहाज खुलने वाला था, तभी मारिया बोली, ‘‘चलो, बाहर डैक पर चलते हैं. मैं जहाज को सागर की लहरों पर चलते हुए देखना चाहती हूं.’’

राजेश बोला,  ‘‘5 मिनट बैठो. तुम से कुछ बातें करनी हैं. अभी जहाज के खुलने में कुछ समय है,’’ और वह आगे बोला, ‘‘तुम्हारी मां ने बताया था कि तुम्हारा पति कोई भारतीय ही होगा, तो फिर मैं क्या बुरा हूं?’’

‘‘मां ने सही कहा था. तुम तो मेरे अनुमान से भी अच्छे हो, पर तुम्हीं सोचो कि अभी मेरी उम्र शादी की है क्या? अभी तो मैं 17 साल की भी नहीं हुई हूं, पहले कालेज की पढ़ाई पूरी कर लूं. भारतीय पति का इंतजार जरूर करूंगी.

‘‘हो सकता है कि वह तुम ही हो. पर यह पता नहीं कि तुम कहां होगे. जब लौटते समय एडिलेड आओ, तब मैं वहां नहीं रहूं. उस समय शायद मैं पढ़ाई के सिलसिले में सिडनी में रहूं और तुम से मिल न सकूं. मेरे यहां आने की एक वजह यह भी है,’’ मारिया एकसाथ बिना रुके बोली.

‘‘चलो, मुझे यह जान कर खुशी हुई कि तुम भारतीय पति का इंतजार करोगी. तो एक चांस मैं भी ले सकता हूं,’’ राजेश बोला.

मारिया ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अच्छा रहेगा, टेक ए चांस. फिलहाल तो एक अच्छे दोस्त की तरह दोनों चिट्ठी लिखते रहेंगे.’’

अब दोनों डैक पर आ कर जहाज का खुलना देखते रहे, जब तक वह बीच सागर में नहीं पहुंचा. अब फुल स्पीड में लहरों पर जहाज हिचकोले खा रहा था.मारिया को संतुलन बनाए रखने में कुछ दिक्कत हो रही थी और वह राजेश को जोर से पकड़ लेती.

कुछ देर बाद मारिया को थकान महसूस हुई, तो दोनों वापस केबिन में आ गए. दोनों खामोश थे और मारिया सोफे पर लेटी थी. तब राजेश ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘अब तो जीलांग आने ही वाला है. उठो, तैयार हो जाओ. तुम्हारे लिए एक सरप्राइज है, इसे रख लो,’’ और उस ने एक पर्स पकड़ा दिया.

मारिया ने पर्स खोला, तो बहुत खुश हुई. उस में उन देशों के सिक्के और नोट थे, जहां से हो कर उस का जहाज आया था. उस ने राजेश को भी सोफे पर बैठाते हुए अलसाई सी आवाज में कहा  ‘‘ठीक है, जल्दी क्या है? तैयारी कैसी? बस, एक किलो का बैग ही तो है. शिप को तट पर लगने दो,’’

वे दोनों केबिन की खिड़की से जहाज का तट पर लगना देख रहे थे. जब जहाज लगा, तो अपना बैग उठाया, राजेश को गले लगाया और नीचे उतरी. राजेश भी छोड़ने आया. आखिर में दोनों ने हाथ मिलाया.मारिया के जाने के बाद राजेश जहाज पर चला गया. जहाज वापस करीब एक महीने बाद भारत पहुंचा.

राजेश की आस्ट्रेलिया में मारिया से आखिरी मुलाकात थी. भारत आने पर उस का तबादला दूसरे रूट के जहाज पर हुआ. इस की सूचना उसे दे रखी थी, ताकि मारिया उस के जहाज के पते पर ही चिट्ठी लिखे.

तकरीबन एक साल बाद राजेश ने यह नौकरी छोड़ दी, क्योंकि उस का मन नहीं लग रहा था और उस के मातापिता की भी यही इच्छा थी.राजेश का मन तो मारिया से मिलने के लिए बेचैन रहता था, पर उस के मातापिता उस की शादी करना चाहते थे.

राजेश कुछ महीने तक तो अच्छी नौकरी मिलने का बहाना बना कर टालता रहा. पर अब तो उसे अच्छी नौकरी भी मिल चुकी थी. राजेश अपने मातापिता का कहना टाल न सका.

इस बीच राजेश मारिया को चिट्ठी लिखता रहा और मारिया भी राजेश की चिट्ठियों का जवाब देती रही. यहां तक कि राजेश ने अपनी शादी की सूचना भी दे रखी थी. मारिया ने उसे बधाई दी थी और न आने के लिए माफी भी मांगी थी.

कुछ दिनों बाद उन का पत्राचार भी बंद हो गया. राजेश भी अपनी शादी और नौकरी दोनों से संतुष्ट था. अपनी शादी के तकरीबन ढाई साल बाद उसे पत्नी के साथ आगरा जाने का मौका मिला. दोनों ने ताजमहल में फोटो खिंचवाए. फोटोग्राफर ने एक घंटे बाद आ कर फोटो लेने को कहा.

जब वे अपना फोटो लेने पहुंचे, तो फोटोग्राफर एक जोड़े का फोटो ले रहा था, इसलिए वे थोड़ी दूर ही रुक गए थे. जब वे फोटोग्राफर के निकट आए, तो राजेश को अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था. उस ने पत्नी को बताया, ‘‘यह तो मारिया है और सचमुच इंडियन पति ले आई है.’’

इस बीच मारिया फोटोग्राफर से बात करने में बिजी थी, इसलिए वह उन को नहीं देख सकी थी.राजेश ही उस के पास जा कर बोला  ‘‘मारिया, तुम यहां…’’

मारिया ने नजर उठा कर देखा, तो राजेश को गले लगाया और कहा, ‘‘कितनी हैरानी हो रही है. मैं तो सोच रही थी कि यहीं कहीं तुम मिल जाते. हम यहां हनीमून पर हैं.’’राजेश ने पत्नी से उस का परिचय कराया और मारिया ने भी अपने पति को बुला कर परिचय कराया. फिर चारों ने एक कैफे में बैठ कर कौफी पी.

राजेश ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘तो आखिर तुम ने भारतीय दूल्हा चुन ही लिया.’’

मारिया के पति ने भी चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘इस ने तुम्हारा बहुत इंतजार किया था. तुम न मिले, तो मुझे ही मुरगा बना लिया.’’

‘‘मैं तो आस्ट्रेलिया में ही सैटल हूं, इसे ढूंढ़ने में दिक्कत नहीं हुई.’’

ये भी पढ़ें- कितने झूठ : क्या थी विकास की असलियत

यह सुन कर चारों एकसाथ हंस पड़े.मारिया ने बताया कि आज रात ही वे आस्ट्रेलिया लौट रहे हैं. चारों ने एक साथ होटल में डिनर किया. राजेश ने पत्नी के साथ एयरपोर्ट जा कर मारिया को विदा किया.

मारिया ने जाते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों भी जल्दी आस्ट्रेलिया आओ. मुझे बहुत खुशी होगी.’’

मारिया के पति ने कहा,  ‘‘मुझे भी खुशी होगी.’’इस के बाद वे दोनों हाथ हिलाते हुए हवाईजहाज की ओर बढ़ गए.

वे लमहे : भाग 1

कभी कभी अचानक ही ऐसी बात हो जाती है, जो सोच से परे है. ऐसी ही एक पुरानी घटना का जिक्र पुनीत के एक दोस्त राजेश ने किया.

राजेश तकरीबन 40 साल बाद पुनीत से मिला था. उन दिनों वह एक जहाज में अफसर था और जहाज के साथ भारत से बाहर जाया करता था. जहाज भारत से निर्यात होने वाली चीजें विदेश ले जाता और वापसी में आयात होने वाली चीजें लाता था.

राजेश कालेज से निकल कर जहाज पर नयानया ट्रेनिंग अफसर लगा था. उस का जहाज मुंबई से आस्ट्रेलिया जाता था और रास्ते में मद्रास (अब चेन्नई), कोचीन (अब कोच्चि), सिंगापुर, मलयेशिया, श्रीलंका से भी सामान लाद लेता था, फिर आस्ट्रेलिया के अलगअलग बंदरगाहों से होता हुआ भारत आता था.

राजेश शाकाहारी था और सिगरेट या शराब भी नहीं छूता था. सागर की लहरों पर जबरदस्त उछाल, जिसे रोलिंग व पिचिंग कहते हैं, के चलते उसे वहां के माहौल में ढलने में कुछ हफ्ते लगे. जहाज पर दूसरी सु़विधाओं के साथ अफसरों को केबिन भी दिया जाता था.

राजेश का जहाज श्रीलंका, सिंगापुर, मलयेशिया होता हुआ आस्ट्रेलिया के पश्चिमी पोर्ट (बंदरगाह) फ्रीमैंटल यानी पर्थ पहुंचा.

राजेश सिंगापुर, मलयेशिया या श्रीलंका से बिलकुल प्रभावित नहीं था, क्योंकि उन दिनों वे विकसित नहीं थे, पर आस्ट्रेलिया का एक खास आकर्षण उस के मन में शुरू से था और पर्थ शहर तो उसे बड़ा शानदार लगा था. वहां पहली बार वह अपने दोस्तों के साथ नाइट क्लब में गया था. गोरीगोरी सुंदरियों के साथ उस ने 2-4 डांस स्टैप किए थे. वैसे, शुरू में उसे काफी हिचक हुई थी.

ये भी पढ़ें- पाखंडी तांत्रिक

अब जहाज दूसरे पड़ाव दक्षिणी तट के ऐडिलेड पोर्ट पर था. राजेश पुनीत से कह रहा था कि जहाज पर काम करना बहुत मुश्किल है, इसीलिए जब जहाज किनारा छोड़ चुका होता है, रोजाना 4-4 घंटे की 2 शिफ्ट करनी होती हैं. कोई छुट्टी नहीं. अगर कोई समस्या हुई, तो उस का हल उसी समय मुहैया साधनों से जल्दी करना होता है. ऊपर से मौसम की मार और लहरों पर उछलते जहाज पर अपना बैलैंस बनाए रख कर अपना काम करते रहना चाहिए.

खैर, तीसरे दिन वह ऐडिलेड पहुंचा. अपना काम खत्म कर के वह थोड़ा सैर पर निकला और अकेले ही एक बीच पर जा बैठा. वहां गोरीगोरी सुंदरियां वौलीबाल खेल रही थीं, वे भी सिर्फ बिकिनी में. वहीं थोड़ी देर तक इस नजारे का मजा ले कर वह जहाज पर लौट आया और अपने केबिन में सोफे पर लेट गया. 2 घंटे बाद उस की शिफ्ट थी.

आमतौर पर केबिन का दरवाजा अंदर से बंद नहीं किया जाता. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. उस के ‘कम इन’ बोलने पर दरवाजा खुला तो देखा कि एक लड़की खड़ी थी. उस की उम्र 16 साल के आसपास होगी. वह टाइट जींस और टीशर्ट के ऊपर जैकेट पहने थी. पतली कमर, गोरी टांगें, सुनहरे खुले रेशमी बाल यानी वह काफी हसीन थी.

राजेश पहले तो उसे कुछ देर तक हैरानी से देखता रहा, फिर लड़की के  ‘हाय’ का जवाब ‘हाय’ में दिया. बातचीत की पहल उसी लड़की ने की, ‘‘मैं मारिया, आप कैसे हैं?’’

‘‘मैं राजेश. मैं ठीक हूं, थैंक्स, अंदर आओ और बैठो,’’ सोफे की ओर इशारा कर के राजेश बोला.

‘‘मुझे विदेशी नोट व सिक्के जमा करने का शौक है. साथ ही, भारत के बारे मेंकुछ ज्यादा ही दिलचस्पी है. मैं इस के बारे में कुछ किताबें भी पढ़ चुकी हूं. कलकत्तामें मेरी एक पैनफ्रैंड भी है. मैं आप से भारतीय करंसी मिलने की उम्मीद करती हूं,’’ मारिया एकसाथ सब बोल गई.

इस बीच राजेश सहज हो चुका था. वह बोला,  ‘‘ठीक है, वह तो आप को मिल जाएगी. कुछ लोगी? मैं तो नहीं लेता, पर दोस्तों के लिए रखता हूं.’’

‘‘नहीं. थैंक्स. वैसे, मैं बीयर लेती हूं, पर वह भी कभी खास मौके पर,’’ मारिया बोली.

‘‘मैं भी सीनियर्स के काफी कहने पर पार्टी में 2-4 घूंट बीयर ले लेता हूं. मैं रुपए निकाल रहा हूं, तब तक तुम कोल्ड ड्रिंक पी लो,’’ एक कोल्ड ड्रिंक उस की ओर बढ़ाते हुए राजेश बोला और अलमारी में रखे पर्स से नोट निकालने लगा.

फिर वह 5 और 10 रुपए का 1-1 नोट और कुछ सिक्के ले कर आया और बोला,  ‘‘ये लो इंडियन करंसी. अभी तुम्हारा एक डौलर मेरे 8 रुपए के बराबर है.’’थोड़ी देर तक वे दोनों आपस में बातें करते रहे. कुछ देश की, तो कुछ परिवार की.

राजेश ने पूछा, ‘‘अभी तुम ने कहा था कि तुम्हें भारत में दिलचस्पी है और तुम भारत के बारे में कुछ पढ़ भी चुकी हो. तो तुम क्या जानती हो भारत के बारे में?’’

‘‘जी, बहुत सी बातें. जैसे नमस्ते, धन्यवाद, आप कैसे हैं वगैरह बोल लेती हूं. आप अतिथियों का सत्कार करते हैं, यह भी जानती हूं. वहां की कुछ छोटी कहानियां, कुछ गौड्स के बारे में भी पढ़ा है. पर और भी जानना चाहती हूं,’’ मारिया बोली.

‘‘ठीक है, ऐसा करो कि कल तुम सपरिवार मेरे जहाज पर आना. तुम्हें कुछ और किताबें दूंगा. तुम्हारे मातापिता से मिलनाजुलना भी होगा और साथ में डिनर करेंगे. मुझे तुम अपने घर का फोन नंबर दो. मैं उन से डिनर पर आने के लिए कहूंगा,’’ राजेश बोला.

‘‘ठीक है, मैं मम्मीपापा से बात कर के बता दूंगी, पर आप इस नोट पर अपना साइन कर के इंडिया का पता पैंसिल से लिख दें.

‘‘आप से मिल कर बहुत खुशी हुई. आप बहुत अच्छे हैं और आप से भारतीयों के बारे में जो सुना, वह सही है,’’ इतना कह कर मारिया ने राजेश के हाथ पर एक चुंबन जड़ दिया और केबिन के बाहर जाने के लिए खड़ी हुई.

उन दिनों मोबाइल फोन का जमाना नहीं था. राजेश भी उस के साथ बाहर गैंगवे पर रखे फोन का नंबर नोट कर उसे देते हुए बोला, ‘‘डिनर के बारे में इस नंबर पर बता देना.’’

ये भी पढ़ें- कितने झूठ : क्या थी विकास की असलियत

वह मारिया के साथ नीचे तक आया और हाथ मिला कर विदा किया. उन दिनों जहाज के पोर्ट पर लगने पर एक फोन मिलता था, ताकि अफसर व कारोबारी से बातचीत हो सके.

राजेश ने मारिया के जाते ही उस के घर पर फोन कर के कल अपने जहाज पर डिनर पर आने का न्योता दिया.

काफी मिन्नत के बाद वे तैयार हुए. तकरीबन 2 घंटे बाद मारिया ने भी फोन कर के बताया कि अगले दिन शाम को वह सपरिवार डिनर पर आ रही है.

राजेश ने तुरंत चीफ स्टुअर्ड यानी पैंट्री मैनेजर को फोन कर के कल अपने मेहमानों के लिए कुछ स्पैशल भारतीय खाना खाने के लिए उस की राय ली और फिर बनाने को कहा.

राजेश ने अगले दिन 4 लोगों का डिनर अपने केबिन में ही मंगवा लिया. उसे उम्मीद थी कि मारिया के मातापिता तो शराब लेते होंगे और यह सब डाइनिंग हाल में मुमकिन नहीं था.

अगले दिन शाम के 6 बजे मारिया सपरिवार पहुंची. राजेश ने सभी का गर्मजोशी से स्वागत किया, फिर मारिया ने अपने मातापिता से राजेश का परिचय कराया.

कुछ देर बाद स्नैक्स और ड्रिंक्स शुरू हुआ. एक घंटे तक गपशप चलती रही, फिर सब मेहमानों ने भारतीय खाने की काफी तारीफ की.

जब चलने की बारी आई, तो मारिया ने झट से कहा, ‘‘आप ने मुझे किताबें देने का वादा किया था.’’

राजेश भी इस के लिए तैयार था. कुछ अपनी और कुछ दोस्तों से ली हुई भारत से संबधित किताबें इकट्ठी कर ली थीं. सो, उसे सौंप दीं.

वह उन लोगों को विदा करने जहाज के नीचे तक आया. उन्होंने भी उस से अगले दिन डिनर पर आने का वादा ले लिया, क्योंकि जहाज को 36 घंटे बाद जाना था.

कार स्टार्ट हुई और राजेश खड़ा हाथ हिला रहा था, तभी अचानक कार बंद हुई और मारिया की मां ने राजेश को बुलाया, फिर कार से बाहर आ कर एक गिफ्ट पैकेट उसे देते हुए बोलीं, ‘‘हमें अफसोस है कि यह गिफ्ट कार में रह गया था. बुरा न मानना, एक छोटा सा तोहफा हमारी ओर से.’’

राजेश ने पैकेट लेते हुए उन्हें धन्यवाद के साथ विदा किया.

अगले दिन शाम को राजेश ने मारिया के घर चलने के लिए अपने दोस्त को साथ ले लिया था, क्योंकि उसे अकेले जाने में हिचक हो रही थी. साथ में एक गिफ्ट, जो उस ने सिंगापुर से अपने देश ले जाने के लिए लिया था, मारिया के लिए रख लिया.

एक टैक्सी ली और वे दोनों चल पड़े. मारिया और उस की मां ने उन का स्वागत किया. उस के पिता बाद में आए. मारिया की मां ने बातोंबातों में कहा कि मारिया ने फैसला किया है कि उस का पति एक भारतीय ही होगा.

खैर, खानापीना, गपशप खत्म कर के वे चलने के लिए बाहर निकले. उन्होंने टैक्सी बुला रखी थी.मारिया राजेश को टैक्सी तक छोड़ने आई और उस का हाथ पकड़ कर बोली,  ‘‘तुम कब तक यहां हो? यह मुलाकात हमेशा याद रहेगी,’’ उस की आंखों में हलकी सी उदासी झलक रही थी.

राजेश ने जब बताया कि कल दोपहर बाद उस का जहाज रवाना होगा, तो वह झट से बोली,  ‘‘मैं एक बार फिर मिलने की कोशिश करूंगी. अगर मैं नहीं आ सकी, तो भी आप मेरे दोस्त बने रहना.’’

राजेश हाथ मिला कर टैक्सी में बैठ गया. उस के दोस्त ने रास्ते में कहा,  ‘‘देखना, वह जरूर आएगी.’’

मारिया सचमुच जहाज खुलने से 2 घंटे पहले उस के केबिन में थी. दोनों ने कौफी पी, फिर मारिया ने कहा,  ‘‘देखो, आगे कब मिलना होगा या शायद नहीं भी हो. वैसे, तुम्हारे जहाज का क्या प्रोग्राम है? वापसी में भी यहां आना मुमकिन है क्या?’’

ये भी पढ़ें- Short Story : कबीरदास दुखी, कबीरदास सुखी

राजेश ने जब जहाज का प्रोग्राम बताया और वापसी में भी वहां आना ही होगा कहा, तो वह खुशी से उछल पड़ी और बोली,  ‘‘तब तो एक और मुलाकात होनी तय है. तुम्हारा अगला पड़ाव मैलबौर्न में है. मेरी आंटी वहीं रहती हैं. वे कुछ दिनों से बीमार चल रही हैं.’’

इस के बाद वह गले मिली और हाथ मिला कर जहाज से नीचे उतर गई.

(क्रमश:)

 मारिया कौन थी और राजेश से क्या चाहती थी? क्या उन दोनों की दोबारा मुलाकात हो पाई? पढ़िए अगले अंक में…

पाखंडी तांत्रिक

लेखक – हेमंत कुमार

आज किसी भी इनसान को दिमागी बीमारी होने पर डाक्टरों से ज्यादा तांत्रिको के पास ले जाया जाता है, जिस से उन्हें कोई फायदा तो छोड़ो सिर्फ नुकसान ही होता है. कुछ ऐसा ही नुकसान रिम्मी के साथ भी हो सकता था, अगर वक्त पर विजय न आता. तो चलिए देखते हैं कि क्या हुआ था, उस दिन रिम्मी के साथ…

अचानक रिम्मी को ‘पेरानौयड पर्सनैलिटी डिसऔर्डर’ नाम की बीमारी के कुछ दौरे ही पड़े होंगे कि मां झट से गईं और चप्पल से रिम्मी पर अनगिनत वार करती चली गईं.

हां, हालांकि उन्हें ये बहुत बाद में पता चला कि रिम्मी की यह दौरे पड़ने वाली बात एक बीमारी ही है, जिसे मैडिकल साइंस में ‘पेरानौइड पर्सनैलिटी डिसऔर्डर’ कहा जाता हैं, वरना उस दिन रिम्मी की मां ने तो किसी ऊपरी साए का चक्कर समझ कर उस साए पर चप्पलों की बरसात कर दी थी, जबकि दर्द रिम्मी को सहना पड़ रहा था.

रिम्मी की मां ने उस की इस दौरे पड़ने वाली बात को समाज से छिपाए रखा शायद इसलिए, क्योंकि रिम्मी की शादी 1 साल पहले ही विजय से तय हो चुकी थी.

विजय पढ़ेलिखे परिवार का सुशील और गुणवान लड़का था और पेशे से एक अच्छाखासा बिजनेसमैन भी. रिम्मी और विजय दोनों ही एकदूसरे को कालेज से पसंद भी करते आए थे. ऐसे में मां नहीं चाहती थी कि किसी भी प्रकार से महल्ले वालों को रिम्मी की इस बीमारी के बारे में पता चले और इतना अच्छा ससुराल हाथ से निकल जाए.

ये भी पढ़ें- बुलडोजर : कैसे पूरे हुए मनोहर के सपने

रिम्मी को जब कभी भी ये दौरे पड़ते, उस के थोड़ी देर बाद ही वह अपनेआप शांत हो जाती. उसे बिलकुल भी याद नहीं रहता कि उस के साथ क्या हुआ और उस ने कैसी कैसी हरकतें कीं. पर हुआ वही, जो रिम्मी की मां नहीं चाहती थीं. अब भला रिम्मी के घर से उस के चिल्लाने की अजीबोगरीब आवाज आना, रोनाबिलखना भला कोई कैसे अनसुना कर सकता था.

एक दिन ठेले पर सब्जी लेते वक्त सुनीता आंटी ने पूछ ही लिया, “अरे रिम्मी की मां, सुनो तो जरा, ये रिम्मी को क्या हो गया है. कोई बात है तो बताओ.”

सुनीता आंटी हमारे पड़ोस में ही रहती थीं और इसीलिए बाकी लोगों से ज्यादा उन के साथ रिम्मी की मां के संबंध अच्छे थे.

मां ने अभी तक अपना यह दुख किसी से बांटा नहीं था, शायद इसी वजह से सुनीता आंटी के जरा से पूछ लेने पर उन से रहा नहीं गया और दिल खोल के सारी बात बता दी. उन्हें लगा कि शायद इन के पास इस मुसीबत का कोई समाधान हो.

“अरे, इतनी सी बात के लिए इतना घबरा रही थीं आप. एक बार मुझे पहले ही बता तो दिया होता, अब भला रिम्मी हमारी बेटी नहीं हैं क्या…” सुनीता आंटी के इतना कहने पर रिम्मी की मां को आशा की एक किरण सूझने लगी. उन्हें लगा कि शायद सुनीता आंटी के पास इस समस्या का कोई समाधान जरूर है.

“अरे, मैं ने ऐसी कई लड़कियों को देखा है, जिन के ऊपर ऊपरी चक्कर या अन्य कोई दोष होता है और उस के चलते वह अजीबअजीब सी हरकतें करने लगती हैं.

‘‘डरो मत, मैं एक ऐसे तांत्रिक बाबा को जानती हूं, जो सिर्फ माथा छू कर सारी समस्या की जड़ बता देते हैं,” सुनीता आंटी ने रिम्मी की मां को आश्वासन देते हुए कहा.

मां ने बिना कुछ सोचेसमझे सुनीता आंटी से तांत्रिक के यहां चलने की बात पक्की भी कर ली.

“चलो रिम्मी उठो, जल्दी उठो और तैयार हो जाओ, कहीं जाना है,” मां ने सुबहसुबह ही रिम्मी को नींद से उठा दिया.

‘‘क्या हुआ मां? कहां जाना है? बताओ पहले…” रिम्मी ने लेटेलेटे ही पूछा.

“वो सुनीता आंटी एक तांत्रिक बाबा को जानती हैं. बड़े ही पहुंचे हुए बाबा हैं. वे तुझे देखते ही बता देंगे कि क्या परेशानी है और फिर तेरा इलाज भी कर देंगे,” मां ने बड़ी सरलता से रिम्मी को समझाया.

“मां, आप भी कैसे लोगों की बातों में आ जाती हैं और वो भी आज के जमाने में. आप ने ये कैसे सोच लिया कि मैं आप के साथ चलने को तैयार हो जाऊंगी. हां मेरी उपर वाले में आस्था जरूर है, पर आस्था और पाखंड में बहुत अंतर होता है.”

“बेटी, एक बार चल कर देखने में क्या बुराई है. और क्या पता, किस का तुक्का ठीक बैठ जाए. हमें तो बस तेरे ठीक होने से मतलब है और तेरी शादी को भी तो सिर्फ 6 महीने ही बचे हैं न? उस से पहले ही ठीक होना है न तुझे?” पिताजी भी मां की तुक में तुक मिलाए रिम्मी को समझाने लगे.

रिम्मी भी नानुकुर करतेकरते मान ही गई और तांत्रिक के पास चलने के लिए तैयार हो गई.

तांत्रिक का ठिकाना बड़ा ही घनचक्कर कर देने वाला था. पता नहीं, कितनी पतलीपतली संकरी गलियों के अंदर उस ने अपना घर बना रखा था.

सुनीता आंटी ने मां और रिम्मी को दरवाजे पर ही समझा दिया था कि जाते ही उन बाबा के पैर पकड़ कर आशीर्वाद ले लेना.

रिम्मी ने देखा कि तांत्रिक के घर पर पहले से ही 4-5 जने बैठे हुए हैं. रिम्मी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि आज भी इतने लोग डाक्टरों को छोड़ कर इन पाखंडियों के पास आते हैं, खैर फिलहाल तो मैं भी आई हूं. सोच कर वह चुप ही रह गई, फिर सोचा कि अगर इतने लोग अपना इलाज कराने आए हैं तो अवश्य ही इस तांत्रिक में कोई तो बात जरूर होगी.

तकरीबन 2 घंटे के इंतजार के बाद रिम्मी का नंबर भी आ ही गया. रिम्मी ने इस से पहले कभी किसी तांत्रिक को साक्षात अपनी आंखों से नहीं देखा था, सिर्फ टैलीविजन पर ही देखा था. उस की अपेक्षा थी कि कोई काला कुरतापजामा पहने खोपड़ियों की माला और ढेर सारी अंगूठियां पहने काला टीका लगाए, आग जलाए बैठा होगा, परंतु अंदर जाते ही उस ने देखा कि करीब 40-45 साल का एक व्यक्ति साधारण कपड़ों में अपने सोफे पर बैठा हुआ है. हां, पर अंगूठियां तो उस ने भी पहनी थीं, और माथे पर काला टीका भी लगाया हुआ था.

ये भी पढ़ें- ऐसी जुगुनी

तांत्रिक सुनीता आंटी को जानता था शायद, इसलिए उस ने सब लोगों के लिए चाय और बिसकुट की फौर्मेलिटी भी पूरी करी.

रिम्मी से तांत्रिक ने उस की बीमारी के बारे में विस्तार से पूछा और अंदर बने एक रूम में ले जा कर कुछ जादूटोने कर कई तरह के प्रपंच करने लगा, जिन का रिम्मी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था. फिर रिम्मी को बाहर ले जा कर उस ढोंगी तांत्रिक ने मां को आश्वासन दिलाते हुए कहा, “देखो, किसी भटकती आत्मा ने रिम्मी के शरीर को अपना वास बना लिया है, पर घबराने वाली कोई बात नहीं. ऐसे केस मेरे पास आएदिन आते रहते हैं, मेरे लिए यह कोई बड़ी बात नहीं.”

तांत्रिक अपनी बड़ाई करते थक नहीं रहा था कि अगले ही पल असली मुद्दे पर भी आ गया.

“देखिए, इस तरह की आत्माओं से निबटने के लिए अकसर विशेष पूजा को पूरी विधि से कराने की जरूरत पड़ती है और एक बकरे की बलि भी देनी ही पड़ती है.

‘‘इस पूरे काम में कम से कम 40,000 से 50,000 रुपए का खर्च तो मान के ही चलिए, लेकिन आप लोग चिंता मत करिए, सारी सामग्री की व्यवस्था हम खुद ही कर लेंगे. अगर आप को ठीक लगे तो बताना. आगे की विधि मैं आप को जब ही बताऊंगा.”

रिम्मी चालाकी दिखाते हुए बोली, “बाबाजी, आप बस अपना खर्च बता दीजिए, सामग्री का इंतजाम हम खुद कर लेंगे.”

“नहीं बेटी, यह कोई ऐसीवैसी सामग्री नहीं जो कहीं पर भी मिल जाए. यह सामग्री हमारे सिद्ध गुरुजी की आज्ञा से विशेष विधि से लाई जाती है, इसलिए यह काम तुम हम पर ही छोड़ दो,” तांत्रिक अपना उल्लू सीधा करने के मकसद से बोल रहा था.

सब ने तांत्रिक से अलविदा ली और जैसे ही जाने के लिए मुड़े वैसे ही तांत्रिक ने टोकते हुए कहा, “जी, वो मेरी फीस…’’

फीस के नाम पर उस तांत्रिक ने पहली ही मुलाकात में रिम्मी की मां से 5,000 रुपए ऐंठ लिए.

रिम्मी को तांत्रिक की 5,000 रुपए मांगने वाली बात पर कुछ शक हुआ. वह समझ चुकी थी कि यह सच में तांत्रिक के नाम पर पाखंडी चोर है, पर उस की मां तांत्रिक की बातें आंखें बंद कर मानने लगी थीं.

घर पहुंचते ही रिम्मी के फोन पर विजय का फोन आया, तो वह चुपचाप अपने रूम की ओर निकल गई और मांपिताजी को तांत्रिक की विशेष पूजा वाली बात बताने लगी और भला मां के आगे पिताजी की कभी चली ही नहीं तो अब क्या चलती.

मां और पिताजी ने रिम्मी से कहा कि वह तांत्रिक बाबा से तुम्हारे लिए विशेष पूजा करवाएंगे. रिम्मी ने भी कोई तर्क नहीं किया और बड़ी आसानी से मान गई. मां ने तुरंत तांत्रिक को फोन लगाया और आगे की सारी विधि समझ ली.

तांत्रिक ने उन्हें बताया, “मैं जो पता बताने जा रहा हूं अमावस्या की रात वहां पहुंच जाना, हम रिम्मी के अंदर बैठी उस दुष्ट आत्मा को बोतल में कैद कर अपने साथ ले जाएंगे और रिम्मी को उस दुष्ट आत्मा से हमेशा के लिए मुक्त कर देंगे.”

अमावस्या की रात भी आ चुकी थी. रिम्मी की मां और पिताजी उसे ले कर तांत्रिक के बताए उस पते पर पहुंच गए थे.

तांत्रिक पहले ही रिम्मी के पिताजी से पूरे 50,000 रुपए की दक्षिणा मांग लेता है और रिम्मी को अपने साथ खुफिया कमरे में ले जा कर कहता हैं, “रिम्मी बेटा अब अपने सारे वस्त्र खोल कर इस आसन पर बैठ जाओ, इस विशेष पूजा में तन पर कोई वस्त्र नहीं होना चाहिए वरना वो आत्मा कभी तुम्हारे अंदर से नहीं निकल पाएगी.”

इतना कहते ही रिम्मी ने एक जोरदार तमाचा तांत्रिक के गाल पर जड़ दिया. उतने में ही विजय अपने कई अन्य साथियों के साथ दौड़ता हुआ गेट तोड़ कर उस कमरे में जा घुसा.

रिम्मी के मां और पिताजी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है और जमाई राजा यहां कैसे आ गए, वो भी इतने आदमी ले कर.

विजय ने अंदर पहुंचते ही उस तांत्रिक को पकड़ कर रिम्मी से दूर किया और पीटपीट कर तांत्रिक का बुरा हाल कर दिया.

“पापाजी, शायद आप लोगों को यह नहीं मालूम कि यह कोई तांत्रिक नहीं, बल्कि सब से बड़ा ठग और बदचलन भेड़िया है, जो अपने यहां आए हुए पीड़ितों से जब तक हो सके, तब तक पैसे ऐंठता हैं और आखिर में उन के साथ कुकर्म कर के फरार हो जाता है. यह अब लोगो को लूटने उन के घर नहीं जाता, बल्कि लोग इस के पास खुद आते हैं अपनेआप को लुटवाने के लिए, जैसे आज आप लोग खुद आए हैं इस के पास. ये पाखंडी, लोगो को ठीक करने का झूठा वादा कर उन से हजारों रुपए तक वसूल लेता हैं और फिर किसी और शहर में अपना दूसरा शिकार ढूंढने के लिए निकल जाता है.”

विजय ने उस पाखंडी बाबा की सचाई रिम्मी के पिताजी को बताई, जिसे रिम्मी की मां भी सुन रहीं थीं.

विजय ने बताया, “कई महीने पहले मेरा ये साथी विक्रम ( उन ही लोगों में से एक अपने साथी विक्रम की ओर इशारा करते हुए बोलता है) जो दूसरे शहर में रहता था, इस की पत्नी भी अपना इलाज इस से करवा रही थी, पर इस ने मेरे साथी विक्रम की पत्नी से धीरेधीरे तरहतरह के प्रपंच कर के लाखों रुपए ऐंठ लिए और जब उसे लगा कि और पैसे नहीं मिल सकते जब आखिरी बार उन की पत्नी को ऐसे ही एक क्रियाकर्म के लिए बुलवाया और एक खुफिया कमरे में ले जा कर छेड़छाड़ करने की कोशिश की. किसी तरह से वो अपनी इज्जत बचा कर भाग पाई. उस दिन से इस का उस शहर में कोई पता नहीं लगा.”

‘‘पर, बेटा तुम्हें कैसे पता चला कि हम लोग रिम्मी को ले कर इस तांत्रिक के पास आए हुए हैं,” मां ने विजय से पूछा.

‘‘मांजी जिस दिन आप रिम्मी को पहली बार इस पाखंडी के पास ले कर गई थीं, उस दिन मैं ने रिम्मी से बात करने के लिए फोन लगाया था, तब उस ने मुझ सारी बात बताई.

‘‘रिम्मी ने मुझे इस के बारे में जो कुछ बताया और फीस के 5,000 रुपए के बारे में बताया, तो मेरे दिमाग की बत्ती जली.

‘‘मुझे याद आया कि कहीं यह वही तांत्रिक तो नहीं, जिस की तलाश मेरा साथी विक्रम कई महीनों से कर रहा है. मैं ने तुरंत इस तांत्रिक का स्टिंग आपरेशन करने का प्लान बनाया और फोन पर ही सारी योजना रिम्मी को समझा दी.

‘‘अभी अमावस्या की रात आने में कुछ दिन बाकी थे, मैं ने अपने दोस्त विक्रम को भी प्लेन से जल्दी बुलवा लिया और आज जब आप लोग अपने घर से निकले, तब हम ने आप लोगों का पीछा किया, क्योंकि इस के अड्डे तक हमें सिर्फ आप ही पहुंचा सकते थे, और अपनी योजनानुसार मैं विक्रम और मेरे अन्य साथी गाड़ी में बैठेबैठे रिम्मी की माला पर लगे स्पाई कैमरे से सबकुछ लाइव देख रहे थे और जैसे ही रिम्मी ने इसे तमाचा मारा, हम समझ गए कि कोई बात जरूर है और अंदर इसे दबोचने चले आए.”

इतना कह कर रिम्मी की ओर देखते हुए विजय ने बताया कि मांजी मैं ने रिम्मी की बीमारी के बारे में कुछ दिन पहले ही अपने दोस्त से फोन पर पूछा था, जो लंदन में एक मनोचिकित्सक है. उस ने बताया कि रिम्मी के अंदर किसी आत्मावात्मा का वास नहीं, बल्कि पैरानौयड पर्सनैलिटी डिसऔर्डर की बीमारी है. इस वजह से अकसर रोगी अजीबअजीब सी हरकतें करने लगता है जैसे बहुत गुस्सा आने के कारण अपना आपा खो देना, किसी पर विश्वास न करना वगैरह. यह बीमारी डाक्टर के इलाज से जल्दी ठीक भी हो जाती है,” विजय यह सब बातें बताते वक्त तांत्रिक को क्रोध भारी आंखो से घूरे जा रहा था.

ये भी पढ़ें- पछतावा : आखिर दीनानाथ की क्या थी गलती

तांत्रिक के पास बचने का अब कोई रास्ता नहीं था, क्योंकि अब तो विजय के पास उस की काली करतूत की रिकौर्डिंग भी थी. तांत्रिक ने अब रिम्मी के पैर पकड़ कर ऐसा काम दोबारा न करने की कसम खाई.

विजय ने उस तांत्रिक से रिम्मी के 55,000 रुपए और अपने साथी विक्रम के सभी पैसे सूद समेत वसूल लिए. अपना इलाज कराने आए बाकी लोगों ने भी तांत्रिक का गरीबान पकड़ अपने पैसे मांगे.

बदबू : भाग 1 (क्या थी किसना की गलती)

‘‘इतनी रात गए कहां से आ रहा है? हम सब परेशान हो रहे थे कि शाम से तू किधर है…’’ बापू की यह पूछताछ किसना को अखर गई.

‘‘तुम से चुपचाप सोया भी नहीं जाता है? अरे, जरा मुझे भी सुकून से अपने हिसाब से जीने दो,’’ किसना की तल्खी देख बापू समझ गए कि उन का बेटा जरूर कोई तीर मार कर आया है.

‘चलो, इस निखट्टू ने आज कुछ तो किया,’ यह सोचते हुए बापू नींद के आगोश में गुम हो गए.

कमरे में कमली अधनींदी सी लेटी हुई थी. आहट सुन कर वह उठ बैठी. देखा कि किसना ने कुछ नोट निकाले और उन्हें अलमारी में रखने लगा. कमली की आंखें खुशी से चमक उठीं. उसे लगा कि 2 महीने ईंटभट्ठे पर काम करने की तनख्वाह आखिरकार किसना को मिल ही गई. कमली को पलभर में जरूरतों की झिलमिल करती लंबी फेहरिस्त पूरी होती दिखने लगी.

‘‘लगता है कि रज्जाक मियां ने आखिरकार तुम्हारी पूरी तनख्वाह दे ही दी. मैं तो सोच रही थी कि हर बार की तरह इस बार भी आजकल कर के 6 महीने में आधी ही तनख्वाह देगा,’’ कमली ने चहकते हुए पूछा.

ये भी पढ़ें- बुलडोजर : कैसे पूरे हुए मनोहर के सपने

‘‘अरे, वह क्यों देने लगा? इतना ही सीधा होता, तो हमारा खून क्यों पीता?’’ किसना ने खाट पर पसरते हुए कहा.

कमली ने देखा कि किसना पसीने से भीगा हांफ रहा था.

‘बेचारा दिनभर मजदूरी और काम की तलाश में भटकतादौड़ता रहता है,’ कमली ने सोचा.

कोई और दिन होता, तो कमली भी किसना को काट खाने ही दौड़ती कि कुछ कमा कर लाओ नहीं तो घर कैसे चलेगा, पर आज तो अलमारी में रखे नोट उस के दिल में हलचल मचा रहे थे.

कमली गुनगुनाती हुई एक लोटा पानी ले आई.

‘‘लो, पानी पी लो. लग रहा है कि तुम बहुत थक गए हो…

‘‘क्या हुआ… तुम्हारी छाती धौंकनी सी क्यों चल रही है?

‘‘अरे, रज्जाक भाई ने पैसा नहीं दिया, तो फिर किस ने दिया पैसा?’’ कमली ने लाड़ जताते हुए पूछा.

‘‘जब से आया हूं, पहले बापू ने, फिर तुम ने मेरा दिमाग चाट कर रख दिया है. क्या कुछ देर शांति नहीं मिल सकती मुझे?’’ लोटा फेंकते हुए किसना ने कहा और करवट ले कर सोने की कोशिश करने लगा.

कमली ने चुपचाप किसना को एक चादर ओढ़ा दी और बगल में लेट गई.

किसना बेचैन सा रातभर करवटें बदलते रहा. वह कभी उठ बैठता, तो कभी लेट जाता.

सुबह के 5 बजे कमली उठी और तैयार हो कर उस ने ग्रेटर नोएडा की बस पकड़ी, जहां वह कुछ घरों मेंझाड़ूपोंछा और बरतन धोने का काम करती थी.

बिजली की फुरती से काम निबटाती कमली 5वें घर में जा पहुंची. वहां वह चायनाश्ता बनाती थी. साहब और बीबीजी को दे कर वह खुद भी खाती थी. कमली के वे साहब और बीबीजी नौकरी से रिटायर हो चुके थे. सो, वहां सुबह की हड़बड़ी नहीं रहती थी. वे दोनों देर तक सोने के आदी थे. आज भी सवा 10 बज गए थे. डोरबैल की आवाज से ही बीबीजी जागी थीं.

‘‘आओ कमली… पहले चाय बना ले… मैं तुम्हारे साहब को जगाती हूं…’’ कह कर बीबीजी बाथरूम में हाथमुंह धोने चली गईं.

जब तक चाय उबली, फुरतीली कमली ने सब्जीभाजी काट ली और कुकर में छौंक दी. इस के बाद कमली ने साहबजी और बीबीजी को चाय थमा दी और खुद भी वहीं फर्श पर बैठ कर चाय पीने लगी. लगातार 4-5 घंटे काम करने के बाद वह हर दिन यहीं पलभर के लिए आराम करती थी.

साहबजी ने टैलीविजन चला दिया था. बारबार ‘दादरी दादरी’ सुन कर कमली के कान खड़े हुए, चाय हाथ से छलकतेछलकते बची.

जब दादरी के बिसाहड़ा गांव का नाम भी सुना, तो बीबीजी ने पूछा, ‘‘कमली, तुम भी तो काम करने दादरी से ही आती हो न? क्या तुम इन को जानती हो? रात एक भीड़ ने इन की हत्या कर दी…’’ मारे गए आदमी के फोटो को दिखाते हुए बीबीजी ने पूछा.

‘‘हाय… हम तो इन के पीछे वाली बस्ती में ही रहते हैं. इन्हें किस ने मारा?’’ कमली एकदम से चिल्लाई.

ये भी पढ़ें- ऐसी जुगुनी

अब कमली के हलक से चाय नहीं उतर रही थी. वह गुमसुम सी वहीं खड़ी हो गई.

‘‘बीबीजी, आज मुझे जल्दी जाने दो. मैं ने सब्जी बना दी है… रोटी आप बना लेना…’’ कहते हुए कमली घर लौटने को बेचैन हो उठी.

जैसेतैसे कमली अपनी बस्ती के पास पहुंची, तो देखा कि वहां जमघट लगा हुआ था. टैलीविजन पर रिपोर्ट दिखाने वाले, पुलिस और भी न जाने कौनकौन से लोग दिख रहे थे. आज तक इस जगह कोई नेता नहीं पहुंचा था, वहीं आज पूरी भीड़ लगी हुई थी.

(क्रमश:)

मारा गया शख्स कौन था? पैसे होने के बावजूद किसना का मूड क्यों उखड़ा हुआ था? पढ़िए अगले अंक में…

बदबू : भाग 2 (क्या थी किसना की गलती)

पिछले अंक में आप ने पढ़ा:

किसना देर रात कुछ रुपए घर ले कर आया था, पर वे उस की तनख्वाह के थे या नहीं, वह नहीं बता रहा था. वह थोड़ा घबराया सा था. उस की पत्नी कमली खुश हो गई कि वह इन पैसों से घर का सामान खरीदेगी. अगले दिन वह काम पर चली गई. वहां उस के मालिक के घर पर एक खबरिया चैनल से पता चला कि उस के इलाके में किसी की हत्या हो गई है. वह घबरा कर जल्दी घर जाने लगी. बस्ती में पहुंची तो देखा कि वहां लोगों का जमघट लगा था.

अब पढि़ए आगे…

कमली की आंखों के सामने बारबार मरने वाले का चेहरा आ रहा था.

माहौल की गरमी से डरतीझुलसती कमली अपनी झोंपड़ी तक पहुंची, पर पता नहीं क्यों अंदर का माहौल बड़ा ही ठंडा सा था. किसना उसे देखते ही खुश हो गया. वह बोला ‘‘अरे वाह. अच्छा हुआ, जो तू जल्दी आ गई. मैं चिकन लाया हूं, झट से पका दे. मुझे तो बड़े जोरों की भूख लगी है. मैं ने मसाला पीस रखा है.’’

ये भी पढ़ें- ऐसी जुगुनी

कमली नाक और मुंह पर कपड़ा बांध कर चिकन बनाने में जुट गई. शुद्ध शाकाहारी कमली अभी भी हाथ से चिकन छू नहीं पाती थी, सो चमचे की मदद से उठाउठा कर पकाने में जुट गई.

‘उफ, आज तो मेरा उपवास हो गया,’ कमली ने सोचा, क्योंकि जिस दिन मांस पकता था, उस दिन वह खाना नहीं खा पाती थी. पर पति और ससुर की खुशी के लिए वह बना जरूर देती.

‘‘अरे, तुम ने कुछ सुना क्या… कल किस की हत्या हो गई बस्ती में? टैलीविजन पर देख कर मैं 5 नंबर वाली के यहां से काम छोड़ कर दौड़ी चली आई,’’ कमली बारबार पूछ रही थी, पर मानो किसना के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही थी.

तभी बाहर से ससुरजी भी झोंपड़ी में आ गए. उन के चेहरे की हालत बाहर के मौसम से बड़ी मेल खा रही थी. दोनों बापबेटे आपस में खुसुरफुसुर करने लगे. कमली अपने काम में लगी रही. मांस की बदबू बरदाश्त के बाहर थी, फिर भी कमली ने चिकन बनाया, फिर चावल भी बना दिए.

अब कमली को उबकाई आ रही थी. पिछवाड़े में जा कर वह टाट की आड़ में हथेलियों को रगड़रगड़ कर धोने लगी, फिर नहाई भी. नहाने के बाद उस का मन थोड़ा ठीक लग रहा था. बापबेटे दोनों खाने पर टूटे पड़े थे. उसे दया आ गई कि हाथ हमेशा तंग रहने के चलते कहां इन्हें मांस नसीब होता है जल्दी. वह तो कल रात किसना पैसे लाया तो…

घर में भर गई मांस की बदबू से बचने के लिए कमली बाहर निकल गई, पर बाहर तो उस से भी ज्यादा बदबू फैली हुई थी. आबोहवा में फैली ताजा मौत की बदबू, अफवाहों की बदबू, उस प्रतिबंधित मांस के जिक्र की बदबू, सब से बढ़ कर अपनों द्वारा अपनों को दिए गए दर्द की बदबू, उस ताजा बेवा के बिलखने की बदबू… रिश्तों के सड़ने की बदबू.

यह सोच कर कमली का सिर घूमने लगा. काफी देर से रोकी गई उबकाई निकल ही गई. हार कर उसे घर में फिर वापस आना ही पड़ा. बापबेटे दोनों आज खुश दिख रहे थे. ‘‘मेरे बारबार पूछने पर भी तुम ने क्यों नहीं बताया कि कल रात हुआ क्या था?’’ कमली ने नाक पर आंचल रखते हुए पूछा.

‘‘अरे, जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा ही. इस में बताने वाली कौन सी बात थी? हमें वैसे भी चुप रहने को कहा गया है,’’ किसना ने कहा.

उबकाई आने के बाद कमली का जी मिचलाना भले ठीक हो गया था, पर भड़ास अभी बाकी थी. ‘‘वह जो मैं ने अभी पकाया था, क्या मांस नहीं था?’’ कमली ने पूछा. ‘‘अगर जीव हत्या की बात करती हो, तो सिर्फ वही जीव होता है, जो दूसरों के घर में पकता है. तुम्हारे घर जो पका था, वह क्या था फिर?’’

‘‘मैं तो शुद्ध शाकाहरी घर से हूं, यहां तुम्हारी खुशी के लिए सबकुछ पकाती हूं या नहीं? तो क्या पड़ोसी की थोड़ी पसंद को बरदाश्त नहीं किया जा सकता है?’’ ‘‘अरे, जीवजंतु से रिश्ते जोड़ते हो, फिर पेट में मेरी बेटी है, पता लगवा कर क्यों मरवाया था पिछले साल उसे? क्या बेटी मां से कमतर होती है?’’ ऐसा कहते हुए कमली हांफने लगी थी. उसे कल रात के रुपए याद आ गए. अलमारी खोली, तो सामने ही दिख गए, ऐसा लगा जैसे उस ने फिर से मांस देख लिया.

ये भी पढ़ें- बुलडोजर : कैसे पूरे हुए मनोहर के सपने

वह रसोई से चिकन वाला चमचा उठा लाई और उसी से नोटों को ठेलते हुए घर के बाहर निकालने लगी. ‘‘पागल हो गई हो क्या? पैसे को फेंक रही हो,’’ कहते हुए किसना ने पैसे उठाए, झाड़े और उन्हें चूमता हुआ वापस अलमारी में रख आया.

हार कर कमली वहीं पसर गई और आंख बंद कर सोने की कोशिश करने लगी थी. वैसे भी आज उस का बिना मतलब उपवास हो गया था. उबकाई आने के बाद अंतडि़यां अब मरोड़ मार रही थीं. कमली की आधी रात को आंख खुली. सड़क से छन कर आ रही रोशनी में उसे अधखुली अलमारी से झांकते नोटों की तरफ नजर पड़ी. लेकिन वहां नोट कहां थे, वहां तो किसी के जले हुए मांस के टुकड़े पड़े थे, उस की बदबू से फिर मन बेचैन हो गया.

वह कोने में रखे चिकन पकाने वाले चमचे को फिर से उठा लाई और अलमारी से पैसे गिराने लगी. खटपट की आवाज से किसना की नींद खुल गई, पर अब की बार वह चिल्लाया नहीं, धीरे से नोटों को फिर से उठा कर चारपाई के नीचे रखे टिन के डब्बे में सहेज दिए. किसना उकड़ू बैठ कर कमली को देखने लगा. वह दिनभर में कैसी बीमार सी हो गई थी.

कमली उसे ही घूरे जा रही थी. उस की आंखों में तैरते सवालों के सैलाब में वह खुद को डूबता सा महसूस कर रहा था.

‘‘मुझे ऐसे न देखो, कमली. 2 दिन पहले तारिक भाई ने मुझे और कुछ और लोगों को अपने घर पर बुलाया था और हमें ये पैसे दिए थे. वह बोला था कि चाचा को मारने के बाद और पैसे मिलेंगे. घर में फूटी कौड़ी नहीं थी…’’ बमुश्किल किसना ने थूक गटकते हुए अपना मुंह खोला.

‘‘पर, तारिक तो चाचा की ही बिरादरी का…’’ चौंकते हुए कमली ने पूछा.

‘‘हां. अब तो जो होना था सो हो गया. खराब तो मुझे भी बहुत लग रहा है, वरना मुझे क्या मालूम था कि वे क्या खाते हैं, क्या नहीं खाते हैं. मुझे तो बस इतना पता था कि हमारे घर खाने को कुछ नहीं था,’’ पैरे के अंगूठे से जमीन कुरेदता किसना बोला.

‘‘मैं इतने घरों में काम करती हूं. मैं ने कभी उन की चीजों की तरफ आंख उठा कर नहीं देखा और तू ने चंद रुपयों के लिए किसी की जान ले ली.

‘‘कल मैं कितना खुश हो रही थी कि मेरा मरद पैसे कमा कर लाया है. जाने कितने सपने संजो लिए थे मैं ने कि कैसे कहां खर्च करूंगी, किसी के खून से रंगे ये नोट हमें नहीं पचेंगे रे किसना,’’ कमली ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘मैं ने अकेले तो नहीं मारा उन्हें. और भी तो बहुत लोग थे,’’ किसना ने कमली को बताया. वे दोनों ही अगले 2 दिनों तक गुनाह के झंझावातों से जूझते रहे. रातदिन बड़ी मुश्किल से बिना खाए ही कट रहे थे, क्योंकि फिर उन रुपयों पर इन की लाली किसना ने भी महसूस की थी.

राजनीति की बिसात पर चालें चली जा चुकी थीं. शतरंज के पैदल सिपाही की कुरबानी दी जा चुकी थी. सत्ता और शतरंज सब से पहले आम नागरिकों की ही कुरबानी मांगते हैं. तीसरे दिन ही पुलिस की जीप चुनचुन कर 2 दिनों के लिए बादशाह बने तथाकथितों को अपने साथ लिए जा रही थी और उन पैसों को भी, जिस के लालच ने इन्हें ‘गरीब’ से सीधे ‘दंगाई’ बना दिया था.

ये भी पढ़ें- पछतावा : आखिर दीनानाथ की क्या थी गलती

बीच चौराहे पर अपनी बिखरी जिंदगी की किरचें चुनती कमली ने देखा कि तारिक भाई मारे गए शख्स के बेटे के कंधे पर हाथ रख रहे थे. कहीं से आवाज आई, ‘हमारा नेता कैसा हो, तारिक भाई जैसा हो.’ इस शोर तले कमली धुंधली आंखों से किसना को जीप में हथकड़ी पहने जाते देखती रह गई.

Short Story : कबीरदास दुखी, कबीरदास सुखी

कबीरदास बीच चौराहे पर लुकाटी लिये खड़े हैं. दूर तलक कोई  नजर नहीं आ रहा है. कबीरदास शांत भाव से चहलकदमी कर रहे हैं.

‘अरे ! शहर का व्यवस्तम चौराहा है या जंगल .दिनदहाड़े ऐसी शांति….’ कबीरदास बुदबुदाते खड़े हो जाते हैं. आखिर क्यों कोई मेरे साथ चलने की तो छोड़ो, बात करने को तैयार नहीं !  कुछ  समझने को तैयार नहीं !

शहर में हल्ला हो गया है- सुनो-सुनो, गांधी चौक से न गुजरना, वहां कबीरा खड़ा है.

रोहरानंद ने सुना तो उठ खड़ा हुआ- कबीर साहेब हमारे शहर आए हैं और लोग कतरा रहे हैं ? कैसे कृतध्न लोग हैं… रोहरानंद उत्सुक आगे बढ़ा तो नगर के एक गणमान्य ने  रोक- ‘ऐ ऐ… उधर न जाओ भईया .’

रोहरानंद सुनी अनसुनी कर आगे बढ़ा. एक राजनीतिज्ञ ने टोका- ‘मरना है क्या ?’ मगर रोहरानंद आगे बढ़ा. एक अभिनेत्री बोली- ‘इधर आइए न !’ मगर अनसुनी कर रोहरानंद आगे बढ़ता चला गया .’

गांधी चौक पर कबीरदास खड़े हैं .रोहरानंद पास पहुंचा तो कबीर साहेब की चरण वंदना की, उन्होंने कहा- मैं सुनता था, भारत में मेरी बड़ी कद्र है,पर आज स्वप्न टूट गया. उनके स्वर में आर्त भाव था.

ये भी पढ़ें- बुलडोजर : कैसे पूरे हुए मनोहर के सपने

-‘बाबा ! ऐसा नहीं है. आप तो हम भारतीयों के मन, आत्मा में बसे हुये हैं यह बात तो सारी दुनिया जानती है.’

‘हां, आज देख लिया. सुबह से खड़ा हूं, कितने लोग आए ? देखो मुझे मत भरमाओ. इस देश की तासीर बदली नहीं है, कल भी ऐसी थी, आज भी…’

रोहरानंद का मुंह फटा का फटा रह गया- ‘बाबा ! ऐसा कैसे कह रहे हैं ? ”

‘ ‘छ: सौ वर्ष पूर्व भी लोग मुझसे छिटककर दूर भाग जाते थे . मैं जब कहता- तेरा मेरा मनुआ कैसे इक होई रे… तू कहता कागज की लेखी मैं कहता आंखन की देखी… तो लोग टुकुर-टुकुर देखते और ऐसे भागते जैसे मैं कोई दूसरी दुनिया का आया हूं.”

‘बाबा !’ रोहरानंद ने कहा-‘ देखिए, मैं तो आया हूं न !’

‘ तुम अपवाद हो उस समय भी चंद लोग थे. मगर बहुसंख्यक तो देख कर छिटकने वाले ही हैं.’

‘ अच्छा बाबा ! आपको इसमें बड़ी कोफ्त होती होगी न… जब आप कहते हैं कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथ, जो घर फूंके आपना, चले हमारे साथ.

कबीरदास हंस पड़े, मगर इस हंसी में खुलापन नहीं था- ‘मैंने जो दिल में आया अंर्तरात्मा की आवाज उठी, कहा, अब लोग सोए हुए हैं, तो मैं क्या करूं.

‘ मगर बाबा ! कवि की सार्थकता तो इसी में है कि लोग उसके बताए रास्ते पर चलें .बड़ी कोफ्त होती होगी न !’

– ‘देखो  मैंने कहा है न… कबीरा तेरी झोपड़ी गल कटयन के पास, जो करनगे सो भरनगे, तुम क्यो भयो उदास.”

‘हां ! आपने तो बड़ी  तल्खी के साथ सांचा मार्ग बताया है.आप की गणना इसलिए तो महानतम कवियों में होती है.’ रोहरनंद ने सविनय कहा.

‘गणना ! गणना से क्या होगा भाई…’ ‘लोग आपका तहेदिल से सम्मान करते हैं.अक्सर सभा, संगोष्ठी, संसद, विधानसभा में आपकी वाणी  गुंजारित होती है ।’

‘हां, मैं भी सुनता हूं, मगर…”

‘जी ? रोहरानंद ने आश्चर्य प्रकट किया .’मगर कोई तो हो जो उस रास्ते पर चले. पूरी व्यवस्था ही विपरीत दिशा में दौड़ लगाये जा रही है. अब मेरी टांगों में इतनी उर्जा तो है नहीं कि मैं पीछे जाकर उन्हें समझाऊं. मैंने जो लिखना था, लिख डाला अब पालन करो या सुनकर अनसुना कर दो, तुम्हारी मर्जी.’ ‘कबीर दास ने आर्त स्वर में कहा.

‘लेकिन बाबा ! आप यह कैसे कह सकते हैं कि लोग आपकी नहीं सुन रहे  मैं तो कहूंगा जितना आप की सुनते और गुनते है, उतना किसी प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति की भी नहीं सुनते, आप तो बिना पद के सम्मानीय हैं.’

-“फिर वही बात ! भले आदमी, तुम किसी कवि  का दुख नहीं समझ सकते. तुम्हारा सरोकार दूसरा है…’

-“मगर बाबा, आप को तो सदैव प्रसन्न मुद्रा में रहना चाहिए.”

-“देखो ! सुनना और गुनना एक बात है. सम्मानीय होना और भी अलग बात है इसमें खुशी कैसी ? “कबीरदास बोलें.

ये भी पढ़ें- ऐसी जुगुनी

-“‘तो आप क्या चाहते हैं ?’ रोहरनंद ने दुःखी  होकर कहा.

‘ मेरे कथन का प्रतिपालन… एम्पलीमेंट… कबीर देखी परखि ले परखि के मुखा बुलाय, जैसी अंतर होएगी मुख निकलेगी हाय ।’ कबीर दास ने संजीदा वाणी में कहा.

‘ लेकिन आज समय बड़ी रफ्तार से भागा जा रहा है. पीछे मुड़ कर आपकी और देखने का समय किसके पास है. आपकी अंतरात्मा को बेधती  बातें सुनकर अगर एम्पलीमेंट करूं तो मैं जिंदा इसां  कहां रह जाऊंगा.’

‘ हां शायद यही विचार करके जनमानस मेरी बात सुन चुपचाप बगल से निकल जाता है… कबीरदास ने कनखियों से  देखते हुए कहा.

‘ बहुत-बहुत कठिन है,आपकी वाणी का प्रतिपालन. किताबों में, सभा सम्मेलन के लिए ही ये शोभाप्रद है.’

‘ हां इसलिए मैं दुखी हूं. देखों न ! चौराहे पर कब से खड़ा था बमुश्किल एक तुम पिंजरे में फंसे हो.”

‘बाबा ! ऐसे ही कुछेक लोग भी आपकी बात को जीवन में धारण कर लें तो आपका कहा सार्थक हो गया न !’

‘ हां मैं भी नाहक परेशान हो जाता हूं… समय के धारे में जो कहा,कहा अब आगे निकल, यही सत्य है’.

रोहरानंद आगे बढ़ा उसके मुख से अस्पष्ट शब्द नि:सृत हो रहे हैं थे –

आटा तजि भूसि गहै चलनी देखु विचार, 

कबीर सराहि छादि के गहेअसार संसार.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें