आरुषी ने अपनी कलाई घड़ी पर नजर डाली तो देखा साढ़े 8 बज चुके थे. उस का शरीर थक कर चूर हो गया था. उस ने हाल की दीवारों पर नजर डाली, तो पाया केवल 5 पेंटिंग्स बची थीं. उन में से भी 3 अनिरुद्ध के चाचाजी अपने फार्म हाउस पर ले जाएंगे. मन ही मन खुश होती आरुषी की नजर अनिरुद्ध पर पड़ी जो उस की तरफ पीठ किए हुए खड़ा था, पर तन, मन, धन से उस का साथ दे रहा था.
उस के मन ने खुद से सवाल किया, कैसे चुका पाऊंगी इस आदमी का उपकार? क्या नहीं किया इस ने मेरे लिए? उस के मन में अनिरुद्ध को ले कर जाने कैसेकैसे विचार आ रहे थे. तभी अनिरुद्ध का फोन बज उठा और आरुषी की विचार तंद्र्रा टूट गई. जैसे ही फोन पर बात समाप्त हुई, अनिरुद्ध उस के करीब आया और आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘कैसा लग रहा है आरुषी, पहली प्रदर्शनी में ही तुम ने झंडे गाड़ दिए. एक ही हफ्ते में तुम ने लाखों कमा लिए.’’
अनिरुद्ध का आप से तुम पर आना, आरुषी को अच्छा लगा. वह बोली, ‘‘अनिरुद्ध, यह तो तुम्हारी मेहनत का नतीजा है वरना मैं जिस परिवार से हूं उस के लिए तो यह सबकुछ करना संभव नहीं था.’’
आरुषी की आंखों के आगे चुटकी बजाते हुए अनिरुद्ध ने कहा, ‘‘आरुषी, कहां खो जाती हो तुम? कोई परेशानी है क्या? इस तरह उदास रहोगी तो मैं तुम्हें पार्टी कैसे दे पाऊंगा. कल मैं तुम्हें तुम्हारी सफलता पर एक पार्टी दूंगा.’’
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‘‘सर, कल किस ने देखा है?’’ आरुषी बोली, ‘‘चलिए, आज ही मैं आप को पार्टी दे देती हूं.’’
‘‘पर तुम अपने घर खबर तो कर दो,’’ अनिरुद्ध अचकचा कर हैरानी से बोला.
‘‘मैं घर पर बता कर आई थी कि आज मुझे देर हो जाएगी,’’ आरुषी के चेहरे से साफ लग रहा था कि वह झूठ बोल रही है.
अनिरुद्ध ने फौरन आर्ट गैलरी से आरुषी की बनाई पेंटिंग्स सावधानी से उतरवा कर अपने आफिस में रखवा दीं. उस के बाद जेब से चाबी निकाल कर आर्ट गैलरी का ताला लगाया और आरुषी के साथ रेस्टोरेंट की ओर चल दिया.
कार में बैठी आरुषी मन ही मन सोच रही थी कि काश, रेस्टोरेंट और दूर हो जाए ताकि अनिरुद्ध के साथ यह सफर समाप्त न हो. उस के चेहरे पर रहरह कर मुसकराहट आ रही थी, पर उस ने खुद को परंपरा और आदर्शवाद के आवरण से ढक रखा था.
‘‘आरुषी, तुम्हें रात के 9 बजे मेरे साथ आते हुए डर नहीं लगा?’’
‘‘नहीं, बिलकुल नहीं, शायद डरने की उम्र को मैं बहुत पीछे छोड़ आई हूं.’’
‘‘तो क्या अब तुम्हें बिलकुल डर नहीं लगता?’’
‘‘नहीं, ऐसी बात भी नहीं है, डर लगता है पर अभी तुम से नहीं लग रहा है,’’ अचानक आरुषी भी आप से तुम पर आ गई थी, उसे इस का आभास भी नहीं हुआ था. ऐसी ही बातें करते दोनों रेस्टोरेंट पहुंच गए.
पार्किंग में कार खड़ी कर के अनिरुद्ध आगे बढ़ा तो अचानक ही उस ने आरुषी का हाथ अपने हाथ में ले लिया. उस ने भी इस का विरोध नहीं किया बल्कि जो आवरण आरुषी ने ओढ़ रखा था, उसे उतार फेंका. उस की पकड़ को उस ने और कस कर पकड़ लिया.
दोनों ने मन ही मन इस रिश्ते पर स्वीकृति की मुहर लगा दी. आरुषी के चेहरे पर वही भाव थे जो अब से 15 साल पहले तब आए थे जब राघव ने उसे 3 अक्षर के साथ प्रेम का इजहार किया था. वैसे ही आज उस का चेहरा खुशी से दमक उठा था, कनपटी लाल हो चुकी थी, कांपती उंगलियां बारबार चेहरे पर आ रही जुल्फों को पीछे कर रही थीं.
उस की जुल्फों को अनिरुद्ध ने कान के पीछे करते हुए कहा, ‘‘लो, मैं तुम्हारी कुछ मदद कर दे रहा हूं.’’
तब आरुषी को लगा, काश, उस का हाथ चेहरे पर ही रुक जाए, ऐसा सोचते हुए आरुषी ने अपनी आंखें बंद कर लीं.
‘‘अरु, अपनी आंखें खोलो. मुझे यह सब सपना लग रहा है. क्या तुम्हें भी कुछ ऐसा ही लग रहा है?’’
अनिरुद्ध की आवाज सुन कर मानो वह आकाश से उड़ती हुई जमीन पर आ लगी. उस की आंखें एक झटके में खुल गईं. वास्तविकता के धरातल पर आते ही उसे अपने से जुड़ी सभी बातें याद आने लगीं. अतीत की बातें याद आते ही आरुषी के माथे पर पसीने की छोटीछोटी बूंदें उभरने लगीं. उसे लगा उस के परिवार के बारे में जान कर अनिरुद्ध उसे तुरंत छोड़ देगा.
आरुषी की आंखों के आगे चुटकी बजाते हुए अनिरुद्ध बोला, ‘‘कहां खो जाती हो तुम?’’
‘‘सर, मैं आप को अपने बारे में कुछ बताना चाहती हूं,’’ आरुषी के चेहरे पर गंभीरता देख कर वह भी कुछ गंभीर हो गया और बोला, ‘‘कहो, क्या कहना चाहती हो?’’
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फीकी सी मुसकराहट के साथ आरुषी ने अपनी बात कहनी शुरू की :
‘‘मेरे पापा का नाम करण राजनाथ है. वह रिटायर सिविल इंजीनियर हैं. करीब 40 साल पहले उन का विवाह कनकलता नाम की एक लड़की से हुआ था. वह लड़की रूपरंग में बेहद साधारण थी. विवाह के कुछ समय बाद ही उस ने एक लड़की को जन्म दिया और उस के ठीक 1 साल बाद दूसरी लड़की को जन्म दिया. चूंकि कनकलता रूपरंग में साधारण थी और गंवार भी थी इसलिए करण राजनाथ का मन उस औरत से बिलकुल हट गया. जब वह तीसरी बार गर्भवती हुई तो करण ने उसे अपने गांव छोड़ दिया. गांव में तीसरे प्रसव के दौरान जच्चाबच्चा दोनों की मृत्यु हो गई.
‘‘अब करण राजनाथ की दोनों बेटियां अकेली रह गईं. करण राजनाथ की दोनों बेटियों में बड़ी बेटी मैं हूं और छोटी बेटी मेरी बहन है. मेरी मां को गुजरे अभी कुछ महीने ही बीते थे कि मेरे पिता ने दूसरी शादी कर ली. उन का नाम अर्चना है और हम उन्हें मौसी कह कर बुलाते हैं. पहले तो उन्होंने हमें प्यार नहीं किया पर जब पता चला कि वह मां नहीं बन सकतीं तो उन्होंने हमें प्यार देना शुरू कर दिया.