जयपुर शहर के सिटी अस्पताल में उस्मान का इलाज चलते 15 दिन से भी ज्यादा हो गए थे, लेकिन उस की तबीयत में कोई सुधार नहीं हो रहा था. आईसीयू वार्ड के सामने परेशान उस्मान के अब्बा सरफराज लगातार इधर से उधर चक्कर लगा रहे थे. कभी बेचैनी में आसमान की तरफ दोनों हाथ उठा कर वे बेटे की जिंदगी की भीख मांगते, तो कभी फर्श पर बैठ कर फूटफूट कर रोने लग जाते. उधर अस्पताल के एक कोने में उस्मान की मां फरजाना भी बेटे की सलामती के लिए दुआएं मांग रही थीं.

तभी आईसीयू वार्ड से डाक्टर रामानुजम बाहर निकले, तो सरफराज उन के पीछेपीछे दौड़े और उन के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाते हुए कहने लगे. ‘‘डाक्टर साहब, मेरे बेटे को बचा लो. आप कुछ भी करो. उस के इलाज में कमी नहीं आनी चाहिए.’’

डाक्टर रामानुजम ने उन्हें उठा कर तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘देखिए अंकल, हम आप के बेटे को बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. उस की तबीयत अभी भी गंभीर बनी हुई है. आपरेशन और दवाओं को मिला कर कुल 5 लाख रुपए का खर्चा आएगा.’’

‘‘कैसे भी हो, आप मेरे बेटे को बचा लो डाक्टर साहब. मैं एकदो दिन में पैसों का इंतजाम करता हूं,’’ सरफराज ने हाथ जोड़ कर कहा.

काफी भागदौड़ के बाद भी जब सरफराज से सिर्फ 2 लाख रुपए का इंतजाम हो सका, तो निराश हो कर उन्होंने बेटी नजमा को मदद के लिए दिल्ली फोन मिलाया.

उधर से फोन पर दामाद अनवर की आवाज आई, ‘हैलो अब्बू, क्या हुआ? कैसे फोन किया?’

‘‘बेटा अनवर, उस्मान की तबीयत ज्यादा ही खराब है. उस के आपरेशन और इलाज के लिए 5 लाख रुपए की जरूरत थी. हम से 2 लाख रुपए का ही इंतजाम हो सका है. बेटा...’’ और सरफराज का गला भर आया.

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