सांप काटने से ज्यादा मौत और अंधविश्वास

महाराष्ट्र के एक गांव नारायणगांव के डाक्टर सदानंद राउत और उन की पत्नी डाक्टर पल्लवी राउत ने जहरीले सांप के काटने का इलाज आज से 35 साल पहले अपने गांव में शुरू किया था. आज उन के गांव में सांप से काटे की मृत्युदर जीरो हो चुकी है, जो काबिलेतारीफ है. इस के लिए उन्हें कई अवार्ड भी मिले हैं.

सांप काटने के इलाज के बारे में पूछने पर डाक्टर सदानंद राउत ने बताया, ‘‘मैं वर्ल्ड हैल्थ और्गनाइजेशन और नैशनल प्रोटोकोल ट्रीटमैंट गाइडलाइंस के आधार पर इलाज करता हूं. इस में ‘एंटी स्नेक वैनम’ जितनी जल्दी हो सके पीडि़त को देता हूं. इस के अलावा बाकी जो भी इमर्जैंसी लक्षण पीडि़त में दिखते हैं, उन के आधार पर इलाज करता हूं.

‘‘मेरी पत्नी डाक्टर पल्लवी भी इस काम में मेरा हाथ बंटाती हैं. इस काम को करने का मकसद हम दोनों को तब मिला था, जब एक दिन एक 8 साल की लड़की को उस के परिवार वाले हमारे पास ले कर आए थे, जिसे कोबरा सांप ने काटा था और 20 मिनट के बाद ही वह मु?ा तक पहुंची थी, लेकिन उस की मौत हो चुकी थी.

‘‘इस के बाद से हम ने स्नेक बाइट के पीडि़तों का इलाज करने का संकल्प लिया, लेकिन गांवदेहात के इलाकों में आज भी अंधविश्वास बहुत ज्यादा है और गांव वाले हमारे इलाज को सही नहीं सम?ाते थे.

‘‘वे तांत्रिक और झाड़फूंक वाले को अस्पताल में छिपा कर लाने लगे थे. अगर पीडि़त ठीक हो जाता था, तो उस का क्रेडिट तांत्रिक को मिलता था और अगर कुछ गलत हुआ, तो उस का खमियाजा मु?ो भोगना पड़ता था.’’

डाक्टर सदानंद राउत ने आगे बताया, ‘‘इस के बाद मैं गांव के लोगों को ट्रेनिंग देने के लिए वर्कशौप करने लगा. करैत सांप के काटने पर पीडि़त 2 हफ्ते तक गहरे कोमा में जा सकता है और उसे वैंटिलेटर पर रखना पड़ता है, लेकिन गांव वाले सोचते थे कि मैं पैसे बनाने के लिए पीडि़त को वैंटिलेटर पर रख रहा हूं, पर ऐसा नहीं था और इसीलिए वहां के नौजवानों को जागरूक करना जरूरी था.’’

समस्या अंधविश्वास की शुरूशुरू में 10 साल का एक बच्चा जब डाक्टर सदानंद राउत के पास करैत सांप के काटने पर कोमा की हालत में आया, तो उसे 6 दिनों तक वैंटिलेटर पर रखने के बावजूद उसे होश नहीं आया. उस के दादा और गांव के बड़े बुजुर्ग उस बच्चे को मरा हुआ सम?ा रहे थे और अस्पताल से ले जाना चाहते थे.

डाक्टर सदानंद राउत ने उस बच्चे के परिवार को मौनिटर पर दिखाया और सम?ाया कि बच्चे का दिल धड़क रहा है और वह जिंदा है. 10 दिन बाद बच्चे की आंखों की पुतली हिली और 13 दिन में वह ठीक हो गया.

अपने ‘जीरो स्नेक बाइट डैथ’ मिशन के बारे में डाक्टर सदानंद राउत बताते हैं, ‘‘इस के बाद मैं ने छोटेछोटे आदिवासी गांवों में स्कूलकालेजों और दूसरी संस्थाओं के सारे हैड को स्नेक बाइट जागरूकता मुहिम में शामिल किया. दूसरे लोग भी इस में सहयोग देने लगे, क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि यह जिंदगी बचाने की मुहिम है.

‘‘गांव के लोगों को सम?ा में आ गया था कि सांप कितना भी जहरीला क्यों न हो, काटने के तुरंत बाद में पीडि़त को अस्पताल ले आने पर उसे बचाया जा सकता है.’’

एकएक सैकंड है खास डाक्टर सदानंद राउत बताते हैं, ‘‘जहरीले सांप के काटने से ज्यादातर कार्डिएक अरैस्ट (दिल का रुकना) होता है, जो एक मिनट के अंदर ही हो जाता है. ऐसे मरीज को जल्द से जल्द डाक्टर तक पहुंचा दें, ताकि समय पर इलाज शुरू हो जाए.

‘‘ज्यादातर लोगों की मौत अस्पताल पहुंचने से पहले ही हो जाती है, इसलिए किसी तांत्रिक या ?ाड़फूंक वाले के पास न जा कर पीडि़त को तुरंत पास के किसी भी अस्पताल और डाक्टर के पास ले जाएं.’’

ऐसे बचें सांप के काटे से अगर आप ऐसे इलाके में रहते हैं, जहां पर जहरीले सांप ज्यादा पाए जाते हैं, तो इन उपायों पर जरूर ध्यान दें :

* गम शूज पहनें.

* पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनें.

* घास पर काम करने से पहले छड़ी का इस्तेमाल करें.

* सही रास्ते पर चलें, जंगल के बीच से नहीं.

* रात में काम करते समय बैटरी और छड़ी का इस्तेमाल करें.

* जमीन पर न सोएं.

* मच्छरदानी का इस्तेमाल करें.

* घर को साफ रखें, ताकि चूहे अंदर न रहें.

* आसपास के पेड़ों की छंटाई करते रहें, ताकि खिड़की के पास की टहनियों से सांप कमरे में न आ सकें.

बीवी का चालचलन, शौहर का जले मन

दुनिया का सब से हसीन और खूबसूरत रिश्ता पतिपत्नी का ही माना जा सकता है, जिस में 2 अनजान लोग जिंदगी के सफर में कदम से कदम मिला कर चलते हैं, एकदूसरे के सुखदुख के भागीदार बनते हैं और घरगृहस्थी की जिम्मेदारी निभाते हुए बुढ़ापे में एकदूसरे का पूरा खयाल भी रखते हैं.

लेकिन यह रिश्ता कांच जैसा नाजुक भी बहुत होता है, जिस में एक कंकड़ भी पड़ जाए तो यह कुछ ऐसा दरकता है कि इस में सिवा अंधेरे के कुछ और नहीं दिखता. इस कंकड़ का नाम है शक.

कुछ चुनिंदा मामलों को छोड़ दें तो शक यों ही दिलोदिमाग में घर नहीं करता है. दरअसल, यह एक किस्म की बीमारी है जो अगर समय रहते दूर न हो तो यकीन में बदलने लगती है.

कामयाब और खुशहाल शादीशुदा जिंदगी की एक शर्त पतिपत्नी का एकदूसरे के प्रति ईमानदार रहना भी है और उस से भी ज्यादा अहम है एकदूसरे पर भरोसा होना. दोनों में से कोई भी इसे तोड़ता है तो जिंदगी भार बन जाती है.

हमारे समाज पर पकड़ और दबदबा मर्दों का है, जो घर के मुखिया भी होते हैं. इस नाते उन्हें औरतों के मुकाबले ज्यादा हक मिले हुए हैं, जिन का अगर वे बेजा इस्तेमाल करें तो किसी को कोई खास फर्क नहीं पड़ता, पर औरतों पर आज भी कई बंदिशें हैं. इन में से एक है बहैसियत बीवी का किसी पराए मर्द की तरफ आंख उठा कर भी न देखना, फिर मर्द भले ही इधरउधर मुंह मारता फिरे, उसे दोष नहीं दिया जाता.

इस में भी कोई शक नहीं है कि कुछ बीवियां, वजह कुछ भी हो, अगर ये बंदिशें तोड़ती हैं तो एक जुर्म का जन्म और 2 जिंदगियों का खात्मा होता है. एक शौहर अपनी बीवी की कई जिद और ज्यादतियां बरदाश्त कर लेता है, लेकिन उस की बेवफाई पर मरनेमारने की हद तक तिलमिला उठता है. ऐसा इसलिए है कि वह बीवी को अपनी जायदाद समझता है और यह बात उसे बचपन में ही समझ आ जाती है कि बीवी किसी और से सैक्स करे तो गुनाहगार होती है, जिस की सजा भी उसे ही तय करनी है.

लेकिन अकसर शौहर के शक बेबुनियाद होते हैं, पर इस का मतलब यह नहीं है कि सभी बीवियां सतीसावित्री या पाकसाफ होती हैं, बल्कि यह है कि यह समस्या का हल नहीं है. समस्या और उस के हल को समझने से पहले कुछ ताजा हादसों पर नजर डालना जरूरी है :

-छत्तीसगढ़ के जांजगीरचांपा के रहने वाले 21 साला सिक्योरटी गार्ड संजय कुमार सूर्यवंशी ने अपनी 20 साला बीवी नीलम प्रधान की बेरहमी से गला घोंट कर बीती 8 जनवरी को हत्या कर दी. पकड़े जाने के बाद संजय ने जो वजह बताई वह यह थी कि नीलम अकसर मोबाइल फोन पर बातचीत और चैटिंग में बिजी रहती थी, इसलिए उसे उस के चालचलन पर शक हो चला था. इस हादसे में हैरानी की बात यह है कि इन दोनों ने 2 साल पहले ही लव मैरिज की थी.

-राजस्थान के जोधपुर की भोपालगढ़ तहसील के गांव मिंडोली के बाशिंदे 25 साला श्रवण कुमार भील को अपनी 20 साला बीवी जतनबाई के चालचलन पर महज इसलिए शक हो गया था कि शाम को काम के बाद जब वह घर लौटता था तो बीवी घर पर नहीं मिलती थी.

5 महीने से शक की आग में जल रहे श्रवण ने आखिकार बीती 23 दिसंबर की आधी रात को बिजली के तार से गला दबा कर बीवी की हत्या कर दी. उस समय जतनबाई पेट से थी. इन दोनों की शादी 5 साल पहले हुई थी.

-छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के बलरामपुर में होटल दीपक में एक पतिपत्नी बीती 8 जनवरी को मरे हुए मिले थे. पति विद्युत विश्वास की लाश कमरे के बाथरूम में फंदे पर झूलती मिली तो पत्नी रिक्ता मिस्त्री पलंग पर मरी पड़ी थी. इन दोनों ने भी तकरीबन डेढ़ साल पहले अदालत में लव मैरिज की थी.

अपने सुसाइड नोट में विद्युत ने साफसाफ लफ्जों में लिखा था कि उसे अपनी बीवी रिक्ता के चालचलन पर शक है, इसलिए वह उस की हत्या कर खुदकुशी कर रहा है.

-मध्य प्रदेश के नागदा के रहने वाले पेशे से ट्रक ड्राइवर राजेश ने बीती 13 जनवरी को अपनी बीवी राधाबाई का खून करने की कोशिश जिस वहशीपन से की उसे सुन हर किसी की रूह कांप उठी. उस की शादी 15 साल पहले हुई थी और 2 बेटे भी हैं.

राजेश और उस के मांबाप समेत मौसी ने राधाबाई को कमरे में बंद कर के पहले उस के साथ जी भर कर मारपीट की और फिर उस की जीभ, नाक, गाल और छातियां काट दीं. इस के बाद उस के मुंह में बेलन ठूंस दिया और राधा को मरा समझ कर चारों भाग गए, लेकिन वह बच गई थी, इसलिए उसे इलाज के लिए इंदौर भेज दिया गया.

जड़ में है धर्म भी

यहां इस बात के कोई खास माने नहीं हैं कि बीवियां भी आजकल इधरउधर मुंह मारते हुए सैक्स सुख और वह प्यार ढूंढ़ने लगी हैं, जो उन्हें शौहर से नहीं मिलता, लेकिन इसे मंजूरी नहीं दी जा सकती, क्योंकि वे गलत होती हैं, लेकिन इस के माने ये नहीं हैं कि चालचलन के शक में या बदचलनी साबित हो जाने या फिर उजागर हो जाने पर उन के साथ वहशियाना बरताव किया जाए.

यह भी ठीक है कि कोई भी शौहर अपनी बीवी की बदचलनी आसानी से बरदाश्त नहीं कर पाता है, लेकिन जब वह खुद गलत राह पर चलता है तो वकील बन कर दलीलें देने लगता है और बीवी के मामले में जज बन कर फैसला करने लगता है.

इस फसाद की एक जड़ धर्म भी है, जिस के खोखले और दोहरे उसूलों ने उसे मर्दानगी के माने बहुत गलत तरीके से सिखा रखे हैं. धार्मिक किताबों में जगहजगह यह कहा गया है कि औरत नीच है, गुलाम है, पैर की जूती है और उस का जिम्मा शौहर को खुश रखना और उस की खिदमत करते रहना है. औरत का अपना कोई वजूद नहीं है और किसी भी तरह की आजादी देने से वह गलत रास्ते पर चल पड़ती है.

यह बात भी किसी सुबूत की मुहताज नहीं है कि समाज पर दबदबा मर्दों का है, इसलिए वे न तो औरत की इज्जत करते हैं और न ही उसे बराबरी का दर्जा देते हैं, क्योंकि इस से उन की हेठी होती है.

जिस धर्मग्रंथ ‘मनुस्मृति’ को हिंदू अपना संविधान मानते हैं उस के अध्याय 9 के श्लोक 2 से ले कर 6 तक में साफसाफ हिदायत दी गई है कि ‘औरत को बचपन में पिता, जवानी में भाई और शादी के बाद पति की सरपरस्ती में रहना चाहिए. किसी भी उम्र में उसे आजाद नहीं रहना चाहिए.’

इसी किताब के अध्याय 9 के 45वें श्लोक में कहा गया है कि ‘पति पत्नी को छोड़ सकता है, गिरवी रख सकता है, बेच सकता है लेकिन औरत को यह हक नहीं है. शादी के बाद पत्नी सिर्फ पत्नी ही रहती है.’

यानी पति ऊपर लिखा कुछ भी करे यह उस का हक है. इस तरह की बातों और हिदायतों ने मर्दों को मनमानी करने की खुली छूट दे रखी है, जिस का कहर आएदिन बीवियों को भुगतना पड़ता है. उन के साथ जानवरों जैसा बरताव किया जाता है. अगर वे किसी से यों ही बात भी कर लें तो शौहर की भवें तन जाती हैं और वह उसे बदचलन मानने लगता है.

बकौल ‘मनुस्मृति’ औरत अकेलेपन का बेजा इस्तेमाल करने वाली होती है ( अध्याय 2 श्लोक 215 ) यानी औरत को अकेले छोड़ने से वह मर्दों को लुभाती है और उन्हें भी गलत रास्ते पर चलने के लिए उकसाती है.

औरतों को बदचलन साबित करने के लिए इसी किताब के अध्याय 9 श्लोक 114 में कहा गया है कि औरत सैक्स के लिए किसी भी उम्र या बदसूरती को नहीं देखती. अध्याय 9 के ही श्लोक 17 में तो हद ही कर दी गई है जिस के मुताबिक औरत सिर्फ गहने, कपड़ों और बिस्तर को ही चाहने वाली होती है. वह वासनायुक्त, बेईमान, जलनखोर और दुराचारी है.

अब जरा ‘मनुस्मृति’ के ही अध्याय 5 के श्लोक 115 पर नजर डालें तो पाएंगे कि ‘पति भले ही चरित्रहीन हो, दूसरी औरतों पर फिदा हो, नामर्द हो, जैसा भी हो औरत को पतिव्रता रहते हुए उसे देवता की तरह पूजना चाहिए.’

हिंदुओं की सब से बड़ी धार्मिक किताब ‘रामायण’ को न पढ़ने वाले आम लोग भी यह मानते हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाने वाले भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता का त्याग क्यों किया था. इस बात को धर्मगुरु भी बांचते हैं और इस पर कई फिल्में और टैलीविजन सीरियल भी बन चुके हैं. कहानी बहुत सीधी और दिलचस्प है कि रावण को मारने के बाद जब राम अयोध्या आए तो जनता ने घी के दिए जलाते हुए उन का जोरदार स्वागत किया था. अभी कुछ दिन ही बीते थे कि राम के जासूसों ने उन्हें बताया कि प्रजा सीता की पवित्रता पर शक करती है. यह शक इसलिए था कि सीता लंबे समय तक लंका में रावण की सरपरस्ती में रही थीं.

बस इतना सुनना था कि अपनी मर्यादा और राजधर्म को निभाने वाले राम ने सीता की अग्नि परीक्षा ले डाली. इस में कामयाब होने के बाद भी जनता में सीता को ले कर तरहतरह की बातें होती रहीं तो राम ने उन्हें जंगल भेज दिया. वह भी यह जानतेबूझते कि वे पेट से हैं और इस दौरान पत्नी को सब से ज्यादा जरूरत पति के साथ और प्यार की होती है.

लेकिन अपना राजधर्म निभाते हुए राम ने जो सख्ती दिखाई आज भी उस की मिसाल धर्म के ठेकेदार यह दलील देते हुए कहते देते हैं कि राजा हो तो राम जैसा जिस ने पत्नी से ज्यादा मर्यादा और प्रजा को तवज्जुह दी.

इस में कोई शक नहीं कि शक शौहर की फितरत होती है, लेकिन इस के नतीजे किसी के हक में अच्छे नहीं नकलते, इसलिए शौहरों को चाहिए कि शक होने पर वे सब्र से काम लें और बीवी की बदचलनी साबित भी हो जाए तो खुद के हाथ उस के खून से न रंगे, क्योंकि इस में नुकसान उन का भी है.

क्या करें शौहर

शक के बारे में यह कहावत मशहूर है कि इस का इलाज तो लुकमान हकीम के पास भी नहीं था, इसलिए शौहरों को बीवी पर बेवजह शक करने से बचना चाहिए. बीवी अगर खुले मिजाज वाली हो और दूसरों से हंसबोल कर बात करने वाली हो तो कुढ़ने और खुद का खून जलाने के बजाय उसे बताना चाहिए कि आप को यह सब पसंद नहीं है, लेकिन इस बाबत धौंसधपट या मारापीटी से काम नहीं लेना चाहिए.

बीबी का गैरमर्दों से हंसनाबोलना बदचलनी के दायरे में नहीं आता, इसलिए उस के स्वभाव से थोड़ा समझौता शौहर को भी करना चाहिए. अगर इस मुद्दे पर कलह होती है तो अकसर बीवियां जानबूझ कर शौहर को चिढ़ाने के मकसद से और भी ऐसा ही करती हैं, जिस से बनने के बजाय बात और बिगड़ती जाती है.

शौहर को अब चालचलन से कम अपने मर्द होने की हेठी पर गुस्सा आने लगता है, जिस के चलते वह उस की हत्या करने जैसे जुर्म को अंजाम देने भी उतारू हो आता है, जिस से उसे हासिल कुछ नहीं होता और बाकी जिंदगी जेल की सलाखों के पीछे काटनी पड़ती है. अगर बच्चे हों तो उन का भी भविष्य खराब होता है.

बीवी की बदचलनी साबित हो न हो यह अलग बात है, लेकिन हर शौहर की कोशिश यह होनी चाहिए कि वह बीवी को हर लिहाज से संतुष्ट रखे और उसे इज्जत और बराबरी का दर्जा दे. हां, बदचलनी जब साबित हो ही जाए तब बजाय उसे खुद सजा देने के तलाक के लिए अदालत में जाना चाहिए. हालांकि इस में थोड़ी दिक्कतें जरूर पेश आती हैं, लेकिन यकीन मानें कि वे उतनी नहीं होतीं जितनी हत्या के बाद पकड़े जाने पर होती हैं.

बीवी से हर समय प्यार जताते रहना भी एक अच्छा उपाय है जिस से वह हंसनेबोलने के लिए किसी और का रुख न करे. जिन शौहरों को लंबे समय या दिनों तक बाहर रहना पड़ता है, उन्हें चाहिए कि मोबाइल फोन के जरीए पत्नी से घरगृहस्थी के साथसाथ रोमांटिक बातें करते हुए प्यार जताते रहें. यह कतई न सोचें कि उन की गैरमौजूदगी में वह किसी और के साथ गुलछर्रे उड़ा रही होगी. यही शक होता है जिस की कोई जमीन नहीं होती.

याद रखें कि पतिपत्नी का रिश्ता आपसी भरोसे पर टिका होता है. अगर किसी भी वजह से यह दरकता है तो टूटता घर है. किसी दूसरे के चुगली करने पर भी बीवी पर शक करना उस के साथ ज्यादती है.

बीवियां भी समझें

अगर शौहर को आप का गैरमर्दों से हंसनाबोलना पसंद नहीं है तो उस के जज्बातों को समझते हुए धीरेधीरे यह आदत छोड़ें और याद रखें कि इस से आप का कोई नुकसान नहीं होने वाला है, लेकिन अगर पति का शक बढ़ता जाएगा तो जरूर कई दिक्कतें खड़ी होने लगती हैं.

अगर पति की आमदनी कम हो तो उसे ताने मारना उस के भीतर शक पैदा करने वाली बात भी हो सकती है.

पति अगर सैक्स में मनमुताबिक संतुष्ट न कर पाता हो तो इस की वजह बीवी को पहले खोजनी चाहिए. आजकल कमानाखाना मुश्किल होता जा रहा है. इस तनाव का असर मर्दों की सैक्स जिंदगी पर भी पड़ता है. कई बार वे टैंपरेरी नामर्दी के भी शिकार हो जाते हैं. ऐसे में बीवी को कहीं और सुख ढूंढ़ने की नादानी करने के बजाय शौहर से खुल कर बात कर डाक्टर से मशवरा लेना चाहिए. ज्यादातरर मरीज इलाज से ठीक हो जाते हैं.

इस पर भी बात न बने तो बजाय चोरीछिपे किसी और से जिस्मानी रिश्ता बनाने के पहले पति से खुल कर बात कर तलाक ले लेना ज्यादा ठीक रहता है, क्योंकि किसी की बीवी रहते नाजायज संबंध बनाना आ बैल मुझे मार जैसी बात साबित होती है और शौहर मरनेमारने पर उतारू हो आता है.

नाजायज संबंध आमतौर पर ज्यादा दिनों तक छिप नहीं पाते हैं और बिरले ही शौहर होते हैं जो आंखों देखी मक्खी निगल पाते हैं.

लुभाने वाले मर्दों से ज्यादा नजदीकियां भी पति के शक की वजह बनती हैं, इसलिए खुद को काबू में रखना चाहिए, खासतौर से उस सूरत में जब शौहर को यह पसंद न हो. आजकल ज्यादातर बीवियां मोबाइल फोन में बिजी रहती हैं, जिस पर शौहर की खीज कुदरती बात है और शक होना भी कि बीवी न जाने किस से गुटरगूं कर रही है, इसलिए मोबाइल फोन के ज्यादा इस्तेमाल से भी बचना चाहिए.

डेली व्लौग देखने का नशा, है बड़ा खतरनाक

सौरभ जोशी भारत के टौप डेली व्लौगरों में से एक है लेकिन उस के बनाए कंटैंट में ढूंढ़ने से भी कुछ काम का मिलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. हजारों की संख्या में यूथ उसे देखते हैं, ये यूथ न सिर्फ अपना समय बरबाद कर रहे हैं बल्कि अपने कैरियर के साथ खिलवाड़ भी कर रहे हैं.

हल्द्वानी कहां है, यह किसी को पता हो या न हो पर यूथ को जरूर यह पता है कि सौरभ जोशी हल्द्वानी में रहता है. सौरभ जोशी खुद को इन्फ्लुएंसर कहता है पर उस की वीडियो में ऐसा कुछ नहीं होता जो किसी को इन्फ्लुएंस कर पाए. न तो सीखने के लिए कुछ है, न ही जानकारी लायक कुछ.

सौरभ जोशी कोई बौलीवुड स्टार, स्पोर्ट्स पर्सन या पौलिटीशियन नहीं है. वह है एक यूट्यूबर जो अपने घर की दीवारों, कंबल-रजाइयों, कपप्लेट, घर में क्या बन रहा है, क्या खा रहा है, कहां जा रहा है, उस की कार कौन सी है, कपड़े में सब्जी गिर गई, घर के सदस्य क्या कर रहे हैं जैसी फालतू बातें बताता है. बेसिकली वह अपनी दिनचर्या बताता है पर समझ से परे यह है कि इसे देखने वाले कैसे खलिहर हैं जो अपना कामधंधा छोड़ लगे रहते हैं इस की व्यूरशिप बढ़ाने में.

खुद को स्टार मानने वाला सौरभ कुछ सिखाता नहीं है बल्कि अपना डेली रूटीन दुनिया वालों को दिखाता है. वह क्या खाता है, क्या पीता है, कहां जाता है, बस यही सब कहता है उस का व्लौग.

सौरभ जोशी के व्लौग की बात करें तो उस ने 12 नवंबर, 2023 को एक व्लौग बनाया, जिस का टाइटल था ‘दीवाली गिफ्ट’.  नाम से ही पता चल रहा था कि ये पूरा व्लौग सिर्फ और सिर्फ इस विषय पर बना है कि दीवाली पर सब को क्याक्या गिफ्ट मिला. अब वह अपने रिश्तेदारों को क्या गिफ्ट दे रहा है, यह चिंता उसे करने दो, लेकिन नहीं, युवा अपने रिश्तेदारों की चिंता छोड़ लगे पड़े हैं वीडियो देखने.

व्लौग की शुरुआत में सौरभ मिठाई के डब्बे दिखाते हुए कहता है, ‘‘आज मुझे यह सब लोगों के घर देने जाना है. अभी सुबह के 9 बज रहे हैं और हम अपनी कार ले कर जा रहे हैं क्योंकि सुपरकार हर जगह नहीं जा पाएगी और रास्ते में गड्ढे भी हैं.’’ इस तरह के इन्फ्लुएंसर अपनी लग्जरी लाइफ का बखान करते नहीं थकते. वे युवाओं को अपनी महंगी कारों को दिखा कर रिझाने की कोशिश करते हैं.

इस के बाद व्लौग में उसे लोगों के घर जा कर उन्हें दीवाली की वेलविशेस और गिफ्ट देते हुए दिखाया जाता है. इस के बाद महल्ले के बच्चों को व्लौग में दिखाया जाता है. वह एक बौबी भइया नाम के एक शख्स को आईफोन गिफ्ट देता है. साथ में, स्टाफ मैंबर को दीवाली गिफ्ट देता है. उस की भी वीडियो क्लिप सौरभ अपने व्लौग में एड कर लेता है. इस के बाद घर वालों को गिफ्ट दिया जाता है. बस, यही कहता है सौरभ जोशी का व्लौग. अब इस वीडियो को कोई महाबेवकूफ ही हो जो देखे और लाइक करे. और यदि कोई फिर भी दिलचस्पी रख रहा है तो समझ जा सकता है कि कैसे अथाह बेरोजगारी में उस की मानसिक स्थिति हिली हुई है.

इसी तरह का उस का एक और व्लौग है, जिस का न सिर्फ टाइटल घटिया है बल्कि कंटैंट भी रद्दी है या कहें कंटैंट कहां है, पता नहीं. व्लौग के थंबनेल पर लिखा है, ‘यह क्या हो गया फौरचूनर को.’

इस व्लौग में वह फौरचूनर पर चढ़ी ब्लैक पीपीएफ को उतार कर उस के ओरिजिनल कलर में लाता है. पीपीएफ को पीयूष, जो कि सौरभ का छोटा भाई है और उस का चाचा का लड़का उतार रहा होता है और सौरभ व्लौग बना रहा होता है. फिर उस का चाचा भी आ जाता है. सौरभ अपने सब्सक्राइबर्स से पूछता है कि कौनकौन चाहता है कि चाचा सुपरकार चलाएं. कमैंट करो. फिर चाची और मम्मी व्लौग में आ जाती हैं. इस के बाद मम्मी से राय ली जाती है कि पीपीएफ को कितना उतारा जाए और कितना नहीं. इस के बाद कार के बारे में बताया जाता है.

अब यह कंटैंट ऐसा है कि सामान्य दिमाग वाला इंसान अपना सिर पीट ले. वीडियो के कंटैंट को समझाने के लिए या तो आप को आइंस्टीन होना पड़ेगा या बैलबुद्धि. आगे इस वीडियो में घर का सीन दिखाया जाता है, जिस में सब चाय ले कर बैठे हैं. लेकिन सौरभ के चाचा का बेटा दूध पी रहा है. सौरभ उस से पूछता है कि हम सभी शादी क्यों करते हैं? डैली व्लौगर ‘द ग्रेट सौरभ’ की बुद्धि का स्तर उस के इस सवाल से आंका जा सकता है. बच्चा जवाब देता है कि हमें किसी के साथ की जरूरत होती है, इसलिए हम शादी करते हैं. बच्चा आगे कहता है कि, ‘मैं ने यह सब यूट्यूब से सीखा है. मैं व्लौगर बनूंगा और सब का नाम रोशन करूंगा.’

इस के बाद सौरभ अपने पैट ओरियो को दिखाता है. फिर अपने डिनर की फोटो. इन सब के बाद वह कहता है, ‘मुझे बुखार है. अभी दवाई लूंगा. 2 दिनों बाद बाहर भी जाना है.’ यही था सौरभ का व्लौग. इस वीडियो पर 3 घंटे में 1,34,81,188 व्यूज थे.

आखिर, यह किस तरह का कंटैंट है जो सौरभ जोशी बना रहा है. अब इसे देख रहे युवाओं को इस पर विचार करना चाहिए कि यह कंटैंट है भी कि नहीं. क्या इस पर समय खर्च करना सही है.

सवाल यह भी कि क्या यूथ इतना फ्री बैठा है कि सौरभ या सौरभ जैसे दूसरे यूट्यूबरों के घर में उन की पर्सनल लाइफ में क्याक्या चल रहा है, लगे रहें घंटों देखने. यह भी कि सौरभ ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर में क्या खा रहा है, टौयलेट कितने बजे जा रहा है, कौन सा टूथपेस्ट यूज कर रहा है, उस की गर्लफ्रैंड कौन है आदिआदि.

इस के आधे का आधा टाइम भी अगर युवा संसद में नेताओं की डिबेट में लगा लें तो देश के आधे मसले और झूठ बोल कर मलाई खा रहे नेताओं का सफाया यों ही हो जाए. उन्हें समझ आ जाएगा कि पकौड़े तलना रोजगार नहीं, बल्कि आजीविका है.

अगर यूथ इस तरह का फालतू कंटैंट देखेंगे वह भी पैसे दे कर तो अपना कैरियर क्या खाक बनाएंगे और जिन का थोड़ा बहुत कैरियर है वे भी अपने कैरियर की धज्जियां ही उड़ाएंगे.

सौमेंद्र जेना, जिन्हें यूट्यूब पर ‘सोमजैना’ के नाम से जाना जाता है, ने अपने हालिया वीडियो में से एक पर एक टिप्पणी के जवाब में अधिकांश भारतीय यूट्यूबर्स की सामग्री को ‘क्रिंज’ कहा है. उन्होंने कहा, ‘99 प्रतिशत भारतीय यूट्यूबर्स का कंटैंट घटिया है. लोगों की रुचि अच्छी नहीं है.’ सोम ने इस कमैंट का स्क्रीनशौट अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर भी शेयर किया. आगे उन्होंने कहा कि यह भारतीय यूट्यूब दृश्यों का दुखद सच है.

यह सच भी है. जैसे सौरभ अपने एक व्लौग में अपने नए घर का डिजाइन दिखाता है. इस व्लौग थंबनेल में उस ने ‘फाइनली न्यू घर का डिजाइन आया’ के नाम से बनाया. इस व्लौग में सौरभ हल्द्वानी में बनने वाले अपने नए घर का 3डी डिजाइन दिखाता है. वीडियो में दिख रहा है कि घर चारमंजिला है. इस में गेमिंगरूम है, जिस में स्लाइड कर के नीचे हौल तक जाया जा सकता है.

घर में डिजिटल लौक है. पूरे घर में लकड़ियों की सीढ़ियां हैं. घर में एक लिफ्ट भी है. इतना ही नहीं, घर में फायर बेस भी है. मतलब पूरा लग्जरी घर.

ग्राउंडफ्लोर की बात करें तों ग्राउंडफ्लोर में बैठने, पार्किंग और बच्चों के खेलने की जगह है. पहले फ्लोर पर दादादादी का रूम है. उस के बाद सब के रूम. सौरभ के रूम से पूरे घर का व्यू दिखेगा. उन के रुम में एक स्टडी टेबल भी है. यहां से वह अपने पूरे घर का व्लौग भी बना सकता है.

अब यह देखनेदिखाने में मन को सुकून दे सकता है पर इस का एक साइड इफैक्ट यह है कि सौरभ ने अपने पूरे घर की जानकारी पब्लिकली कर दी. सवाल है कि इस से क्या समाज के आपराधिक और असामाजिक तत्त्व के कान खड़े नहीं होंगे? सारी जानकारी तो उन्हें सोशल मीडिया से मिल ही गई है, अब बस उन्हें ऐक्शन लेना है.

ऐसी ही एक घटना उस के साथ पहले हो भी चुकी है, जिस में सौरभ ने व्लौग बनाया कि वह आज सपरिवार पहाड़ पर जाएगा. बस, इसी का फायदा उठा कर चोरों ने उस के घर सेंधमारी की और करीब डेढ़ लाख रुपए के गहनों की चोरी कर ली. यह घटना 22 अक्तूबर, 2022 की है.

आप का अपना डेली रूटीन पब्लिकली करना आप के लिए किस तरह आफत बन सकता है, यह आप सौरभ जोशी के साथ हुई घटना से समझ सकते हैं. अगर उस के घर में उस वक्त कोई होता तो यह घटना मर्डर में भी तबदील हो सकती थी.

हम अगर सौरभ जोशी के व्लौग को खंगाले तो हमें उस के व्लौग में ऐसेऐसे थंबनेल मिलेंगे जिन से लगेगा कि यह कोई व्लौग न हो कर किसी व्यक्ति की दिनचर्या हो.

जैसे कुछ थंबनेल हैं, ‘तबीयत खराब है, बट, मैगी खानी है’, ‘स्कूल से लेने गया पीयूष’, ‘कुणाली को सुपरकार में’, ‘कुणाली का टौय कलैक्शन’, ‘पीयूष वर्सेस कुणाली कार रेस’, ‘न्यू घर की पार्किंग’, ‘अम्मा को सुपरकार में बैठाया’, ‘हमारी दीवाली की लाइटिंग’, ‘फौरचूनर ठुक गई नई दिल्ली में’, ‘बहुत टाइम बाद गेम खेली’, ‘सुपरकार को पहाड़ पर ले गए’ वगैरहवगैरह. इन वीडियोज में कुछ भी इंटरैस्टिंग नहीं है जिस के चलते व्लौग देखा जाए. लेकिन अंधा यूथ दबा के सौरभ जोशी के व्लौग देख रहा है.

यूट्यूब अब एक ऐसा अड्डा बन गया है जहां लोग अपनी डेली लाइफ को कैमरे पर दिखाने लगे हैं, चाहे वह घर का काम करती हुई महिला हो, ट्यूशन जाता हुआ बच्चा हो, शौपिंग करती हुई लड़कियां हो, गायभैंस की खानापानी करती महिला हो या फिर घर में खाना बनाता हुआ यंग बौय. सभी को व्लौगर बनने का चस्का लगा हुआ है.

कोई भी व्यक्ति कैमरा उठाता है और बोलना चालू कर देता है- ‘‘हैलो गाईज, मैं आज अपनी बूआ के घर जा रही हूं, आप भी देखिए कि मुझे आज रास्ते में क्याक्या देखने को मिलेगा?’’ लोग भी उन के सफर में शामिल हो जाते हैं और अपना कीमती समय बेकार की चीजों में जाया कर देते हैं.

डेली व्लौग बनाने वाले लोग अपनी प्राइवेसी के साथ खेल रहे हैं. वे अपने पलपल की खबर दे रहे हैं. कहां रहते हैं, कहां जा रहे हैं, कब आएंगे, घर में कितने दरवाजे हैं, घर में कौनकौन है, कौन कब आता है, जाता है, औफिस कहां है, कौन बीमार है, कौन नहीं आदिआदि. वे अपनी पर्सनल लाइफ, फिर चाहे उन की मां, बहन और पत्नी हो, को सब के सामने ला रहे हैं और जब ट्रोल होने लगते हैं, गालियां खाने लगते हैं तो रोने भी लग जाते हैं.

कई बार व्लौगर कंप्लेन करते हैं कि व्यूअर्स उन की पर्सनल लाइफ के बारे में बुराभला कह रहे हैं. उन की फैमिली को रोस्ट कर रहे हैं. पर्सनल लाइफ को पब्लिक भी इन्हीं क्रिएटर्स ने किया है तो प्रतिक्रियास्वरूप कुछ भी आ सकता है. सो, क्रिएटर्स को इस के लिए तैयार रहना चाहिए.

सौरभ जोशी के यूट्यूब पर 23.5 मिलियन सब्सक्राइबर्स हैं, यानी 2 करोड़ 35 लाख के आसपास. उस ने अपने चैनल पर डेढ़ हजार के करीब व्लौग बनाए हैं. उसे इंडिया का नंबर वन डेली व्लौगर कहा जाता है पर सिर्फ नंबर के आधार पर यह पदवी दे देना सवाल छोड़ता है.

बात करें अगर सौरभ की उम्र की तो सौरभ महज 23 साल का है और उस ने सिर्फ 12वीं तक ही पढ़ाई की है. सौरभ एक ड्राइंग आर्टिस्ट भी है.

लिवइन का साइड इफैक्ट, कैसे फंस गए ओए इंदौरी

इंदौर के एमआईजी थाने में 19 दिसंबर, 2023 को एक रेप केस दर्ज कराया गया. यह केस धारा 376 के तहत दर्ज किया गया और आरोपी बनाया गया हाल के समय में फेमस यूट्यूबर ओए इंदौरी को, जो अपने इंदौरी ऐक्सैंट के लिए फेमस है.

वैसे ओए इंदौरी का असली नाम रोबिन अग्रवाल जिंदल है जो कि इंदौर का रहने वाला है, इसलिए इस ने अपने यूट्यूब चैनल का नाम भी ‘ओए इंदौरी – अब हंसेगा इंडिया’ रखा है. उस पर अब तक 2,784,323,079 व्यूज हैं. इस ने अपना यूट्यूब चैनल 2017 में शुरू किया था लेकिन कोविड में जब सब अपनेअपने घरों में बंद थे तो लोगों ने खाली बैठेबैठे यूट्यूब का खूब इस्तेमाल किया. उसी समय ओए इंदौरी फेमस हो गया.

ओए इंदौरी के वीडियोज में कौमेडी और प्रैंक देखने को मिलता है. उस का एक इंस्टाग्राम अकाउंट भी है, जिस की आईडी है श4द्गट्ठद्बठ्ठस्रशह्म्द्ब. जिस पर उस के 7.4 मिलियन फौलोअर्स हैं. इस अकाउंट पर उस ने अब तक 1,413 पोस्ट की हैं. उस के इंस्टाग्राम बायो में लिखा है- ‘आई विल मेक यू लाफ.’ हालांकि जिस तरह के कंटैंट वह बनाता था उस पर हंसना तो दूर, उसे झेलना भी एक टास्क जैसा है.

ओए इंदौरी उर्फ रोबिन सोशल मीडिया पर सामान्य स्तर के व्यूअर्स के बीच फेमस चेहरा है. साल 2019 में कलर्स टीवी के एक शो में ओए इंदौरी ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी. बिना टैलेंट के बस फौलोअर्स के दम पर लोगों को भी मुकाम मिलता है, यह इस का सटीक उदाहरण ओए इंदौरी से समझ जा सकता है. उस शो को कौमेडियन भारती सिंह और उस के पति हर्ष लिम्बाचिया ने होस्ट किया था.

असल में विवाद तब खड़ा हुआ जब एक पीड़िता ने ओए इंदौरी उर्फ रोबिन अग्रवाल जिंदल पर रेप का केस दर्ज कराया. शिकायतकर्ता युवती खुद को तलाकशुदा बता रही है. उस का कहना है कि ओए इंदौरी ने उसे शादी का झांसा दे कर उस से शारीरिक संबंध बनाए हैं और बाद में किसी और लड़की से सगाई कर ली.

युवती ने कहा कि वह जब इंदौर आई थी तो उसे घर ढूंढ़ने में परेशानी हो रही थी. उस वक्त ओए इंदौरी ने उस की हैल्प की थी. बस, तभी से वे दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे. उस के बाद ओए इंदौरी ने उस से अपने दिल की बात कही. वे दोनों लिवइन रिलेशनशिप में आ गए. उस दौरान उन के बीच फिजिकल रिलेशन बने. तब ओए इंदौरी ने उस से कहा था कि वह उस से ही शादी करेगा.

लेकिन 23 नंवबर को ओए इंदौरी की इंस्टाग्राम पोस्ट से पता चला कि उस की इंगेजमैंट किसी और से हो चुकी है. इस के बाद युवती ने पुलिस स्टेशन में केस दर्ज कराया. इस से पहले भी युवती ने मार्च के महीने में भी रिपोर्ट दर्ज कराई थी. लेकिन आपसी समझाता होने के बाद युवती ने केस वापस ले लिया. अब चूंकि ओए इंदौरी ने अपना वादा नहीं निभाया तो युवती फिर से पुलिस स्टेशन पहुंच गई. ओए इंदौरी के खिलाफ केस दर्ज कराने वाली युवती एक प्राइवेट कंपनी में जौब करती है.

गौरतलब है कि रोबिन ने कुछ समय पहले ही इंदौर के एक बड़े होटल में सगाई की है. उस की मंगेतर भी फेमस सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर है. उस का नाम अलिशा राजपूत है. उस के इंस्टाग्राम पर 7.31 मिलियन फौलोअर्स हैं. इस रिंग सैरेमनी में सोशल मीडिया की कई हस्तियां शामिल हुई थीं.

ओए इंदौरी पर लगे रेप आरोप के बारे में एमआईजी थाने के एसआई सचिन आर्य ने बताया कि रोबिन जिंदल पुत्र मिथिलेश अग्रवाल निवासी महालक्ष्मी नगर के खिलाफ शादी का झांसा दे कर रेप करने का मामला दर्ज किया गया है. केस दर्ज होने के बाद ओए इंदौरी फरार है. फिलहाल हम उस तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. केस दर्ज होने के बाद ओए इंदौरी ने अग्रिम जमानत की याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है.

इस केस के बाद ओए इंदौरी बुरी तरह फंस गया है. साथ ही, उस का फेम भी खतरे में आ गया है. वैसे भी, किसी इन्फ्लुएंसर की लाइफ मुश्किल ही 6 महीने से ऊपर टिकती है. ओए इंदौरी जैसे किसी नामचीन इन्फ्लुएंसर के साथ यह होना अपवाद नहीं है. सोशल मीडिया की चमक, लोगों के बीच फेमस होना और खुद को बड़ा आदमी समझाने की भूल ऐसे लफड़ों में फंसा ही डालती है. लिवइन गलत नहीं पर संबंध किस से कैसे निभते हैं, यह समझ होना जरूरी है.

आजकल यंगस्टर्स बड़ी संख्या में लिव इनरिलेशनशिप को अपना रहे हैं. लिवइन रिलेशनशिप में रहते हुए आप ऐसे ही किसी केस में न फंसें, इस के लिए जरूरी है कि यंगस्टर्स को लिवइन रिलेशनशिप के बारे में सही जानकारी हो.

लिवइन के कंसीक्वेंसेस

लिवइन रिलेशनशिप का मतलब ‘शादी जैसा रिश्ता’ होता है. जब एक अनमैरिड लड़का और लड़की मैरिड कपल की तरह एक ही छत के नीचे रहते हैं तो उसे लिवइन रिलेशनशिप माना जाता है. लेकिन भारत के कानून में लिवइन रिलेशनशिप को ढंग से परिभाषित नहीं किया गया है. यहां लिवइन रिलेशनशिप को 2 अनमैरिड लोगों के बीच ‘नेचर औफ मैरिज’ के तौर पर रखा जाता है.

लिवइन रिलेशनशिप में रह रही महिला भी घरेलू हिंसा कानून का इस्तेमाल कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, ‘‘अगर कोई महिला किसी आदमी के साथ लिवइन में रहती है और महिला यह नहीं जानती कि आदमी पहले से मैरिड है तो इस सिचुएशन में दोनों पार्टनर्स के साथ रहने को ‘डोमैस्टिक रिलेशनशिप’ माना जाएगा.’’ ऐसी हालत में महिला को घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत गुजारा भत्ता लेने का अधिकार दिया गया है.

2011 में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि लिवइन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरणपोषण पाने का अधिकार है और महिला को यह कह कर मना नहीं किया जा सकता कि उस ने कोई वैध शादी नहीं की थी.

अगर कोई लड़का और लड़की लिवइन में रहना चाहते हैं तो दोनों का अनमैरिड होना जरूरी है. अगर किसी पार्टनर की पहले शादी हुई है तो उस के डायवोर्स के पेपर जारी होने के बाद ही वह कानूनी रूप से लिवइन में रह सकता है वरना यह व्यभिचार में आएगा.

भारत में लिवइन रिलेशनशिप का कल्चर भी बढ़ रहा है. 2018 में एक सर्वे हुआ था. इस सर्वे में शामिल 80 फीसदी लोगों ने लिवइन रिलेशनशिप को सपोर्ट किया था. इन में से 26 फीसदी ने कहा था कि अगर मौका मिला तो वे भी लिवइन रिलेशन में रहेंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने लता वर्सेस यूपी राज्य, एआईआर 2006 एससी 2522 में यह माना कि एक एडल्ट महिला अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति से शादी करने या अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति के साथ रहने के लिए आजाद थी. जैसेजैसे लोग लिवइन रिलेशनशिप को प्रायोरिटी देने लगे, रेप के झूठे केसेस बढ़ते चले गए. कई केसेस में ब्रेकअप के बाद महिला पार्टनर रेप की झठी एफआईआर फाइल कराती है.

बात करें अगर कानून की, तो भारतीय दंड संहिता 1860 के सैक्शन 375 के तहत रेप को डिफाइन किया गया है. इस में कहा गया है कि इन सिचुएशंस में माना जाएगा कि एक पुरुष ने एक महिला का ‘रेप’ किया है-

  1. अगर किसी महिला से शादी का झांसा दे कर संबंध बनाए गए हों.
  2. जब महिला के साथ उस की सहमति के बिना सैक्सुअल रिलेशन बनाया जाए.
  3. जब महिला फिजिकल रिलेशन बनाने के लिए इस डर के साथ सहमति दे कि ऐसा न करने पर उसे या उस के किसी प्रिय व्यक्ति को चोट या जान का खतरा है.
  4. जब ऐसा करने की सहमति देते समय महिला मन से अस्वस्थ हो या किसी भी तरह मानसिक रूप से बीमार हो.
  5. जब महिला नशे की वजह से या किसी अन्य मूर्खतापूर्ण या हानिकारक चीज की वजह से सैक्सुअल रिलेशन बनाने की प्रकृति और रिजल्ट्स को समझने में अक्षम है और सहमति देती है.
  6. जब महिला 16 साल की उम्र से कम है फिर चाहे सैक्स मरजी से हो या बिना मरजी के.

ओए इंदौरी के केस में देखा जाए तो शादी का झांसा दे कर फिजिकल रिलेशन बनाने के चार्जेज लग सकते हैं. अब देखना यह होगा कि इस मामले के आखिर में क्या होता है. सारे परिणाम इस सुझाव की तरफ इशारा करते हैं कि अगर आप लिवइन रिलेशनशिप में हैं या आने की सोच रहे हैं तो आप को इस के सारे कानून और अधिकार पता हों ताकि बाद में आप किसी पचड़े में न पड़ें.

विवाह में शर्तें उचित या अनुचित, बरतें सावधानी

Society News in Hindi: मेरी एक परिचिता की बेटी को लड़के वाले देखने आए. सारी बातें पक्की हो जाने के बाद जब लड़का व लड़की ने एकांत में औपचारिक वार्त्तालाप किया तो लड़के ने लड़की से प्रश्न किया, ‘‘विवाह के बाद यदि फेसबुक, व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया का प्रयोग करने से हम मना करेंगे तो तुम बंद कर दोगी?’’

लड़की ने उत्तर दिया, ‘‘नहीं, बिलकुल नहीं.’’ साथ ही बाहर आ कर लड़की ने विवाह करने से भी यह कह कर मना कर दिया कि लड़का संकुचित मानसिकता का है. अभी से ऐसी शर्त रखी जा रही है तो विवाह के बाद तो जीना ही मुश्किल हो जाएगा.

एक अन्य परिवार में लड़के वालों ने लड़की वालों से कहा, ‘‘हमारे लगभग सौ बराती होंगे. उन के स्वागतसत्कार में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए. साथ ही, हरेक बराती को विदाई में सोने का सिक्का देना होगा.’’

सीमा को एक लड़का देखने आया. औपचारिक वार्त्तालाप के बाद उस के मातापिता ने कहा, ‘‘देखो बेटी, हमारे घर की सभी बहूबेटियां नौकरी करती हैं तो तुम्हें भी हम घर में बैठने नहीं देंगे. बस, शादी के बाद एमबीए कर लेना ताकि सैलरी पैकेज अच्छा हो जाए, और शान से नौकरी करना.’’

सीमा को नौकरी करने के स्थान पर आराम से घर पर रहना पसंद था, सो उस ने शादी करने से इनकार कर दिया.

आजकल अरेंज मैरिज में लड़के वाले लड़की वालों के समक्ष शर्तों का पिटारा कुछ इस प्रकार खोलते हैं मानो लड़की और उस के परिवार का कोई अस्तित्व ही नहीं. कुछ लड़कियों और उन के मातापिता से की गई बातचीत के आधार पर हम ने जाना कि कैसीकैसी शर्तें लड़के वाले लड़की और उस के मातापिता के समक्ष रखते हैं-

  • शादी के बाद नौकरी छोड़नी पड़ेगी और यदि लड़की कामकाजी नहीं है तो यह, कि हमें कामकाजी बहू पसंद है इसलिए नौकरी करनी पड़ेगी.
  • हमारे पास मेहनत से कमाया हुआ सबकुछ है. हमें कुछ चाहिए नहीं. पर फिर भी, शादी का आप का बजट कितना है?
  • शादी के बाद मायके से कोई रिश्ता नहीं रखोगी और उन की किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं करोगी. जो भी कमा कर लाओगी, हमारे हाथ पर ही रखोगी.
  • तुम एमबीए नहीं हो, हमें तो एमबीए लड़की ही चाहिए. शादी के बाद एमबीए करना पड़ेगा.
  • मोटी बहुत हो, शादी से पहले 10 किलो तक वजन कम करना पड़ेगा.
  • 35 साल की उम्र तक अविवाहित रहने के पीछे क्या कारण रहा.
  •  नाक नहीं छिदी है, शादी से पहले छिदवानी पड़ेगी.
  • एक लड़के वाले ने यह कह कर रिश्ता करने से इनकार कर दिया कि लड़की के पिता को आंखों की लाइलाज बीमारी है.

उपरोक्त शर्तों को पढ़ कर पता चलता है कि समाज में स्त्री को किस दृष्टि से देखा जाता है. इस प्रकार की शर्तें लड़की के लिए ही क्यों? आज के समय में मातापिता लड़की और लड़के दोनों को पढ़ालिखा कर आत्मनिर्भर बनाने में समान पैसा, और परिश्रम व्यय करते हैं, फिर दोनों में असमानता क्यों? क्या अरेंज मैरिज में लड़की की अपनी इच्छा कोई माने नहीं रखती?

एक कंपनी में मैनेजर के पद पर काम कर रही नेहा गोयल कहती हैं, ‘‘कोई भी रिश्ता शर्तों पर नहीं टिक सकता क्योंकि शर्तों पर तो सिर्फ बिजनैस डील होती है, रिश्ता नहीं निभाया जा सकता.’’

वरिष्ठ मैरिज काउंसलर और मनोवैज्ञानिक निधि तिवारी कहती हैं, ‘‘विवाह से पूर्व लड़की व लड़की दोनों का ही शर्त रखना कुछ हद तक सही है क्योंकि विवाह से पूर्व ही सारी बातें साफ हो जाती हैं तो भविष्य में विवाद की आशंका नहीं होती. दोनों को यदि एकदूसरे की बात पसंद है तो शादी होगी वरना नहीं.

‘‘इस की अपेक्षा, विवाह के बाद यदि कोई शर्त रखी जाती है तो कई बार विवाह जैसा पवित्र बंधन टूटने के कगार तक पहुंच जाता है. दरअसल, लड़की व लड़का मानसिक रूप से उस स्थिति के लिए तैयार नहीं होते. परंतु सिर्फ लड़के के परिवार या लड़के के द्वारा ही शर्तों का रखना पूरी तरह गलत है.’’

शर्तों में बंधा बंधन

विवाह एक प्यारा सा बंधन है जो परस्पर सहयोग, समझदारी, विश्वास और आपसी सामंजस्य पर टिका होता है. इस बंधन में भावना प्रधान होती है. ऐसे बंधन में बंधने से पूर्व ही यदि शर्तें लाद दी जाएंगी तो उस का टिकना ही संदेहास्पद हो जाएगा. इसलिए इस में किसी भी प्रकार की अनपेक्षित शर्तों का रखा जाना बेमानी है. शर्त रखने के स्थान पर दोनों परिवारों के लोग आपसी बातचीत के माध्यम से अपनी इच्छाएं साझा करें ताकि दोनों को एकदूसरे की विचारधारा का पता लग सके.

कितनी बार देखा जाता है कि विवाह के बाद समय और परिस्थिति की मांग को देखते हुए बच्चों की परवरिश की खातिर अथवा अन्य कारणों से महिलाएं नौकरी खुद ही छोड़ देती हैं, या परिवार की आवश्यकतानुसार नौकरी करती हैं. विवाहोपरांत पति, पत्नी और ससुराल के परस्पर व्यवहार व सहयोग के बाद अनेक समस्याएं खुद हल हो जाती हैं परंतु विवाह पूर्व जब उन्हीं समस्याओं को शर्त के रूप में प्रस्तुत किया जाता है तो रिश्ते की शुरुआत में ही कटुता आ जाती है जो कई बार ताउम्र भी समाप्त नहीं हो पाती.

विवाह 2 परिवारों और संस्कृतियों का मिलन होता है, नई रिश्तेदारी का सृजन होता है, लड़का व लड़की इस से अपने एक नवीन जीवन का प्रारंभ करते हैं, नवीन रिश्तों को जीना शुरू करते हैं. ऐसे नाजुक रिश्ते में बंधने से पूर्व ही किसी भी प्रकार की शर्त रखना सरासर गलत है. वास्तविकता तो यह है कि विवाह में लड़की के मातापिता अपने खून से सींचे गए अंश को लड़के वालों के परिवार को दे कर शृंगारित करते हैं. ऐसे में लड़की वालों का स्थान लड़के वालों से ऊपर हो जाता है. सो, उन्हें हेय न समझ कर, बराबरी का मानसम्मान दिया जाना चाहिए.

विवाह में किसी भी प्रकार की शर्त का रखा जाना सर्वथा अनुचित है. बिना शर्त प्यार और सहयोग की भावना से किए गए विवाह में लड़की अपने ससुराल के प्रति प्यार, विश्वास और सम्मान की भावना ले कर सासससुर के घर में प्रवेश करती है जिस से घर में चहुंओर खुशियां रहती हैं.

निठारी हो या कॉलेज स्ट्रीट, जिस्मानी भूख की बलि चढ़ते मासूम

Society News in Hindi: देशभर में लड़कियों और छोटी बच्चियों के साथ घट रही सैक्स अपराध की तमाम घटनाओं से साबित हो चुका है कि हमारी बेटियां कहीं भी महफूज नहीं हैं. पड़ोस से ले कर घरपरिवार, रिश्तेदारों के बीच कब और कहां वे रेप की शिकार हो जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता.

अपनी दिमागी बीमारी और जिस्मानी भूख को अंजाम देने वाले सफेदपोश से ले कर सड़कछाप दरिंदे राजपथ से ले कर गलीमहल्लों तक में घूम रहे हैं.

दरअसल, ऐसी घटिया सोच वाले लोग डेढ़ साल से ले कर किशोर उम्र के बच्चों का इस्तेमाल अपने विकार को अंजाम देने के लिए करते हैं.

कुछ साल पहले निठारी कांड ने हमें चौंका दिया था. हालांकि मधुर भंडारकर की फिल्म ‘पेज-3’ के जरीए हम सफेदपोशों की सैक्स भूख को जान चुके हैं, लेकिन सैक्स से जुड़ी लोगों की घटिया सोच किस हद तक दरिंदगी का रूप ले सकती है, इस का पता हमें राजधानी नई दिल्ली समेत देश के अलगअलग हिस्सों में कुछ समय पहले घटी घटनाओं से चला है.

मध्य कोलकाता की कालेज स्ट्रीट में चौथी क्लास का एक बच्चा ट्यूशन पढ़ने के लिए ट्यूटर के घर जाने में हर रोज आनाकानी करता था. उस बच्चे ने कई बार बताने की कोशिश की कि वह ट्यूटर उसे अच्छा नहीं लगता, पर मां डांटडपट कर उसे ट्यूशन पढ़ने के लिए छोड़ आया करती थी.

एक दिन अचानक बच्चा जख्मी हालत में रोतेरोते घर पहुंचा, पर वह कुछ भी बताने से इनकार करता रहा. बाद में उस ने बताया कि शुरू से ही ट्यूटर उस की मासूमियत का फायदा उठा कर लाड़दुलार के बहाने इधरउधर हाथ लगाया करता था, पर आखिर में मामला जहां आ कर पहुंचा था, वह रोंगटे खड़े कर देने वाला था.

कुछ समय पहले पिंकी विरानी की एक किताब आई थी, ‘बिटर चौकलेट: चाइल्ड सैक्सुअल एब्यूज इन इंडिया’. इस में छपे सर्वे में बताया गया है कि

90 फीसदी मामलों में बच्चे घर पर अपने नौकरचाकर से ले कर ट्यूटर, बालिग, पारिवारिक सदस्यों से ले कर सगेसंबंधियों, यहां तक कि बाप की भी हैवानियत के शिकार होते हैं.

साल 2006 में निठारी कांड ने भी खास से ले कर आम लोगों के होश उड़ा दिए थे. मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली पर बच्चों को अगवा कर उन का बलात्कार करने के बाद हत्या ही नहीं, बल्कि बच्चों का मांस पका कर खाने जैसी दरिंदगी के मामले ने सब को हिला दिया था.

नोएडा के पौश इलाके से सटे निठारी गांव से एक के बाद एक गरीब तबके के बच्चे गायब होते रहे.

जांच में 19 बच्चों का मामला सामने आया, जिन में से 14 साल की रिंपी हालदार के मामले में मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली को विशेष सीबीआई अदालत ने फांसी की सजा सुनाई.

निठारी से सबक नहीं लिया

निठारी कांड से हम ने सबक नहीं लिया. अब तो आएदिन हमारी बेटियां न केवल रेप की शिकार हो रही हैं, बल्कि दरिंदगी की शिकार हो कर उन की जान पर भी बन आती है.

इस साल मार्च में मंगोलपुरी, दिल्ली में 7 साल की और फिर अप्रैल में संगम विहार में 8 साल की, गांधीनगर में 5 साल की, नजफगढ़ में 3 साल की, गोविंदपुरा में 5 साल की और एक चार्टर्ड बस में 10 साल की मासूम के साथ ऐसी घटनाएं सामने आईं. इन में मजदूर, पड़ोसी, बस ड्राइवर से ले कर स्कूली टीचर तक के नाम सामने आए.

वहीं मध्य प्रदेश में सिवनी, इंदौर, भोपाल और मारूगढ़ व उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ में हाल में बच्चियों के साथ हुए रेप ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया.

मनोवैज्ञानिक नजरिया

कोलकाता में इंस्टीट्यूट औफ विहेवियरल साइंस की श्रीलेखा विश्वास का कहना है कि हाल में बच्चों के साथ भारत में हुई दरिंदगी ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है, लेकिन नाबालिगों के साथ सैक्स हिंसा केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी हो रही है. चिंता की बात यह है कि अभी भी इस बारे में भारत में जागरूकता की कमी है.

दरअसल, इस तरह के मामले दिमागी बीमारी के होते हैं और विहेवियरल साइंस में इसे ‘पेडोफिलिया’ कहते हैं. इस सोच वाले लोग छोटी सी उम्र के नन्हेमुन्ने बच्चों की नंगी तसवीर में भी अपने लिए ‘सुख’ ढूंढ़ लेते हैं.

श्रीलेखा आगे कहती हैं कि ज्यादातर मामलों में पाया गया है कि बच्चे पड़ोसियों और ट्यूटर जैसे परिचितों व पारिवारिक या दोस्तों द्वारा सैक्स की हिंसा के शिकार होते हैं.

इन का यह भी कहना है कि बच्चों को इस बात की खबर ही नहीं होती है कि सामने वाला शख्स किस नजर से इन्हें देख रहा है.

दरअसल, बच्चे सामने वाले के छूने को समझ ही नहीं पाते हैं. वे इसे लाड़दुलार समझ बैठते हैं. हर ऐसा आदमी जो सैक्स भावना से बच्चों को प्यारदुलार करता है, ‘पेडोफिलिक’ होता है.

ऐसी दिमागी बीमारी वाले लोग अकसर पहले बच्चों के प्राइवेट हिस्सों को छू कर उन्हें जोश में लाते हैं. कभीकभी बच्चे उन की इस हरकत का मजा लेने लगते हैं और तब इन का काम आसान हो जाता है. लेकिन अगर कभी पकड़े गए, तो सारा कुसूर बच्चों के सिर मढ़ देते हैं, इसलिए मांबाप को उन की किसी बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए, बल्कि बच्चा कभी कोई शिकायत करे, तो तसल्ली से उस की बातों को सुनना चाहिए.

लेकिन यह दुख की बात है कि हमारे देश और समाज में बच्चों की भावना को तूल नहीं दिया जाता है. कई बार देखा जाता है कि बच्चे को किसी खास शख्स का लाड़दुलार रास नहीं आता है. कुछ सगेसंबंधियों को वे बिलकुल पसंद नहीं करते. बाकायदा कुछ लोगों से वे चिढ़ते हैं. वे उन के पास नहीं जाना चाहते हैं. बच्चा न चाहे तो ज्यादा जोर नहीं देना चाहिए.

हमारे आसपास हर जगह ऐसी तमाम मुखौटाधारी रिश्तेदार व दोस्त भरे पड़े हैं. जाने कब, कहां और कैसे हमारे बच्चे किसी की जिस्मानी भूख के शिकार हो जाएं, कहा नहीं जा सकता, इसीलिए मांबाप को खुद तो सचेत रहना ही चाहिए, साथ ही बच्चों को भी जागरूक बनाना चाहिए.

बच्चा अगर ऐसी किसी बात की ओर इशारा करता है या शिकायत करे, तो उस की बातों को गंभीरता से लें. उन के भीतर हिम्मत पैदा करें. अगर कभी कोई हादसा हो गया, तो हिम्मत से काम लें. बच्चे से खुल कर बात करें. अगर बच्चा खुल कर न कह पाए या कहना न चाहे, तो उस की अनकही बातों को समझाने की कोशिश करें.

एक समय के बाद बच्चों को यह समझना जरूरी है कि छिपा कर किया हुआ या मन को अच्छा नहीं लगने वाला कोई भी काम ठीक नहीं होता. ऐसे काम से दूर रहना चाहिए. अगर कोई और करे, तो चुप रह जाना चाहिए.

बच्चों को समझाना होगा कि अगर कोई प्यारदुलार के बहाने बदन के किसी हिस्से को हाथ लगाए, तो फौरन मांबाप को बताएं.

बच्चों का जिस्मानी शोषण केवल मर्द करते हैं, गलत है. आरतें भी बच्चों का यौन शोषण करती हैं.

अनजान लोग ही ऐसा काम करते हैं, ऐसा भी नहीं है. ज्यादातर मामलों में पारिवारिक सदस्य, जानने वाले लोग भी बच्चों का जिस्मानी शोषण करते हैं.

जानें कौन-से क्रिकेटर करते हैं अंधविश्वास पर यकीन, सचिन और कोहली भी हैं इसमें शामिल

21से 24 दिसंबर, 2023 को मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में भारत और आस्ट्रेलिया की महिला क्रिकेट टीम के बीच टैस्ट मैच हुआ था, जिसे भारत ने बहुत बड़े अंतर से जीत कर कमाल कर दिया था. महिला टैस्ट क्रिकेट के इतिहास में पहली बार भारत ने आस्ट्रेलिया को हराया था. इस से पहले दोनों देशों के बीच 10 टैस्ट मैच खेले गए थे, जिन में से आस्ट्रेलिया को 4 मुकाबलों में जीत मिली थी, जबकि 6 मैच बेनतीजा रहे थे.

पर असली खबर तो यह है कि इस जीत को भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान और हैड कोच ने धार्मिक जामा पहना दिया. कप्तान हरमनप्रीत कौर ने 26 दिसंबर, 2023 को मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर में जा कर पूजाअर्चना की थी. उन के साथ टीम के हैड कोच अमोल मजूमदार भी मौजूद थे.

इतना ही नहीं, कभी भारतीय क्रिकेट टीम में सलामी बल्लेबाज रहे और अब भारतीय जनता पार्टी के सांसद गौतम गंभीर भी इसी साल के फरवरी महीने में उज्जैन के महाकाल मंदिर में दर्शन करने गए थे. उन्होंने वहां सुबह की भस्म आरती में भी हिस्सा लिया था.

हालिया भारतीय क्रिकेट टीम की रीढ़ की हड्डी कहे जाने वाले विराट कोहली कुछ समय पहले बिलकुल भी बल्लेबाजी नहीं कर पा रहे थे. उन की कप्तानी भी चली गई थी और सोशल मीडिया पर उन की खराब बल्लेबाजी की खूब खिंचाई भी हो रही थी. इस के बाद वे खबरों में इस बात को ले कर चर्चित हुए कि ‘इस मंदिर में जाते ही खुले भाग्य’.

बता दें कि इसी साल की शुरुआत में विराट कोहली अपनी पत्नी अनुष्का शर्मा के साथ उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन करने पहुंचे थे. इस दौरान उन दोनों ने तकरीबन डेढ़ घंटे तक मंदिर के नंदी हाल में बैठ कर भस्म आरती की थी और उस के बाद दोनों ने मंदिर के गर्भगृह में जा कर पंचामृत पूजन अभिषेक किया था.

यही नहीं, पिछले साल वे दोनों उत्तराखंड के नीम करौली बाबा के आश्रम में पहुंचे थे और जनवरी महीने में उन्हें वृंदावन में नीम करोली बाबा के समाधि स्थल पर भी देखा गया था. उन्हें वृंदावन के स्वामी प्रेमानंदजी महाराज के आश्रम में भी देखा गया था.

इस के बाद लोगों ने विराट कोहली की अच्छी बल्लेबाजी को बाबा और मंदिर जाने का कारनामा बता दिया. एक फैन ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘कोहली किस बाबा से मिला था, एड्रैस बताओ. एकदो ख्वाहिश पूरी करवानी हैं.’

इसी तरह सचिन तेंदुलकर का पूरा परिवार सत्य सांईं बाबा का परम भक्त कहा जाता है. जब बाबा का निधन हुआ था, तब वे हैदराबाद में थे. यह खबर मिलते ही उन्होंने खुद को होटल के कमरे में बंद कर लिया था. कहते हैं कि क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने सचिन की मुलाकात सत्य सांईं बाबा से कराई थी.

सोशल मीडिया पर मंदिरों का प्रचार

जब कोई नामचीन क्रिकेटर या कोई दूसरा सैलेब्रिटी किसी मंदिर में जा कर माथा टेकता है और उस की खबर मीडिया में आती है, तो सोशल मीडिया उसे हाथोंहाथ लेता है. विराट कोहली जैसे नामचीन लोगों के किसी मंदिर, बाबा आदि के बारे में सोशल मीडिया पर किए गए कमैंट, फोटो और वीडियो आम लोगों के दिमाग पर गहरा असर करते हैं. वे मन में बिठा लेते हैं कि अगर बड़े लोगों के बिगड़े काम ऐसे बन रहे हैं, तो हमें भी वहीं जाना चाहिए.

अभी हाल ही में उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर, नीम करौली बाबा, वृंदावन के स्वामी प्रेमानंद के आश्रम और मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा ट्रैंड कर रहे हैं और इस अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं कि जब कोई राह न सूझे, तो किसी के दरबार में जा कर माथा टेक दो.

जो लोग क्रिकेटरों को अपने ‘भगवान’ का दर्जा देते हैं, वे तो आंख मूंद कर उन की हर चीज को फौलो करते हैं. तभी तो आज हर छोटेबड़े मंदिर, आश्रम में लोगों की भीड़ देखी जा सकती है. नतीजतन, लोग किसी से कर्ज ले कर भी ऐसी जगह जाते हैं, ताकि उन की मुसीबतें दूर हो जाएं, पर कर्ज लेने के बाद तो उन की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ जाती हैं, यह उन्हें समझ में नहीं आता है.

घोर अंधविश्वासी क्रिकेटर

वैसे तो किसी न किसी तरह का अंधविश्वास हर देश के क्रिकेटर में देखा जा सकता है, पर कुछ क्रिकेटर अपनी पोंगापंथी हरकतों से चर्चा में बने रहते हैं. ‘क्रिकेट के भगवान’ के नाम से मशहूर महान भारतीय बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर बल्लेबाजी करने के लिए मैदान में उतरने से पहले हमेशा बायां पैड पहनते थे, जबकि राहुल द्रविड़ जब बल्लेबाजी करने के लिए तैयार होते थे, तो हमेशा पहले दायां पैड पहनते थे.

एक जमाने के दिग्गज क्रिकेटर मोहिंदर अमरनाथ फील्डिंग करते समय अपनी पैंट की जेब में लाल रूमाल रखते थे. भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रहे मोहम्मद अजहरुद्दीन के गले में काला तावीज बंधा रहता था. फील्डिंग के दौरान कई बार उन्हें वह तावीज चूमते हुए भी देखा जा सकता था.

एक बार ‘द कपिल शर्मा शो’ में आए वीरेंद्र सहवाग और मोहम्मद कैफ ने खुलासा किया था कि उन के कप्तान सौरव गांगुली बहुत ज्यादा अंधविश्वासी थे. मोहम्मद कैफ ने बताया कि एक बार तो सौरव गांगुली मैच में अपने गले में पहनी माला को पकड़े बैठे रहे थे और प्रार्थना करते रहे थे.

इसी तरह वीरेंद्र सहवाग ने कहा था कि दादा (सौरव गांगुली) के गले में जो चेन है, उस में दुनिया के जितने भगवान हैं उन की फोटो मिलेंगी आप को. दुनिया के जितने पत्थर होते हैं नीलम, मोंगा सब उन के पास हैं.

कहने का मतलब है कि जितने क्रिकेटर, उन के उतने ही अंधविश्वास. हैरत तो तब होती है, जब ये लोग अपने हुनर के आगे अपने अंधविश्वास को तरजीह देते हैं और आम लोगों के मन में भर देते हैं कि अगर आप का भाग्य खराब है तो खेल खराब होना तय है, जबकि खेल में हारजीत होना कोई नई बात नहीं है. कोई जीतता है, तो कोई हारता है.

अगर किस्मत और गंडेतावीज, बाबाआश्रम, मठमंदिर और पूजाअर्चना आदि इतने ही ताकतवर होते, तो पिछले वनडे वर्ल्ड कप में लगातार 10 मैच जीतने वाली भारतीय क्रिकेट टीम देशभर में हो रहे हवनपूजन के बावजूद फाइनल मुकाबले में नहीं हारती. लिहाजा, अपने हुनर और मेहनत पर यकीन करें और इन फुजूल के चक्करों में मत पड़ें.

तालिबान ने लड़कियों से ज्यादा पढ़ने का हक छीना

भा रत की केंद्र सरकार कितना ही गरीबों की भलाई की स्कीमों का ढोल पीट ले, पर एक कड़वी हकीकत यह भी है कि आज भी गरीबी और सामाजिक भेदभाव के चलते दलित और आदिवासी बच्चियों की पढ़ाई छोड़ने की दर सब से ज्यादा है. सरकारी स्कूलों में ऐसी बच्चियों के साथ मिड डे मील परोसने तक में भेदभाव किया जाता है.

कितनी हैरत और शर्म की बात है कि देश आजाद होने के इतने साल बाद आज भी कोई बच्चा नाम और जाति सब से पहले सीखता है और दूसरे बच्चे किस जाति के हैं, यह भी वह अपनेआप सीख जाता है. यही फर्क आगे स्कूली जीवन में भी दिखता है, तभी तो वंचित समाज की लड़कियां जल्दी पढ़ाई छोड़ देती हैं और उन के घर बैठने से या तो वे बाल मजदूरी करती हैं या फिर जल्दी ही कम उम्र में ब्याह दी जाती हैं.

पर भारत का पड़ोसी देश अफगानिस्तान तो एक कदम और आगे निकल गया है. आप ही सोचिए कि सालभर पढ़ाई करने के बाद जब कोई बच्चा इम्तिहान पास करता है, तो नई जमात में पहुंचने का जोश और खुशी हद पर होती है. भविष्य के सुंदर सपने आंखों में तैरते हैं, मगर अफगानिस्तान में छठी जमात पास करने वाली लड़कियों की आंखों में आंसू हैं. वजह, अफगानिस्तान का दमनकारी तालिबानी शासन छठी जमात के बाद लड़कियों को आगे पढ़ने की इजाजत नहीं देता.

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में रहने वाली 13 साला सेतायेश साहिबजादा अपने भविष्य को ले कर चिंतित है और अपने सपनों को पूरा करने के लिए स्कूल न जा पाने के चलते उदास है.

सेतायेश साहिबजादा कहती है, ‘‘मैं अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकती. मैं टीचर बनना चाहती थी, लेकिन अब मैं पढ़ नहीं सकती, स्कूल नहीं जा सकती.’’

13 साल की बहारा रुस्तम काबुल के बीबी रजिया स्कूल में 11 दिसंबर, 2023 को आखिरी बार स्कूल गई थी. उसे पता है कि उसे अब आगे पढ़ने का मौका नहीं दिया जाएगा. तालिबान के राज में वह फिर से क्लास में कदम नहीं रख पाएगी. उस की सारी सहेलियां छूट जाएंगी. अब वह उन के साथ खेल नहीं पाएगी. उन से अपने सुखदुख नहीं बांट पाएगी.

लड़कियों की पढ़ाई पर रोक

अफगानी लड़कियां तालिबानी शासन, जो शरीयत पर चलता है, के तहत छठी जमात पास करने के बाद घरों में कैद कर दी जाएंगी. उन की शादी हो जाएगी, फिर वे बच्चे पैदा करेंगी, नौकरों की तरह ताउम्र किसी दूसरे के घर के काम करेंगी, मारीपीटी जाती रहेंगी, फिर एक दिन मर कर जलील जिंदगी से छुटकारा पा लेंगी.

अफगानी औरतें एक ऐसी जिंदगी जी रही हैं, जहां वे अपना कोई फैसला नहीं ले सकती हैं. किसी के आगे अपनी कोई राय नहीं रख सकती हैं. अपनी मरजी से कोई काम नहीं कर सकती हैं. उन्हें कोई हक नहीं है. वे सार्वजनिक जगहों पर नहीं जा सकतीं. उन्हें नौकरियों से बैन कर उन के घरों तक ही सिमटा दिया गया है.

अफगानिस्तान में इस साल लड़कियों व औरतों की एक पीढ़ी से पढ़ाईलिखाई का हक छीन लिया गया है. अगर यह सिलसिला जारी रहा, तो अफगानिस्तान में महिला डाक्टर, महिला नर्सें नहीं होंगी. महिलाओं की गर्भ संबंधी दिक्कतों का इलाज, बच्चे की डिलीवरी सब अशिक्षित घरेलू दवाएं करेंगी. वे बचेंगी या मरेंगी, इस की चिंता किसी को नहीं है. शरीयत का शासन अफगानी औरतों की जिंदगी को उस काल में धकेल रहा है, जब इनसान जंगलों में रहा करता था.

धर्म की सत्ता

धर्म की बुनियाद पर खड़े हुए देश और दुनिया में जहां भी धर्म सत्ता चला रहा है, उस देश और समाज में औरतों की औकात दासी की है. वे सिर्फ आदमी के हुक्म की गुलाम हैं. आदमी औरत को घर में कैद कर के रखे, जब चाहे उस के जिस्म को रौंदे, सालदरसाल उस से बच्चे पैदा करवाए, यह आदमी के लिए धर्मसम्मत है. वह हुक्म देता है कि औरत उस का घर साफ करे, उस के लिए लजीज खाना पकाए, बरतन मांजे, उस के बच्चे पाले, उस के घर वालों की खिदमत करे और अगर उस ने इस में कहीं कोई कोताही दिखाई, तो आदमी हंटरों की मार से उस का पूरा जिस्म लहूलुहान कर दे या उसे गोली से उड़ा दे, इस की इजाजत धर्म देता है.

औरत के लिए धर्म से बड़ा दुश्मन कोई नहीं है. अपनी बीवी का दूसरे मर्द से बलात्कार कराने का रास्ता धर्म बताता है. अपनी पत्नी को गर्भावस्था में छोड़ देने और उसे जंगल जाने के लिए मजबूर करने पर धर्म पुरुष की बुराई नहीं करता, बल्कि उसे पुरुषोत्तम बना देता है. एक स्त्री को भरी सभा में नंगा करने पर तमाम धार्मिक लोगों की जबान तालू से चिपक जाती है.

बड़ेबड़े हथियार उठाने वाले सूरमाओं के हाथों को लकवा मार जाता है, नसों का खून बर्फ हो जाता है. धर्म के हाथों औरत की इस बदहाली की कहानियों से धर्मग्रंथ भरे पड़े हैं और मूर्ख औरतें ऐसे धर्मग्रंथों को सिर पर उठाए फिरती हैं.

अफगानिस्तान में जब तालिबानी अपना दबदबा कायम करने की कोशिशों में थे, तब शरीयत का शासन चाहने वालों में औरतें भी शामिल थीं. हैरानी होती है कि जिस धर्म को हथियार बना कर प्राचीनकाल से मर्द औरत पर हावी रहा, उस पर जोरजुल्म करता रहा, उस को अपना गुलाम बनाए रखा, उस धर्म का त्याग करने के बजाय औरत दिनरात उस के महिमामंडन और प्रसार में क्यों लगी है?

दुनियाभर में चाहे कोई भी धर्म हो, औरतें बढ़चढ़ कर खुशीखुशी सारे कर्मकांडों को पूरा करती हैं. क्या औरतों को आज तक यह समझ में नहीं आया कि धर्म की जंजीरों में उन की खुशहाली और आजादी दम तोड़ रही हैं? क्या औरत कभी यह बात समझोगी कि अनपढ़ लोग कभी भी आजाद और खुशहाल नहीं हो सकते? फिर वह अफगानिस्तान हो या भारत.

साढ़ू से करें पक्का दोस्ताना, पर साली बन सकती है अड़चन

Society News in Hindi: आजकल सोशल मीडिया पर साढ़ू के रिश्ते को ले कर एक वीडियो बहुत देखा जा रहा है. इस में बताया जाता है कि ‘साढ़ू एक ही फैक्टरी से ठगे गए 2 इनसान होते हैं’. असल में पत्नी की बहन के पति को साढ़ू कहा जाता है, जिस का मतलब वीडियो में ऐसे निकाला गया है कि एक ही मां की 2 बेटियों से अलगअलग शादी करने वाले 2 इनसान रिश्ते में साढ़ू हो जाते है. जब संयुक्त परिवारों का दौर था, तब इस रिश्ते को बहुत अहमियत नहीं दी जाती थी, पर आज के समय में जब घरों में बच्चों की संख्या कम होने लगी है, ऐसे में साढ़ू का रिश्ता भी खास हो गया है.

ससुराल में साढ़ू का स्टेट्स एकजैसा होता है, जिस वजह से कई बार आपस में संबंध बिगड़ने का खतरा भी रहता है. जब नया दामाद ससुराल में आता है, तो पुराने की अहमियत थोड़ी कम हो जाती है. कई बार जो दामाद ज्यादा अमीर या दबदबे वाला होता है, उस की अहमियत ज्यादा होती है. ऐसे में साढ़ू की आपस में थोड़ी खींचतान हो जाती है.

जरूरत इस बात की होती है कि साढ़ू के साथ किसी भी तरह की होड़ न रखें. दोनों का ही ससुराल में बराबर का हक होता है. दिखावे में आपसी संबंध खराब न करें. एक ही उम्र के साढू के साथ भाई जैसा रिश्ता रखें. सोशल मीडिया के वीडियो केवल दिखावा होते हैं, यह समझ कर उन को देखें.

बदल गया है बहन का रिश्ता

पहले छोटी बहन और बड़ी बहन के बीच आपस में एक दूरी रहती थी. बड़ी बहन छोटी बहन को अनुशासन में रखती थी. कई बार उन के बीच उम्र का भी फर्क होता था. आज के दौर में 2 बहनों के बीच उम्र की दूरी कम हो गई है. कई बार दोनों ही अकेली होती हैं, तो उन के बीच नजदीकियां ज्यादा होती हैं. वे बहन से ज्यादा दोस्त की तरह हो जाती हैं. वे एकदूसरे की बातों को अच्छी तरह से समझती हैं. वे एकदूसरे की मदद भी करती हैं.

कुछ बहनों के बीच तो इतनी गहरी दोस्ती होती है कि वे एकदूसरे के हर राज जानती हैं. एकदूसरे के बौयफ्रैंड वाले रिश्तों को भी समझती हैं. शरीर में होने वाले बदलाव, कैरियर, दोस्ती, पढ़ाईलिखाई और घरेलू झगड़े दोनों मिलजुल कर बांटती हैं.

जिस तरह से 2 बहनों में अच्छी बनती है, उसी तरह से अगर इन के पतियों यानी साढ़ू के बीच बनने लगे, तो एकदूसरे पर भरोसा बन जाएगा और समाज में एक भरोसेमंद रिश्ता मिल जाएगा. जिस तरह से 2 बहनों के बीच आयु वर्ग एकजैसा होता है, वही साढ़ू के साथ भी होता है.

साढ़ू भी अमूमन एक ही उम्र के होते हैं. ज्यादा से ज्यादा आपस में 2-4 साल का फर्क होता है. ऐसे में उन के आपसी विचार मिलते हैं. जरूरत पड़ने पर वे एकदूसरे के काम आ सकते हैं. संयुक्त परिवार जैसा भरोसा कर सकते हैं. इस के बाद भी साढ़ू के साथ आपसी संबंधों में खिंचाव भी होता है. इस की वजह यह है कि साढ़ू की पत्नी साली होती है. समाज में जीजासाली के संबंध अलग तरह से देखे जाते हैं.

जीजासाली के संबंध डालते हैं दरार

साढ़ू के साथ आपसी संबंधों में दरार पड़ने की खास वजह जीजासाली के संबंध होते हैं. जीजासाली के संबंधों में खुलापन होता है. आपस में हंसीमजाक का भी रिश्ता होता है. कई बार आपस में गहरे संबंध भी जीजासाली के बीच होते हैं.

जीजासाली के गलत संबंधों को समाज हलके नजरिए से भले ही देखता हो, पर साढ़ू ऐसे रिश्ते को सही नहीं मानता. ऐसे में जब उस को यह अहसास भी होता है तो साढ़ू के साथ रिश्ते चल नहीं पाते हैं, इसलिए बड़े साढ़ू को इस बात का खयाल रखना चाहिए कि वह अपनी साली के साथ हंसीमजाक का दायरा न पार करे.

कई बार हंसीमजाक ही ऐसा हो जाता है, जिस का सही असर नहीं पड़ता. उस से आपस में शक बढ़ जाता है. जीजासाली के संबंधों के बीच आया शक साढ़ू के साथ रिश्तों में दरार डालने का काम करता है. कई मामलों में तो साढ़ू के साथ रिश्ता टूट सा भी जाता है.

देवरभाभी के बाद जीजासाली का ही रिश्ता इतना खतरनाक होता है, जिस को ले कर तमाम तरह की कहानियां सुनने और पढ़ने को मिलती हैं.

इस की 2 खास वजहें होती हैं. एक तो जीजासाली की बात हो या देवरभाभी की दोनों रिश्तों में ही आपस में उम्र का फासला कम होता है. दूसरे, दोनों ही रिश्तों में हंसीमजाक होता है. मजाकमजाक में बात आगे बढ़ती है. अगर बात सैक्स संबंधों तक नहीं पहुंची तो मसला मजाक का मान लिया जाता है. अगर बात मजाक से आगे बढ़ी तो सैक्स संबंधों तक पहुंच जाती है.

तीसरी एक बात और होती है कि दोनों को आपस में अकेले मिलने के तमाम मौके होते हैं. इस अकेलेपन का फायदा मिल जाता है. अगर बात घरपरिवार तक पहुंचती भी है तो वे आपस में ही इस को दबाने का काम करते हैं. ऐसे में ये रिश्ते खतरनाक बन जाते हैं.

ऐसे में यह बात साफ है कि साढ़ू के आपस में संबंध तभी अच्छे होंगे जब जीजासाली के बीच संबंध सहज होंगे. अगर वहां संबंध सहज नहीं हैं, तो साढ़ू के साथ भी रिश्ते नहीं बनेंगे. इन बातों को दरकिनार कर के देखें तो साढ़ू का आपस में रिश्ता बहुत अच्छा होता है. जरूरत होती है कि इस को दोस्त के जैसा रखा जाए.

ऐसे में साढ़ू एक फैक्टरी से ठगे गए 2 इनसान नहीं होते. अगर वे दोनों समझदार हैं तो उन में खून का रिश्ता न होते हुए भी उतना ही करीबी संबंध बन सकता है.

जब कोई तलाकशुदा मुसलिम औरत नया शौहर तलाशे, ऐसे मर्द से तो दूरी बनाए

कोई पढ़ीलिखी तलाकशुदा मुसलिम औरत नए मर्द में क्या देखती है? यही न कि वह उसे कितनी इज्जत दे सकता है या नहीं. वह देखती है कि सामने वाला मर्द अपने पैरों पर खड़ा हो. वह चाहती है कि उस का होने वाला शौहर पढ़ालिखा हो, इज्जतदार घराने से हो, क्योंकि कोई इज्जतदार शौहर ही अपनी बीवी को इज्जत दे सकता है और दूसरे लोगों से उसे इज्जत दिला भी सकता है.

कोई भी औरत मर्द के प्यार से ज्यादा इज्जत पाने की उम्मीद रखती है, क्योंकि मर्द के दिल में अगर औरत के प्रति इज्जत होगी, तो प्यार तो खुद से पैदा हो जाएगा. पर अगर किसी भी मर्द के मन में औरत के प्रति इज्जत नहीं होगी तो वह प्यार तो क्या पाएगी, बल्कि सिर्फ हवस का शिकार हो कर रह जाएगी.

ऐसे मर्द औरत को कमतर समझते हैं और उसे भोगने का साधन मानते हैं या उसे औलाद पैदा करने की मशीन समझ कर हर मोड़ पर उस की बेइज्जती करते हैं. वे उसे घर की ‘बाई’ की तरह इस्तेमाल करते हैं.

पढ़ीलिखी तलाकशुदा मुसलिम औरत कभी भी किसी मर्द की दूसरी बीवी न बने, क्योंकि मुसलिम समुदाय में यह रिवाज है कि मर्द 4 बीवी तक रख सकते हैं, इसलिए किसी की पहली बीवी हो तो उस की दूसरी या तीसरी बीवी कतई न बनें.

तलाकशुदा मुसलिम औरत को दूसरी शादी करने में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. उसे जल्दबाजी में कोई गलत कदम नहीं उठाना चाहिए, बल्कि सब्र के साथ सही और ऐसा मर्द देखना चाहिए, जो उस की जिम्मेदारी अच्छी तरह से उठा सके.

किसी ऐसे मर्द का चुनाव नहीं करना चाहिए जो पहले से शादीशुदा हो और उस के बच्चे हों, क्योंकि अकसर यह देखा गया है कि कोई भी सौतेली मां अपने सौतेले बच्चों से कितना भी प्यार कर ले, शौहर और समाज के लोग उसे ‘सौतेली मां’ की ही संज्ञा देते हैं और समयसमय पर उसे ताने मरते हैं. यहां तक की उन मियांबीवी में बच्चों को ले कर हमेशा झगड़ा होने के चांस ज्यादा होते हैं, जिस से कभी भी घर बिखरने का खतरा बना रहता है.

कभी भी किसी ऐसे मर्द से निकाह न करें जो नशेड़ी हो. न कभी किसी कामचोर से ब्याह करने की सोचें.

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