Hindi Story: फ्रैंड जोन – क्या कार्तिक को दोस्ती में मिल पाया अपना प्यार

Hindi Story: ‘‘नौकरी के साथसाथ अपनी सेहत का भी ध्यान रखना बेटा, अच्छा?’’ कार्तिक को ट्रेन में विदा करते समय मातापिता ने अपना प्यार उड़ेलने के साथ यह कह डाला.

कार्तिक पहली बार घर से दूर जा रहा था. आज तक तो मां ने ही उस का पूरा ध्यान रखा था, पर अब उसे स्वयं यह जिम्मेदारी उठानी थी. इंजीनियरिंग कर कालेज से ही कैंपस प्लेसमैंट से उस की नौकरी लग गई थी, और वह भी उस शहर में जहां उस के मौसामौसी रहते थे. सो अब किसी प्रकार की चिंता की कोई बात नहीं थी. मौसी के घर पहुंच कर कार्तिक ने मां द्वारा दी गई चीजें देनी आरंभ कर दीं.

‘‘ओ हो, क्या क्या भेज दिया जीजी ने,’’ मौसी सामान रखने में व्यस्त हो गईं और मौसाजी कार्तिक से उस की नई नौकरी के बारे में पूछने लगे. उन्हें नौकरी अच्छी लग रही थी, कार्यभार से भी और तनख्वाह से भी.

अगले दिन कार्तिककी जौइनिंग थी. उसे अपना दफ्तर काफी पसंद आया. पूरा दिन जौइनिंग प्रोसैस में ही बीत गया. उसे उस की मेज, उस का लैपटौप व डाटाकार्ड और दफ्तर में प्रवेश पाने के लिए स्मार्टकार्ड मिल गया था. शाम को घर लौट कर मौसाजी ने दिनभर का ब्योरा लिया तो कार्तिक ने बताया, ‘‘कंपनी अच्छी लग रही है, मौसाजी. तकनीकी दृष्टि से वहां नएनए सौफ्टवेयर हैं, आधुनिक मशीनें हैं और साथ ही मेरे जैसा यंगक्राउड भी है. वीकैंड्स पर पार्टियों का आयोजन भी होता रहता है.’’

‘‘ओ हो, यंगक्राउड और पार्टियां, तो यहां मामला जम सकता है,’’ मौसाजी ने उस की खिंचाई की तो कार्तिक शरमा गया. कार्तिक थोड़ा शर्मीला किस्म का लड़का था. इसी कारण आज तक उस की कोई गर्लफ्रैंड नहीं बन पाई थी.

‘‘क्यों छेड़ रहे हो बच्चे को,’’ मौसी बीच में बोल पड़ीं तब भी मौसाजी चुप नहीं रहे, ‘‘तो क्या यों ही सारी जवानी निकाल देगा ये बुद्धूराम.’’

कार्तिक काम में चपल था. दफ्तर का काम चल पड़ा. कुछ ही दिनों में अपने मैनेजमैंट को उस ने लुभा लिया था. लेकिन उस को भी किसी ने लुभा लिया था, वह थी मान्या. वह दूसरे विभाग में कार्यरत थी, लेकिन उस का भी काम में काफी नाम था और साथ ही, वह काफी मिलनसार भी थी. खुले विचारों की, सब से हंस कर दोस्ती करने वाली, हर पार्टी की जान थी मान्या.

वह कार्तिक को पसंद अवश्य थी, लेकिन अपने शर्मीले स्वभाव के चलते उस से कुछ कहने की हिम्मत तो दूर, कार्तिक आंखों से भी कुछ बयान करने की हिम्मत नहीं कर सकता था. मान्या हर पार्टी में जाती, खूब हंसतीनाचती, सब से घुलमिल कर बातें करती. कार्तिक बस उसे दूर से निहारा ही करता. पास आते ही इधरउधर देखने लगता. 2 महीने बीततेबीतते मान्या ने खुद ही कार्तिक से दूसरे सहकर्मियों की तरह दोस्ती कर ली. अब वह कार्तिक को अपने दोस्तों के साथ रखने लगी थी.

‘‘आज शाम को पार्टी में आओगे न, कार्तिक? पता है न आज का थीम रेट्रो,’’ मान्या के कहने पर कार्तिक ने 70 के दशक वाले कपड़े पहने. मान्या चमकीली सी ड्रैस पहने, माथे पर एक चमकीली डोरी बांधे बहुत ही सुंदर लग रही थी.

‘‘क्या गजब ढा रही हो, जानेमन,’’ कहते हुए इसी टोली के एक सदस्य, नितिन ने मान्या की कमर में हाथ डाल दिया, ‘‘चलो, थोड़ा डांस हो जाए.’’

‘‘डांस से मुझे परहेज नहीं है पर इस से जरूर है,’’ कमर में नितिन के हाथ की तरफ इशारा करते हुए मान्या ने आराम से उस का हाथ हटा दिया. जब काफी देर दोनों नाच लिए तो मान्या ने कार्तिक से कहा, ‘‘गला सूख रहा है, थोड़ा कोल्डड्रिंक ला दो न, प्लीज.’’

कार्तिक की यही भूमिका रहती थी अकसर पार्टियों में. वह नाचता तो नहीं था, बस मान्या के लिए ठंडापेय लाता रहता था. लेकिन आज की घटना ने उसे कुछ उदास कर दिया था. नितिन का यों मान्या की कमर में आसानी से अपनी बांह डालना उसे जरा भी नहीं भाया था. हालांकि मान्या ने ऐतराज जता कर उस का हाथ हटा दिया था. मगर नितिन की इस हरकत का सीधा तात्पर्य यह था कि मान्या को सब लड़के अकेली जान कर अवेलेबल समझ रहे थे. जिस का दांव लग गया, मान्या उस की. तो क्या कार्तिक का महत्त्व मान्या के जीवन में बस खानेपीने की सामग्री लाने के लिए था?

इन्हीं सब विचारों में उलझा कार्तिक घर वापस आ गया. कमरे में अनमना सा, सोच में डूबे हुए उस को यह भी नहीं पता चला कि मौसाजी कब कमरे में आ कर बत्ती जला चुके थे. बत्ती की रोशनी ने कमरे की दीवारों को तो उज्ज्वलित कर दिया पर कार्तिक के भीतर चिंतन के जिस अंधेरे ने मजबूती से पैर जमाए थे, उसे डिगाने के लिए मौसाजी को पुकारना पड़ा, ‘‘अरे यार कार्तिक, आज क्या हो गया जो इतने गुमसुम हुए बैठे हो? किस की मजाल कि मेरे भांजे को इतना परेशान कर रखा है, बताओ मुझे उस का नाम.’’

‘‘मौसाजी, आप? आइए… आइए… कुछ नहीं, कोई भी तो नहीं,’’ सकपकाते हुए कार्तिक के मुंह से कुछ अस्फुटित शब्द निकले.

‘‘बच्चू, हम से ही होशियारी? हम ने भी कांच की गोटियां नहीं खेलीं, बता भी दे कौन है?’’ कार्तिक के कंधे पर हाथ रखते हुए मौसाजी वहीं विराजमान हो गए. उन के हावभाव स्पष्ट कर रहे थे कि आज वे बिना बात जाने जाएंगे नहीं. मौसी से कह कर खाना भी वहीं लगवा लिया गया. जब खाना लगा कर मौसी जाने को हुईं तो मौसाजी ने कमरे का दरवाजा बंद करते हुए मौसी को हिदायत दी, ‘‘आज हम दोनों की मैन टु मैन टौक है, प्लीज डौंट डिस्टर्ब,’’ मौसी हंसती हुई वापस रसोई में चली गईं तो मौसाजी फिर शुरू हो गए, ‘‘हां, यार, तो बता…’’

कार्तिक ने हथियार डालते हुए सब उगल दिया.

‘‘हम्म, तो अभी यही नहीं पता कि बात एकतरफा है या आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई है’’, मौसाजी का स्वभाव एक दोस्त जैसा था. उन्होंने सदा से कार्तिक को सही सलाह दी थी और आज भी उन्हें अपनी वही परंपरा निभानी थी.

‘‘देख यार, पहली बात तो यह कि यदि तुम किसी लड़की को पसंद करते हो, तो उस के फ्रैंड जोन से फौरन बाहर निकलो. मान्या के लिए तू कोई वेटर नहीं है. सब से पहले किसी भी पार्टी में जा कर उस के लिए खानापीना लाना बंद कर. लड़कियों को आकर्षित करना हो तो 3 बातों का ध्यान रख, पहली, उन्हें बराबरी का दर्जा दो और खुद को भी उन के बराबर रखो. अगली पार्टी कब है? मान्या को अपना यह नया रूप तुझे उसी पार्टी में दिखाना है. जब तू इस इम्तिहान में पास हो जाएगा, तो अगला स्टैप फौलो करेंगे.’’

हालांकि कार्तिक तीनों बातें जानने को उत्सुक था, मौसाजी ने एकएक कदम चलना ही ठीक समझा. जल्द ही अगली पार्टी आ गई. पूरी हिम्मत जुटा कर, अपने नए रूप को ध्यान में रखते हुए कार्तिक वहां पहुंचा. इस बार नाचने के बाद जब मान्या ने कार्तिक की ओर देखा तो पाया कि वह अन्य लोगों से बातचीत में मगन है. कार्तिक को अचंभा हुआ जब उस ने यह देखा कि मान्या न सिर्फ अपने लिए, बल्कि उस के लिए भी ठंडेपेय का गिलास पकड़े उस की ओर आ रही है.

‘‘लो, आज मैं तुम्हें कोल्डड्रिंक सर्व करती हूं,’’ हंसते हुए मान्या ने कहा. फिर धीरे से उस के कान में फुसफुसाई, ‘‘मुझे अच्छा लगा यह देख कर कि तुम भी सोशलाइज हो.’’

मौसाजी की बात सही निकली. मान्या पर उस के इस नए रूप का सार्थक असर पड़ा था. घर लौट कर कार्तिक खुश था. कारण स्पष्ट था. मौसाजी ने आज मैन टु मैन टौक का दूसरा स्टैप बताया. ‘‘इस सीढ़ी के बाद अब तुझे और भी हिम्मत जुटा कर अगली पारी खेलनी है. फ्रैंड जोन से बाहर आने के लिए तुझे उस के आसपास से परे देखना होगा. एक औरत के लिए यह झेलना मुश्किल है कि जो अब तक उस के इर्दगिर्द घूमता था, अब वह किसी और की तरफ आकर्षित हो रहा है. और इस से हमें यह भी पता चल जाएगा कि वह तुझे किस नजर से देखती है. उस से तुलनात्मक तरीके से उस की सहेली की, उस की प्रतिद्वंद्वी की, यहां तक कि उस की मां की तारीफ कर. इस का परिणाम मुझे बताना, फिर हम आखिरी स्टैप की बात करेंगे.’’

अगले दिन से ही कार्तिक ने अपने मौसाजी की बात पर अमल करना शुरू कर दिया. ‘‘कितनी अच्छी प्रैजेंटेशन बनाई आज रवीना ने. इस से अच्छी प्रैजेंटेशन मैं ने आज तक इस दफ्तर में नहीं देखी’’, कार्तिक के यह कहने पर मान्या से रहा नहीं गया, ‘‘क्यों मेरी प्रैजेंटेशन नहीं देखी थी तुम ने पिछले हफ्ते? मेरे हिसाब से इस से बेहतर थी.’’

लंच के दौरान सभी साथ खाना खा रहे थे. एकदूसरे के घर का खाना बांट कर खाते हुए कार्तिक बोला, ‘‘वाह  मान्या, तुम्हारी मम्मी कितना स्वादिप्ठ भोजन पकाती हैं. तुम भी कुछ सीखती हो उन से, या नहीं?’’

‘‘हां, हां, सीखती हूं न,’’ मान्या स्तब्ध थी कि अचानक कार्तिक उस से कितने अलगअलग विषयों पर बात करने लगा था. अगले कुछ दिन यही क्रम चला. मान्या अकसर कार्तिक को कभी कोई सफाई दे रही होती या कभी अपना पक्ष रख रही होती. कार्तिक कभी मान्या की किसी से तुलना करता तो वह चिढ़ जाती और फौरन खुद को बेहतर सिद्ध करने लग जाती. फिर मौसाजी द्वारा राह दिखाने पर कार्तिक ने एक और बदलाव किया. उस ने अपने दफ्तर में मान्या की क्लोजफ्रैंड शीतल को समय देना शुरू कर दिया. शीतल खुश थी क्योंकि कार्तिक के साथ काम कर के उसे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा था. मान्या थोड़ी हैरान थी क्योंकि आजकल कार्तिक उस के बजाय शीतल के साथ लंच करने लगा था, कभी किसी दूसरे दफ्तर जाना होता तब भी वह शीतल को ही संग ले जाता.

‘‘क्या बात है, कार्तिक, आजकल तुम शीतल को ही अपने साथ हर प्रोजैक्ट में रखते हो? किसी बात पर मुझ से नाराज हो क्या?’’, आखिर मान्या एक दिन पूछ ही बैठी.

‘‘नहीं मान्या, ऐसी कोई बात नहीं है. वह तो शीतल ही चाह रही थी कि वह मेरे साथ एकदो प्रोजैक्ट कर ले तो मैं ने भी हामी भर दी,’’ कह कर कार्तिक ने बात टाल दी. लेकिन घर लौटते ही मौसाजी से सारी बातें शेयर की.

‘‘अब समय आ गया है हमारी मैन टु मैन टौक के आखिरी स्टैप का, अब तुम्हारा रिश्ता इतना तैयार है कि जो मैं तुम से कहलवाना चाहता हूं वह तुम कह सकते हो. अब तुम में एक आत्मविश्वास है और मान्या के मन में तुम्हारे प्रति एक ललक. लोहा गरम है तो मार दे हथोड़ा,’’ कहते हुए मौसाजी ने कार्तिक को आखिरी स्टैप की राह दिखा दी.

अगले दिन कार्तिक ने मान्या को शाम की कौफी पीने के लिए आमंत्रित किया. मान्या फौरन तैयार हो गई. दफ्तर के बाद दोनों एक कौफी शौप पर पहुंचे. ‘‘मान्या, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं,’’ कार्तिक के कहने के साथ ही मान्या भी बोली, ‘‘कार्तिक, मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं.’’

‘‘तो कहो, लेडीज फर्स्ट,’’ कार्तिक के कहने पर मान्या ने अपनी बात पहले रखी. पर जो मान्या ने कहा वह सुनने के बाद कार्तिक को अपनी बात कहने की आवश्यकता ही नहीं रही.

‘‘कार्तिक, मैं बाद में पछताना नहीं चाहती कि मैं ने अपने दिल की बात दिल में ही रहने दी और समय मेरे हाथ से निकल गया. मैं… मैं… तुम से प्यार करने लगी हूं. मुझे नहीं पता कि तुम्हारे मन में क्या है, लेकिन मैं अपने मन की बात तुम से कह कर निश्चिंत हो चुकी हूं.’’

अंधा क्या चाहे, दो आंखें, कार्तिक सुन कर झूम उठा, उस ने तत्काल मान्या को प्रपोज कर दिया, ‘‘मान्या, मैं न जाने कब से तुम्हारी आस मन में लिए था. आज तुम से भी वही बात सुन कर मेरे दिल को सुकून मिल गया. लेकिन सब से पहले मैं तुम्हें किसी से मिलवाना चाहता हूं. अपने गुरु से,’’ और कार्तिक मान्या को ले कर सीधा अपने मौसाजी के पास घर की ओर चल दिया. Hindi Story

Story In Hindi: धमकियां – गांव की रहने वाली सुधा को क्या अपना पाया शेखर?

Story In Hindi: *शेखर* और सुधा की मैरिज ऐनिवर्सरी के दिन सब बेहद खुश थे. शनिवार का दिन था तो आराम से सब सैलिब्रेशन के मूड में थे. पार्टी देर तक भी चले तो कोई परेशानी नहीं.

अनंत और प्रिया ने पार्टी का सब इंतजाम कर लिया था. अंजू और सुधीर से भी बात हो गई थी. वे भी सुबह ही आ रहे थे. प्रोग्राम यह था कि पहले पूरा परिवार लंच एकसाथ घर पर करेगा, फिर डिनर करने सब बाहर जाएंगे. इस तरह पूरा दिन सब एकसाथ बिताने वाले थे.

शेखर और सुधा अपने बच्चों के साथ समय बिताने के लिए अति उत्साहित थे. अनंत तो अपनी पत्नी प्रिया और बेटी पारूल के साथ उन के साथ ही रहता था, बेटी अंजू अंधेरी में अपने पति सुधीर और बेटे अनुज के साथ रहती थी. मुंबई में होने पर भी मिलनाजुलना जल्दी नहीं हो पाता था, क्योंकि बहूबेटा, बेटीदामाद सब कामकाजी थे.

इसलिए जब भी सब एकसाथ मिलते, शेखर और सुधा बहुत खुश होते थे.सब की आपस में खूब बनती थी. सब जब भी मिलते, महफिल खूब जमती, जम कर एकदूसरे की टांग खींची जाती, कोई किसी की बात का बुरा न मानता. बच्चों के साथ शेखर और सुधा भी खूब हसंतेहंसाते.

12 बजे अंजू सुधीर और अनुज के साथ आ गई. सब ने एकदूसरे को प्यार से गले लगाया. शेखर और सुधा के साथसाथ अंजू सब के लिए कुछ न कुछ लाई थी. पारूल और अनुज तो अपनेआप में व्यस्त हो गए. हंसीमजाक के साथसाथ खाना भी लगता रहा. लंच भी बाहर से और्डर कर लिया गया था, पर प्रिया ने स्नेही सासससुर के लिए खीर और दहीबड़े उन की पसंद को ध्यान में रख कर खुद बनाए थे, जिसे सब ने खूब तारीफ करते हुए खाया.

खाना खाते हुए सुधीर ने बहुत सम्मानपूर्वक कहा, ”पापा, आप लोगों की मैरिडलाइफ एक उदाहरण है हमारे लिए. कभी भी आप लोगों को किसी बात पर बहस करते नहीं देखा. इतनी अच्छी बौंडिंग है आप दोनों की. मेरे मम्मीपापा तो खूब लड़ते थे. आप लोगों से बहुत कुछ सीखना चाहिए.”

फिर जानबूझ कर अंजू को छेड़ते हुए कहा,” इसे भी कुछ सिखा दिया होता, कितना लड़ती है मुझ से. कई बार तो शुरूशुरू में लगता था कि इस से निभेगी भी या नहीं.”

अंजू ने प्यार से घूरा,”बकवास बंद करो, तुम से कभी नहीं लड़ी मैं, झूठे…”

प्रिया ने भी कहा,”जीजू , आप ठीक कह रहे हैं, मम्मीपापा की कमाल की बौंडिंग है. दोनों एकदूसरे का बहुत ध्यान रखते हैं. बिना कहे ही एकदूसरे के मन की बात जान लेते हैं. यहां तो अनंत को मेरी कोई बात ही याद नहीं रहती. काश, अनंत भी पापा की तरह केयरिंग होता.”

अनंत से भी रहा नहीं गया, झूठमूठ गले में कुछ फंसने की ऐक्टिंग करता हुआ बोला,” मेरी प्यारी बहन अंजू, यह हम दोनों भाईबहन क्या सुन रहे हैं? क्यों न आज मम्मीपापा की बहू और दामाद को इस बौंडिंग की सचाई बता दें? हम कब तक ताने सुनते रहेंगे,” कहता हुआ अनंत अंजू को देख कर शरारत से हंस दिया.

शेखर ने चौंकते हुए कहा,”अरे, कैसी सचाई? क्या तुम बच्चों से अपने पेरैंट्स की तारीफ सहन नहीं हो रही?”

अनंत हंसते हुए बोला,”मम्मीपापा, तैयार हो जाइए, आप की बहू और आप के दामाद से हम भाईबहन आप की इस बौंडिंग का राज शेयर करने जा रहे हैं…”

फिर नाटकीय स्वर में अंजू से कहा,”चल, बहन, शुरू हो जा…”

*अंजू* ने जोर से हंसते हुए बताना शुरू किया,”जब हम छोटे थे, हम रोज देखते कि पापा मम्मी को हर बात में कहते हैं कि मैं तुम्हारे साथ एक दिन नहीं रह सकता. अम्मांपिताजी ने मेरे साथ बहुत बुरा किया है कि तुम से मेरी शादी करवा दी. मेरे जैसे स्मार्ट लड़के के लिए पता नहीं कहां से गंवार लड़की ले कर मेरे साथ बांध दिया,” इतना सुनते ही प्रिया और सुधीर ने चौंकते हुए शेखर और सुधा को देखा.

शेखर बहुत शर्मिंदा दिखे और सुधा की आंखों में एक नमी सी आ गई थी, जिसे देख कर शेखर और शर्मिंदा हो गए.

अनंत ने कहा,”और एक मजेदार बात यह थी कि रोज हमें लगता कि बस शायद कल मम्मी और पापा अलग हो जाएंगे पर हम अगले दिन देखते कि दोनों अपनेअपने काम में रोज की तरह व्यस्त हैं.

“सारे रिश्तेदारों को पता था कि दादादादी ने अपनी पसंद की लड़की से पापा की शादी कराई है और पापा को मम्मी पसंद नहीं हैं. हम किसी से भी मिलते, तो हम से पूछा जाता कि अब भी तुम्हारे पापा को तुम्हारी मम्मी पसंद नहीं हैं क्या?

“हमें कुछ समझ नहीं आता कि क्या कहें पर सब मम्मी की खूब तारीफ करते. सब का कहना था कि मम्मी जैसी लड़की संयोग से मिलती है पर पापा घर में हर बात पर यही कहते कि उन की लाइफ खराब हो गई है, यह शादी उन की मरजी से नहीं हुई है. उन्हें किसी शहर की मौडर्न लड़की से शादी करनी थी और उन के पेरैंट्स ने अपने गांव की लड़की से उन की शादी करा दी.

“हालांकि मम्मी बहुत पढ़ीलिखी हैं पर प्रोफैसर पापा अलग ही दुनिया में जीते और मैं और अंजू मम्मीपापा के तलाक के डर के साए में जीते रहे.

“कभी अनंत मुझे समझाता, तसल्ली देता कि कुछ नहीं होगा, कभी मैं उसे समझाती कि अगले दिन तो सब ठीक हो ही जाता है. हमारी जवानी तो पापा की धमकियों में ही बीत गई.”

फिर अचानक अनंत जोर से हंसा और कहने लगा,”धीरेधीरे हम बड़े हो गए और समझ आ गया कि पापा सिर्फ मम्मी को धमकियां देते हैं, हमारी प्यारी मां को छोड़ना इन के बस की बात नहीं.”

प्रिया और सुधीर ने शेखर को बनावटी गुस्से से कहा,”पापा, वैरी बैड, हम आप को क्या समझते थे और आप क्या निकले… बेचारे बच्चे आप की धमकियों में जीते रहे और हम आप दोनों की बौंडिंग के फैन होते रहे. क्यों, पापा, ये धमकियां क्यों देते रहे?”

शेखर ने सुधा की तरफ देखते हुए कहा,”वैसे अच्छा ही हुआ कि आज तुम लोगों ने बात छेड़ दी, दिन भी अच्छा है आज.”

*उन* के इतना कहते ही अंजू ने कहा,”अच्छा, दिन अच्छा हो गया अब मैरिज ऐनिवर्सरी का, बच्चों को परेशान कर के?”

”हां, बेटा, दिन बहुत अच्छा है आज का जो मुझे इस दिन सुधा मिली.”

अब सब ने उन्हें चिढ़ाना शुरू कर दिया,”रहने दो पापा, हम आप की धमकियां नहीं भूलेंगे.”

”सच कहता हूं, मैं गलत था. मैं ने सुधा को सच में तलाक की धमकी देदे कर बहुत परेशान किया. मैं चाहता था कि मैं बहुत मौडर्न लड़की से शादी करूं, गांव की लड़की मुझे पसंद नहीं थी. हमेशा शहर में रहने के कारण मुझे शहरी लड़कियां ही भातीं. जब अम्मांपिताजी ने सुधा की बात की तो मैं ने साफसाफ मना कर दिया पर सुधा के पेरैंट्स की मृत्यु हो चुकी थी और भाई ने ही हमेशा सुधा की जिम्मेदारी संभाली थी.

“अम्मां को सुधा से बहुत लगाव था. मैं ने तो यहां तक कह दिया था कि मंडप से ही भाग जाऊंगा पर पिताजी के आगे एक न चली और सारा गुस्सा सुधा पर ही उतरता रहा.

“मेरे 7 भाईबहनों के परिवार को सुधा ने ऐसे अपनाया कि सब मुझे भूलने लगे. हर मुंह पर सुधा का नाम, सुधा के गुण देख कर सब इस की तारीफ करते न थकते पर मेरा गुस्सा कम होने का नाम ही ना लेता पर धीरेधीरे मेरे दिल में इस ने ऐसी जगह बना ली कि क्या कहूं, मैं ही इस का सब से बड़ा दीवाना बन गया.

“जब आनंद पैदा हुआ तो सब को लगा कि अब सब ठीक हो जाएगा पर मैं नहीं सुधरा, सुधा से कहता कि बस यह थोड़ा बड़ा हो जाए तो मैं तुम्हे तलाक दे दूंगा.

“फिर 2 साल बाद अंजू हुई तो भी मैं यही कहता रहा कि बस बच्चे बड़े हो जाएं तो मैं तुम्हे तलाक दे दूंगा और तुम चाहो तो गांव में अम्मां के साथ रह सकती हो.

“फिर बच्चे बड़े हो रहे थे तो मेरी बहनों की शादी का नंबर आता रहा. सुधा अपनी हर जिम्मेदारी दिल से निभाती रही और मेरे दिल में जगह बनाती रही पर मैं इतना बुरा था कि तलाक की धमकियों से बाज नहीं आता…

“सुधा घर के इतने कामों के साथ अपना पूरा ध्यान पढाईलिखाई में लगाती और इस ने धीरेधीरे अपनी पीएचडी भी पूरी कर ली और एक दिन एक कालेज में जब इसे नौकरी मिल गई तो मैं पूरी तरह से अपनी गलतियों के लिए इतना शर्मिंदा था कि इस से माफी भी मांगने की मेरी हिम्मत नहीं हुई.

“मन ही मन इतना शर्मिंदा था कि आज इसलिए इस दिन को अच्छा बता रहा था कि मैं तुम सब के सामने सुधा से माफी मांगने की हिम्मत कर पा रहा हूं.

“बच्चो, तुम से भी शर्मिंदा हूं कि मेरी तलाक की धमकियों से तुम्हारा बालमन आहत होता रहा और मुझे खबर भी नहीं हुई.

“सुधा, अनंत और अंजू, तुम सब मुझे आज माफ कर दो…”

प्रिया ने सुधा की तरफ देखते हुए कहा,”मम्मी, आप भी कुछ कहिए न?”

सुधा ने एक ठंडी सांस ली और बोलने लगी,”शुरू में तो एक झटका सा लगा जब पता चला कि मैं इन्हें पसंद नहीं, मातापिता थे नहीं, भाई ने बहुत मन से मेरा विवाह इन के साथ किया था. लगा भाई को बहुत दुख होगा अगर उस से अपना दुख बताउंगी तो…

“इसलिए कभी भी किसी से शेयर ही नहीं किया कि पति तलाक की धमकियां दे रहा है. सोचा समय के साथ शायद सब ठीक हो जाए और ठीक हुआ भी. तुम दोनों के पैदा होने के बाद इन का अलग रूप देखा. तुम दोनों को यह खूब स्नेह देते, कालेज से आते ही तुम दोनों के साथ खूब खेलते.

“मैं ने यह भी देखा कि मुझे अपने पेरैंट्स के सामने या उन के आसपास होने पर ये तलाक की धमकियां ज्यादा देते हैं, अकेले में इन का व्यवहार कभी खराब भी नहीं रहा. मेरी सारी जरूरतों का हमेशा ध्यान रखते. मैं समझने लगी थी कि यह हम सब को प्यार करते हैं, हमारे बिना रह ही नहीं सकते.

“ये धमकियां पूरी तरह से झूठी हैं, सिर्फ अपने पेरैंट्स को गुस्सा दिखाने के लिए करते हैं.

“यह अपने पेरैंट्स से इस बात पर नाराज थे कि उन्होंने इन के विवाह के लिए इन की मरजी नहीं पूछी, सीधे अपना फैसला थोप दिया.

“जब मैं ने यह समझ लिया तो जीना मुश्किल ही नहीं रहा. मुझे पढ़ने का शौक था, किताबें तो यह ही ला कर दिया करते. पूरा सहयोग किया तभी तो पीएचडी कर पाई.

“रातभर बैठ कर पढ़ती तो यह कभी चाय बना कर देते, कभी गरम दूध का गिलास जबरदस्ती पकड़ा देते और अगर अगले दिन अम्मांपिताजी आ जाएं तो तलाकपुराण शुरू हो जाता, पर मैं इन के मौन प्रेम का स्वाद चख चुकी थी, फिर मुझे कोई धमकी असर न करती,” कहतेकहते सुधा बहुत प्यार से हंस दी.

*शेखर* हैरानी से सुधा का मुंह देख रहे थे, बोले,”मतलब तुम्हें जरा भी चिंता नहीं हुई कभी?”

”नहीं, जनाब, कभी भी नहीं,” सुधा मुसकराई.

अनंत और अंजू ने एकदूसरे की तरफ देखा, फिर अनंत बोला,” लो बहन, और सुनो इन की कहानी, मतलब हम ही बेवकूफ थे जो डरते रहे कि हाय, मम्मीपापा का तलाक न हो जाए, फिर हमारा क्या होगा?

“हम बच्चे तो कई बार यह बात भी करने बैठ जाते कि पापा के पास कौन रहेगा और मम्मी के पास कौन?

“हमें तो फिल्मी कोर्टसीन याद आते और हम अलग ही प्लानिंग करते. पापामम्मी, बड़ा जुल्म किया आप ने बच्चों पर. ये धमकियां हमारे बचपन पर बहुत भारी पड़ी हैं.”

शेखर ने अब गंभीरतापूर्वक कहा,”हां, बच्चो, यह मैं मानता हूं कि तुम दोनों के साथ मैं ने अच्छा नहीं किया, मुझे कभी महसूस ही नहीं हुआ कि मेरे बच्चों के दिलों पर ये धमकियां क्या असर कर रही होंगी, सौरी, बच्चो.”

अंजू ने चहकते हुए शरारत से कहा,”वह तो अच्छा है कि मम्मी ने यह बात एक दिन महसूस कर ली थी कि आप की तलाक की धमकियां हमें परेशान करती हैं तो उन्होंने हमें बैठा कर एक दिन समझा दिया था कि आप का यह गुस्सा दादादादी को दिखाने का एक नाटक है. कुछ तलाकवलाक कभी नहीं होगा, तब जा कर हम थोड़ा ठीक हुए थे.”

शेखर अब मुसकराए और नाटकीय स्वर में कहा,”मतलब मेरी खोखली धमकी का किसी पर भी असर नहीं पड़ रहा था और मैं खुद को तीसमारखां समझता रहा…”

सुधीर ने प्रिया की ओर देखते हुए कहा,”प्रिया, अनंत और अंजू कोई धमकी कभी दें तो दिल पर मत लेना, यार, हमें तो बड़े धमकीबाज ससुर मिले हैं, पर यह भी सच है कि आप दोनों की बौंडिंग है तो कमाल…

“एक सारी उम्र धमकी देता रहा, दूसरा एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकालता रहा, बस 2 बेचारे बच्चे डरते रहे.”

हंसी के ठहाड़ों से घर के दीवार चहक उठे थे और शेखर सुधा को मुग्ध नजरों से निहारते जा रहे थे. Story In Hindi

Hindi Story: चाहत – क्या शोभा अपना सपना पूरा कर पाई?

Hindi Story: “थक गई हूं मैं घर के काम से, बस वही एकजैसी दिनचर्या, सुबह से शाम और फिर शाम से सुबह. घर का सारा टैंशन लेतेलेते मैं परेशान हो चुकी हूं, अब मुझे भी चेंज चाहिए कुछ,”शोभा अकसर ही यह सब किसी न किसी से कहती रहतीं.

एक बार अपनी बोरियत भरी दिनचर्या से अलग, शोभा ने अपनी दोनों बेटियों के साथ रविवार को फिल्म देखने और घूमने का प्लान किया. शोभा ने तय किया इस आउटिंग में वे बिना कोई चिंता किए सिर्फ और सिर्फ आनंद उठाएंगी.

मध्यवर्गीय गृहिणियों को ऐसे रविवार कम ही मिलते हैं, जिस में वे घर वालों पर नहीं बल्कि अपने ऊपर समय और पैसे दोनों खर्च करें, इसलिए इस रविवार को ले कर शोभा का उत्साहित होना लाजिमी था.

यह उत्साह का ही कमाल था कि इस रविवार की सुबह, हर रविवार की तुलना में ज्यादा जल्दी हो गई थी.

उन को जल्दी करतेकरते भी सिर्फ नाश्ता कर के तैयार होने में ही 12 बज गए. शो 1 बजे का था, वहां पहुंचने और टिकट लेने के लिए भी समय चाहिए था. ठीक समय वहां पहुंचने के लिए बस की जगह औटो ही एक विकल्प दिख रहा था और यहीं से शोभा के मन में ‘चाहत और जरूरत’ के बीच में संघर्ष शुरू हो गया. अभी तो आउटिंग की शुरुआत ही थी, तो ‘चाहत’ की विजय हुई.

औटो का मीटर बिलकुल पढ़ीलिखी गृहिणियों की डिगरी की तरह, जिस से कोई काम नहीं लेना चाहता पर हां, जिन का होना भी जरूरी होता है, एक कोने में लटका था. इसलिए किराए का भावताव तय कर के सब औटो में बैठ गए.

शोभा वहां पहुंच कर जल्दी से टिकट काउंटर में जा कर लाइन में लग गईं.

जैसे ही उन का नंबर आया तो उन्होंने अंदर बैठे व्यक्ति को झट से 3 उंगलियां दिखाते हुए कहा,”3 टिकट…”

अंदर बैठे व्यक्ति ने भी बिना गरदन ऊपर किए, नीचे पड़े कांच में उन उंगलियों की छाया देख कर उतनी ही तीव्रता से जवाब दिया,”₹1200…”

शायद शोभा को अपने कानों पर विश्वास नहीं होता यदि वे साथ में, उस व्यक्ति के होंठों को ₹1200 बोलने वाली मुद्रा में हिलते हुए नहीं देखतीं.

फिर भी मन की तसल्ली के लिए एक बार और पूछ लिया, “कितने?”

इस बार अंदर बैठे व्यक्ति ने सच में उन की आवाज नहीं सुनी पर चेहरे के भाव पढ़ गया.

उस ने जोर से कहा,”₹1200…”

शोभा की अन्य भावनाओं की तरह उन की आउटिंग की इच्छा भी मोर की तरह निकली जो दिखने में तो सुंदर थी पर ज्यादा ऊपर उड़ नहीं सकी और धम्म… से जमीन पर आ गई.

पर फिर एक बार दिल कड़ा कर के उन्होंने अपने परों में हवा भरी और उड़ीं, मतलब ₹1200 उस व्यक्ति के हाथ में थमा दिए और टिकट ले कर थिएटर की ओर बढ़ गईं.

10 मिनट पहले दरवाजा खुला तो हौल में अंदर जाने वालों में शोभा बेटियों के साथ सब से आगे थीं.

अपनीअपनी सीट ढूंढ़ कर सब यथास्थान बैठ गए. विभिन्न विज्ञापनों को झेलने के बाद, मुकेश और सुनीता के कैंसर के किस्से सुन कर, साथ ही उन के बीभत्स चेहरे देख कर तो शोभा का पारा इतना ऊपर चढ़ गया कि यदि गलती से भी उन्हें अभी कोई खैनी, गुटखा या सिगरेट पीते दिख जाता तो 2-4 थप्पड़ उन्हें वहीं जड़ देतीं और कहतीं कि मजे तुम करो और हम अपने पैसे लगा कर यहां तुम्हारा कटाफटा लटका थोबड़ा देखें… पर शुक्र है वहां धूम्रपान की अनुमति नहीं थी.

लगभग आधे मिनट की शांति के बाद सभी खड़े हो गए. राष्ट्रगान चल रहा था. साल में 2-3 बार ही एक गृहिणी के हिस्से में अपने देश के प्रति प्रेम दिखाने का अवसर प्राप्त होता है और जिस प्रेम को जताने के अवसर कम प्राप्त होते हैं उसे जब अवसर मिलें तो वे हमेशा आंखों से ही फूटता है.

वैसे, देशप्रेम तो सभी में समान ही होता है चाहे सरहद पर खड़ा सिपाही हो या एक गृहिणी, बस किसी को दिखाने का अवसर मिलता है किसी को नहीं. इस समय शोभा वीररस में इतनी डूबी हुई थीं कि उन को एहसास ही नहीं हुआ कि सब लोग बैठ चुके हैं और वे ही अकेली खड़ी हैं, तो बेटी ने उन को हाथ पकड़ कर बैठने को कहा.

अब फिल्म शुरू हो गई. शोभा कलाकारों की अदायगी के साथ भिन्नभिन्न भावनाओं के रोलर कोस्टर से होते हुए इंटरवल तक पहुंचीं.

चूंकि, सभी घर से सिर्फ नाश्ता कर के निकले थे तो इंटरवल तक सब को भूख लग चुकी थी. क्याक्या खाना है, उस की लंबी लिस्ट बेटियों ने तैयार कर के शोभा को थमा दीं.

शोभा एक बार फिर लाइन में खड़ी थीं. उन के पास बेटियों द्वारा दी गई खाने की लंबी लिस्ट थी तो सामने खड़े लोगों की लाइन भी कम लंबी न थी.

जब शोभा के आगे लगभग 3-4 लोग बचे होंगे तब उन की नजर ऊपर लिखे मेन्यू पर पड़ी, जिस में खाने की चीजों के साथसाथ उन के दाम भी थे. उन के दिमाग में जोरदार बिजली कौंध गई और अगले ही पल बिना कुछ समय गंवाए वे लाइन से बाहर थीं.

₹400 के सिर्फ पौपकौर्न, समोसे ₹80 का एक, सैंडविच ₹120 की एक और कोल्डड्रिंक ₹150 की एक.

एक गृहिणी जिस ने अपनी शादीशुदा जिंदगी ज्यादातर रसोई में ही गुजारी हो उन्हें 1 टब पौपकौर्न की कीमत दुकानदार ₹400 बता रहे थे.

शोभा के लिए वही बात थी कि कोई सुई की कीमत ₹100 बताए और उसे खरीदने को कहे.

उन्हें कीमत देख कर चक्कर आने लगे. मन ही मन उन्होंने मोटामोटा हिसाब लगाया तो लिस्ट के खाने का ख़र्च, आउटिंग के खर्च की तय सीमा से पैर पसार कर पर्स के दूसरे पौकेट में रखे बचत के पैसों, जोकि मुसीबत के लिए रखे थे वहां तक पहुंच गया था. उन्हें एक तरफ बेटियों का चेहरा दिख रहा था तो दूसरी तरफ पैसे. इस बार शोभा अपने मन के मोर को ज्यादा उड़ा न पाईं और आनंद के आकाश को नीचा करते हुए लिस्ट में से सामान आधा कर दिया. जाहिर था, कम हुआ हिस्सा मां अपने हिस्से ही लेती है. अब शोभा को एक बार फिर लाइन में लगना पड़ा.

सामान ले कर जब वे अंदर पहुंचीं तो फिल्म शुरू हो चुकी थी. कहते हैं कि यदि फिल्म अच्छी होती है तो वह आप को अपने साथ समेट लेती है, लगता है मानों आप भी उसी का हिस्सा हों. और शोभा के साथ हुआ भी वही. बाकी की दुनिया और खाना सब भूल कर शोभा फिल्म में बहती गईं और तभी वापस आईं जब फिल्म समाप्त हो गई. वे जब अपनी दुनिया में वापस आईं तो उन्हें भूख सताने लगी.

थिएटर से बाहर निकलीं तो थोड़ी ही दूरी पर उन्हें एक छोटी सी चाटभंडार की दुकान दिखाई दी और सामने ही अपना गोलगोल मुंह फुलाए गोलगप्पे नजर आए. गोलगप्पे की खासियत होती है कि उन से कम पैसों में ज्यादा स्वाद मिल जाता है और उस के पानी से पेट भर जाता है.

सिर्फ ₹60 में तीनों ने पेटभर गोलगप्पे खा लिए. घर वापस पहुंचने की कोई जल्दी नहीं थी तो शोभा ने अपनी बेटियों के साथ पूरे शहर का चक्कर लगाते हुए घूम कर जाने वाली बस पकड़ी.

बस में बैठीबैठी शोभा के दिमाग में बहुत सारी बातें चल रही थीं. कभी वे औटो के ज्यादा लगे पैसों के बारे में सोचतीं तो कभी फिल्म के किसी सीन के बारे में सोच कर हंस पड़तीं, कभी महंगे पौपकौर्न के बारे में सोचतीं तो कभी महीनों या सालों बाद उमड़ी देशभक्ति के बारे में सोच कर रोमांचित हो उठतीं.

उन का मन बहुत भ्रमित था कि क्या यही वह ‘चेंज’ है जो वे चाहतीं थीं? वे सोच रही थीं कि क्या सच में वे ऐसा ही दिन बिताना चाहती थीं जिस में दिन खत्म होने पर उनशके दिल में खुशी के साथ कसक भी रह जाए?

तभी छोटी बेटी ने हाथ हिलाते हुए अपनी मां से पूछा,”मम्मी, अगले संडे हम कहां चलेंगे?”

अब शोभा को ‘चाहत और जरूरत’ में से किसी 1 को चुनने का था. उन्होंने सब की जरूरतों का खयाल रखते हुए साथ ही अपनी चाहत का भी तिरस्कार न करते हुए कहा,”आज के जैसे बस से पूरा शहर देखते हुए बीच चलेंगे और सनसेट देखेंगे.”

शोभा सोचने लगीं कि अच्छा हुआ जो प्रकृति अपना सौंदर्य दिखाने के पैसे नहीं लेती और प्रकृति से बेहतर चेंज कहीं और से मिल सकता है भला?

शोभा को प्रकृति के साथसाथ अपना घर भी बेहद सुंदर नजर आने लगा था. उस का अपना घर, जहां उस के सपने हैं, अपने हैं और सब का साथ भी तो. Hindi Story

Hindi Story: तारीफ – अपनी पत्नी की तारीफ क्यों कर पाए रामचरण

Hindi Story: रामचरणबाबू यों तो बड़े सज्जन व्यक्ति थे. शहर के बड़े पोस्ट औफिस में सरकारी मुलाजिम थे और सरकारी कालोनी में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ सुख से रहते थे. लेकिन उन्हें पकौड़े खाने का बड़ा शौक था. पकौड़े देख कर वे खुद पर कंट्रोल ही नहीं कर पाते थे. रविवार के दिन सुबह नाश्ते में पकौड़े खाना तो जैसे उन के लिए अनिवार्य था. वे शनिवार की रात में ही पत्नी से पूछ लेते थे कि कल किस चीज के पकौड़े बना रही हो? उन की पत्नी कभी प्याज के, कभी आलू के, कभी दाल के, कभी गोभी के, तो कभी पालक के पकौड़े बनाती थीं और अगले दिन उन्हें जो भी बनाना होता था उसे रात ही में बता देती थीं. रामचरण बाबू सपनों में भी पकौड़े खाने का आनंद लेते थे. लेकिन बरसों से हर रविवार एक ही तरह का नाश्ता खाखा कर बच्चे बोर हो गए थे, इसलिए उन्होंने पकौड़े खाने से साफ मना कर दिया था.

उन का कहना था कि मम्मी, आप पापा के लिए बनाओ पकौड़े. हमें तो दूसरा नाश्ता चाहिए. रविवार का दिन जहां पति और बच्चों के लिए आराम व छुट्टी का दिन होता, वहीं मिसेज रामचरण के लिए दोहरी मेहनत का. हालांकि वे अपनी परेशानी कभी जाहिर नहीं होने देती थीं, लेकिन दुख उन्हें इस बात का था कि रामचरण बाबू उन के बनाए पकौड़ों की कभी तारीफ नहीं करते थे. पकौड़े खा कर व डकार ले कर जब वे टेबल से उठने लगते तब पत्नी द्वारा बड़े प्यार से यह पूछने पर कि कैसे बने हैं? उन का जवाब यही होता कि हां ठीक हैं, पर इन से अच्छे तो मैं भी बना सकता हूं.

मिसेज रामचरण यह सुन कर जलभुन जातीं. वे प्लेटें उठाती जातीं और बड़बड़ाती जातीं. पर रामचरण बाबू पर पत्नी की बड़बड़ाहट का कोई असर नहीं होता था. वे टीवी का वौल्यूम और ज्यादा कर देते थे. रामेश्वर रामचरण बाबू के पड़ोसी एवं सहकर्मी थे. कभीकभी किसी रविवार को वे अपनी पत्नी के साथ रामचरण बाबू के यहां पकौड़े खाने पहुंच जाते थे. आज रविवार था. वे अपनी पत्नी के साथ उन के यहां उपस्थित थे. डाइनिंग टेबल पर पकौड़े रखे जा चुके थे.

‘‘भाभीजी, आप लाजवाब पकौड़े बनाती हैं,’’ यह कहते हुए रामेश्वर ने एक बड़ा पकौड़ा मुंह में रख लिया.

‘‘हां, भाभी आप के हाथ में बड़ा स्वाद है,’’ उन की पत्नी भी पकौड़ा खातेखाते बोलीं.

‘‘अरे इस में कौन सी बड़ी बात है, इन से अच्छे पकौड़े तो मैं बना सकता हूं,’’ रामचरण बाबू ने वही अपना रटारटाया वाक्य दोहराया.

‘‘तो ठीक है, अगले रविवार आप ही पकौड़े बना कर हम सब को खिलाएंगे,’’ उन की पत्नी तपाक से बोलीं.

‘‘हांहां ठीक है, इस में कौन सी बड़ी बात है,’’ रामचरण बड़ी शान से बोले. ‘‘अगर आप के बनाए पकौड़े मेरे बनाए पकौड़ों से ज्यादा अच्छे हुए तो मैं फिर कभी आप की बात का बुरा नहीं मानूंगी और यदि आप हार गए तो फिर हमेशा मेरे बनाए पकौड़ों की तारीफ करनी पड़ेगी,’’ मिसेज रामचरण सवालिया नजरों से रामचरण बाबू की ओर देख कर बोलीं.

‘‘अरे रामचरणजी, हां बोलो भई इज्जत का सवाल है,’’ रामेश्वर ने उन्हें उकसाया.

‘‘ठीक है ठीक है,’’ रामचरण थोड़ा अचकचा कर बोले. शेखी के चक्कर में वे यों फंस जाएंगे उन्हें इस की उम्मीद नहीं थी. खैर मरता क्या न करता. परिवार और दोस्त के सामने नाक नीची न हो जाए, इसलिए उन्होंने पत्नी की चुनौती स्वीकार कर ली.

‘‘ठीक है भाई साहब, अगले रविवार सुबह 10 बजे आ जाइएगा, इन के हाथ के पकौड़े खाने,’’ उन की पत्नी ने मिस्टर और मिसेज रामेश्वर को न्योता दे डाला. सोमवार से शनिवार तक के दिन औफिस के कामों में निकल गए शनिवार की रात में मिसेज रामचरण ने पति को याद दिलाया, ‘‘कल रविवार है, याद है न?’’

‘‘शनिवार के बाद रविवार ही आता है, इस में याद रखने वाली क्या बात है?’’ रामचरण थोड़ा चिढ़ कर बोले.

‘‘कल आप को पकौड़े बनाने हैं. याद है कि भूल गए?’’

‘‘क्या मुझे…?’’ रामचरण तो वाकई भूल गए थे.

‘‘हां आप को. सुबह थोड़ा जल्दी उठ जाना. पुदीने की चटनी तो मैं ने बना दी है, बाकी मैं आप की कोई मदद नहीं करूंगी.’’ रामचरण बाबू की तो जैसे नींद ही उड़ गई. वे यही सोचते रहे कि मैं ने क्या मुसीबत मोल ली. थोड़ी सी तारीफ अगर मैं भी कर देता तो यह नौबत तो न आती. रविवार की सुबह 8 बजे थे. रामचरण खर्राटे मार कर सो रहे थे.

‘‘अजी उठिए, 8 बज गए हैं. पकौड़े नहीं बनाने हैं क्या? 10 बजे तो आप के दोस्त आ जाएंगे,’’ उन की मिसेज ने उन से जोर से यह कह कर उन्हें जगाया. मन मसोसते हुए वे जाग गए. 9 बजे उन्होंने रसोई में प्रवेश किया.

‘‘सारा सामान टेबल पर रखा है,’’ कह कर उन की पत्नी रसोई से बाहर निकल गईं.

‘‘हांहां ठीक है, तुम्हारी कोई जरूरत नहीं मैं सब कर लूंगा,’’ कहते हुए रामचरण बाबू ने चोर नजरों से पत्नी की ओर देखा कि शायद वे यह कह दें, रहने दो, मैं बना दूंगी. पर अफसोस वे बाहर जा चुकी थीं. ‘जब साथ देने की बारी आई तो चली गईं. वैसे तो कहती हैं 7 जन्मों तक साथ निभाऊंगी,’ रामचरण भुनभुनाते हुए बोले. फिर ‘चल बेटा हो जा शुरू’ मन में कहा और गैस जला कर उस पर कड़ाही चढ़ा दी. उन्होंने कई बार पत्नी को पकौड़े बनाते देखा था. उसे याद करते हुए कड़ाही में थोड़ा तेल डाला और आंच तेज कर दी. पकौड़ी बनाने का सारा सामान टेबल पर मौजूद था. उन्होंने अंदाज से बेसन एक कटोरे में निकाला. उस में ध्यान से नमक, मिर्च, प्याज, आलू, अजवाइन सब डाला फिर पानी मिलाने लगे. पानी जरा ज्यादा पड़ गया तो बेसन का घोल पतला हो गया. उन्होनें फिर थोड़ा बेसन डाला. फिर घोल ले कर वे गैस के पास पहुंचे. आंच तेज होने से तेल बहुत गरमगरम हो गया था. जैसे ही उन्होंने कड़ाही में पकौड़े के लिए बेसन डाला, छन्न से तेल उछल कर उन के हाथ पर आ गिरा.

‘‘आह,’’ वे जोर से चिल्लाए.

‘‘क्या हुआ?’’ उन की पत्नी बाहर से ही चिल्लाईं और बोलीं, ‘‘गैस जरा कम कर देना वरना हाथ जल जाएंगे.’’

‘‘हाथ तो जल गया, ये बात पहले नहीं बता सकती थीं?’’ वे धीरे से बोले. फिर आंच धीमी की और 1-1 कर पकौड़े का घोल कड़ाही में डालने लगे. गरम तेल गिरने से उन की उंगलियां बुरी तरह जल रही थीं. वे सिंक के पास जा कर पानी के नीचे हाथ रख कर खड़े हो गए तो थोड़ा आराम मिला. इतने में ही उन का मोबाइल बजने लगा. देखा तो रामेश्वर का फोन था. उन्होंने फोन उठाया तो रामेश्वर अपने आने की बात कह कर इधरउधर की बातें करने लगे.

‘‘अजी क्या कर रहे हो, बाहर तक पकौड़े जलने की बास आ रही है,’’ उन की मिसेज रसोई में घुसते हुए बोलीं. रामचरण बाबू ने तुरंत फोन बंद कर दिया. वे तो रामेश्वर से बातचीत में इतने मशगूल हो गए थे कि भूल ही गए थे कि वे तो रसोई में पकौड़े बना रहे थे. दौड़ कर उन की मिसेज ने गैस बंद की. रामचरण भी उन की ओर लपके, पर तब तक तो सारे पकौड़े जल कर काले हो चुके थे. पत्नी ने त्योरियां चढ़ा कर उन की ओर देखा तो वे हकलाते हुए बोले, ‘‘अरे वह रामेश्वर का फोन आ गया था.’’

तभी ‘‘मम्मी, रामेश्वर अंकल और आंटी आ गए हैं,’’ बेटी ने रसोई में आ कर बताया.

‘‘अरे रामचरणजी, पकौड़े तैयार हैं न?’’ कहते हुए रामेश्वर सीधे रसोई में आ धमके. वहां जले हुए पकौड़े देख कर सारा माजरा उन की समझ में आ गया. वे जोरजोर से हंसने लगे और बोले, ‘‘अरे भई, भाभीजी की तारीफ कर देते तो यह दिन तो न देखना पड़ता?’’

‘‘जाइए बाहर जा कर बैठिए. मैं अभी दूसरे पकौड़े बना कर लाती हूं. बेटा, पापा की उंगलियों पर क्रीम लगा देना,’’ मिसेज रामचरण ने कहा. उस के आधे घंटे बाद सब लोग उन के हाथ के बने पकौड़े खा रहे थे. साथ में चाय का आनंद भी ले रहे थे.

‘‘क्यों जी, कैसे बने हैं पकौड़े?’’ उन्होंने जब रामचरण बाबू से पूछा तो, ‘‘अरे, तुम्हारे हाथ में तो जादू है. लाजवाब पकौड़े बनाती हो तुम तो,’’ कहते हुए उन्होंने एक बड़ा पकौड़ा मुंह में रख लिया. सभी ठहाका मार कर हंस दिए. Hindi Story

Hindi Story: समझदार सासूमां – नौकरानी की छुट्टी पर जब बेहाल हुईं श्रीमतीजी

Hindi Story: किचनमें पत्नीजी के द्वारा जिस तरह से जोरजोर से बरतन पटके जा रहे थे, उस से मुझे अंदाजा हो गया कि घर में काम करने वाली ने एक सप्ताह की छुट्टी ले ली है, इसलिए नाराजगी बरतनों पर निकल रही है.

नौकरानी का घर पर नहीं आने का दोष भला बरतनों पर क्यों उतारा जाए? मैं सोचता रहा लेकिन उन से कुछ कहा नहीं. रात को बिस्तर में जाने से पहले वे फोन पर अपनी मां से नौकरानी की शिकायतें करती रहीं, ‘‘मम्मी, ये कमला ऐसे ही नागा करती है. इस का वेतन काटो तो बुरा मुंह बना लेती है. मैं तो यहां की नौकरानियों से तंग आ चुकी हूं.’’

उधर सासूजी न जाने क्या कह रही थीं, जिसे सुन कर पत्नीजी हांहूं किए जा रही थीं. फिर वे कह उठीं, ‘‘नहीं मम्मीजी, ऐसा मत कहो,’’ और फिर जोरों से हंस दीं.

आखिर मामला क्या है? सोच कर मेरा दिल जोरों से धड़क उठा.

पत्नीजी ने टैलीफोन रखा और गीत गुनगुनाती हुई आ कर लेट गईं.

‘‘बड़ी खुश हो, क्या नई नौकरानी खोज ली?’’ मैं ने उन से पूछा.

‘‘मेरी खुशी भी नहीं देखी जाती?’’ उन्होंने तमक कर कहा.

‘‘यही समझ लो, फिर भी बताओ तो कि मामला क्या है? क्या सासूजी आ रही हैं?’’

‘‘आप को कैसे पता?’’ पत्नी ने खुशीखुशी कहा.

मुझे तो जैसे बिजली का करंट लग गया. मैं ने सोचा सासूजी आएंगी तो कई महीने रह कर घर का बजट किसी भूकंप की तरह तहसनहस कर के ही जाएंगी.

मैं भी कल से 7-8 दिनों की छुट्टी ले कर कहीं चला जाता हूं, मैं ने मन ही मन विचार किया.

‘‘तुम्हें इतना खुश देख कर समझ गया था कि तुम्हारी मम्मीजी आ रही हैं,’’ मैं ने उन से कहा.

‘‘तुम कितने समझदार हो,’’ पत्नीजी ने मुझ से कहा तो सच जानिए मैं शरमा गया.

‘‘इसीलिए तो तुम ने मुझ से विवाह किया,’’ मैं ने कहा और उन के चेहरे को पढ़ने लगा. वे भी शर्म से लाल हो रही थीं.

मैं ने फिर प्रश्न किया, ‘‘वह घर की नौकरानी कब तक आ रही है?’’

पत्नीजी ने कहा, ‘‘एक बात सुन लीजिए. जब तक किसी के जीवन में चुनौतियां न हों, जीने का मजा ही नहीं आता. और प्रत्येक व्यक्ति के पीछे एक सैकंड लाइन होनी आवश्यक है.’’

मैं ने सुना तो मैं घबरा गया. पत्नीजी आखिर ये कैसी बातें कर रही हैं? मैं ने तो कभी पत्नीजी के पीछे किसी सैकंड लाइन के विषय में सोचा तक नहीं और आज ये क्या कह रही हैं? क्या मैं छुट्टी पर जा रहा हूं तो कोई दूसरा पुरुष मेरे स्थान पर यहां होगा? सोच कर ही मेरी रूह कांप गई. मेरे चेहरे पर आ रहे भावों को देख कर वे ताड़ गईं कि मेरे मन में क्या भाव चल रहा है.

हंसते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं आप के विषय में नहीं कह रही हूं…’’

‘‘फिर?’’‘‘मैं घर की नौकरानी कमला के बारे में कह रही हूं. उस की नागा, उस के अत्याचार इतने बढ़ चुके हैं कि आप विश्वास नहीं करेंगे कि मुझे उस से डर लगने लगा है. कभी भी नागा कर जाती है, वेतन काटो तो नौकरानियों के यूनियन में जाने की धमकी देती है. काम ठीक से करती नहीं. लेकिन मैं काम से निकाल नहीं सकती, क्योंकि घर में काम बहुत अधिक है…’’

‘‘फिर क्या सोचा…?’’

‘‘प्रत्येक परेशानी का कोई न कोई उपाय तो निकलता ही है.’’

‘‘क्या उपाय है वह?’’

‘‘वह उपाय ले कर ही तो मम्मीजी आ रही हैं,’’ पत्नीजी ने रहस्य को उजागर करते हुए कहा.

‘‘क्या उपाय है कुछ तो बताओ.’’

‘‘यह तो उन्होंने बताया नहीं, लेकिन वे कह रही थीं कि पूरी कालोनी की कामवाली बाइयों को सुधार कर रख दूंगी.’’

चूंकि सासूजी से मेरी कभी पटी नहीं थी, इसलिए मैं ने फिर सोचा कि उन के आने पर 7-8 दिनों की छुट्टी ले कर मैं शहर से बाहर घूम आता हूं. फिर मैं जिस सुबह बाहर गया, उसी रात को सासूजी ने मेरे घर में प्रवेश किया. पूरे 8 दिनों बाद मैं जब घर लौट कर आया तो देखा कि बालकनी में हमारी पत्नी गरमगरम पकौड़े खा रही हैं. सासूजी झूले में लेटी हैं और कमला यानी घर की नौकरानी रसोई में पकौड़े तलतल कर खिला रही है.

हमें आया देख कर पत्नीजी दौड़ कर हम से लिपट गईं और कहने लगीं, ‘‘यहां सब ठीक हो गया.’’

‘‘यानी कमला बाई वाला मामला…?’’

‘‘हां, कमला बाई एकदम ठीक हो गई.’’

‘‘कैसे…?’’

‘‘वह मैं बाद में बताऊंगी.’’

इतनी देर में कमला बाई प्रकट हो गई. हमारा सामान उठाया, कमरे में रखा और घर के बरतन साफ कर के, किचन में पोंछा लगा कर जातेजाते हमारे कमरे में आई और पत्नीजी से कहने लगी, ‘‘जाती हूं मेम साब नमस्ते.’’ यह कह कर वह सासूजी की ओर पलटी और बोली, ‘‘मैं जाती हूं अध्यक्षजी,’’ फिर वह विनम्रता के साथ चली गई.

घमंड में चूर रहने वाली कमला, जो एक भी अतिरिक्त काम नहीं करती थी और हमेशा अतिरिक्त काम का अतिरिक्त रुपया मांगती थी, आखिर ऐसा क्या हो गया कि इतनी बदल गई? मैं सोच रहा था, लेकिन कुछ समझ नहीं पा रहा था.

रात को भोजन के बाद जब पत्नीजी, मैं और सासूजी बैठ कर गप्पें मारने बैठे तो पत्नीजी ने बताया, ‘‘मैं कमला से बहुत परेशान हो गई थी. इस का असर पूरी गृहस्थी पर पड़ रहा था. मम्मीजी से मैं ने यह बात शेयर की, तो मम्मीजी ने कहा कि मैं आ कर एक दिन में सब परेशानियों को निबटा दूंगी.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘वही तो बता रही हूं पर आप को एक पल का भी चैन नहीं है. हुआ यह कि मम्मीजी ने मुझे आने पर बताया कि उन का परिचय कमला बाई से यह कह कर करवाया जाए कि जहां ये रहती हैं वहां की नौकरानियों की यूनियन अध्यक्ष हैं. मैं ने वही किया भी. मम्मीजी ने यहां के काम को देखा और कमला बाई के सामने मुझ से कहा कि पूरी कालोनी में कितनी नौकरानियों की जरूरत है? मैं कामवाली बाइयों को काम भी दिलवाती हूं और इस समय 150 से अधिक काम करने वाली महिलाओं का पंजीयन मेरे पास है. वे सब यहां दिल्ली में काम करने के लिए आने को भी तैयार हैं. यहां काम कम, वेतन अधिक है और शहर की सारी सुविधाएं हैं.

‘‘लेकिन मम्मीजी इतनी कामवाली बाइयां रहेंगी कहां?’’ मैं ने पूछा तो वे बोलीं कि तू उस की चिंता मत कर. वैलफेयर डिपार्टमैंट ऐसी महिलाओं के निवास की व्यवस्था कम से कम दामों में कर देता है.

‘‘मम्मीजी पूरी कालोनी में 10 काम करने वाली महिलाओं की जरूरत है, मैं ने मम्मीजी से कहा तो उन्होंने तुरंत मोबाइल निकाल कर कमला बाई के सामने नंबर मिलाया ही था कि कमला ने दौड़ कर मम्मीजी के पांव पकड़ लिए और रोते हुए कहने लगी कि मैडमजी पीठ पर लात मार लो, लेकिन किसी के पेट पर लात मत मारो.

‘‘क्यों क्या हुआ? मम्मीजी बोलीं तो वह बोली कि मैडमजी सारी कामवाली बाइयां बेरोजगार हो जाएंगी.

‘‘लेकिन तुम भी तो परेशान करने में कसर नहीं करती हो, यह कहने पर उस का कहना था कि ऐसा नहीं है मैडमजी, हम जानबूझ कर छुट्टी ले कर केवल अपनी उपयोगिता बताना चाहते हैं कि हम भी इंसान हैं और हमारे नहीं आने से आप के कितने काम डिस्टर्ब हो जाते हैं. इसलिए आप हमें इंसान समझ कर इंसानों को जो बुनियादी सुविधाएं मिलनी चाहिए उन्हें हमें भी दिया करें.’’

‘‘कह तो यह सच रही है, मेरी ओर मम्मीजी ने देख कर कहा.

‘‘मैं पूरी बुनियादी सुविधाएं देने को तैयार हूं,’’ मैं ने झट से कहा.

‘‘आप को कभी मुझ से शिकायत नहीं मिलेगी. मुझ से ही नहीं कालोनी की काम करने वाली किसी भी महिला से,’’ उस ने मुझे आश्वासन दिया तो मम्मीजी ने मोबाइल बंद कर दिया और उसी दिन से कमला के व्यवहार में 100% परिवर्तन आ गया,’’ पत्नीजी ने पूरी बात का खुलासा करते हुए कहा.

‘‘वाह, क्या समझदारी का सुझाव सासूजी ने दिया. सांप भी मर गया, लाठी भी नहीं टूटी,’’ मैं ने प्रसन्नता से कहा.

‘‘लेकिन आप नौकरानी यूनियन की अध्यक्ष कब बनीं?’’ मैं ने सासूजी से हैरत से पूछा.

‘‘लो कर लो बात. तुम भी कितने भोले हो. अरे वह तो उस को ठीक करने का नाटक था,’’ सासूजी बोलीं.

फिर हम सभी जोर से हंस पड़े. हमें अपनी समझदार सासूमां की तरकीब पर गर्व हो आया. Hindi Story

Best Hindi Story: सहयात्री – क्या वह अजनबी बन पाया कनिका का सहयात्री

Best Hindi Story, लेखिका – अर्विना गहलोत

शामको 1 नंबर प्लेटफार्म की बैंच पर बैठी कनिका गाड़ी आने का इंतजार कर रही थी. तभी कंधे पर बैग टांगे एक हमउम्र लड़का बैंच पर आ कर बैठते हुए बोला, ‘‘क्षमा करें. लगता है आज गाड़ी लेट हो गई है.’’

न बोलना चाहते हुए भी कनिका ने हां में सिर हिला उस की तरफ देखा. लड़का देखने में सुंदर था. उसे भी अपनी ओर देखते हुए कनिका ने अपना ध्यान दूसरी ओर से आ रही गाड़ी को देखने में लगा दिया. उन के बीच फिर खामोशी पसर गई. इस बीच कई ट्रेनें गुजर गई. जैसे ही उन की टे्रन की घोषणा हुई कनिका उठ खड़ी हुई. गाड़ी प्लेटफार्ट पर आ कर लगी तो वह चढ़ने को हुई कि अचानक उस की चप्पल टूट गई और पैर पायदान से फिसल प्लेटफार्म के नीचे चला गया.

कनिका के पीछे खड़े उसी अनजान लड़के ने बिना देर किए झटके से उस का पैर निकाला और फिर सहारा दे कर उठाया. वह चल नहीं पा रही थी. उस ने कहा, ‘‘यदि आप को बुरा न लगे तो मेरे कंधे का सहारा ले सकती हैं… ट्रेन छूटने ही वाली है.’’

कनिका ने हां में सिर हिलाया तो अजनबी ने उसे ट्रेन में सहारा दे चढ़ा कर सीट पर बैठा दिया और खुद भी सामने की सीट पर बैठ गया. तभी ट्रेन चल दी.

उस ने अपना नाम पूरब बता कनिका से पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘कनिका.’’

‘‘आप को कहां जाना है?’’

‘‘अहमदाबाद.’’

‘‘क्या करती हैं?’’

‘‘मैं मैनेजमैंट की पढ़ाई कर रही हूं. वहां पीजी में रहती हूं. आप को कहां जाना है?’’

‘‘मैं भी अहमदाबाद ही जा रहा हूं.’’

‘‘क्या करते हैं वहां?’’

‘‘भाई से मिलने जा रहा हूं.’’

तभी अचानक कंपार्टमैंट में 5 लोग घुसे और फिर आपस में एकदूसरे की तरफ देख कर मुसकराते हुए 3 लोग कनिका की बगल में बैठ गए. उन के मुंह से आती शराब की दुर्गंध से कनिका का सांस लेना मुश्किल होने लगा. 2 लोग सामने पूरब की साइड में बैठ गए. उन की भाषा अश्लील थी.

पूरब ने स्थिति को भांप कनिका से कहा, ‘‘डार्लिंग, तुम्हारे पैर में चोट है. तुम इधर आ जाओ… ऊपर वाली बर्थ पर लेट जाओ… बारबार आनेजाने वालों से तुम्हें परेशानी होगी.’’

कनिका स्थिति समझ पूरब की हर बात किसी आज्ञाकारी शिष्य की तरह माने जा रही थी. पूरब ने सहारा दिया तो वह ऊपर की बर्थ पर लेट गई. इधर पैर में चोट से दर्द भी हो रहा था.

हलकी सी कराहट सुन पूरब ने मूव की ट्यूब कनिका की तरफ बढ़ाई तो उस के मुंह

से बरबस निकल गया, ‘‘ओह आप कितने

अच्छे हैं.’’

उन लोगों ने पूरब को कनिका की इस तरह सेवा करते देख फिर कोई कमैंट नहीं कसा और अगले स्टेशन पर सभी उतर गए.

कनिका ने चैन की सांस ली. पूरब तो जैसे उस की ढाल ही बन गया था.

कनिका ने कहा, ‘‘पूरब, आज तुम न होते तो मेरा क्या होता?’’ मैं

किन शब्दों में तुम्हारा धन्यवाद करूं… आज जो भी तुम ने मेरे लिए किया शुक्रिया शब्द उस के सामने छोटा पड़ रहा है.

‘‘ओह कनिका मेरी जगह कोई भी होता तो यही करता.’’

बातें करतेकरते अहमदाबाद आ गया. कनिका ने अपने बैग में रखीं स्लीपर निकाल कर पहननी चाहीं, मगर सूजन की वजह से पहन नहीं पा रही थी. पूरब ने देखा तो झट से अपनी स्लीपर निकाल कर दे दीं. कनिका ने पहन लीं.

पूरब ने कनिका का बैग अपने कंधे पर टांग लिया. सहारा दे कर ट्रेन से उतारा और फिर बोला, ‘‘मैं तुम्हें पीजी तक छोड़ देता हूं.’’

‘‘नहीं, मैं चली जाऊंगी.’’

‘‘कैसे जाओगी? अपने पैर की हालत देखी है? किसी नर्सिंग होम में दिखा लेते हैं. फिर तुम्हें छोड़ कर मैं भैया के पास चला जाऊंगा. आओ टैक्सी में बैठो.’’

कनिका के टैक्सी में बैठने पर पूरब ने टैक्सी वाले से कहा, ‘‘भैया, यहां जो भी पास में नर्सिंगहोम हो वहां ले चलो.’’

टैक्सी वाले ने कुछ ही देर में एक नर्सिंगहोम के सामने गाड़ी रोक दी.

डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने कहा, ‘‘ज्यादा नहीं लगी है. हलकी मोच है. आराम करने से ठीक हो जाएगी. दवा लिख दी है लेने से आराम आ जाएगा.’’

नर्सिंगहोम से निकल कर दोनों टैक्सी में बैठ गए. कनिका ने अपने पीजी का पता बता दिया. टैक्सी सीधा पीजी के पास रुकी. पूरब ने कनिका को उस के कमरे तक पहुंचाया. फिर जाने लगा तो कनिका ने कहा, ‘‘बैठिए, कौफी पी कर जाइएगा.’’

‘‘अरे नहीं… मुझे देर हो जाएगी तो भैया ंिंचतित होंगे. कौफी फिर कभी पी लूंगा.’’

जाते हुए पूरब ने हाथ हिलाया तो कनिका ने भी जवाब में हाथ हिलाया और फिर दरवाजे के पास आ कर उसे जाते हुए देखती रही.

थोड़ी देर बाद बिस्तर पर लेटी तो पूरब का चेहरा आंखों के आगे घूम गया… पलभर को पूरे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई, धड़कनें तेज हो गईं.

तभी कौल बैल बजी.

इस समय कौन हो सकता है? सोच कनिका फिर उठी और दरवाजा खोला तो सामने पूरब खड़ा था.

‘‘क्या कुछ रह गया था?’’ कनिका ने

पूछा, ‘‘हां… जल्दबाजी में मोबाइल यहीं भूल गया था.’’

‘‘अरे, मैं तो भूल ही गई कि मेरे पैरों में तुम्हारी स्लीपर हैं. इन्हें भी लेते जाना,’’ कह कौफी बनाने चली गई. अंदर जा कर कौफी मेकर से झट से 2 कप कौफी बना लाई, कनिका पूरब को कनखियों से देख रही थी.

पूरब फोन पर भाई से बातें करने में व्यस्त था. 1 कप पूरब की तरफ बढ़ाया तो पूरब की उंगलियां उस की उंगलियों से छू गईं. लगाजैसे एक तरंग सी दौड़ गई शरीर में. कनिका पूरब के सामने बैठ गई, दोनों खामोशी से कौफी पीने लगे.

कौफी खत्म होते ही पूरब जाने के लिए उठा और बोला, ‘‘कनिका, मुझे तुम्हारा मोबाइल नंबर मिल सकता है?’’

अब तक विश्वास अपनी जड़े जमाने

लगा था. अत: कनिका ने अपना मोबाइल नंबर

दे दिया.

पूरब फिर मिलेंगे कह कर चला गया. कनिका वापस बिस्तर पर आ कर कटे वृक्ष की तरह ढह गई.

खाना खाने का मन नहीं था. पीजी चलाने वाली आंटी को भी फोन पर ही अपने आने की खबर दी, साथ ही खाना खाने के लिए भी मना कर दिया.

लेटेलेटे कनिका को कब नींद आ गई,

पता ही नहीं चला. सुबह जब सूर्य की किरणें आंखों पर पड़ीं तो आंखें खोल घड़ी की तरफ देखा, 8 बज रहे थे. फिर बड़बड़ाते हुए तुरंत

उठ खड़ी हुई कि आज तो क्लास मिस हो गई. जल्दी से तैयार हो नाश्ता कर कालेज के लिए निकल गई.

एक सप्ताह कब बीत गया पता ही नहीं चला. आज कालेज की छुट्टी थी. कनिका को

बैठेबैठे पूरब का खयाल आया कि कह रहा था फोन करेगा, लेकिन उस का कोई फोन नहीं आया. एक बार मन किया खुद ही कर ले. फिर खयाल को झटक दिया, लेकिन मन आज किसी काम में नहीं लग रहा था. किताब ले कर कुछ देर यों ही पन्ने पलटती रही, रहरह कर न जाने क्यों उसे पूरब का खयाल आ रहा था. अनमनी हो खिड़की से बाहर देखने लगी.

तभी अचानक फोन बजा. देखा तो पूरब का था. कनिका ने कांपती आवाज में हैलो कहा.

‘‘कैसी हो कनिका?’’ पूरब ने पूछा.

‘‘मैं ठीक हूं, तुम कैसे हो? तुम ने कोई फोन नहीं किया?’’

पूरब ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं भाई के साथ व्यवसाय में व्यस्त था, हमारा हीरों का व्यापार है.’’

तुम तैयार हो जाओ मैं लेने आ रहा हूं.

कनिका के तो जैसे पंख लग गए. पहनने के लिए एक प्यारी पिंक कलर की ड्रैस निकाली. उसे पहन कानों में मैचिंग इयरिंग्स पहन आईने में निहारा तो आज एक अलग ही कनिका नजर आई. बाहर बाइक के हौर्न की आवाज सुन कर कनिका जल्दी से बाहर भागी. पूरब हलके नीले रंग की शर्ट बहुत फब रहा था. कनिका सम्मोहित सी बाइक पर बैठ गई.

पूरब ने कहा, ‘‘बहुत सुंदर लग रही हो.’’

सुन कर कनिका का दिल रोमांचित हो उठा. फिर पूछा, ‘‘कहां ले चल रहे हो?’’

‘‘कौफी हाउस चलते हैं… वहीं बैठ कर बातें करेंगे,’’ और फिर बाइक हवा से बातें करने लगी.

कनिका का दुपट्टा हवा से पूरब के चेहरे पर गिरा तो भीनी सी खुशबू से पूरब का दिल जोरजोर से धड़कने लगा.

कनिका ने अपना आंचल समेट लिया.

‘‘पूरब, एक बात कहूं… कुछ देर से एक गाड़ी हमारे पीछे आ रही है. ऐसा लग रहा है जैसे कोई हमें फौलो कर रहा है.’’

‘‘तुम्हारा वहम है… उन्हें भी इधर ही

जाना होगा.’’

‘‘अगर इधर ही जाना है तो हमारे पीछे

ही क्यों चल रहे हैं… आगे भी निकल कर जा सकते हैं.’’

‘‘ओह, शंका मत करो… देखो वह काफी हाउस आ गया. तुम टेबल नंबर 4 पर बैठो. मैं बाइक पार्क कर के आता हूं.’’

कनिका अंदर जा कर बैठ गई.

पूरब जल्दी लौट आया. बोला, ‘‘कनिका क्या लोगी? संकोच मत करो… अब तो हम मिलते ही रहेंगे.’’

‘‘पूरब ऐसी बात नहीं है. मैं फिर कभी… आज और्डर तुम ही कर दो.’’

वेटर को बुला पूरब ने 2 कौफी का और्डर दे दिया. कुछ ही पलों में कौफी आ गई.

कौफी पीने के बाद कनिका ने घड़ी की तरफ देख पूरब से कहा, ‘‘अब हमें चलना चाहिए.’’

‘‘ठीक है मैं तुम्हें छोड़ कर औफिस चला जाऊंगा. मेरी एक मीटिंग है.’’

पूरब कनिका को छोड़ कर अपने औफिस पहुंचा. भाई सौरभ के

कैबिन में पहुंचा तो उन की त्योरियां चढ़ी हुई थीं. पूछा, ‘‘पूरब कहां थे? क्लाइंट तुम्हारा इंतजार कर चला गया. तुम कहां किस के साथ घूम रहे थे… मुझे सब साफसाफ बताओ.’’

अपनी एक दोस्त कनिका के साथ था… आप को बताया तो था.’’

‘‘मुझे तुम्हारा इन साधारण परिवार के लोगों से मिलनाजुलना पसंद नहीं है… और फिर बिजनैस में ऐसे काम नहीं होता है… अब तुम घर जाओ और फोन पर क्लाइंट से अगली मीटिंग फिक्स करो.’’

‘‘जी भैया.’’

कनिका और पूरब की दोस्ती को 6 महीने बीत गए. मुलाकातें बढ़ती गईं. अब दोनों एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए थे. एक दिन दोनों घूमने के  लिए निकले. तभी पास से एक बाइक पर सवार 3 युवक बगल से गुजरे कि अचानक सनसनाती हुई गोली चली जो कनिका की बांह को छूती हुई पूरब की बांह में जा धंसी.

कनिका चीखी, ‘‘गाड़ी रोको.’’

पूरब ने गाड़ी रोक दी. बांह से रक्त की धारा बहने लगी. कनिका घबरा गई. पूरब को सहारा दे कर वहीं सड़क के किनारे बांह पर दुपट्टा बांध दिया और फिर मदद के लिए

सड़क पर हाथ दिखा गाड़ी रोकने का प्रयास

करने लगी. कोई रुकने को तैयार नहीं. तभी कनिका को खयाल आया. उस ने 100 नंबर पर फोन किया. जल्दी पुलिस की गाड़ी पहुंच गई. सब की मदद से पूरब को अस्पताल में भरती

करा पूरब के फोन से उस के भाई को फोन पर सूचना दे दी.

डाक्टर ने कहा कि काफी खून बह चुका है. खून की जरूरत है. कनिका अपना खून देने के लिए तैयार हो गई. ब्लड ग्रुप चैक कराया तो उस का ब्लड गु्रप मैच कर गया. अत: उस का खून ले लिया गया.

तभी बदहवास से पूरब के भाई ने वहां पहुंच डाक्टर से कहा, ‘‘किसी भी हालत में मेरे भाई को बचा लीजिए.’’

‘‘आप को इस लड़की का धन्यवाद करना चाहिए जो सही समय पर अस्पताल ले आई… अब ये खतरे से बाहर हैं.’’

सौरभ की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे. जैसे ही पूरब को होश आया सौरभ फफकफफक कर रो पड़ा, ‘‘भाई, मुझे माफ कर दे… मैं पैसे के मद में एक साधारण परिवार की लड़की को तुम्हारे साथ नहीं देख सका और उसे तुम्हारे रास्ते से हमेशा के लिए हटाना चाहा पर मैं भूल गया था कि पैसे से ऊपर इंसानियत भी कोई चीज है. कनिका मुझे माफ कर दो… पूरब ने तुम्हारे बारे में बताया था कि वह तुम्हें पसंद करता है. लेकिन मैं नहीं चाहता था कि साधारण परिवार की लड़की हमारे घर की बहू बने… आज तुम ने मेरे भाई की जान बचा कर मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया,’’ और फिर कनिका का हाथ पूरब के हाथों में दे कर बोला, ‘‘मैं जल्द ही तुम्हारे मातापिता से बात कर के दोनों की शादी की बात करता हूं.’’ कह बाहर निकल गया.

पूरब कनिका की ओर देख मुसकराते हुए बोला, ‘‘कनिका, अब हम सहयात्री से जीवनसाथी बनने जा रहे हैं.’’

यह सुन कनिका का चेहरा शर्म से लाल हो गया. Best Hindi Story

Story In Hindi: काठ की हांड़ी – मीना ने ऐसा क्या कारनामा किया

Story In Hindi: मीनाका चेहरा देख कर शोभाजी हैरान रह गईं. वे 1-2 मुलाकातों में ही समझ जाती थीं कि सामने खड़ा इंसान कितने पानी में है. मगर मीना को ले कर उन की आंखें धोखा खा गईं.

‘‘जो चीज आंखों के बहुत ज्यादा पास हो उसे भी ठीक से पहचाना नहीं जा सकता और जो ज्यादा दूर हो उस की भी पहचान नहीं हो सकती. हमारी आंखें इंसान की आंखें हैं. हमारे पास गिद्ध की आंखें नहीं हैं,’’ सोमेश ने मां को समझाया था, ‘‘आप इतनी परेशान क्यों हो रही हैं? आजकल का युग सीधे व सरल इंसान का नहीं है. भेष बदलना पड़ता है.’’

दिल्ली वाले चाचाजी के किसी मित्र की बेटी है मीना और यहां लुधियाना में एक कंपनी में काम करती है. कुछ दिन उन के पास रहेगी. उस के बाद अपने लिए कोई ठिकाना देख लेगी. यही कह कर चाचाजी ने उसे उन के पास भेजा था.

3 महीने होने को आए हैं इस लड़की ने पूरे घर पर अपना अधिकार जमा रखा है. कल तो हद हो गई जब एक मां और बेटा उस की जांचपरख के लिए घर तक चले आए. मीना का उन के सामने जो व्यवहार था वह ऐसा था मानो वह इसी घर की बेटी है.

‘‘घर बहुत सुंदर सजाया है तुम ने बेटा… तुम्हारी पसंद का जवाब नहीं है. सोफा, परदे सब लाजवाब… यह पेंटिंग भी तुम ने बनाई है क्या? इतना समय कैसे निकाल लेती हो?’’

‘‘बस आंटी शौक है… समय निकल ही आता है.’’

शोभाजी यह सुन कर हैरान रह गईं कि उन की बनाई कलाकृति पर अपनी मुहर लगाने में इस लड़की को 1 मिनट भी नहीं लगा. फिर 3 महीने की सेवा पर कहीं पानी न फिर जाए, यह सोच वे चुप रहीं. मगर उसी पल तय कर लिया कि अब और नहीं रखेंगी वे मीना को अपने घर में. सामनेसामने उन्हीं को बेवकूफ बना रही है यह लड़की.

‘‘आप मीना की आंटी हैं न… अभी कुछ दिन और रुकेंगी न… घर आइए न इस इतवार को,’’ जातेजाते उस महिला ने अपना कार्ड देते हुए.

शोभाजी अकेली रहती हैं. बेटा सोमेश बैंगलुरु में रहता है और पति का देहांत हुए 3 साल हो गए हैं. शोभाजी ने अपने फ्लैट को बड़े प्यार से सजाया है.

शोभाजी इस हरकत पर सकते में हैं कि कहीं यह लड़की कोई खतरनाक खेल तो नहीं खेल रही. फिर चाचा ससुर को फोन किया.

‘‘तो क्या अब तक वह तुम्हारे ही घर पर है… पिछली बार घर आई थी तब तो कह रही थी उस ने घर ढूंढ़ लिया है. बस जाने ही वाली है.’’

इस बात को भी 2 महीने हो गए हैं. अब तक तो उसे चले जाना चाहिए था.

हैरान थे चाचाजी. शोभाजी ने पूरी बात सुनाना उचित नहीं समझा. बस इतना ही पता लगाना था कि सच क्या है.

‘‘तुम्हें कुछ दिया है क्या उस ने? कह रही थी पैसे दे कर ही रहेगी. खानेपीने और रहने सब के.’’

‘‘नहींनहीं चाचाजी. अपना बच्चा खापी जाए तो क्या उस से पैसे लूंगी मैं?’’

हैरान रह गए थे चाचाजी. बोले, ‘‘यह लड़की इतनी होशियार है मैं ने तो सोचा भी नहीं था. जैसा उचित लगे वैसा करो. मेरी तरफ से पूरी छूट है. मैं ने तो सिर्फ 8-10 दिनों के लिए कहा था. 3 महीने तो बहुत लंबा समय हो गया है.’’

‘‘ठीक है चाचाजी,’’ कहने को तो शोभाजी ने कह दिया देख लेंगी, मगर देखेंगी कैसे यह सोचने लगीं.

पड़ोसी नमन परिवार से उन का अच्छा मेलजोल है. मीना की भी दोस्ती है

उन से. शोभाजी ने पहली बार उन से इस विषय पर बात की.

‘‘वह तो कह रही थी आप को क्10 हजार महीना देती है.’’

चौंक उठी शोभाजी. डर लगने लगा… फिर उन्होंने पूरी बात बताई तो नमनजी भी हैरान रह गए.

‘‘नहींनहीं शोभा भाभी, यह तो हद से

ज्यादा हो रहा है… क्या आप उन मांबेटे का पता जानती हैं?’’

‘‘उस महिला ने कार्ड दिया था अपना… रविवार को अपने घर बुलाया है.’’

‘‘इस लड़की को डर नहीं लगता क्या? वे मांबेटा किस भुलावे में हैं… यहां आए थे तो यह तो समझना पड़ेगा न कि क्या देखनेसुनने आए थे,’’ नमनजी ने कहा.

शोभाजी ने कार्ड ढूंढ़ कर फोन मिलाया, ‘‘जी मैं मीना की आंटी बोल रही हूं.’’

‘‘हांहां कहिए शोभाजी… आप आईं ही नहीं… मीना कह रही थी आप जल्दी वापस जाने वाली हैं, इसीलिए नहीं आ सकतीं… सुनाइए बच्चे कैसे हैं? दिल्ली में सब ठीक है न?’’

‘‘माफ कीजिएगा मैं कुछ समझी नहीं… दिल्ली   में मेरा क्या काम मैं तो यहीं रहती हूं लुधियाना में और जिस घर में आप आई थीं वही मेरा घर है. मीना तो मेरे चाचा ससुर के किसी मित्र की बेटी है जो 3 महीने पहले मेरे पास यह कह कर रहने आई थी कि 8-10 दिनों में चली जाएगी. मैं तो इस से ज्यादा उसे जानती तक नहीं हूं.’’

‘‘लेकिन उस ने तो बताया था कि वह फ्लैट उस के पापा का है,’’ हैरान रह गई थी वह महिला, ‘‘कह रही थी उस के पापा दिल्ली में हैं. मेरे बेटे को बहुत पसंद आई है मीना. उस ने कहा यहां लुधियाना में उस का अपना फ्लैट है. सवाल फ्लैट का भी नहीं है. मुझे तो सिर्फ अच्छी बहू चाहिए,’’ परेशान हो उठी थी वह महिला, ‘‘यह लड़की इतना बड़ा झूठ क्यों बोल गई? ऐसी क्या मजबूरी हो गई?’’

दोनों महिलाएं देर तक बातें करती रहीं. दोनों ही हैरान थीं.

शाम 6 बजे जब मीना घर आई तब तक उस का सारा सामान शोभाजी ने दरवाजे पर रख दिया था. यह देख वह हैरान रह गई.

‘‘बस बेटा अब तमाशा खत्म करो… बहुत समय हो गया… मुझे छुट्टी दो.’’

रंग उड़ गया मीना का. ‘‘सच बोल कर भी तुम्हारा काम चल सकता था. झूठ क्यों बोलती रही? पैसे बचाने थे उस के लिए चाचाजी से झूठ कहा. अपना रोब जमाना था उस के लिए नमनजी से कहा कि हर महीने मुझे क्व10 हजार देती हो. अच्छे घर का लड़का भा गया तो मेरा घर ही अपने पिता का घर बता दिया. तुम पर भरोसा कौन करेगा?’’

‘‘अच्छी कंपनी में काम करती हो… झूठ पर झूठ बोल कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली तुम ने.’’

‘‘आंटी आप… आप क्या कह रही हैं… मैं कुछ समझी नहीं.’’

‘‘बस करो न अब… मुझे और तकलीफ मत दो. अफसोस हो रहा है मुझे कि मैं ने

3 महीने एक ऐसी लड़की के साथ गुजार दिए जिस के पैरों के नीचे जमीन ही नहीं है. बेवकूफ तो मैं हूं जिसे समझने में इतनी देर लग गई. मिट्टी का बरतन बबनो बच्ची जो आंच पर रखरख कर और पक्का होता है. तुम तो काठ की हांड़ी बन चुकी हो.’’

‘‘रिकशा आ गया है मीना दीदी,’’ नमनजी के बेटे ने आवाज दी. मीना हैरान थी कि इस वक्त 6 बजे शाम वह कहां जाएगी.

‘‘पास ही बीवी रोड पर एक गर्ल्स होस्टल है. वहां तुम्हें आराम से कमरा मिल जाएगा. तुम्हें इस समय सड़क पर भी तो नहीं छोड़ सकते न…’’

रो पड़ी थी मीना. आत्मग्लानि से या यह सोच कर कि अच्छाखासा होटल हाथ से निकल गया.

‘‘आंटी मैं आप के पैसे दे दूंगी,’’ कह मीना ने अपना सामान रिकशे में रखा.

‘‘नहीं चाहिए… समझ लूंगी बदले में तुम से अच्छाखासा सबक ले लिया.

भारी मन से बिदा दी शोभाजी ने मीना को. ऐसी ‘बिदा’ भी किसी को देनी पड़ेगी, कभी सोचा नहीं था. Story In Hindi

Hindi Story: आधी अधूरी प्रेम कहानी – नर्मदा नदी के तट पर क्या हुआ था

Hindi Story: लौक डाउन का दूसरा चरण देश में चल रहा था. नर्मदा नदी पुल पर बने जिस चैक पोस्ट पर मेरी ड्यूटी जिला प्रशासन ने लगाई थी,वह दो जिलों की सीमाओं को जोड़ती थी. मेरे साथ ड्यूटी पर पुलिस के हबलदार,एक पटवारी ,गाव का कोटवार और मैं निरीह मास्टर.आठ आठ घण्टे की तीन शिफ्ट में लगी ड्यूटी में हमारा समय सुबह 6 बजे से लेकर दोपहर के 2 बजे तक रहता.आठ घंटे की इस ड्यूटी में जिले से बाहर आने जाने वाले लोगों की एंट्री करनी पड़ती थी. यदि कोई कोरोना संक्रमण से प्रभावित क्षेत्रों से जिले की सीमा में प्रवेश करता,तो तहसीलदार को इसकी सूचना दी जाती और यैसे लोगों की जांच कर उन्हें कोरेन्टाईन में रखा जाता. म‌ई महिने की पहली तारीख को मैं ड्यूटी के लिए सुबह 6 बजे ककरा घाट पर बनी चैक पोस्ट पर पहुंच गया था.

नर्मदा नदी के किनारे एक खेत पर एक किसानअपनी मूंग की फसल में पानी दे रहा था . काम करते हुए उसकी नजर नदी की ओर ग‌ई ,तो उसे नदी में कोई भारी सी चीज बहती हुई किनारे की तरफ आती दिखाई दी. थोड़ा करीब जाने पर किसान ने एक दूसरे से लिपटे युवक युवतियों को देखा तो चैक पोस्ट की ओर जोर से आवाज लगाई

” मुंशी जी दौड़ कर आइए ,ये नदी में देखिए लड़का लड़की बहते हुये किनारे लग गये हैं”

मेरे साथ ड्यूटी कर रहे पुलिस थाना के हबलदार बैनीसिंह ने आवाज सुनकर पुल से नीचे की तरफ दौड़ लगा दी. सूचना मिलने पर पुलिस टीम भी मौक़े पर आ ग‌ई . आस पास के लोगों की भीड़ नदी किनारे इकट्ठी हो गई, मुझसे भी रह नहीं गया . तो मैं भी नदी के घाट परपहुंच गया . सबने मिलकर आपस में एक दूसरे से लिपटे दोनों लड़का-लड़की के शव को नदी से निकाल कर किनारे पर कर दिया . जैसे ही उनके चेहरे  पर मेरी नजर गई तो मैं दंग रह ग‌या.

दरअसल नर्मदा नदी में मिले ये दोनों शव दो साल पहले मेरे स्कूल में पढ़ने वाले सौरभ और नेहा के ही थे ,जो दिन पहले ही रात में घर से भागे थे. गाव में जवान लड़का, लड़की के भागने की खबर फैलते ही लोग तरह-तरह की बातें करने लगे थे. नेहा के मां वाप का तो‌‌ रो रोकर बुरा हाल था. गांव में जाति बिरादरी में उनकी इज्जत मुंह दिखाने लायक नहीं बची थी. हालांकि दो साल से चल रहे दोनों के प्रेम प्रसंग चर्चा का विषय बन गये थे.पुलिस लाशों के पंचनामा और अन्य कागजी कार्रवाई में जुटी थी और मेरे स्मृति पटल पर स्कूल के दिनों की यादें के एक एक पन्ने खुलते जा रहे थे.

सौरभ और नेहा स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही एक दूसरे को पसंद करने लगे थे. सौरभ बारहवीं जमात में और नेहा दसवीं जमात में पढते थे. स्कूल में शनिवार के दिन बालसभा में जीवन कौशल शिक्षा के अंतर्गत किशोर अवस्था पर डिस्कशन चल रहा था. जब सौरभ ने विंदास अंदाज़ में बोलना शुरू किया तो सब देखते ही रह गये.  सौरभ ने जब बताया कि किशोर अवस्था में लड़के लड़कियों में जो शारीरिक परिवर्तन होते हैं, उसमें गुप्तांगों के आकार बढ़ने के साथ बाल उग आते हैं.लड़को के लिंग में कड़ा पन आने लगता हैऔर लड़कियों के वक्ष में उभार आने लगते हैं .लड़का-लड़की एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने लगते हैं.  हमारे बुजुर्ग शिक्षक जो दसवीं जमात के विज्ञान का जनन वाला पाठ पढ़ाने में संकोच करते हैं ,वे बालसभा छोड़ कर चले गये. लड़को को सौरभ के द्वारा बताई जा रही बातों में मजा आ रहा था, तो क्लास की लड़कियों के शर्म के मारे सिर झुके जा रहे थे.  17साल की  नेहा को सौरभ की बातें सुनकर गुदगुदी हो रही थी, लेकिन जब उसका बोलने का नंबर आया तो उसने भी खडे होकर बता दिया-
“लड़कियों को भी किशोरावस्था में पीरियड आने लगते है”

सौरभ और नेहा के इन विंदास बोल ने उन्हें स्कूल का आयडियल बना दिया था.

सौरभ स्कूल की पढ़ाई के साथ ही सभी प्रकार के फंक्शन में भाग लेता और नेहा उसके अंदाज की दीवानी हो गई.स्कूल में पढ़ाई के दौरान नेहा और सौरभ एक दूसरे से मन ही मन प्यार कर बैठे. दोनों के बीच का यह प्यार इजहार के साथ जब परवान चढ़ा तो मेल मुलाकातें बढ़ने लगी और दोनों ने एक दूजे के साथ जीने मरने की कसमें खा ली . इसी साल सौरभ कालेज की पढ़ाई के लिए सागर चला गया तो नेहा का  स्कूल में मन ही नहीं लगता.मोबाइल फोन के जरिए सौरभ और नेहा  आपस में बात करने लगे. सौरभ जब भी गांव आता तो लुक छिपकर नेहा से मिलता और पढ़ाई पूरी होते ही शादी करने का बादा करता  .

कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिये लगे लौक डाउन के तीन दिन पहले कालेज की छुट्टियां होने पर सौरभ सागर से गांव आ गया था . गांव वालों की नजरों से बचकर नेहा और सौरभ जब आपस में मिलते तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता. नेहा सौरभ से कहती-” अब तुम्हारे बिना गांव में मेरा दिल नहीं लगता”

सौरभ नेहा को अपनी बाहों में भरकर दिलासा देता,” सब्र करो नेहा , मेरी पढ़ाई खत्म होते ही हम शादी कर लेंगे”. नेहा सौरभ के बालों में हाथ घुमाते हुए कहती-

” लेकिन सौरभ घर वालों को कैसे मनायेंगे” .
सौरभ नेहा के माथे पर चुंबन देते हुए कहता-
“नेहा घर वालों को भी मना लेंगे,आखिर हम एक ही जाति बिरादरी के हैं”
सौरभ के सीने से लिपटते हुए नेहा कहती

” सौरभ यदि हमारी शादी नहीं हुई तो मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी”.
सौरभ ने उसके ओंठों को चूमते हुए आश्वस्त किया
“नेहा हमार प्यार सच्चा है हम साथ जियेंगे, साथ मरेंगे”

साथ जीने मरने की कसमें खाने वाले नेहा और सौरभ को एक दिन आपस में बात करते नेहा के पिता  ने देख लिया तो परिवार में बबाल मच गया .घर वालों ने समाज में अपनी इज्जत का वास्ता देकर नेहा को डरा धमकाकर समझाने की कोशिश की. नेहा ने घर वालों से साफ कह दिया कि वह तो सौरभ से ही शादी करेंगी.सौरभ के दादाजी को जब इसका पता चला तो दादाजी आग बबूला हो गये.कहने लगे” आज के लडंका लड़कियों में शर्म नाम की कोई चीज ही नहीं है.ये शादी हरगिज नहीं होगी.जिस लड़की में लाज शरम ही नहीं है, उसे हम घर की बहू नहीं बना सकते.”

सौरभ को जब दादाजी के इस निर्णय का पता चला तो वह भी ‌तिलमिला कर‌रह गया.

अब घर परिवार का पहरा  नेहा और सौरभ पर गहराने लगा था. एक दूजे के प्यार में पागल दोनों प्रेमी घर पर रहकर तड़पने लगे .और एक रात उन्होंने बिना सोचे समझे घर से भाग जाने का फैसला कर लिया.  योजना के मुताबिक वे अपने घरों से रात के दो बजे  मोटर साइकिल पर सवार होकर गांव से निकल तो गये, लेकिन लौक डाउन में जगह-जगह पुलिस की निगरानी से इलाके से दूर न जा सके.

दूसरे दिन सुबह  जब नेहा घर के कमरे में नहीं मिली तो घर वालों के होश उड़ गए .  सौरभ के वारे में जानकारी मिलने पर पता चला कि वह भी घर से गायब है,तो उन्हें यह समझ आ गया कि दोनों एक साथ घर से गायब हुए हैं. गांव में समाज के मुखिया और पंचो ने बैठक कर यह तय किया कि पहले आस पास के रिश्तेदारों के यहां उनकी खोज बीन कर ली जाए , फिर पुलिस को सूचना दी जाए. शाम तक जब दोनों का कोई पता नहीं चला ,तो घर वालों ने पुलिस थाना मे गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

अपने वेटे की तलाश में जुटे सौरभ के पिता ने तीसरे दिन की सुबह अपने मोबाइल  पर आये सौरभ के मेसेज को देखा तो उन्हें कुछ आशा की किरण दिखाई दी. मैसेज बाक्स को खोलकर वे मैसेज पढ़ने लगे . मैसेज में सौरभ ने लिखा था
” मेरे प्यारे मम्मी पापा,
हमारी वजह से आपको बहुत दुःख हुआ है, इसलिए हम हमेशा के लिए आपसे दूर जा रहे हैं.   नर्मदा नदी के ककरा घाट के किनारे मोटर साइकिल ,और मोबाइल रखे हैं.इन्हे ले जाना अलविदा”.

तुम्हारा अभागा वेटा
सौरभ

उधर नेहा के भाई के मोबाइल के वाट्स ऐप पर नेहा ने गुड बाय का मैसेज  सेंड किया था. जब दोनों के घर वाले मैसेज में बताई गई जगह पर पहुंचे तो वहां  मोटरसाइकिल खड़ी थी . उसके पास दो मोबाइल, गमछा, चुनरी और जूते चप्पल रखे थे. पुलिस की मौजूदगी में वह सामान जप्त कर नदी के किनारे और नदी में भी तलाशी की गई, लेकिन नेहा और सौरभ का दूर दूर तक कोई पता नहीं था.
घर वाले और पुलिस टीम दोनों की तलाशी में रात दिन जुटे हुए थे ,तभी म‌ई की एक तारीख को सुबह सुबह दोनों के शव नदी में उतराते मिले थे.

” मास्साब यै लोग इंदौर से आ रहे हैं ,इनकी एंट्री करो” पटवारी की आवाज सुनकर मैने देखा एक कार चैक पोस्ट पर जांच के लिए खड़ी थी . यादों के सफर से मैं वापस आ गया था . झटपट कार का नंबर नोट कर मुंह और नाक पर मास्क चढाकर उसमें सवार लोगों के नाम पता नोट कर लिए थे . कार के जाते ही हाथों पर सेनेटाइजर छिड़क कर हाथों को अच्छी तरह रगड़ कर अपने काम में लग गया.
उधर पोस्ट मार्टम के बाद सौरभ और‌ नेहा के शव को गांव में अपने अपने घर लाया गया और उनके अंतिम संस्कार में पूरा गांव उमड़ पड़ा था.  अस्सी साल की उमर पार कर चुके सौरभ के दादाजी पश्चाताप की आग में जल रहे थे.अपनी झूठी शान की खातिर युवाओं के सपनों को चूर चूर कर जबरदस्ती समाज के कायदे कानून थोपने के अपने निर्णय से दुःख भी हो रहा था.

मुझे भी सौरभ और नेहा की इस अधूरी प्रेम कहानी ने दुखी कर दिया था.  स्कूल की बालसभा में बच्चों को किशोरावस्था में समझ और धैर्य से काम ‌लेने और सोच समझकर निर्णय लेने की शिक्षा देने के बावजूद भी जवानी के‌ जोश में होश खो देकर अपनी जीवन लीला खत्म करने वाले इस प्रेमी जोड़े के निर्णय पर वार अफसोस भी हो रहा था. मुझे लग रहा था कि  काम धंधा जमाकर पहले सौरभ अपने पैरों पर खड़ा होता  और‌ लौक डाउन खत्म होते ही नेहा के साथ  कानूनी तौर पर शादी करता तो शायद ये प्रेम कहानी आधी अधूरी न रहती. Hindi Story

Best Hindi Story: एक दोस्त है मेरा – रिया ने किन से मिलाया था हाथ

Best Hindi Story: मैं बैडरूम की खिड़की में बस यों ही खड़ी बारिश देख रही थी. अमित बैड पर लेट कर अपने फोन में कुछ कह रहे थे. मैं ने जैसे ही खिड़की से बाहर देखते हुए अपना हाथ हिलाया, उन्होंने पूछा, ‘‘कौन है?’’

मैं ने कहा, ‘‘पता नहीं.’’

‘‘तो फिर हाथ किसे देख कर हिलाया?’’

‘‘मैं नाम नहीं जानती उस का.’’

‘‘रिया, यह क्या बात कर रही हो? जिस का नाम भी नहीं पता उसे देख कर हाथ हिला रही हो?’’ मैं चुप रही तो उन्होंने फिर कुछ शरारत भरे स्वर में पूछा, ‘‘कौन है? लड़का है या लड़की?’’

‘‘लड़का.’’

‘‘ओफ्फो, क्या बात है, भई, कौन है, बताओ तो.’’

‘‘दोस्त है मेरा.’’

इतने में तो अमित ने झट से बिस्तर छोड़ दिया. संडे को सुबह 7 बजे इतनी फुर्ती. तारीफ की ही बात थी, मैं ने भी कहा, ‘‘वाह, बड़ी तेजी से उठे, क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं, देखना था उसे जिसे देख कर तुम ने हाथ हिलाया था. बताती क्यों नहीं कौन था?’’

अब की बार अमित बेचैन हुए. मैं ने उन के गले में अपनी बांहें डाल दीं, ‘‘सच बोल रही हूं, मुझे उस का नाम नहीं पता.’’

‘‘फिर क्यों हाथ हिलाया?’’

‘‘बस, इतनी ही दोस्ती है.’’ अमित कुछ समझते नहीं, गरदन पर झटका देते हुए बोले, ‘‘पता नहीं कैसी बात कर रही हो, जान न पहचान और हाथ हिला रही हो हायहैलो में.’’

‘‘अरे उस का नाम नहीं पता पर पहचानती हूं उसे.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘बस यों ही आतेजाते मिल जाता है. एक ही सोसायटी है, पता नहीं कितने लोगों से आतेजाते हायहैलो हो ही जाती है. जरूरी तो नहीं कि सब के नाम पता हों.’’

‘‘अच्छा ठीक है. मैं फ्रैश होता हूं, नाश्ता बना लो,’’ अमित ने शायद यह टौपिक यहीं खत्म करना ठीक समझा होगा.

संडे था, मैं अमित और बच्चों की पसंद का नाश्ता बनाने में व्यस्त हो गई. बच्चों को कुछ देर से ही उठना था.

नाश्ता बनाते हुए मेरी नजर बाहर सड़क पर गई. वह शायद कहीं से कुछ रैडीमेड नाश्ता पैक करवा कर ला रहा था. हां, आज उस की पत्नी आराम कर रही होगी. उस की नजर फिर मुझ पर पड़ी. वह मुसकराता हुआ चला गया.

10 साल पहले हम अंधेरी की इस सोसायटी के फ्लैट में आए थे. हमारी बिल्डिंग के सामने कुछ दूरी पर जो बिल्डिंग है उसी में उस का भी फ्लैट है. मैं तीसरी फ्लोर पर रहती हूं और वह

5वीं पर. जब हम शुरूशुरू में आए थे तभी वह मुझे आतेजाते दिख जाता था. पता नहीं कब उस से हायहैलो शुरू हुई थी, जो आज तक जारी है.

इन 10 सालों में भी न तो मुझे उस का नाम पता है, न शायद उसे मेरा नाम पता होगा. दरअसल, ऐसा कोई रिश्ता है ही नहीं न कि मुझे उस का नाम जानने की जरूरत पड़े. बस समय के साथ इतना जरूर हुआ कि मेरी नजर उस की तरफ उस की नजरें मेरी तरफ अब अनजाने में नहीं, इरादतन उठती हैं, अब तो उस का इकलौता बेटा भी 10-12 साल का हो रहा है. मैं अनजाने में ही उस का सारा रूटीन जान चुकी हूं. दरअसल मेरे बैडरूम की खिड़की से पता नहीं उस के कौन से मरे की खिड़की दिखती है. बस, साल भर पहले ही तो जब उसे खिड़की में खड़े अचानक देख लिया तभी तो पता चला कि वह उसी फ्लैट में रहता है. पर उस के बाद जब भी महसूस हुआ कि वह खिड़की में खड़ा है, तो मैं ने फिर नजरें उधर नहीं उठाईं. अच्छा नहीं लगता न कि मैं उस की खिड़की की तरफ दिखूं.

हां, इतना होता है कि वह जब भी रोड से गुजरता है, तो एक नजर मेरी खिड़की की तरफ जरूर उठाता है और अगर मैं खड़ी होती हूं तो हम एकदूसरे को हाथ हिला देते हैं और कभीकभी यह भी हो जाता है कि मैं सोसायटी के गार्डन में सैर कर रही हूं और वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ आ जाए तब भी वह पत्नी की नजर बचा कर मुसकरा कर हैलो बोलता है, तो मैं मन ही मन हंसती हूं.

अब मुझे उस का सारा रूटीन पता है. सुबह 7 बजे वह अपने बेटे को स्कूल बस में बैठाने जाता है. फिर उस की नजर मेरी किचन की तरफ उठती है. नजरें मिलने पर वह मुसकरा देता है. साढ़े 9 बजे उस की पत्नी औफिस जाती है. 10 बजे वह निकलता है. 3 बजे तक वह वापस आता है. फिर अपने बेटे को सोसायटी के ही डे केयर सैंटर से लेने जाता है. उस की पत्नी लगभग 7 बजे तक आती है.

मेरे बैडरूम और किचन की खिड़की से हमारी सोसायटी की मेन रोड दिखती है. घर में सब हंसते हैं. अमित और बच्चे कहते हैं, ‘‘सब की खबर रहती है तुम्हें.’’ बच्चे तो हंसते हैं, ‘‘कितना बढि़या टाइमपास होता है आप का मौम. कहीं जाना भी नहीं पड़ता आप को और सब को जानती हैं आप.’’

इतने में अमित की आवाज आ गई,

‘‘रिया, नाश्ता.’’

‘‘हां, लाई.’’ हम दोनों ने साथ नाश्ता किया. हमारी 20 वर्षीय बेटी तनु और 17 वर्षीय राहुल 10 बजे उठे. वे भी फ्रैश हो कर नाश्ता कर के हमारे साथ बैठ गए.

इतने में तनु ने कहा, ‘‘आज उमा के घर मूवी देखने सब इकट्ठा होंगे, वहीं लंच है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौनकौन?’’

‘‘हमारा पूरा ग्रुप. मैं, पल्लवी, निशा, टीना, सिद्धि, नीरज, विनय और संजय.’’

अमित बोले, ‘‘नीरज, विनय को तो मैं जानता हूं पर अजय कौन है?’’

‘‘हमारा नया दोस्त.’’

अमित ने मुझे छेड़ते हुए कहा, ‘‘ठीक है बच्चों पर कभी मम्मी का दोस्त देखा है?’’

राहुल चौंका, ‘‘क्या?’’

‘‘हां भई, तुम्हारी मम्मी का भी तो एक दोस्त है.’’

तनु गुर्राई, ‘‘पापा, क्यों चिढ़ा रहे हो मम्मी को?’’

राहुल ने कहा, ‘‘उन का थोड़े ही कोई दोस्त होगा.’’

अमित ने बहुत ही भोलेपन से कहा, ‘‘पूछ लो मम्मी से, मैं झूठ थोड़े ही बोल रहा हूं.’’ दरअसल, हम चारों एकदसूरे से कुछ ज्यादा ही फ्रैंक हैं. युवा बच्चों के दोस्त बन कर ही रहते हैं हम दोनों इसलिए थोड़ाबहुत मजाक, थोड़ीबहुत खिंचाई हम एकदूसरे की करते ही रहते हैं.

तनु थोड़ा गंभीर हुई, ‘‘मौम, पापा झूठ बोल रहे हैं न?’’

मैं पता नहीं क्यों थोड़ा असहज सी हो गई, ‘‘नहीं, झूठ तो नहीं है.’’

‘‘मौम, क्या मजाक कर रहे हो आप लोग, कौन है, क्या नाम है?’’

मैं ने जब धीरे से कहा कि नाम तो नहीं पता, तो तीनों जोर से हंस पड़े. मैं भी मुसकरा दी.

राहुल ने कहा, ‘‘कहां रहता है आप का दोस्त मौम?’’

‘‘पता नहीं,’’ मैं ने पता नहीं क्यों झूठ बोल दिया. इस बार मेरे घर के तीनों शैतान हंसहंस कर एकदूसरे के ऊपर गिर गए. वह सामने वाले फ्लैट में रहता है, मैं ने जानबूझ कर नहीं बताया. मुझे पता है अमित की खोजी नजरें फिर सामने वाली खिड़की को ही घूरती रहेंगी. बिना बात के अपना खून जलाते रहेंगे.

तनु ने कहा, ‘‘पापा, आप बहुत शैतान हैं, मम्मी को तो कुछ भी नहीं पता फिर दोस्त कैसे हुआ मम्मी का.’’

‘‘अरे भई, तुम्हारी मम्मी उस की दोस्त हैं. तभी तो उस की हैलो का जवाब दे रही थीं, हाथ हिला कर.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम तीनों के दोस्त हो सकते हैं, मेरा क्यों नहीं हो सकता? आज तुम्हारे पापा ने किसी को हाथ हिलाते देख लिया, उन्हें चैन ही नहीं आ रहा है.’’

तीनों फिर हंसे, ‘‘लेकिन हमें हमारे दोस्तों के नाम तो पता हैं.’’ मैं खिसिया गई. फिर उन की मस्ती का मैं ने भी दिल खोल कर आनंद लिया. इतने में मेड आ गई, तो मैं उस के साथ किचन की सफाई में व्यस्त हो गई.

आज मेरे हाथ तो काम में व्यस्त थे पर मन में कई विचार आजा रहे थे. मुझे उस का नाम नहीं पता पर उसे आतेजाते देखना मेरे रूटीन का एक हिस्सा है अब. बिना कुछ कहेसुने इतना महसूस करने लगी हूं कि अगर उस की पत्नी उस के साथ होगी तो वह हाथ नहीं हिलाएगा. बस धीरे से मुसकराएगा. बेटे को बस में बैठा कर मेरी किचन की तरफ जरूर देखेगा. उस की कार तो मैं दूर से ही पहचानती हूं अब. नंबर जो याद हो गया है.

उस की पार्किंग की जगह पता है मुझे. यह सब मुझे कुछ अजीब तो लगता है पर यह जो ‘कुछ’ है न, यह मुझे अच्छा लगता है. मुझे दिन भर एक अजीब से एहसास से भरे रखता है. यह ‘कुछ’ किसी का नुकसान तो कर नहीं रहा है. मैं जो अपने पति को अपनी जान से ज्यादा प्यार करती हूं, उस में कोई रुकावट, कोई समस्या तो है नहीं इस ‘कुछ’ से. यह सच है कि जब अमित और बच्चों के साथ होती हूं तो यह ‘कुछ’ विघ्न नहीं डालता हमारे जीवन में. ऐसा नहीं है कि वह बहुत ही हैंडसम है. उस से कहीं ज्यादा हैंडसम अमित हैं और उस की पत्नी भी मुझ से ज्यादा सुंदर है पर फिर भी यह जो ‘कुछ’ है न इस बात की खुशी देता है कि हां, एक दोस्त है मेरा जिस का नाम मुझे नहीं पता और उसे मेरा. बस कुछ है जो अच्छा लगता है. Best Hindi Story

Hindi Story: बेवफा – एकतरफा प्यार करने वाली प्रिया के साथ क्या हुआ?

Hindi Story: ‘‘इट्स टू मच यार, लड़के कितने चीप, आई मीन कितने टपोरी होते हैं.’’ कमरे में घुसते ही सीमा ने बैग पटकते हुए झुंझलाए स्वर में कहा तो मैं चौंक पड़ी.

‘‘क्या हुआ यार? कोई बात है क्या? ऐसे क्यों कह रही है?’’

‘‘और क्या कहूं प्रिया? आज विभा मिली थी.’’

‘‘तेरी पहली रूममेट.’’

‘‘हां, यार. उस के साथ जो हुआ मैं तो सोच भी नहीं सकती. कोई ऐसा कैसे कर सकता है?’’

‘‘कुछ बताएगी भी? यह ले पहले पानी पी, शांत हो जा, फिर कुछ कहना,’’ मैं ने बोतल उस की तरफ उछाली.

वह पलंग पर बैठते हुए बोली, ‘‘विभा कह रही थी, उस का बौयफ्रैंड आजकल बड़ी बेशर्मी से किसी दूसरी गर्लफैं्रड के साथ घूम रहा है. जब विभा ने एतराज जताया तो कहता है, तुझ से बोर हो गया हूं. कुछ नया चाहिए. तू भी किसी और को पटा ले. प्रिया, मैं जानती हूं, तेरी तरह विभा भी वन मैन वूमन थी. कितना प्यार करती थी उसे. और वह लफंगा… सच, लड़के होते ही ऐसे हैं.’’

‘‘पर तू सारे लड़कों को एक जैसा क्यों समझ रही है? सब एक से तो नहीं होते,’’ मैं ने जिरह की.

‘‘सब एक से होते हैं. लड़कों के लिए प्यार सिर्फ टाइम पास है. वे इसे गंभीरता से नहीं लेते. बस, मस्ती की और आगे बढ़ गए, पर लड़कियां दिल से प्यार करती हैं. अब तुझे ही लें, उस लड़के पर अपनी जिंदगी कुरबान किए बैठी है, जिस लफंगे को यह भी पता नहीं कि तू उसे इतना प्यार करती है. उस ने तो आराम से शादी कर ली और जिंदगी के मजे ले रहा है, पर तू आज तक खुद को शादी के लिए तैयार नहीं कर पाई. आज तक अकेलेपन का दर्द सह रही है और एक वह है जिस की जिंदगी में तू नहीं कोई और है. आखिर ऐसी कुरबानी किस काम की?’’

मैं ने टोका, ‘‘ऐक्सक्यूजमी. मैं ने किसी के लिए जिंदगी कुरबान नहीं की. मैं तो यों भी शादी नहीं करना चाहती थी. बस, जीवन का एक मकसद था, अपने पैरों पर खड़ा होना, क्रिएटिव काम करना. वही कर रही हूं और जहां तक बात प्यार की है, तो हां, मैं ने प्यार किया था, क्योंकि मेरा दिल उसे चाहता था. इस से मुझे खुशी मिली पर मैं ने उस वक्त भी यह जरूरी नहीं समझा कि इस कोमल एहसास को मैं दूसरों के साथ बांटूं, ढोल पीटूं कि मैं प्यार करती हूं. बस, कुछ यादें संजो कर मैं भी आगे बढ़ चुकी हूं.’’

‘‘आगे बढ़ चुकी है? फिर क्यों अब भी कोई पसंद आता है तो कहीं न कहीं तुझे उस में अमर का अक्स नजर आता है. बोल, है या नहीं…’’

‘‘इट्स माई प्रौब्लम, यार. इस में अमर की क्या गलती. मैं ने तो उसे कभी नहीं कहा कि मैं तुम से प्यार करती हूं, शादी करना चाहती हूं. हम दोनों ने ही अपना अलग जहां ढूंढ़ लिया.’’

‘‘अब सोच, फिजिकल रिलेशन की तो बात दूर, तूने कभी उस के साथ रोमांस भी नहीं किया और आज तक उस के प्रति  वफादार है, जबकि वह… तूने ही कहा था न कि वह कालेज की कई लड़कियों के साथ फ्लर्ट करता था. क्या पता आज भी कर रहा हो. घर में बीवी और बाहर…’’

‘‘प्लीज सीमा, वह क्या कर रहा है, मुझे इस में कोई दिलचस्पी नहीं, लेकिन देख उस के बारे में उलटासीधा मत कहना.’’

‘‘हांहां, ऐसा करने पर तुझे तकलीफ जो होती है तो देख ले, यह है लड़की का प्यार. और लड़के, तोबा… मैं आजाद को भी अच्छी तरह पहचानती हूं. हर तीसरी लड़की में अपनी गर्लफ्रैंड ढूंढ़ता है. वह तो मैं ने लगाम कस रखी है, वरना…’’

मैं हंस पड़ी. सीमा भी कभीकभी बड़ी मजेदार बातें करती है, ‘‘चल, अब नहाधो ले और जल्दी से फ्रैश हो कर आ. आज डिनर में मटरपनीर और दालमक्खनी है, तेरी मनपसंद.’’

मुसकराते हुए सीमा चली गई तो मैं खयालों में खो गई. बंद आंखों के आगे फिर से अमर की मुसकराती आंखें आ गईं. मैं ने उसे एक बार कहा था, ‘तुम हंसते हो तो तुम्हारी आंखें भी हंसती हैं.’

वह हंस पड़ा और कहने लगा, ‘तुम ने ही कही है यह बात. और किसी ने तो शायद मुझे इतने ध्यान से कभी देखा ही नहीं.’

सच, प्यार को शब्दों में ढालना कठिन होता है. यह तो एहसास है जो सिर्फ महसूस किया जा सकता है. इस खूबसूरत एहसास ने 2 साल तक मुझे भी अपने रेशमी पहलू में कैद कर रखा था. कालेज जाती, तो बस अमर को एक नजर देखने के लिए. स्मार्ट, हैंडसम अमर को अपनी तरफ देखते ही मेरे अंदर एक अजीब सी सिहरन होती.

वह अकसर जब मेरे करीब आता तो गुनगुनाने लगता. मुझ से बातें करता तो उस की आवाज में कंपन सी महसूस होती. उस की आंखें हर वक्त मुझ से कुछ कहतीं, जिसे मेरा दिल समझता था, पर दिमाग कहता था कि यह सच नहीं है. वह मुझ से प्यार कर ही नहीं सकता. कहां मैं सांवली सी अपने में सिमटी लड़की और कहां वह कालेज की जान. पर अपने दिल पर एतबार तब हुआ जब एक दिन उस के सब से करीबी दोस्त ने कहा कि अमर तो सिर्फ तुम्हें देखने को कालेज आता है.

मैं अजीब सी खुशफहमी में डूब गई. पर फिर खुद को समझाने लगी कि यह सही नहीं होगा. हमारी जोड़ी जमेगी नहीं. और फिर शादी मेरी मंजिल नहीं है. मुझे तो कुछ करना है जीवन में. इसलिए मैं उस से दूरी बढ़ाने की कोशिश करने लगी. घर छोड़ने के लिए कई दफा उस ने लिफ्ट देनी चाही, पर मैं हमेशा इनकार कर देती. वह मुझ से बातें करने आता तो मैं घर जाने की जल्दी दिखाती.

इसी बीच एक दिन आशा, जो हम दोनों की कौमन फ्रैंड थी, मेरे घर आई. काफी देर तक हम दोनों ने बहुत सी बातें कीं. उस ने मेरा अलबम भी देखा, जिस में ग्रुप फोटो में अमर की तसवीरें सब से ज्यादा थीं. उस ने मेरी तरफ शरारत से देख कर कहा, ‘लगता है कुछ बात है तुम दोनों में.’ मैं मुसकरा पड़ी. उस दिन बातचीत से भी उसे एहसास हो गया था कि मैं अमर को चाहती हूं. मुझे यकीन था, आशा अमर से यह बात जरूर कहेगी, पर मुझे आश्चर्य तब हुआ जब उस दिन के बाद से वह मुझ से दूर रहने लगा.

मैं समझ गई कि अमर को यह बात बुरी लगी है, सो मैं ने भी उस दूरी को पाटने की कोशिश नहीं की. हमारे बीच दूरियां बढ़ती गईं. अब अमर मुझ से नजरें चुराने लगा था. कईकई दिन बीत जाने पर भी वह बात करने की कोशिश नहीं करता. मैं कुछ कहती तो शौर्ट में जवाब दे कर आगे बढ़ जाता, जबकि आशा से उस की दोस्ती काफी बढ़ चुकी थी. उस के इस व्यवहार ने मुझे बहुत चोट पहुंचाई. भले ही पहले मैं खुद उस से दूर होना चाहती थी, पर जब उस ने ऐसा किया तो बहुत तकलीफ हुई.

इसी बीच मुझे नौकरी मिल गई और मैं अपना शहर छोड़ कर यहां आ गई. हौस्टल में रहने लगी. बाद में अपनी एक सहेली से खबर मिली की अमर की शादी हो गई है. इस के बाद मेरे और अमर के बीच कोई संपर्क नहीं रहा.

मैं जानती थी, उस ने कभी भी मुझे याद नहीं किया होगा और करेगा भी क्यों? हमारे बीच कोई रिश्ता ही कहां था? यह मेरी दीवानगी है जिस का दर्द मुझे अच्छा लगता है. इस में अमर की कोई गलती नहीं. पर सीमा को लगता है कि अमर ने गलत किया. सीमा ही क्यों मेरे घर वाले भी मेरी दीवानगी से वाकिफ हैं. मेरी बहन ने साफ कहा था, ‘तू पागल है. उस लड़के को याद करती है, जिस ने तुझे कोई अहमियत ही नहीं दी.’

‘‘किस सोच में डूब गई, डियर?’’ नहा कर सीमा आ चुकी थी. मैं हंस पड़ी, ‘‘कुछ नहीं, फेसबुक पर किसी दूसरे नाम से अपना अकाउंट खोल रही थी.’’

‘‘किसी और नाम से? वजह जानती हूं मैं… यह अकाउंट तू सिर्फ और सिर्फ अमर को ढूंढ़ने के लिए खोल रही है.’’

‘‘जी नहीं, मेरे कई दोस्त हैं, जिन्हें ढूंढ़ना है मुझे,’’ मैं ने लैपटौप बंद करते हुए कहा.

‘‘तो ढूंढ़ो… लैपटौप बंद क्यों कर दिया?’’

‘‘पहले भोजन फिर मनोरंजन,’’ मैं ने प्यार से उस की पीठ पर धौल जमाई.

रात 11 बजे जब सीमा सो गई तो मैं ने फिर से फेसबुक पर लौगइन किया और अमर का नाम डाल कर सर्च मारा. 8 साल बाद अमर की तसवीर सामने देख कर यकायक ही होंठों पर मुसकराहट आ गई. जल्दी से मैं ने उस के डिटेल्स पढ़े. अमर ने फेसबुक पर अपना फैमिली फोटो भी डाला हुआ था, जिस में उस की बहन भी थी. कुछ सोच कर मैं ने उस की बहन के डिटेल्स लिए और उस के फेसबुक अकाउंट पर उस से दोस्ती के लिए रिक्वैस्ट डाल दी.

2 दिन बाद मैं ने देखा, उस की बहन निशा ने रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली है. फिर क्या था, मैं ने उस से दोस्ती कर ली ताकि अमर के बारे में जानकारी मिलती रहे. वैसे यह बात मैं ने निशा पर जाहिर नहीं की और बिलकुल अजनबी बन कर उस से दोस्ती की.

निशा औनलाइन अपने बारे में ढेर सारी बातें बताती. वह दिल्ली में ही थी और प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी. उस ने लाजपत नगर में कमरा किराए पर ले रखा था. अब तो जानबूझ कर मैं दिन में 2-3 घंटे अवश्य उस से चैटिंग करती ताकि हमारी दोस्ती गहरी हो सके.

एक दिन अपने बर्थडे पर उस ने मुझे घर बुलाया तो मैं ने तुरंत हामी भर दी. शाम को जब तक मैं उस के घर पहुंची तबतक  पार्टी खत्म हो चुकी थी और उस के फ्रैंड्स जा चुके थे. मैं जानबूझ कर देर से पहुंची थी ताकि अकेले में उस से बातें हो सकें. कमरा  खूबसूरती से सजा हुआ था. हम दोनों जिगरी दोस्त की तरह मिले और बातें करने लगे. निशा का स्वभाव बहुत कुछ अमर की तरह ही था, चुलबुली, मजाकिया पर साफ दिल की. वह सुंदर भी काफी थी और बातूनी भी.

मैं अमर के बारे में कुछ जानना चाहती थी जबकि निशा अपने बारे में बताए जा रही थी. उस के कालेज के दोस्तों और बौयफ्रैंड्स की दास्तान सुनतेसुनते मुझे उबासी आ गई. यह देख निशा तुरंत चाय बनाने के लिए उठ गई.

अब मैं चुपचाप निशा के कमरे में रखी चीजों का दूर से ही जायजा लेने लगी, यह सोच कर कि कहीं तो कोई चीज नजर आए, तभी टेबल पर रखी डायरी पर मेरी नजर गई तो मैं खुद को रोक नहीं सकी. डायरी के पन्ने पलटने लगी. ‘निशा ने अच्छा संग्रह कर रखा है,’ सोचती हुई मैं डायरी के पन्ने पलटती रही. तभी एक पृष्ठ पर नजरें टिक गईं. ‘बेवफा’ यह एक कविता थी जिसे मैं पूरा पढ़ गई.

मैं यह कविता पढ़ कर बुत सी बन गई. दिमाग ने काम करना बंद कर दिया. ‘तुम्हारी आंखें भी हंसती हैं…’ यह पंक्ति मेरी आंखों के आगे घूम रही थी. यह बात तो मैं ने अमर से कही थी. एक नहीं 2-3 बार.

तभी चाय ले कर निशा अंदर आ गई. मेरे हाथ में डायरी देख कर उस ने लपकते हुए उसे खींचा. मैं यथार्थ में लौट आई. मैं अजीब सी उलझन में थी, नेहा ने हंसते हुए कहा, ‘‘यार, यह डायरी मेरी सब से अच्छी सहेली है. जहां भी मन को छूती कोई पंक्ति या कविता दिखती है मैं इस में लिख लेती हूं.’’ उस ने फिर से मुझे डायरी पकड़ा दी और बोली, ‘‘पढ़ोपढ़ो, मैं ने तो यों ही छीन ली थी.’’

डायरी के पन्ने पलटती हुई मैं फिर उसी पृष्ठ पर आ गई. ‘‘यह कविता बड़ी अच्छी है. किस ने लिखी,’’ मैं ने पूछा.

‘‘यह कविता…’’ निशा मुसकराई, ‘‘मेरे अमर भैया हैं न, उन्होंने ही लिखी है. पिछली दीवाली के दिन की बात है. वे चुपचाप बैठे कुछ लिख रहे थे. मैं पहुंच गई तो हड़बड़ा गए. दिखाया भी नहीं पर बाद में मैं ने चुपके से देख लिया.’’

‘‘किस पर लिखी है इतनी अच्छी कविता? कौन थी वह?’’ मैं ने कुरेदा.

‘‘थी कोई उन के कालेज में. जहां तक मुझे याद है, प्रिया नाम था उस का. भैया बहुत चाहते थे उसे. पहली दफा उन्होंने किसी को दिल से चाहा था, पर उस ने भैया का दिल तोड़ दिया. आज तक भैया उसे भूल नहीं सके हैं और शायद कभी न भूल पाएं. ऊपर से तो बहुत खुश लगते हैं, परिवार है, पत्नी है, बेटा है, पर अंदर ही अंदर एक दर्द हमेशा उन्हें सालता रहता है.’’

मैं स्तब्ध थी. तो क्या सचमुच अमर ने यह कविता मेरे लिए लिखी है. वह मुझे बेवफा समझता है? मैं ने उस के होंठों की मुसकान छीन ली.

हजारों सवाल हथौड़े की तरह मेरे दिमाग पर चोट कर रहे थे.

मुझ से निशा के घर और नहीं रुका गया. बहाना बना कर मैं बाहर आ गई. सड़क पर चलते वक्त भी बस, यही वाक्य जहर बन कर मेरे सीने को बेध रहा था… ‘बेवफा’… मैं बेवफा हूं…’

तभी भीगी पलकों के बीच मेरे होंठों पर हंसी खेल गई. जो भी हो, मेरा प्यार आज तक मेरे सीने में दहक रहा है. वह मुझ से इतना प्यार करता था तभी तो आज तक भूल नहीं सका है. बेवफा के रूप में ही सही, पर मैं अब भी उस के दिलोदिमाग में हूं. मेरी तड़प बेवजह नहीं थी. मेरी चाहत बेनाम नहीं. बेवफा बन कर ही सही अमर ने आज मेरे प्यार को पूर्ण कर दिया था.

‘आई लव यू अमर ऐंड आई नो… यू लव मी टू…’ मैं ने खुद से कहा और मुसकरा पड़ी. Hindi Story

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