Hindi Family Story: एक तलाक ऐसा भी – गंगू और मोहिनी का यादगार फैसला

Hindi Family Story: गंगू अपनी पत्नी मोहिनी के साथ पूर्वी दिल्ली की एक कच्ची बस्ती में रहता था. कदकाठी में वह मोहिनी के सामने एकदम बच्चा लगता था, क्योंकि मोहिनी भरेपूरे बदन की औरत थी. उस का कद भी साढ़े 5 फुट था. जब वह गली से गुजरती थी, तो मनचले उस की मटकती कमर और उठे उभारों को देख कर आहें भरने लगते थे.

यह सब देख कर गंगू कुढ़ कर रह जाता था. रहीसही कसर मोहिनी के मोबाइल फोन ने पूरी कर दी थी. गंगू जब भी मोहिनी को फोन से चिपके देखता, तो वह उसे हड़का देता था. एक दिन तो हद हो गई. गंगू जब थकाहरा घर लौटा, तो मोहिनी हंसहंस कर किसी से फोन पर बात कर रही थी. उस की हंसी सुन कर गंगू का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया.

उस ने आव देखा न ताव और एक करारा तमाचा मोहिनी के गाल पर जड़ दिया.  अचानक पड़े तमाचे से मोहिनी बौखला गई और पलट कर उस ने भी गंगू को खींच कर एक तमाचा रसीद कर दिया. अब तो गुस्से के मारे गंगू के नथुने फूलने लगे.

यह देख कर बस्ती के कुछ लोग कहने लगे कि मर्द का अपनी पत्नी से मार खाना खानदान की नाक कटने के बराबर है. वे मानो गंगू के जले पर नमक छिड़क रहे थे. उधर गंगू गुस्से में और भी लालपीला हो रहा था. लिहाजा, मामला और भी बढ़ता चला गया.

इसी तनातनी में उन दोनों के रिश्तेदार दिल्ली आए तो मामला और भी संगीन होता गया और बात धीरेधीरे तलाक पर आ गई. दोनों पक्षों की तरफ से खूब आरोप उछाले गए. गंगू ने मोहिनी को और मोहिनी ने गंगू को बहुत सारी बकवास बातें कहीं. मुकदमा कोर्ट में दर्ज कराया गया. गंगू ने मोहिनी के खिलाफ बदचलनी का, तो मोहिनी ने गंगू के खिलाफ दहेज के नाम पर सताने का आरोप लगाया.

मुकदमा तकरीबन ढाई साल तक चलता रहा. आखिर में 7 साल तक शादीशुदा जिंदगी बिताने और एक बच्ची के मांबाप बनने के बाद आज गंगू और मोहिनी के बीच तलाक हो गया. गंगू और मोहिनी दोनों के हाथ में तलाक की परची थी. वे दोनों चुप थे. चूंकि मुकदमा तकरीबन ढाई साल तक चला था, लिहाजा वे दोनों ढाई साल से अलगअलग रह रहे थे.

गंगू दिल्ली में तो मोहिनी अपने मायके में रह रही थी. दोनों जब सुनवाई पर आते तो एकदूसरे को देख कर जलते, गुस्सा करते और मुंह मोड़ लेते.  तलाक की परची मिलने के बाद दोनों पक्ष के रिश्तेदार और गंगू व मोहिनी कोर्ट के पास के ही एक होटल में ठहरे थे. मोहिनी ने दिल्ली वाले घर में जाने से मना कर दिया था, तो गंगू भी वहीं रुक गया. सब की चाय पीने की इच्छा हुई.

इत्तिफाक से जिस मेज के सामने गंगू बैठा था, उसी मेज के सामने मोहिनी भी आ कर बैठ गई. अब दोनों आमनेसामने बैठे थे. शक्ल से लग रहा था कि उन दोनों के दिल में पछतावा था. दोनों एकदूसरे को काफी देर तक आंखों में आंखें मिला कर देखते रहे.  चाय आई.

दोनों ने कप उठाए, फिर कुछ देर बाद गंगू अपनी आंखों में पछतावे के आंसू ले कर हड़बड़ाती हुई आवाज में मोहिनी से बोला, ‘‘इस बीच जुदाई में मैं तुम्हें बहुत याद करता था.’’

यह सुन कर मोहिनी की भी आंखों में आंसू आ गए और उस ने गंगू के हाथ पर अपना हाथ रख कर धीरे से कहा, ‘‘मैं भी…’’ अब गंगू ने लंबी सांस ली और धीरेधीरे कहने लगा,

‘‘अभी तुम्हें 2 लाख रुपए नकद और 4,000 रुपए भी तो हर महीने देने हैं.

मुझे इस का जल्द ही बंदोबस्त करना पड़ेगा.’’

‘‘अरे… तो दे देना, कहीं भागे थोड़े ही जा रहे हैं आप…’’ मोहिनी बोली.

मोहिनी की यह बात सुन कर गंगू की आंखों से और ज्यादा आंसू छलक पड़े और उस ने धीरे से कहा, ‘‘मैं तुम्हें अब भी बहुत प्यार करता हूं.’’

‘‘और मैं भी…’’ मोहिनी बोली. ‘‘तुम पर बदचलनी का झूठा आरोप लगाने के लिए मुझे माफ कर दो.’’ यह सुन कर मोहिनी बोली,

‘‘माफी मांगने की क्या जरूरत है… मैं ने भी तो आप पर दहेज के नाम पर सताने का झूठा आरोप लगाया था.’’

अब गंगू ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारे बिना बिलकुल अकेला हो जाऊंगा.’’

‘‘और मैं भी,’’ मोहिनी बोली. गंगू डरते हुए बोला, ‘‘मैं तुम्हारे  साथ ही अपनी सारी जिंदगी गुजारना चाहता हूं.’’

‘‘और मैं भी आप के साथ ही रहना चाहती हूं…’’ मोहिनी ने कहा,

‘‘पर…’’ ‘‘पर क्या?’’ गंगू ने पूछा. ‘‘पर, इस तलाक की परची का क्या करोगे?’’ मोहिनी बोली.

‘‘तो इस तलाक की परची को फाड़ कर फेंक देते हैं,’’ गंगू ने कहा.

फिर उन दोनों ने एकदूसरे को देखते हुए अपनीअपनी परची फाड़ कर फेंक दी और ठहाका मार कर हंस पड़े. इस के बाद उन दोनों ने एकदूसरे का हाथ पकड़ लिया और कुरसी से उठ कर गले लग गए. दोनों की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े. देखते ही देखते गंगू और मोहिनी दोनों एकदूसरे का हाथ पकड़ कर हंसते हुए होटल से बाहर चले गए. यह नजारा देख कर उस होटल में ठहरे उन के रिश्तेदारों के चेहरों पर मुर्दनी छा गई. Hindi Family Story

Best Hindi Kahani: खिल उठी कलियां

Best Hindi Kahani: हवाईजहाज के पहिए से दिल्ली आया काबुल का किशोर अफगानिस्तान से एक 13 साल का किशोर हवाईजहाज के व्हील वैल (हवाईजहाज के पहिए की जगह) में छिप कर काबुल से दिल्ली पहुंच गया. जब उस किशोर से पूछताछ की गई, तो उस ने बताया कि वह अफगानिस्तान का रहने वाला है और गलती से भारत आने वाली फ्लाइट में चढ़ गया था, जबकि उसे ईरान जाना था. काबुल एयरपोर्ट पर वह मुसाफिरों की गाड़ी के पीछेपीछे अंदर घुस गया था और फिर हवाईजहाज के व्हील वैल में छिप गया था. सफर के दौरान पहिए के अंदर जाने के बाद दरवाजा बंद हो गया और वह उसी में चिपका रहा. यह बेवकूफी पर हिम्मत का काम है, क्योंकि जिस ऊंचाई पर हवाईजहाज उड़ता है, वहां बेहद ठंड होती है और औक्सीजन न के बराबर होती है

‘‘आप चाहें मु झ से कुछ भी कहें, लेकिन अब मैं दोबारा किसी कीमत पर काशान से निकाह नहीं करूंगी. उस ने मेरी जिंदगी जहन्नुम बना दी और आप बोल रही हैं कि मैं काशान से निकाह कर के अपनेआप को दोबारा उसी कैदखाने में कैद कर लूं? घुटन होती है मु झे वहां… आप लोग सम झते क्यों नहीं?’’ हिना बारबार अपनी अम्मी को सम झा रही थी, लेकिन वे किसी भी कीमत पर हिना का निकाह दोबारा काशान से ही करवाना चाहती थीं.

‘‘बेटी, तुम क्यों नहीं सम झ रही हो… काशान के अब्बू रफीक मियां ने खुद हमारे यहां आ कर माफी मांगी है. वे चाहते हैं कि तुम दोबारा उन के घर की बहू बनो,’’ हिना की अम्मी अमीना उसे प्यार से सम झाते हुए बोलीं.

‘‘चलिए ठीक है, मैं काशान से दोबारा निकाह करने के लिए तैयार हूं, मगर मैं किसी भी कीमत पर हलाला नहीं करूंगी. क्या बिना हलाला के रफीक मियां मेरा निकाह काशान से करवाएंगे?’’ हिना ने गुस्से से अपनी अम्मी से कहा.

‘‘हिना, तुम अच्छी तरह से जानती हो कि शरीयत में अगर शौहर गुस्से में आ कर अपनी बीवी को तलाक ए बिद्दत दे देता हैं और वह दोबारा उसी लड़की निकाह करना चाहता है, तो उस की बीवी को हलाला जैसी रस्म से गुजरना ही पड़ेगा… और फिर आसिफ तुम्हारा देवर भी लगता है. तुम उसे बचपन से जानती हो.

उस से चुपचाप तुम्हारा निकाह करवा दिया जाएगा और अगले दिन आसिफ तुम्हें तलाक दे देगा और तुम्हारा काशान से दोबारा हो जाएगा,’’ हिना की अम्मी अमीना ने शरीयत का हवाला देते हुए हिना को सम झाया.

‘‘तो क्या शौहर गलती करे और सजा केवल उस की बीवी को ही मिले? क्या औरत की कोई इज्जत और उस का वजूद नहीं होता है? जब जी चाहा अपना लिया और जब जी चाहा जिंदगी से निकाल कर फेंक दिया?’’ हिना रोते हुए बोली.

हिना की बात सुन कर अमीना चुपचाप कमरे से बाहर आ गईं.

हिना को सम झ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. जिस को वह बेइंतहा मुहब्बत करती थी आज उसी के साथ उस का हलाला करवाने की बात की जा रही है. उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे वह आसिफ को एक बार फिर एक बड़ा जख्म देने की तैयारी कर रही है.

हिना को उस के शौहर काशान ने तलाक दे दिया था और उस के इद्दत के दिन पूरे हो गए थे, इसलिए उस की अम्मी और अब्बू उसे दोबारा काशान से निकाह करने के लिए बोल रहे थे, लेकिन वह किसी कीमत पर काशान से निकाह नहीं करना चाहती थी.

काश, हिना ने उस वक्त आवाज उठाई होती, जब आसिफ से उस की शादी न कर के काशान से करवाने की बात कही गई थी, तो आज उस की जिंदगी खराब नहीं होती.

यह सोचते ही हिना को ऐसा महसूस होने लगा था कि उस के जख्म एक बार फिर हरे हो गए हैं और उन में से टीस उठने लगी है.

कितनी मुहब्बत करते थे वे दोनों. आसिफ हिना के पड़ोस में ही रहता था. बचपन में वह और आसिफ साथ ही खेला करते थे. जब वह पढ़ाई करती थी, तो अकसर आसिफ से सवाल के जवाब पूछने पहुंच जाती थी.

पढ़तेपढ़ाते वे दोनों कब जवानी की दहलीज पर पहुंच गए, उन्हें इस का पता ही नहीं चला… यही नहीं, वे दोनों एकदूसरे से मुहब्बत भी करने लगे थे और यह बात किसी से छिपी हुई नहीं थी. 1-2 बार हिना के अब्बू ने खुद ही कहा था कि वे उस की शादी आसिफ से ही करवाएंगे.

सबकुछ ठीक ही चल रहा था. आसिफ अपने अब्बू के साथ कपड़े की दुकान पर ही बैठता था और साथ ही वह पढ़ाई भी कर रहा था. इसी बीच आसिफ के अब्बू बीमार पड़ गए. उन का काफी इलाज करवाया गया, लेकिन वे बच नहीं पाए.

आसिफ को अपने अब्बू के इलाज में काफी पैसे खर्च करने पड़ गए, जिस की वजह से दुकानदारी गड़बड़ा गई और घर के हालात खराब हो गए.

उस वक्त हिना ने खुद आसिफ का हौसला बढ़ाया था, जिस के चलते आसिफ की हिम्मत नहीं टूटी. उस ने पढ़ाई छोड़ कर दुकान पर बैठना शुरू कर दिया था. बेहतर क्वालिटी का सामान और पढ़ालिखा होने से उस की दुकान फिर चल निकली.

पैसे की कमी देखते हुए हिना ने आसिफ को बैंक से लोन लेने का सु झाव दिया. आसिफ ने भागदौड़ कर के बैंक से दुकान के लिए लोन ले लिया था. उसी से दुकान का काम भी अच्छा चल निकला.

उधर हिना के अब्बू ने उस का रिश्ता ढूंढ़ना शुरू कर दिया था. हिना को जब इस बात का पता चला, तो उस ने आसिफ से उस के घर पर अपनी अम्मी के जरीए रिश्ता भेजने के लिए बोल दिया.

आसिफ की अम्मी जब रिश्ता ले कर घर आईं, तो हिना बहुत खुश थी और वह आसिफ के साथ शादी के सपनों में खो गई. लेकिन हिना के अब्बू ने साफ मना करते हुए कह दिया, ‘‘हम अपनी बेटी की शादी किसी बड़े घर में करेंगे, जहां पर वह रानी बन कर रहेगी. तुम्हारे घर में तो उसे ढंग का कपड़ा और खाना भी नहीं मिलेगा.’’

हिना के अब्बू की बात सुन कर आसिफ की अम्मी चुपचाप वहां से चली गईं.

उस दिन हिना बहुत रोई थी, लेकिन वह इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई कि अपने अब्बू से बोल सके कि वह आसिफ से ही शादी करेगी.

हिना को अच्छी तरह से याद है कि जब वह आसिफ से मिली थी, तो आसिफ काफी रोया था और उस को अपनी मुहब्बत की दुहाई दे रहा था, लेकिन वह खामोश रही और चुपचाप घर वापस आ गई थी.

हिना के अब्बू ने पैसे वाला देख कर उस की शादी आसिफ के चाचा रफीक मियां के बेटे काशान से करवा दी थी. रफीक मियां काफी अमीर थे. जमीनजायदाद के अलावा एक कपड़े की दुकान भी थी, जिस पर काशान अपने अब्बू के साथ बैठता था.

हिना की शादी बहुत ही धूमधाम के साथ हुई. सभी को यकीन था कि हिना वहां बहुत सुखी रहेगी. लेकिन शादी के एक महीने बाद से ही हिना और काशान में झगड़े शुरू हो गए. इन झगड़ों की वजह यह भी थी कि हिना पढ़ीलिखी थी और काशान ठीक से दस्तखत भी नहीं कर पाता था. काशान अकसर उस की बेइज्जती कर देता और पिटाई भी. वह हिना को कहीं अकेले बाहर भी नहीं जाने देता था.

काशान औनलाइन सट्टेबाजी किया करता था. यही नहीं, उस ने औनलाइन जुआ भी खेलना शुरू कर दिया था. हिना जब मना करती, तो काशान झगड़ा करना शुरू कर देता.

उधर लगातार जुए और सट्टेबाजी की वजह से दुकान में घाटा हो रहा था, लेकिन सास का कहना था कि जब से हिना के पैर घर में पड़े हैं, तब से नुकसान हो रहा है, जबकि सभी जानते थे कि काशान औनलाइन सट्टे और जुए में सबकुछ बरबाद कर रहा है.

एक दिन झगड़ा ज्यादा बढ़ गया तो सास भी अपने बेटे की तरफदारी करने लगीं और काशान ने हिना को तलाक दे दिया. तलाक की बात सुन कर सभी हैरान रह गए थे. हिना चुपचाप अपने घर आ गई थी. सभी सोच रहे थे कि हिना की जिंदगी खराब हो गई है, लेकिन यह बात हिना जानती थी कि कम से कम उसे इस जहन्नुम से तो छुटकारा मिल गया.

‘‘हिना…’’ तभी किसी की आवाज सुन कर वह यादों के भंवर से निकल कर वापस आ गई. उस ने देखा कि कमरे में उस की सहेली अंजुम खड़ी थी. उस ने अपने गालों पर आए आंसुओं को पोंछते हुए अंजुम को एक ओर बैठने का इशारा किया.

‘‘हिना, तुम क्यों नहीं खाला की बात मान लेती… जिस से तुम मुहब्बत करती थी उसी से तुम्हें हलाला की रस्म अदा करनी पड़ेगी, तो इस में परेशानी किस बात की है…’’ अंजुम उसे सम झाते हुए बोली.

आसिफ का नाम सुनते ही हिना के चेहरे पर अनोखी चमक आ गई थी, लेकिन वह कुछ नहीं बोली. पर फिर उस ने कुछ सोच कर अंजुम के सामने हामी भर ली. उस की ‘हां’ सुन कर अंजुम वहां से चली गई.

दूसरी ओर जब से रफीक चाचा ने आसिफ से हिना के साथ हलाला करने के रस्म अदायगी की बात कही थी, तब से वह काफी उल झन में था, इसलिए वह छत पर बैठा यों ही मोबाइल में फालतू की रील्स देख रहा था.

‘‘आसिफ, नीचे आ कर खाना खा लो,’’ तभी उसे अपनी अम्मी की आवाज सुनाई दी.

आसिफ ने मोबाइल जेब में रखा और छत से नीचे उतर आया. अम्मी ने उस को खाना दे दिया. उस ने हाथमुंह धो कर बेमन से खाना खाया और फिर अपने कमरे में चला गया.

आसिफ को लग रहा था कि हिना की बेइज्जती करने के लिए ही उस का इस्तेमाल किया जा है.

उधर हिना बिना किसी को बताए आसिफ के घर पहुंच गई. उस की अम्मी को ‘सलाम’ कर के वह सीधी आसिफ के कमरे में दाखिल हो गई.

‘‘क्या हो रहा है?’’ हिना ने पूछा.

‘‘तुम…?’’ आसिफ ने हैरान हो कर कहा.

‘‘हां आसिफ, मैं तुम से बात करने आई हूं,’’ सामने पड़े हुए स्टूल पर बैठते हुए हिना बोली.

‘‘क्या बात है?’’ आसिफ ने हिना से पूछा.

आसिफ को देख कर हिना को लग रहा था कि अचानक उस के दिल की धड़कन तेज हो गई थी.

‘‘अभी रफीक मियां तुम्हारे पास आए थे न?’’ हिना बोली.

‘‘हां, वे फिर तुम्हें अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं. वे मानते हैं कि गलती काशान की थी,’’ आसिफ धीरे से बोला.

‘‘अगर गलती काशान की थी, तो सजा मु झे क्यों दी जा रही है?’’ भर्राई हुई आवाज में हिना बोली.

‘‘काशान से दोबारा निकाह के लिए हलाला तो करना ही पड़ेगा,’’ आसिफ बोला.

‘‘मुझे मालूम है कि मेरा निकाह तुम्हारे साथ हो रहा है, इसीलिए अब मैं ने ‘हां’ कर दी है. मैं जानती हूं कि उस के अम्मीअब्बू को तो इस बात का एहसास नहीं हो रहा है कि उन की बहू के साथ उस घर में क्याक्या जुल्म हुए हैं और वह किस तरह जहन्नुम की आग में जल रही थी, क्योंकि उन्हें लगता है कि जिंदगी में पैसा ही सबकुछ है.

‘‘लेकिन तुम तो मु झ से मुहब्बत करते थे… तुम इस बात को कैसे भूल गए? बस, मैं तुम्हें इतना बताने आई हूं कि निकाह के बाद मैं तुम्हारी बीवी बन जाऊंगी. क्या तुम अपनी बीवी को किसी दूसरे के हवाले कर दोगे?’’ रोते हुए हिना बोली.

‘‘लेकिन…’’ हिना की बात से आसिफ के पूरे बदन में सिहरन सी दौड़ गई और वह कुछ बोल न सका.

‘‘और हां, अगर हलाला के नाम पर तुम ने मु झे तलाक दे दिया, तब भी मैं उस जहन्नुम में नहीं जाऊंगी. निकाह कुबूल करना या न करना मेरा फैसला होगा.’’

‘‘तब सभी मु झे गलत कहेंगे…’’ आसिफ ने कहा.

‘‘तुम तो पढ़ेलिखे सम झदार हो. क्या लोगों के कहने पर अपनी बीवी को छोड़ दोगे?’’ हिना रोती जा रही थी और बोले जा रही थी. उसे सम झ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

उधर हिना को रोते देख कर अनायास ही आसिफ की आंखों से भी आंसू बहने लगे थे. तभी किसी ने हिना के कंधे पर हाथ रखा. हिना ने देखा कि कमरे में उस के अब्बू आ गए थे और उन के साथ ही आसिफ की अम्मी भी खड़ी थीं.

‘‘बेटी, मुझे माफ कर दो. मैं सिर्फ अपनी इज्जत और रुतबे का खयाल कर रहा था. मैं नहीं जानता था कि मेरी बेटी किस दर्द से गुजर रही है. मैं ने तुम दोनों को एक बार अलग कर के गलती की थी, लेकिन अब मैं यह गलती दोबारा नहीं करूंगा. अब तुम सिर्फ आसिफ की ही दुलहन बनोगी,’’ अब्बू ने कहा.

हिना ने देखा कि उस के अब्बू की भी आंखों में आंसू थे. वह उठ कर कर अब्बू के गले लग गई. आज उसे लग रहा था कि एक बार फिर से उस की जिंदगी में बहार आ गई है और कलियां खिलने लगी हैं. Best Hindi Kahani

Hindi Family Story: एक सच यह भी

Hindi Family Story: ‘‘नलिनी…’’ अपने नाम की पुकार के साथ ही नलिनी के हड़बड़ाते कदम ठिठक गए और उस की नजरें पुकार की दिशा में घूम गईं.

‘‘इन लोगों ने मु झे जबरदस्ती पकड़ लिया है. मैं बेकुसूर हूं. मैं ने कुछ नहीं किया. इन्हें सम झाओ…’’

‘‘मैडम, क्या आप इसे पहचानती हैं?’’ एक पुलिस वाले ने नलिनी से पूछा.

अपने पति जतिन की आंखों में सवालिया निशान देख कर नलिनी के चेहरे पर घबराहट दिखने लगी और ‘हां’ में हिलने वाली उस की गरदन कब ‘न’ के अंदाज में इधर से उधर तेजी से हिल उठी, खुद नलिनी को भी पता नहीं चला.

रेहान का चेहरा लटक गया. आंखों में उभरे आशा के दीप अचानक से बुझ गए.

जिस सवाल से नलिनी पूरा दिन बचने की कोशिश करती रही, रात को बिस्तर पर आते ही जतिन ने वही सवाल बंदूक की गोली सा दाग दिया, ‘‘तुम वाकई उस शख्स को नहीं जानती?’’

‘‘किस को?’’ नलिनी ने अनजान बन कर पूछा, लेकिन उस के दिल की गड़गड़ाहट बेकाबू हुए जा रही थी.

‘‘वही जिसे मौल से पुलिस पकड़ कर ले जा रही थी.’’

‘‘आप मु झ पर शक कर रहे हैं?’’

‘‘नहीं. अगर तुम कह रही हो, तो वाकई तुम उसे नहीं जानती. आओ, अब सो जाते हैं,’’ जतिन हमेशा की तरह नलिनी को अपनी बांहों में ले कर सुलाने लगे, पर नलिनी का दिल रो उठा.

‘कितना प्यार और भरोसा करते हैं जतिन मु झ पर… और मैं उन के भरोसे का यह सिला दे रही हूं… सिर्फ उन का ही नहीं, बल्कि मैं ने रेहान का भी भरोसा तोड़ दिया है. कितनी उम्मीद से उस ने मु झे पुकारा था और मैं ने उसे पहचानने से ही इनकार कर दिया…’ गहराती रात के साथ नलिनी के दिल का दर्द बढ़ता जा रहा था. वह जतिन के सीने से लग कर फफक उठी.

‘‘मुझे माफ कर दीजिए. मैं ने आप से झूठ बोला था. मैं उस शख्स को जानती हूं,’’ नलिनी बोली.

‘‘मुझे मालूम है,’’ यह कहते हुए जतिन शांत थे.

‘‘क्या? पर कैसे?’’ नलिनी ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘अरे यार, वकील हूं. पारखी नजर और तेज दिमाग रखता हूं.’’

‘‘फिर भी आप ने कोई सवालजवाब नहीं किया?’’

‘‘तुम्हारे प्यार के आगे सब बातें फालतू हैं. अगर तुम नहीं बताना चाहती, तो मैं कभी भी नहीं पूछूंगा.’’

‘‘लेकिन मैं सबकुछ बताना चाहती हूं. मेरे दिल पर बहुत बड़ा बो झ है. सोचा तो था कि वह किस्सा वहीं दफन हो गया, पर अब आप को बताए बिना मु झे चैन नहीं पड़ेगा.

‘‘आप को तो पता ही है कि शादी से पहले मैं एक डिस्पैंसरी में नौकरी करती थी. लोगों की सम झाइश के लिए मुझे आसपास के कसबों और शहरों का दौरा करना पड़ता था. यह वाकिआ हमारी मंगनी के बाद का है.

‘‘मैं पास के एक शहर का दौरा कर के बस से लौट रही थी. एक कसबानुमा जगह पर बस रुकी. 2-4 मुसाफिर उतरे. उस के बाद ड्राइवर ने चाबी घुमाई, पर बस नहीं चली. खलासी और कुछ दूसरे लोगों ने उतर कर बस को धक्का भी लगाया, पर वह नहीं चली.

‘‘ड्राइवर ने हाथ खड़े कर दिए कि बस आगे नहीं जा पाएगी. अब तो सवेरे ही कुछ हो पाएगा. सभी लोग रात गुजारने का बंदोबस्त कर लें.

‘‘मेरे पास सूटकेस ले कर उतरने के अलावा कोई चारा नहीं था. मैं ने एक आदमी से किसी होटल का पता पूछा, तो उस ने सामने एक लौज की ओर इशारा कर दिया, जहां लुंगी पहने कुछ लोग शराब पीते, बोटियां चबाते नजर आ रहे थे.

‘‘मैं उस ओर जाने की सोचने से ही सिहर उठी थी. हमारी बस का एक मुसाफिर, जो मेरे सामने वाली सीट पर बैठा था और इसी कसबे में उतर गया था, अपने एक दोस्त से बतियाता अभी तक वहीं खड़ा था. उस ने मेरी कशमकश का अंदाजा लगा लिया था. वह मेरे पास आया और अपने घर चलने की कहने लगा.

‘‘उस ने मु झ से कहा, ‘घबराइए नहीं. घर पर मेरे मातापिता हैं, छोटी बहन भी है.’

‘‘मेरे पास दूसरा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. उस ने एक आटोरिकशा किया और मैं उस के साथ चल दी.’’
जतिन ने पूछा, ‘‘यह वही नौजवान था, जो आज मौल में मिला था?’’

‘‘हां, वही था. उस का नाम रेहान है. पर उस वक्त तक मु झे मालूम नहीं था कि मैं एक मुसलिम नौजवान के साथ जा रही हूं, वरना उस समय के हिंदूमुसलिम दंगे वाले माहौल में मैं ऐसा खतरा कभी नहीं उठाती.

‘‘जब तंग गलियों से आटोरिकशा गुजरने लगा, तो मु झे अहसास हुआ कि एक अनजान शख्स के साथ आ कर मैं ने कितनी बड़ी गलती कर दी है. इस से अच्छा तो वहीं बसस्टैंड पर ही जागते हुए रात गुजार देती.

इतने लोग थे तो वहां. पर अब क्या हो सकता था…

‘‘एक घर के आगे जा कर आटोरिकशा रुका, तो अंदर से एक लड़की चहकती हुई आई और ‘भाईजान’ कहते हुए उस शख्स से लिपट गई. तब कहीं जा कर मेरी जान में जान आई.

‘‘तब तक उस के मातापिता भी बाहर आ चुके थे. उन्हें देख कर मेरा माथा ठनका. पहली नजर में ही मु झे लग गया कि मैं किसी कट्टर मुसलिम परिवार में आ गई हूं.’’

‘‘लेकिन इस में इतना खौफ खाने की वजह?’’ जतिन ने सवाल किया.

‘‘एक तो यही कि उस समय भी माहौल ठीक नहीं था. दूसरे, अपने दौरों के दौरान मैं ने हमेशा यह महसूस किया कि मुसलिम बहुत कट्टर होते हैं और मेरी परिवार नियोजन की दलीलों पर वे जरा भी कान नहीं देते थे.’’

‘‘ओह…’’ जतिन के मुंह से निकला.

‘‘रेहान की बहन, जिस का नाम सलमा था, उसे चहकते हुए बता रही थी कि अम्मी ने उस की मनपसंद मुर्ग बिरयानी बना रखी है… मु झे तो यह सुन कर ही मितली आने लगी थी. पर उस की अम्मी बहुत सम झदार निकलीं. तब तक रेहान उन्हें मेरे बारे में सबकुछ बता चुका था…

‘‘रेहान की अम्मी बोलीं, ‘इसे अपना ही घर सम झो बेटी.’

‘‘यह बात कह कर उन्होंने मु झे अपना बना लिया था. फिर तो मेरे लाख कहने पर भी वे मेरे लिए ताजा खाना बना कर ही मानी थीं. सब ने मेरे साथ बैठ कर दाल और आलू की सब्जी खाई थी. यह कह कर कि बिरियानी हम कल खा लेंगे, मेहमाननवाजी का मौका कबकब मिलता है.

‘‘उन्होंने मेरा दिल जीत लिया था. सारा खौफ पल में छूमंतर हो गया था. रात को मैं और सलमा एक कमरे में सो गए थे. रेहान ने बैठक में बिस्तर लगा लिया था.

‘‘अनजान माहौल में नींद आते मु झे वक्त लगा था. सच कहूं, तड़के जा कर ही आंख लग पाई थी कि तभी मैं चौंक कर उठ बैठी थी. देखा, रेहान मेरे ऊपर झुका हुआ था.

‘‘मैं चिल्लाने ही वाली थी कि उस ने अपना हाथ मेरे मुंह पर रख दिया और बोला, ‘आप की बस ठीक हो गई है, इसलिए उठाने आया था. बाहर माहौल अभी भी गड़बड़ ही है. हमें चुपचाप निकलना होगा.’

‘‘मैं ‘ओह’ कह कर बुरी तरह झेंप गई थी. उस की अम्मी ने गले लग कर खूब अपनेपन से मु झे विदा किया था. रेहान मु झे छिपताछिपाता बसस्टैंड ले गया.

‘‘बस में बिठा कर वह तब तक मुसकरा कर हाथ हिलाता रहा, जब तक मैं उस की आंखों से ओ झल नहीं हो गई थी. मेरी उस से वही पहली और आखिरी मुलाकात थी.

‘‘पूरी रात किसी अनजान विधर्मी परिवार के साथ गुजारने की यह बात न तो मैं ने अपने परिवार वालों को बताई और न तुम्हें. बेवजह तिल का ताड़ बन जाता. आज भी यही सोच कर मैं ने उसे पहचानने से ही इनकार कर दिया कि पता नहीं तुम इस पहचान का क्या मतलब निकाल लो.’’

‘‘बस, इतना ही भरोसा है अपने प्यार पर? नलिनी, वक्त, इज्जत और एतबार ऐसे परिंदे हैं, जो एक बार उड़ जाएं, तो वापस नहीं आते,’’ जतिन ने कहा.

‘‘तभी तो शर्मिंदा हूं. और अब अपने प्यार पर विश्वास के संबल से ही सबकुछ बताने की हिम्मत कर पाई हूं… कल की घटना याद करती हूं, तो अब भी सहम जाती हूं. बम, आतंकवाद, विस्फोट… क्या रेहान ऐसा कर सकता है?’’

‘‘मैं ने खुद उसे कूड़ेदान में पैकेट रखते देखा था. उस के कूड़ेदान में पैकेट रख कर दूर हटने के थोड़ी देर बाद ही विस्फोट हो गया था,’’ जतिन गंभीर थे.

‘‘ओह, कोई इनसान इतना दोगला भी हो सकता है, मैं ने नहीं सोचा था. अच्छा हुआ, मैं ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. ऐसे आतंकवादी देशद्रोहियों को तो फांसी ही लगनी चाहिए,’’ नलिनी फिर से तैश में आ
गई थी.

‘‘तुम बहुत जल्द फैसले लेती, बदलती रहती हो नलिनी. जिस इनसान से, उस के परिवार से तुम मिल कर आई हो, मेहमाननवाजी देख कर आई हो, उस के बारे में इतनी जल्दी अपनी राय बदल ली?

‘‘जिस तरह कानों सुना हमेशा सच नहीं होता, उसी तरह कई बार आंखों देखा भी सच नहीं होता.

‘‘यह भी तो हो सकता है कि बम कूड़ेदान में पहले से रखा हो. रेहान उस में कूड़ा डालने गया हो और उस की तसवीर सीसीटीवी कैमरे में कैद होते ही विस्फोट हो गया हो…’’

‘‘हां, बिलकुल मुमकिन है. मु झे तो लगता है कि बिलकुल ऐसा ही हुआ है,’’ नलिनी बोली.

‘‘लो, फिर तुम ने इतनी जल्दी राय बदल ली… कभी किसी के बहकावे में मत आओ. अपना दिमाग भी लगाओ. इनसानी संबंधों में सब से बड़ी गलती यह है कि हम आधा सुनते हैं, एकचौथाई सम झते हैं, जीरो सोचते हैं, लेकिन अपनी राय दोगुनी देते हैं.’’

‘‘अच्छा वकील साहब. मैं ने हार मानी. मुझ में आप जैसा तेज दिमाग नहीं है,’’ नलिनी ने जैसे हथियार डाल
दिए थे.

‘‘मेरे साथ जेल चलोगी?’’

‘‘क्यों? हम ने क्या किया है?’’ नलिनी बौखला उठी थी.

‘‘रेहान से मिलने,’’ जतिन की मुसकराहट बरकरार थी.

‘‘ओह. आप तो मु झे डरा ही देते हैं,’’ कह कर नलिनी इतमीनान से जतिन के सीने से लग गई थी. जब जिंदगी नामक स्क्रीन लो बैटरी दिखाती है और कोई चार्जर नहीं मिलता, तब जो पावर बैंक काम आता है, उसे पति कहते हैं.

अगले दिन धड़कते दिल से जतिन का हाथ थामे नलिनी जेल में दाखिल हुई.

रेहान ने नलिनी को देखा, तो मुंह फेर लिया और बोला, ‘‘मैं इन्हें नहीं जानता. इन्हें कह दीजिए कि यहां से चली जाएं.’’

‘‘रेहान, भाई प्लीज, इसे माफ कर दो. यह उस वक्त बहुत घबरा गई थी. मैं जतिन हूं. नलिनी का पति और एक वकील. मुझे सब खुल कर बताओ. शायद मैं तुम्हारी मदद कर सकूं,’’ जतिन बोले.

‘‘मैं आतंकवादी कैसे हो सकता हूं साहब? मैं तो खुद अपना पूरा परिवार ऐसे ही एक हादसे में खो बैठा हूं,’’ रेहान बोला.

‘‘क्या? सलमा, अम्मी…’’ नलिनी हैरान थी.

‘‘हां, नलिनी बहन. सलमा, अम्मीअब्बू सब ऐसे ही एक विस्फोट में जान से हाथ धो बैठे थे. मैं तो जीतेजी ही मर चुका था.

‘‘इनसान उन चीजों से कम बीमार होता है, जो वह खाता है, बल्कि उन चीजों से ज्यादा बीमार होता है, जो उसे अंदर ही अंदर खाती हैं.

‘‘सम झ नहीं आता कि बेकुसूर लोगों की जान लेने से इन का कौन सा मकसद पूरा होता है? मुसलिम तो मैं भी हूं, लेकिन मेरा क्या किसी का भी धर्म ऐसा घिनौना काम करने की इजाजत नहीं देता.

‘‘मैं तो अपने डिस्पोजेबल बरतन कूड़ेदान में डालने गया था और काउंटर पर पैसे दे कर निकल ही रहा था कि वह धमाका हो गया.

‘‘मैं तो खुद हैरान था कि यह क्या हुआ कि तभी वहां तैनात पुलिस वालों ने पूछताछ करना शुरू कर दिया और मुझे पकड़ लिया.

‘‘जब तक माजरा समझ आता तब तक बहुत देर हो चुकी थी. मेरी पहचान ही मेरी दुश्मन बन गई.

‘‘धर्म एक होने से क्या इनसानों का मकसद भी एक हो जाता है? खैर, अब फांसी भी हो जाए तो कोई गम नहीं. मेरी बहन ने तो मु झे गलत नहीं सम झा. मेरे लिए इतना ही काफी है.’’

‘‘जल्दी जागना हमेशा ही फायदेमंद होता है. चाहे वह नींद से हो, अहम से हो या वहम से हो. चिंता मत करो. तुम्हारा केस अब मैं लड़ूंगा. तुम्हारी कही गई बातों पर मुझे भरोसा है. तुम बस अपना मनोबल बनाए रखना,’’ जतिन ने कहा.

नलिनी ने आगे बढ़ कर सलाखें पकड़े खड़े रेहान के हाथों पर अपने हाथ रख दिए थे, जो इस बात का सुबूत थे कि इस जंग में वह भी उस के साथ है. Hindi Family Story

Hindi Romantic Story: प्यार का नशा

Hindi Romantic Story: गीता का ब्याह तो रामशरण से हुआ था, लेकिन वह उसे नहीं चाहती थी. उस का दिल तो अपने पुराने आशिक सुखराम से लगा हुआ था.

शादी के पहले ही संगीता उसे अपना सबकुछ दे बैठी थी. शादी तो घर वालों ने उस की पसंद पूछे बिना ही रामशरण से कर दी थी. उस ने भी घर वालों को अपनी पसंद नहीं बताई थी.

रामशरण चौकीदार था. उस की अकसर नाइट ड्यूटी रहा करती थी. वह सीधासादा आदमी था. रात को 8 बजे टिफिन ले कर घर से निकलता, तो सुबह 8 बजे ही लौटता.

संगीता रात को घर में अकेली रहती. रात को देर तक वह अपने आशिक सुखराम से मोबाइल पर बातें करती थी. वीडियो काल कर के भी अपना हालेदिल बयां करती थी.

आशिक सुखराम संगीता के मायके वाले गांव में रहता था. कभीकभार वह संगीता से मिलने आया करता था.

वह पूरी रात वहीं गुजारता, ऐश करता और सुबह चला जाता.

ऐसा कई महीने तक चलता रहा.

संगीता के पड़ोसियों में सुखराम को ले कर खुसुरफुसुर हुआ करती थी. कोई पूछता, तो संगीता कह देती, ‘‘मेरे सुक्खू भैया हैं, कभीकभार मिलने आ जाते हैं.’’

पड़ोसी इतने नादान नहीं थे. उन्हें शक हो गया था कि चुपचाप रात को आने वाला भैया नहीं, बल्कि सैयां है. कई औरतें इस बारे में खूब रस लेले कर बातें किया करती थीं.

बूढ़ी सुखिया काकी कहती थीं, ‘‘बेचारा रामशरण कमातेकमाते मर रहा है और इधर यह छैलछबीली औरत पराए मर्द के साथ पाप कर रही है. नरक में जाएगी, नरक में. कहे देती हूं कि एक दिन भुगतेगी.

‘‘मैं ने दुनिया देखी है. पराया मर्द किसी का सगा हुआ है क्या… रस ले कर छोड़ देगा. आजकल तो लोग हत्या भी कर देते हैं. कोई बताओ रे, बेचारा रामशरण इस पापलीला से अनजान है अभी तक.’’

जब रामशरण से किसी ने कुछ नहीं बताया, तो एक दिन सुबह सुखिया काकी ने ही हिम्मत दिखाई. उन्होंने काम से लौट रहे रामशरण को अपने घर के पास रोक लिया और पूछा, ‘‘आ गए बेटा…’’

‘‘हां काकी, कैसी हो?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं बेटा, तुम अपनी सुनाओ. खड़ी कर दो साइकिल, आओ बैठ जाओ थोड़ा सुस्ता लो.’’

रामशरण जा कर सुखिया काकी के घर में बैठ गया.

‘‘कल रात को तुम्हारा साला आया था. तुम से मुलाकात हुई कि नहीं? वह अकसर रात को आता है,’’ सुखिया काकी ने बताया.

‘‘मु झे कुछ नहीं पता काकी. मेरा कोई साला नहीं है. मेरी पत्नी संगीता अपने मातापिता की एकलौती औलाद है. मैं उस से पूछूंगा कि कौन आता है,’’ रामशरण को शक हुआ.

‘‘लेकिन बेटा, मेरा नाम मत लेना. मु झे तो लगता है कि तुम्हारे साथ धोखा हो रहा है. बुरा मत मानना, लेकिन मुझे तुम्हारी औरत का चालचलन ठीक नहीं लगता.’’

रामशरण घर गया. पहले तो उस के मन में आया कि वह संगीता से पूछे कि कौन आता है, लेकिन बाद में उस ने सोचा कि वह खुद ही पकड़ेगा, पूछताछ करना ठीक नहीं होगा.

उसी दिन रामशरण ने महल्ले के एक लड़के से बात की, ‘‘राजू, मेरे घर की देखभाल किया कर. पता चला है कि कोई आता है.’’

‘‘आप को आज पता चला है, वह तो कई महीने से आ रहा है. चाची कहती हैं कि वह उन का भैया है. अब वह दिखाई पड़ गया, तो आप को फोन करूंगा.

‘‘आप खुद ही पूछ लेना कि वह कौन है. कोई गलत आदमी होगा, तो उस की कुटाई की जाएगी तबीयत से,’’ राजू बोला.

समय गुजरता गया. एक रात रामशरण का फोन बज उठा. उस ने देखा कि राजू का फोन है. उस ने कहा, ‘‘हां, राजू बोल, क्या बात है?’’

‘चाचा, कुछ देर पहले ही वह आदमी आप के घर आया है. आ जाओ जल्दी से.’

‘‘ठीक है बेटा, आता हूं.’’

कुछ देर में रामशरण घर पहुंच गया और उस ने दरवाजा खटखटाया.

‘‘कौन है?’’ अंदर से संगीता की आवाज आई.

‘‘मैं हूं, दरवाजा खोलो,’’ रामशरण बोला.

यह सुन कर संगीता घबरा गई.

उस ने सुखराम को जल्दी से पलंग के नीचे छिपाया और फिर जा कर दरवाजा खोला.

‘‘आज रात को ही कैसे आ गए?’’ संगीता ने पूछा.

‘‘ब्लड प्रैशर की दवा भूल गया था. वही लेने आया हूं.’’

‘‘रुको, मैं ला देती हूं.’’

‘‘नहीं, रहने दो. मैं दवा यहीं खाऊंगा,’’ यह कह कर रामशरण अंदर चला गया.

संगीता दवा और पानी लेने चली गई. इधर रामशरण ने तंबाकू रगड़ना शुरू कर दिया.

‘‘यह क्या? आए हो दवा खाने और तंबाकू खाने लगे. तंबाकू खाते हो, इसीलिए ब्लड प्रैशर बढ़ता है.
फेंको तंबाकू और दवा खाओ,’’ संगीता बोली.

लेकिन रामशरण तंबाकू रगड़ता ही रहा. तंबाकू तेज था. उस ने तंबाकू हथेली पर जोर से ठोंका, तो उस की झार से पलंग के नीचे छिपे सुखराम को खांसी आ गई. अब तो संगीता को काटो तो खून नहीं. वह बुरी तरह घबरा गई.

‘‘कौन हो भाई? कहां छिपे हो? सामने आओ,’’ रामशरण ने कहा.

जब सुखराम नहीं निकला, तो रामशरण ने उसे खींच कर निकाला और पूछा, ‘‘कब से यह खेल चल रहा है?’’

घबराहट के मारे सुखराम कुछ बोल नहीं सका.

‘‘घबराओ नहीं, बोलो… मैं मारपीट नहीं करूंगा भाई,’’ रामशरण बोला.

फिर भी सुखराम कुछ नहीं बोल पाया.

‘‘यह बेचारा नहीं बोल पा रहा है, तो तुम ही बता दो मेरी जान,’’ रामशरण ने संगीता की ओर देख कर कहा.

‘‘पूछ ही रहे हो तो सबकुछ सचसच बता देती हूं. यह मेरा प्रेमी है. मैं इसे ही पसंद करती हूं. इस के बिना जी नहीं सकती,’’ संगीता बोली.

‘‘ठीक है, लेकिन मुझ से शादी क्यों की? मु झे पहले ही बता दिया होता. मैं बिलकुल तुम से शादी न करता. लेकिन अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है.

तुम इस से शादी कर लो,’’ रामशरण ने कहा.

उसी बीच सुखराम भाग खड़ा हुआ.

बाहर राजू डंडा लिए खड़ा था. उस ने सुखराम को पकड़ लिया और पिटाई शुरू कर दी. शोर सुन कर महल्ले के तमाम लोग आ गए वहां. कुछ और लोग भी सुखराम की धुनाई करने लगे.

रामशरण ने बाहर निकल कर उन लोगों को मना किया और कहा, ‘‘इसे जाने दो.’’

राजू ने कहा, ‘‘किस मिट्टी के बने हो चाचा? हमें इसे कूटने दो.’’

‘‘नहीं, जाने दो, मत मारो,’’ रामशरण शांत भाव से बोला.

लोगों ने सुखराम को छोड़ दिया. वह जान बचा कर भागा.

लोग तरहतरह की बातें कर रहे थे. ज्यादातर लोग रामशरण की हंसी उड़ा रहे थे. उसे डरपोक और नामर्द कह रहे थे. उन का कहना था कि पकड़े गए आदमी को खूब कूट कर पुलिस के हवाले करना था.

रामशरण अगले ही दिन संगीता को ले कर उस के मायके गया और उस के मातापिता से सारा हाल कह सुनाया. इतना ही नहीं, उस ने पंचायत बैठा दी और कहा, ‘‘मैं संगीता की शादी सुखराम से करा देना चाहता हूं. इस से मेरी नहीं निभेगी. उसे बुलाया जाए.’’

पता लगाया गया तो सुखराम घर में मिल गया. कुछ लोग उसे पंचायत में खींच लाए.

मुखिया गजाधर काका ने सुखराम से पूछा, ‘‘क्या तुम संगीता से ब्याह करोगे?’’

‘‘मैं क्यों ब्याह करूं… मेरे जैसे इस के कई यार होंगे. बुलाती थी तो चला जाता था. जब यह अपने पति की नहीं हुई, तो मेरी क्या होगी? यह तो मु झ से अपने पति को मरवाने की बात कहती थी. अच्छा हुआ कि मैं हत्या के पाप से बच गया,’’ सुखराम बोला.

सुखराम की यह बात सुन कर पंचायत सन्न रह गई.

रामशरण ने कहा, ‘‘अब मैं कुछ नहीं कर सकता. मैं तो दोनों की शादी कराने आया था. अब मैं इस औरत को नहीं रख सकता. मेरी कोई गलती हो तो आप लोग बताएं.’’

मुखिया ने कहा, ‘‘तुम ठीक कह रहे हो. तुम्हारा कोई कुसूर नहीं है. यह झूठे प्यारवार का चक्कर ही बहुत खराब है. यह हमारे देश में, समाज में तेजी से बढ़ रहा है. इस के चलते हत्याएं हो रही हैं.

‘‘समाज को जागना होगा, वरना बच्चों की इसी तरह जिंदगी बरबाद होगी. मैं बहुत चिंतित हूं. यह समस्या कैसे दूर होगी? क्या हमारे लड़केलड़कियां इसी तरह नाक कटाएंगे?’’

संगीता बहुत रोईगिड़गिड़ाई, लेकिन रामशरण उसे अपने साथ नहीं ले गया.

संगीता अपने मायके में रह कर मेहनतमजदूरी करने लगी. वह पछता रही थी कि अगर नाजायज प्यार में न पड़ती, तो उस की जिंदगी तबाह न होती. Hindi Romantic Story

Best Hindi Story: बचाने वाला महान

Best Hindi Story: दलित गर्लफ्रैंड को बाइक से 500 मीटर घसीटा उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में एक नौजवान ने अपनी प्रेमिका को बाइक से तकरीबन 500 मीटर तक सड़क पर घसीट दिया. इस दौरान वह लड़की चीखतीचिल्लाती रही, लेकिन आरोपी प्रेमी ने उसे नहीं छोड़ा. घसीटने की वजह लड़की के आधे से ज्यादा कपड़े फट गए. हालांकि, लड़की की आवाज सुन कर कुछ गांव वाले मदद के लिए दौड़े, तो हड़बड़ाहट में आरोपियों की बाइक फिसल कर गिर गई. इस के बाद वे दोनों आरोपी पैदल भाग निकले. लड़का ओबीसी समाज का और लड़की दलित समाज की बताई गई. उन दोनों में इश्कबाजी का मामला था और इसी चक्कर में उन के बीच झगड़ा हो गया था. जाति प्यार पर हावी हो गई थी.

पंच मेलाराम की नजरें काफी दिनों से अपने घर के साथ चौराहे पर नुक्कड़ वाली जगह पर लगी हुई थीं. वहां पर गरीब हरिया की विधवा बहू गुलाबो मिट्टी की कच्ची झोंपड़ी में बच्चों के लिए टौफीबिसकुट, पैनपैंसिलों, कौपियों वगैरह की दुकान चलाती थी.

पंच मेलाराम नुक्कड़ वाली वह जगह हरिया से खरीदना चाहता था. दरअसल, उस का म झला बेटा निकम्मा व आवारा था, इसलिए मेलाराम गुलाबो की दुकान की जगह पर अपने उस बेटे को शराब की दुकान खोल कर देना चाहता था.

विधवा गुलाबो के घर में अपाहिज सास व 2 बेटियों के अलावा बूढ़ा शराबी ससुर हरिया भी था, जो दो घूंट शराब पीने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था.

पंच मेलाराम ने हरिया को शीशे में उतार लिया था. उसे हर रोज खूब देशी दारू पिला रहा था, ताकि नुक्कड़ वाली जगह उसे मिल जाए.

वह जगह हरिया के नाम नहीं थी. मकान की मालकिन पहले हरिया की अपाहिज पत्नी संतरा थी. बेटे नरपाल की शादी हो गई, तो बहू गुलाबो आ गई.

गुलाबो बेहद मेहनती, गुणवान, अच्छे चरित्र की औरत थी. वह अपनी सास की प्यारी बहू बन गई थी.

नरपाल भी बाप की तरह शराबी था. कभीकभी जंगल में जंगली जानवरों का शिकार कर के मांस बेच कर वह कुछ पैसे कमाता था.

सास ने मकान बहू गुलाबो के नाम कर दिया था. उसे यकीन था कि मकान बहू के नाम होगा तो बचा रहेगा, नहीं तो बापबेटा शराब के लालच में उसे बेच खाएंगे.

नरपाल एक दिन घने जंगल में जंगली जानवर का शिकार करने गया और वापस नहीं आया. 4 दिन बाद तलाश करने पर नरपाल के कपड़े मिले.

कपड़े मिलने का सब ने यही मतलब लगाया कि कोई जंगली जानवर उसे खा गया है. अब वह दुनिया में नहीं रहा.

बेचारी गुलाबो जवानी में विधवा हो गई. जवान होती बेटियों और अपाहिज सास की जिम्मेदारी उस पर आ गई थी.

एक दिन शाम के समय हरिया ने बहू से कहा कि अगर दुकान वाली जगह मेलाराम को बेच दी जाए, तो अच्छे पैसे मिल जाएंगे. अपने रहने वाले दोनों कच्चे मिट्टी के बने कमरे पक्के हो जाएंगे. खर्चे के लिए पैसा बच जाएगा.

‘‘पिताजी, दुकान वाली जगह बेच दी, तो घर का चूल्हा नहीं जलेगा. कच्चे मकान में रहा जा सकता है, पर भूखे पेट जिंदा रहना मुश्किल है. जगह बेच कर पैसा कितने दिन चलेगा?’’ गुलाबो ने दूर की बात सोचते हुए कहा, तो हरिया कुछ देर के लिए चुप हो गया.

दुकान के बाहर पंच मेलाराम खड़ा ससुरबहू की बातें सुन रहा था. वह भीतर आ गया और गुलाबो की भरीपूरी छाती पर नजरें टिकाते हुए चापलूसी भरे लहजे में बोला, ‘‘देखो हरिया, तुम्हारी बहू विधवा हो गई तो क्या हुआ, हमारे गांव की इज्जत है. शाम होते ही यहां चौक में कितने आवारा किस्म के लोग खड़े हो कर बेहूदा इशारे करते हैं.’’

‘‘यही बात तो मैं इसे सम झा रहा हूं. नुक्कड़ वाली जगह बेच कर जो पैसा मिलेगा, उस से पक्का मकान बनवा लेंगे. कुछ पैसा जरूरत के लिए बच भी जाएगा. आगे की आगे देखी जाएगी. मेरी दोनों पोतियां बड़ी हो रही हैं. सभी मिल कर काम करेंगे, तो हमारे बुरे दिन गुजर जाएंगे,’’ हरिया ने अपनी बात कही.

‘‘पिताजी, जगह बेचने का पैसा तो सालभर का खर्चा नहीं चला पाएगा. दोनों बेटियां जवान हो रही हैं. इन की शादियां भी करनी हैं. सासू मां भी दूसरों की मुहताज हैं,’’ गुलाबो ने कहा.

गुलाबो की बात पर मेलाराम हमदर्दी जताते हुए बोला, ‘‘गुलाबो, तू अपने रोजगार की चिंता मत कर. मैं सरकारी स्टांप पेपर पर लिख कर दूंगा. तुम्हारी दुकान पर मैं शराब की दुकान खोलूंगा. महीनेभर मैं कम से कम 10-12 लाख रुपए की आमदनी होगी. उस कमाई में से 25 फीसदी हिस्सा तुम्हारा होगा. महीने के महीने तुम्हें तुम्हारा हिस्सा मिल जाएगा.’’

‘‘वह तो बाद की बात है काका. काम चलने में सालभर लग जाएगा. इस से पहले हम खाएंगे क्या?’’

‘‘उस की चिंता मत कर गुलाबो. तुम हमारे खेतों में काम करो. 5 हजार रुपए हर महीना दूंगा. जब हमारी शराब की दुकान चल पड़ेगी, तुम काम छोड़ देना. लाखों रुपए तुम्हें तुम्हारा हिस्सा मिला करेगा. देखना मौज करोगी,’’ कहते हुए मेलाराम ने 5 हजार रुपए उस के सामने लहरा दिए.

‘‘रुपए रख लो बहू. 5 हजार रुपए हर महीने मिलेंगे. जब हमारी दुकान में दारू का कारोबार चल निकलेगा, तो तुम्हारा हिस्सा लाखों में मिलेगा. तब खेतों में काम करना छोड़ देना,’’ ससुर हरिया ने हरेहरे नोटों को ललचाई नजरों से देखते हुए कहा.

इधर गुलाबो भी सोच में पड़ गई. वह छोटी सी दुकान में हर महीने मुश्किल से हजारबारह सौ रुपए ही कमा पाती थी. इसी मामूली से काम में उस का सारा दिन खत्म हो जाता था.

अगर मेलाराम के खेतों में काम करने से 5 हजार रुपए महीना मिल जाए, तो 2 हजार रुपए में घर का खर्चा चला कर वह 3 हजार रुपए बचा सकती है. इस तरह 2-3 साल काम करेगी, तो अपनी दुकान की जगह बेचे बगैर ही वह अपने दोनों कमरे पक्के बनवा सकती है.

अभी गुलाबो सोच ही रही थी कि मेलाराम ने 5 हजार रुपए गुलाबो के सामने रख दिए. जब उस ने दूसरे दिन काम पर आने को कहा, तो गुलाबो ने गंभीर लहजे में अपने मन की बात कही, ‘‘ठीक है काका, आप के खेतों में काम जरूर करूंगी, मगर मैं अपनी सास और पति की निशानी अपने मकान का एक कोना तक नहीं बेचूंगी. पहले ही कहे देती हूं.’’

‘‘अरे हरिया, तू अपनी बहू को ठंडे दिमाग से सम झाना. मैं जो भी काम करूंगा, उस में तुम्हारा भी फायदा होगा,’’ कहते हुए मेलाराम चला गया.

‘‘बहू सारे रुपए संभाल ले. कल से काम पर जाना शुरू कर दे. तुम्हारी दुकान पर मैं काम कर लूंगा. बूढ़ा आदमी हूं, बैठा रहूंगा,’’ हरिया ने आगे की योजना बनाते हुए कहा.

रुपए ले कर गुलाबो सास के पास गई और सारी बात बताई, तो सास ने नुक्कड़ वाली दुकान की जगह बेचने से साफ मना कर दिया. वह बहू के मेलाराम के खेतों में काम करने के पक्ष में नहीं थी, मगर उसे अपनी बहू पर यकीन था.

गुलाबो को काम करते हुए महीनेभर से ऊपर हो गया था. दूसरे महीने का पैसा भी मेलाराम ने दिया नहीं था. शाम को जाते समय गुलाबो ने पैसे मांगे, तो मेलाराम ने उसे रुकने को कहा. उस के साथ काम करने वाली दूसरी औरतें जा चुकी थीं.

दरअसल, मेलाराम ने खेत पर भी मकान बना रखा था. वह उस में खेतों की रखवाली करने या फसल में रात को पानी देने के लिए रुकता था.

शाम हो चली थी. दूरदूर तक सन्नाटा पसरा था. गुलाबो को लगा कि अगर ज्यादा देर हो गई, तो अकेले गांव जाना मुश्किल होगा.

मेलाराम अपने कमरे में था. वह काफी समय से बाहर निकल नहीं रहा था. गुलाबो परेशान हो कर कमरे में घुस गई. महीने का पैसा मांगा, तो मेलाराम ने झपट कर उसे अपनी बांहों में कस लिया और उस की साड़ी खोलने लगा.

गुलाबो ने मेलाराम को अपने से दूर कर उसे उस की बूढ़ी उम्र का एहसास कराना चाहा, ‘‘यह क्या पागलपन है? तुम मेरे बाप की उम्र के हो. ऐसी घिनौनी हरकत तुम्हें शोभा नहीं देती.’’

तभी बाहर से गुलाबो की 12 साला बेटी उसे तलाश करती हुई वहां आ गई. उस ने अपनी मां से छेड़छाड़ करते मेलाराम को पीछे से काट खाया, तो वह गाली बकते हुए बुरी तरह बिदक गया.

मेलाराम ने मासूम बच्ची को जोर से धक्का दिया. वह दीवार से जा टकराई. उस के सिर से खून बह निकला. चोट लगने से वह बेहोश हो गई.

गुस्से में मेलाराम दूसरे कमरे से तलवार उठा लाया, जो उस ने पहले से छिपा कर रखी थी. वह दहाड़ते हुए बोला, ‘‘देख गुलाबो, अगर तू अपनी जवानी का खजाना मु झ पर नहीं लुटाएगी, तो मैं तेरी हत्या कर के तेरी जवान होती बेटी की इज्जत लूट लूंगा.’’

‘‘बेटी के साथ मुंह काला मत करना. हम मांबेटी तो पहले ही मुसीबत की मारी हैं,’’ बेचारी गुलाबो अपनी हालत पर सिसक उठी.

मेलाराम के हाथ में चमकती तलवार देख कर वह घबरा उठी थी. अगर उस की हत्या हो गई, तो उस की बेटी को बचाने कौन आएगा?

‘‘ठीक है. अगर अपनी जवान होती बेटी की आबरू बचाना चाहती है, तो तू पहले सफेद कागज पर लिख कि अपनी नुक्कड़ वाली दुकान मु झे बेच रही है. साथ ही, जिस्म से सारे कपड़े उतार दे.

‘‘बूढ़ा आदमी हूं, थोड़ेबहुत मजे लूटूंगा. तेरी बेटी को तेरे साथ हिफाजत से घर छोड़ आऊंगा. तेरा महीने का पैसा इस शर्त पर दूंगा कि हर शाम मेरी इच्छा पूरी कर के जाया करेगी.’’

‘‘कमीने, अपने घर की एक इंच जगह नहीं बेचूंगी. तेरी यह इच्छा कभी पूरी नहीं होगी,’’ गुलाबो नफरत से गरजी.

‘‘ठीक है, तू ऐसे नहीं मानेगी. पहले तेरी बेटी का गला धड़ से अलग करता हूं,’’ गुर्राते हुए उस ने चमकती तलवार उस की बेटी की गरदन पर रख दी.

ऐसा दिल दहला देने वाला नजारा देख कर गुलाबो कांप उठी. वह नीच गांव से दूर खेतों में मांबेटी की हत्या कर के लाशें दबा देगा. कोई पूछेगा नहीं. उन दोनों का खात्मा हो जाएगा. उस का पति जिंदा नहीं है. ससुर शराबी है. अपाहिज सास भीख मांगती फिरेगी.

अभी गुलाबो सोच में उल झी थी कि मेलाराम फिर गरजा, ‘‘अरे, सोच क्या रही है? जल्दी से सादा कागज पर अपना नाम लिख. अपने सुलगतेमचलते जिस्म से कपड़े उतार, नहीं तो तेरी बेटी का खात्मा हो गया, समझ ले.’’

मजबूर गुलाबो ने सामने पड़े कागज पर दस्तखत कर अपना बदन मेलाराम को सौंप दिया.

गुलाबो का मादक बदन मेलाराम के दिलोदिमाग में वासना का तूफान जगाने लगा था.

मेलाराम ने जवानी में ऐसा मचलता हुस्न नहीं देखा था. वह अभी आगे बढ़ता कि बाहर से आती कुछ आवाजें सुन कर चौंक उठा. आवाजें उस के मकान के नजदीक से आ रही थीं.

गुलाबो ने फटाफट अपने कपड़े पहन लिए, तभी उस की छोटी बेटी हांफती हुई आई और मां से लिपटते हुए बोली, ‘‘मां… मां, बाहर देखो, पापा आ रहे हैं. अपने साथ पुलिस को भी ला रहे हैं.’’

‘‘यह तू क्या कह रही है गुडि़या? तेरे पापा को तो जंगली जानवर…’’ गुलाबो इतना कह पाई थी कि आंधीतूफान की तरह गुस्से की आग में सुलगता हुआ उस का पति नरपाल वहां आ पहुंचा.

उस ने मेलाराम को देखते ही दबोच लिया और उसे इतना मारा कि उस के दोनों हाथ टूट गए और एक आंख फूट गई. अगर पुलिस वाले नहीं बचाते, तो नरपाल मेलाराम को मार ही डालता.

हैरानी में डूबी गुलाबो ने नरपाल से पूछा, ‘‘तुम्हें तो जंगली जानवर…’’

‘‘नहीं…नहीं, मु झे जंगली जानवर क्या खाएंगे, मु झे तो मेलाराम और इस के दोनों बेटों ने जंगल में पकड़ लिया था. मैं नशे में था. ये तीनों हमारा मकान हड़पना चाहते थे.

‘‘मना करने पर इन लोगों ने मु झे बुरी तरह मारापीटा और बेहोशी की हालत में नंगा कर के नदी में बहा दिया. इन का अंदाजा था कि लोग सम झेंगे कि मु झे जंगली जानवर खा गए.’’

नरपाल की बात सुन कर तो गुलाबो ने वह कागज फाड़ डाला, जिस पर मेलाराम ने उस से दस्तखत कराए थे.

गुलाबो आगे बढ़ कर नरपाल से लिपट गई.

‘‘ऐसा हादसा तुम्हारे शराब पीने की आदत के चलते हुए था. पंच मेलाराम हमारे मकान की नुक्कड़ वाली जगह पर शराब की दुकान खोलना चाहता था,’’ गुलाबो ने पति की शराब पीने की आदत पर अपना विरोध जताया.

‘‘गुलाबो, नशा समाज के लिए अभिशाप है. मैं इस का बुरा नतीजा भुगत चुका हूं. अगर एक भला आदमी मुझे बेहोशी की हालत में बहती नदी से न बचाता, तो मेरी बेटी और पत्नी के साथ पता नहीं क्या हो जाता.

‘‘अब मैं न शराब पीऊंगा और न ही शराब की दुकान खुलेगी. अब ये शैतान जेल जाएंगे,’’ नरपाल ने इतना कहा, तो गुलाबो पति की बांहों में समा गई. Best Hindi Story

Story In Hindi: पुराना खाता

Story In Hindi: मंथन की एक राशन की दुकान थी. यह दुकान महल्ले में ही थी, जिस से अगलबगल के लोग सामान खरीद कर ले जाते थे.

मंथन की यह दुकान बहुत पुरानी थी. उस के दादापरदादा के समय की, जिस में पुरानी काठ की लकडि़यों का फर्नीचर था. हर साल दीवाली पर पेंट होने से दुकान अच्छी कंडीशन में थी.

जब से मंथन ने दुकान संभाली थी, तब से वह ग्राहकों पर खास ध्यान देने लगा था. वह सब ग्राहकों से मुसकरा कर बातें करता था. उस के बात करने के तरीके में एक तरह का अपनापन था. लिहाजा, सबकुछ ठीकठाक चल रहा था.

मंथन के पिताजी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब रहने लगी थी. लिहाजा, ज्यादातर मंथन ही दुकान पर बैठता था. एक दिन की बात है. खुशबू, जो रजत की बहन थी, सामान लेने मंथन की दुकान पर गई.

मंथन की कदकाठी बढि़या और चेहरा बहुत ही खूबसूरत था. गोरा रंग, घुंघराले बाल, लंबी नाक, चौड़ी छाती. टीशर्ट और लोअर में भी वह काफी फब रहा था.

रजत के पिताजी अजय बाबू पहले घर का राशनपानी लेने मंथन के यहां जाते थे, लेकिन इधर अब वे भी बीमार रहने लगे थे. रजत को औफिस के कामों से ही समय नहीं मिल पाता था, तो वह भला राशनपानी कैसे ला पाता.

रजत की नईनई शादी हुई थी, लिहाजा, वे लोग नईनवेली बहू को घर से बाहर भेजना ठीक नहीं सम झते थे. सौदा लाने के लिए अब खुशबू ही मंथन की दुकान पर आनेजाने लगी थी.

उस दिन जब खुशबू ने मंथन को देखा, तो देखती ही रह गई. सामान ले कर वह कब की घर पहुंच चुकी थी, लेकिन उस का मन घर में नहीं लग रहा था. बारबार उस का ध्यान मंथन की पर्सनैलिटी को देख कर री झा जा रहा था.

खुशबू की एक सहेली थी, जो उस के घर के बगल में ही रहती थी. उस का नाम सलोनी था. सलोनी और खुशबू हमउम्र होने के साथसाथ पक्की सहेलियां भी थीं.

खुशबू अपने दिल की सारी बातें सलोनी को और सलोनी अपने दिल की सारी बातें खुशबू को बताती थी. दोनों का दिल एकदूसरे के बिना नहीं लगता था.

उसी दिन शाम को खुशबू ने अपने दिल की बात सलोनी को बताई, ‘‘सलोनी, मैं तु झे एक बात बताना चाहती हूं. पता नहीं यह कहना ठीक रहेगा भी या नहीं. कैसे कहूं, मु झे बहुत शर्म आती है.’’

‘‘अरे, दोस्तों से कैसी शर्म. दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता है, जिस में लोग अपने दिल की हर बात बता देते हैं. अब बोल भी दे…’’ सलोनी ढलते सूरज को देखते हुए बोली.

‘‘तुम मंथन को जानती हो…’’

‘‘हां, हमारे महल्ले में राशन की दुकान वाला…’’

‘‘हां, वही,’’ खुशबू बोली.

‘‘अरे यार, उसे कौन नहीं जानता… महल्ले की सब लड़कियां उस पर मरती हैं. वे रीता भाभी हैं न… उन का चक्कर मंथन से सालभर पहले से चल रहा था.

‘‘रीता भाभी के पति को जब रीता और मंथन के अफेयर की खबर सुनाई पड़ी, तो उन्होंने रीता भाभी की जम कर पिटाई कर दी थी और राशन लेने के लिए खुद जाने लगे थे.

‘‘और वह गुडि़या, जो मंथन के किराएदार की बेटी थी, के साथ भी मंथन का चक्कर चल रहा था. मंथन है ही इतना खूबसूरत कि उस पर किसी का भी दिल आ जाए.

‘‘हमारे महल्ले की सब औरतों में चर्चा है कि मंथन को जो भी औरत या लड़की देखती है, तो वह उस की हो कर रह जाती है. सब को लगता है कि मंथन का किसी न किसी से चक्कर चल रहा है.

‘‘मंथन का तो पड़ोस की शालू से भी अफेयर था. पता नहीं क्या हुआ होगा. शालू और मंथन के बारे में तो महल्ले की लड़कियां 2 साल पहले चर्चा कर रही थीं.’’

‘‘यानी मंथन मु झे नहीं मिलेगा,’’ कहते हुए खुशबू का चेहरा उतर गया.

‘‘ऐसा कैसे कह सकती हो,’’ सलोनी ने चुटकी ली.

‘‘अब जब इतने सारे गुण हैं, तो वह मु झ बेशक्ल लड़की को क्यों प्यार करेगा? वह इतना हैंडसम है कि उस को कहने भर की देर है, कोई भी लड़की उस के लिए मरने को तैयार हो जाएगी… मेरी तो किस्मत ही खराब है,’’ खुशबू बोली.

‘‘तू किसी से कमतर क्यों रहने लगी… आज भी जब तू महल्ले से गुजरती है, तो लोगों की आंखें तु झ पर से हट नहीं पातीं. तू कम थोड़ी है. महल्ले के लड़के तो तु झ पर जान छिड़कते हैं. तू एक बार कह कर तो देख, वे तेरे लिए कुछ भी कर सकते हैं,’’ सलोनी ने कहा.

‘‘देख, मु झ से फालतू की बात मत कर. मैं ऐसीवैसी लड़की नहीं हूं, जो हर किसी को अपना दिल देती फिरूं. मैं केवल और केवल मंथन की हूं…’’ खुशबू ने कहा.

शाम कब की रात में ढल चुकी थी. खाना खा कर बिस्तर पर लेटी खुशबू छत को ताकती रही. वह लगातार करवटें बदलती रही, लेकिन नींद आंखों से गायब रही. उसे बारबार सलोनी के बताए लड़कियों के नाम याद आ रहे थे. रीता भाभी, गुडि़या, शालू… उन के पासंग में भी नहीं ठहरती थी वह. सांवला रंग, औसत देह, लेकिन उस की छातियां भरीभरी थीं और उस के कूल्हे भारी थे, जो उस के सांवलेपन में भी चार चांद लगाते थे. फिर पता नहीं कब उसे नींद आ गई.

सुबह खुशबू की नींद देर से खुली. सलोनी कब से आ कर उस के घर पर बैठी थी. कितनी बार आवाज लगाई थी, ‘‘सलोनी, जल्दी करो. जल्दी से तैयार हो जाओ. हम लोग कालेज के लिए लेट हो रहे हैं…’’

खुशबू नहाधो कर कालेज के लिए निकली, लेकिन उस का मन कालेज में भी नहीं लगा. किसी तरह कालेज खत्म कर के वह घर लौटी.

अब खुशबू मंथन की दुकान पर किसी न किसी बहाने जाने लगी. जब उसे सामान की लिस्ट थमाई जाती, तो वह जानबू झ कर कुछ सामान लाती और कुछ सामान छोड़ देती.

मंथन भी खुशबू की आंखों की भाषा को बखूबी सम झ रहा था. एक दिन मौका पा कर वह खुशबू से बोला, ‘‘अच्छा, एक बात बताओ. तुम मु झे देख कर इतना मुसकराती क्यों हो?’’

खुशबू हंसते हुए बोली, ‘‘आप को देख कर कहां मुसकराती हूं. मेरी सूरत ही ऐसी है कि लोगों को मेरा चेहरा मुसकराता हुआ दिखता है. इस में मैं क्या करूं?’’

यह सुन कर मंथन मुसकरा कर रह गया.

एक दिन खुशबू ने 500 रुपए के नोट में छिपा कर एक कागज पर अपना मोबाइल नंबर लिख दिया और घर आ गई, लेकिन उस के दिल में खलबली सी मची हुई थी.

रात को वह सोने के लिए छत पर चली गई और मंथन के फोन का इंतजार करने लगी. रात के तकरीबन 1 बजे उस का मोबाइल वाईब्रेट करने लगा. नया नंबर था. खुशबू का दिल बल्लियों उछलने लगा.

खुशबू ने फोन रिसीव किया. दूसरी तरफ की आवाज को सुनने की गरज से वह धीरे से बोली, ‘‘हैलो…’’

दूसरी तरफ से मंथन की आवाज आई, ‘अभी तक जाग रही हो?’

‘‘हां,’’ वह धीरे से बोली.

‘अब तो चांदतारे सब सो गए और तुम जाग रही हो. भला किस के इंतजार में?’

‘‘कौन सो गया है और कौन जाग रहा है. मैं तो सदियों से नहीं सोई… तुम्हारा इंतजार कर रही हूं इस छत पर,’’ खुशबू बोली.

‘अच्छा, तो तुम भी छत पर सो रही हो, ताकि मु झ से बातें कर सको. कहो तो आ जाऊं तुम्हारे पास? 2-4 छतों का ही तो फासला है,’ मंथन बोला.

‘‘नहीं, मत आना,’’ खुशबू बोली.

‘वैसे, मैं भी आज छत पर सोया हूं,’ मंथन ने बताया.

इस के बाद मंथन और खुशबू में ढेर सारी बातें हुईं. अब तो यह रोज की बात थी. खुशबू और मंथन छत पर ही सोते थे. सोते क्या थे, सोने का बहाना करते थे और प्रेम की पेंगे भरते थे.

सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. एक साल पलक झपकते ही बीत गया. अगले साल खुशबू की रिश्ते की बात चलने लगी, पर वह शादी की बात को टालती रहती थी.

इधर शहर में एक बहुत बड़ा शौपिंग मौल खुल गया था. मंथन से कम दाम पर सामान बेचने वाला. शहर के लोग उधर ही भाग रहे थे.

मंथन के पिता अब चल फिर नहीं पाते थे. परिवार की जिम्मेदारी का सारा बो झ अब मंथन के कंधों पर आ गया था. वह ज्यादा तनाव में रहने लगा था.

एक दिन जब मंथन ने सुबह दुकान खोली थी, तब उस की दुकान में बहुत से ग्राहक सामान लेने आए हुए थे. तभी रजत अपने पापा अजय बाबू के साथ मंथन की दुकान पर पहुंचा और उस ने इशारे से मंथन को बताया, ‘‘जैम की शीशी, होरलिक्स का डब्बा और चौकलेट का पैकेट दे दो.’’

मंथन ने चौकलेट का पैकेट, जैम की शीशी और होरलिक्स का पैसा जोड़ कर बिल बनाया.

परची थमाते हुए मंथन बोला, ‘‘रजत बाबू, 700 रुपए हो गए.’’

रजत ने एमआरपी और चीजों के दाम को मिलाया. दाम ठीकठाक ही लगाए गए थे, लेकिन 1-2 सामान में एमआरपी से 2-3 रुपए ही कम निकले.

रजत ने आंखें तरेरते हुए कहा, ‘‘मंथन, तुम ने तो एमआरपी पर ही सब सामान के दाम लगा दिए हैं… जबकि मौल में अभी भारी डिस्काउंट चल रहा है. हम वहीं से सब सामान लेंगे. चलिए पापा…’’

रजत के पापा ये सब बातें बहुत ध्यान से सुन रहे थे. वे बोले, ‘‘मौल तो आज खुला है बेटा, इस से पहले मैं और तुम्हारे दादाजी भी इसी दुकान से सामान खरीदते रहे हैं. तब मंथन के दादाजी दुकान चलाते थे. इन लोगों ने खूब साथ दिया है हमारा. यह रिश्ता एक दिन में नहीं बना है, बल्कि इस को बनने में सालोंसाल लगे हैं.’’

‘‘आप की तरह मैं बेवकूफ नहीं हूं पापा, जो इन से महंगे दाम पर सामान खरीदूं. आखिर हम भी पैसा बहुत मेहनत से कमाते हैं. जब और लोग कंपीटिशन कर रहे हैं, तो इन को भी तो दाम कम करना चाहिए. ये लोग पहले की तरह अब ज्यादा पैसे नहीं ले सकते. अब जमाना बदल गया है,’’ रजत ने कहा.

‘‘रजत बेटा, तुम शायद कोरोना के समय को भूल गए हो. उस समय तुम इसी मंथन के यहां से सामान ले जाते थे. और तुम्हें यह भी पता होना चाहिए कि उस समय तुम्हारे बैंक से तुम्हारी सैलरी नहीं आ रही थी. तब भी हम लोगों को घर बैठे सामान आसानी से मिल जाता था.

‘‘और इसी मंथन की दुकान से तुम ने दसियों हजार रुपए का राशन खाया है. उस समय यही मंथन पीछे के दरवाजे से हमें चीजें मुहैया करवाता था.

‘‘उस समय ये बड़ेबड़े मौल न जाने किस बिल में समा गए थे. तब पुलिस के न जाने कितने लाठीडंडे खा कर मंथन सामान इधरउधर से जुगाड़ कर के पूरे महल्ले को देता था.

‘‘फिर भी मैं वहीं से सामान लूंगा. मौल बैस्ट है मेरे लिए,’’ इतना कह कर रजत वहां से चला गया.

बात आईगई हो गई. अजय बाबू और रजत दोनों खुशबू पर शादी के लिए जोर दे रहे थे. 6 महीने और बीत गए. जो अजय बाबू मंथन के परिवार को इतना अच्छा कहते थे, जब उन को पता चला कि मंथन और खुशबू एकदूसरे से प्यार करते हैं, तो उन के जातिवाद ने सिर उठा लिया.

एक दिन अजय बाबू मंथन की दुकान पर तमतमाए हुए पहुंचे और मंथन को कई झापड़ रसीद कर दिए.
अजय बाबू का शरीर गुस्से से कांप रहा था. वे तमतमाए हुए लहजे में बोले, ‘‘हम ने तुम लोगों को जरा सा मुंह क्या लगा लिया, तुम अपनी औकात से बाहर आ कर हमारे सिर पर चढ़ गए. कहां हम कुलीन ब्राह्मण और कहां तुम बनिया. तुम लोगों को हमेशा अपनी औकात में रहना चाहिए. हमारी बहनबेटियों से खिलवाड़ करते हो… हद में रहा करो, नहीं तो होश ठिकाने लगा दूंगा.’’

दिन बीतते चले गए. कई साल गुजर गए. उम्र निकल जाने के चलते खुशबू के लिए रिश्ते भी अब आने बंद हो गए थे. इधर परिवार और 2 बहनों की शादी की जिम्मेदारी मंथन के कंधों पर थी. वह जैसे बलिदान की वेदी पर झूल गया.

एक दिन अचानक अजय बाबू को लकवा मार गया. अब वे बिस्तर से उठ भी नहीं पाते थे. खुशबू ने पूरे मन से अपने पापा की सेवा की, पर जल्दी ही वे चल बसे.

इतना ही नहीं, एक दिन रजत अपनी कार से औफिस जा रहा था कि तभी उस की कार सामने से आ रही दूसरी कार से टकरा गई और रजत के कार के परखच्चे उड़ गए.

रजत को अस्पताल में भरती करवाया गया. रजत अब महीनों तक बिस्तर से उठ नहीं सकता था. डाक्टर कह रहे थे कि इतने बड़े हादसे में अगर वह बच गया है, तो यही बहुत बड़ी बात है.

रजत की बैंक की प्राइवेट नौकरी थी, जो छूट गई. उस की पत्नी सविता के घर वालों ने कुछ महीनों तक मदद की, उस के बाद उन्होंने भी हाथ खींच लिए.

पूरे 2 साल तक रजत बिस्तर पर रहा. बच्चों की फीस जमा नहीं करवा पाने के चलते स्कूल ने बच्चों के नाम काट दिए. अब रजत के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते थे.

एक दिन की बात है. घर में राशन खत्म हो गया था और बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे. रजत के पापा अगर जिंदा होते, तो जरूर मंथन से कह कर राशन ले आते.

कुछ सोच कर सविता ने सारी बात जा कर मौल वाले दुकानदार को बताई, पर उस दिन सविता के पैरों तले की जमीन खिसक गई, जब मौल वाले ने सामान उधार देने से साफ मना कर दिया. उस ने बहुत सारे ग्राहकों के सामने ही सविता की बेइज्जती भी कर दी. सविता बेइज्जती का घूंट पी कर वहां से चली आई.

घर आ कर सविता ने सारी घटना रजत को बताई. रजत अपनी बेबसी पर दांत पीस कर रह गया था. उस के पैर अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुए थे. कमर की हड्डी भी टूट गई थी. वह लाचार था.

खैर, उड़तेउड़ते यह बात मंथन को पता चली. उस का और अजय बाबू का पुराना संबंध था. इस नाते वह घर का पूरा राशन रजत के यहां देने चला आया.

रजत और सविता दोनों हैरान से मंथन को ताक रहे थे.

मंथन ने रजत को नमस्ते किया और पूछा, ‘‘आप कैसे हैं?’’

रजत को जवाब देते न बना, फिर भी वह मंथन से बोला, ‘‘ठीक हूं. धीरेधीरे रिकवरी हो रही है.’’

‘‘आप के ऐक्सीडैंट के बारे में सुना था, लेकिन दुकान में भीड़भाड़ रहने के चलते आप से मिलने नहीं आ सका. कुछ झिझक भी थी. पता नहीं आप क्या सोचेंगे? वैसे, कुछ दिनों से बच्चों को स्कूल जाते नहीं देखा. वे स्कूल जाते हैं न?’’

‘‘स्कूल तो जाते हैं, लेकिन अब प्राइवेट स्कूल में नहीं, बल्कि सरकारी स्कूल में जाते हैं, लेकिन इधर उन की स्टेशनरी खत्म हो गई है, इसलिए हफ्तेभर से वे स्कूल नहीं जा रहे हैं.’’

‘‘हां, इधर मैं भाभी को भी देखता हूं, वे सुबहसुबह शायद बच्चों को पढ़ाने जाती हैं.’’

‘‘हां, बगल में प्राइमरी स्कूल है. वहीं 6-7 हजार रुपए की प्राइवेट नौकरी कर रही है. वहीं बच्चों को पढ़ाने जाती है. बेचारी को मेरे ऐक्सीडैंट के बाद बाहर निकलना पड़ गया. अब क्या करूं… सविता की कमाई तो मेरी दवादारू में ही खर्च हो जाती है.’’

‘‘पढ़ाने या काम करने में कोई बुराई थोड़ी ही है. सविता भाभी तो ज्ञान का दीपक जला रही हैं… आप के परिवार के लिए कुछ राशन ले कर आया हूं. आप मेरे पुराने खाते को फिर से चालू कर दीजिए.’’

‘‘मंथन, मु झे शर्मिंदा मत करो. मैं पहले ही अपनी नजरों में गिर चुका हूं. मैं अपने बरताव पर शर्मिंदा हूं.’’

‘‘मुसीबत के समय ही तो अपने लोग काम आते हैं. अगर कल को मेरे ऊपर कोई मुसीबत आन पड़ी तो आप लोग मेरी मदद करने आएंगे न? आप बच्चों को स्कूल भेजिए. आप स्टेशनरी का सामान मेरी दुकान से मंगवा लीजिएगा. सब्जीभाजी भी भिजवा दूंगा. जब आप ठीक हो जाएंगे, तब मेरा हिसाब कर दीजिएगा.’’

‘‘सब्जी तो आप नहीं बेचते हैं, फिर सब्जी कैसे देंगे?’’ सविता ने पूछा.

‘‘मेरा एक दोस्त आजकल सब्जी बेच रहा है. उस के यहां से खरीद कर मैं आप को भिजवा दूंगा और पैसे हिसाब में लिख दूंगा.

‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूं. दुकान पर लड़का अकेला है,’’ कह कर मंथन चलने को हुआ.

‘‘दुकान पर चले जाना, लेकिन पहले मेरी बहन खुशबू के हाथ की चाय तो पी लो,’’ रजत बोला.

इस के बाद रजत ने खुशबू को इशारा किया, तो वह किचन में चाय बनाने चली गई. थोड़ी देर बाद गरमागरम चाय आ गई.

चाय खत्म कर मंथन बाहर जाने लगा कि तभी रजत ने टोका, ‘‘बहुत दिनों से मेरे मन में एक बात चल रही थी. इतना उपकार तो तुम ने मु झ पर दिया है, लेकिन अभी मैं चलनेफिरने में नाकाम हूं. मेरी खुशबू के प्रति भी कुछ जिम्मेदारी है. मु झे यह भी मालूम है कि तुम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हो. मेरे पिताजी पुराने खयालात के थे, लेकिन अब दुनिया बदल रही है. मु झे भी नए ढंग से सोचना होगा.

‘‘तुम दोनों बेकुसूर होते हुए भी सजा काट रहे हो, इसलिए मेरी तुम से एक गुजारिश है कि तुम मेरी बहन को स्वीकार कर लो. बहुत दुख दिया है मैं ने तुम दोनों को. आज से मु झे तुम मेरी जिम्मेदारियों से मुक्त करो.

‘‘मेरी बहन जहां और जिस के साथ खुश रहेगी, वहीं उस की शादी होनी चाहिए. लेकिन मेरी माली हालत बहुत खराब है. मैं दहेज नहीं दे सकता.’’

‘‘दहेज नहीं दे सकते… मतलब मु झे मुफ्त में आप की बहन से शादी करनी पड़ेगी?’’ मंथन बोला.

खुशबू ने कनखियों से मंथन को ताका. उस को लगा कि अब फिर से वह कुंआरी रह जाएगी. मंथन तो दहेज ले कर ही मानेगा.

तभी मंथन खिलखिला कर हंस पड़ा, ‘‘भाई साहब, आप की बहन को मैं एक जोड़े में विदा करवा कर ले जाऊंगा. अभी मेरी दुकान बहुत बढि़या चल रही है. मैं अपनी दोनों बहनों की शादी कर चुका हूं. हर तरह की जिम्मेदारी का बो झ खत्म हो गया है.

‘‘खुशबू जैसी सम झदार जीवनसाथी पा कर मेरा काम और भी आसान हो गया है. अच्छा, अब मैं चलता हूं. आप लोग शादी की तारीख तय कीजिए.’’

अब रजत, सविता और खुशबू के चेहरे पर खुशी नजर आ रही थी. Story In Hindi

Hindi Family Story: पति-पत्नी और वो

Hindi Family Story: मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी कर रही थी. अभी मुझे 2 साल भी नहीं हुए थे. कंपनी का एक बड़ा प्रोजैक्ट पूरा होने की खुशी में शनिवार को फाइव स्टार होटल में एक पार्टी थी. मुझे भी वहां जाना था. मेरे मैनेजर ने मुझे बुला कर खासतौर पर कहा, ‘‘प्रीति, तुम इस प्रोजैक्ट में शुरू से जुड़ी थीं, तुम्हारे काम से मैं बहुत खुश हूं. पार्टी में जरूर आना… वहां और सीनियर लोगों से भी तुम्हें इंट्रोड्यूज कराऊंगा जो तुम्हारे फ्यूचर के लिए अच्छा होगा.’’

‘‘थैंक्यू,’’ मैं ने कहा.

सागर मेरा मैनेजर है. लंबा कद, गोरा, क्लीन शेव्ड, बहुत हैंडसम ऐंड सौफ्ट स्पोकन. उस का व्यक्तित्व हर किसी को उस की ओर देखने को मजबूर करता. सुना है वाइस प्रैसिडैंट का दाहिना हाथ है… वे कंपनी के लिए नए प्रोजैक्ट लाने के लिए कस्टमर्स के पास सागर को ही भेजते. सागर अभी तक इस में सफल रहा था, इसलिए मैनेजमैंट उस से बहुत खुश है.

मैं ने अपनी एक कुलीग से पूछा कि वह भी पार्टी में आ रही है या नहीं तो उस ने कहा, ‘‘अरे वह हैंडसम बुलाए और हम न जाएं, ऐसा कैसे हो सकता है. बड़ा रंगीन और मस्तमौला लड़का है सागर.’’

‘‘वह शादीशुदा नहीं है क्या?’’ मैं ने पूछा.

‘‘एचआर वाली मैम तो बोल रही थीं शादीशुदा है, पर बीवी कहीं और जौब करती है. सुना है अकसर यहां किसी न किसी फ्रैशर के साथ उस का कुछ चक्कर रहा है. यों समझ लो मियांबीवी के बीच कोई तीसरी वो. पर बंदे की पर्सनैलिटी में दम है. उस के साथ के लिए औफिस की दर्जनों लड़कियां तरसती हैं. मेरी शादी के पहले मुझ पर भी डोरे डाल रहा था. मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है, सिर्फ सगाई ही हुई है… एक शाम उस के नाम सही.’’

‘‘मतलब तेरा भी चक्कर रहा है सागर के साथ… पगली शादीशुदा हो कर ऐसी बातें करती है. खैर ये सब बातें छोड़ और बता तू आ रही है न पार्टी में?’’

‘‘हंड्रेड परसैंट आ रही हूं?’’

मैं शनिवार रात पार्टी में गई. मैं ने पार्टी के लिए अलग से मेकअप नहीं किया था. बस वही जो नौर्मल करती थी औपिस जाने के लिए. सिंपल नेवी ब्लू कलर के लौंग फ्रौक में जरा देर से पहुंची. देखा कि सागर के आसपास 4-5 लड़कियां पहले से बैठी थीं.

मुझे देख कर वह फौरन मेरे पास आ कर बोला, ‘‘वाऊ प्रीति, यू आर लुकिंग गौर्जियस. कम जौइन अस.’’

पहले सागर ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे वाइस प्रैसिडैंट के पास ले जा कर उन से मिलवाया.

उन्होंने कहा, ‘‘यू आर लुकिंग ग्रेट. सागर तुम्हारी बहुत तारीफ करता है. तुम्हारे रिपोर्ट्स भी ऐक्सीलैंट हैं.’’

मैंने उन्हें थैंक्स कहा. फिर अपनी कुलिग्स की टेबल पर आ गई. सागर भी वहीं आ गया. हाल में हलकी रंगीन रोशनी थी और सौफ्ट म्यूजिक चल रहा था. कुछ स्नैक्स और ड्रिंक्स का दौर चल रहा था.

सागर ने मुझ से भी पूछा, ‘‘तुम क्या लोगी?’’

‘‘मैं… मैं… कोल्डड्रिंक लूंगी.’’

सागर के साथ कुछ अन्य लड़कियां भी हंस पड़ीं.

‘‘ओह, कम औन, कम से कम बीयर तो ले लो. देखो तुम्हारे सभी कुलीग्स कुछ न कुछ ले ही रहे हैं. कह कर उस ने मेरे गिलास में बीयर डाली और फिर मेरे और अन्य लड़कियों के साथ गिलास टकरा कर चीयर्स कहा.

पहले तो मैं ने 1-2 घूंट ही लिए. फिर धीरेधीरे आधा गिलास पी लिया. डांस के लिए फास्ट म्यूजिक शुरू हुआ. सागर मुझ से रिक्वैस्ट कर मेरा हाथ पकड़ कर डांसिंग फ्लोर पर ले गया. पहले तो सिर्फ दोनों यों ही आमने-सामने खड़े शेक कर रहे थे, फिर सागर ने मेरी कमर को एक हाथ से पकड़ कर कहा, ‘‘लैट अस डांस प्रीति,’’ और फिर दूसर हाथ मेरे कंधे पर रख कर मुझ से भी मेरा हाथ पकड़ ऐसा ही करने को कहा.

म्यूजिक तो फास्ट था, फिर भी उस ने मेरी आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘मुझे स्लो स्टैप्स ही अच्छे लगते हैं. ज्यादा देर तक सामीप्य बना रहता है, कुछ मीठी बातें करने का मौका भी मिल जाता है और थकावट भी नहीं होती है.’’ मैं सिर्फ मुसकरा कर रह गई. वह मेरे बहुत करीब था. उस की सांसें मैं महसूस कर रही थी और शायद वह भी मेरी सांसें महसूस कर रहा था. उस ने धीरे से कहा, ‘‘अभी तुम्हारी शादी नहीं हुई है न?’’

‘‘नहीं, शादी अभी नहीं हुई है, पर 6 महीने बाद होनी है. समरेश मेरा बौयफ्रैंड ऐंड वुड बी हब्बी फौरन असाइनमैंट पर अमेरिका में है.’’

‘‘वैरी गुड,’’ कह उस ने मेरे कंधे और गाल पर झूलते बालों को अपने हाथ से पीछे हटा दिया, ‘‘अरे यह सुंदर चेहरा छिपाने की चीज नहीं है.’’

फिर उस ने अपनी उंगली से मेरे गालों को छू कर होंठों को छूना चाहा तो मैं ‘नो’ कह कर उस से अलग हो गई. मुझे अपनी सहेली का कहा याद आ गया था. उसके बाद हम दोनों 2 महीने तक औफिस में नौर्मल अपना काम करते रहे.

एक दिन सागर ने कहा, हमें एक प्रोजैक्ट के लिए हौंगकौंग जाना होगा.’’

‘‘हमें मतलब मुझे भी?’’

‘‘औफकोर्स, तुम्हें भी.’’

‘‘नहीं सागर, किसी और को साथ ले लो इस प्रोजैक्ट में.’’

‘‘तुम यह न समझना कि यह मेरा फैसला है… बौस का और्डर है यह. तुम चाहो तो उन से बात कर सकती हो.’’

मैं ने वाइस प्रैसिडैंट से भी रिक्वैस्ट की पर उन्होंने कहा, ‘‘प्रीति, बाकी सभी अपनेअपने प्रोजैक्ट में व्यस्त हैं. 2 और मेरी नजर में थीं, उन से पूछा भी था, पर दोनों अपनी प्रैगनैंसी के चलते दूर नहीं जाना चाहती हैं… मेरे पास तुम्हारे सिवा और कोई औप्शन नहीं है.’’

मैं सागर के साथ हौंगकौंग गई. वहां 1 सप्ताह का प्रोग्राम था. काफी भागदौड़ भरा सप्ताह रहा. मगर 1 सप्ताह में हमारा काम पूरा न हो सका. अपना स्टे और 3 दिन के लिए बढ़ाना पड़ा. हम दोनों थक कर चूर हो गए थे. बीच में 2 दिन वीकैंड में छुट्टी थी.

हौंगकौंग के क्लाइंट ने कहा, ‘‘इसी होटल में स्पा, मसाज की सुविधा है. मसाज करा लें तो थकावट दूर हो जाएगी और अगर ऐंजौय करना है तो कोव्लून चले जाएं.’’

‘‘मैं तो वहां जा चुका हूं. तुम कहो तो चलते हैं. थोड़ा चेंज हो जाएगा,’’ सागर ने कहा.

हम दोनों हौंगकौंग के उत्तर में कोव्लून द्वीप गए. थोड़े सैरसपाटे के बाद सागर बोला, ‘‘तुम होटल के मसाज पार्लर में जा कर फुल बौडी मसाज ले लो. पूरी थकावट दूर हो जाएगी.’’

मै स्पा गई. स्पा मैनेजर ने पूछा, ‘‘आप ने अपौइंटमैंट में थेरैपिस्ट की चौइस नहीं बताई है. अभी पुरुष और महिला दोनों थेरैपिस्ट हैं मेरे पास. अगर डीप प्रैशर मसाज चाहिए तो मेरे खयाल से पुरुष थेरैपिस्ट बेहतर होगा. वैसे आप की मरजी?’’

मैंने महिला थेरैपिस्ट के लिए कहा और अंदर मसाजरूम में चली गई.

बहुत खुशनुमा माहौल था. पहले तो मुझे ग्रीन टी पीने को मिली. कैंडल लाइट की धीमी रोशनी थी, जिस से लैवेंडर की भीनीभीनी खुशबू आ रही थी. लाइट म्यूजिक बज रहा था. थेरैपिस्ट ने मुझे कपड़े खोलने को कहा. फिर मेरे बदन को एक हरे सौफ्ट लिनेन से कवर कर पैरों से मसाज शुरू की. वह बीचबीच में धीरेधीरे मधुर बातें कर रही थी. फिर थेरैपिस्ट ने पूछा, ‘‘आप को सिर्फ मसाज करानी है या कुछ ऐक्स्ट्रा सर्विस विद ऐक्स्ट्रा कौस्ट… पर इस टेबल पर नो सैक्स?’’

‘‘मुझे आश्चर्य हुआ कि उसे ऐसा कहने की क्या जरूरत थी. मैं ने महसूस किया कि मेरी बगल में भी एक मसाज चैंबर था. दोनों के बीच एक अस्थायी पार्टीशन वाल थी. जैसेजैसे मसाज ऊपर की ओर होती गई मैं बहुत रिलैक्स्ड फील कर रही थी. करीब 90 मिनट तक वह मेरी मसाज करती रही. महिला थेरैपिस्ट होने से मैं भी सहज थी और उसे भी मेरे अंगों को छूने में संकोच नहीं था. उस के हाथों खासकर उंगलियों के स्पर्श में एक जादू था और एक अजीब सा एहसास भी. पर धीरेधीरे उस के नो सैक्स कहने का अर्थ मुझे समझ में आने लगा था. मैं अराउज्ड यानी उत्तेजना फील करने लगी. मुझे लगा. मेरे अंदर कामवासना जाग्रत हो रही है.’’

तभी थेरैपिस्ट ने ‘‘मसाज हो गई,’’ कहा और बीच की अस्थायी पार्टीशन वाल हटा दी. अभी मैं ने पूरी ड्रैस भी नहीं पहनी थी कि देखा दूसरे चैंबर में सागर की भी मसाज पूरी हो चुकी थी. वह भी अभी पूरे कपड़े नहीं पहन पाया था. दूसरी थेरैपिस्ट गर्ल ने मुसकराते हुए कहा ‘‘देखने से आप दोनों का एक ही हाल लगता है, अब आप दोनों चाहें तो ऐंजौय कर सकते हैं.’’

मुझे सुन कर कुछ अजीब लगा, पर बुरा नहीं लगा. हम दोनों पार्लर से निकले. मुझे अभी तक बिना पीए मदहोशी लग रही थी. सागर मेरा हाथ पकड़ कर अपने रूम में ले गया. मैं भी मदहोश सी उस के साथ चल पड़ी. उस ने रूम में घुसते ही लाइट औफ कर दी.

सागर मुझ से सट कर खड़ा था. मेरी कमर में हाथ डाल कर अपनी ओर खींच रहा था और मैं उसे रोकना भी नहीं चाहती थी. वह अपनी उंगली से मेरे होंठों को सहला रहा था. मैं भी उस के सीने से लग गई थी. फिर उस ने मुझे किस किया तो ऐसा लगा सारे बदन में करंट दौड़ गया. उस ने मुझे बैड पर लिटा दिया और कहा, ‘‘जस्ट टू मिनट्स, मैं वाशरूम से अभी आया.’’

सागर ने अपनी पैंट खोल बैड के पास सोफे पर रख दी और टौवेल लपेट वह बाथरूम में गया. मैं ने देखा कि पैंट की बैक पौकेट से उस का पर्स निकल कर गिर पड़ा और खुल गया. मैं ने लाइट औन कर उस का पर्स उठाया. पर्स में एक औरत और एक बच्चे की तसवीर लगी थी.

मैं ने उस फोटो को नजदीक ला कर गौर से देखा. उसे पहचानने में कोई दिक्कत नहीं हुई. मैं ने मन में सोचा यह तो मेरी नीरू दी हैं. कालेज के दिनों में मैं जब फ्रैशर थी सीनियर लड़के और लड़कियां दोनों मुझे रैगिंग कर परेशान कर रहे थे. मैं रोने लगी थी. तभी नीरू दी ने आ कर उन सभी को डांट लगाई थी और उन्हें सस्पैंड करा देने की वार्निंग दी थी. नीरू दी बीएससी फाइनल में थीं. इस के बाद मेरी पढ़ाई में भी उन्होंने मेरी मदद की थी. तभी से उन के प्रति मेरे दिल में श्रद्धा है. आज एक बार फिर नीरू दी स्वयं तो यहां न थीं, पर उन के फोटो ने मुझे गलत रास्ते पर जाने से बचा लिया. मेरी मदहोशी अब फुर्र हो चली थी.

सागर बाथरूम से निकल कर बैड पर आया तो मैं उठ खड़ी हुई. उस ने मुझे बैड पर बैठने को कहा, ‘‘लाइट क्यों औन कर दी? अभी तो कुछ ऐंजौय किया ही नहीं.’’

‘‘ये आप की पत्नी और साथ में आप का बेटा है?’’

‘‘हां, तो क्या हुआ? वह दूसरे शहर में नौकरी कर रही है?’’

‘‘नहीं, वे मेरी नीरू दीदी भी हैं… मैं गलती करने से बच गई,’’ इतना बोल कर मैं उस के कमरे से निकल गई.

जहां एक ओर मुझे कुछ आत्मग्लानि हुई तो वहीं दूसरी ओर साफ बच निकलने का सुकून भी था. वरना तो मैं जिंदगीभर नीरू दी से आंख नहीं मिला पाती. हालांकि सागर ने कभी मेरे साथ कोई जबरदस्ती करने की कोशिश नहीं की.

इस के बाद 3 दिन और हौंगकौंग में हम दोनों साथ रहे… बिलकुल प्रोफैशनल की तरह

अपनेअपने काम से मतलब. चौथे दिन मैं और सागर इंडिया लौट आए. मैं ने नीरू दी का पता लगाया और उन्हें फोन किया. मैं बोली, ‘‘मैं प्रीति बोल रही हूं नीरू दी, आप ने मुझे पहचाना? कालेज में आप ने मुझे रैगिंग…’’

‘‘ओ प्रीति तुम? कहां हो आजकल और कैसी हो? कालेज के बाद तो हमारा संपर्क ही टूट गया था.’’

‘‘मैं यहीं सागर की जूनियर हूं. आप यहीं क्यों नहीं जौब कर रही हैं?’’

‘‘मैं भी इस के लिए कोशिश कर रही हूं. उम्मीद है जल्द ही वहां ट्रांसफर हो जाएगा.’’

‘‘हां दी, जल्दी आ जाइए, मेरा भी मन लग जाएगा,’’ और मैं ने फोन बंद कर दिया. हौंगकौंग के उस कमजोर पल की याद फिर आ गई, जिस से मैं बालबाल बच गई थी और वह भी सिर्फ एक तसवीर के चलते वरना अनजाने में ही पति-पत्नी के बीच मैं ‘वो’ बन गई होती. Hindi Family Story

Best Hindi Kahani: बचपना – सुधा की बेचैनी

Best Hindi Kahani: आज फिर वही चिट्ठी मनीआर्डर के साथ देखी, तो सुधा मन ही मन कसमसा कर रह गई. अपने पिया की चिट्ठी देख उसे जरा भी खुशी नहीं हुई. सुधा ने दुखी मन से फार्म पर दस्तखत कर के डाकिए से रुपए ले लिए और अपनी सास के पास चली आई और बोली ‘‘यह लीजिए अम्मां पैसा.’’ ‘‘मुझे क्या करना है. अंदर रख दे जा कर,’’ कहते हुए सासू मां दरवाजे की चौखट से टिक कर खड़ी हो गईं. देखते ही देखते उन के चेहरे की उदासी गहरी होती चली गई.

सुधा उन के दिल का हाल अच्छी तरह समझ रही थी. वह जानती थी कि उस से कहीं ज्यादा दुख अम्मां को है. उस का तो सिर्फ पति ही उस से दूर है, पर अम्मां का तो बेटा दूर होने के साथसाथ उन की प्यारी बहू का पति भी उस से दूर है. यह पहला मौका है, जब सुधा का पति सालभर से घर नहीं आया. इस से पहले 4 नहीं, तो 6 महीने में एक बार तो वह जरूर चला आता था.

इस बार आखिर क्या बात हो गई, जो उस ने इतने दिनों तक खबर नहीं ली? अम्मां के मन में तरहतरह के खयाल आ रहे थे. कभी वे सोचतीं कि किसी लड़की के चक्कर में तो नहीं फंस गया वह? पर उन्हें भरोसा नहीं होता था. हो न हो, पिछली बार की बहू की हरकत पर वह नाराज हो गया होगा. है भी तो नासमझ. अपने सिवा किसी और का लाड़ उस से देखा ही नहीं जाता.

नालायक यह नहीं समझाता, बहू भी तो उस के ही सहारे इस घर में आई है. उस बेचारी का कौन है यहां? सोचतेसोचते उन्हें वह सीन याद आ गया, जब बहू उन के प्यार पर अपना हक जता कर सूरज को चिढ़ा रही थी और वह मुंह फुलाए बैठा था. अगली बार डाकिए की आवाज सुन कर सुधा कमरे में से ही कहने लगी, ‘‘अम्मां, डाकिया आया है.

पैसे और फार्म ले कर अंदर आ जाइए, दस्तखत कर दूंगी.’’ सुधा की बात सुन कर अम्मां चौंक पड़ीं. पहली बार ऐसा हुआ था कि डाकिए की आवाज सुन कर सुधा दौड़ीदौड़ी दरवाजे तक नहीं गई… तो क्या इतनी दुखी हो गई उन की बहू? अम्मां डाकिए के पास गईं. इस बार उस ने चिट्ठी भी नहीं लिखी थी. पैसा बहू की तरफ बढ़ा कर अम्मां रोंआसी आवाज में कहने लगीं, ‘‘ले बहू, पैसा अंदर रख दे जा कर.’’ अम्मां की आवाज कानों में पड़ते ही सुधा बेचैन निगाहों से उन के हाथों को देखने लगी.

वह अम्मां से चिट्ठी मांगने को हुई कि अम्मां कहने लगीं, ‘‘क्या देख रही है? अब की बार चिट्ठी भी नहीं डाली है उस ने.’’ सुधा मन ही मन तिलमिला कर रह गई. अगले ही पल उस ने मर जाने के लिए हिम्मत जुटा ली, पर पिया से मिलने की एक ख्वाहिश ने आज फिर उस के अरमानों पर पानी फेर दिया. अगले महीने भी सिर्फ मनीआर्डर आया, तो सुधा की रहीसही उम्मीद भी टूट गई.

उसे अब न तो चिट्ठी आने का भरोसा रहा और न ही इंतजार. एक दिन अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई. पहली बार तो सुधा को लगा, जैसे वह सपना देख रही हो, पर जब दोबारा किसी ने दरवाजा खटखटाया, तो वह दरवाजा खोलने चल दी. दरवाजा खुलते ही जो खुशी मिली, उस ने सुधा को दीवाना बना दिया. वह चुपचाप खड़ी हो कर अपने साजन को ऐसे ताकती रह गई, मानो सपना समझ कर हमेशा के लिए उसे अपनी निगाहों में कैद कर लेना चाहती हो.

सूरज घर के अंदर चला आया और सुधा आने वाले दिनों के लिए ढेर सारी खुशियां सहेजने को संभल भी न पाई थी कि अम्मां की चीखों ने उस के दिलोदिमाग में हलचल मचा दी. अम्मां गुस्सा होते हुए अपने बेटे पर चिल्लाए जा रही थीं, ‘‘क्यों आया है? तेरे बिना हम मर नहीं जाते.’’ ‘‘क्या बात है अम्मां?’’ सुधा को अपने पिया की आवाज सुनाई दी.

‘‘पैसा भेज कर एहसान कर रहा था हम पर? क्या हम पैसों के भूखे हैं?’’ अम्मां की आवाज में गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा था. ‘‘क्या बात हो गई?’’ आखिर सूरज गंभीर हो कर पूछ ही बैठा. ‘‘बहू, तेरा पति पूछ रहा है कि बात क्या हो गई. 2 महीने से बराबर खाली पैसा भेजता रहता है, अपनी खैरखबर की छोटी सी एक चिट्ठी भी लिखना इस के लिए सिर का बोझ बन गया और पूछता है कि क्या बात हो गई?’’ सूरज बिगड़ कर कहने लगा, ‘‘नहीं भेजी चिट्ठी तो कौन सी आफत आ गई?

तुम्हारी लाड़ली तो तुम्हारे पास है, फिर मेरी फिक्र करने की क्या जरूरत पड़ी?’’ सुधा अपने पति के ये शब्द सुन कर चौंक गई. शब्द नए नहीं थे, नई थी उन के सहारे उस पर बरस पड़ी नफरत. वह नफरत, जिस के बारे में उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. सुधा अच्छी तरह समझ गई कि यह सब उन अठखेलियों का ही नतीजा है, जिन में वह इन्हें अम्मां के प्यार पर अपना ज्यादा हक जता कर चिढ़ाती रही है, अपने पिया को सताती रही है.

इस में कुसूर सिर्फ सुधा का ही नहीं है, अम्मां का भी तो है, जिन्होंने उसे इतना प्यार किया. जब वे जानती थीं अपने बेटे को, तो क्यों किया उस से इतना प्यार? क्यों उसे इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि वह इस घर की बेटी नहीं बहू है? अम्मां सुधा का पक्ष ले रही हैं, यह भी गनीमत ही है, वरना वे भी उस का साथ न दें, तो वह क्या कर लेगी.

इस समय तो अम्मां का साथ देना ही बहुत जरूरी है. अम्मां अभी भी अपने बेटे से लड़े जा रही थीं, ‘‘तेरा दिमाग बहुत ज्यादा खराब हो गया है.’’ अम्मां की बात का जवाब सूरज की जबान पर आया ही था कि सुधा बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘यह सब अच्छा लगता है क्या आप को? अम्मां के मुंह लगे चले जा रहे हैं. बड़े अच्छे लग रहे हैं न?’’ ‘‘चुप, यह सब तेरा ही कियाधरा है. तुझे तो चैन मिल गया होगा, यह सब देख कर.

न जाने कितने कान भर दिए कि अम्मां आते ही मुझ पर बरस पड़ीं,’’ थोड़ी देर रुक कर सूरज ने खुद पर काबू करना चाहा, फिर कहने लगा, ‘‘यह किसी ने पूछा कि मैं ने चिट्ठी क्यों नहीं भेजी? इस की फिक्र किसे है? अम्मां पर तो बस तेरा ही जादू चढ़ा है.’’ ‘‘हां, मेरा जादू चढ़ा तो है, पर मैं क्या करूं? मुझे मार डालो, तब ठीक रहेगा.

मुझ से तुम्हें छुटकारा मिल जाएगा और मुझे तुम्हारे बिना जीने से.’’ अब जा कर अम्मां का माथा ठनका. आज उन के बच्चों की लड़ाई बच्चों का खेल नहीं थी. आज तो उन के बच्चों के बीच नफरत की बुनियाद पड़ती नजर आ रही थी. बहू का इस तरह बीच में बोल पड़ना उन्हें अच्छा नहीं लगा. वे अपनी बहू की सोच पर चौंकी थीं.

वे तो सोच रही थीं कि उन के बेटे की सूरत देख कर बहू सारे गिलेशिकवे भूल गई होगी. अम्मां की आवाज से गुस्सा अचानक काफूर गया. वे सूरज को बच्चे की तरह समझने लगीं, ‘‘इस को पागल कुत्ते ने काटा है, जो तेरी खुशियां छीनेगी? तेरी हर खुशी पर तो तुझ से पहले खुश होने का हक इस का है. फिर क्यों करेगी वह ऐसा, बता? र

ही बात मेरी, तो बता कौन सा ऐसा दिन गुजरा, जब मैं ने तुझे लाड़ नहीं किया?’’ ‘‘आज ही देखो न, यह तो किसी ने पूछा नहीं कि हालचाल कैसा है? इतना कमजोर कैसे हो गया तू? तुम को इस की फिक्र ही कहां है. फिक्र तो इस बात की है कि मैं ने चिट्ठी क्यों नहीं?डाली?’’ सूरज बोला.

अम्मां पर मानो आसमान फट पड़ा. आज उन की सारी ममता अपराधी बन कर उन के सामने खड़ी हो गई. आज यह हुआ क्या? उन की समझ में कुछ न आया. अम्मां चुपचाप सूरज का चेहरा निहारने लगीं, कुछ कह ही न सकीं, पर सुधा चुप न रही.

उस ने दौड़ कर अपने सूरज का हाथ पकड़ लिया और पूछने लगी, ‘‘बोलो न, क्या हुआ? तुम बताते क्यों नहीं हो?’’ ‘‘मैं 2 महीने से बीमार था. लोगों से कह कर जैसेतैसे मनीआर्डर तो करा दिया, पर चिट्ठी नहीं भेज सका. बस, यही एक गुनाह हो गया.’’ सुधा की आंखों से निकले आंसू होंठों तक आ गए और मन में पागलपन का फुतूर भर उठा, ‘‘देखो अम्मां, सुना कैसे रहे हैं? इन से तो अच्छा दुश्मन भी होगा, मैं बच्ची नहीं हूं, अच्छी तरह जानती हूं कि भेजना चाहते, तो एक नहीं 10 चिट्ठियां भेज सकते थे.

‘‘नहीं भेजते तो किसी से बीमारी की खबर ही करा देते, पर क्यों करते ऐसा? तुम कितना ही पीछा छुड़ाओ, मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाली.’’ अम्मां चौंक कर अपनी बहू की बौखलाहट देखती रह गईं, फिर बोलीं, ‘‘क्या पागल हो गई है बहू?’’ ‘‘पागल ही हो जाऊं अम्मां, तब भी तो ठीक है,’’ कहते हुए बिलख कर रो पड़ी सुधा और फिर कहने लगी, ‘‘पागल हो कर तो इन्हें अपने प्यार का एहसास कराना आसान होगा.

किसी तरह से रो कर, गा कर और नाचनाच कर इन्हें अपने जाल में फंसा ही लूंगी. कम से कम मेरा समझदार होना तो आड़े नहीं आएगा,’’ कहतेकहते सुधा का गला भर आया. सूरज आज अपनी बीवी का नया रूप देख रहा था. अब गिलेशिकवे मिटाने की फुरसत किसे थी? सुधा पति के आने की खुशियां मनाने में जुट गई. अम्मां भी अपना सारा दर्द समेट कर फिर अपने बच्चों से प्यार करने के सपने संजोने लगी थीं. Best Hindi Kahani

News Story: हाथ न मिलाने की सियासत – 19 साल की छात्रा के साथ गैंगरेप

News Story: ओडिशा के पुरी जिले में 19 साल की एक कालेज छात्रा के साथ गैंगरेप किया गया. छात्रा अपने बौयफ्रैंड के साथ कैसुरीना के जंगली इलाके में घूमने गई थी. वहां कुछ लड़कों ने उस के बौयफ्रैंड को बंधक बनाया और उस के सामने ही लड़की का गैंगरेप किया. पुलिस ने घटना में 3 लोगों को गिरफ्तार किया. पुलिस ने बताया कि शुरुआत में सदमे के चलते छात्रा अपराध की रिपोर्ट करने में हिचकिचा रही थी.

‘‘अरे मम्मी, आज मैं मैच खेलने जाऊंगा. बड़े दिनों से मेरे दोस्त बुला रहे हैं. आज संडे है तो सोच रहा हूं कि दोस्तों को भी थोड़ा टाइम दे देता हूं,’’ नाश्ते की टेबल पर बैठे विजय ने चिल्ला कर रसोईघर में आलू के परांठे बना रही अपनी मम्मी से कहा.

विजय के इस तरह चिल्लाने की एक वजह यह भी थी कि उस के पापा ने बाइक का पौल्यूशन चैक कराने को कहा था, पर अभी तक हुआ नहीं था. अगर पापा को याद आ जाता तो वे उसे टोक देते, पर शायद पापा के दिमाग से यह बात निकल गई थी.

हालांकि, मम्मी आलू के परांठे बना रही थीं, फिर भी किसी भी तरह के लालच को छोड़ते हुए विजय ने चाय के साथ एक परांठा ही खाया. हां, 4-5 परांठे पैक जरूर करा लिए कि मैच खत्म होने के बाद भूख लगेगी, तो कुछ तो होगा पेट में जाने के लिए.

मैदान ज्यादा दूर नहीं था तो विजय पैदल ही निकल गया. चूंकि मैच टैनिस गेंद से खेला जाने वाला था, तो विजय ने सिर्फ अपना ट्रैक सूट पहना हुआ था. उस के हाथ में था वही बैट जो कभी अनामिका ने उसे गिफ्ट में दिया था.

विजय ने अनामिका को फोन लगाया और बोला, ‘‘सुनो बेबी, मैं यहीं के पास के मैदान पर क्रिकेट खेलने जा रहा हूं. दोपहर के 1 बजे तक फ्री हो जाऊंगा. तुम वहीं आ जाना, फिर मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा. मम्मी बोल रही थीं कि बड़े दिन से अनामिका नहीं दिखी.’’

‘ठीक है. मैं आ जाऊंगी. मुझे भी अंकलआंटी से मिलना है,’ उधर से अनामिका की आवाज आई.

विजय जब मैदान पर पहुंचा, तो उस के दोस्त आ चुके थे. दूसरी टीम वाले भी जानपहचान के ही थे. विजय की टीम ने टौस जीत कर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला लिया… मैच शुरू हो गया.

विजय की टीम अच्छा खेल रही थी कि इसी बीच विरोधी टीम के एक गेंदबाज ने अंपायर द्वारा आउट न दिए जाने पर गुस्से में बल्लेबाज को गाली दे दी.

इस बात से खेल का माहौल बिगड़ गया और क्रिकेट का मैच लड़ाई के घमासान में बदल गया. वह तो अच्छा था कि ज्यादातर लड़के एकदूसरे को जानते थे, तो थोड़ी सी ?ाड़प के बाद मामला शांत करा दिया गया.

लेकिन इस के बाद दोनों टीमें ऐसे खेलने लगीं, जैसे भारत और पाकिस्तान खेलते हैं. शब्दों के बाण चलने लगे.

विजय ने अपने बल्लेबाज से चीख कर कहा, ‘‘भाई, यह गेंदबाज शाहिद अफरीदी की तरह बड़ा उछल रहा है. इसे इतना बुरी तरह पेल कि खेल और सियासत दोनों भूल जाए. सोशल मीडिया पर भारत के खिलाफ बड़ा गंदा बोलता है. इसे शाहिद अफरीदी समझ कर छक्केचौके की बरसात कर दे.’’

दूसरी टीम वाले कहां कम थे. एक फील्डर बोला, ‘‘देखो, अब पाकिस्तानी खुद को हिंदुस्तानी समझ रहे हैं. हर बार तो हम से हारते हैं और अब हमें ही पाकिस्तानी कह रहे हैं. हमारा जसप्रीत बुमराह अभी तुम्हारे बाबर आजम का बैंड बजाता है.’’

इन्हीं चुटीली बातों के बीच मैच चलता रहा और विजय की टीम हार गई. अब तो विजय का मूड एकदम खराब. संडे खराब हुआ सो अलग, बाइक का पौल्यूशन भी नहीं कराया. पापा को याद गया तो झाड़ पड़ेगी.

गुस्साए विजय ने आलू के परांठे भी नहीं खाए और अनामिका के आने पर भी मुंह फुला कर बैठा रहा.

‘‘अरे यार, एक मैच ही तो हारे हो. इस में इतना बिगड़ने वाली कौन सी बात है,’’ अनामिका बोली.

‘‘बात मैच हारने की नहीं है, बल्कि सामने वाली टीम ने हमें पाकिस्तानी कह कर चिढ़ाया और कहा कि अगले संडे को भी हमारा यही हाल करेंगे. बोल रहे थे कि हम ने ‘आपरेशन सिंदूर’ का बदला क्रिकेट के मैदान पर भी ले लिया,’’ विजय ने कहा.

‘‘इस में ‘आपरेशन सिंदूर’ कहां से बीच में आ गया. वैसे, एक बात तो है कि जब पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में खटास आई थी, तो भारत को एशिया कप में पाकिस्तान के साथ मैच नहीं खेलना चाहिए था,’’ अनामिका बोली.

‘‘पहले घर चलें, फिर तुम्हारे इस टौपिक पर बात करेंगे. तुम ने यह मुद्दा छेड़ कर मेरा मूड और भी खराब कर दिया है,’’ विजय ने कहा.

‘‘मैं क्या तुम से डरती हूं. घर पर ही बात करते हैं अब,’’ अनामिका बोली और तेज कदमों से आगे बढ़ गई. उसे विजय का घर वहां से मालूम था.

घर पर अनामिका सब से मिली और विजय के पापा से बोली, ‘‘अंकल, आप को क्या लगता है, भारत को एशिया कप में भारत के साथ खेलना चाहिए था या नहीं?’’

‘‘पापा क्या बताएंगे. मैं कह रहा हूं कि भारत ने सही किया और पाकिस्तान को उस की औकात दिखा दी,’’ विजय बीच में बोला.

अनामिका ने एशिया कप में भारत और पाकिस्तान के मैच खेलने और इन दोनों देशों के बीच चल रहे तनाव को ले कर विजय को आईना दिखाते हुए कहा, ‘‘तुम भूल रहे हो कि पहलगाम आतंकी हमले और ‘आपरेशन सिंदूर’ के बाद दुबई में हो रहे एशिया कप 2025 क्रिकेट टूर्नामैंट में भारत और पाकिस्तान के बीच मुकाबले को ले कर जम कर सियासत हुई थी. साथ ही, देश में कई जगह धरने और प्रदर्शन भी हुए थे.

‘‘तुम कितना जल्दी भूल गए कि इस हाई वोल्टेज मुकाबले के विरोध में विपक्षी दलों ने 14 सितंबर को पूरे देश में विरोध प्रदर्शन किया था और आम लोगों से आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले देश के साथ इस मुकाबले का बहिष्कार करने की अपील की थी. शिव सेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) ने महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और जम्मू में विरोध प्रदर्शन किए थे, जबकि आम आदमी पार्टी के सदस्यों ने दिल्ली में प्रदर्शन किया था.

‘‘भाजपा और केंद्र पर निशाना साधते हुए शिव सेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के नेता संजय राउत ने सत्तारूढ़ पार्टी के राष्ट्रवाद और देशप्रेम का मखौल उड़ाते हुए कहा था कि भाजपा का हिंदुत्व एक तमाशा है. इस मैच को ले कर देश की सामान्य जनता में रोष है, इसलिए प्रधानमंत्री ने इस मैच से जनता का ध्यान भटकाने के लिए मणिपुर जाने का फैसला किया.

‘‘इस पार्टी के कार्यकर्ताओं ने प्रवक्ता आनंद दुबे की अगुआई में विरोध प्रदर्शन किया, टीवी तोड़े और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी की. मुंबई में महिला कार्यकर्ताओं ने हाथ में सिंदूर ले कर प्रदर्शन किया.’’

‘‘विपक्ष का तो काम ही जनता को भड़काना है,’’ विजय बोला.

यह सुन कर अनामिका ने कहा, ‘‘बात विपक्ष की नहीं है, बल्कि जनता के सामने हकीकत रखने की है.

‘‘कांग्रेस नेता उदित राज ने भी तीखा हमला बोलते हुए कहा था कि मैच की अनुमति देने के पीछे व्यावसायिक हित हैं. उधर, बैंगलुरु में शिव सेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान का झंडा फूंका.

‘‘इतना ही नहीं, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच खेलने के फैसले पर सवाल उठाया और भाजपा से पूछा कि क्या मैच से कमाया गया पैसा पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए 26 नागरिकों की जान से ज्यादा कीमती है?

‘‘यहां बात सिर्फ विपक्ष की नहीं है, बल्कि भारतीय फिल्म और टैलीविजन निर्देशक संघ के अध्यक्ष अशोक पंडित ने भी मैच का विरोध करते हुए इसे देश के लिए काला दिन बताया और कहा कि क्रिकेटरों को शर्म आनी चाहिए, पैसा ही सबकुछ नहीं है.’’

‘‘पर हमें इस के दूसरे पहलू पर भी गौर करना चाहिए…’’ विजय ने कहा, ‘‘इस मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने कहा कि दुनियाभर में खेल का अपना एक अनुशासन होता है और कोरम होता है. ये मैच पाकिस्तान में नहीं, बल्कि दुबई में हो रहे हैं.

‘‘पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में ‘आपरेशन सिंदूर’ चलाया गया, जो बड़ा काम था. इस की चारों ओर तारीफ हुई है. आज भी हम ने दुश्मनों को चेतावनी दी हुई है कि नापाक हरकत करने पर कड़ा जवाब दिया जाएगा.

‘‘पाकिस्तान से दुश्मनी स्थायी बनाए रखनी है, ऐसा नहीं है. हां, हमारी कुछ शर्तें हैं. पाकिस्तान को आतंकवाद को खत्म करना होगा और गुलाम जम्मूकश्मीर को वापस भारत को देना होगा. पाकिस्तान ये शर्तें माने तो अच्छे संबंध बनाने में कोई अड़चन नहीं है.

‘‘इतना ही नहीं, शिव सेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पर पलटवार करते हुए महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा था कि कुछ लोग देश के प्रति नकली देशभक्ति और अवसरवादी प्रेम का दिखावा करते हैं. सशस्त्र बल और प्रधानमंत्री मोदी सिंदूर की देखभाल के लिए हैं.’’

अनामिका बोली, ‘‘पर तुम पहलगाम हमले के पीडि़तों का दर्द भूल रहे हो. पीडि़तों के परिवार के सदस्यों ने मैच के लिए सरकार की आलोचना की. हमले में अपने पिता और भाई को खोने वाले सावन परमार ने इस मैच पर अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए कहा कि ‘आपरेशन सिंदूर’ अब बेकार लगता है. पाकिस्तान से किसी भी तरह का संबंध नहीं रहना चाहिए. अगर आप मैच खेलना चाहते हैं, तो मेरे 16 साल के भाई को वापस ले आइए.

‘‘उन की मां किरण यतीश परमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल किया कि अगर ‘आपरेशन सिंदूर’ अभी पूरा नहीं हुआ है, तो यह मैच क्यों कराया जा रहा है? पीडि़त परिवारों के जख्म अभी भरे नहीं हैं.

‘‘हमले के पीडि़त संतोष जगदाले की बेटी असावरी जगदाले ने कहा कि यह बहुत शर्मनाक है. पहलगाम की घटना को अभी 6 महीने भी नहीं हुए हैं. उस के बाद ‘आपरेशन सिंदूर’ हुआ था. मुझे बुरा लगता है कि इतना कुछ होने के बावजूद बीसीसीआई को मैच के आयोजन में कोई शर्म नहीं है.

‘‘उन्होंने क्रिकेटरों पर भी सवाल उठाए और कहा कि उन्हें इस आतंकी हमले में जान गंवाने वालों की कोई परवाह नहीं है.

‘‘कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने तंज कसते हुए कहा कि जब खून और पानी एकसाथ नहीं बह सकते, तो एशिया कप में भारतपाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच कैसे खेल सकता है?

‘‘है कोई जवाब इस का तुम्हारे पास?’’ अनामिका ने तिलमिलाते हुए कहा, ‘‘मोदी सरकार ने मजाक बना कर रख दिया है देशभक्ति को.’’

यह सुन कर विजय का भी पारा हाई हो गया और वह बोला, ‘‘पर भारत ने पाकिस्तान को हरा कर करारा जवाब तो दिया न… हमारे कप्तान सूर्यकुमार यादव की अगुआई में टीम इंडिया ने पाकिस्तान को नानी याद दिला दी. छक्का मार कर 7 विकेट से मैच जिता दिया.

‘‘तुम शायद भूल गई हो कि भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान सूर्यकुमार यादव जब दुबई इंटरनैशनल क्रिकेट स्टेडियम में वे टौस के लिए मैदान पर आए तब उन्होंने पाकिस्तान के कप्तान सलमान आगा को उस की औकात याद दिला दी और पारंपरिक तरीके से हाथ मिलाने से इनकार कर दिया.

‘‘मैच खत्म होने के बाद भारतीय टीम के किसी भी खिलाड़ी ने पाकिस्तानी टीम के साथ हाथ नहीं मिलाया था. पोस्ट मैच प्रैजेंटेशन सैरेमनी में कप्तान सूर्यकुमार यादव ने जीत भारतीय सेना को समर्पित कर दिया.

‘‘मैच के बाद हुई मैच कौन्फ्रैंस में सूर्यकुमार यादव ने साफ किया कि हम सरकार और बीसीसीआई के साथ पूरी तरह से एकजुट थे. हम यहां सिर्फ मैच खेलने आए थे और हम ने सही जवाब दिया.

‘‘कुछ चीजें खेल भावना से भी ऊपर होती हैं. हम पहलगाम आतंकी हमले के सभी पीडि़तों और उन के परिवारों के साथ खड़े हैं और अपनी एकजुटता जाहिर करते हैं.’’

‘‘यह सही है. मैच खेल लो, पर हाथ मत मिलाओ. जब मैच हो ही गया था, तो हाथ मिला लेने में क्या घिस जाता?’’ अनामिका ने सवाल किया.

‘‘यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं है. पाकिस्तानी बेकार में हल्ला मचा रहे थे कि यूएई के साथ अगला मैच नहीं खेलेंगे, टूर्नामैंट बीच में छोड़ देंगे, पर ऐसा करते तो वे ही नुकसान में रहते. अकेले इस एशिया कप से पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को तकरीबन 140 करोड़ रुपए की कमाई होने वाली थी. ऐसे में अगर पाकिस्तान टूर्नामैंट से हटता है तो उस के लिए यह बड़ा ?ाटका साबित हो सकता है.

‘‘वैसे भी इंटरनैशनल क्रिकेट काउंसिल का ऐसा कोई नियम नहीं है कि मैच पूरा होने के बाद दोनों टीमों के खिलाडि़यों का हाथ मिलाना जरूरी है. यह सिर्फ एक परंपरा है और खेल भावना की निशानी है,’’ विजय ने समझाया.

‘‘जो भी हो, पर पहलगाम पीडि़तों के नजरिए यह मैच खेलने की नौटंकी नहीं होनी चाहिए थी. अगर पाकिस्तान हमारा दुश्मन देश है और अभी दोनों देशों के बीच हालात सही नहीं हैं, तो केंद्र सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए थे. दुबई में इस मैच के दौरान स्टेडियम का हाउसफुल न होना इस बात का सुबूत है कि आम जनता भी अभी पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच होने को ले कर खफा दिख रही थी.

‘‘भले ही 14 सितंबर का मैच भारत ने आसानी से जीत लिया था, पर कूटनीति में भारत सरकार नाकाम दिखी,’’ अनामिका ने इतना कहा और ड्राइंगरूम से उठ कर किचन में चली गई. विजय हैरान सा उसे देखता रह गया. News Story

Hindi Funny Story: कुत्ता कह लें, पर आवारा नहीं

Hindi Funny Story, लेखक – मुकेश विग

कुत्तों के मुखिया ने सभी कुत्तों को शाम को एक आपात बैठक में मैदान में पहुंचने को कहा. शाम के समय बड़ी तादाद में बहुत सारे कुत्ते पूंछ हिलाते हुए मैदान में पहुंचने लगे.

कुछ देर बाद एक कुत्ता कहने लगा, ‘‘दोस्तो, क्या आप जानते हैं कि हमें सड़कों से हटाने की तैयारियां चल रही हैं? हमारा कुसूर क्या है? क्या हम इस देश के नागरिक नहीं हैं? आदमी में और हम में सिर्फ पूंछ का ही तो फर्क है. वे बोलते हैं, तो हम भौंकते हैं.

‘‘हमें आवारा भी कहा जा रहा है, जिस से दिल को बड़ी चोट पहुंचती है. पर हम तो गलियों के राजा हैं, आवारा नहीं. हमें देख कर तो बड़ेबड़े चोर भी भाग जाते हैं.’’

दूसरा कुत्ता बोला, ‘‘इस ‘आवारा’ शब्द को सुन कर खुदकुशी करने का मन करता है, लेकिन हमें तो सुसाइड करना भी नहीं आता. हमारे ही कुछ साथी बड़ेबड़े घरों में शान से रहते हैं, खाते हैं, बिस्तर पर सोते हैं, महंगी गाडि़यों में घूमते हैं. क्या वे भी आवारा हैं?

‘‘2-4 कुत्तों की वजह से हमारी पूरी कौम को बदनाम करना सही नहीं. हम कोई नशा नहीं करते, सिर्फ हड्डी का चसका है.

‘‘पुलिस में भी कई हमारे साथी ट्रेनिंग ले कर चोरों और अपराधियों को पकड़वा रहे हैं. हमारे एहसानों को भी भुला दिया गया है. कोई अगर छेड़खानी करे तो उसे जरूर हम काट लेते हैं, फिर बिना वजह किसी को भी क्यों काटेंगे?

‘‘कई फिल्मों में भी हमारे साथियों ने अच्छा काम किया है. धर्मराज युधिष्ठर ने भी एक कुत्ते को ही इतनी इज्जत और प्यार दिया था, फिर यह अचानक हमें बेदखल व बेघर क्यों किया जा रहा है? हमें मिलवार भौंकते हुए इस के खिलाफ हर हाल में आवाज उठानी होगी.

‘‘अपने हक के लिए लड़ना होगा, लेकिन यह सब शांत तरीके से करना होगा, तभी हम सब इस संकट से निकल सकते हैं.’’

सभी कुत्ते पूंछ हिला कर उस कुत्ते का समर्थन कर रहे थे.

एक कुत्ता बोला, ‘‘भैरवजी भी कुत्ते के साथ ही चलते हैं. जापान में हमारे एक साथी कुत्ते की मूर्ति प्लेटफार्म पर लगाई गई है. हमारे 2 साथी अंतरिक्ष में भी जा चुके हैं फिर हम आवारा कैसे हो गए?’’ इतना कहतेकहते वह कुत्ता भावुक हो गया, तो 2 कुत्ते उस का मुंह चाटने लगे.

एक कुत्ता बोला, ‘‘सुना है कि हमें हटाने वाले कानून में कुछ सुधार किया गया है. हमें फर्स्ट एड दे कर वापस हमारे ठिकाने पर छोड़ दिया जाएगा.

‘‘लेकिन दोस्तो, टीका तो लगवाना पड़ेगा. डरें मत. पर जिन का चालचलन सही नहीं, जो खतरनाक लगते हैं, वे अब हमारे साथ नहीं रह पाएंगे. थोड़ी जुदाई तो सहन करनी पड़ेगी.’’

तभी एक शरारती कुत्ते ने यह गीत बजा दिया, ‘तेरी गलियों में न रखेंगे कदम आज के बाद…’ तो सभी कुत्ते हंसने लगे.

तभी अचानक एक कुत्ता हांफता हुआ वहां पहुंचा, जिस ने एक अखबार पकड़ा हुआ था.

प्रधान कुत्ता उसे देख कर बोला, ‘‘यह सब क्या है? तुम क्या खबर लाए हो?’’

वह कुत्ता बोला, ‘‘सरदार, हमारे लिए एक बड़ी खुशखबरी है. अभी हमारा मामला अमल में आने में कुछ समय लेगा, क्योंकि कई लोग, नेता और हीरो भी हमारे समर्थन में आ रहे हैं. वे इस फैसले को गलत बता रहे हैं. यही खुशखबरी देने मैं यहां दौड़ादौड़ा आ रहा हूं.’’

सभी कुत्ते अखबार देखने लगे. कुछ कुत्ते तो अखबार के पहले पन्ने पर छपी कुत्ते का फोटो देख कर ही मुसकरा रहे थे कि चलो मुफ्त में फोटो तो छप गया.

कुत्तों का सरदार बोला, ‘‘हमारा समर्थन करने वालों का हम धन्यवाद करते हैं. आज लग रहा है कि हम अकेले नहीं हैं.

‘‘कुछ लोग हमें सड़कों और गलियों से भगाना चाहते हैं, तो कुछ लोग हमारे पक्ष में खड़े हैं. समझ नहीं आ रहा हम इन का धन्यवाद कैसे करें, जो मुश्किल घड़ी में हमारा पूरा साथ दे रहे हैं.

‘‘इन कुत्तों के सामने मत नाचना… फिल्म ‘शोले’ के इस डायलौग पर भी हमें गहरा दुख हुआ था, जबकि हमारी वफादारी की तो मिसाल भी दी जाती है. हम नाली का पानी पी लेते हैं, कूड़े से खाना ढूंढ़ कर खा लेते हैं, लेकिन कभी भी शिकवा नहीं करते.

‘‘आज हमारा मामला सुर्खियों में है. जो शैल्टर होम में जाना चाहते हैं, उन्हें वहां आप भेज दें, लेकिन जो सड़कों पर ही खुश हैं, उन्हें वहीं पर रहने दें. उन पर कोई जोरजबरदस्ती न करें.

‘‘अब सभी दोस्त खड़े हो कर अपनीअपनी पूंछ उठा कर जोर से भौंक कर हमारा समर्थन करने वालों का धन्यवाद करेंगे और इस के बाद अपनीअपनी गली और सड़क पर लौट जाएंगे.’’ Hindi Funny Story

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