Family Story in Hindi: चंपा को देह धंधा करने के आरोप में जेल हो गई. वह रंगे हाथ पकड़ी गई थी. वह जेल की सलाखों में उदास बैठी हुई थी. चंपा के साथ एक अधेड़ औरत भी बैठी हुई थी. थोड़ी देर पहले पुलिस उसे भी इस बैरक में डाल गई थी. चंपा जिस होटल में देह धंधा करती थी, उसी होटल में पुलिस ने छापा मारा था और उसे रंगे हाथ पकड़ लिया था. आदमी तो भाग गया था, मगर पुलिस वाला उसे दबोचते हुए बोला था, ‘चल थाने.’ ‘नहीं पुलिस बाबू, मुझे माफ कर दो…’ वह हाथ जोड़ते हुए बोली थी, ‘अब नहीं करूंगी यह धंधा.’ ‘वह आदमी कौन था?’ पुलिस वाला उसी अकड़ से बोला था. ‘मुझे नहीं मालूम कि वह कौन था?’ वह फिर हाथ जोड़ते हुए बोली थी. ‘झूठ बोलती है. चल थाने, सारा सच उगलवा लूंगा.’ ‘मुझे छोड़ दीजिए.’‘हां, छोड़ देंगे. लेकिन तू ने उस ग्राहक से कितने पैसे लिए हैं?’ ‘कुछ भी नहीं दे कर गया.’‘झठ कब से बोलने लगी? चल थाने?’ ‘छोड़ दीजिए, कहा न कि अब कभी नहीं करूंगी यह धंधा.’

‘करेगी… जरूर करेगी. अगर करना ही है, तो लाइसैंस ले कर कोठे पर बैठ. फिर हम तुझ से कुछ नहीं कहेंगे…’ हवलदार थोड़ा नरम पड़ते हुए बोला था, ‘तुझे छोड़ सकता हूं, मगर अंटी में जितने पैसे हैं, निकाल कर मुझे दे दे.’

‘साहब, आज तो मेरी अंटी में कुछ भी नहीं है,’ वह बोली थी.

‘ठीक है, तब तो एक ही उपाय है… जेल,’ फिर वह पुलिस वाला उसे पकड़ कर थाने ले गया था.

चंपा दीवार के सहारे चुपचाप बैठी हुई थी. वह अधेड़ औरत न जाने कब से उसे घूर रही थी. आखिरकार वह अधेड़ औरत बोली, ‘‘ऐ लड़की, तू कौन है?’’

तब चंपा ने अपना चेहरा ऊपर कर उस अधेड़ औरत की तरफ देखा, मगर जवाब कुछ नहीं दिया.

वह अधेड़ औरत जरा नाराजगी से बोली, ‘‘सुना नहीं? बहरी है क्या?’’

‘‘हां, पूछो?’’ चंपा ने कहा.

‘‘क्या अपराध किया है तू ने?’’

‘‘मैं ने वही अपराध किया है, जो तकरीबन हर औरत करती है?’’

‘‘क्या मतलब है तेरा? गोलमोल बात क्यों कर रही है, सीधेसीधे कह न,’’ वह अधेड़ औरत गुस्से से बोली.

‘‘मुझे देह धंधा करने के आरोप में पकड़ा गया है.’’

‘‘शक तो मुझे पहले से ही था. अरे, जिस पुलिस वाले ने तुझे पकड़ा है, उस के मुंह पर नोट फेंक देती.’’

‘‘अगर मेरे पास पैसे होते, तो उस के मुंह पर मैं तभी फेंक देती.’’

‘‘तुम ने यह धंधा क्यों अपनाया?’’

‘‘क्या करोगी जान कर?’’

‘‘मत बता, मगर मैं सब जानती हूं.’’

‘‘क्या जानती हैं आप?’’

‘‘औरत मजबूरी में ही यह धंधा अपनाती है.’’

‘‘नहीं, गलत है. मैं मजबूरी में वेश्या नहीं बनी, बल्कि बनाई गई हूं.’’

‘‘कैसे? अपनी कहानी सुना.’’

‘‘हां सुना दूंगी, मगर आप इस उम्र में जेल में क्यों आई हो?’’

‘‘मेरी बात छोड़, मेरा तो जेल ही घर है,’’ उस अधेड़ औरत ने कहा.

‘‘आप आदतन अपराधी हैं?’’

‘‘यही समझ ले…’’ उस अधेड़ औरत ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘फिर भी सुनना चाहती है तो सुन. मैं अफीम की तस्करी करती थी. अब सुना तू अपनी कहानी.’’

चंपा की कहानी कुछ इस तरह थी:

चंपा के पिता मजदूर थे. उन का नाम मांगीलाल था. उन्होंने रुक्मिणी नाम की औरत से शादी की थी.

शादी के 2 साल गुजर गए थे. एक दिन पिता मांगीलाल को पता चला कि रुक्मिणी मां बनने वाली है. उन की खुशियों का ठिकाना न रहा.

रुक्मिणी को बांहों में भरते हुए वे बोले थे, ‘पहला बच्चा लड़का होना चाहिए…’

‘यह मेरे हाथ में है क्या?’ रुक्मिणी उन्हें झिड़कते हुए बोली थी.

9 महीने बाद जब चंपा पैदा हुई, तो 4 दिन बाद उस की मां मर गई. पिता के ऊपर सारी जवाबदारी आ पड़ी. रिश्तेदार कहने लगे कि पैदा होते ही यह लड़की मां को खा गई. तब मौसी ने उसे पाला.

मां के मरने पर पिता टूट गए थे. वे उदासउदास से रहने लगे थे. तब अपना गम भुलाने के लिए वे शराब पीने लगे थे. रिश्तेदारों और उन के बड़े भाई ने खूब कहा कि दोबारा शादी कर लो, मगर वे तैयार नहीं हुए थे.

धीरेधीरे चंपा मौसी की गोद में बड़ी होती गई. जब वह 5 साल की हो गई, तब उसे स्कूल में भरती करा दिया गया. पिता को दोबारा शादी के प्रस्ताव आने लगे. चारों तरफ से दबाव भी बनने लगा.

एक दिन पिता के बड़े भाई भवानीराम और उन की पत्नी तुलसाबाई आ धमके. आते ही भवानीराम बोले, ‘ऐसे कैसे काम चलेगा मांगीलाल?’

‘क्या कह रहे हैं भैया?’ मांगीलाल ने पूछा.

‘सारी जिंदगी यों ही बैठे रहोगे?’ भवानीराम ने दबाव डालते हुए कहा.

‘आप कहना क्या चाहते हो भैया?’

‘अरे देवरजी…’ तुलसाबाई मोरचा संभालते हुए बोली, ‘देवरानी को गुजरे 6-7 साल हो गए हैं. अब उस की याद में कब तक बैठे रहोगे? चंपा भी अब बड़ी हो रही है.’

‘भाभी, मेरा मन नहीं है शादी करने का,’ मांगीलाल ने साफ इनकार कर दिया था.

‘मैं पूछती हूं कि आखिर मन क्यों नहीं है?’ दबाव डालते हुए तुलसाबाई बोली, ‘यों देवरानी की याद करने से वह वापस तो नहीं आ जाएगी. फिर शादी कर लोगे, तो देवरानी के गम को भूल जाओगे.’

‘नहीं भाभी, मैं ने कहा न कि मुझे शादी नहीं करनी है.’

‘क्यों नहीं करनी है? हम तेरी शादी के लिए आए हैं. और हां, तेरी हां सुने बगैर हम जाएंगे नहीं,’ भैया भवानीराम ने हक से कहा, ‘हम ने तेरे लिए लड़की भी देख ली है. लड़की इतनी अच्छी है कि तू रुक्मिणी को भूल जाएगा.’

‘नहीं भैया, मैं चंपा के लिए सौतेली मां नहीं लाऊंगा,’ एक बार फिर इनकार करते हुए मांगीलाल बोला.

‘कैसी बेवकूफों जैसी बातें कर रहा है. जिन की औरत भरी जवानी में ही चली जाती है, तब वे दोबारा शादी नहीं करते हैं क्या?’

‘अरे देवरजी, यह क्यों भूल रहे हो कि चंपा को मां मिलेगी. कब तक मौसी उस की देखरेख करती रहेगी? इस बात को दिमाग से निकाल फेंको कि हर मां सौतेली होती है. जिस के साथ हम तुम्हारी शादी कर रहे हैं, वह ऐसी नहीं है. चंपा को वह अपनी औलाद जैसा ही प्यार देगी?’

‘भाभी, आप लोग क्यों मेरे पीछे पड़े हुए हो?’

‘बिना औरत के आदमी का घर नहीं बसता है और हम तेरा घर बसाना चाहते हैं. लड़की हम ने देख ली है. एक बात कान खोल कर सुन ले, हम तेरी शादी करने के लिए आए हैं. इनकार तो तुम करोगे नहीं. बस, तैयार हो जाओ,’ कह कर भवानीराम ने बिना कुछ सुने फैसला सुना दिया.

मांगीलाल को भी हार माननी पड़ी. भैयाभाभी ने जो लड़की पसंद की थी, उस का नाम कलावती था. मान न मान मैं तेरा मेहमान की तरह कलावती के साथ उस की शादी कर दी गई.

जब तक कलावती की पहली औलाद न हुई, तब तक उस ने चंपा को यह एहसास नहीं होने दिया कि वह उस की सौतेली मां है. मगर बच्चा होने के बाद वह चंपा को बातबात पर डांटने लगी. उस का स्कूल छुड़वा दिया गया. वह उस से घर का सारा काम लेने लगी.

पिता भी नई मां पर ज्यादा ध्यान देने लगे. इस तरह नई मां ने पिता को अपने कब्जे में कर लिया. धीरेधीरे चंपा बड़ी होने लगी. लड़के उसे छेड़ने लगे.

कलावती भी उसे देख कर कहने लगी, ‘लंबी और जवान हो गई है. कब तक हमारे मुफ्त के टुकड़े तोड़ती रहेगी. कोई कामधंधा कर. कामधंधा नहीं मिले, तो किसी कोठे पर जा कर बैठ जा. तेरी जवानी तुझे कमाई देगी.’

चंपा के पिता जब शादी की बात चलाते, तब सौतेली मां कहती, ‘कहां शादी के चक्कर में पड़ते हो. चंपा अब बड़ी हो गई है. साथ ही, जवान भी. रूप भी ऐसा निखरा है कि अगर इसे किसी कोठे पर बिठा दो, तो खूब कमाई देगी.’

तब पिता विरोध करते हुए कहते, ‘जबान से ऐसी गंदी बात मत निकालना. क्या वह तुम्हारी बेटी नहीं है?’

‘‘मेरी पेटजाई नहीं है वह. आखिर है तो सौतेली ही,’ कलावती उसी तरह जवाब देती.

पिता को गुस्सा आता, मगर वह उन्हें भी खरीखोटी सुना कर उन की जबान बंद कर देती थी. इस गम में पिता ज्यादा शराब पीने लगे. रातदिन की चकचक से तंग आ कर चंपा ने कोई काम करने की ठान ली. मगर सौतेली मां तो उस से देह धंधा करवाना चाहती थी.

आखिर में चंपा ने भी अपनी सौतेली मां की बात मान ली. जिस होटल में वह धंधा करती थी, वहीं सौतेली मां ग्राहक भेजने लगी. ग्राहक से सारे पैसे सौतेली मां झटक लेती थी.

चंपा ने उस अधेड़ औरत के सामने अपना दर्द उगल दिया.

थोड़ी देर के सन्नाटे के बाद वह अधेड़ औरत बोली, ‘‘तेरी कहानी बड़ी दर्दनाक है. आखिर सौतेली मां ने अपना सौतेलापन दिखा ही दिया.’’

चंपा कुछ नहीं बोली.

‘‘अब क्या इरादा है? तेरी सौतेली मां तुझे छुड़ाने आएगी?’’ उस अधेड़ औरत ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं तो अब जेल में ही रहना चाहती हूं. उस सौतेली मां की सूरत भी नहीं देखना चाहती हूं.’’

‘‘तू भले ही मत देख, मगर तेरी सौतेली मां तुझ से पैसा कमाएगी, इसलिए तुझे छुड़ाने जरूर आएगी,’’ अपना अनुभव बताते हुए वह अधेड़ औरत बोली.

‘‘मगर, अब मैं घर छोड़ कर भाग जाऊंगी?’’

‘‘भाग कर जाएगी कहां? यह दुनिया बहुत बड़ी है. यह मर्द जात तुझे अकेली देख कर नोच लेगी. मैं कहूं, तो तू किसी अच्छे लड़के से शादी कर ले.’’

‘‘कौन करेगा मुझ से शादी? बस्ती के सारे बिगड़े लड़के मुझ से शादी नहीं मेरा जिस्म चाहते हैं. वैसे भी मैं बदनाम हो गई हूं. अब कौन करेगा शादी?’’

‘‘हां, ठीक कहती हो…’’ कह कर वह अधेड़ औरत खामोश हो गई. कुछ पल सोच कर वह अधेड़ औरत बोली, ‘‘हम औरतों के साथ यही परेशानी है. देख न मुझे भी मेरी जवानी का फायदा उठा कर तस्करी का काम दिया, ताकि औरत देख कर कोई शक नहीं करे. मगर जब पैसे मिलने लगे, तब धंधा मुझे रास आ गया. इस का नतीजा देख रही हो, आज मैं जेल में हूं.’’

फिर दोनों के बीच काफी देर तक सन्नाटा पसरा रहा. तभी एक पुलिस वाले ने ताला खोलते हुए कहा, ‘‘बाहर निकल. तेरी मां ने जमानत दे दी है.’’

चंपा ने देखा कि उस की मां कलावती खड़ी थी. वह गुस्से में बोली, ‘‘तू चुपचाप धंधा करती रही और मुझे बदनाम कर दिया. सारी बस्ती वाले मुझ पर थूक रहे हैं. आखिर मैं तेरी सौतेली मां हूं न, बदनाम तो होना ही है. वैसे भी सौतेली मां तो बदनाम ही रहती है.

‘‘चल, निकल बाहर. अब कभी धंधा किया न, तो तेरी खाल खींच लूंगी. मां हूं तेरी, भले ही सौतेली सही. मैं ने जमानत दे दी है.’’

चंपा कुछ नहीं बोली. वह अपनी सौतेली मां के साथ हो ली. वह जानती थी कि यह केवल लोकलाज का दिखावा है. अब यह कैसी साहूकार बन रही है. उलटा चोर कोतवाल को डांट कर.

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