Story In Hindi: इस समय सुबह के साढ़े 7 बज रहे थे. मौसम ठीकठाक था. ज्यादा चुभती धूप नहीं थी. बच्चे स्कूल जा रहे थे. सफाई मुलाजिम सड़क साफ कर रहे थे. दूध वाले अपने ग्राहक के घर पर दस्तक दे कर ‘दूध ले लो, दूध आ गया’ की आवाज लगा कर उन को बाहर बुला रहे थे. कुलमिला कर सभी बिजी थे.
इधर मनु का ठेला भी तकरीबन तैयार था. अमरूद, केला, नाशपाती, पपीता, संतरा और सेब अच्छी तरह से लगा दिए गए थे.
मनु ने अपनी बहन बाली को चूम कर उस का धन्यवाद किया कि उस ने कितने करीने से सारा ठेला दुलहन के जैसे सजा दिया था.
दाएं हाथ से धीरेधीरे ठेलते हुआ मनु चल दिया. अपनी गली से आगे बढ़ कर दूसरी गली पर आया ही था कि ‘ओ हीरो, एक गुच्छा रख दे...’ उमा की आवाज आ गई.
उमा की बहन रमा को पीलिया था. सुबह उमा मनु से केले का गुच्छा रखवा लेती थी. रमा को केला, गन्ने का रस और छिलके वाली मूंग की दाल का आहार देना तय था.
उमा ने 10-10 के 3 नोट रख दिए मनु के हाथ में. मनु ने रुपए लिए, माथे से लगा कर जेब में रख लिए और हंस कर उसे धन्यवाद भी कहा और 24 घंटे के अंतराल में दोनों का आंखों ही आंखों में संवाद भी हो गया.
दोनों ने पलकें झपका कर एकदूसरे को अपनी कुशल दे दी थी.
उमा मनु की बचपन की साथी थी. उम्र में उस से 4 साल बड़ी थी, पर उस से कुछ नहीं होता. मनु और उस की खूब गहरी छनती थी. दोनों त्योहार पर रंगोली बनाते थे. गरबा रास में 9 दिन साथसाथ जाया करते थे.
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