प्रतिबद्धता- भाग 3: क्या था पीयूष की अनजाने में हुई गलती का राज?

Writer- VInita Rahurikar

मां का स्नेह भरा स्पर्श पाते ही पलक के अंतर्मन में जमा दुख पिघल कर आंखों के रास्ते बहने लगा. अरुणाजी ने उसे जी भर कर रोने दिया. वे जानती थीं कि रोने से जब मन में जमा दुख हलका हो जाएगा, तभी पलक कुछ बता पाएगी. वे चुपचाप उस की पीठ और केशों पर हाथ फेरती रहीं. जब पलक का मन हलका हुआ, तब उस ने अपनी व्यथा बताई. पीयूष की गलती कांटा बन कर उस के दिल में चुभ रही थी और अब वह यह दर्द बरदाश्त नहीं कर पा रही थी.

अरुणाजी पलक के सिर पर हाथ फेरती स्तब्ध सी बैठी रहीं. वे तो सोच रही थीं कि नई जगह में आपस में अभी पूरी तरह से सामंजस्य स्थापित नहीं हुआ है, तो छोटीमोटी तकरार हुई होगी, जिस के कारण दोनों दुखी होंगे. कुछ दिन में दोनों अपनेआप सामान्य हो जाएंगे. यही सोच कर आज तक उन्होंने पलक से जोर दे कर कुछ नहीं पूछा था. लेकिन यहां मामला थोड़ा पेचीदा है. पलक के दिल में लगा कांटा निकालना मुश्किल होगा. समय के साथसाथ जब रिश्ते परिपक्व हो जाते हैं, तो उन में प्रगाढ़ता आ जाती है. दोनों के बीच विश्वास की नींव मजबूत हो जाती है, तब अतीत की गलतियों की आंधी रिश्ते को, विश्वास को डिगा नहीं पाती. लेकिन यहां रिश्ता अभी उतना परिपक्व नहीं हो पाया था. पीयूष ने अपने रिश्ते और पलक पर कुछ ज्यादा ही भरोसा कर लिया था. उसे थोड़ा धीरज रखना चाहिए था.

अरुणाजी समझ रही थीं कि इस समय पलक को कुछ भी समझाना व्यर्थ है. पलक का घाव अभी ताजा है. अपने दर्द में डूबी वह अभी अरुणाजी की बात समझ नहीं पाएगी. इसलिए उन्होंने 2 दिन सब्र किया.

मां से अपनी व्यथा कह कर पलक को अब काफी हलका लग रहा था. 2 दिन बाद वह रात में गैलरी में खड़ी थी, तब अरुणाजी उस के पास जा कर खड़ी हुईं.

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‘‘तुझे दुख होना स्वाभाविक है पलक, क्योंकि तू पीयूष से प्यार करती है और उसे केवल अपने से जोड़ कर देखती है. इसलिए सच सुन कर तू हिल गई और तेरा भरोसा टूट गया.

‘‘पीयूष ने जो कुछ किया वह भावनाओं और उत्तेजना के क्षणिक आवेग में बह कर किया. उस संबंध का कोई अस्तित्व नहीं है. बरसात में जब पानी अधिक बरसता है तो कई नाले बन जाते हैं, जो नदी से भी अधिक आवेग के साथ बहते हैं, उफनते हैं, लेकिन बरसात खत्म होते ही वे सूख जाते हैं. उन का अस्तित्व समाप्त हो जाता है. परंतु नदी शाश्वत होती है. वह बरसात के पहले भी होती है और बरसात खत्म होने के बाद भी उस का अस्तित्व कायम रहता है. वासना और सच्चे प्यार में यही अंतर है.

‘‘वासना बरसाती नाले के समान होती है, जो भावनाओं के ज्वार में उफनने लगती है और ज्वार के ठंडा होते ही उस का चिह्न भी जीवन में कहीं बाकी नहीं रहता. लेकिन सच्चा प्यार नदी की तरह शाश्वत होता है वह कभी नहीं सूखता. सूखे की प्रतिकूल परिस्थिति में भी जिस प्रकार नदी अपनेआप को सूखने नहीं देती, मिटने नहीं देती, ठीक उसी प्रकार सच्चा प्यार भी जीवन से मिटता नहीं है. जीवन भर उस की धारा दिलों में बहती रहती है. तेरे प्रति पीयूष का प्यार उसी नदी के समान है,’’ अरुणाजी ने समझाया.

‘‘लेकिन मां मैं कैसे…’’ पलक कह नहीं पाई कि पीयूष के जिन हाथों ने कभी किसी और लड़की को छुआ है, अब पलक उन्हें अपने शरीर पर कैसे सहे? लेकिन अरुणाजी एक मां ही नहीं एक परिपक्व और सुलझी हुई स्त्री भी थीं. वे पलक के दुख के हर पहलू को समझ रही थीं.

‘‘प्रेम एवं प्रतिबद्धता एकदूसरे से जुड़े हुए जरूर हैं, पर किसी संबंध में पड़ने के पहले उस व्यक्ति का किसी के साथ क्या रिश्ता रहा है, कोई माने नहीं रखता. यदि कोई व्यक्ति पूर्णरूप से किसी के प्रति प्रतिबद्ध हो गया हो, तो उस के लिए पिछले सारे अनुभव शून्य के समान होते हैं. अब पीयूष पूरी तरह से तेरे प्रति समर्पित है, इसलिए बरसों पहले उस ने एक रात क्या गलती की थी, यह बात आज कोई माने नहीं रखती. माने रखती है यह बात कि तुझ से जुड़ने के बाद वह तेरे प्रति पूर्णरूप से प्रतिबद्ध रहे बस,’’ अरुणाजी ने समझाया तो पलक सोच में पड़ गई. सचमुच साल भर में उसे कभी नहीं लगा कि पीयूष के प्यार में कोई खोट या छल है. वह तो एकदम निर्मलनिश्छल झरने की तरह है.

‘‘पर मां उस का सच मेरी सहनशीलता से बाहर है. मेरी नजर में अचानक ही पीयूष की मूर्ति खंडित हो गई है. मैं प्रेम की टूटी हुई मूर्ति के साथ कैसे रहूं? पीयूष ने

मुझे धोखा दिया है,’’ पलक आंसू पोंछती हुई बोली.

‘‘उस के झूठ पर तुझे एतराज नहीं था. तब तू खुश थी. लेकिन उस की ईमानदारी

को तू धोखा कह रही है. अगर धोखा ही देना होता तो वह उम्र भर यह बात तुझ से

छिपा कर रखता. जरा सोच, वह तुझे हृदय की गहराइयों से प्यार करता है. तुझे पूरे सम्मान से रखता है. तुझे अपने जीवन के सारे अधिकार दे दिए हैं उस ने, पर आज तू एक तुच्छ बात के लिए उस के सारे अच्छे गुणों को नकार रही है.

‘‘जरा सोच, यदि उस ने जीवन में कोई गलती नहीं की होती, लेकिन तुझे प्यार करता, तेरी भावनाओं का सम्मान करता, तुझे तेरे अधिकार देता, तब तू ज्यादा खुश रहती या

अब ज्यादा खुश है? जीवन में अहम बात किसी की गलती नहीं, अहम बात है उस

का प्यार मिलना. पीयूष अपना एक कण अनजाने में कभी किसी को बांट चुका है,

इस के लिए तू उसे खंडित कह रही है.

एक कण के लिए पूरे को ठुकरा कर अपनी और पीयूष की जिंदगी बरबाद मत करो.

वह वर्तमान समय में पूरे समर्पण से बस तुझे ही चाहता है. एक छोटी सी घटना पर

उम्र भर के लिए किसी के प्यार और रिश्तों को तोड़ देना अक्लमंदी नहीं है,’’ अरुणाजी ने पलक के कंधे पर हाथ रख कर उसे समझाया.

पलक की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे. आंखों  के सामने पीयूष का साल भर का प्यार, उस का सामंजस्य, उस की निश्छलता तैर रही थी.

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उस से कोई गलती हो जाने पर वह कभी बुरा नहीं मानता था, उस की जिद पर कभी नाराज नहीं होता था. उस की छोटी से छोटी खुशी का भी कितना ध्यान रखता था. सचमुच मां ठीक कहती हैं. जीवन में बस किसी का सच्चा प्यार और प्रतिबद्धता ही महत्त्वपूर्ण है और कुछ नहीं. आज से वह भी पीयूष के प्रति पूर्णरूप से प्रतिबद्ध रहेगी.

‘‘तेरे चले जाने के बाद पीयूष ने खानापीना छोड़ दिया है. कल तेरे पिताजी उस से मिलने गए थे. वह वर्षों का बीमार लग रहा था. उस की वजह से तुझे जो दुख पहुंचा है उस का पश्चात्ताप है उसे. उसी की सजा दे रहा है वह अपनेआप को. तेरी पीड़ा का एहसास तुझ से भी अधिक उसे है. तेरा दर्द वह तुझ से ज्यादा महसूस कर रहा है. इसीलिए तड़प रहा है. अब भी कहेगी कि उस ने तुझे धोखा दिया है?’’ अरुणाजी ने पूछा तो पलक बिलख पड़ी.

‘‘मैं अभी इसी समय पीयूष के पास जाऊंगी मां, उस से माफी मांगूंगी.’’

‘‘कहीं जाने की जरूरत नहीं है. यहीं है पीयूष. मैं उसे भेजती हूं,’’ कह कर अरुणाजी चली गईं.

2 मिनट में ही पीयूष गैलरी में आ कर खड़ा हो गया. पलक कुछ कहना चाह रही थी पर गला रुंध गया. वह पीयूष के सीने से लग कर फफक पड़ी. उस के आंसुओं ने गलतियों के सारे चिह्न धो दिए. दोनों के दिलों और आंखों में सच्चे प्यार की निर्मल और शाश्वत नदी बह रही थी, एकदूसरे के प्रति अपनी पूरी प्रतिबद्धता के साथ.

पश्चाताप- भाग 2: क्या सास की मौत के बाद जेठानी के व्यवहार को सहन कर पाई कुसुम?

“ज्यादा मुंह न खुलवाओ देवरजी. खाने का खयाल रखा तो उस से ज्यादा पाया भी है. मां जो भी चीज मंगवाती थी, पहले कुसुम के हाथ में रख देती थी. कुसुम कभी पूरा गटक जाती तो कभी थोड़ाबहुत मेरे बच्चों को देती. फिर यह क्यों भूलते हो कि तुम्हारी बेटी प्रिया को मां ने ही पाला है. कुसुम कितने आराम से प्रिया को मां के पास छोड़ कर औफिस चली जाया करती थी जबकि मेरे समय में मां नौकरी करती थीं. अपने दोनों बेटों को मैं ने खुद पाला है. मां ने जरा भी मदद नहीं की थी मेरी.”

“पर दीदी आप के बच्चे जब छोटे थे तब यदि मां नौकरी करती थीं तो इस में मेरा क्या दोष? मेरी बच्ची को मां ने पाला, मैं मानती हूं. मगर ऐसा करने में मां को खुशी मिलती थी. बस इतनी सी बात है. इन बातों का जायदाद से क्या संबंध?”

“देख कुसुम, तू हमेशा बहुत चलाक बनती फिरती है. भोली सी सूरत के पीछे कितना शातिर दिमाग पाया है यह मैं भलीभांति जानती हूं.”

“चुप करो मधु. चलो मेरे साथ. इस तरह झगड़ने का कोई मतलब नहीं. चलो.”

बड़ा भाई बीवी को खींच कर ऊपर ले गया. उस के दोनों बेटे भी मां की इस हरकत पर हतप्रभ थे. वे भी चुपचाप अपनेअपने कमरों में जा कर पढ़ने लगे. कुसुम की आंखें डबडबा आईं. पति ने उसे सहारा दिया और अपने घर का दरवाजा बंद कर लिया. मधु की बातों ने उन दोनों को गहरा संताप दिया था. कुसुम अपनी जेठानी के व्यवहार से हतप्रभ थी.

कुछ दिन इसी तरह बीत गए. अब बड़ी बहू मधु ने कुसुम से बातचीत करनी बंद कर दी. वह केवल व्यंग किया करती. कुसुम कभी जवाब देती तो कभी खामोश रह जाती. तीनों बच्चे भी सहमेसहमे से रहते. दोनों परिवारों में तनाव बढ़ता ही गया. वक्त यों ही गुजरता रहा. जायदाद के बंटवारे का मसला अधर में लटका रहा.

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एक दिन मधु का छोटा बेटा ट्यूशन के बाद पहले की तरह अपनी चाची कुसुम के पास चला गया. कुसुम ने पकौड़ियां बनाई थीं. वह प्यार से बच्चे को चाय और पकौड़े खिलाने लगी. तब तक मधु औफिस से वापस लौटी तो बेटे को कुसुम के पास बैठा देख कर उस के बदन में आग लग गई.

आपे से बाहर होती हुई वह चिल्लाई,”खबरदार जो मेरे बच्चे को कुछ खिलाया. पता नहीं कैसा मंतर पढ़ती है. पहले मांजी को अपना शागिर्द बना लिया था. अब मेरे बच्चे के पीछे पड़ी हो…”

सुन कर कुमुद भी बौखला गई. वह गरज कर बोली,” दीदी, ऐसे बेतुके इलजाम तो मुझ पर लगाना मत. यदि मांजी मुझ से प्यार करती थीं तो इस का मतलब यह नहीं कि मैं ने कुछ खिला कर शागिर्द बना लिया था. वे मेरे व्यवहार पर मरती थीं. समझीं आप.”

“हांहां… छोटी सब समझती हूं. तू ने तो अपनी चासनी जैसी बोली और बलखाती अदाओं से मेरे पति को भी काबू में कर रखा है. एक शब्द नहीं सुनते तेरे विरुद्ध. तू ने बहुत अच्छी तरह उन को अपने जाल में फंसाया है.”

“दीदी, यह क्या कह रही हो तुम? मैं उन्हें भैया मानती हूं. इतनी गंदी सोच रखती हो मेरे लिए? ओह… मैं जिंदा क्यों हूं? ऐसा इलजाम कैसे लगा सकती हो तुम? कहते हुए कुसुम लङखड़ा कर गिरने लगी. उस का सिर किचन के स्लैब से टकराया और वह नीचे गिर कर बेहोश हो गई.

मधु का छोटा बेटा घबरा गया. जल्दी से उस ने पापा को फोन किया. कुसुम को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. डाक्टर ने उसे आईसीयू में ऐडमिट कर लिया. अच्छी तरह जांचपड़ताल करने के बाद डाक्टर ने बताया कि एक तो बीपी अचानक बढ़ जाने से दिमाग में खून का दबाव बढ़ गया, उस पर सिर में अंदरूनी चोटें भी आई हैं. इस वजह से कुसुम कोमा में चली गई है.

“पर अचानक कुसुम का बीपी हाई कैसे हो गया? उसे तो कभी ऐसी कोई शिकायत नहीं रही….” कुसुम के पति ने पूछा तो मधु ने सफाई दी,”क्या पता? वह तो मैं नीचे गोलू को लेने गई थी, तभी अचानक कुसुम गिर पड़ी.”

मधु के पति ने टेढ़ी नजरों से बीवी की तरफ देखा फिर डाक्टर से बात करने लगे. इधर कुसुम के पति के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. उसे समझ नहीं आ रहा था की बीवी की देखभाल करे या बिटिया की. कैसे संभलेंगे सारे काम? कैसे चलेगा अब घर? इधर कुसुम की तबीयत को ले कर चिंता तो थी ही.

तब देवर के करीब आती हुई मधु बोली,”भाई साहब, आप चिंता न करो. मैं हूं कुसुम के पास. जब तक कुसुम ठीक नहीं हो जाती मैं अस्पताल में ही हूं. कुसुम मेरी बहन जैसी है. मैं पूरा खयाल रखूंगी उस का.”

“जी भाभी जैसा आप कहें.”

देवर ने सहमति दे दी मगर जब पति ने सुना तो उस ने शक की नजरों से मधु की तरफ देखा. वह जानता था कि मधु के दिमाग में क्या चल रहा होगा. इधर मधु किसी भी हाल में कुसुम के पास ही रुकना चाहती थी. वह दिखाना चाहती थी कि उसे कुसुम की कितनी फिक्र है. कहीं न कहीं वह पति के आरोपों से बचना चाहती थी कि कुसुम की इस हालत की जिम्मेदार वह है. वह बारबार डाक्टर के पास जा कर कुसुम की हालत की तहकीकात करने लगी.

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अंत में पति और देवर मधु को छोड़ कर चले गए. मधु रातभर सो नहीं सकी. इस चिंता में नहीं कि कुसुम का क्या होगा बल्कि इस चिंता में कि कहीं उसे इस परिस्थिति के लिए जिम्मेदार न समझ लिया जाए. वैसे हौस्पिटल का माहौल भी उसे बेचैन कर रहा था.

अगले दिन कुसुम की हालत स्थिर देख कर उसे वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया. कुसुम के अलावा उस वार्ड में एक बुजुर्ग महिला थी जिसे दिल की बीमारी थी. महिला के पास उस का 18 साल का बेटा बैठा था. वार्ड में मौजूद महिला की तबियत बारबार बिगड़ रही थी. रात में इमरजैंसी वाले डाक्टर विजिट कर के गए थे. उस की हालत देख मधु सहम सी गई थी. अब उसे वाकई कुसुम की चिंता होने लगी थी.

2-3 दिन इसी तरह बीत गए. मधु कुसुम के पास ही रही. एक बार भी घर नहीं गई.

उस दिन रविवार था. मधु ने अपने बेटों से मिलने की इच्छा जाहिर की तो पति दोनों बेटों को उस के पास छोड़ गए. मधु ने प्यार से उन के माथे को सहलाया लाया और बोली,” सब ठीक तो चल रहा है बेटे? आप लोग रोज स्कूल तो जाते हो न? पापा कुछ बना कर देते हैं खाने को?”

‘हां मां, आप हमारी फिक्र मत करो. पापा हमें बहुत अच्छी तरह संभाल रहे हैं,” रूखे अंदाज में बड़े बेटे ने जवाब दिया तो मधु को थोड़ा अजीब सा लगा.

उसे लगा जैसे बच्चे उस के बगैर ठीक से रह नहीं पा रहे हैं और ऐसे में उस का मन बहलाने के लिए कह रहे हैं कि सब ठीक है.

मधु ने फिर से पुचकारते हुए कहा,”मेरे बच्चो, तुम्हारी चाची की तबीयत ठीक होते ही मैं घर आ जाऊंगी. अभी तो मेरे लिए चाची को देखना ज्यादा जरूरी है न. कितनी तकलीफ में है वह.”

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कोई सही रास्ता- भाग 2: स्वार्थी रज्जी क्या अपनी गृहस्थी संभाल पाई?

‘‘आप ने इसे कैसे पाला है? क्या जरा भी ईमानदारी नहीं रोपी इस में?’’

लगभग रोने जैसी हालत थी सुकेश की उस पल. मैं उसे समझाबुझा कर घर से बाहर ले गया था. उस का मन पढ़ना चाहता था, विचित्र मनोस्थिति हो गई थी.

‘‘मैं तो डिप्रैशन का शिकार होता जा रहा हूं, सोम. मैं समझ नहीं पा रहा हूं इस लड़की को. हंसताखेलता हमारा परिवार इस के आने से छिन्नभिन्न हो गया है. कैसी बातें सिखाई हैं आप ने इसे. आप इसे समझाबुझा कर जरा सी तो इंसानियत सिखाइए. आप इसे सुधारने की कोशिश कीजिए वरना ऐसा न हो कि एक दिन मैं इस की जान ले लूं या अपनी…’’

सांस मेरी भी तो घुटती रही है आज तक. मेरी बहन है रज्जी. जब अपने खून की वजह से मैं सदा हैरानपरेशान रहा हूं तो सुकेश तो अलग खून है. अलग परवरिश. उस के लिए तो रज्जी एक सजा के सिवा और क्या होगी. हर साल राखी बांध कर रज्जी बहन होने की रस्म अदा करती रही है मगर मैं आज तक समझ नहीं पाया कि जरूरत पड़ने पर मैं इस लड़की की कैसे रक्षा कर पाऊंगा और इस ने मेरे सुख की कितनी कामना की होगी.

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मेरी मां का वह मोह है जिस के चलते उन्हें रज्जी की बड़ी से बड़ी गलती भी कभी नजर नहीं आती. मेरे पिता मेरी मां को सही दिशा में लातेलाते हार गए और जिस पल उन्होंने अंतिम सांस ली थी उस पल मेरे कंधों पर इन दोनों की जिम्मेदारी डालतेडालते नजरों में एक असहाय भाव था, वही भाव जो सदा उन के होंठों पर भी रहा था कि पता नहीं कैसे तुम इन दोनों को सह पाओगे.

‘‘तू फिकर मत कर रज्जी, मैं मरी नहीं हूं अभी. सुकेश और उस के घर वालों को छठी का दूध न याद करा दिया तो मेरा नाम नहीं. रो मत बेटी.’’

स्तब्ध रह गया मैं. यह क्या कह रही हैं मां. रज्जी की भूलों पर परदा डाल कर सारा दोष सुकेश और उस के परिवार पर.

‘‘मेरी फूल जैसी बच्ची को रुला रहे हैं न वे लोग. उन की सात पुश्तों को न रुला दिया तो…’’

‘‘क्या करोगी तुम?’’ सहसा मैं ने सवाल किया.

चुप रह गई थीं मां. शायद इस धमकी के बाद उन्हें उम्मीद होगी कि मैं साथ चलने का आश्वासन दूंगा. मेरे सवाल की उन्हें आशा भी नहीं होगी.

‘‘और किस के पास जाओगी? क्या पुलिस में जा कर रिपोर्ट करोगी? क्या इलजाम लगाओगी सुकेश पर? यही कि वह अपनी पत्नी से ईमानदारी की आस रखता है. सच बोलने को कहता है और कहता है घर में राजनीति का खेल न खेले. रज्जी के सात खून भी माफ और सामने वाला सिर्फ इसलिए दोषी कि उस ने सांस जरा खुल कर ले ली थी या बात करते हुए उसे छींक आ गई थी.’’

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मुंह खुला का खुला रह गया रज्जी और मां का.

‘‘जिस भंवर में आज रज्जी है उस की तैयारी तो तुम बचपन से कर रही हो. पिताजी इसी दिन से डर कर सदा तुम्हें समझाते रहे कि इसे इस तरह न पालो कि इस का भविष्य ही अंधकारमय हो जाए. मां, यह घर तुम्हारा है, यहां तुम्हारा राजपाट चल सकता है. तुम रज्जी को गलतसही जो चाहे सिखाओ मगर वह घर तुम्हारा नहीं है जहां रज्जी को सारी उम्र रहना है. इंसान भूखा रह कर जी सकता है, आधी रोटी से भी पेट भर सकता है मगर हर पल झूठ नहीं पचा सकता.

‘‘राजनीति एक गंदा खेल है जिस में कोई भी शरीफ आदमी जाना नहीं चाहता क्योंकि वह चैन से जीना चाहता है. इसी तरह सुकेश और उस का परिवार सीधासादा, साफसुथरा जीवन जीना चाहता है जिसे रज्जी ने राजनीति का अखाड़ा बना दिया है. जबजब गृहस्थी में दांवपेंच और झूठ का समावेश हुआ है तबतब घर उजड़ा है. रज्जी का घर बचाना चाहती हो तो इसे जलेबियां पकाना मत सिखाओ. गोलमोल बातें रिश्तों को सिर्फ उलझाती हैं.’’

मैं नहीं जानता कि मेरी बातों का असर था या अपना घर टूट जाने का डर, रज्जी स्वयं ही अपने घर वापस चली गई. रज्जी जैसा इंसान अपने अधिकार के प्रति बड़ा जागरूक होता है. पहले दरजे का स्वार्थी चरित्र जिस की नजर अपने अधिकार के साथसाथ दूसरे की चीज पर भी रहती है. सुकेश का फोन आया मेरे पास. पता चला रज्जी ने सब से माफी मांग ली है और भविष्य में कभी झूठ बोल कर घर में अशांति नहीं फैलाएगी, ऐसा वादा भी किया है. पता नहीं क्यों मुझे विश्वास नहीं हो रहा रज्जी पर. मेरी चाहत तो यही है कि मेरी बहन सदा सुखी रहे लेकिन भरोसा रत्ती भर भी नहीं है उस पर.

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कुछ दिन आराम से बीत गए. सब शांत था, सब सुखी थे लेकिन दबी आग एक दिन विकराल रूप में सामने चली आएगी, यह किसी ने नहीं सोचा होगा, परंतु मुझे कुछकुछ अंदेशा अवश्य हो रहा था. पता चला सुकेश ने डिप्रैशन में कुछ खा लिया है. पतिपत्नी में फिर से कोई तनाव था. जब तक हम अस्पताल पहुंचते बहुत देर हो चुकी थी. सुकेश बेजान कफन में लिपटा सामने था.

श्यामली- भाग 3: जब श्यामली ने कुछ कर गुजरने की ठानी

मैं तुम्हारा खर्च उठा रहा हूं, तुम्हारे बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा रहा हूं. तुम्हें महंगेमहंगे गिफ्ट, जेवर, कपड़े ला कर देता हूं. गाड़ी है, ड्राइवर है. बड़ी कोठी में रह रही हो. इस से अधिक तुम्हें और क्या चाहिए?

पत्नी हो, पत्नी बन कर रहो. यदि यहां नहीं रहना है तो चली जाओ अपने गांव. लेकिन एक बात अच्छी तरह समझ लो कि मेरे बच्चे यहीं रहेंगे.

इतनी बातें कहसुन कर सोम क्लब या न जाने कहां चले गए. वे सहम कर चुप हो गई थीं. बच्चे तो उन की जान थे. वही तो उन के जीवन का संबल और आधार थे. उन्हीं के लिए तो वे जी रही थीं. उन की चुप्पी और सहनशीलता को देख सोम का हौसला बढ़ता गया. अब एक लड़की नइमा के साथ वे खुल्लमखुल्ला घूमने लगे थे. कई बार उसे वे घर भी ले कर आ जाते. कई बार वे रात में भी घर न आते.

श्यामलीजी चुप रहतीं, उन की पीड़ा आंसू बन कर आंखों से बहती. एकांत उन के हर दुख का साक्षी रहता. विद्रोह करना उन का स्वभाव नहीं था. वे समझ रही थीं कि यदि वे कुछ भी बोलेंगी तो उन का घरौंदा टूट जाएगा. उन के बच्चे अनाथ हो जाएंगे. अपनी बेचारगी पर वे कई बार स्वयं को धिक्कारती भी थीं, परंतु घर टूट जाने के डर से वह हिम्मत नहीं जुटा पाती थीं. नन्हीं राशि जब उन के आंसू पोंछती और उन्हें चुप हो जाने को कहती, तो उन को अपने आंसू रोकने मुश्किल हो जाते.

बुजुर्ग मैनेजर ने उन के पास भी 2-3 बार फोन कर के कहा कि सोम नकली दवाइयों का कारोबार बढ़ाते जा रहे हैं, साथ ही ड्रग्स का धंधा भी.

यदि इसी तरह से चलता रहा तो जल्द ही किसी मामले में फंस जाएंगे. वे चिंतित हो उठी थीं. उन के अपने प्यारे बच्चों और स्वयं का भविष्य दांव पर लगा था. उन्होंने दूसरे सेल्समैन लड़कों से बात कर के पता किया तो मालूम हुआ कि सच में सोम रास्ता भटक गए हैं.

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आखिर एक दिन एक हादसा हो ही गया. उन के स्टोर से खरीदी नकली दवा से एक बच्चे की मौत हो गई. मामले ने तूल पकड़ा. वे लोग लाठियां ले कर आ गए और फिर दुकान में तोड़फोड़ कर दी. सोम की भी खूब पिटाई की. पुलिस आ गई. पुलिस को कुछ लेदे कर किसी तरह मामला शांत करवाया. पर इसी बीच बच्चे के पिता ने ‘ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमैंट’ में मेल कर दिया था. और वहां की टीम रेड करने आ गई. इस अचानक हमले का किसी को कोई अनुमान या तैयारी नहीं थी. नकली और ऐक्सपायरी दवा के साथसाथ ड्रग्स का भी स्टौक पकड़ा गया.

मामला संगीन था. लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने के आरोप में सोम गिरफ्तार हो गए और मैडिकल स्टोर को सील कर दिया गया. वकीलों पर पैसा पानी की तरह बहाया गया.

बेल होने में लगभग 3 महीने लग गए. घर खर्चे की दिक्कत होने लगी. एकएक कर सारे नौकर हटा दिए गए. यहां तक कि बच्चों के लिए दूध की भी परेशानी होने लगी थी. सामान बेच कर कुछ दिन काम चला.

इतनी विषम परिस्थिति कभी होगी, इस का उन्हें कतई अनुमान भी नहीं था. जब सोम जमानत के बाद घर आए, तो उन को पहचानना मुश्किल था. रंग काला पड़ गया था और शरीर कृषकाय हो चुका था. वे किसी का सामना नहीं करना चाहते थे. यहां तक कि बच्चों से भी बात नहीं करते थे. चुपचाप अपने कमरे में लेट कर छत को निहारते रहते.

सोम नया रास्ता तलाशने के बजाय निराशा के गर्त में डूब कर डिप्रैशन का शिकार बन गए. जख्मों को कुरेदने के लिए सांत्वना के नाम पर रिश्तेदारों और परिचितों के ताने और उलटेसीधे व्यंग्य वाणों के कारण सब का जीना दूभर हो गया था.

अब यह श्यामलीजी के लिए परीक्षा की घड़ी थी. अब आवश्यक हो चुका था कि वे स्वयं आगे बढ़ कर घर के हालात को सुधारने के लिए कुछ करें.

एक ओर नैराश्य में जकड़ा हुआ सोम दूसरी ओर 12 वर्ष की राशि तो 11 वर्ष का शुभ, ऐसे कठिन समय में घर का मोरचा संभाला. वे सोम का हौसलाअफजाई करतीं. बच्चों का भी उन्होंने पूरा ध्यान रखा.

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मित्रों के सहयोग से एक नामी बुटीक में ड्रैस डिजाइनर की नौकरी मिल गई. जल्द ही बुटीक की मालकिन कल्पनाजी ने उन की प्रतिभा को पहचान लिया, उन के डिजाइन किए हुए कपड़े कस्टमर को पसंद आने लगे. 1 साल में ही बुटीक का बिजनैस काफी बढ़ गया, साथ में उन की सैलरी भी बढ़ गई.

जीवन पटरी पर लौटने लगा था. उन्हें नौकरी करते हुए लगभग 2 वर्ष हो चुके थे. अब वे अपना बुटीक खोलना चाह रही थीं. लेकिन पैसे की कमी बाधा बनी हुई थी.

उन्होंने ‘महिला गृह उद्योग’ योजना के अंतर्गत बैंक से लोन के लिए आवेदन किया और जल्दी ही घर के एक कमरे में अपना बुटीक शुरू कर दिया. 4 सिलाई मशीनें और कुछ कारीगर लड़कियों को रख कर काम शुरू कर दिया. देखते ही देखते उन की मेहनत और क्रिएटिविटी की क्षमता ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए.

आज उन के बुटीक की शहर में 2 ब्रांच और खुल गई हैं. करीब 40 लोगों को उन्होंने रोजगार दे रखा है.

राशि की आवाज ने उन की तंद्रा भंग कर दी, ‘‘मां, आज कहां खो गई हैं? घर नहीं चलना है क्या?’’

वे वर्तमान में लौटी ही थीं कि उन का मोबाइल बज उठा, ‘‘मैडम श्यामली?’’

‘‘यस.’’

‘‘महिला दिवस पर ‘विषम परिस्थितियों में स्वयं को सिद्ध करने के लिए’ आप को ‘विजय नगरम् हाल’ में मेयर के द्वारा सम्मानित किया जाएगा. कल हम लोग निमंत्रणपत्र ले कर आप के पास आएंगे.’’

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‘‘धन्यवाद,’’ कहते हुए श्यामलीजी भावुक हो उठी थीं. चूंकि फोन स्पीकर पर था, इसलिए सभी ने इस खबर को सुन लिया था.

सोम भी भावुक हो उठे थे. उन्होंने प्यार से बांहों के घेरे में उन्हें ले लिया, ‘‘श्यामली, तुम्हें मैं वह प्यार और सम्मान नहीं दे पाया, जिस के योग्य तुम थीं. इसलिए अब पूरा लखनऊ शहर तुम्हें सम्मानित करेगा.’’

आज बरसों बाद सोम के प्यार भरे आलिंगन से वे अभिभूत हो उठी थीं. उन्होंने भी प्यार से सोम को अपनी बांहों में कैद कर लिया. बेटी राशि पर निगाह पड़ते ही उन का मुखमंडल शर्म से लाल हो उठा.

सोम फोन पर श्यामलीजी के मम्मीपापा को निमंत्रण दे रहे थे. आज उन के सारे विषाद धुल गए थे.

कहीं किसी रोज- भाग 2: आखिर जोया से विमल क्या छिपा रहा था?

‘‘औफिस का काम काफी रहता है, बस यों ही टाइम बीत जाता है.”

जोया ने पूछा, ‘‘और आप की फैमिली में कौनकौन हैं?”

विमल ने बता कर उस से भी पूछा. जोया ने जब बताया कि वह अविवाहित है. विमल हैरानी से उस का मुंह देखता रह गया.

यह देख जोया हंस पड़ी, ‘‘आप बहुत हैरान होते हैं, बातबात पर.‘‘ विमल को अब तक जोया के जौली नेचर का अंदाजा हो गया था. जोया ने फिर कहा, “मैं अपनी लाइफ अपने तरीके से ऐंजौय कर रही हूं, पता नहीं, लोग मेरी लाइफ पर हैरान ही होते रहते हैं, जैसे मैं जीती हूं, मुझे उस पर गर्व है.”

‘‘आप को एक फैमिली की जरूरत महसूस नहीं होती?”

‘‘पेरेंट्स हैं, भाई हैं, बाकी पति, बच्चे जैसी चीजों की कमी कभी नहीं महसूस हुई. मैं तो यहां लौकडाउन में फंसा होना भी ऐंजौय कर रही हूं, आप के पास पैसा हो तो आप को लाइफ ऐसे ही ऐंजौय करनी चाहिए, डेनिस रोडमैन ने तो कह ही दिया, ‘‘इनसान के जीवन में ५० पर्सेंट सैक्स होता है और ५० पर्सेंट पैसा.”

विमल का चेहरा शर्म से लाल हो गया. पहली बार कोई महिला उस के सामने बैठी सैक्स शब्द ऐसे खुलेआम बोल रही थी, जोया ने फिर कहा, ‘‘आप को अजीब लगा न कि कोई महिला कैसे सैक्स शब्द खुलेआम बोल रही है, इस विषय पर तो आप लोगों का कौपीराइट है,‘‘ कह कर जोया बहुत प्यारी हंसी हंसी.

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विमल इस हंसी में कहीं खो सा गया, बोला, ‘‘आप सब से बहुत अलग हैं.”

‘‘जी, मैं जानती हूं.”

‘‘आजकल आप क्या पढ़ रही हैं?”

‘‘कार्ल मार्क्स.”

‘‘और क्याक्या शौक हैं आप के?”

‘‘खुश रहने का शौक है मुझे, बाकी सब चीजें इस के साथ अपनेआप जुड़ती चली गईं. आज डिनर साथ करें क्या?”

‘‘आज तो मेरा फास्ट है. मंगलवार है न. मैं जरा धार्मिक किस्म का इनसान हूं.”

जोया मुसकराई, तो विमल ने पूछ लिया, ‘‘आप किस धर्म को मानती हैं?”

‘‘मैं तो धर्म के खिलाफ हूं, क्योंकि इस में मेरे तर्कों का कोई जवाब नहीं. लोगों ने मुझे हमेशा दिमाग से काम लेने की सलाह दी. मैं ने मानी, बस, मैं फिर नास्तिक हो गई, है न ये मजेदार बात. जब लोग मुझ से मेरा धर्म पूछते हैं, मैं कह देती हूं, नॉन डेलूशनल.

‘‘मैं तो यह मानता हूं कि ऊपर वाला हर वस्तु में है और सब से ऊपर भी, भगवान को अपने आसपास ही महसूस करता हूं, इसी अनुभूति से जीवन सफल हो सकता है, भगवान ही हमारी हर मुश्किल का अंत कर सकते हैं.”

‘‘और मैं कार्ल मार्क्स की इस बात को मानती हूं कि लोगों की खुशी के लिए पहली जरूरत धर्म का अंत है और धर्म लोगों का अफीम है.”

‘‘आप विदेशी लेखकों की बुक्स शायद ज्यादा पढ़ चुकी हैं.”

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है, मुझे बीआर अंबेडकर की यह बात बहुत पसंद है, जो उन्होंने कहा है कि मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाए.”

‘‘पर, जोयाजी.”

‘‘आप मुझे सिर्फ जोया ही कह सकते हैं, यह जी मुझे अकसर बहुत फिजूल की चीज लगती है.”

विमल थोड़ा हिचकिचाया, पर उसे अपने मुंह से निकलता सिर्फ जोया बहुत प्यारा लगा, वह इस नाम पर ही अब मरमिटा था, इस नाम ने ही उस के अंदर एक हलचल मचा दी थी, उसे लग रहा था कि सामने बैठी, उस से उम्र में बड़ी महिला सारी उम्र बस उस के सामने ऐसे ही बैठी रहे और वह उस की बातें सुनता रहे, उसे देखता रहे, ब्यूटी विद ब्रेन.

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‘‘तो आज आप फास्ट में डिनर में क्या खाएंगे?”

‘‘फ्रूट्स और मिल्क,”
जोया मुसकराई, ‘‘मैं ने तो अपनी लाइफ में कभी कोई फास्ट नहीं रखा.”

‘‘मैं सचमुच हैरान हूं, आप किसी भी धर्म को नहीं मानती? अच्छा, ठीक है, चलो, मुझे यह तो बता दो कि आप के पेरेंट्स का सरनेम क्या है?”

जोया बहुत जोर से हंसी, ‘‘आप उन्ही लोगों में से हैं न, जो सामने वाले के धर्म, जाति पूछ कर आगे बात करते हैं, तरस आता है मुझे ऐसे लोगों पर, जिन की दुनिया बस इतनी ही छोटी है जिस में सरनेम ही रह सकता है. खैर, मैं हूं जोया सिद्दीकी.”

विमल का चेहरा उतर गया, मुंह से निकल ही गया, ‘‘ओह्ह्ह.”

जोया ने छेड़ा, ‘‘आया मजा? क्या हुआ? झटका लगा न? अब बात नहीं कर पाएंगे?”

‘‘नहीं, नहीं, ऐसा तो नहीं है.”

दोनों फिर यों ही कुछ देर बात करते रहे, विमल जोया की नौलेज से प्रभाावित था, कमाल की थी जोया, विमल अपने रूम में आ कर भी सिर्फ जोया के बारे में ही सोचता रहा, पूरी रात उस के बारे में करवटें बदल बदल कर गुजारीं, जोया को भी विमल की सादगी बहुत अच्छी लगी थी, वह भी उस के बारे में सोच कर मुसकराती रही, अगली सुबह विमल ने उसे देखते ही बेचैनी से कहा, ‘‘आज तो मैं सो ही नहीं पाया.”

जोया ने बड़े स्टाइल से कहा, ‘‘जानती हूं.”

‘‘अरे, आप को कैसे पता?”

‘‘अकसर लोग मुझ से मिल कर जल्दी सो नहीं पाते.”

विमल थोड़ा फ्लर्ट के मूड में आ गया, ‘‘बहुत जानती हैं आप ऐसे लोगों को?”

‘‘हां, जनाब, बहुत देखे हैं.”

दोनों ने अपनेआप को एकदूसरे के कुछ और करीब महसूस किया, दोनों स्विमिंग पूल के किनारे चहलकदमी करते हुए बातें कर रहे थे, जोया ने कहा, ‘‘आज आप ने नहाधो कर सूर्य को जल नहीं चढ़ाया.”

‘‘हां, आज मन ही नहीं हुआ, मैं ठीक से सोता नहीं तो मेरा सारा काम उलटापुलटा हो जाता है.”

‘‘आप के भगवान मुझ से गुस्सा तो नहीं हो जाएंगे कि मेरी वजह से आप सो नहीं पाए. वैसे, अच्छा ही हुआ एक गिलास पानी वेस्ट होने से बच गया. आप ने कभी सोचा नहीं कि आप के भगवान को सचमुच उस पानी की जरूरत है? मुझे इस के पीछे का लौजिक समझा दीजिए, प्लीज.”

विमल ने हाथ जोड़े, ‘‘मैं समझ चुका हूं कि मैं आप से जीत नहीं सकता, जोया. मैं आप से हार चुका हूं,” उस के इस भोले से व्यवहार पर जोया मुसकरा दी. जोया ने कहा, ‘‘फिर तो बात ही खत्म, हारे हुए इनसान को क्या कहना? आज नाश्ता साथ करें?”

‘‘बिलकुल, फ्रेश हो कर मिलते हैं, इन का रैस्टोेरैंट तो बंद ही है आजकल, औफिस की मीटिंग में एक घंटा है, मेरे रूम में आओगी?”

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‘‘हां, मिलते हैं.”

घुटने तक की एक ड्रेस, शोल्डर कट बाल शैंपू किए, हलका सा मेकअप, उस के पास से आती बढ़िया परफ्यूम की खुशबू, तैयार विमल ने जब अपने रूम का दरवाजा खोला, तो जोया को देखता ही रह गया. वह बहुत सुंदर थी, उस के रूप के जादू से बचना विमल को बहुत मुश्किल सा लग रहा था. वह पूरी तरह उस के होशोहवास पर छा चुकी थी, विमल ने उस की पसंद पूछ कर नाश्ता आर्डर किया, वेटर स्टेचू सा चेहरा लिए चला गया, तो जोया हंसी, ‘‘आज तो इन लोगों को भी टाइमपास करने का हमारा टौपिक मिल गया, ये बेचारे भी लौकडाउन में ऐसी बातों के लिए तरस गए होंगे.”

विमल को बहुत जोर से हंसी आई, ‘‘क्याक्या सोच लेती हो आप भी?”

‘‘तुम भी कहोगे मुझे तो अच्छा लगेगा, आप बहुत दूर कर देता है सामने वाले को.”

‘‘पर, आप मुझ से बड़ी हैं शायद.”

‘‘शायद नहीं, बड़ी ही हूं, पर मुझे तुम से तुम ही सुनना अच्छा लगेगा, विमल, जब करीब आ ही रहे हैं तो फौर्मलिटीज क्यों?”

तलाक के बाद- भाग 2: जब सुमिता को हुआ अपनी गलतियों का एहसास

Writer- Vinita Rahurikar

लेकिन समीर की इन छोटीछोटी अपेक्षाओं पर भी सुमिता बुरी तरह से भड़क जाती थी. उसे इन्हें पूरा करना गुलामी जैसा लगता था. नारी शक्ति, नारी स्वतंत्रता, आर्थिक स्वतंत्रता इन शब्दों ने तब उस का दिमाग खराब कर रखा था. स्वाभिमान, आत्मसम्मान, स्वावलंबी बन इन शब्दों के अर्थ भी तो कितने गलत रूप से ग्रहण किए थे उस के दिलोदिमाग ने.

मल्टीनैशनल कंपनी में अपनी बुद्धि के और कार्यकुशलता के बल पर सफलता हासिल की थी सुमिता ने. फिर एक के बाद एक सीढि़यां चढ़ती सुमिता पैसे और पद की चकाचौंध में इतनी अंधी हो गई कि आत्मसम्मान और अहंकार में फर्क करना ही भूल गई. आत्मसम्मान के नाम पर उस का अहंकार दिन पर दिन इतना बढ़ता गया कि वह बातबात में समीर की अवहेलना करने लगी. उस की छोटीछोटी इच्छाओं को अनदेखा कर के उस की भावनाओं को आहत करने लगी. उस की अपेक्षाओं की उपेक्षा करना सुमिता की आदत में शामिल हो गया.

समीर चुपचाप उस की सारी ज्यादतियां बरदाश्त करता रहा, लेकिन वह जितना ज्यादा बरदाश्त करता जा रहा था, उतना ही ज्यादा सुमिता का अहंकार और क्रोध बढ़ता जा रहा था. सुमिता को भड़काने में उस की सहेलियों का सब से बड़ा हाथ रहा. वे सुमिता की बातों या यों कहिए उस की तकलीफों को बड़े गौर से सुनतीं और समीर को भलाबुरा कह कर सुमिता से सहानुभूति दर्शातीं. इन्हीं सहेलियों ने उसे समीर से तलाक लेने के लिए उकसाया. तब यही सहेलियां सुमिता को अपनी सब से बड़ी हितचिंतक लगी थीं. ये सब दौड़दौड़ कर सुमिता के दुखड़े सुनने चली आती थीं और उस के कान भरती थीं, ‘तू क्यों उस के काम करे, तू क्या उस की नौकरानी या खरीदी हुई गुलाम है? तू साफ मना कर दिया कर.’

एक दिन जब समीर ने बाजार से ताजा टिंडे ला कर अपने हाथ के मसाले वाले भरवां टिंडे बनाने का अनुरोध किया, तो सुमिता बुरी तरह बिफर गई कि वह अभी औफिस से थकीमांदी आई है और समीर उस से चूल्हे-चौके का काम करने को कह रहा है. उस दिन सुमिता ने न सिर्फ समीर को बहुत कुछ उलटासीधा कहा, बल्कि साफसाफ यह भी कह दिया कि वह अब और अधिक उस की गुलामी नहीं करेगी. आखिर वह भी इंसान है, कोई खरीदी हुई बांदी नहीं है कि जबतब सिर झुका कर उस का हुकुम बजाती रहे. उसे इस गुलामी से छुटकारा चाहिए.

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समीर सन्न सा खड़ा रह गया. एक छोटी सी बात इतना बड़ा मुद्दा बनेगी, यह तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. इस के बाद वह बारबार माफी मांगता रहा, पर सुमिता न मानी तो आखिर में सुमिता की खुशी के लिए उस ने अपने आंसू पी कर तलाक के कागजों पर दस्तखत कर के उसे मुक्त कर दिया.

पर सुमिता क्या सचमुच मुक्त हो पाई?

समीर के साथ जिस बंधन में बंध कर वह रह रही थी, उस बंधन में ही वह सब से अधिक आजाद, स्वच्छंद और अपनी मरजी की मालिक थी. समीर के बंधन में जो सुरक्षा थी, उस सुरक्षा ने उसे समाज में सिर ऊंचा कर के चलने की एक गौरवमयी आजादी दे रखी थी. तब उस के चारों ओर समीर के नाम का एक अद्भुत सुरक्षा कवच था, जो लोगों की लोलुप और कुत्सित दृष्टि को उस के पास तक फटकने नहीं देता था. तब उस ने उस सुरक्षाकवच को पैरों की बेड़ी समझा था, उस की अवहेलना की थी लेकिन आज…

आज सुमिता को एहसास हो रहा है उसी बेड़ी ने उस के पैरों को स्वतंत्रता से चलना बल्कि दौड़ना सिखाया था. समीर से अलग होने की खबर फैलते ही लोगों की उस के प्रति दृष्टि ही बदल गई थी. औरतें उस से ऐसे बिदकने लगी थीं, जैसे वह कोई जंगली जानवर हो और पुरुष उस के आसपास मंडराने के बहाने ढूंढ़ते रहते. 2-4 लोगों ने तो वक्तबेवक्त उस के घर पर भी आने की कोशिश भी की. वह तो समय रहते ही सुमिता को उन का इरादा समझ में आ गया नहीं तो…

अब तो बाजार या कहीं भी आतेजाते सुमिता को एक अजीब सा डर असुरक्षा तथा संकोच हर समय घेरे रहता है. जबकि समीर के साथ रहते हुए उसे कभी, कहीं पर भी आनेजाने में किसी भी तरह का डर नहीं लगा था. वह पुरुषों से भी कितना खुल कर हंसीमजाक कर लेती थी, घंटों गप्पें मारती थीं. पर न तो कभी सुमिता को कोई झिझक हुई और न ही साथी पुरुषों को ही. पर अब किसी भी परिचित पुरुष से बातें करते हुए वह अंदर से घबराहट महसूस करती है. हंसीमजाक तो दूर, परिचित औरतें खुद भी अपने पतियों को सुमिता से दूर रखने का भरसक प्रयत्न करने लगी हैं.

भारती के पति विशाल से सुमिता पहले कितनी बातें, कितनी हंसीठिठोली करती थी. चारों जने अकसर साथ ही में फिल्म देखने, घूमनेफिरने और रेस्तरां में साथसाथ लंच या डिनर करने जाते थे. लेकिन सुमिता के तलाक के बाद एक दिन आरती ने अकेले में स्पष्ट शब्दों में कह दिया, ‘‘अच्छा होगा तुम मेरे पति विशाल से दूर ही रहो. अपना तो घर तोड़ ही चुकी हो अब मेरा घर तोड़ने की कोशिश मत करो.’’

सुमिता स्तब्ध रह गई. इस के पहले तो आरती ने कभी इस तरह से बात नहीं की थी. आज क्या एक अकेली औरत द्वारा अपने पति को फंसा लिए जाने का डर उस पर हावी हो गया? आरती ने तो पूरी तरह से उस से संबंध खत्म कर लिए. आनंदी, रश्मि, शिल्पी का रवैया भी दिन पर दिन रूखा होता जा रहा है. वे भी अब उस से कन्नी काटने लगी हैं. उन्होंने पहले की तरह अब अपनी शादी या बच्चों की सालगिरह पर सुमिता को बुलावा देना बंद कर दिया. कहां तो यही चारों जबतब सुमिता को घेरे रहती थीं.

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सुमिता को पता ही नहीं चला कि कब से उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. 4 साल हो गए उसे तलाक लिए. शुरू के साल भर तो उसे लगा था कि जैसे वह कैद से आजाद हो गई. अब वह अपनी मर्जी से रहेगी. पर फिर डेढ़दो साल होतेहोते वह अकेली पड़ने लगी. न कोई हंसनेबोलने वाला, न साथ देने वाला. सारी सहेलियां अपने पति बच्चों में व्यस्त होती गईं और सुमिता अकेली पड़ती गई. आज उसे अपनी स्वतंत्रता स्वावलंबन, अपनी नौकरी, पैसा सब कुछ बेमानी सा लगता है. अकेले तनहा जिंदगी बिताना कितना भयावह और दुखद होता है.

लोगों के भरेपूरे परिवार वाला घर देख कर सुमिता का अकेलेपन का एहसास और भी अधिक बढ़ जाता और वह अवसादग्रस्त सी हो जाती. अपनी पढ़ाई का उपयोग उस ने कितनी गलत दिशा में किया. स्वभाव में नम्रता के बजाय उस ने अहंकार को बढ़ावा दिया और उसी गलती की कीमत वह अब चुका रही है.

सोचतेसोचते सुमिता सुबकने लगी. खानाखाने का भी मन नहीं हुआ उस का. दोपहर 2 बजे उस ने सोचा घर बैठने से अच्छा है अकेले ही फिल्म देख आए. फिर वह फिल्म देखने पहुंच ही गई.

खुशी के आंसू- भाग 2: आनंद और छाया ने क्यों दी अपने प्यार की बलि?

लेखिका- डा. विभा रंजन  

उस ने जब ज्योति को बताया, वह खुशी से झूम उठी. उस का चेहरा लज्जा से लाल हो गया. उस ने कहा कि शायद इसी कारण आनंद जी अब उसे पढ़ाने नहीं आ रहे हैं. छाया क्या कहती, वह चुप रही. अगले महीने से स्कूल में परीक्षा है. और  स्कूल के अंदर की परीक्षा का कार्यभार छाया के पास था. वह परीक्षा प्रभारी थी. इन दिनों छुट्टी लेना मुश्किल हो जाता है. उस ने सोचा, परीक्षा के बाद से वह विवाह की तैयारी में जुट जाएगी.

छाया की एक सहेली तबस्सुम, जो पहले इसी स्कूल में मनोविज्ञान की शिक्षिका थी, विवाह के बाद हैदराबाद चली गई थी. उस ने अचानक से खबर  किया कि वह दिल्ली आई है और उस से मिलने के लिए आना चाहती है. छाया ने उसे दिन के खाने पर बुला लिया.

“ज्योति मेरी छोटी बहन है.”

“जानता हूं, आगे?”

“मैं उसे बहुत प्यार करती हूं.”

“ठीक है, फिर?”

“पापा ने मरते समय मुझ से वादा लिया था, मैं ज्योति का अच्छे से ध्यान रखूं,उस की हर इच्छा का खयाल रखूं. और उस की इच्छा तुम हो, आनंद.”

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“पागल तो नहीं हो गई हो तुम, क्या बोल रही हो, जरा सोचो.”

“सही सोच रही हूं आनंद. तुम से अच्छा लड़का ज्योति के लिए कहां मिलेगा मुझे?”

“शटअप छाया, पागल मत बनो. ज्योति से मैं 8 साल बड़ा हूं.”

“मेरी मां, मेरे पापा से 9 साल छोटी थीं.”

“ओह माई गौड, क्या हो गया तुम्हें, आई लव यू ओनली.”

“बट, ज्योति लव्स यू.”

“उसे हमारे बारे में नहीं पता है, सब सच बता दो उसे. तुम्हारे पापा का आशीर्वाद भी मिल चुका है हमें. हम तो शादी करने वाले थे. जब वह यह सब सच जानेगी तब वह सब समझ जाएगी.”

“वह दिनभर, बस, तुम्हारी बातें किया करती है. तुम ने पढ़ाते समय उसे जो उदाहरण दिए हैं, उन्हें उस ने जीवन के सूत्र बना लिए हैं. वह बच्ची है आनंद, सच जान कर उस का दिल टूट जाएगा. वह बिखर जाएगी. वह तुम्हें बहुत चाहने लगी है आनंद.”

“इस का मतलब?”

“मतलब यह है, ज्योति तुम को चाहती है और मैं ज्योति को तुम्हें सौपना चाहती हूं.”

नहीं, छाया नहीं, मैं जीतेजी मर जाऊंगा. तुम इतनी कठोर कैसे हो सकती हो, क्या तुम्हारा प्यार झूठा था, नकली था? तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो?”  आनंद बिफर गया.

“तुम ने अभीअभी मेरी हर समस्या का हल निकालने की बात कही थी, और अब मुकरने लगे,” छाया ने बिलकुल शांत स्वर में कहा.

“मतलब, तुम मेरे बिना रह लोगी?” आनंद ने व्यंग्य करते हुए कहा.

“यह मेरे सवाल का जवाब नहीं है,” छाया ने फिर अपनी बात रखनी चाही.

“तुम मुझे प्यार नहीं करती न,” आनंद बात से हटना चाह रहा था.

“यही समझ लो, ज्योति तो करती है न.”

“मैं पागल हो जाऊंगा छाया, मुझ पर रहम करो.”

“तुम ज्योति को अपना लो. बस, मेरी इतनी बात मान लो आनंद. अगर कभी भी मुझे प्यार किया होगा, उसी का वास्ता देती हूं मैं तुम्हें.”

“मैं मां से क्या कहूंगा,” आनंद ने आखिरी दांव फेंका.

“कुछ भी कह देना, बदल गई छाया, बिगड़ गई छाया, जो चाहे सो कह देना.”

“तुम बहुत स्वर्थी हो गई हो छाया. तुम मुझ से प्यार नहीं करतीं. तुम्हें बस अपनी बहन से प्यार है. तुम ने मुझे जीतेजी मार दिया. आज का दिन मैं कभी भी भूल नहीं पाऊंगा.”

“चलो, मुझे छोड़ दो.”

“मैं क्या छोडूंगा तुम्हें, तुम ने मुझे छोड़ दिया.”

आनंद ने बाइक स्टार्ट की. छाया चुपचाप पीछे बैठ गई. आनंद उसे घर से कुछ दूरी पर छोड़ छाया को बिना देखे तेजी से निकल गया. छाया रातभर सो न सकी. वह सारी रात बेचैन रही. उस का स्कूल जाने का मन नहीं था, पर आज जाना जरूरी था, इसलिए उसे जाना पडा. वह सीधे क्लासरूम में चली गई. क्लास लेने के बाद वह लाइब्रेरी में जा कर बैठ गई.

आज उस में आनंद की सामना करने की हिम्मत नहीं हो रही थी. उस ने पर्स से एक किताब निकाली और पढ़ने की बेकार कोशिश करने लगी. पढ़ने में बिलकुल मन नहीं लग रहा था. पर समय काटना था क्योंकि अभी आनंद स्टाफरूम में होगा. घंटी लगने के बाद वह उठी और क्लास लेने चली गई. उस दिन छाया दिनभर आनंद के सामने आने से बचती रही.

अब छाया ने सोच लिया, बस, पापा के साल होने में मात्र 3 महीने हैं. उसे अब ज्योति की विवाह की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए. उसे आनंद पर विश्वास था, वह उसे धोखा नहीं देगा. अब उसे ज्योति को आनंद से विवाह की बात बता देनी चाहिए.

उस दिन छाया को जल्दी घर आना था, पर देर हो रही थी. तबस्सुम अपनी 3 महीने की खुबसूरत बेटी नूर को ले कर  छाया के घर आ गई थी. ज्योति नूर को बहुत प्यार कर रही थी.

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“दीदी, जी करता है, मैं आप की बेटी को  रख लूं,”   ज्योति ने नूर को पुचकारते हुए कहा.

“रख लो,”  तबस्सुम ने हंस कर कहा.

तबस्सुम ज्योति से पहली बार मिल रही थी. “अगर अंकलजी नहीं गुजरते तब, अभी तक तेरी छाया दीदी को भी मुन्ना या मुन्नी हो गई होती. आनंद और छाया, मम्मी और पापा बन गए होते. अंकलजी अपने सामने शादी नहीं देख पाए पर, उन का आशीर्वाद तो  इन दोनों को मिल ही चुका  है.”

“क्या कहा आप ने तबस्सुम दी?” ज्योति ने हैरत से पूछा.

सिंदूरी मूर्ति- भाग 1: जब राघव-रम्या के प्यार के बीच आया जाति का बंधन

अभी लोकल ट्रेन आने में 15 मिनट बाकी थे. रम्या बारबार प्लेटफौर्म की दूसरी तरफ देख रही थी. ‘राघव अभी तक नहीं आया. अगर यह लोकल ट्रेन छूट गई तो फिर अगली के लिए आधे घंटे का इंतजार करना पड़ेगा’, रम्या सोच रही थी.

तभी रम्या को राघव आता दिखाई दिया. उस ने मुसकरा कर हाथ हिलाया. राघव ने भी उसे एक मुसकान उछाल दी. रम्या ने अपने इर्दगिर्द नजर दौड़ाई. अभी सुबह के 7 बजे थे. लिहाजा स्टेशन पर अधिक भीड़ नहीं थी. एक कोने में कंधे से स्कूल बैग लटकाए 3-4 किशोर, एक अधेड़ उम्र का जोड़ा व कुछ दूरी पर खड़े लफंगे टाइप के 4-5 युवकों के अलावा स्टेशन एकदम खाली था.

रम्या प्लेफौर्म की बैंच से उठ कर प्लेटफौर्म के किनारे आ कर खड़ी हुई तो उस का मोबाइल बज उठा. उस ने अपने मोबाइल को औन किया ही था कि अचानक किसी ने पीछे से उस की पीठ में छुरा भोंक दिया. एक तेज धक्के से वह पेट के बल गिर पड़ी, जिस से उस का सिर भी फट गया और वह बेहोश हो गई.

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राघव जब तक उस तक पहुंच पाता, हमलावर नौ दो ग्यारह हो चुका था. चारों तरफ चीखपुकार गूंज उठी. रेलवे पुलिस ने तत्काल उसे सरकारी अस्पताल पहुंचाने का इंतजाम किया. रम्या के मोबाइल फोन से उस के पापा को कौल की. संयोग से वे स्टेशन के बाहर ही खड़े हो अपने एक पुराने परिचित से बातचीत में मग्न हो गए थे. वे उस रोज रम्या के साथ ही घर से स्टेशन तक आए थे. उन्हें चेंग्ल्पप्त स्टेशन पर कुछ काम था. इसीलिए वे बाहर निकल गए जबकि रम्या परानुरू की लोकल ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन पर ही रुक गई. रम्या रोज 2 ट्रेनें बदल कर महिंद्रा सिटी अपने औफिस पहुंचती थी.

अचानक फोन पर यह खबर सुन कर रम्या के पिता की हालत बिगड़ने लगी. यह देख कर उन के परिचित उन्हें धैर्य बंधाते हुए साथ में अस्पताल चल पड़े.

रम्या को तुरंत आईसीयू में भरती कर लिया गया. घर से भी उस की मां, बड़ी बहन, जीजा सभी अस्पताल पहुंच गए. डाक्टर ने 24 घंटे का अल्टीमेटम देते हुए कह दिया कि यदि इतने घंटे सकुशल निकल गए तो बचने की उम्मीद है.

मां और बहन का रोरो कर बुरा हाल था. उन का दामाद, डाक्टर और मैडिकल स्टोर के बीच चक्करघिन्नी सा घूम रहा था.

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राघव सिर पकड़े एक कोने की बैंच पर  बैठ गया. वह दूर से रम्या के मम्मीपापा और बड़ी बहन को देख रहा था. क्या बोले और कैसे, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. रम्या ने बताया था कि उस के परिवार के लोग गांव में रहते हैं. अत: वे तमिल के अलावा और कोई भाषा नहीं जानते थे जबकि वह शुरू से ही पढ़ाई में होशियार थी. इसीलिए गांव से निकल कर होस्टल में पढ़ने आ गई थी और फिर इंजीनियरिंग कर नौकरी कर रही थी वरना उस की दीदी का तो 12वीं कक्षा के बाद ही पास के गांव में एक संपन्न किसान परिवार में विवाह कर दिया गया था. सुबह से दोपहर हो गई वह अपनी जगह से हिला ही नहीं, अंदर जाने की किसी को अनुमति नहीं थी. उस ने रम्या की खबर उस के औफिस में दी तो कुछ सहकर्मियों ने शाम को हौस्पिटल आने का आश्वासन दिया. अब वह बैठा उन लोगों का इंतजार कर रहा था. वे आए तभी वह भी रम्या के मातापिता से अपनी भावनाएं व्यक्त कर सका.

पिछले 2 सालों से राघव और रम्या औफिस की एक ही बिल्डिंग में काम कर रहे थे. रम्या एक तमिल ब्राह्मण परिवार से थी, जो काफी संपन्न किसान परिवार था, जबकि राघव उत्तर प्रदेश के पिछड़े वर्ग के गरीब परिवार से था. उस का और रम्या का कोई तालमेल ही नहीं, मगर न जाने वह कौन सी अदृश्य डोर से उस की ओर खिंचा चला गया.

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उस की पहली मुलाकात भी रम्या से इसी चेंग्ल्पप्त स्टेशन पर हुई थी, जहां से उसे परानुरू के लिए लोकल ट्रेन पकड़नी थी. उस दिन अपनी कंपनी का ही आईडी कार्ड लटकाए रम्या को देख कर वह हिम्मत कर उस के नजदीक पहुंच गया. जब रम्या को ज्ञात हुआ कि वह पहली बार लोकल ट्रेन पकड़ने आया है तो उस ने उस से कहा भी था कि जब उसे पीजी में ही रहना है तो परानुरू की महिंद्रा सिटी में शिफ्ट हो जाए. रोजरोज की परानुरू से चेंग्ल्पप्त की लोकल नहीं पकड़नी पड़ेगी.

मजाक: मिलावटी खाओ, एंटीबॉडी बढ़ाओ

लेखक- अशोक गौतम

इधर अखबार में जब से आईसीएमआर की स्टडी की यह रिपोर्ट हिलोरें मार रही है कि कोवैक्सीन और कोविशिल्ड को अगर एकसाथ मिला दिया जाए, तो इस का असर ज्यादा हो जाता है, तब से अपने शहर के नामीगिरामी मिलावट करने वालों की मूंछों की बिना तेल लगाए ही चमक देखने लायक है. भले की कानून के साथ मिलबैठ कर वे मिलावट का धंधा करते रहे हों, पर जनता की नजरों से छिपे रहते थे.

कल वही मिलावटी लाल सरजी मूंछों पर ताव देते सीना चौड़ा कर मेरे सामने पहाड़ से तन कर खड़े हो गए और मेरा रास्ता रोक दिया. उन्होंने सारे बदन पर गजब का इत्र लगाया हुआ था. उन का पूरा बदन उस समय किस्मकिस्म के असलीनकली मिलावटी इत्रों से महक रहा था.

मिलावटी लाल सरजी बोले, “देखो बबुआ, मिक्सिंग का कमाल. तुम लोग नाहक ही हमें तीसरे दर्जे का व्यापारी समझते हो तो समझते रहो, पर आज तो आईसीएमआर की स्टडी में ने भी मिक्सिंग पर अपनी मुहर लगा दी.

“बबुआ, जो सच है, वह सच है. जो सच था, वह सच था. जो सच है, वह सच ही रहेगा. उसे न तुम बदल सकते, न मैं, न कानून. कानून का डर दिखा कर झूठ को सच तो बनाया जा सकता है, पर सच को झूठ नहीं बनाया जा सकता. और सच यही है कि मिलावट के बिना जिंदगी जिंदगी नहीं, मिलावट के बिना इम्यूनिटी इम्यूनिटी नहीं.

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“हम मानें या न मानें, पर सच तो यही है कि है कि हम लोगों को बिना कौकटेल के कुछ भी पच नहीं सकता. शुद्ध खाने से हम सदियों से बीमार पड़ते रहे हैं. आज भी हम अपनी वही गलती दोहराने की वजह से बीमार पड़ रहे हैं और भविष्य में भी हम ने जो शुद्ध खाने की अपनी गलती नहीं सुधारी तो बीमार पड़ते रहेंगे. हमारी सारी इम्यूनिटी खत्म हो जाएगी, इसीलिए हमें न चाहते हुए भी जनहित में अपनी जान दिखाने को जोखिम में डाल आंखें मूंद जनता की जान बचाने के लिए, जनता की इम्यूनिटी का ग्राफ ऊपर की ओर बढ़ाए रखने के लिए शुद्ध देशी गाय के घी में चरबी मिलानी पड़ती है, असली दूध में नकली दूध मिलाना पड़ता है, चावल में जनता के हित के लिए कंकड़ मिलाने पड़ते हैं, इंगलिश शराब में देशी दारू मिलानी पड़ती है. दक्षिणपंथियों में वामपंथी मिलाने पड़ते हैं.

“किसलिए? इसलिए कि देश की इम्यूनिटी बढ़े, सरकार की इम्यूनिटी बढ़े. हम यह सब इसलिए नहीं करते कि ऐसा करने से हमारा मुनाफा बढ़ता है, बल्कि यह तो हम देश की रोग गतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए करते हैं. और हमारी कोशिशों के नतीजे तुम्हारे सामने हैं.

“कोई हमें चाहे कितना ही देशद्रोही क्यों न कहे, पर हमारे लिए जनता की इम्यूनिटी पहले है, अपना मुनाफा बाद में. पर तुम घटिया सोच वाले हमेशा सोचते उलटा ही हो.

“देशभक्तों को आज देश की चिंता भले ही न हो, पर हमें अपने मुनाफे से ज्यादा जनता की इम्यूनिटी की चिंता है. और ऊपर से एक तुम हो कि रोज सुबह उठ कर सब से पहले मिलावटी दूध की चाय की स्वाद लगा चुसकियां लेते हुए हम मिक्सिंग करने वालों को ही कोसते हो.

“भाई साहब, जो हम दूध में पानी न मिलाते, मसालों में लीद न मिलाते, हलदी में पीला रंग न मिलाते, सच में झूठ न मिलाते, धर्म में लूट न मिलाते, आटे में फाइबर के नाम पर लकड़ी का बुरादा न मिलाते, राग मल्हार में राग गंवार न मिलाते तो बुरा मत मानना भाई साहब, देश में एक भी केवल थाली बजाता, दिन में दीए जलाता कोरोना से कतई भी लड़ नहीं पाता. यह तो हमारी उस मिक्सिंग का ही चमत्कार है, जिस की वजह से इस समय भी देश की इम्यूनिटी सातवें आसमान पर है.

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“वैसे गलती से लाख ढूंढ़ने के बाद भी एक तो हमें आज शुद्ध मिलता ही नहीं, पर गलती से जो हम धोखे से शुद्ध खा ही जाते तो इस समय स्वर्ग की हवा खाते होते, क्योंकि शुद्ध खाने वालों में एंटीबौडीज उतने नहीं होते जितने मिक्सिंग किया खानेपीने वालों में होते हैं. यह बात हम बरसों से कह रहे थे, यह बात हम बरसों से जानते थे, पर कोई हमारी बात मानने को तैयार ही न था, घर का एमडी नीम हकीम जो ठहरा. अब आईसीएमआर कह रहा है तो मानना ही पड़ेगा.

“भाई साहब, गए वे दिन जब लापरवाही बढ़ती थी तो दुर्घटना के चांस बढ़ते थे. अब तो लापरवाही में ही सुरक्षा है.”

बलात्कारी की हार: भाग 1

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘‘बधाई हो आप को, बेटी का जन्म हुआ है,’’ नर्स ने बिस्तर पर लेटी हुई प्रीति से कहा.

प्रीति ने उनींदी आंखों से अपनी बेटी की तरफ देखा, उस के होंठों पर मुसकराहट तैर आई और आंखों से चांदी के दो छोटे गोले कपोलों पर ढुलक गए.

प्रीति ने एक लंबी सांस छोड़ी और आंखों को कमरे के एक कोने में टिका दिया. ‘‘नहीं सिस्टर नहीं, यह मेरी बेटी नहीं है. यह तो मेरी जीत है, मेरी जित्ती.’’ अचानक से कह उठी थी प्रीति. कमरे के एक कोने में टिकी आंखों ने यादों की परतों की पड़ताल करनी शुरू कर दी थी.

प्रीति का तबादला आगरा की ब्रांच में हुआ था. बैंक में उस का पहला दिन था और इसी उत्साह में उस ने एक घंटे पहले ही कैब मंगवा ली थी और नियत समय से 15 मिनट पहले ही अपने बैंक जा पहुंची.

10 बजतेबजते ही लगभग सारा स्टाफ आ गया था. आज इस बैंक में प्रीति एक नया चेहरा थी, इसलिए सब ने उस का स्वागत किया.

प्रीति की उम्र 25 वर्ष थी और इस ब्रांच का स्टाफ भी युवा ही था, इसलिए वह बहुत ही जल्दी सब में घुलमिल गई थी.

लंचब्रेक होने पर वह कैंटीन जाने के लिए उठने ही जा रही थी कि तभी एक आवाज ने उस का ध्यान भंग किया.

‘‘प्रीतिजी, मेरा नाम अमित है. अगर आप बुरा न मानें तो मेरे साथ लंच शेयर कर सकती हैं. मां के बनाए हुए ढोकले लाया हूं. साथ देंगी तो अच्छा लगेगा,’’ अमित ने कहा.

प्रीति ने चौंक कर देखा तो वह उस का सहकर्मी था जो कैश मैनेजर की पोस्ट पर था. एक अच्छा शरीर, चेहरे पर घनी मूंछ और आंखों पर हलके लैंस वाला चश्मा और उस की आयु 30 वर्ष के आसपास. कुल मिला कर प्रीति भी अपनेआप को अमित के प्रति आकर्षित होने से न रोक पाई थी.

अमित ने अपना टिफिन आगे बढ़ाया तो सकुचाते हुए प्रीति ने एक ढोकला ले लिया और अमित को थैंक्स कहा.

‘‘जी मैं पिछले एक साल से इसी ब्रांच में काम कर रहा हूं. मैं ने देखा है इस ब्रांच में जो भी लोग आते हैं वे बहुत ही खूबसूरत होते हैं,’’ अमित ने प्रीति की आंखों में ?ांकते हुए कहा.

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अपने आखिरी के शब्द अमित ने कुछ इस तरह कहे थे कि प्रीति कुछ शरमा सी गई थी. अमित का बात करने का अंदाज कुछ ऐसा था कि उस ने पहली ही मुलाकात में प्रीति के बारे में काफीकुछ जान लिया और लोकल घर का पता भी पूछ लिया था.

‘‘अमितजी, मैं यहां पर सिविल लाइंस में एक घर में पेइंगगैस्ट के तौर पर रहती हूं,’’ प्रीति ने बताया.

‘‘ओह, सिविल लाइंस वह तो मेरे घर जाने के रास्ते में ही पड़ता है. अगर आप बुरा न मानें तो मैं कल आते समय आप को पिक कर लूं?’’

अमित ने कुछ ऐसे कहा कि प्रीति को इस में कोई बुराई नहीं नजर आई और उस ने हामी भर दी.

अब तो अमित रोज सुबह प्रीति को पिक करता और शाम को घर जाते समय उसे उस के कमरे पर छोड़ देता.

अमित अपनी बातों में बड़ा बेतकल्लुफ और बेपरवाह सा था. उस की यही बात प्रीति को सब से ज्यादा पसंद भी थी क्योंकि उसे गंभीरता ओढ़े, जिंदगी को गणित के ढंग से जीने वाले लोग पसंद नहीं थे.

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यही वजह थी कि कहीं न कहीं वह अमित में एक आदर्श जीवनसाथी देख चुकी थी.

अमित एक दिन प्रीति को उस के घर छोड़ने जा रहा था कि रास्ते में तेज आंधी और बारिश शुरू हो गई. बहुत मुश्किल से प्रीति का घर आया. बारिश और उग्र हो रही थी, इसलिए प्रीति ने अमित को थोड़ा ठहर कर जाने को कहा जिसे अमित ने सहर्ष मान लिया.

दोनों भीगे हुए थे.  प्रीति चाय बना लाई और दोनों चाय की चुस्कियां लेने लगे. अचानक से बिजली चली गई. प्रीति ने मोबाइल की लाइट जलाई तो महसूस किया कि अमित तो उस के पीछे खड़ा है.

‘‘प्रीति, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं,’’ उस के हाथ प्रीति के जिस्म पर फिसल रहे थे.

पता नहीं क्यों अमित की इस हरकत का जवाब कुछ भी नहीं दे पाई प्रीति. उस के मौन को अमित ने उस की स्वीकृति सम?ा और अपने हाथों की गति को तेज कर दिया.

इंद्रधनुष के दो रंग आपस में घुल गए. प्रीति की आंखों में चांदनी उतर आई थी. दो दिलों के मिलने की खुशबू पूरे कमरे में फैल गई. अंदर का तूफान जब शांत हुआ तो दोनों ने देखा कि बाहर का तूफान भी शांत हो चुका था.

प्रीति जो अमित को अपने जीवनसाथी के रूप में मान चुकी थी, इसलिए वह अपने इस नए अनुभव पर शर्मिंदा न हो कर रोमांचित थी और यह रोमांच उस ने अपने तक नहीं रखा बल्कि अपने घर के लोगों के साथ भी बांटा. घर के लोग भी खुश हुए कि चलो अच्छा हुआ जो प्रीति को मनचाहा वर मिल गया.

जब इस रिश्ते को घर वालों से हरी ?ांडी मिल गई तो प्रीति और अमित ने कई बार अपने अंदर के तूफान को अनुभव किया जिस का परिणाम यह हुआ कि प्रीति को गर्भ ठहर गया.

‘‘अमित, सुनो, अब हमें जल्दी शादी कर लेनी चाहिए,’’ कौफीहाउस में अमित के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए प्रीति ने कहा.

‘‘क्या… पागल तो नहीं हो गई हो तुम. अरे हम दोनों साथ में काम करते हैं, अगर तुम्हारे साथ थोड़ा एंजौय कर लिया तो तुम तो गले ही पड़ने लगीं,’’ अमित बौखला सा गया था.

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‘‘पर तुम ने तो कहा था कि प्यार करते हो मु?ा से, शादी करना चाहते हो,’’ प्रीति हकला सी गई.

‘‘अरे यार, ऐसे वादे तो खूबसूरत लड़कियों से करने के लिए ही तो होते हैं वरना वे हाथ ही कहां रखने देंगी,’’ अमित ने बेशर्मी दिखाई.

‘‘पर तुम ने तो गलत किया मेरे साथ. यह तो सरासर धोखा है,’’ प्रीति की आवाज डूब रही थी.

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