होमियोपैथी : मीठी गोलियों के नाम पर गोरखधंधा

सैंट्रल कौंसिल औफ होमियोपैथी (सीसीएच) के चेयरमैन रामजी सिंह होमियोपैथी कालेजों को मान्यता देने की डीलिंग तो खुद करता था, पर वह ‘नजराना’ अपने कुछ खास चेलों के जरीए ही लेता था.

रामजी सिंह की गिनती पटना और दिल्ली के अच्छे होमियोपैथी डाक्टरों में होती है. सीसीएच का अध्यक्ष बनने से पहले वह बिहार हौमियोपैथ चिकित्सा बोर्ड का सदस्य भी रह चुका था.

सीसीएच होमियोपैथी चिकित्सा शिक्षा की नियामक संस्था है और पिछले 5 सालों से रामजी सिंह उस का चेयरमैन बना हुआ था.

पटना के कदमकुआं महल्ले में ही रामजी सिंह का प्राइवेट क्लिनिक चलता है और उस ने रामकृष्णा नगर में जीडी मैमोरियल होमियोपैथी कालेज भी खोल रखा है.

पिछले दिनों राजकोट के एक प्राइवेट होमियोपैथी कालेज मैनेजमैंट से 20 लाख रुपए घूस लेने के चक्कर में वह सीबीआई के चंगुल में फंस गया.

सीबीआई के सूत्रों के मुताबिक, चेयरमैन के बदले उस के किसी खास आदमी ने रकम वसूल की. उस के बाद हवाला के जरीए 20 लाख रुपए रामजी सिंह के पास पहुंचा दिए गए थे.

दरअसल, राजकोट की एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी ने होमियोपैथी कालेज की मान्यता के लिए सीसीएच में आवेदन दिया था. कालेज के पक्ष में निरीक्षण रिपोर्ट देने के लिए कालेज का वाइस प्रैसिडैंट लगातार रामजी सिंह और उस के एजेंट के संपर्क में था.

कालेज की जांच के लिए रामजी सिंह ने 3 लोगों की कमेटी बनाई थी. जबलपुर होमियोपैथी कालेज के प्रोफैसर राहुल श्रीवास्तव, कोलकाता के नैशनल इंस्टीट्यूट औफ होमियोपैथी के प्रोफैसर अशोक कोनार और रोहतक होमियोपैथी कालेज के प्रोफैसर अश्विनी आर्य को इस कमेटी का मैंबर बनाया गया था.

कमेटी ने कालेज का मुआयना कर लिया था और दिल्ली में ही ‘नजराने’ की रकम के भुगतान की बात तय हो चुकी थी. उस के बाद ही सीबीआई ने रामजी सिंह के दिल्ली के दफ्तर में ही जाल बिछा कर उसे और उस के एजेंट को दबोच लिया था.

कभी किराए के एक छोटे से कमरे में क्लिनिक की शुरुआत करने वाले रामजी सिंह की हैसियत को पिछले 20 सालों के दौरान मानो पंख लग गए थे.

साल 2001 में उस ने पटना के न्यू बाईपास से सटे रामकृष्णा नगर में जीडी मैमोरियल होमियोपैथी कालेज खोला था. कालेज को भी उस ने गैरकानूनी कमाई का जरीया बना रखा था.

छात्रों का शोषण करने में रामजी सिंह कोई कोरकसर नहीं छोड़ता था. छात्रों के क्लास से गैरहाजिर रहने पर जुर्माने के तौर पर वह सालाना लाखों रुपए वसूल लेता था.

एक दिन गैरहाजिर रहने पर छात्र से 2 सौ रुपए फाइन लिया जाता था. दूसरे राज्यों के छात्र सालभर में 2 सौ से ज्यादा दिन गैरहाजिर रहते थे. हर साल मई महीने में इम्तिहान का फार्म भरने के समय गैरहाजिर रहने का फाइन वसूला जाता था.

इस से यह साफ हो जाता है कि कालेज को छात्रों की पढ़ाईलिखाई या कैरियर से कोई मतलब नहीं रहता था. सारी कोशिश केवल जेब गरम करने की ही रहती थी.

कालेज के कई छात्रों ने पूछताछ के दौरान पुलिस को बताया कि एडमिशन के समय डोनेशन के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती थी. दूसरे राज्यों के काफी छात्र उस के झांसे में आसानी से फंस जाते थे.

रामजी सिंह सीसीएच का अध्यक्ष भी था, इसलिए छात्र और उस के परिवार वाले उस की बातों पर आसानी से भरोसा कर लेते थे. छात्रों को यह लालच भी दिया जाता था कि कोर्स पूरा होने के बाद नौकरी भी लगवा दी जाएगी.

गौरतलब है कि जीडी मैमोरियल होमियोपैथी कालेज में बिहार से ज्यादा जम्मूकश्मीर और उत्तर प्रदेश के छात्र हैं.

सीबीआई ने होमियोपैथी कालेजों को मान्यता देने के एवज में रिश्वतखोरी का भंडाफोड़ किया है. इसी के तहत रामजी सिंह और बिचौलिए हरिशंकर झा को दबोचा गया है.

रामजी सिंह ने घूस लेने के लिए हरिशंकर झा को दलाल बना रखा था. मान्यता के लिए आवेदन करने वाले कालेजों से हरिशंकर झा ही डीलिंग करता था और रिश्वत की रकम तय करता था.

घूस की रकम तय हो जाने के बाद रामजी सिंह अपने खास डाक्टरों की टीम को कालेज की जांच करने के लिए भेजता था. रामजी सिंह की मरजी के मुताबिक ही टीम रिपोर्ट बनाती थी और उस के बाद कालेज को आसानी से मान्यता दे दी जाती थी.

गुजरात के राजकोट के एक प्राइवेट होमियोपैथी कालेज को मान्यता देने के लिए रामजी सिंह ने अपने खास लोगों की टीम बनाई थी और टीम ने उस के मनमुताबिक रिपोर्ट दे दी थी.

उस के बाद कालेज प्रबंधन से 20 लाख रुपए की रिश्वत की रकम ली जा रही थी. उसी समय सीबीआई ने रामजी सिंह के दलाल हरिशंकर झा को रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया था.

हरिशंकर झा के बयान के आधार पर रामजी सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया. उस के बाद सीबीआई ने दिल्ली, गुड़गांव, रोहतक, राजकोट, गांधीनगर, पटना, जबलपुर और कोलकाता में रामजी सिंह के ठिकानों पर छापे मारे और कई दस्तावेज बरामद किए.

पटना के कंकड़बाग इलाके में द्वारका कालेज के सामने अशोक नगर के रोड नंबर-4 पर रामजी सिंह का आलीशान बंगला है.

मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के रहने वाले रामजी सिंह ने अपने सीसीएच के अध्यक्ष के तौर पर पिछले 5 सालों में देशभर में सैकड़ों होमियोपैथी कालेजों को मान्यता देने के बदले करोड़ों रुपए की दौलत बटोरी है.

पटना के रामकृष्णा नगर में उस ने 5 मकान और तकरीबन 6 एकड़ जमीन खरीद रखी है. बलिया में भी उस ने करोड़ों रुपए की जमीन खरीद रखी है.

बिहार के मुजफ्फरपुर के रायबहादुर टुनकी साह होमियोपैथी कालेज से डिगरी लेने के बाद रामजी सिंह ने साल 1990 में होमियोपथी इलाज की प्रैक्टिस शुरू की थी. जब प्रैक्टिस नहीं चली, तो उस ने पटना के पटेल नगर इलाके में रहने वाले मशहूर होमियोपैथी डाक्टर बी. भट्टाचार्य के असिस्टैंट के तौर पर काम करना शुरू किया.

रामजी सिंह के एक भाई की दिल्ली में होमियोपैथी दवाओं की कंपनी है. उस कंपनी की बनी दवाएं बिहार में खूब बिकती हैं.

केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने सीसीएच द्वारा मान्यता दिए गए होमियोपैथी कालेजों में नामांकन पर रोक लगा रखी है. मंत्रालय का मानना है कि सीसीएच ने कई ऐसे होमियोपैथी कालेजों को मान्यता दे दी है, जो मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं.

दिल्ली के महीपालपुर इलाके में हरिशंकर झा के 2 होटल हैं. एक का नाम ‘मोनार्क’ और दूसरे होटल का नाम ‘हनुमंत पैलेस’ है. रामजी सिंह जब दिल्ली जाता था, तो वह होटल ‘हनुमंत पैलेस’ में ही डेरा जमाता था.

सीबीआई इस बात की भी जांच कर रही है कि हरिशंकर झा के होटलों में भी तो होमियोपैथी घोटाले के रुपए नहीं लगे हुए हैं?

इस से पता चलता है कि होमियोपैथी की मीठीमीठी गोलियों की आड़ में रामजी सिंह होमियोपैथी को कड़वा और काला बनाने की जुगत में लगा हुआ था.

सस्ते मोबाइल फोन की खातिर ली महंगी जान

उत्तर प्रदेश में बस्ती जिले के गौर थाना इलाके का केसरई गांव. वहां के एक बाशिंदे रमेश यादव ने 30 अक्तूबर, 2016 की सुबह के तकरीबन 11 बजे थानाध्यक्ष अरविंद प्रताप सिंह को यह सूचना दी कि उस का भाई राजेश कुमार यादव हंसवर गांव में सफाई मुलाजिम था. किसी ने आज सुबह ड्यूटी जाते समय हर्दिया के प्राइमरी स्कूल के पास खड़ंजे पर उस की हत्या कर लाश वहीं फेक दी है.

हत्या की सूचना पा कर इंस्पैक्टर अरविंद प्रताप सिंह ने इस वारदात की सूचना अपने से बड़े अफसरों को दी और खुद अपने दलबल के साथ मौका ए वारदात की ओर चल दिए. वहां एक नौजवान की लाश पड़ी हुई थी और उस के सिर से काफी खून बह कर जमीन पर पड़ा हुआ था. लाश को देखने से ही लग रहा था कि मारे गए उस नौजवान के सिर पर किसी भारी चीज से वार कर उस की हत्या की है.

पुलिस ने लोगों और परिवार वालों से किसी पर हत्या का शक होने की बात पूछी, लेकिन सभी ने इनकार कर दिया. पुलिस को वहां ऐसा कोई सुबूत भी नहीं मिला, जिस से हत्या करने वाले या हत्या की वजह का पता किया जा सके.

इसी बीच परिवार के लोगों ने पुलिस को बताया कि राजेश के पास एक मोबाइल फोन भी था, जो लाश के पास बरामद नहीं हुआ. पुलिस ने परिवार वालों की सूचना के आधार पर राजेश कुमार की हत्या का मुकदमा दर्ज कर व लाश का पंचनामा कर 1 नवंबर, 2016 को ही पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

पुलिस को राजेश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट दूसरे दिन ही मिल गई थी, जिस में मौत की वजह सिर पर चोट लगना ही बताया गया था.

अभी तक पुलिस को राजेश की हत्या करने का कोई भी मकसद नजर नहीं आ रहा था, फिर भी पुलिस गायब मोबाइल फोन को आधार बना कर छानबीन करती रही.

इस दौरान गायब मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगा दिया गया था. पुलिसिया छानबीन में शक की सूई एक शख्स पर जा कर टिक गई, क्योंकि किसी ने पुलिस को यह सूचना दी थी कि राजेश का मोबाइल फोन कप्तानगंज थाना क्षेत्र के हर्दिया गांव के रवीश कुमार मिश्र के पास है.

पुलिस सतर्क हो गई. रवीश कुमार मिश्र को पकड़ने के लिए उस के गांव में दबिश दी गई और उसे मोबाइल समेत गिरफ्तार कर लिया गया.

पुलिस की पूछताछ में रवीश पहले तो इधरउधर की बातों में उलझाता रहा, पर बाद में जब कड़ाई की गई, तो उस ने राजेश कुमार की हत्या करने की जो मामूली वजह बताई, वह उस की सनक का ही नतीजा निकला.

कहानी पिल्ले की

रवीश कुमार मिश्र ने राजेश कुमार की हत्या की जो वजह बताई, वह उस की सनक के चलते हुई थी. उस ने पुलिस को बताया कि उस का कप्तानगंज थाना क्षेत्र में दुधौरा तिलकपुर में ननिहाल है और वह अपने मामा के पास एक पालूत पिल्ले को एक हफ्ते के लिए छोड़ कर आया था.

एक हफ्ते बाद जब वह मामा के पास पिल्ला लेने पहुंचा, तो पिल्ले को न देख उस ने अपने मामा से पूछा.

मामा ने बताया कि उस के पिल्ले ने बहुत परेशान कर रखा था, इसलिए गांव में ही एक आदमी को उस की देखभाल के लिए छोड़ दिया.

इस बात से रवीश आगबबूला हो गया और वह मामा के पास न रुक कर सीधे उस आदमी के पास पहुंच गया और बिना गलती के ही उस के साथ हाथापाई करने लगा. इसी हाथापाई के दौरान उस का मोबाइल फोन कहीं गुम हो गया.

जब रवीश पिल्ले को ले कर अपने गांव हर्दिया आया, तो उस की बहन ने उस से अपना मोबाइल फोन मांगा.

रवीश ने मोबाइल खोजा, पर नहीं मिला. उस ने अपनी बहन से बहाना किया कि उस का मोबाइल किसी को फोन करने के लिए दिया है.  इस के बाद उस ने मोबाइल बहुत खोजा, लेकिन वह नहीं मिला.

रवीश ने घर आ कर बताया कि मोबाइल गायब हो गया है, तो उस की बहन रोने लगी. घर वाले रवीश को ताना मारने लगे.

रवीश परेशान हो कर घर से बाहर निकल गया. इसी उधेड़बुन में वह गांव से बाहर जाने वाले खड़ंजे की सड़क पर जा ही रहा था कि उसे एक आदमी मोबाइल पर बात करते हुए आता दिखाई दिया. उस को लगा कि उस आदमी का मोबाइल छीन कर वह अपनी बहन को दे सकता है. इस के बाद उस ने राजेश कुमार के पास जा कर उस का मोबाइल छीनने की कोशिश की.

अचानक हुई इस छीनाझपटी से राजेश कुछ नहीं समझ पाया और दोनों में हाथापाई होने लगी. तभी रवीश कुमार के हाथ में एक डंडा आ गया और उस ने डंडे से राजेश के सिर पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया.

राजेश वहीं गिर कर तड़पने लगा और जल्द ही उस की मौत हो गई. रवीश ने मोबाइल उठाया और जिस डंडे से राजेश की हत्या की थी, उसे पास के ही एक गन्ने के खेत के बीच में जा कर गाड़ दिया.

रवीश जब घर आया और उस ने वह मोबाइल फोन अपनी बहन को देने की कोशिश की, तो उस की बहन ने लेने से इनकार कर दिया. लिहाजा, उस ने वह मोबाइल अपने पास ही रख लिया.

स्टेशन उड़ाने की धमकी

रवीश कुमार की सनक का एक मामला 30 जुलाई, 2015 को भी सामने आया था, जब उस ने अपने घर में पड़े एक झोले पर पंजाब के भटिंडा के एक दुकानदार का मोबाइल नंबर देखा, तो उस ने उस दुकानदार को फोन कर भटिंडा रेलवे स्टेशन को बम से उड़ाने की धमकी दे डाली.

यह धमकी सुन कर उस दुकानदार ने पंजाब पुलिस को सूचना दी, तो पंजाब पुलिस सक्रिय हो गई.

जिस मोबाइल नंबर से उस दुकानदार को रेलवे स्टेशन उड़ाने की धमकी दी थी, उस का सर्विलांस के जरीए रवीश की लोकेशन ढूंढ़ ली.

इस के बाद पंजाब पुलिस ने इस की सूचना बस्ती पुलिस को दी, जिस के बाद वहां की पुलिस भी सक्रिय हो गई और आननफानन रवीश कुमार मिश्र को गिरफ्तार कर धारा 505 के तहत मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया.

इंसाफ चाहिए इस निर्भया को

फोन की घंटी बजी तो अख्तर खान ने स्क्रीन पर नंबर देखा. नंबर जानापहचाना था, इसलिए उस ने तुरंत फोन रिसीव किया. तब दूसरी ओर से पूछा गया कि कौन, अख्तर खान बोल रहे हैं तो अख्तर खान ने कहा, ‘‘हां…हां गुड्डी, मैं अख्तर खान ही बोल रहा हूं. कहो, क्या आदेश है?’’

‘‘अरे खान साहब, आदेश कोई नहीं है. एक अच्छी सी बात है. एक बड़ा ही प्यारा सा माल आया है. आप शौकीन आदमी हैं, इसलिए उसे सब से पहले आप के सामने ही पेश करना चाहती हूं. आप पहले आदमी होंगे, जिस के साथ वह हमबिस्तर होगी.’’ गुड्डी ने मनुहार सा करते हुए कहा.

‘‘अरे गुड्डी, पहले माल तो दिखाओ. माल देखने के बाद ही आने, न आने के बारे में सोचूंगा.’’ अख्तर खान ने कहा.

गुड्डी ने तुरंत वाट्सऐप पर एक लड़की का फोटो भेज दिया. फोटो देख कर अख्तर खान की आंखें चमक उठीं. उस ने तुरंत पूछा, ‘‘मैडम, इस का रेट क्या होगा?’’

‘‘पूरे 10 हजार लगेंगे.’’ गुड्डी ने कहा.

‘‘गुड्डी, 10 हजार में तो किसी बिकाऊ हीरोइन को खरीदा जा सकता है. यह मुंबई से लाई गई कोई हीरोइन थोड़े ही है?’’ अख्तर खान ने कहा.

‘‘अख्तर साहब, यह हीरोइन भले नहीं है, पर हीरोइन से कम भी नहीं है. इसे दिल्ली से लाया गया है. एक बार चखोगे, तो गुलाम बन जाओगे. उस के बाद इस लड़की को ही नहीं, गुड्डी को भी नहीं भूल पाओगे. खान साहब, रेट की बात छोड़ो, अगर लड़की पसंद है तो आ जाओ. फाइनल डील तो मैडम मंजू ही करेंगी.’’ गुड्डी ने कहा.

‘‘गुड्डी मैं इस समय रावतसर ही हूं. तुम कह रही हो तो आधे घंटे में पहुंच रहा हूं. सीधे मैडम मंजू के घर ही पहुंचूंगा.’’

आधे घंटे बाद अख्तर खान हनुमानगढ़ जंक्शन के मोहल्ला सुरेशिया स्थित मंजू मैडम के घर पर था. चायनाश्ते के बाद अख्तर खान को बैडरूम में सजीधजी बैठी लड़की दिखाई गई तो उस की आंखें चमक उठीं. उस ने कुरते की जेब में हाथ डाला और 7 हजार रुपए निकाल कर मंजू के हाथों पर रख दिए. बिना किसी हीलहुज्जत के रुपए मुट्ठी में दबा कर मंजू बैडरूम से बाहर निकल गई. यह मार्च, 2017 के पहले सप्ताह की बात है.

तहसील रावतसर के गांव कल्लासर के रहने वाले सुमेरदीन का बेटा अख्तर खान रंगीनमिजाज युवक था. देहव्यापार का कारोबार करने वाली मंजू अग्रवाल और उस की सहायिका गुड्डी मेघवाल से उस की कई सालों पुरानी जानपहचान थी. अख्तर खान की खेती की जमीन में ‘जिप्सम’ के रूप में प्रचुर मात्रा में खनिज पाया गया है, जिस की वजह से इलाके में उस की गिनती धनी लोगों में होती है.

मंजू के बैडरूम में उस कमसिन लड़की के साथ घंटे, डेढ़ घंटे गुजार कर अख्तर खान संतुष्ट हो कर अपने घर लौट गया. जातेजाते उस ने मंजू और गुड्डी के प्रति आभार भी व्यक्त किया था. इस के बाद मंजू और गुड्डी द्वारा बुलाए गए कई ग्राहकों को उस लड़की ने संतुष्ट किया था.

रात हो गई थी. थक कर चूर हो चुकी उस लड़की ने लगभग रोते हुए कहा, ‘‘आंटी, अब और नहीं सह पाऊंगी शरीर का पोरपोर दर्द कर रहा है.’’

‘‘बस बेटा, आखिरी ग्राहक बचा है. वह एक बड़ा अफसर है. उस के लिए तुझे एक होटल में जाना होगा. जगतार तुझे वहां ले जाएगा. बस आधे घंटे की बात है.’’ मंजू ने सख्त लहजे में प्यार से कहा.

लड़की में मना करने की हिम्मत नहीं थी. इसलिए आधे घंटे में फ्रेश हो कर वह तैयार हो गई. जगतार उसे मोटरसाइकिल से संगम होटल ले गया. लड़की को बताए गए कमरे में पहुंचा कर वह स्वागत कक्ष में आ कर बैठ गया. आधे घंटे बाद लड़की रिशेप्शन पर आई तो जगतार उसे ले कर मंजू के घर आ गया.

2 दिन पहले ही मंजू के घर जबरदस्ती लाई गई यह लड़की बीते एक सप्ताह के हर लम्हे को याद कर के आंसुओं के सागर में गोते लगा रही थी. वहीं उस से देहव्यापार कराने वाली मंजू अग्रवाल पहले ही दिन की कमाई से निहाल हो उठी थी. एक ही दिन में उस की 22 हजार रुपए की कमाई हो चुकी थी.

लड़की, जिसे निर्भया कह सकते हैं, उसे दिल्ली से ला कर मंजू के हाथों बेचा गया था. वह मंजू के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हुई थी. 2 दिन पहले ही मंजू ने उसे दिल्ली के दलाल सुनील बागड़ी के माध्यम से गोलू और निशा से एक लाख रुपए में खरीदा था.

लेकिन मंजू ने अभी उन्हें 30 हजार रुपए ही दिए थे. बाकी के 70 हजार 15 दिनों बाद देने थे, अब तक की कमाई को देख कर मंजू को यही लगा कि उस ने जो पैसे इस लड़की पर लगाए हैं, वे 5-7 दिनों में ही निकल आएंगे. उस के बाद तो उस के घर रुपयों की बरसात होगी.

घर में निर्भया के कदम पड़ते ही मंजू के दिन फिर गए थे. उस के घर ग्राहकों की लाइन लग गई थी. एक बार जो निर्भया के साथ मौज कर लेता था, उस का दीवाना बन जाता था. उसे बाहर ले जाने के लिए मंजू ग्राहकों से मुंह मांगी रकम लेती थी. निर्भया कहीं मुंह ना खोल दे या भाग न जाए, इस के लिए 2-3 लड़के हमेशा उस पर नजर रखते थे. अगर वह ग्राहक के पास जाने से मना करती तो उसे डरायाधमकाया जाता.

मासूम और नाबालिग निर्भया शरीर के साथसाथ मानसिक रूप से भी मंजू ही नहीं, उस के गुर्गों की दासी बन चुकी थी. उस की शारीरिक कसावट और रूपलावण्य में गजब का आकर्षण था. उसे होटल में ले जाने वाला आदमी ग्राहक से पहले खुद उस के साथ मौज करता था. कमाई के चक्कर में मंजू ने उसे मशीन बना दिया था.

मंजू ने तमाम लड़कियों को अपने घर में रख कर धंधा करवाया था, लेकिन बरकत तो निर्भया के आने पर ही हुई थी. सुरेशिया इलाके में मंजू के 2 मकान थे. गुड्डी उस के पड़ोस में ही रहती थी. पहले वह मंजू के यहां देहधंधा करती थी. उम्र ज्यादा हो गई तो वह मंजू के लिए दलाली करने लगी थी. मंजू अपने ग्राहकों की हर सुखसुविधा का खयाल रखती थी.

उस ने अपने मकान के एक कमरे को फाइव स्टार होटल के कमरे की तरह सजा रखा था. वह ग्राहकों के लिए शबाब के साथसाथ शराब भी उपलब्ध कराती थी. बीते एक महीने में मंजू ने निर्भया से अपनी रकम तो वसूल कर ही ली थी, अच्छाखासा फायदा भी कमा लिया था.

निर्भया के चहेतों ने उस से शादी करने के लिए मंजू के सामने मुंहमांगी रकम देने की भी बात कही थी. मंजू तैयार भी थी, पर निर्भया का आईडी प्रूफ नहीं था, इसलिए वह शादी नहीं करवा पा रही थी. मंजू यह भी जानती थी कि एक तो निर्भया नाबालिग है, इस के अलावा वह दलित समुदाय से भी है. लेकिन अंधाधुंध कमाई के चक्कर में उस की आंखों पर परदा पड़ा हुआ था.

सालों पहले मंजू खुद भी देहधंधा करती थी, वह थी भी काफी आकर्षक. लेकिन उस के चहेतों में निर्भया के दीवानों जैसी दीवानगी नहीं थी. विचारों के भंवर में फंसी मंजू अपने 30-35 साल पुराने अतीत में खो गई थी.

तहसील टिब्बी के एक गांव में जन्मी मंजू के युवा होते ही घर वालों ने सूरतगढ़ निवासी इंद्रचंद अग्रवाल से उस की शादी कर दी थी. स्वच्छंद और आजाद खयालों वाली मंजू को ससुराल की परदा प्रथा और रोकटोक कतई पसंद नहीं आई. 7 सालों में मंजू ने 3 बेटों को जन्म दिया.

 

बच्चे पैदा होने के बाद मंजू की सुंदरता कम होने के बजाए और बढ़ गई थी. आखिर एक दिन ससुराल की बंदिशों से ऊब कर मंजू ने अपने दांपत्य को अलविदा कह दिया. तीनों बेटे कभी मां के पास तो कभी दादादादी के पास रह कर दिन काट रहे थे. मंजू की ज्यादातर रातें अपने आशिकों के साथ गुजर रही थीं.

मंजू का एक आशिक था बबलू. उस की दबंगई से प्रभावित हो कर मंजू उस के साथ लिवइन रिलेशन में हनुमानगढ़ के हाऊसिंग बोर्ड में रहने लगी थी. बबलू मारपीट, कब्जे करना, देहव्यापार कराना, लूटपाट और हत्या के प्रयास जैसे अपराध कर के डौन बन गया था.

मंजू भी हाऊसिंग बोर्ड इलाके में मजबूर युवतियों  से धंधा करवाने लगी तो पड़ोसियों ने उस का पुरजोर विरोध किया. इस के बाद मंजू सुरेशिया में शिफ्ट हो गई.

कहा जाता है कि सन 2006 में नारी सुख का एक तलबगार मंजू के घर पहुंचा. मंजू और उस के गुंडों ने उस दिन उस ग्राहक के लगभग 30 हजार रुपए छीन लिए थे. उस आदमी ने अपने खास दोस्त को आपबीती बताई तो वह एक नामी बदमाश को ले कर मंजू के घर  पहुंच गया.

बदमाश ने 2 दिनों में पूरी रकम लौटाने को कहा और न लौटाने पर परिणाम भुगतने की धमकी दी. अगले दिन मंजू अपनी बहू को ले कर हनुमानगढ़ के तत्कालीन एसपी के पास पहुंची और सोनू की ओर से उस आदमी और उस के साथी बदमाश के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराने का आदेश करा दिया.

लेकिन दोनों लड़के इलाके के विशिष्ट लोगों को साथ जा कर सारी सच्चाई एसपी को बताई तो मंजू का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ.

मंजू के 2 बेटे युवा होने से पहले ही चल बसे थे. बड़े बेटे सुरेश की शादी सोनू से हुई थी. मंजू ने अपनी बहू सोनू को भी धंधे में उतार दिया था. सन 2001 में बबलू डौन पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. उस के बाद मंजू ने उस की जगह ले ली. जल्दी ही वह लेडीडौन के रूप में कुख्यात हो गई.

कारण कोई भी रहा हो, मंजू ने पुलिस वालों, छुटभैये राजनेताओं से संबंध बना लिए थे. उस बीच मंजू के खिलाफ पीटा एक्ट, ब्लैकमेलिंग, देहव्यापार, कब्जा करने आदि के मुकदमे दर्ज हुए. पर उसे सजा एक में भी नहीं हुई.

उन दिनों मंजू के सैक्स रैकेट की तूती बोलती थी. उस के यहां राजस्थान की ही नहीं, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार आदि से दलालों के माध्यम से देहव्यापार के लिए लड़कियां मंगाई जाती थीं.

‘‘मैडम, कमरे में कोई ग्राहक आप का इंतजार कर रहा है.’’ गुड्डी के कहने पर मंजू की तंद्रा टूटी. मंजू कमरे में बैठे ग्राहक के पास पहुंची. चायपानी के बाद ग्राहक ने कहा, ‘‘मैडम, आप के यहां दिल्ली से कोई माल आया है, उस के बड़े चर्चे सुने हैं. मैं उस के साथ कुछ समय बिताना चाहता हूं.’’

‘‘हां, हां क्यों नहीं, उस का रेट 10 हजार रुपए हैं.’’ मंजू ने कहा.

‘‘मैं उस के साथ पूरी रात बिताऊं तो…?’’ ग्राहक ने कहा.

‘‘जरूर बिताइए, पर रात के डबल पैसे 20 हजार रुपए लगेंगे.’’ मंजू ने कहा.

ग्राहक ने 15 हजार रुपए मंजू की हथेली पर रख दिए और निर्भया के साथ विशिष्ट कमरे में घुस गया. निर्भया के लिए वह रात बहुत ही पीड़ादायक साबित हुई. उस ग्राहक ने एक ही रात में निर्भया को जैसे रौंद डाला. हवस में पागल उस आदमी ने निर्भया को जगहजगह काट खाया था. उस के साथ कुकर्म भी किया था. उस की हैवानियत से निर्भया के संवेदनशील अंगों में रक्तस्राव शुरू हो गया था.

वह गिड़गिड़ाती रही, पर शराब के नशे में मस्त ग्राहक को उस पर दया नहीं आई. निर्भया अस्तव्यस्त हालत में बैड पर पसरी पड़ी रही. उस की पीड़ा से मंजू को कोई सरोकार नहीं था. अगली रात को उस का सौदा एक ग्राहक से पुन: कर दिया गया. वह ग्राहक भी शराब पी कर निर्भया के कमरे में पहुंचा तो उस से कपड़े उतारने को कहा.

निर्भया ने कपड़े उतारे तो उस की हालत देख कर वह पीछे हट गया. बाहर आ कर उस ने मंजू से कहा, ‘‘तू ने मेरे साथ धोखा किया है. मेरे पैसे लौटा दे अन्यथा काट कर फेंक दूंगा.’’

हकीकत जान कर मंजू के बेटे मुकेश ने कहा, ‘‘मम्मी, इन के पैसे लौटा दो.’’

‘‘अरे भई इतना गुस्सा क्यों कर रहे हो? अगर वह पसंद नहीं है तो सोनू के साथ टाइम पास कर लो.’’ मंजू ने बहू की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘और अगर पैसा ही चाहिए तो सुबह आ कर ले लेना.’’

शराबी ग्राहक बड़बड़ाता हुआ चला गया. यह 27 मार्च, 2017 की बात है.

अगले दिन रात वाला ग्राहक किसी भी समय पैसे लेने आ सकता था. मंजू नहीं चाहती थी कि घर में बखेड़ा हो. इसलिए उसे लगा कि निर्भया को कहीं दूसरी जगह पहुंचा देना चाहिए. उस के पड़ोस में सरदारी बुआ (बदला हुआ नाम) रहती थीं. उसे उन का घर सुरक्षित लगा, इसलिए वह निर्भया को साथ ले कर उन के घर जा पहुंची.

सरदारी बुआ से उस ने कहा, ‘‘बुआ, यह मेरी भांजी है. मेरी कोलकाता वाली बहन की बेटी. आज इस की मम्मी आ रही है. मैं उन्हें लेने रेलवे स्टेशन जा रही हूं. घर में अकेली बोर हो जाएगी, इसलिए आप मेरे लौटने तक इसे अपने यहां रख लो.’’

इतना कह कर मंजू चली गई. उस के जाने के बाद निर्भया लड़खड़ाते हुए सरदारी बुआ के पास पहुंची तो उसे इस तरह से चलते देख सरदारी बुआ ने उस के सिर पर हाथ रख कर पूछा, ‘‘क्या बात है बिटिया, तेरी तबीयत ठीक नहीं क्या? तेरे पैरों में चोट लगी है क्या?’’

ममत्व भरे स्पर्श से निर्भया बिलख पड़ी. सरदारी बुआ के सीने पर सिर रख कर उस ने कहा, ‘‘आंटी, जख्म पैरों में ही नहीं, पूरे बदन पर हैं. हृदय घावों से छलनी हो चुका है. मंजू मेरी मौसी नहीं, इस ने मुझे खरीदा है. आंटी मुझे बचा लो.’’

सरदारी बुआ ने दुनिया देखी थी. निर्भया ने जितना कहा था, उतने में ही वह पूरा माजरा समझ गई. उस बच्ची की पीड़ा को उन्होंने गंभीरता से लिया. उन का मन निर्भया को बचाने के लिए तड़प उठा. उन्होंने तुरंत बाल संरक्षण कमेटी के जिलाध्यक्ष एडवोकेट जोट्टा सिंह को फोन कर के अपने घर बुला लिया. नाबालिग बच्ची से जुड़ा मामला था, इसलिए वह अकेले नहीं आए थे, उन के साथ उन के साथी भी आए थे.

नाबालिग निर्भया की हालत देख कर जोट्टा सिंह द्रवित हो उठे. उस की हालत काफी गंभीर थी. उसे तत्काल मैडिकल सहायता की जरूरत थी. मामला संगीन था, इसलिए पुलिस को भी सूचना देना जरूरी था. उन्होंने तुरंत एसपी भुवन भूषण यादव को मामले की जानकारी दे दी.

एसपी के निर्देश पर महिला थाने की थानाप्रभारी सहयोगियों के साथ सरदारी बुआ के घर पहुंच गईं. अब तक मंजू परिवार के साथ फरार हो चुकी थी. बाल संरक्षण कमेटी के संरक्षण में निर्भया को हनुमानगढ़ के जिला चिकित्सालय में भरती कराया गया.

शुरुआती पूछताछ में पुलिस को पता चला कि निर्भया दिल्ली के अमन विहार की रहने वाली थी. हनुमानगढ़ पुलिस ने दिल्ली के थाना अमन विहार पुलिस से संपर्क किया तो पता चला कि निर्भया के पिता कुंदन (बदला हुआ नाम) ने फरवरी महीने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

सूचना पा कर थाना अमन विहार पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ दर्ज मुकदमे में गोलू, मंजू, निशा, सुनील बागड़ी आदि को नामजद कर लिया. इस के बाद दिल्ली पुलिस की सबइंसपेक्टर मनीषा शर्मा पुलिस टीम के साथ हनुमानगढ़ पहुंची और निर्भया का बयान ले कर लौट गई.

पुलिस टीम के साथ आए निर्भया के पिता ने बेटी की हालत देखी तो गश खा कर गिर गए. मामला मीडिया द्वारा जगजाहिर हुआ तो शहर में भूचाल सा आ गया. निर्भया को न्याय दिलाने के लिए हनुमानगढ़ में भी मुकदमा दर्ज करने की मांग करते हुए लोग सड़कों पर उतर आए. श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ में कैंडल मार्च निकाला गया.

हनुमानगढ़ पुलिस दिल्ली में मुकदमा दर्ज होने की बात कह कर मुकदमा दर्ज करने से कतरा रही थी. लेकिन लोग मैदान में उतर आए. लोगों का कहना था कि यहां के आरोपियों से दिल्ली पुलिस को कोई सरोकार नहीं रहेगा. निर्भया का बुरा करने वालों को किए की सजा दिलाने के लिए यहां भी मुकदमा दर्ज होना चाहिए.

लोगों के गुस्से को देखते हुए हनुमानगढ़ पुलिस बेबस हो गई. तीसरे दिन महिला पुलिस थाने में मंजू, गोलू, निशा, मुकेश, सोनू आदि के खिलाफ भादंवि की धारा 370, 372, 373, 376 (डी), 377, 3/4 पौक्सो एक्ट व हरिजन उत्पीड़न अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस के बाद डीएसपी वीरेंद्र जाखड़ को मामले की जांच सौंप दी गई.

जानकारी मिलने पर 30 मार्च, 2017 को राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्षा मनन चतुर्वेदी हनुमानगढ़ आईं और स्वास्थ्य केंद्र जा कर उपचाराधीन निर्भया से मिलीं. बच्ची की हालत देख कर वह रो पड़ीं. इस मामले में एक भी गिरफ्तारी न होने से उन्होंने पुलिस को आड़े हाथों लिया और शीघ्र गिरफ्तारी के आदेश दिए. 10वीं कक्षा में पढ़ने वाली निर्भया को अपनी पढ़ाई जारी रखने और वरिष्ठ अधिकारी बनने के लिए प्रेरित करते हुए हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया. कुछ संस्थाओं ने ही नहीं, जन साधारण ने भी निर्भया की आर्थिक मदद की.

आखिर कौन थी निर्भया, वह कैसे चकलाघर संचालिका मंजू अग्रवाल के पास पहुंची? पुलिस जांच में पता चला कि सुरेशिया में ही किराएदार के रूप में मंजू के पड़ोस में सुनील बागड़ी रहता था. इस के पहले वह पश्चिमी दिल्ली के अमन विहार में रहता था. सुनील मंजू का राजदार था और एक दो बार उस के लिए बाहर से लड़की ला चुका था.

एक दिन सुनील मंजू के पास बैठा था तो उस ने कहा, ‘‘अरे सुनील बाबू, आजकल मेरा धंधा बड़ा मंदा है. कोई बढि़या सी लड़की की व्यवस्था कर देते तो धंधा चमक उठता. ऐसे माल के लिए मैं लाख, डेढ़ लाख रुपए खर्च करने को तैयार हूं.’’

‘‘मैडम, यह कौन सा मुश्किल काम है. मैं आज ही अपने साथी से कहे देता हूं.’’ सुनील ने कहा.

दिल्ली में सुनील के पड़ोस में ही गोलू और निशा रहते थे. निशा का पति ट्रक चलाता था, जबकि गोलू टैंपो चलाता था. निशा और उस के पति में किसी बात को ले कर खटपट हो गई तो निशा पति से अलग हो कर गोलू के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगी. सुनील ने मंजू की मंशा गोलू और निशा को बताई तो लाखों मिलने की उम्मीद में उन के मुंह में पानी आ गया.

निशा के पड़ोस में ही रहती थी निर्भया. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ी थी और दसवीं कक्षा में पढ़ रही थी. पिता मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार की गाड़ी खींच रहे थे. आकर्षक कदकाठी और मनमोहक नयननक्श वाली निर्भया गोलू और निशा की निगाह में चढ़ गई. दोनों ने उसे मंजू के अड्डे पर पहुंचाने का मन बना लिया.

बस फिर क्या था. निशा और गोलू निर्भया पर डोरे डालने लगे. निशा को गोलू ने अपनी भाभी बताया था. जानपहचान बढ़ी तो निशा और गोलू निर्भया को गिफ्ट के साथ नकदी भी देने लगे. निशा ने निर्भया से कहा था कि वह गोलू से उस की शादी करा कर उसे अपनी देवरानी बनाना चाहती है.

फिसलन भरी राह पर आखिर एक दिन निर्भया फिसल ही गई और निशा तथा गोलू के साथ भाग गई. उसे ले जा कर पहले गोलू ने उस से शादी की. फिर 4-5 दिनों बाद वे उसे ले कर हनुमानगढ़ पहुंचे और सुनील बगड़ी के माध्यम से मंजू को सौंप दिया गया. निर्भया के गायब होने पर कुंदन ने थाना अमन विहार में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

 

हनुमानगढ़ पुलिस जब मुख्य अपराधियों को 3-4 दिनों तक गिरफ्तार नहीं कर सकी तो लोग नाराजगी व्यक्त करने गले. मीडिया भी पुलिस की भद्द पीट रही थी. साइबर क्राइम एक्सपर्ट हैडकांस्टेबल गुरसेवक सिंह ने मंजू के परिवार की लोकेशन पता कर रहे थे, पर शातिर मंजू पुलिस के पहुंचने से पहले ही उड़नछू हो जाती थी.

आखिर पांचवें दिन मंजू की आंख मिचौली खत्म हो गई. वह अपने बेटे मुकेश और बहू सोनू के साथ हरियाणा के ऐलनाबाद में पुलिस के हत्थे चढ़ गई. अदालत में पेश किए जाने पर अदालत ने तीनों को विस्तृत पूछताछ के लिए 10 दिनों  की पुलिस रिमांड पर सौंप दिया था.

मंजू से पूछताछ के बाद स्थानीय पुलिस ने पहले ग्राहक अख्तर खान सहित, 15 सौ रुपए में कमरा उपलब्ध कराने वाले संगम होटल के मैनेजर कृष्णलाल घूडि़या, दलाल गुड्डी मेघवाल और निर्भया का बुरा करने वाले विजय (रावतसर), नवीन खां, मंजूर खां (मोधूनगर) पूर्णचंद सिंधी (हनुमानगढ़) बिजली मैकेनिक जगदीश काला उर्फ अमरजीत आदि 15 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

अब दिल्ली पुलिस मंजू सोनू, मुकेश आदि को प्रोटक्शन वारंट पर अपनी सुपुर्दगी में लेने की कोशिश कर रही है. दिल्ली के दोनों आरोपी गोलू और निशा तिहाड़ जेल पहुंच गए हैं. हनुमानगढ़ पुलिस के लिए वे दोनों भी वांटेड हैं.

स्वास्थ्य लाभ के बाद निर्भया दिल्ली लौट गई थी. जिंदगी बरबाद करने वाले आरोपियों को फांसी की सजा की मांग करने वाली निर्भया की पुकार अब अदालत के फैसले पर निर्भर करेगी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कत्ल करने से पीछे नहीं हट रही पत्नियां

एक पारिवारिक झगड़े के मसले पर फैसला देते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की है कि ‘बीते डेढ़ दशक में प्रेम प्रसंगों के चलते होने वाली हत्याओं की दर बढ़ी है, जिस से समाज पर बुरा असर पड़ा है. इस पर गंभीरता से विचार करना जरूरी है.’

कोर्ट की यह टिप्पणी बताती है कि पारिवारिक झगड़ों में अब प्रेम संबंधों का जड़ में होना बढ़ गया है. इन मामलों पर सोचविचार करने पर पता चलता है कि अब प्रेमी के साथ मिल कर या अकेले पत्नी ही अपने पति की हत्या करने से हिचक नहीं रही है. ऐसी वारदातें बढ़ती जा रही हैं.

राजस्थान के अलवर जिले की एसपी डाक्टर किरण कंग सिद्दू ने बताया कि घाटोली कसबे में 23 जुलाई, 2022 की सुबह एक घर में घाटोली के ही रहने वाले नानूराम उर्फ बीरम लोधा की लाश मिली थी.

नानूराम की मां ने अपने बेटे की ही पत्नी मनोहर बाई के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कराया था. जांचपड़ताल में सामने आया कि मनोहर बाई ने ही अपने प्रेमी राकेश पुत्र बिरधीलाल लोधा और शेर सिंह पुत्र उमराव सिंह लोधा के साथ मिल कर मारपीट कर उस का गला दबा कर हत्या कर दी थी.

पुलिस ने 24 जुलाई, 2022 को मनोहर बाई को तो गिरफ्तार कर लिया था, पर उस का प्रेमी राकेश और उस का साथी शेर सिंह फरार हो गए थे. बाद में पुलिस ने उन को भी पकड़ लिया था और दोनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था.

एक घटना 25 जनवरी, 2017 की है. रमीला भोई द्वारा थाना बसना में सूचना दी गई थी कि 24 जनवरी, 2017 को उस के बड़े भाई का बेटा विदेशी अपनी पत्नी दुलना और दोनों बच्चों के साथ उस के घर पर आया हुआ था.

25 जनवरी, 2017 को वह किसी काम से घर से बाहर गई थी. उसी दौरान विदेशी के दोनों बच्चे दौड़ते हुए आए और विदेशी द्वारा दुलना को परसूल से मारने की बात बताई. जब वह उन दोनों बच्चों के साथ घर पहुंची तो देखा कि विदेशी कमरे के दरवाजे पर खड़ा था और अंदर दुलना खून से लथपथ पड़ी हुई थी. रमीला ने इस की सूचना बसना थाना में दी.

पुलिस द्वारा मामले की जांचपड़ताल के बाद कोर्ट में अभियोगपत्र पेश किया गया. कोर्ट में मामले की जांचपड़ताल में विदेशी भोई को दुलना बाई की हत्या के आरोप में भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 302 के तहत कुसूरवार पाया गया. जज द्वारा आरोपी विदेशी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.

एक और मामले में छायाबाई का लाखन नाम के लड़के से प्रेम प्रसंग था. इस को ले कर छायाबाई और उस के पति भगवान सिंह के बीच अकसर झगड़ा होता था.

11 जून, 2020 की रात को छायाबाई ने अपने प्रेमी लाखन और एक और आरोपित अकील उर्फ अक्कू को रात में घर बुलाया. तीनों ने मिल कर भगवान सिंह के साथ मारपीट की. लोहे की छड़ और ब्लेड से वार कर उस की हत्या कर दी गई.

उसी रात भगवान सिंह की लाश को बोरे में भर कर छायाबाई अपने प्रेमी लाखन और अकील की मदद से स्कूटी से बाईपास हनुमान मंदिर के पीछे ले गई और पैट्रोल डाल कर जला दिया गया.

इस के बाद छायाबाई ने अपने पति भगवान सिंह की गुमशुदगी की रिपोर्ट औद्योगिक थाने में दर्ज कराई. पुलिस को झूठी कहानी बताई. इस पूरे मामले में द्वितीय सत्र न्यायाधीश गंगाचरण दुबे द्वारा 3 जुलाई को फैसला सुनाते हुए आरोपी छायाबाई को आजीवन कारावास और जुर्माना लगाया गया. वहीं लाखन पुत्र बहादुर और अकील उर्फ अक्कू को भी आजीवन कारावास की सजा दी गई.

सीहोर में अपने पति की 2 प्रेमियों के साथ मिल कर हत्या करने वाली पत्नी और उस के दोनों प्रेमियों को जिला कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश आरएन चंद ने मामले में आरोपी सौरभ दास, हृिदेश निवासी ऊंची ललोई, बैरसिया जिला भोपाल और शारदा बाई निवासी ग्राम जाजनखेड़ी थाना श्यामपुर (मायका ग्राम ऊंची ललोई, बैरसिया, भोपाल) को अभियोजन पक्ष के तर्कों से सहमत हो कर आरोपी सौरभ दास और हृिदेश को धारा 302, 34 भारतीय दंड संहिता में आजीवन कारावास और 5,000-5,000 रुपए के जुर्माने व धारा 120बी भारतीय दंड संहिता में आरोपी शारदा बाई को आजीवन कारावास और 5,000 रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई.

मीडिया सैल के प्रभारी केदार सिंह कौरव ने बताया कि फरियादी जगदीश गौर पिता हरिप्रसाद गौर ने 14 सितंबर, 2021 को अज्ञात आरोपियों द्वारा मलखान गौर की हत्या कर देने की रिपोर्ट की थी.

फरियादी की रिपोर्ट पर अपराध दर्ज कर जांचपड़ताल की गई, तो पाया गया कि मृतक की पत्नी शारदा बाई के मोबाइल फोन की सिम सौरभ दास के नाम से थी, जो आरोपी सौरभ दास के मोबाइल फोन पर लगातार बात करती थी और आरोपी सौरभ दास की बात आरोपी हृिदेश गौर के मोबाइल पर लगातार हो रही थी.

सीडीआर और चैटिंग रिकौर्ड के आधार पर सौरभ दास और शारदा बाई को पुलिस कस्टडी में ले कर पूछताछ की गई, तब इन लोगों ने बताया कि शारदा बाई का पहले से ही सौरभ दास और हृिदेश गौर से प्रेम प्रसंग चल रहा था और नाजायज संबंध थे.

आरोपी ने यह भी बताया कि शारदा बाई की शादी जगदीश से कर दी गई थी, जबकि तीनों के प्रेम प्रसंग और मिलनेजुलने के चलते आरोपी शारदा बाई का उस के पहले पति जगदीश से तलाक हो गया था. इस के बाद आरोपी शारदा बाई का ग्राम जाजनखेड़ी के मलखान से नाता हुआ था. इस के बाद भी दोनों आरोपी सौरभ दास और हृिदेश से आरोपी शारदा बाई का प्रेम संबंध चलता रहा. तीनों समयसमय पर मिलतेजुलते थे.

वारदात से पहले जब आरोपी शारदा बाई अपने मायके रक्षाबंधन पर गई थी, तब उस ने आरोपी सौरभ दास और हृिदेश से कहा था कि मैं तुम लोगों से अपने पति मलखान के रहते हुए मिल नहीं सकती हूं. तुम लोगों को इसे रास्ते से हटाना होगा, तभी हम लोग अच्छे से मिल सकेंगे.

अगर तुम लोगों ने मलखान की हत्या नहीं की, तो मैं तुम्हारे नाम से आत्महत्या कर लूंगी. तब तीनों आरोपियों ने योजना बना कर मलखान को गांव के बाहर मक्के के खेत के पास बुलाया और दोनों आरोपियों हृिदेश व सौरभ दास ने कुल्हाड़ी से उस की हत्या कर दी.

आरोपियों की निशानदेही पर वारदात में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी जब्त कर ली गई और सभी आरोपियों के मोबाइल फोन भी जब्त किए गए. तब साइबर जांच रिपोर्ट में तीनों आरोपियों के मोबाइल से लगातार आपस में बातचीत होना पाया गया. एफएसएल रिपोर्ट के बाद कुल्हाड़ी पर इनसानी खून का होना भी पाया गया. पूरी जांचपड़ताल के बाद कोर्ट के सामने अभियोगपत्र पेश किया गया.

उत्तर प्रदेश में रायबरेली जिले के बछरावां के तहत सेंहगो पश्चिम गांव में नौजवान की मौत से परदा उठा तो पता चला कि यह कुदरती मौत नहीं, बल्कि साजिशन हत्या थी, जिस की आरोपी कोई और नहीं, बल्कि उसी की पत्नी निकली. पुलिस ने उस औरत को हत्या के आरोप में जेल भेजा. वहीं औरत का कहना था कि मारपीट से परेशान हो कर उस ने यह कदम उठाया और कानून को अपने हाथ में ले लिया.

अपर पुलिस अधीक्षक विश्वजीत श्रीवास्तव ने बताया कि अतुल वैवाहिक कार्यक्रमों में हलवाई का काम करता था. वह अपनी पत्नी अन्नू और 2 बच्चों के साथ अलग रहता था. अन्नू ब्यूटी पार्लर चलाती थी. 13 दिसंबर की सुबह वह शराब के नशे में चूर हो कर घर लौटा था. उस वक्त बच्चे स्कूल गए हुए थे. अतुल का अन्नू से झगड़ा हो गया. उस ने अन्नू को मारने की कोशिश की. बचाव में उस की पत्नी ने पास पड़ी पाटी उस के सिर पर दे मारी और फिर खुद ही उस का गला दबा दिया.

अतुल की हत्या करने के बाद अन्नू ने लाश को बैडरूम में ले जा कर बिस्तर पर लेटा दिया और खुद ब्यूटी पार्लर चली गई. दोपहर में जब घर वापस लौटी, तब तक बच्चे भी स्कूल से घर आ गए थे. बच्चों ने पूछा कि पापा उठ क्यों नहीं रहे हैं? इस पर अन्नू ने जवाब दिया कि काफी थके होने के चलते वे सो रहे हैं. रात में मौका मिलने पर अन्नू ने अतुल की लाश बैडरूम से बाहर निकाल कर चारदीवारी के पास डाल दी.

पहले भी कई बार अतुल नशे में आता था, तो घर के बाहर ही गिर पड़ता था. पड़ोस में रहने वाले उस के जेठ अतुल का इलाज कराने के लिए ले जाते थे. अन्नू ने सोचा कि इस बार भी कुछ ऐसा ही होगा और वह कानून की नजरों से बच जाएगी. पर ऐसा हो न सका.

जोखिम लेने की ताकत बढ़ी है

पिछले कुछ सालों से औरतों में आत्मनिर्भरता बढ़ी है. ऐसे में अब उन में कानून और पुलिस के साथसाथ समाज का भी डर खत्म हो गया है. अदालतों में फैसला होने में लंबा वक्त लगता है. ऐसे में हत्या के 5-6 महीने जेल में रहने के बाद आरोपी बाहर आ जाता है और वह आराम से अपनी जिंदगी गुजारने लगता है.

पर ऐसे मामलों में घिरे लोग यह भूल जाते हैं कि आज के दौर में अपराध को छिपाना मुश्किल काम होता है. किसी न किसी वजह से अपराधी पकड़ में आ ही जाता है. अपराध करने से पहले सौ बार सोचने की जरूरत होती है. एक अपराध पूरे परिवार को खत्म कर देता है.

अगर पारिवारिक जीवन में कोई परेशानी है, तो खतरनाक कदम उठाने से पहले एकदूसरे से दूर रहने की सोचें. तलाक देने के रास्ते खुले हैं. इस के लिए हत्या जैसे बड़े अपराध करने जरूरी नहीं हैं.

अकेलापन बढ़ाता है समस्या

कुछ मामलों में जहां शादी के बाद पति बाहर रहता है और पत्नी घर पर अकेली रहती है, ऐसे में उस के करीबी संबंध दूसरे लोगों से बन जाते हैं, जो बाद में झगड़े की वजह बनते हैं. यही झगड़े हत्या की भी वजह बन जाते हैं. पत्नियों में अब हिम्मत बढ़ी है. उन को लगता है कि वे चतुराई से बच निकलेंगी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है.

 शादी के पहले से बने संबंध

कई वारदातें ऐसी होती हैं, जिन में औरत के शादी से पहले दूसरी जगहों पर संबंध बने होते हैं. वे परिवार के दबाव में शादी कर लेती हैं, लेकिन उन का प्रेम संबंध छूटता नहीं. ऐसे में एक जगह वह आती है, जहां पर हत्या की योजना बनने लगती है. नतीजतन, पत्नी अपने प्रेमी के साथ मिल कर वारदात को अंजाम देती है.

नशा है बड़ी वजह

पतिपत्नी के झगड़े में जो वजहें सब से बड़ी दिखती हैं, उन में पति का नशा करना सब से ऊपर होता है. नशा करने वाला पति न तो घरपरिवार की सही तरह से जिम्मेदारी उठा पाता है और न ही वह पत्नी को खुश रखता है. कई बार खुशी की तलाश में पत्नी भटक जाती है. यहीं से छोटेछोटे झगड़े मारपीट से होते हए हत्या जैसे खतरनाक हालात तक पहुंच जाते हैं.

खुद को बचाने के लिए मार दिया दोस्त को

कंधे पर बैग टांग कर घर से निकलते हुए राजा ने मां से कहा कि वह 2 दिनों के लिए बाहर जा रहा है तो मां ने पूछा, ‘‘अरे कहां जा रहा है, यह तो बताए जा.’’ लेकिन जब बिना कुछ बताए ही राजा चला गया तो माधुरी ने झुंझला कर कहा, ‘‘अजीब लड़का है, यह भी नहीं बताया कि कहां जा रहा है?’’ यह 19 अक्तूबर, 2016 की बात है.

मीरजापुर की कोतवाली कटरा के मोहल्ला पुरानी दशमी में अशोक कुमार का परिवार रहता था. उन के परिवार में पत्नी माधुरी के अलावा 4 बेटों में राजन उर्फ राजा सब से छोटा था. उस की अभी शादी नहीं हुई थी. अशोक कुमार के परिवार का गुजरबसर रेलवे स्टेशन पर चलने वाले खानपान के स्टाल से होता था.

अशोक कुमार के 2 बेटे उन के साथ ही काम करते थे, जबकि 2 बेटे गोपाल और राजा मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर स्थित होटल जननिहार में काम करते थे. चूंकि मीरजापुर और मुगलसराय स्टेशन के बीच बराबर गाडि़यां चलती रहती हैं, इसलिए उन्हें आनेजाने में कोई परेशानी नहीं होती थी.

राजा 2 दिनों के लिए कह कर घर से गया था, जब वह तीसरे दिन भी नहीं लौटा तो घर वालों ने सोचा कि किसी काम में लग गया होगा, इसलिए नहीं आ पाया. लेकिन जब चौथे दिन भी वह नहीं आया तो घर वालों को चिंता हुई. दरअसल इस बीच उस का एक भी फोन नहीं आया था. घर वालों ने फोन किया तो राजा का फोन बंद था. जब राजा से बात नहीं हो सकी तो उस की मां माधुरी ने उस के सब से खास दोस्त रवि को फोन किया. उस ने कहा, ‘‘राजा दिल्ली गया है. मैं भी इस समय बाहर हूं.’’

इतना कह कर उस ने फोन काट दिया था. राजा का फोन बंद था, इसलिए उस से बात नहीं हो सकती थी. उस के दोस्त रवि से जब भी राजा के बारे में पूछा जाता, वह खुद को शहर से बाहर होने की बात कह कर राजा के बारे में कभी कहता कि इलाहाबाद में है तो कभी कहता फतेहपुर में है. अंत में उस ने अपना मोबाइल बंद कर दिया.

जब राजा का कहीं पता नहीं चला तो परेशान अशोक कुमार मोहल्ले के कुछ लोगों को साथ ले कर कोतवाली कटरा पहुंचे और राजा के गायब होने की तहरीर दे कर गुमशुदगी दर्ज करा दी.

कोतवाली पुलिस ने गुमशुदगी तो दर्ज कर ली, लेकिन काररवाई कोई नहीं की. इस के बाद अशोक कुमार 26 अक्तूबर को समाजवादी पार्टी के युवा नेता और सभासद लवकुश प्रजापति के अलावा मोहल्ले के कुछ प्रतिष्ठित लोगों को साथ ले कर मीरजापुर के एसपी अरविंद सेन से मिले और उन्हें अपनी परेशानी बताई. अशोक कुमार की बात सुन अरविंद सेन ने तत्काल कटरा कोतवाली पुलिस को काररवाई का आदेश दिया. कोतवाली पुलिस ने राजा के बारे में पता करने के लिए उस के दोस्त रवि से पूछताछ करनी चाही, लेकिन वह घर से गायब मिला. अब तक राजा को गायब हुए 10 दिन हो गए थे. रवि घर पर नहीं मिला तो पुलिस ने उस का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिया, क्योंकि उस ने अपना मोबाइल बंद कर दिया था.

पुलिस की लापरवाही से तंग आ कर बेटे के बारे में पता करने के लिए अशोक कुमार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. मामला न्यायालय तक पहुंचा तो पुलिस ने तेजी दिखानी शुरू की. 28 अक्तूबर, 2016 को राजा के दोस्त रवि और उस के पिता को एसपी औफिस के पास एक मिठाई की दुकान से पकड़ कर कोतवाली लाया गया. लेकिन उन से की गई पूछताछ में कोई जानकारी नहीं मिली तो पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया. इसी तरह अगले दिन भी हुआ. संयोग से उसी बीच एसपी अरविंद सेन ही नहीं, कोतवाली प्रभारी का भी तबादला हो गया. मीरजापुर जिले के नए एसपी कलानिधि नैथानी आए. दूसरी ओर कटरा कोतवाली प्रभारी की जिम्मेदारी इंसपेक्टर अजय श्रीवास्तव को सौंपी गई. अशोक कुमार 9 नवंबर को नए एसपी कलानिधि नैथानी से मिले. एसपी साहब ने तुरंत इस मामले में काररवाई करने का आदेश दिया. उन्हीं के आदेश पर कोतवाली प्रभारी ने अपराध संख्या 1232/2016 पर भादंवि की धारा 364 के तहत मुकदमा दर्ज कर के काररवाई शुरू कर दी.

इस घटना को चुनौती के रूप में लेते हुए एसपी कलानिधि नैथानी ने कोतवाली प्रभारी कटरा, प्रभारी क्राइम ब्रांच स्वाट टीम एवं सर्विलांस को ले कर एक टीम गठित कर दी. इस टीम ने मुखबिरों द्वारा जो सूचना एकत्र की, उसी के आधार पर 14 नवंबर, 2016 को राजा के दोस्त रवि कुमार को मीरजापुर के नटवां तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. उस से राजा के बारे में पूछा गया तो उस ने उस के गायब होने के पीछे की जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर पुलिस वाले जहां हैरान रह गए, वहीं रवि के पकड़े जाने की खबर सुन कर कोतवाली आए राजा के घर वाले रो पड़े. क्योंकि उस ने राजा की हत्या कर दी थी. उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर के थाना नरसैना के गांव रूखी के रहने वाले नरेश कुमार पीएसी में होने की वजह से मीरजापुर में परिवार के साथ रहते हैं. वह पीएसी की 39वीं वाहिनी में स्वीपर हैं. रवि कुमार उन्हीं का बेटा था. उस की दोस्ती राजा से हो गई थी, इसलिए कभी वह उस से मिलने मुगलसराय तो कभी उस के घर आ जाया करता था. दोनों में पक्की दोस्ती थी.

रवि का एक चचेरा भाई दीपेश उर्फ दीपू फिरोजाबाद के टुंडला की सरस्वती कालोनी में किराए का कमरा ले कर पत्नी के साथ रहता था. वह वहां दर्शनपाल उर्फ जेपी की गाड़ी चलाता था. जेपी की बहन राजमिस्त्री का काम करने वाले प्रवीण कुमार से प्यार करती थी. यह जेपी को पसंद नहीं था. उस ने बहन को समझाया . बहन नहीं मानी तो प्रेमी से उसे जुदा करने के लिए उस ने प्रवीण कुमार को ठिकाने लगाने का मन बना लिया.

यह काम वह अकेला नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने अपने ड्राइवर दीपेश उर्फ दीपू को साथ मिलाया और 13 अक्तूबर, 2016 को बहन के प्रेमी प्रवीण कुमार को अगवा कर लिया. दोनों उसे शहर से बाहर ले गए और गोली मार कर हत्या कर दी. दोनों के खिलाफ इस हत्या का मुकदमा थाना टुंडला में दर्ज हुआ. चूंकि इस मुकदमे में एससी/एसटी एक्ट भी लगा था, इसलिए पुलिस दोनों के पीछे हाथ धो कर पड़ गई. दर्शनपाल उर्फ जेपी तो गिरफ्तार हो गया, लेकिन दीपेश उर्फ दीपू फरार चल रहा था. पुलिस उस की गिरफ्तारी के लिए जगहजगह छापे मार रही थी. पुलिस दीपेश को तेजी से खोज रही थी. इस स्थिति में पुलिस से बचने के लिए वह मीरजापुर आ गया था. टुंडला में घटी घटना के बारे में उस ने चचेरे भाई रवि को बता कर कहा, ‘‘रवि, मैं बुरी तरह फंस गया हूं. अगर तुम मेरी मदद करो तो मैं बच सकता हूं.’’

इस के बाद राजा और दीपेश ने योजना बनाई कि किसी ऐसे आदमी को खोजा जाए, जिसे टुंडला ले जा कर हत्या कर के उस की लाश को जला दिया जाए और लाश के पास दीपेश अपनी कोई पहचान छोड़ दे, जिस से पुलिस समझे कि लाश दीपेश की है और उस की हत्या हो चुकी है. इस के बाद पुलिस उस का पीछा करना बंद कर देगी.

जब ऐसे आदमी की तलाश की बात आई तो रवि को अपने दोस्त राजा उर्फ राजन की याद आई. क्योंकि राजा का हुलिया दीपेश से काफी मिलताजुलता था. फिर क्या था, दोनों ने राजा को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली, उसी योजना के तहत उस ने 18 अक्तूबर को राजा को फोन कर के कहा, ‘‘राजा, हम लोगों ने किराए पर एक गाड़ी की है, जिस से कल यानी 19 अक्तूबर को दिल्ली घूमने चलेंगे. मेरा चचेरा भाई दीपेश भी आया हुआ है, वह भी साथ चलेगा. मैं चाहता हूं कि तुम भी चलो.’’

राजा तैयार हो गया तो रवि ने 19 अक्तूबर, 2016 को पीएसी कालोनी के एक परिचित की गाड़ी बुक कराई और राजा को साथ ले कर दिल्ली के लिए चल पड़ा. योजना के अनुसार रास्ते में पैट्रोल खरीद लिया गया. इस के बाद उन्होंने बीयर खरीदी और राजा को जम कर पिलाई. वह नशे में हो गया तो रात 11 बजे के करीब फिरोजाबाद के थाना पचोखरा के गांव सराय नूरमहल और गढ़ी निर्भय के बीच सुनसान स्थान पर पेशाब करने के बहाने गाड़ी रुकवाई और राजा को उतार कर मारपीट कर पहले उसे बेहोश किया, उस के बाद पैट्रोल डाल कर जला दिया.

जब उन्हें विश्वास हो गया कि राजा मर गया है तो पहचान के लिए दीपेश ने अपना जूता राजा की लाश के पास रख दिया, जिस से बाद में उस लाश की पहचान उस की लाश के रूप में हो. इस के बाद दीपेश ने फिरोजाबाद पुलिस को मोबाइल से फोन कर के कहा, ‘‘मैं दीपेश उर्फ बाबू बोल रहा हूं. 3-4 बदमाश मेरा पीछा कर रहे हैं. मुझे बचा लीजिए अन्यथा ये मुझे मार डालेंगे.’’

जिस जगह पर रवि और दीपेश ने राजा को जलाया था, दीपेश का घर वहां से करीब 8 किलोमीटर दूर था. दीपेश ने इस जगह को यह सोच कर चुना था, जिस से पुलिस को लगे कि वह चोरीछिपे अपने गांव आया था. बदमाशों को पता चल गया तो उन्होंने उसे मार डाला. पुलिस को फोन कर के रवि और दीपेश फरार हो गए. जबकि पुलिस सर्विलांस के माध्यम से लोकेशन के आधार पर उन की तलाश में मीरजापुर से फिरोजाबाद तक उन के पीछे लगी थी. दीपेश तो फरार हो गया, लेकिन रवि मीरजापुर तो कभी सोनभद्र तो कभी सिगरौली जा कर छिपा रहा. आखिर ज्यादा दिनों तक वह पुलिस की नजरों से बच नहीं पाया और 14 नवंबर को उसे पकड़ लिया गया.

पूछताछ के बाद रवि की निशानदेही पर पुलिस ने पैट्रोल का डिब्बा, वह गाड़ी जेस्ट कार संख्या यूपी 63जेड 8586, जिस से वे राजा को ले गए थे, बरामद कर ली. इस के बाद उसे उस स्थान पर भी ले जाया गया, जहां उस ने दीपेश के साथ मिल कर राजा को जलाया था. राजा के पिता अशोक कुमार भी साथ थे, इसलिए उन्होंने राजा के अधजले कपड़ों को पहचान लिया था. पुलिस ने रवि को प्रैसवार्ता में पेश किया, जहां उस ने अपना अपराध स्वीकार कर के हत्या की सारी कहानी सुना दी.

घटना का खुलासा होने के बाद कोतवाली पुलिस ने राजा उर्फ राजन की गुमशुदगी हत्या में तब्दील कर आरोपी रवि को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. दीपेश उर्फ दीपू की तलाश में पुलिस ने ताबड़तोड़ छापे मारने शुरू कर दिए तो दबाव में आ कर उस ने फिरोजाबाद की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. अदालत ने उसे जेल भेज दिया था.

WhatsApp के जरिये खेत में बुलाकर लड़कियां करती है यह गंदा काम

आज कल हमें बहुत सी ऐसी घटनाएं सुनने को मिलती है जिनमें महिलाओं का शोषण किया जाता है. लेकिन अगर लड़कियां इस बात का फायदा उठाने लग जाएं तो क्या होगा. हमारे देश में बहुत सी लड़कियों का ऐसा गिरोह है जो लड़कों को अपने जाल में फंसाकर उनसे पैसे लूट रही हैं. लड़के लड़कियों के इस जाल में बहुत ही जल्दी फंस जाते हैं.

अब एक नया मामला सामने आया है. इसमें समीर नाम के एक लड़के ने पुलिस को बताया कि रात को WhatsApp पर एक लड़की ने मुझे मैसेज किया और उसने मुझे एक सुनसान जगह पर बुलाया. सुनसान जगह पर बुलाने के बाद वहां पर लड़की ने अपने 5 लोगों को और बुला लिया और उन सभी ने उस लड़के के साथ लूटमार की और उसके सारे पैसे ले गए.

पुलिस ने जब छानबीन की तो पता चला कि कविता और उसकी छोटी बहन लड़कों को WhatsApp पर मैसेज करके सुनसान जगह पर बुलाती थी और वहां पर पहले से ही उनके लोग मौजूद होते थे. जब लड़का लड़की को किस करने लग जाता तो यह लोग उनका वीडियो बना लेते और फिर इन्हें ब्लैकमेल करके इनसे पैसे वगैराह ले लेते.

जब छात्र जिंदगी में खुदकुशी के बन जाए चश्मदीद

वैसे तो हिंदी वैब सीरीज ‘फ्लेम्स’ जवान होते स्कूली छात्रों के पहले प्यार और रोमांस पर बनी है, पर इस में एक सीन बड़ा झकझोर देने वाला है, जिस में मेन किरदार रजत उर्फ रज्जो का बड़ा भाई इंजीनियरिंग के अपने एक सैमेस्टर के बीच में ही घर आ जाता है और जब उस के सब्र का बांध टूट जाता है, तब वह अपने पिता को बताता है कि उस के खास दोस्त ने होस्टल में खुदकुशी कर ली है और यह बात उस के दिमाग से निकल नहीं रही है.
ऐसा नहीं है कि होस्टल में किसी छात्र की खुदकुशी कोई नई बात हो, बल्कि आएदिन हम असली जिंदगी में भी खबरें पढ़ते रहते हैं कि तनाव के चलते फलां कालेज के लड़के या लड़की ने खुदकुशी कर ली.
साल 2022 के आखिरी महीने में उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के कमलापुर कसबे में बने राजा बहादुर सूर्य बख्श सिंह इंटर कालेज की 3 छात्राओं द्वारा एक हफ्ते के अंदर खुदकुशी किए जाने के मामले से पूरे इलाके में सनसनी मच गई थी.
नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 में देश में 11,396 बच्चों ने खुदकुशी की थी, जो साल 2019 के मुकाबले 18 फीसदी ज्यादा थी. साल 2019 में 9,613 जबकि साल 2018 में 9,413 बच्चों ने खुदकुशी की थी.
ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं, लेकिन बतौर आम आदमी पहले तो हम सब लोग उस इनसान के प्रति हमदर्दी जताते हैं, जो अपनी जान अपनी नासमझी की वजह से गंवा देता है और फिर उस के परिवार के लिए अफसोस करते हैं कि उन की जिंदगी तो जीतेजी नरक हो गई, पर हमारा ध्यान कभी उन हमउम्र छात्रों की तरफ नहीं जाता है, जो इस तरह की बेदर्द मौत के चश्मदीद बनते हैं.
ऐसे बच्चों पर क्या बीतती होगी, जो अपने रूम पार्टनर को फांसी से झूलते या हाथ की कटी नस से बेसुध बिस्तर पर पड़े या फिर इमारत की छत से छलांग लगाते देख लेते हैं?
एक ऐसे ही छात्र की आपबीती सुनते हैं. हरियाणा के फरीदाबाद शहर में रहने वाले दीपक (बदला नाम) कुरुक्षेत्र से अपनी पढ़ाई कर रहे थे. वहां उन के होस्टल के सामने एक तिमंजिला इमारत में भी कई छात्र किराए पर रहते थे.
दीपक ने उस खौफनाक मंजर के बारे में बताया, ‘‘एक दिन हम कुछ छात्र अपने होस्टल की छत पर बैठे थे. सामने उस इमारत की छत के किनारे एक लड़का खड़ा था, जिस ने देखते ही देखते छलांग लगा दी. यह देख कर हमारी तो ऐसीतैसी हो गई कि अभी तो अच्छाभला खड़ा था और एकदम से कूद गया.
‘‘हम सब ने हल्ला मचा दिया कि ‘सुसाइड कर लिया, सुसाइड कर लिया’. फिर उसे अस्पताल ले जाया गया, पर उसे बचाया नहीं जा सका. इसी बीच उस लड़के के एक दोस्त ने बताया कि वह डिप्रैशन में था. उस के कुछ पेपर क्लियर नहीं हुए थे और पैसे के मामले में भी वह एक गरीब घर का लड़का था.
‘‘सच कहूं, तो वह कांड देख कर मैं ने सोच लिया था कि अब कालेज नहीं जाऊंगा. उसी समय मैं ने अपने मम्मीपापा को फोन कर के बताया कि मैं अभी घर आ रहा हूं, पर उन्होंने कहा कि घबराओ मत और कल आ जाना.
‘‘मैं रुक तो गया, पर अगले 2 दिन तक होश सा खो दिया था. बारबार उस लड़के की सड़क पर पड़ी लाश ही मेरे दिमाग में घूम रही थी. घर आने के बाद ही मैं अपने घर वालों की मदद से यह बात भूल पाया.’’
कालेज लाइफ में छात्र अपनी उम्र के उस पड़ाव पर होते हैं, जहां उन्हें अच्छेबुरे की उतनी समझ नहीं होती है. घर से दूर वे अपने अकेलेपन को दूर करने या पढ़ाई के बोझ के चलते कई बार नशे के चक्कर में पड़ जाते हैं और अपनी जिंदगी को और मुश्किल कर लेते हैं. गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड से रिलेशनशिप टूटने को वे इस कदर दिल से लगा लेते हैं कि उन्हें अपनी जान भी बोझ लगने लगती है.
बहुत से छात्र तो पढ़ाई ढंग से न कर पाने या पैसे की कमी या फिर जातिवाद की वजह से इतने ज्यादा तनाव में आ जाते हैं कि खुदकुशी करना ही उन्हें सब से बेहतर लगता है.
वजह कोई भी हो, पर खुदकुशी करना किसी समस्या का हल नहीं है. लेकिन कोई अगर ऐसा कर लेता है, तो वह तो इस दुनिया से चला जाता है, पर उन दूसरे लोगों को अनचाहा दुख दे जाता है, जो उस की मौत के चश्मदीद होते हैं.
दीपक ने अपने हालात के बारे में बताया, ‘‘मैं ने खुद को अपने दोस्तों के साथ रह कर संभाला. आप पार्टी कर के, कोई गेम खेल कर या कहीं घूम कर अपनेआप को संभाल सकते हैं.’’
यह सच है कि इस तरह के भयानक हादसों को भूलना आसान नहीं होता है, पर जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए ऐसा करना जरूरी होता है.
मनोवैज्ञानिक डाक्टर पुलकित शर्मा ने इस सिलसिले में बताया, ‘‘जब हम छात्र जीवन में अपने आसपास किसी और छात्र को खुदकुशी करते देखते हैं, तो हमारा मन बहुत ही ज्यादा डर और दुख से भर जाता है. डर यह नहीं होता कि उस का भूत वहां पर घूमेगा, जैसे कि लोग कहते हैं, पर डर इस चीज से होता है कि जब हमारी उम्र का कोई हिम्मत हार गया तो कहीं हम भी हिम्मत न हार जाएं.
‘‘छात्र जीवन में तो दुख, तकलीफ, दबाव, पढ़ाई ठीक से न कर पाना, प्यार में धोखा खाना, यह सब तो चलता ही रहता है, लेकिन कभी हौसला नहीं हारना चाहिए.
‘‘लेकिन, जब कोई ऐसे हादसों को अपनी आंखों से देख लेता है, तो उसे अपने मन में उठने वाली डर की भावनाओं को अपने अच्छे दोस्त या परिवार वालों से शेयर करना चाहिए. बातचीत से मन हलका होता है, जबकि मन में ऐसी बातें रखने से और ज्यादा घबराहट होगी.
‘‘अपनी जिंदगी को कभी शौर्ट टर्म विजन से मत देखिए. छात्र जीवन तो हमारी जिंदगी का एक छोटा सा हिस्सा है. अगले 10-15 साल के बाद तो याद भी नहीं रहेगा कि पढ़ाई के दौरान क्या हुआ था. अगर छात्र जीवन में आप
को कभी हारना भी पड़ जाता है, तो
उसे मुसकराहट के साथ स्वीकार करें. हम इनसान हैं और हम से गलती हो सकती है.
‘‘इस के अलावा आप एक बैलेंस्ड लाइफ जिएं. ज्यादा देर तक मत जागें. नशे से दूर रहें. साथ ही, अपने खानेपीने का भी ध्यान रखें. खुद को दिमागी तौर पर मजबूत करें. अच्छी किताबें और पत्रिकाएं पढ़ें. अपनी पसंद का कोई काम जरूर करें. दोस्तों से मिलें. परिवार और वार्डन को अपनी समस्या जरूर बताएं और धीरेधीरे उस कांड को भूलने की कोशिश करें.’’

दोस्ती के दम पर कर डाला गंदा काम

महेश उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के कस्बा बिंदकी का एक दबंग किसान था. स्थानीय राजनीति में भी उस की अच्छी पकड़ थी. वह एक बार का प्रधान भी रह चुका था. उस की 4 बेटियां थीं, जिन में नीलम सब से छोटी थी. नीलम के अलावा वह तीनों बेटियों का विवाह कर चुका था. सब से छोटी होने की वजह से थोड़ा चंचल स्वभाव की नीलम घर में सब की लाडली थी. वह शादी लायक हुई तो महेश ने सन 2006 में जिला कानपुर के गांव रघुनाथपुर के रहने वाले जगदेव कुशवाहा के बेटे पिंटू से उस की शादी कर दी. पिंटू अपने पिता के साथ खेतीकिसानी करता था.

पिंटू खूबसूरत पत्नी पा कर खुद को बहुत खुशकिस्मत समझ रहा था. जबकि नीलम दुबलेपतले और सांवले रंग के पिंटू को पा कर अपने को बदकिस्मत समझ रही थी. नीलम सुंदर होने के साथ तेजतर्रार भी थी, इसलिए पिंटू उस से दबादबा सा रहता था और उस की हर बात मानता था. कुछ ही दिनों बाद नीलम पति को अपनी अंगुलियों पर नचाने लगी थी.

पिंटू बहुत मेहनती था. वह सुबह 8-9 बजे खेतों पर चला जाता था तो शाम को ही घर लौटता था. वह नीलम को खुश रखने की हरसंभव कोशिश करता था, लेकिन तुनकमिजाज नीलम उस से खुश नहीं रहती थी. कभी वह कम कमाई का रोना रोती तो कभी अपने भाग्य को कोसती. दरअसल, नीलम ने हृष्टपुष्ट, सुंदरसजीले पति के सपने संजोए थे, लेकिन मिला उस के एकदम उलट था. वह उसे किसी भी तरह से संतुष्ट नहीं कर पाता था. इस तरह जैसेजैसे उस के साथ नीलम की जिंदगी कट रही थी.

पिंटू का एक दोस्त था इंद्रपाल. वह पड़ोसी गांव लालपुर का रहने वाला था और वह हैंडपंप लगवाने के ठेके लेता था. हृष्टपुष्ट शरीर का इंद्रपाल मजाकिया स्वभाव का था. पिंटू को जब भी फुरसत मिलती तो वह इंद्रपाल के गांव पहुंच जाता. वहां दोनों साथ खातेपीते और खूब बातें करते. पहले पिंटू शराब नहीं पीता था, लेकिन नीलम के बर्ताव से दुखी हो कर वह शराब पीने लगा था. धीरेधीरे वह शराब का लती बन गया था. एक दिन पिंटू के घर का हैंडपंप खराब हो गया तो मरम्मत के लिए उस ने इंद्रपाल को बुला लिया. पिंटू की शादी के बाद इंद्रपाल उस दिन पहली बार पिंटू के घर आया था. शादी के बाद नीलम के रूपरंग में और निखार आ गया था. इंद्रपाल ने नीलम को देखा तो वह उस की आंखों में रचबस गई.

हैंडपंप ठीक होने के बाद नीलम इंद्रपाल को पैसे देने लगी तो इंद्रपाल ने पैसे नहीं लिए. उस ने कहा, ‘‘भाभी, पिंटू मेरा दोस्त है, फिर पैसे किस बात के. आप बहुत सुंदर हैं. एक बार देख कर मुसकरा देंगी तो हम समझेंगे कि पैसा मिल गया.’’

अपने रूप की तारीफ सुन कर नीलम इंद्रपाल को गौर से निहारने लगी. फिर मुसकरा कर अपना सिर नीचे कर लिया. दिल में नीलम को बसा कर इंद्रपाल भी वहां से चला गया. इस के बाद इंद्रपाल और पिंटू जब कभी मिलते, पिंटू उसे घर ले आता. इंद्रपाल चाहता भी यही था.

नीलम को आकर्षित करने के लिए वह कभी उस के लिए साड़ी ले आता तो कभी साजशृंगार का सामान. थोड़ी नानुकुर के बाद नीलम यह स्वीकार कर लेती. पिंटू को खुश करने के लिए वह उस के साथ शराब पार्टी करता था. इंद्रपाल की आमदनी अच्छी थी इसलिए वह खूब खर्च करता था. कभीकभी वह नीलम को भी हजार-5 सौ रुपए दे देता था. इस तरह नीलम का झुकाव उस की तरफ होता गया. इंद्रपाल अब पिंटू की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आने लगा.

जून की तपती दोपहर में एक दिन इंद्रपाल नीलम के घर पहुंचा. नीलम उस समय कमरे में सो रही थी. गरमी अधिक होने की वजह से नीलम सिर्फ पेटीकोटब्लाउज पहने हुए थी. आसपास सन्नाटा पा कर इंद्रपाल नीलम के घर पहुंचा तो उस का कमरा बंद था, मगर खिड़की खुली हुई थी.

अविवाहित इंद्रपाल ने खिड़की से कमरे में झांका तो अस्तव्यस्त कपड़े में सो रही नीलम को देख कर वह बेकाबू हो उठा. पेटीकोट से बाहर झांकती नीलम की अधखुली टांगें तथा उफनते वक्षस्थल देख कर इंद्रपाल की धड़कनें बढ़ गई. उस ने दरवाजा खटखटाया तो नीलम की आंख खुल गईं.

नीलम ने जैसे ही दरवाजा खोला, सामने मंदमंद मुसकराते इंद्रपाल को देख कर वह शर्म की वजह से चारपाई की तरफ बढ़ी. उस ने चारपाई पर रखी साड़ी लपेटनी चाही पर इंद्रपाल ने उस की साड़ी एक तरफ फेंक कर दरवाजा भीतर से बंद कर दिया. इस के बाद उस ने नीलम को अपनी बांहों में भर कर कहा, ‘‘कब तक तरसाओगी भाभी?’’

इस के बाद इंद्रपाल ने नीलम के बदन को चूमना शुरू कर दिया. नीलम ने उस का कोई विरोध नहीं किया तो इंद्रपाल ने उस के बचे हुए कपड़े भी उतार दिए. नीलम भी उस से लिपट गई और चंद मिनटों में उन्होंने सारी मर्यादाएं तोड़ दीं. इस के बाद अवैध संबंधों का यह खेल आए दिन खेला जाने लगा.

पिंटू अपनी पत्नी के प्रेमप्रसंग से बिलकुल अनजान था. लेकिन पासपड़ोस के लोगों में इंद्रपाल और नीलम के नाजायज संबंधों को ले कर चर्चा होने लगी थी. पर उन दोनों ने इस की परवाह नहीं की. इंद्रपाल नीलम का दीवाना था तो नीलम उस की मुरीद. धीरेधीरे इंद्रपाल उस पर अपना अधिकार समझने लगा.

एक दिन पिंटू ने नीलम से कहा कि वह बीजखाद के लिए कानपुर जा रहा है. वह रात में नहीं आ पाएगा. अगले दिन शाम तक ही लौट सकेगा. उसे किसी चीज की जरूरत हो तो बता दे, वह इंतजाम कर जाएगा.

नीलम बोली, ‘‘घर पर सब सामान है. तुम चिंता मत करो. अगर सिद्धनाथ मंदिर जाओ तो वहां से हमारे लिए प्रसाद जरूर ले आना.’’

पिंटू चला गया. उस के जाते ही उस ने इंद्रपाल को फोन कर के पति के कानपुर जाने की बात कह कर उसे रात में घर आने को कह दिया. पर पिंटू कानपुर गया ही नहीं था. दरअसल जब वह घाटमपुर स्टेशन पर पहुंचा तो उसे गांव का गिरिंदपाल मिल गया.

उस ने बताया कि वह खाद लेने कानपुर गया था, लेकिन गोदाम में स्टाक नहीं है. 2-4 दिनों बाद ही खादबीज आएगा. गिरिंद की बात सुन कर पिंटू ने कानपुर जाने का इरादा छोड़ दिया और घाटमपुर स्थित ऐतिहासिक शिवमंदिर चला गया. वहां दर्शन कर के वह प्रसाद ले आया.

पिंटू रात 9 बजे घर पहुंचा, उस समय नीलम इंद्रपाल की बांहों में समाई बेसुध पड़ी थी. पिंटू ने खिड़की से यह सब देखा तो आगबबूला हो उठा. उसे अपने दोस्त से ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी. लेकिन सोचविचार के बाद उस ने खून का घूंट पी कर चुप रहना ही उचित समझा. उस ने सोचा कि इतनी रात को वह घर में कलह करेगा तो पूरा मोहल्ला जाग जाएगा, जिस से बदनामी उसी की होगी.

पिंटू पंचायत घर गया और वहां पड़े तख्त पर लेट गया. रात भर वह सो नहीं सका. सारी रात करवटें बदलता रहा. सवेरे वह उठा और इंद्रपाल के घर पहुंच गया. इंद्रपाल उस का तमतमाया चेहरा देख कर समझ तो गया कि शायद उसे उस पर शक हो गया है लेकिन खुद को सामान्य रखते हुए उस ने पूछा, ‘‘पिंटू भैया, आज सवेरेसवेरे?’’

‘‘हां इंद्रपाल, बात ही ऐसी है कि आना पड़ा.’’ पिंटू ने कहा.

‘‘मेरे लायक कोई काम?’’ इंद्रपाल ने पूछा.

‘‘आओ, मेरे साथ चलो, कहीं एकांत में बैठ कर बातें करते हैं.’’ पिंटू ने कहा.

इंद्रपाल उस के साथ चल पड़ा. गांव से बाहर निकल कर दोनों बंबा की पुलिया पर बैठ गए तो पिंटू ने पूछा, ‘‘आजकल मेरी पत्नी तुम पर काफी मेहरबान है?’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं.’’ इंद्रपाल ने अनजान बनते हुए कहा.

‘‘जानबूझ कर अनजान मत बनो.’’ पिंटू ने कहा.

‘‘इतना नाराज क्यों हो रहे हो भैया?’’

‘‘कल रात तुम कहां थे?’’

‘‘अपने घर पर.’’

‘‘सफेद झूठ.’’

इंद्रपाल ने सिर झुका कर मौन साध लिया. उसे इस तरह देख कर पिंटू होंठ चबाते हुए बोला, ‘‘तू मेरा दोस्त नहीं होता तो मैं तुझे कल रात तब ही कुल्हाड़ी से काट डालता, जब तू नीलम के साथ था. अब तू अगर अपनी खैर चाहता है तो ध्यान रखना कि फिर कभी मेरे घर की ओर भूल कर भी कदम मत रखना, वरना मैं तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’

इंद्रपाल को खरीखोटी सुना कर पिंटू अपने घर पहुंचा और पत्नी की जम कर पिटाई की. नीलम और इंद्रपाल को चेतावनी देने के बाद पिंटू शराब के ठेके पर पहुंचा और जम कर शराब पी. पत्नी की बेवफाई से वह बुरी तरह टूट गया. उस ने दाढ़ीमूंछ बढ़ा ली और नशे का लती बन गया.

दूसरी ओर नीलम और इंद्रपाल ने एकदूसरे से मिलनाजुलना तथा बोलना बंद कर दिया. पिंटू और इंद्रपाल की दोस्ती में दरार पड़ गई थी. लेकिन यह दरार ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी. वजह यह कि पिंटू को पीनेखाने की दिक्कत होने लगी थी क्योंकि उस के पीनेखाने पर इंद्रपाल ही खर्च करता था.

अपनी इन्हीं मजबूरियों के चलते पिंटू ने इंद्रपाल से फिर से दोस्ती कर ली. दोनों साथ बैठ कर फिर खानेपीने लगे. इंद्रपाल ने वादा किया कि वह नीलम को अब कभी बुरी नीयत से नहीं देखेगा. लेकिन वह ज्यादा दिनों तक अपना वादा नहीं निभा सका और नीलम से लुकछिप कर मिलने लगा.

लेकिन सावधानी बरतने के बावजूद नीलम का कारनामा छिपा न रह सका. इस बार नीलम और इंद्रपाल को पड़ोसन सावित्री ने रंगेहाथों पकड़ लिया. सावित्री ने यह बात पिंटू को बताई तो उस का खून खौल उठा. उस ने नीलम की जम कर पिटाई कर दी.

पिंटू एक तरफ अपने गद्दार दोस्त से परेशान था तो दूसरी ओर पत्नी से, जो उस की आंखों में धूल झोंक कर रंगरलियां मना रही थी. आखिर जब बात पिंटू की बरदाश्त के बाहर हो गई तो उस ने गद्दार दोस्त इंद्रपाल को सबक सिखाने का फैसला कर लिया.

इंद्रपाल को सबक सिखाने के लिए पिंटू ने लालपुर गांव निवासी मोहनलाल गुप्ता से बात की. मोहनलाल ने पहले तो नानुकुर की, लेकिन बाद में पिंटू का साथ देने को तैयार हो गया. दरअसल, मोहनलाल का झगड़ा अपने भाई राजेंद्र से होता रहता था. वह झगड़ा पैतृक संपत्ति के बंटवारे को ले कर था.

इस झगड़े में इंद्रपाल राजेंद्र का साथ देता था, जिस से मोहनलाल इंद्रपाल से रंजिश रखता था. इसी कारण पिंटू ने जब इंद्रपाल को ठिकाने लगाने की बात मोहनलाल से की तो वह उस का साथ देने को राजी हो गया.

पहले से तैयार योजना के तहत पिंटू 12 फरवरी, 2017 की शाम इंद्रपाल से मिला. उस ने कहा, ‘‘इंद्रपाल, आज मेरा मूड ठीक नहीं है. सिर और बदन में दर्द हो रहा है. मन में अजीब सी बेचैनी है.’’

इंद्रपाल खिलखिला कर हंसते हुए बोला, ‘‘दोस्त, तुम्हारे मर्ज की दवा मेरे पास है. उस से सिरदर्द भी गायब हो जाएगा और मूड भी ठीक हो जाएगा. 2 पैग लगाते ही हवा में उड़ने लगोगे.’’

इस के बाद इंद्रपाल ने पिंटू के साथ शराब पी. वहां से वापस लौटते समय दोनों बंबा की पुलिया पर बैठ गए. उसी समय मोहनलाल आ गया. मोहनलाल ने इंद्रपाल से तो बात नहीं की, लेकिन पिंटू से बातें करने लगा. इसी बीच मौका पा कर पिंटू ने इंद्रपाल को दबोच लिया.

इंद्रपाल ने छूटने की कोशिश की तो मोहनलाल उस पर टूट पड़ा और लातघूंसों से मारमार कर उसे पस्त कर दिया. हिम्मत कर के इंद्रपाल जान बचा कर भागा, लेकिन कदमों ने उस का साथ नहीं दिया और सरसों के खेत में गिर पड़ा. उसी समय मोहनलाल ने इंद्रपाल को दबोच लिया तो पिंटू ने तेज धार वाले चाकू से उस का गला रेत दिया. उन्होंने इंद्रपाल का धड़ तो वहीं खेत में छोड़ दिया, लेकिन उस के सिर को ले जा कर एक किलोमीटर दूर रायपुर गांव निवासी राकेश वाजपेयी के मटर के खेत में फेंक दिया. इस के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए.

सुबह लालपुर का रामू तेली अपने खेत पर पहुंचा तो उसे पड़ोसी के खेत में किसी का धड़ पड़ा दिखाई दिया. उस ने यह जानकारी गांव वालों को दी तो गांव के तमाम लोग इकट्ठा हो गए. इसी बीच किसी ने थाना घाटमपुर पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी अजय कुमार यादव पुलिस फोर्स के साथ लालपुर पहुंच गए.

अजय कुमार यादव ने वारदात की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी और जांच में जुट गए. सरसों के खेत में एक युवक की सिरविहीन लाश पड़ी थी. उस के सिर का पता नहीं था. थानाप्रभारी सिर की तलाश में जुट गए. वहां मौजूद गांव के कुछ लड़के भी सिर खोजने लगे.

दोपहर 12 बजे के करीब अजय कुमार यादव को सूचना मिली कि पड़ोसी गांव रायपुर में राकेश वाजपेयी के मटर के खेत में किसी का कटा सिर पड़ा है. सूचना पाते ही वह रायपुर पहुंचे और राकेश वाजपेयी के मटर के खेत से कटा सिर बरामद कर लिया. सिर और धड़ को जोड़ा गया तो लालपुर गांव के लोग चौंके. वहां मौजूद रामपाल फूटफूट कर रोने लगा. उस ने बताया कि यह लाश उस के भाई इंद्रपाल की है.

उसी समय एसपी ग्रामीण राजेश कुमार सिंह भी आ गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया और मृतक के घर वालों से बात की. चूंकि लाश की शिनाख्त हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए लालालाजपत राय चिकित्सालय कानपुर भिजवा दिया. अजय कुमार यादव ने मृतक के भाई रामपाल से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गांव का मोहनलाल गुप्ता इंद्रपाल से रंजिश रखता था. शक है कि उसी ने इंद्रपाल की हत्या की है. शक के आधार पर पुलिस ने मोहनलाल गुप्ता को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई लेकिन उस ने हत्या से साफ इनकार कर दिया.

16 फरवरी, 2017 को पुलिस ने पुन: मोहनलाल से सख्ती से पूछताछ की. इस बार पुलिस की सख्ती से मोहनलाल टूट गया और इंद्रपाल की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि रघुनाथपुर निवासी पिंटू की पत्नी नीलम से इंद्रपाल के नाजायज संबंध थे. पिंटू के कहने पर उस ने उस की हत्या की थी.

मोहनलाल के बयानों के आधार पर पुलिस ने पिंटू को भी हिरासत में ले लिया. पिंटू ने जब थाने में मोहनलाल को देखा तो अपना अपराध स्वीकार कर लिया. चूंकि दोनों ने अपराध स्वीकार कर लिया था, इसलिए पुलिस ने मृतक के भाई रामपाल की ओर से इंद्रपाल की हत्या का मुकदमा मोहनलाल और पिंटू के खिलाफ दर्ज कर लिया और पिंटू की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू बरामद करा लिया, जिसे उस ने अपने खेत में छिपा दिया था.

17 फरवरी, 2017 को थाना घाटमपुर पुलिस ने पिंटू और मोहनलाल को कानपुर की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

हिम्मत ने दिलाई वरदी वालों को सजा

बीकौम की छात्रा स्मिता भादुड़ी न तो कोई पेशेवर अपराधी थी और न ही किसी थाने में उस के खिलाफ कोई केस दर्ज था. उस का गुनाह महज इतना था कि वह अपने दोस्त के साथ कार में बैठ कर बातें कर रही थी. बदमाशों की सूचना पर वहां पहुंचे तथाकथित बहादुर पुलिस वालों ने जोश में आ कर सरकारी असलहे से गोलियां दाग दीं. एक गोली ने स्मिता का सीना चीर दिया.

पुलिस वालों ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि उन के सिर पर ऐनकाउंटर के बदले मैडल और प्रमोशन पाने का जुनून सवार था. बेगुनाह छात्रा की हत्या का मामला सीबीआई को दिया गया. आखिरकार 3 पुलिस वालों को कुसूरवार मान कर उन्हें माली जुर्माने के साथसाथ उम्रकैद की सजा सुनाई गई.

इसे लाचारी, इंसाफ की राह में कानूनी दांवपेंच की चाल कहें या कुछ और, अपनी होनहार बेटी स्मिता को खो चुके परिवार को इंसाफ के लिए 15 साल का लंबा, थकाऊ और पीड़ा देने वाला इंतजार करना पड़ा.

ऐनकाउंटर में शामिल पुलिस वाले इस दौरान न केवल आजाद रहे, बल्कि बचने के लिए तरहतरह के हथकंडे अपनाते रहे. इतना ही नहीं, लंबे वक्त में मजे से नौकरी कर के वे अपने पदों से रिटायर भी हो गए.

पुलिस के डरावने चेहरे से रूबरू हुए स्मिता के परिवार के दर्द का हिसाब शायद कोई कानून नहीं दे सकता है. कुसूरवार पुलिस वाले अब सलाखों के पीछे हैं.

इस मामले से सीख भी मिलती है कि किसी की जान की कीमत पर मैडल व प्रमोशन पाने की ख्वाहिश देरसवेर सलाखों के पीछे पहुंचा कर भविष्य अंधकारमय भी कर देती है.

-यों मारी गई होनहार छात्रा

स्मिता ऐनकाउंटर मामला रोंगटे खड़े कर देता है. स्मिता भादुड़ी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले की मोदी कालोनी में रहती थी. उस के पिता एसके भादुड़ी मोदी कंपनी में बतौर इंजीनियर थे. उन के परिवार में पत्नी प्रतिमा के अलावा 2 बेटियां थीं, बड़ी प्रीति और छोटी स्मिता. उन का एक बेटा सुप्रियो भी था.

21 साला स्मिता बीकौम के आखिरी साल की छात्रा थी. स्मिता की दोस्ती मोहित त्योगी से थी. दोनों के बीच मुलाकातें होती रहती थीं. साल 2000 में 14 जनवरी की सर्द शाम थी वह. स्मिता अपने घर से मोहित से मिलने के लिए निकली. वे दोनों कार नंबर यूपी15जे-0898 से घूमने निकल गए.

दिल्लीदेहरादून हाईवे से सटे गांव सिवाया की कच्ची सड़क पर कार रोक कर वे बातें करने लगे. वहां कार खड़ी देख किसी ने बदमाश होने के शक में पुलिस को खबर दे दी.

इसी बीच शाम के तकरीबन साढ़े 7 बजे इलाकाई थाना दौराला इंस्पैक्टर अरुण कौशिक, सिपाही भगवान सहाय व सुरेंद्र के साथ जीप ले कर वहां पहुंच गए. उन्होंने सोचा कि कोई बड़ा गैंग होगा. अपने पीछे पुलिस की गाड़ी देख मोहित ने कार आगे बढ़ा दी. इस पर पुलिस वालों ने पीछा करते हुए एकसाथ 11 गालियां दाग दीं. गोलियां कार पर भी लगीं और एक गोली ने स्मिता के सीने को चीर दिया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

बुरी तरह घबराया मोहित कार रोक कर सरैंडर करने की मुद्रा में फौरन बाहर आ गया. पुलिस वालों ने उसे पीटपीट कर दोहरा कर दिया. इस बीच इंस्पैक्टर अरुण कौशिक ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी थी कि बदमाशों से मुठभेड़ हो गई है और दोनों तरफ से गोलीबारी हो रही है.

मौके पर पहुंचे तब के एसएसपी आरपी सिंह को भी गुमराह करने की कोशिश की गई, लेकिन दहशतजदा मोहित की जबानी हकीकत खुलते ही सभी के होश उड़ गए.

छींटदार सलवारसूट व सफेद रंग का कार्डिगन पहने खून से लथपथ स्मिता कार की सीट पर पड़ी थी. नासमझी का परिचय दे कर इंस्पैक्टर ने खून से अपने हाथ रंग लिए थे. बेगुनाह छात्रा की मौत पर तीनों पुलिस वालों को फौरन सस्पैंड कर दिया गया.

जिन दिनों यह ऐनकाउंटर हुआ था, उन दिनों पुलिस वालों के सिर पर जुनून सवार था कि ऐनकाउंटर करो और प्रमोशन पाओ. दरअसल, पुलिस की नौकरी में थोड़ी बहादुरी से प्रमोशन पा लिया जाता था. इंस्पैक्टर अरुण कौशिक भी इसी फोबिया के शिकार थे. पुलिस ने समझदारी दिखाई होती, तो स्मिता आज जिंदा होती.

चश्मदीद गवाह मोहित की तरफ से इंस्पैक्टर अरुण कौशिक, सिपाही भगवान सहाय व सुरेंद्र के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया. खाकी पर खून के छींटे लगने का मामला तूल पकड़ गया. तीनों आरोपियों को जेल भेज दिया गया.

-इंसाफ की लंबी लड़ाई

यह मामला उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तक पहुंचा, तो केस सीबीआई को चला गया. सीबीआई 3 साल तक जांच करती रही. इस बीच तीनों आरोपी जेल से छूट गए और बहाली पा कर नौकरी करने लगे. इतना ही नहीं, इंस्पैक्टर अरुण कौशिक सीओ भी बन गए.

केस वापस लेने के लिए सीबीआई ने 26 फरवरी, 2004 को कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की. अदालत में सुनवाई कई साल चलती रही. आरोपी पुलिस वालों ने पीडि़त परिवार पर कई तरह से दबाव बनाया. मोहित को डरायाधमकाया गया, लेकिन इंसाफ की आस में उस ने हार नहीं मानी. तीनों आरोपियों ने मामले को खत्म करने के लिए हाईकोर्ट से स्टे ले लिया और मजे से नौकरी की.

आरोपियों ने कानूनी हथकंडे अपना कर अदालत बदलने की मांग की और कई सुनवाई पर पेश नहीं हुए. नौकरी कर के तीनों रिटायर भी हो गए.

सालों चले केस में गाजियाबाद स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने हत्या, जानलेवा हमले व मारपीट का कुसूरवार करार देते हुए आखिरकार 14 दिसंबर, 2015 को तीनों आरोपियों को उम्रकैद व डेढ़डेढ़ लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई.

जज नवनीत कुमार ने अपनी टिप्पणी में कहा कि मामला विरल से विरलतम अपराध की श्रेणी में आता है. वरिष्ठ लोक अभियोजन अधिकारी कुलदीप पुष्कर की इस मामले में अदालत में दी गई यह दलील माने रखती है कि पुलिस का काम कानून का पालन करना और कराना है. अगर पुलिस ही कानून का पालन न करे और कानून का गलत इस्तेमाल कर किसी की हत्या कर दे, तो ऐसे हालात में समाज में दहशत फैलती है.

कुसूरवार पुलिस वालों पर आरोप साबित होने में 15 साल, 9 महीने और 16 दिन लग गए. सजा होते ही तीनों को डासना जेल भेज दिया गया.

-दर्द से गुजरा परिवार

बेटी की मौत से दुखी भादुड़ी परिवार जिस गम, दहशत और दर्द के दरिया से गुजरा, उस की भरपाई कानून की कोई धारा नहीं करती. पुलिस का घिनौना रूप आज भी उन्हें डराने का काम करता है. उन चंद लफ्जों ने इंजीनियर एसके भादुड़ी की दुनिया हिला दी थी, जब एक पुलिस अफसर ने उन से कहा, ‘आप की बेटी को पुलिस ने गलती से गोली मार दी है और उस की मौत हो गई है.’

उस रात की यादें कोई नहीं भुला पाता. सिरफिरे पुलिस वालों की करतूत से हंसतेखेलते परिवार पर स्मिता की मौत के साथ ही गम व मुसीबतों का पहाड़ टूट गया.

बेटी स्मिता की मौत के गम में मां प्रतिमा भादुड़ी डिप्रैशन में आ गईं. लाख समझाने पर भी वे बेटी का दर्द नहीं भुला सकीं. ज्यादा दवाओं के सेवन से उन का लिवर खराब हो गया. वे बीमार हुईं, तो इलाज कराया गया. परिवार माली रूप से परेशान हो गया. बाद में साल 2011 में उन की मौत हो गई.

स्मिता का भाई सुप्रियो ग्राफिक डिजाइनर है. दोनों बापबेटे अकेले रहते हैं. अदालत के फैसले से वे खुश तो हैं, लेकिन कहते हैं कि ऐसा करने वालों को फांसी होनी चाहिए थी.

-क्या सबक लेगी पुलिस

स्मिता का मामला उन पुलिस वालों के लिए एक सबक है, जो वरदी की हनक में बिना सोचेसमझे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं. मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में अव्वल दर्जा हासिल कर रही उत्तर प्रदेश पुलिस में ऐसे पुलिस वालों की एक बड़ी जमात है, जो गंभीर आरोपों से दामन दागदार किए हुए है. उन के कारनामे जनता में डर पैदा करते हैं.

पुलिस से आम आदमी कितना सुरक्षित महसूस करता है, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लोग आज भी थाने में आने से डरते हैं. पुलिस अगर बेगुनाहों के खून से हाथ रंगने लगे, तो बात सोचने वाली हो जाती है. स्मिता का मामला सबक जरूर देता है कि गलत कामों की सजा देरसवेर मिलती जरूर है. इस मामले में पुलिस वाकई सबक लेगी, इस में शक है.

फिर वही अपराध : हैवानियत की इंतहा

26 नवंबर, 2016 की बात है. दोपहर के ढाई बजे थे. घड़ी पर जैसे ही मनोज कुमार की नजर पड़ी, उस के मुंह से ‘ओफ्फ…काफी देर हो गई’ की आवाज निकली. उसे कहीं जाना था, इसलिए वह फटाफट घर से निकल कर सवारी पकड़ने के लिए गांव से बाहर सड़क पर आ गया. सड़क पर पहुंच कर वह वाहन का इंतजार कर ही रहा था कि अचानक उस की नजर सड़क के बाईं पटरी पर सरपतों की झाड़ी में पहुंची. वहां पर एक लड़की की लाश पड़ी थी.

चूंकि मनोज केराकत कोतवाली का चौकीदार भी था, इसलिए वह जिज्ञासावश उस जगह पहुंच गया, जहां लाश पड़ी थी.

उस लड़की की उम्र 10-12 साल लग रही थी. वह बैंगनी रंग का कढ़ाईदार सलवारसूट पहने हुई थी. उस का गला कटा हुआ था. लाश मिलने की सूचना कोतवाली में देना उस की जिम्मेदारी थी, इसलिए जिस जगह उसे जाना था, वहां न जा कर वह सीधे केराकत कोतवाली पहुंच गया. कोतवाली प्रभारी नरेंद्र कुमार को उस ने लड़की की लाश मिलने की जानकारी दे दी. उस ने यह भी बता दिया कि लाश गांव शिवरामपुर खुर्द के रहने वाले भीम सिंह के खेत के किनारे पर है.

मनोज की सूचना पर कोतवाली प्रभारी नरेंद्र कुमार फौरन पुलिस टीम के साथ मौके की तरफ रवाना हो गए. इस की जानकारी उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. घटनास्थल की दूरी केराकत कोतवाली से महज 12 किलोमीटर थी, इसलिए कुछ ही देर में वह मौके पर पहुंच गए.

तब तक लाश मिलने की जानकारी आसपास के क्षेत्रों में भी फैल गई थी, इसलिए वहां काफी संख्या में ग्रामीणों की भीड़ भी जुट गई थी. कोतवाली प्रभारी ने लाश का निरीक्षण किया तो लग रहा था कि उस के साथ शायद दुराचार किया गया है. उसी दौरान क्षेत्राधिकारी (केराकत) राकेश पांडेय, उपजिलाधिकारी सहदेव मिश्रा भी वहां पहुंच गए. जितने लोग वहां खड़े थे, पुलिस ने उन सब से उस लड़की की शिनाख्त करानी चाही पर कोई भी उसे नहीं पहचान सका. तब पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

चौकीदार मनोज कुमार की तहरीर पर भादंसं की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. मौके से मृतका या हत्यारे के बारे में कोई ऐसी कोई चीज नहीं मिली, जिस के जरिए पुलिस आगे बढ़ सके. इस के बावजूद पुलिस अपने स्तर से ही केस की जांच करने लगी.

कोतवाली प्रभारी मृतका की पहचान को ले कर उलझे हुए थे. दूसरे दिन समाचारपत्रों में यह खबर प्रमुखता से छपी तो 28 नवंबर की शाम को वाराणसी के जैतपुरा थाना क्षेत्र से कुछ लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. उन्हें जब वह लाश दिखाई गई तो आजाद कुरैशी नाम के एक शख्स ने उस की पुष्टि अपनी बेटी मुसकान के रूप में की. कोतवाली पहुंच कर उस ने अपनी बेटी के कपडे़ भी पहचान लिए.

29 नवंबर को उस की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उस में दुष्कर्म की भी पुष्टि हो गई. चूंकि मुसकान की रिपोर्ट भादंवि की धारा 363 के तहत जैतपुरा थाने में 26 नवंबर को दर्ज हुई थी. इसलिए एसएसपी नितिन तिवारी के निर्देश पर कोतवाली प्रभारी नरेंद्र कुमार ने यह केस थाना जैतपुरा को स्थानांतरित कर दिया.

अब जैतपुरा थानाप्रभारी रमेश यादव यह जानने में लग गए कि मुसकान का हत्यारा कौन है. इस संबंध में उन्होंने मुसकान के मातापिता से बात की तो मां रजिया सुलतान ने बताया कि पड़ोस के एक आदमी ने मोहल्ले के ही पप्पू गुप्ता के साथ मुसकान को मल्लाही बगीचे की तरफ जाते देखा था. पप्पू को गांव के सभी लोग जानते थे कि वह आपराधिक प्रवृत्ति का है. इसलिए उन्हें बेटी को ले कर चिंता हुई. जब वह पप्पू के घर गईं तो वह नहीं मिला.

रजिया से बात करने के बाद थानाप्रभारी को भी पप्पू पर ही शक हो गया. पुलिस ने उस की तलाश के लिए मुखबिर भी सक्रिय कर दिए. पुलिस ने 29 नवंबर को ही मुखबिर की सूचना पर 30 वर्षीय पप्पू गुप्ता को दबोच लिया. वह कहीं भागने की फिराक में था.

जब पुलिस ने उस से मुसकान के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो वह बहुत देर तक टिक नहीं पाया और उस ने स्वीकार कर लिया कि मुसकान की हत्या उस ने ही की थी. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह मानवता को शर्मसार करने वाली निकली. उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के जैतपुरा के अंतर्गत एक मोहल्ला है शक्कर तालाब. यहीं पर आजाद कुरैशी अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी रजिया सुलतान के अलावा 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. आजाद कुरैशी मोहल्ले में ही चिकन की दुकान चलाता था.

घर के काम निपटाने के बाद रजिया घर में खाली रहती तो उस ने अखबार की थैलियां बनानी शुरू कर दीं. उस के पास थैलियों की मांग बढ़ने लगी तो कभीकभार बच्चे भी उस के काम में शरीक हो जाते थे. इस तरह इस काम से उसे अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी.

26 नवंबर का दिन था. सुबह के यही कोई साढ़े 9 बज रहे थे. रजिया घर के कामकाज में लगी हुई थी कि तभी उसी के मोहल्ले का पप्पू गुप्ता उस के दरवाजे पर आया. वह गली में घूमघूम कर हाथ ठेले पर मूंगफली के दाने, चने आदि बेचता था. उस के लिए वह थैलियां रजिया से ही ले जाता था. उस दिन भी वह थैलियां लेने आया था. जैसे ही पप्पू ने दरवाजा खटखटाया तो दरवाजे पर रजिया की ननद रेशमा आई. वह उस से बोली, ‘‘अभी थैलियां तैयार नहीं हैं. थोड़ी देर में हो जाएंगी.’’

इस पर वह बोला, ‘‘ठीक है, मैं 20 मिनट रुक जाता हूं. तैयार कर के दे दीजिए.’’ इतना कह कर वह वहीं रुक गया, जबकि रेशमा घर के अंदर चली गई. इतने में रजिया की 10 वर्षीय बेटी मुसकान घर का कूड़ा फेंकने के लिए बाहर निकली तो पप्पू ने उसे 10 रुपए दे कर नजदीक की दुकान से पान लाने को कहा.

पैसे ले कर मुसकान पान की दुकान की ओर गई तभी पीछेपीछे पप्पू भी हो लिया. चूंकि पप्पू के मन में कुछ और ही था, इसलिए वह मुसकान को पान की दुकान से बहलाफुसला कर अपनी स्कूटी पर बिठा कर वाराणसी से करीबन 45 किलोमीटर दूर जौनपुर जिले की केराकत कोतवाली क्षेत्र के एक खेत में ले गया. वहां डराधमका कर उस ने उस मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म किया फिर बाद में ब्लेड से उस का गला भी रेत डाला.

उस की हत्या करने के बाद वह स्कूटी से वाराणसी लौट आया था और छिपछिप कर लोगों पर नजर रखने लगा. जब उसे पता चला कि पुलिस उस के पीछे पड़ी है तो उसे वहां से कहीं भागना ही उचित लगा. लेकिन उस से पहले ही वह पुलिस के हाथ लग गया.

उधर मुसकान कूड़ा फेंकने के बाद भी घर नहीं आई तो रजिया उसे घर से बाहर देखने निकली. पर वह नहीं दिखी और न ही वहां पप्पू गुप्ता दिखा जो थैलियां लेने के इंतजार में दरवाजे के बाहर खड़ा था.

रजिया उसे पड़ोसियों के यहां खोजने गई, पर वह वहां भी नहीं मिली. बेटी की चिंता में रजिया की धड़कनें तेज होने लगीं. खबर मिलने पर रजिया का पति आजाद कुरैशी भी दुकान से घर चला आया.

वह भी परिवार और मोहल्ले के लोगों को ले कर आसपास बेटी की खोज में जुट गया लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं चल पाया. उसी दौरान मोहल्ले के ही एक आदमी ने बताया कि मुसकान पप्पू के साथ कुछ देर पहले मल्लाही बगीचे की ओर जाते दिखी थी.

यह खबर मिलते ही रजिया और उस के पति ने पप्पू के घर का रुख किया. घर पर पप्पू तो नहीं मिला बल्कि उस की पत्नी नेहा (काल्पनिक नाम) मिली. उस ने बताया कि पप्पू घर पर नहीं है. वह सुबह से ही निकले हैं

पप्पू आपराधिक प्रवृत्ति का था. मोहल्ले के सभी लोग उसे अच्छी तरह जानते थे. सन 2004 में उस ने एक 7 साल की बच्ची के साथ रेप और हत्या की कोशिश की थी.

उस बच्ची के बयान के बाद उसे 10 साल की सजा हुई थी. वह 10 साल की सजा काट कर जेल से हाल ही में बाहर आया था. ऐसे में उस के साथ मुसकान के गायब होने से उस के परिवार वाले ही नहीं, बल्कि मोहल्ले के लोग भी परेशान और आशंकित थे.

अंत में सभी लोग एक राय हो कर सीधे जैतपुरा थाना पहुंच गए, जहां थानाप्रभारी रमेश यादव को पूरी बात बताने के साथ बेटी मुसकान का पता लगाने की गुहार लगाई. तब पुलिस ने 26 नवंबर को ही अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 363 के तहत मामला दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद जैतपुरा थाना पुलिस मुसकान और पप्पू को तलाशने लगी. पर दोनों का ही पता नहीं लगा. मुसकान का पता न लगने पर मोहल्ले के लोगों में भी आक्रोश भर गया. लोगों ने पुलिस को आंदोलन करने की भी धमकी दे डाली.

तीसरे दिन सोमवार 29 नवंबर, 2016 को जैसे ही अखबारों के माध्यम से जौनपुर में बच्ची का शव पाए जाने की खबर आजाद कुरैशी को हुई तो वह परिजनों के साथ जौनपुर पहुंच गए. तब पता चला कि वह लाश किसी और की नहीं, बल्कि मुसकान की ही थी.

पप्पू गुप्ता से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे भादंवि की धारा 363, 366, 367(च), 302, आईपीसी व पोक्सो एक्ट के तहत गिरफ्तार कर उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक जहां उस की जमानत नहीं हो पाई थी, वहीं उस के किए पर उस के 2 छोटे भाई और पत्नी भी शर्मसार हैं. उन्हें मोहल्ले वालों के तानों से दोचार होना पड़ रहा है.

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